यह घटना उत्तर प्रदेश के बिजनौर शहर की है, जहां छम्मो नाम की एक औरत अपने शौहर अली और बेटे आलम के साथ एक किराए के मकान में रहती थी. छम्मो गदराए बदन की औरत थी. उस की खूबसूरती और उठी हुई मोटीमोटी छाती देख कर कोई भी उस की तरफ फौरन खिंच जाता था.

छम्मो का उठा हुआ सीना देख कर लोग अपनी लार टपकाते थे. जब वह चलती तो लोग उस के उठे हुए कूल्हे देख कर उस पर नजर गड़ाए रहते और उसे पाने की लालसा रखते.

बिजनौर में छम्मो अपने शौहर अली के साथ खुशीखुशी रह रही थी. उस का 5 साल का बेटा आलम 10वीं जमात में पढ़ता था. छम्मो का शौहर अली एक ट्रक ड्राइवर था, जो महीनेभर में 20 दिन तो घर से बाहर ही रहता था.

अली की माली हालत काफी कमजोर थी, जबकि छम्मो फैशनपरस्त औरत थी. इस बात पर उस का अपने शौहर अली से झगड़ा होता था.

यही वजह थी कि अली ने अब घर आना छोड़ दिया था और वह अपनी जिस्मानी जरूरत बाहर की औरतों के पास जा कर पूरी करने लगा था. अली के घर पर न आने और खर्चा न देने से छम्मो कुछ दिन तो काफी परेशान रही, फिर उस ने अपने जीने और मौजपरस्ती का एक नया रास्ता ढूंढ़ लिया.

हुआ यों था कि एक सुबह जब छम्मो नहा कर निकली, तो उस ने तौलिए से अपने जिस्म को ढक रखा था. वह आईने के सामने खड़ी हो कर कुछ गुनगुना रही थी कि अचानक उस का तौलिया उस के जिस्म से हट कर फर्श पर गिर गया.

छम्मो ने जब अपने खूबसूरत बदन और ऊंची उठी हुई छाती को आईने में देखा, तो वह हैरान रह गई. वह सोचने लगी कि इस गदराए बदन से तो किसी भी मर्द को अपनी ओर खींच कर उसे लूटा जा सकता है.

छम्मो ने अब अपने शिकार को ढूंढ़ना शुरू कर दिया. जल्द ही उस ने एक वकील शाहिद को अपनी मदमस्त जवानी का दीवाना बना लिया. शाहिद छम्मो के नाजुक और गदराए बदन को देख कर लार टपकाने लगा और उसे घूरघूर कर अपने दिल की ख्वाहिश छम्मो को बताने की कोशिश करने लगा.

छम्मो शाहिद का इशारा भांप गई, तो उस ने भी अपनी कातिल मुसकान बिखेर कर उसे बेकाबू कर दिया.

शाहिद मौका देख कर छम्मो के पास आया और बोला, ‘‘आप कितनी खूबसरत हो. मैं ने पहले कभी आप को यहां नहीं देखा.’’

छम्मो हंसते हुए बोली, ‘‘हां, मैं अभी  कुछ दिन पहले ही यहां किराए पर

रहने आई हूं. मेरा घर महल्ला काजीपुरा में है.’’

शाहिद ने कहा, ‘‘तो आज शाम की चाय मुझ नाचीज के साथ हो जाए?’’

छम्मो हंसते हुए बोली, ‘‘आप का हुक्म सिरआंखों पर. आप अगर मेरे साथ चाय पीना चाहते हैं, तो मैं कौन होती हूं आप को मना करने वाली.’’

शाम का समय था. छम्मो और शाहिद एक कैफे में बैठे चाय की चुसकी ले रहे थे. आसमान में काले घने बादल छाए हुए थे. मौसम आज कुछ ज्यादा ही रंगीन नजर आ रहा था.

शाहिद ने छम्मो के हाथ पर अपना हाथ रखा, तो वह मुसकरा दी. शाहिद समझ गया कि छम्मो को उस की यह हरकत बुरी नहीं लगी.

तभी तेज बारिश शुरू हो गई. वे दोनों अपनेआप को बारिश से बचतेबचाते भी बुरी तरह भीग गए.

छम्मो के भीगे कपड़े उस के जिस्म से चिपक गए, तो उस के बदन का एकएक अंग साफ नजर आने लगा,

जिसे देख कर शाहिद छम्मो का दीवाना हो गया.

शाहिद ने छम्मो से कहा, ‘‘बुरा न मानो, तो एक बात कहूं कि आज रात हम दोनों इस होटल में ही रुक जाते हैं. बारिश का कुछ पता नहीं है कि कब रुकेगी. वैसे भी हमारे कपड़े बुरी तरह भीग गए हैं.’’

छम्मो बोली, ‘‘नहीं, मेरा बेटा घर पर अकेला है. वह मेरी राह देख रहा होगा. मुझे अब चलना चाहिए.’’

शाहिद बोला, ‘‘ठीक है, मैं तुम्हें अपनी गाड़ी से घर तक छोड़ देता हूं.’’

शाहिद ने गाड़ी स्टार्ट की और छम्मो को अपनी बगल वाली सीट पर बैठाया और उस के घर की तरफ चल दिया.

कुछ ही देर में छम्मो का घर आ गया, तो शाहिद बोला, ‘‘मुझे ठंड लग रही है, एक कप गरमागरम कौफी तो पिला दो.’’

छम्मो पहले तो कुछ न बोली, पर जब शाहिद ने दोबारा कहा, तो उस ने कहा, ‘‘ठीक है, आ जाओ.’’

छम्मो जैसे ही घर पहुंची, तो उस ने देखा कि उस का बेटा आलम अभी तक घर नहीं आया है.

छम्मो ने फौरन आलम को फोन लगाया और उस से पूछा, ‘‘आलम, तुम  कहां हो?’’

आलम बोला, ‘‘अम्मी, मैं अपने दोस्त के घर आया था. हम पढ़ाई कर रहे थे कि तभी तेज बारिश आ गई, तो अंकलआंटी ने बोला कि तुम आज रात हमारे घर पर ही सो जाओ. मैं ने उन्हें बहुत मना किया, पर बारिश बहुत तेज थी, तो मजबूरन मुझे यहीं रुकना पड़ रहा है.

‘‘आप फिक्र मत करो, मैं सुबह होते ही आ जाऊंगा,’’ कह कर आलम ने फोन रख दिया.

शाहिद और छम्मो पूरी तरह भीग चुके थे. छम्मो ने शाहिद को अपने शौहर अली के कपड़े देते हुए कहा, ‘‘आप को ठंड लग रही होगी. आप कपड़े बदल लें, तब तक मैं आप के कपड़े इस्तरी से सुखा देती हूं.’’

छम्मो का गोरा बदन अभी भी भीगे हुए कपड़ों में संगमरमर की तरह साफ चमक रहा था, जिसे शाहिद निहार रहा था और उसे अपने आगोश में लेने का बहाना ढूंढ़ रहा था.

तभी छम्मो बोली, ‘‘मैं कपड़े बदल लेती हूं, उस के बाद आप को कौफी पिलाती हूं, ताकि शरीर में कुछ गरमी आ जाए.’’

छम्मो कपड़े बदलने अपने कमरे में गई और एक सुर्ख गुलाबी रंग की नाइटी पहन कर जब बाहर आई, तो शाहिद उसे देख कर अपने होश खो बैठा.

वह नाइटी छम्मो के गोरे बदन पर अलग ही कयामत ढा रही थी. उस की ऊंची उठी हुई छाती उस की नाइटी से बाहर निकलने को बेताब थी.

शाहिद ने फौरन छम्मो की कमर में अपनी बांहों का जाल डाल दिया और उस के रसीले होंठों को चूसने लगा.

शाहिद की पकड़ इतनी मजबूत थी कि छम्मो अपनेआप को उस की पकड़ से छुड़ाने की नाकाम कोशिश करती रही, फिर कुछ देर बाद उस ने खुद को शाहिद की बांहों में धकेल दिया.

शाहिद छम्मो की गरदन पर अपने चुम्मों की बौछार करने लगा, तो छम्मो कसमसाने लगी और उस ने भी शाहिद को कस कर अपनी बांहों में जकड़ लिया. कुछ ही देर में उन दोनों के बीच जिस्मानी रिश्ता बन गया. पूरी रात यह सिलसिला चलता रहा.

सुबह होते ही शाहिद छम्मो को 5,000 रुपए दे कर बोला, ‘‘हमें खुश करने का तुम्हारा इनाम.’’

छम्मो ने खुश हो कर शाहिद को अपने गले लगा लिया और उस के गाल पर एक चुम्मा रसीद करते हुए उस का शुक्रिया अदा करने लगी.

अब शाहिद और छम्मो को जब भी मौका मिलता, वे दोनों एकदूसरे से अपनी जिस्मानी जरूरत पूरी करते और खूब मजा लेते. शाहिद हर बार छम्मो को एक मोटी रकम अदा करता था.

एक दिन छम्मो शाहिद के साथ अपने ही घर में रंगरलियां मना रही थी कि अचानक उस का शौहर अली आ गया.

घर बंद था. अली ने दरवाजा खटखटाया, पर काफी देर तक दरवाजा नहीं खुला, तो वह बाहर ही इंतजार करने लगा.

काफी देर बाद जब दरवाजा खुला, तो अंदर से किसी गैरमर्द को बाहर निकलते देख अली हैरान हो गया और वह अंदर जा कर छम्मो से बोला, ‘‘कौन था जिस के साथ तुम भीतर से दरवाजा बंद कर के बैठी थी?’’

छम्मो बोली, ‘‘तुम्हें इस से क्या मतलब? मैं किस के साथ हूं, क्या कर रही हूं, तुम होते कौन हो मुझ से यह मालूम करने वाले?’’

अली ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारा शौहर हूं. मुझे भी यह जानने का पूरा हक है कि तुम बंद कमरे में किस के साथ हो और क्या कर रही हो.’’

छम्मो बोली, ‘‘मैं तुम्हें यह हक नहीं देती और तुम अपने गरीबान में झांक कर देखो, जो बीवी को अकेला छोड़ कर चले गए. तुम न तो मुझे खर्चा देते हो और न ही जिस्मानी सुकून. मैं नहीं मानती तुम्हें कुछ भी अपना.

‘‘आज से मेरे काम में टांग अड़ाने या मुझ से कुछ पूछने की हिम्मत मत करना, वरना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा.’’

अली छम्मो की यह बात सुन कर दंग रह गया. वह समझ गया कि छम्मो को इस दलदल में घुसाने का जिम्मेदार कुछ हद तक वह भी है. वह कुछ नहीं बोला और वहां से चुपचाप चला गया.

अब छम्मो खुलेआम शाहिद के साथ मजे करने लगी. वह अपना जिस्म शाहिद को सौंप देती, जिस के एवज में शाहिद उसे मोटी रकम दे दिया करता.

उधर जब लोगों को छम्मो और शाहिद के इस नाजायज रिश्ते का पता चला, तो वे तरहतरह की बातें करने लगे. पर किसी के अंदर छम्मो के इस गलत रिश्ते का विरोध करने की हिम्मत न थी, क्योंकि छम्मो झगड़ालू किस्म की औरत थी और लड़ने झगड़ने के लिए तैयार रहती थी.

आलम के सारे दोस्त उस का मजाक उड़ाते और उस पर तंज कसते. आलम परेशान रहने लगा. उस ने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया, पर उस के अंदर अपनी अम्मी से कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं थी.

एक रात की बात है. आलम अपने घर पर सोया हुआ था कि तभी शाहिद वहां आ गया. आलम को सोता देख उस ने छम्मो को अपनी बांहों में उठाया और बिस्तर पर ले गया.

छम्मो भी बेकाबू हो गई. उस का तनमन जोश में आने लगा और उस ने शाहिद को अपनी बांहों में भर लिया.

शाहिद ने भी छम्मो को चूमना शुरू कर दिया. थोड़ी ही देर में पूरा कमरा कामुक आवाजों से गूंजने लगा. वे दोनों अपने जिस्म की आग बुझाने के लिए इतने बेताब हो गए कि उन्होंने एकदूसरे के कपड़े उतारने शुरू कर दिए. उन्हें यह भी खयाल न आया कि आलम घर में है. वे अभी एकदूसरे के जिस्म का मजा ही ले रहे थे कि आलम की नींद खुल गई. उस ने कामुक आवाज सुन कर अपनी अम्मी के कमरे में झांक कर देखा, तो हैरान रह गया.

अपनी अम्मी की करतूत देख आलम रोने लगा. उसे लोगों की कही बात सच होती दिख रही थी. उसे अपनी अम्मी से नफरत हो रही थी. वह समझ गया कि उस की अम्मी एक गंदी औरत है. पर वह कुछ कर न सका और अंदर ही अंदर घुटने लगा.

कुछ दिन बाद छम्मो बेटे आलम से बोली, ‘‘चलो, आज कोटद्वार से ऊपर दुगड्डे की पहाड़ी पर घूमने चलते हैं. वहां का मौसम बड़ा ही सुहाना रहता है. बहुत दिन हो गए पहाड़ी पर घूमे हुए.’’

आलम बोला, ‘‘ठीक है, मैं चलने के लिए तैयार हूं.’’

आलम ने अपने गुस्से और नफरत का अंदाजा अपनी अम्मी को नहीं होने दिया और उन के साथ दुगड्डे की पहाडि़यों का नजारा देखने चला गया.

काफी ऊंचाई पर पहुंच कर जब आलम ने देखा कि अब वे दोनों एकांत में हैं, तो उस ने मौका देख कर अपनी अम्मी को पहाड़ियों से नीचे धक्का दे दिया.

पलभर में ही छम्मो पहाड़ी से गिरती और पत्थरों से टकराती हुई गहरे पानी में जा गिरी.

आलम ने अम्मी को अपनी आंखों से नीचे गिरता देखा था, जिस का सदमा उस के दिल पर एक गहरी छाप छोड़ गया.

इस के बाद आलम अपने घर आ गया और गुमसुम सा रहने लगा. न किसी से बातचीत, न किसी से मिलना. न खाने की फिक्र, न पहनने की चिंता.

वह तो बस हर समय गहरी सोच में डूबा रहता.

कई दिनों तक जब छम्मो आसपास के लोगों को दिखाई न दी, तो उन्होंने आलम से छम्मो के बारे में पूछा.

इतना सुनते ही आलम पागलों की तरह चिल्लाते हुए बोला, ‘‘मार डाला… मैं ने अपनी अम्मी को मार डाला… वह गंदी औरत थी…’’

लोग आलम को अजीब सी नजरों से देखने लगे. एक आदमी ने कहा, ‘‘भला तुम क्यों अपनी अम्मी को मारोगे?’’

पर आलम बोलता रहा, ‘‘मार डाला. मैं ने एक गंदी औरत को मार डाला. पहाड़ी से धक्का दे कर मार डाला.’’

तभी दूसरा आदमी बोला, ‘‘यह तो पागल हो गया है. भला यह क्यों अपनी अम्मी को मारेगा और कैसे मारेगा?’’

आलम चिल्लाते हुए बोला, ‘‘मैं ने ऐसे मारा तुम देख लो, वह ऐसे मरी,’’ कहते हुए वह तेज रफ्तार से भाग कर दोमंजिला मकान की छत पर चढ़ गया और चिल्ला कर बोला, ‘‘ऐसे मरी छम्मो…’’ कहते हुए उस ने ऊपर से छलांग लगा दी. पलभर में ही आलम ने भी तड़पतड़प कर दम तोड़ दिया.

लोग आलम की यह हरकत देख कर हैरान रह गए. उन्हें समझ आ गया कि आलम ने ही अपनी मां को पहाडि़यों से धक्का दे कर नीचे फेंक दिया था, जिस से वह मर गई.

इस तरह आलम अपनी मां की ऐयाशी के चलते उस की जान का दुश्मन बन गया. उस ने अपनी अम्मी को तो मार ही डाला, पर इस मौत का असर उस के दिल पर इस कदर हुआ कि वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठा और उस ने अपनेआप को भी मौत के गले लगा लिया.

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