जब गीदड़ की मौत आती है, तो वह शहर की ओर भागता है और जब किसान की बरबादी आती है, तो वह अपने खेत बेचता है.

कर्णपुर के चौधरी राजपाल सिंह और महिपाल सिंह दोनों सगे भाई 40 बीघा जमीन के खुशहाल काश्तकार थे. खेतीबारी की सब सुखसुविधाएं उन के पास थीं और जमीन भी उन की ऐसी कि सोना उगले.

बड़ा भाई राजपाल जितना सीधा, सरल और मेहनती था, छोटा भाई महिपाल उतना ही मक्कार और कामचोर था.

राजपाल को तो खेती करने के अलावा किसी और बात की कोई सुध ही नहीं थी. वह निपट अनपढ़ था. उसे तो हिसाबकिताब से दूरदूर तक का कोई मतलब ही नहीं था. ऐसा लगता था कि वह मिट्टी का बना है और उसे खेती में ही मरखप जाना है.

राजपाल का दैनिक खर्चा बस इतना सा था कि उसे दिनभर के लिए बीड़ी का एक बंडल चाहिए होता था. उसे तो बस यह चिंता रहती थी कि उस के खेतों में बढ़िया फसल कैसे हो. इस को ले कर उस की दूसरे किसानों से प्रतियोगिता चलती रहती थी.

छोटा भाई महिपाल 10वीं जमात तक पढ़ गया था. वह खेती की तरफ नजर भी नहीं धरता था. पिताजी के गुजर जाने के बाद लिखतपढ़त और हिसाबकिताब के सारे काम उस के हिस्से में आ गए थे. सुबह से ही तैयार हो कर वह किसी न किसी बहाने शहर चांदपुर की ओर निकल जाता, थिएटर में सिनेमा देखता, खातापीता, मौज उड़ाता और देर शाम घर लौटता. घर लौट कर ऐसा जाहिर करता कि शहर में न जाने कितने पहाड़ तोड़ कर आया है.

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