‘फुलेरा’ के बहाने अंधविश्वास की खुलती पोल

तकरीबन 4 साल पहले आई दीपक मिश्रा के डायरैक्शन में बनी वैब सीरीज ‘पंचायत’ नौजवान तबके द्वारा काफी पसंद की गई थी, क्योंकि इस में फुलेरा गांव के बहाने भारत की देहाती जिंदगी की झलक दिखाई गई थी, जिस से जब पढ़ालिखा नयानया बना शहरी पंचायत सचिव अभिषेक त्रिपाठी (जितेंद्र कुमार) रूबरू होता है, तो हैरान हो उठता है कि गांव की राजनीति में आज भी दबंगों का रसूख चलता है और उस में भ्रष्टाचार भी जम कर होता है.

इसी वैब सीरीज के एक प्रसंग में अंधविश्वासों का भी जिक्र है. होता कुछ यों है कि एक योजना के तहत गांव में सोलर एनर्जी के 11 खंभे लगाने की मंजूरी मिली हुई है. पंचायत की मीटिंग में सभी रसूखदार अपने घरों के सामने खंभा लगाने का प्रस्ताव पास करा लेते हैं.

एक आखिरी खंभा लगने की बात आती है, तो उसे गांव के बाहर की तरफ पेड़ के पास लगाने का प्रस्ताव आता है. पर गांव वाले मानते हैं कि उस पेड़ पर भूत रहता है.

अभिषेक त्रिपाठी चूंकि एमबीए कर रहा है, इसलिए पढ़ाई की अपनी सहूलियत के लिए चाहता है कि आखिरी बचा हुआ खंभा पंचायत औफिस के बाहर लग जाए, जहां वह एक कमरे में रहता है. भूत वाली बात पर उसे यकीन नहीं होता, इसलिए वह उस की सचाई जानने के लिए निकल पड़ता है.

अभिषेक त्रिपाठी को पता चलता है कि कुछ साल पहले गांव के एक सरकारी स्कूल के मास्टर ने अपनी नशे की लत छिपाने के लिए यह झठ फैलाया था, जो इस कदर चला था कि कई गांव वालों को भूत होने का एहसास हुआ था.

कइयों को अंधेरी रात में उस भूत ने पकड़ा और दौड़ाया था. राज खुलता है, तो सभी हैरान रह जाते हैं और खंभा अभिषेक त्रिपाठी की मरजी और जरूरत के मुताबिक लग जाता है.

देश में इन दिनों भूत वाले एक नहीं, बल्कि कई ?ाठसफेद, कालेहरे, पीलेभगवा, नीले सब इफरात से चल नहीं, बल्कि दौड़ रहे हैं. नशेड़ी मास्टर तो सिर्फ भूत होने की बात कहता है, लेकिन कई लोग बताने लगते हैं कि यह भूत उन्होंने देखा है.

कच्चे चावलों की खिचड़ी बनाने का काम इतने आत्मविश्वास से जोरों पर है कि झठ और सच में फर्क कर पाने के मुश्किल काम को छोड़ लोग झठ को ही सच करार देने लगे हैं कि कौन बेकार की कवायद और रिसर्च के चक्कर में पड़े, इसलिए मास्टरजी जो कह रहे हैं, उसे ही सच मान लो और उस का इतना हल्ला मचाओ कि कोई हकीकत जानने के लिए पेड़ के पास जाने की हिम्मत ही न करे.

गलत नहीं कहा जाता कि झठ के पैर नहीं होते. दरअसल, झठ के मीडिया और सोशल मीडिया रूपी पंख होते हैं, जिन के चलते वह मिनटों में पूरा देशदुनिया घूम लेता है और सच कछुए की तरह रेंगता रहता है.

झठ में अगर धर्म, अध्यात्म और दर्शन का भी तड़का लग जाए, तो वह और अच्छा लगने लगता है. आप लाख पढ़ेलिखे हों, लेकिन आग और ऊर्जा में फर्क नहीं कर पाएंगे और जब तक सोचेंगे और उस पर अमल करेंगे, तब तक गंगा और सरयू का काफी पानी बह चुका होगा.

अब से तकरीबन 28 साल पहले साल 1995 में अफवाह उड़ी थी कि मंदिरों में गणेश दूध पी रहे हैं. बस, फिर क्या था. देखते ही देखते गणेश मंदिरों में भक्त लोग दूध का कटोरा ले कर उमड़ पड़े थे.

जिन्हें गणेश के मंदिरों में जगह नहीं मिली, उन्होंने घर में रखी मूर्तियों के मुंह में जबरन दूध ठूंस कर प्रचारित कर दिया कि उन की मूर्ति ने भी दूध पीया. जिन के घर गणेश की मूर्ति नहीं थी, उन्होंने राम, कृष्ण, शंकर और हनुमान तक को दूध पिला दिया.

उस अफरातफरी का मुकाबला वर्तमान दौर की कोई आस्था नहीं कर सकती, जिस के तहत भक्तों के मुताबिक भगवान ने समोसे, कचौड़ी, छोलेभटूरे, जलेबी और बड़ा पाव भी खाए. सार यह है कि मूर्तियों में इंद्रियां होती हैं और प्राण भी होते हैं. समयसमय पर यह बात अलगअलग तरीकों से साबित करने की कोशिश भी की जाती है.

अब मूर्तियां पलक झपकाएं, हंसें और रोएं भी तो हैरानी किस बात की. हैरानी सिर्फ इस बात पर हो सकती है कि 21 सितंबर, 1995 की आस्था असंगठित थी, उस के लिए कोई समारोह आयोजित नहीं करना पड़ा था और न ही खरबों रुपए खर्च हुए थे. बस, कुछ करोड़ रुपए लिटर दूध की बरबादी हुई थी.

तब भी विश्व हिंदू परिषद ने इसे सनातनी चमत्कार कहा था और दुनियाभर के देशों में रह रहे हिंदुओं ने मूर्तियों को दूध पिलाया था. तब भी मीडिया दिनरात यही अंधविश्वास और पाखंड दिखाता और छापता रहा था.

भारत में नागपंचमी पर नाग को दूध पिलाने का रिवाज है, जबकि यह कोरा अंधविश्वास है, क्योंकि सांप दूध पीता ही नहीं है. लोग यह मानते हैं कि इस दिन सांप को दूध पिलाने से उन की हर इच्छा पूरी होगी, पर यह सच नहीं है.

यह विश्वास या आस्था होती ही ऐसी चीज है, जिस में न होने का एहसास कोई माने नहीं रखता. कोई है और आदि से है और अंत तक रहेगा, यह फीलिंग बड़ा सुकून देती है. फिर चाहे वह पेड़ वाला भूत हो या फिर कोई मूर्ति हो, इस से कोई फर्क नहीं पड़ता.

सच यही है कि यह एक विचार है और रोटी, पानी, रोजगार और दीगर जरूरतों से ज्यादा देश को विचारों की जरूरत है, जिस से दुनिया देश का लोहा माने कि देखो इन्हें भूखेनंगे और फटेहाल हैं, लेकिन इन के विचार बड़े ऊंचे हैं.

इस चक्कर में देश बेचारों का बन कर रह जाए, इस की परवाह जिन को है वे वाकई बेचारे हैं और पत्थर से सिर फोड़ने की बेवकूफी कर रहे हैं. लेकिन यकीन मानें तो यही वे लोग हैं, जो एक न एक दिन अभिषेक त्रिपाठी की तरह अंधविश्वास के भूत के सच उजागर करेंगे.

अनपढ़ता, गरीबी और बेरोजगारी से जूझता मुसलिम तबका

जिस मुसलिम कौम ने कई सदियों तक राज किया, साल 1857 की क्रांति की लड़ाई में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया, देश को अंगरेजों की गुलामी से आजाद कराने वाले आंदोलन में भाग लिया और फिर 1947 में देश को आजाद कराने में भागीदारी निभाई, आज उसी तबके की दशा चिंताजनक है.

वर्तमान दौर में यह तबका माली, सामाजिक,  पढ़ाईलिखाई, राजनीतिक व सांस्कृतिक रूप से पिछड़ रहा है. इस के जिंदगी जीने के ग्राफ में भी गिरावट देखी जा रही है.

मुसलिम समाज आज अनपढ़ता, गरीबी और बेरोजगारी से भी जू?ा रहा है. इस वजह से समाज अनैतिक कामों के जाल में फंसता चला जा रहा है. आखिर इस बदहाली का कुसूरवार कौन है?

समाज के रहनुमा गौर करें : रहबर ए कौम सम?ा ले ये हकीकत है बड़ी, कौम छोटी है, मगर इस की रिवायत है बड़ी.

इस समाज के रहनुमाओं की राजनीतिक नुमाइंदगी और शासनप्रशासन में भागीदारी नहीं के बराबर है और जो है, वह भी बौद्धिक रूप से भीरू है. इस तबके के लोग जिस राजनीतिक नुमाइंदगी के पीछे रहे, उस ने भी इन का शोषण ही किया. जो राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्षता का ढोंग करते हैं, वे भी पीठ पीछे घात ही लगाते हैं.

इन सब बातों पर इस समाज को फिक्र करनी होगी. देश का वातावरण वर्तमान समय में दूषित है और हमें आपसी भाईचारे से रहना है.

मस्तान बीकानेरी का कहना है : दुनिया से जो डरते थे उन्हें खा गई दुनिया, वे छा गए दुनिया में जो डरते थे खुदा से.

मुसलिम समाज की हालत पर आखिरकार देश के तब के प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह ने 58 साल बाद यह महसूस किया कि मुसलिमों के सामाजिक, माली, पढ़ाईलिखाई और राजनीतिक पिछड़ेपन के कारण व निवारण के लिए कुछ किया जाए, तो फिर उन्होंने जस्टिस राजेंद्र सच्चर की अध्यक्षता में साल 2005 में एक कमेटी बनाई थी.

इस आयोग की रिपोर्ट भी चौंकाने वाली थी और मुसलिमों के हालात अनुसूचित जातियों से भी बदतर बताए गए थे. ऐसा ही कुछ जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग ने भी बताया था. इन आयोगों ने जो सु?ाव दिए, उन्हें लागू करने में भी उदासीनता ही रही. वे सु?ाव अब ठंडे बस्ते में पड़े हैं.

किसी शायर ने कहा है : बेइल्म, बेहुनर रहेगी दुनिया में जो भी कौम, कुदरत की इकतिजा है, बन के रहेगी वो गुलाम.

मुसलिमों को इल्म व हुनर की वजह से यह दशा सुधारनी जरूरी है. इस के लिए सरकारों पर निर्भर न हो कर मुसलिमों को मौडर्न पढ़ाईलिखाई के सांचे में खुद को ढालना होगा.

कहा भी तो गया है : खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले, खुदा अपने बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है.

इस के लिए समाज के जिम्मेदार लोगों को आगे आ कर गांव और शहर के लैवल पर संगठन बना कर समाज के बुद्धिजीवी तबके की मदद से सुनियोजित तरीके से क्रांतिकारी बदलाव ला कर समाज को जागरूक करने की अलख जगाई जानी चाहिए.

आज का जमाना प्रतियोगिता का है. मुसलिमों के बच्चे गाइडैंस की कमी में पिछड़ जाते हैं. बहुत से तो सामाजिक और माली वजहों से स्कूल छोड़ देते हैं, बहुत कम ही आगे की पढ़ाई तक पहुंच पाते हैं. इस समस्या से नजात पाने के लिए भी मुहिम चलानी चाहिए.

मुसलिम समुदाय के बच्चों को मनोवैज्ञानिक ढंग से मार्गदर्शन की जरूरत है, जबकि आम लोगों की सोच बन चुकी है कि मुसलिमों को नौकरी तो मिलनी नहीं है, इसलिए इस मिथक को तोड़ना भी बहुत जरूरी है.

आज के तकनीकी जमाने में देश में पढ़ेलिखे लोगों का होना बहुत जरूरी है, क्योंकि हमारे पुश्तैनी धंधे भी आधुनिक तकनीक से चलाए जाने में उन का पढ़ालिखा होना जरूरी है, इसलिए मुसलिम समाज में आमूलचूल बदलाव लाने की दिशा में ऊंची तालीम और प्रोफैशनल कोर्स, कंप्यूटर की अच्छी जानकारी की अहमियत की गाइडैंस देना जरूरी है.

इस के साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की जानकारी देना और बच्चों को कोचिंग दिलाना जरूरी है. आज केंद्र

व राज्य सरकार की तमाम योजनाओं और दूसरे कार्यक्रमों का फायदा लेने के लिए भी उन का मार्गदर्शन किया जाए.

मुसलिमों में बढ़ चुके पिछड़ेपन को दूर करने के लिए उन्हें सामाजिक कुरीतियों और फुजूलखर्ची से भी दूर रहने की जरूरत है. यह पैसा बच्चों की तालीम पर खर्च किया जाए.

किसी ने सही कहा है : अभी वक्त है संभालो समाज को समाज के रहनुमाओ, वक्त निकल गया हाथ से तो पछताओगे तुम रहनुमाओ.

साथ ही, मुसलिम समाज के बच्चों के लिए लाइब्रेरी, होस्टल, पढ़ाईलिखाई से जुड़े संस्थानों का संचालन किया जाए और गरीब बच्चों की पढ़ाईलिखाई का पुख्ता इंतजाम कर उन्हें मैनेजमैंट, होटल, पर्यटन, चिकित्सा, पशुपालन, खेतीबारी, तमाम छात्रवृत्तियां फैलोशिप और खेलों से जुड़ी जानकारी भी दी जानी चाहिए. इस से भविष्य में मुसलिम समाज को फायदा होगा

सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के मार्केट पर एआई की सेंध

अब एआई से सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर बनाए जा रहे हैं. ये हूबहू इंसानों जैसे दिखाई दे रहे हैं. भारत में नैना, कायरा, श्रव्या इन्फ्लुएंसर के मार्केट में उतर चुकी हैं. कहीं ये इन्फ्लुएंसर्स के मार्केट में सेंध न लगा दें.

गुलाबी ब्लोंड हेयर, शार्प नोज, सधे होंठ और सुराहीदार गरदन. रोलर कोस्टर सा जिस्म ऐसा कि कोई भी फिसल जाए पर जब पता चले कि सोशल मीडिया पर एटाना लोपेज नाम की यह लड़की रियल नहीं, बल्कि एआई की दुनिया की इल्यूजन है जिसे सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के रूप में परोस दिया गया है तो हर कोई अपना माथा पकड़ लेगा.

आखिर कैसे इतनी हूबहू इंसान जैसी कोई चीज बनाई जा सकती है जिस के एक्सप्रैशन, अदाएं सब इंसान जैसे हों, जो आंखों से इशारा करती हो, नाचती हो, होंठ हिलाती हो और मदमस्त हो. यह कमाल एआई ने किया है. पत्थर की मूरत में जान फूंकने को सच मान लेने वाले इस अंधविश्वासी समय में एआई लोहे में जान फूंक रहा है. उस के रोबोट्स टैनिस व चैस खेल रहे हैं, खाना बना रहे हैं, नाच रहे हैं और अब कंपनियों के प्रचार के लिए रील भी बना रहे हैं.

एटाना लोपेज एआई अवतार में चर्चा का विषय काफी पहले बन चुकी थी. एटाना लोपेज एआई वाली सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर है. अपनी प्रोफाइल में वह खुद को वर्चुअल सोल बताती है. इस ने अभी सिर्फ 73 पोस्ट किए हैं पर इन 73 पोस्ट्स में इसे 2 लाख 72 हजार लोगों ने फौलो किया है. खुद को फिटनैस मौडल बताने वाली एटाना ने हर एक पोस्ट पर हजारों लाइक्स और शेयर पाए हैं और उन्हें शेयर किया गया है.

एटाना लोपेज इंस्टाग्राम के अलावा ट्विटर, टिकटौक पर भी है. ट्विटर पर खुद को स्पैनिश गौड्स औफ टैंपटेशन बताती है, वहां इंटिमेट और सिडक्टिव कंटैंट डालती है. इस के अलावा वह गेमिंग, फिटनैस की शौकीन भी है.

नाम भी पैसा भी

द फाइनैंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, एटाना लोपेज को एड एजेंसी क्लूपलैस की कोफाउंडर डिआना नूनेज ने बनाया है. नूनेज का कहना है कि वे इन्फ्लुएंसर्स की दिनोंदिन बढ़ती फीस से परेशान थीं. इस का कोई हल निकालने के लिए उन्होेंने एआई की सहायता से वर्चुअल इंफ्लुएंसर बनाने की सोची और एआई अवतार एटाना लोपेज को गढ़ दिया.

अब खबर यह है कि गुलाबी बालों वाली लोपेज हर महीने 9 लाख रुपए कमा रही है. सोशल मीडिया पर कंपनियां भी लोपेज से अपने प्रोडक्ट्स का प्रचार करवाने को हंसीखुशी पैसा देने को तैयार हैं.

पेटीएम फाउंडर और सीईओ विजय शेखर शर्मा ने एक्सो पर एक पोस्ट में लोपेज का जिक्र करते हुए लिखा था कि कैसे ह्यूमन इन्फ्लुएंसर के बजाय एआई इन्फ्लुएंसर्स आने वाले समय में मार्केटिंग के लिए फायदेमंद हैं.

एआई अवतार धीरेधीरे सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर की जगह लेता जा रहा है. सिर्फ एटाना लोपेज ही नहीं, इस फेहरिस्त में एक बड़ा नाम लू दो मगालू का है. उस के 68 लाख फौलोअर्स हैं. अपने पेज में वह ब्यूटी प्रोडक्ट्स का प्रचार करती है. इस के फीचर इंसानों जैसे नहीं हैं पर यह रिप्लिका बेहद फेमस है.

इसी तरह लिलमिकेला है जो 19 साल की है. जिस का जन्म 2016 में इंस्टाग्राम पर हुआ. अपने प्रोफाइल पर उस ने हैशटैग ‘ब्लैक लाइव मैटर’ लिखा हुआ है. जाहिर है यह इन्फ्लुएंसर अमेरिका में हो रहे ब्लैक पर अत्याचार पर स्टैंड लेती है. इस के इंस्टाग्राम पर 27 लाख फौलोअर्स हैं, वहीं टिकटौक पर 35 लाख और फेसबुक पर 11 लाख. यह हूबहू इंसानों जैसी है. इस की पोस्ट में दिखाई देता है कि यह पब्लिक प्लेस में घूमती है. अलगअलग जगहें ट्रैवल करती है. साथ में कंपनियों और रैस्तरां का प्रचार भी करती है.

2019 में सुपरमौडल बेला हदीद ने केल्विन क्लेन के विज्ञापनों में लिलमिकेला के साथ तसवीर खिंचवाई, जिस पर तब बात उठी थी कि यह भविष्य की एक झलक है. आज वह झलक इसलिए भी सच साबित होती दिखाई दे रही है कि यह इन्फ्लुएंसर बड़ेबड़े स्टार्स के साथ पोडकास्ट करते हुए भी नजर आ रही है.

भारत में एआई इन्फ्लुएंसर की धूम

सोशल मीडिया पर एआई इन्फ्लुएंसर सिर्फ विदेशों में ही फेमस नहीं हो रहे, इंडिया भी इस मामले में पीछे नहीं है. नैना, कायरा, टिया शर्मा और श्रव्या वे नाम हैं जो अपनी धाक जमा चुके हैं. 22 साल की नैना जो झांसी से मुंबई आई है और उस का सपना एक ऐक्ट्रैस व मौडल बनने का है. लेकिन नैना की यह स्टोरी उतनी ही फेक है जितनी वह खुद है. वह एआई से तैयार की गई है.

भारत में नैना असल और नकल के बीच बनी लाइन को ब्लर करने का काम करती है. वह खुद को भारत की पहली एआई सुपरस्टार कहती है. उस के लुक्स, हरकतें सब असल ह्यूमन की तरह हैं. उसे देख कर कोई कह नहीं सकता कि यह नकली होगी.

नैना पैपराजी से बात करती है, सैलिब्रिटी की तरह फोटो खिंचवाती है. वह ‘द नैना शो’ के नाम से पोडकास्ट चलाती है जहां सान्या मल्होत्रा, सियामी खेर जैसी बौलीवुड सैलिब्रिटीज आती हैं. वह हर तरह की वीडियो बनाती है और बताती है कि साड़ी कैसे पहनी जाए, स्टाइलिस्ट और ट्रैंडी कैसे बना जाए, बाल कैसे बनाए जाएं और मिनिमम ज्वैलरी से अच्छा लुक कैसे बनाया जाए. यानी यह एआई की जीतीजागती इन्फ्लुएंसर है जो फैशन के बारे में जानकारी देती है.

जाहिर है, एआई अब इन्फ्लुएंसर के मार्केट पर सेंध लगाने जा रहा है. कंपनियां भी इसे बढि़या चांस की तरह देख रही हैं क्योंकि इन्फ्लुएंसर्स जिस तरह किसी प्रोडक्ट के प्रचार के लिए मोटी फीस ले रहे हैं उस के मुकाबले इस तरह के डमी या डोपलैंगर्स ज्यादा किफायती साबित हो रहे हैं.

तकनीक है कमाल की

हिमांशु ने माया, ब्लैंडर और अनरियल इंजन जैसे 3डी डिजाइन टूल्स का यूज कर 2022 में कायरा को बनाया था. इन टूल्स ने वीडियो गेम और मार्वल फिल्मों में यूज की जाने वाली तकनीक के जैसे ही कायरा के चेहरे और बौडी पार्ट्स को तराशने में मदद की. वहीं दूसरी तरफ वे बताते हैं कि श्रव्या को 2023 में केवल जेनरेटिव एआई का यूज कर के बनाया गया जो बिलकुल ही रीयलिस्टिक है.

3डी टैक्नोलौजी के माध्यम से पहले कायरा जैसे डोपलैंगर्स बनाए जाते थे जिस में काफी मेहनत और रिसौर्सेज लगते थे, हालांकि इस के बावजूद कायरा से मेकर्स को फायदा हुआ है. उस ने लोरियल पेरिस, बोट, टाइटन, रियलमी और अमेरिकन टूरिस्टर जैसे बड़े ब्रैंडों के साथ कोलैबोरेट किया. कायरा के कुछ प्रचार वीडियो को 35 मिलियन यानी साढ़े 3 करोड़ से अधिक बार देखा गया है. अब एआई की हैल्प से आसानी और किफायत में ये बनाए जा रहे हैं जो ज्यादा रियल दिखाई देते हैं.

एआई इन्फ्लुएंसर कहीं न कहीं रियल इन्फ्लुएंसर्स के लिए बड़ी चुनौती साबित होते जा रहे हैं. क्योंकि अधिकतर इन्फ्लुएंसर्स का कंटैंट एकजैसा होता है. उन में वैराइटी और क्रिएटिविटी की कमी होती है. किसी ट्रैंडिंग सौंग पर अपना शरीर और होंठ हिला लेना उन्हें कंटैंट लगता है.

आमतौर पर इन्फ्लुएंसर्स के लिए रील का कंटैंट यही है तो इस अनुसार इस से कहीं ज्यादा अच्छा कंटैंट एआई देने में सक्षम है. आज एआई इस फील्ड में घुस रहा है. इस तरह के इन्फ्लुएंसर्स गढ़ने में कई हाईप्रोफाइल टीम जुट गई हैं. उन की टीम ऐसे एआई मौडल बनाने पर काम कर रही है जो एक कमांड में कुछ सैकंड के छोटे रील व वीडियो बनाने में सक्षम हों.

अलग यह है कि एआई इन्फ्लुएंसर्स कई भाषाओं में कंटैंट दे सकते हैं. इन के पास भाषा की रुकावट नहीं है. इन के पास उम्र की भी सीमा नहीं है. ये आज जिस तरह दिखाई दे रहे हैं, हर समय उसी तरह दिखाई दे सकते हैं. इसलिए इस तरह के इन्फ्लुएंसर्स ग्लोबली पौपुलर होने का दमखम रखते हैं. यही कारण भी है कि एटाना लोपेज, लिलमिकेला ग्लोबली फेमस हैं.

नामचीन भी एआई की दुनिया में

और तो और, अब फेमस सैलिब्रिटीज ने भी अपना एआई अवतार बनाना शुरू कर दिया है, जिस में बौलीवुड स्टार सनी लियोनी का नाम जुड़ा है. उस ने अपने डोपलैंगर अवतार पर कहा कि, ‘मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि यह मैं हूं. अब जब आप चाहें मुझ से बात कर सकते हैं और देख सकते हैं.’ इस इंस्टा पोस्ट पर उन्होंने ञ्चद्मड्डद्वशह्लश.ड्डद्ब को टैग किया.

पिछले साल साइंस फिक्शन पौपुलर वैब सीरीज ‘ब्लैक मिरर’ का 6ठा सीजन आया था. उस में पहले एपिसोड ‘जोआन इज औफुल’ में इसी तरह के एआई अवतार की तरफ इशारा किया गया था. उस में दिखाया गया था कि कैसे एआई की मदद से अब परदे पर एआई सैलिब्रिटीज दिखाई जाएंगी जो हूबहू असल सैलिब्रिटीज की तरह ही होंगी. इस में रियल ऐक्ट्रैस के साथ कौन्ट्रैक्ट साइन होता है, फिर उस का एआई क्लोन बना कर फिल्म बना दी जाती है. यह सब आने वाले टाइम में सच साबित हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता.

लेकिन शुरुआत अभी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के साथ हो गई है, जहां उन का बाजार अब छिनता दिखाई दे रहा है. हालांकि इस तरह के एआई इन्फ्लुएंसर के साथ समस्या यह है कि ये चाहे परोस कैसा भी कंटैंट रहे हों, इन की बुनियाद झूठ पर टिकी होगी और कहे या बताए पर जल्दी भरोसा नहीं किया जा सकता. लेकिन सोशल मीडिया की बाढ़ में कौन,कब, कहां मिक्स हो जाए, पता नहीं चलता.

लवर औन मोबाइल औफ

एक तरफ सोशल मीडिया पर रिलेशनशिप आसानी से बनने लगे हैं वहीं दूसरी तरफ इसी के चलते टूट भी रहे हैं. हद से ज्यादा सोशल मीडिया में घुसे रहना रिश्तों में खटास लाता है. जरूरी है कि पार्टनर के साथ रहते सोशल मीडिया को म्यूट कर दिया जाए.

ब्लैक शौर्ट ड्रैस पहनी 20 साल की सारा आधे घंटे से अपने मोबाइल फोन में लगी हुई है. कभी वह टेबल पर सजी डिश की फोटो खींच रही है तो कभी वैन्यू का बूमरैंग बना रही है, कभी सैल्फी क्लिक कर रही है. इस के साथ वह तुरंत ही इन्हें अपनी इंस्टा स्टोरी, व्हाट्सऐप और स्नैपचैट पर लगा रही है. यह हाल उस का तब है जब वह पहले से ही विशेष से इस वैन्यू पर अपनी कई रील बनवा चुकी है.

विशेष काफी देर से यह सब देख रहा है. लेकिन कुछ बोल नहीं रहा. वह बस इंतजार कर रहा है कि कब सारा अपना फोन साइड में रखे और उस से बातें करे. लेकिन सारा को तो फुरसत ही नहीं है सोशल मीडिया से.

हद तो तब हो गई जब सारा इंस्ट्राग्राम पर लाइव चली गई. वह भी तब जब वह अपने पार्टनर के साथ डेट पर आई है. कौफी, पिज्जा, पास्ता सब ठंडा हो गया लेकिन सारा के हाथ से फोन नहीं छूटा. यह बात विशेष को बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी. उस का पेशेंस अब जवाब दे चुका है.

विशेष सारा से भौंहें चढ़ाते हुए कहता है, ‘‘यह हमारी डेट है, तुम्हारा कोई व्लौग वीडियो नहीं, जो तुम फोन में ही लगी रहो. मैं भी चाहूं तो फोन में लग सकता हूं, बूमरैंग बना सकता हूं पर मुझे तुम्हारे साथ वक्त बिताना है. तुम्हारी वाइब एंजौय करनी है. तुम से बातें करनी हैं. तुम्हारा हाथ पकड़ कर बैठना है. लेकिन तुम अपना मोबाइल छोड़ो तो न. मुझे तो ऐसा लग रहा है कि तुम मेरे साथ डेट पर नहीं आईं बल्कि अपने फोन के साथ आई हो.’’

यह सब सुन कर सारा ने कहा, ‘‘वेट न विशेष, अभी मैं इंस्टा पर लाइव हूं. तुम थोड़ा वेट नहीं कर सकते.’’

यह सुन कर विशेष ने थोड़ी देर इंतजार किया, फिर वहां से उठ कर चल दिया. इस के बावजूद सारा ने अपना इंस्टा लाइव बंद नहीं किया. 5 मिनट बाद जब वह असल दुनिया में आई तो देखा विशेष सामने नहीं था. उस ने उसे कौल किया.

गुस्से में विशेष ने उस की कौल नहीं उठाई. सारा ने कई बार कौल किया लेकिन इस का कोई फायदा नहीं हुआ.

कई दिन हो गए विशेष और सारा के बीच में कोई बात नहीं हुई. न सारा ने अपने बिहेवियर के लिए सौरी कहा, न ही विशेष ने पैचअप करने की कोशिश की. फिर एक दिन विशेष को अपने म्यूचुअल फ्रैंड से पता चला कि सारा किसी और को डेट कर रही है और उसे वह लड़का सोशल मीडिया में ही मिला था.

सारा का विशेष से दूसरा ब्रेकअप था. उस के दोनों ब्रेकअप होने की वजह सोशल मीडिया पर हद से ज्यादा समय बिताना था. रील्स की लत उसे ऐसी लगी है कि बातें करतेकरते वह रील भी देखती रहती है. वह हर वक्त सोशल मीडिया में ही घुसी रहती थी, फिर चाहे वह किसी रोमांटिक डेट पर आई हो या गोवा के बीच पर सनराइज का मजा ले रही हो. 24 घंटे उस के हाथ में मोबाइल ही होता था.

सोशल मीडिया की यह लत हर दूसरे यंगस्टर को है. मैट्रो सिटी में रहने वालों के रिश्ते भी सोशल मीडिया पर बन कर टूट रहे हैं. सारा और विशेष का उदाहरण ही है, जहां उन के रिलेशनशिप टूटने या उस में मनमुटाव आने का कारण सोशल मीडिया व उन का मोबाइल फोन का ज्यादा यूज करना है.

दिल्ली यूनिवर्सिटी से मास कम्यूनिकेशन करने वाली 19 साल की ईशा कहती है, ‘‘यह जो दौर चल रहा है वह दिखावट का दौर है. यंगस्टर्स पर्सनल लाइफ सोशल मीडिया पर परोसना पसंद करते हैं. असल में इन्हें लाइक, शेयर और सब्सक्राइब की लत लगी है और इसे पाने के लिए ये हौस्पिटल में बीमार पड़ी अपने परिवार की सदस्या की रील बनाने से भी नहीं हिचकिचाते.

यंगस्टर्स सोशल मीडिया का इतना दीवाना है कि वह अपने हर मूमैंट को कैप्चर करना चाहता है, चाहे वह पार्टनर के साथ प्राइवेट मूमैंट ही क्यों न हो. वह जल्दी से इन्हें इंस्टाग्राम फेसबुक, स्नैपचैट, व्हाट्सऐप जैसे सोशल साइट्स पर अपलोड करना चाहता है.

इन में ऐसे भी कुछ लोग हैं जो रियल लाइफ से ज्यादा रील लाइफ में जीते हैं. दिन में 10 बार अपना स्टेटस अपडेट करते हैं. इतने से भी मन नहीं भरता तो दूसरे के व्हाट्सऐप स्टेटस देखते रहते हैं. कभी उन की इंस्टाग्राम स्टोरी तो कभी रील देखने लगते हैं. यही है अब यंगस्टर्स की लाइफ. क्या पर्सनल क्या प्राइवेट, सब सोशल मीडिया पर देखा जा सकता है.

सोशल मीडिया पर ऐक्टिव

लोग कितना वक्त सोशल मीडिया पर बिताते हैं, वर्ल्ड स्टेटिक्स नाम के एक ट्विटर अकाउंट पर इस की जानकारी दी गई. इस रिपोर्ट के मुताबिक, नाइजीरिया सब से ऊपर है, जहां लोग करीब साढ़े 4 घंटे सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहते हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, सोशल मीडिया पर सब से कम जापान के लोग ऐक्टिव रहते हैं. जापान के लोग सिर्फ 49 मिनट ही सोशल मीडिया पर बिताते हैं. यही कारण है कि वे टैक्नोलौजी में सब से आगे हैं. अगर जापान टैक्नोलौजी से अपना हाथ खींच ले तो दुनिया से 16 फीसदी टैक्नोलौजी गायब हो जाए. वहीं स्वीडन में यूजर्स करीब 1 घंटे 11 मिनट हर दिन सोशल मीडिया पर बिताते हैं.

अगर भारत की बात करें तो करीब 30 देशों की इस लिस्ट में भारत का 14वां स्थान है. यहां एक यूजर एक दिन में करीब 2 घंटे 44 मिनट सोशल मीडिया पर खर्च करता है. भारत में 3 में से 1 व्यक्ति सोशल मीडिया का इस्तेमाल करता है. अमेरिका में यह 2 घंटे 11 मिनट है. चीन में 2 घंटे 1 मिनट है. इस के अलावा कनाडा, आस्ट्रेलिया, स्पेन, डेनमार्क और यूके में लोग करीब 2 घंटे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं.

पिछले कुछ सालों से सोशल मीडिया हमारी लाइफ, वर्क और रिलेशन पर इफैक्ट कर रही है. जहां एक ओर सोशल मीडिया से रिलेशनशिप बनते हैं तो बहुत से टूटते भी हैं.

सोशल मीडिया से रिलेशनशिप पर असर

सोशल मीडिया का ज्यादा यूज एक रिलेशनशिप को कितना इफैक्ट करता है, यह एक सर्वे में बताया गया. इस सर्वे में 2 हजार लोगों की प्राइवेट लाइफ, कम्युनिकेशन और ट्रस्ट का आंकलन किया गया और यह जाना गया कि वे एक कपल्स के तौर पर औनलाइन कितनी सामग्री साझा करते हैं.

सर्वे में 52 फीसदी कपल ने बताया कि वे वीक में 3 से ज्यादा बार अपने रिलेशनशिप की फोटोज, वीडियोज औनलाइन पोस्ट करते हैं. इस में हैरान करने वाली बात यह थी कि इन में से सिर्फ 10 फीसदी लोगों ने बताया कि वे अपने रिश्ते से ‘बहुत खुश’ हैं.

हर कोई सोशल मीडिया पर अपने रोमांटिक मूमैंट को दिखाना पसंद करता है, खासकर अपने वैकेशन को. लेकिन सर्वे से यह पता चला कि जो कपल यह दिखाने के लिए सोशल मीडिया पर बारबार पोस्ट करते हैं कि वे अपने पार्टनर की कितनी सराहना करते हैं.

सोशल मीडिया के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने से रिलेशनशिप पर बुरा असर पड़ता है. जो कपल्स सोशल मीडिया पर अपनी प्राइवेट लाइफ ज्यादा शेयर करते हैं, उन के रिलेशन पर इस का नैगेटिव इफैक्ट पड़ता है. इस से कपल के बीच ट्रस्ट की कमी होती है. इस से शाई पार्टनर भी अनकंफर्टेबल फील करता है.

सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताने के कारण आप अपने पार्टनर को समय नहीं दे पाते, जिस से आपस में कम्युनिकेशन गैप हो जाता है. अपने रिलेशन को मजबूत बनाने के लिए एकदूसरे से बातचीत करते रहना बहुत जरूरी है. जो कपल अपने पार्टनर को औनलाइन दिखाना पसंद करते हैं, वे अपने रिलेशन में ज्यादा खुश नहीं होते हैं. इस के कई कारण होते हैं.

सोशल मीडिया पर बारबार पोस्ट करना, स्पैशली कपल सैल्फी, दरअसल दूसरों का अटैंशन पाने का एक तरीका होता है. जो कपल अपने रिलेशनशिप में खुश नहीं हैं, वे अपने रिलेशन में महसूस होने वाली कमी की भरपाई के लिए ज्यादा से ज्यादा कपल पोस्ट का सहारा लेते हैं.

सोशल मीडिया पर लगातार दूसरे कपल्स के खुशी के पलों को देखने से कई कपल्स में जलन और अपने रिश्ते में स्पार्क की कमी की भावना पैदा होती है. लगातार हैप्पी मूमैंट्स और रोमांटिक मूमैंट्स को पोस्ट करने से कपल्स पर एक आइडियल इमेज पेश करने का प्रैशर आ जाता है, जो स्ट्रैसफुल और नकली हो सकता है. यह आइडियल कपल दिखने का प्रैशर सोशल मीडिया पर ज्यादा ऐक्टिव रहने का एक कारण है.

जो कपल अपने रिश्तों में कम सिक्योर फील करते हैं, वे सोशल मीडिया पर ‘हैप्पी रिलेशनशिप’ की इमेज पेश करने की कोशिश करते रहते हैं. इन पोस्ट के जरिए वे खुद को यह समझाने की कोशिश करते हैं कि सबकुछ ठीक है. सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल करने से रिश्ते के भीतर मीनिंगफुल कम्युनिकेशन और किसी बहस को सौल्व कर के तरीके तक पहुंचने पर लगने वाला समय काफी ज्यादा हो सकता है.

अगर कोई अपने पार्टनर के साथ बात करने के बजाय इंस्टाग्राम फीड को स्क्रौल करने में ज्यादा इंटरैस्ट दिखाता है तो इस से आप के रिलेशन पर नैगेटिव इफैक्ट पड़ता है. जितना ज्यादा टाइम आप अपने फोन पर बिताएंगे, उतना ही ज्यादा आप अपने पार्टनर के साथ बिताए गए हैप्पी मूमैंट और मौजमस्ती के छोटेछोटे मूमैंट्स को मिस कर देंगे.

सोशल मीडिया पर कई लोग अपने इमोशंस, अपनी पर्सनल लाइफ में चल रही प्रौब्लम्स को शेयर करते हैं. अपने रिलेशनशिप की छोटीछोटी बातें शेयर करना सही नहीं है. इस से पार्टनर हर्ट हो सकता है. बेहतर यह है कि सोशल मीडिया को बहस की जगह न बनाएं बल्कि आपस में बात कर मुद्दों को सुलझाएं.

करें हर काम, माहवारी है आम

कुछ साल पहले मैं अपने परिवार के साथ जयपुर गया था. वहां टूरिस्ट बस हमें एक मंदिर तक ले गई थी. मेरे साथ वहीं का एक और परिवार भी था.

उस परिवार की एक महिला सदस्य उस मंदिर के अहाते तक तो गईं, पर जहां मूर्ति थी वहां जाने से उन्होंने मना कर दिया. मुझे लगा कि वे पहले कई बार यहां आ चुकी होंगी इसलिए नहीं जा रहीं लेकिन बाद में मेरी पत्नी ने बताया कि उन के ‘खास दिन’ चल रहे हैं इसलिए वे मंदिर में नहीं जाएंगी.

आप ‘खास दिनों’ से शायद समझ गए होंगे कि उस समय वे महिला माहवारी से गुजर रही थीं जिन्हें शारीरिक या मानसिक रूप से तो मुश्किल माना जा सकता है पर अगर उन के नाम पर उन्हें दूसरे आम काम करने से रोका जाए तो यह उन के साथ नाइंसाफी ही कही जाएगी.

क्या है माहवारी

12 से 13 साल की उम्र में अमूमन हर लड़की के शरीर में कुछ ऐसे बदलाव होते हैं जब वह बच्ची से बड़ी दिखने लगती है. इन्हीं बदलावों में से एक बदलाव माहवारी आना भी है. इस में उन्हें हर महीने 4-5 दिन के लिए अंग से खून बहता है जो तकरीबन 50 साल की उम्र तक जारी रहता है.

माहवारी एक सामान्य प्रक्रिया है, पर भारतीय समाज में फैली नासमझी के चलते जब तक महिलाएं माहवारी के चक्र में रहती हैं तब तक उन्हें बहुत से कामों से दूर रखने के कुचक्रों में उलझाए रखा जाता है. कहींकहीं तो इन दिनों के बारे में किसी को बताने से भी परहेज किया जाता है जबकि दक्षिण भारत में तो जब कोई लड़की रजस्वला हासिल करती है तो उत्सव सा मनाया जाता है. रिश्तेदारों को यह खुशखबरी दी जाती है, डंके की चोट पर.

पर हर जगह ऐसा नहीं है तभी तो जब किसी बच्ची को माहवारी आना शुरू होती है तो सब से पहले मां यही कहती सुनी जा सकती है कि बेटी, तुझे इन दिनों मंदिर या रसोईघर में नहीं जाना है. अपनों से बड़ों को खाना बना कर नहीं देना है. अचार को नहीं छूना है. खेलनाकूदना नहीं है.

कुछ घरों में तो कोई सदस्य लड़की को छू नहीं सकता और न ही वह किसी सदस्य को छू सकती है. उन्हें सोने के लिए अलग जगह व अलग बिस्तर तक ऐसे दिया जाता है, जैसे वे उन 4-5 दिनों के लिए अछूत हो गई हैं. यह सब आज 21वीं सदी में भी चालू है.

यह तो माना जा सकता है कि माहवारी के चलते लड़की या औरत के बरताव में बड़ा बदलाव आ जाता है, पर यह कोई हौआ नहीं है या कोई बीमारी भी नहीं जो उन्हें दूसरों से अलग होने का फरमान सुना दिया जाता है. यह तो कुदरत की देन है.

हां, अगर किसी को माहवारी नहीं आती है तो परेशानी की बात होती है, डाक्टर के पास जाने की नौबत आ जाती है क्योंकि अगर माहवारी नहीं आएगी तो शादी के बाद बच्चा पैदा नहीं होगा.

भारत में खासकर उत्तर भारत में माहवारी से जुड़े कई ऐसे अंधविश्वास हैं जिन्हें बिना किसी ठोस वजह के सच मान लिया जाता है. जैसे इन दिनों में उन्हें ज्यादा भागदौड़ या कसरत नहीं करनी चाहिए, जबकि यह सोच गलत है, क्योंकि बेवजह के ज्यादा आराम से शरीर में खून का दौरा अच्छे से नहीं हो पाता और दर्द भी ज्यादा महसूस होता है.

डाक्टर भी मानते हैं कि अगर माहवारी के समय महिलाएं खेलतीकूदती या कसरत करती हैं तो इस से उन के शरीर में खून और औक्सिजन का दौरा अच्छे ढंग से होता है जिस से पेट में दर्द और ऐंठन जैसी समस्याएं नहीं होती हैं.

इन दिनों में घर की बड़ी औरतें हमेशा कहती हैं कि अचार को मत छूना नहीं तो वह खराब हो जाएगा जबकि ऐसा नहीं होता है.

इस की खास वजह यह है कि और दिनों के मुकाबले ज्यादा साफसफाई रखने से माहवारी के दिनों में लड़की के शरीर या हाथों में जीवाणु, विषाणु या कीटाणु नहीं होते हैं तो अचार को छूने से वह खराब कैसे हो जाएगा? और अगर ऐसा होता तो फिर उन की छुई खाने की हर चीज ही जहर हो जानी चाहिए.

पंडितों ने जानबूझ कर औरतों को नीचा दिखाने के लिए माहवारी को पाप का नाम दे दिया और पहले लोगों को लूटने के लिए मंदिर बनवा दिया, फिर औरतों को खास दिनों में आने से बंद करवा कर ढिंढोरा पिटवा दिया कि वह गंदी है.

मतलब, हद है पोंगापंथ की. जिस मंदिर की गद्दी को पाने के लिए पंडेपुजारियों में खूनखच्चर तक हो जाता है या बेजबान पशुओं की बलि दे कर खून बहाया जाता है, वह इस खून से कैसे अपवित्र हो सकता है?

अगर हम मान लें कि कहीं भगवान है और यह दुनिया उसी ने बनाई है तो फिर उस ने ही तो औरतों को माहवारी का वरदान दिया है. फिर भगवान अपनी ही दी हुई चीज से अपवित्र कैसे हो सकता है?

इन ‘खास दिनों’ में एक बात और सुनने को मिलती है कि माहवारी में रसोईघर में जाने से वह अपवित्र हो जाता है. लेकिन यहां एक बात सोचने की है कि अगर उस परिवार में एक ही औरत या लड़की है और उसे माहवारी है तो खाना कौन बनाएगा? सारे घर को बता दिया जाता है कि वह तो इस समय गंदी है.

औरतों को चाहिए कि वे इस के खिलाफ खड़ी हों. माहवारी के दिनों को खराब न समझें. जैसे रोज शौच करने जाते हैं वैसे ही माहवारी है. घर वालों से लड़ें. पंडों से लड़ें. भगवान में विश्वास न करें, पर पंडों से कहें कि वे तो मंदिर में घुसेंगी. वहां पूजा न करें क्योंकि कोई मूर्ति इस लायक नहीं है जो औरतों को नीचा दिखाए.

माहवारी जवानी की निशानी है. इसे मस्ती से जीते हुए सिर ऊंचा कर के चलें.

सांप काटने से ज्यादा मौत और अंधविश्वास

महाराष्ट्र के एक गांव नारायणगांव के डाक्टर सदानंद राउत और उन की पत्नी डाक्टर पल्लवी राउत ने जहरीले सांप के काटने का इलाज आज से 35 साल पहले अपने गांव में शुरू किया था. आज उन के गांव में सांप से काटे की मृत्युदर जीरो हो चुकी है, जो काबिलेतारीफ है. इस के लिए उन्हें कई अवार्ड भी मिले हैं.

सांप काटने के इलाज के बारे में पूछने पर डाक्टर सदानंद राउत ने बताया, ‘‘मैं वर्ल्ड हैल्थ और्गनाइजेशन और नैशनल प्रोटोकोल ट्रीटमैंट गाइडलाइंस के आधार पर इलाज करता हूं. इस में ‘एंटी स्नेक वैनम’ जितनी जल्दी हो सके पीडि़त को देता हूं. इस के अलावा बाकी जो भी इमर्जैंसी लक्षण पीडि़त में दिखते हैं, उन के आधार पर इलाज करता हूं.

‘‘मेरी पत्नी डाक्टर पल्लवी भी इस काम में मेरा हाथ बंटाती हैं. इस काम को करने का मकसद हम दोनों को तब मिला था, जब एक दिन एक 8 साल की लड़की को उस के परिवार वाले हमारे पास ले कर आए थे, जिसे कोबरा सांप ने काटा था और 20 मिनट के बाद ही वह मु?ा तक पहुंची थी, लेकिन उस की मौत हो चुकी थी.

‘‘इस के बाद से हम ने स्नेक बाइट के पीडि़तों का इलाज करने का संकल्प लिया, लेकिन गांवदेहात के इलाकों में आज भी अंधविश्वास बहुत ज्यादा है और गांव वाले हमारे इलाज को सही नहीं सम?ाते थे.

‘‘वे तांत्रिक और झाड़फूंक वाले को अस्पताल में छिपा कर लाने लगे थे. अगर पीडि़त ठीक हो जाता था, तो उस का क्रेडिट तांत्रिक को मिलता था और अगर कुछ गलत हुआ, तो उस का खमियाजा मु?ो भोगना पड़ता था.’’

डाक्टर सदानंद राउत ने आगे बताया, ‘‘इस के बाद मैं गांव के लोगों को ट्रेनिंग देने के लिए वर्कशौप करने लगा. करैत सांप के काटने पर पीडि़त 2 हफ्ते तक गहरे कोमा में जा सकता है और उसे वैंटिलेटर पर रखना पड़ता है, लेकिन गांव वाले सोचते थे कि मैं पैसे बनाने के लिए पीडि़त को वैंटिलेटर पर रख रहा हूं, पर ऐसा नहीं था और इसीलिए वहां के नौजवानों को जागरूक करना जरूरी था.’’

समस्या अंधविश्वास की शुरूशुरू में 10 साल का एक बच्चा जब डाक्टर सदानंद राउत के पास करैत सांप के काटने पर कोमा की हालत में आया, तो उसे 6 दिनों तक वैंटिलेटर पर रखने के बावजूद उसे होश नहीं आया. उस के दादा और गांव के बड़े बुजुर्ग उस बच्चे को मरा हुआ सम?ा रहे थे और अस्पताल से ले जाना चाहते थे.

डाक्टर सदानंद राउत ने उस बच्चे के परिवार को मौनिटर पर दिखाया और सम?ाया कि बच्चे का दिल धड़क रहा है और वह जिंदा है. 10 दिन बाद बच्चे की आंखों की पुतली हिली और 13 दिन में वह ठीक हो गया.

अपने ‘जीरो स्नेक बाइट डैथ’ मिशन के बारे में डाक्टर सदानंद राउत बताते हैं, ‘‘इस के बाद मैं ने छोटेछोटे आदिवासी गांवों में स्कूलकालेजों और दूसरी संस्थाओं के सारे हैड को स्नेक बाइट जागरूकता मुहिम में शामिल किया. दूसरे लोग भी इस में सहयोग देने लगे, क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि यह जिंदगी बचाने की मुहिम है.

‘‘गांव के लोगों को सम?ा में आ गया था कि सांप कितना भी जहरीला क्यों न हो, काटने के तुरंत बाद में पीडि़त को अस्पताल ले आने पर उसे बचाया जा सकता है.’’

एकएक सैकंड है खास डाक्टर सदानंद राउत बताते हैं, ‘‘जहरीले सांप के काटने से ज्यादातर कार्डिएक अरैस्ट (दिल का रुकना) होता है, जो एक मिनट के अंदर ही हो जाता है. ऐसे मरीज को जल्द से जल्द डाक्टर तक पहुंचा दें, ताकि समय पर इलाज शुरू हो जाए.

‘‘ज्यादातर लोगों की मौत अस्पताल पहुंचने से पहले ही हो जाती है, इसलिए किसी तांत्रिक या ?ाड़फूंक वाले के पास न जा कर पीडि़त को तुरंत पास के किसी भी अस्पताल और डाक्टर के पास ले जाएं.’’

ऐसे बचें सांप के काटे से अगर आप ऐसे इलाके में रहते हैं, जहां पर जहरीले सांप ज्यादा पाए जाते हैं, तो इन उपायों पर जरूर ध्यान दें :

* गम शूज पहनें.

* पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनें.

* घास पर काम करने से पहले छड़ी का इस्तेमाल करें.

* सही रास्ते पर चलें, जंगल के बीच से नहीं.

* रात में काम करते समय बैटरी और छड़ी का इस्तेमाल करें.

* जमीन पर न सोएं.

* मच्छरदानी का इस्तेमाल करें.

* घर को साफ रखें, ताकि चूहे अंदर न रहें.

* आसपास के पेड़ों की छंटाई करते रहें, ताकि खिड़की के पास की टहनियों से सांप कमरे में न आ सकें.

लगातार बढ़ता कुत्तों का खौफ

देशभर में कुत्तों का खौफ बढ़ रहा है. भोपाल शहर में 16 जनवरी, 2024 को 1-2 नहीं, बल्कि 45 लोगों को कुत्तों ने काट लिया था. इस के हफ्तेभर पहले ही कारोबारी इलाके एमपी नगर में महज डेढ़ घंटे में 21 लोगों को कुत्तों ने काटा था. छिटपुट घटनाओं की तो गिनती ही नहीं.

लेकिन दहशत उस वक्त भी फैली थी, जब अयोध्या इलाके में रहने वाले एक मजदूर परिवार के 7 महीने के मासूम बच्चे को कुत्तों के झुंड ने घसीट कर काटकाट कर मार डाला था. उस बच्चे का एक हाथ ही कुत्तों ने बुरी तरह से चबा डाला था.

देश के हर छोटेबड़े शहर की तरह भोपाल भी कुत्तों से अटा पड़ा है. कुत्तों की सही तादाद का आंकड़ा नगरनिगम के पास भी नहीं है, लेकिन पालतू कुत्तों की संख्या केवल 500 है. इतने ही लोगों ने अपने पालतू कुत्तों का रजिस्ट्रेशन कराया है, वरना तो पालतू कुत्तों की तादाद 10,000 से भी ज्यादा है.

लेकिन नई समस्या पालतू या आवारा कुत्तों की तादाद से ज्यादा उन का खौफ है, जिस का किसी के पास कोई हल या इलाज नहीं दिख रहा है.

इलाज तो कुत्तों के काटे का भी सभी को नहीं मिल पाता, क्योंकि ऐसे बढ़ते मामलों के मद्देनजर अस्पतालों में एंटी रेबीज इंजैक्शनों का टोटा पड़ने लगा है.

10 जनवरी, 2024 को कुत्ते के काटने के बाद जब 45 लोग एकएक कर जयप्रकाश अस्पताल पहुंचे थे, तब कुछ को ही ये इंजैक्शन मिल पाए थे.

वैसे तो कुत्तों का खौफ पूरे देश और दुनियाभर में है, लेकिन भोपाल के हादसों ने सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा है सिवा सरकार और नगरनिगम के, जिन का कहना यह है कि जब वे कुत्तों पर कोई कार्यवाही करते हैं, तो ?ाट से कुत्ता प्रेमी आड़े आ जाते हैं.

14 जनवरी, 2024 को जब नगरनिगम की टीम आवारा कुत्तों को पकड़ने पिपलानी इलाके में पहुंची, तो एक कुत्ता प्रेमी लड़की उस टीम से भिड़ गई. नगरनिगम ने उस लड़की के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी.

यह जान कर हैरानी होती है कि भोपाल में नगरनिगम अमला अब तक तकरीबन 7 कुत्ता प्रेमियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा चुका है.

क्या करें इन कुत्तों का

जाहिर है कि कुत्ता प्रेमियों का विरोध ‘कुत्ता पकड़ो मुहिम’ में बाधा बनता है. कई एनजीओ तो बाकायदा कुत्ता प्रेम से फलफूल रहे हैं. इन की रोजीरोटी ही कुत्ता प्रेम है. इन लोगों को उन मासूमों की मौत से कोई लेनादेना नहीं, जिन्हें कुत्तों ने बेरहमी से काटकाट कर और घसीटघसीट कर मार डाला.

आवारा और पालतू कुत्तों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है, तो इस की बड़ी वजह कुत्तों की नसबंदी न हो पाना भी है जो आसान काम नहीं, लेकिन इस बाबत तो स्थानीय निगमों को जिम्मेदारी लेनी ही पड़ेगी कि वे ढिलाई बरतते हैं और हरकत में तभी आते हैं, जब हादसे बढ़ने लगते हैं.

लाख टके का सवाल जो मुंहबाए खड़ा है वह यह है कि इन कुत्तों का क्या किया जाए? इन्हें मारो तो दुनियाभर के लोगों की हमदर्दी और कानून आड़े आ जाते हैं और न मारो तो बेकुसूर लोग परेशान होते हैं. कई मासूमों की मौत ने तो इस चिंता को और बढ़ा दिया है. जहां नजर डालें, चारों तरफ कुत्ते ही कुत्ते दिखते हैं.

धर्म भी कम जिम्मेदार नहीं

कुत्तों के हिंसक होने की कोई एक वजह नहीं होती. भोपाल के हादसों के बीच कुछ ज्ञानियों ने मौसम को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की, लेकिन यह दलील लोगों के गले नहीं उतरी.

असल में लोगों की धार्मिक मान्यताएं भी इस की जिम्मेदार हैं, जो यह कहती हैं कि कुत्तों को शनिवार के दिन खाना खिलाने से जातक पर शनि और राहू का प्रकोप नहीं होता. भोपाल में जगहजगह ऐसे सीन देखने को मिल जाते हैं, जिन में राहूशनि पीडि़त लोग कुत्तों का भंडारा कर रहे होते हैं.

भोपाल के ही शिवाजी नगर इलाके में हर शनिवार की शाम एक बड़ी कार रुकती है, तो कुत्ते जीभ लपलपाते उस की तरफ लपक पड़ते हैं.

इस गाड़ी से 2 सभ्य सज्जन उतरते हैं और कुत्तों को बिसकुट, रोटी, ब्रैड वगैरह खिलाते हैं और इतने प्यार से खिलाते हैं कि पलभर को आप यह भूल जाएंगे कि इन कुत्तों की वजह से औसतन 5 लोग रोज अस्पतालों के चक्कर काटते हैं और हैरानपरेशान होते हैं.

कहना तो यह बेहतर होगा कि इन धर्मभीरुओं की वजह से लोग तकलीफ उठाते हैं और पैसा भी बरबाद करने को मजबूर होते हैं.

कुत्तों के इस सामूहिक और सार्वजनिक भोज के नजारे में दिलचस्प बात यह भी है कि इस वक्त कुत्ते बिलकुल इनसानों की तरह अपनी बारी के आने का इंतजार इतनी शांति और अनुशासन से करते हैं कि लगता नहीं कि ये वही कुत्ते हैं, जो बड़ी चालाकी से घात लगा कर राह चलते लोगों की पिंडली अपने दांतों में दबा लेते हैं या फिर ग्रुप बना कर ‘भोंभों’ करते हुए राहगीरों और गाडि़यों पर ?ापट्टा मारते हैं.

नेताओं के प्रिय कुत्ते

इस में शक नहीं है कि गाय के साथसाथ कुत्ता पुराने जमाने से ही आदमी का साथी और पालतू रहा है. महाभारत काल में तो कुत्ता पांडवों के साथ स्वर्ग तक गया था.

हुआ यों था कि धर्मराज के खिताब से नवाजे गए युधिष्ठिर के लिए जब स्वर्ग का दरवाजा खुला, तो वे अड़ गए कि जाऊंगा तो कुत्ता ले कर ही, वरना नहीं जाऊंगा.

बात बिगड़ने लगी, तो उपन्यासकार वेद व्यास ने सुखांत के लिए यह बताते हुए सस्पैंस खत्म किया कि उस कुत्ते के वेश में यमराज ही थे, जो युधिष्ठिर का इम्तिहान ले रहे थे.

यानी, पौराणिक काल से ही कुत्ता आम के साथसाथ खास लोगों और शासकों का प्रिय रहा है. मौजूदा दौर में कई नेताओं का कुत्ता प्रेम अकसर खबर बनता है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का प्रिय कुत्ता कालू तो इंटरनैट सैलिब्रिटी कहलाता है. यह लैब्राडोर नस्ल का कुत्ता गोरखपुर में उन के मठ में रहता है और पनीर खाने का शौकीन है.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी कुत्तों के शौकीन हैं. उन के नए कुत्ते का नाम ‘नूरी’ है, जो उन्होंने अपनी मां सोनिया गांधी को कर्नाटक चुनाव के दौरान तोहफे में दिया था. इस कुत्ते की नस्ल जैक रसेल टैरियर है.

यहां बताना प्रासंगिक है कि इस कुत्ते (शायद कुतिया) का नाम ‘नूरी’ रखने पर एआईएमआईएम के एक नेता मोहम्मद फरहान ने इसे उन लाखों मुसलिम लड़कियों की बेइज्जती बताया था, जिन का नाम नूरी है.

भोपाल के हादसों के बाद साध्वी उमा भारती ने भी कुत्ता प्रेमियों को लताड़ लगाई थी. कुत्तों के खौफ से बचने के लिए उन्होंने कुत्तों के लिए अलग से अभयारण्य बनाए जाने की बात कही थी. मुमकिन है, अब गौशालाओं की तर्ज पर कुत्ताशालाएं खुलने की मांग उठने लगे.

लेकिन हल यह है

देशभर में कुत्तों के काटने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, साल 2023 में 27 लाख,

50 हजार लोगों को कुत्तों ने काटा था. यह एक चिंताजनक आंकड़ा है, क्योंकि इन में से 20,000 लोग रेबीज से मरे. ऐसे में कोई वजह नहीं कि कुत्तों से हमदर्दी रखी जाए, लेकिन उन्हें मार देना भी हल नहीं.

बेहतर तो यह होगा कि लोग कुत्ते पालना बंद करें, इन्हें खाना देना बंद करें, अपने धार्मिक अंधविश्वास छोड़ें. इन सब से समस्या खत्म भले न हो, लेकिन कम तो जरूर होगी.

नोटों की बारिश: झूठ और ठगी

हमारे आसपास बहुत से लोग सज्जन और भोले भाले होते हैं जो किसी की भी बातों में आ जाते हैं और तरीका शिकार हो जाते हैं. हाल ही में ऐसी अनेक घटनाएं घटित हुई है. इस रिपोर्ट में हम बताने जा रहे हैं कि किस तरह जागरुक होकर के आप से ठगी से बच सकते हैं और दूसरों को भी बचा सकते हैं.
पहली घटना -छत्तीसगढ़ के रतनपुर जिला बिलासपुर में लड़कियों को दैवीय शक्ति से पैसों की बारीश होने का झाॅंसा देकर पूजा पाठ करने के नाम पर ठगी हो गई.
दुसरी घटना – चांदी लेकर आओ उसे हम सोना बना देंगे.  कह कर जिला कोरबा के पाली थाना क्षेत्र में दो लोगों ने कई महिलाओं को ठग लिया.
तीसरी घटना -छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के कटोरा तालाब थाना क्षेत्र अंतर्गत रूपयों को दुगना बनाने का झांसा दे कर ठगी  कर ली गई.
यह कुछ घटनाएं यह बताती है कि आज के शिक्षित समाज में भी लगातार ठगी की घटनाएं हो रही है. इसका सीधा सा मतलब यह है कि आज 21वीं शताब्दी में भी वही हालत है जो पहले हुआ करते थे आखिर इसके पीछे का कारण क्या है और इसे कैसे रोका जा सकता है यह हम आपको बताने जा रहे हैं.

लालच और  रूपए की बरसात

दो नाबालिक लड़कियों को दैवीय शक्ति से पैसों की बारीश होने का झाॅंसा देकर पूजा पाठ करने और फिर  अनाचार करने वाले चार आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल की सींखचों के पीछे भेज दिया है.
 पुलिस की अपील है कि ऐसे झांसा देने वाले लोगों से सभी को सावधान रहना चाहिए जिससे भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो .
 दरअसल,  हुआ यह कि छत्तीसगढ के रतनपुर थाना परिक्षेत्र अंतर्गत14 फरवरी 2024 को  पीडिता के परिजनो के द्वारा रिपोर्ट की गई कि उनके गांव के दो व्यक्तियों द्वारा उन्हे बताया गया की एक ठाकुर बाबा है जो कुमारी कन्याओं की पूजापाठ करता है, जिससे पैसा बरसने लगता है, जिस झांसे में वे लोग रतनपुर के मदनपुर में एक घर में आये एवं वहा पूजापाठ के बाद बाबा द्वारा उन बच्चियों को अकेले कमरे मे ले जाकर पूजापाठ के बहाने  दैहिक शोषण किया गया.  वापस अपने घर  जाने पर बालिकाओं ने यह बात अपने परिजनों को बताई , जिस पर परिजनों द्वारा थाना मे रिपोर्ट दर्ज कराई गई.
लड़कियों की रिपोर्ट पर थाना रतनपुर में तत्काल अपराध कायम कर विवेचना में लिया गया.  थाना रतनपुर में टीम गठित कर संदेहियों को लोकल मुखबिर के आधार पर आरोपियों की पतासाजी कर गिरफ्तारी हेतु तीन अलग-अलग टीमें बनाई गई, और चार आरोपियों को बालपुर, भाठागांव थाना सरसींवा जिला सारंगढ़-बिलाईगढ़ व लिगिंयाडीह व मदनपुर जिला बिलासपुर से गिरफ्तार किया गया.  जबकि प्रकरण का एक आरोपी यह आलेख लिखे जाने वक्त तक फरार है.
इस रिपोर्ट को तैयार कर किए जाने वक़्त जब पुलिस अधिकारियों से चर्चा हुई तो जानकारी मिली सारंगढ़ बिलाईगढ़ जिले निवासी धनिया बंजारे और हुलसी रात्रे  करीबन दो माह पूर्व से  दो अलग-अलग स्थान की नाबालिक बच्चियों एवं उनके माता पिता को कुंवारी लड़की का पूजा कराकर एवं उसके ऊपर दैवीय शक्ति बैठाने से लाखों-करोड़ों रूपये की बारिश होती है कहकर अपने विश्वास में लिया गया. 11 फरवरी 2024 को उन्होंने दो नाबालिक बच्चियों को उनके परिजनों के साथ बिलासपुर बस स्टैण्ड लेकर गये और वहाॅं पूजा करने वाले पंडित कुलेश्वर राजपूत उर्फ पंडित ठाकुर एवं उनका साथी कन्हैया से मिलवाकर उनके द्वारा ही पूजापाठ कराकर पैसा बरसाना बताकर मुलाकात कराई .
जहाॅं से वे लोग दोनों नाबालिक बच्चियों को मदनपुर रानीगाॅंव चैक के पास गणेश साहू के मकान में लेकर गये. जहाॅं सभी गणेश साहू के घर खाना खाये, पंडित कुलेश्वर ठाकुर दोनों नाबालिक बच्चियों में से एक बच्ची को मकान के अंदर कमरे में ले गया, एवं पूजा के बहाने उनके परिजन और सभी लोगों को कमरे से बाहर कर दिया तथा अंदर कमरे में लड़की के साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाया एवं उक्त घटना के बारे में किसी को बताने पर जान से मारने की धमकी देते हुये कमरे के बाहर छोड़ दिया.
इसी प्रकार दुसरी नाबालिक लड़की को भी पूजा कराने के बहाने अंदर कमरे में ले जाकर जबरदस्ती बलात्कार किया. उक्त घटना कारित  करने के पश्चात पंडित कुलेश्वर ठाकुर द्वारा उनके परिजन को बताया कि पूजा से मात्र दो चार  हजार रूपये की ही बारिश हो पाई है कहकर पैसे दे दिया, दोनों नाबालिक बच्चियाॅं घटना से इतने डरे सहमें थे कि वे उक्त घटना के संबंध में परिजन को जानकारी नहीं बता पाये. बिलासपुर बस स्टैण्ड से वापस अपने घर जाते समय उक्त घटना के संबंध में दोनों नाबालिक लडकियों ने अपने परिजन को बताई. रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने भारतीय दंड विधान की धाराओं के तहत मामला बनाकर  आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है

‘लीप ईयर में’ 29 फरवरी को महिलाओं को क्यों बच्चा पैदा करने से किया जाता है मना

अंग्रेजी कैलेंडर की गणना सूर्य वर्ष के आधार पर की जाती है. इस कैलेंडर को ‘ग्रेगोरियन कैलेंडर’ कहा जाता है और इस का पहला महीना जनवरी होता है. इसी ‘ग्रेगोरियन कैलेंडर’ के हिसाब से साल में 365 दिन होते हैं और हर 4 साल बाद लीप ईयर आता है, जिस में 365 की बजाय 366 दिन हो जाते हैं.

एक दिन बढ़ने की यह वजह

दरअसल, पृथ्‍वी को सूर्य का चक्‍कर लगाने में 365 दिन और करीब 6 घंटे लगते हैं और तब जा कर एक सूर्य वर्ष पूरा होता है और नया साल शुरू होता है. ये 6-6 घंटे की अवधि जुड़ते हुए 4 सालों में पूरे 24 घंटे की हो जाती है और 24 घंटे का एक पूरा दिन होता है. इस एक्‍सट्रा दिन को फरवरी में जोड़ दिया जाता है. यही वजह है कि हर चौथे साल में फरवरी 29 दिनों की होती है.

इस दिन से जुड़े मिथक और अंधविश्वास

चूंकि यह 29 तारीख 4 साल में एक बार आती है तो इसे अजूबा मान लिया जाता और फिर इस से जुड़े कई मिथक जन्म ले लेते हैं, जो धीरे धीरे अंधविश्वास में बदल जाते हैं.

29 फरवरी से जुड़ा एक मिथक यह भी है कि इस दिन जनमे बच्चे बड़े विलक्षण होते हैं. लेकिन इस बात का कोई प्रमाण नहीं है. केवल 4 साल में एक बार जन्मदिन आने से किसी का विलक्षण होना अंधविश्वास से ज्यादा कुछ नहीं है.

महिलाओं को बच्चा पैदा करने की मनाही

कई देशों खासकर स्कॉटलैंड में ऐसा माना जाता है कि महिलाओं के लिए 29 फरवरी भी एक बहुत ही सफल दिन हो सकता है, क्योंकि हर 4 साल में एक बार 29 फरवरी को उन्हें किसी पुरुष को प्रपोज करने का ‘अधिकार’ होता है.

इस ‘अधिकार’ की भी गजब कहानी है. काफी साल पहले ‘लीप ईयर’ के दिन को अंग्रेजी कानून में कोई मान्यता नहीं थी (उस दिन को ‘लीप ओवर’ कर दिया गया था और नजरअंदाज कर दिया गया था, इसलिए इसे ‘लीप ईयर’ कहा गया). लिहाजा यह निर्णय लिया गया कि उस दिन की कोई कानूनी स्थिति नहीं है, जिस का अर्थ है कि इस दिन परंपरा को तोड़ना स्वीकार्य है.

किंवदंती है कि 5वीं शताब्दी में किल्डारे के सेंट ब्रिगिड ने कथित तौर पर सेंट पैट्रिक को प्रस्ताव दिया था कि महिलाओं को 4 साल में एक बार अपने डरपोक प्रेमी को प्रपोज करने का अधिकार देना चाहिए. इस की इजाजत भी दी गई थी और आज भी बहुत सी महिलाएं यह रिवाज निभाती दिख जाती हैं.

स्कॉटिश अंधविश्वास का मानना ​​है कि 29 फरवरी को किसी मां का अपने बच्चे को जन्म देना दुर्भाग्यपूर्ण है. इस दिन की तुलना 13वें शुक्रवार से की जाती है, जिसे एक अशुभ दिन के रूप में भी देखा जाता है. इस 13 तारीख को इसे अंग्रेजी में ‘फ्राइडे द थर्टिंथ’ कह कर दुर्भाग्य से जोड़ा जाता है. बहुत से लोगों का मानना है कि यह दिन और तारीख जब भी मिलते हैं तो दुर्भाग्य पैदा करते हैं. इस दिन और तारीख के संयोग को अशुभ मान कर लोग घर से बाहर निकलने तक से घबराते हैं.

‘लीप डे’ यानी 29 फरवरी पर किसी पुरुष को प्रपोज करना ठीक है, लेकिन उसी दिन के बारे में यूनानियों का मानना ​​है कि ‘लीप डे’ पर शादी करना बेहद अशुभ होता है और यदि आप लीप डे’ पर तलाक लेते हैं, तो आप को कभी भी दोबारा प्यार नहीं मिलेगा.

बीवी का चालचलन, शौहर का जले मन

दुनिया का सब से हसीन और खूबसूरत रिश्ता पतिपत्नी का ही माना जा सकता है, जिस में 2 अनजान लोग जिंदगी के सफर में कदम से कदम मिला कर चलते हैं, एकदूसरे के सुखदुख के भागीदार बनते हैं और घरगृहस्थी की जिम्मेदारी निभाते हुए बुढ़ापे में एकदूसरे का पूरा खयाल भी रखते हैं.

लेकिन यह रिश्ता कांच जैसा नाजुक भी बहुत होता है, जिस में एक कंकड़ भी पड़ जाए तो यह कुछ ऐसा दरकता है कि इस में सिवा अंधेरे के कुछ और नहीं दिखता. इस कंकड़ का नाम है शक.

कुछ चुनिंदा मामलों को छोड़ दें तो शक यों ही दिलोदिमाग में घर नहीं करता है. दरअसल, यह एक किस्म की बीमारी है जो अगर समय रहते दूर न हो तो यकीन में बदलने लगती है.

कामयाब और खुशहाल शादीशुदा जिंदगी की एक शर्त पतिपत्नी का एकदूसरे के प्रति ईमानदार रहना भी है और उस से भी ज्यादा अहम है एकदूसरे पर भरोसा होना. दोनों में से कोई भी इसे तोड़ता है तो जिंदगी भार बन जाती है.

हमारे समाज पर पकड़ और दबदबा मर्दों का है, जो घर के मुखिया भी होते हैं. इस नाते उन्हें औरतों के मुकाबले ज्यादा हक मिले हुए हैं, जिन का अगर वे बेजा इस्तेमाल करें तो किसी को कोई खास फर्क नहीं पड़ता, पर औरतों पर आज भी कई बंदिशें हैं. इन में से एक है बहैसियत बीवी का किसी पराए मर्द की तरफ आंख उठा कर भी न देखना, फिर मर्द भले ही इधरउधर मुंह मारता फिरे, उसे दोष नहीं दिया जाता.

इस में भी कोई शक नहीं है कि कुछ बीवियां, वजह कुछ भी हो, अगर ये बंदिशें तोड़ती हैं तो एक जुर्म का जन्म और 2 जिंदगियों का खात्मा होता है. एक शौहर अपनी बीवी की कई जिद और ज्यादतियां बरदाश्त कर लेता है, लेकिन उस की बेवफाई पर मरनेमारने की हद तक तिलमिला उठता है. ऐसा इसलिए है कि वह बीवी को अपनी जायदाद समझता है और यह बात उसे बचपन में ही समझ आ जाती है कि बीवी किसी और से सैक्स करे तो गुनाहगार होती है, जिस की सजा भी उसे ही तय करनी है.

लेकिन अकसर शौहर के शक बेबुनियाद होते हैं, पर इस का मतलब यह नहीं है कि सभी बीवियां सतीसावित्री या पाकसाफ होती हैं, बल्कि यह है कि यह समस्या का हल नहीं है. समस्या और उस के हल को समझने से पहले कुछ ताजा हादसों पर नजर डालना जरूरी है :

-छत्तीसगढ़ के जांजगीरचांपा के रहने वाले 21 साला सिक्योरटी गार्ड संजय कुमार सूर्यवंशी ने अपनी 20 साला बीवी नीलम प्रधान की बेरहमी से गला घोंट कर बीती 8 जनवरी को हत्या कर दी. पकड़े जाने के बाद संजय ने जो वजह बताई वह यह थी कि नीलम अकसर मोबाइल फोन पर बातचीत और चैटिंग में बिजी रहती थी, इसलिए उसे उस के चालचलन पर शक हो चला था. इस हादसे में हैरानी की बात यह है कि इन दोनों ने 2 साल पहले ही लव मैरिज की थी.

-राजस्थान के जोधपुर की भोपालगढ़ तहसील के गांव मिंडोली के बाशिंदे 25 साला श्रवण कुमार भील को अपनी 20 साला बीवी जतनबाई के चालचलन पर महज इसलिए शक हो गया था कि शाम को काम के बाद जब वह घर लौटता था तो बीवी घर पर नहीं मिलती थी.

5 महीने से शक की आग में जल रहे श्रवण ने आखिकार बीती 23 दिसंबर की आधी रात को बिजली के तार से गला दबा कर बीवी की हत्या कर दी. उस समय जतनबाई पेट से थी. इन दोनों की शादी 5 साल पहले हुई थी.

-छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर के बलरामपुर में होटल दीपक में एक पतिपत्नी बीती 8 जनवरी को मरे हुए मिले थे. पति विद्युत विश्वास की लाश कमरे के बाथरूम में फंदे पर झूलती मिली तो पत्नी रिक्ता मिस्त्री पलंग पर मरी पड़ी थी. इन दोनों ने भी तकरीबन डेढ़ साल पहले अदालत में लव मैरिज की थी.

अपने सुसाइड नोट में विद्युत ने साफसाफ लफ्जों में लिखा था कि उसे अपनी बीवी रिक्ता के चालचलन पर शक है, इसलिए वह उस की हत्या कर खुदकुशी कर रहा है.

-मध्य प्रदेश के नागदा के रहने वाले पेशे से ट्रक ड्राइवर राजेश ने बीती 13 जनवरी को अपनी बीवी राधाबाई का खून करने की कोशिश जिस वहशीपन से की उसे सुन हर किसी की रूह कांप उठी. उस की शादी 15 साल पहले हुई थी और 2 बेटे भी हैं.

राजेश और उस के मांबाप समेत मौसी ने राधाबाई को कमरे में बंद कर के पहले उस के साथ जी भर कर मारपीट की और फिर उस की जीभ, नाक, गाल और छातियां काट दीं. इस के बाद उस के मुंह में बेलन ठूंस दिया और राधा को मरा समझ कर चारों भाग गए, लेकिन वह बच गई थी, इसलिए उसे इलाज के लिए इंदौर भेज दिया गया.

जड़ में है धर्म भी

यहां इस बात के कोई खास माने नहीं हैं कि बीवियां भी आजकल इधरउधर मुंह मारते हुए सैक्स सुख और वह प्यार ढूंढ़ने लगी हैं, जो उन्हें शौहर से नहीं मिलता, लेकिन इसे मंजूरी नहीं दी जा सकती, क्योंकि वे गलत होती हैं, लेकिन इस के माने ये नहीं हैं कि चालचलन के शक में या बदचलनी साबित हो जाने या फिर उजागर हो जाने पर उन के साथ वहशियाना बरताव किया जाए.

यह भी ठीक है कि कोई भी शौहर अपनी बीवी की बदचलनी आसानी से बरदाश्त नहीं कर पाता है, लेकिन जब वह खुद गलत राह पर चलता है तो वकील बन कर दलीलें देने लगता है और बीवी के मामले में जज बन कर फैसला करने लगता है.

इस फसाद की एक जड़ धर्म भी है, जिस के खोखले और दोहरे उसूलों ने उसे मर्दानगी के माने बहुत गलत तरीके से सिखा रखे हैं. धार्मिक किताबों में जगहजगह यह कहा गया है कि औरत नीच है, गुलाम है, पैर की जूती है और उस का जिम्मा शौहर को खुश रखना और उस की खिदमत करते रहना है. औरत का अपना कोई वजूद नहीं है और किसी भी तरह की आजादी देने से वह गलत रास्ते पर चल पड़ती है.

यह बात भी किसी सुबूत की मुहताज नहीं है कि समाज पर दबदबा मर्दों का है, इसलिए वे न तो औरत की इज्जत करते हैं और न ही उसे बराबरी का दर्जा देते हैं, क्योंकि इस से उन की हेठी होती है.

जिस धर्मग्रंथ ‘मनुस्मृति’ को हिंदू अपना संविधान मानते हैं उस के अध्याय 9 के श्लोक 2 से ले कर 6 तक में साफसाफ हिदायत दी गई है कि ‘औरत को बचपन में पिता, जवानी में भाई और शादी के बाद पति की सरपरस्ती में रहना चाहिए. किसी भी उम्र में उसे आजाद नहीं रहना चाहिए.’

इसी किताब के अध्याय 9 के 45वें श्लोक में कहा गया है कि ‘पति पत्नी को छोड़ सकता है, गिरवी रख सकता है, बेच सकता है लेकिन औरत को यह हक नहीं है. शादी के बाद पत्नी सिर्फ पत्नी ही रहती है.’

यानी पति ऊपर लिखा कुछ भी करे यह उस का हक है. इस तरह की बातों और हिदायतों ने मर्दों को मनमानी करने की खुली छूट दे रखी है, जिस का कहर आएदिन बीवियों को भुगतना पड़ता है. उन के साथ जानवरों जैसा बरताव किया जाता है. अगर वे किसी से यों ही बात भी कर लें तो शौहर की भवें तन जाती हैं और वह उसे बदचलन मानने लगता है.

बकौल ‘मनुस्मृति’ औरत अकेलेपन का बेजा इस्तेमाल करने वाली होती है ( अध्याय 2 श्लोक 215 ) यानी औरत को अकेले छोड़ने से वह मर्दों को लुभाती है और उन्हें भी गलत रास्ते पर चलने के लिए उकसाती है.

औरतों को बदचलन साबित करने के लिए इसी किताब के अध्याय 9 श्लोक 114 में कहा गया है कि औरत सैक्स के लिए किसी भी उम्र या बदसूरती को नहीं देखती. अध्याय 9 के ही श्लोक 17 में तो हद ही कर दी गई है जिस के मुताबिक औरत सिर्फ गहने, कपड़ों और बिस्तर को ही चाहने वाली होती है. वह वासनायुक्त, बेईमान, जलनखोर और दुराचारी है.

अब जरा ‘मनुस्मृति’ के ही अध्याय 5 के श्लोक 115 पर नजर डालें तो पाएंगे कि ‘पति भले ही चरित्रहीन हो, दूसरी औरतों पर फिदा हो, नामर्द हो, जैसा भी हो औरत को पतिव्रता रहते हुए उसे देवता की तरह पूजना चाहिए.’

हिंदुओं की सब से बड़ी धार्मिक किताब ‘रामायण’ को न पढ़ने वाले आम लोग भी यह मानते हैं कि मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाने वाले भगवान राम ने अपनी पत्नी सीता का त्याग क्यों किया था. इस बात को धर्मगुरु भी बांचते हैं और इस पर कई फिल्में और टैलीविजन सीरियल भी बन चुके हैं. कहानी बहुत सीधी और दिलचस्प है कि रावण को मारने के बाद जब राम अयोध्या आए तो जनता ने घी के दिए जलाते हुए उन का जोरदार स्वागत किया था. अभी कुछ दिन ही बीते थे कि राम के जासूसों ने उन्हें बताया कि प्रजा सीता की पवित्रता पर शक करती है. यह शक इसलिए था कि सीता लंबे समय तक लंका में रावण की सरपरस्ती में रही थीं.

बस इतना सुनना था कि अपनी मर्यादा और राजधर्म को निभाने वाले राम ने सीता की अग्नि परीक्षा ले डाली. इस में कामयाब होने के बाद भी जनता में सीता को ले कर तरहतरह की बातें होती रहीं तो राम ने उन्हें जंगल भेज दिया. वह भी यह जानतेबूझते कि वे पेट से हैं और इस दौरान पत्नी को सब से ज्यादा जरूरत पति के साथ और प्यार की होती है.

लेकिन अपना राजधर्म निभाते हुए राम ने जो सख्ती दिखाई आज भी उस की मिसाल धर्म के ठेकेदार यह दलील देते हुए कहते देते हैं कि राजा हो तो राम जैसा जिस ने पत्नी से ज्यादा मर्यादा और प्रजा को तवज्जुह दी.

इस में कोई शक नहीं कि शक शौहर की फितरत होती है, लेकिन इस के नतीजे किसी के हक में अच्छे नहीं नकलते, इसलिए शौहरों को चाहिए कि शक होने पर वे सब्र से काम लें और बीवी की बदचलनी साबित भी हो जाए तो खुद के हाथ उस के खून से न रंगे, क्योंकि इस में नुकसान उन का भी है.

क्या करें शौहर

शक के बारे में यह कहावत मशहूर है कि इस का इलाज तो लुकमान हकीम के पास भी नहीं था, इसलिए शौहरों को बीवी पर बेवजह शक करने से बचना चाहिए. बीवी अगर खुले मिजाज वाली हो और दूसरों से हंसबोल कर बात करने वाली हो तो कुढ़ने और खुद का खून जलाने के बजाय उसे बताना चाहिए कि आप को यह सब पसंद नहीं है, लेकिन इस बाबत धौंसधपट या मारापीटी से काम नहीं लेना चाहिए.

बीबी का गैरमर्दों से हंसनाबोलना बदचलनी के दायरे में नहीं आता, इसलिए उस के स्वभाव से थोड़ा समझौता शौहर को भी करना चाहिए. अगर इस मुद्दे पर कलह होती है तो अकसर बीवियां जानबूझ कर शौहर को चिढ़ाने के मकसद से और भी ऐसा ही करती हैं, जिस से बनने के बजाय बात और बिगड़ती जाती है.

शौहर को अब चालचलन से कम अपने मर्द होने की हेठी पर गुस्सा आने लगता है, जिस के चलते वह उस की हत्या करने जैसे जुर्म को अंजाम देने भी उतारू हो आता है, जिस से उसे हासिल कुछ नहीं होता और बाकी जिंदगी जेल की सलाखों के पीछे काटनी पड़ती है. अगर बच्चे हों तो उन का भी भविष्य खराब होता है.

बीवी की बदचलनी साबित हो न हो यह अलग बात है, लेकिन हर शौहर की कोशिश यह होनी चाहिए कि वह बीवी को हर लिहाज से संतुष्ट रखे और उसे इज्जत और बराबरी का दर्जा दे. हां, बदचलनी जब साबित हो ही जाए तब बजाय उसे खुद सजा देने के तलाक के लिए अदालत में जाना चाहिए. हालांकि इस में थोड़ी दिक्कतें जरूर पेश आती हैं, लेकिन यकीन मानें कि वे उतनी नहीं होतीं जितनी हत्या के बाद पकड़े जाने पर होती हैं.

बीवी से हर समय प्यार जताते रहना भी एक अच्छा उपाय है जिस से वह हंसनेबोलने के लिए किसी और का रुख न करे. जिन शौहरों को लंबे समय या दिनों तक बाहर रहना पड़ता है, उन्हें चाहिए कि मोबाइल फोन के जरीए पत्नी से घरगृहस्थी के साथसाथ रोमांटिक बातें करते हुए प्यार जताते रहें. यह कतई न सोचें कि उन की गैरमौजूदगी में वह किसी और के साथ गुलछर्रे उड़ा रही होगी. यही शक होता है जिस की कोई जमीन नहीं होती.

याद रखें कि पतिपत्नी का रिश्ता आपसी भरोसे पर टिका होता है. अगर किसी भी वजह से यह दरकता है तो टूटता घर है. किसी दूसरे के चुगली करने पर भी बीवी पर शक करना उस के साथ ज्यादती है.

बीवियां भी समझें

अगर शौहर को आप का गैरमर्दों से हंसनाबोलना पसंद नहीं है तो उस के जज्बातों को समझते हुए धीरेधीरे यह आदत छोड़ें और याद रखें कि इस से आप का कोई नुकसान नहीं होने वाला है, लेकिन अगर पति का शक बढ़ता जाएगा तो जरूर कई दिक्कतें खड़ी होने लगती हैं.

अगर पति की आमदनी कम हो तो उसे ताने मारना उस के भीतर शक पैदा करने वाली बात भी हो सकती है.

पति अगर सैक्स में मनमुताबिक संतुष्ट न कर पाता हो तो इस की वजह बीवी को पहले खोजनी चाहिए. आजकल कमानाखाना मुश्किल होता जा रहा है. इस तनाव का असर मर्दों की सैक्स जिंदगी पर भी पड़ता है. कई बार वे टैंपरेरी नामर्दी के भी शिकार हो जाते हैं. ऐसे में बीवी को कहीं और सुख ढूंढ़ने की नादानी करने के बजाय शौहर से खुल कर बात कर डाक्टर से मशवरा लेना चाहिए. ज्यादातरर मरीज इलाज से ठीक हो जाते हैं.

इस पर भी बात न बने तो बजाय चोरीछिपे किसी और से जिस्मानी रिश्ता बनाने के पहले पति से खुल कर बात कर तलाक ले लेना ज्यादा ठीक रहता है, क्योंकि किसी की बीवी रहते नाजायज संबंध बनाना आ बैल मुझे मार जैसी बात साबित होती है और शौहर मरनेमारने पर उतारू हो आता है.

नाजायज संबंध आमतौर पर ज्यादा दिनों तक छिप नहीं पाते हैं और बिरले ही शौहर होते हैं जो आंखों देखी मक्खी निगल पाते हैं.

लुभाने वाले मर्दों से ज्यादा नजदीकियां भी पति के शक की वजह बनती हैं, इसलिए खुद को काबू में रखना चाहिए, खासतौर से उस सूरत में जब शौहर को यह पसंद न हो. आजकल ज्यादातर बीवियां मोबाइल फोन में बिजी रहती हैं, जिस पर शौहर की खीज कुदरती बात है और शक होना भी कि बीवी न जाने किस से गुटरगूं कर रही है, इसलिए मोबाइल फोन के ज्यादा इस्तेमाल से भी बचना चाहिए.

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