सौफ्टवेयर इंजीनियर की मौत- भाग 1

सौजन्य-मनोहर कहानियां

लेखक- निखिल

जहां थानेदार रंजीत कुमार जैसे खूंखार पुलिस वाले हों, वहां की पुलिस की बदनामी स्वाभाविक ही है. आश्चर्य की बात यह है कि जहां की पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी अपने एक थानेदार को पकड़ने में अक्षम हैं, सारे साधनों के बाद, वहां की जनता का क्या हाल होगा. क्या वाकई रंजीत को पकड़ने की…

बिहार में एक बड़ा जिला है भागलपुर. इसी जिले के बिहपुर इलाके में एक गांव है मड़वा. इस गांव के रहने वाले

आशुतोष पाठक सौफ्टवेयर इंजीनियर थे. इंजीनियरिंग करने के बाद वह बेंगलुरु जा कर नौकरी करने लगे.

इसी साल लौकडाउन में वह बेंगलुरु से नौकरी छोड़ आए. बाद में उन्होंने अपने ही जिला मुख्यालय भागलपुर में नौकरी कर ली, लेकिन गांव से उन का मोह नहीं छूटा था. इसलिए जब भी मौका मिलता, परिवार के साथ गांव चले जाते.

इसी 24 अक्तूबर की बात है. उस दिन दुर्गाष्टमी थी. वह दुर्गा पूजा के लिए परिवार के साथ भागलपुर से गांव आ गए थे. दोपहर करीब साढ़े 3 बजे वह अपनी पत्नी स्नेहा और 2 साल की बेटी मारवी के साथ भ्रमरपुर दुर्गा मंदिर में पूजा कर बाइक से गांव जा रहे थे.

एनएच 31 पर महंथ चौक के पास आशुतोष की साइड में चलने की बात पर एक आदमी से झड़प हो गई. पढ़ेलिखे आशुतोष बाइक रोक कर उस आदमी को समझा रहे थे, लेकिन वह आदमी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं था.

झड़प होते देख आसपास के लोग एकत्र हो गए. उन लोगों ने भी उस आदमी को समझाया.

समझाईबुझाई चल रही थी कि बिहपुर के थानेदार रंजीत कुमार पुलिस की जीप से उधर से निकले. उन्होंने भीड़ देख कर गाड़ी रोक ली. रंजीत ने आशुतोष और उन से झगड़ा कर रहे आदमी से झगड़ने का कारण पूछा.

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रंजीत कुकर बन कूदा बीच में

थानेदार रंजीत कुमार पूरी बात सुन कर आशुतोष की गलती बता कर उसे धमकाने लगे. थानेदार ने आशुतोष से बाइक के कागजात मांगे. उन्होंने कागजात दिखा दिए. इसी दौरान किसी बात पर आशुतोष से थानेदार की बहस हो गई.

उन्हें बहस करते देख कर थानेदार रंजीत कुमार आगबबूला हो गए. उन्होंने पत्नी और बेटी के सामने ही सरेआम आशुतोष की पिटाई शुरू कर दी. आशुतोष कहते रहे कि थानेदार साहब, आप यह गलत कर रहे हो. मैं पढ़ालिखा इंसान हूं. सौफ्टवेयर इंजीनियर हूं.

आशुतोष की बात पर थानेदार का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उन्होंने अपने जीप चालक और साथ में मौजूद पुलिस वालों से कहा कि इसे जीप में डालो और थाने ले चलो.

थानेदार साहब का हुकम था. पुलिस वालों ने आशुतोष को जबरन जीप में डाला और थाने की ओर चल दिए. आशुतोष की पत्नी स्नेहा पाठक थानेदार और पुलिस वालों के आगे हाथ जोड़ कर अपने पति को छोड़ने की गुहार लगाती रही. आशुतोष की 2 साल की बेटी रोतीबिलखती रही, लेकिन पुलिस वालों का कलेजा नहीं पसीजा. वहां मौजूद लोगों की भी हिम्मत नहीं हुई कि थानेदार का विरोध करें.

बिहपुर थाने ले जा कर थानेदार ने आशुतोष के कपड़े उतरवा दिए. उन को डंडों से बेरहमी से पीटा गया. इतने पर भी थानेदार रंजीत का गुस्सा शांत नहीं हुआ, तो पुलिस वालों से जूतों से उन की जम कर पिटाई कराई. फिर शौचालय में बंद कर खूब पिटाई की गई.

आशुतोष खून से लथपथ हो गए. उन की नाक और शरीर से कई जगह खून बहने लगा.

इस बीच स्नेहा ने फोन कर मड़वा गांव में अपने घर वालों को सारी बात बता दी. गांव से आशुतोष के घरवाले बिहपुर थाने आ गए. थानेदार ने उन से भी बदसलूकी की और उन्हें आशुतोष से नहीं मिलने दिया.

घर वाले थानेदार के सामने गुहार लगाते रहे, लेकिन उस ने किसी की नहीं सुनी. पुलिस वालों की पिटाई से शाम करीब 7 बजे आशुतोष मरणासन्न हो गए, तब उन्हें घर वालों को सौंप दिया गया. सौंपने से पहले एक कागज पर यह भी लिखवा लिया गया कि हम आशुतोष को सहीसलामत थाने से ले जा रहे हैं.

आशुतोष की हालत खराब थी. पुलिस वालों ने उन्हें बुरी तरह पीटा था. डंडों, जूतों और बेल्ट के साथ थप्पड़घूंसों से भी पिटाई की गई थी. जगहजगह चोटें लगने से उन के शरीर से खून रिस रहा था.

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जिंदगी की जंग हार गए आशुतोष

घर वाले उन्हें बिहपुर के ही निजी अस्पताल में ले गए. डाक्टरों ने प्राथमिक इलाज के बाद गंभीर हालत देख कर उन्हें भागलपुर के जवाहर लाल नेहरू मैडिकल कालेज एंड अस्पताल में रैफर कर दिया. अस्पताल में दूसरे दिन इलाज के दौरान उन की मौत हो गई. वे करीब 33 साल के थे. आशुतोष की मौत का पता चलने पर बिहपुर थानेदार और उस के साथी पुलिस वाले थाने से फरार हो गए.

उस दिन दशहरा था. बिहार में विधानसभा के चुनाव भी हो रहे थे. सौफ्टवेयर इंजीनियर आशुतोष पाठक की मौत से लोगों का गुस्सा फूट पड़ा. दोपहर करीब 12 बजे लोगों ने आशुतोष की लाश महंथ चौक पर रख कर एनएच 31 जाम कर दिया और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे.

पता चलने पर पुलिस और प्रशासन के अफसर मौके पर पहुंचे और उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन लोगों ने डीएम को मौके पर बुलाने, मृतक के आश्रितों को नौकरी, मुआवजा, दोषी पुलिस वालों को गिरफ्तार करने की मांग की.

इस दौरान लोगों ने नवगछिया डीएसपी और एसडीपीओ से धक्कामुक्की भी की. कई घंटों की समझाइश और आश्वासन के बाद शाम 5 बजे लोग शांत हुए और शव का पोस्टमार्टम कराने की सहमति दी.

बाद में 3 डाक्टरों के मैडिकल बोर्ड से शव का पोस्टमार्टम कराया गया. इसकी वीडियोग्राफी भी कराई गई. पोस्टमार्टम कराने के बाद शव उन के घरवालों को सौंप दिया गया.

मृतक आशुतोष के चाचा प्रफुल्ल पाठक ने झंडापुर ओपी थाने में बिहपुर थानाप्रभारी रंजीत कुमार, पुलिस जीप के निजी चालक, बिहपुर थाने में मौजूद पुलिस वालों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

इस घटना से बिहार पुलिस का अमानवीय चेहरा सामने आ गया था. विधानसभा चुनाव का माहौल था. पूरे इलाके के लोगों में आक्रोश था. इसलिए मुख्यमंत्री ने डीजीपी को घटना की जांच कराने के निर्देश दिए. जिला प्रशासन ने भी मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दिए.

बिहार के राज्य मानवाधिकार आयोग ने भी इस मामले में शिकायत दर्ज कर ली. घटना की गंभीरता को देखते हुए नवगछिया की एसपी स्वप्नाजी मेश्राम ने आरोपी थानाप्रभारी रंजीत कुमार को निलंबित कर दिया.

सिर्फ जांच ही जांच

एसपी ने मामले की जांच के लिए एसडीपीओ दिलीप कुमार के नेतृत्व में एसआईटी का गठन किया. एफएसएल टीम ने बिहपुर थाने से घटना के साक्ष्य जुटाए. इस के लिए पिटाई में इस्तेमाल डंडे, हथियारों के बट, शौचालय के दरवाजे का रौड, फर्श, पुलिस थाने की जीप आदि से सैंपल एकत्र किए गए.

सौफ्टवेयर इंजीनियर की मौत

पति बना हैवान

पति बना हैवान – भाग 3

सौजन्य-मनोहर कहानियां

शुभम को शिवांगी का यह रवैया पसंद नहीं आया. जून 2019 में शशांक और शुभम ने फैसला किया कि शिवांगी की हत्या कर दी जाए. लेकिन हत्या घर में करने से घर वालों पर हत्या का शक आएगा. इसलिए हत्या ऐसे की जाए कि हत्या न लग कर हादसा लगे. कई बार प्रयास किए लेकिन रास्ता नहीं बना.

इसी बीच शुभम शिवांगी और बेटे युवराज को ले कर नैनीताल के थाना भवाली अंतर्गत गांव नगारी में अपने पिता के मकान में जा कर रहने लगा. वहां वह एक होटल लीज पर ले कर चलाना चाहता था. होटल को लीज पर लेने को ले कर बात चल रही थी कि लौकडाउन लग गया. इस वजह से उसे वापस अपने घर लौटना पड़ा.

शिवांगी की हत्या की बनी योजना

लौकडाउन के दौरान शशांक और शुभम ने आराम से शिवांगी की हत्या को हादसा कैसे बनाना है, इस पर पूरी योजना बनाई. उन की इस योजना में शुभम का जिगरी दोस्त प्रशांत राजपूत भी शामिल था.

प्रशांत गाजियाबाद के साहिबाबाद थाना क्षेत्र के पसौड़ा का रहने वाला था. शुभम और प्रशांत रोज बैठ कर साथ शराब पीते थे. पीने के बाद लांग ड्राइव पर जाते थे. वे दोस्ती में एकदूसरे के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे.

योजनानुसार शुभम ने शिवांगी से कहा कि वह कुछ दिन अपने मातापिता से मिल आए. उस का तो मन हो ही रहा होगा, उस के मातापिता को भी उसे देखने का मन होगा. शिवांगी खुश हो गई. वैसे भी वह एक बार फिर से गर्भवती हो गई थी.

लौकडाउन खुल चुका था. लौकडाउन की सारी बंदिशें हटीं तो शुभम उसे कार में बैठा कर मायके जा कर छोड़ने को तैयार हो गया. शिवांगी से उस ने पूरी ज्वैलरी पहनने को कहा कि घर जा रही हो तो घर के आसपास के लोग देखेंगे तो बिना ज्वैलरी के अच्छा नहीं लगेगा. शिवांगी ने पूरी ज्वैलरी पहन ली.

शुभम उसे ले कर बदायूं स्थित शिवांगी के घर पहुंच गया. वहां उस ने शिवांगी के घर वालों से काफी घुलमिल कर बातें की. उसे वहां छोड़ कर शुभम वापस लौट आया. वापस आ कर उस ने फिर से पूरी योजना को सही से अंजाम देने के लिए शशांक और प्रशांत से बात की.

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16 अक्तूबर, 2020 को कार से शुभम शिवांगी और बेटे युवराज को लेने बदायूं पहुंच गया. वापस लाते समय भी शुभम ने शिवांगी पर पूरी ज्वैलरी पहनने का दबाव डाला. शिवांगी ने पूरी ज्वैलरी पहन ली. शिवांगी को बिलकुल भी आभास नहीं था कि जिस से उस ने प्यार किया और शादी की. इतना विश्वास किया, वह उस की जान लेने तक को तैयार हो जाएगा.

शाम 6 बजे कार से शुभम पत्नीबेटे को ले कर निकला. बरेली के बहेड़ी कस्बे में पहुंच कर उस ने कार रोकी. वहां एक दुकान से उस ने जूस खरीदा और उस में चालाकी से नशीली गोलियां मिला दीं. वह जूस उस ने शिवांगी को दिया तो उस ने पी लिया.

गोलियों का असर धीरेधीरे शिवांगी पर होने लगा. बहेड़ी कस्बे से निकल कर कुछ दूर नैनीताल रोड पर एक ढाबे के पास उस ने कार रोकी. उस ने युवराज को गोद में लिया और शिवांगी से उसे चौकलेट दिलाने की बात कह कर चल दिया. कार उस ने स्टार्ट छोड़ दी थी. उस समय तक काफी अंधेरा हो गया था.

अगले ही पल शशांक प्रशांत के साथ बाइक से वहां पहुंचा. शशांक कार की ड्राइविंग सीट पर जा कर बैठ गया और कार को गति दे दी. प्रशांत बाइक से उस के पीछे चलने लगा.

गांव आमडंडा के पास सुनसान सड़क पर शशांक ने कार रोकी. प्रशांत भी वहां पहुंच गया. दोनों शिवांगी के शरीर से ज्वैलरी उतारने लगे. साथ ही साथ वे शिवांगी के साथ मारपीट भी करने लगे. शिवांगी उस समय होश में आ गई थी. वह अपने जेठ शशांक से कहने लगी, ‘‘आप को जो लेना है ले लो, लेकिन मुझे मारो मत.’’

योजना को दिया अंजाम

ज्वैलरी उतारने के बाद उन्होंने कार को लौक कर दिया. इस के बाद प्रशांत बाइक की डिक्की में रखी पैट्रोल से भरी केन निकाल लाया और कार के ऊपर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी. कार धूधू कर जलने लगी. शिवांगी कार के अंदर बंद फड़फड़ा कर चिल्लाने लगी लेकिन कार लौक होने से उस की आवाज बाहर नहीं आ रही थी. शिवांगी ने कार से निकलने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुई.

कुछ गांव वालों ने दूर से कार को जलते देखा तो उस ओर दौड़ पड़े. गांव वालों को आता देख कर शशांक और प्रशांत बाइक पर बैठ कर वहां से भाग गए.

गांव वालों ने किसी तरह से शिवांगी को कार से निकाल कर बचाया. कार बाहर से जल रही थी, लेकिन आग अंदर तक नहीं पहुंची थी इसलिए शिवांगी जली नहीं थी, बस झुलस गई थी. गले पर कुछ निशान बन गए थे. बदहवास हालत में वह कार से थोड़ी दूर सड़क पर बैठ गई.

दूसरी ओर योजनानुसार कार जाने के कुछ समय बाद शुभम चिल्लाने लगा. चिल्ला कर वह अपनी पत्नी के अपहरण की बात लोगों से कहने लगा. शुभम ने 112 नंबर पर पुलिस को पत्नी के अपहरण की सूचना भी दे दी.

वायरलैस पर प्रसारित संदेश से बहेड़ी थाना पुलिस को घटना की सूचना मिली. सूचना पा कर बहेड़ी थाने के इंसपेक्टर पंकज पंत पुलिस टीम के साथ तुरंत ढाबे पर पहुंचे. वहां खड़े शुभम लोहित ने उन्हें पत्नी शिवांगी को अपहर्त्ताओं द्वारा कार से नैनीताल रोड पर ले जाने की बात बताई.

इंसपेक्टर पंत अपनी टीम के साथ नैनीताल रोड पर गए तो आमडंडा के पास उन को एक कार जलते हुए मिली. वहां गांव के काफी लोग मौजूद थे. पुलिस को देख कर गांव के लोगों ने पूरी बात बताई और शिवांगी से मिलवाया. शिवांगी ने जब घटना बताई तो अपनों द्वारा रची गई साजिश का खुलासा हुआ.

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इस के बाद शिवांगी को इंसपेक्टर पंत ने उपचार हेतु भेजा. फिर शुभम को हिरासत में ले कर थाने आ गए. कुछ सख्ती करने पर शुभम ने पूरी घटना बयान कर दी. जिस के बाद इंसपेक्टर पंकज पंत ने शुभम लोहित, शशांक लोहित और प्रशांत राजपूत के खिलाफ भादंवि की धारा 364/328/307/120बी के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. बेटे युवराज को भी शुभम से ले कर शिवांगी को सौंप दिया गया.

कागजी खानापूर्ति पूरी करने के बाद शुभम को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

शुभम ने सोचा था कि इस तरह शिवांगी को मारने से उस पर या उस के घरवालों पर आरोप नहीं लगेगा. ज्वैलरी भी उस के पास आ जाएगी और कार के इंश्योरेंस की रकम भी उसे मिल जाएगी. शिवांगी से भी उसे हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा. लेकिन बुरा करने वालों का किस्मत कभी साथ नहीं देती. शुभम के साथ भी ऐसा ही हुआ.

कथा लिखे जाने तक शशांक और प्रशांत फरार थे. पुलिस उन की सरगर्मी से तलाश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों और शिवांगी से पूछताछ पर आधारित

पति बना हैवान – भाग 2

सौजन्य-मनोहर कहानियां

शुभम हंसा, ‘‘नाम जानना क्या मुश्किल है, मैं तो यह भी जानता हूं कि तुम अपनी बहन के घर में रहती हो.’’ इस के बाद शुभम ने शिवांगी को अपना नाम बताया और उस की बहन के घर के पास ही खुद के रहने की बात बताई और इसे अपने यहां एक कप चाय पीने का निमंत्रण दिया.

शुभम का व्यवहार शिवांगी को काफी दिलचस्प लगा. उस ने शुभम का निमंत्रण स्वीकार कर लिया. उस के बाद दोनों एक रेस्टोरेंट में आ गए और चाय की चुस्कियों के बीच बात शुरू हुई. अचानक शुभम ने पूछा, ‘‘शिवांगी, मैं तुम्हें कैसा लगता हूं?’’

शिवांगी ने हैरानी से शुभम को देखा, ‘‘क्या मतलब, मैं समझी नहीं कि तुम कहना क्या चाहते हो?’’

शुभम गंभीर हो गया. उस ने शिवांगी से कहा, ‘‘जब से मैं ने तुम्हें देखा है, मेरा मन बेचैन है. दिल में एक बात है जो मैं तुम से कहना चाहता हूं. पता नहीं तुम क्या सोचोगी, पर यह सच है कि मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

शिवांगी ने स्वीकार किया प्यार

शुभम की बात से शिवांगी घबरा गई. उस ने ऐसा कुछ सोचा भी नहीं था. वह उठ खड़ी हुई और बोली, ‘‘चलो, अब चलते हैं.’’

शुभम को अपनी बात का कोई जवाब नहीं मिला था. शिवांगी सड़क पर आ गई और एक आटो में बैठ कर चली गई.

शुभम को लगा जैसे उस के हाथ से कुछ छूट गया था. पता नहीं उस की बात की शिवांगी पर क्या प्रतिक्रिया हुई थी. वह मन ही मन डर गया.

तनाव और विषाद में डूबे शुभम ने सोचा तक न था कि शिवांगी उस की मोहब्बत को कुबूल कर लेगी. अचानक उस के मोबाइल की घंटी बजी तो उधर से एक सुरीली आवाज आई, ‘‘मैं शिवांगी बोल रही हूं, शुभम.’’

शिवांगी के नाम से उस की धड़कनें तेज हो गईं. शिवांगी ने उसे बुलाया था. शुभम कुछ ही देर में शिवांगी के बताए स्थान पर पहुंच गया. शिवांगी उस का इंतजार कर रही थी. वह उसे देख कर मुसकराई. शुभम ने राहत की सांस ली.

वे दोनों एकांत में आ कर बैठ गए. शिवांगी काफी गंभीर थी. उस ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘शुभम, तुम जानते हो कि जिस रास्ते पर तुम मुझे ले जाना चाहते हो, वह कितना कांटों भरा है. क्या तुम परिवार और समाज के विरोध का मतलब समझते हो? कहीं प्यारमोहब्बत तुम्हारे लिए खेल तो नहीं है?’’

शुभम ने गौर से शिवांगी को देखा और उस का हाथ पकड़ लिया. उस ने शिवांगी को आश्वस्त किया कि वह उसे दिलोजान से चाहता है और हर बाधा को पार करने का साहस रखता है. शिवांगी ने अपना हाथ उस के हाथ में हमेशा के लिए थमा दिया.

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उस दिन के बाद दोनों की दुनिया ही बदल गई. उन की आंखों में सतरंगी सपने समा गए. उन के दिल मिले तो एक दिन खुशी के मौके पर तन भी मिल गए. उन का प्यार पूर्ण हो गया.

शिवांगी शुभम से 10 साल बड़ी थी और उस की जाति की भी नहीं थी. फिर भी शुभम ने उस से अंतरजातीय विवाह करने का फैसला कर लिया.

गाजियाबाद में ही एक कमरा ले कर दोनों लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगे. 2016 में दोनों ने मंदिर में विवाह कर लिया. शिवांगी ने विवाह की बात अपनी बहन रेखा को बता दी.

2017 की शुरुआत में ही एक दिन शिवांगी की बहन रेखा ने अपने मातापिता को शिवांगी द्वारा विवाह कर लेने की बात बता दी. यह सुन कर वे चुप हो गए. बेटी की खुशी में ही उन्होंने अपनी खुशी देखी और रस्म के नाम पर एक स्विफ्ट कार नंबर यूपी14डीएच 6794 गिफ्ट में दे दी. कार शिवांगी के नाम पर रजिस्टर थी.

विवाह का एक साल पूरा होतेहोते शिवांगी एक बेटे की मां बन गई, जिस का नाम युवराज रखा गया. इसी दौरान शिवांगी की बहन रेखा की मृत्यु हो गई.

2018 में शुभम के बड़े भाई शशांक का विवाह हुआ. तब शुभम ने अपने घर वालों को बताया कि उस ने शिवांगी से विवाह कर लिया है. यह सुन कर सभी दंग रह गए. जब यह पता चला कि शिवांगी शुभम से 10 साल बड़ी है और उन की जाति की नहीं है तो घर में कोहराम मच गया. लेकिन जो हो गया सो हो गया, की बात सोच कर शुभम के घर वाले शिवांगी को घर में रखने को तैयार हो गए.

शुभम गया जर्मनी

दोनों घर आ कर रहने लगे. इसी बीच शुभम का स्टडी वीजा बन कर आ गया. वह जर्मनी चला गया. वहां वह होटलों में काम के तौरतरीके सीखने गया था. उस के जाते ही घर में रोज छोटीबड़ी बात को ले कर कलह होने लगी.

शिवांगी की सास गीता बातबात में उसे ताने मारती और घर के काम को ले कर भी उन में बहस हो जाती. गीता अपने बेटे शुभम को शिवांगी के बारे में गलतसलत बातें बोलने लगी.

रोज घर के कलह की बातें मां के मुंह से सुन कर शुभम का मन भी शिवांगी की तरफ से पलटने लगा. गीता अच्छी तरह जानती थी कि बेटा उस का कहा ही सुनेगा और उस की ही बात मानेगा. वही हो रहा था.

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गीता चाहती थी कि किसी तरह शिवांगी उस के बेटे की जिंदगी से निकल जाए तो वह उस का विवाह अपनी ही जाति की किसी लड़की से करा देगी. इसीलिए वह शिवांगी को चैन नहीं लेने देती थी.

शुभम जर्मनी से लौट आया. गीता और शशांक दोनों ने शुभम को काफी समझाया, जिस से शुभम भी उन की तरफ हो गया. शिवांगी ताने सुनसुन कर पक गई थी. इसलिए पलट कर जवाब दे देती थी और जो मन होता वह काम करती, वरना नहीं करती.

पति बना हैवान – भाग 1

सौजन्य-मनोहर कहानियां

अपने घर वालों को बिना बताए शुभम ने शिवांगी से लवमैरिज कर ली थी. एक बेटे के जन्म के बाद शुभम ने घर वालों को शादी की बात बताई. इस के बाद ऐसा क्या हुआ कि शुभम को अपने भाई के साथ मिल कर पत्नी शिवांगी को कार में जिंदा जलाने के लिए मजबूर होना पड़ा…

शिवांगी और शुभम ने उस छोटे से कमरे में प्रवेश किया तो हैरानी से उन की आंखें फैल गईं. कमरे को रंगीन गुब्बारों और चमकीली पन्नी की झालरों से अच्छी

तरह सजाया हुआ था. कमरे में बैड के पास एक मेज पर दिल के आकार का केक रखा हुआ था, जिस के पास कुछ मोमबत्तियां और माचिस रखी हुई थी.

शिवांगी ने चौंक कर शुभम की ओर देखा, ‘‘आज तुम्हारा जन्मदिन है शुभम और तुम ने मुझे बताया भी नहीं.’’

‘‘जन्मदिन मेरा नहीं तुम्हारा है जान.’’ शुभम उस का गाल थपथपा कर बोला तो शिवांगी ने सिर पकड़ लिया, ‘‘ओह! आज मेरा जन्मदिन है और मुझे ही याद नहीं है.’’

‘‘लेकिन मैं ने याद रखा है माई लव, चलो अब फटाफट केक काटो.’’

शिवांगी शुभम की ओर प्यार भरी नजरों से देखने लगी. शुभम ने केक पर मोमबत्तियां लगा कर जला दीं. शुभम ने इशारा किया तो शिवांगी ने जलती मोमबत्तियों को फूंक मार कर बुझा दिया. शुभम उसे तेज आवाज में बारबार बर्थडे विश करने लगा.

शिवांगी ने चाकू से केक काटा और केक का टुकड़ा उठा कर शुभम के मुंह में रखा तो थोड़ा सा केक खा कर उस ने बाकी केक शिवांगी को खिला दिया.

केक खाती हुई शिवांगी बोली, ‘‘तुम ने मेरे जन्मदिन की इतनी अच्छी तैयारी की है. बोलो, जन्मदिन पर तुम्हें क्या तोहफा दूं?’’

‘‘जन्मदिन तो तुम्हारा है, तोहफा तो तुम्हें मिलना चाहिए.’’

‘‘तुम मुझे दुनिया में सब से ज्यादा प्यार करते हो शुभम. तभी तो तुम मेरा इतना खयाल रखते हो. आज मैं दूंगी तुम्हें तोहफा, मांगो क्या मांगते हो?’’

‘‘जो मागूंगा, देने से इंकार तो नहीं करोगी?’’ शुभम ने शिवांगी की आंखों में झांक कर पूछा तो शिवांगी उस के दिल की मंशा समझ गई. फिर भी अंजान बनते हुए बोली, ‘‘मांग के तो देखो.’’

शुभम ने उस के दोनों कंधों पर हाथ रख कर उस की आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘शिवांगी, हम दिल से तो एक हो गए हैं, तन से भी एक हो जाएं तो हमारा प्यार पूर्ण हो जाएगा. हमारे प्यार में कोई कमी नहीं रह जाएगी.’’

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यह सुन कर शिवांगी ने आंखों के परदे गिरा कर मूक सहमति दी और शुभम के सीने से लग गई. यही वह दिन था, जब मन के बाद तन से भी दोनों एक हो गए. उन के प्यार में कोई कमी नहीं रह गई. उत्तर प्रदेश के जिला बदायूं के वजीरगंज कस्बा के बनिया मोहल्ले की रहने वाली थी शिवांगी. उस के पिता का नाम अजय पाल सिंह और मां का नाम मुन्नी देवी था. अजय पाल खेतीकिसानी करते थे. शिवांगी 3 भाईबहन थे. सब से बड़ी बहन रेखा, उस से छोटा भाई बौबी और सब से छोटी शिवांगी.

रेखा का विवाह गाजियाबाद के साहिबाबाद में रहने प्रोफेसर राणा से हुई थी. राणा कनाडा में प्रोफेसर थे. रेखा के कोई बच्चा नहीं था. इसलिए रेखा घर में अकेली रहती थी. पति के कहने पर रेखा ने बहन शिवांगी को अपने यहां रहने के लिए बुला लिया. शिवांगी ने बीए करने के बाद एमए प्रथम वर्ष में प्रवेश ले लिया था, लेकिन बीच में ही पढ़ाई छोड़ कर वह बहन के यहां चली गई. वहां रह कर वह ब्यूटीपार्लर में काम करने लगी.

शिवानी की बहन के पड़ोस में ही शुभम लोहित रहता था. उस के पिता देवेंद्र सिंह एयरफोर्स में थे, वहां से सेवानिवृत्त होने के बाद वह स्पेलर, चक्की लगाने के साथ दूध डेयरी का भी काम करने लगे. घर में शुभम की मां गीता के अलावा एक बड़ा भाई शशांक उर्फ सनी और एक छोटा भाई सार्थक उर्फ शानू था.

समारोह में हुई थी शिवानी से मुलाकात

शशांक एक प्राइवेट बैंक में जौब करता था. शुभम होटल मैनेजमेंट का कोर्स करने के बाद गाजियाबाद के एक होटल में नौकरी कर रहा था.

जहां शुभम रहता था, उसी क्षेत्र के एक परिचित के यहां वैवाहिक समारोह में शुभम शामिल हुआ. शादी का जश्न चल रहा था. जश्न की इसी चहलपहल में शुभम की नजर एक लड़की से टकरा गई तो वह उसे देखता रह गया. वह लड़की और कोई नहीं शिवांगी थी, जो अपनी बहन के साथ उस विवाह के जश्न में शामिल हुई थी.

शिवांगी अपनी कुछ परिचित लड़कियों से बात कर रही थी. कभीकभी वह किसी बात पर खिलखिला कर हंसने लगती. पता नहीं शिवांगी की हंसी में ऐसा क्या था, जो शुभम के दिल में अंदर तक उतर कर असर कर रहा था.

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शुभम जानना चाहता था कि वह लड़की कौन है और कहां से आई है. वह उस का नाम भी जानना चाहता था. इसलिए वह उस के आसपास मंडराने लगा. तभी उन लड़कियों में से एक ने शिवांगी को कंधा मारते हुए कहा, ‘‘शिवांगी, शादी के बारे में तेरा क्या इरादा है?’’ जवाब में शिवांगी फिर हंसने लगी.

शुभम मुसकराया, ‘‘चलो नाम तो पता चला. अब यह जानना है कि वह रहती कहां है.’’ वह सोच ही रहा था कि शुभम के आसपास रहने वाले कुछ दोस्त वहां आ गए.

दोस्तों ने वहां उस के खड़े होने के बारे में पूछा तो शुभम ने दोस्तों से पूछा, ‘‘उस लड़की को जानते हो तुम लोग?’’

एक दोस्त ने कहा, ‘‘वह शिवांगी है और तुम्हारे घर के पास ही अपनी बहन के यहां रहती है. लेकिन तू क्यों पूछ रहा है?’’

शुभम ने यह कहते हुए टाल दिया, ‘‘कुछ नहीं, मैं ने तो ऐसे ही पूछ लिया था.’’

उस रात शुभम घर तो आ गया लेकिन शिवांगी उस के खयालों में इर्दगिर्द मंडरा रही थी. अगले दिन शिवांगी की एक झलक देखने की कोशिश में वह उस की बहन के घर के पास गया, लेकिन शिवांगी उसे नहीं दिखी, तो उस की बेचैनी और बढ़ गई.

यह बेचैनी अधिक दिन की नहीं थी. 2 दिन बाद ही उसे अपने काम पर जाते हुए शिवांगी दिख गई. वह अकेली थी. यह एक अच्छा मौका था. शुभम उस के पास पहुंच गया और प्यार से पूछा, ‘‘शिवांगी, शौपिंग करने निकली हो क्या?’’

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शिवांगी ने पलट कर देखा, ‘‘तुम… तुम्हें तो मैं ने शादी के फंक्शन में देखा था. लेकिन तुम मेरा नाम कैसे जानते हो?’’

एक औरत का शातिर खेल : भाग 1

सौजन्य-मनोहर कहानियां

मौडर्न और महत्त्वाकांक्षी विनीता ने प्रवक्ता पति अवधेश के होते 2-2 प्रेमी बना लिए थे. चेन मार्केटिंग कंपनी ‘वेस्टीज’ से जुड़ने के बाद तो वह पति को 2 कौड़ी का समझने लगी थी. आखिर उस ने अपने मन की करने के लिए जो खेल खेला, उस में उस के पति की जान तो गई ही, एक प्रेमी भी बेमौत…

42वर्षीय अवधेश सिंह जादौन फिरोजाबाद जिले के भीतरी गांव के निवासी थे. वह बरेली जिले के सहोड़ा में स्थित कुंवर ढाकनलाल इंटर कालेज में हिंदी लेक्चरर के पद पर तैनात थे. नौकरी के चलते ढाई वर्ष पहले उन्होंने बरेली के कर्मचारीनगर की निर्मल रेजीडेंसी में अपना निजी मकान ले लिया था, जिस में वह अपनी पत्नी विनीता और 6 वर्षीय बेटे अंश के साथ रहते थे.

अवधेश की मां अन्नपूर्णा देवी गांव में रहती थीं. 12 अक्तूबर, 2020 को उन्होंने अवधेश से फोन पर बात की. अवधेश उस समय काफी परेशान थे. मां ने उन्हें दिलासा दी कि जल्द ही सब ठीक हो जाएगा.

इस के बाद उन्होंने फिर बेटे से बात करनी चाही, लेकिन बात न हो सकी. अवधेश का मोबाइल बराबर स्विच्ड औफ आ रहा था. अन्नपूर्णा को चिंता हुई तो वह 16 अक्तूबर को बरेली पहुंच गईं. जब वह बेटे के मकान पर पहुंची, तो वहां मेनगेट पर ताला लगा मिला.

पड़ोसियों से पूछताछ की तो पता चला कि 12 अक्तूबर, 2020 को कुछ लोग कार से अवधेश के मकान पर आए थे. तब से उन्हें नहीं देखा गया. अन्नपूर्णा का दिल किसी अनहोनी की आशंका से धड़कने लगा.

वह वहां से स्थानीय थाना इज्जतनगर पहुंच गईं और थाने के इंसपेक्टर के.के. वर्मा को पूरी बात बताई. यह भी बताया कि अवधेश को अपने ससुरालीजनों से खतरा था. यह बात अवधेश ने 12 अक्तूबर को फोन पर बात करते समय मां को बताई थी.

उस की पत्नी विनीता भी अपने बच्चे के साथ गायब थी. इस पर अन्नपूर्णा से लिखित तहरीर ले कर इंसपेक्टर वर्मा ने थाने में अवधेश सिंह जादौन की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

फिरोजाबाद के फरिहा में 4/5 दिसंबर, 2019 की रात एक ज्वैलर्स की दुकान में हुई चोरी के मामले में पुलिस के एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह ने नारखी थाना क्षेत्र के धौकल गांव निवासी हिस्ट्रीशीटर शेर सिंह उर्फ चीकू को पकड़ा था.

शेर सिंह विनीता का रिश्ते का चाचा था. संदेह के आधार पर 25 अक्तूबर, 2020 की शाम शेर सिंह को उठा कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने बरेली के हिंदी प्रवक्ता अवधेश सिंह की हत्या करना स्वीकार किया.

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अवधेश की पत्नी विनीता ने अवधेश की हत्या के लिए उसे 5 लाख की सुपारी दी थी. इस में विनीता के पिता खेरिया खुर्द गांव निवासी रिटायर्ड फौजी अनिल जादौन, भाई प्रदीप जादौन, बहन ज्योति, विनीता का आगरा निवासी प्रेमी अंकित और शेर सिंह के 2 साथी भोला और एटा निवासी पप्पू जाटव शामिल थे. हत्या में कुल 8 लोग शामिल थे.

शेर सिंह ने बताया कि बरेली में हत्या करने के बाद लाश को सभी लोग फिरोजाबाद ले कर आए और यहां नारखी में रामदास नाम के व्यक्ति के खेत में गड्ढा खोद कर दफना दिया था.

अवधेश मिले पर जीवित नहीं

इस खुलासे के बाद फिरोजाबाद पुलिस ने बरेली की इज्जतनगर पुलिस को सूचना दी. अवधेश की मां अन्नपूर्णा को बुला कर 26 अक्तूबर, 2020 को फिरोजाबाद पुलिस ने तहसीलदार की उपस्थिति में उस खेत में बताई गई जगह पर खुदाई करवाई तो वहां से अवधेश की लाश मिल गई. चेहरा बुरी तरह जला हुआ था. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

अवधेश की लाश मिलने के बाद उसी दिन इज्जतनगर थाने में विनीता, ज्योति, अनिल जादौन, प्रदीप जादौन, अंकित, शेर सिंह उर्फ चीकू, भोला सिंह और पप्पू जाटव के विरुद्ध भादंवि की धारा 147/302/201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस के बाद हत्याभियुक्तों की तलाश में ताबड़तोड़ दबिश दी गईं, लेकिन सभी अपने घरों से लापता थे.

उन सब के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए गए. सभी के मोबाइल बंद थे. बीच में किसी से बात करने के लिए कुछ देर के लिए खुलते तो फिर बंद हो जाते. उन की लोकेशन जिस शहर की पता चलती, वहां पुलिस टीम भेज दी जाती. लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही हत्यारे वहां से निकल जाते थे.

31 अक्तूबर, 2020 को एक हत्यारोपी पप्पू जाटव उर्फ अखंड प्रताप को इंसपेक्टर के.के. वर्मा ने गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी बयान में वहीं कहा, जो शेर सिंह ने बताया था. इस बीच 5 नवंबर को इज्जतनगर पुलिस ने सभी आरोपियों के गैरजमानती वारंट हासिल कर लिए.

इस से डर कर अगले ही दिन अवधेश की पत्नी विनीता ने अपने वकील के माध्यम से थाने में आत्मसमर्पण कर दिया.

पूछताछ में वह अपने मृतक पति अवधेश को ही गलत साबित करने पर तुल गई. जबकि उस की सारी हकीकत सामने आ गई थी. जब उस से क्रौस क्वेशचनिंग की गई, तो वह कई सवालों पर चुप्पी साध गई.

अनिल जादौन परिवार के साथ फिरोजाबाद के गांव खेरिया खुर्द में रहते थे. वह सेना से रिटायर थे. परिवार में पत्नी रेखा और 3 बेटियां विनीता, नीतू और ज्योति व एक बेटा प्रदीप था. अनिल के पास पर्याप्त कृषियोग्य भूमि थी. तीनों बेटियां काफी खूबसूरत थीं और सभी ने स्नातक तक पढ़ाई पूरी कर ली थी.

2010 में नीतू का अफेयर गांव के ही पूर्व प्रधान के बेटे के साथ हो गया था. जिस पर काफी बवाल हुआ. इस पर अनिल ने जल्द से जल्द अपनी बेटियों का विवाह करने का फैसला कर लिया.

नारखी थाना क्षेत्र के ही गांव भीतरी में बाबू सिंह का परिवार रहता था. परिवार में पत्नी अन्नपूर्णा और 2 बेटे रमेश और अवधेश थे. रमेश का विवाह हो चुका था और वह परिवार के साथ जयपुर में रह कर नौकरी कर रहा था.

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पति का सीधापन

अविवाहित अवधेश हिंदी प्रवक्ता के पद पर तैनात थे. नौकरी के चक्कर में उन की उम्र अधिक हो गई थी. अवधेश विनीता से 12 साल बड़े थे. फिर भी अनिल विनीता की शादी उन से करने को तैयार हो गए.

अनिल ने विनीता से बात की तो वह मना करने लगी कि 12 साल बड़े लड़के से शादी नहीं करेगी. अनिल ने जब समझाया कि वह सरकारी नौकरी में है, उस के पास पैसों की कमी नहीं है तो वह शादी के लिए तैयार हो गई.

2011 में अवधेश का विनीता से विवाह हो गया. उसी दिन ज्योति का भी विवाह हुआ. विनीता मायके से ससुराल आ गई. विनीता पढ़ीलिखी आजाद खयालों वाली युवती थी. जबकि अवधेश सीधेसादे सरल स्वभाव के थे. दोनों एक बंधन में तो बंध गए थे लेकिन उन के विचार, उन की सोच बिलकुल एकदूसरे से अलग थी.

विनीता को ठाठबाट से रहना पसंद था. जबकि अवधेश को साधारण तरीके से जीवन जीना अच्छा लगता था. दोनों की सोच और खयाल एक नहीं थे तो उन में आए दिन मनमुटाव और विवाद होने लगा. विनीता की अपनी सास अन्नपूर्णा से भी नहीं बनती थी.

अवधेश अपनी मां की बात मानते थे. विनीता इस बात को ले कर भी चिढ़ती थी. दोनों के बीच विवाद कम होने का नाम नहीं ले रहे थे. 6 साल पहले विनीता ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम उन्होंने अंश रखा था.

एक औरत का शातिर खेल

एक औरत का शातिर खेल : भाग 2

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ढाई वर्ष पहले अवधेश ने बरेली के इज्जतनगर थाना क्षेत्र के कर्मचारी नगर की निर्मल रेजीडेंसी में अपना निजी मकान ले लिया था. पहले वह मकान विनीता के नाम लेना चाहते थे. लेकिन उस की बातें और हरकतों से उन का मन बदल गया. वह विनीता व बेटे के साथ अपने नए मकान में आ कर रहने लगे.

बढ़ते आपसी विवादों में विनीता अवधेश से नफरत करने लगी थी. उस ने शादी से पहले सोचा था कि अवधेश उस के कहे में चलेंगे, उस की अंगुलियों के इशारे पर नाचेंगे, लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ. पैसों के लिए उसे अवधेश का मुंह देखना पड़ता था.

अवधेश अपनी सैलरी से विनीता को उस के खर्च के लिए 3 हजार रुपए महीने देते थे. उस में विनीता का गुजारा नहीं होता था. अपने खर्चे को देखते हुए विनीता ने घर में ही ‘रिलैक्स जोन’ नाम से एक ब्यूटीपार्लर खोल लिया.

विनीता अपनी छोटी बहन ज्योति की ससुराल जाती थी. वहीं पर उस की मुलाकात सिपाही अंकित यादव से हो गई. अंकित यादव बिजनौर का रहने वाला था. उस समय उस की पोस्टिंग मैनपुरी में थी. अंकित अविवाहित था और काफी स्मार्ट भी. विनीता से उस की बात हुई तो वह उस के रूपजाल में उलझ कर रह गया. फिर दोनों मोबाइल पर बातें करने लगे.

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एक दिन अंकित विनीता से मिलने बरेली आया. दोनों एक होटल में मिले. उस दिन से दोनों के बीच प्रेम संबंध बन गए. वह विनीता से मिलने अकसर बरेली आने लगा.

बड़े सपने देखने वाली को मिली सपने दिखाने वाली कंपनी

विनीता का भाई प्रदीप एक मल्टीलेवल मार्केटिंग कंपनी में नौकरी करता था. उस ने विनीता से कहा कि वह मल्टीलेवल मार्केटिंग से जुड़ी कंपनी ‘वेस्टीज’ से जुड़ जाए. इस में कम समय में ज्यादा पैसा कमाने का मौका मिलता है. चेन मार्केटिंग कंपनियां कंपनी से जुड़ने वाले लोगों को बड़ेबडे़ सपने दिखाती हैं.

विनीता ने भी कंपनी से जुड़ने का फैसला कर लिया. वह कई मीटिंग में गई और मीटिंग में जाने के बाद उस पर चेन मार्केटिंग के जरिए जल्द से जल्द पैसा कमा कर रईस बनने का नशा सवार हो गया.

इस के लिए उस ने इसी साल की शुरुआत में कंपनी जौइन कर ली. इस के लिए विनीता ने किसी बड़ी महिला अधिकारी की तरह अपनी ड्रैस बनाई. शानदार सूटबूट में चश्मा लगा कर जब वह इंग्लिश में बड़े विश्वास के साथ अपनी बात किसी व्यक्ति के सामने रखती तो वह उस का मुरीद हो जाता और उस के कहने पर कंपनी जौइन कर लेता.

भाई प्रदीप की लाल टीयूवी कार विनीता अपने पास रखने लगी थी. वह इसी कार से लोगों से मिलने जाती थी. लग्जरी कार से सूटेडबूटेड महिला को उतरता देख कर लोगों पर इस का काफी गहरा प्रभाव पड़ता. घर की चारदीवारी से विनीता बाहर निकली तो उस ने अपने लिए पैसों का इंतजाम करना शुरू कर दिया. अब लोग विनीता से मिलने घर पर भी आने लगे.

अवधेश तो दिन में कालेज में होते थे और शाम को ही लौटते थे. उन्हें पड़ोसियों से पता चलता तो अवधेश और विनीता में विवाद होता. विनीता जब पहले अवधेश से नहीं डरीदबी तो अब तो वह खुद का काम कर रही थी. ऐसे में अवधेश को ही शांत होना पड़ता था.

दोनों  के बीच की दूरियां गहरी खाई में तब्दील होती जा रही थीं. दूसरी ओर विनीता की बहन ज्योति का अपनी ससुरालवालों से मनमुटाव हो गया था. वह काफी समय से मायके में रह रही थी. विनीता ने उसे अपने पास रहने के लिए बुला लिया. इस से भी अवधेश खफा था.

लौकडाउन के दौरान फेसबुक पर विनीता की दोस्ती अमित सिसोदिया उर्फ अंकित से हुई. अमित आगरा का रहने वाला था और उसी वेस्टीज कंपनी से ही जुड़ा था, जिस से विनीता जुड़ी थी. अमित विवाहित था और एक बेटे का पिता भी. दोनों की फेसबुक पर बातें हुईं तो पता चला कि अमित विनीता के भाई प्रदीप का दोस्त है.

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इस के बाद दोनों खुल कर बातें करने लगे और मिलने भी लगे. दोनों अलगअलग शहरों में होने वाले कंपनी के सेमिनार में भी साथ जाने लगे. अमित और विनीता की सोच और विचार काफी मिलते हैं, एक साथ रहने के दौरान विनीता को यह बात महसूस हो गई थी. दोनों ही महत्त्वाकांक्षी थे और जिंदगी में खूब पैसा कमाना चाहते थे.

विनीता और अंकित साथ बैठते तो कल्पनाओं की ऊंची उड़ान भरते. एक दिन अमित उर्फ अंकित ने विनीता का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘विनीता, हम दोनों बिलकुल एक जैसे है. एक जैसा सोचते हैं, एक जैसा काम करते है और एक ही उद्देश्य है, एकदूसरे का साथ भी हमें भाता है. क्यों न हम हमेशा के लिए एक हो जाएं.’’

एक औरत का शातिर खेल : भाग 3

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विनीता पहले हलके से मुसकराई, फिर गंभीर मुद्रा में बोली, ‘‘हां अंकित, मैं भी ऐसा ही सोच रही थी. यह भी सोच रही थी कि तुम मेरी जिंदगी में पहले क्यों नहीं आए, आ जाते तो मुझे कष्टों से न गुजरना पड़ता.’’ वह कुछ पलों के लिए रुकी, फिर बोली, ‘‘खैर अब भी हम एक हो सकते हैं अगर ठान लें तो.’’

विनीता की स्वीकृति मिलते ही अंकित खुश हो गया, ‘‘तुम ने कह दिया तो अब हमें एक होने से कोई नहीं रोक सकता.’’ कह कर अमित ने विनीता को बांहों में भर लिया.

विनीता भी उस से लिपट गई. अमित उर्फ अंकित को पा कर जैसे विनीता ने राहत की सांस ली. उसे ऐसे ही युवक की तलाश थी जो उस के जैसा हो, उसे समझता हो और उस के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाए. दूसरी ओर वह सिपाही अंकित यादव से भी संबंध बनाए हुए थी.

विनीता दिनरात एक कर के अपने मार्केटिंग के बिजनैस में सफल होना चाहती थी. इसलिए वह इस में लगी रही. कुछ महीनों में ही उस ने अपने अंडर में एक हजार लोगों की टीम खड़ी कर दी. कंपनी ने उसे कंपनी का ‘सिलवर डायरेक्टर’ घोषित कर दिया.

विनीता खुशी से फूली नहीं समाई. कंपनी ने उसे एक स्कूटी भी इनाम में दी. विनीता अपनी कंपनी के कार्यक्रमों और उस के रिकौर्डेड संदेशों को अपने फेसबुक अकाउंट पर भी डालती रहती थी.

कंपनी से जुड़ने के लिए वह लोगों से अपील करती थी कि उस के पास बिजनैस करने का एक अनोखा आइडिया है, जिस में महीने में 5 से 50 हजार तक कमा सकते हैं. जो कमाना चाहते हैं, उस से मिलें.

विनीता की जिंदगी में सब कुछ अब अच्छा ही अच्छा हो रहा था. बस खटकते थे तो अवधेश. उन के साथ होने वाली कलह. अब विनीता अवधेश से छुटकारा पाने की सोचने लगी थी. उस की जिंदगी में अंकित आ चुका था, वह उस के साथ जिंदगी बिताने का सपना देखने लगी थी. अमित उर्फ अंकित भी उस से कई बार कह चुका था कि वह कहे तो अवधेश को ठिकाने लगा दिया जाए. लेकिन वह ही मना कर देती थी.

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अमित सिसोदिया उर्फ अंकित बना भावी साथी

अवधेश के मरने से उसे हमेशा के लिए छुटकारा तो मिलता ही साथ ही अवधेश का मकान और सरकारी नौकरी भी मिल जाती. यही सोच कर उस ने आगे की योजना बनानी शुरू कर दी. उस ने अपने पिता व भाई से साफ कह दिया कि वह अवधेश के साथ नहीं रहना चाहती. उसे मारने से उसे मकान और उस की सरकारी नौकरी मिल जाएगी. विनीता के पिता अनिल ने एक बार कहा भी कि वह अपना बसा हुआ घर न उजाड़े, लेकिन विनीता नहीं मानी. विनीता की जिद और लालच के लिए वे सभी उस का साथ देने को तैयार हो गए.

विनीता का एक मुंहबोला चाचा था शेर सिंह उर्फ चीकू. वह उस के पिता अनिल का खास दोस्त था. शेर सिंह नारखी थाने का हिस्ट्रीशीटर था, उस पर वर्तमान में 16 मुकदमे दर्ज थे.

विनीता ने शेर सिंह से कहा कि उसे पति अवधेश की हत्या करनी है. शेर सिंह ने उस से 5 लाख रुपए का इंतजाम करने को कहा तो विनीता ने हामी भर दी.

अवधेश ने कार खरीदने के लिए घर में रुपए ला कर रखे थे. सोचा था कि नवरात्र में बुकिंग करा देगा और धनतेरस पर गाड़ी खरीद लेगा. उन पैसों पर विनीता की नजर पड़ गई. विनीता ने उन रुपयों में से 70 हजार रुपए निकाल कर शेर सिंह को दे दिए, बाकी पैसा बाद में देने को कहा.

इस के बाद शेर सिंह ने अपने गांव के ही भोला सिंह और एटा के पप्पू जाटव को हत्या में साथ देने के लिए तैयार कर लिया. शेर सिंह ने विनीता, विनीता के पिता अनिल, भाई प्रदीप और प्रेमी अमित सिसोदिया उर्फ अंकित के साथ मिल कर अवधेश की हत्या की योजना बनाई. विनीता ने बाद में ज्योति को भी इस बारे में बता कर अपने साथ शामिल कर लिया.

12 अक्तूबर, 2020 की रात अवधेश रोज की तरह टहलने के लिए निकले. उन के जाने के बाद विनीता ने हत्या के उद्देश्य से पहुंचे शेर सिंह, भोला, पप्पू जाटव, अनिल, प्रदीप और अंकित को घर के अंदर बुला लिया. सभी घर में छिप कर बैठ गए. कुछ देर बाद जब अवधेश लौटे तो घर में घुसते ही सब ने मिल कर उन्हें दबोच लिया. विनीता अपने बेटे अंश को ले कर ऊपरी मंजिल पर चली गई.

नीचे सभी ने अवधेश को पकड़ कर उन का गला घोंट दिया. अवधेश के मरने के बाद विनीता नीचे उतर कर आई. अवधेश की लाश को बड़ी नफरत से देख कर गाली देते हुए कस के पैर की ठोकर मार दी.

देर रात अमित ने अवधेश की लाश को सभी के सहयोग से अपनी आल्टो कार में डाल लिया. इस के बाद प्रदीप की टीयूवी कार जो विनीता के पास रहती थी, सब उस में सवार हो गए.

प्रदीप कार चला रहा था. उस के पीछे थोड़ी दूरी पर अंकित चल रहा था. लगभग साढ़े 3 घंटे का सफर तय कर के अवधेश की लाश को ले कर वे फिरोजाबाद में नारखी पहुंचे. लेकिन तब तक उजाला हो चुका था. ऐसे में लाश को कहीं दफना नहीं सकते थे. इन लोगों ने पूरा दिन ऐसे ही घूमते हुए निकाला. इस बीच लाश को जलाने के लिए बाजार से तेजाब खरीद लिया गया था.

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अंधेरा होने पर नारखी में रामदास के खेत में गड्ढा खोद कर अवधेश की लाश को उस में डाल दिया गया. फिर लाश पर तेजाब डाला गया, जिस से लाश का चेहरा व कई हिस्से जल गए. लाश को दफनाने के बाद सभी वहां से लौट आए. विनीता बराबर वीडियो काल के जरिए उन लोगों के संपर्क में थी. 14 अक्तूबर, 2020 को वह भी बेटे अंश को ले कर घर से भाग गई.

शेर सिंह पकड़ा गया तो घटना का खुलासा हुआ. उस ने विनीता के प्रेमी अंकित का नाम लिया. घटना की खबर अखबारों की सुर्खियां बनीं तो विनीता के प्रेमी सिपाही अंकित यादव ने देखीं. अंकित ने हत्यारों में अपना नाम समझा. उसे लगा कि पुलिस को विनीता की काल डिटेल्स से उस के बारे में पता लग गया है. अब वह भी इस हत्याकांड की जांच में फंस जाएगा.

दूसरी ओर अंकित नाम आने पर विनीता के शातिर दिमाग ने खेल खेला. अपने प्रेमी अमित सिसोदिया उर्फ अंकित को बचाने के लिए वह अंकित को ही फंसाने में लग गई.

26 अक्तूबर, 2020 को वह अंकित यादव से मिलने संभल गई. 2 महीने से अंकित संभल की हयातनगर चौकी पर तैनात था. वहां वह उस से मिली. कुछ सिपाहियों ने उसे उस के साथ देखा भी. विनीता उस से मिल कर चली गई. इस से अंकित भयंकर तनाव में आ गया.

27 अक्तूबर, 2020 को उस ने अपने साथी सिपाही की राइफल ले कर खुद को गोली मार ली. अंकित के आत्महत्या कर लेने की बात विनीता को पता चल गई थी. इसलिए जब उस ने आत्मसमर्पण किया तो वह सारा दोष अंकित यादव पर डालती रही.

वह अपने प्रेमी अमित सिसोदिया उर्फ अंकित को बचाना चाहती थी. समर्पण से पहले विनीता ने अपना मोबाइल भी तोड़ दिया था, ताकि पुलिस उस मोबाइल से कोई सुराग हासिल न कर सके.

गैरजमानती वारंट जारी होने के बाद से सभी आरोपियों में इस बात का खौफ है कि पुलिस उन की संपत्तियों को तोड़फोड़ सकती है, कुर्क कर सकती है. इसलिए बारीबारी से सभी आत्मसमर्पण करने की तैयारी में लग गए.

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फिलहाल कथा लिखे जाने तक पुलिस शेष आरोपियों की तलाश में जुटी हुई थी. शेर सिंह की रिमांड 20 नवंबर को मिलनी थी.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों व मीडिया में छपी रिपोर्टों के आधार पर

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