काम करने की आदत शर्मिला को नहीं थी, ससुराल में तो नंदिनी मौसी गरमगरम पका कर थाली हाथ में पकड़ाती थीं. उस पर भी वह मीनमेख निकालती रहती थी, अब मायके में काम करना पड़ा तो पैरोंतले से जमीन खिसकने लगी. नीरा और जया खाना होटल से मंगवाने की राय देतीं. 2-4 बार उस ने मंगवाया भी, लेकिन बजट बिगड़ने लगा, तो हाथ रोकना पड़ा. फिर, नवजात गौरव के लिए दलिया और सूप तो बनाना ही पड़ता था.
शर्मिला से जितना बन पड़ता, घर का काम करती. गौरव को भी संभालती. पिता की छोटी सी दुकान थी. मुट्ठीभर कमाई से क्या खाते क्या निचोड़ते? इतना पैसा नहीं था कि एक नौकर रखा जा सके. अपने रोजमर्रा के खर्चे शर्मिला एटीएम से पैसे निकाल कर पूरे कर लेती थी. जो थोड़ीबहुत रकम बचती, उसे उस की बहनें उड़ा देतीं.
शर्मिला के न दिल को आराम था न शरीर को. एक बार उस के मन में आया कि वापस लौट जाए अपने घर, फिर अहम आड़े आ गया. खुद घर छोड़ कर आई थी, बिन बुलाए जाने का मतलब था समीर के तलवे चाटना और उसे यह कतई मंजूर नहीं था.
इधर, समीर का बुरा हाल था. शर्मिला झगड़ालू थी, किसी की इज्जत नहीं करती थी, कोई बात ही नहीं मानती थी, फिर भी उस के रहने से घर में चहलपहल रहती थी. कोई बोलने वाला तो था. गौरव के आने के बाद तो घर की सूनी दीवारें भी बोलने लगी थीं.
पुरानी बातें याद कर समीर का सिर भारी हो गया था.
देवयानीजी अब रोज पूछतीं, ‘‘शर्मिला कब आ रही है?’’ समीर हर संभव नियंत्रण करता, लेकिन उस के भीतर का हाहाकार साफ दिखाई दे जाता. पिता सम झाते, ‘‘पतिपत्नी के बीच अहम का कोई प्रश्न ही नहीं उठता. स्नेहवश झुकना पराजय की स्वीकृति नहीं होती, जा कर बहू को ले आ.’’
शर्मिला ऐसे ही विचारों में खोई थी, तभी उस के पिता कन्हैया लाल ने प्रवेश किया, बोले, ‘‘बेटी, समीर आया था तु झे लेने दुकान पर. अरविंद को लखनऊ से आए हुए 3 महीने हो गए हैं, अब उस की क्लीनिक का शुभारंभ होने वाला है. मैं और जया भी चलेंगे.’’
‘‘जया भी…’’
‘‘हां, सोचता हूं कि अरविंद के साथ जया का रिश्ता पक्का कर दूं, जानापहचाना परिवार है. तू भी वहीं है, तेरे सासससुर और समीर सभी सज्जन हैं. जया खुश रहेगी.’’
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‘‘कहां है समीर?’’
‘‘दुकान पर. तेरी प्रशंसा कर रहा था. उस ने तेरी कोई शिकायत नहीं की. मैं ने अरविंद के साथ जया के रिश्ते की बात की, तो बोला, ‘‘अगर शर्मिला को यह रिश्ता पसंद है तो मैं अरविंद से बात करता हूं.’’
शर्मिला मन ही मन सोच रही थी, ‘‘निहायत बदतमीज, धूर्त और समूचे घर की दुश्मन होने पर भी मेरे ऊपर इतना भरोसा?’’
‘‘मैं गंगा तर जाऊंगी बेटी,’’ शर्मिला की मां ने भी पति का पक्ष लिया.
शर्मिला सोच में पड़ गई.
‘‘यह रहा निमंत्रणपत्र,’’ कन्हैया लाल ने निमंत्रणपत्र आगे बढ़ाया तो शर्मिला निमंत्रणपत्र पढ़ कर अवाक रह गई, ‘‘क्लिनिक का उद्घाटन मेरे करकमलों द्वारा, सरकारी अस्पताल के सिविल सर्जन और मैडिकल कालेज के प्रख्यात प्रोफैसरों को छोड़ कर?
‘‘समीर से कह दीजिए, हम पहली ट्रेन से ही चलेंगे.’’
‘‘लेकिन समीर को भोजन आदि? पहली बार आए हैं.’’
‘‘आप चिंता न करें. बस, मेरी बात जा कर कह दें. हम रास्ते में ही कहीं कुछ खा लेंगे,’’ शर्मिला तैयारी में जुट गई.
सुहागशृंगार से सजी पत्नी को देख
कर समीर सुखद आश्चर्य में डूब
गया, ‘‘शर्मिला?’’
समीर को गौरव थमा कर शर्मिला बोली, ‘‘तुम ने मु झे माफ कर दिया?’’
‘‘मैं तुम से रूठा ही कब था, नाराज तो तुम थीं.’’
‘‘तभी तुम ने अरविंद के आने की मु झे कोई सूचना नहीं दी?’’ उस ने तनिक रूठ कर उलाहना दिया.
‘‘अरविंद तुम्हारा बहुत आदर करता है. वह तुम्हें सरप्राइज देना चाहता था. इसीलिए अपने क्लीनिक के रेनोवेशन में लगा हुआ था.’’
क्लीनिक के उद्घाटन समारोह के बाद एकांत पाते ही कन्हैया लाल ने शर्मिला को घेरा, ‘‘मैं जया को इसलिए साथ लाया हूं बेटी कि बात अभी पक्की हो जाए.’’
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‘‘पिताजी, आप ने देखा शहर के प्रतिठित लोगों के बीच अरविंद और उस के नौजवान साथी डाक्टरों ने मेरे पैर छू कर मु झ से आशीर्वाद मांगा. विश्वास कीजिए उन क्षणों में मेरी उम्र बढ़ गई और मैं सम झदार हो गई. पिताजी रूप, लावण्य तो कुदरत की देन है, असली सुंदरता तो गुणों और संस्कारों से आती है. अफसोस है कि मां और आप ने मु झे इस अमूल्य धरोहर से वंचित रखा,’’ शर्मिला ने गंभीर स्वर में पिता को उलाहना दिया, ‘‘पिताजी इस घर के लोग बड़े सरलसीधे और सच्चे हैं, आज की दुनियादारी और चालाकी से कोसों दूर.
‘‘मैं इन्हें तिलतिल कर के मार रही थी, किंतु अब इन्हें और मरने नहीं दूंगी. मेरा अरविंद तो एकदम भोला है, हमेशा दूसरों पर निर्भर और विश्वास करने वाला. जया तो उस की जिंदगी में जहर घोल देगी. मैं उस के लिए ऐसी सुंदर, सुशिक्षित और संस्कारी लड़की लाऊंगी, जो अरविंद के जीवन को सुवासित फूलों से भर दे.’’
‘‘यह क्या कह रही है तू शर्मिला?’’
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‘‘हां पिताजी, मैं आप की बेटी हूं मगर बाद में. पहले मैं इस घर की बहू हूं और मेरे लिए जो असंदिग्ध आस्था प्रकट की गई है उस का निर्वाह मैं करूंगी. जया के लिए ऐसा मूर्ख घरबार मिलने में देर नहीं लगेगी जो कन्या के सौंदर्य और शिक्षा के सामने संस्कारों की तलाश नहीं करता. अरविंद के साथ जया की शादी हरगिज नहीं होगी.’’
और शर्मिला की बड़ीबड़ी आंखों में अडिग संकल्प के साथ पानी तैर आया. कन्हैया लाल प्रकाशहीन विद्युत स्तंभ की भांति निश्छल खड़े थे.