प्रतिबद्धता- भाग 2: क्या था पीयूष की अनजाने में हुई गलती का राज?

Writer- VInita Rahurikar

मन में कहीं गहराई तक दृढ़ विश्वास था अपने प्यार पर कि वह उस की गलती को माफ कर देगी. अपने निर्मल और निश्छल प्रेम से उस के मन पर लगे दाग को धो डालेगी. उबार लेगी उसे इस ग्लानि से, जिस में वह बरसों से जल रहा है. क्षमा कर देगी उस अपराध को जो उस से अनजाने में हो गया था.

पीयूष का न तो उस घटना के पहले और न ही बाद में कभी किसी भी लड़की से कोई रिश्ता रहा है और उस लड़की के साथ भी रिश्ता कहां था. रिश्ते तो मन के होते हैं. वहां तो बस नशे की खुमारी में शरीर शामिल हो गए थे. मन से तो वह पूरी तौर पर बस पलक का ही था, है और रहेगा. लेकिन पलक के व्यवहार ने उसे अंदर तक हिला दिया. क्या वह पलक को अब तक पूरी तरह जान नहीं पाया था? क्या उस के मन की थाह पाना अभी बाकी था?

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लेकिन तीर अब कमान से निकल चुका था, जिस ने उस की प्यार भरी जिंदगी को

एक ही पल में बरबाद कर के रख दिया. उसे समझ नहीं आ रहा था कि पलक के आहत मन को कैसे सांत्वना दे. उसे लगा था कि अपने प्यार से कोई भी बात छिपाना गलत है. लेकिन उस के इस सच से पलक को इतनी अधिक पीड़ा पहुंचेगी, इस का अंदाजा उसे नहीं था. वह तो उस से बात तक नहीं कर रही. बेगानों जैसा बरताव हो गया है उस का.

इधर 8 दिनों में ही पीयूष वर्षों का बीमार लगने लगा है. उस का न काम में मन लगता है और न ही घर में.

दूसरे दिन अरुणाजी के पास पीयूष की मां का फोन आया, ‘‘अरुणाजी, आप ने पलक से कोई बात की क्या? मुझे तो कोई समझ में नहीं आ रहा है कि बच्चों को अचानक क्या हो गया. पलक बिना कुछ कहे अचानक चली गई. उस का फोन भी औफ है. यहां पीयूष भी गुमसुम सा कमरे में पड़ा रहता है. पूछने पर कुछ बताता ही नहीं है. पलक कैसी है, ठीक तो है न?’’ पीयूष की मां के स्वर में चिंता झलक रही थी.

‘‘पलक जब से आई है, तब से उदास और दुखी लग रही है. मैं ने 1-2 बार पूछना चाहा तो टाल गई, पर कुछ बात तो जरूर है. मैं आज उस से बात करूंगी. आप चिंता न करें, सब ठीक हो जाएगा,’’ अरुणाजी ने पीयूष की मां को आश्वासन दिया.

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‘अब पलक से साफसाफ पूछना ही होगा. यहां पलक उदास है तो वहां पीयूष भी दुखी है. आखिर दोनों के बीच ऐसा क्या हो गया? यदि समय रहते बात को संभाला नहीं गया तो ऐसा न हो जाए कि बात और बिगड़ जाए. अब देर करना ठीक नहीं,’ अरुणाजी न तय किया.

दोपहर को पलक के पिता किसी काम से बाहर गए थे. पलक खाना खा कर अपने कमरे में लेटी थी. अरुणाजी को यही सही मौका लगा उस से बात करने का. अत: वे पलक के पास गईं.

‘‘पलक, क्या बात है बेटा, जब से आई हो परेशान लग रही हो? मुझे बताओ बेटा तुम्हारे और पीयूष के बीच सब ठीक तो है?’’ अरुणाजी ने प्यार से पलक का माथा सहलाते हुए पूछा.

रात का खाना खा कर पलक अपने कमरे में सोने चली गई. वह पलंग पर लेटी थी, लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी.

8 दिन पहले जिंदगी क्या थी और अब कैसी हो गई. कितनी खुश थी वह पीयूष का प्यार पा कर. पूरी तरह उस के प्यार के रंग में रंग गई थी. सिर से पैर तक पीयूष के प्रेमरस में सराबोर थी. लेकिन पीयूष के जीवन के एक राज के खुलते ही उस की तो जैसे दुनिया ही बदल गई. कल तक जो पीयूष अपने दिल का एक टुकड़ा लगता था, अचानक ही इतना बेगाना, इतना अजनबी लगने लगा कि विश्वास ही नहीं होता था कि कभी दोनों की एक जान हुआ करती थी.

पश्चाताप- भाग 3: क्या सास की मौत के बाद जेठानी के व्यवहार को सहन कर पाई कुसुम?

“मम्मी, आप प्लीज ज्यादा ड्रामा न करो. हमें पता है कि चाची की इस हालत का जिम्मेदार कौन है? सबकुछ अपनी आंखों से देखा है मैं ने,” छोटे बेटे ने उस का हाथ झटकते हुए कहा तो बड़ा बेटा भी चिढ़े स्वर में बोलने लगा,” कितनी अच्छी हैं हमारी चाची. कितना प्यार करती थीं हमें. पर आप… मम्मी, आप ने उन के साथ कितना बुरा किया. वी हेट यू,” कहते हुए दोनों बच्चे मधु के पास से उठ कर बाहर भाग गए.

मधु भीगी पलकों से उन्हें जाता देखती रही. उस के हाथ कांप रहे थे. दिल पर 100 मन का भारी पत्थर सा पड़ गया था. उस ने सोचा भी नहीं था कि बच्चे उसे इस तरह दुत्कारेंगे. बिना आगेपीछे सोचे लालच में आ कर उस ने कुसुम के साथ ऐसा बुरा व्यवहार किया. कितनी जलीकटी सुनाई. वे सब बातें बच्चों के दिमाग में इस तरह छप गईं थीं कि अब बच्चे उस के वजूद को ही धिक्कार रहे हैं.

मधु ने आंखें बंद कर लीं. आंखों से आंसू गिरने लगे. पुरानी बातें एकएक कर उस के जेहन में उभरने लगीं. अपने बच्चों की नजरों में इतनी नीचे गिर कर कैसे जिएगी वह… सच में कुसुम ने तो कभी भी उस से ऊंचे स्वर में बात भी नहीं की थी. उस ने हमेशा कुसुम को बात सुनाया. उस के मधुर व्यवहार का उपहास उड़ाया.  उस पर इतना गंदा इल्जाम लगाया.

तभी बगल वाली बुजुर्ग महिला की सांसें उखड़ने लगीं. डाक्टरों की टीम आई और उस महिला को आईसीयू में ले जाया गया. उस का बेटा भी पीछेपीछे तेजी से निकल गया.  इस सारे घटनाक्रम के फलस्वरूप मधु के दिमाग पर एक अजीब सा सदमा लगा था.

वह बैठीबैठी चीखने लगी. उसे लगा जैसे कुसुम शरीर छोड़ कर बाहर आ गई है और उस की तरफ हिकारत भरी नजरों से देखती हुई दूर जा रही है. मधु को एहसास हुआ जैसे वह पूरी तरह अकेली हो गई है. सब उस पर हंस रहे हैं. वह जोरजोर से रोने लगी. रोतीरोती बेहोश हो गई. जब आंखें खुलीं तो खुद को बैड पर पाया. पास में डाक्टर खड़े थे. दूर पति भी खड़े थे. उस ने तुरंत अपनी आंखें बंद कर लीं. वह अंदर से इतना टूटा हुआ महसूस कर रही थी कि उसे पति से आंखें मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी.

तभी उस ने सुना कि डाक्टर उस के देवर से कह रहे थे कि कुसुम की सर्जरी करनी पड़ेगी. सर्जरी, दवा और हौस्पिटल के दूसरे खर्च मिला कर करीब ₹15-20 लाख तो लग ही जाएंगे पर कुसुम को ठीक करने के लिए यह सर्जरी करानी बहुत जरूरी है.

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डाक्टर की बात सुन कर देवर काफी परेशान दिख रहा था. मधु जानती थी कि उस के देवर के पास अभी ₹2- 3 लाख से अधिक नहीं हैं. हाल ही में उस ने अपनी सास की हार्ट सर्जरी में करीब ₹10 लाख लगाए थे और वह खाली हो चुका था.

मधु हिसाब लगाने लगी कि उस के पति के पास भी ₹4-5 लाख से ज्यादा नहीं निकल सकेंगे. वैसे भी दोनों भाईयों ने अपनी आधी से ज्यादा जमापूंजी बिजनैस में जो लगा रखी थी.

तभी मधु को अपने जेवर का खयाल आया. कुल मिला कर ₹7-8 लाख के जेवर तो थे ही उस के पास. बाकी के रुपए कहां से आएंगे, वह इस सोच में डूब गई. तब उसे अपनी बड़ी बहन का खयाल आया. उस से थोड़े जेवर ले सकती है. कुछ रुपए अपने भैया से उधार भी मिल सकते हैं.

डाक्टर के जाने के बाद दोनों भाई आपस में बातें करने लगे. छोटे ने उदास स्वर में कहा,”भैया, डाक्टर तो इलाज के लिए इतना लंबाचौड़ा खर्च बता रहे हैं. कहां से लाऊंगा मैं इतने रुपए?”

“हां अमन, इतने रूपए तो मेरे पास भी नहीं. समझ नहीं आ रहा क्या करें.”

तभी बैड पर लेटी मधु उठ बैठी और बोली,” देवरजी आप चिंता न करो. रुपयों का इंतजाम मैं करूंगी. आप बस डाक्टर को सर्जरी के लिए हां बोल दो और 2 दिनों की मुहलत ले लो.”

“मगर भाभी आप 2 दिनों के अंदर रूपए कहां से ले आएंगी?”

“देवरजी मेरे गहने किस दिन काम आएंगे? फिर भी रूपए कम पड़े तो दीदी या मां के जेवर भी मिला लूंगी. मेरे भैया से कुछ कैश रूपए भी मिल जाएंगे.”

मधु की बात सुन कर देवर मना करने लगा. मधु के पति ने भी टोका,”मधु उन से रूपए लेना ठीक होगा क्या? और फिर तुम्हारे जेवर… तुम तो कभी उन्हें हाथ तक नहीं लगाने देती थीं. अपने जेवर तो तुम्हें जान से प्यारे थे.”

“प्यारे तो हैं पर कुसुम की जान से प्यारे नहीं,” मधु ने कहा तो दोनों भाई उसे आश्चर्य से देखने लगे.

मधु ने 2 दिन के अंदर ही ₹20 लाख इकट्ठे कर लिए. कुसुम की सर्जरी हो गई. सर्जरी सफल रही.
15 दिन अस्पताल में रहने के बाद कुसुम घर आ गई. अब भी उसे काफी कमजोरी थी. इस दौरान करीब 1 महीने तक मधु ने पूरे दिल से कुसुम की सेवा की. अपने बच्चों के साथ कुसुम की बेटी को भी संभाला. इस भागदौड़ में मधु का वजन काफी कम हो गया.

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एक दिन कुसुम से मिलने उस की बहन आई तो उस ने मधु को आश्चर्य से देखते हुए कहा,”अरे मधु दीदी तुम्हारा वजन तो आधा रह गया.”

इस पर हंसती हुई मधु बोली,”हम दोनों जेठानीदेवरानी का वजन मिला लो तो उतना ही वजन मिल जाएगा, जितना पहले मेरा हुआ करता था.”

यह सुन कर कुसुम की आंखें खुशी से भीग उठीं और वह उठ कर मधु को गले से लगा ली. दोनों लड़के भी प्यार से अपनी मां की तरफ देखने लगे.

हक ही नहीं कुछ फर्ज भी- भाग 3: क्यों सुकांत की बेटियां उन्हें छोड़कर चली गई

Writer- Dr. Neerja Srivastava

सप्ताह उपरांत उन्नति ने रवि की मदद से एक प्राइवेट डैंटल हौस्पिटल में काम करना शुरू कर दिया. रवि से उस ने साफ कह दिया, ‘‘जानती हूं कि और कुछ तो मम्मीपापा लेंगे नहीं पर कम से कम अपना ऐजुकेशन लोन जो मैं ने लिया था उसे अवश्य चुकाना चाहूंगी… तुम्हें कोई एतराज तो नहीं?’’

रवि ने प्यार से उस के कंधे पर हाथ रख मन ही मन सोचा कि काश उस की बहनें भी ऐसा सोच पातीं.

कुछ सालों बाद काव्या के ससुराल वालों ने उसे अपना लिया. उधर प्रतीक को बड़ी प्रमोशन मिली. उस ने यूएसए के क्लाइंट से अपनी कंपनी को बड़ा फायदा पहुंचाया था. वह एक झटके में ऊंचे ओहदे पर पहुंच गया.

काव्या को ऐशोआराम की सारी सुविधाएं मिलने लगीं तो उसे रहरह कर मम्मीपापा और घर की परिस्थितियों से जूझते भाई की तकलीफ ध्यान आने लगी कि उस ने कैसेकैसे उन का साथ दिया. हम बहनें तो निकम्मी निकलीं. उस का मन पश्चात्ताप से भर उठा. फिर उस ने उन्नति से मन की पीड़ा शेयर की तो उन्नति ने उस से.

इधर सुकांत के गांव की बरसों से मुकदमे में फंसी पैतृक संपत्ति का फैसला उन के पक्ष में हो गया. करीब 50 लाख उन की झोली में आ गए.

‘‘शुक्र है निधि जो फैसला हमारे पक्ष में हो गया. देर आए दुरुस्त आए. मैं ने सुरम्य को औफिस में ही फोन कर बता दिया. आता ही होगा. उन्नति और काव्या को भी खुशखबरी दे दो. उन्हें संडे को आने को कहना.’’

सुकांत के स्वरों में खुशी और उत्साह छलक रहा था. वे जल्द ही अपनी खुशी तीनों बच्चों में बांट लेना चाहते थे और रकम भी.

‘‘संडे को तो दोनों वैसे भी आने वाली हैं. रक्षाबंधन जो है. तभी सरप्राइज देंगे. अभी नहीं बताते,’’ निधि बोलीं.

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पीछे का दरवाजा खुला था. उन्नति और काव्या दबे पांव हिसाब लगाते हुए कि पापा इस समय बाथरूम में होंगे और मां किचन में. मेड जा चुकी होगी. 9 बज रहे हैं तो सुरम्य सो ही रहा होगा. एकदूसरे को देख मुसकराते हुए वे सुकांत और निधि के बैडरूम में पहुंच गईं. सुकांत की दराज खोल उन्होंने चुपके से कुछ रखा. फिर सीधे सुरम्य के रूम में जा कर तकियों के वार से उसे जगा दिया.

‘‘आज भी देर तक सोएगा? संडे तो है पर रक्षाबंधन भी है. उठ जल्दी नहा कर आ. राखी नहीं बंधवानी?’’

‘‘अरे उठ भी तुझे राखी बांधने के बाद ही मां कुछ खाने को देंगी… बहुत जोर की भूख लग रही है,’’ कहते हुए काव्या ने एक तकिया उसे और जमा दिया.

‘‘क्या है,’’ सुरम्य आंखें मलते हुए उठ बैठा.

दोनों बहनें उसे बाथरूम की ओर धकेल हंसती हुई किचन की ओर बढ़ गईं.

‘‘मां सरप्राइज,’’ कह दोनों निधि से लिपट गईं.

‘‘अरे, कब घुसी तुम दोनों? मुझे तो पता ही नहीं चला,’’ कह निधि मुसकरा उठी.

राखियां बंधवाने के बाद जब सुरम्य ने दोनों को 6-6 लाख के चैक दिए तो दोनों बहनें उस का चेहरा देखने लगीं.

‘‘मजाक कर रहा है?’’

‘‘मजाक नहीं सच में बेटा… हम वह मुकदमा जीत गए… उसी के 4 हिस्से कर दिए. एक मेरा व निधि का बाकी तुम तीनों के.’’

‘‘अरे नहीं पापा ये हम नहीं ले सकतीं,’’ काव्या और उन्नति एकसाथ बोलीं. उन्होंने उन पैसों को लेने से साफ इनकार कर दिया, ‘‘नहीं मम्मीपापा, इन पर केवल सुरम्य का ही हक है. उसी ने आप दोनों के साथ सारी जिम्मेदारियां उठाई हैं. पहले घर के छोटेछोटे कामों में फिर बड़े कामों में… लोन, बिल्स, औपरेशन, इलाज, रिश्तेदारी, गाड़ी और अब यह मकान. आप दोनों और घर से अलग अपने लिए कुछ नहीं जोड़ा उस ने.

‘‘सच है मम्मीपापा हर बात में बराबरी करने वाली हम बेटियां पढ़लिख कर भी बेटियां ही रह गईं बेटा न बन सकीं. हम ने शान और मस्ती के अलावा कुछ सोचा ही नहीं… कभी समझना ही नहीं चाहा. दायित्व तो दूर की बात… मेरे और काव्या के लिए बहुत कुछ कर लिया आप ने… अब तो इस का ही हक बनता है हमारा नहीं.’’

‘‘हां पापा, अब तो बस झट से इस के लिए अच्छी सी लड़की पसंद कीजिए और इस की धूमधाम से शादी कर दीजिए, बहुत आनाकानी कर चुका है. हां, नेग हम बड़ाबड़ा लेंगी.’’

उन्नति और काव्या एक के बाद एक बोले जा रही थीं. फिर वे सुरम्य को छेड़ने लगीं, ‘‘वैसे एक बहुत सुंदर लड़की मेरे पड़ोस में है. बस थोड़ी तोतली है. उस से करेगा शादी?’’ उन्नति ने ठिठोली की तो काव्या भी पीछे नहीं रही, ‘‘अरे, मेरी ननद की देवरानी की छोटी बहन दूध जैसी गोरीचिट्टी है. बस थोड़ी भैंगी है. पर उस के बड़े फायदे रहेंगे एक नजर किचन में तो दूसरी से वह तुझे निहारेगी.’’

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काव्या और उन्नति दोनों अगले ही दिन चली गईं. घर सूना हो गया.

‘‘निधि… ये मेरी दराज में लिफाफे कैसे रखे हैं?’’ कह उन्होंने एक खोला तो पत्र में लिखावट उन्नति की थी. लिफाफे में हजारहजार के नोट रखे थे. वे अचरज से पढ़ने लगे-

‘‘मम्मीपापा यह मेरी पहली कमाई का छोटा सा अंश है,  आप दोनों के चरणों में. आप इसे मना मत करिएगा. आप दोनों ने मुझे इस काबिल बनाया. मैं कमा कर कम से कम अपना लोन तो खुद उतार सकती थी पर मैं तो अपने में ही मस्त थी. मैं इतनी स्वार्थी कैसे बन गई.

‘‘न कभी आप लोगों के लिए सोचा न सुरम्य के लिए. छोटा था पर हर बात में उस से बराबरी करते हुए उस से घर के कामों में भी फायदा उठाया और अपने बाहर के काम भी उसी से करवाए कि वह लड़का है. सब कुछ उसी पर डाल कर हम बहनें मजे लेती रहीं. सौरी मम्मीपापा. मैं फिर जल्द आऊंगी. आप की डैंटिस्ट बेटी उन्नति.’’

दूसरा लिफाफा काव्या का था, लिखा था-

‘‘मां और पापा, आप ने हमेशा हम तीनों को बराबर का प्यार दिया, हक दिया. बराबर मानते हैं न तो सुरम्य की ही तरह मुझे भी अपना लोन चुकाने दीजिए. आप दोनों मना नहीं करेंगे, सामने से देती तो आप बिलकुल न लेते पर सोचिए तो पापा अगर बेटेबेटी में कोई फर्क नहीं मानते तो आप को इसे लेना ही पड़ेगा. प्रतीक की भी यही इच्छा है.

‘‘पता नहीं बेटियों का बेटों की तरह मांबाप पर तो हक है पर मांबाप को बेटों की तरह बेटियों पर हक अभी भी समाज में क्यों मान्य नहीं हो पा रहा? प्रतीक ऐसा ही सोचता है. आप ने अपनी परेशानियों को एक ओर कर के हमारे सपने, हमारी जरूरतें पूरी की हैं. हमारा आप पर हक है ठीक है पर हमारा फर्ज भी तो है कुछ… जिसे मैं पहले कभी नहीं समझ पाई. आप दोनों की लाडली बेटी काव्या.’’

पत्र के पीछे लोन अमाउंट का चैक संलग्न था.

बेटियों की चिट्ठियां पढ़ रहे सुकांत और उन के पास खड़ी निधि की आंखें सजल हो उठी थी और सीना गर्व से भर उठा.

‘‘हमें इन्हें वापस करना होगा निधि, कितने समझदार बन गए हैं बच्चे. इन्होंने हमारे लिए इतना सोचा यही बहुत है… अब हमें वैसे भी पैसे की कोई जरूरत नहीं रही.’’

निधि ने आंचल से आंखों के कोरों को पोंछ मुसकराते हुए अपनी सहमति में सिर हिला दिया.

कोई सही रास्ता- भाग 3: स्वार्थी रज्जी क्या अपनी गृहस्थी संभाल पाई?

आत्महत्या का केस था जिस वजह से पोस्टमार्टम जरूरी था. रज्जी ने विलाप करते हुए जो कहानी सब को सुनाई उस से तो सुकेश के मातापिता और ननद हक्केबक्के रह गए. रज्जी ने बताया कि उस की ननद चरित्रहीन है जिस की शरम में उस का पति जहर खा कर मर गया. बेटा तो गया ही गया बच्ची का मानसम्मान भी रज्जी ने धूल में मिला दिया. जीतेजी मर गया वह परिवार. मेरी मां ने भी दिल खोल कर रज्जी की ननद को कोसा.

शोक के साथसाथ बदहवास था सुकेश का परिवार. सत्य क्या होगा मैं समझ सकता हूं. बुरा हो मेरी मां का, मेरी बहन का जिन्हें झूठ बोलने से जरा भी डर नहीं लगता. मरने वाले की मिट्टी का इस से बड़ा अपमान, इस से बड़ा मजाक क्या होगा जिस की आत्महत्या का रंग उस की निर्दोष बहन के चेहरे पर कालिख बन कर पुत गया.

ऐसा क्या किया सुकेश ने? आत्महत्या क्यों की? मारना ही था तो रज्जी को मार डालता. सुकेश का दाहसंस्कार हुआ और उसी चिता में मेरा, मेरी मां और बहन के साथ जन्मजात रिश्ता भी जल कर राख हो गया. अच्छा नहीं किया रज्जी ने. अपना घर तो जलाया, अपनी ननद का भविष्य भी पाताल में धकेल दिया. श्मशान भूमि में खड़ा मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि कहां जाऊं? मेरा घर कहां है? क्या वह मेरा घर है जहां मेरी विधवा मां, विधवा बहन रहती है जिन के साथ हर किसी की सहानुभूति है या कहीं और जहां मैं अकेला रह कर चैन से जीना चाहता हूं?

सच्ची श्रद्धांजलि- भाग 1: विधवा निर्मला ने क्यों की थी दूसरी शादी?

सच्चा भय था मेरे पिता की आंख में जब उन की मृत्यु हुई थी. सच है, मैं इन दोनों के साथ नहीं जी सकता. नहीं रह पाऊंगा अब मैं इन दोनों के साथ. किसी के हंसतेखेलते परिवार से उन का जवान बेटा छीन कर उस के परिवार का तमाशा बना दिया, कौन सजा देगा इन दोनों को? किसी भी परिवार के अंदर की कहानी भला कानून कैसे जान सकता है जो इन्हें कोई सजा मिले. सजा तो मिलनी चाहिए इन्हें, किसी का सहारा छीना है न इन्होंने, अब इन का भी सहारा छिन जाए तो पता चले आग का लगना, घर का जलना किसे कहते हैं.

सुकेश की पीड़ा मेरी पीड़ा बन कर मेरा भीतरबाहर सब जला रही है. मैं उस से आंखें कैसे मिलाऊं? क्या होगा उस की बहन का, क्या होगा उस के मांबाप का?

औफिस के काम के बहाने मैं कितने ही दिन अपने घर नहीं गया. अपने अभिन्न मित्र के घर पर रहने लगा जो मेरी सारी की सारी समस्या समझता था. कुछ दिन बीत गए. मेरे घर हो कर आया था वह.

‘‘सुकेश के मातापिता का गुजारा तो उन की पैंशन से हो जाएगा लेकिन तुम्हारी मां का क्या होगा? अब तो रज्जी भी वापस आ गई है. सुकेश के घर वालों ने उसे वापस नहीं लिया. शहरभर में उन की बेटी की बदनामी हो रही है और तुम सचाई से मुंह छिपाए मेरे घर पर रह रहे हो?’’

‘‘सचाई क्या है, यह सारा शहर जानता है. सचाई तो वही है जो रज्जी ने सब को दिखाई है. मेरी मां जो कह रही हैं, दुनिया तो उसी को सच कह रही है. मैं किस सचाई से मुंह छिपाए बैठा हूं, क्या तुम नहीं जानते हो? सुकेश की बहन बदनाम हो गई मेरे परिवार की वजह से. मैं तो इस सचाई से नजरें नहीं मिला रहा. वह सीधीसादी सी मासूम लड़की सिर्फ इस दोष की सजा भोग रही है कि रज्जी उस की भाभी है. क्या कुसूर है उस का? सिर्फ यही कि वह सुकेश की बहन है.’’

‘‘एक बार दोनों परिवारों से मिलो तो, सोम. दोनों की सुनो तो सही.’’

‘‘अपने परिवार की तो कब से सुन रहा हूं. बचपन से मैं ने भी वही भोगा है जो सुकेश और उस का परिवार भोग रहा है. अपनी मां और अपनी बहन की नसनस जानता हूं मैं. सुकेश ने इतना बड़ा कदम क्यों उठा लिया, वह उस के परिवार से ज्यादा कौन जानता है? मेरी तो वे सूरत भी देखना नहीं चाहेंगे. तुम सुकेश के मित्र बन कर वहां जाओ, पता तो चले क्या हुआ. मेरा एक और काम कर दो, मेरे भाई.’’

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मान गया वह. औफिस के बाद वह सुकेश के घर से होता आया. मेरी तरह वह भी बेहद बेचैन था. बोला, ‘‘रज्जी को तो राजनीति में होना चाहिए था, कहां आप लोगों ने उस की शादी कर दी.’’

सांस रोक कर मैं ने उस की बात सुनी. वह आगे बोला, ‘‘कुछ दिन से सब ठीक चल रहा था. बड़े प्यार से रज्जी ने सब के मन में जगह बना ली थी. सीधासादा परिवार उस की सारी आदतें भुला कर उस पर पूर्ण विश्वास करने लगा था. सुकेश की बहन का सारा गहना उस ने अपने लौकर में रखवा लिया था. सुकेश की मां ने भी अपनी सारी जमापूंजी बहू को यानी रज्जी को दे दी ताकि वह ठीक से संभाल सके.

‘‘कुछ दिन पहले उन्हें किसी शादी में जाना था. ननद, भाभी लौकर से गहने निकालने गईं. वापसी पर ननद किसी काम से अपने कालेज चली गई. कुछ विद्यार्थी एक्स्ट्रा क्लास के लिए आने वाले थे. लगभग 3 घंटे बाद जब वह घर आई तो हैरान रह गई, क्योंकि रज्जी ने घर वालों को बताया कि गहने उस के पास हैं ही नहीं. घर में बवाल उठा. सारा का सारा इलजाम उस की ननद पर कि वही सारे के सारे गहने समेट कर किसी के साथ भाग जाने वाली है. तनाव इतना बढ़ गया कि सुकेश ने कुछ खा लिया.’’

‘‘कालेज में प्राध्यापिका है वह. पढ़ीलिखी सुलझी हुई लड़की. उसे भला भागने की क्या जरूरत थी. भागना तो रज्जी को था सब समेट कर. कुछ ऐसा होगा, इस का अंदेशा था मुझे लेकिन सुकेश आत्महत्या कर लेगा, यह नहीं सोचा था. सुकेश रज्जी की वजह से डिप्रैशन में रहने लगा था कुछ समय से. सच पूछो तो इंसान डिप्रैशन में जाता ही तब है जब उस के अपने उस के साथ धोखा करते हैं या उसे समझने की कोशिश नहीं करते. बाहर वालों की गालियां भी खा कर इंसान इतना विचलित नहीं होता जितना अपनों की बोलियां उसे परेशान करती हैं. परिवार में एक स्वस्थ माहौल की जगह लागलपेट और हेराफेरी चले तो इंसान डिप्रैशन में ही तो जाएगा. ऐसा इंसान आखिर करेगा भी तो क्या?’’

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‘‘अब क्या करेगा तू, सोम?’’

समझ नहीं पा रहा हूं, क्या करूं? पर इतना सच है कि मैं रज्जी और मां के साथ नहीं रह पाऊंगा. मेरा जीवन एक दोराहे पर आ कर रुक गया है. दोराहा भी नहीं कह सकता. एक चौराहा समझो. मां और रज्जी के साथ रहना भी नहीं चाहता, सुकेश का परिवार मेरी सूरत से भी नफरत करेगा, आत्महत्या को कायरता समझता हूं और चौथा रास्ता है घर से दूर का तबादला ले कर इन दोनों को ही पीठ दिखा दूं. क्या करूं? पीठ ही दिखाना ठीक रहेगा. लड़ नहीं सकता.

कुछ रिश्ते इस तरह के होते हैं जिन से लड़ा नहीं जा सकता, जिन से न हारा जाता है न ही जीतने में खुशी या संताप होता है. इन से दूर चला जाऊं तो क्या पता इन्हें सुकेश के मांबाप की पीड़ा का जरा सा एहसास हो. क्या करूं, मैं समझ नहीं पा रहा, कोई भी रास्ता साफसाफ नजर नहीं आता. क्या आप बताएंगे मुझे कोई उचित रास्ता?

कहीं किसी रोज- भाग 3: आखिर जोया से विमल क्या छिपा रहा था?

नाश्ता करते हुए जोया की रोचक बातों में डूबा रहा विमल. जोया बता रही थी, ‘‘तुम्हें पता है, जब मैं यूरोप से अपनी आर्ट्स की पढ़ाई खत्म कर के  लौटी, और वहां के न्यूड स्कल्प्चर के बारे में स्टूटेंड्स को  बताती, उन्हें पढ़ाती, उन के चेहरे शर्म से लाल हो जाते. मुझे बड़ा मजा आता, मैं बहुत जगह घूमी, तुम्हें पता है डेनमार्क और स्वीडन में धार्मिक लोग सब से कम हैं और वहां सब से अच्छी शिक्षा है, अपराध न के बराबर हैं. ईमानदार लोग है,” जोया और विमल ने काफी अच्छे मूड में नाश्ता खत्म किया, जोया फिर उठ गई और बोली, ‘‘अब तुम औफिस के काम करो, मैं चलती हूं.”

विमल का मन ही नहीं कर रहा था कि जोया उस के पास से जाए, पर मजबूरी थी, एक मीटिंग थी, बोला, ‘‘तुम क्या करती हो पूरा दिन होटल में जोया?”

‘‘आराम, बुक्स, एक्सरसाइज, कुछ फोन पर बातें, फोन पर नेटफ्लिक्स भी देखती हूं.”

‘‘अच्छा? कौनकौन से शोज देखे हैं अब तक?”

‘‘सेक्रेड गेम्स देख रही हूं आजकल, वैसे और भी बहुत से देख लिए.”

विमल की आंखें कुछ चौड़ी हुईं, ‘‘सेक्रेड गेम्स?”

‘‘हां, फिर हैरान हुए तुम?”

विमल हंस पड़ा, जोया चली गई.

शाम को दोनों फिर बहुत देर तक स्विमिंग पूल के किनारे बैठे रहे, चाय भी साथ पी, जोया ने शरारती स्वर में कहा, ‘‘आज डिनर मेरे रूम में?”

विमल ने हां में सिर हिला दिया. विमल अब उस से अपनी फैमिली की बातें करता रहा, अपनी वाइफ और बच्चों के बारे में बताता रहा, जोया पूरी रुचि से सुनती रही, फिर बोली, ‘‘आप अपनी वाइफ को मेरे बारे में बताएंगे?”

‘‘नहीं,” कहता हुआ विमल मुसकरा दिया, तो जोया भी हंस पड़ी, कहा, ‘‘इसलिए मैं ने शादी नहीं की.” दोनों इस बात पर एकदूसरे को छेड़ते रहे, रात को डिनर के लिए जब विमल तैयार होने लगा, मन ही मन यही सोच रहा था कि वह अपनी वाइफ को धोखा दे रहा है, भगवान उसे कभी माफ नहीं करेंगे, यह पाप है वगैरह, पर जब जोया की हसीन कंपनी याद आती, सब नैतिकता धरी की धरी रह जाती.

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जोया विमल के साथ समय बिताने के लिए उत्साहित थी, उसे विमल का स्वभाव सरल, सहज लगा था, वह उस से खूब मजाक करने लगी थी, उसे अपनी बातों पर विमल का झेंपना बहुत अच्छा लगता, रात को विमल उस के रूम में आया, दोनों ने काफी सहज हो कर बहुत देर बातें कीं, डिनर आर्डर किया, खूब हंसतेहंसाते खाना खाया, वेटर सब क्लीन कर  गया, तो जोया ने कहा, ‘‘विमल, मुझे तुम से मिल कर अच्छा लगा. यह और बात है कि हम एकदूसरे से बिलकुल अलग हैं.”

‘‘जोया, मैं ने बहुत सोचा कि तुम से दूरी न बढ़ाऊं, पर दिल है कि अब मानता  नहीं,” कहतेकहते विमल ने उसे खींच कर अपनी बांहों में भर लिया. जोया भी उस के सीने से जा लगी, फिर जो होना था, वही हुआ. पूरी रात दोनों ने एक बेड पर ही बिताई. सुबह जोया ही उठ कर फ्रेश हुई पहले, विमल को झकझोर कर हिलाया, ‘‘उठो, आज क्या इरादा है?”

‘‘तुम्हारे साथ ही रातदिन बिताने का इरादा है, और क्या?”

‘‘तुम्हे पता है जौन अपड़ाईक ने कहा है, सैक्स बिलकुल पैसे की तरह होता है, जितना मिले, उतना कम.

‘‘और मुझे डीएच लौरेंस की बात भी सही लगती है कि सैक्स वास्तव में इनसान के लिए सब से करीबी स्पर्शों में से एक स्पर्श होता है, लेकिन इनसान इसी स्पर्श से डरता है.”

‘‘अब तो वही सही लगता है, जो तुम्हें सही लगता है, कभी भी नहीं सोचा था कि ऐसे किसी के करीब आऊंगा.”

जोया की संगत का ऐसा असर हुआ कि हर बात में धर्म और ईश्वर की बात आंख मूंद कर मानने वाले विमल को अब कुछ याद न आता, औफिस के पहले और बाद का सारा समय जोया के साथ होता, वेटर्स और बाकी स्टाफ से दोनों की नजदीकी छुपने वाली थी ही नहीं, पर दोनों को परवाह भी नहीं थी किसी की, विमल पूरे का पूरा बदल रहा था, न उसे सुबह जीवनभर का नियम सूरज पर जल चढ़ाना याद रहता, न कोई फास्ट, अब उसे जोया की तर्कपूर्ण बातें भातीं, दुनियाभर के दार्शनिकों की कोट्स जोया के मुंह से सुन कर उस का दिल खुश हो जाता कि आजकल वह कितनी इंटेलीजेंट महिला के साथ रातदिन बिता रहा है, अपनी फैमिली से बात करता हुआ भी वह अब परेशान न होता, बल्कि उसे फोन रखने की जल्दी होती, वह इस लौकडाउन को अब मन ही मन थैंक्स कहने लगा था. जोया, वह तो थी ही अपनी तरह की एक ही बंदी, विमल का दीवानापन देख वह हंस देती.

अचानक ट्रेनें और बाकी सेवाएं शुरू हुईं, जोया के एक स्टूडेंट ने रूड़की में अपने किसी रिश्तेदार को कह कर पास दिलवा कर जोया के टैक्सी से दिल्ली जाने का इंतजाम कर दिया, वहां से वह अपने भाई के पास रह कर फिर बैंगलोर चली जाती, उस ने यह खबर जब विमल को दी तो विमल को ऐसा झटका लगा कि उस का चेहरा देख जोया भी गंभीर हुई, ‘‘विमल, हमारे रास्ते, मंजिल तो अलग हैं ही, इस में तुम इतना उदास मत हो, मुझे दुख हो रहा है.”

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विमल ने उस का हाथ पकड़ लिया. गमगीन से स्वर में वह बोला, ‘‘मैं तो भूल ही गया था कि हमे बिछुड़ना भी होगा.”

जोया अपनी पैकिंग करने लगी.  होटल वालों को इस समय ध्यान रखने के लिए विशेष रूप से थैंक्स कहा, वेटर्स को बढ़िया टिप्स दी, विमल भी टूटे दिल से जाने के रास्ते खोजने लगा. चलते समय जोया विमल के गले लग गई, अपना कार्ड दिया, बोली, ‘‘जब मन करे, फोन कर लेना. वैसे, मैं जानती हूं कि कुछ ही दिन याद आएगी मेरी, फिर अपनी लाइफ में बिजी हो कर कभीकभी ही याद करोगे मुझे.”

‘‘और तुम…?”

जोया बस मुसकरा दी, कहा कुछ नहीं. टैक्सी आ गई, जोया बैठने लगी तो विमल ने बेकरारी से पूछा, ‘‘जोया, कब मिलेंगे?”

‘‘ऐसे ही, कभी भी, कहीं किसी रोज.”

टैक्सी चली गई. विमल का दिल जैसे बहुत उदास हुआ, मन ही मन कहा, ‘‘जोया सिद्दीकी, बहुत याद आओगी तुम.”

मिसफिट पर्सन- भाग 2: जब एक जवान लड़की ने थामा नरोत्तम का हाथ

‘‘क्यों, क्या शादीशुदा लाइन नहीं मारते?’’

‘‘मारते हैं लेकिन उन का स्टाइल जरा पोलाइट होता है जबकि कुंआरे सीधी बात करते हैं.’’

‘‘आप को बड़ा तजरबा है इस लाइन का.’’

‘‘आखिर शादीशुदा हूं. तुम से सीनियर भी हूं,’’ बड़ी अदा के साथ मिसेज बख्शी ने कहा.

दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं.

‘‘आजकल बख्शी साहब की नई सहेली कौन है?’’

‘‘कोई मिस बिजलानी है.’’

‘‘और आप का सहेला कौन है?’’

‘‘यह पता लगाना बख्शी साहब का काम है,’’ इस पर भी जोरदार ठहाका लगा.

‘‘और तेरा अपना क्या हाल है?’’

‘‘आजकल तो अकेली हूं. पहले वाले की शादी हो गई. दूसरे को कोई और मिल गई है. तीसरा अभी कोई मिला नहीं,’’ बड़ी मासूमियत के साथ ज्योत्सना ने कहा.

‘‘इस नए कस्टम अधिकारी के बारे में क्या खयाल है?’’

‘‘हैंडसम है, बौडी भी कड़क है. बात बन जाए तो चलेगा.’’

‘‘ट्राई कर के देख. वैसे अगर मैरिड हुआ तो?’’

‘‘तब भी चलेगा. शादीशुदा को ट्रेनिंग नहीं देनी पड़ती.’’

फिर इस तरह के भद्दे मजाक होते रहे. ज्योत्सना अपने केबिन में चली गई. मिसेज बख्शी ने अपने फिक्स्ड अफसर को फोन कर दिया. मालखाने में जमा माल थोड़ी खानापूर्ति और थोड़ा आयात कर जमा करवाने के बाद छोड़ दिया गया.

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मिसेज बख्शी कीमती इलैक्ट्रौनिक उपकरणों का कारोबार करती थीं. वे विदेशों से पुरजे आयात कर, उन को एसेंबल करतीं और उपकरण तैयार कर अपने ब्रैंड नेम से बेचती थीं.

उपकरणों का सीधा आयात भी होता था मगर उस में एक तो समय लगता था दूसरे, पूरा एक कंटेनर या कई कंटेनर मंगवाने पड़ते थे. जमा खर्च भी होता था. पूंजी भी फंसानी पड़ती थी.

दूसरा तरीका डेली पैसेंजर के किसी एक व्यक्ति को या दोचार व्यक्तियों को एक समूह में दुबई, बैंकौक, सिंगापुर, टोकियो, मारीशस या अन्य स्थलों पर भेज कर 3-4 बड़ीबड़ी अटैचियों में ऐसा सामान मंगवा लिया जाता था.

रेलवे की तरह कई एअरलाइनें भी अब मासिक पास बनाती थीं. अकसर विदेश जाने वाले पैसेंजर ऐसे मासिक पास बनवा लेते थे. ज्योत्सना भी ऐसी ही पैसेंजर थी. वह महीने में कई दफा दुबई, सिंगापुर, बैंकौक चली जाती थी. सामान ले आती थी. पहले से अधिकारियों के साथ सैटिंग होने से माल सुविधापूर्वक एअरपोर्ट से बाहर निकल आता था. कभीकभी नरोत्तम जैसा अफसर होने से कोई पंगा पड़ जाता जिस से उस के एंप्लायर निबट लेते थे.

नरोत्तम घर पहुंचा. उस को देख उस की पत्नी रमा ने मुंह बिचकाया. फिर फ्रिज से पानी की बोतल निकाल उस के सामने रख दी. मतलब साफ था, खुद ही पानी गिलास में डाल कर पी लो.

नरोत्तम अपनी पत्नी के इस रूखे व्यवहार का कारण समझता था. वह घर में भी मिसफिट था. उस की पत्नी के मातापिता ने उस से अपनी बेटी का विवाह यह सोच कर किया था कि लड़का ‘कस्टम’ जैसे मलाईदार महकमे में है, लड़की राज करेगी. मगर बाद में पता चला कि लड़का सूफी या संन्यासी किस्म का था.

रिश्वत लेनादेना पाप समझता है, तो उन के अरमान बुझ गए. बढ़े वेतनों के कारण अब नौकरीपेशाओं का जीवनस्तर भी काफी ऊंचा हो गया था. घर में वैसे कोई कमी न थी. पतिपत्नी 2 ही लोग थे. विवाह हुए चंद महीने हुए थे. मगर ऊपर की कमाई का अपना मजा था. कस्टम अधिकारी की पत्नी और वह भी तनख्वाह में गुजारा करना पड़े. कैसा आदमी या पति पल्ले पड़ गया था. कस्टम जैसे महकमे में ऐसा बंदा कैसे प्रवेश पा गया था?

‘‘आज मल्होत्रा साहब शिफौन की साड़ी का पूरा सैट लाए हैं. हर महीने बंधेबंधाए लिफाफे भी पहुंच जाते हैं,’’ चाय का कप सैंटर टेबल पर रखते हुए रमा ने कहा.

रमा का यह रोज का ही आलाप था. मतलब साफ था कि उसे भी अन्य के समान रिश्वतखोर बन रिश्वत लेनी चाहिए.

ज्योत्सना अनेक बार कस्टम अधिकारी नरोत्तम के समक्ष आई. कई बार घोषित किया सामान सही निकला. कई बार सही नहीं निकला. पहले पकड़ा गया सामान मालखाने से किस तरह छूटता था, इस की कोई खबर नरोत्तम को नहीं हुई.

एक दिन नरोत्तम अपनी पत्नी को सैरसपाटे के लिए ले गया. वे एक रेस्तरां पहुंचे जहां बार भी था और डांसफ्लोर भी. पत्नी के लिए ठंडे का और अपने लिए हलके डिं्रक का और्डर दे बैठ गया.

सामने डांसफ्लोर पर अनेक जोड़े नाच रहे थे. थोड़ी देर बाद डांस का दौर समाप्त हुआ. एक जोड़ा समीप की मेज पर बैठने लगा. तभी नरोत्तम की नजर लड़की पर पड़ी. वह चौंक पड़ा. वह ज्योत्सना थी. ज्योत्सना ने भी उसे देख लिया. वह लपकती हुई उस की तरफ आई.

‘‘हैलो हैंडसम, हाऊ आर यू?’’

उस के इस बेबाक व्यवहार पर नरोत्तम सकपका गया. उस को हाथ मिलाना पड़ा.

‘‘साथ में कौन है?’’ नरोत्तम की पत्नी की तरफ हाथ बढ़ाते हुए ज्योत्सना ने कहा.

‘‘मेरी वाइफ है.’’

‘‘वैरी गुड मैच इनडीड,’’ शरारत भरे स्वर में ज्योत्सना ने कहा.

नरोत्तम इस व्यवहार का अपनी पत्नी को क्या मतलब समझाता. वह समझ गया कि ज्योत्सना खामखां उस के समक्ष आई थी. उस का मकसद उस की पत्नी को भरमाना था.

‘‘एंजौय हैंडसम, फिर मिलेंगे,’’ शोखी से मुसकराती वह अपनी मेज की तरफ बढ़ गई.

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वेटर और्डर लेने आ गया. पत्नी गहरी नजरों से पति की तरफ देख रही थी. किसी तरह खाना खाया. ज्योत्सना चहकचहक कर अपने साथी के साथ खापी रही थी.

घर आते ही, जैसे कि नरोत्तम को आशा थी, रमा उस पर बरस पड़ी.

‘‘सामने बड़े सीधेसादे बनते हो. घर से बाहर हैंडसम बन चक्कर चलाते हो.’’

‘‘मेरा उस लड़की से चक्कर तो क्या परिचय भी नहीं है,’’ अपनी सफाई देते हुए नरोत्तम ने कहा.

‘‘चक्कर नहीं है, परिचय भी नहीं है, पर मिलने का ढंग तो ऐसा था मानो बरसों से जानते हो. एकांत स्थान होता तो शायद वह आप से लिपट कर चूमने लगती,’’ पत्नी ने हाथ नचा कर कहा.

तुम्हारे हिस्से में- भाग 2: पत्नी के प्यार में क्या मां को भूल गया हर्ष?

लेखक- महावीर राजी 

फिर हर्ष पेट में आया. तबीयत ढीली रहने लगी. डाक्टरों के पास जाने की औकात कहां? देशी टोटकों को देह पर सहेजा. देखतेदेखते 9वां महीना आ गया. फूले पेट के भीतर हर्ष की कलाबाजियों से मरणासन्न रमा वेदना को दांत पर दांत जमा कर बर्दाश्त करने की नाकाम कोशिश करती रही, तभी डाक्टर ने ऐलान किया, ‘केस सीरियस हो गया है और जच्चा या बच्चा दोनों में से किसी एक को ही बचाया जा सकता है.’

रमा की आंखों के आगे अंधेरा छा गया, पर दूसरे ही पल उस ने दृढ़ता के साथ डाक्टर से कहा, ‘सिर्फ और सिर्फ बच्चे को बचा लेना हुजूर. रमेसर की गोद में हमारे प्यार की निशानी तो रह जाएगी जो इस सतरंगी दुनिया को देख सकेगी.’

डाक्टर ने हर्ष को जीवनदान दे दिया. रमा कोमा में चली गई. कोमा की यह स्थिति 15 दिनों तक बनी रही. डाक्टरों ने उस की जिंदगी की उम्मीद छोड़ दी थी. पर मौत के संग लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार रमा बच ही गई.

हर्ष पढ़नेलिखने में औसत था. पढ़ने से जी चुराता. स्कूल के नाम पर घर से निकल जाता और स्कूल न जा कर आवारा लड़कों के संग इधरउधर मटरगश्ती करता रहता. राजमार्ग के पास वाली पुलिया पर बैठ कर आतीजाती लड़कियों को छेड़ा करता. इन सब बातों को ले कर रमेसर अकसर उस की पिटाई कर देता.

‘तेरे भले के लिए ही कह रहे हैं रे,’ रमा उसे प्यार से समझाती, ‘पढ़लिख लेगा तो इज्जत की दो रोटियां मिलने लगेंगी, नहीं तो अभावों और जलालत की जिंदगी ही जीनी पड़ेगी.’

किसी तरह मैट्रिक पास हो गया तो रमा ने उसे कोलकाता भेज देने का निश्चय कर लिया. पुराने आवारा दोस्तों का साथ छूटेगा, तभी पढ़ाई के प्रति गंभीर हो सकेगा.

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‘पर वहां का खर्च क्या आसमान से आएगा?’ रमेसर ने शंका जाहिर की तो रमा के चेहरे पर आत्मविश्वास की पुखराजी धूप खिल आई, ‘आसमान से कभी कोई चीज आई है जो अब आएगी? खर्चा हम पूरा करेंगे. आधा पेट खा कर रह लेंगे. जरूरतों में और कटौती कर लेंगे. चाहे जैसे भी हो, हर्ष को पढ़ाना ही होगा. उस की जिंदगी संवारनी होगी.’

रमा की जीवटता देख कर रमेसर चुप हो गया. हर्ष को कोलकाता भेज दिया गया. एक सस्ते से पीजी होम में रहने का इंतजाम हुआ. नए दोस्तों की संगत रंग लाने लगी. रमा पैसे लगातार भेजती रही. इन पैसों का जुगाड़ किन मुसीबतों से गुजर कर हो रहा है, हर्ष को कोई मतलब नहीं था. पहले इंटर, फिर बीए और फिर एमबीए. एकएक सीढि़यां तय करता हुआ हर्ष अपनी मंजिल तक पहुंच ही गया.

एमबीए की डिगरी का झोली में आ जाना टर्निंग पौइंट साबित हुआ हर्ष के लिए. पहले ही प्रयास में एक बड़ी स्टील कंपनी में जौब मिल गया. फिर सुंदर और पढ़ीलिखी संजना से ब्याह हो गया. कोलकाता में पोस्ंिटग और अलीपुर में कंपनी के आवासीय कौंप्लैक्स में शानदार फ्लैट. अरसे से दानेदाने को मुहताज किसी वंचित को जैसे अथाह संपदा के ढेर पर ही बैठा दिया गया हो. एकबारगी ढेर सारी सुविधाएं, ढेर सारा वैभव. सबकुछ छोटे से आयताकार क्रैडिट कार्ड में कैद.

उस स्टील कंपनी में जौब लगे 3 साल हो गए. जौब लगते ही हर्ष ने कहा था, ‘नई जगह है मम्मी, सैट होने में हमें वक्त लगेगा. सैट होते ही तुम्हें यहां अपने पास बुला लेंगे. इस जगह को हमेशा के लिए अलविदा कह देंगे.’

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सुन कर अच्छा लगा. रफूगीरी का काम करतेकरते तन और मन पर इतने सारे रफू चस्पां हो गए हैं कि घिन्न आने लगी है इन से. अब वह भी सामान्य जिंदगी जीना चाहती है, जिस दिन भी हर्ष कहेगा, चल देगी. यहां कौन सी संपत्ति पड़ी है? सारी गृहस्थी एक छोटी सी गठरी में ही समा जाएगी.

लेकिन 3 साल गुजर गए. इसी बीच हर्ष कई बार आया यहां. 2 दिनों के प्रवास के डेढ़ दिन ससुराल में बीतते. फिर बिना कुछ कहे लौट जाता. ‘मम्मी, इस बार तुम्हें भी साथ चलना है,’ इस एक पंक्ति को सुनने के लिए तड़प कर रह जाती रमा.

‘तो क्या अपने साथ ले चलने के लिए हर्ष के आगे हाथ जोड़ते हुए, गिड़गिड़ाते हुए विनती करनी होगी? मां की तनहाइयों और मुसीबतों का एहसास खुद ही नहीं होना चाहिए उसे? न, वह ऐसा नहीं कर सकती. उस के जमीर को ऐसा कतई मंजूर नहीं होगा. सिर्फ एक बार, कम से कम एक बार तो हर्ष को मनुहार करनी ही होगी. अगर वह ऐसा नहीं कर सकता तो न करे. वह भी कहीं जाने के लिए मरी नहीं जा रही.’

बलात्कारी की हार: भाग 2

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘‘अरे, कैसा धोखा? अगर मैं ने कोई साधन नहीं अपनाया था, तो तुम तो किसी मैडिकल हौल से कोई टैबलेट ले कर खा लेतीं और यह बच्चे का किस्सा ही खत्म हो जाता,’’ अमित के स्वर में बेरुखी थी.

‘‘पर तुम ऐसा कैसे कर सकते हो, अमित,’’ प्रीति का स्वर अस्फुट हो चला.

‘‘अरे प्रीति, शायद तुम मु?ो सम?ा नहीं. मैं जो तुम को रोज लेने आता था, रोज छोड़ने जाता था, वह सब यों ही नहीं था. और फिर, जवानी में तो यह सब होना आम बात है.’’

‘‘मैं तुम्हारे खाते में 20 हजार रुपए भेज रहा हूं, किसी अच्छे डाक्टर से जा कर बच्चे का एबौर्शन करवा लो और यह ?ां?ाट खत्म करो. खुद भी जियो और मु?ो भी जीने दो,’’ अमित यह कह कर टेबल से उठ गया.

प्रीति को लगा कि उस के जीवन में सुनामी आ गई है. उस की जबान उस के तालू से चिपक गई. आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे.  कौफीहाउस में सब की निगाहें प्रीति पर थीं. जब प्रीति को कुछ सम?ा नहीं आया तो वह वहां से उठी और कमरे में जा कर बिस्तर पर गिर गई.

कितने दिन और कितनी रात प्रीति अपने कमरे में बंद रही, रोती रही, कुछ पता नहीं था उसे.

उस के कान में अमित के निर्मम शब्द गूंज रहे थे, ‘‘बच्चे का एबौर्शन करवा लो और ?ां?ाट खत्म करो.’’ नश्तरों की तरह धार थी इन शब्दों में. घायल हो चुकी थी प्रीति.

हर दर्द की एक सीमा होती है और उस के बाद वह दर्द ही खुद दवा बन जाता है. प्रीति के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उस ने भारी मन से ही सही पर, औफिस जाना शुरू किया.

अमित से भी मिलना हुआ. उस ने बच्चे और एबौर्शन के बारे में जानने की कोशिश की पर उस के सामने प्रीति ने कोई कमजोरी नहीं दिखाई बल्कि सामान्य बात करती रही. शायद वह बहुतकुछ सोच चुकी थी.

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समय बीता तो प्रीति के घर वालों ने प्रीति और अमित की शादी के बारे में पूछताछ की. आश्चर्यजनक रूप से हिम्मत दिखाते हुए प्रीति ने अपने घरवालों को सब सच बता दिया. उस की बिन ब्याहे ही गर्भवती होने की खबर सुन घरवाले भी परेशान हो उठे और अगले ही दिन मां और उस की बहन उस के पास आ गईं और उन्होंने भी प्रीति से इस बच्चे को गिरा देने की ही बात कही. पर अब तो प्रीति का नया रूप देखने को मिला.

‘‘मां, इस बच्चे को मैं तब खत्म करती जब इस बच्चे को किसी गलत नीयत के साथ इस दुनिया में लाया गया होता. उस ने मु?ा से शादी का वादा किया, मेरा विश्वास जीता और मु?ा से संबंध बनाया. एक तरह से अमित ने मेरा बलात्कार किया है मां, बलात्कार,’’ प्रीति कहे जा रही थी.

‘‘बलात्कार सिर्फ वह ही नहीं होता जिस में जबरन संबंध बनाया जाए. यह मानसिक भी होता है. मर्दों की लालची आंखें जब किसी औरत के अंगों को टटोलती हैं तो भी वे उन का बलात्कार कर रही होती हैं. मां जो मेरे साथ हुआ उस में मेरी कोई गलती नहीं, मैं ने तो अमित से प्यार किया था. जीना चाहती थी मैं उस के साथ. पर मु?ो क्या पता था कि वह सिर्फ मांस का भूखा एक भेडि़या है जो मु?ो शादी का ?ांसा दे कर मु?ो नोचेगा. तुम बिलकुल मत घबराओ मां, मैं आत्महत्या जैसी कोई चीज नहीं करूंगी और मैं ने तय कर लिया है कि इस बच्चे को भी जन्म दूंगी मैं.’’

‘‘कुछ ज्यादा ही पढ़लिख गई है तू.  अरे लोग थूकेंगे हमारे मुंह पर. एक बिनब्याही मां बनना क्या होता है, जानती है तू? यह समाज हमें जीने नहीं देगा,’’ मां लगभग चीख रही थी.

‘‘कौन सा समाज मां? कैसा समाज, वे महल्ले के 4 लोग, वे कुछ रिश्तेदार जो लगातार हम से जलन रखते हैं. उन से डर कर मैं अपनी जिंदगी को नरक कर दूं, जबकि मैं ने कुछ गलत किया ही नहीं मां. शर्म तो अमित को आनी चाहिए क्योंकि उस ने मेरे साथ संबंध ही नहीं बनाया बल्कि बलात्कार किया है मेरा. अमित को इस की सजा भी भुगतनी होगी.,’’ प्रीति का यह नया रूप था जो एक अग्नि में जल रहा था.

‘‘अरे, उस मर्द जात से कहां तक लड़ेगी तू? और क्या कर लेगी उस का?’’ मां ने तेजी से कहा.

‘‘मां…मां, अपने बच्चे और अपने हक के लिए किसी भी हद तक जाऊंगी और न्याय ले कर रहूंगी,’’ प्रीति ने कहा.

‘‘तो फिर तू ही लड़ अपनी लड़ाई. हम को इन ?ामेलों से अलग ही रख,’’ मां ?ाल्ला उठी.

और इस तरह प्रीति के घरवालों ने उस से मुंह मोड़ लिया. पर सिर्फ घरवालों के साथ न देने से प्रीति टूटी नहीं, बल्कि उन दिनों सोशल मीडिया पर ‘मी टू’ नामक अभियान में अपना उत्पीड़न भी सब के साथ शेयर किया और सब को बताया कि कैसे उस के साथ घात हुआ है.

सब ने उस की कहानी बड़े चाव से सुनी और कुछ लोग उस का साथ देने वाले भी मिले पर सोशल मीडिया पर लाइक और कमैंट चाहे जितने अच्छे मिल जाएं,  वास्तविकता का जीवन तो कुछ और ही होता है.

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वास्तविकता यह भी थी कि प्रीति अब बिलकुल अकेली थी और आगे की लड़ाई लड़ने के लिए वह वकील से मिली.

‘‘हां प्रीति, तुम अमित पर केस तो कर सकती हो पर क्या तुम्हारे पास कोई ऐसा सुबूत है जिसे हम मजबूती से अदालत में अमित के खिलाफ अपना हथियार बना सकते हैं?’’ प्रीति की वकील मिसेज मेहता ने पूछा.

‘‘जी… वह बस मेरे मोबाइल में कुछ हमारे साथ की फोटोज हैं और व्हाट्सऐप पर की हुई चैटिंग के अलावा और कुछ भी नहीं है,’’ प्रीति ने पेशानी पर बल डालते हुए कहा.

‘‘हां, तो कोई बात नहीं है. वह सब मु?ो दे दो, देखती हूं कि और इस केस में क्याक्या किया जा सकता है,’’ मिसेज मेहता ने प्रीति के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

पता नहीं क्यों मिसेज मेहता की बातें घाव पर मलहम की तरह काम कर रही थीं.

अगले दिन जब प्रीति बैंक में पहुंची तो उसे बौस ने अपने केबिन में बुला कर उस के तबादले का पत्र पकड़ा दिया. प्रीति को सम?ाते देर न लगी कि अमित ने अपनी पहुंच का फायदा उठा कर उस का तबादला करा दिया है. सरकारी फरमान पर बहस करने से फायदा नहीं था, इसलिए प्रीति ने चुपचाप उसे स्वीकार कर लिया.

प्रीति घर पहुंच कर अपना सामान पैक ही कर रही थी कि अचानक उसे याद आया कि एक बार अमित ने उस से जिक्र किया था कि उस के मम्मी और पापा बहुत उदार और आदर्शों वाले हैं. प्रीति को घनघोर अंधेरे में कुछ टिमटिमाहट सी दिखाई दी और उस ने अमित के मांपापा से मिल कर सब बात बताने की सोची.

‘‘बेटे प्रीति, हमें तुम से सहानुभूति है पर तुम भी तो बालिग हो. घर से दूर नौकरी करने आई हो, तुम्हें भी तो कुछ सम?ा होनी चाहिए, सहीगलत तो तुम भी सम?ाती हो. इसलिए मैं अमित को दोष नहीं देता,’’ अमित के पिताजी कह रहे थे.

‘‘बुरा मत मानना प्रीति, पर मैं ने ऐसी लड़कियां भी देखी हैं जो पहले तो जवानी का मजा लेने के लिए हमबिस्तर हो जाती हैं और जब देखती हैं कि लड़का अच्छे घर का है तो उस को पैसे उगाहने के लिए ब्लैकमैल करने लगती हैं,’’ अमित के पिताजी कुछ ज्यादा ही प्रैक्टिकल बातें कर रहे थे.

‘‘और फिर अगर तुम्हें हमारा बेटा अच्छा लग गया था और तुम उस के साथ संबंध बनाना चाहती ही थीं तो कम से कम कोई साधन अपनाना चाहिए था और अगर वह भी नहीं हुआ था तो आजकल तो 24 से 72 घंटों बाद भी खाई जा सकने वाली दवाई मौजूद है, उस को ले सकती थीं तुम,’’ अमित की मां की आवाज में एकदम सूखापन था.

‘‘और हम तुम्हारी इतनी मदद कर सकते हैं कि अमित की मां की एक सहेली डाक्टर है. तुम्हें हम वहां ले कर तुम्हारे इस बच्चे को गिरवाने में मदद कर सकते हैं.  अगर तुम अमित जैसे सुदर्शन व्यक्तित्व वाले लड़के से शादी करना चाहती हो तो भूल जाओ, ऐसा नहीं हो सकता,’’ अमित के पिता ने फैसला सुनाते हुए कहा.

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प्रीति को सम?ा आ गया था कि अमित के मां और पिता से मिलने आना उस की गलती है.

प्रीति किसी तीर की तरह निकल आई थी. अपने कमरे पर आ कर बाकी का सामान भी रखने लगी. आखिरी आशा भी टूट चुकी थी और आशा टूटने की आवाज नहीं आती पर दर्द सब से ज्यादा होता है.

अगले दिन ही उस ने आगरा को अलविदा कह दिया था और मन में एक निश्चय लिए उसे लखनऊ की ब्रांच में जौइन करना था. अपनी ड्यूटी संभालने के बाद सब से पहला काम बैंक के जितना नजदीक हो सके, एक कमरा ढूंढ़ना था.

शहरों में एक अकेली लड़की की राह कभी आसान नहीं होती, यह बात प्रीति को तब सम?ा में आई जब उस ने एक मकान की घंटी बजाई और किराए पर एक कमरे की जरूरत की बात बताई.

‘‘जी कमरा तो मिल जाएगा, पर क्या आप शादीशुदा हैं?’’ मकान के मालिक ने पूछा.

‘‘जी नहीं, अभी मैं सिंगल हूं,’’ प्रीति ने नजरें नीची करते हुए कहा.

तलाक के बाद- भाग 3: जब सुमिता को हुआ अपनी गलतियों का एहसास

Writer- Vinita Rahurikar

फिल्म के इंटरवल में कुछ चिरपरिचित आवाजों ने सुमिता का ध्यान आकर्षित किया. देखा तो नीचे दाईं और आनंदी अपने पति और बच्चों के साथ बैठी थी. उस की बेटी रिंकू चहक रही थी. सुमिता को समझते देर नहीं लगी कि आनंदी का पहले से प्रोग्राम बना हुआ होगा, उस ने सुमिता को टालने के लिए ही रिंकू की तबीयत का बहाना बना दिया. आगे की फिल्म देखने का मन नहीं किया उस का, पर खिन्न मन लिए वह बैठी रही.

अगले कई दिन औफिस में भी वह गुमसुम सी रही. उस की और समीर की पुरानी दोस्त और सहकर्मी कोमल कई दिनों से देख रही थी कि सुमिता उदास और बुझीबुझी रहती है. कोमल समीर को बहुत अच्छी तरह जानती है. तलाक के पहले कोमल ने सुमिता को बहुत समझाया था कि वह गलत कर रही है, मगर तब सुमिता को कोमल अपनी दुश्मन और समीर की अंतरंग लगती थी, इसलिए उस ने कोमल की एक नहीं सुनी. समीर से तलाक के बाद फिर कोमल ने भी उस से बात करना लगभग बंद ही कर दिया था, लेकिन आज सुमिता की आंखों में बारबार आंसू आ रहे थे, तो कोमल अपनेआप को रोक नहीं पाई.

वह सुमिता के पास जा कर बैठी और बड़े प्यार से उस से पूछा, ‘‘क्या बात है सुमिता, बड़ी परेशान नजर आ रही हो.’’

उस के सहानुभूतिपूर्ण स्वर और स्पर्श से सुमिता के मन में जमा गुबार आंसुओं के रूप में बहने लगा. कोमल बिना उस से कुछ कहे ही समझ गई कि उसे अब समीर को छोड़ देने का दुख हो रहा है.

‘‘मैं ने तुम्हें पहले ही समझाया था सुमि कि समीर को छोड़ने की गलती मत कर, लेकिन तुम ने अपनी उन शुभचिंतकों की बातों में आ कर मेरी एक भी नहीं सुनी. तब मैं तुम्हें दुश्मन लगती थी. आज छोड़ गईं न तुम्हारी सारी सहेलियां तुम्हें अकेला?’’ कोमल ने कड़वे स्वर में कहा.

‘‘बस करो कोमल, अब मेरे दुखी मन पर और तीर न चलाओ,’’ सुमिता रोते हुए बोली.

‘‘मैं पहले से ही जानती थी कि वे सब बिना पैसे का तमाशा देखने वालों में से हैं. तुम उन्हें खूब पार्टियां देती थीं, घुमातीफिराती थीं, होटलों में लंच देती थीं, इसलिए सब तुम्हारी हां में हां मिलाती थीं. तब उन्हें तुम से दोस्ती रखने में अपना फायदा नजर आता था. लेकिन आज तुम जैसी अकेली औरत से रिश्ता बढ़ाने में उन्हें डर लगता है कि कहीं तुम मौका देख कर उन के पति को न फंसा लो. बस इसीलिए वे सतर्क हो गईं और तुम से दूर रहने में ही उन्हें समझदारी लगी,’’ कोमल का स्वर अब भी कड़वा था.

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सुमिता अब भी चुपचाप बैठी आंसू बहा रही थी.

‘‘और तुम्हारे बारे में पुरुषों का नजरिया औरतों से बिलकुल अलग है. पुरुष हर समय तुम से झूठी सहानुभूति जता कर तुम पर डोरे डालने की फिराक में रहते हैं. अकेली औरत के लिए इस समाज में अपनी इज्जत बनाए रखना बहुत मुश्किल है. अब तो हर कोई अकेले में तुम्हारे घर आने का मंसूबा बनाता रहता है,’’ कोमल का स्वर सुमिता की हालत देख कर अब कुछ नम्र हुआ.

‘‘मैं सब समझ रही हूं कोमल. मैं खुद परेशान हो गई हूं औफिस के पुरुष सहकर्मियों और पड़ोसियों के व्यवहार से,’’ सुमिता आंसू पोंछ कर बोली.

‘‘तुम ने समीर से सामंजस्य बिठाने का जरा सा भी प्रयास नहीं किया. थोड़ा सा भी धीरज नहीं रखा साथ चलने के लिए. अपने अहं पर अड़ी रहीं. समीर को समझाने का जरा सा भी प्रयास नहीं किया. तुम ने पतिपत्नी के रिश्ते को मजाक समझा,’’ कोमल ने कठोर स्वर में कहा.

फिर सुमिता के कंधे पर हाथ रख कर अपने नाम के अनुरूप कोमल स्वर में बोली, ‘‘समीर तुझ से सच्चा प्यार करता है, तभी

4 साल से अकेला है. उस ने दूसरा ब्याह नहीं किया. वह आज भी तेरा इंतजार कर रहा है. कल मैं और केशव उस के घर गए थे. देख कर मेरा तो दिल सच में भर आया सुमि. समीर ने डायनिंग टेबल पर अपने साथ एक थाली तेरे लिए भी लगाई थी.

‘‘वह आज भी अपने परिवार के रूप में बस तेरी ही कल्पना करता है और उसे आज भी तेरा इंतजार ही नहीं, बल्कि तेरे आने का विश्वास भी है. इस से पहले कि वह मजबूर हो कर दूसरी शादी कर ले उस से समझौता कर ले, वरना उम्र भर पछताती रहेगी.

‘‘उस के प्यार को देख छोटीमोटी बातों को नजरअंदाज कर दे. हम यही गलती करते हैं कि प्यार को नजरअंदाज कर के छोटीमोटी गलतियों को पकड़ कर बैठ जाते हैं और अपना रिश्ता, अपना घर तोड़ लेते हैं. पर ये नहीं सोचते कि घर के साथसाथ हम स्वयं भी टूट जाते हैं,’’ एक गहरी सांस ले कर कोमल चुप हो गई और सुमिता की प्रतिक्रिया जानने के लिए उस के चेहरे की ओर देखने लगी.

‘‘समीर मुझे माफ करेगा क्या?’’ सुमिता उस की प्रतिक्रिया जानने के लिए उस के चेहरे की ओर देखने लगी.

‘‘समीर के प्यार पर शक मत कर सुमि. तू सच बता, समीर के साथ गुजारे हुए 3 सालों में तू ज्यादा खुश थी या उस से अलग होने के बाद के 4 सालों में तू ज्यादा खुश रही है?’’ कोमल ने सुमिता से सवाल पूछा जिस का जवाब उस के चेहरे की मायूसी ने ही दे दिया.

‘‘लौट जा सुमि, लौट जा. इस से पहले कि जिंदगी के सारे रास्ते बंद हो जाएं, अपने घर लौट जा. 4 साल के भयावह अकेलेपन की बहुत सजा भुगत चुके तुम दोनों. समीर के मन में तुझे ले कर कोई गिला नहीं है. तू भी अपने मन में कोई पूर्वाग्रह मत रख और आज ही उस के पास चली जा. उस के घर और मन के दरवाजे आज भी तेरे लिए खुले हैं,’’ कोमल ने कहा.

घर आ कर सुमिता कोमल की बातों पर गौर करती रही. सचमुच अपने अहं के कारण नारी शक्ति और स्वावलंबन के नाम पर इस अलगाव का दर्द भुगतने का कोई अर्थ नहीं है.

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जीवन की सार्थकता रिश्तों को जोड़ने में है तोड़ने में नहीं, तलाक के बाद उसे यह भलीभांति समझ में आ गया है. स्त्री की इज्जत घर और पति की सुरक्षा देने वाली बांहों के घेरे में ही है. फिर अचानक ही सुमि समीर की बांहों में जाने के लिए मचल उठी.

समीर के घर का दरवाजा खुला हुआ था. समीर रात में अचानक ही उसे देख कर आश्चर्यचकित रह गया. सुमि बिना कुछ बोले उस के सीने से लग गई. समीर ने उसे कस कर अपने बाहुपाश में बांध लिया. दोनों देर तक आंसू बहाते रहे. मनों का मैल और 4 सालों की दूरियां आंसुओं से धुल गईं.

बहुत देर बाद समीर ने सुमि को अलग करते हुए कहा, ‘‘मेरी तो कल छुट्टी है. पर तुम्हें तो औफिस जाना है न. चलो, अब सो जाओ.’’

‘‘मैं ने नौकरी छोड़ दी है समीर,’’ सुमि ने कहा.

‘‘छोड़ दी है? पर क्यों?’’ समीर ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘तुम्हारे ढेर सारे बच्चों की परवरिश करने की खातिर,’’ सुमि ने शर्माते हुए कहा तो समीर हंस पड़ा. फिर दोनों एकदूसरे की बांहों में खोए हुए अपने कमरे की ओर चल पड़े.

सिंदूरी मूर्ति- भाग 2: जब राघव-रम्या के प्यार के बीच आया जाति का बंधन

खुद रम्या को तो रोज 2 ट्रेनें बदल कर अपने गांव से यहां आना पड़ता था. उन की बातों के दौरान ही ट्रेन आ गईं. जब तक वह कुछ समझता ट्रेन चल पड़ी. रम्या उस में सवार हो चुकी थी और वह प्लेटफौर्म पर ही रह गया. यह क्या अचानक रम्या प्लेटफौर्म पर कूद गई.

रम्या जब कूदी उस समय ट्रेन रफ्तार में नहीं थी. अत: वह कूदते ही थोड़ा सा लड़खड़ाई पर फिर संभल गई.

राघव हक्काबक्का सा उसे देखते रह गया. फिर सकुचा कर बोला, ‘‘तुम्हें इस तरह नहीं कूदना चाहिए था?’’

‘‘तुम अभी मुझ से ट्रेन के अप और डाउन के बारे में पूछ रहे थे… तुम यहां नए हो… मुझे लगा तुम किसी गलत ट्रेन में न बैठ जाओ सो उतर गई,’’ कह रम्या मुसकराई.

रम्या के सांवले मुखड़े को घेरे हुए उस के घुंघराले बाल हवा में उड़ रहे थे. चौड़े ललाट पर पसीने की बूंदों के बीच छोटी सी काली बिंदी, पतली नाक और पतले होंठों के बीच एक मधुर मुसकान खेल रही थी. राघव को लगा यह तो वही काली मिट्टी से बनी मूर्ति है जिसे उस के पिता बचपन में उसे रंग भरने को थमा देते थे.

‘‘क्या सोच रहे हो?’’ रम्या ने पूछा.

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‘‘यही कि तुम्हें कुछ हो जाता तो, मैं पूरी जिंदगी अपनेआप को माफ न कर पाता… तुम्हें ऐसा हरगिज नहीं करना चाहिए था.’’

‘‘ब्लड… ब्लड…’’ यही शब्द उन वाक्यों के उसे समझ आए, जो डाक्टर रम्या की फैमिली से तमिल में बोल रहा था.

राघव तुरंत डाक्टर के पास पहुंच गया. बोला, ‘‘सर, माई ब्लड ग्रुप इज ओ पौजिटिव.’’

‘‘कम विद मी,’’ डाक्टर ने कहा तो राघव डाक्टर के साथ चल पड़ा. उन्हीं से राघव को पता चला कि शाम तक 5-6 यूनिट खून की जरूरत पड़ सकती है. राघव ने डाक्टर को बताया कि शाम तक अन्य सहकर्मी भी आ रहे हैं. अत: ब्लड की कमी नहीं पड़ेगी.

रक्तदान के बाद राघव अस्पताल के एहाते में बनी कैंटीन में कौफी पीने के लिए आ गया. अस्पताल आए 6 घंटे बीत चुके थे. उस ने एक बिस्कुट का पैकेट लिया और कौफी में डुबोडुबो कर खाने लगा.

तभी उस की नजर सामने बैठे व्यक्ति पर पड़ी, जो कौफी के छोटे से गिलास को साथ में दिए छोटे कटोरे (जिसे यहां सब डिग्री बोलते हैं) में पलट कर ठंडा कर उसे जल्दीजल्दी पीए जा रहा था. रम्या ने बताया था कि उस के अप्पा जब भी बाहर कौफी पीते हैं, तो इसी अंदाज में, क्योंकि वे दूसरे बरतन में अपना मुंह नहीं लगाना चाहते. अरे, हां ये तो रम्या के अप्पा ही हैं. मगर वह उन से कोई बात नहीं कर सकता. वही भाषा की मुसीबत.

तभी उस की नजर पुलिस पर पड़ी, जिस ने पास आ कर उस से स्टेटमैंट ली और उसे शहर छोड़ कर जाने से पहले थाने आ कर अनुमति लेने की हिदायत व पुलिस के साथ पूरा सहयोग करने की चेतावनी दे कर छोड़ दिया.

शाम के 6 बज चुके थे. जब उस के सहकर्मी आए तो राघव की सांस में सांस आई. वे सभी रक्तदान करने के पश्चात रम्या के परिजनों से मिले और राघव का भी परिचय कराया.

तब उस की अम्मां ने कहा, ‘‘हां, मैं ने सुबह से ही इसे यहीं बैठे देखा था. मगर मैं नहीं जान पाई कि ये भी उस के सहकर्मी हैं,’’ और फिर वे राघव का हाथ थाम कर रो पड़ीं.

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उन लोगों के साथ राघव भी लौट गया. वह रोज शाम 7 बजे अस्पताल पहुंच जाता और 9 बजे लौट आता. पूरे 15 दिन तक आईसीयू में रहने के बाद जब रम्या प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट हुई तब जा कर उसे रम्या की झलक मिल सकी. रम्या की पीठ का घाव तो भरने लगा था, मगर उस के शरीर का दायां भाग लकवे का शिकार हो गया था, जबकि बाएं भाग में गहरा घाव होने से उसे ज्यादा हिलनेडुलने को डाक्टर ने मना किया था. रम्या निर्जीव सी बिस्तर पर लेटी रहती. अपनी असमर्थता पर आंसू गिरा कर रह जाती.

दुर्घटना के पूरे 6 महीनों के बाद स्वास्थ्य लाभ कर उस दिन रम्या औफिस जौइन करने जा रही थी. सुबह से रम्या को कई फोन आ चुके थे कि वह आज जरूर आए. उस दिन राघव की विदाई पार्टी थी. वह कंपनी की चंडीगढ़ ब्रांच में ट्रांसफर ले चुका था. वह दिन उस का अंतिम कार्यदिवस था.

कंपनी के गेट तक रम्या अपने अप्पा के साथ आई थी. वे वहीं से लौट गए, क्योंकि औफिस में शनिवार के अतिरिक्त अन्य किसी भी दिन आगंतुक का अंदर प्रवेश प्रतिबंधित था. उस का स्वागत करने को कई मित्र गेट पर ही रुके थे. उस ने मुसकरा कर सब का धन्यवाद दिया. राघव एक गुलदस्ता लिए सब से पीछे खड़ा था.

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रम्या ने खुद आगे बढ़ कर उस के हाथ से गुलदस्ता लेते हुए कहा, ‘‘शायद तुम इसे मुझे देने के लिए ही लाए हो.’’

एक सम्मिलित ठहाका गूंज उठा. ‘तुम्हारी यही जिंदादिली तो मिस कर रहे थे हम सब,’ राघव ने मन ही मन सोचा.

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