रिजवाना जमीन की ओर देखती, कहती गई, ‘‘ग्राहक के साथ सोने की जबरदस्ती, पैसे वे लोग रखेंगे, हम बस उन के गुलाम. जब तक हम कहीं और न बिकें, उन के लाए ग्राहकों को खुश करें. और उन्हें भी.’’ मृगांक ने पूछा, ‘‘तुम घर से निकल कर उन तक पहुंची कैसे?’’
‘‘आप को मालूम होगा, बांदा जिले में शजर पत्थरों के नक्काशीदार गहने बड़े भाव से बिकते हैं. मैं शजर पत्थरों से गहने बनाती थी, रोजीरोटी के लिए. ‘‘घर में मुझे मिला कर 3 बहनें थीं. एक भाई भी. अब्बा कौटन मिल में मजदूरी करतेकरते फेफड़े की बीमारी से चल बसे. भाई काम पर तो जाता लेकिन उम्र कम होने की वजह से मजदूरी नहीं मिलती थी. बहनों को घर पर काम होता था. 4 साल पहले जब मैं 16 साल की थी, सोचा शजर पत्थरों से गहने अच्छी बनाती हूं, क्यों न शहर में बेचा करूं, पैसे आएंगे.
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‘‘चिल्लाघाट से बांदा मुख्य बाजार आने के लिए बस पर चढ़ी, तभी अचानक किसी ने नाक पर रूमाल रख दिया. जब होश आया, खुद को होटल के कमरे में 4 लोगों के साथ पाया. कोठे में बेच दी गई. बेटी शीरी वहीं हुई. ‘‘अचानक उस कोठे पर पुलिस और महिला सुरक्षा संस्थान की दबिश पड़ी तो कोठे की मालकिन ने इन लोगों के हाथों हम 15 लड़कियों को बेच दिया था. हम महीनेभर से यहीं इलाहाबाद में थे.’’
‘‘चलो, एकबार कोशिश करते हैं. तुम्हारे घर वालों तक तुम्हें पहुंचाना मेरा काम है. स्वीकार न किए जाने पर नवलय तो है ही.’’ केन नदी के किनारे से मृगांक की जीप दौड़ती जा रही थी.
भुरागढ़ किला और विंध्य पठारों के पास से गुजरती जीप पर बैठे रिजवाना और मृगांक किले को ही एकटक देख रहे थे. मृगांक ने पूछा, ‘‘जानती हो इस भुरागढ़ किले के बारे में?’’ रिजवाना उदासीन थी, कहा, ‘‘ज्यादा नहीं, आप ही बताइए.’’
‘‘महाराजा धनसाल के बेटे जगत राई और उन के बेटे थे किराट सिंह. उन्हीं किराट सिंह ने यह किला बनवाया था. 1857 में नवाब अली बहादुर ने यहीं से ब्रिटिश अधीनता के विरुद्ध बिगुल फूंका था.’’
‘‘हूं,’’ रिजवाना दूर काली मिट्टी और उस पर उपजे सरसों, मटर, गेहूं के खेतों में कहीं खो गई थी. यमुना और केन की मिलनरेखा दूर से दिखने लगी थी. चिल्लाघाट आने को था, शाम की सुरमई शांति में दूर से फाग गीतों के धुन कानों में पड़ रहे थे. धर्म के मोह से ऊपर उठ कर फाग ने यौवन की मादकता को पुकारा था.
रिजवाना बचपन के दिनों की इस मनोरम जगह पर मृगांक की उपस्थिति से प्रफुल्लित सी सिहर गई. गोद में बच्ची और गांवघर के लोगों का अचानक खयाल आना उसे मायूस कर गया. रिजवाना के छोटे से घरआंगन में तब दीपक की रोशनी टिमटिमा रही थी. दोनों बहनें खाना बना रही थीं. भाई चारपाई पर लेटा था. बहन को देख दोनों बहनें दौड़ी आईं. लेकिन रिजवाना की गोद में बच्ची को देख दोनों ठिठक गईं. भाई चारपाई से उठ बैठा. मगर, बस बैठा देखता रहा. दोनों बहनें मां को बुला लाईं जो अंदर कढ़ाई और कशीदे का काम कर रही थीं. मृगांक के साथ उस की अम्मी की बातों का सार यही रहा कि एक बेटी के चलते शबाना और अमीना, जिन का निकाह होना लगभग तय है, की जिंदगियों पर पानी फिर जाएगा. ऊपर से इस की गोद में हराम की औलाद. गांव वाले हुक्कापानी बंद कर देंगे. ऐसे भी, बेटी की गुमशुदगी से कम जिल्लतें नहीं हुई हैं.
मृगांक समझ गया कि दाल नहीं गलेगी. कम से कम सुबह तक तो ठहरें. इलाहाबाद से बांदा तक
7 घंटे के सफर के बाद अब रात को वापस जाना मुमकिन नहीं. इधर, रिजवाना को ले कर या छोड़ कर अपने घर जाना भी संभव नहीं. अम्मी ने रातभर के लिए खाना भी मुहैया कराया और पनाह भी. सुबह दोनों निकलने वाले ही थे कि चिल्लाघाट पंचायत के 4 लोग दनदनाते सुबह 7 बजे इन के घर पहुंच गए. एक ने चीखा, ‘‘अंदर नापाक औरत के साथ क्या गुल खिला रहे हो, मृगांक बाबू? इतने बड़े नेता के बेटे हो कर भगोड़ी के साथ नापाक रिश्ता?’’
वे लोग रिजवाना को अब तक बाहर खींच लाए थे. रिजवाना की अम्मी दहाड़े मार कर रोने लगीं. बहनों ने उन्हें डपटा, तो चुप हो गईं. मृगांक ने बाहर आ कर उन्हें रोकने के लिए कहा, ‘‘क्यों मासूम परिवार को सता रहे हो आप लोग? मुझे अपने पिताजी के काम से अब कोई मतलब नहीं.’’
पंचायत के एक आदमी ने कहा, ‘‘सात घाट का पानी पीने के लिए घर से भाग खड़ी हुई और अब नापाक हो कर वापस लौटी है. हमारे मजहब में ऐसी औरतों को बागी मान कर सजा के लायक माना गया है.’’ इतना कहते हुए उन लोगों ने उस की चुन्नी नीचे खींच दी और उस के हाथों को मरोड़ कर खुद के करीब ले आए. मृगांक ने झपट कर रिजवाना को अपने पास खींचा और चीखा, ‘‘शर्म नहीं आती लड़की की इज्जत उतार कर गांव की इज्जत बचा रहे हो?’’
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‘‘बात आप के पिताजी तक पहुंचेगी. आप लड़की हमें सौंप दें तो हम आप को और आप के इस लड़की के साथ ताल्लुकात को हजम कर जाएंगे.’’ ‘‘नापाक कौन है मैं समझ नहीं पा रहा- लड़की को सौंप दूं- ताकि आप शौक से इस की बोटी नोचें. कह दें गगन त्रिपाठीजी से, मुझे कोई दिक्कत नहीं,’’ मृगांक ने साफ कहा.
वे दोनों इलाहाबाद वापस आ गए थे. दोनों के रिश्तों के बारे में इतने कसीदे काढ़े गए थे कि गगन त्रिपाठी और उन के बड़े बेटे शशांक आपे से बाहर हो गए. रिश्तेदारों में मृगांक के सामाजिक कामों को ले कर बड़ी छीछालेदार हुई. अब लेदे कर वेश्या ही बची थी, सपूत ने वह भी पूरा कर दिया. जातिबिरादरीधर्म सबकुछ उजड़ गया था त्रिपाठीजी का. ब्राह्मण बिरादरी गगन त्रिपाठी पर बड़ा गर्व करती थी. कैसा दिमाग चला कर सत्ता के करीबी हो गया उन की ही बिरादरी का व्यक्ति. गगन त्रिपाठी अपनी जातिबिरादरी के गर्व थे. अब बेटे ने कुजात की लड़की की संगत कर के धर्मभ्रष्ट कर दिया. गगन त्रिपाठी जितना सोचते, उन का पारा उतना सातवें आसमान पर पहुंच जाता. सदलबल बड़े बेटे को साथ ले वे इलाहाबाद पहुंच गए.
नवलय संस्थान पर त्रिपाठीजी और उन के लोगों का जब धावा पड़ा तब मृगांक के वापस आने में एक घंटा बाकी था. उन के इस तरह यहां आने से यहां की दीदियां घबरा गईं. सहयोगी नेकराम ने मृगांक को फोन लगाया. जब तक मृगांक यहां पहुंचे, शशांक रिजवाना के कमरे में घुस आया था.



