मेरा भारत महान. और भी बड़ेबड़े देश हैं जो हम से ज्यादा विकसित, धनी, सुखी और समृद्ध हैं मगर फिर भी महान नहीं हैं. महान तो सिर्फ और सिर्फ मेरा भारत है.

प्राचीनकाल में तो मेरा भारत और ज्यादा महान था. गौरवशाली साम्राज्य, ईमानदार इतिहास, सच्ची वीर परंपराएं, समृद्ध शासक, विशाल नागरिक, सोने की चिडि़या और घीदूध की नदियां... लगता है कुछ घालमेल हो गया लेकिन ऐसा ही कुछकुछ हुआ करता था. मगर आज के समय में, टूटीफूटी परंपराएं, सड़ा हुआ देश, भ्रष्ट जनता, गरीब नेता, गड़बड़ भूगोल और इतिहास का पता नहीं. कुल मिला कर जोजो अच्छा है वह पुराने जमाने में हो चुका, अभी तो जो भी नया है सब सत्यानाश.

मुझे तो सख्त अफसोस होता है कि मैं आज के समय में क्यों हूं, भूतकाल में क्यों न हुआ? बस, यही सोच कर संतोष होता है कि अभी जोजो बुरा है वह भी प्राचीन होने के बाद अच्छा हो जाएगा. ऐसे में जबकि जिंदगी जिल्लत ही जिल्लत है और हर चीज की किल्लत ही किल्लत है, एक चीज यहां ऐसी है जो पहले बड़ी दुर्लभ हुआ करती थी मगर आज उस की भरमार है और वह है प्रेम.

जी हां, आज हमारे पास प्रेम हमेशा हाजिर स्टाक में उपलब्ध रहता है. उस जमाने में कभी 100-50 साल में कोई एक मजनूं और एकाध लैला भूलेभटके ही होती थी, जो आपस में प्यार करते थे और बाकी लोग अजूबे की तरह उन्हें देखते थे कि ये लोग कर क्या रहे हैं और आखिर कब तक ऐसा करते रहेंगे? जिन की समझ में नहीं आता था वे उन्हें पत्थर उठा कर मारने लगते थे और जो अहिंसावादी थे वे बैठ कर उन के प्रेम की कहानियां लिखते थे. मगर आज गलीकूचों में प्रेम की ब्रह्मपुत्र बह रही है. यहां की हर छोरी लैला हर छोरा मजनूं. गांवगांव, शहरशहर, यहां, वहां, जहां, तहां, मत पूछो कहांकहां हीररांझा छितरे पड़े हैं. डालडाल रोमियो हैं तो पातपात जूलियट. बिजली के खंभों पर, टेलीफोन के तारों पर, जगहजगह लैला और मजनूं उलटे लटके पड़े हैं जितने जी चाहे गुलेल मार कर तोड़ लो.

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