डा. सीताराम और मंत्रीजी की बातों को सुन कर आलोक समझ चुका था कि ‘आरक्षण’ का राग अलापने वाले मंत्रीजी की नजर में व्यक्तिगत योग्यता का कोई मोल नहीं है.