मैं सिर्फ बार्बी डौल नहीं हूं- भाग 1: क्या थी परी की कहानी

खुद को आईने में निहारते हुए परी को अपने दाहिने गाल पर एक दाना दिखा. वह परेशान हो गई. क्या करे? क्या डाक्टर के पास जाए? फिर उस ने जल्दीजल्दी फाउंडेशन और कंसीलर की मदद से उस दाने को छिपाया और होंठों पर लिपस्टिक का फाइनल टच दिया. सिर पर थोड़ा सा पल्लू कर, पायल और चूडि़यां खनकाती वह बाहर निकली.

परी की सास और ननद उसे प्रशंसा से देख रही थीं, वहीं जेठानियों की आंखों में उस ने ईर्ष्या का भाव देखा तो परी को लगा कि उस का शृंगार सार्थक हुआ.

पासपड़ोस की आंटी और दूर के रिश्ते की चाची, ताई सब शकुंतला को इतनी सुंदर बहू लाने के लिए बधाई दे रही थीं. शकुंतला अभिमान से मंदमंद मुसकरा रही थीं. वे बड़े सधे स्वर में बोलीं, ‘‘यह तो हमारे मनु की पसंद है. पर हां, शायद इतनी खूबसूरत बहू मैं भी नहीं ढूंढ़ पाती.’’

नारंगी शिफौन साड़ी पर नीले रंग का बौर्डर था और नीले रंग का ही खुला ब्लाउज, जो उस की पीठ की खूबसूरती को उभार रहा था. पीठ पर ही परी ने एक टैटू बनवा रखा था जो मछली और एक परी के चित्र का मिलाजुला स्वरूप था.

परी को अपने इस टैटू पर बहुत गुमान था. इसी टैटू के कारण कितने ही लड़कों का दिल उस ने अपनी मुट्ठी में कर रखा था. परी की पारदर्शी त्वचा, दूध जैसा रंग, गहरी कत्थई आंखें सबकुछ किसी को भी बांधने के लिए पर्याप्त था. मनीष से उस की मुलाकात बैंगलुरु के नौलेज पार्क में हुई थी. दोनों का औफिस उसी बिल्डिंग में था. कभीकभी दोनों की मुलाकात कौफीहाउस में भी हो जाती थी.

मनीष अपने मातापिता की इकलौती संतान था. शकुंतला और कवींद्र दोनों ने ही अपनी पूरी ताकत अपनी संतान के पालनपोषण में लगा दी थी. बचपन से ही मनीष के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि उसे हर चीज में अव्वल आना है. कोई भी दोयम दरजे की चीज या व्यक्ति उसे मान्य नहीं था. पढ़ाई में अव्वल, खेलकूद में शीर्ष स्थान.

12वीं के तुरंत बाद ही उस का दाखिला देश के सब से अच्छे इंजीनियरिंग कालेज में हो गया था. उस के तुरंत बाद मुंबई के सब से प्रतिष्ठित कालेज से उस ने मैनेजमैंट की डिग्री हासिल की और बैंगलुरु में 60 लाख की सालाना आय पर उस ने एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर के रूप में जौइन कर लिया था जहां पर उस की मुलाकात परी से हुई और परी हर मामले में उस की जिंदगी के सांचे में फिट बैठती थी.

परी के मातापिता के पास अपनी बेटी के सौंदर्य और पढ़ाई के अलावा कुछ और दहेज में देने के लिए नहीं था. शकुंतला और कवींद्र ने मनीष की शादी के लिए बहुत बड़े सपने संजोए थे पर परी की खूबसूरती, काबिलीयत और मनीष की इच्छा के कारण चुप लगा गए. सादे से विवाह समारोह के बाद शकुंतला और कविंद्र ने बहुत ही शानदार रिसैप्शन दे कर मन के सारे अरमान पूरे कर लिए थे.

शाम को मनीष के दोस्त के यहां खाने पर जाना था. परी थक गई थी. उस का कपड़े बदलने का मन नहीं था. जब वह उसी साड़ी में बाहर आई तो शकुंतला ने टोका, ‘‘परी तुम नईनवेली दुलहन हो. ऐसे बासी कपड़ों में कैसे जाओगी?’’

परी बुझे स्वर में बोली, ‘‘मम्मी, मुझे बहुत थकान हो रही है. यह साड़ी भी तो अच्छी है.’’

शकुंतला ने बिना कुछ कहे उसे मैरून रंग का कुरता और शरारा पकड़ा दिया. परी ने मदद के लिए मनीष की तरफ देखा तो वह भी मंदमंद मुसकान के साथ अपनी मां का समर्थन ही करता नजर आया.

फिर से उस ने पूरा शृंगार किया. आईने में उस ने देखा, अब वह दाना और स्पष्ट हो गया था. तभी पीछे से शकुंतला की आवाज सुन कर घबरा कर उस ने उस दाने के ऊपर फाउंडेशन लगा लिया और फाउंडेशन का धब्बा अलग से उभर कर चुगली कर रहा था.

बाहर ड्राइंगरूम की रोशनी में शकुंतला बोलीं, ‘‘परी फाउंडेशन तो ठीक से लगाया करो. यह क्या फूहड़ की तरह मेकअप किया है तुम ने?’’

परी घबरा गई. जैसे ही शकुंतला उस के करीब आईं तभी मनीष की कार का हौर्न सुनाई दिया. परी बाहर की तरफ भागी.

पीछे से शकुंतला की आवाज आई, ‘‘परी रास्ते में ठीक कर लेना.’’

कार में बैठते ही मनीष ने परी को अपने करीब खींच लिया और चुंबनों की बरसात कर दी. फिर धीरे से उस के कान में फुसफुसाया, ‘‘मन नहीं है मयंक के घर जाने का. कहीं उस की नीयत न बिगड़ जाए. जान, बला की खूबसूरत लग रही हो तुम.’’

मनीष की बात पर परी धीरे से मुसकरा दी. करीब 15 मिनट बाद कार एक नए आबादी क्षेत्र में बनी सोसाइटी के आगे रुक गई. मनीष ने घंटी बजाई और एक अधेड़ उम्र की महिला ने दरवाजा खोला. चेहरे पर मुसकान और मधुरता लिए हुए उन्हें देख कर ऐसा आभास हुआ परी को कि वह उन के साथ बैठ कर थोड़ा सुस्ता ले.

तभी अंदर से ‘‘हैलो… हैलो…’’ बोलता हुआ एक नौजवान आया. गहरी काली आंखें, तीखी नाक और खुल कर हंसने वाला. उस के व्यक्तित्व में सबकुछ खुलाखुला था. परी बिना परिचय के ही समझ गई थी कि यह मयंक है और वह महिला उस की मां है.’’

परी और मनीष 4 घंटे तक वहां बैठे रहे. परी को लगा ही नहीं कि वह यहां पहली बार आई है. जहां मनीष के घर उसे हर समय डर सा लगा रहता था कि कहीं कुछ गलत न हो जाए. हर समय अपने रंगरूप को ले कर सजग रहना पड़ता था, वहीं यहां वह एकदम सहज थी.

तभी परी के मोबाइल की घंटी बजी. शकुंतलाजी दूसरी तरफ थीं, ‘‘परी तुम्हें कुछ होश है या नहीं, क्या समय हुआ है? मनीष का तो वह दोस्त है पर तुम्हें तो खयाल रखना चाहिए न…’’

जब वे लोग वहां से बिदा हो कर चले तब रात के 11 बज चुके थे. घर पहुंच कर परी जब चेहरा धो रही थी तब उस ने करीब से देखा, उस दाने के साथ एक और दाना बगल में उग चुका था. वह गहरी चिंता में डूब गई. वह मन ही मन सोच में डूब गई कि अब कैसे सामना करूंगी? उस ने तो मुझे पसंद ही मेरी खूबसूरत पारदर्शी त्वचा की वजह से किया है.

मनीष अधीरता से बाथरूम का दरवाजा पीट रहा था, ‘‘डौल, मेरी बार्बी डौल जल्दी आओ.’’

उस की कोमल व बेदाग साफ त्वचा के कारण ही तो वह उसे बार्बी डौल कहता था. फिर से उस ने फाउंडेशन लगाया और बाहर आ गई. मनीष ने उसे बांहों में उठाया और फिर दोनों प्यार में डूब गए.

प्रेमी ने लगाया शक का चश्मा: भाग 2

इस के 2 साल बाद 4 फरवरी, 2009 को डुमरिया के जादूगोड़ा गांव में आयोजित फुटबाल टूर्नामेंट में पुरस्कार वितरण के दौरान कैलाश हेम्ब्रम को नक्सलियों ने गोलियों से भून कर अपने साथियों की मौत का बदला ले लिया.

नक्सली हमले में कैलाश की मौत के बदले राज्य सरकार ने अनुकंपा के आधार पर उस की पत्नी सविता को 2013 में सिपाही की नौकरी दी थी.

सविता की इस नौकरी के लिए ससुराल में विवाद छिड़ गया था. सविता की सास बहू के बजाय अपने दूसरे बेटे को नौकरी दिलाना चाहती थी जबकि छोटा बेटा दाखीन हेम्ब्रम नेत्रहीन था. कानूनन उस नौकरी पर सविता का ही अधिकार बनता था. उस के पास उस समय 5 साल की बेटी गीता थी. पति का सिर से साया उठ जाने के बाद बेटी की परवरिश का वही एक सहारा था.

सास, देवर और भौजाई के बीच नौकरी को ले कर सालों तक रस्साकशी चलती रही. इस बीच सविता की सास की स्वाभाविक मौत हो गई तो दाखीन ने कोर्टकचहरी शुरू कर दी. अंतत: जीत सविता की हुई और वह नौकरी करने लगी.

सविता पढ़ीलिखी तो थी ही. योग्यता के आधार पर उसे एसएसपी का रीडर बना दिया गया. तब से वह इसी पद पर तैनात थी.

पति की मौत के बाद सविता की मां लखिमा मुर्मू अकेली रह गई थीं. 70 साल की उम्र में सविता के अलावा उन के आगेपीछे सेवाजतन करने वाला कोई नहीं था.

ऐसी हालत में वह मां को अकेला छोड़ भी नहीं सकती थी, इसलिए उस ने उन्हें अपने पास बुला लिया. मां के पास आ जाने से सयानी हो रही बेटी गीता की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी उस के सिर से कम हो गई थी.

समय करवट कैसे लेता है, कोई नहीं जानता. समय के साथ ही सविता की जिंदगी में भी बदलाव आया. सविता जवान थी, सुंदर थी, उस का भरापूरा बदन था.

बेवा होने के बावजूद उस के अंगअंग से सौंदर्य झलकता था. हमदर्द तो कम लेकिन उस के हुस्न के दीवाने बहुत थे, जिस में से एक नाम सुंदर का भी था, जो सविता के दिल पर अपने प्यार की मुहर लगा चुका था.

सविता भी सुंदर के लिए अपने दिल का दरवाजा खोल चुकी थी ताकि उस के दिल पर सुंदर की हुकूमत चले. हमदर्दी का मरहम लगातेलगाते उस ने सविता के दिल पर कब्जा कर लिया.

दिल के साथसाथ सुंदर के लिए सविता के घर के दरवाजे खुले थे. सविता की मां लखिमा मुर्मू और बेटी गीता को सुंदर के घर आनेजाने से कतई गुरेज नहीं था.

यहां तक कि वह उस पर पति जैसा अधिकार जताता था. इस पर भी किसी को ऐतराज नहीं था, बल्कि उन के मिलन की घड़ी में कोई बाधा नहीं डालता था. उन्हें एक कमरे में अकेले रहने के लिए छोड़ दिया जाता था. ऐसा रिश्ता सविता और सुंदर के बीच में बन चुका था.

सुंदर सविता के प्यार में इस कदर अंधा हो चुका था कि उसे अपनी शादीशुदा जिंदगी भी याद नहीं थी. घर पर उस की पत्नी और 2 छोटेछोटे बच्चे थे. उसे तो कुछ याद था तो आंखों के सामने नाचता सविता का हसीन चेहरा.

वह कईकई दिनों तक अपने घर नहीं जाता था. प्रेमिका के घर पर ही पड़ा रहता था. ऐसा भी नहीं था कि सविता सुंदर की शादीशुदा जिंदगी से रूबरू नहीं थी, बावजूद इस के वह उस से टूट कर प्यार करती थी.

दोनों शादी के बंधन में अभी बंधे नहीं थे, लेकिन प्यार की पींगें भरते कैसे 6 साल बीत गए, न तो सविता ही जान सकी और न ही सुंदर. बस, दोनों अपने प्यार की दुनिया में मस्त थे.

सुंदर सविता पर करने लगा था शक

पता नहीं सविता और सुंदर के प्यार को किस की बुरी नजर लग गई थी. जान छिड़कने वाला सुंदर उस पर शक करने लगा था. हुआ कुछ यूं था कि पति जैसा हक जताने वाला सुंदर यह कभी नहीं चाहता था कि उस का प्यार बंटे. सविता उस की ब्याहता तो थी नहीं लेकिन पत्नी से कम भी नहीं थी.

दिलदार और हंसमुख स्वभाव की सविता हर किसी से हंस कर बातें करती थी. उस के हंस कर बातें करने के अंदाज को लोग दूसरे अर्थों में समझने लगते थे. उस के विभाग के ऐसे कई लोग थे, जिन का सविता पर दिल लट्टू था लेकिन सविता उन्हें घास तक नहीं डालती थी. हां, टाइमपास के लिए गपशप जरूर कर लेती थी.

सविता की यही बातें सुंदर को खटकती थीं. उस के दिल में शक ने घर कर लिया था. सुंदर ने फैसला कर लिया था कि सविता सिर्फ उस की है और उसी की रहेगी. अगर उस ने किसी और की बाहें थामने की कोशिश की तो उस की जिंदगी की बची हुई सांसों की डोर काट देगा.

सुंदर के मन में उसे ले कर कैसीकैसी खिचड़ी पक रही थी, इस से वह बिलकुल बेखबर थी. सविता ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस पर जान छिड़कने वाला उसे शक की नजरों से देखता होगा.

एक दिन की बात है. शाम का समय था. घर पर सविता अकेली थी. बेटी और मां बाजार गई हुई थीं. उसी समय सुंदर वहां आ पहुंचा. देखा घर में सन्नाटा पसरा है, किसी की आवाज नहीं आ रही थी. भीतर से सविता भी सोफे पर बैठी हुई थी.

‘‘क्या बात है, घर में बड़ी शांति है? मांजी और गीता बेटी कहीं गई हैं क्या?’’ सुंदर ने सवाल किया.

Father’s Day Special: पापा जल्दी आ जाना- भाग 1

‘‘पापा, कब तक आओगे?’’ मेरी 6 साल की बेटी निकिता ने बड़े भरे मन से अपने पापा से लिपटते हुए पूछा.

‘‘जल्दी आ जाऊंगा बेटा…बहुत जल्दी. मेरी अच्छी गुडि़या, तुम मम्मी को तंग बिलकुल नहीं करना,’’ संदीप ने निकिता को बांहों में भर कर उस के चेहरे पर घिर आई लटों को पीछे धकेलते हुए कहा, ‘‘अच्छा, क्या लाऊं तुम्हारे लिए? बार्बी स्टेफी, शैली, लाफिंग क्राइंग…कौन सी गुडि़या,’’ कहतेकहते उन्होंने निकिता को गोद में उठाया.

संदीप की फ्लाइट का समय हो रहा था और नीचे टैक्सी उन का इंतजार कर रही थी. निकिता उन की गोद से उतर कर बड़े बेमन से पास खड़ी हो गई, ‘‘पापा, स्टेफी ले आना,’’ निकिता ने रुंधे स्वर में धीरे से कहा.

उस की ऐसी हालत देख कर मैं भी भावुक हो गई. मुझे रोना उस के पापा से बिछुड़ने का नहीं, बल्कि अपना बीता बचपन और अपने पापा के साथ बिताए चंद लम्हों के लिए आ रहा था. मैं भी अपने पापा से बिछुड़ते हुए ऐसा ही कहा करती थी.

संदीप ने अपना सूटकेस उठाया और चले गए. टैक्सी पर बैठते ही संदीप ने हाथ उठा कर निकिता को बाय किया. वह अचानक बिफर पड़ी और धीरे से बोली, ‘‘स्टेफी न भी मिले तो कोई बात नहीं पर पापा, आप जल्दी आ जाना,’’ न जाने अपने मन पर कितने पत्थर रख कर उस ने याचना की होगी. मैं उस पल को सोचते हुए रो पड़ी. उस का यह एकएक क्षण और बोल मेरे बचपन से कितना मेल खाते थे.

मैं भी अपने पापा को बहुत प्यार करती थी. वह जब भी मुझ से कुछ दिनों के लिए बिछुड़ते, मैं घायल हिरनी की तरह इधरउधर सारे घर में चक्कर लगाती. मम्मी मेरी भावनाओं को समझ कर भी नहीं समझना चाहती थीं. पापा के बिना सबकुछ थम सा जाता था.

बरामदे से कमरे में आते ही निकिता जोरजोर से रोने लगी और पापा के साथ जाने की जिद करने लगी. मैं भी अपनी मां की तरह जोर का तमाचा मार कर निकिता को चुप करा सकती थी क्योंकि मैं बचपन में जब भी ऐसी जिद करती तो मम्मी जोर से तमाचा मार कर कहतीं, ‘मैं मर गई हूं क्या, जो पापा के साथ जाने की रट लगाए बैठी हो. पापा नहीं होंगे तो क्या कोई काम नहीं होगा, खाना नहीं मिलेगा.’

किंतु मैं जानती थी कि पापा के बिना जीने का क्या महत्त्व होता है. इसलिए मैं ने कस कर अपनी बेटी को अंक में भींच लिया और उस के साथ बेडरूम में आ गई. रोतेरोते वह तो सो गई पर मेरा रोना जैसे गले में ही अटक कर रह गया. मैं किस के सामने रोऊं, मुझे अब कौन बहलानेफुसलाने वाला है.

मेरे बचपन का सूर्यास्त तो सूर्योदय से पहले ही हो चुका था. उस को थपकियां देतेदेते मैं भी उस के साथ बिस्तर में लेट गई. मैं अपनी यादों से बचना चाहती थी. आज फिर पापा की धुंधली यादों के तार मेरे अतीत की स्मृतियों से जुड़ गए.

पिछले 15 वर्षों से ऐसा कोई दिन नहीं गया था जिस दिन मैं ने पापा को याद न किया हो. वह मेरे वजूद के निर्माता भी थे और मेरी यादों का सहारा भी. उन की गोद में पलीबढ़ी, प्यार में नहाई, उन की ठंडीमीठी छांव के नीचे खुद को कितना सुरक्षित महसूस करती थी. मुझ से आज कोई जीवन की तमाम सुखसुविधाओं में अपनी इच्छा से कोई एक वस्तु चुनने का अवसर दे तो मैं अपने पापा को ही चुनूं. न जाने किन हालात में होंगे बेचारे, पता नहीं, हैं भी या…

7 वर्ष पहले अपनी विदाई पर पापा की कितनी कमी महसूस हो रही थी, यह मुझे ही पता है. लोग समझते थे कि मैं मम्मी से बिछुड़ने के गम में रो रही हूं पर अपने उन आंसुओं का रहस्य किस को बताती जो केवल पापा की याद में ही थे. मम्मी के सामने तो पापा के बारे में कुछ भी बोलने पर पाबंदियां थीं. मेरी उदासी का कारण किसी की समझ में नहीं आ सकता था. काश, कहीं से पापा आ जाएं और मुझे कस कर गले लगा लें. किंतु ऐसा केवल फिल्मों में होता है, वास्तविक दुनिया में नहीं.

उन का भोला, मायूस और बेबस चेहरा आज भी मेरे दिमाग में जैसा का तैसा समाया हुआ था. जब मैं ने उन्हें आखिरी बार कोर्ट में देखा था. मैं पापापापा चिल्लाती रह गई मगर मेरी पुकार सुनने वाला वहां कोई नहीं था. मुझ से किसी ने पूछा तक नहीं कि मैं क्या चाहती हूं? किस के पास रहना चाहती हूं? शायद मुझे यह अधिकार ही नहीं था कि अपनी बात कह सकूं.

मम्मी मुझे जबरदस्ती वहां से कार में बिठा कर ले गईं. मैं पिछले शीशे से पापा को देखती रही, वह एकदम अकेले पार्किंग के पास नीम के पेड़ का सहारा लिए मुझे बेबसी से देखते रहे थे. उन की आंखों में लाचारी के आंसू थे.

मेरे दिल का वह कोना आज भी खाली पड़ा है जहां कभी पापा की तसवीर टंगा करती थी. न जाने क्यों मैं पथराई आंखों से आज भी उन से मिलने की अधूरी सी उम्मीद लगाए बैठी हूं. पापा से बिछुड़ते ही निकिता के दिल पर पड़े घाव फिर से ताजा हो गए.

जब से मैं ने होश संभाला, पापा को उदास और मायूस ही पाया था. जब भी वह आफिस से आते मैं सारे काम छोड़ कर उन से लिपट जाती. वह मुझे गोदी में उठा कर घुमाने ले जाते. वह अपना दुख छिपाने के लिए मुझ से बात करते, जिसे मैं कभी समझ ही न सकी. उन के साथ मुझे एक सुखद अनुभूति का एहसास होता था तथा मेरी मुसकराहट से उन की आंखों की चमक दोगुनी हो जाती. जब तक मैं उन के दिल का दर्द समझती, बहुत देर हो चुकी थी.

सत्यकथा: 50 से ज्यादा प्रेमिकाओं वाला सेक्स एडिक्ट

जयपुर पुलिस 23 फरवरी, 2022 को रोशनी नाम की युवती की हत्या के मामले में 28 वर्षीय विक्रम बैरवा उर्फ मिंटू की तलाश कर रही थी. वह करघनी के आर्मी नगर मोहल्ले में एक किराए के मकान में विक्रम के साथ लिवइन रिलेशन में रह रही थी. उस की मौत की खबर सुनने के बाद से ही विक्रम फरार हो गया था. पुलिस को उसे दबोचने मे काफी पापड़ बेलने पड़े थे.

मोबाइल नंबर से उस की जो लोकेशन मिलती, पुलिस जब वहां पहुंचती तो पुलिस के पहुंचने के पहले विक्रम वहां से फरार हो जाता था. काफी मशक्कत के बाद आखिर डेढ़ महीने बाद 8 अप्रैल को उसे अलवर जिले के कठुमर से गिरफ्तार कर लिया. उस वक्त वह उस इलाके के टपूकड़ा में एक दंपति के घर पर ठहरा हुआ था.

जयपुर के करघना थाने की पुलिस टीम उसे अपने थाने ले आई. उस से गहन पूछताछ हुई. पूछताछ में उस ने न केवल 26 वर्षीया रोशनी की हत्या की बात कुबूल कर ली, बल्कि ग्वालियर से जुड़े हत्याकांड और गैंगरेप में शामिल होने की भी बात स्वीकार की. इस के अलावा उस ने झांसा दे कर झूठे प्रेम में लड़कियों को फंसाने के चौंकाने वाले कई खुलासे भी किए.

उस के बाद विक्रम बैरवा उर्फ मिंटू के कुख्यात कारनामों की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह काफी हैरान करने वाली निकली, जिस की शुरुआत 7 साल पहले तभी से हो गई थी, जब उस ने घरबार छोड़ दिया था.

आजादखयाल और बेफिक्री की मौजमस्ती जैसी जिंदगी के शौक के अलावा उस की एक कमजोरी सैक्स की चाहत थी. उस की बुरी आदतें दिनप्रतिदिन बढ़ती चली गईं.

बात अक्तूबर 2021 की है. विक्रम मानसरोवर, जयपुर के एक होटल में ठहरा हुआ था. शाम होने पर कमरे से बाहर सजसंवर कर निकला. रिसैप्शन पर आ कर रूम की चाबी देने के लिए हाथ आगे बढ़ाया. काउंटर पर बैठी लड़की अपना सिर उठाते ही बिंदास बोल पड़ी, ‘‘क्या गजब का तेज परफ्यूम है!’’

‘‘अच्छा नहीं है?’’ विक्रम मुसकराते हुए बोला.

‘‘मैं खराब तो नहीं बोली,’’ लड़की ने तुरंत जवाब दिया.

‘‘बड़ी हाजिरजवाब हो. यहां की ड्यूटी है क्या? जो सुबह बैठे थे वह कहां गए?’’ विक्रम ने पूछा.

‘‘अच्छा तो मैनेजर साहब, अभी आने वाले हैं. मुझे यहां बैठा दिया और 2 मिनट में आता हूं बोल कर पास में ही गए हैं,’’ लड़की बोली.

‘‘बैठा दिया… इस का मतलब?’’ विक्रम ने सवाल किया.

‘‘मैं यहां की स्टाफ नहीं हूं. लीजिए वह आ गए,’’ लड़की बोली और काउंटर से बाहर निकल आई. अपना छोटा सा बैग उठाया और कमर लचकाती हुई तेजी से रिसैप्शन से बाहर निकल गई.

‘‘गजब की लड़की है, कुछ तो बोलती बताती. मेरे पीछे कौन आया, क्या हुआ?’’ मैनेजर अपने आप से बोल पड़ा.

‘‘बड़ी तेज लगती है.’’

‘‘ऐसा ही समझ लीजिए. आज के वाट्सऐप इंस्टाग्राम के जमाने की है. 2 दिन से नौकरी मांग रही है. एक बात बताऊं, आप की परफ्यूम बड़ी अच्छी है. किसी को भी अपनी ओर खींच लेने वाली है. धांसू.’’ मैनेजर बोला.

‘‘लेकिन उस लड़की को तो इतनी तीखी लगी कि वह तेजी से भाग गई,’’ विक्रम मजाकिया अंदाज में बोला.

‘‘अच्छा उसे छोडि़ए साहब, मेरे लायक कोई और सेवा हो तो बताइए.’’ मैनेजर बोला.

‘‘एक सेवा तो चाहिए आप की, यदि आप करवा सकें तो… उस के बगैर मेरी रात ही नहीं कटेगी,’’ विक्रम बोला.

‘‘बताइए तो सही,’’ मैनेजर छूटते ही बोला.

विक्रम अपना मुंह मैनेजर के कान के पास ले जा कर बोला, ‘‘आज रात के लिए कोई इंतजाम हो जाएगा क्या? एकदम उसी जैसी छमकती हुई देसी, जैसी यहां से गई.’’ विक्रम बोला.

‘‘मैं समझ गया साहब, आप फौजी हो न! हो जाएगा, बेफिक्र रहिए.’’

‘‘जो लगेगा बता दो, अभी ट्रांसफर कर देता हूं.’’ विक्रम बोला.

‘‘आप अभी जहां जा रहे हैं, वहां से हो आइए. रात के ठीक 9 बजे आप के कमरे में होगी 3 से 4 घंटे के लिए.’’ मैनेजर ने बोलते हुए अपने मोबाइल पर 2000 टाइप कर स्क्रीन विक्रम की आंखों के सामने कर दी.

‘‘ओके, तुम तो बहुत समझदार निकले. हो जाएगा. कहां ट्रांसफर करना है, उस का नंबर बता दो.’’ विक्रम बोला.

‘‘ठीक है,’’ मैनेजर के आश्वासन मिलने के बाद विक्रम ने काउंटर पर से अपना मोबाइल ले कर जेब में रखा और गेट से बाहर हो गया.

रात के करीब सवा 9 बज चुके थे. विक्रम बड़ी बेसब्री में था. मैनेजर के आश्वासन के इंतजार का पलपल काटे नहीं कट रहा था. बारबार टीवी का चैनल बदल रहा था. उस ने सोचा जा कर नीचे मैनेजर से मिला जाए या फिर इंटरकौम से बात की जाए.

कुछ सेकेंड रुक कर उस ने इंटरकौम की ओर अपना हाथ बढ़ाया ही था कि रूम की बैल बज उठी. वो तुरंत बोल पड़ा, ‘‘खुला है. आ जाओ.’’

दरवाजा खुलते ही एक लड़की ने अंगरेजी में कहा, ‘‘मैं अंदर आ जाऊं, मैनेजर साहब ने भेजा है.’’

‘‘अरे तुम? तुम तो वही हो, जो…’’ विक्रम फटीफटी आंखों से लड़की को देखते हुए सहसा बोल पड़ा.

‘‘हां, तुम भी तो वही हो…परफ्यूम वाले.’’

‘‘तुम तो छिपी रूस्तम निकली. तो तुम कालगर्ल हो?’’ विक्रम बोला.

‘‘हूं नहीं, मजबूरी में बनना पड़ा है. क्या करूं?’’ लड़की बोली.

इस तरह दोनों के बीच बातें होने लगीं. कुछ समय में ही दोनों दोस्त बन गए. बातोंबातों में लड़की ने अपना नाम रोशनी बताया. उस ने यह भी बताया उस ने यह कदम मजबूरी में उठाया है.

विक्रम उस का दूसरा ग्राहक है. वह जेल में बंद अपने पिता को बाहर निकालने के लिए पैसा जमा कर रही है, ताकि मुकदमा जीत सके.

विक्रम को रोशनी के दिल की बातें चुभ गईं. दोनों पूरी रात कमरे में रहे. उन की नींद सुबह मैनेजर की काल से खुली. बांहों में समाई रोशनी को विक्रम ने खुद से अलग किया. रोशनी हड़बड़ाती हुई उठी. कलाई घड़ी देखी, ‘‘अरे, सुबह के 6 बज गए!’’

रोशनी ने 5-7 मिनट में ही फटाफट कपड़े पहने, अपना मेकअप ठीक किया. बैग उठा कर चलने लगी. विक्रम ने उसे गले लगा लिया. चूमता हुआ बोला, ‘‘वादा करो, आज के बाद से यह काम नहीं. हम लोग साथ रहेंगे. तुम्हारी समस्या मेरी समस्या है. हम लोग मिल कर उसे दूर करेंगे. मैं आर्मी का आदमी हूं. जो कहता हूं करता हूं.’’

‘‘इस के लिए पहले तुम्हें मेरे घर चलना होगा,’’ रोशनी बोली.

‘‘कोई बात नहीं मैं पक्का 8 बजे होटल छोड़ दूंगा. तुम अपने घर का एड्रैस मुझे दो, मैं वहां मिलता हूं,’’ विक्रम ने कहा.

‘‘मेरा एड्रैस फिलहाल जयपुर का बस अड्डा है. हमें हरदोई जाना होगा. कपड़ेलत्ते इसी होटल के एक कमरे में हैं. वह जा कर ले लेती हूं. यहां से साथ चलेंगे.’’

दोनों उसी रोज जयपुर से हरदोई के लिए रवाना हो गए. देर रात तक दोनों हरदोई पहुंच गए. रोशनी ने अपने घर वालों से विक्रम का परिचय एक इनकम टैक्स इंसपेक्टर के रूप में करवाया. उस ने बताया कि पिता को जेल से छुड़वाने में यह मदद करेंगे. साथ ही उस ने यह भी बताया कि पिता के छूटने के बाद वह उस से शादी कर लेगी.

रोशनी के घर वालों ने विक्रम की खूब आवभगत की. उस की मां खुश थी कि उन्हें घर बैठे अच्छी नौकरी करने वाला दामाद मिल गया. विक्रम ने जब देखा कि हवा उस की ओर बह रही है, तब उस ने कोर्टमुकदमे के खर्च के नाम पर कुछ कैश और लाखों रुपए के गहने ले लिए.

अगले रोज दोनों चंडीगढ़ और अन्य शहर होते हुए जयपुर आ गए. वहां उन्होंने आर्मीनगर में थानेदार राजेंद्र यादव के मकान में पहली मंजिल पर एक कमरा किराए पर ले लिया. उन्होंने मकान मालिक को स्पष्ट बता दिया कि वे लिवइन रिलेशन में हैं. उन की शादी तय हो चुकी है. कोर्ट का मामला निपटने तक रहेंगे.

कुछ दिनों में ही उन के बीच खटपट होने लगी. दरअसल विक्रम सैक्स का एडिक्ट था. वह सैक्स के दरम्यान रोशनी को यातनाएं दिया करता था. इसे ले कर रोशनी परेशान रहने लगी थी.

इस कारण उस का ध्यान रोशनी के पिता संबंधी काम से हट गया था. पैसा खत्म होने पर विक्रम उस पर घर से और पैसे मंगवाने की जिद करने लगा था.

तब तक रोशनी को भी उस की असलियत मालूम हो गई थी. इसे ले कर वह पुलिस में शिकायत करने की धमकी भी दे चुकी थी.

रात में उन के बीच इन्हीं सब के लिए बहस हो जाती थी. उसी दौरान एक रोज रोशनी ने कह दिया कि उस के साथ रातें गुजारने से तो अच्छा है दूसरे मर्दों के साथ रातें गुजारे, उन लोगों से पैसा तो मिलेगा.

यह बात 22 फरवरी, 2022 की थी. रोशनी के मुंह से कालगर्ल बनने की बात सुन कर विक्रम आगबबूला हो गया था और उस ने उसी रात तकिए से मुंह दबा दिया. जब वह बेसुध हो गई तब उस ने चुन्नी से उस का गला घोट दिया. उस की हत्या करने के बाद वह उस पर कंबल ओढ़ा कर फरार हो गया. यह सब घटना 15 दिनों में ही हो गई.

अगले रोज सुबह यादव के परिवार वालों ने रोशनी को मृत पाया. इस की सूचना उन्होंने करघनी थाने के प्रभारी बनवारी लाल मीणा को दी. यादव भी उसी थाने में एसआई थे. मामला तुरंत उच्च अधिकारियों तक जा पहुंचा.

यादव ने विक्रम को फोन कर रोशनी के मृत पाए जाने की जानकारी दी. उस ने तुरंत थाने आने की बात तो की, लेकिन वह नहीं आया और उस ने अपना फोन भी स्विच्ड औफ कर लिया.

विक्रम ने इस मामले को आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की थी. लेकिन फोरैंसिक जांच टीम ने पहली ही नजर में इसे हत्या करार दिया था. शिनाख्त के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. उस के बाद हत्यारे की तलाश की जाने लगी.

विक्रम के लापता होने पर सौ फीसदी संदेह उस पर ही था. किंतु उस का मोबाइल बंद होने से उस की ट्रैसिंग नहीं हो पा रही थी. संयोग से यादव ने कमरा किराए पर देने के समय उस की और मृतका की पुलिस वेरिफिकेशन तक नहीं करवाई थी.

लाश बरामदगी वाले कमरे में उन के कुछ कागजात में रोशनी और विक्रम के घर का पता मिल गया था. जांच टीम ने रोशनी के घर वालों को हरदोई से बुला कर उन्हें लाश सौंप दी.

पुलिस की एक टीम विक्रम की तलाशी के लिए उस के पैतृक स्थान दौसा जिलांतर्गत धर्मपुरा गांव भेजी गई. वहां विक्रम के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

गांव के लोगों से मालूम हुआ कि वह कई सालों से गांव नहीं आया था. उस के बाद पुलिस ने विक्रम के मोबाइल नंबर को सर्विलांस में लगा दिया गया.

रोशनी के बारे में पुलिस को पता चला कि उस के पिता जयपुर जेल में हत्या के आरोप में बंद थे. जबकि रोशनी 4 सालों से जयपुर की एक स्पा में काम कर रही थी.

उस के घर वालों ने बताया कि विक्रम जब उस के घर आया था, तब उस ने खुद को बड़ेबड़े अधिकारियों तक पहुंच होने की बात बताई थी.

घर वाले उस की बातों में आ गए थे और उस ने जैसा कहा वैसा किया था. यही नहीं विक्रम ने रोशनी के पिता को जेल से रिहा करवाने का दावा किया था. इस के लिए मोटी रकम खर्च करने की बात की थी. इसी आश्वासन पर उस ने एक लाख रुपए कैश और करीब 5 लाख रुपए के जेवर ले लिए थे.

विक्रम के बारे में तहकीकात में मालूम हुआ कि वह कुछ दिनों तक चंडीगढ़ में प्राइवेट नौकरी करता था. उस की कदकाठी अच्छी थी. लंबा कद और गठा हुआ शरीर होने का फायदा उठाता था.

उस ने फौजी कट बाल कटवा रखे थे, जिस से लोग उसे सेना का जवान समझ लेते थे. बातें करने में माहिर और मिलनसार प्रवृत्ति का था. रौबरुतबे से वह किसी को भी बड़ी आसानी से अपने झांसे में ले लेता था.

रोशनी की मौत के एक माह बाद भी जयपुर पुलिस विक्रम को अपने कब्जे में नहीं ले पाई थी. जबकि उस की तलाश में दिल्ली, सीकर, अलवर, दौसा के अलावा कई छोटीबड़ी जगहों पर पुलिस छानबीन कर चुकी थी.

आखिर में उस की गिरफ्तारी सर्विलांस में लगे उस के मोबाइल फोन नंबर से ही हुई. उस आधार पर अनवर जिले के वह टपूकड़ा में एक दंपति के घर से पकड़ा गया था.

उस की गिरफ्तारी के बाद जयपुर पुलिस ने राहत की सांस ली थी. डीसीपी (वेस्ट) ऋचा तोमर, एडिशनल डीसीपी जयपुर (वेस्ट) राम सिंह शेखावत, एसीपी (झोवाड़ा) प्रमोद कुमार स्वामी और करघनी थाने के प्रभारी बनवारी लाल मीणा ने विक्रम बैरवा से कड़ी पूछताछ की.

इसी सिलसिले में रोशनी की हत्या के जुर्म के अलावा 2 अन्य वारदातों का भी राज सामने आ गया.

एक मामला अलवर का था. साल 2019 में विक्रम ने 2 दोस्तों के साथ मिल कर एक नाबालिग लड़की का अपहरण कर लिया था. इस की रिपोर्ट अलवर के सदर थाने में दर्ज है. उस के साथ उस ने गैंगरेप किया था. उस मामले में भी वह फरार चल रहा था.

इस से भी खतरनाक एक मामला गुजरात की पूजा शर्मा के साथ का था. उस के बारे में थाने में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार विक्रम ने उस का 4 अप्रैल को अपहरण कर ग्वालियर ले गया था.

इस में पूजा के प्रेमी संजय ने भी साथ दिया था. दोनों ने उस का सामूहिक बलात्कार कर हत्या कर दी थी. पूजा की भी गला घोट कर हत्या की गई थी.

उस के बाद उस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए ग्वालियर में रेलवे की पटरी पर डाल दिया था. उस ने पूजा की मौत को आत्महत्या दिखाने की कोशिश की थी. इस में वह बच निकला था, लेकिन रोशनी के मामले में नहीं बच पाया.

ठीक इसी तरह से विक्रम जिस लड़की की चाहत को दिल और दिमाग में बिठा लेता था, उसे हासिल कर के छोड़ता था. चाहे लड़की स्टूडेंट हो, घरेलू महिला हो, कालगर्ल हो या फिर नौकरीपेशा क्यों न हो. वह सैक्स का भूखा इंसान था.

इस तरह विक्रम ने मुंबई, चंडीगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में अलगअलग जगहों पर रह कर प्राइवेट काम किया और 50 से अधिक लड़कियों को प्रेमजाल में फंसा चुका था.

यह अलग बात है कि उन में अधिकतर सैक्स वर्कर थीं. उन से वह न केवल सैक्स संबंध बनाता था, बल्कि पैसे भी ऐंठता था. कथा लिखे जाने तक विक्रम बैरवा उर्फ मिंटू से ग्वालियर और अलवर पुलिस पूछताछ कर रही थी.

खुदकुशी: सोनी का आखिर क्या दोष था

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खुदकुशी- भाग 4: सोनी का आखिर क्या दोष था

रात होतेहोते जब वह किसी तरह घर पहुंची तो उस की मां बहुत चिंतित नजर आ रही थीं. सोनी के पापा अभी तक औफिस से लौटे नहीं थे. सोनी की मां ने जब सोनी को देखा तो वह डर गईं. सोचने लगीं कि उस की मासूम सी बच्ची के साथ न जाने कौन सा हादसा हो गया. सोनी को वे उस के कमरे में ले गईं, उसे पानी पीने को दिया, फिर उस के सिर को सहलाते हुए पूछा कि क्या बात है, क्या हुआ, सबकुछ सचसच बताओ बेटी. सोनी समझ नहीं पा रही थी कि उस के साथ जो हुआ वह क्या था. ऐसा उस ने कभी कल्पना में भी नहीं सोचा था कि उस के साथ जो हुआ वह सब उसे अपनी मां और पापा को बताना पड़ेगा. हालांकि दर्द से वह लगभग कराह रही थी. उस ने अपनी मां को बाथरूम में जा कर दिखाया, देखते ही उस की मां बेहोश हो गईं. सोनी ने हिम्मत कर अपनी मां के सिर पर पानी के छींटें दिए, सिर सहलाया, तब जा कर कहीं उस की मां होश में आई और होश में आते ही रोने लगीं, पूरा वृत्तांत सुनने के बाद सोनी की मां तो लगभग अर्द्धमूर्छित अवस्था में पहुंच चुकी थीं.

किसी तरह सोनी को फर्स्टऐड दे कर, उसे आराम करने को कह, दूसरे कमरे में निढाल सी पड़ गई थीं सोनी की मां. डाक्टर को दिखाने की खबर सोनी के भविष्य को बदनुमा न बना दे, यही सोच रही थीं सोनी की मां. अगर इस बात की जरा भी भनक किसी को लगी तो कौन करेगा सोनी से ब्याह? इसी तरह के खयाल सोनी की मां के मन में चल रहे थे कि कौल बेल बजी. सोनी की मां की तंद्रा टूटी. सोनी की मां ने जा कर दरवाजा खोला, सोनी के पापा आ गए थे, आते ही सोनी के बारे में पूछा, सोनी की मां ने कहा कि वह अपने कमरे में सो गई है. सोनी की मां ने सोनी के साथ हुए हादसे को छिपा लिया था. बेटी के साथ हुए गैंगरेप को शायद बरदाश्त नहीं कर पाएंगे सोनी

के पिता. रात को अपनी मां से हुई बातचीत से सोनी इतना तो समझ चुकी थी कि उस ने पूजा और सीमा के साथ मिल कर अनजाने में ही सही ऐसा गलत कदम उठाया है कि जिस की भरपाई इस जन्म में तो संभव नहीं. सोनी सोच रही थी कि उस के साथ जो कुछ हुआ और उस की मां ने जो कुछ बताया, इस से तो यही नतीजा निकलता है कि मैं बहुत बुरी लड़की हूं, मेरी सभी सहेलियां बुरी हैं, उन लोगों से मुझे दूरी बना कर रखनी चाहिए थी, पर ऐसा करने पर मेरी पढ़ाई, कहीं जाना, ऐग्जाम देना सब बंद हो जाता. पागल की तरह सोचे जा रही थी सोनी.

दूसरे दिन घर पर सन्नाटा छाया रहा, न जाने सोनी की मां ने सोनी के पिता को क्या कह दिया था इस संबंध में कि वे सिर्फ सोनी के कमरे के बाहर ही एक मिनट रुक कर औफिस चले गए. सोनी घर से दोपहर के वक्त चुपचाप, बिना कुछ बोले निकल कर चल दी और पास ही के थाने में जा कर थानेदार को पूरा वृत्तांत सुना दिया. हालांकि सोनी की कहानी उस की जबानी सुनते हुए थानेदार के साथसाथ अन्य पुलिसकर्मी भी मजा ले रहे थे.

पूरी बात सुनने के बाद थानेदार ने पूछा कि जब घटना हुई उस वक्त तुम ने थाने में आ कर रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई. जवाब में सोनी कुछ न बोल सकी सिर्फ इतना ही कहा कि मैं आने की हालत में नहीं थी. थानेदार ने उसे जाने को कहा और कार्यवाही करने की बात कही. सोनी घर चली गई. पूजा और सीमा ने उसे इन दोचार दिनों में कभी कौंटैक्ट करने की कोशिश नहीं की. वीरेंद्र और उस के साथियों ने हालांकि एक बार सोनी को थाने से निकलते देखा था.

वीरेंद्र एक अमीरजादा था, ऐयाशी के साथसाथ वह शराब और शबाब का भी आदी था. अपनी पहुंच लगा कर वह साफ बच निकला. लिहाजा, मुकदमा क्षेत्राधिकार के बिंदु पर दर्ज नहीं किया गया और सोनी को थानेदार ने बतलाया कि घटना जहां हुई थी उसी इलाके के थाने में मुकदमा दर्ज हो सकता है और इतने विलंब से तो उस इलाके के भी थाने में मुकदमा अब दर्ज नहीं होगा. सोनी बिना घर में बताए इस थाने से उस थाने के चक्कर लगाती रही परंतु जैसा पुलिस का हाल है कि रसूख वालों की ही वह सुनती है औरों की नहीं इसलिए सोनी कोई मुकदमा दर्ज नहीं करवा पाई बल्कि थानेदार ने उसे ही भलाबुरा कहा और यह साबित करने की कोशिश करते रहे कि वह एक मनगढ़ंत घटना बयान कर रही है जैसा उस ने बताया वैसा कुछ हुआ ही नहीं. जबकि सोनी की मां चाहती थीं कि वह फिर से सामान्य जिंदगी के लिए खुद को तैयार करे और इस के लिए वे अपनी बेटी को समझाती रहती थीं कि वह घर से निकले. कहीं अगर जाना भी हो तो उसे साथ ले ले. परंतु सोनी पर इस का कोई असर नहीं पड़ रहा था, वह सजा दिलवाना चाहती थी वीरेंद्र और उस के साथियों को और साथ में पूजा और सीमा को भी. न्याय न पाने का सदमा उसे अपने साथ हुए हादसे से भी ज्यादा लगा. उस ने उस रात एक कागज पर लिखा, ‘मैं बहुत बुरी लड़की हूं. वीरेंद्र और उस के साथी हर सीमा को लांघ चुके थे. मेरे मां और पापा मुझ से बहुत प्यार करते हैं. मैं नहीं जानती थी कि मेरे लिए क्या बुरा और क्या अच्छा है.

मुझे पूजा और सीमा ने कई गलत रास्ते दिखाए लेकिन मैं ने उन्हें नहीं अपनाया पर न जाने उस दिन पूजा और सीमा ने ऐसा क्या कह दिया वीरेंद्र और उस के साथियों को कि मैं उस दिन के हादसे के बाद वैसी नहीं हूं जैसी मैं थी अगर उन लोगों को पुलिस सजा देती तो शायद मुझे जीने की कोई वजह मिल जाती. तब मैं यह साबित कर सकती कि मैं निर्दोष हूं पर ऐसा नहीं हुआ. अब जीने की कोई वजह मेरे पास नहीं है, मैं अपने मांपापा को समाज में शर्मिंदा होते नहीं देख सकती. इसलिए मैं हमेशा के लिए जा रही हूं… सोनी.’ सोनी की लाश उस के कमरे के पंखे से झूल रही थी. पहले तो पुलिस ने खोजबीन में सक्रिय होने की तत्परता दिखाई पर सुसाइड नोट पढ़ने के बाद सोनी के मातापिता ने कोई उत्सुकता नहीं दिखाई हत्यारों को पकड़वाने में. हत्यारे तो अभी भी खुले घूम रहे थे. सोनी के मातापिता अपनी इज्जत को सरेआम नीलाम होते नहीं देखना चाहते थे. पत्थर रख लिया था दोनों ने अपने सीने पर और खून का घूंट पी कर भी चुप थे. पुलिस अपने कर्तव्य के प्रति सचेत नहीं थी कि अनुसंधान करे कि सोनी ने क्यों खुदकुशी की और सोनी को खुदकुशी करने के लिए मजबूर करने वाले हत्यारों को खोज निकाले और सजा दे.

शायद सोनी के मातापिता परिवार की इज्जतप्रतिष्ठा को दावं पर नहीं लगाना चाहते थे इसलिए वे भी खामोश थे अपनी बेटी की तरह, जो खामोश हो चुकी थी हमेशा के लिए

सपनों की राख तले : भाग 2

कई बार निवेदिता खुद से पूछती कि उस में उस का कुसूर क्या था कि वह सुंदर थी, स्मार्ट थी. लोगों के बीच जल्द ही आकर्षण का केंद्र बन जाती थी या उस की मित्रता सब से हो जाती थी. वरना पत्नी के प्रति दुराव की क्षुद्र मानसिकता के मूल कारण क्या हो सकते थे? शरीर के रोगों को दूर करने वाले तेजेश्वर यह क्यों नहीं समझ पाए कि इनसान अपने मृदु और सरल स्वभाव से ही तो लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बनता है.

दिनरात की नोकझोंक और चिड़- चिड़ाहट से दुखी हो उठी थी निवेदिता. सोचा, क्या रखा है इन घरगृहस्थी के झमेलों में?

एक दिन अपनी डिगरियां और सर्टिफिकेट निकाल कर तेज से बोली, ‘घर में बैठेबैठे मन नहीं लगता, क्यों न मैं कोई नौकरी कर लूं?’

‘और यह घरगृहस्थी कौन संभालेगा?’ तेज ने आंखें तरेरीं.

‘घर के काम तो चलतेफिरते हो जाते हैं,’ दृढ़ता से निवेदिता ने कहा तो तेजेश्वर का स्वर धीमा पड़ गया.

‘निवेदिता, घर से बाहर निकलोगी तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा.’

‘क्यों…’ लापरवाही से पूछा था उस ने.

‘लोग न जाने तुम्हें कैसीकैसी निगाहों से घूरेंगे.’

कितना प्यार करते हैं तेज उस से? यह सोच कर निवेदिता इतरा गई थी. पति की नजरों में, सर्वश्रेष्ठ बनने की धुन में वह तेजेश्वर की हर कही बात को पूरा करती चली गई थी, पर जब टांग पर टांग चढ़ा कर बैठने में, खिड़की से बाहर झांक कर देखने में, यहां तक कि किसी से हंसनेबोलने पर भी तेज को आपत्ति होने लगी तो निवेदिता को अपनी शुरुआती भावुकता पर अफसोस होने लगा था.

निरी भावुकता में अपने निजत्व को पूर्ण रूप से समाप्त कर, जितनी साधना और तप किया उतनी ही चतुराई से लासा डाल कर तेजेश्वर उस की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को ही बाधित करते चले गए.

दर्द का गुबार सा उठा तो निवेदिता ने करवट बदल ली. यादों के साए पीछा कहां छोड़ रहे थे. विवाह की पहली सालगिरह पर मम्मीपापा 2 दिन पहले ही आ गए थे. मित्र, संबंधी और परिचितों को आमंत्रित कर उस का मन पुलक से भर उठा था लेकिन तेजेश्वर की भवें तनी हुई थीं. निवेदिता के लिए पति का यह रूप नया था. उस ने तो कल्पना भी नहीं की थी कि इस खुशी के अवसर को तेज अंधकार में डुबो देंगे और जरा सी बात को ले कर भड़क जाएंगे.

‘मटरमशरूम क्यों बनाया? शाही पनीर क्यों नहीं बनाया?’

छोटी सी बात को टाला भी जा सकता था पर तेजेश्वर ने महाभारत छेड़ दिया था. अकसर किसी एक बात की भड़ास दूसरी बात पर ही उतरती है. तेज का स्वभाव ही ऐसा था. दोस्ती किसी से करते नहीं थे, इसीलिए लोग उन से दूर ही छिटके रहते थे. आमंत्रित अतिथियों से सभ्यता और शिष्टता से पेश आने के बजाय, लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ही उन्होंने वह हंगामा खड़ा किया था. यह सबकुछ निवेदिता को अब समझ में आता है.

2 दिन तक मम्मीपापा और रहे थे. तेज इस बीच खूब हंसते रहे थे. निवेदिता इसी मुगालते में थी कि मम्मीपापा ने कुछ सुना नहीं था पर अनुभवी मां की नजरों से कुछ भी नहीं छिपा था.

घर लौटते समय तेज का अच्छा मूड देख कर उन्होंने मशविरा दिया था, ‘जिंदगी बहुत छोटी है. हंसतेखेलते बीत जाए तो अच्छा है. ज्यादा ‘वर्कोहोलिक’ होने से शरीर में कई बीमारियां घर कर लेती हैं. कुछ दिन कहीं बाहर जा कर तुम दोनों घूम आओ.’

इतना सुनते ही वह जोर से हंस दी थी और उस के मुंह से निकल गया था, ‘मां, कभी सोना लेक या बटकल लेक तक तो गए नहीं, आउट आफ स्टेशन ये क्या जाएंगे?’

मजाक में कही बात मजाक में ही रहने देते तो क्या बिगड़ जाता? लेकिन तेज का तो ऐसा ईगो हर्ट हुआ कि मारपीट पर ही उतर आए.

हतप्रभ रह गई थी वह तेज के उस व्यवहार को देख कर. उस दिन के बाद से हंसनाबोलना तो दूर, उन के पास बैठने तक से घबराने लगी थी निवेदिता. कई दिनों तक अबोला ठहर जाता उन दोनों के बीच.

सपनों की राख तले : भाग 1

दौड़भाग, उठापटक करते समय कब आंखों के सामने अंधेरा छा गया और वह गश खा कर गिर पड़ी, याद नहीं.

आंख खुली तो देखा कि श्वेता अपने दूसरे डाक्टर सहकर्मियों के साथ उस का निरीक्षण कर रही थी. तभी द्वार पर किसी ने दस्तक दी. श्वेता ने पलट कर देखा तो डा. तेजेश्वर का सहायक मधुसूदन था.

‘‘मैडम, आप के लिए दवा लाया हूं. वैसे डा. तेजेश्वर खुद चेक कर लेते तो ठीक रहता.’’

आंखों की झिरी से झांक कर निवेदिता ने देखा तो लगा कि पूरा कमरा ही घूम रहा है. श्वेता ने कुछ देर पहले ही उसे नींद का इंजेक्शन दिया था. पर डा. तेज का नाम सुन कर उस का मन, अंतर, झंकृत हो उठा था. सोचनेविचारने की जैसे सारी शक्ति ही चुक गई थी. ढलती आयु में भी मन आंदोलित हो उठा था. मन में विचार आया कि पूछे, आए क्यों नहीं? पर श्वेता के चेहरे पर उभरी आड़ीतिरछी रेखाओं को देख कर निवेदिता कुछ कह नहीं पाई थी.

‘‘तकदीर को आप कितना भी दोष दे लो, मां, पर सचाई यह है कि आप की इस दशा के लिए दोषी डा. तेज खुद हैं,’’ आज सुबह ही तो मांबेटी में बहस छिड़ गई थी.

‘‘वह तेरे पिता हैं.’’

‘‘मां, जिस के पास संतुलित आचरण का अपार संग्रह न हो, जो झूठ और सच, न्यायअन्याय में अंतर न कर सके वह व्यक्ति समाज में रह कर समाज का अंग नहीं बन सकता और न ही सम्माननीय बन सकता है,’’ क्रोधित श्वेता कुछ ही देर में कमरा छोड़ कर बाहर चली गई थी.

बेटी के जाने के बाद से उपजा एकांत और अकेलापन निवेदिता को उतना असहनीय नहीं लगा जितना हमेशा लगता था. एकांत में मौन पड़े रहना उन्हें सुविधाजनक लग रहा था.

खयालों में बरसों पुरानी वही तसवीर साकार हो उठी जिस के प्यार और सम्मोहन से बंधी, वह पिता की देहरी लांघ उस के साथ चली आई थी.

उन दिनों वह बी.ए. फाइनल में थी. कालिज का सालाना आयोजन था. म्यूजिकल चेयर प्रतियोगिता में निवेदिता और तेजेश्वर आखिरी 2 खिलाड़ी बचे थे. कुरसी 1 उम्मीदवार 2. कभी निवेदिता की हथेली पर तेजेश्वर का हाथ पड़ जाता, कभी उस की पीठ से तेज का चौड़ा वक्षस्थल टकरा जाता. जीत, तेजेश्वर की ही हुई थी लेकिन उस दिन के बाद से वे दोनों हर दिन मिलने लगे थे. इस मिलनेमिलाने के सिलसिले में दोनों अच्छे मित्र बन गए. धीरेधीरे प्रेम का बीज अंकुरित हुआ तो प्यार के आलोक ने दोनों के जीवन को उजास से भर दिया.

अंतर्जातीय विवाह के मुद्दे को ले कर परिवार में अच्छाखासा विवाद छिड़ गया था. लेकिन बिना अपना नफानुकसान सोचे निवेदिता भी अपनी ही जिद पर अड़ी रही. कोर्ट में रजिस्टर पर दस्तखत करते समय, सिर्फ मांपापा, तेजेश्वर और निवेदिता ही थे. इकलौती बेटी के ब्याह पर न बाजे बजे न शहनाई, न बंदनवार सजे न ही गीत गाए गए. विदाई की बेला में मां ने रुंधे गले से इतना भर कहा था, ‘सपने देखना बुरा नहीं होता पर उन सपनों की सच के धरातल पर कोई भूमिका नहीं होती, बेटी. तेरे भावी जीवन के लिए बस, यही दुआ कर सकती हूं कि जमीन की जिस सतह पर तू ने कदम रखा है वह ठोस साबित हो.’

विवाह के शुरुआती दिनों में सुंदर घर, सुंदर परिवार, प्रिय के मीठे बोल, यही पतिपत्नी की कामना थी और यही प्राप्ति. शुरू में तेज का साथ और उस के मीठे बोल अच्छे लगते थे. बाद में यही बोल किस्सा बन गए. निवि को बात करने का ढंग नहीं है, पहननाओढ़ना तो उसे आता ही नहीं है. सीनेपिरोने का सलीका नहीं. 2 कमरों के उस छोटे से फ्लैट को सजातेसंवारते समय मन हर पल पति के कदमों की आहट को सुनने के लिए तरसता. कुछ पकातेपरोसते समय पति के मुख से 1-2 प्रशंसा के शब्द सुनने के लिए मन मचलता, लेकिन तेजेश्वर बातबात पर खीजते, झल्लाते ही रहते थे.

निवेदिता आज तक समझ नहीं पाई कि ब्याह के तुरंत बाद ही तेज का व्यवहार उस के प्रति इतना शुष्क और कठोर क्यों हो गया. उस ने तो तेज को मन, वचन, कर्म से अपनाया था. तेज के प्रति निवेदिता को कोई गिलाशिकवा भी नहीं था.

खुदकुशी- भाग 3: सोनी का आखिर क्या दोष था

एक दिन पूजा ने झल्ला कर पूछ डाला, ‘‘क्या समझने की कोशिश करेगी अपने मांबाप से,’’ पूजा ने थप्पड़ उठाया था मारने को पर रुक गई. सोनी सहम गई थी परंतु उस ने कहा, ‘‘पूछूंगी कि तुम्हारे ऊपर वह लड़का क्यों सोया हुआ था और एक भी कपड़ा नहीं था तुम दोनों के बदन पर.’’

पूजा कांप गई थी यह सोच कर कि सोनी अपने मातापिता से अगर ऐसी बातें पूछेगी तो वे लोग फिर हमारे मातापिता से इस संबंध में बात करेंगे. फिर सीमा के मातापिता तक भी बात पहुंचेगी. इतना सब सोच कर पूजा का गुस्सा ठंडा हो गया. उस ने सोनी को समझाया और रेस्तरां ले गई. सोनी को इतना तो समझ में आ गया कि इस तरह के सवाल पूजा से पूछने पर वह उसे होटल या रेस्तरां जरूर ले जाएगी. सोनी के लिए यह वाकेआ एक खेल बनता जा रहा था पर वह नहीं समझ रही थी कि यह खेल कितना खतरनाक हो सकता है. अब सोनी के दिमाग में यह बात आने लगी कि जब पूजा नहीं चाहती कि उस ने जो देखा है, किसी से कहे, तो सीमा और वे लड़के जो उस दिन कमरे में थे, भी नहीं चाहेंगे कि उस ने जो देखा है वह किसी से कहे. इस बात को आजमाने के लिए सोनी कभी सीमा से और कभी उन लड़कों से यही कहती और बदले में रेस्तरां या होटल जाती, बाइक पर घूमती. अनजाने में सोनी ब्लैकमेलिंग का खतरनाक खेल खेलने लगी थी.

पूजा और सीमा अब सोनी की धमकियों से तंग आ चुकी थीं. इस बीच उस दृश्य से भी ज्यादा रोमांचक दृश्यों को अंजाम दे चुकी थीं पूजा और सीमा अनेक कमरों में. फिर उसी एक खास दृश्य का उन लोगों के लिए क्या अर्थ रह जाता था, लेकिन सोनी ने तो सिर्फ एक ही दृश्य देखा था इसलिए वह उसी से चिपकी थी. पूजा से ज्यादा नजदीक थी सोनी, सीमा के साथ बातचीत हुआ करती थी सोनी की पर सीमा पूजा की सहेली थी. पूजा सोचती थी, कोई अन्य इस तरह उसे ब्लैकमेल कर रहा होता तो उसे समझाती पर अपनी सहेली सोनी का वह क्या करे. अपने तथाकथित प्रेमियों से भी इस का जिक्र उस ने किया था और एक दिन वह हादसा हुआ जो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. पूजा ने अपने तथाकथित प्रेमियों से कहा कि वे लोग सोनी को किसी भी तरह से मनवा लें कि वह अब कभी भी इस बात का जिक्र नहीं करेगी परंतु सोनी इस बात को उतनी गंभीरता से नहीं ले रही थी. पूजा को इस बात के लीक होने से डर था कि उसे मिली हुई आजादी छिन जाएगी जो उसे कतई मंजूर नही था. वह स्वच्छंद रहना चाहती थी, साधारण लड़की की तरह जिंदगी जीना उसे पसंद नहीं था. सोनी को पूजा इसलिए एक असाधारण लड़की में तबदील कर देना चाहती थी. बस क्या था पूजा के प्रेमियों ने मतलब यही निकाला कि सोनी को सबक सिखाना है किसी भी कीमत पर.

एक दिन शाम को वह लड़के सोनी को चौकलेटस्नैक्स वगैरा दे कर समझाने की कोशिश करते रहे परंतु सोनी न समझी. उसे समझ में नहीं आया कि जिन लड़कों के साथ वह बाइक पर घूमती है, वे उस को किसी भी तरह से नुकसान पहुंचा सकते हैं. पूजा के प्रेमियों को किसी नासमझ लड़की को सैक्स संबंधों के बारे में समझाने, समाज पर उस का असर, मांबाप पर उस का प्रभाव, को तफसील से समझाने की सलाह तो थी नहीं, उजड्ड गंवार की तरह उन का व्यवहार था. सोनी बारबार यह जानना चाहती थी कि पूजा और सीमा के साथ उन्होंने होटल के बंद कमरे में ऐसा क्या किया कि आज उसे यहां सुनसान जगह पर बुला कर इतना समझायाबुझाया जा रहा है. बहुत मुमकिन था कि अगर पूजा और सीमा उन लड़कों के साथ जो जिस्मानी रिश्ता कायम करती थीं, उसे सोनी को खुल कर समझा दिया जाता तो शायद सोनी को बहुत कुछ खुदबखुद समझ आ जाता और वह इतनी भी नासमझ नहीं थी, आखिर सयानी हो चुकी थी. एक मनोवैज्ञानिक तरीका होना चाहिए सैक्स से अनभिज्ञ ऐसी लड़कियों को समझाने का और खासकर ऐसी स्थिति में तो बहुत ही सावधानी की जरूरत होती है परंतु वे मूढ़मगज लड़के क्या जानें, बस, एक ही भाषा वे जानते थे, शक्ति प्रदर्शन और डराने की भाषा.

इधर सोनी जो उन लोगों से हिलीमिली हुई थी उन लोगों की बात को गंभीरता से नहीं ले रही थी और साथ ही साथ सोनी जैसे यह नहीं समझ पाई थी कि 2 नंगे जिस्म एकदूसरे से लिपटे हुए क्यों थे, उसी तरह यह भी नहीं समझ पाई थी कि उसे भी नंगा किया जा सकता है और पूजा और सीमा के साथ जो वे लड़के करते आ रहे हैं वह उस के साथ भी हो सकता है. इसी तरह वह यह भी नहीं समझ पा रही थी कि सैक्स अगर गहराई तक उतर जाए तो फर्क पड़ता है, लड़के और लड़की दोनों को. लड़कों को बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी सोनी से, वह तो चूंकि पूजा ने कहा था कि सोनी को सबक सिखा दें इसलिए इतनी मशक्कत की जा रही थी. कितना दर्दनाक रहा होगा वह पल जब एकएक कर लड़के सोनी को सैक्स की गहराई समझाते रहे वह भी वहशियों की तरह. पहले तो सोनी के मुंह को जबरन बंद कर दिया गया. उस के बाद सोनी के जिस्म से एकएक कर कपड़े उतार दिए गए और उसे जमीन पर लिटा कर वीरेंद्र के 2 रंगरूटों ने उस के हाथों और पांवों को पकड़ लिया. अब सोनी बोल नहीं पा रही थी, बोल रही थी सिर्फ उस की आंखें, जो आंसुओं से डबडबाई हुई थीं, पहले वीरेंद्र ने उसे सैक्स की गहराई को समझाया. फिर उस ने सोनी के पैरों को दबोच कर रखा. दूसरे ने भी वही किया और तीसरे ने.

सोनी की आंखें भी बंद हो चुकी थीं, खून से लथपथ जांघों के बीच सोनी ने असहनीय दर्द महसूस किया था और बेहोश हो गई थी, लड़के उस के मुंह की पट्टी खोल कर उसे अकेला छोड़ चले गए थे. लड़के बताए गए रेस्तरां पहुंच गए, जहां पूजा और सीमा उन का इंतजार कर रही थीं. पूजा ने पूछा था कि क्यों इतनी देर हो गई उन लोगों को तो वीरेंद्र ने घमंड से पूजा और सीमा को कहा कि अब सोनी कभी भी उन बातों को नहीं दोहराएगी, उसे सबक सिखा चुके हैं हम. सोनी को जब होश आया तो वह खुद को क्षतविक्षत महसूस कर रही थी. नंगा शरीर, जांघों के बीच से रिसता खून, उसे समझ नहीं आ रहा था कि पूजा और सीमा ने इतनी बड़ी साजिश क्यों की, उस के साथ. क्यों उस के शरीर को लड़कों से नुचवा दिया. सिर घूम रहा था सोनी का, ये सब सोच कर. किसी तरह उस ने पास रखे कपड़े पहने और बहुत आहिस्ताआहिस्ता चलने की कोशिश करने लगी.

प्यार में कंजूसी: क्या थी शुभा की कहानी

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