अपराध: हाईवे पर फैला लूट व ठगी का जाल

लोगों के घरों व दुकानों में जा कर और रास्ता चलते राहगीरों को बहलाफुसला कर या फिर उन्हें झांसा या लालच दे कर ठगने और लूटने की दास्तानें हम अकसर सुनते ही रहते हैं.

कभी कोई शातिर ठग या लुटेरा किसी के गहनों को साफ करने के बहाने सोने व चांदी के जेवरात उड़ा ले जाता है, तो कभी कोई ठग किसी के कपड़ों पर गंदगी लगी होने की बात कह कर उस का बैग ले कर चंपत हो जाता है.

कोई किसी को नोट दोगुना किए जाने का लालच दे कर ठग लेता है, तो कोई किसी को सस्ते दामों पर सोना, लोहा, सीमेंट जैसी चीजें देने के बहाने ठग कर ले जाता है.

देश में शातिर चोरों का एक ऐसा गिरोह हरकत में है, जो एक बड़े सूटकेस में 10-12 साल के बच्चे को बंद कर देता है. उस बच्चे के हाथ में एक मोबाइल फोन व एक टौर्च को थमा दिया जाता है. उस के बाद वह सूटकेस वोल्वो या दूसरी ऐसी बसों में, जिन में पिछले हिस्से में सामान रखने की जगह होती है, रख दिया जाता है.

इस तरह बच्चा सूटकेस में बैठ कर सामान रखने वाली जगह पर पहुंच जाता है. उधर उस सूटकेस को रखने वाला आदमी सवारी के तौर पर बस में बैठ कर अपना सफर शुरू कर देता है.

बस के चलते ही वह लड़का भीतर से सूटकेस की चेन खोल कर बाहर निकल आता है और टौर्च के द्वारा पीछे रखे सारे सूटकेस देख कर उन में अपने पास रखी चाबियां लगा कर उन्हें बारीबारी से खोलता है और उन में रखे सभी कीमती सामान अपने सूटकेस में डाल कर खुद अपने सूटकेस में वापस बैठ जाता है और भीतर से चेन बंद कर अपने आका को फोन पर मिशन पूरा होने की सूचना दे देता है.

लड़के द्वारा सूचना पाते ही अगले ही स्टौप पर वह आदमी बस से उतर जाता है और कंडक्टर से कह कर अपना सूटकेस ले जाता है.

इसी तरह पुणेमुंबई हाईवे पर शातिर अपराधियों, लुटेरों व ठगों का एक बड़ा गिरोह हरकत में है, जो कार सवारों को अपना शिकार बनाता है.

एक खबर के मुताबिक, एक लड़की ने मुंबई से पुणे जाते समय एक पैट्रोल पंप पर पैट्रोल डलवा कर जैसे ही अपनी कार आगे बढ़ानी चाही, एक अनजान आदमी उस के मुंह के करीब विजिटिंग कार्ड दिखा कर उस में लिखा पता पूछने लगा.

लड़की ने उस कार्ड को देख कर अपनी जानकारी के मुताबिक उसे पता समझाया. उस के बाद वह लड़की कार चलाते हुए पैट्रोल पंप से आगे बढ़ गई. कुछ ही दूर पहुंचने पर उस लड़की को चक्कर आने लगा और उस ने अपनी कार हाईवे के किनारे सुनसान जगह पर खड़ी कर दी.

चंद सैकंड में वह लड़की बेहोश हो गई. इतने में पीछे से वही अपराधी, जिन्होंने पैट्रोल पंप पर विजिटिंग कार्ड दिखा कर उस से पता पूछा था, जा पहुंचे और लड़की के पास मौजूद नकदी, गहने व कीमती सामान लूट कर ले गए.

होश में आने पर लड़की ने अपनी आपबीती पुलिस को बताई. फिर पता चला कि अपराधियों ने उस विजिटिंग कार्ड में कोई ऐसा नशीला कैमिकल लगा रखा था, जो उस लड़की के नाक के करीब आते ही उस की सांस की नली में चढ़ गया और उसे बेहोश कर दिया.

एक आदमी अपने परिवार के साथ पुणे हाईवे पर सफर कर रहा था. पीछे से आ रहे 2 मोटरसाइकिल सवारों ने उस की कार को ओवरटेक किया और यह इशारा किया कि उस की कार का पिछला पहिया पंक्चर हो गया है.

पहले तो उस कार चालक ने ध्यान नहीं दिया और अपनी कार चलाता रहा. इतने में उन मोटरसाइकिल सवारों ने इशारा किया.

मोटरसाइकिल सवारों के बारबार इशारा करने पर उस कार चालक ने चलती कार में पीछे झांक कर देखने की कोशिश की, पर वह पक्का नहीं कर सका कि उस की कार का पिछला पहिया पंक्चर है भी या नहीं.

जैसे ही पंक्चर लगाने की दुकान दिखाई दी, उस ने कार उस दुकान पर रोक दी. उस ने पंक्चर लगाने वाले दुकानदार से अपनी कार के चारों पहिए चैक करने को कहा. 3 पहिए तो उस दुकानदार ने कार चालक की नजरों के सामने चैक किए, जिन में हवा का दबाव बिलकुल ठीक था.

जैसे ही वह पीछे का आखिरी पहिया चैक करने लगा, उतने में उसी दुकान पर मौजूद एक आदमी ने फुजूल की बातों में उस कार चालक का ध्यान खींच लिया.

बस, इतने में ही उस पंक्चर लगाने वाला दुकानदार पहिए में पंक्चर होने की बात बोल बैठा. उस ने दुकानदार से कार का पहिया खोल कर पंक्चर लगाने को कह दिया.

इधर वह पंक्चर लगाने की तैयारी कर रहा था, तो उधर उस दुकान पर खड़े दो आदमी कार चालक को फुजूल की बातों में उलझाए हुए थे. नतीजतन, दुकानदार ने उस ट्यूबलैस टायर में 7-8 पंक्चर दिखा दिए. कार चालक के पास टायर में पंक्चर लगवाने के सिवा और कोई चारा नहीं था.

दुकानदार ने सभी पंक्चर लगाने की कीमत 2,750 रुपए बताई. कार चालक के बहुत कहने पर उस ने 1,500 रुपए ले कर सारे पंक्चर लगा दिए. बाद में कार चालक को पता चला कि हाईवे पर इस तरह की ठगी के नैटवर्क का वह शिकार हो चुका है.

हाईवे पर अपराध की घटनाओं को अंजाम देने वाले लोगों द्वारा लड़कियों का भी इस्तेमाल किया जाता है. ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं, जिन से यह पता चलता है कि हाईवे पर आकर्षक लिबास पहने कोई औरत या लड़की किसी सुनसान इलाके में खड़ी हो कर कार या ट्रक चालकों को हाथ से इशारा कर के रोक रही है. अगर कोई उस के आकर्षण का शिकार हो कर रुक गया, तो बस आप उसे तो लुटा हुआ ही समझिए.

उस लड़की या औरत की आड़ में पेड़ों के पीछे कुछ अपराधी छिपे होते हैं. जैसे ही कोई गाड़ी सवार गाड़ी से उतर कर पास रुकता है और उस से बातें करने पहुंचता है, उसी समय उस लुटेरे गिरोह के सदस्य वहां आ धमकते हैं और लूटपाट की घटनाको अंजाम देते हैं.

इस के अलावा हाईवे पर टैक्सी के रूप में देर रात चलने वाले गिरोह द्वारा कई वारदातें अंजाम दी जा चुकी हैं. इन में खुद को टैक्सी चालक बताने वाला कार में बैठे लोगों को सवारी बताता है और रास्ते में मिलने वाली किसी एक सवारी को उसी कार में बैठा लेता है.  फिर वे सब उस आदमी को लूट लेते हैं.

हाईवे पर चलने वाले लोगों को इस तरह की लूट व ठगी की घटनाओं से खुद को महफूज रखने के लिए पूरी तरह चौकस रहने की जरूरत है, क्योंकि ठगों व लुटेरों द्वारा इस तरह के जाल कहीं भी बिछे मिल सकते हैं.

निर्मल रानी

मुंहबोली बहनें- भाग 4 : रोहन ने अपनी पत्नी को क्यों दे डाली धमकी

भाभी सुंदर और समझदार थीं. शादी के बाद रोहन भैया के स्वभाव में भी बहुत परिवर्तन आ गया. अब वे काफी शांत और गंभीर रहने लगे थे. कालेज के समय वाली उच्छृंखलता अब कहीं उन के स्वभाव में नहीं दिखती थी. साल भर तक तो उन का दांपत्य जीवन बहुत अच्छी तरह चला पर अचानक न जाने क्या हुआ कि भैयाभाभी के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. उन के बीच अकसर बहस होने लगी. ताईजी के लाख पूछने पर भी दोनों में से कोई भी कुछ बताने को तैयार नहीं होता. उसी दौरान मैं मायके गई थी तो ताईजी के यहां भी सब से मिलने चली गई. ताईजी ने उन लोगों के बिगड़ते रिश्ते के बारे में बताते हुए मुझे भाभी से बात कर के कारण जानने को कहा. पहले तो भाभी ने बात को टालना चाहा किंतु मेरे हठ पकड़ लेने पर उन्होंने जो कहा उस पर यकीन करना मुश्किल था.

भाभी ने कहा, ‘‘रोहन का शक्की स्वभाव उन के वैवाहिक जीवन पर ग्रहण लगा रहा है. मेरे एक मुंहबोले भाई को ले कर इन के मन में शक का कीड़ा कुलबुला रहा है. मैं उन्हें हर तरह से समझा चुकी हूं कि उस के साथ मेरा भाईबहन के अलावा और किसी तरह का कोई संबंध नहीं है पर इन्हें मेरी किसी बात पर यकीन ही नहीं है. मेरी हर बात के जवाब में बस यही कहते हैं, ‘ये मुंहबोले भाईबहन का रिश्ता क्या होता है मुझे न समझाओ. किसी अमर्यादित रिश्ते पर परदा डालने के लिए मुंहबोला भाई और मुंहबोली बहन का जन्म होता है.’ इन का कहना है कि या तो अपने मुंहबोले भाई से ही रिश्ता रख लो या मुझ से. अब तुम ही बताओ इतने सालों का रिश्ता क्या कह कर खत्म करूं? कितने अपमान की बात है मेरे लिए इतना बड़ा आरोप सहना.’’

मैं ने भाभी को आश्वस्त करते हुए कहा कि आप चिंता न करें मैं भैया से बात करती हूं. मैं जब रोहन भैया से इस बारे में बात करने गई तो बात शुरू करने से पहले ही उन्होंने मेरा मुंह यह कह कर बंद कर दिया, ‘‘सोनाली, अगर तुम मुझे कुछ समझाने आई हो तो बेहतर होगा कि वापस चली जाओ.’’ रोहन भैया के रूखे व्यवहार के आगे तो मेरी बात शुरू करने की हिम्मत ही नहीं हुई. बातबात पर उन से झगड़ने और बहस कर बैठने वाली मुझ सोनाली की बोलती ही बंद हो गई. पर बात चूंकि उन के वैवाहिक रिश्ते को बचाने की थी इसलिए हिम्मत कर के मैं उन के पास बैठ गई.

‘‘रोहन भैया, बात इतनी बड़ी नहीं है कि आप ने अपना और भाभी का रिश्ता दावं पर लगा दिया है. भाभी कह रही हैं कि उन का मुंहबोला भाई है तो उन की बात का आप यकीन क्यों नहीं करते? आखिर कालेज में आप की भी तो कई मुंहबोली बहनें थीं फिर…’’ मैं आगे कुछ और बोलूं उस से पहले ही रोहन भैया वहां से उठ खड़े हुए, ‘‘हां, सोनाली, मेरी कई मुंहबोली बहनें थीं और मैं कइयों का मुंहबोला भाई था इसीलिए इस रिश्ते की हकीकत मुझ से ज्यादा कोई नहीं जानता. कह दो अपनी भाभी से या तो मैं या वह मुंहबोला भाई, जिसे चुनना है चुन ले.’’ मैं अवाक सी भैया का मुंह देखती रह गई. कालेज वाले भैया तो वे थे ही नहीं जिन से मैं कुछ बहस कर सकती. ‘रोहन भैया, रोहन भैया’ कहने वाली कालेज की बहनों का उन्हें देख कर आहें भरना मैं भी कहां भूल पाई थी कि किसी तरह का तर्क दे कर उन की सोच को झुठलाने की कोशिश करने की हिम्मत जुटा पाती.

मेरे पास भाभी को समझाने के अलावा और कोई रास्ता शेष नहीं बचा था. रोहन भैया का शक उन के अपने अनुभव पर आधारित था. न जाने मुंहबोले भाईबहन के रिश्तों को उन्होंने किस तरह जिया था. दुनिया को तो वे अपने ही अनुभव के आधार पर देखेंगे. ‘‘रिश्ता बचाना है तो आप के सामने रोहन भैया की शर्त मानने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है भाभी, क्योंकि उन का शक उन के अनुभव पर आधारित है और अपने ही अनुभव को भला वे कैसे नकार सकते हैं. रिश्ता बचाने के लिए त्याग आप को ही करना पड़ेगा,’’ भारी मन से भाभी से यह सब कह कर मैं चुपचाप अपने घर की ओर चल दी.

 

कामिनी आंटी: आखिर क्या थी विभा के पति की सच्चाई

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सिया के आंसू : भाग 2

नताशा के पास और कोई चारा भी नहीं था, क्योंकि वह साधु मैनेजर यह मानने को तैयार ही नहीं था कि ऐसी कोई घटना उस की धर्मशाला में हो भी सकती है. उस की बातों से नताशा को लगा कि हो सकता है, उसे कोई गलतफहमी हो गई हो, क्योंकि आजकल ट्रायल रूम में कैमरा छिपे होने और कपड़े बदलती लड़कियों के वीडियो बना कर उन्हें बेचने और इंटरनैट पर अपलोड कर लड़कियों को ब्लैकमेल करने संबंधी जैसे कई केस सामने आ चुके थे.

 

वीरेन काफी गुस्से में था और पुलिस में रिपोर्ट करना चाह रहा था, पर यहां भी सिया ने उसे ऐसा करने से रोक लिया और बोली, ‘‘देखो, अब कुछ देर में ही हमें यहां से मंदिर के लिए निकलना है… प्लीज, कोई बखेड़ा मत खड़ा करो.’’वीरेन खून के कड़वे घूंट पी कर रह गया था, पर उस ने तत्काल ही वहां से निकलने की बात सोची और आननफानन में सारा सामान पैक कर वे लोग उस धर्मशाला से निकल कर एक अच्छे से होटल में आ गए थे.

होटल में अपना सामान रख कर वे सिद्धनाथ मंदिर की ओर चल पड़े. एक बैग में कुछ कपड़े और पैसे वगैरह उन के साथ में था. यहां से तकरीबन 12 किलोमीटर का सफर उन्हें पैदल ही तय करना था.

रास्ते में कई रैस्ट हाउस थे, जिन के बाहर एजेंट लोग ग्राहक लाने के लिए रखे गए थे और कई ऐसी भी दुकानें थीं, जो उन के यहां से प्रसाद खरीदने पर उन के जूतेचप्पलों की मुफ्त में ही रखवाली करते रहेंगे.

सिया का बस चलता तो इन सब दुकानों से कुछ न कुछ जरूर खरीदती, पर वीरेन का उखड़ा हुआ मूड देख कर वह भी सीधी चलती रही. रास्ते में उन्हें कई भिखारी मिल रहे थे, जो किसी भी तरह से पैसे मांग रहे थे.

सिद्धनाथ बाबा का मंदिर आ चुका था. सिया, नताशा और तान्या के चेहरे पर एक तरह का संतोष चमक उठा था और उन लोगों ने वहां के नजारों को अपने कैमरे में कैद करना शुरू कर दिया था.

तभी तान्या की नजर एक तरफ बैठे नागा साधुओं पर गई, जो चिलम पी रहे थे.‘‘पहना दे छल्ला, लेले लल्ला,’’ एक नागा साधु ने सिया की तरफ देखते हुए कहा और फिर से चीखा, ‘‘पहना दे छल्ला, लेले लल्ला…’’ और अपने अंग की तरफ इशारा किया.

इस भद्दे इशारे पर सिया को बहुत बुरा लगा. उस ने सोचा कि वह जा कर उस नागा का मुंह ही नोच ले, पर वह जानती थी कि यहां पर नागा लोगों की पूरी जमात है और इन्हें छेड़ना किसी भी सूरत में सही नहीं होगा, इसलिए उस ने उस नागा की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

‘‘मंदिर में प्रवेश से पहले अपने हाथमुंहपैर धो लें आप लोग,’’ एक लड़का उन लोगों के पास आ कर बोला.‘‘हांहां… पर यहां कहीं तो कोई पानी की टंकी या नलका दिखाई नहीं पड़ता,’’ वीरेन ने कहा.

‘‘श्रीमानजी, यहां सब है… वह जो सामने एक कमरा सा दिख रहा है, उस में कोई भी जा कर उसे इस्तेमाल में ले सकता है… बस, उस की कीमत देनी होगी,’’ उस लड़के ने कहा.‘कीमत… पर, ये तो आम सुविधाएं हैं, सरकार और मंदिर प्रशासन की तरफ से मुफ्त मिलती हैं,’’ वीरेन ने चौंकते हुए कहा.

‘‘जी मिलती होंगी, पर यहां पर आप को कीमत चुकानी होगी. एक आदमी मात्र 100 रुपए दे कर इस बाथरूम की सुविधा ले सकता है… आप 4 लोग हैं, इसलिए 400 रुपए दे दीजिए.’’‘‘बड़ी अजीब सी बात है…’’ वीरेन बुदबुदाया.

उस का माथा गरम होता देख कर सिया ने कहा, ‘‘हाथपैर धोना तो जरूरी ही होता है, इसलिए यह लो भाई 400 रुपए…’’ कह कर सिया ने उस लड़के को पैसे दिए और सभी लोग फ्रैश हो कर सिद्ध बाबा के दर्शन की तरफ बढ़ लिए.

आगे कुछ दुकानें लगी हुई थीं, जिन पर प्रसाद बिक रहा था और प्रसाद की थाली के उचित रेट के बदले में 20 गुना दाम वसूले जा रहे थे. कोई थाली 1,100 रुपए की थी, तो कोई 2,100 रुपए की.पर मरता क्या न करता… इन चारों ने भी 1,100-1,100 रुपए की 4 थालियां ले लीं.

दर्शन के लिए लंबी लाइन लगी हुई थी. ये लोग भी लाइन में जा कर लग गए. थोड़ी देर बाद तान्या को अपने सीने पर किसी की कुहनी लगने का अंदेशा हुआ और यह अंदेशा गलत नहीं था, बल्कि मंदिर की दीवार की सफाई का बहाना करता एक जवान पंडा तान्या के सीने पर बारबार अपनी कुहनी से दबाव बना रहा था.

 

कामिनी आंटी- भाग 2: आखिर क्या थी विभा के पति की सच्चाई

क्या ऐसा भी होता है. ऐसा कैसे हो सकता है? एक लड़के का यौन शोषण आदि तमाम बातें उस की समझ के परे थीं. उस का मन मानने को तैयार नहीं था कि एक हट्टाकट्टा नौजवान भी कभी यौन शोषण का शिकार हो सकता है. पर यह एक हकीकत थी जिसे झुठलाया नहीं जा सकता था. अत: अपने मन को कड़ा कर वह पिछली सभी बातों पर गौर करने लगी. पूरा समय मजाकमस्ती के मूड में रहने वाले मयंक का रात के समय बैड पर कुछ अनमना और असहज हो जाना, इधर स्त्रीसुलभ लाज के चलते विभा का उस की प्यार की पहल का इंतजार करना, मयंक की ओर से शुरुआत न होते देख कई बार खुद ही अपने प्यार का इजहार कर मयंक को रिझाने की कोशिश करना, लेकिन फिर भी मयंक में शारीरिक सुख के लिए कोई उत्कंठा या भूख नजर न आना इत्यादि कई ऐसी बातें थीं, जो उस वक्त विभा को विस्मय में डाल देती थीं. खैर, बात कुछ भी हो, आज एक वीभत्स सचाई विभा के सामने परोसी जा चुकी थी और उसे अपनी हलक से नीचे उतारना ही था.

हलकेफुलके माहौल में रात का डिनर निबटाने के बाद विभा ने बिस्तर पर जाते ही मयंक को मस्ती के मूड में छेड़ा, ‘‘तुम्हें मुझ पर जरा भी विश्वास नहीं है न?’’ ‘‘नहीं तो, ऐसा बिलकुल नहीं है. अब तुम्हीं तो मेरे जीने की वजह हो. तुम्हारे बगैर जीने की तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकता,’’ मयंक ने घबराते हुए कहा.

‘‘अच्छा, अगर ऐसा है तो तुम ने अपनी जिंदगी की सब से बड़ी सचाई मुझ से क्यों छिपाई?’’ विभा ने प्यार से उस की आंखों में देखते हुए कहा. ‘‘मैं तुम्हें सब कुछ बताना चाहता था, लेकिन मुझे डर था कहीं तुम मुझे ही गलत न समझ बैठो. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं विभा और किसी भी कीमत पर तुम्हें खोना नहीं चाहता था, इसीलिए…’’ कह कर मयंक चुप हो गया.

फिर कुछ देर की गहरी खामोशी के बाद अपनी चुप्पी तोड़ते हुए मयंक बताने लगा. ‘‘मैं टैंथ में पढ़ने वाला 18 वर्षीय किशोर था, जब कामिनी आंटी से मेरी पहली मुलाकात हुई. उस दिन हम सभी दोस्त क्रिकेट खेल रहे थे. अचानक हमारी बौल पार्क की बैंच पर अकेली बैठी कामिनी आंटी को जा लगी. अगले ही पल बौल कामिनी आंटी के हाथों में थर. चूंकि मैं ही बैटिंग कर रहा था. अत: दोस्तों ने मुझे ही जा कर बौल लाने को कहा. मैं ने माफी मांगते हुए उन से बौल मांगी तो उन्होंने इट्स ओके कहते हुए वापस कर दी.’’

‘‘लगभग 30-35 की उम्र, दिखने में बेहद खूबसूरत व पढ़ीलिखी, सलीकेदार कामिनी आंटी से बातें कर मुझे बहुत अच्छा लगता था. फाइनल परीक्षा होने को थी. अत: मैं बहुत कम ही खेलने जा पाता था. कुछ दिनों बाद हमारी मुलाकात होने पर बातचीत के दौरान कामिनी आंटी ने मुझे पढ़ाने की पेशकश की, जिसे मैं ने सहर्ष स्वीकार लिया. चूंकि मेरे घर से कुछ ही दूरी पर उन का अपार्टमैंट था, इसलिए मम्मीपापा से भी मुझे उन के घर जा कर पढ़ाई करने की इजाजत मिल गई.’’ ‘‘फिजिक्स पर कामिनी आंटी की पकड़ बहुत मजबूत थी. कुछ लैसन जो मुझे बिलकुल नहीं आते थे, उन्होंने मुझे अच्छी तरह समझा दिए. उन के घर में शांति का माहौल था. बच्चे थे नहीं और अंकल अधिकतर टूअर पर ही रहते थे. कुल मिला कर इतने बड़े घर में रहने वाली वे अकेली प्राणी थीं.

‘‘बस उन की कुछ बातें हमेशा मुझे खटकतीं जैसे पढ़ाते वक्त उन का मेरे कंधों को हौले से दबा देना, कभी उन के रेंगते हाथों की छुअन अपनी जांघों पर महसूस करना. ये सब करते वक्त वे बड़ी अजीब नजरों से मेरी आंखों में देखा करतीं. पर उस वक्त ये सब समझने के लिए मेरी उम्र बहुत छोटी थी. उन की ये बातें मुझे कुछ परेशान अवश्य करतीं लेकिन फिर पढ़ाई के बारे में सोच कर मैं वहां जाने का लोभ संवरण न कर पाता.’’ ‘‘मेरी परीक्षा से ठीक 1 दिन पहले पढ़ते वक्त उन्होंने मुझे एक गिलास जूस पीने को दिया और कहा कि इस से परीक्षा के वक्त मुझे ऐनर्जी मिलेगी. जूस पीने के कुछ देर बाद ही मुझे कुछ नशा सा होने लगा. मैं उठने को हुआ और लड़खड़ा गया. तुरंत उन्होंने मुझे संभाल लिया. उस के बाद क्या हुआ, मुझे कुछ याद न रहा.

2-3 घंटे बाद जब मेरी आंख खुली तो सिर में भारीपन था और मेरे कपड़े कुछ अव्यवस्थित. मैं बहुत घबरा गया. मुझे कुछ सही नहीं लग रहा था. कामिनी आंटी की संदिग्ध मुसकान मुझे विचलित कर रही थी. दूसरे दिन पेपर था. अत: दिमाग पर ज्यादा जोर न देते हुए मैं तुरंत घर लौट आया. ‘‘दूसरा पेपर मैथ का था. चूंकि फिजिक्स का पेपर हो चुका था, इसलिए कामिनी आंटी के घर जाने का कोई सवाल नहीं था. 2-3 दिन बाद कामिनी आंटी का फोन आया. आखिरी बार उन के घर में मुझे बहुत अजीब हालात का सामना करना पड़ा था. अत: मैं अब वहां जाने से कतरा रहा था. लेकिन मां के जोर देने पर कि चला जा बटा शायद वे कुछ इंपौर्टैंट बताना चाहती हों, न चाहते हुए भी मुझे वहां जाना पड़ा.

‘‘उन के घर पहुंचा तो दरवाजा अधखुला था. दरवाजे को ठेलते हुए मैं उन्हें पुकारता हुआ भीतर चला गया. हाल में मद्धिम रोशनी थी. सोफे पर लेटे हुए उन्होंने इशारे से मुझे अपने पास बुलाया. कुछ हिचकिचाहट में उन के समीप गया तो मुंह से आ रही शराब की तेज दुर्गंध ने मुझे पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. मैं पीछे हट पाता उस से पहले ही उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे सोफे पर अपने ऊपर खींच लिया. बिना कोई मौका दिए उन्होंने मुझ पर चुंबनों की बौछार शुरू कर दी. यह क्या कर रही हैं आप? छोडि़ए मुझे, कह कर मैं ने अपनी पूरी ताकत से उन्हें अपने से अलग किया और बाहर की ओर लपका.

‘‘रुको, उन की गरजती आवाज ने मानो मेरे पैर बांध दिए, ‘मेरे पास तुम्हें कुछ दिखाने को है,’ कुटिलता से उन्होंने मुसकराते हुए कहा. फिर उन के मोबाइल में मैं ने जो देखा वह मेरे होश उड़ाने के लिए काफी था. वह एक वीडियो था, जिस में मैं उन के ऊपर साफतौर पर चढ़ा दिखाई दे रहा था और उन की भंगिमाएं कुछ नानुकुर सी प्रतीत हो रही थीं. ‘‘उन्होंने मुझे साफसाफ धमकाते हुए कहा कि यदि मैं ने उन की बातें न मानीं तो वे इस वीडियो के आधार पर मेरे खिलाफ रेप का केस कर देंगी, मुझे व मेरे परिवार को कालोनी से बाहर निकलवा देंगी. मेरे पावों तले जमीन खिसक गई. फिर भी मैं ने अपना बचाव करते हुए कहा कि ये सब गलत है. मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया है.

‘‘तब हंसते हुए वे बोलीं, तुम्हारी बात पर यकीन कौन करेगा? क्या तुमने देखा नहीं कि मैं ने किस तरह से इस वीडियो को शूट किया है. इस में साफसाफ मैं बचाव की मुद्रा में हूं और तुम मुझ से जबरदस्ती करते नजर आ रहे हो. मेरे हाथपांव फूल चुके थे. मैं उन की सभी बातें सिर झुका कर मानता चला गया. ‘‘जाते समय उन्होंने मुझे सख्त हिदायत दी कि जबजब मैं तुम्हें बुलाऊं चले आना. कोई नानुकुर नहीं चलेगी और भूल कर भी ये बातें कहीं शेयर न करूं वरना वे मेरी पूरी जिंदगी तबाह कर देंगी.

‘‘मैं उन के हाथों की कठपुतली बन चुका था. उन के हर बुलावे पर मुझे जाना होता था. अंतरंग संबंधों के दौरान भी वे मुझ से बहुत कू्ररतापूर्वक पेश आती थीं. उस समय किसी से यह बात कहने की मैं हिम्मत नहीं जुटा सका. एक तो अपनेआप पर शर्मिंदगी दूसरे मातापिता की बदनामी का डर, मैं बहुत ही मायूस हो चला था. मेरी पूरी पढ़ाई चौपट हो चली थी.

करीब साल भर तक मेरे साथ यही सब चलता रहा. एक बार कामिनी आंटी ने मुझे बुलाया और कहा कि आज आखिरी बार मैं उन्हें खुश कर दूं तो वे मुझे अपने शिकंजे से आजाद कर देंगी. बाद में पता चला कि अंकलजी का कहीं दूसरी जगह ट्रांसफर हो गया है.

सिया के आंसू : भाग 3

‘‘अरे भैया, क्या कर रहे हो… देख कर काम करो न,’’ तान्या ने उस की नीयत जानते हुए एतराज जताया, तो वह पंडा नाराज होते हुए बोला, ‘‘अब हमारा यही काम है और इस काम में कोई चमड़े की बनी देह बीच में आ गई तो भला इस में हमारा क्या दोष है,’’ और फिर वह पंडा संस्कृत में कुछ जोरजोर से पढ़ने लगा.

‘‘अरे, आप लोग कहां लाइन में लग कर धक्के खा रहे हैं… आप तो वीआईपी लोग हैं… आप चाहें तो मैं पीछे के गेट से आप को 10 मिनट में ही स्पैशल दर्शन करा सकता हूं…’’ एक पंडे ने वीरेन के पास आ कर धीरे से कहा.

वीरेन ने लंबी लाइन में लगने के बजाय स्पैशल दर्शन के लिए हामी भर दी, तो फौरन ही वह पंडा 5,000 रुपए मांगने लगा.

‘‘पर, ये तो बहुत ज्यादा हैं,’’ वीरेन ने कहा.

‘‘अरे, तो जैसा काम है वैसा दाम है. भाई, समझ में आए तो बताओ, नहीं तो मैं दूसरा कस्टमर देखता हूं,’’ पंडा अपना सब्र खोता हुआ सा बोला.

‘‘ठीक है भैया, ये लो पैसे और जल्दी से हमें दर्शन करा दो,’’ सिया ने उस पंडे को पैसे देते हुए कहा.

फिर क्या था, उस पंडे ने उन्हें पीछे के दरवाजे से मात्र 10 मिनट में मंदिर के अंदर पहुंचा दिया था.

सिया, नताशा और तान्या तो खुशी के मारे मानो झूम रही थीं.

‘‘ऐ लड़की… अंधी है क्या… सामने साफसाफ लिखा है कि मंदिर के अंदर कोई सैल्फी नहीं, कोई तसवीर नहीं ली जाएगी…’’ एक लंबी दाढ़ी वाले बाबा ने तान्या के गले में लटकते हुए कैमरे को देख कर कहा.

‘‘पर बाबाजी, मैं सैल्फी नहीं ले रही हूं और न ही कोई फोटो ले रही हूं. यह कैमरा तो बाहर के फोटो लेने के लिए गले में टंगा हुआ था और इसीलिए अब भी इसी तरह टंगा हुआ है,’’ तान्या ने जवाब दिया.

‘‘तुम लोग तो भगवान के साथ भी सैल्फी लेने से बाज नहीं आते,’’ वह पंडा बोला और फिर घंटी बजाने में मशगूल हो गया.

पूजा करने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते हुए ये चारों अभी हाथ जोड़े मंदिर के अंदर खड़े थे कि तभी गेरुए कपड़े पहने हुए एक और लड़का तान्या के पास आ कर बोला, ‘‘दीदी, अगर यहां मंदिर के अंदर सैल्फी लेनी है, तो आप को 500 रुपए देने होंगे… सैल्फी दिलवाना मेरी जिम्मेदारी होगी.’’

‘‘नहीं… मुझे कोई सैल्फीवैल्फी नहीं लेनी है… तुम जाओ यहां से,’’ तान्या चीख पड़ी.

उस के मना करने से वह पंडा भी चिढ़ गया और बोला, ‘‘अरे, हम कहां जाएंगे… हमारा तो घर यही है… और काम भी यही है.’’

उस की इस बात पर तान्या सिर्फ उसे घूरती रह गई.

मंदिर में ढोलनगाड़े बज रहे थे. लोगों की भीड़ को देख कर पंडों ने और तेजी से ढोल पीटने शुरू कर दिए थे.

‘‘कुछ देर बाद आप लोगों का नंबर आने वाला है… यह रेट लिस्ट देखिए और बताइए कि आप लोग कितने वाली पूजा कराने वाले हैं…’’ मंदिर के अंदर बैठे एक साधु ने इन लोगों से कहा.

‘‘कितने वाली पूजा का क्या मतलब है पंडितजी?’’ वीरेन ने पूछा.

‘‘वह सामने देखो, बोर्ड पर सारे रेट लिखे हुए हैं,’’ पंडित ने एक बोर्ड की तरफ इशारा करते हुए कहा.

इन चारों ने बोर्ड पर देखा, तो वहां पर हर तरह की पूजा के लिए अलगअलग रेट तय था और पूजा की अवधि के साथ उस की कीमत भी बढ़ती जा रही थी. उस में यह भी लिखा हुआ था कि कौन सी पूजा में कितने लोग कितनी कीमत चुका कर शामिल हो सकते हैं.

पूजा का भी कोई रेट होता है, यह इन चारों ने पहली बार जाना था. अब तो सिया को भी बात कुछ अखरने लगी थी.

‘‘अरे पंडितजी, टीका तो लगा दीजिए,’’ सिया ने पुजारी से कहा और अपनी प्रसाद की थाली आगे बढ़ाई.

‘‘प्रसाद के साथसाथ इस में कुछ दक्षिणा भी तो रख बच्ची,’’ पुजारी ने तिरछी नजर से देखा और सिया के माथे पर बेमन से टीका लगाते हुए कहा.

सिया ने 100 रुपए का नोट बढ़ाया, तो पुजारी नाराज हो गया और कहने लगा, ‘‘आप दक्षिणा इतनी तो दीजिए

कि एक आदमी के एक समय का भोजन तो हो ही जाए, इस 100 रुपए में भला क्या होगा…’’

हार कर सिया ने 500 रुपए दिए, तब जा कर उस पुजारी के चेहरे पर थोड़ी मुसकराहट आई.

इतना होतेहोते वीरेन का मन पूजा

से पूरी तरह हट चुका था. चारों तरफ लूटखसोट के माहौल से वह ऊब चुका था. भला कहीं पूजा करवाने का भी कोई रेट होता है. सामने ही रेट का बोर्ड

लगा हुआ था. वीरेन ने उस बोर्ड की तसवीर खींच ली, पर उसे रेट बोर्ड का फोटो लेते देख कर पुजारी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

‘‘पानी की एक बूंद से पैदा हुआ आदमी, तू एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा और यह तेरा अहंकार ही तुझे गर्त में ले जा रहा है. तू इस बोर्ड की तसवीर ले कर क्या कर लेगा… और देख लेते हैं कि तू क्या कर सकता है?’’

पुजारी की बातें सुन कर वीरेन मंदिर से बाहर आ गया. उस के पीछे से सिया, नताशा और तान्या भी बाहर आ गईं. उन चारों ने यहां चलने वाले गोरखधंधे को दुनिया के सामने लाने के लिए इस पूरे ठगी के मामले को सोशल मीडिया पर शेयर करने की गरज से मंदिर के बाहर ही एक वीडियो बनाया, जिस में पूजा के हर काम में पंडितों द्वारा पैसे उगाहने की बात कही गई थी.

अब पूजा से सब का मन हट चुका था और वे चारों वापस आने लगे थे.

रास्ते में कुछ लोकल लड़के बैठे हुए थे. वीरेन के साथ 3 लड़कियों को देख कर उन में से एक लड़का बोला, ‘‘अरे भाई, एक अकेले लड़के के साथ 3-3 लड़कियां… बड़ी नाइंसाफी है रे… हमें भी साथ ले लो…’’ यह बात इतने भद्दे ढंग से कही गई थी कि वीरेन का गुस्सा भड़कना लाजिमी था, पर सिया ने किसी तरह अपनी कसम दे कर उसे शांत किया.

उधर सोशल मीडिया पर इन चारों का रोष भरा वीडियो वायरल होते देर नहीं लगी, जहां पर एक बुद्धिजीवी वर्ग का पूरा साथ इन लोगों को मिल रहा था, वहीं दूसरी तरफ तथाकथित धार्मिक लोग सिया और वीरेन को गालियां भी दे रहे थे और कुछ धार्मिक संगठनों ने तो इन्हें जान से मार डालने की धमकी भी दे दी थी, क्योंकि इन लोगों ने सिद्धनाथ मंदिर के अंदर चलने वाले पुजारियों के गंदे खेल को उजागर करने की कोशिश की थी. नताशा और तान्या तो इस बात से डरी हुई थीं.

वे चारों जल्दी से जल्दी अपने होटल पहुंच कर आराम करना चाहते थे और होटल अब करीब ही था, पर सामने से कुछ पंडे चले आ रहे थे.

‘‘क्यों भाई, तुम लोग हमारी धर्मशाला में रुके और बिना कोई पैसे दिए, बिना कुछ दानपात्र में डाले ही वहां से चले आए… किस बात की जल्दी थी तुम लोगों को…’’ ये सब उस धर्मशाला के लोग थे, जहां ये चारों सब से पहले रुके थे.

‘‘जी देखिए, हमें वहां कुछ ऐसा महसूस हुआ, जो हमें सही नहीं लगा. वहां बाथरूम में कुछ गलत हो रहा था, इसीलिए हम ने उस धर्मशाला को छोड़ना ही सही समझा,’’ वीरेन ने शांत आवाज में कहा.

‘‘भेड़ जहां जाएगी वहीं मूड़ी जाएगी… कहां नहीं बनते हैं ये नंगे वीडियो… धर्मशाला छोड़ोगे तो होटल में भी बनेंगे… अच्छा बताओ कि इन में से किस लड़की को नंगा देखना चाहोगे तुम? मेरे इस मोबाइल में इन सब के वीडियो हैं,’’ एक पंडा अपना होंठ काटते हुए बोला.

अब तो वीरेन के गुस्से की सीमा नहीं रही. उस ने तुरंत ही उन पंडों पर अटैक कर दिया. पर वह अकेला था और वे 8-10 लोग थे. उन सब ने वीरेन को इतना मारा कि वह अधमरा हो गया और उसे उसी हालत में छोड़ कर वे पंडे, जो शायद पंडे न हो कर गुंडे थे, सब फरार हो गए.

वीरेन के सिर से खून बह रहा था. जल्द ही उसे अस्पताल ले जाना होगा, नहीं तो कुछ भी हो सकता था. वे तीनों लड़कियां मदद के लिए इधरउधर भाग रही थीं, पर कोई भी मदद करने को तैयार नहीं था.

तभी सिया को एक खाली एंबुलैंस आती दिखाई दी. उस ने हाथ दे कर उसे रुकवाया और ड्राइवर से घायल वीरेन को अस्पताल पहुंचाने की गुजारिश की. ड्राइवर ने भी मामले की गंभीरता

को समझते हुए वीरेन को तुरंत ही लिटाया और एंबुलैंस को सड़क पर दौड़ा दिया.

पर कुछ किलोमीटर चलने पर ड्राइवर को रुक जाना पड़ा, क्योंकि आगे कोई जुलूस जा रहा था. एंबुलैंस के बारबार हौर्न और हूटर बजाने का भी उन लोगों पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था. इधर वीरेन की हालत उपचार नहीं मिल पाने के चलते बिगड़ती ही जा रही थी.

जुलूस की भीड़ को न हटता देख कर  सिया खुद नीचे उतर गई और हाथ जोड़ कर भीड़ से रास्ता देने की अपील करने लगी. वह बहुत देर तक सब से प्रार्थना करती रही, पर किसी पर कोई असर नहीं हुआ.

किसी ने बताया कि आज पीले मठ वाले बाबा का जन्मदिन है और उन की झांकी उसी उपलक्ष्य में निकाली जा रही है और अभी फिलहाल तो यह भीड़ नहीं हट सकती है. अच्छा होगा कि तुम कोई दूसरा रास्ता पकड़ लो.

पर कौन सा रास्ता पकड़ती सिया. यह एक पहाड़ी जगह थी और अस्पताल तक यही एक सड़क जाती थी. इंतजार करने के अलावा कोई दूसरा चारा भी नहीं था.

सिया भाग कर एंबुलैंस में आई, पर तब तक वीरेन मर चुका था. यह देख कर सिया की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे.

कामिनी आंटी- भाग 1: आखिर क्या थी विभा के पति की सच्चाई

विभा को खिड़की पर उदास खड़ा देख मां से रहा नहीं गया. बोलीं, ‘‘क्या बात है बेटा, जब से घूम कर लौटी है परेशान सी दिखाई दे रही है? मयंक से झगड़ा हुआ है या कोई और बात है? कुछ तो बता?’’ ‘‘कुछ नहीं मां… बस ऐसे ही,’’ संक्षिप्त उत्तर दे विभा वाशरूम की ओर बढ़ गई.

‘‘7 दिन हो गए हैं तुझे यहां आए. क्या ससुराल वापस नहीं जाना? मालाजी फोन पर फोन किए जा रही हैं… क्या जवाब दूं उन्हें.’’ ‘‘तो क्या अब मैं चैन से इस घर में कुछ दिन भी नहीं रह सकती? अगर इतना ही बोझ लगती हूं तो बता दो, चली जाऊंगी यहां से,’’ कहते हुए विभा ने भड़ाक से दरवाजा बंद कर लिया.

‘‘अरे मेरी बात तो सुन,’’ बाहर खड़ी मां की आंखें आंसुओं से भीग गईं. अभी कुछ दिन पहले ही बड़ी धूमधाम से अपनी इकलौती लाडली बेटी विभा की शादी की थी. सब कुछ बहुत अच्छा था. सौफ्टवेयर इंजीनियर लड़का पहली बार में ही विभा और उस की पूरी फैमिली को पसंद आ गया था. मयंक की अच्छी जौब और छोटी फैमिली और वह भी उसी शहर में. यही देख कर उन्होंने आसानी से इस रिश्ते के लिए हां कर दी थी कि शादी के बाद बेटी को देखने उन की निगाहें नहीं तरसेंगी. लेकिन हाल ही में हनीमून मना कर लौटी बेटी के अजीबोगरीब व्यवहार ने उन की जान सांसत में डाल दी थी.

पत्नी के चेहरे पर पड़ी चिंता की लकीरों ने महेश चंद को भी उलझन में डाल दिया. कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि ‘‘हैलो आंटी, हैलो अंकल,’’ कहते हुए विभा की खास दोस्त दिव्या ने बैठक में प्रवेश किया. ‘‘अरे तुम कब आई बेटा?’’ पैर छूने के लिए झुकी दिव्या के सिर पर आशीर्वादस्वरूप हाथ फेरते हुए दिव्या की मां ने पूछा.

‘‘रात 8 बजे ही घर पहुंची थी आंटी. 4 दिन की छुट्टी मिली है. इसीलिए आज ही मिलने आ गई.’’

‘‘तुम्हारी जौब कैसी चल रही है?’’ महेश चंद के पूछने पर दिव्या ने हंसते हुए उन्हें अंगूठा दिखाया और आंटी की ओर मुखातिब हो कर बोली, ‘‘विभा कैसी है? बहुत दिनों से उस से बात नहीं हुई. मैं ने फोन फौर्मैट करवाया है, इसलिए कौल न कर सकी और उस का भी कोई फोन नहीं आया.’’ ‘‘तू पहले इधर आ, कुछ बात करनी है,’’ विभा की मां उसे सीधे किचन में ले गईं.

पूरी बात समझने के बाद दिव्या ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह तुरंत विभा की परेशानी को समझ उन से साझा करेगी.

बैडरूम के दरवाजे पर दिव्या को देख विभा की खुशी का ठिकाना न रहा. दोनों 4 महीने बाद मिल रही थीं. अपनी किसी पारिवारिक उलझन के कारण दिव्या उस की शादी में भी सम्मिलित न हो सकी थी.

‘‘कैसी है मेरी जान, हमारे जीजू बहुत परेशान तो नहीं करते हैं?’’ बड़ी अदा से आंख मारते हुए दिव्या ने विभा को छेड़ा. ‘‘तू कैसी है? कब आई?’’ एक फीकी हंसी हंसते हुए विभा ने दिव्या से पूछा.

‘‘क्या हुआ है विभा, इज समथिंग रौंग देयर? देख मुझ से तू कुछ न छिपा. तेरी हंसी के पीछे एक गहरी अव्यक्त उदासी दिखाई दे रही है. मुझे बता, आखिर बात क्या है?’’ दिव्या उस की आंखों में देखते हुए बोली. अचानक विभा की पलकों के कोर गीले हो चले. फिर उस ने जो बताया वह वाकई चौंकाने वाला था.

विभा के अनुसार सुहागरात से ही फिजिकल रिलेशन के दौरान मयंक में वह एक झिझक सी महसूस कर रही थी, जो कतई स्वाभाविक नहीं लग रही थी. उन्होंने बहुत कोशिश की, रिलेशन से पहले फोरप्ले आदि भी किया, बावजूद इस के उन के बीच अभी तक सामान्य फिजिकल रिलेशन नहीं बन पाया और न ही वे चरमोत्कर्ष का आनंद ही उठा पाए. इस के चलते उन के रिश्ते में एक चिड़चिड़ापन व तनाव आ गया है. यों मयंक उस का बहुत ध्यान रखता और प्यार भी करता है. उस की समझ नहीं आ रहा कि वह क्या करे. मांपापा से यह सब कहने में शर्म आती है, वैसे भी वे यह सब जान कर परेशान ही होंगे.

विभा की पूरी बात सुन दिव्या ने सब से पहले उसे ससुराल लौट जाने के लिए कहा और धैर्य रखने की सलाह दी. अपना व्यवहार भी संतुलित रखने को कहा ताकि उस के मम्मीपापा को तसल्ली हो सके कि सब कुछ ठीक है. दिव्या की सलाह के अनुसार विभा ससुराल आ गई. इस बीच उस ने मयंक के साथ अपने रिश्ते को पूरी तरह से सामान्य बनाने की कोशिश भी की और भरोसा भी जताया कि मयंक की किसी भी परेशानी में वह उस के साथ खड़ी है. उस के इस सकारात्मक रवैए का तुरंत ही असर दिखने लगा. मयंक की झिझक धीरेधीरे खुलने लगी. लेकिन फिजिकल रिलेशन की समस्या अभी तक ज्यों की त्यों थी.

कुछ दिनों की समझाइश के बाद आखिरकार विभा ने मयंक को काउंसलर के पास चलने को राजी कर लिया. दिव्या के बताए पते पर दोनों क्लिनिक पहुंचे, जहां यौनरोग विशेषज्ञ डा. नमन खुराना ने उन से सैक्स के मद्देनजर कुछ सवाल किए. उन की परेशानी समझ डाक्टर ने विभा को कुछ देर बाहर बैठने के लिए कह कर मयंक से अकेले में कुछ बातें कीं. उन्हें 3 सिटिंग्स के लिए आने का सुझाव दे कर डा. नमन ने मयंक के लिए कुछ दवाएं भी लिखीं.

कुछ दिनों के अंतराल पर मयंक के साथ 3 सिटिंग्स पूरी होने के बाद डा. नमन ने विभा को फोन कर अपने क्लिनिक बुलाया और कहा, ‘‘विभाजी, आप के पति शारीरिक तौर पर बेहद फिट हैं. दरअसल वे इरैक्शन की समस्या से जूझ रहे हैं, जो एक मानसिक तनाव या कमजोरी के अलावा कुछ नहीं है. इसे पुरुषों के परफौर्मैंस प्रैशर से भी जोड़ कर देखा जाता है.

‘‘इस समय उन्हें आप के मानसिक संबल की बहुत आवश्यकता है. आप को थोड़ा मजबूत हो कर यह जानने की जरूरत है कि किशोरावस्था में आप के पति यौन शोषण का शिकार हुए हैं और कई बार हुए हैं. अपने से काफी बड़ी महिला के साथ रिलेशन बना कर उसे संतुष्ट करने में उन्हें शारीरिक तौर पर तो परेशानी झेलनी ही पड़ी, साथ ही उन्हें मानसिक स्तर पर भी बहुत जलील होना पड़ा है, जिस का कारण कहीं न कहीं वे स्वयं को भी मानते हैं. इसीलिए स्वेच्छा से आप के साथ संबंध बनाते वक्त भी वे उसी अपराधबोध का शिकार हो रहे हैं. चूंकि फिजिकल रिलेशन की सफलता आप की मानसिक स्थिति तय करती है, लिहाजा इस अपराधग्रंथि के चलते संबंध बनाते वक्त वे आप के प्रति पूरी ईमानदारी नहीं दिखा पाते, नतीजतन आप दोनों उस सुख से वंचित रह जाते हैं. अत: आप को अभी बेहद सजग हो कर उन्हें प्रेम से संभालने की जरूरत है.’’ विभा को काटो तो खून नहीं. अपने पति के बारे में हुए इस खुलासे से वह सन्न रह गई.

सत्यकथा: कातिल ही बन गया हत्या का चश्मदीद गवाह

20 जनवरी, 2022 की सुबह के करीब 7 बज रहे थे. कभी न सोने वाले शहर मुंबई के भिवंडी इलाके में सुबहसुबह लोग अपने घरों से काम के लिए निकले थे. कुछ पैदल तो कुछ आटोरिक्शा में, कुछ अपनी गाडि़यों में, हर कोई अपने काम पर पहुंचने के लिए भाग रहा था.

ऐसे ही पैदल काम पर जा रहा एक शख्स जोकि भिवंडी के रुपाला ब्रिज के नीचे से होते हुए सड़क के दूसरी ओर जा रहा था, उसे ब्रिज के नीचे झाडि़यों के पास एक बड़ी सी सफेद रंग की बोरी दिखाई दी. उस बोरी का मुंह ऊपर से बंधा हुआ था.

यह देख उस शख्स के कदम धीमे हो गए और वह रुक गया. उस ने बोरे पर नजर डाली तो देखा उस बोरी के अंदर से खून निकला था, जिस से वहां आसपास की जमीन भी लाल हो गई थी. यह देख उस शख्स के माथे पर पसीना आ गया. उसे यही लग रहा था कि जरूर इस बोरी में किसी की लाश है.

यह देख उस ने आसपास चलते हुए लोगों को बुला कर ब्रिज के नीचे बोरे में लाश पड़ी होने के बारे में बताया. इस के बाद उस युवक ने पुलिस कंट्रोल रूम में फोन कर के इस बारे में सूचना दी.

सूचना मिलते ही भिवंडी के निजामपुरा थानाप्रभारी नरेश पवार के नेतृत्व में पुलिस की टीम घटनास्थल पर पहुंच गई. जिस शख्स ने फोन कर पुलिस को इस बारे में सूचना दी थी, पुलिस ने उस से पूछताछ की.

उस शख्स ने थानाप्रभारी नरेश पवार को जो कुछ उस ने देखा था, वह सब बयान कर दिया.

पुलिस ने जब वह बोरी खोली तो अंदर खून से लथपथ एक व्यक्ति की लाश निकली. उस के सिर, गरदन, सीने, चेहरे लगभग हर जगह पर जख्म के काफी गहरे निशान थे.

लाश की पहचान वहां जमा भीड़ नहीं कर पाई. लाश के कपड़ों में से सिर्फ डाक्टर की एक परची और एक हैडफोन मिला, जिसे पुलिस ने सबूत के तौर पर अपने पास रख लिया. लेकिन उस की जेब में कहीं कोई पहचानपत्र, पैसे या और कोई चीज नहीं बरामद हुई.

थानाप्रभारी नरेश पवार की मुश्किलें और भी बढ़ गईं. थानाप्रभारी बारबार डैडबौडी को देख रहे थे कि किसी तरह से लाश की पहचान हो जाए तो मामला सुलझाने में मदद मिले. व्यक्ति के कपड़ों से डाक्टर की जो परची मिली थी, वह पुलिस के लिए एक बड़ी लीड थी.

पुलिस टीम ने सबूत जुटाने के लिए आसपास के इलाकों की अच्छी तरह से छानबीन की, लेकिन उन्हें किसी तरह के कोई और ठोस सबूत नहीं मिले. लेकिन जब थानाप्रभारी नरेश पवार ने व्यक्ति की कमीज को बहुत ध्यान से देखा तो उन का दिमाग अचानक से घूम गया.

दरअसल, व्यक्ति ने लाल रंग की शर्ट पहनी हुई थी, जिस में सुनहरे रंग के छोटेछोटे धब्बे पूरी शर्ट पर मौजूद थे. यह देख उन्हें अचानक से याद आया कि ऐसे सुनहरे रंग के छोटे धब्बे अकसर मोतियों की फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों के कपड़ों पर दिखाई पड़ते हैं.

थानाप्रभारी ने इस मामले की गुत्थी सुलझाने के लिए पुलिस की 3 टीमों का गठन कर दिया.

भिवंडी के एसपी प्रशांत धोले ने एक टीम को डाक्टर के पास पूछताछ करने के लिए भेजा, दूसरी टीम को उन्होंने आसपास के सभी मोतियों की फैक्ट्री में पूछताछ के लिए भेजा और तीसरी टीम को आसपास के सभी पुलिस थानों में किसी के गुमशुदा होने का पता लगाने के लिए भेजा.

हत्या के इस मामले की छानबीन करने के लिए पहली टीम शव की कमीज की जेब से बरामद हुई डाक्टर की मुड़ीतुड़ी, खून से भीगी हुई परची की मदद से एक डाक्टर के पते पर पहुंची.

इस डाक्टर की दुकान भिवंडी के खोनी गांव में अब्दुल्लाह मसजिद के पास थी. यह कोई बहुत बड़ा डाक्टर नहीं था, बल्कि वह बीएससी पास डाक्टर था, जोकि मरीजों को छोटेमोटे मर्ज की दवा दे दिया करता था.

पुलिस ने जब डाक्टर को परची दिखाते हुए यह पूछा कि क्या वह इस मरीज को जानता है जोकि 2 दिन पहले ही उस के पास से दवा ले कर गया था तो जवाब में डाक्टर ने कहा कि वह दिन भर करीब 100 मरीजों को देखता है. कौन, कब, किस चीज के लिए आया, वह इस की पहचान नहीं कर सकता.

टीम को डाक्टर से कुछ ठोस काम का सुराग नहीं मिला. लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने एक और तरीका आजमाया. उन्होंने उस डाक्टर की दुकान के पास जितने भी फार्मेसी (दवाई) की दुकानें थीं, उन सभी से पूछताछ की. लेकिन अफसोस कहीं से भी कुछ भी काम नहीं आया.

एक तरफ जहां पहली टीम डाक्टर के पते पर मृत व्यक्ति की पहचान के लिए पहुंची थी तो वहीं दूसरी टीम निजामपुरा इलाके में जितने भी पर्ल वर्कशौप (मोतियों की फैक्ट्री) थीं, उन सभी में पूछताछ के लिए पहुंची.

दूसरी टीम ने एकएक कर सभी फैक्ट्री मालिकों से उन के मजदूरों के बारे में पूछा कि क्या उन की फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों में से कोई था, जो 2 दिन से बिना बताए छुट्टी पर रहा हो.

निजामपुरा इलाके में काफी बड़ी संख्या में पर्ल वर्कशौप (फैक्ट्री) थीं, जिन्हें एक दिन में कवर कर पाना संभव नहीं था. ऐसी स्थिति में दूसरी टीम को भी कुछ खास लीड नहीं मिली.

पुलिस की पहली और दूसरी टीम को अपनेअपने टास्क दिए हुए थे तो तीसरी टीम भी अपना टास्क पूरा करने के लिए मैदान में उतरी हुई थी. तीसरी टीम का काम आसपास के सभी इलाकों के पुलिस थानों में लापता लोगों की सूची तैयार करना और उन के बारे में पता लगाना था.

इस काम को करने के लिए सब से पहले आसपास के इलाकों के थानों में पहले ही फोन कर जरूरी सूचना दे दी गई.

कुछ देर बाद आसपास के पुलिस थानों से तीसरी टीम को जो कुछ जानकारियां हासिल हुईं, वह उन की मांगी हुई जानकारियों से मेल नहीं खा रही थीं.

इस में जरूरी यह भी था कि हो सकता है कि हत्या को अंजाम एक दिन में ही दिया गया हो तो यह संभव है कि व्यक्ति के शव का पता लगाने के लिए अभी तक उस के घरपरिवार वाले पुलिस थाने में उस की गुमशुदगी के लिए न पहुंचे हों.

ऐसे में पुलिस के पास इंतजार करने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता बचा नहीं था.

पुलिस द्वारा बनाई गई तीनों टीमों के हाथ कोई ठोस सबूत या सुराग नहीं मिल पाया, जिस के दम पर आगे की छानबीन की जा सके.

20 जनवरी, 2022 की शाम तक मकतूल (कत्ल किए गए व्यक्ति) की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ चुकी थी, लेकिन उस की पहचान अभी तक पुलिस की टीम नहीं कर पाई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार व्यक्ति के सिर पर गहरी चोट और ज्यादा खून बह जाने की वजह से उस की मौत हुई थी. लेकिन सिर्फ पोस्टमार्टम रिपोर्ट को ले कर केस सुलझाना आसान नहीं था.

इस केस का अगला चैप्टर अगले दिन 21 जनवरी, 2022 को उस समय खुला, जब एक व्यक्ति, जिस का नाम मोहम्मद सलमान था, वह शाम को निजामपुरा थाने में पहुंचा. थानाप्रभारी को उस ने खुद को उस व्यक्ति की हत्या का चश्मदीद गवाह बताया. यह सुन कर थानाप्रभारी और केस में जुड़े अन्य पुलिसकर्मी दंग रह गए.

इतनी मशक्कत करने के बाद आखिरकार पुलिस के हाथों ऐसा बिंदु मिल गया था, जिसे आधार बना कर वे हत्यारों को पकड़ सकते थे. और यह अहम गवाह खुद चल कर पुलिस थाने में आया था.

एक पल के लिए पुलिस को सलमान पर शक तो हो रहा था, लेकिन इस मामले में सिवाए उस के और कोई भी जरूरी तथ्य मौजूद नहीं था.

उस ने पुलिस को बताया कि हत्या के समय वह मौकाएवारदात से मात्र 50 मीटर की दूरी पर था और उस व्यक्ति की हत्या होते हुए अपनी आंखों से देखी थी.

उस ने बताया कि जिस की हत्या हुई थी, उस की शक्ल वह नहीं देख पाया था. लेकिन उस ने हत्यारों को देखा था. उस ने पुलिस को इस मामले के बारे में सब कुछ बताने की बात कही.

लिहाजा निजामपुरा पुलिस की टीम सलमान को अपने साथ मौकाएवारदात पर ले गई और सलमान ने बारीबारी से जो कुछ अपनी आंखों से देखा था, वह सब बताया. उस ने हत्या की उस घटना को बारीकी से बयान किया.

पुलिस ने जब उस से पूछा कि क्या वह हत्यारों की पहचान कर सकता है तो उस ने कहा कि अगर कोई उन्हें उस के सामने ले कर आए तो वह उन की पहचान कर सकता है.

ऐसे में पुलिस ने भिवंडी के आर्ट कालेज से एक छात्र को हत्यारे का स्केच बनाने के लिए बुलाया. अगले दिन 22 जनवरी की सुबह 10 बजे तक सलमान के कहे अनुसार स्केच आर्टिस्ट ने हत्यारे का स्केच बना कर तैयार कर दिया.

उस स्केच की कौपी निजामपुरा पुलिस थाने के जरिए आसपास के सभी थानों में भेजी गई ताकि उस शक्ल का कोई व्यक्ति यदि पुलिस के रेकौर्ड में पहले से मौजूद हो तो उसे जल्द ही पकड़ लिया जाए.

लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ. सलमान ने जिस व्यक्ति का स्केच बनवाया था, वह पुलिस रेकौर्ड में कहीं पर भी पाया नहीं गया.

अभी पुलिस इस मामले की तह तक पहुंचने से काफी दूर थी कि निजामपुरा पुलिस थाने के पास शांतिनगर पुलिस थाने से एक खबर आई.

खबर यह थी कि एक महिला, जिस का नाम नजमा बानो (बदला हुआ नाम) था, वह थाने में अपने 45 वर्षीय पति की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कराने पहुंची थी.

थानाप्रभारी ने बिना समय गंवाए तुरंत 2 पुलिसकर्मियों की एक टीम को उस महिला को निजामपुरा थाने ले कर आने को कहा. नजमा बानो से पूछताछ में पता चला कि उस का पति अरमान शेर अली 2 दिन से घर पर नहीं आया है. उस ने बताया कि इस से पहले उस ने कभी भी ऐसा नहीं किया.

उस ने बताया कि वह काम के अलावा जहां कहीं भी जाते थे, तो उसे अपने साथ ले कर जाते थे या फिर बता कर जाते थे. वह कभी भी घर से कहीं रात गुजारने के लिए नहीं गए.

अभी थाने में नजमा बानो से पूछताछ चल ही रही थी कि मामले की तह तक जाने के लिए जिन 3 टीमों का गठन किया गया था, उस में से दूसरी टीम को भी अहम लीड हाथ लगी.

दूसरी टीम इलाके में पर्ल वर्कशौप पर छानबीन कर रही थी तो पता चला कि एक फैक्ट्री में 45 वर्षीय एक मजदूर, जोकि पिछले 7-8 सालों से काम कर रहा था, वह पिछले 3 दिनों से काम पर नहीं आया था.

टीम ने थानाप्रभारी को सूचना दी कि उस मजदूर का नाम अरमान शेर अली शाह था और वह 3 दिनों से छुट्टी पर था, वह भी बिना बताए.

इस मामले की कडि़यां एकएक कर के जुड़ती जा रही थीं. ऐसे में नजमा को अरमान शेर अली शाह की पहचान के लिए उस मृत व्यक्ति के फोटो दिखाए.

नजमा ने तो उसे पहचानने से इनकार कर दिया. लेकिन नजमा के बेटे शारिक शाह ने शव की पहचान अपने पिता शेर अली शाह के रूप में कर ली.

शव का चेहरा देख उस की पहचान कर पाना मुमकिन नहीं था, लेकिन शारिक ने पुलिस को बताया कि उस के पिता की गरदन के पास एक बर्थ मार्क था, जोकि शव की गरदन पर भी था. ऐसे में दोनों मांबेटे को पतिपिता के खोने के दुख में बहुत गहरा सदमा लगा.

22 जनवरी, 2022 की शाम तक पुलिस की टीम को कुछ ऐसा हाथ लगा, जिस से मामला साफ हो गया.

मोहम्मद सलमान, जिस ने खुद को इस मामले का एकमात्र चश्मदीद गवाह करार दिया था, असलियत में सारे मामले की जड़ वही था.

दरअसल, सलमान पर पुलिस को पहले दिन से ही शक था, जिसे दूर करने के लिए थानाप्रभारी नरेश पवार ने अंदर ही अंदर एक और टीम को तैनात किया था जिस का काम सलमान के दावों की सच्चाई जानना था.

सलमान की गुप्त छानबीन में उस की काल डिटेल्स खंगाली गई तो पता चला कि जिस रात उस ने हत्या होते हुए देखने का दावा किया, उस रात को उस ने शेर अली शाह को कई फोन किए थे.

सिर्फ यही नहीं, पुलिस ने जब सलमान के पिछले ट्रैक रेकौर्ड को देखा तो पता चला कि जिस परोल रोड पर रुपाला ब्रिज के नीचे हत्या होने की बात कही, दरअसल उस रोड पर वह इस से पहले कभी गया ही नहीं था.

सलमान के रेकौर्ड पुलिस के सामने कई सवाल उठा रहे थे. ऐसे में पुलिस ने सलमान को हिरासत में लिया और उस से सख्ती से पूछताछ की.

वह पुलिस के सवालों के आगे ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया. उस ने पुलिस के सामने जब सच्चाई बयान की तो सभी सुनने वालों के होश उड़ गए.

सलमान ने बताया कि जिस पर्ल वर्कशौप में शेर अली शाह काम करता था, वहीं पर करीब 2 साल पहले 30 वर्षीय तसलीम अली अंसारी काम करने के लिए आया था. जहां पर उन दोनों की दोस्ती हुई. समय बीता तो दोनों की दोस्ती गहरी होती गई.

दोनों ने एकदूसरे के घर पर आनाजाना शुरू कर दिया. लेकिन इसी दौरान तसलीम और शेर अली शाह की पत्नी नजमा बानो के बीच जानपहचान बढ़ती गई.

शेर अली जब घर पर नहीं होता था, उस समय तसलीम उस के घर पर आताजाता था. लेकिन दोनों के बीच बन रहे इस नए रिश्ते की डोर ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रही. शेर अली को जल्द ही उस की पत्नी और तसलीम के बीच पनप रहे रिश्ते की खबर लग गई.

तभी से उन की दोस्ती में दरार पैदा हो गई और शेर अली ने तसलीम को धमकी देते हुए अपने घर न आने की हिदायत दी. लेकिन शेर अली के रोकने से उन दोनों के बीच रिश्ते खत्म नहीं हुए.

नजमा के लिए तसलीम का प्यार परवान चढ़ता जा रहा था. वह नजमा के लिए कुछ भी करने को तैयार था. लेकिन वहीं दूसरी ओर शेर अली ने नजमा पर पाबंदियां बढ़ा दीं. वह जहां कहीं भी जाता, नजमा को अपने साथ ले कर जाने लगा. यहां तक कि शेर अली काम पर भी नजमा को साथ ले कर जाने लगा.

यह बात तसलीम को बहुत खलने लगी. वह नजमा के साथ अपनी पूरी जिंदगी गुजारना चाहता था, लेकिन शेर अली द्वारा नजमा पर पाबंदियों से वह बेहद परेशान रहने लगा.

इसी से छुटकारा पाने के लिए और नजमा को अपने साथ उत्तर प्रदेश अपने गांव भगा ले जाने के लिए उस ने शेर अली को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. उस ने सलमान जोकि शेर अली को जानता था, उस के जरिए 19 जनवरी, 2022 की रात को शेर अली को फोन करवाया.

सलमान ने शेर अली से बात कर कहा कि तसलीम उस के जीवन से हमेशा के लिए निकल जाएगा, बस एक बार वो उस से मिलना चाहता है. आखिरी बार मिलने के लिए शेर अली सलमान की बात मान गया और उस रात साढ़े 10 बजे रुपाला ब्रिज के नीचे पहुंच गया.

शेर अली के रुपाला ब्रिज के पास पहुंचते ही तसलीम, सलमान और उन के साथ एक और युवक चंदबाबू अंसारी तीनों ने मिल कर शेर अली पर हमला कर दिया.

वे अपने साथ लोहे की रौड ले कर आए थे, जिस से उन्होंने शेर अली के सिर, गरदन और चेहरे पर जोरदार वार किए.

सिर पर चोट और ज्यादा खून बह जाने की वजह से शेर अली की मौत हो गई. जिस के बाद वह शेर अली की लाश को प्लास्टिक की सफेद रंग की बोरी में डाल कर वहां से भाग निकले.

सलमान को पुलिस के पास जा कर हत्या का चश्मदीद बनने का प्लान भी तसलीम ने ही दिया था. वह पुलिस की तफ्तीश को भटकाना चाहता था.

उसे यकीन था कि कुछ ही दिनों में यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा, जिस के बाद कोई उन के पीछे नहीं पड़ेगा. लेकिन अफसोस उन का यह प्लान असफल रहा.

सलमान के सच उगलने के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. साथ ही 48 घंटों के भीतर ही सलमान की निशानदेही पर बाकी दोनों आरोपियों को भिवंडी में एक कालोनी से गिरफ्तार कर लिया.

सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पहचान – भाग 4 : मां की मौत के बाद क्या था अजीम का हाल

असम के ग्रामीण इलाकों में बाढ़ का प्रकोप कुछ कम हुआ तो एनआरसी यानी नैशनल रजिस्टर औफ सिटीजन्स का प्रकरण फिर शुरू हुआ.

राबिया का परिवार अपना घरबार, जमीन खो कर जड़ से कट चुका था. अभी के हालात में दो जून की रोटी और अमन से जीने की हसरत इतनी माने रखती थी कि अम्मी और राबिया फिर से उसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहती थीं.

इधर, नीरद चाहता था कि एनआरसी की दूसरी लिस्ट में उन का नाम आ जाए. अभी नीरद इसी मामले में बात कर अपने घर की सीढि़यों से ऊपर चढ़ा ही था, और बाहर तक उसे छोड़ने आई राबिया अपने घर की तरफ मुड़ी ही थी, कि शाम के धुंधलके वाले सन्नाटे में कोई राबिया का मुंह झटके से अपने हाथों में दबा, तेजी से पीछे जंगल की ओर घसीट ले गया. वह इतनी फुरती में था कि राबिया को संभलने का मौका न मिला.

राबिया के घर के पीछे घनी अंधेरी झाडि़यों में ले जा कर उस ने राबिया को जमीन पर पटक दिया और उस के सीने पर बैठ गया. उस के चेहरे के पास अपना चेहरा ले जा कर अपना मोबाइल औन कर के उस ने अपना चेहरा दिखाया और शैतानी स्वर में पूछा, ‘‘पहचाना?’’

राबिया घृणा और भय से सिहर उठी. उस ने अपना चेहरा राबिया के चेहरे के और करीब ला कर फुसफुसा कर कहा, ‘‘जो सोचा भी नहीं जा सकता वह कभीकभी हो जाता है. अब तुम्हारे सामने 3 विकल्प हैं. पहला, तुम रोज रात को इसी जगह मेरी हसरतें पूरी करो चाहे नीरद से रिश्ता रखो. दूसरा, अपने परिवार को ले कर चुपचाप यहां से चली जाओ, किसी से बिना कुछ कहे, नीरद से भी नहीं. अंतिम विकल्प, मुझ से बगावत करो, इसी घर में रहो, नीरद को फांसो और अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहो.

‘‘वैसे, अंजाम भी सुन ही लो. 3 जिंदगियां खतरे में होंगी. नीरद, अजीम और तुम्हारी अम्मी की. हां, तुम्हें आंच नहीं आने दूंगा जानेमन. तुम तो मेरी हसरतों की आग में घी का काम करोगी.’’

सन्नाटे पर चोट सी पड़ती उस की खूंखार आवाज से बर्फ सी ठंडी पड़ चुकी राबिया दहल गई थी. उस के शरीर को अश्लील तरीके से छूता हुआ वह परे हट बैठा और अपनी कठोर हथेली में उस के गालों को भींच कर बोला, ‘‘देखा, मैं कितना शानदार इंसान हूं. मैं तुम्हें आसानी से हासिल कर सकता था, लेकिन मैं चाहता हूं तुम खुद को खुद ही मुझे सौंपो. जैसे सौंपोगी नीरद को. उफ, वह क्या मंजर होगा. तुम मेरी आगोश में होगी- और वह पल, नीरद के साथ धोखा… कयामत आएगी उस पर.

‘‘लगेहाथ यह भी बता दूं, नीरद की शादी तय हो गई है, खानदानी लड़की से, सरकारी लिस्ट वाली.’’

राबिया बेहोशी सी हालत में घर पहुंची तो यथासंभव खुद को संभाले रही और नीरद के साथ बाहर चले जाने का बहाना बना दिया. लड़की जात ही ऐसी होती है, ड्रामेबाज. कभी मां से, कभी प्रेमी, पति, भाई या पिता से झूठ बोलती ही रहती है. अपना दर्द छिपाती है, डर छिपाती है ताकि अपने निश्चित रहें, शांत और खुश रहें.

सुबह हुई तो राबिया को फिर शाम का डर सताने लगा. इतने में नीरद आ गया. उस का व्यवहार उखड़ा सा था. आते ही वह कह पड़ा, चलो, अब और नहीं रुकूंगा. रजिस्ट्री मैरिज के लिए आज ही आवेदन दे दूंगा.’’

राबिया सकते में थी. ‘‘इतनी जल्दी? सब मानेंगे कैसे?’’ फिर रजिस्ट्री होगी कैसे? वह तो सब की नजर में घुसपैठिया है.

कागज का टुकड़ा जाने कब कहां किस बाढ़ में बह गया. वे तो बेगाने ही हो गए. नीरद ने अम्मी के पांव छू लिए. कहा, ‘‘अम्मी, आप बस आशीर्वाद दे दो, बाकी मैं संभाल लूंगा. रात को घर में मां और भाई ने खूब हंगामा किया.

‘‘मां ने मेरी शादी एक नामी खानदानी परिवार में तय कर रखी है. मोटी रकम देंगे वे. मुझे कल रात यह बात पता चली. मेरे पिता की मृत्यु के बाद से मैं ही घर की जिम्मेदारी उठा रहा हूं. पिता की पैंशन से मां मनमाना खर्च करती हैं और 32 साल के मेरे निकम्मे बड़े भाई को दे देती हैं. बड़ा भाई पहली शादी से तलाक ले कर आवारागर्दी करता है. पार्टी से जुड़ा है और पार्टी फंड के नाम पर उगाही कर के जेब गरम करता है. अब इन दोनों का मेरी निजी जिंदगी में दखल मैं कतई बरदाश्त नहीं करूंगा.’’

राबिया के दिल में तूफान उठा. वह अपने साथ हुए उस भयानक हादसे को जेहन में रोक कर न रख सकी. आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा, ‘‘नीरद,’’ कहते हुए उस की हिचकियां बंध गईं. अम्मी अजीम को ले कर बाहर चली गईं.

नीरद पास आ गया था. उस की आंखों में बेइंतहा प्रेम और हाथों में अगाध विश्वास का स्पर्श था. उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ है, राबी? बताओ मुझे. शायद कहीं मेरा अंदेशा तो सही नहीं? तुम ही बताओ राबी?’’

‘‘तुम्हारा बड़ा भाई,’’ सिर झुकाए हुए आंसुओं की धार में राबिया के सारे मलाल बाहर निकल आए. नीरद को गुस्से में होश न रहा, चिल्ला कर पूछा, ‘‘क्या कर दिया कमजर्फ ने?’’

राबिया सकते में आ गई. नीरद के हाथ पकड़ कर विनती के स्वर में कहा, ‘‘कुछ कर नहीं पाया, मगर जंगल में खींच कर ले गया था मुझे.’’ बाकी बातें सुनते ही नीरद आपे से बाहर हो गया, कहा, ‘‘चलो थाने, रिपोर्ट लिखाएंगे.’’

‘‘आप के परिवार की इज्जत?’’

‘‘तुम्हारे दुख से बड़ी नहीं. क्या तुम ने उस का चेहरा देखा था? उस ने जैसा तुम्हें धमकाया था, वैसा वाकई कर दिखाया?’’

‘‘साफसाफ देखा मैं ने उसे. वह खुद चाहता था कि मैं उसे पहचानूं, खौफ खाऊं.’’

नीरद उन तीनों को ले कर थाने तो गया लेकिन वहां उन की नागरिकता के प्रश्न पर उन्हें जलील ही होना पड़ा. पुलिस वालों ने कहा, ‘‘तब तो पहले एनआरसी में नाम दर्ज करवाओ, फिर यहां आओ. जब हमारे यहां के नागरिक हो ही नहीं, तो हमें क्या वास्ता?’’

न्याय, अन्याय और सुखदुख की मीमांसा अब इंसानियत के हाथों में नहीं थी. बाध्य हो कर नीरद ने अपने कद्दावर दोस्त माणिक का सहारा लिया. वह एक सामाजिक संस्था का मुखिया था और समाज व राजनीतिक जीवन में उस की गहरी पैठ थी.

उस ने उन लोगों को शरण भी दी और देखभाल का जिम्मा भी लिया. नीरद भी कुछ दिन माणिक के घर से औफिस आनाजाना करता रहा.

इस बीच, नीरद ने अपने बड़े भाई की हरकतों का उस की ही पार्टी के राज्य हाईकमान से शिकायत की और उसे काबू में रखने का इशारा करते हुए उन की पार्टी की बदनामी का जिक्र किया. हाईकमान को बात समझ आ गई. उसी शाम जब वह फिर राबिया को तहसनहस करने के मंसूबे बांध उस के खाली घर के पास बिना कुछ जाने मंडरा रहा था. पार्र्टी हाईकमान के गुर्गों ने राबिया के घर के पीछे की झाडि़यों में ले जा कर उस की सारी हसरतें पूरी कर दीं. साथ ही, हाईकमान का आदेश भी सुना दिया, ‘पार्टी बदनाम हुई तो वह जिंदा नहीं बचेगा.’

इधर, यह कहानी यहां रुक तो गई, लेकिन नीरद की जिंदगी की नई कहानी कैसे शुरू हो? रजिस्ट्री तो तब होगी जब राबिया खुद को असम की लड़की साबित कर पाएगी.

पर क्या नीरद का प्रेम इन बातों का मुहताज है? जब उस ने धर्मजाति नहीं देखी तो अब नागरिकता पर अपने प्रेम की बलि चढ़ा दे?

प्रेम तो मासूम तितली सा नादान, दूसरों के दर्द, दूसरों की खुशी का वाहक  है जैसे परागकणों को तितलियां ले जाती हैं एक से दूसरे फूलों में.

नीरद ने अपना तबादला दिसपुर कर देने की अर्जी लगाई. भले ही वहां काम ज्यादा हो, लेकिन राबिया को नजदीक पाने के लिए वह कुछ ज्यादा भी मेहनत कर लेगा.

सच कहते हैं, भला मानुष कभी अकेला नहीं पड़ता. चार दुश्मन अगर उस के हों भी, सौ दोस्त भी उस के हर सुखदुख में साथ होते हैं. नीरद भी ऐसा ही था. ज्यादातर वह लोगों से मदद लेता कम था, देता अधिक था. औफिस के सारे स्टाफ वाले उस की अच्छाई के कायल थे. इसलिए कानून भले ही अड़ंगा था, मगर इंसानों ने इंसानियत का तकाजा अपने कंधों पर संभाल लिया था. नीरद और राबिया के प्यार की मासूमियत को सभी दिल से महसूस कर रहे थे और औफिस में फाइलें आगे बढ़ाते हुए उस के दिसपुर स्थानांतरण की राह प्रशस्त कर दी थी.

दिसपुर पहुंच कर नीरद और नीरद की राबी ने गुवाहाटी और दिसपुर के कुछ लोगों के सामने एकदूसरे को अपना बना लिया.

देश अभी भी बड़ी अफरातफरी में था. इंसानों पर जाति, धर्म और नागरिकता के टैग लगाने की बड़ी रेलमपेल लगी थी. इधर, नीरद और राबी ने दुनिया की रीत पर लिख दी अपने प्यार की पहचान. इंसान की सब से बड़ी पहचान राबी और उस के परिवार को मिल गई थी.

अपारदर्शी सच- भाग 1: किस रास्ते पर चलने लगी तनुजा

रात के 11 बज चुके थे. तनुजा की आंखें नींद और इंतजार से बोझिल हो रही थीं. बच्चे सो चुके थे. मम्मीजी और मनीष लिविंगरूम में बैठे टीवी देख रहे थे. तनुजा का मन हो रहा था कि मनीष को आवाज दे कर बुला ले, लेकिन मम्मी की उपस्थिति के लिहाज के चलते उसे ठीक नहीं लगा. पानी पीने के लिए किचन में जाते हुए उस ने मनीष को देखा पर उन का ध्यान नहीं गया. पानी पी कर भी अतृप्त सी वह वापस कमरे में आ गई.

बिस्तर पर बैठ कर उस ने एक नजर कमरे पर डाली. उस ने और मनीष ने एकदूसरे की पसंदनापसंद का खयाल रख कर इस कमरे को सजाया था.

हलके नीले रंग की दीवारों में से एक पर खूबसूरत पहाड़ी, नदी से गिरते झरने और पेड़ों की पृष्ठभूमि से सजी पूरी दीवार के आकार का वालपेपर. खिड़कियों पर दीवारों से तालमेल बिठाते नैट के परदे, फर्श से छत तक की अलमारियां, तरहतरह के सौंदर्य प्रसाधनों से भरी अंडाकार कांच की ड्रैसिंगटेबल, बिस्तर पर साटन की रौयल ब्लू चादर और टेबल पर सजा महकते रजनीगंधा के फूलों का गुलदस्ता. उसे लगा, सभी मनीष का इंतजार कर रहे हैं.

तनुजा की आंख खुली, तब दिन चढ़ आया था. उस का इंतजार अभी भी बदन में कसमसा रहा था. मनीष दोनों हाथ बांधे बगल में खर्राटे ले कर सो रहे थे. उस का मन हुआ, उन दोनों बांहों को खुद ही खोल कर उन में समा जाए और कसमसाते इंतजार को मंजिल तक पहुंचा दे. लेकिन घड़ी ने इस की इजाजत नहीं दी. फुरफुराते एहसासों को जूड़े में लपेटते वह बाथरूम चली गई.

बेटे ऋषि व बेटी अनु की तैयारी करते, सब का नाश्ताटिफिन तैयार करते, भागतेदौड़ते खुद की औफिस की तैयारी करते हुए भी रहरह कर एहसास कसमसाते रहे. उस ने आंखें बंद कर जज्बातों को जज्ब करने की कोशिश की, तभी सासुमां किचन में आ गईं. वह सकपका गई. उस ने झटके से आंखें खोल लीं और खुद को व्यस्त दिखाने के लिए पास पड़ा चाकू उठा लिया पर सब्जी तो कट चुकी थी, फिर उस ने करछुल उठा लिया और उसे खाली कड़ाही में चलाने लगी. सासुमां ने चश्मे की ओट से उसे ध्यान से देखा.

कड़ाही उस के हाथ से छूट गई और फर्श पर चक्कर काटती खाली कड़ाही जैसे उस के जलते एहसास उस के जेहन में घूमने लगे और वह चाह कर भी उन्हें थाम नहीं पाई.

एक कोमल स्पर्श उस के कंधों पर हुआ. 2 अनुभवी आंखों में उस के लिए संवेदना थी. वह शर्मिंदा हुई उन आंखों से, खुद को नियंत्रित न कर पाने से, अपने यों बिखर जाने से. उस ने होंठ दबा कर अपनी रुलाई रोकी और तेजी से अपने कमरे में चली गई.

बहुत कोशिश करने के बावजूद उस की रुलाई नहीं रुकी, बाथरूम में शायद जी भर रो सके. जातेजाते उस की नजर घड़ी पर पड़ी. समय उस के हाथ में न था रोने का. तैयार होतेहोते तनुजा ने सोते हुए मनीष को देखा. उस की बेचैनी से बेखबर मनीष गहरी नींद में थे.

तैयार हो कर उस ने खुद को शीशे में निहारा और खुद पर ही मुग्ध हो गई. कौन कह सकता है कि वह कालेज में पढ़ने वाले बच्चों की मां है? कसी हुई देह, गोल चेहरे पर छोटी मगर तीखी नाक, लंबी पतली गरदन, सुडौल कमर के गिर्द लिपटी साड़ी से झांकते बल. इक्कादुक्का झांकते सफेद बालों को फैशनेबल अंदाज में हाईलाइट करवा कर करीने से छिपा लिया है उस ने. सब से बढ़ कर है जीवन के इस पड़ाव का आनंद लेती, जीवन के हिलोरों को महसूस करते मन की अंगड़ाइयों को जाहिर करती उस की खूबसूरत आंखें. अब बच्चे बड़े हो कर अपने जीवन की दिशा तय कर चुके हैं और मनीष अपने कैरियर की बुलंदियों पर हैं. वह खुद भी एक मुकाम हासिल कर चुकी है. भविष्य के प्रति एक आश्वस्ति है जो उस के चेहरे, आंखों, चालढाल से छलकती है.

मनीष उठ चुके थे. रात के अधूरे इंतजार के आक्रोश को परे धकेल एक मीठी सी मुसकान के साथ उस ने गुडमौर्निंग कहा. मनीष ने एक मोहक नजर उस पर डाली और उठ कर उसे बांहों में भर लिया. रीढ़ में फुरफुरी सी दौड़ गई. कसमसाती इच्छाएं मजबूत बांहों का सहारा पा कर कुलबुलाने लगीं. मनीष की आंखों में झांकते हुए तपते होंठों को उस के होंठों के पास ले जाते शरारत से उस ने पूछा, ‘‘इरादा क्या है?’’ मनीष जैसे चौंक गए, पकड़ ढीली हुई, उस के माथे पर चुंबन अंकित करते, घड़ी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘इरादा तो नेक ही है, तुम्हारे औफिस का टाइम हो गया है, तुम निकल जाना.’’ और वे बाथरूम की तरफ बढ़ गए.

जलते होंठों की तपन को ठंडा करने के लिए आंसू छलक पड़े तनुजा के. कुछ देर वह ऐसे ही खड़ी रही उपेक्षित, अवांछित. फिर मन की खिन्नता को परे धकेल, चेहरे पर पाउडर की एक और परत चढ़ा, लिपस्टिक की रगड़ से होंठों को धिक्कार कर वह कमरे से बाहर निकल गई.

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