अटूट प्यार- भाग 3: यामिनी से क्यों दूर हो गया था रोहित

यामिनी की जिंदगी अजीब हो गई थी. रोहित पर उसे बहुत गुस्सा आता. लेकिन वह उस की यादों से दूर जाता ही नहीं था. उस की आंखों से जबतब आंसू छलक पड़ते. किसी काम में जी नहीं लगता. वह कभी मोबाइल चैक करती, कभी टीवी का चैनल बदलती तो कभी बालकनी में जा कर बाहर का नजारा देखती.

हर पल वह रोहितरोहित कह कर पुकारती. पता नहीं रोहित तक उस की आवाज पहुंचती भी थी या नहीं? वह यामिनी को लेने लौट कर आएगा भी या नहीं? कहीं वह अपनी नई दुनिया न बसा ले. यामिनी के दिल में डर बैठने लगता. फिर वह खुद ही अपने दिल को समझाती कि रोहित ऐसा नहीं है. एक दिन जरूर लौट कर आएगा और उसे अपना बना कर ले जाएगा.

लेकिन जैसेजैसे समय बीत रहा था यामिनी का मन डूबता जा रहा था. उस की उंगलियां रोहित का मोबाइल नंबर डायल करतेकरते शिथिल हो गईं. हर दिन वह उस की कौल आने का इंतजार करती. लेकिन न तो रोहित का कौल आया, न ही वह खुद आया. 2 महीने तक फोन लगालगा कर यामिनी हार गई तो उस ने मोबाइल फोन को छूना भी बंद कर दिया. उसे नफरत सी हो गई मोबाइल फोन से. एक दिन गुस्से में उस ने रोहित का मोबाइल नंबर ही अपने मोबाइल फोन से डिलीट कर दिया.

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दिन बीतते रहे. एक दिन यामिनी के पापा के तबादले की खबर आई. वह उत्तर प्रदेश पुलिस में कौंस्टेबल थे. तबादले की वजह से पूरा परिवार आगरा आ गया.

यामिनी के मन से रोहित की उम्मीद अब लगभग खत्म सी हो गई थी.

आगरा में आ कर यामिनी को लगा कि शायद अपनी बीती जिंदगी को भूलने में अब आसानी हो. वह अकसर सोचती, ‘आगरा में ताजमहल है. कहते हैं वह मोहब्बत का प्रतीक है. लेकिन सचाई तो सारी दुनिया जानती है कि वह एक कब्र है. सही माने में वह मोहब्बत की कब्र है. ऊपर से रौनक है जबकि भीतर में एक दर्द दफन है. तो क्या उस के प्यार का भी यही हश्र होगा?’

घर में यामिनी की शादी की बात जब कभी होती तो उस का मन खिन्न हो जाता. शादी और प्यार दोनों से नफरत होने लगी थी उसे. जो चाहा वह मिला नहीं तो अनचाहे से भला क्या उम्मीद हो? उस ने सब को मना कर दिया कि कोई उस की शादी की बात न करे.

यामिनी को आगरा आए हुए 1 साल बीत चुका था. रोहित 3 साल से जाने किस दुनिया में गुम था. वह सोचती, ‘क्या रोहित को कभी मेरी याद नहीं आती होगी? अगर उस का प्यार छलावा था तो मुझे भुलावे में रखने की क्या जरूरत थी? एक बार अपने दिल की बात कह तो देता. मैं दिल में चाहे जितना भी रोती पर उसे माफ कर देती. कम से कम मेरा भ्रम तो टूट जाता कि प्यार सच्चा भी होता है?’

जब से यामिनी आगरा आई थी वह कहीं आतीजाती नहीं थी. नई जगह, नए लोग और अपने अधूरे प्यार में जलती रहती. कहीं भी उस का मन नहीं लगता. लेकिन एक दिन मां की जिद पर उसे पड़ोस में जाना पड़ा, क्योंकि पड़ोस की संध्या आंटी की बेटी नीला को लड़के देखने वाले आ रहे थे.

मां को लगा कि शायद शादीविवाह का माहौल देख कर यामिनी का मन कुछ बहल जाए. नीला का शृंगार करने की जिम्मेदारी यामिनी को सौंपी गई. अपना साजशृंगार भूल चुकी यामिनी नीला को सजाने में इतनी मसरूफ हुई कि नीला भी उस के कुशल हाथों की मुरीद हो गई. उस की सुंदरता से यामिनी को रश्क सा हो गया. शायद उस में ही कमी थी जो रोहित उस की दुनिया से दूर हो गया.

लड़के वाले आ चुके थे. नीला का शृंगार भी पूरा हो चुका था. नीला की मां चाहती थीं कि वही नीला को ले कर लड़के के पास जाए. यामिनी का जी नहीं कर रहा था. लेकिन संध्या आंटी का जी दुखाने का उस का इरादा न हुआ. वह बेमन से नीला के कंधे पर हाथ रख कर हाल की ओर चल पड़ी.

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सामने सोफे पर बैठे लड़के को देख कर यामिनी गश खा कर गिर पड़ी. जिस का उस ने पलपल इंतजार किया, जिस के लिए आंसू बहाए, अपना सुखचैन छोड़ा और जो जाने क्यों चुपके से उस की जिंदगी से दूर चला गया था, वह बेवफा रोहित उस के सामने बैठा था, नीला के लिए किसी राजकुमार की तरह सज कर.

‘यामिनी… यामिनी…’ आंखें खोलो, तभी कोई मधुर आवाज यामिनी के कानों से टकराई. उस के मुंह पर पानी के छीटे मारे जा रहे थे. उस ने आंखें खोली. चिरपरिचित बांहों में उसे खुद के होने का एहसास हुआ.

‘‘आंखें खोलो यामिनी…’’ फिर वही मधुर आवाज हाल में गूंजी.

यामिनी के होंठ से कुछ शब्द फिसले, ‘‘तुम रोहित हो न?’’

‘‘हां यामिनी…मैं रोहित हूं.’’

यामिनी की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे. वह बोल पड़ी, ‘‘तुम ने मुझ से बेवफाई क्यों की रोहित? कहां चले गए थे तुम मुझे बिना बताए. मैं आज तक तुम्हें ढूंढ़ रही हूं. तुम्हारे दूर जाने के बाद मैं कितना रोई हूं, कितना तड़पी हूं, तुम क्या जानो. अगर तुम मुझ से दूर होना चाहते थे तो मुझे बता देना चाहिए था न. मैं ही पागल थी जो तुम्हारे प्यार में घुलती रही आज तक.’’

‘‘मैं भी बहुत रोया हूं…बहुत तड़पा हूं,’’ रोहित बोला. उस ने कहा, ‘‘क्या वह दिन तुम्हें याद है जब तुम अंतिम बार मुझ से मिली थीं?’’

‘‘हां,’’ यामिनी बोली.

‘‘उस दिन तुम्हारे जाने के ठीक बाद तुम्हारे पापा आए थे 4-5 लोगों के साथ. सभी पुलिस की वरदी में थे.’’

‘‘क्या…’’ हैरानी से यामिनी की आंखें फटी की फटी रह गई.

रोहित ने आगे कहा, ‘‘तुम्हारे पापा ने कहा कि मैं तुम से कभी न मिलूं और तुम्हारी दुनिया से दूर हो जाऊं, नहीं तो अंजाम बुरा होगा. उन के एक सहकर्मी ने हम दोनों को एकसाथ पार्क में देख लिया था और तुम्हारे पापा को बता दिया था. इसीलिए तुम्हारे पापा बेहद नाराज थे. वे मुझे तुम से दूर कर तुम्हारी जल्द शादी कर देना चाहते थे. अब तुम्हीं बताओ यामिनी, मैं क्या करता? पुलिस वालों से मैं कैसे लड़ता वह भी तुम्हारे पापा से. तुम्हारी जिंदगी में कोई तूफान नहीं आए, इसीलिए तुम से दूर जाने के सिवा मेरे पास कोई उपाय नहीं था.’’

‘‘और इसीलिए मैं ने अपना सिम कार्ड तोड़ कर फेंक दिया और दिल पर पत्थर रख कर दिल्ली आ गया. दिल्ली में मैं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगा. 1 साल के बाद मुझे बैंक में पीओ के पद के लिए चुन लिया गया. लेकिन मेरी जिंदगी में तुम नहीं थीं. इसीलिए खुशियां भी मुझ से रूठ गई थीं. हर पल मेरी आंखें तुम्हें ढूंढ़ती रहती थीं. लेकिन फिर खयाल आता कि तुम्हारी शादी हो गई होगी अब तक. यादों के सहारे ही जिंदगी गुजारनी होगी मुझे. पर न जाने क्यों, मेरा दिल यह मानता ही न था. लगता था कि तुम मेरे सिवा किसी और की हो ही नहीं सकती.’’

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‘‘कहीं तुम अब भी मेरा इंतजार न कर रही हो, इसीलिए हिम्मत कर तुम से मिलने इलाहाबाद गया ताकि सचाई का पता चल सके. पर तुम सपरिवार कहीं और जा चुकी थीं. तुम्हें ढूंढ़ने की हर मुमकिन कोशिश के बाद भी जब तुम नहीं मिलीं तो अपने चाचाचाची की जिद पर खुद को हालात के हवाले कर दिया. इसीलिए आज मैं यहां हूं. लेकिन अब तुम मुझे मिल गई. अब कोई मुझे तुम से जुदा नहीं कर सकता.’’

रोहित के मुंह से इन शब्दों को सुन कर यामिनी के दिल को एक सुकून सा  मिला. यामिनी को महसूस होने लगा कि सच में सच्चा प्यार अटूट होता है. लेकिन उस के पापा रोहित को धमकाने गए थे, यह जान यामिनी हैरत में थी. उसे अब रोहित पर गर्व हो रहा था, क्योंकि वह बेवफा नहीं था. वह चाहता तो यामिनी को ढूंढ़ने के बजाए पहले ही कहीं और शादी कर लेता.

मेरा कुसूर क्या है: भाग 2

लेखक- एस भाग्यम शर्मा

‘20 साल की लड़की 12 लोगों का खाना बनाती है और उस से उम्मीद की जाती है कि पूरे घर की साफसफाई,  झाड़ूपोंछा वही लगाए, पूरे घर वालों के कपड़े धोए, देवरों को पढ़ाए.’

ससुर अफसर थे, साथ में, पत्नी के नाम से इंश्योरैंस का काम भी करते थे. पत्नी तो पढ़ीलिखी नहीं थी, सो उस का काम भी मुझ से कराना चाहते हैं. इस के अलावा मुझे कालेज भी जाना पड़ता था अपनी पढ़ाई पूरी करने.’

मेरी मम्मी मेरी हालत जान कर परेशान होतीं और पापा से कहतीं, ‘मैं बात करूं?’

पापा कहते, ‘ऐसे तो संबंध बिगड़ जाएगा. हर बात की तुम्हें जल्दी पड़ी रहती है. शादी की भी जल्दी थी, अब बात करने की भी जल्दी है.’

और लोगों ने भी मम्मी को सम झाया कि जल्दबाजी मत करो. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.

सब से बड़ी बात तो सासससुर को छोड़ो, मेरे पति ने सरकारी नौकरी को छोड़ कर निजी कंपनी में नौकरी कर ली.

इतने में मैं प्रैग्नैंट हो गई. मेरी तबीयत खराब रहने लगी. ऊपर से पढ़ाई और काम करना बहुत मुश्किल हो गया. पीहर वालों की प्रेरणा से किसी प्रकार से मैं ने परीक्षा की तैयारी की. गर्भ को पूरा समय था जब मैं ने एग्जाम दिया.

बहुत मुश्किल से गरमी के दिनों में भी एग्जाम देने जाती थी.

खैर, परीक्षा खत्म होने के हफ्तेभर बाद बेटा पैदा हुआ. उस के पहले मेरी सास ही नहीं, पति और देवर भी कहते थे कि हमारे घर में लड़की होने का रिवाज नहीं है. हमारे घर तो लड़के ही होते हैं. लड़कियां चाहिए भी नहीं.

इन बातों को सुन कर मु झे बहुत घबराहट होती थी.

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मैं मम्मी से कहती, ‘मम्मी, यदि लड़की हो जाए तो ये लोग लड़ाई करेंगे?’ मम्मी परेशान हो जातीं.

वे लोग मु झे पीहर आने नहीं दे रहे थे पर मैं जिद कर के आ गई थी.

बेटा हुआ तो ससुराल वालों को सूचित किया गया. 5 मिनट के लिए सासुमां आईं.

इस के पहले मम्मी ने मेरी जन्मपत्री पंडितजी को दिखाई. उन्होंने बहुत सारे उपचार बताए. मम्मी ने सब पर खर्चा किया. पर उस से कुछ नहीं हुआ.

कोई और आया नहीं. न कोई खर्चा किया, न कोई फंक्शन. मम्मीपापा ने ही सारे खर्चे उठाए. मु झे विदा करते समय भी मम्मी ने बहुतकुछ दिया.

मम्मी नौकरी करती थीं, बावजूद छुट्टी ले कर सबकुछ करना पड़ा, जिस का मु झे बहुत दुख हुआ. ससुराल वाले आ कर मु झे ले गए.

बच्चा रोता तो उस को ले कर पति मुझे खड़े रहने को बोलते. ठंड में मैं बिना कपड़े के ही खड़ी रहती. इन परिस्थितियों में राजीव का ट्रांसफर छोटे गांव में हो गया. वे मु झे वहां ले कर गए.

यह ट्रांसफर राजीव ने जानबू झ कर कराया था ताकि मैं दूरदर्शन और आकाशवाणी में न जा सकूं.

वहां रोज मु झ से लड़ाई करते. सुबह ठंड के दिनों में 4 बजे उठ कर नहाने को कहते. ‘आज चौथ का व्रत है’, ‘आज पूर्णमासी है’, ‘आज एकादशी है…’ रोज कुछ न कुछ होता और मु झे व्रत रखने को मजबूर करते.

मु झे बहुत एसिडिटी होती थी. डाक्टर ने मु झे खाली पेट रहने को मना किया. पर मैं क्या कर सकती थी.

‘हमारे यहां तो सारी औरतें रखती हैं. तुम कोई अनोखी हो क्या? तुम्हें अपनी पढ़ाई का घमंड है.’

मैं जब भी अपनी मम्मी को चिट्ठी लिखती, तो राजीव कहते कि मैं पोस्ट कर दूंगा. मु झे लगता वे कर देंगे, मगर मम्मी ने मु झे बताया कि उन के पास कोई चिट्ठी ही नहीं आई.

मम्मी कोई चिट्ठी भेजतीं तो औफिस के पते पर पोस्ट करने को कहा जाता. मैं ने कहा कि घर के पते पर मंगाओ तो राजीव कहते कि यहां पर ठीक से पोस्टमैन नहीं आता.

मम्मी के पत्रों को भी मु झे नहीं दिया जाता. मेरे पत्रों को संदूक में बंद कर के ताला लगा जाते. इस का तो मु झे पता ही नहीं था.

एक दिन राजीव ताला लगाना भूल गए. मैं ने जो उसे खोल कर देखा तो सारे पत्र उस में थे. मु झे बहुत तेज गुस्सा आया. मैं ने राजीव से औफिस से आते ही कहा तो मु झे गालियां देने लगे और बुरी तरह से पिटाई भी की और बाहर से ताला लगा कर कहीं चले गए.

फिर मैं ने पड़ोसियों को आवाज दी और बोली, ‘‘मेरे पति मेरे सोते समय ताला लगा चले गए. अब उन के आने में देर हो रही है बच्चा रो रहा है. अब प्लीज आप ताला तोड़ दो.’’

कोई सज्जन पुरुष थे. उन्होंने ताला तोड़ दिया तो मैं उन्हें शुक्रिया कह कर जयपुर आ गई.

मम्मीपापा मु झे देख कर दंग रह गए. मेरी मम्मी को तो बहुत गुस्सा आया और वे खूब चिल्लाने लगीं. पापा मेरे सहनशील व्यक्ति थे.

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उन्होंने कहा, ‘आकांक्षा की ससुराल में सूचित कर देता हूं. ऐसे मामले में जल्दबाजी ठीक नहीं.’

ससुराल वालों ने अपने बेटे की गलती को मानने के बदले मेरी सहनशीलता को दोष दिया. खैर, हम ने कुछ नहीं किया.

पापा बोले, ‘ऐसी स्थिति में बेटी को हम बीएड करा कर पैरों पर खड़ा कर देते हैं.’

मैं बीएड की तैयारी में लग गई.

राजीव का पत्र आया कि तुम आ जाओ, सब ठीक हो जाएगा. जब उन्हें पता चला कि मैं बीएड की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही हूं तो ससुराल वालों ने राजीव को हमारे घर पर भेजा.

‘अब मैं ठीक रहूंगा, तुम्हें कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगा. तुम मेरे साथ आ जाओ. मैं तुम्हें नौकरी भी करने दूंगा,’ राजीव कहने लगे.

मैं ने उन से कहा, ‘बगैर बीएड किए मैं यहां से नहीं जाऊंगी.’

राजीव उस समय तो यहां से चले गए. फिर जहां नौकरी करते थे वहां के जिले में कोर्ट केस कर दिया, ‘मेरी पत्नी को मेरे साथ आ कर रहना चाहिए. मैं चाहता हूं वह मेरे साथ रहे.’

सब लोग कहने लगे, ‘वह इतना खराब तो नहीं है. उस ने कोई लांछन नहीं लगाया तुम्हारे ऊपर.’

मेरे घर वालों ने भी कहा कि हम भी ठीकठाक ही जवाब दे देते हैं. ऐसे रिश्ते को तोड़ना ठीक नहीं है. एक बच्चा भी  हो गया.’ मैं कोर्ट में गई. आमनेसामने देख कर सम झौते की बात करने लगा. वकील भी बोले, यही ठीक रहेगा. उस समय राजीव ने सारी बातें मान लीं.

तब सारे रिश्तेदारों ने मु झे सम झाया.

मेरी मम्मी तो ज्योतिष के चक्कर में पड़ गईं. बड़ेबड़े ज्योतिषाचार्य के पास गईं. सब ने कहा कि इस का यह उपचार करो, वह यज्ञ करो. यह दान दो वह दान दो. उस मंदिर में पूजा करो, वहां अर्चना करो…

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मजाक: आज ‘चड्डी दिवस’, कल ‘बनियान दिवस’

लेखक- रामविलास जांगिड़

एक दिन का ‘फादर डे’ भी निबट गया और एक दिन का ‘योगा डे’ भी. फादर नाम के जीव को फिर से वृद्ध आश्रम में जमा करा दें और योगा को भोगा में बदलने का रोगा पाल लें. दोनों का इस्तेमाल कर लिया, फेसबुक पर डाल दिया, ह्वाट्सएप पर सरका दिया, सैल्फीफैल्फी भी ले ली, अब आगे और भी दिन आने वाले हैं, उन की तैयारी में लगना है.

तत्काल इन ‘डेजों’ को लात मार कर ऐसे ही भगाते रहना है. कब तक इन के पीछे पड़े रहेंगे. हमें और भी तो कई दिन मनाने हैं. ‘फादर डे’ पर सैल्फी ले ली है, अब कोई प्राण थोड़े ही देने हैं?

एक दिन का ‘योगा डे’ भी मना लिया बस. रोज योगा करते रहेंगे तो फेसबुक ह्वाट्सएप कौन चलाएगा? सब से ज्यादा जरूरी फेसबुक, ह्वाट्सएप ही हैं. इन के साथ ही हर दिन मनाने के अलगअलग रंगढंग. इन के अलावा संसार में कुछ भी नहीं है. सामने दीवार पर टंगी फादर की तसवीर से नजरें हरगिज न मिलाएं. इन की नसीहतें कौन झेलेगा?

सुबह जल्दी से 10 बजे उठ जाएं. अब बिस्तर के सामने दिखाई देने वाले शौचालय तक पैदल ही जाएं. पैदल चलने के बड़े फायदे होते हैं. नंगे पैर जाएं. इस से आप को उत्तम लाभ होगा.

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शौचालय में अपना मोबाइल फोन ले जाएं. वहीं पर जरूरी चैटिंग साधना पूरी करें. जरूरी ज्ञानबाजी मोबाइल पर फौरवर्ड करें. इस के बाद धीरेधीरे कमरे से बाहर निकलें और उत्तम स्वास्थ्य के लिए पोहा, फाफड़ा, जलेबी वगैरह के साथ बड़ा वाला कप चायकौफी का नाश्ता डकारें.

इस के बाद पेट वाली डकार हरगिज न लें. कचौरी, समोसा वगैरह ले लें. इतना कर लेंगे तो थकना लाजिमी होगा. इसी समय तुरंत ही पलंग पकड़ लें और दोनों हाथों में अपना वही मोबाइल कस लें.

मोबाइल में योग और ध्यान करने के बहुत सारे मैसेजों को इधरउधर फेंकना शुरू करें. ह्वाट्सएप यूनिवर्सिटी में ज्ञान की बातों को समूहों में सप्लाई कर दें. ऐसा करते हुए आप बुरी तरह थक जाएंगे. अब फादर की तसवीर अपने पीछे रखते हुए सीधे लंच पर टूट पड़ें. दाल, चावल, रोटी, दही, सलाद, रायता, पपड़ी, चटनी, अचार, गुलाब जामुन, रसगुल्ला जोजो भी याद आए, वह सब अपने शरीर में जमा कर लें.

शास्त्रों में कहा गया है कि खायापिया ही अंग लगता है, बिना खाए जंग लगता है, इसलिए खाइए उठिए, उठिए खाइए. उठउठ कर खा जाइए, खा कर फिर खाने के लिए उठ जाइए. अभी पोस्ट लंच, प्री डिनर, डिनर और पोस्ट डिनर में आइसक्रीम, लस्सी, कौफी, दाल मखानी, कड़ाही पनीर, परांठा, पनीर टिक्का वगैरह से मन बहलाएं.

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अब समय रात हो गई है और रात में टहलना बहुत जरूरी होता है. बिस्तर से सोफा और सोफे से टीवी तक चल पड़िए. टीवी से किचन तक टहल लीजिए. रात में नंगे पैर न घूमें. चप्पल पहन लें. हाथों में मोबाइल कस कर पकड़े रहिए. कानों पर हैडफोन चढ़ा लीजिए. चैट, सैट, मैट का आखेट कीजिए.

आज ‘बरमूडा दिवस’ है, उस की सैल्फी खींचखांच कर फेसबुक पर टांगते रहिए. दिन, महीने, साल ऐसे ही गुजारते रहिए. आज ‘चड्डी दिवस’, कल ‘बनियान दिवस’. सैल्फियाते रहिए. जब चादर ओढ़ कर सो जाएं तो मोबाइल को फिर कस कर पकड़ लीजिए. ऐसे ही धरती पर बोझ बनते हुए देर रात स्पैशल चैटिंगें करते रहिए. आज रात 2 बजे जल्दी सो गए? अच्छी आदत है.

दिल वर्सेस दौलत: भाग 2

लेखिका- रेणु गुप्ता

‘लेकिन मैं सोच रही हूं अगर अबीर भी दादी की तरह हुआ तो क्या तू खर्चे को ले कर उस की तरफ से किसी भी तरह की टोकाटाकी सह पाएगी? खुद कमाएगी नहीं, खर्चे के लिए अबीर का मुंह देखेगी. याद रख लड़की, बच्चे अपने बड़ेबुजुर्गों से ही आदतें विरासत में पाते हैं. अबीर ने भी अगर तेरे खर्चे पर बंदिशें लगाईं तो क्या करेगी? सोच जरा.’

‘अरे मां, क्या फुजूल की हाइपोथेटिकल बातें कर रही हैं? क्यों लगाएगा वह मु झ पर इतनी बंदिशें? इतना बढि़या पैकेज है उस का. फिर अबीर मु झे अपनी दादी के बारे में बताता रहता है. कहता है, वे बहुत स्नेही हैं. पहली बार जब वे लोग हमारे घर आए थे, दादी ने मु झे कितनी गर्माहट से अपने सीने से चिपकाया था. मेरे हाथों को चूमा था.’

‘तो लाली बेटा, तुम ने पूरापूरा मन बना लिया है कि तुम अबीर से ही शादी करना चाहती हो. सोच लो बेटा, तुम्हारी मम्मा की बातों में भी वजन है. ये पूरी तरह से गलत नहीं. उन के और हमारे घर के रहनसहन में मु झे भी बहुत अंतर लगा. तुम कैसे ऐडजस्ट करोगी?’’ पापा ने कहा था.

‘अरे पापा, मैं सब ऐडजस्ट कर लूंगी. जिंदगी तो मु झे अबीर के साथ काटनी है न. और वह बेहद अच्छा व जैनुइन लड़का है. कोई नशा नहीं है उस में. मैं ने सोच लिया है, मैं अबीर से ही शादी करूंगी.’

‘लाली बेटा, यह क्या कह रही हो? मैं ने दुनिया देखी है. तुम तो अभी बच्ची हो. यह सीने से चिपकाना, आशीष देना, चुम्माचाटी थोड़े दिनों के शादी से पहले के चोंचले हैं. बाद में तो, बस, उन की रोकटोक, हेकड़ी और बंधन रह जाएंगे. फिर रोती झींकती मत आना मेरे पास कि आज सास ने यह कह दिया और दादी सास ने यह कह दिया.

‘और एक बात जो मु झे खाए जा रही है वह है उन का टू बैडरूम का दड़बेनुमा फ्लैट. हर बार त्योहार के मौके पर तु झे ससुराल तो जाना ही पड़ेगा. एक बैडरूम में अबीर के पेरैंट्स रहते हैं, दूसरे में उस की दादी. फिर तू कहां रहेगी? तेरे हिस्से में ड्राइंगरूम ही आएगा? न न न, शादी के बाद मेरी नईनवेली लाडो को अपना अलग एक कमरा भी नसीब न हो, यह मु झे बिलकुल बरदाश्त नहीं होगा.

‘सम झा कर बेटा, हमारे सामने यह खानदान एक चिंदी खानदान है. कदमकदम पर तु झे इस वजह से बहू के तौर पर बहुत स्ट्रगल करनी पड़ेगी. न न, कोई और लड़का देखते हैं तेरे लिए. गलती कर दी हम ने, तु झे अबीर से मिलाने से पहले हमें उन का घरबार देख कर आना चाहिए था. खैर, अभी भी देर नहीं हुई है. मेरी बिट्टो के लिए लड़कों की कोई कमी है क्या?’

‘अरे मम्मा, आप मेरी बात नहीं सम झ रहीं हैं. इन कुछ दिनों में मैं अबीर को पसंद करने लगी हूं. उसे अब मैं अपनी जिंदगी में वह जगह दे चुकी हूं जो किसी और को दे पाना मेरी लिए नामुमकिन होगा. अब मैं अबीर के बिना नहीं रह सकती. मैं उस से इमोशनली अटैच्ड हो गई हूं.’

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‘यह क्या नासम झी की बातें कर रही है, लाली? तू तो मेरी इतनी सम झदार बेटी है. मु झे तु झ से यह उम्मीद न थी. जिंदगी में सक्सैसफुल होने के लिए प्रैक्टिकल बनना पड़ता है. कोरी भावनाओं से जिंदगी नहीं चला करती, बेटा. बात सम झ. इमोशंस में बह कर आज अगर तू ने यह शादी कर ली तो भविष्य में बहुत दुख पाएगी. तु झे खुद अपने पांव पर कुल्हाड़ी नहीं मारने दूंगी. मैं ने बहुत सोचा इस बारे में, लेकिन इस रिश्ते के लिए मेरा मन हरगिज नहीं मान रहा.’

‘मम्मा, यह आप क्या कह रही हैं? मैं अब इस रिश्ते में पीछे नहीं मुड़ सकती. मैं अबीर के साथ पूरी जिंदगी बिताने का वादा कर चुकी हूं. उस से प्यार करने लगी हूं. पापा, आप चुप क्यों बैठे हैं? सम झाएं न मां को. फिर मैं पक्का डिसाइड कर चुकी हूं कि मु झे अबीर से ही शादी करनी है.’

‘अरे भई, क्यों जिद कर रही हो जब यह कह रही है कि इसे अबीर से ही शादी करनी है तो क्यों बेबात अड़ंगा लगा रही हो? अबीर के साथ जिंदगी इसे बितानी है या तुम्हें?’ लाली के पिता ने कहा.

‘आप तो चुप ही रहिए इस मामले में. आप को तो दुनियादारी की सम झ है नहीं. चले हैं बेटी की हिमायत करने. मैं अच्छी तरह से सोच चुकी हूं. उस घर में शादी कर मेरी बेटी कोई सुख नहीं पाएगी. सास और ददिया सास के राज में 2 दिन में ही टेसू बहाते आ जाएगी. जाइए, आप के औफिस का टाइम हो गया. मु झे हैंडल कर लेने दीजिए यह मसला.’

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चेतावनी- भाग 1: मीना उन दोनों के प्रेमसंबंध में क्यों दिलचस्पी लेने लगी?

लेखक- अवनिश शर्मा

उन दोनों की जोड़ी मुझे बहुत जंचती.  पिछले कुछ दिनों से वे दोपहर 1  से 2  के बीच रोज पार्क में आते. युवक कार से और युवती पैदल यहां पहुंचती  थी. दोनों एक ही बैंच पर बैठते  और उन के आपस में बात करने के ढंग को देख कर कोई भी कह सकता कि वे प्रेमीप्रेमिका हैं.

मैं रोज जिस जगह घास पर बैठती थी वहां माली ने पानी दे दिया तो मैं ने जगह बदल ली. मन में उन के प्रति उत्सुकता थी इसलिए उस रोज मैं उन की बैंच के काफी पास शाल से मुंह ढक कर लेटी हुई थी, जब वे दोनों पार्क में आए.

उन के बातचीत का अधिकांश हिस्सा मैं ने सुना. युवती का नाम अर्चना और युवक का संदीप था. न चाहते हुए भी मुझे उन के प्रेमसंबंध में पैदा हुए तनाव व खिंचाव की जानकारी मिल गई.

नाराजगी व गुस्से का शिकार हो कर संदीप कुछ पहले चला गया. मैं ने मुंह पर पड़ा शाल जरा सा हटा कर अर्चना की तरफ देखा तो पाया कि उस की आंखों में आंसू थे.

मैं उस की चिंता व दुखदर्द बांटना चाहती थी. उस की समस्या ने मेरे दिल को छू लिया था, तभी उस के पास जाने से मैं खुद को रोक नहीं सकी.

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मुझ जैसी बड़ी उम्र की औरत के लिए किसी लड़की से परिचय बनाना आसान होता है. बड़े सहज ढंग से मैं ने उस के बारे में जानकारी हासिल की. बातचीत ऐसा हलकाफुलका रखा कि वह भी जल्दी ही मुझ से खुल गई.

इस सार्वजनिक पार्क के एक तरफ आलीशान कोठियां बनी हैं और दूसरी तरफ मध्यमवर्गीय आय वालों के फ्लैट्स हैं. मेरा बड़ा बेटा अमित कोठी में रहता है और छोटा अरुण फ्लैट में.

अर्चना भी फ्लैट में रहती थी. उस की समस्या पर उस से जिक्र करने से पहले मैं उस की दोस्त बनना चाहती थी. तभी जिद कर के मैं साथसाथ चाय पीने के लिए उसे अरुण के फ्लैट पर ले आई.

छोटी बहू सीमा ने हमारे लिए झटपट अदरक की चाय बना दी. कुछ समय हमारे पास बैठ कर वह रसोई में चली गई.

चाय खत्म कर के मैं और अर्चना बालकनी के एकांत में आ बैठे. मैं ने उस की समस्या पर चर्चा छेड़ दी.

‘‘अर्चना, तुम्हारी व्यक्तिगत जिंदगी को ले कर मैं तुम से कुछ बातें करना चाहूंगी. आशा है कि तुम उस का बुरा नहीं मानोगी,’’ यह कह कर मैं ने उस का हाथ अपने दोनों हाथों में ले कर प्यार से दबाया.

‘‘मीना आंटी, आप मुझे दिल की बहुत अच्छी लगी हैं. आप कुछ भी पूछें या कहें, मैं बिलकुल बुरा नहीं मानूंगी,’’ उस का भावुक होना मेरे दिल को छू गया.

‘‘वहां पार्क में मैं ने संदीप और तुम्हारी बातें सुनी थीं. तुम संदीप से प्रेम करती हो. वह एक साल के लिए अपनी कंपनी की तरफ से अगले माह विदेश जा रहा है. तुम चाहती हो कि विदेश जाने से पहले तुम दोनों की सगाई हो जाए. संदीप यह काम लौट कर करना चाहता है. इसी बात को ले कर तुम दोनों के बीच मनमुटाव चल रहा है ना?’’ मेरी आवाज में उस के प्रति गहरी सहानुभूति के भाव उभरे.

कुछ पल खामोश रहने के बाद अर्चना ने चिंतित लहजे में जवाब दिया, ‘‘आंटी, संदीप और मैं एकदूसरे के दिल में 3 साल से बसते हैं. दोनों के घर वालों को हमारे इस प्रेम का पता नहीं है. वह बिना सगाई के चला गया तो मैं खुद को बेहद असुरक्षित महसूस करूंगी.’’

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‘‘क्या तुम्हें संदीप के प्यार पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘भरोसा तो पूरा है, आंटी, पर मेरा दिल बिना किसी रस्म के उसे अकेला विदेश भेजने से घबरा रहा है.’’

मैं ने कुछ देर सोचने के बाद पूछा, ‘‘संदीप के बारे में मातापिता को न बताने की कोई तो वजह होगी.’’

‘‘आंटी, मेरी बड़ी दीदी ने प्रेम विवाह किया था और उस की शादी तलाक के कगार पर पहुंची हुई है. पापा- मम्मी को अगर मैं संदीप से प्रेम करने के बारे में बताऊंगी तो मेरी जान मुसीबत में फंस जाएगी.’’

‘‘और संदीप ने तुम्हें अपने घरवालों से क्यों छिपा कर रखा है?’’

अर्चना ने बेचैनी के साथ जवाब दिया, ‘‘संदीप के पिता बहुत बड़े बिजनेसमैन हैं. आर्थिक दृष्टि से हम उन के सामने कहीं नहीं ठहरते. मैं एम.बी.ए. पूरा कर के नौकरी करने लगूं, तब तक के लिए उस ने अपने मातापिता से शादी का जिक्र छेड़ना टाल रखा था. मेरा एम.बी.ए. अगले महीने समाप्त होगा, लेकिन उस के विदेश जाने की बात के कारण स्थिति बदल गई है. मैं चाहती हूं कि वह फौरन अपने मातापिता से इस मामले में चर्चा छेड़े.’’

अर्चना का नजरिया तो मैं समझ गई लेकिन संदीप ने अभी विदेश जाने से पहले अपने मातापिता से शादी का जिक्र छेड़ने से पार्क में साफ इनकार कर दिया था और उस के इनकार करने के ढंग में मैं ने बड़ी कठोरता महसूस की थी. उस ने अर्चना के नजरिए को समझने की कोशिश भी नहीं की थी. मुझे उस का व्यक्तित्व पसंद नहीं आया था. तभी दुखी व परेशान अर्चना का मनोबल बढ़ाने के लिए मैं ने उस की सहायता करने का फैसला लिया था.

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मेरा 5 वर्षीय पोता समीर स्कूल से लौट आया तो हम आगे बात नहीं कर सके क्योंकि उस की मांग थी कि उस के कपड़े बदलने, खाना परोसने व खिलाने का काम दादी ही करें.

अर्चना अपने घर जाना चाहती थी पर मैं ने उसे यह कह कर रोक लिया कि बेटी, अगर तुम्हें कोई ऐतराज न हो तो मैं भी तुम्हारे साथ चलूं. तुम्हारी मां से मिलने का दिल है मेरा.

Short Story: कोरोना के तांत्रिक बाबा

लेखक- रंगनाथ द्विवेदी

कोरोना के तांत्रिक बाबा मंगरू के 2 चेले भी थे, जिन का नाम खुर्शीद और संजय था. वे दोनों अपने काम में इतने माहिर थे कि कभीकभी तो तांत्रिक गुरु मंगरू की भी खाट खड़ी कर देते थे और इस समय तो कोरोना वायरस जैसी महामारी के चलते इन के तंत्रमंत्र के खेत की फसल खूब लहलहा रही है.

तांत्रिक बाबा के दोनों चेलों ने कोरोना वायरस के तंत्रमंत्र से इलाज से पहले अपने पास रखी पुरानी इनसानी खोपड़ी और हाथ की हड्डी को फेंक कर कब्रिस्तान से एक मजबूत व नई हड्डी और खोपड़ी को ला कर धोयापोंछा और उस का बढि़या सा मेकअप कर दिया.

उसी गांव की ही एक औरत थी, जो तांत्रिक बाबा मंगरू की पुरानी और काफी खेलीखाई हुई कमीशन पर काम करने वाली एजेंट थी. वह दूसरी औरतों को  झाड़फूंक के नाम पर फुसलाने में माहिर थी.

तांत्रिक मंगरू के दोनों चेलों ने उस औरत से मिल कर पूरी योजना सम झाई और कहा कि वह शाम तक 10-12 औरतों का इंतजाम कर के उन्हें मंगरू से मिलवाए और यह बताए कि वे बहुत पहुंचे हुए तांत्रिक हैं, जिन्होंने बड़ेबड़े भूतप्रेत के अलावा कोरोना की भी शैतानी बाधा पर अपनी घोर शैतानी तपस्या से जीत पा ली है. उन्होंने तमाम घरगांव से न जाने कितने लोगों को कोरोना की शैतानी ताकत से नजात दिलाई है और वहां से हमेशा के लिए कोरोना को खत्म कर दिया है.

उन्होंने यह भी बताने को कहा कि कोरोना के तांत्रिक बाबा बंगाल, असम की तंत्र साधना जानने के अलावा लाल किताब के भी बड़े पहुंचे हुए जानकार हैं. वे एक हफ्ते तक ही इस गांव में रुकेंगे, फिर एक अनजानी अंधेरी गुफा में कोरोना के शैतान को मंत्र से बांधने के लिए चले जाएंगे.

रात को तकरीबन 9 बजे वह औरत 20 औरतों के साथ बाबा मंगरू के आश्रम में आई. उस आश्रम में घुसते ही जैसे सभी औरतों की बुद्धि 50 फीसदी कोरोना के तांत्रिक बाबा मंगरू के वश में हो गई. इस की वजह थी अंदर का फैला वह धुआं, जो औरतें सम झ रही थीं कि जादू था.

कोरोना के तांत्रिक बाबा मंगरू भी अपनी तंत्रमंत्र के उस ड्रैस में थे, जो अकसर किसी सुपरहिट भुतहा फिल्म के तांत्रिकों की होती है. इतना ही नहीं, उन्होंने अपने पास तंत्रमंत्र साधना के वे सभी अस्त्रशस्त्र भी रखे हुए थे, जिन्हें देख कर कोई साधारण आदमी बुरी तरह से डर जाए.

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कोरोना के तांत्रिक बाबा मंगरू ने अपने घनघोर नाटकीय अंदाज में  कोरोना वायरस की ऐसीतैसी कर देने के लिए सिंदूर से एक लाल सुर्ख आड़ीतिरछी रेखा खींची, जो देखने से ही बहुत डरावनी लग रही थी. उस में से ऐसी चमक निकल रही थी, मानो वहां कोई रोशनी हो गई हो.

फिर मुरदे की हड्डी से उस सिंदूरी रेखा के चारों तरफ अपने हाथों को घुमाना, चीखना, खोपड़ी को छूना, 3 नीबू, एक कागज में रखी लौंग, कपूर, अगरबत्ती… यह कोरोना वायरस को तंत्रमंत्र और इस देश से भगाने की उठापटक का एक अजीब सा सीन था.

तभी बाबा की चेली वह औरत अपने फिक्स तांत्रिक व नाटकीय तरीके से बाल खोले गाली देती हुई सिंदूर वाले घेरे के पास पहुंची और जोरजोर से अजीबअजीब आवाजें निकालने लगी. सारी औरतें एकटक डरीसहमी सी उस को देखने लगीं.

तभी वह औरत उठी और कोरोना के तांत्रिक बाबा मंगरू से उल झ गई. तांत्रिक जैसे हवा में कोरोना वायरस रूपी शैतान और उस के आसपास की चुड़ैलों को कहने लगा, ‘‘जा… मेरे तंत्रमंत्र को चैलेंज मत कर, नहीं तो तुम्हें नष्ट कर दूंगा…’’

इतना कहते ही कोरोना के तांत्रिक बाबा मंगरू ने पास में रखी हुई राख उस औरत पर फेंकी और हाथ से श्मशान वाली हड्डी से उसे पीटा. वह औरत गुर्राते हुए बेहोश हो गई.

उस औरत के बेहोश होते ही कोरोना के तांत्रिक बाबा मंगरू ने अपने तांत्रिक चेलों से चाकू मांगा, फिर उस चाकू से तीनों नीबू में से एक नीबू को काटा तो लाल खून बहने लगा.

इस से वहां मौजूद तमाम औरतों को लगा जैसे उस औरत के अंदर बैठे कोरोना के शैतान व उस के साथ की चुड़ैल को बाबा ने अपने चाकू से काट दिया हो.

उस खून को उन्होंने सिंदूर में मिलाया, फिर दूसरे नीबू को उस औरत के ऊपर काट कर निचोड़ा तो वह औरत अचानक सकपका कर उठी, फिर इस के बाद उस ने कहा, ‘‘मैं कहां हूं? मु झे  क्या हुआ?’’

उस औरत के इतना पूछते ही कोरोना के तांत्रिक बाबा मंगरू ने  झट से तीसरा नीबू काट कर उस खोपड़ी के ऊपर निचोड़ दिया. इतना करते ही वह खोपड़ी और भी खतरनाक और डरावनी दिखने लगी.

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फिर बाबा मंगरू के दोनों चेले पैसे ऐंठने के अपने हुनर का इस्तेमाल करने लगे. जब वे इस काम को निबटा कर फारिग हुए, उस के तुरंत बाद ही वह औरत भी अपना हिस्सा लेने आ गई.

ज्यों ही उसे अपने हिस्से का पैसा मिला, वह खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली, ‘‘ये औरतें भी कितनी बेवकूफ होती हैं. अगर ये न हों तो इस तरह कमाने का मौका ही न मिले,’’ इतना कह कर वह अपने घर चली आई.

इस के बाद उस गांव से कोरोना वायरस के शैतान को तंत्रमंत्र से भगाने  के नाम पर बाबा मंगरू ने अपने दोनों चेलों और उस औरत की मिलीभगत से 80,000 रुपए ऐंठ लिए, जबकि वे जानते थे कि कोरोना का इलाज डाक्टर ही कर सकते हैं.

मजाक- लॉकडाउन: शटर डाउन  

सुरेश सौरभ अपनी परचून की दुकान के बाहर दुकानदार बैठा है. उस की दुकान का शटर डाउन है. जैसे ही कोई ग्राहक सामने से दिखता है, उसे रोक कर वह फौरन दुकान की साइड वाली खिड़की से अंदर जा कर, उसी खिड़की से धीरेधीरे सामान सरकाते  हुए अपने ग्राहक को फौरन ही निबटा  देता है. ज्वैलरी वाला अपनी दुकान के खाली पड़े प्लाट में बैठा है.

वह अपने 1-1 परमानैंट कस्टमर को फोन करकर के बुला रहा है. अपने बैग में रखे जेवर दिखादिखा कर ग्राहकों को धीरेधीरे निबटा रहा है. उस की दुकान का शटर डाउन है. दूध डेरी खुली है, सरकारी आदेश पर. उस के पास में मिठाई वाले की दुकान बंद है. मिठाई वाले ने डेरी वाले को कमीशन बेस पर अपनी मिठाइयां सौंप दी हैं.  डेरी वाले ने कपड़े से उस की सारी मिठाइयां ढक दी हैं. अब अपने दूध के साथ उस की मिठाइयों को भी ग्राहकों तक पहुंचाने का सुफल हासिल कर रहा है.

मोटर साइकिल का पंचर बनाने वाला भला आदमी अपनी दुकान के पास ही सुलभ शौचालय के नजदीक कुरसी डाले मजे से बैठा है. वहां से अपनी दुकान के आसपास जब किसी पंचर गाड़ी वाले को ठिठकते देखता है, तो वह वैसे ही उस कस्टमर को सीटी बजा कर इशारे से बुलाता है और उस की सारी टैंशन का समाधान करने के लिए पास ही की एक पतली गली के अंदर उसे ले कर समा जाता है.

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सरकारी छूट पर ही फलों की रेहड़ी जहांतहां लगी है. उस रेहड़ी वाले से गोलगप्पे वाले ने तय शर्तों पर अपने कुछ भगौने उस की रेहड़ी पर रख दिए हैं, जिन में ताजा गोलगप्पे और गोलगप्पों में भरने के लिए मसाला, पानी, मटर, आलू आदि रखा है.  जो कस्टमर फल लेने आता, उन में से कुछ ग्राहकों को गोलगप्पे वाला पकड़ कर निबटा देता है. दूर से पता यही चल रहा है कि फल का ठेला लगा है. होटल वालों ने तो अपना शटर डाउन कर के नाश्तेखाने की होम डिलीवरी शुरू कर दी है. चाट, डोसे के ठेलेस्टाल  वालों ने अपने घर पर ही धंधा शुरू कर दिया है.

अपनेअपने महल्ले में घरघर जा कर कह दिया है, अगर ताजा चाट और डोसा खाना है, तो धीरेधीरे सरकते हुए हमारे घर तक आने की जहमत करें. उन के यहां सोशल डिस्टैंसिंग का पालन करते हुए धीरेधीरे कस्टमर आ रहे हैं. इसी तरह मीट और चिकन वालों ने भी अपनीअपनी दुकानों का शटर डाउन कर के अपने घरों पर ही धंधा शुरू कर दिया है, सारे कस्टमर फोन से बुलाए जा रहे हैं और धड़ाधड़ माल की सप्लाई हो रही है. कपड़े की दुकान का शटर डाउन है.

बंद शटर की रखवाली में बाहर गार्ड बैठा है. अगर भूलाबिसरा कस्टमर कोई आ जाए, तो वह गार्ड उसे पीछे के दरवाजे से अंदर दुकान में भेज देता है, जहां  कपड़ों की खरीदारी चल रही है. ‘‘पैंट की चैन बनवा लो, बैग की चैन लगवा लो…’’ यह चिल्लाते हुए एक आदमी मेरी कालोनी में अपने गले में बैग डाले घूम रहा था.  मैं ने उस से पूछा, ‘‘लौकडाउन का नियम तोड़ कर दुकानदारी क्यों कर रहे हो मेरे भाई?’’ वह बोला, ‘‘धंधे के टाइम में डिस्टर्ब न करो बड़े भाई.

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मेरे लिए जब सरकार की कोई गाइडलाइन ही नहीं है, तो मेरे लिए काहे का लौकडाउन…’’ शौपिंग माल वालों की मेन रोड पर दुकानें धुआंधार चल रही थीं. लौकडाउन के बाद उन का शटर डाउन है. अब वे पतलीपतली संकरी गलियों में परचून दुकान की तरह अपनी छोटीछोटी ब्रांचें डाल रहे हैं, जहां खिड़कियों से सामान सप्लाई हो रहा है, क्योंकि सयाने कहते हैं कि खिड़कियों से सामान आसानी से निकाला यानी बेचा जा सकता है और इस से पुलिस से सौ फीसदी तक बचा जा सकता है.

अटूट बंधन- भाग 2: प्रकाश ने कैसी लड़की का हाथ थामा

शालिनी को ऐसा लगा जैसे त्रिशा उस से कुछ छिपा रही थी. फिर भी त्रिशा को छेड़ने के लिए गुदगुदाते हुए उस ने कहा, ‘‘अब इतनी भी उदास मत हो जाओ, उन को याद कर के. जानती हूं भई, याद तो आती है, पर अब कुछ ही दिन तो बाकी हैं न.’’ त्रिशा अपनी आदत के अनुसार मुसकरा उठी. शालिनी को जरा परे धकेलते हुए बोली, ‘‘जाओ, मैं नहीं करती तुम से बात. जब देखो एक ही रट.’’

तभी अचानक त्रिशा का मोबाइल बज उठा. ‘‘उफ, कितनी लंबी उम्र है उन की. नाम लिया और फोन हाजिर,’’ शालिनी उछल पड़ी. ‘‘खूब इत्मीनान से जी हलका कर लो. मैं तो चली,’’ कहती हुई शालिनी कमरे से बाहर निकल गई.

दरअसल, बात यह थी कि कुछ ही दिनों में त्रिशा का प्रेमविवाह होने वाला था. डा. आजाद, जिन से जल्द ही त्रिशा का विवाह होने वाला था, लखनऊ विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक थे. त्रिशा और आजाद ने दिल्ली के एक स्पैशल स्कूल से साथसाथ ही पढ़ाई पूरी की थी. उस के बाद आजाद अपने घर लखनऊ वापस आ गए थे. वहीं से उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की और फिर अपनी रिसर्च भी पूरी की. रिसर्च पूरी करने के कुछ ही दिनों बाद उन्हें यूनिवर्सिटी में ही जौब मिल गई. ऐसा लगता था कि त्रिशा और आजाद एकदूसरे के लिए ही बने थे.

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स्कूल में लगातार पनपने वाला लगाव और आकर्षण एकदूसरे से दूर हो कर प्यार में कब बदल गया, पता ही नहीं चला. शीघ्र ही दोनों ने विवाह के अटूट बंधन में बंधने का फैसला कर लिया. दोनों के न देख पाने के कारण जाहिर है परिवार वालों को स्वीकृति देने में कुछ समय तो लगा, पर उन दोनों के आत्मविश्वास और निश्छल प्रेम के आगे एकएक कर सब को झुकना ही पड़ा.

त्रिशा के बेंगलुरु आने के बाद आजाद बहुत खुश थे. ‘‘चलो अच्छा है, वहां तुम्हें इतने अच्छे दोस्त मिल गए हैं. अब मुझे तुम्हारी इतनी चिंता नहीं करनी पड़ेगी.’’ ‘‘अच्छी बात तो है, पर इस बेफिक्री का यह मतलब नहीं कि आप हमें भूल जाएं,’’ त्रिशा आजाद को परेशान करने के लिए यह कहती तो आजाद का जवाब हमेशा यही होता, ‘‘खुद को भी कोई भूल सकता है क्या.’’

आज जब त्रिशा आजाद से बात कर रही थी तो आजाद को समझते देर न लगी कि त्रिशा आज उन से कुछ छिपा रही है, ‘‘क्या बात है, आज तुम कुछ परेशान हो?’’ ‘‘नहीं तो.’’

‘‘त्रिशा, इंसान अगर खुद से ही कुछ छिपाना चाहे तो नहीं छिपा सकता,’’ आजाद की आवाज में कुछ ऐसा था, जिसे सुन कर त्रिशा की आंखें डबडबा आईं. ‘‘मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है. मैं आप से कल बात करती हूं,’’ यह कह कर त्रिशा ने फोन डिसकनैक्ट कर दिया. अगले दिन त्रिशा और प्रकाश के बीच औफिस में भी कोई बात नहीं हुई. ऐसा पहली बार ही हुआ था. प्रकाश का मिजाज आज एकदम उखड़ाउखड़ा था.

‘‘चलो,’’ शाम को उस ने त्रिशा के पास आ कर कहा. रास्तेभर दोनों ने कोई बात नहीं की. होस्टल आने ही वाला था कि त्रिशा ने खीझ कर कहा, ‘‘तुम कुछ बोलोगे भी कि नहीं?’’ ‘‘मुझे तुम्हारा जवाब चाहिए.’’

कितनी डूबती हुई आवाज थी प्रकाश की. 3 साल में त्रिशा ने प्रकाश को इतना खोया हुआ कभी नहीं देखा था. पिछले 2 दिन में प्रकाश में जो बदलाव आए थे, उन पर गौर कर के त्रिशा सहम गई. ‘क्या वाकई प्रकाश… क्या प्रकाश… नहीं, ऐसा नहीं हो सकता,’ त्रिशा का मन विचलित हो उठा. ‘मुझे तुम से कल बात करनी है. कल छुट्टी भी है. कल सुबह 11 बजे मिलते हैं. गुडनाइट,’’ कहते हुए त्रिशा गाड़ी से उतर गई.

जैसा तय था, अगले दिन दोनों 11 बजे मिले. बिना कुछ कहेसुने दोनों के कदम अनायास ही पार्क की ओर बढ़ते चले गए. त्रिशा के होस्टल से एक किलोमीटर की दूरी पर ही शहर का सब से बड़ा व खूबसूरत पार्क था. ऐसे ही छुट्टी के दिनों में न जाने कितनी ही बार वे दोनों यहां आ चुके थे. पार्क के भीतरी गेट पर पहुंच कर दोनों को ऐसा लगा जैसे आज असाधारण भीड़ उमड़ पड़ी हो. भीड़भाड़ और चहलपहल तो हमेशा ही रहती है यहां, पर आज की भीड़ में कुछ खास था. सैकड़ों जोड़े एकदूसरे के हाथों में हाथ डाले अंदर चले जा रहे थे. बहुतों के हाथ में गुलाब का फूल, किसी के पास चौकलेट तो किसी के हाथ में गिफ्ट पैक. पर प्रकाश का मन इतना अशांत था कि वह कुछ समझ ही नहीं सका.

हवा जोरों से चलने लगी थी. बादलों की गड़गड़ाहट सुन कर ऐसा मालूम होता था कि किसी भी पल बरस पड़ेंगे. मौसम की तरह प्रकाश का मन भी आशंकाओं से घिर आया था. त्रिशा को लगा, शायद आज यहां नहीं आना चाहिए था. तभी अचानक उस का मोबाइल बज उठा. ‘‘हैप्पी वैलेंटाइंस डे, मैडम,’’ आजाद की आवाज थी. ‘‘ओह, मैं तो बिलकुल भूल ही गई थी,’’ त्रिशा बोली.

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‘‘आजकल आप भूलती बहुत हैं. कोई बात नहीं. अब आप का गिफ्ट नहीं मिलेगा, बस, इतनी सी सजा है,’’ आजाद ने आगे कहा, ‘‘अच्छा, अभी हम थोड़ा जल्दी में हैं. शाम को बात करते हैं.’’ आज बैंच खाली मिलने का तो सवाल नहीं था. सो, साफसुथरी जगह देख दोनों घास पर ही बैठ गए. त्रिशा अकस्मात पूछ बैठी, ‘‘क्या तुम वाकई सीरियस हो?’’

‘‘तुम समझती हो कि मैं मजाक कर रहा हूं?’’ प्रकाश का स्वर रोंआसा हो उठा.

Romantic Story: रुह का स्पंदन- भाग 3

घर वालों की सहमति पर सुदेश और दक्षा ने मिल कर बातें करने का निश्चय किया. सुदेश सुबह ही मिलना चाहता था, लेकिन दक्षा ने ब्रेकफास्ट कर के मिलने की बात कही. क्योंकि वह पूजापाठ कर के ही ब्रेकफास्ट करती थी. सुदेश में दक्षा से मिलने के लिए गजब का उत्साह था. दक्षा की बातों और उस के स्वभाव ने आकर्षण तो पैदा कर ही दिया था. इस के अलावा दक्षा ने अपने जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण बातें मिल कर बताने को कहा था. वो बातें कौन सी थीं, सुदेश उन बातों को भी जानना चाहता था.

निश्चित की गई जगह पर सुदेश पहले ही पहुंच गया था. वहां पहुंच कर वह बेचैनी से दक्षा की राह देख रहा था. वह काले रंग की शर्ट और औफ वाइट कार्गो पैंट पहन कर गया था. रेस्टोरेंट में बैठ कर वह हैडफोन से गाने सुनने में मशगूल हो गया. दक्षा ने काला टौप पहना था, जिस के लिए उस की मम्मी ने टोका भी था कि पहली बार मिलने जा रही है तो जींस टौप, वह भी काला.

तब दक्षा ने आदत के अनुसार लौजिकल जवाब दिया था, ‘‘अगर मैं सलवारसूट पहन कर जाती हूं और बाद में उसे पता चलता है कि मैं जींस टौप भी पहनती हूं तो यह धोखा देने वाली बात होगी. और मम्मी इंसान के इरादे नेक हों तो रंग से कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

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तर्क करने में तो दक्षा वकील थी. बातों में उस से जीतना आसान नहीं था. वह घर से निकली और तय जगह पर पहुंच गई. सढि़यां चढ़ कर दरवाजा खोला और रेस्टोरेंट में अंदर घुसी. फोटो की अपेक्षा रियल में वह ज्यादा सुंदर और मस्ती में गाने के साथ सिर हिलाती हुई कुछ अलग ही लग रही थी.

अचानक सुदेश की नजर दक्षा पर पड़ी तो दोनों की नजरें मिलीं. ऐसा लगा, दोनों एकदूसरे को सालों से जानते हों और अचानक मिले हों. दोनों के चेहरों पर खुशी छलक उठी थी.

खातेपीते दोनों के बीच तमाम बातें हुईं. अब वह घड़ी आ गई, जब दक्षा अपने जीवन से जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें उस से कहने जा रही थी. वहां से उठ कर दोनों एक पार्क में आ गए थे, जहां दोनों कोने में पेड़ों की आड़ में रखी एक बेंच पर बैठ गए. दक्षा ने बात शुरू की, ‘‘मेरे पापा नहीं हैं, सुदेश. ज्यादातर लोगों से मैं यही कहती हूं कि अब वह इस दुनिया में नहीं है, पर यह सच नहीं है. हकीकत कुछ और ही है.’’

इतना कह कर दक्षा रुकी. सुदेश अपलक उसे ही ताक रहा था. उस के मन में हकीकत जानने की उत्सुकता भी थी. लंबी सांस ले कर दक्षा ने आगे कहा, ‘‘जब मैं मम्मी के पेट में थी, तब मेरे पापा किसी और औरत के लिए मेरी मम्मी को छोड़ कर उस के साथ रहने के लिए चले गए थे.

‘‘लेकिन अभी तक मम्मीपापा के बीच डिवोर्स नहीं हुआ है. घर वालों ने मम्मी से यह कह कर उन्हें अबार्शन कराने की सलाह दी थी कि उस आदमी का खून भी उसी जैसा होगा. इस से अच्छा यही होगा कि इस से छुटकारा पा कर दूसरी शादी कर लो.’’

दक्षा के यह कहते ही सुदेश ने उस की तरफ गौर से देखा तो वह चुप हो गई. पर अभी उस की बात पूरी नहीं हुई थी, इसलिए उस ने नजरें झुका कर आगे कहा, ‘‘पर मम्मी ने सभी का विरोध करते हुए कहा कि जो कुछ भी हुआ, उस में पेट में पल रहे इस बच्चे का क्या दोष है. यानी उन्होंने गर्भपात नहीं कराया. मेरे पैदा होने के बाद शुरू में कुछ ही लोगों ने मम्मी का साथ दिया. मैं जैसेजैसे बड़ी होती गई, वैसेवैसे सब शांत होता गया.

‘‘मेरा पालनपोषण एक बेटे की तरह हुआ. अगलबगल की परिस्थितियां, जिन का अकेले मैं ने सामना किया है, उस का मेरी वाणी और व्यवहार में खासा प्रभाव है. मैं ने सही और गलत का खुद निर्णय लेना सीखा है. ठोकर खा कर गिरी हूं तो खुद खड़ी होना सीखा है.’’

अपनी पलकों को झपकाते हुए दक्षा आगे बोली, ‘‘संक्षेप में अपनी यह इमोशनल कहानी सुना कर मैं आप से किसी तरह की सांत्वना नहीं पाना चाहती, पर कोई भी फैसला लेने से पहले मैं ने यह सब बता देना जरूरी समझा.

‘‘कल कोई दूसरा आप से यह कहे कि लड़की बिना बाप के पलीबढ़ी है, तब कम से कम आप को यह तो नहीं लगेगा कि आप के साथ धोखा हुआ है. मैं ने आप से जो कहा है, इस के बारे में आप आराम से घर में चर्चा कर लें. फिर सोचसमझ कर जवाब दीजिएगा.’’

सुदेश दक्षा की खुद्दारी देखता रह गया. कोई मन का इतना साफ कैसे हो सकता है, उस की समझ में नहीं आ रहा था. अब तक दोनों को भूख लग आई थी. सुदेश दक्षा को साथ ले कर नजदीक की एक कौफी शौप में गया. कौफी का और्डर दे कर दोनों बातें करने लगे तभी अचानक दक्षा ने पूछा था, ‘‘डू यू बिलीव इन वाइब्स?’’

सुदेश क्षण भर के लिए स्थिर हो गया. ऐसी किसी बात की उस ने अपेक्षा नहीं की थी. खासकर इस बारे में, जिस में वह पूरी तरह से भरोसा करता हो. वाइब्स अलौकिक अनुभव होता है, जिस में घड़ी के छठें भाग में आप के मन को अच्छेबुरे का अनुभव होता है. किस से बात की जाए, कहां जाया जाए, बिना किसी वजह के आनंद न आए और इस का उलटा एकदम अंजान व्यक्ति या जगह की ओर मन आकर्षित हो तो यह आप के मन का वाइब्स है.

यह कभी गलत नहीं होता. आप का अंत:करण आप को हमेशा सच्चा रास्ता सुझाता है. दक्षा के सवाल को सुन कर सुदेश ने जीवन में एक चांस लेने का निश्चय किया. वह जो दांव फेंकने जा रहा था, अगर उलटा पड़ जाता तो दक्षा तुरंत मना कर के जा सकती थी. क्योंकि अब तक की बातचीत से यह जाहिर हो गया था. पर अगर सब ठीक हो गया तो सुदेश का बेड़ा पार हो जाएगा.

सुदेश ने बेहिचक दक्षा से उस का हाथ पकड़ने की अनुमति मांगी. दक्षा के हावभाव बदल गए. सुदेश की आंखों में झांकते हुए वह यह जानने की कोशिश करने लगी कि क्या सोच कर उस ने ऐसा करने का साहस किया है. पर उस की आंखो में भोलेपन के अलावा कुछ दिखाई नहीं दिया. अपने स्वभाव के विरुद्ध उस ने सुदेश को अपना हाथ पकड़ने की अनुमति दे दी.

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दोनों के हाथ मिलते ही उन के रोमरोम में इस तरह का भाव पैदा हो गया, जैसे वे एकदूसरे को जन्मजन्मांतर से जानते हों. दोनों अनिमेष नजरों से एकदूसरे को देखते रहे. लगभग 5 मिनट बाद निर्मल हंसी के साथ दोनों ने एकदूसरे का हाथ छोड़ा. दोनों जो बात शब्दों में नहीं कह सके, वह स्पर्श से व्यक्त हो गई.

जाने से पहले सुदेश सिर्फ इतना ही कह सका, ‘‘तुम जो भी हो, जैसी भी हो, किसी भी प्रकार के बदलाव की अपेक्षा किए बगैर मुझे स्वीकार हो. रही बात तुम्हारे पिछले जीवन के बारे में तो वह इस से भी बुरा होता तब भी मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता. बाकी अपने घर वालों को मैं जानता हूं. वे लोग तुम्हें मुझ से भी अधिक प्यार करेंगे. मैं वचन देता हूं कि बचपन से ले कर अब तक अधूरे रह गए सपनों को मैं हकीकत का रंग देने की कोशिश करूंगा.’’

सुदेश और दक्षा के वाइब्स ने एकदूसरे से संबंध जोड़ने की मंजूरी दे दी थी.

पुनर्मरण- भाग 1: शुचि खुद को क्यों अपराधी समझती थी?

कुछ सजा ऐसी भी होती है जो बगैर किसी अपराध के ही तय कर दी जाती है. उस दिन अपने परिवार के सामने मैं भी बिना किसी किए अपराध की सजा के रूप में अपराधिनी बनी खड़ी थी. हर किसी की जलती निगाहें मुझे घूर रही थीं, मानो मुझ से बहुत बड़ा अपराध हो गया हो.

मांजी की चलती तो शायद मुझे घर से निकाल दिया होता. मेरे दोनों बेटे त्रिशंक और आदित्य आंगन में अपनी दादी के साथ खड़े थे. पंडितजी कुरसी पर बैठे थे और मांजी को समझा रहे थे कि जो हुआ अच्छा नहीं हुआ. अब विभु की आत्मा की शांति के लिए उन्हें हवन- पूजा करनी होगी.. भारी दान देना होगा, क्योंकि आप की बहू के हाथों भारी पाप हो गया है.

मेरा अपना बड़ा बेटा त्रिशंक मुझे हिकारत से देखते हुए क्रोध में बोला, ‘‘मेरा अधिकार आप का कैसे हो गया, मां? यह आप ने अच्छा नहीं किया.’’

‘‘परिस्थितियां ऐसी थीं जिन में एक के अधिकार के लिए दूसरे के शरीर की दुर्गति तो मैं नहीं कर सकती थी, बेटे,’’ भीगी आंखों से बेटे को देखते हुए मैं ने कहा.

‘‘मजबूरी का नाम दे कर अपनी गलती पर परदा मत डालिए, मां.’’

तभी मांजी गरजीं, ‘‘बड़ी आंदोलनकारी बनती है. अरे, इस से पूछ त्रिशंक कि विभु के कुछ अवशेष भी साथ लाई है या सब वहीं गंगा में बहा आई.’’

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‘‘बोलो न मां, चुप क्यों हो? दो जवाब दादी की बातों का.’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हो भैया, आखिर पापा पर पहला हक तो मां का ही था न?’’

‘‘चुप बेसऊर,’’ मांजी फिर गरजीं, ‘‘पति की मौत पर पत्नी को होश ही कहां होता है जो वह उस का अंतिम संस्कार करे, इसे तो कोई दुख ही न हुआ होगा, आजाद जो हो गई. अब करेगी समाज सेवा जम कर.’’

‘‘चुप रहिए,’’ मेरी सहनशक्ति जवाब दे गई और मैं गरज पड़ी, ‘‘मेरा कुसूर क्या है? किस बात की सजा दे रहे हैं आप सब मुझे. यही न कि मैं ने अपने पति का उन की मौत के बाद अंतिम संस्कार क्यों कर दिया, तो सुनिए, वह मेरी मजबूरी थी. क्षतविक्षत खून से सनी लाश को मैं 2 दिन तक कैसे संभालती. कटरा से कोलकाता की दूरी कितनी है, क्या आप सब नहीं जानते? मेरे पास कोई साधन नहीं था. कैसे ले कर आती उन्हें यहां तक? फिर अपने पति का, जो मेरे जीवनसाथी थे, हर दुखसुख के भागीदार थे, अंतिम संस्कार कर के मैं ने क्या गलत कर दिया?’’

मेरी आवाज भर्रा गई और मैं ऊपर अपने कमरे में आ गई. मेरी दोनों बहुएं रेवती और रौबिंका भी मेरे पीछेपीछे ऊपर आ गईं. मेरी छोटी बहू रशियन थी. उस की समझ में जब कुछ नहीं आया तो वह अंगरेजी में बस यही कहती रही, ‘‘पापा की आत्मा के लिए प्रार्थना करो, वही ज्यादा जरूरी है, यह कलह क्यों हो रही है.’’

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मैं उसे क्या समझाती कि यहां हर धार्मिक अनुष्ठान शोरगुल और चिल्लाहट से ही शुरू होता है. कहीं पढ़ा था कि झूठ को जोर से बोलो तो वह सच बन जाता है. यही पूजापाठ का मंत्र भी है, जो पुजारी जितनी जोर से मंत्र पढे़गा, वह उतना ही बड़ा पंडित माना जाएगा.

मेरी आंखों में आंसू आ गए जो मेरे गालों पर बह निकले. विभु की मौत हो गई है. मेरा सबकुछ चला गया, मैं इस का शोक भी शांति से नहीं मना पा रही हूं. कमरे की खिड़की का परदा जरा सा खिसका हुआ था. दूर गगन में देखते हुए मैं अतीत में चली गई.

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