लेखक- रामविलास जांगिड़

एक दिन का 'फादर डे' भी निबट गया और एक दिन का 'योगा डे' भी. फादर नाम के जीव को फिर से वृद्ध आश्रम में जमा करा दें और योगा को भोगा में बदलने का रोगा पाल लें. दोनों का इस्तेमाल कर लिया, फेसबुक पर डाल दिया, ह्वाट्सएप पर सरका दिया, सैल्फीफैल्फी भी ले ली, अब आगे और भी दिन आने वाले हैं, उन की तैयारी में लगना है.

तत्काल इन 'डेजों' को लात मार कर ऐसे ही भगाते रहना है. कब तक इन के पीछे पड़े रहेंगे. हमें और भी तो कई दिन मनाने हैं. 'फादर डे' पर सैल्फी ले ली है, अब कोई प्राण थोड़े ही देने हैं?

एक दिन का 'योगा डे' भी मना लिया बस. रोज योगा करते रहेंगे तो फेसबुक ह्वाट्सएप कौन चलाएगा? सब से ज्यादा जरूरी फेसबुक, ह्वाट्सएप ही हैं. इन के साथ ही हर दिन मनाने के अलगअलग रंगढंग. इन के अलावा संसार में कुछ भी नहीं है. सामने दीवार पर टंगी फादर की तसवीर से नजरें हरगिज न मिलाएं. इन की नसीहतें कौन झेलेगा?

सुबह जल्दी से 10 बजे उठ जाएं. अब बिस्तर के सामने दिखाई देने वाले शौचालय तक पैदल ही जाएं. पैदल चलने के बड़े फायदे होते हैं. नंगे पैर जाएं. इस से आप को उत्तम लाभ होगा.

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शौचालय में अपना मोबाइल फोन ले जाएं. वहीं पर जरूरी चैटिंग साधना पूरी करें. जरूरी ज्ञानबाजी मोबाइल पर फौरवर्ड करें. इस के बाद धीरेधीरे कमरे से बाहर निकलें और उत्तम स्वास्थ्य के लिए पोहा, फाफड़ा, जलेबी वगैरह के साथ बड़ा वाला कप चायकौफी का नाश्ता डकारें.

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