बढ़ई की बेटी : उर्मिला ने भरी नई उड़ान

‘‘जगता चाचा, ओ, जगता चाचा,’’ कुंदन ने दरवाजे पर खड़े हो कर जगता बढ़ई को आवाज लगाई.

‘‘हां कुंदन बेटा, क्यों चिल्ला रहा है? दरवाजा खोल कर अंदर आ जा.’’

‘‘अरे चाचा, आप को खाट की बाही और पाए बनाने को दिए थे. इतने दिन हो गए, लेकिन कुछ हुआ नहीं…’’

‘‘हां बेटा, बस कुछ दिन की और बात है. टांग ठीक हो जाए, तो मैं चारपाई छोड़ कर कामधंधे में लगूं. सब से पहले तुम्हारी खाट ही तैयार करूंगा.’’

‘‘चाचा, हमें खाट की बहुत जरूरत है. पिताजी ने कहलवा कर भेजा है कि खाट बुनने के लिए तैयार न हो, तो उस की लकड़ी वापस ले आना. हम दूसरे गांव के बढ़ई से बनवा लेंगे.’’

‘‘कुंदन बेटा, तुम कैसी बातें करते हो? तुम्हारे परिवार का कोई काम कभी मेरे हाथों पीछे छूटा हो तो बताओ. अब ऐसी मजबूरी आ पड़ी है कि उठा तक नहीं जाता. जब से हादसे में टांग टूटी है, लाचार हो गया हूं. बस, कुछ दिन और रुक जाओ बेटा.’’

‘‘नहीं चाचा, अब हम और नहीं रुक सकते. हमें खाट की सख्त जरूरत है. हम दूसरों की खाट मांग कर काम चला रहे हैं.’’

‘‘ठीक है बेटा. नहीं रुक सकते तो ले जाओ अपनी लकडि़यां, वे पड़ी हैं उस कोने में.’’ कुंदन कोने में पड़ी अपनी लकडि़यां उठाने लगा.

जगता बढ़ई की बेटी सुनीता दरवाजे के पीछे खड़ी सारी बातें सुन रही थी. वह बाहर आई और कुंदन से बोली, ‘‘कुंदन भैया, अगर तुम शाम तक का समय दो, तो तुम्हारी बाही और पाए दोनों तैयार हो जाएंगे. उन्हें ठोंकपीट कर तुम्हारी खाट का भी ढांचा तैयार हो जाएगा.’’

‘‘लेकिन सुनीता, यह तो बताओ इन को तैयार कौन करेगा? जगता चाचा तो अपनी चारपाई से नीचे भी नहीं उतर सकते.’’

‘‘मैं तैयार करूंगी कुंदन भैया. तुम परेशान क्यों होते हो? आखिर मैं बढ़ई की बेटी हूं. इतना तो तुम मुझ पर यकीन कर ही सकते हो.’’

सुनीता की बात सुन कर कुंदन मुसकराया और बोला, ‘‘ठीक है, सुनीता. तुम कहती हो, तो शाम तक इंतजार कर लेते हैं,’’ इतना कह कर कुंदन वहीं लकडि़यां छोड़ कर चला गया.

कुंदन के जाने के बाद जगता ने कहा, ‘‘सुनीता बिटिया, यह तुम ने कुंदन से कैसा झूठा वादा कर लिया?’’

‘‘नहीं पिताजी, मैं ने कोई झूठा वादा नहीं किया है,’’ सुनीता ने जोश में आ कर कहा.

‘‘तो फिर खाट की बाही और पाए कौन तैयार करेगा?’’

‘‘मैं तैयार करूंगी पिताजी.’’

यह सुन कर जगता चौंक गया. उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि सुनीता अपने कंधों पर यह जिम्मेदारी ले सकती है.

जगता का नाम वैसे तो जगत सिंह धीमान था, लेकिन जटपुर गांव के लोग उसे ‘जगता’ कह कर ही पुकारते थे. जगता को पता था कि सुनीता को बचपन से ही बढ़ईगीरी का शौक है. इसी शौक के चलते वह बढ़ईगीरी के औजार हथौड़ा, बिसौली, आरी, रंदा, बरमा आदि चलाना अच्छे से सीख गई है, लेकिन जगता ने अपनी बेटी सुनीता से कोई काम पैसे कमाने के लिए कभी नहीं कराया था, शौकिया चाहे वह कुछ भी करे.

लेकिन आज मुसीबत के समय सुनीता खाट की बाही और पाए तैयार करने के लिए बड़ी कुशलता से औजार चला रही थी. उस की कुशलता को देख कर जगता भी हैरान था.

सुनीता ने चारों बाही और पाए तैयार कर के और उन्हें ठोंकपीट कर खाट का ढांचा दोपहर तक तैयार कर दिया. फिर कुंदन को कहलवा भेजा कि वह अपनी खाट ले जाए, तैयार हो गई है.

कुंदन जब आया तो उस ने देखा कि उस की खाट तैयार है. उस ने पैसे पकड़ाए और चलते समय कहा, ‘‘सुनीता, हम तो यही सोच रहे थे कि जगता चाचा ने तो चारपाई पकड़ ली है और अब लकड़ी का सारा काम पड़ोस के गांव के बढ़ई से ही करवाना पड़ा करेगा.’’

तब सुनीता ने बड़े यकीन के साथ कहा, ‘‘कुंदन भैया, ऐसा है कि जितना भी लकड़ी का काम तुम्हारे पास है, सब ले आना. सारा काम समय से कर के दूंगी, दूसरे गांव में जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

‘‘सुनीता, जब सारा काम गांव में ही हो जाएगा, तो कोई बेवकूफ ही होगा, जो दूसरे गांव जाने की सोचेगा.’’

यह कहते हुए कुंदन तो खाट का ढांचा उठा कर चला गया, लेकिन ये सब बातें सुन कर जगता कहां चुप रहने वाला था. उस ने कहा, ‘‘सुनीता, तू कुंदन से क्या कह रही थी कि लकड़ी का सारा काम ले आना, मैं कर के दूंगी? बिटिया, क्या मैं अब इतना गयागुजरा हो गया हूं कि बेटी की कमाई खाऊंगा और अपने सिर पर बुढ़ापे में पाप चढ़ाऊंगा?’’

‘‘अरे पिताजी, छोडि़ए इन पुराने ढकोसलों को. इन पुरानी बातों पर अब कौन ही यकीन करता है? अपने पिता की मदद करने से बेटी के बाप को पाप लगता है, यह कौन से शास्त्र में लिखा है?’’

‘‘लेकिन, बिटिया…’’

‘‘पिताजी, आप चिंता न करें. आप की बेटी बेटों से कम है क्या? देखो, तुम्हारे दोनों बेटे अजीत और सुजीत बढ़ईगीरी का पुश्तैनी काम छोड़ कर और इसे छोटा काम समझ कर बनियों की दो टके की नौकरी करने शहर भाग गए. लेकिन, इस में भी उन का गुजारा नहीं होता, हर महीने आप के सामने हाथ फैलाए खड़े रहते हैं.

‘‘इस से अच्छा तो यह होता पिताजी कि वे अपने पुश्तैनी काम को आगे बढ़ाते. गांव के कितने ही लोग अब दूसरे गांव जा कर या शहर से लकड़ी का काम करवा कर लाते हैं, क्योंकि आप अकेले से इतना काम नहीं हो पाता. गांव भी हर साल फैल रहा है.’’

‘‘कहती तो ठीक हो बेटी. मैं ने तेरे दोनों भाइयों को कितना समझाया कि अपने काम को आगे बढ़ाओ, मालिक बन कर जिओ. दूसरों की नौकरी बजाने से अपना काम लाख बेहतर होता है. लेकिन उन्हें तो बढ़ईगीरी करने में न जाने कितनी शर्म आती है?’’

‘‘लेकिन पिताजी, तुम्हारी इस बेटी को बढ़ईगीरी करने में कोई शर्म नहीं आती है, बल्कि गर्व महसूस होता है.’’

‘‘लेकिन सुनीता, तुम्हें अभी अपनी पढ़ाई भी तो करनी है. अभी तुम्हारा इंटर ही तो हुआ है.’’

‘‘देखो पिताजी, अब बहुत ज्यादा पढ़ाई करने से भी कोई फायदा नहीं. हमारे यहां पढ़ाई करने का मकसद सिर्फ और सिर्फ नौकरी पाना ही तो है. हमारी सरकारों ने मैकाले की शिक्षा पद्धति को ही तो आगे बढ़ाया है, पढ़ाई सिर्फ नौकर पैदा करने के लिए, शासक या मालिक बनने के लिए नहीं.’’

जगता अपनी बेटी की बातों को बड़े ध्यान से सुन रहा था. उसे उस की बातों में दम नजर आ रहा था, फिर भी जगता ने कहा, ‘‘लेकिन बिटिया, फिर भी ज्यादा पढ़नालिखना जरूरी है. लड़के वाले शादी के समय यह जरूर पूछते हैं कि आप की लड़की कितनी पढ़ीलिखी है.’’

‘‘और चाहे पिताजी एमए पास लड़की को एप्लिकेशन तक लिखनी न आती हो. बस, रद्दी डिगरी जमा करने का धंधा बन गया है, फिर भी आप कहते हो तो मैं बीए, एमए कर लूंगी, लेकिन प्राइवेट कालेज से.’’

‘‘बिटिया, यह तू जाने. मैं ने तो किसी डिगरी कालेज का मुंह तक नहीं देखा. 8वीं जमात तक गांव की ही पाठशाला में पढ़ा और उस के बाद कान पर पैंसिल लगा कर पुश्तैनी काम बढ़ईगीरी करने लगा.’’

इस के बाद तो सुनीता ने बढ़ईगीरी का सब काम अपने हाथ में ले लिया. जगता के ठीक होने पर बापबेटी दोनों मिल कर बढ़ईगीरी का काम करते. लेकिन जगता पर बुढ़ापा हावी होने लगा था. एक ही काम को करते हुए सुनीता थकती नहीं थी, लेकिन जगता हांफने लगता था.

एक दिन गांव की ही एक लड़की उर्मिला बैठने की एक पटरी बनवाने के लिए सुनीता के पास आई. दोनों में बातें होने लगीं.

सुनीता ने पूछा, ‘‘उर्मिला, अब तू कहां एडमिशन ले रही है?’’

‘‘कहीं भी नहीं. बापू कह रहे हैं कि इंटर कर लिया और कितना पढ़ेगी? तेरी पढ़ाई पर ही खर्च करते रहेंगे, तो तेरी शादी में दहेज के लिए पैसे कहां से जुटाएंगे?’’

उर्मिला की बात सुन कर सुनीता ने आरी चलाना रोक दिया और बोली, ‘‘उर्मिला, अपने बापू से कह देना कि उन्हें तुम्हारी पढ़ाई का खर्च उठाने की जरूरत नहीं है. बता देना कि तुम अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठा सकती हो.’’

‘‘लेकिन सुनीता, मैं अपनी पढ़ाई का खर्च खुद कैसे उठा सकती हूं? मेरी तो कोई आमदनी ही नहीं है.’’

‘‘तेरी आमदनी होगी न उर्मिला. अगर तू मेरी बात माने तो मेरे यहां दिहाड़ी पर काम कर ले. तेरी पढ़ाई का खर्चा तो निकलेगा ही और तू चार पैसे अपने दहेज के लिए भी जुटा लेगी.’’

‘‘बात तो तू पते की कह रही है सुनीता, लेकिन तेरी बात तब कामयाब होगी, जब मेरा बापू मानेगा.’’

घर जा कर उर्मिला ने जब यह बात अपनी मां को बताई, तो वे तुरंत मान गईं, लेकिन यही बात सुन कर उस का बापू भड़क गया, ‘‘उर्मिला, तुझे यह बात कहते हुए शर्म नहीं आई. अब एक ब्राह्मण की बेटी बढ़ईगीरी करेगी. क्या कहेगा समाज?’’

इस का जवाब दिया उर्मिला की मां ने. वे भड़कते हुए बोलीं, ‘‘क्यों, क्या दे रहा है समाज तुम्हें? बेटी को पढ़ाने के लिए दो कौड़ी नहीं. वह कुछ करना चाहती है तो ब्राह्मण होने का घमंड… तुम्हारे पूजापाठ से जिंदगीभर दो वक्त की रोटी ठीक से खाने को मिली नहीं. दान के कपड़े से अपना और परिवार का जैसेतैसे तन ढकती रही, तब तुम्हें शर्म नहीं आई? अब बेटी मेहनत के दो पैसे कमाने चली तो उस में भी अड़ंगा…’’

‘‘लेकिन पंडिताइन, सुनो तो…’’

‘‘कुछ नहीं सुनना मुझे. तुम ने मेरी जिंदगी तो लाचार बना दी, लेकिन मैं अपनी बेटी के साथ ऐसा नहीं होने दूंगी. वह पढ़ेगी भी और काम भी करेगी. देखती हूं कि कौन रोकता है उसे ऐसा करने से. जान ले लूंगी उस की.’’

पंडिताइन का गुस्सा देख कर उर्मिला का बापू सहम गया.

अगले दिन से ही उर्मिला ने सुनीता के पास काम पर जाना शुरू कर दिया. जब शाम को उर्मिला ने 500 रुपए ले जा कर अपनी मां के हाथ में रखे, तो उस खुशी को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता.

कुछ लोगों ने कुछ दिन तक जरूर उर्मिला पर तंज कसे कि देखो तो क्या समय आ गया है? ब्राह्मण की बेटी बढ़ईगीरी कर रही है, लेकिन उर्मिला ऐसी बातों पर कान न धरती. वह ऐसी बातों को अनसुना कर देती. अपने काम पर ध्यान देना उस का मकसद था.

सुनीता अब अपने बुजुर्ग पिता को ज्यादा से ज्यादा आराम करने की सलाह देती. वह उर्मिला के साथ मिल कर हाथों में आए काम को जल्दी निबटाने की कोशिश करती. खाली समय में वह बची हुई लकड़ी से स्टूल, पटरी, पीढ़े, खुरपी और फावड़े के बिट्टे यानी हत्थे वगैरह बनाती. गांव में ऐसे सामान की खूब मांग थी.

सुनीता का काम बढ़ा, तो हाथों की जरूरत भी बढ़ी. उस ने एक दिन गत्ते पर लिख कर अपनी कार्यशाला से बाहर एक इश्तिहार लगा दिया, ‘बढ़ईगीरी के काम के लिए 2 लड़कियों/औरतों की जरूरत. दिहाड़ी 500 रुपए रोज’.

इश्तिहार देख कर दलित समाज के नथवा की बेटी बबीता काम मांगने आई. नथवा को उस के बढ़ईगीरी के काम करने से कोई गुरेज नहीं था. वह खुद मजदूरी करता था. वह जानता था कि घर कितनी मुश्किल से चलाया जाता है.

लेकिन मामला तब गरम हो गया, जब चौधरी रामपाल की विधवा पुत्रवधू विमला अपने 3 साल के बच्चे को गोद में ले कर सुनीता के यहां काम पर गई.

विमला का पति पिछले साल सड़क हादसे का शिकार हो गया था. तब से उस के ससुर चौधरी रामपाल और देवर इंदर ने उस की जमीन पर कब्जा कर रखा था. इस के बदले वे उसे कुछ देते भी नहीं थे और घर और घेर (गौशाला) का सारा काम उस से करवाते थे. वह पैसेपैसे से मुहताज थी.

जैसे ही विमला अगले दिन सुनीता की कार्यशाला में काम पर पहुंची, चौधरी रामपाल और इंदर भी लट्ठ ले कर वहां पहुंच गए. इंदर बिना कोई बात किए जबरदस्ती विमला का हाथ पकड़ कर उसे घसीट कर ले जाने लगा.

रामपाल दूसरों को अपनी अकड़ दिखाने के लिए चिल्ला कर कहने लगा, ‘‘अरे, चौधरियों की बहू अब बढ़ई के यहां काम करेगी क्या? सुन लो गांव वालो, अभी चौधरियों के लट्ठ में खूब दम बाकी है.’’

तभी आपे से बाहर होते हुए रामपाल और इंदर विमला को गालियां बकने लगे, ‘‘बदजात, तू यहां इन की गुलामी करेगी, हमारी नाक कटवाने के लिए.’’

इतना सुनते ही विमला ने एक ही झटके में इंदर से अपना हाथ छुड़ाया और तन कर बोली, ‘‘सुनो, अगर तुम चौधरी हो तो मैं भी चौधरी की बेटी हूं. जितना लट्ठ चलाना तुम जानते हो, उतना लट्ठ चलाना मैं भी जानती हूं. मैं तुम दोनों के जुल्मों से तंग आ गई हूं. अब तुम अपनी चौधराहट अपने पास रखो. और सुनो, बदजात होगी तुम्हारी मां.’’

यह वाक्य चौधरी रामपाल के दिल में बुझे तीर की तरह चुभा. वह लट्ठ ले कर विमला की तरफ बढ़ा, ‘‘बहू हो कर ऐसी गंदी जबान चलाती है, अभी ठहर…’’

वह विमला पर लट्ठ चलाने ही वाला था, तभी सुनीता ने पीछे से उस का लट्ठ मजबूती से पकड़ लिया. चौधरी रामपाल का संतुलन बिगड़ा और वह धड़ाम से पीठ के बल गिरा.

इतनी देर में वहां भीड़ जमा हो गई. कुछ लोगों ने चौधरी रामपाल और इंदर को पकड़ लिया और उन्हें समझानेबुझाने लगे, लेकिन वे तो अपनी बेइज्जती पर झंझलाए बैठे थे.

आखिर में गांव में पंचायत हुई और विमला के हिस्से में 4 बीघा जमीन और मकान का एकतिहाई हिस्सा आया. विमला को लगा कि कई बार झगड़ा करने से भी बात बन जाती है. उस ने अपनी जमीन तो बंटाई पर दे दी और चार पैसे कमाने के लिए खुद सुनीता की कार्यशाला में काम करती रही. उस की तो मानो झगड़ा कर के लौटरी ही लग गई.

सुनीता ने अपना काम और बढ़ाया. अब उस ने दरवाजे और खिड़कियां बनाना और चढ़ाना भी सीख लिया. शहर जा कर सोफा सैट बनाने का तरीका भी सीख लिया. अब उसे गांव के बाहर भी काम मिलने लगा, तो उस ने मोटरसाइकिल खरीद ली. अब उस ने पहचान के लिए अपनी कार्यशाला का नामकरण किया ‘जगता बढ़ई कारखाना’ और बाहर इसी नाम का बोर्ड टांग दिया.

धीरेधीरे सुनीता का काम इतना ज्यादा बढ़ गया कि शहर के फर्नीचर वाले भी उसे फर्नीचर बनाने का और्डर देने लगे. जैसेजैसे काम बढ़ा, वैसेवैसे कारखाने में काम करने वालियों की तादाद भी बढ़ने लगी.

सुनीता ने अपना एक छोटा सा केबिन बनवा लिया. वही उस का औफिस था, जहां बैठ कर वह और्डर लेती, सब से मिलतीजुलती और सब का हिसाबकिताब करती.

आमदनी और बढ़ी, तो सुनीता इनकम टैक्स भरने लगी. उस ने कार भी खरीद ली और फर्नीचर का शोरूम बनाने के लिए जमीन भी.

सुनीता के काम और कामयाबी की चर्चा दूरदूर तक होने लगी. अखबार वालों ने भी उस के बारे में छापा. कलक्टर के कानों तक यह खबर पहुंची

तो सचाई जानने के लिए उस ने जटपुर के प्रधान मान सिंह को अपने औफिस में बुलवाया. बात सही थी. फिर कलक्टर खुद सुनीता का हुनर देखने के लिए जटपुर पहुंचे.

कलक्टर ने सुनीता के कारखाने में 13 औरतों को काम करते देखा. वे सुनीता के काम और हुनर से इतने प्रभावित हुए कि उस का नाम पुरस्कार और सम्मान हेतु राज्य सरकार को भेजा.

सुनीता को पुरस्कार देते हुए और उस का सम्मान करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘साथियो, सुनीता ने यह साबित कर दिया है कि कामयाबी पाने के लिए कोई समस्या आड़े नहीं आ सकती. बस, आप के अंदर कामयाबी पाने की लगन होनी चाहिए.

‘‘सुनीता किसी नौकरी के पीछे नहीं दौड़ी. उस ने अपने पुश्तैनी काम बढ़ईगीरी को ही आगे बढ़ाया, जिस को करने से औरतें तो क्या मर्द भी हिचकते हैं.

‘‘आज यह जान कर बड़ी खुशी हुई कि सुनीता के कारखाने में 13 औरतें काम कर रही हैं. सुनीता ने रूढ़ियों और परंपराओं को तोड़ कर महिला जगत को ही नहीं, बल्कि हम सब को एक नई राह दिखाई है.’’

सुनीता ने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच मुख्यमंत्री से पुरस्कार और सम्मान हासिल किया. उस की मुसकान बता रही थी कि उस के हौसले बुलंद हैं.

किस्मत का खेल : किसने उजाड़ी अनवर की दुनिया

अनवर बिजनौर जिले के नगीना शहर का रहने वाला था. उस की शादी साल 2010 में बिजनौर जिले के नारायणपुर गांव में हुई थी. शादी कराने वाली अनवर की चाची थीं, जिन्होंने उसे शादी से एक हफ्ता पहले आगाह किया था कि यह लड़की सही नहीं है.

दरअसल, शादी से एक हफ्ता पहले लड़की के मामा, जो अनवर की चाची के दूर के रिश्तेदार थे, ने आ कर चाची को बताया था कि यह लड़की जेबा शादी से पहले भी अपने दूर के एक रिश्तेदार के साथ भाग चुकी है और एक महीना उस के साथ रह कर आई है.

चाची की इस बात को सुन कर अनवर का शादी से मना करने के लिए दिल नहीं माना, इसलिए उस ने सही जानकारी हासिल करने और जेबा की इस शादी के लिए रजामंदी है या नहीं, यह जानने के लिए उस से फोन पर बात की, ‘‘जेबा, तुम मुझ से शादी करने के लिए तैयार तो हो न? तुम्हारे अम्मीअब्बा ने तुम पर कोई दबाव तो नहीं डाला है न?’’

जेबा ने कहा, ‘तुम ऐसा सवाल क्यों कर रहे हो? मैं बहुत खुश हूं. मुझ पर किसी ने कोई दबाव नहीं डाला है.’

‘‘तुम्हारे मामा मेरी चाची के पास आए थे और बोल रहे थे कि तुम अपने किसी रिश्तेदार से प्यार करती हो और उस के साथ घर से भाग गई थी.’’

‘मेरे मामा झूठ बोल रहे हैं. वे मेरे सगे मामा नहीं हैं, बल्कि मेरी अम्मी के दूर के भाई हैं. दरअसल, वे अपने साले के बेटे से मेरी शादी कराना चाहते थे. मैं ने और मेरे घर वालों ने मना कर दिया तो वे मुझे बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं.’

जेबा की यह बात सुन कर अनवर के दिल को ठंडक पहुंची. इस के बाद उस ने जेबा के घर के दूसरे लोगों से बात की. सब ने यही बताया कि जेबा अपनी मरजी से शादी के लिए तैयार हुई है.

शादी से पहले अनवर और जेबा चाची के घर मिले थे और इस रिश्ते से खुश थे. अनवर ने जेबा को बताया, ‘‘मैं मुंबई में रहता हूं और मेरा बेकरी का कारोबार है, जिस में अच्छीखासी कमाई है. वैसे, हमारी काफी जमीनजायदाद है. घर में किसी बात की कोई कमी नहीं है.

‘‘मैं ने एमकौम तक पढ़ाई की है. घर में 4 भाई और 2 बहनें हैं. मेरी मां बचपन में ही इस दुनिया से रुखसत हो गई थीं. बड़े 2 भाई डाक्टर हैं. उन की शादी हो गई है. एक बहन की भी शादी हो गई है. मेरी उम्र 30 साल है.’’

जेबा ने भी अपने घर की जानकारी इस तरह दी, ‘‘मेरे अब्बा खेती करते हैं. 3 भाई हैं. एक भाई की शादी हो गई है, जो देहरादून में रहते हैं और वहां एक दुकान चलाते हैं. 2 भाई छोटे हैं. वे अभी पढ़ाई कर रहे हैं.

‘‘मैं और मेरी एक बड़ी बहन दोनों ने पिछले साल ही इंटर पास किया है और उस का रिश्ता नेहटोर शहर में तय हो गया है. हम दोनों बहनों की शादी एकसाथ ही होगी.’’

फिर वह समय भी आ गया और 19 मई, 2010 को जेबा और अनवर की शादी हो गई. अनवर के मुकाबले जेबा बहुत खूबसूरत थी. शादी के सुर्ख जोड़े में वह किसी हूर से कम नहीं लग रही थी. गुलाबी होंठ, सुर्ख गाल, बड़ीबड़ी आंखें, गदराया बदन, जिसे देख कर वह अपने होश ही खो बैठा था.

उन दोनों ने रातभर एकदूसरे से खूब प्यार किया. प्यार में रात कब गुजर गई, पता ही नहीं चला. सुबह के 8 बज चुके थे. जेबा के फोन की घंटी बजी. अनवर ने स्पीकर औन कर के जेबा को फोन दिया.

जैसे ही जेबा ने ‘हैलो’ बोला, उधर से किसी लड़के की आवाज आई, ‘जानू, हमें छोड़ कर चली गई. शादी मुबारक हो. हम तो तुम्हारी याद में सो ही नहीं पाए.’

जेबा ने तुरंत फोन काट दिया. अनवर का खिलता हुआ चेहरा अचानक मुरझा गया. उस ने दबी आवाज में पूछा, ‘‘कौन था?’’

जेबा ने अनवर का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘यह लड़का मुझे काफी समय से ऐसे ही फोन करता है. मैं नहीं जानती इसे.’’

जेबा के इस जवाब से अनवर की जान में जान आई कि जेबा उस से प्यार नहीं करती है और वह कोई बदतमीज लड़का है, जो जेबा को परेशान करता है.

शादी को 2 महीने ही गुजरे थे. अनवर को वापस मुंबई जा कर अपना काम संभालना था. जेबा उदास हो गई.

अनवर ने उस से कहा, ‘‘मैं तुम्हें जल्दी ही वहां बुला लूंगा.’’

अगले दिन अनवर मुंबई के लिए रवाना हो गया. 10 दिन बाद ही उस ने जेबा को अपने भाई के साथ मुंबई आने के लिए कह दिया.

जेबा के मुंबई आते ही उन दोनों की जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आ गई. समय गुजरता रहा. जेबा 2 बेटियों की मां बन गई थी. बड़ी बेटी का नाम अजमी और छोटी बेटी का नाम अमरीन रखा गया.

समय गुजरता गया. अनवर काम में इतना बिजी रहा कि उसे गांव जाने का मौका ही नहीं मिला.

एक दिन जेबा ने अनवर से कहा, ‘‘मैं दिल्ली में अपनी बहन से मिलने जाना चाहती हूं.’’

अनवर ने कहा, ‘‘तुम अकेले कैसे जाओगी?’’

जेबा बोली, ‘‘अम्मी आ जाएंगी. उन के साथ बहन से भी मिल लूंगी और दिल्ली भी घूम लूंगी. बस, तुम मेरा और अम्मी के जाने का टिकट निकलवा दो.’’

2 दिन के बाद जेबा की अम्मी उसे लेने आ गईं और अनवर ने उन के दिल्ली जाने के 2 टिकट ट्रेन के निकलवा दिए. जेबा को घूमने और खर्च के लिए 20,000 रुपए दे दिए. वे दोनों दिल्ली चली गईं.

अगले ही दिन जेबा के अब्बू का फोन अनवर के पास आया और वे बोले, ‘जेबा की अम्मी वहां आई हैं क्या?’

यह सुन कर अनवर हैरान रह गया और बोला, ‘‘क्यों, आप को नहीं पता कि वे जेबा को लेने यहां आई हैं? जेबा अपनी बहन से मिलने के लिए अम्मी के साथ दिल्ली के लिए चली गई है.’’

‘जेबा की अम्मी ने हमें कुछ नहीं बताया. वह बोली थी कि मैं नजीबाबाद जा रही हूं, पर वह मुंबई पहुंच गई और जेबा की बहन अभी दिल्ली में नहीं है, वह अपनी सुसराल नेहटोर आई हुई है.’

अनवर ने जेबा को फोन लगाया और उस से पूछा, ‘‘क्या तुम दिल्ली पहुंच गई हो?’’

जेबा बोली, ‘हां, मैं तो सुबह ही पहुंच गई थी.’

अनवर ने पूछा, ‘‘इस समय कहां हो? तुम्हारी बहन तो अपनी सुसराल में गई हुई है.’’

जेबा बोली, ‘मेरे दूर के मामा हैं. मैं उन्हीं के घर पर हूं.’’

यह सुन कर अनवर को सुकून मिला. 2-3 दिन दिल्ली घूम कर जेबा मुंबई के लिए रवाना हो गई. उसे छोड़ने उस की अम्मी भी आई थीं और 2 दिन बाद ही वे वापस चली गई थीं.

एक दिन अनवर अपनी पासबुक की ऐंट्री कराने बैंक गया, तो अपने खाते में से निकले एक लाख रुपए देख कर दंग रह गया. उस ने बैंक मैनेजर से इस की शिकायत की, तो वे बोले, ‘‘तुम्हारे पैसे एटीएम से निकाले गए हैं.’’

अनवर बोला, ‘‘एटीएम के पिन नंबर की जानकारी मुझे और मेरी बीवी के अलावा किसी और को नहीं है. मैं ने निकाले नहीं और बीवी भी मुझे बिना बताए निकालेगी नहीं.’’

मैनेजर बोले, ‘‘तुम अपनी बीवी से मालूम करो.’’

अनवर ने उसी समय जेबा को फोन लगाया, तो वह मना करने लगी. अनवर ने हैरान होते हुए कहा, ‘‘फिर तो पुलिस को बताना पड़ेगा.’’

यह सुन कर जेबा घबरा कर रोते हुए बोली, ‘‘मैं ने निकाले हैं. मेरी एक सहेली को 50,000 रुपए की जरूरत थी और 50,000 रुपए मैं ने अपनी बड़ी बहन को दिए हैं.’’

जेबा का रोना देख कर अनवर को उस पर तरस आ गया और उस ने इस बात को यहीं खत्म कर दिया.

एक शाम को अनवर अपने घर जा रहा था कि एक औरत ने रास्ते में उसे रोक लिया और बोली, ‘‘मुझे और मेरे बच्चों को मार दो.’’

यह सुन कर अनवर ने हैरान हो कर पूछा, ‘‘क्यों? क्या हुआ?’’

वह औरत बोली, ‘‘मैं आदिल इलैक्ट्रिशियन की बीवी हूं. ये मेरे बच्चे हैं. तुम्हारी बीवी खूबसूरत है, इस का यह मतलब नहीं है कि वह किसी और के शौहर को अपने प्यार के जाल में फंसा कर उस के बीवीबच्चों की जिंदगी बरबाद करेगी.’’

अनवर ने उस से कहा, ‘‘साफसाफ बताओ कि बात क्या है?’’

वह औरत बोली, ‘‘तुम्हारी बीवी का मेरे शौहर से नाजायज रिश्ता है. अगर तुम उसे रोक नहीं सकते हो, तो हम सब को मार दो.’’

उस औरत की यह बात सुन कर अनवर को गुस्सा आया. उस ने घर जा कर जेबा से इस बारे में पूछा, तो उस ने अपनी पोल खुलते देख हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो. मैं बहक गई थी.’’

अनवर जेबा से बहुत ज्यादा मुहब्बत करता था, इसलिए उस की इतनी बड़ी गलती को भी उस ने माफ कर दिया.

इसी बीच जेबा और उस की अम्मी अनवर की जायदाद में से हिस्सा मांगने की बात करने लगी थीं. वे गांव का बाग बेचने पर जोर दे रही थीं. बाद में बाग बेचने के बाद जो फ्लैट खरीदा था, उस के बाद भी 20 लाख रुपए घर पर बच गए थे.

दिन गुजरते गए. एक दिन अनवर दूध पी कर घर से निकला और अपनी बेकरी पर आ कर बैठा ही था कि उस की आंखें बंद होने लगीं. हाथपैर कांपने लगे. कुछ ही पलों में वह बेहोश हो कर गिर गया. रात के 8 बजे जब उसे होश आया, तो अपनेआप को बेकरी के एक कमरे में पाया.

अनवर के पार्टनर ने उस से पूछा, ‘‘क्या हुआ? क्या खाया था?’’

अनवर ने कहा, ‘‘मैं तो सिर्फ घर से दूध पी कर निकला था. बेकरी पर आ कर बैठा तो मेरी आंखें खुद ब खुद बंद होने लगीं, हाथपैर कांपने लगे.’’

‘‘क्या तुम्हारे घर पर कोई टैंशन चल रही है?’’

अनवर ने पूरी बात बता दी. पार्टनर ने कहा, ‘‘अपनी बीवी के कुछ नाम नहीं करना. अगर कर दिया तो तुम्हारा खेल खत्म. ध्यान रखो कि घर पर कुछ मत खाना. तुम्हें दूध में नशा मिला कर दिया गया है और काफी दिनों से दिया जा रहा है. तुम पुलिस में शिकायत दर्ज कर दो.’’

अनवर जेबा को खोना नहीं चाहता था. वह जानता था कि अगर पुलिस के पास गया तो जेबा और भड़क जाएगी.

अगले दिन जब अनवर सो कर उठा, तो उस के 20 लाख रुपए अलमारी से गायब हो चुके थे.

अनवर ने जब जेबा की अलमारी की तलाशी ली, तो उस में रखे जेवर भी नहीं थे. यह देख कर वह सदमे से वहीं गिर गया. जब उस की आंखें खुलीं, तो उस की दोनों बेटियां उस के पास बैठी थीं. जेबा और उस की अम्मी भी वहीं थीं.

अनवर ने जेबा और उस की अम्मी के हाथ जोड़े, पैर पकड़े कि उस का पैसा दे दो, जेवर दे दो, पर उन्होंने साफ कह दिया कि इस बारे में उन्हें कुछ नहीं मालूम है. अगले ही दिन अनवर ने जेबा की अम्मी को वहां से उन के घर भेज दिया.

गाड़ी में बिठाने के बाद अनवर अपने काम पर चला गया और शाम को घर आया, तो जेबा ने उस से बात नहीं की और अपने कमरे में घुसने भी नहीं दिया. वह कई दिनों तक ऐसा ही करती रही.

अब जेबा जिम से 1-2 नहीं, बल्कि 3-4 घंटे में वापस आती थी. न बच्चों को खाना मिलता और न घर का कोई काम होता था. उन की पढ़ाईलिखाई भी नहीं हो पाती थी.

इसी बीच डाक्टर ने अनवर को आराम करने की सलाह दी. वजह, उसे हलका सा दिल का दौरा पड़ा था. पर जेबा को इस बात की कोई चिंता नहीं थी.

अनवर ने जेबा से गांव चलने को कहा, पर उस ने साफ मना कर दिया. अनवर अकेला ही गांव चला गया. घर वाले उस की हालत देख कर हैरान थे.

अभी अनवर को गांव आए हुए 3 दिन ही हुए थे कि एक दिन उस के फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठाया, तो दूसरी तरफ से कोई नहीं बोला.

फोन स्पीकर पर था. साफ आवाज आ रही थी, जो अनवर की सास, जेबा और बच्चों की थी. अनवर ने वहां से आ रही है हर आवाज को रिकौर्ड कर लिया. अनवर की सास और जेबा की हर करतूत और प्लानिंग फोन रिकौर्ड हो गई थी.

अगले दिन अनवर ने फोन कर के जेबा को गांव आने को कहा और साथ ही यह भी कह दिया कि अगर तुम गांव वापस नहीं आओगी, तो मैं यहीं बिजनौर में तुम्हारी पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दूंगा. पुलिस तुम दोनों मांबेटी को खुद पकड़ कर लाएगी.

यह सुन कर जेबा घबरा गई और जल्दी ही आने की बोल दी. अनवर खुश था. जोकुछ हो गया था, वह उसे भूलना चाह कर अपने गांव में ही एक नई जिंदगी शुरू करना चाहता था.

कुछ दिन तक तो सब ठीक रहा, फिर अचानक जेबा की बूआ की बेटी अनवर के घर पर आने लगी और हर समय घर पर ही पड़ी रहती. अनवर सोने के इंतजार में इधरउधर भटकता रहता था. फिर उस ने कड़े मन से उसे घर न आने को कहा. पर अब जेबा हर समय उन के घर जाने लगी.

अनवर एक दिन बाजार से घर लौटा तो देखा कि जेबा घर में नहीं थी. उस ने अपने अब्बा से मालूम किया तो वे बोले कि शायद अपनी बूआ के घर गई है.

वह वहां गया और दरवाजे पर खड़ा हो कर उन की बातें सुनने लगा.

जेबा का फुफेरा भाई बोल रहा था, ‘‘जेबा, तुम दिल्ली में शिफ्ट हो जाओ, पर रूम लेने के लिए तुम्हारा आधारकार्ड चाहिए.’’

अनवर ने जब यह बात सुनी, तो उसे गुस्सा आ गया और वह जेबा को वहां से ले आया और उसे हिदायत दी कि अब उन के घर नहीं जाना.

कुछ दिन बाद जेबा फिर उन के घर गई. अनवर उसे फिर बुला लाया और अपनी बड़ी बेटी को बाजार घुमाने के बहाने ले गया और उस से पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारी अम्मी वहां क्या बात कर रही थीं?’’

बेटी ने बताया, ‘‘अब्बा, वहां पर दादू को कुछ दे कर मारने की बात चल रही थी. वे लोग अम्मी से कह रहे थे कि अपने ससुर को मार डालो, फिर सारी जायदाद तुम्हारे शौहर के नाम आ जाएगी. उस के बाद इसे बहलाफुसला कर मुंबई ले जाना, फिर इसे भी मार देना और ऐश करना.’’

इतना सुन कर अनवर को गुस्सा आ गया. वह जेबा की बूआ के घर गया और उन्हें बोला, ‘‘जेबा को उलटीसीधी पट्टी पढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है.’’ अनवर घर लौट आया. अभी कुछ ही देर हुई थी कि उस की सास काफोन आया और वे उसे उलटासीधा बोलने लगीं.

इधर जेबा ने भी घर सिर पर उठा लिया. अनवर ने पुलिस बुला ली, पर जेबा ने उन की एक न सुनी और बोली, ‘‘मुझे मेरे मामा के घर छोड़ दो. मेरी अम्मी भी वहीं हैं, वरना मैं खुदखुशी कर लूंगी.’’

पुलिस वाले अनवर और जेबा को थाने ले गए. कुछ देर में जेबा की अम्मी भी वहां आ गईं और जेबा को अपने साथ ले गईं.

कुछ ही देर में अनवर के भाई वहां आ गए और वे उसे भी वहां से ले आए. कई दिन गुजर गए. एक दिन जेबा के मामा अनवर से मिलने उस की चाची के घर आए, पर वह उन से नहीं मिल पाया तो वे उस की बड़ी बेटी से बात करने लगे. बेटी ने उन्हें वह बताया, जो अनवर भी नहीं जानता था.

बेटी बोली, ‘‘अम्मी गंदी हैं. एक अंकल के साथ गंदे कपड़े पहन कर लेटती हैं और जब कहीं बाहर खाने जाती थीं तो मुझे भी अपने साथ ले जाती थीं और अंकल से खूब गले मिलती थीं और दोनों गंदीगंदी बातें करते थे. अम्मी अब्बा को मारना चाहती थीं. वे उन के दूध में कुछ मिलाती थीं.’’

अनवर ने जब अपनी बेटी से जेबा की करतूतों के बारे में पूछा, तो उस ने सारी बातें उसे बता दीं. जेबा और उस की मां अब कहां थीं, किसी को कुछ नहीं मालूम था. अब बात कोर्ट तक पहुंच गई थी.

कई महीने ऐसे ही गुजर गए, पर अनवर के पास कोई नोटिस नहीं आया. बाद में जेबा केस की तारीख पर भी हाजिर नहीं हुई, तो वह केस भी खारिज हो गया. अनवर अपनी बेटियों के साथ खुश था और अब जेबा को भूलने लगा था.

बंजारन: कजरी से खूबसूरत कोई ना था

अरी ओ कजरी, सारा दिन शीशे में ही घुसी रहेगी क्या… कुछ कामधाम भी कर लिया कर कभी.’’
‘‘अम्मां, मुझ से न होता कामवाम तेरा. मैं तो राजकुमारी हूं, राजकुमारी… और राजकुमारी कोई काम नहीं करती…’’
यह रोज का काम था. मां उसे काम में हाथ बंटाने को कहती और कजरी
मना कर देती. दरअसल, कजरी का रूपरंग ही ऐसा था, जैसे कुदरत ने पूरे जहां की खूबसूरती उसी पर उड़ेल दी हो. बंजारों के कबीले में आज तक इतनी खूबसूरत न तो कोई बेटी थी और न ही बहू थी.
कजरी को लगता था कि अगर वह काम करेगी, तो उस के हाथपैर मैले हो जाएंगे. वह हमेशा यही ख्वाब देखती थी कि सफेद घोड़े पर कोई राजकुमार आएगा और उसे ले जाएगा.
आज फिर मांबेटी में वही बहस छिड़ गई, ‘‘अरी ओ कमबख्त, कुछ तो मेरी मदद कर दिया कर… घर और बाहर का सारा काम अकेली जान कैसे संभाले… तुम्हारे बापू थे तो मदद कर दिया करते थे. तू तो करमजली, सारा दिन सिंगार ही करती रहती है. अरी, कौन सा महलों में जा कर सजना है तुझे, रहना तो इसी मिट्टी में है और सोना इसी तंबू में…’’
‘‘देखना अम्मां, एक दिन मेरा राजकुमार आएगा और मुझे ले जाएगा.’’
तकरीबन 6 महीने पहले कजरी के बापू दूसरे कबीले के साथ हुई एक लड़ाई में मारे गए थे. जब से कजरी के बापू
की मौत हुई थी, तब से कबीले के सरदार का लड़का जग्गू कजरी के पीछे हाथ धो कर पड़ा था कि वह उस से शादी करे, मगर कजरी और उस की मां को वह बिलकुल भी पसंद नहीं था. काला रंग, मोटा सा, हर पल मुंह में पान डाले रखता.
जग्गू से दुखी हो कर एक रात कजरी और उस की अम्मां कबीले से निकल कर मुंबई शहर की तरफ चल पड़ीं. वे शहर तक पहुंचीं, तो उन से 2 शराबी टकरा गए.
लेकिन कजरी कहां किसी से डरने वाली थी, बस जमा दिए उन्हें 2-4 घूंसे, तो भागे वे तो सिर पर पैर रख कर.
जब यह सब खेल चल रहा था, सड़क के दूसरी ओर एक कार रुकी और जैसे ही कार में से एक नौजवान बाहर निकलने लगा, तो वह कजरी की हिम्मत देख कर रुक गया.
जब शराबी भाग गए, तो वह कार वाला लड़का ताली बजाते हुए बोला, ‘‘वाह, कमाल कर दिया. हर लड़की को आप की तरह शेरनी होना चाहिए. वैसे, मेरा नाम रोहित है और आप का…?’’
दोनों मांबेटी रोहित को हैरानी से देख रही थीं. कजरी ने कहा, ‘‘मेरा नाम कजरी है और ये मेरी अम्मां हैं.’’
‘‘कजरीजी, आप दोनों इतनी रात कहां से आ रही हैं और कहां जा रही हैं? आप जानती नहीं कि मुंबई की सड़कों पर रात को कितने मवाली घूमते हैं… चलिए, मैं आप को घर छोड़ देता हूं, वरना फिर कोई ऐसा मवाली टकरा जाएगा.’’
‘‘बाबूजी, हमारा घर नहीं है. हम मुंबई में आज ही आई हैं और किसी को जानती भी नहीं. बस, रहने का कोई ठिकाना ढूंढ़ रहे थे,’’ कजरी बोली.
‘‘ओह तो यह बात है… अगर आप लोगों को एतराज न हो, तो आप दोनों मेरे साथ मेरे घर चल सकती हैं. मेरे घर में मैं और रामू काका रहते हैं. आज रात वहीं रुक जाइए, कल सुबह जहां आप को सही लगे, चली जाइएगा. इस वक्त अकेले रहना ठीक नहीं,’’ रोहित ने अपनी बात रखी.
मजबूरी में दोनों मांबेटी रोहित के साथ चली गईं. कजरी ने अपने बारे में रोहित को सब बताया. रात उस के घर में गुजारी और सुबह जाने की इजाजत मांगी.
रोहित ने कजरी की अम्मां से कहा, ‘‘मांजी, आप जाना चाहें तो जा सकती हैं, लेकिन इस अनजान शहर में जवान लड़की को कहां ले कर भटकोगी… आप चाहो तो यहीं पर रह सकती हो. वैसे भी इतना बड़ा घर सूनासूना लगता है.’’
कजरी ने रोहित से पूछा, ‘‘आप अकेले क्यों रहते हैं? आप का परिवार कहां है?’’
‘‘मेरे मातापिता एक हादसे में मारे गए थे. रामू काका ने ही मुझे पाला है. अब तो यही मेरे सबकुछ हैं.’’
‘‘ठीक है बेटा, कुछ दिन हम यहां रह जाती हैं. पर, हम ठहरीं बंजारन, कहीं तुम्हें कोई कुछ बोल न दे…’’ कजरी की अम्मां ने बताया.
‘‘बंजारे क्या इनसान नहीं होते… आप ऐसा क्यों सोचती हैं… बस, आप यहीं रहेंगी… मुझे भी एक मां मिल जाएगी,’’ रोहित के जोर देने पर वे दोनों वहीं रहने लगीं.
रोहित ने कजरी को शहरी कपड़े पहनने और वहां के तौरतरीके सिखाए. कजरी को पढ़ने का भी शौक था, इसलिए रोहित ने घर पर ही टीचर का इंतजाम करा दिया.
इसी तरह 6 महीने बीत गए. अब कजरी पूरी तरह बदल चुकी थी. वह एकदम शहरी तितली बन गई थी.
वह थोडीबहुत इंगलिश बोलना भी सीख गई थी. अम्मां घर पर खाना वगैरह बना देती थी और कजरी ने रोहित के साथ औफिस जाना शुरू कर दिया था.
रोहित धीरेधीरे कजरी के नजदीक आने लगा था. कजरी का भी जवान खून उबाल मारने लगा था. वह
रोहित की मेहरबानियों को प्यार समझ बैठी और अपना कुंआरापन उसे
सौंप दिया.
एक दिन रोहित कजरी को एक बिजनैस मीटिंग में ले कर गया. जैसे ही मीटिंग खत्म हुई, रोहित ने कजरी को मीटिंग वाले आदमी के साथ जाने को कहा. साथ ही यह भी कहा, ‘‘तुम इन्हें खुश रखना और वापस आते हुए प्रोजैक्ट की फाइल लेती आना.’’
‘‘खुश रखना…? मतलब क्या है आप का? मैं आप से प्यार करती हूं. क्या आप मुझे किसी के भी साथ भेज दोगे?’’ कजरी ने हैरान हो कर पूछा.
कजरी की इस बात पर रोहित ठहाका लगा कर हंसा और बोला, ‘‘एक बंजारन और मेरी प्रेमिका? तुम ने यह सोचा भी कैसे? वह तो तुम्हारी खूबसूरती पर दिल आ गया था मेरा, इसलिए इस गुलाब की कली को बांहों में ले कर मसल दिया.
‘‘मैं ने तुम पर काफी खर्च किया है, अब उस के बदले में मेरा इतना भी हक नहीं कि कुछ तुम से भी कमा सकूं? तुम्हारी एक रात से मुझे इतना बड़ा काम मिलेगा, कम से कम तुम्हें एहसान? समझ तो जाना ही चाहिए न…’’
रोहित की इस तरह की बातें सुन कर कजरी आंखों में आंसू लिए चुपचाप उस शख्स के साथ चली गई, लेकिन अगले दिन वह अम्मां से बोली, ‘‘चलो, अपने कबीले वापस चलते हैं. बंजारन के लिए कोई राजकुमार पैदा नहीं होता…’’
अम्मां ने कजरी के भाव समझ कर चुपचाप चलने की तैयारी कर दी और वे दोनों रोहित को बिना बताए अपनी बस्ती की तरफ निकल गईं

बेइज्जती : कहानी मदमस्त रसिया की

करिश्मा और रसिया भैरव गांव से शहर के एक कालेज में साथसाथ पढ़ने जाती थीं. साथसाथ रहने से उन दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी. उन का एकदूसरे के घरों में आनाजाना भी शुरू हो गया था.

करिश्मा के छोटे भाई अजीत ने रसिया को पहली बार देखा, तो उस की खूबसूरती को देखता रह गया. रसिया के कसे हुए उभार, सांचे में ढला बदन और गुलाबी होंठ मदहोश करने वाले थे.

रसिया ने एक दिन महसूस किया कि कोई लड़का छिपछिप कर उसे देखता है. उस ने करिश्मा से पूछा, ‘‘वह लड़का कौन है, जो मु?ो घूरता है?’’

‘‘वह…’’ कह कर करिश्मा हंसी और बोली, ‘‘वह तो मेरा छोटा भाई अजीत है. तुम इतनी खूबसूरत हो कि तुम्हें कोई भी देखता रह जाए…

‘‘ठहरो, मैं उसे बुलाती हूं,’’ इतना कह कर उस ने अजीत को पुकारा, जो दूसरे कमरे में खड़ा सब सुन रहा था.

‘‘आता हूं…’’ कहते हुए अजीत करिश्मा और रसिया के सामने ऐसा भोला बन कर आया, जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो.

करिश्मा ने बनावटी गुस्सा करते हुए पूछा, ‘‘अजीत, तुम मेरी सहेली रसिया को घूरघूर कर देखते हो क्या?’’

‘‘घूरघूर कर तो नहीं, पर मैं जानने की कोशिश जरूर करता हूं कि ये कौन हैं, जो अकसर तुम से मिलने आया करती हैं,’’ अजीत ने कहा.

‘‘यह बात तो तुम मु?ा से भी पूछ सकते थे. यह मेरी सहेली रसिया है.’’

‘‘रसिया… बड़ा प्यारा नाम है,’’ अजीत ने मुसकराते हुए कहा, तो करिश्मा ने रसिया से अपने भाई का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘रसिया, यह मेरा छोटा भाई अजीत है.’’

‘‘मैं हूं रसिया. क्या तुम मु?ा से दोस्ती करोगे?’’ रसिया ने पूछा.

‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं…’’ कहते हुए अजीत ने जोश के साथ अपना हाथ उस की ओर बढ़ाया.

रसिया ने उस से हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘अजीत, तुम से मिल कर खुशी हुई. वैसे, तुम करते क्या हो?’’

‘‘मैं कालेज में पढ़ता हूं. जल्दी पढ़ाई खत्म कर के नौकरी करूंगा, ताकि अपनी बहन की शादी कर सकूं.’’

रसिया हंस पड़ी. उस के हंसने से उस के उभार कांपने लगे. यह देख कर अजीत के दिल की धड़कनें बढ़ गईं.

तभी रसिया ने कहा, ‘‘वाह अजीत, वाह, तुम तो जरूरत से ज्यादा सम?ादार हो गए हो. बहन की शादी करने का इरादा है या अपनी भी शादी करोगे?’’

‘‘अपनी भी शादी कर लूंगा, अगर तुम्हारी जैसी लड़की मिली तो…’’ कहते हुए अजीत वहां से चला गया.

रात में जब अजीत अपने बिस्तर पर लेटा, तो रसिया के खयालों में खोने लगा. उसे बारबार रसिया के दोनों उभार कांपते दिखाई दे रहे थे. वह सिहर उठा.

2 दिन बाद अजीत रसिया से फिर अपने घर पर मिला. हंसीहंसी में रसिया ने उस से कह दिया, ‘‘अजीत, तुम मु?ो बहुत प्यारे और अच्छे लगते हो.’’

अजीत बोला, ‘‘रसिया, तुम भी मु?ो बहुत अच्छी लगती हो. तुम मु?ा से शादी करोगी?’’

यह सुन कर रसिया को हैरानी हुई. उस ने हड़बड़ा कर कहा, ‘‘तुम ने मेरे कहने का गलत मतलब लगाया है. तुम नहीं जानते कि मैं निचली जाति की हूं. ऐसा खयाल भी अपने मन में मत लाना. तुम्हारा समाज मु?ो नफरत की निगाह से देखेगा. वैसे भी तुम मु?ा से उम्र में बहुत छोटे हो. करिश्मा के नाते मैं भी तुम्हें अपना भाई सम?ाने लगी थी.’’

अजीत कुछ नहीं बोला और बात आईगई हो गई.

समय तेजी से आगे बढ़ता गया. एक दिन करिश्मा ने  अपने जन्मदिन पर अपनी सभी सहेलियों को घर पर बुलाया. काफी चहलपहल में देर रात हो गई, तो रसिया घबराने लगी. उसे अपने घर जाना था. उस ने करिश्मा से कहा, ‘‘अजीत से कह दो कि वह मु?ो मेरे घर छोड़ दे.’’

करिश्मा ने अजीत को पुकार कर कहा, ‘‘अजीत, जरा इधर आना. तुम रसिया को अपनी मोटरसाइकिल से उस के घर तक छोड़ आओ. आसमान में बादल घिर आए हैं. तेज बारिश हो सकती है.’’

‘‘इन से कह दो कि आज रात को यहीं रुक जाएं,’’ अजीत ने सु?ाया.

‘‘नहींनहीं, ऐसा नहीं हो सकता. मेरे घर वाले परेशान होंगे. अगर तुम नहीं चल सकते, तो मैं अकेले ही चली जाऊंगी,’’ रसिया ने कहा.

‘‘नहीं, मैं आप को छोड़ दूंगा,’’ कह कर अजीत ने अपनी मोटरसाइकिल निकाली, तभी हलकीहलकी बारिश शुरू हो गई. कुछ फासला पार करने पर तूफानी हवा के साथ खूब तेज बारिश और ओले गिरने लगे. ठंड भी बढ़ गई थी.

रसिया ने कहा, ‘‘अजीत, तेज बारिश हो रही है. क्यों न हम लोग कुछ देर के लिए किसी महफूज जगह पर रुक कर बारिश के बंद होने का इंतजार कर लें?’’

‘‘तुम्हारा कहना सही है रसिया. आगे कोई जगह मिल जाएगी, तो जरूर रुकेंगे.’’

बिजली की चमक में अजीत को एक सुनसान ?ोंपड़ी दिखाई दी. अजीत ने वहां पहुंच कर मोटरसाइकिल रोकी और दोनों ?ोंपड़ी के अंदर चले गए.

अजीत की नजर रसिया के भीगे कपड़ों पर पड़ी. वह एक पतली साड़ी पहन कर सजधज कर करिश्मा के जन्मदिन की पार्टी में गई थी. उसे क्या मालूम था कि ऐसे हालात का सामना करना पड़ेगा. पानी से भीगी साड़ी में उस का अंगअंग दिखाई दे रहा था.

रसिया का भीगा बदन अजीत को बेसब्र कर रहा था. वह बारबार सोचता कि ऐसे समय में रसिया उस की बांहों में समा जाए, तो उस के जिस्म में गरमी भर जाए,

कांपती हुई रसिया ने अजीत से कुछ कहना चाहा, लेकिन उस की जबान नहीं खुल सकी. लेकिन ठंड इतनी बढ़ गई थी कि उस से रहा नहीं गया. वह बोली, ‘‘भाई अजीत, मु?ो बहुत ठंड लग रही है. कुछ देर मु?ो अपने बदन से चिपका लो, ताकि थोड़ी गरमी मिल जाए.’’

‘‘क्यों नहीं, भाई का फर्ज है ऐसी हालत में मदद करना,’’ कह कर अजीत ने रसिया को अपनी बांहों में जकड़ लिया. धीरेधीरे वह रसिया की पीठ को सहलाने लगा. रसिया को राहत मिली.

लेकिन अब अजीत के हाथ फिसलतेफिसलते रसिया के उभारों पर पड़ने लगे और उस ने सम?ा कि रसिया को एतराज नहीं है. तभी उस ने उस के उभारों को दबाना शुरू किया, तो रसिया ने अजीत की नीयत को भांप लिया.

रसिया उस से अलग होते हुए बोली, ‘‘अजीत, ऐसे नाजुक समय में क्या तुम करिश्मा के साथ भी ऐसी ही हरकत करते? तुम्हें शर्म नही आई?’’ कहते हुए रसिया ने अजीत के गाल पर कस कर चांटा मारा.

यह देख कर अजीत तिलमिला उठा. उस ने भी उसी तरह चांटा मारना चाहा, पर कुछ सोच कर रुक गया.

उस ने रसिया की पीठ सहलाते हुए जो सपने देखे थे, वे उस के वहम थे. रसिया उसे बिलकुल नहीं चाहती थी. जल्दबाजी में उस ने सारा खेल ही खत्म कर दिया. अगर रसिया ने उस की शिकायत करिश्मा से कर दी, तो गड़बड़ हो जाएगी.

अजीत ?ाट से शर्मिंदगी दिखाते हुए बोला, ‘‘रसिया, मु?ो माफ कर दो. मेरी शिकायत करिश्मा से मत करना.’’

‘‘ठीक है, नहीं करूंगी, लेकिन इस शर्त पर कि तुम यह सब बिलकुल भूल जाओगे,’’ रसिया ने कहा.

‘‘जरूरजरूर. दोबारा मैं ऐसा नहीं करूंगा. मैं ने सम?ा था कि दूसरी निचली जाति की लड़कियों की तरह शायद तुम भी कहीं दिलफेंक न हो.’’

‘‘तुम्हारे जैसे बड़े लोग ही हम निचली जाति की लड़कियों से गलत फायदा उठाने की कोशिश करते हैं. सभी लड़कियां कमजोर नहीं होतीं. अब यहां रुकना ठीक नहीं है,’’ रसिया ने कहा.

दोनों मोटरसाइकिल से रसिया के घर पहुंचे. रसिया ने बारिश बंद होने तक अजीत को रोकना चाहा, लेकिन वह नहीं रुका.

उस दिन के बाद से अजीत अपने गाल पर हाथ फेरता, तो गुस्से में उस के रोंगटे खड़े हो जाते.

अजीत रसिया के चांटे को याद करता और तड़प उठता. सोचता कि रसिया ने चांटा मार कर उस की जो बेइज्जती की है, वह उसे जिंदगीभर भूल नहीं सकता. उस चांटे का जवाब वह जरूर देगा.

उस दिन करिश्मा के यहां खूब चहलपहल थी, क्योंकि उस की सगाई होने वाली थी. उस की सहेलियां नाचगाने में मस्त थीं. रसिया भी उस जश्न में शामिल थी, क्योंकि वह करिश्मा की खास सहेली जो थी. वह खूब सजधज  कर आई थी.

अजीत भी लड़कियों के साथ नाचने लगा. उस की नजर जब रसिया से टकराई, तो दोनों मुसकरा दिए. अजीत ने उसी समय मौके का फायदा उठाना चाहा.

अजीत ने ?ामते हुए आगे बढ़ कर रसिया की कमर में हाथ डाला और अपनी बांहों में कस लिया. फिर उस के गालों को ऐसे चूमा कि उस के दांतों के निशान रसिया के गालों पर पड़ गए.

यह देख रसिया तिलमिला उठी और धक्का दे कर उस की बांहों से अलग

हो गई.

रसिया ने उस के गाल पर कई चांटे रसीद कर दिए. जश्न में खलबली मच गई. पहले तो लोग सम?ा ही नहीं पाए कि माजरा क्या है, लेकिन तुरंत रसिया की कठोर आवाज गूंजी, ‘‘अजीत, तुम ने आज इस भरी महफिल में केवल मेरा ही नहीं, बल्कि अपनी बहन औेर सगेसंबंधियों की बेइज्जती की है. मैं तुम पर थूकती हूं.

‘‘मैं सोचती थी कि शायद तुम उस दिन के चांटे को भूल गए हो, पर मु?ो ऐसा लगता है कि तुम यही हरकतें अपनी बहन करिश्मा के साथ भी करते रहे होगे.

‘‘अगर मैं जानती कि तुम्हारे दिल में बहनों की इसी तरह इज्जत होती है, तो यहां कभी न आती. ’’

रसिया ने करिश्मा के पास जा कर उस रात की घटना के बारे में बताया और यह भी बताया कि अजीत ने उस से भविष्य में ऐसा न होने के लिए माफी भी मांगी थी.

करिश्मा का सिर शर्म से ?ाक गया. उस की आंखों से आंसू गिर पड़े.

नासम?ा अजीत ने रसिया को जलील नहीं किया था, बल्कि अपने परिवार की बेइज्जती की थी.

चौकलेट चाचा: आखिर क्यों फूटा रूपल का गुस्सा?

रूपल के पति का तबादला दिल्ली हो गया था. बड़े शहर में जाने के नाम से ही वह तो खिल गई थी. नया शहर, नया घर, नए तरीके का रहनसहन. बड़ी अच्छी जगह के अपार्टमैंट में फ्लैट दिया था कंपनी ने. नीचे बहुत बड़ा एवं सुंदर पार्क था, जिस में शाम के समय ज्यादातर महिलाएं अपने बच्चों को ले कर आ जातीं. बच्चे वहीं खेल लेते और महिलाएं भी हवा व बातों का आनंद लेतीं. हरीभरी घास में रंगबिरंगे कपड़े पहने बच्चे बड़े ही अच्छे लगते. रूपल ने भी सोसाइटी के रहनसहन को जल्दी ही अपना लिया और शाम के समय अपनी डेढ़ वर्षीय बेटी को पार्क में ले कर जाने लगी. एक दिन उस ने देखा कि एक बुजुर्ग के पार्क में आते ही सभी बच्चे दौड़ कर उन के पास पहुंच गए और चौकलेट चाचा, चौकलेट चाचा कह कर उन से चौकलेट लेने लगे. सभी बच्चों को चौकलेट दे वे रूपल के पास भी आए और उस से भी बातें करने लगे. फिर रूपल व उस की बेटी को भी 1-1 चौकलेट दी. पहले तो रूपल ने झिझकते हुए चौकलेट लेने से इनकार कर दिया, किंतु जब चौकलेट चाचा ने कहा कि बच्चों के चेहरे पर खुशी देख उन्हें बहुत अच्छा लगता है, तो उस ने व उस की बेटी ने चौकलेट ले ली.

पूरे अपार्टमैंट के लोग उन्हें चौकलेट चाचा के नाम से पुकारते, इसलिए अब रूपल की बेटी भी उन्हें चौकलेट चाचा कहने लगी और उन से रोज चौकलेट लेने लगी. वह भी और बच्चों की तरह उन्हें देख कर दौड़ पड़ती. ऐसा करतेकरते 6 माह बीत गए. अब तो रूपल की अपार्टमैंट में सहेलियां भी बन गई थीं. एक दिन उस की एक सहेली ने जिस की 10 वर्षीय बेटी थी, उस से पूछा, ‘‘क्या तुम चौकलेट चाचा को जानती हो?’’

रूपल ने कहा, ‘‘हां बहुत अच्छे इंसान हैं. सारे बच्चों को बहुत प्यार करते हैं.’’ उस की सहेली ने कहा, ‘‘मैं ने सुना है कि चौकलेट के बदले लड़कियों को अपने गालों पर किस करने के लिए बोलते हैं.’’

रूपल बोली, ‘‘ऐसा तो नहीं देखा.’’

सहेली ने आगाह करते हुए कहा, ‘‘तुम थोड़ा ध्यान देना इस बार जब वे पार्क में आएं.’’

रूपल ने जवाब में ‘हां’ कह दिया. अगले ही दिन जब रूपल अपनी बेटी को ले कर पार्क गई तो उस ने देखा कि चौकलेट चाचा वहां बैठे थे. उस की बेटी दौड़ कर उन के पास गई और उन के गालों पर किस कर दिया. रूपल तो यह देखते ही सन्न रह गई. वह तो समझ ही न पाई कि कब व कैसे चौकलेट चाचा ने उस की बेटी को किस करने के लिए ट्रेंड कर दिया था. वह चौकलेट के लालच में उन्हें किस करने लगी थी. अब जब भी वह पार्क में जाती तो चौकलेट चाचा को देखते ही सतर्क हो जाती और हर बार उन्हें मना करती कि वे उस की बेटी को चौकलेट न दें. वह यह भी देखती कि चौकलेट चाचा अन्य लड़कियों को गले लगाते एवं कुछ की छाती व पीठ पर भी मौका पाते ही हाथ फिरा देते. यह सब देख उसे घबराहट होने लगी थी और वह स्तब्ध रह जाती थी कि चौकलेट चाचा कैसे सब लड़कियों को ट्रेनिंग दे रहे थे और उन की मासूमियत और अपने बुजुर्ग होने का फायदा उठा रहे थे.

उस ने अपने पति को भी यह बात बताई, तो जब कभी वह अपने पति व बेटी के साथ पार्क जाती और चौकलेट चाचा को देखती तो उस के पति यह कह देते कि उन की बेटी को डाक्टर ने चौकलेट खाने के लिए मना किया है, इसलिए वे उसे न दें. पर चौकलेट चाचा तो उसे चौकलेट दिए बिना मानते ही नहीं थे. दोनों पतिपत्नी ने उन्हें कई बार समझाया, पर वे किसी न किसी तरह उन की बेटी को चौकलेट दे ही देते. अब रूपल चौकलेट चाचा को देखते ही अपनी बेटी को उन के सामने से हटा ले जाती, लेकिन चौकलेट चाचा तो अपार्टमैंट में सब जगह घूमते और उस की बेटी को चौकलेट दे ही देते. बदले में उस की बेटी उन्हें बिना बोले ही किस कर देती. अब रूपल मन ही मन डरने लगी थी कि इस तरह तो उस की बेटी चौकलेट या किसी अन्य वस्तु के लिए किसी के भी पीछे चल देगी. और वह इतनी बड़ी भी न थी कि वह उसे समझा सके. इस तरह तो कोई भी उस की बेटी को बहलाफुसला सकता है. उस ने फैसला कर लिया कि अब वह चौकलेट चाचा को मनमानी नहीं करने देगी.

अगले दिन जब चौकलेट चाचा अपने अन्य बुजुर्ग मित्रों के साथ पार्क में आए और जैसे ही उस की बेटी को चौकलेट देने लगे, वह चीख कर बोली, ‘‘मैं आप को कितनी बार बोलूं कि आप मेरी बेटी को चौकलेट न दें.’’ इस बार चौकलेट चाचा रूपल का मूड समझ गए. उन के मित्र तो इतना सुन कर वहां से नदारद हो गए. चौकलेट चाचा भी बिना कुछ बोले वहां से खिसक लिए. किसी बुजुर्ग से इस तरह व्यवहार करना रूपल को अच्छा न लगा, इसलिए वह पार्क में अकेले ही चुपचाप बैठ गई. तभी वे सभी महिलाएं जो आसपास थीं और यह सब होते देख रही थीं, उस के पास आईं. उन में से एक बोली, ‘‘हां, तुम ने ठीक किया. हम सभी चौकलेट चाचा की इन हरकतों से बहुत परेशान हैं. ये तो लिफ्ट में आतीजाती महिलाओं को भी किसी न किसी बहाने स्पर्श करना चाहते हैं. मगर इन की उम्र का लिहाज करते हुए महिलाएं कुछ बोल नहीं पातीं.’’ उस के इतना कहने पर सब एकएक कर अपनेअपने किस्से बताने लगीं. अब रूपल को समझ में आ गया था कि चौकलेट चाचा की हरकतों को कोई भी पसंद नहीं कर रहा था, लेकिन कहते हैं न कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे, इसीलिए सभी चुप थीं.

उस दिन वह गहरी सोच में पड़ गई कि क्या यही है हमारा सभ्य समाज, जहां लोग अपनी उम्र की आड़ में या फिर लोगों द्वारा किए गए लिहाज का फायदा उठाते हुए मनमानी या यों कहिए कि बदतमीजी करते हैं? और तो और मासूम बच्चों को भी नहीं छोड़ते. अब उसे अपने किए पर कोई पछतावा न था और अपने उठाए कदम की वजह से वह अपार्टमैंट की सभी महिलाओं की अच्छी सहेली बन गई थी. उस के द्वारा की गई पहल पर सब उसे बधाइयां  दे रहे थे.

रूहानी इलाज : रेशमा को कैसे मिला जिस्मानी सुख

‘‘नहीं…नहीं,’’ चीखते हुए रेशमा अचानक उठ बैठी, तो उस का पति विवेक भी हड़बड़ा कर उठ बैठा और पूछने लगा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘वही डरावना सपना…’’ कहते हुए रेशमा विवेक से लिपट कर रो पड़ी.

‘‘घबराओ नहीं, सब ठीक हो जाएगा,’’ विवेक रेशमा को हिम्मत देते हुए बोला, ‘‘शाम को जब मैं दफ्तर से लौटूंगा, तब तुम्हें डाक्टर को दिखा दूंगा.’’

विवेक और रेशमा की शादी को 2 साल हो गए थे, पर रेशमा को अभी तक जिस्मानी सुख नहीं मिल पाया था. वह इस बारे में न तो किसी से कह सकती थी और न इस से नजात पा सकती थी. बस, मन ही मन घुटती रहती थी.

विवेक रात को दफ्तर से वापस आता, तो थकामांदा उस के साथ सोता. फिर पलभर के छूने के बाद करवट बदल लेता और रेशमा जिस्मानी सुख को तरसती रह जाती. ऐसे में बच्चा पैदा होने की बात तो वह सोच भी नहीं सकती थी.

विवेक के दफ्तर जाने के बाद रेशमा की पड़ोसन सीमा उस से मिलने आई और हालचाल पूछा.

बातोंबातों में रेशमा ने सीमा को अपने सपनों के बारे में बता दिया.

सीमा बोली, ‘‘घबरा मत. सब ठीक हो जाएगा. यहीं नजदीक में ही एक तांत्रिक पहलवान हैं. वे तंत्र विद्या से रूहानी इलाज करते हैं. उन्होंने कइयों को ठीक किया है. तू भी चलना, अगर मुझ पर भरोसा है तो.’’

‘‘नहीं सीमा, आज शाम विवेक मुझे डाक्टर के पास ले जाने वाले हैं,’’ रेशमा ने कहा, तो सीमा बोली, ‘‘छोड़ न डाक्टर का चक्कर. पहले मोटी फीस लेगा, फिर ढेर सारे टैस्ट लिख देगा और ज्यादा से ज्यादा नींद आने या तनाव भगाने की दवा दे देगा. तुझ पर तो किसी प्रेत का साया लगता है. ये बीमारियां ठीक करना डाक्टरों के बस की बात नहीं. आगे तेरी मरजी.’’

सीमा की बात रेशमा पर असर कर गई. उसे लगा कि तांत्रिक को दिखाने में हर्ज ही क्या है. कुछ सोच कर उस ने हामी भर दी और विवेक को मोबाइल फोन मिला कर सब सच बता दिया.

सीमा और रेशमा तांत्रिक पहलवान के पास पहुंचीं. वहां बाहर ही बड़ा सा बोर्ड लगा था, जिस पर लिखा था, ‘यहां हर बीमारी का शर्तिया रूहानी इलाज किया जाता है’.

उन्होंने तांत्रिक से मिलने की इच्छा जताई, तो वहां बैठे तांत्रिक के अर्दली ने उन्हें बाहर बैठा दिया और बोला, ‘‘अभी पहलवान पूजा सिद्ध कर रहे हैं.’’

फिर वह बड़ी देर तक उन से बातें करता रहा और उन के मर्ज के बारे में  भी पूछा.

थोड़ी देर बाद अर्दली पहलवान से इजाजत लेने अंदर गया.

तभी एक और औरत आ कर उन के पास बैठ गई और इन से मर्ज पूछा. साथ ही बताया कि पहलवान बहुत अच्छा इलाज करते हैं.

रेशमा ने उस औरत को सारा मर्ज बता दिया और पहलवान के बारे में जान कर उस का भरोसा और बढ़ गया.

इतने में अर्दली आया और बोला, ‘‘चलिए, आप को बुलाया है.’’

अंदर एक मोटीमोटी आंखों वाला लंबाचौड़ा आदमी माथे पर पटका बांधे बैठा था. कमरे में दीवारों पर तंत्रमंत्र लिखे कई पोस्टर लगे थे. चारों ओर धूपबत्ती का धुआं फैला था. वहां सिर्फ जीरो वाट का एक लाल बल्ब रोशनी फैलाता माहौल को और डरावना बना रहा था.

वह आदमी मोबाइल फोन पर किसी से बात कर रहा था. उस ने बात करतेकरते इन्हें बैठने का इशारा किया. फिर बात खत्म कर इन की ओर मुखातिब हुआ, तो रेशमा ने कुछ दबी सी जबान में अपनी बात कही.

रेशमा की दास्तां सुन कर पहलवान तांत्रिक बोला, ‘‘तुम्हें डरावने सपने आते हैं. पति की कमजोरी का खमियाजा भुगत रही हो और न किसी से कह सकती हो और न सह सकती हो. अभी तक कोई बच्चा भी नहीं है… सब के ताने सहने पड़ते हैं…’’

रेशमा हैरान थी कि तांत्रिक यह सब बिना बताए कैसे जानता है. लेकिन उसे वह पहुंचा हुआ तांत्रिक लगा व इस से उस पर रेशमा का भरोसा बढ़ गया.

फिर वह उन से बोला, ‘‘लगता है कि किसी बुरी आत्मा की छाया है तुम पर, जिस ने तुम्हारे दिमाग पर कब्जा कर रखा है. इस का इलाज हो जाएगा, लेकिन जैसा मैं कहूं वैसा करना होगा. 4-5 बार झाड़फूंक के लिए बुलाऊंगा. नतीजा खुद तुम्हारे सामने आ जाएगा.’’

रेशमा को उस के रूहानी इलाज पर भरोसा हो गया था, इसलिए वह रूहानी इलाज के लिए तैयार हो गई और फीस के बारे में पूछा.

इस पर तांत्रिक बोला, ‘‘अपनी मरजी से कुछ भी दे देना. मनमांगी फीस तो हम तब लेंगे, जब काम हो जाएगा. हमें पैसों का कोई लालच नहीं है,’’ कहते हुए तांत्रिक ने नजर से नजर मिला कर रेशमा की ओर देखा.

‘‘ठीक है,’’ कह कर रेशमा ने इलाज के लिए हामी भरी, तो सीमा को बाहर भेज कर तांत्रिक ने कमरा बंद कर लिया.

तांत्रिक ने रेशमा को भभूत लिपटा एक लड्डू दिया और वहीं खा कर जाने को कहता हुआ बोला, ‘‘2 दिन बाद फिर आना. पूरी विधि से झाड़फूंक कर दूंगा. असर तो आज से ही पता चल जाएगा तुम्हें.’’

घर पहुंच कर रेशमा को कुछ हलकापन महसूस हो रहा था. उसे लग रहा था कि इस रूहानी इलाज का उस पर असर जरूर होगा. वह चिंतामुक्त हो बिस्तर पर पसर गई. कब आंख लगी, उसे पता ही न चला. आंख खुली तब, जब विवेक ने दरवाजा खटखटाया.

‘ओह, आज कितने अरसे बाद इतनी गहरी नींद आई है. शायद यह रूहानी इलाज का ही असर है,’ रेशमा ने सोचा और दरवाजा खोला.

चाय पीते समय रेशमा ने विवेक को तांत्रिक की बात बता दी. रेशमा को तरोताजा देख कर विवेक को भी यकीन हो गया कि इस इलाज का असर होगा. लेकिन चुटकी लेता हुआ वह बोला, ‘‘कहीं तांत्रिक ने नींद की दवा तो नहीं डाल दी थी लड्डू में, जो घोड़े बेच कर सोई थी?’’

2 दिन बाद रेशमा को फिर तांत्रिक पहलवान के पास जाना था. उस ने फोन कर के पहलवान से मिलने का समय ले लिया और तय समय पर पहुंच गई.

तांत्रिक ने पहले की झाड़फूंक का असर पूछा, तो रेशमा ने बता दिया कि फर्क लग रहा है.

तांत्रिक की घूरती निगाहें अब रेशमा के उभारों का मुआयना कर रही थीं. जीरो वाट के बल्ब की लाल रोशनी में धूपबत्ती के धुएं और बंद कमरे में तांत्रिक ने एक बार फिर रेशमा की झाड़फूंक की और उस से करीबी बनाने लगा.

फिर उस ने रेशमा को भभूत लिपटा लड्डू खाने को दिया, जिसे खाने पर वह बेहोश सी होने लगी.

असर होते देख तांत्रिक पहलवान ने रेशमा को अपनी बांहों में जकड़ लिया. अब तांत्रिक को मुंहमांगी मुराद मिल गई थी. उस ने रेशमा के अंगों के साथ खुल कर खेलना शुरू कर दिया.

मनमुताबिक भोगविलास के बाद तांत्रिक पहलवान ने रेशमा को घर भेज दिया. घर आ कर रेशमा बिस्तर पर पड़ गई.

उसे तांत्रिक की इस हरकत का पता चल गया था, लेकिन उस ने जिस्मानी सुख का सुकून भी पाया था, जिसे वह खोना नहीं चाहती थी.

अगली बार रेशमा तांत्रिक के पास गई, तो खुला दरवाजा देख बिना इजाजत अंदर जा पहुंची. अंदर का नजारा देख कर वह दंग रह गई. अंदर तांत्रिक उसी औरत की बांहों में बांहें डाले बैठा था, जिसे उस ने पहले दिन वहां देखा था और सारा मर्ज बताया था.

रेशमा समझ गई कि यह तांत्रिक की ही जानकार है और इसी ने मरीज बन कर सब जान लिया और फोन पर तांत्रिक को बताया था, तभी तो तांत्रिक फोन पर बात करता मिला और हमारे बारे में सब सचसच बता पाया.

रेशमा को देखते ही वह औरत तांत्रिक से अलग हो गई और कमरे से बाहर चली गई. रेशमा भी सबकुछ जानने के बावजूद खामोश रही.

तांत्रिक ने रूहानी इलाज शुरू किया और रेशमा खुद को उस के सामने परोसती चली गई.

अब रेशमा जबतब पहलवान के पास इलाज के बहाने पहुंच जाती और देहसुख का लुत्फ उठाती.

उस दिन रेशमा की सास उन के यहां आई हुई थी. उसे जोड़ों का दर्द व बुढ़ापे की अनगिनत बीमारियां थीं, जिस के लिए विवेक ने उन्हें पहलवान के पास ले जाना चाहा था.

तभी रेशमा उबकाई करती दिखी, तो सास और खुश हो गईं. वे विवेक को बधाई देते हुए बोलीं, ‘‘सचमुच पहलवान का इलाज कारगर है, जो बहू पेट से हो गई.’’

लेकिन रेशमा के मन में हजारों शक पनपने लगे थे. उस ने किसी तरह सास को इलाज के लिए ले जाने को टरकाया व पहलवान से छुटकारे की योजना सोचने लगी.

इधर कुछ दिन से रेशमा को न पा कर पहलवान का दिल मचलने लगा था. उस ने रेशमा को फोन कर के बुलाना चाहा. रेशमा ने आनाकानी की और बताया कि इस से उन के संबंध का भेद खुलने का खतरा है. पर पहलवान की बेचैनी हद पर थी.

तांत्रिक पहलवान बोला, ‘‘अगर तुम नहीं आओगी, तो मैं तुम्हारे इस संबंध के बारे में खुद तुम्हारे पति को बता दूंगा.’’

अब रेशमा दुविधा में थी. पति को बताए तो परेशानी और न बताए तो पहलवान का डर. रेशमा को खुद को बचाना मुश्किल हो रहा था.

उधर पहलवान तांत्रिक ने दोबारा फोन कर के धमकाया, ‘अगर तुम यहां नहीं आईं, तो तुम्हारे पति को बता दूंगा.’

रातभर रेशमा बचने का उपाय सोचती रही. उसे लग रहा था, जैसे उसे पुरानी बीमारी ने फिर आ जकड़ा था. वह गहरे तनाव में थी. अचानक उस के दिमाग में कुछ आया और वह निश्चिंत हो कर सो गई.

सुबह उठी और बाहर जा कर पहलवान को फोन कर दिया कि शाम को वह उस के पास आएगी. इस से वह खुश व संतुष्ट हो गया.

साथ ही, उस ने अपने पति विवेक को विश्वास में लिया और बोली, ‘‘देखो, तुम सासू मां का इलाज पहलवान से करवाने की कह रहे थे, लेकिन मैं तुम्हें बता दूं कि वह ठीक आदमी नहीं है. मंत्र पढ़ते समय उस ने मुझे भी कई बार छूने की कोशिश की.’’

सुनते ही विवेक आगबबूला हो गया और बोला, ‘‘तुम ने पहले क्यों नहीं बताया? मैं करता हूं उस का रूहानी इलाज. आज ही उस के खिलाफ पुलिस में शिकायत करता हूं.’’

रेशमा ने उसे रोका, उसे खुद को भी तो बचाना था. फिर वह बोली, ‘‘मैं आज शाम इलाज के लिए वहां जाऊंगी… अगर उस ने ऐसी कोई बात की, तो तुम्हें फोन कर दूंगी. तुम फौरन पुलिस ले कर पहुंच जाना.’’

अब रेशमा रूहानी इलाज करने वाले पहलवान तांत्रिक के पास पहुंची. रेशमा को देखते ही पहलवान खुश हो गया.

वह झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोला, ‘‘तुम समझती क्या हो खुद को? मैं जब बुलाऊं तुम्हें आना होगा, वरना मैं तुम्हारे पति को सब बता दूंगा,’’ कहते हुए उस ने दरवाजा बंद किया और रेशमा को अपनी बांहों में जकड़ने लगा. तब तक रेशमा अपने पति को मिस काल कर के संकेत दे चुकी थी.

थोड़ी ही देर में विवेक पुलिस को ले कर आ पहुंचा. पहलवान रंगे हाथों पकड़ा गया. पुलिस उस के कमरे पर ताला जड़ कर उसे साथ ले गई.

उधर रेशमा खुश थी. उस ने एक तीर से दो निशाने जो साधे थे. एक तो उस ने रूहानी इलाज के बहाने जिस्मानी भूख खत्म की, फिर तांत्रिक को पकड़वा कर खुद को उस के चंगुल से निकाल लिया था. साथ ही, पति की नजरों में भी उस ने खुद को बेदाग साबित कर लिया था.

उड़ान : कांता के सपने

‘‘मैं  ने कह दिया न कि मैं तुम्हारे उस गिरिराज से शादी नहीं करूंगी. सब कहते हैं कि वह दिखने में मुझ से छोटा लगता है. फिर वह करता भी क्या है… लोगों की गाडि़यों की साफसफाई ही न?’’ कांता ने दोटूक शब्दों में कह दिया.

‘‘उस से नहीं करेगी, तो क्या किसी नवाब से शादी करेगी? अरी, तू बिरादरी में हमारी नाक कटाने पर क्यों तुली है. तू सोचती है कि तेरे कहने से हम तय की हुई शादी तोड़ देंगे? इस भुलावे में मत रहना.

‘‘मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि मैं शादियांसगाइयां वगैरह जोड़तीतोड़ती रहूं. अभी तो मेरे पास शादी के लिए दोदो लड़कियां और बैठी हैं,’’ पत्नी देवकी को बोलते देख कर पति मुरारी भी पास आ गया था.

कांता के छोटे भाईबहन, जो बाप की रेहड़ी के पास खड़े हो कर सुबहसुबह कुछ पैसा कमाने के जुगाड़ में प्रैस कर रहे थे, भी वहां आ गए थे.

मुरारी ने बेटी कांता को सुनाते हुए अपनी पत्नी देवकी से कहा, ‘‘कह दे अपनी छोरी से, इतना हल्ला न मचाए. ब्यूटीपार्लर में काम क्या करने लगी है, अपनेआप को हेमामालिनी समझने लगी है. ज्यादा बोलेगी, तो घर से बाहर कर दूंगा. ज्यादा चबरचबर करना मुझे अच्छा नहीं लगता है.’’

मां के सामने तो कांता शायद थोड़ी देर बाद चुप भी हो जाती, पर उन दोनों की तकरार में बाप के आते ही वह गुस्से में आ गई और बोली, ‘‘अच्छा बापू, यह तुम कह रहे हो. शाम को शराब पी कर जो तमाशा तुम करते हो, वह याद नहीं है तुम्हें?

‘‘अभी कल शाम को ही तो तुम ने मुझ से शराब के लिए 20 रुपए लिए थे. तुम्हें तो अपनी शराब से ही फुरसत नहीं है. मैं अपना कमाती हूं. मुझे तो यहां पर रहते हुए भी शर्म आती है. कुछ ज्यादा पैसा मिलने लगे, तो मैं खुद ही यहां से कहीं दूर चली जाऊंगी.’’

जब से कांता ब्यूटीपार्लर में नौकरी करने जाने लगी थी, तब से उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.

वैसे, गलीगली में खुल गए ब्यूटीपार्लर इन्हीं झुग्गीझोंपडि़यों की लड़कियों के बल पर ही चल रहे हैं. इन से जितना मरजी काम ले लो. ये खुश भी रहती हैं और ग्राहक की जीहुजूरी भी खूब कर लेती हैं.

कांता ब्यूटीपार्लर में पिछले 6 महीने से काम कर रही है. शुरूशुरू में वहां की मालकिन अलका मैडम ने उस से बस मसाज वगैरह का काम ही कराया था, पर अब तो वह भौंहों की कटाईछंटाई और बाल भी काट लेती है.

कांता बातूनी है और टैलीविजन पर आने वाले गानों के साथ सारासारा दिन गुनगुनाती रहती है. जब से उस की नौकरी लगी है, तब से छुट्टी वाले दिन भी वह छुट्टी नहीं करती है. जिस दिन दूसरी लड़कियां नहीं आतीं, उस दिन भी अकेली कांता के दम पर ब्यूटीपार्लर खुला रहता है.

अलका मैडम कांता से बहुत खुश हैं और वह उन की इतनी भरोसेमंद हो गई है कि वे अपना कैश बौक्स भी उसे सौंप जाती हैं.

पर आज सुबह से ही कांता का मूड खराब था. चहकने से सुबह की शुरुआत करने वाली कांता आज गुमसुम थी. ब्यूटीपार्लर पहुंच कर न तो उस ने अपने नए तरीके से बाल बनाए थे, न ही अलका मैडम से कहा था, ‘मैडम, जब तक कोई ग्राहक नहीं आता, तब तक मैं आप के बालों में मेहंदी लगा दूं या फेसियल कर दूं…’

कांता की चुप्पी को तोड़ने के लिए अलका मैडम ने ही पूछ लिया, ‘‘क्या हुआ कांता?’’

1-2 बार पूछने पर कांता ने सारी रामकहानी अलका मैडम को सुना दी और लगी रोने. रोतेरोते उस ने कहा, ‘‘मैडम, आप मुझे अपने घर में क्यों नहीं रख लेतीं? बदले में मुझ से अपने घर का कुछ भी काम करा लेना. घर वालों को कुछ तो मजा चखा दूं. मैं अपने साथ जोरजबरदस्ती बरदाश्त नहीं करूंगी.’’

‘‘ठीक है, पर मुझे सोचने के लिए थोड़ा सा समय तो दे. और सुन, यह मत भूलना कि मांबाप बच्चों का बुरा नहीं चाहते हैं. उन के नजरिए को भी समझने की कोशिश कर. दूसरों के कहने पर क्यों जाती है. क्या तू ने अपना मंगेतर देखा है?’’ अलका मैडम ने पूछा.

‘‘हां देखा था, अपनी सगाई वाले दिन. लेकिन मुझे उस का चेहरा जरा भी याद नहीं है.’’

अभी वे दोनों बातें कर ही रही थीं कि साफसफाई करने वाली शीला ने कहा, ‘‘बाहर कोई लड़का कांता को पूछ रहा है.

‘‘लड़का…’’ कांता चौंकी, ‘‘कहीं गिरिराज तो नहीं?’’

‘‘मैं किसी गिरिराज को नहीं पहचानती,’’ शीला ने जवाब दिया.

‘‘जो भी है, उस से कह दो कि यह औरतों का ब्यूटीपार्लर है, मैं लड़कों के बाल नहीं काटती,’’ कांता बोली.

‘‘अरे, इतनी देर में उस से मिल क्यों नहीं लेती?’’ अलका मैडम ने कहा.

कांता बाहर आई, तो उस ने देखा कि सीढि़यों पर एक खूबसूरत सा नौजवान चश्मा लगाए, जींसजैकेट पहने खड़ा था.

‘कौन है यह? शायद किसी ग्राहक के लिए मुझे लेने या समय तय करने के लिए आया हो,’ कांता ने सोचा और बोली, ‘‘आप को जोकुछ पूछना है, अंदर आ कर मैडम से पूछ लो.’’

‘‘मैं तो आप ही के पास आया हूं,’’ वह नौजवान मुसकराते हुए बोला, ‘‘कहीं बैठाओगी नहीं?’’

‘‘मैं तुम… आप को पहचानती नहीं,’’ कांता ने सकपकाते हुए कहा.

‘‘मैं गिरिराज हूं.’’

‘‘हाय…’’ कांता झेंपी, ‘‘तुम… मेरा मतलब आप यहां?’’ थोड़ी देर तक तो उस से कुछ बोला नहीं गया. पहले वह जमीन की तरफ देखती रही, फिर आंख उठा कर उस ने उस नौजवान की तरफ देखा, तो वह भी एकटक उस की ही तरफ देख रहा था.

कांता फिर झेंप गई. बातूनी होने पर भी उस से बोल नहीं फूट रहे थे, तभी बाहर का हालचाल जानने के लिए अलका मैडम भी बाहर निकलीं.

कांता की पीठ अलका मैडम की तरफ थी और वह उन के रास्ते में खड़ी थी. रास्ता रुका देख कर गिरिराज ने कांता की बांह पकड़ कर एक तरफ खींचते हुए कहा, ‘‘देखो, ये मैडम जाना चाहती हैं. तुम एक तरफ हट जाओ.’’

गिरिराज के हाथ की छुअन के रोमांच पर कांता मन ही मन खुश होते हुए भी ऊपर से गुस्सा कर बोली, ‘‘तुम मुझे हाथ लगाने वाले कौन होते हो?’’ इसी बीच अलका मैडम वापस अंदर चली गईं.

‘‘अरे, अभी तक नहीं पहचाना? मैं गिरिराज हूं, तुम्हारा गिरिराज. मां और बाबूजी कल तुम्हारे यहां शादी की तारीख तय करने के लिए गए थे.

‘‘मैं ने उन से कह दिया था कि मुझ से बिना पूछे कोई तारीख पक्की मत कर आना. सोचा था कि तुम से मिल कर ही तारीख तय करूंगा.

‘‘इसी बहाने एकदो बार मिल तो लेंगे. चलो, छुट्टी ले लो. चाहे तो शाहरुख खान की नई फिल्म देख लेंगे या फिर किसी रैस्टोरैंट में पिज्जा खिला लाऊं?’’ गिरिराज ने अपनी बात रखी.

कांता के मन में लड्डू फूट रहे थे. अच्छा हुआ कि वह सुबह गुस्से में अलका मैडम के घर रहने नहीं पहुंच गई.

‘‘मैं घर पर तो बता कर के नहीं आई हूं,’’ कांता ने नरम होते हुए कहा.

‘‘तो क्या हुआ? चोरीछिपे मिलने  का मजा ही कुछ और है. और फिर मेरे साथ चलने में तुम्हें कैसी हिचक? देखती नहीं, सब फिल्मों में हीरोहीरोइन मांबाप को बिना बताए ही घूमते हैं, गाते हैं, नाचते हैं,’’ गिरिराज बोला.

कांता ने इतरा कर बालों को पीछे फेंका और तिरछी नजर से उसे देखते हुए बोली, ‘‘मैं जरा बालों को ठीक

कर आऊं, तब तक तुम अलका मैडम से जाने की इजाजत ले लो,’’ फिर जातेजाते वह रुकते हुए बोली, ‘‘तुम… आप कुछ ठंडागरम लेंगे?’’

‘‘वैसे तो जब से आया हूं, तुम्हारे रूप को पी ही रहा हूं, फिर भी तुम जो पिला दोगी, पी लूंगा. पीने के लिए ही तो आया हूं.’’

कांता के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. नशे की सी हालत में वह लड़खड़ा कर गिरने ही वाली थी कि गिरिराज ने उसे लपक कर अपनी बांहों में समेट लिया.

उधर ब्यूटीपार्लर के टैलीविजन पर एक प्यार भरा गीत आ रहा था, ‘मुझ को अपने गले लगा लो ऐ मेरे हमराही…’ और इधर गिरिराज कांता को संभालते हुए मानो गा रहा था, ‘आ, गले लग जा…’

जैसे ही वे दोनों अंदर पहुंचे, सबकुछ समझते हुए अलका मैडम ने उन के बोलने से पहले ही कहा, ‘‘हांहां जाओ, मौज करो. पर मुझे अपनी शादी में बुलाना मत भूलना.’’

‘‘मैडम, क्यों इतनी जल्दी आप हमें शादी की चक्की में पीस देना चाहती हैं. हमें कुछ दिन और मौजमजा कर लेने दीजिए, तब तक छुट्टी मनाने के लिए आप की इजाजत की जरूरत पड़ती रहेगी,’’ गिरिराज ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं.’’

‘‘शुक्रिया मैडम.’’

कांता देख रही थी कि वह जिसे छोटा सा समझ रही थी, वह तो पुराना अमिताभ बच्चन निकला. क्या बढि़या अंदाज में मैडम से बात कर रहा था. कांता सोच रही थी, ‘मां जो तारीख कहेंगी, उसी तारीख के लिए मैं हामी भर दूंगी. तब तक मेरा हीरो इधर आता ही रहेगा.’ गिरिराज कांता को देख रहा था और कांता गिरिराज को. हालांकि उन्होंने बाहर जाने के लिए सीढि़यों से पैर नीचे रखे थे, मगर उन्हें लग रहा था कि वे दोनों उड़ रहे हैं.

अब पछताए होत क्या : कामिनी ने आप पर आरोप क्यों लगाया

आज मंत्री पद गंवा कर दामोदर दुखी भाव से घर लौटे थे. टैलीविजन चालू करते ही वे चौंक गए. हर जगह उन्हीं की महिमा का गुणगान हो रहा था.

दामोदर के ऊपर कामिनी समेत 20 औरतों ने छेड़छाड़ करने का केस दायर किया था. प्रधानमंत्री ने सख्ती दिखाते हुए उन्हें मंत्री पद से हटा दिया. चूंकि वे वरिष्ठ मंत्री रहे हैं इसलिए उन से इस्तीफा लिया गया और अदालत के फैसले के आधार पर उन के ऊपर कार्यवाही होगी.

इस सब में प्रधानमंत्री का बयान आग में घी का काम कर रहा था, ‘मैं ने प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारियों का पालन करते हुए दामोदर से इस्तीफा ले कर मंत्रिपरिषद से बाहर कर दिया है. अदालत बिना किसी दबाव के इस मसले पर फैसला लेगी.’

‘‘बड़ा ईमानदार बनता है. सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली,’’ दामोदर गुस्से में बड़बड़ा रहे थे. वे राजनीति में 50 साल यों ही नहीं गुजार चुके थे. उस में भी वे 30 साल से ज्यादा पत्रकारिता जगत में गुजार चुके थे. कामिनी को वे ही पत्रकारिता में लाए थे.

शाम को अपनी सफाई में दी गई प्रैस कौंफ्रैंस में दामोदर वहां आए पत्रकारों पर फट पड़े, ‘‘मैं खुद पत्रकार के रूप में सालों से आप के साथ रहा हूं और काम कर रहा हूं. इन आरोपों में कोई दम नहीं है, पर पत्रकार के रूप में आप सब जांच में सहयोग दें और सच को छापें.

‘‘मैं ने भी मंत्री पद से इसलिए इस्तीफा दिया क्योंकि न्यायपालिका में मेरा पूरा विश्वास है कि वह सही जांच करेगी. दूसरी बात यह है कि जिस दिन की बात कामिनी बता रही हैं, उस दौरान मैं प्रधानमंत्री के श्रीलंका दौरे को कवर करने वहां गया था और एक वक्त में मैं 2 जगह नहीं रह सकता.’’

‘‘फिर कामिनी ने आप पर आरोप क्यों लगाया?’’ एक पत्रकार का यह सवाल था.

‘‘आरोप तो कोई भी किसी पर लगा सकता है, मेरे इतने साल के पत्रकारिता और राजनीति के कैरियर में जब कोई गलती नहीं दिखाई दी तो मेरा सीधा चरित्र हनन कर डाला,’’ दामोदर मानो सफाई देते हुए बोले.

मीटिंग खत्म कर के वे कमरे में लौटे तो उन का कामिनी की पुरानी बातों और यादों पर ध्यान चला गया.

‘कामिनी, आप क्या लिखती हैं?’ दामोदर उस की रचनाओं और बायोडाटा को देखते हुए बोले थे.

‘कुछ नहीं बस आज से जुड़े विषयों पर छिटपुट रचनाएं लिखी हैं.’

‘अभी तुरंत कुछ लिख कर दीजिए,’ दामोदर 4 पेज देते हुए बोले थे.

कामिनी ने थोड़ी ही देर में एक ज्वलंत विषय पर रचना लिख कर दे दी थी. इस के बाद इतिहास से एमए पास कामिनी अकसर लिखती और उस की रचना छपने लगी थी.

उस दिन भी कवरेज के लिए जब दामोदर कानपुर गए थे, तो कामिनी उन के साथ थी. बारिश हो रही थी. रात के 11 बजे जब वे कमरे में पहुंचे तो दोनों भीग चुके थे.

इस के बाद दामोदर ने कामिनी के साथ होटल में छक कर मजे लूटे थे. कामिनी ने भी भरपूर सहयोग दिया था. आग में घी तब पड़ा था, जब दामोदर कामिनी के बजाय राधा से शादी कर बैठे थे.

‘इतने दिनों तक मेरा इस्तेमाल किया, फिर…’ कामिनी बिफरते हुए बोली थी.

‘फिर क्या, हम दोनों ने एकदूसरे का इस्तेमाल किया है. तुम ने मेरे नाम का और मैं ने तुम्हारा. यह दुनिया ऐसे ही कारोबार पर चलती है,’ दामोदर सपाट लहजे में बोले थे.

‘मैं आप को बदनाम कर दूंगी. आखिर उस राधा ने क्या दिया है आप को?’ कामिनी गुस्सा में बड़बड़ा रही थी.

‘तुम खुद टूट जाओगी. दूसरी बात यह कि मैं ने मंत्री की बेटी से शादी की है, तो अब सब अपनेआप मिल जाएगा,’ दामोदर सफाई देते हुए बोले थे.

फिर धीरेधीरे दोनों दूर हो गए थे. दामोदर ने सालों से कामिनी का चेहरा नहीं देखा था. इतने सालों के बाद वह न जाने कहां से टपक पड़ी थी.

अगर कामिनी ने अदालत में सुबूत पेश कर दिया तो उन्हें जेल होगी और हर्जाना भी देना पड़ेगा. सांसद की कुरसी भी छिन जाएगी.

‘क्या करूं…’ दामोदर सोच रहे थे कि उन्हें जग्गा याद आ गया. वे जग्गा के पास खुद पहुंचे थे.

‘‘आप जाइए, मैं इस का इलाज कर देता हूं. आप बस 20 औरतों के लिए 25 लाख रुपए का इंतजाम कर दें,’’ वह शराब पीता हुआ बोला.

‘‘पैसा कल तक पहुंच जाएगा. तुम काम शुरू कर दो,’’ दामोदर हामी भरते हुए बोले.

अगले दिन दोपहर के 12 बजे प्रैस कौंफ्रैंस कर उन सभी 20 औरतों ने नाम समेत माफी मांगी और आरोप वापस ले लिया.

अब तो दामोदर मंत्री पद पर दोबारा आ गए. इस मसले पर जब उन से पूछा गया तो वे ?ाट बोल उठे, ‘‘वे सब मेरी बहन जैसी हैं. मैं तो उन से कभी मिला नहीं, उन्हें जानता तक नहीं. बस राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल की गई मुहरें थीं. मुझे साजिश करने वाला चाहिए मुहरें नहीं.’’

‘‘मगर, वे सब औरतें कहां गईं?’’ एक पत्रकार ने पूछा.

‘‘यह सवाल आप उन से पूछिए जिन्होंने मुझ पर ऐसा घिनौना आरोप लगवाया है.

वह तो भला हो उन बहनों का, जिन का जमीर जाग गया और आज मैं आप के सामने हूं. मेरे सामने खुदकुशी के सिवा कोई रास्ता नहीं था,’’ घडि़याली आंसू बहाते दामोदर के इस जवाब ने सब को चुप कर दिया था.

दामोदर दोबारा सही हो गए, तो झट रात में जग्गा को फोन लगाया.

‘आप चिंता मत करो, सारा काम ठीक से हो गया है,’ जग्गा ने कहा.

‘‘फिर भी कहीं कुछ…’’ दामोदर थोड़े शंकित थे.

‘कोई अगरमगर नहीं… जग्गा पूरे पैसे ले कर आधा काम नहीं करता है.’

अब दामोदर ने चैन की सांस ली. अब वे कभी ऐसा कुछ नहीं करेंगे, ऐसा सोच कर वे हलका महसूस करने लगे और धीरेधीरे नींद के आगोश में चले गए.

आलिया: एक होशियार लड़की

सब कहते हैं कि दुनिया बहुत ही खूबसूरत है. यहां देखने के लिए एक से एक शानदार जगहें हैं. पहाड़, नदियां, कई मौसम और हर रंगढंग के लोग. अगर कोई कुछ सीखना चाहता है तो वह इन्हीं अच्छेबुरे लोगों के बीच रह कर ही सीख सकता है. अगर कोई आगे बढ़ना चाहता है तो उसे इन्हीं लोगों के साथ ही आगे चलना होगा.

लेकिन उन लोगों का क्या, जिन्होंने यह दुनिया जी ही नहीं? ऐसे लोग जो अपने ख्वाबों में अपनी एक अलग दुनिया जीते हैं. वे किताबों, घर के बनाए उसूलों और टैलीविजन देख कर ही पूरी जिंदगी गुजार देते हैं.

ऐसे ही लोगों में से एक है आलिया. वह 12वीं क्लास में पढ़ती है. देखने में होशियार लगती है. और है भी, लेकिन उस ने अपना दिमाग सिर्फ किताब के कुछ पन्नों तक ही सिमटा रखा है. 12वीं क्लास में होने के बावजूद उस ने आज तक बाजार से अपनेआप एक पैन नहीं खरीदा है. वह छोटे बच्चों की तरह लंच बौक्स ले कर स्कूल जाती है और अपने पास 100 रुपए से ज्यादा जेबखर्च नहीं रखती है.

आलिया के पास आर्ट स्ट्रीम है और स्कूल में उस की एक ही दोस्त है हिना, जो साइंस स्ट्रीम में पढ़ती है. दोनों का एक सब्जैक्ट कौमन है, इसलिए वे दोनों उस एक सब्जैक्ट की क्लास में मिलती हैं और लंच बे्रक साथ ही गुजारती हैं.

आलिया को लगता है कि अगर कोई बच्चा 100 रुपए से ज्यादा स्कूल में लाता है तो वह बिगड़ा हुआ है. पार्टी करना, गपें मारना और किसी की खिंचाई करना गुनाह के बराबर है.

अगर कोई लड़की स्कूल में बाल खोल कर और मोटा काजल लगा कर आती है और लड़कों से बिंदास बात करती है तो वह उस के लिए बहुत मौडर्न है.

सच तो यह है कि आलिया बनना तो उन के जैसा ही चाहती है, पर चाह कर भी ऐसा बन ही नहीं पाती है. क्लास के आधे से ज्यादा बच्चों से उस ने आज तक बात नहीं की है.

एक बार रोहन ने आलिया से पूछा, ‘‘आलिया, क्या तुम हमारे साथ पार्टी में चलोगी? श्वेता अपने फार्महाउस पर पार्टी दे रही है.’’

आलिया का मन तो हुआ जाने का, पर उसे यह सब ठीक नहीं लगा. उस ने सोचा कि इतनी दूर फार्महाउस पर वह अकेली कैसे जाएगी.

‘‘नहीं, मैं नहीं आऊंगी. वह जगह बहुत दूर है,’’ आलिया बोली.

‘‘तो क्या हुआ. हम तुम्हें अपने साथ ले लेंगे. तुम कहां रहती हो, हमें जगह बता दो,’’ श्वेता ने भी साथ चलने के लिए कहा.

‘‘नहीं, मैं वहां नहीं जा पाऊंगी,’’ आलिया ने साफ लहजे में कहा.

‘‘बाय आलिया,’’ छुट्टी के वक्त रोहन ने आलिया से कहा.

आलिया सोचने लगी कि आज वह इतनी बातें क्यों कर रही है. वह रोहन की बात को अनसुना करते हुए आगे निकल गई.

रोहन को लगा कि वह बहुत घमंडी है. इस के बाद उस ने कभी आलिया से बात नहीं की.

अगले दिन आलिया को लंच ब्रेक में हिना मिली. अरे, हिना के बारे में तो बताया ही नहीं. वह आलिया की तरह भीगी बिल्ली नहीं है, बल्कि बहुत बिंदास और मस्त लड़की है. लेकिन अलग मिजाज होने के बावजूद दोस्ती हो ही जाती है. हिना की भी अपनी क्लास में ज्यादा किसी से बनती नहीं थी. इसी वजह से वे दोनों दोस्त बन गईं.

हिना को आलिया इसलिए पसंद थी, क्योंकि वह ज्यादा फालतू बात नहीं करती थी और कभी भी हिना की बात नहीं काटती थी. आलिया को कभी पता ही नहीं चलता था कि कौन किस तरह की बात कर रहा है.

बचपन से ले कर स्कूल के आखिरी साल तक आलिया सिर्फ स्कूल पढ़ने जाती है. बाकी बच्चे कैसे रहते हैं और कैसे पढ़ते हैं, इस पर उस ने कभी ध्यान ही नहीं दिया. अपनी 17 साल की जिंदगी में वह इतना कम बोली है कि शायद बात करना ही भूल गई है. उस की जिंदगी के बारे में जितना बताओ, उस से कहीं ज्यादा अजीब है.

हां, तो हम कहां थे. अगले दिन आलिया लंच ब्रेक में हिना से मिली और रोहन के बारे में बताया.

‘‘आलिया, सिर्फ ‘बाय’ कहने से कोई तुम्हें खा नहीं जाएगा. अगर बच्चे पार्टी नहीं करेंगे, तो क्या 80 साल के बूढ़े करेंगे. वैसे, कर तो वे भी सकते हैं, पर इस उम्र में पार्टी करने का ज्यादा मजा है. स्कूल में हम सब पढ़ने आते हैं, पर यों अकेले तो नहीं रह सकते हैं न. बेजान किताबों के साथ तो बिलकुल नहीं.

‘‘खुद को बदलो आलिया, इस से पहले कि वक्त हाथ से निकल जाए. क्या पता कल तुम्हें उस से काम पड़ जाए, पर अब तो वह तुम से बात भी नहीं करेगा. तू एवरेज स्टूडैंट है, पर दिनभर पढ़ती रहती है और तेरी क्लासमेट पूजा जो टौपर है, वह कितना ऐक्स्ट्रा करिकुलर ऐक्टिविटीज में हिस्सा लेती है. इतने सारे दोस्त हैं उस के.

‘‘टौपर वही होता है, जो दिमागी और जिस्मानी तौर पर मजबूत होता है. जो सिर्फ पढ़ाई ही नहीं करता, बल्कि जिंदगी को भी ऐंजौय करता है.’’

‘‘अच्छा ठीक है. अब लैक्चर देना बंद कर,’’ आलिया ने कहा.

‘‘तू फेसबुक पर कब आएगी? मु?ो अपनी कजिन की शादी की पिक्स दिखानी हैं तु?ो,’’ हिना ने कहा.

‘‘मेरे यहां इंटरनैट नहीं है. फोटो बन जाएं तब दिखा देना.’’

‘‘ठीक है देवीजी, आप के लिए यह भी कर देंगे,’’ हिना ने मजाक में कहा.

लंच ब्रेक खत्म हो गया और वे दोनों अपनीअपनी क्लास में चली गईं.

‘‘मम्मी, पापा या भाई से कह कर घर में इंटरनैट लगवा दो न.’’

‘‘भाई तो तेरा बाहर ही इंटरनैट इस्तेमाल कर लेता है और पापा से बात की थी. वे कह रहे थे कि कुछ काम नहीं होगा, सिर्फ बातें ही बनाएंगे बच्चे.’’

‘‘तो आप ने पापा को बताया नहीं कि भाई तो बाहर भी इंटरनैट चला लेते हैं और मु?ो उस का कखग तक नहीं आता है. मेरे स्कूल में सारे बच्चे इंटरनैट इस्तेमाल करते हैं,’’ आलिया ने थोड़ा गुस्सा हो कर कहा.

‘‘अच्छा, अब ज्यादा उलटीसीधी जिद न कर. पता नहीं, किन जाहिलों में रह रही है. बात करने की तमीज नहीं है तु?ो. इतना चिल्लाई क्यों तू?’’ मां ने डांटते हुए कहा.

आलिया अकेले में सोचने लगी कि भाई तो बाहर भी चला जाता है. उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं होती और वह घर में ही रहती है, फिर भी भिखारियों की तरह हर चीज मांगनी पड़ती है.

कुछ पेड़ हर तरह का मौसम सह लेते हैं और कुछ बदलते मौसम का शिकार हो जाते हैं. आलिया ऐसे ही बदलते मौसम का शिकार थी.

आलिया का परिवार सहारनपुर से है. उस की चचेरी और ममेरी बहनें हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ती हैं. 12वीं क्लास के बाद ही ज्यादातर सब की शादी हो जाती है. दिल्ली में रहने के बाद भी आलिया नहीं बदली. जब वह छोटी थी तब उस के सारे काम भाई और मम्मी ही करते थे.

वे जितना प्यार करते थे, उतनी ही उस पर पाबंदी भी रखते थे. दिल्ली में एक अच्छे स्कूल में होने की वजह

से उसे पढ़ाई का बढि़या माहौल मिला, पर स्कूल के दूसरे बच्चों के घर के माहौल में और उस के घर के माहौल में जमीनआसमान का फर्क था.

आलिया स्कूल से घर दोपहर के

3 बजे आती है, फिर खाना खाती है, ट्यूशन पढ़ती है. रात में थोड़ा टीवी देखने के बाद 10 या 11 बजे तक पढ़ कर सो जाती है. उस के घर के आसपास कोई उस का दोस्त नहीं है और उस के स्कूल का भी कोई बच्चा वहां नहीं रहता है.

कुछ दिनों के बाद स्कूल के 12वीं क्लास के बच्चों की फेयरवैल पार्टी थी. आलिया भी जाना चाहती थी, पर भाई और पापा काम की वजह से उसे ले कर नहीं गए और अकेली वह जा नहीं सकती थी. न घर वाले इस के लिए तैयार थे, न उस में इतनी हिम्मत थी.

12वीं क्लास के एग्जाम हो गए. पास होने के बाद हिना और आलिया का अलगअलग कालेज में दाखिला हो गया. आलिया की आगे की कहानी क्या है. जो हाल स्कूल का था, वही हाल कालेज का भी था. घर से कालेज और कालेज से घर. पूरे 3 साल में बस 2-3 दोस्त ही बन पाए.

बाद में आलिया ने एमबीए का एंट्रैस एग्जाम दिया, पर पापा के कहने पर बीएड में एडमिशन ले लिया. उस के पापा को प्राइवेट कंपनी में जौब तो करानी नहीं थी, इसलिए यही ठीक लगा.

बीएड के बाद आलिया का रिश्ता पक्का हो गया. नवंबर में उस की

शादी है.

एक बात तो बतानी रह गई. 12वीं क्लास के बाद उस ने अपना फेसबुक अकाउंट बना लिया था. जैसेतैसे घर पर इंटरनैट लग गया था. एक दिन उस ने फेसबुक खोला तो हिना का स्टेटस मिला कि उसे एक अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई है.

आलिया ने फिर हिना के फोटो देखे और दूसरे क्लासमेट के भी. सभी अपने दोस्तों के साथ किसी कैफे में तो किसी फंक्शन के फोटो डालते रहते हैं. सभी इतने खुश नजर आते हैं.

अचानक आलिया को एहसास हुआ कि सभी अपनी जिंदगी की छोटीबड़ी यादें साथ रखते हैं. सभी जितना है, उसे और अच्छा बनाने की कोशिश करते हैं. स्कूल टाइम से अब तक सब कितने बदल गए हैं. कितने अच्छे लगने लगे हैं.

सभी काफी खुश लगते हैं और वह… आलिया को एहसास हुआ कि उस ने कभी जिंदगी जी ही नहीं. स्कूल या कालेज की एक भी तसवीर उस के पास नहीं है. शादी के बाद जिंदगी न जाने कौन सा रंग ले ले, पर जिसे वह अपने हिसाब से रंग सकती थी, वह सब उस ने मांबाप के डर और अकेलेपन से खो दिया.

वह दिन भी आ गया, जब आलिया की शादी हुई. हिना भी उस की शादी में आई थी. विदाई के वक्त आलिया की आंखों में शायद इस बात के आंसू थे कि वह जिस वक्त को बिना डरे खुशी से जी सकती थी, उसे किताबों के पन्नों में उल?ा कर खत्म कर दिया. जो वक्त बीत गया है, उस में कोई कमी नहीं थी, पर आने वाला वक्त उसे नापतोल कर बिताना होगा.

New Kahani: अस्पताल अग्निकांड में सपने हुए खाक

दुलारी की आस बंध गई थी. क्लिनिक के बरामदे में बैठा राम मनोहर पुरानी यादों में खो गया. वह दलित समाज का लड़का था और दुलारी ऊंची जाति की, पर गरीब घर की. उन दोनों के गांव आसपास ही थे और वे स्कूल के समय से एकदूसरे को जानते थे.

दरअसल, उन का स्कूल गांव से थोड़ा दूर था और वे दोनों साइकिल से स्कूल जाते थे. इसी आनेजाने में उन की बातचीत शुरू हुई और वे एकदूसरे को पसंद करने लगे. तब राम मनोहर 12वीं जमात में था और दुलारी 10वीं जमात में पढ़ती थी.

एक दिन स्कूल से घर जाते समय राम मनोहर ने दुलारी को कुछ दूर जा कर रोक लिया. वह बोला, ‘‘दुलारी, मैं 12वीं के बाद शहर चला जाऊंगा. वहां दिल्ली में मेरे दूर के रिश्तेदार रहते हैं. उन्होंने वहां मुझे काम दिलाने का वादा किया है.’’

दुलारी ने कहा, ‘‘तो यह सब तुम मुझे क्यों बता रहे हो? दिल्ली तो दुनिया जाती है, इस में नया क्या है?’’

‘‘नया यह है कि मैं तुम्हें पसंद करता हूं और अपने साथ तुम्हें भी दिल्ली रखना चाहता हूं. क्या तुम मेरे साथ दिल्ली चलोगी?’’ राम मनोहर ने पूछा.

‘‘अरे, दिल्ली जाना कोई हंसीखेल है क्या? फिर मैं तुम पर यकीन क्यों करूं? क्या पता मुझे वहां बेचबाच दो…’’ दुलारी ने कहा.

‘‘मैं जानता हूं कि तुम भी मुझे पसंद करती हो, पर हमारी जाति इस प्यार के बीच में आ रही है,’’ राम मनोहर ने कहा.

‘‘बात वह नहीं है. मैं जाति के झमेले में नहीं पड़ती, पर अभी हम दोनों की उम्र ही क्या है. तुम 20 के हो और मैं 18 की. किस रिश्ते से वहां रहेंगे?’’

‘‘हम अपनी शादी को एक साल तक छिपा कर रखेंगे और फिर कोर्ट से सर्टिफिकेट बनवा लेंगे,’’ राम मनोहर ने अपना प्लान बताया.

‘‘देखो, मुझे सोचने का समय दो. अभी तो कुछ समय गांव में ही रहते हैं, एकदूसरे को समझते हैं, फिर आगे की सोचेंगे,’’ दुलारी बोली और साइकिल चला कर आगे बढ़ गई.

उस दिन से राम मनोहर और दुलारी की प्रेम कहानी शुरू हुई थी. राम मनोहर ने दिल्ली जाने का जो प्लान बनाया था, वह समय के साथसाथ ठंडा पड़ता गया था, पर दुलारी ने अपने प्यार से इस रिश्ते में गरमी बनाए रखी.

एक शाम को वे दोनों खेतों में बैठे थे. दुलारी ने उस दिन टाइट सूट पहना हुआ था. उस का अंगअंग बाहर आने को मचल रहा था.

राम मनोहर ने कहा, ‘‘दुलारी, आज तो तुम कहर ढा रही हो. मेरा मन मचल रहा है…’’ इतना कह कर उस ने दुलारी को चूम लिया.

दुलारी ने कुछ नहीं कहा, बस आंखें मींचे जमीन पर लेट गई. राम मनोहर

उस के ऊपर झुक गया और उसे गले लगा लिया.

दुलारी की सांसें तेज चलने लगीं. उस ने भी राम मनोहर को भींच लिया. उस दिन उन दोनों के बीच की दूरियां मिट गई थीं. फिर वे दोनों अकसर खेतों में मिलने लगे.

पर यह छिप कर मिलना ज्यादा दिन तक नहीं चला. दुलारी के घर में किसी ने बता दिया कि उन की लड़की खेतों में किसी निचली जाति के लड़के के साथ मुंह काला कर रही है.

वह दिन है और आज का दिन, राम मनोहर और दुलारी ने कभी गांव का मुंह दोबारा नहीं देखा. पर दिल्ली में कौन सा सुख ही धरा था. दुलारी कम उम्र में मां बनने वाली थी और राम मनोहर किसी अच्छी नौकरी की तलाश में भटक रहा था.

फिलहाल घर का खर्चा चलाने के लिए राम मनोहर दिल्ली की साइकिल मार्केट में बने एक गोदाम से शोरूम तक माल कंधे पर ढोने का काम करता था. इस मजदूरी के उसे 11,000 रुपए महीना मिलते थे. वे दोनों शादीपुर गांव की दड़बेनुमा कालोनी में एक कमरे के मकान में रहते थे.

लोकल झोलाछाप डाक्टर ने कहा था कि दुलारी कमजोर है, इसलिए बच्चे पर भी इस का बुरा असर पड़ रहा है. केस थोड़ा पेचीदा है, इसलिए इसे किसी बड़े अस्पताल में दिखा आओ.

राम मनोहर दिल्ली के एम्स अस्पताल में दुलारी को दिखाने ले गया. वहां पता चला कि परची बनाने की ही लंबी लाइन लगी थी. उसे महसूस हुआ कि इस से अच्छा तो डाक्टर राम मनोहर लोहिया अस्पताल में दुलारी को ले जाता, पर उस ने तो एम्स का नाम सुन रखा था, तो मुंह उठाया और चल दिया एम्स.

राम मनोहर ने अपने आगे खड़े एक आदमी से इतनी भीड़ की वजह पूछी, तो वह आदमी बोला, ‘‘भाई, गरमी बहुत ज्यादा है, ऐसे में परची बनवाने के लिए लोग रात से ही नंबर लगाने के लिए लाइन में लग जाते हैं. एक घंटे के काम में पूरा दिन लग जाता है. यहां के एक चपरासी ने बताया कि एम्स के ज्यादातर सीनियर डाक्टर गरमियों की छुट्टी पर हैं. ऐसे में मरीजों को भी काफी ज्यादा दिक्कतें हो रही हैं.’’

राम मनोहर के पसीने छूटने लगे. ऐसे तो दुलारी की डिलीवरी के समय बाद ही उस का नंबर आएगा. छठा महीना जो चल रहा है. वह घर लौट आया. मैक्स जैसे बड़े अस्पताल में तो उस के बस का घुसना तक नहीं था. वहां तो बच्चा पैदा कराने का पूरा पैकेज था. इतने पैसे उस ने सपने में भी नहीं देखे थे.

तभी किसी ने बताया कि शादीपुर गांव के पास ही एक सस्ता सा क्लिनिक है, जहां किस्तों पर इलाज किया जाता है. मान लो, तकरीबन 10,000 रुपए का खर्चा है, तो पहले 5,000 रुपए जमा करा लिए जाते हैं, बाकी रकम की किस्तें बंध जाती हैं.

राम मनोहर अगले ही दिन दुलारी को उस क्लिनिक में ले गया. वह तिमंजिला क्लिनिक बड़ी सड़क से थोड़ा अंदर एक छोटी सी गली में था, जहां की लिफ्ट अकसर खराब रहती थी और सीढि़यां भी संकरी थीं. अगर लाइट न जलाओ तो दिन में भी वहां अंधेरा रहता था.

डाक्टर ने दुलारी का मुआयना किया. वह बोली, ‘‘लगता है, बच्चा 7वें महीने में ही पैदा कराना पड़ेगा. मां और बच्चा दोनों का खास खयाल रखना पड़ेगा.’’

डाक्टर ने सिजेरियन का खर्चा 25,000 रुपए बताया और 15,000 रुपए पहले जमा कराने को कहा. वैसे तो डाक्टर और ज्यादा पैसे मांग रही थी, पर राम मनोहर की माली हालत देख उस ने कुछ डिस्काउंट दे दिया.

फिर वह दिन भी आया, जब राम मनोहर बाप बना. बेटा पैदा हुआ था. पर चूंकि बच्चा कमजोर था, तो वह नर्सरी में रखा गया था. दुलारी ठीक थी. आज बच्चे के नर्सरी में होने का चौथा दिन था. डाक्टर बोल रहे थे कि कल बच्चे को उन्हें सौंप दिया जाएगा.

राम मनोहर मन ही मन अपने दिल्ली वाले रिश्तेदार का शुक्रिया अदा कर रहा था, जिस ने उस की 10,000 रुपए की मदद की थी.

राम मनोहर अपनी यादों से लौट आया. रात के 11 बज रहे थे. दुलारी अपने नवजात के कमरे के बाहर दरवाजे पर ही कुरसी लगाए बैठी थी. राम मनोहर ने बहुत बार कहा कि किसी तरह आज की रात कट जाए, फिर हमारा बच्चा तेरी गोद में ही होगा. वह कुछ दूरी पर एक बैंच पर बैठा ऊंघ रहा था.

पूरे क्लिनिक में एक मुर्दनी सी छाई थी. एक ही चपरासी था, जो दुलारी को अपनी कुरसी दे कर खुद राम मनोहर के पास जा बैठा. इस तीसरे फ्लोर पर नर्सरी में वे 4 नवजात, दुलारी, राम मनोहर और उस चपरासी के अलावा और कोई नहीं था.

इसी बीच राम मनोहर की नींद टूटी. उस ने एक नजर दुलारी पर और दूसरी नजर अपने आसपास डाली. फिर वह आंखें मींचताखोलता सा पानी पीने के लिए उठा. उस की आहट से चपरासी भी उठ गया. वह बोला, ‘‘भाई, एक गिलास मेरे लिए भी पानी ले आओ.’’

राम मनोहर ने उसे पानी ला कर दिया और बोला, ‘‘अब नहीं सहा जाता. बस, किसी तरह हमारा बेटा नर्सरी से बाहर आ जाए, तो मैं पहली फुरसत में अपने गांव चला जाऊंगा. बहुत झेल ली दिल्ली. कहने को यहां गरीबों के लिए मुफ्त इलाज का ढिंढोरा पीटा जाता है, पर असलियत बड़ी काली है दोस्त.’’

चपरासी ने राम मनोहर की बात को बड़े गौर से सुना. वह खुद हाल ही में दिल्ली बड़ेबड़े सपने ले कर आया था. पर मिला क्या… बीए करने के बावजूद इस अस्पताल में चपरासी की नौकरी.

चपरासी कुछ बोल पाता, उस से पहले ही राम मनोहर ने बैंच पर बैठते हुए कहा, ‘‘विवेक विहार में हुए हादसे ने तो मुझे डरा ही दिया है.’’

‘‘विवेक विहार में क्या हुआ था?’’ उस चपरासी ने पानी पीते हुए पूछा.

‘‘नाश हुआ था, नाश. कई घरों के चिराग अस्पताल में लगी आग से झुलस गए थे. हमतुम जैसों के लिए यह अखबार में छपी छोटी सी खबर है, पर जिन मांबाप पर यह विपदा आई है, उन से पूछो कि नन्ही सी जान, जिस ने अभी ढंग से अपनी मां का दूध भी नहीं पिया है, जिस के पिता ने उसे गोद में उठा कर एक बार भी चूमा तक नहीं है, का यों दर्दनाक मौत का भागीदार बनना क्या होता है.’’

उस चपरासी का मुंह खुला का खुला रह गया. उस ने कहा, ‘‘अरे भैया, पहेलियां मत बुझाइए. मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए हैं. पूरी बात बताओ. मैं ने यह खबर नहीं पढ़ी है.’’

राम मनोहर ने कुछ सोचते हुए बताना शुरू किया, ‘‘हम सब गरीबों का खयाल रखने का दावा करने वाली दिल्ली के विवेक विहार इलाके में बने बच्चों

के एक अस्पताल में शनिवार, 25 मई, 2024 की देर रात आग लग गई थी. यह आग इतनी ज्यादा भयंकर थी कि इस हादसे में 6 नवजात की मौत हो गई थी.

‘‘दोमंजिला इमारत की पहली मंजिल पर नवजात बच्चों की देखभाल के लिए एक सैंटर बना हुआ था, जिस में उस समय कुल 12 बच्चे भरती थे. ऐसी भी खबर थी कि निचली मंजिल पर गैरकानूनी तरीके से औक्सीजन सिलैंडर भरने का काम चल रहा था.’’

यह सुन कर चपरासी की नींद काफूर हो गई. वह राम मनोहर के कंधे पर हाथ रख कर बोला, ‘‘भैया, आगे क्या हुआ था?’’

राम मनोहर ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘दमकल अधिकारी ने बताया कि उन्हें रात साढ़े 11 बजे आग लगने की सूचना मिली थी. मौके पर दमकल की कुल 16 गाडि़यां पहुंची थीं, तब तक आग की लपटें ऊपर की मंजिल और पास की 2 इमारतों में भी फैल चुकी थी. नवजात बच्चों की देखभाल वाले सैंटर में जाने के लिए बाहर की तरफ से लोहे की एकमात्र घुमावदार सीढ़ी थी, उस में भी आग लग गई थी.

‘‘खबर यह थी कि उस सैंटर में भरती 12 बच्चों में से एक बच्चे की मौत आग लगने से पहले ही हो चुकी थी. कमरे में धुआं भरने के चलते बाकी 11 बच्चों की हालत गंभीर हो गई थी.

‘‘दमकल की टीम और स्थानीय लोगों ने लकड़ी की सीढि़यों पर चढ़ कर खिड़की से उन 11 बच्चों को बाहर निकाला था, पर तब तक दम घुटने से 6 बच्चों की मौत हो गई थी. उन्हें पोस्टमार्टम के लिए जीटीबी अस्पताल भेजा गया था. फायर सर्विस ने तकरीबन डेढ़ घंटे की मशक्कत के बाद आग पर पूरी तरह काबू पाया.’’

‘‘पर भैया, किसी ने तो देखा होगा कि यह आग कैसे लगी थी?’’ चपरासी ने पूछा.

राम मनोहर ने कहा, ‘‘अगर खबर पर यकीन करें, तो वहां रहने वाले एक आदमी ने बताया था, ‘हमारा घर पास

ही है. हमें रात में फोन आया कि यहां धमाके हुए हैं. मौके पर आए तो पता चला कि बिल्डिंग के सामने वैन में औक्सीजन सिलैंडर में गैस भरने का काम चल रहा था कि तभी सिलैंडर में धमाका हो गया.’

‘‘उस आदमी ने आगे बताया, ‘पहला सिलैंडर फट कर बिल्डिंग के अंदर गया, जिस से आग लग गई. आग लगते ही अस्पताल के सभी स्टाफ बच्चों को छोड़ कर भाग गए. उस के बाद एक के बाद एक 3 और सिलैंडर में धमाके हुए. हम बिल्डिंग के पीछे गए और शीशे तोड़ कर बच्चों को बाहर निकाला.’

‘‘लोकल लोगों का आरोप है कि बेबी केयर सैंटर के नीचे काफी समय से औक्सीजन भरने का काम होता था. यहां रोज बड़ी तादाद में औक्सीजन सिलैंडर लाए जाते थे. इस को ले कर पहले ही कई बार शिकायत की गई थी, पर कोई सुनवाई नहीं हुई.’’

राम मनोहर के इतना कहने पर उस काली रात का सन्नाटा और ज्यादा गहरा हो गया. दुलारी अभी गहरी नींद में लग रही थी. रात के साढ़े 12 बज रहे थे.

चपरासी ने राम मनोहर से कहा, ‘‘भैया, मेरा घर पास में ही है. अगर आप कहें तो थोड़ी देर अपनी नींद निकाल आऊं, बस आप किसी को बताना मत. मैं 4 बजे तक लौट आऊंगा.’’

राम मनोहर ने कहा, ‘‘ठीक है, वैसे भी यहां कौन आने वाला है. दिन में तो डाक्टर दिखते नहीं, फिर इस काली रात में…’’

राम मनोहर को नहीं पता था कि वह रात सच में उस के लिए काली साबित हो जाएगी. रात के 3 बज रहे थे. राम मनोहर और दुलारी गहरी नींद में सो रहे थे.

इतने में सब से निचली मंजिल में बिजली की तारों में आग लग गई. ज्यादा गरमी की वजह से आग तेजी से फैलने लगी. देखते ही देखते आग इतनी ज्यादा बढ़ गई कि धुएं का गुबार सा उठने लगा.

राम मनोहर और दुलारी को नींद में पता ही नहीं चला और वे धुएं की चपेट में आ गए. देखते ही देखते बच्चों की नर्सरी वाली वह मंजिल गैस का चैंबर बन गई.

दमकल की 12 गाडि़यों ने बड़ी मशक्कत के बाद उस आग पर काबू पाया, पर तब तक राम मनोहर, दुलारी और वे 4 नवजात बच्चे मौत के आगोश में समा गए.

कल तक बच्चों की दर्दनाक मौत का गम मनाने वाला राम मनोहर आज खुद अखबार की सुर्खियां बन गया था..

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