मुनिया तो बहुत देर पहले ही मर चुकी थी, लेकिन अर्जुन अपनी पत्नी सुगंधी को बता नहीं रहा था और चुपचाप बेटी की लाश को कंधे पर लादे चल रहा था. वह सोच रहा था कि जैसे ही वह बताएगा, सुगंधी रास्ते में ही हिम्मत हार बैठेगी.

अर्जुन मुनिया का पिता जरूर था, लेकिन मुनिया की रगों में तो लाल बाबू का खून था. इन बातों को नजरअंदाज कर के वह बस चलता चला जा रहा था. पीछेपीछे सुगंधी भी बेतरतीब आंचल और बिखरे हुए बालों को समेटते हुए दौड़ने के अंदाज में चलती जा रही थी.

रोहुआ गांव को पहले ‘मिनी चंबल की राजधानी’ कहा जाता था. अनुमंडल मुख्यालय से 150 किलोमीटर दूर. आज भी न वहां बिजली है, न लैंडलाइन फोन और न मोबाइल का टावर. ये तमाम सुविधाएं अबतब पहुंचने ही वाली हैं, लेकिन फिलहाल तो चारों तरफ बीहड़ों से घिरा यह गांव आज भी दुनिया की अनेक सुविधाओं और बदलते सामाजिक माहौल से कोसों दूर है.

लाल बाबू अर्जुन का बड़ा भाई था. अर्जुन की भाभी भरी जवानी में ही गुजर गई थीं, तब से लाल बाबू ने दूसरी शादी नहीं की थी. ब्रह्म स्थान पर बैठ कर ताश खेलने और पानी भरने के लिए आने वाली बहनबेटियों को घूरने में ही उस का सारा दिन गुजरता था.

सुगंधी की उम्र तब 22 साल थी, जब अर्जुन उसे ब्याह कर लाया था. अर्जुन सूरत की एक कपड़ा फैक्टरी में सुपरवाइजर का काम करता था.

शादी के ठीक एक दिन पहले उस फैक्टरी में आग लग गई. पोस्ट औफिस से एक टेलीग्राम आया कि ‘फौरन चले आओ. बरबाद हो चुके कारखाने को संवारने में तुम्हारी मदद की जरूरत है.’

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