अधूरे प्यार की टीस: क्यों हुई पतिपत्नी में तकरार

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Top 10 Romantic Story in Hindi: टॉप 10 रोमांटिक कहानियां हिंदी में

Romantic Story in Hindi: ‘प्यार’ एक ऐसा अहसास है जिसे हर कोई जीना चाहता है. जब हम किसी से प्यार करते हैं तो उसमें केवल खूबियां ही नजर आती हैं, चाहे वह हमारे साथ धोखा ही क्यों न कर रहा हो. लेकिन हर प्यार के रिश्ते में ऐसा नहीं होता. कई लोग तो अपने प्यार की खातिर कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं. तो इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं सरस सलिल की  Top 10 Romantic Story in Hindi. प्यार और रिश्ते से जुड़ी दिलचस्प कहानियां, जिससे आपको बहुत कुछ जानने को मिलेगा, क्या वाकई में सच्चा प्यार मिल सकता है? तो अगर आपको भी है कहानियां पढ़ने का शौक तो पढ़िए सरस सलिल की Top 10 Romantic Story in Hindi.

1.मुरझाया मन: जब प्यार के बदले मिला दर्द

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‘‘कोई घर अपनी शानदार सजावट खराब होने से नहीं, बल्कि अपने गिनेचुने सदस्यों के दूर चले जाने से खाली होता है,’’ मां उस को फोन करती रहीं और अहसास दिलाती रहीं, ‘‘वह घर से निकला है तो घर खालीखाली सा हो गया है.’’

‘मां, अब मैं 20 साल का हूं, आप ने कहा कि 10 दिन की छुट्टी है तो दुनिया को समझो. अब वही तो कर रहा हूं. कोई भी जीवन यों ही तो खास नहीं होता, उस को संवारना पड़ता है.’

‘‘ठीक है बेबी, तुम अपने दिल की  करो, मगर मां को मत भूल जाना.’’ ‘मां, मैं पिछले 20 साल से सिर्फ आप की ही बात मानता आया हूं. आप जो कहती हो, वही करता हूं न मां.’

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2. अटूट प्यार : यामिनी से क्यों दूर हो गया था रोहित

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‘कितने मस्ती भरे दिन थे वे…’ बीते दिनों को याद कर यामिनी की आंखें भर आईं.

कालेज में उस का पहला दिन था. कैमिस्ट्री की क्लास चल रही थी. प्रोफैसर साहब कुछ भी पूछते तो रोहित फटाफट जवाब दे देता. उस की हाजिरजवाबी और विषय की गहराई से समझ देख यामिनी के दिल में वह उतरता चला गया.

कालेज में दाखिले के बाद पहली बार क्लास शुरू हुई थी. इसीलिए सभी छात्रछात्राओं को एकदूसरे को जाननेसमझने में कुछ दिन लग गए. एक दिन यामिनी कालेज पहुंची तो रोहित कालेज के गेट पर ही मिल गया. उस ने मुसकरा कर हैलो कहा और अपना परिचय दिया. यामिनी तो उस पर पहले दिन से ही मोहित थी. उस का मिलनसार व्यवहार देख वह खुश हो गई.

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3. परख : प्यार व जनून के बीच थी मुग्धा

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मुग्धा कैंटीन में कोल्डड्रिंक और सैंडविच लेने के लिए लाइन में खड़ी थी कि अचानक कंधे पर किसी का स्पर्श पा कर यह चौंक कर पलटी तो पीछे प्रसाद खड़ा मुसकरा रहा था.

‘‘तुम?’’ मुग्धा के मुख से अनायास ही निकला.

‘‘हां मैं, तुम्हारा प्रसाद. पर तुम यहां क्या कर रही हो?’’ प्रसाद ने मुसकराते हुए प्रश्न किया.

‘‘जोर से भूख लगी थी, सोचा एक सैंडविच ले कर कैब में बैठ कर खाऊंगी,’’ मुग्धा हिचकिचाते हुए बोली.

‘‘चलो, मेरे साथ, कहीं बैठ कर चैन से कुछ खाएंगे,’’ प्रसाद ने बड़े अपनेपन से उस का हाथ पकड़ कर खींचा.

‘‘नहीं, मेरी कैब चली जाएगी. फिर कभी,’’ मुग्धा ने पीछा छुड़ाना चाहा.

‘‘कैब चली भी गई तो क्या? मैं छोड़ दूंगा तुम्हें,’’ प्रसाद हंसा.

‘‘नहीं, आज नहीं. मैं जरा जल्दी में हूं. मां के साथ जरूरी काम से जाना है,’’ मुग्धा अपनी बारी आने पर सैंडविच और कोल्डड्रिंक लेते हुए बोली. उसे अचानक ही कुछ याद आ गया था.

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4. लव इन मालगाड़ी: मालगाड़ी में पनपा मंजेश और ममता का प्यार

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देश में लौकडाउन का ऐलान हो गया, सारी फैक्टरियां बंद हो गईं, मजदूर घर पर बैठ गए. जाएं भी तो कहां. दिहाड़ी मजदूरों की शामत आ गई. किराए के कमरों में रहते हैं, कमरे का किराया भी देना है और राशन का इंतजाम भी करना है. फैक्टरियां बंद होने पर मजदूरी भी नहीं मिली.

मंजेश बढ़ई था. उसे एक कोठी में लकड़ी का काम मिला था. लौकडाउन में काम बंद हो गया और जो काम किया, उस की मजदूरी भी नहीं मिली.

मालिक ने बोल दिया, ‘‘लौकडाउन के बाद जब काम शुरू होगा, तभी मजदूरी मिलेगी.’’

एक हफ्ते घर बैठना पड़ा. बस, कुछ रुपए जेब में पड़े थे. उस ने गांव जाने की सोची कि फसल कटाई का समय है, वहीं मजदूरी मिल जाएगी. पर समस्या गांव पहुंचने की थी, दिल्ली से 500 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के सीतापुर के पास गांव है. रेल, बस वगैरह सब बंद हैं.

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5. प्रेम का दूसरा नाम: क्या हो पाई उन दोनों की शादी

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दियाबाती कर अभी उठी ही थी कि सांझ के धुंधलके में दरवाजे पर एक छाया दिखी. इस वक्त कौन आया है यह सोच कर मैं ने जोर से आवाज दी, ‘‘कौन है?’’

‘‘मैं, रोहित, आंटी,’’ कुछ गहरे स्वर में जवाब आया.

रोहित और इस वक्त? अच्छा है जो पूर्वा के पापा घर पर नहीं हैं, यदि होते तो भारी मुश्किल हो जाती, क्योंकि रोहित को देख कर तो उन की त्यौरियां ही चढ़ जाती हैं.

‘‘हां, भीतर आ जाओ बेटा. कहो, कैसे आना हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं, आंटी, सिर्फ यह शादी का कार्ड देने आया था.’’

‘‘किस की शादी है?’’

‘‘मेरी ही है,’’ कुछ शरमाते हुए वह बोला, ‘‘अगले रविवार को शादी और सोमवार को रिसेप्शन है, आप और अंकल जरूर आना.’’

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6. इजहार: सीमा के लिए गुलदस्ता भेजने वाले का क्या था राज?

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मनीषा ने सुबह उठते ही जोशीले अंदाज में पूछा, ‘‘पापा, आज आप मम्मी को क्या गिफ्ट दे रहे हो?’’

‘‘आज क्या खास दिन है, बेटी?’’ कपिल ने माथे में बल डाल कर बेटी की तरफ देखा.

‘‘आप भी हद करते हो, पापा. पिछले कई सालों की तरह आप इस बार भी भूल गए कि आज वैलेंटाइनडे है. आप जिसे भी प्यार करते हो, उसे आज के दिन कोई न कोई उपहार देने का रिवाज है.’’

‘‘ये सब बातें मुझे मालूम हैं, पर मैं पूछता हूं कि विदेशियों के ढकोसले हमें क्यों अपनाते हैं?’’

‘‘पापा, बात देशीविदेशी की नहीं, बल्कि अपने प्यार का इजहार करने की है.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि सच्चा प्यार किसी तरह के इजहार का मुहताज होता है. तेरी मां और मेरे बीच तो प्यार का मजबूत बंधन जन्मोंजन्मों पुराना है.’’

‘‘तू भी किन को समझाने की कोशिश कर रही है, मनीषा?’’ मेरी जीवनसंगिनी ने उखड़े मूड के साथ हम बापबेटी के वार्तालाप में हस्तक्षेप किया, ‘‘इन से वह बातें करना बिलकुल बेकार है जिन में खर्चा होने वाला हो, ये न ला कर दें मुझे 5-10 रुपए का गिफ्ट भी.’’

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7. आहत: शालिनी के प्यार में डूबा सौरभ उसके स्वार्थी प्रेम से कैसे था अनजान

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बहुत तड़के ही शालिनी उठ कर नहाने चली गई. अभी वह ड्रैसिंगटेबल के पास पहुंची ही थी कि सौरभ ने उसे पीछे से अपनी बांहों में भर लिया और चुंबनों की बौछार कर दी.

‘‘अरे छोड़ो न, क्या करते हो? रात भर मस्ती की है, फिर भी मन नहीं भरा तुम्हारा,’’ शालिनी कसमसाई.

‘‘मैं तुम्हें जितना ज्यादा प्यार करता हूं, उतना ही और ज्यादा करने का मन करता है.’’

‘‘अच्छा… तो अगर मैं आज कुछ मांगूं तो दोगे?’’

‘‘जान मांगलो, पर अभी मुझे प्यार करने से न रोको.’’

‘‘उफ, इतनी बेचैनी… अच्छा सुनो मैं ने नौकरी करने का निर्णय लिया है.’’

‘‘अरे, मैं तो खुद ही कह चुका हूं तुम्हें… घर बैठ कर बोर होने से तो अच्छा ही है… अच्छा समझ गया. तुम चाहती हो मैं तुम्हारी नौकरी के लिए किसी से बात करूं.’’

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8. उज्ज्वला: क्या सुनिल ने उज्ज्वला को पत्नी के रूप में स्वीकार किया

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सुनील के जाते ही उज्ज्वला कमरे में आ गई और तकिए में मुंह गड़ा कर थकी सी लेट गई. सुनील के व्यवहार से मन का हर कोना कड़वाहट से भर गया था. जितनी बार उस ने सुनील से जुड़ने का प्रयत्न किया था उतनी बार सुनील ने उसे बेदर्दी से झटक डाला था. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि जीवन में यह मोड़ भी आ सकता है. शादी से पहले कई बार उपहास भरी नजरें और फब्तियां झेली थीं, पर उस समय कभी ऐसा नहीं सोचा था कि स्वयं पति भी उस के प्रति उपेक्षा और घृणा प्रदर्शित करते रहेंगे. बचपन कितना आनंददायी था. स्कूल में बहुत सारी लड़कियां उस की सहेलियां बनने को आतुर थीं. अध्यापिकाएं भी उसे कितना प्यार करती थीं. वह हंसमुख, मिलनसार होने के साथसाथ पढ़ने में अव्वल जो थी. पर ऐसे निश्चिंत जीवन में भी मन कभीकभी कितना खिन्न हो जाया करता था.

उसे बचपन की वह बात आज भी कितनी अच्छी तरह याद है, जब पहली बार उस ने अपनेआप में हीनता की भावना को महसूस किया था. मां की एक सहेली ने स्नेह से गाल थपथपा कर पूछा था, ‘क्या नाम है तुम्हारा, बेटी?’ ‘जी, उज्ज्वला,’ उस ने सरलता से कहा. इस पर सहेली के होंठों पर व्यंग्यात्मक हंसी उभर आई और उस ने पास खड़ी महिला से कहा, ‘लोग न जाने क्यों इतने बेमेल नाम रख देते हैं?’ और वे दोनों हंस पड़ी थीं. वह पूरी बात समझ नहीं सकी थी. फिर भी उस ने खुद को अपमानित महसूस किया था और चुपचाप वहां से खिसक गई थी.

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9. भूलना मत: नम्रता की जिंदगी में क्या था उस फोन कौल का राज?

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नम्रता ने फोन की घंटी सुन कर करवट बदल ली. कंबल ऊपर तक खींच कर कान बंद कर लिए. सोचा कोई और उठ कर फोन उठा लेगा पर सभी सोते रहे और फोन की घंटी बज कर बंद हो गई.

‘चलो अच्छा हुआ, मुसीबत टली. पता नहीं मुंहअंधेरे फोन करने का शौक किसे चर्राया,’ नम्रता ने स्वयं से ही कहा.

पर फोन फिर से बजने लगा तो नम्रता झुंझला गई, ‘‘लगता है घर में मेरे अलावा यह घंटी किसी को सुनाई ही नहीं देती,’’ उस ने उठने का उपक्रम किया पर उस के पहले ही अपने पिता शैलेंद्र बाबू की पदचाप सुन कर वह दोबारा सो गई. पिता ने फोन उठा लिया.

‘‘क्या? क्या कह रहे हो कार्तिक? मुझे तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं होता. पूरे देश में प्रथम स्थान? नहींनहीं, तुम ने कुछ गलत देखा होगा. क्या नैट पर समाचार है?’

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10. सच्ची खुशी: क्या विशाखा को भूलकर खुश रह पाया वसंत?

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वसंत एक जनरल स्टोर के बाहर खड़ा अपने दोस्तों से बातें कर रहा था. उसे आज फिर विशाखा दिखाई दे गई. विशाखा उस के पास से निकली तो उस के दिल में आंधियां उठने लगीं. उस ने पहले भी कई बार आतेजाते विशाखा को देख कर सोचा, ‘धोखेबाज, कहती थी मेरे बिना जी नहीं सकती, अब यही सब अपने दूसरे पति से कहती होगी. बकवास करती हैं ये औरतें.’ फिर अगले ही पल उस के मन से आवाज आई कि तुम ने भी तो अपनी दूसरी पत्नी से यही सब कहा था. बेवफा तुम हो या विशाखा?

वह अपने दोस्तों से विदा ले कर अपनी गाड़ी में आ बैठा और थोड़ी दूर पर ही सड़क के किनारे गाड़ी खड़ी कर के ड्राइविंग सीट पर सिर टिका कर विशाखा के बारे में सोचने लगा…

वसंत ने विशाखा से प्रेमविवाह किया था. विवाह को 2 साल ही हुए थे कि वसंत की मां उमा देवी को पोतापोती का इंतजार रहने लगा. उन्हें अब विशाखा की हर बात में कमियां दिखने लगी थीं. विशाखा सोचती क्या करे, उस के सिर पर मां का साया था नहीं और पिता अपाहिज थे. बरसों से वे बिस्तर पर पड़े थे. एक ही शहर में होने के कारण वह पिता के पास चक्कर लगाती रहती थी. उस की एक रिश्ते की बूआ और एक नौकर उस के पिता प्रेमशंकर का ध्यान रखते थे.

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भूल जाना अब : क्या कभी पूरा होता है कॉलेज का प्यार

‘‘अनु, अब तुम उन दोनों के साथ मिलनाजुलना और हंसहंस कर बातें करना छोड़ दो.’’

‘‘क्यों, तुम्हें जलन हो रही है? मैं प्यार तुम्हीं से करती हूं, इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं बाकी लोगों से बात न करूं. इतने नैरो माइंडेड न बनो, जीत.’’

‘‘अनु, तुम खूब समझ रही हो मैं किन दोनों की बात कर रहा हूं. वे अच्छे लड़के नहीं हैं. उन की हिस्ट्री तुम्हें भी पता है न. दोनों ने मिल कर श्यामली को कैसे धोखा दिया है.’’

‘‘हां जीत, सब जानती हूं, पर मैं धोखा खाने वाली नहीं हूं. मुझे भी दूसरों को उल्लू बनाना खूब आता है.’’

‘‘मुझे भी?’’

‘‘तुम बात कहां से कहां ले आए, छोड़ो इन बातों को. अब बताओ अमेरिका जाने के बारे में क्या सोचा है तुम ने?’’

‘‘मैं चाह कर भी अभी नहीं जा सकता हूं, तुम मां की हालत देख तो रही हो.’’

विश्वजीत को अनुभा जीत कहती थी और जीत उसे अनु कहता था. जीत के पिता का देहांत कुछ वर्ष पहले हो गया था. इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही जीत की मां भी गंभीर रूप से बीमार पड़ीं. लकवे से आंशिक रूप से ठीक तो हो गईं, पर उन की बोली में लड़खड़ाहट आ गई थी और चलने में काफी दिक्कत होती थी. जीत और अनुभा दोनों ही अमेरिका जाने की सोच रहे थे पर अब मां की बीमारी के चलते जीत ने अपना इरादा छोड़ दिया था. अनुभा अमेरिका जा कर वहीं सैटल होने पर दृढ़ थी. अनुभा के पापा कामता बाबू भी यही चाहते थे. उन की इच्छा थी कि बेटी के अमेरिका जाने के पहले उस की शादी कर दें या कम से कम सगाई तो जरूर कर दें. उन्हें अनुभा और जीत के बारे में पता था.

कामता बाबू ने कहा, ‘‘मैं जीत की मां से बात करता हूं तुम दोनों की शादी जल्द करने के लिए.’’

‘‘मुझे यूएस जाना है और उसे मां की देखभाल करनी है. मैं उस के लिए अपने कैरियर से समझौता नहीं कर सकती हूं,’’ अनु पिता से बोली.‘‘ठीक है, तब मैं ही कुछ रास्ता निकालता हूं,’’ कामता बाबू गंभीर हो कर बोले.

‘‘वह कैसे?’’

‘‘वह सब तुम मुझ पर छोड़ दो,’’ कामता बाबू गहरी सोच में डूब गए.

कामता बाबू ने अपने फैमिली पुरोहित को बुला कर सारी बात बताई, तब उस ने कहा, ‘‘आप लड़के की कुंडली मंगवाएं. मैं अनुभा की ऐसी कुंडली बनाऊंगा और मिलान में ऐसा दोष निकालूंगा जिस का कोई काट न होगा.’’

हुआ भी वही. जीत की कुंडली मंगवाई गई. पुरोहित ने अनुभा की झूठी कुंडली बनाई, जिस में मंगल का दोष था और कहा कि यह घोर अपशकुन है. विवाहोपरांत लड़की के विधवा होने का पूरा संयोग है.

कामता बाबू ने जीत को यह बात बताई तो जीत ने कहा, ‘‘अंकल, हम चांद और मंगल पर पहुंच रहे हैं और आप इन पुरानी दकियानूसी बातों के चक्कर में पड़े हैं.’’

‘‘फिर भी मैं किसी कीमत पर बेटी के लिए रिस्क नहीं ले सकता हूं.’’

अनुभा को भी विश्वजीत से ज्यादा अपने कैरियर की चिंता थी. इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद अनुभा कैलिफोर्निया, अमेरिका चली गई. कुछ दिन तक दोनों संपर्क में रहे थे. जीत ने उस से कहा था कि मास्टर्स के बाद इंडिया लौट आए. यहां भी उसे अच्छे जौब मिल सकते हैं. अब तो अमेरिका में ट्रंप प्रशासन है. जौब मिलना अब आसान नहीं होगा.

पर एमएस के बाद अनुभा को ओपीटी यानी औप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग वीजा मिल जाने से कुछ राहत मिली. अनुभा अमेरिका में एक ज्योतिष के संपर्क में थी. उस ने उसी ज्योतिष से पूछा कि उस का भविष्य क्या होगा. उस की कुंडली देख कर ज्योतिष ने कहा, ‘‘तुम्हारी कुंडली तो अच्छी है, मांगलिक भी नहीं हो. जल्द ही तुम्हें नौकरी मिलेगी और तुम किसी के साथ रिलेशनशिप में आओगी.’’

इत्तफाक से ज्योतिष की बात सच निकली और एक छोटी कंपनी में नौकरी भी मिली. थोड़े ही दिनों बाद उस कंपनी के कोफाउंडर से उस की नजदीकियां बढ़ीं. वह भारतीय मूल का व्यक्ति राजन था. अनुभा उस के साथ लिवइन रिलेशन में आ गई.

इस के बाद जीत और अनुभा में संपर्क महज औपचारिकता मात्र रहा था. अनुभा को अमेरिका की लाइफस्टाइल, चकाचौंध और भौतिकता रास आ गई थी, कभी खास मौकों, जन्मदिन आदि पर दोनों एकदूसरे को विश कर दिया करते थे. इधर जीत ने पुणे की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी जौइन कर ली.

जीत की मां की सहेली की एक लड़की थी लता. वह उन के घर से थोड़ी दूर रहती थी और बीएससी फाइनल ईयर में थी. कभीकभी अपनी मां के साथ जीत के घर आती थी. उस की जीत के साथ कुछ बातें भी होतीं, पर जीत को उस में कोई दिलचस्पी नहीं थी. हालांकि, लता की मां जीत को मन ही मन दामाद बनाने की सोच रही थीं.

जीत को अपनी कंपनी की तरफ से 2 सप्ताह के लिए न्यूयौर्क, अमेरिका जाना था. पर वह मां की खराब तबीयत को ले कर  दुविधा में था. उन्हें छोड़ कर जाना नहीं चाहता था और कंपनी थी कि उसी को भेजना चाहती थी. लता की मां ने जीत को भरोसा दिलाया कि उस की मां की देखरेख में मांबेटी दोनों कोई कमी नहीं होने देंगी.

जीत न्यूयौर्क चला गया. उस ने अनुभा से भी बात की. उस का हालचाल जानना चाहा तो वह बोली, ‘‘मस्त लाइफ जी रही हूं. मैं तो तुम से शादी करना चाहती थी पर यह मंगल और शनि ने बीच में आ कर सारा खेल बिगाड़ दिया. मेरा बौयफ्रैंड अभी टूर पर ईस्ट कोस्ट गया है, वरना तुम से बात करवाती?’’ जीत बोला, ‘‘मंगलशनि में ज्यादा तो तुम्हारे अमेरिका में सैटल होने की जिद थी. तुम जानती थीं कि मैं आने की स्थिति में नहीं था. खैर, अब इन सब बातों से क्या फायदा, तुम्हें अपनी मंजिल मिल गई है.’’

अनुभा ने उसे कैलिफोर्निया आ कर मिलने को कहा पर न्यूयौर्क और कैलिफोर्निया दोनों अमेरिका के 2 छोर पर हैं. जीत वहां नहीं जा सका, उस ने कहा, ‘‘अगली बार अगर वैस्ट कोस्ट की तरफ आना हुआ तो तुम से जरूर मिलूंगा.’’

जीत 2 सप्ताह में अमेरिका का काम समाप्त कर भारत वापस आ गया. लता और उस की मां दोनों ने मिल कर उस की अनुपस्थिति में जीत की मां को किसी तरह की दिक्कत नहीं होने दी थी. यह देख कर उसे खुशी हुई. उस की मां ने लता की काफी तारीफ की. उन्होंने जीत से कहा, ‘‘अगर तुम्हें लता पसंद हो तो बोलो, मैं तुम्हारी शादी की बात करूंगी.’’

‘‘नहीं, मां, अभी मैं कंपनी के एक बड़े प्रोजैक्ट में लगा हूं. एक साल की डैडलाइन है. इस बीच मुझे डिस्टर्ब न करो. और लता भी कंपीटिशन एग्जाम की तैयारी कर रही है.’’

करीब एक साल बाद फिर अमेरिका जाने के लिए जीत मुंबई एयरपोर्ट गया. सिक्योरिटी चैक के बाद वह बोर्डिंग के लिए प्रतीक्षा कर रहा था. उस की बगल की कुरसी पर एक आदमी आ कर बैठा. फ्लाइट में अभी एक घंटा बाकी था, रात में एक बज रहा था.

जीत ने उस से पूछा, ‘‘आप भी अमेरिका जा रहे हैं?’’

‘‘हां, मैं भी अमेरिका जा रहा हूं.’’

‘‘मैं विश्वजीत हूं. मैं सैन फ्रांसिस्को जा रहा हूं.’’

‘‘मैं कमल सिंह, मैं बिजनैस के सिलसिले में यहां आया था. मैं सैन फ्रांसिस्को लौट रहा हूं, फिर वहां से लिवरमूर जाऊंगा.’’

‘‘वैरी गुड, लंबी यात्रा में साथ रहेगा.’’

इत्तफाक से दोनों को सीट भी अगलबगल मिली थी. इस बीच कमल ने अमेरिका में फोन किया. जीत ने भी बगल में बैठेबैठे फोन की स्क्रीन पर वह फोटो देखी जिसे कमल ने कौल किया था. फोटो पहचानने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई, वह अनुभा थी, उस का पहला प्यार. फोन आंसरिंग में चला गया, कमल ने कहा, ‘‘हाय अनुभा, मैं थोड़ी देर में बोर्ड करने जा रहा हूं. अब यूएस लैंड कर के ही कौल करूंगा. हैव ए गुड डे.’’

‘‘आप ने अपने घर कौल किया था?’’ जीत पूछ बैठा.

‘‘मैं ने अपनी वाइफ को कौल किया था. अभी तो औफिस में होगी, शायद किसी मीटिंग में होगी, इसीलिए फोन रिसीव नहीं कर सकी.’’

अनुभा का फोटो देख कर जीत को फिर अनुभा की याद आई. हालांकि, अब उसे अनुभा में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह सोचने लगा कि इस के पहले तो उस के जीवन में राजन था. अब यह नया आदमी कमल कैसे आ गया.

जीत इसी उधेड़बुन में खोया था, तब कमल ने पूछा, ‘‘क्या सोचने लगे विश्वजीत?’’

‘‘नहींनहीं, कुछ भी नहीं. यों ही घर की याद आ गई थी. वैसे आप मुझे जीत बुला सकते हैं.’’

‘‘चलिए, आप को मैं अपने घर की सैर करा देता हूं,’’ कह कर कमल ने अपना सैलफोन औन कर ‘स्मार्ट थिंग ऐप’ औन किया और मुंबई एयरपोर्ट पर बैठेबैठे अपने घर की सैर करा दी. यहीं बैठे हुए वह घर की लाइट औनऔफ या डिम कर देता, कभी घर का तापमान अपनी मरजी से सैट करता तो कभी स्विमिंग पूल की लाइट या फौआरे औन कर देता. उस के घर में एक मिनी सिनेमा थिएटर भी था. वैसे जीत को भी थोड़ीबहुत इस ऐप की जानकारी थी पर आज उस ने अपनी आंखों से देखा था. सचमुच अनुभा का घर काफी बड़ा था और किसी महल से कम नहीं था.

बातचीत के दौरान कमल को जब पता चला कि जीत और अनुभा कुछ दिन पटना में साथ पढ़े थे तो जीत और कमल दोनों में दोस्ती हो गई. अमेरिका लैंड करने के बाद कमल ने जीत को अपना कार्ड दिया और कहा, ‘‘आप हमारे घर जरूर आइएगा.’’

‘‘हां, प्रयास करूंगा,’’ बोल कर जीत ने भी अपना कार्ड उसे दिया.

‘‘प्रयास क्या करना, आप औकलैंड जा रहे हैं, वहां से लिवरमूर बस 30-35 मिनट की ड्राइव है. आप फोन करेंगे तो अगर मैं फ्री हुआ तो आप को पिक कर लूंगा.’’

‘‘थैक्स, मैं खुद आने की कोशिश करूंगा.’’

एक वीकैंड जीत ने अनुभा को फोन किया, उस की आवाज सुन कर बोला, ‘‘हाय अनुभा, जीत हियर. मैं आज तुम्हारे घर आने की सोच रहा हूं, फ्री हो?’’

‘‘मैं तो तुम्हारे लिए सदा फ्री हूं या यों भी कह सकते हो फ्रीली अवेलेबल हूं. कमल कहीं बाहर गया है, लेट नाइट में लौटेगा, पर मैं फिलहाल घर पर नहीं हूं, तुम किधर हो? मैं ही आ जाती हूं.’’

जीत ने अपने होटल का पता दिया तो वह बोली, ‘‘बस, आधे घंटे में आ रही हूं डियर.’’

ठीक आधे घंटे बाद अनुभा जीत के कमरे में थी. वह आते ही उस के गले से लिपट गई. जीत को बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि पहले वह उस से इस तरह कभी नहीं मिली थी. अलग होते हुए उस ने पूछा, ‘‘और कैसी हो? कामधाम कैसा चल रहा है?’’

‘‘बिलकुल मस्त हूं, देख ही रहे हो. यह अमेरिका भी बड़े काम की जगह है, लाइफ इज वैरी कूल.’’

‘‘अच्छा, यह कमल कब से आया तुम्हारी जिंदगी में?’’

‘‘मेरा ज्योतिष पंडित कम शातिर नहीं है. उस ने कहा कि अगर मैं उसे एक बार खुश कर दूं तो मैं एक बड़े बिजनैसमैन की जीवनसंगिनी बन सकती हूं.’’

‘‘और तुम ने उस की बात मान ली?’’

‘‘हां. वह शख्स है कमल, और उसे अपनी जिंदगी में मेरे जैसे शोपीस की जरूरत थी. सच, अब मैं कमल के साथ बहुत खुश हूं. महलों की रानी बन कर राज कर रही हूं.’’

‘‘और कल कोई कमल से बड़ा बिजनैसमैन मिल जाए तो क्या तुम उसे भी…’’

अनुभा ने उस की बात पूरी होने से पहले ही कहा, ‘‘हां, उसे भी. अमेरिका इज ए लैंड औफ अपौरचुनिटीज. हर कोई अपनी प्राइवेटलाइफ अपनी मरजी से जीने को आजाद है. ऐंड सैक्स इज नो टैबू हियर.’’

‘‘तुम इतनी बदल जाओगी, मुझे विश्वास नहीं होता.’’

‘‘लाइफ में चेंज होना चाहिए, मोनोटोनस लाइफ कोई लाइफ है. यह कमल तो महीने में 20 दिन बाहर ही रहता है. तुम क्या सोचते हो, वह सिर्फ मेरे इंतजार में बैठा रहता होगा? नो जीत, नो. वह मुझ से उम्र में 10 साल बड़ा है, मैच्योर्ड है. उस से शादी करने के बाद मैं यहां के ग्रीन कार्ड की हकदार बन गई हूं.’’

‘‘अनु, तुम पूरी तरह मैटीरिअलिस्टिक हो गई हो.’’

‘‘तुम ने सही कहा है जीत, वैसे बहुत दिनों के बाद किसी ने अनु नाम से मुझे पुकारा है,’’ बोल कर एक बार फिर वह जीत से गले लग कर अपने होंठों को उस के करीब ले आई.

तब तक दरवाजे की घंटी बजी. रूम सर्विस की आवाज थी, ‘‘योर लंच, सर’’

जीत ने जा कर दरवाजा खोला. लंच के कुछ देर बाद अनु चली गई.

इस के बाद कुछ दिनों तक जीत अपने काम में काफी व्यस्त रहा. लगभग 10 दिनों बाद उस का प्रोजैक्ट अमेरिका के क्लाइंट ने स्वीकार किया था. जीत की कंपनी की ओर से उसे तत्काल प्रमोशन की गारंटी मिली. वह बहुत खुश था. उस ने अनुभा को फोन कर यह बात बताई तो अनुभा बोली, ‘‘आज मैं भी बहुत खुश हूं. मेरे लिए भी खुशी की बात है.’’

‘‘क्या बात है, मुझे भी बता सकती हो?’’

‘‘श्योर, मैं प्रैग्नैंट हूं. आज ही खुद प्रैग्नैंसी टैस्ट किया है?’’

‘‘बधाई हो, कमल हो तो उसे भी बधाई दे दूं. आखिर उस का भी तो बच्चा है.’’

‘‘पता नहीं.’’

‘‘क्या पागलों जैसी बात करती हो?’’

‘‘खैर, वह सब छोड़ो, मैं अकेली हूं. आ जाओ तो मिल कर ड्रिंक लेंगे और अपने घर के मिनी थिएटर में एडल्ट मूवी एंजौय करेंगे.’’

‘‘नो अनु, थैंक्स. 4 घंटे बाद मेरी फ्लाइट है. अब तुम वह अनु नहीं रहीं, अनुभा सिंह बन गई हो.’’

जीत मन ही मन खुश हुआ कि अच्छा हुआ ऐसी लड़की से वह बच गया. वह इंडिया लौट आया. लता और उस की मां ने एक बार फिर जीत की मां की देखभाल की थी.

लता जीत की मां के पास ही बैठी थी, जब उन्होंने जीत से कहा, ‘‘लता बैंक की नौकरी के लिए सेलैक्ट हो गई है.’’

‘‘बधाई हो लता,’’ जीत ने कहा.

‘‘थैंक्स,’’ बोल कर वह कुछ शरमा सी गई.

लता के जाने के बाद मां ने कहा, ‘‘बेटे, अब तो तेरा प्रोजैक्ट भी पूरा हो गया. मुझे लता सब तरह से अच्छी लड़की लगती है, तेरे लिए ठीक रहेगी. अब तू कहे तो बात करूं उस की मां से.’’

‘‘जैसा तुम ठीक समझो, मां, मुझे कोई एतराज नहीं है.’’

लता और जीत की शादी हो गई. आज दोनों की सुहागरात थी. अगले दिन सुबहसुबह जीत को बारबार हिचकी आ रही थी.

‘‘क्या हुआ जीत? अनुभा याद कर रही है क्या? शायद इसीलिए बारबार तुम्हें हिचकियां आ रही हैं?’’

लता ने जब अचानक अनुभा की बात की तो जीत हैरान रह गया, ‘‘तुम अनुभा को कैसे जानती हो और यह क्या बेकार की बात कर रही हो. जरा एक गिलास पानी दो.’’ लता ने पानी दिया और पानी पीते ही उस की हिचकी बंद हो गई. अब जीत ने लता को अपने पास बिठाया और आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘अब बताओ, तुम अनुभा को कैसे जानती हो?’’

‘‘अरे वाह, वह तो स्कूल में मुझ से 2 साल सीनियर थी तो क्या मैं उसे नहीं जान सकती हूं? तुम दोनों के इश्क के चर्चे मैं ने भी सुने हैं, इंजीनियरिंग कालेज में मेरी कजिन उस की क्लासफैलो थी.’’

‘‘अच्छा, सुना होगा. तब तुम्हें यह भी पता होना चाहिए कि कालेज के बाद हमारे बीच वैसी कोई बात नहीं रही. सिवा यदाकदा फोन के, बाद में वह भी लगभग नहीं रहा. हम लोग शुरू में एकदूसरे को चाहते जरूर थे पर हमारी शादी नहीं होनी थी. वह बहुत महत्वाकांक्षी थी. उसे अमेरिका जाने की जिद थी और मैं अपनी बीमार मां को इंडिया में अकेला छोड़ कर जा नहीं सकता था. वह मेरे लिए बनी ही नहीं थी.’’

‘‘हां, मुझे सब पता है, तभी तो सब जानते हुए मैं ने तुम से शादी के लिए हामी भरी थी.’’

‘‘अच्छा, अब सुबहसुबह ज्यादा बोर न करो, डार्लिंग. एक प्याली चाय अपने होंठों से सटा कर पिला दो. मिठास दोगुनी हो जाएगी.’’मैं अभी चाय बना कर लाती हूं.’’ और वह उठ कर किचन में चली गई.

अपशकुनी: पहली नजर का प्यार

अनन्य पार्किंग में अपनी कार खड़ी कर के उतर ही रहा था कि सामने से स्कूटी से उतरती लड़की को देख कर ठगा सा रह गया. उस लड़की ने बड़ी अदा से हैलमेट उतार कर बालों को झटका तो मानो बिजली सी कौंध गई.

उस के स्कूटी खड़ा कर आगे बढ़ने तक वह बड़े ध्यान से उसे देखता रहा. सलीके से पहनी हैंडलूम की साड़ी, कंधों तक लहराते काले बाल और एकएक कदम नापतौल कर रखती गरिमा से भरी चाल उस के व्यक्तित्व को अद्भुत आभा प्रदान कर रहे थे.

अपनी मौसेरी बहन के बेटे चिरायु के जन्मदिन की पार्टी में शामिल होने के लिए अनन्य उत्सव रिजोर्ट आया था. वह लड़की भी उत्सव की ओर जा रही थी. अनन्य को कुछ और देर तक उसे निहारने का सुख मिल गया.

उत्सव के गेट में घुसते ही वह लपक कर लिफ्ट की ओर दौड़ गई. जब तक अनन्य को होश आता, लिफ्ट ऊपर जा चुकी थी. अनन्य के पास अब इंतजार करने के अलावा दूसरा कोई चारा भी नहीं था. पहली बार उसे धीमी गति से चलने के कारण खुद पर गुस्सा आया.

जब वह तीसरी मंजिल पर पार्टी वाले हौल में पहुंचा तो उसी लड़की को अपनी बहन सुजाता से बात करते देख हैरान रह गया. उसे देखते ही सुजाता खिलखिला कर हंस दी.

‘‘तुम शायद इसी की शिकायत कर रही हो. यही पीछा कर रहा था न तुम्हारा? ठहरो, अभी इस के कान पकड़ती हूं,’’ सुजाता नाटकीय अंदाज में बोली थी.

‘‘मैं खुद कान पकड़ता हूं, दीदी. मैं किसी का पीछा नहीं कर रहा था. मैं तो चिरायु के जन्मदिन की पार्टी में आ रहा था. कोई मेरे आगे चल रहा हो तो मैं क्या करूं.’’

‘‘मैं ऐसे दिलफेंक लड़कों के लटके- झटके खूब समझती हूं. जरा पूछिए इन से कि ये महाशय मेरे पीछे ही क्यों चल रहे थे? तेज कदमों से चल कर मेरे आगे क्यों नहीं निकल गए थे?’’

‘‘अनन्य, तुम्हें अवनि के इस सवाल का जवाब तो देना ही पड़ेगा. अब बोलो, क्या कहना है तुम्हारा?’’ सुजाता को न्यायाधीश बनने में आनंद आने लगा था.

‘‘ऐसा कोई नियम है क्या दीदी कि सड़क पर किसी लड़की के पीछे नहीं चल सकते?’’ अनन्य ने जवाब में सवाल खड़ा कर दिया.

‘‘नियम तो नहीं है, पर इसे पीछा करना कहते हैं, बच्चू. और इस के लिए दंड भुगतना पड़ता है,’’ सुजाता मुसकराते हुए बोली.

‘‘ठीक है, आप का यही निर्णय है तो मैं दंड भुगतने के लिए तैयार हूं,’’ अनन्य जोर से हंसा, पर तभी चिरायु आ धमका था और बात बीच में ही रह गई थी.

‘‘मामा, कितनी देर से आए हो. मेरा गिफ्ट कहां है?’’ चिरायु अनन्य की बांहों में झूल गया.

अनन्य ने छोटा सा पैकेट निकाल कर चिरायु को थमा दिया था.

‘‘इतना छोटा सा  गिफ्ट?’’ चिरायु ने मुंह बनाया.

‘‘खोल कर तो देख. आंखें खुली की खुली रह जाएंगी.’’

चिरायु ने बड़े यत्न से कागज में लपेटा हुआ पैकेट एक झटके में फाड़ा तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा.

‘‘ओह, वाह वीडियो गेम? मामा, आप सचमुच ग्रेट हो. पापा, देखो, अनु मामा मेरे लिए क्या लाए हैं.’’

ध्रुव वीडियो गेम को देखने में व्यस्त हो गए. सुजाता भी दूसरे मेहमानों की आवभगत में जुट गई.

अनन्य का ध्यान फिर पास ही बैठी अवनि की ओर आकर्षित हो गया. उस के लिए मानो अन्य अतिथि वहां हो कर भी नहीं थे. उस का मन कर रहा था कि वह बस अवनि को निहारता रहे. एकदो बार कनखियों से देखते हुए उस की दृष्टि अवनि से मिली तो लगा जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो.

जन्मदिन का उत्सव समाप्त होते ही उस ने सुजाता से पूछा, ‘‘दीदी, कौन है वह? पहले तो उसे कभी नहीं देखा.’’

‘‘किस की बात कर रहा है तू?’’ सब कुछ समझते हुए भी सुजाता मुसकराई.

‘‘वही जो आप से मेरी शिकायत कर रही थी,’’ अनन्य भी मुसकरा दिया.

‘‘तुझे क्या करना है? तू तो विवाह के नाम से ही दूर भागता है. कैरियर बनाना है. जीवन में आगे बढ़ने के रास्ते में तो विवाह तो सब से बड़ी बाधा है न?’’ सुजाता ने अनन्य के ही शब्द दोहरा दिए थे.

‘‘पर दीदी अवनि को देखते ही मैं ने अपना खयाल बदल दिया है. पता नहीं क्या जादू है उस के व्यक्तित्व में. कुछ बताइए न उस के बारे में.’’

‘‘यही तो रोना है…जिस अवनि को देख कर तुम सम्मोहित हुए हो उस ने अपने चारों तरफ वैराग्य और वासनारहित ऐसा आवरण ओढ़ रखा है कि उस तक पहुंचना कठिन ही नहीं असंभव है. और क्यों न हो, इस संसार ने भी तो उस के साथ ऐसा ही व्यवहार किया है,’’ सुजाता का दर्दीला स्वर सुन कर अनन्य चौंक उठा.

‘‘ऐसा क्या कर दिया संसार ने अवनि के साथ?’’ क्षणमात्र में ही अब तक की सुनी हुई समस्त अनहोनी घटनाएं अनन्य के मानसपटल पर कौंध गई.

‘‘पता नहीं तुम्हें याद है या नहीं, हमारे पुराने गौलीगुड़ा वाले घर के सामने डा. निशीथ राय रहा करते थे…’’

‘‘खूब याद है,’’ अनन्य सुजाता की बात पूरी होने से पहले ही बोल उठा, ‘‘हां, बचपन में बीमार पड़ने पर मां उन्हीं के पास इलाज के लिए ले जाती थीं.’’

‘‘वे हमारे दूर के रिश्ते के चाचा थे. अवनि उन की बहन सुनंदा की छोटी बेटी है.’’

‘‘लेकिन हुआ क्या उस के साथ?’’ अनन्य उतावला हो बैठा. वह उस के बारे में सब कुछ जान लेना चाहता था.

‘‘5 वर्ष पहले की बात है. अवनि का विवाह एक बड़े संपन्न परिवार में तय हुआ था. गोदभराई की रस्म के बाद जब वर पक्ष के लोग वापस लौट रहे थे तो उन की कार को सामने से आते ट्रक ने टक्कर मार दी. उस दुर्घटना में भावी वर और उस के पिता दोनों की मौत हो गई.’’

‘‘ओह, कितना अप्रत्याशित रहा होगा यह सब?’’

‘‘अप्रत्याशित? यह कहो कि बिजली गिरी थी अवनि और उस के परिवार पर. अवनि तो पत्थर हो गई थी यह सब देख कर. उस के मातापिता सांत्वना देने गए थे पर वर पक्ष ने उन का मुंह भी देखना पसंद नहीं किया, बैठने के लिए पूछना तो दूर की बात है,’’ सुजाता ने बताया.

‘‘कितना संताप झेलना पड़ा होगा बेचारी को,’’ अनन्य बुझे स्वर में बोला.

‘‘2-3 वर्ष इलाज करवाया गया अवनि का तब कहीं जा कर वह सामान्य हुई. अब भी छोटी सी बात से डर जाती है. जैसे तुम उस के पीछे चल रहे थे पर उस को लगा कि तुम उस का पीछा कर रहे थे. कोई जोर से बोल दे या रात के सन्नाटे के उभरते स्वर, सब से वह छोटी बच्ची की तरह डर जाती है.’’

‘‘मातापिता ने फिर से विवाह की कोशिश नहीं की?’’

‘‘की थी, पर उस के अपशकुनी होने की बात कुछ ऐसी फैल गई थी कि कोई तैयार ही नहीं होता था. मातापिता ने उसे बहुत प्रोत्साहित किया, ढाढ़स बंधाया तब कहीं जा कर फिर से उस ने पढ़ाई प्रारंभ की. अर्थशास्त्र में एमफिल करते ही यहां महिला कालेज में व्याख्याता बन गई. मुश्किल से 6 माह हुए हैं यहां आए. कालेज के छात्रावास में ही रहती है. कहीं खास आनाजाना भी नहीं है. कभी बहुत आग्रह करने पर हमारे यहां चली आती है.’’

‘‘कितने दुख की बात है. जीवन ने उस के साथ बड़ा क्रूर उपहास किया है,’’ अनन्य को उस से हमदर्दी हो आई थी.

‘‘जीवन से अधिक क्रूर मजाक तो उस के अपनों ने किया है. 2 बड़े भाई हैं, एक बड़ी बहन है. तीनों अपनी गृहस्थी में इतने मगन हैं कि छोटी बहन के संबंध में सोचते तक नहीं. मेरी बूआ यानी अवनि की मां बिलकुल अकेली पड़ गई हैं. एक ओर बीमार पति की तीमारदारी तो दूसरी ओर अवनि की समस्या. उन का हाल पूछने वाला तो कोई है ही नहीं,’’ सुजाता का गला भर आया. आंखें भीग गईं.

‘‘जो हुआ, बहुत दुखद था, पर दीदी, इस का अर्थ यह तो नहीं कि पूरा जीवन एक दुर्घटना की भेंट चढ़ा दिया जाए,’’ अनन्य को अपनी बात कहने के लिए शब्द नहीं मिल रहे थे.

‘‘तुम सही कह रहे हो अनन्य, पर यह सब उसे बताएगा कौन? अभी तक तो सब ने उस के घावों पर नमक छिड़कने का ही काम किया है.

एक दिन अचानक वह मुझ से मिलने चली आई. बातों ही बातों में पता चला कि तैयार हो कर कालेज के लिए निकली तो कुछ छात्राएं उस के सामने पड़ गईं.

अवनि को देखते ही वे आपस में ऊंचे स्वर में बातें करने लगीं कि आज सवेरेसवेरे अवनि मैडम का मुंह देख लिया है, पता नहीं दिन कैसा गुजरेगा. यह बताते हुए वह रो पड़ी,’’ सुजाता ने बताया.

‘‘इस तरह कमजोर पड़ने से काम कैसे चलेगा. उन छात्राओं को तभी इतनी खरीखोटी सुनानी चाहिए थी कि फिर से ऐसी बेहूदा बात कहने का साहस न कर पाएं,’’ अनन्य क्रोध से भर उठा.

‘‘कहना बहुत सरल होता है, अपनी ही बात ले लो. कुछ ही देर पहले तुम अवनि के व्यक्तित्व से पूर्णतया अभिभूत लग रहे थे. पर मुझे नहीं लगता कि यह सब कुछ जानने के बाद भी तुम्हारे मन में उस के प्रति वही भावनाएं होंगी?’’ सुजाता व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली.

‘‘आप के इस प्रश्न का उत्तर अभी तो मेरे पास नहीं है. सबकुछ जाननेसमझने के लिए समय तो चाहिए न दीदी,’’ अनन्य के हर शब्द में गहराई थी, अवनि के प्रति सहानुभूति थी.

सुजाता बस मुसकरा कर रह गई थी. अनन्य के जाने के बाद सुजाता सोच में डूब गई.

उस के मन में विचारों का तेजी से मंथन चल रहा था. कभी वह अनन्य के बारे में सोचती तो कभी अवनि के बारे में.

‘‘कब तक यों ही बैठी रहोगी? ढेरों काम पड़े हैं,’’ तभी ध्रुव ने उस की तंद्रा भंग की.

‘‘क्या करूं, फिर वही कहानी दोहराई जा रही है. पता नहीं अवनि को कोई सहारा देने का साहस जुटा पाएगा या नहीं?’’ निराश स्वर में बोल सुजाता उठ खड़ी हुई.

‘‘इस चिंता में घुलना छोड़ दो सुजाता. अवनि पढ़ीलिखी है, समझदार है, आत्मनिर्भर है. धीरेधीरे अपने बलबूते जीना सीख जाएगी,’’ ध्रुव ने समझाना चाहा था.

कुछ माह भी नहीं बीते थे कि एक दिन अचानक ही शुभदा मौसी का फोन आ गया. इधरउधर की बात करने के बाद वे बोलीं, ‘‘क्या कहूं सुजाता, मन रोने को हो रहा है. पर सोचा पहले तुम से बात कर लूं. शायद तुम्हीं कोई राह सुझा सको.’’

‘‘क्या हुआ, मौसी? सब खैरियत तो है?’’ सुजाता बोली.

‘‘मेरी कुशलता की इतनी चिंता कब से होने लगी तुम्हें? काश, तुम ने मुझे समय से सचेत कर दिया होता.’’

‘‘क्या कह रही हो मौसी? मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा,’’ सुजाता परेशान हो उठी.

‘‘मैं उस मुई अवनि की बात कर रही हूं. पता नहीं कब से प्रेमलीला चल रही है दोनों की. अब अनन्य जिद ठाने बैठा है कि विवाह करेगा तो अवनि से ही, नहीं तो कुंआरा रहेगा.’’

‘‘मेरा विश्वास करो मौसी. मुझे तो इस संबंध में कुछ भी पता नहीं है.’’

‘‘पर अनन्य तो कह रहा था कि वह अवनि से पहली बार चिरायु के जन्मदिन पर ही मिला था.’’

‘‘उस समारोह में तो बहुत से लोग आमंत्रित थे. कहां क्या चल रहा था, मैं कैसे बता सकती हूं.’’

‘‘ठीक है, मान ली तुम्हारी बात. पर अब तो कुछ करो, सुजाता. मेरा तो एक ही बेटा है. उसे कुछ हो गया तो मैं बरबाद हो जाऊंगी,’’ शुभदा फोन पर ही रो पड़ीं.

‘‘ऐसा मत बोलो मौसी, ऐसा कुछ नहीं होगा. क्या पता इस में भी कोई अच्छाई ही हो,’’ सुजाता ने उन्हें ढाढ़स बंधाया.

‘‘इस में क्या अच्छाई होगी. मेरी तो सारी उमंगों पर पानी फिर गया. इस से तो अनन्य कुंआरा ही रह जाता तो मैं संतोष कर लेती. सुजाता, वादा कर कि तू अनन्य को समझा लेगी.’’

‘‘ठीक है, मैं प्रयत्न करूंगी मौसी. पर कोई वादा नहीं करती. तुम तो जानती ही हो, आजकल कौन किस की सुनता है. जब अनन्य तुम्हारी बात नहीं मान रहा तो मेरी क्या मानेगा,’’ सुजाता ने अपनी विवशता जताई थी.

‘‘प्रयत्न करने में क्या बुराई है? तुझे तो बहुत मान देता है. शायद मान जाए. अपनी मौसी के लिए तू इतना भी नहीं करेगी?’’ शुभदा ने जोर डालते हुए कहा था.

‘‘क्यों शर्मिंदा करती हो, मौसी. मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करूंगी.’’

सुजाता ने शुभदा को आश्वस्त तो कर दिया पर अति व्यस्तता के कारण अगले 2 महीने तक अवनि और अनन्य से मिलने तक का समय नहीं निकाल पाई. पर एक दिन अचानक शुभदा मौसी को आया देख उस के आश्चर्य की सीमा न रही.

‘‘आओ मौसी, तुम्हारा फोन आने के बाद व्यस्तता के कारण अनन्य से मिलने का समय ही नहीं निकाल पाई. मैं आज ही अनन्य से मिलने की कोशिश करूंगी,’’ सुजाता मौसी को अचानक आया देख वह अचकचा कर बोली.

‘‘अब उस की कोई आवश्यकता नहीं, बेटी. मैं तो उन दोनों के विवाह का निमंत्रण देने आई हूं. अनन्य को बहुत समझायाबुझाया, लेकिन वह माना ही नहीं. पता नहीं उस जादूगरनी ने क्या जादू कर दिया. बेटे की जिद के आगे झुकना ही पड़ा,’’ शुभदा मौसी भरे गले से बोलीं और निमंत्रणपत्र दे कर उलटे पांव लौट गईं.  बहुत प्रयत्न करने पर भी उन्हें रोक नहीं पाई सुजाता. शायद वे अनन्य और अवनि के विवाह के लिए सुजाता को भी दोषी मान रही थीं.

शुभदा मौसी तो निमंत्रणपत्र दे कर चली गईं पर सुजाता के मन में बेचैनी हो रही थी कि आखिर अनन्य क्यों अवनि के बारे में सबकुछ जानने के बाद विवाह के लिए राजी हो गया और अवनि कैसे अपनी पुरानी यादों को भूल कर विवाह के लिए तैयार हो गई? सुजाता ने अनन्य और अवनि से बात की तो दोनों ने ही कहा, ‘‘दीदी, हम दोनों ने एकदूसरे को अच्छी तरह समझ लिया है. साथ ही हम यह भी समझ गए हैं कि शकुनअपशकुन कुछ नहीं होता. जीवनसाथी अगर अच्छा हो तो जिंदगी अच्छी गुजरती है. अत: एकदूसरे को समझने के बाद ही हम ने शादी का फैसला लिया है.

सुजाता ने अपने में कई ताजगी का अनुभव किया.

अनन्य और अवनि का विवाह बड़ी धूमधाम से संपन्न हुआ था. य-पि शुभदा मौसी किसी अशुभ की आशंका से सोते हुए भी चौंक जाती थीं.

अनन्य और अवनि के विवाह को अब 5 वर्ष का समय बीत चुका है. 2 नन्हेमुन्नों के साथ दोनों अपनी गृहस्थी में कुछ ऐसे रमे हैं कि दीनदुनिया का होश ही नहीं है उन्हें. पर शुभदा मौसी हर परिचित को यह समझाना नहीं भूलतीं कि शकुनअपशकुन कुछ नहीं होता. यह तो केवल पंडों का फैलाया वहम है.

लोलिता : खेल या इश्क किसका जुआरी थी सोम

भारत के ऐयाश कारोबारी सोम को नेपाल के कैसिनो में जुआ खेलने की आदत थी. वहां उस की मुलाकात लोलिता नाम की एक लड़की से हुई. सोम ने उस से शादी कर ली और भारत ले आया. यहां एक दिन जब लोलिता को सोम की असलियत पता चली, तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. आगे क्या हुआ?

उत्तर प्रदेश के तराई इलाके नीमा कलां से महज 25 किलोमीटर दूर नेपाल की सरहद शुरू होती है. नेपाल और भारत के बीच आनेजाने के लिए पासपोर्ट की जरूरत नहीं पड़ती है. लिहाजा, दोनों देशों के नागरिक एकदूसरे के देश में आजा कर खरीदारी कर सकते हैं.

नीमा कलां की सरहद से लगे हुए एक नेपाली शहर का नाम बीरगंज है. चूंकि नेपाल में बहुत ज्यादा उद्योगधंधे नहीं हैं, इसलिए नेपाल विदेशी मुद्रा कमाने के लिए पर्यटन को बहुत बढ़ावा देता है. बीरगंज में भी 2 शौपिंग माल और विदेशी सामान का एक बहुत अच्छा बाजार है.

अभी पिछले साल ही बीरगंज में एक कैसिनो भी खुल गया था. वह कैसिनो बाहर से देखने में तो कुछ खास नहीं लगता था, पर अंदर जा कर उस की भव्यता का पता चलता था.

उस कैसिनो में पैसे कमाने के लिए कई किस्म के प्रोग्राम और गेम खेले जाते थे. साथ ही, लड़कियों का लुभाने वाला डांस और स्टैंडअप कौमेडी भी होती थी.

बीरगंज के इस कैसिनो में आने वाले लोगों में भारत के नागरिक ज्यादा होते थे, जो ठीक सुबह 10 बजे कैसिनो आ जाते, दिनभर जुआ खेलते और कैसिनो के अंदर ही खातेपीते, फिर शाम को 6 बजे तक नेपाल से भारत आ जाते थे.

इन्हीं जुआरियों में से एक का नाम था सोम, जो नीमा कलां का रहने वाला था और अपने बड़े भाई रवि के साथ विरासत में मिले कारोबार को चलाता था, पर यह साझा तो नामभर का ही था, क्योंकि सोम अलमस्त स्वभाव का था, जो अपने दोस्तों के साथ घूमनाफिरना, जुआ खेलना और नशा करना पसंद करता था, जबकि कारोबार की जिम्मेदारी रवि पर ही रहती थी, जो सोम को उस के अजीब और मुंहफट स्वभाव के चलते कुछ भी नहीं कहते थे.

जब नेपाल के बीरगंज में कैसिनो के खुलने की खबर सोम तक पहुंची, तब उस की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा. अब वह बीरगंज जा कर दिनभर जुआ खेल सकता था.

सोम ने पहले ही दिन से कैसिनो जाना शुरू कर दिया था. वहां पर सिर्फ मैनेजर और कुछ तगड़े बाउंसरों को छोड़ कर कोई भी पुरुष कर्मचारी नहीं था. खेलने वाले सिक्के यानी कौइन बांटने से ले कर शराब परोसने तक का सारा काम खूबसूरत लड़कियां करती थीं.

शराब परोसने वाली लड़कियों का पूरा शरीर तो शर्ट और पैंट से ढका रहता था, पर शर्ट के सीने के 2 बटन खुले रहते थे, जिस से लड़कियों के सीने की गोलाई का कुछ हिस्सा दिखता रहता था.

सोम जम कर जुआ खेलता था. वह कभी जुए में जीतता, तो कभी हारता. जीतने पर वह जम कर शराब पीता और हारता तो गम को कम करने के लिए फिर शराब पीता था. वह जीते हुए पैसे दोस्तों पर उड़ाना नहीं भूलता था.

आज भी सोम लगातार हारता जा रहा था और अगली चाल चल कर वह शायद पूरा गेम हार भी जाता, अगर वहां पर काम कर रही एक लड़की ने उसे अपनी आंखों के इशारे से ऐसी चाल चलने से मना न किया होता. सोम ने उस लड़की के इशारे को समझ और अपनी चाल बदल दी, जिस से वह जीत गया.

सोम ने सब की नजर बचा कर उस लड़की को 2,000 रुपए देने की कोशिश की, पर उस ने पैसे लेने से इनकार कर दिया. उस की ईमानदारी से खुश हो कर सोम ने उस का नाम पूछा. उस लड़की ने अपना नाम लोलिता बताया.

‘‘बहुत ग्लैमरस नाम है तुम्हारा, एकदम तुम्हारे चेहरे की तरह,’’ सोम ने कहा, तो लोलिता के चेहरे पर एक फीकी सी मुसकराहट बिखर गई.

उस दिन के बाद से सोम ने नोटिस किया कि जब कभी वह बाजी हारने लगता, उसी समय वहां गुलाबी रंग के दस्ताने पहने हुए लोलिता उस के पास आ कर खड़ी हो जाती. इस के बाद से ही सोम हारी हुई बाजी जीतने लगता था. ऐसा एक बार नहीं, बल्कि कई बार हुआ था.

सोम को लगने लगा था कि यह लड़की उस के लिए लकी है. लिहाजा, वह कैसिनो में बारबार लोलिता को पास बुलाता और उस से बातें करना चाहता, पर वह ऐसा करने से मना कर देती, क्योंकि कैसिनो के अंदर वह कैमरे की नजर में होती थी और किसी भी कस्टमर से ज्यादा नजदीकी दिखाना मना था.

लिहाजा, सोम ने चुपके से उस का मोबाइल नंबर ले लिया और देर रात में लोलिता से बातें कर के उस ने यह जान लिया कि लोलिता के पिता की मौत हो चुकी है, जबकि मां कैंसर से जूझ रही हैं.

लोलिता ने सोम को यह भी बताया कि उस का चित्रमान नाम का एक बौयफ्रैंड है, जो उसी कैसिनो में बाउंसर है. उसे लोलिता का कैसिनो में काम करना बिलकुल पसंद नहीं है.

सोम को लोलिता का साफगोई से अपने बारे में सबकुछ बताना बहुत अच्छा लगा और उस ने लोलिता को एक मजबूत और ईमानदार लड़की समझ, पर फिर भी सोम ने उसे दोबारा कुछ पैसे दे कर उस के जिस्म को भोगना चाहा, पर उसे मुंह की खानी पड़ी थी, क्योंकि लोलिता पैसे से कमजोर जरूर थी, लेकिन अपने जिस्म को बेच कर जीना नहीं चाहती थी.

सोम ने लोलिता से ब्याह रचाने की सोची. लेकिन जब लोलिता ने अपने  बौयफ्रैंड चित्रमान को सोम के इरादे के बारे में बताया, तो पहले तो वह नाराज हुआ, पर बाद में उस ने लोलिता को सोम से शादी रचाने के लिए हामी भर दी, क्योंकि ऐसा कर के लोलिता एक पैसे वाले की पत्नी बन जाएगी और फिर वह अपनी मां का इलाज भी करा सकेगी. लोलिता ने सोम को शादी के लिए हां बोल दी.

लोलिता जब तक नेपाल में थी, तब तक उस का पहनावा साधारण ही लगता था, पर आज जब उस ने लाल रंग की सुर्ख साड़ी पहनी और अपने बालों को पार्लर गर्ल की मदद से एक नया ब्राइडल लुक दिया, तो देखने वाले उसे निहारते ही रह गए. लोलिता ने जल्दी ही बड़े भैया रवि और भाभी का मन मोह लिया था.

शादी को 2 महीने हो चले थे. एक दिन रवि भैया ने लोलिता को अपने पास बुला कर बताया कि अभी तक सोम के अंदर जिम्मेदारी की भावना नहीं आई है और वह परिवार के कारोबार में कोई हाथ भी नहीं बंटाता है, पर सिर्फ दोस्तयारों के साथ मजे करने से तो जिंदगी कटती नहीं है.

इसी बीच भाभी ने बीच में टोक कर उन दोनों के बीच की बात खत्म कर दी, ‘‘अरे, अब यहीं बातें करते रहोगे या काम पर भी जाओगे… और अब आप सोम की चिंता करना छोड़ दो, उस की पत्नी आ गई है उस का ध्यान रखने के लिए…’’

सोम आज भी रात 12 बजे के बाद ही घर आया और पूछने पर कह दिया कि दोस्तों के साथ बैठा हुआ था. लोलिता ने उस के इंतजार में डिनर भी नहीं किया था.

‘‘डिनर लगा दूं क्या?’’ लोलिता ने पूछा, तो सोम ने लोलिता के होंठों पर एक जोरदार किस किया और उस की कमर में हाथ डाल कर उसे बिस्तर पर पटक कर लोलिता के सारे कपड़े तन से अलग कर दिए. फिर दीवार पर लगे टैलीविजन पर एक पोर्न मूवी चला दी.

लोलिता ने शरमा कर आंखें बंद कर लीं, तो सोम लोलिता से मूवी देखने की  जिद करने लगा, पर उस पोर्न मूवी में जो हरकतें वह गोरा जोड़ा कर रहा था, वे लोलिता को बेहूदा लग रही थीं और उसे देखने भर से उबकाई आ रही थी.

पर सोम को न जाने क्या हुआ कि उस ने भी लोलिता से पोर्न मूवी की हीरोइन की तरह हरकतें करने को कहा, पर लोलिता ने ऐसा करने से मना कर दिया.

‘‘भला तुझे ऐसा करने में क्या दिक्कत है?’’ सोम ने झल्लाते हुए कहा.

‘‘यह सब गंदा काम है, मुझे ठीक नहीं लगता,’’ धीमी आवाज में लोलिता ने कहा, तो सोम बिफर गया, ‘‘भला तुम्हारे जैसी नेपाली लड़की, जो कैसिनो में काम करती थी, को यह सब करने से क्या परहेज? मैं ने तो सुना है कि तुम लोग पैसे के लिए कुछ भी कर सकते हो…’’ सोम ने कहा, तो लोलिता को यह बात बुरी तरह अखर गई, पर उस ने यह बात अपने मन में ही दबा कर रख ली.

अगले कुछ दिनों में लोलिता को यह बात अच्छी तरह से पता चल गई थी कि इतना समझाने-बुझाने के बाद भी सोम दोस्तों के साथ जुआ खेलता है, इसलिए लोलिता आज सोम को कभी जुआ न खेलने और कारोबार पर ध्यान लगाने के लिए अपने सिर की कसम देगी.

‘अगर सोम कारोबार की कुछ जिम्मेदारी संभालते, तो बड़े भैया रवि को बैंगलुरु नहीं जाना पड़ता,’ यही सब सोचते हुए न जाने कब लोलिता की आंख लग गई, उसे पता नहीं चला.

रात के शायद 2 बज रहे थे. लोलिता की आंख खुली, तो वह अपना मोबाइल उठा कर सोम को फोन करने के लिए सोचने लगी और पानी लाने के लिए किचन की ओर बढ़ी कि तभी उस की नजर भाभी के कमरे से आती हुई रोशनी पर पड़ी.

‘भाईसाहब तो आज बाहर गए हैं, फिर भी भाभी जाग रही हैं… लगता है कि उन का टैलीविजन खुला रह गया है…’ यह सोचते हुए लोलिता भाभी के कमरे की ओर बढ़ चली.

कमरे के बाहर जा कर लोलिता को ठिठक कर रुक जाना पड़ा था, क्योंकि कमरे से हवस से भरी आवाजें आ रही थीं. उस ने चाबी के छेद से कमरे के अंदर झांका, तो अंदर का सीन देख कर हैरान रह गई. टैलीविजन पर वही पोर्न मूवी चल रही थी, जो सोम ने उस दिन लोलिता को दिखाई थी.

लोलिता की नजर बिस्तर की तरफ घूमी, तो देखा कि सोम आंखें बंद किए बिस्तर पर पड़ा था और उस की भाभी बेशर्मी से सोम के साथ वे सभी अश्लील हरकतें कर रही थीं, जिन्हें करने से लोलिता को परहेज था.

लोलिता का दिमाग फटा जा रहा था. भाभी ऐसा क्यों कर रही हैं? और फिर एक भरोसे पर ही तो वह सोम के साथ अपने देश से भारत चली आई थी. अपनी बीमार मां और प्रेमी की भी परवाह नहीं की थी उस ने, पर सोम ने उस के भरोसे को तोड़ कर तारतार कर दिया था.

लोलिता की आंखें अंगारे जैसी धधक उठी थीं. उस ने अपने मोबाइल के कैमरे से कमरे का वह सीन कैद कर लिया था.

अगले दिन से ही लोलिता ने अपनेआप को बदल लिया था. कहां तो वह साड़ी पहन कर रहना पसंद करती थी, पर आज तो वह नीली जींस और पीले रंग की झनी सी टीशर्ट में बहुत खूबसूरत लग रही थी.

नाश्ते की टेबल पर बैठे हुए सोम ने कहा, ‘‘आज तो एकदम गजब ढा रही हो लोलिता…’’

लोलिता ने मुसकराते हुए जवाब दिया, ‘‘अभी तो कुछ नहीं लग रही, कहर तो शाम को ढहेगा.’’

शाम को लोलिता ने जिद कर के सोम को घर से बाहर नहीं जाने दिया और 8 बजे से ही उसे शराब पिलाने लगी. सोम ने लोलिता से बैली डांस दिखाने की फरमाइश की, तो लोलिता ने झट से अपनी टीशर्ट और जींस उतार फेंकी और केवल ब्रापैंटी में बैली डांस के ऐसे लटकेझटके दिखाए कि सोम सारी दुनिया भूल कर लोलिता के हुस्न के जादू में गोते लगाने लगा.

ठीक उसी दौरान लोलिता ने खुद ही टैलीविजन पर एक पोर्न मूवी चला दी और सोम के जिस्म से लिपटने लगी. हुस्न और शराब का नशा सोम के सिर पर हावी था. वह लोलिता से जम कर सैक्स करना चाहता था, पर लोलिता अब भी हाथ नहीं आ रही थी.

आखिरकार सोम को लगा कि लोलिता ने समर्पण कर ही दिया है, पर लोलिता के कोमल शरीर में प्रवेश करने की कोशिश बेकार हो गई थी.

लोलिता को इसी पल का इंतजार था. उस ने कागजात की एक फाइल निकाली और कुछ जगहों पर नशे में चूर सोम के दस्तखत कराने लगी.

ये कागजात भविष्य में इस बात की तसदीक करने वाले थे कि बैंक के सभी खातों में लोलिता सोम की नौमिनी है और उस की जायदाद और कारोबार में भी उस की आधी हिस्सेदार है.

अगले दिन पौ फटते ही लोलिता नेपाल के बीरगंज जाने वाली बस में बैठ चुकी थी और उस के पास उस के कपड़े, गहने, नकदी और बैंक के कागजात थे. और हां, वह अपने जेठ रवि को सोम और भाभी की अश्लील वीडियो क्लिपिंग मोबाइल पर भेजना नहीं भूली थी.

बीरगंज पहुंच कर लोलिता अपनी मां से मिल कर बहुत खुश हुई. उस की मां की हालत पहले से काफी बेहतर लग रही थी. चित्रमान ने उन का काफी ध्यान रखा था.

अब लोलिता अपनी मां को छोड़ कर कभी कहीं नहीं जाएगी. वैसे तो लोलिता अब चित्रमान को भी छोड़ कर कहीं नहीं जाना चाहती है, लेकिन क्या अब चित्रमान उसे अपनाएगा, क्योंकि लोलिता ने प्रेमी को छोड़ दूसरे मर्द से शादी कर के काम तो गलत ही किया था.

‘‘तुम ने कुछ गलत नहीं किया. अगर तुम ने एक पैसे वाले से शादी की तो सिर्फ अपनी मां के इलाज के पैसों की जरूरत को पूरा करने के लिए. और अगर तुम ने सोम से धोखे से दस्तखत कराए, तो उस में भी कुछ गलत नहीं है. आखिर वह भी तो अपनी भाभी से नाजायज रिश्ता रख कर तुम्हें धोखा दे रहा था,’’ चित्रमान ने लोलिता को गले से लगाते हुए कहा.

भारत में रवि ने अपनी पत्नी का अश्लील वीडियो देख कर उसे तलाक दे दिया और सोम के पास से तो लोलिता पहले से ही सबकुछ ले कर उसे सजा दे चुकी थी.

नेपाल के बीरगंज में वह कैसिनो अब भी गुलजार रहता है, जहां रोजाना लाखों रुपए का जुआ खेला जाता है और अब भी कई लोलिता अपने असली कपड़ों के ऊपर मजबूरी का जामा ओढ़े शराब परोसते देखी जा सकती हैं.

अनकहा प्यार : बिनब्याहे मिली सासूमां

कालेकाले बादलों ने आसमान में डेरा डाल दिया था. मुक्ता सूखे कपड़े उतारने के लिए तेजी से आंगन की तरफ दौड़ी. बूंदों ने झमाझम बरसना शुरू कर दिया था.

कपड़े उतारतेउतारते मुक्ता काफी भीग चुकी थी. अंदर आते ही उस ने छींकना शुरू कर दिया.

मां बड़बड़ाते हुए बोलीं, ‘‘मुक्ता, मैं ने तुझ से कितनी बार कहा है कि भीगा मत कर, लेकिन तू मानती ही नहीं. मुझे आवाज दे देती, तो मैं उतार लाती कपड़े.’’

मुक्ता ने शांत भाव से कहा, ‘‘मां, आप सो रही थीं, इसलिए मैं खुद ही चली गई. अगर आप जातीं, तो आप भी तो भीग जातीं न.’’

मां उसे दुलारते हुए बोलीं, ‘‘मेरी बेटी अपनी मां को इतना प्यार करती है…’’

‘‘हां,’’ मुक्ता ने सिर हिलाते हुए कहा और मां के कांधे से लिपट गई.

‘‘तू पूरी तरह से भीग गई है… जा, जा कर पहले तौलिए से बाल सुखा ले और कपड़े बदल ले. मैं तेरे लिए तुलसीअदरक वाली चाय बना कर लाती हूं,’’ कहतेकहते मां चाय बनाने चली गईं.

मुक्ता कपड़े बदल कर सिर पर तौलिया लपेटे हुए सोफे पर आ कर बैठ गई.

‘‘ले, गरमागरम चाय पी ले और चाय पी कर आराम कर,’’ मां चाय दे कर दूसरे काम के लिए किचन में चली गईं.

मुक्ता खिड़की से बारिश की बूंदों को गिरते हुए देख रही थी और देखतेदेखते पुरानी यादों में खो गई.

औफिस जाने के लिए मुक्ता बस स्टौप पर खड़ी बस का इंतजार कर रही थी कि तभी एक नौजवान उस की बगल में आ कर खड़ा हो गया. सुंदर कदकाठी का महत्त्व नाम का वह नौजवान औफिस के लिए लेट हो रहा था. आज उस की बाइक खराब हो गई थी.

महत्त्व रहरह कर कभी अपने हाथ की घड़ी, तो कभी बस को देख रहा था. तभी एक बस आ कर खड़ी हो गई. सब लोग उस बस में जल्दीजल्दी चढ़ने लगे. मुक्ता और महत्त्व ने भी बस में चढ़ने के लिए बस के दरवाजे को पकड़ा. गलती से महत्त्व का हाथ मुक्ता के हाथ पर रखा गया. वह सहम गई और बस से दूर जा कर खड़ी हो गई.

महत्त्व जल्दी से बस में चढ़ गया. पर जब बस में चारों तरफ नजरें दौड़ाने पर उसे मुक्ता नहीं दिखाई दी, तो वह बस से उतर गया और बस स्टौप की तरफ चलने लगा. मुक्ता वहीं पर खड़ी दूसरी बस का इंतजार कर रही थी.

महत्त्व ने पास आ कर मुक्ता से पूछा, ‘‘आप बस में क्यों नहीं चढ़ीं?’’

‘‘जी, बस यों ही… भीड़ बहुत ज्यादा थी, इसलिए…’’

तभी दूसरी बस आ कर खड़ी हो गई. मुक्ता बस में चढ़ गई. महत्त्व भी बस

में चढ़ गया. थोड़ी देर में मुक्ता का औफिस आ गया… वह बस से उतर गई. कुछ देर बाद महत्त्व का भी औफिस आ गया था.

शाम को औफिस छूटने के बाद दोनों इत्तिफाक से एक ही बस में चढ़े और दोनों ने एकदूसरे को हलकी सी स्माइल दी.

अब दोनों का एक ही बस से आनाजाना शुरू हो गया. ये मुलाकातें एकदूसरे से बोले बिना ही कब प्यार में बदल गईं, पता ही नहीं चला.

एक दिन वे दोनों बस स्टौप पर खड़े थे. काले बादलों ने घुमड़घुमड़ कर शोर मचाना शुरू कर दिया. महत्त्व ने मुक्ता से कहा, ‘‘मौसम कितना सुहाना है… क्यों न कहीं घूमने चलें?’’

मुक्ता ने धीरे से कहा, ‘‘लेकिन, औफिस भी तो जाना है…’’

‘‘आज औफिस को गोली मारो… मैं बाइक ले कर आता हूं… बाइक से घूमने चलेंगे. तुम मेरा यहीं इंतजार करना… मैं बस 2 मिनट में आया,’’ कह कर महत्त्व बाइक लेने चला गया.

थोड़ी देर में महत्त्व बाइक ले कर आ गया. उस ने अपना हाथ मुक्ता की तरफ बढ़ाया. मुक्ता ने अपना हाथ महत्त्व के हाथ पर रख दिया और बाइक पर बैठ गई. दोनों घूमतेघूमते बहुत दूर निकल गए.

जब बहुत देर हो गई, तब मुक्ता ने कहा, ‘‘काले बादल घने होते जा रहे हैं और अंधेरा भी बढ़ रहा है. अब हमें चलना चाहिए. बारिश कभी भी शुरू हो सकती है.’’

महत्त्व ने बाइक स्टार्ट की. मुक्ता पीछे बैठ गई. दोनों चहकते हुए चले जा रहे थे. काले बादलों ने झमाझम बरसना शुरू कर दिया. मुक्ता ने दोनों हाथों से महत्व को कस के पकड़ लिया. महत्त्व भी प्यार की मीठी धुन में गुनगुनाता हुआ बाइक चला रहा था.

आगे गड्ढा था, जिस में पानी भरा हुआ था. महत्त्व ने ध्यान नहीं दिया. बाइक गड्ढे में जा गिरी, जिस से महत्त्व और मुक्ता बुरी तरह जख्मी हो गए. कुछ लोग उन्हें अस्पताल ले कर पहुंचे.

महत्त्व की अस्पताल पहुंचते ही मौत हो गई. उस की मौत से मुक्ता अंदर से टूट गई और सोचने लगी, ‘अनकहा प्यार अनकहा ही रह गया…’

अपनी यादों में खोई मुक्ता की आंखों से आंसू गिरने लगे.

‘‘मुक्ता… ओ मुक्ता, किन यादों में खो गई… देख, तेरी चाय ठंडी हो गई. चल छोड़, मैं दूसरी बना कर लाती हूं. मां और मुक्ता दोनों साथ चाय पीते हैं.’’

चाय पीते हुए मां ने मुक्ता से पूछा, ‘‘महत्त्व को याद कर रही थी?’’

मुक्ता लंबी गहरी सांस लेते हुए बोली, ‘‘हां, मां… मां, बस आप ही समझ सकती हो कि महत्त्व का मेरी जिंदगी में क्या महत्त्व था. मम्मीपापा के चले जाने के बाद मैं बिलकुल अकेली हो गई थी. फिर महत्त्व मेरी जिंदगी में आया और मेरी दुनिया ही बदल गई. लेकिन, वह भी मुझे छोड़ कर चला गया. मैं बिलकुल टूट कर बिखर गई.

‘‘महत्त्व के चले जाने के बाद आप ने मुझे संभाला. आप सिर्फ महत्त्व की ही मां नहीं हो… आप मेरी भी मां हो. अब आप मेरी जिम्मेदारी हो. मैं आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी.’’

एक नई दिशा : क्या अपना मुकास हासिल कर पाई वसुंधरा – भाग 3

‘मैं न तो अपने भाग्य को कोसना चाहती हूं न उस पर रोना चाहती हूं. मैं उस का निर्माण करना चाहती हूं,’ वसुंधरा ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए कहा, ‘फिर मां, मैं आज वैसे भी नहीं रुक सकती. आज मेरा प्रवेशपत्र मिलने वाला है.’

‘2 बजे तक आ जाना. लड़के वाले 3 बजे तक आ जाएंगे.’

मां की बात को अनसुना कर वसुंधरा घर से निकल गई.

अपने देवर के बारे में सोच गायत्री भी विचलित हो गईं और अपनी बेटी का एक संपन्न परिवार में रिश्ता कराने का उन का नशा धीरेधीरे उतरने लगा.

‘कहीं हम कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं अपनी वसु के साथ,’ गायत्री देवी ने शंका जाहिर करते हुए पति से कहा.

‘मैं उसका पिता हूं, कोई दुश्मन नहीं. मुझे पता है, क्या सही और क्या गलत है. तुम बेकार की बातें छोड़ो और उन के स्वागत की तैयारी करो,’ दीनानाथ ने आदेश देते हुए कहा.

वसुंधरा ने कालिज से अपना प्रवेशपत्र लिया और उसे बैग में डाल कर सोचने लगी, कहां जाए. घर जाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था. सहसा उस के कदम मैडम के घर की ओर मुड़ गए.

‘अरे, तुम,’ वसुंधरा को देख मैडम चौंकते हुए बोलीं, ‘आओआओ, इस समय घर पर मेरे सिवा कोई नहीं है,’ वसुंधरा को संकोच करते देख मैडम ने कहा.

लक्ष्मी को पानी लाने का आदेश दे वह सोफे पर बैठते हुए बोलीं, ‘कहो, कैसी चल रही है, पढ़ाई?’

‘मैडम, आज लड़के वाले आ रहे हैं,’ वसुंधरा ने बिना मैडम की बात सुने खोएखोए से स्वर में कहा.

मैडम ने ध्यान से वसुंधरा को देखा. बिखरे बाल, सूखे होंठ, सुंदर सा चेहरा मुरझाया हुआ था. उसे देख कर उन्हें एकाएक बहुत दया आई. जहां आजकल मातापिता अपने बच्चों के कैरियर को ले कर इतने सजग हैं वहां इतनी प्रतिभावान लड़की किस प्रकार की उलझनों में फंसी हुई है.

‘तुम ने कुछ खाया भी है?’ सहसा मैडम ने पूछा और तुरंत लक्ष्मी को खाना लगाने को कहा.

खाना खाने के बाद वसुंधरा थोड़ा सामान्य हुई.

‘तुम्हारी कोई  समस्या हो तो पूछ सकती हो,’ मैडम ने उस का ध्यान बंटाने के लिए कहा.

‘जी, मैडम, है.’

वसुंधरा के ऐसा कहते ही मैडम उस के प्रश्नों के हल बताने लगीं और फिर उन्हें समय का पता ही न चला. अचानक घड़ी पर नजर पड़ी तो पौने 6 बज रहे थे. हड़बड़ाते हुए वसुंधरा ने अपना बैग उठाया और बोली, ‘मैडम, चलती हूं.’

‘घबराना मत, सब ठीक हो जाएगा,’ मैडम ने आश्वासन देते हुए कहा.

दीनानाथ चिंता से चहलकदमी कर रहे थे. वसुंधरा को देख गुस्से में पांव पटकते हुए अंदर चले गए. आज वसुंधरा को न कोई डर था और न ही कोई अफसोस था अपने मातापिता की आज्ञा की अवहेलना करने का.

कहते हैं दृढ़ निश्चय हो, बुलंद इरादे हों और सच्ची लगन हो तो मंजिल के रास्ते खुद ब खुद खुलते चलते जाते हैं. ऐसा ही वसुंधरा के साथ हुआ. मैडम की सहेली के पति एक कोचिंग इंस्टीट्यूट चला रहे थे. वहां पर मैडम ने वसुंधरा को बैंक की प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए निशुल्क प्रवेश दिलवाया. मैडम ने उन से कहा कि भले ही उन्हें वसुंधरा से फीस न मिले लेकिन वह उन के कोचिंग सेंटर का नाम जरूर रोशन करेगी. यह बात वसुंधरा के उत्कृष्ट एकेडमिक रिकार्ड से स्पष्ट थी.

समय अपनी रफ्तार से बीत रहा था. बी.एससी. में वसुंधरा ने कालिज में सर्वाधिक अंक प्राप्त किए और आगे की पढ़ाई के लिए गणित में एम.एससी. में एडमिशन ले लिया. कोचिंग लगातार जारी रही. मैडम पगपग पर उस के साथ थीं. वसुंधरा को इतनी मेहनत करते देख दीनानाथ, जिन की नाराजगी पूरी तरह से गई नहीं थी, पिघलने लगे. 2 साल की कड़ी मेहनत के बाद जब वसुंधरा स्टेट बैंक की प्रतियोगी परीक्षा में बैठी तो पहले लिखित परीक्षा फिर साक्षात्कार आदि प्रत्येक चरण को निर्बाध रूप से पार करती चली गई.

वसुंधरा श्रद्धा से मैडम के सामने नतमस्तक हो गई. बैग से नियुक्तिपत्र निकाल कर मैडम के हाथों में दे दिया. नियुक्तिपत्र देख कर मैडम मारे खुशी के धम से सोफे पर बैठ गईं.

‘‘तू ने मेरे शब्दों को सार्थक किया,’’ बोलतेबोलते वह भावविह्वल हो गईं. उन्हें लगा मानो उन्होंने स्वयं कोई मंजिल पा ली है.

‘‘मैडम, यह सब आप की ही वजह से संभव हो पाया है. अगर आप मेरा मार्गदर्शन नहीं करतीं तो मैं इस मुकाम पर न पहुंच पाती,’’ कहतेकहते उस की सुंदर आंखों से आंसू ढुलक पड़े.

‘‘अरे, यह तो तेरी प्रतिभा व मेहनत का नतीजा है. मैं ने तो बस, एक दिशा दी,’’ मैडम ने खुशी से ओतप्रोत हो उसे थपथपाते हुए कहा.

वसुंधरा फिर उत्साहित होते हुए मैडम को बताने लगी कि उस की पहले मुंबई में टे्रेनिंग चलेगी उस के बाद 2 साल का प्रोबेशन पीरियड फिर स्थायी रूप से आफिसर के रूप में बैंक की किसी शाखा में नियुक्ति होगी. मैडम प्यार से उस के खुशी से दमकते चेहरे को देखती रह गईं.

उस शाम मैडम को तब बेहद खुशी हुई जब दीनानाथ मिठाई का डब्बा ले कर अपनी खुशी बांटने उन के पास आए. उन्होंने और उन के पति ने आदर के साथ उन्हें ड्राइंग रूम में बैठाया.

दीनानाथ गर्व से बोले, ‘‘मेरी बेटी बैंक में आफिसर बन गई,’’ फिर भावुक हो कर कहने लगे, ‘‘यह सब आप की वजह से हुआ है. मैं तो बेटी होने का अर्थ सिर्फ विवाह व दहेज ही समझता था. आप ने मेरा दृष्टिकोण ही बदल डाला. मैं व मेरा परिवार हमेशा आप का आभारी रहेगा.’’

ममता विनम्र स्वर में दीनानाथ से बोलीं, ‘‘मैं ने तो मात्र मार्गदर्शन किया है. यह तो आप की बेटी की प्रतिभा और मेहनत का नतीजा है.’’

‘‘जिस प्रतिभा को मैं दायित्वों के बोझ तले एक पिता हो कर न पहचान पाया, न उस का मोल समझ पाया, उसी प्रतिभा का सही मूल्यांकन आप ने किया,’’ बोलतेबोलते दीनानाथ का गला रुंध गया.

‘‘यह जरूरी नहीं कि सिर्फ पढ़ाई में होशियार बच्चा ही जीवन में सफल हो सकता है. प्रत्येक बच्चे में कोई न कोई प्रतिभा अवश्य होती है. हमें उसी प्रतिभा का सम्मान करते हुए उसे उसी ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.’’

दीनानाथ उत्साहित होते हुए बोले, ‘‘मेरी दूसरी बेटी आर्मी में जाना चाहती है. मैं अपनी सभी बेटियों को पढ़ाऊंगा, आत्मनिर्भर बनाऊंगा, तब जा कर उन के विवाह के बारे में सोचूंगा. मैं तो भाग्यशाली हूं जो मुझे ऐसी प्रतिभावान बेटियां मिली है.

फलक से टूटा इक तारा: सान्या का यह एहसास- भाग 3

सान्या सोचने लगी, ‘कल तक जो देव मेरी हर बात का दीवाना हुआ करता था उसे आज अचानक से क्या हो गया है?’ यदि सान्या उस से बात करना भी चाहती तो वह मुंह फेर कर चल देता. अब सान्या मन ही मन बहुत परेशान रहने लगी थी. बारबार सोचती, कुछ तो है जो देव मुझ से छिपा रहा है. अब वह देव पर नजर रखने लगी थी और उसे मालूम हुआ कि देव का उस से पहले भी एक लड़की से प्रेमप्रसंग था और अब वह फिर से उस से मिलने लगा है.

सान्या सोचने लगी, ‘तो क्या देव, मुझे शादी के झूठे सपने दिखा रहा है.’ यदि अब वह देव से शादी के बारे में बात करती तो देव उसे किसी न किसी बहाने से टाल ही देता. और आज तो हद ही हो गई, जब सान्या ने देव से कहा, ‘‘हमारी शादी का दिन तय करो.’’ देव उस की यह बात सुन  मानो तिलमिला गया हो. वह कहने लगा, ‘‘तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने है, आज हम शादी कर लें और कल बच्चे? इतना बड़ा पेट ले कर घूमोगी तो कौन से धारावाहिक वाले तुम्हें काम देंगे. तुम्हारे साथसाथ मेरा भी कैरियर चौपट जब सब को पता लगेगा कि मैं ने तुम से शादी कर ली है.’’

सान्या कानों से सब सुन रही थी लेकिन जो देव कह रहा था उस पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था. उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया था. वह तो सोच भी नहीं सकती थी कि देव उस के साथ ऐसा व्यवहार करेगा. वह तो शादी के सपने संजोने लगी थी. उसे नहीं मालूम था कि देव उस के सपने इतनी आसानी से कुचल देगा. तो क्या देव सिर्फ उस का इस्तेमाल कर रहा था या उस के साथ टाइमपास कर रहा था. उस का प्यार क्या एक छलावा था. वह सोचने लगी कि ऐसी क्या कमी आ गई अचानक से मुझ में कि देव मुझ से कटने लगा है.

कई धारावाहिकों में अपनी मनमोहक छवि और मुसकान के लिए सब का चहेता देव, क्या यही है उस की असलियत? जिस देव की न जाने कितनी लड़कियां दीवानी हैं क्या उस देव की असलियत इतनी घिनौनी है? वह मन ही मन अपने फैसले को कोस रही थी और अंदर ही अंदर टूटती जा रही थी, लेकिन उस ने सोच लिया था कि देव उस से इस तरह पीछा नहीं छुड़ा सकता. अगले दिन जब देव शूटिंग खत्म कर के घर जा रहा था, सान्या भी उस के साथ कार में आ कर बैठ गई और उस ने पूछा, ‘‘देव, क्या तुम किसी और से प्यार करते हो? मुझे सचसच बताओ क्या तुम मुझ से शादी नहीं करोगे?’’

आज देव के मुंह से कड़वा सच निकल ही गया, ‘‘क्यों तुम हाथ धो कर मेरे पीछे पड़ गई हो, सान्या? मेरा पीछा छोड़ो,’’ यह कह देव अपनी कार साइड में लगा कर वहां से पैदल चल दिया. लेकिन सान्या क्या करती? वह भी दौड़ कर उस के पीछे गई और कहने लगी, ‘‘मैं ने तुम से प्यार किया है, देव, क्या तुम ने मुझे सिर्फ टाइमपास समझा? नहीं देव, नहीं, तुम मुझे इस तरह नहीं छोड़ सकते. बहुत सपने संजोए हैं मैं ने तुम्हारे साथ. क्या तुम मुझे ठुकरा दोगे?’’

देव को सान्या की बातें बरदाश्त से बाहर लग रही थीं और उसी गुस्से में उस ने सान्या के गाल पर तमाचा जड़ते हुए कहा, ‘‘तुम मेरा पीछा क्यों नहीं छोड़ती?’’ सान्या वहां से उलटे कदम घर चली आई.

अब तो सान्या की रातों की नींद और दिन का चैन छिन गया था. न तो उस का शूटिंग में मन लगता था और न ही कहीं और. इतनी जानीमानी मौडल, इतने सारे नामी धारावाहिकों की हीरोइन की ऐसी दुर्दशा. यह हालत. वह तो इस सदमे से उबर ही नहीं पा रही थी. पिछले 4 दिनों से न तो वह शूटिंग पर गई और न ही किसी से फोन पर बात की. कई फोन आए पर उस ने किसी का भी जवाब नहीं दिया.

आज उस ने देव को फोन किया और कहा, ‘‘देव, क्या तुम मुझे मेरे अंतिम समय में भी नहीं मिलोगे? मैं इस दुनिया को छोड़ कर जा रही हूं, देव,’’ इतना कह फोन पर सान्या की अवाज रुंध गई. देव को तो कुछ समझ ही न आया कि वह क्या करे? वह झट से कार ले कर सान्या के घर पहुंचा. लिफ्ट न ले कर सीधे सीढि़यों से ही सान्या के फ्लैट पर पहुंचा.

दरवाजा अंदर से लौक नहीं था. वह सीधे अंदर गया, सान्या पंखे से झूल रही थी. उस ने झट से पड़ोसियों को बुलाया और सब मिल कर सान्या को अस्पताल ले कर गए. लेकिन वहां सान्या को मृत घोषित कर दिया गया.

सान्या इस दुनिया से चली गई, उस दुनिया में जिस में उस ने सुनहरे ख्वाब देखे थे, वह दुनिया जिस में वह देव के साथ गृहस्थी बसाना चाहती थी, वह दुनिया जिस की चमकदमक में वह भूल गई कि फरेब भी एक शब्द होता है और देव से जीजान से मुहब्बत कर बैठी या फिर वह इस दुनिया के कड़वे एहसास से अनभिज्ञ थी. उसे लगता था कि ये बड़ीबड़ी हस्तियां, बडे़ स्टेज शो, पार्टियों में चमकीले कपड़े पहने लोग और बड़ी ही पौलिश्ड फर्राटेदार अंगरेजी बोलने वाले लोग सच में बहुत अच्छे होते हैं, लेकिन उसे यह नहीं मालूम था कि उस दुनिया और हम जैसे साधारण लोगों की दुनिया में कोई खास फर्क नहीं. हमारी दुनिया की जमीन पर खड़े हो जब हम आसमान में चमकते सितारे देखते हैं तो वे कितने सुंदर, टिमटिमाते हुए नजर आते हैं. किंतु उन्हीं सितारों को आसमान में जा कर तारों के धरातल पर खड़े हो कर जब हम देखें तो उन सितारों की चमक शून्य हो जाती है और वहां से हमारी धरती उतनी ही चमकती हुई दिखाई देती है जितनी कि धरती से आसमान के तारे. फिर क्यों हम उस ऊपरी चमक से प्रभावित होते हैं?

ये चमकदार कपड़े, सूटबूट सब ऊपरी दिखावा ही तो है दूसरों को रिझाने के लिए. तभी तो सान्या इन सब के मोहपाश में पड़ गई और देव से सच्चा प्यार कर बैठी. वह यह नहीं समझ पाई कि इंसान तो इंसान है, मुंबई के फिल्मी सितारों की दुनिया हो या छोटे से कसबे के साधारण लोगों की दुनिया, इंसानी फितरत तो एक सी ही होती है चाहे वह कितनी भी ऊंचाइयां क्यों न हासिल कर ले. लेकिन कहते हैं न, दूर के ढोल सुहावने. खैर, अब किया भी क्या जा सकता था.

लेकिन हां, हर पल मुसकराने वाली सान्या जातेजाते सब को दुखी कर गई और छोड़ गई कुछ अनबूझे सवाल. झूठे प्यार के लिए अपनी जान देने वाली सान्या अपनी जिंदगी को कोई दूसरा खूबसूरत मोड़ भी तो दे सकती थी. इतनी गुणी थी वह, अपने जीवन में बहुतकुछ कर सकती थी. सिर्फ जीवन के प्रति सकारात्मक सोच को जीवित रख लेती और देव को भूल जीवन में कुछ नया कर लेती. काश, वह समझ पाती इस दुनिया को. कितनी नायाब होती है उन सितारों की चमक जो चाहे दूर से ही, पर चमकते दिखाई तो देते हैं. सभी को तो नहीं हासिल होती वह चमक. तो फिर क्यों किसी बेवफा के पीछे उसे धूमिल कर देना. काश, समझ पाती सान्या. खैर, अब तो ऐसा महसूस हो रहा था जैसे फलक से एक चमकता तारा अचानक टूट गया हो.

मौन : जब दो जवां और अजनबी दिल मिले

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फलक से टूटा इक तारा: सान्या का यह एहसास- भाग 2

अभी एक महीना बीता था कि सान्या को मुंबई से डांस शो के फाइनल्स के लिए बुलावा आ गया. उस के पैर तो बिन घुंघरू के ही थिरकने लगे थे. वह तो एकएक दिन गिन रही थी फिर से मुंबई जाने के लिए. अब डांस फाइनल्स शो का भी दिन आ ही गया.

फिर से वही स्टेज की चमकदमक और उस के मातापिता दर्शकों की आगे की पंक्ति में बैठे थे और शो शुरू हुआ. नतीजा तो जैसे सान्या ने स्वयं ही लिख दिया था. उसे पूरा विश्वास था कि वही जीतेगी. और डांस शो की प्रथम विजेता भी सान्या ही बनेगी. फिर क्या था, सान्या का नाम व तसवीरें हर अखबार व मैग्जीन के मुखपृष्ठ पर थीं. अब उसे हिंदी धारावाहिकों के लिए प्रस्ताव आने लगे थे. सभी बड़े नामी उत्पादों की कंपनियां उसे अपने उत्पादों के विज्ञापन के लिए प्रस्ताव देने लगी थीं.

अब तो सान्या आसमान में उड़ने लगी थी. उस की मां व पिताजी उस से कहते, ‘‘बेटी, इस चमकदमक के पीछे न दौड़ो, पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर लो.’’ लेकिन सान्या कहती, ‘‘पिताजी, ऐसे सुनहरे अवसर बारबार थोड़े ही मिलते हैं. मुझे मत रोकिए, पिताजी, उड़ जाने दीजिए मुझे आजाद परिंदे की तरह और कर लेने दीजिए मुझे अपने ख्वाब पूरे.’’

मांपिताजी ने उसे बहुत समझाया, पिताजी तो कई बार नाराज भी हुए, उसे डांटाडपटा भी, लेकिन सान्या को तो मुंबई जाना ही था. सो, मातापिता की मरजी के खिलाफ जिद कर एक दिन उस ने मुंबई की ट्रेन पकड़ ली, लेकिन मातापिता अपनी बेटी को कैसे अकेले छोड़ते, सो हार कर उन्होंने भी उस की जिद मान ही ली. कुछ दिन तो मां उस के साथ एक किराए के फ्लैट में रही, लेकिन फिर वापस अपने घर आ गई. सान्या की छोटी बहन व पिता को भी तो संभालना था.

सान्या को तो एक के बाद एक औफर मिल रहे थे, कभी समय मिलता तो मां को उचकउचक कर फोन कर सब बात बता देती. मां भी अपनी बेटी को आगे बढ़ते देख फूली न समाती. एक बार मां 7 दिनों के लिए मुंबई आई. जगहजगह होर्डिंग्स लगे थे जिन पर सान्या की तसवीरें थीं. विभिन्न फिल्मी पत्रिकाओं में भी उस की तसवीरें आने लगी थीं. वह मां को अपने साथ शूटिंग पर भी ले कर गई. सभी डायरैक्टर्स उस का इंतजार करते और उसे मैडममैडम पुकारते.

मां बहुत खुश हुई, लेकिन मन ही मन डरती कि कहीं कुछ गलत न हो जाए, क्या करती आज की दुनिया है ही ऐसी. अपनी बेटी के बढ़ते कदमों को रोकना भी तो नहीं चाहती थी वह. पूरे 5 वर्ष बीत गए. रुपयों की तो मानो झमाझमा बारिश हो रही थी. इतनी शोहरत यानी कि सान्या की मेहनत और काबिलीयत अपना रंग दिखा रही थी. हीरा क्या कभी छिपा रहता है भला?

जब सान्या को किसी नए औफर का एडवांस मिलता तो वह रुपए अपने मांपिताजी के पास भेज देती. साथ ही साथ, उस ने मुंबई में भी अपने लिए एक फर्निश्ड फ्लैट खरीद लिया था. कहते हैं न, जब इंसान की मौलिक जरूरतें पूरी हो जाती हैं तो वह रुपया, पैसा, नाम, शोहरत, सम्मान आदि के लिए भागदौड़ करता है. तो बस, अब सबकुछ सान्या को हासिल हो गया तो उसे तलाश थी प्यार की.

वैसे तो हजारों लड़के सान्या पर जान छिड़कते थे किंतु उस की नजर में जो बसा था, वह था देव जो उसे फिल्मी पार्टी में मिला था और मौडलिंग कर रहा था. दोनों की नजरें मिलीं और प्यार हो गया.

कामयाबी दोनों के कदम चूम रही थी. जगहजगह उन के प्यार के चर्चे थे. आएदिन पत्रिकाओं में उन के नाम और फोटो सुर्खियों में होते. सान्या की मां कभीकभी उस से पूछती तो सान्या देव की तारीफ करती न थकती थी. मां सोचती कि अब सान्या की जिंदगी उस छोटे से कसबे के साधारण लोगों से बहुत ऊपर उठ चुकी है और वह तो कभी भी साधारण लोगों जैसी थी ही नहीं. सो, उस के मांपिताजी ने भी उसे छूट दे दी थी कि जैसे चाहे, अपनी जिंदगी वह जी सकती है. देव और सान्या एकदूसरे के बहुत करीब होते जा रहे थे.

देव जबतब सान्या के घर आतेजाते दिखाई देता था. कभीकभी तो रात को भी वहीं रहता था. धीरेधीरे दोनों साथ ही रहने लगे थे और यह खबर सान्या की मां तक भी पहुंच चुकी थी. यह सुन कर उस की मां को तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. जब मां ने सान्या से पूछा तो वह कहने लगी, ‘‘मां, यहां मुंबई में ऐसे ही रहने का चलन है, इसे लिवइन रिलेशन कहते हैं और यहां ऐसे रहने पर कोई रोकटोक नहीं. मेरे दूसरे दोस्त भी ऐसे ही रहते हैं और मां, मैं ने और देव ने शादी करने का फैसला भी कर लिया है.’’

मां ने जवाब में कहा, ‘‘अब जब फैसला कर ही लिया है तो झट से विवाह भी कर लो और साथ में रहो, वरना समाज क्या कहेगा?’’ सान्या बोली, ‘‘हां मां, तुम ठीक ही कहती हो, मैं देव से बात करती हूं और जल्द ही तुम्हें शादी की खुशखबरी देती हूं.’’

अगले दिन जैसे ही देव ने सान्या के मुंह से शादी की बात सुनी, वह कहने लगा, ‘‘हांहां, क्यों नहीं, शादी तो करनी ही है लेकिन इतनी जल्दी भी क्या है सान्या, थोड़ा हम दोनों और सैटल हो जाएं, फिर करते हैं शादी. तुम भी थोड़ा और नाम कमा लो और मैं भी. फिर बस शादी और बच्चे, हमारी अपनी गृहस्थी होगी.’’

देव की प्यारभरी बात सुन कर सान्या मन ही मन खुश हो गईर् और अगले ही पल वह उस की आगोश में आ गई. सान्या को पूरा भरोसा था अपनेआप पर और उस से भी ज्यादा भरोसा था देव पर. वह जानती थी कि देव पूरी तरह से उस का हो चुका है.

अब उन का मिलनाजुलना पहले से ज्यादा बढ़ गया था, कभी मौल में, तो कभी कैफे में दोनों हाथ में हाथ डाले घूमते नजर आ ही जाते थे. उन का प्यार परवान चढ़ने लगा था. सान्या तो तितली की तरह अपने हर पल को जीभर जी रही थी. यही जिंदगी तो चाहती थी वह, तभी तो उस छोटे से कसबे को छोड़ कर मुंबई आ गई थी और उस का सोचना गलत भी कहां था, शायद ही कोई विरला होगा जो मुंबई की चमकदमक और फिल्मी दुनिया की शानोशौकत वाली जिंदगी पसंद न करता हो.

अभी 2-3 महीने बीते थे और देव अब सान्या के फ्लैट में ही रहने लगा था. रातदिन दोनों साथ ही नजर आते थे. लेकिन यह क्या, देव अचानक से अब उखड़ाउखड़ा सा, बदलाबदला सा क्यों रहता है? सान्या देव से पूछती, ‘‘देव कोई परेशानी है तो मुझे बताओ, तुम्हारे व्यवहार में मुझे फर्क क्यों नजर आ रहा है? हर वक्त खोएखोए रहते हो. कुछ पूछती हूं तो खुल कर बात करने के बजाय मुझ पर झल्ला पड़ते हो.’’

देव ने जवाब में कहा, ‘‘कुछ नहीं, तुम ज्यादा पूछताछ न किया करो, मुझे अच्छा नहीं लगता है.’’

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