Monsoon Special: वह पूनम की रात-भाग 1

‘दिल ढूंढ़ता, है फिर वही… फुरसत के रात दिन…‘ सामने वाले मकान से आते इस गाने की धुन को सुन कर मैं जल्दी से छत पर आ गया. शायद कोई साउंड बौक्स पर या कैसियो से इस गाने की धुन को बजा रहा था.

‘‘वाह, कितना सुंदर…‘‘ मेरे मुंह से अनायास ही निकला. छत पर उस गाने की धुन और भी स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी. मैं चुपचाप खड़ा गाने की धुन को सुनने लगा.

उस धुन को सुन कर ऐसा लग रहा था, जैसे कानों के रास्ते दिल में कोई अमृतरस टपक रहा हो. ऊपर से मौसम भी काफी खुशगवार था. साफ आसमान, टिमटिमाते तारे, हौलेहौले बहती ठंडी हवाएं मन आनंदित हो उठा. तभी मैं ने देखा, ऊंचीऊंची इमारतों की ओट से बड़ा सा गोलगोल चमकता हुआ चांद, अपना चेहरा बाहर निकालने का इस तरह से प्रयास कर रहा है, जैसे कोई नईनवेली दुलहन शर्मोहया से लबरेज आहिस्ताआहिस्ता अपना घूंघट हटा रही हो. प्रकृति के इस खूबसूरत नजारे को देख कर मैं ठगा सा रह गया.

‘‘क्या देख रहे हो?‘‘ तभी अचानक पीछे से प्रीति की आवाज आई. उस की आवाज सुन कर क्षण भर के लिए मैं चौंक गया. फिर उसे देख कर मैं ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आओ, तुम भी देखो,  कितना खूबसूरत नजारा है न.‘‘

‘‘बहुत सुंदर है, आज पूनम की रात जो है.‘‘ प्रीति मेरे बगल में आ कर मुझ से सट कर खड़ी हो गई. फिर वह भी उस खूबसूरत नजारे को अपलक निहारने लगी.

‘‘ऐसी रात में अगर सारी रात भी जागना पड़ जाए, तो कुछ गम नहीं,‘‘ भावातिरेक में मैं ने प्रीति के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘‘तुम्हें वह पूनम की रात याद है न?‘‘ प्रीति अपनी झील जैसी झिलमिलाती आंखों से मेरी ओर देखती, जैसे मुझे कुछ याद दिलाने का प्रयास करते हुए बोली.

‘‘उस रात को कैसे भूल सकता हूं? उस रात तो जैसे चांद ही धरती पर उतर आया था…‘‘ मैं ने गंभीर हो कर उदासी भरे स्वर में कहा.

उस गाने की धुन अभी भी सुनाई पड़ रही थी. चांद भी इमारतों की ओट से निकल आया था. उस की चांदनी से आंखों की ज्योत्सना बढ़ती जा रही थी पर उस रात की याद आते ही, मेरे साथसाथ प्रीति के चेहरे पर भी उदासी की झलक उतर आई. मैं ने देखा, इस के बावजूद उस के होंठों पर हलकी सी मुसकान उभर आई थी, लेकिन आंखों में तैर आए पानी को वह छिपा नहीं पाई. मैं ने उस के कंधे पर हौले से हाथ रख कर जैसे ढांढ़स बंधाने का प्रयास किया.

उस रात मेरी आंखों में नींद ही नहीं थी. बस, बिस्तर पर बारबार मैं करवटें बदल रहा था और अपने कमरे की खुली खिड़की से बाहर के नजारे को निहारे जा रहा था.

बाहर चांदी की चादर की तरह पूनम की चांदनी बिखरी हुई थी, जिस में सभी नजारे नहा रहे थे. ऐसी खूबसूरती को देख मेरे मन में आनंद की लहरें उमड़ रही थीं. खिड़की के ठीक सामने, आंगन में लगे जामुन की नईनई कोमल पत्तियों की चमक ऐसी थी, जैसे उन पर पिघली हुई चांदी की पतलीपतली परत चढ़ा दी गई हो. फिर हवा के झोंकों से अठखेलियां करती, उन पत्तियों की सरसराहट से मन में मदहोशी के साथ दिल में गुदगुदी सी पैदा हो रही थी.

दादी खाना खाने के बाद जैसा कि अकसर गांव में होता है, सीधे अपने कमरे में चली गई थीं. शायद वे सो रही थीं. रात के 9 बज चुके थे इसलिए चारों तरफ गहरी खामोशी थी. बस, कभीकभार कुत्तों के भौंकने की आवाज आती थी और दूर मैदानों में टुंगरी के आसपास उस निशाचरपक्षी के बोलने की आवाज सुनाईर् पड़ रही थी, जिसे कभी देखा तो नहीं, पर दादी से उस के बारे में सुना जरूर था, ‘रात को चरने वाली उस चिडि़या का नाम ‘टिटिटोहों‘ है. वह अधिकतर चांदनी रात में ही निकलती है.‘ उस का बोलना पता नहीं क्यों मेरे मन को हमेशा ही मोहित सा कर देता. लगता जैसे वह चांदनी रात में अपने साथ विचरण करने के लिए बुला रही हो.

मेरे दिल की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी, मन अधीर होता जा रहा था. उस वक्त एकएक पल जैसे घंटे के समान लग रहा था पर घड़ी के कांटे को मेरी तड़प से शायद कोई मतलब नहीं था. उस की चाल इतनी सुस्त जान पड़ रही थी कि अपने पर काबू रखना मुश्किल होता जा रहा था. फिर बड़ी मुश्किल से जब घड़ी के मिनट का कांटा तय समय पर जा कर अटका, तो मैं उसी बेचैनी के साथ जल्दी से

अपने बिस्तर से उठ कर आहिस्ताआहिस्ता अपने कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया.

गांव के बाहर स्थित मंदिर के पास प्रीति पहले से मेरा इंतजार कर रही थी. प्रीति को देखते ही खुशी से मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई, लेकिन अनजानी आशंका से थोड़ी घबराहट भी हुई, ‘‘कोई गड़बड़ तो नहीं हुई न,‘‘ पास पहुंचते ही मैं ने धीरे से पूछा था.

‘‘कोई गड़बड़ नहीं हुई. सभी सो चुके थे. मैं बड़ी सावधानी से निकली हूं,‘‘ प्रीति मुसकरा कर बोली थी.

‘‘तो चलो, चलते हैं,‘‘ मैं ने उत्साहित हो कर प्रीति का हाथ थामते हुए कहा.

फिर दोनों एकदूसरे का हाथ थामे टुंगरी की ओर जाने लगे. रास्ते में दोनों तरफ पुटूस के झुरमुट थे, जिन में जुगनुओं की झिलमिलाती लड़ी देखते बन रही थी. ऊपर चांदनी रात की खूबसूरती, दोनों के मन को जैसे बहकाए जा रही थी.

 

Monsoon Special: वह पूनम की रात- भाग 2

दोनों जब खुले मैदान में पहुंचे, तो नजारा और भी खूबसूरत हो उठा. साफ नीला आसमान, टिमटिमाते तारे और बड़ा गोल सा चांदी जैसा चमकता चांद, जिस की बरसती चांदनी में पूरी धरती जैसे स्नान कर रही थी और मंदमंद बहती हवा मन को जैसे मदहोश किए जा रही थी.

अचानक बेखुदी में दोनों के कदम तेज हो गए और एकदूसरे का हाथ पकड़, मैदान में दौड़ने लगे. अब टुंगरी भी बिलकुल पास ही थी. वह निशाचर चिडि़या नजदीक ही कहीं आवाज दे रही थी. तभी उस के पंख फड़फड़ाए और वह उड़ती नजर आई. मेरा दिल एक बार फिर से धक रह गया.

‘‘प्रीति, मुझे तो यकीन नहीं हो रहा है कि यह सब हकीकत है. कहीं यह ख्वाब तो नहीं,‘‘ मैं ने प्रीति की नाजुक हथेली को जोर से भींच कर कहा. अपने बहकते जज्बातों को मैं जैसे रोक नहीं पा रहा था.

‘‘ख्वाब ही तो है, जो हम दोनों हमेशा से देखते रहे थे. ऐसी चांदनी रात में एकदूसरे के हाथों में हाथ डाले, कुदरत के ऐसे खूबसूरत नजारे को निहारते, एकदूसरे में खोए, जब सारी दुनिया सो रही हो, हम जागते रहें…‘‘

‘‘सच कहा तुम ने, मैं ने ऐसी ही रात की कल्पना की थी.‘‘

‘‘तो फिर अब मुझे वह गाना सुनाओ, मोहम्मद रफी वाला, जो तुम हमेशा गुनगुनाते रहते हो.‘‘

‘‘कौन सा खोयाखोया चांद वाला…‘‘ मैं ने मजाकिया लहजे में कहा.

‘‘हां, गाओ न,‘‘ प्रीति खुशी से मुसकराते हुए आग्रहपूर्वक बोली.

‘‘एक शर्त पर,‘‘ मैं ने रुक कर कहा.

‘‘क्या,‘‘ कह कर प्रीति मुझे घूरने लगी.

‘‘तुम्हें भी उस फिल्म का गाना सुनाना होगा, जो मैं ने तुम्हें नैट से डाउनलोड कर के दिया था,‘‘ मैं ने मुसकरा कर कहा.

‘‘फिल्म ‘पाकीजा‘ का ‘मौसम है आशिकाना…‘‘ प्रीति मुसकराते हुए बोली.

‘‘हां,‘‘  कह कर मैं फिर से मुसकराया.

‘‘हमें मंजूर है, हुजूरेआला,‘‘ प्रीति भी जैसे चहक उठी.

उस चांदनी रात में गुनगुनाते हुए दोनों एकदूसरे के हाथों में हाथ डाले आगे बढ़ते जा रहे थे. कुछ देर बाद दोनों टुंगरी के ऊपर थे. जहां से चांदनी रात की खूबसूरती अपने पूरे शबाब में दिख रही थी. चारों तरफ पूनम की चांदनी दूर तक बिखरी हुई थी. आसमान अब भी साफ था, लेकिन कहीं से आए छोटेछोटे आवारा बादल चांद से जैसे जबरदस्ती आंखमिचौली का खेल रहे थे.

उस दिलकश खेल को देख कर दोनों के आनंद की सीमा न रही, मन नाच उठा. फिर उस जगह की खामोशी में, रात के उस सन्नाटे में एकदूसरे के धड़कते हुए दिल की आवाज सुन कर अंगड़ाइयां लेते मीठे एहसासों से, अंदर कहां से यह आवाज आ रही थी… जैसे यह चांद कभी डूबे नहीं, यह वक्त यहीं रुक जाए, यह रात कभी खत्म न हो. काश, यह दुनिया इतनी ही सुंदर होती, जहां कोईर् पाबंदी, कोई रोकटोक नहीं होती. सभी एकदूसरे से यों प्रेम करते. इस रात में जो शांति, जो संतोष का एहसास है, ऐसा ही सब के दिलों में होता. किसी को किसी से कोई बैर नहीं होता.

‘‘प्रीति, तुम्हें नहीं लगता हम दोनों जैसा सोचते हैं, ऐसा काम तो कवि या लेखक लोग करते हैं यानी कल्पना की दुनिया में जीना. वे ऐसी दुनिया या माहौल का सृजन करते हैं, जो आज के दौर में संभव ही नहीं है.‘‘

‘‘संभव है, चाहे नहीं, पर सचाई तो सचाई होती है. जिंदगी इस चांदनी रात के समान ही होनी चाहिए, शीतल, बिलकुल स्निग्ध, एकदम तृप्त. फिर सकारात्मक सोच ही जीवन को गति प्रदान करती है. जहां उम्मीद है, जिंदगी भी वहीं है.‘‘

‘‘अरे वाह, तुम्हारी इन्हीं बातों से तो मैं तुम्हारा इतना दीवाना हूं. तुम इतनी गहराई की बातें सोच कैसे लेती हो?‘‘

‘‘जब जिंदगी में किसी से सच्चा प्यार होता है, तो मन गहराई में उतरने की कला अपनेआप सीख लेता है. फिर जिसे साहित्य से भी प्यार हो, उसे सीखने में अधिक समय नहीं लगता.‘‘

‘‘प्रीति, अगर तुम मेरी जिंदगी में न आती, तो शायद मैं आज गलत रास्ते में भटक गया होता. मुझे अधिक हुड़दंगबाजी तो कभी पसंद नहीं थी. मगर आधुनिकता के नाम पर अपने दोस्तों के साथ, पौप अंगरेजी गाने सुनना और इंटरनैट पर गंदी फिल्में देखने का नशा तो चढ़ ही चुका था. अगर इस बार परीक्षाओं में मेरा बढि़या रिजल्ट आया है, तो सिर्फ तुम्हारी वजह से. अब मैं अपने उन दोस्तों से भी शान से कहता हूं कि क्लासिकल गाने एक बार दिल से सुन कर देखो, उस के रस में, उस के जज्बातों में डूब कर देखो, तुम्हें भी मेरी तरह किसी न किसी प्रीति से जरूर प्यार हो जाएगा.‘‘

‘‘तुम अब वे फिल्में तो कभी नहीं देखते न?‘‘ प्रीति ने अचानक इस तरह से प्रश्न किया, जैसे कोई अच्छी शिक्षिका अपने छात्र को उस का सबक फिर से याद दिला रही हो.

मैं ने भी डरने का नाटक करते, उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘अरे नहीं, कभी नहीं… अब देखूंगा भी तो तुम्हारे साथ शादी के बाद ही.‘‘

‘‘तो अभी से मन में सब सोच कर रखा है?‘‘ शिक्षिका के होंठों पर मुसकान थी, लेकिन नाराजगी स्पष्ट झलक रही थी.

‘मुझे कहीं डांट न पड़ जाए‘ यह सोच कर मैं ने झट से अपने दोनों कान पकड़ कर कहा, ‘‘अरे, नहीं बाबा, जिंदगी में कभी नहीं देखूंगा. मैं तो बस, यों ही मजाक कर रहा था पर तुम से एक बात कहने की इच्छा हो रही है.‘‘

‘‘क्या…‘‘ अपनी आंखें फिर बड़ी कर प्रीति मुझे घूरने लगी.

उसे गुस्साते देख कर, मैं ने मुसकरा कर कहा, ‘‘यही कि तुम अभी और भी खूबसूरत लग रही हो. सच कहता हूं, उस चांद से भी खूबसूरत…‘‘

‘‘अच्छा जी, तो अब  मुझे बहकाने की कोशिश हो रही है,‘‘ प्रीति फिर मुंह बना कर बोली पर चेहरे पर मुसकान थी.

‘‘सच कहता हूं, जब भी तुम्हारी ये झील जैसी आंखें और गुलाब की पंखडि़यों जैसे होंठों को देखता हूं, तो अपने दिल को समझा नहीं पाता हूं. कम से कम एक किस तो दे दो,‘‘ मैं याचना कर बैठा.

 

सब दिन रहत न एक समान

बात कोरोना के आने के एक साल पहले की है. हम अपने एटीएम कार्ड का पिन सेट करने के लिए भटक रहे थे. बैंकों में दौड़दौड़ कर, सरकारी बैंक के नखरे उठाउठा कर थक गए थे. डिजिटल इंडिया कहने और व्यावहारिक रूप से होने में जरा फर्क होता है. दिन को समय मिल नहीं पाता था, सो रात को हम 2 सहेलियां और हमारे 2 पुरुष सहयोगी एटीएम में पहुंचे.

उस समय रात के करीब 8 बजे होंगे. पर एटीएम का सिक्योरिटी गार्ड अपनी कुरसी पर लुढ़का हुआ खर्राटे मार रहा था.

मेरी सहेली और एक पुरुष सहयोगी बाहर खड़े थे, जबकि मैं और दूसरा पुरुष सहयोगी एटीएम के भीतर आ गए थे.

यह कोरोना काल तो नहीं, परंतु पराली काल जरूर था और दिल्ली में पराली के कहर से तो हर कोई वाकिफ है. सो, वायु में घुले पौल्यूशन के कहर और पराली के जहर से बचने के लिए हम ने अपनी नाक पर स्कार्फ बांधा हुआ था. डब्ल्यू के फैशनेबल स्कार्फ को सिर्फ नाक पर बांधना उस के ब्रांड और खूबसूरती का अपमान करना है. सो, मैं ने अपने स्कार्फ को हिजाब स्टाइल में सिर पर भी बांध रखा था, जिस से केवल मेरा फोरहेड और आंखें ही हिजाब की जद से बाहर थे, जहरीली हवा और जहरीली नजर से बचाव के लिए प्रदूषण पीड़ित शहरों में स्कार्फ का यह स्टाइल काफी पोपुलर है.

खैर, चूंकि हम औफिस से ही इस तरफ आ गए थे, सो मेरे सहयोगी के हाथ में एक बैग था, जिसे उन्होंने साइड में रखा और इसी के साथ सिक्योरिटी गार्ड की नींद खुल गई. आंखें खुलते ही उस की नजर हम पर पड़ी. डर, संशय और विस्मय के मिलेजुले भावों के साथ वह कुरसी से कूद कर खड़ा हो गया. तनिक कांपती हुई आवाज में यत्नपूर्वक गरजते हुए वह हम से स्कार्फ हटाने के लिए कहने लगा. मुंह और नाक से स्कार्फ हटाने पर भी उस की तसल्ली नहीं हुई और इतनी मेहनत से नेट पर से सीख कर बांधा हुआ हिजाब मुझे उस डरपोक सिक्योरिटी गार्ड की वजह से हटाना पड़ा.

खैर, जिस काम के लिए एटीएम गए थे, वह काम नहीं हुआ और अगले दिन फिर हमें सरकारी बैंक जाना पड़ा. सुबह के सवा दस बज रहे थे और धूप ऐसी चिलचिला रही थी मानो समूचे ओजोन परत को खुरच कर सारी दुनिया की बिजली आसमान पर टांग दी गई हो. मौसम का तकाजा था, सो सनग्लास जरूरी था.

हां, रात वाले हादसे की वजह से स्कार्फ को मैं ने पहले ही पर्स में मोड़ कर रख दिया था. पर उस से क्या, सरकारी जगहों पर पब्लिक को परेशान करने वाले फालतू के चोंचले न हों, तो उस के सरकारी होने पर शक होने लगता है. वही हुआ भी, ज्यों ही हम गेट पर पहुंचे, सिक्योरिटी गार्ड ने घड़ी दिखा कर कहा कि आधे घंटे बाद बैंक खुलेगा. हमें उस चिलचिलाती धूप में खड़ा कर के वह गार्ड पूरी तन्मयता के साथ चेयर से सोफे और सोफे से चेयर पर तशरीफ रखता रहा. ठीक 11 बजे ग्रिल सरका कर आंखों में सरकारी काम को पूरी मुस्तैदी से अंजाम देने के लिए खुद को ही शाबाशी देने का भाव लिए अहसान करने वाली आवाज में उस ने हमें भीतर आने को कहा. अभी हम ने पांव बढ़ाए भी नहीं थे कि उस ने सनग्लास उतार कर आंखें देखने की इच्छा जाहिर कर दी. क्योंकि ऐसे में हम कुछ और नहीं कर सकते. सो, हम ने वह भी किया. अब वह कुछ और फरमाता, उस के पहले ही हम जल्दी से भीतर की तरफ हो लिए और कई घंटों तक इस टेबल से उस टेबल, उस टेबल से इस टेबल, को होते रहे और सरकारी व्यवस्था के अत्याचार पर मन ही मन रोते रहे.

इस दौड़भाग का अंत फिर वही हुआ, जो हम सब के साथ होता है कि निरंकुश नौकरशाही भ्रष्टाचरण में आम पब्लिक केवल रोता है. पब्लिक को जितनी ज्यादा परेशानी हो, सरकारी मुलाजिम उतनी गहरी नींद सोता है. सच तो यह है कि जब तक चार दिन न दौड़ो, यहां कोई काम नहीं होता है.

और अब जरा एक नज़र कोरोना काल पर – हमें पैसे निकालने उसी एटीएम में जाना पड़ा, जहां सिक्योरिटी गार्ड ने स्कार्फ उतरवाया था. हम ने स्कार्फ, मास्क, ग्लव्स सबकुछ डाला हुआ था थैले में, सैनिटाइजर भी था, सारे सीन वही थे, पर सिक्योरिटी गार्ड न डरा, न घबड़ाया, अपनी कुरसी पर पड़ेपड़े सोता रहा. अपनी ड्यूटी के महत्त्व पर मूल्यहीनता के खर्राटे बोता रहा. हम ने बिना किसी रोकटोक के अपना काम किया और मन ही मन सोचा कि कोरोना ने चाहे जितनी तकलीफ दी हो, पर कई लोगों को निडर जरूर बना दिया. कितने आम को खास, कितने खास को आम बना दिया… कहीं पर जीवन मुश्किल तो कहीं पर आसान बना दिया.

मेरा भी मी टाइम: कालेज के अलबम में ऐसा क्या देख लिया शिवानी ने

‘‘शिवानीमेरी शर्ट कहां है?’’ पुनीत ने चिल्लाते हुए पूछा.

‘‘अरे आप भी न… यह तो रही. बैड पर,’’ शिवानी कमरे में आते हुए बोली.

‘‘शर्ट तो बस एक बहाना था, तुम इधर आओ न, पूरा दिन इधरउधर लगी रहती हो,’’ पुनीत ने शिवानी को अपनी बांहों में भरते हुए शरारत से कहा.

‘‘छोड़ो भी, क्या कर रहे हो… अभी बहुत काम है मुझे,’’ शिवानी ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

‘‘भाभी वह… सौरीसौरी. आप दोनों लगे रहो, मैं चलती हूं,’’ पावनी कमरा खुला देख सीधा अंदर आ गई, तो दोनों थोड़ा सकपका से गए.

‘‘अरे, नहीं… ऐसा कुछ नहीं. कुछ काम था पावनी?’’ अर्पिता ने अपनी ननद से पूछा.

‘‘भाभी, नीचे शायद नई काम वाली आई है. मां बुला रही हैं आप को,’’ पावनी ने कहा.

शिवानी इस घर की बहू नहीं इस घर की आत्मा है. अगरबत्ती की खुशबू की तरह इस घर में रचबस गई. 8 साल हो गए हैं शिवानी और पुनीत की शादी को हुए. आते ही शिवानी ने एक सुघड़ गृहिणी की तरह घर की सारी जिम्मेदारियां संभाल लीं. शिवानी के सासससुर उस की तारीफ करते नहीं थकते, वहीं पावनी भी उस की ननद कम छोटी बहन ज्यादा है.

शादी के कुछ ही समय बाद शिवानी की सास को पैरालाइसिस का दौरा पड़ा और उन के शरीर के आधे हिस्से ने काम करना बंद कर दिया पर यह शिवानी की मेहनत का ही असर था कि 6 महीनों के भीतर ही उस की सासूमां की तबीयत में जबरदस्त सुधार हुआ. वह बिलकुल बेटी की तरह उन का खयाल रखती. सास भी उसे बेटी से कम नहीं समझती थीं. ससुरजी शुगर के मरीज थे, पर शायद ही कोई ऐसा दिन गया हो जब उस ने दवा देने में देरी की हो. शिवानी इस घर में रचबस गई थी.

‘‘मम्मा, कल स्कूल में साइंस प्रोजैक्ट है. टीचर ने कहा है कल सब बच्चे अपना प्रोजैक्ट सबमिट करवाएं,’’ विभोर ने कहा.

‘‘उफ, फिर से ये कमबख्त प्रोजैक्ट… पता नहीं ये स्कूल वाले बच्चों को पढ़ाते हैं या उन के पेरैंट्स को. कभी यह प्रोजैक्ट तो कभी वह प्रोजैक्ट,’’ शिवानी को खीज सी हुई.

‘‘बहू तुम्हारा फोन आया है,’’ शिवानी की सास की आवाज आई.

‘‘आई मम्मी,’’ शिवानी ने आवाज दी.

‘‘बेटा तुम ड्रैस चेंज करो मैं आती हूं,’’ शिवानी ने विभोर का गाल थपथपाया.

‘‘हैलो शिवानी मैं ज्योति. अगले हफ्ते कालेज रियूनियन है, तू आ रही है न? कितना मजा आएगा… हम सब अपने पुराने दिन याद करेंगे. कितने मजे किए हैं हमने कालेज में… देख तू प्लान खराब मत करना इस बार,’’ ज्योति ने कहा.

‘‘कालेज रियूनियन… थोड़ा मुश्किल है ज्योति… बहुत काम है घर में… समय ही कहां मिल पाता है यार,’’ शिवानी ने कहा.

‘‘शिवानी तू तो सच में बदल गई है… कभी टाइम ही नहीं होता तेरे पास. कहां गई हमारे कालेज की वह रौकस्टार? हम ने तो सोचा था बड़े दिनों बाद तुझ से गिटार पर वही गाना फिर से सुनेंगे… तुझे पता है श्रेया अमेरिका से आ रही है और तू है कि यहीं रहती है. फिर भी तुझे समय ही नहीं… चल देख कोशिश करना,’’ कह ज्योति ने फोन काट दिया.

‘‘कालेज रियूनियन’’ वह बुदबुदाई और फिर से काम में लग गई. विभोर को खाना खिला कर फिर रात के खाने की तैयारी में लग गई. रात के खाने के बाद थकहार कर कमरे में आई. कपड़े चेंज करने के लिए अलमारी खोली तो अचानक पुराना कालेज का अलबम दिखाई दिया.

‘‘मम्मी, नींद आ रही है. चलो न,’’ विभोर उस का दुपट्टा पकड़ कर बोला.

शिवानी ने अलबम साइड में रखा और विभोर को सुलाने लग गई. उस के सोने के बाद उस ने अलबम उठाया. कालेज की पुरानी यादें फिर से ताजा हो गई. वह अल्हड़ खिलखिलाती लड़की पूरे कालेज में रौकस्टार के नाम से पहचानी जाती थी. न जाने कितने लड़के उस की इस अदा पर फिदा थे, मगर मजाल है उस ने किसी को भाव दिया हो.

म्यूजिक का शौक तो उसे बचपन से था. उस पर जब से पापा ने गिटार ला कर दिया था वह सच की रौकस्टार बनी रहती थी. कालेज में कोई भी फंक्शन हो या कोई भी इंटर कालेज प्रोग्राम प्रतियोगिता वही हमेशा पहले स्थान पर आती. उस ने अपने शिमला ट्रिप के फोटो देखे. कैंप में बोन फायर था और वह गिटार पर अपना गाना गा रही थी…

‘‘हम रहें या न रहें कल,

पल याद आएंगे ये पल,

पल ये हैं प्यार के पल,

चल आ मेरे संग चल,

चल… सोचें क्या… छोटी सी है ये जिंदगी.’’

शायद वह उस दिन गा नहीं रही थी, उन पलों को पूरी शिद्दत से जी रही थी.

‘‘क्या हुआ आज सोने का इरादा नहीं है, घड़ी देखो रात के 11 बज गए हैं.’’ पुनीत ने कहा तो मानो वह उस पल से अचानक लौट आई.

‘‘हां,’’ शिवानी ने कहा और फिर कपड़े बदलने चली गई.

अगले दिन उठ सब का ब्रेकफास्ट तैयार किया. विभोर को नहला कर स्कूल भेजा. कामवाली के भी आने का टाइम हो गया. उस ने सारे झूठे बरतन धोने के लिए रखे. पापाजी के लिए चाय चढ़ाई और मशीन में कपड़े डाल दिए. घड़ी में देखा 10 बजे रहे थे. पुनीत 11 बजे औफिस जाएंगे. उन के लिए लंच की तैयारी करनी है. सुबह शिवानी किसी रोबोट से कम नहीं होती. 11 बज गए. लगता है आज फिर कामवाली नहीं आएगी. लंच का डब्बा तैयार किया. वह कमरे में किसी काम से गई. कल रात उस ने वह अलबम ड्रैसिंग टेबल पर ही छोड़ दिया था. उस ने उसे उठाया. एक बार खोला और अपनेआप को आईने में देखा.

‘‘कहां गई वह शिवानी,’’ अपनेआप को आईने में देख शिवानी सोच रही थी. ग्रैजुएशन होने के बाद पिताजी की तबीयत थोड़ी ठीक नहीं रहती. उन्होंने उस की शादी का निर्णय लिया और जब पुनीत का रिश्ता आया, तो उस ने हां कह दिया. इस घर में आने के बाद एक चंचल सी लड़की न जाने कब इतनी जिम्मेदार बन गई.

ऐसा नहीं है कि उसे किसी बात की कमी है, फिर भी आज उस की मुसकान तभी है जब सब के चेहरे पर खुशी है. उसे तो याद भी नहीं कब उस ने आखिरी बार अपने गिटार को छुआ था. इतना मशगूल हो गई थी वह इस नई जिंदगी में कि उस ने तो गुनगुनाना ही छोड़ दिया.

‘‘शिवानी,’’ पुनीत की आवाज थी. वह झट से दौड़ी चली गई.

‘‘शिवानी… मेरे औफिस का टाइम हो रहा है. लंच का डब्बा कहां है?’’ पुनीत ने पूछा.

वह किचन में गई और लंच का डब्बा ला कर पुनीत को पकड़ा दिया.

‘‘भाभी, आज मैं मूवी जा रही हूं, शायद आने में थोड़ी देर हो जाए. प्लीज तुम देख लेना,’’ पावनी ने शिवानी पर बांहों का घेरा बनाते हुए कहा.

‘‘हां, पर ज्यादा देर मत करना,’’ शिवानी ने कहा.

‘‘लव यू मेरी प्यारी भाभी,’’ पावनी ने शिवानी के गाल को चूमते हुए कहा. शिवानी के चेहरे पर एक मुसकान आ गई. फिर वह अपने कामों में लग गई. मगर आज उस का मन तो कहीं और ही था.

‘‘शिवानी, शिवानी बेटा… देखो दूध बह रहा है,’’ उस की सास ने कहा.

‘‘ओह,’’ शिवानी ने कहा.

‘‘क्या हुआ बेटा?’’ तबीयत तो ठीक है? उन्होंने पूछा.

‘‘हां, मम्मी,’’ शिवानी ने कहा.

विभोर स्कूल से आया तो उस का चेहरा लटका था. शिवानी ने पूछा तो वह रोने लगा. ‘‘मम्मी, आप बिलकुल अच्छी नहीं हो. आप को मैं ने कल प्रोजैक्ट को कहा. आप ने बनाया नहीं. टीचर ने डांटा,’’ शिवानी को याद आया कि कल उस से विभोर ने कहा था, मगर वह भूल ही गई. विभोर का चेहरा बुझ गया.

रात के 8 बज गए. पुनीत के आने का समय था. शिवानी डाइनिंग टेबल पर खाना लगा रही थी. तभी पुनीत भी आ गए.

‘‘चलिए आप भी हाथ धो लीजिए, खाना तैयार है,’’ शिवानी ने पुनीत से कहा.

पावनी भी आ गई थी.

‘‘इतनी देर कैसे हुई पावनी?’’ मांजी ने पूछा.

‘‘वह कुछ काम था… भाभी को बता कर गई थी,’’ पावनी ने कहा.

‘‘शिवानी, तुम ने बताया नहीं,’’ सासूमां ने पूछा.

‘‘मैं भूल गई,’’ शिवानी ने कहा.

‘‘शिवानी, लगता है तुम कुछ ज्यादा ही भुलक्कड़ हो गई हो. आज तुम ने लंच में मुझे भरे हुए डब्बे की जगह खाली टिफिन पकड़ा दिया,’’ पुनीत ने कहा.

‘‘पता है पापा, मम्मी तो मेरा प्रोजैक्ट करवाना भूल गईं… टीचर ने डांटा मुझे,’’ विभोर ने मुंह बनाते हुए कहा.

शिवानी की आंखों से आंसू छलक आए. वह रोने लगी. किसी को भी यह उम्मीद नहीं थी.

‘‘अरे पुनीत हड़बड़ी में हो गया होगा और विभोर तू खेलने में लग गया होगा, तूने याद दिलाया दोबारा मम्मी को?’’ सासूमां ने कहा.

‘‘नहीं मम्मी, किसी की कोई गलती नहीं. मेरी ही गलती है सारी… शायद मैं ही एक परफैक्ट बहू नहीं हूं, एक अच्छी मां नहीं हूं, मैं कोशिश करती हूं पर नहीं कर पाती… मुझे माफ कर दीजिए…

मैं आप की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई,’ शिवानी ने सुबकते हुए कहा.

‘‘नहीं बेटा, तू तो हम सब की जान है,’’ उस की सास ने कहा पर आज शिवानी के आंसू थम ही नहीं रहे थे.

‘‘पुनीत, शिवानी बिटिया को कमरे में ले जा बेटा,’’ शिवानी के ससुरजी ने कहा.

सब शिवानी का उदास चेहरा देख हैरान थे. किसी को भी शिवानी से कोई शिकायत नहीं थी. सब के मन में एक ही बात थी कि अचानक शिवानी के साथ ऐसा क्या हुआ?

3 दिन बाद शिवानी का जन्मदिन आने वाला था. सब सदस्य साथ बैठे और सोचा कि अचानक शिवानी को क्या हो गया. कुछ बात हुई और इस बार परिवार वालों ने सोचा कि यह जन्मदिन उस के लिए कुछ खास होगा.

‘‘पावनी क्या कर रही हो तुम?’’ शिवानी ने पूछा.

‘‘भाभी तुम आंखें मत खोलना बस,’’ पावनी ने अपने हाथों से शिवानी की आंखों को बंद कर रखा था.

सरप्राइज. उस ने देखा हौल पूरा उस की पसंद के पीले गुलाबों से सजाया हुआ था. सामने टेबल पर एक बड़ा सा केक रखा था. सभी उस का इंतजार कर रहे थे.

‘‘शिवानी बेटा, यह तुम्हारे लिए,’’ उस के ससुरजी ने दीवान की तरफ इशारा करते हुए कहा.

एक बड़ा सा बौक्स सामने दीवान पर पड़ा था.

‘‘देखो तो सही मम्मी,’’ विभोर आंखें टिमटिमाते हुए बोला.

शिवानी ने अपना तोहफा खोला तो उस की आंखों से आंसू बह निकले.

इस में उस के लिए नया गिटार था.

‘‘शिवानी, जब से तुम इस घर में आई हो तुम ने सारे घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली. पर हम सब शायद अपनी जिम्मेदारी भूल गए थे. तुम ने हम सब का तो खयाल रखा पर उस पुरानी शिवानी को भुला दिया जो चहकती रहती थी. घरपरिवार की जिम्मेदारियों का कोई अंत नहीं होता बेटा, पर हम सब चाहते हैं कि तुम कुछ समय खुद के लिए भी निकालो.

‘‘आज से हमें हमारी पुरानी शिवानी वापस चाहिए, जिस के गानों से यह घर गूंज उठता था, हम कोशिश करेंगे कि तुम्हारी थोड़ी जिम्मेदारियां हम कम कर सकें,’’ शिवानी की सास उस के सिर पर अपना हाथ रखते हुए बोली.

‘‘बहू, आज से विभोर को बसस्टौप तक ड्रौप करने की जिम्मेदारी मेरी, आते हुए मैं राशन का सामान भी ले आऊंगा. इसी बहाने मेरी वाक भी हो जाएगी,’’ शिवानी के ससुरजी ने कहा.

‘‘भाभी, आज से मैं विभोर को रोज 1 घंटा जरूर पढ़ाऊंगी,’’ पावनी बोली.

‘‘और हां बहू, किचन के छोटेमोटे काम मैं ही संभाल लूंगी. अगर तुम मुझे यों ही बैठा रखोगी तो मैं पड़ेपड़े बीमार हो जाऊंगी,’’ शिवानी की सास ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘आज से घर के सारे हिसाबकिताब की जिम्मेदारी और सभी बिल भरने का जिम्मा मेरा. चलो, अब ये आंसू बहाना बंद करो. 2 दिन बाद कालेज का रियूनियन है न… तुम बताओगी नहीं तो क्या हमें पता नहीं चलेगा… और हां, उस में हमारी रौकस्टार शिवानी को एक धांसू परफौर्मैंस जो देना है… तो सुनिए मेहरबान कद्रदान सब अपनी जगह ले लें, आ रही है हमारी रौकस्टार शिवानी,’’ पुनीत ने आंख मारते हुए कहा.

शिवानी की आंखों से और आंसू बह निकले. अब शिवानी गिटार बजा रही थी और पूरा घर कोरस में एकसाथ गा रहा था.

‘‘एकदूसरे से करते हैं प्यार हम…’’

विस्मृत होता अतीत

आखिर क्या कमी थी- भाग 2 : क्यों विजय की पत्नी ने किया उसका जीना हराम

‘‘पिछले कुछ महीनों से हम अलगअलग कमरे में सोते हैं. मेरी परछाईं से भी वह दूर भागती है. मेरी सूरत देखते ही जैसे उसे दौरा पड़ जाता है. मैं आत्महत्या ही कर लूंगा, मुझे ऐसा लगता है. तुम्हारे पास इसीलिए आया हूं. तुम नीरा से बात करो, पूछो उस से, वह क्या चाहती है…’’

विजय का कंधा थपथपा दिया मैं ने. थोड़ी देर के लिए खुद को विजय के स्थान पर रख कर सोचा, मेरी पत्नी अगर मेरी परछाईं से भी दूर भागे या मेरी सूरत देखते ही चीखनेचिल्लाने लगे तो क्या हो? जाहिर सा लगा कि कहीं मैं ने ही ऐसा कुछ किया है जो मेरी पत्नी के गले में कांटे सा फंस गया है.

नीरा भाभी जैसी संतोषी औरत बहुत कम नजरों के सामने आती हैं. जब वे ब्याह कर आई थीं तब ब्याहने लायक विजय की एक बहन भी घर में थी. पिता का साया उठ चुका था. पूरा घर विजय के कंधों पर था. अच्छा वर मिल गया तो एक क्षण भी नहीं लगाया था, भाभी ने अपनी कोरी, अनछुई साडि़यां और गहने ला कर विजय के सामने रख दिए थे.

भाभी ने बड़ी सहजता से अपना सब बांट लिया था इस परिवार के साथ. नीरा भाभी का निष्कपट रूप किसी गहने का मोहताज नहीं था, फिर भी एक शाम उन के कानों में छोटीछोटी चमकती बालियों को देखा तो सहसा मेरे होंठों से निकल गया था, ‘‘भाभी, आज कुछ बदलाबदला सा है आप में?’’

‘‘भैया, नई बाली पहनी है. थोड़ेथोड़े रुपए बचा कर आज ही लाई हूं.’’

मन भर आया था मेरा. सच में भाभी पर बालियां बहुत खिल रही थीं और फिर जिस औरत ने अपने मायके का सारा सोना विजय की बहन पर कुरबान कर दिया था वही औरत पाईपाई जोड़ अपने लिए पुन: एक छोटा सा गहना संजो पाई थी और उसी में बहुत संतुष्ट भी थी.

इसी तरह जराजरा संजोतेसंजोते, पता नहीं कहांकहां अपना मन मारते नीरा भाभी पूरी तरह विजय के जीवन में रचबस गई थीं. मेरी पत्नी के साथ भी भाभी का गहरा जुड़ाव है. हैरान हूं कि मेरी पत्नी ने भी कभी कुछ नहीं बताया. अगर पतिपत्नी में कुछ दूरी होती तो कभी तो नीरा भाभी उसे बतातीं.

‘‘नीरा भाभी से मिले तुम्हें कितने दिन होे गए?’’ मैं ने शोभा से पूछा जो उस समय शीना को खाना खिला रही थी.

‘‘काफी समय हो गया है. पहले उन के बच्चों के पेपर चल रहे थे इसलिए मैं नहीं गई. फिर भाभी के मायके में कोई शादी थी उस में वे व्यस्त रहीं, उस के बाद मैं शीना की वजह से नहीं मिल पाई,’’ सहज ही थी शोभा. सहसा बोली, ‘‘हां, मैं ने फोन किया था पर ज्यादा बात नहीं हो पाई थी…चलिए, आज चलें उन के घर.’’

मैं बिना कुछ बात बढ़ाए मान गया. शोभा को कुछ नहीं बताया क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि वह पहले से ही कोई पूर्वाग्रह पाल ले. यदि नीरा भाभी में कुछ समस्या होगी तो अपनेआप ही शोभा भांप जाएगी.

शाम को हम दोनों उन के घर पहुंचे. भाभी को देख धक्का सा लगा. बीमार लग रही थीं. मैं पछता उठा कि कैसा इनसान हूं मैं कि जिसे इतना मानता हूं उसी की सुध लेने में काफी समय लगा दिया. समीप जा कर भाभी की बांह पकड़ी, इस से पहले कि मैं कुछ पूछूं, भाभी मेरी छाती से लग कर चीखचीख कर रोने लगीं.

‘‘सब खत्म हो गया भैया…मेरा सब समाप्त हो गया.’’

शोभा भी घबरा गई. भाभी की पीठ सहलासहला कर दुलारने लगी. वह ऐसी कोई भी बात नहीं जानती थी जिस का सिरा पकड़ बात शुरू कर पाती. किसी तरह शांत किया हम ने भाभी को.

‘‘क्या हो गया, भाभी? ऐसा क्या हो गया है जो आप ऐसा कहने लगीं? कितनी कमजोर हो गई हैं आप, बीमार हैं क्या?’’

भाभी चुप थीं. टकटकी लगा कर कभी हमारा मुंह देखतीं और कभी शून्य में कुछ निहारतीं. शोभा बारबार प्रश्न करती रही.

‘‘मेरा घर उजड़ गया है प्रकाश भैया, आप का भाई अब मेरा नहीं रहा…’’

‘‘आप को ऐसा क्यों लगा, भाभी, आप ने ऐसा क्या देखा?’’

मैं शोभा से नजरें चुरा रहा था. मैं नहीं चाहता था, वह जाने कि मैं भी कुछ जानता हूं.

‘‘पुरुष का तो कार्यक्षेत्र ही बाहर होता है भाभी, पूरे दिन में आधे से ज्यादा समय वह घर के बाहर खटता है, किसलिए? अपने परिवार के लिए ही न. विश्वास की डोर पर ही वह दूरदूर तक उड़ता है और अगर आप ही डोर तोड़ देंगी तो कैसे चलेगा.’’

 

प्रेमी ने लगाया शक का चश्मा: भाग 1

झारखंड के जमशेदपुर जिले की पुलिस लाइन के सरकारी क्वार्टर नंबर- जे/5 में सिपाही सविता हेम्ब्रम अपनी बेटी गीता हेम्ब्रम (14 साल) और मां लखिमा मुर्मू के साथ रहती थी. उस का अब यही घरसंसार था. सविता बेटी और मां को देख कर जी रही थी. कई साल पहले सविता के पति कैलाश हेम्ब्रम की नक्सलियों ने गोलियों से भून कर हत्या कर दी थी. वह एक जांबाज और निडर सिपाही था.

पति की हत्या के बाद अनुकंपा के आधार पर सविता को पुलिस की नौकरी मिली थी. तभी से वह अपनी बूढ़ी मां और बेटी के साथ सरकारी क्वार्टर में रहती थी.

बात 19 जुलाई, 2022 की शाम की है. ड्यूटी कर के सविता जब थकीमांदी कमरे में लौटी तो बेटी ने उस के लिए एक प्याली चाय बनाई और उसे दे दी.

चाय खत्म हुई तो दुलारती हुई गीता मां की गोद में जा बैठी, ‘‘मां…मां… सुनो न.’’ छोटे बच्चों की तरह व्यवहार करती हुई गीता मां के गाल दोनों हाथों से सहलाती हुई बोली, ‘‘आज खाने में क्या बना रहो हो?’’

‘‘क्या खाओगी बेटा?’’ सविता जवाब देते हुए आगे बोलीं, ‘‘जो कहो, वहीं बना देती हूं.’’

‘‘खीर और पूरी… बहुत दिनों से खाने का मन हो रहा था, पका दो मां मेरे और नानी के लिए.’’

‘‘तुम ने तो मेरे मुंह की बात छीन ली बेटा,’’ चहकती हुई सविता आगे बोली, ‘‘मैं भी कई दिनों से सोच रही थी, लेकिन आलस्य के चलते बना नहीं रही थी. पर जब तुम ने फरमाइश कर ही दी है बेटा तो मैं तुम्हारे लिए तुम्हारी मनपसंद खीरपूरी जरूर बनाऊंगी.’’

बेटी को गोद से अलग करती हुई सविता सोफे से उठ खड़ी हुई, ‘‘मैं फ्रैश हो कर अभी आती हूं बेटा, तब तुम दोनों किचन में चल कर…’’

सविता फ्रैश होने के लिए वाशरूम की ओर लपकी. गीता वहां से उठी तो नानी के पास बगल में सोफे पर जा बैठी. थोड़ी देर बाद सविता वाशरूम से बाहर निकली और सीधे किचन में जा घुसी. फिर बेटी की पसंद का खाना बनाया और तीनों स्वाद ले कर मजे से खा कर सो गए.

अगली सुबह यानी 20 जुलाई को करीब साढ़े 10 बजे सविता जब ड्यूटी एसएसपी औफिस नहीं पहुंची तो ड्यूटी अफसर ने उस के मोबाइल पर कई बार काल किया. पूरी घंटी बजने के बावजूद सविता काल नहीं उठा रही थी. गुस्से में अफसर ने काल डिसकनेक्ट कर बुदबुदाते हुए उस की अनुपस्थिति लगा दी. वह एसएसपी औफिस में बतौर रीडर तैनात थी.

पूरा दिन बीत गया. सविता ने न तो किसी की काल रिसीव की और न ही किसी को काल की. उस के परिचित भी फोन करकर के थक चुके थे. उन की काल भी वह रिसीव नहीं कर रही थी.

दरवाजे पर लटका मिला ताला

सविता का एक दोस्त उस का पता लगाने के लिए उस के सरकारी क्वार्टर पहुंचा तो उस के कमरे के बाहर मुख्य दरवाजे पर ताला लटका मिला. यह देख कर उस ने पड़ोसियों से पूछा तो वे कुछ भी बताने में असमर्थ थे. अलबत्ता इतना जरूर कहा कि उन्होंने सुबह से ही उस के कमरे पर ताला लटका देखा.

सविता कब मां और बेटी को साथ ले कर निकली थी, किसी को कुछ पता नहीं चला तो फिर वह दोस्त अपने घर वापस लौट गया. लेकिन अचानक से उन के कहीं चले जाने से पता नहीं क्यों वह दोस्त परेशान हो गया था और उसे बड़ा अजीब भी लग रहा था क्योंकि कभी वह कहीं जाती थी तो उसे बता कर जाती थी.

क्वार्टर से आने लगी बदबू

खैर, 20 जुलाई, 2022 का पूरा दिन बीत गया. अचानक से सविता, मांबेटी के साथ कमरे पर ताला बंद कर कहां चली गई थी, किसी को पता ही नहीं था. ताज्जुब की बात यह थी कि उसे किसी ने जाते हुए देखा ही नहीं था.

अगले दिन यानी 21 जुलाई को फिर वही प्रक्रिया दोहराई गई, जो बीते दिन की जा चुकी थी. रहस्यमय तरीके से सविता के परिवार के साथ कहीं चले जाने से उस के परिचित कालोनीवासी और औफिस वाले सभी चिंतित और परेशान थे.

उन का उसे ले कर परेशान होना लाजिमी भी था क्योंकि वह थी ही इतनी मृदुभाषी कि पल भर में ही किसी को भी अपना बना लेती थी. जब भी किसी से बात करती थी तो मुसकरा कर ही बात करती थी इसीलिए वे सब उस के बारे में फिक्रमंद थे.

सविता, उस की मां और बेटी को रहस्यमय ढंग से गायब हुए 48 घंटे होने जा रहे थे. उस के कमरे से किसी चीज के सड़ने की बदबू भी उठने लगी थी. बदबू से पड़ोसियों का सांस लेना दूभर हो रहा था.

जैसेतैसे यह बात एसएसपी प्रभात कुमार तक पहुंची तो उन के कान खड़े हो गए. फौरन उन्होंने गोलमुरी थानाप्रभारी अरविंद कुमार को फोन कर पुलिस लाइन के ब्लौक नंबर 2 स्थित आवास संख्या जे-5 पहुंच कर मामले की स्थिति से अवगत कराने का आदेश दिया.

कप्तान साहब का आदेश पा कर थानाप्रभारी अरविंद कुमार दलबल के साथ मौके पर जा पहुंचे. वहां भारी मजमा लगा था और लोग आपस में कानाफूसी कर रहे थे. यह दोपहर 2 बजे के करीब की बात थी.

सचमुच उस कमरे से किसी चीज के सड़ने की बदबू आ रही भी. थानाप्रभारी अरविंद कुमार ने सारी स्थिति से कप्तान प्रभात कुमार को अवगत करा दिया.

चूंकि मामला पुलिस विभाग की एक महिला कर्मचारी के अचानक गायब होने और उसी के कमरे से आ रही सड़ांध से जुड़ा हुआ था, इसलिए एसएसपी प्रभात कुमार भी बगैर समय गंवाए मौके पर जा पहुंचे.

मौके पर एसएसपी प्रभात कुमार के पहुंचते ही एसपी (सिटी) विजय शंकर, एएसपी (सिटी) सुधांशु जैन, डीएसपी कमल किशोर और और डीएसपी (सीसीआर) अनिमेष गुप्ता भी मौके पर पहुंच गए थे.

पुलिस लाइन कालोनी में भारी पुलिस बल देख कर वहां और भी भीड़ जमा हो गई थी. एसएसपी प्रभात कुमार का आदेश मिलते ही पुलिसकर्मियों ने कमरे पर लगा ताला तोड़ दिया. कमरे का जैसे ही दरवाजा खुला, भीतर से बदबू का तेज भभका आया. ऐसा लगा जैसे अभी बेहोश हो कर गिर जाएंगे.

अपनीअपनी नाक पर रुमाल रख कर पुलिस अधिकारी एकएक कर कमरे के भीतर घुसे. जैसे ही उन की नजर कमरे के भीतर पड़ी, सब के सब ठिठक गए. कमरे के भीतर बैड पर सविता की लाश पड़ी थी तो फर्श पर उस की मां लखिमा मुर्मू और बेटी की लाशें पड़ी थीं. तीनों लाशें सड़ रही थीं.

महिला सिपाही सविता, उस की मां और बेटी की लाश मिलते ही कालोनी में दहशत फैल गई. पलभर में जंगल की आग की तरह यह खबर मीडिया तक पहुंच गई थी.

पुलिस क्वार्टर में मिलीं 3 लाशें

पुलिस जांचपड़ताल में जुटी हुई थी और फूंकफूंक कर कदम रख रही थी. सब से पहले पुलिस ने कमरे की पड़ताल शुरू की. जिस कमरे में तीनों लाशें पाई गई थीं. जांच के दौरान दौरान कमरे में संघर्ष के कोई निशान नहीं मिले. मृतकों के शरीर के अन्य हिस्सों पर चोट के कई निशान मिले.

घटनास्थल चीखचीख कर कह रहा था कि हत्या में कम से कम 3 से 4 लोग शामिल रहे होंगे. तभी मृतकों और हत्यारों के बीच संघर्ष के कोई निशान नहीं मिले थे.

फिर पुलिस ने किचन की जांचपड़ताल की तो किचन के बेसिन में उन्हें 3 के बजाय 4 थालियां जूठी मिलीं. यह देख कर पुलिस का चौंकना लाजिमी था.

चौथी थाली देख कर पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि वारदात किसी परिचित ने ही अंजाम दी थी, जिस की इस परिवार से अच्छीखासी पटती होगी.

दिल दहला देने वाली घटना की सूचना पा कर सविता की बड़ी बहन रेनू मार्डी अपने पति के साथ मौके पर पहुंच चुकी थी. रेनू मार्डी ने एसएसपी प्रभात कुमार को बताया कि हत्या सविता के देवर दाखीन और जेठ सुराई ने मिल कर की है क्योंकि सविता और उस के ससुराल वालों के बीच सालों से नौकरी को ले कर विवाद चल रहा था.

सविता के सासससुर उस के पति की मौत के बाद नौकरी अपने छोटे बेटे को दिलवाना चाहते थे, जबकि अनुकंपा के आधार पर वह नौकरी सविता को मिल गई थी. इसी बात को ले कर सविता और उस के ससुराल वालों के बीच में विवाद चल रहा था.

सविता डुमरिया स्थित ससुराल छोड़ कर पुलिस लाइन के सरकारी क्वार्टर में मां और बेटी के साथ रहती थी. आखिर उस के ससुराल वालों ने उस की जान ले कर ही छोड़ा.

रेनू मार्डी की बातों से एसएसपी प्रभात कुमार इत्तफाक रखते थे. उसी दिन रात करीब 8 बजे डुमरिया थाना पुलिस ने सविता के ससुराल वालों को फोन कर थाने बुलवाया. जिस में उस के जेठ सुराई, देवर दाखीन और इन की पत्नियां शामिल थीं.

पुलिस ने दाखीन और सुराई से हत्या के बारे में कड़ाई से पूछताछ की. यही नहीं, पूछताछ के दौरान जब पुलिस को पता चला कि दोनों नेत्रहीन हैं. कहीं जानेआने के लिए दूसरों का सहारा लेना पड़ता है तो शीशे की तरह मामला साफ गया था कि इस लोमहर्षक घटना में इन का कोई हाथ नहीं है. लिहाजा पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया था.

इसी बीच पुलिस को एक चौंकाने वाली सूचना मिली, जिस से घटना की जांच सही दिशा की ओर बढ़ चली. पुलिस को पता चला कि घटना वाली रात एसएसपी प्रभात कुमार का ड्राइवर रामचंद्र सिंह जामुदा उर्फ सुंदर सविता के घर में जाते हुए देखा गया था.

सुंदर का उस के घर में सालों से आनाजाना था और दोनों के बीच में मधुर संबंध थे. यह बात सविता की मां लखिमा मुर्मू और उस की बेटी गीता भी जानती थी लेकिन कभी किसी ने इस का विरोध नहीं किया.

जिस दिन ये घटना घटी, उस के अगले दिन से सुंदर छुट्टी ले कर अचानक कहीं गायब हो गया था. यह बात एसएसपी के मस्तिष्क में घर कर गई और सुंदर शक के घेरे में आ गया.

एसएसपी के ड्राइवर पर हुआ शक

अचानक सुंदर कहां लापता हो गया था, किसी को पता नहीं था. तब पुलिस का शक और भी पुख्ता हो गया जब सविता, उस की मां और बेटी की हत्या होने के बावजूद सुंदर उस की खबर तक लेने नहीं आया था वरना 24 घंटों में 12 घंटे वह सविता के घर पर ही बिता देता था.

पुलिस सुंदर की खोज में जुट गई थी. उस का जहांजहां ठिकाने थे, वहांवहां दबिश देनी शुरू कर दी.

यह सच है कि पुलिस अगर अपनी पर आ जाए तो मुलजिम पाताल की गहराइयों में भी छिप जाए तो उसे ढूंढ लेती है. यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ. सुंदर जमशेदपुर के ही सोनारी नामक एक स्थान पर छिप कर रह रहा था. उसे पता चल चुका था कि सविता और उस के परिवार की हत्या में पुलिस उसे ढूंढ रही है.

इसलिए वह सोनारी में छिप कर रह रहा था ताकि पुलिस की पकड़ ढीली पड़ते ही वह शहर से कहीं दूर भाग सके और खुली हवा में सांस लेता रहे. लेकिन सुंदर का यह सपना उस समय धरा का धरा रह गया, जब गोलमुरी पुलिस उसे हिरासत में ले कर थाने ले आई. पुलिस ने उस के फिंगरप्रिंट क्राइम स्पौट से हासिल फिंगरप्रिंट से मिलान किए तो दोनों आपस में मैच कर गए.

इस के बाद सुंदर के पास अपना जुर्म कुबूलने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था. उस ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया. फिर वह हैरान कर देने वाली जुर्म की चादर में लिपटी रंगीन कहानी को परतदरपरत खोलता चला गया. इस कहानी का अंत इतना भयानक होगा, उस ने सोचा भी न था. यह 22 जुलाई, 2022 की बात है. पुलिस पूछताछ के बाद इस तिहरे हत्याकांड की कहानी कुछ ऐसे सामने आई.

35 वर्षीय रामचंद्र सिंह जामुदा मूलरूप से जमशेदपुर के डुमरिया का रहने वाला था. उसे लोग सुंदर के नाम से भी पुकारते थे. सामान्य कदकाठी, साधारण शक्लसूरत और इकहरे बदन वाला सुंदर शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था. वह पुलिस विभाग में ड्राइवर था और सालों से जमशेदपुर के एसएसपी का सरकारी वाहन चला रहा था.

सुंदर एसएसपी प्रभात कुमार को औफिस छोड़ने के बाद खाली समय में एसएसपी रीडर औफिस में तफरी मारने चला जाता था. रीडर औफिस के सभी कर्मचारी उसे जानते थे.

औफिस में घूमता हुआ वह सविता हेम्ब्रम के सामने वाली कुरसी पर बैठ जाता था. सुंदर और सविता हेम्ब्रम एकदूसरे से बरसों से परिचित थे और वे उन्हें अच्छी तरह से जानते थे.

पति कैलाश की नक्सलियों ने की थी हत्या

दरअसल, सुंदर डुमरिया थानाक्षेत्र के जिस गांव में रहता था, उसी गांव में सविता की ससुराल थी. वह उस के पति कैलाश हेम्ब्रम को अच्छी तरह जानता था. गांव के रिश्ते से ही सुंदर सविता को भाभी कहता था. वह यह भी जानता था कि कैलाश हेम्ब्रम नक्सलियों की गोलियों की भेंट कैसे चढ़ा था और उसे जांबाज का खिताब कैसे मिला था.

बात साल 2007 के आसपास की है. कैलाश हेम्ब्रम ने नक्सलियों के खिलाफ लोहा लिया था और नागरिक सुरक्षा समिति से जुड़ा था. क्षेत्र में नक्सलियों के खिलाफ पुलिस की ओर से चलाए जाने वाले अभियान में कैलाश की बढ़चढ़ कर हिस्सेदारी रहती थी. इस दौरान 2007 में भीतराम्दा गांव में ग्रामीणों द्वारा 7 नक्सलियों को मौत के घाट उतार दिया गया था.

इस सिलसिले में पीयूसीएल, मानवाधिकार से जुड़े तमाम लोग जांच के लिए गांव आए थे. पीयूसीएल के अधिकारियों को गांव में विरोध का सामना करना पड़ा था ताकि वे लोग भीतराम्दा गांव तक नहीं पहुंच सकें. यहां तक कि उन के वाहन की हवा तक निकाल दी गई थी.

निराधार शक- कैसे एक शक बना दोनों का दुश्मन?

मैं अंकित से नाराज थी. परसों हमारे बीच जबरदस्त झगड़ा हुआ था और इस कारण पिछली 2 रात से मैं ढंग से सो भी नहीं पाई हूं.

परसों शाम हम दोनों डिस्ट्रिक्ट पार्क में घूम रहे थे कि अचानक मेरे कालेज के पुराने 5-6 दोस्तों से हमारी मुलाकात हो गई, जैसा कि ऐसे मौकों पर अकसर होता है, पुराने दिनों को याद करते हुए हम सब खूब खुल कर आपस में हंसनेबोलने लगे थे.

सच यही है कि उन सब के साथ गपशप करते हुए आधे घंटे के लिए मैं अंकित को भूल सी गई थी. उन को विदा करने के बाद मुझे अहसास हुआ कि उस का मूड कुछ उखड़ाउखड़ा सा था.

मैं ने अंकित से इस का कारण पूछा तो वह फौरन शिकायती अंदाज में बोला, ‘‘मुझे तुम्हारे इन दोस्तों का घटिया व्यवहार जरा भी अच्छा नहीं लगा, मानसी.’’

‘‘क्या घटिया व्यवहार किया उन्होंने?’’ मैं ने चौंक कर पूछा.

‘‘मुझे बिलकुल पसंद नहीं कि कोई तुम से बात करते हुए तुम्हें छुए.’’

‘‘अंकित, ये सब मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं और मुझे ले कर किसी की नीयत में कोई खोट नहीं है. उन के दोस्ताना व्यवहार को घटिया मत कहो.’’

‘‘मेरे सामने तुम्हारी कोल्डड्रिंक की बोतल से मुंह लगा कर कोक पीने की रोहित की हिम्मत कैसे हुई? उस के बाद तुम ने क्यों उस बोतल को मुंह से लगाया?’’ उस की आवाज गुस्से से कांप रही थी.

‘‘कालेज के दिनों में भी हमारे बीच मिलजुल कर खानापीना चलता था, अंकित. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि तुम इस छोटी सी बात पर क्यों इतना ज्यादा नाराज…’’

‘‘मेरे लिए यह छोटी सी बात नहीं है, मानसी. अब इस तरह की घटिया और चीप हरकतें तुम्हें बंद करनी होंगी.’’

‘‘क्या तुम मुझे ‘चीप’ कह रहे हो?’’ मुझे भी एकदम गुस्सा आ गया.

‘‘तुम चुपचाप मेरी बात मान क्यों नहीं लेती? बेकार की बहस शुरू करने के बजाय तुम मेरी खुशी की खातिर अपनी गलत आदतों को फौरन छोड़ देने की बात क्यों नहीं कह रही हो?’’

‘‘तुम मुझे आज खुल कर बता ही दो कि तुम्हारी खुशी की खातिर मैं अपनी और कौनकौन सी घटिया और चीप आदतें छोड़ूं?’’

‘‘सब से पहले किसी भी लड़के से इतना ज्यादा खुल कर मत हंसोबोलो कि वह तुम्हें चालू लड़की समझने लगे.’’

‘‘अंकित, क्या तुम मुझ पर अब चालू लड़की होने का आरोप भी लगा रहे हो?’’ तेज गुस्से के कारण मेरी आंखों में आंसू छलक आए थे.

‘‘मैं आरोप नहीं लगा रहा हूं. बस, सिर्फ तुम्हें समझा रहा हूं. मेरे मन की सुखशांति के लिए तुम्हें अपने व्यवहार को संतुलित बनाने में कोई एतराज नहीं होना चाहिए.’’

‘‘तुम समझाने की आड़ में मुझे अपमानित कर रहे हो, अंकित. अरे, तुम अभी से मेरे चरित्र पर शक कर मुझे पुराने दोस्तों के साथ खुल कर हंसनेबोलने को मना कर रहे हो तो शादी के बाद तो अवश्य ही मेरे मुंह पर ताला लगा कर रखोगे. तुम्हारी 18वीं सदी की सोच देख कर तो मुझे तुम पर हैरानी हो रही है.’’

‘‘बेकार की बहस में पड़ने के बजाय हम दोनों एकदूसरे के विचारों को समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रहे हैं? क्या अपनी शादीशुदा जिंदगी को हंसीखुशी से भरपूर रखने की जिम्मेदारी हम दोनों की नहीं है?’’ वह अपना आपा खो कर जोर से चिल्लाते हुए बोला.

‘‘जो आदमी मुझे चालू और चीप समझ रहा है, मुझे उस से शादी करनी ही नहीं है,’’ मैं झटके से मुड़ी और पार्क के गेट की तरफ चल पड़ी.उस ने मुझे आवाज दे कर रोकना चाहा, पर मैं रुकी नहीं. घर पहुंच कर मैं देर तक रोती रही. मेरे हंसनेबोलने को नियंत्रित करने का उस का प्रयास मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा.

अपने मन में बसी नाराजगी के चलते पूरे 2 दिन अंकित को इंतजार कराने के बाद मैं ने रविवार की सुबह उस की कौल रिसीव की.

‘‘कुछ देर के लिए मिलने आ सकती हो, मानसी?’’ अंकित की आवाज में अभी भी खिंचाव के भाव मैं साफ महसूस कर सकती थी.

मैं ने भावहीन लहजे में जवाब दिया, ‘‘मेरा आना नहीं हो सकता क्योंकि मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘किसी भी जरूरी काम का बहाना बना कर थोड़ी देर के लिए आ जाओ.’’

‘‘मुझे मम्मीपापा से झूठ बोलना सिखा रहे हो?’’

‘‘प्यार में कभीकभी झूठ बोलना चलता है, यार.’’

‘‘तुम मुझ से प्यार करते हो?’’

‘‘अपनी जान से ज्यादा,’’ वह एकदम भावुक हो उठा था.

‘‘ज्यादा झूठ बोलने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं और यह बात मैं तुम्हें आमनेसामने समझाना चाहूंगा.’’

‘‘ठीक है, आधे घंटे बाद मुझे मेन सड़क पर मिलना.’’

‘‘थैंक यू, यू आर ए डार्लिंग.’’ उस का स्वर किसी छोटे बच्चे की तरह खुशी से भर गया तो मैं भी खुद को मुसकराने से रोक नहीं पाई थी.

हमारी पहली मुलाकात मेरी अच्छी सहेली रितु की शादी के दौरान करीब 2 महीने पहले हुई थी. अंकित उस के बड़े भाई का दोस्त था. हमारे मिलने का सिलसिला चल निकला. खूब बातें होतीं, मौजमस्ती करते. इन कुछ मुलाकातों के दौरान मेरे व्यक्तित्व से प्रभावित हो वह मुझे अपना दिल दे बैठा था.

मेरी नजरों में वह एक उपयुक्त जीवनसाथी था, पर परसों के अपने संकुचित व्यवहार से उस ने मेरा दिल बहुत दुखाया था. मेरे जिस हंसमुख व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर उस ने मुझे अपना दिल दिया था अब मेरा वही खास गुण उसे चुभने लगा था. अपनी मोटरसाइकिल के पास खड़ा अंकित मेन सड़क पर मेरा इंतजार कर रहा था. मुझे देखते ही उस का चेहरा फूल सा खिल उठा.

मैं पास पहुंची तो वह खुशी भरे लहजे में बोला, ‘‘यू आर लुकिंग वैरी ब्यूटीफुल, मानसी.’’

‘‘थैंक यू,’’ उस के मुंह से अपनी प्रशंसा सुन कर मैं न चाहते हुए भी मुसकरा उठी थी.

‘‘मुझे परसों के अपने व्यवहार के लिए तुम से क्षमा…’’

मैं ने उस के मुंह पर हाथ रख कर उसे चुप किया और बोली, ‘‘अब उस बात की चर्चा शुरू कर के मूड खराब करने के बजाय पहले कुछ खा लिया जाए, मुझे बहुत जोर से भूख लग रही है.’’

‘‘जरूर,’’ उस ने किक मार कर मोटरसाइकिल स्टार्ट कर दी.

मेरे मनपसंद रेस्तरां में हम ने पहले पेट भर कर चायनीज खाना खाया. फिर आमिर खान की ‘थ्री इडियट’ फिल्म दोबारा देखी. वहां से निकल कर आइसक्रीम खाई और उसी डिस्ट्रिक्ट पार्क में घूमने पहुंच गए जहां 2 दिन पहले हमारा झगड़ा हुआ था.

वहां हम हाथ पकड़ कर मस्त अंदाज में घूमने लगे. अब तक बीते पूरे समय के दौरान नाराजगी का कोई नामोनिशान मेरे व्यवहार में मौजूद नहीं था. उस ने तो कई बार झगड़े की चर्चा छेड़नी भी चाही, पर हर बार मैं ने वार्तालाप की दिशा बदल दी थी. मन में डर भी था कि बेवजह फिर कहीं बात का बतंगड़ न बन जाए.

टहलते हुए हम पार्क के ऐसे एकांत कोने में पहुंचे जहां आसपास कोई नजर नहीं आ रहा था. मैं ने रुक कर उस का हाथ चूमा तो उस ने मुझे अपनी मजबूत बांहों में एकाएक भर कर मेरे होठों से अपने होंठ जोड़ दिए थे.

मैं ने आंखें मूंद कर इस पहले चुंबन का भरपूर आनंद लिया था.

अंकित से अलग होने के बाद मैं प्यार भरे अंदाज में फुसफुसा उठी थी, ‘‘अब तुम से दूर रहने का मन नहीं करता है, अंकित.’’

‘‘मेरा भी,’’ वह अपनी सांसों को नियंत्रित नहीं कर पा रहा था.

‘‘हम जल्दी शादी कर लेंगे?’’

‘‘हां.’’

‘‘मैं जैसी हूं, तुम्हें पसंद तो हूं न?’’

‘‘तुम मुझे बहुत ज्यादा पसंद हो.’’

‘‘तब मुझ पर अपने स्वभाव को बदलने के लिए परसों जोर क्यों डाल रहे थे?’’

‘‘तुम भूली नहीं हो उस बात को?’’ वह बेचैन नजर आने लगा.

‘‘नहीं,’’ मैं ने उसे सचाई बता दी.

उस ने अटकते हुए अपने दिल की बात कह दी, ‘‘मानसी, इस मामले में मैं तुम से झूठ नहीं बोलूंगा. तुम्हें किसी भी अन्य युवक के साथ ज्यादा खुला व्यवहार करते देख मेरा मन गलत तरह की कल्पनाएं करने लगता है. तुम्हारा जो व्यवहार मुझे अच्छा नहीं लगता, उसे छोड़ देने की बात कह कर मैं ने क्या कुछ गलत किया है?’’

‘‘इस मामले में तुम अब मेरे मन की बात ध्यान से सुनो, अंकित,’’ मैं भावुक लहजे में बोलने लगी, ‘‘तुम बहुत अच्छे हो… मेरे सपनों के राजकुमार जैसे सुंदर हो… मैं सचमुच तुम्हारी जीवनसंगिनी बनना चाहती हूं, पर…’’

‘‘पर क्या?’’ उस की आंखों में तनाव के भाव उभर आए.

‘‘किसी दोस्त या सहयोगी के साथ तुम्हारे खुल कर हंसनेबोलने को ले कर मैं तुम्हारे साथ कभी झगड़ा नहीं करना चाहूंगी. शादी के बाद तुम मुझे कितना भी प्यार करो, मेरा जी नहीं भरेगा. बैडरूम में मेरा खुला व्यवहार देख कर मेरे चरित्र के बारे में अगर तुम ने गलत अंदाजे लगाए तो हमारी कैसे निभेगी? हमें एकदूसरे के ऊपर पूरा विश्वास…’’

‘‘मैं इतना कमअक्ल इंसान…’’

मैं ने भी उसे बीच में ही टोक कर अपने मन की बात कहना जारी रखा, ‘‘प्लीज, पहले मेरी पूरी बात सुन लो. आज अपने मम्मीपापा से झूठ बोल कर तुम से मिलने आई थी. तुम्हें अपना हाथ पकड़ने दिया… अपनी कमर में बांहें डाल कर चलने दिया. होंठों पर आज पहली बार किस करने की छूट दी. मैं ने वह खास प्रेमी होने का दर्जा आज तुम्हें दिया जो कल को मेरी मांग में सिंदूर भी भरेगा.’’

‘‘तुम कहना क्या चाह रही हो?’’ अंकित की आंखों में बेचैनी और उलझन के भाव साफ नजर आ रहे थे.

‘‘मैं यह कहना चाह रही हूं कि जब तक तुम अपनी आंखों से किसी युवक के साथ ऐसा कुछ होता न देखो… जब तक तुम मेरा कोई झूठ न पकड़ो, तब तक मेरे चरित्र पर शक करने की भूल मत करना.

‘‘मैं ने आज तक किसी गलत नीयत वाले युवक को दोस्त का दर्जा नहीं दिया है और न ही कभी दूंगी. फ्लर्ट करने के शौकीन इंसानों को मैं अपने से दूर रखना अच्छी तरह जानती हूं. माई लव, मैं स्वभाव से हंसमुख हूं, चरित्रहीन नहीं.’’

उस ने पहले मेरे आंसुओं को पोंछा और फिर संजीदा लहजे में बोला, ‘‘मानसी, मुझे अपनी गलती का एहसास हो रहा है. मेरी समझ में आ गया है कि तुम्हारे खुले व हंसमुख व्यवहार के कारण मेरे मन में हीनभावना पैदा हो गई थी जिस से मुझे मुक्ति पाना जरूरी है. मैं अब भविष्य में तुम्हारे ऊपर निराधार शक कर तुम्हारा दिल नहीं दुखाऊंगा.’’

‘‘सच कह रहे हो?’’

‘‘बिलकुल सच कह रहा हूं.’’

‘‘अब कभी मेरे ऊपर निराधार शक नहीं करोगे?’’

‘‘कभी नहीं.’’

‘‘आई लव यू वैरी मच.’’ मैं भावविभोर हो उस से लिपट गई.

‘‘आई लव यू टू.’’ उस ने मेरे होंठों से अपने होंठ जोड़े और मेरे तनमन को मदहोश करने वाले दूसरे चुंबन की शुरुआत कर दी थी.

कलंक

कलंक- भाग 3 : बलात्कारी होने का कलंक अपने माथे पर लेकर कैसे जीएंगे वे तीनों ?

उन की खामोशी से इन तीनों की घबराहट व चिंता और भी ज्यादा बढ़ गई. संजय के पिता की माली हालत अच्छी नहीं थी. इसलिए रुपए खर्च करने की बात सुन कर उस के माथे पर पसीना झलक उठा था.

‘‘फोन कर के तुम दोनों अपनेअपने पिता को यहीं बुला लो. सब मिल कर ही अब इस मामले को निबटाने की कोशिश करेंगे,’’ रामनाथ की इस सलाह पर अमल करने में सब से ज्यादा परेशानी नरेश ने महसूस की थी.

नरेश का रिश्ता कुछ सप्ताह पहले ही तय हुआ था. अगले महीने उस की शादी होने की तारीख भी तय हो चुकी थी. वह रेप के मामले में फंस सकता है, यह जानकारी वह अपने मातापिता व छोटी बहन तक बिलकुल भी नहीं पहुंचने देना चाहता था. उन तीनों की नजरों में गिर कर उन की खुशियां नष्ट करने की कल्पना ही उस के मन को कंपा रही थी. मन के किसी कोने में रिश्ता टूट जाने का भय भी अपनी जड़ें जमाने लगा था.

नरेश अपने पिता को सूचित न करे, यह बात रामनाथ ने स्वीकार नहीं की. मजबूरन उसे अपने पिता को फौरन वहां पहुंचने के लिए फोन करना पड़ा. ऐसा करते हुए उसे संजय अपना सब से बड़ा दुश्मन प्रतीत हो रहा था.

करीब घंटे भर बाद वकील राकेश का फोन आया.

‘‘रामनाथ, उस इलाके के थानाप्रभारी का नाम सतीश है. मैं ने थानेदार को सब समझा दिया है. वह हमारी मदद करेगा पर इस काम के लिए 10 लाख मांग रहा है.’’

‘‘क्या उस लड़की ने रिपोर्ट लिखवा दी है?’’ रामनाथ ने चिंतित स्वर में सवाल पूछा.

‘‘अभी तो रिपोर्ट करने थाने में कोई नहीं आया है. वैसे भी रिपोर्ट लिखाने की नौबत न आए, इसी में हमारा फायदा है. थानेदार सतीश तुम से फोन पर बात करेगा. लड़की का मुंह फौरन रुपयों से बंद करना पड़ेगा. तुम 4-5 लाख कैश का इंतजाम तो तुरंत कर लो.’’

‘‘ठीक है. मैं रुपयों का इंतजाम कर के रखता हूं.’’

संजय के लिए 2 लाख की रकम जुटा पाना नामुमकिन सा ही था. उस के पिता साधारण सी नौकरी कर रहे थे. वह तो अपने दोस्तों की दौलत के बल पर ही ऐश करता आया था. जहां कभी मारपीट करने या किसी को डरानेधमकाने की नौबत आती, वह सब से आगे हो जाता. उस के इसी गुण के कारण उस की मित्रमंडली उसे अपने साथ रखती थी.

वह इस वक्त मामूली रकम भी नहीं जुटा पाएगा, इस सच ने आलोक, नरेश और रामनाथ से उसे बड़ी कड़वी बातें सुनवा दीं.

कुछ देर तो संजय उन की चुभने वाली बातें खामोशी से सुनता रहा, पर अचानक उस के सब्र का घड़ा फूटा और वह बुरी तरह से भड़क उठा था.

‘‘मेरे पीछे हाथ धो कर मत पड़ो तुम सब. जिंदगी में कभी न कभी मैं तुम लोगों को अपने हिस्से की रकम लौटा दूंगा. वैसे मुझे जेल जाने से डर नहीं लगता. हां, तुम दोनों अपने बारे में जरूर सोच लो कि जेल में सड़ना कैसा लगेगा?’’ यों गुस्सा दिखा कर संजय ने उन्हें अपने पीछे पड़ने से रोक दिया था.

थानेदार ने कुछ देर बाद रामनाथ से फोन पर बात की और पैसे के इंतजाम पर जोर डालते हुए कहा कि जरूरत पड़ी तो रात में आप को बुला लूंगा या सुबह मैं खुद ही आ जाऊंगा.

नरेश के पिता विजय कपूर ने जब रामनाथ की कोठी में कदम रखा तो उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं.

रामनाथ ने उन्हें जब उन तीनों की करतूत बताई तो उन की आंखों में आंसू भर आए थे.

अपने बेटे की तरफ देखे बिना विजय कपूर ने भरे गले से रामनाथ से प्रार्थना की, ‘‘सर, आप इस समस्या को सुलझवाइए, प्लीज. अगले महीने मेरे घर में शादी है. उस में कुछ व्यवधान पड़ा तो मेरी पत्नी जीतेजी मर जाएगी.’’

अपने पिता की आंखों में आंसू देख कर नरेश इतना शर्मिंदा हुआ कि वह उन के सामने से उठ कर बाहर बगीचे में निकल आया.

अब संजय व आलोेक के लिए भी उन दोनों के सामने बैठना असह्य हो गया तो वे भी वहां से उठे और बगीचे में नरेश के पास आ गए.

चिंता और घबराहट ने उन तीनों के मन को जकड़ रखा था. आपस में बातें करने का मन नहीं किया तो वे कुरसियों पर बैठ कर सोचविचार की दुनिया में खो गए.

उस अनजान लड़की के रेप करने से जुड़ी यादें उन के जेहन में रहरह कर उभर आतीं. कई तसवीरें उन के मन में उभरतीं और कई बातें ध्यान में आतीं.

इस वक्त तो बलात्कार से जुड़ी उन की हर याद उन्हें पुलिस के शिकंजे में फंस जाने की आशंका की याद दिला रही थी. जेल जाने के डर के साथसाथ अपने घर वालों और समाज की नजरों में सदा के लिए गिर जाने का भय उन तीनों के दिलों को डरा रहा था. डर और चिंता के ऐसे भावों के चलते वे तीनों ही अब अपने किए पर पछता रहे थे.

संजय का व्यक्तित्व इन दोनों से अलग था. इसलिए सब से पहले उस ने ही इस समस्या को अलग ढंग से देखना शुरू किया.

‘‘हो सकता है कि वह लड़की पुलिस के पास जाए ही नहीं,’’ संजय के मुंह से निकले इस वाक्य को सुन कर नरेश और आलोक चौंक कर सीधे बैठ गए.

‘‘वह रिपोर्ट जरूर करेगी…’’ नरेश ने परेशान लहजे में अपनी राय बताई.

‘‘तुम्हारी बात ठीक है, पर बलात्कार होने का ढिंढोरा पीट कर हमेशा के लिए लोगों की सहानुभूति दिखाने या मजाक उड़ाने वाली नजरों का सामना करना किसी भी लड़की के लिए आसान नहीं होगा,’’ आलोक ने अपने मन की बात कही.

‘‘वह रिपोर्ट करना भी चाहे तो भी उस के घर वाले उसे ऐसा करने से रोक सकते हैं. अगर रिपोर्ट लिखाने को तैयार होते तो अब तक उन्हें ऐसा कर देना चाहिए था,’’ संजय ने अपनी राय के पक्ष में एक और बात कही.

‘‘मुझे तो एक अजीब सा डर सता रहा है,’’ नरेश ने सहमी सी आवाज में वार्त्तालाप को नया मोड़ दिया.

‘‘कैसा डर?’’

‘‘अगर उस लड़की ने कहीं आत्महत्या कर ली तो हमें फांसी के फंदे से कोई नहीं बचा सकेगा.’’

‘‘उस लड़की का मर जाना उलटे हमारे हक में होगा. तब रेप हम ने किया है, इस का कोई गवाह नहीं रहेगा,’’ संजय ने क्रूर मुसकान होंठों पर ला कर उन दोनों का हौसला बढ़ाने की कोशिश की.

‘‘लड़की आत्महत्या कर के मर गई तो उस के पोस्टमार्टम की रिपोर्ट रेप दिखलाएगी. पुलिस की तहकीकात होगी और हम जरूर पकड़े जाएंगे. यह एसएचओ भी तब हमें नहीं बचा पाएगा. इसलिए उस लड़की के आत्महत्या करने की कामना मत करो बेवकूफो,’’ आलोक ने उन दोनों को डपट दिया.

‘‘मुझे लगता है एसएचओ को इतनी जल्दी बीच में ला कर हम ने भयंकर भूल की है, वह अब हमारा पिंड नहीं छोड़ेगा. लड़की ने रिपोर्ट न भी की तो भी वह रुपए जरूर खाएगा,’’ संजय ने अपनी खीज जाहिर की.

‘‘तू इस बात की फिक्र क्यों कर रहा है? रेप करने में सब से आगे था और अब रुपए निकालने में तू सब से पीछे है.’’

आलोक के इस कथन ने संजय के तनबदन में आग सी लगा दी. उस ने गुस्से में कहा, ‘‘अपना हिस्सा मैं दूंगा. मुझे चाहे लूटपाट करनी पड़े या चोरी, पर तुम लोगों को मेरा हिस्सा मिल जाएगा.’’

संजय ने उसी समय मन ही मन जल्द से जल्द अमीर बनने का निर्णय लिया. उस का एक चचेरा भाई लूटपाट और चोरी करने वाले गिरोह का सदस्य था. उस ने उस के गिरोह में शामिल होने का पक्का मन उसी पल बना लिया. उस ने अभावों व जिल्लत की जिंदगी और न जीने की सौगंध खा ली.

नरेश उस वक्त का सामना करने से डर रहा था जब वह अपनी मां व जवान बहन के सामने होगा. एक बलात्कारी होने का ठप्पा माथे पर लगा कर इन दोनों के सामने खड़े होने की कल्पना कर के ही उस की रूह कांप रही थी. जब आंतरिक तनाव बहुत ज्यादा बढ़ गया तो अचानक उस की रुलाई फूट पड़ी.

रामनाथ ने अब उन्हें अपने फार्महाउस में भेजने का विचार बदल दिया क्योंकि एसएचओ उन से सवाल करने का इच्छुक था. उन के सोने का इंतजाम उन्होंने मेहमानों के कमरे में किया.

विजय कपूर अपने बेटे नरेश का इंतजार करतेकरते सो गए, पर वह कमरे में नहीं आया. उस की अपने पिता के सवालों का सामना करने की हिम्मत ही नहीं हुई थी.

सारी रात उन तीनों की आंखों से नींद कोसों दूर रही. उस अनजान लड़की से बलात्कार करना ज्यादा मुश्किल साबित नहीं हुआ था, पर अब पकड़े जाने व परिवार व समाज की नजरों में अपमानित होने के डर ने उन तीनों की हालत खराब कर रखी थी.

सुबह 7 बजे के करीब थानेदार सतीश श्रीवास्तव रामनाथ की कोठी पर अपनी कार से अकेला मिलने आया.

उस का सामना इन तीनों ने डरते हुए किया. थाने में बलात्कार की रिपोर्ट लिखवाने वह अनजान लड़की रातभर नहीं आई थी, लेकिन थानेदार फिर भी 50 हजार रुपए रामनाथ से ले गया.

‘‘मैं अपनी वरदी को दांव पर लगा कर आप के भतीजे और उस के दोस्तों की सहायता को तैयार हुआ हूं,’’ थानेदार ने रामनाथ से कहा, ‘‘मेरे रजामंद होने की फीस है यह 50 हजार रुपए. वह लड़की थाने न आई तो इन तीनों की खुशकिस्मती, नहीं तो 10 लाख का इंतजाम रखिएगा,’’ इतना कह कर वह उन को घूरता हुआ बोला, ‘‘और तुम तीनों पर मैं भविष्य में नजर रखूंगा. अपनी जवानी को काबू में रखना सीखो, नहीं तो एक दिन बुरी तरह पछताओगे,’’ कठोर स्वर में ऐसी चेतावनी दे कर थानेदार चला गया था.

वे तीनों 9 बजे के आसपास रामनाथ की कोठी से अपनेअपने घरों को जाने के लिए बाहर आए. उस लड़की का रेप करने के बाद करीब 1 दिन गुजर गया था. उसे रेप करने का मजा उन्हें सोचने पर भी याद नहीं आ रहा था.

इस वक्त उन तीनों के दिमाग में कई तरह के भय घूम रहे थे. कटे बालों वाली लंबे कद की किसी भी लड़की पर नजर पड़ते ही पहचाने जाने का डर उन में उभर आता. खाकी वरदी वाले पर नजर पड़ते ही जेल जाने का भय सताता. अपने घर वालों का सामना करने से वे मन ही मन डर रहे थे. उस वक्त की कल्पना कर के उन की रूह कांप जाती जब समाज की नजरों में वे बलात्कारी बन कर सदा जिल्लत भरी जिंदगी जीने को मजबूर होंगे.

अगर तीनों का बस चलता तो वे वक्त को उलटा घुमा कर उस लड़की को रेप करने की घटना घटने से जरूर रोक देते. सिर्फ 12 घंटे में उन की हालत भय, चिंता, तनाव और समाज में बेइज्जती होने के एहसास से खस्ता हो गई थी. इस तरह की मानसिक यंत्रणा उन्हें जिंदगी भर भोगनी पड़ सकती है, इस एहसास के चलते वे तीनों अपनेआप और एकदूसरे को बारबार कोस रहे थे.

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