
लेखक – नीरज कुमार मिश्रा
“गांव वालों के सारे कष्ट दूर करने आ रहे हैं आप के गांव में पहली बार ‘अकरोना बाबा’, कल से उन की कष्ट हरण कथा गांव के स्कूल के मैदान में सुबह 10 बजे से शुरू होगी, जो बाबाजी की इच्छा तक चलेगी,” एक मोटा सा आदमी एक दाढ़ी वाले बाबा का फोटो लगा कर रिकशे पर बैठा पूरे गांव में मुनादी कर रहा था.
“याद रहे… अकरोना बाबा की कथा में सब को नहाधो कर आना है और सब लोग सामाजिक दूरी के साथ बैठेंगे. और सब से जरूरी बात अकरोना बाबा की कथा में आप सब लोगों को मास्क मुफ्त में बांटे जाएंगे… आप लोगों को घर से मास्क लाने की जरूरत नहीं है.”
मुफ्त मिलेगा के नाम पर कई गांव वालों के कान खड़े हो गए थे.
“आप सब लोगों को बता दें… जो लोग अकारोना बाबा की कथा में आएंगे, उन को कभी भी कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं सताएगा… बाबा ने बड़ेबड़े नेताओं को कोरोना से बचाया है… बोलो, अकरोना बाबा की जय.”
“अरे भैया… बाबा की कथा में हम लोगों को क्याक्या मुफ्त मिलेगा,” एक व्यक्ति ने दूसरे से पूछा.
“अरे पांडे यार, तुम भी एकदम बुड़बक ही हो… मास्क यानी फेस को कवर करने वाली चीज… जैसे हमारे पास होता है न ये गमछा… बस उसी का शहरी रूप है मास्क… और कोई बहुत बंपर चीज थोड़े ही न है,” दूसरे ने ज्ञान बघारा.
“हां, पर वो मुफ्त में दे रहे हैं… तब तो हम बाबाजी का आशीर्वाद लेने जरूर जाएंगे.”
पूरे गांव में अकरोना बाबा के विज्ञापन छाए हुए थे और हर कोई बाबा में उत्सुक हो गया था.
“पर, बाबा का नाम तो बड़ा अजीब सा लग रहा है,” एक ग्रामीण ने चर्चा छेड़ी.
“हां… हां, क्यों नहीं… अरे, उन के बारे में मैं ने सुना है कि उन का जन्म ही कोरोना नामक विषाणुरूपी राक्षस को मारने के लिए हुआ है.
“अरे, मैं ने तो इन की बहुत सी कथाएं सुनी हैं. और तो और मुझे तो इन से व्यक्तिगत रूप से मिलने का पुण्य भी प्राप्त हो चुका है,” युवक ने शेखी बघारते हुए कहा.
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“वाह भैया वाह, तुम तो बड़े किस्मत वाले हो… तनिक हमारा भी सोर्स लगवाओ, हमें भी बाबाजी से आशीर्वाद दिलवाओ,” दूसरा ग्रामीण मिन्नतें करने लगा.
“हां… हां, तुम को भी मिलवा ही देंगे, पर जरा कथा शुरू तो होने दो” शेखी बघारने वाला युवक शान से अकड़ा हुआ था.
शाम तक गांव के हर घर में अकरोना बाबा की ही बातें हो रही थीं, और लोग अकरोना बाबा को देखने के लिए बड़े उत्साहित हो रहे थे .
अगले दिन के सूरज उदय होने के साथ ही गांव में पानी का खर्चा अचानक से बढ़ गया था, हर एक घर में सभी लोगों का नहानाधोना चल रहा था, क्योंकि आज सभी को अकरोना बाबा के प्रवचन सुनने जाना है था, इसलिए तन, मन को धोना बहुत जरूरी था.
स्कूल के प्रांगण में एक तरफ तीन कारें खड़ी थीं, जो देखने में बहुत महंगी लग रही थीं.
अकरोना बाबा के आने का समय 10 बजे था, पर वह किसी बड़े नेता की तरह ठीक 12 बजे आए.
लंबी दाढ़ी और एक सफेद सा चोगा, होठों पर मुसकान और हाथों में सोने का ब्रेसलेट पहने हुए अकरोना बाबा का जलवा देखते ही बनता था.
बाबा ने मंच पर आते ही कहा, “भक्तजनो, आज पूरी दुनिया में कोरोना नामक बीमारी बहुत बुरी तरह फैल रही है, लाखों लोग इस बीमारी की चपेट में आ गए हैं… पर, आप सब लोगों को इस बीमारी से डरने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि आप लोग अकरोना बाबा की शरण में आ गए हैं. अब दुनिया का कोई भी वायरस आप लोगों का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है…
“वैसे भी मैं बता दूं कि आप लोगों के गांव में एक चुड़ैल की प्यासी आत्मा घूम रही है, वो कभी भी किसी के सिर पर सवार हो सकती है, पर जो मेरी शरण में आएगा, वो सुरक्षित रहेगा,” बाबा बोले जा रहे थे और भक्त मोहित हो कर सुन रहे थे.
तभी बाबा के एक समर्थक ने जयकारा लगाना शुरू कर दिया, “अकरोना बाबा की जय.”
और इस जयकारे के साथ ही भीड़ में से एक ग्रामीण निकला और मंच के पास जा कर एक सौ का नोट चढ़ा दिया.
“सुनें… एक बात अच्छी तरह से समझ लें… ये बाबा सब जानते हैं और ऐसे दिव्यज्ञानी लोग पैसे को हाथ भी नहीं लगाते. और वैसे भी करेंसी को छूने में इस समय हमारे देश की सरकार भी एहतियात बरतने को कह रही है, विषाणु का प्रकोप तेजी पर है, इसलिए मेरा आप लोगों से यह कहना है कि अगर आप लोग कुछ चढ़ाना चाहें तो वो या तो सोने की हो या चांदी की कोई वस्तु… कृपया रुपयापैसा चढ़ा कर स्वामीजी का अपमान न करे.”
और उस के बाद स्वामीजी ने कोई भजन गाना शुरू कर दिया, जिस की धुन पर सभी गांव वाले मस्त हो कर नाचने लगे.
जब सब गांव वाले नाच कर थक गए, तो उन सब को एक एक मास्क ये कह कर दिया गया कि ये अकरोना बाबा का प्रसाद है, जिसे लोगों ने बड़ी श्रद्धा के साथ लिया और पहन भी लिया.
“जिन लोगों की कोई पारिवारिक, सामाजिक या आर्थिक समस्या है, वो अपना समय ले ले और अकरोना बाबा से शाम के बाद वे मुलाकात कर सकते हैं,” अकरोना बाबा के एक चेले ने घोषणा की.
दुनिया में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जिस को कोई समस्या न हो, इसलिए बाबा के शिविर में तो अपनी समस्याओं का समाधान पाने वालों का तांता लगने लगा.
बाबा वैसे तो सब की समस्याएं सुनते, पर महिला भक्तों पर उन की कृपा थोड़ी ज्यादा ही बरसती, उन के पास जो भी पुरुष पहुचते थे, उन की समस्याओं को तो वे एक विशेष प्रकार की लकड़ी, जिसे वे कल्पवृक्ष की लकड़ी कहते थे, उसी के स्पर्श मात्र से ही सही कर देते थे, पर यदि कोई महिला भक्त आती थी, तो उसे कुछ विशेष नुसखा देते थे.
“अकरोना बाबा की जय हो,” एक बहुत खूबसूरत महिला ने अंदर प्रवेश किया.
“कहो ठकुराइन, क्या कष्ट है?” बाबा ने आंखें बंद किए ही कहा.
ठकुराइन मन ही मन सोचने लगी कि मैं ने तो अभी बाबा को अपना नाम तक नहीं बताया और फिर भी वो नाम कैसे जान गए, भक्ति भाव में भर कर उस ने एक बार और जयकारा लगाया
“क्या बताऊं बाबाजी, मेरे कंधों में बहुत दर्द रहता है… कोई उपाय बताइए.”
“तू पिछले जन्म में किसी राज्य की राजकुमारी थी और तू ने लुटेरों के चंगुल से बचने के लिए वह खजाना कहीं गाड़ दिया था… उस खजाने का बोझ अब भी तेरे कंधों पर है, उस बोझ को हटाना होगा,” अकरोना बाबा ने कहा.
“पर, कैसे बाबा?”
“हमें वो खजाना ढूंढ़ना होगा,” बाबा ने कहा.
“पर, मिलेगा कहां बाबा?”
“खजाना तेरे घर में ही है… हमें वहीं आ कर खुदाई करनी होगी. और क्योंकि तू राजकुमारी थी, इसलिए तुझे हमारे काम में सहयोग भी देना होगा,” अकरोना बाबा ने कहा.
“मैं तैयार हूं बाबा,” अब अपने दर्द को भूल गई थी ठकुराइन और उस की आंखों में खजाने के सपने तैरने लगे थे.
अगले दिन सुबह से ही ठकुराइन के घर पर अनुष्ठान होना था, अकरोना बाबा ने इसे बेहद गुप्त रखने को कहा था, सिर्फ बाबा और उस के 2 साथी ही वहां पहुचे थे.
“भाई हमारे साथ अनुष्ठान में सिर्फ राजकुमारी… मेरा मतलब है कि ठकुराइन ही रहेगी, क्योंकि अपने खजाने की वो ही वारिस है इसलिए… किसी को कोई आपत्ति तो नहीं? क्यों ठाकुर?” अकरोना बाबा ने ठाकुर की ओर देखते हुए कहा.
“अरे नहीं, नहीं, बाबाजी… हमें कोई दिक्कत नहीं है. बस आप खजाना ढूंढ़ दीजिए तो हमारी पत्नी के कंधे का दर्द तो कम हो जाए कम से कम.”
“अवश्य कम होगा,” बाबा ने हुंकार भरी.
अकरोना बाबा ने ठाकुर के मकान में घूमघूम कर एक कमरे का चुनाव किया और कहा कि इसी कमरे में हम अनुष्ठान करेंगे और हमें जरूरी सामान ले दिया जाए.
अनुष्ठान शुरू हुआ. उस कमरे में अकरोना बाबा ने ठकुराइन से ध्यान केंद्रित करने को कहा. ठकुराइन ने ऐसा ही किया. वह लगातार उसी बिंदु पर ध्यान लगाती रही, जबकि अकरोना एक यज्ञ कर रहा था. अचानक से ठकुराइन बेहोश हो कर गिर गई, आग से उठता हुआ धुआं नशीला था.
फिर क्या था, ठकुराइन के गिरते ही अकरोना अपने असली रंग में आ गया. उस ने ठकुराइन के साथ बेहोशी की हालत में ही बलात्कार किया और उस की नग्न हालत में फोटो भी उतारा.
बेचारी ठकुराइन को जब होश आया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. वह किसी से कुछ कह भी नहीं सकती थी और यदि बाबा की करतूत अपने पति से भी बताती तो भी उस के वैवाहिक जीवन को खतरा हो सकता था, इसलिए सब आगापीछा सोच कर वह चुप ही रही.
अब तक अकरोना समझ चुका था कि ठकुराइन अपना मुंह नहीं खोलेगी, इसलिए उस ने फिर से एक नाटक खेला.
कमरे का दरवाजा खोल कर ठाकुर को एक मिट्टी की हांडी दिखाई और बोला, “राजकुमारी ने खजाना तो सोने के घड़े में छुपाया था, पर किसी निर्दोष को सजा देने के कारण राजकुमारी को पाप मिला और राजकुमारी का वह खजाना अपनेआप मिट्टी में बदल गया… और अब कुछ नहीं हो सकता.”
“कोई बात नहीं अकरोना बाबा, आप ने इन को इतना टाइम दिया… यही हमारे लिए बहुत बड़ी बात है… आप का बहुत धन्यवाद है,” ठाकुर ने कहा.
और अकरोना बाबा ने गांव में भोलीभाली जनता को बेवकूफ बनाना शुरू कर दिया और जब गांव के बाकी लोगों ने जाना कि बाबा प्रवचन करने के साथसाथ समस्याएं भी सुलझाते हैं, तो अकरोना के पास लोगों की भीड़ बढ़ने लगी.
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और अब तो कभी हरिया, कभी किसना तो कभी राघव तो कभी मंगलू जैसे लोग बाबा के पास अपनी समस्या का इलाज कराने जाने लगे.
जिस तरह से उस ने ठकुराइन के साथ किया रहा, कुछ वैसा ही वह मंगलू के घर पर करने वाला था, उस बंद कमरे में मंगलू की पत्नी के अलावा बाबा और उस के 2 चेले थे.
मंगलू और उस के परिवार की आर्थिक समस्या सही करने के लिए अकरोना यज्ञ कर रहा था.
मंगलू की पत्नी अभी बेहोश नहीं हुई थी और बाबा अधिक ही उत्तेजित हो रहा था.
इसी दौरान अकरोना मंगलू की पत्नी की पीठ सहलाने लगा और धीरेधीरे उस के हाथ सीने की तरफ बढ़ने लगे.
मंगलू की पत्नी उस की नीयत भांप गई और उस का विरोध कर के बाहर निकल आई और शोर मचा कर सब को इकट्ठा कर के जोरजोर से कहने लगी, “देखो… देखो ये ढोंगी बाबा… ये मेरे साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश कर रहा है… देखो, देखो,” मंगलू की पत्नी चीख रही थी.
उस के इस तरह चीखने पर उस का पति और आसपास के लोग जमा हो गए, वे सभी उस की बातों को सुन ही रहे थे कि अंदर के कमरे से अकरोना मुसकराते हुए बाहर निकला और बोला, “देखो गांव वालो, मैं ने तुम लोगों को तो बहुत पहले ही उस प्यासी चुड़ैल की आत्मा के बारे में बता दिया था…
“देखो, आज उसी चुड़ैल की आत्मा इस औरत के अंदर आ गई है. आज हमारे पास इसे देने का मौका है… इसे मेरे शिविर में ले चलो… हम सब मिल कर सजा देंगे.”
मंगलू की पत्नी चीखती रह गई थी, पर उस गांव में भला उस की सुनने वाला कौन था, गांव के लोग तो उसे चुड़ैल समझ कर उसे मारने पर आमादा थे.
अब मंगलू की पत्नी अकरोना के चंगुल में थी. अकरोना बाबा आया और बोला, “क्या फायदा मिला तुझे… देख लिया न, तेरे ही लोग तुझे यहां छोड़ कर गए हैं मेरे लिए… अगर तू चुपचाप रहती तो इतना नाटक नहीं करना पड़ता… तू भी खुश रहती और मैं भी खुश रहता… अब अपनी नासमझी का अंजाम भुगत.”
और उस के बाद बाबा और उस के चेलों ने जी भर कर उस के जिस्म से कई दिनों तक अपनी प्यास बुझाई.
बाबा का जाल सब गांव वालों की आंखों पर पड़ चुका था. बाबा औरतों और लड़कियों के जिस्म से तो खेलता ही था और पैसे भी मार रहा था.
धीरेधीरे अकरोना ने पूरे गांव पर अपने छोटेमोटे चमत्कार या हाथ की सफाई दिखा कर गांव वालों के मन में जगह बना ली थी और गांव वाले उसे पूजने लगे थे, और बाबा की नजर जिस भी लड़की और महिला पर पड़ जाती उसे वह किसी पूजा के बहाने अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश करता. और अगर वह विरोध करती तो उसे इसी तरह प्यासी चुड़ैल बता कर मारतेपीटते और अपनी हवस का शिकार भी बनाते.
गांव की कुछ महिलाओं ने उत्पीड़न सहने के बाद जब इस बाबा की पोल खोलने की कोशिश की, तो अकरोना ने गांव वालों को बताया कि ये प्यासी चुड़ैल है और अगर इसे मारा नहीं गया तो ये गांव वालों के बच्चों को ही खाने लगेगी, इसलिए बहुत सी औरतों को तो गांव के कुछ दबंग, ऊंची जाति और पैसे वाले लोगों ने उन महिलाओं को पेड़ के तने से बांध कर मारा, इतना मारा कि जब तक वे मर नहीं गई.
एक दिन की बात है, अकरोना के पास एक दंपती आया और चांदी की भेंट चढ़ाई, “बाबा के चरणों में हमारा प्रणाम.”
“हां… कल्याण हो तुम लोगों का… पर देखने में तुम लोग तो इस गांव के नहीं लगते,” अकरोना बोला.
“बाबाजी ने सही पहचाना, हम लोग पास के गांव से आए हैं. और हमारी समस्या यह है कि मेरी बीवी को बच्चा नहीं ठहरता, इसीलिये हम शादी के बाद भी बेऔलाद हैं,” उस आदमी ने बाबा से विनती की.
बाबा ने युवती की नब्ज़ टटोली. थोड़ी देर मौन रखने के बाद वह बोला, “खेत में खाली हल चलाने से फसल अच्छी नहीं होती… बीज अच्छा हो तो ही अच्छी फसल मिलती है… और तुम्हारे मस्तक की रेखाएं बता रही हैं कि तुम ने पिछले जन्म में किसी बच्चे को मारा है, इसीलिए उस जन्म की सजा तुम्हें इस जन्म में मिल रही है…
“और तुम्हें संतान प्राप्ति नहीं हो रही है, चलो कोई बात नहीं है. अब तुम सही जगह आ गए हो, अब तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे… हां, पर हमें संतान प्राप्ति यज्ञ करना होगा और हो सकता है कि उस बच्चे की आत्मा तुम पर या तुम्हारे पति पर आ जाए तो होशियार रहना… घबराना बिलकुल मत. हम यहीं ठहरने और खानेपीने आदि की व्यवस्था करा देतें हैं. हमारा अनुष्ठान आज रात को ही शुरू हो जाएगा.”
वे दंपती आश्रम में ही रुक गए थे. बाबा की तरह उन्हें भी शाम होने का बेसब्री से इंतजार था.
शाम हुई तो उस दंपती को एक कमरे में ले जाया गया, जहां बाबा सिर्फ एक लंगोटी बांधे, आंखें बंद किए बैठा था.
“इस पूजा में सिर्फ स्त्री ही बैठेगी… पुरुष को बाहर जाना होगा,” बाबा ने कहा.
बाबा की आज्ञा मान कर उस स्त्री के साथ आया आदमी बाहर आ कर बैठ गया.
बाबा ने यज्ञ करना शुरू किया और पता नहीं क्या बुदबुदाने लग गया.
कुछ देर बाद उस बाबा ने उस आई हुई औरत का हाथ पकड़ लिया. औरत ने कोई विरोध नहीं किया.
“बाबाजी, मुझे आप के बारे में सब पता है. दरअसल, मेरी एक सहेली भी आप से यही वाली पूजा कराने आई थी और इसी तरह आप ने उसे बच्चा पैदा करने वाली कृपा की थी और जिस का मजा मेरी सहेली को भी आया था, इसलिए मेरे साथ आप को कोई नाटक करने की जरूरत नहीं है.”
“अरे वाह, तुम तो बहुत समझदार निकली, तो फिर आओ, हम आराम से बिस्तर पर लेट कर सेक्स का मज़ा लेते हैं,” बाबा ने कहा.
“सेक्स का मजा, पर वो क्यों?” उस औरत ने पूछा.
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“अरे, अभी तुम ने ही तो कहा कि तुम मेरा तरीका जानती हो, तब तो तुम यह भी जानती ही होगी कि मैं आई हुई महिलाओं के साथ जबरन सेक्स करता हूं. और अगर वे नानुकुर करती हैं, तो मैं उन को चुड़ैल की आत्मा घोषित कर देता हूं और फिर मुझे कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं पड़ती, बाकी का काम उस के गांव वाले खुद ही कर डालते हैं… हा हा हा ” कह कर हंसने लगा था अकरोना बाबा.
“बस, अब तेरा खेल खत्म.म अकरोना,” उस महिला ने अपने बैग से पिस्तौल निकालते हुए कहा.
“क्या मतलब? कौन हो तुम?”
“मैं एक पुलिस इंस्पेक्टर हूं… और ये मेरी साथी हैं,” बाहर बैठा हुआ आदमी अंदर आते हुए बोला.
“हां तो… तुम पुलिस हो… तो मैं क्या करूं… मैं ने किया क्या है,” बाबा ने कहा.
“महिलाओं का जबरन बलात्कार और उत्पीड़न के आरोप में हम तुम्हें गिरफ्तार करते हैं.
“हमें कई बार तुम्हारे खिलाफ गुमनाम फोन द्वारा शिकायतें मिल रही थीं, पर सबूत की कमी में हम कुछ नहीं कर पा रहे थे और इसीलिए हम ने ये प्लान बनाया.
“और हम ने तुम्हारी इस दाढ़ी के पीछे छिपे चेहरे को भी पहचान लिया है, तुम शातिर ठग विजय कुमार हो, जो जेल से भाग कर अपना वेश बदल कर ये काम करने लगे थे,” इंस्पेक्टर ने कहा
“पर सबूत क्या है, तुम लोगों के पास,” बाबा चीख रहा था.
“सारा सबूत इस के अंदर है,” उस महिला इंस्पेक्टर ने अपने बैग में छिपा हुआ एक खुफिया कैमरा दिखाते हुए कहा,
“और मेरे उकसाने पर तुम ने खुद ही अपनी सारी बातें अपने मुंह से ऊगली हैं, अब बाकी की जिंदगी जेल में कैदियों का कोरोना भगाने में लगाना,” महिला इंस्पेक्टर ने बाबा को हथकड़ी पहनाते हुए कहा.
बाबा ने कहा, “मुझे 10 मिनट अपने सहयोगी से बात करने दो. फिर मैं आप लोगों के साथ चलूंगा,” पुलिस पार्टी मान गई.
10 मिनट बाद बाबा के एक सहयोगी ने पेशकश रखी कि पुलिस पार्टी को 20 लाख नकद मिलेंगे और इंस्पेक्टर को साथ में पदोन्नति भी मिलेगी व 5 करोड़ साल वाला थाना मिलेगा. अंत में फैसला 30 लाख में हुआ.
पुलिस बाबा को पकड़ कर ले गई कि अगले दिन जमानत मिल जाएगी और बाद में केस रफादफा हो जाएगा.
एक ठग, जो अकरोना बाबा बना फिरता था, पहुंच गया जेल. वह सारी कमाई गंवा बैठा.
सही कहा गया है, बुरे कोरोना का बुरा नतीजा…
अपने औफिस में बैठा मैं एक सबइंसपेक्टर से किसी मामले पर बात कर रहा था, तभी 2 आदमी यह सूचना ले कर आए कि गंदे नाले में एक लाश पड़ी है. सुबहसवेरे लाश की सूचना पर मैं हैरान रह गया. मैं ने एक एएसआई और 2 सिपाहियों को उन लोगों के साथ भेज दिया. कुछ देर बाद एक सिपाही हांफता हुआ मेरे पास आ कर बोला, ‘‘सर, वह लाश तो धुर्रे शाह की है.’’
‘‘तुम्हें पूरा यकीन है कि वह लाश धुर्रे शाह की ही है?’’ मैं ने उसे घूरते हुए पूछा.
धुर्रे शाह इलाके का ऐसा हिस्ट्रीशीटर बदमाश था, जिस के नाम से बड़ेबड़े गुंडेबदमाश कांपते थे.
‘‘बिलकुल सर, उस पर धारदार हथियार से वार किए गए हैं.’’ सिपाही ने कहा.
मैं भी उस स्थान पर पहुंचा, जहां धुर्रे शाह की लाश पड़ी थी. मेरे पहुंचने से पहले एएसआई गफ्फार ने लाश नाले से बाहर निकलवा ली थी. मैं ने लाश देखी तो वह सचमुच धुर्रे शाह की थी. उस ने रेशमी कुर्ता पहना हुआ था. एक गहरा घाव उस की गरदन पर था, दूसरा घाव उस की कालर बोन पर था, तीसरा घाव उस की पसलियों पर था.
उस की जेब की तलाशी ली गई तो उन में से कुछ छोटे भीगे नोट निकले. जरूरी काररवाई कर के मैं ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. मैं सोच में पड़ गया कि धुर्रे शाह जैसे हिस्ट्रीशीटर बदमाश की हत्या किस ने की होगी?
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धुर्रे शाह रहीमपुर का रहने वाला था. उस का असली नाम पता नहीं था, सब उसे धुर्रे शाह कहते थे. वह मेलों में जाने का बड़ा शौकीन था. अपने लंबे बालों में वह एक पटटी बांधता था और कंधे पर रेशमी पटका रखता था. ढोल की थाप पर वह मेले तक नाचता हुआ जाता था. रात में उस के इलाके में उस का राज्य होता था. लोग डर की वजह से उस के इलाके से गुजरते नहीं थे. कोई घोड़ातांगा उधर से गुजरता तो चालक घोड़े को भगाता था. धुर्रे शाह दौड़ कर पीछे से घोड़े की बाग पकड़ लेता था, इसलिए लोग उसे घोड़े शाह भी कहते थे.
धुर्रे शाह की हत्या से लोगों ने राहत की सांस ली थी. लेकिन हमारी कोशिश उस के हत्यारों तक पहुंचने की थी. मेरा विचार था कि उसे अपराधी किस्म के लोगों ने ही मारा होगा, इसलिए मैं ने तफ्तीश ऐसे ही लोगों से शुरू की. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उस की मौत अधिक खून बह जाने से हुई थी.
यह भी पता चला था कि उस ने देशी शराब पी रखी थी. मौत का समय आधी रात के लगभग बताया गया था. उस का कोई वारिस नहीं आया, इसलिए उस की लाश को लावारिस मान कर अंतिम संस्कार कर दिया गया था.
मैं ने अपने मुखबिरों से पता कराया कि हत्या से पहले उस का किसी से झगड़ा तो नहीं हुआ था. मेरा एक मुखबिर था, जो छोटामोटा अपराधी भी था, लेकिन वह जबान का पक्का था. वह अंदर तक की खबरें निकाल कर ले आता था. उस ने मुझे जो बातें बताई थीं, उस से मुझे लगा कि हत्यारा जल्द ही गिरफ्तार हो जाएगा.
उस ने बताया था कि धुर्रे शाह में बहुत सी बुराइयां भी थीं. वह देशी शराब बहुत पीता था और वेश्याओं के पास भी जाता था. उस समय एक कोठे पर नईनवेली वैश्या दिलरुबा आई थी, जो उसे बहुत पसंद थी. वह उस पर दिल खोल कर पैसे लुटाता था. वह जब भी उस के कोठे पर जाता था, किसी की हिम्मत उस के सामने ठहरने की नहीं होती थी.
अगर वहां पहले से महफिल जमी होती थी तो धुर्रे शाह के पहुंचते ही सब से माफी मांग कर महफिल खत्म कर दी जाती थी. हत्या से 10-12 दिन पहले धुर्रे शाह अपने कुछ साथियों के साथ दिलरुबा के कोठे पर गया था. उस समय एक और अपराधी रंगू वहां पहले से बैठा था.
मैं रंगू को जानता था. वह धुर्रे शाह की टक्कर का बदमाश था. लेकिन ताकत और दिलेरी में धुर्रे शाह से कम था. रंगू और धुर्रे शाह की आपस में कोल्ड वार चल रही थी. लेकिन दोनों में से कोई भी खुल कर सामने नहीं आता था, जबकि रंगू उस से दबने वाला आदमी नहीं था.
धुर्रे शाह के आने पर दिलरुबा ने महफिल खत्म होने की बात कही तो रंगू ने कहा कि वह नाचगाना जारी रखे और किसी की परवाह न करे. इस पर दिलरुबा ने बड़े अदब से कहा, ‘‘माफ कीजिए सरकार, आप फिर कभी तशरीफ लाइए, शाहजी के आने पर महफिल खत्म कर दी जाती है.’’
‘‘यह वैश्या का कोठा है, किसी शाह का डेरा नहीं.’’ रंगू ने गुस्से से कहा, ‘‘यहां कोई भी आ सकता है. हम यहां पहले से बैठे हैं, इसलिए हमारा पहला हक बनता है. आप शाहजी को फिर कभी बुला लेना.’’
रंगू की इन बातों पर धुर्रे शाह को गुस्सा आ गया. उस ने फुरती से लंबा सा चाकू निकाल कर रंगू की गरदन पर रख कर कहा, ‘‘चुपचाप यहां से निकल जा, नहीं तो गरदन काट कर रख दूंगा.’’
रंगू भी डरने वाला नहीं था. लेकिन मौत को गरदन पर देख कर वह उठा और चुपचाप चला गया. साथियों के सामने रंगू की बेइज्जती हो गई थी, इसलिए उस ने उसी समय कसम खाई थी कि वह इस अपमान का बदला ले कर रहेगा.
मुखबिर के जाने के बाद मैं ने एएसआई गफ्फार को बुला कर पूरी बात बताई. उस का भी मानना था कि धुर्रे शाह की हत्या रंगू ही ने की है. मैं ने एएसआई से कह दिया कि वह 3-4 सिपाहियों को ले कर रंगू के यहां जाए और उसे थाने ले आए. करीब 2 घंटे बाद वे रंगू को थाने ले आए. आते ही उस ने झुक कर सलाम कर के कहा, ‘‘क्या हुक्म आगा साहब, सेवक को कैसे याद किया?’’
‘‘मुझे चक्कर देने की कोशिश मत करना रंगू.’’ मैं ने कहा, ‘‘जो कुछ भी पूछूं, सीधी तरह से बता देना, तभी फायदे में रहोगे.’’
‘‘आप पूछिए सरकार, गलत बोलूं तो बेशक मेरी खाल उतार कर भूसा भरवा देना.’’ रंगू ने कहा.
‘‘तुम्हें पता है कि धुर्रे शाह मारा गया है?’’ मैं ने पूछा.
‘‘जी सरकार, उड़तीउड़ती खबर मैं ने भी सुनी है कि उस की हत्या हो गई है.’’ रंगू ने कहा.
मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘तुम्हारी भी तो उस से दुश्मनी थी?’’
मेरे इतना कहते ही वह एकदम घबरा गया और नजरें चुराते हुए बोला, ‘‘मेरी भला उस से क्या दुश्मनी हो सकती थी? उस से तो सब डरते थे, मैं भी उस से बचता था.’’
मुझे उस पर गुस्सा आ गया, क्योंकि वह घुमाफिरा कर बात कर रहा था. वह मुझे चक्कर देने की कोशिश कर रहा था. मैं ने डांट कर पूछा, ‘‘तुम्हारी उस के साथ दुश्मनी थी या नहीं?’’
‘‘नहीं सरकार, मेरी उस से कोई दुश्मनी नहीं थी.’’ रंगू ने हकला कर कहा.
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मैं ने मेज पर पड़ा डंडा उठा कर जोर से मेज पर पटक कर कहा, ‘‘खड़ा हो जा.’’
रंगू उछल कर एकदम से खड़ा हो गया.
‘‘दीवार से लग कर खडे़े हो जाओ. मैं ने तुम्हारी इज्जत की थी, कुरसी पर बिठाया था.’’ मैं ने उस के पास जा कर कहा, ‘‘मैं ने तुम से कहा था कि झूठ मत बोलना, लेकिन तुम बराबर झूठ बोल रहे हो. अब देखता हूं कैसे झूठ बोलते हो.’’
पीछे हटतेहटते वह दीवार से जा लगा. वह पक्का बदमाश था, फिर भी वह घबरा रहा था.
मैं ने डंडा उस की गरदन पर रख कर कहा, ‘‘दिलरुबा के कोठे पर क्या हुआ था?’’
रंगू का रंग पीला पड़ गया था, वह मुझे ऐसे देख रहा था, जैसे मैं कोई जादूगर हूं और अंदर की बात जानता हूं. मैं ने कहा, ‘‘वैसे तुम जबान के बहुत पक्के हो. तुम ने धुर्रे शाह से बदला लेने की कसम खाई थी. तुम ने उस की हत्या कर के अपनी कसम पूरी कर ली.’’
‘‘यह गलत है… बिलकुल गलत… मैं ने उस की हत्या नहीं की. आप को किसी ने गलत खबर दी है.’’ रंगू चीखचीख कर अपने बेकसूर होने की कसमें खाने लगा. मौत सामने हो तो बड़ेबड़े अपराधी भीगी बिल्ली बन जाते हैं.
‘‘सचसच बता दोगे तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं.’’ मैं ने उसे फुसलाने की कोशिश की, ‘‘वैसे उस से सभी परेशान थे. तुम ने उस की हत्या कर के अच्छा काम किया है. मैं केस इतना ढीला कर दूंगा कि जज तुम्हें शक का फायदा दे कर बरी कर देगा.’’
रंगू ने रोते हुए हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘बेशक मेरी दिलरुबा के कोठे पर धुर्रे से कहासुनी हुई थी, पर उस की हत्या मैं ने नहीं की है.’’
मैं ने उसे बहुत डराया, घुमाफिरा कर पूछा, लेकिन वह कच्चा खिलाड़ी नहीं था. वह आसानी से बकने वाला नहीं था. मैं ने एएसआई से उसे ले जा कर सच उगलवाने को कहा. अगले दिन मैं ने एएसआई से पूछा कि रंगू ने सच्चाई उगली तो उस ने कहा, ‘‘सर, वह तो पत्थर बन गया है. इतनी पिटाई पर भी कुछ नहीं बोल रहा है.’’
मैं ने उसे अपने पास लाने को कहा, वह आया तो मैं ने कहा, ‘‘रंगू, तुम अपना अपराध स्वीकार कर लो, नहीं तो खाल उधेड़ दूंगा.’’
‘‘आप मालिक हैं सरकार, कुछ भी करें. किसी और का अपराध मैं अपने गले क्यों डाल लूं?’’ उस की आवाज बहुत कमजोर थी. मुझे लगा कि वह सच बोल रहा है. लेकिन मैं उसे इसलिए नहीं छोड़ सकता था, क्योंकि जितनी भी बातें सामने आई थीं, उन में रंगू ही संदिग्ध लग रहा था. मैं ने उसे हवालात में भेज दिया और केस के बारे में सोचने लगा.
कुछ देर बाद मुझे ध्यान आया कि मैं ने दिलरुबा को तो छोड़ ही रखा है, मुझे उस से भी पूछताछ करनी चाहिए. मैं 2 कांस्टेबलों को ले कर उस के कोठे पर पहुंच गया. उस समय दिन के 12 बजे थे. ये लोग रात को जागती हैं और दिन में सोती हैं. जब मैं वहां पहुंचा तो वह नाश्ता कर रही थी.
मेरे पहुंचते ही कोठे वालों के हाथपैर फूल गए. उन्होंने मुझे ड्राइंगरूम में बिठाया. दिलरुबा की मां ने आ कर मुझे नमस्ते कर के कहा, ‘‘मेरे भाग जाग गए सरकार, कहां राजा भोज कहां गंगू तेली. हुक्म करें सरकार, क्या सेवा है?’’
उस से दिलरुबा को बुलाने को कहा तो वह बोली, ‘‘बेबी अभी सो कर उठी है. वह तैयार हो जाएगी तो आ जाएगी. वैसे हुजूर हम से क्या गुस्ताखी हो गई है, जो आप यहां पधारे हैं.’’
मैं ने गुस्से से कहा, ‘‘मेरी बात कान खोल कर सुन लो बाईजी, मैं यहां मुजरा सुनने नहीं आया हूं. मैं यहां सरकारी ड्यूटी पर आया हूं. मेरे पास समय नहीं है. तुम्हारी बेटी जैसी भी है, उसे यहां ले आओ नहीं तो मैं थाने बुलवा कर तफ्तीश करूंगा.’’
वह मेरा चेहरा देख कर डर गई और अंदर जा कर दिलरुबा को बुला लाई. उस की आंखों में अभी भी नींद दिखाई दे रही थी. वह बहुत ही सुंदर थी, उस के चेहरे पर भोलापन साफ दिखाई दे रहा था, जोकि इस तरह की औरतों में नहीं दिखाई देता. वह देहव्यापार में लिप्त नहीं थी, वह केवल नाचती और गाना गाती थी. इसीलिए उस के चेहरे पर भोलापन था और धुर्रे बदमाश उस पर आशिक हो गया था.
दिलरुबा ने खास लखनवी अंदाज में आदाब किया. मैं ने उस की मां से कहा, ‘‘तुम सब दूसरे कमरे में जाओ.’’
सभी चले गए तो मैं ने उस से पूछना शुरू किया. पहले मैं ने इधरउधर की बातें कीं तो उस ने कहा, ‘‘मैं जानती हूं, आप क्यों आए हैं.’’
‘‘क्या जानती हो?’’ मैं ने पूछा.
‘‘आप शाहजी के बारे में पूछने आए हैं. आप उन की हत्या की तफ्तीश कर रहे हैं.’’ उस ने कहा.
धुर्रे शाह ऐसा नामी बदमाश था कि उस की हत्या की खबर पूरे शहर में फैल गई थी. दिलरुबा के चेहरे की उदासी बता रही थी कि उसे उस से प्रेम था. मैं ने उस की इसी कमजोरी का फायदा उठाने का फैसला किया. मैं ने पूछा, ‘‘मैं ने सुना है कि वह यहां रोज आता था.’’
‘‘हां, वह बहुत अच्छा आदमी था,’’ उस ने आह भर कर कहा, ‘‘मेरे कहने से उस ने बदमाशी छोड़ ने का फैसला कर लिया था. अगर उस की हत्या नहीं हुई होती तो मैं ने उस से शादी करने की ठान ली थी.’’
इतना कहतेकहते उसे हिचकी सी आई और वह अपना दुपट्टा मुंह पर रख कर रोने लगी.
‘‘मैं तुम्हारे शाहजी के हत्यारे को पकड़ना चाहता हूं, जिस के लिए मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है. वह तुम से अपने दिल की हर बात कहता रहा होगा. जरा सोच कर बताओ कि क्या कभी उस ने कहा था कि उस की किसी से दुश्मनी थी या झगड़ा हुआ था?’’
‘‘रंगू के साथ यहीं झगड़ा हुआ था.’’ उस ने कहा. उस के बाद उस ने मुझे वह पूरी बात बताई, जो मुझे मुखबिर ने बताई थी.
मैं ने कहा, ‘‘और सोचो, शायद कोई बात मेरे मतलब की निकल ही आए.’’
‘‘वह मुझ से सारी बातें शेयर करता था. एक दिन उस ने बातोंबातों में कहा था कि एक बारात जा रही थी तो उस ने दुलहन को रोक लिया था. वह उसे ले जाने लगा था. उस के रोनेपीटने से उस ने उसे छोड़ दिया था.’’
यह सुन कर मेरे कान खड़े हो गए. यह ऐसा मामला था, जिसे कोई भी इज्जतदार आदमी सहन नहीं कर सकता था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘यह कितने दिनों पुरानी बात है?’’
‘‘लगभग एक हफ्ता पहले की बात है.’’
‘‘उस ने यह तो बताया होगा कि दूल्हा कौन था, बारात कहां से आई थी, दुलहन कौन थी?’’ मैं ने पूछा.
‘‘बारात रहीमपुर वापस जा रही थी.’’
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बाकी दुलहन वगैरह के बारे में उस ने मुझे कुछ नहीं बताया. मेरे लिए इतना ही काफी था. मुझे दूल्हे के गांव का पता चल गया था. मैं ने दिलरुबा से कुरेदकुरेद कर बहुत सारी बातें पूछीं, लेकिन और कोई काम की बात पता नहीं लग सकी. मैं ने कहा कि उस के शाहजी के हत्यारे बहुत जल्द पकड़े जाएंगे.
मैं ने एक महिला मुखबिर को बुलाया, जिस का नाम जकिया था. वह बहुत चालाक औरत थी. घर के पूरे भेद निकाल लाती थी. मैं ने उसे पूरी बात समझा कर रहीमपुर गांव भेज दिया. उस ने मुझे जो नई बात बताई, उस में मुझे दम नजर आया.
उस ने बताया था कि रहीमपुर गांव के खिजर की शादी भलवाल गांव की सलमा से हुई थी. रहीमपुर से गांव भलवाल अधिक दूर नहीं था, गरमियों के दिन थे, इसलिए लड़की वालों ने लड़की को शाम को विदा किया था. दुलहन के साथ लगभग 15-16 आदमी थे. उन दिनों दुलहनें डोली में जाया करती थीं.
4 कहार उस डोली को उठाते थे. सलमा भी डोली में विदा हुई थी. डोली के आगे खिजर घोड़ी पर सवार हो कर चल रहा था. जब सभी रहीमपुर के निकट पहुंचे तो दूल्हा यह कह कर घोड़ी दौड़ा कर रहीमपुर चला गया कि वह दुलहन के स्वागत के लिए सब को इकट्ठा करने जा रहा है.
दुलहन की डोली जब धुर्रे शाह के इलाके में पहुंची तो उस ने डोली रोक ली. उस समय उस के हाथ में लाठी थी. बारात के लोग उसे देख कर डर गए. बाराती यह सोच रहे थे कि यह सब की जेबें खाली करा लेगा, लेकिन उस ने दुलहन को ले जाने का इरादा किया. उन्होंने धुर्रे शाह को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना. उस ने दुलहन को डोली से बाहर निकाल लिया.
दुलहन सलमा बहुत समझदार और हिम्मत वाली लड़की थी. उस ने धुर्रे शाह से कहा, ‘‘मैं ने सुना है कि तुम सैयद हो और मैं भी सैयद हूं. तुम्हें एक सैयदजादी की इज्जत का ख्याल रखना चाहिए और दोनों परिवारों का मानसम्मान करना चाहिए. इस के बाद भी अगर तुम ताकत के नशे में चूर हो तो मेरी एक शर्त है.’’
‘‘क्या शर्त है बताओ? अगर मानने लायक हुई तो जरूर मान लूंगा.’’ धुर्रे शाह ने कहा.
‘‘ऐसा है, मुझे हाथ भी न लगाना और इस समय मुझे घर जाने दो. घर जा कर मैं अपने पति को यह घटना सुनाऊंगी. अगर उस के अंदर जरा भी हिम्मत और ताकत हुई तो वह आ कर तुम से निपट लेगा और अगर उस में हिम्मत नहीं हुई तो मैं उसे छोड़ कर तुम्हारे पास आ जाऊंगी. फिर तुम मुझ से निकाह कर लेना.’’ सलमा ने कहा.
धुर्रे शाह ने उस का यह चैलेंज स्वीकार कर लिया. उस ने कहा, ‘‘मैं 2 सप्ताह का समय देता हूं. अगर इस बीच तेरे पति ने आ कर मेरी हत्या नहीं की तो मैं तेरे घर आ कर उस की हत्या कर के तुझे उठा लाऊंगा और बिना निकाह के घर में पत्नी बना कर रखूंगा.’’
इस के बाद सलमा की डोली घर आ गई. सलमा ने पति खिजर से पूरी बात बता दी. उस के पति ने कहा, ‘‘चिंता की कोई बात नहीं है. मैं धुर्रे शाह से निपट लूंगा और तुम्हारी इज्जत की पूरी रक्षा करूंगा.’’
उस के बाद खिजर ने मौके पर मौजूद गवाह रिश्तेदारों से यह बात कह दी, साथ ही यह भी कहा कि यह बात किसी को भी न बताएं. लेकिन सलमा पेट की हल्की थी, उस ने अपनी सहेली से सब बता दिया. उसी सहेली के द्वारा यह बात पुलिस की मुखबिर जकिया तक पहुंच गई थी.
जकिया ने मेरा काम आसान कर दिया. मुझे पूरा यकीन था कि धुर्रे शाह की हत्या खिजर ने ही की थी. मैं ने पुलिस टीम खिजर को गिरफ्तार करने के लिए भेज दी. पर वह घर पर नहीं मिला. घर वालों से पूछा गया तो उन्होंने भी अनभिज्ञता जाहिर की. तब मैं ने एक मुखबिर की ड्यूटी उस के घर पर लगा दी. 3 दिनों बाद मुझे उस मुखबिर ने सूचना दी तो मैं रात 11 बजे एएसआई और 4 सिपाहियों को ले कर खिजर के घर पहुंच गया.
मैं ने खिजर के घर दस्तक दी तो कुछ देर बाद एक बूढ़े आदमी ने दरवाजा खोला. पुलिस को देख कर वह घबरा गया. वह उस का बाप था. मैं ने उस से खिजर के बारे में पूछा तो उस ने मेरी ओर बेबसी से देखा और अंदर गया और एक जवान आदमी को ले कर बाहर आया. मुखबिर ने कहा कि यही खिजर है.
खिजर ने खुद को पुलिस के हवाले कर दिया. मैं ने उस से धुर्रे की हत्या के बारे में पूछा तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने उस की हत्या की थी. इस के बाद अपने घर से वह कुल्हाड़ी भी ले आया, जिस से उस ने धुर्रे की हत्या की थी.
थाने में खिजर से विस्तार से पूछताछ की गई तो उस ने कहा, ‘‘जब सलमा ने मुझे पूरी बात बताई तो मेरा खून खौल उठा. मैं ने उसी समय धुर्रे शाह की हत्या करने का इरादा बना लिया. लेकिन धुर्रे शाह इतना बड़ा बदमाश था कि उस की आसानी से हत्या नहीं की जा सकती थी. इसलिए मैं मौके की तलाश में था. मुझे पता था कि अगर मैं ने धुर्रे शाह की हत्या नहीं की तो वह मेरी हत्या कर के सलमा को उठा ले जाएगा. मैं ने बहुत ही अच्छी कुल्हाड़ी बनवा रखी थी और उसे हमेशा अपने साथ रखता था.’’
घटना वाले दिन रात 8-9 बजे वह अपने घर जा रहा था. अंधेरे में अचानक उसे गंदे नाले के पास धुर्रे शाह दिखाई दिया. वह गाना गा रहा था और नशे के कारण डगमगा कर चल रहा था. उस ने इस मौके को उचित समझा और उस के पास जा कर कुल्हाड़ी का एक जोरदार वार उस की गरदन पर कर दिया.
धुर्रे शाह के मुंह से हाय की आवाज निकली और वह गिर पड़ा. खिजर ने 2 वार और किए, ढलान होने के कारण वह नाले में गिर गया. उस ने इधरउधर देखा कोई दिखाई नहीं दिया. घर आया और कुल्हाड़ी धो कर घर में दीवार पर टांग दी. उस ने अपनी पत्नी और पिता को सब कुछ बता दिया.
जो मारा गया था, वह समाज के लिए एक तकलीफ देने वाले फोड़े की तरह था. उस ने शरीफ लोगों का जीना हराम कर रखा था. मुझे खिजर पर दया आ रही थी, उस की अभीअभी शादी हुई थी. मैं नहीं चाहता था कि वह किसी मुसीबत में फंसे. मैं ने जो केस तैयार किया, उस में 2 कमियां छोड़ दीं, जो खिजर को मुकदमे में मदद कर सकती थीं.
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मुकदमा चला, खिजर का वकील कमजोर था, मेरी छोड़ी हुई 2 कमियों का वह लाभ नहीं उठा सका. उसे जज ने 7 साल की सजा सुनाई. मैं ने खिजर के बाप को समझाया कि वह सेशन में अपील करे और कोई दूसरा समझदार वकील करे. उस ने यही किया. सेशन कोर्ट में मुकदमा चला तो उस काबिल वकील ने मेरी छोड़ी हुई कमियों का पूरा फायदा उठाया, जिस के बाद कोर्ट ने उसे दोषमुक्त कर दिया.
‘‘दीदी.’’ स्वरा चौंक उठी, अरे, यह तो श्रेया की आवाज है. वह उल्लसित मन से छोटी बहन की ओर लपकी, ‘‘अरे तू, आने की सूचना भी नहीं दी, अचानक कैसे आना हुआ?’’
‘‘कुछ न पूछो दीदी, कंपनी का एक सर्वे है, उसी के लिए मुझे 2 माह तक यहीं रहना है. बस, मैं तो बहुत ही खुश हुई, आखिर इतने दिन मुझे अपनी बहन के साथ रहने को मिलेगा,’’ कह कर श्रेया अपनी दीदी स्वरा के गले में झूल गई. स्वरा को भी खूब खुशी हो रही थी, आखिर श्रेया उस की दुलारी बहन जो थी.
‘‘स्वरा, एक कप चाय देना,’’ अमित ने गुहार लगाई.
जी, अभी लाई, कह कर स्वरा चाय ले जाने को तत्पर हो गई.
‘‘लाओ दीदी, मैं जीजू को चाय दे आती हूं,’’ कह कर श्रेया ने बहन के हाथ से चाय की ट्रे ले ली और अमित के कमरे की ओर बढ़ी. कमरा खुला था, परदे पड़े थे. उस ने झांक कर देखा, अमित की पीठ दरवाजे की ओर थी. वह अपना कोई प्रोजैक्ट तैयार कर रहा था. श्रेया ने चाय साइड टेबल पर रख दी और अमित की आंखों को अपने हाथों से बंद कर दिया. अमित हड़बड़ा गया, ‘‘क्या है स्वरा, आज बड़ा प्यार आ रहा है. क्या दिल रंगीन हो रहा है. अरे भई, दरवाजा तो बंद कर लो.’’ अमित ने श्रेया को स्वरा समझ कर अपनी ओर खींच लिया, श्रेया भरभरा कर अमित की गोद में आ गिरी.
‘‘हाय, जीजू क्या करते हैं, मैं आप की पत्नी नहीं, बल्कि श्रेया हूं, आप की इकलौती साली. क्यों, चौंक गए न,’’ श्रेया संभलती हुई बोली.
‘‘हां, चौंक तो गया ही, चलो कोई बात नहीं, आखिर साली भी तो आधी घरवाली होती है,’’ अमित ने ठहाका लगाया.
‘‘क्या बात है, बड़े खुश हो रहे हो,’’ स्वरा भी वहीं आ गई.
‘‘हां भई, खुशी तो होगी ही. अब इतनी सुंदर साली को पा कर मन पर काबू कैसे रखा जा सकता है. दिल ही तो है, मचल गया,’’ अमित ने शोखी से कहा.
‘‘हुं, ज्यादा न मचलें, थोड़ा काबू रखो. मेरी बहन कोई सेंतमेत की नहीं है, जो किसी का भी दिल मचल जाए,’’ स्वरा ने अमित को छेड़ा और दोनों बहनें हंसती हुई कमरे से बाहर आ गईं.
दिन के साढ़े 10 बजे रहे थे. श्रेया को सर्वे के लिए निकलना था. वह तैयार होने चली गई. अमित भी औफिस के लिए तैयार होने चला गया. दोनों साथ ही निकले. श्रेया आटो के लिए सड़क की ओर बढ़ने लगी कि तभी अमित ने पीछे से आवाज दी, ‘‘रुको साली साहिबा, तुम्हारी प्रोजैक्ट साइट मेरे औफिस के रास्ते में ही है, मैं तुम्हें ड्रौप कर दूंगा.’’ स्वरा ने भी हां में हां मिलाई और श्रेया लपक कर अमित की बगल वाली सीट पर बैठ गई.
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अमित ने कहा, ‘‘बैल्ट लगा लो श्रेया, यहां ट्रैफिक रूल्स बहुत सख्त हैं.’’
श्रेया ने बैल्ट लगाने की कोशिश की लेकिन वह लग नहीं रही थी. शायद कहीं फंसी हुई थी. उस ने बेबसी से अमित की ओर देखा. अमित समझ गया और थोड़ा झुक कर बैल्ट को खींचने लगा कि अचानक बैल्ट खुल गई. श्रेया झटका खा कर अमित की ओर लुढ़क गई. ‘‘सौरी,’’ उस ने धीरे से कहा. ‘‘ओके, जरा ध्यान रखा करो.’’ अमित ने गाड़ी बढ़ाते हुए कहा.
अब यह प्रतिदिन का नियम बन गया था. अमित श्रेया को उस की साइट पर छोड़ता और शाम को लौटते हुए उसे साथ में ले भी लेता था. वैसे तो यह एक सामान्य बात थी. जब दोनों का समय और रास्ता भी एक ही था तो साथ आनेजाने में कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन यह प्रतिदिन का जो साथ था, वह बिना किसी रिश्ते के एक अनजाने रिश्ते की ओर बढ़ रहा था.
अमित युवा था और उस का दिल सदैव उन्मत्त रहता था. रूपसी पत्नी के साहचर्य ने उसे और भी अधिक शोख बना दिया था. सुंदर स्त्रियों के साथ उसे आनंद आता था. अब हर समय उसे स्वरा का साथ तो उपलब्ध नहीं होता था तो वह अकस्मात ही अन्य स्त्रियों की ओर आकर्षित होने लगता था. वह सोचता भी था कि यह गलत है, किंतु आंखें? उन का क्या, उन्हें बंद तो नहीं किया जा सकता था. उन्हें देखने से कोई कैसे रोक सकता था.
श्रेया भी युवा थी, अपरिमित सौंदर्य की स्वामिनी थी. उस का हृदय जबतब मचलता रहता था. पुरुषों की सौंदर्यलोलुप दृष्टि का वह आनंद उठाती थी. पुरुष साहचर्य की कामना भी करती थी परंतु अपनी मर्यादाओं को समझते हुए. एक बार उस की किसी नवविवाहिता सहेली ने उसे बताया था, ‘पुरुष का प्रथम स्पर्श बहुत ही मधुर होता है.’ यह सुन कर वह रोमांचित हो उठी थी.
उसे अमित का साथ अच्छा लगने लगा था. यद्यपि कि उसे अपने पर शर्म भी आती थी कि वह जो कुछ भी कर रही है, वह गलत है. अमित उस की ही बहन का सुहाग है. जिस की ओर देखना भी उचित नहीं है, किंतु मन, उस का क्या, उस पर तो किसी का वश नहीं चलता है.
श्रेया यौवन के नशे में चूर थी और पुरुष साहचर्य की कामना करती रहती थी जो विवाह से पूर्व संभव न था. लेकिन अमित के साथ सट कर बैठना, उस के साथ घूमनाफिरना सब बहुत लुभावना लगता था.
उसे अपनी बहन की आंखों में देखते हुए भय लगता था क्योंकि उन आंखों में अनेक संशयभरे प्रश्न होते थे जिन का उस के पास कोईर् जवाब नहीं होता था. वह कभी भी अपनी दीदी से आंख मिला कर बात नहीं कर पाती थी.
स्वरा सब देख, समझ रही थी. उसे आश्चर्य भी होता था और दुख भी. आश्चर्य अमित के रवैए पर था, वह पत्नी को कम से कम समय देता, खानेपीने में अरुचि दिखाता, उस के व्यवहार में आए इस परिवर्तन से स्वरा अनभिज्ञ नहीं थी. दुख इस बात का था कि उस की प्यारी छोटी बहन उसे ही धोखा दे रही थी.
दिनप्रतिदिन श्रेया और अमित की नजदीकियां बढ़ती जा रहीं थी. अब उन्हें इस बात की कोई भी चिंता नहीं होती थी कि स्वरा शाम की चाय पर उन की प्रतीक्षा कर रही होगी. वे दोनों तो घूमतेफिरते रात्रि के 8 बजे से पूर्व कभी भी घर नहीं पहुंचते थे. स्वरा जब भी अमित से देरी का कारण पूछती तो उत्तर श्रेया देती, ‘‘हां दीदी, जीजू तो समय पर लेने के लिए आ गए थे किंतु मेरा मन कुल्फी खाने का कर रहा था और मार्केट वहां से दूर भी बहुत है. अब समय तो लगता ही है न.’’ और कभी कौफी का बहाना, कभी ट्रैफिक का बहाना. स्वरा इन सब बातों का मतलब समझती थी. ‘‘और चाय,’’ वह धीमे से पूछती.
‘‘अब चाय क्या पिएंगे, सीधे खाना ही खिला देना, क्यों जीजू.’’
‘‘हां, और क्या, वैसे भी बहुत थक गया हूं. जल्दी ही सोना चाहूंगा,’’ अमित उबासी लेने लगता.
इधर सुबह दोनों जल्दी ही उठ कर कंपनीबाग सैर करने जाते थे. कभी भी स्वरा से चलने के लिए नहीं कहते थे. स्वरा मन ही मन कुढ़ती थी और समस्या के निराकरण का उपाय भी सोचती थी जो उसे जल्दी ही मिल गया. वह भी अकेली ही सैर पर निकल पड़ी और जौगिंग करते हुए अमित तथा श्रेया की बगल से हाय करते हुए मुसकरा कर आगे बढ़ गई. दोनों भौचक्के से उस की ओर देखने लगे. स्वरा को ट्रैक सूट में देख कर अमित अपनी आंखें मलने लगा, यह स्वरा का कौन सा अनोखा रूप था जिस से वह अपरिचित था.
घर आ कर स्वरा ने टेबल पर नाश्ता लगा दिया और उन दोनों का इंतजार किए बिना स्वयं नाश्ता करने लगी. तभी अमित भी आ गया, ‘‘यह क्या मैडम, आज मेरा इंतजार नहीं किया, अकेले ही नाश्ता करने बैठ गई.’’
‘‘तो क्या करती? जौगिंग कर के आई हूं. भूख भी कस कर लग आई है, फिर खाने के लिए किस का इंतजार करना.’’ स्वरा ने टोस्ट में औमलेट रख कर खाते हुए कहा. अमित तथा श्रेया दोनों ने ही स्वरा में आए इस बदलाव को महसूस किया. दोनों ने अपनाअपना नाश्ता खत्म किया और तैयार होने कमरे में चले गए.
‘‘स्वरा, मेरा टिफिन लगा दिया?’’ अमित ने हांक लगाई.
‘‘नहीं तो, रोज ही तो खाना वापस आता है. मैं ने सोचा क्यों बरबाद किया जाए और श्रेया तो यों भी फिगर कौंशस है. वह तो दोपहर में जूस आदि ही लेती है. ऐसे में खाना बनाने का फायदा ही क्या?’’ स्वरा ने तनिक कटाक्ष के साथ कहा, ‘‘और हां अमित, घर की डुप्लीकेट चाबी लेते जाना क्योंकि आज शाम को मैं घर पर नहीं मिलूंगी. मेरा कहीं और अपौइंटमैंट है.’’
‘‘कहां?’’ अमित को आश्चर्य हुआ. उन के विवाह को 2 वर्ष बीत चले थे. कभी भी ऐसा नहीं हुआ था कि अमित आया हो और स्वरा घर पर न मिली हो.
‘‘अरे, मैं तुम्हें बताना भूल गई थी, विशेष आया हुआ है,’’ स्वरा के स्वर में चंचलता थी.
‘‘कौन विशेष? क्या मैं उसे जानता हूं?’’ अमित ने तनिक तीखे स्वर में पूछा.
‘‘नहीं, तुम कैसे जानोगे. कालेज में हम दोनों साथ थे. मेरा बैस्ट फ्रैंड है. जब भी कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम कालेज में होता था, हम दोनों का ही साथ होता था. क्यों श्रेया, तू तो जानती है न उसे,’’ स्वरा श्रेया से मुखातिब हुई. श्रेया का चेहरा बेरंग हो रहा था, धीमे से बोली, ‘‘हां जीजू, मैं उसे जानती हूं. वह घर भी आता था. आप की शादी के समय वह कनाडा में था.’’
‘‘अरे, स्वरा ने तो कभी अपने किसी ऐसे दोस्त का जिक्र भी नहीं किया,’’ अमित के स्वर में रोष झलक रहा था.
‘‘यों ही नहीं बताया. अब भला अतीत के परदों को क्या उठाना. जो बीत गया, सो बीत गया,’’ स्वरा ने बात समाप्त की और तैयार होने के लिए चली गई. अमित तथा श्रेया भौचक एकदूसरे को देख रहे थे.
‘यह कौन सा नया रंग उस की पत्नी उसे दिखा रही थी.’ अमित हैरान था, सोचता रह गया. वह तो यही समझता था कि स्वरा पूरी तरह उसी के प्रति समर्पित है. उसे तो इस का गुमान तक न था कि स्वरा के दिल के दरवाजे पर उस से पूर्व कोई और भी दस्तक दे चुका था और वह बंद कपाट अकस्मात ही खुल गया.
‘‘जीजू चलें?’’ श्रेया तैयार खड़ी थी.
‘‘आज मैं औफिस नहीं जाऊंगा, तुम अकेली ही चली जाओ,’’ अमित ने अनमने स्वर में कहा और अपने कमरे में चला गया. भड़ाक, दरवाजा बंद होने की आवाज से श्रेया चिहुंक उठी. ‘तो क्या जीजू को ईर्ष्या हो रही है विशेष से,’ वह सोचने को विवश हो गई.
इधर अमित बेचैन हो रहा था. वह सोचने लगा, ‘मैं पसीनेपसीने क्यों हो रहा हूं. आखिर क्यों मैं सहज नहीं हो पा रहा हूं. हो सकता है दोनों मात्र दोस्त ही रहे हों. तो फिर, मन क्यों गलत दिशा की ओर भाग रहा है. मैं क्यों ईर्ष्या से जल रहा हूं और फिर पिछले 2 वर्षों में कभी भी स्वरा ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिस से मेरा मन सशंकित हो. वह पूरी निष्ठा से मेरा साथ निभा रही है, मेरी सारी जरूरतों का ध्यान रख रही है. मेरा परिवार भी उस के गुणों और निष्ठा का कायल हो चुका है. तो फिर, ऐसा क्यों हो रहा है.
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‘क्या तू ने उस के प्रति पूरी निष्ठा रखी?’ उस के मन से आवाज आई, ‘क्या श्रेया को देख कर तेरा मन डांवाडोल नहीं हो उठा, क्या तू ने श्रेया के संग ज्यादा अंतरंगता नहीं दिखाई? कितने दिनों से तू ने स्वरा को अपने निकट आने भी नहीं दिया, क्यों? आखिर क्यों? क्या तेरे प्यार में बेवफाई नहीं है?’
‘नहींनहीं, मेरे प्यार में कोई भी बेवफाई नहीं’, वह बड़बड़ा उठा, ‘श्रेया हमारी मेहमान है. उस का पूरी तरह खयाल रखना भी तो हमारा फर्ज है, इसीलिए स्वरा को श्रेया के साथ, उसी के कमरे में सोने के लिए कहा ताकि उसे अकेलापन न लगे. मेरा ऐसा कोई बड़ा अपराध भी नहीं है.’ अमित ने स्वयं को आश्वस्त किया लेकिन शंका का नाग फन काढ़े जबतब खड़ा हो जाता था.
शाम के 7 बज गए. ‘कहां होगी, अभी तक आई नहीं, अमित कल्पनाओं के जाल में उलझता जा रहा था. क्या कर रहे होंगे दोनों, शायद फिल्म देखने गए होंगे. फिल्म, नहींनहीं, आजकल कैसीकैसी फिल्में बन रही हैं, पता नहीं दोनों स्वयं पर काबू रख पा रहे होंगे भी, या नहीं. अमित का मन उद्वेलित हो रहा था, जी में आ रहा था कि अभी उठे और दोनों को घसीटते हुए घर ले आए. शादी मुझ से, प्यार किसी और से. अरे, जब उसी का साथ निभाना था तो मना कर देती शादी के लिए,’ अमित का पारा सातवें आसमान पर चढ़ता जा रहा था.
‘अब तो सिनेमा भी खत्म हो गया होगा, फिर कहां होंगे दोनों, क्या पता किसी होटल में गुलछर्रे उड़ा रहे हों. आखिर विशेष होटल में ही तो ठहरा होगा. हो सकता है दोनों एक भी हो गए हों,’ उस का माथा भन्ना रहा था. तभी मोबाइल बज उठा, ‘अरे, यह तो स्वरा का फोन है. अच्छा तो जानबूझ कर छोड़ गई है ताकि मैं उसे कौल भी न कर सकूं. देखूं, किस का फोन है.’ उस ने फोन उठाया. स्वरा के पापा का फोन था. ‘‘हैलो’’ उस का स्वर धीमा किंतु चुभता हुआ था.
‘‘अरे बेटा अमित, मैं बोल रहा हूं, स्वरा का पापा. कैसे हो बेटा? स्वरा कहां है? जरा उसे फोन देना.’’
‘‘स्वरा अपने किसी दोस्त के साथ बाहर गई है. मैं घर पर ही हूं. बताइए, क्या बात है?’’ अमित के स्वर में खीझ स्पष्ट थी.
‘‘गुड न्यूज है. तुम्हें भी सुन कर खुशी होगी. अरे भई, श्रेया का विवाह निश्चित हो गया है. बड़ा ही अच्छा लड़का मिल गया है. अब श्रेया को नौकरी छोड़नी पड़ेगी क्योंकि लड़का कनाडा में सैटल्ड है. वह तो अचानक ही आ गया, घर भी आया था. हम उसे पहले से जानते हैं. विशेष नाम है उस का. स्वरा के साथ ही तो पढ़ता था.’’
अब यह कौन सा मित्र है स्वरा का जो अचानक ही आ गया और जिस का नाम भी विशेष ही है, और जो श्रेया से विवाह करने को भी राजी हो गया, अमित सोचने पर विवश हो गया. ‘‘अच्छा, बड़ी खुशी हुई. वैसे स्वरा का एक कोई और भी मित्र है विशेष, जो यहां आया हुआ है और पूरे दिन से स्वरा उसी के साथ है, अभी तक घर नहीं लौटी,’’ अमित का स्वर व्यंग्यात्मक था लेकिन उधर से फोन पर टूंटूं की आवाज आ रही थी. शायद नैटवर्क चला गया था.
आने दो स्वरा को, आज फैसला करना ही होगा. आखिर वह चाहती क्या है. अरे जब उसी के साथ रंगरेलियां मनानी थीं तो मुझ से विवाह क्यों किया. मेरे प्यार में उसे क्या कमी नजर आई, जो वह दूसरे के साथ समय बिता रही है. मैं चुप हूं, इस का मतलब यह तो नहीं कि मुझे कुछ बुरा नहीं लग रहा है. और ये विशेष, बड़ा चालाक लगता है, इधर स्वरा से संबंध बनाए हुए है और उधर श्रेया से विवाह करने को भी तैयार है. मतलब यह कि अपने दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहता है. आखिर यह क्या रहस्य है, कहीं वो दोनों को तो मूर्ख नहीं बना रहा है.
डोरबैल बज उठी. उस ने दरवाजा खोला. स्वरा ही थी. दरवाजा खोल वह कमरे में आ कर चुपचाप लेट गया. स्वरा ने अंदर आ कर देखा, कमरे में अंधेरा है और अमित लेटा हुआ है. ‘‘अरे, अंधेरे में क्यों पड़े हो, लाइट तो जला लेते.’’ उस ने स्विच औन करते हुए कहा.
‘‘रहने दो स्वरा, अंधेरा अच्छा लग रहा है. हो सकता है रोशनी में तुम मुझ से आंखें न मिला सको’’, उस के स्वर में तड़प थी.
‘‘क्यों, ऐसा क्या हो गया है जो मैं तुम से आंखे न मिला सकूंगी,’’ स्वरा ने तीखे स्वर में कहा.
‘‘तुम अच्छी तरह जानती हो, क्या हुआ है और क्या हो रहा है. मैं बात बढ़ाना नहीं चाहता. मुझे नींद आ रही है, लाइट बंद कर दो, सोना चाहता हूं,’’ कह कर उस ने करवट बदल लिया.
स्वरा मन ही मन मुसकरा उठी, ‘तो तीर निशाने पर लगा है, जनाब बरदाश्त नहीं कर पा रहे हैं.’ उस ने भी तकिया उठा लिया और सोने की कोशिश करने लगी.
सुबह उठ कर उस ने अपनी दिनचर्या के अनुसार सारे काम किए. अमित तथा श्रेया को बैड टी दी. डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगा दिया और नहाने के लिए जाने को हुई तभी उस का मोबाइल बज उठा. अमित जल्दी से फोन उठाने के लिए लपका, तभी स्वरा ने उठा लिया. स्क्रीन पर नाम देख कर मुसकराने लगी. ‘हैलो, हांहां, पूरा प्रोग्राम वही है, कोई भी फेरबदल नहीं है. मैं भी बस तैयार हो कर तुम्हारे पास ही आ रही हूं.’ फोन रख कर उस ने बड़े ही आत्मविश्वास से अमित की ओर मुसकरा कर देखा.
अमित की आंतें जलभुन गईं. आज फिर कहां जा रही है, लगता है पर निकल आए हैं, कतरने होंगे, घर के प्रति पूरी तरह समर्पित, भीरू प्रवृत्ति की स्त्री इतनी मुखर कैसे हो गई, क्या इसे मेरी तनिक भी चिंता नहीं है. इस तरह तो यह मुझे धोखा दे रही है. क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है. इस के पापा ने तो बताया था कि विशेष से श्रेया की शादी फिक्स हो गई है तो फिर यह क्या है? इसी ऊहापोह में फंसा हुआ वह अपने कमरे में जा कर धड़ाम से बैड पर गिर गया. आज फिर औफिस की छुट्टी हो गई, लेकिन कब तक? आखिर कब तक? वह इसी प्रकार छुट्टी लेता रहेगा. बस, अब कुछ न कुछ फैसला तो करना ही है. वह सोचने पर विवश था.
तभी, श्रेया ने धीरे से परदा हटा कर झांका, ‘‘जीजू, आज शाम की फ्लाइट से मैं मांपापा के पास पुणे वापस जा रही हूं. मैं ने अपना त्यागपत्र कंपनी को भेज दिया है. अब जब अगले माह मेरी शादी हो रही है और मुझे कनाडा चले जाना है तो जौब कैसे करूंगी.’’
अमित मौन था. उस ने श्रेया को यह भी नहीं बताया कि उस के पापा का फोन आया था और वह इन सब बातों से अवगत है. श्रेया अपने कमरे में चली गई पैकिंग करने. अमित बैड पर करवटें बदल रहा था मानो अंगारों पर लोट रहा हो.
दरवाजे की घंटी की आवाज पर अमित ने दरवाजा खोला. स्वरा ही थी. ‘‘आ गईं आप? अमित के स्वर में व्यंग्य था, ‘‘बड़ी जल्दी आ गईं, अभी तो रात के 10 ही बजे हैं. इतनी भी क्या जल्दी थी, थोड़ी देर और एंजौय कर लेतीं.’’
‘‘शायद, तुम ठीक कह रहे हो’’, स्वरा ने मुसकरा कर अंदर आते हुए कहा, ‘‘तुम दोनों की फिक्र लगी थी, भूख लगी होगी, अब खाना क्या बनाऊंगी, कहो तो चीजसैंडविच बना दूं. चाय के साथ खा लेना.’’
‘‘बड़ी मेहरबानी आप की. इतनी भी जहमत उठाने की क्या जरूरत है. श्रेया शाम की फ्लाइट से पुणे वापस चली गई है. तुम्हारे पापा का फोन आया था. मैं ने भी खाना बाहर से और्डर कर के मंगा लिया था. तुम टैंशन न लो. जाओ, सो जाओ,’’ अमित ने कुढ़ते हुए कहा और सोने लगा.
स्वरा मन ही मन हंस रही थी. कैसी मिर्च लगी है जनाब को, कितने दिनों से मैं जो उपेक्षा की शरशय्या पर लोट रही थी, उस का क्या. न तो मैं मूर्ख हूं, न ही अंधी, जो इन दोनों की बढ़ती नजदीकियों को समझ नहीं पा रही थी या देख नहीं पा रही थी.
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अरे, अमित तो पुरुष है भंवरे की प्रवृत्ति वाला, जहां कहीं भी सौंदर्य दिखा, मंडराने लगा. यद्यपि ऐसा कभी भी नहीं हुआ कि पिछले 2 वर्षों में उस ने कभी भी अपनी बेवफाई का कोई भी परिचय दिया हो, लेकिन श्रेया, वह तो मेरी सगी बहन है, मेरी ही मांजायी. क्या उसे मेरा ही घर मिला था सेंध लगाने को. अमित से निकटता बढ़ाने से पूर्व क्या उसे एक बार भी मेरा खयाल नहीं आया. किसी ने सच ही कहा है, ‘आग और फूस एक साथ रहेंगे तो लपटें तो उठेंगी हीं,’ जिन्हें वह स्पष्ट देख रही थी. उस ने मन ही मन निश्चय ले लिया था कि यह बात अब और आगे नहीं बढ़ने देगी.
सुबह वह थोड़ा निश्ंिचत हो कर उठी. नहाधो कर नाश्ता लगाया. ‘‘अमित, श्रेया इतनी जल्दी क्यों चली गई. आज भी तो जा सकती थी,’’ उस ने सामान्य लहजे में कहा.
‘‘तो तुम्हें क्या, तुम अपनी लाइफ एंजौय करो. तुम्हें तो यह भी नहीं पता होगा कि श्रेया की शादी विशेष के साथ तय हो गई है. जो अगले माह में होगी. तुम्हारे पापा का ही फोन आया था. अरे हां, यह विशेष कहीं वही तो नहीं जिस के साथ तुम घूमफिर रही हो,’’ अमित ने चुभने वाले लहजे में कहा.
अब स्वरा चुप न रह सकी, ‘‘हां, वही है. बताया तो था हम लोग क्लासमेट थे. तुम मिलना चाहो तो लंच पर बुला लेते हैं. और उस ने फोन लगा दिया. अमित हैरान था. इस के पापा ने तो बताया था कि विशेष वहां आया हुआ है तो फिर ये किस के साथ 2 दिनों से घूमफिर रही थी.’’
स्वरा ने बड़ा ही शानदार लंच बनाया था. सभी कुछ अमित की पसंद का था. पालक पनीर, भरवां करेले, मटर पुलाव, फू्रट सलाद, पाइनऐप्पल रायता और केसरिया खीर. 2 बजे दरवाजे की घंटी बज उठी. अमित ने दरवाजा खोला, सामने उस के मामा की बेटी निधि खड़ी मुसकरा रही थी. वह स्वरा की भी खास सहेली बन गई थी.
‘‘हाय दादा, भाभी कहां हैं?’’
‘‘वह तो किचन में है. उस का कोई दोस्त लंच पर आने वाला है. बस, उसी की तैयारी कर रही है,’’ अमित हड़बड़ा गया था.
‘‘अच्छा, तो भाभी से कहिए उन का दोस्त आ गया है,’’ निधि मुसकरा रही थी.
‘‘क्या? कहां है?’’ अमित का माथा चकरा रहा था.
‘‘आप के सामने ही तो है.’’
‘‘तुम?’’
‘‘सच, भाभी बहुत मजेदार हैं. 2 दिनों से जो मजे वे कर रही थीं, वर्षों से नहीं किए थे.’’
‘पूरे दिनदिन भर साथ रहना, रात में देर से आना,’ अमित उलझन में था. तभी पीछे से हंसती हुई स्वरा ने आ कर अमित के गले में अपनी बांहें डाल दीं, ‘‘हां अमित, ये हम दोनों की मिलीभगत थी,’’ स्वरा के स्वर में मृदु हास्य का पुट था.
‘‘दादा, और श्रेया कहां है, भाभी कह रही थीं आजकल आप उस के साथ घूमफिर व खूब मौजमस्ती कर रहे हैं,’’ निधि के स्वर में तल्खी थी.
‘‘अरे भई, इन्हीं की बहन की आवभगत में लगा था ताकि श्रेया को यह न लगे कि मैं उस की अवहेलना कर रहा हूं. आखिर वह मेरी इकलौती साली है और फिर सौंदर्य किसे आकर्षित नहीं करता. फिर, हमारे बीच दोस्ती ही तो थी,’’ अमित ने सफाई पेश की ताकि वह असल बात को छिपा सके.
‘‘अच्छा, वाह दादा, दोस्ती क्या ऐसी थी कि रात में देरदेर से आते थे. अकसर बाहर ही खापी लेते थे.’’
अब अमित खामोश था. उस की कुछ भी कहनेसुनने की अब हालत नहीं थी. सच ही तो है, जब 2 दिनों से स्वरा उस के बगैर ही एंजौय करती रही, तब वह भी तो जलभुन रहा था और वह तो इतने दिनों से मेरी उपेक्षा की शिकार हो रही थी. जबकि उस के समर्पण में कोई भी कमी न थी. तो स्वरा ने गलत क्या किया?
अकस्मात उस ने स्वरा को अपनी बाहों में उठा लिया और गोलगोल चक्कर काटते हुए हंसतेहंसते बोला, ‘‘भई वाह, तुम्हें तो राजनीति में होना चाहिए था. मेरी ओर से तुम्हारा गोल्ड मैडल पक्का.’’
स्वरा भी उस के गले में बाहें डाले झूल रही थी. उस का सिर अमित के सीने पर टिका था. निधि ने दोनों का प्यार देख कर वहां से चली जाना ही उचित समझा. उसे लगा कि दोनों के बीच कुछ था जो अब नहीं है. अब उस के वहां होने का कोई औचित्य भी नहीं था. उस ने राहत की सांस ली और गेट से बाहर आ गई.
ललित हमेशा की तरह अपने चैंबर में कुरसी पर बैठे काम में तल्लीन थे. उन की नजरें कभी लैपटौप की स्क्रीन पर तो कभी साथ में रखी फाइल के पन्नों पर पड़ रही थीं. उंगलियां कौर्डलैस माउस को कभी इधरउधर खिसकातीं तो कभी किसी कमांड को क्लिक करतीं. ऐसा लगता था कि मानो वे किसी खोई हुई जानकारी को ढूंढ़ रहे हों. शायद किसी लंबे व जरूरी ईमेल का जवाब तैयार कर रहे थे. चेहरे पर थोड़ा सा तनाव. तभी पास में रखा हुआ उन का फोन बज उठा.
आशीष का फोन था. और कोई होता तो शायद ‘कैन आई कौल यू लैटर’ वाले बटन को दबा कर अपने काम में व्यस्त हो जाते, लेकिन आशीष को उत्तर देना उन्होंने ठीक समझा.
दरअसल, आशीष, ललित की बेटी सुरेखा का बहनोई था. बात ऐसी थी कि ललित एक बहुत ही सुलझे हुए जीवंत व्यक्तित्व के मालिक और कैरियर की सीढ़ी में खूब ही सफल व्यक्ति थे. रुड़की आईआईटी से विद्युत यांत्रिकी की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड में सहायक अभियंता के पद पर नियुक्त हुए थे. और फिर अपने कैरियर की तमाम सीढि़यां जल्दीजल्दी फांदते हुए और उस यात्रा में अलगअलग स्थानों में अनुभव प्राप्त करते आज झांसी के निकट स्थित परीछा बिजली संयंत्र के सब से बड़े अधिकारी, यानी मुख्य अभियंता के पद पर आसीन थे. उन को 30 वर्षों से भी अधिक कार्य करने का अनुभव प्राप्त था.
ललित फोन उठाते ही बोले, ‘‘हैलो आशीष, क्या हाल हैं, कैसे याद किया?’’
‘‘हैलो अंकल, अंकल, आई होप आई एम नौट डिस्टरबिंग यू, आर यू इन औफिस अंकल?’’ आशीष का उत्तर था.
ललित तपाक से बोले, ‘‘मैं औफिस में हूं, लेकिन डिस्टरबैंस की कोई बात नहीं है. बोलो, क्या कोई खास बात? सब ठीक तो है?’’
आशीष ने कहा, ‘‘अंकल कोई खास बात तो नहीं, मुझे अपना कुछ सामान आप के घर में रखवाना है.’’
ललित ने तुरंत ही कहा, ‘‘हांहां, क्यों नहीं, पर अचानक? हुआ क्या है?’’
आशीष बताना शुरू करता है, फिर अपनेआप ही सलाह देते हुए अंकल से अनुमति लेता है कि क्या वह और उस की पत्नी शीतल, शाम को उन के घर आ कर सब बातें विस्तार से बता सकते हैं.
ललित उस की बात फौरन ही मान लेते हैं और उन्हें डिनर साथ करने का न्योता भी दे देते हैं. उस दिन ललित घर थोड़ा जल्दी पहुंच जाते हैं और अपनी पत्नी नमिता को आशीष के फोन का जिक्र करने के साथ डिनर की तैयारी करने का अनुरोध करते हुए यह भी कहते हैं कि आज मुझे आशीष की आवाज में थोड़ी सी घबराहट छिपी दिखी, हालांकि मैं गलत भी हो सकता हूं.
थोड़ी सी देर इस विषय पर बातचीत करतेकरते दोनों पतिपत्नी अपने में ही पिछले 4-5 वर्षों की घटनाओं का स्मरण करते विचारमग्न हो जाते हैं.
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दरअसल, ललित और नमिता की एक ही बेटी थी सुरेखा. वह बहुत ही लाड़प्यार से पली थी. उन्होंने अपनी बेटी का विवाह बड़ी ही धूमधाम से डैस्टिनेशन वैडिंग के तौर पर उदयपुर से किया था. शीतल, सुरेखा के पति नंदन की एकमात्र बहन थी जो पहले से विवाहित थी और एक प्यारे से पुत्र की मां थी. विवाह बहुत ही अच्छे से संपन्न हुआ. लेकिन विवाह के अगले दिन ही, सुरेखा की विदाई से पहले शीतल के पति अमित का उदयपुर में ही एक कार ऐक्सिडैंट में निधन हो गया. इस अजीब सी घटना से जहां एक ओर शीतल, उस का भाई नंदन और कानपुर निवासी उन के वृद्ध मातापिता दुख के सागर में डूब गए, वहीं सुरेखा दुख के साथसाथ एक गिल्ट की भावना भी अपने अंदर महसूस करने लगी. ऐसी स्थिति में सुरेखा के पिता ललित और पति नंदन ने बड़े धैर्य के साथ और सूझबूझ से समय को संभाला. विदाई की रस्म जैसेतैसे संपन्न हुई और शीतल अपने मातापिता व पुत्र पार्थ के साथ कानपुर आ गई. नंदन एवं सुरेखा लखनऊ आ बसे अपने नए विवाहित जीवन को बसर करने. नंदन लखनऊ में बैंक की एक शाखा में प्रबंधक के पद पर आसीन था.
शीतल के मातापिता ने उस को और उस के 1 वर्ष के पुत्र पार्थ को बहुत ही लाड़ और दुलार के साथ रखा. बेटी के दुख और उस के सिर पर आई एक नई जिम्मेदारी को उन्होंने खूब ही समझदारी के साथ बांटा और पार्थ को पिता के नहीं होने का आभास नहीं होने दिया. इस तरह से वक्त गुजरता गया. नंदन और सुरेखा जब तब लखनऊ से आ जाते और शीतल व पार्थ के साथ समय गुजारते.
यों तो परिवार के हर सदस्य के मन में यह प्रश्न आता ही था कि क्या शीतल को दूसरे विवाह के बारे में सोचना चाहिए. किंतु सुरेखा इस प्रश्न को उजागर करती रहती थी. शायद कहीं अपराधबोध शीतल के मन में अनावश्यक तौर पर प्रवेश कर गया था कि यह दुर्घटना उस के इस परिवार में आने से हुई.
‘मैं दूसरे विवाह के बारे में सोच भी कैसे सकती हूं, अमित का चेहरा हर समय मेरी आंखों के सामने रहता है,’ शीतल अपना तर्क देती थी.
लेकिन, जैसा कहा गया है, समय हर दर्द के ऊपर मरहम का कार्य करता ही रहता है. इसी तरह 4 साल गुजर गए और अनायास एक दिन शीतल ने सुरेखा को फोन पर बताया, ‘मैं जीवनसाथी डौट कौम में यों ही सर्च कर रही थी तो मुझे एक लड़का पसंद आया.’
‘हां, हां, फिर?’ सुरेखा ने और बताने के लिए कहा.
‘सुरेखा, पता नहीं सही है कि गलत, मैं उस लड़के से मिल भी चुकी हूं और हम ने एकदूसरे के साथ जीवनसाथी बनने का वादा भी कर लिया है.’
‘दीदी, यह तो बहुत ही अच्छी खबर है, जल्दी से बताओ न, कौन है वह, क्या करता है, कहां रहता है, नाम क्या है?’ सुरेखा अपना उतावलापन रोक नहीं पा रही थी.
‘बताती हूं, बताती हूं, अरे भई, मुंबई में रहता है, एक प्राइवेट कंपनी में काफी अच्छी जौब करता है और देखने में भी अच्छाखासा है, हैंडसम है और नाम है आशीष,’ कह कर शीतल ने अपने मन की सारी बातें सुरेखा को बता दीं.
सुरेखा कहां रुकने वाली थी, उस ने उसी शाम अपने पति नंदन को बताया. और थोड़ी देर विचारविमर्श करने के बाद दोनों झटपट कानपुर के लिए रवाना हो गए. कानपुर में नंदन ने इस बात का खुलासा अपने माता और पिताजी को किया और फिर शीतल को बीच में बिठा कर सब ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी.
नंदन ने पूछा, ‘दीदी, तुम ने सबकुछ ठोकबजा कर देख लिया है न? उस की पहली शादी क्यों टूटी, यह पता लगाया?’
शीतल ने कहा, ‘हांहां, अपनी समझ से सबकुछ पूछ लिया है. उस की पहली पत्नी एक मुसलिम लड़की है जो कि मिजाज की बहुत चिड़चिड़ी थी. अपने जिद्दीपन और तुनकमिजाजी के कारण उस ने आशीष का जीना हराम कर रखा था. अब 1-2 वर्ष हो गए, आशीष अलग ही रहते हैं.’
‘दीदी, लेकिन कानूनी तौर पर तलाक लिया हुआ है कि नहीं?’ नंदन ने पूछा, ‘और फिर पार्थ का क्या होगा?’ सभी प्रश्नों का उत्तर शीतल ने धैर्य के साथ दिया. उस ने बताया कि आशीष तलाक की कोशिश में लगे हैं और वह हो ही जाएगा. और जहां तक पार्थ का प्रश्न है, आशीष ने उसे पूरी तरह आश्वास्त किया हुआ था कि वह उसे बेटे की तरह अपना लेगा. उस ने यह भी बताया कि अगले महीने आशीष मुंबई से लखनऊ किसी काम से आ रहे हैं और यदि सब को मंजूर हो तो वह नंदन के घर जा कर सब से मिलने के लिए भी तैयार है.
और ऐसा ही हुआ. आशीष के लखनऊ आते ही नंदन ने फोन कर के उसे अपने घर डिनर पर बुला लिया. शीतल कानपुर से पहले ही आ गई थी. नंदन और सुरेखा आशीष से मिल
कर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने उस से वे सभी प्रश्न पूछ डाले जो शीतल के अच्छे भविष्य को सुनिश्चित कर सकते थे.
‘आशीषजी, आप ने कानूनीतौर पर तलाक नहीं लिया है तो आगे चल कर कोई परेशानी तो नहीं होगी?’ नंदन का प्रश्न था.
‘देखिए नंदनजी, मैं ने अपने पिछले विवाह की हर बात शीतल को बता दी है. मैं तलाक के पेपर्स भी फाइल करने वाला हूं. और वैसे भी, पिछले 1-2 सालों से मेरी उस से कोईर् बात नहीं हुई है, आशीष का उत्तर था.
आशीष के हंसमुख स्वभाव ने सभी का मन जीत लिया था.
सुरेखा और नंदन ने इस मुलाकात के बाद फौरन ललित को फोन किया. सुरेखा ने कहा, ‘डैडी, देयर इज अ गुड न्यूज. शीतल दी ने एक लड़का पसंद कर लिया है, बहुत अच्छा है, आप की क्या राय है?’
‘बेटी, बहुत अच्छी बात है, लेकिन सबकुछ सोचसमझ लेना चाहिए,’ ललित का नपेतुले अंदाज में उत्तर था. फिर बापबेटी ने काफी देर इस विषय पर बात की.
कुछ वक्त और गुजर गया और महज इत्तफाक की बात कि आशीष का तबादला झांसी में हो गया. सुरेखा के लिए यह बहुत अच्छी खबर थी. जहां एक जोर शीतल व नंदन के मातापिता कुछ भी निर्णय लेने में हिचकिचा सा रहे थे, सुरेखा को पूरा विश्वास था कि उस के डैडी आशीष से मिलने के बाद एकदम सही सलाह और मार्गदर्शन देंगे.
हुआ भी यही. ललित ने आशीष को घर पर बुला कर उस से मुलाकात की और उन की सलाह पर सभी लोग इस बात पर राजी हो गए कि इन दोनों की शादी जल्दी ही कर देनी चाहिए.
ललित ने यह भी प्रस्ताव दे दिया कि विवाह पारीछा में आयोजित हो क्योंकि आशीष स्वयं भी अब झांसी में रहता था और पारीछा बिजली संयंत्र झांसी से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
जल्दी ही आशीष ने अपने मातापिता को झांसी में बुलवा लिया. ललित के पास साधनों की कमी नहीं थी. सभी लोगों के ठहरने की व्यवस्था पारीक्षा में आसानी से हो गई और जल्दी ही आशीष व शीतल का विवाह रीतिरिवाज के साथ संपन्न हुआ. पार्थ के बचपन को अब पिता की कमी नहीं रही.
ललित और उस की पत्नी नमिता दोनों ही विचारों में जैसे खोए से हुए थे कि अचानक नमिता जैसे नींद से चौंक कर उठती हुई बोल पड़ी, ‘‘अरे उठिए, वक्त का अंदाजा है आप को, वो लोग आते ही होंगे. दोनों तुरंत ही गतिशील हुए और जल्दी फ्रैश हो कर अपनी चिरपरिचित अभिवादन की मुद्रा में बैठ गए. जल्दी ही आशीष, पत्नी शीतल उन के घर पहुंच गए. आशीष के साथ एक बड़ा सा सूटकेस और एक दस्तावेजों का फोल्डर था.
आरंभिक औपचारिकताओं के तुरंत बाद आशीष ने प्रार्थनास्वरूप कहा, ‘‘अंकल, यह सूटकेस हमें आप के घर में रखवाना है और ये कुछ दस्तावेज हैं जो आप को अपने पास संभाल कर रखने हैं.’’
‘‘बेटा, यह आप का ही घर है. जो सामान रखवाना है रखो, किंतु अचानक, बात क्या है?’’ ललित ने कहा.
‘‘अंकल, मेरे ऊपर पुलिस केस हो गया है और शायद वारंट भी इश्यू हो गया हो. और ये सब नौशीन ने किया है, मेरी पहली पत्नी. मुझे आप से सलाह भी लेनी है,’’ आशीष ने कहा.
आश्चर्यचकित होते हुए ललित ने अपने सधे हुए अंदाज में कहा, ‘‘देखो आशीष बेटे, मैं ने तुम से पहले कभी नहीं पूछा किंतु आज जब यह समस्या आ खड़ी हुई है तो मुझे ठीक तरह से और सिलसिलेवार अपनी पिछली जिंदगी के बारे में सबकुछ बताओ.’’
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आशीष ने लंबी सांस ली और अपनी कहानी बताने लगा :
उस की कहानी के अनुसार, नौशीन 21 बरस की एक मुसलिम लड़की थी. सुंदर, छरहरी लेकिन मिजाज की काफी बिगड़ी हुई. देखने में टीवी सीरियलों की सुंदर अभिनेत्री से कम नहीं लगती थी. उस का शादी डौट कौम के माध्यम से आशीष से परिचय होता है. कुछ रोज दोनों एकदूसरे से मिलतेमिलाते हैं और फिर एकदूसरे के बहुत करीब आ जाते हैं. एक तरह की आसक्ति या यह कहें कि प्रेमांधता में, दोनों शादी का फैसला कर लेते हैं.
नौशीन और आशीष आर्य समाज मंदिर में जाते हैं और वहां उन का विवाह हो जाता है. मात्र विवाह के उद्देश्य से नौशीन ऊपरी तौर पर हिंदू धर्म अपना लेती है.
हनीमून और शुरुआत के कुछ दिन ठीक गुजरते हैं लेकिन फिर उन के आपसी संबंधों में कड़वाहट आनी शुरू हो जाती है. दोनों के परिवारों में भी इस संबंध को ले कर तनाव सा रहता था. आशीष के मातापिता ने तो इस संबंध को अपने बेटे की खुशी के लिए स्वीकार कर लिया था लेकिन नौशीन के पिता ने बिलकुल भी नहीं, खासतौर से उस की मां इस रिश्ते से बिलकुल खुश नहीं थी. वह जिद पर अड़ी हुई थी कि मुसलिम रीति से निकाह होना चाहिए.
आशीष एक सुलझा हुआ, हंसमुख और व्यावहारिक व्यक्ति था. नौशीन और उस की मां के सारे नखरे व झल्लाहटों को सहन करते हुए जीवन की गाड़ी को आगे बढ़ाता जा रहा था. इस तरह से करीब 4 साल निकल गए और फिर एक दिन आशीष ने घुटने टेक दिए और मुसलिम रीति के अनुसार निकाह होने के बाद शब्बीर अली के नाम से निकाहनामा तैयार हो गया.
एकदो वर्ष और बीत गए लेकिन उन के रिश्ते में मिठास अभी भी न आ सकी. नौशीन एक झक्की और जिद्दी लड़की की तरह पेश आती थी और उस की मां गरम तेल में पानी के छीटे फेंकने का काम करती रहती थी. आखिरकार उन्होंने अलगअलग रहने का फैसला कर लिया.
करीब डेढ़ साल के अंतराल से आशीष का जीवनसाथी डौट कौम के माध्यम से शीतल नाम की एक विधवा लड़की से संपर्क हुआ. यह लड़की एक बहुत ही संतुलित व पढ़ीलिखी थी जिस का एक बेटा भी था.
आशीष अपने इतिहास के बारे में बतातेबताते वर्तमान में आ चुका था कि तभी नमिता ने आग्रह किया, ‘‘क्या हम लोग बाकी बातें डाइनिंग टेबल पर बैठ कर नहीं कर सकते? ये लोग सिटी से आए हैं, भूख लग रही होगी.’’
ललित तुरंत मान गए और खाने के लिए बैठतेबैठते उन्होंने कहा, ‘‘बेटा आशीष, इस के बाद का तो हम लोगों को भी मालूम है और हम लोग तुम दोनों से ही बड़े खुश हैं.’’ ललित और नमिता इस बात की चर्चा आपस में पहले भी कर चुके थे कि कितनी अच्छी तरह आशीष ने पार्थ को अपने बेटे की तरह अपनाते हुए शीतल के जीवन में फिर से खुशियां भर दी थीं. शीतल ने भी आशीष के जीवन में भरपूर मिठास भर दी थी, उस की मनपसंद पत्नी के रूप में.
‘‘तो अब बताओ, अभी क्या हुआ?’’ ललित ने कौर मुंह में डालते हुए पूछा.
‘‘अंकल, फेसबुक ने गड़बड़ कर दी,’’ शीतल ने कहा.
‘‘फेसबुक ने? क्या मतलब?’’ नमिता और ललित चकित हुए.
‘‘बल्कि यों कहिए कि मैं ने गड़बड़ कर दी,’’ शीतल बोली.
हुआ यों था कि आशीष पार्थ और शीतल को ले कर गोवा गया हुआ था. उस ने बड़े ही उत्साह और शौक से औफिस से छुट्टी ले कर यह कार्यक्रम बनाया था. शीतल ने तमाम तसवीरें फेसबुक में पोस्ट कर दीं जिन में पतिपत्नी की नजदीकियां और एक अत्यंत सुखी परिवार की झलकियां स्पष्ट नजर आती थीं.
नौशीन, जिस का पिछले डेढ़ साल से कुछ अतापता नहीं था लेकिन जो शायद आशीष की फ्रैंड्स लिस्ट में अभी भी थी, इन तस्वीरों को देख कर भड़क गई.
आशीष के पास उस का फोन आया और फोन में उस ने साफसाफ कह दिया, ‘आशीष, मुझे छोड़ कर तुम ने दूसरी शादी कर ली है और तुम्हारा एक बच्चा भी है, और तसवीरों में तुम्हारे चेहरे पर कितनी खुशी और कितना सुख दिख रहा है. मैं यह कतई नहीं सह सकती.’
यों तो नौशीन ने पुरानी जिंदगी को भुला कर अपनी जिंदगी को अपनी तरह जीना सीख लिया था लेकिन आशीष की खुशी देख कर जैसे उस के अंदर की दबी हुई आग भड़क सी गईर् हो और उस दिन के बाद से शीतल और आशीष की अच्छीखासी चल रही जिंदगी में परेशानियां ही परेशानियां आ गईं.
लखनऊ के आलमबाग थाने से आशीष के पास फोन आया और उसे थाने में बुलाया गया. निर्धारित तिथि पर ही आशीष झांसी से ट्रेन से लखनऊ पहुंचा और सीधे आलमबाग थाने में गया. थाने के एक बड़े अधिकारी ने आशीष को विस्तार से नौशीन द्वारा दर्ज शिकायत पढ़ कर सुनाई और बताया कि यह मामला गंभीर हो सकता है और भलाई इसी में है कि आपसी बातचीत से सुलझा लिया जाए. दूसरे ही दिन फैमिली कोर्ट के एक अधिकारी ने दोनों को बुलवाया और उन की काउंसिलिंग शुरू की.
किंतु नौशीन कहां मानने वाली थी. एक घायल शेरनी की तरह, फेसबुक की कुछ तसवीरों का विवरण देती हुई और क्रोध में आ कर, वह एक ही बात दोहरा रही थी कि ‘या तो ये वापस आ जाएं मेरे पास, या फिर अदालत इन को जेल में बंद कर दे.’
और धीरेधीरे आशीष के लाख मनाने के बावजूद नौशीन के वकील ने धारा 494, धारा 504 इत्यादि लगा कर आशीष पर दहेज की मांग, अत्याचार, घरेलू हिंसा के इल्जाम लगा दिए.
आशीष और शीतल ने भी मामले के लिए एक वकील को तय किया. वकील को पता चला कि इस मामले में आशीष का पक्ष काफी कमजोर है, क्योंकि बिना किसी तलाकनामे के उस की दूसरी शादी नहीं हो सकती थी.
बहरहाल, आशीष के वकील ने यह तर्क दिया कि उस की पहली शादी भी कानूनी नहीं थी, इसलिए तलाक का प्रश्न ही कहां उठता है. लेकिन इस तरह के मामलों में महिला पक्ष को हमेशा प्राथमिकता मिलती है. कोर्ट की तारीखें, सुनवाईर् और तारीखों के मुल्तवी होने का सिलसिला शुरू हो गया. मुसीबतें इतनी बढ़ती गईं कि आशीष और शीतल को पुलिस के छापे के डर से झांसी में 2 बार अपने किराए के घर को बदलना पड़ा.
और आज उन दोनों का ललित श्रीवास्तव के घर में आने का मकसद यही था कि वो सारा सामान, वो सारे दस्तावेज जो ये साबित कर सकते हैं कि शीतल, आशीष के साथ रहती है, कहीं और रखवा दिए जाएं.
‘‘हूं,’’ ललित ने लंबी हुंकार भरी और कहा, ‘‘बेटा, तुम लोग डेजर्ट तो लो, तुम ने तो खाना भी ठीक से नहीं खाया, चावल तो लिए ही नहीं.’’
दरअसल, ललित खुद सोचविचार में पड़ गए थे. उन्हें आशीष और शीतल को देने के लिए उपयुक्त सलाह तुरंत नहीं सूझ रही थी. औपचारिक बातें कर के अपने मन को सोचने का कुछ समय देना चाह रहे थे. बोले, ‘‘आशीष, कानूनी रास्ते से मुझे कुछ समाधान निकलता नजर नहीं आ रहा है. फिर भी अपने खास मित्र, जो कि वकील हैं, से विचारविमर्श कर के देख लेता हूं.’’
इस बात को 4 ही दिन हुए होंगे कि ललित अपनी निजी कार ले कर आशीष को फोन से इत्तिला कर के उस के घर पर पहुंच गए. तुरंत काम की बात पर आते हुए बोले ‘‘देखो बेटा, मैं ने अपने मित्र से काफी विस्तार में बात की है. कानूनी रास्ते से हम थोड़ा समय अवश्य खरीद सकते हैं लेकिन केस जीत नहीं सकते, समय और पैसे की बरबादी अलग.’’
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‘‘तो अंकल, और कोई रास्ता है?’’ आशीष ने पूछा
‘‘अवश्य, कोई न कोई रास्ता तो निकलेगा ही. अच्छा यह बताओ और जरा सोच कर बताओ कि नौशीन को जीवन में सब से ज्यादा क्या अच्छा लगता था? या कोई ऐसी ख्वाहिश जो वह पूरी करना चाहती थी मगर हो नहीं पा रही थी?’’
‘‘अंकल, नौशीन का एक जबरदस्त सपना था कि वो भारत से दूर विदेश में जा कर जीवन बसर करे. हमारी शादी के बाद भी वह कई बार इस बात को बोलती थी कि हम किसी तरह से अमेरिका या यूरोप में चले जाएं और संपन्नता के साथ वहां जीवन बसर करें. मैं ने इस दिशा में प्रयास भी किया लेकिन मेरी फील्ड में बाहर नौकरी मिलनी मुश्किल थी.’’
ललित उठे और उन्होंने चेहरे पर एक सीमित सी मुसकान ओढ़ ली कि मानो कुछ खोजप्राप्ति हुई हो. फिर जातेजाते बोले, ‘‘आशीष, हम लोगों को कुछ काम करना होगा.’’
उस दिन के बाद से ललित अत्यंत व्यस्त हो गए. सरकारी कार्य के अलावा उन्होंने मानो एक प्रोजैक्ट की परिकल्पना की और फिर उस को पूरा करने के लिए पूरी तरह से जुट गए. आशीष और शीतल इस प्रोजैक्ट में उन के सहायक बन गए. नमिता भी समयसमय पर अपनी सलाह देती रहती थीं. सब यही सोच कर चकित रहते थे कि कैसे इतने ऊंचे ओहदे में रहते हुए भी वे किसी की सहायता के लिए समय निकाल लेते थे.
उन्होंने शादी डौट कौम में नौशीन जैसी एक लड़की की प्रोफाइल पंजीकृत कर दी और फिर तलाश में लग गए. सर्च के लिए जो मानदंड उन्होंने निर्धारित किए वो थे ‘अमेरिका’, ‘मुसलिम’, ‘उच्च वेतन श्रेणी’.
अथक प्रयास का परिणाम, 2 बहुत ही अच्छी प्रोफाइलें ललित और आशीष ने शौर्टलिस्ट कर लीं.
फोन पर ललित ने ही बात की, लड़की के चाचा के रूप में.
बात करने से ही ललित ने अंदाजा कर लिया कि शहजाद नाम के एक विधुर पुरुष से बातचीत आगे बढ़ाना ठीक रहेगा. हालांकि उस की और नौशीन की उम्र में करीब 10-12 साल का अंतर होगा लेकिन उस की परिपक्वता और उस की एक मुसलिम समाज से बीवी खोजने की बेकरारी देखते हुए, ललित ने शहजाद पर ही दांव लगाना ठीक समझा.
शहजाद को सलाह दी गई कि वह नौशीन से सीधे फोन पर बात करे, अपनी इच्छा जाहिर करे और उस से भारत आ कर मिलने का कार्यक्रम बनाए.
निशाना शायद सही जगह पर लगा था. 2 महीने के अंतराल में शहजाद, जिस का सैनफ्रांसिस्को में खुद का व्यवसाय था, ने भारत के 2 चक्कर लगा लिए. शहजाद और ललित के बीच में बात तय हो चुकी थी कि शहजाद उसे इस अंकल के बारे में तभी बताएगा जब उस का नौशीन से संबंध भलीभांति स्थपित हो जाएगा. और ऐसा ही हुआ अब शहजाद और नौशीन ने एकदूसरे के साथ बंधने का फैसला लिया, शहजाद ने नौशीन की बेसब्री तोड़ और अंकल ललित के बारे में बतलाया.
शहजाद ने न केवल नौशीन की बात ललित अंकल से करवाई बल्कि मोबाइल की उसी बातचीत में ललित को उन के निकाह पर आने का न्योता भी दे दिया. और कुछ ही रोज के बाद नौशीन का शहजाद के साथ लखनऊ के आलमबाग स्थित एक घर में मुसलिम रीति के साथ निकाह हुआ. ललित वहां मौजूद थे. उन्होंने दोनों को मुबारकबाद भी दी और जीवनभर प्यार से साथ रहने की सलाह भी.
नौशीन ने पूछ ही लिया, ‘‘अंकल, अब तो बता दीजिए कि आप कौन हैं? और हमारी मदद क्यों करना चाहते थे.’’
‘‘मैं बस तुम्हारी और आशीष की जिंदगी में खूब सारी खुशियां भर देने के लिए आया हूं. और किसी को खुशियां बांटने के लिए वक्त वजह नहीं ढूंढ़ा करता,’’ ललित ने हलकी सी मुसकराहट के साथ कहा.
‘‘तो आप वो महान शुभचिंतक हैं,’’ नौशीन बोली.
‘‘नहीं बेटा, मैं एक सामान्य इंसान हूं और कोशिश करता रहता हूं कि इंसानियत कायम रहे,’’ यह कह कर ललित वहां से चल दिए.
कुछ ही दिनों में नौशीन ने एक खत लिख कर आशीष को अपनी बंदिशों से मुक्त कर दिया. उसे नौशीन के वकील से भी एक पत्र मिला जिस के द्वारा वह कानूनीतौर से भी सभी इल्जामों से मुक्त हो गया.
नौशीन अपनी आगे की जिंदगी जीने को अमेरीका रवाना हो गई, आशीष और शीतल की खुशियां फिर से वापस आ गईं हमेशा के लिए.
रमेश्वर आज अपनी पहली कमाई से सोमरू के लिए नई धोती और कजरी के लिए चप्पल लाया था. अपनी मां को उस ने कई बार राजा ठाकुर के घर में नईनई लाललाल चप्पलों को ताकते देखा था. वह चाहता था कि उस के पिता भी बड़े लोगों की तरह घुटनों के नीचे तक साफ सफेद धोती पहन कर निकलें, पर कभी ऐसा हो न सका था.
कजरी ने धोती और चप्पल संभाल कर रख दी और बेटे को समझा दिया कि कभी शहर जाएंगे तो पहनेंगे. गांव में बड़े लोगों के सामने सदियों से हम छोटी जाति की औरतें चप्पल पहन कर नहीं निकलीं तो अब क्या निकलेंगी.
कजरी मन ही मन सोच रही थी कि इन्हीं चप्पलों की खातिर राजा ठाकुर के बेटे ने कैसे उस से भद्दा मजाक किया था और घुटनों से नीचे तक धोती पहनने के चलते भरी महफिल में सोमरू को नंगा किया गया था. कजरी और सोमरू धौरहरा गांव में रहते थे. सोमरू यानी सोनाराम और कजरी उस की पत्नी.
सोमरू कहार था और अपने पिता के जमाने से राजा ठाकुरों यहां पानी भरना, बाहर से सामान लाना, खेतखलिहानों में काम करना जैसी बेगारी करता था.
राजा ठाकुरों की गालीगलौज, मारपीट जैसे उस के लिए आम बात थी. कजरी भी उस के साथसाथ राजा ठाकुरों के घरों में काम करती थी.
कजरी थी सलीकेदार, खूबसूरत और फैशनेबल भी. काम ऐसा सलीके से करती थी कि राजा ठाकुरों की बहुएं भी उस के सामने पानी भरती थीं.
एक दिन आंगन लीपते समय कजरी घर की नई बहू की चमचमाती नईनई चप्पलें उठा कर रख रही थी कि राजा ठाकुर के बड़े बेटे की नजर उस पर पड़ गई. उस ने कहा, ‘‘कजरी, चप्पल पहनने का शौक हो रहा है क्या…? बोलो तो तुम्हारे लिए भी ला दें, लेकिन सोमरू को मत बताना. हमारीतुम्हारी आपस की बात रहेगी.
‘‘तुम्हारे नाजुक पैर चप्पल बिना अच्छे नहीं लगते. सब के सामने नहीं पहन सकती तो क्या हुआ… मेरा कमरा है न… रात को मेरे कमरे में पहन कर आ जाना. कोई नहीं देखेगा मेरे अलावा.’’
कजरी का मन हुआ कि चप्पल उस के मुंह पर मार दे, पर क्या करती… एक भद्दी सी गाली दे कर चुप रह गई. कजरी आंगन लीप कर हाथ धोने बाहर जा रही थी तभी देखा कि राजा साहब सोमरू को बुला रहे थे.
सोमरू घर के बाहर झाड़ू लगा रहा था. राजा ठाकुर भरी महफिल के सामने गरजे, ‘‘अबे सोमरू, बहुत चरबी चढ़ गई है तुझे. कई दिन से देख रहा हूं तेरी धोती घुटनों से नीची होती जा रही है. राजा बनने का इरादा है क्या?
‘‘जो काम तुम्हारे बापदादा ने नहीं किया, तुम करने की जुर्रत कर रहे हो? लगता है, जोरू कुछ ज्यादा ही घी पिला रही है…’’ और राजा साहब ने सब के सामने उस की धोती खोल कर फेंक दी.
भरी सभा में यह सब देख कर लोग जोरजोर से हंसने लगे. एक गरीब आदमी सब के सामने नंगा हो गया था. सोमरू को तो जैसे काठ मार गया.
सोमरू इधरउधर देख रहा था कि कहीं कजरी उसे देख तो नहीं रही. दरवाजे के पीछे खड़ी कजरी को उस ने खुद देख लिया. वह जमीन में गड़ गया.
कजरी दरवाजे की ओट से सब देख रही थी. शरीर जैसे जम सा गया था. वह जिंदा लाश की तरह खड़ी थी.
कजरी और सोमरू एकदूसरे से नजरें नहीं मिला पा रहे थे. आखिर क्या कहते? कैसे दिलासा देते? दोनों अंदर ही अंदर छटपटा रहे थे.
कजरी ने सोमरू की थाली जरूर लगाई, पर वह रातभर वैसी ही पड़ी रही. दोनों पानी पी कर लेट गए, पर नींद किस की आंखों में थी? उन का दर्द इतना साझा था कि बांटने की जरूरत न थी.
कजरी का दर्द पिघलपिघल कर उस की आंखों से बह रहा था, पर सोमरू… वह तो पत्थर की मानिंद पड़ा था. कजरी के सामने बारबार अपने पति का भरी सभा में बेइज्जत किया जाना कौंध जाता था और सोमरू को कजरी की डबडबाई आंखें नहीं भूल रही थीं.
कजरी और सोमरू की जिंदगी यों ही बीत रही थी. बेटे रमेश्वर को उन्होंने जीतोड़ मेहनतमजदूरी, कर्ज ले कर पढ़ाया लिखाया था.
सोमरू चाहता था कि उस के बेटे को कम से कम ऐसी जलालत भरी जिंदगी न जीनी पड़े. जिंदा हो कर भी मुरदों जैसे दिन न काटने पड़ें.
रमेश्वर पढ़लिख कर एक स्कूल में टीचर हो गया था और शहर में ही रहने लगा था. सोमरू चाहता भी नहीं था कि वह गांव लौटे. उन का बुढ़ापा जैसेतैसे कट ही जाएगा, पर बेटा खुशी और इज्जत से तो रहेगा.
सोमरू की एक आस मन में ही दबी थी कि वह और कजरी साथ घूमने जाएं. कजरी अपनी मनपसंद चप्पल पहन कर उस के साथ शहर की चिकनी सड़क पर चले, जो रमेश्वर उस के लिए लाया था.
सोमरू अपने मन की आस किसी के सामने कह भी नहीं सकता था और कजरी को तो बिलकुल भी नहीं बता सकता था. कहां खाने के लाले पड़े थे और वह घूमने के बारे में सोच रहा है.
जमुनिया ताल के किनारे कजरी एक दिन बरतन धो रही थी. सोमरू भी वहीं बैठा था. उस दिन सोमरू ने अपने मन की बात कजरी को बताई, ‘‘बुढ़ापा आ गया कजरी, पर मन की एक हुलस आज तक पूरी न कर पाया. चाहता था कि कसबे में चल रहे मेले में दोनों जन घूम आएं.’’
सोमरू एक बार उसे चप्पल पहने देखना चाहता था, जैसे नई ठकुराइन अपने ब्याह में पहन कर आई थीं.
रमेश्वर कितने प्यार से लाया था अपनी पहली कमाई से, पर इस गांव में यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी. जिंदगी बीत गई. अब जाने कितने दिन बचे हैं. एक बार मेला भी देख लें. कितना सुना है उस के बारे में. यह इच्छा पूरी हो जाए, फिर चाहे मौत ही क्यों न आ जाए, शिकायत न होगी.
कजरी को लगा कि सोमरू का दिमाग खिसक गया है. यह कोई उम्र है चप्पल पहन कर घूमने की. सारी जिंदगी नंगे पैर बीत गई. जब उम्र थी तब तो कभी न कहा कि चलो घूम आएं. अब बुढ़ापे में घूमने जाएंगे. उस समय तो कजरी ने कुछ न कहा, पर कहीं न कहीं सोमरू ने उस की दबी इच्छा जगा दी थी.
रात में कजरी सोमरू को खाना खिलाते समय बोली, ‘‘कहते तो तुम ठीक ही हो. जिंदगीभर कमाया और इस पापी पेट के हवाले किया. कुछ पैसा जोड़ कर रखे थे कि बीमारी में काम आएगा, पर लगता है कि अब थोड़ा हम अपने लिए भी जी लें, खानाकमाना तो मरते दम तक चलता ही रहेगा. पेट ने कभी बैठने दिया है इनसान को भला?’’
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दोनों ने अगले महीने ही गांव से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर ओरछा के मेले में जाने की योजना बनाई.
पूरे महीने दोनों तैयारी करते रहे. पैसा इकट्ठा किया. कपड़ेलत्ते संभाले. गांव वालों को बताया. बेटों को बताया. नातेरिश्तेदारों को खबर की कि कोई साथ में जाना चाहे तो उन के साथ चले. आखिर कोई संगीसाथी मिल जाएगा तो भला ही होगा. जाने का दिन भी आ गया, पर कोई तैयार न हुआ.
गांव से 4 किलोमीटर पैदल जा कर एक कसबा था, जहां से ओरछा के लिए सीधी ट्रेन जाती थी. दोनों बूढ़ाबूढ़ी भोर में ही गांव से पैदल चल दिए.
स्टेशन तक पहुंचतेपहुंचते सूरज भी सिर पर आ गया था. 11 बजे दोनों ट्रेन में खुशीखुशी बैठ गए. आखिर बरसों की साध पूरी होने जा रही थी.
कजरी घर से ही खाना बना कर लाई थी. दोनों ने खाया और बाहर का नजारा देखतेदेखते जाने कब सफर पूरा हो गया, पता ही न चला.
रात में दोनों एक धर्मशाला के बाहर ही सो गए. अगले दिन सुबह मेले में शामिल हुए. पूरा दिन वहीं गुजारा. कजरी ने एकसाथ इतनी दुकानें कभी न देखी थीं. हर दुकान के सामने खड़ी हो कर वह वहां रखे चमकते सामान को देखती और अपनी गांठ में बंधे रुपयों पर हाथ फेरती. दुकान में घुस कर दाम पूछने की हिम्मत न पड़ती.
एक दुकान में दुकानदार के बहुत बुलाने पर सोमरू और कजरी घुसे. कजरी वहां रखी धानी रंग की चुनरी देख कर पीछे न हट सकी.
सोमरू ने उस के लिए डेढ़ सौ रुपए की वह चुनरी खरीद ली और दुकान से बाहर आ गए. अब सोमरू के पास कुछ ही पैसे बचे थे. वह सोच रहा था कि कजरी के पास भी कुछ रुपए होंगे. उस ने पूछा तो कजरी ने हां में सिर हिला दिया.
कजरी ने जातबिरादरी में बांटने के लिए टिकुली, बिंदी, फीता, चिमटी के अलावा और भी बहुत सा सामान खरीदा. आखिर वह इतने बड़े मेले में आई थी. पासपड़ोसी, नातेरिश्तेदार सब को कुछ न कुछ देना था. खाली हाथ वापस कैसे जाती.
कजरी आज जब चप्पल पहन कर चल रही थी, सोमरू को रानी ठाकुराइन के गोरेगोरे महावर सजे पैर याद आ गए. कजरी के पैर आज भी गोरे थे और सुहागन होने के चलते महावर उस के पैरों में हमेशा लगा रहता था.
कजरी लाललाल चप्पल पहन कर जैसे आसमान में उड़ रही थी. आज उसे किसी के सामने चप्पल उतारने की जरूरत न थी. लोग उसे देख रहे थे और वह लोगों को.
सोमरू ने आज घुटनों तक धोती पहनी थी. वह आज इतना खुश था, जितना अपनी शादी में भी न हुआ था.
आज 70 बरस की कजरी उस के साथसाथ पक्की सड़क पर सब के सामने लाललाल चप्पल पहने, धानी रंग की चुनरी ओढ़े ठाट से चल रही थी, मानो किसी बड़े घर की नईनई बहू ससुराल से मायके आई हो.
सोमरू आज अपनेआप को दुनिया का सब से रईस आदमी समझ रहा था. दोनों घर वापस जाने के लिए स्टेशन आ गए. रात स्टेशन पर ही बितानी थी. ट्रेन सवेरे 5 बजे की थी. दोनों ने पास में बंधा हुआ खाना खाया और वहीं स्टेशन पर आराम करने लगे.
सोमरू सुबह टिकट लेने के लिए उठा. कजरी से बोला, ‘‘पैसे निकाल. टिकट ले लिया जाए. ट्रेन के आने का समय भी हो रहा है.’’
दोनों ने अपनेअपने पैसे निकाले और गिनने लगे. टिकट के लिए 40 रुपयों की जरूरत थी और दोनों के पास कुलमिला कर 38 रुपए ही हुए. अब वे क्या करें?
दोनों बारबार कपड़े, झोले को झाड़ते, सामान झाड़झाड़ कर देखते, कहीं से 2 रुपए निकल जाएं. पर पैसे होते तब न निकलते.
दोनों ऐसे भंवर में थे कि न डूब रहे थे, न निकल रहे थे. धीरेधीरे लोग उन के आसपास इकट्ठा होने लगे थे.
दरअसल, रात को सोमरू ने 2 रुपए का तंबाकू खरीदा था और अब टिकट के लिए पैसे कम पड़ रहे थे.
कजरी की आंखों से आग बरस रही थी. उस ने सोमरू को गुस्से में कहा, ‘‘अब क्या करोगे? टिकट के लिए पैसे कम पड़ गए. अब घर क्या उड़ कर जाएंगे? तुम्हारी तंबाकू की लत ने…’’
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बेचारा सोमरू क्या करे. जिस दर्द को वह पूरी जिंदगी ढोता रहा, उस ने आज इतनी दूर आ कर भी उस का पीछा नहीं छोड़ा था. कभी अपने आसपास लगी भीड़ को देखता, तो कभी अपनी बूढ़ी पत्नी को.
सोमरू का मन पछतावे से इस तरह छटपटा रहा था जैसे वह पूरे समाज के सामने चोरी करता पकड़ा गया हो. आज फिर 2 रुपयों ने सब के सामने उसे नंगा कर दिया था.
मैंने अपनी जिद पर लव मैरिज की थी, इसीलिए विदाई के वक्त ससुरजी ने कहा था, ‘‘जमाई बाबू, अभी तो मैं अपनी बेटी की शादी नहीं करना चाहता था, लेकिन आप के प्यार के आगे मुझे झुकना पड़ा. खैर, बेटी को मैं ने अच्छे संस्कार दिए हैं, इसलिए आप की जिंदगी की बगिया हमेशा गुलजार रहेगी.’’
मैं ने ससुरजी के चरण छू कर कहा था, ‘‘जब तक मेरी इन बाजुओं में दम है, आप की बेटी राज करेगी.’’
और इस तरह बिना एक फूटी कौड़ी दिए ससुर साहब ने अपनी सुपुत्री मुझे सौंप दी और मैं अपनी बीवी को ले कर दिल्ली की एक बस्ती में आ गया.
जब मेरी मासूम सी बीवी ने मेरे घर में पहला कदम रखा था, तो मैं बहुत खुश हुआ था. सोचा था कि अब मुझे कष्ट नहीं होगा. समय पर नाश्ताखाना मिलेगा. जब दफ्तर से लौट कर आऊंगा तो बीवी मुझे प्यार करेगी. लेकिन मेरे सपने धरे के धरे रह गए.
एक दिन मैं ने दफ्तर से लौटते समय अपनी बीवी को फोन किया, ‘‘क्या कर रही हो?’’
‘कुछ नहीं, लेकिन आप कब आ रहे हैं?’ उधर से आवाज आई.
मुझे बहुत भूख लगी थी. मैं ने सोचा कि वह खाना बना कर रखेगी, इसीलिए मेरे आने के बारे में पूछ रही है. मैं ने कहा, ‘‘प्रिये, कुछ लजीज खाना बनाओ. मैं दफ्तर से निकल रहा हूं. एक घंटे में पहुंच जाऊंगा.’’
‘ठीक है,’ वह बोली.
मैं रास्तेभर गाना गुनगुनाते हुए घर पहुंचा. मैं खुश था कि घर पहुंचते ही गरमागरम लजीज खाना मिलेगा. मैं ने घंटी बजा दी लेकिन दरवाजा नहीं खुला. फिर 1-2 बार बजा कर इंतजार किया. फिर भी दरवाजा नहीं खुला तो कई बार घंटी बजाई. तब जा कर दरवाजा खुला.
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‘‘क्यों, क्या हो गया? देर क्यों हुई दरवाजा खोलने में,’’ मैं ने पूछा.
वह अपने चेहरे पर लटक रहे बालों को समटते हुए बोली, ‘‘कुछ नहीं, जरा आंख लग गई थी.’’
घर का सामान सुबह जिस हालत में था वैसे ही अभी भी पड़ा था. सुबह जिस प्लेट में मैं ने नाश्ता किया था वह वैसे ही जूठी डाइनिंग टेबल पर पड़ी थी. धोने के लिए गंदे कपड़ों का ढेर एक कोने में मुंह चिढ़ा रहा था. फर्श पर धूल की परत थी. रसोईघर में जूठे बरतनों का ढेर लगा था.
लजीज खाना खाने का मेरा सपना चकनाचूर हो गया था. वह मासूमियत से हुस्न के हथियार के साथ अनमने ढंग से मुझे देख रही थी. मैं खून का घूंट पी कर रह गया.
कुछ दिनों के बाद एक सुबह मैं दफ्तर के लिए निकल रहा था, तो वह बोली, ‘‘सुनिएजी, मेरे मोबाइल फोन में बैलेंस खत्म हो गया है. बैलेंस डलवा दीजिएगा.’’
मैं ने चौंक कर कहा, ‘‘बैलेंस कैसे खत्म हो गया… कल ही तो 2 सौ रुपए का रीचार्ज कराया था?’’
‘‘कल मैं ने मम्मीपापा से बात की थी और बूआ से भी बात की थी…
2-3 सहेलियों से भी बात की थी…’’ वह थोड़ा अटकते हुए बोली.
‘‘तो इतनी ज्यादा बात करने की क्या जरूरत थी? सिर्फ हालचाल पूछ लेती और बात खत्म कर देती,’’ मैं ने कहा.
‘‘हालचाल ही तो पूछा था,’’ वह बोली.
मुझे दफ्तर के लिए देर हो रही थी. मैं ने कहा, ‘‘अच्छा, ठीक है, बैलेंस डलवा दूंगा,’’ कह कर मैं घर से निकल गया. मेरे सपनों का महल टूटता जा रहा था.
इसी बीच उसे एक नया शौक सूझा. अब वह टैलीविजन का रिमोट हाथ में लिए सीरियल देखती रहती थी. कुछ कहता तो भी सीरियल में ही खोई रहती. जोर से बोलने पर वह मेरी तरफ देख कर पूछती, ‘‘क्या हुआ?’’
‘‘दफ्तर से थकाहारा आया हूं. पानी और नाश्ते के लिए भी नहीं पूछती और कहती हो कि क्या हुआ…’’
‘‘अच्छा, अभी 5 मिनट में लाती हूं. सीरियल अब खत्म होने ही वाला है,’’ टैलीविजन पर से आंखें हटाए बिना वह जवाब देती.
उस के वे 5 मिनट कभी खत्म नहीं होते. मजबूरन मैं खुद ही रसोईघर में जा कर कुछ खाने को ले आता. खुद भी खाता और अपनी बीवी को भी खिलाता.
महीनों सीरियल प्रेम दिखाने के बाद मेरी बीवी का पासपड़ोस की औरतों के घरों में आनेजाने और गपबाजी का दौर शुरू हुआ.
मैं दफ्तर से आ कर दरवाजे की घंटी बजाता रहता लेकिन दरवाजा नहीं खुलता. जब फोन करता तो पता चलता कि वह किसी पड़ोसन के घर बैठी है.
जल्द ही मेरी बीवी का पड़ोसन के घरों में जाने का साइड इफैक्ट भी शुरू हो गया. दूसरों के घरों में कुछ नई और अच्छी चीजें देख कर आती और मुझे भी वे चीजें लाने को कहती. कुछ तो अपनी जरूरत और पैसे की सीमा को देखते हुए मैं ले भी आया लेकिन अकसर ऐसी डिमांड होने लगी.
कुछ मेरी चादर से बाहर होता तो मैं मना कर देता. वह मुंह फुला कर बैठ जाती. खाना जैसेतैसे बना कर लाती, जो खाया न जाता.
एक दिन मैं ने उसे समझाया, ‘‘प्रिये, सब की जरूरत और औकात अलग होती है और उसी के मुताबिक सब काम करते हैं. दूसरों को देख कर हमें परेशान नहीं होना चाहिए.’’
‘‘हां, मेरी किस्मत ही खराब है, तभी तो सारी अच्छी चीजें दूसरों के घर देखती हूं. अपने घर में नसीब कहां?’’ वह बुझी आवाज में बोली.
‘‘निराश क्यों होती हो? समय आने पर हमारे यहां भी सबकुछ हो जाएगा. सब एक दिन में तो अमीर नहीं हो जाते. इस में समय लगता है,’’ मैं ने कहा.
‘‘मैं बोझ हो गई थी, इसीलिए मेरे मम्मीपापा ने जल्दी मेरी शादी करा दी,’’ यह कहते ही उस की आंखों से आंसू टपकने लगे.
‘‘लेकिन यह शादी तो हम दोनों के बीच प्यार होने के चलते हुई थी.’’
‘‘तो क्या हुआ? मैं नादान थी, लेकिन मेरे मम्मीपापा को तो अक्ल थी. मुझे बोझ समझ कर उन्होंने मेरा निबटारा कर दिया.’’
‘‘खैर, देर से शादी होती तो क्या कोई टाटा, बिरला या मुकेश अंबानी का बेटा आ जाता रिश्ता ले कर?’’ गुस्से में मेरे मुंह से निकला.
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‘‘कोई भी आता लेकिन आप से अच्छा आता,’’ उस ने जवाब दिया.
मैं ने चुप रह जाना ही ठीक समझा.
रविवार का दिन था. मैं ने सोचा कि आज आराम करूंगा. रोज अपने दफ्तर में बौस की और्डरबाजी से परेशान रहता हूं. कम से कम आज तो आराम कर लूं.
मैं ने बीवी से कहा, ‘‘जानेमन, आज कुछ अच्छा खाना बनाओ ताकि खा कर मजा आ जाए. मैं आज टैलीविजन पर फिल्म देखूंगा और आराम करूंगा.’’
लेकिन मेरी बीवी का खयाल कुछ और ही था. वह बोली, ‘‘चलिए न आज कहीं बाहर घूमने चलते हैं और होटल में खाना खाते हैं.’’
मैं ने घबरा कर कहा, ‘‘कहां घूमने चलेंगे? कोई अच्छी जगह नहीं है. भीड़भाड़ और गाडि़यों के जाम में ही फंसे रहे जाते हैं और होटल का खाना तो ऐसा होता है कि खाने के बाद पछतावा होने लगता है कि क्यों खाया.
‘‘खाने का कोई स्वाद नहीं होता. सिर्फ ज्यादा पैसे और टिप दो. शाम को हैरानपरेशान हो कर घर लौटो.’’
‘‘आप तो हमेशा ऐसे ही बोलते हैं. शादी के बाद हनीमून पर भी बाहर नहीं ले गए,’’ वह बिस्तर पर लेट कर आंसू बहाने लगी.
छुट्टी का मजा खराब हो चुका था. मैं खुद रसोईघर में जा कर कुछ स्वादिष्ठ खाना बनाने की कोशिश करने लगा.
एक बार पड़ोस में शादी थी. मुझे भी सपरिवार न्योता मिला था. दफ्तर से आ कर मैं ने अपनी बीवी से कहा, ‘‘जल्दी तैयार हो जाओ. सब इंतजार कर रहे होंगे.’’
लेकिन बहुत देर बाद भी वह अपने कमरे से बाहर न निकली. मैं कमरे में गया तो देखा कि वह तकिए में मुंह छिपा कर रो रही थी.
‘‘अरे, क्या बात हो गई… रो क्यों रही हो?’’ मैं ने घबरा कर पूछा.
वह कुछ न बोली. मैं ने जबरदस्ती उसे खींच कर बैठाया और फिर वजह पूछी.
‘‘न्योते में जाने लायक मेरे पास कपड़े नहीं हैं. मैं क्या पहन कर जाऊंगी?’’ वह सुबकते हुए बोली.
मैं हैरान रह गया. मैं रोज दफ्तर आताजाता हूं. लेकिन मेरे पास सिर्फ 2 जोड़ी ढंग के कपड़े थे, जबकि मेरी बीवी के पास कई जोड़ी कपड़े थे. 2 महीने पहले भी उस ने एक सूट खरीदा था, फिर भी वह रो रही थी.
मैं ने अलमारी में से उस के कई कपड़े निकाले और उस के आगे फैलाते हुए कहा, ‘‘ये सारे तो नए सूट हैं, फिर क्यों रो रही हो?’’
‘‘ये सब तो मैं पहले पहन चुकी हूं,’’ वह मुंह फेर कर बोली.
‘‘तुम कहना क्या चाहती हो? जो कपड़ा एक बार पहन लिया, वह पुराना हो गया क्या?’’ मैं ने पूछा.
‘‘ये कपड़े पहने हुए मुझे सब औरतें देख चुकी हैं.’’
‘‘मतलब, हर मौके लिए तुम्हें नए कपड़े चाहिए?’’ मैं ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘कोई कपड़े से बड़ा या छोटा नहीं होता. देखो तो, यह सूट कितना अच्छा है. तुम पहन कर तो देखो. जो इस सूट में तुम्हें देखेगा, तारीफ करेगा,’’ मैं ने पुचकारते हुए कहा.
उस दिन मैं बड़ी मुश्किल से अपनी बीवी को मना पाया था.
लेकिन अब मेरी सीधीशांत दिखने वाली बीवी बातबात पर गुस्सा करने लगी थी. सीरियल देखने से मना करता तो रिमोट पटक देती. पासपड़ोस में ज्यादा जाने से मना करता तो गुस्से में अपने को कमरे बंद कर लेती.
फोन पर ज्यादा बात करने से मना करता तो कई दिन तक मोबाइल फोन नहीं छूती. इतना ही नहीं, अगर मैं उस के बने खाने की शिकायत करता तो मुझे पर ही चीखने लगती और खाना बनाना छोड़ देती.
मैं तंग आ गया था. सोचता कि शादी से पहले कितनी सीधी और प्यारी थी मेरी बीवी, पर अब तो ज्वालामुखी बन गई है और गुस्सा तो जैसे इस की नाक पर बैठा रहता है.
दफ्तर में मेरा बौस काम में कमी निकाल कर मुझ पर बातबात पर गुस्सा करता था. लेकिन नौकरी तो करनी ही थी, उसी से घर का गुजारा चलता था, इसीलिए बौस का गुस्सा सहना पड़ता था.
घर आता तो बीवी भी मुझ पर ही बातबात पर गुस्सा करती. समझ में नहीं आता कि वह मेरी बीवी है या बौस.
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मेरी बीवी और मेरे बौस ने मेरी जिंदगी दूभर कर दी थी. पता नहीं, इन दोनों के चक्रव्यूह से मैं कभी निकल पाऊंगा भी या नहीं.
पिछले अंक में आप ने पढ़ा
राजेश पानी के जहाज पर ट्रेनिंग अफसर था. वह दूर देशों की यात्रा करता था. एक बार वह अपने सफर में आस्ट्रेलिया पहुंचा. वहां उस की मुलाकात 16 साल की लड़की मारिया से हुई. थोड़े ही वक्त में उन की दोस्ती बहुत गहरी हो गई.
अब पढि़ए आगे…
जहाज खुलने ही वाला था, इसलिए राजेश नीचे नहीं जा सका. मारिया तब तक हाथ हिलाती रही, जब तक कि जहाज तट से दूर नहीं चला गया.
जहाज सागर की ऊंची लहरों पर हिचकोले खा रहा था. राजेश के मन में भी उथलपुथल मची थी. वह सोच रहा था कि मारिया से अब मिलना मुमकिन होगा भी या नहीं, क्योंकि मन ही मन वह उसे चाहने लगा था. खैर, डेढ़ महीने बाद आस्ट्रेलिया के अलगअलग बंदरगाहों से होता हुआ जहाज अब वापसी के सफर पर था.
एक दिन राजेश मैलबौर्न के तट पर खड़ा था. वहां उसे 2 दिन रुकना था. पहले दिन शाम को राजेश क्लब गया. वहां उसे हिंदी गाने सुनने को मिले और उन्हीं गानों पर आस्ट्रेलियन लड़की के साथ डांस किया. पर उस का मन सोच रहा था कि कहीं मारिया मिल जाती, तो यहां एकांत में कुछ मन की बात कह सकता था. पर फिलहाल ऐसा नहीं हुआ और वह जहाज पर लौट गया.
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राजेश की शिफ्ट सुबह 4 बजे से ले कर 8 बजे तक की थी, पर जब वह सुबह 8 बजे अपने केबिन में लौटा, तो अंदर भीनीभीनी जानीपहचानी खुशबू का एहसास हुआ. उसे लगा, जैसे मारिया आसपास है.
5 मिनट बाद बाथरूम का दरवाजा खुला, तो राजेश हैरान रह गया. मारिया उस के सामने खड़ी थी. राजेश को हैरान होते देख मारिया बोली, ‘‘क्या हुआ? कहां खो गए? मुझे पहले नहीं देखा क्या?’’
मारिया ने सवालों की झड़ी लगा दी. इस से पहले कि राजेश कुछ बोलता, मारिया ही बोली, ‘‘न जाने क्यों मेरा मन तुम से मिलने को हो रहा था.’’
राजेश बोला, ‘‘तुम्हें शायद यकीन न हो, पर एडिलेड से विदा होने के बाद से ही मेरे मन में भी अजब सी तड़प हो रही थी और कल रात तो यहां क्लब में मेरी आंखें तुम्हें ही ढूंढ़ रही थीं, पर अचानक तुम यहां…?’’
मारिया बोली, ‘‘तुम शायद भूल गए हो. मैं ने कहा था कि मेरी आंटी यहां रहती हैं और वे बीमार हैं. सो, यहां चली आई. पेपर में पढ़ा कि तुम्हारा जहाज यहां लगा है, तो सुबहसुबह भागी आई.’’
राजेश बोला, ‘‘बहुत अच्छा किया.’’
‘‘मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. पर मैं यहां इसलिए आई हूं कि कुछ खानेपीने को दोगे?’’ मारिया बोली.
राजेश ने फोन पर 2 लोगों के लिए नाश्ता केबिन में मंगवा लिया और उस से बोला, ‘‘मैं फ्रैश हो कर आ रहा हूं, तब तक कौफी मेकर से कौफी निकालो और कुछ बिसकुट ले लो. आधा घंटे के अंदर नाश्ता आ जाएगा.’’
15 मिनट बाद राजेश फ्रैश हो कर निकला, तो मारिया बोली, ‘‘मुझे भी एक तौलिया देना. मैं भी फ्रैश हो लेती हूं.’’
राजेश ने कहा, ‘‘वहां वार्डरोब में रखा है, ले लो.’’
मारिया तौलिया ले कर बाथरूम में चली गई और जब थोड़ी देर बाद निकली, तो एक बार फिर राजेश की आंखें हैरानी से उसे कुछ देर तक देखती रह गईं. तौलिया उस के गोरे बदन को ढकने में नाकाम हो रहा था.
राजेश के जेहन में मारिया की मां की बात कि ‘उस का पति भारतीय होगा’ बैठ गई थी, जो बारबार उसे झकझोर कर रख देती थी.तभी मारिया ने कहा, ‘‘कहां खो गए? अब तुम 2 मिनट के लिए बाथरूम में जाओ, तब तक मैं कपड़े बदल लेती हूं.’’
इतना बोल कर मारिया छोटा सा बैग, जो वह अपने साथ लाई थी, उस में से अपनी ड्रैस निकाल कर बदली और राजेश को आवाज दे कर बुलाया. तब तक नाश्ता आ चुका था. दोनों नाश्ता करने लगे.
‘‘आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो. मुझे तो कुछकुछ होने लगा है,’’ राजेश बोला.
‘‘अरे वाह, गजब तो तुम लग रहे हो. इस के पहले तो तुम्हें बोलना भी नहीं आता था…’’ बोलते हुए मारिया ने उस के करीब खिसक कर उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और कहा, ‘‘यहां के आगे जहाज का क्या प्रोग्राम है? मैं तो बस इसी बैग में 2 कपड़े ले कर घर से निकल पड़ी थी. अब मुझे एडिलेड अपने घर ही जाना है. अपने जहाज पर ले चलो न, मैं ने अभी तक जहाज पर सफर नहीं किया है, बस एक दिन का तो सफर है,’’ बोलते हुए मारिया उस से लिपट गई थी.
राजेश ने हलके से उस की पीठ सहलाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा साथ तो मुझे भी बहुत अच्छा लगता है, पर एडिलेड तक तुम्हारा जहाज से जाना बहुत मुश्किल है.
‘‘तुम्हें इस की इजाजत नहीं मिलेगी. वैसे भी हम पहले जीलांग जा रहे हैं, वहां कुछ घंटे रुक कर फिर एडिलेड जाना होगा.’’
‘‘जीलांग तो बिलकुल पास ही है. करीब सवा घंटे की दूरी है. वहीं तक मुझे ले चलो न, फिर मैं ट्रेन पकड़ कर अपने घर चली जाऊंगी,’’ मारिया बोली.
राजेश उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘इस के लिए भी मुझे इजाजत लेनी होगी. मैं बौस से बात करूंगा. पर अभी उठो. चलो, डैक पर मौसम अच्छा है. बाद में तुम्हें इंजनरूम दिखाता हूं. खाना केबिन में मंगा लेते हैं.’’
और दोनों बाहर डैक पर दूर एक किनारे खड़े हो कर बातें करने लगे. कुछ देर बाद इंजनरूम घुमा कर मारिया को केबिन में बैठा कर राजेश बोला, ‘‘मैं थोड़ी देर में आता हूं.’’
राजेश जल्द ही अपने केबिन में लौट आया और मुसकराते हुए बोला, ‘‘तुम्हारे लिए खुशखबरी है. तुम जीलांग तक हमारे साथ चल सकोगी. दोपहर 2 बजे हम रवाना होंगे और 4 बजे से पहले ही वहां पहुंच जाएंगे. तब तक हम यहीं आराम करते हैं. तुम बैड पर जाओ, मैं यहीं सोफे पर रहूंगा.’’
इस के बाद वे दोनों अपनीअपनी जगहों पर चले गए. पर थोड़ी देर में मारिया बैड से उठ खड़ी हुई, रेडियो औन किया और कहा, ‘‘चलो, एक ड्रिंक बनाते हैं, लंच के पहले.’’
‘‘पर तुम तो जानती हो कि मैं नहीं पीता,’’ राजेश बोला, ‘‘तो मैं कौन सा पीती हूं, बस आधा गिलास लेते हैं,’’ फिर दोनों ने बीयर पी.
मारिया ने राजेश का हाथ पकड़ कर कहा ‘‘चलो, डांस हो जाए. रेडियो पर अच्छी धुन बज रही है.’’
राजेश बोला, ‘‘पर, मुझे तो डांस आता नहीं.’’
वह पलट कर बोली, ‘‘इसीलिए तो कह रही हूं. कुछ बेसिक स्टैप्स जान लो. तुम्हारे लिए अच्छा होगा. आगे काम आएगा. सेलर्स के लिए डांस जरूरी है.’’
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दोनों थोड़ी देर तक डांस करते रहे और बीचबीच में बातें भी. डांस के दौरान दोनों एकदूसरे की कमर में हाथ डाले हुए कभी इतने करीब होते कि तनमन में एक सिहरन दौड़ जाती और पीड़ा सी उठती, जिसे दोनों ने एकदूसरे की आंखों में देखा था.
फिर थोड़ी देर बाद लंच आया, जो दोनों ने साथ लिया. दोनों ने कुछ देर तक केबिन में आराम किया. थोड़ी देर में ही जहाज खुलने वाला था, तभी मारिया बोली, ‘‘चलो, बाहर डैक पर चलते हैं. मैं जहाज को सागर की लहरों पर चलते हुए देखना चाहती हूं.’’
राजेश बोला, ‘‘5 मिनट बैठो. तुम से कुछ बातें करनी हैं. अभी जहाज के खुलने में कुछ समय है,’’ और वह आगे बोला, ‘‘तुम्हारी मां ने बताया था कि तुम्हारा पति कोई भारतीय ही होगा, तो फिर मैं क्या बुरा हूं?’’
‘‘मां ने सही कहा था. तुम तो मेरे अनुमान से भी अच्छे हो, पर तुम्हीं सोचो कि अभी मेरी उम्र शादी की है क्या? अभी तो मैं 17 साल की भी नहीं हुई हूं, पहले कालेज की पढ़ाई पूरी कर लूं. भारतीय पति का इंतजार जरूर करूंगी.
‘‘हो सकता है कि वह तुम ही हो. पर यह पता नहीं कि तुम कहां होगे. जब लौटते समय एडिलेड आओ, तब मैं वहां नहीं रहूं. उस समय शायद मैं पढ़ाई के सिलसिले में सिडनी में रहूं और तुम से मिल न सकूं. मेरे यहां आने की एक वजह यह भी है,’’ मारिया एकसाथ बिना रुके बोली.
‘‘चलो, मुझे यह जान कर खुशी हुई कि तुम भारतीय पति का इंतजार करोगी. तो एक चांस मैं भी ले सकता हूं,’’ राजेश बोला.
मारिया ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अच्छा रहेगा, टेक ए चांस. फिलहाल तो एक अच्छे दोस्त की तरह दोनों चिट्ठी लिखते रहेंगे.’’
अब दोनों डैक पर आ कर जहाज का खुलना देखते रहे, जब तक वह बीच सागर में नहीं पहुंचा. अब फुल स्पीड में लहरों पर जहाज हिचकोले खा रहा था.मारिया को संतुलन बनाए रखने में कुछ दिक्कत हो रही थी और वह राजेश को जोर से पकड़ लेती.
कुछ देर बाद मारिया को थकान महसूस हुई, तो दोनों वापस केबिन में आ गए. दोनों खामोश थे और मारिया सोफे पर लेटी थी. तब राजेश ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘अब तो जीलांग आने ही वाला है. उठो, तैयार हो जाओ. तुम्हारे लिए एक सरप्राइज है, इसे रख लो,’’ और उस ने एक पर्स पकड़ा दिया.
मारिया ने पर्स खोला, तो बहुत खुश हुई. उस में उन देशों के सिक्के और नोट थे, जहां से हो कर उस का जहाज आया था. उस ने राजेश को भी सोफे पर बैठाते हुए अलसाई सी आवाज में कहा ‘‘ठीक है, जल्दी क्या है? तैयारी कैसी? बस, एक किलो का बैग ही तो है. शिप को तट पर लगने दो,’’
वे दोनों केबिन की खिड़की से जहाज का तट पर लगना देख रहे थे. जब जहाज लगा, तो अपना बैग उठाया, राजेश को गले लगाया और नीचे उतरी. राजेश भी छोड़ने आया. आखिर में दोनों ने हाथ मिलाया.मारिया के जाने के बाद राजेश जहाज पर चला गया. जहाज वापस करीब एक महीने बाद भारत पहुंचा.
राजेश की आस्ट्रेलिया में मारिया से आखिरी मुलाकात थी. भारत आने पर उस का तबादला दूसरे रूट के जहाज पर हुआ. इस की सूचना उसे दे रखी थी, ताकि मारिया उस के जहाज के पते पर ही चिट्ठी लिखे.
तकरीबन एक साल बाद राजेश ने यह नौकरी छोड़ दी, क्योंकि उस का मन नहीं लग रहा था और उस के मातापिता की भी यही इच्छा थी.राजेश का मन तो मारिया से मिलने के लिए बेचैन रहता था, पर उस के मातापिता उस की शादी करना चाहते थे.
राजेश कुछ महीने तक तो अच्छी नौकरी मिलने का बहाना बना कर टालता रहा. पर अब तो उसे अच्छी नौकरी भी मिल चुकी थी. राजेश अपने मातापिता का कहना टाल न सका.
इस बीच राजेश मारिया को चिट्ठी लिखता रहा और मारिया भी राजेश की चिट्ठियों का जवाब देती रही. यहां तक कि राजेश ने अपनी शादी की सूचना भी दे रखी थी. मारिया ने उसे बधाई दी थी और न आने के लिए माफी भी मांगी थी.
कुछ दिनों बाद उन का पत्राचार भी बंद हो गया. राजेश भी अपनी शादी और नौकरी दोनों से संतुष्ट था. अपनी शादी के तकरीबन ढाई साल बाद उसे पत्नी के साथ आगरा जाने का मौका मिला. दोनों ने ताजमहल में फोटो खिंचवाए. फोटोग्राफर ने एक घंटे बाद आ कर फोटो लेने को कहा.
जब वे अपना फोटो लेने पहुंचे, तो फोटोग्राफर एक जोड़े का फोटो ले रहा था, इसलिए वे थोड़ी दूर ही रुक गए थे. जब वे फोटोग्राफर के निकट आए, तो राजेश को अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हो रहा था. उस ने पत्नी को बताया, ‘‘यह तो मारिया है और सचमुच इंडियन पति ले आई है.’’
इस बीच मारिया फोटोग्राफर से बात करने में बिजी थी, इसलिए वह उन को नहीं देख सकी थी.राजेश ही उस के पास जा कर बोला ‘‘मारिया, तुम यहां…’’
मारिया ने नजर उठा कर देखा, तो राजेश को गले लगाया और कहा, ‘‘कितनी हैरानी हो रही है. मैं तो सोच रही थी कि यहीं कहीं तुम मिल जाते. हम यहां हनीमून पर हैं.’’राजेश ने पत्नी से उस का परिचय कराया और मारिया ने भी अपने पति को बुला कर परिचय कराया. फिर चारों ने एक कैफे में बैठ कर कौफी पी.
राजेश ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘तो आखिर तुम ने भारतीय दूल्हा चुन ही लिया.’’
मारिया के पति ने भी चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘इस ने तुम्हारा बहुत इंतजार किया था. तुम न मिले, तो मुझे ही मुरगा बना लिया.’’
‘‘मैं तो आस्ट्रेलिया में ही सैटल हूं, इसे ढूंढ़ने में दिक्कत नहीं हुई.’’
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यह सुन कर चारों एकसाथ हंस पड़े.मारिया ने बताया कि आज रात ही वे आस्ट्रेलिया लौट रहे हैं. चारों ने एक साथ होटल में डिनर किया. राजेश ने पत्नी के साथ एयरपोर्ट जा कर मारिया को विदा किया.
मारिया ने जाते हुए कहा, ‘‘तुम दोनों भी जल्दी आस्ट्रेलिया आओ. मुझे बहुत खुशी होगी.’’
मारिया के पति ने कहा, ‘‘मुझे भी खुशी होगी.’’इस के बाद वे दोनों हाथ हिलाते हुए हवाईजहाज की ओर बढ़ गए.
कभी कभी अचानक ही ऐसी बात हो जाती है, जो सोच से परे है. ऐसी ही एक पुरानी घटना का जिक्र पुनीत के एक दोस्त राजेश ने किया.
राजेश तकरीबन 40 साल बाद पुनीत से मिला था. उन दिनों वह एक जहाज में अफसर था और जहाज के साथ भारत से बाहर जाया करता था. जहाज भारत से निर्यात होने वाली चीजें विदेश ले जाता और वापसी में आयात होने वाली चीजें लाता था.
राजेश कालेज से निकल कर जहाज पर नयानया ट्रेनिंग अफसर लगा था. उस का जहाज मुंबई से आस्ट्रेलिया जाता था और रास्ते में मद्रास (अब चेन्नई), कोचीन (अब कोच्चि), सिंगापुर, मलयेशिया, श्रीलंका से भी सामान लाद लेता था, फिर आस्ट्रेलिया के अलगअलग बंदरगाहों से होता हुआ भारत आता था.
राजेश शाकाहारी था और सिगरेट या शराब भी नहीं छूता था. सागर की लहरों पर जबरदस्त उछाल, जिसे रोलिंग व पिचिंग कहते हैं, के चलते उसे वहां के माहौल में ढलने में कुछ हफ्ते लगे. जहाज पर दूसरी सु़विधाओं के साथ अफसरों को केबिन भी दिया जाता था.
राजेश का जहाज श्रीलंका, सिंगापुर, मलयेशिया होता हुआ आस्ट्रेलिया के पश्चिमी पोर्ट (बंदरगाह) फ्रीमैंटल यानी पर्थ पहुंचा.
राजेश सिंगापुर, मलयेशिया या श्रीलंका से बिलकुल प्रभावित नहीं था, क्योंकि उन दिनों वे विकसित नहीं थे, पर आस्ट्रेलिया का एक खास आकर्षण उस के मन में शुरू से था और पर्थ शहर तो उसे बड़ा शानदार लगा था. वहां पहली बार वह अपने दोस्तों के साथ नाइट क्लब में गया था. गोरीगोरी सुंदरियों के साथ उस ने 2-4 डांस स्टैप किए थे. वैसे, शुरू में उसे काफी हिचक हुई थी.
अब जहाज दूसरे पड़ाव दक्षिणी तट के ऐडिलेड पोर्ट पर था. राजेश पुनीत से कह रहा था कि जहाज पर काम करना बहुत मुश्किल है, इसीलिए जब जहाज किनारा छोड़ चुका होता है, रोजाना 4-4 घंटे की 2 शिफ्ट करनी होती हैं. कोई छुट्टी नहीं. अगर कोई समस्या हुई, तो उस का हल उसी समय मुहैया साधनों से जल्दी करना होता है. ऊपर से मौसम की मार और लहरों पर उछलते जहाज पर अपना बैलैंस बनाए रख कर अपना काम करते रहना चाहिए.
खैर, तीसरे दिन वह ऐडिलेड पहुंचा. अपना काम खत्म कर के वह थोड़ा सैर पर निकला और अकेले ही एक बीच पर जा बैठा. वहां गोरीगोरी सुंदरियां वौलीबाल खेल रही थीं, वे भी सिर्फ बिकिनी में. वहीं थोड़ी देर तक इस नजारे का मजा ले कर वह जहाज पर लौट आया और अपने केबिन में सोफे पर लेट गया. 2 घंटे बाद उस की शिफ्ट थी.
आमतौर पर केबिन का दरवाजा अंदर से बंद नहीं किया जाता. तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. उस के ‘कम इन’ बोलने पर दरवाजा खुला तो देखा कि एक लड़की खड़ी थी. उस की उम्र 16 साल के आसपास होगी. वह टाइट जींस और टीशर्ट के ऊपर जैकेट पहने थी. पतली कमर, गोरी टांगें, सुनहरे खुले रेशमी बाल यानी वह काफी हसीन थी.
राजेश पहले तो उसे कुछ देर तक हैरानी से देखता रहा, फिर लड़की के ‘हाय’ का जवाब ‘हाय’ में दिया. बातचीत की पहल उसी लड़की ने की, ‘‘मैं मारिया, आप कैसे हैं?’’
‘‘मैं राजेश. मैं ठीक हूं, थैंक्स, अंदर आओ और बैठो,’’ सोफे की ओर इशारा कर के राजेश बोला.
‘‘मुझे विदेशी नोट व सिक्के जमा करने का शौक है. साथ ही, भारत के बारे मेंकुछ ज्यादा ही दिलचस्पी है. मैं इस के बारे में कुछ किताबें भी पढ़ चुकी हूं. कलकत्तामें मेरी एक पैनफ्रैंड भी है. मैं आप से भारतीय करंसी मिलने की उम्मीद करती हूं,’’ मारिया एकसाथ सब बोल गई.
इस बीच राजेश सहज हो चुका था. वह बोला, ‘‘ठीक है, वह तो आप को मिल जाएगी. कुछ लोगी? मैं तो नहीं लेता, पर दोस्तों के लिए रखता हूं.’’
‘‘नहीं. थैंक्स. वैसे, मैं बीयर लेती हूं, पर वह भी कभी खास मौके पर,’’ मारिया बोली.
‘‘मैं भी सीनियर्स के काफी कहने पर पार्टी में 2-4 घूंट बीयर ले लेता हूं. मैं रुपए निकाल रहा हूं, तब तक तुम कोल्ड ड्रिंक पी लो,’’ एक कोल्ड ड्रिंक उस की ओर बढ़ाते हुए राजेश बोला और अलमारी में रखे पर्स से नोट निकालने लगा.
फिर वह 5 और 10 रुपए का 1-1 नोट और कुछ सिक्के ले कर आया और बोला, ‘‘ये लो इंडियन करंसी. अभी तुम्हारा एक डौलर मेरे 8 रुपए के बराबर है.’’थोड़ी देर तक वे दोनों आपस में बातें करते रहे. कुछ देश की, तो कुछ परिवार की.
राजेश ने पूछा, ‘‘अभी तुम ने कहा था कि तुम्हें भारत में दिलचस्पी है और तुम भारत के बारे में कुछ पढ़ भी चुकी हो. तो तुम क्या जानती हो भारत के बारे में?’’
‘‘जी, बहुत सी बातें. जैसे नमस्ते, धन्यवाद, आप कैसे हैं वगैरह बोल लेती हूं. आप अतिथियों का सत्कार करते हैं, यह भी जानती हूं. वहां की कुछ छोटी कहानियां, कुछ गौड्स के बारे में भी पढ़ा है. पर और भी जानना चाहती हूं,’’ मारिया बोली.
‘‘ठीक है, ऐसा करो कि कल तुम सपरिवार मेरे जहाज पर आना. तुम्हें कुछ और किताबें दूंगा. तुम्हारे मातापिता से मिलनाजुलना भी होगा और साथ में डिनर करेंगे. मुझे तुम अपने घर का फोन नंबर दो. मैं उन से डिनर पर आने के लिए कहूंगा,’’ राजेश बोला.
‘‘ठीक है, मैं मम्मीपापा से बात कर के बता दूंगी, पर आप इस नोट पर अपना साइन कर के इंडिया का पता पैंसिल से लिख दें.
‘‘आप से मिल कर बहुत खुशी हुई. आप बहुत अच्छे हैं और आप से भारतीयों के बारे में जो सुना, वह सही है,’’ इतना कह कर मारिया ने राजेश के हाथ पर एक चुंबन जड़ दिया और केबिन के बाहर जाने के लिए खड़ी हुई.
उन दिनों मोबाइल फोन का जमाना नहीं था. राजेश भी उस के साथ बाहर गैंगवे पर रखे फोन का नंबर नोट कर उसे देते हुए बोला, ‘‘डिनर के बारे में इस नंबर पर बता देना.’’
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वह मारिया के साथ नीचे तक आया और हाथ मिला कर विदा किया. उन दिनों जहाज के पोर्ट पर लगने पर एक फोन मिलता था, ताकि अफसर व कारोबारी से बातचीत हो सके.
राजेश ने मारिया के जाते ही उस के घर पर फोन कर के कल अपने जहाज पर डिनर पर आने का न्योता दिया.
काफी मिन्नत के बाद वे तैयार हुए. तकरीबन 2 घंटे बाद मारिया ने भी फोन कर के बताया कि अगले दिन शाम को वह सपरिवार डिनर पर आ रही है.
राजेश ने तुरंत चीफ स्टुअर्ड यानी पैंट्री मैनेजर को फोन कर के कल अपने मेहमानों के लिए कुछ स्पैशल भारतीय खाना खाने के लिए उस की राय ली और फिर बनाने को कहा.
राजेश ने अगले दिन 4 लोगों का डिनर अपने केबिन में ही मंगवा लिया. उसे उम्मीद थी कि मारिया के मातापिता तो शराब लेते होंगे और यह सब डाइनिंग हाल में मुमकिन नहीं था.
अगले दिन शाम के 6 बजे मारिया सपरिवार पहुंची. राजेश ने सभी का गर्मजोशी से स्वागत किया, फिर मारिया ने अपने मातापिता से राजेश का परिचय कराया.
कुछ देर बाद स्नैक्स और ड्रिंक्स शुरू हुआ. एक घंटे तक गपशप चलती रही, फिर सब मेहमानों ने भारतीय खाने की काफी तारीफ की.
जब चलने की बारी आई, तो मारिया ने झट से कहा, ‘‘आप ने मुझे किताबें देने का वादा किया था.’’
राजेश भी इस के लिए तैयार था. कुछ अपनी और कुछ दोस्तों से ली हुई भारत से संबधित किताबें इकट्ठी कर ली थीं. सो, उसे सौंप दीं.
वह उन लोगों को विदा करने जहाज के नीचे तक आया. उन्होंने भी उस से अगले दिन डिनर पर आने का वादा ले लिया, क्योंकि जहाज को 36 घंटे बाद जाना था.
कार स्टार्ट हुई और राजेश खड़ा हाथ हिला रहा था, तभी अचानक कार बंद हुई और मारिया की मां ने राजेश को बुलाया, फिर कार से बाहर आ कर एक गिफ्ट पैकेट उसे देते हुए बोलीं, ‘‘हमें अफसोस है कि यह गिफ्ट कार में रह गया था. बुरा न मानना, एक छोटा सा तोहफा हमारी ओर से.’’
राजेश ने पैकेट लेते हुए उन्हें धन्यवाद के साथ विदा किया.
अगले दिन शाम को राजेश ने मारिया के घर चलने के लिए अपने दोस्त को साथ ले लिया था, क्योंकि उसे अकेले जाने में हिचक हो रही थी. साथ में एक गिफ्ट, जो उस ने सिंगापुर से अपने देश ले जाने के लिए लिया था, मारिया के लिए रख लिया.
एक टैक्सी ली और वे दोनों चल पड़े. मारिया और उस की मां ने उन का स्वागत किया. उस के पिता बाद में आए. मारिया की मां ने बातोंबातों में कहा कि मारिया ने फैसला किया है कि उस का पति एक भारतीय ही होगा.
खैर, खानापीना, गपशप खत्म कर के वे चलने के लिए बाहर निकले. उन्होंने टैक्सी बुला रखी थी.मारिया राजेश को टैक्सी तक छोड़ने आई और उस का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘तुम कब तक यहां हो? यह मुलाकात हमेशा याद रहेगी,’’ उस की आंखों में हलकी सी उदासी झलक रही थी.
राजेश ने जब बताया कि कल दोपहर बाद उस का जहाज रवाना होगा, तो वह झट से बोली, ‘‘मैं एक बार फिर मिलने की कोशिश करूंगी. अगर मैं नहीं आ सकी, तो भी आप मेरे दोस्त बने रहना.’’
राजेश हाथ मिला कर टैक्सी में बैठ गया. उस के दोस्त ने रास्ते में कहा, ‘‘देखना, वह जरूर आएगी.’’
मारिया सचमुच जहाज खुलने से 2 घंटे पहले उस के केबिन में थी. दोनों ने कौफी पी, फिर मारिया ने कहा, ‘‘देखो, आगे कब मिलना होगा या शायद नहीं भी हो. वैसे, तुम्हारे जहाज का क्या प्रोग्राम है? वापसी में भी यहां आना मुमकिन है क्या?’’
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राजेश ने जब जहाज का प्रोग्राम बताया और वापसी में भी वहां आना ही होगा कहा, तो वह खुशी से उछल पड़ी और बोली, ‘‘तब तो एक और मुलाकात होनी तय है. तुम्हारा अगला पड़ाव मैलबौर्न में है. मेरी आंटी वहीं रहती हैं. वे कुछ दिनों से बीमार चल रही हैं.’’
इस के बाद वह गले मिली और हाथ मिला कर जहाज से नीचे उतर गई.
(क्रमश:)
मारिया कौन थी और राजेश से क्या चाहती थी? क्या उन दोनों की दोबारा मुलाकात हो पाई? पढ़िए अगले अंक में…