माफिया से माननीय बनने का खूनी सफर: भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- सुनील वर्मा

पूर्वांचल की जमीन को बाहुबलियों की जमीन के नाम से जाना जाता है. ऐसा लगता है कि इस जमीन पर माफिया सरगनाओं की फसल उगती है. सब से

बड़ी बात यह है कि अपराध से शुरू हुआ इन माफिया सरगनाओं का सफर एक दिन पुलिस की गोली खा कर खत्म होता है. लेकिन ऐसे सरगनाओं की भी एक बड़ी फेहरिस्त है, जो अपने इसी बाहुबल के सहारे सियासत की ऊंचाइयों तक पहुंच गए.

पूर्वांचल की धरती पर कई माफियाओं का जन्म हुआ है. कुछ माफिया तो ऐसे हैं, जिन की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. राजनीति के गलियारों में इन की धमक अकसर सुनाई देती रहती है. इन माफियाओं ने प्रदेश में ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी आतंक का खूनी खेल खेला.

अपराध की संगीन वारदातों को अंजाम दे कर पूर्वांचल की धरती दहलाने वाले इन्हीं माफिया में एक नाम है बृजेश सिंह का, जिन्होंने जुर्म की दुनिया को दहलाने के बाद अब सियासत में अपनी जमीन तैयार कर ली है. लेकिन राजनीति का लबादा ओढ़ने के बाद भी बृजेश सिंह के ऊपर जेल में रह कर रंगदारी वसूलने, ठेके पर हत्या कराने और टेंडर सिंडीकेट चलाने के आरोप लगते रहे हैं.

बृजेश सिंह की कहानी किसी फिल्म की स्टोरी से कम नहीं है. वह एक ऐसा माफिया सरगना रहा, जिस का आतंक उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी देखा  जाता था.

बृजेश सिंह उर्फ अरुण कुमार सिंह का जन्म वाराणसी के धरहरा गांव में एक संपन्न परिवार में हुआ था. उस के पिता रविंद्र सिंह इलाके के रसूखदार लोगों में गिने जाते थे. सियासी तौर पर भी उन का रुतबा कम नहीं था और इलाकाई राजनीति में सक्रिय रहते थे. बृजेश सिंह बचपन से ही पढ़ाईलिखाई में काफी होनहार था.

सन 1984 में इंटरमीडिएट की परीक्षा में उस ने बहुत अच्छे अंक हासिल किए थे. उस के बाद बृजेश ने बनारस के यूपी कालेज से बीएससी की पढ़ाई की. वहां भी उस का नाम होनहार छात्रों की श्रेणी में आता था.

बृजेश सिंह के पिता रविंद्र सिंह को अपने होनहार बेटे से काफी लगाव था और इसीलिए वह चाहते थे कि बृजेश पढ़लिख कर अच्छा इंसान बने. समाज में उस का नाम हो.

लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. 27 अगस्त, 1984 को वाराणसी के धौरहरा गांव में बृजेश के पिता रविंद्र सिंह की इलाके की राजनीति की रंजिश में हत्या कर दी गई. इस काम को उन के सियासी विरोधी हरिहर सिंह और पांचू सिंह ने साथियों के साथ मिल कर अंजाम दिया था.

राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में पिता की मौत ने बृजेश सिंह के मन में बदले की भावना को जन्म दे दिया. इसी भावना के चलते बृजेश ने जानेअनजाने में अपराध की दुनिया में अपना कदम बढ़ा दिया.

बृजेश सिंह अपने पिता की हत्या का बदला लेने लिए तड़प रहा था. उस ने बदला लेने के लिए एक साल तक इंतजार किया. आखिर वह दिन आ ही गया, जिस का बृजेश को इंतजार था. 27 मई, 1985 को रविंद्र सिंह का हत्यारा बृजेश के सामने आ गया. उसे देखते ही बृजेश का खून खौल उठा और उस ने दिनदहाड़े अपने पिता के हत्यारे हरिहर सिंह को मौत के घाट उतार दिया.

बदले की आग ने बदला जीवन

यह पहला मौका था जब बृजेश के खिलाफ थाने में मामला दर्ज हुआ. लेकिन वारदात के बाद बृजेश सिंह पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा बल्कि फरार हो गया. क्योंकि उस का इंतकाम अभी पूरा नहीं हुआ था.

हरिहर को मौत के घाट उतारने के बाद भी बृजेश सिंह का गुस्सा शांत नहीं हुआ, उसे उन लोगों की भी तलाश थी, जो उस के पिता की हत्या में हरिहर के साथ शामिल थे. जल्द ही उसे अपना बदला लेने का मौका मिल गया.

9 अप्रैल, 1986 को चंदौली जिले का सिकरौरा गांव तब गोलियों की आवाज से गूंज उठा, जब बृजेश सिंह ने अपने साथियों के साथ पिता रविंद्र सिंह की हत्या में शामिल रहे गांव के पूर्वप्रधान रामचंद्र यादव सहित उन के परिवार के 6 लोगों को एक साथ गोलियों से भून डाला.

इस वारदात को अंजाम देने के बाद बृजेश सिंह पहली बार गिरफ्तार हुआ. दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में बृजेश पर 32 साल तक मुकदमा चला.

इसे बृजेश का बाहुबल और राजनीतिक रसूख ही मान सकते हैं कि इस घटना में चश्मदीद गवाह होने के बावजूद स्थानीय अदालत ने 32 साल बाद 2018 में गवाहों के बयानों को विरोधाभासी बताते हुए बृजेश को बरी कर दिया.

बहरहाल, पिता के हत्यारों को मौत की नींद सुलाने के बाद जब बृजेश सिंह सलाखों के पीछे पहुंचा तो यहीं से उस की जिंदगी की दिशा और दशा बदल गई.

कहते हैं जेल की सलाखों के पीछे एक ऐसी पाठशाला होती है, जहां इंसान की जिंदगी एक नया मोड़ लेती है. जो कैदी यहां आ कर अपने गुनाह का प्रायश्चित करना चाहता है, वह सुधर जाता है. और जिस कैदी की मंजिल अपराध की डगर पर आगे बढ़ने की होती है, वह जेल की सलाखों के पीछे अपराध के नए गुर सीखने और नए साथी बनाने में जुट जाता है.

अगले भाग में पढ़ें- बृजेश का मुख्तार अंसारी से हुआ सामना

माफिया से माननीय बनने का खूनी सफर: भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- सुनील वर्मा

गिरफ्तारी के बाद बृजेश जब वाराणसी जेल पहुंचा तो वहां उस की मुलाकात गाजीपुर के मुडियार गांव के त्रिभुवन सिंह से हुई. त्रिभुवन सिंह हिस्ट्रीशीटर अपराधी था. बृजेश के हौसलों को देखते हुए त्रिभुवन ने उस से दोस्ती कर ली.

त्रिभुवन सिंह भी अपने भाई व पिता की हत्या का बदला लेने के लिए जरायम की दुनिया में उतरा था. इसीलिए दोनों की दोस्ती हो गई और दोस्ती का एक कारण यह भी था कि दोनों ही ठाकुर समुदाय से थे. कुछ लोग बृजेश के साथ थे तो कुछ त्रिभुवन के साथ. दोनों ने हाथ मिलाया तो जेल से निकलने के बाद साथ मिल कर काम करने लगे.

त्रिभुवन की मंजिल जहां पैसा और शोहरत कमाना था तो बृजेश ने समूचे पूर्वांचल में अपना सिक्का जमा कर अकूत दौलत कमाने का ख्वाब पाल लिया था.

अपराध की दुनिया में एक कहावत यह भी है कि इस दुनिया में ख्वाब उन्हीं के पूरे होते हैं जिन के हौसले और हिम्मत बुलंद होते हैं. बृजेश और त्रिभुवन सिंह की दोस्ती जल्द ही रंग लाने लगी, क्योंकि दोनों के ही हौसले और हिम्मत बुलंद थे. धीरेधीरे इन का गैंग पूर्वांचल में सक्रिय होने लगा.

दोनों ने मिल कर यूपी में शराब, रेशम और कोयले के धंधे में अपने पांव जमाने शुरू कर दिए. दोनों ने अपने बाहुबल से पहले छोटेमोटे काम शुरू किए फिर बड़ेबड़े काम करने लगे.

बृजेश का मुख्तार अंसारी से हुआ सामना

इसी बीच, 1990 के दशक में बृजेश सिंह ने धनबाद के पास झरिया का रुख किया. वह धनबाद के बाहुबली विधायक और कोयला माफिया सूर्यदेव सिंह के कारोबार की देखभाल करने के लिए उन के शूटर की तरह काम करने लगा. सूर्यदेव सिंह के इशारे पर बृजेश सिंह ने हत्या की 6 वारदातों को अंजाम दिया.

अपने कारनामों और कोयले के काले कारोबार के कारण बृजेश सिंह की दुश्मनी का दायरा भी लगातार बढ़ता जा रहा था. असली खेल तब शुरू हुआ, जब बृजेश सिंह और माफिया डौन मुख्तार अंसारी कोयले की ठेकेदारी को ले कर आमनेसामने आ गए. मुख्तार अंसारी ने शुरुआत में चेतावनी दे कर कोयले के धंधे से दूर रहने की चेतावनी दी. लेकिन बृजेश सिंह को अपने बाहुबल और हौसले पर कुछ ज्यादा ही गुमान हो चला था.

बृजेश ने बाहुबली माफिया डौन मुख्तार अंसारी की ताकत आंकने में गलती कर दी. क्योंकि बृजेश को उस वक्त इस बात का आभास नहीं था कि राजनीतिक तौर पर मुख्तार अंसारी कितना मजबूत है. ठेकेदारी और कोयले के कारोबार को ले कर दोनों गैंगों के बीच कई बार गोलीबारी हुई. दोनों तरफ से जानमाल का नुकसान भी हुआ.

मुख्तार अंसारी के प्रभाव की वजह से बृजेश पर पुलिस और नेताओं का दबाव बढ़ने लगा. बृजेश के लिए कानूनी तौर पर काफी दिक्कतें पैदा होने लगी थीं.

जिस ने भी ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ फिल्म देखी होगी, उसे पता होगा कि ठीक उसी खतरनाक तरीके से काम करने वाले गैंग्स 2009-10 के दौर में बनारस, मऊ, गाजीपुर और जौनपुर में पूर्वांचल की राजनीति पर हावी थे.

ये वो दौर था जब मुख्तार अंसारी का कारवां निकलता था तो लाइन से एक साथ 15-20 एसयूवी गाडियां गुजरती थीं. दिलचस्प बात यह होती थी कि सारी गाडि़यों के नंबर 786 से खत्म होते थे. किसी की क्या मजाल कि पूरे शहर का भारी ट्रैफिक उन्हें 2 मिनट भी रोक सके. इन इलाकों में पान, चाय की दुकान पर बैठे चचा लोग बता देंगे कि मुख्तार अंसारी जब चलता था, तो बौडीगार्ड समेत अपने पूरे गैंग में सब से लंबा दिख जाता था.

दरअसल, पूरा पूर्वांचल मुख्तार अंसारी के खानदान की हिस्ट्री से वाकिफ था. क्योंकि मुख्तार के दादाजी मुख्तार अहमद अंसारी कभी कांग्रेस पार्टी के प्रेसिडेंट रह चुके थे. इन के भाई अफजाल 4 बार कम्युनिस्ट पार्टी से एमएलए रह चुके हैं और एक बार समाजवादी पार्टी से. मुख्तार के अब्बा और दादाजी स्वतंत्रता सेनानी भी रह चुके थे. साथ ही चाचा और दादाजी नेहरू, सुभाषचंद्र बोस और गांधीजी के भी काफी करीब थे.

चाचा हामिद अंसारी अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी के वीसी और देश के उपराष्ट्रपति बने थे. अब बात बृजेश सिंह की करते हैं.

अगले भाग में पढ़ें- बृजेश को मिला राजनैतिक संरक्षण

माफिया से माननीय बनने का खूनी सफर: भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- सुनील वर्मा

सन 2002 में बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी के बीच कोयले की ठेकेदारी को ले कर भयानक गोलीबारी और लड़ाई हुई, जिस में मुख्तार गैंग के 3 लोग मारे गए और खुद बृजेश सिंह भी जख्मी हो गया. इस लड़ाई के बाद बृजेश सिंह के मरने की अफवाह फैल गई. इस खबर को लोगों ने सच भी मान लिया, क्योंकि महीनों तक किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई और ब्रजेश को किसी ने नहीं देखा.

बृजेश के मरने की खबर ने मुख्तार गैंग को और ज्यादा ताकतवर बना दिया और फिर से चौतरफा उस का वर्चस्व हो गया.

2002 में अचानक कई महीनों बाद बृजेश तब सामने आया जब उत्तर प्रदेश में चले रहे चुनाव में गाजीपुर से बीजेपी के उम्मीदवार कृष्णानंद राय मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी के खिलाफ जबरदस्त तरीके से ताल ठोंक रहे थे.

बृजेश को मिला राजनैतिक संरक्षण

बृजेश सिंह एकाएक सामने आया और कृष्णानंद राय को समर्थन दे कर लोगों से उन के पक्ष में मतदान की अपील की. वास्तविकता तो यह थी कि बृजेश को राजनीतिक संरक्षण की जरूरत थी. कृष्णानंद राय यूपी से ले कर केंद्र की सियासत तक में जबरदस्त रसूख रखने वाले नेता थे.

इसी राजनीतिक संरक्षण के लिए बृजेश ने कृष्णानंद राय से हाथ मिला कर उन्हें चुनाव में अपना समर्थन दिया था. फलस्वरूप बृजेश की अपील पर इलाके की ठाकुर लौबी राय के पक्ष में खड़ी हो गई.

इस चुनाव में कृष्णानंद राय ने मुख्तार के भाई को हरा दिया. इस के बाद तो हालात ये हो गए कि अब गाजीपुर-मऊ इलाके में पूरी राजनीति हिंदू-मुसलिम के बीच बंट गई. जिस कारण इलाके में सांप्रदायिक लड़ाइयां होने लगीं. ऐसे ही एक मामले में मुख्तार गिरफ्तार हो गया.

मुख्तार अंसारी बृजेश की चोट से अकसर लगातार कमजोर हो रहा था. इसीलिए बृजेश का काला कारोबार संभालने वाले कई लोग मुख्तार गैंग के निशाने पर आ गए. बृजेश का राइट हैंड कहे जाने वाला अजय खलनायक भी उन में से एक था. जिस पर मुख्तार अंसारी ने जानलेवा हमला करा दिया.

मुख्तार अंसारी किसी भी हाल में बृजेश को कमजोर करना चाहता था, इसीलिए उस ने बृजेश सिंह के चचेरे भाई सतीश सिंह की दिनदहाड़े हत्या करवा दी. सतीश की हत्या से पूरा पूर्वांचल दहल गया और इलाके के लोगों में खौफ पैदा हो गया.

सतीश की हत्या को उस वक्त अंजाम दिया गया, जब वह वाराणसी के चौबेपुर में एक दुकान पर चाय पी रहा था. उसी वक्त बाइक पर सवार हो कर पहुंचे 4 लोगों ने उस पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दीं. जिस की वजह से उस की मौके पर ही मौत हो गई थी.

मुख्तार के साथ चल रही गैंगवार के बीच अपराध जगत में माफिया डौन बन चुका बृजेश सिंह धीरेधीरे अपना कारोबार भी बढ़ाता जा रहा था. पूर्वांचल के साथ उस ने पश्चिम बंगाल, मुंबई, बिहार, और उड़ीसा में अपना ठेकेदारी व शराब कारोबार का जाल फैला दिया था. हालांकि बृजेश तब तक इतना बड़ा अपराधी बन चुका था कि वह अधिकांशत: भूमिगत ही रहता था.

इसी दौर में एक गैंग और तेजी से उभर रहा था, जो त्रिभुवन सिंह के पिता के हत्यारोपी मकनू सिंह और साधू सिंह का गैंग था. बृजेश सिंह के साथी त्रिभुवन सिंह का भाई हैडकांस्टेबल राजेंद्र सिंह वाराणसी पुलिस लाइन में तैनात था. अक्तूबर, 1988 में साधू सिंह ने कांस्टेबल राजेंद्र को मौत की नींद सुला दिया. जिस के बाद हत्या के इस मामले में कैंट थाने पर साधू सिंह के अलावा मुख्तार अंसारी और गाजीपुर निवासी भीम सिंह को भी नामजद किया गया.

त्रिभुवन के भाई की हत्या का बदला लेने के लिए बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह ने पुलिस वाला बन कर गाजीपुर के एक अस्पताल में इलाज करा रहे साधू सिंह को गोलियों से भून डाला. इसी कारण बृजेश का गिरोह उस वक्त इस हत्याकांड की वजह से पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गया.

अगलेे भाग में पढ़ें- यूपी सरकार ने रखा ईनाम

माफिया से माननीय बनने का खूनी सफर: भाग 5

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- सुनील वर्मा

बृजेश सिंह का राजनीतिक रसूख और धमक ही कहेंगे कि पिछले 12 साल में उस पर लगे सारे मुकदमे तेजी से हो रही सुनवाई के बाद हटते जा रहे हैं. ज्यादातर मामलों में उस के खिलाफ गवाही देने वाले मुकर गए या कुछ में पुलिस की कमजोर पैरवी और सबूत की कमजोरी के कारण एक के बाद एक मामले तेजी से खत्म होते जा रहे हैं.

चंद छोटे मामलों को छोड़ दें तो उस के खिलाफ चल रहे अधिकांश गंभीर और बड़े मामले अब खत्म हो चुके हैं. कुछ छोटे मामलों की सुनवाई भी अपने अंतिम चरण में है.

लेकिन इस के बावजूद बृजेश सिंह अभी जेल से बाहर नहीं आना चाहता क्योंकि मुख्तार गैंग से दुश्मनी के कारण जान का खतरा अभी भी बरकरार है.

बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी भले ही सलाखों के पीछे हों, लेकिन दोनों की दुश्मनी अभी खत्म नहीं हुई है. दोनों ही अपने भविष्य के लिए एकदूसरे का खात्मा चाहते हैं.

सन 2015 में बृजेश सिंह की एमएलसी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह और भतीजे विधायक सुशील सिंह ने आरोप लगाया था कि मुख्तार अंसारी ने सेंट्रल जेल में लंबू शर्मा नाम के व्यक्ति को भेज कर बृजेश सिंह की जेल में ही हत्या कराने की साजिश रची थी.

इस के 3 दिन पहले भी बादशाह नाम के व्यक्ति को बनारस सेंट्रल जेल में बृजेश सिंह से मिलने के लिए भेजा गया था.  हालांकि इस मामले में बृजेश सिंह के परिजनों की शिकायत के बावजूद पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया था.

बृजेश सिंह के बारे में कहा जाता है कि सियासत में एंट्री के लिए ही उस ने खुद को दिल्ली पुलिस के हाथों गिरफ्तार करवाया था. एक अपराधी भले ही कितना भी ताकतवर और रसूख वाला क्यों न हो, लेकिन अंतत: उस का अंत बुरा ही होता है. इसीलिए बृजेश सिंह ने बहुत पहले ही माफिया से माननीय बन कर अपने जीवन को नई दिशा देने की योजना पर काम शुरू कर दिया था.

माफिया से बना माननीय

हालांकि सियासत बृजेश सिंह के खून में रचीबसी थी. स्वर्गवासी पिता खुद इलाके में राजनीति करते थे. भले ही बृजेश का आपराधिक इतिहास उस के पूर्वांचल के बाहुबली होने की छवि की पुष्टि करता है, लेकिन इस के साथ अगर राजनीति में उस के दखल की ओर देखें तो वाराणसी-चंदौली में उस के परिवार का पुराना राजनीतिक प्रभाव साफ नजर आता है.

वाराणसी की एमएलसी सीट पर बृजेश और उस का परिवार पिछली 4 बार से जीतता आ रहा है. पहले 2 बार बृजेश के बड़े भाई उदयनाथ सिंह इस क्षेत्र से एमएलसी रहे. बृजेश के बड़े भाई उदयनाथ सिंह उर्फ चुलबुल का 2018 में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था. चुलबुल सिंह को पंचायत चुनावों का चाणक्य माना जाता था.

पूर्वांचल की राजनीति के जानकार मानते हैं कि चुलबुल सिंह ही वह शख्स थे, जिन्होंने पूरे परिवार का राजनीतिक रसूख कायम किया और पूर्वांचल के तमाम बाहुबली क्षत्रिय नेता इस परिवार के संपर्क में आए. उन्हीं की राजनीतिक धमक के कारण सियासत से बृजेश सिंह को जीवनदान मिलता रहा.

चुलबुल सिंह के लंबे समय तक बीमार रहने के कारण बाद में बृजेश की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह और उस के बाद मार्च 2016 में खुद बृजेश सिंह वाराणसी से एमएलसी बन कर राज्य की विधानसभा में दाखिल हो गया.

निर्दलीय चुनाव लड़ने के बावजूद उस ने रिकौर्ड मतों से जीत हासिल की थी. जिस के बाद माफिया से माननीय बनने का उस का सपना साकार हो चुका है. बृजेश सिंह ने एमएलसी बनने के बाद जब विधानसभा पहुंच कर एमएलसी पद की शपथ ली थी तो राजा भैया, धनंजय सिंह जैसे यूपी के कई क्षत्रिय बाहुबली नेता उस की वेलकम पार्टी में मौजूद थे.

सन 2017 में बृजेश सिंह भारतीय समाज पार्टी से सैयदराजा विधानसभा सीट (चंदौली) से चुनावी समर में उतरा, लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा था.

फिलहाल जेल में बंद बृजेश के परिवार के औपचारिक राजनीतिक चेहरे के तौर पर पहचाने जाने वाले उस के भतीजे सुशील सिंह लगातार तीसरी बार चंदौली से विधायक चुने जा चुके हैं. कभी कृष्णानंद राय से ले कर राजनाथ सिंह जैसे भाजपा नेताओं के करीबी माने जाने वाले बृजेश के भतीजे सुशील भी अब औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल हो चुके हैं.

लेकिन राजनीति से इतर जो बात बृजेश को दूसरे बाहुबलियों से अलग करती है वह है अपराध के साथसाथ लगभग फिल्मी तरीके से फैला उस के व्यापार का सिंडिकेट.

पूर्वांचल के साथसाथ बिहार, झारखंड और मुंबई तक फैले बृजेश के व्यापारिक कनेक्शन उसे आर्थिक तौर पर पूर्वांचल के सब से मजबूत माफिया नेताओं में से एक बनाते हैं.

बृजेश ने अपना व्यापार लोहे के स्क्रैप से शुरू किया था. उस के बाद उस ने पहले कोयले के धंधे में पांव जमाया और फिर आजमगढ़ से शराब का व्यापार शुरू किया. बलिया, भदोही, बनारस से ले कर झारखंड, छत्तीसगढ़ तक अपने धंधे को फैलाया. इस के बाद वह जमीन और रियल एस्टेट में आया और अब उस का रेत के खनन का व्यापार भी चल रहा है.

अकसर मीडिया में ऐसी खबरें आती रहती हैं कि बृजेश सिंह वाराणसी सेंट्रल जेल में मिलने के लिए आने वाले मुलाकातियों से मिलने के लिए दरबार लगाता है.

पूर्वांचल के लोगों में इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले दिनों में बृजेश सिंह अपने दामन पर लगे अपराध के दागों से मुक्ति पा कर सांसद बनने और लोकसभा में जाने की लालसा पाले हुए है. क्योंकि ऐसा होगा तभी बृजेश सिंह का समूचे पूर्वांचल पर कब्जा और अपने कारोबार को बढ़ाने का सपना साकार होगा.

माफिया से माननीय बनने का खूनी सफर: भाग 4

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- सुनील वर्मा

लेकिन बृजेश सिंह ने जब मुंबई के जेजे अस्पताल में एक बड़ा गोलीकांड किया तो वह पूर्वाचंल के सब से खतरनाक माफिया डौन के रूप में स्थापित हो गया.

दरअसल, सितंबर 1992 की एक रात 20 से ज्यादा लोग डाक्टर के लिबास में अचानक बंबई (मुंबई) के जेजे अस्पताल के वार्ड नंबर 18 में घुस आए और बिस्तर पर लेटे शैलेश हलदरकर को गोलियों से छलनी कर दिया. हलदरकर बंबई के अरुण गवली गैंग का सदस्य था और उस की हत्या दाऊद इब्राहीम के रिश्तेदार इस्माइल पारकर की हत्या का बदला लेने के लिए उसी के इशारे पर की गई थी.

इस घटना में वार्ड की पहरेदारी कर रहे मुंबई पुलिस के 2 हवलदार भी मारे गए थे. जेजे अस्पताल शूटआउट में पहली बार एके 47 का इस्तेमाल कर 500 से ज्यादा गोलियां चलाई गई थीं.

यह सवाल जेहन में उठना लाजिमी है कि पूर्वांचल का एक डौन आखिर मुंबई कैसे पहुंचा और उस की दोस्ती आज एक अंतरराष्ट्रीय अपराधी के रूप में कुख्यात दाऊद इब्राहीम से कैसे हो गई.

दाऊद से हुई दोस्ती

हुआ यूं कि 90 के दशक में जब बृजेश सिंह मुख्तार अंसारी के गैंग पर हमले के बाद छिपता फिर रहा था तो वह पुलिस और मुख्तार के गैंग से बचने के लिए मुंबई चला गया. मुंबई में उस की दाऊद के करीबी सुभाष ठाकुर से मुलाकात हुई. सुभाष के माध्यम से वह दाऊद से मिला. दाऊद के जीजा इब्राहिम कासकर की हत्या हो चुकी थी. दाऊद उस का बदला लेने के लिए कसमसा रहा था. उस ने सुभाष ठाकुर को इस की सुपारी दे दी.

इसी काम के लिए बृजेश का गैंग सुभाष ठाकुर व उस के साथियों के साथ 12 फरवरी, 1992 को डाक्टर बन कर जेजे अस्पताल पहुंचा, जहां डाक्टर बन कर उन्होंने पुलिस पहरे के बीच गवली गैंग के शैलेश हलदरकर समेत वहां तैनात पुलिसकर्मियों को मार दिया.

बृजेश की इस शातिराना चाल को देख कर दाऊद बृजेश के दिमाग का लोहा मान गया. इस के बाद दोनों बेहद करीब आ गए.

लेकिन 1993 में हुए मुंबई बम ब्लास्ट के बाद बृजेश के दाऊद से मतभेद हो गए. बृजेश सिंह मुंबई को दहलाने की दाऊद की योजना से पूरी तरह अनजान था. इस ब्लास्ट में हजारों बेगुनाह मारे गए और सैकड़ों लोग घायल हुए.

इस वारदात से बृजेश सिंह को गहरा आघात लगा. दाऊद के इस कदम के बाद दोनों के बीच एक दीवार खड़ी हो गई. माना जाता है कि इसके बाद दोनों एकदूसरे के दुश्मन बन गए.

हालांकि मुंबई ब्लास्ट के पहले ही दाऊद ने देश छोड़ दिया था, लेकिन बृजेश दाऊद को मारने का प्लान बनाने लगा. जिस के लिए उस ने कई बार भेष बदल कर दाऊद तक पहुंचने की कोशिश भी की, लेकिन अपने मनसूबे में सफल नहीं हो पाया.

इस घटना के बाद बृजेश को ‘देशभक्त डौन’, ‘हिंदू डौन’ और पूरब का रौबिनहुड के नाम से जाना जाने लगा.

बहरहाल जेजे हौस्पिटल शूटआउट में कई लोग गिरफ्तार हुए, लेकिन बृजेश फरार हो गया. अलबत्ता उस पर टाडा के तहत मुकदमा चला और सितंबर 2008 में सबूतों की कमी के कारण छूट गया. लेकिन इस मामले ने बृजेश को पूर्वांचल के एक गैंगस्टर से पूरे देश में एक बड़े डौन के तौर पर स्थापित कर दिया.

बृजेश सिंह पर अब तक चल रहे बड़े मुकदमों में 2001 का गाजीपुर का उसरी चट्टी कांड भी गिना जाता है. इस मामले में बृजेश और मुख्तार की सीधी गैंगवार में 2 लोगों की हत्या हुई थी, जिस में मुख्तार अंसारी घायल हो गया था. घटना के बाद बृजेश के खिलाफ मुकदमा लिखवाते हुए मुख्तार ने उस की गाडि़यों के काफिले पर अचानक हमला करने, उस के गनर की हत्या करने का आरोप लगाया था. इस घटना के बाद बृजेश काफी साल तक फरार रहा.

इसी बीच 2003 में बृजेश सिंह का नाम बिहार के कोल माफिया सूर्यदेव सिंह के बेटे राजीव रंजन सिंह के अपहरण और हत्याकांड में बतौर मास्टरमाइंड सामने आया.

बृजेश सिंह एक के बाद एक जघन्य हत्याकांड और रंगदारी वसूलने के कारण इतना कुख्यात हो चुका था कि कई राज्यों की पुलिस उस के पीछे पड़ चुकी थी. हालांकि इस बीच बृजेश भेष बदल कर इस राज्य से उस राज्य में छिप कर रहता रहा और वहीं से अपने गिरोह के संपर्क में रह कर अपने काले धंधों को संचालित करता रहा.

कई बार जब लंबे समय तक उस की गतिविधियां सुनाई नहीं पड़तीं तो यह भी अफवाह उड़ती कि उस की मौत हो चुकी है. लेकिन जल्द ही उस के अगले कारनामे से उन अफवाहों पर धूल पड़ जाती थी.

यूपी सरकार ने रखा ईनाम

सूर्यदेव सिंह के बेटे के अपहरण व हत्या के मामले में फरारी के बाद बृजेश लंबे समय तक उड़ीसा के भुवनेश्वर में अरुण कुमार बन कर रहा. बृजेश सिंह के आपराधिक इतिहास को देखते हुए तत्कालीन यूपी सरकार ने उस की गिरफ्तारी या सुराग बताने वाले के लिए 5 लाख रुपए का ईनाम घोषित कर दिया था.

दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल भी लंबे समय से उस की गिरफ्तारी के प्रयास में लगी थी. स्पैशल सेल को सन 2008 में बृजेश के भेष बदल कर भुवनेश्वर में छिपे होने की जानकारी मिल गई. यहीं से स्पैशल सेल ने उसे गिरफ्तार किया. जिस के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस बृजेश सिंह को उस के खिलाफ दर्ज मामलों में सुनवाई के लिए यूपी ले गई

जहां से अलगअलग अदालतों में उस की पेशी होती रही.

दिलचस्प बात यह है कि बृजेश की गिरफ्तारी के एक साल बाद सन 2009 में उस के गिरोह की कमान संभालने वाले त्रिभुवन सिंह ने भी एसटीएफ के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उस के ऊपर भी 5 लाख का ईनाम था.

वैसे इस बात की हमेशा चर्चा रही कि बृजेश का राजनीतिक रसूख इतना बढ़ चुका था कि उस के भीतर अपराध की राह छोड़ कर राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा जोर मारने लगी थी. इसी कारण दिल्ली पुलिस के जरिए उस की गिरफ्तारी को प्रायोजित कहा जाने लगा.

कहा जाता है कि बडे़ से बड़ा अपराध करने के बाद भी बृजेश सिंह केवल इसलिए पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ता था, क्योंकि वह हाईप्रोफाइल हो कर भी लो प्रोफाइल बन कर रहता था. मीडिया से बात नहीं करता था और मोबाइल फोन व सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करता था.

अपने 3 दशक लंबे आपराधिक जीवन में 30 से ज्यादा संगीन आपराधिक मुकदमों में नामजद बृजेश सिंह पर मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल औफ आर्गनाइज्ड क्राइम ऐक्ट), टाडा (टेररिस्ट ऐंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज ऐक्ट) और गैंगस्टर एक्ट के अलावा हत्या, अपहरण, हत्या का प्रयास, हत्या की साजिश रचने से ले कर, दंगाबवाल भड़काने, सरकारी कर्मचारी को इरादतन चोट पहुंचाने, झूठे सरकारी कागजात बनवाने, जबरन वसूली करने और धोखाधड़ी से जमीन हड़पने तक के मुकदमे लग चुके थे.

अगले भाग में पढ़ेंमाफिया से बना माननीय

Crime Story: भयंकर साजिश

Crime Story: भयंकर साजिश- पार्ट 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

रोनी लिशी ने तेची मीना से प्रेम विवाह किया था, दोनों की एक बेटी भी हुई. जब मीना दूसरी बार गर्भवती हुई तो रोनी की जिंदगी में चुमी ताया आ गई. बड़े बाप के बेटे और बिजनैसमेन ने चुमी से गुपचुप शादी कर ली और पत्नी मीना को रास्ते से हटाने के लिए ऐसी साजिश रची कि…

अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर 5 नवंबर के बाद से कई दिनों तक ‘हत्यारों को फांसी दो.. जस्टिस फौर

मीना…’ के नारों से गूंजती रही. जिस के लिए जस्टिस मांगा जा रहा था, उस का नाम था तेची मीना लिशी, उम्र 28 वर्ष. तेची की हत्या हुई थी पर खुलासा कई दिन बाद हुआ. उस की हत्या का खुलासा होने के बाद से सामाजिक संगठनों में आक्रोश की आग सुलगने लगी थी. सामाजिक संगठन तेची मीना लिशी को न्याय दिलाने के लिए कभी कैंडिल मार्च तो कभी शांतिपूर्ण जुलूस निकाल कर इस हत्याकांड के आरोपियों को कठोर दंड देने की मांग कर रहे थे.

कोई मामूली शख्सियत नहीं थी. वह मिस अरुणाचल नाम की एक बड़ी संस्था में लेखा और वित्त विभाग की सचिव थी. वह प्रदेश के एक बड़े बिजनैसमैन रोनी लिशी की पत्नी थी. उस के ससुर लेगी लिशी कांग्रेस और भाजपा जैसी बड़ी पार्टियों में रहे थे. वह ईटानगर से 3 बार विधायक व एक बार मंत्री रह चुके थे.

अरुणाचल प्रदेश पूर्वोत्तर के उन राज्यों में से है, जहां अपराध की वारदातें बहुत कम होती हैं और साजिश कर के हत्या की वारदात को अंजाम देने के मामले तो अपवाद ही होते हैं. लेकिन नौर्थ ईस्ट के इस छोटे से खूबसूरत राज्य की राजधानी ईटानगर में 5 नवंबर को एक ऐसी वारदात हुई, जिस के बाद पूरे ईटानगर के शांत माहौल को गर्म कर दिया. क्योंकि इस वारदात को इस तरह की साजिश के तहत अंजाम दिया गया था कि पिछले 2 दशकों में इस राज्य के लोगों ने इस तरह के अपराध की कोई वारदात न देखी थी न सुनी थी.

राजधानी ईटानगर के विधायक रहे लेगी लिशी के रसूख और शहर के सब से पौश इलाके नाहारलागुन के सेक्टर-1 में बने उन के आवास लेगी कौंप्लेक्स को शहर का हर बांशिदा जानता था.

5 नवंबर की दोपहर करीब साढ़े 12 बजे लेगी लिशी की बहू तेची मीना लिशी अपनी इनोवा एसयूवी कार में घर से निकली थी. मीना की गाड़ी को 2 दिन पहले ही नियुक्त हुआ ड्राइवर दाथांग सुयांग चला रहा था. गाड़ी ईटानगर से कारसिंगा की तरफ जा रही थी. दरअसल, मीना को उस के पति रोनी लिशी ने सड़क बनाने के लिए अधिग्रहीत अपनी जमीन के मुआवजे के लिए कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने हेतु संबंधित सरकारी विभाग में जानकारी लेने भेजा था.

चूंकि मीना 7 महीने की गर्भवती थी, इसलिए रोनी ने 2 दिन पहले ही पत्नी की गाड़ी चलाने के लिए एक ड्राइवर रखा था. हालांकि मीना पहले अपनी सैंट्रो कार खुद चला कर अपने दफ्तर जाती थी. लेकिन 7 महीने की गर्भवती होने के कारण मीना के पति लिशी लेगी ने मीना के लिए अपनी बहन के घर पर खड़ी अपनी इनोवा कार मंगवा ली थी और उस के लिए 2 दिन पहले ही एक एक ड्राइवर दाथांग सुयांग को नियुक्त कर दिया था.

दोपहर करीब साढ़े 12 बजे ड्राइवर दाथांग सुयांग इनोवा कार से मीना को ले कर कारसिंगा रोड पर शहर से करीब 25 किलोमीटर दूर ही चला था कि उस की कार जब कूड़ा डंपिंग जोन के पास बने मंदिर के पास पहुंची तो दुर्घटनाग्रस्त हो कर खाईं में लुढ़क गई.

मीना की मौत

किसी तरह दाथांग सुयांग तो बाहर निकल आया, लेकिन उस ने देखा कि बीच की सीट पर पड़ी मीना मृतप्राय थी. हैरानी यह थी कि ड्राइवर दाथांग किसी तरह दरवाजा खोल कर गाड़ी से बाहर निकल आया था और पूरी तरह से कुछ लोगों ने देखा कि गाड़ी के भीतर एक महिला खून से लथपथ घायल अवस्था में पड़ी है तो उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम को दुर्घटना की सूचना दे दी. साथ ही मीना को पास के अस्पताल भिजवा दिया.

जिस स्थान पर ये दुर्घटना हुई थी, वह इलाका राजधानी ईटानगर के बांदरदेवा पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आता था. जब पता चला कि एक्सीडेंट हुई कार में पूर्व विधायक लेगी लिशी की पुत्रवधू मीना सवार थी तो खुद थानाप्रभारी गोशम ताशा पुलिस टीम को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

इंसपेक्टर गोशम यह देख कर हैरान थे कि गाड़ी का ड्राइवर दाथांग सुयांग एकदम सहीसलामत था. उसे खरोंच तक नहीं आई थी. सड़क से 3 मीटर नीचे खाई में लुढ़की गाड़ी भी एकदम सहीसलामत थी. उस के न तो शीशे टूटे थे, न ही गाड़ी कहीं से डैमेज हुई थी. वहां मौजूद लोगों ने बताया कि गाड़ी की बीच वाली सीट पर बैठी मीना बुरी तरह खून से लथपथ थी और उस के सिर, कंधों व गरदन पर काफी चोटें आई थीं.

पुलिस के आने से पहले ही लोगों ने मीना को पास के एक अस्पताल भिजवा दिया था. इंसपेक्टर गोशाम ने दुघर्टना को पूर्व विधायक लेगी लिशी की पुत्रवधू से जुड़ा होने के कारण नाहारलागुन के सीओ रिक कामसी के अलावा ईटानगर कैपिटल रीजन के एसपी जिमी चिराम को भी दुर्घटना की जानकारी दे दी थी, जो सूचना मिलने के कुछ देर बाद घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने यह सूचना पूर्व विधायक लेगी लिशी और उन की पति रोनी लिशी को दे दी थी. उन्हीं की सूचना से यह जानकारी पा कर कारसिंगा में रहने वाले मीना के मातापिता, भाईबहन व अन्य रिश्तेदार भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

एसपी जिमी चिराम ने जब घटनास्थल का निरीक्षण किया तो पहली ही नजर में उन्हें दुर्घटना संदिग्ध लगी. इसलिए फोरैंसिकटीम ने गाड़ी व घटनास्थल का निरीक्षण कर ऐसे साक्ष्य एकत्र करने शुरू कर दिए, जिस से पता चल सके कि दुर्घटना किन कारणों से हुई.

ड्राइवर दाथांग सुयांग घटनास्थल पर ही मौजूद था, इसीलिए पूछताछ की शुरुआत उसी से हुई. दाथांग ने बताया कि गाड़ी के ब्रेक फेल हो गए थे, जिस से गाड़ी संतुलन खो कर खाईं में लुढ़क गई और मालकिन मीना बुरी तरह जख्मी हो गईं. लेकिन पुलिस यह देख कर हैरान थी कि दाथांग एकदम सहीसलामत था, उसे खरोंच तक नहीं आई थी.

मीना का बयान लेने के लिए पुलिस की एक टीम अस्पताल भेजी गई थी, लेकिन वहां पता चला कि अस्पताल पहुंचने से पहले ही उस की मौत हो गई थी. अस्पताल में मीना के परिजन, जिन में मायके व ससुराल के लोग भी शामिल थे, भी अस्पताल पहुंच चुके थे जिस से वहां का माहौल परिजनों के मार्मिक विलाप के कारण बेहद गमगीन हो गया था.

पुलिस टीम ने दुर्घटना में घायल हुई मीना के शरीर पर आई चोटों की फोटोग्राफी कराई. एसपी जिमी चिराम ने ये फोटो देखे तो पूरी तरह साफ हो गया कि दुर्घटना का यह मामला सिर्फ दिखाने के लिए था.

मीना के मातापिता व रिश्तेदारों के साथ पूर्व विधायक लिशी लेगी भी अस्पताल से दुर्घटनास्थल पर पहुंच गए थे. गाड़ी और उस का ड्राइवर जिस तरह सहीसलामत थे और मीना की दुर्घटना में जो हालत हुई थी, उसे देख कर उन्होंने भी यहीं आशंका जताई कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि मीना को दुर्घटना में इतनी गंभीर चोटें लगी हों.

मीना के पिता तेची काक ने एसपी जिमी चिराम को एकांत में ले जा कर जो कुछ बताया, उस ने अचानक दुर्घटना के इस मामले को नया रंग दे दिया. इस के बाद तो पुलिस की जांच करने का तरीका ही बदल गया. पुलिस ने उसी दिन मीना का शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

अगले भाग में पढ़ें-  ड्राइवर ने बताया गाड़ी का ब्रेक फेल हो गया था

Crime Story: भयंकर साजिश- पार्ट 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

ड्राइवर ने बताया ब्रेक फेल होना

ड्राइवर दाथांग ने चूंकि बताया था कि गाड़ी के ब्रेक फेल होने के कारण वह असंतुलित हो कर खाई में गिरी थी. इसीलिए पुलिस ने पुलिस लाइन से मोटर इंजीनियर एक्सपर्ट को मौके पर बुलवा लिया. उन्होंने जांचपड़ताल की तो यह देख कर दंग रह गए कि गाड़ी के ब्रेक एकदम सहीसलामत थे.

इस के बाद 2 दिन पहले ही मीना की गाड़ी पर ड्राइवर की नौकरी करने आए दाथांग की भूमिका संदेह के घेरे में आ गई. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. साथ ही उस के मोबाइल को भी अपने कब्जे में ले लिया गया.

नाहरलगुन पुलिस स्टेशन में उसी दिन इंसपेक्टर गोशाम ने भादंसं की धारा 279/304 (ए) आईपीसी के तहत लापरवाही से गाड़ी चला कर दुर्घटना करने का मामला दर्ज करवा दिया और जांच का काम स्वयं शुरू किया.

दाथांग सुयांग से कड़ी पूछताछ की जाने लगी. उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली गईं. पूछताछ में पता चला कि नया मोबाइल व नंबर उस के मालिक लिशी रोनी ने ही उसे खरीद कर दिया था.

3 दिन पहले एक्टिव हुए इस नंबर की काल डिटेल्स खंगालते हुए पुलिस ने उन लोगों को चैक करना शुरू कर दिया, जिन्होंने इस नंबर पर काल की थी या इस नंबर से उन के नंबर पर काल किए गए थे.

अगली सुबह मीना के शव को पोस्टमार्टम के बाद उन के घरवालों को सौंप दिया गया. पूरे ईटानगर में मीना की संदिग्ध मौत की खबर जंगल की आग की तरह फैल चुकी थी. मीना के ससुर लेगी लिशी एक बड़ी राजनीतिक हस्ती थे. खुद मीना भी सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी थी. इसलिए शवयात्रा में मीना के घर वालों के अलावा बड़ी संख्या में राजनीतिक व सामाजिक संगठनों के लोग शामिल हुए.

इधर पुलिस को मिली पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि मीना की जांघ, हथेली, सिर और गरदन पर किसी भारी चीज से प्रहार हुआ था और वहां गहरे कट के निशान थे, बायां हाथ सूजा हुआ था. मैडिकल जांच करने वाले विशेषज्ञों और गाड़ी का मुआयना करने वाले एक्सपर्ट ने साफ कर दिया था कि दुर्घटना में इस तरह की चोट नहीं आ सकती.

दुर्घटना के बाद मीना के ससुर पूर्व विधायक लेगी लिशी ने भी दुर्घटना के संदिग्ध हालात के मामले की गहनता से सही जांच के लिए कहा था. पुलिस को इस मामले में शुरुआती जांच से ही जिस तरह से गहरी साजिश और इस में कई लोगों के शामिल होने के सबूत मिले थे.

उसी के मद्देनजर आईजीपी (कानून एवं व्यवस्था) चुखू अपा ने ईटानगर कैपिटल रीजन के एसपी जिमी चिराम के नेतृत्व में इस मामले का खुलासा करने के लिए एक बड़ी टीम का गठन कर दिया.

इस टीम में नाहारलागुन सर्किल के सीओ रिक कामसी व जांच अधिकारी इंसपेक्टर गोशाम के अलावा इंसपेक्टर मिनली गेई, खिकसी यांगफो व तिराप जिले के एसपी कारदक रिबा तथा खोंसा पुलिस थाने के इंसपेक्टर वांगोई कामुहा को शामिल किया गया. इस टीम को बंट कर काम करना था.

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पुलिस की टीमों ने इस दौरान मीना के घर से ले कर घटनास्थल तक पहुंचने के तक जिन मार्गों से गाड़ी गुजरी थी, उन सभी रास्तों के सीसीटीवी फुटेज चैक करने शुरू कर दिए. इस के अलावा पुलिस ने घटनास्थल के एक किलोमीटर के दायरे में सड़क किनारे बनी दुकानों व रेहड़ी वालों से पूछताछ करनी शुरू कर दी.

पुलिस ने छानबीन शुरू की तो उसे जल्द ही चश्मदीद के रूप में कुछ राहगीर व रेहड़ी वाले मिल गए, जिन्होंने कार के ब्रेक फेल होने की ड्राइवर दाथांग सुयांग की कहानी को झूठा साबित कर दिया.

एक चश्मदीद ने कार नीचे गिरने के बाद 50 मीटर की दूरी से देखा था कि उस का ड्राइवर गाड़ी से बाहर निकला था और पिछली सीट पर पड़ी महिला को बाहर निकालने की कोशिश कर रहा था. जबकि कारसिंगा ब्लौक बिंदु पर सड़क किनारे सब्जी बेचने वाले एक रेहड़ी वाले ने बताया कि उस के सामने से कार सामान्य गति से गुजरी थी, इस से यह कहना गलत था कि उस के ब्रेक फेल हुए होंगे.

तब तक पुलिस को ड्राइवर दाथांग की संदिग्ध गतिविधियों के कुछ दूसरे साक्ष्य भी मिल गए थे. इसीलिए 6 नंवबर की सुबह उसे आधिकारिक रूप से गिरफ्तार कर के कड़ी पूछताछ शुरू कर दी गई.

मुंह खोलना पड़ा ड्राइवर दाथांग को ड्राइवर दाथांग ने शुरू में तो एक ही रट लगाए रखी कि गाड़ी के ब्रेक नहीं लगे थे. लेकिन जब पुलिस ने उस के खिलाफ एकत्र सारे सबूत एकएक कर के उस के सामने रखने शुरू किए तो वह जल्द ही टूट गया. उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. दाथांग के मुंह खोलते ही साजिश के तहत मीना की हत्या की एक सनसनीखेज कहानी सामने आई.

पुलिस को एक बार अपराध का सिरा हाथ लग जाए तो उस के अंतिम छोर तक पहुंचने में ज्यादा देर नहीं लगती. पुलिस ने उसी दिन शाम तक ताबड़तोड़ छापेमारी करते हुए तिरप जिले से दाथांग सुयांग के साथ मीना की हत्या की साजिश में शामिल रहे 3 सहआरोपियों कपवांग लेटी लोवांग (40) के साथ ताने खोयांग (33) और दामित्र खोयांग (29) को गिरफ्तार कर लिया.

कपवांग पूर्वोत्तर भारत के एक विद्रोही गुट एनएससीएन (यू) का सक्रिय कार्यकर्ता रह चुका था. उसी ने मीना की हत्या की सुपारी ली थी. हैरानी की बात यह थी कि मीना की हत्या की सुपारी उस के पति रोनी लिशी ने ही दी थी.

कपवांग रोनी का पुराना जानकार था. उसी ने सुपारी लेने के बाद हत्यारों का इंतजाम किया था. बाद में पूरी योजना के तहत इस वारदात को इस तरह अंजाम दिया गया ताकि यह हत्या एक दुर्घटना लगे.

पुलिस ने पूछताछ के लिए आरोपियों को अदालत से रिमांड पर ले लिया. उस के बाद उन के बयानों की तस्दीक की जाने लगी. क्योंकि हत्या का आरोप मृतका के पति और एक प्रभावशाली पूर्व विधायक के बेटे पर था. इसलिए पुलिस आरोपों को प्रमाणित करने के लिए साक्ष्य एकत्र कर लेना चाहती थी.

इस दौरान जब यह बात सार्वजनिक हो गई कि मीना की हत्या उस के पति रोनी ने ही भाड़े के हत्यारों से करवाई है तो राजनीतिक व सामाजिक संगठनों ने धरने, प्रदर्शन व कैंडिल मार्च के जरिए पुलिस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया.

परिवार के लोग भी अब पूरी तरह रोनी के खिलाफ बोलने लगे. तब तक पुलिस ने कई साक्ष्य एकत्र कर लिए थे. जिस के बाद 10 नवंबर को रोनी लेशी को भी गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन पुलिस को इस हत्याकांड की जो थ्योरी अब तक पता चली थी, उस के मुताबिक उसे मामले में 2 अन्य लोगों की तलाश थी. उस के लिए साक्ष्य एकत्र करने का काम शुरू कर दिया गया.

आखिरकार 18 नवंबर को पुलिस ने रोनी की प्रेमिका व दूसरी पत्नी चुमी ताया (26) व उस की कंपनी में काम करने वाले मैनेजर विजय बिस्वास (30) को भी हत्याकांड की साजिश में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

इन सभी की गिरफ्तारी के बाद जांच अधिकारी ने दुर्घटना के इस मामले को हत्या व साजिश की धाराएं लगा कर हत्या में परिवर्तित कर दिया. इस के बाद मीना हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, उस ने पूर्वोत्तर के खूबसूरत राज्य अरुणाचल प्रदेश के ईटानगर शहर के लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया.

लोग सोच रहे थे कि एक इंसान केवल दूसरी लड़की से शादी करने के लिए अपनी पहली पत्नी की बेरहमी से हत्या करा सकता है, जिस से न सिर्फ उस ने प्रेम विवाह किया था बल्कि जिस के पेट में उस का बच्चा भी पल रहा था.

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रोनी लिशी एक संपन्न परिवार का युवक था. परिवार में 2 छोटे भाई व एक बहन थी. पिता लेगी लिशी प्रतिष्ठित राजनीतिक व्यक्ति होने के साथ अथाह संपत्ति के मालिक थे. उन्होंने सभी बच्चों के नाम पर संपत्तियां खरीदी हुई थीं. रोनी कोई अशिक्षित भी नहीं था. उस ने इंजीनियरिंग की थी.

कालेज में पढ़ते हुए हुआ प्यार

पिता लेगी लिशी ने रोनी को 2 कंपनियां खुलवा कर दी थीं. ईटानगर में उन की पहली कंपनी लिशी वन होम मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड थी, जिस की स्थापना उन्होंने 2012 में की थी. जबकि 3 साल पहले रोनी ने अपनी बेटी के नाम पर यामिको ग्लोबल इंफ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड के नाम से दूसरी कंपनी शुरू की थी. उस की प्रेमिका व दूसरी पत्नी चुमी ताया इसी कंपनी में काम करती थी.

रोनी व मीना की दोस्ती 2008 में कालेज में पढ़ाई के दौरान हुई थी, जो बाद में प्यार में बदल गई. मीना कारसिंगा में रहने वाले एक मध्यमवर्गीय परिवार की बेहद खूबसूरत व घरेलू लड़की थी. मीना की इसी खूबसूरती पर रोनी मर मिटा था और उस से प्यार करने लगा था.

बाद में दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया था. मीना चूंकि मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की थी, इसलिए पहले उस के घर वाले संकोच करते रहे कि रोनी एक संपन्न व बड़े परिवार का लड़का है. कहीं ऐसा न हो कि उस के परिवार वाले शादी के लिए राजी न हों.

क्योंकि उन की हैसियत रोनी के परिवार के सामने कुछ भी नहीं थी. ऐसा न हो कि दोनों की शादी बेमेल संबंध बन जाए और मीना को बाद में परेशानी उठानी पड़े. लेकिन मीना व रोनी के कई बार समझाने के बाद परिवार की झिझक दूर हुई और दोनों के मिलन का रास्ता साफ हो गया.

लिहाजा सन 2012 में दोनों परिवारों की सहमति से रोनी और मीना ने शादी कर ली. शादी के 2 साल बाद 2014 में दोनों के प्यार की निशानी के रूप में एक बेटी हुई, जिस का नाम लेसी यामिको रखा गया.

साल 2017 में अचानक मीना के परिजनों को पता चला कि रोनी ने मीना को तलाक देने के लिए अदालत में अरजी दी है. यह पता चला तो परिवार के लोग बेचैन हो गए. क्योंकि जिस लड़की से विवाह करने के लिए रोनी उन के सामने मिन्नतें कर रहा था, वह उसी को तलाक क्यों देना चाह रहा था, यह उन की समझ से परे था. पूरा मामला जानने के लिए मीना के घर वाले रोनी के पास पहुंचे.

अगले भाग में पढ़ें-  साजिश का पहला कदम क्या अपनाया

Crime Story: भयंकर साजिश- पार्ट 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

मीना से पता चला कि रोनी कुछ दिनों से चुमी ताया नाम की एक लड़की के प्यार में पागल है. जब से वह रोनी की जिंदगी में आई है, तब से उन दोनों के प्यार में न सिर्फ दरार आ गई थी बल्कि रोनी अब छोटीछोटी बातों पर उस के साथ मारपीट भी करने लगा था और परेशान भी. परेशानी भी कोई बड़ी नहीं होती थी. कभी वह खाने में खराबी बता कर उस से मारपीट करता तो कभी घर में सफाई न होने को ले कर झगड़ा करता था.

मीना के घर वालों को जब यह बात पता चली तो उन्होंने रोनी के मातापिता व भाईबहनों के साथ मिलबैठ कर इस मसले को सुलझाना चाहा. रोनी के मातापिता को जब इस बात का पता चला कि उस की जिंदगी में किसी दूसरी महिला ने जगह बना ली है तो उन्होंने भी रोनी को बहुत समझाया.

उन्होंने उसी साल 2017 में रोनी की मांग पर उसे एक नया घर ले कर दे दिया और उस से वायदा लिया कि वह मीना के साथ उस घर में प्यार से रहेगा.

दोनों परिवारों को उम्मीद थी कि अलग रहने के बाद दोनों के बीच खोया हुआ प्यार शायद फिर से पनप जाए. लेकिन कुछ दिन सामान्य रहने के बाद रोनी फिर से अपनी नई गर्लफ्रैंड की बांहों में खो गया. वह कईकई दिनों तक घर से गायब रहता. मीना ऐतराज करती तो वह उस के साथ मारपीट करता और कहता कि अगर मेरे साथ नहीं रहना चाहती तो मुझे तलाक दे दो.

एक तरह से रोनी ने मन बना लिया था कि किसी भी तरह मीना उस की जिंदगी से चली जाए. सन 2018 में एक बार फिर बात मीना के घर वालों तक पहुंच गई.

मीना के घर वाले उस के नए घर पहुंचे, जहां एक बार फिर से दोनों परिवारों के सभी लोगों की पंचायत हुई. मीना ने परिवार वालों को रोनी की जिन हरकतों के बारे में बताया था, उस के बाद परिवार वालों को भी लगा कि अगर रोनी के दिल से मीना के लिए प्यार ही खत्म हो गया है तो ऐसे में यातना सहने के लिए बेटी को उस घर में छोड़ने से क्या फायदा.

इसीलिए उन्होंने मीना को अपने साथ ले जाने के लिए कहा. लेकिन रोनी के पिता ने मीना को भेजने से मना कर दिया और रोनी को पूरे परिवार के सामने बहुत डांटाफटकारा.

नतीजा यह निकला कि रोनी को अपनी हरकतों पर पछतावा हुआ और उस ने दोनों परिवारों के सामने अपने किए पर शर्मिंदगी जताते हुए स्वीकार किया कि मीना ही उस की असली और इकलौती मोहब्बत है तथा उस की बेटी की मां भी है. उस दिन रोनी ने दोनों परिवारों के बीच वादा किया कि भविष्य में मीना को उस की तरफ से किसी तरह की शिकायत करने का मौका नहीं मिलेगा.

अगर पतिपत्नी के बीच कोई छोटीमोटी प्रौब्लम होगी भी तो वे उसे खुद बैठ कर सुलझाएंगे, परिवार के दूसरे लोगों को शिकायतें सुनने का मौका नहीं मिलेगा.

दोनों के बदले हुए व्यवहार से दोनों परिवारों ने सोचा कि शायद सुबह का भूला शाम को घर आ गया है. बेटी का टूटता घर बचने की आस में मीना के घर वाले वापस लौट गए.

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लगा सब ठीक हो गया

इस के बाद वक्त तेजी से बीतने लगा. मीना के घर वाले उस की गृहस्थी के बारे में फोन कर के पूछते रहते थे. लेकिन मीना ने परिवार वालों से कभी भी ऐसी कोई जानकारी नहीं दी, जिस से उन्हें पता चलता कि रोनी उसे फिर से परेशान कर रहा है.

वक्त बीता और साल 2020 शुरू हो गया. इसी बीच फरवरी में मीना के घर वाले यह जान कर खुशी से फूले नहीं समाए कि मीना फिर से गर्भवती है और रोनी के दूसरे बच्चे की मां बनने वाली है.

इस के बाद उन्हें यकीन हो गया कि रोनी और मीना के बीच का प्यार मजबूत हो चुका है.

लेकिन 5 नंवबर को अचानक परिवार के लोगों को सूचना मिली कि मीना कारसिंगा में एक दुर्घटना में बुरी तरह घायल हुई है और उसे अस्पताल में भरती कराया गया है. जब तक परिवार वहां पहुंचा, तब तक उस की मौत हो चुकी थी.

इधर चुमी ताया (26) मूलरूप से कामले जिले की रहने वाली खूबसूरत और महत्त्वाकांक्षी युवती थी. वह पिछले 3 साल से रोनी की कंपनी में काम करती थी. यहीं पर रोनी उस की तरफ आकर्षित हुआ. दोनों के बीच प्यार हुआ और बाद में दोनों लिवइन में रहने लगे.

चुमी को पता था कि कि रोनी शादीशुदा है और एक बच्ची का पिता भी. इस के बावजूद कुछ समय पहले रोनी के साथ उस ने गुपचुप तरीके से शादी भी कर ली. चुमी ताया धीरेधीरे रोनी पर दबाव बनाने लगी कि वह मीना को तलाक दे कर उसे सामाजिक रूप से अपनी पत्नी घोषित करे. हालांकि रोनी जब से चुमी ताया के प्यार में डूबा था तभी से मीना के साथ उस के रिश्तों में कड़वाहट भर गई थी. लेकिन चुमी से शादी के बाद यह कड़वाहट एक जहरीले रिश्ते के रूप में बदल गई.

रोनी लगातार मीना पर दबाव बनाने लगा कि वह एक मकान और कुछ पैसा ले ले लेकिन उसे तलाक दे दे. लेकिन मीना इस के लिए तैयार नहीं थी. इसीलिए रोनी ने मीना को अपनी जिंदगी से हटाने के लिए भाड़े के हत्यारों का सहारा ले कर उस की हत्या कराने की साजिश तैयार की.

कारसिंगा में ही रोनी का एक फार्महाउस था, जहां वह अकसर अपनी दूसरी पत्नी चुमी ताया के साथ रहता था.

रोनी ने हत्याकांड को इस तरह से अंजाम दिलाने की साजिश रची थी कि लोग इसे दुर्घटना समझ लें. मीना की हत्या के लिए उस ने अपने एक पुराने दोस्त कपवांग लेटी से संपर्क किया. क्योंकि उसे पता था कि कपवांग विद्रोही संगठन एनएससीएन (यू) का पुराना कार्यकर्ता है और उस के पास पैसा ले कर किसी की हत्या करने वाले लोगों की कोई कमी नहीं होगी.

रोनी ने जब उस से कौन्ट्रैक्ट किलर की व्यवस्था करने के लिए कहा तो कापवांग ने कहा कि वह काम तो करा देगा, लेकिन इस के लिए 10 लाख रुपए लगेंगे. रोनी तैयार हो गया, लेकिन उस ने शर्त रख दी कि काम इस तरह होना चाहिए कि किसी को मीना की हत्या का पता न लगे बल्कि लोग इसे दुर्घटना समझें. कपवांग ने आश्वासन दिया कि ऐसा ही होगा. इस के बाद साजिश तैयार होने लगी.

27 अक्तूबर की शाम कपवांग लेटी लोवांग अपने साथ दाथांग सुयांग और ताने खोयांग को ले कर खोंसा जिले से राजधानी ईटागनर पहुंचा और वे तीनों होटल सू पिंसा में रुके.

28 अक्तूबर को रोनी उन से मिलने होटल पहुंचा और अपनी पत्नी को कपवांग के साथ मारने की योजना को अंतिम रूप दिया. बनाई गई योजना के अनुसार दाथांग सुयांग को इस हत्या को अंजाम दे कर दुर्घटना का रूप देना था. रोनी ने तय किया था कि इस काम के लिए वह 5 लाख रुपए एडवांस देगा. लिहाजा उसी दिन रोनी ने 5 लाख रुपए का नकद भुगतान कर दिया. बाकी की रकम काम होने पर 15 दिनों में 3 लाख और 2 लाख रुपए की 2 किस्तों में देना तय हुआ था.

कपवांग और ताने खोयांग 30 अक्तूबर को खोंसा वापस चला गए. जबकि दाथांग अगले ही दिन वापस आ गया. रोनी ने जो साजिश तैयार की थी, उस के मुताबिक दाथांग को वारदात को अंजाम देने के लिए रोनी की पत्नी मीना का ड्राइवर बन कर रहना था.

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साजिश का पहला कदम

एक दिन मीना के ड्राइवर के रूप में काम करने के बाद उसे लगा कि काम को वह जितना आसान समझ रहा था उतना आसान नहीं है. इसीलिए 2 नवंबर को दाथांग ने रोनी से एक साथी की व्यवस्था करने का अनुरोध किया. क्योंकि उसे लगा कि वह खुद मीना की हत्या करने में समर्थ नहीं होगा.

रोनी ने फिर से कापवांग से फोन पर संपर्क कर के दाथांग की तरफ से एक और साथी उपलब्ध कराने की बात बताई तो विचारविमर्श के बाद कपवांग ने अपने दूसरे सहयोगी दामित्र खोयांग को इस साजिश को अंजाम देने के लिए ईटानगर के लिए रवाना कर दिया.

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Crime Story: भयंकर साजिश- पार्ट 4

सौजन्य- मनोहर कहानियां

दामित्र खोयांग उस वक्त दोइमुख में किसी के यहां ड्राइवर के रूप में काम कर रहा था. आदेश मिलते ही वह राजधानी ईटानगर पहुंच गया और रोनी से मिला.

खोयांग के आ जाने पर 4 नवंबर की सुबह रोनी और दाथांग ने एक बार फिर उस रूट का जायजा लिया, जो कारसिंगा में ब्लौक पौइंट के पास था. यहीं पर उस ने मीना की हत्या कराने की योजना को अंजाम देने का प्लान तैयार किया था.

उसी दिन रोनी ने एक बार फिर से पूरी योजना को अंजाम देने वाली हर बात को अंतिम रूप दिया और तय हुआ कि अगले दिन यानी 5 नवंबर, 2020 को मीना को ठिकाने लगाने की योजना को अंजाम दिया जाएगा.

जैसी योजना बनी थी, उसी के मुताबिक काम शुरू कर दिया गया. 5 नवंबर की सुबह रोनी जब अपने फार्महाउस में था, उस ने वहीं से मीना को फोन कर के कहा कि कारसिंगा में जो भूमि सरकार ने अधिग्रहित की है, उस के मुआवजे के मामले पर सरकारी विभाग में मीटिंग है. इसलिए वह ड्राइवर को साथ ले कर उस के पास आ जाए, जिस के बाद दोनों साथ चलेंगे.

सुबह करीब 12 बजे बेटी को नौकरानी के पास छोड़ कर मीना इनोवा कार में ड्राइवर दाथांग के साथ कारसिंगा के लिए निकल पड़ी. जैसी कि योजना बनाई गई थी रास्ते में दाथांग ने बांगे तीनाली में पहले से इंतजार कर रहे अपने साथी दामित्र को साथ ले लिया. मीना के पूछने पर दाथांग ने बताया कि वह उस का दोस्त है और उसे भी कारसिंगा तहसील दफ्तर जाना है.

मीना दाथांग के साथ ड्राइवर के पीछे वाली सीट पर बैठी थी जबकि दामित्र सब से पीछे की सीट पर बैठ गया था. जैसे ही उन की गाड़ी ने मंदिर (कूड़ा डंपिंग जोन) पार किया, दामित्र ने अपने साथ छिपा कर लाए हथौड़े से मीना पर पीछे से पहले सिर पर वार किया, उस के बाद ताबड़तोड़ उस के कंधों, कनपटी और गरदन के पीछे वार किए.

इस काम में मुश्किल से 3 से 4 मिनट का समय लगा. लहूलुहान और अपने ही खून से कार की सीट पर सराबोर हुई मीना ने अगले चंद मिनटों में ही दम तोड़़ दिया.

दामित्र को जब यकीन हो गया कि मीना मर चुकी है तो उस ने दाथांग से कह कर ब्लौक पौइंट के पास गाड़ी रुकवाई और जैसे गाड़ी में सवार हुआ था, वैसे ही चुपचाप उतर गया.

दाथांग ने गाड़ी को थोड़ा आगे बढ़ाया और उसे मोड़ के पास सड़क के बाएं किनारे तिरछा खड़ा कर के चाभी लगी छोड़ नीचे उतर गया. इस के बाद उस ने न्यूट्रल में खड़ी गाड़ी को जोर लगा कर धक्का दे दिया.

गाड़ी खाई में लगभग 2 से 3 मीटर नीचे चली गई. लेकिन 3 मीटर नीचे जा कर टायर के नीचे एक बड़ा पत्थर आने से गाड़ी ज्यादा आगे नहीं जा सकी. इसलिए दुर्घटना साबित करने की थ्योरी कमजोर पड़ गई.

पुलिस ने जब जांच की तो पाया कि न तो कार के कहीं से शीशे टूटे थे और न ही कहीं से गाड़ी में टूटफूट हुई थी. फिर भी गाड़ी में बीच की सीट पर बैठी मीना की मौत हो गई थी. निरीक्षण के दौरान पता चला कि कार में कहीं भी कोई अंदरूनी क्षति नहीं पहुंची थी.

पुलिस ने ड्राइवर दाथांग से जब पूछताछ की तो उस ने बताया था कि ब्रेक फेल होने के कारण गाड़ी खाई में लुढ़की थी. लेकिन पुलिस ने अपने मोटर एक्सपर्ट को बुला कर गाड़ी की जांच करवाई तो गाडी के ब्रेक सही पाए गए.

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पत्नी के चक्कर में बच्चा भी गया

इसी के बाद पुलिस को दाथांग पर शक होने लगा और उसे हिरासत में ले लिया गया. बाद में दाथांग के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली गई तो उस में कपवांग से ले कर दामित्र तक से बातचीत के रिकौर्ड मिले.

हैरानी की बात यह थी कि दाथांग ने पुलिस पूछताछ में यह बात छिपा ली थी कि उन के साथ दामित्र भी था. पुलिस को दामित्र के मोबाइल फोन की जांच में मौके पर उस की मौजूदगी का सबूत मिल गया था. दोनों के फोन की काल डिटेल्स से पुलिस को कपवांग लेटी लोवांग और ताने खोयांग के इस साजिश से जुड़े होने के सबूत मिल गए.

मोबाइल फोन के जरिए इन सभी की कडि़यां जब रोनी लिशी से जुड़ी पाई गईं तो एकएक कर पुलिस उन्हें गिरफ्तार करती गई.

जांच आगे बढ़ी तो पाया गया कि विजय बिस्वास जो मूलरूप से असम के नागांव का रहने वाला था, रोनी की इंफ्रा कंपनी में काम करता था. उसे इस हत्याकांड की साजिश की पूरी जानकारी थी.

मीना की हत्या को जिस अनोखी साजिश से अंजाम दिया गया था, उस का खुलासा शायद ही होता, अगर मीना के परिजनों के खुल कर सामने आने और ईटानगर में लोगों ने ‘जस्टिस फौर मीना’ की मुहिम शुरू न की होती. इसीलिए पुलिस ने दबाव में आ कर गहन छानबीन करनी शुरू की. कडि़यों से कडि़यां जोड़ते हुए पुलिस इस साजिश के सूत्रधार और मीना के पति रोनी तक पहुंच गई और उसे गिरफ्तार कर लिया.

बाद में पुलिस ने चुमी ताया को भी गिरफ्तार कर लिया, क्योंकि जांच में पाया गया कि उसे पूरी वारदात की जानकारी थी, भले ही वह इस वारदात में सक्रिय रूप से शामिल नहीं थी. लेकिन उसी के उकसावे के कारण रोनी ने हत्या का कठोर फैसला लिया था. चुमी ताया के अलावा पुलिस ने इस हत्याकांड में विजय बिस्वास नाम के आरोपी को भी गिरफ्तार किया.

विजय रोनी की कंपनी में काम करते हुए रोनी का सब से वफादार और भरोसेमंद आदमी बन गया था. वह उस के निजी कामों को संभालता था. रोनी के कहने पर विजय ने ही 3 मोबाइल खरीद कर वारदात में शामिल दोनों हत्यारों दाथांग सुयांग, दामित्री खोयांग और हत्याकांड की सुपारी लेने वाले कपवांग लेटी लोवांग तक पहुंचाए थे.

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पुलिस ने इन तीनों मोबाइल फोनों के साथ एक नहर में फेंके गए उस हथौडे़ को भी बरामद कर लिया, जिस से मीना की हत्या की गई थी. रोनी ने साजिश तो रची थी दूसरी पत्नी के लिए पहली पत्नी को रास्ते से हटाने की, लेकिन एक कत्ल के चक्कर में वह दूसरी हत्या के रूप में अपने अजन्मे बच्चे की हत्या का पाप भी करा बैठा.

—कहानी पुलिस की जांच व परिजनों के कथन पर आधारित

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