वो नीली आंखों वाला: वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी

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वो नीली आंखों वाला : वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी – भाग 2

इतना ही नहीं, वरुण ने स्कूल में होने वाली रैगिंग से भी कई बार मालिनी को बचाया. और तो और रैगिंग को स्कूल से खत्म ही करवा दिया, क्योंकि वह हैडब्वौय था और उस के एक प्रार्थनापत्र ने प्रधानाचार्य को उस की बात स्वीकार करने के लिए राजी कर लिया, क्योंकि बात काफी हद तक सभी विद्यार्थियों के हितार्थ की थी.

अगले दिन मालिनी उस नीली आंखों वाले लड़के का स्वेटर स्कूल में लौटाती है, किंतु हिचक के कारण वही दो शब्द गले में फांस से अटके रह जाते हैं, जिस की टीस उस के मन में बनी रहती है.

शीघ्र ही स्कूल में बोर्ड के पेपर शुरू होने वाले हैं. सभी का ध्यान पूरी तरह से पढ़ाई पर केंद्रित हो जाता है, क्योंकि अच्छे अंक प्राप्त करना हर विद्यार्थी का लक्ष्य होता है.

बस मालिनी की वह वरुण से आखिरी मुलाकात बन कर रह गई, क्योंकि 9वीं और 11वीं के पेपर खत्म होते ही उन की छुट्टी कर दी गई थी, क्योंकि पूरे विद्यालय में 10वीं व 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं के लिए उचित व्यवस्था की जा रही थी.

फिर मालिनी चाह कर भी वरुण से नहीं मिल पाई, क्योंकि वह विद्यालय 12वीं तक ही था, जिस के बाद वरुण ने कहीं और दाखिला ले लिया होगा.

समय के साथसाथ मालिनी भी आगे की पढ़ाई में व्यस्त होती चली गई और वह 12वीं क्लास वाला लड़का उस के मन में एक सम्मानित व्यक्ति की छाप छोड़ कर जा चुका था.

धीरेधीरे मालिनी का ग्रेजुएशन पूरा हो गया और उस के पापा ने बड़े ही भले घर में उस का रिश्ता तय कर दिया. बड़े ही सफल बिजनेसमैन मिस्टर गुप्ता, उन्हीं के बेटे शशांक के साथ बात पक्की हो जाती है और आज अपनी खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के 20 बरस बिता चुकी है. उस के 2 बेटे और एक प्यारी सी बेटी भी है.

“अरे मालिनी, कहां हो… जल्दी इधर आओ…” तब मालिनी की तंद्रा टूटती है, जो घंटों से खिड़की के पास खड़ेखड़े 20 बरस से हो रही हृदय की बारिश संग उन पुराने पलों को याद कर सराबोर हो रही होती है.

“हां, आती हूं. अरे, आप… इतना कहां भीग गए…?”

“आज कार रास्ते में ही बंद हो गई. बस, फिर वहां से पैदल ही…”

“आप भी बच्चों की तरह जिद करते हैं… फोन कर के औफिस से दूसरी कार या टैक्सी ले लेते.”

“अरे भई, हम बड़ों को भी तो कभीकभी नादानी कर अपने बचपन से मुलाकात कर लेनी चाहिए. वो मिट्टी की सोंधी सी सुगंध, महका रही थी मेरा तन और मन… याद आ रही थीं वो कागज की नावें…”

मालिनी शशांक को चुटकी काटते हुए बोली, “हरसिंगार सी महक उठ रही है…”

“अरे मैडम, आप का आशिक यों ही थोड़ी देर और ऐसे ही खड़ा रहा, तो सच मानिए आप का मरीज हो जाएगा…”

“आप को तो बस हर पल इमरान हाशमी (रोमांस) सूझता है. बच्चे बड़े हो गए हैं…”

“तो क्या हम बूढ़े हो गए हैं… हा… हा… हा… कभी नहीं मालिनी… मेरा शरीर बूढ़ा भले ही हो जाए, पर दिल हमेशा जवान रहेगा… देख लेना… उम्र पचपन की और दिल बचपन का…”

“अब बातें ही होंगी …मेम साहब या गरमागरम चायपकौड़ी भी…”

“बस, अभी लाई…”

“लीजिए हाजिर है… आप के पसंदीदा प्याज के पकौड़े.”

“वाह… मालिनी वाह… मजा आ गया. आज बहुत दिनों बाद ऐसी बारिश हुई और मैं जम कर भीगा…”

वह मन ही मन बोली, ” मैं भी…”

“अरे, एक बात तो तुम्हें बताना ही भूल गया कि कल हमारे औफिस की न्यू ब्रांच का उद्घाटन है, तो हमें सुबह 10 बजे वहां पहुंचना है. काफी चीफ गेस्ट आ रहे हैं. मैं ने खासतौर पर एक बहुत बड़े उद्योगपति हैं, मिस्टर शर्मा… उन्हें आमंत्रित किया है…

“देखो, वे आते भी हैं या नहीं.. बहुत बड़े आदमी हैं…”

मालिनी चेहरे पर प्यारी सी मुसकान लिए शशांक को अपनी बांहों का बधाईरूपी हार पहना देती है.

मालिनी को बांहों में भरते हुए शशांक भी अपना हाल ए दिल बयां करने से पीछे नहीं रहता. वह कहता है, “यह सब तुम्हारे शुभ कदमों का ही प्रताप है.

“मैं बुलंदी की कितनी ही सीढ़ियां हर पल चढ़ता चला गया… न जाने कितनी ख्वाहिशों को होम होना पड़ा. मैं चलता चला चुनौती भरी डगर पर… पाने को आसमां अपना, पूरी उम्मीद के साथ मिलेगा साथ अपनों का, ख्वाब आंखों में संजोए कि किसी दिन उन बिजनेस टायकून के साथ होगा नाम अपना…

“सच अगर तुम मेरी जिंदगी में ना होती, तो मेरा क्या होता…”

मालिनी हंसते हुए बोली, “हुजूर, वही जो मंजूरे खुदा होता…”

“हा… हा… हा.. हा… हाय, मैं मर जावा…”

अगली सुनहरी सुबह मालिनी और शशांक की राह में पलकें बिछाए खड़ी थी. वह कह रहा था, “कमाल लग रही हो… लगता है, सारी कायनात आज मेरी ही नजरों में समाने को आतुर है.
इस लाल सिल्क की कांजीवरम साड़ी में तो तुम नई दुलहन को भी फीका कर दो…”

“चलिए… अब बस भी कीजिए… बच्चे सुन लेंगे…”

“अरे ,सुनने दो… सुनेंगे नहीं तो सीखेंगे कैसे…”

“चलें अब..?”

“वाह, जी वाह, अपना तो सज लीं. अब जरा इस नाचीज पर भी थोड़ा रहम फरमाइए और यह टाई लगाने में हमारी मदद कीजिए.”

“जी, जरूर…”

“सच कहूं मालिनी, आज तुम्हारी आंखों में देख कर फिर मुझे वही 20 साल पुरानी बातें याद आ रही हैं…

“किस तरह मैं ने तुम्हें घुटने के बल बैठ कर गुलाब के साथ प्रपोज किया था…”

“जनाब, अब ख्वाबों की दुनिया से बाहर निकलिए… कहीं आप के चीफ गेस्ट आप के इंतजार में वहीं सूख कर कांटा ना हो जाए…”

“तो आइए, मोहतरमा तशरीफ लाइए…”

शशांक और मालिनी उद्घाटन समारोह के लिए निकलते हैं. वहां पहुंच कर दोनों अपने मुख्य अतिथि मिस्टर शर्मा का स्वागत करने के लिए गेट पर ही पलकें बिछाए खड़े रहते हैं. जैसे ही मि. शर्मा गाड़ी से उतरते हैं, उन्हें देखते ही मालिनी तो जैसे जड़ सी हो जाती है… उधर मिस्टर शर्मा भी…

“आइएआइए मिस्टर वरुण शर्मा… आप ने आज यहां आ कर हमारा सम्मान बढ़ा दिया.”

“अरे नहीं, आप बेतकल्लुफ हो रहे हैं…”

“बाय द वे माय वाइफ मालिनी…”

मालिनी तो सिर्फ उन्हें देख कर ही 20 बरस पीछे लौट गई. नाम तो सुनने की उसे आवश्यकता ही नहीं रही.

क्या इसी को प्यार कहते हैं?

कमरे के अंदर घुसते ही जगमोहन ने चुपके से दरवाजा बंद कर के रेवती को अपनी बांहों में भरा और उसे बेतहाशा चूमने लगा.

रेवती छिटकती हुई बोली, ‘‘क्या करते हो, रुको तो…’’

‘‘रेवती, अब मुझे कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि अब तो हम ने शादी भी कर ली है…’’

रेवती ने ताना कसा, ‘‘वाह जी वाह, तुम तो ऐसे बोल रहे हो, जैसे शादी के इंतजार में ही अब तक रुके हुए थे…’’

‘‘तुम हो ही ऐसी कि देख कर मेरा मन बेकाबू हो जाता है, लेकिन अब तुम बाकायदा मेरी दुलहन हो. आज से हम एकदम नए ढंग से जिंदगी शुरू करेंगे. पहले तुम सज लो…

‘‘अच्छा रुको, मैं खुद तुम्हें सजा कर दुलहन बनाऊंगा, फिर हम दोनों आज अपनी सुहागरात मनाएंगे…’’

यह सुन कर रेवती का चेहरा शर्म से लाल पड़ गया. उस ने मना करना चाहा, पर जगमोहन उस के कपडे़ उतारने लगा. ब्लाउज उतारने के बाद जगमोहन उसे अपने दहकते होंठों से चूमने लगा.

रेवती के पूरे बदन में जैसे आग सुलग उठी. वह तड़प कर जगमोहन से लिपट गई.

जगमोहन ने रेवती को उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया. इस के साथ ही रेवती ने गलबहियां डाल कर उसे भी अपने ऊपर खींच लिया. लेकिन अचानक दरवाजे पर आहट सुन कर जगमोहन ने चौंक कर धीमे से पूछा, ‘‘कौन आया है?’’

‘‘मैं हूं… धर्मशाला का मैनेजर,’’ बाहर से आवाज आई, ‘‘जल्दी से दरवाजा खोलो. बाहर पुलिस वाले खड़े हैं…’’

पुलिस का नाम सुनते ही रेवती एक बार तो डर के मारे पीली पड़ गई. जगमोहन का भी सारा जोश ठंडा पड़ गया. वह बुझबुझ आवाज में रेवती से बोला, ‘‘लगता है, तुम्हारे घर वालों ने थाने में रिपोर्ट कर दी है…’’

इतनी देर में रेवती भी संभल चुकी थी. झटके से उठ कर वह जल्दीजल्दी कपड़े पहनती हुई बोली, ‘‘तो तुम डरते क्यों हो? मैं तुम्हारे साथ हूं न.

‘‘हम दोनों बालिग हैं और कचहरी में शादी कर के कानूनन पतिपत्नी बन चुके हैं. हमें अब कोई नहीं अलग कर सकता…’’

लेकिन दरवाजा खोलते ही रेवती को जैसे सांप सूंघ गया. 2 पुलिस वालों के साथ अपने पिता रमाशंकर और चाचा कृपाशंकर को देखते ही उस की नजर जमीन में गड़ गई.

रेवती के पिता रमाशंकर एक प्राइवेट कंपनी में हिसाबकिताब देखा करते हैं. रेवती उन की सब से बड़ी बेटी है. उस से छोटी 3 और बेटियां थीं शांति, मालती व कांति.

रमाशंकर की पत्नी सालों से बीमार थी, इसलिए अब वे बेटे की ओर से निराश हो चुके थे और बेटियों को ही अपना बेटा सम?ा कर पालपोस रहे थे. उन की सब से छोटी बेटी कांति 8वीं जमात में पढ़ती थी. शांति और मालती इंटर में पढ़ रही थीं. रेवती ने भी घर से भागने के कुछ दिनों पहले ही बीए में दाखिला लिया था.

रमाशंकर चाहते थे कि उन की लड़कियां खूब पढ़लिख कर कुछ बन जाएं. वे समाज को दिखा देना चाहते थे कि बेटियां बेटों से किसी मामले में कम नहीं होतीं और वे भी सच्चे माने में मर्दों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल सकती हैं, इसलिए उन्होंने इंटर पास करने के बाद रेवती को आगे की पढ़ाई के लिए यूनिवर्सिटी में भेज दिया था.

बस, यही उन से चूक हो गई. वे यह भूल गए कि जवान लड़केलड़कियों का रिश्ता आग व फूस जैसा होता है और जहां ये दोनों साथ होंगे, कभी न कभी चिनगारी जरूर उठेगी.

रेवती भी जगमोहन का साथ पा कर सुलग उठी. जगमोहन उस से एक साल सीनियर था. देखने में स्मार्ट और घर से अमीर.

देखते ही देखते मुलाकातें बढ़ने लगीं और दोनों में प्यार हो गया. रेवती सुबह के 9 बजतेबजते कालेज जाने के लिए तैयार होने लगती और शाम को अकसर लाइबे्ररी या जीरो पीरियड लगने का बहाना कर के देर से घर लौटती, लेकिन बीच का सारा समय जगमोहन के साथ घूमने में बीतता था.

ऐसे ही एकांत के क्षणों में एक दिन भावनाओं में बह कर रेवती ने अपना सबकुछ जगमोहन को सौंप दिया था. इस के बाद यह तकरीबन रोज का सिलसिला बन गया था.

एक दिन अचानक रेवती ने बताया कि वह मां बनने वाली है. यह सुन कर जगमोहन चौंका जरूर था, पर उस ने रेवती का हाथ थाम कर कहा था, ‘पहले हम अपने पैरों पर खड़े हो जाते, तो ठीक रहता. लेकिन जो भी हो, बदनामी होने के पहले ही हमें शादी कर लेनी चाहिए, क्या तुम तैयार हो?’

‘मैं तो तैयार हूं, लेकिन मेरे घर वाले इस रिश्ते को कभी नहीं मानेंगे. अब तो बस एक ही उपाय है कि तुम मुझे ले कर यहां से कहीं दूर ले चलो…’

‘यह क्या कह रही हो रेवती? इस से हमारी कितनी बदनामी होगी? हमें घर वालों को मुंह दिखाना भी मुश्किल हो जाएगा…’

‘यानी कि तुम को मुझ से ज्यादा अपने घर वालों की इज्जत प्यारी है? लेकिन एक बात याद रखो, अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी, तो मैं भी कम नहीं हूं, अपनी जान दे दूंगी…’

रेवती के कहने पर ही जगमोहन उसे ले कर ग्वालियर चला गया और एक महीना इधरउधर छिपता हुआ दिन काटता रहा. आखिर एक वकील की मदद से उस की अदालत में शादी हो गई, तब जा कर वह बेफिक्र हो पाया.

लेकिन पकड़े जाते ही रेवती ने अपना असली रंग दिखा दिया और पुलिस के पूछने पर वह सिसकती हुई कहने लगी, ‘‘जगमोहन कई महीनों से डराधमका कर मेरे साथ मुंह काला कर रहा था, फिर जान से मारने की धमकी दे कर वह मुझे यहां भगा लाया. आज डराधमका कर उस ने मेरे साथ कोर्ट में शादी भी कर ली.’’

यह सुनते ही जगमोहन के पैरों तले जमीन सरक गई. वह चिल्ला पड़ा, ‘‘ऐसा मत कहो रेवती, हमारे प्यार को बदनाम मत करो. तुम नहीं जानती कि तुम्हारे बयान से मेरी जिंदगी पूरी तरह से बरबाद हो जाएगी.’’

लेकिन रेवती ने आंख उठा कर उस की ओर देखा भी नहीं. पुलिस वालों के एक सवाल के जवाब में उस ने अपने पिता और चाचा की ओर देखते हुए कहा, ‘‘मैं अपने घर जाना चाहती हूं.’’

अदालत के आदेश पर रेवती को उस के पिता के हवाले कर दिया.

जगमोहन अपहरण और बलात्कार के आरोप में हिरासत में जेल में बंद है.

रेवती के इस बरताव ने जगमोहन को जैसे गूंगाबहरा बना दिया है. वह हरदम एक ही बात सोचता रहता है, ‘क्या इसी को प्यार कहते हैं?’

वो नीली आंखों वाला : वरुण को देखकर क्यों चौंक गई मालिनी – भाग 1

मधुमास के बाद लंबी प्रतीक्षा और सावनराजा के धरती पर कदम रखते ही हर जर्रा सोंधी सी सुगंध में सराबोर हो रहा है… मानो सब को सुंदर बूंदों की चुनरिया बना कर ओढ़ा दी हो. लेकिन अंबर के सीने से खुशी की फुलझड़ियां छूट रही हैं… जैसे वह अपने हृदय में उमड़ते अपार खुशी के सागर को आज ही धरती से जा आलिंगन करना चाहता है. बरखा रानी हवाई घोड़े पर सवार हैं, रुकने का नाम ही नहीं ले रही हैं. ऐसे बरस रही हैं, जैसे अब के बाद फिर कभी उसे धरती का सीना तरबतर करने और समस्त धरा को अपने स्नेह का कोमल स्पर्श करने आना ही नहीं है. हर पत्ता, हर डाली, हर फूल खुद को वैजयंती माल समझ इतरा रहा हो और इस धरती के रैंप पर मानो कैटवाक कर रहा हो….

घर की दुछत्ती यह सारा मंजर आंखें फाड़फाड़ कर देख रही है मानो ईर्ष्या से दरार पड़ गई हो, और उस का रुदन मालिनी के दिल को भी छलनी कर रहा है, जैसे एक बहन दूसरे के दुख में पसीज रही हो.

ऐसी बारिश जबजब पड़ी, उस ने मालिनी को हर बार उन बीती यादों की सुरंग में पीछे ले जा कर धकेल दिया.

उन यादों के खूबसूरत झूलों के झोटे तनमन में स्पंदन पैदा कर देते हैं.

वह खूबसूरत सा दिखने वाला, नीलीनीली आंखों वाला, लंबा स्मार्ट (कामदेव की ट्रू कौपी) वो 12वीं क्लास वाला लड़का आंखों के आगे घूम ही जाता.

मालिनी ने जब 9वीं कक्षा में स्कूल बदला तो वहां सिर्फ एक वही था, उन सभी अजनबियों के बीच… जिस ने उस की झिझक को समझा कि किस प्रकार एक लड़की को नए वातावरण में एडजस्ट होने में वक्त तो लगता ही है. पर साथ ही साथ किसी अच्छे साथी के साथ की भी आवश्यकता होती है. उस ने हिंदी मीडियम से अंगरेजी मीडियम में प्रवेश जो लिया था, इसी कारण सारी लड़कियां मालिनी को बैकवर्ड और लो क्लास समझ भाव ही नहीं देती थीं. वह जबजब इंटरवल या असेंबली में वरुण को दिख जाती, वही उस की खोजखबर लेता रहता.

“और बताओ… ‘छोटी’, कोई परेशानी तो नहीं…?” उस ने कभी मालिनी का नाम जानने की कोशिश ही नहीं की.

एक तो वह जूनियर थी और ऊपर से कद में भी छोटी और सुंदर. वो उसे प्यार से छोटी ही पुकारता और उस के अंदर हमेशा “मैं हूं ना” कह कर उसे आतेजाते शुक्ल पक्ष के चतुर्थी के चांद सी, छोटी सी मुसकराहट से सराबोर कर जाता. मालिनी का हृदय इस मुसकराहट से तीव्र गति से स्पंदित होने लगता… लेकिन ना जाने क्यों…?

उस को वरुण का हर समय हिफाजत भरी नजरों से देखना… कुछकुछ महसूस कराने लगा था. किंतु क्या…? वह यह समझ ही नहीं पा रही थी. क्या यही प्रेम की पराकाष्ठा थी? या किसी बहुत करीबी के द्वारा मिलने वाला स्नेह और दुलार था…?

किंतु इस सुखद अनुभूति में लिप्त मालिनी भी अब नि:संकोच हो कर मन लगा कर पढ़ने लगी. उसे जब भी कोई समस्या होती, उसी नीली आंखों वाले लड़के से साझा करती. हालांकि इतनी कम उम्र में लड़केलड़कियों में अट्रैक्शन तो आपस में रहता ही है, चाहे वह किसी भी रूप में हो…

सिर्फ दोस्त या सिर्फ प्रेमी या एक भाई जैसा संबोधन… शायद भाई कहना गलत होगा, क्योंकि इस रिश्ते का सहारा ज्यादातर लड़केलड़कियां स्वयं को मर्यादित रखने के चक्कर में लेते हैं.

मालिनी अति रूढ़िवादी परिवार में जनमी घर की दूसरे नंबर की बेटी थी. उस के 2 भाई और 2 बहनें थीं. वह देखने में अति सुंदर गोरी और पतली. सहज ही किसी का भी ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की काबिलीयत रखती थी.

एक दिन मालिनी स्कूल से लौटते वक्त बस स्टाप पर चुपचाप खड़ी थी. बस के आने में अभी टाइम था. खंभे से सट कर वह खड़ी हो गई, तभी वरुण वहां से साइकिल पर अपने घर जा रहा था कि उस की नजर मालिनी पर पड़ी और पास आ कर बोला, “छोटी, अभी बस नहीं आई…”

“नहीं…”

“चलो, मैं तुम्हारे साथ वेट करता हूं… बस के आने का..”

वह चुप ही रही. उस के मुंह से एक शब्द न फूटा.

सर्दियों की शाम में 4 बजे बाद ही ठंडक बढ़ने लगती है. आज बस शायद कुछ लेट थी. वह बारबार अपनी कलाई पर बंधी घड़ी को देखता, तो कभी बस के इंतजार में आंखें फैला देता.

पर, इतनी देर वह चुपचाप वहीं खड़ी रही जैसे उस के मुंह में दही जम रहा हो… टस से मस नहीं हुई…
दूर से आती बस को देख वह खुश हुआ. बोला, “चलो आ गई तुम्हारी बस. मैं भी निकलता हूं, ट्यूशन के लिए लेट हो रहा हूं.”

स्टाप पर आ कर बस रुक जाती है और सभी लड़कियां चढ़ जाती हैं, किंतु मालिनी वहीं की वहीं… यह देख वरुण आश्चर्यचकित हो अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगता है. बस आगे बढ़ जाती है.

वरुण थोड़ी देर सोचने के बाद… फौरन अपना स्वेटर उतार कर मालिनी को दे देता है. वह कहता है, “यह लो छोटी… इसे कमर पर बांध लो…

“और…”

“पर, आप… यह क्यों…”

“ज्यादा चूंचपड़ मत करो… मैं समझ सकता हूं तुम्हारी परेशानी…”

“पर, आप कैसे…?”

“मेरे घर में 2 बड़ी बहनें हैं. जब वे इस दौर से गुजरी, तभी मेरी मां ने उन दोनों को इस बारे में शिक्षित करने के साथसाथ मुझे भी इस बारे में पूरी तरह निर्देशित किया… जैसे गुलाब के साथ कांटों को भी हिदायत दी जाती है कि कभी उन्हें चुभना नहीं…

“क्योंकि मेरी मां का मानना था कि तुम्हारी बहनों को ऐसे समय में कोई लड़का छेड़ने के बजाय मदद करे, तो क्यों न इस की शुरुआत अपने घर से ही करूं…

“तो मुझे तुम्हारी स्थिति देख कर समझ आ गया था. चलो, अब जल्दी करो… और घर पहुंचो. तुम्हारी मां तुम्हारा इंतजार कर रही होंगी.”

मालिनी उस वक्त धन्यवाद के दो शब्द भी ना बोल पाई. उन्हें गले में अटका कर ही वहां से तेज कदमों से घर की ओर रवाना हुई.

फिर उसे अगले स्टाप पर घर जाने वाली दूसरी बस मिल गई.

उस के घर में दाखिल होते ही उस का हुलिया देख मां ऊपर वाले का लाखलाख धन्यवाद देने लगती है कि जिस बंदे ने आज मेरी बच्ची की यों मदद की है, उस की झोली खुशियों से भर दे. जरूर ही उस की मां देवी का रूप होगी.

कोई लौटा दे मेरे: कैसे उजड़ी अशफाक की दुनिया

‘अशफाक अंसारी, वल्द एसआर अंसारी, ऐशबाग, भोपाल, आप को रिहा किया जाता है और पुलिस की गलती के लिए अदालत आप से खेद जाहिर करती है,’ जज साहब का लिखा यह वाक्य पढ़ कर जेलर ने अशफाक को सुना दिया और शाम के 4 बजे उसे रिहा कर दिया गया.

पुलिस द्वारा दिए गए 15 सौ रुपए के साथ जब अशफाक भोपाल लौटा, तो वहां की दुनिया देख कर दंग रह गया. महज 4 सालों में ही उस की दुनिया उजड़ गई थी.

पुलिस की एक छोटी सी भूल ने अशफाक को सड़क पर ला कर पटक दिया था. वह खो गया यादों में…

आज से 4 साल पहले 45 साला अशफाक मंडी में आलू का कारोबार करता था और अपनी बीवी व 4 बच्चों के साथ सुख की जिंदगी गुजार रहा था.

अशफाक की बड़ी बेटी तकरीबन 18 साल की थी, जिस का निकाह उस ने सलमान भाई के बेटे के साथ ठीकठाक किया था. दोनों परिवारों में हंसीखुशी का माहौल था.

उस दिन मंगनी की रस्म अदा होनी थी कि अचानक अशफाक पर मानो तूफान आ गया. वह मंडी से आलू का कारोबार कर दोपहर के एक बजे नमाज अदा कर के उठा ही था कि एक पुलिस वाले ने उसे झट से पकड़ लिया और बोला, ‘अशफाक मियां, तुम्हें थाने में बुलाया गया है.’

अशफाक घर पर सब को बताता हुआ थाने पहुंचा, पर वहां उस से नाम पूछ कर हवालात में डाल दिया गया.

‘थानेदार साहब, मैं ने किया क्या है?’ अशफाक ने मासूमियत से पूछा. ‘ज्यादा भोला मत बन. लड़कियों को छेड़ना, उन की सोने की चेनें छीनना तुम्हारा काम है,’ इंस्पैक्टर उसे धमकाते हुए बोला.

‘साहब, वह अशफाक दूसरा है. वह गुंडा हमारे साथ वाली गली में रहता है. मैं तो आलू वाला हूं,’ अशफाक अपने बारे में सफाई देते हुए बोला.

‘अबे चुप, मैं तेरी नसनस से वाकिफ हूं. भोला बन कर लूटता है,’ यह कहते हुए इंस्पैक्टर ने अशफाक को मजिस्ट्रेट के पास भेजा, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

उस के बाद तारीख पर तारीख और महीनों गुजरते गए. अशफाक को पहले भोपाल और फिर जबलपुर की जेल में भेज दिया गया. इसी बीच एक दिन उसे पता चला कि उस की बेटी की मंगनी टूट गई है.

‘हमें किसी अपराधी की बेटी ब्याह कर नहीं लानी,’ यह बात खुद सलमान ने उसे जेल में मिल कर बताई.

‘आप को तो पता है कि मैं अपराधी नहीं हूं. मुझे दूसरे शख्स की जगह जेल में डाला गया है,’ यह सफाई देते हुए अशफाक थक गया.

‘कुछ भी कह लो भाई. मुझे माफ करना, लेकिन एक अपराधी की बेटी घर में ला कर मुझे अपनी इज्जत का जनाजा नहीं निकलवाना. आप हमें तो माफ ही करना,’ इतना कह कर बगैर उस की बात सुने सलमान लौट गया.

अब तो अशफाक को दोहरी मार झेलनी पड़ी. बीवी और बच्चे जैसेतैसे कर के घर की गाड़ी खींच रहे हैं और वह जेल में सड़ रहा है.

अशफाक ने मुश्किल से अपनी बात जज साहब को बता डाली, ‘साहब, मेरा नाम अशफाक अंसारी, मेरे पिता का नाम एसआर अंसारी है, जबकि दूसरा अशफाक फइमुद्दीन अंसारी का बेटा है. वह ऐशबाग की गली नंबर 412 में रहता है, जबकि मैं 214 में रहता हूं.

मेरा 20 सालों से सब्जी मंडी में आलू का कारोबार है, जबकि वह गुंडागर्दी करता है.’ अशफाक ने जब इतनी बातें बताईं, तो जज साहब ने पूछा, ‘तुम्हारे पास इस बात का कोई सुबूत है?’

‘जज साहब, आप के रिकौर्ड की सारी बातें उस गुंडे से मेल खाती हैं, जबकि मेरा वोटर आईडी कार्ड, राशनकार्ड वगैरह तमाम कागजात घर से मंगवा कर सचाई पता की जा सकती है,’ अशफाक रोते हुए अपनी बात रख रहा था.

‘देखो मियां, हमें तुम से पूरी हमदर्दी है. अगर तुम सही हो, तो हम तुम्हें यकीनन रिहा कर देंगे,’ जज साहब ने उसे हौसला देते हुए कहा.

अब उसे बाइज्जत वापस जेल भेज दिया गया. इस से जेलर और सभी मुलाजिम इज्जत से पेश आने लगे. फिर तो 3-4 तारीख में मामला साफ हो गया. कोर्ट में वकील की दलीलों ने उसे बेकुसूर और इंस्पैक्टर की गलती साबित कर दी.

इंस्पैक्टर को जब पता चला, तो वह असली मुजरिम की खोज में जुट गया, पर इस सब में 4 साल बीत गए.

अशफाक बीती यादों से बाहर निकल आया. अब उस के बीवीबच्चे झुग्गी में बड़ी मुश्किल से दिन गुजार रहे थे. मां तो पागल सी हो गई थी.

‘‘घबराओ मत, सब ठीक हो जाएगा. मैं काजी साहब से मिल कर सबकुछ सुधार दूंगा. धंधा भी ठीक हो जाएगा.’’ वह सब को दिलासा दे रहा था, पर खुद इंस्पैक्टर पर झंझला रहा था.

जब अशफाक ऐशबाग थाने के सामने से गुजर रहा था, तो वहां उस ने लिखा देखा, ‘पुलिस आप की सुरक्षा में’. हकीकत में पुलिस ने उसे इतनी सुरक्षा दी, जिस की हद नहीं.

यहां नाम ने उसे बदनाम कर दिया. कौन कहता है कि नाम कुछ नहीं है. बस, एकजैसे नाम ने उसे जेल और दूसरे को मौका दिया.

‘बेटीबेटा एकसमान’. इस नारे को पढ़ कर अशफाक टूट गया. उस की बेटी तो बिना गलती के ही पिस गई.

बेटी नहीं होती है, तो सबकुछ ठीक होता है. इस तरह ये सारे फूल उसे शूल की तरह चुभने लगे और वह बिस्तर पर लेट कर फूटफूट कर रोने लगा.

इश्कबाज को सबक : क्या मोड़ लाई वर्तिका और गजाला की दोस्ती

ग्रेजुएशन करने के बाद वर्तिका बैंक में प्रोबेशनरी अफसर बनने की तैयारी में लगी हुई थी. इस के लिए उस ने एक जानेमाने कोचिंग सैंटर में दाखिला ले लिया था. वहीं उस की मुलाकात गजाला से हुई थी. वह भी उसी कोचिंग सैंटर में प्रोबेशनरी अफसर की तैयारी कर रही थी. जल्दी ही दोनों में दोस्ती हो गई थी.

एक दिन गजाला ने वर्तिका को अपने भाई के दोस्त विक्रम से मिलवाया, ‘‘वर्तिका, इन से मिलो. ये हैं मेरे भाई के दोस्त विक्रम. काफी हैंडसम हैं न… क्यों?’’ यह कह कर गजाला मुसकराई.

‘‘अरे, हम हैंडसम हैं, तो क्या आप की सहेली कम खूबसूरत हैं? हमें तो आप की सहेली किसी ‘ब्यूटी क्वीन’ से कम नहीं लगतीं,’’ विक्रम ने वर्तिका की खूबसूरती की तारीफ करते हुए कहा.

पहली मुलाकात में ही अपनी खूबसूरती की ऐसी तारीफ सुन कर वर्तिका झोंप गई. विक्रम अब हर रोज ही वर्तिका और गजाला से कोचिंग के बाद मिलने लगा.

एक दिन गजाला जानबूझ कर कोचिंग सैंटर नहीं आई. कोचिंग के छूटने के बाद विक्रम वर्तिका को रास्तेमें मिला.

वर्तिका उस से बचना चाहती थी, फिर भी उस ने वर्तिका का रास्ता रोकते हुए कहा, ‘‘वर्तिकाजी, आज गजाला नहीं आई क्या?’’

‘‘नहीं, वे तो आज नहीं आईं.’’

‘‘तो क्या आज आप हम से बात भी नहीं करेंगी? क्या हम इतने बुरे हैं?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. आप तो काफी हैंडसम हैं.’’

आखिरी शब्द वर्तिका के मुंह से अचानक ही निकल पड़े थे. अब तो विक्रम पर जैसे हैंडसम होने का नशा ही चढ़ गया, जबकि वर्तिका सोचने लगी कि उस की जीभ कैसे फिसल गई.

मौके का फायदा उठाते हुए विक्रम ने कहा, ‘‘वर्तिकाजी, मेरा दिल तो कहता है कि आप इस जहां की सब से हसीन लड़की हो. मेरा दिल तो आप से दोस्ती करने को चाहता है,’’ इतना कह कर वह मोटरसाइकिल स्टार्ट कर वहां से चला गया.

विक्रम के जाने के बाद वर्तिका सोचने लगी, ‘विक्रम हैंडसम है. वह मुझ से दोस्ती भी करना चाहता है. अगर उस से दोस्ती कर ली जाए, तो इस में हर्ज ही क्या है?’

अगले दिन वर्तिका ने बातोंबातों में गजाला से लड़कों से दोस्ती करने की बात कही. गजाला समझ गई कि वर्तिका के मन में क्या चल रहा है. उस ने वर्तिका की बातों पर रजामंदी

का ठप्पा लगाते हुए कहा, ‘‘वर्तिका, लड़कों से दोस्ती करने में आखिर बुराई ही क्या है?’’

फिर गजाला ने वर्तिका के चेहरे को पढ़ते हुए कहा, ‘‘लेकिन वर्तिका, तू यह सब क्यों पूछ रही है? कहीं तेरा मन भी किसी लड़के से दोस्ती करने को तो नहीं चाह रहा है? कहे तो विक्रम से तेरी दोस्ती करा दूं.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘अरे झठी, तेरे चेहरे की मुसकराहट बता रही है कि तेरे मन में विक्रम को ले कर लड्डू फूट रहे हैं.’’

‘‘चल हट, मैं तुझ से बात नहीं करती,’’ वर्तिका ने वहां से चलते हुए कहा.

अब गजाला सब समझ गई थी. उस ने विक्रम और वर्तिका की आपस में दोस्ती करा दी. फिर उन्होंने एकदूसरे से मोबाइल फोन नंबर भी ले लिए.

वर्तिका विक्रम के प्यार में इस कदर डूब चुकी थी कि उस ने विक्रम के बारे में कोई जानकारी जुटाना भी ठीक नहीं समझ.

इस के बाद वर्तिका और विक्रम एकदूसरे को प्यार भरे एसएमएस भेजने लगे. गजाला इश्क की इस आग में घी डालने का काम कर रही थी.

वर्तिका के जन्मदिन पर विक्रम ने उसे एक महंगा मोबाइल फोन गिफ्ट में दिया. जब विक्रम का जन्मदिन आया, तो वर्तिका ने उसे एक महंगी टीशर्ट गिफ्ट में दी.

विक्रम ने एक दिन मौका देख कर वर्तिका से डेटिंग पर चलने को कहा. वर्तिका तो जैसे तैयार ही बैठी थी. उस ने तुरंत हामी भर दी.

अगले दिन वर्तिका सहेली से मिलने का बहाना बना कर विक्रम के साथ डेटिंग पर चली गई.

विक्रम वर्तिका को मोटरसाइकिल पर बैठा कर शहर से दूर झल के किनारे पिकनिक स्पौट पर ले गया.

अभी वर्तिका और विक्रम एक पेड़ की छांव में बैठे ही थे कि तभी विक्रम का मोबाइल फोन बज उठा, लेकिन उस ने फोन काट दिया. थोड़ी देर बाद फिर उस का मोबाइल फोन बज उठा.

वह वहां से उठ कर जाना चाहता था, लेकिन वर्तिका ने रोक लिया. अब विक्रम की मजबूरी हो गई थी कि वहीं पर फोन सुने.

उस ने जल्दबाजी में झठ बोला, ‘‘हैलो, मैं मोटरसाइकिल चला रहा हूं. बाद में बात करूंगा,’’ इतना कह कर उस ने फोन काट दिया.

वर्तिका समझ गई थी कि यह किसी लड़की का फोन था. इसी वजह से विक्रम उस के सामने मोबाइल फोन पर बातें करने से बच रहा था. बस, यहीं से उस के मन में विक्रम के प्रति शक पैदा हो गया.

बातों ही बातों में उस ने असलियत जानने की एक तरकीब सोच ली. उसे कुछ दूरी पर एक आइसक्रीम वाला दिखाई दिया. उस ने विक्रम से कहा, ‘‘मेरा मन तो आइसक्रीम खाने को कर रहा है.’’

‘‘इस में कौन सी बड़ी बात है. मैं अभी अपने और तुम्हारे लिए आइसक्रीम ले कर आता हूं.’’

इतना कह कर विक्रम जल्दी से वहां से उठा, पर उसे अपना मोबाइल फोन का ध्यान ही नहीं रहा.

जैसे ही विक्रम वहां से गया, वर्तिका ने उस का मोबाइल फोन खंगालना शुरू कर दिया. उस ने जल्दी से दीपा, कंगना और रूबीना के फोन नंबर ले लिए.

अब वर्तिका को पूरा यकीन हो गया था कि दाल में जरूर कुछ काला है. विक्रम के आने पर सिरदर्द का बहाना बना कर वापस चलने को कहा.

विक्रम अभी घर नहीं जाना चाहता था, लेकिन वह वर्तिका को नाराज भी नहीं करना चाहता था. लिहाजा, वह बुझे मन से घर चलने को तैयार हुआ.

अब वर्तिका ने दीपा, कंगना और रूबीना से मिल कर उन से दोस्ती कर ली. लेकिन विक्रम के बारे में उस ने किसी से कोई जिक्र नहीं किया.

एक दिन दीपा ने खुश हो कर वर्तिका को बताया कि अगले दिन वह अपने बौयफ्रैंड के साथ डेटिंग पर जा रही है. वर्तिका तुरंत समझ गई कि वह किस के साथ डेटिंग पर जा रही है.

तब वर्तिका ने दीपा और विक्रम की डेटिंग कन्फर्म करने के लिए विक्रम को फोन लगाया. उस ने विक्रम से डेटिंग पर चलने को कहा, लेकिन उस ने एक जरूरी काम बता कर टाल दिया.

अगले दिन वर्तिका ने विक्रम का पीछा करना शुरू किया. विक्रम मोटरसाइकिल पर था, जबकि वर्तिका अपनी स्कूटी पर. वह जानती थी कि विक्रम दीपा को डेटिंग के लिए झल पर ही ले जाएगा, क्योंकि प्रेमी जोड़ों की डेटिंग के लिए इस से बढि़या जगह कोई दूसरी न थी.

विक्रम दीपा को लेकर झल की ओर चल पड़ा. जब झल पर पहुंच कर दीपा और विक्रम मटरगश्ती करने लगे, तभी दीपा ने वहां पहुंच कर चुपके से अपने मोबाइल फोन में लगे कैमरे से उन की वीडियो फिल्म बना ली और घर चली आई.

वर्तिका ने ऐसी ही वीडियो फिल्में कंगना और रूबीना के साथ भी इश्कबाज विक्रम की बना डालीं.

एक दिन वर्तिका ने दीपा, कंगना और रूबीना को अपने घर बुलाया, फिर उस ने उन वीडियो फिल्मों को कंप्यूटर में डाउनलोड कर के उन तीनों को दिखलाया.

अब विक्रम की इश्कबाजी का कच्चा चिट्ठा खुल चुका था. अब चारों ने विक्रम को सबक सिखाने की ठानी. साथ ही, उन्होंने फैसला किया कि लड़कियों को पे्रमजाल में फंसाने वाली गजाला का भी दिमाग ठिकाने लगाना चाहिए.

वर्तिका ने अपने मम्मीपापा से सब बातें साफसाफ बता दीं और उन से अपनी गलती की माफी भी मांग ली.

पहले वर्तिका के मम्मीपापा उस की बात पर राजी नहीं हुए, लेकिन जब उस ने उन्हें अपनी योजना समझ , तो वे भी ऐसे मक्कार इश्कबाजों को सबक सिखाने के लिए तैयार हो गए.

तब योजना के मुताबिक, वर्तिका ने एक दिन विक्रम और गजाला को अपने घर बुलाया और उन्हें अपने कमरे में ले गई. वहां उस ने उन्हें कंप्यूटर पर दीपा, कंगना और रूबीना वाली वीडियो फिल्में दिखाईं. विक्रम और गजाला की काटो तो खून नहीं वाली हालत हो गई.

वे चुपचाप वहां से खिसकना चाहते थे, लेकिन वर्तिका उन्हें ऐसे कैसे जाने देती. उस ने 3 तालियां बजाईं, जिन्हें सुन कर पास के कमरे में छिपी बैठी दीपा, कंगना और रूबीना भी वहां आ गईं.

कंगना ने विक्रम से पूछा, ‘‘कहिए मियां मजनू, क्या हाल है? और कितनी लड़कियां चाहिए तुम्हें इश्क फरमाने के लिए?’’

विक्रम ने अचानक चाकू निकाल लिया और कंगना की गरदन पर रखते हुए बोला, ‘‘तुम सब कमरे के एक कोने में जाओ, नहीं तो चाकू से कंगना की गरदन हलाल कर दूंगा.’’

इस के बाद गजाला ने वर्तिका, दीपा और रूबीना के मोबाइल फोन अपने कब्जे में कर लिए और विक्रम के कहने पर गजाला ने उन के मुंह व हाथपैरों को कस कर बांधने के बाद सब को बाथरूम में बंद कर दिया.

विक्रम और गजाला घर से निकल कर बाहर की ओर भागे, लेकिन सिर मुंड़ाते ही ओले पड़े. सामने दरवाजे पर इंस्पैक्टर शोभित रिवाल्वर ताने खड़ा था. उस के ‘हैंड्सअप’ कहते ही विक्रम और गजाला ने अपने हाथ ऊपर कर लिए.

तब इंस्पैक्टर शोभित ने अपने साथ आए पुलिस वालों को आदेश देते हुए कहा, ‘‘रामदीन, इस लड़के की तलाशी लो. और अर्चना, तुम इस लड़की की तलाशी लो.’’

पुलिस को देख कर विक्रम और गजाला चौंक गए. उन की हैरानी को दूर करते हुए इंस्पैक्टर शोभित ने कहा, ‘‘तुम दोनों को जरा भी हैरान होने की जरूरत नहीं है. तुम दोनों जब से इस घर में घुसे हो, तभी से हमारी गिरफ्त में हो.

‘‘वर्तिका के मम्मीपापा के साथ हम यहां पहले से ही मौजूद थे. हम सामने वाले पड़ोसी के घर में छिपे थे.

‘‘हम जानते थे कि तुम जैसे मक्कार लोग कोई न कोई गुस्ताखी जरूर करते हैं, इसलिए घर में घुसने से ले कर बाहर आने तक की तुम्हारी वीडियोग्राफी हम ने तैयार करा ली.

‘‘पड़ोसी की छत से आ कर हमारे फोटोग्राफर ने सारा काम बखूबी अंजाम दिया. अब यह वीडियोग्राफी तुम दोनों को अदालत में सजा दिलवाने में बड़ी काम आएगी.’’

यह सुन कर गजाला और विक्रम के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. वे इंस्पैक्टर शोभित के सामने गिड़गिड़ाने लगे, लेकिन इंस्पैक्टर शोभित ने कानून के अनुसार अपना काम किया.

बाथरूम में बंद वर्तिका, दीपा, कंगना व रूबीना के हाथपैरों और मुंह को खोला गया और उन के बयान लिए गए.

वर्तिका की बढि़या योजना और हिम्मत पर शाबाशी देते हुए इंस्पैक्टर शोभित ने कहा, ‘‘अगर हमारे देश की सारी लड़कियां वर्तिका की तरह हिम्मत और होशियारी से काम लें, तो वे ऐसे मक्कार इश्कबाजों से धोखा खाने से बच जाएं.’’

इस के बाद इंस्पैक्टर शोभित गजाला और विक्रम को जीप में बैठा कर अपने साथ आगे की कार्यवाही के लिए थाने ले गया.

मुहब्बत पर फतवा: रजिया की कहानी

रजिया को छोड़ कर उस के वालिद ने दुनिया को अलविदा कह दिया. उस समय रजिया की उम्र तकरीबन 2 साल की रही होगी. रजिया को पालने, बेहतर तालीम दिलाने का जिम्मा उस की मां नुसरत बानो पर आ पड़ा.

खानदान में सिर्फ रजिया के चाचा, चाची और एक लड़का नफीस था. माली हालत बेहतर थी. घर में 2 बच्चों की परवरिश बेहतर ढंग से हो सके, इस का माकूल इंतजाम था. अपने शौहर की बात को गांठ बांध कर नुसरत बानो ने दूसरे निकाह का ख्वाब पाला ही नहीं. वे रजिया को खूब पढ़ालिखा कर डाक्टर बनाने का सपना देखने लगीं.

‘‘देखो बेटी, तुम्हारी प्राइमरी की पढ़ाई यहां हो चुकी है. तुम्हें आगे पढ़ना है, तो शहर जा कर पढ़ाई करनी पड़ेगी. शहर भी पास में ही है. तुम्हारे रहनेपढ़ाने का इंतजाम हम करा देंगे, पर मन लगा कर पढ़ना होगा… समझी?’’ यह बात रजिया के चाचा रहमत ने कही थी.

दोनों बच्चों ने उन की बात पर अपनी रजामंदी जताई. अब रजिया और उस के चाचा का लड़का नफीस साथसाथ आटोरिकशे से शहर पढ़ने जाने लगे. दोनों बच्चे धीरेधीरे आपस में काफी घुलमिल गए थे. स्कूल से आ कर वे दोनों अकसर साथसाथ रहते थे.

अचानक एक दिन बादल छाए, गरज के साथ पानी बरसने लगा. रजिया ने आटोरिकशे वाले से जल्दी घर चलने को कहा. इस पर आटोरिकशा वाले ने कुछ देर बरसात के थमने का इंतजार करने को कहा, पर रजिया नहीं मानी और जल्दी घर चलने की जिद करने लगी.

भारी बारिश के बीच तेज रफ्तार से चल रहा आटोरिकशा अचानक एक मोड़ पर आ कर पलट गया. ड्राइवर आटोरिकशा वहीं छोड़ कर भाग गया.

रजिया आटोरिकशा के बीच फंस गई, जबकि नफीस यह हादसा होते ही उछल कर दूर जा गिरा. उस ने बहादुरी से पीछे आ रहे अनजान मोटरसाइकिल वाले की मदद से आटोरिकशे में फंसी रजिया को बाहर निकाला.

‘‘मामूली चोट है. उसे 2-3 दिन अस्पताल में रहना होगा,’’ डाक्टर ने कहा.

‘‘ठीक है. आप भरती कर लें डाक्टर साहब,’’ रजिया के चाचा रहमत ने कहा.

नफीस अपने परिवार वालों के साथ रजिया की तीमारदारी में लग गया. परिवार वाले दोनों के प्यार को देख कर खुश होते.

‘‘नफीस, अब तुम सो जाओ. रात ज्यादा हो गई है. मुझे जब नींद आ जाएगी, तो मैं भी सो जाऊंगी,’’  रजिया ने कहा.

‘‘नहीं, जब तक तुम्हें नींद नहीं आएगी, तब तक मैं भी जागूंगा,’’ नफीस बोला.

नफीस ने रजिया की देखरेख में कोई कसर नहीं छोड़ी. उस की इस खिदमत से रजिया उसे अब और ज्यादा चाहने लगी थी.

‘‘अम्मी देखो, मैं और नफीस मैरिट में पास हो गए हैं.’’

अम्मी यह सुन कर खुश हो गईं. थोड़ी देर के बाद वे बोलीं, ‘‘अब तुम दोनों अलगअलग कालेज में पढ़ोगे.’’

‘‘पर, क्यों अम्मी?’’ रजिया ने पूछा.

‘‘तुम डाक्टर की पढ़ाई करोगी और नफीस इंजीनियरिंग की. दोनों के अलगअलग कालेज हैं. अब तुम दोनों एकसाथ थोड़े ही पढ़ पाओगे. नफीस के अब्बू उसे इंजीनियर बनाना चाहते हैं. हां, पर रहोगे एक ही शहर में,’’ अम्मी ने रजिया को प्यार से समझाया.

‘‘ठीक है अम्मी,’’ रजिया ने छोटा सा जवाब दिया.

उन दोनों का अलगअलग कालेज में दाखिला हो गया. दाखिला मिलते ही वे दोनों अलगअलग होस्टल में रहने लगे. एक रात अचानक 11 बजे नफीस के मोबाइल फोन की घंटी बजी.

‘‘नफीस, सो गए क्या?’’ रजिया ने पूछा.

‘‘नहीं रजिया, तुम्हारी याद मुझे बेचैन कर रही है. साथ ही, अम्मीअब्बू और बड़ी अम्मी की याद भी आ रही है,’’ कह कर नफीस सिसक उठा.

‘‘जो हाल तुम्हारा है, वही हाल मेरा भी है. कैसे बताऊं कि दिनरात तुम्हारे बिना कैसे गुजर रहे हैं,’’ रजिया बोली.

वे दोनों बहुत देर तक बातें करते रहे और फिर ‘शब्बाखैर’ कह कर सो गए.

‘‘मैडम, यह मेरे देवर का लड़का नफीस है. अब तक इन दोनों बच्चों ने साथसाथ खेलकूद कर पढ़ाई की है. अब ये परिवार से दूर अलगअलग रहेंगे. अगर नफीस अपनी बहन से मिलने आता है, तो इसे आप मिलने की इजाजत दे दें. इस बाबत आप वार्डन को भी बता दें, तो आप की मेहरबानी होगी,’’ रजिया की अम्मी ने कालेज की प्रिंसिपल से कहा.

‘‘ठीक है, पर हफ्ते में सिर्फ छुट्टी के दिन रविवार को ही मिल सकते हैं,’’ प्रिंसिपल ने कहा.

‘‘जी ठीक है, हमें मंजूर है.’’

रविवार का इंतजार करना नफीस को भारी पड़ता था. रविवार आते ही वह रजिया से मिलने उस के होस्टल मोटरसाइकिल से पहुंच जाता था. वे दोनों घंटों बैठ कर बातें करते थे.

जातेजाते नफीस होस्टल के गेटकीपर को इनाम देना नहीं भूलता था. वह वार्डन को भी तोहफे देता था.

एक बार नफीस अपने दोस्त के साथ रजिया से मिलने पहुंचा और बोला, ‘‘रजिया, यह मेरा दोस्त अमान है. हम दोनों एक ही कमरे में रहते हैं.’’

‘‘अच्छा, आप कहां के रहने वाले हैं?’’ रजिया ने अमान से पूछा.

‘‘जी, आप के गांव के पास का.’’

इस तरह नफीस ने अमान का परिचय करा कर उस की खूब तारीफ की.

अब तो अमान भी रजिया से मिलने नफीस के साथ आ जाता था. वे एकदूसरे से इतने घुलमिल गए, जैसे बरसों की पहचान हो. ‘‘रजिया, क्या तुम नफीस को चाहती हो?’’ अमान ने अकेले में रजिया से पूछा.

‘‘हां, कोई शक?’’ रजिया बोली.

‘‘नहीं,’’ अमान ने कहा.

अमान इस फैसले पर नहीं पहुंच पा रहा था कि उन का प्यार दोनों भाईबहन जैसा था या प्रेमीप्रेमिका जैसा.

समय का पहिया घूमा. रजिया के एकतरफा प्यार में डूबा अमान उसे पा लेने के सपने संजोने लगा. इम्तिहान खत्म हो गए थे. बुलावे पर रजिया की मां उसे घर में अपने देवर के भरोसे छोड़ कर मायके चली गई थीं.

टैलीविजन देखने के बहाने नफीस देर रात तक रजिया के कमरे में रहा. ज्यादा रात होने पर रजिया ने कहा, ‘‘तुम यहीं बाहर बरामदे में सो जाओ. मुझे अकेले में डर लगता है.’’

नफीस बरामदे में अपना बिस्तर डाल कर सोने की कोशिश करने लगा, पर आंखों में नींद कहां. वह तो रजिया के प्यार के सपने बुनने लगा था. रात बीतती जा रही थी.

नफीस को अचानक अंदर से रजिया के कराहने की आवाज आई. वह बिस्तर से उठ बैठा. दरवाजे के पास जा कर जोर से दरवाजा खटखटाया. दरवाजा पहले से खुला था. वह अंदर गया.

नफीस ने घबरा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ रजिया?’’

‘‘पेट में दर्द हो रहा है,’’ रजिया ने कराहते हुए कहा.

‘‘मैं अम्मी को बुला कर लाता हूं,’’ सुन कर नफीस ने कहा.

‘‘नहीं, अम्मी को बुला कर मत लाओ. मैं ने दवा खा ली है. ठीक हो जाऊंगी. किसी को भी परेशान करने की जरूरत नहीं है… तुम मेरे पास आ कर बैठो. जरा मेरे पेट को सहलाओ. इस से शायद मुझे राहत मिले.’’

नफीस उस के पेट को सहलाने लगा. नफीस के हाथ की छुअन पाते ही रजिया के मन में सैक्स उभरने लगा.

इधर नफीस भी आंखें बंद कर के पेट सहलाता जा रहा था, तभी रजिया ने नफीस का हाथ पकड़ कर अपने उभारों पर रख दिया. नफीस के हाथ रखते ही वह गुलाब की तरह खिल उठी.

‘‘जरा जोर से सहलाओ,’’ रजिया अब पूरी तरह बहक चुकी थी. उस ने एक झटके से नफीस को खींच कर अपने बगल में लिटा लिया और ऊपर से रजाई ढक ली.

और वह सबकुछ हो गया, जिस की उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी.

उधर अमान को भी रजिया की जुदाई तड़पा रही थी. जब उस से रहा नहीं गया, तो वह नफीस से मिलने के बहाने उस के गांव जा पहुंचा. नफीस ने उस की खूब खातिरदारी की. वह रजिया से भी मिला.

अमान ने रजिया से उस का मोबाइल नंबर मांगा, पर रजिया ने बहाना बना कर नहीं दिया, न ही फोन पर बात करने को कहा. अमान भारी मन से लौट गया.

पढ़ाई का यह आखिरी साल था. नफीस की उम्र 21 साल की होने जा रही थी, वहीं रजिया 18वां वसंत पार कर 19वें की ओर बढ़ रही थी. उस की बोलचाल किसी को भी अपना बनाने के लिए दावत देती थी.

बादलों के बीच चमकती बिजली सी जब वह घर से बाहर निकलती, तो कई उस के दीवाने हो जाते. कालेज खुल चुके थे. वे दोनों अपनेअपने होस्टल में पहुंच चुके थे.

एक दिन रजिया ने अपनी प्रिंसिपल से कहा, ‘‘मैडम, हमें बाहर खाना खाने के लिए 2 घंटे का समय मिलना चाहिए, क्योंकि होस्टल में शाकाहारी खाना मिलता है और हम…’’

‘‘ठीक है, रविवार को चली जाया करो,’’ प्रिंसिपल ने अपनी रजामंदी दे दी.

इस के बाद नफीस और रजिया मोटरसाइकिल पर सवार हो कर एक होटल पहुंच गए. नफीस ने पहले ही वहां एक कमरा बुक करा रखा था.

अब तो सिलसिला चल पड़ा और वे दोनों अपने तन की प्यास बुझाने होटल आ जाते थे. एक दिन अमान भी होटल में नफीस और रजिया को देख कर पहुंच गया. ‘‘मैनेजर, अभीअभी एक लड़का और एक लड़की आप के होटल में आए हैं. वे किस कमरे में ठहरे हैं?’’ अमान ने पूछा.

‘‘मुझे पता नहीं. कई लोग आतेजाते हैं. आप खुद देख लो,’’ मैनेजर ने कहा.

अमान ने सारा होटल देख डाला, पर उसे वे दोनों नहीं मिले. अब अमान की जिज्ञासा और बढ़ गई.

अगले दिन अमान ने नफीस से पूछा, ‘‘कल मैं ने तुम्हें और रजिया को एक होटल में जाते हुए देखा था, पर तुम वहां अंदर कहीं नहीं दिखे.’’

नफीस चुपचाप सबकुछ सुनता रहा, पर बोला कुछ नहीं.

अमान के जाने के बाद नफीस रजिया से मिला और बोला, ‘‘रजिया, ऐसा लगता है, जैसे अमान हमारी जासूसी कर रहा है. वह हमें ढूंढ़तेढूंढ़ते होटल में जा पहुंचा था.’’

‘‘हमें अब दूरी कम करनी होगी, नहीं तो बवाल खड़ा हो जाएगा,’’ रजिया डरते हुए बोली.

समय तेजी से आगे बढ़ता जा रहा था. कैसे एक साल बीत गया, पता नहीं चला. अमान ने सोचा कि अगर रजिया को पाना है, तो नफीस से दोस्ती बना कर रखनी होगी.

इम्तिहान शुरू हो गए थे. आज रजिया का आखिरी पेपर था. दूसरे दिन घर वापस आना था. अमान का रजिया से मिलने का सपना टूटने लगा.

प्यार से बेखबर रजिया के पेट में नफीस का 4 महीने का बच्चा पल रहा था. कहा गया है कि आदमी जोश में होश खो बैठता है. डाक्टरी की पढ़ाई करने के बाद भी रजिया अपना बचाव नहीं कर पाई.

‘‘मेरी बात ध्यान से सुनिए. अगर आप ने पेट गिराने की कोशिश की, तो लड़की की जान जा सकती है. आगे आप जानें. आप मरीज को घर ले जाइए,’’ डाक्टर ने रजिया का मुआयना कर के कहा.

डाक्टर की बात सुन कर रजिया की अम्मी, चाचाचाची सकते में आ गए. रजिया को घर ले आए. सभी ने रजिया से पूछा कि किस का पाप पेट में पल रहा है, पर वह खामोश रही. आंसू बहाती रही. नफीस पर कोई शक नहीं कर रहा था.

बात धीरेधीरे गांव में फैल गई. हर किसी की जबान पर रजिया का नाम था. अगर उसे शहर में पढ़ने को नहीं भेजते, तो ऐसा नहीं होता.

अमान पर शक की सूई घूमी, उस से ही निकाह कर दिया जाए. एक रिश्तेदार कासिद को उस के घर भेजा गया, पर वह पैगाम ले कर खाली हाथ लौटा. गांव की जमात इकट्ठा हुई. पंचायत बैठी. मौलाना ने सब के सामने खत पढ़ कर सुनाने को कहा. लिखा था:

‘आप की जमात का पैगाम मिला, पर हम एक बेहया और बदचलन लड़की से अपने लड़के का निकाह कर के खानदान पर दाग नहीं लगाना चाहते. न जाने किस कौम की नाजायज औलाद पाल रखी है उस ने.’

मौलाना कुछ देर खामोश बैठे रहे. कुछ सोचने के बाद मौलाना ने अपना फैसला सुनाया, ‘‘बात सही लिखी है. जमात आज से इन का हुक्कापानी बंद करती है. जमात का कोई भी शख्स इन से कोई ताल्लुक नहीं रखेगा.

‘‘लड़की को फौरन गांव से बाहर कर दिया जाए. मुहब्बत करने चली थी, मजहब के उसूलों का जरा भी खयाल नहीं आया उसे. यही मुहब्बत करने वालों की सजा है.’’ मौलाना का मुहब्बत पर फतवा सुन कर रजिया का खानदान सहम गया. जमात उठ गई.

रजिया के घर मायूसी पसरी थी. रात में सभी फिक्र में डूबे थे. जब सुबह आंख खुली, तो रजिया को न पा कर सब उस की खोजखबर लेने लगे. नफीस और रजिया मौलाना के फतवे को ठोकर मारते हुए दूर निकल गए थे, अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करने के लिए.

वर्जिन: कैसे टूटा उन दोनों के सब्र का बांध

रोहित अमला से मिलने उस के कालेज आया था. दोनों कैंटीन में बैठे चाय पी रहे थे. रोहित एमबीए फाइनल ईयर में था और अमला एमए फाइनल में थी. दोनों ने प्लस टू की पढ़ाई एक ही स्कूल से की थी. इस  के बाद वे कालेज की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गए थे. रोहित ग्रेजुएशन के बाद एमबीए करने दूसरे कालेज चला गया था, पर अकसर अमला से मिलने उस के कालेज आता था. उसे कैंपस से अच्छा प्लेसमैंट मिल गया था. दोनों लगभग 6 साल से एकदूसरे को जानते थे और अच्छी तरह परिचित थे.

अमला काफी सुंदर थी और रोहित भी हैंडसम और स्मार्ट था. दोनों पिछले 2 साल से एकदूसरे को चाहने भी लगे थे. दोनों चाय पी रहे थे और टेबल के नीचे अपनी टांगों की जुगलबंदी किए बैठे थे. तभी रोहित का एक दोस्त अशोक भी अपनी गर्लफ्रैंड के साथ वहां आ गया. उस टेबल पर 2 कुरसियां खाली थीं. वे दोनों भी वहीं बैठ गए.

अशोक बोला, ‘‘यार, तुम दोनों की जुगलबंदी हो चुकी हो तो अपनी टांगें हटा लो, अब हमें भी मौका दो.’’

यह सुन कर रोहित और अमला ने अपनेअपने पैर पीछे खींच लिए. अमला थोड़ा झेंप गई थी.

‘‘अच्छा, हम दोनों चाय पी चुके हैं, अब चलते हैं. अब तुम लोगों के जो जी में आए करो,’’ रोहित ने अमला को भी उठने का इशारा किया.

चलतेचलते रोहित ने अमला से पूछा, ‘‘आज शाम मूवी देखने चल सकती हो?’’

‘‘हां, चल सकती हूं.’’

सिनेमाहौल में दोनों मूवी देख रहे थे. रोहित ने अमला का हाथ अपने हाथ में ले कर धीरे से उस के कान में कहा, ‘‘कब तक हम लोग बस हाथपैर मिलाते रहेंगे. इस से आगे भी बढ़ना है कि नहीं?’’

अमला ने संकेत से चुप रहने का इशारा किया और कहा, ‘‘सब्र करो, आसपास और भी लोग हैं. अपना हाथ हटा लो.’’

हाथ हटाते समय रोहित का हाथ अमला के वक्ष को स्पर्श कर गया, हालांकि यह अनजाने में हुआ था. अमला ने मुड़ कर उस की ओर देखा. रोहित को लगा कि अमला की आंखों में कोई शिकायत का भाव नहीं था बल्कि उस की नजरों में खामोशी झलक रही थी.

मूवी देखने के बाद दोनों एक दोस्त मुकेश के यहां डिनर पर गए. वह अपने पिताजी के फ्लैट में अकेला रहता था. उस के पिताजी न्यूजीलैंड में जौब करते थे. मुकेश ने कहा, ‘‘अगले हफ्ते मैं 6 महीने के लिए न्यूजीलैंड और आस्टे्रलिया जा रहा हूं. तुम लोग चाहो तो यहां रह सकते हो. कुछ दिन साथ रह कर भी देखो, आखिर शादी तो तुम्हें करनी ही है. जैसा कि तुम दोनों मुझ से कहते आए हो.’’

यह सुन कर रोहित और अमला एकदूसरे का मुंह देखते रहे. मुकेश बोला, ‘‘तुम लोगों को कोई प्रौब्लम नहीं होनी चाहिए. पिछली बार तुम्हारे पेरैंट्स आए थे तो उन्हें तुम्हारे बारे में पता था. तुम ने खुद बताया था उन्हें. अंकलआंटी दोनों कह रहे थे कि तुम्हारे दादादादी अभी जीवित हैं और बस, उन की एक औपचारिक मंजूरी चाहिए. इत्तेफाक से तुम दोनों सजातीय भी हो तो उन लोगों को भी कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए.’’

‘‘ठीक है, हम सोच कर बताएंगे.’’

डिनर के बाद जब दोनों जाने लगे तो मुकेश बोला, ‘‘तुम एक डुप्लीकेट चाभी रख लो. मैं अपार्टमैंट औफिस में बता दूंगा कि मेरी अनुपस्थिति में तुम लोग यहां रहोगे.’’

इतना कह कर मुकेश ने चाभी रोहित को थमा दी. रास्ते में रोहित से अमला बोली, ‘‘तुम ने चाभी अभी से क्यों रख ली? इस का मतलब हम अभी से साथ रहेंगे क्या? मुझे तो ऐसा ठीक नहीं लगता. मम्मीपापा को शायद उतना बुरा न लगे, पर दादादादी पुराने विचारों के हैं, उन्हें पता चलेगा तो आसमान सिर पर उठा लेंगे.’’

‘‘दादादादी ही पुराने विचारों के हैं, मैं और तुम तो नहीं. और वे गांव में बैठे हैं. उन्हें कौन बताएगा कि हम साथ रह रहे हैं या नहीं. आज जमाना कहां से कहां पहुंच गया है. तुम्हें पता है कि पश्चिमी देशों में अगर कोई युवती 18 साल तक वर्जिन रह जाती है तो उस के घर वाले चिंतित हो जाते हैं, इस का मतलब आमतौर पर लोग यही अंदाजा लगाते हैं कि उस में कोई कमी है.’’

‘‘बेहतर है हम जहां हैं, वहां की बात करें.’’

‘‘तुम किस गलतफहमी में जी रही हो? यहां भी युवकयुवती लिवइन रिलेशन में साल दो साल एकसाथ रहने के बाद एकदूसरे को बायबाय कर देते हैं. वैसे मैं तुम्हें फोर्स नहीं करूंगा. और तुम हां कहोगी तभी हम मुकेश के फ्लैट में शिफ्ट करेंगे. संयोगवश यह मौका मिला है और हम दोनों शादी करने जा ही रहे हैं, पढ़ाई के बाद. तुम कहो तो कोर्ट मैरिज कर लेते हैं इस के पहले.’’

‘‘नो कोर्ट मैरिज. शादी की कोई जल्दबाजी नहीं है. जब भी होगी ट्रैडिशनल शादी ही होगी,’’ अमला ने साफसाफ कहा.

2 हफ्ते तक काफी मनुहार के बाद अमला मुकेश के फ्लैट में रोहित के साथ आ गई. दोनों के कमरे अलगअलग थे. मुकेश की कामवाली और कुक दोनों के कारण खानेपीने या घर के अन्य कामों की कोई चिंता नहीं थी. 4 महीने के अंदर रोहित को नौकरी जौइन करनी थी और उस के पहले अमला को डिग्री भी मिलनी थी.

रोहित और अमला देर रात तक साथ बातें करते और फिर अपनेअपने कमरे में सोने चले जाते थे. धीरेधीरे दोनों और करीब होते गए. अब तो रोहित अमला के बालों से खेलने लगा था, कभीकभी गाल भी सहला लेता. दोनों को यह सब अच्छा लगता. पर एक दिन दोनों के सब्र ने जवाब दे दिया और वे एक हो गए. जब एक बार सब्र का बांध टूट गया तो दोनों इस सैलाब में बह निकले.

कुछ दिन बाद अमला बोली, ‘‘रोहित, इधर कुछ दिनों से मेरे पेट के निचले हिस्से में दर्द सा रहता है. कभीकभी यह ज्यादा ही हो जाता है.’’

‘‘किसी गाइनोकोलौजिस्ट से चैकअप करा लो.’’

‘‘मैं अकेली नहीं जाऊंगी, तुम्हें भी साथ चलना पड़ेगा.’’

‘‘अब लेडी डाक्टर के पास मुझे कहां ले जाओगी?’’

‘‘तब रहने दो, मैं भी नहीं जाती.’’

‘‘अच्छा बाबा, चलो, कल सुबह चलते हैं.’’

अगले दिन सुबह दोनों गाइनोकोलौजिस्ट के पास पहुंचे. वहां कुछ मरीज पहले से ही थे, उन्हें काफी देर तक इंतजार करना पड़ा. इस बीच उन्होंने देखा कि वहां आने वाली ज्यादातर औरतें प्रैग्नैंट थीं और उन के साथ कोई मर्द या प्रौढ़ महिला थी. सब से कम उम्र की पेशैंट अमला ही थी. अमला यह सब देख कर थोड़ी घबरा गई थी. उस की बगल में बैठी एक औरत ने पूछा, ‘‘लगता है तुम्हारा पहला बच्चा है, पहली बार घबराहट सब को होती है. डरो नहीं.’’

रोहित और अमला एकदूसरे को देखने लगे. रोहित बोला, ‘‘डोंट वरी, लेट डाक्टर चैकअप.’’

जब अमला का नाम पुकारा गया तो रोहित भी उस के साथ चैकअप केबिन में जाने लगा. नर्स ने उसे रोक कर कहा, ‘‘आप बाहर वेट करें, अगर डाक्टर बुलाती हैं तो आप बाद में आ जाना.’’

डाक्टर ने अमला को चैक किया. उस की आंखें, पल्स, ब्लडप्रैशर आदि चैक किए. फिर पूछा, ‘‘दर्द कहां होता है?’’

अमला ने पेट के नीचे हाथ रख कर कहा, ‘‘यहां.’’

डाक्टर ने नर्स को पेशैंट का यूरिन सैंपल ले कर प्रैग्नैंसी टैस्ट करने को कहा और पूछा ‘‘शादी हुए कितने दिन हुए.’’

‘‘मैं अनमैरिड हूं डाक्टर.’’

‘‘सैक्स करती हो?’’

अमला ऐसे प्रश्न के जवाब देने के लिए तैयार नहीं थी. उस को कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या बोले, वह सिर्फ डाक्टर की ओर देख रही थी. डाक्टर ने नर्स को बुला कर कहा, ‘‘इन के साथ जो आदमी आया है उस को बुला कर लाओ और इन की प्रैग्नैंसी टैस्ट रिपोर्ट लेती आना.’’

रोहित केबिन में गया तो डाक्टर ने पूछा, ‘‘पेशैंट कहती है कि वह अनमैरिड है, पर जब मैं ने सैक्स के बारे में पूछा तो वह कुछ बता नहीं पा रही है. डाक्टर से सच बोलना चाहिए तभी तो इलाज सही होगा.’’

इसी बीच डाक्टर ने उन दोनों से फ्रैंडली होते हुए पूछा कि वे कहां के रहने वाले हैं. बातोंबातों में पता चला कि डाक्टर अमला की मां की सहपाठी रह चुकी हैं. तभी नर्स टैस्ट रिपोर्ट ले कर आई जो पौजिटिव थी. डाक्टर बोली, ‘‘अब तो शक की कोई गुंजाइश नहीं है, अमला तुम प्रैग्नैंट हो. इस का मतलब तुम दोनों अनमैरिड हो लेकिन फिजिकल रिलेशन रखते हो.’’

रोहित और अमला दोनों को यह बात असंभव लगी. उन के बीच रिलेशन तो रहा है, पर उन्होंने सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा है. रोहित अमला की ओर देखे जा रहा था, अमला लगातार सिर हिला कर न का संकेत दे रही थी. रोहित के पास भी अमला पर शक करने की कोई वजह नहीं थी.

रोहित डाक्टर से बोला, ‘‘हम फिजिकल भले रहे हों, पर इस रिपोर्ट पर मुझे भरोसा नहीं है.’’

‘‘ठीक है, मैं दोबारा टैस्ट करा लेती हूं या फिर बगल में एक दूसरी लैब में भेज दूं अगर तुम लोगों को मुझ पर भरोसा नहीं है,’’ डाक्टर ने कहा.

‘‘नहीं डाक्टर, भरोसा कर के ही तो हम आप तक आए हैं. फिर भी एक बार और टैस्ट करा लेतीं तो ठीक था.’’

डाक्टर ने नर्स को बुला कर यूरिन का सैंपल दोबारा टैस्ट करने को कहा. नर्स को थोड़ा आश्चर्य हुआ. उस ने रिपोर्ट अपने हाथ में ले कर पढ़ी और कहा, ‘‘सौरी, यह रिपोर्ट इन की नहीं है. दूसरे पेशैंट की है. दरअसल, दोनों के फर्स्ट नेम एक ही हैं और सरनेम में बस, एक लेटर का फर्क है. इन का सरनेम सिन्हा है और यह रिपोर्ट मैडम सिंह की है. आइ एम सो सौरी, अभी इन की रिपोर्ट ले कर आती हूं.’’

यह सुन कर रोहित और अमला की जान में जान आई. नर्स अमला की रिपोर्ट ले कर आई जो निगेटिव थी. तब डाक्टर ने रोहित से कहा, ‘‘आई एम सौरी फौर दिस मेस. आप बाहर, जाएं, मैं पेशैंट को ऐग्जामिन करूंगी.’’

अमला का बैड पर लिटा कर चैकअप किया गया. फिर रोहित को भी अंदर बुला कर डाक्टर ने कहा, ‘‘डौंट वरी, इन के ओवरी में बांयीं ओर कुछ सूजन है. मैं दवा लिख देती हूं, उम्मीद है 2 सप्ताह में आराम मिलेगा. अगर फिर भी प्रौब्लम रहे तो मुझे बताना आगे ट्रीटमैंट चलेगा.’’

अमला ने चलतेचलते डाक्टर को धन्यवाद देते हुए कहा, ‘‘प्लीज डाक्टर, मम्मी को आप यह नहीं बताएंगी.’’

‘‘मेरा तो पिछले 15 साल से उस से कोई संपर्क नहीं रहा है. वैसे पता रहने पर भी नहीं बताती, डौंट वरी, गेट मैरिड सून. अपनी मम्मी का फोन नंबर देती जाना, अगर तुम्हें कोई प्रौब्लम न हो तो.’’

‘‘श्योर, मैं लिख देती हूं, मुझे कोई प्रौब्लम नहीं है.’’

अमला ने अपनी मां का फोन नंबर एक पेपर पर नोट कर डाक्टर को दे दिया.

क्लिनिक से बाहर आ कर अमला ने कहा, ‘‘आज तो हमारे रिश्ते की बात हम दोनों के सिवा इस डाक्टर और नर्स को भी पता चल गई. उस ने मम्मी का कौन्टैक्ट्स भी मुझ से ले लिया है. उम्मीद है कि वह मम्मी को नहीं बताएगी.’’

‘‘बता भी दिया तो क्या हो जाएगा? हम लोग शादी करने जा रहे हैं. मैं अगले महीने नौकरी जौइन करने जा रहा हूं. कंपनी की ओर से फ्लैट और कार भी मिल रही है. जल्द ही हम शादी कर लेंगे.’’

‘‘वो तो ठीक है, पर मम्मी मुझ से कहती आई हैं युवतियों को अपनी वर्जिनिटी शादी तक बचानी चाहिए.’’

‘‘आजकल सबकुछ हो जाने के बाद भी वर्जिनिटी दोबारा मिल सकती है. तुम्हें पता है कि प्लास्टिक सर्जरी से युवतियां अपना खोया हुआ कौमार्य प्राप्त कर सकती हैं.’’

‘‘क्या कह रहे हो?’’

‘‘सही बोल रहा हूं. बस, कुछ हजार रुपए खर्च कर कुछ घंटे प्लास्टिक सर्जन के क्लिनिक पर हाइमनोप्लास्टी द्वारा हाइमन बनाया जाता है और युवतियां फिर से कुंआरी बन जाती हैं.’’

अमला रोहित की तरफ अचरज भरी नजरों से देखने लगी तो फिर वह बोला, ‘‘देश भर के छोटेबड़े शहरों में सैकड़ों क्लिनिक हैं, जो हाइमनोप्लास्टी करते हैं. इन्हें अपने लिए ज्यादा प्रचार भी नहीं करना होता है. यह तो एक कौस्मेटिक सर्जरी है. इतना ही नहीं कुछ बालबच्चों वाली महिलाएं भी वैजिनोप्लास्टी करा कर दांपत्य जीवन के शुरुआती दिनों जैसा आनंद फिर से महसूस करने लगी हैं.’’

‘‘ओह.’’

‘‘जरूरत पड़ी तो तुम्हारी भी हो सकती है, कह कर रोहित हंसने लगा.’’

‘‘मुझे नहीं चाहिए यह सब. अब इस बारे में मुझे और कुछ नहीं सुनना है.’’

रोहित और अमला को अपनी तात्कालिक समस्या का निदान मिल चुका था. दोनों ने खुशीखुशी अपने फ्लैट पर जा कर चैन की सांस ली.

भूलना मत: नम्रता की जिंदगी में क्या था उस फोन कौल का राज?

नम्रता ने फोन की घंटी सुन कर करवट बदल ली. कंबल ऊपर तक खींच कर कान बंद कर लिए. सोचा कोई और उठ कर फोन उठा लेगा पर सभी सोते रहे और फोन की घंटी बज कर बंद हो गई.

‘चलो अच्छा हुआ, मुसीबत टली. पता नहीं मुंहअंधेरे फोन करने का शौक किसे चर्राया,’ नम्रता ने स्वयं से ही कहा.

पर फोन फिर से बजने लगा तो नम्रता झुंझला गई, ‘‘लगता है घर में मेरे अलावा यह घंटी किसी को सुनाई ही नहीं देती,’’ उस ने उठने का उपक्रम किया पर उस के पहले ही अपने पिता शैलेंद्र बाबू की पदचाप सुन कर वह दोबारा सो गई. पिता ने फोन उठा लिया.

‘‘क्या? क्या कह रहे हो कार्तिक? मुझे तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं होता. पूरे देश में प्रथम स्थान? नहींनहीं, तुम ने कुछ गलत देखा होगा. क्या नैट पर समाचार है?’’

‘‘अब तो आप को मिठाई खिलानी ही पड़ेगी.’’

‘‘हां, है.’’

‘‘मिठाई?’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं, घर आओ तो, मिठाई क्या शानदार दावत मिलेगी तुम्हें,’’ शैलेंद्र बाबू फोन रखते ही उछल पड़े. थोड़ी देर पहले की मीठी नींद से उठने की खुमारी और बौखलाहट एक क्षण में उड़नछू हो गई.

‘‘सुचित्रा, नम्रता, अनिमेष, कहां हो तुम तीनों? देखो कितनी खुशी की बात है,’’ वे पूरी शक्ति लगा कर चीखे.

‘‘क्या है? क्यों सारा घर सिर पर उठा रखा है?’’ सुचित्रा पति की चीखपुकार सुन कर उठ आईं.

‘‘बात ही ऐसी है. सुनोगी तो उछल पड़ोगी.’’

‘‘अब कह भी डालो, भला कब तक पहेलियां बुझाते रहोगे.’’

‘‘तो सुनो, हमारी बेटी नम्रता भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रथम आई है.’’

‘‘क्या? मुझे तो विश्वास नहीं होता. किसी ने अवश्य तुम्हें मूर्ख बनाने का प्रयत्न किया है. किस का फोन था? अवश्य ही किसी ने मजाक किया होगा.’’

‘‘कार्तिक का फोन था और मैं उस की बात पर आंख मूंद कर विश्वास कर सकता हूं.’’

मातापिता की बातचीत सुन कर नम्रता और अनिमेष भी उठ कर आ गए.

‘‘मां ठीक कहती हैं, पापा. क्या पता किसी ने शरारत की हो. परीक्षा में सफल होना तो संभव है पर सर्वप्रथम आना…मैं जब तक अपनी आंखों से न देख लूं, विश्वास नहीं कर सकती,’’ नम्रता ने अपना मत प्रकट किया.

पर जब तक नम्रता कुछ और कहती अनिमेष कंप्यूटर पर ताजा समाचार देखने लगा जहां नम्रता के भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रथम आने का समाचार प्रमुखता से दिखाया जा रहा था. कुछ ही देर में समाचारपत्र भी आ गया और फोन पर बधाई देने वालों का तांता सा लग गया.

शैलेंद्र बाबू तो फोन पर बधाई स्वीकार करने और सब को विस्तार से नम्रता के आईएएस में प्रथम आने के बारे में बताते हुए इतने व्यस्त हो गए कि उन्हें नाश्ता तक करने का समय नहीं मिला.

दिनभर घर आनेजाने वालों से भरा रहा. नम्रता जहां स्थानीय समाचारपत्रों के प्रतिनिधियों व टीवी चैनलों को साक्षात्कार देने में व्यस्त थी, वहीं अनिमेष और सुचित्रा मेहमानों की खातिरदारी में.

शैलेंद्र बाबू के तो पांव खुशी के कारण जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. नम्रता ने एक ही झटके में पूरे परिवार को साधारण से असाधारण बना दिया था.

रात गहराने लगी तो अनेक परिचित विदा लेने लगे. पर दूर से आए संबंधियों के ठहरने, खानेपीने का प्रबंध तो करना ही था. सुचित्रा के तो हाथपैर फूल गए थे. तीन बुलाए तेरह आए तो सुना था उन्होंने पर यहां तो बिना बुलाए ही सब ने धावा बोल दिया था.

वे अनिमेष को बारबार बाजार भेज कर आवश्यकता की वस्तुएं मंगा रही थीं और स्वयं दिनभर रसोई में जुटी रहीं.

अतिथियों को खिलापिला व सुला कर जब पूरा परिवार साथ बैठा तो सभी को अपनी कहने और दूसरों की सुनने का अवसर मिला.

‘‘मुझ से नहीं होता इतने लोगों के खानेपीने का प्रबंध. कल ही एक रसोइए का प्रबंध करो,’’ सब से पहले सुचित्रा ने अपना दुखड़ा कह सुनाया.

‘‘क्यों नहीं, कल ही से रख लेते हैं. कुछ दिनों तक आनेजाने वालों का सिलसिला चलेगा ही,’’ शैलेंद्र बाबू ने कहा.

‘‘मां, घर में जो भी सामान मंगवाना हो उस की सूची बना लो. कल एकसाथ ला कर रख दूंगा. आज पूरे दिन आप ने मुझे एक टांग पर खड़ा रखा है,’’ अनिमेष बोला.

‘‘तुम लोगों को एक दिन थोड़ा सा काम करना पड़ जाए तो रोनापीटना शुरू कर देते हो. पर जो सब से महत्त्वपूर्ण बातें हैं उन की ओर तुम्हारा ध्यान ही नहीं जाता,’’ शैलेंद्र बाबू गंभीर स्वर में बोले.

‘‘ऐसी कौन सी महत्त्वपूर्ण बात है जिस की ओर हमारा ध्यान नहीं गया?’’ सुचित्रा ने मुंह बिचकाया.

‘‘कार्तिक…आज सुबह सब से पहले कार्तिक ने ही मुझे नम्रता की इस अभूतपूर्व सफलता की सूचना दी थी. पर मैं पूरे दिन प्रतीक्षा करता रहा और वह नहीं आया.’’

‘‘प्रतीक्षा केवल आप ही नहीं करते रहे, पापा, मैं ने तो उसे फोन भी किया था. जितना प्रयत्न और परिश्रम मैं ने किया उतना ही उस ने भी किया. उसे तो जैसे धुन सवार थी कि मुझे इस प्रतियोगिता में सफल करवा कर ही मानेगा. मेरी सफलता का श्रेय काफी हद तक कार्तिक को ही जाता है.’’

‘‘सब कहने की बात है. ऐसा ही है तो स्वयं क्यों नहीं दे दी आईएएस की प्रवेश परीक्षा?’’

‘‘क्योंकि वह चाहता ही नहीं, मां. उसे पढ़नेपढ़ाने में इतनी रुचि है कि वह व्याख्याता की नौकरी छोड़ना तो दूर, अर्थशास्त्र में पीएचडी करने की योजना बना रहा है.’’

‘‘तो अब मेरी बात ध्यान से सुनो. अब तक तो तुम दोनों की मित्रता ठीक थी पर अब तुम दोनों का मिलनाजुलना मुझे पसंद नहीं है. बड़ी अफसर बन जाओगी तुम. अपनी बराबरी का वर ढूंढ़ो तो मुझे खुशी होगी. भूल गईं, सुधीर और उस के परिवार ने हमारे साथ कैसा व्यवहार किया था?’’ सुचित्रा बोलीं.

‘‘तो आप चाहती हैं कि मैं भी कार्तिक के साथ वही करूं जो सुधीर ने मेरे साथ किया था.’’

‘‘हां, तुम लोगों ने अपनी व्यस्तता में देखा नहीं, कार्तिक आया था, मैं ने ही उसे समझा दिया कि अब नम्रता उस से कहीं आगे निकल गई है तो किसी से बिना मिले मुंह छिपा कर चला गया,’’ सुचित्रा बोलीं.

‘‘क्या? आप ने मुझे बताया तक नहीं? कार्तिक जैसे मित्र बड़ी मुश्किल से मिलते हैं. हम दोनों तो जीवनसाथी बनने का निर्णय ले चुके हैं,’’ यह बोलते हुए नम्रता रो पड़ी.

‘‘मैं तुम से पूरी तरह सहमत हूं, बेटी. कार्तिक हीरा है, हीरा. उसे हाथ से मत जाने देना,’’ शैलेंद्रजी ने नम्रता को ढाढ़स बंधाया.

एकांत मिलते ही नम्रता ने कार्तिक का नंबर मिलाया. पर बहुत पहले की एक फोन कौल उस के मानसपटल पर हथौड़े की चोट करने लगी थी.

उस दिन भी फोन उस के पिता ने ही उठाया था.

‘नमस्ते शैलेंद्र बाबू. कहिए, विवाह की सब तैयारियां हो गईं?’ फोन पर धीर शाह का स्वर सुन कर शैलेंद्र बाबू चौंक गए थे.

‘सब आप की कृपा है. हम सब तो कल की तैयारी में ही व्यस्त हैं.’

इधरउधर की औपचारिक बातों के बाद धीर बाबू काम की बात पर आ गए.

‘ऐसा है शैलेंद्र बाबू, मैं ने तो लाख समझाया पर रमा, मेरी पत्नी तो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं. बस, एक ही जिद पर अड़ी है. उसे तो तिलक में 10 लाख नकद चाहिए. वह अपने मन की सारी साध पूरी करेगी.’’

‘क्या कह रहे हैं आप, धीर बाबू? तिलक में तो लेनेदेने की बात तय नहीं हुई थी. अब एक दिन में 10 लाख का प्रबंध कहां से करूंगा मैं?’ शैलेंद्र बाबू का सिर चकराने लगा. आवाज भर्रा गई.

‘क्या कहूं, मैं तो आदर्शवादी व्यक्ति हूं. दहेज को समाज का अभिशाप मानता हूं. पर नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है. रमा ने तो जिद ही पकड़ ली है. वैसे गलती उस की भी नहीं है. आप के यहां संबंध होने के बाद भी लोग दरवाजे पर कतार बांधे खड़े हैं.’

सोचने व समझ पाने के लिए शैलेंद्र ने कहा, ‘मेरे विचार से ऐसे गंभीर विचारविमर्श फोन पर करना ठीक नहीं रहेगा. मैं अपनी पत्नी सुचित्रा के साथ आप के घर आ रहा हूं. वहीं मिलबैठ कर सब मसले सुलझा लेंगे.’

नम्रता ने शैलेंद्र बाबू और धीर शाह के बीच होने वाली बातचीत को सुन लिया था और किसी अशुभ की आशंका से वह कांप उठी थी.

शैलेंद्र बाबू और सुचित्रा जब धीर बाबू के घर गए तो उन्होंने 10 लाख की मांग को दोहराया, जिस से शैलेंद्र बाबू निराश हो गए.

जब नम्रता से सुधीर का संबंध हुआ था तब सुधीर डिगरी कालेज में साधारण सा व्याख्याता था पर अब वह भारतीय प्रशासनिक सेवा का अफसर बन गया था. इसी कारण वर का भाव भी बढ़ गया. अफसर बनते ही सुधीर का दुनिया के प्रति नजरिया भी बदल गया.

शैलेंद्र और सुचित्रा उठ खड़े हुए. घर आ कर बात साफ कर दी गई.

‘यह विवाह नहीं होगा. लगता है और कोई मोटा आसामी मिल गया है धीर बाबू को,’ शैलेंद्र बाबू ने सुचित्रा से कहा.

सुधीर और नम्रता ने कालेज की पढ़ाई साथ पूरी की थी. दोनों के प्रेम के किस्से हर आम और खास व्यक्ति की जबान पर थे. एमफिल करते ही जब दोनों को अपने ही कालेज में व्याख्याता के पद प्राप्त हो गए तो उन की खुशी का ठिकाना न रहा. उन के प्यार की दास्तान सुन कर दोनों ही पक्षों के मातापिता ने उन के विवाह की स्वीकृति दे दी थी.

नम्रता से विवाह तय होते ही जब सुधीर का आईएएस में चयन हो गया तो सुचित्रा और शैलेंद्र बाबू भी खुशी से झूम उठे. वे मित्रों, संबंधियों और परिचितों को यह बताते नहीं थकते थे कि उन की बेटी नम्रता का संबंध एक आईएएस अफसर से हुआ है.

नम्रता स्वयं भी कुछ ऐसा ही सोचने लगी थी. वह जब भी सुधीर से मिलती तो गर्व महसूस करती थी. पर आज सबकुछ बदला हुआ नजर आ रहा था.

सुधीर और उस का प्रेमप्रसंग तो पिछले 5 वर्षों से चल रहा था. सुधीर तो दहेज के सख्त खिलाफ था. फिर आज अचानक इतनी बड़ी मांग? वह छटपटा कर रह गई.

उस ने तुरंत सुधीर को फोन मिलाया. उसे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था कि सुधीर और उस का परिवार तिलक से ठीक पहले ऐसी मांग रख देंगे. वह सुधीर से बात कर के सब साफसाफ पूछ लेना चाहती थी. उन दोनों के प्यार के बीच में यह पैसा कहां से आ गया था.

‘हैलो, सुधीर, मैं नम्रता बोल रही हूं.’

‘हां, कहो नम्रता, कैसी हो? कल की सब तैयारी हो गई क्या?’

‘यही तो मैं तुम से पूछ रही हूं. यह एक दिन पहले क्या 10 लाख की रट लगा रखी है? मेरे पापा कहां से लाएंगे इतना पैसा?’

‘शांत, नम्रता शांत. इतने सारे प्रश्न पूछोगी तो मैं उन के उत्तर कैसे दे सकूंगा.’

‘बनो मत, तुम्हें सब पता है. तुम्हारी स्वीकृति के बिना वे ऐसी मांग कभी नहीं करते,’ नम्रता क्रोधित स्वर में बोली.

‘तो तुम भी सुन लो, क्या गलत कर रहे हैं मेरे मातापिता? लोग करोड़ों देने को तैयार हैं. कहां मिलेगा तुम्हें और तुम्हारे पिता को आईएएस वर? तुम लोग इस छोटी सी मांग को सुनते ही बौखला गए,’ सुधीर का बदला सुर सुनते ही स्तब्ध रह गई नम्रता. हाथपैर कांप रहे थे. वह वहीं कुरसी पर बैठ कर देर तक रोती रही.

अनिमेष सो रहा था. वह किसी प्रकार लड़खड़ाती हुई अपने कक्ष में गई और कुंडी चढ़ा ली.

शैलेंद्र और सुचित्रा घर पहुंचे तो देर तक घंटी बजाने और द्वार पीटने के बाद जब अनिमेष ने द्वार खोला तो शैलेंद्र बाबू उस पर ही बरस पड़े.

‘यहां जान पर बनी है और तुम लोग घोड़े बेच कर सो रहे हो.’

‘बहुत थक गया था. मैं ने सोचा था कि नम्रता दीदी द्वार खोल देंगी. वैसे भी उन की नींद जल्दी टूट जाती है,’ अनिमेष उनींदे स्वर में बोला.

‘नम्रता? हां, कहां है नम्रता?’ शैलेंद्र बाबू ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘अपने कमरे में सो रही हैं,’ अनिमेष बोला और फिर सो गया.

पर शैलेंद्र और सुचित्रा को कुछ असामान्य सा लग रहा था. मातापिता की चिंता से अवगत थी नम्रता. ऐसे में उसे नींद आ गई, यह सोच कर ही घबरा गए थे दोनों.

सुचित्रा ने तो नम्रता के कक्ष का द्वार ही पीट डाला. पर कोई उत्तर न पा कर वे रो पड़ीं. अब तो अनिमेष की नींद भी उड़ चुकी थी. शैलेंद्र बाबू और अनिमेष ने मिल कर द्वार ही तोड़ डाला.

उन का भय निर्मूल नहीं था. अंदर खून से लथपथ नम्रता बेसुध पड़ी थी. उस ने अपनी कलाई की नस काट ली थी.

अब अगले दिन के तिलक की बात दिमाग से निकल गई थी. वर पक्ष की मांग और उन के द्वारा किए गए अपमान की बात भुला कर वे नम्रता को ले कर अस्पताल की ओर भागे थे.

समाचार सुनते ही नम्रता के मित्र और सहकर्मी आ पहुंचे थे. सुचित्रा और अनिमेष का रोरो कर बुरा हाल था. शैलेंद्र बाबू अस्पताल में प्रस्तर मूर्ति की भांति शून्य में ताकते बैठे थे. कार्तिक ने न केवल उन्हें सांत्वना दी थी बल्कि भागदौड़ कर के सुचित्रा की देखभाल भी की थी.

कार्तिक रातभर नम्रता के होश में आने की प्रतीक्षा करता रहा था पर नम्रता तो होश में आते ही बिफर उठी थी.

‘कौन लाया मुझे यहां? मर क्यों नहीं जाने दिया मुझे? मैं जीना नहीं चाहती,’ वह प्रलाप करने लगी थी.

‘चुप करो, यह बकवास करने का समय नहीं है. तुम ऐसा कायरतापूर्ण कार्य करोगी, मैं सोच भी नहीं सकता था.’

‘मैं अपने मातापिता को और दुख देना नहीं चाहती.’

‘तुम ने उन्हें कितना दुख दिया है, देखना चाहोगी. तुम्हारी मां रोरो कर दीवार से अपना सिर टकरा रही थीं. बड़ी कठिनाई से अनिमेष उन्हें घर ले गया है. तुम्हारे पिता तुम्हारे कक्ष के बाहर बैंच पर बेहोश पड़े हैं.’

‘ऐसी परिस्थिति में मैं और कर भी क्या सकती थी?’

‘तुम पहली युवती नहीं हो जिस का विवाह टूटा है, कारण कोई भी रहा हो. दुख का पहाड़ तो पूरे परिवार पर टूटा था पर तुम बड़ी स्वार्थी निकलीं. केवल अपने दुख का सोचा तुम ने. तुम्हें तो उन्हें ढाढ़स बंधाना चाहिए था.’

नम्रता चुप रह गई. कार्तिक उस का अच्छा मित्र था. उस ने और कार्तिक ने एकसाथ कालेज में व्याख्याता के रूप में प्रवेश किया था. पर सुधीर के कालेज में आते ही नम्रता उस के लटकोंझटकों पर रीझ गई थी.

नम्रता स्वस्थ हो कर घर आ गई थी पर कार्तिक के सहारे ही वह सामान्य हो सकी थी. ‘स्वयं को पहचानो नम्रता,’ वह बारबार कहता. उस के प्रोत्साहित करने पर ही नम्रता ने आईएएस की तैयारी प्रारंभ की थी. उस की तैयारी में कार्तिक ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. पर आज न जाने उस पर क्या बीती होगी.

‘‘हैलो कार्तिक,’’ फोन मिलते ही नम्रता ने कार्तिक का स्वर पहचान लिया था.

‘‘कहो नम्रता, कैसी हो?’’

‘‘मैं कैसी हूं अब पूछ रहे हो तुम? सुबह से कहां थे?’’

‘‘मैं तो तुम से मिलने आया था पर तुम बहुत व्यस्त थीं.’’

‘‘और तुम बिना मिले चले गए? यह भी भूल गए कि तुम ने तो सुखदुख में साथ निभाने का वादा किया है.’’

‘‘आज के संसार में इन वादों का क्या मूल्य है?’’

‘‘मेरे लिए ये वादे अनमोल हैं, कार्तिक. हम कल ही मिल रहे हैं. बहुत सी बातें करनी हैं, बहुत से फैसले करने हैं. ठीक है न?’’ नम्रता ने व्यग्रता से पूछा था.

‘‘ठीक है, नम्रता. तुम भी मेरे लिए अनमोल हो. यह कभी मत भूलना.’’

कार्तिक ने अपने एक वाक्य में अपना हृदय ही उड़ेल दिया था. नम्रता की आंखों में आंसू झिलमिलाने लगे थे. तृप्ति व खुशी के आंसू.

हवस : कौन कर रहा था बेवफाई

लोकनायक जयप्रकाश नारायण सैंट्रल जेल, हजारीबाग में बंद विवेक सोच रहा था कि अपनी जिम्मेदारी से भागना ठीक नहीं था. शादी करने के बाद ही उसे अपनी प्रेमिका रश्मि के साथ सैक्स संबंध बनाना चाहिए था. उसे समोसे में सल्फर की गोलियां मिला कर नहीं देनी चाहिए थी, जिस के खाने से उस की जान चली गई.

बड़ेबड़े शातिर अपराधी को जेल की आबोहवा नागवार गुजरती है. विवेक ने तो अपनी छोटी सी जिंदगी में पहली बार गुनाह किया था, लेकिन सोचसमझ कर.

उसे फांसी की सजा भी हो सकती है. पर अब वह सोच रहा था कि प्यार तो सिर्फ देने का नाम है. प्यार में लेने की सोचना तो प्यार को कारोबार बना देता है और उस ने यही तो किया.

दरअसल, दिल्ली में पढ़ने के दौरान विवेक अपने दोस्तों के साथ गंदी फिल्में देख कर जल्दी ही जवान हो गया था. हालांकि उस की उम्र अभी महज 18 साल थी.

विवेक को इतनी समझ तो थी कि अगर दिल्ली में गलत तरीके से सैक्सुअल जिंदगी शुरू की, तो वह एड्स जैसी खतरनाक बीमारी का शिकार हो जाएगा.

विवेक छुट्टियों में झारखंड के हजारीबाग जिले में रह रही अपनी प्रेमिका रश्मि से मिलने आता रहता था. अब वह जब भी रश्मि से मिलता, तब उस की आंखों के सामने ब्लू फिल्मों का नजारा घूम जाता, जो उसे बेकाबू कर देता था.

धीरेधीरे उस ने हिम्मत जुटाना शुरू किया और रश्मि को दिमागी तौर पर सैक्स करने के लिए समझ ने बुझने लगा, ‘आजकल तो लिव इन रिलेशनशिप का जमाना है. लड़का और लड़की बिना शादी किए आराम से एकसाथ रहते हैं. इतना ही नहीं, अगर इस संबंध से कोई बच्चा हो भी जाता है, तो उसे पिता की जायदाद में से हिस्सा भी मिल जाता है.’

भोलीभाली रश्मि ने कभी यह नहीं पूछा था कि इस संबंध में बच्चा हो जाने के बाद लड़की की हैसियत क्या होती है? क्या उसे भी पति की जायदाद में कोई हिस्सा मिलता है? अगर पति उसे छोड़ कर दूसरी लड़की के साथ लिव इन रिलेशनशिप बनाता है, तो…

रश्मि अकसर उसे समझाती, ‘देखो, हम लोगों को उस परंपरा को नहीं छोड़ना चाहिए, जो हमारे बड़ेबुजुर्ग मानते आ रहे हैं. हम लोगों और समाज के लिए शादी के बाद ही जिस्मानी संबंध बनाना बेहतर है, इसलिए जब तक शादी न हो जाए, तब तक सब्र रखना होगा.’

जोश में आ कर विवेक झट से तैयार हो गया और बोला, ‘ठीक है, हम जल्दी ही शादी कर लेंगे. अब तो खुश हो तुम?’

इतना कहते हुए उस ने रश्मि को धीरेधीरे अपनी बांहों में ले लिया.

रश्मि ने शादी के वादे पर भरोसा कर के कुछ नहीं कहा और दोनों ने जिस्मानी संबंध बना लिए.

रश्मि उस रात अपने कमरे में बैठी सोच रही थी कि आज जो हुआ, क्या वह सही था? फिर वह आगे सोचने लगी कि जिस्मानी संबंध बनाने से विवेक और ज्यादा संजीदगी से हमारे रिश्ते के बारे में सोचेगा और हम लोग जल्दी ही एक हो जाएंगे.

उधर विवेक यह सोच रहा था कि आसानी से संबंध बनाने के लिए एक लड़की तो मिल गई, जिस से कोई खतरा भी नहीं. न ही समाज के लोगों से और न ही एड्स जैसी बीमारी से.

विवेक अब खुश था और रश्मि को किसी से न कहने की सख्त हिदायत दे कर वह दिल्ली चला जाता और फिर जब लौट कर आता, तो रश्मि के साथ वही पुराना देहसुख का खेल खेलता.

इस बार जब विवेक आया, तो वह रश्मि को एक सुनसान जगह पर ले गया और अपनी जिस्मानी भूख मिटाने के बाद विवेक ने पूछा, ‘रश्मि, आज मजा नहीं आया खेल में. क्यों जिंदा लाश बनी रही तुम पूरे खेल के दौरान?’

रश्मि को डर लग रहा था कि कहीं वह बिनब्याहे पेट से न हो जाए. उस ने मन ही मन तय किया कि अब आगे वह ऐसा नहीं करेगी.

जब दूसरे दिन विवेक फिर रश्मि को देहसुख का खेल खेलने का न्योता देने आया, तो उस ने दोटूक कहा, ‘विवेक, जब तक हम लोग शादी नहीं कर लेते, तब तक हम यह खेल नहीं खेलेंगे.’

विवेक ने रश्मि को समझते हुए कहा, ‘ठीक है, हम लोग जल्द ही शादी कर लेंगे.’

दूसरे दिन उस ने रश्मि को फिर मिलने के लिए बुलाया, पर वह नहीं गई. विवेक का पागलपन हद तक बढ़ गया था. वह रश्मि को ढूंढ़ रहा था.

रश्मि उस शाम को विवेक को मिलने गई, तो वह उसे देखते ही फट पड़ा. उस ने सड़क पर ही उसे गोद में उठा लिया और भागने लगा, मानो किसी सुनसान जगह पर जल्दी से पहुंच जाना चाहता हो.

रश्मि को अंदाजा हो गया था कि अब क्या होने वाला है. वह समझ रही थी कि अगर खिलाफत नहीं करेगी, तो विवेक उसे अपनी हवस का शिकार बना लेगा. उस ने अपनेआप को उस की गोद से झटक दिया और दोनों एकदूसरे पर गिर पड़े.

विवेक ने मौका देख कर अपने होंठों को रश्मि के होंठों पर रख दिया. रश्मि उसे झटकते हुए अलग हो गई और बोली, ‘बस, अब और नहीं.’

हवस में अंधा विवेक यह सुन कर तिलमिला गया था. लड़की सामने है, पर वह कुछ नहीं कर सकता है.

उस ने तुरंत रश्मि को बहलाने के अंदाज में कहा, ‘ऐसा करो, तुम मेरे साथ दिल्ली चलो. वहां हम दोनों शादी कर लेंगे.’

यह सुन कर मासूम रश्मि खुश हो गई और दूसरे दिन अपने मातापिता को बिना बताए वह शहर से दूर रेलवे स्टेशन पर विवेक की बताई गई जगह पर पहुंच गई.

वहां विवेक उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. दिल्ली ले जाने के लिए नहीं, बल्कि उसे दूसरी दुनिया में पहुंचाने के लिए.

रेलवे स्टेशन पर विवेक ने रश्मि को जहर मिला समोसा खिला दिया. इस तरह सैक्स संबंध से रश्मि का मना करना विवेक के मन में हवस के उस सैलाब को जन्म दे गया, जो उसे बहा कर आज जेल की कालकोठरी में ले आया.

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