Hindi Story: मोची का बेटा

Hindi Story: ‘‘कहो राजप्रसाद, कैसे हो?’’

‘‘आओ दिनेश भैया, बैठो. इस बार तो बहुत दिनों के बाद आए हो. बताइए भैया, कैसे आना हुआ?’’ राजप्रसाद ने मुसकराते हुए पूछा.

मैं ने उस की सामान की पेटी पर बैठते हुए कहा, ‘‘राजप्रसाद, तुम्हारे पास कोई किस काम के लिए आ सकता है? देखना, जरा इस सैंडल पर पौलिश कर देना.’’

राजप्रसाद ने सैंडल ले ली और मु झे पहनने के लिए चप्पल दे दी.

‘‘बस भैया, ये जूते टांक दूं और फिर मैं आप की सैंडल पर पौलिश करता हूं.’’

‘‘हां, राजप्रसाद, मु झे कोई जल्दी नहीं है. आराम से कर देना,’’ मैं ने सहजता से कहा.

राजप्रसाद उस जूते को गांठने में लग गया और मैं अपने विचारों में खो गया.

राजप्रसाद को मैं कई सालों से जानता था. वह न जाने कितने सालों से सड़क के किनारे इसी नीम के पेड़ के नीचे बैठा अपना मोची का काम करता आ रहा है.

बिना दीवारों और बिना छत की पेड़ की छांव ही उस की खुली दुकान है. इस दुकान पर कोई भी बिना रोकेटोके आ सकता है.

पेड़ की छांव पृथ्वी की घूर्णन गति से घूमती हुई सुबह से शाम तक अपना पाला बदल देती है, इसलिए राजप्रसाद ने एक लोहे की छड़ को धरती के सीने में गाड़ रखा है और उस पर एक बड़ी छतरी को बांध कर अपनी दुकान का शामियाना तान रखा है. चेहरे पर हरदम मुसकान उस की खुशहाल जिंदगी की गवाह है.

मेहनत के पसीने से भीगी उस की बनियान उस की श्रमशक्ति की खास पहचान है. उस की ईमानदारी और मेहनत देख कर मन में अपनेआप ही इज्जत का भाव पैदा होता है.

थोड़ी देर के बाद दिनेश ने पूछा, ‘‘राजप्रसाद, यहां बैठते हुए तुम्हें कितने साल हो गए?’’

‘‘अरे भैया, बस ये ही तकरीबन 30-35 साल.’’

‘‘एक लंबा अरसा हो गया फिर तो राजप्रसाद. तुम ने तो यहां की दुनिया को खूब बदलते देखा होगा, क्यों?’’

‘‘हां भैया, इतने अरसे में तो यहां की पूरी दुनिया ही बदल गई. सामने एकमंजिला दुकानें थीं, अब देखो, यहां बहुमंजिला इमारत खड़ी है. किराएदार, मकान मालिक, दुकान मालिक सब बदल गए.

‘‘पहले यह दुकान अखबारों और पत्रिकाओं की दुकान हुआ करती थी. यहां नौकरी के फार्म खूब बिका करते थे. जब से चीजें औनलाइन हुई हैं, यह दुकान स्टेशनरी और स्कूल की किताबों की दुकान बन कर रह गई.’’

दुनियादारी की बातों से हट कर कुछ सोचते हुए मैं ने कहा, ‘‘अच्छा राजप्रसाद, अगर बुरा न मानो तो एक बात पूछ लूं तुम से…’’

‘‘अरे भैया, बुरा क्यों मानेंगे? आप एक नहीं, दो बातें पूछो,’’ राजप्रसाद ने बड़े विश्वास के साथ कहा.
तब मैं ने थोड़ा हिचकिचाते हुए पूछा, ‘‘क्या इस मोचीगीरी के काम से तुम्हारा घरखर्च निकल जाता है?’’

‘‘अरे भैया, आप खर्चे की बात कर रहे हो, इसी की आमदनी से मैं ने अपना मकान बना लिया है. 2 बेटियों को पढ़ालिखा कर उन की अच्छे परिवारों में शादी कर दी है.

‘‘मेरी एक बेटी तो सरकारी मास्टरनी है, सरकारी. दूसरी बेटी भी शादी के बाद पीएचडी कर रही है.’’

‘‘अरे वाह राजप्रसाद. तुम ने तो कमाल कर दिया. मैं तो सोचता था कि इस काम से तुम्हारे घर का खर्चा भी बड़ी मुश्किल से निकलता होगा.’’

‘‘नहीं भैया, ऐसा कुछ नहीं है. मोचीगीरी में इतना काम है कि संभाले नहीं संभलता. लोग तो यह सम झते हैं कि हमारे पास केवल जूतेचप्पल टांकने और उन पर पौलिश करने का काम भर है, लेकिन हमारे पास इस के अलावा भी किसानों, दुकानदारों और यहां तक कि फैक्टरियों तक से चमड़े का सामान सिलाई के लिए आता है.’’

‘‘ये सब चीजें तो राजप्रसाद हम जैसों के खयाल में ही नहीं आती हैं,’’ दिनेश बोला.

‘‘भैया, दुनिया की सोच बदलने में जमाने गुजर जाते हैं. आज भी हमें सदियों पुराने मोची की ही नजर से देखा जाता है. वही फटेपुराने कपड़ों वाला, टूटेफूटे मकान में रहने वाला,’’ राजप्रसाद की बात को सुन कर मैं भी सोच में पड़ गया.

मैं ने भी वही सदियों पुरानी सोच पाल रखी थी. मैं ने सच स्वीकारते हुए कहा, ‘‘राजप्रसाद, तुम ने तो आज मेरी भी सोच बदल दी. मेरी सोच भी दूसरों की ही तरह थी. अच्छा, तुम्हारे क्या कोई बेटा भी है?’’

‘‘हां भैया, एक बेटा भी है. उस ने कुछ दिन पहले ही एमबीए किया है और नोएडा में एक कंपनी में उस की नईनई नौकरी लगी है. अभी उस का 3 लाख रुपए से कुछ ज्यादा का सालाना पैकेज है. इतना तो मैं यहां बैठेबैठे कमा लेता हूं.’’

‘‘तो फिर राजप्रसाद, तुम ने अपने बेटे को इसी काम में क्यों नहीं लगाया?’’

‘‘अब देखो भैया, मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूं, हमारे यहां कामधंधे को ले कर लोगों की सोच बड़ी खराब है. मोचीगीरी के काम को सब छोटा काम सम झते हैं. खुद मैं भी इसी सोच का शिकार हूं.

‘‘वह कंपनी में नौकरी कर रहा है, तो उस की इज्जत है. लेकिन दुनिया वाले नहीं सम झते हैं कि वह दूसरों की नौकरी ही कर रहा है. मैं खुद के धंधे का मालिक हूं, लेकिन मेरा कोई सम्मान नहीं. भैया, मैं तो बस मोची हूं, मोची.’’

राजप्रसाद की बात सच्ची, पर दमदार थी. उस की पते की बात पर मैं ने कहा, ‘‘राजप्रसाद, तुम बिलकुल सही कहते हो. कोई कुछ भी कहे, अपना काम अपना होता है और दूसरों की नौकरी बजाने से लाख बेहतर होता है.’’

‘‘है न भैया, मैं ने तो अपने बेटे से भी यही कहा था कि इसी जमेजमाए काम को संभाल ले. अगर यहां बैठने में लाज आती है, तो दुकान खुलवाए देता हूं, वहीं 2 लड़के रख लेना.’’

‘‘तो फिर उस ने क्या जवाब दिया राजप्रसाद?’’

‘‘कहने लगा, पापा, आप भी कैसी बातें करते हो? मैं एमबीए कर के दूसरों की जूतियां टांकूंगा क्या? आज छोटी पोस्ट पर हूं, कल बड़ी पोस्ट मिलेगी. आज छोटा पैकेज है, कल बड़ा पैकेज मिलेगा. मु झे भी लगा, बेटा कह तो सही रहा है.’’

‘‘हां, राजप्रसाद. तुम्हारे बेटे ने एमबीए किया है, उस की भी अपनी सोच, अपना स्वाभिमान है.’’

अब तक राजप्रसाद ने मेरी सैंडल पौलिश कर दी थी. मैं ने उस से विदा ली.

फिर बहुत लंबे समय तक उधर जाना नहीं हुआ. इस के बाद जब एक दिन उधर जाना हुआ तो मु झे अचानक से राजप्रसाद की याद आई. उस से मिलने को न जाने क्यों मन आतुर था. बहाना वही पुराना, लेकिन इस बार सैंडल नहीं जूतों पर पौलिश कराना था.

लेकिन आज नीम अकेला था. कुछ उदास. उस के नीचे की दुनिया गायब थी. उस जगह को देख कर लगता था, यहां से कोई बहुत पहले अपना तंबू उखाड़ कर ले जा चुका है.

एकबारगी लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि राजप्रसाद इस दुनिया से ही चला गया हो. आज की दुनिया में इस शरीर और सड़क हादसों पर कोई भरोसा नहीं… कब क्या हो जाए.

अब तो दिल की धड़कनों के साथ जिज्ञासा भी बढ़ गई. सामने वाले दुकानदार से पता किया तो उस ने अपने चमकीले दांतों से मुसकान बिखेरते हुए बड़े सम्मान के साथ कहा, ‘‘अच्छा, आप राजप्रसादजी के बारे में पूछ रहे हो.’’

उस के मुंह से ‘राजप्रसाद’ की जगह ‘राजप्रसादजी’ सुन कर तो मैं भी कुछ अचकचाया.

मैं ने सोचा कि कोई गलतफहमी न हो, इसलिए कहा, ‘‘हां, वह राजप्रसाद मोची ही है.’’

‘‘हां जी, हां. मैं भी उन्हीं की बात कर रहा हूं. अब तो उन की जिंदगी बदल चुकी है. वह देखो, वह रहा उन का शोरूम, जिस पर लिखा है ‘राजप्रसाद बूट्स ऐंड शूज’. अब वे वहीं बैठते हैं मालिक बन कर.’’

मैं ने हैरानी से कांच का दरवाजा खोल कर जैसे ही शोरूम में प्रवेश किया, तो मेरी नजर सामने रखे चमचमाते जूतों और चप्पलों पर पड़ी. तभी काउंटर से किसी जानीपहचानी आवाज ने पुकारा, ‘‘अरे भैया, इधर आओ. कितने दिनों के बाद दिखाई दिए हो. आओ बैठो. अरे गुड्डू जाओ, जरा भैया के लिए चाय बोल कर आओ.’’

‘‘अरे नहीं, राजप्रसादजी,’’ मैं उन का रुतबा और शानोशौकत देख कर उन के नाम में ‘जी’ लगाने से खुद को रोक नहीं पाया.

‘‘अरे भैया, हम कोई ‘जी’ नहीं हैं. हम वही पुराने वाले राजप्रसाद हैं. हमें ‘राजप्रसाद’ ही बोलिए, आप के मुंह से सुन कर अच्छा भी लगता है और प्रेम की मिठास भी आती है. पुराने दिन याद आते हैं.’’

मैं ने सोफे पर बैठते हुए कहा, ‘‘लेकिन, यह तो बताओ कि यह सब हुआ कैसे?’’

‘‘भैया, यह सब तो बेटा देव ही बताएगा. उसी की जबान से सुनना. बड़ा मजा आएगा. बड़ी रोचक कहानी है. बस, कुछ ही देर में वह आने वाला है.’’

यह सुन कर मैं उस रोचक किस्से को सुनने के लिए उतावला हो उठा.

कुछ ही देर बाद उस शोरूम के सामने एक चमचमाती कार आ कर रुकी. उस में से बनाठना एक स्मार्ट नौजवान उतरा. वही हमारे मोची का बेटा था. ऐसा लगता था कुदरत ने जैसे उसे फुरसत के पलों में गढ़ा था, बेहद हैंडसम.

राजप्रसाद ने उस का और मेरा परिचय कराया. उस ने पैर छू कर मेरा आशीर्वाद लिया.

तब राजप्रसाद ने उस से कहा, ‘‘बेटा देव, ये मेरे बहुत पुराने परिचित हैं, लेखक भी हैं. ये तुम से कुछ जानना चाहते हैं. इन से कुछ भी मत छिपाना.’’

देव मुझे अपने केबिन में ले गया. तब उस ने मुझे अपना रोचक किस्सा सुनाना शुरू किया.

‘‘जी अंकल, एमबीए करने के बाद मेरी नौकरी एक बड़ी कंपनी में लग गई. जब मैं पहले दिन अपने औफिस गया, तो वहां बेला को देख कर चौंक गया.’’

‘‘यह बेला कौन है बेटा?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अंकल, बेला से मेरी जानपहचान बचपन से थी. वह मेरे ही महल्ले में रहती थी. बेला को पहले से ही पता था कि मेरी नौकरी वहां लगने वाली है.

‘‘जैसे ही मैं अपने औफिस में पहुंचा, बेला खटाक से वहां आई और बोली, ’’आ गया चिकने. क्या तु झे पता नहीं था कि मैं यही पर हूं? चल, अब देखती हूं तुझे.’’

‘‘अरे बाप रे, कोई लड़की ऐसे बोलती है क्या?’’ मैं ने हैरानी से कहा.

‘‘अंकल, उस की बात मत पूछो. वह बचपन से ही मुंह भरभर कर गालियां बका करती थी. जैसे उस का मुंह न हो, गालियों की खान हो. मांबहन की गालियां तो हरदम उस के होंठों पर ही रहती थीं.

‘‘खैर, उस समय तो बेला वहां से चली गई, लेकिन मेरे दिल में सिहरन पैदा कर गई, क्योंकि वह क्या कर सकती है, इस का अंदाजा लगाना भी मुश्किल था.’’

‘‘अरे देव, ऐसा क्यों कहते हो? क्या बेला इतनी बुरी थी?’’

‘‘अंकल, आप आगे का किस्सा सुनो, फिर आप ही फैसला करना कि वह कैसी थी.’’

‘‘अच्छा सुनाओ, अब तो तुम ने इस किस्सागोई में मेरी दिलचस्पी और बढ़ा दी. आखिर कैसी थी बेला, यह जानने को मैं उतावला हो उठा हूं.’’

‘‘अंकल, मु झे भी अपना बचपन याद आ गया, जब बेला और मैं बचपन में साथसाथ खेला करते थे. जैसेजैसे हमारा बचपन पीछे छूटा और हमें लड़कालड़की के फर्क का पता चला, तो धीरेधीरे हमारा साथसाथ खेलनाकूदना भी छूट गया.

‘‘वह कदकाठी में भी मेरे से बड़ी लगती थी. आप को तो मालूम ही होगा कि लड़कियां लड़कों से पहले बड़ी हो जाती हैं.’’

‘‘हां बेटा, आगे सुनाओ.’’

‘‘अंकल, बेला अलग ही मिजाज की थी. उसे लड़कों से दोस्ती करना खूब पसंद था. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उस ने कई बौयफैं्रड बना लिए थे. बातबात पर आंख मारना उस की आदत बन गई थी.

वह मु झे भी अपना बौयफ्रैंड बनाना चाहती थी, लेकिन मु झे तो पढ़नेलिखने से ही फुरसत नहीं थी.’’

इस कहानी में मुझे रस आ रहा था. मैं ने कहा, ‘‘देव, बड़ी अजीब और रसीली लड़की थी बेला.’’

‘‘हां अंकल, वह ऐसी ही थी रोमांटिक टाइप. बेला ने 12वीं क्लास तक आतेआते सारी हदें पार कर दी थीं.

वह अपने यारों के साथ खूब इधरउधर घूमा करती थी. उस के बारे में बहुतकुछ सुनने को मिलने लगा था.

‘‘ऐसा लगता था कि अब वह खुल कर खेलने लगी है. लेकिन एक दिन मेरे साथ कुछ अलग हुआ.’’

‘‘क्या हुआ था देव? क्या तुम ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया था?’’

‘‘नहीं अंकल, मै इन बातों में था ही नहीं. हुआ यह कि एक दिन बेला ने मु झे किसी लड़की से बातें करते देख लिया.’’

‘‘तो इस में कौन सी बड़ी बात थी. आजकल तो यह बड़ी सामान्य सी बात है.’’

‘‘अंकल, यह किसी और के लिए सामान्य बात हो सकती थी, लेकिन बेला के लिए नहीं. अगले दिन कालेज से लौटते वक्त बेला ने मु झे एक सुनसान सी जगह पर रोक लिया और छूटते ही गाली दे कर बोली, ‘क्यों बे, बहन के… चिकने. उस लौंडिया से बहुत हंसहंस कर बातें कर रहा था. मु झ से बातें करते हुए तेरी… में आग लग जाती है. तु झे मजा चाहिए तो यह ले…’ कह कर उस ने मु झे दोनों हाथों से पकड़ लिया और जबरदस्ती मेरे होंठ और गाल चूम लिया.

मैं अपनेआप को उस से छुड़ा कर जाने लगा, तो वह मुसकराई और कहा, ‘जा बेटा, आज तो सड़क पर था छोड़ दिया, लेकिन तू बचने वाला नहीं. और अगर आज के बाद किसी और लौंडियाफौंडिया से बात की, तो फिर देख लेना…’’

‘‘अरे देव, बेला की इतनी हिम्मत?’’

‘‘अंकल, मेरे मन में बेला ने दहशत पैदा कर दी थी. इस के बाद किसी लड़की से बात करने से पहले मैं हजार बार सोचता था और पहले चारों तरफ नजरें घुमा कर देख लेता था कि कहीं आसपास बेला तो नहीं है.’’

‘‘ओह, पर वह लड़की थी ही ऐसी. न शर्म, न लिहाज.’’

‘‘लेकिन अंकल, वह पढ़ाई में भी बहुत काबिल थी, तभी तो औफिस में भी वह मेरे से ऊंचे ओहदे पर थी. फिर भी मैं सबकुछ भूल कर अपने काम में लग गया.

‘‘बाद में बेला के बारे में बहुतकुछ सुनने को मिलने लगा था. लेकिन औफिस में दिखावे के लिए बड़ी सतीसावित्री बनी घूमती थी और अपने काम में कोई चूक नहीं होने देती थी.’’

‘‘फिर भी देव, वह चैन से तो न बैठी होगी…’’

‘‘अंकल, कुछ दिन तो वह ऐसे ही मु झ से मिलने की नाकाम कोशिश करती रही, लेकिन बेला जैसी लड़की ऐसी अनदेखी को बरदाश्त नहीं कर पाती है. एक दिन बेला सीधे मेरे औफिस में पहुंच गई और उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. मु झे उस के इरादे का जरा सा भी अहसास नहीं था.’’

‘‘आखिर क्या था उस का इरादा देव?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अंकल, मु झे बताते हुए भी शर्म आती है. पहले वह मेरे पास आ कर मु झ से सट कर खड़ी हुई. मैं ने बचने की कोशिश की, तो मेरे गालों पर चिकोटी काटते हुए गंदी गाली दे कर बोली, ‘बच कर कहां भागता है. ले ले न तू भी जवानी के मजे.’

‘‘अंकल, तभी मैं ने उसे डपटते हुए कहा, ‘बेला, तुम पागल हो गई हो क्या? दूर हटो.’

‘‘लेकिन, ऐसा लगता था, जैसे वह आज हवस की पुजारिन बन कर आई हो. उस ने अपनी शर्ट के ऊपर के
2 बटन खोले, अपनी ब्रा ऊपर की और बोली, ‘ले ले जवानी का मजा.’’’

‘‘ओह देव, यह तो हद हो गई. कोई लड़की ऐसा करती है भला. यह तो सीधेसीधे जबरदस्ती की कोशिश थी.’’

‘‘अंकल, मैं ने खुद को बचाते हुए उसे जोर से धक्का दिया. उस का सिर दीवार में जा कर लगा. वह चिल्लाई, ‘बाहर जा कर बताऊंगी सब को. तू मु झ से जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहा था. आज भी दुनिया ऐसे मामलों में औरतों की बातों पर यकीन करती है मर्दों की नहीं.’

‘‘वह तो अपने कपड़े ठीक कर के मेरे औफिस से बाहर चली गई, लेकिन उस की बात सुन कर मैं घबरा गया. तभी मेरी नजर सामने सीसीटीवी कैमरे पर पड़ी.

कुछ देर के लिए मु झे तसल्ली हुई कि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. फिर भी अपना शक दूर करने के लिए चपरासी को बुला कर पूछा कि सीसीटीवी कैमरा काम कर रहा है कि नहीं. उस ने बताया कि यह खराब है और इस को बदला जाना है. अब मेरा पक्ष रखने वाला कोई नहीं था.’’

‘‘फिर तो तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ होगा?’’

‘‘हां अंकल, मु झे बहुत जलील कर के औफिस से निकाला गया. मेरी एक न सुनी गई. तब मु झे समाज में ऐसे मामलों में आदमी और औरत के होने का फर्क सम झ में आया.’’

‘‘क्या कोई पुलिस कंप्लैंट हुई तुम्हारे खिलाफ?’’

‘‘बस अंकल, यही एक मेहरबानी हुई. कंपनी ने किसी बखेड़े में न पड़ते हुए मु झे नौकरी से बरखास्त कर दिया. जब मैं कंपनी के औफिस से बाहर निकल रहा था, तब बेला के कड़वे करेले से शब्द मेरे कानों में पड़े, ‘मोची का बेटा है, मोची का बेटा ही रहेगा. अब जिंदगीभर उस नीम के पेड़ के नीचे बैठ कर दूसरों की जूतियां गांठ…’

‘‘मैं बेला के इन कड़वे शब्दों को सुन कर तिलमिला उठा.’’

‘‘यह सुन कर कोई भी तिलमिला जाता देव. यह तुम्हारा सब्र और सम झदारी थी, जो तुम ने इस जहर के प्याले को पी लिया. कोई और होता तो बखेड़ा खड़ा कर देता… फिर?’’

‘‘इस घटना के बाद मेरा मन नौकरी से भी उचट गया. मैं ने पापा से बात की, तो उन्होंने मु झे घर बुला लिया और मोची की दुकान खोलने की बात कही. लेकिन मेरे मन में कुछ और ही चल रहा था.

‘‘मैं जूतों का एक शोरूम खोलने के मूड में था. कुछ पैसा पापा के पास था, कुछ बैंक से लोन लिया और कानपुर की एक जूता कंपनी 20 फीसदी रकम पहले देने पर शोरूम के लिए माल उठवाने के लिए तैयार हो गई. बाकी पापा का अनुभव और मेरी मेहनत थी. बस, यही मेरी कहानी थी अंकल.’’

‘‘लेकिन देव, मेरी नजर में तो कहानी अभी अधूरी है. आखिर बेला का क्या हुआ?’’

तब देव ने हंसते हुए कहा, ‘‘अंकल, आप ने भी कैसा सवाल पूछ लिया? वह जो चाहती थी, उसे वह मिला. मैं जो चाहता था, मुझे वह मिला.’’

‘‘मतलब…?’’ मैं ने हैरानी से पूछा. मु झे लगा कि कहानी में अभी भी कोई मोड़ है.

‘‘मतलब यह कि कंपनी को जल्दी ही बेला की असलियत पता चल गई. सुनने में आया कि उसे कंपनी से धक्के मार कर बाहर निकाला गया. उस की गंदी हरकतों की वजह से उस का अपने परिवार से पहले ही नाता टूट चुका था, किसी और ने भी उस का साथ नहीं दिया. उस का जोड़ा हुआ पैसा कब तक चलता?’’

‘‘फिर, क्या किया उस ने?’’

‘‘फिर उसे कहीं नौकरी न मिली. उस ने शहर तक बदले, लेकिन अपनी हरकतें न बदलीं. उस के बदनाम किस्से उस से पहले दूसरी जगह पहुंच जाते. वह जलील होती और उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता.

काश, उस ने कंपनी और शहर बदलने के बजाय अपनी हरकतें बदली होतीं.’’

‘‘अब कहां पर है वह देव?’’

‘‘अंकल सुना है कि वह अब मेरठ की बदनाम गली का हिस्सा बन चुकी है. वही दलदल, जिस में गिर कर कभी कोई औरत बाहर नहीं आती.’’

मेरी कहानी पूरी हो चुकी थी. मैं चाय पी कर और बापबेटे से विदा ले कर बाहर आया. मैं एक नजर कामयाबी की उस सीढ़ी पर डालने से खुद को रोक न सका, जिस पर एक मोची के बेटे का फलसफा लिखा था ‘राजप्रसाद बूट्स ऐंड शूज’.

Hindi Story: नाटक छोटा सा

Hindi Story: आसमानी रंग की प्लेन साड़ी में कितनी खूबसूरत लग रही थी वह. उस की खुली हुई काली जुल्फें बारबार चेहरे पर गिरी जा रही थीं, जिन्हें वह बड़े नाज से फिर से संवारने की नाकाम कोशिश करती थी. खिड़की से अंदर आती हुई धूप की चमक से उस का सांवला चेहरा सुनहरी आभा से चमक उठता था.

अपने ही काम में तल्लीन वह 40 साल की औरत आज औफिस में सब की नजरों का केंद्र बनी हुई थी. लंचटाइम में मैनेजर साहब ने आ कर स्टाफ के सभी लोगों से उस का परिचय कराया था.

‘‘इन से मिलिए, ये हैं काजल. आज से ये भी हमारे साथ ही काम करेंगी और आप सब इन का सपोर्ट कीजिए,’’ बौस ने इशारोंइशारों में यह भी बता दिया था कि काजल के पति की पिछले साल एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी और इसीलिए अब काजल को नौकरी करने की जरूरत पड़ रही है.

बौस के चले जाने के बाद सभी लोग काजल से ‘हायहैलो’ करने लगे थे. इन में सब से आगे समीर था, जो अपनी तीखी नजरों से काजल के जिस्म का अच्छी तरह मुआयना कर रहा था काजल का रंग भले ही सांवला था, पर उस के नैननक्श बहुत तीखे थे, जो उस की खूबसूरती को और भी बढ़ा देते थे. वह समीर को पहली ही नजर में जंच गई थी. वैसे भी समीर की दिलफेंक नजरों को तो हर लड़की और हर औरत जंच ही जाती है.

समीर का पूरा नाम समीर सिंह था. वह अपनी जाति को बड़ा बताता था और सामने वाले की जाति में कमियां निकालना उस का फेवरेट काम था. वह नौकरी में रिजर्वेशन के भी खिलाफ था.

उस के मुताबिक, ऊंची जाति का हक दलितों ने छीन लिया है, इसीलिए ज्यादातर अगड़े आज बेरोजगार हैं. अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल पर उस ने ‘कट्टर क्षत्रिय’ वाली तसवीर लगा रखी थी.

समीर की उम्र 28 साल थी और उस के घर में सिर्फ उस की मां और 20 साला बहन रुचि थी, जो अभी पढ़ाई कर रही थी.

रात को समीर बिस्तर पर लेटा, तो उस से उम्र में पूरे 12 साल बड़ी, पर बेहद आकर्षक काया वाली काजल की याद सता रही थी.

औफिस में अगले दिन से ही समीर ने काजल पर डोरे डालने शुरू कर दिए थे. कभी वह काजल के पास जा कर काम के बारे में कुछ बात करता, तो कभी उस की तारीफ करने लगता.

काजल भी समीर को एक अच्छा इनसान सम झ बैठी थी. तभी तो उस दिन जब काजल औफिस का काम निबटा कर थके कदमों से रोड के किनारे खड़ी हो कर कैब का इंतजार कर रही थी कि तभी समीर अपनी बाइक ले कर आ गया और ठीक काजल के सामने आ कर खड़ी कर दी.

‘‘आइए, मैं आप को छोड़ देता हूं,’’ समीर ने यह बात इतने नाटकीय अंदाज में कही थी कि काजल कुछ कह नहीं सकी और मुसकराते हुए उस की बाइक पर बैठ गई.

थोड़ी देर के बाद ‘सिल्वेस्टर कैफे’ के सामने समीर ने अपनी बाइक रोक दी और काजल की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘यह शहर का फेमस कैफे है, इसलिए एक कौफी पीना तो बनता ही है.’’

काजल ने भी कोई एतराज नहीं जताया और दोनों जा कर कौफी टेबल पर बैठ गए.

समीर ने अपनी कौफी में थोड़ी ऐक्स्ट्रा शुगर ली, जबकि काजल ने शुगर फ्री कौफी लेना ही पसंद किया.

कौफी के घूंट भरते समय समीर काजल को जीभर कर देख रहा था, पर जैसे ही काजल ने नजर उठाई तो समीर फिर से मासूम बनने का दिखावा सा करने लगा और इधरउधर की बातें करने लगा.

कौफी पीने के बाद समीर ने काजल को उस के अपार्टमैंट्स की बिल्डिंग के बाहर छोड़ दिया. काजल शालीमार अपार्टमैंट्स के फ्लैट नंबर 102 में अपने 22 साल के भाई गौतम के साथ रहती थी.

अगले दिन औफिस में लंच के समय समीर के एक दोस्त राघव ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘तू तो अपनेआप को ‘कट्टर क्षत्रिय’ कहता है, पर फिर इस दलित जाति वाली काजल पर क्यों डोरे डाल रहा है?’’

काजल दलित जाति की है, यह बात तो समीर अच्छी तरह जानता ही था. वह मुसकराया और उस ने राघव से फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘अरे, तु झे क्या पता कि ये दलित जाति की औरतें तो बिस्तर पर बहुत मजा देती हैं और अगर दलित औरत विधवा हो तो फिर तो कहने ही क्या?

‘‘और फिर इन के साथ मजे लेने से कोई दिक्कत नहीं है, क्योंकि दलित औरतें और तंबाकू वाली चिलम कभी जूठी नहीं होती.’’

समीर के चेहरे पर एक जहरीली मुसकराहट अब भी दौड़ रही थी. उस दिन पता नहीं क्यों, पर समीर औफिस में चुपचाप था. उस की चुप्पी काजल को अच्छी नहीं लगी, तो उस ने समीर की चुप्पी की वजह पूछी.

समीर ने उसे बताया कि उसे जुकाम है और सिर में भी दर्द हो रहा है. यह बात सुन कर काजल ने उसे दवा लेने की सलाह दी.

रोज की तरह ही औफिस से निकलते हुए समीर ने अपनी बाइक पर काजल को बिठाया और शालीमार अपार्टमैंट्स के सामने उतार दिया.

जैसे ही काजल आगे बढ़ी, तो समीर ने कहा, ‘‘कम से कम अपने फ्लैट पर बुला कर इस बीमार को एक कप चाय तो पिला दीजिए.’’

समीर की इस बात पर काजल थोड़ा सोच में पड़ गई थी, क्योंकि आज उस का भाई किसी सिलसिले में शहर सेबाहर गया हुआ था और ऐसे में वह किसी गैरमर्द को फ्लैट में बुलाना तो नहीं चाहती थी, पर समीर के चेहरे का भोलापन देख कर काजल ने मुसकराते हुए उसे अपने फ्लैट की तरफ चलने का इशारा किया.

काजल 2 कप चाय ले आई. अपनी चाय सिप करते ही समीर ने बुरा सा मुंह बनाया और काजल से चाय में और ज्यादा चीनी डाल कर लाने को कहा.

काजल किचन की ओर चीनी लेने गई, इतनी देर में समीर ने काजल के कप में नशे की गोली डाल दी.

काजल को कुछ पता नहीं चला. चाय पीने के बाद समीर बहाने से फोन करने लगा. काजल पर धीरेधीरे नशा हावी होने लगा था और कुछ देर बाद वह गहरी नींद के आगोश में चली गई.

समीर को इसी बात का इंतजार था. उस ने काजल को बिस्तर पर लिटाया और उस के जरूरी कपड़े हटा दिए और बेहोशी की सी हालत में काजल का रेप किया और एक वीडियो भी बना लिया.

जब काजल को होश आया, तो उस की दुनिया लुट चुकी थी. एक बार फिर दलित विधवा किसी ऊंची जाति वाले की हवस का शिकार हुई थी.

समीर जा चुका था. अपने साथ हुआ जुल्म काजल से सहन नहीं हो रहा था. वह बहुत रोई. अपनी जिंदगी को खत्म तक करने के बारे में सोचा, पर मर जाना किसी समस्या का हल तो नहीं और फिर उस का भाई भी तो उसे चरित्रहीन ही समझेगा.

काजल इसी उधेड़बुन में थी. जब कुछ सम झ नहीं आया, तो वह शावर के नीचे जा कर खड़ी हो गई. जब वह बाहर आई, तो खुद को तरोताजा महसूस करने लगी.

काजल की सम झ में इतना तो आ ही गया था कि हो न हो, बात इतने पर ही खत्म नहीं होगी और यही हुआ भी.

अगले दिन ही समीर का फोन आया. कांपते हाथों से काजल ने फोन रिसीव तो कर लिया, पर कुछ बोल न सकी.

उधर से समीर ने ही काजल को उस के पोर्न वीडियो के उस के मोबाइल में होने की बात बताई और दोबारा जिस्मानी संबंध बनाने की मांग की. ऐसा न करने पर वीडियो इंटरनैट पर और काजल के भाई और औफिस के लोगों के बीच वायरल कर देने की धमकी दे दी. अपनी इज्जत इस तरह से तारतार हो जाने की बात सोच कर काजल डर गई थी.

बेचारी काजल एक दलित जाति की ऐसी विधवा औरत थी, जिस को अपने भाई का कैरियर बनाना था. काजल के लिए नौकरी करना भी जरूरी था और फिर उसे तो समाज का भी डर था.

इसी तरह से न जाने कितनी बार समीर ने काजल को ब्लैकमेल कर के उस की इज्जत लूटी. पर उस दिन तो हद हो गई, जब समीर अपने साथ एक दोस्त को भी ले आया. वे दोनों काजल के साथ जिस्मानी संबंध बनाना चाहते थे, पर अब काजल का सब्र जवाब दे गया था.

इस तरह तो समीर उसे पूरी दुनिया में बदनाम कर देगा और न जाने कितने दिनों तक उसे यह सब सहना पड़ेगा, इसलिए आज वह नहीं झुकेगी. यह तय करते ही काजल ने अपना बैग उठाया और कमरे से बाहर निकल गई.

उसे जाता देख समीर बेफिक्र था, क्योंकि वह जानता था कि काजल के बेहूदा वीडियो उस के पास होने के चलते काजल को फिर से मजबूर करना मुश्किल नहीं होगा, पर यह सिर्फ उस का सोचना भर था. अगले कई दिनों तक काजल औफिस नहीं आई और काजल का फोन भी स्विच औफ आता रहा.

समीर बेचैन हो रहा था. हाथ आई एक मस्त दलित औरत, जिस के साथ वह जब चाहे मजे कर सकता था, पर अब तो उस का कोई अतापता नहीं था. अब वह क्या करता. उसे यही लगा था कि या तो काजल ने खुदकुशी कर ली है या वह शहर छोड़ कर बहुत दूर चली गई है.

यह सोच कर समीर मन मसोस कर रह जाता था, पर अब उसे और दुखी नहीं रहना पड़ेगा, क्योंकि काजल तो आज औफिस आ गई थी और यही नहीं, अब तो वह पहले से भी ज्यादा तरोताजा दिख रही थी और सब से मुसकरा कर बात भी कर रही थी.

समीर ने भी उस से बात करनी चाही तो भी काजल ने सामान्य ढंग से उस की बातों का जवाब दिया. समीर सम झ गया था कि यह चिडि़या तो अब पूरी तरह से उस के कब्जे में है ही, क्योंकि काजल एक सम झदार औरत है, जो समाज के सामने कभी बदनाम नहीं होना चाहेगी.

यही बात सोच कर शाम को औफिस से निकलते हुए समीर ने बेशर्मी दिखाते हुए काजल से कहा, ‘‘अरे मैडम, न जाने कहां चली गई थीं तुम. चलो, अब तो तुम आ ही गई हो, तो क्यों न आज रात रंगीन कर लें.’’

इस सवाल के बदले में काजल ने आंखें झुका लीं और समीर ने तुरंत ही अपनी बाइक काजल के सामने खड़ी कर दी. काजल बड़ी खामोशी से उस की पिछली सीट पर बैठ गई थी.

वे दोनों एक होटल के कमरे में थे. समीर महंगी वाली शराब की बोतल अपने साथ लाया था, जिसे खोल कर वह काजू की नमकीन के साथ पीने लगा और काजल को कपड़े उतारने का इशारा करने लगा.

काजल ने कहा कि वह कपड़े तो बाद में उतारेगी, पर पहले अपना मूड तो बना लिया जाए और इस के लिए काजल ने खुद ही एक पोर्न मूवी एलईडी की स्क्रीन पर चला दी.

समीर तो पहले से ही कहता था कि दलित औरतें बहुत गरम होती हैं, पर काजल को भी पोर्न देखने का शौक है, यह जान कर समीर को मजा ही आ गया था.

‘अब आज नए अंगरेजी ढंग से काजल के साथ रात गुजारूंगा…’ अभी समीर सोच ही रहा था कि स्क्रीन पर एक पोर्न मूवी के सीन आनेजाने लगे, जिन्हें देख कर समीर जोश से पागल हुआ जा रहा था. समीर ने काजल को फिर से पकड़ने की कोशिश की, पर तभी सामने की एलईडी स्क्रीन पर सीन बदल गया था.

समीर ने स्क्रीन पर देखा कि एक भारतीय लड़की बिस्तर पर बैठी हुई है और तभी एक लड़के ने बिस्तर पर आ कर उसे बांहों में जकड़ लिया और दोनों एकदूसरे को चूमने लगे और दोनों के हाथ एकदूसरे के जिस्म पर फिसलने लगे थे.

समीर अभी इस वीडियो में मजा ढूंढ़ ही रहा था कि उस की नजर लड़की के चेहरे पर गई, तो वह बुरी तरह चौंक गया. वह लड़की कोई और नहीं, बल्कि उस की सगी बहन रुचि ही तो थी.

समीर ने आंखें फाड़फाड़ कर देखा, पर उसे कुछ सम झ नहीं आया कि उस की बहन का यह वीडियो कैसे बना और यह लड़का कौन है.

समीर झुं झला गया था. उस ने काजल के चेहरे की ओर देखा, जो खड़ी मुसकरा रही थी और उस के हाथ में एक मोबाइल था.

समीर गुस्से में भर कर उसे मारने दौड़ा, तो काजल ने उसे हाथ के इशारे से रोकते हुए अपने मोबाइल की ओर इशारा किया और धमकी देते हुए कहा कि उस की एक क्लिक में उस की बहन का यह वीडियो अभी पूरे इंटरनैट पर वायरल हो जाएगा, इसलिए अब आगे से वह उसे ब्लैकमेल करना छोड़ दे और उस का वह वीडियो डिलीट कर दे.

समीर जहां का तहां रुक गया था. आखिरकार उस की बहन की इज्जत का मामला था और अपनी बहन को बदनामी से बचाने के लिए उस ने काजल की सारी बातें भी मान ली थीं.

काजल की आंखों में बदले की भावना थी. उस की आंखें मानो कह रही थीं कि एक दलित विधवा अब और शोषण नहीं सहेगी.

काजल वहां से तुरंत बाहर की ओर चल दी और कैब ले कर एक होटल में पहुंची, जहां पहले से ही उस का भाई और समीर की बहन रुचि काजल का इंतजार कर रहे थे.

काजल ने रुचि को गले लगा कर उस का धन्यवाद कहा, क्योंकि गौतम और रुचि के इस प्लान और खेले गए इस नाटक ने ही तो समीर के चंगुल से उसे बाहर निकालने में मदद की थी.

जब बारबार समीर के द्वारा ब्लैकमेल किए जाने के कारण काजल बिलकुल टूट गई थी, तो उस ने शर्म और हिचक छोड़ कर अपने भाई गौतम को ब्लैकमेलिंग वाली बात बता दी थी, तो गौतम ने आव देखा न ताव और समीर को मारने पहुंच गया.

पर जब समीर के साथ उस ने उस की सुंदर बहन को देखा, तो गौतम का प्लान बदल गया और अगले दिन से ही रुचि के कालेज जा कर उस के साथ प्यार का झूठा नाटक खेलने लगा, उस के इर्दगिर्द डोल कर प्यार की पेंगें बढ़ाने लगा.

सीधीसादी रुचि जल्दी ही गौतम की बातों में आ गई और रुचि ने भी अपने प्यार का इजहार गौतम से कर दिया.

गौतम रुचि के साथ सैक्स वीडियो बना कर उसे छोड़ देना चाहता था, ताकि अपनी बहन का बदला ले सके, पर गौतम को भी अब तक रुचि से सचमुच का प्यार हो गया था, इसलिए एक दिन गौतम ने रुचि को सारी बात बता दी.

रुचि नाराज नहीं हुई, बल्कि उस ने अपने भाई समीर को ही गलत ठहराते हुए एक प्लान बनाया, जो काजल को और ज्यादा ब्लैकमेल होने से बचा सके.

तभी रुचि और गौतम ने एकदूसरे के साथ किसी फिल्म हीरोहीरोइन के जैसी ऐक्टिंग की जो देखने में एकदम बेहूदा एमएमएस की तरह लगे और इस में रुचि के चेहरे को साफ दिखाया गया था, ताकि समीर जल्दी से उसे पहचान ले और यह ट्रिक काम कर गई. इस एक छोटे से नाटक ने समीर को उस की औकात दिखा दी थी.

अभी समीर इस सारे मामले से उबर भी नहीं पाया था कि उस के मोबाइल पर रुचि का वीडियो काल आया, जिस में वह समीर से कह रही थी कि समीर ने एक दलित विधवा के साथ जो कुकर्म किया है, वह जानने के बाद अब वह उस के साथ नहीं रह सकती, इसलिए वह घर से जा रही है और वैसे भी उस ने अपना जीवनसाथी चुन लिया है और वह कोई और नहीं, बल्कि काजल का भाई गौतम था.

वीडियो काल पर काजल के साथ गौतम को देख कर समीर ने अपना माथा पीट लिया था. एक विधवा को गलत ढंग से ब्लैकमेल करने का इतना बुरा अंजाम भुगतना पड़ेगा, यह तो उस ने कभी सोचा ही नहीं था.

समीर अब कुछ नहीं कर सकता था. उस ने भारी मन से काजल का वीडियो डिलीट कर दिया था और अब उस की सोशल मीडिया प्रोफाइल से ‘कट्टर क्षत्रिय’ नामक शब्द उसे लगातार मुंह चिढ़ा रहे थे.

Hindi Romantic Story: गरम सांसों की सरगम

Hindi Romantic Story, लेखिका – डा. आरती मंडलोई

शहर की हलचल से कोसों दूर पहाड़ों के बीच बसा हुआ यह रिसौर्ट किसी सपने की तरह लग रहा था. हरियाली से ढके ऊंचऊंचे पहाड़, हलकीहलकी बारिश और ठंडी हवा में घुली ताजगी… सबकुछ जैसे किसी पुराने रोमांटिक गीत की धुन में बंधा हुआ था.

अनिका बालकनी में खड़ी थी. उस के लंबे घने गीले बाल उस की पीठ पर लहरों की तरह बिखरे हुए थे. हलकी हवा उस के चेहरे को छू कर गुजर रही थी, लेकिन उस की बेचैनी कम नहीं हो रही थी.

यह वीकैंड उस ने बहुत सोचसम झ कर चुना था. कुछ दिनों के लिए खुद से मिलने के बहाने, लेकिन कहीं न कहीं वह जानती थी कि असल में यह वक्त आरव के साथ बिताने के लिए था.

आरव… उस की जिंदगी में किसी गहरी नदी की तरह उतरा था. उन का रिश्ता बहुत साधारण तरीके से शुरू हुआ था. एक कौरपोरेट औफिस में साथी मुलाजिम के रूप में. शुरुआत में काम के सिलसिले में बातचीत हुई, फिर हलकीफुलकी दोस्ती और धीरेधीरे यह दोस्ती एक अलग एहसास में ढल गई थी.

पहली बार जब वे दोनों बारिश में भीगे थे, तो अनिका ने महसूस किया था कि आरव की नजरें उसे बस यों ही नहीं देख रहीं. वह पहली बार उस के इतने करीब आया था कि उस की सांसों की गरमाहट तक महसूस हो रही थी. अब वह यहां थी आरव के साथ, इस पहाड़ी रिसौर्ट में.

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई.

अनिका ने दरवाजा खोला. सामने वही था, जिस की आहट तक उसे पहचानने लगी थी.

आरव भीगा हुआ था. सफेद टीशर्ट उस के बदन से चिपकी हुई थी. बालों से पानी टपक रहा था और आंखों में वही पुरानी बेचैनी थी, जो हर बार उसे बेचैन कर देती थी.

‘‘बहुत तेज बारिश हो रही है,’’ आरव ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘हां…’’ अनिका ने बड़ी ही धीमी आवाज में जवाब दिया.

आरव कमरे में भीतर आ गया था और अंदर से दरवाजा बंद कर दिया. कमरे में मोमबत्तियों की हलकी रोशनी फैली हुई थी. बाहर बारिश तेज हो गई थी और खिड़की के शीशों पर पानी की बूंदें धीमेधीमे फिसल रही थीं.

आरव ने जैकेट उतारी और उसे पास की कुरसी पर रख दिया. उस की नजरें अनिका पर टिकी थीं.

अनिका हलके नीले रंग की साटन की ड्रैस में थी, जो उस के बदन को छू कर फिसल रही थी.

‘‘क्या सोच रही हो?’’ आरव ने धीमे से पूछा.

‘‘कुछ नहीं,’’ अनिका ने मुसकरा कर कहा, लेकिन उस की आंखें कुछ और ही कह रही थीं.

आरव उस के करीब आया. उस की उंगलियां धीरे से अनिका की कलाई पर टिकीं. यह छुअन कोई नई नहीं थी, लेकिन फिर भी हर बार की तरह इस में कुछ नया था.

‘‘तुम्हें ठंड लग रही होगी,’’ अनिका ने कहा, लेकिन उस की आवाज में हलकी कंपकंपी थी.

आरव ने उस की उंगलियों को थाम लिया. उस की पकड़ थोड़ी हलकी थी, लेकिन फिर भी उस में एक अनदेखी ताकत थी.

‘‘मु झे ठंड नहीं लगती… लेकिन, तुम्हारे करीब आने की चाह जरूर लगती है,’’ उस के शब्द जैसे किसी गरम लहर की तरह अनिका के जिस्म को छू गए.

आरव ने धीरे से उस के चेहरे को अपनी हथेलियों में लिया. उस की उंगलियां उस के गालों को छू रही थीं. अनिका की पलकों में हलकी कंपन थी.

कमरे में हलकी धुंध थी. बारिश की खुशबू हवा में घुल गई थी. आरव ने धीरे से उस की हथेलियां फिर अपने हाथों में लीं. उन की उंगलियां आपस में उल झ गईं. जैसे बारिश की बूंदें पत्तों से लिपट जाती हैं. जैसे नदी किसी किनारे से मिल कर उस में समा जाना चाहती है.

आरव और करीब आया. उस की सांसों की गरमी अब अनिका की गरदन पर महसूस हो रही थी. अनिका ने अपनी आंखें बंद कर लीं.

आरव के होंठों की हलकी छुअन उस की कनपटी से होते हुए उस के गालों तक उतर आई. अनिका का दिल तेजी से धड़कने लगा था.

बाहर बरसात और भी तेज हो गई थी. आरव ने धीरेधीरे अपनी उंगलियां उस की पीठ पर फिराईं. उस के रेशमी बालों में अपनी उंगलियां उल झा दीं. फिर जैसे दो बेचैन लहरें आपस में समा गईं.

बरसात की बूंदें खिड़की से टकरा रही थीं. मोमबत्तियों की लौ भी कांप रही थी. अब दो धड़कनें एक लय में बंध रही थीं. उस रात बारिश बहुत देर तक यों ही बरसती रही.

Romantic Story: पिया का घर

Romantic Story: कृष्णा अपने घने काले बालों को बाहर बालकनी में खड़ी हो कर सुलझ रही थी. उस की चाय जैसी भूरी रंगत को उस के बाल केश और अधिक मादक बनाते थे. शादी के 10 साल बाद भी नमन उतना ही दीवाना था जितना पहले साल था. नमन का प्यार उस की सहेलियों के बीच ईर्ष्या का विषय था. पर कभीकभी सत्य के व्यवहार से कृष्णा के मन में संशय भी होता था कि क्या यह प्यार है या दिखावा?

कुल मिला कर जिंदगी की गाड़ी ठीकठाक चल रही थी. छोटा सा परिवार था कृष्णा का, पति नमन और बेटी विहा. परंतु कुछ माह से कृष्णा ने महसूस किया था कि नमन देर रात को घर आने लगा है. जब भी कृष्णा पूछती, वह यही बोलता कि तुम्हारे और विहा के लिए खट रहा हूं, नहीं तो मेरे लिए दो रोटियां भी काफी हैं.

मगर कृष्णा के मन को फिर भी ऐसा लगता था कि कहीं कुछ तो गलत है. अभी भी बाहर बाल सुखाते हुए कृष्णा के मन में यही सब चल रहा था कि बाहर दरवाजे पर घंटी बजी. दरवाजा खोला देखा तो सामने नमन खड़ा था.

इस से पहले कृष्णा कुछ बोलती, नमन बोला, ‘‘अरे उदयपुर जा रहा हूं, 5 दिनों के लिए. इसलिए सोचा कि आज पूरा दिन अपनी बेगम के साथ बिताया जाए,’’ और फिर नमन ने 2 पैकेट पकड़ाए.

कृष्णा ने खोल कर देखे, ‘‘एक में बहुत सुंदर जैकेट थी और दूसरे में एक ट्रैक सूट.’’

कृष्णा मुसकराते हुए बोली, ‘‘अच्छा हरजाना भर रहे हो, नए साल पर यहां न होने का.’’

नमन उदास होते हुए बोला, ‘‘बस कृष्णा 2 साल और, फिर बस मेरे सारे समय पर तुम्हारा ही हक होगा.’’

कृष्णा रसोई में चाय बनाते हुए सोच रही थी कि नमन आखिर परिवार के लिए सब कर रहा है और वह है कि शक करती रहती है.

शाम को पूरा परिवार विहा के पसंदीदा होटल में डिनर करने गया था, लौंग ड्राइव करी और बाद में कृष्णा का पसंदीदा पान और विहा की आइसक्रीम. रात में कृष्णा ने नमन के करीब जाना चाहा तो वह बोला, ‘‘कृष्णा थक गया हूं, प्लीज आज नहीं.’’

कृष्णा मन मसोस कर बोली, ‘‘यह तुम पिछले 7 महीनों से कह रहे हो.’’

नमन बोला, ‘‘यार वर्क प्रैशर इतना है, क्या करूं? वापस आ कर डाक्टर के पास चलते हैं… शायद काम की अधिकता के कारण मेरी पौरुष शक्ति कम हो गई है.’’

नमन गहरी नींद में डूब गया और कृष्णा सोच रही थी कि कहीं नमन की क्षुधा कहीं और तो पूरी नहीं हो रही है. पर उस का मन यह मानने को तैयार नहीं था.

सुबह नमन एअरपोर्ट के लिए निकल गया और कृष्णा विहा के साथ शौपिंग करने निकल गई. घर आ कर विहा अपनी चीजों में व्यस्त थी और कृष्णा ने अपना मोबाइल उठाया तो देखा, उस में नमन के मैसेज थे कि वह एअरपोर्ट पहुंच गया है और अब उदयपुर पहुंच कर कौल करेगा.

कृष्णा फोन रख ही रही थी कि उस ने देखा कि किसी सिद्धार्थ के मैसेज थे. उस ने उत्सुकतावश मैसेंजर खोला, तो मैसेज पढ़ कर उस के होश उड़ गए.

सिद्धार्थ के हिसाब से नमन उदयपुर नहीं, नोएडा के लैमन राइस होटल में पूजा नाम की महिला के साथ रंगरलियां मना रहा है.

कृष्णा को लगा कि शायद कोई उस के साथ मजाक कर रहा है, इसलिए उस ने लिखा, ‘‘कैसे विश्वास करूं कि तुम सच बोल रहे हो?’’

उधर से जवाब आया, ‘‘रूम नंबर 204, सैक्टर 62, होटल लैमन राइस, नोएडा,’’

पूरी रात कृष्णा अनमनी सा रही. नमन का फोन आया वह बता रहा था कि उस ने कृष्णा के लिए लाल रंग की बंधेज खरीदी हैं और विहा के लिए जयपुरी घाघरा…

फोन रख कर कृष्णा को लगा कि वह कितना गलत सोच रही थी, सत्य के बारे में दोपहर में कृष्णा मैसेंजर पर सिद्धार्थ को ब्लौक करने ही वाली थी कि उस ने देखा, 3 फोटो थे, जो सिद्धार्थ ने भेजे थे. 3 फोटोज में एक औरत, नमन के साथ खड़ी मुसकरा रही थी. अच्छा तो इस का नाम पूजा है. कजरारी आंखें, होंठों पर लाल लिपस्टिक और लाल बंदेज की साड़ी. क्या अपनी महबूबा की उतरन ही उसे नमन पहनाता है.

सुबह कृष्णा, विहा को साथ ले कर मेरठ से नोएडा के लिए निकल गई. वह अब दुविधा में नहीं रहना चाहती थी. नोएडा में वह अपने मम्मीपापा के घर पहुंची. पता चला मम्मीपापा तो गांव गए हुए हैं. कृष्णा के भैया बोले, ‘‘अरे अचानक और सत्य कहां है?’’

कृष्णा बोली, ‘‘भैया आप की बहुत याद आ रही थी, बस चली आई और कल मेरे कुछ पुराने दोस्तों का नोएडा में गैटटुगैदर है. सोचा आप लोगों से मिल भी लूंगी और दोस्तों से भी.’’

सुबह नाश्ता कर के कृष्णा धड़कते दिल के साथ होटल पहुंची. कृष्णा रिसैप्शन पर पहुंची ही थी कि सामने से आती नमन और पूजा दिखाई दे गए थे. नमन का चेहरा सफेद पड़ गया पर फिर भी बेशर्मी से बोला, ‘‘तुम यहां क्या कर रही हो?’’

कृष्णा आंसू पीते हुए बोली, ‘‘तुम्हें घर लेने आई हूं.’’

नमन बोला, ‘‘मैं कोई दूध पीता बच्चा नहीं हूं… घर का रास्ता पता है मु?ो.’’

कृष्णा पूजा की तरफ गुस्से से देखते हुए बोली, ‘‘तो ये हैं आप का जरूरी काम जो तुम उदयपुर करने गए थे.’’

नमन भी बिना झिझक के बोला, ‘‘हां यह पूजा… मेरे साथ मेरे बिजनैस में मदद करती है. कल ही हम उदयपुर से आए हैं और आज तो मैं मेरठ पहुंच कर तुम्हें सरप्राइज देने वाला था.’’

कृष्णा बिना कुछ कहे दनदनाते हुए अपने घर चली गई. जब भैया और भाभी ने पूरी बात सुनी तो भाभी बोली, ‘‘अरे ऐसी औरतों के लिए अपना घर छोड़ने की गलती मत करना. कल मैं तुम्हें गुरुजी के पास ले कर जाऊंगी, तुम चिंता मत करो.’’

अगले दिन जब कृष्णा, अपनी भाभी के साथ वहां पहुंची तो गुरुजी ने बिना कुछ कहे ही जैसे उस के मन का हाल जान लिया.

कृष्णा को भभूति देते हुए गुरुजी ने कहा, ‘‘अपने पति के खाने में मिला देना. कम से कम 1 माह तक ऐसा करोगी तो उस औरत का काला जादू उतर जाएगा. उस औरत ने तुम्हारे पति पर वशीकरण मंत्र कर रखा है… जब वह वापस आए तो कुछ मत कहना. गुरुवार को केले के पेड़ की पूजा करो और शुक्रवार को पूरी निष्ठा से उपवास करना.’’

जब कृष्णा अगले दिन मेरठ जाने के लिए निकली तो भाभी बोली, ‘‘कृष्णा, मम्मीपापा से इस बात का जिक्र मत करना. तुम यह उपाय करोगी तो समस्या का समाधान अवश्य होगा, थोड़ा धीरज से काम लेना.’’

कृष्णा वापस घर आ गई और ठीक दूसरे दिन नमन भी आ गया था. न नमन ने कोई सफाई दी न कृष्णा ने कोई सवाल किया. घर का माहौल थोड़ा घुटाघुटा सा था पर कृष्णा को विश्वास था कि वह पति को सही रास्ते पर ले आएगी.

रोज चाय या खाने में कृष्णा भभूति डाल कर देने लगी थी. नमन अब समय पर घर आने लगा था. कृष्णा को लगा शायद गुरुजी के उपाय काम कर रहे हैं.

उधर नमन एक पहुंचा हुआ खिलाड़ी था. वह शिकार तो अब भी कर रहा था पर  अब उस ने खेलने का तरीका बदल दिया था. अब वह घर से ही अपनी महिलामित्रों को फोन करने लगा था. जब कृष्णा कुछ कहती तो वह उसे अपनी बातों में उलझ लेता. कृष्णा को अपनी बुद्धि से अधिक भभूति और व्रत पर विश्वास था. वह सबकुछ जान कर भी आंखें मूंदे हुए थी. पर एक रोज तो हद हो गई जब बड़ी बेशर्मी से नमन, कृष्णा के सामने ही पूजा से वीडियो कौल कर रहा था.

कृष्णा अपनाआपा खो बैठी और गुस्से से उस के हाथ से फोन छीनते हुए बोली, ‘‘तुम ने सारी हदें पार कर दी हैं. मेरा नहीं तो कम से कम विहा के बारे में तो सोचो. क्या कमी है मु?ा में?’’

नमन खींसें निपोरते हुए बोला, ‘‘तुम्हारे अंदर अब न वह हुस्न है न वह मादकता रही है. एक ठंडी लाश के साथ मैं कैसे अपनी शारीरिक जरूरतें पूरी करूं? शुक्र करो मैं तुम्हारे सारे खर्च उठा रहा हूं और अपने नाम के साथ तुम्हारा नाम जोड़ रखा है… और क्या चाहिए तुम्हें?’’

कृष्णा गुस्से में बोली, ‘‘क्या तुम्हें लगता है मैं अनाथ हूं या सड़क पर पड़ी हुई लड़की हूं? मेरे पापा और भाई अभी जिंदा हैं. वह तो मैं तुम्हारी इज्जत के कारण अब तक चुप थी. अब अगर तुम चाहोगे तो भी वे तुम्हें मेरे करीब नहीं फटकने देंगे.’’

नमन बोला, ‘‘अगर तुम्हारे करीब फटकना होता तो मैं क्या बाहर जाता?’’

अब कृष्णा बरदाश्त नहीं कर पाई और रात में ही विहा को ले कर मम्मीपापा के घर  नोएडा आ गई. अब कृष्णा के पास और कोई उपाय नहीं था. उसे अपने मम्मीपापा को सब बताना पड़ा. मम्मी और पापा सब सुन कर सन्नाटे में आ गए.

पूरी बात सुन कर भैया आग बबूला हो गए, ‘‘कृष्णा तुम ने बिलकुल ठीक किया, अब तुम वापस नहीं जाओगी. विहा और तुम मेरी जिम्मेदारी हो.’’

मगर यह बात सुनते ही भाभी के चेहरे पर चिंता की लकीर खिंच गई. एकाएक बोल उठी, ‘‘अरे तुम कैसी पागलों जैसी बातें कर रहे हो? कोई ऐसे अपना घर छोड़ सकता है क्या? फिर आज की नहीं, कल की सोचो, विहा और कृष्णा की पूरी जिंदगी का सवाल है. कृष्णा तो नौकरी भी नहीं करती कि अपना और विहा का खर्च उठा सके.’’

भैया बोले, ‘‘अरे तो इस घर पर उस का भी बराबरी का हक है.’’

भाभी उस के आगे कुछ न बोल सकी पर वह भैया की इस बात से नाखुश है, यह बात कृष्णा को पता थी. दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में परिवर्तित हो गए पर नमन की तरफ से कोई पहल नहीं हुई. कृष्णा को सम?ा नहीं आ रहा था कि उस का फैसला सही है या गलत. विहा की बु?ा आंखें और मम्मीपापा की खामोशी सब कृष्णा को कचोटते थे.

भैया ने कह तो दिया था कि वह भी इस घर की संपत्ति में बराबर की हकदार है पर कृष्णा में इतना हौसला नहीं था कि वह इस हक के लिए खड़ी हो पाए.

एक दिन कृष्णा अपने पापा से बुटीक खोलने के बारे में बात कर रही थी. तभी मम्मी हाथ जोड़ते हुए बोलीं, ‘‘बेटी, क्यों हमारा बुढ़ापा खराब करने पर तुली हुई है? अगर तेरे पापा ने तु?ो पैसा दिया तो बहू को अच्छा नहीं लगेगा… हमारे बुढ़ापे का सहारा तो वही है. मैं ने आज नमन से बात करी थी, वह बोल रहा है तुम अपनी मरजी से घर छोड़ कर गई हो और अपनी मरजी से वापस आ सकती हो.’’

कृष्णा बहुत ठसक से घर छोड़ कर आई थी पर किस मुंह से वापस जाए वह सम?ा नहीं पा रही थी. मगर भैया का तनाव, भाभी का अबोला सबकुछ कृष्णा को सोचने पर मजबूर कर रहा था.

पहले हफ्ते जो विहा पूरे घर की आंखों का तारा थी वह अब सब के लिए बेचारी बन कर रह गई थी. एक दिन कृष्णा ने देखा कि भैया के बच्चे गोगी और टिम्सी, पिज्जा के लिए जिद कर रहे थे. विहा बोली, ‘‘टिम्सी मेरे लिए तो डबल चीज मंगवाना.’’

गोगी बोला, ‘‘ये नखरे अपने पापा के घर करना, अब जो मंगवाया है उसी में काम चलाओ.’’

कितनी बार कृष्णा ने गोगी और टिम्सी को छिपछिप कर बादाम, आइसक्रीम  और चौकलेट खाते देखा था. विहा एकदम बु?ा गई थी, उस ने जिद करना बिलकुल छोड़ दी थी. कृष्णा ने बहुत छोटीबड़ी जगह नौकरी के लिए आवेदन भी किया पर कहीं सफलता नहीं मिली. हर तरफ से थकहार के कृष्णा ने गुरुजी को फोन किया.

गुरुजी ने बोला, ‘‘इस अमावस्या पर अगर वह अपने पिया के घर जाएगी तो सब ठीक हो जाएगा.’’

कृष्णा ने जब यह फैसला अपने परिवार को सुनाया तो भाभी एकदम से चहकने लगी, ‘‘अरे कृष्णा तुम ने बिलकुल सही किया, बच्चे को मम्मी और पापा दोनों की जरूरत होती है. तुम क्यों किसी तितली के लिए अपना घर छोड़ती हो. तुम रानी हो उस घर की और उसी सम्मान के साथ रहना.’’

कृष्णा मन ही मन जानती थी कि वह रानी नहीं पर एक अनचाही मेहमान है इस घर की और एक अनचाहा सामाजिक रिश्ता है पिया के घर का.

अगले दिन कृष्णा जब अपने सामान समेत घर पहुंची तो नमन ने विहा को तो खूब दुलारा, परंतु कृष्णा को देख कर व्यंग्य से मुसकरा उठा.

अब नमन को पूरी आजादी थी. उसे अच्छी तरह समझ आ गया था कि अब कृष्णा के पास पिया के घर के अलावा कोई और रास्ता नहीं है. वह जब चाहे आता और जब चाहे जाता था… जो एक आंखों की शर्म थी वह अब नहीं रही थी. खुलेआम वह कमरे में ही बैठ कर अपनी गर्ल फ्रैंड्स से बातें करता था जो कभीकभी अश्लीलता की सीमा भी लांघ जाती थीं.

कृष्णा से जब नमन का व्यवहार सहन नहीं होता था तो वह बाहर आ कर बालकनी में खड़ी हो जाती थी. उस दिन भी खड़ी हुई तो कहीं दूर यह गाना चल रहा था:

‘‘पिया का घर, रानी हूं मैं…’’

गाने के बोल के साथसाथ कृष्णा की आंखों से आंसू भी टपटप बह रहे थे.

Romantic Story: पर्सनल स्पेस – क्यों नेहा के पास जाने को बेताब हो उठा मोहित?

Romantic Story: आज औफिस में मैं बिलकुल भी ढंग से काम नहीं कर सका था. इस कारण बौस से तो कई बार डांट खानी पड़ी ही, सहयोगियों के साथ भी झड़प हो गई थी.

आखिर में तंग आ कर मैं ने औफिस से1 घंटा पहले जाने की अनुमति बौस से मांगी, तो उन्होंने तीखे शब्दों में मुझ से कहा, ‘‘मोहित, आज सारा दिन तुम ने कोई भी काम ढंग से नहीं किया है. मुझे छोटीछोटी बातों पर

किसी को डांटना अच्छा नहीं लगता. मुझे उम्मीद है कि कल तुम्हारा चेहरा मुझे यों लटका हुआ नहीं दिखेगा.’’

‘‘बिलकुल नहीं दिखेगा, सर,’’ ऐसा वादा कर मैं उन के कक्ष से बाहर आ गया.

औफिस से निकल कर मैं मोटरसाइकिल से बाजार जाने को निकल पड़ा. मुझे अपनी पत्नी नेहा के लिए कोई अच्छा सा गिफ्ट लेना था.

हमारी शादी को अभी 4 महीने ही हुए हैं. वह मेरे सुख व खुशियों का बहुत ध्यान रखती है. मेरी पसंद पूछे बिना मजाल है वह कोई काम कर ले.

पिछले गुरुवार को उस का यही प्यार भरा व्यवहार मुझे ऐसा खला कि मैं ने उसे शादी के बाद पहली बार बहुत जोर से डांट दिया था.

उस दिन हमें रवि की शादी की पहली सालगिरह की पार्टी में जाना था. जगहजगह टै्रफिक जाम मिलने के कारण मुझे औफिस से घर पहुंचने में पहले ही देर हो गई थी. ऊपर से ये देख कर मेरा गुस्सा बढ़ने लगा कि नेहा समय से तैयार होना शुरू करने की बजाय मेरे घर पहुंचने का इंतजार कर रही थी.

‘‘इन में से मैं कौन सी साड़ी पहनूं, यह तो बता दो?’’ आदत के अनुरूप उस ने इस मामले में भी मेरी पसंद जाननी चाही थी.

‘‘नीली साड़ी पहन लो,’’ अपना व उस का मूड खराब करने से बचने के लिए मैं ने अपनी आवाज में गुस्से के भाव पैदा नहीं होने दिए थे.

‘‘मुझे लग रहा है कि मैं ने इसे तब भी पहना था, जब हम रवि के घर पहली बार डिनर करने गए थे.’’

‘‘तो कोई दूसरी साड़ी पहन लो.’’

‘‘आप प्लीज बताओ न कि कौन सी पहनूं?’’

इस बार मेरे सब्र का बांध टूट गया और मैं उस पर जोर से चिल्ला उठा, ‘‘यार, तुम जल्दी तैयार होने के बजाय फालतू की बातें करने में समय बरबाद क्यों कर रही हो? हर काम करने से पहले मेरी जान खाने की बजाय तुम अपनेआप फैसला क्यों नहीं करतीं कि क्या किया जाए, क्या न किया जाए? मुझे ऐसा बचकाना व्यवहार बिलकुल अच्छा नहीं लगता है.’’

पार्टी में पहुंच कर उस का मूड पूरी तरह से ठीक हो गया, पर मेरा मूड उस के चिपकू व्यवहार के कारण खराब बना रहा.

रवि मेरा कालेज का दोस्त है. उस पार्टी में शामिल होने कालेज के और भी बहुत से दोस्त आए थे. मैं कुछ समय अपने इन पुराने दोस्तों के साथ बिताना चाहता था, पर नेहा मेरा हाथ छोड़ने को तैयार ही नहीं थी.

कुछ देर के लिए जब वह फ्रैश होने गई, तब मैं अपने दोस्तों के पास पहुंच गया था. मेरे दोस्त मौका नहीं चूके और नेहा का चिपकू व्यवहार मेरी खिंचाई का कारण बन गया था.

मुंहफट सुमित ने मेरा मजाक उड़ाते हुए कह भी दिया, ‘‘अबे मोहित, ऐसा लगता है कि तू ने तो किसी थानेदारनी के साथ शादी कर ली है. नेहा भाभी तो तुझे बिलकुल पर्सनल स्पेस नहीं देती हैं.’’

‘‘शायद मोहित शादी के बाद भी हर सुंदर लड़की के साथ इश्क लड़ाने को उतावला रहता होगा, तभी भाभी इस की इतनी जबरदस्त चौकीदारी करती हैं,’’ कुंआरे नीरज के इस मजाक पर सभी दोस्तों ने एकसाथ ठहाका लगाया था.

अपने मन की खीज को काबू में रखते हुए मैं ने जवाब दिया, ‘‘वह थानेदारनी नहीं बल्कि बहुत डिवोटिड वाइफ है. तुम सब अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि वह कितनी केयरिंग और घर संभालने में कितनी कुशल है.’’

‘‘अपना यार तो बेडि़यों को ही आभूषण समझने लगा है,’’ नीरज के इस मजाक पर जब दोस्तों ने एक और जोरदार ठहाका लगाया, तो मैं मन ही मन नेहा से चिढ़ उठा था.

पार्टी में हमारे साथ पढ़ी सीमा भी मौजूद थी. वह कुछ दिनों के लिए मुंबई से यहां मायके में अकेली रहने आई थी. पति के साथ न होने के कारण वह खूब खुल कर कालेज के पुराने दोस्तों से हंसबोल रही थी. मेरे मन में उस के ऊपर डोरे डालने जैसा कोई खोट नहीं था, पर कुछ देर उस के साथ हलकेफुलके अंदाज में फ्लर्ट करने का मजा मैं जरूर लेना चाहता था.

नेहा के हर समय चिपके रहने के कारण मैं उस के साथ कुछ देर भी मस्ती भरी गपशप नहीं कर सका. अपने सारे दोस्तों को उस के साथ खूब ठहाके लगाते देख मेरा मन खिन्न हो उठा.

मुझे थोड़ा सा भी समय अपने ढंग से जीने के लिए नहीं मिल रहा है, मेरे मन में इस शिकायत की जड़ें पलपल मजबूत होती चली गई थीं.

मैं खराब मूड के साथ पार्टी से घर लौटा था. मेरे माथे पर खिंची तनाव की रेखाएं देख कर नेहा ने मुझ से पूछा, ‘‘क्या सिर में दर्द हो रहा है?’’

‘‘हां, मुझे भयंकर सिरदर्द हो रहा है, पर तुम सिर दबाने की बात मुंह से निकालना भी मत,’’ मैं ने रूखे लहजे में जवाब दिया.

‘‘मैं सिर दबा दूंगी तो आप की तबीयत जल्दी ठीक हो जाएगी,’’ मेरी रुखाई देख कर उस का चेहरा फौरन उतर सा गया था.

‘‘मुझे सिरदर्द जल्दी ठीक नहीं करना है. अब तुम मेरा सिर खाना बंद करो, क्योंकि मैं कुछ देर शांति से अकेले बैठना चाहता हूं. मुझे खुशी व सुकून से जीने के लिए पर्सनल स्पेस चाहिए, यह बात तुम जितनी जल्दी समझ लोगी उतना अच्छा रहेगा,’’ मैं उस के ऊपर जोर से गुर्राया, तो वह आंसू बहाती हुई मेरे सामने से हट गई थी.

अगले दिन मैं ने उस के साथ ढंग से बात नहीं की. वह रात को मुझ से लिपट कर सोने लगी, तो मैं ने उसे दूर धकेला और करवट बदल ली. मुझे उस का अपने साथ चिपक कर रहना फिलहाल बिलकुल बरदाश्त नहीं हो रहा था.

अगले दिन शनिवार की सुबह मैं जब औफिस जाने को घर से निकलने लगा, तब उस ने मुझ से दुखी व उदास लहजे में कहा था, ‘‘आपस का प्यार बढ़ाने के लिए पर्सनल स्पेस की नहीं, बल्कि प्यार भरे साथ की जरूरत होती है. मैं आप से दूर नहीं रह सकती, क्योंकि आप के साथ मैं कितना भी हंसबोल लूं, पर मेरा मन नहीं भरता है. आज अपने भाई के साथ मैं कुछ दिनों के लिए मायके रहने जा रही हूं. मेरी अनुपस्थिति में आप जी भर कर पर्सनल स्पेस का मजा ले लेना.’’

मैं ने उसे रुकने के लिए एक बार भी नहीं कहा, क्योंकि मैं सचमुच कुछ दिनों के लिए अपने ढंग से अकेले जीना चाहता था.

नेहा से मिली आजादी का फायदा उठाने के लिए मैं ने उस दिन औफिस खत्म होने के बाद अपने दोस्त नीरज को फोन किया. उस ने फौरन मुझे अपने घर आने की दावत दे दी, क्योंकि वह मुफ्त की शराब पीने को हमेशा ही तैयार रहता था.

हम दोनों ने उस के ड्राइंगरूम में बैठ कर शराब पी. हमारी महफिल सजने के कारण उस की पत्नी कविता का मूड खराब नजर आ रहा था, पर हम दोनों ने अपनी मस्ती के चलते इस बात की फिक्र नहीं की.

शराब खत्म हो जाने के बाद मुझे मालूम पड़ा कि मेरा दोस्त बदल चुका था. नीरज ने कविता के डर के कारण मुझे डिनर कराए बिना ही घर से विदा कर दिया.

मैं ने बाहर से बर्गर खाया और घर लौट कर नीरज को मन ही मन ढेर सारी गालियां देता पलंग पर ढेर हो गया.

पार्टी के दिन सीमा से खुल कर हंसीमजाक न कर पाने की बात अभी भी मेरे मन में अटकी हुई थी. इतवार की सुबह मैं ने रवि से उस का फोन नंबर ले कर उस के साथ लंच करने का कार्यक्रम बना लिया.

हम 12 बजे एक चाइनीज रेस्तरां में मिले. पहले मैं ने उसे बढि़या लंच कराया और फिर हम बाजार में घूमने लगे. उस की खनकती हंसी और बातें करने का दिलकश अंदाज लगातार मेरे मन को गुदगुदाए जा रहा था.

कुछ देर बाद मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या हम मैटनी शो देखने चलें?’’

‘‘नहीं,’’ उस ने अपनी आंखों में शरारत भर कर जवाब दिया.

‘‘क्यों मना कर रही हो?’’ मैं ने हंसते हुए पूछा.

‘‘हाल के अंधेरे में तुम अपने हाथों को काबू में नहीं रख पाओगे.’’

‘‘मैं वादा करता हूं कि बिलकुल शरीफ बच्चा बन कर फिल्म देखूंगा.’’

‘‘सौरी मोहित, शादी के बाद तुम्हें नेहा के प्रति वफादार रहना चाहिए.’’

उस का यह वाक्य मेरे मन को बुरी तरह चुभ गया. मैं ने उस से चिढ़ कर पूछा, ‘‘क्या तुम अपने पति के प्रति वफादार हो?’’

‘‘मैं उन के प्रति पूरी तरह से वफादार हूं,’’ उस का इतरा कर यह जवाब देना मेरी चिढ़ को और ज्यादा बढ़ा गया.

‘‘फिर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि अगर मैं जरा सी भी कोशिश करूं, तो तुम मेरे साथ सोने को राजी हो जाओगी.’’

‘‘शटअप.’’ उस ने मुझे चिढ़ कर डांटा, तो मैं उस का मजाक उड़ाने वाले अंदाज में हंस पड़ा था.

मेरे खराब व्यवहार के लिए उस ने मुझे माफ नहीं किया और कुछ मिनट बाद जरूरी काम होने का बहाना बना कर चली गई. मुझे उस के चले जाने का अफसोस तो नहीं हुआ, पर मन अजीब सी उदासी का शिकार जरूर हो गया.

मैं ने अकेले ही फिल्म देखी और बाद में देर रात तक बाजार में अकारण घूमता रहा. उस रात भी मैं ढंग से सो नहीं सका, क्योंकि नेहा की याद बहुत सता रही थी. बारबार उस से फोन पर बातें करने की इच्छा हो रही थी, पर उस के साथ गलत व्यवहार करने के अपराधबोध ने ऐसा नहीं करने दिया.

सोमवार को औफिस में दिन गुजारना मेरे लिए मुश्किल हो गया था. काम में मन न लगने के कारण बौस से कई बार डांट खाई. जब वहां रुकना बेहद कठिन हो गया, तो बौस से इजाजत ले कर मैं घंटा भर पहले औफिस से बाहर आ गया था.

औफिस से निकलने के घंटे भर बाद मैं ने नेहा को फोन कर के उलाहना दिया, ‘‘तुम इतनी ज्यादा निर्मोही कैसे हो गई हो? आज दिन भर फोन कर के मेरा हालचाल क्यों नहीं पूछा?’’

‘‘मैं ने तो आप की नाराजगी व डांट के डर से फोन नहीं किया,’’ उस की आवाज का कंपन बता रहा था कि मेरी आवाज सुन कर वह भावुक हो उठी थी.

‘‘तुम्हारा फोन आने से मैं नाराज क्यों होऊंगा?’’

‘‘मैं फोन करती तो आप जरूर डांट कर कहते कि मैं मायके में रह कर भी आप को चैन से जीने नहीं दे रही हूं.’’

‘‘मैं पागल हूं, जो तुम्हें अकारण डांटूंगा. मुझे लगता है कि मायके पहुंच कर तुम्हें मेरा ध्यान ही नहीं आया.’’

‘‘जिस के अंदर मेरी जान बसती है, उस का ध्यान मुझे कैसे नहीं आएगा?’’

‘‘तो वापस कब आओगी?’’

‘‘आप आज लेने आ जाओगे, तो आज ही साथ चल चलूंगी.’’

‘‘मैं तो आ गया हूं.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि दरवाजा क्यों नहीं खोल रही है, पगली?’’

‘‘क्या बारबार घंटी आप बजा रहे हो?’’

‘‘दरवाजा खोल कर देख लो न मेरी जान.’’

‘‘मैं अभी आई.’’

उस की उतावलेपन व खुशी से भरी आवाज सुन कर मैं जोर से हंस पड़ा था.

दरवाजा खोल कर जब नेहा ने मुझे फूलों का बहुत सुंदर सा गुलदस्ता हाथ में लिए खड़ा देखा, तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. अपना उपहार स्वीकार करने के बाद वह मेरी छाती से लिपट कर खुशी के आंसू बहाने लगी.

मुझे इस समय उस की वह बात ध्यान आ रही थी, जो उस ने मायके आने से पहले कही थी, ‘आपस का प्यार बढ़ाने के लिए पर्सनल स्पेस की नहीं, बल्कि प्यार भरे साथ की जरूरत होती है. मैं आप से दूर नहीं रह सकती, क्योंकि आप के साथ मैं कितना भी हंसबोल लूं, पर मेरा मन नहीं भरता है.’

मैं ने उस का माथा चूम कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘मेरी समझ में यह आ गया

है कि तुम्हारे अलावा मेरी जिंदगी में खुशियां भरने की किसी के पास फुरसत नहीं है. मुझे अपनी जिंदगी में पर्सनल स्पेस नहीं, बल्कि तुम्हारा प्यार भरा साथ चाहिए. भविष्य में मेरी बातों का बुरा मान कर फिर कभी मुझे अकेला मत छोड़ना.’’

‘‘कभी नहीं छोड़ूंगी.’’ अपनी मम्मी की उपस्थिति की परवाह न करते हुए उस ने मेरे होंठों पर छोटा सा चुंबन अंकित किया और फिर शरमा भी गई.

उस ने कुछ देर बाद ही मेरे साथ सट कर बैठते हुए ढेर सारे सवाल पूछने शुरू कर दिए. मुझे उस के सवालों का जवाब देने में अब कोई परेशानी महसूस नहीं हो रही थी. उस से दूर रहने के मेरे अनुभव इतने घटिया रहे थे कि मेरे सिर से पर्सनल स्पेस में जीने का भूत पूरी तरह से उतर गया था.

Romantic Story: प्यार के मायने – निधि को किस ने सिखाया प्यार का सही मतलब?

Romantic Story: उससे मेरा कोई खास परिचय नहीं था. शादी से पहले जिस औफिस में काम करती थी, वहीं था वह. आज फ्रैंच क्लास अटैंड करते वक्त उस से मुलाकात हुई. पति के कहने पर अपने फ्री टाइम का सदुपयोग करने के विचार से मैं ने यह क्लास जौइन की थी.

‘‘हाय,’’ वह चमकती आंखों के साथ अचानक मेरे सामने आ खड़ा हुआ.

मैं मुसकरा उठी, ‘‘ओह तुम… सो नाइस टु मीट यू,’’ नाम याद नहीं आ रहा था मुझे उस का. उस ने स्वयं अपना नाम याद दिलाया, ‘‘अंकित, पहचाना आप ने?’’

‘‘हांहां, बिलकुल, याद है मुझे.’’

मैं ने यह बात जाहिर नहीं होने दी कि मुझे उस का नाम भी याद नहीं.

‘‘और सब कैसा है?’’ उस ने पूछा.

‘‘फाइन. यहीं पास में घर है मेरा. पति आर्मी में हैं. 2 बेटियां हैं, बड़ी 7वीं कक्षा में और छोटी तीसरी कक्षा में पढ़ती है.’’

‘‘वाह ग्रेट,’’ वह अब मेरे साथ चलने लगा था, ‘‘मैं 2 सप्ताह पहले ही दिल्ली आया हूं. वैसे मुंबई में रहता हूं. मेरी कंपनी ने 6 माह के प्रोजैक्ट वर्क के लिए मुझे यहां भेजा है. सोचा, फ्री टाइम में यह क्लास भी जौइन कर लूं.’’

‘‘गुड. अच्छा अंकित, अब मैं चलती हूं. यहीं से औटो लेना होगा मुझे.’’

‘‘ओके बाय,’’ कह वह चला गया.

मैं घर आ गई. अगले 2 दिनों की छुट्टी ली थी मैं ने. मैं घर के कामों में पूरी तरह व्यस्त रही. बड़ी बेटी का जन्मदिन था और छोटी का नए स्कूल में दाखिला कराना था.

2 दिन बाद क्लास पहुंची तो अंकित फिर सामने आ गया, ‘‘आप 2 दिन आईं नहीं. मुझे लगा कहीं क्लास तो नहीं छोड़ दी.’

‘‘नहीं, घर में कुछ काम था.’

वह चुपचाप मेरे पीछे वाली सीट पर बैठ गया. क्लास के बाद निकलने लगी तो फिर मेरे सामने आ गया, ‘‘कौफी?’’

‘‘नो, घर जल्दी जाना है. बेटी आ गई होगी, और फिर पति आज डिनर भी बाहर कराने वाले हैं,’’ मैं ने उसे टालनाचाहा.

‘‘ओके, चलिए औटो तक छोड़ देता हूं,’’ वह बोला.

मुझे अजीब लगा, फिर भी साथ चल दी. कुछ देर तक दोनों खामोश रहे. मैं सोच रही थी, यह तो दोस्ती की फिराक में है, जब कि मैं सब कुछ बता चुकी हूं. पति हैं, बच्चे हैं मेरे. आखिर चाहता क्या है?

तभी उस की आवाज सुनाई दी, ‘‘आप को किरण याद है?’’

‘‘हां, याद है. वही न, जो आकाश सर की पीए थी?’’

‘‘हां, पता है, वह कनाडा शिफ्ट हो गई है. अपनी कंपनी खोली है वहां. सुना है किसी करोड़पति से शादी की है.’’

‘‘गुड, काफी ब्रिलिऐंट थी वह.’’

‘‘हां, मगर उस ने एक काम बहुत गलत किया. अपने प्यार को अकेला छोड़ कर चली गई.’’

‘‘प्यार? कौन आकाश?’’

‘‘हां. बहुत चाहते थे उसे. मैं जानता हूं वे किरण के लिए जान भी दे सकते थे. मगर आज के जमाने में प्यार और जज्बात की कद्र ही कहां होती है.’’

‘‘हूं… अच्छा, मैं चलती हूं,’’ कह मैं ने औटो वाले को रोका और उस में बैठ गई.

वह भी अपने रास्ते चला गया. मैं सोचने लगी, आजकल बड़ी बातें करने लगा है, जबकि पहले कितना खामोश रहता था. मैं और मेरी दोस्त रिचा अकसर मजाक उड़ाते थे इस का. पर आज तो बड़े जज्बातों की बातें कर रहा है. मैं मन ही मन मुसकरा उठी. फिर पूरे रास्ते उस पुराने औफिस की बातें ही सोचती रही. मुझे समीर याद आया. बड़ा हैंडसम था. औफिस की सारी लड़कियां उस पर फिदा थीं. मैं भी उसे पसंद करती थी. मगर मेरा डिवोशन तो अजीत की तरफ ही था. यह बात अलग है किअजीत से शादी के बाद एहसास हुआ कि 4 सालों तक हम ने मिल कर जो सपने देखे थे उन के रंग अलगअलग थे. हम एकदूसरे के साथ तो थे, पर एकदूसरे के लिए बने हैं, ऐसा कम ही महसूस होता था. शादी के बाद अजीत की बहुत सी आदतें मुझे तकलीफ देतीं. पर इंसान जिस से प्यार करता है, उस की कमियां दिखती कहां हैं?

शादी से पहले मुझे अजीत में सिर्फ अच्छाइयां दिखती थीं, मगर अब सिर्फ रिश्ता निभाने वाली बात रह गई थी. वैसे मैं जानती हूं, वे मुझे अब भी बहुत प्यार करते हैं, मगर पैसा सदा से उन के लिए पहली प्राथमिकता रही है. मैं भी कुछ उदासीन सी हो गई थी. अब दोनों बच्चियों को अच्छी परवरिश देना ही मेरे जीवन का मकसद रह गया था.

अगले दिन अंकित गेट के पास ही मिल गया. पास की दुकान पर गोलगप्पे खा रहा था. उस ने मुझे भी इनवाइट किया पर मैं साफ मना कर अंदर चली गई.

क्लास खत्म होते ही वह फिर मेरे पास आ गया, ‘‘चलिए, औटो तक छोड़ दूं.’’

‘‘हूं,’’ कह मैं अनमनी सी उस के साथ चलने लगी.

उस ने टोका, ‘‘आप को वे मैसेज याद हैं, जो आप के फोन में अनजान नंबरों से आते थे?’’

‘‘हां, याद हैं. क्यों? तुम्हें कैसे पता?’’ मैं चौंकी.

‘‘दरअसल, आप एक बार अपनी फ्रैंड को बता रही थीं, तो कैंटीन में पास में ही मैं भी बैठा था. अत: सब सुन लिया. आप ने कभी चैक नहीं किया कि उन्हें भेजता कौन है?’’

‘‘नहीं, मेरे पास इन फुजूल बातों के लिए वक्त कहां था और फिर मैं औलरैडी इंगेज थी.’’

‘‘हां, वह तो मुझे पता है. मेरे 1-2 दोस्तों ने बताया था, आप के बारे में. सच आप कितनी खुशहाल हैं. जिसे चाहा उसी से शादी की. हर किसी के जीवन में ऐसा कहां होता है? लोग सच्चे प्यार की कद्र ही नहीं करते या फिर कई दफा ऐसा होता है कि बेतहाशा प्यार कर के भी लोग अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाते.’’

‘‘क्या बात है, कहीं तुम्हें भी किसी से बेतहाशा प्यार तो नहीं था?’’ मैं व्यंग्य से मुसकराई तो वह चुप हो गया.

मुझे लगा, मेरा इस तरह हंसना उसे बुरा लगा है. शुरू से देखा था मैं ने. बहुत भावुक था वह. छोटीछोटी बातें भी बुरी लग जाती थीं. व्यक्तित्व भी साधारण सा था. ज्यादातर अकेला ही रहता. गंभीर, मगर शालीन था. उस के 2-3 ही दोस्त थे. उन के काफी करीब भी था. मगर उसे इधरउधर वक्त बरबाद करते या लड़कियों से हंसीमजाक करते कभी नहीं देखा था.

मैं थोड़ी सीरियस हो कर बोली, ‘‘अंकित, तुम ने बताया नहीं है,’’ तुम्हारे कितने बच्चे हैं और पत्नी क्या करती है?

‘‘मैडम, आप की मंजिल आ गई, उस ने मुझे टालना चाहा.’’

‘‘ठीक है, पर मुझे जवाब दो.’’

मैं ने जिद की तो वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैं ने अपना जीवन एक एनजीओ के बच्चों के नाम कर दिया है.’’

‘‘मगर क्यों? शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘क्योंकि हर किसी की जिंदगी में प्यार नहीं लिखा होता और बिना प्यार शादी को मैं समझौता मानता हूं. फिर समझौता मैं कभी करता नहीं.’’

वह चला गया. मैं पूरे रास्ते उसी के बारे में सोचती रही. मैं पुराने औफिस में अपनी ही दुनिया में मगन रहती थी. उसे कभी अहमियत नहीं दी. मैं उस के बारे में और जानने को उत्सुक हो रही थी. मुझे उस की बातें याद आ रही थीं. मैं सोचने लगी, उस ने मैसेज वाली बात क्यों कही? मैं तो भूल भी गई थी. वैसे वे मैसेज बड़े प्यारे होते थे. 3-4 महीने तक रोज 1 या 2 मैसेज मुझे मिलते, अनजान नंबरों से. 1-2 बार मैं ने फोन भी किया, मगर कोई जवाब नहीं मिला.

घर पहुंच कर मैं पुराना फोन ढूंढ़ने लगी. स्मार्ट फोन के आते ही मैं ने पुराने फोन को रिटायर कर दिया था. 10 सालों से वह फोन मेरी अलमारी के कोने में पड़ा था. मैं ने उसे निकाल कर उस में नई बैटरी डाली और बैटरी चार्ज कर उसे औन किया. फिर उन्हीं मैसेज को पढ़ने लगी. उत्सुकता उस वक्त भी रहती थी और अब भी होने लगी कि ये मैसेज मुझे भेजे किस ने थे? जरूर अंकित इस बारे में कुछ जानता होगा, तभी बात कर रहा था. फिर मैं ने तय किया कि कल कुरेदकुरेद कर उस से यह बात जरूर उगलवाऊंगी.

पर अगले 2-3 दिनों तक अंकित नहीं आया. मैं परेशान थी. रोज बेसब्री से उस का इंतजार करती. चौथे दिन वह दिखा.मुझ से रहा नहीं गया, तो मैं उस के पास चली गई. फिर पूछा, ‘‘अंकित, इतने दिन कहां थे?’’

वह चौंका. मुझे करीब देख कर थोड़ा सकपकाया, फिर बोला, ‘‘तबीयत ठीक नहीं थी.’’

‘‘तबीयत तो मेरी भी कुछ महीनों से ठीक नहीं रहती.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ उस ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘बस किडनी में कुछ प्रौब्लम है.’’

‘‘अच्छा, तभी आप के चेहरे पर थकान और कमजोरी सी नजर आती है. मैं सोच भी रहा था कि पहले जैसी रौनक चेहरे पर नहीं दिखती.’’

‘‘हां, दवा जो खा रही हूं,’’ मैं ने कहा.

फिर सहज ही मुझे मैसेज वाली बात याद आई. मैं ने पूछा, ‘‘अच्छा अंकित, यह बताओ कि वे मैसेज कौन भेजता था मुझे? क्या तुम जानते हो उसे?’’

वह मेरी तरफ एकटक देखते हुए बोला, ‘‘हां, असल में मेरा एक दोस्त था. बहुत प्यार करता था आप से पर कभी कह नहीं पाया. और फिर जानता भी था कि आप की जिंदगी में कोई और है, इसलिए कभी मिलने भी नहीं आया.’’

‘‘हूं,’’ मैं ने लंबी सांस ली, ‘‘अच्छा, अब कहां है तुम्हारा वह दोस्त?’’

वह मुसकराया, ‘‘अब निधि वह इस दुनिया की भीड़ में कहीं खो चुका है और फिर आप भी तो अपनी जिंदगी में खुश हैं. आप को परेशान करने वह कभी नहीं आएगा.’’

‘‘यह सही बात है अंकित, पर मुझे यह जानने का हक तो है कि वह कौन है और उस का नाम क्या है’’

‘‘वक्त आया तो मैं उसे आप से मिलवाने जरूर लाऊंगा, मगर फिलहाल आप अपनी जिंदगी में खुश रहिए.’’

मैं अंकित को देखती रह गई कि यह इस तरह की बातें भी कर सकता है. मैं मुसकरा उठी. क्लास खत्म होते ही अंकित मेरे पास आया और औटो तक मुझे छोड़ कर चला गया.

उस शाम तबीयत ज्यादा बिगड़ गई. 2-3 दिन मैं ने पूरा आराम किया. चौथे दिन क्लास के लिए निकली तो बड़ी बेटी भी साथ हो ली. उस की छुट्टी थी. उसी रास्ते उसे दोस्त के यहां जाना था. इंस्टिट्यूट के बाहर ही अंकित दिख गया. मैं ने अपनी बेटी का उस से परिचय कराते हुए बेटी से कहा, ‘‘बेटा, ये हैं आप के अंकित अंकल.’’

तभी अंकित ने बैग से चौकलेट निकाला और फिर बेटी को देते हुए बोला, ‘‘बेटा, देखो अंकल आप के लिए क्या लाए हैं.’’

‘‘थैंक्यू अंकल,’’ उस ने खुशी से चौकलेट लेते हुए कहा, ‘‘अंकल, आप को कैसे पता चला कि मैं आने वाली हूं?’’

‘‘अरे बेटा, यह सब तो महसूस करने की बात है. मुझे लग रहा था कि आज तुम मम्मी के साथ आओगी.’’

वह मुसकरा उठी. फिर हम दोनों को बायबाय कह कर अपने दोस्त के घर चली गई. हम अपनी क्लास में चले गए.

अंकित अब मुझे काफी भला लगने लगा था. किसी को करीब से जानने के बाद ही उस की असलियत समझ में आती है. अंकित भी अब मुझे एक दोस्त की तरह ट्रीट करने लगा, मगर हमारी बातचीत और मुलाकातें सीमित ही रहीं. इधर कुछ दिनों से मेरी तबीयत ज्यादा खराब रहने लगी थी. फिर एक दिन अचानक मुझे हौस्पिटल में दाखिल होना पड़ा. सभी जांचें हुईं. पता चला कि मेरी एक किडनी बिलकुल खराब हो गई है. दूसरी तो पहले ही बहुत वीक हो गई थी, इसलिए अब नई किडनी की जरूरत थी. मगर मुझ से मैच करती किडनी मिल नहीं रही थी. सब परेशान थे. डाक्टर भी प्रयास में लगे थे. एक दिन मेरे फोन पर अंकित की काल आई. उस ने मेरे इतने दिनों से क्लास में न आने पर हालचाल पूछने के लिए फोन किया था. फिर पूरी बात जान उस ने हौस्पिटल का पता लिया. मुझे लगा कि वह मुझ से मिलने आएगा, मगर वह नहीं आया. सारे रिश्तेदार, मित्र मुझ से मिलने आए थे. एक उम्मीद थी कि वह भी आएगा. मगर फिर सोचा कि हमारे बीच कोई ऐसी दोस्ती तो थी नहीं. बस एकदूसरे से पूर्वपरिचित थी, इसलिए थोड़ीबहुत बातचीत हो जाती थी. ऐसे में यह अपेक्षा करना कि वह आएगा, मेरी ही गलती थी.

समय के साथ मेरी तबीयत और बिगड़ती गई. किडनी का इंतजाम नहीं हो पा रहा था. फिर एक दिन पता चला कि किडनी डोनर मिल गया है. मुझे नई किडनी लगा दी गई. सर्जरी के बाद कुछ दिन मैं हौस्पिटल में ही रही. थोड़ी ठीक हुई तो घर भेज दिया गया. फ्रैंच क्लासेज पूरी तरह छूट गई थीं. सोचा एक दफा अंकित से फोन कर के पूछूं कि क्लास और कितने दिन चलेंगी. फिर यह सोच कर कि वह तो मुझे देखने तक नहीं आया, मैं भला उसे फोन क्यों करूं, अपना विचार बदल दिया. समय बीतता गया. अब मैं पहले से काफी ठीक थी. फिर भी पूरे आराम की हिदायत थी. एक दिन शाम को अजीत मेरे पास बैठे हुए थे कि तभी फ्रैंच क्लासेज का जिक्र हुआ. अजीत ने सहसा ही मुझ से पूछा, ‘‘क्या अंकित तुम्हारा गहरा दोस्त था? क्या रिश्ता है तुम्हारा उस से?’’

‘‘आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?’’ मैं ने चौंकते हुए कहा.

‘‘अब ऐसे तो कोई अपनी किडनी नहीं देता न. किडनी डोनर और कोई नहीं, अंकित नाम का व्यक्ति था. उस ने मुझे बताया कि वह तुम्हारे साथ फ्रैंच क्लास में जाता है और तुम्हें अपनी एक किडनी देना चाहता है. तभी से यह बात मुझे बेचैन किए हुए है. बस इसलिए पूछ लिया.’’ अजीत की आंखों में शक साफ नजर आ रहा था. मैं अंदर तक व्यथित हो गई, ‘‘अंकित सचमुच केवल क्लासफैलो था और कुछ नहीं.’’

‘‘चलो, यदि ऐसा है, तो अच्छा वरना अब क्या कहूं,’’ कह कर वे चले गए. पर उन का यह व्यवहार मुझे अंदर तक बेध गया कि क्या मुझे इतनी भी समझ नहीं कि क्या गलत है और क्या सही? किसी के साथ भी मेरा नाम जोड़ दिया जाए.

मैं बहुत देर तक परेशान सी बैठी रही. कुछ अजीब भी लग रहा था. आखिर उस ने मुझे किडनी डोनेट की क्यों? दूसरी तरफ मुझ से मिलने भी नहीं आया. बात करनी होगी, सोचते हुए मैं ने अंकित का फोन मिलाया, मगर उस ने फोन काट दिया. मैं और ज्यादा चिढ़ गई. फोन पटक कर सिर पकड़ कर बैठ गई.

तभी अंकित का मैसेज आया, ‘‘मुझे माफ कर देना निधि. मैं आप से बिना मिले चला आया. कहा था न मैं ने कि दीवानों को अपने प्यार की खातिर कितनी भी तकलीफ सहनी मंजूर होती है. मगर वे अपनी मुहब्बत की आंखों में तकलीफ नहीं सह सकते, इसलिए मिलने नहीं आया.’’

मैं हैरान सी उस का यह मैसेज पढ़ कर समझने का प्रयास करने लगी कि वह कहना क्या चाहता है. मगर तभी उस का दूसरा मैसेज आ गया, ‘‘आप से वादा किया था न मैं ने कि उस मैसेज भेजने वाले का नाम बताऊंगा. दरअसल, मैं ही आप को मैसेज भेजा करता था. मैं आप से बहुत प्यार करता हूं. आप जानती हैं न कि इनसान जिस से प्यार करता है उस के आगे बहुत कमजोर महसूस करने लगता है. बस यही समस्या है मेरी. एक बार फिर आप से बहुत दूर जा रहा हूं. अब बुढ़ापे में ही मुलाकात करने आऊंगा. पर उम्मीद करता हूं, इस दफा आप मेरा नाम नहीं भूलेंगी, गुडबाय.’’ अंकित का यह मैसेज पढ़ कर मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं मुसकराऊं या रोऊं. अंदर तक एक दर्द मेरे दिल को बेध गया था. सोच रही थी, मेरे लिए ज्यादा गहरा प्यार किस का है, अजीत का, जिन्हें मैं ने अपना सब कुछ दे दिया फिर भी वे मुझ पर शक करने से नहीं चूके या फिर अंकित का, जिसे मैं ने अपना एक पल भी नहीं दिया, मगर उस ने आजीवन मेरी खुशी चाही.

Funny Hindi Story: साष्टांग प्रणाम

Funny Hindi Story: आदरणीय और परमादरणीय सरकारजी को मेरा प्यार भरा प्रणाम, टांग और जांघ प्रणाम, साष्टांग प्रणाम.

मैं सरकारी साहब भक्ति विभाग से महीना नवंबर, साल 2018 में चपरासी के पद से ससम्मान रिटायर होने वाला एक्स चपरासी भोलाराम, सुपुत्र श्री मांगेराम, गांव-अबस, तहसील-अबस, जिला-अबस, प्रदेश-अबस, मोबाइल नंबर-अबस, भारत देश का असली आधारकार्डधारक हूं. मेरे पास नकली हंसीखुशी के सिवा और कुछ भी नकली नहीं है.

सरकारजी, जब भी मैं बहुत परेशान हो जाता हूं, तो आप को चिट्ठी लिख देता हूं, ताकि मुझे भी लगे कि मैं ने भी अपना रोना किसी के आगे रो दिया.

मेरे बच्चे औफिशियल प्रोसीजर का पालन करते हुए मेरी बीवी के सामने अपना रोना रोते हैं. मेरी बीवी थू्र प्रोपर चैनल उन का रोना मेरे आगे रखती है. वह भी रोती है, पर कभी कहती नहीं.

चपरासी भोलाराम की बीवी है न सरकारजी. उस ने अब लोकतंत्र में रोने को स्वीकार कर लिया है… और मैं अपना रोना थू्र प्रोपर चैनल पहले आप के सामने रखता हूं, बाद में अपने ऊपर वाले के आगे, क्योंकि मुझे ऊपर वाले से पावरफुल आप लगते हो सरकारजी.

पर, लगता है कि अब हम सब की तरह ऊपर वाला भी बहरा हो गया है. यहां किसी की सुनता ही कौन है सरकारजी. लगता है कि ऊपर वाले ने जो कान हमारे सुनने को लगाए थे, वे सब अब बहरे हो गए हैं. बस, बची जबान, सो चलाए रहते हैं.

बहुत बधाई हो सरकारजी आप को. अखबार में पढ़ कर अच्छा नहीं, बहुत अच्छा लगा, जब पढ़ा कि आप सब ने जो बातबात पर संसद में हमें दिखाने को लड़ते रहते हैं, मिलमिला कर अपने वेतन भत्तों में इजाफा कर लिया है और बाहर आप ने हमें दो चार सौ पर दिन के हिसाब से दे कर किसी न किसी बहाने चौबीसों घंटे आपस में लड़ामरवा कर रखा. बधाई हो सरकारजी. किसी के वेतन भत्ते तो बढ़े.

बुरा मत मानिएगा सरकारजी. अमीरों के पेट में तो सोएसोए भी जाता ही रहता है सरकारजी. अब तनिक हम जैसों के पेट में भी कुछ डलवा दीजिए न प्लीज. आप जोकुछ हमारे पेटों के लिए भेजते हैं, वह तो ऊपरऊपर ही खत्म हो जाता है सरकारजी. इसे आप शिकायत नहीं, सच मानिएगा जनाब.

सरकारजी, आप ने तर्क दिया है कि मुद्रास्फीति बढ़ गई थी, इसलिए उस दिन से नहीं, 2 साल पीछे से आप के वेतन भत्ते बढ़ने चाहिए थे कायदे से. चलो सरकारजी, खुशी हुई कि देश में कायदे से कुछ तो हो रहा है.

आप के वेतन भत्ते बढ़ने जरूरी, नहीं बहुत जरूरी थे. जनता भी मान रही थी. न बढ़ते तो सरकारजी आप को खानेपीने में तंगी हो जाती.

देश में जनता तंगी में रहे तो रहे, पर जनता का लोकप्रिय नेता कभी तंगी में नहीं रहना चाहिए. देश की जनता तंगी में रहे तो रहे, पर जनता के नेता तंगी में रहें, यह कहां का लोकतंत्र है सरकारजी.

सरकारजी, आप ने अपना वेतन बढ़ाया, बधाई हो जी. आप ने अपने भत्ते बढ़ाए, बधाई हो सरकारजी. आप को इस का एरियर भी मिलेगा, बधाई हो जी. आप ने अपना दैनिक भत्ता बढ़ाया, बधाई हो जी. आप ने अपना तो वेतन बढ़ाया ही बढ़ाया, अपने पास अपने कंप्यूटर का काम करने वाले को भी तार दिया, बधाई हो जी.

सबकुछ पेपरलैस करने की कवायद करने वाले सरकारजी, आप ने हर महीने जनता के काम करने के लिए प्रयोग होने वाले कागजस्याही का भुगतान भी बढ़ाया, बधाई हो जी. आप ने पहले ही देश को चरा चुके अपने बंधुबांधवों की पैंशन भी बढ़ाई, बधाई हो सरकारजी. खुद टिकाऊ न होने के बाद भी जनाबजी अपने लिए पहले से महंगी टिकाऊ कुरसीमेज ले सकेंगे, इस के लिए बधाई हो सरकारजी.

हम जनता तंगियों में रहे तो रहे, पर हम सब की हरदम यह दिली इच्छा रहती है कि आप तंगी में सोएसोए भी न रहें सरकारजी. जो आप तंगियों में रहें, तो हमारे तंग रहने का क्या फायदा?

सरकारजी, बुरा मत मानिएगा. सच कह रहा हूं कि जो आप अपनी पगार न भी बढ़ाएं तो भी आप के पास कमानेखाने के हजारों साधनसंसाधन हैं, पर मेरे जैसों के पास तो सब खाने ही खाने वाले हैं. कमा कर देने वाला एक भी नहीं. माना कि मैं तो 4 चपातियों से 2 पर आ गया हूं, पर मेरे पास मेरा भरापूरा परिवार खाने वाला है, रिश्तेदार खाने वाले हैं, यारदोस्त खाने वाले हैं.

जैसा कि मैं ने पहले भी आप से दोनों हाथ जोड़ कर विनती की है कि मैं सरकारी साहब भक्ति विभाग से बरस 2018, महीना नवंबर, चपरासी के पद से रिटायर हुआ जीव हूं सरकारजी, हालांकि मैं अपने जमाने का 10वीं पास था फर्स्ट डिवीजन, पर मेरी प्रमोशन न हो सकी, जबकि मेरे साथ वाले 10वीं फेल मेरे चपरासी रहते आप के साथ हो कर कहां से कहां निकल गए, अब उन्हें भी पता नहीं.

सरकारजी, महंगाई सिर से ऊपर हो जाने के बाद भी 2 साल से डीए तो मिला नहीं, पर मेरा बचा एरियर भी आज तक नहीं मिला. मेरे से बाद वालों को मिल गया. मेरी ही रोटी में से मेरे आगे कभीकभार एक टुकड़ा तोड़ कर फेंका जा रहा है. उस टुकड़े को अपने पेट में डालने की तो बारी ही नहीं आती.

एरियर का टुकड़ा मिलने से पहले ही घर में उस एरियर के टुकड़े को ले कर बहुत बहसबाजी शुरू हो जाती है. कोई कहता है कि मेरे पेट में डालो, तो कोई कहता है कि मेरे पेट में. एरियर से मिलने वाले उस टुकड़े को अब आप ही कहो कि किसकिस के पेट में डालूं सरकारजी?

एरियर के टुकड़े को ले कर हुई लड़ाई को जैसेतैसे शांत करने के बाद जिस के पेट में वह एरियर का टुकड़ा डालता हूं, वह और ‘भूखभूख’ चिल्लाने लगता है. इतने बड़े परिवार के पेटों के बीच एरियर का 10वां टुकड़ा क्या माने रखता है सरकारजी… आप ही बताओ.

एक बार फिर आप से गुजारिश है कि आप मेरा बचा एरियर मेरे जीतेजी एकमुश्त देने की कृपा करें, ताकि मुझे लगे कि किसी से तो मेरा लेनदेन जिंदा रहते खत्म हुआ. शेषों, अवशेषों से तो मरने के बाद भी हिसाबकिताब चलते रहेंगे सरकारजी.

Romantic Story: खेल खेल में

Romantic Story: शिखा के पास उस समय नीरज भी खड़ा था जब अनिता ने उस से कहा, ‘‘मैं ने तुम्हारी मम्मी को फोन कर के उन से इजाजत ले ली है.’’

‘‘किस बात की?’’ शिखा ने चौंक कर पूछा.

‘‘आज रात तुम मेरे घर पर रुकोगी.

कल रविवार की शाम मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आऊंगी.’’

‘‘कोई खास मौका है क्या?’’

‘‘नहीं. बस, बहुत दिनों से किसी के साथ दिल की बातें शेयर नहीं की हैं. तुम्हारे साथ जी भर कर गपशप कर लूंगी, तो मन हलका हो जाएगा. मैं लंच के बाद चली जाऊंगी. तुम शाम को सीधे मेरे घर आ जाना.’’

नीरज ने वार्त्तालाप में हिस्सा लेते हुए कहा, ‘‘अनिता, मैं शिखा को छोड़ दूंगा.’’

‘‘इस बातूनी के चक्कर में फंस कर ज्यादा लेट मत हो जाना,’’ कह कर अनिता अपनी सीट पर चली गई.

औफिस के बंद होने पर शिखा नीरज के साथ उस की मोटरसाइकिल पर अनिता के घर जाने को निकली.

‘‘कल 11 बजे पक्का आ जाना,’’ नीरज ने शिखा को अनिता के घर के बाहर उतारते हुए कहा.

‘‘ओके,’’ शिखा ने मुसकरा कहा.

अनिता रसोई में व्यस्त थी. शिखा उन किशोर बच्चों राहुल और रिचा के साथ गपशप करने लगी. अनिता के पति दिनेश साहब घर पर उपस्थित नहीं थे. अनिता उसे बाजार ले गई. वहां एक रेडीमेड कपड़ों की दुकान में घुस गई. अनिता और दुकान का मालिक एकदूसरे को नाम ले कर संबोधित कर रहे थे. इस से शिखा ने अंदाजा लगाया कि दोनों पुराने परिचित हैं.

‘‘दीपक, अपनी इस सहेली को मुझे एक बढि़या टीशर्ट गिफ्ट करनी है. टौप क्वालिटी की जल्दी से दिखा दो,’’ अनिता ने मुसकराते हुए दुकान के मालिक को अपनी इच्छा बताई.

शिखा गिफ्ट नहीं लेना चाहती थी, पर अनिता ने उस की एक न सुनी. दीपक खुद अनिता को टीशर्ट पसंद कराने के काम में दिलचस्पी ले रहा था. अंतत: उन्होंने एक लाल रंग की टीशर्ट पसंद कर ली.

शिखा के लिए टीशर्ट के अलावा अनिता ने रिचा और राहुल के लिए भी कपड़े खरीदे फिर पति के लिए नीले रंग की कमीज खरीदी.

दुकान से बाहर आते हुए शिखा ने मुड़ कर देखा तो पाया कि दीपक टकटकी बांधे उन दोनों को उदास भाव से देख रहा है. शिखा ने अनिता को छेड़ा, ‘‘मुझे तो दाल में काला नजर आया है, मैडम. क्या यह दीपक साहब आप के कभी प्रेमी रहे हैं?’’

‘‘प्रेमी नहीं, कभी अच्छे दोस्त थे… मेरे भी और मेरे पति के भी. इस विषय पर कभी बाद में विस्तार से बताऊंगी. पतिदेव घर पहुंच चुके होंगे.’’

‘‘अच्छा, यह तो बता दीजिए कि आज क्या खास दिन है?’’

‘‘घर पहुंच कर बताऊंगी,’’ कह कर अनिता ने रिकशा किया और घर आ गईं.

वे घर पहुंचीं तो दिनेश साहब उन्हें ड्राइंगरूम में बैठे मिले. शिखा को देख कर उन के होंठों पर उभरी मुसकान अनिता के हाथ में लिफाफों को देख फौरन गायब हो गई.

‘‘तुम दीपक की दुकान में क्यों घुसीं?’’ कह कर उन्होंने अनिता को आग्नेय दृष्टि से देखा.

‘‘मैं शिखा को अच्छी टीशर्ट खरीदवाना चाहती थी. दीपक की दुकान पर सब से

अच्छा सामान…’’

‘‘मेरे मना करने के बावजूद तुम्हारी हिम्मत कैसे हो गई उस की दुकान में कदम रखने की?’’ पति गुस्से से दहाड़े.

‘‘मुझ से गलती हो गई,’’ अनिता ने मुसकराते हुए अपने हाथ जोड़ दिए, ‘‘आज के दिन तो आप गुस्सा न करो.’’

‘‘आज का दिन मेरी जिंदगी का सब से मनहूस दिन है,’’ कह कर गुस्से से भरे दिनेशजी अपने कमरे में चले गए.

‘‘मैडम, जब आप को मना किया गया था तो आप क्यों गईं दीपक की दुकान पर?’’

आंखों में आंसू भर कर अनिता ने उदास लहजे में जवाब दिया, ‘‘आज मैं तुम्हें 10 साल पुरानी घटना बताती हूं जिस ने मेरे विवाहित जीवन की सुखशांति को नष्ट कर डाला. मैं कुसूरवार न होते हुए भी सजा भुगत रही हूं, शिखा.

‘‘दीपक का घर पास में ही है. खूब आनाजाना था हमारा एकदूसरे के यहां. दिनेश साहब जब टूर पर होते, तब मैं अकसर उन के यहां चली जाती थी.

‘‘दीपक मेरे साथ हंसीमजाक कर लेता था. इस का न कभी दिनेश साहब ने बुरा माना, न दीपक की पत्नी ने, क्योंकि हमारे मन में खोट नहीं था.

‘‘एक शाम जब मैं दीपक के घर पहुंची, तो वह घर में अकेला था. पत्नी अपने दोनों बच्चों को ले कर पड़ोसी के यहां जन्मदिन समारोह में शामिल होने गई थी.’’

अपने गालों पर ढलक आए आंसुओं को पोंछने के बाद अनिता ने आगे बताया, ‘‘दीपक अकेले में मजाक करते हुए कभीकभी रोमांटिक हो जाता था. मैं सारी बात को खेल की तरह से लेती क्योंकि मेरे मन में रत्ती भर खोट नहीं था.

‘‘दीपक ने भी कभी सभ्यता और शालीनता की सीमाओं को नहीं तोड़ा था.

‘‘दिनेश साहब टूर पर गए हुए थे. उन्हें अगले दिन लौटना था, पर वे 1 दिन पहले

लौट आए.

‘‘मेरी सास ने जानकारी दी कि मैं दीपक के घर गई हूं. वह तो सारा दिन वहीं पड़ी रहती है. ऐसी झूठी बात कह कर उन्होंने दिनेश साहब के मन में हम दोनों के प्रति शक का बीज बो दिया.

‘‘उस शाम दीपक मुझे पियक्कड़ों की बरात की घटनाएं सुना कर खूब हंसा रहा था. फिर अचानक उस ने मेरी प्रशंसा करनी शुरू कर दी. वह पहले भी ऐसा कर देता था, पर उस शाम खिड़की के पास खड़े दिनेश साहब ने सारी बातें सुन लीं.

‘‘उस शाम से उन्होंने मुझे चरित्रहीन मान लिया और दीपक से सारे संबंध तोड़ लिए. और… और… मैं अपने माथे पर लगे उस झूठे कलंक के धब्बे को आज तक धो नहीं पाई हूं, शिखा.’’

‘‘यह तो गलत बात है, मैडम. दिनेश साहब को आप की बात सुन कर अपने मन से गलतफहमी निकाल देनी चाहिए थी,’’ शिखा ने हमदर्दी जताई.

‘‘वे मुझे माफ करने को तैयार नहीं हैं. वे मेरे बड़े हो रहे बच्चों के सामने कभी भी मुझे चरित्रहीन होने का ताना दे कर बुरी तरह शर्मिंदा कर देते हैं.’’

‘‘यह तो उन की बहुत गलत बात है, मैडम.’’

‘‘मैं खुद को कोसती हूं शिखा कि मुझे खेलखेल में भी दीपक को बढ़ावा नहीं देना  चाहिए था. मेरी उस भूल ने मुझे सदा के लिए अपने पति की नजरों से गिरा दिया है.’’

‘‘जब आप को पता था कि दिनेश साहब बहुत गुस्सा होंगे, तब आप दीपक की दुकान पर क्यों गईं?’’

शिखा के इस सवाल के जवाब में अनिता खामोश रह उस की आंखों में अर्थपूर्ण अंदाज में झांकने लगी.

कुछ पल खामोश रहने के बाद शिखा सोचपूर्ण लहजे में बोली, ‘‘मुझे दिनेश साहब का गुस्सा… उन की नफरत दिखाने के लिए आप जानबूझ कर दीपक की दुकान से खरीदारी कर के लाई हैं न? मेरी आंखें खोलने के लिए आप ने यह सब किया है न?’’

‘‘हां, शिखा,’’ अनिता ने झुक कर शिखा का माथा चूम लिया, ‘‘मैं नहीं चाहती कि तुम नीरज के साथ प्रेम का खतरनाक खेल खेलते हुए मेरी तरह अपने पति की नजरों में हमेशा के लिए गिर जाओ.’’

‘‘मेरे मन में उस के प्रति कोई गलत भाव नहीं है, मैडम.’’

‘‘मैं भी दीपक के लिए ऐसा ही सोचती थी. देखो, तुम्हारा पति भी दिनेश साहब की तरह गलतफहमी का शिकार हो सकता है. तब खेलखेल में तुम भी अपने विवाहित जीवन की खुशियां खो बैठोगी.

‘‘तुम अपने पति से नाराज हो कर मायके में रह रही हो. यों दूर रहने के कारण पति के मन में पत्नी के चरित्र के प्रति शक ज्यादा आसानी से जड़ पकड़ लेता है. पति के प्यार का खतरा उठाने से बेहतर है ससुराल वालों की जलीकटी बातें और गलत व्यवहार सहना. तुम फौरन अपने पति के पास लौट जाओ, शिखा,’’ अत्यधिक भावुक हो जाने से अनिता का गला रुंध गया.

‘‘मैं लौट जाऊंगी,’’ शिखा ने दृढ़ स्वर में अपना फैसला सुनाया.

‘‘तुम्हारा कल नीरज से मिलने का कार्यक्रम है…’’

‘‘हां.’’

‘‘उस का क्या करोगी?’’

शिखा ने पर्स में से अपना मोबाइल निकाल कर उसे बंद कर कहा, ‘‘आज से यह खतरनाक खेल बिलकुल बंद. उस की झूठीसच्ची प्रशंसा अब मुझे गुमराह नहीं कर पाएगी.’’

‘‘मुझे बहुत खुशी है कि जो मैं तुम्हें समझाना चाहती थी, वह तुम ने समझ लिया,’’ अपनी उदासी को छिपा कर अनिता मुसकरा उठी.

‘‘मुझे समझाने के चक्कर में आप तो परेशानी में फंस गईं?’’ शिखा अफसोस से भर उठी.

‘‘लेकिन तुम तो बच गईं. चलो, खाना खाएं.’’

‘‘आप को शादी की सालगिरह की शुभकामनाएं और कामना करती हूं कि दिनेश साहब की गलतफहमी जल्दी दूर हो और आप उन का प्यार फिर से पा जाएं.’’

‘‘थैंक यू,’’ शिखा की नजरों से अपनी आंखों में भर आए आंसुओं को छिपाने के लिए अनिता रसोई की तरफ चल दी.

शिखा का मन उन के प्रति गहरे धन्यवादसहानुभूति के भाव से भर उठा था.

Romantic Story: बेनाम रिश्ता – क्या किशन के दिल में अमृता के लिए प्यार था?

Romantic Story: अपने विवाह के बाद किसी रिश्तेदार के विवाह समारोह में मेरा जाना हुआ. वहां जा कर मैं ने देखा कि तमाम रिश्तेदारों के साथसाथ मेरी चचेरी भाभी भी आई हुई थीं. उन से मेरा 40 वर्षों बाद मिलना हुआ था. रात को भोजन के बाद मैं भाभी के पास बैठी उन से बातें कर रही थी.

उन्होंने बताया कि चाचा की मृत्यु के तुरंत बाद ही वे ससुराल छोड़ कर अपने इकलौते बेटे व बहू के साथ अपने मायके लखनऊ जा कर बस गईर् थीं.

मैं बहुत ध्यान से उन की बातें सुन रही थी और साथ ही साथ विस्तार से जानने की जिज्ञासा भी प्रकट कर रही थी.

उन्होंने आगे बताया कि उन का भाई किशन भी लखनऊ में अपने पैतृक मकान में परिवार सहित रह कर पुश्तैनी व्यवसाय संभाल रहा था.

इतना सुनने के बाद मेरे लिए आगे कुछ और जानने की जिज्ञासा का कोई औचित्य नहीं था, क्योंकि वे मेरे और किशन के रिश्ते से अनभिज्ञ नहीं थीं. मेरी आंखों के सामने एक धुंधला सा चेहरा तैर गया, जो वक्त के बहाव में धूमिल होतेहोते मिट सा गया था. मैं नहीं चाहती थी कि मेरे मन में जो चल रहा है, उस को मेरे चेहरे के भाव से भाभी पढ़ लें, इसलिए मैं आंखें बंद कर के सोने का उपक्रम करने लगी और उन से विदा ले कर अपने कमरे में चली आई. दिनभर की भागदौड़ से थकी होने के कारण तुरंत ही मैं सो गई.

तमाम मेहमानों के साथ भाभी ने भी विदा ली. जातेजाते वे अपना मोबाइल नंबर देना और मेरा लेना नहीं भूलीं. इस मुलाकात ने हमारी आत्मीयता को पुनर्जीवित कर दिया था. मैं दिल्ली

लौट आई और अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गई.

मुझे आए हुए 20 दिन बीते कि एक दिन मेरा मन भाभी से बात करने को हुआ, लेकिन यह सोच कर टाल दिया कि कहीं किशन भी आसपास न बैठा हो. मैं बुझी हुई आग को दोबारा सुलगाना नहीं चाहती थी. लेकिन फिर भी परोक्षरूप से उस से संपर्क करने की इच्छा का ही तो परिणाम था कि मैं उन से बात करना चाह रही थी.

अभी 3 दिन ही बीते कि अचानक अपने मोबाइल में एक मैसेज और उस को भेजने वाले का नाम पढ़ कर मैं बुरी तरह चौक गई. जो मैं नहीं चाहती थी, वही हुआ. भाभी के भाई किशन का मैसेज था, ‘‘कैसी हो अमृता,’’ मैसेज पढ़ते हुए मैं ने अपने चारों और ऐसे देखा, जैसे मैं कोई चोरी कर रही हूं.

मेरे मन में अजीब सी हलचल होने लगी. पलक झपकते ही मैं समझ गई कि किशन ने भाभी से ही मेरा मोबाइल नंबर लिया होगा. मेरे मन में भाभी से मिलने के बाद उस का खयाल आना और उस का मैसेज आना, टैलीपैथी ही तो थी, सच ही कहा गया है किसी से मिलने के पीछे भी कोई न कोई कारण होता है. तो क्या भाभी से मिलने का कारण भी मेरा किशन से दोबारा संपर्क होना था, मैं सोच रही थी.

मेरा मन अशांत हो चला था. मैं अपने मस्तिष्क को 40 वर्ष पहले अतीत में घटित घटना की यादों में धकेलने के लिए मजबूर हो गई थी, जो मेरे मानस पटल से समय के बहाव में धुलपुंछ गए थे और जिन का मेरे जीवन में अब कोई अस्तित्व ही नहीं था. अतीत के पन्ने एकएक कर के मेरी आंखों के सामने खुलने लगे.

मेरी भाभी अपनी मां और भाई के साथ मथुरा में हमारे घर आई थीं. तब मेरी उम्र 21-22 वर्ष की रही होगी. भाभी के आग्रह पर जहांजहां वे घूमने गए, मैं भी उन के साथ गई. साथसाथ घूमते हुए भाभी के भाई की गहरी निगाहों की कब मैं शिकार हो गई, मुझे पता ही नहीं चला. उस की मंदमंद मुसकान और बोलती हुई बड़ीबड़ी भूरी आंखों ने मुझे मूक प्रेमनिमंत्रण देने में जरा भी संकोच नहीं किया. जिस को स्वीकार करने से मैं अपनेआप को रोक नहीं पाई.

वह बहुत कम बोलता था, लेकिन उस की आंखों की भाषा से कुछ भी अनकहा नहीं रहता था. किसी ने ठीक ही कहा है खामोशियों की भी जबां होती है. परिवार वालों से हट कर जब भी मौका मिलता था, वह मेरा हाथ पकड़ लेता था और मैं ने भी कभी हाथ छुड़ाने का प्रयास नहीं किया था. हम दोनों मंत्रमुग्ध से एकदूसरे का साथ पाने के लिए आतुर रहते थे. और वह होली का दिन, कैसे भूल सकती हूं… वह सब. यंत्रचालित हम एकदूसरे के पीछे भागते रहते थे.

20 दिनों के साथ के बाद अंत में बिछुड़ने का दिन आ गया. भाभी मुझ से खिंचीखिंची ही रहीं. इस से मुझे आभास हो गया था कि उन से कुछ भी छिपा नहीं है, मौका पा कर किशन ने मेरे हाथ में एक छोटी सी पर्ची थमा दी, जिस में उस का पता लिखा था. कुछ भी कहनेसुनने का हम दोनों को कभी मौका नहीं मिला. आज के विपरीत वह जमाना ही ऐसा था, जब अपने हावभाव से ही प्रेम की अभिव्यक्ति होती थी, उसे शब्दों का जामा पहनाने में इतना विलंब हो जाता था कि समय के बहाव में परिस्थितियां ही बदल जाती थीं.

मुझे याद है, उस के जाने के बाद अगले दिन अपनी सहेली से लिपट कर मैं कितना रोई थी. किशन से लगभग 3 महीने तक पत्रव्यवहार हुआ. फिर अचानक उस का पत्र आना बंद हो गया. मैं ने पत्र लिख कर कारण पूछा, लेकिन कोई जवाब नहीं आया.

समय बीतता गया और किशन के साथ बिताए गए दिनों की यादें समय की परतों के नीचे दबती चली गईं. और आज अचानक इतने वर्षों बाद उस का यह अप्रत्याशित मैसेज. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं?

अपने पति की मृत्यु के बाद से जीवन अकेलेपन और खालीपन के एहसास के नीचे दब कर दम तोड़ रहा था और एक बोझ सा बन गया था, लेकिन जीना तो था न. बच्चे बहुत व्यस्त रहते थे, मैं हमेशा उन के सामने मुसकराहट का मुखौटा ओढ़े रहती थी, लेकिन रात में अकेले, साथी की कमी को बहुत शिद्दत से महसूस करती थी और कई बार तो रातभर नींद नहीं आती थी, यह सोच कर कि  पहाड़ सा जीवन कैसे काटूंगी.

वर्तमान परिस्थितियां देखते हुए मेरा मन किशन से बात करने के लिए व्याकुल हो गया. कुछ देर के आत्ममंथन के बाद हमारे जमाने के विपरीत जब पति के अतिरिक्त किसी भी पुरुष से आत्मीयता का संबंध रखना पाप समझा जाता था, इस जमाने की बदली हुई सोच, नई टैक्नोलौजी द्वारा उपलब्ध संपर्क साधन के कारण और पहले प्यार की अनुभूति की पुनरावृत्ति की मिठास को पाने के लोभ ने आग में घी डालने का कार्य किया और मेरा मन, मन की सीमारेखा को तोड़ने के लिए मजबूर हो गया.

मैं ने अपने मन को यह कह कर समझाया, ‘देखिए आगेआगे होता है क्या.’ और मैं ने जवाब दिया, ‘‘ठीक हूं, तुम बताओ?’’ वह जैसे मेरे जवाब का इंतजार ही कर रहा था. प्रत्युत्तर में उस ने औपचारिकतापूर्ण मेरे परिवार के बारे में विस्तार से पूछा और अपने परिवार के बारे में बताया कि उस के परिवार में उस की पत्नी और 2 बेटियां हैं, दोनों बेटियों का विवाह हो चुका है.

वर्षों बाद उस की आवाज सुन कर मैं बहुत रोमांचित हुई, ऐसा लगा कि जैसे हमारे अतीत के मूकप्रेम को वाणी मिल गई. वार्त्तालाप में साथसाथ बिताए गए वे दिन, जो धरातल में कही समा गए थे, पुनर्जीवित हो गए. बहुत सारी घटनाएं किशन ने याद दिलाईं, जो मैं भूल चुकी थी.

मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हें तो सब याद है.’’

वह बोला, ‘‘मैं भूला ही कब था?’’

‘‘तो फिर तुम ने पत्र लिखना क्यों बंद कर दिया?’’

क्या करता दीदी ने सबकुछ पिताजी को बता दिया. और उन के आदेश पर मुझे ऐसा करना पड़ा. वह जमाना ही ऐसा था, जब बड़ों का वर्चस्व ही सर्वोपरि होता था.’’

‘‘काश, उस समय मोबाइल होता.’’ मेरी इस आवाज का मर्म उसे अंदर तक आहत कर गया.

‘‘चलो, अब तो मोबाइल है. अब तो बात कर सकते हैं,’’ उस ने मुझे सांत्वना देते हुए कहा.

उस से बात कर के मुझे अपने पर नाज हो आया कि आज इतने सालों बाद भी मैं किसी की यादों में बसी हूं. विवाह एक सामाजिक बंधन है, जो शरीर को तो कैद कर सकता है, लेकिन मन तो आजाद पंछी की तरह अरमानों के गगन में जब चाहे उड़ सकता है. बहुत बार विवाह के समय हवन की अग्नि भी प्यार की तपिश को अक्षुण्ण नहीं कर पाती. उस की बातों से स्पष्ट हो गया था कि वह भी अपने परिवार के प्रति समर्पित है, लेकिन मेरी तरह उस के भी दिल का एक कोना खाली ही रहा. प्रसिद्ध शायर फराज ने ठीक ही कहा है, ‘‘कुछ जख्म सदियों के बाद भी ताजा रहते हैं फराज, वक्त के पास भी हर मर्ज की दवा नहीं होती.’’

मुझे किशन की बातें बहुत रोमांचित करती थीं. लेकिन कभीकभी मेरा मन नैतिकता और अनैतिकता के झूले में झूलता हुआ रिश्ते के स्थायित्व के बारे में सोच कर उद्विग्न हो जाता था. लेकिन धीरेधीरे उस से बातें कर के मुझे एहसास हो चला था कि हमारा प्रेम परिपक्व उम्र की अंतरंग मित्रता में परिवर्तित हो गया है. इस नए रिश्ते को बनाने में किशन का बहुत सहयोग था.

पहले उस की जो बातें मुझे रोमांचित करती थीं, अब अजीब सा सुकून देने लगी थीं. अब हम दोनों की बातचीत में किसी कारण लंबा अंतराल भी आ जाता था, तो मुझे उस के दोबारा खो जाने की बात सोच कर बेचैनी नहीं होती थी. हम दोनों ही वार्त्तालाप के दौरान एक बार मिलने की इच्छा व्यक्त करते थे.

एक दिन उस ने मुझे यह कह कर चौंका दिया कि वह एक बार मिलने के लिए बहुत बेचैन है और वह जल्दी ही किसी बहाने से मुझ से मिलने दिल्ली आएगा. यह सुन कर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ. उस से मिलने की कल्पना ही मुझे बहुत रोमांचित कर रही थी. सोच में पड़ गई. 40 वर्षों में उस में जाने कितना परिवर्तन आ गया होगा, पता नहीं, मैं उस के साथ सहज हो पाऊंगी या नहीं.

वह दिन भी आ गया जब उसे दिल्ली आना था. किशन से इतने सालों बाद मिलना, मेरे लिए, सपने का वास्तविकता में बदलने से कम नहीं था. समय और परिस्थितियां बहुत बदल गई थीं. इसलिए उस से मिलने के लिए अपनी मनोस्थिति को तैयार करने में मुझे बहुत समय लगा.

उस से मिलने पर मुझे लगा कि हम दोनों के सिर्फ बाहरी आवरण पर ही उम्र ने छाप छोड़ी थी, लेकिन अंदर के एहसास में रत्तीभर भी परिवर्तन नहीं आया था. इतने सालों बाद मिलने पर समझ ही नहीं आ रहा था कि बातों का सिलसिला कहां से आरंभ किया जाए, अभी भी बिना कुछ कहे ही जैसे हम ने आपस में सबकुछ कह दिया था.

किशन ने मेरे हाथों को अपने हाथों में लेते हुए बात आरंभ की, ‘‘अमृता, जरूरी नहीं कि हम जिस से प्यार करें, उस से शादी भी हो जाए और जिस से शादी हो उस से प्यार हो जाए, क्योंकि प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है, इसलिए इन दोनों का आपस में कोई संबंध नहीं है.

‘‘हमारी आपस में शादी नहीं हुई, लेकिन आपस के प्यार के एहसास के रिश्ते को अच्छे दोस्त बन कर तो जिंदा रख सकते हैं. वैसे भी, उम्र के इस पड़ाव में इस से अधिक चाहिए ही क्या? मेरे जीवन में तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता.’’

मुझे ऐसा लग रहा था. जैसे मैं किसी दूसरी दुनिया में विचरण कर रही हूं. हमारे पुरुषप्रधान समाज में तो ऐसी सोच वाला पुरुष मिलना असंभव नहीं, तो कठिन जरूर है, जिस ने मेरे प्यार को दीये की लौ की तरह अभी तक अपने दिल में छिपा रखा था. मैं अपने को धन्य समझ कर, भावातिरेक में उस से लिपट गई और मेरी आंखों से आंसू बह निकले.

उस ने मुझे अपने बाहुपाश में थोड़ी देर के लिए जकड़े रखा. किशन के पहली बार के इस स्पर्श ने मुझे अलौकिक सुकून दिया. मुझे लगा कि मेरे एकाकी जीवन में किसी साथी ने दस्तक दे दी थी और मुझे जीने का सबब मिल गया था.

पति और पत्नी का रिश्ता कानूनी है, लेकिन यह बेनाम रिश्ता, क्योंकि इस ने समाज की स्वीकृति की मुहर प्राप्त नहीं की है, अवैध माना जाता है. समाज को अपनी सोच बदलने की आवश्यकता है, क्योंकि यह बेनाम रिश्ता इतना खूबसूरत होता है कि जीवन के लिए संजीवनी से कम नहीं होता और ताउम्र खुशी देता है.

शायर गुलजार ने इस बेनाम रिश्ते को अपनी कलम से बहुत खूबसूरत तरीके से उकेरा है, ‘हाथ से छू के इस रिश्ते को इलजाम न दो.’

उस ने मुझ से कहा कि हमारा मिलना आसान नहीं है, लेकिन फोन पर एकदूसरे के संपर्क में रह कर हमेशा एकदूसरे से जुड़े रहेंगे. किशन ने एक ऐसा एहसास दे कर, जिस के कारण हजारों मील की दूरियां भी बेमानी हो गई थीं, मुझ से विदा ली. इन दोनों के बीच की दूरी अब कोई माने नहीं रखती थी. दिल से दिल जुड़ गए थे. यह रिश्ता दिल का था. समाज की मुहर की जरूरत भी नहीं थी इसे.

Family Story: बोझ

Family Story: महज 30 साल की उम्र में पंकज ने अपनी कारोबारी हैसियत का लोहा मनवा लिया था. पिता के टैंट हाउस के काम को वह नई ऊंचाई पर ले जा चुका था.

‘पंकज टैंट हाउस’ का नाम अब शहर से बाहर भी अपना डंका बजाने लगा था. बड़े आयोजन के लिए उस के काम का कोई सानी नहीं था. जहां उस के पिता 25 लोगों के स्टाफ के साथ अपना कारोबार चलाते थे, वहीं पंकज ने पिछले तकरीबन डेढ़ साल में 200 लोगों का स्टाफ अपने नीचे काम करने के लिए रख लिया था.

पैसों की बारिश के साथ सामाजिक इज्जत में भी भारी इजाफा हुआ था, पर इस शानशौकत, इज्जत, पैसे के एवज में पंकज न तो चैन की नींद ले पाता था, न ही ढंग से भोजन कर पाता था.

पंकज की शादी हुए भी 2 साल हो चुके थे, पर 3 दिन के हनीमून के अलावा उस के पास बीवी के लिए भी समय नहीं था. मातापिता और पत्नी उसे काम के फैलाव को समेटने के लिए समझाते, पर उस का जुनून उसे अपने काम के नशे से सरोबार रखता.

सारा दिन औफिस और साइट के बीच भागदौड़ और साथ ही मोबाइल पर लगातार बातचीत पंकज को एक पल के लिए भी अपने या परिवार के बारे में सोचने का मौका नहीं देता था. सुबह जल्दबाजी में नाश्ता कर घर छोड़ता, दिन में जो मिल जाता खा लेता और देर रात घर लौट कर जो भी उसे परोस दिया जाता, अपना ध्यान फोन पर उंगली फिराते हुए खा लेता.

ज्यादा मेहनत करने से पंकज की सेहत पर बुरा असर पड़ने लगा था. कभी सिरदर्द, तो कभी बदनदर्द, एयरकंडीशंड औफिस में भी काम करते समय कभी माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आती थीं.

एक दिन ऐसे ही बेचैनी में पंकज औफिस से उठ कर अपने गोदाम की ओर चल दिया. 4-5 मजदूर सामान को जमातेजमाते भोजन करने जमीन पर घेरा बना कर बैठे थे. कोई डब्बे में तो कोई थैली में से भोजन निकाल रहा था और हंसीठिठोली से माहौल में मस्ती घोल रहा था.

पंकज चुपचाप उन को निहारता रहा और उसे उन को देख कर ही सुकून मिलने लगा था.

‘‘ले… मेरे कटहल के अचार का स्वाद चख, मेरी नानी ने बना कर भिजवाया है,’’ एक मजदूर ने दूसरे को मनुहार से अपना खाना साझा किया, तो दूसरा मजदूर बोला, ‘‘मेरी बीवी भी प्याजपरवल की सब्जी बहुत अच्छी बनाती है, सब चख लो.’’

अचानक एक मजदूर की नजर पंकज पर पड़ी, तो सब चुप हो गए. वह धीरे से चल कर उन के पास आया, तो एक मजदूर सकपका कर बोला, ‘‘हम बस अभी खाना खाने बैठे हैं. जल्दी खा लेते हैं. कोई काम है, तो आप बताइए?’’

पंकज झिझकते हुए बोला, ‘‘क्या मैं भी आप लोगों के साथ बैठ कर भोजन कर सकता हूं?’’

कुछ देर की शांति के बाद एक जना अटकते हुए बोला, ‘‘हमारा भोजन शायद आप को पसंद न आए और फिर आप कहां बैठ कर खाएंगे? यहां तो बरतन भी नहीं हैं.’’

‘‘अरे, मैं यहीं तुम्हारे साथ बैठ कर भोजन करना चाहता हूं, अगर आप को एतराज न हो तो…?’’ एक मुसकराहट के साथ पंकज ने कहा, तो खुशीखुशी सभी लोगों ने सरक कर घेरा बड़ा कर लिया और उस के लिए जगह बना दी.

पंकज पूरे मजे के साथ एकएक कौर खाते हुए सोच रहा था कि इतनी दौलत होने के बाद भी उस ने जिंदगी में पिछली बार कब इतने शौक से भोजन किया था?

बहुत सोचने के बाद भी पंकज याद नहीं कर पाया. इस समय तो बारबार बजते फोन को भी उस ने साइलैंट मोड पर कर दिया था. उस के कारोबार के लिए मेहनत करने वाले कामगारों को वह पहली बार जाननेसमझने का मौका पा रहा था, जो सब मिल कर उसे अपनी बातों से अनोखा मजा दे रहे थे.

वहां से खाना खा कर जाते हुए पंकज यह सोच रहा था कि वह अपने सभी कामगारों को एक शानदार तोहफा देगा और काम से छुट्टी ले कर अपने परिवार के लिए भी रोज समय जरूर निकालेगा.

पंकज की चिंता और दर्द अब काफूर हो चुके थे और उसे लग रहा था कि उस ने अपने ऊपर जबरदस्ती का लादा हुआ बोझ उतार फेंका है.

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