बिगड़ी लड़की : अजय से ड्राइविंग के बारे में कौन पूछ रहा था

एक दामाद और : पांच बेटी होने के बाद भी उसे कोई दिक्कत नहीं थी क्यों -भाग 2

‘‘क्यों?’’ नरेश ने चौंक कर कहा.

दूसरी तरफ से कई लोगों के खिल- खिलाने की आवाजें आईं, ‘‘जीजाजी… जीजाजी.’’

नरेश ने माथा पीट लिया. उर्मिला फोन करने पास की एक दुकान पर जाती थी. वह प्रति फोन 1 रुपया लेता था. सड़क पर आवाजें काफी आती थीं, इसलिए जोरजोर से बोलना पड़ता था. नरेश ने कह रखा था कि जब तक एकदम आवश्यक न हो यहां से फोन न करे. सब लोग दूरदूर तक सुनते हैं और मुसकराते हैं. उसे यह बिलकुल अच्छा नहीं लगता था और उस समय तो वहां पूरी बरात ही खड़ी थी. वह सोचने लगा, दुनिया भर को मालूम हो जाएगा कि वह पलटन के साथ फिल्म देखने जा रहा है. और तो और, ये सालियां क्या हैं एक से एक बढ़ कर पटाखा हैं, इन्हें फुलझडि़यां कहना तो इन का अपमान होगा.

‘‘ठीक है,’’ कह कर उस ने फोन पटक दिया. आगे बात करने का अवसर ही नहीं दिया. रूमाल निकाल कर माथे का पसीना पोंछने लगा. उसे याद था कि कैसे बड़ी कठिनाई से उस ने उर्मिला को टरकाया था, जब वह सब सालियों समेत दफ्तर आने की धमकी दे रही थी.

2 जने जाते तो 14 रुपए के टिकट आते. अब पूरे 42 रुपए के टिकट आएंगे. सालियां आइसक्रीम और पापकार्न खाए बिना नहीं मानेंगी. वैसे तो वह स्कूटर पर ही जाता, पर अब पूरी टैक्सी करनी पड़ेगी. उस का भी ड्योढ़ा किराया लगेगा. उस ने मन ही मन ससुर को गाली दी. घर में अच्छीखासी मोटर है. यह नहीं कि अपनी रेजगारी को आ कर ले जाएं. उसे स्वयं ही टैक्सी कर के घर छोड़ने भी जाना होगा. अभी तो महीना खत्म होने में पूरे 3 सप्ताह बाकी थे.

सालियां तो सालियां ठहरीं, पूरी फिल्म में एकदूसरी को कुहनी मारते हुए खिलखिला कर हंसती रहीं. आसपास वालों ने कई बार टोका. नरेश शर्म के मारे और कभी क्रोध से मुंह सी कर बैठा रहा. उस का एक क्षण भी जी न लगा. जैसेतैसे फिल्म समाप्त हुई तो वह बाहर आ कर टैक्सी ढूंढ़ने लगा.

‘‘सुनो,’’ उर्मिला ने कहा.

‘‘अब क्या हुआ?’’

‘‘देर हो गई है. इन्हें खाना खिला कर भेजूंगी. घर में तो 2 ही जनों का खाना है. होटल से कुछ खरीद कर घर ले चलें.’’

बड़ी साली ने इठला कर कहा, ‘‘जीजाजी, आप ने कभी होटल में खाना नहीं खिलाया. आज तो हम लोग होटल में ही खाएंगे. दीदी घर में कहां खाना बनाती फिरेंगी?’’

बाकी की सालियों ने राग पकड़ लिया, ‘‘होटल में खाएंगे. जीजाजी, आज होटल में खाना खिलाएंगे.’’

नरेश सुन्न सा खड़ा रहा

उर्मिला ने मुसकरा कर कहा, ‘‘हांहां, क्यों नहीं, शोर क्यों मचाती हो?’’ और फिर नरेश की ओर मुंह कर के बोली, ‘‘सुनो, आज इन का मन रख लो.’’

नरेश ने जेब की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘रुपए हैं पास में? मेरे पास तो कुछ नहीं है.’’

उर्मिला ने पर्स थपथपाते हुए कहा, ‘‘काम चल जाएगा. यहीं ‘चाचे दा होटल’ में चले चलेंगे.’’

जब तक खाना खाते रहे पूरी फिल्म के संवाद दोहरादोहरा कर सब हंसी के मारे लोटपोट होते रहे. और जो लोग वहां खाना खा रहे थे वे खाना छोड़ कर इन्हें ही विचित्र नजरों से देख रहे थे. नरेश अंदर ही अंदर झुंझला रहा था.

टैक्सी में बिठा कर जब वह उन्हें घर छोड़ कर वापस आया तो उस ने उर्मिला से पूरा युद्ध करने की ठान ली थी. परंतु उस के खिलखिलाते संतुष्ट चेहरे को देख कर उस ने फिलहाल युद्ध को स्थगित रखने का ही निश्चय किया.

 

उलझन : शीला जीजी क्यों ताना मार रही थी-भाग 1

आश्चर्य में डूबी रश्मि मुझे ढूंढ़ती हुई रसोईघर में पहुंची तो उस की नाक ने उसे एक और आश्चर्य में डुबो दिया, ‘‘अरे वाह, कचौरियां, बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है. किस के लिए बना रही हो, मां?’’

‘‘तेरे पिताजी के दोस्त आ रहे हैं आज,’’ उड़ती हुई दृष्टि उस के थके, कुम्हलाए चेहरे पर डाल मैं फिर चकले पर झुक गई.

‘‘कौन से दोस्त?’’ हाथ की किताबें बरतनों की अलमारी पर रखते हुए उस ने पूछा.

‘‘कोई पुराने साथी हैं कालिज के. मुंबई में रहते हैं आजकल.’’

जितनी उत्सुकता से उस के प्रश्न आ रहे थे, मैं उतनी ही सहजता से और संक्षेप में उत्तर दिए जा रही थी. डर रही थी, झूठ बोलते कहीं पकड़ी न जाऊं.

गरमागरम कचौरी का टुकड़ा तोड़ कर मुंह में ठूंसते हुए उस ने एक और तीर छोड़ा, ‘‘इतनी बढि़या कचौरियां आप ने हमारे लिए तो कभी नहीं बनाईं.’’

उस का फूला हुआ मुंह और उस के साथ उलाहना. मैं हंस दी, ‘‘लगता है, तेरे कालिज की कैंटीन में आज तेरे लिए कुछ नहीं बचा. तभी कचौरियों में ज्यादा स्वाद आ रहा है. वरना वही हाथ हैं और वही कचौरियां.’’

‘‘अच्छा, तो पिताजी के यह दोस्त कितने दिन ठहरेंगे हमारे यहां?’’ उस ने दूसरी कचौरी तोड़ कर मुंह में ठूंस ली थी.

‘‘ठहरे तो वह रमाशंकरजी के यहां हैं. उन से रिश्तेदारी है कुछ. तुम्हारे पिताजी ने तो उन्हें आज चाय पर बुलाया है. तू हाथ तो धो ले, फिर आराम से प्लेट में ले कर खाना. जरा सब्जी में भी नमक चख ले.’’

उस ने हाथ धो कर झरना मेरे हाथ से ले लिया, ‘‘वह सब चखनावखना बाद में होगा. पहले आप बेलबेल कर देती जाइए, मैं तलती जाती हूं. आशु नहीं आया अभी तक स्कूल से?’’

‘‘अभी से कैसे आ जाएगा? कोई तेरा कालिज है क्या, जो जब मन किया कक्षा छोड़ कर भाग आए? छुट्टी होगी, बस चलेगी, तभी तो आएगा.’’

‘‘तो हम क्या करें? अर्थशास्त्र के अध्यापक पढ़ाते ही नहीं कुछ. जब खुद ही पढ़ना है तो घर में बैठ कर क्यों न पढ़ें. कक्षा में क्यों मक्खियां मारें?’’ उस ने अकसर कक्षा छोड़ कर आने की सफाई पेश कर दी.

4 हाथ लगते ही मिनटों में फूलीफूली कचौरियों से परात भर गई थी. दहीबड़े पहले ही बन चुके थे. मिठाई इन से दफ्तर से आते वक्त लाने को कह दिया था.

‘‘अच्छा, ऐसा कर रश्मि, 2-4 और बची हैं न, मैं उतार देती हूं. तू हाथमुंह धो कर जरा आराम कर ले. फिर तैयार हो कर जरा बैठक ठीक कर ले. मुझे वे फूलवूल सजाने नहीं आते तेरी तरह. समझी? तब तक तेरे पिताजी और आशु भी आ जाएंगे.’’

‘‘अरे, सब ठीक है मां. मैं पहले ही देख आई हूं. एकदम ठीक है आप की सजावट. और फिर पिताजी के दोस्त ही तो आ रहे हैं, कोई समधी थोड़े ही हैं जो इतनी परेशान हो रही हो,’’ लापरवाही से मुझे आश्वस्त कर वह अपनी किताबें उठा कर रसोई से निकल गई. दूर से गुनगुनाने की आवाज आ रही थी, ‘रजनीगंधा फूल तुम्हारे, महके यों ही जीवन में…’

भाई ही बने जोरू और जमीन के प्यासे- भाग 2

इस मामले की हकीकत जानने के लिए पुलिस ने अखिलेश के छोटे भाई अनिल से पूछताछ की. तब अनिल ने बताया कि उस के भाई की दिमागी हालत सही नहीं थी. वह बहुत पहले से ही भाभी पर शक करता था.

कुछ समय पहले वह अखिलेश के साथ ही रहता था. देवरभाभी पर शक के कारण ही उस ने उसे अलग कर दिया था. जिस के बाद उस का उन से कोई लेनादेना नहीं था. उस के बाद पतिपत्नी के बीच ऐसी कौन सी बात हुई, जिस के कारण अखिलेश ने उसे मौत के घाट उतार दिया.अनिल से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने अंजलि की हत्या की सच्चाई जानने के लिए उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस की सब से ज्यादा बात अनिल से ही होना पाई गई.

जिस से साफ जाहिर था कि अंजलि का अपने देवर के अलावा किसी अन्य पुरुष के साथ संबंध नहीं था. लेकिन अनिल के खिलाफ कोई ऐसा केस नहीं बनता था, जिस के आधार पर उस पर काररवाई की जा सके.इस मामले को ले कर अनिल ने भाई को भाभी की हत्या का आरोपी मानते हुए उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. हालांकि अखिलेश का इलाज चल रहा था. फिर भी पुलिस ने उस के छोटे भाई की लिखित तहरीर पर अखिलेश के खिलाफ केस दर्ज कर लिया था.

पुलिस पूछताछ और परिवार वालों से मिली जानकारी से इस मामले की जो सच्चाई उभर कर सामने आई, वह जर, जोरू और जमीन वाली कहावत से काफी मिलती हुई थी.अखिलेश ने जिस तरह से अपने बड़े भाई अजय और पत्नी अंजलि की हत्या करने के बाद खुद को गोली मारी थी, उस से क्षेत्र में यह काफी सनसनीखेज मामला बन गया था.एक पुरानी कहावत है, ‘जर, जोरू, जमीन जोर की, नहीं तो किसी और की.’ अर्थात धन, स्त्री और जमीन एक बलवान व्यक्ति ही रख सकता है. धन के मामले में यह कहावत सच हो न हो, लेकिन स्त्री और जमीन के मामले में तो यह अखिलेश पर सटीक बैठती है.

उत्तर प्रदेश के जिला बाराबंकी के थाना सुबेहा अंतर्गत एक गांव है शुकुलपुर. राजनारायण शुक्ला इसी गांव के मूल निवासी हैं. राजनारायण शुक्ला की गांव में 5 बीघा जमीन थी, जिस पर वह खुद ही खेतीबाड़ी करते आ रहे थे. इस के अलावा राजनारायण शुक्ला लखनऊ शहर में लोगों के घरों में पूजापाठ करने का काम भी करते थे.राजनारायण की पत्नी का काफी समय पहले किसी बीमारी के चलते निधन हो गया था. उन के 4 बेटे थे. इन में सब से बड़ा बेटा राघव शरण गांव में अलग मकान बना कर रहने लगा था. जबकि दूसरा अजय शुक्ला व सब से छोटा अनिल लखनऊ में ही प्राइवेट नौकरी करते थे.
तीसरे नंबर का बेटा अखिलेश काफी समय से दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करता था. अखिलेश की शादी अब से लगभग 3 साल पहले अमेठी जिले के शुकुल बाजार थाना क्षेत्र के ग्राम बूबूपुर मजरा पाली निवासी अंजलि से हुई थी.

उस समय तक अनिल अखिलेश के साथ ही रहता था. शादी के बाद अंजलि ससुराल में ही रही. उस की सास पहले ही खत्म हो चुकी थी. घर पर 3 प्राणी थे. अखिलेश, उस के पापा राजनारायण शुक्ला और छोटा भाई अनिल.

घर में खाना बनाने की दिक्कत थी. इसी कारण शादी के बाद से ही अंजलि अपनी ससुराल की हो कर रह गई थी. अखिलेश शादी से पहले से ही दिल्ली में रह कर काम करता था. उस के पिता राजनारायण शुक्ला पुजारी का काम करते थे, जिस के चलते आए दिन उन्हें बाहर ही रहना पड़ता था.
हालांकि अनिल भी लखनऊ में नौकरी करता था. लेकिन घर पर भाभी के अकेला रहने के कारण वह अकसर गांव आताजाता रहता था. अंजलि देखनेभालने में जितनी सुंदर थी, उस से कहीं ज्यादा स्मार्ट अनिल भी था. फिर दोनों के बीच देवरभाभी का प्यार भरा रिश्ता.

कभीकभी अनिल अपनी भाभी के चेहरे पर उदासी देखता तो परेशान हो कर कहता, ‘‘लगता है भाभी को भैया की याद सता रही है.’’‘‘याद क्यों नहीं सताएगी देवरजी, अब तुम्हारे भैया तो मुझे घर में कैद कर के दिल्ली में मौजमस्ती कर रहे हैं. घर पर मन लगाने के लिए एक देवर ही तो है, जो कभी भाभी के दुखदर्द को महसूस ही नहीं करता.’’ अंजलि उलाहना देते हुए बोली.‘‘भाभी, ऐसी दिल तोड़ने वाली बात क्यों करती हो. मैं लखनऊ से तुम्हारी सेवा के लिए ही तो आता हूं. अगर तुम्हें किसी चीज की जरूरत हो तो बिना किसी झिझक के बता देना.’’ अनिल ने उसे आश्वस्त किया.

अंजलि ने कई बार अनिल से बात करने की कोशिश की थी. लेकिन शर्म के मारे वह पहल नहीं कर पा रही थी. अनिल की तरफ से इशारा मिलते ही उस के दिल की ट्रेन रेंगनी शुरू हो गई थी. फिर वह ऐसे अवसर की तलाश में जुट गई, जब वह अनिल से खुल कर बात कर सके.एक दिन ऐसा ही मौका आया. राजनारायण शुक्ला को किसी काम से लखनऊ में रुकना पड़ा. उस दिन अनिल घर पर ही आया हुआ था. अंजलि ने खाना बनाया और देवरभाभी ने एक साथ बैठ कर खाना खाया. उस दिन जैसे की अंजलि अपना कामकाज निपटा कर कमरे में पहुंची, उस के पैरों में दर्द होने लगा.

भाभी के पैर में दर्द होने पर अनिल परेशान हो उठा. अनिल ने डाक्टर से दवाई लाने की बात कही तो भाभी ने डाक्टर के पास जाने से साफ मना कर दिया. अंजलि बोली, ‘‘आप परेशान मत हो. मैं पैरों की तेल से मालिश कर लूंगी.’’फिर वह तेल की शीशी उठा कर लाई और अनिल के सामने ही पैरों की मालिश करने लगी. भाभी को मालिश करते देख अनिल से रहा नहीं गया.अनिल बोला, ‘‘भाभी, आप लेट जाओ. आप के नाजुक हाथों से मालिश करने से कुछ नहीं होने वाला. मैं आप के पैरों की मालिश कर देता हूं.’’

अंजलि भी यही चाहती थी. अनिल के कहते ही उस ने झट से शीशी उस के हाथ में थमाते हुए बोली, ‘‘देवरजी, अपने हाथ से मालिश करने में वह मजा कहां जो दूसरों के हाथों में आता है.’’पलभर में ही उस के तेल लगे हाथ अंजलि की पिंडलियों पर फिसलने लगे थे. जैसेजैसे अनिल के हाथ भाभी के पैरों की ऊंचाइयों पर बढ़ते गए, अंजलि का पेटीकोट भी ऊपर को सरकते गया. अनिल की जिंदगी में एक औरत के शरीरे को छूने का पहला अहसास था. एक औरत के गर्म शरीर की गरमी पा कर अनिल मदहोश हो गया.

भाभी की गोरीगोरी पिंडलियां देख कर वह अपना आपा खो बैठा. देखते ही देखते उस के हाथ पैरों के ऊपरी हिस्से पर भी पहुंच गए. अंजलि कब से इन्हीं पलों के इंतजार में थी.पलभर में ही एक तूफान आया और गुजर गया. जब अनिल अपने होशोहवास में आया तो वह निर्वस्त्र था. उस का सारा शरीर पसीनापसीना था. अंजलि सामने पड़ी ठंडी आहें भर रही थी.अनिल के संपर्क में आने के बाद अंजलि को पहली बार किसी की मर्दानगी का अहसास हुआ था. उस दिन देवरभाभी के रिश्तों की मर्यादाओं की सीमा टूटी तो यह सिलसिला बन गया.

अखिलेश दिल्ली से कभीकभार आता और एकदो दिन रुकने के बाद फिर से वापस चला जाता. लेकिन उस दौरान भी अंजलि अखिलेश की चोरीछिपे फोन पर अनिल से बात करती रहती थी.धीरेधीरे अंजलि की शादी को 2 साल बीत गए, लेकिन वह मां नहीं बन सकी. उस के बाद उस का झुकाव अनिल की तरफ हो गया था. वह हर समय अनिल से ही फोन पर बात करती रहती थी.अखिलेश अंजलि के फोन बिजी रहने से परेशान हो चुका था. जब कभी भी वह उसे फोन मिलाता तो उस का नंबर बिजी ही आता था. अखिलेश समझ नहीं पा रहा था कि वह हर वक्त किस से बात करती है.

इसी सच्चाई को जानने के लिए उस ने एक दिन उस का मोबाइल चैक किया तो पता चला कि वह घंटोंघंटों उस के छोटे भाई अनिल से ही बात करती थी. अखिलेश समझ गया कि उस की बीवी और भाई के बीच जरूर कुछ चक्कर चला रहा है.देवरभाभी पर शक होने के बाद वह सच्चाई जानने के लिए एक ऐसे अवसर की तलाश में जुट गया, जब वह दोनों को रंगेहाथों पकड़ सके. जब कभी भी अनिल लखनऊ से घर आता तो वह दोनों पर गहरी नजर रखता था.

एक दिन अनिल लखनऊ से घर आया तो अखिलेश कहीं काम का बहाना बना कर घर से निकल गया. घर से निकलते ही उस ने दारू पी और फिर अपने दोस्तों में बैठ गया. उस ने अपना मोबाइल भी बंद कर लिया था. उस दौरान कई बार अंजलि ने उस के मोबाइल पर काल की, लेकिन हर बार उस का मोबाइल बंद ही आया.

देर रात वह घर पहुंचा तो घर के मेनगेट का दरवाजा खुला था. अखिलेश सीधा अपने कमरे में पहुंचा. अंजलि अपने कमरे से गायब थी. उस के बाद वह अपने भाई के कमरे के पास पहुंचा. उस ने कान लगा कर सुना तो अंदर से दोनों के बातचीत की आवाज आ रही थी.अखिलेश भले ही नशे में था, लेकिन वह इतना तो समझ ही गया था कि उस की बीवी उस के भाई के साथ मौजमस्ती कर रही है. यह सब देख कर उस का गुस्सा बढ़ गया. उस ने दरवाजा खटखटाया तो उस के भाई ने दरवाजा खोला.

दरवाजा खुलते ही उस ने अंजलि के बारे में पूछा तो अनिल ने कहा कि भाभी अपने कमरे में होंगी. भाभी के बारे में उसे कुछ पता नहीं. भाई का लिहाज करते हुए उस समय अखिलेश अपने कमरे में चला गया. लेकिन उस की निगाहें भाई के कमरे पर ही टिकी हुई थीं.अनिल और अंजलि को विश्वास था कि अखिलेश अब तक नशे की हालत में सो चुका होगा. तभी मौका पाते ही अंजलि अनिल के कमरे से निकल कर छत पर चली गई. छत पर कुछ देर टहलने के बाद वह अपने कमरे में आ गई.
अंजलि के आते ही अखिलेश ने उस से पूछा, ‘‘इतनी रात गए कहां गई थी?’’

तब अंजलि ने बताया, ‘‘मैं ने कई बार तुम्हारा मोबाइल मिलाया. लेकिन वह स्विच्ड औफ आ रहा था. मुझे नींद नहीं आ रही थी, इसी कारण मैं छत पर घूमने चली गई थी.’’अखिलेश अंजलि से बहुत प्यार करता था. लेकिन उस दिन उस का प्यार नफरत में बदल चुका था. अखिलेश नशे में था. उस ने तभी अंजलि को मारनापीटना शुरू कर दिया.

अनिल बचाव में आया तो उसे भी भलाबुरा कहा. अखिलेश ने उसी समय अनिल को चेतावनी दी, ‘‘आज से तेरेमेरे बीच भाई का रिश्ता खत्म. आज के बाद तू मेरे घर में मत आना.’’अगले दिन सुबह होते ही अखिलेश ने अनिल को अपने घर से अलग कर दिया था. उस के बाद अनिल भी अलग रहने लगा था. कुछ समय पहले ही अखिलेश ने अपने घर के सामने 3 बिस्वा जमीन खरीदी थी. भाइयों के बीच मनमुटाव होने के कारण उस के तीनों भाई भी उस जमीन पर अपना हक जमाते हुए उस में से अपने हिस्से की मांग करने लगे थे. जिसे ले कर कई बार चारों भाइयों में विवाद भी हुआ था.

खोया हुआ आशिक : शालिनी के लौटने पर क्यों परेशान थी विनीता -भाग 1

‘‘हैलोविन्नी… कैसी हो मेरी जान… अरे, मैं शालिनी बोल रही हूं… तुम्हारी शालू’’ सुन कर विनीता को समझने में कुछ समय लगा, मगर फिर जल्दी ही जैसे दिमाग सोते से जागा.

‘‘अरे, शालू तुम? अचानक इतने सालों बाद? तुम तो नितेश से शादी कर के अमेरिका चली गई थी… आज इतने सालों बाद अचानक मेरी याद कैसे आई? क्या इंडिया आई हो?’’ विनीता ने अपने मन की घबराहट छिपाते हुए पूछा.

‘‘अरे बाप रे, इतने सारे सवाल एकसाथ? बताती हूं… बताती हूं… अभी तो बातें शुरू हुई हैं…’’ शालिनी ने अपनी आदत के अनुसार ठहाका लगाते हुए कहा.

‘‘पहले तू यह बता कि मेरे खोए हुए आशिक यानी जतिन के बारे में तुझे कोई खबर है क्या? शायद मेरी तरह उस ने भी हमारे अतीत के कुछ पन्ने संभाल कर रखें हों…’’ शालिनी का सवाल सुनते ही विनीता के हाथ से मोबाइल छूटने को हुआ. वह उसे कैसे बताती कि उस का खोया हुआ आशिक ही अब उस का पाया हुआ प्यार है… जिन अतीत के पन्नों की बात ‘शालू कर रही थी वही पन्ने उस के जाने के बाद विनीता वर्तमान में पढ़ रही है… हां, वही जतिन जो कभी शालू का आशिक हुआ करता था आज विनीता का पति है.’

विनीता को एकाएक कोई जवाब नहीं सूझा तो उस ने 4-5 बार ‘‘हैलो… हैलो…’’ कह कर फोन काट दिया और फिर उसे स्विच औफ भी कर दिया. वह फिलहाल शालू के किसी भी सवाल का जवाब देने की स्थिति में नहीं थी.

विनीता बैडरूम में आ कर कटे पेड़ की तरह ढह गई. न जाने कितनी ही बातें… कितनी ही यादें थीं, जो 1-1 कर आंखों के रास्ते गुजर रही थी. कौन जाने… आंखों से यादें बह रही थीं या आंसुओं का सैलाब… कैसे भूल सकती है विनीता कालेज के आखिरी साल के वे दिन जब शालिनी ने अचानक नितेश से शादी करने के अपने पापा के फैसले को हरी झंडी दे दी थी. विनीता ने क्या कम समझाया था उसे?

‘‘शालू, तुम जतिन के साथ ऐसा कैसे कर सकती हो? उसे कितना भरोसा है तुम पर… बहुत प्यार करता है तुम से… वह टूट जाएगा शालू… मुझे तो डर है कि कहीं कुछ उलटासीधा न कर बैठे…’’ विनीता को शालू की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था. एक वही तो थी इस रिश्ते की चश्मदीद गवाह.

‘‘बी प्रैक्टिकल यार. प्यार अलग चीज है और शादी अलग… नितेश से जो मुझे मिल सकता है वह जतिन कभी नहीं दे सकता… नीतेश एअर इंडिया में पायलट है… महानगर में शानदार फ्लैट… अच्छी नौकरी… हैंडसम पर्सनैलिटी… रोज विदेश के दौरे… क्या

ये सब जतिन दे पाएगा मुझे? उसे तो अभी

सैटल होने में ही बरसों लग जाएंगे… तब तक

तो मैं बूढ़ी हो जाऊंगी…’’ शालू ने आदतन ठहाका लगाया.

‘‘देख शालू, तुझे जो करना है वह कर,

मगर प्लीज… फाइनल ऐग्जाम तक इस बारे में जतिन को कुछ मत बताना वरना वह एग्जाम भी नहीं दे पाएगा… उस का फ्यूचर खराब हो जाएगा…’’ विन्नी उस के सामने लगभग गिड़गिड़ा उठी.

‘‘ओके डन… मगर तू क्यों इतनी मरी जा रही है उस के लिए?’’ शालू विन्नी पर कटाक्ष करते हुए क्लास से चली गई.

फाइनल परीक्षा खत्म हो गई. आखिरी पेपर के बाद तीनों कालेज कैंटीन में मिले थे. तभी शालू ने नितेश के साथ अपनी सगाई की खबर सार्वजनिक की थी. विनीता की नजर लगातार जतिन के चेहरे पर ही टिकी थी. वह संज्ञा शून्य सा बैठा था. उन दोनों को सकते में छोड़ कर शालू कब की जा चुकी थी. विनीता किसी तरह जतिन को वहां से उठा कर ला पाई थी.

नितेश से शादी कर के 2 ही महीनों में शालू अमेरिका चली गई. फाड़ कर फेंक गई थी अपने अतीत के पन्ने… पीछे छोड़ गई थी टूटा… हारा… अपना आशिक… जिसे विनीता ने न केवल संभाला, बल्कि संवार निखार भी दिया. शालू की बेवफाई के गम को भुलाने के लिए जतिन ने अपने आप को पढ़ाई में डुबो दिया. विनीता ने उस के आंसुओं को कंधा दिया. वह लगातार उस का हौसला बढ़ाती रही. आखिर जतिन की मेहनत और विनीता की तपस्या रंग लाई. प्रशासनिक अधिकारी तो नहीं, मगर जतिन एक राजपत्रित अधिकारी तो बन ही गया था. अपनी सफलता का सारा श्रेय विनीता को देते हुए एक दिन जब जतिन ने उसे शादी के लिए प्रोपोज किया तो वह भी न नहीं कह सकी और घर वालों की सहमति से दोनों विवाहसूत्र में बंध गए. बेशक यह पहली नजर वाला प्रेम नहीं था, मगर हौलेहौले हो ही गया था.

तभी लैंडलाइन की घंटी ने उसे वर्तमान में ला दिया.

‘‘अरे, क्या बात है… तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न? मोबाइल स्विच औफ क्यों आ रहा है?’’ जतिन की आवाज में खुद के लिए इतनी फिक्र महसूस कर विनीता को दिली राहत मिली.

 

अपने पराए: संकट की घड़ी में किसने दिया अमिता का साथ -भाग 2

अमिता ने स्थायी रूप से मायके जा कर रहना पसंद नहीं किया. यह उस के पति का अपना घर है, पति के साथ 5 साल यहीं तो बीते हैं, फिर राहुल भी यहीं पैदा हुआ है. जाहिर है, भावनाओं के जोश में उस ने बाप के घर जा कर रहने से मना कर दिया.

सुभाषचंद्र के प्रयास से वह बैंक में मैनेजर से मिल कर पति के खाते की स्वामिनी कागजपत्रों पर हो गई. पासबुक, चेकबुक मिल गई और फिलहाल के जरूरी खर्चों के लिए उस ने 25 हजार की रकम भी बैंक से निकाल ली.

अब वह पहले वाली निरीह गृहिणी अमिता नहीं बल्कि अधिकार भाव रखने वाली संपन्न अमिता है. राहुल को नगर निगम के स्कूल से हटा कर पास के ही एक अच्छे पब्लिक स्कूल में दाखिल करा दिया. अब उसे स्कूल की बस लाती, ले जाती है.

बेटी घर में अकेली कैसे रहेगी, यह सोच कर मां और छोटी बहन वीणा वहीं रहने लगीं. वीणा वहीं से स्कूल पढ़ने जाने लगी. छोटा भाई भी रोज 1-2 बार आ कर पूछ जाता. अब एक काम वाली रख ली गई, वरना पहले अमिता ही चौका- बरतन से ले कर साफसफाई का सब काम करती थीया है…’’

मां ने रोते हुए अमिता का हाथ पकड़ लिया, ‘‘बेटी, अब तुम्हारे ही ऊपर है, इन्हें जेल जाने से बचाओ…’’

अमिता ने बैंक द्वारा भेजे गए कागज देखने चाहे. पिता का चेहरा उतर गया. बोले, ‘‘बैंक ने अभी तो सम्मन नहीं भेजा है, लेकिन वहां के एक जानपहचान के आदमी ने बताया है कि जल्द भेजने की तैयारी हो रही है. उस ने राय दी है कि मैं मैनेजर से मिल लूं और शीघ्र रुपए की व्यवस्था करूं.’

काली सोच : क्या वो खुद को माफ कर पाई -भाग 1

अंधविश्वास, पुरातनपंथी और कट्टरवादी सोच ने न जाने कितनों का घर उजाड़ा है. शुभा की आंखों पर भी न जाने क्यों इन्हीं सब का परदा पड़ा हुआ था, जिस का परिणाम इतना भयावह होगा, इस की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी.

लेखन कला मुझे नहीं आती, न ही वाक्यों के उतारचढ़ाव में मैं पारंगत हूं. यदि होती तो शायद मुझे अपनी बात आप से कहने में थोड़ी आसानी रहती. खुद को शब्दों में पिरोना सचमुच क्या इतना मुश्किल होता है?

बाहर पूनम का चांद मुसकरा रहा है. नहीं जानती कि वह मुझ पर, अपनेआप पर या किसी और पर मुस्कुरा रहा है. मैं तो बस इतना जानती हूं कि वह भी पूनम की ऐसी ही एक रात थी जब मैं अस्पताल के आईसीयू के बाहर बैठी अपने गुनाहों के लिए बेटी से माफी मांग रही थी, ‘मुझे माफ कर दे बेटी. पाप किया है मैं ने, महापाप.’

मानसी, मेरी इकलौती बेटी, भीतर आईसीयू में जीवन और मौत के बीच झूल रही है. उस ने आत्महत्या करने की कोशिश की, यह तो सभी जानते हैं पर यह कोई नहीं जानता कि उसे इस हाल तक लाने वाली मैं ही हूं. मैं ने उस मासूम के सामने कोई और रास्ता छोड़ा ही कहां था?

कहते हैं आत्महत्या करना कायरों का काम है पर क्या मैं कायर नहीं जो भविष्य की दुखद घटनाओं की आशंका से वर्तमान को ही रौंदती चली आई?

हर मां का सपना होता है कि वह अपनी नाजों से पाली बेटी को सोलहशृंगार में पति के घर विदा करे. मैं भी इस का अपवाद नहीं थी. तिनकातिनका जोड़ कर जैसे चिडि़या अपना घोंसला बनाती है. वैसे ही मैं भी मानसी की शादी के सपने संजोती गई. वह भी मेरी अपेक्षाओं पर हमेशा खरी उतरी. वह जितनी सुंदर थी उतनी ही मेधावी भी. शांत, सुसभ्य, मृदुभाषिणी मानसी घरबाहर सब की चहेती थी. एक मां को इस से ज्यादा और क्या चाहिए?

‘देखना अपनी लाडो के लिए मैं चांद सा दूल्हा लाऊंगी,’ मैं सुशांत से कहती तो वे मुसकरा देते.

उस दिन मानसी की 12वीं कक्षा का परिणाम आया था. वह पूरे स्टेट में फर्स्ट आईर् थी. नातेरिश्तेदारों की तरफ से बधाइयों का तांता लगा हुआ था. हमारे पड़ोसी व खास दोस्त विनोद भी हमारे घर आए थे मिठाई ले कर.

‘मिठाई तो हमें खिलानी चाहिए भाईसाहब, आप ने क्यों तकलीफ की,’ सुशांत ने गले मिलते हुए कहा तो वे बोले, ‘हां हां, जरूर खाएंगे. सिर्फ मिठाई ही क्यों? हम तो डिनर भी यहीं करेंगे, लेकिन पहले आप मेरी तरफ से मुंह मीठा कीजिए. रोहित का मैडिकल कालेज में दाखिला हो गया है.’

‘फिर तो आज दोहरी खुशी का दिन है. मानसी ने 12वीं में टौप किया है. मैं ने मिठाई की प्लेट उन की ओर बढ़ाई.’

‘आप चाहें तो हम यह खुशी तिहरी कर लें,’ विनोद ने कहा.

‘हम समझे नहीं,’ मैं अचकचाई.

‘अपनी बेटी मानसी को हमारे आंचल में डाल दीजिए. मेरी बेटी की कमी पूरी हो जाएगी और आप की बेटे की,’ मिसेज विनोद बड़ी मोहब्बत से बोली.

‘देखिए भाभीजी, आप के विचारों की मैं इज्जत करती हूं, लेकिन मुंह रहते कोई नाक से पानी नहीं पीता. शादीविवाह अपनी बिरादरी में ही शोभा देते हैं,’ इस से पहले कि सुशांत कुछ कहते मैं ने सपाट सा उत्तर दे दिया.

‘जानती हूं मैं. सदियों पुरानी मान्यताएं तोड़ना आसान नहीं होता. हमें भी काफी वक्त लगा है इस फैसले तक पहुंचने में. आप भी विचार कर देखिएगा,’ कहते हुए वे लोग चले गए.

‘इस में हर्ज ही क्या है शुभा? दोनों बच्चे बचपन से एकदूसरे को जानते हैं, समझते हैं. सब से बढ़ कर बौद्धिक और वैचारिक समानता है दोनों में. मेरे खयाल से तो हमें इस रिश्ते के लिए हां कह देनी चाहिए.’ सुशांत ने कहा तो मेरी त्योरियां चढ़ गईं.

‘तुम्हारा दिमाग तो नहीं फिर गया है. आलते का रंग चाहे जितना शोख हो, उस का टीका नहीं लगाते. कहां वो, कहां हम उच्चकुलीन ब्राह्मण. हमारी उन की भला क्या बराबरी? दोस्ती तक तो ठीक है, पर रिश्तेदारी अपनी बराबरी में होनी चाहिए. मुझे यह रिश्ता बिलकुल पसंद नहीं है.’

‘एक बार खुलेमन से सोच कर तो देखो. आखिर इस में बुराई ही क्या है? दीपक ले कर ढूंढ़ेंगे तो भी ऐसा दामाद हमें नहीं मिलेगा’, सुशांत ने कहा.

 

पालनहार बना हैवान

बिहार के समस्तीपुर जिले के रोसड़ा अनुमंडलीय मुख्यालय स्थित बड़ी दुर्गा स्थान में मिश्र टोला का रहने वाला शिक्षक है रविंद्र झा. 50 वर्षीय रविंद्र झा रोसड़ा के संस्कृत विद्यालय में अध्यापक है. उस की बुरी नजर अपनी ही 20 साल की बेटी मोनिका पर थी.

4 वर्ष पहले की बात है एक दिन मोनिका घर में अकेली थी. बस, बेशर्म शिक्षक पिता रविंद्र झा ने अपनी बेटी मोनिका के साथ अश्लील हरकत करनी शुरू कर दी.मोनिका ने विरोध किया फिर भी रविंद्र झा ने उस के साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बना लिए. मोनिका ने यह बात अपनी मां से बताई. लेकिन लोकलाज का हवाला दे कर मां ने उसे चुप रहने की हिदायत दी.

उस समय मोनिका इंटरमीडिएट की छात्रा थी. वह अब स्नातक तीसरे वर्ष की छात्रा है. उस के बाद रविंद्र झा का मनोबल बढ़ता ही चला गया और वह जबतब घर में अकेली रहती बेटी मोनिका के साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाने लगा.पिता की हरकत से परेशान हो कर मोनिका ने सबूत इकट्ठा करने के खयाल से ही यह घिनौनी करतूत 20 अप्रैल, 2022 को अपने मोबाइल के कैमरे में कैद कर ली.
पिता के घिनौने कृत्य की वीडियो बनाने के बाद मोनिका ने अपनी मामी से यह बात शेयर की. मामामामी उस के घर पहुंचे और मोनिका को साथ ले कर अपने घर चले गए. जहां मोनिका ने सारी बात मामामामी व अन्य रिश्तेदारों को खुल कर बताई.

वहां उस का ममेरा भाई माधव मिश्रा कोने में खड़े हो कर सारी बात सुन रहा था. माधव ने मोनिका को मदद का भरोसा दिलाया तो वह मान गई और मोनिका ने वीडियो माधव के हवाले कर दी.
माधव ने वह वीडियो प्रशासनिक मदद के खयाल से अपने एक परिचित हसनपुर निवासी एक न्यूज पोर्टल के पत्रकार संजय भारती को दे दी. ‘रोसड़ा जंक्शन’ नामक उस न्यूज पोर्टल से जुड़े पत्रकार संजय भारती ने पहले मोनिका से मोबाइल पर संपर्क कर उसे ब्लैकमेल किया और जब उसे पैसा नहीं मिला तो उस ने वह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दी.

मोनिका को जब वीडियो वायरल होने की खबर मिली तो वह बहुत परेशान हो गई. उस ने रोसड़ा थाने जा कर मदद की गुहार लगाई. लेकिन पुलिस वाले पीडि़ता के पिता से मिल गए और उन्होंने केस दर्ज नहीं किया.पुलिस उच्चाधिकरियों के संज्ञान में मामला आने के बाद पुलिस ने केस दर्ज कर मोनिका के घर पर छापेमारी की. फिर मोनिका के पिता रविंद्र झा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है. इतना ही नहीं, पुलिस ने पीडि़ता के ममेरे भाई माधव मिश्रा को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

समस्तीपुर के एसपी हृदयकांत के आदेश पर अब यह मामला समस्तीपुर महिला थानाप्रभारी पुष्पलता कुमारी को ट्रांसफर कर दिया गया है.दुष्कर्मी पिता रविंद्र झा व ममेरे भाई माधव मिश्रा के खिलाफ भादंवि की धारा 376, 354(बी), 341, 504, 506 आईपीपी व पोक्सो एक्ट एवं 67(ए) आईटी एक्ट के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है. तो वहीं न्यूज पोर्टल के पत्रकार संजय भारती के खिलाफ भी 5 मई, 2022 को भादंवि की धारा 384, 506, 509 व 67(ए) आईटी एक्ट 2000 के तहत रिपोर्ट दर्ज की जा चुकी है. लेकिन वह गिरफ्तार नहीं हो सका है.

थानाप्रभारी पुष्पलता कुमारी ने पीडि़ता मोनिका का 6 मई, 2022 को समस्तीपुर के सदर अस्पताल में मैडिकल कराया. डा. नवनीता, डा. गिरीश कुमार व डा. उत्सव की टीम ने पीडि़ता का मैडिकल परीक्षण किया. उस का अल्ट्रासाउंड व एक्सरे तक कराया गया. मैडिकल जांच में उस के साथ शारीरिक शोषण की पुष्टि हुई.

मैडिकल जांच और कोर्ट में बयान दर्ज कराने के बाद मोनिका को उस के मामामामी के साथ भेज दिया गया है. क्योंकि माधुरी ने मां के साथ घर जाने से इनकार कर दिया था.
फिलहाल मोनिका अभी डर से उबर नहीं पाई है. वह सहमी हुई रहती है.

खोया हुआ आशिक : शालिनी के लौटने पर क्यों परेशान थी विनीता -भाग 3

जतिन की साफगोई के विपरीत विनीता इसे अपने खिलाफ शालिनी की साजिश समझ रही थी. भीतर ही भीतर घुटती विनीता आखिरकार एक दिन हौस्पिटल के बिस्तर पर पहुंच गई. जतिन घबरा गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि हंसतीखेलती विन्नी को अचानक क्या हो गया है. ठीक है वह पिछले दिनों कुछ परेशान थी, मगर स्थिति इतनी बिगड़ जाएगी, यह उस ने कल्पना भी नहीं की थी. जतिन उस का अच्छे से अच्छा इलाज करवा रहा था. जतिन की गैरमौजूदगी में एक दिन अचानक शालिनी उस से मिलने हौस्पिटल आई. विन्नी अनजाने डर से सिहर गई.

‘‘थैंक यू विन्नी, तुम्हारी बीमारी ने मेरा रास्ता बहुत आसान कर दिया… तुम जतिन से जितनी दूर जाओगी, वह उतना ही मेरे करीब आएगा…’’ शालिनी ने बेशर्मी से कहा. उस ने जतिन के साथ अपनी कुछ सैल्फियां भी उसे दिखाईं जिन में वह उस के साथ मुसकरा रहा था, साथ ही कुछ मनगढ़ंत चटपटे किस्से भी परोस दिए. शालू की बातें देखसुन कर विनीता ने मन ही मन इस रिश्ते के सामने हथियार डाल दिए.

‘‘जतिन, तुम शालू को अपना लो… अब तो तलाक की बाध्यता भी नहीं रहेगी… मैं ज्यादा दिन तुम्हें परेशान नहीं करूंगी…’’

विनीता के मुंह से ऐसी बात सुन कर जतिन चौंक गया. बोला, ‘‘आज तुम ये कैसी पागलों सी बातें कर रही हो? और यह शालू कहां से आ गई हमारे बीच में?’’

‘‘तुम्हें मुझ से कुछ भी छिपाने की जरूरत नहीं है. मुझे शालू ने सब बता दिया,’’ विन्नी ने किसी तरह अपनी सुबकाई रोकी, मगर आंखें तो फिर भी छलक ही उठीं.

‘‘तुम उस सिरफिरी शालू की बातों पर भरोसा कर रही हो मेरी बात पर नहीं… बस, इतना ही जानती हो अपने जतिन को? अरे, लाखों शालू भी आ जाएं तब भी मेरा फैसला तुम ही रहोगी… मगर शायद गलती तुम्हारी भी नहीं है… जरूर मेरे ही प्यार में कोई कमी रही होगी… मैं ही अपना भरोसा कायम नहीं रख पाया… मुझे माफ कर दो विन्नी… मगर इस तरह मुझ से दूर जाने की बात न करो…’’ जतिन भी रोने को हो आया.

‘‘यही सब बातें मैं अपनेआप को समझाने की बहुत कोशिश करती हूं. मगर दिल में कहीं दूर से आवाज आती है कि विन्नी तुम यह कैसे भूल रही हो कि शालू ही वह पहला नाम है जो जतिन ने अपने दिल पर लिखा था और फिर मैं दो कदम पीछे हट जाती हूं.’’

‘‘मुझे इस बात से इनकार नहीं कि शालू का नाम मेरे दिल पर लिखा था… मगर तुम्हारा नाम तो खुद गया है मेरे दिल पर… और खुदी हुई इबारतें कभी मिटा नहीं करतीं पगली…’’

‘‘तुम ने मुझे न केवल जिंदगी दी है,

बल्कि जीने के मकसद भी दिए हैं. तुम्हारे बिना न मैं कुछ हूं और न ही मेरी जिंदगी. अगर इस बीमारी की वजह शालू है, तो मैं आज इसे जड़ से ही खत्म कर देता हूं… अभी होटल के मालिक को फोन कर के शालू को नौकरी से हटाने को कह देता हूं, फिर जहां उस की मरजी हो चली जाए,’’ कह जतिन ने जेब से मोबाइल निकाला.

‘‘नहीं जतिन, रहने दीजिए… शायद सारी गलती मेरी ही थी… मुझे अपने प्यार पर भरोसा रखना चाहिए था… मगर मैं नहीं रख पाई… आशंकाओं के अंधेरे में भटक गई थी… मेरी आशंकाओं के बादल अब छंट चुके हैं… हमारे रिश्ते को किसी शालू से कोई खतरा नहीं…’’ विनीता मुसकरा दी.

तभी जतिन का मोबाइल बज उठा. शालिनी कौलिंग देख कर वह मुसकरा दिया. उस ने मोबाइल को स्पीकर पर कर दिया.

‘‘हैलो जतिन, फ्री हो तो क्या हम कौफी साथ पी सकते हैं? वैसे भी विन्नी तो हौस्पिटल में है… आ जाओ,’’ शालिनी ने मचलते हुए कहा.

‘‘विन्नी कहीं भी हो, हमेशा मेरे साथ मेरे दिल में होती है. और हां, यदि तुम ने मुझे ले कर कोई गलतफहमी पाल रखी है तो प्लीज भूल जाओ… तुम मेरी विन्नी की जगह कभी नहीं ले सकती… नाऊ बाय…’’ जतिन बहुत संयत था.

‘‘बाय ऐंड थैंक्स शालू… हमारे रिश्ते को और भी ज्यादा मजबूत बनाने के लिए…,’’ विन्नी भी खिलखिला कर जोर से बोली और फिर जतिन ने फोन काट दिया. दोनों देर तक एकदूसरे का हाथ थामे अपने रिश्ते की गरमाहट महसूस करते रहे.’’

 

अपने पराए: संकट की घड़ी में किसने दिया अमिता का साथ -भाग 3

था कि जबतब शेयर मार्केट में भी वह जाया करता था. जो हो, सचाई अपनी जगह ठोस थी. पत्नी के नाम साढ़े 5 लाख रुपए निश्चित थे.

आमतौर पर बैंक वाले ऐसी बातें खुद नहीं बताते, नामिनी को खुद दावा करने जाना पड़ता है. वह तो बैंक का क्लर्क सुभाष गली में ही रहता है, उसी ने बात फैला दी. अमिता के घर यह सूचना देने सुभाष निजी रूप से गया था और इसी के चलते गली भर को मालूम हो गई यह बात.

वह नातेदार, पड़ोसी, जो कभी उस के घर में झांकते तक न थे, वह भी आ कर सतीश के गुणों का बखान करने लगे. गली वालों ने एकमत से मान लिया कि सतीश जैसा निरीह, साधु प्रकृति आदमी नहीं मिलता है. अपने काम से काम, न किसी की निंदा, न चुगली, न झगड़े. यहां तो चार पैसे पाते ही लोग फूल कर कुप्पा हो जाते हैं.

अमिता चकराई हुई थी. यह क्या हो गया, वह समझ नहीं पा रही थी.

उसे सहारा देने दूर महल्ले के मायके से मां, बहन और भाई आ पहुंचे. बाद में पिताजी भी आ गए. आते ही मां ने नाती को गोद में उठा लिया. बाकी सब भी अमिता के 4 साल के बच्चे राहुल को हाथोंहाथ लिए रहते.

मां ने प्यार से माथा सहलाते हुए कहा, ‘‘मुन्नी, यों उदास न रहो. जो होना था वह हो गया. तुम्हें इस तरह उदास देख कर मेरी तो छाती फटती है.’’

पिता ने खांसखंखार कर कहा, ‘‘न हो तो कुछ दिनों के लिए हमारे साथ चल कर वहीं रह. यहां अकेली कैसे रहेगी, हम लोग भी कब तक यहां रह सकेंगे.’’

‘‘और यह घर?’’ अमिता पूछ बैठी.

‘‘अरे, किराएदारों की क्या कमी है, और कोई नहीं तो तुम्हारे मामा रघुपति को ही रख देते हैं. उसे भी डेरा ठीक नहीं मिल रहा है, अपना आदमी घर में रहेगा तो अच्छा ही होगा.’’

‘‘सुनते हो जी,’’ मां बोलीं, ‘‘बेटी की सूनी कलाई देख मेरी छाती फटती है. ऐसी हालत में शीशे की नहीं तो सोने की चूडि़यां तो पहनी ही जाती हैं, जरा सुखलाल सुनार को कल बुलवा देते.’’

‘‘जरूर, कल ही बुला देता हूं.’’

अमिता ने स्थायी रूप से मायके जा कर रहना पसंद नहीं किया. यह उस के पति का अपना घर है, पति के साथ 5 साल यहीं तो बीते हैं, फिर राहुल भी यहीं पैदा हुआ है. जाहिर है, भावनाओं के जोश में उस ने बाप के घर जा कर रहने से मना कर दिया.

सुभाषचंद्र के प्रयास से वह बैंक में मैनेजर से मिल कर पति के खाते की स्वामिनी कागजपत्रों पर हो गई. पासबुक, चेकबुक मिल गई और फिलहाल के जरूरी खर्चों के लिए उस ने 25 हजार की रकम भी बैंक से निकाल ली.

अब वह पहले वाली निरीह गृहिणी अमिता नहीं बल्कि अधिकार भाव रखने वाली संपन्न अमिता है. राहुल को नगर निगम के स्कूल से हटा कर पास के ही एक अच्छे पब्लिक स्कूल में दाखिल करा दिया. अब उसे स्कूल की बस लाती, ले जाती है.

बेटी घर में अकेली कैसे रहेगी, यह सोच कर मां और छोटी बहन वीणा वहीं रहने लगीं. वीणा वहीं से स्कूल पढ़ने जाने लगी. छोटा भाई भी रोज 1-2 बार आ कर पूछ जाता. अब एक काम वाली रख ली गई, वरना पहले अमिता ही चौका- बरतन से ले कर साफसफाई का सब काम करती थी

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

ले जा कर कागजी काररवाई निबटा देगा.

अमिता लगभग 4 बजे घर पहुंची तो सब चिंतित थे. मां ने पूछा, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी, बेटी?’’

‘‘बैंक गई थी मां, कुछ और भी जरूरी काम थे…’’

घर वालों के चेहरे आशंकाओं से घिर गए कि बैंक क्या करने गई थी. पर पूछने का साहस किसी में न हुआ.

2 दिन बाद छोटा भाई ललित आया और बोला, ‘‘दीदी, कालिज से 20 लड़कों का एक ग्रुप विन्टरविकेशन में गोआ घूमने जा रहा है, हर लड़के को 5 हजार जमा करने पड़ेंगे…’’

अमिता ने सख्ती से कहा, ‘‘अभी, गरमियों की छुट्टी में तुम मसूरी घूमने गए थे न? हर छुट्टी में मटरगश्ती गलत है. तुम्हें छुट्टियों में यहीं रह कर वार्षिक परीक्षा की तैयारी करनी चाहिए. मैं इतने रुपए न जुटा सकूंगी…’’

ललित का चेहरा उतर गया. मां भी अमिता का रुख देख कुछ न कह सकीं.

3 माह पूरे होने पर विवेक आ कर बीमे की किस्त ले गया और कागजों पर उस से हस्ताक्षर भी कराए. अमिता ने साफ शब्दों में मां को बता दिया कि उसे अब राहुल की फीस और ललित की कोचिंग की फीस ही देने योग्य आय होगी, वीणा की फीस पिताजी जैसे पहले देते थे, दिया करें.

विवेक की सलाह से अमिता ने एक स्वयंसेवी संस्था की सदस्यता ग्रहण कर ली. उस के कार्यक्रमों में वह अधिकतर घर के बाहर ही रहने लगी. बाहरी अनुभव बढ़ने और व्यस्तता के चलते अब अमिता का तनमन अधिक खुश रहने लगा.

विवेक से अमिता की अच्छी पटने लगी. अकसर दोनों साथ ही बाहर घूमनेफिरने निकलते. यह देख कर मांपिता सहमते, किंतु सयानी और लखपती बेटी को क्या कहते. उस के कारण घर की हालत बदली थी.

साल भर बाद ही एक दिन अमिता, मां से बोली, ‘‘मां, मैं ने विवेक से विवाह करना तय कर लिया है, तुम्हारा आशीर्वाद चाहिए…’’

मां को तो कानों पर विश्वास ही न हुआ. हतप्रभ सी खड़ी रह गईं. बगल के कमरे से पिताजी भी आ गए, ‘‘क्या हुआ? मैं क्या सुन रहा हूं?’’

‘‘मैं विवेक के साथ विवाह करने जा रही हूं, आशीर्वाद दें.’’

मां फट पड़ीं, ‘‘तेरी बुद्धि तो ठीक है, भला कोई विधवा…’’ तभी विवेक आ गया. उसे देख कर मां खामोश हो गईं. लेकिन आतेआते उस ने उन की बातें सुन ली थीं, अंतत: हंस कर विवेक बोला, ‘‘मांजी, आप किस जमाने की बात कह रही हैं? अब जमाना बदल गया है. अब विधवा की दोबारा शादी को बुरा नहीं समझा जाता. जब हमें कोई आपत्ति नहीं है तो दूसरों से क्या लेनादेना. खैर, आप लोगों का आशीर्वाद हमारे साथ है, ऐसा हम ने मान लिया है. चलो, अमिता.’’

उसी दिन आर्यसमाज मंदिर में उन का विवाह संपन्न हो गया. मन में सहमति न रखते हुए भी अमिता के मातापिता व भाईबहन विवाह समारोह में शामिल हुए. मांपिता ने कन्यादान किया. विवेक के घर में केवल मां और छोटी बहन थीं और विवेक के आफिस के सहयोगी भी पूरे उत्साह के साथ सम्मिलित हुए. साथियों ने निकट के रेस्तरां में नवदंपती के साथ सब की दावत की.

अमिता ने मांपिता के पैर छुए. फिर अमिता के साथ सभी लोग उस के घर आ गए तो विवेक की मां ने कहा, ‘‘समधीजी, अब अमिता को विदा कीजिए. वह अब मेरी बहू है, उसे अपने घर जाने दें…’’

पिता की जबान खुली, ‘‘लेकिन, राहुल…’’

विवेक की मां ने हंस कर कहा, ‘‘राहुल विवेक को बहुत चाहता है, विवेक भी उसे अपने बेटे की तरह प्यार करता है. बच्चे को उस का पिता भी तो मिलना चाहिए.’’

अमिता बोली, ‘‘पिताजी, मेरे इस घर को फिलहाल किराए पर उठा दें. उस पैसे से भाईबहनों की पढ़ाई, घर की देखभाल आदि का खर्च निकल आएगा.’’

चलते समय विवेक ने अमिता के मातापिता से कहा, ‘‘पिताजी, मैं ने अमिता से स्पष्ट कह दिया है कि तुम्हारा जो धन है वह तुम्हारा ही रहेगा, तुम्हारे ही नाम से रहेगा. मैं खुद अपने परिवार, पत्नी और पुत्र के लायक बहुत कमा लेता हूं. आप ऐसा न सोचें कि उस के धन के लालच से मैं ने शादी की है. वह उस का, राहुल का है.’’

फिर मातापिता के पैर छू कर विवेक और अमिता थोड़े से सामान और राहुल को साथ लेकर चले गए.

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