बच्चे की चाह में : भौंरा ने कैसे सिखाया सबक

भौंरा की शादी हुए 5 साल हो गए थे. उस की पत्नी राजो सेहतमंद और खूबसूरत देह की मालकिन थी, लेकिन अब तक उन्हें कोई औलाद नहीं हुई थी. भौंरा अपने बड़े भाई के साथ खेतीबारी करता था. दिनभर काम कर के शाम को जब घर लौटता, सूनासूना सा घर काटने को दौड़ता.

भौंरा के बगल में ही उस का बड़ा भाई रहता था. उस की पत्नी रूपा के 3-3 बच्चे दिनभर घर में गदर मचाए रखते थे. अपना अकेलापन दूर करने के लिए राजो रूपा के बच्चों को बुला लेती और उन के साथ खुद भी बच्चा बन कर खेलने लगती. वह उन्हीं से अपना मन बहला लेती थी.

एक दिन राजो बच्चों को बुला कर उन के साथ खेल रही थी कि रूपा ने न जाने क्यों बच्चों को तुरंत वापस बुला लिया और उन्हें मारनेपीटने लगी.

उस की आवाज जोरजोर से आ रही थी, ‘‘तुम बारबार वहां मत जाया करो. वहां भूतप्रेत रहते हैं. उन्होंने उस की कोख उजाड़ दी है. वह बांझ है. तुम अपने घर में ही खेला करो.’’

राजो यह बात सुन कर उदास हो गई. कौन सी मनौती नहीं मानी थी… तमाम मंदिरों और पीरफकीरों के यहां माथा रगड़ आई, बीकमपुर वाली काली माई मंदिर की पुजारिन ने उस से कई टिन सरसों के तेल के दीए में मंदिर में जलवा दिए, लेकिन कुछ नहीं हुआ.

बीकमपुर वाला फकीर जबजब मंत्र फुंके हुए पानी में राख और पता नहीं कागज पर कुछ लिखा हुआ टुकड़ा घोल कर पीने को देता. बदले में उस से 100-100 के कई नोट ले लेता था. इतना सब करने के बाद भी उस की गोद सूनी ही रही… अब वह क्या करे?

राजो का जी चाहा कि वह खूब जोरजोर से रोए. उस में क्या कमी है जो उस की गोद खाली है? उस ने किसी का क्या बिगाड़ा है? रूपा जो कह रही थी, क्या सचमुच उस के घर में भूतप्रेत रहते हैं? लेकिन उस के साथ तो कभी ऐसी कोई अनहोनी घटना नहीं घटी, तो फिर कैसे वह यकीन करे?

राजो फिर से सोच में डूब गई, ‘लेकिन रूपा तो कह रही थी कि भूतप्रेत ही मेरी गोद नहीं भरने दे रहे हैं. हो सकता है कि रूपा सच कह रही हो. इस घर में कोई ऊपरी साया है, जो मुझे फलनेफूलने नहीं दे रहा है. नहीं तो रूपा की शादी मेरे साथ हुई थी. अब तक उस के 3-3 बच्चे हो गए हैं और मेरा एक भी नहीं. कुछ तो वजह है.’

भौंरा जब खेत से लौटा तो राजो ने उसे अपने मन की बात बताई. सुन कर भौंरा ने उसे गोद में उठा लिया और मुसकराते हुए कहा, ‘‘राजो, ये सब वाहियात बातें हैं. भूतप्रेत कुछ नहीं होता. रूपा भाभी अनपढ़गंवार हैं. वे आंख मूंद कर ऐसी बातों पर यकीन कर लेती हैं. तुम चिंता मत करो. हम कल ही अस्पताल चल कर तुम्हारा और अपना भी चैकअप करा लेते हैं.’’

भौंरा भी बच्चा नहीं होने से परेशान था. दूसरे दिन अस्पताल जाने के लिए भाई के घर गाड़ी मांगने गया. भौंरा के बड़े भाई ने जब सुना कि भौंरा राजो को अस्पताल ले जा रहा है तो उस ने भौंरा को खूब डांटा. वह कहने लगा, ‘‘अब यही बचा है. तुम्हारी औरत के शरीर से डाक्टर हाथ लगाएगा. उसे शर्म नहीं आएगी पराए मर्द से शरीर छुआने में. तुम भी बेशर्म हो गए हो.’’

‘‘अरे भैया, वहां लेडी डाक्टर भी होती हैं, जो केवल बच्चा जनने वाली औरतों को ही देखती हैं,’’ भौंरा ने समझाया.

‘‘चुप रहो. जैसा मैं कहता हूं वैसा करो. गांव के ओझा से झाड़फूंक कराओ. सब ठीक हो जाएगा.’’

भौंरा चुपचाप खड़ा रहा.

‘‘आज ही मैं ओझा से बात करता हूं. वह दोपहर तक आ जाएगा. गांव की ढेरों औरतों को उस ने झाड़ा है. वे ठीक हो गईं और उन के बच्चे भी हुए.’’

‘‘भैया, ओझा भूतप्रेत के नाम पर लोगों को ठगता है. झाड़फूंक से बच्चा नहीं होता. जिस्मानी कमजोरी के चलते भी बच्चा नहीं होता है. इसे केवल डाक्टर ही ठीक कर सकता है,’’ भौंरा ने फिर समझाया.

बड़ा भाई नहीं माना. दोपहर के समय ओझा आया. भौंरा का बड़ा भाई भी साथ था. भौंरा उस समय खेत पर गया था. राजो अकेली थी. वह राजो को ऊपर से नीचे तक घूरघूर कर देखने लगा.

राजो को ओझा मदारी की तरह लग रहा था. उस की आंखों में शैतानी चमक देख कर वह थोड़ी देर के लिए घबरा सी गई. साथ में बड़े भैया थे, इसलिए उस का डर कुछ कम हुआ.

ओझा ने ‘हुं..अ..अ’ की एक आवाज अपने मुंह से निकाली और बड़े भैया की ओर मुंह कर के बोला, ‘‘इस के ऊपर चुड़ैल का साया है. यह कभी बंसवारी में गई थी? पूछो इस से.‘‘

‘‘हां बहू, तुम वहां गई थीं क्या?’’ बड़े भैया ने पूछा.

‘‘शाम के समय गई थी मैं,’’ राजो ने कहा.

‘‘वहीं इस ने एक लाल कपडे़ को लांघ दिया था. वह चुड़ैल का रूमाल था. वह चुड़ैल किसी जवान औरत को अपनी चेली बना कर चुड़ैल विद्या सिखाना चाहती है. इस ने लांघा है. अब वह इसे डायन विद्या सिखाना चाहती है. तभी से वह इस के पीछे पड़ी है. वह इस का बच्चा नहीं होने देगी.’’

राजो यह सुन कर थरथर कांपने लगी.

‘‘क्या करना होगा?’’ बड़े भैया ने हाथ जोड़ कर पूछा.

‘‘पैसा खर्च करना होगा. मंत्रजाप से चुड़ैल को भगाना होगा,’’ ओझा ने कहा.

मंत्रजाप के लिए ओझा ने दारू, मुरगा व हवन का सामान मंगवा लिया. दूसरे दिन से ही ओझा वहां आने लगा. जब वह राजो को झाड़ने के लिए आता, रूपा भी राजो के पास आ जाती.

एक दिन रूपा को कोई काम याद आ गया. वह आ न सकी. घर में राजो को अकेला देख ओझा ने पूछा, ‘‘रूपा नहीं आई?’’

राजो ने ‘न’ में गरदन हिला दी.

ओझा ने अपना काम शुरू कर दिया. राजो ओझा के सामने बैठी थी. ओझा मुंह में कुछ बुदबुदाता हुआ राजो के पूरे शरीर को ऊपर से नीचे तक हाथ से छू रहा था. ऐसा उस ने कई बार दोहराया, फिर वह उस के कोमल अंगों को बारबार दबाने की कोशिश करने लगा.

राजो को समझते देर नहीं लगी कि ओझा उस के बदन से खेल रहा है. उस ने आव देखा न ताव एक झटके से खड़ी हो गई.

यह देख कर ओझा सकपका गया. वह कुछ बोलता, इस से पहले राजो ने दबी आवाज में उसे धमकाया, ‘‘तुम्हारे मन में क्या चल रहा है, मैं समझ रही हूं. तुम्हारी भलाई अब इसी में है कि चुपचाप यहां से दफा हो जाओ, नहीं  सचमुच मेरे ऊपर चुड़ैल सवार हो रही है.’’

ओझा ने चुपचाप अपना सामान उठाया और उलटे पैर भागा. उसी समय रूपा आ गई. उस ने सुन लिया कि राजो ने अभीअभी अपने ऊपर चुड़ैल सवार होने की बात कही है. वह नहीं चाहती थी कि राजो को बच्चा हो.

रूपा के दिमाग में चल रहा था कि राजो और भौंरा के बच्चे नहीं होंगे तो सारी जमीनजायदाद के मालिक उस के बच्चे हो जाएंगे.

भौंरा के बड़े भाई के मन में खोट नहीं था. वह चाहता था कि भौंरा और राजो के बच्चे हों. राजो को चुड़ैल अपनी चेली बनाना चाहती है, यह बात गांव वालों से छिपा कर रखी थी लेकिन रूपा जानती थी. उस की जबान बहुत चलती थी. उस ने राज की यह बात गांव की औरतों के बीच खोल दी.

धीरेधीरे यह बात पूरे गांव में फैलने लगी कि राजो बच्चा होने के लिए रात के अंधेरे में चुड़ैल के पास जाती है. अब तो गांव की औरतें राजो से कतराने लगीं. उस के सामने आने से बचने लगीं. राजो उन से कुछ पूछती भी तो वे उस से सीधे मुंह बात न कर के कन्नी काट कर निकल जातीं. पूरा गांव उसे शक की नजर से देखने लगा. राजो के बुलाने पर भी रूपा अपने बच्चों को उस के पास नहीं भेजती थी.

2-3 दिन से भौंरा का पड़ोसी रामदा का बेटा बीमार था. रामदा की पत्नी जानती थी कि राजो डायन विद्या सीख रही है. वह बेटे को गोद में उठा लाई और तेज आवाज में चिल्लाते हुए भौंरा के घर में घुसने लगी, ‘‘कहां है रे राजो डायन, तू डायन विद्या सीख रही है न… ले, मेरा बेटा बीमार हो गया है. इसे तू ने ही निशाना बनाया है. अगर अभी तू ने इसे ठीक नहीं किया तो मैं पूरे गांव में नंगा कर के नचाऊंगी.’’

शोर सुन कर लोगों की भीड़ जमा हो गई.

एक पड़ोसन फूलकली कह रही थी, ‘‘राजो ने ही बच्चे पर कुछ किया है, नहीं तो कल तक वह भलाचंगा खापी रहा था. यह सब इसी का कियाधरा है.’’

दूसरी पड़ोसन सुखिया कह रही थी, ‘‘राजो को सबक नहीं सिखाया गया तो वह गांव के सारे बच्चों को इसी तरह मार कर खा जाएगी.’’

राजो घर में अकेली थी. औरतों की बात सुन कर वह डर से रोने लगी. वह अपनेआप को कोसने लगी, ‘क्यों नहीं उन की बात मान कर अस्पताल चली गई. जेठजी के कहने में आ कर ओझा से इलाज कराना चाहा, मगर वह तो एक नंबर का घटिया इनसान था. अगर मैं उस की चाल में फंस गई होती तो भौंरा को मुंह दिखाने के लायक भी न रहती.’’

बाहर औरतें उसे घर से निकालने के लिए दरवाजा पीट रही थीं. तब तक भौंरा खेत से आ गया. अपने घर के बाहर जमा भीड़ देख कर वह डर गया, फिर हिम्मत कर के भौंरा ने पूछा, ‘‘क्या बात है भाभी, राजो को क्या हुआ है?’’

‘‘तुम्हारी औरत डायन विद्या सीख रही है. ये देखो, किशुना को क्या हाल कर दिया है. 4 दिनों से कुछ खायापीया भी नहीं है इस ने,’’ रामधनी काकी ने कहा.

गुस्से से पागल भौंरा ने गांव वालों को ललकारा, ‘‘खबरदार, किसी ने राजो पर इलजाम लगाया तो… वह मेरी जीवनसंगिनी है. उसे बदनाम मत करो. मैं एकएक को सचमुच में मार डालूंगा. किसी में हिम्मत है तो राजो पर हाथ उठा करदेख ले,’’ इतना कह कर वह रूपा भाभी का हाथ पकड़ कर खींच लाया.

‘‘यह सब इसी का कियाधरा है. बोलो भाभी, तुम ने ही गांव की औरतों को यह सब बताया है… झूठ मत बोलना. सरोजन चाची ने मुझे सबकुछ बता दिया है.’’ सरोजन चाची भी वहां सामने ही खड़ी थीं. रूपा उन्हें देख कर अंदर तक कांप गई. उस ने अपनी गलती मान ली. भौंरा ओझा को भी पकड़ लाया, ‘‘मक्कार कहीं का, तुम्हारी सजा जेल में होगी.’’

दूर खड़े बड़े भैया की नजरें झुकी हुई थीं. वे अपनी भूल पर पछतावा कर रहे थे.

कौन जिम्मेदार किशोरीलाल की मौत का

‘‘किशोरीलाल ने खुदकुशी कर ली…’’ किसी ने इतना कहा और चौराहे पर लोगों को चर्चा का यह मुद्दा मिल गया.

‘‘मगर क्यों की…?’’  भीड़ में से सवाल उछला.

‘‘अरे, अगर खुदकुशी नहीं करते, तो क्या घुटघुट कर मर जाते?’’ भीड़ में से ही किसी ने एक और सवाल उछाला.

‘‘आप के कहने का मतलब क्या है?’’ तीसरे आदमी ने सवाल पूछा.

‘‘अरे, किशोरीलाल की पत्नी कमला का संबंध मनमोहन से था. दुखी हो कर खुदकुशी न करते तो वे क्या करते?’’

‘‘अरे, ये भाई साहब ठीक कह रहे हैं. कमला किशोरीलाल की ब्याहता पत्नी जरूर थी, मगर उस के संबंध मनमोहन से थे और जब किशोरीलाल उन्हें रोकते, तब भी कमला मानती नहीं थी,’’ भीड़ में से किसी ने कहा.

चौराहे पर जितने लोग थे, उतनी ही बातें हो रही थीं. मगर इतना जरूर था कि किशोरीलाल की पत्नी कमला का चरित्र खराब था. किशोरीलाल भले ही उस के पति थे, मगर वह मनमोहन की रखैल थी. रातभर मनमोहन को अपने पास रखती थी. बेचारे किशोरीलाल अलग कमरे में पड़ेपड़े घुटते रहते थे. सुबह जब सूरज निकला, तो कमला के रोने की आवाज से आसपास और महल्ले वालों को हैरान कर गया. सब दौड़ेदौड़े घर में पहुंचे, तो देखा कि किशोरीलाल पंखे से लटके हुए थे.

यह बात पूरे शहर में फैल गई, क्योंकि यह मामला खुदकुशी का था या कत्ल का, अभी पता नहीं चला था. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. पुलिस आई और लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले गई.

यह बात सही थी कि किशोरीलाल और कमला के बीच बनती नहीं थी. कमला किशोरीलाल को दबा कर रखती थी. दोनों के बीच हमेशा झगड़ा होता रहता था. कभीकभी झगड़ा हद पर पहुंच जाता था. यह मनमोहन कौन है? कमला से कैसे मिला? यह सब जानने के लिए कमला और किशोरीलाल की जिंदगी में झांकना होगा. जब कमला के साथ किशोरीलाल की शादी हुई थी, उस समय वे सरकारी अस्पताल में कंपाउंडर थे. किशोरीलाल की कम तनख्वाह से कमला संतुष्ट न थी. उसे अच्छी साडि़यां और अच्छा खाने को चाहिए था. वह उन से नाराज रहा करती थी.

इस तरह शादी के शुरुआती दिनों से ही उन के बीच मनमुटाव होने लगा था. कुछ दिनों के बाद कमला किशोरीलाल से नजरें चुरा कर चोरीछिपे देह धंधा करने लगी. धीरेधीरे उस का यह धंधा चलने लगा. वैसे, कमला ने लोगों को बताया था कि उस ने अगरबत्ती बनाने का घरेलू धंधा शुरू कर दिया है. इसी बीच उन के 2 बेटे हो गए, इसलिए जरूरतें और बढ़ गईं. मगर चोरीछिपे यह धंधा कब तक चल सकता था. एक दिन किशोरीलाल को इस की भनक लग गई. उन्होंने कमला से पूछा, ‘मैं यह क्या सुन रहा हूं?’

‘क्या सुन रहे हो?’ कमला ने भी अकड़ कर कहा.

‘क्या तुम देह बेचने का धंधा कर रही हो?’ किशोरीलाल ने पूछा.

‘तुम्हारी कम तनख्वाह से घर का खर्च पूरा नहीं हो पा रहा था, तो मैं ने यह धंधा अपना लिया है. कौन सा गुनाह कर दिया,’ कमला ने भी साफ बात कह कर अपने अपराध को कबूल कर लिया.

यह सुन कर किशोरीलाल को गुस्सा आया. वे कमला को थप्पड़ जड़ते हुए बोले, ‘बेगैरत, देह धंधा करती हो तुम?’

‘तो पैसे कमा कर लाओ, फिर छोड़ दूंगी यह धंधा. अरे, औरत तो ले आया, मगर उस की हर इच्छा को पूरा नहीं करता है. मैं कैसे भी कमा रही हूं, तेरे से तो नहीं मांग रही हूं,’ कमला भी जवाबी हमला करते हुए बोली और एक झटके से बाहर निकल गई.

किशोरीलाल कुछ नहीं कर पाए. इस तरह कई मौकों पर उन दोनों के बीच झगड़ा होता रहता था. इसी बीच शिक्षा विभाग से शिक्षकों की भरती हेतु थोक में नौकरियां निकलीं. कमला ने भी फार्म भर दिया. उसे सहायक टीचर के पद पर एक गांव में नौकरी मिल गई.

चूंकि गांव शहर से दूर था और उस समय आनेजाने के इतने साधन न थे, इसलिए मजबूरी में कमला को गांव में ही रहना पड़ा. गांव में रहने के चलते वह और आजाद हो गई. कमला ने 10-12 साल इसी गांव में गुजारे, फिर एक दिन उस ने अपने शहर के एक स्कूल में ट्रांसफर करवा लिया. मगर उन की लड़ाई अब भी नहीं थमी.

बच्चे अब बड़े हो रहे थे. वे भी मम्मीपापा का झगड़ा देख कर मन ही मन दुखी होते थे, मगर उन के झगड़े के बीच न पड़ते थे. जिस स्कूल में कमला पढ़ाती थी, वहीं पर मनमोहन भी थे. उन की पत्नी व बच्चे थे, मगर सभी उज्जैन में थे. मनमोहन यहां अकेले रहा करते थे. कमला और उन के बीच खिंचाव बढ़ा. ज्यादातर जगहों पर वे साथसाथ देखे गए. कई बार वे कमला के घर आते और घंटों बैठे रहते थे.

कमला भी धीरेधीरे मनमोहन के जिस्मानी आकर्षण में बंधती चली गई. ऐसे में किशोरीलाल कमला को कुछ कहते, तो वह अलग होने की धमकी देती, क्योंकि अब वह भी कमाने लगी थी. इसी बात को ले कर उन में झगड़ा बढ़ने लगा. फिर महल्ले में यह चर्चा चलती रही कि कमला के असली पति किशोरीलाल नहीं मनमोहन हैं. वे किशोरीलाल को समझाते थे कि कमला को रोको. वह कैसा खेल खेल रही है. इस से महल्ले की दूसरी लड़कियों और औरतों पर गलत असर पड़ेगा. मगर वे जितना समझाने की कोशिश करते, कमला उतनी ही शेरनी बनती.

जब भी मनमोहन कमला से मिलने घर पर आते, किशोरीलाल सड़कों पर घूमने निकल जाते और उन के जाने का इंतजार करते थे.

पिछली रात को भी वही हुआ. जब रात के 11 बजे किशोरीलाल घूम कर बैडरूम के पास पहुंचे, तो भीतर से खुसुरफुसुर की आवाजें आ रही थीं. वे सुनने के लिए खड़े हो गए. दरवाजे पर उन्होंने झांक कर देखा, तो शर्म के मारे आंखें बंद कर लीं.

सुबह किशोरीलाल की पंखे से टंगी लाश मिली. उन्होंने खुद को ही खत्म कर लिया था. घर के आसपास लोग इकट्ठा हो चुके थे. कमला की अब भी रोने की आवाज आ रही थी. इस मौत का जिम्मेदार कौन था? अब लाश के आने का इंतजार हो रहा था. शवयात्रा की पूरी तैयारी हो चुकी थी. जैसे ही लाश अस्पताल से आएगी, औपचारिकता पूरी कर के श्मशान की ओर बढ़ेगी.

2 पत्नियों ने दी पति की सुपारी : भाग 1

6जुलाई की रात कोई 8-सवा 8 बजे का वक्त था, जब दक्षिणपूर्वी दिल्ली के गोविंदपुरी इलाके में एक डीटीसी बस के ड्राइवर संजीव कुमार की गोली मार कर हत्या कर दी गई. जिस समय हत्या हुई, उस समय 55 वर्षीय संजीव अपनी 28 वर्षीय पत्नी गीता उर्फ नजमा और अपने 10 साल के बेटे गौरव के साथ मोटरसाइकिल से कहीं जा रहा था.

दीपालय स्कूल के पास संजीव पहुंचा ही था कि उस की चलती बाइक के बगल से एक अन्य बाइक पर 2 सवार निकले और उन्होंने संजीव की बाइक ओवरटेक करते हुए उसे गोली मार दी. गोली लगते ही संजीव एक ओर को गिर पड़ा और उसी के साथ बाइक पर बैठी उस की पत्नी और बेटा भी गिर गए.

गीता बाइक से गिरते बेहोश हो गई थी. जब उसे होश आया तो उस ने देखा कि उस का पति घायल अवस्था में एक ओर पड़ा है और उन के चारों तरफ भारी भीड़ जुटी है.
लोगों की मदद से वह अपने पति को ले कर पास के मजीदिया अस्पताल गई, जहां उस ने डाक्टरों को बताया कि उन का एक्सीडेंट हो गया है. डाक्टरों ने संजीव का चैकअप किया और उसे मृत घोषित करते हुए पुलिस को फोन कर दिया. क्योंकि मामला एक्सीडेंट का नहीं, बल्कि गोली लगने का था.

सूचना मिलने के बाद गोविंदपुरी के थानाप्रभारी जगदीश यादव टीम के साथ मजीदिया अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने जब गीता से घटना की जानकारी लेनी चाही तो वह पुलिस को अलगअलग बयान दे कर गुमराह करने लगी. कभी कहती कि एक्सीडेंट हुआ है, तो कभी कहती कि उसे कुछ पता नहीं, वह तो बेहोश हो गई थी और कभी कहती कि कालकाजी बस डिपो के कुछ लोगों से संजीव की दुश्मनी थी, उन्होंने उसे गोली मारी है.

इस दौरान गीता के चेहरे पर पति को खोने का वैसा गम किसी को नजर नहीं आया जो अकसर ऐसे मौकों पर दिखता है. जब उस से सख्ती से पूछताछ हुई तो उस का झूठ ज्यादा देर पुलिस के सामने टिक नहीं पाया.गीता से पूछताछ और उस के मोबाइल फोन को खंगालने के बाद जो सनसनीखेज कहानी सामने आई. उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के पास सिकंदराबाद अंतर्गत आने वाले एक गांव बिलसुरी निवासी संजीव कुमार के मातापिता अपने 3 बेटों और एक बेटी के साथ दिल्ली के गोविंदपुरी इलाके में आ कर रहने लगे थे.

उन्होंने अपने बच्चों को यहीं के सरकारी स्कूल में पढ़ायालिखाया. बीचबीच में वह गांव भी चले जाते थे. बच्चों के जवान होने पर उन्होंने सभी की शादियां कर दीं और सभी ने इसी इलाके में अलगअलग अपनी गृहस्थी बना ली. इस के बाद मातापिता गांव लौट गए और वह खेतीकिसानी देखने लगे.

संजीव कुमार शुरू से ही परिवार से अलग रहा करता था. दबंग टाइप के संजीव की अपने भाइयों से और मातापिता से ज्यादा बनती नहीं थी. संजीव ने जब अपने दम पर डीटीसी बस ड्राइवर की सरकारी नौकरी पा ली तो उस के हौसले और बुलंद हो गए.
कुछ ही साल में वह अपनी दादागिरी और नेतागिरी की बदौलत डीटीसी कर्मचारी यूनियन का नेता भी बन गया. सरकारी तनख्वाह के अलावा वह कई अन्य गैरकानूनी तरीकों से पैसे कमाने लगा और कई जमीनों पर उस ने अवैध कब्जे कर लिए, जिन्हें बाद में सरकारी कर्मचारियों के साथ मिलीभगत और रिश्वत के दम पर उस ने अपने नाम लिखवा लिया.

 

तपस्या : क्या शिखर के दिल को पिघला पाई शैली?

राजू बन गया जैंटलमैन : एक कैदी की कहानी

कानों में जानीपहचानी सी आवाज सुन कर मैं चौंक गई. देखा… अरे, यह तो राजू है. यहां दोबारा कैसे आ गया? मैं यह जानने के लिए बेचैन हो गई.

माफ कीजिए, पहले मैं आप को अपने बारे में बता तो दूं. मैं देश की सब से मजबूत दीवारों में से एक हूं. यह किसी कंपनी का इश्तिहार नहीं है. मैं तिहाड़ जेल की दीवार हूं. हिंदी में कहावत है न कि दीवारों के भी कान होते हैं. मैं भी सुनती हूं, देखती हूं, महसूस कर हूं, पर बोल नहीं पाती, क्योंकि मैं गूंगी हूं.

एक बार जो मेरी दहलीज के बाहर कदम रख देता है, वह मेरे पास दोबारा न आने की कसम खाता है. न जाने कितनों ने मेरे सीने पर अपने आंसुओं से अपनी इबारत लिखी है.

कैदियों के आपसी झगड़ों की वजह से अनगिनत बार उन के खून के छींटे मेरे दामन पर भी लगे, फिर दोबारा रंगरोगन कर मुझे नया रूप दे दिया गया.

समय को पीछे घुमाते हुए मैं वह दिन याद करने लगी, जब राजू ने पहली बार मुझे लांघ कर अंदर कदम रखा था. चेहरे पर मासूमियत, आंखों में एक अनजाना डर और होंठों पर राज भरी खामोशी ने मेरा ध्यान उस की ओर खींचा था. मैं उस के बारे में जानने को बेताब हो गई थी.

‘‘नाम बोल…’’ एक अफसर ने डांटते हुए पूछा था.

‘‘जी… राजू,’’ उस ने मासूमियत से जवाब दिया था.

‘‘कौन से केस में आया है?’’

‘‘जी… धारा 420 में.’’

‘‘किस के साथ चार सौ बीसी कर दी तू ने?’’

‘‘जी, मेरे बिजनैस पार्टनर ने मेरे साथ धोखा किया है.’’

‘‘और बंद तुझे करा दिया. वाह रे हरिश्चंद्र की औलाद,’’ अफसर ने ताना मारा था.

अदालत ने उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में यहां मेरे पास भेज दिया था. पुलिस वाले राजू को भद्दी गालियां देते हुए एक बैरक में छोड़ गए थे. बैरक में कदम रखते ही कई जोड़ी नजरें उसे घूरने लगी थीं. अंदर आते ही उस के आंसुओं के सैलाब ने पलकों के बांध को तोड़ दिया था. सिसकियों ने खामोश होंठों को आवाज की शक्ल दे दी थी.

मन में दर्द कम होने के बाद जैसे ही राजू ने अपना सिर ऊपर उठाया, उस ने अपने चारों ओर साथी कैदियों का जमावड़ा देखा था. कई हाथ उस के आंसुओं को पोंछने के लिए आगे बढ़े. कुछ ने उसे हिम्मत दी, ‘शांत हो जा… शुरूशुरू में सब रोते हैं. 2-3 दिन में सब ठीक हो जाएगा.’

‘‘घर की… बच्चों की याद आ रही है,’’ राजू ने सहमते हुए कहा था.

‘‘अब तो हम ही एकदूसरे के रिश्तेदार हैं,’’ एक कैदी ने जवाब दिया था.

‘‘चल, अब खाना खा ले,’’ दूसरे कैदी ने कहा था.

‘‘मुझे भूख नहीं है,’’ राजू ने सिसकते हुए जवाब दिया था.

‘‘भाई मेरे, कितने दिन भूखा रहेगा? चल, सब के साथ बैठ.’’

एक कैदी उस के लिए खाना ले कर आ गया और बाकी सब उसे खाना खिलाने लगे थे.

राजू को उम्मीद थी कि उस के सभी दोस्त व रिश्तेदार उस से मुलाकात करने जरूर आएंगे, लेकिन जल्दी ही उस की यह गलतफहमी दूर हो गई. हर मुलाकात में उसे अपनी पत्नी के पीछे सिर्फ सन्नाटा नजर आता था. हर मुलाकात उस के हौसले को तोड़ रही थी.

राजू की हिरासत के दिन बढ़ने लगे थे. इस के साथ ही उस का खुद पर से भरोसा गिरने लगा था. उस के जिस्म में जिंदगी तो थी, लेकिन यह जिंदगी जैसे रूठ गई थी.

हां, साथी कैदियों के प्यार भरे बरताव ने उसे ऐसे उलट हालात में भी मुसकराना सिखा दिया था.

इंजीनियर होने की वजह से जेल में चल रहे स्कूल में राजू को पढ़ाने का काम मिल गया था. उस के अच्छे बरताव के चलते स्कूल में पढ़ने वाले कैदी उस से बात कर अपना दुख हलका करने लगे थे.

यह देख कर एक अफसर ने राजू को समझाया था, ‘‘इन पर इतना यकीन मत किया करो. ये लोग हमदर्दी पाने के लिए बहुत झूठ बोलते हैं.’’

‘‘सर, ये लोग झूठ इसलिए बोलते हैं, क्योंकि ये सच से भागते हैं…’’ राजू ने उन से कहा, ‘‘सर, किसी का झूठ पकड़ने से पहले उस की नजरों से उस के हालात समझिए, आप को उस की मजबूरी पता चल जाएगी.’’

अपने इन्हीं विचारों की वजह से राजू कैदियों के साथसाथ जेल के अफसरों का भी मन जीतने लगा था.

एक दिन जमानत पाने वाले कैदियों की लिस्ट में अपना नाम देख कर वह फूला न समाया था. परिवार व रिश्तेदारों से मिलने की उम्मीद ने उस के पैरों में जैसे पंख लगा दिए थे.

वहां से जाते समय जेल के बड़े अफसर ने उसे नसीहत दी थी, ‘‘राजू, याद रखना कि बारिश के समय सभी पक्षी शरण तलाशते हैं, मगर बाज बादलों से भी ऊपर उड़ान भर कर बारिश से बचाव करता है. तुम्हें भी समाज में ऐसा ही बाज बनना है. मुश्किलों से घबराना नहीं, क्योंकि कामयाबी का मजा लेने के लिए यह जरूरी है.’’

‘‘सर, मैं आप की इन बातों को हमेशा याद रखूंगा,’’ कह कर राजू खुशीखुशी मुझ दीवार से दूर अपने घर की ओर चल दिया था.

राजू को आज दोबारा देख कर मेरी तरह सभी लोग हैरानी से भर उठे. वह सभी से गर्मजोशी से गले मिल कर अपनी दास्तान सुना रहा था. मैं ने भी अपने कान वहीं लगा दिए.

राजू ने बताया कि बाहर निकल कर दुनिया उस के लिए जैसे अजनबी बन गई थी. पत्नी के उलाहने व बड़े होते बच्चों की आंखों में तैरते कई सवाल उसे परिवार में अजनबी बना रहे थे. वह समझ गया था कि उस की गैरहाजिरी में उस के परिवार ने किन हालात का सामना किया है.

राजू के रिश्तेदार व दोस्त उस से मिलने तो जरूर आए, लेकिन उन की नजरों में दिखते मजाक उस के सीने को छलनी कर रहे थे. उस की इज्जत जमीन पर लहूलुहान पड़ी तड़प रही थी.

राजू के होंठों ने चुप्पी का गहना पहन लिया था. उस की चुनौतियां उसे आगे बढ़ने के लिए कह रही थीं, लेकिन मतलबी दोस्त उस की उम्मीद को खत्म कर रहे थे.

राजू इस बात से बहुत दुखी हो गया था. जेल से लौटने के बाद घरपरिवार और यारदोस्त ही तो उस के लिए सहारा बन सकते थे, पर बाहर आ कर उसे लगा कि वह एक खुली जेल में लौट आया है.

दुख की घनघोर बारिश में सुख की छतरी ले कर आई एक सुबह के अखबार में एक इश्तिहार आया. कुछ छात्रों को विज्ञान पढ़ाने के लिए एक ट्यूटर की जरूरत थी.

राजू ने उन बच्चों के मातापिता से बात कर ट्यूशन पढ़ाने का काम शुरू कर दिया. अपनी जानकारी और दोस्ताना बरताव के चलते वह जल्दी ही छात्रों के बीच मशहूर हो गया. उस ने साबित कर दिया कि अगर कोशिश को मेहनत और लगन का साथ मिले, तो वह जरूर कामयाबी दिलाएगी.

छात्रों की बढ़ती गिनती के साथ उस का खुद पर भी भरोसा बढ़ने लगा. यह भरोसा ही उस का सच्चा दोस्त बन गया.

प्यार और भरोसा सुबह और शाम की तरह नहीं होते, जिन्हें एकसाथ देखा न जा सके. धीरेधीरे पत्नी का राजू के लिए प्यार व बच्चों का अपने पिता के लिए भरोसा उसे जिंदगी के रास्ते पर कामयाब बना रहा था.

यह देख कर राजू ने अपनी जिंदगी के उस अंधेरे पल में रोशनी की अहमियत को समझा और एक एनजीओ बनाया.

यह संस्था तिहाड़ जेल में बंद कैदियों को पढ़ालिखा कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए जागरूक करेगी. अपने इसी मकसद को पूरा करने के लिए ही राजू ने मेरी दहलीज के अंदर दोबारा कदम रखा, लेकिन एक अलग इमेज के साथ. मुझे राजू के अंदर चट्टान जैसे हौसले वाला वह बाज नजर आया, जो अपनी हिम्मत से दुख के बादलों के ऊपर उड़ रहा था.

एक रात की उजास

इश्क की बिसात पर खतरनाक साजिश : भाग 1

  1. वह 8×10 फीट की साधारण रसोई थी. उस में सारी चीजें बड़े तरीके से अपनीअपनी जगह पर रखी हुई थीं. रसोईघर से सटे बाईं ओर की तरफ एक बड़ा सा दालान था. दालान से सटे 3 बड़े और
    शानदार कमरे थे. रसोईघर तक पहुंचने के लिए इन्हीं कमरों से हो कर जाना होता था. पहली मंजिल पर बने कमरे भूतल पर बने कमरों के नक्शे के आधार पर ही बने थे. मकान में कुल मिला कर 5 परिवार रहते थे.
    भूतल वाले कमरे में भारतीय सेना में हवलदार प्रवीण कुमार अपनी पत्नी मनीषा और 2 बच्चों के साथ रहता था. बाकी और कमरों में उस के 4 बडे़ भाई अपनेअपने परिवारों के साथ रहते थे.
    हरियाणा के चरखी दादरी जिले के गांव डूडीवाला बिशुनपुरा में भले ही पांचों परिवारों के चूल्हे अलगअलग जलते रहे हों लेकिन पांचों भाइयों में गजब की एकता थी. दुखसुख होने पर पांचों भाई एकदूसरे के लिए 24 घंटे एक पैर पर खड़े रहने के लिए तैयार रहते थे. भाइयों की एकता देख कर पासपड़ोस के लोग ईर्ष्या से जलभुन उठते थे, लेकिन पड़ोसियों की परवाह किए बिना पांचों भाई अपनी मस्ती में रहते थे.
    बहरहाल, एक रोज अपने किचन में घर की सब से छोटी बहू और हवलदार प्रवीण की पत्नी मनीषा खड़ी हो कर आटा गूंथने में मस्त थी. पीछे से अचानक से खुद को उस ने किसी की मजबूत बांहों में पूरी तरह जकड़ते हुए महसूस किया तो वह डर के मारे बुरी तरह उछल पड़ी. हाथ से आटा वाला परात छूटतेछूटते बचा.
    पलट कर देखा तो उस के सामने उस का देवर दीपक खड़ा था. उसे डरीसहमी हालत में देख कर वह मुसकरा रहा था.
    ‘‘देवरजी, ऐसे भी कोई मजाक करता है क्या भला?’’ डर के मारे मनीषा अभी भी कांप रही थी.
    ‘‘क्या हुआ भाभी, आप इतनी डरी सी क्यों हैं?’’ दीपक बोला.
    ‘‘आप तो ऐसे अंजान बनते हो जैसे आप को कुछ पता ही न हो. भला ऐसे भी कोई मजाक करता है क्या? अभी कोई देख लेता तो क्या होता, जानते हो भी आप?’’ मनीषा इठलाते हुए बोली.
    ‘‘हां, हमारा प्यार सरेआम रुसवा हो जाता,’’ भाभी मनीषा को अभी भी वह अपनी मजबूत बांहों में ले कर झूल रहा था.
    ‘‘आप को पता है न, आप के भैया घर आए हैं और बाहर हैं. इस हालत में अगर उन्होंने देख लिया तो कयामत के दिन सज जाएंगे. पता है न आप को वो कितने गुस्से वाले हैं और जब गुस्से का भूत उन के सिर सवार हो जाता है तो उन्हें आगेपीछे कुछ दिखाई नहीं देता.’’
    ‘‘हांहां, मैं सब जानता हूं कि वह कितने गुस्से वाले हैं. आखिरकार, भैया फौजी जो ठहरे. वैसे भी गुस्सा फौजियों की नाक पर सवार रहता है.’’ दीपक बोला.
    ‘‘जब आप सब कुछ जानते हो तो फिर…’’
    ‘‘तो फिर क्या भाभी?’’ बीच में बात काटते हुए दीपक ने कहा, ‘‘वैसे बहुत मजा आता है आप को छेड़ने में.’’
    ‘‘तो ऐसे कब तक आंखमिचौली खेलते रहोगे. भगा क्यों नहीं ले जाते यहां से मुझे, फिर जितना मजा लूटना चाहते हो, बिंदास हो कर लूटना.’’
    ‘‘हांहां, आप को यहां से भगा कर भी ले जाऊंगा और इस संगमरमर जैसे गोरे बदन से बिंदास हो कर मजे भी लूटूंगा.’’ फिर कुछ सोचते हुए आगे बोला, ‘‘लेकिन भाभी, मैं तो यह सोचता हूं कि भगा कर ले जाने की जरूरत ही क्या है? जबकि भैया खुद ही नौकरी पर भागे रहते हैं. अभी तो फिलहाल घूमनेफिरने यहां आए हैं. 2-4 दिनों में अपनी नौकरी पर फिर वापस लौट जाएंगे तो फिर सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा.’’ दीपक ने कहा.
    ‘‘ना बाबा ना, मुझे तो डर लगता है, कहीं ये देख न लें. अगर ये देख लिए या इन को हमारे इस रिश्ते के बारे में पता चल गया तो बाबा मार ही डालेंगे मुझे जान से.’’ मनीषा हाथ नचाते हुए बोली.
    ‘‘ऐसे कैसे मार डालेंगे मेरी जान को. अब ये जान केवल मेरी है. इस पर अब सिर्फ मेरा अधिकार है. कोई टेढ़ी नजर कर के भी तो देखे, जान ले लूंगा उस हरामी के पिल्ले की.’’ कहते हुए दीपक ने मनीषा के सुर्ख गालों पर अपनी मोहब्बत का झंडा गाड़ दिया.
    दीपक के प्यार भरे चुंबन से मनीषा के शरीर में बिजली सा करंट दौड़ गया. खुद दीपक भी बेकाबू हो चुका था, लेकिन खुद को संभाल लिया और वहां से अपने घर
    चला गया.

ASI के फरेेबी प्यार में बुरे फंसे थाना प्रभारी : भाग 1

सामान्य दिनों की तरह शुक्रवार 24 जून, 2022 को इंदौर महानगर के पुलिस कमिश्नर के औफिस में चहलपहल बनी हुई थी. पुलिसकर्मी दोपहर बाद के अपने रुटीन वाले काम निपटाने में व्यस्त थे. साथ ही उन के द्वारा कुछ अचानक आए काम भी निपटाए जा रहे थे.दिन में करीब 3 बजे का समय रहा होगा. वहीं पास में स्थित पुलिस आयुक्त परिसर में गोली चलने की आवाज आई. सभी पुलिसकर्मी चौंक गए. कुछ सेकेंड में ही एक और गोली चलने की आवाज सुन कर सभी दोबारा चौंके. अब वे अलर्ट हो गए थे और तुरंत उस ओर भागे, जिधर से गोलियां चलने की आवाज आई थी. पुलिस आयुक्त के कमरे के ठीक बाहर बरामदे का दृश्य देख कर सभी सन्न रह गए.

पुलिस कंट्रोल रूम में ही काम करने वाली एएसआई रंजना खांडे जमीन पर अचेत पड़ी थी. उस के सिर के नीचे से खून रिस रहा था. कुछ दूरी पर ही भोपाल श्यामला हिल्स थाने के टीआई हाकम सिंह पंवार भी अचेतावस्था में करवट लिए गिरे हुए थे.खून उन की कनपटी से तेजी से निकल रहा था. उन्हें देख कर कहा जा सकता था कि दोनों पर किसी ने गोली चलाई होगी. किंतु वहां किसी तीसरे के होने का जरा भी अंदाजा नहीं था. हां, टीआई के पैरों के पास उन की सर्विस रिवौल्वर जरूर पड़ी थी.

एक महिला सिपाही ने रंजना खांडे के शरीर को झकझोरा. वह उठ कर बैठ गई. उसे गोली छूती हुई निकल गई थी. वह जख्मी थी. उस की गरदन के बगल से खून रिस रहा था. उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया. जबकि टीआई के शरीर को झकझोरने पर उस में कोई हरकत नहीं हुई. उन की सांसें बंद हो चुकी थीं. रंजना के साथ टीआई को भी अस्पताल ले जाया गया.गोली चलने की इस वारदात की सूचना पुलिस कमिश्नर हरिनारायण चारी मिश्र को भी मिल गई. वह भी भागेभागे घटनास्थल पर पहुंच गए. तब तक की हुई जांच के मुताबिक टीआई हाकम सिंह के गोली मार कर खुदकुशी करने की बात चर्चा में आ चुकी थी. सभी को यह पता था कि यह प्रेम प्रसंग का मामला है. मरने से पहले टीआई ने ही एएसआई रंजना खांडे पर गोली चलाई थी.

इस के बाद अपनी कनपटी पर रिवौल्वर सटा कर गोली मार ली थी. रंजना खांडे की गरदन को छूती हुई गोली निकल गई थी. गरदन पर खरोंच भर लगी थी, किंतु वह वहीं धड़ाम से गिर पड़ी थी. रंजना के गिरने पर टीआई ने उसे मरा समझ लिया था. परंतु ऐसा हुआ नहीं था. पुलिस जांच में यह बात भी सामने आई कि रंजना ने टीआई पंवार पर दुष्कर्म करने का आरोप लगाया था. जबकि पंवार रंजना पर ब्लैकमेल करने का आरोप लगा चुके थे.

रंजना टीआई को कर रही थी ब्लैकमेल,रंजना और टीआई पंवार के बीच गंभीर विवाद की यही मूल वजह थी. इसे दोनों जल्द से जल्द निपटा लेना चाहते थे. इस सिलसिले में उन की कई बैठकें हो चुकी थीं, लेकिन बात नहीं बन पाई थी.टीआई पंवार तनाव में चल रहे थे. इस कारण 21 जून को बीमारी का हवाला दे कर छुट्टी पर इंदौर चले गए थे. उन्हें घटना के दिन रंजना ने 24 जून को मामला निपटाने के लिए दिन में डेढ़ बजे कौफीहाउस बुलाया था.

जबकि रंजना खुद अपने भाई कमलेश खांडे के साथ 10 मिनट देरी से पहुंची थी. उन के बीच काफी समय तक बातचीत होती रही. उसे बातचीत नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वे एकदूसरे से बहस कर रहे थे, जो आधे घंटे बीत जाने के बाद भी खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी. बगैर किसी नतीजे पर पहुंचे दोनों सवा 2 बजे कौफीहाउस से बाहर निकल आए थे.

पुलिस कमिश्नर औफिस के पास रीगल थिएटर है. उसी के सामने कौफीहाउस बना हुआ है. यह केवल पुलिस वालों के लिए ही है. बाहर निकलने पर भी दोनों में बहस होती रही. बताते हैं कि वे काफी तैश में थे. बहस करीब 40 मिनट तक चलती रही.

ASI के फरेेबी प्यार में बुरे फंसे थाना प्रभारी : भाग 3

टीआई की रखैल रेशमा भी करने लगी ब्लैकमेल रंजना ने कुछ मिनट की एक वीडियो क्लिपिंग उन्हें वाट्सऐप कर दी. उसे देखते ही पंवार का दिमाग सुन्न हो गया. तभी रंजना के भाई ने फोन कर धमकी दी कि उस तरह के कई वीडियो उस के पास हैं. उन्होंने अगर जरा सी भी होशियारी दिखाई और पैसे नहीं दिए, तब वह सीधा बहन के साथ बलात्कार का आरोप लगा देगा. उस के बाद की पूरी प्रक्रिया क्या हो सकती है, उसे वह अच्छी तरह जानता है.

बाद में रेशमा उर्फ जागृति भी रंजना से मिल गई. फिर इन्होंने मिल कर टीआई पंवार को मानसिक रूप से प्रताडि़त करना शुरू कर दिया. इस की पुष्टि पंवार के मोबाइल नंबर की साइबर फोरैंसिक जांच से हुई.इस बारे में पंवार के घर वालों ने भी पुलिस से शिकायत की थी. पूछताछ में पंवार की पत्नी लीलावती, भाई रामगोपाल, भतीजा भूपेंद्र पंवार, मुकेश पंवार और पिता भंवरसिंह पंवार ने फोन पर धमकी मिलने की बात बताई.

उन्होंने बताया कि हाकम सिंह से रंजना ही नहीं, बल्कि उस की बहन और भाई भी पैसे की मांग करते थे. पैसे नहीं देने पर बलात्कार के झूठे मुकदमे में फंसा देने की धमकी भी देते थे.पंवार की मौत गोली मार कर आत्महत्या किए जाने की पुष्टि के बाद पुलिस की जांच में 4 लोगों के खिलाफ प्रताडि़त करने की एफआईआर दर्ज की गई. उन 4 लोगों में मुख्य आरोपी रंजना खांडे, रेशमा उर्फ जागृति, कमलेश और गोविंद जायसवाल का नाम था.

एफआईआर में उन्होंने झूठी रिपोर्ट दर्ज करवा कर जेल भेजने की धमकी देने और पैसा मांगने की बात कही गई थी. जांच में पाया गया कि 31 मार्च से 24 जून, 2022 के बीच मृतक के मोबाइल पर रेशमा उर्फ जागृति ने फोन कर के धमकियां दी थीं. ये धमकियां पूरी तरह से ब्लैकमेल करने और मानसिक प्रताड़ना की थीं. टीआई पंवार ने अपने मोबाइल में इन की रिकौर्डिंग कर रखी थी. मोबाइल पर मिली कुल 7 धमकियां तिथिवार रिकौर्ड थीं.

धमकी देने वाले आरोपियों में रेशमा ने पंवार से मकान के लिए पैसे और रजिस्ट्री के लिए प्रताडि़त किया था. ऐसा नहीं करने पर बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कराने और अश्लील फोटो वायरल करने की धमकी दी थी. ऐसे ही रंजना और उस के भाई कमलेश 25 लाख रुपए और गाड़ी की मांग कर रहे थे.
रंजना ने टीआई पंवार से कहा था कि उन्होंने कपड़ा व्यापारी गोविंद जायसवाल को रखने के लिए जो 25 लाख रुपए दिए थे, वह उस से मांग कर दें. दूसरी तरफ गोविंद जायसवाल पैसा वापस नहीं कर रहा था. वह टालमटोल कर रहा था.

पंवार को रेशमा ने 24 जून को गोविंद से पैसा लाने का दबाव बनाया था. उसी समय रंजना और कमलेश भी पैसा और गाड़ी के लिए पंवार को इंदौर में इंडियन कैफे हाउस के सामने बुलाया था. इस तरह से पंवार दोतरफा मानसिक तनाव में आ चुके थे.मुख्यालय के प्रांगण में ही बहा खून

टीआई पंवार को गोविंद से पैसे ले कर अश्लील वीडियो के वायरल होने से रोकने के लिए रंजना, रेशमा और कमलेश को देने थे. पंवार ने कमलेश और रंजना से इंडियन कौफीहाउस में बातचीत के दौरान गोविंद से मोबाइल पर काल कर अपने रुपए मांगे थे. उन्होंने बातचीत में खुद को बहुत परेशान बताया था और अनर्थ होने तक की बात कही थी. इसी क्रम में रेशमा काल कर पंवार को मोबाइल पर धमकियां देती रही. उस ने फोन पर यहां तक कह दिया था कि जो पैसा और चैक नहीं दे रहा है, उसे मार कर खुद मर जाए.

यह बात पंवार के दिमाग में बैठ गई. और फिर उन्होंने जो निर्णय लिया वह उन्हें खतरनाक राह पर ले गया. रेशमा, रंजना, कमलेश और गोविंद जायसवाल की एक साथ मिली प्रताड़नाओं से पंवार टूट गए.
करीब 50 मिनट तक वह मानसिक उत्पीड़न से जूझते रहे. एक समय आया जब उन्होंने मानसिक संतुलन खो दिया और अपनी सर्विस रिवौल्वर हाथ में पकड़ ली. कौफीहाउस से निकलने के बाद बरामदे में उन्होंने रंजना के हाथ से उस का मोबाइल छीनने की कोशिश की, क्योंकि उसी में अश्लील वीडियो थीं. मोबाइल रंजना के हाथ से नीचे गिर गया, जिसे रंजना ने तुरंत उठा लिया.

तभी उन्होंने रिवौल्वर रंजना खांडे पर तान दी. जब तक रंजना कुछ कहतीसुनती, तब तक रिवौल्वर से गोली निकल चुकी थी. गोली चलते ही रंजना वहीं जमीन गिर पड़ी थी. पंवार ने तुरंत रिवौल्वर को अपनी कनपटी से सटाया और दूसरी गोली चला दी. इस तरह हत्या और आत्महत्या की इस वारदात में हत्या तो नहीं हो पाई लेकिन आत्महत्या जरूर हो गई.

इस मामले की जांच पूरी होने के बाद रेशमा, रंजना खांडे, कमलेश खांडे, कपड़ा व्यापारी गोविंद जायसवाल को भादंवि की धारा 384, 385, 306 के तहत अजाक थाने में मुकदमा दर्ज कर लिया गया.
रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एडिशनल पुलिस कमिश्नर राजेश हिंगणकर ने एएसआई रंजना खांडे को निलंबित कर दिया. आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीम ने उन के ठिकानों पर दबिश डाली, लेकिन वह वहां से फरार मिले.

मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने महाकाल मंदिर क्षेत्र में बसस्टैंड के पास से उसे गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में रंजना ने टीआई पंवार से अपने अवैध संबंधों की बात कुबूली. उस ने बताया कि उन्हीं संबंधों की वीडियो से ब्लैकमेल कर वह टीआई से क्रेटा कार मांग रही थी.इस के बाद पुलिस ने टीआई की पत्नी का दावा करने वाली रेशमा को भी गिरफ्तार कर लिया.

वारदात के करीब 2 हफ्ते बाद रंजना के भाई कमलेश की आग से झुलस कर मौत हो गई. दरअसल, कमलेश धामोद स्थित अपने घर पर दालबाटी बना रहा था. उस समय उपले गीले होने की वजह से जल नहीं पा रहे थे. उन्हें जलाने के लिए कमलेश ने जैसे ही पैट्रोल डाला, तभी उस के कपड़ों में आग लग गई.
घर में आग से वह काफी देर तक छटपटाता रहा. घर वालों ने किसी तरह उस की आग बुझाई और उसे इलाज के लिए धार अस्पताल ले गए. हालत गंभीर होने की वजह से उसे एमवाई अस्पताल रैफर कर दिया. जहां इलाज के दौरान उस की मौत हो गई.

इंदौर के हनुमान मंदिर के पास एलआईजी सोसायटी में रहने वाला व्यापारी गोविंद जायसवाल कथा लिखने तक गिरफ्तार नहीं हो सका था. पुलिस ने आरोपी रंजना खांडे और रेशमा उर्फ जागृति से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

बेवफाई : हीरा ने दिया रमइया को धोखा

रमइया गरीब घर की लड़की थी. सुदूर बिहार के पश्चिमी चंपारण की एक छोटी सी पिछड़ी बस्ती में पैदा होने के कुछ समय बाद ही उस की मां चल बसीं. बीमार पिता भी दवादारू की कमी में गुजर गए. अनाथ रमइया को दादी ने पालपोस कर बड़ा किया. वे गांव में दाई का काम करती थीं. इस से दादीपोती का गुजारा हो जाया करता था. रमइया जब 7 साल की हुई, तो दादी ने उसे सरकारी स्कूल में पढ़ने भेजा, पर वहां उस का मन नहीं लगा. वह स्कूल से भाग कर घर आ जाया करती थी. दादी ने उसे पढ़ाने की बहुत कोशिश की, पर हठीली पोती को नहीं पढ़ा पाईं. रमइया अब 16 साल की हो गई. चिकने बाल, सांवली रंगत और बड़ीबड़ी पनीली आंखों में एक विद्रोह सा झलकता हुआ.

अब दादी को रातों में नींद नहीं आती थी. रमइया के ब्याह की चिंता हर पल उन के दिलोदिमाग पर हावी रहने लगी. कहां से पैसे आएंगे? कैसे ब्याह होगा? वगैरह. जायदाद के नाम पर सिकहरना नदी के किनारे जमीन के छोटे से टुकड़े पर बनी झोंपड़ी और शादी के वक्त के कुछ चांदी के जेवर और सिक्के… यही थी दादी की जिंदगीभर की जमापूंजी.

रातदिन इसी चिंता में घुल कर बुढि़या की कमर ही झुकने लगी. गांवबिरादरी के ही कुछ लोगों ने बुढि़या पर तरस खा कर पड़ोस के गांव के हीरा के साथ रमइया का ब्याह करवा दिया. हीरा सीधासादा और मेहनती था, जो अपनी मां के साथ दलितों की बस्ती में रहता था. घर में मांबेटे के अलावा एक गाय भी थी, जिस का दूध बेच कर कुछ पैसे आ जाते थे. इस के अलावा फसलों की रोपाईकटाई के समय मांबेटे दूसरे के खेतों में काम किया करते थे.

शादी के बाद 3 जनों का पेट भरना मुश्किल होने लगा, तो हीरा गांव के ही कुछ नौजवानों के साथ परदेश चला गया.

पंजाब जा कर हीरा खेतों पर काम करने लगा. वहां हर दिन कहीं न कहीं काम मिलता, जिस से रोजाना अच्छी कमाई होने लगी.

हीरा जी लगा कर काम करता, जिस से मालिक हीरा से बहुत खुश रहते. हीरा ने 8 महीने में ही काफी पैसे इकट्ठे कर लिए थे. पंजाब आए साथी जब गांव वापस जाने लगे, तो वह भी वापस आ गया. गांव आने से पहले हीरा ने रमइया और मां के लिए घरेलू इस्तेमाल की कुछ चीजें खरीदीं. अपने लिए उस ने एक मोबाइल फोन खरीदा.

घर आ कर हीरा ने बड़े जोश से रमइया को फोन दिखाया और शान से बोला, ‘‘यह देख… इसे मोबाइल फोन कहते हैं. देखने में छोटा है, पर इस के अंदर ऐसे तार लगा दिए हैं कि हजारों मील दूर रह कर एक बटन दबा दो और जितनी भी चाहे बातें कर लो.’’

यह सुन कर रमइया की आंखें चौड़ी हो गईं. उस ने फोन लेने के लिए हीरा की ओर हाथ बढ़ाया.

‘‘अरे, संभाल कर,’’ कह कर हीरा ने रमइया के हाथों में मोबाइल फोन थमाया.

रमइया थोड़ी देर उलटपलट कर फोन को देखती रही, फिर उस ने हीरा से कहा, ‘‘सुनो, हमें साड़ीजेवर कुछ नहीं चाहिए. तुम जाने से पहले हमें यह फोन देते जाना. वहां जा कर अपने लिए दूसरा फोन खरीद लेना. फिर हम दिनरात फोन पर बात करेंगे.’’

हीरा पत्नी रमइया के भोलेपन पर जोर से हंस पड़ा. रमइया के सिर पर एक प्यार भरी चपत लगाते हुए वह बोला, ‘‘पगली, बातें मुफ्त में नहीं होतीं. उस में पैसा भरवाना पड़ता है.’’

इस तरह हंसतेबतियाते कई महीने गुजर गए. गांव के साथियों के साथ हीरा फिर से वापस काम पर पंजाब जाने की तैयारी करने लगा. इस बार रमइया ज्यादा दुखी नहीं थी.

हीरा के जाने के बाद अब सास की डांट खा कर भी रमइया रोती नहीं थी. वह मां बनने वाली थी और यह खबर वह हीरा को सुनाने के लिए बेचैन थी. वह मोबाइल फोन ले कर किसी कोने में पड़ी रहती और हीरा के फोन के आने का इंतजार करती रहती.

हीरा चौथी क्लास तक पढ़ालिखा था, सो उस ने रमइया को मोबाइल फोन की सारी बारीकियां समझा दी थीं. 2 महीने बाद आखिर वह दिन भी आया, जब मोबाइल फोन की घंटी घनघना कर बज उठी. रमइया का दिल बल्लियों उछल पड़ा. थरथराते हाथों से उस ने फोन का बटन दबाया और जीभर कर हीरा से बातें कीं. सास से भी हीरा की बात करवाई गई. जब पैसे खत्म हो गए, तो फोन कट गया. देर तक फोन को गोद में ले कर रमइया बैठी रही.

वक्त गुजरता गया. हीरा फिर से गांव वापस आया. वह इस बार भी अपने साथ कपड़े, सामान और पैसे ले कर आया था. रमइया का पीला चेहरा देख कर हीरा को चिंता हुई. इस बार रमइया में वह चंचलता भी नहीं दिख रही थी. वह बिस्तर पर चुपचाप सी पड़ी रहती.

हीरा ने जब इस बारे में मां से बात की, तो मां ने कहा कि ऐसा होता ही है, चिंता की कोई बात नहीं. रमइया के वहां से जाने के बाद मां ने बेटे हीरा को एकांत में बुला कर कहा, ‘‘बेटा, रमइया को इस की दादी के पास छोड़ आ. काम न धाम, यहां दिनभर पड़ी रहती है… दादी बहुत अनुभवी हैं, उन की देखरेख में रहेगी तो सबकुछ ठीक रहेगा. जब तू दोबारा आएगा, तो इस को वहां से ले आना.’’

‘‘ठीक है मां,’’ कहते हुए हीरा ने सहमति में सिर हिला दिया.

तीसरे ही दिन हीरा रमइया को उस की दादी के पास पहुंचा कर अपने गांव लौट आया. अब हीरा को रमइया के बिना घर सूनासूना सा लगता. वह चुपचाप किसी काम में लगा रहता या फोन से खेलता रहता. एक दिन हीरा ने अपने किसी साथी को फोन लगाया. ‘हैलो’ कहते ही उधर से किसी औरत की आवाज सुन कर हीरा हड़बड़ाया और उस ने जल्दी से फोन काट दिया.

थोड़ी देर बाद उसी नंबर से हीरा के मोबाइल फोन पर 4 बार मिस्ड काल आईं. हीरा की समझ में नहीं आया कि वह क्या करे… थोड़ी देर बाद उस ने फिर से उसी नंबर पर फोन लगाया. बात हुई… वह नंबर उस के दोस्त का नहीं, बल्कि कोई रौंग नंबर था. जिस औरत ने फोन उठाया था, वह उसी बस्ती से आगे शहर में रहती थी. उस का पति रोजीरोटी के सिलसिले में दिल्ली में रहता था.

उस औरत का नाम प्रीति था. उस की आवाज में मिठास थी और बात करने का तरीका दिलचस्प था. रात के 10 बजे से 2 बजे के बीच हीरा के फोन पर 3 बार मिस्ड काल आईं. अब यह रोज का सिलसिला बन गया. हीरा जबजब अपने, रमइया और प्रीति के बारे में सोचता, तो उसे लगता कि कहीं कुछ गलत हो रहा है. ऐसे में सारा दिन उसे खुद को संभालने में लग जाता, पर फिर जब रात होती, प्रीति की मिस्ड काल आती, तो हीरा का दिल फिर से उस मीठी आवाज की चपेट में आ कर रुई की तरह बिखर जाता.

अब उन में हर रोज बात होने लगी, फिर एक दिन मुलाकात तय की गई. शहर के पार्क में शाम के 4 बजे हीरा को आने को कहा गया. जहां हीरा समय से पहले ही पहुंच गया, वहीं प्रीति 15 मिनट देर से आई. गोरा रंग और छरहरे बदन की प्रीति की अदाओं में गजब का खिंचाव था. कुरती और चूड़ीदार पाजामी में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी. वह 5वीं जमात तक पढ़ीलिखी थी.

दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में बदलते चले गए. रमइया एक बेटी की मां बन गई और इधर हीरा के गांव के साथी फिर से काम पर लौटने की तैयारी करने लगे. परदेश जाने से पहले मां ने हीरा से रमइया और बच्ची को देख आने को कहा. हीरा 5-6 दिनों के लिए ससुराल पहुंचा. रमइया का पीला और बीमार चेहरा देख कर हीरा के मन में एक ऊब सी हुई. काली और मरियल सी बच्ची को देख कर उस का मन बैठ सा गया.

हीरा का मन एक दिन में ही ससुराल से भाग जाने को हुआ. खैर, जैसेतैसे उस ने 4 दिन बिताए और 5वें दिन जेल से छूटे कैदी सा घर भाग आया. पंजाब जाने से पहले हीरा प्रीति से मिला, तो उस की सजधज और चेहरे की ताजगी ने उसे रिरियाती बच्ची और रमइया के पीले चेहरे के आतंक से बाहर निकाल लिया.

एक साल गुजर गया. हीरा वहीं रह कर दूसरा रोजगार भी करने लगा. अब वह प्रीति को पैसे भी भेजने लगा था. इधर रमइया की सास से नहीं बनने के चलते वह मायके में ही पड़ी रही. उम्र बढ़ने के साथसाथ रमइया की दादी का शरीर ज्यादा काम करने में नाकाम हो रहा है.

अपना और बेटी का पेट भरने के लिए रमइया ने बस्ती से आगे 2-3 घरों में घरेलू काम करना शुरू कर दिया. बच्ची जनने से टूटा जिस्म और उचित खानपान की कमी में वह दिनोंदिन कमजोर और चिड़चिड़ी होने लगी. इधर तकरीबन एक साल से भी ज्यादा समय बाद हीरा जब वापस घर आया, तो आते ही प्रीति से मिलने चल पड़ा. न तो उस ने रमइया की खबर ली, न ही मां ने उसे रमइया को घर लाने को कहा.

अब प्रीति भी उस से मिलने बस्ती की ओर चली आती. कभी बस्ती के बाहर वाले स्कूल में, कभी खेतों के पीछे, तो कभी कहीं और मुलाकातों का सिलसिला जारी रहा. पोती की हालत और अपनी बढ़ती उम्र को देखते हुए रमइया की दादी ने हीरा की मां के पास बहू को लिवा लाने के लिए कई संदेश भिजवाए. आखिर में मां के कहने पर हीरा रमइया को लिवाने ससुराल पहुंचा.

ससुराल आ कर रमइया ने देखा कि हीरा या तो घर में नहीं रहता और अगर रहता भी है, तो हमेशा कहीं खोयाखोया सा या फिर अपने मोबाइल फोन के बटनों को दबाता रहता है. पता नहीं, क्या करता रहता है.ऐसे में एक रात रमइया की नींद खुली, तो उसे लगा कि हीरा किसी से बातें कर रहा है. आधी रात बीत चु की थी. इस वक्त हीरा किस से बातें कर रहा है? बातों का सिलसिला लंबा चला. रमइया दीवार से कान लगा कर सुनने की कोशिश करने लगी, पर उस की समझ में ज्यादा कुछ नहीं आ सका.

दूसरे दिन रमइया मौका पा कर हीरा का फोन ले कर बगल वाले रतन काका के पोते, जो छठी जमात में पढ़ता था, के पास गई और उसे सारे मैसेज पढ़ कर सुनाने को कहा.

मैसेज सुन कर रमइया गुस्से से सुलग उठी. वह हीरा के पास पहुंची और उस नंबर के बारे में जानना चाहा. एक पल के लिए हीरा सकपकाया, पर दूसरे ही पल संभल गया. वह बोला, ‘‘अरे पगली, मुझ पर शक करती है. यह तो मेरे साथ काम करने वाले की घरवाली का नंबर है. वह इस दफा घर नहीं आया, इसलिए उस का हालचाल पूछ रही थी.’’

रमइया चुप रही, पर उस के चेहरे पर संतोष के भाव नहीं आए. वह हीरा और उस के मोबाइल फोन पर नजर रखने लगी थी. 2 दिन बाद ही रात को रमइया ने हीरा को प्रीति से फोन पर यह कहते हुए सुन लिया कि कल रविवार है. स्कूल पर आ जाना. 2-3 दिनों के बाद फिर मुझे वापस भी लौटना होगा. दूसरे दिन हीरा 12 बजे के आसपास घर से निकल गया और स्कूल पर प्रीति के आने का इंतजार करने लगा.

थोड़ी ही देर में प्रीति दूर से आती दिखी. कुछ देर तक दोनों खेतों में ही खड़ेखड़े बातें करते रहे, फिर स्कूल के भीतर आ गए. प्रीति थोड़ी बेचैन हो कर बोल उठी, ‘‘ऐसे छिपछिप कर हम आखिर कब तक मिलते रहेंगे हीरा. हमेशा ही डर लगा रहता है. अब मैं तुम्हारे साथ ही रहना चाहती हूं.’’

हीरा प्यार से बोला, ‘‘मैं भी तो यही चाहता हूं. बस, महीनेभर रुक जाओ… दोस्तों के साथ तुम्हें नहीं रख सकता… इस बार जाते ही कोई अलग कमरा लूंगा, फिर आ कर तुम्हें ले जाऊंगा. उस के बाद छिपछिप कर मिलने की कोई जरूरत नहीं होगी.’’

प्रीति ने कहा, ‘‘और तुम जो यहां आ कर 3-3 महीने तक रुकते हो, उस वक्त मैं क्या करूंगी? परदेश में कैसे अकेली रहूंगी और अपना घर कैसे चलाऊंगी?’’ हीरा बोला, ‘‘अरे, 3-3 महीने तो मैं यहां तुम्हारी खातिर पड़ा रहता हूं. जब मेरी प्रीतू मेरे पास होगी, तो मुझे यहां आने की जरूरत ही क्यों पड़ेगी. यहां कभीकभार खर्च के पैसे भेज दिया करूंगा, बाकी जो भी कमाऊंगा, वह सब तुम्हारा.’’

प्रीति ने बड़ी अदा से पूछा, ‘‘अच्छा… तुम कितने पैसे कमा लेते हो कि वहां भी घर चलाओगे, यहां भी भेजोगे?’’

हीरा ने थोड़ा इतरा कर कहा, ‘‘इतना तो कमा ही लेता हूं कि 2 घर आराम से चला लूं,’’ कहते हुए हीरा ने जैकेट उतार कर अपनी दोनों बांहें किसी बौडी बिल्डर के अंदाज में ऊपर उठा कर दिखाईं. प्रीति ने आंखें झुका कर मुंह फेर लिया. हीरा की मजबूत हथेलियों ने प्रीति को कमर से थाम कर अपने करीब कर लिया और उस प्यारे चेहरे से बालों को हटाते हुए आगे झुका. प्रीति ने आंखें बंद कर लीं.

उधर टोकरे में गंड़ासा रख और पल्लू से चेहरे को ढक कर रमइया सीधा स्कूल जा पहुंची. गुस्से से जलती आंखों ने दोनों को एकसाथ ही देख लिया. फुफकारती हुई रमइया ने प्रीति के ऊपर गंड़ासा फेंका, जो सीधा जा कर हीरा को लगा. देखते ही देखते पूरी बस्ती में कुहराम मच गया. जैसेतैसे हीरा को अस्पताल पहुंचाया गया. रमइया को पुलिस पकड़ कर ले गई. प्रीति बड़ी मुश्किल से जान बचा कर वहां से भाग निकली.

गरदन की नस कट जाने से हीरा की मौत हो गई. सुनवाई के बाद अदालत ने रमइया को उम्रकैद की सजा सुनाई. डेढ़ साल की मरियल सी बच्ची को अनाथ बना कर, पेट में एक बच्चे को साथ ले कर रमइया हमेशा के लिए जेल की सलाखों के पीछे कैद कर दी गई.

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