एक रात की उजास : भाग 2

पार्क से लौटते समय रास्ते में रेल लाइन पड़ती है. ट्रेन की चीख सुन कर इस उम्र मेें भी वह डर जाती हैं. ट्रेन अभी काफी दूर थी फिर भी उन्होंने कुछ देर रुक कर लाइन पार करना ही ठीक समझा. दाईं ओर देखा तो कुछ दूरी पर एक लड़का पटरी पर सिर झुकाए बैठा था. वह धीरेधीरे चल कर उस तक पहुंचीं. लड़का उन के आने से बिलकुल बेखबर था. ट्रेन की आवाज निकट आती जा रही थी पर वह लड़का वहां पत्थर बना बैठा था. उन्होंने उस के खतरनाक इरादे को भांप लिया और फिर पता नहीं उन में इतनी ताकत कहां से आ गई कि एक झटके में ही उस लड़के को पीछे खींच लिया. ट्रेन धड़धड़ाती हुई निकल गई.

‘‘क्यों मरना चाहते हो, बेटा? जानते नहीं, कुदरत कोमल कोंपलों को खिलने के लिए विकसित करती है.’’

‘‘आप से मतलब?’’ तीखे स्वर में वह लड़का बोल पड़ा और अपने दोनों हाथों से मुंह ढक फूटफूट कर रोने लगा.

मालतीजी उस की पीठ को, उस के बालों को सहलाती रहीं, ‘‘तुम अभी बहुत छोटे हो. तुम्हें इस बात का अनुभव नहीं है कि इस से कैसी दर्दनाक मौत होती है.’’ मालतीजी की सर्द आवाज में आसन्न मृत्यु की सिहरन थी.

‘‘बिना खुद मरे किसी को यह अनुभव हो भी नहीं सकता.’’

लड़के का यह अवज्ञापूर्ण स्वर सुन कर मालतीजी समझाने की मुद्रा में बोलीं, ‘‘बेटा, तुम ठीक कहते हो लेकिन हमारा घर रेलवे लाइन के पास होने से मैं ने यहां कई मौतें देखी हैं. उन के शरीर की जो दुर्दशा होती है, देखते नहीं बनती.’’

लड़का कुछ सोचने लगा फिर धीमी आवाज में बोला,‘‘मैं मरने से नहीं डरता.’’

‘‘यह बताने की तुम्हें जरूरत नहीं है…लेकिन मेरे  बच्चे, इस में इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि पूरी तरह मौत हो ही जाए. हाथपैर भी कट सकते हैं. पूरी जिंदगी अपाहिजों की तरह गुजारनी पड़ सकती है. बोलो, है मंजूर?’’

लड़के ने इनकार में गरदन हिला दी.

‘‘मेरे पास दूसरा तरीका है,’’ मालतीजी बोलीं, ‘‘उस से नींद में ही मौत आ जाएगी. तुम मेरे साथ मेरे घर चलो. आराम से अपनी समस्या बताओ फिर दोनों एकसाथ ही नींद की गोलियां खाएंगे. मेरा भी मरने का इरादा है.’’

लड़का पहले तो उन्हें हैरान नजरों से देखता रहा फिर अचानक बोला, ‘‘ठीक है, चलिए.’’

अंधेरा गहरा गया था. अब उन्हें बिलकुल धुंधला दिखाई दे रहा था. लड़के ने उन का हाथ पकड़ लिया. वह रास्ता बताती चलती रहीं.

उन्हें नीहार के हाथ का स्पर्श याद आया. उस समय वह जवान थीं और छोटा सा नीहार उन की उंगली थामे इधरउधर कूदताफांदता चलता था.

फिर उन का पोता अंकुर अपनी दादी को बड़ी सावधानी से उंगली पकड़ कर बाजार ले जाता था.

आज इस किशोर के साथ जाते समय वह वाकई असहाय हैं. यह न होता तो शायद गिर ही पड़तीं. वह तो उन्हेें बड़ी सावधानी से पत्थरों, गड्ढों और वाहनों से बचाता हुआ ले जा रहा था. उस ने मालतीजी के हाथ से चाबी ले कर ताला खोला और अंदर जा कर बत्ती जलाई तब उन की जान में जान आई.

‘‘खाना तो खाओगे न?’’

‘‘जी, भूख तो बड़ी जोर की लगी है. क्योंकि आज परीक्षाफल निकलते ही घर में बहुत मार पड़ी. खाना भी नहीं दिया मम्मी ने.’’

‘‘आज तो 10वीं बोर्ड का परीक्षाफल निकला है.’’

‘‘जी, मेरे नंबर द्वितीय श्रेणी के हैं. पापा जानते हैं कि मैं पढ़ने में औसत हूं फिर भी मुझ से डाक्टर बनने की उम्मीद करते हैं और जब भी रिजल्ट आता है धुन कर रख देते हैं. फिर मुझ पर हुए खर्च की फेहरिस्त सुनाने लगते हैं. स्कूल का खर्च, ट्यूशन का खर्च, यहां तक कि खाने का खर्च भी गिनवाते हैं. कहते हैं, मेरे जैसा मूर्ख उन के खानदान में आज तक पैदा नहीं हुआ. सो, मैं इस खानदान से अपना नामोनिशान मिटा देना चाहता हूं.’’

किशोर की आंखों से विद्रोह की चिंगारियां फूट रही थीं.

‘‘ठीक है, अब शांत हो जाओ,’’ मालती सांत्वना देते बोलीं, ‘‘कुछ ही देर बाद तुम्हारे सारे दुख दूर हो जाएंगे.’’

‘…और मेरे भी,’ उन्होंने मन ही मन जोड़ा और रसोईघर में चली आईं. परिश्रम से लौकी के कोफ्ते बनाए. थोड़ा दही रखा था उस में बूंदी डाल कर स्वादिष्ठ रायता तैयार किया. फिर गरमगरम परांठे सेंक कर उसे खिलाने लगीं.

‘‘दादीजी, आप के हाथों में गजब का स्वाद है,’’ वह खुश हो कर किलक रहा था. कुछ देर पहले का आक्रोश अब गायब था.

उसे खिला कर खुद खाने बैठीं तो लगा जैसे बरसों बाद अन्नपूर्णा फिर उन के हाथों में अवतरित हो गई थीं. लंबे अरसे बाद इतना स्वादिष्ठ खाना बनाया था. आज रात को कोफ्तेपरांठे उन्होेंने निर्भय हो कर खा लिए. न बदहजमी का डर न ब्लडप्रेशर की चिंता. आत्महत्या के खयाल ने ही उन्हें निश्चिंत कर   दिया था.

खाना खाने के बाद मालती बैठक का दरवाजा बंद करने गईं तो देखा वह किशोर आराम से गहरी नींद में सो रहा था. उन के मन में एक अजीब सा खयाल आया कि सालों से तो वह अकेली जी रही हैं. चलो, मरने के लिए तो किसी का साथ मिला.

मालती उस किशोर को जगाने को हुईं लेकिन नींद में उस का चेहरा इस कदर लुभावना और मासूम लग रहा था कि उसे जगाना उन्हें नींद की गोलियां खिलाने से भी बड़ा क्रूर काम लगा. उस के दोनों पैर फैले हुए थे. बंद आंखें शायद कोई मीठा सा सपना देख रही थीं क्योंकि होंठों के कोनों पर स्मितरेखा उभर आई थी. किशोर पर उन की ममता उमड़ी. उन्होंने उसे चादर ओढ़ा दी.

‘चलो, अकेले ही नींद की गोलियां खा ली जाएं,’ उन्होंने सोचा और फिर अपने स्वार्थी मन को फटकारा कि तू तो मर जाएगी और सजा भुगतेगा यह निरपराध बच्चा. इस से तो अच्छा है वह 1 दिन और रुक जाए और वह आत्महत्या की योजना स्थगित कर लेट गईं.

 

अपना बेटा -भाग 3 : मामाजी को देख क्यों परेशान हो उठे अंजलि और मुकेश

मुकेश यह भी समझ रहा था कि मामाजी की नजर उस के और अंजलि के पैसों पर थी. उन्हें लग रहा था कि उन का एक बच्चा भी अगर मेरे घर आ गया तो बाकी के परिवार का मेरे घर पर अपनेआप हक हो जाएगा. उसे आज भी याद है जब मामाजी की हर चाल नाकाम रही तो खीज कर वह चिल्ला पड़े थे, ‘अपने लोगों को दौलत देते हुए एतराज है पर गैरों में बांट कर खुश हो, तो जाओ आज के बाद हमारा तुम से कोई वास्ता नहीं.’

मामाजी जब अंतिम बार मिले तो बोले थे, ‘कान खोल कर तुम दोनों सुन लो, गैर गैर होते हैं, अपने अपने ही. और मैं यह साबित कर दूंगा.’

‘और आज यही साबित करने आए हैं. लगता है गगन को गैर साबित कर के ही जाएंगे, लेकिन मैं मामाजी की यह इच्छा पूरी नहीं होने दूंगा,’ सोचता हुआ मुकेश करवट बदल रहा था.

इधर अंजलि की आंखों से नींद जैसे गायब थी. जब रहा नहीं गया तो उठ कर वह गगन के कमरे की तरफ चल दी. उस का अंदाजा सही था, गगन जाग रहा था. रजत भी जागा हुआ था.

‘‘तू पागल है, गगन,’’ रजत बोला, ‘‘मामाजी ने कहा और तू ने उसे सच मान लिया. मामाजी हमारे ज्यादा अपने हैं या मम्मीपापा.’’

अंजलि के पीछे मुकेश भी आ गए. दोनों गगन के कमरे में अपराधियों की तरह आ कर बैठ गए. अंजलि ने गगन को देखा. उस की आंखें भरी हुई थीं.

‘‘गगन, तू ने खाना क्यों नहीं खाया?’’

गगन कुछ बोला नहीं. बस, मां की नजरों में देखता रहा.

‘‘ऐसे क्या देख रहा है? मैं क्या गैर हूं?’’ अंजलि रो पड़ी. उस के शब्दों में अपनापन और रोब दोनों थे, ‘‘मम्मी हूं मैं तेरी…कोई भी उठ कर कुछ कह देगा और तू मान लेगा? मेरी बात पर यकीन नहीं है? उस की बात सुन रहा

है जो सालों बाद अचानक उठ कर चला आया.

‘‘बेटे, अगर हम तेरे मातापिता न होते तो क्या तुम्हें इतने प्यार से रखते? क्या तुम्हें कभी महसूस हुआ कि हम ने तुम्हें रजत से कम चाहा है,’’ अंजलि के आंसू रुक ही नहीं रहे थे. फिर मुकेश की तरफ देख कर बोली, ‘‘तुम्हारे मामा को किसी का बसता घर देख खुशी नहीं होती. कहीं भी उलटीसीधी बातें बोलने लगते हैं. मालूम नहीं कब जाएंगे.’’

गगन नजरें झुकाए आंसू टपकाता रहा. उस का चेहरा बनबिगड़ रहा था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये अचानक तूफान कहां से आ गया. कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जीवन में इस तरह के किसी तूफान का सामना करना पड़ेगा.

‘‘बेटे, मैं कभी तुम्हें नहीं बताता पर आज स्थिति ऐसी है कि बताना ही पड़ेगा,’’ मुकेश ने कहा, ‘‘अगर हम तुम्हें पराया जानते तो मैं अपनी वसीयत में सारी प्रापर्टी, बैंकबैलेंस सबकुछ, तुम तीनों के नाम न करता.’’

‘‘और मैं ने भी अपनी वसीयत में अपने हिस्से की सारी प्रापर्टी तुम दोनों के नाम ही कर दी है, ताकि कभी भी झगड़ा न हो सके. हमारे किसी बेटे का, अगर कभी दिल बदल भी जाए तो कानूनी फैसला न बदले,’’ अंजलि बोली, ‘‘तुम मामाजी की बातों पर ध्यान मत दो, बेटे.’’

गगन खामोशी से दोनों की बातें सुन रहा था. उसे लगा कि अगर वह कुछ भी बोला तो सिर्फ रुलाई ही बाहर आएगी.

सुबह अंजलि ने रजत को झकझोरा तो उस की नींद खुली.

‘‘गगन कहां है?’’ अंजलि की आवाज में घबराहट थी.

‘‘कहां है, मतलब? वह तो यहीं सो रहा था?’’ रजत बोला.

‘‘बाथरूम में होगा न?’’ रजत ने अधमुंदी आंखों से कहा.

‘‘कहीं नहीं है वह. पूरा घर छान लिया है मैं ने.’’

अंजलि लगभग चीख रही थी, ‘‘तू सोता रहा और तेरी बगल से उठ कर वह चला गया. बदतमीज, तुझे पता ही नहीं चला.’’

‘‘मम्मी, मुझे क्या पता… मम्मी, आप बेकार परेशान हो रही हैं, यहीं होगा, मैं देखता हूं,’’ रजत झटके से बिस्तर से उठ गया पर मन ही मन वह भी डर रहा था कि कहीं मम्मी की बात सच न हो.

‘‘कहीं घूमने निकल गया होगा, आज रविवार जो है? आ जाएगा,’’ मुकेश ने अंजलि को बहलाया. पर वह जानता था कि वह खुद से भी झूठ बोल कर तसल्ली दे रहा है.

अंजलि का देर से मन में रुका गुबार सहसा फूट पड़ा. वह फफक पड़ी. उस का मन किया कि मामाजी को कहे कि हो गई तसल्ली? पड़ गई दिल में ठंडक? साबित कर दिया तुम ने. अब जाओ, यहां से दफा हो जाओ? पर प्रत्यक्ष में कुछ कह नहीं पाई.

‘‘दोपहर हो चुकी है. एक फोन तक नहीं किया उस ने जबकि पहले कभी यों बिना बताए वह कहीं जाता ही नहीं था,’’ मुकेश भी बड़बड़ाए. उन की आंखों से भी अनजानी आशंका से नमी उतर रही थी.

हर फोन पर मुकेश लपकता. अंजलि की आंखों में एक उम्मीद जाग जाती पर फौरन ही बुझ जाती. इस बीच मामाजी अपने घर वालों से फोन पर लंबी बातें कर के हंसते रहे. साफ लग रहा था कि वह इन दोनों को चिढ़ा रहे हैं.

अंधेरा हो गया, रजत लौटा, पर खाली हाथ. उस का चेहरा उतर गया था. वह सोच रहा था कि गगन कितना बेवकूफ है. कोई कुछ कहेगा तो हम उसे सच मान लेंगे?

तभी मामाजी की आवाज सुनाई दी, ‘‘आजा, आजा, मेरे बेटे, आजा…बैठ…’’

अंजलि, मुकेश और रजत बाहर के दरवाजे की तरफ लपके. गगन मामाजी के पास बैठ रहा था.

‘‘कहां रहा सारा दिन? कहां घूम के आया? पानी पीएगा? अंजलि बेटे, इसे पानी दे, थकाहारा आया है,’’ मामा की आवाज में चटखारे लेने वाला स्वर था.

अंजलि तेजी से गगन की तरफ आई और उसे बांह से पकड़ कर मामाजी के पास से हटा दिया.

‘‘कहां गया था?’’ अंजलि चीखी थी, ‘‘बता के क्यों नहीं गया? ऐसे जाते हैं क्या?’’ और गुस्से से भर कर उसे थप्पड़ मारने लगी और फिर फफक- फफक कर रो पड़ी.

‘‘गगन, तेरा गुस्सा मम्मी पर था न, तो मुझे क्यों नहीं बता कर गया,’’ रजत बोला, ‘‘मैं ने तेरा क्या बिगाड़ा था?’’

‘‘ऐसे भी कोई चुपचाप निकलता है घर से, हम क्या इतने पराए हो गए?’’ मुकेश की आवाज भी भर्राई हुई थी.

सभी की दबी संवेदनाएं फूट पड़ी थीं.

‘‘मामाजी, आप कुछ कह रहे थे. कहिए न…’’ गगन ने अपने आंसू पोंछे… पर अंजलि ने पीछे से गगन को खींच लिया. पागल सी हो गई थी अंजलि, ‘‘कुछ नहीं कह रहे थे. तू जा अपने कमरे में. जो कुछ सुनना है मुझ से सुन. मैं तेरी मां हूं, ये तेरे पिता हैं और ये तेरा भाई.’’

मुकेश अंजलि को पकड़ रहा था.

‘‘मामाजी, आप कह रहे थे मैं इन का गोद लिया बेटा हूं, है न…’’

‘‘नहीं, तुम मेरे बेटे हो,’’ अंजलि ने गगन को जोर से झटक दिया.

गगन अंजलि के कंधे को थाम कर बोला, ‘‘मम्मी, मैं तो मामाजी को यही समझा रहा हूं कि मैं आप का बेटा हूं. मम्मी, अपने पैदा किए बच्चे को तो हर कोई पालता है, पर एक अनाथ बच्चे को इतना ढेर सारा प्यार दे कर तो शायद ही कोई औरत पालती होगी. उस से बड़ी बात तो यह है कि आप ने रजत और मुझ में कोई फर्क नहीं रखा, तो मैं क्यों मानूं मामाजी की बात.

‘‘आप ही मेरी मां हैं,’’ गगन ने अंजलि को अपनी बांहों में समेट लिया और मामाजी से कहा, ‘‘मामाजी, आप ने क्या सोचा था कि मुझे जब पता चलेगा कि मैं अनाथाश्रम से लाया गया हूं तो मैं अपनी असली मां को ढूंढ़ने निकल पड़ूंगा? मामाजी, क्यों ढूंढं़ ू मैं उस औरत को जिस को मेरी जरूरत कभी थी ही नहीं. उस ने मुझे पैदा कर के मुझ पर एहसान नहीं किया बल्कि मम्मीपापा ने मुझे पालापोसा, मुझे नाम दिया, मुझे भाई दिया, मुझे एक घर दिया, समाज में मुझे एक जगह दी. इन का एहसान मान सकता हूं मैं. वरना आज मैं सड़ रहा होता किसी अनाथाश्रम के मैलेकुचैले कमरों में.’’

रजत ने खुशी से गगन का हाथ दबा दिया. मुकेश ने गगन के सिर पर हाथ फिराया. अंजलि, मुकेश और रजत की आंखों में आंसू छलक आए. सब ने तीखी नजरों से मामाजी को देखा.

अंजलि तो नहीं बोली पर मुकेश से रहा नहीं गया. बोले, ‘‘क्यों मामाजी, आप तो गैर को गैर साबित करने आए थे न? और आप, आप तो मेरे अपने थे, तो आप ने गैरों सी दुश्मनी क्यों निभाई?’’

गगन अंजलि के गले से लिपट गया. अंजलि के आंसू फिर निकल आए.

अंजलि जानती थी अब उसे मामा जैसे किसी व्यक्ति से डरने की कोई जरूरत नहीं है. अब सच में उस के दोनों बेटे अपने ही हैं.            द्य

सुगंध: क्या राजीव को पता चली रिश्तों की अहमियत

एक रात की उजास : भाग 1

शाम ढलने लगी थी. पार्क में बैठे वयोवृद्घ उठने लगे थे. मालतीजी भी उठीं. थके कदमों से यह सोच कर उन्होंने घर की राह पकड़ी कि और देर हो गई तो आंखों का मोतियाबिंद रास्ता पहचानने में रुकावट बन जाएगा. बहू अंजलि से इसी बात पर बहस हुआ करती थी कि शाम को कहां चली जाती हैं. आंखों से ठीक से दिखता नहीं, कहीं किसी रोज वाहन से टकरा गईं तो न जाने क्या होगा. तब बेटा भी बहू के सुर में अपना सुर मिला देता था.

उस समय तो फिर भी इतना सूनापन नहीं था. बेटा अभीअभी नौकरी से रिटायर हुआ था. तीनों मिल कर ताश की बाजी जमा लेते. कभीकभी बहू ऊनसलाई ले कर दोपहर में उन के साथ बरामदे मेें बैठ जाती और उन से पूछ कर डिजाइन के नमूने उतारती. स्वेटर बुनने में उन्हें महारत हासिल थी. आंखों की रोशनी कम होने के बाद भी वह सीधाउलटा बुन लेती थीं. धीरेधीरे चलते हुए एकाएक वह अतीत में खो गईं.

पोते की बिटिया का जन्म हुआ था. उसी के लिए स्वेटर, टोपे, मोजे बुने जा रहे थे. इंग्लैंड में रह रहे पोते के पास 1 माह बाद बेटेबहू को जाना था. घर में उमंग का वातावरण था. अंजलि बेटे की पसंद की चीजें चुनचुन कर सूटकेस में रख रही थी. उस की अंगरेज पत्नी के लिए भी उस ने कुछ संकोच से एक बनारसी साड़ी रख ली थी. पोते ने अंगरेज लड़की से शादी की थी. अत: मालती उसे अभी तक माफ नहीं कर पाई थीं. इस शादी पर नीहार व अंजलि ने भी नाराजगी जाहिर की थी पर बेटे के आग्रह और पोती होने की खुशी का इजहार करने से वे अपने को रोक नहीं पाए थे और इंग्लैंड जाने का कार्यक्रम बना लिया था.

उस दिन नीहार और अंजलि पोती के लिए कुछ खरीदारी करने कार से जा रहे थे. उन्होंने मांजी को भी साथ चलने का आग्रह किया था लेकिन हरारत होने से उन्होंने जाने से मना कर दिया था. कुछ ही देर बाद लौटी उन दोनों की निष्प्राण देह देख कर उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ था. उस से अधिक आश्चर्य उन्हें इस बात पर होता है कि इस भयंकर हादसे के 7 साल बाद भी वह जीवित हैं.

उस हादसे के बाद पोते ने उन्हें अपने साथ इंग्लैंड चलने का आग्रह किया था पर उन्होंने यह सोच कर मना कर दिया कि पता नहीं अंगरेज पतोहू के साथ उन की निभ भी पाएगी कि नहीं. लेकिन आज लगता है वह किसी भी प्राणी के साथ निबाह कर लेंगी. कोई तो होता, उन्हें आदर न सही, उलाहने ही देने वाला. आज इतना घोर एकांत तो नहीं सहना पड़ता उन्हें. पोते के बच्चे भी अब लगभग 6-7 साल के होंगे. अब तो संपर्क भी टूट गया. अचानक जा कर कैसे लाड़प्यार लुटाएंगी वह. उन बच्चों को भी कितना अस्वाभाविक लगेगा यह सब. इतने सालों की दूरियां पाटना क्या कोई आसान काम है. उस समय गलत फैसला लिया सो लिया. मालतीजी पश्चात्ताप की माला फेरने लगीं. उस समय ही क्यों, जब नीहार और अंजलि खरीदारी के लिए जा रहे थे तब वह भी उन के साथ निकल जातीं तो आज यह एकाकी जिंदगी का बोझ अपने झुके हुए, दुर्बल कंधों पर उठाए न घूम रही होतीं.

अतीत की उन घटनाओं को बारबार याद कर के पछताने की आदत ने मालतीजी को घोर निराशावादी बना डाला था. शायद यही वजह थी जो चिड़चिड़ी बुढि़या के नाम से वह महल्ले में मशहूर थीं. अपने ही खोल में आवृत्त रह कर दिन भर वह पुरानी बातें याद किया करतीं. शाम को उन्हें घर के अंदर घुटन महसूस होती तो पार्क में आ कर बैठ जातीं. वहां की हलचल, हंसतेखेलते बच्चे, उन्हें भावविभोर हो कर देखती माताएं और अपने हमउम्र लोगों को देख कर उन के मन में अगले नीरस दिन को काटने की ऊर्जा उत्पन्न होती. यही लालसा उन्हें देर तक पार्क में बैठाए रखती थी.

आज पार्क में बैठेबैठे उन के मन में अजीब सा खयाल आया. मौत आगे बढ़े तो बढ़े, वह क्या उसे खींच कर पास नहीं बुला सकतीं, नींद की गोलियां उदरस्थ कर के.

इतना आसान उपाय उन्हें अब तक भला क्यों नहीं सूझा? उन के पास बहुत सी नींद की गोलियां इकट्ठी हो गई थीं.

नींद की गोलियां एकत्र करने का उन का जुनून किसी जमाने में बरतन जमा करने जैसा था. उन के पति उन्हें टोका भी करते, ‘मालती, पुराने कपड़ों से बरतन खरीदने की बजाय उन्हें गरीबों, जरूरतमंदों को दान करो, पुण्य जोड़ो.’

वह फिर पछताने लगीं. अपनी लंबी आयु का संबंध कपड़े दे कर बरतन खरीदने से जोड़ती रहीं. आज वे सारे बरतन उन्हें मुंह चिढ़ा रहे थे. उन्हीं 4-6 बरतनों में खाना बनता. खुद को कोसना, पछताना और अकेले रह जाने का संबंध अतीत की अच्छीबुरी बातों से जोड़ना, इसी विचारक्रम में सारा दिन बीत जाता. ऐसे ही सोचतेसोचते दिमाग इतना पीछे चला जाता कि वर्तमान से वह बिलकुल कट ही जातीं. लेकिन आज वह अपने इस अस्तित्व को समाप्त कर देना चाहती हैं. ताज्जुब है. यह उपाय उन्हें इतने सालों की पीड़ा झेलने के बाद सूझा.

चांद पर धब्बे – भाग 2 : नीटू को किसकी चीख सुनाई दी

हां, कल दोपहर की टिकटें भी हैं, कुल्लूमनाली की.’’ ‘‘पर, आप ने तो बताया नहीं.’’ ‘‘मुझे ही कहां पता था. सुबह भाभी ने बताया कि कामिनी का यह तोहफा है.’’ यह सुनते ही पद्मा सुलग उठी. अपनी शादीशुदा जिंदगी की शुरुआत वह कामिनी के तोहफे से करेगी, इसे मानने से उस का मन मना कर रहा था. समीर नीचे से लौट कर आए, तब भी पद्मा यों ही बैठी थी. उन्होंने पूछा, ‘‘हो गई तैयारी?’’ ‘‘अच्छा, एक बात बताइए, क्या आप ने कभी कामिनी बहन को इतना महंगा तोहफा दिया है?’’ ‘‘तोहफा, इतना महंगा? तुम्हारा मतलब टिकटों के पैसे से है…

नहीं, पर क्यों?’’ समीर ने पूछा. ‘‘फिर हमारा भी उस से इतना महंगा तोहफा लेने का हक नहीं बनता.’’ पद्मा की बात का क्या असर समीर पर हुआ, नहीं पता. पर वे खामोश हो गए. पद्मा ने 40,000 रुपए उन के हाथ पर रखते हुए कहा, ‘‘यह मेरी मुंहदिखाई के रुपए हैं… आप उसे टिकटों और होटल के किराए के दाम दे दें.’’ मेरे रुपए वापस मेरी मुट्ठी में रखते हुए बोले, ‘‘इन रुपयों पर सिर्फ तुम्हारा हक है. रुपए तो मेरे पास हैं… मैं दे भी दूंगा. पर जो बात तुम ने मुझे अभी बताई, वह मेरे दिमाग में कभी आई ही नहीं. कामिनी भैया के अफसर की बेटी है.

उस की इन हरकतों को सब हंसते हुए झेलते हैं, क्योंकि उस की खुशी में भैया की तरक्की भी शामिल है.’’ तभी माया ने दरवाजे से ही आवाज दी, ‘‘समीर भैया, छोटी बहू को मांजी नीचे बुला रही हैं.’’ माया ने जिस रिश्ते की तरफ पद्मा का ध्यान मोड़ा था, उन की तरफ उस ने बारीकी से देखा था. समीर ने इन को शक नहीं होने दिया था. पद्मा ने देखा कि समीर एक मासूम बालक की तरह हैं, जिसे जिधर उंगली पकड़ चला दो चल देगा. समीर उस के प्यार में इस तरह डूब गए कि कामिनी के आनेजाने का भी उन्हें पता न चलता.

फिर कुछ दिनों बाद कामिनी का ब्याह हो गया और वह अपने पति के साथ कनाडा चली गई. तब पद्मा ने चैन की सांस ली. परंतु आने वाले दिनों में ऐसा कुछ घट गया, जिस की उम्मीद किसी को भी न थी. एक सुबह तेज चीखों और शोरगुल की आवाजें आने लगी थीं. उन दिनों नीटू होने वाली थी. पद्मा झटके से उठने लगी, पर समीर ने उसे रोक दिया, ‘‘नहीं, तुम ठहरो… मैं देखता हूं.’’ लौट कर समीर ने जो खबर दी, उस पर पद्मा को यकीन ही नहीं हुआ. वह उस औरत पर लगाए गए इलजाम पर कैसे यकीन कर लेती? माया के पति ने दूध का खौलता पतीला उस के ऊपर उलट दिया था. कमरे में चारों तरफ मिट्टी का तेल डाल कर उस ने माया को जलाने की कोशिश की, पर उस की चीख से घर के लोगों के पहुंच जाने पर वह बचा ली गई.

‘‘क्या हुआ? कैसे हो गया?’’ पद्मा के सवाल के जवाब में बड़ी भाभी की आवाज सुनाई दी थी, ‘‘यह पाप की हांड़ी तो फूटनी थी न कभी. कैसे हंसहंस कर बतियाती थी बांके से. आखिर मर्द था… कैसे सह सकता था. बचा ली गई वरना मार डालता तो अच्छा था. कैसा घमंड था अपने रूप पर इस को.’’ किसी ने पुलिस को खबर कर दी. पुलिस आई और माया के पति को पकड़ कर ले गई. पद्मा को समीर ने नीचे नहीं जाने दिया था. पद्मा जाना चाहती थी उस औरत को देखने, जिस ने उसे कामिनी के बारे में बताया था. वह खुद बुरे चालचलन वाली हो सकती है, पूरे घर के लोग ऐसा कह रहे थे, एक पद्मा को छोड़ कर. माया को पुलिस वाले अस्पताल ले गए.

कुछ दिनों बाद मालूम हुआ कि वह अपनी 3-4 साल की बेटी को ले कर कहीं चली गई है. आज वही माया 9 सालों के बाद सामने खड़ी थी. कैसे गुजारे होंगे उस ने ये दिन? क्या वह सब सच था? अगर नहीं तो सच क्या था? यह सब जानने के लिए पद्मा उतावली हो रही थी. सुबह होने वाली थी. पद्मा ने समीर को देखा, वे बेसुध सो रहे थे. नीटू भी पिता के गले में बांहें डाले आराम से सो रही थी. पद्मा एक कागज पर 2 लाइनें लिख कर मेज पर छोड़ आई कि समीर जागने पर परेशान न हों.

नीचे ही नाव वाला मिल गया. उस पार पहुंचने तक भी सूरज नहीं निकला था. बादल छाए हुए थे. ठंडी हवा जिस्म में चुभ रही थी. माया ने कच्चे कोयलों की अंगीठी लगा रखी थी. उस की बेटी बरतन धो रही थी. पद्मा को देखते ही माया हैरानी से भर उठी, ‘‘छोटी बहू… आप इस समय… दर्द कैसा है?’’ ‘‘ठीक है माया… यों ही चली आई. तुम्हारी बेटी तो अब काफी बड़ी हो गई?है.’’ ‘‘हां छोटी बहू… इसी को देख कर इसे बड़ा करने में गुजरते दिनों का पता ही नहीं चला. आप बैठिए न…

सोमी, चाय का पानी अंगीठी पर चढ़ा दे.’’ ‘‘छोटी बहू बकरी के दूध की चाय तो पी लेंगी न आप?’’ ‘‘तुम जो दोगी, पी लूंगी. माया, तुम ने पहले दिन जो तोहफा दिया था, उसे मैं कैसे भूल सकती हूं. पर एक सवाल बरसों से मुझे बेचैन किए हुए है कि वह सब क्या था? आज भी मेरा दिल उस बात को सच मानने से इनकार करता है…’’ कुछ पल माया चुप रही, फिर आंखें उठाईं तो उन में आंसू डबडबा आए थे. ‘‘मैं ने किसी को नहीं बताया कि सच क्या था. किसी ने कुलटा कहा, किसी ने वेश्या… सब सुन लिया, मुंह नहीं खोला. पर आप से झूठ बोलने की हिम्मत नहीं है… क्योंकि आप ने वह सच नहीं माना… मेरे ऊपर इतना बड़ा एहसान क्या कम है? ‘‘छोटी बहू, मेरा पति कमजोर था.

अपना बेटा -भाग 1 : मामाजी को देख क्यों परेशान हो उठे अंजलि और मुकेश

लेखक-  गुरप्रीत कौर

अंजलि ने सुबह उठते ही मुकेश को बताया कि रात जब वह सो चुके थे तो मामाजी का फोन आया था कि वह कल घर आ रहे हैं.

मुकेश यह जान कर हैरान हो गया. सालों पहले जिस मामाजी ने उस से रिश्ता तोड़ लिया था वे अचानक यहां क्यों आ रहे हैं. क्या उन्हें हम से कोई काम है या उन के दिमाग में फिर से टूटे हुए रिश्तों को जोड़ने की बात आ गई है. इसी उधेड़बुन में पड़ा वह अतीत की यादों में खो गया.

मुकेश को याद आया कि जब इंजीनियरिंग का कोर्स करने के लिए उसे दिल्ली जाना पड़ा था तो मम्मीपापा ने होस्टल में रखने के बदले उसे मामा के यहां रखना ज्यादा बेहतर समझा था. उस समय मामाजी की शादी को 2 साल ही बीते थे. उन का एक ही बच्चा था.

मुकेश ने इंजीनियरिंग पास कर ली थी. उस की भी शादी हो गई. अब तक मामाजी के 3 बच्चे हो चुके थे जबकि मुकेश के शादी के 5 साल बाद तक भी कोई बच्चा नहीं हुआ और मामी अगले बच्चे की तैयारी में थीं.

मुकेश एक बच्चे को गोद लेना चाहता था और मामाजी चाहते थे कि उन के आने वाले बच्चे को वह गोद ले ले. मामा के इस प्रस्ताव में मुकेश के मातापिता की भी सहमति थी लेकिन मुकेश व अंजलि इस पक्ष में नहीं थे कि मामा के बच्चों को गोद लिया जाए. इस बात को ले कर मामा और भांजे के बीच का रिश्ता जो टूटा तो आज तक मामा ने अपनी शक्ल उन को नहीं दिखाई.

मुकेश अपने एहसान का बदला चुकाने के लिए या समझो रिश्ता बनाए रखने के बहाने से मामा के बच्चों को उपहार भेजता रहता था. मामा ने उस के भेजे महंगे उपहारों को कभी लौटाया नहीं पर बदले में कभी धन्यवाद भी लिख कर नहीं भेजा.

अतीत की यादों से निकल कर मुकेश तैयार हो कर अपने दफ्तर चला गया. शाम को लौटा तो देखा अंजलि परेशान थी. उस के चेहरे पर अजीब सी मायूसी छाई थी. दोनों बेटों, गगन और रजत को वहां न पा कर वह और भी घबरा सा गया. हालांकि मुकेश समझ रहा था, पर क्या पूछता? जवाब तो वह भी जानता ही था.

अंजलि चाह रही थी कि वह दोनों बेटों को कहीं भेज दे ताकि मामाजी की नीयत का पता चल जाए. उस के बाद बेटों को बुलाए.

मुकेश इस के लिए तैयार नहीं था. उस का मानना था कि बच्चे जवान हो रहे हैं. उन से किसी बात को छिपाया नहीं जाना चाहिए. इसीलिए अंजलि के लाख मना करने के बाद भी मुकेश ने गगन- रजत को बता दिया कि कल यहां मेरे मामाजी आ रहे हैं. दोनों बच्चे पहले तो यह सुन कर हैरान रह गए कि पापा के कोई मामाजी भी हैं क्योंकि उन्होंने तो केवल दादाजी को ही देखा है पर दादी के भाई का तो घर में कभी जिक्र भी नहीं हुआ.

इस के बाद तो गगन और रजत ने अपने पापा के सामने प्रश्नों की झड़ी लगा दी कि मामाजी का घर कहां है, उन के कितने बच्चे हैं, क्याक्या करते हैं, क्या मामाजी के बच्चे भी आ रहे हैं आदिआदि.

मुकेश बेहद संभल कर बच्चों के हर सवाल का जवाब देता रहा. अंजलि परेशान हो बेडरूम में चली गई.

अंजलि और मुकेश दोनों ही रात भर यह सोच कर परेशान रहे कि पता नहीं मामाजी क्या करने आ रहे हैं और कैसा व्यवहार करेंगे.

सुबह अंजलि ने गगन और रजत को यह कह कर स्कूल भेज दिया कि तुम दोनों की परीक्षा नजदीक है, स्कूल जाओ.

इधर मुकेश मामाजी को लेने स्टेशन गया उधर अंजलि दोपहर का खाना बनाने के लिए रसोई में चली गई. अंजलि ने सारा खाना बना लिया लेकिन मामाजी को ले कर वह अभी तक लौटा नहीं. वह अभी यही सोच रही थी कि दरवाजे की घंटी घनघना उठी और इसी के साथ उस का दिल धक से कर गया.

मुकेश ही था, पीछेपीछे मामाजी अकेले आ रहे थे. अंजलि ने उन के पांव छुए. मामाजी ने हालचाल पूछा फिर आराम से बैठ गए और सामान्य बातें करते रहे. उन्होंने चाय पी. खाना खाया. कोई लड़ाई वाली बात ही नहीं, कोई शक की बात नहीं लग रही थी. ऐसा लगा मानो उन के बीच कभी कोई लड़ाई थी ही नहीं. अंजलि जितना पहले डर रही थी उतना ही वह अब निश्चिंत हो रही थी.

खाना खा कर बिस्तर पर लेटते हुए मामाजी बोले, ‘‘पता नहीं क्यों कुछ दिनों से तुम लोगों की बहुत याद आ रही थी. जब रहा नहीं गया तो बच्चों से मिलने चला आया. सोचा, इसी बहाने यहां अपने राहुल के लिए लड़की देखनी है, वह भी देख आऊंगा,’’ फिर हंसते हुए बोले, ‘‘आधा दर्जन बच्चे हैं, अभी से शादी करना शुरू करूंगा तभी तो रिटायर होने तक सब को निबटा पाऊंगा.’’

अंजलि ने देखा कि मामाजी की बातों में कोई वैरभाव नहीं था. मुकेश भी अंजलि को देख रहा था, मानो कह रहा हो, देखो, हम बेकार ही डर रहे थे.

‘‘अरे, तुम्हारे दोनों बच्चे कहां हैं? क्या नाम हैं उन के?’’

‘‘गगन और रजत,’’ मुकेश बोला, ‘‘स्कूल गए हैं. वे तो जाना ही नहीं चाह रहे थे. कह रहे थे मामाजी से मिलना है. इसीलिए कार से गए हैं ताकि समय से घर आ जाएं.’’

‘‘अच्छा? तुम ने अपने बच्चों को गाड़ी भी सिखा दी. वेरी गुड. मेरे पास तो गाड़ी ही नहीं है, बच्चे सीखेंगे क्या… शादियां कर लूं यही गनीमत है. मैं तो कानवेंट स्कूल में भी बच्चों को नहीं पढ़ा सका. अगर तुम मेरे एक को भी…पढ़ा…’’ मामाजी इतना कह कर रुक गए पर अंजलि और मुकेश का हंसता चेहरा बुझ सा गया.

अंजलि वहां से उठ कर बेडरूम में चली गई.

‘‘कब आ रहे हैं बच्चे?’’ मामाजी ने बात पलट दी.

‘‘आने वाले होंगे,’’ मुकेश इतना ही बोले थे कि घंटी बज उठी. अंजलि दरवाजे की तरफ लपकी. गगनरजत थे.

उलझन- भाग 3 : कनिका की मां प्रेरणा किसे देख कर थी हैरान?

शायद यहीं आ कर नई पीढ़ी आगे निकल गई है. आज किसी कनिका और किसी अभिषेक को किसी से डरने की जरूरत नहीं है. अपना फैसला वे खुद करते हैं. मांबाप को सूचित कर दिया यही काफी है. यह तो कनिका और अभिषेक के भले संस्कारों का असर है जो इंडिया आ कर शादी कर रहे हैं. यों अगर वे अमेरिका में ही कोर्टमैरिज कर लेते तो भला कोई क्या कर लेता.

प्रेरणा की शादी अनिकेत से तय हो गई थी. न कोई शिकवा न गिला यों हुआ उन की प्रेमकथा का एक मूक अंत.

विदाई के समय प्रेरणा की नजरें घर की छत पर जा टिकीं, जहां कपिल को खडे़ देख कर उस के दिल में एक हूक सी उठी थी लेकिन चाहते हुए भी प्रेरणा की नजरें कुछ क्षण से ज्यादा कपिल पर टिकी न रह सकीं.

हर जख्म समय के साथ भर जाए यह जरूरी नहीं.

प्रेरणा को याद है. जब शादी के कुछ समय बाद कपिल से उस की मुलाकात मायके में हुई थी, वह कैसा बुझाबुझा सा लग रहा था.

‘कैसे हो कपिल?’ प्रेरणा ने कपिल के करीब आ कर पूछा.

न जाने कपिल को क्या हुआ कि वह प्रेरणा के सीने से चिपक कर रोने लगा. ‘काश, प्रेरणा हम समय पर बोल पाते. क्यों मैं ने हिम्मत नहीं दिखाई? पे्ररणा, इतनी कायरता भी अच्छी नहीं. तुम से बिछड़ कर जाना कि मैं ने क्या खो दिया.’

‘ओह कपिल…’ प्रेरणा भी रोने लगी.

चाहीअनचाही इच्छाओं के साथ प्रेरणा और कपिल का रिश्ता एक बार फिर से जुड़ गया. प्रेरणा के मायके के चक्कर ज्यादा ही लगने लगे थे.

अब प्रेरणा की दिलचस्पी फिर से कपिल में बढ़ती जा रही थी और अनिकेत में कम होती जा रही थी. पर अकसर टूर पर रहने वाले अनिकेत को प्रेरणा के बारबार मायके जाने का कारण अपनी व्यस्तता और उस को समय न देना ही लगता.

प्रेरणा और कपिल का यह रिश्ता उन्हें कहां ले जाएगा यह दोनों ही नहीं सोचना चाहते थे. बस, एक लहर के साथ वे बहते चले जा रहे थे.

शादी के पहले तो सब के अफेयर होते हैं, जो नाजायज तो नहीं पर जायज भी नहीं होते हैं. पर शादी के बाद के रिश्ते नाजायज ही कहलाएंगे. यह बात प्रेरणा को अच्छी तरह समझ में आ गई थी. कनिका के जन्म के बाद से ही प्रेरणा ने कपिल से संबंध खत्म करने का निर्णय ले लिया था. कनिका के जन्म के बाद पहली बार प्रेरणा अपने मायके आई थी. कमरे में प्रेरणा अपने और कनिका के कपड़े अलमारी में लगा रही थी कि अचानक कपिल ने पीछे से आ कर प्रेरणा को अपनी बांहों में भर लिया.

‘ओह, प्रेरणा कितने दिनों बाद तुम आई हो. उफ, ऐसा लगता है मानो बरसों बाद तुम्हें छू रहा हूं. प्रेरणा, तुम कितनी खूबसूरत लग रही हो. तुम्हारा यह भरा हुआ बदन…सच में मां बनने के बाद तुम्हारी खूबसूरती और भी निखर गई है.’ और हर शब्दों के साथ कपिल की बांहों का कसाव बढ़ता जा रहा था.

इस वक्त घर में कोई नहीं है यह बात कपिल को पता थी, इस वजह से वह बिना डरे बोले जा रहा था.

प्रेरणा के इकरार का इंतजार किए बिना ही कपिल उस की साड़ी उतारने लगा. कंधे से पल्ला गिरते ही लाल रंग के ब्लाउज में प्रेरणा का बदन बहुत उत्तेजित लगने लगा जिसे देख कर कपिल मदहोश हुआ जा रहा था.

इस से पहले कि कपिल के हाथ प्रेरणा के ब्लाउज के हुक खोलते, एक झन्नाटेदार चांटा कपिल के गाल पर पड़ा. ‘यह क्या कर रहे हो कपिल, तुम्हें शर्म नहीं आती कि मेरी बेटी यहां पर लेटी है. अब मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता है.’ न जाने प्रेरणा में इतना परिवर्तन कैसे आ गया था, जो अपने ही प्यार का अपमान इस तरह से कर रही थी.

कपिल एक क्षण के लिए चौंक गया फिर बिना कुछ बोले, बिना कुछ पूछे वह तुरंत कमरे से बाहर निकल गया. शायद इतनी बेइज्जती के बाद उस ने वहां रुकना उचित न समझा. कपिल के जाते ही प्रेरणा फूटफूट कर रोने लगी. कपिल से रिश्ता खत्म करने का शायद उसे यही एक रास्ता दिखा था. कपिल से रिश्ता तोड़ना प्रेरणा के लिए आसान नहीं था पर आज प्रेरणा एक औरत बन कर नहीं बल्कि एक मां बन कर सोच रही थी. कल को उस के नाजायज संबंधों का खमियाजा उस की बेटी को न भोगना पड़े.

बच्चों को आदर्श की बातें बड़े तभी सिखा पाते हैं जब वे खुद उन के लिए एक आदर्श हों. जिन भावनाओं को प्रेरणा शादी के बाद भी नहीं छोड़ पाई, उन्हीं भावनाओं को अपनी औलाद के लिए त्यागना कितना आसान हो गया था.

उस के बाद प्रेरणा और कपिल की कोई मुलाकात नहीं हुई.

पर आज भी कपिल प्रेरणा के खयालों में रहता है और अनिकेत के साथ अंतरंग क्षणों में प्रेरणा को कपिल की यादों का एहसास होता है. वक्तबेवक्त कपिल की यादें प्रेरणा की आंखों को नम कर देती थीं.

कुछ रिश्ते यादों की धुंध में ही अच्छे लगते हैं. यह बात प्रेरणा अच्छी तरह जानती थी पर आज वही रिश्ते यादों की धुंध से निकल कर प्रेरणा को विचलित कर रहे थे.

जिस इनसान से प्रेरणा कभी प्रेम करती थी अब उसी का बेटा उस की बेटी के जीवन में आ गया था.

कैसे प्रेरणा कपिल का सामना कर पाएगी? कपिल के लिए जो भावनाएं आज भी उस के दिल में जीवित हैं उन भावनाओं को हटा कर एक नया रिश्ता कायम करना क्या उस के लिए संभव हो सकेगा? कैसे वह इन नए संबंधों को संभाल पाएगी? बरसों बाद अपने पहले प्यार की मिलनबेला का स्वागत करे या…

कैसे वह अपनी ही जाई बेटी की खुशियों का गला घोट डाले? कैसे अपने और कपिल के रिश्ते को सब के सामने खोले? क्या कनिका यह सहन कर पाएगी?

वैसे भी नई पीढ़ी जातिपांति को नहीं मानती. उस के लिए तो प्यार में सब चलता है. नई पीढ़ी तो इन बंधनों के सख्त खिलाफ है. जातपांति के मिटने में ही सब का भला है. आज की पीढ़ी यही समझ रही है, तब किस आधार पर अभिषेक और कनिका का रिश्ता ठुकराया जाए?

अपने ही खयालों के भंवर में प्रेरणा फंसती जा रही थी. सच में दुनिया गोल है. कोई सिरा अगर छूट जाए तो आगेपीछे मिल ही जाता है. पर ऐसे सिरे से क्या फायदा जो सुलझाने के बजाय और उलझा दे.

अभिषेक के मातापिता को देख कर कनिका का दिल शायद न धड़के पर कपिल का सामना करने के केवल खयाल से ही प्रेरणा का दिल आज पहले की तरह तेजी से धड़क रहा था. धड़कते दिल को संभालने के लिए अनायास ही उस के मुंह  से निकल गया.

‘रखा था खयालों में अपने

जिसे संभाल कर,

ताउम्र उस को निहारा, सब से छिपा कर,

पर आज,

वक्त के थपेड़ों से सब बिखरता नजर आता है,

छिप कर आज कहां जाऊं,

वही चेहरा हर तरफ नजर आता है.’?

‘तो क्या जिस तरह यादों के तीर मेरे सीने के आरपार होते रहे उसी तरह के तीरों का शिकार अपनी बेटी को भी होने दूं?’ खुद से पूछे गए इस एक सवाल ने प्रेरणा को ठीक फैसला ले सकने की प्रेरणा दे दी. ‘कनिका को वैसा कुछ न सहना पड़े जो मैं ने सहा, चाहे इस के लिए अब मुझे कुछ भी सहना पड़े’ यह सोच कर प्रेरणा के मन की सारी उलझन गायब हो गई.

उलझन- भाग 1 : कनिका की मां प्रेरणा किसे देख कर थी हैरान?

‘‘मम्मी, आप को फोटो कैसी लगी?’’ कनिका ने पूछा, ‘‘अभिषेक कैसा लगा, अच्छा लगा न, बताओ न मम्मी… अभिषेक अच्छा है न…’’

कनिका लगातार फोन पर पूछे जा रही थी पर प्रेरणा के मुंह में मानो दही जम गया हो. एक भी शब्द मुंह से नहीं निकल रहा था.

‘‘आप तो कुछ बोल ही नहीं रही हो मम्मी, फोन पापा को दो,’’ कनिका ने तुरंत कहा.

प्रेरणा की चुप्पी कनिका को इस वक्त बिलकुल भी नहीं भा रही थी. उसे तो बस अपनी बात का जवाब तुरंत चाहिए था.

‘‘पापा, अभिषेक कैसा लगा?’’ कनिका ने कहा, ‘‘मैं ने उस के पापा व मम्मी की फोटो ईमेल की थी…आप ने देखी, पापा…’’ कनिका की खुशी उस की बातों से साफ झलक रही थी.

‘‘हां, बेटे, अभिषेक अच्छा लगा है अब तुम वापस इंडिया आ जाओ, बाकी बातें तब करेंगे,’’ अनिकेत ने कनिका से कहा.

कनिका एम. टैक करने अमेरिका गई थी. वहीं पर उस की मुलाकात अभिषेक से हुई थी. दोस्ती कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला. 2 साल के बाद दोनों इंडिया वापस आ रहे थे. आने से पहले कनिका सब को अभिषेक के बारे में बताना चाह रही थी.

सच में नया जमाना है. लड़का हो या लड़की, अपना जीवनसाथी खुद चुनना शर्म की बात नहीं रही. सचमुच नई पीढ़ी है.

कनिका जिद किए जा रही थी, ‘‘पापा, बताइए न प्लीज, अभिषेक कैसा लगा…मम्मी तो कुछ बोल ही नहीं रही हैं, आप ही बता दो न…’’

‘‘कनिका, जिद नहीं करते बेटा, यहां आ कर ही बात होगी,’’ अनिकेत ने कहा.

पापा की आवाज तेज होती देख कनिका ने चुप रहना ही ठीक समझा.

‘‘तुम्हें अभिषेक कैसा लगा? लड़का देखने में तो ठीक लग रहा है. परिवार भी ठीकठाक है. इस बारे में तुम्हारी क्या राय है?’’ अनिकेत ने फोन रखते हुए प्रेरणा से पूछा.

‘‘मुझे नहीं पता,’’ कह कर प्रेरणा रसोई में चली गई.

‘‘अरे, पता नहीं का क्या मतलब? परसों कनिका और अभिषेक इंडिया आ रहे हैं. हमें कुछ सोचना तो पड़ेगा न,’’ अनिकेत बोले जा रहे थे.

पर अनिकेत को क्या पता था कि जिस अभिषेक के परिवार के बारे में वे प्रेरणा से पूछ रहे हैं उस के बारे में वह कल रात से ही सोचे जा रही थी.

कल इंटरनैट पर प्रेरणा ने कनिका द्वारा भेजी गई अभिषेक और उस के परिवार की फोटो देखी तो एकदम हैरान हो गई. खासकर यह जान कर कि अभिषेक, कपिल का बेटा है. वह मन ही मन खीझ पड़ी कि कनिका को भी पूरी दुनिया में यही लड़का मिला था. उफ, अब मैं क्या करूं?

अभिषेक के साथ कपिल को देख कर प्रेरणा परेशान हो उठी थी.

‘‘अरे, प्रेरणा, देखो दूध उबल कर गिर रहा है, जाने किधर खोई हुई हो…’’ अनिकेत यह कहते हुए रसोई में आ गए और पत्नी को इस तरह खयालों में डूबा हुआ देख कर उन को भी चिंता हो रही थी.

‘‘प्रेरणा, तुम शायद कनिका की बात से परेशान हो. डोंट वरी, सब ठीक हो जाएगा,’’ कनिका के इस समाचार से अनिकेत भी परेशान थे पर आज के जमाने को देख कर शायद वे कुछ हद तक पहले से ही तैयार थे, फिर पिता होने के नाते कुछ हद तक परेशान होना भी वाजिब था.

अनिकेत को क्या पता कि प्रेरणा परेशान ही नहीं हैरान भी है. आज प्रेरणा अपनी बेटी से नाराज नहीं बल्कि एक मां को अपनी बेटी से ईर्ष्या हो रही थी. पर क्यों? इस का जवाब प्रेरणा के ही पास था.

किचन से निकल कर प्रेरणा कमरे में पलंग पर जा आंखें बंद कर लेटी तो कपिल की यादें किसी छायाचित्र की तरह एक के बाद एक कर उभरने लगीं. प्रेरणा उस दौर में पहुंच गई जब उस के जीवन में बस कपिल का प्यार ही प्यार था.

कपिल और प्रेरणा दोनों पड़ोसी थे. घर की दीवारों की ही तरह उन के दिल भी मिले हुए थे.

छत पर घंटों खड़े रहना. दूर से एकदूसरे का दीदार करना. जबान से कुछ कहने की जरूरत ही नहीं होती थी. आंखें ही हाले दिल बयां करती थीं.

निश्चित समय पर आना और अनिश्चित समय पर जाना. न कुछ कहना न कुछ सुनना. अजब प्रेम कहानी थी प्रेरणा और कपिल की. बरसाती बूंदें भी दोनों की पलकें नहीं झपका पाती थीं. एक दिन भी एकदूसरे को देखे बिना वे नहीं रह सकते थे.

 

अंधविश्वास: जरूरी नहीं है कांवड़ यात्रा कदमों को सही दिशा में ले जाएं

जरूरी नहीं है कांवड़ यात्रा कदमों को सही दिशा में ले जाएं हिंदुओं की धार्मिक किताबों के मुताबिक, शिव के ज्योतिर्लिंग पर गंगा जल चढ़ाने की परंपरा को कांवड़ यात्रा कहा जाता है. यह जल एक पवित्र जगह से अपने कंधे पर ले जा कर शिव को सावन के महीने में चढ़ाया जाता है. इस यात्रा के दौरान कांवडि़ए ‘बम भोले’ के नारे लगाते हुए पैदल यात्रा करते हैं. कहा यह भी जाता है कि कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तों को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य मिलता है.

पर क्या वाकई ऐसा होता है या सिर्फ धार्मिक किताबों का हवाला दे कर किसी मान्यता को पूरा करने के लिए लोगों को भरमाया जाता है? देखा जाए तो हर किसी को कोई भी धर्म अपनाने और उस का पालन करने का हक है और यह उस की निजी पसंद होती है, लेकिन धर्म का दिखावा करना किसी भी लिहाज से सही नहीं है. हिंदू धर्म में तमाम तरह के धार्मिक कर्मकांड हैं और हर कर्मकांड को पूरा करने के बाद लोगों की ऊपर वाले से उम्मीद बंध जाती है कि अब तो सब सही हो जाएगा. इसी बात को सच साबित करने के लिए लोग तरहतरह की धार्मिक यात्राएं करते हैं, जिन में से एक कांवड़ यात्रा भी है. ऐसा नहीं है कि भारत में कांवड़ यात्रा कोई नया चलन है, पर जब से देश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई है, तब से इस यात्रा का काफी महिमामंडन किया गया है. इसे ऐसा उत्सव बना दिया है कि लोगों में कांवड़ यात्रा करने की होड़ सी मच गई है. दरअसल, जब कोई मान्यता भेड़चाल में बदल जाती है, तो उस से भक्तों को कोई फायदा हो या न हो, पर देश और समाज को काफी नुकसान होता है. साल 2022 की कांवड़ यात्रा पर नजर डालें, तो 13 दिन की इस कांवड़ यात्रा ने शासन और प्रशासन के सारे इंतजाम फेल कर के रख दिए. ऋषिकेश, हरिद्वारदिल्ली हाईवे कांवडि़यों और उन के वाहनों की भीड़ से अटा हुआ था.

इस से दूसरे उन यात्रियों को परेशानी हो रही थी, जो अपने रोजमर्रा के कामों पर घर से निकले हुए थे. शिव मंदिरों पर जल चढ़ाने से एक दिन पहले यानी सोमवार, 25 जुलाई, 2022 को देहरादून से कुमाऊं और उत्तर प्रदेश जाने वाली बसें नेपाली फार्म इलाके तक ही जा सकीं. यात्रा का आखिरी दिन होने के चलते सोमवार को कांवडि़यों की भीड़ से गुरुकुल कांगड़ी यूनिवर्सिटी से ले कर ज्वालापुर तक 4 किलोमीटर का इलाका पूरी तरह से जाम हो गया था. हरिद्वार से सप्लाई नहीं मिल पाने के चलते देहरादून के तीनों सीएनजी पंपों पर सोमवार को सीएनजी गैस की किल्लत रही थी. सोमवार, 25 जुलाई को 60 लाख शिव भक्तों ने गंगाजल भर कर अपने प्रदेशों के लिए वापसी की थी. अब तक 3 करोड़, 50 लाख, 70 हजार श्रद्धालु वापसी कर चुके थे. इस सब में पुलिस को यातायात व्यवस्था बनाने के लिए पसीना बहाना पड़ा था. इस साल 14 जुलाई, 2022 को कांवड़ यात्रा शुरू हुई थी. यात्रा शुरू होने से पहले ही शिव भक्तों का हरिद्वार और ऋषिकेश पहुंचना शुरू हो गया था. याद रहे कि कोरोना संक्रमण के चलते पिछले 2 साल कांवड़ यात्रा की इजाजत नहीं मिली थी. इस बार शासन और प्रशासन ने बिना किसी पाबंदी के कांवड़ यात्रा करने की इजाजत दे दी थी. पुलिस प्रशासन ने 4 करोड़ कांवडि़यों के आने की उम्मीद जताई थी. 4 करोड़ लोग उस यात्रा पर निकले हुए थे,

जिस का फल उन्हें पता नहीं कब मिलेगा, पर इस से दूसरे लोगों को जो परेशानियां हुईं, वे तो साफ नजर आईं. एक मामले से इसे समझते हैं. रविवार, 24 जुलाई, 2022 को उत्तराखंड में कांवड़ स्पैशल ट्रेन में बम की सूचना से हड़कंप मच गया था. यह ट्रेन दिल्ली से यात्रियों को ले कर हरिद्वार पहुंची थी. पुलिस और बम निरोधक दस्ते ने आननफानन में यात्रियों को अलर्ट करते हुए स्टेशन में छानबीन की, लेकिन बम कहीं नहीं मिला. जांच में सामने आया कि बम होने की सूचना फर्जी थी. कांवडि़यों का किसी बात को ले कर झगड़ा हो गया था और गाजियाबाद के रहने वाले रिंकू वर्मा ने कंट्रोल रूम में ट्रेन में बम होने की झूठी सूचना दे दी. बाद में पुलिस ने रिंकू वर्मा को गिरफ्तार कर लिया था. वह नशे में था और कांवड़ लेने हरिद्वार आया था. इस बात से यह तो साबित हो गया कि रिंकू वर्मा का कांवड़ यात्रा में आने का कोई धार्मिक मकसद नहीं था और उस की वजह से जो तनाव का माहौल बना उस से दूसरे लोगों की जान सांसत में आ गई थी. इसी तरह कांवड़ यात्रा के बीच उत्तर प्रदेश के बिजनौर में माहौल बिगाड़ने की कोशिश की गई. जानकारी के मुताबिक, भगवा रंग का साफा पहने 2 लोगों ने एक मजार में तोड़फोड़ की. उन दोनों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

बाद में पता चला कि वे दोनों मुसलिम समुदाय से थे. यहां सवाल उठता है कि ऐसी धार्मिक यात्रा से क्या फायदा, जो लोगों की भावनाओं को भड़काने की वजह बने? ऐसे लोगों पर हैलीकौप्टर से फूलों की बारिश करने की क्या तुक है, जो जरा सी बात पर भड़क कर पूरा रोड ही जाम कर दें या मारपीट करने पर उतारू हो जाएं? इसी साल की कांवड़ यात्रा का एक और मामला है. मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली गांव के कांवडि़ए शिवरात्रि की सुबह हरिद्वार से गंगाजल ले कर वापस लौट रहे थे. मंगलौर, उत्तर प्रदेश के पास पानीपत, हरियाणा के गांव चुलकाना के डाक कांवडि़यों के साथ आगे निकलने को ले कर उन की कहासुनी हो गई. इसी दौरान हरियाणा के कांवडि़यों ने लाठीडंडों और चाकुओं से उन पर हमला बोल दिया. नतीजतन, सिर पर लाठी लगने से सिसौली गांव के कार्तिक की मौत हो गई, जबकि कई और लड़के घायल हो गए. कार्तिक सेना में नौकरी करता था. वैसे, हत्या की वारदात के बाद भाग रहे कांवडि़यों को पकड़ लिया गया था.

कांवड़ यात्रा के कुछ छिपे नुकसान भी होते हैं. सब से पहले तो जो लोग कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं, वे तकरीबन एक महीने तक ऐसा कोई काम नहीं करते हैं, जिस से देश या समाज का कोई ठोस भला हो. बहुत से तो बेरोजगार होते हैं, जबकि कई सारे लोग अपने कामधंधे छोड़ कर इस यात्रा के भागीदार बनते हैं, जिस से उन्हें अपनी कमाई से हाथ धोना पड़ता है. चूंकि इन लोगों में पिछड़े और दलित समाज की भी काफी तादाद होती है, तो उन में से कइयों के घरों में तो फाके तक पड़ जाते हैं, जबकि इन दिनों में अगर वे लोग मेहनतमजदूरी कर के चार पैसे कमाते तो उन्हें ऊपर वाले से कुछ मांगना ही नहीं पड़ता. यह यात्रा मुफ्त में भी नहीं होती है. मतलब, यह आप का खर्चा बढ़ा देती है, क्योंकि चाहे हरिद्वार हो या ऋषिकेश, वहां कोई मुफ्त में तो आप को ठहराएगा नहीं.

लिहाजा, वहां के होटल वगैरह, खाने की चीजें कई गुना महंगी हो जाती हैं. हरिद्वार में इन दिनों में केला 80 से 90 रुपए प्रति दर्जन बिका, तो सेब 100 से 200 रुपए प्रति किलो तक लोगों को खरीदना पड़ा. कांवड़ मेले में जाम और रूट बदलने से फलसब्जी की ढुलाई महंगी हुई. कई फलसब्जी कम मात्रा में उपलब्ध रहे. दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि दूसरे राज्यों से फलसब्जी ले कर ज्वालापुर मंडी पहुंचने वाले वाहन 4 दिन से मंडी नहीं पहुंचे थे. जो छोटे वाहन सब्जीफल ले कर आ भी रहे थे, वे घंटों जाम में फंसे रहे थे. कुलमिला कर यही कह सकते हैं कि देश की नौजवान पीढ़ी को सोचसमझ कर ऐसी बातों पर विचार करना चाहिए कि उन के लिए कौन सी बात फायदे की है और कौन सी नुकसान की. ऐसी कांवड़ यात्रा किस काम की, जो किसी देश की ताकत नौजवान पीढ़ी को कमजोर करे? लिहाजा, समय रहते अपने हाथों पर भरोसा करें और कदमों को ऐसी मंजिल की तरफ ले जाएं, जहां एक मेहनतकश तबके को रोजगार से भटकाने की साजिश के लिए कोई जगह न हो.

उलझन- भाग 2 : कनिका की मां प्रेरणा किसे देख कर थी हैरान?

यद्यपि कपिल ने कई बार प्रेरणा से बात करने की कोशिश की पर संकोच ने हर बार प्रेरणा को आगे बढ़ने से रोक दिया. कभी रास्ते में आतेजाते अगर कपिल पे्ररणा के करीब आता भी तो प्रेरणा का दिल तेजी से धड़कने लगता और तुरंत वह वहां से चली जाती. जोरजबरदस्ती कपिल को भी पसंद नहीं थी.

प्रेरणा की अल्हड़ जवानी के हसीन खयालों में कपिल ही कपिल समाया था. सारीसारी रात वह कपिल के बारे में सोचती और उस की बांहों में झूलने की तमन्ना अकसर उस के दिल में रहती थी पर कपिल के करीब जाने का साहस प्रेरणा में न था. स्वभाव से संकोची प्रेरणा बस सपनों में ही कपिल को छू पाती थी.

वह होली की सुबह थी. चारोें तरफ गुलाल ही गुलाल बिखर रहा था. लाल, पीला, नीला, हरा…रंग अपनेआप में चमक रहे थे. सभी अपनेअपने दोस्तों को रंग में नहलाने में जुटे हुए थे. इस कालोनी की सब से अच्छी बात यह थी कि सारे त्योहार सब लोग मिलजुल कर मनाते थे. होली के त्योहार की तो बात ही अलग है. जिस ने ज्यादा नानुकर की वह टोली का शिकार बन जाता और रंगों से भरे ड्रम में डुबो दिया जाता.

प्रेरणा अपनी टोली के साथ होली खेलने में मशगूल थी तभी प्रेरणा की मां ने उसे आवाज दे कर कहा था :

‘प्रेरणा, ऊपर छत पर कपड़े सूख रहे हैं, जा और उतार कर नीचे ले आ, नहीं तो कोई भी पड़ोस का बच्चा रंग फेंक कर कपड़े खराब कर देगा.’

प्रेरणा फौरन छत की ओर भागी. जैसे ही उस ने मां की साड़ी को तार से उतारना शुरू किया कि किसी ने पीछे से आ कर उस के चेहरे को लाल गुलाल से रंग दिया.

प्रेरणा ने घबरा कर पीछे मुड़ कर देखा तो कपिल को रंग से भरे हाथों के साथ पाया. एक क्षण को प्रेरणा घबरा गई. कपिल का पहला स्पर्श…वह भी इस तरह.

‘‘यह क्या किया तुम ने? मेरा सारा चेहरा…’’ पे्ररणा कुछ और बोलती इस से पहले कपिल ने गुनगुनाना शुरू कर दिया…

‘‘होली क्या है, रंगों का त्योहार…बुरा न मानो…’’

कपिल की आंखों को देख कर लग रहा था कि आज वह प्रेरणा को नहीं छोड़ेगा.

‘‘क्या हो गया है तुम्हें? भांगवांग खा कर आए हो…’’ घबराई हुई प्रेरणा बोली.

‘‘नहीं, प्रेरणा, ऐसा कुछ नहीं है. मैं तो बस…’’ प्रेरणा का इस तरह का रिऐक्शन देख कर एक बार तो कपिल घबरा गया था.

पर आज कपिल पर होली का रंग खूब चढ़ा हुआ था. तार पर सूखती साड़ी का एक कोना पकड़ेपकड़े कब वह प्रेरणा के पीछे आ गया इस का एहसास प्रेरणा को अपने होंठों पर पड़ती कपिल की गरम सांसों से हुआ.

इतने नजदीक आए कपिल से दूर जाना आज प्रेरणा को भी गवारा नहीं था. साड़ी लपेटतेलपेटते कपिल और प्रेरणा एकदूसरे के अंदर समाए जा रहे थे.

कपिल के हाथ प्रेरणा के कंधे से उतर कर उस की कमर तक आ रहे थे…इस का एहसास उस को हो रहा था. लेकिन उन्हें रोकने की चेष्टा वह नहीं कर रही थी.

कपिल के बदन पर लगे होली के रंग धीरेधीरे प्रेरणा के बदन पर चढ़ते जा रहे थे. साड़ी में लिपटेलिपटे दोनों के बदन का रंग अब एक हो चला था.

शारीरिक संबंध चाहे पहली बार हो या बारबार, प्रेमीप्रेमिका के लिए रसपूर्ण ही होता है. जब तक प्रेरणा कपिल से बचती थी तभी तक बचती भी रही थी पर अब तो दोनों ही एक होने का मौका ढूंढ़ते थे और मौका उन्हें मिल भी जाता था. सच ही है जहां चाह होती है वहां राह भी मिल जाती है.

पर इस प्रेमकथा का अंत इस तरह होगा, यह दोनों ने नहीं सोचा था.

कपिल और प्रेरणा की लाख दुहाई देने पर भी कपिल की रूढि़वादी दादी उन के विवाह के लिए न मानीं और दोनों प्रेमी जुदा हो गए. घर वालों के खिलाफ जाना दोनों के बस की बात नहीं थी. 2 घर की छतों से शुरू हुई सालों पुरानी इस प्रेम कहानी का अंत भी दोनों छतों के किनारों पर हो गया था.

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