खून में डूबी दूध की धार: भाग 3

सौजन्य-  सत्यकथा

राहुल की मानसिक हालत और भी खराब हो गई थी. जिस कारण परिवार वालों के प्रति उस का व्यवहार काफी बदल गया था. कभीकभी वह अपने पिता की जिंदगी के बारे में सोचता तो परेशान हो उठता था. उस की नजरों में इस सब का कारण उस की मां हीरा देवी थी, जिस के प्रति उसे नफरत पैदा हो गई थी.

अगस्त, 2020 को दोनों बापबेटे दिल्ली से काम छोड़ कर घर आ गए थे. राजेंद्र शाही किराए के मकान के बजाए अपने ही मकान में रहने लगे थे. दिल्ली से आने के बाद से ही राहुल नौकरी की तलाश में लगा था. लेकिन उस की मां उसे हर वक्त बेरोजगारी का ताना मारती रहती थी. जिस से उस का मानसिक संतुलन और भी खराब हो गया था. ऊपर से पारिवारिक विवाद ने घर की शांति छीन रखी थी.

चारों बहनों में जमीनजायदाद को ले कर मनमुटाव होता रहता था. उस वक्त तक राहुल का बड़ा भाई रवींद्र भी मानसिक परेशानी होने के कारण नौकरी छोड़ कर घर आ गया था.

घर के विवाद को देख कर रवींद्र सिंह ने सभी को समझाने की कोशिश की,लेकिन घर में उस की एक न चली. रवींद्र की पत्नी पहले से ही पिथौरागढ़ में रहती थी. जबकि रवींद्र सिंह परिवार के साथ ही रहता था. एक घर में रहते हुए भी परिवार में अलगअलग खाना बनता था. कुल मिला कर राजेंद्र शाही के पास जमीनजायदाद सब कुछ होने के बावजूद परिवार में खुशियां बिलकुल नही थीं.

20 दिसंबर, 2020 को राहुल कुछ ज्यादा ही परेशान था. थोड़ी देर पहले ही वह शहर से आया था. तभी उस की मां ने फिर से वही ताना मारा, ‘‘आ गया आवारागर्दी कर के, तू नौकरी करेगा भी क्यों? तुझे तो मुफ्त की रोटी खाने की आदत पड़ गई है.’’

हीरा देवी न जाने क्याक्या बड़बड़ाए जा रही थी. इस के बावजूद राहुल चुपचाप घर के अंदर चला गया. उस ने कपड़े चेंज किए, फिर मोबाइल खोल कर उसी में लग गया. लेकिन दिमाग में मां के कहे शब्द बारबार गूंज रहे थे.

Crime: अंधविश्वास, झाड़-फूंक और ‘औलाद का सुख’

शाम तक उस का दिमाग यूं ही घूमता रहा. शाम को पता चला कि उस के पिता आज कहीं गए हुए हैं. वह रात में नहीं आएंगे. राहुल अपने पिता के कमरे में सोता था. उस रात उस ने खाना खाया और फिर अपने ही कमरे में कैद हो गया. रात के 10 बजे ममता ने अपनी मां और भाई रवींद्र को खाना खिलाया और मां हीरा देवी को दवा देने के बाद कमरे में सुला दिया. हीरा देवी बीमार चल रही थी. फिर ममता भी अपने कमरे में जा कर सो गई. लेकिन उस रात राहुल अपनी मां के शब्दों से इतना आहत था कि उसे चाह कर भी नींद नहीं आ रही थी.

तभी उस के दिमाग में तरहतरह की शैतानी खुराफातें पैदा होने लगीं. उस के मन में बैठा शैतान जागा तो उस ने अपनी मां को ही मौत की नींद सुलाने की योजना बना डाली. वह देर रात उठा, फिर अपनी मां के कमरे में जा कर देखा. वह गहरी नींद में सोई पड़ी थीं.

घर के अन्य सदस्य भी अपनेअपने कमरों में सोए हुए थे. अपने कमरे से निकल कर राहुल सीधा किचन में गया. उस ने वहां से चाकू उठाया और उसे हाथ में थामे मां के कमरे की ओर बढ़ गया. हीरा देवी हर रात दवा खा कर सोती थी. उन पर दवाओं का नशा हावी रहता था.

मां को गहरी नींद में सोते देख राहुल शैतान बन गया. उस ने एक हाथ से अपनी मां का मुंह बंद किया और फिर दूसरे हाथ में थामे चाकू से मां के गले पर एक जोरदार वार कर डाला. इस से पहले कि हीरा देवी कुछ समझ पाती, चाकू के एक ही वार से उन के प्राणपखेरू उड़ गए.

मां को मौत की नींद सुलाने के बाद राहुल ने अपनी खून में सनी शर्ट चेंज कर ली. लेकिन खून सने लोअर के ऊपर उस ने पैंट पहन ली थी. उस के बाद उस ने बाहर के शटर का लगा ताला खोला, फिर वह निडर बेखौफ बाहर घूमता रहा.

उसी दौरान बाहर उस की आहट सुन कर ममता की आंखें खुलीं तो उस ने उसे बाहर घूमते हुए देखा. लेकिन वह उस की आदत को पहले से ही जानती थी. जिस के कारण उस ने उसे नहीं टोका.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने मौके का मुआयना कर हत्या में प्रयुक्त चाकू, कमरे से राहुल के खून से सने कपड़े तथा वारदात के बाद खून से सने हाथ धोने में प्रयुक्त साबुन भी बरामद कर लिया था. पुलिस ने राहुल को अपनी ही मां की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

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जमीनजायदाद के मोह ने एक हंसतेखेलते परिवार को बिखरने पर मजबूर कर दिया था, जिस की परिणति परिवार के सभी लोग रिश्तेनातों को दरकिनार कर कोर्टकचहरी के चक्कर लगा रहे थे.

वहीं घर की अशांति और बेरोजगारी से परेशान राहुल के दिल में परिवार वालों के प्रति इतनी नफरत पैदा हो गई थी कि उस ने अपनी मां को मौत की नींद सुला दिया. हत्या भी ऐसी अकल्पनीय जिसे सुन कर रोंगटे खड़े हो जाएं.

Crime: अंधविश्वास, झाड़-फूंक और ‘औलाद का सुख’

बच्चा पाने की चाह में दंपत्ति क्या कुछ कर गुजरते हैं, इसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते. ऐसे दंपत्ति जिन्हें औलाद का सुख नहीं मिला है जैसे-जैसे समय व्यतीत होता जाता है, बच्चा पाने की चाह में वह सब कुछ कर गुजरते हैं जो सामान्य आम आदमी नहीं करेगा.
ऐसी स्थिति में रूपए पैसे की हानि तो होती ही है, जग हंसाई के पात्र भी बन जाते हैं. ऐसा ही एक सनसनीखेज घटना ग्राम छत्तीसगढ़ के जिला बालोद में घटित हुई. जिसका ताना-बाना झाड़-फूंक अंधविश्वास और पैसों की बर्बादी पर जाकर खत्म होता है.
यह तो एक ऐसा उदाहरण नजीर है जिस पर पुलिस ने अंकुश लगाया. और दोषियों को जेल भेजा है. अन्यथा कितने ही लोग लुट जाते हैं और जुबान भी लोक लाज के कारण बंद रखते हैं.
आइए! आज की रिपोर्ट में हम आपको ऐसे ही सच्चे घटनाक्रम की बानगी से रूबरू कराते हैं और यह बताने का प्रयास करते हैं कि अगर आपके आसपास भी ऐसा कुछ हो रहा है तो आप सतर्क सकते रहें.
पहला घटनाक्रम-

छत्तीसगढ़ के जिला पेंड्रा मरवाही में हिमाचल से जड़ी बूटी लाकर बेचने का माया जाल रचना एक शख्स को औलाद पैदा हो जाने का भ्रम रचा कर अस्सी हजार रुपए ठग लिए.

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दूसरा घटनाक्रम-

जिला बेमेतरा के एक साहू परिवार जिसे औलाद नहीं हो रही थी बच्चा होने  का झूठा दिलासा देकर 50000 रुपए ठगने वाले गांव के ही एक बैगा गुनिया को पुलिस ने गिरफ्तार कर भेजा जेल.
तीसरा घटनाक्रम-
छत्तीसगढ़ के रतनपुर में एक मिश्रा परिवार को पंजाब से आए हुए एक वैद द्वारा अवलाद दिलाने का आश्वासन देकर 25  हजार ठगा गया और फिर वह गायब हो गया.

संतान सुख का भ्रामक मायाजालसंतान सुख की चाहत में लोग किस तरह अंधविश्वास के फेर में झाड़-फूंक और नकली दवाइयों के चक्कर में पड़ कर लूट जाते हैं उसकी एक बानगी यहां प्रस्तुत है-

छत्तीसगढ़ के जिला बालोद के गुंडरदेही थाना अंतर्गत ग्राम मुंदेरा में दम्पती को संतान सुख दिलाने झाड़ फूंक व तंत्र विद्या के नाम पर 40 हजार रुपए की ठगी करने वाले पति-पत्नी को गुंडरदेही पुलिस ने तत्परता का परिचय देते हुए गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है. घटनाक्रम कुछ इस तरह था-
गुंडरदेही थाना अंतर्गत ग्राम मुंदेरा में दम्पती को संतान सुख दिलाने झाड़ फूंक व तंत्र विद्या के नाम पर 40 हजार रुपए की ठगी करने वाले पति-पत्नी को गुंडरदेही पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है.पुलिस के मुताबिक ग्राम मुंदेरा में बीते दिनों डेरा वाले आए थे, जहां लोगों को झाड़-फूंक तंत्र विद्या से लाभ का लालच दिखाकर लूटा जा रहा था. इसी दौरान गांव के एक दम्पती को संतान सुख नहीं हो रहा था.
आरोपी राजकुमार पटोती पिता स्व. लंखाराम पटोती जाति गोड़ (50) निवासी कुगदा थाना कुम्हारी जिला दुर्ग एवं उनकी 100 भगवती उर्फ लक्ष्मी पटोती (45) ने पीडि़त दंपती से 40 हजार रुपए मांगे और कहा कि तंत्र विद्या से संतान सुख मिलेगा. प्रार्थी को धमकी दी कि रुपए न देने पर सब कुछ तहस-नहस हो जाएगा.डरे हुए पीडि़त दंपती ने आरोपियों को पैसों दे दिए.
पुलिस के मुताबिक आरोपी और भी लोगों से ठगी कर चुका है. ग्राम मुंदेरा में प्रार्थी केतराम साहू पिता हलधर प्रसाद साहू साकिन बोदल थाना रनचिरई की रिपोर्ट पर  मामला दर्ज किया गया आरोपी घुमंतु हैं जो डेरा बनाकर रहते हैं. भोले-भाले ग्रामीणों को, जिसका बच्चा नहीं होता है, झाड़-फूंक के नाम पर उन्हें ठगते हैं। इसी तरह प्रार्थी से 40,000 रुपए ले लिया.

संतान सुख और  गहराता “अंधविश्वास”.

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दंपत्ति को जब कुछ वक्त बीत जाने के बाद औलाद का सुख नहीं मिलता तो वह लोगों के कहने पर या तो चिकित्सकों के यहां इलाज के लिए पहुंचते हैं. अथवा “अंधविश्वास” की जाल में फंस जाते हैं.जहां तक विज्ञान और चिकित्सक का संबंध है यहां तो लोगों को सही जानकारी प्राप्त हो जाती है और अंधविश्वास और झाड़-फूंक के चक्कर में पर जहां अपने ग्रुप में पैसे बर्बाद करते हैं. वही जड़ी बूटी और नकली दवाइयों के चक्कर में पड़ कर अपने स्वास्थ्य और धन को बर्बाद करते हैं ऐसे ही हालात में फंस जाने कितने लोग अंत में सर पीट कर रह जाते हैं.
अंधविश्वास और झाड़-फूंक के खिलाफ मुहिम चलाने वाले शिव दास महंत के मुताबिक हमारे पास अक्सर ऐसे मामलों में सलाह के लिए लोग संपर्क करते हैं हमारा प्रयास रहता है कि जिन्हें संतान सुख नहीं मिला है वह झाड़-फूंक  को और अंधविश्वास के फेर में न पड़े यही सलाह हम लगातार दंपत्ति  को देते रहते हैं.
अधिवक्ता बी के शुक्ला के मुताबिक कानून के मुताबिक ऐसे मामलों में हमारी यह सलाह रहती है कि अंधविश्वास और झाड़-फूंक से बचकर समझदारी का परिचय देते हुए दंपत्ति अनाथ बच्चों को गोद लें.
सामाजिक कार्यकर्ता एवं डॉ जी आर पंजवानी के मुताबिक लोगों को यह समझना चाहिए कि झाड़-फूंक से बच्चे नहीं होते आज के इस जागरूकता, शिक्षा के समय में वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करते हुए और बालक गोद लेकर के संतान सुख का लाभ लिया जा सकता है.

Crime Story: काली नजर का प्यार भाग 3

सौजन्य-  सत्यकथा

इधर वीरेंद्र ने अपने व वर्षा के प्रेम संबंधों की जानकारी मां को दी तो सरस्वती भड़क उठी. उस ने वीरेंद्र से साफ कह दिया कि वह बिनब्याही लड़की को घर में नहीं रख सकती. उस ने कोई बवाल कर दिया तो हम सब फंस जाएंगे. बदनामी भी होगी.

इस पर वीरेंद्र ने मां को समझाया कि वे दोनों एकदूसरे से प्रेम करते हैं. 6 महीने बीतते ही शादी कर लेंगे. वर्षा के घर वालों को भी साथ रहने में कोई ऐतराज नहीं है. इस बीच हम लोग वर्षा को परख भी लेंगे कि वह घर की बहू बनने लायक है भी या नहीं.

सरस्वती देवी का मन तो नहीं था, लेकिन बेटे के समझाने पर वह राजी हो गई.

इस के बाद वीरेंद्र ने 5 जून, 2020 को वर्षा को राठ स्थित शीतला माता मंदिर बुला लिया. यहां उस ने उस की मांग में सिंदूर लगाया. फिर उसे अपने घर ले आया. सरस्वती ने आधेअधूरे मन से बिनब्याही दुलहन का स्वागत किया और घर में पनाह दे दी.

वर्षा महीने भर तो मर्यादा में रही, उस के बाद रंग दिखाने लगी. वह न तो घर का काम करती और न ही खाना बनाती. सरस्वती देवी उस से कुछ कहती तो वह उसे खरीखोटी सुना देती. देवर अनिल के साथ भी वह दुर्व्यवहार करती. पति वीरेंद्र को भी उस ने अंगुलियों पर नचाना शुरू कर दिया. वर्षा मनमानी करने लगी तो घर में कलह होने लगी.

कलह का पहला कारण यह था कि वर्षा को संयुक्त परिवार पसंद नहीं था. वह सास देवर के साथ नहीं रहना चाहती थी. कलह का दूसरा कारण उस की स्वच्छंदता थी. जबकि सरस्वती देवी चाहती थी कि वर्षा मर्यादा में रहे.

उधर वर्षा को घर की चारदीवारी कतई पसंद न थी. वह स्वच्छंद विचरण चाहती थी. तीसरा अहम कारण पति का वेतन था. वर्षा चाहती थी कि वीरेंद्र जो कमाए, वह उस के हाथ पर रखे. जबकि वीरेंद्र अपना आधा वेतन मां को दे देता था. इस बात पर वह झगड़ा करती थी.

10 नवंबर, 2020 की शाम 4 बजे सरस्वती देवी खाना तैयार करने नवोदय विद्यालय छात्रावास चली गई. अनिल व वीरेंद्र भी काम पर गए थे. घर में वर्षा ही थी. शाम 5 बजे वीरेंद्र घर आ गया. आते ही वर्षा ने वीरेंद्र से वेतन के संबंध में पूछा. वीरेंद्र ने बताया कि उसे वेतन मिल तो गया है. लेकिन उसे पैसा मां को देना है. क्योंकि दीपावली का त्यौहार नजदीक है और मां को घर का सारा सामान लाना है.

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यह सुनते ही वर्षा गुस्से से बोली, ‘‘शारीरिक सुख मेरे से उठाते हो और पैसा मां के हाथ में दोगे. यह नहीं चलेगा. आज रात मां के कमरे में ही जा कर सोना, समझे.’’

वर्षा की बात सुन कर वीरेंद्र तिलमिला उठा और उस ने गुस्से में वर्षा के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया. वर्षा गम खाने वाली कहां थी, वह वीरेंद्र से भिड़ गई. दोनो में मारपीट होने लगी. इसी बीच वर्षा की निगाह सिलबट्टे पर पड़ी. उस ने सिल का बट्टा उठाया और वीरेंद्र के सिर पर प्रहार कर दिया.

बट्टे के प्रहार से वीरेंद्र का सिर फट गया और वह जमीन पर गिर पड़ा. इस के बावजूद वर्षा का हाथ नहीं रुका और उस ने उस के सिर व चेहरे पर कई और वार किए. जिस से वीरेंद्र की मौत हो गई. कथित पति की हत्या करने के बाद वर्षा ने घर पर ताला लगाया और फरार हो गई.

इधर रात 8 बजे सरस्वती देवी नवोदय विद्यालय छात्रावास से खाना बना कर घर आई तो घर के दरवाजे पर ताला लटक रहा था. सरस्वती ने वर्षा के मोबाइल फोन पर काल की तो उस का मोबाइल फोन बंद था.
फिर उस ने अपने छोटे बेटे अनिल को फोन कर घर पर बुला लिया. अनिल ने भी वर्षा को कई बार काल की लेकिन उस से बात नहीं हो पाई.

सरस्वती और उस के बेटे अनिल ने पड़ोसियों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि वर्षा बदहवास हालत में घर के बाहर निकली थी. ताला लगाने के बाद वह बड़बड़ा रही थी कि सास और पति उसे प्रताडि़त करते हैं. वह रिपार्ट लिखाने पुलिस चौकी जा रही है. पड़ोसियों की बात सुन कर सरस्वती का माथा ठनका. किसी अनिष्ट की आशंका से उस ने राठ कोतवाली को सूचना दी.

सूचना पाते ही कोतवाल के.के. पांडेय पुलिस टीम के साथ आ गए. पांडेय ने दरवाजे का ताला तुड़वा कर घर के अंदर प्रवेश किया.

उन के साथ सरस्वती व अनिल भी थे. कमरे में पहुंचते ही सरस्वती व अनिल दहाड़ मार कर रो पड़े. कमरे के फर्श पर 22 वर्षीय वीरेंद्र की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. सरस्वती ने पांडेय को बताया कि यह उन के बड़े बेटे की लाश है.

चूंकि हत्या का मामला था. अत: के.के. पांडेय ने सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी. कुछ ही देर में एसपी नरेंद्र कुमार सिंह, एएसपी संतोष कुमार सिंह, तथा डीएसपी अखिलेश राजन घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

वीरेंद्र की हत्या सिल के बट्टे से सिर पर प्रहार कर के की गई थी. उस की उम्र 22-23 वर्ष के बीच थी. खून से सना आलाकत्ल बट्टा शव के पास ही पड़ा था, जिसे अधिकारियों ने सुरक्षित करा लिया.

निरीक्षण के बाद अधिकारियों ने शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल हमीरपुर भिजवा दिया. उस के बाद मृतक की मां व भाई से घटना के बारे में पूछताछ की.

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सरस्वती देवी ने बताया कि वर्षा उस के बेटे वीरेंद्र के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रह रही थी. उसी ने वीरेंद्र की हत्या की है. उस का मायका राठ कोतवाली के गांव सैदपुर में है. सरस्वती देवी की तहरीर पर थानाप्रभारी के.के. पांडेय ने भादंवि की धारा 302 के तहत वर्षा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उस की तलाश शुरू कर दी.

रात 11 बजे थानाप्रभारी ने पुलिस टीम के साथ सैदपुर गांव में चंदा देवी के घर छापा मारा. घर पर उस की बेटी वर्षा मौजूद थी. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. उसे थाना राठ कोतवाली लाया गया.
थाने पर जब उस से वीरेंद्र की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

उस ने बताया कि वीरेंद्र से रुपए मांगने पर उस का झगड़ा हुआ था. गुस्से में उस ने वीरेंद्र पर सिल के बट्टे से प्रहार किया. जिस से उस का सिर फट गया और उस की मौत हो गई. पुलिस से बचने के लिए वह घर में ताला लगा कर मायके चली गई थी, जहां से वह पकड़ी गई.

11 नवंबर, 2020 को पुलिस ने अभियुक्ता वर्षा को हमीरपुर की कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Story: काली नजर का प्यार भाग 2

सौजन्य-  सत्यकथा

वीरेंद्र समझ गया कि वर्षा कहना चाहती है कि वह उस का प्यार कबूल तो कर सकती है, मगर शर्त यह है कि उसे शादी करनी होगी. उस वक्त वीरेंद्र के सिर पर वर्षा को पाने का जुनून था, सो उस ने कह दिया, ‘‘मैं टाइमपास करने के लिए तुम्हारी तरफ प्यार का हाथ नहीं बढ़ा रहा हूं, बल्कि संजीदा हूं. मैं तुम से शादी कर के वफा और ईमानदारी से साथ निभाऊंगा.’’

दरअसल वर्षा अपनी मां की मजबूरियां जानती थी. चंदा देवी ने बहुत तकलीफें उठा कर पति का इलाज कराया था. इलाज में उस पर जो कर्ज चढ़ा था, उस की भरपाई होने में बरसों लग जाने थे. परिवार में कोई ऐसा न था जो युवा हो चुकी वर्षा के भविष्य के बारे में सोचता. मां बेटी को दुलहन बना कर विदा कर पाने की हैसियत में नहीं थी. छोटा भाई अशोक खुद अपनी जिम्मेदारियों से जूझ रहा था. अत: वर्षा को अपने भविष्य का निर्णय स्वयं करना था.

वर्षा 20 साल की भरीपूरी युवती थी. उस के मन में किसी का प्यार पाने और स्वयं भी उसे टूट कर चाहने की हसरत थी. मन में इच्छा थी कि कोई उसे चाहने वाला मिल जाए, तो वह जीवन भर के लिए उस का हाथ थाम ले. इस तरह उस का भी जीवन संवर जाएगा और वह भी अपनी गृहस्थी, पति व बच्चों में रमी रहेगी.

लोग गलत नहीं कहते, इश्क पहली नजर में होता है. वर्षा के दिल में भी तब से हलचल मचनी शुरू हो गई थी, जब वीरेंद्र से पहली बार उस की नजरें मिली थीं.

वर्षा की आंखें खूबसूरत थीं, तो वीरेंद्र की आंखों में भी प्यार ही प्यार था. उस पल से ही वीरेंद्र वर्षा की सोच का केंद्र बन गया था. वर्षा ने जितना सोचा, उतना ही उस की ओर आकर्षित होती गई. वर्षा का मानना था कि वीरेंद्र अच्छा और सच्चा आशिक साबित हो सकता है. उस के साथ जिंदगी मजे से गुजर जाएगी.

वर्षा ने यह भी निर्णय लिया कि जब कभी भी वीरेंद्र प्यार का इजहार करेगा, तो वह मुहब्बत का इकरार कर लेगी. उम्मीद के मुताबिक उस दिन वीरेंद्र ने अपनी चाहत जाहिर की, तो वर्षा ने उस का प्यार कबूल कर लिया. उस दिन से वर्षा और वीरेंद्र का रोमांस शुरू हो गया.

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वर्षा के प्रेम की जानकारी उस की मां चंदा देवी और भाई अशोक को भी हो गई थी. चूंकि वर्षा और वीरेंद्र शादी करना चाहते थे, सो उन दोनों ने उन के प्यार पर ऐतराज नहीं किया. एक प्रकार से वर्षा को मां और भाई का मूक समर्थन मिल गया था.

दूसरी ओर वर्षा वीरेंद्र के जितना करीब आ रही थी, उतना ही उसे लग रहा था कि अभी वह वीरेंद्र को ठीक से समझ नहीं पाई, अभी उसे और समझना बाकी है.

अत: वीरेंद्र को समझने के लिए वर्षा ने उस के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रहने का मन बना लिया. सोचा वीरेंद्र उस की अपेक्षाओं के अनुरूप साबित हुआ, तो उस से शादी कर लेगी. कसौटी पर खरा न उतरा, तो दोनों अपने रास्ते अलग कर लेंगे.

वर्षा को लिवइन रिलेशनशिप में भी दोहरा लाभ नजर आ रहा था. पहला लाभ यह है कि वीरेंद्र को ठीक से समझ लेगी. दूसरा लाभ यह कि अपनी जवानी को घुन नहीं लगाना पड़ेगा. वीरेंद्र उस की देह का सुख भोगेगा, तो वह भी वीरेंद्र के जिस्म से आनंद पाएगी.

एक रोज जब वर्षा और वीरेंद्र का आमनासामना हुआ और बातचीत का सिलसिला जुड़ा तो वीरेंद्र ने जल्द शादी करने का प्रस्ताव रखा. इस पर वर्षा बोली, ‘‘मुझे शादी की जल्दी नहीं है बल्कि हमें अभी एकदूसरे को समझने की जरूरत है.’’

‘‘6 महीने से हमारा रोमांस चल रहा है,’’ वीरेंद्र के शब्दों में हैरानी थी, ‘‘और अब तक तुम मुझे समझ नहीं पाई.’’

‘‘समझी तो हूं, लेकिन उतना नहीं जितना जीवन भर साथ रहने के लिए समझना चाहिए.’’

‘‘पूरी तरह समझने में कितना वक्त लगेगा?’’ वीरेंद्र ने उदास मन से पूछा.

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कुछ देर गहरी सोच में डूबे रहने के बाद वर्षा ने जवाब दिया, ‘‘शायद 6 महीने और.’’

‘‘और इस दौरान मेरा क्या होगा?’’ वीरेंद्र ने पूछा.

वर्षा के होंठों पर मुसकान आई, ‘‘तुम्हारे साथ मैं भी रहूंगी.’’

वीरेंद्र के सिर पर हैरत का पहाड़ टूट पड़ा, ‘‘बिन ब्याहे मेरे साथ रहोगी.’’

‘‘इस में बुरा क्या है?’’ वर्षा मुसकराई, ‘‘नए जमाने के साथ लोगों की सोच और जिंदगी के तरीके भी बदलते रहते हैं. शहरों कस्बों में बहुत सारे लोग लिवइन रिलेशनशिप में रह रहे हैं, हम भी रह लेंगे.’’
‘‘यानी कि शादी किए बिना ही तुम घर रहोगी.’’

वर्षा ने वीरेंद्र की ही टोन में जवाब दिया, ‘‘बेशक.’’

चूंकि वीरेंद्र वर्षा का दीवाना था. अत: जब वर्षा ने वीरेंद्र के सामने लिवइन रिलेशनशिप का प्रस्ताव रखा तो वह फौरन राजी हो गया.

अगले भाग में पढ़ें- वर्षा मनमानी करने लगी तो घर में कलह होने लगी

Crime Story: काली नजर का प्यार भाग 1

सौजन्य-  सत्यकथा

जिला हमीरपुर का एक बड़ा कस्बा है राठ. मूलत: मध्य प्रदेश के गांव सरमेड़ के रहने वाले
मूलचंद्र अनुरागी का परिवार राठ के मोहल्ला भटियानी में रहता था. परिवार में पत्नी सरस्वती के अलावा 2 बेटे वीरेंद्र व अनिल थे. गांव में मूलचंद्र का पुश्तैनी मकान व जमीन थी. वह खुद गांव में रह कर घरजमीन की देखरेख करता था.

पत्नीबच्चों से मिलने वह राठ आताजाता रहता था. मूलचंद्र की पत्नी सरस्वती, राठ स्थित नवोदय विद्यालय में रसोइया थी. वह छात्रावास में रहने वाले छात्रों के लिए खाना बनाती थी. सरस्वती का बड़ा बेटा वीरेंद्र मिठाई की एक दुकान में काम करता था.

वीरेंद्र बताशा बनाने का उम्दा कारीगर था, जबकि छोटा बेटा अनिल राठ की ही एक जूता बनाने वाली फैक्ट्री में नौकरी कर रहा था. चूंकि सरस्वती और उस के दोनों बेटे कमाते थे, सो घर की आर्थिक स्थिति ठीक थी.

सरस्वती बेटों के साथ खुशहाल तो थी, लेकिन घर में बहू की कमी थी. वह वीरेंद्र की शादी को लालायित रहती थी.

वीरेंद्र अनुरागी जिस दुकान में काम करता था, उसी में अशोक नाम का एक युवक काम करता था. अशोक राठ कस्बे से आधा किलोमीटर दूर स्थित सैदपुर गांव का रहने वाला था. अशोक की छोटी बहन वर्षा अकसर उसे लंच देने आया करती थी.

जयराम की 2 ही संतानें थीं अशोक और वर्षा. कुछ साल पहले जयराम की मृत्यु हो चुकी थी. मां चंदा देवी ने उन दोनों को तकलीफें सह कर बड़ा किया था. आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण अशोक और वर्षा ज्यादा पढ़लिख नहीं सके थे.

अशोक 10वीं कक्षा छोड़ कर नौकरी करने लगा था, जबकि वर्षा 10वीं कक्षा पास करने के बाद मां के घरेलू कामों में हाथ बंटाने लगी थी.

20 वर्षीय वर्षा गोरीचिट्टी, छरहरी काया की युवती थी. नैननक्श भी तीखे थे. सब से खूबसूरत थी उस की आंखें. खुमार भरी गहरी आंखें. उस की आंखों में ऐसी कशिश थी कि जो उन में देखे, खो सा जाए.

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एक दिन वर्षा अपने भाई अशोक को लंच देने दुकान पर आई. वीरेंद्र की नजरें वर्षा की नजरों से मिलीं, तो वह उन में मानो डूब सा गया. जी में आया, उन्हीं खुमार भरी आंखों की अथाह गहराइयों में पूरी उम्र डूबा रहे. खुद भी उबरना चाहे तो उबर न सके. कुछ पल के लिए आंखों से आंखें मिली थीं, लेकिन उन्हीं लम्हों में वीरेंद्र वर्षा की आंखों पर फिदा हो गया. इस के बाद वर्षा की आंखें उस की सोच की धुरी बन गईं.

उस दिन के बाद वीरेंद्र को वर्षा के आने का इंतजार रहने लगा. हालांकि अशोक से बोलचाल पहले से थी, लेकिन वर्षा तक पहुंच बनाने के लिए उस ने उस से संबंध प्रगाढ़ बना लिए. इन्हीं संबंधों की आड़ में उस ने वर्षा से परिचय भी कर लिया.

वर्षा से परिचय हुआ तो बेइमान कर देने वाली उस की नजरें वीरेंद्र का दिल और तड़पाने लगीं. अब वीरेंद्र को इंतजार था उस पल का, जब वर्षा अकेले में मिले और वह उस से अपने दिल की बात कह सके.
किस्मत ने एक रोज उसे यह मौका भी मुहैया करा दिया.

उस रोज वर्षा भाई को खाना खिला कर जाने लगी, तो ताक में बैठा वीरेंद्र उस के पीछेपीछे चल पड़ा. तेज कदमों से वह वर्षा के बराबर में पहुंचा. वर्षा ने सिर घुमा कर वीरेंद्र को देखा और मुसकराने लगी.

वीरेंद्र बोला, ‘‘मुझे तुम से एक जरूरी बात कहनी है.’’

वर्षा के कदम पहले की तरह बढ़ते रहे, ‘‘बोलो.’’

‘‘मुझे जो कहना है, सड़क चलते नहीं कह सकता.’’

सहसा वीरेंद्र की नजर कुछ दूर स्थित पार्क पर पड़ी, ‘‘चलो, वहां पार्क में बैठते हैं. सुकून से बात हो जाएगी.’’
‘‘चलो,’’ वर्षा मुसकराई, ‘‘तुम्हारी बात सुन लेती हूं.’’

वे दोनों पार्क में जा कर बैठ गए. उस के बाद वर्षा वीरेंद्र से मुखातिब हुई, ‘‘अब बोलो, क्या कहना है?’’
वीरेंद्र के पास भूमिका बनाने का समय नहीं था. अत: उस ने सीधे तौर पर अपनी बात कह दी, ‘‘तुम्हारी आंखें बहुत हसीन हैं.’’

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वर्षा की मुसकराहट गाढ़ी हो गई, ‘‘और मैं?’’
‘‘जिस की आंखें इतनी हसीन हैं, कहने की जरूरत नहीं कि वह कितनी हसीन होगी.’’
वर्षा ने उसे गहरी नजरों से देखा, ‘‘तुम मेरे हुस्न की तारीफ करने के लिए यहां ले कर आए हो या कुछ और कहना है?’’

वीरेंद्र ने महसूस किया कि वर्षा प्यार का सिलसिला शुरू करने के लिए उकसा रही है. अत: उस के दिल की बात जुबान से बयां हो गई, ‘‘तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मुझे तुम से प्यार हो गया है.’’

कुछ देर तक वर्षा उस की आंखों में देखती रही, फिर आहिस्ता से बोली, ‘‘प्यार ही तो ऐसी चीज है, जिस पर न दुनिया का कोई कानून लागू नहीं होता, न इसे दबाया या छिपाया जा सकता है. लेकिन प्यार के कुछ तकाजे भी होते हैं.’’

वीरेंद्र ने धड़कते दिल से पूछा, ‘‘कैसे तकाजे?’’

‘‘वफा, ईमानदारी और जिंदगी भर साथ निभाने का जज्बा.’’

अगले भाग में पढ़ें- वर्षा को लिवइन रिलेशनशिप में भी दोहरा लाभ नजर आ रहा था.

“अपराधी नौकर” से कैसे  हो बचाव!

आमतौर पर माना जाता है कि मालिक और नौकर का संबंध चिरकालिक है. दोनों ही एक दूसरे के पूरक है. ऐसे में अगर नौकर विश्वासघात करने लगे, आस्तीन का सांप बन जाए तो फिर मालिक का तो भगवान ही मालिक है.

ऐसी अनेक घटनाएं हमारे आसपास घटित होती है. जब नौकर विश्वासघात पर उतर आता है.और अपने ही मालिक को डस लेता है. आखिर नौकर की ऐसी करतूतों से कैसे बचा जा सकता है.

आज के इस अपराध पूर्ण माहौल में, यह एक बड़ी चिंता का विषय है. क्योंकि कब कौन, कहां क्या निर्णय लेता है और अपराध कर बैठता है यह कोई भी नहीं जान सकता. आइए! आज इस लेख में नौकर मालिक के संबंधों और अपराध को रेखांकित करते हुए कुछ घटनाओं के माध्यम से हम आपको जिंदगी के सच को दिखाने का प्रयास करते हैं. विधि और समाज के महत्वपूर्ण लोगों के विचार भी इस आलेख में शामिल किए गए हैं.

Crime Story: प्यार के भंवर में (भाग-2)

घर का भेदी- नौकर

छत्तीसगढ़ के जिला रायगढ़ में अपने घर में लगातार चोरियां होती देख परेशान मालिक ने घर में मोबाइल को वीडियो रिकार्डिंग मोड पर रखकर छोड़ दिया. जब मोबाइल को दोबारा चेक किया तो पता चला कि आरोपी और कोई नहीं, घर का ही एक विश्वासपात्र नौकर  है. मालिक ने नौकर के विरुद्ध थाने में अपराध दर्ज करायी.  शशांक अग्रवाल (21 साल) पिता डा. राजेन्द्र फ्रेंड्स कॉलोनी में रहते हैं.

शशांक बताते हैं इनकी क्लिनिक गांधी गंज में है. क्लिनिक और घर की देखभाल के लिए डाक्टर ने दिलेश्वर पटेल निवासी चिनारा चैनपुर कोरबा को तीन साल से रखा है. 15 अप्रैल को शशांक अग्रवाल और इनके माता-पिता घर बंद कर शाम 5.30 बजे क्लिनिक गए थे. घर में इलेक्ट्रीशियन काम कर रहा था, दिलेश्वर भी घर पर था. कुछ महिनों से लगातार अलमारी से रुपए और जेवरात चोरी हो रहे थे. डॉ. राजेन्द्र ने चोरी का पता लगाने के लिए उनकी पत्नी के मोबाइल को वीडियो रिकार्डिंग मोड में डालकर बेडरूम में छिपा दिया था. रात करीब 9.30 बजे डॉक्टर अग्रवाल जब घर पहुंचे तो उन्होंने अपना मोबाइल चेक किया.मोबाइल की वीडियो रिकार्डिंग में दिलेश्वर घर की अलमारी खोलकर 90 हजार रुपए ले जाता दिखा.इस पर उनके द्वारा कोतरा रोड में पहुंच रिपोर्ट दर्ज कराई गई. रिपोर्ट पर कोतरा रोड पुलिस ने आरोपी नौकर को जेल की हवा खाने भेज दिया है.

मास्टरमाइंड नौकर

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में मोबाइल दुकान में काम करने वाले कर्मचारी ने मालिक के विश्वास का फायदा उठाकर अकाउन्ट से अपने खाते में 6 लाख रुपए ट्रांसर्फर कर लिया. घटना की रिपोर्ट गुढिय़ारी थाने में दर्ज की गई है. रायपुर के अशोकनगर , गुढिय़ारी निवासी साधुराम जीवनानी ने रिपोर्ट दर्ज कराई  कि प्रार्थी का एक मोबाइल दुकान है. दुकान में काम करने वाले अखिलेश्वर पाण्डेय विश्वास के कारण ग्राहकों को मोबाइल फायनेंस ब्रिकी होम क्रेडिट कंपनी द्वारा किया जाता है.खिलेश्वर पाण्डेय दुकान का एकाउन्ट एवं मोबाइल खरीदी बिक्री का काम करता है, जिसके  कारण आरोपी को खाता संबंधित आईडी पासवर्ड दिया था. 7 जनवरी को प्रार्थी के मोबाइल पर 10 हजार रुपए निकालने के संबंध में मैसेज आया जिसके बाद बैंक जाकर खाते की जांच कराने पर अखिलेश्वर पाण्डे ने कई बार में 6 लाख 2 हजार 920 रुपए पीडि़त के एचडीएफसी बैंक खाते से अपने खाते में ट्रांसर्फर किया है. इसके बाद 7 जनवरी से दुकान में काम करना बंद कर दिया है. रिपोर्ट पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ अमानत में खयानत की  के तहत अपराध कायम कर कर लिया.

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जब नौकर ही हत्यारा निकला

किस्से कहानियों और फिल्मों में हम अक्सर नौकर को वफादार के रूप में पाते हैं मगर ऐसी भी बहुत सी कहानियां हैं जब नौकर पीठ पर घाव कर देता है.

ऐसी ही एक घटना छत्तीसगढ़ के नवगठित जिला पेंड्रा में घटित हुई.यहां पुलिस ने कंप्यूटर दुकान संचालक की हत्या का खुलासा करते हुए मामले में मृतक की पत्नी और उसके ड्राइवर को गिरफ्तार किया पुलिस की पूछताछ में मृतक की आरोपी पत्नी ने इकबालिया बयान में बताया पति से परेशान थी और  तंग आकर ड्राइवर के साथ मिलकर हत्या  की है. पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त कार और वारदात को अंजाम देने के लिए उपयोग किये गए डंडे को भी बरामद कर लिया है.

यह सनसनीखेज मामला गौरेला थाना क्षेत्र का है,  पुलिस को सूचना मिली कि चुक्तिपानी और ज्वालेश्वर मार्ग पर सड़क किनारे खाई में एक अज्ञात व्यक्ति का शव मिला है. पुलिस मौके पर पहुचकर जांच शुरू की तब पुलिस को पता चला कि शव पेण्ड्रा थानाक्षेत्र के कुदरी गांव में रहने वाले रजनीश डेनियल का है, जो कंप्यूटर दुकान संचालित करता था. पुलिस को यह भी जानकारी मिली कि रजनीश डेनियल  घर से अचानक गायब हो गया था, जिस पर उसकी पत्नी माग्रेट डेनियल ने  पेण्ड्रा थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

खाई में मिले शव की शिनाख्ती के लिए पुलिस ने मार्गेट डेनियल को बुलाया शव की पहचान उसकी पत्नी ने की और शव जो पुलिस ने पंचनामा पोस्टमार्टम कार्रवाई के बाद परिजन को सौंप दिया, शॉर्ट पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि मृतक की हत्या किसी वजनी चीज से सर में चोट मारने और गला दबाने से हुई है.

पुलिस ने मामले में अलग-अलग बयान लिया यहां तक की मनोवैज्ञानिक तरीके से भी पूछताछ की गई. पुलिस को मामले में संदेह मृतक की पत्नी पर हुआ, जिस पर कड़ाई से की गई पूछताछ में उसने हत्या की बात कबूल कर ली. मृतक की पत्नी ने बतलाया कि वो अपने पति से काफी परेशान थी. रजनीश उसे शारीरिक और मानसिक रूप से काफी परेशान करता था, यहां तक की खाने-पीने को भी नहीं दिया करता था. प्रताड़ना से तंग आकर मार्ग्रेट डेनियल ड्राइवर भूरेलाल को पैसे और जमीन का लालच देकर रजनीश डेनियल को मारने का प्लान बनाया.

छत्तीसगढ़ के आदिवासी जिला जशपुर में एक व्यापारी को उसके यहां काम करने वाले नौकर में ऐसा दंश दिया जिसे वह शायद कभी नहीं भूल सकता और पुलिस भी उस नौकर को अभी तक ढूंढ नहीं पाई है. रामलाल नामक एक कपड़ा व्यवसायी के गोदाम का पचास हजार का कीमती कपड़ा नौकर ने बेच दिया और पता चलने पर नौकर धीरज फरार है.

ऐसे ही एक घटना क्रम में जिला बेमेतरा के कोतवाली थाना अंतर्गत एक जनरल स्टोर के नौकर ने अपने मालिक  घनश्याम तिवारी को लाखों रुपए का चूना लगा दिया मालिक ने नौकर रमाकांत को रुपए जमा करने बैंक भेजा मगर नौकर पैसे लेकर से फरार हो गया.

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आखिर क्या है उपाय

जैसा कि हम जानते हैं नौकर और मालिक, मालिक और नौकर का संबंध चोली दामन का संबंध है. ऐसे में जब ऐसी बहुतेरी घटनाएं समाज में घटित हो रही हैं. जब नौकर अपराधी हो जाता है तब एहतियात, सतर्कता लाजमी हो जाती है.

हाईकोर्ट के अधिवक्ता एसएस मसीह के मुताबिक आज समय आंख बंद करके किसी पर विश्वास करने का  नहीं है. ऐसे में जब आपके यहां कार्यरत सर्वेंट अर्थात नौकर चाहे कितना ही पुराना क्यों ना हो आप सहजता और सरलता बनाते हुए अपनी आंखें खुली रखें. कभी भी अपने महत्वपूर्ण दस्तावेज, बैंक के दस्तावेज नौकर को न बताएं और एक मर्यादा के तहत माहौल बनाकर काम लें.

वहीं संगीत मनोविज्ञान के शिक्षक घनश्याम तिवारी के मुताबिक नौकर और मालिक एक दूसरे के पर्याय हैं नौकर के बिना काम नहीं चल सकता मगर मालिक को चाहिए कि एहतियात बरतते हुए अपने महत्वपूर्ण सूचनाओं को अभी भी नौकर से शेयर न करें.

सामाजिक कार्यकर्ता रमाकांत श्रीवास के मुताबिक नौकर पर पूर्ण रूप से आंख बंद करके विश्वास करना घातक हो सकता है. आज के समय में जब गुप्त कैमरे लग चुके हैं, ऐसे में बहुत तरह से राहत भी मिल जाती है मगर  एहतियात अपरिहार्य है.

कुख्यात डौन मुख्तार अंसारी पर सरकार की टेढ़ी नजर: भाग 2

सौजन्य-सत्यकथा

मुख्तार अंसारी बड़े भाई के राजनैतिक रसूख का भरपूर लाभ उठाता रहा. जैसेजैसे राजनीतिक संरक्षण मिलता गया, वैसेवैसे उस का आपराधिक ग्राफ बढ़ता गया. यह हाल हो गया था कि अब पुलिस वाले भी मुख्तार अंसारी की गोली का शिकार बनने लगे थे.

इस का उदाहरण सन 1987 में वाराणसी पुलिस लाइन में देखने को मिला. मुख्तार अंसारी ऐंड सिंडीकेट ने जिस दुस्साहस का परिचय दिया था, उस से प्रदेश पुलिस हिल गई थी. मामला जुड़ा हुआ था बृजेश ऐंड त्रिभुवन सिंह गैंग से. दरअसल, त्रिभुवन सिंह का भाई राजेंद्र सिंह हेडकांसटेबल था. वह वाराणसी में पुलिस लाइन में तैनात था. मुख्तार अंसारी ने अपने साथियों साधू सिंह, कमलेश सिंह, हरिहर सिंह और भीम सिंह के साथ मिल कर वाराणसी पुलिस लाइन में दिनदहाड़े ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर राजेंद्र सिंह को मौत के घाट उतार दिया था.

पुलिस ने मुख्तार अंसारी को गिरफ्तार करने के लिए एड़ीचोटी का जोरलगा दिया, लेकिन विधायक भाई अफजल अंसारी के हस्तक्षेप से पुलिस उस का बाल बांका नहीं कर पाई.

इस के बाद बृजेश गैंग भी चुप नहीं बैठा. बृजेश और त्रिभुवन गैंग ने मिल कर मुख्तार अंसारी का दाहिना हाथ माने जाने वाले साधू सिंह को मौत के घाट उतार कर अंसारी को तोड़ने की कोशिश की. साधू सिंह की हत्या से मुख्तार अंसारी को बड़ा झटका लगा.

इस के बाद तो बृजेश गैंग ने एकएक कर के मुख्तार असांरी के कई नामचीन साथियों को मौत के घाट उतार दिया. धीरेधीरे बृजेश सिंह गिरोह की पूर्वांचल में तूती बोलने लगी. नब्बे के दशक में 2 आपराधिक गिरोहों की समानांतर सरकार चल रही थी. कभी बृजेश सिंह गैंग मुख्तार अंसारी पर भारी पड़ता तो कभी मुख्तार अंसारी गिरोह बृजेश पर.

बृजेश सिंह के आपराधिक कद को बढ़ता देख मुख्तार अंसारी सहम सा गया था. बृजेश से टक्कर लेने के लिए उस ने अपने ट्रैक में बदलाव किया. भाई अफजल अंसारी की बदौलत मुख्तार अंसारी की पहुंच सत्ता के गलियारों में गहरा गई थी. अफजल विधायक थे ही. मुलायम सिंह यादव सरकार में उन की पैठ कुछ ज्यादा ही थी. भाई की बदौलत सपा सरकार के पहले शासन काल में मुख्तार अंसारी की मुलायम सिंह से नजदीकियां बन गई थीं.

इसी राजनीतिक पहुंच के कारण मुख्तार अंसारी के घर वालोंं के नाम हथियारों के लाइसेंस स्वीकृत कर दिए गए थे. इन में डीबीबीएल गन, मैग्नम रिवौल्वर, टेलिस्कोपिक राइफल इत्यादि खतरनाक हथियार शामिल थे. इस के बाद मुख्तार अंसारी खुलेआम गाजीपुर में रहने लगा. अब तक जिले की जो पुलिस मुख्तार अंसारी की गिरफ्तारी के लिए बेताब रहती थी, वही पुलिस उस के आगेपीछे घूमने लगी.

सत्ता के सनकी घोड़े की सवारी करते हुए मुख्तार अंसारी बृजेश गिरोह के बचे हुए गुरगों का एकएक कर सफाया करने लगा. दिसंबर, 1991 में मुख्तार अंसारी की पुलिस से मुठभेड़ हो गई. मुठभेड़ वाराणसी के मुगलसराय थाना क्षेत्र के पास हुई थी.

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मुगलसराय एसओ ने रात 8 बजे गश्त के दौरान एक मारुति जिप्सी में मुख्तार और उस के साथियों भीम सिंह, अरमान व रामजी को जाते हुए देखा तो इशारा कर के रुकने को कहा. जिप्सी रोकते ही मुख्तार और उस के साथियों ने पुलिस पर फायरिंग करनी शुरू कर दी. जबावी काररवाई में पुलिस ने भी उन पर फायरिंग की और मुख्तार सहित सभी साथियों को गिरफ्तार कर लिया.

तलाशी लेने पर जिप्सी में से 2 आटोमैटिक राइफल, 2 बंदूक और एक रिवौल्वर बरामद हुई. गिरफ्तारी तो हो गई लेकिन मुख्तार अंसारी को कैद में रखना आसान नहीं था. गिरफ्तार करने वाले पुलिस वालों में से एक को मुख्तार अंसारी ने पहचान लिया, जो बृजेश गुट के एक कारकुन का भाई था और पुलिस में था.

मुख्तार अंसारी ने अपनी विदेशी रिवौल्वर से उस की हत्या कर दी और पुलिस कस्टडी से फरार हो गया. पुलिस हाथ मलती रह गई.

इस घटना ने खासा तूल पकड़ा. उस वक्त प्रदेश में भाजपा की सरकार थी. सरकार की सख्ती से मुख्तार अंसारी के घर की कुर्की तक हो गई थी. पुलिस ने विधायक अफजल अंसारी के घर पर छापा मारा. मामले ने काफी तूल पकड़ा और सरकार पर आरोप लगा कि अन्य पार्टी का होने के नाते भाजपा सरकार विधायक का उत्पीड़न कर रही है.

मामला विधानसभा तक पहुंच गया और इसे ले कर खूब हंगामा हुआ. काफी हंगामे के बाद विधानसभा अध्यक्ष केसरीनाथ त्रिपाठी ने विधानसभा के पूर्व अघ्यक्ष भालचंद्र शुक्ल को घटना की जांच का आदेश सौंपा.

पुलिस रिकौर्ड के अनुसार, इस घटना के बाद मुख्तार अंसारी ने चंडीगढ़ और पंजाब के शहरों में छिप कर फरारी काटी. इसी दौरान उस की पंजाब के आतंकवादियों से साथ मुलाकात हुई. दुश्मनों का सफाया करने के लिए उस ने इन्हीं आतंकवादियों के जरिए एके-47 हासिल की. यह बात सन 1991-92 के करीब की है.

प्रदेश में भाजपा की सरकार के रहते मुख्तार अंसारी ने उत्तर प्रदेश की ओर मुड़ कर नहीं देखा. भाजपा का शासन खत्म होते ही मुख्तार अंसारी एक बार फिर सक्रिय हो गया.

वह 1993 का दौर था, जब मुख्तार अंसारी ने दिल्ली के व्यवसाई वेदप्रकाश गोयल का अपहरण कर के देश के पुलिस तंत्र को हिला दिया था. व्यवसाई गोयल को मुक्त करने के एवज में मुख्तार अंसारी ने उन के घर वालों से 50 लाख रुपयों की मांग की.

मुख्तार अंसारी ने गोयल को चंडीगढ़ के एक मकान में कैद कर के रखा था. अंतत: दिल्ली पुलिस एड़ीचोटी का जोर लगा कर वेदप्रकाश गोयल को माफिया डौन मुख्तार अंसारी के चंगुल से आजाद कराने में कामयाब हो गई थी. वैसे कहा जाता है कि उन्हें पैसा ले कर छोड़ा गया था.

पुलिस ने चंडीगढ़ के मकान से कई जहरीले इंजेक्शन तथा तमाम आपत्तिजनक वस्तुएं बरामद कीं. इस के बाद पुलिस ने मुख्तार और उस के साथियों पर ‘टाडा’ लगा कर उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया. उस के बाद प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार बनी तो मुख्तार की किस्मत का ताला फिर खुल गया. उसे टाडा कानून से राहत दे कर गाजीपुर जेल स्थानांतरित करा दिया गया.

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गाजीपुर में किसी जेल अधिकारी की मुख्तार की हरकतों को रोकने की हिम्मत नहीं थी. उस के गुर्गों की ओर से उन्हें धमकी मिलती थी ‘यदि जिंदा रहना है तो अपनी आंखें और जुबान दोनों बंद रखो, वरना कत्ल कर दिए जाओगे.’

मुख्तार की धमकियों के आगे जेल पुलिस नतमस्तक रहने को मजबूर थी. मुलायम सिंह यादव की अंसारी परिवार पर खास मेहर रहती थी. इस से पूर्व बसपा मुखिया मायावती की नजर मुख्तार अंसारी पर थी. एक ऐसा भी दौर था जब मायावती और मुलायम सिंह के बीच मुख्तार को अपनीअपनी पार्टी में लेने के लिए होड़ मची. तब वह मायावती के पाले में चला गया.

अगले भाग में पढ़ें- मुख्तार ने पूरा चुनाव जेल के अंदर से ही संभाला

Crime Story: कुख्यात डौन मुख्तार अंसारी पर सरकार की टेढ़ी नजर (भाग-3)

सौजन्य-सत्यकथा

विधायक अफजल अंसारी मुलायम सिंह के हुए तो मुख्तार अंसारी ने भी मायावती को छोड़ कर सपा का दामन थाम लिया. बाद के दिनों में बड़े आपराधिक कारनामों को अंजाम दे कर मुख्तार अंसारी ने सब को सकते में डाल दिया. ठेकेदारी, खनन, स्क्रैप, शराब, रेलवे ठेकेदारी में अंसारी का कब्जा बरकरार था, जिस के दम पर उस ने अपनी सल्तनत खड़ी की.

मऊ की जनता का कहना है मुख्तार अंसारी गरीबों के मसीहा हैं. अमीरों से लूटते हैं तो गरीबों में बांटते हैं. मुख्तार अंसारी पुलों, अस्पतालों और स्कूल कालेजों पर अपनी विधायक निधि से 20 गुना ज्यादा पैसे खर्च करते थे.

यही वो वक्त था, जब मुख्तार की रौबिनहुड इमेज पर बसपा ने बहुत जोर दिया. 2009 के लोकसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी बनारस से खड़ा हुआ और बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी से हार गया.

खास बात यह थी कि मुख्तार ने यह पूरा चुनाव जेल के अंदर से ही संभाला. मुख्तार जब गाजीपुर की जेल में था तभी पुलिस रेड में पता चला कि उस की जिंदगी जेल में बाहर से भी ज्यादा आलीशान और आरामदायक है. अंदर फ्रिज, टीवी से ले कर खाना बनाने के बरतन तक मौजूद थे. इस पर उसे मथुरा जेल भेज दिया गया.

साल 2010 में बसपा ने मुख्तार के आपराधिक मामलों को स्वीकारते हुए उसे पार्टी से निकाल दिया. अब मुख्तार ने अपने भाइयों के साथ नई पार्टी बनाई, जिस का नाम था- कौमी एकता दल. जिस से वह 2012 में मऊ से विधानसभा का चुनाव जीत गया.  2014 में मुख्तार ने ऐलान किया कि वह बनारस से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेगा, लेकिन बाद में उस ने यह कह कर आवेदन वापस ले लिया कि इस से वोट सांप्रदायिकता के आधार पर बंट जाएंगे.

2016 में जब मुख्तार अंसारी को सपा में शामिल करने की बात आई, तो उस वक्त मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने मंत्री बलराम यादव को मंत्रिमंडल से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया. बलराम यादव ने ही मुख्तार अंसारी को सपा में लाने की बात कही थी.

किसी तरह मुलायम सिंह से कहसुन कर बलराम यादव तो पार्टी में वापस आ गए, लेकिन अखिलेश यादव मुख्तार अंसारी को पार्टी में शामिल न करने की बात पर अड़े रहे. इस के बाद विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजल अंसारी ने अपनी पार्टी कौमी एकता दल का मायावती की पार्टी बीएसपी में विलय कर लिया.

बहरहाल, विधायक मुख्तार अंसारी तमाम गुनाहों की सजा काटने के लिए 2006 से विभिन्न जेलों में बंद था. फिर उसे बांदा जेल में लाया गया था.

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23 जनवरी, 2019 को बसपा विधायक मुख्तार अंसारी को बांदा जेल से पंजाब की मोहाली जेल ले जाया गया. अंसारी को मोहाली के बिल्डर से 10 करोड़ की रंगदारी मांगे जाने के मामले में गिरफ्तार किया गया था.

इस मामले में उसे 24 जनवरी को मोहाली कोर्ट में पेश किया गया, जहां अदालत ने उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में मोहाली की रोपड़ जेल भेज दिया. तब से वह मोहाली जेल में बंद है. बाहुबली मुख्तार अंसारी के गुनाहों का शिकंजा उस के घर वालों पर कसता जा रहा है.

गाजीपुर जिले के विशेष न्यायाधीश (गैंगस्टर कोर्ट) गौरव कुमार की अदालत ने 19 सितंबर, 2020 को मुख्तार अंसारी की पत्नी आफशां अंसारी और 2 सालों के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किया है. कोतवाली पुलिस द्वारा दर्ज गैंगस्टर एक्ट के मामले में तीनों फरार चल रहे हैं.

एसपी डा. ओ.पी. सिंह ने बताया कि शासन के निर्देशानुसार प्रदेश भर में माफियाओं और अपराधियों के खिलाफ अभियान चल रहा है.

नगर कोतवाली में दर्ज गैंगस्टर एक्ट के वांछित आईएस-191 गैंग के लीडर मुख्तार अंसारी की पत्नी आफशां अंसारी और उस के सालों शरजील रजा व अनवर शहजाद के खिलाफ गैंगस्टर कोर्ट द्वारा गैरजमानती वारंट जारी किया गया था.

अब बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी, उस के घर वालों, रिश्तेदारों और करीबियों की सूची तैयार कर प्रदेश भर में काररवाई की जा रही है. पुलिस जांचपड़ताल में मुख्तार अंसारी की पत्नी आफशां अंसारी व उस के साले शरजील रजा और अनवर शहजाद द्वारा संगठित आपराधिक गिरोह के रूप में अपराध के मामले सामने आए थे.

साथ ही छावनी लाइन स्थित भूमि गाटा संख्या-162 और बवेरी में भूमि आराजी नंबर-598 कुर्क शुदा जमीन पर अवैध कब्जे का मामला भी सामने आया था. इस के अलावा आरोपी शरजील रजा और अनवर शहजाद द्वारा सरकारी ठेका हासिल करने के लिए फरजी दस्तावेज तैयार कर प्रस्तुत करने की बात भी सामने आई थी.

Crime: लव में धोखा- कौन है दोषी?

इस संबंध में भी थाना कोतवाली में मुकदमा दर्ज करने के बाद विवेचना और आरोप पत्र अदालत में भेजा गया है, जबकि आरोपी आफशां अंसारी द्वारा सरकारी धन के गबन व अमानत में खयानत के आपराधिक कृत्य के संबंध में भी सैदपुर में मुकदमा पंजीकृत है.

इन आपराधिक मामलों पर प्रभावी काररवाई करते हुए पुलिस ने साले शरजील रजा, अनवर शहजाद और पत्नी आफशां अंसारी के खिलाफ बीते 12 सितंबर, 2020 को गैंगस्टर एक्ट का मुकदमा दर्ज किया था. मुकदमा दर्ज होते ही तीनों फरार हो गए.

बहरहाल, मुख्तार अंसारी के जुर्म की दास्तानों पर कई सनसनीखेज किताबें लिखी जा सकती हैं. फिर भी उस के जुर्म की दास्तान कम पड़ जाएगी. शासन मुख्तार अंसारी द्वारा जुर्म कर के बटोरी संपत्ति का लेखाजोखा जुटा रहा है.

—कथा पुलिस सूत्रों आधारित

कुख्यात डौन मुख्तार अंसारी पर सरकार की टेढ़ी नजर: भाग 1

सौजन्य-सत्यकथा

गाजीपुर जिले के कोतवाली थानाक्षेत्र स्थित मोहल्ला मुहम्मदपट्टी (महुआबाग) का नाम सामने आते ही लोगों में डर की लहर उठने लगती थी. जब वाहनों का काफिला सड़कों पर निकलता था, तो कुछ देर के लिए ट्रैफिक भी बंद हो जाता था. जिस का यह डर था, उस आतंक के पर्याय का नाम है बाहुबली मुख्तार अंसारी.

57 वर्षीय बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी ने जिस तरह आतंक के बल पर कई सौ करोड़ की चलअचल संपत्ति अर्जित की थी, उस के पाईपाई का लेखाजोखा शासन के पिटारे में सालों से कैद था.

10 अक्तूबर, 2020 की सुबह 7 बजे जब पिटारे का ढक्कन खुला तो गाजीपुर ही नहीं समूचे प्रदेश में भूचाल सा आ गया.

25 जून, 2020 को एसडीएम सदर प्रभास कुमार ने होटल गजल की जमीन की पैमाइश कराई थी. यह होटल मुहम्मदपट्टी इलाके में है. नजूल की इस भूमि को ले कर न्यायालय में सरकार की ओर से वाद संख्या 123/2020 दायर किया गया था.

होटल की मालकिन बाहुबली की पत्नी अफशां अंसारी और उन के दोनों बेटे अब्बास अंसारी और उमर अंसारी थे. होटल के एक भाग में एचडीएफसी बैंक, एटीएम और रेस्टोरेंट किराए पर चल रहा था. यह भवन अवैध कब्जे वाली जमीन पर बनाया गया था.

इस संबंध में होटल मालिकों को कई बार नोटिस दिए गए थे. अंतिम नोटिस 16 सितंबर, 2020 को सुनवाई के लिए प्राधिकारी/उप जिलाधिकारी (सदर) प्रभास कुमार ने दिया था, जिस में चेतावनी दी गई थी कि अवैध निर्माण भवन स्वत: गिरा दें अन्यथा शासन द्वारा गिरा दिया जाएगा.

लेकिन धनबल के नशे में चूर मुख्तार अंसारी ने प्रशासन के आदेश की अनसुनी कर दी. इस पर मालिकों के नकारात्मक रवैए से नाखुश प्रशासन 10 अक्तूबर, 2020 को फोर्स के साथ सुबह 7 बजे होटल गिराने मुहम्मदपट्टी पहुंच गया.

Crime: नाबालिग के हाथ, खून के रंग

फोर्स में एसडीएम राजेश सिंह, एसडीएम सुशील कुमार श्रीवास्तव, एसडीएम सदर प्रभास कुमार, एसडीएम रमेश मौर्या, एसपी (सिटी) गोपीनाथ सोनी, सीओ (सिटी) ओजस्वी चावला, शहर कोतवाल विमल मिश्रा, क्राइम ब्रांच प्रभारी सरस सलिल, नंदगंज थाना प्रभारी राकेश सिंह और तहसीलदार मुकेश सिंह मौजूद थे.

मौके पर भारी पुलिस टीम देख कर सैकड़ों तमाशबीन जुट गए. तमाशबीन यह देखकर हैरान थे कि पहली बार प्रशासन ने बाहुबली से टकराने की जुर्रत की है, जिन में आज तक ऐसी कूवत नहीं थी. देखते ही देखते प्रशासन के बुलडोजर ने होटल गजल को घंटे भर में मलबे में तब्दील कर दिया.

जिस होटल को मलबे में तब्दील किया गया था, उस की कीमत 22 करोड़ 23 लाख रुपए आंकी गई थी. सचमुच किसी मजबूत सरकार के कार्यकाल में पहली बार ऐसा कठोर फैसला लिया गया था, जिस से होटल के साथसाथ मुख्तार अंसारी का घमंड भी मलबे में मिल गया था. आइए, जानते हैं मुख्तार अंसारी की माफिया डौन से राजनीतिक सफर की कहानी—

57 वर्षीय मुख्तार अंसारी पूर्वी उत्तर प्रदेश के माफिया सरगनाओं में एक है. प्रदेश में सक्रिय सरगनाओं में उस की गिनती नंबर एक पर होती है. मुख्तार अंसारी का जन्म गाजीपुर जिले के थाना मोहम्मदाबाद के गांव यूसुफपुर के सम्मानित परिवार में हुआ था.

उस के पिता काजी सुभानउल्ला अंसारी किसान थे. गांव में उन की इज्जत थी. गांव वालों के सुखदुख में खड़ा होना उन का शौक था. उन की समस्याएं सुनना और निदान करना उन्हें अच्छा लगता था.सुभानउल्ला अंसारी के 2 बेटे थे अफजल अंसारी और मुख्तार अंसारी. बड़े बेटे अफजल अंसारी ने ग्रैजुएशन के बाद सन 1985 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. 1985 से लगातार इसी पार्टी से वह 4 बार मोहम्मदाबाद से विधायक चुने गए.

उन के नाना डा. अंसारी 1927 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे. आजादी के बाद पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर आक्रमण करने के समय भारतीय सेना की कमान संभालने वाले परमवीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर उस्मान अली भी मुख्तार अंसारी के परिवार से ताल्लुक रखते थे.

खैर, भाई का राजनीतिक कद देख मुख्तार अंसारी के भीतर भी राजनीति में जाने की चाहत घर कर गई. 1985 में भाई को विधानसभा पहुंचाने में मुख्तार अंसारी ने काफी मेहनत की थी. अफजल विधानसभा का चुनाव जीत कर माननीय का दर्जा प्राप्त कर चुके थे.

मुख्तार अंसारी के भाग्य की लकीरें कालेज के समय में उस समय बदलीं, जब कालेज में छात्रसंघ के चुनाव को ले कर उन की बृजेश सिंह से ठन गई थी. मुख्तार अंसारी की कालेज में तेजतर्रार छात्र के रूप में पहचान थी. उस के साथ दोस्तों की खासी टोली थी. इतने खास दोस्त कि जरा सी बात पर लड़नेमरने के लिए तैयार हो जाते थे.

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मुख्तार अंसारी को क्रिकेट खेलने, शिकार करने और तरहतरह के हथियार रखने का शौक था. बृजेश सिंह भी उसी कालेज में पढ़ता था. कसरती बदन और तेजतर्रार दिमाग वाले बृजेश की शैतानी टोली थी. उस में बातबात पर लड़ने और दुश्मनों को धूल चटाने की कूवत थी.

छात्र संघ चुनाव को ले कर दोनों के बीच उपजी प्रतिस्पर्धा दुश्मनी में बदल गई थी. कुछ समय बाद बृजेश सिंह का त्रिभुवन सिंह से संपर्क हो गया. त्रिभुवन सिंह मुडि़या, सैदपुर, गाजीपुर का रहने वाला था.

बनारस के धौरहरा गांव का रहने वाला बृजेश सिंह उन दिनों खासी चर्चा में था. उस की गांव के चिनमुन यादव से गहरी अदावत चल रही थी. बृजेश 4 भाइयों में तीसरे नंबर का था. एक दिन मौका मिलने पर चिनमुन यादव ने बृजेश सिंह के पिता रवींद्र सिंह की हत्या कर दी. इस के बाद हत्याओं का जो दौर चला, गाजीपुर की धरती खून से लाल हो गई.

बृजेश सिंह के दुश्मन मुख्तार अंसारी की छत्रछाया में चले गए थे. अब बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी आमनेसामने आ गए थे. यहीं से मुख्तार अंसारी की माफिया छवि का उदय हुआ, जो आज तक बरकरार है. इन के साथियों में साधू सिंह, लुल्लर और पांचू नामचीन थे और पुलिस रिकौर्ड में कुख्यात अपराधी भी. किसी की हत्या करना उन के लिए गाजर मूली काटने जैसा था.

साधू सिंह की वजह से मुख्तार अंसारी अंडरवर्ल्ड में गहराई से पांव जमा रहा था. अपराध की काली फसल तेजी से फैलती जा रही थी. मुख्तार के ताकतवर होने से बृजेश और उस के दोस्त त्रिभुवन सिंह के पसीने छूट रहे थे.

मुख्तार अंसारी को कमजोर करने के लिए बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह ने मिल कर ऐसी पुख्ता योजना बनाई कि इन के कहर से घबरा कर खुद मुख्तार अंसारी ने दोनों को खत्म करने का बीड़ा उठा लिया.

मुख्तार अंसारी बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह की परछाई तो नहीं छू पाया अलबत्ता उस ने त्रिभुवन सिंह के भाई सच्चिदानंद सिंह की हत्या की योजना बना ली और उसके पीछे हाथ धो कर पड़ गया.

कई दिनों की मशक्कत के बाद भी मुख्तार अंसारी उस का बाल बांका नहीं कर सका और हाथ मलता रह गया. आखिर महीनों बाद मुख्तार अंसारी की मेहनत रंग लाई. 28 फरवरी, 1985 की शाम के समय मुख्तार अंसारी और अताउर्रहमान ने मोहम्मदाबाद कस्बे में तिवारीपुर मोड़ पर सच्चिदानंद की गोली मार कर हत्या कर दी.

पुलिस के अनुसार, जिस रिवौल्वर से मुख्तार अंसारी ने सच्चिदानंद की हत्या की थी, उसे गोरखपुर के माफिया कांग्रेसी नेता को बेच दिया था. सच्चिदानंद की हत्या से बृजेश सिंह और त्रिभुवन गिरोह बौखला सा गया था लेकिन गिरोह अंदर ही अंदर टूट भी गया था. मुख्तार अंसारी यही चाहता भी था कि बृजेश पूर्वांचल में अपने पांव न जमा सके.

इस के बाद बृजेश सिंह गिरोह को एक और झटका करीब एक साल बाद 2 जनवरी, 1986 को लगा. मुख्तार अंसारी गिरोह ने त्रिभुवन सिंह के सगे भाई रामविलास बेड़ा की गोली मार कर हत्या कर दी. इस खूनी वार में मुख्तार अंसारी का साथ उस के पुराने साथी साधू सिंह, कमलेश सिंह, भीम सिंह और हरिहर सिंह ने दिया था.

इस के बाद तो मुख्तार अंसारी गिरोह का पूर्वांचल में खासा आतंक फैल गया था. पुलिस कुख्यात हो चुके मुख्तार अंसारी ऐंड सिंडीकेट को गिरफ्तार करने की फिराक में थी. गिरफ्तार तो दूर की बात पुलिस गिरोह के सदस्यों की परछाई तक नहीं छू पाई और हाथ मलती रह गई. हर बार वह अपने भाई अफजल अंसारी की राजनीतिक पहुंच के कारण बच जाता था.

राजनैतिक दबाव के चलते पुलिस मुख्तार अंसारी पर हाथ डालने में हिचकने लगी थी. यहां तक कि कोई भी एसपी मुख्तार अंसारी पर हाथ डालने की कोशिश करता, तो उस का गाजीपुर से कुछ ही दिनों में स्थानांतरण हो जाता था.

अगले भाग में पढ़ें- मुख्तार अंसारी ने अपनी विदेशी रिवौल्वर से की हत्या 

Crime: नाबालिग के हाथ, खून के रंग

कभी-कभी छोटी सी बात हत्या का कारण बन जाती है. कभी-कभी नाबालिग हत्यारे बन जाते हैं. छोटे-छोटे हाथ कैसे किसी अपने ही दोस्त की गर्दन पर पहुंच जाते हैं, यह आज के सोशल मीडिया और अपराधिक होते माहौल का ही परिणाम है.आइए ! आज आपको ले चलते हैं छत्तीसगढ़ के जिला दुर्ग के ऐसे हत्याकांड की पृष्ठभूमि की ओर जहां छोटी सी बात पर नाबालिगों के हाथ खून से रंग गये.

दरअसल, इस हत्याकांड के पीछे सिर्फ चिढाना और मृतक का अपने सहपाठी दोस्तों को गालियां देना था . दुर्ग जिले के पुलगांव थाना के अंतर्गत आने वाले पुलगांव बस्ती से थाने में सूचना प्राप्त हुई कि, वहां शासकीय प्राथमिक शाला पुलगांव के तीसरी मंजिल में एक नाबालिग लड़के की लाश पड़ी हुई है. सूचना प्राप्त होने पर दुर्ग पुलिस अधीक्षक ,नगर पुलिस अधीक्षक विवेक शुक्ला एवं पुलगांव थाना प्रभारी उत्तर वर्मा घटनास्थल पर पहुंचे. घटनास्थल पर पहुंच मुआयना किया.

उक्त मुआयना के दौरान यह बात प्रकाश में आई कि 13 वर्षीय वर्षीय किशोर दानेश्वर साहू उर्फ पप्पू का शव प्राथमिक शाला पुलगांव के तीसरे मंजिल पर पड़ा हुआ है. आश्चर्य की बात यह थी कि तीसरी मंजिल पर जाने के लिए कोई भी सीढ़ी वहां पर नहीं है! इससे यह बात स्पष्ट हुई कि, तीसरी मंजिल चढ़ने वाले ऐसे युवकों की खोज की जाए जो वहां अक्सर जाया करते हैं.टीम द्वारा अपनी विवेचना का एवं पूछताछ का केंद्र बिंदु यह बात रखते हुए सभी से पूछताछ की जाने लगी.साथ ही मृतक के सभी दोस्तों से बारी-बारी से पूछताछ किया जाना शुरू किया गया.

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इस बीच मौके पर एफएसएल की टीम एवं डॉग स्क्वाड भी पहुंचा एफएसएल टीम के प्रभारी डॉ मनोज पटेल द्वारा बताया गया कि उपरोक्त हत्या गले में किसी चीज को बांधकर की गई है और इस हत्या में संभवत 2 से 3 लोग शामिल होने का अनुमान लगाया और पूछताछ शुरू हो गई.

चिढ़ाना और गालियां देना

युवक जो उस स्कूल की छत पर अक्सर चढ़ा करते थे, उनसे लगातार पूछताछ की गई. इसी बीच एक अन्य सूचना मुखबिर के द्वारा प्राप्त हुई की मृतक आख़िरी समय में अपने कुछ दोस्तों के साथ देखा गया था अतः. उनसे बुलाकर पूछताछ की गई जिसमें उक्त किशोरों ने जो कि नाबालिक थे, ने पुलिस के समक्ष रोते हुए अपना अपराध स्वीकार कर लिया. दोनों ही अपचारी बालक जिनकी उम्र क्रमशः 17 वर्ष एवं 15 वर्ष है. दोनों ने अपने इकबालिया बयान में बताया कि दानेश्वर साहू उर्फ पप्पू को हम अक्सर चिढ़ाया करते थे, और घटना दिवस को भी उसे चिढ़ा रहे थे जिससे वह आवेश में आकर आरोपी को मां बहन की गाली देने लगा .

जिससे हम लोगों को गुस्सा आ गया. और उन्होंने प्लान किया कि इसे स्कूल की छत पर ले जाते हैं, ऐसा सोचकर उन्होंने उसे स्कूल की छत चलने के लिए तैयार किया. और वहां ले जाने के बाद उससे बहस हुई बहस के दौरान पुनः मृतक ने उन्हें गाली दी.जिससे उनके द्वारा मृतक के गले को हुड वाले जैकेट जिसमें लेस लगा होता है. उसके लेस को निकालकर एक अपचारी बालक द्वारा गले मे कसकर बांध कर खींचा दिया गया. तथा दूसरे अपचारी बालक द्वारा उसके पैर को पकड़ कर रखा गया.

दोनों अपचारी बालक द्वारा अपना जुर्म स्वीकार कर लिया गया है. हत्या में प्रयुक्त लेस को भी आरोपी के शिनाख्त पर घटनास्थल से बरामद कर लिया गया . कुल मिलाकर हत्या का कारण होश संभालते किशोर बालकों का आपसी वाद विवाद सामने आ गया जो यह बताता है कि कभी-कभी छोटी सी बात कैसे गंभीर मसला बन जाती है.

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दानेश्वर सुबह अखबार बांटा करता. वह अपने परिवार में इकलौता पुत्र था. पिता मजदूरी करते हैं. दानेश्वर उसी स्कूल का 10 वीं कक्षा का छात्र था जिस छत पर उसकी हत्या की गई. कोरोना काल में छुट्टी की वजह से अपने पिता की साइकिल पर अखबार वितरण का काम करने लगा था. कोरोना काल में स्कूल की छुट्टियां है. इस कारण स्कूल नशेडिय़ों का अड्डा बन चुका था. नशेड़ी जंगला और छज्जा पकड़कर दूसरे माले पर चढ़ जाते. ऊपर ही नशा, जुआ, शराबखोरी करते हैं. लोगों ने पुलगांव थाने में कई बार शिकायत भी की थी.

पुलिस को उसके साथियों पर शक शुरू से ही था. पुलिस यह कयास लगा रही है कि दानेश्वर भी छत पर चढ़ जाता होगा. साथियों के साथ छत पर गया होगा. जहां उनके बीच किसी बात को लेकर विवाद हुआ. रस्सीनुमा किसी चीज से उसका गला घोंटा गया है. पुलिस ने जब दानेश्वर और उसकी बहन के दोस्तों से पूछताछ की तो अंततः हत्या का खुलासा हो गया.

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