भाभी: क्यों बरसों से अपना दर्द छिपाए बैठी थी वह- भाग 3

उन की ननद का विवाह तय हो गया और तारीख भी निश्चित हो गई थी. लेकिन किसी भी शुभकार्य के संपन्न होते समय वे कमरे में बंद हो जाती थीं. लोगों का कहना था कि वे विधवा हैं, इसलिए उन की परछाईं भी नहीं पड़नी चाहिए. यह औरतों के लिए विडंबना ही तो है कि बिना कुसूर के हमारा समाज विधवा के प्रति ऐसा दृष्टिकोण रखता है. उन के दूसरे विवाह के बारे में सोचना तो बहुत दूर की बात थी. उन की हर गतिविधि पर तीखी आलोचना होती थी. जबकि चाचा का दूसरा विवाह, चाची के जाने के बाद एक साल के अंदर ही कर दिया गया. लड़का, लड़की दोनों मां के कोख से पैदा होते हैं, फिर समाज की यह दोहरी मानसिकता देख कर मेरा मन आक्रोश से भर जाता था, लेकिन कुछ कर नहीं सकती थी.

मेरे पिताजी पुश्तैनी व्यवसाय छोड़ कर दिल्ली में नौकरी करने का मन बना रहे थे. भाभी को जब पता चला तो वे फूटफूट कर रोईं. मेरा तो बिलकुल मन नहीं था उन से इतनी दूर जाने का, लेकिन मेरे न चाहने से क्या होना था और हम दिल्ली चले गए. वहां मैं ने 2 साल में एमए पास किया और मेरा विवाह हो गया. उस के बाद भाभी से कभी संपर्क ही नहीं हुआ. ससुराल वालों का कहना था कि विवाह के बाद जब तक मायके के रिश्तेदारों का निमंत्रण नहीं आता तब तक वे नहीं जातीं. मेरा अपनी चाची  से ऐसी उम्मीद करना बेमानी था. ये सब सोचतेसोचते कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला.

‘‘उठो दीदी, सांझ पड़े नहीं सोते. चाय तैयार है,’’ भाभी की आवाज से मेरी नींद खुली और मैं उठ कर बैठ गई. पुरानी बातें याद करतेकरते सोने के बाद सिर भारी हो रहा था, चाय पीने से थोड़ा आराम मिला. भाभी का बेटा, प्रतीक भी औफिस से आ गया था. मेरी दृष्टि उस पर टिक गई, बिलकुल भाई पर गया था. उसी की तरह मनमोहक व्यक्तित्व का स्वामी, उसी तरह बोलती आंखें और गोरा रंग.

इतने वर्षों बाद मिली थी भाभी से, समझ ही नहीं आ रहा था कि बात कहां से शुरू करूं. समय कितना बीत गया था, उन का बेटा सालभर का भी नहीं था जब हम बिछुड़े थे. आज इतना बड़ा हो गया है. पूछना चाह रही थी उन से कि इतने अंतराल तक उन का वक्त कैसे बीता, बहुतकुछ तो उन के बाहरी आवरण ने बता दिया था कि वे उसी में जी रही हैं, जिस में मैं उन को छोड़ कर गई थी. इस से पहले कि मैं बातों का सिलसिला शुरू करूं, भाभी का स्वर सुनाई दिया, ‘‘दामादजी क्यों नहीं आए? क्या नाम है बेटी का? क्या कर रही है आजकल? उसे क्यों नहीं लाईं?’’ इतने सारे प्रश्न उन्होंने एकसाथ पूछ डाले.

मैं ने सिलसिलेवार उत्तर दिया, ‘‘इन को तो अपने काम से फुरसत नहीं है. मीनू के इम्तिहान चल रहे थे, इसलिए भी इन का आना नहीं हुआ. वैसे भी, मेरी सहेली के बेटे की शादी थी, इन का आना जरूरी भी नहीं था. और भाभी, आप कैसी हो? इतने साल मिले नहीं, लेकिन आप की याद बराबर आती रही. आप की बेटी के विवाह में भी चाची ने नहीं बुलाया. मेरा बहुत मन था आने का, कैसी है वह?’’ मैं ने सोचने में और समय बरबाद न करते हुए पूछा.

‘‘क्या करती मैं, अपनी बेटी की शादी में भी औरों पर आश्रित थी. मैं चाहती तो बहुत थी…’’ कह कर वे शून्य में खो गईं.’’

‘‘चलो, अब चाचाचाची तो रहे नहीं, प्रतीक के विवाह में आप नहीं बुलाएंगी तो भी आऊंगी. अब तो विवाह के लायक वह भी हो गया है.’’

‘‘मैं भी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाह रही हूं,’’ उन्होंने संक्षिप्त उत्तर देते हुए लंबी सांस ली.

‘‘एक बात पूछूं, भाभी, आप को भाई की याद तो बहुत आती होगी?’’ मैं ने सकुचाते हुए उन्हें टटोला.

‘‘हां दीदी, लेकिन यादों के सहारे कब तक जी सकते हैं. जीवन की कड़वी सचाइयां यादों के सहारे तो नहीं झेली जातीं. अकेली औरत का जीवन कितना दूभर होता है. बिना किसी के सहारे के जीना भी तो बहुत कठिन है. वे तो चले गए लेकिन मुझे तो सारी जिम्मेदारी अकेले संभालनी पड़ी. अंदर से रोती थी और बच्चों के सामने हंसती थी कि उन का मन दुखी न हो. वे अपने को अनाथ न समझें,’’ एक सांस में वे बोलीं, जैसे उन्हें कोई अपना मिला, दिल हलका करने के लिए.

‘‘हां भाभी, आप सही हैं, जब भी ये औफिस टूर पर चले जाते हैं तब अपने को असहाय महसूस करती हूं मैं भी. एक बात पूछूं, बुरा तो नहीं मानेंगी? कभी आप को किसी पुरुषसाथी की आवश्यकता नहीं पड़ी?’’ मेरी हिम्मत उन की बातों से बढ़ गई थी.

‘‘क्या बताऊं दीदी, जब मन बहुत उदास होता था तो लगता था किसी के कंधे पर सिर रख कर खूब रोऊं और वह कंधा पुरुष का हो तभी हम सुरक्षित महसूस कर सकते हैं. उस के बिना औरत बहुत अकेली है,’’ उन्होंने बिना संकोच के कहा.

‘‘आप ने कभी दूसरे विवाह के बारे में नहीं सोचा?’’ मेरी हिम्मत बढ़ती जा रही थी.

‘‘कुछ सोचते हुए वे बोलीं,  ‘‘क्यों नहीं दीदी, पुरुषों की तरह औरतों की भी तो तन की भूख होती है बल्कि उन को तो मानसिक, आर्थिक सहारे के साथसाथ सामाजिक सुरक्षा की भी बहुत जरूरत होती है. मेरी उम्र ही क्या थी उस समय. लेकिन जब मैं पढ़ीलिखी न होने के कारण आर्थिक रूप से दूसरों पर आश्रित थी तो कर भी क्या सकती थी. इसीलिए मैं ने सब के विरुद्ध हो कर, अपने गहने बेच कर आस्था को पढ़ाया, जिस से वह आत्मनिर्भर हो कर अपने निर्णय स्वयं ले सके. समय का कुछ भी भरोसा नहीं, कब करवट बदले.’’

उन का बेबाक उत्तर सुन कर मैं अचंभित रह गई और मेरा मन करुणा से भर आया, सच में जिस उम्र में वे विधवा हुई थीं उस उम्र में तो आजकल कोई विवाह के बारे में सोचता भी नहीं है. उन्होंने इतना समय अपनी इच्छाओं का दमन कर के कैसे काटा होगा, सोच कर ही मैं सिहर उठी थी.

‘‘हां भाभी, आजकल तो पति की मृत्यु के बाद भी उन के बाहरी आवरण में और क्रियाकलापों में विशेष परिवर्तन नहीं आता और पुनर्विवाह में भी कोई अड़चन नहीं डालता, पढ़ीलिखी होने के कारण आत्मविश्वास और आत्मसम्मान के साथ जीती हैं, होना भी यही चाहिए, आखिर उन को किस गलती की सजा दी जाए.’’

‘‘बस, अब तो मैं थक गई हूं. मुझे अकेली देख कर लोग वासनाभरी नजरों से देखते हैं. कुछ अपने खास रिश्तेदारों के भी मैं ने असली चेहरे देख लिए तुम्हारे भाई के जाने के बाद. अब तो प्रतीक के विवाह के बाद मैं संसार से मुक्ति पाना चाहती हूं,’’ कहतेकहते भाभी की आंखों से आंसू बहने लगे. समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा न करने के लिए कह कर उन का दुख बढ़ाऊंगी या सांत्वना दूंगी, मैं शब्दहीन उन से लिपट गई और वे अपना दुख आंसुओं के सहारे हलका करती रहीं. ऐसा लग रहा था कि बरसों से रुके हुए आंसू मेरे कंधे का सहारा पा कर निर्बाध गति से बह रहे थे और मैं ने भी उन के आंसू बहने दिए.

अगले दिन ही मुझे लौटना था, भाभी से जल्दी ही मिलने का तथा अधिक दिन उन के साथ रहने का वादा कर के मैं भारी मन से ट्रेन में बैठ गई. वे प्रतीक के साथ मुझे छोड़ने के लिए स्टेशन आई थीं. ट्रेन के दरवाजे पर खड़े हो कर हाथ हिलाते हुए, उन के चेहरे की चमक देख कर मुझे सुकून मिला कि चलो, मैं ने उन से मिल कर उन के मन का बोझ तो हलका किया.

अंधविश्वास की बेड़ियां: क्या सास को हुआ बहू के दर्द का एहसास?

‘‘अरे,पता नहीं कौन सी घड़ी थी जब मैं इस मनहूस को अपने बेटे की दुलहन बना कर लाई थी. मुझे क्या पता था कि यह कमबख्त बंजर जमीन है. अरे, एक से बढ़ कर एक लड़की का रिश्ता आ रहा था. भला बताओ, 5 साल हो गए इंतजार करते हुए, बच्चा न पैदा कर सकी… बांझ कहीं की…’’ मेरी सास लगातार बड़बड़ाए जा रही थीं. उन के जहरीले शब्द पिघले शीशे की तरह मेरे कानों में पड़ रहे थे.

यह कोई पहला मौका नहीं था. उन्होंने तो शादी के दूसरे साल से ही ऐसे तानों से मेरी नाक में दम कर दिया था. सावन उन के इकलौते बेटे और मेरे पति थे. मेरे ससुर बहुत पहले गुजर गए थे. घर में पति और सास के अलावा कोई न था. मेरी सास को पोते की बहुत ख्वाहिश थी. वे चाहती थीं कि जैसे भी हो मैं उन्हें एक पोता दे दूं.

मैं 2 बार लेडी डाक्टर से अपना चैकअप करवा चुकी थी. मैं हर तरह से सेहतमंद थी. समझाबुझा कर मैं सावन को भी डाक्टर के पास ले गई थी. उन की रिपोर्ट भी बिलकुल ठीक थी.

डाक्टर ने हम दोनों को समझाया भी था, ‘‘आजकल ऐसे केस आम हैं. आप लोग बिलकुल न घबराएं. कुदरत जल्द ही आप पर मेहरबान होगी.’’

डाक्टर की ये बातें हम दोनों तो समझ चुके थे, लेकिन मेरी सास को कौन समझाता. आए दिन उन की गाज मुझ पर ही गिरती थी. उन की नजरों में मैं ही मुजरिम थी और अब तो वे यह खुलेआम कहने लगी थीं कि वे जल्द ही सावन से मेरा तलाक करवा कर उस के लिए दूसरी बीवी लाएंगी, ताकि उन के खानदान का वंश बढ़े.

उन की इन बातों से मेरा कलेजा छलनी हो जाता. ऐसे में सावन मुझे तसल्ली देते, ‘‘क्यों बेकार में परेशान होती हो? मां की तो बड़बड़ाने की आदत है.’’

‘‘आप को क्या पता, आप तो सारा दिन अपने काम पर होते हैं. वे कैसेकैसे ताने देती हैं… अब तो उन्होंने सब से यह कहना शुरू कर दिया है कि वे हमारा तलाक करवा कर आप के लिए दूसरी बीवी लाएंगी.’’

‘‘तुम चिंता न करो. मैं न तो तुम्हें तलाक दूंगा और न ही दूसरी शादी करूंगा, क्योंकि मैं जानता हूं कि तुम में कोई कमी नहीं है. बस कुदरत हम पर मेहरबान नहीं है.’’

एक दिन हमारे गांव में एक बाबा आया. उस के बारे में मशहूर था कि वह बेऔलाद औरतों को एक भभूत देता, जिसे दूध में मिला कर पीने पर उन्हें औलाद हो जाती है.

मुझे ऐसी बातों पर बिलकुल यकीन नहीं था, लेकिन मेरी सास ऐसी बातों पर आंखकान बंद कर के यकीन करती थीं. उन की जिद पर मुझे उन के साथ उस बाबा (जो मेरी निगाह में ढोंगी था) के आश्रम जाना पड़ा.

बाबा 30-35 साल का हट्टाकट्टा आदमी था. मेरी सास ने उस के पांव छुए और मुझे भी उस के पांव छूने को कहा. उस ने मेरे सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया. आशीर्वाद के बहाने उस ने मेरे सिर पर जिस तरह से हाथ फेरा, मुझे समझते देर न लगी कि ढोंगी होने के साथसाथ वह हवस का पुजारी भी है.

उस ने मेरी सास से आने का कारण पूछा. सास ने अपनी समस्या का जिक्र कुछ इस अंदाज में किया कि ढोंगी बाबा मुझे खा जाने वाली निगाहों से घूरने लगा. उस ने मेरी आंखें देखीं, फिर किसी नतीजे पर पहुंचते हुए बोला, ‘‘तुम्हारी बहू पर एक चुड़ैल का साया है, जिस की वजह से इसे औलाद नहीं हो रही है. अगर वह चुड़ैल इस का पीछा छोड़ दे, तो कुछ ही दिनों में यह गर्भधारण कर लेगी. लेकिन इस के लिए आप को काली मां को खुश करना पड़ेगा.’’

‘‘काली मां कैसे खुश होंगी?’’ मेरी सास ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘तुम्हें काली मां की एक पूजा करनी होगी. इस पूजा के बाद हम तुम्हारी बहू को एक भभूत देंगे. इसे भभूत अमावास्या की रात में 12 बजे के बाद हमारे आश्रम में अकेले आ कर, अपने साथ लाए दूध में मिला कर हमारे सामने पीनी होगी, उस के बाद इस पर से चुड़ैल का साया हमेशाहमेशा के लिए दूर हो जाएगा.’’

‘‘बाबाजी, इस पूजा में कितना खर्चा आएगा?’’

‘‘ज्यादा नहीं 7-8 हजार रुपए.’’

मेरी सास ने मेरी तरफ ऐसे देखा मानो पूछ रही हों कि मैं इतनी रकम का इंतजाम कर सकती हूं? मैं ने नजरें फेर लीं और ढोंगी बाबा से पूछा, ‘‘बाबा, इस बात की क्या गारंटी है कि आप की भभूत से मुझे औलाद हो ही जाएगी?’’

ढोंगी बाबा के चेहरे पर फौरन नाखुशी के भाव आए. वह नाराजगी से बोला, ‘‘बच्ची, हम कोई दुकानदार नहीं हैं, जो अपने माल की गारंटी देता है. हम बहुत पहुंचे हुए बाबा हैं. तुम्हें अगर औलाद चाहिए, तो जैसा हम कह रहे हैं, वैसा करो वरना तुम यहां से जा सकती हो.’’

ढोंगी बाबा के रौद्र रूप धारण करने पर मेरी सास सहम गईं. फिर मुझे खा जाने वाली निगाहों से देखते हुए चापलूसी के लहजे में बाबा से बोलीं, ‘‘बाबाजी, यह नादान है. इसे आप की महिमा के बारे में कुछ पता नहीं है. आप यह बताइए कि पूजा कब करनी होगी?’’

‘‘जिस रोज अमावास्या होगी, उस रोज शाम के 7 बजे हम काली मां की पूजा करेंगे. लेकिन तुम्हें एक बात का वादा करना होगा.’’

‘‘वह क्या बाबाजी?’’

‘‘तुम्हें इस बात की खबर किसी को भी नहीं होने देनी है. यहां तक कि अपने बेटे को भी. अगर किसी को भी इस बात की भनक लग गई तो समझो…’’ उस ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.

मेरी सास ने ढोंगी बाबा को फौरन यकीन दिलाया कि वे किसी को इस बात का पता नहीं चलने देंगी. उस के बाद हम घर आ गईं.

3 दिन बाद अमावास्या थी. मेरी सास ने किसी तरह पैसों का इंतजाम किया और फिर पूजा के इंतजाम में लग गईं. इस पूजा में मुझे शामिल नहीं किया गया. मुझे बस रात को उस ढोंगी बाबा के पास एक लोटे में दूध ले कर जाना था.

मैं ढोंगी बाबा की मंसा अच्छी तरह जान चुकी थी, इसलिए आधी रात होने पर मैं ने अपने कपड़ों में एक चाकू छिपाया और ढोंगी के आश्रम में पहुंच गई.

ढोंगी बाबा मुझे नशे में झूमता दिखाई दिया. उस के मुंह से शराब की बू आ रही थी. तभी उस ने मुझे वहीं बनी एक कुटिया में जाने को कहा.

मैं ने कुटिया में जाने से फौरन मना कर दिया. इस पर उस की भवें तन गईं. वह धमकी देने वाले अंदाज में बोला, ‘‘तुझे औलाद चाहिए या नहीं?’’

‘‘अपनी इज्जत का सौदा कर के मिलने वाली औलाद से मैं बेऔलाद रहना ज्यादा पसंद करूंगी,’’ मैं दृढ़ स्वर में बोली.

‘‘तू तो बहुत पहुंची हुई है. लेकिन मैं भी किसी से कम नहीं हूं. घी जब सीधी उंगली से नहीं निकलता तब मैं उंगली टेढ़ी करना भी जानता हूं,’’ कहते ही वह मुझ पर झपट पड़ा. मैं जानती थी कि वह ऐसी नीच हरकत करेगा. अत: तुरंत चाकू निकाला और उस की गरदन पर लगा कर दहाड़ी, ‘‘मैं तुम जैसे ढोंगी बाबाओं की सचाई अच्छी तरह जानती हूं. तुम भोलीभाली जनता को अपनी चिकनीचुपड़ी बातों से न केवल लूटते हो, बल्कि औरतों की इज्जत से भी खेलते हो. मैं यहां अपनी सास के कहने पर आई थी. मुझे कोई भभूत भुभूत नहीं चाहिए. मुझ पर किसी चुड़ैल का साया नहीं है. मैं ने तेरी भभूत दूध में मिला कर पी ली थी, तुझे यही बात मेरी सास से कहनी है बस. अगर तू ने ऐसा नहीं किया तो मैं तेरी जान ले लूंगी.’’

उस ने घबरा कर हां में सिर हिला दिया. तब मैं लोटे का दूध वहीं फेंक कर घर आ गई.

कुछ महीनों बाद जब मुझे उलटियां होनी शुरू हुईं, तो मेरी सास की खुशी का ठिकाना न रहा, क्योंकि वे उलटियां आने का कारण जानती थीं.

यह खबर जब मैं ने सावन को सुनाई तो वे भी बहुत खुश हुए. उस रात सावन को खुश देख कर मुझे अनोखी संतुष्टि हुई. मगर सास की अक्ल पर तरस आया, जो यह मान बैठी थीं कि मैं गर्भवती ढोंगी बाबा की भभूत की वजह से हुई हूं.

अब मेरी सास मुझे अपने साथ सुलाने लगीं. रात को जब भी मेरा पांव टेढ़ा हो जाता तो वे उसे फौरन सीधा करते हुए कहतीं कि मेरे पांव टेढ़ा करने पर जो औलाद होगी उस के अंग विकृत होंगे.

मुझे अपनी सास की अक्ल पर तरस आता, लेकिन मैं यह सोच कर चुप रहती कि उन्हें अंधविश्वास की बेडि़यों ने जकड़ा हुआ है.

एक दिन उन्होंने मुझे एक नारियल ला कर दिया और कहा कि अगर मैं इसे भगवान गणेश के सामने एक झटके से तोड़ दूंगी तो मेरे होने वाले बच्चे के गालों में गड्ढे पड़ेंगे, जिस से वह सुंदर दिखा करेगा. मैं जानती थी कि ये सब बेकार की बातें हैं, फिर भी मैं ने उन की बात मानी और नारियल एक झटके से तोड़ दिया, लेकिन इसी के साथ मेरा हाथ भी जख्मी हो गया और खून बहने लगा. लेकिन मेरी सास ने इस की जरा भी परवाह नहीं की और गणेश की पूजा में लीन हो गईं.

शाम को काम से लौटने के बाद जब सावन ने मेरे हाथ पर बंधी पट्टी देखी तो इस का कारण पूछा. तब मैं ने सारी बात बता दी.

तब वे बोले, ‘‘राधिका, तुम तो मेरी मां को अच्छी तरह से जानती हो.

वे जो ठान लेती हैं, उसे पूरा कर के ही दम लेती हैं. मैं जानता हूं कि आजकल उन की आंखों पर अंधविश्वास की पट्टी बंधी हुई है, जिस की वजह से वे ऐसे काम भी रही हैं, जो उन्हें नहीं करने चाहिए. तुम मन मार कर उन की सारी बातें मानती रहो वरना कल को कुछ ऊंचनीच हो गई तो वे तुम्हारा जीना हराम कर देंगी.’’

सावन अपनी जगह सही थे, जैसेजैसे मेरा पेट बढ़ता गया वैसेवैसे मेरी सास के अंधविश्वासों में भी इजाफा होता गया. वे कभी कहतीं कि चौराहे पर मुझे पांव नहीं रखना है.  इसीलिए किसी चौराहे पर मेरा पांव न पड़े, इस के लिए मुझे लंबा रास्ता तय करना पड़ता था. इस से मैं काफी थकावट महसूस करती थी. लेकिन अंधविश्वास की बेडि़यों में जकड़ी मेरी सास को मेरी थकावट से कोई लेनादेना न था.

8वां महीना लगने पर तो मेरी सास ने मेरा घर से निकलना ही बंद कर दिया और सख्त हिदायत दी कि मुझे न तो अपने मायके जाना है और न ही जलती होली देखनी है. उन्हीं दिनों मेरे पिताजी की तबीयत अचानक खराब हो गई. वे बेहोशी की हालत में मुझ से मिलने की गुहार लगाए जा रहे थे. लेकिन अंधविश्वास में जकड़ी मेरी सास ने मुझे मायके नहीं जाने दिया. इस से पिता के मन में हमेशा के लिए यह बात बैठ गई कि उन की बेटी उन के बीमार होने पर देखने नहीं आई.

उन्हीं दिनों होली का त्योहार था. हर साल मैं होलिका दहन करती थी, लेकिन मेरी सास ने मुझे होलिका जलाना तो दूर उसे देखने के लिए भी मना कर दिया.

मेरे बच्चा पैदा होने से कुछ दिन पहले मेरी सास मेरे लिए उसी ढोंगी बाबा की भभूत ले कर आईं और उसे मुझे दूध में मिला कर पीने के लिए कहा. मैं ने कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि मैं ऐसा करूंगी तो मुझे बेटा पैदा होगा.

अपनी सास की अक्ल पर मुझे एक बार फिर तरस आया. मैं ने उन का विरोध करते हुए कहा, ‘‘मांजी, मैं ने आप की सारी बातें मानी हैं, लेकिन आप की यह बात नहीं मानूंगी.’’

‘‘क्यों?’’ सास की भवें तन गईं.

‘‘क्योंकि अगर भभूत किसी ऐसीवैसी चीज की बनी हुई होगी, तो उस का मेरे होने वाले बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है.’’

‘‘अरी, भूल गई तू कि इसी भभूत की वजह से तू गर्भवती हुई थी?’’

उन के लाख कहने पर भी मैं ने जब भभूत का सेवन करने से मना कर दिया तो न जाने क्या सोच कर वे चुप हो गईं.

कुछ दिनों बाद जब मेरी डिलीवरी होने वाली थी, तब मेरी सास मेरे पास आईं और बड़े प्यार से बोलीं, ‘‘बहू, देखना तुम लड़के को ही जन्म दोगी.’’

मैं ने वजह पूछी तो वे राज खोलती हुई बोलीं, ‘‘बहू, तुम ने तो बाबाजी की भभूत लेने से मना कर दिया था. लेकिन उन पहुंचे बाबाजी का कहा मैं भला कैसे टाल सकती थी, इसलिए मैं ने तुझे वह भभूत खाने में मिला कर देनी शुरू कर दी थी.’’

यह सुनते ही मेरी काटो तो खून नहीं जैसी हालत हो गई. मैं कुछ कह पाती उस से पहले ही मुझे अपनी आंखों के सामने अंधेरा छाता दिखाई देने लगा. फिर मुझे किसी चीज की सुध नहीं रही और मैं बेहोश हो गई.

होश में आने पर मुझे पता चला कि मैं ने एक मरे बच्चे को जन्म दिया था. ढोंगी बाबा ने मुझ से बदला लेने के लिए उस भभूत में संखिया जहर मिला दिया था. संखिया जहर के बारे में मैं ने सुना था कि यह जहर धीरेधीरे असर करता है. 1-2 बार बड़ों को देने पर यह कोई नुकसान नहीं पहुंचाता. लेकिन छोटे बच्चों पर यह तुरंत अपना असर दिखाता है. इसी वजह से मैं ने मरा बच्चा पैदा किया था.

तभी ढोंगी बाबा के बारे में मुझे पता चला कि वह अपना डेरा उठा कर कहीं भाग गया है.

मैं ने सावन को हकीकत से वाकिफ कराया तो उस ने अपनी मां को आड़े हाथों लिया.

तब मेरी सास पश्चात्ताप में भर कर हम दोनों से बोलीं, ‘‘बेटी, मैं तुम्हारी गुनहगार हूं. पोते की चाह में मैं ने खुद को अंधविश्वास की बेडि़यों के हवाले कर दिया था. इन बेडि़यों की वजह से मैं ने जानेअनजाने में जो गुनाह किया है, उस की सजा तुम मुझे दे सकती हो… मैं उफ तक नहीं करूंगी.’’

मैं अपनी सास को क्या सजा देती. मैं ने उन्हें अंधविश्वास को तिलांजलि देने को कहा तो वे फौरन मान गईं. इस के बाद उन्होंने अपने मन से अंधविश्वास की जहरीली बेल को कभी फूलनेफलने नहीं दिया.

1 साल बाद मैं ने फिर गर्भधारण किया और 2 स्वस्थ जुड़वा बच्चों को जन्म दिया. मेरी सास मारे खुशी के पागल हो गईं. उन्होंने सारे गांव में सब से कहा कि वे अंधविश्वास के चक्कर में न पड़ें, क्योंकि अंधविश्वास बिना मूठ की तलवार है, जो चलाने वाले को ही घायल करती है.

नागरिकता बिल

देश के कुछ हिस्सों में इस बिल का पुरजोर विरोध हुआ था और कुछ हिस्सों में जम कर स्वागत भी हो रहा था.

मीडिया वाले लगातार इस अहम खबर पर नजरें गड़ाए हुए थे और पिछले कई दिनों से वे इसी खबर को प्रमुखता से दिखा रहे थे.

रजिया बैठी हुई टैलीविजन पर यह सब देख रही थी. उस की आंखों में आंसू तैर गए. खबरिया चैनल का एंकर बता रहा था कि जो मुसलिम शरणार्थी भारत में रह रहे हैं, उन को यहां की नागरिकता नहीं मिल सकती है.

‘क्यों? हमारा क्या कुसूर है इस में… हम ने तो इस देश को अपना सम झ कर ही शरण ली है… इस देश में सांस ली है, यहां का नमक खाया है और आज राजनीति के चलते यहां के नेता हमें नागरिक मानने से ही इनकार कर रहे हैं. हमें कब तक इन नेताओं के हाथ की कठपुतली बन कर रहना पड़ेगा,’ रजिया बुदबुदा उठी.

रजिया सोफे से उठी और रसोईघर की खिड़की से बाहर  झांकने लगी. उस की आंखों में बीती जिंदगी की किताब के पन्ने फड़फड़ाने लगे.

तब रजिया तकरीबन 20 साल की एक खूबसूरत लड़की थी. उस की मां बचपन में ही मर गई थी. बड़ी हुई तो बाप बीमारी से मर गया. उस के देश में अकाल पड़ा, तो खाने की तलाश में भटकते हुए वह भारत की सरहद में आ गई और शरणार्थियों के कैंप में शामिल हो गई थी. भारत सरकार ने शरणार्थियों के लिए जो कैंप लगाया था, रजिया उसी में रहने लगी थी.

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पहलेपहल कुछ गैरसरकारी संस्थाएं इन कैंपों में भोजन वगैरह बंटवाती थीं, पर वह सब सिर्फ सोशल मीडिया पर प्रचार पाने के लिए था, इसलिए कुछ समय तक ही ऐसा चला. कुछ नेता भी इन राहत कैंपों में आए, पर वे भी अपनी राजनीति चमकाने के फेर में ही थे. सो, वह सब भी चंद दिनों तक ही टिक पाया.

शरणार्थियों को आभास हो चुका था कि उन्हें अपनी आजीविका चलाने के लिए कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा. जिन के पास कुछ पैसा था, वे रेहड़ीखोमचा लगाने लगे, तो कुछ रैड सिगनलों पर भीख मांगने लगे. कुछ तो घरों में नौकर बन कर अपना गुजारा करने लगे.

एक दिन शरणार्थी शिविर में एक नेताजी अपना जन्मदिन मनाने पहुंचे. उन के हाथों से लड्डू बांटे जाने थे. लड्डू बांटते समय उन की नजर सिकुड़ीसिमटी और सकुचाई रजिया पर पड़ी, जो उस लड्डू को लगातार घूरे जा रही थी.

नेताजी ने रजिया को अपने पास बुलाया और पूछा, ‘लड्डू खाओगी?’

रजिया ने हां में सिर हिलाया.

‘मेरे घर पर काम करोगी?’

रजिया कुछ न बोल सकी. उस ने फिर हां में सिर हिलाया.

‘विनय, इस लड़की को कल मेरा बंगला दिखा देना और इसे कल से काम पर रख लो. सबकुछ अच्छे से सम झा भी देना,’ नेताजी ने रोबीली आवाज में अपने सचिव विनय से कहा.

‘आखिरकार जनता का ध्यान हम नेताओं को ही तो रखना है,’ कहते हुए नेताजी ने एक आंख विनय की तरफ दबा दी.

विनय को नेताजी की बात माननी ही थी, सो वह अगले दिन रजिया को उन के बंगले पर ले आया और उसे साफसफाई का सारा काम सम झा दिया.

रजिया इतने बड़े घर में पहली बार आई थी. चारों तरफ चमक ही चमक थी. वह खुद भी आज नहाधो कर आई थी. कल तक जहां उस के चेहरे पर मैल की पपड़ी जमी रहती थी, वहां आज गोरी चमड़ी दिख रही थी. विनय को भी यह बदलाव दिखाई दिया था.

विनय ने रजिया को खाना खिलाया. पहले तो संकोच के मारे रजिया धीरेधीरे खाती रही, पर उस की दुविधा सम झ कर जैसे ही विनय वहां से हटा, रजिया दोनों हाथों से खाने पर जुट गई और उस ने अपना मुंह तब ऊपर किया, जब उस के पेट में बिलकुल जगह न रह गई. उस का चेहरा भी अब उस के पेट के भरे होने की गवाही दे रहा था.

अब रजिया नेताजी के बंगले पर दिनभर काम करती और शाम ढले कैंप में वापस चली जाती.

यों ही दिन बीतने लगे. रजिया का काम अच्छा था. धीरेधीरे उस ने शाम को शरणार्थी कैंप में जाना भी छोड़ दिया. वह शाम को नेताजी के बंगले में ही कहीं जमीन पर सो जाती थी.

आज नेताजी के घर में जश्न का माहौल था, क्योंकि चुनाव में उन्होंने बड़ी जीत हासिल की थी. नीचे हाल में चारों तरफ सिगरेट के धुएं की गंध थी. शराब के दौर चल रहे थे. जश्न देर रात तक चलना था, इसलिए विनय ने रजिया से खाना खा कर सो जाने के लिए कहा और खुद नेताजी के आगेपीछे डोल कर अपने नमक का हक अदा करने लग गया.

नेताजी के कई दोस्त उन से शराब के साथ शबाब की मांग कर रहे थे. जब इस मांग ने जोर पकड़ लिया, तो नेताजी ने धीरे से रजिया के कमरे की तरफ इशारा कर दिया.

ऊपर कमरे में रजिया सो रही थी. देर रात कोई उस के कमरे में गया, जिस ने उस का मुंह दबाया और अपने शरीर को उस के शरीर में गड़ा दिया.

बेचारी रजिया चीख भी नहीं पा रही थी. एक हटा तो दूसरा आया. न जाने कितने लोग थे, रजिया को पता ही न चला. वह बेहोश हो गई और शायद मर ही जाती, अगर विनय सही समय पर न पहुंच गया होता.

विनय ने रजिया को अस्पताल में दाखिल कराया. वह गुस्से से आगबबूला हो रहा था, पर क्या करता, नेताजी के अहसान के बो झ तले दबा जो हुआ था.

‘इन के पति का नाम बताइए?’ नर्स ने पूछा.

‘जी, विनय रंजन,’ विनय ने अपना नाम बताया.

नाम बताने के बाद एक पल को विनय ठिठक गया था.

‘मैं ने यह क्यों किया? पर क्यों न किया जाए?’ उस ने सोचा. आखिर उस की शरण में भी पहली बार कोई लड़की आई थी.

विनय उस समय छोटा सा था, जब उस के मम्मीपापा एक हादसे में मारे गए थे. तब इसी नेता ने उसे अनाथालय में रखा था और उस की पढ़ाई का खर्चा भी दिया था.

नेताजी के विनय के ऊपर और बहुत से अहसान थे, पर उन अहसानों की कीमत वह इस तरह चुका तो नहीं सकता.

रजिया की हालत में सुधार आ रहा था. वह कुछ बताती, विनय को इस की परवाह ही नहीं थी, उस ने तो मन ही मन एक फैसला ले लिया था.

अपने साथ कुछ जरूरी सामान और रजिया को ले विनय ने शहर छोड़ दिया.

बस में सफर शुरू किया तो कितनी दूर चले गए, उन्हें कुछ पता नहीं था. वे तो दूर चले जाना चाहते थे, बहुत दूर, जहां शरणार्थी कैंप और उस नेता की गंध भी न आ सके.

और यही हुआ भी. वे दोनों भारत के दक्षिणी इलाके में आ गए थे और अब उन को अपना पेट भरने के लिए एक अदद नौकरी की जरूरत थी.

विनय पढ़ालिखा तो था ही, इसलिए उसे नौकरी ढूंढ़ने में समय न लगा. नौकरी मिली तो एक घर भी किराए पर ले लिया.

रजिया भी सदमे से उबर चुकी थी, पर विनय उस से कभी भी उस घटना का जिक्र न करता और न ही उस को याद करने देता.

रजिया का हाथ शिल्प वगैरह में बहुत अच्छा था. एक दिन उस ने एक छोटा सा कालीन बना कर विनय को दिखाया.

वह कालीन विनय को बहुत अच्छा लगा और उस ने वह कालीन अपने बौस को गिफ्ट कर दिया.

‘अरे… वाह विनय, इस कालीन को रजिया ने बनाया है. बहुत अच्छा… घर में आसानी से मिलने वाली चीजों से बना कालीन…

‘क्यों न तुम ऐसे कालीनों का एक कारोबार शुरू कर दो. भारत में बहुत मांग है,’ बौस ने कहा.

‘अरे… सर… पर, उस के लिए तो पैसों की जरूरत होगी,’ विनय ने शंका जाहिर की.

‘अरे, जितना पैसा चाहिए, मैं दूंगा और जब कारोबार चल जाएगा, तब मु झे लौटा देना,’ बौस जोश में था.

विनय ने नानुकर की, पर उस का बौस एक कला प्रेमी था. उस ने खास लोगों से बात कर विनय का एक छोटा सा कारखाना खुलवा दिया.

फिर क्या था, रजिया कालीन का मुख्य डिजाइन बनाती और कारीगर उस को बुनते. कुछ ही दिनों में विनय का कारोबार अच्छा चल गया था और जिंदगी में खुशियां आने लगीं.

डोरबेल की तेज आवाज ने रजिया का ध्यान भंग किया. दरवाजा खोला तो सामने विनय खड़ा था. उसे देखते ही रजिया उस के सीने से लिपट गई.

‘‘अरे बाबा, क्या हुआ?’’ विनय ने चौंक कर पूछा.

‘‘कुछ नहीं विनय. मैं इस देश में शरणार्थी की तरह आई थी, उस नेता ने मु झे सहारा दिया. वहां भी तुम ने साए की तरह मेरा ध्यान रखा, पर उस जश्न वाली रात को नेता के साथियों ने मेरे साथ बलात्कार किया. न जाने कितने लोगों ने मु झें रौंदा, मु झे तो पता भी नहीं, फिर भी तुम ने इस जूठन को अपनाया. तुम महान हो विनय. मु झ से वादा करो कि तुम मु झे कभी नहीं छोड़ोगे.’’

‘‘पर, आज अचानक से यह सब क्यों पगली. मेरा भी तो इस दुनिया में तुम्हारे सिवा कोई नहीं है. उस नेता के कई अहसान थे मुझ पर, सो मैं सामने से उस से लड़ न सका, पर तुम को उन भेडि़यों से बचाने के लिए मैं ने नेता को भी छोड़ दिया, लेकिन आज अचानक बीती बातें क्यों पूछ रही हो रजिया?’’ विनय ने रिमोट से टैलीविजन चालू करते हुए पूछा.

‘‘वह… दरअसल, नागरिकता वाले कानून के तहत भारत में सिर्फ हिंदू शरणार्थियों को ही नागरिकता मिल सकती है और मैं तो हिंदू नहीं विनय. आज यह कानून आया है, अगर कल को यह कानून आ गया कि जो शरणार्थी जहां के हैं, उसी देश वापस चले जाएं तब तो मु झे तुम को छोड़ कर जाना होगा. इस मुई राजनीति का कुछ भरोसा नहीं,’’ कहते हुए रजिया रो पड़ी.

‘‘अरे पगली, तुम इतना दिमाग मत लगाओ. अब तुम्हें मेरी जिंदगी ने नागरिकता दे दी है, तब किसी देश के कागजी दस्तावेज की जरूरत नहीं है तुम्हें. जोकुछ होगा, देखा जाएगा और फिर जब हम दोनों शादी कर लेंगे, तो भला तुम को यहां का नागरिक कौन नहीं मानेगा,’’ कहते हुए विनय ने रजिया की पेशानी चूमते हुए कहा.

उस समय रजिया और विनय की आंखों में आंसू थे.

40 करोड़ की डील: अमेरिका से लौटे दंपति हुए लापता

नेपाली मूल के लाल शर्मा और उस की पत्नी बिजनैसमैन आर. श्रीकांत के बंगले पर पिछले 20 सालों से नौकर थे. इतना ही नहीं, श्रीकांत ने लाल शर्मा के बेटे पदम लाल उर्फ कृष्णा को न सिर्फ अपनी औलाद की तरह पाला बल्कि उसे अपना ड्राइवर बना दिया. इस सब के बावजूद भी 40 करोड़ रुपए के लालच में कृष्णा ने बंगले में ऐसा खून बहाया कि…

अपनी पत्नी अनुराधा (55 वर्ष) के साथ अमेरिका से भारत लौट रहे श्रीकांत (58 वर्ष) ने अपने सहायक और ड्राइवर कृष्णा को फोन कर के बता दिया था कि उन की फ्लाइट सुबह करीब साढ़े 3 बजे चेन्नई पहुंच जाएगी. वह समय पर उन्हें लेने पहुंच जाए.

श्रीकांत तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में स्थित माईलापुर थाना क्षेत्र की द्वारका कालोनी के निवासी थे. ड्राइवर कृष्णा मूलरूप से नेपाल का रहने वाला था. वह अपने दोस्त रवि राय को साथ ले कर अपने मालिक आर. श्रीकांत को लेने के लिए समय पर चेन्नई एयरपोर्ट पहुंच गया था.

फ्लाइट निश्चित समय पर चेन्नई एयरपोर्ट पर पहुंच गई. वहां ड्राइवर कृष्णा पहले से मौजूद था. वह श्रीकांत और उन की पत्नी को ले कर सवा 4 बजे घर की ओर चल दिया.

संयुक्त राज्य अमेरिका से दंपति की बेटी सुनंथा का फोन आ गया. पिता श्रीकांत ने बेटी को बताया कि उन की फ्लाइट ने ठीक साढ़े 3 बजे लैंड कर लिया था, उन्हें लेने के लिए कृष्णा आया हुआ है. वे अब माईलापुर के लिए निकल चुके हैं.

बताते चलें कि आर. श्रीकांत चार्टर्ड एकाउंटेंट थे, साथ ही रियल एस्टेट का काम भी करते हैं. वह एक फाइनैंस कंपनी में कारपोरेट फाइनैंस का प्रमुख होने के साथसाथ गुजरात में एक निजी आईटी कंपनी भी चलाते थे. अमेरिका के राज्य कैलिफोर्निया में उन की बेटी सुनंथा और बेटा शाश्वत डाक्टर हैं. दंपति अपने बच्चों के पास लगभग 6 माह रह कर 7 मई, 2022 को चेन्नई वापस आए थे.

इस के बाद सुबह साढ़े 8 बजे बेटे शाश्वत ने फोन लगाया तो श्रीकांत का मोबाइल बंद था. तब पापामम्मी का हालचाल लेने के लिए उस ने ड्राइवर कृष्णा को फोन लगाया. कृष्णा ने बताया कि दोनों सो रहे हैं.

लगभग 2 घंटे बीतने के बाद शाश्वत ने फिर फोन किया तो कृष्णा ने ऊटपटांग जबाव दिया. इस से शाश्वत को संदेह हुआ. जब यह बात शाश्वत ने बहन सुनंथा को बताई तो वह घबरा गई. उस ने भाई को राय दी कि वह तुरंत वहां रह रहे रिश्तेदारों से संपर्क करे.

शाश्वत ने तब इंद्रानगर निवासी अपने चचेरे भाई रमेश परमेश्वरन को फोन किया कि पापामम्मी सुबह चेन्नई वापस आ गए थे. अब उन से बात नहीं हो पा रही है, दोनों के मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ हैं और कृष्णा भी सही जबाव नहीं दे रहा है. वह घर जा कर देखे कि वहां क्या हुआ है.

रमेश पत्नी दिव्या और अपने मित्र श्रीनाथ के साथ माईलापुर थाना क्षेत्र की द्वारका कालोनी स्थित श्रीकांत के घर दोपहर साढ़े 12 बजे पहुंचे. उन्हें दरवाजा पर ताला लगा मिला. किसी अनहोनी की आशंका पर उन्होंने माईलापुर थानाप्रभारी एम. रवि को सूचना देने के साथ ही पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी. इस के साथ ही अमेरिका में शाश्वत को भी अवगत कराया.

बगले के हालात दे रहे थे अनहोनी के सबूत दंपति के गायब होने की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी तुरंत हरकत में आ गए और वह टीम के साथ श्रीकांत के बंगले पर पहुंच कर छानबीन में जुट गए. बंगले के गेट पर लटके ताले ने थानाप्रभारी की भी बेचैनी बढ़ा दी. लिहाजा उन्होंने गेट का ताला तुड़वा दिया. जैसे ही पुलिस बंगले में दाखिल हुई तो अंदर का नजारा देखते ही सभी के होश उड़ गए.

सूटकेस और 3 लेयर वाला लौकर और अलमारी खुले पड़े थे. पुलिस ने घर की तलाशी ली. घर के फर्श पर खून के हलके दाग मिलने के साथ ही फर्श को डेटोल से धोए जाने की महक भी आ रही थी. यूटिलिटी रूम में खून के धब्बे मिले. वहीं टायलेट के ड्रेन होल में भी खून था. हालांकि वहां दंपति दिखाई नहीं दिए. दंपति घर से गायब थे.

ड्राइवर कृष्णा भी दिखाई नहीं दे रहा था. इस के साथ ही श्रीकांत की कार भी नहीं थी. घर में लगे सीसीटीवी कैमरों का डीवीआर (डिजिटल वीडियो रिकौर्डर) व पलंग से बैडशीट भी गायब थी.

थानाप्रभारी एम. रवि ने मामले की गंभीरता को देखते हुए माईलापुर के डीसीपी गौतमन को अवगत कराया. वे कुछ देर में फोरैंसिक टीम के साथ वहां पहुंच गए और जांच शुरू की.

जैसे ही अमेरिका में रह रहे भाईबहनों को इस की जानकारी दी गई तो दोनों परेशान हो गए और मातापिता की कुशलता की प्रार्थना करने लगे. दोनों ही बहुत घबराए हुए थे और बारबार पुलिस तथा चचेरे भाई रमेश को फोन कर रहे थे.

दंपति के मोबाइल स्विच्ड औफ आ रहे थे. इस पर पुलिस ने ड्राइवर कृष्णा के मोबाइल पर काल की लेकिन अब उस ने अपना फोन भी स्विच्ड औफ कर लिया था. पुलिस को आशंका हुई कि कहीं ड्राइवर कृष्णा ने ही दंपति का अपहरण तो नहीं कर लिया? वह उन से बड़ी रकम तो वसूलना नहीं चाहता.

लेकिन पुलिस के सामने प्रश्न यह था कि कृष्णा यह काम अकेले नहीं कर सकता, जरूर कुछ लोग उस के साथ होंगे.

लेकिन दूसरी ओर घर में खून के दाग मिलने व डेटोल की महक से ऐसा लगता था कि अपहरण घर से ही किया गया था और शायद लौकर व सूटकेस की चाबी मांगने के दौरान दंपति के साथ मारपीट करने से खून निकला होगा.

पुलिस ने दंपति के फोन नंबरों की लोकेशन चैक की. तब पता चला कि एअरपोर्ट पर उतरने के बाद दोनों के साथ कृष्णा भी था. तीनों के फोन नंबरों की लोकेशन साथ आई थी, घर तक तीनों साथ आए थे. इस के कुछ देर बाद दंपति के मोबाइल फोन स्विच्ड औफ हो गए थे.

कुछ देर बाद कृष्णा का भी फोन स्विच औफ आने लगा था. पुलिस के सामने सब से बड़ी चुनौती दंपति का शीघ्र पता लगाने की थी कि वे कहां हैं और किस अवस्था में हैं?

पुलिस ने मामला दर्ज कर आगे की जांच शुरू कर दी. पुलिस ने कृष्णा का पता लगाने के लिए घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज और काल डिटेल्स का इस्तेमाल किया.

इस के साथ ही श्रीकांत के फोन के काल डेटा रिकौर्ड को एक्सेस किया, जिस में फास्ट टैग संदेश प्राप्त हुए थे. उस में दिखाया गया था कि कई टोल बूथों से हो कर कार गुजरी थी. उस के फास्ट टैग रिकौर्ड को खंगालने पर पता चला कि उन की कार चेन्नई-कोलकाता राष्ट्रीय राजमार्ग पर जा रही है.

आंध्र प्रदेश पुलिस ने धर दबोचे आरोपी

कंट्रोल रूम की मदद से कृष्णा और कार खोजने के लिए नाकाबंदी शुरू कर दी गई. चूंकि कृष्णा नेपाल का रहने वाला था और उस के नेपाल भागने की आशंका ज्यादा थी, इसलिए देश छोड़ने से पहले उसे पकड़ने के लिए आंध्र प्रदेश पुलिस को भी अलर्ट कर दिया गया.

आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले के एसपी मलिका गर्ग के निर्देश पर हाईवे थाना ओंगोल के डीएसपी यू. नागराजू के आदेश पर तंगुटुक टोलगेट पर हाईवे पुलिस ने कृष्णा और उस के साथी रवि को कार सहित 7 मई, 2022 की शाम साढ़े 4 बजे ओंगोल पर दबोच लिया.

इस के बाद मामला परत दर परत खुलता चला गया. दोनों की गिरफ्तारी के बाद आंध्र प्रदेश पुलिस ने चेन्नई पुलिस को सूचित किया. चेन्नई पुलिस की एक टीम आंध्र प्रदेश के लिए रवाना हो गई. पुलिस टीम दोनों आरोपियों कृष्णा व रवि राय को कार व लूटे गए 8 किलोग्राम सोना, 50 किलोग्राम चांदी के बरतन, नकदी और 5 करोड़ के जेवरात सहित उन्हें ले कर माईलापुर थाना ले आई.

यहां दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई. दोनों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उन्होंने बताया कि 40 करोड़ रुपयों के लिए दंपति की हत्या की थी. आरोपियों ने बताया कि दोनों लाशों को उन के ही चेन्नई के बाहर स्थित फार्महाउस में दफन कर दिया था. इस के बाद वे लोग नेपाल जा रहे थे.

लाशों को बरामद करने के लिए थानाप्रभारी एम. रवि दोनों आरोपियों को ले कर दंपति के नेमिलीचेरी स्थित फार्महाउस पर पहुंचे. वहां आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने  फार्महाउस में पीछे की ओर पेड़ों के बीच एक जगह पर ताजा मिट्टी को हटाया तो वहां गड्ढा खोदा हुआ मिला.

कत्ल कर उन के ही फार्महाउस में दफना दिया दंपति को आरडीओ थिरूपोरूर की मौजूदगी में दंपति के नेमिलीचेरी स्थित फार्महाउस में गड्ढे से मिट्टी हटाने पर श्रीकांत और उन की पत्नी अनुराधा की खून से लथपथ लाशें बरामद हुईं. गड्ढे से दंपति के मोबाइल फोन और फ्लाइट टिकट के आधे जले हुए अवशेष भी बरामद हुए.

जब माईलापुर थाने की पुलिस टीम शवों को निकालने की काररवाई कर रही थी, तब वहां फावड़ा व एक आधा जला हुआ क्रिकेट स्टंप मिला. संभवत: यह वही स्टंप था, जिस का प्रयोग हत्यारों ने दंपति की हत्या में किया था. इसी के साथ लाशों को दफन करने के लिए इसी फावड़े से गड्ढा खोदा गया था.

पुलिस ने सभी चीजों को अपने कब्जे में ले लिया.  पुलिस को बाड़ से जुड़ा एक बिजली का तार भी मिला, इस तार को हत्यारों ने इसलिए लगाया था ताकि सुरक्षा गार्ड के न होने पर लोग फार्महाउस में प्रवेश न कर सकें और जहां शव दफनाए गए थे, उस स्थान पर न पहुंच सकें. इस पूरी काररवाई की वीडियो रिकौर्डिंग की गई. मौके पर फोरैंसिक टीम भी मौजूद रही.

पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर शवों को पोस्टमार्टम के लिए चेंगल पट्टू के सरकारी अस्पताल भेज दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक दंपति की मौत अत्यधिक पिटाई से आई चोटों व खून बहने से हुई थी.

हत्यारोपियों ने दंपति को बेरहमी से पीटा था, जिस से उन की मौत हो गई थी. मामला दर्ज होने के 8 घंटे के अंदर पुलिस ने आरोपियों को आंध्र प्रदेश पुलिस की मदद से पकड़ कर अपहरण, हत्या और 5 करोड़ की लूट का  परदाफाश कर दिया.

चार्टर्ड एकाउंटेंट श्रीकांत ने सिम्मापुर, नेपाल निवासी लाल शर्मा व उन की पत्नी को 20 साल पहले अपने यहां काम पर रखा था. लगभग 10 साल पहले उन्होंने उन के बेटे कृष्णा उर्फ पदमलाल कृष्णा को भी घरेलू सहायक व ड्राइवर के रूप में रख लिया था.

अब कृष्णा के पिता सिक्योरिटी गार्ड के रूप में फार्महाउस की देखभाल करते थे.  बंगले में श्रीकांत ने रहने के लिए कृष्णा को एक क्वार्टर दे रखा था. इस के साथ ही देश से बाहर जाने पर वह कृष्णा को कार के प्रयोग की अनुमति दे जाते थे.

40 करोड़ की डील के लिए आए थे दंपति

कृष्णा घरेलू कामों के साथ ही श्रीकांत की कार भी चलाता था. उसे श्रीकांत के व्यापार के संबंध में जानकारी रहती थी. एडिशनल सीपी (दक्षिण) डा. एन. कन्नन ने प्रैस कौन्फैंस में बताया कि चार्टर्ड एकाउंटेंट श्रीकांत रियल एस्टेट का काम भी करते थे.

श्रीकांत अमेरिका जाने के बाद मार्च, 2022 में अकेले अमेरिका से संक्षिप्त यात्रा पर चेन्नई वापस आए थे.

उस अवधि में कार में यात्रा के दौरान ड्राइवर कृष्णा ने श्रीकांत को 40 करोड़ रुपए की एक बड़ी संपत्ति की बिक्री के बारे में फोन पर डील करते सुन लिया था. इस के बाद उस ने मान लिया कि घर के लौकर में 40 करोड़ कैश रखा हुआ है.

कृष्णा भले ही बंगले में मिले एक बाहरी क्वार्टर में रह रहा था, लेकिन उसे बंगले के अंदर की सारी जानकारी रहती थी. श्रीकांत को प्रौपर्टी बेचने के बाद वापस अमेरिका चले जाना था. विश्वासपात्र और घरेलू सहायक व ड्राइवर होने के कारण कृष्णा को श्रीकांत के बिजनैस और घर के अन्य क्रियाकलापों  की पूरी जानकारी रहती थी.

वह जानता था कि दंपति की हत्या के बाद ही वह 40 करोड़ की रकम हासिल कर सकता है. पुलिस ने जांच में पाया कि दंपति की नृशंस हत्या के पीछे का मकसद पैसा था. इसलिए लूट की योजना के लिए उस ने दंपति के आने का इंतजार करने का फैसला किया.

सावधानी से बनाई थी लूट की योजना

हत्या के बाद लूट की योजना सावधानीपूर्वक बनाई गई थी. कृष्णा इस बात को अच्छी तरह जानता था कि श्रीकांत और उन की पत्नी अमेरिका में रहते हुए भी मोबाइल के जरिए यहां बंगले पर लगे सीसीटीवी के माध्यम से अपने घर को देख रहे थे. वे कृष्णा को फोन करते थे और उस के ठिकाने के बारे में पूछते रहते थे.

पकड़े जाने के डर से वह बंगले के ताले व लौकर को तोड़ने से बचता रहा. उस का सोचना था कि दंपति के आने पर ही हत्या कर उन से चाबी ले कर 40 करोड़ रुपयों को हासिल किया जा सकता है.

अतिरिक्त पुलिस आयुक्त ने बताया कि आरोपी नेपाल मूल के कृष्णा ने एक तमिल महिला से शादी की थी और अब वे अलग हो गए हैं. उन का बेटा दार्जिलिंग में पढ़ रहा है.

इस बीच अपने दार्जिलिंग के एक दोस्त रवि राय को इस योजना में शामिल कर लिया. कृष्णा का जो दोस्त रवि राय इस अपहरण, हत्या व लूट में शामिल था, उस से कृष्णा परिचित था.

जब कृष्णा अपने बेटे का दार्जिलिंग के एक स्कूल में दाखिला कराने का प्रयास कर रहा था, तब रवि ने इस में उस की मदद की थी. तभी से वे दोस्त बन गए थे.

बड़ी रकम हाथ लगने की बात सुन कर रवि लालच में आ गया और कृष्णा का साथ देने को तैयार हो गया.

दोस्त को भी योजना में किया शामिल

घटना से एक महीना पहले कृष्णा ने रवि को 40 करोड़ की पूरी बात बताई और उसे अपनी योजना में शामिल कर लिया. दोनों हत्यारों का ऐसा मानना था कि श्रीकांत की तिजोरी में 40 करोड़ रुपए रखे हैं. तय हुआ कि दंपति की हत्या के बाद वे रकम को ले कर नेपाल भाग जाएंगे.

तिजोरी की चाबियों के लिए वे दंपति के लौटने का बेसब्री से इंतजार करने लगे. घटना से 2 सप्ताह पहले श्रीकांत ने फोन कर कृष्णा को बताया था कि वे 7 मई, 2022 को चेन्नई लौट रहे हैं.

माईलापुर की डीसीपी दिशा मित्तल के अनुसार माईलापुर क्षेत्र निवासी श्रीकांत अपनी पत्नी अनुराधा के साथ पिछले साल नवंबर में अमेरिका के कैलिफोर्निया में बसी बेटी सुनंदा और बेटे शाश्वत से मिलने गए थे. बेटी सुनंदा गर्भवती है.

हवाई अड्डे पर कार में दंपति को बैठाने के बाद योजनानुसार कृष्णा दंपति को माईलापुर उन के बंगले में ले गया. उस समय सुबह के साढ़े 8 बजे का समय था. घर पहुंचते ही हत्यारों ने योजनानुसार घर की बिजली आपूर्ति बंद कर दी.

श्रीकांत कुछ समझ पाते, इस से पहले ही अंधेरे की आड़ में कृष्णा ने श्रीकांत को भूतल के कमरे में बंद कर दिया. जबकि उस का दोस्त रवि अनुराधा के पीछे पहली मंजिल तक गया.

कृष्णा ने श्रीकांत को क्रिकेट के स्टंप से  बुरी तरह से पीटा और उन से जबरन लौकर व सूटकेस की चाबियां छीन लीं. इस के बाद उन के गले में नुकीली ओर से स्टंप घोंप दिया. इसी तरह अनुराधा को मौत के घाट उतार दिया गया. दोनों को अलगअलग कमरों में मार दिया गया.

आरोपी यहां लगभग 2 घंटे तक रहे. इस दौरान उन्होंने खून के धब्बों को साफ करने के साथ ही सोने और डायमंड के जेवरात, जिन की संख्या एक हजार से अधिक थी, व चांदी के बरतनों आदि को पैक किया. बंगले से निकलने से पहले आरोपी सीसीटीवी रिकौर्डर अपने साथ ले गए.

दोनों के शवों को बैडशीट में लपेट कर श्रीकांत की कार में रखा. इस के बाद रवि और कृष्णा घर में ताला लगा कर निकल गए. दोनों सुबह लगभग साढ़े 10 बजे लाशों को चेन्नई के बाहर ईस्ट कोस्ट रोड पर नेमिलीचेरी स्थित फार्महाउस ले गए, जहां पहले से खोदे गए गड्ढे में दंपति को दफना दिया.

10 दिन पहले खोदा था गड्ढा

हत्यारों को बड़ी नकदी मिलने की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें लगभग 5 करोड़ कीमत के 8 किलोग्राम सोने के आभूषण तथा 50 किलोग्राम चांदी के बरतन, कुछ नकदी ही मिली थी.

दंपति की हत्या करने के बाद ही उन्हें पता चला कि 40 करोड़ रुपए की रकम श्रीकांत के बैंक एकाउंट में पहले ही जमा हो चुकी थी.

कृष्णा ने दंपति की हत्या की योजना एक माह पहले रची थी. श्रीकांत ने अमेरिका से जब फोन कर कृष्णा को बताया कि वह 7 मई को वापस आ रहे हैं. तब कृष्णा ने साथी रवि के साथ मिल कर अपनी योजना को कार्यान्वित करते हुए उन के फार्महाउस में घटना से 10 दिन पहले 6 फुट गहरा गड्ढा खोदा.

यह कार्य गोपनीयता के चलते दोनों ने स्वयं किया. हत्या के बाद उन्होंने दंपति की लाशों को इसी गड्ढे में दफन कर दिया. अमेरिका से लौटे दंपति को शायद भनक भी नहीं थी कि चेन्नई एयरपोर्ट पर विश्वसनीय ड्राइवर कृष्णा के रूप में मौत उन का इंतजार कर रही है.

विधानसभा में गूंजा यह मामला

दोहरे हत्याकांड की दिल दहलाने वाली इस घटना से चेन्नई में सनसनी फैल गई थी. दंपति की हत्या के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया. इस की गूंज विधानसभा में भी सुनाई दी.

विधानसभा में विपक्ष के नेता एडपाडि पलनीसामी द्वारा उठाए गए प्रश्न का जवाब देते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने जानकारी दी कि लूट के इरादे से दंपति की हत्या की गई थी और हत्या की रिपोर्ट दर्ज होने के 8 घंटे के अंदर हत्यारों को लूटे गए माल सहित गिरफ्तार कर लिया गया.

हत्यारोपियों को पकड़ने के लिए विशेष दल का गठन किया गया था और आंध्र प्रदेश की पुलिस की मदद से दोनों आरोपी अपहरण, हत्या व लूट के बाद आभूषण ले कर नेपाल भाग रहे थे. लेकिन पुलिस की तत्परता के चलते घटना को अंजाम देने के 12 घंटे के अंदर वे पकड़ लिए गए.

पुलिस को जांच से यह भी पता चला कि फार्महाउस पर गार्ड के रूप में कार्यरत 70 वर्षीय पिता लाल शर्मा व मां को कृष्णा ने कुछ समय पहले नेपाल स्थित घर भेज दिया था. पुलिस अब इस बात की जांच कर रही है कि कृष्णा के पिता का भी इस घटना में हाथ तो नहीं है?

चेन्नई पुलिस ने तुरंत लाल शर्मा से संपर्क किया, जो अब नेपाल में हैं और उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया. उन्हें पूरे घटनाक्रम से अवगत कराया. उन्होंने कहा, ‘‘मेरा बेटा मेरे मालिक के साथ ऐसा कैसे कर सकता है? मैं हैरान हूं.’’

शुरू में उन्होंने यह मानने से इंकार कर दिया कि उन के बेटे ने दंपति को मार डाला है. उन्होंने पुलिस को बताया कि दंपति द्वारा उन का और परिवार का अच्छी तरह से खयाल रखा जाता था. हालांकि पुलिस सतर्क है और उस का कहना है कि वह जांच पूरी होने तक पिता को बेगुनाह नहीं कह सकते.

पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से दंपति के बंगले से लूटे गए आभूषण, कार, घर का सीसीटीवी रिकौर्डर जिस में हत्या किए जाने के सबूत हैं, के साथ ही, फार्महाउस में शव दफन करने के बाद लौटते समय के सीसीटीवी फुटेज, हवाई यात्रा के टिकट, स्टंप, फावड़ा आदि बरामद किए हैं.

पुलिस के पास आरोपियों का दोष साबित करने के लिए पर्याप्त मजबूत सबूत हैं. पुलिस ने दोनों आरोपियों को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

इस संबंध में आरोपियों से पूछताछ करने पर जो बात उजागर हुई, उस पर कोई भी व्यक्ति सोचने को मजबूर हो जाता है कि दंपति ने जहां अपनी औलाद की तरह कृष्णा को अपने पास रखा और उस की व उस के वृद्ध मातापिता की सुखसुविधाओं का पूरा ध्यान रखा.

दगाबाज कृष्णा ने अपने दोस्त के साथ मिल कर 40 करोड़ रुपयों की खातिर अपने मालिक के भरोसे का कत्ल कर दिया. पालनहारों की जान ले ली.

जहां कृष्णा इन रुपयों से नेपाल में रह कर शाही अंदाज में जीवन गुजारना चाहता था, वहीं अब उसे अपने किए गुनाह के लिए सलाखों के पीछे जाना पड़ा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एक डाली के तीन फूल- भाग 3: 3 भाईयों ने जब सालो बाद साथ मनाई दीवाली

मुझे व गोपाल को अपनेअपने परिवारों सहित देख भाई साहब गद्गद हो गए. गर्वित होते हुए पत्नी से बोले, ‘‘देखो, मेरे दोनों भाई आ गए. तुम मुंह बनाते हुए कहती थीं न कि मैं इन्हें बेकार ही आमंत्रित कर रहा हूं, ये नहीं आएंगे.’’

‘‘तो क्या गलत कहती थी. इस से पहले क्या कभी आए हमारे पास कोई उत्सव, त्योहार मनाने,’’ भाभीजी तुनक कर बोलीं.

‘‘भाभीजी, आप ने इस से पहले कभी बुलाया ही नहीं,’’ गोपाल ने  झट से कहा. सब खिलखिला पड़े.

25 साल के बाद तीनों भाई अपने परिवार सहित एक छत के नीचे दीवाली मनाने इकट्ठे हुए थे. एक सुखद अनुभूति थी. सिर्फ हंसीठिठोली थी. वातावरण में कहकहों व ठहाकों की गूंज थी. भाभीजी, मीना व गोपाल की पत्नी के बीच बातों का वह लंबा सिलसिला शुरू हो गया था, जिस में विराम का कोई भी चिह्न नहीं था. बच्चों के उम्र के अनुरूप अपने अलग गुट बन गए थे. कुशाग्र अपनी पौकेट डायरी में सभी बच्चों से पूछपूछ कर उन के नाम, पते, टैलीफोन नंबर व उन की जन्मतिथि लिख रहा था.

सब से अधिक हैरत मु झे कनक को देख कर हो रही थी. जिस कनक को मु झे मुंबई में अपने पापा के बड़े भाई को इज्जत देने की सीख देनी पड़ रही थी, वह यहां भाई साहब को एक मिनट भी नहीं छोड़ रही थी. उन की पूरी सेवाटहल कर रही थी. कभी वह भाईर् साहब को चाय बना कर पिला रही थी तो कभी उन्हें फल काट कर खिला रही थी. कभी वह भाई साहब की बांह थाम कर खड़ी हो जाती तो कभी उन के कंधों से  झूल जाया करती. भाई साहब मु झ से बोले, ‘‘श्याम, कनक को तो तू मेरे पास ही छोड़ दे. लड़कियां बड़ी स्नेही होती हैं.’’

भाई साहब के इस कथन से मु झे पहली बार ध्यान आया कि भाई साहब की कोई लड़की नहीं है. केवल 2 लड़के ही हैं. मैं खामोश रहा, लेकिन भीतर ही भीतर मैं स्वयं से बोलने लगा, ‘यदि हमारे बच्चे अपने रिश्तों को नहीं पहचानते तो इस में उन से अधिक हम बड़ों का दोष है. कनक वास्तव में नहीं जानती थी कि पापा के बिग ब्रदर को ताऊजी कहा जाता है. जानती भी कैसे, इस से पहले सिर्फ 1-2 बार दूर से उस ने अपने ताऊजी को देखा भर ही था. ताऊजी के स्नेह का हाथ कभी उस के सिर पर नहीं पड़ा था. ये रिश्ते बताए नहीं जाते हैं, एहसास करवाए जाते हैं.’’

दीवाली की संध्या आ गई. भाभीजी, मीना व गोपाल की पत्नी ने विशेष पकवान व विविध व्यंजन बनाए. मैं ने, भाई साहब व गोपाल के घर को सजाने की जिम्मेदारी ली. हम ने छत की मुंडेरों, आंगन की दीवारों, कमरों की सीढि़यों व चौखटों को चिरागों से सजा दिया. बच्चे किस्मकिस्म के पटाखे फोड़ने लगे. फुल झड़ी, अनार, चक्कर घिन्नियों की चिनगारियां उधरउधर तेजी से बिखरने लगीं. बिखरती चिनगारियों से अपने नंगे पैरों को बचाते हुए भाभीजी मिठाई का थाल पकड़े मेरे पास आईं और एक पेड़ा मेरे मुंह में डाल दिया. इस दृश्य को देख भाई साहब व गोपाल मुसकरा पड़े. मीना व गोपाल की पत्नी ताली पीटने लगीं, बच्चे खुश हो कर तरहतरह की आवाजें निकालने लगे.

कुशाग्र मीना से कहने लगा, ‘‘मम्मी, मुंबई में हम अकेले दीवाली मनाते थे तो हमें इस का पता नहीं चलता था. यहां आ कर पता चला कि इस में तो बहुत मजा है.’’

‘‘मजा आ रहा है न दीवाली मनाने में. अगले साल सब हमारे घर मुंबई आएंगे दीवाली मनाने,’’ मीना ने चहकते हुए कहा.

‘‘और उस के अगले साल बेंगलुरु, हमारे यहां,’’ गोपाल की पत्नी तुरंत बोली.

‘‘हां, श्याम और गोपाल, अब से हम बारीबारी से हर एक के घर दीवाली साथ मनाएंगे. तुम्हें याद है, मां ने भी हमें यही प्रतिज्ञा करवाई थी,’’ भाई साहब हमारे करीब आ कर हम दोनों के कंधों पर हाथ रख कर बोले.

हम दोनों ने सहमति में अपनी गर्दन हिलाई. इतने में मेरी नजर छत की ओर जाती सीढि़यों पर बैठी भाभीजी पर पड़ी, जो मिठाइयों से भरा थाल हाथ में थामे मंत्रमुग्ध हम सभी को देख रही थीं. सहसा मु झे भाभीजी की आकृति में मां की छवि नजर आने लगी, जो हम से कह रही थी, ‘तुम एक डाली के 3 फूल हो.’

भाभी: क्यों बरसों से अपना दर्द छिपाए बैठी थी वह- भाग 2

मैं मन ही मन सोचती, मेरी हमउम्र भाभी और मेरे जीवन में कितना अंतर है. शादी के बाद ऐसा जीवन जीने से तो कुंआरा रहना ही अच्छा है. मेरे पिता पढ़ेलिखे होने के कारण आधुनिक विचारधारा के थे. इतनी कम उम्र में मैं अपने विवाह की कल्पना नहीं कर सकती थी. भाभी के पिता के लिए लगता है, उन के रूप की सुरक्षा करना कठिन हो गया था, जो बेटी का विवाह कर के अपने कर्तव्यों से उन्होंने छुटकारा पा लिया. भाभी ने 8वीं की परीक्षा दी ही थी अभी. उन की सपनीली आंखों में आंसू भरे रहते थे अब, चेहरे की चमक भी फीकी पड़ गई थी.

विवाह को अभी 3 महीने भी नहीं बीते होंगे कि भाभी गर्भवती हो गईं. मेरी भोली भाभी, जो स्वयं एक बच्ची थीं, अचानक अपने मां बनने की खबर सुन कर हक्कीबक्की रह गईं और आंखों में आंसू उमड़ आए. अभी तो वे विवाह का अर्थ भी अच्छी तरह समझ नहीं पाई थीं. वे रिश्तों को ही पहचानने में लगी हुई थीं, मातृत्व का बोझ कैसे वहन करेंगी. लेकिन परिस्थितियां सबकुछ सिखा देती हैं. उन्होंने भी स्थिति से समझौता कर लिया. भाई पितृत्व के लिए मानसिक रूप से तैयार तो हो गया, लेकिन उस के चेहरे पर अपराधभावना साफ झलकती थी कि जागरूकता की कमी होने के कारण भाभी को इस स्थिति में लाने का दोषी वही है. मेरी मां कभीकभी भाभी से पूछ कर कि उन्हें क्या पसंद है, बना कर चुपचाप उन के कमरे में पहुंचा देती थीं. बाकी किसी को तो उन से कोई हमदर्दी न थी.

प्रसव का समय आ पहुंचा. भाभी ने चांद सी बेटी को जन्म दिया. नन्हीं परी को देख कर, वे अपना सारा दुखदर्द भूल गईं और मैं तो खुशी से नाचने लगी. लेकिन यह क्या, बाकी लोगों के चेहरों पर लड़की पैदा होने की खबर सुन कर मातम छा गया था. भाभी की ननदें और चाची सभी तो स्त्री हैं और उन की अपनी भी तो 2 बेटियां ही हैं, फिर ऐसा क्यों? मेरी समझ से परे की बात थी. लेकिन एक बात तो तय थी कि औरत ही औरत की दुश्मन होती है. मेरे जन्म पर तो मेरे पिताजी ने शहरभर में लड्डू बांटे थे. कितना अंतर था मेरे चाचा और पिताजी में. वे केवल एक साल ही तो छोटे थे उन से. एक ही मां से पैदा हुए दोनों. लेकिन पढ़ेलिखे होने के कारण दोनों की सोच में जमीनआसमान का अंतर था.

मातृत्व से गौरवान्वित हो कर भाभी और भी सुडौल व सुंदर दिखने लगी थीं. बेटी तो जैसे उन को मन बहलाने का खिलौना मिल गई थी. कई बार तो वे उसे खिलातेखिलाते गुनगुनाने लगती थीं. अब उन के ऊपर किसी के तानों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था. मां बनते ही औरत कितनी आत्मविश्वास और आत्मसम्मान से पूर्ण हो जाती है, उस का उदाहरण भाभी के रूप में मेरे सामने था. अब वे अपने प्रति गलत व्यवहार की प्रतिक्रियास्वरूप प्रतिरोध भी करने लगी थीं. इस में मेरे भाई का भी सहयोग था, जिस से हमें बहुत सुखद अनुभूति होती थी.

इसी तरह समय बीतने लगा और भाभी की बेटी 3 साल की हो गई तो फिर से उन के गर्भवती होने का पता चला और इस बार भाभी की प्रतिक्रिया पिछली बार से एकदम विपरीत थी. परिस्थितियों ने और समय ने उन को काफी परिपक्व बना दिया था.

गर्भ को 7 महीने बीत गए और अचानक हृदयविदारक सूचना मिली कि भाई की घर लौटते हुए सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई है. यह अनहोनी सुन कर सभी लोग स्तंभित रह गए. कोई भाभी को मनहूस बता रहा था तो कोई अजन्मे बच्चे को कोस रहा था कि पैदा होने से पहले ही बाप को खा गया. यह किसी ने नहीं सोचा कि पतिविहीन भाभी और बाप के बिना बच्चे की जिंदगी में कितना अंधेरा हो गया है. उन से किसी को सहानुभूति नहीं थी.

समाज का यह रूप देख कर मैं कांप उठी और सोच में पड़ गई कि यदि भाई कमउम्र लिखवा कर लाए हैं या किसी की गलती से दुर्घटना में वे मारे गए हैं तो इस में भाभी का क्या दोष? इस दोष से पुरुष जाति क्यों वंचित रहती है?

एकएक कर के उन के सारे सुहाग चिह्न धोपोंछ दिए गए. उन के सुंदर कोमल हाथ, जो हर समय मीनाकारी वाली चूडि़यों से सजे रहते थे, वे खाली कर दिए गए. उन्हें सफेद साड़ी पहनने को दी गई. भाभी के विवाह की कुछ साडि़यों की तो अभी तह भी नहीं खुल पाई थी. वे तो जैसे पत्थर सी बेजान हो गई थीं. और जड़वत सभी क्रियाकलापों को निशब्द देखती रहीं. वे स्वीकार ही नहीं कर पा रही थीं कि उन की दुनिया उजड़ चुकी थी.

एक भाई ही तो थे जिन के कारण वे सबकुछ सह कर भी खुश रहती थीं. उन के बिना वे कैसे जीवित रहेंगी? मेरा हृदय तो चीत्कार करने लगा कि भाभी की ऐसी दशा क्यों की जा रही थी. उन का कुसूर क्या था? पत्नी की मृत्यु के बाद पुरुष पर न तो लांछन लगाए जाते हैं, न ही उन के स्वरूप में कोई बदलाव आता है. भाभी के मायके वाले भाई की तेरहवीं पर आए और उन्हें साथ ले गए कि वे यहां के वातावरण में भाई को याद कर के तनाव में और दुखी रहेंगी, जिस से आने वाले बच्चे और भाभी के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा. सब ने सहर्ष उन को भेज दिया यह सोच कर कि जिम्मेदारी से मुक्ति मिली. कुछ दिनों बाद उन के पिताजी का पत्र आया कि वे भाभी का प्रसव वहीं करवाना चाहते हैं. किसी ने कोई एतराज नहीं किया. और फिर यह खबर आई कि भाभी के बेटा हुआ है.

हमारे यहां से उन को बुलाने का कोई संकेत दिखाई नहीं पड़ रहा था. लेकिन उन्होंने बुलावे का इंतजार नहीं किया और बेटे के 2 महीने का होते ही अपने भाई के साथ वापस आ गईं. कितना बदल गई थीं भाभी, सफेद साड़ी में लिपटी हुई, सूना माथा, हाथ में सोने की एकएक चूड़ी, बस. उन्होंने हमें बताया कि उन के मातापिता उन को आने नहीं दे रहे थे कि जब उस का पति ही नहीं रहा तो वहां जा कर क्या करेगी लेकिन वे नहीं मानीं. उन्होंने सोचा कि वे अपने मांबाप पर बोझ नहीं बनेंगी और जिस घर में ब्याह कर गई हैं, वहीं से उन की अर्थी उठेगी.

मैं ने मन में सोचा, जाने किस मिट्टी की बनी हैं वे. परिस्थितियों ने उन्हें कितना दृढ़निश्चयी और सहनशील बना दिया है. समय बीतते हुए मैं ने पाया कि उन का पहले वाला आत्मसम्मान समाप्त हो चुका है. अंदर से जैसे वे टूट गई थीं. जिस डाली का सहारा था, जब वह ही नहीं रही तो वे किस के सहारे हिम्मत रखतीं. उन को परिस्थितियों से समझौता करने के अतिरिक्त कोई चारा दिखाई नहीं पड़ रहा था. फूल खिलने से पहले ही मुरझा गया था. सारा दिन सब की सेवा में लगी रहती थीं.

एक डाली के तीन फूल- भाग 2: 3 भाईयों ने जब सालो बाद साथ मनाई दीवाली

मैं विचारों में डूबा ही था कि मेरी बेटी कनक ने कमरे में प्रवेश किया. मु झे इस तरह विचारमग्न देख कर वह ठिठक गई. चिहुंक कर बोली, ‘‘आप इतने सीरियस क्यों बैठे हैं, पापा? कोई सनसनीखेज खबर?’’ उस की नजर मेज पर पड़ी चिट्ठी पर गई. चिट्ठी उठा कर वह पढ़ने लगी.

‘‘तुम्हारे ताऊजी की है,’’ मैं ने कहा.

‘‘ओह, मतलब आप के बिग ब्रदर की,’’ कहते हुए उस ने चिट्ठी को बिना पढ़े ही छोड़ दिया. चिट्ठी मेज पर गिरने के बजाय नीचे फर्श पर गिर कर फड़फड़ाने लगी.

भाई साहब के पत्र की यों तौहीन होते देख मैं आगबबूला हो गया. मैं ने लपक कर पत्र को फर्श से उठाया व अपनी शर्ट की जेब में रखा, और फिर जोर से कनक पर चिल्ला पड़ा, ‘‘तमीज से बात करो. वह तुम्हारे ताऊजी हैं. तुम्हारे पापा के बड़े भाई.’’

‘‘मैं ने उन्हें आप का बड़ा भाई ही कहा है. बिग ब्रदर, मतलब बड़ा भाई,’’ मेरी 18 वर्षीय बेटी मु झे ऐसे सम झाने लगी जैसे मैं ने अंगरेजी की वर्णमाला तक नहीं पड़ी हुई है.

‘‘क्या बात है? जब देखो आप बच्चों से उल झ पड़ते हो,’’ मेरी पत्नी मीना कमरे में घुसते हुए बोली.

‘‘ममा, देखो मैं ने पापा के बड़े भाई को बिग ब्रदर कह दिया तो पापा मु झे लैक्चर देने लगे कि तुम्हें कोई तमीज नहीं, तुम्हें उन्हें तावजी पुकारना चाहिए.’’

‘‘तावजी नहीं, ताऊजी,’’ मैं कनक पर फिर से चिल्लाया.

‘‘हांहां, जो कुछ भी कहते हों. तावजी या ताऊजी, लेकिन मतलब इस का यही है न कि आप के बिग ब्रदर.’’

‘‘पर तुम्हारे पापा के बिग ब्रदर… मतलब तुम्हारे ताऊजी का जिक्र कैसे आ गया?’’ मीना ने शब्दों को तुरंत बदलते हुए कनक से पूछा.

‘‘पता नहीं, ममा, उस चिट्ठी में ऐसा क्या लिखा है जिसे पढ़ने के बाद पापा के दिल में अपने बिग ब्रदर के लिए एकदम से इतने आदरभाव जाग गए, नहीं तो पापा पहले कभी उन का नाम तक नहीं लेते थे.’’

‘‘चिट्ठी…कहां है चिट्ठी?’’ मीना ने अचरज से पूछा.

मैं ने चिट्ठी चुपचाप जेब से निकाल कर मीना की ओर बढ़ा दी.

चिट्ठी पढ़ कर मीना एकदम से बोली, ‘‘आप के भाई साहब को अचानक अपने छोटे भाइयों पर इतना प्यार क्यों उमड़ने लगा? कहीं इस का कारण यह तो नहीं कि रिटायर होने की उम्र उन की करीब आ रही है तो रिश्तों की अहमियत उन्हें सम झ में आने लगी हो?’’

‘‘3 साल बाद भाई साहब रिटायर होंगे तो उस के 5 साल बाद मैं हो जाऊंगा. एक न एक दिन तो हर किसी को रिटायर होना है. हर किसी को बूढ़ा होना है. बस, अंतर इतना है कि किसी को थोड़ा आगे तो किसी को थोड़ा पीछे,’’ एक क्षण रुक कर मैं बोला, ‘‘मीना, कभी तो कुछ अच्छा सोच लिया करो. हर समय हर बात में किसी का स्वार्थ, फरेब मत खोजा करो.’’

मीना ने ऐलान कर दिया कि वह दीवाली मनाने देहरादून भाईर् साहब के घर नहीं जाएगी. न जाने के लिए वह कभी कुछ दलीलें देती तो कभी कुछ, ‘‘आप की अपनी कुछ इज्जत नहीं. आप के भाई ने पत्र में एक लाइन लिख कर आप को बुलाया और आप चलने के लिए तैयार हो गए एकदम से देहरादून एक्सप्रैस में, जैसे कि 24 साल के नौजवान हों. अगले साल 50 के हो जाएंगे आप.’’

‘‘मीना, पहली बात तो यह कि अगर एक भाई अपने दूसरे भाई को अपने आंगन में दीवाली के दीये जलाने के लिए बुलाए तो इस में आत्मसम्मान की बात कहां से आ जाती है? दूसरी बात यह कि यदि इतना अहंकार रख कर हम जीने लग जाएं तो जीना बहुत मुश्किल हो जाएगा.’’

‘‘मुझे दीवाली के दिन अपने घर को अंधेरे में रख कर आप के भाई साहब का घर रोशन नहीं करना. लोग कहते हैं कि दीवाली अपने ही में मनानी चाहिए,’’ मीना  झट से दूसरी तरफ की दलीलें देने लग जाती.

‘‘मीना, जिस तरीके से हम दीवाली मनाते हैं उसे दीवाली मनाना नहीं कहते. सब में हम अपने इन रीतिरिवाजों के मामले में इतने संकीर्ण होते जा रहे हैं कि दीवाली जैसे जगमगाते, हर्षोल्लास के त्योहार को भी एकदम बो िझल बना दिया है. न पहले की तरह घरों में पकवानों की तैयारियां होती हैं, न घर की साजसज्जा और न ही नातेरिश्तेदारों से कोई मेलमिलाप. दीवाली से एक दिन पहले तुम थके स्वर में कहती हो, ‘कल दीवाली है, जाओ, मिठाई ले आओ.’ मैं यंत्रवत हलवाई की दुकान से आधा किलो मिठाई ले आता हूं. दीवाली के रोज हम घर के बाहर बिजली के कुछ बल्ब लटका देते हैं. बच्चे हैं कि दीवाली के दिन भी टेलीविजन व इंटरनैट के आगे से हटना पसंद नहीं करते हैं.’’

थोड़ी देर रुक कर मैं ने मीना से कहा, ‘‘वैसे तो कभी हम भाइयों को एकसाथ रहने का मौका मिलता नहीं, त्योहार के बहाने ही सही, हम कुछ दिन एक साथ एक छत के नीचे तो रहेंगे.’’ मेरा स्वर एकदम से आग्रहपूर्ण हो गया, ‘‘मीना, इस बार भाई साहब के पास चलो दीवाली मनाने. देखना, सब इकट्ठे होंगे तो दीवाली का आनंद चौगुना हो जाएगा.’’

मीना भाई साहब के यहां दीवाली मनाने के लिए तैयार हो गई. मैं, मीना, कनक व कुशाग्र धनतेरस वाले दिन देहरादून भाईर् साहब के बंगले पर पहुंच गए. हम सुबह पहुंचे. शाम को गोपाल पहुंच गया अपने परिवार के साथ.

प्यार का रिश्ता : कौनसा था वह अनाम रिश्ता – भाग 4

सब रीना से रोने को बोल रहे थे, लेकिन उसे रोना ही नहीं आ रहा था. कोई रोने को बोल रहा, कोई चूड़ी तोड़ रहा तो कोई मांग से सिंदूर पोंछ रहा था. रीना मन ही मन सोच रही थी, ‘मैं क्यों रोऊं? चला गया तो अच्छा हुआ. मेरी जान का क्लेश चला गया. कभी चैन नहीं लेने दिया, कभी कोठी के अंकल के साथ नाम जोड़ देता तो कभी सुनील तो कभी अखिल के साथ. जिस से भी मैं दो पल बात करती, उसी के साथ रिश्ता जोड़ देता. गाली तो हर समय जबान पर रहती…’ रमेश की अर्थी उठनी थी, इसलिए पैसे की जरूरत थी. उस ने मान्या मैडम को फोन कर के बताया था कि उस का आदमी नहीं रहा है, इसलिए पैसे की जरूरत है.

सुनील जा कर पैसे ले आया था. रीना मन ही मन सोच रही थी ‘वाह रे पैसा, जब बच्चा पैदा हुआ था, तो आपरेशन, दवा के लिए पैसा चाहिए, इनसान की मौत हो गई है तो दाहसंस्कार के लिए भी पैसा.’  रमेश की अर्थी सज चुकी थी. सुनील घर के सदस्य की तरह आगे बढ़ कर सारे काम जिम्मेदारी से कर रहा था. सासू मां और चाल की औरतें चिल्लाचिल्ला कर रो रही थीं. तीसरे दिन हवन और शांतिपाठ हो कर शुद्धि हो गई थी. अगली सुबह जब वह काम पर जाने के लिए निकलने लगी, वैसे ही सासू मां उस पर चिल्ला उठी थीं ‘‘कैसी लाजशर्म छोड़ दी है. शोक तो मना नहीं रही और देखो तो काम पर जा रही है. ऐसी बेशर्मबेहया औरत तो देखी नहीं.’’ बूआ ने नहले पर दहला मारा था, ‘‘कैसी सज के जा रही है, किसी के संग नैनमटक्का करती होगी. इसी बात से रमेश दुखी हो कर शराब पीने लगा होगा.’’

रीना अब किसी की परवाह नहीं करती. वह रंगबिरंगे कपड़े पहनती, हाथों में भरभर चूडि़यां पहनती, पाउडर, लिपिस्टिक और बालों में गजरा भी लगाती. देखने वाले उसे देख कर आह भरते. ‘किस पर बिजली गिराने चल दी.’  ‘अब तो रमेश भी नहीं रहा. किस के लिए यह साजसिंगार करती हो…’ ‘‘मैं अपनी खुशी के लिए सजती हूं.’’ ‘‘रीना कुछ तो डरो. विधवा हो, विधवा की तरह रहा करो,’’ पीछे से सासू मां की आवाज थी, पर वह अनसुनी कर के चली जाती. सुनील उस के लिए चांदी की झुमकी ले आया था. वह पहनने को बेचैन थी. उस ने सासू मां से कहा, ‘‘मैडम ने दीवाली के लिए दी है.’’ हाथ में पैसा रहता, रीना तरहतरह की सजनेसंवरने की चीजें खरीदती और मैडम लोगों के कपड़े भी मिल जाते.

उसे बचपन से शोख रंग के कपड़े पसंद थे. अब वह अपने सारे शौक पूरे कर रही थी. अब उसे न तो सासू मां के निर्देशों की परवाह थी और न ही चाल वालों के तानों की. सासू मां को रमेश का जाना और रीना की मनमानी बरदाश्त नहीं हो रही थी. वे कमजोर होती जा रही थीं. एक दिन वे रात में बाथरूम के लिए उठीं तो गिर पड़ीं.

मालूम हुआ कि उन्हें लकवे का अटैक आ गया है. रात में तो किसी तरह बच्चों की मदद से उन्हें चारपाई पर लिटा लिया, लेकिन सुबह जब डाक्टर बुला कर सुनील लाया तो पता चला कि उन का आधा शरीर बेकार हो गया है.  ऐसे मुश्किल समय में सुनील रीना की मदद को आगे आया था. वह भी परेशान था, सोसाइटी की नौकरी छूट गई थी, कहीं रहने का ठिकाना भी नहीं था. उस ने उसे अपने घर में रख लिया. वह रिया और सोम को पढ़ाता. घर के लिए सागसब्जी ले आता.

सब से ज्यादा तो सासू मां के काम में सहारा करता. रीना को उस के रहने से सहूलियत हो गई थी. दोनों के बीच एक अनाम रिश्ता हो गया था. वह पढ़ालिखा था, नौकरी छूटने के चलते वह आटोरिकशा चलाने लगा था. लोग तरहतरह की बातें बनाते. रीना एक कान से सुनती दूसरे से निकाल देती. एक दिन सासू मां सोई तो सोती रह गई थीं. खबर सुनते ही लोगों की भीड़ तरहतरह की कानाफूसी कर रही थी. सासू मां के जाने का गम रीना सहन नहीं कर पा रही थी, इसलिए वह रोरो कर बेहाल थी.  सुनील ने ही आगे बढ़ कर सारा काम किया था. रिश्तेदार ‘चूंचूं’ कर  रहे थे. ‘‘यह कौन है?

दूसरी बिरादरी का है.’’ ‘‘यह रीना का नया खसम है. इसी के चक्कर में तो रमेश को नशे की लत लग गई थी और सास भी इसी गम में चली गई,’’ कहते हुए रिश्ते की एक ननद रोने का नाटक कर रही थी. रीना के लिए चुप रहना मुश्किल हो गया था, ‘‘इतने दिन से सासू मां खटिया पर सब काम कर रही थीं, तो कोई नहीं आया पूछने को कि रीना अम्मां को कैसे संभाल रही हो. सुनील ने उन की सारी गंदगी साफ की. अम्मां तो उसे आशीर्वाद देते नहीं थकती थीं.

आज सब बातें बनाने को खड़े हो गए.’’ सब तरफ सन्नाटा छा गया था. अब रीना को किसी की परवाह नहीं थी कि कौन क्या कह रहा है. कई दिनों से सुनील अनमना सा रहता. वह देख रही थी कि वह बच्चों से भी बात नहीं करता. सुबह जल्दी चला जाता और देर रात लौटता. ‘‘क्यों सुनील, कोई परेशानी है तो बताओ?’’ ‘‘नहीं, मैं अपने लिए खोली ढूंढ़  रहा था. पास में मिल नहीं रही थी, इसलिए दूर पर ही लेना पड़ा. आज एडवांस दूंगा.’’ ‘‘क्यों? यहीं रहो, मुझे सहारा है  और बच्चों के भी कितने अच्छे नंबर आ रहे हैं.’’ ‘‘लोगों की उलटीसीधी गंदी बातें सुनसुन कर मेरे कान पक गए हैं.

अब बरदाश्त नहीं होता. अब अम्मां भी नहीं रहीं. मेरा यहां क्या काम?’’ ‘‘लोगों का तो काम है कहना. आज एडवांस मत देना. शाम को बात करेंगे,’’ कह कर रीना अपने काम पर चली गई थी. सुनील अभी लौटा नहीं था. बच्चे सो गए थे. उस ने सुहागिनों की तरह अपना सोलह सिंगार किया था. वही लाल साड़ी पहन ली, जो सुनील उस के लिए लाया था. सिंगार कर के जब आईने में अपने अक्स को देखा, तो अपनी सुंदरता पर वह खुद शरमा उठी थी.  तभी आहट हुई थी और सुनील उस को देखता ही रह गया था. रीना ने कांपते हाथों से सिंदूर का डब्बा सुनील की ओर बढ़ा दिया. उस रात वह सुनील की बांहों में खो गई थी. अनाम रिश्ते को एक नाम मिल गया था ‘प्यार का रिश्ता’.

बुराई: जानलेवा नशा और नामचीन लोग

अभी कुछ दिन पहले जब गोवा में अचानक हरियाणा की भारतीय जनता पार्टी की नेता और ‘टिकटौक’ पर अपने डांस से लोगों को दीवाना बना देने वाली सोनाली फोगाट के मरने की खबर आई थी, तो लोगों को लगा था कि इतनी फिट औरत कैसे अचानक हार्ट अटैक से मर सकती है? पर सोनाली फोगाट के घर वालों को उन की मौत पर शक हुआ और उन की फरियाद पर पुलिस ने दोबारा छानबीन की. फिर कुछ ऐसा पता चला, जो सोनाली फोगाट की मौत में ट्विस्ट ले आया.

इस सिलसिले में पुलिस ने सुधीर सागवान और सुखविंदर सिंह नाम के

2 लोगों को धरा और उन पर इलजाम लगाया कि उन्होंने कथित तौर पर पानी में नशीली चीज मिलाई थी और 22 और 23 अगस्त, 2022 की रात को कर्लीज रैस्टोरैंट में एक पार्टी के दौरान सोनाली फोगाट को इसे पीने के लिए मजबूर किया था.

अभी यह मामला सुर्खियों में ही था कि हालिया बर्मिंघम कौमनवैल्थ गेम्स में कांसे का तमगा जीतने वाली हरियाणा की एक पहलवान पूजा सिहाग नांदल के पति अजय नांदल की संदिग्ध हालत में मौत हो गई. वे रोहतक के मेहर सिंह अखाड़े के नजदीक कार में अपने 2 पहलवान दोस्तों के साथ पार्टी कर रहे थे.

गांव गढ़ी बोहर के बाशिंदे बिजेंद्र नांदल के 30 साल के बेटे अजय नांदल भी पहलवान थे. उन्हें कुश्ती के आधार पर ही सीआईएसएफ में नौकरी मिली थी. वे शनिवार, 27 अगस्त, 2022 को ही नौकरी कर के घर लौटे थे और उसी शाम को अपने 2 साथी पहलवान रवि और सोनू के साथ कार में पार्टी कर रहे थे.

पुलिस की शुरुआती जांच में सामने आया कि उन तीनों ने कुछ ऐसा पी लिया था, जिस के बाद उन की तबीयत बिगड़ने लगी थी. इस के बाद वे कार ले कर देव कालोनी में बने मेहर सिंह अखाड़े के पास पहुंचे, जहां और ज्यादा तबीयत खराब होने पर वे निजी अस्पताल में गए, वहां अजय नांदल की मौत हो गई.

अजय नांदल के पिता बिजेंद्र किसान हैं, जबकि मां सुनीता घरेलू औरत हैं. अजय और पूजा ने 28 नवंबर, 2021 को ही लव मैरिज की थी, जिस में दोनों के परिवारों की रजामंदी थी.

खबरों की मानें, तो पुलिस को कार में सिरिंज मिली थी और नशे में ओवरडोज का शक जताया जा रहा था, जबकि अजय नांदल के पिता बिजेंद्र ने रवि पर अजय को नशे की ओवरडोज दे कर मारने का आरोप लगाया.

अजय नांदल या सोनाली फोगाट को किसी ने नशे की ओवरडोज दी या वे खुद नशे के आदी थे, इस बात से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. फर्क इस बात से पड़ता है कि वे दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं और उन के सगेसंबंधी सारी उम्र इस दर्द के साथ गुजारेंगे कि नशे ने उन के अपनों की जान ले ली.

ऐसा नहीं है कि इस तरह के कांड पहले नहीं हुए हैं या इन से पहले नामचीन लोगों का नाम नशे के साथ नहीं जुड़ा है. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में संजय दत्त, प्रतीक बब्बर, रणबीर कपूर, फरदीन खान, हनी सिंह, पूजा भट्ट, मनीषा कोइराला के अलावा और भी न जाने कितने नाम हैं, जो अपनी नशे की लत के बारे में खुल कर बोल चुके हैं.

संजय दत्त ने ‘इवैंट ऐंड ऐंटरटेनमैंट मैनेजमैंट एसोसिएशन’ के एक सालाना सम्मेलन में खुद खुलासा किया था, ‘‘नशीली दवाओं के सेवन के बारे में कुछ ऐसा है कि अगर आप इन का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो इन का इस्तेमाल करेंगे ही. एक बार जब आप इस की लत में पड़ जाते हैं, तो इसे छोड़ना बहुत मुश्किल होता है. दुनिया में कुछ भी इस से बुरा नहीं है. मैं तकरीबन 12 साल तक नशीली दवाओं का सेवन करता रहा.

‘‘दुनिया में ऐसी कोई ड्रग नहीं है, जिस का मैं ने सेवन न किया हो. जब मेरे पिता मुझे नशा मुक्ति के लिए अमेरिका ले गए, तो डाक्टर ने मुझे ड्रग्स की एक लिस्ट दी और मैं ने उस लिस्ट में लिखी हर ड्रग को टिक किया, क्योंकि मैं

उन सभी को पहले ही ले चुका था.

‘‘डाक्टर ने मेरे पिताजी से कहा था कि आप लोग भारत में किस तरह का खाना खाते हैं? इन्होंने जो ड्रग्स ली हैं, उन के मुताबिक इन्हें अब तक मर जाना चाहिए.’’

इसी तरह राज बब्बर और स्मिता पाटिल के बेटे प्रतीक बब्बर ने अपने नशे की लत पर कहा, ‘‘मेरी ड्रग्स की वजह से मेरा बचपन अशांत रहा. लगातार अंदरूनी कलह की वजह से, मेरे सिर में आवाजें गूंजती रहती थीं. मैं खुद से सवाल करता था कि मैं कहां हूं. केवल 13 साल की उम्र में मैं ने पहली बार ड्रग्स ली और फिर लती हो गया.

‘‘ड्रग्स के बिना मेरा बिस्तर से उठना तकरीबन नामुमकिन था. तकरीबन हर सुबह मेरा जी मिचलाता था. मेरे शरीर में दर्द होता था. मुझे कभी गरमी तो कभी सर्दी लगती थी.

‘‘जब मेरे पास कोई पसंदीदा

ड्रग नहीं होती थी, तो मैं किसी

भी ड्रग्स को अपना बना

लेता. जबकि यह मेरे

लिए बहुत ही हानिकारक था.’’

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री और राजनीतिक गलियारों में नशे से जुड़ी खबरों का जन्म लेना कोई नई बात नहीं है, पर अब खेल जगत में खासकर पहलवानी जैसे खेलों में ड्रग्स की ऐंट्री खतरे की घंटी है.

हरियाणा से लगते पंजाब में नशे ने जो कोहराम मचाया हुआ है, वह किसी सुबूत का मुहताज नहीं है. पंजाबी रैप सिंगर हनी सिंह भी इस बुराई से जूझ चुके हैं. पर हरियाणा के पहलवानों और दूसरे खिलाडि़यों में अगर ड्रग्स घुस चुकी है तो यह चिंता की बात है.

पर यह नशे की लत लोगों में बढ़ क्यों रही है? इस सिलसिले में लखनऊ की मांडवी पांडेय, जो ‘दार्जुव 9’ में इको एंटरप्रेन्योर हैं, ने बताया, ‘‘आज लोग वास्तविक जिंदगी से ज्यादा आभासी दुनिया में जी रहे हैं. उन का अपनों से मिलना कम हो चुका है. दुख और हैरत की बात है कि वर्चुअल दुनिया में लोगों को एकदूसरे से खुद को बेहतर दिखाने की होड़ लगी हुई है.

‘‘गांव हो या शहर, अब परिवार की भावना बिखर रही है. आभासी दुनिया के ‘लाइक ऐंड कमैंट’ पर दुनिया सिमटती जा रही है. इन्हीं सब से मानसिक अवसाद पैदा हो रहा है, जो लोगों को नशे की तरफ ले जा रहा है. यह खतरनाक है और इसीलिए आज नशे के खिलाफ जागरूकता फैलाने की बहुत जरूरत है. लोगों को अपने परिवार की अहमियत समझनी होगी. अकेलेपन से बचने का यह सब से कारगर तरीका है.’’

परिवार के साथसाथ यह अकेलापन किसी काम में रमने से भी कम किया जा सकता है, इसलिए काम का नशा कीजिए, जिंदगी जीने का उस से बढि़या कोई तरीका नहीं है.

गरम गोश्त के सौदागर: भाग 3

‘‘मिस्टर अरूप, मुझे विशाल ने आप का नंबर दिया है. मैं आप की सेवा मुफ्त में नहीं लूंगा. माल आप का होगा, कीमत अदा मैं करूंगा.’’

‘‘विशाल ने नंबर दिया है तो आप से मिलने और आप की खिदमत करना मैं अपना फर्ज समझूंगा. आप इस वक्त कहां खड़े हैं?’’

‘‘मैं पंचशील पार्क में अपने दोस्त के साथ खड़ा हूं.’’ कांस्टेबल सोहनवीर ने बताया.

‘‘ठीक है, मैं चंद मिनटों में पहुंच रहा हूं.’’ दूसरी तरफ से कहा गया और संपर्क कट कर दिया गया.

और फिर थोड़ी ही देर में एजेंट मोहम्मद अरूप उस पार्क के गेट पर हाजिर हो गया.

कांस्टेबल सोहनवीर गर्मजोशी से उस से मिला. दोनों ने हाथ यूं मिलाए, जैसे एकदूसरे को बरसों से जानते हों.

‘‘आप किस प्रकार का एजौय चाहेंगे मिस्टर अभिषेक, मेरे गुलदस्ते में देशीविदेशी दोनों प्रकार के फूल हैं.’’ मोहम्मद अरूप ने पूछा.

‘‘देशी फूल तो इंडिया में मिल जाते हैं, विदेशी फूल की खुशबू सुंघाइए आप.’’ सोहनवीर ने मुसकरा कर कहा.

‘‘विदेशी फूल कीमती है जनाब.’’

‘‘आप रुपयों की चिंता मत कीजिए. बाई द वे, क्या कीमत होगी एक फूल की?’’

‘‘एक शौट 15 हजार रुपए का होगा, फुलनाइट के लिए 25 हजार कीमत है.’’

‘‘फिलहाल एक शौट ही बहुत होगा, फुल एंजौय अगली बार के लिए.’’ सोहनवीर हंस कर बोला, ‘‘हम 30 हजार दे देंगे, आप फूलों की झलक दिखाइए.’’

‘‘आप मेरे साथ आइए,’’ मोहम्मद अरूप ने इशारा किया.

दोनों उस के साथ चल पड़े. मोहम्मद अरूप उन्हें पंचशील विहार की आदर्श हास्पिटल वाली गली के एक फ्लैट बी-49 में लाया. यहां बड़ा लोहे का गेट लगा था. मोहम्मद अरूप ने घंटी बजा कर कोड भाषा में कुछ बोला तो गेट खुल गया.

सामने एजेंट चंदे साहनी उर्फ राजू खड़ा था. उस ने उन दोनों का स्वागत किया. वे चारों सीढि़यों द्वारा चौथी मंजिल पर आ गए. बाहर शानदार बैठक थी, जहां सोफे लगे थे. सोहनवीर और राजेश उन पर बैठ गए.

मोहम्मद अरूप ने ताली बजाई तो अंदर से 10 गोरी चमड़ी वाली विदेशी लड़कियां बाहर आ कर खड़ी हो गईं. जवान व खूबसूरत हसीनाएं. सब एक से बढ़ कर एक. वे मुसकरा रही थीं.

‘‘आप को इन में से जो पसंद हो, उसे लाइन से अलग कर लीजिए.’’ चंदे साहनी ने मुसकरा कर कहा.

कांस्टेबल सोहनवीर ने एक 19 साल की हसीना की कलाई पकड़ कर उसे लाइन से बाहर कर लिया. एएसआई ने भी अपना पार्टनर चुन लिया. शेष 8 वापस कमरों में लौट गईं.

‘‘लाइए, 30 हजार रुपए दीजिए.’’ मोहम्मद अरूप ने हथेली बढ़ाई.

कांस्टेबल सोहनवीर ने पर्स से डीसीपी के हस्ताक्षर किए हुए 5-5 सौ के 30 नोट निकाल कर मोहम्मद अरूप के हाथ में रख दिए.

‘‘यह तो आप के हुए…’’ मोहम्मद अरूप नोट गिनने के बाद बोला, ‘‘इन जनाब के 15 हजार भी दीजिए.’’

‘‘मैं कुछ देर में शौक करूंगा. मुझे पूरी तरह फिट होने के लिए 5 मिनट का वक्त चाहिए. अभिषेक तुम इसे ले कर कमरे में जाओ और मौज करो…’’ एएसआई राजेश आंख दबा कर बोले.

फिर मोहम्मद अरूप की तरफ देख कर बोले, ‘‘मुझे एक गोली खानी है, क्या एक गिलास पानी मिलेगा?’’

एएसआई ने जेब से एक लाल रंग का कैप्सूल निकाला.

‘‘क्यों नहीं,’’ अरूप ने चंदे साहनी को पानी लाने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘फिट होने की गोली है क्या जनाब?’’

‘‘हां,’’ एएसआई हंस कर बोले और चंदे साहनी से पानी का गिलास ले कर बालकनी में आ गए. वह कैप्सूल विटामिन का था. पानी के साथ उसे गले से नीचे उतार लेने के बाद गिलास दूसरे हाथ में ले कर एएसआई राजेश ने सिर पर हाथ फेरा. यह रेडिंग पार्टी के लिए इशारा था.

कुछ ही क्षण गुजरे होंगे कि पुलिस रेडिंग पार्टी धड़धड़ाती हुई इमारत में घुस आई. उन्हें देखते ही मोहम्मद अरूप अंदर की ओर भागा लेकिन एएसआई राजेश ने छलांग कर उसे दबोच लिया. चंदे साहनी पर कांस्टेबल सोहनवीर झपट चुका था. उसे भी काबू करते देर नहीं लगी.

कुछ ही देर में रेडिंग पार्टी ने 10 लड़कियां, उन से धंधा करवाने वाले इस देह धंधे के मालिक डोब अहमद और उस की पत्नी जुमायेवा, दोनों एजेंट मोहम्मद अरूप और चंदे साहनी तथा इन युवतियों को यहां दिल्ली लाने वाले अली शेर को गिरफ्तार कर लिया.

ये सभी लड़कियां उज्बेकिस्तानी थीं. अली शेर इन्हें अच्छी नौकरी का झांसा दे कर नेपाल के रास्ते दिल्ली ले कर आया था. यहां इन को इस सैक्स रैकेट के सरगना डोब अहमद के हवाले कर दिया गया था, जो इन के पासपोर्ट और वीजा अपने कब्जे में करने के बाद इन से जबरन देह का धंधा करवा रहा था. इस में इस की पत्नी जुमायेवा भी शामिल थी.

डोब अहमद तुर्कमेनिस्तान का निवासी था और वह अपनी पत्नी के साथ मालवीय नगर के इस पंचशील विहार के फ्लैट में किराया दे कर चौथी मंजिल पर यह सैक्स का धंधा चला रहा था.

दलाल चंदे साहनी वार्ड नंबर 6, नेरिया, पोस्ट सोनहन,थाना किओरी, दरभंगा, बिहार का निवासी था. मोहम्मद अरूप थाना पूर्णिया जिला कटिहार, बिहार से था. ये दोनों ग्राहक पटा कर यहां लाते थे. मोहम्मद अरूप को डोब अहमद 20 हजार रुपया महीना देता था. वह यहां का मैनेजर भी था.

इन सभी को थाना पुष्प विहार, क्राइम ब्रांच लाया गया. पकड़ी गई लड़कियों की तलाशी में पासपोर्ट और वीजा नहीं मिला. इस के लिए अवैध रूप से भारत आने और रहने के लिए मुकदमा दर्ज

किया गया.

इस प्रकरण को एसआई सुमन बजाज के द्वारा भादंवि की धारा 370(4), 34 और आईटीपी एक्ट की धारा 3, 4, 5 के अंतर्गत दर्ज करवाया गया.

डीसीपी विचित्रवीर (क्राइम ब्रांच) ने इस रैकेट का भंडाफोड़ करने वाली टीम को शाबासी दे कर उन का सम्मान किया. पुलिस ने सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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