किसान ने वैज्ञानिक खेती से मिसाल कायम की

लेखक-  बृहस्पति कुमार पांडेय

जबकि इन उद्योगों और उद्योगपतियों को जिन किसानों से अपना उद्योग चलाने के लिए ज्यादातर कच्चा माल मिलता है, उन के खेती उत्पादों को यही उद्योगपति और इन के बिचौलिए औनेपौने दाम में खरीद कर मोटा पैसा बनाते हैं.

देश के अन्नदाता तमाम मुसीबतों को झेल कर अनाज, फलफूल, सब्जियां, दूध उत्पाद वगैरह पैदा करते हैं और जब कीमत तय करने की बारी आती है तो इस के लिए उन्हें सरकार और बिचौलियों के भरोसे रहना पड़ता है. इसी वजह से अकसर किसानों को खेती में घाटा सहना पड़ता है.

उद्योगों के लिए सरकारी नीतियों में ढील से ले कर मनमाने तरीके से कीमत तय करने तक की छूट दी गई है, वहीं इन उद्योगपतियों के रीढ़ की हड्डी माने जाने वाले किसानों और खेती उत्पादों को ले कर सरकारों का नजरिया सालों से ढीलाढाला ही रहा?है. इस का नतीजा है कि उद्योगपति दिन दूना रात चौगुना माल कमाते हैं, वहीं दूसरी ओर किसान माली तंगी का शिकार हो कर खुदकुशी जैसे सख्त कदम उठाते हैं.

सरकार द्वारा हर साल पेश होने वाले सरकारी बजट में भी किसानों को ले कर बस झुनझुना ही अब तक थमाया जाता रहा है. कभी मुफ्तखोरी, तो कभी जीरो बजट खेती का सपना दिखा कर किसानों की तरक्की के बड़ेबड़े दावे सरकारों द्वारा किए जाते रहे हैं, लेकिन किसानों की माली हालत सुधरने के बजाय दिनोंदिन बदतर होती जा रही है. नतीजतन, किसान और उस के परिवारों के लोग धीरेधीरे खेती से दूर होने लगे हैं और अपनी जरूरतभर की चीजें उगाने में लगे हैं.

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अगर किसानों को ले कर सरकारों का नजरिया ऐसा ही रहा तो एक दिन भारत की एक बड़ी आबादी को खाने के लाले पड़ जाएंगे. उस दौरान सरकार और उद्योगों के पास पछताने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं होगा.

इन उलट हालात में भी जिन किसानों ने खुद को खेती से जोड़ कर वैज्ञानिक तरीका अपनाते हुए खेती की पहल की है, उन्हें खेती के जरीए न केवल बेहतर रोजगार मिला?है, बल्कि कीमत तय करने को ले कर सरकार और बिचौलियों से छुटकारा भी मिला है.

ऐसे किसानों ने लीक से हट कर खेती की शुरुआत की तो इन किसानों ने न केवल इज्जत और शोहरत बटोरी, बल्कि खेती भी दूसरे उद्योगों की तरह बेहतर रोजगार का जरीया बन गई.

ऐसे ही एक किसान?हैं कौशल कुमार सिंह, जो बस्ती जिले के हर्रैया तहसील के ब्लौक विक्रमजोत के रहने वाले हैं. उन्होंने खुद को उलट हालात से उबारते हुए वैज्ञानिक तरीके से नकदी फसलों की खेती कर के न केवल अपनी आमदनी में इजाफा किया है, बल्कि शानोशौकत और शोहरत भी हासिल की.

केले की खेती से शुरुआत :  कौशल कुमार सिंह ने कुछ साल पहले 3 एकड़ खेत में केले की जी 9 प्रजाति की रोपाई करने का फैसला लिया. उन्होंने प्रति एकड़ की दर से 1300 पौधे रोपे. इस पर कुल 90,000 से

1 लाख रुपए तक की लागत आई.

उन्होंने इस फसल में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सुझाई गई मात्रा में खाद और उर्वरक का इस्तेमाल किया. नतीजा यह रहा कि आसपास के दूसरे किसानों की अपेक्षा उन के केले की एक घार का न्यूनतम औसत वजन

30 किलोग्राम से ज्यादा आया. इस तरह से उन्होंने महज 1 एकड़ खेत से तकरीबन

400 क्विंटल उपज हासिल की. इस से उन्हें

4 लाख रुपए की खालिस कमाई हुई. तब से वे लगातार केले की खेती करते आ रहे हैं.

अच्छी बात यह रही कि केले की मार्केटिंग को ले कर उन्हें जोखिम नहीं उठाना पड़ा क्योंकि केले के आढ़तियों ने घर से ही बाजार मूल्य से ज्यादा पैसा दे कर उन की फसल खरीद ली. वर्तमान में उन के यहां से एक थोक कारोबारी तकरीबन 70 क्विंटल केले की खरीदारी आराम से कर लेता है.

उन्होंने बताया कि केले की फसल में ज्यादातर फंगस का प्रकोप होता है. इस बीमारी से बचाव के लिए कार्बंडाजिम और कौपर औक्सीक्लोराइड का इस्तेमाल करते?हैं जिस से वे फसल को होने वाले नुकसान से बचा पाते हैं.

अनार ने दिलाई कामयाबी : जहां कौशल कुमार सिंह के आसपास के गांव के किसान पारंपरिक तौर पर गेहूं, धान व तिलहन की खेती करते हैं, वहीं उन्होंने अनार की उन्नत प्रजाति रोपने का फैसला किया और उन्होंने सवा बीघा खेत में अनार के पौधे रोप दिए. पौधों की रोपाई के दौरान उन्होंने पौधे से पौधे की दूरी

9 फुट और लाइन से लाइन की दूरी 9 फुट रखी.

कौशल कुमार सिंह द्वारा लगाए गए अनार के पौधे से हर साल अच्छी तादाद में फूल मिल जाते?हैं. उन्होंने बताया कि अनार की फसल के साथ सहफसल के रूप में वे सूरन की गजेंद्र प्रजाति की खेती कर रहे हैं जिस से उन्हें अच्छीखासी आमदनी होती है. साथ ही, एक फसल के खराब होने की दशा में उन्हें नुकसान न के बराबर होने की संभावना होती है.

स्ट्राबेरी उपजाने वाले पहले किसान : कौशल कुमार सिंह बस्ती जिले के पहले ऐसे किसान हैं, जिन्होंने बिना पौलीहाउस या ग्रीनहाउस लगाए भरपूर मात्रा में स्ट्राबेरी की फसल उगाने में काबयाबी पाई है.

उन्होंने स्ट्राबेरी के पौधों को हरियाणा से मंगा कर अपने खेतों में रोपा. वे स्ट्राबेरी के खेत में किसी तरह के रासायनिक खादों का इस्तेमाल नहीं करते?हैं. साथ ही, स्ट्राबेरी से ज्यादा उत्पादन हासिल करने के लिए वे मेंड़ों पर मल्चिंग कर उस पर स्ट्राबेरी की रोपाई करते?हैं. इस से खेत में अनावश्यक रूप से खरपतवार की रोकथाम अपनेआप हो जाती है और पौधों की बढ़वार व फलों का विकास भी तेजी से होता?है.

कौशल कुमार सिंह के खेतों में तैयार स्ट्राबेरी के फल बाजार में बिकने वाले स्ट्राबेरी के फलों की अपेक्षा डेढ़ से दोगुना बड़े आकार के होते हैं और स्वाद भी उन से ज्यादा अच्छा होता?है.

रिंगपिट विधि से गन्ने की बोआई : गन्ने की खेती में किसानों को ऊंची लागत और बढ़ती मेहनत के बावजूद भी उत्पादन कम मिलता है. ऐसे किसानों को उम्मीद से कम मुनाफा मिल पाता?है.

इस समस्या से निबटने के लिए किसान कौशल कुमार सिंह ने पारंपरिक तरीके से गन्ने की खेती को छोड़ रिंगपिट विधि से खेती करने का फैसला लिया. इस से उन की खेती की लागत में न केवल कमी आई है, बल्कि उत्पादन में भी अच्छाखासा इजाफा हुआ है.

उन्होंने बताया कि रिंगपिट विधि से गन्ना बोने के लिए खेत की जुताई करने की जरूरत नहीं होती है, क्योंकि इस तरह के गन्ने की बोआई के लिए रिंगपिट डिगर मशीन से खेत में गड्ढे तैयार करते?हैं. इस में एक गड्ढे से दूसरे गड्ढे की दूरी 120 सैंटीमीटर होती है और हरेक गड्ढा 90 सैंटीमीटर व्यास का होता?है.

इस तरह 1 एकड़ में गड्ढे तैयार करने पर तकरीबन 2500-2700 गड्ढे तैयार हो जाते?हैं. इन गड्ढों की गहराई तकरीबन 30 सैंटीमीटर से 45 सैंटीमीटर के आसपास रखी जाती है.

उन्होंने यह भी बताया कि वे गन्ने की बोआई के पहले गड्ढों में 5 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद, 60 ग्राम एनपीके, 40 ग्राम यूरिया और 5 ग्राम फोरेट या फुराडान डाल कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देते हैं. इस तरह प्रति एकड़ तकरीबन 100 क्विंटल गोबर की खाद की जरूरत पड़ती?है.

उर्वरक के रूप में 150 किलोग्राम एनपीके, 104 किलोग्राम यूरिया और

12 किलोग्राम फुराडौन का इस्तेमाल करते?हैं.

इस के बाद वे गन्ने के 2 से 3 आंख वाले काटे गए टुकड़ों को 0.2 फीसदी बाविस्टीन के घोल में 20 मिनट तक डुबो कर उपचारित करते?हैं और बोआई के लिए खोदे गए गन्ने के टुकड़े साइकिल के पहिए की तीलियों की तरह गोलाई में बो देते हैं.

इस तरह उन को प्रति एकड़ खेत के लिए तकरीबन 55 से 60 क्विंटल गन्ना बीज की जरूरत पड़ती है. गड्ढों में गन्ने की बोआई के बाद ऊपर से मिट्टी की परत डाल कर ढक देते?हैं. इस तरह से बोए गए गन्ने का जमाव भी अच्छा होता?है.

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रिंगपिट विधि से गन्ने की बोआई से सिंचाई, उर्वरक देना, पत्तियों की?छंटाई और कटाई आसान हो जाती?है और उपज भी अच्छी मिलती है.

उन्होंने बताया कि सामान्य विधि से गन्ने की बोआई करने पर महज 300-400 क्विंटल उपज मिलती थी. लेकिन रिंगपिंट विधि से गन्ना बोने से उपज दोगुनी मिलने लगी है.

अगर समय से रिंगपिट विधि से बोआई की जाए और संस्तुत मात्रा में खादउर्वरक का इस्तेमाल किया जाए तो यह उत्पादन 1,000 क्विंटल प्रति एकड़ तक मिल सकता है.

खेती में जरूरी संसाधनों का इस्तेमाल?: कौशल कुमार सिंह खेती में काम आने वाले सभी तरह के आधुनिक यंत्रों का इस्तेमाल करते हैं. वे खेती के लिए छोटेबड़े सभी यंत्र खरीद रहे?हैं. वर्तमान में उन के पास ट्रैक्टर, ट्रौली और उस में उपयोग आने वाले यंत्र जैसे रोटावेटर, रिंगपिट डिगर, कल्टीवेटर जैसे तमाम यंत्र हैं.

जंगली पशुओं से फसल बचाने के पुख्ता इंतजाम?: कौशल कुमार सिंह ने अपनी बोई गई फसल को जंगली पशुओं से बचाने के लिए पुख्ता इंतजाम किए हुए हैं.

उन्होंने केला, अनार, सूरन, स्ट्राबेरी वगैरह फसलों की सुरक्षा के लिए कंटीले तारों से पूरे खेत की फेसिंग कराई है. उन के?द्वारा की

गई व्यावसायिक फसल की सुरक्षा के पुख्ता इंतजामों के चलते फसल को कोई नुकसान नहीं

पहुंचता है.

कौशल कुमार सिंह वर्तमान में अनार, केला, स्ट्राबेरी, गन्ना, सूरन के साथ ही साथ आलू, टमाटर, मटर, गेहूं, धान की फसलें वगैरह भी लेते हैं. इन फसलों से उन्हें भरपूर उपज मिलती है. डिजिटल और उन्नत तकनीक के चलते उन्हें किसी तरह की मार्केटिंग की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है.

कौशल कुमार सिंह को बस्ती जिले में आम आदमी से ले कर नेता, जनप्रतिनिधि व सरकारी महकमों के अधिकारीकर्मचारी भी इज्जत व सम्मान देते हैं.

कौशल कुमार सिंह का कहना है कि किसानों को पारंपरिक तरीकों के साथसाथ आधुनिक तरीकों को अपनाते हुए खेती करनी होगी. उन्नत तकनीक के जरीए ही किसान फसल उत्पादन बढ़ाने के साथ जोखिम और मार्केटिंग की समस्या से छुटकारा पा सकता है.

वे कहते हैं कि किसानों को खेती के आधुनिक तरीके अपनाने होंगे तभी खेती से परिवार के लोगों की सामान्य जरूरतें पूरी की जा सकें.

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उन के मुताबिक, किसान उन्नत तकनीक के जरीए न केवल खुद को दीनहीन स्थिति से उबार सकता?है, बल्कि इज्जत और सम्मान भी पा सकता है.                                   ठ्ठ

जिप्सम का इस्तेमाल क्यों, कब और कैसे करें

प्रदीप कुमार सैनी, डा. आरके यादव, डा. शंभू प्रसाद, डा. आदेश कुमार

वे कैल्शियम व सल्फर का इस्तेमाल नहीं करते हैं जिस से खेत की मिट्टी में कैल्शियम व सल्फर की कमी की समस्या धीरेधीरे बढ़ती जा रहीहै. इन की कमी सघन खेती वाली जमीन, हलकी जमीन और अपक्षरणीय जमीन में अधिक होती है.

कैल्शियम व सल्फर संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन के मुख्य अवयवों में से?हैं जिन की पूर्ति के अनेक स्रोत?हैं, इन में जिप्सम एक खास उर्वरक?है. रासायनिक रूप से जिप्सम कैल्शियम सल्फेट है, जिस में 23.3 फीसदी कैल्शियम व 18.5 फीसदी सल्फर होता है.

जब जिप्सम पानी में घुलता है तो कैल्शियम व सल्फेट आयन प्रदान करता है. तुलनात्मक रूप से कुछ ज्यादा घनात्मक होने के चलते कैल्शियम के आयन मिट्टी में मौजूद विनियम सोडियम के आयनों को हटा कर उन की जगह ले लेते?हैं. आयनों का मटियार कणों पर यह बदलाव मिट्टी की रासायनिक व भौतिक अवस्था में सुधार कर देता है और मिट्टी फल के उत्पादन के लिए सही हो जाती?है. साथ ही, जिप्सम जमीन में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का अनुपात बनाने में सहायता करता है.

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जिप्सम क्यों डालें?

* जिप्सम एक अच्छा भूसुधारक है. यह क्षारीय जमीन को सुधारने का काम करता है.

* तिलहनी फसलों में जिप्सम डालने से सल्फर की पूर्ति होती है.

* जिप्सम मिट्टी में कठोर परत बनने से रोकता?है और मिट्टी में पानी के प्रवेश को रोकता?है.

* फसलों में जड़ों की सामान्य बढ़ोतरी और विकास में सहायक है.

* कैल्शियम और सल्फर की जरूरत की पूर्ति के लिए.

* कैल्शियम की कमी के चलते ऊपर बढ़ती हुई पत्तियों के अग्रभाग का सफेद होना, लिपटना और संकुचित होना होता है. अत्यधिक कमी की स्थिति में पौधों की बढ़वार रुक जाती है और वर्धन शिखा भी सूख जाती है जो कि जिप्सम डालने से पूरी की जा सकती है.

* अम्लीय मिट्टी में एल्यूमिनियम के हानिकारक प्रभाव को जिप्सम कम करता है.

* जिप्सम देने से मिट्टी में पोषक

तत्त्वों आमतौर पर नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम, कैल्शियम और सल्फर की उपलब्धता में बढ़ोतरी हो जाती है.

* जिप्सम कैल्शियम का एक मुख्य स्रोत है जो कार्बनिक पदार्थों को मिट्टी के?क्ले कणों से बांधता?है जिस से मिट्टी कणों में स्थिरता प्रदान होती है और मिट्टी में हवा का आनाजाना आसान बना रहता है.

* जिप्सम का इस्तेमाल फसलों में अधिक उपज व उन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए किया जाता है.

* जिप्सम का इस्तेमाल फसल संरक्षण में भी किया जा सकता?है क्योंकि इस में सल्फर सही मात्रा में होता है.

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जिप्सम को कब और कैसे?डालें?

जिप्सम को मिट्टी में फसलों की बोआई से पहले डालते हैं. जिप्सम डालने से पहले खेत को पूरी तरह तैयार करें. (2-3 गहरी जुताई और पाटा लगा कर). इस के बाद एक हलकी जुताई कर के जिप्सम को मिट्टी में मिला दें.

आमतौर पर धान्य फसलें 10-20 किलोग्राम कैल्शियम प्रति हेक्टेयर और दलहनी फसलें 15 किलोग्राम कैल्शियम प्रति हेक्टेयर जमीन से लेती?हैं और सामान्य फसल पद्धति 10-20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर कैल्शियम जमीन से लेती?हैं.

जिप्सम को क्षारीय जमीन में मिलाने के लिए जरूरी मात्रा, क्षारीय जमीन की विकृति की सीमा, वांछित सुधार की सीमा और भूसुधार के बाद उगाई जाने वाली फसलों

पर निर्भर करती?है.

कितना सुधारक डालना है, इस की मात्रा का निर्धारण करने के लिए सब से पहले कितना जिप्सम डालने की जरूरत होगी, तय किया जाता है. इस को जिप्सम की जरूरत कहा जाता है.

जिप्सम की सही मात्रा जानने के लिए जिप्सम की विभिन्न मात्राओं को ले कर प्रयोग किए गए. इन प्रयोगों से यह प्रमाणित होता?है कि धान की फसल के लिए जिप्सम की कुल मात्रा का एकचौथाई भाग काफी है, जबकि गेहूं की फसल के लिए कुल मात्रा से आधा काफी है और मैदानी इलाकों में पाई जाने वाली क्षारीय मिट्टी के लिए तकरीबन 12-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर जिप्सम का इस्तेमाल किया जाता है.

क्षारीय जमीन सुधार के कामों को शुरू करने का सब से सही समय गरमी के महीनों में होता?है. जिप्सम फैलाने के तुरंत बाद कल्टीवेटर या देशी हल से जमीन की ऊपरी 8-12 सैंटीमीटर की सतह में मिला कर और खेती को समतल कर के मेंड़बंदी करना जरूरी है ताकि खेत में पानी सब जगह बराबर लग सके.

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जिप्सम को मिट्टी में ज्यादा गहराई तक नहीं मिलाना चाहिए. धान की फसल में जिप्सम की जरूरी मात्रा को फसल लगाने से 10-15 दिन पहले डालना चाहिए. पहले 4-5 सैंटीमीटर हलका पानी लगाना चाहिए. जब पानी थोड़ा सूख जाए, तो दोबारा 12-15 सैंटीमीटर पानी भर कर रिसाव क्रिया पूरी करनी चाहिए.

क्षारीय जमीन में जिप्सम को बारबार मिलाने की जरूरत नहीं होती है. यह पाया गया है कि यदि धान की फसल को क्षारीय जमीन में लगातार उगाते रहें तो जमीन के क्षारीयपन में कमी आती है. खेतों को भी लंबे समय तक के लिए खाली नहीं छोड़ना चाहिए.

हर किसान की पहुंच में हो ट्रैक्टर

लेखक-भानु प्रकाश राणा

अगर आप के पास ट्रैक्टर है तो वह आप के लिए यह एक अच्छी आमदनी का जरीया भी बनता है क्योंकि ज्यादातर किसानों के पास ट्रैक्टर या अन्य कृषि यंत्र नहीं होते हैं, जबकि आज जुताई का काम हो, गहाई का काम हो या खेत बोआई का काम हो, ज्यादातर खेती के काम कृषि यंत्रों पर ही आधारित हैं, इसलिए ऐसे किसान, जिन के पास ये साधन नहीं?हैं, वे खेती का काम ऐसे लोगों से ही कराते हैं जिन के पास यंत्रों की सुविधा हो.

अगर आप भी चाहते हैं कि किसी दूसरे किसान की तरह आप के पास भी ऐसी सुविधाएं हों, ट्रैक्टर हो, कृषि यंत्र हों, जिन से खेती का काम आसान हो सके, कमाई का जरीया बन सके तो आज देश में अनेक?ट्रैक्टर कंपनियां मौजूद हैं जिन के बनाए?ट्रैक्टरों की अलगअलग खूबियां?हैं, इसलिए अगर आप ट्रैक्टर खरीदना चाहते?हैं तो ट्रैक्टर खरीदने से पहले अपनी जरूरतें देखें और उसी के मुताबिक आगे कदम बढ़ाएं.

ट्रैक्टर खरीदने के लिए आप को लोन भी पास कराना होगा. इस के लिए यहां हम आप को?ट्रैक्टर खरीदने के बारे में कुछ जानकारी दे रहे?हैं जो आप के लिए फायदेमंद रहेगी.

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एसबीआई से ले सकते हैं ‘स्त्री शक्ति ट्रैक्टर लोन’ : अगर आप खेतीबारी से जुड़ा कोई काम करते?हैं और ट्रैक्टर खरीदना चाहते?हैं तो आप एसबीआई यानी भारतीय स्टेट?बैंक से लोन ले सकते?हैं. अन्य बैंक भी इस तरह के लोन उपलब्ध कराते हैं, लेकिन एसबीआई की?ट्रैक्टर खरीदने के लिए यह खास स्कीम है.

‘स्त्री शक्ति ट्रैक्टर लोन’, जिसे एसएसटीएल भी कह सकते?हैं के तहत आप

को अपने परिवार की किसी महिला को कर्ज

के लिए सहआवेदक बनाना होगा. इस स्कीम में आप ट्रैक्टर के अलावा दूसरे कृषि यंत्रों के लिए भी लोन ले सकते हैं.

ट्रैक्टर खरीदने के लिए किसान की सालाना आमदनी कम से कम डेढ़ लाख रुपए होनी चाहिए और किसान के पास कम से कम 2 एकड़ जमीन भी होनी चाहिए, जिस से बैंक आप पर भरोसा कर सके कि आप?ट्रैक्टर का लोन समय पर चुका सकते हैं.

इस के अलावा कोई भी व्यक्ति, स्वयंसहायता समूह या संस्था भी एसएसटीएल स्कीम के तहत लोन ले सकते हैं. बैंक द्वारा लोन देने का मकसद यही है कि किसान कृषि यंत्रों के माध्यम से खेती कर के नियमित आमदनी कर सकें और समय पर बैंक को लोन वापस

कर सकें.

महिला आवेदक क्यों जरूरी?: बैंक का ऐसा मानना है कि पुरुषों के मुकाबले महिला लोन चुकाने के मामले में ज्यादा जिम्मेदार होती हैं. इसी के चलते बैंक ने महिलाओं को प्राथमिकता दी है और ऐसे लोन पर ब्याज भी कम लगाया है.

कितना मिल सकता है लोन : मोटेतौर पर माना जाए कि अगर ट्रैक्टर की कीमत 5 लाख रुपए तक है तो आप को

4.25 लाख रुपए तक का लोन मंजूर हो सकता है. मतलब, ट्रैक्टर की कुल रकम का 80 से

85 फीसदी तक लोन मिल सकता?है. बाकी

15-20 फीसदी रकम आप को अपने पास से देनी होगी. ट्रैक्टर खरीदने के बाद उस का बीमा भी कराना जरूरी होगा.

जरूरी दस्तावेज

* आप का और सहआवेदक महिला का पासपोर्ट साइज फोटो.

* दोनों के पहचानपत्र. पता का प्रूफ दस्तावेज (वोटरकार्ड, आधारकार्ड, पैनकार्ड वगैरह हो सकते?हैं.)

* खेती के कागजात.

* बैंक पासबुक की स्टेटमैंट.

* आप की आमदनी की जानकारी.

* सहआवेदक महिला से आप का?क्या संबंध?है, उस की भी जानकारी देनी होगी.

ये सब जरूरी कागजात आप को पूरे करने होंगे.

अगर बैंक आप से ‘स्त्री शक्ति ट्रैक्टर लोन’ के लिए जमीन के कागज गिरवी रखने को कहता है या आप अपनी जमीन के कागज बैंक के पास गिरवी रखते हैं. इस से आप को कम ब्याज पर लोन मिलेगा.

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क्या हैं लोन की ब्याज दरें : अगर आप ‘स्त्री शक्ति ट्रैक्टर लोन’ लेना चाहते हैं, वह भी बिना जमीन को गिरवी रखे तो आप को तय ब्याज दर से 1.75 फीसदी अधिक ब्याज चुकाना पड़ेगा.

अगर आप बैंक के पास जमीन गिरवी रख कर ‘स्त्री शक्ति ट्रैक्टर लोन’ चाहते हैं तो आप को 1.75 फीसदी ब्याज की जगह 1.5 फीसदी ब्याज ही चुकाना पड़ेगा.

कितने समय में वापसी : अगर आप जमीन गिरवी रखे बिना लोन लेना चाहते?हैं तो आप को यह कर्ज 36 महीने में वापस करना होगा और अगर आप जमीन गिरवी रख कर लोन लेना चाहते?हैं तो आप को इसे चुकाने के लिए 48 महीने का समय मिलेगा. मतलब, बैंक के पास जमीन गिरवी रखने पर आप को अधिक छूट मिलेगी.

ट्रैक्टर खरीदने के बाद आप को एक महीने का समय ग्रेस पीरियड के?रूप में भी मिलता?है. इस का मतलब यह है कि एक महीने तक आप को लोन की किस्त चुकाने से?छूट दी जा सकती है.

अब बात आती है कि आप को कौन सा ट्रैक्टर खरीदना है, यह आप को अपनी जरूरत के हिसाब से तय करना है. आजकल बाजार में अनेक ब्रांड के ट्रैक्टर मौजूद हैं. हरेक की अपनी खूबियां हैं. यहां हम आयशर 551 ट्रैक्टर के बारे में कुछ जानकारी दे रहे?हैं.

आयशर 551 ट्रैक्टर

यह ट्रैक्टर 49 हौर्सपावर का?है और इस में 3300 सीसी का इंजन लगा है. 3 सिलैंडर, डायरैक्ट इंजैक्शन, वाटर कूल इंजन?है. इस ट्रैक्टर से 10-12 टन की ट्रौली और भारी कृषि यंत्रों से आसानी से काम लिया जा सकता है. जैसे 2 एमबी रिवर्सिएबल प्लाऊ, पावर हैरो,

7 फुटा रोटावेटर, कल्टीवेटर, स्पे्रयर आदि इस से चला सकते हैं.

यह ट्रैक्टर 1,700 किलोग्राम तक वजन उठा सकता?है. विशेष परिस्थितियों में यह वजन 1850 किलोग्राम तक भी हो सकता?है. इस में मल्टी डिस्क ब्रैक हैं जो औयल में डूबे रहते हैं. पडलिंग और धान की खेती में यह ट्रैक्टर तेजी और असरदार तरीके से काम करते?हैं. इस का रखरखाव का खर्चा भी कम है और ब्रेक की उम्र भी लंबी होती है.

मल्टी?स्पीड पीटीओ इंजन आरपीएम कम होने पर भी पीटीओ पर ज्यादा आरपीएम देता है. यह हर इंप्लीमैंट के लिए अनुकूल है. जहां अलगअलग पीटीओ स्पीड की जरूरत होती?है जैसे थ्रैशर, वाटरपंप, आल्टरनैटर आदि.

इस ट्रैक्टर में वाटर सैपरेटर भी लगा है. अगर किसी वजह से डीजल में पानी मिला है तो उस को वह डीजल से अलग कर देता है और ट्रैक्टर की इंजन टंकी में 48 लिटर तक डीजल भरा जा सकता है. इस ट्रैक्टर में सभी डिजिटल मीटर लगे हुए?हैं जिस से ट्रैक्टर किस स्पीड पर कितने आरपीएम पर चल रहा है, कितनी तेल खपत हुई है, यह सब पता चलता है.

इस ट्रैक्टर में पावर स्टेयरिंग भी है, जिसे आसानी से घुमाया जा सकता?है. इस ट्रैक्टर में

8 गियर आगे लगते हैं और 2 रिवर्स गियर हैं. इस में 12 वोल्ट की बैटरी लगी है. साथ ही, इस में मोबाइल चार्ज करने की सुविधा भी है.

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ड्राइवर के बैठने की सीट सुविधानुसार आगेपीछे की जा सकती?है. सीट के पीछे पानी की बोतल रखने की जगह दी गई है. सुरक्षा के लिहाज से ट्रैक्टर के अगले हिस्से में वजनी मजबूत बंपर लगा?है.

अधिक जानकारी के लिए आप आयशर कंपनी के फोन नंबर 022-40375754 पर बात कर सकते हैं.                                       ठ्ठ

असम में मुसलमानों और दलितों के साथ भेदभाव की शुरुआत

लेखक- दिनकर कुमार

असम में 30 जुलाई, 2019 को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी का प्रकाशन होने वाला है. राज्य के लाखों भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों से नागरिकता छीन कर उन को यातना शिविरों में बंद करने की पूरी तैयारी हो चुकी है और सब से ज्यादा हैरानी की बात यह है कि यह काम उस सर्वोच्च अदालत की देखरेख में पूरा किया जा रहा है, जिस पर संविधान और मानवाधिकार की सुरक्षा की जिम्मेदारी है.

अदालत भी अपने मूल कर्तव्य को भूल कर देश के वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व के साथ जुगलबंदी कर रही है. एक ऐसे प्रयोग के लिए जमीन तैयार की जा रही है जो आने वाले समय में देशभर में आजमाया जा सकता है और एक

ही झटके में अल्पसंख्यकों से नागरिकता छीन कर उन का सामूहिक संहार किया जा सकता है.

देश के नए गृह मंत्री अमित शाह ने चुनावी भाषणों में घुसपैठियों की तुलना दीमक से करते हुए उन को कुचलने की मंशा जाहिर करते हुए कहा था, ‘‘हम पूरे देश में एनआरसी को लागू करेंगे और एकएक घुसपैठिए को निकाल बाहर करेंगे.

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‘‘हम घुसपैठियों को अपना वोट बैंक नहीं मानते. हमारे लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सब से अहम है. हम तय करेंगे कि हर हिंदू और बौद्ध शरणार्थी को भारत की नागरिकता मिले.’’

सत्ता में आते ही अमित शाह ने अपनी घोषणा पर गंभीरता से काम करना शुरू कर दिया है. 30 मई, 2019 को भाजपा सरकार की तरफ से विदेशी (ट्रिब्यूनल) संशोधन आदेश, 2019 जारी कर देश के सभी राज्यों में ऐसे ट्रिब्यूनल बनाने का निर्देश दिया है. इस से साफ संकेत मिलता है कि अमित शाह अगले 5 सालों में एनआरसी के बहाने पूरे देश में नागरिकता छीनने का अभियान शुरू करना चाहते हैं.

इस मुद्दे पर अल्पसंख्यकों के पक्ष में संघर्ष कर रहे नागरिक अधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर का कहना है,

‘‘30 मई को जो आदेश जारी किया गया है, वह नागरिकों की राय लिए बिना ही लोकतंत्र के रूप में भारत के बुनियादी सिद्धांतों को नष्ट करने की साजिश कही जा सकती है. एनआरसी के साथ ही भाजपा पूरे देश में नागरिकता संशोधन विधेयक को भी लागू करना चाहती है. इस के नतीजे भयंकर होंगे और बड़े पैमाने पर लोगों से नागरिकता छीन ली जाएगी.

‘‘एनआरसी और विदेशी ट्रिब्यूनल की जुगलबंदी ने स्थानीय स्तर पर तानाशाही की छूट पैदा की है. इस के बहाने अपने दुश्मनों को ठिकाने लगाना आसान हो जाएगा.

‘‘असल में एनआरसी और विदेशी ट्रिब्यूनल जुड़वां प्रक्रिया है. एनआरसी आप से दस्तावेजों की मदद से नागरिकता साबित करने के लिए कहता है, जबकि ट्रिब्यूनल वह उपकरण है, जो नागरिकता छीनने का काम करता है.’’

गृह मंत्रालय ने विदेशी (ट्रिब्यूनल) संशोधन आदेश, 1962 में 2 नए पैराग्राफ जोड़ कर इंसाफ के सिद्धांत पर ही सवालिया निशान लगा दिया है. अब अगर किसी शख्स को विदेशी होने के शक में गिरफ्तार किया जाता है तो वह सिर्फ ट्रिब्यूनल में ही कुछ नियमों और शर्तों के आधार पर अपील कर सकता है. अब वह ऊंची अदालत में नहीं जा पाएगा.

इस का मतलब यह है कि सेना के पूर्व जवान सानुल्ला ने जिस तरह हाईकोर्ट में जा कर अपनी नागरिकता साबित की और डिटैंशन कैंप से रिहा हो पाए, उस तरह अब कोई शख्स अपनी फरियाद ले कर ऊंची अदालत में नहीं जा पाएगा.

इस तरह ट्रिब्यूनल को असीमित हक दे दिए गए हैं. किसी भी निचली अदालत को इस तरह असीमित हक नहीं दिए गए हैं. नागरिकता के सब से ज्यादा अहम संवैधानिक हक को ले कर ट्रिब्यूनल को मनमानी करने की पूरी छूट दे दी गई है.

असल में केंद्र 31 जुलाई, 2019 से पहले ऐसे 1,000 ट्रिब्यूनल बनाने के लिए असम सरकार की मदद कर रहा है. ट्रिब्यूनल के सदस्य के तौर पर ऐसे लोगों को शामिल किया जा रहा है जो कानून के जानकार नहीं हैं और जिन की काबिलीयत पर भी शक है.

उच्चतम न्यायालय का निर्देश था कि ट्रिब्यूनल में न्यायिक सदस्यों को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए, पर हकीकत में ऐसा नहीं हो रहा है. सरकार के नजदीकी लोगों को सदस्य बनाया जा रहा है. इन सदस्यों पर ज्यादा से ज्यादा लोगों को विदेशी साबित करने का दबाव डाला गया है. यही वजह है कि एनआरसी के प्रकाशन से पहले ही सैकड़ों बेकुसूर लोगों को डिटैंशन कैंपों में ठूंस दिया गया है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उस के साथी संगठन मिल कर अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत का माहौल तैयार कर रहे हैं. इसी मुहिम में स्थानीय प्रिंट और इलैक्ट्रोनिक मीडिया भी आग में घी डालने का काम कर रहा है.

अब तक कम से कम 40 लोग यही सोच कर खुदकुशी कर चुके हैं कि अगर उन का नाम एनआरसी में नहीं आएगा तो उन को किन बुरे हालात का सामना करना पड़ेगा.

18 फरवरी, 1983 की सुबह असम की नेली नामक जगह पर 6 घंटे के भीतर तकरीबन 3,000 बंगलाभाषी मुसलमानों की हत्या की गई थी. उस घटना को ‘नेली नरसंहार’ के नाम से याद किया जाता है. अल्पसंख्यकों को डर है कि एनआरसी के प्रकाशन के बाद उस तरह की त्रासदी दोबारा हो सकती है.

‘नेली नरसंहार’ के लिए न तो किसी को जिम्मेदार ठहराया गया था और न ही किसी के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही हुई थी.

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असम में मुसलमानों पर बारबार

इस तरह के हमले हुए और हर बार ‘बंगलादेशी घुसपैठिए’ का संबोधन दे कर हमले को उचित ठहराया गया. इस तरह का आखिरी हमला मई, 2014 में मानस नैशनल पार्क के पास खगराबाड़ी गांव में किया गया, जहां 20 बच्चों समेत 38 लोगों की हत्या कर दी गई.

इस तरह की हिंसा को राज्य में कट्टर जातीय सोच रखने वालों का समर्थन मिलता रहा है और सरकारी तंत्र भी इस तबके के साथ ही रहा है.

एनआरसी को भी इसी प्रक्रिया का औपचारिक रूप माना जा सकता है,

जिस का मकसद भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों की नागरिकता खत्म कर देना है. इस की तुलना अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड टं्रप की अप्रवासन नीति से की जा सकती है जो अल्पसंख्यकों को निशाना बना रही है.                  द्य

जल्दी तैयार होती मूली की खेती

कृषि संवाददाता

लेकिन ज्यादा तापमान वाले इलाकों में मूली की फसल कठोर और तीखी होती है. मूली की खेती के लिए रेतीली दोमट और दोमट मिट्टियां उम्दा होती हैं. मटियार जमीन में इस की खेती करना फायदेमंद नहीं होता है, क्योंकि उस में मूली की जड़ें सही तरीके से पनप नहीं पाती?हैं.

मूली की खेती के लिए ऐसी जमीन का चयन करना चाहिए, जो हलकी भुरभुरी हो और उस में जैविक पदार्थों की भरपूर मात्रा हो. मूली के खेत में खरपतवार नहीं होने चाहिए, क्योंकि उन से जड़ों की बढ़वार रुक जाती है.

खेत की तैयारी : मूली की फसल लेने के लिए खेत की कई बार जुताई करनी चाहिए. पहले 2 बार कल्टीवेटर से जुताई कर के पाटा लगा दें, उस के बाद गहरी जुताई करने वाले हल से जुताई करें. मूली की जड़ें जमीन में गहरे तक जाती हैं, ऐसे में गहरी जुताई न करने से जड़ों की बढ़वार सही तरीके से नहीं हो पाती है.

मूली की उन्नत किस्में : मूली की फसल लेने के लिए ऐसी किस्म का चयन करना चाहिए, जो देखने में सुंदर व खाने में स्वादिष्ठ हो.

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पूसा चेतकी : 40 से 50 दिनों में तैयार होने वाली यह किस्म पूरी तरह सफेद, नरम व मुलायम होती है. स्वाद में तीखापन कम होता?है. इस की औसत पैदावार 250 क्विंटल प्रति हेक्टयर तक मिल सकती है. यह किस्म पूरे भारत में कहीं भी लगाई जा सकती है.

पूसा मृदुला?: बोआई के 250-300 दिनों में तैयार होने वाली यह किस्म लाल रंग की होती है. शीत ऋतु के लिए अच्छी फसल है. इस की औसत उपज 135 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिल जाती है. पूरे भारत के लिए यह किस्म मुफीद है.

पूसा जामुनी : 55 से

60 दिनों में तैयार होने वाली यह अनूठी गुणों वाली किस्म है. यह पौष्टिकता से?भरपूर बैगनी रंग में

होती?है.

पूसा गुलाबी : यह किस्म भी 55 से

60 दिनों में तैयार होती?है. नाम के मुताबिक यह गुलाबी रंग की होती?है. यह बेलनाकार किस्म?है.

पूसा विधु : 50 से 60 दिनों में तैयार होने वाली यह किस्म सफेद रंग की बेलनाकार होती?है. इस की 400 से 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिलती है. यह किस्म दिल्ली और उस के आसपास के इलाकों के लिए खास है.

इस के अलावा मूली की रैपिड रैड, पूसा हिमानी, हिसार मूली नंबर 1, पंजाब सफेद व ह्वाइट टिप वगैरह किस्मों को अच्छा माना जाता है.

मूली की खेती मैदानी इलाकों में सितंबर से जनवरी माह तक और पहाड़ी इलाकों में मार्च से अगस्त माह तक आसानी से की जा सकती है. वैसे, मूली की तमाम ऐसी किस्में तैयार की गई हैं जो मैदानी व पहाड़ी इलाकों में पूरे साल उगाई जा सकती हैं. पूसा चेतकी, पूसा देसी व जापानी सफेद वगैरह किस्में ऐसी हैं, जिन्हें सालभर उगाया जा सकता है.

मूली की 1 हेक्टेयर खेती के लिए तकरीबन 10 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. बारिश के मौसम में मेंड़ बना कर इस की बोआई की जाती है, जबकि दूसरे मौसमों में इसे समतल जमीन में भी उगाया जा सकता है. अगर मूली की फसल मेंड़ों पर ली जा रही?है, तो मेंड़ों से मेंड़ों की दूरी 45 सैंटीमीटर व ऊंचाई 22-25 सैंटीमीटर रखनी चाहिए.

खाद व उर्वरक?: चूंकि मूली की जड़ें सीधे तौर पर इस्तेमाल की जाती हैं, लिहाजा इस में कम से कम रासायनिक खादों का इस्तेमाल किया जाना ठीक माना जाता है. मूली की बोआई से पहले ही मिट्टी में 120 क्विंटल गोबर की खाद व 20 किलोग्राम नीम की खली प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देनी चाहिए.

इस के अलावा 75 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस व 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से आखिरी जुताई के समय मिट्टी में मिलानी चाहिए.

सिंचाई : बारिश के मौसम में मूली की फसल को सिंचाई की कोई जरूरत नहीं होती है, लेकिन गरमी में 4-5 दिनों के अंतराल पर फसल की सिंचाई करते रहना चाहिए. सर्दी वाली फसलों की सिंचाई 10-15 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए.

खरपतवार व कीट : मूली की फसल से खरपतवारों को समयसमय पर निकालते रहना चाहिए, चूंकि खरपतवारों से फसल का उत्पादन प्रभावित होता है, लिहाजा हर 15 दिनों पर खेतों में उगने वाले खरपतवारों को निकाल देना चाहिए.

मूली की फसल को सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों में पत्ता काटने वाली सूंड़ी, सरसों की मक्खी व एफिड शामिल हैं. इन कीटों की रोकथाम के लिए रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करना सही नहीं होता?है. इन कीटों की रोकथाम के लिए हमेशा जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. इस के लिए 5 लिटर गोमूत्र व 15 ग्राम हींग को आपस में अच्छी तरह मिला कर फसल पर छिड़काव करते रहना चाहिए.

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आमतौर पर मूली की फसल में कोई खास रोग नहीं लगता है, फिर भी कभीकभी इस में रतुआ रोग का हमला देखा गया है. इस की रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा, गोमूत्र व तंबाकू मिला कर फसल को पूरी तरह से तरबतर करते हुए छिड़काव करना चाहिए.

उपज व लाभ : मूली की फसल जब कोमल हो तभी इस की खुदाई कर लेनी चाहिए, क्योंकि ऐसी अवस्था में इस के दाम बहुत अच्छे मिलते हैं. बोआई के 30-35 दिनों बाद मूली की फसल उखाड़नी शुरू कर देनी चाहिए.

वैज्ञानिक तरीके से तैयार करें मिर्च की पौधशाला

मिर्च को सुखा कर बेचने के लिए सर्दी के मौसम की मिर्च का इस्तेमाल होता है. मिर्च की खासीयत यह है कि यदि पौध अवस्था में ही इस की देखभाल ठीक से कर ली जाए तो अच्छा उत्पादन मिलने में कोई शंका नहीं होती है. भरपूर सिंचाई समयानुसार करने से ज्यादा फायदा लिया जा सकता है. टपक सिंचाई अपनाने से मिर्च की फसल से दोगुनी उपज हासिल की जा सकती है. टपक सिंचाई से

50-60 फीसदी जल की बचत होती है और खरपतवार से नजात मिल जाती है.

मिर्च की नर्सरी

ऐसे लगाएं

पौधशाला, रोपणी या नर्सरी एक ऐसी जगह?है, जहां पर बीज या पौधे के अन्य भागों से नए पौधों को तैयार करने के लिए सही इंतजाम किया जाता है. पौधशाला का क्षेत्र सीमित होने के कारण देखभाल करना आसान व सस्ता होता है.

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पौधशाला के लिए

जगह का चुनाव

* पौधशाला के आसपास बहुत बड़े पेड़ नहीं होने चाहिए.

* जमीन उपजाऊ, दोमट, खरपतवार से रहित व अच्छे जल निकास वाली हो, अम्लीय क्षारीय जमीन का चयन न करें.

* पौधशाला में लंबे समय तक धूप रहती हो.

* पौधशाला के पास सिंचाई की सुविधा मौजूद हो.

* चुना हुआ क्षेत्र ऊंचा हो ताकि वहां पानी न ठहरे.

* एक फसल के पौध लगाने के बाद दूसरी बार पौध उगाने की जगह बदल दें यानी फसलचक्र अपनाएं.

क्यारियों की तैयारी

व उपचार

पौधशाला की मिट्टी की एक बार गहरी जुताई करें या फिर फावड़े की मदद से खुदाई करें. खुदाई करने के बाद ढेले फोड़ कर गुड़ाई कर के मिट्टी को?भुरभुरी बना लें और उगे हुए सभी खरपतवार निकाल दें. फिर सही आकार की क्यारियां बनाएं. इन क्यारियों में प्रति वर्गमीटर की दर से 2 किलोग्राम गोबर या कंपोस्ट की सड़ी खाद या फिर 500 ग्राम केंचुए की खाद मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाएं. यदि मिट्टी कुछ भारी हो तो प्रति वर्गमीटर 2 से

5 किलोग्राम रेत मिलाएं.

मिट्टी का उपचार

जमीन में विभिन्न प्रकार के कीडे़ और रोगों के फफूंद जीवाणु वगैरह पहले से रहते?हैं, जो मुनासिब वातावरण पा कर क्रियाशील हो जाते हैं व आगे चल कर फसल को विभिन्न अवस्थाओं में नुकसान पहुंचाते हैं. लिहाजा, नर्सरी की मिट्टी का उपचार करना जरूरी?है.

सूर्यताप से उपचार

इस विधि में पौधशाला में क्यारी बना कर उस की जुताईगुड़ाई कर के हलकी सिंचाई कर दी जाती है, जिस से मिट्टी गीली हो जाए. अब इस मिट्टी को पारदर्शी 200-300 गेज मोटाई की पौलीथिन की चादर से ढक कर किनारों को मिट्टी या ईंट से दबा दें ताकि पौलीथिन के अंदर बाहरी हवा न पहुंचे और अंदर की हवा बाहर न निकल सके. ऐसा उपचार तकरीबन

4-5 हफ्ते तक करें. यह काम 15 अप्रैल से

15 जून तक किया जा सकता?है.

उपचार के बाद पौलीथिन शीट हटा कर खेत तैयार कर के बीज बोएं. सूर्यताप उपचार से भूमिजनित रोग कारक जैसे फफूंदी, निमेटोड, कीट व खरपतवार वगैरह की संख्या में भारी कमी हो जाती है.

रसायनों द्वारा

जमीन उपचार

बोआई के 4-5 दिन पहले ही क्यारी को फोरेट 10 जी 1 ग्राम या क्लोरोपायरीफास

5 मिलीलिटर पानी के हिसाब से या कार्बोफ्यूरान 5 ग्राम प्रति वर्गमीटर के हिसाब से जमीन में मिला कर उपचार करते हैं. कभीकभी फफूंदीनाशक दवा कैप्टान 2 ग्राम प्रति वर्गमीटर के हिसाब से मिला कर भी जमीन को सही किया जा सकता?है.

जैविक विधि द्वारा उपचार

क्यारी की जमीन का जैविक विधि से उपचार करने के लिए ट्राइकोडर्मा विरडी की

8 से 10 ग्राम मात्रा को 10 किलोग्राम गोबर की खाद में मिला कर क्यारी में बिखेर देते हैं. इस के बाद सिंचाई कर देते?हैं. जब खेत का जैविक विधि से उपचार करें, तब अन्य किसी रसायन का इस्तेमाल न करें.

बीज खरीदने में

बरतें सावधानी

* बीज अच्छी किस्म का शुद्ध व साफ होना चाहिए, अंकुरण कूवत 80-85 फीसदी हो.

* बीज किसी प्रमाणित संस्था, शासकीय बीज विक्रय केंद्र, अनुसंधान केंद्र या विश्वसनीय विक्रेता से ही लेना चाहिए. बीज प्रमाणिकता का टैग लगा पैकेट खरीदें.

* बीज खरीदते समय पैकेट पर लिखी किस्म, उत्पादन वर्ष, अंकुरण फीसदी, बीज उपचार वगैरह जरूर देख लें ताकि पुराने बीजों से बचा जा सके. बीज बोते समय ही पैकेट खोलें.

बीजों का उपचार : बीज हमेशा उपचारित कर के ही बोने चाहिए ताकि बीजजनित फफूंद से फैलने वाले रोगों को काबू किया जा सके. बीज उपचार के लिए 1.5 ग्राम थाइरम, 1.5 ग्राम कार्बंडाजिम या 2.5 ग्राम डाइथेन एम 45 या 4 ग्राम?ट्राइकोडर्मा विरडी का प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से इस्तेमाल करना चाहिए.

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यदि क्यारी की जमीन का उपचार जैविक विधि (ट्राइकोडर्मा) से किया गया है, तो बीजोपचार भी ट्राइकोडर्मा विरडी से ही करें.

बीज बोने की विधि : क्यारियों में उस की चौड़ाई के समानांतर 7-10 सैंटीमीटर की दूरी पर 1 सैंटीमीटर गहरी लाइनें बना लें और उन्हीं लाइनों पर तकरीबन 1 सैंटीमीटर के अंतराल से बीज बोएं.

बीज बोने के बाद उसे कंपोस्ट, मिट्टी व रेत के 1:1:1 के 5-6 ग्राम थाइरम या केप्टान से उपचारित मिश्रण से 0.5 सैंटीमीटर की ऊंचाई तक ढक देते?हैं.

क्यारियों को पलवार से ढकना : बीज बोने के बाद क्यारी को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध पुआल, सरकंडों, गन्ने के सूखे पत्तों या ज्वारमक्का के बने टटियों से ढक देते हैं ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे और सिंचाई करने पर पानी सीधे ढके हुए बीजों पर न पड़े, वरना मिश्रण बीज से हट जाएगा और बीज का अंकुरण प्रभावित होगा.

सिंचाई : क्यारियों में बीज बोने के बाद 5-6 दिनों तक हलकी सिंचाई करें ताकि बीज ज्यादा पानी से बैठ न जाए. बरसात में क्यारी की नालियों में मौजूद ज्यादा पानी को पौधशाला

से बाहर निकालना चाहिए.

क्यारियों से घासफूस तब हटाएं, जब तकरीबन 50 फीसदी बीजों का अंकुरण हो चुका हो. बोआई के बाद यह अवस्था मिर्च में 7-8 दिनों बाद, टमाटर में 6-7 दिनों बाद व बैगन में 5-6 दिनों बाद आती है.

खरपतवार नियंत्रण : क्यारियों में उपचार के बाद भी यदि खरपतवार उगते?हैं, तो समयसमय पर उन्हें हाथ से निकालते रहना चाहिए. इस के लिए पतली और लंबी

डंडियों की भी मदद ली जा सकती है.

बेहतर रहेगा, अगर पेंडीमिथेलिन की

3 मिलीलिटर मात्रा को प्रति लिटर पानी में घोल कर बोआई के 48 घंटे के भीतर क्यारियों में अच्छी तरह छिड़क दें.

पौध विगलन : अगर क्यारियों में पौधे अधिक घने उग आए हैं तो उन को 1-2 सैंटीमीटर की दूरी पर छोड़ते हुए दूसरे पौधों को छोटी उम्र में ही उखाड़ देना चाहिए, वरना पौधों के तने पतले व कमजोर बने रहते?हैं.

वैसे, घने पौधे पदगलन रोग लगने की संभावना बढ़ाते हैं. उखाड़े गए पौधे खाली जगह पर रोपे जा सकते हैं.

पौध सुरक्षा?: पौधशाला में रस चूसने वाले कीट जैसे माहू, जैसिड, सफेद मक्खी व थ्रिप्स से काफी नुकसान पहुंचता है. विषाणु अन्य बीमारियों को फैलाते?हैं, लिहाजा इन के नियंत्रण के लिए नीम का तेल 5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में या डाईमिथोएट (रोगोर)

2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में घोल

बना कर बोआई के 8-10 दिनों बाद और

25-27 दिनों बाद दोबारा छिड़कना चाहिए.

क्यारी और बीजोपचार करने के बाद भी अगर पदगलन बीमारी लगती है (जिस में पौधे जमीन की सतह से गल कर गिरने लगते हैं और सूख जाते?हैं), तो फसल पर मैंकोजेब या कैप्टान 2.5 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

पौधे उखाड़ना : क्यारी में तैयार पौधे जब 25-30 दिनों के हो जाएं और उन की ऊंचाई 10-12 सैंटीमीटर की हो जाए या उन में 5-6 पत्तियां आ जाएं, तब उन्हें पौधशाला से खेत में रोपने के लिए निकालना चाहिए.

क्यारी से पौध निकालने से पहले उन की हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए. सावधानी से पौधे निकालने के बाद 50 या 100 पौधों के बंडल बना लें.

पौधों का रोपाई से पहले उपचार : पौधशाला से निकाले गए पौध समूह या रोपी गई जड़ों को कार्बंडाजिम बाविस्टीन 10 ग्राम प्रति लिटर पानी में बने घोल में 10 मिनट तक डुबोना चाहिए, रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई जरूर करें.

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गरमी के मौसम में कतार से कतार की दूरी 45 सैंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी

30 सैंटीमीटर और बरसात में कतार से कतार की दूरी 60 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 45 सैंटीमीटर रखें.

मिर्च से ज्यादा उत्पादन हासिल करने के लिए उस की नर्सरी लगा कर पौधशाला में सेहतमंद पौधे तैयार करने का अपना अलग महत्त्व है. जितनी स्वस्थ नर्सरी रहेगी, उतनी ही अच्छी रोप मिलेगी.

‘बेटी पढ़ाओ’ नारे को नहीं मानता यह समुदाय

लेखक-शंकर जालान

मूल रूप से गुजरात के अहमदाबाद व राजकोट के बीच जोटिया गांव के इस ‘गुजराती’ समुदाय का मानना है कि लड़की को चौथी जमात तक पढ़ा लिया, उसे जोड़घटाव व गुणाभाग आ गया, बस उस की पढ़ाई पूरी हो गई. मूल रूप से पुराने कपड़ों के बदले स्टील और प्लास्टिक के बरतन व दूसरा सामान दे कर उस से होने वाली मामूली आमदनी पर ये लोग किसी तरह दो वक्त की रोटी का जुगाड़ ही कर पाते हैं.

सिंधी बागान बस्ती की रहने वाली

25 साला बंदनी गुजराती ने बताया कि इस बस्ती में ‘गुजराती’ समुदाय के तकरीबन 30 परिवार रहते हैं, लेकिन किसी घर की लड़की ने 5वीं जमात की दहलीज पर पैर नहीं रखा है.

बेटियों यानी लड़कियों को पढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की ओर से कई तरह की सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं, इस के बावजूद भी आप लोग लड़कियों को चौथी जमात से आगे क्यों नहीं पढ़ाते हैं? इस सवाल के जवाब में इस बस्ती की सब से बुजुर्ग 55 साला विद्या गुजराती नामक औरत ने बताया कि दिनरात मेहनत कर के किसी तरह घरपरिवार का गुजारा होता है. औसतन 6 से 8 हजार रुपए महीने की कमाई में उन के लिए लड़कियों को ज्यादा पढ़ाना मुमकिन नहीं है.

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23 साला चुन्नी गुजराती ने बताया कि उस के समुदाय में लड़कों का काम घर पर रहना और घर की देखरेख करना है, जबकि लड़कियों का काम गलीगली, दरवाजेदरवाजे जा कर पुराने कपड़ों की एवज में ग्राहकों को उन की जरूरत के मुताबिक स्टील व प्लास्टिक के बरतन व दूसरा सामान देना होता है.

पुराने कपड़ों का क्या करते हैं? इस सवाल के जवाब में 26 साला जैली गुजराती व 20 साला राजा गुजराती ने बताया कि पुराने कपड़ों को बेचते हैं. पुराने कपड़ों का यह बाजार चितरंजन एवेन्यू में गिरीश पार्क से ले कर बिडन स्ट्रीट तक रोजाना देर रात तक लगता है.

शिमला माठ के रहने वाले 30 साला पंकज गुजराती की बात मानें तो इन दिनों ‘गुजराती’ समुदाय की कुछ लड़कियां पढ़ना चाहती हैं, लेकिन कोई सही सलाह देने वाला नहीं है. चुनाव के समय हर पार्टी के नेता यहां आ कर उन के विकास के बाबत भरोसा दे जाते हैं, लेकिन चुनाव के बाद उन की सुध लेने वाला कोई नहीं होता है.

इस बाबत स्थानीय पार्षद और विधायक स्मिता बक्सी का कहना है कि वे अपने लैवल पर पूरी कोशिश करती हैं कि हर बच्चा चाहे वह लड़की हो या लड़का स्कूल जाए लेकिन अगर किसी लड़की के मातापिता ऐसा नहीं चाहते हैं, तो इस में वे क्या कर सकते हैं.

दूसरी ओर, कोलकाता नगरनिगम के शिक्षा विभाग के मेयर परिषद के सदस्य अभिजीत मुखर्जी का कहना है कि विभाग की सारी कोशिशों के बावजूद कुछ मातापिता अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते. सर्वशिक्षा अभियान के तहत नगरनिगम द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों को अपग्रेड कर 8वीं जमात तक किया गया है. कामकाजी औरतें अपनी बेटियों को अकेले छोड़ने से डरती हैं, इसलिए वे उन्हें अपने साथ ले कर काम पर निकलती हैं.

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ऐसी ही गरीब कामकाजी औरतों को ध्यान में रख कर डे बोर्डिंग स्कूल तैयार किया जा रहा है, जहां पर लड़कियां महफूज भी रह सकें और पढ़ भी सकें. द्य

धर्म दीक्षा यानी गुरूओं की दुकानदारी

रिटायरमैंट के करीब पहुंचे एक सज्जन से मैं ने पूछा, ‘‘दीक्षा का मतलब क्या है?’’ वे बताने लगे, ‘‘दीक्षा का मतलब, दक्ष,’’ वे आगे बोले, ‘‘कृष्ण ने अर्जुन को महाभारत के युद्ध में दीक्षा दी थी.’’

‘‘क्या दीक्षा दी थी?’’ मेरे दोबारा पूछने पर वे कुछ नहीं बोले. जाहिर है, वे अपने गुरु के अंधसमर्थक थे.

इस बारे में महाभारत से स्पष्ट है कि कृष्ण ने छलकपट से कुरुक्षेत्र का युद्ध जीता था. तो क्या उन्होंने अर्जुन को छलकपट की दीक्षा दी? आमतौर पर दीक्षा का मतलब होता है, गुरु द्वारा दिया गया ज्ञान का सार, जिस पर शिष्य (छात्र) अपने जीवन में अमल कर सफलता की सीढ़ी चढ़ता है. स्कूल की पढ़ाई को तथाकथित गुरु अपर्याप्त शिक्षा मानते हैं. अनपढ़, गंवार गुरु अपने तप से जीवन में ऐसा कौन सा मंत्र प्राप्त करते हैं जो अपने शिष्यों में बांट कर उन का जीवन सुधारने का कार्य करते हैं, जबकि वे खुद असफल, जीवन के संघर्षों से भागने वाले लोग होते हैं.

गुरु के मर जाने के बाद भी दीक्षा का कार्यक्रम चलता है. यह समझ से परे है, क्योंकि गुरु खुद अपना ज्ञान दे तो समझ में आता है पर यह कार्य मरने के बाद उन के कुछ शिष्यों द्वारा चलता रहे, तो यही कहा जा सकता है कि यह गुरु की दुकानदारी है.

दीक्षा देने का तरीका सभी गुरुओं का एक जैसा नहीं होता. कुछ गुरु खास रंगों के वस्त्रों के साथ नहाधो कर ब्रह्ममुहूर्त में दीक्षा देते हैं, तो कुछ कभी भी, किसी भी अवस्था में. दीक्षा के लिए किस गुरु को चुना जाए, यह बुद्धि से ज्यादा गुरु के प्रचार पर निर्भर करता है जिस गुरु का जितना प्रचार होता है उस से दीक्षित होने के लिए लोग उतने ही उतावले होते हैं. इस के अलावा संपर्क भी एक माध्यम है. क्यों? जड़बुद्धि जनता के लिए यह महत्त्वपूर्ण नहीं होता क्योंकि इतना सोचने के लिए उस के पास दिमाग ही नहीं होता. उसे तो बस यह पता हो कि उक्त गुरुजी बहुत पहुंचे हुए महात्मा हैं.

इन गुरुओं से संबंधित अनेक मनगढं़त कहानियां होती हैं जो नए ग्राहक (शिष्य) को फंसाने के लिए सुनाई जाती हैं. एक दीक्षा प्राप्त महिला ने अपने गुरु के बारे में बताया कि एक बार मेरा बेटा मोटरसाइकिल से आ रहा था. उसे अचानक चक्कर आया और वह गिर पड़ा. गिरते ही बेहोश होने की जगह उस ने गुरुमंत्र जपा. तभी गुरु समान सड़क पर पता नहीं कहां से एक रिकशा वाला आ गया, जो मेरे बेटे को उठा कर पास के अस्पताल में ले गया. आमतौर पर उस अस्पताल में औक्सीजन सिलिंडर नहीं होता पर उस रोज था और इस तरह बेटे की जान बच गई. रिकशे वाले की सदाशयता और अस्पताल की सारी मुस्तैदी का के्रडिट गुरुजी ले उड़े.

दूसरी कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है : एक शिष्य साइकिल से जा रहा था. अचानक ट्रक ने पीछे से साइकिल में टक्कर मारी तो साइकिल सवार सड़क पर और साइकिल छिटक कर दूर जा पड़ी. सड़क पर गिरते ही उस का एक हाथ ट्रक के अगले पहिए के नीचे आ गया. तभी उस ने गुरुमंत्र जपा. मंत्र जपने के साथ ही उस में पता नहीं कहां से इतनी शक्ति आ गई कि उस ने सिर झटके से हटा लिया. इस तरह उस का सिर पिछले पहिए से कुचलने से बच गया.

समझने वाली बात है कि उस का ध्यान मंत्रजाप पर था या सिर बचाने पर. साफ पता लग रहा है कि सारी घटना में जानबूझ कर मंत्र का तड़का लगाया गया है.

गुरुमंत्र कानों में इस तरह फुसफुसाए जाते हैं ताकि कोई सुन न ले. ठीक पाकिस्तान के आणविक कार्यक्रम की तरह कहीं आतंकवादियों के हाथ न पड़ जाए, वरना महाविनाश निश्चित है. गुरुमंत्र से दीक्षित हो कर वह आदमी उस फार्मूले (मंत्र) को अपने तक ही सीमित रखता है.

दीक्षा मुफ्त में नहीं मिलती. इस के लिए बाकायदा चढ़ावा निश्चित है. ‘माया महा ठगिति हम जानी’, तिस पर गुरु व उन के खासमखास चेले बिना रुपया हाथ में लिए दीक्षा नहीं देते. यहां तक कि मर चुके गुरु के फोटो तक के पैसे शिष्यों से वसूल लिए जाते हैं. एकाधिकार बना रहे तभी कानों में मंत्र फूंकने का काम वह अपने तक ही सीमित रखता है. हां, मरने के बाद गुरु की दुकानदारी चलती रहे, सो अपने किसी प्रिय शिष्य को वह यह कार्य सौंप कर जाता है.

दीक्षा में कुछ नहीं है. कानों में गुरु अपना उपनाम बताता है, जिसे दीक्षित आदमी से हर वक्त जपने को कहा जाता है. यह एक तरह से व्यक्ति पूजा है ताकि कथित भगवानों से ऊपर लोग उसे जानें. तथाकथित गुरु का यह आत्ममोह से ज्यादा कुछ नहीं.

गुरु कितने आध्यात्मिक व ताकतवर हैं, यह सब को मालूम है. सुधांशु महाराज, जयगुरुदेव, कृपालु महाराज, आसाराम बापू, प्रभातरंजन सरकार (आनंदमार्गी) इन सब के क्रियाकलापों से सारा देश परिचित है. इन्होंने समाज को कौन सी सीख दी? क्या मंत्र दिया? उन का गुरुशिष्य के खेल में कितना कल्याण हुआ? यह बताने की जरूरत नहीं. हां, इतना जरूरी है कि दीक्षा के नाम पर करोड़ों रुपए कमा चुके ये महात्मा खुद आलीशान जीवन जी रहे हैं और दीक्षा लेने वाला शिष्य भूखे पेट इन के नाम का जाप कर इन्हें धन्य कर रहा है.

अपनी गिरफ्तारी पर आसाराम बापू ढिठाई से कहते हैं, ‘‘नरेंद्र मोदी की सत्ता बच न सकेगी.’’ मानो वे कोई अंतर्यामी व सर्वशक्तिमान हैं. उन के गिरफ्तार होते ही प्रलय आ जाएगी. दुनिया तहसनहस हो जाएगी. अपनी दुकानदारी चलाने की नीयत से इन गुरुओं द्वारा, यदि दिवंगत हुए तो शिष्यों द्वारा साल में 1 या 2 बार विभिन्न धार्मिक शहरों में भंडारे का आयोजन होता है. जहां इन के शिष्य जुटते, खातेपीते, सत्संग (चुगलखोरी) करते हैं. कहने को सभी शिष्य आश्रम में गुरुभाई हैं पर जैसे ही भंडारा खत्म होता है फिर से वे जातिपांति, भाषा में बंटे अपने घरों को लौट जाते हैं. सिवा पिकनिक के इन भंडारों से कोई लाभ नहीं होता. भंडारे के लिए धन कहां से आता है? इस के लिए हर शिष्य चंदा देता है. कुछ पैसे वाले व्यापारी तो गुरु महाराज की इच्छा के नाम पर भंडारे का सारा खर्च अपने ऊपर ले लेते हैं. दरअसल, जमाखोरी कर के वे जो पाप की कमाई करते हैं उसे थोड़ा खर्च कर के अपने पाप को धोने की कोशिश करते हैं.

दीक्षित होने के बाद बताया जाता है कि गुरु की तसवीर के सामने बिना होंठ व जबान हिलाए मंत्र (गुरु नाम) का स्मरण करना चाहिए. यह प्रक्रिया दिनरात कभी भी की जा सकती है. सुबह अनिवार्य है. ऐसा कर के शिष्य के ऊपर कभी भी संकट नहीं आ सकता. तो क्या गुरुजी उस आदमी के लिए ‘बुलेटप्रूफ जैकेट’ का काम करते हैं? अगर गुरुजी पर संकट आए तब जैसा आसाराम बापू के साथ हुआ? तब मीडिया को कोसने का मंत्र गला फाड़फाड़ कर बोलने का नियम शायद लागू होता है.

कुल मिला कर दीक्षा वक्त व धन की बरबादी है. जो धर्मभीरु हैं, बेकार हैं व भाग्य के भरोसे रहने वाले हैं वे ही इन गुरुओं के चक्कर में पड़ते हैं. जो गुरु खुद दिग्भ्रमित हो वह क्या लोगों को रास्ता दिखाएगा. दोष कबीर का ही है, न वे कहते, ‘गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय. बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय.’ न आम लोगों में यह धारणा बनती कि गुरु ही भगवान के पास जाने का रास्ता जानते हैं.    द्य

पावर वीडर खरपतवार हटाए पैदावार बढ़ाए

लेखकभानु प्रकाश राणा

हमारे देश के अनेक इलाकों के किसान गन्ना, कपास, सब्जी या फूलों वगैरह की खेती लगातार करते आ रहे?हैं. इन सभी फसलों को ज्यादातर लाइन में बोया जाता है. दूसरी फसलों की तुलना में इन फसलों को बोने वाली लाइनों के बीच की दूरी भी अधिक होती है. इस वजह से लाइनों के बीच वाली जगहों में अनेक खरपतवार आ जाते?हैं.

ये ऐसे खरपतवार होते?हैं जो बिना बोए ही उपज आते हैं. उर्वरकों को हम अपनी फसल में इसलिए डालते हैं कि हमें अच्छी पैदावार मिल सके. इन उर्वरकों का फायदा ये खरपतवार भी उठाते हैं और तेजी के साथ

बढ़ते?हैं जिस का सीधा असर फसल की पैदावार पर पड़ता है यानी फसल पैदावार में गिरावट आ जाती है.

खरपतवारों की रोकथाम

सहफसली खेतीबारी : कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि खरपतवारों की रोकथाम के लिए फसल चक्र अपनाना एक तरीका है यानी खेत में फसल को बदलबदल कर बोना. इस से खरपतवारों को पनपने का मौका नहीं मिलता.

जैसे, हम अभी गन्ना की फसल ले रहे हैं तो अगली बार उस में गेहूं बोएं, गेहूं कटने के बाद खेत भी कुछ समय खाली रहते हैं. उस समय उस में हरी खाद के लिए ढैंचा वगैरह बोएं. उस के बाद धान लगाएं, फिर गन्ना की बोआई कर सकते हैं. इस तरह बदलबदल कर फसल बोने से खरपतवारों पर रोक लगती है.

करें सहफसली खेती

अगर आप गन्ने की खेती कर रहे?हैं तो उस के साथ सहफसली खेती करें. जब गन्ना?छोटा होता?है उस समय उस की लाइनों के बीच में खाली जगह में आलू, लहसुन, गोभी, भिंडी टमाटर वगैरह की खेती भी करें. इन सब्जियों के अलावा समय के मुताबिक गन्ने के साथ दलहनी फसल उड़द, मूंग, लोबिया वगैरह भी उगा सकते हैं. ऐसा करने से अधिक फायदा होगा. खरपतवारों की रोकथाम तो होगी ही, साथ ही सहफसली खेती में मुनाफा भी होगा.

कहने का सीधा सा मतलब यह है कि दोनों लाइनों के बीच में जो जगह बची है, वहां की मिट्टी की पैदावार कूवत का फायदा खरपतवार उठाते हैं. उसी जगह का इस्तेमाल कर अगर आप ने दूसरी फसल भी ले ली तो खरपतवारों को पनपने का मौका ही नहीं मिला.

खास परिस्थितियों में आप खरपतवारों को खत्म करने के लिए सही खरपतवारनाशक का इस्तेमाल कर सकते हैं. आजकल रासायनिक खरपतवार के अलावा अनेक जैविक खरपतवारनाशक भी आ रहे हैं, उन का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

यंत्रों से करें रोकथाम

इस तरह की फसलों में खरपतवार के सफाए के लिए पावर वीडर एक कारगर यंत्र है. इस खरपतवारनाशक यंत्र से कम समय में अनेक फसलों से खरपतवार निकाले जा सकते हैं. यह यंत्र सभी छोटेबड़े किसानों के लिए अच्छा यंत्र है. साथ ही, पहाड़ी इलाकों के लिए भी उपयोगी है. खरपतवार निकालने के इस तरह के यंत्र खासकर लाइनों में बोई गई फसल के लिए अच्छे रहते हैं.

हौंडा रोटरी टिलर : मौडल एफजे 500 आरडी रोटरी पावर वीडर की कुछ खासीयतें दी गई हैं. इस यंत्र में 5.5 हौर्सपावर का 4 स्ट्रोक एयर कूल्ड इंजन लगा?है और धूल से बचाव के लिए इंजन में एयर क्लिनर भी लगा है.

गियर बौक्स जमीन में ऊंचाई पर दिया गया है. इस वजह से यह मिट्टी में नहीं फंसता और बिना रुकावट के चलता?है. 2 गियर फौर्वर्ड (सामने की ओर) व 1 गियर रिवर्स (वापसी) के लिए दिया गया है जिस से अपनी सुविधानुसार आगे या पीछे किया जा सकता है.

यह यंत्र खरपतवार को जड़ से खोद कर निकालता है. यह यंत्र पैट्रोल से चलाया जाता है और इस की टीलिंग (खुदाई) चौड़ाई को

18 इंच से 24 इंच, 36 इंच तक कटाव बढ़ाया जा सकता?है और टीलिंग यानी खुदाई की गहराई को 3 से 5 इंच तक कम या ज्यादा किया जा सकता है.

इस यंत्र के बारे में अधिक जानकारी के लिए फोन नंबर 0120-2341050-59 पर आप बात कर सकते हैं. यहां से आप को अपने नजदीकी डीलर की जानकारी या फोन नंबर भी मिल सकता है. आप अपनी सुविधानुसार यहां से इस यंत्र के बारे में जानकारी ले सकते हैं.

ग्वार की खेती कहां उगाएं कौन सी किस्म

लेखक- भानु प्रकाश राणा

ग्वार के दानों से निकलने वाले गोंद के कारण इस की खेती ज्यादा फायदेमंद हो सकती है. हरियाणा के अनेक इलाकों में ग्वार की खेती ज्यादातर उस के दानों के लिए की जाती है. ग्वार की खेती उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान जैसे अनेक इलाकों में की जाती है. इस की खेती को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती. यह बारानी इलाकों के लिए खरीफ की खास फसल है इसलिए इस की खेती उन्नत तरीके से करनी चाहिए और अच्छी किस्म के बीजों को ही बोना चाहिए.

ग्वार में गोंद होने की वजह से इस का बारानी फसल का औद्योगिक महत्त्व भी बढ़ता जा रहा है. भारत से करोड़ों रुपए का गोंद विदेशों में बेचा जाता है. ग्वार की अनेक उन्नत किस्मों में 30 से 35 फीसदी तक गोंद की मात्रा होती है.

ग्वार की अच्छी पैदावार के लिए रेतीली दोमट मिट्टी मुफीद रहती है. हालांकि हलकी जमीन में भी इसे पैदा किया जा सकता?है. परंतु कल्लर (ऊसर) जमीन इस के लिए ठीक नहीं है.

जमीन की तैयारी : सब से पहले 2-3 जुताई कर के खेत की जमीन एकसार करें और खरपतवारों का भी खत्मा कर दें.

बोआई का समय?: जल्दी तैयार होने वाली फसल के लिए जून के दूसरे हफ्ते में बोआई करें. इस के लिए एचजी 365, एचजी 563, एचजी 2-20, एचजी 870 और एचजी 884 किस्मों को बोएं.

देर से तैयार होने वाली फसल एचजी

75, एफएस 277 की मध्य जुलाई में बोआई करें. अगेती किस्मों के लिए बीज की मात्रा

5-6 किलोग्राम प्रति एकड़ और मध्य अवधि के लिए बीज 7-8 किलोग्राम प्रति एकड़ की जरूरत होती है. बीज की किस्म और समय के मुताबिक ही बीज बोएं.

खरपतवारों की रोकथाम : बीज बोने के 20-25 दिन बाद खेत की निराईगुड़ाई करें. अगर बाद में भी जरूरत महसूस हो तो 15-20 दिन बाद दोबारा एक बार फिर खरपतवार निकाल दें.

गुड़ाई करने के लिए हाथ से चलने वाले कृषि यंत्र हैंडह्वील (हो) से कर देनी चाहिए. ‘पूसा’ पहिए वाला हो वीडर कम कीमत वाला साधारण यंत्र है. इस यंत्र से खड़े हो कर निराईगुड़ाई की जाती?है. इस का वजन तकरीबन 8 किलोग्राम है. इस यंत्र को आसानी से फोल्ड किया जा सकता है. यह यंत्र कहीं?भी लाया व ले जाया जा सकता है.

इस यंत्र को खड़े हो कर, आगेपीछे धकेल कर चलाया जाता?है. निराईगुड़ाई के लिए लगे ब्लेड को गहराई के अनुसार ऊपरनीचे किया जा सकता?है. पकड़ने में हैंडल को भी अपने हिसाब से एडजस्ट कर सकते हैं. यह कम खर्चीला यंत्र है. आजकल यह यंत्र गांवदेहातों में आसानी से मिलता?है. अनेक कृषि यंत्र निर्माता इसे बना रहे हैं.

खेत में पानी : आमतौर पर इस दौरान मानसून का समय होता?है और पानी की जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन अगर बारिश न हो और खेत सूख रहे हों तो फलियां बनते समय हलकी सिंचाई जरूर करें.

फसल की कटाई?: जब फसल की पत्तियां पीली पड़ कर झड़ने लगें और फलियों का रंग भी भूरा होने लगे तो फसल की कटाई करें और कटी फसल को धूप में सूखने के लिए छोड़ दें. जब कटी फसल सूख जाए तो इस की गहाई करें और दानों को सुखा कर रखें.

अगर फसल में कीट व रोग का हमला दिखाई दे तो कीटनाशक छिड़कें और कुछ दिनों तक पशुओं को खिलाने से परहेज करें.

उन्नत किस्में

हरियाणा के लिए

एफएस 277 : यह किस्म सीधी व लंबी बढ़ने वाली है. साथ ही, देर से पकने वाली किस्म है. यह मिश्रित खेती के लिए अच्छी मानी गई है. इस के बीज की पैदावार 5.5-6.0 क्विंटल प्रति एकड़ है.

एचजी 75 : अनेक शाखाओं वाली यह किस्म रोग के प्रति सहनशील है और देर से पकने वाली है. इस के बीज की पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ है.

एचजी 365 : यह कम शाखाओं वाली जल्दी पकने वाली किस्म है. यह किस्म तकरीबन 85-100 दिनों में पक जाती?है और औसतन पैदावार 6.5-7.5 क्विंटल प्रति एकड़ है. इस किस्म के बोने के बाद आगामी रबी फसल आसानी से ली जा सकती है.

एचजी 563 : यह किस्म भी पकने में 85-100 दिन लेती?है. इस के पौधों पर फलियां पहली गांठ व दूसरी गांठ से ही शुरू हो जाती हैं. इस का दाना चमकदार और मोटा होता है. इस किस्म की पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ है.

एचजी 2-20 : ग्वार की यह किस्म पूरे भारत में साल 2010 में अनुमोदित की गई?थी. 90 से 100 दिनों में पकने वाली इस किस्म की फलियां दूसरी गांठ से शुरू हो जाती हैं और इस की फली में दानों की तादाद आमतौर पर दूसरी किस्मों से?ज्यादा होती व दाना मोटा होता है. इस किस्म की औसत पैदावार 8-9 क्विंटल प्रति एकड़ है.

एचजी 870 : इस किस्म को भी साल 2010 में हरियाणा के लिए अनुमोदित किया गया?था. पकने का समय 85-100 दिन. दाने की पैदावार 7.5-8 क्विंटल प्रति एकड़ है. गोंद की औसत मात्रा 31.34 फीसदी तक होती है.

एचजी 884 : ग्वार की इस किस्म को पूरे भारत के लिए साल 2010 में अनुमोदित किया गया था. यह किस्म 95-110 दिन में पकती है. मोटे दाने, दाने की पैदावार 8 क्विंटल प्रति एकड़ व गोंद की औसत मात्रा 29.91 फीसदी तक है.

राजस्थान के लिए

आरजीसी 936 : यह किस्म जल्दी पकने वाली है. दाने मध्यम आकार के और हलके गुलाबी रंग के होते?हैं. 80-110 दिन में पकने वाली यह किस्म अंगमारी रोधक है. इस में झुलसा रोग को सहने की कूवत भी होती?है. इस के पौधे शाखाओं वाले झाड़ीनुमा, पत्ते खुरदरे होते?हैं. सफेद फूल इस किस्म की शुद्धता बनाए रखने में सहायक है. सूखा प्रभावित इलाकों में जायद और खरीफ में यह किस्म बोने के लिए सही है. यह किस्म 8 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है.

आरजीएम 112 (सूर्या) : इस किस्म को जायद और खरीफ दोनों में बोया जा सकता?

है. यह किस्म 85 से 100 दिन में

पक कर तैयार हो जाती?है. इस के पौधे शाखाओं वाले झाड़ीनुमा, पत्ते खुरदरे और एकसाथ पकने वाली यह किस्म

10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती?है. इस किस्म के फूलों का रंग नीला, फली मध्यम लंबी भूरे रंग की और दानों का रंग सलेटी है और इस में बैक्टीरियल ब्लाइट सहन करने की कूवत होती है.

आरजीसी 1002 : शुष्क और कम बारिश वाले इलाकों के लिए यह खास किस्म है. इस के पौधे 60 से 90 सैंटीमीटर ऊंचे व अत्यधिक शाखाओं वाले होते?हैं. इस की पत्तियां खुरदरी होती हैं और पत्ती के किनारों पर स्पष्ट कटाव होते?हैं. फली की लंबाई 4.5 से 5.0 सैंटीमीटर (मध्यम) होती?है. यह शीघ्र पकने वाली किस्म है यानी 80-90 दिन में पक जाती है. पैदावार तकरीबन 10 से 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है.

आरजीसी 1003 : इस किस्म के पौधे अधिक शाखाओं वाले होते?हैं. पत्तियां खुरदरी व किनारी बिना दांतेदार होती हैं. यह फसल 85 से 90 दिनों में पक जाती है. पैदावार 8 से

14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. बीज में गोंद की मात्रा 29 से 32 फीसदी होती?है. यह किस्म देश के शुष्क और अर्द्धशुष्क इलाकों के लिए सही है.

आरजीसी 1017 : इस किस्म के पौधों की पत्तियां खुरदरी और दांतेदार होती हैं. इस की फसल 90 से 100 दिनों में पक जाती है. इस के दाने औसत मोटाई वाले, जिस के 100 दानों का वजन 2.80 से 3.20 ग्राम के मध्य होता है. इस की पैदावार 10 से 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

आरजीसी 1031 (क्रांति) : इस किस्म के पौधे 75 से 108 सैंटीमीटर ऊंचाई वाले और अत्यधिक शाखाओं वाले होते हैं. पौधों पर पत्तियां गहरी हरी, खुरदरी और कम कटाव वाली होती हैं. दानों का रंग सलेटी और आकार मध्यम मोटाई का होता है. इस किस्म

के पकने की अवधि 110 से 114 दिन है

और पैदावार कूवत 10 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

आरजीसी 1038 (करण) : इस किस्म के पकने की अवधि 100 से 105 दिन है. पौधे की पत्तियां खुरदरी और कटाव वाली होती?हैं. इस किस्म की पैदावार कूवत 10 से

21 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है. दानों का रंग सलेटी और आकार मध्यम मोटाई का होता?है. फलियां मध्यम लंबी और इन में दानों का उभार साफ दिखाई देता?है. यह किस्म अनेक रोगों की प्रतिरोधक है.

आरजीसी 1033 : इस किस्म के पौधों की?ऊंचाई तकरीबन 40 से 115 सैंटीमीटर होती?है और पौधों पर पत्तियां गहरी हरी, खुरदरी और कम कटाव वाली होती हैं. फूल हलके गुलाबी रंग के और दानों का रंग सलेटी और आकार मध्यम मोटाई का होता है. इस किस्म की अवधि 95 से 106 दिन है और पैदावार कूवत 15 से

25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

आरजीसी 1066 : इस किस्म के पत्ते कटावदार होते हैं. यह किस्म जल्दी पकने वाली है यानी 90 से 100 दिन में पकती है. यह किस्म शाखारहित और गुलाबी रंग के फूलोें वाली होती?है. इस किस्म की पैदावार

तकरीबन 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर?है.

आरजीसी 1055 (उदय) : यह किस्म खरीफ व जायद दोनों के लिए सही?है. पत्तों के किनारे खुरदरे और पौधे शाखा वाले होते हैं. इस के पकने की अवधि 95 से 105 दिन है. औसतन पैदावार 11 से 13 क्विंटल है. सिंचित और बारिश वाले इलाकों के लिए यह किस्म सही है.

पंजाब के लिए

एजी 111 : शाखाओं वाली यह जल्दी पकने वाली उन्नत किस्म?है. इस किस्म के पकने की अवधि 90 से 95 दिन है. औसतन पैदावार 12 से 15 क्विंटल है. सिंचित और बारिश पर आधारित इलाकों के लिए यह किस्म सही है.

ग्वार 80 : यह देरी से पकने वाली और शाखाओं वाली किस्म है. इस के पकने की अवधि 115 से 120 दिन है. औसतन पैदावार

18 से 20 क्विंटल है. सिंचित और बारिश आधारित इलाकों के लिए यह किस्म सही है.

दिल्ली के लिए

नवीन : यह किस्म जल्दी पकने वाली है. इस के पौधे शाखाओं वाले होते हैं. इस की पकने की अवधि 90 से 95 दिन है. औसतन पैदावार 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मिलती?है. सिंचित और बारिश आधारित इलाकों के लिए सही है.

सुविधा : यह भी जल्दी पकने वाली किस्म है. इस के पौधे शाखाओं वाले होते?हैं. इस के पकने की अवधि 90 से 95 दिन है. औसतन पैदावार 15 से 18 क्विंटल. सिंचित और बारिश आधारित इलाकों के लिए सही?है.

सोना?: यह देरी से पकने वाली किस्म है. इस के पकने की अवधि 115 से 120 दिन है. औसतन पैदावार 16 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. सिंचित और बारिश आधारित क्षेत्रों के लिए सही?है. यह अनेक शाखाओं वाली किस्म?है.

पीएलजी 85 : यह देरी से पकने वाली उन्नत किस्म है. इस के पकने की अवधि 100 से 110 दिन है. औसतन पैदावार 15 से 18 क्विंटल, सिंचित व बारिश आधारित इलाकों के लिए सही?है.

उत्तर प्रदेश के लिए

बुंदेल 1 : यह देरी से पकने वाली किस्म है. इस के पकने की अवधि 115 से 120 दिन?है. औसतन पैदावार 14 से 16 क्विंटल तक है. सिंचित और बारिश आधारित इलाकों के लिए सही है.

बुंदेल 2 : यह भी देरी से पकने वाली किस्म?है. इस के पकने की अवधि 115 से 120 दिन?है. औसतन पैदावार 14 से 16 क्विंटल तक है. सिंचित और बारिश आधारित इलाकों के लिए सही है.

गुजरात के लिए

जीजी 1 : यह अनेक शाखाओं वाली किस्म है. इस के पकने की अवधि 105 से 110 दिन है. औसतन पैदावार 8 से 11 क्विंटल है. बारिश पर आधारित इलाकों के लिए सही और फैलने वाली जीवाणु झुलसा रोग प्रतिरोधक है.

जीजी 2 : बारिश आधारित इलाकों के लिए यह ग्वार की उन्नत किस्म है. इस के पकने की अवधि 100 से 110 दिन है. औसतन पैदावार 11 से 13 क्विंटल है. यह फैलने वाली जीवाणु झुलसा रोग प्रतिरोधक है.

सब्जी के रूप में ग्वार : गंवई इलाकों में ग्वार की फलियों के साथसाथ फूलों की सब्जी बना कर खाने में इस्तेमाल किया जाता है. अब तो शहरों में भी तमाम लोग ग्वार की फलियों को सब्जी के रूप में पसंद करते हैं.

ग्वार की फली का बाजार भाव भी अच्छा मिलता है. इसलिए किसानों को चाहिए कि वह ग्वार की खेती करते समय जागरूक रहें और अपने इलाके के मुताबिक उन्नत किस्मों के बीजों का इस्तेमाल करें, जिस से बेहतर पैदावार मिल सके.

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