जीजा के प्यार का रस : भाग 1

कानपुर के सजारी गांव का सर्वेश राजपूत देर शाम थकाहारा घर आया तो उस का साढ़ू कमलेश
उस की पत्नी के साथ उस के ही घर में मौजूद था. दोनों हंसीठिठोली कर रहे थे. उन दोनों को इस तरह करीब देख कर सर्वेश का खून खौल उठा. कमलेश साढ़ू को आया देख कर बाहर चला गया.
उस के जाते ही सर्वेश सोनम पर बरस पड़ा, ‘‘तुम्हारे बारे में जो कुछ सुनने को मिल रहा है, उसे सुन कर अपने आप पर शर्म आती है मुझे. मेरी नहीं तो कम
से कम परिवार की इज्जत का तो
ख्याल रखो.’’

‘‘मैं ने ऐसा क्या गलत कर दिया, जो मेरे बारे में सुनने को मिल गया?’’ सोनम तुनक कर बोली.
सर्वेश ताव में बोला, ‘‘तुम्हारे और कमलेश के नाजायज रिश्तों की चर्चा अब पूरे गांव में हो रही है. लोग मुझे अजीब नजरों से देखते हैं. मेरे घर वाले भी कहते हैं कि अपनी पत्नी को संभालो. सुनसुन कर मेरा सिर शर्म से झुक जाता है. आखिर मेरी जिंदगी को तुम क्यों नरक बना रही हो.’’
‘‘नरक तो तुम ने मेरी जिंदगी बना दी है. पत्नी को जो सुख चाहिए, तुम ने कभी दिया है मुझे? तुम अपनी कमाई तो शराब में लुटाते हो और बदनाम मुझे कर रहे हो.’’ सोनम ने मन की बात उगल दी.
सोनम की बात सुन कर सर्वेश का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. वह उसे पीटते हुए बोला, ‘‘साली बदजात, तेरी बहन की… एक तो गलती करती है ऊपर से मुझ से जुबान लड़ाती है.’’

सोनम चीखतीचिल्लाती रही, लेकिन सर्वेश के हाथ तभी रुके, जब पिटतेपिटते सोनम बेहाल हो गई. पत्नी की जम कर धुनाई करने के बाद सर्वेश बिस्तर पर जा लेटा.
सोनम और उस के बीच आए दिन ऐसा होता रहता था. उन के झगड़े की वजह था सर्वेश का साढ़ू कमलेश. वह अकसर उस के घर आता था और सोनम से बतियाता था. सर्वेश को शक था कि सोनम और कमलेश के बीच नाजायज संबंध हैं.

पत्नी की किसी भी पुरुष से दोस्ती चाहे जायज हो या नाजायज, कोई भी पति बरदाश्त नहीं कर सकता. सर्वेश भी नहीं कर पा रहा था. जब भी उस के दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाता, वह बेचैन हो जाता था.
कानपुर शहर के थाना चकेरी अंतर्गत एक गांव है सजारी. इसी सजारी गांव में मलखे राजपूत अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार मे पत्नी गोमती के अलावा 4 बेटियां और एक बेटा सर्वेश था.
मलखे फरनीचर का अच्छा कारीगर था. उस ने अपने बेटे सर्वेश को भी अपना हुनर सिखा दिया था. सर्वेश अब सजारी की एक फरनीचर की दुकान पर काम करने लगा था.

सर्वेश का विवाह सोनम से हुआ था. खूबसूरत सोनम को पा कर सर्वेश बहुत खुश था. उसे वह जी जान से चाहने लगा. लेकिन सोनम सर्वेश जैसा साधारण पति पा कर खुश नहीं थी.
दरअसल, उस ने अपने मन में जिस पति की कल्पना की थी, सर्वेश वैसा नहीं था. सोनम ने सपना संजो रखा था कि उस का पति हैंडसम और मौडर्न होगा. जबकि सर्वेश उस की अपेक्षाओं से बिलकुल विपरीत था.

वह सांवले रंग का था. साधारण कपड़े पहनता था और शराबी था. यह सब सोनम को पसंद न था. इसी कुंठा ने सोनम को चिड़चिड़ा बना दिया था. परिवार में छोटीछोटी बातों को ले कर झगड़ा करना अब उस की आदत बन गई. आखिर परेशान हो कर सासससुर ने उसे अलग कर दिया.
सोनम अब पति के साथ मकान की पहली मंजिल पर रहने लगी. अलग होते ही सोनम ने मनमानी शुरू कर दी. सर्वेश सुबह 9 बजे ही घर से काम करने के लिए निकल जाता था. फिर रात गए ही घर लौटता था.

जीजा के प्यार का रस : भाग 2

चंचल और हसीन सोनम को रोकनेटोकने वाला अब कोई नहीं था. पति के जाते ही वह बनसंवर कर घर के बाहर ताकझांक करने लगती. हालांकि वह 2 बेटियों की मां बन चुकी थी. लेकिन उस की उम्र का अंदाजा लगाना मुश्किल था.

सोनम के घर कमलेश का आनाजाना था. वह सोनम की फुफेरी बहन दीपिका का पति था. कमलेश मूलरूप से महाराजगंज (रायबरेली) का रहने वाला था, लेकिन कानपुर शहर में रानीगंज (काकादेव) मोहल्ले में रहता था. वह शटरिंग का काम करता था.

कमलेश और सोनम का रिश्ता जीजासाली का था. इस नाते वह सोनम से हंसीमजाक व छेड़छाड़ भी कर लेता था. सोनम उस की हंसीमजाक का बुरा नहीं मानती थी, बल्कि वह खुद भी उस से छेड़छाड़ व मजाक करती थी.सोनम को कमलेश की लच्छेदार बातें भी बहुत पसंद आती थीं, इसलिए वह भी उस से खूब बतियाती थी. दरअसल, दोनों के दिलों में एकदूसरे के प्रति चाहत पैदा हो गई थी. कमलेश जब भी उस के रूपसौंदर्य की तारीफ करता था तो सोनम के शरीर में अलग तरह की तरंगे उठने लगती थीं.

2 बच्चों की मां बनने के बाद सोनम के रूपलावण्य में और भी निखार आ गया था. उस का गदराया यौवन और भी रसीला हो गया था. झील सी गहरी आंखों में मादकता छलकती थी. संतरे की फांकों जैसे अधरों में ‘शहद जैसा द्रव्य’ समा गया था. सुराहीदार गरदन के नीचे नुकीले शिखर किसी को भी आकर्षित करने के लिए पर्याप्त थे. उस की नागिन सी लहराती काली चोटी सदैव नितंबों को चूमती
रहती थी.

घर आतेजाते कमलेश अकसर सोनम के रूपलावण्य की तारीफ करता था. किसी मर्द के मुंह से अपनी तारीफ सुनना हर औरत की सब से बड़ी कमजोरी होती है. सोनम से भी रहा नहीं गया.
कमलेश ने एक रोज उस के हुस्न और जिस्म की तारीफ की तो वह फूल कर गदगद हो गई. फिर वह बुझे मन से बोली, ‘‘ऐसी खूबसूरती किस काम की, जिस की तरफ पति ध्यान ही न दे.’’
कमलेश को सोनम की किसी ऐसी ही कमजोर नस की तलाश थी. जैसे ही उस ने अपने पति की बेरुखी का बखान किया, कमलेश ने उस का हाथ थाम लिया, ‘‘तुम चिंता क्यों करती हो, हीरे की परख जौहरी ही करता है. आज से तुम्हारे दुख मेरे हैं और मेरी सारी खुशियां तुम्हारी.’’

कमलेश की लच्छेदार बातों ने सोनम का मन मोह लिया. वह उस की बातों और उस के व्यक्तित्व की पूरी तरह कायल हो गई. अंदर ही अंदर उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. आखिर में मन बेकाबू होने लगा तो सोनम ने कांपते होंठों से कहा, ‘‘अब तुम जाओ, उस के आने का समय हो गया है. कल दोपहर में आना. मैं इंतजार करूंगी.’’

कमलेश ने वह रात करवटें बदलते काटी. सारी रात वह सोनम के खयालों में डूबा रहा. सुबह वह देर से जागा. दोपहर होतेहोते वह सजसंवर कर सोनम के घर जा पहुंचा. सोनम उसी का इंतजार कर रही थी. उस ने उस दिन खुद को कुछ विशेष ढंग से सजायासंवारा था. कमलेश ने पहुंचते ही सोनम को अपनी बांहों में समेट लिया, ‘‘आज तो तुम इंद्र की परी लग रही हो, जी चाहता है नजर न हटाऊं.’’
‘‘थोड़ा सब्र से काम लो जीजाजी. इतनी बेसब्री ठीक नहीं होती,’’ सोनम ने मुसकरा कर कहा, ‘‘कम से कम दरवाजा भीतर से बंद कर लो, वरना किसी आनेजाने वाले की नजर पड़ गई तो हंगामा बरप जाएगा.’’

कमलेश ने फौरन घर का दरवाजा भीतर से बंद कर लिया. फिर बेकरार कमलेश ने सोनम को गोद में उठाया और बिस्तर पर लिटा दिया. सोनम ने भी कस कर उसे जकड़ लिया. कमलेश की गर्म बांहों में गजब का जोश था. आनंद का मोती पाने के लिए वह सोनम के शबाब के सागर में गहरे उतरता चला गया.

जीजा के जोश से सोनम निहाल हो गई. उस ने भी जीजा का उत्साह बढ़ाते हुए अपना बदन उस से रगड़ना शुरू कर दिया. कमलेश का तूफान जब थमा तो सोनम के चेहरे पर असीम तृप्ति थी. सोनम ने कभी पति से ऐसी संतुष्टि नहीं पाई थी, जैसी जीजा से पाई.

सोनम से नशीला सुख पा कर कमलेश फूला नहीं समा रहा था. सोनम भी सैक्स का साथी पा कर खुश थी. बस, उस रोज से दोनों के बीच वासना का खेल अकसर खेला जाने लगा. अब कमलेश अकसर सोनम से मिलन करने आने लगा. सोनम के लिए अब पति का कोई महत्त्व नहीं
रह गया, क्योंकि सैक्स का साथी जीजा बन गया.

सोनम के पति सर्वेश और कमलेश में खूब पटती थी. रविवार के दिन जब सर्वेश की दुकान बंद रहती तो कमलेश शराब की बोतल ले कर सर्वेश के घर आ जाता फिर दोनों की महफिल जमती. सोनम भी उन का साथ देती.
कमलेश सोनम से खुल कर हंसीमजाक करता. जीजासाली का रिश्ता था, अत: सर्वेश ने कभी आपत्ति नहीं की. मजाकमजाक में कमलेश रिश्ते की हद भी पार कर जाता, लेकिन सर्वेश खुल कर उस का विरोध नहीं कर सका.

साढ़ू के नाजुक रिश्ते की उस ने हमेशा मर्यादा बनाए रखने की कोशिश की थी. लेकिन सोनम थी कि उसे जरा भी इस की परवाह नहीं थी. वह खुल कर कमलेश के उल्टेसीधे मजाकों के जवाब देती और उस से घुलमिल कर तरहतरह की बातें करती.सर्वेश ने कई बार सोनम को उस की हरकतों के लिए आगाह किया, लेकिन वह हर बार सर्वेश को अपनी लागीलिपटी बातों से फुसला लेती.

गे संबंधों का लव ट्रायएंगल

भाई ही बने जोरू और जमीन के प्यासे- भाग 1

15जुलाई, 2022 को दिन के 11 बजे उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के थाना सुबेहा पुलिस को
112 नंबर द्वारा सूचना मिली कि शुकुलपुर गांव में एक युवक तमंचा ले कर अपनी छत पर खड़ा हुआ है.
इस सूचना के मिलते ही थानाप्रभारी शिवनारायण सिंह आननफानन में अपनी टीम के साथ गांव पहुंचे. जिस समय पुलिस गांव पहुंची, वह युवक हाथ में तमंचा लिए छत पर इधरउधर घूम रहा था. वह शुकुलपुर के राजनारायण शुक्ला का मंझला बेटा अखिलेश था.

घर के आसपास खड़े गांव के लोग उसे समझाने में लगे हुए थे. लेकिन अखिलेश का कहना था कि वह अब जीना नहीं चाहता, इसलिए वह अपनी जीवनलीला समाप्त करने वाला है.
पुलिस ने भी अखिलेश को समझाने की काफी कोशिश की. लेकिन वह किसी की भी सुनने को तैयार नहीं था. पुलिस ने अखिलेश से ऐसा करने की वजह पूछी तो उस ने पुलिस को जो बताया, वह चौंका देने वाला था.

अखिलेश ने अपनी दर्दनाक दास्तां सुनाते हुए बताया कि उस की जिंदगी में अब कुछ नहीं बचा. पत्नी ही उस का एकमात्र सहारा थी. 2 दिन पहले ही उस ने उस की भी हत्या कर दी. वह उसे बहुत प्यार करता था. वह उस के बिना जिंदा नहीं रह सकता.युवक की बात सुनते ही गांव में सनसनी फैल गई. इस का कारण था कि गांव में इतना बड़ा हादसा हो गया, लेकिन किसी को भी कानोंकान खबर तक नहीं लगी, न उस के घर वालों को और न ही किसी रिश्तेदार को.

पुलिस ने अखिलेश से पूछा कि उस ने अपनी पत्नी को क्यों मार डाला, तब उस ने बताया कि उस की पत्नी अंजलि का उस के छोटे भाई के साथ काफी समय से चक्कर चल रहा था.
उस ने उसे और अपने भाई दोनों को समझाने की कोशिश की, लेकिन दोनों ने उस की एक न मानी. उन की इसी हरकत से तंग आ कर उस ने पत्नी को मौत के घाट उतार दिया. उस की लाश घर में पड़ी है.
अखिलेश के इस खुलासे के बाद गांव वालों के साथसाथ पुलिस भी हैरत में पड़ गई थी.
अखिलेश के हाथ में तमंचा था. पुलिस को डर था कि कहीं वह गोली मार कर सुसाइड न कर ले. पुलिस उसे बातों में उलझाना चाहती थी.
पुलिस ने इधरउधर के मकानों पर चढ़ने का रास्ता देखा, लेकिन उस छत का जीना घर के अंदर से ही था. छत पर जाने का रास्ता न होने के कारण लगभग 45 मिनट तक पुलिस उसे समझाती रही.
अखिलेश की हरकतें देख पुलिस ने मकान के दरवाजे को तोड़ने की कोशिश की. जब अखिलेश को लगा कि पुलिस उस के घर का दरवाजा तोड़ कर अंदर आने की कोशिश कर रही है तो उस ने अपने गले पर तमंचा सटा कर चेतावनी दी, ‘‘अगर किसी ने दरवाजा तोड़ कर मेरे पास आने की कोशिश की तो मैं गोली चला कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर लूंगा.’’

उसी दौरान अखिलेश ने 3 बार गोली चलाने की कोशिश की. लेकिन तीनों बार ही फायर मिस हो गया. चौथी बार में गोली चल गई. इस से पहले कि घर का दरवाजा टूटता, अखिलेश ने अपनी गरदन के पास गोली मार ली. गोली लगते ही वह बुरी तरह से घायल हो गया.अखिलेश के गोली चलाते ही घटनास्थल पर हाहाकार मच गया. वहां पर खड़े लोगों में खलबली मच गई. घर का दरवाजा टूटते ही पुलिस तेजी से घर के अंदर दाखिल हुई. लेकिन अंदर का जो दृश्य था, दिल को दहला देने वाला था. अंदर के दृश्य को देख कर पुलिस सन्न रह गई.

घर के अंदर अखिलेश के भाई अजय का रक्तरंजित शव पड़ा हुआ था. उस के पास बुरी तरह से घायल अवस्था में उस के पिता राजनारायण पड़े हुए थे. पुलिस ने दोनों की हालत बिगड़ती देख तुरंत हैदरगढ़ के ट्रामा सेंटर भेज दिया. घटना की जानकारी मिलते ही एसपी अनुराग वत्स, एएसपी मनोज पांडेय भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे.अखिलेश और उस के पिता राजनारायण को ट्रामा सेंटर में भरती कराने के बाद पुलिस ने उस की पत्नी की तलाश शुरू की तो उस का शव घर के बगल वाली झोपड़ी में पौलीथिन व बोरी में छिपा मिला. अखिलेश ने अपनी बीवी अंजलि की हत्या 2 दिन पहले ही कर दी थी. इसी कारण उस के शव से बदबू भी आने लगी थी.

अंजलि की हत्या की पुष्टि होते ही पुलिस ने मृतका के मायके वालों को भी इस की खबर दे दी थी. बेटी की हत्या की खबर सुनते ही उस के मायके वाले तुरंत शुकुलपुर पहुंच गए.
अंजलि के मायके वालों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने अपनी काररवाई पूरी कर दोनों शवों (अंजलि और अखिलेश के भाई अजय) का पंचनामा कर पोस्टमार्टम हेतु भिजवा दिया.

पोस्टमार्टम के बाद अंजलि का अंतिम संस्कार उस के मायके वालों ने शहर के ही श्मशान घाट पर कर दिया था. जबकि अजय का शव देर रात शुकुलपुर गांव में ही लाया गया था. जबकि अजय के पिता राजनारायण शुक्ला की बिगड़ती हालत के कारण वह उस के दाह संस्कार में शामिल नहीं हो पाए थे.
इस मामले को ले कर पुलिस ने घायल राजनारायण शुक्ला की हालत में सुधार होने पर उन से गहन जानकारी ली. पुलिस पूछताछ में पता चला कि उस के 4 बेटे राघव शरण, अजय, अखिलेश और अनिल सभी अलगअलग रहते थे. राजनारायण शुक्ला बेटे अखिलेश के साथ ही रहते थे.

कुछ समय पहले ही अखिलेश ने अपने घर के सामने ही अपने पैसों से कुछ जमीन खरीदी थी. उस के तीनों बेटे उस पर भी अपना अधिकार मान रहे थे. जिसे ले कर चारों भाइयों में मनमुटाव चल रहा था.
अखिलेश ने 15 जुलाई की सुबह अपने बड़े भाई अजय व छोटे भाई अनिल को अपने घर बुलाया. तीनों राजनारायण के सामने ही जमीन बंटवारे की बात करने लगे. उसी दौरान अखिलेश ने अपने छोटे भाई अनिल को कोल्डड्रिंक लाने दुकान पर भेज दिया.

अनिल के जाते ही अखिलेश अजय से मारपीट पर उतर आया और घर में रखे बांके से उस ने अजय पर हमला बोल दिया. बांके के ताबड़तोड़ प्रहार से अजय की मौके पर ही मौत हो गई. अजय के बचाव में पिता राजनारायण सामने आए तो अखिलेश ने उन्हें भी घायल कर दिया.अखिलेश ने अपने बड़े भाई अजय की हत्या जमीन विवाद के कारण ही की होगी. लेकिन इस मामले में एक अहम सवाल उठ रहा था कि अखिलेश ने आत्महत्या करने की कोशिश के दौरान बताया था कि उस की पत्नी का उस के भाई के साथ चक्कर चल रहा था, जिस के कारण उस ने उसे मौत के घाट उतार दिया था. उस का सब से बड़ा दुश्मन तो उस का छोटा भाई अनिल ही था, जिस के कारण उस ने सुसाइड करने की कोशिश की थी.
अनिल भी जमीन में बंटवारे को ले कर विवाद कर रहा था. फिर उस ने अनिल को छोड़ कर अजय को ही मौत के घाट क्यों उतारा. यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी.

भाई ही बने जोरू और जमीन के प्यासे

गे संबंधों का लव ट्रायएंगल- भाग 3

16 फरवरी, 2022 की रात साढ़े 9 बजे नीरज घर पर खाना खा कर मोबाइल देख रहा था, तभी राजू की फोन काल देख कर उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. राजू ने उसे खुला आमंत्रण देते हुए कहा, ‘‘आज मेरा मन तुम्हारे साथ कुछ करने का हो रहा है. जल्दी से आ जाओ.’’अंधा क्या चाहे 2 आंखें. नीरज ने हामी भरते हुए कहा, ‘‘मैं आता हूं तू चौक पर मिलना.’’

इतना कहते ही फोन डिसकनेक्ट कर उस ने घर से जूट के 2 बोरे स्कूटी की डिक्की में रखे और पत्नी से कुछ देर में आने की बोल कर घर से निकल पड़ा. करीब पौने 10 बजे राजू उसे चौक पर ही मिल गया.
नीरज उसे स्कूटी पर बिठा कर शगुन वाटिका मैरिज गार्डन के पीछे रेलवे स्टेशन के नजदीक सुनसान जगह पर ले गया. स्कूटी खड़ी कर अंधेरे का फायदा उठा कर झाडि़यों के बीच घुस कर अपने साथ लाए जूट के बोरे बिछा कर दोनों पास में बैठ गए.

अमावस्या की रात के स्याह अंधेरे का पूरा लुत्फ नीरज उठाना चाहता था, इसलिए अपने कपड़े घुटने के नीचे सरका कर वह राजू के साथ प्रेमालाप करने लगा. मगर उसे पता नहीं था कि आज वह राजू को नहीं, अपनी मौत को सुनसान जगह ले कर आया है.नीरज और राजू का सैक्स गेम चल ही रहा था कि मनोज उन का पीछा करते हुए दबेपांव वहां पहुंच गया. मनोज ने देखा कि नीरज राजू के ऊपर था, तभी उस ने पीछे से नीरज का गला पकड़ लिया.

नीरज कुछ समझ पाता, इस के पहले राजू भी मनोज का साथ देने लगा. दोनों पूरी ताकत से नीरज का गला दबाने लगे. कुछ ही देर में नीरज छटपटा कर ढेर हो गया. इस के बाद दोनों ने उस के हाथ की नस काट कर और गले को चाकूनुमा कटर से गोद कर इस बात की पूरी तसदीक कर ली कि नीरज जिंदा तो नहीं है.नीरज की हत्या करने के बाद मनोज और राजू ने उस के शव को उठा कर घनी झाडि़यों के बीच फेंक दिया और नीरज का मोबाइल ले कर उसी की स्कूटी पर सवार हो कर दोनों भाग खड़े हुए.
रात में ही दोनों होशंगाबाद पहुंचे, जहां वे मनोज की बहनबहनोई के घर पर रुके. सुबह होते ही मनोज अपनी बहन से बोला, ‘‘दीदी, हम लोग जरूरी काम से भोपाल जा रहे हैं.’’

स्कूटी वहीं छोड़ कर दोनों बस में सवार हो भोपाल पहुंच गए. दोनों भोपाल के नादिरा बस स्टैंड से कहीं दूर भागने की फिराक में थे, तभी औबेदुल्लागंज थाने के टीआई संदीप चौरसिया की टीम ने उन्हें दबोच लिया.पकड़े जाने पर उन के पास नीरज की हत्या कुबूल करने के अलावा कोई चारा नहीं था. दोनों ने नीरज की हत्या के पीछे यही कारण बताया कि नीरज उन के सैक्स संबंधों का वीडियो वायरल करने की धमकी दे कर राजू को ब्लैकमेल कर बारबार संबंध बनाने का दबाव डाल रहा था. यह बात मनोज को नागवार गुजरी.

दोनों की निशानदेही पर नीरज की स्कूटी, मोबाइल और हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकूनुमा कटर भी बरामद कर लिया. पुलिस ने दोनों को भादंवि धारा 302,120बी के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से मनोज को जेल और राजू को बाल सुधार गृह भेज दिया गया.गे सैक्स के शौक ने एक शादीशुदा रईस कारोबारी नीरज को मौत की नींद सुला दिया तो मनोज और राजू जैसे नौजवानों को अपराध करने पर मजबूर
कर दिया. द्य
—कथा मीडिया रिपोर्ट और पुलिस सूत्रों पर आधारित

पिता का दोस्त : भाग 2

इश्कइश्क की अठखेलियां खेलती हुई कनिका पिता के दोस्त के साथ प्यार के अनोखे रिश्ते का जो धागा बुन रही थी, वह निहायत ही घटिया और बदबूदार रिश्तों का धागा था, जिस की कोई उम्र नहीं थी. उस में दोष कनिका का नहीं बल्कि उस की उम्र का था, जिस उम्र के दौर से वह गुजर रही थी.
पिता का दोस्त पिता जैसा ही होता है. कनिका ने इस रिश्ते की मर्यादा को तो भुला ही दिया था, इस से कमतर गुनहगार कनिका के पिता का दोस्त वेदप्रकाश आंतिल भी नहीं था. जो सामाजिक मानमर्यादा को ताख पर रख बेटी समान कनिका से इश्क की गोटियां खेल रहा था.

भ्रष्ट मानसिकता के उस कमबख्त इंसान ने यह भी नहीं सोचा कि जब उन के इश्क के परदे उठेंगे तो उन की समाज में कितनी बदनामी हो सकती है. लोग उन के बारे में कैसीकैसी धारणाएं रखेंगे. क्या सामाजिक तिरस्कार और बहिष्कार की मार से वे जिंदा रह सकेंगे. दोनों ने इस बारे में कभी नहीं सोचा, बस नीले आसमान के तले अपने प्यार की पींगें भरते रहे.बहरहाल, कनिका और वेदप्रकाश का रिश्तों की आड़ वाला यह खेल ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं रहा. आखिरकार, एक दिन विजयपाल के सामने यह भेद खुल ही गया. जब उस के सामने बेटी और वेदप्रकाश के बीच चल रहे नाजायज रिश्तों से परदा उठा तो उसे ऐसा लगा जैसे उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई हो.

वेदप्रकाश की हरकतों से उस के तनबदन में आग लग गई थी. वह इस सोच में डूब गया था कि माना बेटी नादान थी, नादानी में उस के पांव बहक गए लेकिन वह तो नादान नहीं था. बेटी को समझाने या ऊंचनीच का आईना दिखाने जैसा काम कर सकता था. फिर भी वह न मानती तो मुझ से आ कर कहता, मुझे बताता. मैं उस का सही तरीके से इलाज करता.बजाय इस के वह खुद उस पर लट्टू हो गया और उस से नाजायज रिश्ता जोड़ लिया. वेदप्रकाश ने ऐसी गिरी और घिनौनी हरकत कर के अच्छा नहीं किया. विजयपाल ने तय कर लिया कि वह उसे कभी माफ नहीं करेगा.

उस दिन के बाद से वेदप्रकाश का विजयपाल के घर आनाजाना बंद हो गया. कनिका पर विजयपाल और उस की पत्नी की चारों पहर नजर कड़ी हो गई थी. कनिका की मां ने सामाजिक मानसम्मान और नैतिकता की दुहाई दी लेकिन बेटी के दिलोदिमाग में वेदप्रकाश के प्यार का ऐसा रंग चढ़ गया था कि मां की सीख का रंग एकदम फीका पड़ गया था.भले ही मांबाप ने अपनी नजरों का पहरा बेटी पर बिठा दिया था, लेकिन वह छिप कर प्रेमी वेदप्रकाश से फोन पर बात कर लेती थी.

बात दिसंबर 2020 के पहले सप्ताह की है. जिस बात का डर मांबाप को सता रहा था, आखिरकार वह सच हो गया. घर वालों के मुंह पर कालिख पोत कर कनिका वेदप्रकाश के साथ घर से
भाग गई.बेटी की करतूतों से घर वालों का सिर शर्म से झुक गया. वे किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे. जवान बेटी का किसी पुरुष के साथ भाग जाना कितनी जगहंसाई वाली बात होती है, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता.

बहरहाल, वेदप्रकाश और कनिका भाग कर मेरठ पहुंचे. वहां वेदप्रकाश का एक जानने वाला रहता था, वहीं उस के घर में दोनों ने शरण ली और 20 दिसंबर, 2020 को दोनों ने कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज करने के बाद वेदप्रकाश और कनिका अपने घर मुकीमपुर लौट आए.वेदप्रकाश और कनिका घर लौट तो आए लेकिन लेकिन गांव वालों ने उन्हें गांव में घुसने नहीं दिया. गांव में पंचायत बिठा कर पंचों ने कनिका को वेदप्रकाश से छीन कर उस के घर वालों के हवाले कर दिया और उस की शादी को अमान्य घोषित कर दिया.

यही नहीं, वेदप्रकाश को अपमानित कर के गांव से निकाल बाहर कर दिया था. गांव से निष्कासित किए जाने के बाद वेदप्रकाश अपना गांव छोड़ कर रोहतक जिले में किराए का कमरा ले कर रहने लगा.
पंचों के हुक्म से प्रेमी से पतिपत्नी बने दंपति को अलग तो कर दिया था, लेकिन एकदूसरे के दिलों में उन्होंने जो जगह बनाई थी, न तो उसे मिटा सके और न ही हटा सके. सामाजिकता के कड़े चाबुक की चोट से भले ही दोनों अलग हो गए थे, लेकिन उन के सीने में धड़कने वाला दिल एक था. दोनों अलग हो कर भी एक थे, उन्हें कोई जुदा नहीं कर सका था. उन के दिलों से और खयालों से भी.

कनिका वेदप्रकाश से ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रह सकी. 3 जून, 2021 को वह फिर वेदप्रकाश के साथ घर से भाग गई. दोबारा घर से भाग कर कनिका ने मांबाप का नाम खाक में मिला दिया था.
बेटी के इस दुस्साहस से विजयपाल गुस्से से एकदम पागल हो गया. आलम तो यह था कि यदि सामने बेटी पड़ जाती तो उस के इतने टुकडे़ कर डालता, वह खुद नहीं जानता था. लेकिन करता भी क्या, वह तो अपनों से हारा था.

वक्त के सामने विजयपाल कुछ देर के लिए रुक गया था लेकिन वह टूट कर बिखरा नहीं था. सामाजिक रुसवाई का जो जख्म कनिका ने अपने बाप को दिया था, वह सूद समेत उसे लौटाने की योजना बना रहा था. इस योजना में उस ने इस बार अपनी बुआ के पोते वीरेंद्र को शामिल कर लिया था और दोनों सावधानी से आगे बढ़ रहे थे.विजयपाल की योजना बेटी कनिका को मौत के घाट उतार कर मानसम्मान बचाने और हत्या का सारा दोष नीच दोस्त वेदप्रकाश के सिर मढ़ उसे जेल भिजवाने की थी.

योजना के अनुसार, 5 जुलाई 2021 को विजयपाल ने बेटी कनिका को फोन किया, ‘‘हैलो बेटी कनिका, मैं तुम्हारा बदनसीब बाप बोल रहा हूं.’’ कराहते हुए विजयपाल बोला.
‘‘नमस्ते पापा,’’ कनिका असमंजस में डूबी आगे बोली, ‘‘आप कैसे हैं?’’‘‘और कैसा हो सकता हूं, जब से तुम घर से गई हो तब से मैं सदमे में पड़ा रहता हूं. तुम्हारे ऐसे चले जाने से घर काटने को दौड़ता है.’’ विजयपाल की बात सुन कर कनिका कोई उत्तर नहीं देती तो विजयपाल ने आगे कहा, ‘‘अच्छा, जो होना था सो हो गया. हम सब ने सोचा है कि अब हम तुम्हारी शादी को सामाजिक मान्यता दिला दें ताकि अपने पति के साथ सिर ऊंचा कर के तुम भी जी सको.’’

‘‘सच पापा?’’ पिता के मुंह से यह सुन कर कनिका खुशी से झूम उठी, ‘‘अभीअभी मेरे कानों ने जो सुना, क्या वह सच है पापा?’’‘‘हां बेटा, वो सब सच है. इसीलिए तो में ने 7 जुलाई, 2022 को अपने जन्मदिन पर एक शानदार पार्टी देने का फैसला किया है. दामादजी को साथ ले कर तुम घर आओगी तो मुझे और घर वालों को बड़ी खुशी होगी.’’

‘‘हां पापा, मैं उन्हें साथ ले कर आप के जन्मदिन पर घर जरूर आऊंगी.’’
‘‘अच्छा, अब मैं फोन रखता हूं.’’‘‘नमस्ते पापा.’’‘‘खुश रहो बेटा, घर जरूर आना मेरे जन्मदिन पर.’’
कह कर विजयपाल ने काल डिसकनेक्ट कर दी. विजयपाल ने अपनी भावनाओं का जाल फेंक कर बेटी को चंगुल में फांसने की कोशिश की थी और वह अपने खतरनाक इरादों में कामयाब भी हो गया.
कनिका ने जब ये सारी बातें पति वेदप्रकाश आंतिल से कही तो वह चौंक गया कि विजयपाल उन की शादी को सामाजिक मान्यता दिलाना चाहता है. तुरंत उस की छठी इंद्री जाग गई और उसे दोस्त से ससुर बने विजयपाल की बातों से साजिश की बू महसूस होने लगी थी.

कनिका की रगों में विजयपाल का खून दौड़ रहा था तो वह पिता की बात क्यों नहीं सुनती. वेदप्रकाश ने कनिका को बहुत समझाया कि वह अपने घर मुकीमपुर न जाए, उसे विजयपाल की नीयत पर भरोसा नहीं है. वह जहरीले सांप की तरह पलट कर कभी भी वार कर सकता है.

पति की बात सुन कर कनिका ने उसे विश्वास दिलाया कि वह हर घड़ी चौकस रहेगी. क्या पता मेरे वहां जाने से रिश्तों में फिर से बदलाव आ जाए, मांबाप का आशीर्वाद मिल जाए और हमारे जीवन की गाड़ी सुखमय चलने लगे.वेदप्रकाश का मन पत्नी को मायके भेजने का नहीं हो रहा था, लेकिन पत्नी की जिद के आगे उसे झुकना ही पड़ा. 7 जुलाई को जन्मदिन वाले दिन सुबह के समय कनिका ने अपने पिता विजयपाल को फोन कर के बताया कि वह अकेले घर आ रही है. राई थाने के पास आ कर वह उसे रिसीव कर लें.

अंधे को क्या चाहिए दो आंखें. जैसा उस ने सोचा था, ठीक वैसा ही हो रहा था. इधर जब वेदप्रकाश कनिका को गाड़ी में बैठा कर छोड़ने जा रहा था तो कनिका ने चालाकी करते हुए पति के मोबाइल फोन में अपना बयान रिकौर्ड कर लिया था. बयान में उस ने यह कहा था कि अगर मुझे कुछ होता है तो उस के लिए मेरे पिताजी विजयपाल और उन के 4 साथी दोषी होंगे जो बराबर उन के साथ मंडराते रहते हैं.
कनिका ने अपना बयान रिकौर्ड करने के बाद फोन वेदप्रकाश को दे दिया ताकि किसी अनहोनी पर भविष्य में काम आ सके. दोपहर एक बजे के करीब वेदप्रकाश राई थाने पहुंचा. थाने से थोड़ी दूर आगे विजयपाल कार लिए खड़ा था. वेदप्रकाश ने कनिका को वहीं उतार दिया तो कनिका बाप के पास पहुंच गई.

बेटी को देख कर विजयपाल के चेहरे पर कुटिल मुसकान फैल गई. उस ने कनिका को कार में पीछे वाली सीट पर बिठाया और खुद भी उसी के बगल में बैठ गया. गाड़ी वीरेंद्र चला रहा था. वेदप्रकाश ने पत्नी कनिका को विजयपाल के साथ कार में बैठते हुए देखा. कार जब वहां से चली गई तो वह निश्चिंत हो कर घर लौट आया था.सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. कनिका डरीसहमी बैठी मन ही मन प्रार्थना कर रही थी कि सब कुछ ठीक रहे और वह कुशल से मां के पास पहुंच जाए. कार के भीतर उसे खतरा महसूस हो रहा था.

राई थाने से 2-3 किलोमीटर कार आगे बढ़ी थी कि सुनसान जगह देख कर खेड़ी दमकन के पास विजयपाल ने वीरेंद्र से गाड़ी रोकने को कहा तो उस ने कार एक किनारे ले जा कर रोक दी. की अठखेलियां खेलती हुई कनिका पिता के दोस्त के साथ प्यार के अनोखे रिश्ते का जो धागा बुन रही थी, वह निहायत ही घटिया और बदबूदार रिश्तों का धागा था, जिस की कोई उम्र नहीं थी. उस में दोष कनिका का नहीं बल्कि उस की उम्र का था, जिस उम्र के दौर से वह गुजर रही थी.

पिता का दोस्त पिता जैसा ही होता है. कनिका ने इस रिश्ते की मर्यादा को तो भुला ही दिया था, इस से कमतर गुनहगार कनिका के पिता का दोस्त वेदप्रकाश आंतिल भी नहीं था. जो सामाजिक मानमर्यादा को ताख पर रख बेटी समान कनिका से इश्क की गोटियां खेल रहा था.भ्रष्ट मानसिकता के उस कमबख्त इंसान ने यह भी नहीं सोचा कि जब उन के इश्क के परदे उठेंगे तो उन की समाज में कितनी बदनामी हो सकती है. लोग उन के बारे में कैसीकैसी धारणाएं रखेंगे. क्या सामाजिक तिरस्कार और बहिष्कार की मार से वे जिंदा रह सकेंगे. दोनों ने इस बारे में कभी नहीं सोचा, बस नीले आसमान के तले अपने प्यार की पींगें भरते रहे.

बहरहाल, कनिका और वेदप्रकाश का रिश्तों की आड़ वाला यह खेल ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं रहा. आखिरकार, एक दिन विजयपाल के सामने यह भेद खुल ही गया. जब उस के सामने बेटी और वेदप्रकाश के बीच चल रहे नाजायज रिश्तों से परदा उठा तो उसे ऐसा लगा जैसे उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई हो.

वेदप्रकाश की हरकतों से उस के तनबदन में आग लग गई थी. वह इस सोच में डूब गया था कि माना बेटी नादान थी, नादानी में उस के पांव बहक गए लेकिन वह तो नादान नहीं था. बेटी को समझाने या ऊंचनीच का आईना दिखाने जैसा काम कर सकता था. फिर भी वह न मानती तो मुझ से आ कर कहता, मुझे बताता. मैं उस का सही तरीके से इलाज करता.बजाय इस के वह खुद उस पर लट्टू हो गया और उस से नाजायज रिश्ता जोड़ लिया. वेदप्रकाश ने ऐसी गिरी और घिनौनी हरकत कर के अच्छा नहीं किया. विजयपाल ने तय कर लिया कि वह उसे कभी माफ नहीं करेगा.

उस दिन के बाद से वेदप्रकाश का विजयपाल के घर आनाजाना बंद हो गया. कनिका पर विजयपाल और उस की पत्नी की चारों पहर नजर कड़ी हो गई थी. कनिका की मां ने सामाजिक मानसम्मान और नैतिकता की दुहाई दी लेकिन बेटी के दिलोदिमाग में वेदप्रकाश के प्यार का ऐसा रंग चढ़ गया था कि मां की सीख का रंग एकदम फीका पड़ गया था.भले ही मांबाप ने अपनी नजरों का पहरा बेटी पर बिठा दिया था, लेकिन वह छिप कर प्रेमी वेदप्रकाश से फोन पर बात कर लेती थी.

बात दिसंबर 2020 के पहले सप्ताह की है. जिस बात का डर मांबाप को सता रहा था, आखिरकार वह सच हो गया. घर वालों के मुंह पर कालिख पोत कर कनिका वेदप्रकाश के साथ घर से
भाग गई.बेटी की करतूतों से घर वालों का सिर शर्म से झुक गया. वे किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे. जवान बेटी का किसी पुरुष के साथ भाग जाना कितनी जगहंसाई वाली बात होती है, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता.

बहरहाल, वेदप्रकाश और कनिका भाग कर मेरठ पहुंचे. वहां वेदप्रकाश का एक जानने वाला रहता था, वहीं उस के घर में दोनों ने शरण ली और 20 दिसंबर, 2020 को दोनों ने कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज करने के बाद वेदप्रकाश और कनिका अपने घर मुकीमपुर लौट आए.वेदप्रकाश और कनिका घर लौट तो आए लेकिन लेकिन गांव वालों ने उन्हें गांव में घुसने नहीं दिया. गांव में पंचायत बिठा कर पंचों ने कनिका को वेदप्रकाश से छीन कर उस के घर वालों के हवाले कर दिया और उस की शादी को अमान्य घोषित कर दिया.

यही नहीं, वेदप्रकाश को अपमानित कर के गांव से निकाल बाहर कर दिया था. गांव से निष्कासित किए जाने के बाद वेदप्रकाश अपना गांव छोड़ कर रोहतक जिले में किराए का कमरा ले कर रहने लगा.
पंचों के हुक्म से प्रेमी से पतिपत्नी बने दंपति को अलग तो कर दिया था, लेकिन एकदूसरे के दिलों में उन्होंने जो जगह बनाई थी, न तो उसे मिटा सके और न ही हटा सके. सामाजिकता के कड़े चाबुक की चोट से भले ही दोनों अलग हो गए थे, लेकिन उन के सीने में धड़कने वाला दिल एक था. दोनों अलग हो कर भी एक थे, उन्हें कोई जुदा नहीं कर सका था. उन के दिलों से और खयालों से भी.

कनिका वेदप्रकाश से ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रह सकी. 3 जून, 2021 को वह फिर वेदप्रकाश के साथ घर से भाग गई. दोबारा घर से भाग कर कनिका ने मांबाप का नाम खाक में मिला दिया था.
बेटी के इस दुस्साहस से विजयपाल गुस्से से एकदम पागल हो गया. आलम तो यह था कि यदि सामने बेटी पड़ जाती तो उस के इतने टुकडे़ कर डालता, वह खुद नहीं जानता था. लेकिन करता भी क्या, वह तो अपनों से हारा था.वक्त के सामने विजयपाल कुछ देर के लिए रुक गया था लेकिन वह टूट कर बिखरा नहीं था. सामाजिक रुसवाई का जो जख्म कनिका ने अपने बाप को दिया था, वह सूद समेत उसे लौटाने की योजना बना रहा था. इस योजना में उस ने इस बार अपनी बुआ के पोते वीरेंद्र को शामिल कर लिया था और दोनों सावधानी से आगे बढ़ रहे थे.

विजयपाल की योजना बेटी कनिका को मौत के घाट उतार कर मानसम्मान बचाने और हत्या का सारा दोष नीच दोस्त वेदप्रकाश के सिर मढ़ उसे जेल भिजवाने की थी.
योजना के अनुसार, 5 जुलाई 2021 को विजयपाल ने बेटी कनिका को फोन किया, ‘‘हैलो बेटी कनिका, मैं तुम्हारा बदनसीब बाप बोल रहा हूं.’’ कराहते हुए विजयपाल बोला.
‘‘नमस्ते पापा,’’ कनिका असमंजस में डूबी आगे बोली, ‘‘आप कैसे हैं?’’

‘‘और कैसा हो सकता हूं, जब से तुम घर से गई हो तब से मैं सदमे में पड़ा रहता हूं. तुम्हारे ऐसे चले जाने से घर काटने को दौड़ता है.’’ विजयपाल की बात सुन कर कनिका कोई उत्तर नहीं देती तो विजयपाल ने आगे कहा, ‘‘अच्छा, जो होना था सो हो गया. हम सब ने सोचा है कि अब हम तुम्हारी शादी को सामाजिक मान्यता दिला दें ताकि अपने पति के साथ सिर ऊंचा कर के तुम भी जी सको.’’
‘‘सच पापा?’’ पिता के मुंह से यह सुन कर कनिका खुशी से झूम उठी, ‘‘अभीअभी मेरे कानों ने जो सुना, क्या वह सच है पापा?’’

‘‘हां बेटा, वो सब सच है. इसीलिए तो में ने 7 जुलाई, 2022 को अपने जन्मदिन पर एक शानदार पार्टी देने का फैसला किया है. दामादजी को साथ ले कर तुम घर आओगी तो मुझे और घर वालों को बड़ी खुशी होगी.’’‘‘हां पापा, मैं उन्हें साथ ले कर आप के जन्मदिन पर घर जरूर आऊंगी.’’
‘‘अच्छा, अब मैं फोन रखता हूं.’’‘‘नमस्ते पापा.’’‘‘खुश रहो बेटा, घर जरूर आना मेरे जन्मदिन पर.’’
कह कर विजयपाल ने काल डिसकनेक्ट कर दी. विजयपाल ने अपनी भावनाओं का जाल फेंक कर बेटी को चंगुल में फांसने की कोशिश की थी और वह अपने खतरनाक इरादों में कामयाब भी हो गया.
कनिका ने जब ये सारी बातें पति वेदप्रकाश आंतिल से कही तो वह चौंक गया कि विजयपाल उन की शादी को सामाजिक मान्यता दिलाना चाहता है. तुरंत उस की छठी इंद्री जाग गई और उसे दोस्त से ससुर बने विजयपाल की बातों से साजिश की बू महसूस होने लगी थी.

कनिका की रगों में विजयपाल का खून दौड़ रहा था तो वह पिता की बात क्यों नहीं सुनती. वेदप्रकाश ने कनिका को बहुत समझाया कि वह अपने घर मुकीमपुर न जाए, उसे विजयपाल की नीयत पर भरोसा नहीं है. वह जहरीले सांप की तरह पलट कर कभी भी वार कर सकता है.पति की बात सुन कर कनिका ने उसे विश्वास दिलाया कि वह हर घड़ी चौकस रहेगी. क्या पता मेरे वहां जाने से रिश्तों में फिर से बदलाव आ जाए, मांबाप का आशीर्वाद मिल जाए और हमारे जीवन की गाड़ी सुखमय चलने लगे.

वेदप्रकाश का मन पत्नी को मायके भेजने का नहीं हो रहा था, लेकिन पत्नी की जिद के आगे उसे झुकना ही पड़ा. 7 जुलाई को जन्मदिन वाले दिन सुबह के समय कनिका ने अपने पिता विजयपाल को फोन कर के बताया कि वह अकेले घर आ रही है. राई थाने के पास आ कर वह उसे रिसीव कर लें.
अंधे को क्या चाहिए दो आंखें. जैसा उस ने सोचा था, ठीक वैसा ही हो रहा था. इधर जब वेदप्रकाश कनिका को गाड़ी में बैठा कर छोड़ने जा रहा था तो कनिका ने चालाकी करते हुए पति के मोबाइल फोन में अपना बयान रिकौर्ड कर लिया था. बयान में उस ने यह कहा था कि अगर मुझे कुछ होता है तो उस के लिए मेरे पिताजी विजयपाल और उन के 4 साथी दोषी होंगे जो बराबर उन के साथ मंडराते रहते हैं.
कनिका ने अपना बयान रिकौर्ड करने के बाद फोन वेदप्रकाश को दे दिया ताकि किसी अनहोनी पर भविष्य में काम आ सके. दोपहर एक बजे के करीब वेदप्रकाश राई थाने पहुंचा. थाने से थोड़ी दूर आगे विजयपाल कार लिए खड़ा था. वेदप्रकाश ने कनिका को वहीं उतार दिया तो कनिका बाप के पास पहुंच गई.

बेटी को देख कर विजयपाल के चेहरे पर कुटिल मुसकान फैल गई. उस ने कनिका को कार में पीछे वाली सीट पर बिठाया और खुद भी उसी के बगल में बैठ गया. गाड़ी वीरेंद्र चला रहा था. वेदप्रकाश ने पत्नी कनिका को विजयपाल के साथ कार में बैठते हुए देखा. कार जब वहां से चली गई तो वह निश्चिंत हो कर घर लौट आया था.

सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. कनिका डरीसहमी बैठी मन ही मन प्रार्थना कर रही थी कि सब कुछ ठीक रहे और वह कुशल से मां के पास पहुंच जाए. कार के भीतर उसे खतरा महसूस हो रहा था.
राई थाने से 2-3 किलोमीटर कार आगे बढ़ी थी कि सुनसान जगह देख कर खेड़ी दमकन के पास विजयपाल ने वीरेंद्र से गाड़ी रोकने को कहा तो उस ने कार एक किनारे ले जा कर रोक दी.

गे संबंधों का लव ट्रायएंगल- भाग 2

23 साल का मनोज कटारे बरखेड़ा पुलिस चौकी क्षेत्र के पिपलिया गांव का रहने वाला है. वह रेलवे स्टेशन रोड पर स्थित एक नमकीन की दुकान पर काम करता है. इसी दुकान पर 17 साल का राजू भी काम करता था. राजू देखने में गोरा, चिकना और लड़कियों की तरह शरमीला था.दुकान पर काम के दौरान खाली समय में मनोज राजू को पकड़ कर उस के शरीर के नाजुक अंगों को छूने की काशिश करता तो राजू को अजीब सा लगता. राजू किशोरावस्था की दहलीज पर था, उसे अच्छेबुरे का ज्यादा इल्म नहीं था.

मनोज के इस तरह छूने से उसे अच्छा लगता. मनोज तो राजू का दीवाना हो गया था, उसे छूते ही मनोज को कुछ इस तरह का अहसास होता था जैसे वह किसी लड़की के बदन को छू रहा हो. जब दोनों के बीच दोस्ती हो गई तो मनोज राजू को अपने घर ले जाने लगा.
एक दिन काम से छुट्टी मिलने पर अपने ही घर में दोपहर के समय एकांत पा कर मनोज ने राजू से कहा, ‘‘राजू, तू बहुत खूबसूरत है. यदि तू लड़की होता तो मैं तुझ से ही शादी कर लेता.’’
इतना कह कर मनोज ने राजू को चूमना शुरू कर दिया. मनोज के हाथ कभी उस के गालों पर, कभी उस की छाती पर तो कभी उस के प्राइवेट पार्ट को टच करने लगे. राजू के पूरे शरीर में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गई.
उसे मनोज का इस तरह छूना अच्छा लग रहा था. लिहाजा राजू ने भी मनोज पर प्यार जताते हुए कहा, ‘‘मनोज, तुम भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो. जी चाहता है जिंदगी भर तुम्हारे साथ रहूं.’’
मनोज ने धीरेधीरे राजू के बदन से कपड़े उतारने शुरू कर दिए और राजू का हाथ अपने निजी अंग पर ले जा कर रख दिया. और राजू से बोला, ‘‘राजू, तू हमेशा इसी तरह मेरे साथ रहे तो मैं किसी लड़की से कभी शादी नहीं करूंगा.’’
मनोज की बात सुन कर राजू ने भी मनोज से वादा किया कि वह हमेशा जीवनसाथी बन कर उसी के साथ रहेगा.
धीरेधीरे राजू ने भी मनोज के कपड़े उस के शरीर से हटाना शुरू कर दिया. देखते ही देखते दोनों निर्वस्त्र हो कर अप्राकृतिक सैक्स का आनंद लेने लगे. दोनों के संबंध इतने मजबूत हो गए थे कि एक दिन भी दोनों का एकदूसरे के बिना रहना मुश्किल हो गया था.
दोनों के बीच गे रिलेशनशिप अब रोज की बात हो गई थी. दुकान से छूटते ही जब भी उन्हें मौका मिलता, वे आनंद के सागर में डूब कर गोता लगाते.

दोनों गे सैक्स का भरपूर आनंद लेने के लिए बदलबदल कर प्रेमीप्रेमिका की भूमिका निभाते थे. कभी राजू मनोज की प्रेमिका का रोल निभाता तो कभी मनोज राजू की प्रेमिका बन कर उस से संबंध बना कर उसे भी खुश कर देता.
एक दिन नीरज कोठारी शाम के वक्त नमकीन लेने उन की दुकान पर आया था, तभी राजू और मनोज के बीच हंसीमजाक देख कर उस का ध्यान राजू की तरफ गया. राजू लड़कियों की शक्लसूरत जैसा खूबसूरत लड़का था.
कुछ ही दिनों में नीरज को इस बात का पता चल गया कि मनोज और राजू के बीच समलैंगिक संबंध हैं. इस के बाद तो नीरज राजू से मिलने को बेताब हो उठा.
दरअसल, नीरज भी गे सैक्स का शौकीन था. नीरज इसी फिराक में रह कर किसी भी तरह वह राजू से नजदीकियां बढ़ाना चाहता था, मगर राजू मनोज के प्रेम में इस तरह पागल था कि वह नीरज को भाव नहीं दे रहा था.
एक दिन नीरज ने राजू और मनोज को संबंध बनाते देख लिया और अपने मोबाइल फोन से वीडियो बना ली. इस के बाद वह राजू को वीडियो दिखा कर धमकाने लगा.

राजू डर के मारे नीरज के फैलाए जाल में फंस गया. नीरज अकसर ही नमकीन की दुकान पर आने लगा. वह राजू को स्कूटी पर घुमाने के बहाने अपने साथ ले जाने लगा. राजू को मनोज के साथ रहते गलत कामों की लत पड़ चुकी थी, ऐसे में नीरज की संगत पा कर उसे भी वही मजा मिलने लगा.
धीरेधीरे राजू और नीरज रोजरोज ही मिलने लगे. वे आपस में एकदूसरे को चूमते तो कभी मोबाइल से फोटो लेते. नीरज राजू से उम्र में काफी बड़ा था. राजू को मनोज के साथ संबंध बनाने में जो मजा आता था, वह नीरज के साथ नहीं आता था. यही वजह थी कि वह नीरज से दूरियां बनाने लगा था.
मगर नीरज वीडियो वायरल करने की धमकी दे कर उस से बारबार संबंध बनाने की जिद करता था. किसी लव ट्रायंगल फिल्मी स्टोरी की तरह राजू के नीरज के साथ घूमनेफिरने से मनोज के अंदर शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा.

मनोज ने जब एक दिन राजू से नीरज के साथ नजदीकियों के बारे में पूछा तो नीरज की हरकतों की सच्चाई राजू ने मनोज को बता दी, ‘‘नीरज मुझे खेत पर बुला कर जबरन संबंध बनाता है और मना करने पर हम दोनों का वीडियो वायरल करने की धमकी देता है.’’
यह सुन कर मनोज का खून खौल उठा. जैसे एक प्रेमी अपनी प्रेमिका का किसी गैर से संबंध बरदाश्त नहीं कर पाता, वैसे ही मनोज के दिल में नीरज के प्रति नफरत की आग जलने लगी.
मनोज को जब पता चला कि नीरज उस के दोस्त राजू को ब्लैकमेल कर रहा है और जबरदस्ती संबंध बना रहा है तो उस ने नीरज को रास्ते से हटाने की सोची.
नीरज के पास उन का अश्लील वीडियो था, इस वजह से मनोज को डर था कि उस की दोस्तों में बदनामी हो जाएगी. चारों तरफ से निराश हो कर मनोज ने नीरज की हत्या करने की योजना बनाई. मनोज की बनाई योजना के मुताबिक, राजू ने 16 फरवरी की रात साढ़े 9 बजे नीरज को फोन कर के मिलने को बुलाया.
नीरज यूं तो करोड़पति बाप का इकलौता बेटा था, मगर अपने हमउम्र लड़कों के साथ अवैध संबंध रखने के शौक की वजह से वह किशोरास्था में ही बदनाम हो गया था.
नीरज के जवान होते ही उस के पिता ने उस की शादी कर दी. वक्त गुजरने के साथ नीरज का बेटा भी 15 साल का हो गया था, मगर नीरज का लड़कों से सैक्स संबंध बनाने का शौक खत्म नहीं हुआ था.

कांग्रेसी नेता का शक बना नासूर

6जून, 2022 का वाकया है. रात के तकरीबन 3 बजे थे. थाटीपुर के अत्यंत पौश इलाके रामनगर में सन्नाटा पसरा हुआ था. गरमी के चलते लोग घरों के भीतर एसी, कूलर चला कर गहरी नींद में सोए हुए थे. इन्हीं में एक परिवार कृष्णकांत भदौरिया का भी था, जो एक आलीशान कोठी में रहता था. इसी कोठी में उन का बेटा ऋषभ, पुत्रवधू भावना अपने 2 मासूम बच्चों के साथ रहती थी.

परिवार संपन्न और खुशहाल था, घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. कोई बड़ी डिग्री न होने के कारण ऋषभ को कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल सकी थी, अत: वह कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ले कर नेतागिरी करने लगा था. इस के साथ ही जोड़जुगत बैठा कर पार्टी का प्रदेश प्रवक्ता तक बन बैठा था.
इस के अलावा वह वक्त गुजारने और पैसा कमाने के मकसद से प्रौपर्टी की खरीदफरोख्त का काम भी करने लगा था, इसलिए दिन में उस का वक्त घर के बाहर ही गुजरता था. ऐसी स्थिति में घर की सारी जिम्मेदारियां उस की पत्नी भावना निभाती थी. दोनों बच्चों को स्कूल भेजने के बाद घर पर भावना दिन भर अकेली रहती थी, जिस से उसे बोरियत सी होने लगी थी.

टाइम पास करने के लिए उस की सहेली ने उसे मोबाइल पर रिश्तेदारों और सहेलियों से बातचीत कर वक्त बिताने की सलाह दी. यह सलाह भावना को बेहद पसंद आई.अब भावना का ज्यादातर समय मोबाइल फोन पर बातचीत में बीतने लगा. कभीकभी वह मोबाइल फोन पर बातचीत में इतना खो जाती कि उसे पति ऋषभ की भी चिंता नहीं रहती. पति का फोन आता तो कई बार वह उठाती ही नहीं.
उधर बारबार फोन करने पर भी जब भावना काल रिसीव नहीं करती तो ऋषभ के दिल की धड़कनें बढ़ जातीं. उसे लगता कि कहीं भावना कौशलेंद्र से तो बात नहीं कर रही. यही सोच कर वह परेशान हो उठता. शहर के हर्षनगर में रहने वाला कौशलेंद्र ऋषभ के बचपन का दोस्त था.

काफी देर बाद जब वह पति को फोन लगा कर बताती कि मैं अपने पिताजी से बात कर रही थी, इसलिए आप का फोन नहीं उठा सकी तब कहीं जा कर ऋषभ को तसल्ली मिलती. ऋषभ ने भावना से स्पष्ट तौर पर कह रखा था कि 1-2 घंटी बजने के बाद वह उस का फोन जरूर उठा लिया करे, क्योंकि फोन नहीं उठने पर उसे घबराहट होने लगती है.लेकिन भावना ने ऋषभ की इस बात पर कतई ध्यान नहीं दिया. वह अपनी सहेलियों और नातेदारों से मोबाइल पर घंटों बातें करने में मशगूल रहती. इस बीच जब कभी ऋषभ का फोन आता, वह उसे कबाब में हड्डी सा लगता.

भावना की इस हरकत से ऋषभ को शक हो गया कि भावना उस से छिपा कर किसी और से बतियाती है. ऋषभ को भावना का इस तरह मोबाइल पर बतियाना जरा भी अच्छा नहीं लगता था, लेकिन भावना पति की नसीहत को जरा भी अहमियत नहीं देती थी.वह पति की बात को एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल देती थी. वैसे भी शक की फांस बहुत खतरनाक होती है, इसे जल्द ही दूर न किया जाए तो वह मजबूत से मजबूत दांपत्य जीवन में भी दरार पैदा कर देती है.

भावना अपने दांपत्य में लगी इस फांस को गंभीरता से नहीं ले रही थी, जिस का नतीजा यह निकला कि इस बात को ले कर उस की पति से अकसर नोकझोंक होने लगी. इस की वजह यह थी कि ऋषभ घर से बाहर होने पर जब कभी भी पत्नी के मोबाइल पर फोन लगाता, हर बार उस का फोन व्यस्त ही मिलता था.

ऐसा अनेक बार होने पर ऋषभ के मन में शक बैठ गया कि वह जरूर उस के बचपन के जिगरी दोस्त कौशलेंद्र से बतियाती होगी. बाद में जब घर लौट कर ऋषभ भावना से मोबाइल फोन के बिजी होने की वजह पूछता तो वह कह देती कि सहेली से बात कर रही थी. इस तरह ऋषभ के मन में शक की जो फांस लगी थी, वह नासूर बनती जा रही थी.

धीरेधीरे भावना और ऋषभ के बीच दूरियां बढ़ती चली जा रही थीं, जिस की वजह से ऋषभ उखड़ाउखड़ा सा रहता था. इस तनाव की वजह से पतिपत्नी के बीच शारीरिक संबंध नाममात्र के थे. दूरियां बढ़ने की अहम वजह सिर्फ इतनी थी कि ऋषभ अपनी पत्नी पर शक करने लगा था कि उस का झुकाव कहीं उस के बचपन के मित्र कौशलेंद्र की ओर है.इसी शक के चलते उसे जब भी मौका मिलता, वह पत्नी के मोबाइल की काल हिस्ट्री चैक करता रहता था. कोई भी नंबर उसे अनजान लगता तो वह उसे ले
कर भावना के साथ झगड़ा और मारपीट करता था.

इन सब के पीछे एक खास वजह यह भी थी कि वह यह भी समझ चुका था कि उस की हकीकत पत्नी के सामने खुल चुकी है. यानी वह उस की आपराधिक छवि को भी जान चुकी है.भावना को जैसे ही पता चला कि उस का पति आपराधिक छवि का है तो उस के दिल को काफी ठेस पहुंची. उस ने पति को समझाने की भरसक कोशिश की कि वह गुनाह के रास्ते छोड़ कर अच्छे रास्ते पर चले, पर वह भावना की बात को महत्त्व नहीं देता था. जब भावना यही बात बारबार कहती तो वह उस की पिटाई कर देता.
भावना पति के तुनकमिजाज और शक्की स्वभाव से आजिज आ कर अकसर गुस्से में दोनों बच्चों को ले कर मायके चली जाती थी और अपने पिता महेश सिंह को सारी बात बता देती थी.

बेटी की बात सुन कर महेश सिंह को काफी आघात पहुंचता था, तब महेश सिंह नाराज होते हुए दामाद ऋषभ को कड़ी फटकार लगाते थे. ऐसा कई बार हुआ था. हालांकि इस के बाद भी महेश सिंह 10-15 दिन बाद ही बेटी को समझाबुझा कर ससुराल भेज देते थे.6 जून, 2022 की रात को भी ऋषभ और भावना के बीच कहासुनी हुई. भावना ने पति को समझाने की भरसक कोशिश की, लेकिन ऋषभ उस पर कुछ ज्यादा ही भड़क गया. उन दोनों के बीच तकरार इतनी ज्यादा बढ़ गई कि उसी दौरान ऋषभ ने पत्नी पर पिस्टल तान दी.

भावना समझ गई कि पति के सिर पर खून सवार है, वह बचने के लिए बैडरूम से बाहर निकल कर लान की तरफ भागी. वह चीखती, उस के पहले ही ऋषभ ने उस के सिर को निशाना बना कर फायर कर दिया. वह इतना ज्यादा गुस्से में था कि रिश्तों की गहराई और परिवार की मर्यादा को भूल कर एक के बाद एक 3 गोलियां पत्नी के सिर में मार दीं.गोलियां लगने से भावना लान में ही ढेर हो गई. इस के बाद वह हथियार और अपनी जरूरत का सामान ले कर वहां से फरार हो गया. ऋषभ ने अनायास ही एक ऐसी घटना को अंजाम दे डाला, जिसे देख कर हर किसी का कलेजा कांप उठा.

रात 3 बजे जब इलाके के सभी लोग सो रहे थे, तभी चीखनेचिल्लाने के शोर से लोगों की आंखें खुल गईं. शोरगुल सुन कर घबराए लोग अपनेअपने घरों से बाहर आए तो कृष्णकांत भदौरिया को बदहवास हाल में रोतेबिलखते देख कर हैरान रह गए.वह ऋषभ के दोनों मासूम बच्चों की अंगुली पकड़े हुए जोरजोर से रोते हुए कह रहे थे, ‘‘मेरी मदद करो, मेरे बेटे ऋषभ ने अपनी पत्नी भावना की गोली मार कर हत्या कर दी है.’’

कृष्णकांत भदौरिया जो कुछ कह रहे थे, उसे सुन कर लोगों के होश उड़ गए.इसी दौरान किसी ने पुलिस को इस घटना की सूचना दे दी. कुछ देर में वहां थाना थाटीपुर पुलिस भी आ गई. पुलिस के आने पर कुछ लोग हिम्मत कर के उन की आलीशान कोठी में दाखिल हुए तो वहां की स्थिति देख कर उन सभी की आंखें हैरत से फटी रह गईं. भावना की लाश कोठी में कमरे के बाहर लान में खून से लथपथ पड़ी हुई थी.
हत्या का मामला था, अब तक पूरी रामनगर सोसाइटी के लोग घटनास्थल पर एकत्रित हो चुके थे. इस बीच ऋषभ के पिता कृष्णकांत भदौरिया ने घटना की सूचना अपने समधी महेश सिंह को दे दी.

मामला शहर के पौश इलाके रामनगर के रहने वाले बहुचर्चित कांग्रेसी नेता से जुड़ा हुआ था, जिस में उस ने अपनी पत्नी भावना की गोली मार कर निर्मम हत्या कर दी थी. हत्या कर के वह फरार हो गया था. सीएसपी ऋषिकेश मीणा और टीआई पंकज त्यागी घटनास्थल पर जांच कर रहे थे.
थोड़ी देर बाद ही एडिशनल एसपी (क्राइम) राजेश दंडोतिया फोरैंसिक एक्सपर्ट व डौग स्क्वायड की टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे.

पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और क्राइम सीन को समझा. पुलिस टीम के पहुंचने तक रामनगर के बाशिंदे काफी बड़ी संख्या में भदौरिया के घर के सामने जुट गए थे. सभी लोग भावना के मासूम बच्चों के बारे में सोचसोच कर परेशान थे.
इधर हत्यारे के पिता कृष्णकांत भदौरिया की हालत सदमे के कारण कुछ ज्यादा ही खराब हो रही थी. पड़ोसी उन्हें सांत्वना दे कर जैसेतैसे संभाल रहे थे.

पुलिस ने घटनास्थल की औपचारिक काररवाई निपटाने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.
पुलिस को यह तो पता लग ही चुका था कि भावना की हत्या उस के पति ऋषभ ने की है. इसलिए ऋषभ के खिलाफ उस के सुसर महेश सिंह की तहरीर पर थाना थाटीपुर में धारा 302 भादंवि के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने हत्यारोपी कांग्रेसी नेता ऋषभ पर 10 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया. इस के बाद पुलिस ने उस की तलाश शुरू कर दी थी.

इसी बीच एसपी अमित सांघी को मुखबिर के जरिए सूचना मिली कि पत्नी की हत्या के मामले में फरार चल रहे ऋषभ भदौरिया को उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के बेवर कस्बे में देखा गया है.यह सूचना मिलने के बाद एसपी ने बिना देर किए एडिशनल एसपी (क्राइम) राजेश दंडोतिया के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर संतोष यादव व थाटीपुर टीआई पंकज त्यागी को शामिल किया गया. उन्होंने टीम मैनपुरी रवाना कर दी.

आखिर पुलिस टीम द्वारा ऋषभ भदौरिया को हत्या के 21 दिन बाद उस के ही रिश्तेदार के घर से हिरासत में ले लिया गया. वह अपने रिश्तेदार के घर पर रह कर फरारी काट रहा था.उस ने बताया कि पुलिस द्वारा उस की गिरफ्तारी पर 10 हजार का ईनाम घोषित किए जाने के बाद से उसे एनकाउंटर का भय सता रहा था. पुलिस टीम उसे बेवर से ग्वालियर ले आई. उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त पिस्टल व खून से सने कपड़े भी बरामद कर लिए.

इस के अलावा पुलिस ने उस के पास से वह क्रेटा कार भी बरामद कर ली, जिस में बैठ कर वह पत्नी की हत्या के बाद फरार हुआ था.प्रारंभिक जांच में ही पुलिस को पता चला कि 10 मई, 2022 की रात को भी ऋषभ ने अपने बचपन के जिगरी दोस्त कौशलेंद्र कुशवाहा पर 5 राउंड फायर किए थे. ऋषभ के खौफ के चलते वह थाने में रिपोर्ट लिखवाने का साहस नहीं जुटा सका था. लेकिन जैसे ही ऋषभ अपनी पत्नी को मार कर फरार हुआ और उस पर ईनाम घोषित हुआ तो हर्ष नगर निवासी कौशलेंद्र कुशवाहा थाने में रिपोर्ट लिखवाने पहुंच गया था.

हत्या के आरोपी कांग्रेसी नेता ऋषभ भदौरिया पर पहले से हत्या व हत्या के प्रयास सहित 14 मामले दर्ज हैं.उस के खिलाफ 2 बार जिला बदर की काररवाई भी की गई थी. अब पुलिस उस पर एनएसए लगाने की तैयारी में लगी हुई थी.ऋषभ को सुंदर और सुशील पत्नी मिली थी. सुसराल भी अच्छी थी. 2 सुंदर बच्चे भी थे. लेकिन शक के नासूर ने उस की बसीबसाई गृहस्थी को उजाड़ कर रख दिया. पत्नी को मार कर वह जेल चला गया, जिस से उस के मासूम बच्चे अनाथ हो गए.

ऋषभ के अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक ऋषभ भदौरिया के
दोनों बच्चे अपने नाना महेश सिंह के
पास थे.

पिता का दोस्त : भाग 1

उस दिन 22 अप्रैल, 2022 की तारीख थी और सुबह के 10 बज रहे थे. जिला न्यायालय, सोनीपत (हरियाणा) केअधिकांश वकील अपनेअपने चैंबर में आ चुके थे और उस दिन की मुकदमे की समरी अपनी डायरी खोल कर पढ़ रहे थे. उन वकीलों में एक नाम अमरीश कुमार का भी शुमार था.
उस दिन की तारीख में अमरीश कुमार के खास मुवक्किल वेदप्रकाश आंतिल की गवाही होनी थी. अदालत में उस की पत्नी कनिका की हत्या के मुकदमे की तारीख पड़ी थी. अदालत परिसर में मुकदमे से संबंधित गवाहों के नाम पुकार का समय होने वाला था, इसलिए अमरीश कुमार मुकदमे की फाइल पर सरसरी निगाह डाल अपने मुवक्किल वेदप्रकाश आंतिल को साथ ले कर कोर्ट की ओर निकले. परिसर मुवक्किलों और प्राइवेट गाडि़यों से भरा हुआ था.

एडवोकेट अमरीश कुमार तेज कदमों से आगे बढ़ रहे थे. उन के पीछेपीछे वेदप्रकाश भी चल रहा था. जैसे ही वह चैंबर से निकल कर कुछ दूर आगे बढ़ा था, अचानक से गोली चलने की आवाज आई. उसे ही निशाना साध कर किसी ने गोली चलाई थी. गोली उस के बहुत पास से हो कर एक कार के पिछले शीशे में जा धंसी थी.अभी वेदप्रकाश कुछ समझ पाता, तब तक देखा 2 युवक सामने पिस्टल ताने खड़े थे. उन्होंने उस पर गोलियां दाग दीं. 2 गोलियां उस के सीने में जा धंसीं और वह घायल हो कर जमीन पर गिर कर तड़पने लगा.

गोलियों की आवाज सुन कर वकील अमरीश कुमार पलटे तो देखा उस के मुवक्किल को 2 युवक गोली मार कर बाइक से भाग रहे थे. उन्होंने हमलावरों की बाइक रोकने की कोशिश की, लेकिन वह रोक नहीं पाए. हमलावर उन पर भी पिस्टल ताने भीड़ को चीरते हुए वहां से निकल गए.गोली चलते ही अदालत परिसर में अफरातफरी मच गई थी. लोग एकदूसरे से धक्कामुक्की करते हुए भाग रहे थे. फिलहाल गोली से घायल वेदप्रकाश को लादफांद कर जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने देखते ही उसे मृत घोषित कर दिया था.

घटना की सूचना मिलते ही नवागत एसपी हिमांशु गर्ग, एएसपी निकिता खट्टर, डीएसपी विपिन कादियान और सिटी थाने के इंसपेक्टर वजीर सिंह घटनास्थल पर पहुंच कर मौके का जायजा लेने में व्यस्त हो गए थे.घटनास्थल से फायरशुदा 3 खोखे बरामद किए गए. पुलिस ने उन्हें साक्ष्य के तौर पर अपने कब्जे में ले लिया. पते की बात यह रही कि जिला मुख्यालय परिसर के मुख्यद्वार पर एसएलआर हथियार लिए पुलिसकर्मी खड़ा मूकदर्शक बना रहा, उस ने बदमाशों से टक्कर लेने की कोशिश तनिक भी नहीं की थी.

सुरक्षाकर्मी ने तनिक भी सक्रियता दिखाई होती तो बदमाश पकड़े जा सकते थे, लेकिन वे अपना टारगेट पूरा कर के मौके से फरार हो गए थे.उधर वेदप्रकाश की हत्या की खबर जैसे ही घर वालों को मिली, घर में रोनापीटना शुरू हो गया था. छोटा भाई विनय प्रकाश सरकारी अस्पताल पहुंचा, जहां वेदप्रकाश की लाश रखी हुई थी. पुलिस ने लाश अपने कब्जे में ले कर जरूरी काररवाई पूरी की. फिर वह पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

कागजी खानापूर्ति के बाद इंसपेक्टर वजीर सिंह सिटी थाना पहुंचे. मृतक के छोटे भाई विनय से लिखित तहरीर ले कर अज्ञात हमलावरों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 एवं आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा पंजीकृत कर के जांच शुरू कर दी.

पुलिस की जांचपड़ताल में शक के दायरे में सोनीपत जेल में सलाखों के पीछे कैद दोस्त से ससुर बने विजयपाल का नाम आया. विजयपाल उसे कनिका की हत्या में गवाही देने से रोक रहा था.
उस ने वेदप्रकाश को धमकी दी थी कि तेरी वजह से मुझे जेल जाना पड़ा. तेरी वजह से बेटी की हत्या करनी पड़ी थी और तेरी ही वजह से मेरा घरपरिवार बरबाद हुआ था. अगर तू बेटी की हत्या की गवाही देना बंद कर दे तो हम तेरी जान बख्श देंगे, नहीं तो तेरी जान लेने में तनिक भी संकोच नहीं होगा.
वेदप्रकाश ने भी विजयपाल को दोटूक जवाब दिया था, ‘‘आप से जो बन पड़े, कर लें. मैं गवाही देने आऊंगा और पत्नी को इंसाफ दिलाने के लिए अगर मुझे सूली पर चढ़ना भी पड़े तो वह भी करने के लिए तैयार हूं. मगर गवाही देने से पीछे नहीं हटूंगा.’’

पुलिस को जब यह बात पता चली तो केस का इतिहास भूगोल समझने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी थी. वेदप्रकाश आंतिल हत्याकांड बिलकुल साफ हो चुका था. पत्नी की हत्या
की गवाही देने से रोकने के लिए हीहत्या करवाई गई थी कि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.
पुलिस ने जेल में बंद विजयपाल को प्रोडक्शन वारंट पर ले कर हत्या की पूछताछ करने की योजना बनाई ताकि तसवीर का रुख साफ हो सके कि घटना को अंजाम देने वाले शूटर कौन थे. उन के पास असलहे कहां से आए.वैसे, वेदप्रकाश आंतिल हत्याकांड की कहानी 24 नवंबर, 2020 को ही लिख दी गई थी, जब उस ने दोस्त की इज्जत की धज्जियां उड़ाते हुए बेटी समान कनिका के गले में फूलों का हार डाल मंदिर में सात फेरे लिए थे.

कनिका भी पिता की जगहंसाई में बराबर की हिस्सेदार थी. बाप की उम्र के व्यक्ति को जीवनसाथी चुनने में उस ने जरा भी संकोच नहीं किया. घर वालों की इज्जत की परवाह किए बिना उस ने वेदप्रकाश आंतिल के साथ घर बसा लिया.19 वर्षीया कनिका विजयपाल की बेटी थी. सोनीपत के मुकीमपुर गांव में विजयपाल अपने परिवार के साथ रहता था. यह गांव थाना राई के अंतर्गत पड़ता है.कुल 5 सदस्यों का विजयपाल का परिवार था, जिन में पतिपत्नी और 3 बच्चे थे. उस की बेटी कनिका बच्चों में सब से बड़ी और समझदार थी, जबकि 2 बेटे कनिका से छोटे थे. अपनी छोटी सी दुनिया में वह बेहद खुश था. विजयपाल के घर में सभी आधुनिक सुखसुविधाएं थीं. उस के घर में किसी चीज की कमी नहीं थी.
परिवार की जीविका चलाने के लिए उस के पास खेती की जमीन थी. उन खेतों में इतनी फसल पैदा हो जाती थी कि अपने खाने के लिए रखने के बाद बचे हुए अनाज को बाजार में बेच कर आमदनी कर लेता था. उसी आमदनी से मजे से घर का खर्च चलता था और बच्चों की अच्छी शिक्षा भी उन्हीं पैसों से पूरी होती थी.

विजयपाल के मकान से 2-4 मकान आगे वेदप्रकाश आंतिल रहता था. वह विजयपाल का लंगोटिया यार था. लंगोटिया यार के साथ वह उस का सगा पट्टीदार था.लेकिन दोनों के बीच पट्टीदार कम दोस्ताना रिश्ता ज्यादा चलता था, इसलिए उन दोनों की एकदूसरे के घरों के भीतर तक पहुंच थी. विजयपाल वेदप्रकाश के वहां चायपानी पीता था तो वेदप्रकाश विजयपाल के वहां उठताबैठता, खातापीता और सो जाया करता था.

तब विजयपाल की बेटी कनिका बहुत छोटी थी. अकसर वह वेदप्रकाश की गोद में जा कर बैठ जाया करती थी. बड़े लाड़प्यार से वह कभी उस के सिर पर हाथ फेरता था तो कभी उस के गालों पर थपकियां दे कर उस पर अपना प्यार लुटाता था.उसे कनिका चाचाचाचा कह कर पुकारती थी. वेदप्रकाश को देख कर कनिका खुश हो जाया करती थी. वह भी तो पिता के समान दोस्त के बच्चों पर अपना प्यार बरसाता था.

तब कौन जानता था कि पिता के समान कनिका पर प्यार लुटाने वाला वह शख्स अपना चरित्र पापी शैतान के हाथों गिरवी रख, एक दिन पति बन कर उस पर अपना अधिकार जमा लेगा. वह कनिका की और अपनी मौत का कारण बनेगा. यही नहीं विजयपाल का हंसताखेलता परिवार उजड़ जाएगा और उस की जिंदगी नरक से भी ज्यादा बदतर बन जाएगी.विजयपाल की बेटी का जहां 15वां वसंत लगा तो उस के अंगअंग का विकास हो चुका था. उस के अंगअंग से जवानी की खुशबू महक रही थी. सुंदर और गोरीचिट्टी तो वह थी ही. गांव के आशिकों की नजर जब उस पर पड़ती तो वो आहें भरने से नहीं रोक पाते थे.

किंतु एक ऐसा भी भौंरा था, जो इस के इर्दगिर्द मंडरा रहा था, बरसों से कालीकाली जुल्फों के बीच कैद जिस ने उस के दिल में अपना घर बना लिया था. वह कोई और नहीं बल्कि वेदप्रकाश आंतिल था, कनिका के पिता विजयपाल के बचपन का लंगोटिया दोस्त, जो उम्र में कनिका से ढाई गुना बड़ा था.
वेदप्रकाश की गिरफ्त में कनिका पूरी तरह से आ चुकी थी. उस के दिल के बगीचे में वेदप्रकाश नामक आशिक बैठ चुका था.

मुकम्मल तौर पर वेदप्रकाश ने कनिका को अपने दिल के शीशे में उतार लिया था तो कनिका भी अपने दिल के कोरे कागज पर प्यार की रोशनाई से वेदप्रकाश का नाम लिख चुकी थी. टूट कर प्यार करती थी वह उस से. वेदप्रकाश भी महासागर की गहराइयों से भी ज्यादा गहरा प्यार करता था. मोहब्बत की आग दोनों के दिलों में बराबर लगी हुई थी.

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