मेरी बेटी मेरा अभिमान

आज के युग में लड़कियां लड़कों से कंधा मिला कर हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं. आंध्र प्रदेश पुलिस के सर्किल इंसपेक्टर श्यामसुंदर की बेटी वाई. जेस्सी प्रशांति अपनी मेहनत और लगन से डीएसपी बनीं.

एक समय था, जब हर पिता चाहता था कि उस का बेटा उस की जिम्मेदारी संभाले. उस की अपेक्षा अधिक से अधिक ऊंचाई हासिल करे. उस के क्षेत्र में उस से भी बहुत आगे निकल जाए. पर अब समय बदल गया है. आज पिता केवल अपने बेटे के लिए ही नहीं, अपनी बेटी के लिए भी यही उम्मीद करने लगा है. इक्कीसवीं सदी में महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी काबिलियत दिखाई है. इस के पीछे इसी तरह के उम्दा विचार रखने वाले पिताओं की ही अहम भूमिका है.

यह पिता की लगन और इच्छाशक्ति का ही नतीजा है कि आज उस पिता के लिए इस से अधिक खुशी और गर्व की बात क्या होगी कि उस की बेटी उसी के नक्शेकदम पर चल कर न केवल कामयाबी हासिल कर रही है, बल्कि उस से भी एक कदम आगे निकल रही है. ऐसा ही कुछ जनवरी महीने में  आंध्र प्रदेश में पुलिस विभाग में देखने को मिला.

आंध्र प्रदेश में पुलिस विभाग में सीआई के पद पद पर तैनात श्यामसुंदर ने जब अपनी डीएसपी बेटी को सैल्यूट किया तो गर्व से उन का सीना चौड़ा हो गया. इस के बाद दिल को छू लेने वाली यह तसवीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो लोगों ने उसे हाथोंहाथ लिया.

3 जनवरी, 2021 को आंध्र प्रदेश पुलिस ने तिरुपति में पुलिस ड्यूटी मीट 2021 का आयोजन किया था, जिस का उद्घाटन डीजीपी गौतम सवांग ने किया था. इसी कार्यक्रम में भाग लेने आई पुलिस अफसर बेटी को देख कर सीआई पिता भावुक हो उठे थे.

beti

ये भी पढ़ें- कोरोना में आईपीएल तमाशे का क्या काम

वाई. जेस्सी प्रशांति 2018 बैच की राज्य लोक सेवा आयोग की पुलिस अधिकारी हैं. इस समय वह आंध्र प्रदेश के जिला गुंटूर दक्षिण (शहर) में डीएसपी के पद पर तैनात हैं. तिरुपति में आयोजित पुलिस ड्यूटी मीट 2021 में प्रशांति की भी ड्यूटी लगी हुई थी. प्रशांति के पिता श्यामसुंदर तिरुपति कल्याणी डेम के नजदीक स्थित पुलिस प्रशिक्षण केंद्र में सीआई हैं.सीआई श्यामसुंदर की भी ड्यूटी पुलिस ड्यूटी मीट में लगी थी.

पुलिस ड्यूटी मीट में बेटी को ड्यूटी करते देख सीआई श्यामसुंदर चौंके. बेटी को डीएसपी की वरदी में देख कर वह बहुत खुश हुए, साथ ही गौरवान्वित भी. सीआई श्यामसुंदर ने अन्य पुलिस अफसरों के साथ डीएसपी बेटी को सैल्यूट तो किया ही, साथ ही यह भी कहा कि ‘नमस्ते मैडम’. जवाब में डीएसपी बेटी प्रशांति ने भी पिता को सैल्यूट करने के साथ आशीर्वाद भी लिया. वहां आए पुलिसकर्मी बापबेटी को इस तरह सैल्यूट करते देख भावुक हो उठे.

यह सब ऐसे ही नहीं संभव हुआ. इस के पीछे आंध्र प्रदेश के रहने वाले और पुलिस विभाग में नौकरी करने वाले श्यामसुंदर की इच्छाशक्ति थी. उन के घर जब बेटी का जन्म हुआ तो वह उदास या निराश होने के बजाय बहुत खुश हुए. उन्होंने उसी समय तय कर लिया कि वह बेटी को खूब पढ़ालिखा कर आगे बढ़ाएंगे. वह अपनी बेटी वाई. जेस्सी प्रशांति को अकसर राउंड पर जाते समय साथ ले जाते थे.

उस समय वह बेटी को गर्व से अपने कार्य और फर्ज के बारे में समझाते. पिता को मिलती सलामियां देख कर भविष्य में उस के लिए भी ये पल आए, इस तरह का सपना प्रशांति के बालमन में बैठ गया. वह समझ गईं कि पुलिस वरदी को कितना मान और सम्मान मिलता है. इस के अलावा लोगों की सेवा करने का मौका मिलता है. इन्हीं सब चीजों ने प्रशांति को पुलिस सेवा की ओर आकर्षित किया. यानी पिता ही बेटी के रोल मौडल बने.

12वीं में अच्छे नंबर आने की वजह से प्रशांति को इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला मिल गया. फिर भी उन के दिल में अपने पिता की तरह पुलिस की नौकरी कर के देश और जनता की सेवा करने की भावना बनी रही. अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रशांति सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी करने लगीं.

जब बेटी की इच्छा की जानकारी श्यामसुंदर को हुई तो इस क्षेत्र में महिला कर्मचारी के रूप में बेटी के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में उसे बताया. शुरुआत में श्यामसुंदर का मन थोड़ा हिचका, परंतु तुरंत ही उन्होंने अपना मन बदला, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि उन की बेटी किसी भी तरह की चुनौती का सामना करने में सक्षम है.

उस के बाद तो बेटी का सपना पिता का भी सपना बन गया. हमेशा बेटी की इच्छा पूरी करने और बेटी को आगे बढ़ने की प्रेरणा देने वाले पिता प्रशांति को इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के उस के विचार को प्रोत्साहित करने लगे. खूब मेहनत और तैयारी के बाद प्रशांति ने सन 2018 में आंध्र प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन ग्रुप एक की परीक्षा पास कर ली.

इस के बाद आंध्र प्रदेश के पुलिस विभाग में डीएसपी के रूप में प्रशांति का चयन हो गया. अपने ही विभाग में उच्च अधिकारी के रूप में बेटी की नियुक्ति हो जाए, इस से विशेष और गर्व की बात एक पिता के लिए और क्या हो सकती थी.

ये भी पढ़ें- नाबालिग के यौन शोषण की कभी न खत्म होने वाली कहानी

अपनी बेटी के लिए गर्व का अनुभव करने वाले पिता श्यामसुंदर का कहना है कि उन की बेटी उन्हीं के विभाग में उच्च अधिकारी है. उस ने यह जो उच्च स्थान प्राप्त किया है, वह उस की मेहनत का फल एवं मांबाप का आशीर्वाद है. प्रशांति का भी यही मानना है. प्रशांति का कहना है, ‘आई होल्ड हाई रैंक, बट इन लाइफ माई फादर होल्ड्स हायर रैंक…’

फिलहाल वाई. जेस्सी प्रशांति पिता के आदर्शों का अनुसरण करते हुए अपना कार्यभार बखूबी निभा रही हैं. वह गुंटूर जिले में डीएसपी के पद पर तैनात हैं. जबकि उन के पिता श्यामसुंदर तिरुपति कल्याणी डेम के नजदीक के पुलिस ट्रेनिंग सेंटर में सर्किल इंसपेक्टर के रूप में अपना फर्ज निभा रहे हैं.

पिता और पुत्री एक ही विभाग में काम करते हैं, फिर भी इस के पहले एक बार भी औन ड्यूटी एकदूसरे के आमनेसामने नहीं हुए थे. पिछले 26 सालों से पुलिस विभाग की सेवा में लगातार जुड़े श्यामसुंदर की इच्छा थी कि उन के रिटायर होने के पहले उन्हें बेटी के साथ काम करने का मौका मिले.

56 वर्षीय श्यामसुंदर की इच्छा पूरी करने वाला अविस्मरणीय क्षण आया 2021 के जनवरी की 4 से 7 तारीख के दौरान जब पहली ‘आईजीएनआईटीई’ पुलिस मीट का आयोजन किया गया, जिस में राज्य भर के पुलिस विभाग में सेवा देने वाले कर्मचारियों को शामिल होना था. इस में वाई. जेस्सी प्रशांति की ड्यूटी वहां की व्यवस्था देखने में लगी थी. उस में अन्य कर्मचारियों के साथ भाग लेने श्यामसुंदर भी आए थे.

उन्होंने सफलतापूर्वक ड्यूटी कर रही अपनी बेटी प्रशांति को देखा. पुलिस विभाग का एक प्रोटोकाल होता है कि जब भी ड्यूटी पर अपने से बड़ा अधिकारी सामने आ जाता है तो निश्चित ही उस अधिकारी को आदर सहित सैल्यूट करना होता है. उसी प्रोटोकाल के अनुसार अन्य कर्मचारी प्रशांति को सैल्यूट कर रहे थे. उन्हीं के साथ श्यामसुंदर ने भी गर्व से डीएसपी बेटी प्रशांति को सैल्यूट किया.

उस समय उन के चेहरे पर अपनी बेटी के इस मुकाम पर पहुंचने का अपार संतोष झलक रहा था. अपने पिता को सैल्यूट करते देख प्रशांति थोड़ा सकुचाई. उन्होंने पिता से कहा भी कि वह उसे सैल्यूट न करें. पिता का सीना तो अपनी ही बेटी को अपने अधिकारी के रूप में देख कर गज भर का हो चुका था. उन्होंने एक अधिकारी की तरह उसे सम्मान देते हुए सैल्यूट करते हुए कहा, ‘नमस्ते मैडम.’

इस के बाद बेटी ने भी पिता के इस कृत्य का आदर करते हुए उन के सम्मान में सैल्यूट किया. इस धन्य पल के जो साक्षी बने, वे पिता और पुत्री के इस सम्मानयुक्त संबंध को सम्मान के साथ देखते रहे.

तमाम लोगों ने इस ऐतिहासिक पल को कैमरे में कैद कर लिया, जिस में अपनी बेटी को सैल्यूट करते पिता के चेहरे की खुशी और गर्व साफ झलक रहा था. उस फोटो को आंध्र प्रदेश पुलिस डिपार्टमेंट ने ट्विटर पर डालते हुए लिखा, ‘आंध्र प्रदेश पुलिस फर्स्ट ड्यूटी मीट ब्रिंग्स ए फैमिली टुगेदर.’

ये भी पढ़ें- सरकारी नीतियों से परेशान बेरोजगार नौजवान

कैमरे में कैद आंध्र प्रदेश पुलिस की पितापुत्री की यह अद्भुत तसवीर सचमुच प्रेरणादायक है, जो तमाम पिताओं को अपनी बेटियों के सपने पूरा करने और बेटियों को इस स्थान तक पहुंचने का आह्वान करती है. जिस से पिता बेटी पर गर्व का अनुभव कर सकें और कह सकें—मेरी बेटी मेरा अभिमान.

कोरोना में आईपीएल तमाशे का क्या काम

जब भारत में कोरोना की दूसरी लहर जोर मार रही थी, तब सब के खासकर क्रिकेट प्रेमियों के दिमाग में यही बात चल रही थी कि इस बार का इंडियन प्रीमियर लीग का आयोजन होगा या नहीं? स्टेडियम दर्शकों से भरेंगे या खाली कुरसियों पर सिर्फ परिंदे पर मारते नजर आएंगे?

पर चुनावी रैलियों की तरह यह ‘किरकिटिया तमाशा’ कैसे बंद किया  जा सकता था… वही हुआ भी. लेकिन जैसेजैसे कोरोना की तबाही सुनामी में बदलती दिखी, उस का असर आईपीएल पर भी साफ नजर आया.

आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी एंड्रयू टाय के बाद उन्हीं के हमवतन एडम जांपा और केन रिचर्डसन भी आईपीएल को बीच में ही छोड़ कर आस्ट्रेलिया वापस चले गए.

इस से पहले भारतीय फिरकी गेंदबाज रविचंद्रन अश्विन ने भी यह कहते हुए टूर्नामैंट बीच में छोड़ दिया कि वे अपने परिवार की मदद करने के लिए आईपीएल से ब्रेक ले रहे हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर बताया, ‘मेरा परिवार और रिश्तेदार कोविड 19 से जंग लड़ रहे हैं और मैं ऐसे मुश्किल समय में उन का साथ देना चाहता हूं… अगर सबकुछ सही रहा, तो मैं जल्द ही खेल के मैदान में लौट सकूंगा.’

इसी तरह से राजस्थान रौयल्स टीम के लिए खेलने वाले एंड्रयू टाय सिडनी लौट गए. उन्होंने इस के लिए ‘बायोबबल में रहने के चलते पैदा हुए तनाव’ और ‘आस्ट्रेलिया की सीमा बंद होने की चिंताओं’ को वजह बताया.

34 साल के एंड्रयू टाय मुंबई से दोहा होते हुए आस्ट्रेलिया पहुंचे. उन्होंने बताया, ‘जब लोगों को पता चला कि मैं वापस जा रहा हूं, तो कई लोगों ने मु झ से बात की. कई लोग तो यह भी जानना चाहते थे कि मैं किस रूट से वापसी कर रहा हूं.’

खिलाड़ी तो खिलाड़ी अंपायरों में भी कोरोना का खौफ दिखा. नतीजतन, अंपायर नितिन मैनन और पौल रीफेल भी आईपीएल से हट गए. बताया जा रहा है कि इंदौर के रहने वाले नितिन मैनन की पत्नी और मां कोरोना संक्रमित हो गई हैं. ऐसे में उन्होंने आईपीएल के बायोबबल से बाहर निकलने का फैसला किया.

इसी तरह पौल रीफेल ने भारत में कोविड 19 के ज्यादा बढ़ते मामलों और आस्ट्रेलिया के द्वारा यात्रा प्रतिबंध  को देखते हुए आईपीएल से हटने का फैसला किया.

ये भी पढ़ें- ‘सेल्फी’ ने ले ली, होनहार बिरवान की जान…

यह वह दौर है, जब देश में दूसरे खेलों का होना पूरी तरह से बंद है. हकीकत तो यह है कि छोटेमोटे खेल संघों के पास इतना बजट नहीं है कि वे अपने खिलाडि़यों और दूसरे लोगों के लिए बायोबबल बना सकें.

इस के उलट बीसीसीआई दुनिया का सब से अमीर बोर्ड है. इस वजह से वह आईपीएल का आयोजन कर पा रहा है. पर सवाल उठता है कि क्या इस समय ऐसा आयोजन कराना जरूरी है, जब देश कोरोना के चलते तबाही के कगार पर खड़ा है?

सब से बड़ी बात तो यह है कि आईपीएल क्रिकेट का कोई ऐसा आयोजन नहीं है, जिस का रिकौर्ड खिलाडि़यों के किसी काम का हो. यहां तो उन की नीलामी लगती है और कई महाअमीरों ने अपनीअपनी टीमें बना रखी हैं और उन्हें आपस में भिड़ा दिया जाता है.

चूंकि उन टीमों में तकरीबन हर देश के खिलाड़ी होते हैं, जिन्हें अच्छाखासा पैसा मिलता है, इसलिए वे जनता को खुश करने और अगले साल लगने वाली नीलामी में अपने दाम बढ़वाने की खातिर अच्छा खेलते हैं. क्रिकेट प्रेमियों को भी 3 घंटे का मनोरंजन मिल जाता है, इसलिए वे भी टैलीविजन से चिपके रहते हैं. स्टेडियम में तो जा नहीं सकते न.

पर जब से क्रिकेट के नाम पर यह ट्वैंटी20 का मसाला तैयार किया गया है, तब से सट्टेबाजों और जुआ खेलने वालों की भी पौबारह हो गई है. अब तो ऐसे गेमिंग एप आ गए हैं, जिन में अपनी क्रिकेट की टीम बनाओ और पैसा जीतो.

बड़ेबड़े खिलाड़ी उन गेमिंग एप के इश्तिहारों में दिखाई देते हैं और लोगों को खेलने और पैसा जीतने के लिए उकसाते हैं. हालांकि बाद में उस एप के जोखिम इश्तिहार में बता दिए जाते हैं, पर उन की परवाह करता कौन है.

हालांकि सट्टेबाजी दूसरी बीमारी है आईपीएल को ले कर. अगर एक राज्य से ही सम झें, तो उत्तर प्रदेश के कई जिलों में आईपीएल मैच शुरू होते ही सटाकिंग का औनलाइन खेल शुरू हो जाता है. सट्टे का यह खेल तब तक चलता है, जब तक मैच खत्म नहीं हो जाता है. इस बीच जो लोग सट्टा खेल कर हार जाते हैं, उन को बड़ा माली नुकसान हो चुका होता है.

उदयपुर, राजस्थान में आईपीएल क्रिकेट सीजन में सट्टा कारोबार चलाने वाले एक गिरोह के सदस्यों को पुलिस ने 27 अप्रैल की रात को गिरफ्तार किया था. यह गिरोह उदयपुर के मीरा नगर में बने एक कौंप्लैक्स से सट्टा कारोबार चला रहा था.

ये भी पढ़ें- नाबालिग के यौन शोषण की कभी न खत्म होने वाली कहानी

इन आरोपियों के कब्जे से तकरीबन 8 करोड़ रुपए का हिसाब, 40 मोबाइल फोन, लैपटौप, पेटी मशीन और काफी उपकरण बरामद किए थे. आरोपी उदयपुर में बैठ कर मंदसौर, नीमच, रतलाम, इंदौर जैसी कई जगहों के लोगों से सट्टे पर दांव लगवा रहे थे.

लिहाजा, आईपीएल का यह मायावी खेल वह धीमा नशा है, जो बहुतों को अपनी चपेट में ले चुका है. जब खिलाड़ी पैसा कमाने वाले लोगों के बारे में बताते हैं कि फलां आदमी ने इस गेमिंग एप से कुछ समय में ही लाखों रुपए कमा लिए हैं, तो सवाल उठता है कि जो समाज जुआरियों को इज्जत दे रहा है, क्या वह तरक्की कर सकता है? बिलकुल नहीं. द्य

फिलहाल टल गया आईपीएल

जिस बात का डर था वही हुआ. आईपीएल का आयोजन कराने वाले इसे बड़ा सेफ मान रहे थे और बोल रहे थे कि कोरोना का इस पर कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा, पर बायोबबल में कोरोना वायरस की ऐंट्री के बाद इस लीग को फिलहाल स्थगित कर दिया गया है. अब यह दोबारा कब होगा, कहां होगा, होगा भी या नहीं, इस बारे में बीसीसीआई ने कुछ संकेत दिए हैं कि आईपीएल के बाकी बचे मैचों का आयोजन ट्वैंटी20 वर्ल्ड कप से पहले भारत में ही हो सकता है.

याद रहे कि कि आईपीएल, 2021 में कुछ खिलाडि़यों के कोरोना पौजिटिव पाए जाने के बाद आईपीएल के बाकी मैच रोक दिए गए हैं. पर अब लगता है कि इस साल सिंतबरअक्तूबर में ही भारत में ट्वैंटी20 वर्ल्ड कप का आयोजन होना है. उस समय सभी विदेशी टीमें भारत में ही होंगी. अगर सितंबर में बीसीसीआई को मौका मिल जाता है, तो आईपीएल का आयोजन तब मुमकिन हो सकता है.

ये भी पढ़ें- कोरोना: स्वच्छता अभियान में जुटी महिलाएं इंसान नहीं हैं!

भविष्य में क्या होगा, यह तो कह नहीं सकते, पर अभी देश में जो हालात हैं, वे कोरोना महामारी का विकराल रूप दिखा रहे हैं. खिलाडि़यों को भी इस बीमारी से बच कर रहना चाहिए और बहुत से विदेशी खिलाड़ी तो अपने परिवार की खातिर बीच में ही आईपीएल छोड़ कर चले गए थे. जो खिलाड़ी बायोबबल तकनीक के बावजूद कोरोना की चपेट में आ गए हैं, उन का ध्यान रखना बीसीसीआई की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए.

‘सेल्फी’ ने ले ली, होनहार बिरवान की जान…

कोरोना संक्रमण काल में छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा के उपनगर कटघोरा से एक परिवार आज पिकनिक मनाने  केंदई  जल प्रपात चला गया. जहां असामयिक दुर्घटना में  डूबने से युवकों की दुखद मृत्यु हो गई. वही साथ में  पास ही खड़ी पत्नी और बहन अपनी आंखों से इस दुखद घटना को देखती रह गई और कुछ भी नहीं कर सकी. दरअसल, हुआ यह कि छोटा भाई पानी में खड़ा हुआ था और बड़ा भाई चंद कदम दूर खड़ा होकर के मोबाइल से सेल्फी वीडियो बनाने का प्रयास कर रहा था.

इसी दरमियान पानी में खड़े छोटे भाई का पैर फिसला असंतुलित होकर वह  पानी में डूबने लगा, उसे डूबता देख सेल्फी लेने की तैयारी कर रहा बड़ा भाई घबराया और उसे बचाने के लिए पानी में छलांग लगा दी जबकि उसे तैरना नहीं आता था, छोटे भाई को बचाने के फेर में दोनों भाई देखते ही देखते पानी की गहराई में चले गए और पत्नी और उनकी बहन आंसू बहाते रोती रह गईं. लोगों को पुकारा … मगर मदद के लिए जब तक लोग आते एक बड़ी घटना घटित हो चुकी थी.

ss

ये भी पढ़ें- कोरोना: स्वच्छता अभियान में जुटी महिलाएं इंसान नहीं हैं!

हाल ही में हुआ था विवाह!

कोरबा जिला के कटघोरा बस स्टैंड में अशोक वस्त्र एक कपड़े की दुकान है इसी परिवार के  होनहार युवक पीयूष  अपने भाई पत्नी और बहन के साथ पिकनिक मनाने क्षेत्र में प्रसिद्ध केंदई जल प्रपात गया. यहीं चार  4 सदस्यों में से  दो की डूबकर मौत हो गई . दोनों सगे भाई थे एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे. इनमे एक विवाहित था जबकि दूसरा मृतक का  छोटा भाई . मृतकों का नाम पीयूष गोयल और आयुष गोयल हैं.

सुबह अचानक आयुष को सुझा कि क्यों न पिकनिक चला जाए और पीयूष  जलप्रपात पिकनिक मनाने पहुंच गए . जहां  लगभग 3 बजे सेल्फी पोज बनाते यह हृदय विदारक घटना हो गई.

दरअसल, छोटा भाई  पानी मे उतरा था. और सेल्फी लेने के दौरान आयूष गोयल का पैर फिसल गया और पानी में गिर गया, छोटे भाई को पानी में गिरते देख पियुष गोयल  उसको बचाने पानी में कूदा, लेकिन दोनों डूबने लगे तभी पीयूष की पत्नी राशि बंसल जिसे तैरना आता था दोनों को बचाने  पानी में कूद जद्दोजहद करने लगी मगर असफल रही.

ये भी पढ़ें- नाबालिग के यौन शोषण की कभी न खत्म होने वाली कहानी

बदहवास बहन रिया गोयल और पत्नी राशि  ने इसकी सूचना आसपास के लोगो को  दी.  हादसे की सूचना पाकर मोरगा चौकी व बांगो थाने के पुलिस अधिकारी  पहुंचे और शव को निकाला गया.

सबसे दुखद बात यह कि मृतक पीयूष गोयल की अभी हाल ही में अप्रैल माह में राशि के साथ विवाह हुआ था और अभी राशि की हाथ की मेहंदी भी नहीं मिटी कि यह दुखद घटना हो गई.

होनहार पीयूष लंदन में नौकरी करता…

मृतक पीयूष गोयल बचपन से ही पढ़ाई में बेहद होशियार था. एक मध्यम परिवार का होने के बावजूद अपनी योग्यता के बूते वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर बन गया और वर्तमान में दुबई मे पदस्थ था. और वह कुछ दिनों पूर्व विवाह के लिए कटघोरा आया हुआ था.  अप्रैल माह में पीयूष का विवाह भिलाई के बंसल परिवार की राशि  बंसल से संपन्न हुआ था, विवाह होने के बाद जल्द ही पीयूष गोयल लंदन में शिफ्ट होने की तैयारी में‌ था उसके लिए एक नई जिंदगी इंतजार कर रही थी, लेकिन लॉक डाउन होने की वजह से वह सपरिवार लंदन नहीं जा पाया . पुलिस ने दोनों का शव  स्थानीय  सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में  परीक्षण हेतु सौंप दिया. जहां अंतिम उपचार में दोनों को पम्पिंग की गई और अंततः डॉक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया.

नाबालिग के यौन शोषण की कभी न खत्म होने वाली कहानी

कहा जाता है- हरि अनंत हरि कथा अनंता वैसे ही समाज की आम भाषा में यह कहा जा सकता है – नाबालिक के यौन शोषण की कहानी  अनंत है.

यह सच है कि इसके लिए सरकार ने नियम कायदे बना दिए हैं कानून बन चुका है. और जब बच्चों के साथ यौन शोषण करने वालों में कोई कोई पुलिस पकड़ में आता है तो चर्चा का सबब बन जाता है कि कैसा अनर्थ हो रहा है.कुल मिलाकर के यह बात दोहराई जाती है कि नाबालिग के यौन शोषण की कहानी अनंत है

आइए… आज इस रिपोर्ट में हम इस महत्वपूर्ण सामाजिक मसले पर ऐसे पक्ष उद्घाटित कर रहे हैं जो आपको चौकाएंगे. दरअसल, बच्चों के शोषण की अनेक घटनाएं हो रही हैं ऐसे में इस महत्वपूर्ण मसले पर सामाजिक दृष्टिकोण से हर एक तरीके से रोक लगाने की आवश्यकता है. यहां यह बताना भी लाजिमी होगा कि 10 मासूम बच्चों में  सिर्फ 7 बच्चे यौन शोषण के आज भी शिकार हो रहे हैं और नाम मात्र के मामले ही सामने आ रहे हैं उसके अनुसार बच्चों के साथ दुष्कर्म करने वाले आसपास के परिजन परिवारिक इष्ट मित्र ही पाए गए हैं.

cr

ये भी पढ़ें- प्यार सबकुछ नहीं जिंदगी के लिए 

इसलिए इसी रिपोर्ट के माध्यम से आपको सावधान करते हुए कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दी जा रही है. जिसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर हमारे परिवार में नन्हे बच्चे हैं तो हम जागरूक रहे, हमारी जागरूकता के बगैर बच्चों के साथ यौन शोषण संभव हो सकता है.

और नाबालिग की शादी कर दी!

ऐसे ही एक सनसनीखेज मामले में छत्तीसगढ़  के जिला रायगढ़ के थाना  लैलूंगा की पुलिस द्वारा एक बालिका को परवरिश व घरेलू काम कराने के नाम पर सुन्दरगढ़ (ओडिशा) ले जाकर उसकी जबरजस्ती युवक के साथ शादी कराने वाले आरोपी पिता-पत्र को ओडिशा से पकड़ लिया गया है. हमारे  संवाददाता को  जांच अधिकारी लक्ष्मण प्रसाद पटेल ने बताया  – बालिका की मां  दिनांक 15 मई को थाना लैलूंगा में  रिपोर्ट दर्ज कर बताई कि रोजी मजदूरी का काम कर अपने बच्चों का पालन पोषण कर ती है. करीब चार माह पहले सुन्दरगढ़, ओडिशा में रहने वाला ईश्वर महाकुल  उसकी पंद्रह वर्षीय बेटी रानी (काल्पनिक नाम)  को अपने साथ ले गया और वादा किया कि बालिका घर का काम काज करेगी, मैं उसे बेटी की तरह रख कर पढ़ाऊंगा. भरोसा कर महिला  ने अपने परिवारवालों से सलाह लेकर जान परिचित होने के कारण उस व्यक्ति के साथ बेटी को भेज दिया. कुछ माह बाद अपने रिस्तेदारो के साथ अपनी बेटी को देखने सुंदरगढ़ ओडिशा गई तो  देखा ईश्वर महाकुल के घर में बालिका से बहुत ज्यादा काम कराया जा रहा था, यही नही नाबालिक बालिका की शादी  ईश्वर महाकुल ने अपने बेटे गणेश बारीक के साथ जबरजस्ती करा दी है.

ss

ये भी पढ़ें- सरकारी नीतियों से परेशान बेरोजगार नौजवान

यह सब देख कर बालिका की मां भौचक्र रह गई. सबसे बड़ा अपराध यह की बालिका के  परिवारवालों को कथित विवाह की जानकारी भी नहीं दी गई . और जब महिला ने अपनी बेटी को अपने साथ लेकर अपने घर लैलूंगा जाऊंगी कहा तो उसे झगड़ा कर भगा दिया गया . अंततः महिला ने बेटी का शोषण किये जाने के संबंध में थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई. पुलिस के समक्ष यह मामला आया तो जिला रायगढ़ पुलिस ने मामला पंजीबद्ध कर लिया.
जांच अधिकारी लक्ष्मण प्रसाद पटेल ने बताया आरोपी पिता-पुत्र  आरोपी ईश्वर बारीक पिता चक्रधर बारीक उम्र 50 वर्ष उसके पुत्र गणेश बारीक उम्र 21 साल दोनों निवासी ग्राम कुराई महकुलपारा थाना तलसरा जिला सुन्दरगढ़ ओडिशा को हिरासत में लेकर उनके बयान लिए गए और गंभीर अपराध पाए जाने पर मामला पंजीबद्ध किया गया. प्रकरण में साक्ष्य के आधार पर आरोपियों के विरूद्ध धारा 9, 10 बालविवाह प्रतिषेध अधिनियम, 4, 8 पास्को एक्ट जोड़ी गई है.

कोरोना: स्वच्छता अभियान में जुटी महिलाएं इंसान नहीं हैं!

कोरोना संक्रमण काल में  “मिशन प्रेरक” के रूप में कार्य कर रही हजारों  महिला सफाई मजदूरों को सुरक्षा किट नहीं दी गई है. असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के संबंध में  छत्तीसगढ़ प्रदेश में लागू श्रम कानूनों का पालन करने  में कोताही हो रही है. आगे चलकर यह विस्फोटक रूप धारण कर सकता है.

दरअसल, यह सफाई मजदूर न केवल वार्डों में जाकर घर-घर जाकर कचरा संग्रहण का काम करती है, बल्कि इसका पृथक्कीकरण करके निस्तारण के काम तथा गोबर संग्रहण केंद्रों में भी सहयोग करती है.
कोरोना संक्रमण के समय  कोरोना योद्धा के रूप में उनकी प्रमुख भूमिका स्वमेव उजागर है. देशभर में लॉक डाऊन के दौरान भी अपने जीवन को खतरे में डालकर ये सफाई मजदूर  सुबह से जिस तरह अपना काम कर रही हैं, वह सराहनीय  है. लेकिन  नगर निगमों में  छत्तीसगढ़ में यह आज  उपेक्षा का शिकार  है.

मिशन क्लीन सिटी योजना के अंतर्गत काम कर रही इन महिला सफाई मजदूरों को कोरोना की इस दूसरी  लहर में भी सुरक्षा किट नहीं दिया जा रहा है, जबकि मास्क, ग्लोब्स, सेनेटाइजर व साबुन कोरोना से लड़ने के लिए महत्वपूर्ण उपकरण है.इन सुरक्षा किटों के अभाव में दसियों कर्मचारी कोरोना का शिकार हो गई हैं, लेकिन निगम के दैनिक वेतनभोगी मजदूर होने के बावजूद निगम ने उनके इलाज व मेडिकल सुविधाएं देने की अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है और उन्हें बीमारी की इस अवधि का वेतन भी नहीं दिया गया है. उदाहरणार्थ औद्योगिक नगर कोरबा के  वार्ड 67 में अघन बाई बंजारे , तुलसी कर्ष , कमल महंत के अलावा अन्य वार्डों के कई कर्मचारी “कोरोना” का शिकार हुई हैं. मजदूरी न मिलने से ये परिवार आज भुखमरी की कगार पर है.

संवेदनशीलता और न्याय

सफाई मजदूरों के प्रति सरकार और  निगम प्रशासन का  असंवेदनहीन रवैया “कोरोना” से लड़ने में बाधक है. सभी सफाई मजदूरों को ऑक्सीमीटर व थर्मामीटर सहित सुरक्षा किट दी जानी चाहिए तथा कोरोना से ग्रस्त मजदूरों को उनके अवकाश की अवधि का पूरा मजदूरी भुगतान किया जाना चाहिए.  निगम एक सरकारी स्वायत्त संस्था है और इस प्रदेश के श्रम कानूनों का पालन करने के लिए वह बाध्य है.  सफाई के कार्य से जुड़े मिशन प्रेरकों की समस्या को लेकर बांकी मोंगरा जोन कमिश्नर के माध्यम से निगम के महापौर और आयुक्त के नाम ज्ञापन भी दिया गया है. दरअसल होना चाहिए कि प्रदेश के सभी नगर निगम में मिशन क्लीन सिटी योजना के अंतर्गत‌ जो हजारों सफाई मजदूर दैनिक वेतनभोगियों के रूप में काम कर रहे हैं.और  यह सभी मजदूर महिलाएं है. अधिकांश मजदूर कई सालों से नियमित रूप से काम कर रहे हैं. उनकी कार्यावधि 7 घंटों से ऊपर है. निगम प्रमुख नियोक्ता है और इस नाते श्रम कानूनों को लागू करने के लिए सीधे जिम्मेदार है.

 यह महिला मजदूर अत्यन्त दूषित वातावरण में काम करती हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़‌ रहा है. कोरोना संकट के समय वे अपनी जान जोखिम में डालकर काम कर रही हैं.इसके बावजूद उन्हें कोई सुरक्षा किट नहीं दी जा रही है, जो उनकी जीवन-रक्षा और कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए भी जरूरी है.
कोरोना की दूसरी लहर ज्यादा  प्राणघातक है. लेकिन यह महिलाएं कोरोना योद्धा के रूप में बहादुरी से काम कर रही हैं। इन प्रतिकूल परिस्थितियों में काम करते हुए कई सफाई मजदूर कोरोना की शिकार हुई हैं
कोरोनाग्रस्त होने के बावजूद इन सफाई मजदूरों को निगम द्वारा कोई मेडिकल सुविधाएं तो दी नहीं गई, बल्कि उनकी बीमारी की अवधि की मजदूरी भी काट ली गई है.इससे ये परिवार भुखमरी के भी शिकार हो रहे हैं. यह उनके साथ सरासर अन्याय है और निगम प्रशासन का यह रूख कोरोना से लड़ने में बाधक है।
अतः सभी मजदूरों को मासिक आधार पर सुरक्षा किट दिए जाएं. इन किटों में मास्क, दस्ताने, साबुन व सेनेटाइजर के साथ ही थर्मामीटर और ऑक्सीमीटर भी शामिल हो.

ये भी पढ़ें- गंदगी भरे माहौल में साफ-सफाई का रखें ख्याल

कोरोना ग्रस्त सभी सफाई मजदूरों को उनकी बीमारी की अवधि का सवैतनिक अवकाश दिया जाए तथा काटी गई मजदूरी का भुगतान किया जाए.

सरकारी नीतियों से परेशान बेरोजगार नौजवान

‘अच्छे दिन’ का सपना देखने वाले बेरोजगार नौजवानों ने भारतीय जनता पार्टी सरकार को इस उम्मीद के साथ चुना था कि पढ़ेलिखे नौजवानों को रोजगार मिलेगा, मगर करोड़ों नौजवान आज भी बेकारी की वजह से खाली बैठे हैं.

देश के अलगअलग राज्यों में शिक्षा विभाग के स्कूलकालेजों में संविदा पर बतौर अतिथि शिक्षक और शिक्षा मित्र काम कर रहे नौजवान रोजीरोटी के  लिए जद्दोजेहद कर रहे हैं, पर शायद सरकार की मंशा नहीं है कि पढ़ेलिखे लड़केलड़कियां नौकरियां करें.

वह तो चाहती है कि पढ़लिख कर नौजवान कांवड़ यात्रा निकालें, मंदिर बनाने के काम में अपनी ताकत ?ांक दें, पार्टी की रैलियों में ?ांडेबैनर लगाने का काम करें, गौरक्षा के नाम पर मौब लिंचिंग करें और हिंदूमुसलिम के नाम पर दंगेफसाद करें. बहुत हद तक धर्म  की हिमायती सरकार इस में कामयाब भी हुई है.

देश के जो पढ़ेलिखे नौजवान सरकारी नौकरी की तलाश में अपना समय बरबाद कर रहे हैं, उन को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि सरकार उन्हें कोई रोजगार देने वाली  नहीं है.

ये भी पढ़ें- कोरोना: अंधेरे में रौशनी हैं… एक्टिव टीम !

चुनाव के समय ऐलान किया गया था कि हर साल 2 करोड़ लोगों को नौकरी दी जाएगी, पर चुनाव होते ही नौकरी देने का वादा करने वाली सरकार अब नौजवानों को आत्मनिर्भर होने का ?ान?ाना पकड़ा रही है.

नई शिक्षा नीति में व्यावसायिक पाठ्यक्रम लाने की वकालत तो सरकार कर रही है, पर जो व्यावसायिक संस्थान पहले से चल रहे हैं, उन में पढ़ाने के लिए शिक्षकों की भरती तक नहीं कर पाई है.

मध्य प्रदेश के कई स्कूलों में 9वीं से 12वीं तक वोकेशनल ऐजूकेशन दी जा रही है, मगर इन स्कूलों में वोकेशनल की ट्रेनिंग देने वाले शिक्षक ही नहीं हैं. ऐसे में सरकार केवल डिगरी बांट कर वाहवाही लूट रही है.

बेरोजगारी खेल रहे नौजवानों को यह बात मालूम होनी चाहिए कि जिन क्षेत्रों में नौकरियां अफरात में भरी पड़ी रहती थीं, उन्हें सरकार निजी हाथों को सौंप रही है.

रेलवे बोर्ड, बैंकिंग संस्थान और सरकारी स्कूलकालेजों में नौकरियों के मौके ज्यादा होते थे. इन्हीं क्षेत्रों को सरकार घाटे का सौदा मान कर निजी हाथों में दे कर अपना पल्ला ?ाड़  रही है.

देश में बेरोजगारी का आलम यह है कि किसी वैकेंसी के आते ही लाखों की तादाद में बेरोजगार अर्जी देने के लिए मारेमारे फिरते हैं.

साल 2021 के फरवरी महीने में हरियाणा के पानीपत शहर की अदालत में चपरासी के 13 पदों के लिए नौकरी का इश्तिहार निकला, तो बेरोजगारों की 27,671 अर्जियां जमा हो गईं.

अर्जियों की जांच के बाद जब इंटरव्यू के लिए बुलाया गया, तो दिलचस्प बात सामने आई कि 8वीं पास उम्मीदवार को नौकरी में लिया जाना

था, पर बड़ी तादाद में एमबीए, एमए, बीए, बीएससी, बीटैक डिगरीधारी लड़केलड़कियां चपरासी बनने की खातिर धक्कामुक्की करते नजर आए.

ये भी पढ़ें- यहां शादी के लिए किया जाता है लड़की को किडनैप

देश में बेलगाम हो रही बेरोजगारी का सच यही है कि करोड़ों की तादाद में पढ़ेलिखे नौजवान अपनी काबिलीयत को दरकिनार कर नौकरी पाने के लिए चपरासी बनने के लिए भी तैयार हैं, मगर सरकार उन के साथ केवल छल ही कर रही है.

एक साल में दोगुनी बेरोजगारी

उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से सा?ा की गई एक जानकारी में यह बात सरकार ने खुद स्वीकार की है कि पिछले एक साल में बेरोजगारी दोगुनी हो गई है.

कांग्रेस विधायक और कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार ‘लल्लू’ ने बेरोजगारी पर विधानसभा में उत्तर प्रदेश के लेबर और रोजगार मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या से सवाल किया था, जिस का संबंधित महकमे की तरफ से जवाब दे कर बेरोजगारी के जो आंकड़े दिए गए हैं, वे चौंकाने वाले हैं.

इस जवाब में बताया गया है कि सीएमआईई की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश में बेरोजगारी दर साल 2018 में 5.92 फीसदी थी, जबकि साल 2019 में  9.97 फीसदी रही यानी 2018 से तुलना की जाए तो साल 2019 में उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी दर तकरीबन दोगुनी हो गई है.

ये आंकड़े इसलिए भी ज्यादा चौंकाने वाले हैं, क्योंकि ये कोरोना काल से पहले के हैं. देश में कोरोना वायरस महामारी के चलते साल 2020 के मार्च महीने से लौकडाउन लागू किया गया था, जिस का अर्थव्यवस्था से ले कर रोजगार पर बड़ा असर पड़ा, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने बेरोजगारी की दर के जो आंकड़े शेयर किए हैं, वे इस से काफी पहले के हैं. उत्तर प्रदेश में बढ़ते अपराधों की वजह बेरोजगारी का होना भी है.

बेरोजगार ‘जन स्वास्थ्य रक्षक’

मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ राज्यों के गांवकसबों में ‘जन स्वास्थ्य रक्षक’ बनाए गए लाखों नौजवान भी इन दिनों अपनी रोजीरोटी के लिए जद्दोजेहद कर रहे हैं.

‘जन स्वास्थ्य रक्षक योजना’ को इसलिए शुरू किया गया था, ताकि गांवकसबों के लोगों को प्राथमिक उपचार की सुविधा आसानी से मिल सके. इस के लिए बाकायदा हर गांव के एक पढ़ेलिखे नौजवान को ट्रेनिंग दे कर बीमार लोगों को शुरुआती इलाज करने की सुविधा दी गई थी.

आज भी देश के कई इलाकों में डाक्टर, नर्स नहीं पहुंच पाते हैं, ऐसे में ‘जन स्वास्थ्य रक्षक’ बनाए गए यही लोग गांव के लोगों के लिए प्राथमिक उपचार की सुविधा मुहैया कराते हैं.

नरसिंहपुर जिले के बांसखेड़ा गांव में ‘जन स्वास्थ्य रक्षक’ रहे प्रवेश तिवारी   कहते हैं, ‘90 के दशक में शुरू की गई ‘जन स्वास्थ्य रक्षक योजना’ का मकसद गांवगांव मरीजों को तत्काल इलाज सुविधा उपलब्ध कराना था. इस के लिए इन्हें अनुभवी डाक्टरों से प्रशिक्षण दिलाया गया. प्रशिक्षण देने वाले एमबीबीएस, एमडी डाक्टर थे, जिन्होंने ट्रेनिंग दे कर और फिर काम ले कर इन्हें काबिल बनाया था.’

लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा लिखित परीक्षा ले कर इन की योग्यता को जांचापरखा गया. जो ‘जन स्वास्थ्य रक्षक’ इस में कामयाब हुए, शासन द्वारा प्रमाणपत्र दे कर उन के गांव में नियुक्त कर दिया गया.

गांवों में पदस्थ इन ‘जन स्वास्थ्य रक्षकों’ को प्राथमिक उपचार करने के लिए अधिकृत कर दिया गया. साथ ही, राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों जैसे कुष्ठ निवारण, मलेरिया, फाइलेरिया, टीबी, बच्चों के टीकाकरण, पल्स पोलियो और नसबंदी अभियान में सहभागिता का अनुबंध किया गया.

ये भी पढ़ें- कोरोना: साधु संत, ओझाओं के चक्कर में!

योजना के मुताबिक, इन्हें 20 तरह की दवाएं रखने की छूट दी गई, ताकि मरीज को स्वास्थ्य लाभ मिल जाए और उसे जराजरा सी बीमारी के लिए बड़े अस्पताल की ओर न भटकना पड़े. ‘पल्स पोलियो’ जैसे अभियान में भी ‘जन स्वास्थ्य रक्षक’ का अहम रोल रखा गया और इन लोगों ने गांवगांव और घरघर जा कर पोलिया की दवा का वितरण किया.

‘जन स्वास्थ्य रक्षकों’ ने छोटेछोटे गांवों की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को मजबूत किया और ?ालाछाप डाक्टरों को गांवों में पनपने का मौका ही नहीं दिया.

‘जन स्वास्थ्य रक्षक’ योजना में मध्य प्रदेश सरकार ने कई सौ करोड़ रुपए खर्च किए, ताकि गांवदेहात के क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकें और डाक्टरों की कमी को कुछ हद तक पूरा किया जा सके.

मध्य प्रदेश में ‘जन स्वास्थ्य रक्षकों’ का काम साल 2003 तक बखूबी चलता रहा, पर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते ही इन ‘जन स्वास्थ्य रक्षकों’ को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

यही हाल अतिथि शिक्षकों का मध्य प्रदेश के स्कूलकालेजों में लंबे समय से बच्चों को पढ़ा रहे अतिथि शिक्षकों को भी कोरोना काल में बेरोजगार रह कर दो वक्त की रोटी के लिए मुहताज रहना पड़ा.

गाडरवारा पीजी कालेज में फिजिक्स पढ़ाने वाले अतिथि विद्वान डाक्टर सुनील शर्मा कहते हैं कि सरकार कम पैसों में ज्यादा काम ले रही है. इसी वजह से रैगुलर प्रोफैसर भरती करने के बजाय अतिथि शिक्षकों से काम लिया जा रहा है.

मध्य प्रदेश में शिक्षक भरती के नाम पर पढ़ेलिखे डिगरीधारी नौजवानों की परीक्षा ले कर मोटी फीस वसूली गई और परीक्षा पास करने वाले नौजवानों को नौकरी देने में आनाकानी की जा  रही है.

चयन परीक्षा में 150 में से 113 अंक पाने वाले सचिन नेमा पिछले एक साल से शिक्षक बनने की राह देख  रहे हैं, मगर सरकारी आश्वासन ही अभी तक उन के हाथ लगे हैं.

क्यों है सरकारी नौकरी का मोह

लोगों की सोच यही है कि एक बार सरकारी नौकरी मिल जाए तो जिंदगीभर आराम से बैठ कर खाया जा सकता है. सरकारी नौकरी में जहां काम के घंटे कम और तनख्वाह ज्यादा होती है, वहीं रिटायर्ड होने के बाद पैंशन और कई तरह की सुविधाएं मिलती हैं.

बहुत से नौजवानों की सोच है कि निजी सैक्टर में नौकरी मिलने से दिनभर काम करना पड़ता है और बाद में पैंशन वगैरह न मिलने से गुजरबसर करना मुश्किल होता है.

नौजवान खुद निकालें रास्ता

धार्मिक पाखंड में डूबी सरकार नौजवानों को नौकरी तो देने से रही. ऐसे में बेरोजगारों को खुद ही कोई रास्ता निकालना होगा. सरकारी नौकरी न मिलने से निराश होने के बजाय नौजवान छोटेमोटे काम कर के या अपना खुद का रोजगार शुरू कर अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं.

खेतीकिसानी के बैकग्राउंड वाले नौजवान परंपरागत खेती छोड़ वैज्ञानिक ढंग से खेती के तौरतरीके अपना कर अपनी आमदनी में इजाफा कर सकते हैं.

नरसिंहपुर जिले के डोभी गांव के नौजवान श्रीराम किरार ने केसर की खेती, सिंहपुर बड़ा के वैभव शर्मा ने मशरूम की खेती, गाडरवारा के उमाशंकर कुशवाहा ने फूलों की खेती,  बनखेड़ी के मान सिंह गूजर ने जैविक खेती, करताज के राकेश दुबे ने गन्ने से जैविक गुड़ बना कर लाखों की आमदनी के साथ एक नया मुकाम हासिल कर के इस बात को सही साबित भी किया है.

आजकल सरकारी स्कूलों से लोगों का मोह दूर होने लगा है. ऐसे में जो नौजवान सरकारी स्कूलों में शिक्षक बनने की सोच रहे हैं, वे अपना खुद का स्कूल खोल कर दूसरे नौजवानों को रोजगार भी दे सकते हैं.

आज भी गांवशहर, कसबे में बिजली मेकैनिक, प्लंबर, मोटर मेकैनिक, वैल्डर, राजमिस्त्री आसानी से नहीं मिलते हैं. नौजवानों को इन कामों की ट्रेनिंग ले कर अपना खुद  का रोजगार शुरू करने पर जोर देना चाहिए.

कंप्यूटर की पढ़ाई करने वाले पढ़ेलिखे नौजवान खुद का कंप्यूटर सैंटर या औनलाइन केंद्र खोल कर महीने में अच्छीखासी आमदनी हासिल कर सकते हैं, क्योंकि आज के डिजिटल युग में  हर काम औनलाइन होने का चलन बढ़  गया है.

कोरोना: अंधेरे में रौशनी हैं… एक्टिव टीम !

देर रात का वक़्त है. अचानक मोबाइल की घंटी बजती है…  “भैया …भैया..! मैं बहुत बीमार हूं… मुझे.”और वह खांसने लगता है.

-“क्या हुआ है भाई तुझे बता… कैसा लग रहा है…. यह बताओ कहां पर हो…!”

थोड़ी देर में बीमार खांसते हुए शख्स के पास 4-5 युवा पहुंच जाते हैं. कोरोना संक्रमण के इस भयावह समय में यह सब आश्चर्यचकित करने वाली बात एक सच्ची घटना है.

दरअसल, कोरोनावायरस कोविड 19 के इस समय काल में जहां चारों तरफ बदहवासी का माहौल है, हर आमो ख़ास, जिम्मेदार आदमी अपनी जान बचाना चाहता है और घरों में  लाकडाउन  कर बैठा हुआ है….  ऐसे में कुछ युवा ऐसे भी हैं जो मानवीयता की डोर  को बांधे हुए हैं और मानवीय संवेदना का परिचय दे रहे हैं…

ये भी पढ़ें- यहां शादी के लिए किया जाता है लड़की को किडनैप

रात का वक्त है. एंबुलेंस मुख्य मार्ग से होती हुई गोपालपुर  कोविद अस्पताल जहां खुद प्राइवट ऐम्ब्युलेन्स  सीधा वहां जाकर रुकती है एंबुलेंस से एक शख्स को बाहर निकाला जाता है. जो  कमजोर और बीमार दिखाई दे रहा है युवा उन्हें सहारा देकर के हॉस्पिटल की ओर आगे बढ़ते हैं. कोविड का समय है उन्हें लापरवाह देख कोई कहता है- प्रोटोकॉल का पालन करो! तब वह लोग सतर्क होते हैं.

हॉस्पिटल से किट मिल जाता है उसे पहन कर के यह लोग बीमार शख्स को सहारा देते हुए आगे बढ़ते हैं और चिकित्सालय में भर्ती करके उसे आक्सीजन की कमी का पता चलते ही बमुश्किल ऑक्सीजन की व्यवस्था करके उसकी जान बचाने का प्रयास कर रहे हैं .

यह “एक्टिव टीम” है अमित नवरंग लाल की जिसमें वे स्वयं अनिल द्विवेदी, युगल शर्मा , संदीप अग्रवाल और अनिल वरंदानी जैसे कुछ युवा कोरोना कोविड-19 के इस त्रासद समय में लोगों की जान बचाने का स्तुत्य प्रयास कर रहे हैं.

एक छोटा सा प्रयास छत्तीसगढ़ के औद्योगिक नगर कोरबा में चल रहा है यहां यह बताना भी लाज़मी है कि टीम द्वारा लोगों से सहयोग लेकर oximiter themamiter Cylender इत्यादि चिकित्सकीय सामग्री भी उपलब्ध कराई जा रही है.

ये भी पढ़ें- गंदगी भरे माहौल में साफ-सफाई का रखें ख्याल

और जेल भेजने की तैयारी!

और एक  दिन हुआ यह की जब एक्टिव टीम एक पॉजिटिव मरीज को लेकर के  नगर के हॉस्पिटल पहुंची तो वहां गेट बंद था रात हो चुकी थी और गेट नहीं खुल रहा था ऐसे में जब युवा टीम ने वहां हंगामा खड़ा किया तो डॉक्टर बाहर आ गए और बात पहुंच गई थाना पुलिस तक. आनन-फानन में पुलिस आई और एक्टिव टीम को थाने में बैठा दिया गया . गिरफ्तारी की कवायद शुरू हो गई. जैसे ही शहर में एक्टिव टीम की गिरफ्तारी की बात फैलने लगी पुलिस ने चिकित्सक के साथ समझौता करा कर अमित की एकटिव टीम को रिहा कर दिया.

अभी तक सेवा भावना से प्रेरित  टीम  तीन एयर कंडीशन और आक्सीजन गैस  युक्त एंबुलेंस शहरवासियों के लिए उपलब्ध करवा चुकी है जो कोरोना कोविड 19 पीड़ितों को पूर्णता निशुल्क सेवा दे रही है.

अमित नवरंग लाल द्वारा कोरोना से ग्रसित दुखी लोगों की जब सहायता की जाने लगी तो लोगों के हाथ सहयोग के लिए उठ खड़े हुए. देखते ही देखते किसी ने उन्हें  आक्सीजन तो किसी ने उन्हें दूसरे तरीके से मदद करने का काम किया.एक एक बुजुर्ग कोरोना निगेटिव महिला जिसका इलाज चल रहा था. उसने इस युवा टीम की सेवा भावना को देख कर के उस बुजुर्ग महिला ने अपने पास रखे हुए पचास हजार रुपए देते हुए कहा कि यह पैसे कोरोना से ग्रसित लोगों की सेवा में लगा दो. एक तरफ जहां चारों तरफ लोग आज कोरोना संक्रमण को देखकर के भयभीत हैं. वहीं छत्तीसगढ़ के कोरबा की एक्टिव टीम यह संदेश दे रही है कि  मानव सेवा  से बड़ी कोई चीज नहीं होती, और  कोई जब मन में ठान कर के सेवा के लिए  निकल पड़ता है तो वह बड़ी सी बड़ी त्रासदी और बीमारी को भी हराकर एक संदेश दे जाता है.

गंदगी भरे माहौल में साफ-सफाई का रखें ख्याल

फिल्में मनोरंजन का अच्छा जरीया होती हैं. हालांकि फिल्म बनाने वाले कभी यह नहीं मानते हैं कि उन की फिल्मों को देख कर लोग अपनी जिंदगी बनाते हैं या बिगाड़ते हैं, पर चूंकि फिल्मी कहानियों में कोई न कोई सीख छिपी रहती है, लिहाजा उन का दर्शकों पर कुछ न कुछ असर तो पड़ता ही है.

एक फिल्म आई थी ‘ट्रैफिक सिगनल’. उस में एक छोटे बच्चे का किरदार था, जो चौराहे पर भीख मांगता है. वह बच्चा रंग से काला होता है और उस के मन में यह बात गांठ बांध चुकी होती है कि गोरा करने की क्रीम से वह भी निखर जाएगा. ऐसा होता तो नहीं है, पर यह बात जरूर साबित हो जाती है कि गंदगी भरे माहौल में रहने का यह मतलब नहीं है कि आप हमेशा बिना नहाए, मैलेकुचैले कपड़ों में पैर भिड़ाते इधर से उधर घूमो और अपनी फूटी किस्मत को रोओ.

जब से शहर बने हैं, तब से उन के आसपास गंदी बस्तियों का जमावड़ा लगना शुरू हुआ है. पहले लोग गांवकसबों में ही रहते थे. गांवदेहात में कच्चे घर, खेतखलिहान, तालाबकुएं, ज्यादा से ज्यादा अनाज मंडी तक किसान और उस के परिवार की पहुंच थी, लिहाजा ऐसा मान लाया जाता था कि मोटा खाओ और सादा जियो.

इस सादा जिंदगी में नहानेधोने, कपड़े पहनने पर इतना जोर नहीं रहता था. ज्यादातर देहाती आबादी को कहें तो उठनेबैठने का भी शऊर नहीं था, तभी तो अगर कोई किसान नए कपड़े पहन कर, नहाधो कर घर से बाहर निकलता था तो दूसरे लोग मजाक में पूछ लेते थे कि जनेत (बरात) में जा रहा है क्या?

ये भी पढ़ें- सरकारी अस्पताल: गरीबों की उम्मीद की कब्रगाह

हां, तब भी एक तबका ऐसा था जो बनसंवर कर रहता था, फिर चाहे उस समाज की औरत हो फिर मर्द. वह तबका था बनियों का. ‘लाला’ समाज हमेशा से अपने बनावसिंगार और खानपान के प्रति सजग रहा है. तभी तो उन्हें सेठ और सेठानी का तमगा दिया गया.

बहुत से पढ़ेलिखे किसान भी खुद को अलग दिखाने के लिए बनठन कर रहते थे. सारा दिन खेत में मिट्टी में मिट्टी हुए, फिर घर वापस आए, नहाएधोए और पहन कर धोतीकुरता अपनी बैठक में मजमा लगा लिया. मुझे अपने बचपन की याद है कि ऐसे लोगों का पूरा गांव में रुतबा होता था. उन की बात सुनी जाती थी और उस पर अमल भी होता था. कई बार तो वे सरपंच से भी ज्यादा अहमियत रखते थे.

लेकिन आज भी बहुत से लोग अपनी पूरी जिंदगी इस बात को कोसते रह जाते हैं कि हाय इस गरीबी, गुरबत, फटेहाली में कैसे बनसंवर कर रहें? रहते तो कच्ची बस्ती में हैं या गांव की बदहाली में, तो फिर कैसे टिपटौप रहें? ये सब तो पैसे वालों के चोंचले हैं.

पर ऐसा बिलकुल नहीं है. इस बहानेबाजी की जड़ में किसी की गरीबी नहीं, बल्कि उस की काहिली और आलसपन होता है वरना खुद को साफसुथरा रखना कोई रौकेट साइंस नहीं है.

अगर शहरों में गंदी बस्तियों की बात की जाए तो वहां तो गांवदेहात से भी बदतर हालात होते हैं. अगर साधारण शब्दों मे परिभाषित किया जाए वे सब रिहायशी इलाके गंदी बस्तियां कहलाते है, जहां सेहतमंद जिंदगी की रिहायशी सुविधाएं मुहैया नही होतीं.

पर क्या वहां रहने वाले ऐसे उलट हालात में क्या साफसुथरे नहीं रह सकते हैं? बिलकुल रह सकते हैं और रहते भी हैं. यह बस उन की सोच पर निर्भर करता है. अमीर घरों में काम करने वाली औरतें जिन्हें ‘कामवाली’ ही कहा जाता है, वे खुद जितनी साफसुथरी रहती हैं, उन्हें उतना ही ज्यादा काम मिलने की उम्मीद रहती है.

यही कामवालियां अपने घर की धुरी होती हैं. जो खुद सजासंवरा होगा वह अपने परिवार को भी ऐसा ही देखना चाहेगा. सुबह नहानेधोने में ज्यादा पैसा खर्च नहीं होता है और जरूरी नहीं है कि आप के पास नए या ज्यादा जोड़ी कपड़े हों, बल्कि अच्छे से धुले हुए कपड़े भी सलीके से पहने जाएं तो भी शख्सीयत एकदम बदल जाती है और इन सब पर रोजाना खर्चा नहीं करना पड़ता है, बस अपनी चीजों और खुद को ढंग से रखना होता है.

ये भी पढ़ें- निष्पक्ष पत्रकारों पर सरकारी दमन के खिलाफ

सुबह टूथपेस्ट, टूथब्रश (अगर ये नहीं हैं तो नीम या बबूल की दातून), साबुन, तेल जैसी सामग्री नहानेधोने के काम आती है, जो ज्यादा महंगी नहीं होती. बाकी कपड़ों पर अपनी हैसियत से पैसा लगाया जाता है. महिलाओं के लिए लालीबिंदी भी ज्यादा पैसा खर्च नहीं कराती है. मर्दों को तो इतना भी नहीं करना पड़ता है.

फरीदाबाद की सैक्टर 31 मार्किट में जयलक्ष्मी किराना स्टोर के नितिन ने बताया, “साफसुथरा रहना एक आदत होती है और जो इस से बचता है, वह चाहे अमीर हो या गरीब, कहीं भी कामयाब नहीं हो सकता है. गंदे आदमी को कोई पसंद नहीं करता है.

“इस के लिए ज्यादा खर्च भी नहीं होता है. किसी कंपनी का टूथब्रश 20 रुपए (लोकल तो और भी सस्ता हो सकता है) तक का आ जाता है. टूथपेस्ट भी 10 रुपए से शुरू हो जाती है. नहाने और कपड़े धोने का साबुन भी 10 रुपए से शुरू हो जाता है. ये चीजें रोजरोज नहीं खरीदनी पड़ती हैं.”

याद रखिए कि जब किसी परिवार के बड़े अपनी साफसफाई पर ध्यान देते हैं तो बच्चे भी उन की देखादेखी अच्छी आदतें डाल ही लेते हैं, बस खुद पर आलस न हावी होने दें या गंदी बस्ती या गांवदेहात में रहने का रोना न रोएं.

ये भी पढ़ें- महिलाओं पर जोरजुल्म: जड़ में धार्मिक पाखंड

कोरोना: साधु संत, ओझाओं के चक्कर में!

कोरोना कोविड 19 का भयावह रूप आज देश देख रहा है. आज वैज्ञानिक भी इस संक्रमण के सामने असहाय हैं‌ और एक गाइडलाइन जारी कर दी गई है. ऐसे में देश में कुछ साधु, संत, ओझा, गुनिया ज्ञान बघार रहे हैं. और एक तरह से कानून को चैलेंज करते हुए बकायदा सोशल मीडिया में वीडियो वायरल करके अपनी बात प्रसारित कर रहे हैं.

जिससे यह सिद्ध हो जाता है कि आज भी हमारे देश में किस तरह साधु संत और ओझाओं की तूती बोल रही है. होना यह चाहिए कि ऐसे लोगों पर शासन प्रशासन तत्काल लगाम लगाए, ताकि कोई भी कुछ मनगढ़ंत ज्ञान बघार करके लोगों की जान का दुश्मन न बन सके.

आज हालात इतने गम्भीर हो रहे हैं कि यह साधु संत झूठे ही कोरोना से बचाव के दावे करके, एक तरह से लोगों की जान सांसत में डालने का काम कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- कोरोना से जंग में जीते हम: कभी न सोचें, हाय यह क्या हो गया!

छत्तीसगढ़ में इन दिनों एक अनाम तिलकधारी साधु का वीडियो वायरल है, जो बड़े ही धीरे गंभीर वाणी में नींबू के दो चार रस के प्रयोग की सलाह दे रहा है, यह वीडियो बड़ी तेजी से गांव गांव पहुंच रहा है. लोग इस गेरुआ वस्त्र धारी के बताए हुए बातों में विश्वास भी कर रहे हैं जो कि सौ फीसदी झूठ के अलावा कुछ भी नहीं है.

वायरल वीडियो में कथित साधु! कि दावा है – ‘एक नींबू लो और उसके रस की दो-तीन बूंदें अपनी नाक में डालें…. इसे डालने के महज 5 सेकेंड के बाद आप देखेंगे कि आपका नाक, कान, गला और हृदय का सारा हिस्सा शुद्ध हो जाएगा.’
वीडियो में गेरूए कपड़ा पहने साधु कह रहा है- ‘आपका गला जाम है, नाक जाम है, गले में दर्द है या फिर इनफेक्शन की वजह से बुखार है, ये नुस्खा सारी चीजें दूर कर देगा. आप इसका प्रयोग जरूर कीजिए, मैंने आज तक इस घरेलू नुस्खे का उपयोग करना वालों को मरते हुए नहीं देखा है. यह नुस्खा नाक, कान, गला और हृदय के लिए रामबाण है. बाकी आपको जो करना है कीजिए लेकिन एक बार इसे जरूर आजमाइए.

यह साधु इतने भोलेपन से अपनी बात कह रहा है कि लोग सहज ही इसे मान सकते हैं. क्योंकि सोशल मीडिया में प्रसारित ऐसे लोगों के झूठे वायरल वीडियो की कोई काट सरकार के पास नहीं है और न ही प्रशासन कोई सख्त कार्रवाई कर पाता है.

ये भी पढ़ें- कोरोना: फौजी की तरह ड्युटी पर लगे “रोबोट” की मौत!

झूठ फैलाने का माध्यम बना सोशल मीडिया….!

जैसा कि हम जानते हैं सोशल मीडिया आज लोगों तक बात पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम मंच बन चुका है.

मगर जैसा की कहावत है किसी भी चीज की अच्छाई और बुराई दोनों होती है सोशल मीडिया की भी यही सच्चाई है इसका प्रयोग कई जगह नकारात्मक ढंग से भी किया जाता है. प्रणाम स्वरूप झूठ बड़ी तेजी से फैलता है और यह लोगों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है. ऐसे में नींबू की चार बूंद से कोरोना के इलाज का दवा यह बता जाता है कि किस तरह सोशल मीडिया का दुरुपयोग किया जा रहा है. इसलिए जहां सरकार को इसके लिए कुछ कठोर नियम बनाने चाहिए वहीं लोगों में भी यह समझ होनी चाहिए कि सोशल मीडिया में प्रसारित हर बात का तथ्य सही नहीं होता उसे हम अपने नीर क्षीर बुद्धि से समझे कि यह हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तो नहीं है. दरअसल कई संदर्भ आ चुके हैं जब सोशल मीडिया में प्रसारित नुस्खों के कारण लोगों की जान पर बन आई.

एक्शन और जागृति जरूरी

सोशल मीडिया में कुछ भी अपने अधकचरे ज्ञान से परोस देना समझदारी नहीं है. वस्तुत: लोगों का हित सोचते सोचते लोग बुरा कर बैठते हैं. इसकी प्रमुख वजह है हमारे देश ने बहुतायत लोग अशिक्षित हैं और अफवाह बाजी में सिद्धहस्त हैं. ऐसे लोग अपने आप को परम ज्ञानी समझते हैं. और साथ ही कुछ लोग अपने प्रचार प्रसार के लिए और इसे एक धंधा बनाने के लिए भी झूठे अध कचरे ज्ञान को प्रसारित करने की चेष्टा करते है. देश में बहुसंख्यक लोग आज भी गांव में रहते हैं, वही शहरों में भी साधु संत के चोले में आकर के कुछ भी कहने वाले लोगों के लिए बड़ी श्रद्धा और अंधविश्वास है, परिणाम स्वरूप इसका नुकसान भी लोग उठाते हैं.ऐसे में यही कहा जा सकता है कि सोशल मीडिया में आ रहे किसी जानकारी को आंख बंद करके कभी भी स्वीकार ना करें. इसके लिए वैज्ञानिक सच्चाई को जानने समझने और मानने में ही आपका भला है.

ये भी पढ़ें- पाखंड की गिरफ्त में पुलिस

कोरोना की दूसरी दस्तक, गरीब लोगों में बड़ी दहशत

वह फोटो ब्राजील के एक कब्रिस्तान की थी. उस फोटो के नीचे जो लिखा था, वह और भी डराने वाला था, जो इस तरह था कि ‘ब्राजील में कोरोना का नया स्वरूप तबाही मचाए हुए है. यहां के साओ पाउलो शहर में इतनी जानें जा चुकी हैं कि उन शवों को दफनाने के लिए जगह कम पड़ गई है. ऐसे में पुरानी कब्रों को खोद कर कंकाल निकाले जा रहे हैं और नए शव दफनाने के लिए जगह बनाई जा रही है. पिछले हफ्ते ब्राजील में 60 हजार से ज्यादा मौतें हुई हैं.’

दुनियाभर में कोरोना महामारी की दूसरी लहर आ चुकी है. भारत भी इस से अछूता नहीं है. दिल्ली को ही देख लें. वहां मार्च महीने के बाद कोरोना के मामले इस तरह तेजी से बढ़े कि वहां रात का कर्फ्यू तक लगाना पड़ा.

ऐसा नहीं है कि वहां कोरोना की टैस्टिंग नहीं की जा रही है, बल्कि वहां तो रिकौर्ड एक लाख से ज्यादा लोगों की कोरोना जांच की गई, कोरोना का टीका भी लगाया जा रहा है, पर इस से हालात काबू में आते नहीं दिखे.

पूरे देश की बात करें, तो पिछले  6 महीने के टौप पर कोरोना का आतंक रहा और बहुत से शहर तो दोबारा लौक होने लगे. महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के कई जिलों में बंदिशें लगाई गईं.

आम तो क्या खास लोग भी इस भयंकर बीमारी की चपेट में आ गए, जिन में रौबर्ट वाड्रा, सचिन तेंदुलकर, अक्षय कुमार और बड़ेबड़े अस्पतालों के डाक्टर तक शामिल थे.

गरीबों में खलबली

पिछले साल के लौकडाउन में लोगों को पता ही नहीं था कि यह बीमारी कितनी गंभीर है, इसलिए वे इस हद तक घबरा गए थे कि आननफानन अपनेअपने मूल इलाकों की तरफ बोरियाबिस्तर समेट कर जैसे हुआ निकल पड़े. तब उन पर मुसीबतें आई थीं, तो बहुत से लोगों ने उन की मदद भी की थी.

रोजगार छोड़ कर वे किसी तरह कंगाली में जिए, जो काम मिला उसे किया और अपने दिन गुजारे. कोरोना थोड़ा सुस्त हुआ तो फिर बड़े शहरों की तरफ रुख किया, पर उन का इस बार का पलायन और भी भयावह होगा. मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में तो इस का असर दिखने लगा है.

इन में से ज्यादातर कुशल और अर्धकुशल मजदूर हैं, जो मुख्य तौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात, तेलंगाना और ओडिशा जैसे राज्यों से संबंध रखते हैं.

मुंबई की धारावी कच्ची बस्ती में पहले भी कोरोना बम फूटा था. वहां के कामगार घर वापसी को मजबूर हुए थे, जिन में से तकरीबन 80 फीसदी मजदूर अक्तूबर, 2020 तक वापस आ गए थे, मगर अब उन में से आधे से ज्यादा लोग फिर से अपने गांव लौटने की तैयारी कर रहे हैं या जा चुके हैं.

दिल्ली के रेलवे स्टेशनों और बसअड्डों पर भी मजदूर तबके की यह अफरातफरी दिखाई दे रही है. पर कुछ गरीब ऐसे भी हैं, जो दिल्ली और उस के आसपास के शहरों में रह कर अपना  और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं और न चाहते हुए भी यह जगह नहीं छोड़ सकते हैं.

हरियाणा के फरीदाबाद के राजू नगर की एक झुग्गी में राजेश रहता है. झुग्गी अपनी है, पर रोजगार का कोई ठिकाना नहीं. परिवार उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में रहता है और राजेश यहां चाय का ठेला लगाता है. इस से पहले वह किसी ट्रैक्टर कंपनी में हैल्पर था और 9,000 रुपए हर महीने पगार पाता था. इतने में गुजारा नहीं था और कंपनी में हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ती थी.

राजेश हिम्मत हार गया और नौकरी छोड़ दी. फिर इसी साल के जनवरी महीने में चाय का ठेला लगा लिया, पर उस के बाद क्या हुआ, यह उसी की जबानी सुनिए.

तकरीबन 50 साल के राजेश ने बताया, ‘‘नौकरी छोड़ कर सोचा कि चाय के ठेले से ठीकठाक कमाई हो जाएगी, पर मेरी सोच गलत थी. यहां गरीब को और ज्यादा दबाया जाता है. लोग मेरे ठेले पर चाय पीने आते हैं, बीड़ीसिगरेट, खाने का दूसरा छोटामोटा सामान लेते हैं, पर ज्यादातर उधार. ऐसा नहीं है कि वे नकद सामान नहीं ले सकते हैं, पर ऐसा करते नहीं हैं.

‘‘आप यकीन नहीं मानोगे कि पिछले ढाई महीने में मैं ने सिर्फ 8,000 रुपए की कमाई की है. इस से अच्छी तो ट्रैक्टर कंपनी की नौकरी ही थी. अब जब फिर से कोरोना बीमारी ज्यादा फैलने की खबरें आ रही हैं, तो इस से गरीब की और ज्यादा कमर टूट जाएगी.’’

इसी तरह दिल्ली के आया नगर में रहने वाले राहुल निगम का दर्द कुछ यों छलका, ‘‘मैं गुरुग्राम में बिरयानी का स्टाल लगा कर अपने परिवार का पेट पाल रहा था, पर लगातार कम होती आमदनी से मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी. अब मैं ने कड़ा फैसला लेते हुए अपना धंधा समेट दिया है और  हमेशा के लिए वापस इंदौर जा रहा हूं.

ये भी पढ़ें- जबरन यौन संबंध बनाना पति का विशेषाधिकार नहीं

‘‘पिछले साल अचानक हुए लौकडाउन ने मेरा सारा कामधंधा चौपट कर दिया था. बाद में जो थोड़ाबहुत  पैसा बचा हुआ था, वह भी खत्म हो गया. अब अगर दोबारा काम शुरू करने की भी सोचूं तो कोरोना महामारी के गंभीर हालात के चलते दोबारा लौकडाउन लग जाने का डर सता रहा है, इसीलिए यहां से जाना ही ठीक लग  रहा है.’’

दिल्ली के आया नगर में ही रहने वाली बसंती लोगों के घरों में काम करती है. वह मूल रूप से उत्तराखंड की है और दिल्ली में रोजीरोटी के लिए आई है. वह अपने ड्राइवर पति और 2 बच्चों के साथ दिल्ली में रहती है.

बसंती ने अपना दर्द बताया, ‘‘पिछले लौकडाउन में पति और मेरा दोनों का काम छूट गया था. वे 6 महीने हम ने बहुत मुश्किल से गुजारे थे. हम पूरी तरह सरकार और मददगारों पर आश्रित थे. जब धीरेधीरे सब खुलने लगा, तब बड़ी मुश्किल से किसी घर में काम मिला. पति को तो अभी कुछ दिन पहले ही नौकरी मिली है.

‘‘गांव में सास बीमार रहती हैं. हमें वहां भी पैसे भेजने होते हैं. अगर फिर से लौकडाउन लग गया तो क्या होगा, यह सोच कर ही डर लगने लगता है. हम इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं हैं.’’

महरौली जिले के भाजपा महिला मोरचा में मंत्री और मालती फाउंडेशन की सहसंस्थापक मधु गुप्ता ने कोरोना के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए कहा, ‘‘दोबारा लगे नाइट कर्फ्यू से लोगों में खलबली सी मची हुई है. गरीब ही नहीं, बल्कि मिडिल क्लास भी बड़ा चिंतित है. समाज में हर कोई एकदूसरे से जुड़ा हुआ है. अगर मजदूर तबका या गरीब लोग यों शहर छोड़ कर अपने गांव जाएंगे तो सबकुछ ठप हो जाएगा.

‘‘अगर ऐसा हुआ तो पूरा देश फिर आर्थिक मंदी की तरफ चला जाएगा. पिछला लौकडाउन तो किसी तरह झेल गए थे, पर अब तो हिम्मत ही टूट जाएगी. सरकार को सबकुछ ध्यान में रख कर कोई भी फैसला लेना होगा. आम आदमी की सोचनी होगी.’’

चुनौतियां हैं बड़ी

कोरोना को झेलते हुए एक साल से ऊपर का समय हो गया है. टीका जरूर आ गया है, पर वह भी बीमारी दूर भगाने का पक्का इलाज नहीं है.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, वीरवार, 15 अप्रैल तक देश में  तकरीबन 10 करोड़ डोज दिए जा चुके थे, पर जिस तरह से कोरोना के केस बढ़ने लगे हैं, अभी भी यह कोशिश नाकाफी लग रही है.

यह दूसरी लहर तब तेजी से लौटी है, जब लगने लगा था कि अब कोरोना पर काबू पाना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा और लोगों को रोजगार पाने में आसानी होगी. लेकिन बड़ेबड़े शहरों में लगे रात के कर्फ्यू ने लोगों खासकर उस गरीब कामगार तबके की सांसें अटका दी हैं, जो रोज कुआं खोद कर पानी पीता है. वह दोबारा शहर छोड़ कर अपने गांव जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा और जो लोग चले भी जाएंगे, उन्हें फिर भुखमरी का सामना करना पड़ेगा. इस बार कोई सोनू सूद उन की मदद करेगा, इस शक है. हां, ऐसे लोगों को लूटने वालों की लार जरूर टपकने लगेगी.

अमेरिका की एक संस्था की बात मानें, तो पिछले एक साल में कोरोना महामारी के चलते भारत में रोजाना  725 रुपए से 1,450 रुपए की कमाई करने वाले 3.20 करोड़ लोग मध्यम आय वर्ग से निम्न आय वर्ग में चले गए हैं. इतना ही नहीं, रोज तकरीबन 150 या उस से कम रुपए कमाने वाले निम्न आय वर्ग का आंकड़ा बढ़ कर 7.5 करोड़ तक पहुंच गया है.

कोरोना महामारी दोबारा बड़ी गंभीर समस्या के रूप में उभरी है. इस का असर देश की माली हालत पर पड़ेगा. लोगों में निराशा, हताशा और असुरक्षा की भावना जागेगी, खुद के प्रति भी और सरकार के प्रति भी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें