कोरोना संक्रमण काल में "मिशन प्रेरक" के रूप में कार्य कर रही हजारों महिला सफाई मजदूरों को सुरक्षा किट नहीं दी गई है. असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के संबंध में छत्तीसगढ़ प्रदेश में लागू श्रम कानूनों का पालन करने में कोताही हो रही है. आगे चलकर यह विस्फोटक रूप धारण कर सकता है.
दरअसल, यह सफाई मजदूर न केवल वार्डों में जाकर घर-घर जाकर कचरा संग्रहण का काम करती है, बल्कि इसका पृथक्कीकरण करके निस्तारण के काम तथा गोबर संग्रहण केंद्रों में भी सहयोग करती है.
कोरोना संक्रमण के समय कोरोना योद्धा के रूप में उनकी प्रमुख भूमिका स्वमेव उजागर है. देशभर में लॉक डाऊन के दौरान भी अपने जीवन को खतरे में डालकर ये सफाई मजदूर सुबह से जिस तरह अपना काम कर रही हैं, वह सराहनीय है. लेकिन नगर निगमों में छत्तीसगढ़ में यह आज उपेक्षा का शिकार है.
मिशन क्लीन सिटी योजना के अंतर्गत काम कर रही इन महिला सफाई मजदूरों को कोरोना की इस दूसरी लहर में भी सुरक्षा किट नहीं दिया जा रहा है, जबकि मास्क, ग्लोब्स, सेनेटाइजर व साबुन कोरोना से लड़ने के लिए महत्वपूर्ण उपकरण है.इन सुरक्षा किटों के अभाव में दसियों कर्मचारी कोरोना का शिकार हो गई हैं, लेकिन निगम के दैनिक वेतनभोगी मजदूर होने के बावजूद निगम ने उनके इलाज व मेडिकल सुविधाएं देने की अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है और उन्हें बीमारी की इस अवधि का वेतन भी नहीं दिया गया है. उदाहरणार्थ औद्योगिक नगर कोरबा के वार्ड 67 में अघन बाई बंजारे , तुलसी कर्ष , कमल महंत के अलावा अन्य वार्डों के कई कर्मचारी "कोरोना" का शिकार हुई हैं. मजदूरी न मिलने से ये परिवार आज भुखमरी की कगार पर है.