बरसों की साध: भाग 3

जब इस बात की जानकारी प्रशांत को हुई तो वह खुशी से फूला नहीं समाया. विदाई से पहले ईश्वर की बहन को दुलहन के स्वागत के लिए बुला लिया गया था. जिस दिन दुलहन को आना था, सुबह से ही घर में तैयारियां चल रही थीं.

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प्रशांत के पिता सुबह 11 बजे वाली टे्रन से दुलहन को ले कर आने वाले थे. रेलवे स्टेशन प्रशांत के घर से 6-7 किलोमीटर दूर था. उन दिनों बैलगाड़ी के अलावा कोई दूसरा साधन नहीं होता था. इसलिए प्रशांत बहन के साथ 2 बैलगाडि़यां ले कर समय से स्टेशन पर पहुंच गया था.

ट्रेन के आतेआते सूरज सिर पर आ गया था. ट्रेन आई तो पहले प्रशांत के पिता सामान के साथ उतरे. उन के पीछे रेशमी साड़ी में लिपटी, पूरा मुंह ढापे मजबूत कदकाठी वाली ईश्वर की पत्नी यानी प्रशांत की भाभी छम्म से उतरीं. दुलहन के उतरते ही बहन ने उस की बांह थाम ली.

दुलहन के साथ जो सामान था, देवनाथ के साथ आए लोगों ने उठा लिया. बैलगाड़ी स्टेशन के बाहर पेड़ के नीचे खड़ी थी. एक बैलगाड़ी पर सामान रख दिया गया. दूसरी बैलगाड़ी पर दुलहन को बैठाया गया. बैलगाड़ी पर धूप से बचने के लिए चादर तान दी गई थी.

दुलहन को बैलगाड़ी पर बैठा कर बहन ने प्रशांत की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यह आप का एकलौता देवर और मैं आप की एकलौती ननद.’’

मेहंदी लगे चूडि़यों से भरे गोरेगोरे हाथ ऊपर उठे और कोमल अंगुलियों ने घूंघट का किनारा थाम लिया. पट खुला तो प्रशांत का छोटा सा हृदय आह्लादित हो उठा. क्योंकि उस की भाभी सौंदर्य का भंडार थी.

कजरारी आंखों वाला उस का चंदन के रंग जैसा गोलमटोल मुखड़ा असली सोने जैसा लग रहा था. उस ने दशहरे के मेले में होने वाली रामलीला में उस तरह की औरतें देखी थीं. उस की भाभी तो उन औरतों से भी ज्यादा सुंदर थी.

प्रशांत भाभी का मुंह उत्सुकता से ताकता रहा. वह मन ही मन खुश था कि उस की भाभी गांव में सब से सुंदर है. मजे की बात वह दसवीं तक पढ़ी थी. बैलगाड़ी गांव की ओर चल पड़ी. गांव में प्रशांत की भाभी पहली ऐसी औरत थीं. जो विदा हो कर ससुराल आ गई थीं. लेकिन उस का वर तेलफुलेल लगाए उस की राह नहीं देख रहा था.

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इस से प्रशांत को एक बात याद आ गई. कुछ दिनों पहले मानिकलाल अपनी बहू को विदा करा कर लाया था. जिस दिन बहू को आना था, उसी दिन उस का बेटा एक चिट्ठी छोड़ कर न जाने कहां चला गया था.

उस ने चिट्ठी में लिखा था, ‘मैं घर छोड़ कर जा रहा हूं. यह पता लगाने या तलाश करने की कोशिश मत करना कि मैं कहां हूं. मैं ईश्वर की खोज में संन्यासियों के साथ जा रहा हूं. अगर मुझ से मिलने की कोशिश की तो मैं डूब मरूंगा, लेकिन वापस नहीं आऊंगा.’

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इस के बाद सवाल उठा कि अब बहू का क्या किया जाए. अगर विदा कराने से पहले ही उस ने मन की बात बता दी होती तो यह दिन देखना न पड़ता. ससुराल आने पर उस के माथे पर जो कलंक लग गया है. वह तो न लगता. सब सोच रहे थे कि अब क्या किया जाए. तभी मानिकलाल के बडे़ भाई के बेटे ज्ञानू यानी ज्ञानेश ने आ कर कहा, ‘‘दुलहन से पूछो, अगर उसे ऐतराज नहीं हो तो मैं उसे अपनाने को तैयार हूं.’’

Valentine’s Special-भाग -3-अब और नहीं : आखिर क्या करना चाहती थी दीपमाला

समाज में पत्नी का दर्जा क्या होता है, भूपेश और दीपमाला के साथ रहते हुए उसे इस बात का अंदाजा हो गया था. दीपमाला की जो जगह उस घर में थी वह जगह अब उपासना लेना चाहती थी. वह सोचने लगी आखिर कब तक वह भूपेश की खेलने की चीज बन कर रहेगी. कभी न कभी तो भूपेश इस खिलौने से ऊब जाएगा. उपासना को अब अपने भविष्य की चिंता होने लगी.

भूपेश के पास ओहदा और पैसा दोनों थे. उस के साथ रह कर उपासना को अपना भविष्य सुनहरा लग रहा था. उस ने अब अपना दांव फेंकना शुरू किया. वह भूपेश पर दीपमाला को तलाक देने का दबाव डालने लगी. शातिर दिमाग भूपेश को घरवाली और बाहरवाली दोनों का सुख मिल रहा था. वह शादी के पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था. उस ने उपासना को कई तरीकों से समझाने की कोशिश की तो वह जिद पर अड़ गई. उस ने भूपेश के सामने शर्त रख दी कि या तो वह दीपमाला को तलाक दे कर उस से शादी करे या फिर वह सदा के लिए उस से अपना रिश्ता तोड़ लेगी.

कंटीली चितवन और मदमस्त हुस्न की मालकिन उपासना को भूपेश कतई नहीं छोड़ना चाहता था. उस ने उपासना से कुछ दिन की मोहलत मांगी.

एक रात दीपमाला की नींद अचानक खुली तो उस ने पाया भूपेश बिस्तर से नदारद है. दीपमाला को बातचीत की आवाजें सुनाई दीं तो वह कमरे से बाहर आई. आवाजें उपासना के कमरे से आ रही थीं. दरवाजा पूरी तरह बंद नहीं था. एक झिरी से दीपमाला ने अंदर झांका. बिस्तर पर उपासना और भूपेश सिर्फ एक चादर लपेटे हमबिस्तर थे. दोनों इतने बेखबर थे कि उन्हें दीपमाला के वहां होने का भी पता नहीं चला.

उस दृश्य ने दीपमाला को जड़ कर दिया. उस की हिम्मत नहीं हुई कुछ देर और वहां रुकने की. जैसे गई थी वैसे ही उलटे पांव कमरे में लौट आई. आंखों से लगातार आंसू बहते जा रहे थे. उस की नाक के नीचे ये सब हो रहा था और वह बेखबर रही. वह यकीन नहीं कर पा रही थी कि इतना बड़ा विश्वासघात किया दोनों ने उस के साथ.

दीपमाला के दिल में नफरत का ज्वारभाटा उछाल मार रहा था. उस के आंसू पोंछने वाला वहां कोई नहीं था. दिमाग में बहुत से विचार कुलबुलाने लगे. अगर अभी कमरे में जा कर दोनों को जलील करे तो उस का मन शांत हो और फिर वह हमेशा के लिए यह घर छोड़ कर चली जाए. फिर उसे खयाल आया कि वह क्यों अपना घर छोड़ कर जाए. यहां से जाएगी तो उपासना जिस ने उस के सुहाग पर डाका डाला. अपने सोते हुए बच्चे पर नजर डाल दीपमाला ने खुद को किसी तरह सयंत किया और फिर एक फैसला ले लिया.

दीपमाला को नींद में बेखबर समझ बड़ी देर बाद भूपेश अपने कमरे में लौट आया और चुपचाप बिस्तर पर लेट गया मानो कुछ हुआ ही नहीं.

दूसरी सुबह जब उपासना औफिस के लिए निकली रही थी तभी दीपमाला ने उस का रास्ता रोक लिया. बोली, ‘‘सुनो उपासना अब तुम यहां नहीं रह सकती. इसलिए आज ही अपना सामान उठा कर चली जाओ,’’ दीपमाला की आंखों में उस के लिए नफरत के शोले धधक रहे थे.

‘‘यह क्या कह रही हो तुम? उपासना कहीं नहीं जाएगी,’’ भूपेश ने बीच में आते हुए कहा.

‘‘मैं ने बोल दिया है. इसे जाना ही होगा.’’

भूपेश की शह पा कर उपासना भूपेश के साथ खड़ी हो गई तो दीपमाला के तनबदन में आग लग गई.

एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी, उपासना की ढिठाई देख कर दीपमाला से रहा नहीं गया. गुस्से की ज्वाला में उबलती दीपमाला ने उपासना की बांह पकड़ कर उसे लगभग धकेल दिया.

तभी एक जोरदार तमाचा दीपमाला के गाल पर पड़ा. वह सन्न रह गई. एक दूसरी औरत के लिए भूपेश उस पर हाथ उठा सकता है, वह सोच भी नहीं सकती थी. उस की आंखें भर आईं. भूपेश के रूप में एक अजनबी वहां खड़ा था उस का पति नहीं.

किसी जख्मी शेरनी सी गुर्रा कर दीपमाला बोली, ‘‘सब समझती हूं मैं. तुम इसे यहां क्यों रखना चाहते हो… कल रात अपनी आंखों से देख चुकी हूं तुम दोनों की घिनौनी करतूत.’’

मर्यादा की सारी हदें तोड़ते हुए भूपेश ने दीपमाला के सामने ही उपासना की कमर में हाथ डाल दिया और एक कुटिल मुसकान उस के होंठों पर आ गई.

‘‘चलो अच्छा हुआ जो तुम सब जान गई, तो अब यह भी सुन लो मैं उपासना से शादी करने वाला हूं और यह मेरा अंतिम फैसला है.’’

दीपमाला अवाक रह गई. उसे यकीन हो गया भूपेश अपने होशोहवास में नहीं है. जो कुछ कियाधरा है उपासना का किया है.

‘‘तुम अपने होश में नहीं हो भूपेश… यह हम दोनों के बीच नहीं आ सकती… मैं तुम्हारी बीवी हूं.’’

‘‘तुम हम दोनों के बीच आ रही हो. मैं अब तुम्हारे साथ एक पल भी नहीं रहना चाहता,’’ भूपेश ने बिना किसी लागलपेट के दोटूक जवाब दिया.

दीपमाला अपने ही घर में अपराधी की तरह खड़ी थी. भूपेश और उपासना एक पलड़े में थे और उन का पलड़ा भारी था.

जिस आदमी के साथ ब्याह कर वह इस घर में आई थी, वही अब उस का नहीं रहा तो उस घर में उस का हक ही क्या रह जाता है.

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Valentine’s Special-भाग -2-अब और नहीं : आखिर क्या करना चाहती थी दीपमाला

दीपमाला की डिलीवरी का समय नजदीक था. भूपेश ने उस के जाने का इंतजाम कर दिया. दीपमाला अपनी मां के घर चली आई. अपने मायके पहुंचने के कुछ दिन बाद ही दीपमाला ने एक बेटे को जन्म दिया. उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. उस के दिनरात नन्हे अंशुल के साथ बीतने लगे. 4 दिन दीपमाला और बच्चे के साथ रह कर भूपेश औफिस में जरूरी काम की बात कह कर लौट आया. दीपमाला के न रहने पर वह अब बिलकुल आजाद पंछी था. उस की और उपासना की प्रेमलीला परवान चढ़ रही थी. औफिस में लोग उन के बारे में दबीछिपी बातें करने लगे थे, मगर भूपेश को अब किसी की परवाह नहीं थी. वह हर हालत में उपासना का साथ चाहता था.

कुछ महीने बीते तो दीपमाला ने भूपेश को फोन कर के बताया कि वह अब घर आना चाहती है. जवाब में भूपेश ने दीपमाला को कुछ दिन और आराम करने की बात कही. दीपमाला को भूपेश की बात कुछ जंची नहीं, मगर उस के कहने पर वह कुछ दिन और रुक गई. 3 महीने बीतने को आए, मगर भूपेश उसे लेने नहीं आया तो उस ने भूपेश को बताए बिना खुद ही आने का फैसला कर लिया.

दरवाजे की घंटी पर बड़ी देर तक हाथ रखने पर भी जब दरवाजा नहीं खुला तो दीपमाला को फिक्र होने लगी. ‘आज इतवार है. औफिस नहीं गया होगा. दरवाजे पर ताला भी नहीं है. इस का मतलब कहीं बाहर भी नहीं गया है. तो फिर इतनी देर क्यों लग रही है उसे दरवाजा खोलने में?’ वह सोचने लगी.

कंधे पर बैग उठाए और एक हाथ से बच्चे को गोद में संभाले वह अनमनी सी खड़ी थी कि खटाक से दरवाजा खुला.

एक बिलकुल अनजान लड़की को अपने घर में देख दीपमाला हैरान रह गई. वह कुछ पूछ पाती उस से पहले ही उपासना बिजली की तेजी से वापस अंदर चली गई. भूपेश ने दीपमाला को यों इस तरह अचानक देखा तो उस की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. उस के माथे पर पसीना आ गया.

उस का घबराया चेहरा और घर में एक पराई औरत को अपनी गैरमौजूदगी में देख दीपमाला का माथा ठनका. गुस्से में दीपमाला की त्योरियां चढ़ गईं. पूछा, ‘‘कौन है यह और यहां क्या कर रही है तुम्हारे साथ?’’

भूपेश अपने शातिर दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगा. उपासना उस के मातहत काम करती है, यह बताने के साथ ही उस ने दीपमाला को एक झूठी कहानी सुना डाली कि किस तरह उपासना इस शहर में नई आई है. रहने की कोई ढंग की जगह न मिलने की वजह से वह उस की मदद इंसानियत के नाते कर रहा है.

‘‘तो तुम ने यह मुझे फोन पर क्यों नहीं बताया? तुम ने मुझ से पूछना भी जरूरी नहीं समझा कि हमारे साथ कोई रह सकता है या नहीं?’’

‘‘यह आज ही तो आई है और मैं तुम्हें बताने ही वाला था कि तुम ने आ कर मुझे चौंका दिया. और देखो न मुझे तुम्हारी और मुन्ने की कितनी याद आ रही थी,’’ भूपेश ने उस की गोद से ले कर अंशुल को सीने से लगा लिया. दीपमाला का शक अभी भी दूर नहीं हुआ कि तभी उपासना बेहद मासूम चेहरा बना कर उस के पास आई.

‘‘मुझे माफ कर दीजिए, मेरी वजह से आप लोगों को तकलीफ हो रही है. वैसे इस में इन की कोई गलती नहीं है. मेरी मजबूरी देख कर इन्होंने मुझे यहां रहने को कहा. मैं आज ही किसी होटल में चली जाती हूं.’’

‘‘इस शहर में बहुत से वूमन हौस्टल भी तो हैं, तुम ने वहां पता नहीं किया?’’ दीपमाला बोली.

‘‘जी, हैं तो सही, लेकिन सब जगह किसी जानपहचान वाले की गारंटी चाहिए और यहां मैं किसी को नहीं जानती.’’

भूपेश और उपासना अपनी मक्कारी से दीपमाला को शीशे में उतारने में कामयाब हो गए. दीपमाला उन दोनों की तरह चालाक नहीं थी. उपासना के अकेली औरत होने की बात से उस के दिल में थोड़ी सी हमदर्दी जाग उठी. उन का गैस्टरूम खाली था तो उस ने उपासना को कुछ दिन रहने की इजाजत दे दी.

भूपेश की तो जैसे बांछें खिल गईं. एक ही छत के नीचे पत्नी और प्रेमिका दोनों का साथ उसे मिल रहा था. वह अपने को दुनिया का सब से खुशनसीब मर्द समझने लगा.

दीपमाला के आने के बाद भूपेश और उपासना की प्रेमलीला में थोड़ी रुकावट तो आई पर दोनों अब होशियारी से मिलतेजुलते. कोशिश होती कि औफिस से भी अलगअलग समय पर निकलें ताकि किसी को शक न हो. दीपमाला के सामने दोनों ऐसे पेश आते जैसे उन का रिश्ता सिर्फ औफिस तक ही सीमित हो.

दीपमाला घर की मालकिन थी तो हर काम उस की मरजी से होता था. थोड़े ही अंतराल बाद उपासना उस की स्थिति की तुलना खुद से करने लगी थी. उस के तनमन पर भूपेश अपना हक जताता था, मगर उन का रिश्ता कानून और समाज की नजरों में नाजायज था. औफिस में वह सब के मनोरंजन का साधन थी, सब उस से चुहल भरे लहजे में बात करते, उन की आंखों में उपासना को अपने लिए इज्जत कम और हवस ज्यादा दिखती थी.

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Valentine’s Special-भाग -4-अब और नहीं : आखिर क्या करना चाहती थी दीपमाला

बसीबसाई गृहस्थी उजड़ चुकी थी. भूपेश ने जब तलाक का नोटिस भिजवाया तो दीपमाला की मां और भाई का खून खौल उठा. वे किसी भी कीमत पर भूपेश को सबक सिखाना चाहते थे, जिस ने दीपमाला की जिंदगी से खिलवाड़ किया. रहरह कर दीपमाला को वह थप्पड़ याद आता जो भूपेश ने उसे उपासना की खातिर मारा था.

दीपमाला के दिल में भूपेश की याद तक मर चुकी थी. उस ने ठंडे लहजे में घर वालों को समझाबुझा लिया और तलाकनामे पर हां की मुहर लगा दी. जिस रिश्ते की मौत हो चुकी थी उसे कफन पहनाना बाकी था.

वक्त ने गम का बोझ कुछ कम किया तो दीपमाला अपने आपे में लौटी. अपने घर वालों पर मुहताज होने के बजाय उस ने फिर से नौकरी करने का फैसला लिया. दीपमाला दिल कड़ा कर चुकी थी. नन्ही जान को अपनी मां की देखरेख में छोड़ वह उसी शहर में चली आई, जिस ने उस का सब कुछ छीन लिया था. सीने में धधकती आग ले कर दीपमाला ने अपने को काम के प्रति समर्पित कर दिया. जिंदगी की गाड़ी एक बार फिर पटरी पर आने लगी.

ब्यूटी सैलून में उस के हाथों के हुनर के ग्राहक कायल थे. उसे अपने काम में महारत हासिल हो चुकी थी. कुछ समय बाद ही दीपमाला ने नौकरी छोड़ दी. अब वह खुद का काम शुरू करना चाहती थी. अपने बेटे की याद आते ही तड़प उठती. वह उसे अपने पास रखना चाहती थी, मगर फिलहाल उसे किसी ढंग की जगह की जरूरत थी जहां वह अपना सैलून खोल सके.

तलाक के बाद कोर्ट के आदेश पर दीपमाला को भूपेश से जो रुपए मिले उन में अपनी कुछ जमापूंजी मिला कर उस के पास इतना पैसा हो गया कि वह अपना सपना पूरा कर सकती थी.

अपने सैलून के लिए जगह तलाश करने की दौड़धूप में उस की मुलाकात प्रौपर्टी डीलर अमित से हुई, जिस ने दीपमाला को शहर के कुछ इलाकों में कुछ जगहें दिखाईं. असमंजस में पड़ी दीपमाला जब कुछ तय नहीं कर पाई तो अमित ने खुद ही उस की परेशानी दूर करते हुए एक अच्छी रिहायशी जगह में उसे जगह दिलवा दी. अपना कमीशन भी थोड़ा कम कर दिया तो दीपमाला अमित की एहसानमंद हो गई.

अमित के प्रौपर्टी डीलिंग के औफिस के पास ही दीपमाला का सैलून खुल गया. आतेजाते दोनों की अकसर मुलाकात हो जाती. कुछ समय बाद उन का साथ उठनाबैठना भी हो गया.

अमित दीपमाला के अतीत से वाकिफ था, बावजूद इस के वह कभी भूल से भी दीपमाला को पुरानी बातें याद नहीं करने देता. उस की हमदर्दी भरी बातें दीपमाला के टूटे मन को सुकून देतीं. जिंदगी ने मानो हंसनेमुसकराने का बहाना दे दिया था.

दोस्ती कुछ गहरी हुई तो दोनों की शामें साथ गुजरने लगीं. शहर में अकेली रह रही दीपमाला पर कोई बंदिश नहीं थी. वह जब चाहती तब अमित की बांहों में चली आती.

एक सुहानी शाम दीपमाला की गोद में सिर रख कर उस के महकते आंचल से आंखें मूंदे लेटे अमित से दीपमाला ने पूछा, ‘‘अमित हम कब तक यों ही मिलते रहेंगे. क्या कोई भविष्य है इस रिश्ते का?’’

रोमानी खयालों में डूबा अमित एकाएक पूछे गए इस सवाल से चौंक गया. बोला, ‘‘जब तक तुम चाहो दीप, मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा.’’

दीपमाला खुद तय नहीं कर पा रही थी कि इस रिश्ते का कोई अंजाम भी है या नहीं. किसी की प्रेमिका बन कर प्यार का मीठा फल चखने में उसे आनंद आने लगा था, पर यह साथ न जाने कब छूट जाए, इस बात से उस का दिल डरता था.

जब अमित ने उसे बताया कि उस के घर वाले पुराने विचारों के हैं तो दीपमाला को यकीन हो गया कि उस के तलाकशुदा होने की बात जान कर वे अमित के साथ उस की शादी को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. आने वाले कल का डर मन में छिपा था, मगर अपने वर्तमान में वह अमित के साथ खुश थी.

अमित की बाइक पर उस के साथ सट कर बैठी दीपमाला को एक दिन जब भूपेश ने बाजार में देखा तो वह नाग की तरह फुफकार उठा. दीपमाला अब उस की पत्नी नहीं थी, यह बात जानते हुए भी दीपमाला का किसी और मर्द के साथ इस तरह घूमनाफिरना उसे नागवार गुजरा. उस की कुंठित मानसिकता यह बात हजम नहीं कर पा रही थी कि उस की छोड़ी हुई औरत किसी और मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ाए.

घर आ कर भूपेश बहुत देर तक उत्तेजित होता रहा. दीपमाला उस आदमी के साथ कितनी खुश लग रही थी, उसे यह बात रहरह कर दंश मार रही थी. उपासना से शादी कर के उस के अहं को संतुष्टि तो मिली, लेकिन उपासना दीपमाला नहीं थी. शादी के बाद भी उपासना पत्नी न हो कर प्रेमिका की तरह रहती थी. घर के कामों में बिलकुल फूहड़ थी.

उस की फजूलखर्ची से भूपेश अब परेशान रहने लगा था. कभी उस पर झुंझला उठता तो उपासना उस का जीना हराम कर देती, तलाक और पुलिस की धमकी देती.

जो शारीरिक सुख उपासना से प्रेमिका के रूप में मिल रहा था वह उस के पत्नी बनते ही नीरस लगने लगा. इश्क का भूत जल्दी ही सिर से उतर गया.

दीपमाला के साथ शादी के शुरुआती दिनों की कल्पना कर के भूपेश के मन में बहुत से विचार आने लगे. वह एक बार फिर दीपमाला के संग के लिए उत्सुक होने लगा. खाने की थाली की तरह जिस्म की भूख भी स्वाद बदलना चाहती थी.

किसी तरह दीपमाला के घर और सैलून का पता लगा कर एक दिन वह दीपमाला के फ्लैट पर आ धमका. एक अरसे बाद अचानक उसे सामने देख दीपमाला चौंक उठी कि भूपेश को आखिर उस का पता कैसे मिला और अब यहां क्या करने आया है?

‘‘कैसी हो दीपमाला? बिलकुल बदल गई हो… पहचान में ही नहीं आ रही,’’ भूपेश ने उसे भरपूर नजरों से घूरा.

दीपमाला संजसंवर कर रहती थी ताकि उस के सैलून में ग्राहकों का आना बना रहे. अब वह आधुनिक फैशन के कपड़े भी पहनने लगी थी. सलीके से कटे बाल और आत्मनिर्भरता के भाव उस के चेहरे की रौनक बढ़ा रहे थे. उस का रंगरूप भी पहले की तुलना में निखर आया था.

कांच के मानिंद टूटे दिल के टुकड़े बटोरते उस के हाथ लहूलुहान भी हुए थे, मगर उस ने अपनी हिम्मत कभी नहीं टूटने दी. वह अब जीवन की हर मुश्किल का सामना कर सकती थी तो फिर भूपेश क्या चीज थी.

‘‘किस काम से आए हो?’’ उस ने बेहद उपेक्षा भरे लहजे में पूछा. उस की बेखौफी देख भूपेश जलभुन गया, लेकिन फौरन उस ने पलटवार किया, ‘‘मैं अपने बेटे से मिलने आया हूं. तुम ने मुझे मेरे ही बेटे से अलग कर दिया है.’’

‘‘आज अचानक तुम्हें बेटे पर प्यार कैसे आ गया? इतने दिनों में तो एक बार भी खबर नहीं ली उस की,’’ एक व्यंग्य भरी मुसकराहट दीपमाला के अधरों पर आ गई.

‘‘तुम्हें क्या लगता है मैं अंशुल से प्यार नहीं करता? बाप हूं उस का, जितना हक तुम्हारा है उतना मेरा भी है.’’

‘‘तो तुम अब हक जताने आए हो? कानून ने तुम्हें बेशक हक दिया है, मगर वह मेरा बेटा है,’’ दीपमाला ने कहा.

बेटे से मिलना बस एक बहाना था भूपेश के लिए. उसे तो दीपमाला के साथ की प्यास थी. बोला, ‘‘सुनो दीपमाला, मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई… हो सके तो मुझे माफ कर दो.’’

भूपेश के तेवर अचानक नर्म पड़ गए. उस ने दीपमाला का हाथ पकड़ लिया.

तभी एक झन्नाटेदार तमाचा भूपेश के गाल पर पड़ा. दीपमाला ने बिजली की फुरती से फौरन अपना हाथ छुड़ा लिया.

भूपेश का चेहरा तमतमा गया. इस खातिरदारी की तो उसे उम्मीद ही नहीं थी. वह कुछ बोलता उस से पहले ही दीपमाला गुर्राई, ‘‘आज के बाद दोबारा मुझे छूने की हिम्मत की तो अंजाम इस से भी बुरा होगा. यह मत भूलो कि तुम अब मेरे पति नहीं हो और एक गैरमर्द मेरा हाथ इस तरह नहीं पकड़ सकता, समझे तुम? अब दफा हो जाओ यहां से.’’

उसे एक भद्दी सी गाली दे कर भूपेश बोला, ‘‘सतीसावित्री बनने का नाटक कर रही हो. किसकिस के साथ ऐयाशी करती हो सब जानता हूं, अगर उन के साथ तुम खुश रह सकती हो तो मुझ में क्या कमी है? मैं अगर चाहूं तो तुम्हारी इज्जत सारे शहर में उछाल सकता हूं… इस थप्पड़ का बदला तो मैं ले कर रहूंगा और फिर दीपमाला को बदनाम करने की धमकी दे कर भूपेश वहां से चला गया.

कितना नीच और कू्रर हो चुका है भूपेश… दीपमाला की सहनशक्ति जवाब दे गई. वह तकिए पर सिर रख कर खुद पर रोती रही, जुल्म उस पर हुआ था, लेकिन कुसूरवार उसे ठहराया जा रहा था.

इस मुश्किल की घड़ी में उसे अमित की जरूरत होने लगी. उस के प्यार का मरहम उस के दिल को सुकून दे सकता था. उस ने अपने फोन पर अमित का नंबर मिलाया. कई बार कोशिश करने पर भी जब उस ने फोन नहीं उठाया तो वह अपना पर्स उठा कर उस से मिलने चल पड़ी.

भूपेश किसी भी हद तक जा सकता है, यह दीपमाला को यकीन था. वह चुप नहीं बैठेगा. अगर उस की बदनामी हई तो उस के सैलून के बिजनैस पर असर पड़ सकता है. वह अमित से मिल कर इस मुश्किल का कोई हल ढूंढ़ना चाहती थी. क्या पता उसे पुलिस की भी मदद लेनी पड़े.

अमित के औफिस में ताला लगा देख कर वह निराश हो गई. अमित उस के एक बार बुलाने पर दौड़ा चला आता था, फिर आज उस का फोन क्यों नहीं उठा रहा? उसे याद आया जब वह पहली बार अमित से मिली थी तो उसे अपना विजिटिंग कार्ड दिया था. उस ने पर्स टटोला, कार्ड मिल गया. औफिस और घर का पता उस में मौजूद था. उस ने पास से गुजरते औटो को हाथ दे कर रोका और पता बताया. धड़कते दिल से दीपमाला ने फ्लैट की घंटी बजाई. एक आदमी ने दरवाजा खोला. दीपमाला ने उस से अमित के बारे में पूछा तो वह अंदर चला गया. थोड़ी देर बाद एक औरत बाहर आई. बोली, ‘‘जी कहिए, किस से मिलना है? लगभग उस की ही उम्र की दिखने वाली उस औरत ने दीपमाला से पूछा.’’

‘‘मैं अमित से मिलने आई हूं. क्या यह उन का घर है?’’ पूछते हुए उसे थोड़ा अटपटा लगा कि पता नहीं यह सही पता है भी या नहीं.

‘‘मैं अमित की पत्नी हूं. क्या काम है आप को? आप अंदर आ जाइए,’’ अमित की पत्नी विनम्रता से बोली.

दीपमाला ने उस औरत को करीब से देखा. वह सुंदर और मासूम थी, मांग में सिंदूर दमक रहा था और चेहरे पर एक पत्नी का विश्वास.

कुछ रुक कर अपनी लड़खड़ाती जबान पर काबू पा कर दीपमाला बोली, ‘‘कोई खास बात नहीं थी. मुझे एक मकान किराए पर चाहिए था. उसी सिलसिले में बात करनी थी.’’

‘‘मगर आप ने अपना नाम तो बताया नहीं… मैं अपने पति को कैसे आप का संदेश दूंगी.’’

‘‘वे खुद समझ जाएंगे,’’ और दीपमाला पलट कर तेज कदमों से मकान की सीढि़यां उतर सड़क पर आ गई.

अजीब मजाक किया था कुदरत ने उस के साथ. उस ने शुक्र मनाया कि उस की आंखें समय रहते खुल गईं.

अमित ने भी वही दोहराया था जो भूपेश ने उस के साथ किया था. एक बार फिर से वह ठगी गई थी. मगर इस बार वह मजबूती से अपने पैरों पर खड़ी थी. जिस जगह पर कभी उपासना खड़ी थी, उसी जगह उस ने आज खुद को पाया. क्या फर्क था भला उस में और उपासना में? दीपमाला ने सोचा.

नहीं, बहुत फर्क है, उस का जमीर अभी मरा नहीं, वह इतनी खुदगर्ज नहीं हो सकती कि किसी का बसेरा उजाड़े. जो गलती उस से हो गई है उसे अब वह दोहराएगी नहीं. उस ने तय कर लिया अब वह किसी को अपने दिल से खेलने नहीं देगी. बस अब और नहीं.

Valentine’s Special-भाग -1-अब और नहीं : आखिर क्या करना चाहती थी दीपमाला

नन्हीगौरैया ने बड़ी कोशिश से अपना घोंसला बनाया था. घास के तिनके फुरती से बटोर कर लाती गौरैया को देख कर दीपमाला के होंठों पर मुसकान आ गई. हाथ सहज ही अपने पेट पर चला गया. पेट के उभार को सहलाते हुए वह ममता से भर उठी. कुछ ही दिनों में एक नन्हा मेहमान उस के आंगन में किलकारियां मारेगा. तार पर सूख रहे कपड़े बटोर वह कमरे में आ गई. कपड़े रख कर रसोई की तरफ मुड़ी ही थी कि तभी डोरबैल बजी.

‘‘आज तुम इतनी जल्दी कैसे आ गई?’’ घर में घुसते ही भूपेश ने पूछा.

‘‘आज मन नहीं किया काम पर जाने का. तबीयत कुछ ठीक नहीं है,’’ दीपमाला ने जवाब दिया.

दीपमाला इस आस से भूपेश के पास खड़ी रही कि तबीयत खराब होने की बात जान कर वह परेशान हो उठेगा. गले से लगा कर प्यार से उस का हाल पूछेगा, मगर बिना कुछ कहेसुने जब वह हाथमुंह धोने बाथरूम में चला गया तो बुझी सी दीपमाला रसोई की ओर चल पड़ी.

शादी के 4 साल बाद दीपमाला मां बनने जा रही थी. उस की खुशी 7वें आसमान पर थी, मगर भूपेश कुछ खास खुश नहीं था. दीपमाला अकेली ही डाक्टर के पास जाती, अपने खानेपीने का ध्यान रखती और अगर कभी भूपेश को कुछ कहती तो काम की व्यस्तता का रोना रो कर वह अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेता. वह बड़ी बेसब्री से दिन गिन रही थी. बच्चे के आने से भूपेश को शायद कुछ जिम्मेदारी का एहसास हो जाए, शायद उस के अंदर भी नन्ही जान के लिए प्यार उपजे, इसी उम्मीद से वह सब कुछ अपने कंधों पर संभाले बैठी थी.

कुछ ही दिनों की तो बात है. बच्चे के आने से सब ठीक हो जाएगा, यही सोच कर उस ने काम पर जाना नहीं छोड़ा. जरूरत भी नहीं थी, क्योंकि उस की और भूपेश की कमाई से घर मजे से चल रहा था. पार्लर की मालकिन दीपमाला के हुनर की कायल थी. एक तरह से दीपमाला के हाथों का ही कमाल था जो ग्राहकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई थी. दीपमाला के इस नाजुक वक्त में सैलून की मालकिन और बाकी लड़कियां उसे पूरा सहयोग देतीं. उस का जब कभी जी मिचलाता या तबीयत खराब लगती तो वह काम से छुट्टी ले लेती.

एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर भूपेश स्वभाव से रूखा था. उस के अधीन 2-4 लोग काम करते थे. उस के औफिस में एक पोस्ट खाली थी, जिस के लिए विज्ञापन दिया गया था. कंपनी में ग्राहक सेवा के लिए योग्यता के साथसाथ किसी मिलनसार और आकर्षक व्यक्तित्व की जरूरत थी.

एक दिन तीखे नैननक्शों वाली उपासना नौकरी के आवेदन के लिए आई. उस की मधुर आवाज और व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर और कुछ उस के पिछले अनुभव के आधार पर उस का चयन कर लिया गया. भूपेश के अधीनस्थ होने के कारण उसे काम सिखाने की जिम्मेदारी भूपेश पर थी.

उपासना उन लड़कियों में से थी जिन्हें योग्यता से ज्यादा अपनी सुंदरता पर भरोसा होता है. अब तक के अपने अनुभवों से वह जान चुकी थी कि किस तरह अदाओं के जलवे दिखा कर आसानी से सब कुछ हासिल किया जा सकता है. छोटे शहर से आई उपासना कामयाबी की मंजिल छूना चाहती थी. कुछ ही दिनों बाद वह समझ गई कि भूपेश उस पर फिदा है. फिर इस बात का वह भरपूर फायदा उठाने लगी.

उपासना का जादू भूपेश पर चला तो वह उस पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान रहने लगा. उपासना बहाने बना कर औफिस के कामों को टाल देती जिन्हें भूपेश दूसरे लोगों से करवाता. अकसर बेवजह छुट्टी ले कर मौजमस्ती करने निकल पड़ती. उसे बस उस पैसे से मतलब था जो उसे नौकरी से मिलते थे. साथ में काम करने वाले भूपेश के दबदबे की वजह से उपासना की हरकतों को नजरंदाज कर देते.

अपने यौवन और शोख अदाओं के बल पर उपासना भूपेश के दिलोदिमाग में पूरी तरह उतर गई. उस की और भूपेश की नजदीकियां बढ़ने लगीं. काम के बाद दोनों कहीं घूमने निकल जाते. उसे खुश करने के लिए भूपेश उसे महंगे तोहफे देता. आए दिन किसी पांचसितारा होटल में लंच या डिनर पर ले जाता. भूपेश का मकसद उपासना को पूरी तरह से हासिल करना था और उपासना भी खूब समझती थी कि क्यों भूपेश उस के आगेपीछे भंवरे की तरह मंडरा रहा है.

पहले भूपेश औफिस से घर जल्दी आता था तो दोनों साथ में खाना खाते, अब देर रात तक दीपमाला उस का इंतजार करती रहती और फिर अकेली ही खा कर सो जाती. कुछ दिनों से भूपेश के रंगढंग बदल गए थे. औफिस में भी सजधज कर जाता. उधर इन सब बातों से बेखबर दीपमाला नन्हें मेहमान की कल्पना में डूबी रहती. उस की दुनिया सिमट कर छोटी हो गई थी.

एक रोज धोने के लिए कपड़े निकालते वक्त उसे भूपेश की पैंट की जेब से फिल्म के 2 टिकट मिले. उसे थोड़ी हैरानी हुई. भूपेश फिल्मों का शौकीन नहीं था. कभी कोई अच्छी फिल्म लगी होती तो दीपमाला ही जबरदस्ती उसे खींच ले जाती.

उस ने भूपेश से इस बारे में पूछा. टिकट की बात सुन कर वह कुछ सकपका गया. फिर तुरंत संभल कर उस ने बताया कि औफिस के एक सहकर्मी के कहने पर वह चला गया था. बात आईगई हो गई.

इस बात को कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन भूपेश के बटुए में दीपमाला को सुनार की दुकान की एक परची मिली. शंकित दीपमाला ने भूपेश के घर लौटते ही उस पर सवालों की बौछार कर दी.

उपासना को जन्मदिन में देने के लिए भूपेश ने एक गोल्ड रिंग बुक करवाई थी, लेकिन किसी शातिर अपराधी की तरह भूपेश उस दिन सफेद झूठ बोल गया. अपने होने वाले बच्चे का वास्ता दे कर.

उस ने दीपमाला को यकीन दिला दिया कि उस के दोस्त ने अपनी पत्नी को सरप्राइज देने के लिए ही परची उस के पास रखवाई है. इस घटना के बाद से भूपेश कुछ सतर्क रहने लगा. अपनी जेब में कोई सुबूत नहीं छोड़ता था.

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प्रतिदिन: भाग 2

‘‘नहीं, पापा के किसी दोस्त की पत्नी हैं. इन की बेटी ने जिस लड़के से शादी की है वह हमारी जाति का है. इन का दिमाग कुछ ठीक नहीं रहता. इस कारण बेचारे अंकलजी बड़े परेशान रहते हैं. पर तू क्यों जानना चाहती है?’’

‘‘मेरी पड़ोसिन जो हैं,’’ इन का दिमाग ठीक क्यों नहीं रहता? इसी गुत्थी को तो मैं इतने दिनों से सुलझाने की कोशिश कर रही थी, अत: दोबारा पूछा, ‘‘बता न, क्या परेशानी है इन्हें?’’

अपनी बड़ीबड़ी आंखों को और बड़ा कर के दीप्ति बोली, ‘‘अभी…पागल है क्या? पहले मेहमानों को तो निबटा लें फिर आराम से बैठ कर बातें करेंगे.’’

2-3 घंटे बाद दीप्ति को फुरसत मिली. मौका देख कर मैं ने अधूरी बात का सूत्र पकड़ते हुए फिर पूछा, ‘‘तो क्या परेशानी है उन दंपती को?’’

‘‘अरे, वही जो घरघर की कहानी है,’’ दीप्ति ने बताना शुरू किया, ‘‘हमारे भारतीय समाज को पहले जो बातें मरने या मार डालने को मजबूर करती थीं और जिन बातों के चलते वे बिरादरी में मुंह दिखाने लायक नहीं रहते थे, उन्हीं बातों को ये अभी तक सीने से लगाए घूम रहे हैं.’’

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‘‘आजकल तो समय बहुत बदल गया है. लोग ऐसी बातों को नजरअंदाज करने लगे हैं,’’ मैं ने अपना ज्ञान बघारा.

‘‘तू ठीक कहती है. नईपुरानी पीढ़ी का आपस में तालमेल हमेशा से कोई उत्साहजनक नहीं रहा. फिर भी हमें जमाने के साथ कुछ तो चलना पड़ेगा वरना तो हम हीनभावना से पीडि़त हो जाएंगे,’’ कह कर दीप्ति सांस लेने के लिए रुकी.

मैं ने बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘जब हम भारतीय विदेश में आए तो बस, धन कमाने के सपने देखने में लग गए. बच्चे पढ़लिख कर अच्छी डिगरियां लेंगे. अच्छी नौकरियां हासिल करेंगे. अच्छे घरों से उन के रिश्ते आएंगे. हम यह भूल ही गए कि यहां का माहौल हमारे बच्चों पर कितना असर डालेगा.’’

‘‘इसी की तो सजा भुगत रहा है हमारा समाज,’’ दीप्ति बोली, ‘‘इन के 2 बेटे 1 बेटी है. तीनों ऊंचे ओहदों पर लगे हुए हैं. और अपनेअपने परिवार के साथ  आनंद से रह रहे हैं पर उन का इन से कोई संबंध नहीं है. हुआ यों कि इन्होंने अपने बड़े बेटे के लिए अपनी बिरादरी की एक सुशील लड़की देखी थी. बड़ी धूमधाम से रिंग सेरेमनी हुई. मूवी बनी. लड़की वालों ने 200 व्यक्तियों के खानेपीने पर दिल खोल कर खर्च किया. लड़के ने इस शादी के लिए बहुत मना किया था पर मां ने एक न सुनी और धमकी देने लगीं कि अगर मेरी बात न मानी तो मैं अपनी जान दे दूंगी. बेटे को मानना पड़ा.

‘‘बेटे ने कनाडा में नौकरी के लिए आवेदन किया था. नौकरी मिल गई तो वह चुपचाप घर से खिसक गया. वहां जा कर फोन कर दिया, ‘मम्मी, मैं ने कनाडा में ही रहने का निर्णय लिया है और यहीं अपनी पसंद की लड़की से शादी कर के घर बसाऊंगा. आप लड़की वालों को मना कर दें.’

‘‘मांबाप के दिल को तोड़ने वाली यह पहली चोट थी. लड़की वालों को पता चला तो आ कर उन्हें काफी कुछ सुना गए. बिरादरी में तो जैसे इन की नाक ही कट गई. अंकल ने तो बाहर निकलना ही छोड़ दिया लेकिन आंटी उसी ठाटबाट से निकलतीं. आखिर लड़के की मां होने का कुछ तो गरूर उन में होना ही था.

‘‘इधर छोटे बेटे ने भी किसी ईसाई लड़की से शादी कर ली. अब रह गई बेटी. अंकल ने उस से पूछा, ‘बेटी, तुम भी अपनी पसंद बता दो. हम तुम्हारे लिए लड़का देखें या तुम्हें भी अपनी इच्छा से शादी करनी है.’ इस पर वह बोली कि पापा, अभी तो मैं पढ़ रही हूं. पढ़ाई करने के बाद इस बारे में सोचूंगी.

‘‘‘फिर क्या सोचेगी.’ इस के पापा ने कहा, ‘फिर तो नौकरी खोजेगी और अपने पैरों पर खड़ी होने के बारे में सोचेगी. तब तक तुझे भी कोई मनपसंद साथी मिल जाएगा और कहेगी कि उसी से शादी करनी है. आजकल की पीढ़ी देशदेशांतर और जातिपाति को तो कुछ समझती नहीं बल्कि बिरादरी के बाहर शादी करने को एक उपलब्धि समझती है.’ ’’

इसी बीच दीप्ति की मम्मी कब हमारे लिए चाय रख गईं पता ही नहीं चला. मैं ने घड़ी देखी, 5 बज चुके थे.

‘‘अरे, मैं तो मम्मी को 4 बजे आने को कह कर आई हूं…अब खूब डांट पड़ेगी,’’ कहानी अधूरी छोड़ उस से विदा ले कर मैं घर चली आई. कहानी के बाकी हिस्से के लिए मन में उत्सुकता तो थी पर घड़ी की सूई की सी रफ्तार से चलने वाली यहां की जिंदगी का मैं भी एक हिस्सा थी. अगले दिन काम पर ही कहानी के बाकी हिस्से के लिए मैं ने दीप्ति को लंच टाइम में पकड़ा. उस ने वृद्ध दंपती की कहानी का अगला हिस्सा जो सुनाया वह इस प्रकार है:

‘‘मिसेज शर्मा यानी मेरी पड़ोसिन वृद्धा कहीं भी विवाहशादी का धूमधड़ाका या रौनक सुनदेख लें तो बरदाश्त नहीं कर पातीं और पागलों की तरह व्यवहार करने लगती हैं. आसपड़ोस को बीच सड़क पर खड़ी हो कर गालियां देने लगती हैं. यह भी कारण है अंकल का हरदम घर में ही बैठे रहने का,’’ दीप्ति ने बताया, ‘‘एक बार पापा ने अंकल को सुझाया था कि आप रिटायर तो हो ही चुके हैं, क्यों नहीं कुछ दिनों के लिए इंडिया घूम आते या भाभी को ही कुछ दिनों के लिए भेज देते. कुछ हवापानी बदलेगा, अपनों से मिलेंगी तो इन का मन खुश होगा.

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‘‘‘यह भी कर के देख लिया है,’ बडे़ मायूस हो कर शर्मा अंकल बोले थे, ‘चाहता तो था कि इंडिया जा कर बसेरा बनाऊं मगर वहां अब है क्या हमारा. भाईभतीजों ने पिता से यह कह कर सब हड़प लिया कि छोटे भैया को तो आप बाहर भेज कर पहले ही बहुत कुछ दे चुके हैं…वहां हमारा अब जो छोटा सा घर बचा है वह भी रहने लायक नहीं है.

‘‘‘4 साल पहले जब मेरी पत्नी सुमित्रा वहां गई थी तो घर की खस्ता हालत देख कर रो पड़ी थी. उसी घर में विवाह कर आई थी. भरापूरा घर, सासससुर, देवरजेठ, ननदों की गहमागहमी. अब क्या था, सिर्फ खंडहर, कबूतरों का बसेरा.

‘‘‘बड़ी भाभी ने सुमित्रा का खूब स्वागत किया. सुमित्रा को शक तो हुआ था कि यह अकारण ही मुझ पर इतनी मेहरबान क्यों हो रही हैं. पर सुमित्रा यह जांचने के लिए कि देखती हूं वह कौन सा नया नाटक करने जा रही है, खामोश बनी रही. फिर एक दिन कहा कि दीदी, किसी सफाई वाली को बुला दो. अब आई हूं तो घर की थोड़ी साफसफाई ही करवा जाऊं.’

‘‘‘सफाई भी हो जाएगी पर मैं तो सोचती हूं कि तुम किसी को घर की चाबी दे जाओ तो तुम्हारे पीछे घर को हवाधूप लगती रहेगी,’ भाभी ने अपना विचार रखा था.

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अपना घर: भाग 2

एक रात विजय ने शराब के नशे में मदहोश हो कर सुरेखा का मोबाइल नंबर मिला कर कहा, ‘‘तुम ने मुझे जो धोखा दिया है, उस की सजा जल्दी ही मिलेगी. मुझे तुम से और तुम्हारे परिवार से नफरत है. मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा. मुझे नहीं चाहिए एक चरित्रहीन और धोखेबाज पत्नी. अब तुम सारी उम्र विकास के गम में रोती रहना.’’

उधर से कोई जवाब नहीं मिला.

‘‘सुन रही हो या बहरी हो गई हो?’’ विजय ने नशे में बहकते हुए कहा.

‘यह क्या आप ने शराब पी रखी है?’ वहां से आवाज आई.

‘‘हां, पी रखी है. मैं रोज पीता हूं. मेरी मरजी है. तू कौन होती है मुझ से पूछने वाली? धोखेबाज कहीं की.’’

उधर से फोन बंद हो गया.

विजय ने फोन एक तरफ फेंक दिया और देर तक बड़बड़ाता रहा.

औफिस और पासपड़ोस के कुछ साथियों ने विजय को समझाया कि शराब के नशे में डूब कर अपनी जिंदगी बरबाद मत करो. इस परेशानी का हल शराब नहीं है, पर विजय पर कोई असर नहीं पड़ा. वह शराब के नशे में डूबता चला गया.

एक शाम विजय घर पर ही शराब पीने की तैयारी कर रहा था कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. विजय ने बुरा सा मुंह बना कर कहा, ‘‘इस समय कौन आ गया मेरा मूड खराब करने को?’’

विजय ने उठ कर दरवाजा खोला तो चौंक उठा. सामने उस का पुराना दोस्त अनिल अपनी पत्नी सीमा के साथ था.

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‘‘आओ अनिल, अरे यार, आज इधर का रास्ता कैसे भूल गए? सीधे दिल्ली से आ रहे हो क्या?’’ विजय ने पूछा.

‘‘हां, आज ही आने का प्रोग्राम बना था. तुम्हें 2-3 बार फोन भी मिलाया, पर बात नहीं हो सकी.’’

‘‘आओ, अंदर आओ,’’ विजय ने मुसकराते हुए कहा.

विजय ने मेज पर रखी शराब की बोतल, गिलास व खाने का सामान वगैरह उठा कर एक तरफ रख दिया.

अनिल और सीमा सोफे पर बैठ गए. अनिल और विजय अच्छे दोस्त थे, पर वह अनिल की शादी में नहीं जा पाया था. आज पहली बार दोनों उस के पास आए थे.

विजय ने सीमा की ओर देखा तो चौंक गया. 3 साल पहले वह सीमा से मिला था अगरा में, जब अनिल और विजय लालकिला में घूम रहे थे. एक बूढ़ा आदमी उन के पास आ कर बोला था, ‘‘बाबूजी, आगरा घूमने आए हो?’’

‘‘हां,’’ अनिल ने कहा था.

‘‘कुछ शौक रखते हो?’’ बूढ़े ने कहा.

वे दोनों चुपचाप एकदूसरे की तरफ देख रहे थे.

‘‘बाबूजी, आप मेरे साथ चलो. बहुत खूबसूरत है. उम्र भी ज्यादा नहीं है. बस, कभीकभी आप जैसे बाहर के लोगों को खुश कर देती है,’’ बूढ़े ने कहा था.

वे दोनों उस बूढ़े के साथ एक पुराने से मकान पर पहुंच गए. वहां तीखे नैननक्श वाली सांवली सी एक खूबसूरत लड़की बैठी थी. अनिल उस लड़की के साथ कमरे में गया था, पर वह नहीं.

वह लड़की सीमा थी, अब अनिल की पत्नी. क्या अनिल ने देह बेचने वाली उस लड़की से शादी कर ली? पर क्यों? ऐसी क्या मजबूरी हो गई थी जो अनिल को ऐसी लड़की से शादी करनी पड़ी?

‘‘भाभीजी दिखाई नहीं दे रही हैं?’’ अनिल ने विजय से पूछा.

‘‘वह मायके गई है,’’ विजय के चेहरे पर नफरत और गुस्से की रेखाएं फैलने लगीं.

‘‘तभी तो जाम की महफिल सजाए बैठे हो, यार. तुम तो शराब से दूर भागते थे, फिर ऐसी क्या बात हो गई कि…?’’

‘‘ऐसी कोई खास बात नहीं. बस, वैसे ही पीने का मन कर रहा था. सोचा कि 2 पैग ले लूं…’’ विजय उठता हुआ बोला, ‘‘मैं तुम्हारे लिए खाने का इंतजाम करता हूं.’’

‘‘अरे भाई, खाने की तुम चिंता न करो. खाना सीमा बना लेगी और खाने से पहले चाय भी बना लेगी. रसोई के काम में बहुत कुशल है यह,’’ अनिल ने कहा.

विजय चुप रहा, पर उस के दिमाग में यह सवाल घूम रहा था कि आखिर अनिल ने सीमा से शादी क्यों की?

सीमा उठ कर रसोईघर में चली गई. विजय ने अनिल को सबकुछ सच बता दिया कि उस ने सुरेखा को घर से क्यों निकाला है.

अनिल ने कहा, ‘‘पहचानते हो अपनी भाभी सीमा को?’’

‘‘हां, पहचान तो रहा हूं, पर क्या यह वही है… जब आगरा में हम दोनों घूमने गए थे?’’

‘‘हां विजय, यह वही सीमा है. उस दिन आगरा के उस मकान में वह बूढ़ा ले गया था. मैं ने सीमा में पता नहीं कौन सा खिंचाव व भोलापन पाया कि मेरा मन उस से बातें करने को बेचैन हो उठा था. मैं ने कमरे में पलंग पर बैठते हुए पूछा था, ‘‘तुम्हारा नाम?’’

‘‘यह सुन कर वह बोली थी, ‘क्या करोगे जान कर? आप जिस काम से आए हो, वह करो और जाओ.’

‘‘तब मैं ने कहा था, ‘नहीं, मुझे उस काम में इतनी दिलचस्पी नहीं है. मैं तुम्हारे बारे में जानना चाहता हूं.’

‘‘वह बोली थी, ‘मेरे बारे में जानना चाहते हो? मुझ से शादी करोगे क्या?’

‘‘उस ने मेरी ओर देख कर कहा तो मैं एकदम सकपका गया था. मैं ने उस से पूछा था, ‘पहले तुम अपने बारे में बताओ न.’

‘‘उस ने बताया था, ‘मेरा नाम सीमा है. वह मेरा चाचा है जो आप को यहां ले कर आया है. आगरा में एक कसबा फतेहाबाद है, हम वहीं के रहने वाले हैं. मेरे मातापिता की एक बस हादसे में मौत हो गई थी. उस के बाद मैं चाचाचाची के घर रहने लगी. मैं 12वीं में पढ़ रही थी तो एक दिन चाचा ने आगरा ला कर मुझे इस काम में धकेल दिया.

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‘‘चाचा के पास थोड़ी सी जमीन है जिस में सालभर के गुजारे लायक ही अनाज होता है. कभीकभार चाचा मुझे यहां ले कर आ जाता है.’

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‘‘मैं ने उस से पूछा, ‘जब चाचा ने इस काम में तुम्हें धकेला तो तुम ने विरोध नहीं किया?’

‘‘वह बोली थी, ‘किया था विरोध. बहुत किया था. एक दिन तो मैं ने यमुना में डूब जाना चाहा था. तब किसी ने मुझे बचा लिया था. मैं क्या करती? अकेली कहां जाती? कटी पतंग को लूटने को हजारों हाथ होते हैं. बस, मजबूर हो गई थी चाचा के सामने.’

‘‘फिर मैं ने उस से पूछा था, ‘इस दलदल में धकेलने के बजाय चाचा ने तुम्हारी शादी क्यों नहीं की?’

‘‘वह बोली, ‘मुझे नहीं मालूम…’

‘‘यह सुन कर मैं कुछ सोचने लगा था. तब उस ने पूछा था, ‘क्या सोचने लगे? आप मेरी चिंता मत करो और…’

‘‘कुछ सोच कर मैं ने कहा था, ‘सीमा, मैं तुम्हें इस दलदल से निकाल लूंगा.’

‘‘तो वह बोली थी, ‘रहने दो आप बाबूजी, क्यों मजाक करते हो?’

‘‘लेकिन मैं ने ठान लिया था. मैं ने उस से कहा था, ‘यह मजाक नहीं है. मैं तुम्हें यह सब नहीं करने दूंगा. मैं तुम से शादी करूंगा.’

‘‘सीमा के चेहरे पर अविश्वास भरी मुसकान थी. एक दिन मैं ने सीमा के चाचा से बात की. एक मंदिर में हम दोनों की शादी हो गई.

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काली स्याही – सुजाता के गुमान को कैसे किया बेटी ने चकनाचूर

 लेखिका- Shalini Gupta

क्लब में ताश खेलने में व्यस्त थी सु यानी सुजाता और उधर उस का मोबाइल लगातार बज रहा था.

‘‘सु, कितनी देर से तुम्हारा मोबाइल बज रहा है. हम डिस्टर्ब हो रहे हैं,’’ रे यानी रेवती ताश में नजरें गड़ाए ही बोली.

‘‘मैं इस नौनसैंस मोबाइल से तंग आ चुकी हूं,’’ सु गुस्से से बोली, ‘‘मैं जब भी बिजी होती हूं, यह तभी बजता है,’’ और फिर अपना मुलायम स्नैक लैदर वाला गुलाबी पर्स खोला, जो तरहतरह के सामान से भरा गोदाम बना था, उस में अपना मोबाइल ढूंढ़ने लगी.

थोड़ी मशक्कत के बाद उसे अपना मोबाइल मिल गया.

‘‘हैलो, कौन बोल रहा है,’’ सु ने मोबाइल पर बात करते हुए सिगरेट सुलगा ली.

‘‘जी, मैं आप की बेटी सोनाक्षी की क्लासटीचर बोल रही हूं. आजकल वह स्कूल बहुत बंक मार रही है.’’

‘‘व्हाट नौनसैंस, मेरी सो यानी सोनाक्षी ऐसी नहीं है,’’ सु अपनी सिगरेट की राख ऐशटे्र में डालते हुए बोली, ‘‘देखिए, आप तो जानती ही हैं कि आजकल बच्चों पर कितना बर्डन रहता है… वह तो स्कूल खत्म होने के बाद सीधे कोचिंग क्लास में चली जाती है… अगर कभी बच्चे स्कूल से बंक कर के थोड़ीबहुत मौजमस्ती कर लें, तो उस में क्या बुराई है?’’ और फिर सु ने फोन काट दिया और ताश खेलने में व्यस्त हो गई.

वह जब रात को घर पहुंची तब तक सो घर नहीं आई थी.

‘‘मारिया, सो कहां है?’’ सु सोफे पर ढहती हुई बोली.

‘‘मैम, बेबी तो अब तक नहीं आया है,’’ मारिया नीबूपानी से भरा गिलास सु को थमाते हुए बोली, ‘‘बेबी, बोला था कि रात को 8 बजे तक आ जाएगा, पर अब तो 10 बज रहे हैं.’’

‘‘आ जाएगी, तुम चिंता मत करो,’’ सु अपने केशों को संवारती हुई बोली, ‘‘विवेक तो बाहर से ही खा कर आएंगे और शायद सो भी. इसलिए तुम मेरे लिए कुछ लो फैट बना दो.’’

‘‘मैम, हम कुछ कहना चाहते थे, आप को. बेबी का व्यवहार और उन के फ्रैंड्स…’’

‘‘व्हाट, तुम जिस थाली में खाती हो, उसी में छेद करती हो. चली जाओ यहां से. अपने काम से काम रखा करो,’’ सु गुस्से में बोली.

‘सभी लोग मेरी फूल सी बच्ची के दुश्मन बन गए हैं. पता नहीं मेरी सो सभी की आंखों में क्यों खटकने लगी है, यह सोचते हुए उस ने कपड़े बदले. झीनी गुलाबी नाइटी में वह पलंग पर लेट गई.

‘‘क्या हुआ जान? बहुत थकी लग रही हो,’’ विवेक शराब का भरा गिलास लिए उस के पास बैठते हुए बोला.

‘‘हां, आज ताश खेलते हुए कुछ ज्यादा पी ली थी और फिर पता नहीं, रे ने किस नए ब्रैंड की सिगरेट थमा दी थी. कमबख्त ने मजा तो बहुत दिया पर शायद थोड़ी ज्यादा स्ट्रौंग थी,’’ सु करवट लेते हुए बोली, ‘‘पर तुम इस समय क्यों पी रहे हो?’’

‘‘अरे भई, माइंड रिलैक्स करने के लिए शराब से अच्छा कोई विकल्प नहीं और फिर सामने शबाब तैयार हो तो शराब की क्या बिसात?’’ कहते हुए विवेक ने अपना गिलास सु के होंठों से लगा दिया.

‘‘यू नौटी,’’ सु ने विवेक को गहरा किस किया और फिर कंधे से लगी शराब पीने लगी.

‘‘सोनाक्षी कहां है?’’ विवेक सु के केशों में उंगलियां फिराते हुए बोला.

‘‘होगी अपने दोस्तों के साथ. अब बच्चे इतने प्रैशर में रहते हैं तो थोड़ीबहुत मौजमस्ती तो जायज है,’’ और सु ने अपनी बांहें विवेक के गले में डाल दीं. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे में समाने लगे.

तभी सु का मोबाइल बज उठा, ‘‘व्हाट नौनसैंस, मैं जब भी अपनी जिंदगी के मजे लूटना शुरू करती हूं, यह तभी बज उठता है,’’

सु विवेक को अपने से अलग कर मोबाइल उठाते हुए बोली. फोन पर सो की सहेली प्रज्ञा का नाम हाईलाइट हो रहा था.

पहले तो सु का मन किया कि वह अपना मोबाइल ही बंद कर दे और फिर से अपनी कामक्रीडा में लिप्त हो जाए, पर फिर उस का मन नहीं माना और अपना फोन औन कर दिया.

‘‘आंटी, सो ठीक नहीं है. वह मेरे सामने बेहोश पड़ी है,’’ प्रज्ञा रोते हुए बोली.

‘‘तुम मुझे जगह बताओ, मैं अभी वहां पहुंचती हूं,’’ कह कर सु ने तुरंत अपने कपड़े बदले और गाड़ी ले कर वहां चल दी.

वैसे वह विवेक को भी अपने साथ ले जाना चाहती थी, लेकिन वह सो चुका था. उसे ज्यादा चढ़ गई थी.

जब सु प्रज्ञा के बताए पते पर पहुंची तो हैरान रह गई. सारा हौल शराब की बदबू और सिगरेट के धुएं से भरा था. सो सामने बैठी नीबूपानी पी रही थी.

‘‘क्या हुआ तुम्हें?’’ सु के स्वर में चिंता थी.

‘‘ममा, अब तो ठीक हूं, बस आज कुछ ज्यादा हो गई थी,’’ सो अपना सिर हिलाते हुए बोली.

‘‘तुम ने ड्रिंक ली है?’’ सु ने चौंककर पूछा.

‘‘तो क्या हुआ ममा?’’

‘‘तुम ऐसा कैसे कर सकती हो?’’ सु परेशान हो उठी.

‘‘मैं तो पिछले 6 महीनों से ड्रिंक कर रही हूं, इस में क्या बुरा है?’’ सो लापरवाही से एक अश्लील गाना गुनगुनाते हुए बोली.

‘‘पर तुम तो कोचिंग क्लास जाने की बात कहती थीं और कहती थीं कि माइंड रिलैक्स करने के लिए तुम थोड़ाबहुत हंसीमजाक और डांस वगैरह कर लेती हो, पर यह शराब…’’

‘‘व्हाट नौनसैंस, अगर आप से कहती कि मैं शराब पीती हूं तो क्या आप इजाजत दे देतीं?’’

सु ने तब एक जोरदार थप्पड़ सो के गाल पर दे मारा.

‘‘ममा, मुझे टोकने से पहले खुद को कंट्रोल कीजिए. आप तो खुद रोज ढेरों गिलास गटक जाती हैं. अगर मैं ने थोड़ी सी पी ली तो क्या बुरा किया?’’ सो सिगरेट सुलगाती हुई बोली, ‘‘माइंड रिलैक्स करने के लिए बहुत बढि़या चीज है यह.’’

सो को सिगरेट पीते देख सु को इतना गुस्सा आया कि उस का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा और तब गुस्से के अतिरेक में उठा उस का हाथ सो ने हवा में ही लपक लिया और हंसते हुए बोली, ‘‘ममा, मुझे सुधारने से पहले खुद को सुधारो. खुद तो क्लब की शान बनी बैठी हो और मुझ से किताबी कीड़ा बनने की उम्मीद रखती हो. ममा, मांबाप तो बच्चों के लिए सब से बड़े आदर्श होते हैं और फिर मैं तो आप के द्वारा अपनाए गए रास्ते पर चल कर आप का ही नाम रोशन कर रही हूं,’’ कह कर सिगरेट की राख ऐशट्रे में डाली और अपने दोस्तों के साथ विदेशी गाने की धुन पर थिरकने लगी.

तभी बाहर से हवा का एक तेज झोंका आया और उस से ऐशट्रे में पड़ी राख उड़ कर सु के मुंह पर आ गिरी. तब सु का सारा मुंह ऐसा काला हुआ मानो किसी ने अचानक आधुनिकता की काली स्याही उस के मुख पर पोत दी हो.

कासे कहूं

रिमझिम झा

डाइनिंग टेबल पर साजिया, उस के अब्बू जुनैद सिद्दीकी और अम्मी जरीना खाना खा रहे थे. टैलीविजन पर कोई कार्यक्रम चल रहा था. सभी उस का लुत्फ उठा रहे थे.

उस कार्यक्रम के बीच में सैनेटरी पैड वाला इश्तिहार आया तो 14 साल की साजिया के अब्बू ने चैनल बदल दिया, जिसे वह बड़े गौर से देख रही थी. जिस दूसरे चैनल पर कार्यक्रम चल रहा था, वहां एक प्रेमी जोड़ा एकदूसरे के हाथों में हाथ डाल कर प्यारमुहब्बत की बातें कर रहा था.

साजिया हाथ में निवाला लिए ही वह सीन देखने में लगी रही. जुनैद सिद्दीकी अपनी बेटी की इस हरकत पर खासा नाराज हुए.

जुनैद सिद्दीकी काकीनाड़ा के मुसलिम समाज के नामचीन लोगों में से एक थे. उन के रैस्टोरैंट की बिरियानी बड़ी खास थी. अपनी शानोशौकत में कोई आंच न आए, इस की खातिर अपनी एकलौती बेटी साजिया के हर फैसले खुद लेते थे. उन्होंने साजिया के लिए हर सुखसुविधा का इंतजाम घर में ही कर दिया था.

साजिया को वह सीन गौर से देखते हुए देख कर जल्दी से चैनल बदल दिया गया, लेकिन इस बार जिस चैनल पर उन्होंने ट्यून किया उस के बाद उन्होंने टैलीविजन ही बंद कर दिया और ऊंची आवाज में बोले, ‘‘जरीना, तुम्हें कितनी बार कहा है कि बच्ची के सामने इस तरह के कार्यक्रम मत चलाया करो, उस के नाजुक दिमाग पर बुरा असर पड़ता है. तुम्हें जितना देखना है देखो न, पर

कम से कम साजिया का तो खयाल रखो… यह कच्ची मिट्टी है…’’

और फिर जुनैद सिद्दीकी बोलते चले गए, लेकिन जवानी की दहलीज पर खड़ी साजिया का ध्यान अभी भी उस आखिरी वाले सीन पर ही अटका था जहां हीरो हीरोइन का हाथ पकड़ कर उसे करीब लाने की कोशिश कर रहा था.

साजिया ने किसी तरह खाना खत्म किया और अंगरेजी परंपरा का पालन करते हुए ‘गुड नाइट’ बोल कर अपने कमरे में आ गई. वह कमरे में आ तो गई थी, लेकिन उस के कानों में अभी भी बाहर से कुछ आवाज आ रही थी, ‘‘क्यों? तुम्हें सचमुच ऐसे सीन अच्छे नहीं लगते?’’ यह जरीना की आवाज थी.

‘‘नहीं, मु झे सिर्फ तुम अच्छी लगती हो,’’ अब्बू ने फुसफुसाती आवाज में कहा था. और उस के बाद आवाज और धीमी होती चली गई. आखिरी फुसफुसाती आवाज थी, ‘‘कमरे में तो चलो फिर बताता हूं.’’

साजिया टैलीविजन वाले सीन को आंखों में लिए तकिए को अपने से लिपटा अपनेआप को स्थिर कर सोने की कोशिश करने लगी.

साजिया आजकल क्लास के छात्रों की अपनी ओर खींचती निगाहों को भी महसूस करने लगी थी. अपने अंदर और बाहर हो रहे बदलाव से वह नावाकिफ नहीं थी. अकसर अपनी शारीरिक बनावट में हो रहे बदलाव को निहारा करती थी. साथ ही लड़कों के प्रति आकर्षण के भाव उस के अंदर पनपने लगे थे.

ऐसे में अम्मीअब्बू द्वारा कही गई बातें बीच में बाधक बन जाती थीं. अब्बू द्वारा समयसमय पर कुरानेपाक की आयतों की बात कही जाती थी, उन पर भी ध्यान चला जाता था. जहां नेकनीयती, पाक परवरदिगार की बातें थीं. वहां इन सब बातों की कोई गुंजाइश नहीं थी.

समय बदल रहा था और समय के साथ साजिया की सोच भी. उस की सहेली शुभ्रा अपने जन्मदिन की पार्टी दे रही थी. उस ने अपने करीबी दोस्तों को बुलाया था, जिन में साजिया भी थी.

वैसे साजिया ने मना कर दिया था, क्योंकि वह जानती थी उस के अम्मीअब्बू देर रात तक बाहर रहने के लिए उसे कभी इजाजत नहीं देंगे. वह मन मार कर उन सब की बातें सुन रही थी.

प्रियंका के पापा तो उसे छोड़ने के लिए आने वाले थे. निहाल के मातापिता तो उन के पारिवारिक दोस्त थे, तो उस का आना भी लाजिमी था. और इसी तरह कई मातापिता शुभ्रा के जन्मदिन पर अपने बच्चों के जाने की इजाजत पहले ही दे चुके थे. केवल साजिया ही रह गई थी जिसे देर रात गए बाहर रहने की मनाही थी.

स्कूल से घर आते समय 9वीं क्लास की छात्रा साजिया इसी आंतरिक लड़ाई से जू झ रही थी, जहां एक तरफ मातापिता की पाबंदी और दूसरी तरफ दूसरे साथियों की आजादी थी.

घर का दरवाजा खुलते ही साजिया का बगावती मन बाहर आ गया. उस ने कंधे से बैग उतार कर जोर से सोफे पर पटक दिया, जूतेजुराबें सब उतार कर इधरउधर बिखेरने लगी. उस का चेहरा उतरा हुआ था.

‘‘साजिया, यह सब क्या है… अभीअभी मैं ने पूरा घर ठीक किया है. तुम अपने अब्बू को जानती हो न उन्हें सफाई कितनी पसंद है…’’

अम्मी अभी कुछ और कहने ही वाली थीं कि साजिया फट पड़ी, ‘‘सारी बातें बस मु झे ही सम झनी हैं. दुनिया कहां जा रही है, पर मुझे इतनी सी इजाजत नहीं है कि मैं अपने सहेली के जन्मदिन पर जा सकूं, मु झे तो जीने का हक ही नहीं है, क्योंकि मैं ‘द ग्रेट सिद्दीकी’ की बेटी हूं…’’

साजिया बोले जा रही थी. वह अपने शरीर में मच रही हलचल जिसे वह निकाल नहीं पा रही थी, वह अब कुंठा का रूप ले रही थी और उसी को वह शब्दों के रूप में निकाल रही थी.

जरीना अपनी बेटी को अवाक नजरों से निहारने लगीं. पिंजरे में बंद मैना अब उड़ान भरने के लिए पंख फड़फड़ाने लगी थी. वह उम्र की उस दहलीज पर खड़ी थी जहां से शारीरिक बदलाव आना लाजिमी था.

‘‘क्या हुआ है? क्यों इतनी नाराज है हम से हमारी लाड़ो?’’ अम्मी ने हाथ पकड़ कर साजिया को अपने पास बिठाने की कोशिश की.

साजिया जानती थी कि अम्मी हमेशा ऐसा ही करती हैं. अपने पास बिठाती हैं, सम झाती हैं और फिर साजिया भी उन की बताई बातों को सम झ कर उन की हां में हां मिला कर मान जाती है. जिंदगी की गाड़ी फिर से उसी पुरानी पटरी पर आ जाती है. लेकिन इस बार साजिया उम्र की जिस दहलीज पर खड़ी थी, वहां कुछ भी सामान्य नहीं था.

शाम को साजिया की अम्मी ने अब्बू से सारा हाल बयां कर दिया. सारी बातें सुनने के बाद अब्बू के कदम साजिया के कमरे की तरफ बढ़े ही थे कि जरीना ने उन्हें रोकने की कोशिश की.

‘‘तुम चिंता न करो, मैं उसे सम झा देता हूं. अपनी बच्ची है सम झ जाएगी,’’ जुनैद ने जरीना को भरोसा दिलाया, लेकिन वही हुआ जिस का डर था. साजिया को न सम झना था, न वह सम झी. घर का माहौल बिलकुल बिगड़ चुका था. अब साजिया वही सबकुछ करने लगी थी जो उसे अच्छा लगता था.

साजिया के शरीर के अंदर हो रही उथलपुथल ने पूरी बगावत कर दी थी. इन दिनों उस का मन विज्ञान के रिप्रोडक्शन चैप्टर में कुछ ज्यादा ही  लगने लगा था. इंटरनैट पर आ रहे उन इश्तिहारों पर उस का ध्यान जाने लगा था, जिन में अंगों के आकारप्रकार बढ़ाने की बात होती थी. ऐसे इश्तिहार उसे लुभाने लगे थे. अकसर आईने के आगे खड़े हो कर अपने अंगों को देखना उसे अब अच्छा लगने लगा था.

फरवरी का महीना था. साजिया की मौसी यासमीन अपने 15 साल के बेटे साहिल के साथ आने वाली थीं. साजिया पिछली बार जब उस से मिली थी तब वे दोनों तकरीबन 5 साल के थे. 2 बैडरूम वाले फ्लैट में मौसी के लिए साजिया का कमरा रिजर्व्ड किया गया था.

मौसी अपने बेटे साहिल और पति के साथ आ चुकी थीं. वे जब आए तो साजिया अपनी सहेली के घर गई थी. दोपहर के तकरीबन 3 बज रहे थे. उस समय साजिया की अम्मी, अब्बू, मौसी और उन के पति छत पर बैठ कर बातें कर रहे थे. साजिया आते ही अपने कमरे में चली गई, जहां साहिल उस के बिस्तर पर सो रहा था.

साजिया को अपने कमरे में साहिल के होने का एहसास बिलकुल न हुआ. जैसे वह पहले आती थी और कपड़े बदलने लगती थी उस दिन भी वही हुआ. वह अपनेआप को निहारने लगती. उस के कमरे में आने की आहट से साहिल की नींद टूट चुकी थी, लेकिन वह कंबल के नीचे से साजिया की सारी हरकतों पर नजर दौड़ाता रहा.

जैसे ही साजिया को साहिल की घूरती आंखों का पता चला तो वह चीख पड़ी और कमरे से बाहर आ गई. खूब होहल्ला हुआ, लेकिन धीरेधीरे मामला शांत किया गया.

अब माहौल ऐसा हो गया कि साजिया साहिल के सामने पड़ते ही उस की आंखों के घेरे में खुद को महसूस करने लगी थी.

यह उम्र ही ऐसी थी जो साहिल भी अनकहे एहसास को सम झने लगा था. धीरेधीरे उन दोनों में दोस्ती होने लगी थी. शुरुआती बातों में किताबों के साथसाथ पसंदनपसंद के गाने और कपड़े भी शामिल थे. धीरेधीरे किस कपड़े में वह कितनी अच्छी लगती है, ऐसी बातें भी शामिल होने लगीं. बातों ही बातों में साहिल की गर्लफ्रैंड है, यह बात सामने आई और उसे परेशान कर गई.

अपनी गर्लफ्रैंड के साथ बिताए कुछ असहज पलों का जिक्र करने में साहिल तनिक भी न सकुचाया. इन सब बातों ने उसे बेकाबू कर दिया था. अब वह साहिल से नजदीकियां बनाने की कोशिश करने लगी, ताकि सहेलियों के बीच में बोल सके कि उसे भी कोई पसंद करता है. लेकिन अम्मीअब्बू द्वारा बनाए घेरे को तोड़ कर अपने मन की सुनना मुश्किल हो रहा था.

अगले ही दिन मौसी ने वापस जाने का ऐलान कर दिया. अब साजिया को लगने लगा कि कुछ अधूरा रह गया है. वह ऐसा क्या करे कि मन शांत हो जाए. उसे अब किसी की परवाह नहीं रह गई थी. आखिरकार उस ने अपने मन की सुन ली.

साजिया ऐक्स्ट्रा क्लास का बहाना बना कर कर घर से निकली. साहिल को उस ने पहले ही बता दिया था कि उसे कहां आना है. फिर क्या था, शाम को उस ने साहिल के साथ फिल्म देखी, विदाई भोज के नाम पर खाना खाया. इस बीच घर पर सभी परेशान थे, क्योंकि कभी भी साजिया इतनी देर घर से बाहर नहीं रुकी थी. कई सहेलियों के घर फोन किया गया. कहीं से ऐक्स्ट्रा क्लास की कोई खबर नहीं मिली. अब तक जुनैद साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था.

तकरीबन घंटेभर बाद वे दोनों हाथों में हाथ डाल कर मुसकरातेइठलाते मेन दरवाजे से अंदर आए. आगे क्या कुछ होने वाला है, साजिया जानती थी, पर वह खुश थी. उस ने अपने मन की सुन ली थी.

यही वजह थी कि पिता की दहकती आंखों का सामना करते हुए वह तनिक भी न सकुचाई. मौसी तो अवाक नजरों से उसे देखती ही रह गईं.

सरप्राइज – क्या खुद खुश रह पाई सबका जीवन संवारने वाली सीमा?

लेखिका-Anita Jain

रविवार को सुबह 10 बजे जब सीमा के मोबाइल की घंटी बजी तो उस ने उसे लपक कर उठा लिया. स्क्रीन पर अपने बचपन की सहेली नीता का नाम पढ़ा तो वह भावुक हो गई और खुद से ही बोली कि चलो किसी को तो याद है आज का दिन.

लेकिन अपनी सहेली से बातें कर उसे निराशा ही हाथ लगी. नीता ने उसे कहीं घूमने चले का निमंत्रण भर ही दिया. उसे भी शायद आज के दिन की विशेषता याद नहीं थी.

‘‘मैं घंटे भर में तेरे पास पहुंच जाऊंगी,’’ यह कह कर सीमा ने फोन काट दिया.

‘सब अपनीअपनी जिंदगियों में मस्त हैं. अब न मेरी किसी को फिक्र है और न जरूरत. क्या आगे सारी जिंदगी मुझे इसी तरह की उपेक्षा व अपमान का सामना करना पड़ेगा?’ यह सोच उस की आंखों में आंसू भर आए.

कुछ देर बाद वह तैयार हो कर अपने कमरे से बाहर निकली और रसोई में काम कर रही अपनी मां को बताया, ‘‘मां, मैं नीता के पास जा रही हूं.’’

‘‘कब तक लौट आएगी?’’ मां ने पूछा.

‘‘जब दिल करेगा,’’ ऐसा रूखा सा जवाब दे कर उस ने अपनी नाराजगी प्रकट की.

‘‘ठीक है,’’ मां का लापरवाही भरा जवाब सुन कर उदास हो गई.

सीमा का भाई नवीन ड्राइंगरूम में अखबार पढ़ रहा था. वह उस की तरफ देख कर मुसकराया जरूर पर उस के बाहर जाने के बारे में कोई पूछताछ नहीं की.

नवीन से छोटा भाई नीरज बरामदे में अपने बेटे के साथ खेल रहा था.

‘‘कहां जा रही हो, दीदी?’’ उस ने अपना गाल अपने बेटे के गाल से रगड़ते हुए सवाल किया.

‘‘नीता के घर जा रही हूं,’’ सीमा ने शुष्क लहजे में जवाब दिया.

‘‘मैं कार से छोड़ दूं उस के घर तक?’’

‘‘नहीं, मैं रिकशा से चली जाऊंगी.’’

‘‘आप को सुबहसुबह किस ने गुस्सा दिला दिया है?’’

‘‘यह मत पूछो…’’ ऐसा तीखा जवाब दे कर वह गेट की तरफ तेज चाल से बढ़ गई.

कुछ देर बाद नीता के घर में प्रवेश करते ही सीमा गुस्से से फट पड़ी, ‘‘अपने भैयाभाभियों की मैं क्या शिकायत करूं, अब तो मां को भी मेरे सुखदुख की कोई चिंता नहीं रही.’’

‘‘हुआ क्या है, यह तो बता?’’ नीता ने कहा.

‘‘मैं अब अपनी मां और भैयाभाभियों की नजरों में चुभने लगी हूं… उन्हें बोझ लगती हूं.’’

‘‘मैं ने तो तुम्हारे घर वालों के व्यवहार में कोई बदलाव महसूस नहीं किया है. हां, कुछ दिनों से तू जरूर चिड़चिड़ी और गुस्सैल हो गई है.’’

‘‘रातदिन की उपेक्षा और अपमान किसी भी इंसान को चिड़चिड़ा और गुस्सैल बना देता है.’’

‘‘देख, हम बाहर घूमने जा रहे हैं, इसलिए फालतू का शोर मचा कर न अपना मूड खराब कर, न मेरा,’’ नीता ने उसे प्यार से डपट दिया.

‘‘तुझे भी सिर्फ अपनी ही चिंता सता रही है. मैं ने नोट किया है कि तुझे अब मेरी याद तभी आती है, जब तेरे मियांजी टूर पर बाहर गए हुए होते हैं. नीता, अब तू भी बदल गई है,’’ सीमा का गुस्सा और बढ़ गया.

‘‘अब मैं ने ऐसा क्या कह दिया है, जो तू मेरे पीछे पड़ गई है?’’ नीता नाराज होने के बजाय मुसकरा उठी.

‘‘किसी ने भी कुछ नहीं किया है… बस, मैं ही बोझ बन गई हूं सब पर,’’ सीमा रोंआसी हो उठी.

‘‘तुम्हें कोई बोझ नहीं मानता है, जानेमन. किसी ने कुछ उलटासीधा कहा है तो मुझे बता. मैं इसी वक्त उस कमअक्ल इंसान को ऐसा डांटूंगी कि वह जिंदगी भर तेरी शान में गुस्ताखी करने की हिम्मत नहीं करेगा,’’ नीता ने उस का हाथ पकड़ा और पलंग पर बैठ गई.

‘‘किसकिस को डांटेगी तू. जब मतलब निकल जाता है तो लोग आंखें फेर लेते हैं. अब मेरे साथ ऐसा ही व्यवहार मेरे दोनों भाई और उन की पत्नियां कर रही हैं तो इस में हैरानी की कोई बात नहीं है. मैं बेवकूफ पता नहीं क्यों आंसू बहाने पर तुली हुई हूं,’’ सीमा की आंखों से सचमुच आंसू बहने लगे थे.

‘‘क्या नवीन से कुछ कहासुनी हो गई है?’’

‘‘उसे आजकल अपने बिजनैस के कामों से फुरसत ही कहां है. वह भूल चुका है कि कभी मैं ने अपने सहयोगियों के सामने हाथ फैला कर कर्ज मांगा था उस का बिजनैस शुरू करवाने के लिए.’’

‘‘अगर वह कुसूरवार नहीं है तब क्या नीरज ने कुछ कहा है?’’

‘‘उसे अपने बेटे के साथ खेलने और पत्नी की जीहुजूरी करने से फुरसत ही नहीं मिलती. पहले बहन की याद उसे तब आती थी, जब जेब में पैसे नहीं होते थे. अब इंजीनियर बन जाने के बाद वह खुद तो खूब कमा ही रहा है, उस के सासससुर भी उस की जेबें भरते हैं. उस के पास अब अपनी बहन से झगड़ने तक का वक्त नहीं है.’’

‘‘अगर दोनों भाइयों ने कुछ गलत नहीं कहा है तो क्या अंजु या निशा ने कोई गुस्ताखी की है?’’

‘‘मैं अब अपने ही घर में बोझ हूं, ऐसा दिखाने के लिए किसी को अपनी जबान से कड़वे या तीखे शब्द निकालने की जरूरतनहीं है. लेकिन सब के बदले व्यवहार की वजह से आजकल मैं अपने कमरे में बंद हो कर खून के आंसू बहाती हूं. जिन छोटे भाइयों को मैं ने अपने दिवंगत पिता की जगह ले कर सहारा दिया, आज उन्होंने मुझे पूरी तरह से भुला दिया है. पूरे घर में किसी को भी ध्यान नहीं है कि मैं आज 32 साल की हो गई हूं…

तू भी तो मेरा जन्मदिन भूल गई… अपने दोनों भाइयों का जीवन संवारते और उन की घरगृहस्थी बसातेबसाते मैं कितनी अकेली रह गई हूं.’’

नीता ने उसे गले से लगाया और बड़े अपनेपन से बोली, ‘‘इंसान से कभीकभी ऐसी भूल हो जाती है कि वह अपने किसी बहुत खास का जन्मदिन याद नहीं रख पाता. मैं तुम्हें शुभकामनाएं देती हूं.’’

उस के गले से लगेलगे सीमा सुबकती हुई बोली, ‘‘मेरा घर नहीं बसा, मैं इस बात की शिकायत नहीं कर रही हूं, नीता. मैं शादी कर लेती तो मेरे दोनों छोटे भाई कभी अच्छी तरह से अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाते. शादी न होने का मुझे कोई दुख नहीं है.

‘‘अपने दोनों छोटे भाइयों के परिवार का हिस्सा बन कर मैं खुशीखुशी जिंदगी गुजार लूंगी, मैं तो ऐसा ही सोचती थी. लेकिन आजकल मैं खुद को बिलकुल अलगथलग व अकेला महसूस करती हूं. कैसे काटूंगी मैं इस घर में अपनी बाकी जिंदगी?’’

‘‘इतनी दुखी और मायूस मत हो, प्लीज. तू ने नवीन और नीरज के लिए जो कुरबानियां दी हैं, उन का बहुत अच्छा फल तुझे मिलेगा, तू देखना.’’

‘‘मैं इन सब के साथ घुलमिल कर जीना…’’

‘‘बस, अब अगर और ज्यादा आंसू बहाएगी तो घर से बाहर निकलने पर तेरी लाल, सूजी आंखें तुझे तमाशा बना देंगी.

तू उठ कर मुंह धो ले फिर हम घूमने चलते हैं,’’ नीता ने उसे हाथ पकड़ कर जबरदस्ती खड़ा कर दिया.

‘‘मैं घर वापस जाती हूं. कहीं घूमने जाने का अब मेरा बिलकुल मूड नहीं है.’’

‘‘बेकार की बात मत कर,’’ नीता उसे खींचते हुए गुसलखाने के अंदर धकेल आई.

जब वह 15 मिनट बाद बाहर आई, तो नीता ने उस के एक हाथ में एक नई काली साड़ी, मैचिंग ब्लाउज वगैरह पकड़ा दिया.

‘‘हैप्पी बर्थडे, ये तेरा गिफ्ट है, जो मैं कुछ दिन पहले खरीद लाई थी,’’ नीता की आंखों में शरारत भरी चमक साफ नजर आ रही थी.

‘‘अगर तुझे मेरा गिफ्ट खरीदना याद रहा, तो मुझे जन्मदिन की मुबारकबाद देना कैसे भूल गई?’’ सीमा की आंखों में उलझन के भाव उभरे.

‘‘अरे, मैं भूली नहीं थी. बात यह है कि आज हम सब तुझे एक के बाद एक सरप्राइज देने के मूड में हैं.’’

‘‘इस हम सब में और कौनकौन शामिल है?’’

‘‘उन के नाम सीक्रेट हैं. अब तू फटाफट तैयार हो जा. ठीक 1 बजे हमें कहीं पहुंचना है.’’

‘‘कहां?’’

‘‘उस जगह का नाम भी सीके्रट है.’’

सीमा ने काफी जोर डाला पर नीता ने उसे इन सीक्रेट्स के बारे में और कुछ भी

नहीं बताया. सीमा को अच्छी तरह से तैयार करने में नीता ने उस की पूरी सहायता की. फिर वे दोनों नीता की कार से अप्सरा बैंक्वेट हौल पहुंचे.

‘‘हम यहां क्यों आए हैं?’’

‘‘मुझ से ऐसे सवाल मत पूछ और सरप्राइज का मजा ले, यार,’’ नीता बहुत खुश और उत्तेजित सी नजर आ रही थी.

उलझन से भरी सीमा ने जब बैंक्वेट हौल में कदम रखा, तो अपने स्वागत में बजी तालियों की तेज आवाज सुन कर वह चौंक पड़ी. पूरा हौल ‘हैप्पी बर्थडे’ के शोर से गूंज उठा.

मेहमानों की भीड़ में उस के औफिस की खास सहेलियां, नजदीकी रिश्तेदार और परिचित शामिल थे. उन सब की नजरों का केंद्र बन कर वह बहुत खुश होने के साथसाथ शरमा भी उठी.

सब से आगे खड़े दोनों भाई व भाभियों को देख कर सीमा की आंखों में आंसू छलक आए. अपनी मां के गले से लग कर उस के मन ने गहरी शांति महसूस की.

‘‘ये सब क्या है? इतना खर्चा करने की क्या जरूरत थी?’’ उस की डांट को सुन कर नवीन और नीरज हंस पड़े.

दोनों भाइयों ने उस का एकएक बाजू पकड़ा और मेहमानों की भीड़ में से गुजरते हुए उसे हौल के ठीक बीच में ले आए.

नवीन ने हाथ हवा में उठा कर सब से खामोश होने की अपील की. जब सब चुप हो गए तो वह ऊंची आवाज में बोला,

‘‘सीमा दीदी सुबह से बहुत खफा हैं. ये सोच रही थीं कि हम इन के जन्मदिन की तारीख भूल गए हैं, लेकिन ऐसा नहीं था. आज हम इन्हें बहुत सारे सरप्राइज देना चाहते हैं.’’

सरप्राइज शब्द सुन कर सीमा की नजरों ने एक तरफ खड़ी नीता को ढूंढ़ निकाला. उस को दूर से घूंसा दिखाते हुए वह हंस पड़ी.

अब ये उसे भलीभांति समझ में आ गया था कि नीता भी इस पार्टी को सरप्राइज बनाने की साजिश में उस के घर वालों के साथ मिली हुई थी.

नवीन रुका तो नीरज ने सीमा का हाथ प्यार से पकड़ कर बोलना शुरू कर दिया, ‘‘हमारी दीदी ने पापा की आकस्मिक मौत के बाद उन की जगह संभाली और हम दोनों भाइयों की जिंदगी संवारने के लिए अपनी खुशियां व इच्छाएं इन के एहसानों का बदला हम कभी नहीं भूल गईं.’’

‘‘लेकिन हम इन के एहसानों व कुरबानियों को भूले नहीं हैं,’’ नवीन ने फिर

से बोलना शुरू कर दिया, ‘‘कभी ऐसा वक्त था जब पैसे की तंगी के चलते हमारी आदरणीय दीदी को हमारे सुखद भविष्य की खातिर अपने मन को मार कर जीना पड़ रहा था. आज दीदी के कारण हमारे पास बहुत कुछ है.

‘‘और अपनी आज की सुखसमृद्धि को अब हम अपनी दीदी के साथ बांटेंगे.

‘‘मैं ने अपना राजनगर वाला फ्लैट दीदी के नाम कर दिया है,’’ ऊंची आवाज में ये घोषणा करते हुए नवीन ने रजिस्ट्री के कागजों का लिफाफा सीमा के हाथ में पकड़ा दिया.

‘‘और ये दीदी की नई कार की चाबी है. दीदी को उन के जन्मदिन का ये जगमगाता हुआ उपहार निशा और मेरी तरफ से.’’

‘‘और ये 2 लाख रुपए का चैक फ्लैट की जरूरत व सुखसुविधा की चीजें खरीदने

के लिए.

‘‘और ये 2 लाख का चैक दीदी को अपनी व्यक्तिगत खरीदारी करने के लिए.’’

‘‘और ये 5 लाख का चैक हम सब की तरफ से बरात की आवभगत के लिए.

‘‘अब आप लोग ये सोच कर हैरान हो रहे होंगे कि दीदी की शादी कहीं पक्की होने की कोई खबर है नहीं और यहां बरात के स्वागत की बातें हो रही हैं. तो आप सब लोग हमारी एक निवेदन ध्यान से सुन लें. अपनी दीदी का घर इसी साल बसवाने का संकल्प लिया है हम दोनों भाइयों ने. हमारे इस संकल्प को पूरा कराने में आप सब दिल से पूरा सहयोग करें, प्लीज.’’

बहुत भावुक नजर आ रहे नवीन और नीरज ने जब एकसाथ झुक कर सीमा के पैर छुए, तो पूरा हौल एक बार फिर तालियों की आवाज से गूंज उठा.

सीमा की मां अपनी दोनों बहुओं व पोतों के साथ उन के पास आ गईं. अब पूरा परिवार एकदूसरे का मजबूत सहारा बन कर एकसाथ खड़ा हुआ था. सभी की आंखों में खुशी के आंसू झिलमिला रहे थे.

बहुत दिनों से चली आ रही सीमा के मन की व्याकुलता गायब हो गई. अपने दोनों छोटे भाइयों के बीच खड़ी वह इस वक्त अपने सुखद, सुरक्षित भविष्य के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त नजर आ रही थी.

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