वचन -भाग -2: जब चिकचिक और शोरशराबे से परेशान हुई निशा

‘‘क्या मुसीबत है,’’ उन्होंने अचानक पूरी ताकत लगा कर पापा के हाथ से तश्तरी छीन ही ली और उन का हाथ पकड़ कर खींचती हुई रसोई से बाहर ले आईं.

‘‘आप को यह काम शोभा देगा क्या? जाइए, अपने कमरे में आराम कीजिए. मैं करवा रही हूं बहू के साथ काम,’’ मां मुड़ीं और किलसती सी निशा के पास पहुंच कर बरतन साफ कराने लगीं.

गुसलखाने से बाहर आते हुए मैं ने साफसाफ देखा पापा शरारती अंदाज में मुसकरा कर निशा की तरफ आंख मारते हुए जैसे कह रहे हों कि आ गया ऊंट पहाड़ के नीचे. फिर वे अपने कमरे की तरफ चले गए. मेरे देखते ही देखते शिखा भी रसोई में आ गई.

‘‘इतने से बरतनों को 3-3 लोग मांजें, यह भी कोई बात हुई. मुझे सुबह से पढ़ने का मौका नहीं मिला है. मां, जब भाभी हैं यहां तो तुम ने मुझे क्यों चिल्ला कर बुलाया?’’ शिखा गुस्से से बड़बड़ाने लगी.

‘‘मैं ने इसलिए तुझे बुलाया क्योंकि तेरे पिताजी के सिर पर आज बरतन मंजवाने का भूत चढ़ा था.’’

‘‘यह क्या कह रही हो?’’ शिखा ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘मैं सही कह रही हूं. अब सारी रसोई संभलवा कर ही पढ़ने जाना, नहीं तो वे फिर यहां घुस आएंगे,’’ कह कर मां रसोई से बाहर आ गईं.

उस दिन से निशा के वचन व पापा की अजीबोगरीब हरकत के कारण शिखा मजबूरन पहली बार निशा का लगातार काम में हाथ बटाती रही.

इस में कोई शक नहीं कि शादी के कुछ दिनों बाद से ही निशा ने घर के सारे कामों की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली थी. हर काम को भागभाग कर करना उस का स्वभाव था. इस कारण शिखा और मम्मी ने धीरेधीरे हर काम से हाथ खींचना शुरू कर दिया था. इस बात को ले कर मैं कभीकभी शोर मचाता, तो मां और शिखा ढकेछिपे अंदाज में मुझे जोरू का गुलाम ठहरा देतीं. झगड़े में इन दोनों से जीतना संभव नहीं था क्योंकि दोनों की जबानें तेज और पैनी हैं. पापा डपट कर शिखा या मां को अकसर काम में लगा देते थे, पर इस का फल निशा के लिए ठीक नहीं रहता. उसे अपनी सास व ननद की ढेर सारी कड़वी, तीखी बातें सुनने को मिलतीं.

अगले दिन सुबह पापा ने झाड़ू उठा कर सुबह 7 बजे से घर साफ करना शुरू किया, तो फिर घर में भगदड़ मच गई.

‘‘बहू, तुम नाश्ता बनाती रहो. मैं 15-20 मिनट में सारे घर की सफाई कर दूंगा,’’ कह कर पापा फिर से ड्राइंगरूम में झाड़ू लगाने लगे.

‘‘ऐसी क्या आफत आ रही है, पापा?’’ शिखा ने अपने कमरे से बाहर आ कर क्रोधित लहजे में कहा, ‘‘झाड़ू कुछ देर बाद भी लग सकती है.’’

‘‘घर की सारी सफाई सुबह ही होनी चाहिए,’’ पापा ने कहा.

‘‘लाइए, मुझे दीजिए झाड़ू,’’ शिखा ने बड़े जोर के झटके से उन के हाथ से झाड़ू खींची और हिंसक अंदाज में काम करते हुए सारे घर की सफाई कर दी.

वह फिर अपने कमरे में बंद हो गई और घंटे भर बाद कालेज जाने के लिए ही बाहर निकली. उस दिन जबरदस्त नाराजगी दर्शाते हुए वह बिना नाश्ता किए ही कालेज चली गई. मां ने इस कारण पापा से झगड़ा करना चाहा तो उन्होंने शांत लहजे में बस इतना ही कहा, ‘‘पहले मैं शोर मचाता था और अब चुपचाप बहू के काम में हाथ बटाता हूं क्योंकि हमसब ने उसे ऐसा करने का वचन दिया है. शिखा को मेरे हाथ से झाड़ू छीनने की कोई जरूरत नहीं थी.’’

‘‘रिटायरमैंट के बाद भी लोग कहीं न कहीं काम करने जाते हैं. तुम भी घर में पड़े रह कर घरगृहस्थी के कामों में टांग अड़ाना छोड़ो और कहीं नौकरी ढूंढ़ लो,’’ मां ने बुरा सा मुंह बना कर उन्हें नसीहत दी तो पापा ठहाका लगा कर हंस पड़े.

उस शाम मुझे औफिस से घर लौटने में फिर देर हो गई. पुराने यारदोस्तों के साथ घंटों गपशप करने की मेरी आदत छूटी नहीं थी. निशा ने कभी अपने मुंह से शिकायत नहीं की, पर यों लेट आने के कारण मैं अकसर मां और पिताजी से डांट खाता रहा हूं.

‘‘बहू के साथ कहीं घूमने जाया कर. उसे रिश्तेदारों और पड़ोसियों से मिलवाना चाहिए तुझे. यारदोस्तों के साथ शादी के बाद ज्यादा समय बरबाद करना छोड़ दे,’’ बारबार मुझे समझाया जाता, पर मैं अपनी आदत से मजबूर था.

मैं उस दिन करीब 9 बजे घर में घुसा तो मां ने बताया, ‘‘तेरी बहू और पिताजी घूमने गए हुए हैं.’’

‘‘कहां?’’ मैं ने माथे पर बल डाल कर पूछा.

‘‘फिल्म देखने गए हैं.’’

‘‘और खाना भी बाहर खा कर आएंगे,’’ शिखा ने मुझे भड़काया, ‘‘हम ने तो कभी नहीं सुना कि नई दुलहन पति के बजाय ससुर के साथ फिल्म देखने जाए.’’

मैं ने कोई जवाब नहीं दिया और गुस्से से भरा अपने कमरे में आ घुसा. मैं ने खाना खाने से भी इनकार कर दिया.

वे दोनों 10 बजे के बाद घर लौटे. पिताजी ने आवाज दे कर मुझे ड्राइंगरूम में बुला लिया.

‘‘खाना क्यों नहीं खाया है अभी तक तुम ने?’’ पापा ने सवाल किया.

‘‘भूख नहीं है मुझे,’’ मैं ने उखड़े लहजे में जवाब दिया.

‘‘मैं बहू को घुमाने ले गया, इस बात से नाराज है क्या?’’

‘‘इसे छोड़ गए, यह नाराजगी पैदा करने वाली बात नहीं है क्या?’’ मां ने वार्त्तालाप में दखल दिया, ‘‘इसे पहले से सारा कार्यक्रम बता देते तो क्या बिगड़ जाता आप का?’’

‘‘देखो भई, बहू के मामलों में मैं ने किसी को भी कुछ बतानासमझाना बंद कर दिया है. जहां मुझे लगता है कि उस के साथ गलत हो रहा है, मैं खुद कदम उठाने लगा हूं उस की सहायता के लिए. अब मेरे काम किसी को अच्छे लगें या बुरे, मुझे परवा नहीं,’’ पापा ने लापरवाही से कंधे उचकाए.

‘‘मैं आप से कुछ कह रहा हूं क्या?’’ मेरी नाराजगी अपनी जगह कायम रही.

‘‘बहू से भी कुछ मत कहना. मेरी जिद के कारण ही वह मेरे साथ गई थी. आगे भी अगर तुम ने यारदोस्तों के चक्कर में फंस कर बहू की उपेक्षा करनी जारी रखी तो हम फिर घूमने जाएंगे. हाउसफुल होने के कारण आज फिल्म नहीं देखी है हम दोनों ने. कल की 2 टिकटें लाए हैं. तुझे बहू के साथ जाने की फुरसत न हो तो मुझे बता देना. मैं ले जाऊंगा उसे अपने साथ,’’ अपनी बात कह कर पापा अपने कमरे की तरफ बढ़ गए.

Holi Special: ये कैसा सौदा- भाग 2

‘‘नहींनहीं, संगीता, यह कोई मजाक नहीं. हम सचमुच तुम्हारी जिया को पूरी कानूनी कार्यवाही के साथ अपनी बेटी बनाना चाहते हैं.’’

संगीता के सामने कीमती कपड़ों और गहनों से लदी एक धनवान औरत आज अपनी झोली फैलाए बैठी थी लेकिन वह न तो उस की खाली झोली भर सकती थी और न ही अपनी झोली पर गुमान ही कर सकती थी. उस की आंखों से आंसू बह चले.

श्रीमती दीक्षित जानती हैं कि उन्होंने एक मां से उस के दिल का टुकड़ा मांगा है लेकिन वे भी क्या करें? अपने सूने जीवन और सूने आंगन में बहार लाने के लिए उन्हें मजबूर हो कर ऐसा फैसला लेना पड़ा है. वरना सालों से वे (दीक्षित दंपती) किसी दूसरे का बच्चा गोद लेने के लिए भी कहां तैयार हो रहे थे. कल जिया को देख कर पता नहीं कैसे उन का मन इस के लिए तैयार हो गया था.

उन्होंने संगीता की गरीबी पर एक भावुकता भरा पैंतरा फेंका, ‘‘संगीता, क्या तुम नहीं चाहोगी कि तुम्हारी बेटी बंगले में पहुंच जाए और राजकुमारी जैसा जीवन जिए?’’

‘‘हम गरीब हैं बीबीजी, हमारे जैसे साधन, वैसे ही सपने. हमें तो सपनों में भी फांके और अभाव ही आते हैं,’’ संगीता अपने आंसू पोंछते हुए बोली.

‘‘इसलिए कहती हूं कि कीमती सपने देखने का एक अवसर मिल रहा है तो उस का लाभ उठा और अपनी छोटी बेटी मेरी झोली में डाल दे,’’ श्रीमती दीक्षित ने फिर अपना पक्ष रखा.

‘‘कोई कितना भी गरीब क्यों न हो बीबीजी, अपनी जरूरत के वक्त गहना, जमीन, बरतन आदि बेचेगा, पर औलाद तो कोई नहीं बेचता न?’’ कहते हुए संगीता उठ कर चल दी.

‘‘ऐसी कोई जल्दी नहीं है संगीता, तू अपने आदमी से भी बात कर, हो सकता है उसे हमारी बात समझ में आ जाए,’’ श्रीमती दीक्षित ने संगीता को रोकते हुए कहा.

‘‘नहीं बीबीजी, मरद से क्या पूछना है? हमारी बेटियां हमारी जिम्मेदारी बेशक हैं, बोझ नहीं हैं. मैं तो कुछ और ही सोच कर आई थी,’’ कहते हुए संगीता तेज कदमों से बाहर निकल गई.

घर पहुंचते ही संगीता रिया और जिया को सीने से चिपटा कर फूटफूट कर रो पड़ी. विक्रम को समझ नहीं आ रहा था कि हुआ क्या है. वह कुछ पूछता इस से पहले संगीता ने ही उसे सारी कहानी सुना दी.

सब सुन कर विक्रम को अपनी गरीबी पर झुंझलाहट हुई. फिर भी अपने को संयत कर उस ने संगीता को समझाया कि जब वह अपनी जिया को देने के लिए तैयार ही नहीं है तो कोई क्या कर लेगा. लेकिन मन ही मन वह डर रहा था कि पैसे वालों का क्या भरोसा. कहीं जिया को अगवा कर विदेश ले गए तो वह कहां फरियाद करेगा और कौन सुनेगा उस गरीब की?

वह रात संगीता और विक्रम पर बहुत भारी गुजरी. कितने ही बुरेबुरे खयाल रात भर उन्हें परेशान करते रहे. उन का प्यार और जिया का भविष्य रात भर तराजू में तुलता रहा. रात भर आंखें डबडबाती रहीं, दिल डूबता रहा.

सुबह होते ही दीक्षित साहब ने विक्रम को कोठी पर बुलवाया. बुलावे के नाम पर तिलमिला गया और वहां पहुंचते ही चिल्लाया, ‘‘नहीं दूंगा मैं अपनी बेटी. नहीं चाहता मैं कि मेरी बेटी राजकुमारी सा जीवन जिए. आप इतने ही दयावान हैं तो दुनिया भरी है गरीबों से, अनाथों से, हम पर ही इतनी मेहरबानी क्यों?’’

उस की बात सुन कर दीक्षित दंपती को जरा भी बुरा नहीं लगा. बड़े प्यार से उस का स्वागत किया और उसे अपने बराबर सोफे पर बिठाया. बड़ी सहजता से उन्होंने पूरी बात समझाते हुए अपनी याचना उस के सामने रखी, लेकिन विक्रम बारबार मना ही करता रहा. तब उन्होंने विक्रम के सामने एक ऐसा प्रस्ताव रख दिया जिसे सुन कर वह हैरान रह गया. उस ने तो पहले इस बारे में कभी सुना ही नहीं था.

दीक्षित दंपती ने विक्रम के सामने संगीता की कोख किराए पर लेने का प्रस्ताव रखा था. विक्रम का चेहरा बता रहा था कि वह कुछ नहीं समझा है तो उन्होंने विक्रम को समझाया कि जैसे आजकल हम जरूरतमंदों को अपना खून, आंखें, दान करते हैं वैसे ही किसी निसंतान दंपती को संतान का सुख देने के लिए कोख का भी दान किया जा सकता है. ऐसे निसंतान मातापिता को किसी की संतान गोद नहीं लेनी पड़ती बल्कि वे अपनी ही संतान पा सकते हैं.

विक्रम तब भी कुछ नहीं समझा तो दीक्षित साहब ने उसे फिर समझाया, ‘‘बस, तुम इतना समझो कि ऐसे में डाक्टरों की मदद से संतान के इच्छुक पिता का बीज किराए की कोख में रोप दिया जाता है जिसे 9 महीने तक गर्भ में रख कर शिशु का रूप देने वाली मां, सैरोगेट मां कहलाती है. हमारी सरकार ने इसे कानूनी तौर पर वैध भी घोषित कर दिया है.’’

इतना ही नहीं उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि इस दौरान वे संगीता के इलाज, दवाइयों, अस्पताल के खर्च के अलावा उस की खुराक आदि का पूरा खयाल रखेंगे. संगीता भले ही लड़के को जन्म दे या लड़की को उन्हें वह बच्चा स्वीकार्य होगा और वे उसे ले कर विदेश जा बसेंगे. यह सब पूरी लिखापढ़ी और कानूनी कार्यवाही के साथ होगा. संगीता जिस दिन डाक्टरी प्रक्रिया से गुजर कर गर्भवती हो जाएगी उन्हें पहली किस्त के रूप में 50 हजार रुपए दे दिए जाएंगे. उस के बाद बच्चे के जन्म पर उन्हें 2 लाख रुपए और दिए जाएंगे.

दीक्षित साहब ने सबकुछ विक्रम को कुछ इस तरह समझाया कि उस ने संगीता को इस काम के लिए राजी कर लिया. एक परिवार का सूना आंगन बच्चे की किलकारियों से गूंज उठेगा और उन का अपना जीवन अभावों की दलदल से निकल कर खुशियों से भर जाएगा. जल्दी ही पूरी डाक्टरी प्रक्रिया और कागजी कार्यवाही से गुजर कर विक्रम और संगीता अपनी बेटियों के साथ दीक्षित की कोठी के पीछे नौकरोें के क्वार्टर में रहने को आ गए. उन्हें पहली किस्त के रूप में 50 हजार रुपए भी मिल गए थे.

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प्यार की खातिर- भाग -3

वह आज जरा उत्तेजित है, विचलित है, क्योंकि उस की मनमानी नहीं हुई है. कभीकभी उस का पति किसी बात पर अड़ जाता है तो टस से मस नहीं होता और उसे मजबूरन उस के आगे हार माननी पड़ती है. उस की शादी को 4 साल हो गए और अभी तक वह समझ न पाई कि वह अपने पति से कैसे पेश आए.

खयालों में डूबी रोहिणी को समय का भान ही न हुआ. अचानक उस ने चौंक कर देखा कि उस के आसपास की भीड़ अब छंट चुकी थी. खोमचे वाले, आइसक्रीम वाले अपना सामान समेट कर चल दिए थे. हां, ताज होटल के सामने अभी भी काफी रौनक थी. लोग आ जा रहे थे. मुख्यद्वार पर संतरी मुस्तैद था.

एक और बात रोहिणी ने नोट की. समुद्र के किनारे की सड़क पर अब कुछ स्त्रियां भड़कीले व तंग कपड़े पहने चहलकदमी कर रही हैं. उन्हें देख कर साफ लगता है कि वे स्ट्रीट वाकर्स हैं यानी रात की रानियां.

हर थोड़ी देर में लोग गाडि़यों में आते. किसी एक स्त्री के पास गाड़ी रोकते, मोलतोल करते और वह स्त्री गाड़ी में बैठ कर फुर्र हो जाती. यह सब देख कर रोहिणी को बड़ी हंसी आई.

सहसा एक गाड़ी उस के पास आ कर रुकी. उस में 3-4 युवक सवार थे, जो कालेज के छात्र लग रहे थे.

‘‘हाय ब्यूटीफुल,’’ एक युवक ने कार की खिड़की में से सिर निकाल कर उसे आवाज दी, ‘‘अकेली बैठी क्या कर रही हो? हमारे साथ आओ… कुछ मौजमस्ती करेंगे, घूमेंगेफिरेंगे.’’

रोहिणी दंग रह गई कि क्या ये पाजी लड़के उसे एक वेश्या समझ बैठे हैं? हद हो गई. क्या इन्हें एक भले घर की स्त्री और एक वेश्या में फर्क नहीं दिखाई देता? अब यहां इतनी रात गए यों अकेले बैठे रहना ठीक नहीं. उसे अब घर चल देना चाहिए.

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रोहिणी तेजी से घर का रूख किया. कार उस के पास से सर्र से निकल गई. पर कुछ ही देर बाद वही कार लौट कर फिर उस के पास आ कर रुकी.

‘‘आओ न डियर. होटल में बियर पीएंगे. तुम्हें चाइनीज खाना पसंद है? हम तुम्हें नौनकिंग रेस्तरां में खाना खिलाएंगे. उस के बाद डांस करेंगे. हम तुम्हारा भरपूर मनोरंजन करेंगे,’’ एक लड़के ने खिड़की से सिर निकाल कर कहा.

‘‘आप को गलतफहमी हुई है,’’ वह संयत स्वर में बोली, ‘‘मैं एक हाउसवाइफ हूं. अपने घर जा रही हूं.’’

‘‘तो चलो न हम आप को आप के घर छोड़ देते हैं. कहां रहती हैं आप?’’ वे लड़के कार धीरेधीरे चलाते हुए उस का पीछा करते रहे और लगातार उस से बातें करते रहे. जाहिर था कि वे कंगाल थे. वे बिना पैसा खर्च किए उस की सोहबत का आनंद उठाना चाहते थे.

रोहिणी अपनी राह चलती रही. सहसा गाड़ी उस के पास आ कर झटके से रुकी. एक लड़का गाड़ी से उतरा और उस के पास आ कर बोला, ‘‘आखिर इतनी जिद क्यों कर रही हो स्वीटी?’’ हम तुम्हें सुपर टाइम देंगे… आई प्रौमिस. चलो गाड़ी में बैठो और वह रोहिणी से हाथापाई करने लगा.

‘‘मुझे हाथ मत लगाना नहीं तो मैं शोर मचा पुलिस बुला लूंगी,’’ उस ने कड़क आवाज में कहा.

अचानक एक और कार उस के पास आ कर रुकी. उस का हौर्न जोर से बज उठा. रोहिणी ने चौंक कर देखा तो कार्तिक अपनी कार में बैठा उसे आवाजें लगा रहा था, ‘‘रोहिणी जल्दी आओ गाड़ी में बैठो.’’

रोहिणी अपना हाथ छुड़ा दौड़ कर गाड़ी में बैठ गई.

‘‘इतनी रात को यह तुम्हें क्या सूझी?’’ कार्तिक ने उसे लताड़ा, ‘‘यह क्या घर से अकेले बाहर निकलने का समय है?’’ रोहिणी तुम्हें कब अक्ल आएगी? देखा नहीं कैसेकैसे गुंडेमवाली रात को सड़कों पर घूमते शिकार की ताक में रहते हैं… मेरी नजर तुम पर पड़ गई वरना जानती हो क्या हो जाता?’’

‘‘क्या हो जाता?’’

‘‘अरे वे लोफर तुम्हें गाड़ी में बैठा कर अगवा कर ले जाते.’’

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‘‘अगवा करना क्या इतना आसान है?’’ हर समय पुलिस की गाड़ी गश्त लगाती रहती है.

‘‘हां, लेकिन पुलिस के आने से पहले ही अगर वे गुंडे तुम्हें ले उड़ते तो तुम समझ सकती हो फिर वे तुम्हारा क्या हश्र करते? तुम्हें रेप कर के अधमरी हालत में कहीं झाडि़यों में फेंक कर चलते बनते. रोहिणी तुम रोज अखबार में इस तरह की घटनाओं के बारे में पढ़ती हो, टीवी पर देखती हो. फिर भी तुम ने ऐसा खतरा मोल लिया. तुम्हारी अक्ल क्या घास चरने चली गई?’’

‘‘ये सब वे कैसे कर पाते?’’ रोहिणी ने प्रतिवाद किया, ‘‘मैं जोर से चिल्लाती तो भीड़ इकट्ठी हो जाती, पुलिस पहुंच जाती.’’

‘‘ये सब कहने की बातें हैं. इस सुनसान सड़क पर तुम्हारे शोर मचाने से पहले ही बहुत कुछ घट जाता. वे तुम्हें मिनटों में गायब कर देते और फिर तुम्हारा अतापता भी न मिलता. मत भूलो कि वे 4 थे तुम अकेली. तुम उन से मुकाबला कैसे कर पातीं. इस तरह की हठधर्मिता की वजह से ही आए दिन औरतों के साथ हादसे होते रहते हैं. इतनी रात को अकेले घर से निकलना, अनजान लोगों से लिफ्ट लेना, गैरों के साथ टैक्सी शेयर करना ये सब सरासर नादानी है.’’

रोहिणी ने चुप्पी साध ली. घर पहुंच कर कार्तिक ने उसे अपनी बांहों में समेट लिया, ‘‘डार्लिंग एक वादा करो कि अब से जब भी तुम मुझ से खफा होगी तो बेशक मुझे जो चाह कर लेना पर इस तरह का पागलपन नहीं करोगी,’’ कह उस ने इटली जाने के लिए होटल की बुकिंग और प्लेन के टिकट रोहिणी को थमा दिए.

‘‘यह क्या? तुम तो कह रहे थे कि इस साल जाना नहीं हो सकता.’’

‘‘हां, कहा तो था, पर मैं अपनी प्रिये का कहना कैसे टाल सकता हूं?’’

‘‘प्रोग्राम कैंसल कर दो.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘अरे भाई, शकुंतला दीदी की बेटी की शादी जो हो रही है… हमें वहां जाना पड़ेगा न.’’

‘‘दीदी से शादी में न आने का कोई बहाना बना दूंगा.’’

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‘‘जी हां, और फिर सब से डांट सुनोगे. तुम तो आसानी से छूट जाओगे पर सब मुझे ही परेशान करेंगे कि रोहिणी अपने ससुराल वालों से अलगथलग रहती है और अपने पति को भी अपने चंगुल में कर रखा है. उसे अपने परिवार से दूर कर देना चाहती है.’’

‘‘हद हो गई रोहिणी. चित भी तुम्हारी और पट भी तुम्हारी. तुम से मैं कभी पार नहीं पा सकता.’’

‘‘सो तो है,’’ रोहिणी ने विजयी भाव से कहा.

प्यार की खातिर- भाग -2

मगर आज रात खाने के बाद जब उस ने यह बात उठाई तो कार्तिक बोला, ‘‘इस बार तो विदेश जाना जरा मुश्किल होगा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘इसलिए कि बड़ी दीदी शकुंतला की बेटी रीना की शादी पक्की हो गई है. मैं ने तुम्हें बताया तो था… आज ही सुबह उन का फोन आया कि इसी महीने सगाई की रस्म है और हमारा वहां पहुंचना बहुत जरूरी है. आखिर मैं एकलौता मामा हूं न… भानजी की शादी में मेरी प्रमुख भूमिका रहेगी.’’

‘‘आप के घर में तो हमेशा कुछ न कुछ लगा रहता है,’’ वह मुंह बना कर बोली, ‘‘कभी किसी का जन्मदिन हैतो कभी किसी का मुंडन तो कभी कुछ और.’’

‘‘अरे जन्मदिन तो हर साल आता है. उस की इतनी अहमियत नहीं… पर शादीब्याह तो रोजरोज नहीं होते नदीदी ने बहुत आग्रह किया है कि हम जरूर आएं. वे कोई भी बहाना सुनने को तैयार नहीं हैं.’’

‘‘मैं पूछती हूं कि क्या हम कभी अपनी मरजी से नहीं जी सकते?’’

 ‘‘डार्लिंगइतना क्यों बिगड़ती हो… हम शादी की सालगिरह मनाने अगले साल भी तो जा सकते हैं… अभी से तय कर लो कि कहां जाना है और कितने दिनों के लिए जाना है… मैं सारी प्लानिंग तुम्हीं पर छोड़ता हूं.’’

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‘‘जी हांबड़ी मेहरबानी आप की… हम सारा प्लान बना लेंगे और फिर आप के घर वालों का एक फोन आएगा और सब कुछ कैंसल.’’

‘‘यह हमेशा थोड़े न होता है?’’

‘‘यह हमेशा होता है… हर बार होता है. हमारी अपनी कोई जिंदगी ही नहीं है.’’

‘‘तुम बेकार में नाराज हो रही हो… क्या मैं ने कभी तुम्हें किसी चीज से वंचित रखा हैहमेशा तुम्हारी इच्छा पूरी की है. तुम्हारे सारे नाजनखरे सहर्ष उठाता हूं.’’

‘‘इस में कौन सी बड़ी बात है…. यह तो हर पति करता हैबशर्ते वह अपनी पत्नी से प्यार करता हो.’’

‘‘तो तुम्हारा खयाल है कि मैं तुम्हें प्यार नहीं करता?’’ कार्तिक रोहिणी की आंखों में झांक कर मुसकराया.

‘‘लगता तो ऐसा ही है.’’

‘‘रोहिणीयह तुम ज्यादती कर रही हो. जानती हो मेरा तुम्हारे प्रति प्रेम देख कर मेरे यारदोस्त मुझे बीवी का गुलाम कह कर चिढ़ाते हैं.’’

‘‘अच्छावे ऐसा क्यों कहते हैं भलाजब मेरी हर बात काटी जाती है… मेरा हर प्रस्ताव ठुकराया जाता है. हांअगर कोई तुम्हें मां के पल्लू से बंधा लल्लू या बहनों का पिछलग्गू कहे तो मैं मान सकती हूं.’’

कार्तिक खिलखिला कर हंस पड़ा, ‘‘तुम्हारा भी जवाब नहीं.’’

कार्तिक ने टीवी औन कर लिया. रोहिणी थोड़ी देर बड़बड़ाती रही. वह इस मसले को कल पर नहीं छोड़ना चाहती थी. अभी कोई फैसला कर लेना चाहती थी. अत: बोली, ‘‘तो क्या तय किया तुम ने?’’

‘‘किस बारे में?’’

‘‘यह लो घंटे भर से मैं क्या बकबक किए जा रही हूं… हम इस टूअर पर जा रहे हैं या नहीं?’’

‘‘कह तो दिया भई कि इस बार जरा मुश्किल हैं. तुम तो जानती हो कि मुझे साल में सिर्फ हफ्ते की छुट्टी मिलती है. शादी में जाना जरूरी है… पर अगले साल इटली अवश्य…’’

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‘‘जी नहींमुझे तुम इन खोखले वादों से नहीं टाल सकते.’’

‘‘पर अगले साल भी इटली उसी जगह बना रहेगा और हम दोनों भी.’’

‘‘और तुम्हारा परिवार भी तो वैसे ही सहीसलामत ही रहेगा.’’

‘‘तुम कभीकभी बड़ी बचकानी बातें करती हो.’’

‘‘हांमैं तो हूं ही बेवकूफसिरफिरीअदूरदर्शी…  सारी बुराइयां मुझ में कूटकूट कर भरी हैं.’’

‘‘तुम से इस विषय में बात करना बेकार है… अभी तुम्हारा दिमाग जरा गरम है. कल

सुबह ठंडे दिमाग से इस बारे में बात करेंगे.

मैं जरा दफ्तर का जरूरी काम निबटा कर आता हूं,’’ कह कार्तिक अपने औफिसरूम में चला गया.

रोहिणी अपनी बात न मनवा पाई तो गुस्से से बिफर गई. कुछ देर वह क्रोध में भरी बैठी रही. फिर सहसा उठ कर बाहर की ओर चल दी.

कोलाबा के बाजार में अभी भी काफी चहलपहल थी. रीगल सिनेमा के पास पहुंची तो देखा कि वहां भी भीड़ है. उस ने सोचा कि टिकट खरीद कर रात का शो देख ले. घंटे आराम से बीत जाएंगे. पर फिर यह सोच कर कि इस बीच अगर कार्तिक ने उसे घर में न पाया तो वह परेशान हो जाएगा. उसे पागलों की तरह ढूंढ़ेगा. इधरउधर फोन घुमाएगाअपना इरादा बदल दिया. फिर वह गेट वे औफ इंडिया की तरफ मुड़ गई.

यहां लोग समुद्र के किनारे बैठे ठंडी हवा का लुत्फ उठा रहे थे. रोहिणी भी वहां मुंडेर पर बैठ गईर् और अपनी नजरें समुद्र के पार क्षितिज पर गड़ा दीं.

समुद्र के बीच 2-3 समुद्री जहाज लंगर डाले थे. उन की बत्तियां पानी में झिलमिला रही थीं. रोहिणी ने हसरत भरी नजरों से समुद्र की गहराइयों में झांका. बस इस अथाह जल में समाने की देर हैउस ने सोचा. एक ही पल में उस के प्राणों का अंत हो जाएगा.

उस ने मन की आंखों से देखा कार्तिक उस के निष्प्राण शरीर से लिपट कर बिलख रहा है कि हाय प्रियेमैं ने क्यों तुम्हारी बात न मानी. मैं जानता न था कि तुम इतनी सी बात पर मुझ से रूठ जाओगी और मुझे हमेशा के लिए छोड़ कर चली जाओगी.

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पर नहींवह क्यों अपनी जान दे. उस ने अभी दुनिया में देखा ही क्या है और उस के ऊपर कौन सा गमों का पहाड़ टूट पड़ा हैजो वह अपनी जान देने की सोचे. ठीक है पति से थोड़ी खटपट हुई है. यह तो हर शादीशुदा स्त्री के जीवन का हिस्सा है. कभी खुशी तो कभी गम. और सच पूछा जाए तो उस के जीवन में खुशियां ज्यादा हैं गम न के बराबर.

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प्यार की खातिर- भाग -1

Ramni Motana

हमेशा की तरह इस बार भी जब रोहिणी और कार्तिक के बीच जम कर बहस हुईतो कार्तिक झगड़ा समाप्त करने की गरज से अपने कमरे में जा कर लैपटौप में व्यस्त हो गया.

रोहिणी उत्तेजित सी कुछ देर कमरे में टहलती रही. फिर एकाएक बाहर चल दी.

गेट से निकल ही रही थी कि वाचमैन दौड़ता हुआ आया और बोला, ‘‘कहीं जाना है मेमसाबटैक्सी बुला दूं?’’

‘‘नहींमैं पास ही जा रही हूं. 10 मिनट में लौट आऊंगी.’’

रात के 10 बज रहे थेपर कोलाबा की सड़कों पर अभी भी काफी गहमागहमी थी. दुकानें अभी भी खुली हुई थीं और लोग खरीदारी कर रहे थे. रेस्तरां और हलवाईर् की दुकानों के आसपास भी भीड़ थी.

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रोहिणी के मन में खलबली मची हुई थी. आजकल जब भी उस की पति के साथ बहस होतीतो बात कार्तिक के परिवार पर ही आ कर थमती. कार्तिक अपने मातापिता का एकलौता बेटा था. अपनी मां की आंखों का ताराउन का बेहद दुलारा. उस की बड़ी बहनें थींजो उसे बेहद प्यार करती थीं और उसे हाथोंहाथ लेती थीं.

रोहिणी को इस बात से कोई परेशानी नहीं थीपर कभीकभी उसे लगता था कि उस का पति अभी भी बच्चा बना हुआ है. वह एक कदम भी अपनी मरजी से नहीं उठा सकता है. रोज जब तक दिन में एकाध बार वह अपनी मां व बहनों से बात नहीं कर लेता उसे चैन नहीं पड़ता था.

जब भी इस बात को ले कर रोहिणी भुनभुनाती तो कार्तिक कहता, ‘‘पिताजी के देहांत के बाद उन की खोजखबर लेने वाला मैं अकेला ही तो हूं. मेरे पैदा होने के बाद से मां बीमार रहतीं… मेरी तीनों बहनों ने ही मेरी परवरिश की है. मेरे पिता के देहांत के बाद मेरी मां ने मुझे बड़ी मुश्किल से पाला है. मैं उन का ऋण कभी नहीं चुका सकता.’’

ऐसी दलीलों से रोहिणी चुप हो जाती थी. पर उसे यह बात समझ में न आती थी कि बच्चों को पालपोस कर बड़ा करना हर मातापिता का फर्ज होता हैतो इस में एहसान की बात कहां से आ गईपर वह जानती थी कि कार्तिक से बहस करना बेकार था. वैसे उसे अपने पति से और कोई शिकायत नहीं थी. वह उस से बेहद प्यार करता था. वह एक भला इनसान था और उस के प्रति संवेदशील था. उसे कोफ्त केवल इस बात से होती कि उसे अपने पति का प्यार उस के घर वालों से साझा करना पड़ता है.

जब उस की शादी हुई तो कार्तिक ने उस से कहा था, ‘‘जानेमनतुम्हें पूरा अधिकार है कि तुम अपना घर जैसे चाहे सजाओजिस तरह चाहे चलाओ. मैं ने अपने को भी तुम्हारे हवाले किया. मेरी तुम से केवल एक ही गुजारिश है कि चूंकि मैं अपने परिवार से बेहद जुड़ा हुआ हूं इसलिए चाहता हूं तुम भी उन से मेलजोल रखोउन का आदरसम्मान करो. मैं अपनी मां की आंखों में आंसू नहीं देख सकता और अपनी बहनों को भी किसी भी कीमत पर दुख नहीं पहुंचाना चाहता.’’

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उसे याद आया कि अपने हनीमून पर जब वे सिंगापुर गए थेतो उन्होंने खूब मौजमस्ती की थी.

एक दिन जब वे बाजार से हो कर गुजर रहे थेतो कार्तिक एक जौहरी की दुकान के सामने ठिठक गया. बोला, ‘‘चलो जरा इस दुकान में चलते हैं.’’

वह मन ही मन पुलकित हुई कि क्या कार्तिक उसे कोई गहना खरीद कर देने वाला है.

उन्होंने दुकान में रखे काफी गहने देख डाले. फिर कार्तिक ने एक हार उठा कर कहा, ‘‘यह हार तुम्हें कैसा लगता है?’’

‘‘अरेयह तो बहुत ही खूबसूरत है,’’ खुशी से बोली.

‘‘तुम्हें पसंद है तो ले लो. हमारे हनीमून की एक यादगार भेंट’’

‘‘ओह कार्तिकतुम कितने अच्छे हो. लेकिन इतनी महंगी…?’’

‘‘कीमत की तुम फिक्र न करो और हां सुनो 1-1 गहना अपनी तीनों बहनों के लिए भी ले लेते हैं. यहां से लौटेंगे तो वे सब मुझ से किसी भेंट की अपेक्षा करेंगी.’’

सुन कर रोहिणी मन ही मन कुढ़ गई पर कुछ बोली नहीं.

‘‘और मांजी के लिए?’’ उस ने पूछा.

‘‘उन के लिए एक शाल ले लेते हैं.’’

वे घर सामान से लदेफदे लौटे. उस के बाद भी हर तीजत्योहार पर अपने परिवार के लिए तोहफे भेजता. जब भी विदेश जातातो उस के पास भानजेभानजियों की मनचाही वस्तुओं की लिस्ट पहले पहुंच जाती. अपने परिवार वालों के लिए उन के कहने की देर होती कि वह उन की फरमाइश तुरंत पूरी कर देता.

रोहिणी को इस पर कोई आपत्ति न थी. कार्तिक एक आईटी कंपनी में कार्यरत था और अच्छा कमा रहा था. उसे पूरा हक था कि वह अपनी कमाई जैसे चाहेजिस पर चाहेखर्च करे. पर उसे यह बात बुरी तरह अखरती थी कि कार्तिक के जिस कीमती समय को वह अपने लिए सुरक्षित रखना चाहती उसे भी वह बिना हिचक अपने परिवार को समर्पित कर देता. रोहिणी को अपने पति का प्यार उस के घर वालों के साथ बांटना बहुत नागवार गुजरता.

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अब आज ही की बात ले लो. उन की शादी की सालगिरह थी. वह कब से सोच रही थी कि इस बार एक शानदार जगह जा कर ठाट से छुट्टियां मनाएंगे पर सब गुड़ गोबर हो गया. जब से उस की 2-4 किट्टी पार्टी वाली सहेलियां इटली हो कर आई थीं वे लगातार उस जगह की तारीफ के पुल बांध रही थीं कि उन्होंने वहां कितना लुत्फ उठाया. सुनसुन कर उस के कान पक गए थे. उस की 1-2 सहेलियों के पति जो अरबपति थेवे उन की दौलत दोनों हाथों से लुटातीं थीं और नित नईर् साडि़यों और गहनों की नुमाइश करती थीं. इस से रोहिणी जलभुन जाती थी.

बड़ी मुश्किल से उस ने अपने पति को राजी कर लिया था कि इस बार वे भी विदेश जा कर दिल खोल कर पैसा खर्च करेंगेखूब मौजमस्ती करेंगे.

उस ने मन ही मन कल्पना की थी कि जब वह फ्रैंच शिफौन की साड़ी में लिपटीमहंगे फौरेन सैंट की खुशबू बिखेरतीहाथ में चौकलेट का डब्बा लिए किट्टी पार्टी में पहुंचेगी तो सब उसे देख कर ईर्ष्या से जल मरेंगी पर ऊपरी मन से उस की खूब तारीफ करेंगी.

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आशंका: भाग 3

‘‘भैया को मांबाप से बहुत लगाव था. उन्होंने उन का कमरा जैसा था वैसा ही रहने दिया था. वे हमेशा उस कमरे में अकेले बैठना पसंद करते थे,’’ सतबीर ने जैसे सफाई दी.

इंस्पैक्टर देव फोटोग्राफर और फोरेंसिक वालों के साथ व्यस्त हो गया. फिर शोकसंतप्त परिवार से बोला, ‘‘मैं आप की व्यथा समझता हूं, लेकिन हत्यारे को पकड़ने के लिए मुझे आप सब से कई अप्रिय सवाल करने पड़ेंगे. अभी आप लोग घर जाइए. लेकिन कोई भी घर से बाहर नहीं जाएगा खासकर दयानंद काका.’’

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‘‘जो हमें मालूम होगा, हम जरूर बताएंगे इंस्पैक्टर. लेकिन हम सब से ज्यादा विभोर बता सकते हैं, क्योंकि भाभी से भी ज्यादा समय भैया इन के साथ गुजारते थे,’’ सतबीर ने विभोर का परिचय करवाया.

रणबीर के शरीर को पोस्टमाटर्म के लिए ले जाने को जैसे ही ऐंबुलैंस में रखा, पूरा परिवार बुरी तरह बिलखने लगा.

‘‘आप ही को इन सब को संभालना होगा विभोर साहब,’’ विभास ने कहा.

‘‘घर पर और भी कई इंतजाम करने पड़ेंगे विभास. आप साइट का काम बंद करवा कर बंगले पर आ जाइए और कुछ जिम्मेदार लोगों को अभी बंगले पर भिजवा दीजिए,’’ विभोर ने कहा.

विभोर जितना सोचा था उस से कहीं ज्यादा काम करने को थे. बीचबीच में मशवरे के लिए उसे परिवार के पास अंदर भी जाना पड़ रहा था. एक बार जाने पर उस ने देखा कि ऋतिका और मृणालिनी भी आ गई हैं. मृणालिनी गरिमा को गले लगाए जोरजोर से रो रही थी. चेतना और सतबीर उन्हें हैरानी से देख रहे थे.

‘‘ये मेरी सास हैं और आप की मां की घनिष्ठ सहेली. यह बात कुछ महीने पहले ही उन्होंने सर को बताई थी, तब से सर अकसर उन से मिलते रहते थे,’’ विभोर ने धीरे से कहा.

‘‘हां, भैया ने बताया तो था कि मां की एक सहेली से मिल कर उन्हें लगता है कि जैसे मां से मिले हों. मगर उन्होंने यह नहीं बताया कि वे आप की सास हैं,’’ सतबीर बोला.

‘‘विभोर साहब, बेहतर रहेगा अगर आप अपनी सासूमां को संभाल लें, क्योंकि उन के इस तरह रोने से भाभी और बच्चे और व्यथित हो जाएंगे और फिर हमें उन्हें संभालना पड़ेगा,’’ चेतना ने कहा.

‘‘आप ठीक कहती हैं,’’ कह कर विभोर ने ऋतिका को बुलाया, ‘‘मां को घर ले जाओ ऋतु. अगर इन की तबीयत खराब हो गई तो मेरी परेशानी और बढ़ जाएगी.’’

कुछ देर बाद ऋतिका का घर से फोन आया कि मां का रोनाबिलखना बंद ही नहीं हो रहा, ऐसी हालत में उन्हें छोड़ कर वापस आना वह ठीक नहीं समझती. तब विभोर ने कहा कि उसे आने की आवश्यकता भी नहीं है, क्योंकि वहां कौन आया या नहीं आया देखने की किसी को होश नहीं है.

एक व्यक्ति के जाने से जीवन कैसे अस्तव्यस्त हो जाता है, यह विभोर को पहली बार पता चला. सतबीर और गरिमा ने तो यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि रणबीर ने जो प्रोजैक्ट शुरू कराए थे, उन्हें उस की इच्छानुसार पूरा करना अब विभोर की जिम्मेदारी है. उन दोनों को भरोसा था कि विभोर कभी कंपनी या उन के परिवार का अहित नहीं करेगा. विभोर की जिम्मेदारियां ही नहीं, उलझनें भी बढ़ गई थीं.

रणबीर की मृत्यु का रहस्य उस के मोबाइल पर मिले अंतिम नंबर से और भी उलझ गया था. वह संदेश एक अस्पताल के सिक्का डालने वाले फोन से भेजा गया था और वहां से यह पता लगाना कि फोन किस ने किया था, वास्तव में टेढ़ी खीर था. पहले दयानंद के कटाक्ष से लगा था कि वह गरिमा के खिलाफ है और शायद गरिमा रणबीर की अवहेलना करती थी, लेकिन बाद में दयानंद ने बताया कि वैसे तो गरिमा रणबीर के प्रति संर्पित थी बस उस की नियमित सुबह की सैर या दिवंगत मातापिता के कमरे में बैठने की आदत में गरिमा, बच्चों व सतबीर की कोई दिलचस्पी नहीं थी. दयानंद के अनुसार यह सोचना भी कि सतबीर या गरिमा रणबीर की हत्या करा सकते हैं, हत्या जितना ही जघन्य अपराध होगा.

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मामला दिनबदिन सुलझने के बजाय उलझता ही जा रहा था. इंस्पैक्टर

देव का कहना था कि विभोर ही रणबीर के सब से करीब था. अत: उसे ही सोच कर बताना है कि रणबीर के किस के साथ कैसे संबंध थे. रणबीर की किसी से दुश्मनी थी, यह विभोर को बहुत सोचने के बाद भी याद नहीं आ रहा था और अगर किसी से थी भी तो उस की पहुंच रणबीर के रिवौल्वर तक कैसे हुई? इंस्पैक्टर देव का तकाजा बढ़ता जा रहा था कि सोचो और कोई सुराग दो.

दीवार: भाग 3

एक शाम वह औफिस से लौटा तो जया को देख कर हैरान रह गया.

‘‘तुम आज औफिस से जल्दी कैसे आ गईं, जया?’’

‘‘मैं आज औफिस गई ही नहीं,’’ जया ने बताया, ‘‘जा ही रही थी कि मुरली हड़बड़ाया हुआ आया कि अंकल अपने औफिस की लिफ्ट में फंस गए हैं. केबल टूटने की वजह से 9वीं मंजिल से लिफ्ट नीचे गड्ढे में जा कर गिरी है…’’

‘‘ओह नो, अब अंकल कैसे हैं, जया?’’ राहुल ने घबरा कर पूछा.

‘‘खतरे से बाहर हैं, आईसीयू से निजी कमरे में शिफ्ट कर दिए गए हैं लेकिन  1-2 रोज अभी औब्जरवेशन में रखेंगे.’’

‘‘और मुरली भी रहेगा ही…’’

‘‘मुरली नहीं, रात को अंकल के पास तुम रहोगे राहुल. अंकल को नौकर की नहीं किसी अपने की जरूरत है.’’

‘‘मुझे दूसरी जगह सोना अच्छा नहीं लगता इसलिए मैं तो जाने से रहा,’’ राहुल ने सपाट स्वर में कहा.

‘‘तो फिर मैं चली जाती हूं. अंकल को किराए के लोगों के भरोसे तो छोड़ने से रही. वैसे भी औफिस से तो मैं ने छुट्टी ले ही ली है इसलिए जब तक अंकल अस्पताल में हैं मैं वहीं रहूंगी,’’ जया ने अंदर जाते हुए कहा, ‘‘मुरली आए तो उसे रुकने को कहना है, मैं अपने कपड़े ले कर आती हूं.’’

राहुल ने लपक कर उस का रास्ता रोक लिया.  ‘‘मगर क्यों? क्यों जया, उन के लिए इतना दर्द क्यों?’’ राहुल ने व्यंग्य से पूछा, ‘‘क्या लगते हैं वह तुम्हारे?’’

‘‘मेरे ससुर लगते हैं क्योंकि वह तुम्हारे बाप हैं,’’ जया के स्वर में भी व्यंग्य था, ‘‘आनंद उन की जाति नहीं नाम है और डीए आनंद का पूरा नाम असीम आनंद धूत है.’’  राहुल हतप्रभ रह गया. हलके से दिया गया झटका भी जोर से लगा था.

‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’

‘‘अचानक ही पता चल गया. 7-8 सप्ताह पहले अहमदाबाद से लौटते हुए प्लेन में मेरी बराबर की सीट पर एक प्रौढ़ दंपती बैठे थे, वार्तालाप तो होना ही था. यह सुन कर मैं स्टार टावर्स में रहती हूं, महिला ने अपने पति से कहा, ‘तुम्हारे धूर्तानंद भी तो अब वहीं रहते हैं.’

‘‘पति रूठे अंदाज में बोला, ‘तुम सब की इस धूर्तानंद कहने की आदत से चिढ़ कर असीम डीए आनंद बन गया मगर तुम ने अपनी आदत नहीं बदली.’  ‘‘‘वह तो उन्होंने विदेश जा कर उपनाम पहले लिखने का चलन अपनाया था और यहां लौट कर गुस्साए ससुराल वालों और बीवीबच्चों से छिपने के लिए वही अपनाए रखा लेकिन एक बात समझ नहीं आई, मेफेयर गार्डन में बैंक से मिली बढि़या कोठी छोड़ कर वे स्टार टावर्स के फ्लैट में रहने क्यों चले गए?’ पत्नी ने पूछा.

‘‘‘जिन बीवीबच्चों से बचने को नाम बदला था अब जीवन की सांध्य बेला में उन की कमी महसूस हो रही है इसलिए यह पता चलते ही कि एक बेटा स्टार टावर्स में रहता है, ये भी वहीं रहने चला गया, कहता है कि अपनी असलियत उसे नहीं बताएगा, दूर से ही उसे आतेजाते देख कर खुश हो लिया करेगा.’

‘‘‘खुशी मिल रही है कि नहीं?’

‘‘‘क्या पता, मेफेयर गार्डन में रहता था तो गाहेबगाहे मुलाकात हो जाती थी. स्टार टावर्स से न उसे आने की और न हमें जाने की फुरसत है.’

‘‘मेरे लिए इतना जानना ही काफी था और तब से मैं उन का यथोचित खयाल रखने लगी हूं.’’

‘‘लेकिन तुम ने मुझ से यह क्यों छिपाया?’’

‘‘क्योंकि सुनते ही तुम अंकल की खुशी को नष्ट कर देते. अभी भी मजबूरी में बताया है. एकदम असहाय और असमर्थ से लग रहे अंकल के चेहरे पर मुझे देख कर जो राहत और खुशी आई थी, वह मैं उन से कदापि नहीं छीनूंगी और न ही अपने और तुम्हारे बीच में शक या नफरत की दीवार को आने दूंगी,’’ जया ने दृढ़ स्वर में कहा.  ‘‘अब तुम्हारेमेरे बीच शक की कोई दीवार नहीं रहेगी जया और न ही बापबेटे के बीच नफरत की…’’

‘‘और न इन दोनों फ्लैट को अलग करने वाली यह दीवार,’’ जया ने बात काटी.  ‘‘हां, यह भी नहीं रहेगी, बिलकुल, पर अभी तो मैं पापा के साथ अस्पताल में रहूंगा और वहां से आने के बाद पापा हमारे साथ ही रहेंगे,’’ राहुल का स्वर भी दृढ़ था.

शैतान : अरलान ने रानिया के साथ कौन सा खेल खेला

Holi Special: अधूरी चाह- भाग 2

उस का घर शालिनी की लेन में नहीं था, बस थोड़ा लेन से कट मार कर था, इसलिए सामने से नजर नहीं आता था. 4 साल से वह शालिनी पर नजर रखे हुए था, उस की हर हरकत को नोटिस करता. उस ने शालिनी के बारे में सब जानकारी निकाल ली थी.

दरअसल, इस समय बच्चे बड़े हो रहे थे और खर्चे बढ़ने की वजह से शालिनी और संजय ने फैसला लिया कि शालिनी को कोई नौकरी करनी चाहिए, वैसे भी बच्चों की जिम्मेदारी अब थोड़ा कम है, बच्चे खुद को संभाल सकते हैं, तो शालिनी का काफी समय फ्री रहता है.

अजय श्रीवास्तव ने इसी मौके का फायदा उठाया. पहले उस ने शालिनी से जानपहचान बढ़ाई, फिर शालिनी को अपने औफिस में जौब का औफर दिया. शालिनी को भी यही चाहिए था. उस ने नौकरी जौइन कर ली.

अजय ने अपनेआप को बहुत अमीर शो किया हुआ था. शालिनी उस की गाड़ी और कपड़ों को देखती तो रश्क करती कि काश, उस के पास भी ऐसी गाड़ी हो. न जाने अजय श्रीवास्तव में शालिनी को कैसा खिंचाव महसूस हुआ कि वह उस की तरफ खिंचती चली गई.

अजय श्रीवास्तव के मातापिता की मौत हो चुकी थी, एक बहन है, उस की शादी हो गई है और अजय अभी तक कुंआरा है. वह शादी नहीं करना चाहता, क्योंकि जिस दिन शालिनी ने वहां शिफ्ट किया था, उसी दिन अजय के दिल में वह बस गई थी. 4 साल से वह राह तक रहा था कि कब और कैसे शालिनी को अपना बनाए.

आज अजय का जन्मदिन है. उस ने शालिनी को अपने घर पर बुलाया है. बस केवल शालिनी और अजय जन्मदिन मना रहे हैं, लेकिन शालिनी को उस के घर की भव्यता देख कर अच्छा लग रहा है.

अजय ने पूछा, ‘‘शालिनी, तुम्हें कैसा लगा मेरा छोटा सा आशियाना?’’

शालिनी बोली, ‘‘अजयजी, यह छोटा है? अरे, यह तो महल है महल… काश, मैं इस महल की रानी होती.’’

‘‘अरे, तो आप खुद को इस महल की रानी ही सम?ा न…’’

शालिनी शरारत से बोली, ‘‘ओहो, अच्छाजी, तो राजा कौन है?’’

‘‘डियर, तुम चाहो तो हम तैयार हैं…’’ और शालिनी को जैसे ही अजय अपनी ओर खींचना चाहता है, शालिनी खुद को उस की बांहों में सौंप देती है.

2 जवां दिल तेजी से धड़कने लगे, रगों में खून गर्मजोशी दिखाने लगा, अजय की चाहत उस की बांहों में खुद को समेटे हुए है और शालिनी की अधूरी चाह ने भी अंगड़ाई ली है. वह भी खुद को रोक नहीं पा रही, बेकाबू हो रही थी अजय में समा जाने को. दोनों के होंठ थरथराए और उल?ा गए एकदूसरे से. एक बहाव आया और दोनों को बहा कर ले गया.

आज अजय की मुराद पूरी हो गई. शालिनी को भी बहुत अच्छा लग रहा है. बहुत खुश है आज वह. घर आ कर भी चहकती रहती है.

अगले दिन जैसे ही वह नौकरी के लिए घर से निकलती है, अजय का फोन आता है, ‘शालिनी डियर, ऐसा करो तुम घर पर आ जाओ. मैं अभी घर पर हूं, बाद में साथ में औफिस चलते हैं…’

‘‘ओके, मैं आ रही हूं.’’

शालिनी अजय के घर गई तो देखा कल का सबकुछ फैला हुआ था. केक भी वहीं पड़ा था. खानेपीने का सामान जो बचा था, सब ऐसा पड़ा था.

शालिनी ने पूछा, ‘‘आज बाई नहीं आई क्या अभी तक?’’

‘‘नहीं, आज मैं ने उसे आने को मना किया, कहीं हमारे बीच में जो कल हुआ, उस के बारे में किसी चीज से उसे कोई शक न हो, इसलिए…’’

‘‘कोई बात नहीं. हम सब अभी साफसफाई कर लेते हैं और फिर औफिस चलेंगे,’’ इतना कह कर शालिनी सब साफ करने की कोशिश करती है, लेकिन अजय उस का हाथ पकड़ लेता है, ‘‘डार्लिंग रहने दो यह सब, इन में कल के प्यार की खुशबू है…’’ और दोनों एकदूसरे की तरफ देखते हैं. उन के चेहरों पर एक शरारती मुसकराहट है.

पूरा दिन दोनों घर पर रह कर ही समय बिताते हैं. ऐसा अब रोज होने लगा. शालिनी घर से औफिस की कह कर अजय के घर चली जाती और दोनों पूरा दिन घर पर मौजमस्ती करते. किसी को कानोंकान खबर नहीं थी, क्योंकि अजय ने बाई को काम से निकाल दिया था. उस के घर का सारा काम अब शालिनी करती थी.

खैर, इस तरह से कई महीने बीत गए. अजय श्रीवास्तव की कुछ पुश्तैनी जायदाद थी, जिस की घर बैठे ही आमदनी आती थी और काम चल रहा था, लेकिन ऐसा कब तक चलता आखिर बिजनैस हो या प्रोपर्टी हो, कभी तो देखभाल की जरूरत होती ही है.

अब अजय औफिस जाने लगा और शालिनी को घर पर छोड़ कर बाहर से ताला लगा कर जाता. शालिनी ही घर का सारा काम करती और सारा दिन उस के घर पर रहती.

अजय का जब जी चाहता तो घर आ जाता और फिर शाम या रात के समय ही शालिनी घर जाती. जब वह लेट हो जाती, तो काम के ज्यादा होने का बहाना करती. काम के ज्यादा होने के चलते फिर उसे घर पर आराम के लिए कहा जाता और रात का खाना संजय खुद ही मैनेज करता.

इस तरह से न तो अजय ने किसी और लड़की से शादी की, न शालिनी को ही छोड़ा. न जाने क्या था… शालिनी भी रोज इसी तरह से अजय के घर पर ही सारा दिन रहती.

जब कभी अजय के घर कोई रिश्तेदार या मेहमान आता, तो उस दिन वह शालिनी को नहीं बुलाता था और शालिनी तबीयत खराब होने का बहाना कर घर पर रहती और कहती कि औफिस से छुट्टी ले ली है, लेकिन यहां बाजी पलटती है.

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