कानून के टप्पेबाजी…

लेखक- सुरेशचंद्र मिश्र  

पैट्रोलपंप मालिक संजय पाल जब कानपुर के थाना किदवईनगर पहुंचे, तब दोपहर के 12 बज रहे
थे. थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा थाने में मौजूद थे और क्षेत्र में बढ़ रही आपराधिक घटनाओं को रोकने के लिए अपने अधीनस्थ अफसरों से विचारविमर्श कर रहे थे.
संजय पाल ने उठतीगिरती सांसों के बीच उन्हें बताया, ‘‘सर, मेरे साथ टप्पेबाजी हो गई. 2 टप्पेबाज युवकों ने मेरी कार से नोटों से भरा बैग पार कर दिया. बैग में 10 लाख 69 हजार रुपए थे, जिसे मैं अपने ड्राइवर अरुण पाल के साथ भारतीय स्टेट बैंक की गौशाला शाखा में जमा करने जा रहा था.’’
संजय पाल की बात सुन कर थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा चौंके. उन्होंने तत्काल पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी. जब यह सूचना पुलिस कंट्रोल रूम से प्रसारित हुई तो पूरा पुलिस महकमा अलर्ट हो गया.

बेवफाई की लाश
पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर जाने के लिए रवाना हो गए. टप्पेबाजी की यह बड़ी वारदात संजय वन वाली मेनरोड पर हुई थी. कुछ ही देर में किदवईनगर थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा, नौबस्ता थानाप्रभारी संतोष कुमार, अनवर गंज थानाप्रभारी मंसूर अहमद, चकेरी थानाप्रभारी अजय सेठ, सीओ (गोविंद नगर) आर.के. चतुर्वेदी, सीओ (नजीराबाद) अजीत कुमार सिंह, सीओ (बाबूपुरवा) अजीत कुमार रजक, एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल, एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन, एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी तथा एसएसपी अनंत देव तिवारी घटनास्थल पर पहुंच गए.
पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और पूरे कानपुर शहर में वाहन चैकिंग शुरू करा दी. टूव्हीलरों और फोर व्हीलरों की सघन तलाशी होने लगी. यह बात 19 दिसंबर, 2018 की है.

बदले पे बदला
टप्पेबाजी का शिकार हुए संजय पाल घटनास्थल पर मौजूद थे. एसएसपी अनंत देव ने उन से घटना के संबंध में पूछताछ की. संजय पाल ने बताया कि वह चकेरी थाने के श्याम नगर मोहल्ले में रहते हैं. नौबस्ता के कोयला नगर, मंगला विहार में उन का श्री बालाजी फिलिंग स्टेशन नाम से पैट्रोल पंप है. पैट्रोल बिक्री की रकम वह गौशाला स्थित भारतीय स्टेट बैंक की शाखा में जमा करते हैं.
हर रोज की तरह वह आज भी पैट्रोल बिक्री का 10.69 लाख रुपए अपनी निजी कार से जमा करने जा रहे थे. कार को उन का ड्राइवर अरुण पाल चला रहा था.
संजय पाल ने बताया कि करीब साढ़े 11 बजे जब वह संजय वन चौकी से 80 मीटर पहले एक निर्माणाधीन बिल्डिंग के सामने पहुंचे ही थे कि पीछे से बाइक पर सवार 2 युवकों ने कार के आगे की ओर इशारा किया. ड्राइवर अरुण ने कार रोक कर देखा तो बोनट के पास मोबिल औयल गिरता नजर आया.

अशिकी मे गई जान
अरुण ने बोनट खोल कर चैक किया और कार मिस्त्री को फोन कर के जानकारी दी. मिस्त्री ने कहा कि कोई खास दिक्कत नहीं है. इस पर वे दोनों कार में बैठ गए. संजय ने बताया कि कार में बैठते ही आंखों में तेज जलन हुई. वह आंखें मलते हुए ड्राइवर के साथ बाहर निकले. इसी बीच बाइक सवार युवकों ने कार की पीछे वाली सीट पर रखा रुपयों से भरा बैग उड़ा दिया.
जब उन्हें इस बात की जानकारी हुई तो वे तत्काल संजय वन चौकी गए. लेकिन चौकी पर ताला लटक रहा था. उस के बाद वह थाना किदवईनगर गए और पुलिस को सूचना दी.

अजय विजय के बीच शिववती
संजय पाल की बातों से स्पष्ट था कि किसी बड़े टप्पेबाज गिरोह ने टप्पेबाजी की है. गैंग के अन्य सदस्य भी रहे होंगे जो वारदात के समय आसपास ही होंगे. एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी को शक हुआ कि इस वारदात में कहीं ड्राइवर तो शामिल नहीं.
उन्होंने कार ड्राइवर अरुण पाल को बातों में उलझा कर पूछताछ की लेकिन उस ने वही सब बताया जो संजय पाल ने बताया था. संजय पाल ने भी अरुण पाल को क्लीनचिट दे दी. उन्होंने कहा कि वह उन का विश्वासपात्र ड्राइवर है. घटनास्थल पर एक नाबालिग चश्मदीद था, जो पोस्टर बैनर बना रहा था. पुलिस ने उस से भी पूछताछ की, लेकिन कुछ हासिल नहीं हो सका.
जिस जगह सड़क पर टप्पेबाजी हुई थी, उस के दूसरी ओर एक मकान के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा था. एसएसपी अनंत देव तिवारी तथा एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी ने इस सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो उस में पूरी वारदात कैद थी. सीसीटीवी में साफ दिख रहा था कि जब पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल और उन का ड्राइवर अरुण पाल कार का बोनट खोल कर जांच करने लगी, तभी बाइकर्स आगे जा कर डिवाइडर कट से मुड़े.
पीछे बैठा युवक बाइक से नीचे उतरा. वह काली शर्ट व नीली जींस पहने था. डिवाइडर फांद कर उस ने कार की पीछे वाली सीट से रुपयों से भरा बैग उठाया और फिर वापस साथी के पास आया. बाइक चलाने वाला युवक नीली शर्ट, जींस, लाल जूते पहने था और हेलमेट लगाए था. इस के बाद बाइकर्स यशोदानगर की ओर भागते दिखे.

सुंदरी की साजिश

इधर देर रात तक पुलिस शहर भर में वाहन चैकिंग करती रही लेकिन वारदात को अंजाम देने वालों का पता नहीं चल सका. उधर दूसरे दिन पैट्रोल और एचएसडी डीलर्स एसोसिएशन ने आपात बैठक बुलाई और पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल से 10.69 लाख की टप्पेबाजी की घटना को ले कर रोष व्यक्त किया.
बैठक के बाद अध्यक्ष ओमशंकर मिश्रा, महासचिव सुनील शरन गर्ग, कोषाध्यक्ष संजय गुप्ता, सुखदेव पाल, बसंत माहेश्वरी तथा पवन गर्ग ने पुलिस के आला अधिकारियों एडीजी अविनाश चंद्र तथा आईजी आलोक सिंह से मुलाकात की. उन्होंने पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल से टप्पेबाजी की घटना का जल्दी खुलासा करने का अनुरोध किया.

नशे और ग्लैमर का चक्रव्यूह
पैट्रोल और एचएसडी डीलर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने कहा कि पुलिस प्रशासन को पैट्रोल मालिकों को समुचित सुरक्षा देनी चाहिए. असलहों के लाइसैंस शीघ्र निर्गत किए जाएं. अगर ऐसा नहीं होता है तो पैट्रोल पंप मालिक हड़ताल पर चले जाएंगे.
एडीजी अविनाश चंद्र तथा आईजी आलोक सिंह ने पैट्रोल पंप एसोसिएशन के पदाधिकारियों की बात गौर से सुनी और उन्हें आश्वासन दिया कि संजय पाल के साथ हुई टप्पेबाजी की घटना का जल्दी ही खुलासा हो जाएगा. उन की मांगों का भी निस्तारण होगा.
पदाधिकारियों को आश्वासन देने के बाद एडीजी अविनाश चंद्र ने पुलिस अधिकारियों की एक मीटिंग बुलाई. इस में एसपी, सीओ, इंसपेक्टर तथा तेजतर्रार दरोगाओं ने भाग लिया. मीटिंग में शहर में आए दिन हो रही टप्पेबाजी की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की गई.
मीटिंग के बाद एडीजी अविनाश चंद्र व आईजी आलोक सिंह ने टप्पेबाजी गैंग को पकड़ने के लिए 4 टीमें बनाईं. इन टीमों की कमान एसएसपी अनंत देव तिवारी, एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी, एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल को सौंपी गई.
टीम में सीओ (गोविंद नगर) आर.के. चतुर्वेदी, सीओ (नजीराबाद) अजीत कुमार सिंह, सीओ (बाबूपुरवा) अजीत कुमार रजक, इंसपेक्टर अनुराग मिश्रा, संतोष कुमार, मंसूर अहमद, अजय सेठ, राजीव सिंह, एडीजीजी की क्राइम ब्रांच से अजय अवस्थी, कुलभूषण सिंह, वंश बहादुर, सीमांत और अखिलेश व एक दरजन तेजतर्रार तथा सुरागसी में दक्ष दरोगा वगैरह के साथसाथ सर्विलांस टीम को शामिल किया गया.

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इन टीमों ने टप्पेबाजों की तलाश शुरू की और एक दरजन से अधिक लोगों को उठा कर उन से कड़ाई से पूछताछ की. लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. टीमों ने पैट्रोल पंप पर काम करने वाले कर्मचारियों तथा घटना के चश्मदीद नाबालिग किशोर से भी पूछताछ की, लेकिन कोई क्लू नहीं मिला.
पुलिस टीमों ने शहर के बाहर शिवली, घाटमपुर, महाराजपुर, जहानाबाद आदि कस्बों में टप्पेबाजी करने वालों की तलाश की. जेल से छूटे पुराने टप्पेबाजों को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की गई, लेकिन कोई ऐसी जानकारी नहीं मिल सकी, जिस से संजय पाल से की गई टप्पेबाजी का खुलासा हो पाता.
पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल के साथ हुई टप्पेबाजी की वारदात एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी के क्षेत्र में हुई थी, इसलिए वह इस वारदात को ले कर कुछ ज्यादा प्रयासरत थीं. उन के दिशानिर्देश में काम कर रही टीम रातदिन एक किए हुए थी. सर्विलांस टीम भी उन के साथ काम कर रही थी.
सर्विलांस टीम ने पुलिस टीम के साथ संजय पाल के घर से घटनास्थल तक मोबाइल टावर डेटा फिल्टरेशन की मदद ली. इस में एक नंबर ऐसा निकला जो वारदात के वक्त घटनास्थल पर एक्टिव था. उस नंबर की लोकेशन यशोदा नगर हाइवे से उन्नाव की ओर मिली थी, इसलिए सर्विलांस टीम ने उस नंबर को लिसनिंग पर लगा दिया.

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29 दिसंबर को उस नंबर धारक ने लखनऊ में रहने वाले एक साथी से बात की, जिसे पुलिस ने सुन लिया. इस के बाद एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी की टीम ने मोबाइल लोकेशन के जरिए आलमबाग, लखनऊ से 2 युवकों को धर दबोचा.
रवीना त्यागी ने जब इन युवकों से पूछताछ की तो उन्होंने अपना नाम विनेश और विकास बताया. इन दोनों से रवीना त्यागी ने संजय वन रोड पर हुई 10.69 लाख की टप्पेबाजी के बारे में पूछा तो दोनों साफ मुकर गए. लेकिन जब उन्हें थाना किदवई नगर लाया गया और पुलिसिया अंदाज में पूछताछ हुई तो दोनों टूट गए. उन्होंने 10.69 लाख रुपए की टप्पेबाजी स्वीकार कर ली. उन दोनों ने बताया कि उन का टप्पेबाजी का गैंग है. गैंग के अन्य सदस्य झकरकटी बसअड्डा स्थित गणेश होटल में ठहरे हुए हैं.
इस के बाद पुलिस की चारों संयुक्त टीमों ने झकरकटी स्थित गणेश होटल पर छापा मारा और 3 बैड वाले एक रूम से 8 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. इन में एक महिला और एक नाबालिग भी था.

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इन के पास से पुलिस ने टप्पेबाजी कर के उड़ाया गया बैग बरामद कर लिया. बैग से 10.69 लाख रुपए सहीसलामत मिले. इस के अलावा पुलिस ने गैंग के पास से एक कार, एक वैन, एक बाइक, पेपर स्प्रे, चिली स्प्रे, गुलेल, लोहे के छर्रे, जले हुए मोबिल औयल की बोतल तथा सूजा बरामद किया.

पुलिस की संयुक्त टीम ने टप्पेबाज गैंग के 11 सदस्यों को पकड़ा. इन सभी को बरामद रुपए और अन्य सामान के साथ थाना किदवई नगर लाया गया. पूछताछ में गैंग के सदस्यों ने अपना नाम आकाश, राहुल, प्रेम, राजेश, रामू, अनिकली, विनेश, विकास, नरेश निवासी मदनगीर, दिल्ली तथा वरदराज और नाबालिग एस. विजय निवासन निवासी इंद्रपुरी दिल्ली बताया.
एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी ने संजय वन रोड पर हुई टप्पेबाजी का खुलासा करने, पूरे गैंग को पकड़ने और टप्पेबाजी का 10.69 लाख रुपए बरामद करने की जानकारी एडीजी अविनाश चंद्र, आईजी आलोक सिंह तथा एसएसपी अनंत देव तिवारी को दी.
इस के बाद एसएसपी अनंत देव तिवारी व एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी ने पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता की, जिस में आरोपियों को पेश किया गया. प्रैसवार्ता के दौरान एडीजी अविनाश चंद्र ने टप्पेबाज गैंग को पकड़ने वाली टीम को एक लाख रुपए तथा आईजी आलोक सिंह ने 50 हजार रुपए का पुरस्कार देने की घोषणा की.

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प्रैसवार्ता में टप्पेबाजी के शिकार पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल तथा पैट्रोल और एचएसडी डीलर्स के पदाधिकारियों को बुलाया गया. संजय पाल ने नोटों से भरे अपने बैग की पहचान की तथा खुलासे के लिए पुलिस की सराहना की.

चूंकि गैंग के सदस्यों ने अपना जुर्म कबूल कर के रुपया भी बरामद करा दिया था. इसलिए किदवईनगर थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा ने टप्पेबाजी के शिकार हुए संजय पाल को वादी बता कर भादंसं की धारा 406, 419, 420 के तहत राहुल, प्रेम, राजेश रामू, विकास, विनेश, अनिकली, आकाश, वरदराज, नरेश तथा एस. विजय निवासन (नाबालिग) के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली और सभी को गिरफ्तार कर लिया. बंदी बनाए गए आरोपियों से की गई पूछताछ में जो घटना सामने आई, उस का विवरण इस तरह है—

डाक्टर नहीं जल्लाद
कानपुर में पकड़े गए टप्पेबाज विनेश, विकास, आकाश, राहुल व उन के गैंग के अन्य सदस्य मूलरूप से तमिलनाडु के चेन्नै व त्रिची के रहने वाले थे. सालों पहले ये लोग दिल्ली आए और मदनगीर जेजे कालोनी तथा इंद्रपुरी के क्षेत्रों में बस गए. इन क्षेत्रों में इन के 25 डेरे हैं, जो आपस में जुड़े हुए हैं. एक डेरे में 12-13 सदस्य होते हैं.
इन सदस्यों के समूह को डेरा नाम दिया जाता है. डेरा स्वामी समूह का सरगना होता है. इन की पीढि़यां कई दशकों से अपराध को जीविकोपार्जन का साधन बनाए हुए हैं. इन्हें बाकायदा ट्रेनिंग दी जाती है. इन के गिरोह में पुरुष, महिला व बच्चे सभी होते हैं.
इन के समुदाय के जो लोग अपराध की ट्रेनिंग नहीं लेते और अपराध नहीं करते, उन्हें डेरे के लोग नकारा मानते हैं. उन्हें हीनभावना से देखते हैं. ऐसे निठल्लों की शादी भी नहीं होती.
दिल्ली का डेरा टप्पेबाज गैंग, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली व राजस्थान के विभिन्न शहरों में वारदातें करता था. वह राज्य के जिस जिले में जाता, वहां के बसअड्डों या रेलवे स्टेशनों के आसपास के होटलों में ठहरता. होटल में वैध आईडी दिखा कर ये लोग कमरा बुक कराते थे. चूंकि इन के साथ महिलाएं व बच्चे होते, इसलिए पुलिस भी इन पर शक नहीं करती. ये लोग किराए का वाहन प्रयोग नहीं करते. अपनी कार, वैन या मोटरसाइकिल ही इस्तेमाल करते हैं.

गैंग के शातिर टप्पेबाज बाइक से वारदात को अंजाम देने के लिए निकलते हैं. उन के पीछे कार होती है, जिस में महिला और एक बच्चा भी रहता है. घटना को अंजाम देने के बाद शातिर टप्पेबाज कार में नकदी व जेवरात ले कर बैठ जाते हैं.
पुलिस को चकमा देने के लिए दूसरे साथी नकदी ले कर बाइक से निकल जाते हैं. ज्यादातर वाहन गैंग की महिलाओं के नाम खरीदे हुए होते हैं. वाहन सही नामपते पर रजिस्टर्ड होते हैं, जिस से पुलिस चैकिंग में कभी नहीं पकड़े जाते.
गैंग के शातिर लोग रेलवे क्रौसिंग, जेब्रा क्रौसिंग, रेड लाइट तथा जाम वाली जगहों पर रेकी करते हैं. वहां घटना को अंजाम दे कर ये लोग दूसरे जिले की ओर कूच कर जाते हैं. ये लोग चलती गाड़ी के बोनट पर जला हुआ मोबिल औयल डाल कर शिकार बनाते हैं या फिर चलती गाड़ी रुकवा कर चिली स्प्रे के सहारे टप्पेबाजी करते हैं.
कभीकभी ये गाड़ी का शीशा तोड़ कर नोटों से भरा बैग या अन्य सामान पार कर लेते हैं. कार के टायर में सूजा चुभो कर ये लोग पंक्चर कर के भी गाड़ी से सामान गायब कर देते हैं. कभीकभी ये लोग खुद को क्राइम ब्रांच का अधिकारी या आयकर विभाग का अधिकारी बता कर भी टप्पेबाजी कर लेते हैं.

दिल्ली के डेरा टप्पेबाज गैंग ने उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों आगरा, मथुरा, लखनऊ, फर्रुखाबाद, शाहजहांपुर आदि शहरों में दरजनों वारदातें कर के काफी धन एकत्र किया. दिसंबर माह के पहले सप्ताह में टप्पेबाज गैंग के डेरा मुखिया विनेश, विकास, आकाश व राहुल अपने डेरे के 2-2 सदस्य ले कर कानपुर शहर आ गए.
कानपुर में इन लोगों ने रेलवे स्टेशन स्थित एक होटल में अपनी वैध आईडी दिखा कर 3 रूम बुक कराए और साथियों के साथ ठहर गए. इस होटल में रुक कर इन लोगों ने कई लोगों को टप्पेबाजी का शिकार बनाया.
इस के बाद इन लोगों ने क्राइम ब्रांच का सिपाही बता कर प्रमोद वर्मा को शिकार बनाया. प्रमोद की बिरहाना रोड पर ज्वैलरी शौप है. प्रमोद दोपहर में घर में रखे 250 ग्राम सोने के आभूषण ले कर अपनी दुकान पर जा रहे थे. जब वह खत्री धर्मशाला के पास पहुंचे, तभी 2 युवकों ने उन्हें रोक लिया और खुद को क्राइम ब्रांच का सिपाही बताते हुए बैग की तलाशी देने को कहा.
इस पर उन्होंने दुकान पर चल कर तलाशी लेने की बात कही तो उन्होंने हड़काते हुए क्राइम ब्रांच औफिस चलने को कहा. इस से घबरा कर उन्होंने बैग खोल दिया. एक ने बैग की तलाशी शुरू कर दी. दूसरे ने उन्हें नामपता नोट करने में उलझा लिया.
कुछ देर बाद इन लोगों ने बैग लौटाते हुए कहा दुकान जाओ. प्रमोद ने दुकान जा कर बैग खोल कर देखा तो उस में पत्थर के टुकड़े थे. टप्पेबाज उन को शिकार बना कर फरार हो गए. प्रमोद ने थाना कलक्टरगंज में रिपोर्ट दर्ज कराई.

19 दिसंबर को टप्पेबाज विनेश और आकाश मोटरसाइकिल से झकरकटी स्थित गणेश होटल से शिकार की तलाश में निकले. मोटरसाइकिल विकास चला रहा था. जबकि पीछे की सीट पर विनेश बैठा था.
जब ये लोग यशोदानगर बाईपास पहुंचे तो वहां जाम लगा था. पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल की कार भी इसी जाम में फंसी थी. संजय पाल पीछे की सीट पर बैठे थे और नोटों से भरा बैग उन के पास रखा था. गाड़ी उन का ड्राइवर अरुण पाल चला रहा था.
जाम में फंसी संजय की गाड़ी पर टप्पेबाज विनेश व आकाश की नजर पड़ी. सीट पर रखा बैग देख कर उन दोनों की बांछें खिल उठीं. उन्होंने सहज ही अंदाजा लगा लिया कि बैग में मोटी रकम हो सकती है. उन्होंने संजय पाल को शिकार बनाने की ठान ली.
योजना के तहत उन्होंने कार का पीछा किया और विनेश ने जाम के चलते धीमी चल रही कार के बोनट पर मोबिल औयल गिरा दिया. संजय वन रोड पहुंचने पर विनेश ने ड्राइवर अरुण पाल को इंजन से औयल टपकने का इशारा किया. अरुण ने कार रोक दी. संजय पाल व ड्राइवर अरुण जब कार से उतरे, तभी टप्पेबाज आकाश व विनेश आ गए. उन्होंने चिली स्प्रे कार में छिड़क दिया.

गाड़ी चैक कर के संजय पाल व अरुण पाल आ कर गाड़ी में बैठे तो उन की आंखों में जलन होने लगी. दोनों आंखें मलते हुए गाड़ी के बाहर आए. इसी बीच विनेश ने नोटों से भरा बैग सीट से उठाया और बाइक की पिछली सीट पर जा बैठा. वहां से ये यशोदा नगर की ओर भाग गए.
यशोदा नगर बाईपास के पहले वृंदावन गार्डन के पास टप्पेबाज राहुल कार लिए खड़ा था. वह उन्हीं दोनों का इंतजार कर रहा था. कार में प्रेम, राजेश, नरेश, अनिकली व नाबालिग एस. विजय निवासन बैठे थे. आकाश व विनेश ने आते ही रुपयों से भरा बैग कार में बैठे लोगों को थमा दिया और खुद उन्नाव की ओर चले गए. राहुल कार ले कर वापस गणेश होटल लौट आया.
इधर टप्पेबाजों का शिकार हुए संजय पाल थाना किदवई नगर पहुंचे और थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा को टप्पेबाजों द्वारा नोटों से भरा बैग पार करने की जानकारी दी.

पकड़े गए टप्पेबाज गैंग के प्रमुख आकाश, राहुल, विनेश, विकास से जब कड़ी पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि इन के अलावा शहर में एक और गैंग है, जो टप्पेबाजी कर पुलिस की नींद हराम किए हुए है. यह गैंग महाराष्ट्र का है.
इस गैंग में तमिलनाडु के सदस्य भी हैं. इस गैंग ने अनवरगंज क्षेत्र में कई वारदातें की थीं. इंसपेक्टर (अनवरगंज) मंसूर अहमद पुलिस टीम में शामिल थे. उन से पता चला कि टप्पेबाजों ने उन के थाना क्षेत्र में बांसमंडी के पास बिंदकी (फतेहपुर) निवासी आढ़ती जयकुमार साहू के साथ टप्पेबाजी की थी.
टप्पेबाजों ने उन से कहा कि उन की कार के पहिए से हवा निकल गई है. वह पहिया चैक करने उतरे. इसी बीच टप्पेबाजों ने उन की गाड़ी में रखा बैग पार कर दिया. बैग में ढाई लाख रुपए थे.

इस के बाद टप्पेबाजों ने लालगंज निवासी रेलवे ठेकेदार विजेंद्र सिंह तथा फर्रुखाबाद निवासी अतुल को शिकार बनाया. दोनों की कार से बैग उड़ाया गया था. विजेंद्र सिंह के बैग में लाइसेंसी पिस्टल, रुपए व जरूरी कागजात थे, जबकि अतुल के बैग में नकदी व कागजात थे. तीनों ने थाना अनवरगंज में टप्पेबाजों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी.
इंसपेक्टर मंसूर अहमद इन टप्पेबाजों को पकड़ने के लिए प्रयासरत थे, लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही थी.

पकड़े गए गैंग से मंसूर अहमद को कुछ क्लू मिला तो उन्होंने टप्पेबाजी करने वाले गैंग की टोह में मुखबिर लगा दिए. वह स्वयं भी प्रयास करते रहे. उन्होंने क्षेत्र के होटलों, विश्राम गृहों तथा रेलवे स्टेशन अनवरगंज में विशेष निगरानी शुरू कर दी.

4 जनवरी शुक्रवार की रात इंसपेक्टर मंसूर अहमद को खास मुखबिर से सूचना मिली कि टप्पेबाज गिरोह बांसमंडी तिराहे पर मौजूद है और किसी बड़ी वारदात की फिराक में है.
मुखबिर की इस सूचना पर विश्वास कर मंसूर अहमद बांसमंडी तिराहा पहुंचे और मुखबिर की निशानदेही पर एक महिला सहित 4 लोगों को हिरासत में ले लिया. सभी को थाना अनवरगंज लाया गया.

एक हत्या ऐसी भी

थाने पर जब उन से नामपता पूछा गया तो एक ने अपना नाम गणेश नायडू, दूसरे ने बाबू नायडू तथा महिला ने अपना नाम पार्वती नायडू बताया. पार्वती नायडू, गणेश नायडू की बहन थी जबकि बाबू नायडू उस का बेटा था. ये तीनों महाराष्ट्र के नदुरवार जिले के नवापुर के रहने वाले थे. चौथा व्यक्ति गणेश का रिश्तेदार चंद्रुक तेली था. वह तमिलनाडु के तिरुपुर जिले के उठकली का रहने वाला था.

सपनों के पीछे भागने का नतीजा
पुलिस ने चारों की जामातलाशी ली तो उन के पास से करीब सवा लाख रुपए नकद, टायर कटर, गुलेल, छर्रे, मोबाइल तथा एटीएम कार्ड बरामद हुए. पूछताछ में टप्पेबाजों ने तीनों घटनाओं का खुलासा किया और कार से बैग उड़ाने की बात कबूली.
पुलिस ने इन टप्पेबाजों से करीब आधी रकम तो बरामद कर ली, लेकिन रेलवे ठेकेदार विजेंद्र सिंह की पिस्टल का पता नहीं चला. संभावना है कि गैंग का कोई अन्य सदस्य आधी रकम व पिस्टल ले कर किसी दूसरे जिले की ओर निकल गया हो.

30 दिसंबर, 2018 को थाना किदवईनगर पुलिस ने टप्पेबाज गिरोह के 11 सदस्यों विनेश, विकास, आकाश, राहुल, प्रेम, नरेश, रामू, वरदराज, राजेश, अनिकली तथा नाबालिग को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से नाबालिग को छोड़ कर सभी को जेल भेज दिया गया. नाबालिग को बाल सुधार गृह भेजा गया.

कातिल बहन की आशिकी
दूसरे टप्पेबाज गैंग को अनवरगंज पुलिस ने 5 जनवरी को रिमांड मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से गणेश, बाबू, पार्वती, चंदुक तेली को जिला जेल भेज दिया गया.

बेवफाई की लाश

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के सिंगरा थाना क्षेत्र में एक गांव है बड़गांव. कल्लू निषाद अपने
परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे रमेश, दिनेश, संतोष के अलावा एक बेटी थी उमा. कल्लू किसान था. खेती की आय से परिवार चलता था. समय बीतते कल्लू ने अपने सभी बच्चों की शादियां कर दीं. तीनों भाइयों ने पिता के रहते ही घर और खेती की जमीन का बंटवारा भी कर लिया. भाईबहनों में संतोष सब से छोटा था. उस का विवाह गुडि़या से हुआ था. गुडि़या के पिता रघुवीर निषाद गाजीपुर जिले के सुहावल गांव के रहने वाले थे. गुडि़या से शादी कर के संतोष बहुत खुश था.

कातिल बहन की आशिकी

बंटवारे के बाद संतोष के पास खेती की इतनी जमीन नहीं बची थी जिस से परिवार का गुजारा हो सके. फिर भी सालों तक हालात से उबरने की जद्दोजहद चलती रही.
धीरेधीरे वक्त गुजरता गया और इस गुजरते वक्त के साथ गुडि़या एक बेटे कृष्णा और 2 बेटियों की मां बन गई. गुडि़या 3 बच्चों की मां भले ही बन गई थी, लेकिन उस की देहयष्टि से ऐसा लगता नहीं था.
वह पति को अकसर खेती के अलावा कोई और काम करने की सलाह देती थी. लेकिन संतोष खेतीकिसानी में ही खुश था. बाहर जा कर नौकरी करने की बात न मानने पर संतोष का पत्नी के साथ झगड़ा होता रहता था.

संतोष अपनी जमीन पर खेती करने के साथसाथ दूसरों की जमीन भी बंटाई पर लेता था. तब कहीं जा कर परिवार का भरणपोषण हो पाता था. अगर बाढ़ या सूखे से फसल चौपट हो जाती तो उस के पास हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं बचता था. इस सब के चलते जब संतोष पर कर्ज हो गया तो उस ने गांव छोड़ दिया.
संतोष ने अपने गांव के कुछ लोगों से सुन रखा था कि कानपुर उद्योग नगरी है और वहां नौकरी आसानी से मिल जाती है. संतोष भी नौकरी की तलाश में कानपुर शहर पहुंच गया. वहां कई दिनों तक भागदौड़ करने के बाद संतोष को पनकी स्थित एक रिक्शा कंपनी में काम मिल गया. वह रिक्शा कंपनी किराए पर रिक्शा भी चलवाती थी.

रहस्य में लिपटी विधायक की मौत

संतोष मेहनती व ईमानदार था. जल्द ही उस ने वहां अपनी अच्छी छवि बना ली, उस की लगन और मेहनत को देख कर मालिक ने उसे किराए पर चलने वाले रिक्शों के चालकों से किराया वसूलने की जिम्मेदारी सौंप दी. इस के साथ ही वह किराए के रिक्शों की भी मरम्मत भी करता था. ज्यादा कमाने के चक्कर में संतोष नौकरी के बाद खुद भी रिक्शा चला लेता था.
संतोष महीने-2 महीने में कानपुर से घर लौटता था और 2-3 दिन घर रुक कर कानपुर चला जाता था. गुडि़या उन दिनों उम्र के उस दौर से गुजर रही थी, जब औरत को पुरुष की नजदीकियों की ज्यादा जरूरत होती है. एक बार संतोष घर आया तो गुडि़या ने उस से कहा कि बच्चों की अब पढ़ने की उम्र है. गांव में रह कर पढ़ नहीं पाएंगे, अत: उसे व बच्चों को साथ ले चले.
संतोष को गुडि़या की बात सही लगी. उस ने पत्नी को आश्वासन दिया कि जब वह अगली बार आएगा, तो उसे व बच्चों को अपने साथ ले जाएगा. संतोष कानपुर पहुंच कर कमरे की खोज में जुट गया. काफी कोशिश के बाद उसे अरमापुर में किराए पर कमरा मिल गया.

सपा नेत्री की गहरी चाल

कमरा मिल जाने के बाद वह पत्नी व बच्चों को कानपुर शहर ले आया. बच्चों का दाखिला उस ने अरमापुर के सरकारी स्कूल में करा दिया. गुडि़या शहर आई तो उस के रंगढंग ही बदल गए. वह खूब सजसंवर कर रहने लगी. अपने व्यवहार की वजह से उस ने आसपड़ोस की महिलाओं से भी अच्छे संबंध बना लिए थे.

संतोष जिस रिक्शा कंपनी में काम करता था, उसी में राजू नाम का युवक भी काम करता था. हालांकि राजू संतोष से कई साल छोटा था, फिर भी दोनों में खूब पटती थी. दोनों साथसाथ लंच करते थे. जरूरत पड़ने पर राजू संतोष की आर्थिक मदद भी कर देता था.
राजू पनकी स्थित रतनपुर कालोनी में अकेला रहता था. वैसे वह मूलरूप से इटावा जिले के अजीतमल गांव का रहने वाला था. उस के मातापिता की मृत्यु हो चुकी थी और भाइयों से उस की पटती नहीं थी. इसलिए कानपुर आ कर रिक्शा कंपनी में काम करने लगा था.

सपा नेत्री की गहरी चाल

एक दिन संतोष ने राजू को बताया कि आज उस के बेटे कृष्णा का जन्मदिन है. उस ने किसी और को तो नहीं बुलाया लेकिन उसे जरूर आना है. अपनेपन की इस बात से राजू खुश हुआ. उस ने कहा, ‘‘संतोष भैया, मैं शाम को जरूर आऊंगा. शाम की पार्टी भी मेरी तरफ से रहेगी.’’

राजू दिन भर काम में व्यस्त रहा. शाम होते ही वह अपने घर पहुंचा और अच्छे कपड़े पहने. फिर सजसंवर कर संतोष के घर पहुंच गया. राजू के पहुंचने पर संतोष बहुत खुश हुआ. उस ने राजू का अपनी पत्नी से परिचय कराते हुए कहा कि यह मेरा अच्छा दोस्त और हमदर्द है.

गुडि़या ने मुसकरा कर राजू का स्वागत किया और बोली, ‘‘यह आप के बारे में बताते रहते हैं और बहुत तारीफ करते हैं.’’
गुडि़या ने राजू की आवभगत की. राजू भी गुडि़या की खूबसूरती में खो गया. कुल मिला कर गुडि़या पहली ही नजर में राजू के दिलोदिमाग पर छा गई.
इस के बाद वह किसी न किसी बहाने संतोष के साथ उस के घर जाने लगा. वह जब भी घर जाता, बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें जरूर ले कर आता. बच्चों को उन की मनपसंद चीजें मिलने लगीं तो वह ‘चाचाचाचा’ कह कर उस से घुलमिल गए.

प्यार का खौफनाक पहलू

जल्दी ही राजू ने संतोष के घर में अपनी पैठ बना ली. राजू का घर आना बच्चों को ही नहीं, बल्कि गुडि़या को भी अच्छा लगता था. राजू की लच्छेदार बातें उसे खूब भाती थीं. धीरेधीरे गुडि़या के मन में भी राजू के प्रति चाहत बढ़ गई.

एक रोज गुडि़या कमरे के बाहर खड़ी धूप में बाल सुखा रही थी, तभी अचानक राजू उस के सामने आ कर खड़ा हो गया. गुडि़या ने उसे आश्चर्य से देखते हुए पूछा, ‘‘अरे तुम, इस तरह अचानक, क्या ड्यूटी नहीं गए?’’

‘‘ड्यूटी गया तो था भाभी, पर तुम्हारी याद आई तो चला आया.’’ राजू ने मुसकरा कर जवाब दिया. उस दिन राजू को गुडि़या बहुत ज्यादा खूबसूरत लगी. उस की निगाहें गुडि़या के चेहरे पर जम गईं. यही हाल गुडि़या का भी था. राजू को इस तरह देखते हुए गुडि़या बोली, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हो मुझे? क्या पहली बार देखा है? बोलो, किस सोच में डूबे हो?’’
‘‘नहीं भाभी, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो देख रहा था कि खुले बालों में आप कितनी सुंदर लग रही हैं. वैसे एक बात कहूं, आप के अलावा पासपडोस में और भी हैं, पर आप जैसी सुंदर कोई नहीं है.’’
‘‘बस…बस रहने दो. बहुत बातें बनाने लगे हो. तुम्हारे भैया तो कभी तारीफ नहीं करते. काम के बोझ से इतने थके होते हैं कि खाना खा कर बिस्तर पर लुढ़क जाते हैं और अगर उन से कुछ कहो तो किसी न किसी बात को ले कर झगड़ने लगते हैं.’’

‘‘अरे भाभी, औरत की खूबसूरती सब को रास थोड़े ही आती है. भैया तो लापरवाह हैं. शराब में डूबे रहते हैं, इसलिए तुम्हारी कद्र नहीं करते.’’ राजू बोला.
‘‘तू तो मेरी बहुत कद्र करता है? हफ्ते बीत जाते हैं, झांकने तक नहीं आता. जा बहुत देखे हैं तेरे जैसे बातें बनाने वाले.’’ गुडि़या उसे उकसाते हुए बोली.
‘‘मुझे सचमुच आप की बहुत फिक्र है भाभी. यकीन न हो तो परख लो. अब मैं आप की खैरखबर लेने जल्दीजल्दी आता रहूंगा. छोटाबड़ा जो भी काम कहोगी, मैं करूंगा.’’ राजू ने गुडि़या की चिरौरी सी की.
राजू की यह बात सुन कर गुडि़या खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘तू आराम से चारपाई पर बैठ. मैं तेरे लिए चाय बनाती हूं.’’

थोड़ी देर में गुडि़या 2 कप चाय और प्लेट में बिस्कुट व नमकीन ले आई. दोनों पासपास बैठ कर गपशप लड़ाते हुए चाय पीते रहे और चोरीछिपे एकदूसरे को देखते रहे. दोनों के ही दिलोदिमाग में हलचल मची हुई थी. सच तो यह था कि गुडि़या गबरू जवान राजू पर फिदा हो गई थी. वह ही नहीं, राजू भी मतवाली भाभी का दीवाना बन गया था.
दोनों के दिल एकदूसरे के लिए धड़के तो नजदीकियां खुदबखुद बन गईं. इस के बाद राजू अकसर गुडि़या से मिलने आने लगा. गुडि़या को उस का आना अच्छा लगता था. जल्द ही वह एकदूसरे से खुल गए और दोनों के बीच हंसीमजाक होने लगा.
इन्हीं दिनों संतोष खेतों की देखभाल के लिए एक सप्ताह की छुट्टी ले कर अपने गांव चला गया. गुडि़या को यह मौका अच्छा लगा तो उस ने एक रोज रात में राजू को अपने कमरे पर रोक लिया. खाना खाने के बाद एक चारपाई पर राजू लेट गया और दूसरी पर गुडि़या.

राजू सोने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी. उस का मन भाभी गुडि़या की तरफ ही लगा हुआ था. तभी आधी रात के बाद गुडि़या अपनी चारपाई से उठ कर उस के पास आ लेटी. इस के बाद तो राजू की खुशी का ठिकाना न रहा. वह गुडि़या से बोला, ‘‘क्या हुआ भाभी?’’
‘‘डर लग रहा था, इसलिए तुम्हारे पास चली आई.’’ गुडि़या ने उस से सटते हुए कहा.
‘‘डर लग रहा है तो लाइट जला दूं क्या?’’ राजू ने पूछा.
‘‘नहीं, लाइट जलाने की अब कोई जरूरत नहीं है. क्योंकि अब तुम मेरे पास हो.’’ कहते हुए वह उस से लिपट गई.
राजू गुडि़या की मंशा समझ चुका था. वह भी जवान था. गुडि़या के स्पर्श से उस के शरीर में भी सरसराहट दौड़ गई थी. फिर जब गुडि़या ने उसे उकसाया तो ऐसे में भला वह कैसे शांत रह सकता था. नतीजतन दोनों ने ही उस रात अपनी हसरतें पूरी कीं.

उस दिन के बाद राजू और गुडि़या अकसर कामलीला रचाने लगे. राजू अपनी अधिकांश कमाई गुडि़या व उस के बच्चों पर खर्च करने लगा. उस के घर आने का विरोध संतोष न करे, इसलिए वह उस की भी आर्थिक मदद करने लगा.
इस के अलावा संतोष जब भी शराब पीने की इच्छा जताता तो राजू उसे ठेके पर ले जाता और शराब पिलाता. इतना ही नहीं, राजू अब गुडि़या के घरेलू काम में भी हाथ बंटाने लगा. राशन लाना, बच्चों को स्कूल छोड़ना तथा शाम को सब्जी लाना उस की दिनचर्या बन गई थी.

परफेक्ट षड्यंत्र

संतोष जब गांव चला जाता तो राजू रात में उस के घर रुकता और फिर दोनों रात भर रंगरलियां मनाते. राजू जब संतोष के साथ उस के घर आता तब तो कोई बात नहीं थी, लेकिन उस की गैरमौजूदगी में जब वह अकसर उस के घर पड़ा रहने लगा तो पड़ोसियों के मन में शंका पैदा होने लगी. धीरेधीरे मोहल्ले में गुडि़या और राजू के संबंधों की चर्चा फैल गई.

एक दिन संतोष को उस के पड़ोसी रामसिंह भदौरिया ने अपने पास बुला कर कहा, ‘‘संतोष, तुम रातदिन काम में व्यस्त रहते हो और घर आ कर नशे में डूब जाते हो. कभी अपने घर की तरफ भी ध्यान दिया करो कि तुम्हारे यहां कौन आता है कौन जाता है. तुम्हें कुछ पता भी है?’’
‘‘चाचा, मेरे घर में तो सब ठीक चल रहा है. अगर कोई गड़बड़ है तो बताओ. हमें आप की बात पर पूरा भरोसा है.’’ संतोष ने पूछा.
‘‘वह जो तुम्हारा दोस्त राजू है न, वह ठीक नहीं है. तुम घर पर नहीं होते तब वह तुम्हारे घर आता है. बच्चों को पैसे दे कर घर के बाहर भेज देता है. फिर तुम्हारे घर का दरवाजा बंद हो जाता है. पूरे मोहल्ले में तुम्हारी बीवी और राजू के नाजायज संबंधों की चर्चा हो रही है और तुम कान बंद किए बैठे हो.’’ राम सिंह ने बताया.
संतोष निषाद को जब यह बात पता चली तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस ने इस बारे में पत्नी व राजू से बात की तो दोनों ने साफ कह दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है. गुडि़या ने कहा कि राजू उस की मदद करता है, इसलिए पड़ोसी जलते हैं. घर में झगड़ा कराने के लिए वे तुम्हारे कान भर रहे हैं.
संतोष ने उस समय तो पत्नी की बात पर विश्वास कर लिया और फिर कुछ दिनों के लिए जरूरी काम से अपने गांव चला गया. लगभग एक सप्ताह बाद जब वह गांव से लौटा तो घर में राजू मौजूद था. उस समय राजू और गुडि़या हंसीठिठोली और शारीरिक छेड़छाड़ कर रहे थे.
अब उसे विश्वास हो गया कि राम सिंह चाचा ने जो बात उसे बताई थी, वह सच थी. यह देख कर संतोष का पारा चढ़ गया. उसी समय उस ने गुडि़या की जम कर पिटाई कर दी. मौका पा कर राजू वहां से खिसक गया.

अगले दिन संतोष जब अपनी ड्यूटी पर पहुंचा तो कंपनी में उसे राजू मिल गया. संतोष ने राजू को वहीं पर खूब फटकारा. राजू ने उस समय उस से माफी मांग ली, पर बाद में राजू और गुडि़या पहले की तरह मिलते रहे. किसी न किसी तरह संतोष को इस की जानकारी मिलती रही.
पत्नी की इस बेवफाई से संतोष टूट गया था. वह शराब तो पहले भी पीता था लेकिन अब और ज्यादा पीने लगा. उसे गुडि़या से इतनी अधिक नफरत हो गई थी कि उस ने उस से बातचीत तक करनी बंद कर दी.
लेकिन जिस दिन राजू घर के पास दिख जाता था, उस दिन गुस्से से संतोष का खून खौल जाता था. राजू को ले कर गुडि़या से उस की तकरार होती थी. नौबत मारपीट तक आ जाती थी. पूरा मोहल्ला जान गया था कि झगड़े की जड़ राजू और गुडि़या के अवैध संबंध हैं.
इस के बाद तो खुल्लमखुल्ला पूरे मोहल्ले में दोनों के संबंधों की चर्चा होने लगी. इस से संतोष की खूब बदनामी हो रही थी. तब संतोष ने राजू के घर आने पर प्रतिबंध लगा दिया. गुडि़या अपने से 10 साल छोटे प्रेमी राजू की दीवानी थी. वह किसी भी हाल में उस से अलग नहीं होना चाहती थी.

बेरोजगारी ने बनाया पत्नी और बच्चों का कातिल

पति के चौकस हो जाने पर गुडि़या भी सतर्क हो गई. गुडि़या को जब भी मौका मिलता था, वह फोन कर के राजू को बुला लेती थी. पड़ोसियों को भनक न लगे, इस के लिए वह राजू को कमरे के पीछे खुलने वाली खिड़की से अंदर बुलाती थी, फिर शारीरिक मिलन के बाद वह उसी खिड़की से चला जाता था.
लेकिन सतर्कता के बावजूद एक रोज पड़ोसन रेखा निषाद ने राजू को खिड़की के रास्ते गुडि़या के घर में जाते देख लिया. उस ने यह बात संतोष को बताई तो उस का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने गुडि़या की जम कर पिटाई की और दूसरे दिन बच्चों सहित गुडि़या को अपने गांव वाले घर भेज दिया. गुडि़या ने गांव पहुंचने की जानकारी राजू को दे दी.
गुडि़या के गांव जाने पर राजू परेशान रहने लगा. अब दोनों की बात मोबाइल पर ही हो पाती थी. राजू गुडि़या पर दबाव बनाने लगा कि वह किसी न किसी बहाने से वापस आ जाए. उस के बिना उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा. गुडि़या राजू को आश्वासन देती कि अभी उचित समय नहीं है. संतोष का गुस्सा जब शांत हो जाएगा, तब वह उस से बात कर के आ जाएगी.
संतोष ने पत्नी को मजबूरी में गांव भेज तो दिया था लेकिन उस के जाने के बाद वह भी परेशान हो गया था. अब उसे खाना खुद ही बनाना पड़ता था. काम में व्यस्त रहने से वह इतना थक जाता था कि कभी बिना खाना खाए ही सो जाता था.
उसे बच्चों की भी याद आ रही थी. स्कूल से भी खबर आ रही थी कि आखिर बच्चे स्कूल क्यों नहीं आ रहे हैं? संतोष का मन करता कि वह बच्चों को ले आए, लेकिन पत्नी की चरित्रहीनता याद आते ही वह अपना विचार बदल देता.
जब गुडि़या को गांव से कानपुर आने का मौका नहीं मिला तो राजू संतोष को मनाने तथा उस से फिर से दोस्ती करने का प्रयास करने लगा. लेकिन संतोष उसे झिड़क देता था. एक दिन उस ने कह दिया, ‘‘तू आस्तीन का सांप है. अब मैं तेरे झांसे में नहीं आऊंगा. मैं ने तुझे भाई जैसा मानसम्मान दिया, पर तूने मुझे ही डंस लिया.’’

खाकी वरदी वाले डकैत

‘‘बड़े भैया, मुझे अपनी गलती का अहसास है. बस मुझे एक बार माफ कर दो, फिर ऐसी गलती दोबारा नहीं करूंगा.’’

राजू ने बारबार मिन्नत की तो संतोष का दिल पसीज गया. फिर से दोस्ती बहाल हो जाने पर उस दिन दोनों ने दोस्ती के नाम पर फिर से जाम पर जाम टकराए. राजू ने अपनी कामयाबी की जानकारी गुडि़या को दी तो उस के मन में आस जगी कि संतोष अब उसे अपने पास बुला लेगा.
उन्हीं दिनों संतोष वायरल फीवर की चपेट में आ गया. राजू ही उसे अस्पताल ले गया. राजू ने संतोष को सलाह दी कि वह भाभी को बुला ले तो उस की सही तरीके से देखभाल हो जाएगी. संतोष ने पहले तो मुंह बनाया फिर कुछ सोच कर गुडि़या को फोन कर बताया कि वह बीमार है, अत: बच्चों के साथ जल्दी आ जाए.
पति की बात सुन कर गुडि़या खुशी से उछल पड़ी. उस ने फटाफट अपना सामान बांध कर बच्चों को तैयार किया और दूसरे दिन कानपुर आ गई. गुडि़या की सेवा से संतोष ठीक हो गया और बच्चे भी स्कूल जाने लगे.
राजू और गुडि़या कुछ दिनों तक तो अंजान बने रहे, उस के बाद फिर से दोनों का चोरीछिपे मिलन शुरू हो गया. गुडि़या के आने के बाद राजू संतोष से किए गए अपने वादे को भूल गया.
एक रोज संतोष की अपनी कंपनी में ही तबीयत खराब हो गई. उस का बदन बुखार से तप रहा था इसलिए वह दोपहर के समय ही कंपनी से घर की ओर चल दिया. दरवाजे पर पहुंचते ही उस ने आवाज लगाई, ‘‘गुडि़या, दरवाजा खोल.’’

कई बार दरवाजा खटखटाने के बाद गुडि़या ने दरवाजा खोला. वह कमरे में पहुंचा तो उस ने खिड़की से किसी को भागते देखा. पत्नी से पूछा तो वह साफ मुकर गई. लेकिन गुडि़या के उलझे बाल, बिस्तर की हालत तो कुछ और ही बयां कर रही थी.
वह समझ गया कि जरूर इस का यार राजू यहां से भागा है. यानी इस ने अपने यार से मिलना बंद नहीं किया है. गुस्से में संतोष ने गुडि़या की चोटी पकड़ कर पूछा, ‘‘बता, तेरे साथ कमरे में कौन था? सचसच बता वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा.’’
गुडि़या घबरा तो गई, लेकिन फिर संभलते हुए बोली, ‘‘कोई भी नहीं था. तुम्हें जरूर कोई वहम हुआ है. तुम्हारी तबीयत शायद ठीक नहीं है.’’

गुडि़या ने हमदर्दी जताई तो संतोष को लगा कि शायद उसे बुखार है, इसलिए गलतफहमी हुई है. लेकिन उस का मन बारबार कह रहा था कि कमरे के अंदर राजू था जो उस के साथ सोया था. उस रात राजू को ले कर दोनों में झगड़ा होता रहा.

पहले की छेड़छाड़, फिर जिंदा जलाया

संतोष के मन में शक पैदा हुआ तो फिर बढ़ता ही गया. अब तो संतोष राजू की मौजूदगी में भी गुडि़या की पिटाई कर देता. राजू बीचबचाव करने आता तो उसे झिड़क देता.
गुडि़या राजू की दीवानी थी, इसलिए उसे न तो पति की परवाह थी और ही परिवार के इज्जत की. इसी दीवानगी में एक दिन गुडि़या ने राजू से कहा, ‘‘तुम्हारी वजह से संतोष मुझे मारतापीटता है और तुम दुम दबा कर भाग जाते हो. आखिर तुम कैसे प्रेमी हो, कुछ करते क्यों नहीं?’’
‘‘घर का मामला है भाभी, मैं कर भी क्या सकता हूं.’’ राजू ने मजबूरी जाहिर की तभी गुडि़या बोली, ‘‘विरोध तो कर सकते हो. मुझ पर उठने वाला उस का हाथ तो मरोड़ सकते हो.’’
‘‘मैं ऐसा नहीं कर सकता भाभी. क्योंकि तुम पर मेरा कोई अधिकार नहीं है. फिर भी मैं तुम्हारी बात पर गौर करूंगा.’’ राजू ने कहा.

28 नवंबर, 2018 की रात संतोष यह कह कर घर से निकला कि वह अपनी ड्यूटी पर जा रहा है. संतोष चला गया तो गुडि़या ने राजू से मोबाइल पर बात की, ‘‘राजू तुम फटाफट आ जाओ. आज तो मौज ही मौज है. वह घर पर नहीं है. पूरी रात अपनी है. जम कर मौजमस्ती करेंगे.’’
रात 12 बजे के आसपास राजू खिड़की के रास्ते गुडि़या के कमरे में पहुंच गया. गुडि़या ने एक कमरे में अपने बच्चों को सुला दिया था. दूसरे कमरे में गुडि़या सजीसंवरी बैठी थी. आते ही राजू ने गुडि़या को अपने बाहुपाश में लिया और दोनों जिस्मानी भूख मिटाने लगे.
इधर सुबह 5 बजे संतोष घर आया. वह कमरे के पास पहुंचा तो उस ने कमरे के अंदर हंसने की आवाजें सुनीं. संतोष का माथा ठनका, वह समझ गया कि कमरे के अंदर गुडि़या और राजू ही होंगे.
गुस्से में उस ने दरवाजा पीटना शुरू किया तो कुछ देर बाद गुडि़या ने दरवाजा खोला, तो उस ने खिड़की से कूदते राजू को देख लिया था. संतोष ने गुस्से में गुडि़या के बाल पकड़े और उसे जमीन पर गिरा दिया. फिर वह उसे लातघूंसों से पीटने लगा.
अचानक संतोष की नजर कमरे में रखी कुल्हाड़ी पर पड़ी. उस ने कुल्हाड़ी उठाई और ताबड़तोड़ कई वार गुडि़या के सिर और गरदन पर किए. गुडि़या खून से लथपथ हो कर जान बख्श देने की गुहार लगाने लगी.
शोर सुन कर बच्चे भी जाग गए लेकिन पिता का रौद्र रूप देख कर वे सहम गए. फिर भी कृष्णा ने बाप के हाथ से कुल्हाड़ी छीन ली और बोला, ‘‘पापा, मम्मी को मत मारो. हम लोगों को रोटी कौन देगा.’’
कहते हुए कृष्णा कुल्हाड़ी ले कर घर के बाहर भागा.
उस ने पड़ोस में रहने वाली रेखा आंटी को बताया कि उस के पापा उस की मम्मी को कुल्हाड़ी से मार रहे हैं. रेखा भागीभागी गुडि़या के कमरे में पहुंची. गुडि़या की उस समय सांसें चल रही थीं. रेखा पुलिस को फोन करने कमरे से बाहर आई तो संतोष ने कमरे में रखा फावड़ा उठा लिया और जोरदार वार कर के गुडि़या को मौत के घाट उतार दिया. हत्या करने के बाद संतोष भागा नहीं बल्कि पत्नी के शव के पास बैठ कर फूटफूट कर रोने लगा.
इधर रेखा निषाद ने पड़ोसियों व थाना अरमापुर पुलिस को सूचना दे दी. खबर मिलते ही अरमापुर थानाप्रभारी आर.के. सिंह भी वहां आ गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर मृतका के पति संतोष व उस के बच्चों से बात की.

खूनी पेंच: आखिर क्यों साधना को गंवानी पड़ी जान

संतोष ने हत्या का जुर्म कबूलते हुए पुलिस अधिकारियों को बताया कि उस की पत्नी बदचलन थी, इसलिए उसे मार दिया. उसे हत्या का कोई अफसोस नहीं है. मृतका के बच्चों ने बताया कि मां की हत्या उस के पिता संतोष ने उन की आंखों के सामने की थी. उन्होंने मां को बचाने का प्रयास भी किया था, लेकिन बचा नहीं सके. पड़ोसी रेखा भी हत्या की चश्मदीद गवाह बनी.
थाना अरमापुर के इंसपेक्टर आर.के. सिंह ने मृतका गुडि़या के शव को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाया. फिर रेखा निषाद को वादी बना कर संतोष निषाद के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली. पोस्टमार्टम के बाद शव को मृतका के मातापिता को सौंप दिया गया. कृष्णा, नंदिनी व लाडो को भी पालनपोषण के लिए नानानानी अपने साथ ले गए.
30 नवंबर, 2018 को पुलिस ने अभियुक्त संतोष निषाद को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उस की जमानत नहीं हुई थी. सभी बच्चे अपनी ननिहाल में थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अजय विजय के बीच शिववती

लेखक – सुरेशचंद्र मिश्र  

कानपुर नगर से करीब 30 किलोमीटर दूर बेला विधूना रोड पर एक गांव है

अंगदपुर. राजबली अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी अनीता के अलावा 2 बेटे थे राजू व भीम. साथ ही 2 बेटियां शिववती व रामवती भी थीं. राजबली की कहिंजरी बस स्टाप पर मिठाई की दुकान थी, उसी से उस के परिवार का भरणपोषण होता था. उस के दोनों बेटे भी काम में उस का हाथ बंटाते थे.

दुकान बस स्टाप पर होने की वजह से अच्छी चलती थी. जैसेजैसे उस के बच्चे जवान होते गए, वह उन की शादी करता गया. छोटी बेटी शिववती की शादी उस ने थाना शिवली के अंतर्गत आने वाले गांव लुधौरा बाघपुर निवासी विजय लाल से करदी थी. विजय लाल खेतीकिसानी में अपने पिता गोपीचंद के हाथ बंटाता था.

शिववती से शादी कर के वह बहुत खुश था, लेकिन सुहागरात को वह पत्नी को खुश नहीं कर सका. पति की यह हालत देख कर शिववती के सारे सपने बिखर गए. पति को ले कर उस ने जो अरमान सजाए थे, आंसुओं में बह गए.

विजय ने पत्नी को समझाने की काफी कोशिश की, लेकिन शिववती की सुहागरात आंसुओं के साथ गुजरी. बहरहाल, शिववती ने संयम और समझदारी से काम लिया. चूंकि उसे विजय लाल के साथ ही रहना था, इसलिए उस ने पति को किसी डाक्टर से मिलने की सलाह दी. विजय ने अपना इलाज कराया और वह ठीक हो गया. बहरहाल, उस की गृहस्थी ठीक से चलने लगी.

सुंदरी की साजिश

समय अपनी गति से गुजरता रहा और करीब 4 साल बाद विजय एक बच्चे का बाप बन गया. बच्चा हो जाने के बाद पत्नी का खर्च बढ़ गया.

अब शिववती के खर्च के लिए घर में रोजरोज तो पैसे मांगे नहीं जा सकते थे, लिहाजा वह कोई दूसरा काम करने की सोचने लगा. उस के पास इतना पैसा तो था नहीं, जिस से वह कोई ढंग की दुकान वगैरह खोल लेता. लिहाजा वह कहीं नौकरी पाने की कोशिश करने लगा.

 

काफी कोशिश करने के बाद भी जब कोई नौकरी नहीं लगी तो विजय लाल शिवली कस्बा स्थित भगवती जनरल स्टोर पर नौकरी करने लगा. कस्बा शिवली उस के गांव से करीब 5 किलोमीटर दूर था. वह सुबह 8 बजे साइकिल से अपने काम पर निकलता था और रात 8 बजे घर लौटता था. दिन भर दुकान पर काम कर के वह काफी थक जाता था, जिस से वह पत्नी की शारीरिक जरूरत को नहीं समझ पाता था.

पति की कमाई से शिववती के हाथ में पैसा आने लगा तो उस की घरगृहस्थी की गाड़ी चलने लगी. शिववती आर्थिक रूप से तो पति से संतुष्ट थी, लेकिन शारीरिक रूप से नहीं. उस का दिन तो किसी तरह कट जाता, लेकिन रात की गहरी खामोशी उसे खाने को दौड़ती थी.

विजय लाल के साथ दीपू और श्यामू नाम के 2 युवक काम करते थे. तीनों में खूब पटती थी. दोनों ही पियक्कड़ थे. उन्होंने विजय लाल को भी शराब का चस्का लगा दिया था. शिववती को पति का शराब पीना पसंद नहीं था. वह जब भी शराब पी कर घर पहुंचता तो उस की पत्नी घर में कलह शुरू कर देती थी.

शिववती कहती, ‘एक तो तुम वैसे भी किसी काम के नहीं हो, ऊपर से शराब पी कर आ जाते हो. तुम्हें न मेरी चिंता है और न बच्चे की.’

 

विजय लाल अपनी कमजोरी समझता था, इसलिए वह बीवी की जलीकटी बातें सुन लेता था. विजय लाल के घर अजय कुमार का आनाजाना था. अजय कुमार रसूलाबाद थाने के अंतर्गत आने वाले गांव संभरपुर का रहने वाला था. विजय लाल उस का ममेरा भाई था.

अजय कुमार जब भी शिवली कस्बे से बीजखाद लेने आता था, मामा के घर जरूर जाता था. अजय कुमार शादीशुदा था और 2 बच्चों का बाप भी. उस की पत्नी अनपढ़ और सामान्य सी महिला थी, इसलिए वह उसे मन से नहीं चाहता था. अपनी पत्नी से उस की बिलकुल नहीं पटती थी.

शिववती ने अजय के आने पर पहले तो ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब वह कामना की आग में झुलसने लगी तो उस ने अजय पर नजरें गड़ानी शुरू कर दीं. अब अजय जब भी घर आता, शिववती उसे चाहत भरी नजरों से देखती. उस से हंसीमजाक करती.

नशे और ग्लैमर का चक्रव्यूह

 

अजय पहले तो सकुचाया, क्योंकि वह शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था. लेकिन जब उस ने शिववती की आंखों में चाहत देखी तो उस ने भी कदम आगे बढ़ा दिए.

अजय का शिववती के घर कभीकभी ही आ पाता था. उस रोज वह कई दिनों बाद आया तो काफी रोमांटिक मूड में था. शिववती भाभी के लिए वह गिफ्ट में एक साड़ी ले कर आया था, लेकिन वह उसे घर में दिखाई नहीं दी. उस की बेचैन निगाहें शिववती को देखने को बेचैन थीं. अजय को घर में बैठे काफी देर हो गई थी. लेकिन उसे भाभी का दीदार नहीं हुआ था.

कुरसी पर बैठेबैठे वह पहलू बदलने लगा. तभी गुसलखाने की किवाड़ें खुलीं और शिववती बाहर निकली. भीगे तनबदन पर लपेटी हुई साड़ी शरीर से चिपकी पड़ी थी. ऐसे में देह के सारे कटाव और उभार साफ दिख रहे थे.

 

अजय हैरान नजरों से शिववती के हुस्न और शबाब को देखता रहा. अजय को देख शिववती अपनी हालत पर थोड़ी लजाई, फिर गीले बालों को पीछे झटकते हुए बोली, ‘‘अजय, तुम कब आए?’’

‘‘अभीअभी आया हूं भाभी.’’ अजय की निगाहें अनीता के बदन पर ही चिपकी हुई थीं. वह बोला, ‘‘विजय भैया नजर नहीं आ रहे, कहीं गए हैं?’’

‘‘हां, वह दुकान पर गए हैं. अब तो रात तक ही वापस लौटेंगे. तुम बैठो, मैं कपड़े बदल कर आती हूं.’’ शिववती ने कहा तो अजय बोल पड़ा, ‘‘भाभी, एक मिनट ठहरो.’’

उस ने अपने बैग से साड़ी का एक लिफाफा निकाला और उसे शिववती की ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘‘लो भाभी, यह मैं तुम्हारे लिए ही लाया हूं. कपड़े बदलने जा ही रही हो तो इसे ही पहन लो. मैं भी तो देखूं कि इस साड़ी में कैसी लगोगी.’’

शिववती ने साड़ी ली और मादक निगाहों के तीर चलाती हुई दूसरे कमरे में चली गई. कुछ देर बाद शिववती साड़ी पहन कर आई तो उस के हाथ में पानी का गिलास था. अजय ने पानी लिया और एक ही सांस में पी गया.

‘‘क्या बात है अजय, बहुत प्यासे नजर आ रहे हो.’’ शिववती ने चुहल की.

‘‘प्यासा था नहीं, पर अब प्यास जाग गई है.’’ अजय ने शिववती को गौर से देखा, ‘‘तुम पर साड़ी खूब फब रही है. अच्छी है न?’’

‘‘बहुत अच्छी है, तुम लाओ और अच्छी न हो, भला ऐसा हो सकता है?’’ शिववती मुसकराई.

 

यह देख कर कुरसी पर बैठा अजय खड़ा हो गया. वह शिववती की आंखों में झांकते हुए बोला, ‘‘जानती हो भाभी, मैं यहां बारबार क्यों आता हूं.’’

‘‘यह भी कोई पूछने की बात है, तुम हमारे रिश्तेदार हो, जब चाहे आ सकते हो.’’ शिववती मुसकराई.

‘‘सच कहा तुम ने. पर मुझे तुम्हारी चाहत खींच लाती है. मैं तुम से बेहद प्यार करता हूं.’’ अजय ने एकाएक उस का हाथ पकड़ लिया. फिर उसे अपनी बांहों में भर लिया. इस से शिववती की सांसें धौंकनी की तरह चलने लगीं.

वह कसमसाई, ‘‘यह ठीक नहीं है अजय.’’

‘‘ठीक तब नहीं होगा भाभी, जब हम अपनी चाहतों को अधूरा छोड़ देंगे.’’ कह कर अजय ने अपने हाथों की हरकत बढ़ा दी.

आखिर शिववती ने अपनी आंखें बंद कर के खुद को अजय की बांहों में छोड़ दिया. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

उस रोज शिववती ने वह सुख पा लिया, जो उसे पति से कभी नहीं मिला था. वह अजय की दीवानी हो गई.

उस दिन के बाद शिववती व अजय को जब भी मौका मिलता, वह मिलन कर लेते. जब विजय घर पर नहीं होता, तब अजय उस के ही कमरे में घुसा रहता. चूंकि अजय व शिववती करीबी रिश्ते में थे, इसलिए काफी दिनों तक गांव में किसी को उन के संबंधों पर शक नहीं हुआ. सब की आंखों में धूल झोंक कर दोनों अपनी मन की मुराद पूरी करते रहे.

खूनी नशा: ज्यादा होशियारी ऐसे पड़ गई भारी

शिववती अब पति के बजाए अजय के लिए शृंगार करने लगी. शिववती के व्यवहार में भी अब काफी बदलाव आ गया था. उस की चंचलता बढ़ गई थी और चेहरे पर लुनाई छाने लगी थी. उस का पति विजय इस बदलाव को महसूस कर रहा था, लेकिन उसे इस की वजह पता नहीं थी.

लेकिन मोहल्ले वालों की नजरों से हकीकत छिपी न रह सकी. विजय की गैरमौजूदगी में अजय का बारबार उस के घर आना लोगों के मन में शक पैदा कर रहा था. एक रोज एक पड़ोसी ने विजय को टोक ही दिया. उसे सारी बात बताई तथा सलाह दी कि वह नौकरी के साथसाथ घरवाली का भी खयाल रखे.

पड़ोसी की बात सुन कर विजय का माथा ठनका. उस रोज उस का मन काम में नहीं लगा और शाम को जल्द घर आ गया. आते ही उस ने पत्नी से सीधा सवाल किया, ‘‘ये अजय यहां बारबार क्यों आता है?’’

‘‘तुम्हारा रिश्तेदार है. तुम ममेरे भाई हो, इसलिए आता है.’’ शिववती बोली.

‘‘लेकिन वह मेरी गैरमौजूदगी में क्यों आता है?’’

‘‘तुम सुबह काम पर चले जाते हो और रात को लौटते हो. यदि वह तुम्हारी गैरमौजूदगी में आता है तो क्या मैं उसे घर से निकाल दूं.’’

‘‘निकालो या कुछ भी करो, लेकिन वह मेरी गैरहाजिरी में घर नहीं आना चाहिए.’’ विजय ने गुस्से में कहा.

‘‘पर हुआ क्या है, यह तो बताओ. आप इतने खफा क्यों हो?’’ शिववती ने पूछा.

‘‘देखो शिववती, मोहल्ले वाले तुम्हारे बारे में तरहतरह की बातें कर रहे हैं. इस से हमारी बदनामी हो रही है. मैं नहीं चाहता कि आज के बाद अजय के मनहूस कदम इस घर में पड़ें.’’ विजय ने तेज आवाज में कहा.

तभी शिववती चीख कर बोली, ‘‘मैं कौन होती हूं उसे रोकने वाली. तुम खुद रोको.’’

पत्नी की इस बेहयाई पर विजय ने उसे एक थप्पड़ जड़ दिया, ‘‘बदचलन, अगर तू ही उसे मुंह नहीं लगाएगी तो वह कैसे आएगा?’’

 

पति का रौद्र रूप देख वह सकते में आ गई. अगले रोज जैसे ही विजय घर से काम पर जाने के लिए निकला, वैसे ही शिववती ने अजय को फोन मिलाया और उसे पूरी बात बता दी. अजय ने उसे दिलासा दी, ‘‘भाभी, तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है. मैं हूं न.’’

‘‘नहीं अजय, मेरा दिल घबरा रहा है. हमारे रिश्तों की भनक विजय को लग गई है, इसलिए अब तुम यहां मत आना.’’

‘‘ऐसा मत कहो भाभी. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’

‘‘अच्छा, ऐसी बात है तो कुछ दिन रह लो. फिर मैं कोई रास्ता निकालती हूं.’’

इस घटना के कुछ दिनों बाद तक अजय शिववती से मिलने नहीं आया. लेकिन जब शिववती को अजय की याद सताने लगी तो उस ने फोन कर के अजय को देर रात अपने यहां आने को कहा.

अजय की लुधौरा गांव के पश्चिमी छोर पर रहने वाले रमेश सरस से दोस्ती थी. दोनों हमउम्र थे. अजय और शिववती के नाजायज रिश्ते की जानकारी उसे भी थी. शराब के लालच में रमेश अजय को रात में अपने यहां ठहरा लेता था. शिववती ने जब उसे बुलाया तो वह देर शाम लुधौरा बाघपुर गांव पहुंच गया. उस ने अपनी साइकिल दोस्त रमेश के घर खड़ी कर दी फिर शिववती से मिलने उस के घर जा पहुंचा.

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शिववती उसी का इंतजार कर रही थी. उस का पति थकाहारा आ कर खाना खाने के बाद कब का सो चुका था. अजय के आते ही शिववती उसे छत पर बने कमरे में ले गई. वहां दोनों मौजमस्ती में जुट गए.

इस के बाद अजय दोस्त के घर चला गया. विजय के सोने के बाद उस के घर में कौन आया, कौन गया, उसे पता नहीं चला. इस के बाद तो यह सिलसिला ही चल पड़ा. अजय सप्ताह में 1-2 बार शिववती से मिलने पहुंच जाता था.

गलत काम चाहे कितनी भी चालाकी से किया जाए, एक न एक दिन उस की पोल खुल ही जाती है. एक रात विजय दोस्तों के साथ शराब पी कर नशे में धुत हो कर घर आया. ज्यादा नशे में होने की वजह से वह बिस्तर पर गिरा और सो गया.

संयोग से उस शाम अजय भी गांव में अपने दोस्त रमेश के यहां आया हुआ था. शिववती ने अजय को फोन कर के घर बुला लिया. नशे में धुत विजय को खर्राटे लेते देख कर अजय का मन मचल उठा. उस ने शिववती से कहा, ‘‘भाभी, आज तो भैया इतने नशे में हैं कि इन की आंखें सुबह होने से पहले नहीं खुलने वालीं.’’

‘‘तभी तो मैं ने तुम्हें बुलाया है.’’ शिववती बोली.

इस के बाद दोनों इत्मीनान से कामलीला में मग्न हो गए.

संयोग से तभी विजय को प्यास लगी तो उस की नींद टूट गई. उस ने देखा कि शिववती चारपाई पर नहीं है. वह पानी पीना भूल गया और पत्नी को ढूंढने लगा, वह नहीं मिली. दबेपांव विजय सीढि़यों से छत पर जा पहुंचा. वहां कमरे में शिववती को अजय की बांहों में समाया देखा तो विजय के तनबदन में आग लग गई. उस दिन उसे पत्नी की सच्चाई का प्रमाण मिल गया था.

 

तेज कदमों से वह उन दोनों के करीब पहुंचा. लेकिन दोनों कामक्रीड़ा में इतने तल्लीन थे कि उन्हें विजय के आने का आभास तक नहीं हुआ. विजय ने अजय के बाल पकड़ कर उसे झिंझोड़ा. अचानक हुए इस हमले से अजय सकते में आ गया. उस ने खुद को संभालते हुए अपने कपड़े उठाए और फटाफट पहन कर वहां से भाग खड़ा हुआ. पति के रौद्र रूप को देख कर एक कोने में सिमटी शिववती समझ चुकी थी कि आज उस की खैर नहीं.

उस रात विजय ने शिववती को रुई की तरह धुना. उस के बाद उस ने पत्नी पर तमाम पाबंदियां लगा दीं. शिववती का प्रेमी से मिलन बंद हुआ तो वह घुटघुट कर जीने लगी. अजय भी परेशान था. लेकिन दोनों को मिलन की कोई राह नहीं सूझ रही थी.

 

आखिर जब शिववती से रहा नहीं गया तो उस ने एक रोज हिम्मत जुटा कर फोन कर अजय को घर बुला लिया. अजय घर आया तो शिववती उस के सीने से लग कर सुबकने लगी, ‘‘अजय, अब मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती. मुझे कहीं भगा कर ले चलो.’’

‘‘पागल तो नहीं हो गई हो. विजय भैया का क्या होगा, पता है?’’ वह बोला.

‘‘तुम्हारी खातिर मैं उसे भी छोड़ दूंगी.’’

‘‘पर वह तो तुम्हें नहीं छोड़ेंगे.’’

‘‘हां, तुम्हारी यह बात सच है.’’ शिववती कुछ देर गहन सोच में डूबी रही फिर बोली, ‘‘तो फिर ऐसा करो कि किसी बदमाश से सौदा कर के विजय को जान से मरवा दो. कम से कम रोजरोज की कलह से तो मुक्ति मिलेगी.’’

शिववती के इरादे जान कर अजय हक्काबक्का रह गया कि यह औरत है या डायन, जो अपने ही पति की हत्या कराने की बात कर रही है.

वह सोचने लगा कि जो औरत आज अपने पति को कत्ल कराने पर आमादा है, कल वह उसे भी मरवा सकती है. यानी यह वफादार और भरोसेमंद नहीं है. इसलिए उस ने शिववती का साथ छोड़ देने में ही अपनी भलाई समझी.

एक हत्या ऐसी भी

अजय ने किसी तरह शिववती को समझाया कि वह बावली न बने. वह कोई न कोई रास्ता जरूर निकाल लेगा. समझाबुझा कर अजय चला गया. अजय न तो ममेरे भाई का कत्ल करना चाहता था और न ही अपनी पत्नीबच्चों से दूर जाना चाहता था. वह तो बस शिववती से शारीरिक सुख चाहता था. शिववती ने समस्या खड़ी कर दी तो वह इस समस्या से निजात पाने की सोचने लगा.

3 जनवरी, 2019 की रात 8 बजे विजय घर आया तो घर में उसे पत्नी नहीं दिखी. पड़ोसी के घर उस का बेटा मनीष बच्चों के साथ खेल रहा था. उस ने मनीष से पूछा तो उस ने बताया कि मम्मी जंगल गई है. विजय लाल का माथा ठनका. उस ने पत्नी की खोज शुरू की लेकिन शिववती का पता नहीं चला. सवेरा होतेहोते पूरे गांव में बात फैल गई कि शिववती घर से गायब है.

लुधौरा बाघपुर गांव के बाहर छिद्दू यादव का खेत था. इस में उस ने अरहर की फसल बोई थी. छिद्दू सुबह 10 बजे के करीब अपने खेत पर पहुंचा तो उस ने खेत में एक महिला की लाश देखी. वह लाश के पास गया तो उस ने शिववती को पहचान लिया. छिद्दू ने यह जानकारी गांव में दी तो लोग दौड़ पड़े.

विजय लाल भी वहां पहुंचा. लाश देखते ही विजय लाल फफक कर रो पड़ा. क्योंकि लाश उस की पत्नी शिववती की थी. गांव वालों ने पुलिस को सूचना दी.

हत्या की सूचना पाते ही शिवली कोतवाली निरीक्षक चंद्रशेखर दूबे ने एसआई ए.के. सिंह, आर.पी. राजपूत, कांस्टेबल राजेश, उमाशंकर तथा महिला सिपाही पूनम को साथ लिया और घटनास्थल की ओर रवाना हो लिए. इसी बीच उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी सूचना दे दी.

 

घटनास्थल कोतवाली से करीब 5 किलोमीटर दूर था. पुलिस फोर्स को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा. घटनास्थल पर लोगों की भीड़ जुटी थी. पुलिस को देखते ही भीड़ छंट गई. तब इंसपेक्टर चंद्रशेखर दूबे ने लाश का निरीक्षण किया. मृतका गुलाबी रंग की साड़ी और उसी की मैचिंग का ब्लाउज पहने थी.

वह खूब शृंगार किए थी. उस के शरीर पर कोई जख्म नहीं था. ऐसा लग रहा था जैसे उस की हत्या गला घोंट कर की गई हो. जोरजबरदस्ती किए जाने का कोई सबूत नहीं मिला.

इंसपेक्टर चंद्रशेखर दूबे अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी (देहात) राधेश्याम विश्वकर्मा तथा सीओ अर्पित कपूर भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया और मृतका के पति विजय लाल से हत्या के संबंध में पूछताछ की.

 

जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने शिववती की लाश को पोस्टमार्टम हाउस माती भेज दिया. इस के बाद इंसपेक्टर चंद्रशेखर दूबे ने विजय लाल की तरफ से रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी. उन्होंने सब से पहले विजय लाल से ही पूछताछ की. उस ने बताया, ‘‘साहब, शिववती की हत्या संभरपुर गांव के रहने वाले अजय कुमार ने की है. वह हमारा रिश्तेदार है.’’

‘‘उस से तुम्हारी क्या दुश्मनी थी?’’ दूबे ने विजय को कुरेदा.

‘‘साहब, दुश्मनी नहीं है. अजय कुमार के मेरी पत्नी से नाजायज संबंध थे. मैं ने उसे रंगेहाथों पकड़ा था. इस के बाद उस के घर आने पर भी पाबंदी लगा दी थी.’’ उस ने बताया.

विजय से बात करने के बाद इंसपेक्टर दूबे को शिववती की हत्या का कारण समझने में देर नहीं लगी. उन्होंने अजय के गांव संभरपुर में छापा मारा, लेकिन वह घर से फरार था. अजय कुमार को पकड़ने के लिए पुलिस ने झींझक, रसूलाबाद, मैथा, भाऊपुर में उस के रिश्तेदारों के घरों पर दबिश दी, लेकिन वह हाथ नहीं लगा.

फिर 7 जनवरी, 2019 को इंसपेक्टर चंद्रशेखर दूबे को खास मुखबिर से जानकारी मिली कि हत्यारोपी अजय कुमार मैथा नहर पुल पर मौजूद है. इस सूचना पर दूबे अपनी पुलिस टीम के साथ मैथा नहर पुल पर पहुंचे. पुलिस जीप देखते ही अजय नहर की पटरी पर सरपट भागने लगा. पुलिस ने पीछा कर के उसे दबोच लिया. उसे थाना शिवली लाया गया.

सपनों के पीछे भागने का नतीजा

इंसपेक्टर चंद्रशेखर दूबे ने जब अजय कुमार से शिववती की हत्या के संबंध में पूछा तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब सख्ती की गई तो वह टूट गया. हत्या का जुर्म कबूलते हुए उस ने बताया कि विजय लाल उस के मामा का बेटा है. उस के घर आनेजाने पर विजय की पत्नी शिववती से उस के अवैध संबंध बन गए थे.

कुछ समय से शिववती उस पर शादी करने तथा घर से भाग जाने का दबाव बना रही थी. वह अपने पति विजय की हत्या भी कराना चाहती थी. लेकिन वह शादीशुदा तथा 2 बच्चों का बाप है, इसलिए यह सब करने के लिए तैयार नहीं हुआ.

जब शिववती ने उस पर दबाव बढ़ाया तो उस ने शिववती से छुटकारा पाने की योजना बना ली. घटना वाली शाम उस ने उसे गांव के बाहर मिलने को कहा. वह वहां पहुंचा तो शिववती उसे अरहर के खेत में ले गई. वह सजधज कर आई थी. उस ने उस पर दबाव बनाया कि वह उसे आज ही अपने साथ भगा कर ले चले.

उस ने शिववती को समझाना चाहा तो वह भड़क उठी. गुस्से में उस ने शिववती को दबोच लिया और उसी के शाल से उस का गला घोंट दिया. इस के बाद फरार हो गया. जुर्म कबूलने के बाद अजय ने वह शाल भी बरामद करा दिया, जिस से उस ने शिववती का गला घोंटा था.

8 जनवरी, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त अजय कुमार को कानपुर देहात की कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला जेल माती भेज दिया गया.  द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सुंदरी की साजिश

लेखक – नंदकिशोर गोयल

 

जून 2018 की तपती दोपहर थी. उस दिन गरमी पूरे शबाब पर थी. हनुमानगढ़ टाउन निवासी अशोक अरोड़ा जिला न्यायालय परिसर में
स्थित एक फोटोस्टेट दुकान में फोटोस्टेट करवाने को दाखिल हुए, तभी वहां खड़ी एक युवती ने मधुर स्वर में कहा, ‘‘भैया, 10 रुपए उधार देंगे क्या? मैं हड़बड़ाहट में अपना पर्स घर पर ही भूल आई हूं.’’
कुछ पल विचार कर अशोक ने एक 50 रुपए का नोट जेब से निकाल कर उस युवती की तरफ बढ़ा दिया. युवती ने नोट ले लिया व हाथ में पकड़े थैले में से कुछ ढूंढने लगी. तब तक अशोक के कागज फोटोस्टेट हो चुके थे. वह अपने कागज ले कर दुकान से बाहर निकल कर अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ चुके थे.
‘‘अरे भैया, बाकी 40 रुपए तो लेते जाइए.’’ कह कर हाथ में 10-10 के 4 नोट उठाए लगभग हांफती हुई वह युवती अशोक की कार के पास पहुंच चुकी थी. अशोक ने देखा युवती पसीने से तरबतर थी.
‘‘भाईसाहब, आज तो गरमी ने पसीनापसीना कर दिया है.’’ युवती ने फिर कहा और 40 रुपए उन्हें देते हुए बोली, ‘‘लीजिए, बाकी के 40 रुपए. मुझे 10 रुपए ही चाहिए थे.’’

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अशोक ने बाकी पैसे लेने से इनकार कर दिया. उन्होंने बगल में स्थित एक रेस्टोरेंट की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘गरमी बहुत है. चलो, वहां कुछ ठंडा पीते हैं.’’
दोनों रेस्टोरेंट में एक मेज के सामने बैठ गए. उस समय वहां इक्कादुक्का ग्राहक ही थे. वेटर के आने पर अशोक ने 2 गिलास लस्सी का और्डर दिया. इस के बाद अशोक ने उस युवती को अपने बारे में बताते हुए कहा, ‘‘मुझे अशोक अरोड़ा कहते हैं. मैं हनुमानगढ़ टाउन में रहता हूं. मेरे ईंट भट्ठे हैं. एक पार्टी पेमेंट देने में आनाकानी कर रही है. इसी चक्कर में कोर्ट आया था.’’
‘‘मेरा नाम सविता अरोड़ा है. मेरा पीहर टिब्बी का है और हनुमानगढ़ जंक्शन में मेरी ससुराल है. पति के साथ मेरी अनबन चल रही है और कोर्ट में तलाक का मामला डाल रखा है. इसी सिलसिले में मैं आज अदालत आई थी.’’ युवती ने अपने बारे में बताया.

‘‘आप यदि बुरा नहीं मानें तो एक बात कहूं?’’ अशोक ने उसे गौर से देखते हुए कहा.
‘‘हांहां, बेफिक्र हो कर कहिए.’’ वह बोली.
‘‘पिछले साल मैं अपने एक दोस्त की शादी में आप के टिब्बी के एक असीजा परिवार के यहां गया था. वहां लहंगाचुन्नी में सुंदर सलोनी एक युवती को देखा था. जहां तक मुझे अपनी याद्दाश्त पर भरोसा है, वह सुंदरी आप ही थीं.’’
इतना सुनते ही युवती खिलखिला पड़ी, ‘‘अशोक बाबू, मान गए आप की याद्दाश्त को. असीजा परिवार की सोनू मेरी पक्की सहेली है. उसी की शादी में मैं ने ही लहंगाचुन्नी पहना था.’’ सविता बोली.

बढ़ने लगीं नजदीकियां

तब तक लस्सी आ गई. सविता ने अशोक को बता दिया था कि कोर्ट में उस की अगली तारीख 17 जुलाई को होगी. उसी दौरान सविता ने अपना मोबाइल नंबर अशोक को दे दिया और अशोक ने भी अपना विजिटिंग कार्ड सविता को दे दिया था.
बता दें कि हनुमान टाउन मूल शहर है. वहीं हनुमानगढ़ जंक्शन में रेलवे स्टेशन सहित अन्य सभी सरकारी कार्यालय हैं. कुछ सालों में जंक्शन क्षेत्र भी किसी शहर का रूप ले चुका है. दोनों शहरों में लगभग 3 किलोमीटर का फासला है. इस फासला क्षेत्र में घग्घर नदी का बहाव क्षेत्र है.

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हालांकि अशोक अरोड़ा शादीशुदा व बालबच्चेदार थे. गाहेबगाहे सुंदर युवतियों द्वारा किसी मोटी आसामी को फांस कर ब्लैकमेल करने की खबरें वह अखबारों में पढ़ चुके थे. लिहाजा उन के मन में भी विचार आया कि कहीं वह भी तो इस तरह के जाल में नहीं फंस रहे.
तभी उन्होंने तय कर लिया कि वह किसी भी सूरत में अपनी सीमा नहीं लांघेंगे. हां, सविता से संबंध केवल दोस्ती तक ही सीमित रखेंगे. लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि विपरीत लिंगी का आकर्षण दोनों ही तरफ होता है. वही इन के बीच भी था.

सविता व अशोक दोनों के पास एकदूसरे के मोबाइल नंबर थे. एक हफ्ता गुजर चुका था, पर किसी ने भी फोन नहीं किया था. लगभग 10 दिन बाद सविता ने अशोक के मोबाइल पर घंटी मारी. सविता का फोन आया देखते ही अशोक की आंखें चमक उठीं और दिल की धड़कनें बढ़ गईं.
औफिस में अकेले बैठे अशोक ने फोन रिसीव कर कहा, ‘‘कहिए मैडम…’’
‘‘मैडम नहीं, सिर्फ सविता. हां याद रखना, 17 जुलाई को मैं कोर्ट में आऊंगी, पेशी है. आप भी आओगे न?’’ वह बोली.

‘‘कोशिश करूंगा.’’ अशोक ने कहा.
‘‘अरे साहब, कोशिशवोशिश का बहाना नहीं चलेगा. आप की उधारी भी चुकानी है. आप को मेरी कसम है, जरूर आना.’’ सविता ने जैसे अधिकारपूर्ण स्वर में अशोक को याद दिलाई.

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सविता के अपनत्व भरे मीठे बोल ने अशोक को अंदर तक गुदगुदा दिया था. पर युवतियों द्वारा ब्लैकमेल की खबरों ने जैसे उन के पैरों में बेडि़यां डाल दी थीं.
17 जुलाई, 2018 की सुबह रोजाना की तरह तैयार हो कर अशोक अपने कार्यालय पहुंच चुके थे. उन का अंतर्मन अदालत जाने के लिए मना कर रहा था, पर बाहरी मन उन्हें अदालत जाने के लिए उकसा रहा था.
आखिर उन्होंने अपने बाहरी मन की बात मानी और आधा घंटा पहले ही अदालत पहुंच गए और कचहरी के पास उसी रेस्टोरेंट में जा कर बैठ गए, जिस में बैठ कर पिछली बार सविता के साथ लस्सी पी थी.

सजधज कर गई थी सविता

सविता भी कहां कम थी. वह भी अदालत के समय से काफी देर पहले ही कचहरी पहुंच गई थी. उस दिन विशेष बात यह थी कि सविता हलकाफुलका मेकअप कर वही लहंगाचुन्नी पहन कर आई थी जो उस ने अपनी सहेली सोनू की शादी में पहना था.
कचहरी पहुंच कर सविता ने इधरउधर ताकझांक की पर अशोक कहीं दिखाई नहीं दिए तो वह कचहरी से बाहर रेस्टोरेंट के पास पहुंच गई. जब वहां भी अशोक दिखाई नहीं दिए तो सविता ने उन का फोन नंबर मिलाया.

अशोक ने काल रिसीव करते ही कहा, ‘‘लहंगाचुन्नी में बड़ी खूबसूरत लग रही हो. लग रहा है जैसे कि अप्सरा आसमान से उतर आई हो.’’
अपनी प्रशंसा सुन कर सविता खुश हो गई. वह बोली, ‘‘आप हैं कहां, यहां तो दिखाई नहीं दे रहे?’’
‘‘मैं इसी रेस्टोरेंट में शीशे के पीछे बैठा हूं. आ जाओ.’’ अशोक ने कहा तो सविता रेस्टोरेंट में चली गई.
अशोक को देख कर वह बहुत खुश हुई और उस की टेबल के सामने बैठ गई.
‘‘अशोक बाबू, क्या खाएंगेपिएंगे, आज की पार्टी मेरी तरफ से.’’ सविता ने कहा, ‘‘देखिए, मेरे परिवार में मेरे खैरख्वाह के नाम पर मात्र एक बूढ़ी मां है. मैं अपना पीहर छोड़ कर कामधंधे की तलाश में मां को ले कर हनुमानगढ़ आ गई हूं. किराए के एक कमरे में रह कर जैसेतैसे गुजरबसर कर रही हूं. खुद का मकान व आर्थिक हालत बेहतर होती तो आप के लिए लजीज भोज की व्यवस्था कर आप को घर पर आमंत्रित करती पर…’’

‘‘कोई बात नहीं. आप ने कह दिया यही बहुत है.’’ अशोक ने कहा. फिर दोनों में बातचीत चलती रही. वेटर के आने पर अशोक ने और्डर दिया. तब तक अशोक ने सविता के घर का एड्रैस ले लिया था.
कुछ देर बाद अशोक ने सविता से जाने की इजाजत मांगी. जातेजाते अशोक ने पर्स से एक 500 रुपए का नोट निकाला और सविता की तरफ बढ़ा दिया. सविता नोट पकड़ने में आनाकानी करने लगी तो अशोक ने कहा, ‘‘अरे भई, दोस्ती के नाम पर ही रख लो.’’

तब सविता ने वह नोट ले लिया. इस के बाद अशोक वहां से चले गए और सविता कोर्ट की तरफ चली गई.

अशोक की करने लगी छानबीन

उन के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो लगभग रोजाना ही फोन पर उन की बातें होने लगीं. सविता अब अशोक के औफिस में जाने लगी थी. अशोक के पास 2-3 गाडि़यां थीं. कभीकभी अशोक अपनी गाड़ी से सविता को उस के घर पहुंचवा देते थे.
सविता के बारबार आग्रह करने पर एक दिन अशोक समय निकाल कर उस के घर पहुंच गए. सविता ने दिल खोल कर उन का स्वागत किया. सविता ने अपनी मां को अशोक का परिचय एक दोस्त के रूप में दिया था.
समय गुजरता रहा. दोनों के बीच पनपा दोस्ती का पौधा धीरेधीरे वटवृक्ष बनता जा रहा था. कह सकते हैं कि दोनों के बीच दोस्ती का नाता जरूरत से ज्यादा प्रगाढ़ हो गया था. सविता समझ गई थी कि अशोक बहुत बड़ी आसामी है.

अशोक हो गए प्रभावित

एक दिन अशोक सविता के घर थे. तभी सविता बोली, ‘‘अशोक बाबू, अगर मैं आप को शौकी नाम से पुकारूं तो कैसे लगेगा?’’
‘‘मुझे मंजूर है. अब मेरी भी सुनो, मेरी एक कालेज की दोस्त थी तनु, पर एक ऐक्सीडेंट में उस की मौत हो गई. अगर आप को भी मैं तनु नाम देना चाहूं तो आप को कोई ऐतराज तो नहीं होगा.’’
‘‘नहीं, मुझे कोई ऐतराज नहीं,’’ सविता बोली, ‘‘देखो आप शब्द में अपनापन नहीं होता. अगर हम दोनों तुम शब्द का प्रयोग करेंगे तो अच्छा लगेगा.’’

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‘‘ओके.’’ अशोक ने सहमति जताई.
एक दिन सविता उर्फ तनु अशोक के कार्यालय गई. वहां अशोक को तनाव की हालत में देख कर तनु बोली, ‘‘शौकी, क्या बात है इतने परेशान क्यों हो?’’
‘‘तनु, बात तो कोई खास नहीं है, एकदो पार्टियों के यहां पैसा फंसा है. उसे ले कर टेंशन में हूं. दूसरी टेंशन यह है कि कुछ अरसा पहले भैया शेखावटी क्षेत्र से लाखों रुपयों की उगाही कर के लौट रहे थे, उन के साथ लूट हो गई थी. जो पुलिस अधिकारी इस केस की जांच कर रहे थे, उन से मेरी अभीअभी बात हुई है. उन्होंने कहा कि लुटेरों का कोई सुराग अभी तक नहीं लगा है.’’ अशोक ने बताया.
‘‘देखो शौकी, पुलिस अगर अपनी पर आ जाए तो आज नहीं तो कल लुटेरे जरूर पकड़े जाएंगे. रही बात फंसे पेमेंट की तो सुनो, मैं आज ही इस के लिए अपने ईस्टदेव की विशेष पूजाअर्चना शुरू करूंगी. मुझे विश्वास है कि हफ्ता-10 दिन में तुम्हारा फंसा हुआ पेमेंट मिल जाएगा.’’ तनु ने कहा.
कुछ देर बातचीत करने के बाद सविता उर्फ तनु अशोक की गाड़ी से अपने घर लौट गई थी.

उस दिन 15 सितंबर, 2018 की तारीख थी. अशोक अपने औफिस में पहुंचे ही थे कि डीडवाना निवासी सुशील शर्मा का फोन आ गया, ‘‘अशोक बाबू, आप 20 सितंबर को यहां आ जाइएगा. सभी पार्टियों का पेमेंट
तैयार है. मेरी सभी पार्टियों से बात हो गई है.’’ सुशील पैसों के लेनदेन में बिचौलिए का काम करता था.
यह मात्र संयोग ही था कि अशोक को पार्टियों ने स्वयं फोन कर पेमेंट के लिए उन्हें बुलाया था. लेकिन अशोक इसे सविता की पूजा का नतीजा समझ रहे थे. वह उस दिन बहुत खुश हुए. मारे खुशी के अशोक उछल पड़े थे.

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उसी समय अशोक ने फोन कर यह खुशखबरी तनु को दी, ‘‘भई तनु, मान गए तुम्हारी पूजाअर्चना व तुम्हारे ईस्टदेव को. पार्टियों ने 21 सितंबर को पेमेंट के लिए बुलाया है. और हां, सुनो मेरी तरफ से हीरा जडि़त एक अंगूठी तुम्हारे लिए गिफ्ट. दूसरा गिफ्ट तुम अपनी तरफ से मुझ से मांग लो. पेमेंट मिलते ही शेखावटी क्षेत्र से लाऊंगा तुम्हारा गिफ्ट, वहां की कारीगरी व सोने की क्वालिटी उच्चस्तर की होती है.’’
‘‘शौकी, एक बात सुनो. भैया की तरह पेमेंट ले कर बसों में सफर नहीं करना. कोई नशा सुंघा कर बेहोश कर सकता है. विश्वसनीय ड्राइवर के साथ अपनी कार से सफर करना.’’

सविता ने बना ली योजना

इधर अशोक खुश थे, वहीं सविता उर्फ तनु भी अपनी दिमागी खुराफात का पासा फेंक कर फूली नहीं समा रही थी.
सविता ने 16 सितंबर की सुबह अपने परिचित टैक्सी चालक सुनील नायक को फोन कर अपने घर बुला लिया था. सविता को जब भी इधरउधर जाना होता था, वह सुनील की टैक्सी ही ले जाती थी.
उस ने उस से कहा, ‘‘देखो सुनील, एक मालदार मुर्गी फंसी है. उसे बड़ी चतुराई व समझदारी से हलाल करना है. मामूली सी चूक या गड़बड़ हम दोनों को कालकोठरी में पहुंचा देगी. तुम इस में अपने 4-5 दोस्तों को और शामिल कर लो. क्योंकि मामला 50 लाख का है.’’

 

सुनील के पूछने पर सविता ने पूरा मामला उसे बता दिया था, ‘‘तुम उस शख्स की पहचान व उस की गाड़ी के बारे में जानना चाहते हो न, घबराओ मत पूरी जानकारी समय रहते तुम्हें मोबाइल से मिलती रहेगी. लेकिन याद रखना, इस योजना में अपने अति विश्वसनीय दोस्त ही शामिल करना.’’
सविता व सुनील ने अशोक को लूटने की पूरी योजना बना ली. दोनों की योजना फूलप्रूफ लग रही थी.

20 सितंबर को योजनानुसार सविता अशोक के औफिस में पहुंच गई. अशोक ने खड़े हो कर सविता की अगवानी की थी. उस ने नौकर से सविता के लिए मिठाइयां व समोसे मंगा लिए. वह बारबार सविता उर्फ तनु द्वारा की गई पूजाअर्चना की तारीफ कर रहे थे.
अशोक ने उस से कहा, ‘‘तनु, कल मैं अपने ड्राइवर विनोद के साथ कार से डीडवाना की तरफ उगाही करने जा रहा हूं. मेरी इच्छा है कि तुम भी साथ चलो.’’
‘‘अरे नहीं शौकी, मां की तबीयत ठीक नहीं है. मैं नहीं जा पाऊंगी.’’ तनु बोली.
‘‘अरे भाई, एक ही दिन की तो बात है, 22 को तो लौट ही आएंगे.’’ अशोक ने आग्रह किया.
‘‘तुम जाओ और पेमेंट मिलने पर मेरा गिफ्ट ले आना. और हां, वहां से एक चीज मेरी और लानी है. वह मैं तुम्हें फोन पर बता दूंगी.’’ तनु ने कहा.

‘‘जरूर ले आऊंगा.’’ अशोक ने कहा. फिर तनु अशोक की गाड़ी से घर लौट गई.
21 सितंबर, 2018 को अशोक अपनी गाड़ी से सरदारशहर के लिए रवाना हो गए. उधर सविता के बुलावे पर सुनील अपने 5 दोस्तों के साथ सविता के घर पहुंच गया था. सभी साथी युवा थे.

सविता ने सभी साथियों को योजना के बारे में विस्तार से बता दिया था. उस ने यह भी बता दिया था कि अशोक सरदारशहर से पहले इच्छापूर्ण बालाजी मंदिर के सामने से मेरे लिए अचार खरीदेगा. वह 22 सितंबर की दोपहर तक मंदिर पहुंच जाएगा. वैसे मैं उस की पलपल की लोकेशन मोबाइल से तुम्हें देती रहूंगी.
अशोक डीडवाना के सुशील शर्मा के पास पहुंच गए. उस क्षेत्र से कलेक्शन कर शर्मा के यहां रात को रुके.
डीडवाना से 22 सितंबर की सुबह वह रवाना हो कर रतनगढ़ पहुंच गए. उस क्षेत्र में कलेक्शन कर वह तनु के लिए हीरे की अंगूठी खरीदने के लिए सर्राफा बाजार में गए पर वहां उन्हें उन की इच्छा के मुताबिक अंगूठी नहीं मिली.

सविता लेती रही पलपल की जानकारी

यह जानकारी उन्होंने फोन द्वारा तनु को दे दी और यह भी कह दिया कि उन्होंने एक व्यापारी को 20 हजार रुपए एडवांस के तौर पर अंगूठी बनवाने के लिए दे दिए हैं. अगले हफ्ते वह उस से अंगूठी ले आएंगे. अशोक ने आगे कहा, ‘‘हां, तुम एक और चीज के लिए कह रही थी, बताओ क्या लाना है?’’
‘‘शौकी, शेखावटी क्षेत्र में कच्चे बांस का अचार बढि़या मिलता है. वह लाना है एक किलो.’’ तनु ने कहा था.
‘‘तनु, रतनगढ़ में भी बांस का अचार बढि़या मिलता है.’’ अशोक ने कहा तो वह बोली, ‘‘अरे नहीं शौकी, सरदारशहर से पहले इच्छापूर्ण बालाजी मंदिर के सामने अचार की बड़ी दुकान है. तुम उसी दुकान से अचार लाना. और हां, यह बताओ कितनी देर में वहां पहुंच जाओगे.’’ तनु ने अपने मतलब का प्रश्न दाग दिया.
‘‘बस आधे घंटे में अचार की दुकान पर पहुंच जाऊंगा.’’ अशोक ने बताया.

उधर सविता के कहने पर सुनील 22 सितंबर, 2018 की सुबह अपने दोस्तों के साथ इच्छापूर्ण बालाजी मंदिर पहुंच गया था. टैक्सी साइड में खड़ी कर सुनील अपने साथी बबलू के साथ अचार की दुकान के पास ही खड़ा हो गया था. अन्य साथी नजदीक के ढाबे पर चाय की चुस्कियां लेने लग गए थे. सविता के फोन करने पर पूरी चौकड़ी सतर्क हो गई थी.
करीब 20 मिनट बाद अशोक अपनी गाड़ी से मंदिर के सामने पहुंच गए. बांस का अचार खरीद कर वह जैसे ही दुकान से चले, वहां खड़े सुनील ने उन्हें पहचान लिया. और जब वह अपनी कार में जा कर बैठे तो सुनील ने उन की गाड़ी का नंबर आरजे31सी बी3927 को याद कर लिया. अशोक के वहां से चलते ही सविता ने फिर से अशोक को फोन किया तो अशोक ने बता दिया कि उन्होंने अचार ले लिया है.
सुनील करने लगा पीछा

सविता हर 10 मिनट बाद अशोक को फोन कर रही थी. तब एक बार अशोक ने कह दिया, ‘‘अरे तनु, परेशान क्यों हो रही हो. मैं ठीक हूं.’’
‘‘शौकी, बात यह है कि आज आप के लाए अचार के साथ ही मैं रोटी खाऊंगी. पेट में चूहे कूद रहे हैं इसलिए बारबार रिंग कर रही हूं.’’ सविता ने कह दिया. सविता की सफाई पर अशोक मुसकरा उठा था.

अशोक की गाड़ी के पीछे सुनील ने अपनी सफेद रंग की टैक्सी लगा दी. योजना बनी थी कि अशोक को ओवरटेक कर उन से नकदी लूट ली जाए, पर स्टेट हाइवे पर उस दिन ट्रैफिक ज्यादा था. एकदो बार सुनील ने अशोक की कार ओवरटेक करने की कोशिश की, पर सफलता नहीं मिली. अशोक की गाड़ी रावतसर पार कर गई थी.
तब सुनील ने फोन कर सविता को वस्तुस्थिति बता दी. सविता के निर्देश पर सुनील ने अशोक की गाड़ी का पीछा करना जारी रखा. अशोक की गाड़ी मैनावाली बसस्टैंड पर पहुंच गई थी. सुनसान जगह देख कर उन के चालक विनोद ने कहा, ‘‘भैयाजी, पेशाब कर लूं?’’
कह कर साइड में गाड़ी स्टार्ट हालत में खड़ी कर उतर गया. तभी पीछे से आ रही सुनील की टैक्सी वहां आ कर रुकी. उस में से 3 लोग उतरे. वे सभी अशोक की गाड़ी में फुरती से घुस गए. सुनील ने ड्राइविंग सीट संभाली और दोनों साथी अशोक के अगलबगल बैठ गए.
अनजान लोगों के गाड़ी में बैठने पर अशोक चौंके तो चुप रहने के लिए उन लोगों ने पिस्तौल दिखा दी, जिस से अशोक शांत हो गए. सुनील अशोक की गाड़ी तेज गति से ले गया.

लूट लिए 35 लाख रुपए

अशोक के अगलबगल बैठे रोहताश व बबलू ने अशोक के हाथपांव बांध दिए थे. बबलू ने हाथ में उठाए पिस्तौल को अशोक की कनपटी से सटा कर उसे गोली मारने
की धमकी दी. फिर सुनसान जगह देख कर उन्होंने अशोक को गाड़ी से निकाल दिया.
उन्होंने पिस्तौल के फायर से अशोक की गाड़ी के टायर पंक्चर कर दिए. नकदी का बैग व मोबाइल उठा कर सभी पीछे आ रही टैक्सी में बैठ कर फरार हो गए. उन के बैग में 35 लाख रुपए थे.
जैसेतैसे कुछ देर में अशोक ने अपने हाथ खोले और वह हनुमानगढ़ टाउन पुलिस थाना पहुंच गए. थानाप्रभारी सीआई विष्णुदत्त बिश्नोई को अशोक ने आपबीती सुनाई. उन्होंने विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर इस की इत्तला उच्च अधिकारियों को दी.

एसपी अनिल कयाल ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए शीघ्र खुलासे के लिए कई टीमें गठित कर दीं. क्षेत्र में बढ़ रही लूटपाट व चोरी की घटनाओं से पुलिस की छिछालेदर हो रही थी. इस संगीन मामले की निगरानी खुद एसपी अनिल कर रहे थे.
काफी कोशिश के बाद भी पुलिस को लुटेरों के बारे में कोई सूचना नहीं मिली. इसी बीच एक मुखबिर ने सीआई विष्णुदत्त बिश्नोई को सविता व अशोक की प्रगाढ़ दोस्ती की सूचना दी.
हालांकि यह सूचना उन्हें अप्रभावी सी लग रही थी. पर पुलिस मामले के खुलासे की चाहत में किसी भी जानकारी को बेजा नहीं मानती. सीआई के निर्देश पर एसआई संध्या सविता को उस के घर से उठा लाईं. अशोक उस समय थाने में ही मौजूद थे.

अशोक ने सविता को देखते ही कहा, ‘‘सर, सविता मेरी शुभचिंतक है. इसे यहां क्यों ले आए. इसे क्यों परेशान कर रहे हैं?’’
‘‘अशोक बाबू, हम इन्हें कहां लुटेरा बता रहे हैं. बस मामूली पूछताछ ही तो करनी है.’’ सीआई ने कहा.
सविता को तलब करने से पहले जांच अधिकारी ने अशोक व सविता के फोन नंबरों की काल डिटेल्स प्राप्त कर ली थीं. वारदात के समय सविता व अशोक के बीच 8 बार बात हुई थी.
सविता के फोन की डिटेल्स में एक विशेष बात यह सामने आई कि अशोक से बात होने के तुरंत बाद सविता ने किसी अन्य फोन नंबर पर भी बात की थी. उस संदिग्ध नंबर की डिटेल्स भी पुलिस ने निकलवा ली.
सविता द्वारा अशोक को बारबार काल करने के बारे में पुलिस ने उस से पूछा तो सविता ने कहा, ‘‘सर, मैं ने अशोक बाबू से बांस का अचार मंगवाया था. चाहें तो आप इस बारे में इन्हीं से पूछ सकते हैं.’’

ऐसे खुला राज

पुलिस ने इस बारे में अशोक से पूछा तो उन्होंने सविता की बात की तसदीक कर दी. तब पुलिस ने सविता को घर भेज दिया. सुनीता की काल डिटेल्स में जो संदिग्ध नंबर आया था, वह नंबर सुनील नायक का निकला. पुलिस ने उस के घर पर दबिश दी तो वह नहीं मिला.
जांच अधिकारी ने अब तक की जांच रिपोर्ट एसपी अनिल कयाल तक पहुंचा दी थी. अधिकारियों की नजर में मामले का खुलासा हो चुका था व निकट भविष्य में किसी भी समय आरोपियों की गिरफ्तारी संभव थी.

अगले दिन सुनील नायक पुलिस के हत्थे चढ़ गया. जांच अधिकारी ने उस से पूछताछ शुरू कर दी. मनोवैज्ञानिक तरीके से की गई पूछताछ में सुनील ने सब कुछ पुलिस के सामने उगल दिया. उस ने अपने साथियों रोहताश, बबलू, कालू, मान सिंह, दीपक, मोहित व मनप्रीत के बारे में भी बता दिया.
पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ भादंसं की धारा 323, 395, 365, 109, 143, 120बी व 27 व 3/25 आर्म्स एक्ट के तहत गिरफ्तार कर उन्हें अदालत में पेश कर सभी को पूछताछ हेतु रिमांड पर ले लिया.
काबिलेगौर यह भी था कि सभी का यह पहला अपराध था. आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने 35 लाख की लूट की राशि में से 16 लाख रुपए बरामद कर लिए. रिमांड अवधि पूरी होने के बाद उन्हें फिर से न्यायालय में पेश कर जेल भिजवा दिया गया.
बेशक अशोक ने सुंदरियों के मामले में सीमा नहीं लांघी थी, लेकिन दोस्ती की घनिष्ठता में फंस कर एक सुंदरी का शिकार हो ही गए.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दिल्ली के लव कमांडो: हीरो नहीं विलेन

30 जनवरी, 2019 की शाम की बात है. मध्य दिल्ली के पहाड़गंज में चूनामंडी इलाके की गली नंबर 5 के प्रथम  तल स्थित मकान नंबर 2860 के बाहर भारी मात्रा में पुलिस तैनात थी. पुलिस ने यहां रहने वाले संजय सचदेव नाम के शख्स को हिरासत में लिया था. संजय सचदेव इस मकान में एक शेल्टर होम चलाता था. यहीं पर उस ने अपनी संस्था का अस्थाई औफिस भी बनाया हुआ था. पुलिस की इस काररवाई की भनक जल्द ही पूरे इलाके में सनसनी बन कर फैल गई. आननफानन में उस मकान के आगे लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा.

हर कोई जानना चाहता था कि इलाके में जिस इंसान को एक बड़े समाजसेवी की नजर से देखा जाता था, उसे पुलिस ने आखिर किस जुर्म में गिरफ्तार किया है. संजय सचदेव के छापे और उसे गिरफ्तार करने की सूचना मीडिया में भी जंगल की आग की तरह फैली, जिस के बाद पहाड़गंज के उस ठिकाने पर मीडिया के लोगों का भी हुजूम उमड़ आया.

दरअसल, संजय सचदेव ‘लव कमांडो’नाम से एक ऐसी संस्था चलाता था, जो उन प्रेमी जोड़ों को तथाकथित रूप से पनाह देती थी, जिन्हें समाज या अपने घरपरिवार वालों से जान का खतरा हो. ऐसे जोड़ों की एनजीओ में रहने की भी व्यवस्था थी. लेकिन यह केवल दिखावा भर था, सच्चाई कुछ और ही थी.

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आइए पहले इस संस्था के बारे में जान लें. साल 2001 में संजय सचदेव ने फरवरी महीने में अपने कुछ साथियों के साथ वैलेंटाइंस पीस कमांडो नाम का संगठन बनाया. दरअसल, वैलेंटाइंस डे करीब आते ही कुछ कट्टरपंथी संगठन दिल्ली व दूसरे महानगरों में प्रेमियों को यह त्यौहार मनाने पर बंदिशें लगा देते थे.

वैलेंटाइंस पीस कमांडो ने प्रेमियों के इस अवसर पर अपने कमांडो तैनात कर के प्रेमियों को सुरक्षा देने का काम शुरू किया. शुरुआती दौर में इस संगठन को ज्यादा रेस्पौंस नहीं मिला. 2006-07 तक ये संस्था ऐसे ही चलती रही.

लेकिन साल 2010 में हुई एक घटना ने संजय सचेदव की इस संस्था को विस्तार दे दिया. हुआ यूं कि संजय के एक रिश्तेदार के लड़के को एक लड़की से प्रेम विवाह करने की वजह से लड़की के परिजनों ने उस युवक को झूठे रेप केस में फंसा दिया.

संजय सचदेव को जब उस बात का पता चला तो उन्होंने खुद लड़की से बात की. लड़की ने उन्हें बताया कि मेरे पापा मुझ पर दबाव बना कर ऐसा करवा रहे हैं. जबकि हम दोनों रिलेशनशिप में हैं. इस के बाद संजय ने अदालत का सहारा लिया. कोर्ट ने प्रेमी को जमानत दे दी.

ऐसे आया लव कमांडो का आइडिया…

कोर्ट से बाहर निकलने पर एक दोस्त ने संजय सचदेव से कहा कि ऐसे लोगों को बचाने, पनाह देने और कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए कुछ और बेहतर किया जाना चाहिए. बस इसी के बाद सचदेव ने इस संस्था का स्वरूप बदल दिया. उन्होंने 2 हेल्पलाइन नंबर भी जारी कर दिए.

संस्था के शुरुआती दौर से जुड़े सदस्य और संस्था के कोऔर्डिनेटर हर्ष मल्होत्रा ने सुझाव दिया कि संस्था का नाम अब पीस कमांडो से बदल कर ‘लव कमांडो’ रख दिया जाए. संजय सचदेव को नाम अच्छा लगा, लिहाजा 2010 में संस्था का नाम ‘लव कमांडो’कर दिया गया.

‘लव कमांडो’ संस्था की शुरुआत के समय इस में सिर्फ 200 लोग थे,लेकिन वक्त गुजरता रहा, लोग जुड़ते गए. नतीजतन अकेली दिल्ली में लव कमांडो ग्रुप के 7 शेल्टर होम हैं,जहां प्रेमियों को तथाकथित सुरक्षा के साथ नि:शुल्क रहनेखाने की सुविधा दी जाती है.

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लव कमांडो के कर्ताधर्ता संजय सचदेव आए दिन मीडिया की सुर्खियां बनने लगे,उनके इसी अद्भुत काम से प्रभावित हो कर आमिर खान ने अपने लोकप्रिय कार्यक्रम सत्यमेव जयते में लव कमांडो के चेयरमैन संजय सचदेव को बुलाया था, जिस के बाद संजय सचदेव की लोकप्रियता शिखर पर पहुंच गई थी.

लेकिन अचानक दिल्ली महिला आयोग और पुलिस के संयुक्त अभियान में लव कमांडो के बेस शेल्टर होम और अस्थाई मुख्यालय पर छापा मारने के बाद जो जानकारी सामने आई, उसे जान कर सभी हैरान रह गए.

दरअसल, हुआ यह कि दिल्ली के पहाड़गंज एरिया में लव कमांडोज का जो शेल्टर होम चल रहा था, वहां से 28 जनवरी 2019 को एक प्रेमी जोड़ा निकला और महिला आयोग की सदस्य किरण नेगी और फिरदौस से मिला.

इस जोड़े ने लव कमांडो के शेल्टर होम में प्रेमी जोड़े की मदद के नाम पर उन के साथ होने वाले अत्याचार और जबरन वसूली करने की एक ऐसी कहानी सुनाई,जिस से महिला आयोग की दोनों सदस्य उन की शिकायत को नजरअंदाज नहीं कर सकीं.

शिकायत गंभीर थी, इसलिए इसे महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल के संज्ञान में लाया गया. स्वाति मालीवाल ने किरण नेगी और फिरदौस की अगुवाई में पुलिस के सहयोग से लव कमांडो के शेल्टर होम पर छापा मार कर सच्चाई का पता लगाने का फैसला लिया.

प्रेमी युगल की हिम्मत ने दिखाई राह

अगले दिन यानी 29 जनवरी को सदस्य किरण नेगी व फिरदौस को साथ ले कर दिल्ली महिला आयोग की मुखिया स्वाति मालीवाल मध्य दिल्ली जिला पुलिस के उपायुक्त मनदीप सिंह रंधावा से मिलीं और उन्हें एक दिन पहले प्रेमी जोड़े से मिली शिकायत से अवगत करा कर जांच के लिए पुलिस बल उपलब्ध कराने का अनुरोध किया.

डीसीपी रंधावा ने मामले की गंभीरता को भांपते हुए तत्काल पहाड़गंज इलाके के एसीपी संजीव गुप्ता और एसएचओ सुनील चौहान को एक रेडिंग पार्टी तैयार करने के लिए कहा, जिस के बाद महिला आयोग की टीम पहाड़गंज थाने पहुंच गई. एसीपी संजीव गुप्ता ने एसएचओ सुनील चौहान के साथ संगतराशां चौकी प्रभारी दीपक कुमार वर्मा और एसआई खजान सिंह को भी टीम के साथ वहां बुलवा लिया था.

महिला आयोग की टीम के साथ पुलिस लव कमांडो के शेल्टर होम पहुंची. संयोग से उस वक्त संजय सचदेव वहां मौजूद था. पुलिस को वहां से 4 प्रेमी जोड़े मिले. इन में से 2 जोड़े ऐसे थे, जिन में लड़के व लडकियां अलगअलग धर्म से संबधित थे.

पुलिस व महिला आयोग की टीम ने चारों जोड़ों को अपने साथ लिया और पहाड़गंज थाने ले आए. वहां महिला आयोग की टीम ने चारों जोड़ों की काउंसलिंग कर के उन्हें समझाया कि शेल्टर होम में उन के साथ जो कुछ भी हुआ, बिना किसी डर या दबाव के बताएं.

चारों प्रेमी जोड़े पहले कुछ झिझक रहे थे लेकिन थोड़ी देर बाद वे खुल गए. इस के बाद उन्होंने शेल्टर होम में होने वाली कारगुजारियों के बारे में जो हकीकत बयान की,उसे सुन कर सब सकते में आ गए.

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प्रेमी जोड़ों ने बताया कि लव कमांडो प्रेमी जोड़ों की मदद करने व उन्हें पनाह देने के नाम पर संगठित रूप से जबरन वसूली का एक गिरोह चला रहा था.

महिला आयोग की टीम ने पुलिस से इस मामले की एफआईआर दर्ज करने का अनुरोध किया. 29 जनवरी को ही प्रेमी जोड़ों के बयान के आधार पर थाना पहाड़गंज में भारतीय दंड संहिता की धारा 342, 384, 386, 506, 509 व 34 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. इस की जांच का काम संगतराशां चौकी प्रभारी दीपक वर्मा की निगरानी में एसआई खजान सिंह को सौंपा गया.

खजान सिंह ने उसी दिन चारों प्रेमी जोड़ों को अदालत में पेश कर मजिस्ट्रैट के सामने उन के बयान दर्ज करवा दिए. पुलिस को अपना विस्तृत बयान देने के बाद महिला आयोग की टीम चारों प्रेमी जोड़ों को अपने साथ ले गई और उन्हें दिल्ली सरकार के अलगअलग शेल्टर होम में शरण दे दी.

इस के बाद शुरू हुआ पुलिस की पड़ताल का काम. 30 जनवरी को एचएचओ सुनील चौहान और चौकी प्रभारी दीपक कुमार के नेतृत्व में एक टीम फिर से लव कमांडो के शेल्टर होम पहुंची. शेल्टर होम में 2 छोटे कमरे थे. उन में सभी प्रेमी जोड़ों का रखा जाता था. घर से भागे हुए प्रेमी जोड़ों को चूंकि कोई रास्ता और नहीं दिखता था, इसलिए शरण पाने के लिए उन्हें लव कमांडोज के शेल्टर होम में मिली शरण स्वर्ग से कम नहीं लगती थी.

लेकिन शरण मिलने के बाद उन जोड़ों को जल्दी ही वहां की हकीकत पता चल जाती थी. उन्हें वहां के सारे काम करने पड़ते थे. युवक-युवतियों को झाड़ूपोंछा तक करना पड़ता था. शेल्टर होम में सारा स्टाफ पुरुषों का था,लेकिन मजबूरी में उस जोड़े को स्टाफ के पैर भी दबाने पड़ते थे. वहां मौजूद जोड़ों ने पूछताछ में बताया था कि संजय सचदेव शाम होते ही शराब पी लेता था और लड़कों को जबरदस्ती अपने साथ शराब पिलाता था.

हालांकि लव कमांडो की हेल्पलाइन और प्रचार माध्यमों में यही कहा जाता था कि किसी भी प्रेमी जोड़े को शेल्टर होम में रहने या खाने की व्यवस्था मुफ्त है. लेकिन 1-2 दिन बाद जब कपल से शादी कराने के लिए उन के सभी मूल दस्तावेज लव कमांडो अपने कब्जे में लेते, उस के बाद कानूनी खर्चों के नाम पर और वहां शरण देने के लिए कपल से उस के एवज में मोटी फीस वसूली जाती थी.

इतना ही नहीं, अगर किसी कपल के घर वाले उन्हें पैसे भेजते तो लव कमांडो की टीम थोड़ा सा पैसा कपल को दे कर बाकी सारा खुद अपने पास रख लेते थे. इतना ही नहीं, छोटीछोटी बातों पर प्रेमी जोड़ों से बदसलूकी, गालीगलौज, यहां तक कि कभीकभी मारपीट तक की जाती थी.

वसूली के लिए ले लेते थे पहचान से जुड़े मूल कागजात…….

 यही नहीं, लव कमांडो की टीम सभी प्रेमी जोड़ों के आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और पहचान से जुड़े दूसरे दस्तावेजों की मूल प्रति तब तक के लिए अपने पास रख लेते थे,जब तक कपल से मोटी रकम नहीं वसूल हो जाती थी. ऐसा नहीं था कि प्रेमी जोडे़ इस का विरोध नहीं करते थे, लेकिन वे यह सोच कर चुप रह जाते थे कि चलो, जब तक शादी हो या कोई दूसरा सुरक्षित ठिकाना न मिले, तक तक लव कमांडो की जबरन वसूली को पूरा कर देते हैं.

प्रेमी जोड़े महीना-2 महीना जब तक लव कमांडो के किसी भी शेल्टर होम में पनाह ले कर रहते थे,तब तक उन के दस्तावेज वापस नहीं किए जाते थे. इस बीच लव कमांडो की टीम अलग-अलग बहाने से मोटी रकम ऐंठती रहती थी.

महिला आयोग और पुलिस की टीम ने जिन प्रेमी जोड़ों को वहां से निकलवाया था,उन सब की उम्र 25 साल के आसपास थी. पुलिस टीम ने शेल्टर होम में छापा मार कर तलाशी ली तो वहां उस कमरे से शराब की बहुत सारी खाली बोतलें मिलीं, जहां एक कमरे में संजय सचदेव आराम करता था.

इस के अलावा भी पुलिस को वहां रखी फाइलों से बहुत सारे जोड़ों की पहचान से जुड़े मूल दस्तावेज मिले. पुलिस को वहां से संजय के एक बैंक अकाउंट की पासबुक भी मिली. पुलिस का कहना है कि जब इस खाते की पड़ताल की गई तो पता चला कि संजय सचदेव के निजी खाते में पिछले 6 महीनों के दौरान ही 40 लाख से अधिक का ट्रांजैक्शन हुआ है.

संजय सचदेव पूछताछ में यह नहीं बता सका कि इतना पैसा उसे कहां से मिला. इस के बाद पुलिस को पूरा यकीन हो गया कि प्रेमी जोड़ों ने संजय सचदेव पर जबरन वसूली का जो आरोप लगाया था, वह कहीं न कहीं सच है. इस के बाद संजय सचदेव के पास बचाव के लिए बहुत कुछ नहीं रह गया था. इसलिए पुलिस ने उसे उसी दिन गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर संजय सचदेव से पूछताछ हुई. उस के बाद लव कमांडो चेयरमैन को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे तिहाड़ जेल भेज दिया गया.

दरअसल, 28 दिसंबर को दिल्ली महिला आयोग के सामने जिस प्रेमी जोड़े ने लव कमांडो संगठन की शिकायत की थी, वह 20 दिसंबर को लव कमांडो के दफ्तर में शरण मांगने पहुंचा था.

वे दोनों संजय सचदेव से फोन पर बात करने के बाद अपनेअपने आईडी प्रूफ के साथ संजय के पास गए थे. वहां पहुंचते ही दोनों के फोन बंद करा दिए गए. प्रोटेक्शन देने व शादी कराने के नाम पर उन से 50 हजार रुपए ले लिए गए. प्रेमी के पास 55 हजार रुपए ही थे. वो भी बैंक में थे. चूंकि उन के दस्तावेज संजय सचदेव ने अपने कब्जे में ले लिए थे, इसलिए पैसा देना मजबूरी हो गई.

और पैसा मिलना नहीं था इसलिए छोड़ दिया गया प्रेमी जोड़े को…

संजय ने अपने 2 आदमी प्रेमी युवक के साथ भेजे और कहा कि एटीएम से पैसा निकाल कर इन को दे देना. सोनू नाम का एक कमांडो गया और प्रेमी ने उसे 40 हजार रुपए एटीएम से निकाल कर दे दिए. चूंकि पैसा पूरा नहीं मिला था, इसलिए इस प्रेमी जोड़े को वहां बंधक बना लिया गया.

लेकिन 28 जनवरी को किसी तरह उन्होंने संजय सचदेव को रजामंद कर लिया कि उन के पास और पैसा नहीं है, उन्हें अब शादी भी नहीं करनी, लिहाजा वे उन्हें जाने दें. संजय सचदेव ने कुछ पेपर उन्हें लौटा दिए. जबकि कुछ अपने पास ही रख लिए और उन्हें जाने की इजाजत दे दी.

इस प्रेमी जोड़े ने उसी वक्त संजय सचदेव के वसूली धंधे की पोल खोलने का मन बना लिया. प्रेमी जोड़े ने समाचार पत्रों में दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल के बारे में बहुत पढ़ा था कि वे इस तरह के मामलों में बहुत संजीदगी से काम करती हैं.

उसी दिन प्रेमी जोड़ा दिल्ली महिला आयोग पहुंचा, जहां आयोग की सदस्य फिरदौस से उन की मुलाकात हुई. जोड़े ने उन्हें अपनी पीड़ा बताई. उस के बाद ही ये सारी काररवाई हुई. नतीजतन सालों से लव कमांडो संस्था की आड़ में चल रहे संजय सचदेव के वसूली धंधे का भंडाफोड़ हो गया.

संजय सचदेव से पूछताछ में पता चला कि इस संस्था में उस के बाद नंबर 2 की हैसियत हर्ष मल्होत्रा की है, जो संस्था का कोऔर्डिनेटर है. हालांकि हर्ष मल्होत्रा पहाड़गंज में ही रहता है और पेशे से प्रौपर्टी डीलर है. लव कमांडो की विशेष टीम में हर्ष मल्होत्रा का छोटा भाई राजेश मल्होत्रा भी शामिल है. इन के अलावा सोनू व गोविंदा नाम के 2 लव कमांडो प्रेमी जोड़ों पर निगाह रखने और उन की शादियां कराने की जिम्मेदारी उठाते थे.

पहाड़गंज थाने की पुलिस ने इन चारों की तलाश में उन के ठिकानों पर छापेमारी की तो हर्ष मल्होत्रा के अलावा तीनों लोग राजेश, सोनू व गोविंदा पुलिस के हत्थे चढ़ गए. उन से पूछताछ में पता चला कि प्रेमी जोड़ों से रकम मिलती थी, उस में से उन्हें भी हिस्सा मिलता था.

पुलिस ने तीनों को पूछताछ के बाद अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. पुलिस हर्ष मल्होत्रा की तलाश में लगातार छापेमारी कर रही है, लेकिन कथा लिखे जाने तक वह पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा था.

पुलिस को जांच में पता चला है कि संजय सचदेव के शेल्टर होम में प्रेमी जोड़ों को प्रताड़ना देने के अलावा उन से अवैध वसूली कई सालों से चली आ रही थी. पेशे से पत्रकार संजय सचदेव कुछ साल पहले जब रामविलास पासवान रेल मंत्री थे, तब उस ने उन के मीडिया सलाहकार के रूप में काम किया था.

इस के बाद से वह कोई काम नहीं करता था,लेकिन फिर भी ऐशो-आराम भरी जिदंगी बसर करता था. उस की आय का कोई स्थाई साधन नहीं था,फिर भी वह पूरे देश में घूमताफिरता था.

लव कमांडो के नाम पर मीडिया में जम कर अपना प्रचार करता था, जिस की वजह से उस की हैसियत इतनी बड़ी हो गई कि आमिर खान ने भी ‘सत्यमेव जयते’ के अपने कार्यक्रम में संजय सचदेव के अभियान की सराहना की. टीवी कार्यक्रम ‘सत्यमेव जयते’ से मिलने वाली ख्याति का उस ने अनुचित फायदा उठाया और अपने गलत इरादों को पूरा करने के लिए इस का सहारा लिया.

पीड़ितों ने मजिस्ट्रैट को दिए अपने बयान में भी आरोप लगाया कि संजय सचदेव अदालत द्वारा जारी किए गए उन के शादी के प्रमाणपत्र, जन्म प्रमाण पत्र, कालेज की डिग्री और आधार कार्ड की मूल प्रति अपने पास रख लेता था. महिलाओं को बर्तन साफ करने पड़ते थे और साफसफाई करनी पड़ती थी.

यही नहीं, उन से और अधिक पैसे की मांग की जाती थी. जो लोग पैसे दे देते थे उन के प्रमाण पत्र वापस मिल जाते थे और उन्हें शेल्टर होम छोड़ कर जाने दिया जाता था. बाकियों को जबरन शेल्टर होम में रखा जाता था और उन को प्रताडि़त किया जाता था.

अगर कोई बीमार हो जाता तो वहां के कर्मचारी उसे डाक्टर के पास भी नहीं ले जाते थे. जांच में पुलिस को पता चला कि वहां एक व्यक्ति को 3 बार टायफाइड हो गया, लेकिन उस का उचित इलाज नहीं कराया गया. अगर कोई मनमानी फीस दिए बिना वहां से जाने का प्रयास करता तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी जाती. साथ ही उस से कहा जाता कि वे उन के परिवार को बुला कर उन्हें उन के सुपुर्द कर देंगे.

संजय सचदेव की डार्लिंग

पुलिस को जांच में यह भी पता चला कि संजय सचदेव शेल्टर होम में रह रही एक शादीशुदा युवती को हमेशा डार्लिंग कह कर बुलाता था. युवती के इसी आरोप के मद्देनजर पुलिस ने दर्ज केस में आईपीसी की धारा 509 जोड़ी गई.

संजय का एक बेटा नेवी में है. वह भी इसी होम में रहता था. दूसरा बेटा एयरफोर्स में है. वैसे लव कमांडो की टीम के लोग प्रेमी जोड़ों से संजय सचदेव को पापा कह कर बुलाने के लिए कहते थे,ताकि सब को लगे कि संजय सचदेव एक पिता की तरह प्रेमी जोड़ों का संरक्षण देता है.

युवतियों ने अपने बयान में यह भी बताया कि रात में चारों जोड़ों को अलगअलग कमरे में बंद कर दिया जाता था. भागने के डर से दोनों कमरों पर बाहर से ताले लगा दिए जाते थे. प्रेमी जोड़ों को बासी व साधारण खाना परोसा जाता था. शेल्टर होम के सामने ही संजय सचदेव का निजी घर था, वहां भी प्रेमी जोड़ों से काम करवाया जाता था. यहीं से राशन शेल्टर होम में जाता था.

शेल्टर होम के चेयरमैन संजय ने शेल्टर होम में 3 खूंखार कुत्ते पाल रखे थे. कोई प्रेमी जोड़ा बात नहीं मानता था तो ये उन पर कुत्ते छोड़ देते थे. इस के अलावा कोई बाहर जाने या भागने का प्रयास करता तो कुत्ते नहीं जाने देते थे.

जांच में पता चला कि जिस प्रौपर्टी पर यह शेल्टर होम चल रहा था, उसे ढाई साल पहले किराए पर लिया गया था. पुलिस ने शेल्टर होम का एक रजिस्टर भी जब्त किया है, जिस में तमाम जानकारियां मिलीं.

पुलिस को जांच में पता चला है कि लव कमांडो का यह गैंग अभी तक करीब 500 से ज्यादा कपल से रकम ऐंठ चुका था. कैश खत्म होने के बाद ये लोग कपल्स के रिश्तेदारों, परिवार, दोस्तों व जानकारों से रुपए मंगवाने का दबाव बनाने लगते थे. जो नहीं दे पाता, उसे प्रताडि़त कर वहां से भगाने की तैयारी शुरू कर दी जाती थी.

कपल्स को कम से कम 6 महीने तक रहने के लिए कहा जाता था. पुलिस का कहना है कि नौजवान युवा पीढ़ी में कानून के प्रति जानकारी का अभाव ही एक बड़ी वजह थी, जिस से वे ऐसे लोगों के जाल में फंस जाते थे.

पुलिस अब सभी आरोपियों व संस्था से जुड़े बैंक अकाउंट को भी खंगालने की तैयारी कर रही है ताकि साफ हो सके कि उन के खाते में बीते 9 साल में कितनी रकम जमा करवाई गई.

जांच सिर्फ दिल्ली तक ही नहीं, बल्कि दूसरे राज्यों पर भी फोकस की गई है. 9 साल के भीतर कुल कितने लोग इस संस्था के संपर्क में आए, पुलिस इस का भी पूरा ब्यौरा जुटाने में लगी है ताकि उन्हें भी जरूरत पड़ने पर जांच में शामिल किया जा सके. इस शेल्टर होम में पहले रह चुके युवक-युवतियों से भी पुलिस संपर्क कर शारीरिक शोषण के एंगल से भी जांच करेगी.

लव कमांडो क्यों हुआ चर्चित…

आमतौर पर भारत के छोटे शहरों और गांवों में इज्जत के नाम बेगुनाहों की हत्या कर दी जाती है. लेकिन हाल के दिनों में मीडिया इस बारे में ज्यादा रिपोर्टिंग करने लगा है, जिस से लोग डरने लगे हैं. भारत के कई क्षेत्रों में आज भी प्रेमी युगलों के लिए अन्य जाति से विवाह करना मुश्किल होता है.

पारिवारिक सदस्यों के साथसाथ कुछ खाप पंचायतों ने भी अन्य जाति से प्यार करने वाले लोगों की जान लेने जैसे सख्त कानून बना रखे हैं. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी एक स्वयंसेवी संस्था ‘शक्ति वाहिनी’ की याचिका पर स्वयंभू खाप पंचायतों और प्यार पर बंदिश लगाने वाले अभिभावकों को कड़ी फटकार लगाते हुए ये निर्देश दिया कि बालिग लड़केलड़की की शादी के फैसले में कोई भी दखल नहीं दे सकता.

सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने साफ कहा कि ऐसे मामलों में जोड़ों की सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस पर होनी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि कोई शादी कानूनी तौर पर वैध है या नहीं, इस का फैसला अदालतें करेंगी न कि परिवार और खाप पंचायतें. अदालत के इस फरमान से पहले ही संजय सचदेव इस सोच को लव कमांडो बना कर अपनी राह पर बढ़ चुका था.

लव कमांडो संस्था ने कुछ कहानियों को मीडिया में इस तरह प्रचारित किया कि पूरे देश में लव कमांडोज के काम की तारीफ होने लगी. बाद में यह संस्था हर साल शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए कार्यक्रम भी और्गनाइज करने लगी.

कुछ चर्चित मामले जिन्होंने दिलाई सुर्खियां

2 दिसंबर, 2012 को बुलंदशहर के अब्दुल हकीम को उस के घर के पास गोलियों से भून दिया गया.

अब्दुल हकीम और महविश अड़ोसपड़ोस में रहते थे और बचपन से ही एकदूसरे को पसंद करते थे. लेकिन जब महविश के परिजनों को दोनों के प्रेमसंबधों का पता चला तो उस के घरवालों ने उस की पढ़ाई बंद करवा दी. साथ ही घर से निकलने पर भी पाबंदी लगा दी. लेकिन वक्त बीतने के साथ जब हकीम शहर के स्कूल में पढ़ने लगा था तो महविश के परिजनों ने सोचा कि अब महविश अपना प्यार भूल चुकी होगी. उन्होंने धीरेधीरे बंदिशें कम कर दीं.

परिजनों को लगा कि बचपन की प्रेम कहानी खत्म हो गई है. इस बीच महविश का निकाह उस की मौसी के लड़के से तय कर दिया गया. 31 अक्तूबर, 2010 को निकाह की तारीख तय हुई. हकीम के अलावा किसी अन्य से महविश को निकाह कबूल नहीं था, लिहाजा 29 अक्तूबर, 2010 की रात वह अपने प्रेमी अब्दुल हकीम के साथ भाग गई. पहले महविश की तलाश शुरू हुई. शक अब्दुल पर गया. जब वह भी लापता मिला तो दोनों परिवारों के लोगों में तनातनी हो गई.

इस के बाद बिरादरी की खाप पंचायत में प्रेमी जोड़े की हत्या करने वर 50 हजार रुपए का नकद ईनाम देने की घोषणा की. घर से भाग कर महविश और अब्दुल ने पहले अलीगढ़ कोर्ट में 7 नवंबर, 2010 को कोर्ट मैरिज की, फिर मेरठ के तारापुरी के एक मोहल्ले में 11 नवंबर, 2010 को काजी से निकाह पढ़वा कर मजहबी शादी की.

इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले अब्दुल को दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ी. जब इस से काम नहीं चला तो दोनों दिल्ली आ गए और सीलमपुर में आ कर रहने लगे. जहां अब्दुल को औटोरिक्शा चलाना पड़ा. उधर महविश के घरवालों का अब्दुल के भाइयों और मां पर कहर टूटना शुरू हुआ.

प्रेमी जोड़े की हत्या पर रखा ईनाम

महविश अपने पति अब्दुल को ले कर हाईकोर्ट पहुंची और अपने पति के परिवार और अपनी सुरक्षा की मांग की. हाईकोर्ट ने महविश को इंसाफ दिया और बुलंदशहर पुलिस को सुरक्षा देने के आदेश दिए. लेकिन जिला पुलिस ने सुरक्षा नहीं दी.

महविश दोबारा हाईकोर्ट पहुंची. इसी बीच महविश के गांव अड़ौली के 2 दरजन लोगों ने पंचायत कर अब्दुल के पिता मोहम्मद लतीफ को पेड़ पर उलटा लटका दिया और मारपीट की, जिस से लतीफ की मौत हो गई.

पुलिस में हड़कंप मचा, लेकिन उसे नैचुरल मौत बता कर मामला रफादफा कर दिया गया. 21 जुलाई, 2011 को महविश ने एक बेटी को जन्म दिया. इसी बीच कुछ लोगों से जानकारी मिलने पर महविश पहाड़गंज में लव कमांडो के चेयरमैन संजय सचदेव से मिली और उसे अपनी प्रेम कहानी बताई.

संजय सचदेव ने उसे सुरक्षा देने की दिलासा दी. उन्होंने बुलंदशहर के एसएसपी राजेश कुमार राठौर से बात की और हाईकोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए राजी किया. इतना ही नहीं संजय सचदेव के जरिए महविश खाप पंचायत के फरमान से लड़ने के लिए आमिर खान के सीरियल सत्यमेव जयते के 5वें एपिसोड में आई और अपनी सुरक्षा की मांग की.

इस का असर ये हुआ कि पुलिस को उन्हें सुरक्षा दे कर गांव में पुनर्वासित कराना पड़ा. लेकिन दिसंबर महीने में महविश के चचेरे भाई व चाचा ने अब्दुल की हत्या कर दी. बाद में पुलिस ने  महविश की तहरीर पर हत्या व साजिश का मुकदमा दर्ज कर तीनों आरोपियों गुल्लू, आसिफ और सरवर को गिरफ्तार कर लिया.

हकीम हत्याकांड में इंसाफ दिलाने के लिए भी संजय सचदेव के संगठन लव कमांडो ने महविश की भरपूर मदद की जिस कारण लव कमांडो को खूब सुर्खिया मिलीं. प्रेमियों की मदद करने के नाम पर लव कमांडो ने एक ओर चर्चित मामले से सुर्खियां बटोरी थीं. 9 अक्तूबर, 2016 को संस्था के हेल्पलाइन नंबर पर एक फोन आया, जिस में एक महिला ने रोते हुए कहा, ‘मुझे और मेरे पति को औनर किलिंग से बचा लो, ये दरिंदे हमें जान से मार डालेंगे.’

महिला ने अपना नाम सोनिया शर्मा बताते हुए आगे कहा, ‘मैं पुंछ,जम्मू कश्मीर की रहने वाली हूं. मेरे पति जेल में हैं और उन का कसूर यह है हम ने पिछले महीने लवमैरिज की थी. मैं खुद जम्मू के एक मंदिर में छिप कर रहते हुए अपनी जान व इज्जत बचा रही हूं. हमारी मदद करो. मैं दिल्ली के बस अड्डे तक पहुंच जाऊंगी. लेकिन आगे क्या होगा, मुझे नहीं पता. मेरी जान बचा लो प्लीज.’

अलग कहानी निकली सोनिया शर्मा की
हर्ष ने सोनिया को दिल्ली आने और बस का नंबर बताने को कहा. सोनिया ने यह भी बताया कि वह ये फोन जम्मू के उस मंदिर में दर्शन के लिए आए किसी दर्शनार्थी के फोन से कर रही है और बस मिलने के बाद किसी यात्री से अनुरोध कर के उस के फोन से नंबर की जानकारी देने की कोशिश करेगी.

10 अक्तूबर की सुबह करीब 7 बजे दिल्ली के कश्मीरी गेट बसअड्डे पर लव कमांडो के कमांडो ट्रेनर सुनील सागर, एक्सपर्ट कमांडो गोविंदा महिला एवं पुरुष कमांडो दस्ते के साथ मौजूद थे और जम्मू से आने वाली हर बस पर निगाह रखे थे.

जम्मू-कश्मीर रोडवेज की एक बस से एक महिला उतरी, जिस की आखें इधरउधर किसी को तलाश रही थीं. लव कमांडो का दस्ता उस के पास पहुंचा और उस से पूछा कि क्या वह सोनिया शर्मा हैं? उस के पूछने पर उन्होंने खुद का परिचय लव कमांडो के रूप में दिया तो सोनिया ने तसल्ली करने के बाद अपना परिचय उन्हें बताया.

बाद में सोनिया को लव कमांडो के बेस शेल्टर पहाड़गंज में लाया गया. जहां संजय सचदेव से उस की मुलाकात हुई. सोनिया की कहानी सुन कर व उस के दस्तावेज देख कर संजय सचदेव चौंक पड़े.

क्योंकि सोनिया का असली नाम फरजाना कौसर था, जिस ने इसलाम धर्म से  हिंदू धर्म में परिवर्तित कर के अपना नाम सोनिया शर्मा कर लिया था और अपने प्रेमी रिंकू कुमार निवासी खौर जिला जम्मू से 7 सितंबर, 2015 को आर्यसमाज मंदिर में हिंदू रीतिरिवाज से शादी की थी. गाजियाबाद में शादी पंजीकृत भी करवा ली थी, तब से ये दोनों पतिपत्नी की तरह रह रहे थे.

लेकिन 16 सितंबर को जब ये अपने वकील से मिलने तीसहजारी अदालत स्थित उस के चैंबर की ओर जा रहे थे तो वहां पहुंचने से पहले ही जम्मूकश्मीर पुलिस की टुकड़ी और फरजाना कौसर उर्फ सोनिया शर्मा के भाई एवं परिजनों ने उन्हें दबोच लिया. जिसे देख किसी वकील ने पीसीआर को काल कर दी थी. जिस पर तीसहजारी कोर्ट स्थित पुलिस चौकी का स्टाफ सभी को वहां ले आया था.

इस के बाद स्थानीय पुलिस से मिलीभगत कर के जम्मूकश्मीर पुलिस व सोनिया के परिजनों ने मजिस्ट्रैट को गुमराह कर के फरजाना कौसर उर्फ सोनिया को उस के परिजनों के सुपुर्द कर दिया और प्रेमी रिंकू शर्मा को पुंछ पुलिस के सुपुर्द कर दिया गया.

बाद में फरजाना का अपहरण कर उस के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में जम्मूकश्मीर पुलिस ने रिंकू को पुंछ जेल भेज दिया. कुछ दिन बाद सोनिया फिर अपने परिवार को झांसा दे कर घर से भाग निकली और लव कमांडो संगठन से बात कर के दिल्ली पहुंच गई.

सोनिया ने बताया कि उस का मकसद अपने पति रिंकू व उस के परिवार को बचाना है. संजय सचदेव ने पहले उसे अपने शेल्टर होम में शरण दी, फिर खतोखिताबत कर के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग सहित तमाम संवैधानिक संस्थाओं तक यह मामला पहुंचा दिया. जिस का असर यह हुआ कि कश्मीर पुलिस को संज्ञान ले कर मामले की जांच करनी पड़ी, जिस से सोनिया को तो न्याय मिला ही, साथ ही रिंकू को भी रिहा कर दिया गया.

हालांकि सोनिया को लंबी लड़ाई के बाद इंसाफ तो मिला, लेकिन इसे भी लव कमांडो ने अपनी उपलब्धि बता कर खूब प्रचारित किया. जबकि हकीकत यह थी कि इस पूरी लड़ाई में रिंकू के परिवार व सोनिया को लाखों रुपए खर्च करने पडे़ थे.

ऐसी ढेरों कहानियां हैं, जिन से प्रचार पा कर लव कमांडो ने शोहरत बटोरी और अपने जबरन वसूली के अनोखे धंधे को बड़े मुकाम तक पहुंचाया.

अतीक जेल में भी बाहुबली

30 दिसंबर, 2018 की सुबह साढ़े 10 बजे देवरिया के जिला कारागार में उस समय अफरातफरी मच गई, जब जिलाधिकारी अमित किशोर ने एसडीएम (प्रशासन) राकेश कुमार पटेल, एडीएम रामकेश यादव, जिला सूचना विज्ञान अधिकारी कृष्णानंद यादव, एएसपी शिष्यपाल, सीओ (सदर) वरुण कुमार मिश्र और साइबर एक्सपर्ट सहित करीब 500 पुलिसकर्मियों के साथ जेल में छापा मारा. उन का मुख्य टारगेट था बैरक नंबर-7. इस बैरक में पूर्वांचल के कुख्यात बाहुबली पूर्व सांसद अतीक अहमद बंद थे.

जिलाधिकारी अमित किशोर ने यह काररवाई प्रमुख सचिव (गृह) अरविंद कुमार के निर्देश पर की थी. दरअसल एक दिन पहले 29 दिसंबर को राजधानी लखनऊ के रहने वाले रीयल एस्टेट कारोबारी मोहित जायसवाल ने लखनऊ के कृष्णानगर थाने में पूर्व सांसद अतीक अहमद, उन के बेटे उमर अहमद सहित 4 गुर्गों गुलाम इमामुद्दीन, गुलफाम, फारुख और इरफान के खिलाफ अपहरण, धोखाधड़ी, रंगदारी मांगने, जाली कागज तैयार करने और आपराधिक साजिश रचने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

मोहित जायसवाल ने पुलिस को बताया कि 26 दिसंबर, 2018 को लखनऊ से उन का अपहरण कर उन्हें देवरिया जेल लाया गया था. जेल में बंद पूर्व सांसद अतीक अहमद की बैरक नंबर-7 में उन के बेटे उमर अहमद, अतीक अहमद और 2 गुर्गों गुलाम इमामुद्दीन और इरफान ने उन्हें जान से मारने की नीयत से बुरी तरह पीटा.

इस के साथ ही इन लोगों ने उन की करीब 45 करोड़ रुपए की संपत्ति हथियाने के लिए उन से जबरन स्टांप पेपरों पर दस्तखत करा लिए थे. उस के बाद उन्हें जबरन गाड़ी में बैठा कर लखनऊ के गोमतीनगर में फेंक दिया और उन की गाड़ी लूट कर चारों गुर्गे मौके से फरार हो गए. गौरतलब है, इलाहाबाद के बहुचर्चित मरियाडीह दोहरे हत्याकांड के केस में अतीक अहमद देवरिया जेल की बैरक नंबर-7 में बंद थे.

अतीक अहमद के खिलाफ कृष्णानगर थाने में मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया था. ये कोई मामूली बात नहीं थी. एक कैदी ने जेल के भीतर रहते हुए सारे कायदेकानून तोड़ते हुए प्रशासन की नाक के नीचे ऐसा दुस्साहस किया कि प्रशासन उस के सामने बौना बना रहा.

मामला जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंचा तो उन्होंने इस की सच्चाई जानने के लिए प्रमुख सचिव (गृह) अरविंद कुमार को लगाया. सरकार ने एडीजी (जेल) डा. शरद से 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट मांगी ताकि देवरिया जेल प्रशासन पर जवाबदेही तय की जा सके.

एडीजी (जेल) डा. शरद के निर्देश पर इस मामले की जांच गोरखपुर मंडलीय कारागार के वरिष्ठ जेल अधीक्षक डा. रामधनी और एसपी (देवरिया) एन. कोलांची को सौंपी गई थी. दोनों अधिकारियों ने देवरिया जेल जा कर मामले की जांच की.

जेल प्रशासन भी डर गया अतीक अहमद से

जांच में मोहित जायसवाल द्वारा लगाए गए आरोप सही पाए गए. इस में देवरिया जेल अधिकारियों की घोर लापरवाही उजागर हुई. 26 दिसंबर, 2018 की वह सीसीटीवी फुटेज भी डिलीट कर दी गई थी, जिस में कारोबारी मोहित जायसवाल के साथ मारपीट की घटना कैद थी. फुटेज की बारीकी से जांच करने पर एक जगह मोहित को दरजन भर लोगों के साथ जेल के भीतर जाते हुए देखा गया था, जबकि जेल के आगंतुक रजिस्टर में 26 दिसंबर को सिर्फ मोहित जायसवाल के अलावा एक और व्यक्ति के आने की एंट्री दर्ज थी.

यह मामला साफतौर पर घोर लापरवाही की ओर इशारा कर रहा था. जांच में डिप्टी जेलर देवकांत यादव, हेड वार्डन मुन्ना पांडे, वार्डन राकेश कुमार शर्मा और वार्डन रामआसरे की लापरवाही साफसाफ झलक रही थी. जेल अधीक्षक दिलीप पांडे और जेलर मुकेश कटियार की कार्यशैली भी काफी संदिग्ध पाई गई थी. 24 घंटों के भीतर जांच कर के दोनों अधिकारियों ने रिपोर्ट एडीजी (कारागार) डा. शरद को भेज दी थी.

जांच रिपोर्ट के आधार पर एडीजी (कारागार) डा. शरद ने डिप्टी जेलर देवकांत यादव, हेड वार्डन मुन्ना पांडे, वार्डन राकेश कुमार शर्मा और वार्डन रामआसरे को तत्काल निलंबित कर दिया और जेल अधीक्षक दिलीप पांडे व जेलर मुकेश कटियार के खिलाफ विभागीय काररवाई करने के निर्देश दिए.

जेल अधिकारियों द्वारा पूर्व सांसद अतीक अहमद के खिलाफ कानूनी काररवाई न करने पर ही प्रमुख सचिव (गृह) अरविंद कुमार ने जांच के आधार पर डीएम अमित किशोर को जेल में जा कर काररवाई करने के निर्देश दिए.

डीएम की मौजूदगी में अतीक अहमद के बैरक नंबर-7 की जांच की गई तो वहां सेलफोन, कई सिमकार्ड, खानेपीने की सामग्री (काजू, किशमिश, बादाम आदि) के अलावा और भी कई चीजें बरामद की गईं. पुलिस अधिकारियों ने बरामद चीजों को अपने कब्जे में ले लिया था.

इस मामले में साफतौर पर जेल अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध पाई गई थी. जेल की गहनता से छानबीन करने पर डीएम अमित किशोर और एसपी एन. कोलांची ने जेल परिसर में बाहुबली अतीक अहमद के आतंक का अहसास महसूस किया.

अतीक का आतंक देख कर सरकार ने उसी दिन उसे देवरिया से बरेली जेल स्थानांतरित करने का फैसला ले लिया. बरेली जेल स्थानांतरित होने का फैसला सुनते ही अतीक अहमद का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. यही नहीं पति से मिलने आई उस की पत्नी शाइस्ता परवीन और बहन सलहा खान ने मीडियाकर्मियों को बयान देते हुए इस काररवाई को एक साजिश बताया.

खैर, सच और झूठ का पता तो अदालत में हो ही जाएगा. मुद्दा यह है कि बाहुबली के आतंक के सामने पुलिसप्रशासन ने घुटने क्यों टेक दिए थे? जेल प्रशासन उस के इशारे पर क्यों नाचता था? यह सब जानने के लिए अतीक अहमद के अतीत में झांकना होगा कि उस ने किस तरह जुर्म की दुनिया से राजनीति के गलियारों में कदम रखा.

अतीक अहमद की कर्मकथा

56 वर्षीय अतीक अहमद का जन्म 10 अगस्त, 1962 को हुआ था. मूलरूप से वह उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले के रहने वाले थे, जो कालांतर में परिवार सहित इलाहाबाद, चकिया के कसारी मसारी में आ कर रहने लगे थे. बचपन से ही दबंग रहे अतीक अहमद की पढ़ाईलिखाई में कोई खास रुचि नहीं थी. सन 1979 में उन्होंने इलाहाबाद के एमआईसी विद्यालय से हाईस्कूल की परीक्षा दी थी लेकिन फेल हो जाने के बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई छोड़ दी. पढ़ाई से मुंह मोड़ लेने के बाद अतीक अहमद जुर्म की दुनिया में पहुंच गए.

जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही अतीक अहमद के खिलाफ कत्ल का पहला केस सन 1979 में इलाहाबाद के खुल्दाबाद थाने में दर्ज हुआ था. उस के बाद अतीक ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. साल दर साल उन के जुर्म की किताब के पन्ने थानों के रोजनामचे में दर्ज होते रहे.

1992 में इलाहाबाद पुलिस ने अतीक की हिस्ट्रीशीट खोल दी, जिस में बताया गया था कि अतीक अहमद के खिलाफ उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कौशांबी, चित्रकूट, इलाहाबाद, घूमनगंज, खुल्दाबाद, शाहगंज, कोतवाली, कर्नलगंज, बरेली, कीडगंज ही नहीं बल्कि बिहार राज्य में भी हत्या, अपहरण, जबरन वसूली, गुंडा ऐक्ट, अवैध हथियार रखने, गैंगस्टर, बलवा आदि के मामले दर्ज हैं.

अतीक के खिलाफ सब से ज्यादा मामले इलाहाबाद जिले में ही दर्ज हुए थे. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, सन 1986 से 2007 तक अतीक अहमद के खिलाफ एक दरजन से ज्यादा मामले केवल गैंगस्टर ऐक्ट के तहत दर्ज किए गए थे.

अंतरराज्यीय गिरोह के सरगना खुल्दाबाद थाने के हिस्ट्रीशीटर अतीक अहमद के खिलाफ इस साल तक 75 मुकदमे दर्ज हो चुके थे. उन के गिरोह में 138 सदस्य थे. कचहरी में पुलिस वकीलों के बीच शूटआउट में 4 लोगों का कत्ल, चकिया में नस्सन हत्याकांड, चांद बाबा हत्याकांड, कचहरी परिसर में बम से हमला और चकिया में निवास के सामने भाजपा नेता अशरफ हत्याकांड से अतीक अहमद शहर और प्रदेश में सुर्खियों में बने रहे.

खैर, अपराध की दुनिया में नाम कमा चुके खूंखार अतीक अहमद को समझ आ चुका था कि सत्ता की ताकत कितनी अहम होती है. पुलिस से बचना है तो सत्ता का सुरक्षा कवच पहनना जरूरी है. इस के बाद अतीक ने राजनीति का रुख कर लिया.

सन 1989 में उन्होंने पहली बार इलाहाबाद (पश्चिमी) विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में किस्मत आजमाई. नतीजतन चुनाव जीत कर वह विधायक बन गए. विधायक बने अतीक अहमद ने सन 1991 और 1993 का विधानसभा चुनाव भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ा और जीत हासिल कर विधायक बन गए.

अपराधी से विधायक बने अतीक अहमद की इलाहाबाद में तूती बोलती थी. समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव की नजर दबंग अतीक अहमद पर पड़ी तो उन्होंने सन 1996 के विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी का टिकट दे कर उन्हें चुनाव लड़ाया. फलस्वरूप अतीक फिर से विधायक चुने गए.

दबंग से बाहुबली बने अतीक अहमद ने सन 1999 में समाजवादी पार्टी से रिश्ता तोड़ कर सोनेलाल पटेल की पार्टी अपना दल का दामन थाम लिया. अतीक अहमद की दबंगई का जलवा देख कर सोनेलाल पटेल ने इलाहाबाद के बजाए उन्हें प्रतापगढ़ से चुनाव मैदान में उतारा. विधानसभा के चुनाव में पहली बार अतीक को हार का मुंह देखना पड़ा. सन 2002 में अपना दल ने उन्हें उन के पुराने चुनावी मैदान से खड़ा किया. यहां से चुनाव जीत कर अतीक फिर से विधायक बन गए.

अतीक अहमद बने मुलायम सिंह के सिपहसालार

सन 2003 में जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तो दल बदलने में माहिर अतीक अहमद ने फिर से मुलायम सिंह यादव का दामन पकड़ लिया. सपा मुखिया ने बाहुबली अतीक अहमद की पुरानी बातों को भुला कर अपने खेमे में पनाह दे दी. सन 2004 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अतीक अहमद को फूलपुर संसदीय क्षेत्र से टिकट दिया और वह सांसद बन गए.

राजनीति में आने के बाद अतीक अहमद ने खुल्दाबाद में रंगदारी को ले कर कपड़ा व्यवसाई नीटू सरदार की हत्या करा कर क्षेत्र में दहशत फैला दी. नीटू सरदार हत्याकांड को भले ही 15 साल बीत गए हैं, लेकिन लोगों के जहन में आज भी उस की टीस है. विधायक अतीक अहमद ने रंगदारी को ले कर हुए विवाद में नीटू सरदार की गोलियों से छलनी कर के दिनदहाड़े हत्या करा दी थी.

इस हत्या में तब के विधायक रहे बाहुबली अतीक अहमद सहित 7 लोग आरोपी बनाए गए थे, जिस में अतीक के अलावा मोहम्मद जाकिर, मोहम्मद अहमद फहीम, मोहम्मद कैफ, नरेंद्र सिंह, शेरू उर्फ शिराज और अशरफ शामिल थे. बाद के दिनों में शेरू उर्फ शिराज की मौत हो जाने के कारण उस पर से मुकदमा समाप्त कर दिया गया था और अशरफ के गैरहाजिर रहने के कारण उस की केस फाइल अलग कर दी गई थी.

लंबे समय तक विशेष अदालत में चले इस मुकदमे में विशेष जज पवन कुमार तिवारी ने पूर्व सांसद अतीक अहमद सहित पांचों आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया. उन्होंने 16 दिसंबर, 2018 को यह फैसला खान फरहत, खान शौकत, एडवोकेट राधेश्याम पांडेय और शासकीय अधिवक्ता के तर्कों को सुनने के बाद दिया था.

कोर्ट ने साक्ष्यों का विश्लेषण करने के बाद कहा कि इस मामले की कडि़यां पूरी तरह जुड़ नहीं पाईं, जिस से अपराध साबित होता है. बचावपक्ष के तर्क अभियोजन पक्ष के साक्ष्य के परिप्रेक्ष्य में आरोपों को प्रमाणित नहीं कर सके.

हत्या एवं आपराधिक साजिश रचने के आरोप को संदेह से परे साबित करने में अभियोजन पक्ष असफल रहा है. न्यायहित की चिंतन की स्याही और चेतना की लेखनी का निष्कर्ष स्पष्ट व साफ है कि दंडित किया जाना न्यायहित में नहीं है, इसलिए सभी आरोपियों को बरी किया जाता है.

आरोपियों के बरी किए जाने का मुख्य आधार पुलिस द्वारा विवेचना के दौरान एकत्र किए गए साक्ष्यों को कोर्ट में साबित नहीं कर पाना था, जो साक्ष्य प्रस्तुत हुए, उन से मुकदमे की पूरी कडि़यां जुड़ नहीं पाई थीं.

मुकदमे के वादी रहे नीटू के पिता की मौत 2004 में होने के कारण उन का कोर्ट में बयान दर्ज नहीं हो सका. नीटू के पिता ने नामजद आरोपी जोगेंद्र सिंह को बनाया था. लेकिन बाहुबली अतीक के दबाव में आ कर नामजदगी गलत बता कर पुलिस ने दूसरे को आरोपी बना दिया था. और तो और बाहुबली की दहशत का आलम यह था कि जितने भी गवाह पेश हुए, किसी ने भी घटना का समर्थन नहीं किया.

मृतक नीटू सरदार की पत्नी जितेंद्र कौर भी अपने बयान से पलट गई. मृतक की मां परमदीप कौर ने भी इसी तरह का बयान दिया. नीटू के भाई अरविंद सिंह ने भी घटना का समर्थन नहीं किया. इस का सीधा लाभ आरोपियों को मिला.

खैर, 2004 के आम चुनाव में फूलपुर से सपा के टिकट पर अतीक अहमद सांसद बन गए थे. उन के सांसद बनने पर इलाहाबाद (पश्चिम) विधानसभा सीट खाली हो गई थी. इस सीट पर उपचुनाव हुआ. सपा ने सांसद अतीक अहमद के छोटे भाई अशरफ को टिकट दिया था, वहीं बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने कभी सांसद अतीक का दाहिना हाथ कहे जाने वाले राजू पाल को चुनावी मैदान में उतार दिया.

राजू पाल की हत्या

राजू पाल ने बाहुबली के दुलारे छोटे भाई अशरफ अहमद को हरा कर चुनाव जीत लिया. राजू पाल की जीत से सांसद अतीक अहमद खुश नहीं थे, क्योंकि उन के अपने ही प्यादे से उन्हें करारी शिकस्त मिली थी. इस शिकस्त को वह बरदाश्त नहीं कर पाए और उसे रास्ते से हटाने की खतरनाक साजिश रच डाली.

उपचुनाव में जीत दर्ज कर पहली बार विधायक बने राजू पाल की कुछ महीने बाद ही 25 फरवरी, 2005 को दोपहर 3 बजे दिनदहाड़े गोली मार कर हत्या कर दी गई. राजू पाल एसआरएन अस्पताल स्थित पोस्टमार्टम हाउस से अपने समर्थकों के साथ 2 गाडि़यों में धूमनगंज के नीवां स्थित अपने घर लौट रहे थे, तभी सुलेमसराय में जीटी रोड पर अमितदीप मोटर्स के पास उन की गाड़ी को घेर कर गोलियों की बौछार कर दी गई थी.

उस वक्त विधायक राजू पाल खुद क्वालिस कार की ड्राइविंग सीट पर थे. उन के बगल में उन के दोस्त की पत्नी रुखसाना बैठी थी, जो उन्हें चौफटका के पास मिली थी. इसी गाड़ी में संदीप यादव और देवीलाल भी सवार थे. पीछे स्कौर्पियो में ड्राइवर महेंद्र पटेल और ओमप्रकाश तथा नीवां के सैफ समेत 4 लोग और थे. दोनों गाडि़यों में एकएक शस्त्रधारी सिपाही भी था.

राजू पाल ने सांसद अतीक अहमद से अपनी जान को खतरा बताया था, इसीलिए उन की सुरक्षा में सिपाही तैनात कर दिए गए थे. कई गोलियां लगने से घायल राजू पाल समेत सभी लोगों को औटो से जीवन ज्योति अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. इस शूटआउट में संदीप यादव और देवीलाल भी मारे गए थे.

घटना की सूचना पा कर तत्कालीन एसएसपी सुनील गुप्ता, एसपी (सिटी) राजेश कृष्ण और थानाप्रभारी (धूमनगंज) परशुराम सिंह मौके पर पहुंच गए थे. पुलिस ने राजू पाल का शव पोस्टमार्टम हाउस भेजा. लेकिन उन के समर्थक उन का शव वहां से उठा कर ले गए और सुलेमसराय में चक्काजाम कर दिया.

बसपा विधायक की हत्या से पूरे शहर में सनसनी फैल गई थी. विधायक राजू पाल की नवविवाहिता पत्नी पूजा पाल ने धूमनगंज थाने में सपा सांसद अतीक अहमद, उन के छोटे भाई अशरफ, करीबियों फरहान, आबिद, रंजीत पाल, गुफरान समेत 9 लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 147, 148, 149, 307, 302, 120बी, 506 और 7 सीएल ऐक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. 9 दिन पहले ही राजू पाल ने पूजा से प्रेम विवाह किया था. अभी पूजा के हाथों की मेहंदी भी फीकी नहीं पड़ी थी.

बसपा विधायक राजू पाल की हत्या में नामजद आरोपी होने के बावजूद अतीक अहमद सांसद बने रहे. इस की वजह से चौतरफा आलोचनाओं का शिकार बनने के बाद मुलायम सिंह ने दिसंबर 2007 में सांसद अतीक अहमद को पार्टी से बाहर कर दिया.

मायावती ने अतीक को दिखाई अपनी हनक

अतीक अहमद ने राजू पाल हत्याकांड के गवाहों को भी डरानेधमकाने की कोशिश की. लेकिन मुलायम सिंह के सत्ता से बाहर हो जाने और मायावती के मुख्यमंत्री बन जाने की वजह से कामयाब नहीं हो सके. इस हत्याकांड में सीधे तौर पर सांसद अतीक अहमद और उन के भाई अशरफ को आरोपी बनाया गया था.

मुख्यमंत्री मायावती की हनक से अतीक अहमद के हौसले पस्त होने लगे थे. उन के खिलाफ एक के बाद एक मुकदमे दर्ज हो रहे थे. इसी दौरान बाहुबली अतीक अहमद भूमिगत हो गए.

बाहुबली सांसद अतीक के फरार होने के बाद न्यायालय के आदेश पर उन के घर, कार्यालय सहित 5 स्थानों की संपत्ति कुर्क की जा चुकी थी और 5 मामलों में उन की संपत्ति कुर्क करने के आदेश दिए गए थे. फरार अतीक अहमद की गिरफ्तारी पर पुलिस ने 20 हजार रुपए का ईनाम रख दिया था.

ईनामी सांसद की गिरफ्तारी के लिए पूरे देश में अलर्ट जारी किया गया था. इस के 6 महीने बाद दिल्ली पुलिस ने उन्हें पीतमपुरा के एक अपार्टमेंट से गिरफ्तार कर लिया था. उस वक्त अतीक ने कहा था कि उन्हें मुख्यमंत्री मायावती से जान का खतरा है, इसलिए शहर छोड़ कर वह फरार हो गए थे.

सांसद अतीक अहमद की उलटी गिनती शुरू हो गई थी. पुलिस और विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने अतीक अहमद की एक खास परियोजना अलीना सिटी को अवैध घोषित करते हुए उस का निर्माण ध्वस्त कर दिया था.

औपरेशन अतीक के तहत ही 5 जुलाई, 2007 को राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल ने अतीक के खिलाफ धूमनगंज थाने में अपहरण और जबरन बयान दिलाने का मुकदमा दर्ज करा दिया. दरअसल, सांसद अतीक अहमद ने राजू पाल कांड में उमेश पाल को गवाही देने से साफ मना कर दिया था.

ऐसा न करने पर इस का बुरा अंजाम भुगतने की धमकी भी दी थी. इसी के तहत उमेश पाल ने अतीक सहित 5 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था. इस के 4 अन्य गवाहों की ओर से भी उन के खिलाफ मामले दर्ज कराए गए थे.

सन 2013 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार आई तो एक बार फिर अतीक साइकिल पर सवार हो गए. फिलहाल वह जमानत पर बाहर चल रहे थे. उन के छोटे भाई अशरफ भी जमानत पर बाहर थे और और अपना कारोबार कर रहे थे.

बाहुबली पूर्व सांसद के आतंक की दास्तान अभी खत्म नहीं हुई थी. अपराध के दस्तावेजों में एक और खूनी इबारत लिखे जाने की तैयारी चल रही थी. दहशत भरी यह कहानी मरियाडीह के दोहरे हत्याकांड के नाम से मशहूर हुई, जिसे सोच कर लोग आज भी दहशत में आ जाते हैं. यह लोमहर्षक घटना 25 सितंबर, 2015 को बकरीद के दिन घटी थी. उस दिन मरियाडीह निवासी आबिद प्रधान के घर जोशोखरोश से त्यौहार की खुशियां मनाई जा रही थीं.

रात के समय आबिद प्रधान का ड्राइवर सुरजीत उस की चचेरी बहन अल्कमा को गाड़ी से घर छोड़ने जा रहा था. वह एक दावत में शरीक होने के बाद लौट रही थी. अल्कमा बला की खूबसूरत थी. अपनी खूबसूरती पर उसे नाज था. वह ड्राइवर सुरजीत से जल्द घर पहुंचने को कह रही थी. अंधेरी रात की वजह से सुरजीत भी जल्द से जल्द घर पहुंचना चाहता था. अभी वे घर के पास ही पहुंचे थे कि उन्हें नकाबपोश बंदूकधारियों ने चारों तरफ से घेर कर उन पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी.

बंदूकधारियों ने आबिद की चचेरी बहन अल्कमा और ड्राइवर को गोलियों से छलनी कर दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि अल्कमा को 17 और सुरजीत को 8 गोलियां मारी गई थीं.

मृतका के चचेरे भाई आबिद प्रधान ने इस केस में 7 लोगों उमरी के साबिर, वसी अहमद, मकसूद अहमद, बेली गांव के कम्मू, जाबिर मीरापट्टी के तौसीफ और इंतेखाब आलम के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज कराया. इस में अल्कमा के सगे भाइयों बेली निवासी कम्मू और जाबिर को भी आरोपी बनाया गया था.

हत्याकांड की वजह प्रेम संबंध बताई गई थी. दरअसल, धूमनगंज के बेली निवासी अल्कमा एक लड़के से प्रेम करती थी. धीरेधीरे यह मामला पूरे गांव में फैल गया था. अल्कमा के भाइयों कम्मू और जाबिर को बहन के प्रेम संबंधों की जानकारी हुई तो वे इतना नाराज हुए कि बहन को प्रेमी से दूर रहने के लिए कह दिया.

लेकिन अल्कमा प्रेमी से चोरीछिपे मिलती रही. बहन के इश्किया मिजाज से समाज बिरादरी में दोनों की हंसी उड़ाई जा रही थी.

आबिद प्रधान ने नामजद रिपोर्ट जरूर लिखा दी थी, लेकिन वारदात के बाद से ही शक जताया जा रहा था कि इस हत्याकांड में खुद आबिद प्रधान का हाथ है. मामला प्रेम संबंध नहीं बल्कि कुछ और ही था.

आबिद प्रधान के सिर पर बाहुबली सांसद अतीक अहमद का हाथ था, इसलिए पुलिस उस पर हाथ डालने से कतरा रही थी. उस के प्रभाव से पुलिस ने यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया.

उधर आबिद प्रधान ने अल्कमा के दोनों भाइयों कम्मू और जाबिर को आरोपी बनवा कर जिन 7 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी, वे सभी आरोपी फरार हो गए थे. तत्कालीन एसएसपी ने सभी आरोपियों पर 5-5 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया था.

जांच अधिकारी ने अपनी विवेचना में सातों आरोपियों, जिन पर ईनाम घोषित किया गया था, को विवेचना में क्लीनचिट दे दी और कहा कि नामजद सातों आरोपियों का घटना से कोई लेनादेना नहीं है. इस के बाद पुलिस ने केस फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी.

इस सनसनीखेज वारदात के करीब डेढ़ साल बाद आनंद कुलकर्णी ने इलाहाबाद के एसएसपी का पद संभाला. पद संभालने के बाद उन्होंने सभी थानों के अनसुलझे केसों की समीक्षा की तो सनसनीखेज मरियाडीह दोहरे हत्याकांड की फाइल भी उन के सामने आई.

उन्होंने फाइल गौर से देखी तो पाया कि न तो घटना का सही तरीके से खुलासा हुआ था और न ही आरोपी पकड़ गए थे. एसएसपी कुलकर्णी ने इस केस की समीक्षा की और सीओ (सिविल लाइंस) श्रीशचंद्र को इस केस की जांच सौंपी. सीओ श्रीशचंद्र इंसपेक्टर (धूमनगंज) अरुण त्यागी के साथ इस दोहरे हत्याकांड की जांच में जुट गए.

एसएसपी आनंद कुलकर्णी की जांच से सामने आई सच्चाई

उन्होंने वारदात के बाद पहली बार मरियाडीह गांव जा कर लोगों के बयान दर्ज किए. पुलिस को कई ऐसे प्रत्यक्षदर्शी मिले, जिन्होंने सरेआम गोली मारने वाले शूटरों को देखा था. उन के बयान और काल डिटेल्स की मदद से पुलिस ने मरियाडीह दोहरे हत्याकांड का खुलासा कर दिया. उन्होंने इस केस में बाहुबली पूर्व सांसद अतीक अहमद के साथ 15 लोगों को आरोपी बनाया. इस में पूर्व विधायक अशरफ, मोहम्मद आबिद प्रधान, फरहान, आबिद के भाई अकबर, जावेद, माजिद, अबूबकर, शेरू, फैजल, ऐजाज, आसिफ, जुल्फिकार उर्फ तोता, पप्पू उर्फ इम्तियाज और मुन्ना को आरोपी बनाया.

मरियाडीह दोहरे हत्याकांड में अतीक अहमद के कहने पर मुख्य भूमिका मोहम्मद आबिद प्रधान और उस के छोटे भाई मोहम्मद अकबर ने निभाई थी.

पुलिस के शक की सुई जब दोनों भाइयों पर जा कर टिकी तो वे फरार हो गए. पुलिस ने उन्हें वांछित बनाया. एसएसपी ने मोहम्मद आबिद प्रधान पर 20 हजार और उस के भाई अकबर पर 5 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया था. 27 अगस्त, 2017 को पुलिस ने मरियाडीह से फरार दोनों भाइयों मोहम्मद आबिद प्रधान और मोहम्मद अकबर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

जांच में इस कहानी के सूत्रधार पूर्व सांसद अतीक अहमद, उन के छोटे भाई अशरफ और मोहम्मद आबिद प्रधान का नाम सामने आया. दरअसल, कम्मू और जाबिर विधानसभा का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे. बाहुबली अतीक और उस के गैंग के जुल्मों से जनता त्रस्त हो चुकी थी.

जनता पश्चिमी इलाहाबाद से एक साफसुथरी छवि वाले ऐसे इंसान को विधायक चुनना चाहती थी, जो उस के सुखदुख में साथ खड़ा हो सके. जरूरत पड़ने पर उस के लिए 2 कदम साथ चल सके. इस के लिए बेली के कम्मू और जाबिर लोगों को बेहतर लगे. दोनों भाई आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गए थे. कम्मू और जाबिर बाहुबली को टक्कर के लिए पर्याप्त थे.

कम्मू और जाबिर की क्षेत्र में लोकप्रियता बढ़ रही थी. उन की लोकप्रियता को अतीक गैंग स्वीकार नहीं कर पा रहा था. पूर्व सांसद अतीक अहमद और अशरफ ने उन्हें समझाया कि चुनाव में मत उतरो, जितने पैसे चाहो ले लो. लेकिन बात नहीं बनी. पूर्व सांसद अतीक अहमद कम्मू और जाबिर की चुनावी तैयारी को ले कर खफा थे.

फरमान का पालन न करने से अतीक अहमद का गुस्सा सातवें आसमान को छूने लगा था. मोहम्मद आबिद प्रधान, बाहुबली अतीक का खासमखास था. आबिद प्रधान चचेरी बहन अल्कमा के प्रेम संबंध को ले कर नाखुश था, क्योंकि बिरादरी में बदनामी हो रही थी. अपने आका अतीक के रास्ते का रोड़ा बने कम्मू और जाबिर को आबिद इस तरह रास्ते से हटाना चाहता था, जिस से उस के आका पर किसी को शक भी न हो और दोनों भाई रास्ते से भी हट जाएं.

अपनी ताकत और रुतबे से फंसवा दिया भाइयों को

फिर क्या था. बाहुबली अतीक अहमद पूर्व विधायक अशरफ और मोहम्मद आबिद प्रधान ने मिल कर एक खतरनाक साजिश रच डाली. साजिश कम्मू और जाबिर को शिकार बनाने की नहीं थी, बल्कि बहन अल्कमा को शिकार बनाने की थी. अल्कमा को टारगेट इसलिए बनाया गया कि उस के प्रेम संबंधों को ले कर गांव में बदनामी हो रही थी.

कम्मू और जाबिर बहन की करतूत से परेशान थे, यह भी आबिद जानता था. आबिद इसी बात का फायदा उठाना चाहता था ताकि लोगों को यही लगे कि बदनामी से बचने के लिए कम्मू और जाबिर ने मिल कर अल्मका को मौत के घाट उतार दिया है. पुलिस का सारा शक कम्मू और जाबिर पर चला जाएगा. बहन के कत्ल में दोनों भाई जेल चले जाएंगे और उन के विधायक बनने का सपना धरा का धरा रह जाएगा.

योजना बन गई थी, बस उसे अंजाम देना शेष था. बकरीद के दिन अल्कमा की हत्या की तारीख तय की गई. 25 सितंबर, 2015 को अल्कमा एक रिश्तेदार की पार्टी से कार से अपने घर लौट रही थी. अतीक अहमद के करीब 6-7 बंदूकधारी गुर्गे मरियाडीह गांव में डेरा डाले उस के आने का इंतजार कर रहे थे. जैसे ही अल्कमा की कार मरियाडीह गांव के करीब पहुंची, पहले से घात लगाए बैठे बंदूकधारियों ने गोलियां चलानी शुरू कर दीं, जिस से अल्कमा के साथ ड्राइवर सुरजीत को भी मार दिया गया ताकि वह कोर्ट में गवाही न दे सके.

त्यौहार के दिन इस सनसनीखेज घटना से इलाहाबाद थर्रा उठा था. अतीक ने जो सोचा, उसे पूरा कर दिया था. पुलिस को गुमराह करते हुए अल्कमा के चचेरे भाई मोहम्मद आबिद प्रधान ने कम्मू और जाबिर सहित 7 को आरोपी बना कर थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया था.

किसी हद तक बाहुबली अतीक और उस के साथी अपने मंसूबों में कामयाब हो गए थे. लेकिन ईमानदार एसएसपी आनंद कुलकर्णी ने बाहुबली के मंसूबों पर पारी फेर दिया. उन की सूझबूझ से दोहरे हत्याकांड के सभी सही आरोपी गिरफ्त में आ गए. पूर्व विधायक अशरफ को छोड़ कर सभी आरोपी जेल में बंद हैं.

दोहरे हत्याकांड में पुलिस ने पूर्व सांसद अतीक अहमद समेत 15 आरोपियों पूर्व विधायक अशरफ, मोहम्मद आबिद प्रधान, फरहान, मोहम्मद अकबर, जावेद, माजिद, अबूबकर, शेरू, फैसल, एजाज, आसिफ, जुल्फिकार उर्फ तोता, पप्पू उर्फ इत्मियाज और मुन्ना के खिलाफ न्यायालय में आरोपपत्र दाखिल कर दिया.

अशरफ अभी फरार है. एसएसपी आनंद कुलकर्णी ने फरार अशरफ पर ढाई लाख रुपए का ईनाम घोषित करने के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा था, लेकिन इस प्रस्ताव को अभी तक स्वीकृति नहीं मिली.

मोहित जायसवाल को जेल ले जाने की हकीकत

बहरहाल, कृष्णानगर थाने के इंसपेक्टर यशकांत सिंह मोहित जायसवाल कांड की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद टीम के साथ काररवाई में जुट गए.

पुलिस टीम ने गोमतीनगर के सिल्वरलाइन अपार्टमेंट से सुलतानपुर निवासी गुलाम इमामुद्दीन और प्रतापगढ़ निवासी इरफान को गिरफ्तार कर लिया. उन के पास से मोहित जायसवाल से लूटी गई एसयूवी गाड़ी भी बरामद हो गई. दूसरी ओर पुलिस टीमें बना कर अतीक के बेटे उमर अहमद, गुलफाम और फारुख की तलाश में जुट गई. उन की तलाश में एक टीम ने इलाहाबाद में डेरा डाल लिया.

पुलिस ने रियल एस्टेट कारोबारी मोहित जायसवाल और बाहुबली अतीक के बीच के संबंधों की पड़ताल की तो पता चला कि मोहित जायसवाल और अतीक अहमद पूर्व परिचित थे. दोनों के बीच कारोबारी रिश्ते थे. उन के बीच पैसों को ले कर विवाद चल रहा था.

इसी विवाद की कड़ी ने अपराध को जन्म दिया. बाहुबली अतीक अहमद के इशारे पर उन के गुर्गे मोहित जायसवाल को अगवा कर के देवरिया जेल में बंद अतीक अहमद के पास ले आए. जेल के भीतर अतीक अहमद, उस के बेटे उमर और चारों गुर्गों ने मोहित को बुरी तरह मारापीटा और 45 करोड़ की संपत्ति के स्टांप पेपरों पर उस से जबरन दस्तखत करवा लिए थे.

इधर देवरिया जेल प्रशासन ने भी मोहित के जेल में दाखिल होने की पुष्टि की. पुलिस सूत्रों के अनुसार, मोहित जायसवाल करीब 3 घंटे तक जिला जेल में रहे.

जेल नियमों के अनुसार कोई भी मुलाकाती अधिकतम आधे घंटे तक ही बंदी या कैदी से मिल सकता है. विशेष परिस्थिति में उसे कुछ अतिरिक्त समय के लिए छूट दी जा सकती है, पर अतीक के मामले में सारे नियम ताक पर रख दिए गए थे.

अव्वल तो कई मुलाकातियों की जेल के रजिस्टर में एंट्री तक नहीं की जाती थी और अगर एंट्री हुई भी तो उन के बाहर निकलने की कोई तय सीमा नहीं होती थी. भेंट पूरी होने और पूर्व सांसद की सहमति के बाद ही वह जेल से बाहर आता था.

इस बारे में जेल अधीक्षक दिलीप कुमार पांडेय का कहना था कि निर्धारित समय के बाद मुलाकातियों को बाहर कर दिया जाता है. विशेष परिस्थिति में ही उसे अतिरिक्त समय दिया जाता है. हालांकि वह यह नहीं बता सके कि मोहित जायसवाल के मामले में ऐसी कौन सी परिस्थिति थी, जो उसे 3 घंटे तक अतीक से मिलने की अनुमति दे दी गई थी.

डीएम अमित किशोर के नेतृत्व में गई टीम ने देवरिया जिला कारागार के 26 दिसंबर, 2018 के सीसीटीवी फुटेज खंगाले. इस में कई फुटेज गायब मिले. मुलाकाती रजिस्टर में मोहित जायसवाल और सिद्दीकी का नाम दर्ज मिला, लेकिन फुटेज में अतीक की बैरक की ओर आनेजाने वालों की संख्या अधिक दिख रही थी. मुलाकाती रजिस्टर में मुलाकातियों के जाने और निकलने का टाइम दर्ज नहीं किया गया था.

जेल के कैदी भी रहते थे डरे हुए

सजायाफ्ता कैदियों से भी टीम के सदस्यों ने पूछताछ की, लेकिन किसी ने मुंह नहीं खोला. एडीएम (प्रशासन) राकेश कुमार पटेल ने अपनी रिपोर्ट में सीसीटीवी फुटेज में छेड़छाड़ की बात बताई, जिस पर डीएम अमित किशोर ने कहा कि सीसीटीवी फुटेज की जांच किसी एक्सपर्ट से कराई जाएगी. वारदात की वजह जेल प्रशासन की उदासीनता है, जिस की रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है.

जांचपड़ताल में यह भी पता चला कि जेल में अतीक अहमद के बंद होने के बाद शहर में अतीक के गुर्गों की आवाजाही बढ़ गई थी. शहर के एक खास मोहल्ले में अतीक का ड्राइवर और करीबी निवास करते थे और फौर्च्युनर गाड़ी से जेल आतेजाते थे.

पुलिस सूत्रों की मानें तो जेल में बंद लोगों की मदद भी अतीक करता था, जिस से उन का समर्थन उसे मिल जाता था. मोहित जायसवाल कांड ने अतीक अहमद की मुसीबत बढ़ा दी थी. इसी के चलते उसे बरेली जेल भेज दिया गया. बताया जा रहा है कि अतीक की वजह से बरेली जेल प्रशासन भी परेशान है. उसे वहां से कहीं और भेजने की तैयारी की जा रही थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

डाक्टर नहीं जल्लाद

साल 1981 में राजतिलक द्वारा निर्देशत एक फिल्म आई थी ‘चेहरे पे चेहरा’. यह एक थ्रिलर और हौरर फिल्म थी. फिल्म के केंद्रीय पात्र संजीव कुमार थे, जिन्होंने एक वैज्ञानिक और डा. विल्सन का किरदार निभाया था. विल्सन एक ऐसा कैमिकल ईजाद कर लेता है, जो आदमी की बुराइयों को खत्म कर सकता है. इस कैमिकल का प्रयोग वह सब से पहले खुद पर करता है, लेकिन इस का असर उलटा हो जाता है. विल्सन के भीतर की बुराइयों का प्रतिनिधित्व करता एक और किरदार ब्लैक स्टोन उस की अच्छाइयों पर हावी होने लगता है.

सी ग्रेड की यह फिल्म हालांकि दर्शकों ने ज्यादा पसंद नहीं की थी, लेकिन फिल्म यह संदेश देने में सफल रही थी कि आदमी के अंदर अच्छाइयां और बुराइयां दोनों मौजूद रहती हैं. इन में से जिसे अनुकूलताएं मिल जाती हैं, वह बढ़ जाती हैं.

मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के एक डाक्टर सुनील मंत्री की कहानी या किरदार काफी हद तक विल्सन के दूसरे चेहरे ब्लैक स्टोन से मिलताजुलता है, जिस के भीतर का हैवान या पिशाच बगैर कोई कैमिकल दिए ही जाग गया था.

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होशंगाबाद के आनंदनगर में रहने वाले इस हड्डी रोग विशेषज्ञ की पोस्टिंग नजदीक के कस्बे इटारसी के सरकारी अस्पताल में थी. सुनील मंत्री पोस्टमार्टम भी करता था, लिहाजा लाशों को चीरफाड़ कर मौत की वजह निकालना उस का काम था. अकसर होशंगाबाद-इटारसी अपडाउन करने वाले इस डाक्टर की जिंदगी की कहानी भी हिंदी फिल्मों सरीखी ही है.

अब से कोई सवा साल पहले तक सुनील मंत्री की जिंदगी में कोई कमी नहीं थी. उस के पास वह सब कुछ था, जिस की तमन्ना हर कोई करता है. इज्जतदार पेशा, खुद का मकान व कारें और सुंदर पत्नी सुषमा के अलावा बेटा श्रीकांत और बेटी जो नागपुर के एक नामी कालेज में पढ़ रही है. बेटा श्रीकांत भी मुंबई की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता है.

वक्त काटने और कुछ और पैसा कमाने की गरज से सुषमा ने साल 2010 में एक बुटीक खोला था. इसी दौरान उन के संपर्क में रानी पचौरी नाम की महिला आई, तो उन्होंने उसे भी अपने बुटीक में काम पर लगा लिया.रानी मेहनती और ईमानदार थी, इसलिए देखते ही देखते सुषमा की विश्वासपात्र बन गई. सुषमा भी उसे घर के सदस्य की तरह मानने लगी थी.

सुनील मंत्री की दिलचस्पी बुटीक में कोई खास नहीं थी लेकिन जब से उस ने रानी को देखा था, तब से उस के होश उड़ गए थे. रानी का पति वीरेंद्र उर्फ वीरू पचौरी एक तरह से निकम्मा और बेरोजगार था, जो कभीकभार छोटेमोटे काम कर लिया करता था. नहीं तो वह पत्नी की कमाई पर ही आश्रित था. वीरू जैसे पतियों की समाज में कमी नहीं है. ऐसे लोगों के लिए एक कहावत है, ‘काम के न काज के, दुश्मन अनाज के.’

रानी जैसी पत्नियों की भी यह मजबूरी हो जाती है कि वे ऐसे पति को ढोती रहें, जो कहने भर का पति होता है. उस से उन्हें कुछ नहीं मिलता सिवाय एक सामाजिक सुरक्षा के, इसलिए वह वीरू को ढो ही रही थी.

पत्नी की मौत के बाद डाक्टर ने रानी में ढूंढा मन का सुकून

यह कोई हैरानी या हर्ज की बात नहीं थी, पर ऐसे मामलों में जैसा कि अकसर होता है, इस में भी हुआ यानी कि डा. सुनील मंत्री और रानी के बीच भी सैक्स की खिचड़ी पकने लगी. चूंकि रानी के घर आनेजाने की कोई रोकटोक नहीं थी, इसलिए दोनों को साथ वक्त गुजारने में कोई दिक्कत नहीं आती थी.

उस दौरान डा. सुनील मंत्री का वक्त कैसे गुजरता था, यह तो कोई नहीं जानता लेकिन 7 अप्रैल, 2017 को डाक्टर की पत्नी सुषमा की भोपाल के बंसल हौस्पिटल में मौत हो गई. पत्नी के देहांत के बाद तनहा रह गए डा. सुनील मंत्री का अधिकांश वक्त रानी के साथ ही गुजरने लगा.

सुषमा के बाद दिखावे के लिए बुटीक का काम रानी ने संभाल लिया था, लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि रानी ने और कई चीजों की डोर अपने हाथ में ले ली थी. जब तक सुषमा थी तब तक रानी का पति वीरू रानी को उस के यहां आनेजाने पर कोई ऐतराज नहीं जताता था लेकिन बाद में रानी पहले से कहीं ज्यादा वक्त बुटीक में बिताने लगी तो उस का माथा ठनका, जो स्वाभाविक बात थी. क्योंकि सुनील मंत्री अब अकसर अकेला रहता था.

रानी जब अपने घर में होती थी तब भी डा. सुनील मंत्री से फोन पर लंबीलंबी और अंतरंग बातें करती रहती थी. वीरू को शक तो था कि डाक्टर साहब और रानी के बीच प्यार की खिचड़ी पक रही है लेकिन उस का शक तब यकीन में बदल गया जब उस ने खुद अपने कानों से डाक्टर और रानी के बीच हुई अंतरंग बातचीत को सुन लिया.

दरअसल हुआ यह था कि मोबाइल फोन खराब हो जाने के कारण रानी ने अपना सिम कार्ड कुछ दिनों के लिए वीरू के फोन में डाल लिया था. न जाने कैसे बातचीत की रिकौर्डिंग वीरू के फोन में रह गई. वही रिकौर्डिंग वीरू ने सुन ली तो उस का खून खौल उठा.

पहले तो उस के जी में आया कि बेवफा बीवी और उस के आशिक डाक्टर का टेंटुआ दबा दे, पर जब उस ने धैर्य से विचार किया तो बस इतना सोचा कि क्यों न डा. सुनील मंत्री को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बना कर रोज एक अंडा हासिल किया जाए. क्योंकि वह अगर डा. सुनील मंत्री को मारता या हल्ला मचाता तो उस के हाथ कुछ नहीं लगना था, उलटे लोग यही कहते कि गलती डाक्टर के साथसाथ रानी की भी थी.

लिहाजा एक दिन वीरू ने सुनील मंत्री को बता दिया कि वह उस के और अपनी पत्नी रानी के अवैध संबंधों के बारे में जान गया है और इस की वाजिब कीमत चाहता है. इस पेशकश पर शुरू में सुनील मंत्री को कोई नुकसान नजर नहीं आया, उलटे फायदा यह दिखा कि वीरू का डर खत्म हो गया.

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यानी वह अपनी मरजी से ब्लैकमेल होने को तैयार हो गया. शुरू में सुनील मंत्री जिसे मुनाफे का सौदा समझ रहा था, वह धीरेधीरे बहुत घाटे का साबित होने लगा. क्योंकि वीरू अब जब चाहे तब उसे ब्लैकमेल करने लगा था. उस का मुंह सुरसा की तरह खुलता और बढ़ता जा रहा था.

डाक्टर की इस दिक्कत या कमजोरी का वीरू पूरा फायदा उठा रहा था. डाक्टर अगर पुलिस में रिपोर्ट भी करता तो बदनामी उसी की ही होती. लिहाजा वह रानी को अपने पहलू में बनाए रखने के लिए अपनी गाढ़ी कमाई वीरू को सौंपने को मजबूर था.

वक्त गुजरता रहा और वीरू डा. सुनील मंत्री को अपने हिसाब से निचोड़ता रहा. इस से डाक्टर को लगने लगा कि ऐसे तो वह एक दिन कंगाल हो जाएगा और रानी भी हाथ से निकल जाएगी.

यह डा. सुनील मंत्री की 56 साला जिंदगी का बेहद बुरा वक्त था. रानी से मिल रहे देह सुख की कीमत जब उस की हैसियत पर भारी पड़ने लगी तो उस ने एक बेहद खतरनाक फैसला ले लिया. चेहरे पे चेहरा फिल्म का हैवान ब्लैक स्टोन उस के भीतर जाग उठा और उस ने वीरू की इतनी नृशंस तरीके से हत्या कर डाली कि देखनेसुनने वालों की रूह कांप उठे. हर किसी ने यही कहा कि यह डाक्टर है या जल्लाद.

डाक्टर बना जल्लाद

डा. सुनील मंत्री फंस इसलिए गया था कि उस के और रानी के नाजायज ताल्लुकातों के सबूत वीरू के पास थे, नहीं तो तय था कि वह रानी को छोड़ देता. ये सबूत जो कभी सार्वजनिक या उजागर नहीं हो सकते, अब पुलिस के पास हैं.

वीरू की ब्लैकमेलिंग से आजिज आ गए सुनील मंत्री ने उसे अपने यहां बतौर ड्राइवर की नौकरी पर रख लिया. पगार तय की 16 हजार रुपए महीना.

इस जघन्य हत्याकांड का एक विरोधाभासी पहलू यह भी चर्चा में है कि डाक्टर ने वीरू को समझाया था कि तुम मेरे ड्राइवर बन जाओ तो चौबीसों घंटे मुझे देखते रहोगे. इस से तुम्हारा शक दूर हो जाएगा.

जबकि हकीकत में डा. सुनील मंत्री वीरू की हत्या का खाका काफी पहले से ही दिमाग में बना चुका था. उसे दरकार थी तो बस एक अदद मौके की, जिस से वीरू नाम की बला से हमेशाहमेशा के लिए छुटकारा पाया जा सके. 3 फरवरी, 2019 की सुबह वीरू डा. सुनील को कार से होशंगाबाद से इटारसी ले कर गया था.

दोनों शाम कोई 4 बजे वापस लौट आए. लेकिन वीरू अपने घर नहीं पहुंचा. दूसरे दिन रानी ने फोन पर यह खबर अपने ससुर लक्ष्मीकांत पचौरी को दी.

5 फरवरी की सुबह लक्ष्मीकांत होशंगाबाद आए और बेटे की ढुंढाई शुरू की. रानी ने उन्हें इतना ही बताया था कि वीरू ने 2 दिन पहले ही डा. सुनील मंत्री के यहां ड्राइवर की नौकरी शुरू की है.

यह बात सुन कर वह सीधे डा. सुनील मंत्री की कोठी पर जा पहुंचे और बेटे वीरू की बाबत पूछताछ की तो डाक्टर ने उन्हें गोलमोल जवाब दे कर टरकाने की कोशिश की. इस पर बुजुर्ग और अनुभवी लक्ष्मीकांत का माथा ठनकना स्वाभाविक था. उन्होंने डाक्टर से उस के घर के अंदर जाने की जिद की तो डाक्टर ने अचकचा कर मना कर दिया.

इस पर दोनों में झगड़ा शुरू हो गया. बेटे की चिंता में हलकान हुए जा रहे लक्ष्मीकांत डाक्टर पर वीरू को गायब करने का आरोप लगा रहे थे और डाक्टर उन के इस आरोप को खारिज कर रहा था.

झगड़ा होते देख वहां भीड़ जमा हो गई. इन में कुछ डा. सुनील मंत्री के पड़ोसी भी थे, जिन की नजरों में सुनील मंत्री पिछले 2 दिन से संदिग्ध हरकतें कर रहा था.

इत्तफाक से इसी दौरान पुलिस की एक गश्ती गाड़ी वहां से गुजर रही थी, जिस के पहिए यह झगड़ा देख रुक गए.

आखिर माजरा क्या है, यह जानने के लिए पुलिस वाले गाड़ी से नीचे उतरे और बात को समझने की कोशिश करने लगे. लक्ष्मीकांत ने फिर आरोप दोहराते हुए कहा कि डाक्टर ने उन के बेटे को गायब कर दिया है और अब कोठी के अंदर भी नहीं देखने दे रहा.

इस पर पुलिस वालों को हैरानी हुई कि अगर डाक्टर ने कुछ नहीं किया है तो उसे किसी के अंदर जाने पर इतना सख्त ऐतराज या जिद नहीं करनी चाहिए. लिहाजा खुद पुलिस वालों ने अंदर जाने का फैसला ले लिया.

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कीमे के रूप में मिली लाश

अंदर जाने के बाद सख्त दिल पुलिस वाले भी दहल उठे, क्योंकि ड्राइंगरूम में जगहजगह खून बिखरा पड़ा था. इतना ही नहीं, मांस के छोटेछोटे टुकड़े भी यहांवहां बिखरे पड़े थे मानो यह आलीशान कोठी कोई गलीकूचे की मटन शौप हो. पुलिस वालों के साथ अंदर गए लक्ष्मीकांत पहले से ही किसी अनहोनी की आशंका से ग्रस्त थे. उन्होंने खोजबीन की तो एक ड्रम में उन्हें एक कटा हुआ सिर दिखा, जिसे देख वे दहाड़ मार कर रोने लगे. वह सिर उन के जवान बेटे वीरू का था.

जब पुलिस वालों ने घर का और मुआयना किया तो उन्हें टौयलेट में 4 आरियां मिलीं. इन में से 2 आरियों के बीच वीरू के एक पैर के दरजन भर टुकड़े फंसे हुए थे. जब ड्रम को गौर से देखा गया तो एसिड में वीरू के कटे सिर के साथसाथ हाथपैर भी पडे़ दिखे. डाक्टरों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले दस्ताने भी खून से सने हुए थे. इस हैवान डाक्टर ने वीरू के शरीर के 4-6 नहीं बल्कि करीब 500 टुकड़े कर डाले थे.

अब बारी सुनील मंत्री की थी, जिस ने शराफत से अपना जुर्म स्वीकारते हुए बताया कि वह वीरू की ब्लैकमेलिंग से आजिज आ गया था, इसलिए उस ने उस की हत्या कर डाली.

दरअसल, 3 फरवरी को वीरू के दांत में दर्द था. यह बात उस ने डा. सुनील मंत्री को बताई तो उस ने इटारसी जाते वक्त एक गोली दी. लेकिन होशंगाबाद वापस आने के बाद वीरू ने फिर दांत दर्द की बात कही तो डा. सुनील के अंदर बैठे ब्लैक स्टोन ने उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. इसी बेहोशी में उस ने वीरू का गला रेता और फिर उस की लाश के टुकड़े करने शुरू कर दिए.

एक दिन में लाश को काट कर टुकड़ेटुकड़े कर डालना मुश्किल काम था, इसलिए दूसरे दिन भी वह यही करता रहा और इटारसी अस्पताल भी गया था. लेकिन जल्द ही वापस आ गया था. जाते समय उस ने वीरू के खून से सने कपड़े बाबई के पास फेंक दिए थे. दोनों दिन उस ने घर की लाइटें नहीं जलाई थीं ताकि कोई मरीज न आ जाए. दूसरे दिन लाश के टुकड़े वह दूसरी मंजिल पर ले गया था.

सुनील मंत्री अपनी योजना के मुताबिक काफी दिनों से एसिड इकट्ठा कर रहा था. चूंकि वह डाक्टर था, इसलिए दुकानदार उस पर शक नहीं कर रहे थे और वह भी पहले से ही बता देता था कि वह स्वच्छ भारत अभियान के तहत एसिड खरीद रहा है. डाक्टर होने के नाते सुनील बेहतर जानता था कि लाश के टुकड़े गल कर नष्ट हो जाएंगे और किसी को हवा भी नहीं लगेगी.

लेकिन जब हवा होशंगाबाद, इटारसी से भोपाल होते हुए देश भर में फैली तो सुनने वालों का कलेजा मुंह को आ गया कि डाक्टर ऐसा भी होता है.

ऐसा हो चुका था और डा. सुनील मंत्री खुद पुलिस वालों को बता भी रहा था कि ऐसा कैसे और क्यों हुआ.

इस खुलासे पर सनसनी मची तो होशंगाबाद के तमाम आला पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों के आते ही डाक्टर की हालत खस्ता हो गई और वह ऊटपटांग हरकतें करने लगा. कभी वह गुमसुम बैठ जाता था तो कभी रोने लगता था. कहीं वह कुछ उलटासीधा न कर बैठे, इस के लिए उस के इर्दगिर्द दरजन भर पुलिसकर्मी तैनात कर दिए गए और उस का पैर जंजीर से बांध दिया गया.

यह बात सच है कि डा. सुनील अपना दिमागी संतुलन अस्थाई रूप से खो बैठा था. उस की शुगर और ब्लडप्रेशर दोनों बढ़ गए थे और वह सोडियम पोटैशियम इम्बैलेंस का भी शिकार हो गया था, जिस में मरीज कुछ भी बकने लगता है और ऊटपटांग हरकतें करनी शुरू कर देता है.

इन बीमारियों पर काबू पाया गया तो एक के बाद एक वीरू की हत्या से ताल्लुकात रखते राज खुलते गए कि इस की आखिर वजह क्या थी.

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फंस ही गया डाक्टर चक्रव्यूह में

छानबीन और जांच में पुलिस वालों की जानकारी में जब डाक्टर की पत्नी सुषमा मंत्री की मौत संदिग्ध होनी पाई गई तो एक टीम भोपाल के नामी बंसल हौस्पिटल भी पहुंची. दरअसल, सुषमा की मौत भी सुनील के लगाए गए इंजेक्शन के रिएक्शन से हुई थी. इंजेक्शन लगाने के बाद सुषमा के शरीर में संक्रमण फैलने लगा तो सुनील उसे भोपाल ले कर आया था. इस संदिग्ध मौत के बाद भी सुषमा का पोस्टमार्टम क्यों नहीं किया गया था, इस बात की जांच पुलिस कथा लिखे जाने तक कर रही थी.

रानी के बयान और किरदार दोनों अहम हो चले थे, लेकिन पूछताछ में वह अनभिज्ञता जाहिर करती रही. पुलिस ने जब सुनील मंत्री से उस के संबंधों के बारे में पूछा तो वह खामोश रही. इस से पुलिस को रानी की भूमिका ज्यादा संदिग्ध नजर आई, जिस की जांच पुलिस कथा लिखने तक कर रही थी. सुनील मंत्री से उस की फोन पर हुई बात की रिकौर्डिंग भी पुलिस ने हासिल कर ली.

पुलिस ने मामला दर्ज कर के वीरू की टुकड़ेटुकड़े बनी लाश पोस्टमार्टम के बाद उस के परिजनों को सौंप दी, जिस का दाह संस्कार भी हो गया. कुछ सामान्य होने के बाद सुनील कहने लगा कि हां, उस ने वीरू की हत्या की थी लेकिन अब अदालत में उस का वकील बोलेगा.

रिमांड पर लिए जाने के बाद वह अदालत में असामान्य दिखा, जिस से उस की हिरासत की अवधि लगातार बढ़ाई जा रही है. हालांकि सच यह है कि किसी अंतिम निष्कर्ष पर पुलिस तभी पहुंचेगी, जब रानी मुंह खोलेगी. पुलिस सुषमा की मौत को भी संदिग्ध मान कर काररवाई कर रही है कि कहीं वह भी हत्या तो नहीं थी.

सब कुछ मुमकिन है लेकिन जिस तरह वीरू की हत्या डा. सुनील मंत्री ने की वह जरूर हैरत वाली बात है कि कोई डाक्टर जो जिंदगियां बचाता है, वह इतने वीभत्स, हिंसक और जघन्य तरीके से किसी की जिंदगी भी छीन सकता है.

रहस्य में लिपटी विधायक की मौत

37 वर्षीय विधायक सत्यजीत बिस्वास पश्चिम बंगाल के नदिया शहर स्थित कृष्णानगर मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में मांबहन के अलावा पत्नी रूपाली और 7 माह का बच्चा था. विधायक सत्यजीत बिस्वास काफी मिलनसार, मृदुभाषी और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे, जिस की वजह से वह अपने विधानसभा क्षेत्र कृष्णागंज में काफी लोकप्रिय थे.

उन की लोकप्रियता का एक कारण यह भी था कि वह दिनरात क्षेत्र के विकास के लिए तत्पर रहते थे. क्षेत्र के लोगों की मदद के लिए वह हर समय तैयार रहते थे. इसी के चलते क्षेत्र के लोग उन से खुश रहते थे.

वह 9 फरवरी, 2019 की खुशनुमा शाम थी. तृणमूल कांग्रेस के विधायक सत्यजीत बिस्वास अपनी पत्नी रूपाली बिस्वास के साथ डाइनिंग रूम में बैठे बातचीत करते हुए चाय की चुस्की ले रहे थे. उस वक्त उन का चेहरा खुशी से चमक रहा था.

पति के चेहरे पर खुशी की ऐसी चमक रूपाली ने पहले कभी नहीं देखी थी. वह भीपति की खुशी से खुश हो कर उन्हें निहार रही थीं. चाय की चुस्की के दौरान बीचबीच में विधायक की नजरें कलाई पर बंधी घड़ी पर चली जाती थीं.

‘‘क्या बात है जो आज इतने मुसकरा रहे हैं जनाब?’’ रूपाली ने पति को गुदगुदाने की कोशिश की.

‘‘अपने घर में बैठा हूं. खूबसूरत बीवी की छत्रछाया में. खुश होना मना है क्या?’’

यह सुन कर रूपाली शरमाने के बजाए संजीदा हो गईं. फिर पति को कुछ याद दिलाते हुए बोलीं, ‘‘नेताजी, यहां बैठेबैठे यूं ही बातें करते रहेंगे या जिस के लिए तैयार हो कर बैठे हैं, वहां भी जाएंगे.’’

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‘‘अच्छा किया, तुम ने याद दिला दिया मैडम. ऐसा करो तुम भी तैयार हो जाओ. इसी बहाने तुम्हारा भी मूड बदल जाएगा और हमारा साथ भी बना रहेगा.’’ कलाई पर नजर डालते हुए सत्यजीत आगे बोले, ‘‘जल्दी करो, मेरे पास ज्यादा टाइम नहीं बचा है. तुम तैयार हो जाओ. तब तक मैं एक काल कर लेता हूं.’’

इस के बाद रूपाली तैयार होने के लिए चली गई. 10 मिनट में वह तैयार हो कर पति के पास आ गईं. उन्होंने 7 महीने के बेटे को भी तैयार कर दिया था.

दरअसल, विधायक सत्यजीत बिस्वास को फुलबारी इलाके में सरस्वती पूजन के उद्घाटन कार्यक्रम में शरीक होना था, जिस में उन्हें मुख्य अतिथि बनाया गया था. इन के अलावा उस कार्यक्रम में तृणमूल कांग्रेस नेता गौरीशंकर, लघु उद्योग मंत्री रत्ना घोष सहित शहर के तमाम सम्मानित लोगों को भी आमंत्रित किया गया था.

सत्यजीत बिस्वास का वहां पहुंचना जरूरी था. इस के बाद वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ अपनी कार से कार्यक्रम स्थल फुलबारी पहुंच गए. कार्यक्रम स्थल उन के आवास से बमुश्किल 300 मीटर दूर स्थित था. वहां पहुंचने में उन्हें 3-4 मिनट का समय लगा होगा.

बुला रही थी मौत

बहुत बड़े मैदान में लगे पंडाल में कतार से कुर्सियां बिछी हुई थीं. आगे की कतार में बिछी स्पैशल कुर्सियों पर तमाम वीआईपी और नेता बैठे थे. आयोजकों की आंखें बारबार मुख्यद्वार पर जा कर टिक रही थीं. उन की परेशान आंखों से यही पता चल रहा था कि वह बड़ी बेसब्री से किसी के आने का इंतजार कर रहे थे.

जैसे ही विधायक सत्यजीत बिस्वास ने पंडाल में प्रवेश किया, वहां का माहौल खुशनुमा हो गया. सरस्वती पूजन के उद्घाटन की सारी तैयारियां पहले से कर ली गई थीं. दीप प्रज्जवलन का कार्यक्रम मंच पर ही होना था. विधायक बिस्वास के पहुंचते ही आयोजक उन्हें, उन की पत्नी रूपाली बिस्वास और कुछ अन्य गणमान्य लोगों को मंच पर ले गए और दीप प्रज्जवलन का कार्यक्रम संपन्न कराया गया.

दीप प्रज्जवलित करने के बाद विधायक सहित तमाम अतिथि कुर्सियों पर जा बैठे. उस के थोड़ी देर बाद अतिथियों के स्वागत में रंगारंग कार्यक्रम शुरू हुए. कार्यक्रम ने अतिथियों का मन मोह लिया. वे उस में तन्मयता से लीन हो कर लुत्फ उठा रहे थे. उस समय रात के करीब 9 बजे थे.

रंगारंग कार्यक्रम शुरू हुए अभी 5 मिनट भी नहीं हुए थे कि 2 नकाबपोश फुरती से पंडाल में पहुंचे. इस से पहले कि लोग कुछ समझ पाते, उन्होंने पीछे से विधायक सत्यजीत बिस्वास पर निशाना साध कर गोलियां चलानी शुरू कर दीं. गोलियां बरसा कर वे दोनों वहां से फरार हो गए. भागते हुए उन्होंने असलहे को वहीं पर फेंक दिया.

विधायक को 3 गोलियां लगी थीं. गोलियां लगते ही वह कुरसी पर गिर कर तड़पने लगे. गोली चलने से हाल में भगदड़ मच गई. जरा सी देर में वहां अफरातफरी का माहौल बन गया. तृणमूल कांग्रेस के नेता गौरीशंकर, रत्ना घोष सहित अन्य लोग आननफानन में गंभीर रूप से घायल विधायक बिस्वास को कार से जिला अस्पताल ले गए. लेकिन डाक्टरों ने उन्हें देखते ही मृत घोषित कर दिया.

टीएमसी विधायक सत्यजीत बिस्वास की हत्या की सूचना मिलते ही सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के खून में उबाल आ गया. कार्यकर्ता चारों ओर तोड़फोड़ करने लगे. तमाम लोग अपने लोकप्रिय युवा नेता को देखने अस्पताल भी पहुंचे.

उधर मौके पर मौजूद रही विधायक की पत्नी रूपाली बिस्वास को अभी भी अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उन्होंने जो देखा, वो सच है. सत्यजीत बिस्वास उन को हमेशा के लिए अकेला छोड़ कर दुनिया से चले गए थे. रोरो कर उन का बुरा हाल हो गया था. किसी तरह रूपाली और उन के 7 माह के दुधमुंहे बेटे को घर पहुंचाया गया. विधायक बेटे की हत्या की खबर जैसे ही बूढ़ी मां को मिली, उन की तो आंखें पथरा गईं. घर में कोहराम मच गया था.

पार्टी महासचिव पार्थ चटर्जी ने विधायक बिस्वास की हत्या पर गहरा दुख प्रकट करते हुए कहा कि कातिल चाहे जितना भी कद्दावर क्यों हो, उसे बख्शा नहीं जाएगा.

विधायक सत्यजीत की हत्या की सूचना मिलते ही एसपी रूपेश कुमार, एएसपी अमनदीप, डीएसपी सुब्रत सरकार, हंसखली के थानाप्रभारी अनिंदय बसु, कृष्णानगर के थानाप्रभारी राजशेखर पौल सहित जिले के तमाम पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस ने घटनास्थल को चारों ओर से घेर लिया था.

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संदेह से भरे सवाल

एसपी रूपेश कुमार ने घटना के लिए हंसखली थाने के थानाप्रभारी अनिंदय बसु को जिम्मेदार मानते हुए उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया. विधायक सत्यजीत बिस्वास की सुरक्षा में एक सुरक्षागार्ड लगाया गया था. घटना के समय वह मौके पर नहीं था.

जांचपड़ताल में पता चला कि सुरक्षागार्ड दिनेश कुमार उसी दिन छुट्टी ले कर घर चला गया था. यह बात किसी भी अधिकारी के गले नहीं उतर रही थी कि दिनेश आज ही छुट्टी पर घर क्यों गया? जिस तरह से विधायक बिस्वास की हत्या की गई थी, वह सुनियोजित थी. सुरक्षा गार्ड दिनेश कुमार को जिम्मेदार मानते हुए उसे भी निलंबित कर दिया.

बात यहीं पर खत्म नहीं हुई थी. टीएमसी कार्यकर्ता अपने लोकप्रिय विधायक की हत्या के लिए भाजपा के सांसद मुकुल राय को जिम्मेदार मान कर उन्हें हत्या का आरोपी बनाने के लिए पुलिस पर दबाव बना रहे थे. टीएमसी कार्यकर्ताओं के बीच से फैलता हुआ यह आरोप फिजाओं में घुल रहा था. लोग कह रहे थे कि सांसद मुकुल राय के इशारे पर शूटर अभिजीत पुंडरी, सूरज मंडल और कार्तिक मंडल ने विधायक की हत्या को अंजाम दिया.

विधायक की पत्नी रूपाली बिस्वास भी पति की हत्या के लिए सांसद और कद्दावर नेता मुकुल राय को जिम्मेदार मान रही थीं. रूपाली की तहरीर पर हंसखली थाने में 4 आरोपियों मुकुल राय, अभिजीत पुंडरी, सूरज मंडल और कार्तिक मंडल के खिलाफ हत्या का नामजद मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आदेश पर मुकदमा दर्ज होने के कुछ देर बाद जांच थाना पुलिस से सीबीसीआईडी को सौंप दी गई. जांच की जिम्मेदारी मिलते ही सीबीसीआईडी की टीम भवानी भवन से मौके पर जा पहुंची और जांच शुरू कर दी.

सूरज मंडल और कार्तिक मंडल फुलबारी माठ के आसपास रहते थे. पुलिस जानती थी कि जांच में जितना विलंब होगा, उतना ही आरोपी पकड़ से दूर होते जाएंगे. बगैर वक्त गंवाए सीबीसीआईडी ने रात में ही सूरज मंडल के घर दबिश दी. सूरज मंडल गिरफ्तार कर लिया गया. सूरज की निशानदेही पर ही कार्तिक मंडल को उस के घर से गिरफ्तार किया गया. अभिजीत पुंडरी को नहीं पकड़ा जा सका. वह फरार हो गया था.

गिरफ्तार दोनों आरोपियों सूरज मंडल और कार्तिक मंडल को सीआईडी गिरफ्तार कर के पूछताछ के लिए हंसखली थाने ले आई उन से पूरी रात पूछताछ की गई. पर वे दोनों खुद को बेकसूर बताते रहे.

अगले दिन अधिकारियों की मौजूदगी में उन से फिर पूछताछ की गई. सूरज मंडल ने पुलिस के सामने घुटने टेक दिए. उस ने विधायक बिस्वास की हत्या में खुद और कार्तिक मंडल के शामिल होने की बात स्वीकार कर ली. पूछताछ के दौरान सूरज ने बताया कि उस ने अपने घर के पास एक कटार, बातचीत में इस्तेमाल किए गए सिमकार्ड और कुछ अन्य दस्तावेज छिपा रखे हैं.

अगली सुबह सीआईडी की टीम उसे ले कर उस के घर पहुंची. उस के घर के बाहर पुलिस टीम ने जमीन की खुदाई की तो धारदार हथियार और बड़ी संख्या में सिमकार्ड बरामद किए, जो बंगाल के अलावा दूसरे राज्यों के भी थे. इस के अलावा उस के घर की तलाशी लेने पर वहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तसवीरें भी मिलीं. इस बरामदगी के बाद नाराज स्थानीय लोगों ने सूरज मंडल के घर के पास एकत्र हो कर विरोध प्रदर्शन किए.

इस मामले में एक नया मोड़ तब आया जब सांसद मुकुल राय को पता चला कि विधायक की हत्या में उन्हें भी नामजद आरोपी बनाया गया है.

मुकुल राय की सफाई

अपना नाम घसीटे जाने को ले कर सांसद मुकुल राय ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मैं कोलकाता में बैठा हूं और हत्या यहां से 120 किलोमीटर दूर नदिया जिले में विधायक के घर के पास हुई है. यह पूरी तरह से तृणमूल कांग्रेस की आपसी गुटबाजी और पश्चिम बंगाल सरकार की विफलता है.

उन्होंने कहा कि घटना की जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए, ताकि पूरे रहस्य से परदा उठ सके. आरोपों का खंडन करते हुए सांसद मुकुल राय ने कहा कि अभी ऐसी स्थिति है कि जो कुछ भी होगा, उस के लिए मेरा नाम घसीटा जाएगा. अगर दम है तो इस की निष्पक्ष एजेंसी से जांच करा लें. दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा.

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने सांसद मुकुल राय का समर्थन करते हुए घटना की सीबीआई जांच की मांग कर दी. उन्होंने भी यही कहा कि विधायक बिस्वास की हत्या आपसी गुटबाजी में की गई है. यही नहीं, जब भी तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ कुछ होता है तो वह उस का आरोप भाजपा पर मढ़ देती है.

कई बार तृणमूल खुद ऐसे काम कर के राजनैतिक विरोधियों को फंसाने की पूरी कोशिश करती है. सालों से टीएमसी में आपसी गुटबाजी चरम पर है, यह बात किसी से छिपी नहीं है.

खैर, सांसद मुकुल राय गिरफ्तारी से बचने के लिए कोलकाता उच्च न्यायालय की शरण में पहुंच गए. 12 फरवरी, 2019 को उन्हें बड़ी राहत मिल गई. कोलकाता हाईकोर्ट ने उन्हें अग्रिम जमानत दे दी. हाईकोर्ट ने वरिष्ठ भाजपा नेता मुकुल राय की गिरफ्तारी पर 7 मार्च, 2019 तक रोक लगा दी. टीएमसी पार्टी ने आखिर सांसद मुकुल राय पर हत्या जैसा गंभीर आरोप क्यों लगाया, यह तो जांच का विषय है और पुलिस अपनी काररवाई कर रही है. आइए जानें कि यह मुकुल राय हैं कौन?

65 वर्षीय मुकुल राय मूलरूप से पश्चिम बंगाल के उत्तरी 24 परगना के कंचरपाड़ा के रहने वाले हैं. इन के परिवार में पत्नी कृष्णा राय के अलावा एक बेटा है. भाजपा के सांसद मुकुल राय का राजनीतिक सफर युवा कांग्रेस के लीडर के रूप में शुरू हुआ था. कांग्रेस के साथ लंबी पारी खेलने के दौरान पिछली मनमोहन सिंह की सरकार में वह केंद्रीय रेल मंत्री थे.

11 जुलाई, 2011 को असम में एक रेल दुर्घटना हुई थी. मुकुल राय रेलमंत्री होने के बावजूद मौके पर नहीं पहुंचे तो प्रधानमंत्री ने उन्हें पद से हटा दिया था और उन की जगह दिनेश त्रिवेदी को यह भार सौंप दिया था.

इस से पहले ममता बनर्जी के साथ मुकुल राय की खूब निभती थी. 1998 में जब ममता बनर्जी कांग्रेस से अलग हुईं तो उन्होंने एक नई पार्टी तृणमूल कांग्रेस का गठन किया. तब उन्होंने मुकुल राय को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया था.

पहली बार सन 2001 में मुकुल राय को टीएमसी से एमएलए का टिकट मिला. वह जगतदला विधानसभा से चुनाव लड़े लेकिन चुनाव हार गए थे. इस चुनाव में वह दूसरे स्थान पर रहे थे. इस के बाद वह निरंतर पार्टी की सेवा करते रहे.

बाद में तृणमूल कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बना दिया. वह 28 मई, 2009 से 20 मार्च, 2012 तक राज्यसभा के सदस्य रहे. सन 2012 में मुकुल राय सांसद चुन लिए गए. फिर 3 अप्रैल, 2012 से 11 अक्तूबर, 2017 तक वह राज्यसभा के सदस्य रहे.

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राजनीति के मंझे खिलाड़ी हैं मुकुल राय

सारदा स्कीम घोटाले में सन 2015 में मुकुल राय और ममता बनर्जी का नाम आया. घोटाले में नाम आने के बाद ममता बनर्जी और मुकुल राय के बीच दूरी बन गई. फिर वे कभी एक नहीं हो सके.

तृणमूल कांग्रेस से मुकुल राय का मन भंग होने लगा था. ममता बनर्जी को उन पर संदेह होने लगा था कि वह पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं. फिर क्या था, ममता बनर्जी ने उन्हें पार्टी से 6 साल के लिए निकाल दिया.

पार्टी से निकाले जाने के बाद मुकुल राय ने 25 सितंबर, 2017 को पार्टी से इस्तीफा दे दिया. इस के बाद 11 अक्तूबर, 2017 को उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया और 3 नवंबर, 2017 को भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली. तब से वह भाजपा में हैं.

भाजपा का दामन थामने के बाद से मुकुल राय पश्चिम बंगाल में भाजपा की जमीन बनाने में लग गए. उन्होंने टीएमसी के कार्यकर्ताओं को तोड़ कर भाजपा में शामिल करना शुरू कर दिया. वैसे भी वह पुराने सियासी खिलाड़ी थे. उन्हें जोड़तोड़ की राजनीति अच्छी तरह आती थी. इस से टीएमसी पार्टी घबरा गई. इस बीच नदिया जिले में उन का कई बार दौरा हो चुका था.

विधायक सत्यजीत बिस्वास मतुआ समुदाय से आते थे, जिस का बंगाल में अच्छाखासा आधार है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनवरी 2019 के अंतिम सप्ताह में मतुआ समुदाय को लुभाने के लिए ठाकुरनगर आए थे.

ठाकुरनगर के साथसाथ यह संप्रदाय नदिया और उत्तरी 24 परगना जिले में करीब 30 लाख की संख्या में मौजूद है और राज्य भर की कम से कम 10 से अधिक लोकसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में काम करता है. मतुआ समुदाय पर सत्यजीत बिस्वास की अच्छीखासी पकड़ बनी हुई थी. उन की हत्या का एक कारण यह भी माना जा रहा है.

बहरहाल, आरोपी सूरज मंडल और कार्तिक मंडल ने पूछताछ में पुलिस को बताया था कि विधायक की हत्या की योजना में निर्मल घोष और कालीपद मंडल भी शामिल थे. जांच में यह बात सच पाई गई.

इस के बाद पुलिस ने आरोपी निर्मल घोष और कालीपद मंडल को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस को पूछताछ में निर्मल और कालीपद मंडल ने बताया कि हत्या की साजिश अभिजीत पुंडरी ने रची थी और गोली मैं ने और कालीपद ने मारी थी. यह हत्या उन्होंने क्यों की, इस बारे में वे कुछ नहीं बता सके.

आरोपी निर्मल घोष और कालीपद मंडल की निशानदेही पर पुलिस ने उसी दिन अभिजीत पुंडरी को पश्चिम मिदनापुर जिले के राधामोहनपुर इलाके से गिरफ्तार कर लिया. जामातलाशी में उस से एक पिस्टल बरामद की गई.

पूछताछ में अभिजीत पुंडरी ने हत्या की साजिश रचने की बात कबूल ली थी. उसे हत्या की सुपारी किस ने दी थी, यह बात उस ने पुलिस को नहीं बताई. विधायक की हत्या में सांसद मुकुल राय की क्या भूमिका थी, इस की जांच पुलिस कथा लिखने तक कर रही थी.

विधायक सत्यजीत बिस्वास की हत्या क्यों की गई, यह राज कहीं राज न रह जाए. आपसी गुटबाजी कह कर हत्या पर जो परदा डाला जा रहा है, क्या वह पर्याप्त वजह है? यह एक जलता हुआ सवाल है. इस सवाल का जवाब पुलिस को ही ढूंढना होगा.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सपा नेत्री की गहरी चाल

मुरादाबाद से 11 किलोमीटर दूर दिल्ली रोड पर एक कस्बा है पाकबड़ा. यह कस्बा राष्ट्रीय राजमार्ग-24 के दोनों ओर बसा हुआ है. कासिम सैफी अपनी पत्नी गुल हाशमीन के साथ इसी कस्बे में रहता था. वह आरटीआई कार्यकर्ता था. इस के अलावा वह किसी के साथ मिल कर प्रौपर्टी डीलिंग का भी काम करता था.

कासिम सैफी 27 दिसंबर, 2018 को अपनी पत्नी से यह कह कर गया था कि मुरादाबाद जा रहा है और वहीं से जमीन खरीदफरोख्त के लिए कहीं जाएगा. उसे घर लौटने में देर हो सकती है.

कासिम जब शाम 7 बजे तक घर नहीं पहुंचा तो उस के भाई आसफ अली ने कासिम को फोन किया. उस ने बताया कि वह किसी के साथ बैठ कर प्रौपर्टी संबंधी बात कर रहा है. उस ने यह भी बताया कि रात 9-10 बजे तक घर पहुंच जाएगा.

कासिम जब रात 10 बजे तक भी घर नहीं पहुंचा तो आसफ अली ने उसे फिर से फोन किया. उस के फोन की घंटी तो बज रही थी लेकिन वह उठा नहीं रहा था. आसफ ने सोचा, हो सकता है किसी जरूरी काम में व्यस्त होने की वजह से काल रिसीव न कर पा रहा हो. इसलिए उस ने थोड़ी देर बाद फिर से कासिम को फोन किया. इस बार भी उस के फोन पर घंटी तो जा रही थी पर उस ने फोन नहीं उठाया.

कासिम ने इस से पहले कभी ऐसा नहीं किया था. घर वालों के फोन करने पर वह काल जरूर रिसीव करता था. भले ही थोड़ी देर बात करे, जबकि उस दिन वह फोन ही नहीं उठा रहा था.

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सभी घर वाले चिंतित थे. कासिम चूंकि आरटीआई कार्यकर्ता था, इसलिए घर वालों को और ज्यादा चिंता होने लगी. घर वाले रात भर चिंता में बैठे उसी के आने का इंतजार करते रहे. बीचबीच में वह उस का मोबाइल नंबर भी डायल करते रहे. हर बार फोन तो मिल जाता, पर बात नहीं हो रही थी. घंटी जा रही थी, लेकिन वह उठा नहीं रहा था. बैठेबैठे उन की रात बीत गई.

अगले दिन 28 दिसंबर को भी कासिम के परिवार वालों ने उस की तलाश की पर उन्हें उस का कोई पता नहीं चल सका. उन्होंने कासिम के दोस्तों और जानपहचान वालों को फोन कर के उस के बारे में जानने की कोशिश की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. बेटे की कोई जानकारी न मिलते देख 29 दिसंबर को कासिम के पिता साबिर हुसैन कुछ लोगों के साथ थाना पाकबड़ा पहुंच गए.

थानाप्रभारी नीरज कुमार शर्मा को उन्होंने अपने 32 वर्षीय बेटे कासिम के गायब होने की जानकारी दी. इस पर थानाप्रभारी ने कहा कि कहीं वह नाराज हो कर तो नहीं चला गया.

‘‘नहीं साहब, नाराज होने का सवाल ही नहीं उठता. मेरा लड़का आरटीआई कार्यकर्ता है. वह पढ़ालिखा और समझदार है. मुझे डर है कि उस के साथ कहीं कोई अनहोनी न हो गई हो.’’ साबिर हुसैन ने आशंका जताई.

यह सुन कर थानाप्रभारी ने उन से कहा, ‘‘अगर आप को किसी पर शक हो तो बताइए. कभी उस का किसी से झगड़ा तो नहीं हुआ था?’’

‘‘साहब, छोटेमोटे झगड़े को छोड़ दें तो हमारी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है.’’ साबिर हुसैन ने बताया.

थानाप्रभारी नीरज कुमार शर्मा ने साबिर हुसैन को यह कह कर घर भेज दिया कि कासिम के बारे में कहीं से कोई सुराग मिले तो पुलिस को जरूर बताना और किसी पर शक हो तो वह भी बताना.

पुलिस की चुप्पी देख घर वाले मिले एसपी से

कई दिन बीत गए, पुलिस भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी. कासिम के घर वाले थाने का चक्कर लगातेलगाते परेशान हो गए तो थकहार कर वे 3 जनवरी, 2019 को एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ से मिले. एसएसपी ने उन की बात को गंभीरता से ले कर उसी समय पाकबड़ा के थानाप्रभारी को तुरंत कासिम के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर काररवाई करने को कहा.

एसएसपी का आदेश मिलते ही थानाप्रभारी ने कासिम सैफी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर उस के घर वालों से इस संबंध में बात की. दरअसल, जांच के लिए यह जानना जरूरी था कि कासिम अधिकांशत: किसकिस के साथ रहता था, उस के दोस्त कौनकौन हैं.

साबिर हुसैन ने बताया कि मुरादाबाद के रामगंगा विहार में अलका नाम की एक महिला रहती है, जो अपने परिचित विकास चौधरी के साथ प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा करती है. रामगंगा विहार में ही उस का औफिस है. कासिम उसी के पास जाता था. उसी के औफिस में बैठ कर आरटीआई के कागजात तैयार करता था.

यह जानकारी मिलने के बाद थानाप्रभारी ने कासिम के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. कालडिटेल्स की जांच में पता चला कि कासिम के फोन से अंतिम बार जिस नंबर पर बात हुई, वह नंबर विकास चौधरी का था. आश्चर्य की बात यह थी कि कासिम के फोन की लोकेशन कभी हरियाणा, पंजाब की तो कभी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर की मिली थी.

थानाप्रभारी उसी दिन पुलिस टीम के साथ मुरादाबाद के रामगंगा विहार पहुंच गए और विकास चौधरी को पूछताछ के लिए उस के औफिस से पाकबड़ा ले आए. उन्होंने विकास से कासिम के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि 27 दिसंबर को वह कासिम सैफी को प्रौपर्टी दिखाने के लिए लदावली गांव ले गया था. उस के बाद वह अपने घर जाने की बात कह कर चला गया था.

विकास ने जितने आत्मविश्वास के साथ यह बात पुलिस को बताई, उस से पुलिस को लगा कि विकास सच बोल रहा है. तफ्तीश के दौरान ही विकास की बिजनैस पार्टनर और सपा नेत्री अलका दूबे एक वकील को ले कर थाना पाकबड़ा पहुंची. अपने प्रभाव के इस्तेमाल और पहुंच का फायदा उठा कर वह विकास चौधरी को थाने से छुड़ा ले गई.

इस के बाद पुलिस ने विकास चौधरी द्वारा कही गई बातों की जांच शुरू कर दी. उस ने बताया था कि लदावली जाने के लिए उन्होंने अकबर के किले के पास से बस पकड़ी थी. इसलिए पुलिस ने अकबर के किले पर लगे सीसीटीवी कैमरों की 27 दिसंबर की फुटेज देखी. उस फुटेज में कासिम सैफी और विकास चौधरी मुजफ्फरनगर जाने वाली एक बस में चढ़ते दिखाई दिए.

फुटेज देख कर थानाप्रभारी का माथा ठनका कि मुजफ्फरनगर जाने वाली जिस बस में वे दोनों बैठ कर गए थे, उस में लदावली गांव का न तो टिकट बनता था और न ही वह बस लदावली गांव में रुकती थी. लिहाजा आगे की पूछताछ के लिए पुलिस ने विकास चौधरी को फिर से उठा लिया.

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विकास चौधरी ने खोला रहस्य

जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि कासिम सैफी अब जीवित नहीं है. उस ने उस की हत्या कर लाश एक खेत में छिपा दी है.

उस ने बताया कि कासिम उस की जाति की लड़कियों पर अश्लील कमेंट करता था. इस के अलावा अलका दूबे पर भी वह बुरी नजर रखता था, जिस की वजह से उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

विकास ने आगे बताया कि 27 दिसंबर को वह शामली में एक प्रौपर्टी दिखाने के बहाने से उसे साथ ले गया था. वहां पर गांव भभीसा का रहने वाला एक दोस्त कुलदीप मिला. उस की मोटरसाइकिल पर बैठ कर हम लोग शाहपुर गांव के गन्ने के एक खेत में पहुंचे. वहीं पर हम ने उस के पेट और पीठ में गोली मार कर उस की हत्या कर दी. उस की लाश खेत में छोड़ कर वह मुरादाबाद आ गया था और कुलदीप कासिम का मोबाइल फोन ले कर सहारनपुर रेलवे स्टेशन चला गया था.

योजना के अनुसार कुलदीप ने मृतक का फोन साइलेंट कर के सहारनपुर रेलवे स्टेशन पर आई एक सुपरफास्ट टे्रन के शौचालय में छिपा दिया, ताकि उस के फोन की लोकेशन बदलती रहे.

विकास चौधरी द्वारा कासिम की हत्या का खुलासा होने के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर शामली के कांधला थाने के गांव शाहपुर में सतवीर के गन्ने के खेत से कासिम सैफी की लाश बरामद कर ली. यह 10 जनवरी, 2019 की बात है. कासिम के घर वालों को उस की हत्या की खबर मिली तो घर में कोहराम मच गया.

विकास चौधरी ने कासिम की हत्या किए जाने की जो वजह बताई थी वह मृतक के घर वालों के गले नहीं उतर रही थी. परिवार के लोगों का कहना था कि अलका दूबे से कासिम के नजदीकी संबंध नहीं थे. वह शरीफ, समझदार और नेकनीयत वाला आदमी था. उन्होंने कहा कि अभियुक्त विकास चौधरी गलत आरोप लगा कर पुलिस को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है.

11 जनवरी, 2019 को शामली से कासिम का शव मुरादाबाद लाया गया. पोस्टमार्टम के बाद उस की लाश उस के घर वालों को सौंप दी गई. इस के बाद कस्बे के सैकड़ों लोग उन के साथ हो गए. कासिम की हत्या का सही खुलासा न करने का आरोप लगाते हुए लोगों ने कासिम का शव थाने में रख कर हंगामा करना शुरू कर दिया.

भीड़ ने थाने में तोड़फोड़ भी की. इतना ही नहीं हत्यारोपी विकास चौधरी को हवालात से खींचने की भी कोशिश की. विरोध पर पुलिसकर्मियों से धक्कामुक्की की गई.

थाने में बवाल मचाने के बाद गुस्साए लोग दिल्ली लखनऊ हाइवे नंबर 24 पर पहुंच गए. उन्होंने कासिम का शव सड़क पर रख कर जाम लगा दिया.

सूचना मिलते ही एसएसपी जे. रविंद्र गौड़, एसपी (सिटी) अंकित मित्तल, सीओ (हाइवे) अपर्णा गुप्ता, सीओ (सिविल लाइंस) राजेश कुमार टीम के वहां पहुंच गए.

एसएसपी ने आक्रोशित भीड़ को समझाया और आश्वासन दिया कि केस की फिर से जांच कराई जाएगी. जांच में जो भी दोषी पाया जाएगा, उस के खिलाफ सख्त काररवाई की जाएगी. आरोपी चाहे कितना भी असरदार क्यों न हो, उसे बख्शा नहीं जाएगा. एसएसपी के इस आश्वासन के बाद लोगों ने जाम खोला. इस के बाद लोग कासिम का शव दफनाने को तैयार हुए.

भारी पुलिस फोर्स के बीच कासिम सैफी के शव को दफनाया गया. पुलिस ने विकास चौधरी से पूछताछ कर 11 जनवरी 2019 को उसे जेल भेज दिया.

चूंकि लोगों ने अलका दूबे पर गंभीर आरोप लगाए थे, इसलिए एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ ने सीओ (हाइवे) अपर्णा गुप्ता को निर्देश दिया कि अलका दूबे को हिरासत में ले कर पूछताछ करें. सीओ अपर्णा गुप्ता पुलिस को ले कर जब रामगंगा विहार स्थित उस के घर पहुंची तो उस के घर व औफिस पर ताला लगा मिला.

इतना ही नहीं, उस के दोनों मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ थे. उस के अंडरग्राउंड हो जाने के बाद पुलिस का शक और बढ़ गया. पुलिस ने उस के संभावित ठिकानों पर दबिश डाली, लेकिन सफलता नहीं मिली. लिहाजा पुलिस ने अपने मुखबिरों को सतर्क कर दिया.

असल खिलाड़ी थी अलका दूबे

इसी दौरान पुलिस को अलका दूबे के बारे में सूचना मिली कि वह सीमावर्ती जिले रामपुर की मिलक तहसील में कहीं रह रही है. सीओ अपर्णा गुप्ता की टीम ने इस सूचना पर काम करना शुरू किया. इस के बाद 14 जनवरी, 2019 को पुलिस टीम ने अलका दूबे को रामपुर जिले की तहसील मिलक से हिरासत में ले लिया.

सीओ अपर्णा गुप्ता ने अलका दूबे को मुरादाबाद के महिला थाने ले जा कर उस से पूछताछ की तो वह खुद को बेकसूर बताते हुए बारबार बयान बदलती रही. उस ने बताया कि मृतक कासिम से उस की मुलाकात मुरादाबाद कचहरी में हुई थी. इस से ज्यादा वह उस के बारे में कुछ नहीं जानती.

पुलिस को लगा कि वह उसे गुमराह कर रही है, तब उस से सख्ती से पूछताछ की गई. पुलिस की सख्ती के आगे अलका दूबे को सच बोलने के लिए मजबूर होना पड़ा. उस ने कासिम सैफी की हत्या की जो कहानी बताई वह बड़ी रहस्यमयी निकली—

अलका दूबे राजनीति में सक्रिय थी. वह समाजवादी पार्टी की जिला सचिव थी. सपा की जिला कार्यकारिणी में ही हारून सैफी भी जिला सचिव था. हारून सैफी पाकबड़ा का रहने वाला था और वहां का प्रधान रह चुका था.

पार्टी के कार्यक्रमों में हारून सैफी और अलका दूबे की अकसर मुलाकात होती रहती थी. चूंकि वह सपा जिला कार्यकारिणी में समान पद पर थे, इसलिए दोनों की फोन पर भी अकसर बातें होती रहती थीं.

करीब 3-4 महीने पहले मुरादाबाद की कचहरी में अलका की मुलाकात हारून सैफी से हुई. उस समय हारून बेहद परेशान दिखाई दे रहा था. अलका के पूछने पर उस ने बताया कि पाकबड़ा निवासी कासिम ने उसे और उस के घर वालों को परेशान कर रखा है.

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कासिम और हारून सैफी की दुश्मनी

दरअसल हुआ यह था कि हारून सैफी की पत्नी शायदा बेगम, बेटी नौरीन, एक रिश्तेदार आरिफ और आरिफ की पत्नी कैसरजहां ने फरजी डाक्यूमेंट बनवा कर रानी लक्ष्मीबाई पेंशन और समाजवादी पेंशन का लाभ लिया था. आरिफ ने पास सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान भी थी.

यह जानकारी पाकबड़ा निवासी आरटीआई कार्यकर्ता कासिम सैफी को मिली तो उस ने संबंधित विभागों में आरटीआई लगाने के बाद शिकायत की. उस की शिकायत पर गंभीरता से काररवाई करते हुए संबंधित विभाग ने उपरोक्त सभी से पेंशन हेतु दिए गए पैसे जमा कराने का नोटिस दे दिया था.

बताया जाता है कि कासिम सैफी और हारून सैफी में पिछले 10 सालों से रंजिश चली आ रही थी. दोनों के बीच दुश्मनी की शुरुआत ग्राम पंचायत चुनाव से शुरू हुई थी. करीब 10 साल पहले हारून और कासिम ने चुनाव लड़ने की शुरुआत की थी.

हारून सैफी ने बिरादरी की पंचायत में लोगों को अपने हक में कर के कासिम सैफी को चुनाव लड़ने से रोक दिया था. पंचायत चुनाव जीतने के बाद हारून सैफी ने कासिम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. यहीं से दोनों के बीच दुश्मनी शुरू हो गई थी.

इस के बाद कासिम हारून के खिलाफ लगातार शिकायत करने लगा. अप्रैल 2014 में कासिम ने हारून व उस की पत्नी शायदा बेगम के खिलाफ वोटर लिस्ट में धोखाधड़ी की रिपोर्ट दर्ज करवा दी थी.

हारून सैफी ने फरजी तरीके से 2 पहचान पत्र भी बनवा रखे थे. उस ने ब्राइट फ्यूचर के नाम से एक गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) भी बना रखी थी. अपने इसी एनजीओ के नाम से उस ने मुरादाबाद प्राधिकरण से मोटी रकम की प्रौपर्टी खरीदी थी.

कासिम ने संबंधित विभागों में आरटीआईलगाकर फरजी पहचानपत्र और जमीन खरीदने के लिए जो मोटी रकम एमडीए को दी थी उस की आमदनी के स्रोत की जानकारी मांगी थी. कासिम सैफी द्वारा हारून सैफी और उस के परिवार पर लगाई गई आरटीआई से हारून बहुत परेशान हो गया था.

वह किसी भी तरह कासिम से छुटकारा पाना चाहता था. हारून ने अपनी परेशानी अलका दूबे को बताते हुए उस से कहा, ‘‘देखिए, इस समय हमारी सरकार नहीं है, अधिकारी भी हमारी बात नहीं सुन रहे. यदि चाहो तो तुम मेरी मदद कर सकती हो.’’

‘‘बताइए, मैं किस तरह आप की मदद कर सकती हूं.’’ अलका बोली.

‘‘आप बस इतना कर दो कि उसे अपने जाल में फंसा कर किसी तरह रास्ते से हटा दो. इस के लिए मैं 10 लाख रुपए दूंगा.’’ हारून ने कहा, ‘‘मैं समझता हूं कि यह काम आप के आसान होगा.’’

अलका ने बनाई योजना

10 लाख रुपए की बात सुन कर अलका को लालच आ गया. उस ने कहा, ‘‘देखिए मेरा एक बिजनैस पार्टनर है विकास चौधरी. वह बहुत दबंग है. रामगंगा विहार में वह मेरे ही घर में रहता है. मैं उस से बात करूंगी. यदि वह चाहेगा तो आप का यह काम हो जाएगा.’’

‘‘अलकाजी, मैं विकास चौधरी को जानता हूं. आप चाहेंगी तो काम हो जाएगा.’’ कहते हुए हारून सैफी ने अलका को एडवांस में 50 हजार रुपए दिए और कहा कि बाकी रकम काम होने के बाद दे दूंगा. इस से पहले अलका कासिम सैफी को नहीं जानती थी.

50 हजार की रकम हाथ में आने के बाद अलका ने हारून से कासिम का मोबाइल नंबर ले लिया. इस के बाद अलका ने हारून सैफी से कहा कि अब आप निश्ंिचत हो कर जाइए, बाकी काम मेरा है.

अलका ने यह बात अपने बिजनैस पार्टनर विकास चौधरी को बताई तो पैसों के लालच में विकास कासिम को ठिकाने लगाने के लिए तैयार हो गया.

लेकिन इस के पहले अलका को कासिम से जानपहचान करनी थी. अक्तूबर 2018 की दिवाली से पहले की बात है. अलका ने कासिम सैफी को फोन कर के कहा, ‘‘हैलो कासिम भाई, कैसे हैं?’’ कासिम को आवाज अनजानी लगी तो वह बोला, ‘‘आप कौन, सौरी मैं ने पहचाना नहीं.’’

‘‘मैं मुरादाबाद से समाजवादी पार्टी की जिला सचिव बोल रही हूं.’’ अलका ने कहा.

‘‘सपा के जिला सचिव पूर्व प्रधान हारून सैफी भी हैं, आप उन्हें तो जानती होंगी?’’ कासिम ने पूछा.

‘‘हां वो भी हैं लेकिन मेरा काम महिलाओं की समस्याएं हल करना व उन के काम करवाना है. मुझे तो बस अपने काम से मतलब. हारून सैफी क्या करते हैं मुझे नहीं मालूम, वैसे भी उन से मेरी ज्यादा बनती भी नहीं है. मेरा अपना प्रौपर्टी खरीदनेबेचने का काम है.’’ अलका ने बताया.

‘‘चलो कोई बात नहीं. अब यह बताओ मैडम की मुझे कैसे याद किया?’’ कासिम बोला.

‘‘कासिम भाई, मुझे कहीं से यह पता लगा कि आप आरटीआई कार्यकर्ता हैं. हमारी तरह आप भी समाजसेवा से जुड़े हुए हैं. देखो, पहले सपा सरकार थी तो हमारे सारे काम चुटकियों में हो जाते थे, लेकिन अब भाजपा की सरकार है. अब तो अफसर भी निगाहें फेर कर बात करते हैं. कुछ अफसरों के खिलाफ आरटीआई डलवानी है इसी संबंध में मुझे आप की मदद चाहिए.’’ अलका बोली.

‘‘कैसी मदद.’’ कासिम ने पूछा.

‘‘हम दोनों मिल कर भाजपा सरकार के भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ आरटीआई डालेंगे. उन के सबूत मैं दूंगी. आप मुरादाबाद के रामगंगा विहार स्थित मेरे औफिस आ जाइए इस बारे में और डिटेल्स से बात कर लेंगे.’’ इस दौरान अलका ने उसे अपने औफिस का पता भी दे दिया.

कासिम भांप नहीं पाया अलका की चाल को

कासिम सैफी अलका की योजना से अनभिज्ञ था. एक दिन वह उस के औफिस पहुंच गया. वहीं पर अलका ने विकास चौधरी से उस की मुलाकात कराई. इस के बाद कासिम का अलका के औफिस में आनाजाना शुरू हो गया.

धीरेधीरे वह उन के साथ प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा भी करने लगा. अलका कासिम को पूरी तरह अपने विश्वास में लेने के बाद ही योजना को अंजाम देना चाहती थी. इसलिए उस ने योजना को अंजाम देने में जल्दबाजी नहीं दिखाई.

अलका दूबे से घनिष्ठता बढ़ जाने के बाद कासिम सैफी का ज्यादातर समय अलका के साथ उस के औफिस में ही बीतता था. वहीं पर बैठ कर वह आरटीआई के कागजात तैयार करता. विकास चौधरी से भी कसिम की गहरी दोस्ती हो गई थी.

एक दिन विकास ने कासिम से कहा, ‘‘कासिम भाई शामली से खेती की जमीन का सौदा आया है. बताते हैं कि वह जमीन मौके की है. मैं चाहता हूं कि हम दोनों उस जमीन को एक बार देख आएं. बात बन गई तो मैं खरीदार का भी जुगाड़ कर लूंगा. सब कुछ ठीक रहा तो हम इस में मोटा पैसा कमा सकते हैं.’’

चूंकि कासिम को विकास पर भरोसा था इसलिए वह जमीन देखने जाने के लिए तैयार हो गया. फिर 27 दिसंबर, 2018 को विकास चौधरी कासिम सैफी को साथ ले कर बस से शामली के लिए निकल गया. जैसे ही वह दोनों शामली पहुंचे विकास चौधरी का दोस्त कुलदीप मोटरसाइकिल ले कर आ गया. कुलदीप वहीं पास के एक गांव में रहता था.

वह कासिम और विकास को मोटरसाइकिल पर बैठा कर शाहपुर गांव की तरफ चल दिया. वहीं गन्ने के एक खेत में ले जा कर विकास ने अपने साथ लाए तमंचे से कासिम को 2 गोलियां मारीं. एक गोली उस के पेट में और दूसरी पीठ में लगी. कुछ ही देर में उस की वहीं मौत हो गई.

हत्या को दूसरा रूप देने के लिए विकास चौधरी ने कासिम सैफी की पेंट उतार दी. हत्या करने के बाद विकास चौधरी वापस मुरादाबाद आ गया. जबकि कुलदीप कासिम का मोबाइल ले कर सहारनपुर रेलवे स्टेशन चला गया. जहां उस ने अमृतसर जाने वाली एक ट्रेन के टौयलेट में मोबाइल साइलेंट मोड पर कर के छिपा कर रख दिया.

हत्या के बाद हारून सैफी ने अलका दूबे को 50 हजार रुपए और दिए थे. हारून ने उस से कहा था कि वह उमरा करने सउदी अरब जा रहा है, बाकी के 9 लाख रुपए वह लौटने के बाद दे देगा.

हारून ने अलका से यह भी कहा था कि अगर कभी हत्या का राज खुल भी जाएगा तो वह मुकदमे का सारा खर्चा वहन करेगा और हर महीने 10 हजार रुपए विकास चौधरी के घर वालों को देता रहेगा. हारून 3 जनवरी को सऊदी अरब चला गया.

पुलिस ने अलका दूबे से पूछताछ के बाद उस से 27 हजार रुपए भी बरामद किए. फिर 16 जनवरी, 2019 को कुलदीप वर्मा को भी गिरफ्तार कर के दोनों को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया.

अब पुलिस को हारून सैफी के सऊदी अरब से लौटने का इंतजार था. उस का 15 दिन बाद लौटने का कार्यक्रम था. कथा लिखे जाने तक हारून भारत नहीं पहुंचा था. पुलिस ने उस के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी कर दिया था, जिस से उस के विदेश से लौटते ही उसे एयरपोर्ट पर ही गिरफ्तार किया जा सके.

अरबों की गुड़िया: रेडियो एक्टिव डांसिंग डौल

बदलते जमाने के साथ अपराधों के तौरतरीके भी बदल रहे हैं. चोरीडकैती, ठगी और हत्या जैसे अपराध आदिकाल से होते रहे हैं. फर्क केवल इतना है कि समय के साथ इन के चेहरेमोहरे बदल जाते हैं. ठगी के मामले में भारत में नटवर लाल और दुनिया में चार्ल्स शोभराज का नाम प्रसिद्ध है. नटवरलाल कोई ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था, लेकिन अपनी लच्छेदार और लुभावनी बातों से लोगों को ऐसा सम्मोहित कर लेता था कि वे खुद उस के बिछाए जाल में फंस कर ठगी का शिकार बन जाते थे. भले ही नटवरलाल से ज्यादा बड़ी रकम की ठगी करने वालों में दूसरे नाम जुड़ गए हों, लेकिन नटवरलाल का नाम आज भी ठगी का पर्याय बना हुआ है.

ठगों की इस दुनिया में अब विज्ञान भी शामिल हो गया है. ठगी के तरीके भी हाईटेक हो गए हैं. यहां तक कि अणु और परमाणु के नाम पर भी ठगी होने लगी है. मैकेनिकल इंजीनियर जैसे सम्मानजनक पेशे से जुड़े लोग भी ठगी की ऐसी वारदातों को अंजाम देने लगे हैं. उच्चशिक्षित और पैसे वाले लोग ऐसी ठगी का शिकार बनते हैं. ठगी भी कोई छोटीमोटी नहीं बल्कि करोड़ोंअरबों रुपए की है. यह कहानी ऐसे ही अंतरराष्ट्रीय ठगों की है, जो न्यूक्लियर पदार्थ रेडियोएक्टिव के नाम पर लोगों से करोड़ों रुपए की ठगी करते रहे हैं.

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पिछले साल की बात है. पुणे के रहने वाले 3 बिजनैसमैन योगेश सोनी, समीर मोहते और गिरीश सोनी का कारोबार के सिलसिले में मध्य प्रदेश के इंदौर निवासी दिनेश आर्य से संपर्क हुआ. दिनेश आर्य ने पुणे के कारोबारियों को रेडियोएक्टिव पदार्थ के बारे में बताया. साथ ही यह भी बताया कि रेडियोएक्टिव के काम में मोटा मुनाफा हो सकता है. शर्त यह है कि इस काम में रकम भी मोटी ही लगानी पड़ेगी.
पुणे के इन तीनों बिजनैसमैनों के पास पैसा था. उन का अच्छाखासा कारोबार चल रहा था. इसलिए उन्होंने दिनेश आर्य से कहा कि पैसों की कोई कमी नहीं है, तुम्हारी नजर में अगर किसी के पास रेडियोएक्टिव पदार्थ हो तो बताना.

उस समय तो बात आईगई हो गई, लेकिन इस के कुछ दिनों बाद दिनेश आर्य ने उन्हें बताया कि उस के एक परिचित सत्यनारायण आरोनिया, जो जयपुर में रहते हैं, के पास अंग्रेजों के जमाने की ईस्ट इंडिया कंपनी की एक डांसिंग डौल है. यह डांसिंग डौल रेडियोएक्टिव पदार्थ की बनी हुई है.

तीनों बिजनैसमैनों ने वह डांसिंग डौल देखने की इच्छा जताई. इस पर दिनेश आर्य ने बातचीत कर एक दिन तीनों बिजनैसमैनों को पुणे से जयपुर बुला लिया. दिनेश खुद भी इंदौर से जयपुर पहुंच गया था. ये लोग एक होटल में ठहरे. जयपुर में दिनेश ने बिजनैसमैन योगेश, समीर और गिरीश की मुलाकात सत्यनारायण से करवाई.

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डांसिंग डौल ने नचाया नाच

सत्यनारायण ने उन बिजनैसमैनों को एक डांसिंग डौल दिखाई. उस ने शीशे के शोकेस में रखी उस डांसिंग डौल के बारे में बताया कि रेडियोएक्टिव पदार्थ से बनी वह डौल दुनिया भर में एकमात्र डौल है. सत्यनारायण ने उस डौल की लंबाई 58 इंच बताई. उस ने बताया कि इस बेशकीमती डांसिंग डौल को बेच कर करोड़ोंअरबों रुपए की कमाई की जा सकती है.

बिजनेसमैनों ने डांसिंग डौल की खूबियां सुन कर उस के बारे में दिलचस्पी दिखाई. इस पर सत्यनारायण ने उन्हें मुंबई की रेनसेल कंपनी के बारे में बताया. साथ ही यह भी कि वह इस कंपनी के डायरेक्टर गणेश इंगले से मिल लें, आगे की बातें वही करेंगे.

इस के बाद तीनों बिजनैसमैन पुणे लौट गए. एक दिन उन्होंने सत्यनारायण की बताई रेनसेल कंपनी के बारे में जानकारी लेने के लिए गूगल पर सर्च किया. रेनसेल टाइप करते ही गूगल पर कई सारी साइटें सामने आ गईं. उन्होंने रेनसेल एनर्जी एंड मेटल लिमिटेड की साइट खोली. साइट पर कंपनी का मुंबई का पता लिखा हुआ था. कंपनी के होम पेज पर अंतरिक्ष यात्रियों जैसी पोशाक में तसवीरें लगी थीं. कंपनी के बारे में लिखा था—हम गर्व के साथ 2016 से सेवाएं प्रदान कर रहे हैं.

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कंपनी के कार्यकलाप के बारे में रेडियोएक्टिव वेस्ट और न्यूट्रीलाइजेशन के बारे में लिखा था. यह भी लिखा था कि हम रेडिशन शेल टैक्नोलौजी एंड स्टेमराड के भारत के आथराइज्ड डिस्ट्रीब्यूटर हैं. यह कंपनी न्यूक्लियर प्रोटेशन, न्यूक्लियर वेस्ट मैनेजमेंट व सोलर एनर्जी के क्षेत्र में इंटरनैशनल स्तर पर खरीदफरोख्त और सेवाएं प्रदान करती है.

कंपनी के होमपेज पर यह भी लिखा था कि रेनसेल एनर्जी एंड मेटल लिमिटेड दुनिया को सुरक्षित, स्वच्छ और कुशल उर्जा देने के लिए काम कर रही है. होमपेज पर कुछ वीडियो भी दिखाए गए थे, जिन में परमाणु वैज्ञानिकों से बातचीत थी.

होमपेज पर कंपनी के बारे में ज्यादा कुछ प्रदर्शित नहीं किया गया था, लेकिन इस कंपनी की दूसरी लिंक साइटों से यह बात पता चल गई कि कंपनी के डायरेक्टर गणेश इंगले हैं. रेनसेल कंपनी की इंग्लैंड की एक साइट भी बनी हुई थी.

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तीनों बिजनैसमैनों ने कुछ ही देर में गूगल पर प्रदर्शित रेनसेल कंपनी से जुड़ी अन्य साइटें खंगाल डालीं. इन में कंपनी की प्रोफाइल और कार्यकलापों को देख कर उन्हें यह भरोसा हो गया कि जयपुर के सत्यनारायण ने उन्हें सही कंपनी का नाम सुझाया है. अब उन्हें इस कंपनी के डायरेक्टर गणेश इंगले से मिलने की जरूरत थी.

एक दिन ये बिजनेसमैन योजना बना कर मुंबई पहुंच गए. मुंबई में रेनसेल एनर्जी एंड मेटल लिमिटेड और औथराइज्ड कंपनी का औफिस लेवल-8 विबग्योर टावर्स, बांद्रा कुर्ला में था. वहां पहुंच कर इन लोगों ने कंपनी के डायरेक्टर गणेश इंगले से मुलाकात की.

इंगले ने चलाया चक्कर

गणेश इंगले ने उन की अच्छी आवभगत की. फिर उन्होंने उन के मुंबई आने का मकसद पूछा. व्यापारियों ने बताया कि जयपुर में एक आदमी के पास रेडियोएक्टिव पदार्थ से बनी काफी पुरानी डांसिंग डौल है. हम उस डौल को खरीद कर बेचना चाहते हैं.

उन की सारी बातें सुनने के बाद गणेश ने कहा, ‘‘आप सही जगह आए हैं. हमारी कंपनी इसी तरह का काम करती है. साथ ही वर्ल्ड न्यूक्लियर एसोसिएशन की सदस्य भी है.’’ गणेश ने अपनी बात को मजबूती से रखने के लिए उन्हें कई तसवीरें दिखाईं. वे तसवीरें लंदन, फ्रांस की राजधानी पेरिस, चीन की राजधानी बीजिंग और स्पेन के मेड्रिड शहर में आयोजित न्यूक्लियर से जुड़े कई अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों की थीं.

गणेश इंगले ने बताया कि वह इन कार्यक्रमों में अपने एक पार्टनर अमित गुप्ता के साथ वर्ल्ड न्यूक्लियर एसोसिएशन के सदस्य के रूप में शामिल हुए थे. गणेश ने अमित गुप्ता से भी उन की मुलाकात करा दी.

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न्यूक्लियर पर दुनिया के विभिन्न बड़े शहरों में आयोजित अंतरराष्ट्रीय आयोजनों के कुछ वीडियो भी गणेश ने उन व्यापारियों को दिखाए. इन वीडियो में दुनिया के कई नामी न्यूक्लियर वैज्ञानिक रेडियोएक्टिव पदार्थ की महत्ता और दुनिया में इस की आवश्यकता बताते हुए नजर आ रहे थे. तसवीरें और वीडियो देख कर तीनों बिजनैसमैन काफी प्रभावित हुए. उन्होंने गणेश इंगले से डांसिंग डौल की बात की.

गणेश ने उन्हें बताया कि जिस डांसिंग डौल को आप रेडियोएक्टिव पदार्थ की बनी हुई बता रहे हैं, उस का पहले डीआरडीओ यानी रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन से प्रमाणीकरण करवाना पड़ेगा. प्रमाणीकरण के लिए डीआरडीओ के वैज्ञानिक पहले उस रेडियोएक्टिव आर्टिकल की टैस्टिंग करेंगे. इस टैस्टिंग की फीस 70 लाख रुपए होगी.

बिजनैसमैन डांसिंग डौल की डीआरडीओ के वैज्ञानिकों से टैस्टिंग कराने को तैयार हो गए लेकिन उन्होंने सवाल किया कि वह डौल अगर टैस्टिंग में पास हो गई तो उसे खरीदा कैसे जाएगा.

गणेश ने कहा कि उस न्यूक्लियर पदार्थ को हमारी कंपनी 7 हजार करोड़ रुपए प्रति इंच के हिसाब से खरीद लेगी. इस के लिए कंपनी आप से एक करारनामा भी करेगी. इतना सुन कर व्यापारियों ने मन ही मन हिसाब लगाया कि इस हिसाब से तो 58 इंच की वह डांसिंग डौल 4 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की बिक जाएगी.

इतने मोटे मुनाफे की बात सुन कर उन्होंने गणेश इंगले से सवाल किया कि आप की कंपनी उस डौल का क्या करेगी. गणेश ने हंसते हुए कहा, ‘‘यही तो हमारी कंपनी का काम है. हमारी कंपनी उस डांसिंग डौल वाले रेडियोएक्टिव पदार्थ को करोड़ों रुपए के भाव से अंतरराष्ट्रीय बाजार में या नासा को बेच देगी.’’

बिजनैसमैनों का न तो डीआरडीओ में कोई संपर्क था और ना ही नासा में उन की कोई जानपहचान थी. इतना जरूर पता था कि नासा और डीआरडीओ बहुत महंगे दामों पर रेडियोएक्टिव पदार्थ खरीदते हैं. इसलिए उन के लिए रेडियोएक्टिव से बनी डांसिंग डौल बेचने के लिए एकमात्र कड़ी के रूप में गणेश इंगले ही था. उन्होंने गणेश इंगले का मोबाइल नंबर ले कर जल्दी ही मुलाकात करने की बात कही.
तीनों व्यापारियों को डांसिंग डौल के सौदे में मोटा फायदा होता दिख रहा था, इसलिए उन्होंने टैस्टिंग के बाद वह डौल खरीदने का फैसला कर लिया. उन्होंने दिनेश आर्य के मार्फत सत्यनारायण से डांसिंग डौल खरीदने की बात जारी रखी. उन्होंने सत्यनारायण से कहा कि पहले वह डीआरडीओ के वैज्ञानिकों से उस डौल की टैस्टिंग कराएंगे.

सत्यनारायण को इस में कोई ऐतराज नहीं था. उस ने कहा कि आप दुनिया के किसी भी वैज्ञानिक से इस की टैस्टिंग करा लें. लेकिन इस का खर्चा आप को ही देना होगा. एक शर्त यह भी होगी कि डौल की टैस्टिंग केवल जयपुर में ही कराई जाएगी. व्यापारियों ने उस की बात मानते हुए टैस्टिंग का खर्चा वहन करने पर सहमति जता दी.

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बढ़ता गया लालच

सत्यनारायण से बात तय होने पर उन्होंने गणेश से मोबाइल पर संपर्क किया. गणेश ने उन्हें डौल की टैस्टिंग के लिए मुंबई आ कर रेनसेल कंपनी में 70 लाख रुपए जमा कराने को कहा. इस पर उन व्यापारियों ने कहा कि डौल की टैस्टिंग हम जयपुर में कराना चाहते हैं.

तब गणेश ने कहा कि डीआरडीओ के वैज्ञानिकों के जयपुर आनेजाने के लिए हवाई यात्रा का खर्च और उन के लिए लग्जरी गाडि़यों के साथ फाइव स्टार होटल में ठहरने की व्यवस्था अलग से करनी होगी.
पुणे के योगेश, समीर और गिरीश बिजनैस के खड़े खिलाड़ी थे. उन्हें पता था कि इस तरह के मामलों में मुंहमांगा पैसा खर्च करना पड़ता है. व्यापारियों ने सोचा कि जब वह डौल की टैस्टिंग के 70 लाख रुपए देंगे तो 5-7 लाख रुपए और ज्यादा खर्च हो जाएंगे. लिहाजा उन्होंने जयपुर में टैस्टिंग कराने को कह दिया.

सारी बातें तय हो जाने पर उन्होंने गणेश इंगले की कंपनी में 70 लाख रुपए जमा करा दिए. पैसे जमा होने के बाद गणेश ने कहा कि डीआरडीओ के वैज्ञानिकों से डौल की टैस्टिंग की तारीख तय कर के उन्हें बता दिया जाएगा. उन्होंने जयपुर में सत्यनारायण को भी बता दिया कि टैस्टिंग के पैसे जमा करा दिए हैं और जल्दी ही डीआरडीओ के वैज्ञानिकों की तारीख मिल जाएगी. इसलिए आप पहले से ही सारा इंतजाम कर लें.

पिछले साल जुलाई में जयपुर में डांसिंग डौल की टैस्टिंग का कार्यक्रम तय किया गया. तय तारीख को गणेश इंगले, पुणे के तीनों बिजनैसमैन, इंदौर का दिनेश आर्य वगैरह जयपुर पहुंच गए. वहां पर जिंदाल नाम का व्यक्ति और उस के सहयोगी भी पहुंचे. उन के पास कई तरह के वैज्ञानिक उपकरण, कैमिकल, एंटी रेडियोएक्टिव सूट आदि थे. गणेश इंगले ने जिंदाल को डीआरडीओ का वैज्ञानिक बताया. जिंदाल और उस के सहयोगियों, गणेश इंगले आदि को जयपुर के नामी फाइव स्टार होटल में ठहराया गया. इन के जयपुर में टैस्टिंग के लिए आनेजाने और घूमनेफिरने के लिए मर्सिडीज गाडि़यों की व्यवस्था की गई.
जयपुर में आमेर इलाके के एक फार्महाउस पर डांसिंग डौल की टैस्टिंग की सारी तैयारी की गई. जिंदाल और उस के सहयोगियों ने एक बंद कमरे में लैब बनाई. फिर एंटी रेडियोएक्टिव सूट पहन कर कई तरह के उपकरणों और कैमिकलों से डांसिंग डौल की टैस्टिंग की. टैस्टिंग के दौरान कमरे में बनी उस लैब में वैज्ञानिक व उस के सहयोगियों के अलावा किसी को नहीं जाने दिया गया.

इसी बीच टैस्टिंग करते समय उस कमरे में अचानक तेज धमाका हुआ. बाहर खड़े बिजनैसमैन और अन्य लोग अंदर पहुंचे, तो वैज्ञानिक और उस के सहयोगी जमीन पर गिरे पड़े थे. उन्होंने बताया कि जांच के दौरान किसी कैमिकल की मात्रा ज्यादा होने के कारण धमाका हो गया और टैस्टिंग फेल हो गई. बाद में होटल आने के बाद सभी लोग अपनेअपने शहरों को चले गए.

इस के बाद उन व्यापारियों ने गणेश इंगले और सत्यनारायण से फिर संपर्क किया. गणेश ने रेडियोएक्टिव की जांच के लिए फिर से 70 लाख रुपए जमा करा लिए. बाद में कभी दोबारा टैस्टिंग कराने, कभी कैमिकल के नाम पर और कभी वैज्ञानिकों को बुलाने के नाम पर 7 करोड़ रुपए से ज्यादा ले लिए.

हुआ अहसास ठगे जाने का

इतनी बड़ी धनराशि खर्च करने के बावजूद अभी तक उन्हें कुछ हाथ नहीं लगा था. न तो डांसिंग डौल की टैस्टिंग हुई थी और ना ही डीआरडीओ का प्रमाणपत्र मिला था. अब उन्हें डांसिंग डौल 7 हजार करोड़ रुपए प्रति इंच के हिसाब से बिकने की बात में भी कोई दम नजर नहीं आ रहा था. उन्होंने रेनसेल कंपनी की असलियत का पता लगाया तो पता चला कि यह पूरी तरह फरजी है.

एक दिन तीनों बिजनैसमैन ने बैठ कर सब बातों पर विचार किया. काफी विचारविमर्श करने पर उन्हें यह यकीन हो गया कि इंदौर के दिनेश आर्य से ले कर जयपुर के सत्यनारायण और मुंबई की रेनसेल कंपनी के डायरेक्टर गणेश इंगले व पार्टनर अमित गुप्ता वगैरह सब लोग एक ही गिरोह से जुड़े हुए हैं.
इस गिरोह ने उन्हें रेडियोएक्टिव के नाम पर बेवकूफ बना कर लगातार ठगी की थी. इस पर उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने का फैसला किया.

इसी साल फरवरी के महीने में पुणे के रहने वाले तीनों बिजनैसमैन योगेश सोनी, समीर मोहते और गिरीश सोनी ने जयपुर के जवाहर नगर पुलिस थाने में एक रिपोर्ट दर्ज कराई. इस रिपोर्ट में इन्होंने कहा कि रेडियो एक्टिव पदार्थ की बनी डांसिंग डौल दिखा कर डीआरडीओ और नासा के नाम पर उन से 7 करोड़ रुपए से ज्यादा की ठगी की गई है.

रेडियोएक्टिव पदार्थ परमाणु बम बनाने के काम भी आते हैं. जयपुर में रेडियोएक्टिव पदार्थ होने की जानकारी गंभीर और महत्वपूर्ण थी. इसलिए थानाप्रभारी ने अपने उच्चाधिकारियों को दर्ज हुई रिपोर्ट की जानकारी दी. पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव को जब इस बात की जानकारी मिली तो उन्हें चिंता हुई कि अगर जयपुर में किसी के पास अवैध रूप से रेडियोएक्टिव पदार्थ है, तो इस से कभी भी जनहानि हो सकती है.

सब बातों पर गंभीरता से विचार कर पुलिस कमिश्नर ने एडिशनल सीपी (क्राइम) प्रसन्न खमेसरा से चर्चा की. इस के बाद उन्होंने इस मामले की जांच के लिए एक पुलिस टीम गठित की. इस टीम में एडिशनल सीपी (स्पैशल क्राइम) विमल नेहरा के नेतृत्व में एक टीम गठित करने का फैसला किया.

इस टीम में सांगानेर थानाप्रभारी लाखन खटाना, बजाज नगर थानाप्रभारी मानवेंद्र सिंह, भट्टा बस्ती थानाप्रभारी शिवनारायण, ब्रह्मपुरी थानाप्रभारी भारत सिंह, आदर्श नगर थानाप्रभारी अरुण कुमार, मालवीय नगर थानाप्रभारी रघुवीर सिंह, मोतीडूंगरी थानाप्रभारी जोगेंद्र सिंह के अलावा कई तेजतर्रार सबइंसपेक्टरों को शामिल किया गया.

व्यापक जांचपड़ताल के बाद जयपुर पुलिस ने 9 मार्च को मुंबई निवासी गणेश इंगले, गाजियाबाद निवासी अमित गुप्ता व राकेश कुमार गोयल, इंदौर के दिनेश कुमार आर्य, जयपुर के सत्यनारायण सहित कुल 18 लोगों को अलगअलग स्थानों से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस का कहना है कि रेडियोएक्टिव के नाम पर ठगी करने वाला यह अंतरराष्ट्रीय गिरोह है.

गिरोह में शामिल जिन अन्य आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, उन में दिल्ली के कालकाजी निवासी संतोष सिंघानिया, मुंबई के अंधेरी ईस्ट निवासी अमित प्रजापति, उत्तर प्रदेश के सिकंदराबाद निवासी विपिन कुमार राजपूत, संतोष कुमार जाट, वीरेंद्र सैनी, बुलंदशहर के रहने वाले शंकर सिंह, जयपुर के बापू कालोनी निवासी धर्मवीर वाल्मीकि, सेंट्रल जेल के पीछे रहने वाले अब्दुल रईस, कानोता निवासी मनोहर सिंह चौहान, बीकानेर के मधुर मोहन गुप्ता, भीलवाड़ा के उत्तमचंद नौलखा, नागौर के संजयनाथ, झुंझुनूं के राजेंद्र प्रसाद शामिल थे.

ये लोग ठग गिरोह से जुड़ कर गणेश, अमित गुप्ता, सत्यनारायण आदि के लिए ग्राहकों को फंसाने का काम करते हैं. पुलिस की ओर से गिरफ्तार आरोपियों से की गई पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस तरह है—

नवी मुंबई के घनसोली स्थित अटलांटिस टावर में रहने वाले 41 साल के गणेश इंगले ने अमरावती विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीई और मुंबई विश्वविद्यालय से रोबोटिक्स में एमई की डिग्री हासिल की थी. पढ़ाई पूरी करने के बाद इंगले ने भाभा अटौमिक रिसर्च सेंटर में काम किया, लेकिन वहां उस का मन नहीं लगा.

गणेश ने नौकरी छोड़ कर सन 2004-05 में अपने एक पुराने साथी लोलगे के साथ मिल कर सौफ्टवेयर डवलपमेंट एंड ट्रैनिंग का बिजनैस आरंभ किया. ये दोनों इंजीनियरिंग पासआउट विद्यार्थियों को mसौफ्टवेयर डवलपमेंट और ट्रैनिंग के कोर्स करवाते थे. गणेश इंगले ने इस के साथसाथ वह ज्योतिषी बन कर हस्तरेखा देखने का काम भी करने लगा. हालांकि उसे ज्योतिष का कोई ज्ञान नहीं था, लेकिन उस ने लोगों की कमजोरियां जानसमझ कर उन्हें बेवकूफ बनाया और मोटी रकम ऐंठी.

खड़ी हो गई ठग कंपनी

बाद में सन 2016 में गणेश ने गाजियाबाद निवासी अमित गुप्ता के साथ मिल कर रेनसेल एनर्जी एंड मेटल लिमिटेड नाम की कंपनी बनाई. इस कंपनी का औफिस मुंबई के बांद्रा कुर्ला में खोला गया. इस कंपनी में गणेश डायरेक्टर बना और अमित गुप्ता रिलेशनशिप मैनेजर कम पार्टनर था.

अमित की भतीजी शिवानी गुप्ता को कंपनी में सेके्रट्री बनाया गया. इस कंपनी के माध्यम से गणेश व अमित ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न्यूक्लियर प्रोटेक्शन, न्यूक्लियर वेस्ट मैनेजमेंट और सोलर एनर्जी के क्षेत्र में ट्रेडिंग और सर्विस का काम शुरू किया.

लोगों को झांसा देने और दिखावे के तौर पर इन्होंने अपनी कंपनी में ओलगा नामक व्यक्ति को एनवायरमेंटल इकोनोमिस्ट, एलेक्स फाल्कन को रेनसेल वेबमास्टर, पीटर मार्गन को अकेडमिक इंगेजमेंट मैनेजर, सांदरा को रिसर्च असिस्टेंट बना रखा था. वास्तव में इन चारों के ये नाम फरजी थे और इन नामों के कोई व्यक्ति कंपनी में नहीं थे.

गणेश और इंगले ने जोड़जुगत कर के वर्ल्ड न्यूक्लियर एसोसिएशन की सदस्यता भी हासिल कर ली थी. इस एसोसिएशन का कार्यालय यूके में सेंट्रल लंदन में है. इस सदस्यता के आधार पर दोनों ने 2017 में लंदन में आयोजित वर्ल्ड न्यूक्लियर एसोसिएशन सिंपोजियम में हिस्सा लिया.

इस आयोजन में इन की मुलाकात इकेटेरिना नामक महिला से हुई. दोनों ने इकेटेरिना को अपने झांसे में लिया और अपनी कंपनी रेनसेल का यूके का डायरेक्टर बना दिया. इकेटेरिना बाद में भारत भी आई थी.
लंदन में हुई इसी सिंपोजियम में गणेश व अमित की मुलाकात टिटियाना साइलाबस नामक बुल्गारियन महिला से भी हुई थी. यह महिला बुल्गारिया की एनआरडब्ल्यू नामक कंपनी में पार्टनर थी. गणेश और अमित ने इस महिला से यह टाईअप किया कि न्यूक्लियर वेस्ट मैनेजमेंट से संबंधित कोई कार्य भारत में रेनसेल कंपनी को मिलता है, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह उन का साथ देंगी. बाद में टिटियाना साइलाबस भी भारत आई थी.

ठगी के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनाई पहचान

यूके के सेंट्रल लंदन में पिछले साल आयोजित ग्लोबल न्यूक्लियर इनवेस्टमेंट समिट में भी गणेश और अमित ने भाग लिया था. इस समिट में दुनियाभर की लगभग 100 कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे.
जून 2018 में गणेश और अमित ने फ्रांस के पेरिस शहर में आयोजित वर्ल्ड न्यूक्लियर एक्जीबिशन में भी हिस्सा लिया. स्पेन के मैड्रिड शहर में आयोजित वर्ल्ड न्यूक्लियर फ्यूल साइकल 2018 के आयोजन में भी दोनों ने भागीदारी की.

ये लोग इंदौर के विजय नगर निवासी दिनेश आर्य के मार्फत ग्राहकों को फांसने का काम करते थे. दिनेश के जरिए ही गणेश इंगले जयपुर के सत्यनारायण के संपर्क में आया था. अमित गुप्ता लगातार सत्यनारायण के संपर्क में रहता था और जयपुर आताजाता रहता था.

पुणे के बिजनैसमैनों को बेवकूफ बनाने के लिए गणेश इंगले खुद भी जयपुर आया था. ये लोग अपने शिकार पर प्रभाव जमाने के लिए फाइव स्टार होटलों में रुकते थे और मर्सिडीज जैसी प्राइवेट लग्जरी कारें किराए पर मंगा कर उपयोग में लाते थे. पिछले साल जुलाई में डांसिंग डौल की टैस्टिंग के नाम पर जयपुर के आमेर इलाके में ड्रामा किया गया था. इस ड्रामे में जिंदाल नामक जिस आदमी को डीआरडीओ का वैज्ञानिक बना कर लाया गया, वह सत्यनारायण का परिचित था.

गणेश इंगले की कंपनी रेनसेल एनर्जी एंड मेटल द्वारा डीआरडीओ, नासा और वर्ल्ड न्यूक्लियर एसोसिएशन के नाम पर फरजी दस्तावेजों का इस्तेमाल कर के लोगों से करोड़ोंअरबों रुपए ठगने की बात पता चली है. पुलिस का दावा है कि इस गिरोह ने जयपुर, दिल्ली व हैदराबाद सहित देश के हिस्सों में लोगों से 300 से 400 करोड़ रुपए तक की ठगी की है.

जयपुर पुलिस ने गिरोह के सदस्यों से 10 लाख रुपए नकद, डीआरडीओ के फरजी लेटरपैड, कथित कैमिकल टैस्टिंग रिपोर्ट और एंटी रेडियोएक्टिव की नकली ड्रेस बरामद की है. पता चला है कि रेनसेल कंपनी ने इजरायल से साढ़े 3 लाख रुपए प्रति नग के हिसाब से 2 एंटी रेडियोएक्टिव सूट खरीदे थे. इन सूटों को दिखा कर ये लोग अपने शिकार को रेडियोएक्टिव की खरीदफरोख्त के लिए फांसते थे.
गिरोह की ओर से अंग्रेजों के जमाने की ईस्ट इंडिया कंपनी की जिस डांसिंग डौल का सौदा ग्राहकों से किया जाता था, वह साधारण लकड़ी की बनी हुई थी, जिसे फिश एक्वारियम में रखा हुआ था. इस डांसिंग डौल को दिखा कर यह गिरोह कई लोगों से ठगी कर चुका है.

जयपुर निवासी सत्यनारायण 2 दशक पहले तक जयपुर नगर निगम में कर्मचारी था. बाद में उस ने सरकारी नौकरी छोड़ दी. अब उस ने जवाहर सर्किल के पास औफिस खोल रखा था. जहां वह जादूटोने, स्टोन, मालाएं, पेंटिंग्स, कैमिकल और एंटीक आइटम्स के नाम पर लोगों से ठगी करता था.

उस के औफिस में हर समय कई एजेंट बैठे रहते थे. सत्यनारायण ने कई शादियां कर रखी हैं. उस ने एक पत्नी के नाम पर आयुर्वेद की फर्म भी रजिस्टर करवा रखी है. इस फर्म के जरिए वह चमत्कारी दवाओं के नाम पर लोगों से ठगी करता था. जयपुर में उसके कई मकान हैं.

पुलिस इस गिरोह के बारे में नए तथ्य जुटाने में लगी है. यह विडंबना है कि पैसे वाले लोग मोटे मुनाफे के लालच में गणेश, अमित और सत्यनारायण जैसे ठगों के चक्कर में फंस जाते हैं. पुलिस मामले की जांच कर रही है.

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