तेरे बिन: क्या हर्षा को कोई और मिल गया था या बात कुछ और थी

हर्षा जिस दिन से मायके से लौटी थी उल्लास उसे कुछ बदलाबदला पा रहा था. औफिस जाते समय पहले तो वह उस की हर जरूरत का ध्यान रखती. नाश्ता, टिफिन, घड़ी, मोबाइल, वालेट, पैन, रूमाल कहीं कुछ रह न जाए. वह नहा कर निकलता तो धुले व पै्रस किए कपड़े, पौलिश किए जूते उसे तैयार मिलते. रोज बढि़या डिनर, संडे को स्पैशल लंच, सुंदर सजासंवरा घर, मुसकान से खिलीखिली हर वक्त आंखों में प्यार का सागर लिए उस की सेवा में बिछी रहने वाली हर्षा के रंगढंग उस दिन से कुछ अलग ही नजर आ रहे थे.

अब उसे कोई चीज टाइम पर जगह पर नहीं मिलती. पूछता तो उलटे तुरंत जवाब मिल जाता कि कुछ खुद भी कर लिया करो. अकेली कितना करूं. उल्लास इधरउधर दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगा था.

‘उस दिन औफिस की पुरानी सैक्रेटरी बीमार जान कर उसे देखने घर चली आई. कहीं इस कारण हर्षा को कुछ फील तो नहीं हो गया या  हर्षा की नई भाभी पारुल ने तो कहीं उसे पट्टी पढ़ा कर नहीं भेजा, बहुत तेज लगती है वह या फिर औफिस में बिजी रहने के कारण आजकल कम टाइम दे पाता हूं. घर में अकेले पड़ेपड़े बोर हो जाती होगी शायद. मायके में जौइंट फैमिली जो है… बच्चा भी तो नहीं अभी कोई, जो उसी से मन लग जाता. 2-3 साल बाद बच्चे का प्लान खुद ही तो मिल कर बनाया था. पूछने पर तो सही जवाब भी नहीं देती आजकल,’ उल्लास सोचे जा रहा था.

‘‘उल्लास खाना बना दिया है, निकाल कर खा लेना. बाकी फ्रिज में रख देना. मुझे शायद आने में देर हो जाए. फ्रैंड के घर किट्टी पार्टी है,’’ हर्षा का सपाट स्वर सुनाई दिया.

‘‘संडे को कौन किट्टी पार्टी रखता है? एक ही दिन तो सभी जैंट्स घर पर होते हैं?’’

‘‘और हम जो रोज घर में रहतीं हैं उन का क्या? कल से तुम्हारे कपड़े बैड पर फैले हैं. उन्हें समेट कर रख लेना. मेरी समझ नहीं आता मेरे लिए क्यों छोड़ कर जाते हो?’’ और धड़ाम से दरवाजा बंद कर वह चली गई.

उल्लास सोचने लगा कि वह पहले भी तो यों छोड़ जाता था… तब उस के काम खुशीखुशी कर देती थी, तो अब उस ने ऐसा क्या कर दिया जो हर्षा उस से रूठीरूठी सी रहने लगी है? वह उस पर और बर्डन नहीं डालेगा. अपने काम खुद कर लिया करेगा.

उल्लास ने जैसेतैसे बेमन से खाना खा  लिया. हर्षा का खाना बेस्वाद तो कभी नहीं बना, भले ही खिचड़ी बनाए. इसी कारण उस का बाहर का खाना बिलकुल छूट गया था… पर अब तो कभी नमक ज्यादा तो कभी कम. कच्ची सब्जी, जलीजली रोटियां. हुआ क्या है उसे? वह हैरान था. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था.

फिर मन ही मन बुदबुदाया कि चल बेटा होस्टल डेज याद कर और आज कुछ बना डाल हर्षा को खुश करने के लिए. जब तक वह घर लौटे बढि़या सा डिनर तैयार कर ले उस के लिए… हमेशा वही बनाती है उसे भी तो कभी कुछ करना चाहिए. फिर सोचने लगा कि हर्षा को आमिर खान पसंद है. अत: पहले ‘दंगल’ मूवी के टिकट बुक करा लिए जाएं नाइट शो के. फिर औनलाइन टिकट बुक किए. दोनों की पसंद का खाना तैयार किया.

हर्षा आई तो उस का प्रयास देख कर मन ही मन खुश हुई. करी को थोड़ा सा ठीक किया, पर बाहर जाहिर नहीं होने दिया. यही तो चाहने लगी थी कि उल्लास किसी भी बात के लिए उस पर निर्भर न रहे. डिनर भी चुपचाप हो गया. मूवी में भी हर्षा चुपचुप रही.

उस की चुप्पी उल्लास को अखरने लगी थी. अत: बोला, ‘‘कोई बात है हर्षा तो मुझे बताओ… मुझ से कुछ गलत हो गया या मेरा साथ तुम्हें अब अच्छा नहीं लगता?’’

‘‘जब तुम हिंदी मूवी पसंद नहीं करते हो, तो मेरी पसंद के टिकट नहीं लाने चाहिए थे. प्रत्यूष और धनंजय को ले कर अच्छा होता कोई अपनी पसंद की इंग्लिश मूवी ऐंजौय करते… जबरदस्ती मेरे कारण देखने की क्या जरूरत है?’’

उल्लास देखता रह गया कि जो हर्षा रातदिन उसे दोस्तों के साथ न जाने और अपने साथ ही हिंदी मूवी देखने की जिद करती थी वही आज उलटी बात कर रही है… क्यों उस से कट रही है हर्षा? क्या किसी और के लिए दिल में जगह बना ली है? फिर उस ने सिर झटका कि वह ऐसा सोच भी कैसे सकता है? उसे दीवानों की तरह चाहने वाली हर्षा ऐसा कभी नहीं कर सकती. वह चाहती है न कि वह अपने सारे काम खुद करे तो करेगा. तब तो खुश होगी. उसे पहले वाली हर्षा मिल जाएगी.

2-3 महीने में उल्लास ने अपने को काफी बदल लिया. अपने कपड़े हर संडे धो डालता. कुछ खुद प्रैस करता कुछ को बाहर से करवा लेता. घड़ी, वालेट, मोबाइल, चार्जर वगैरह ध्यान से 1-1 चीज रख लेता. हर्षा को इस के लिए परेशान न करता. पेट भरने लायक खाना भी बनाना आ गया था. औफिस जाने से पहले अपना कमरा ठीक कर जाता.

अब तो खुश हो हर्षा? वह पूछता तो हर्षा हौले से मुसकरा देती, पर अंदर से उसे अपने कामों को स्वयं करता देख बहुत दुखता, पर वह ऐसा करने के लिए मजबूर थी.

‘‘उल्लास इंगलिश की नईर् मूवी लगी है, जाओ अपने दोस्तों के साथ देख आओ.’’

‘‘हर्षा तुम मुझे ऐसे अपने से दूर क्यों कर रही हो. मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि यह कैसी खुशी है तुम्हारी? क्या मुझे अपने लायक नहीं समझती अब?’’

‘‘उल्लास तुम तो लायक हो और तुम्हारे लिए वह लाली मौसी ने सही लड़की चुनी थी उन की ननद की बेटी संजना. बिलकुल तुम्हारे लिए हर तरह से सही मैच… उस ने अभी तक शादी नहीं की. मेरी वजह से उस से रिश्ता होतेहोते रह गया था तुम्हारा… लाली मौसी इसी कारण अभी तक नाराज हैं. उन की नाराजगी तुम दूर कर सकते हो तो बताओ…’’

‘‘कहां इतनी पुरानी बात ले कर बैठ गई तुम… हम दोनों ने एकदूसरे को

पसंद किया, प्यार किया, शादी की. अब यह बात कहां से आ गई… अच्छा औफिस को देर हो रही है. मैं निकलता हूं शाम को बात करते हैं रिलैक्स,’’ और फिर हमेशा की तरह बाहर निकलते हुए उस के माथे पर चुंबन जड़ दिया, ‘‘तुम कुछ भी कर लो, कह लो तुम्हें प्यार करता रहूंगा. सी यू हनी.’’

‘‘यही तो मैं अब नहीं चाहती उल्लास… तुम्हें कुछ कह भी तो नहीं सकती,’’ हर्षा देर तक रोती रही. कल ही उसे मुंबई के लिए निकलना था कभी न लौटने के लिए. उस ने अपनेआप को किसी तरह संभाला. छोटे से बैग में सामान पैक कर लिया. उल्लास आया तो उसे बताने की हिम्मत न हुई. रात बेचैनी से करवटें बदलते बीत गई.

‘‘तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं लग रही हर्षा,’’ उल्लास कभी पानी, कभी चाय तो कभी कौफी बना लाता. कभी माथा सहलाता.

‘‘डाक्टर को बुलाऊं क्या?’’

‘‘कुछ नहीं थोड़ा सिरदर्द है. सुबह तक ठीक हो जाएगा. तुम अब सो जाओ.’’

मगर उल्लास माना नहीं तेल की शीशी उठा लाया. ढक्कन खोला तो वह फिसल कर बैड के नीचे पहुंच गया. वह झुका तो पैक्ड बैग नजर आया.

‘‘अरे यह बैग कैसा है? कौन जा रहा है?’’

‘‘हां, उल्लास मुझे कल ही जाना पड़ रहा है मुंबई. अभि मुझे लेने कल सुबह यहां पहुंच जाएगा. वह मेरी सहेली रुचि की बहन की शादी है. उस का कोई है नहीं. घबरा रही है, डिप्रैशन में अस्पताल में दाखिल भी रही. सारी तैयारी करनी है. अत: मां से रिक्वैस्ट की कि अभि को भेज कर मुझे बुला लें. मेरे पास भी तुम से रिक्वैस्ट करने के लिए फोन आया था. मैं ने कह दिया उल्लास मुझे मना नहीं करेंगे… 1 महीना क्या 6 महीने रख लो. सारे काम खुद करने की आदत डाल ली है. अब उल्लास को कोई परेशानी नहीं होगी अकेले. सही है न?’’ वह हलके से मुसकराई. पर इतना प्यार करने वाले पति उल्लास से सब मनगढ़ंत कहने के लिए मजबूर वह अंदर तक हिल गई.

‘‘मगर… कितने दिन… मैं अकेले कैसे… कुछ बताया तो होता?’’

‘‘अकेले की आदत तो डाल ही लेनी चाहिए… आत्मनिर्भर होना चाहिए हर तरह से… अचानक कोई चल पड़े तो रोता ही फिरे दूसरा, कुछ कर ही न पाए,’’ वह हंसी थी.

‘‘चुप करो… कैसी बेसिरपैर की बातें कर रही हो… जा रही हो तो मैं तुम्हें रोक नहीं रहा… कब लौटोगी यह बताओ. शादी के लिए 10 दिन बहुत हैं, 1 महीना जा कर क्या करोगी पर ठीक है जाओ… हर दिन मुझे फोन करोगी. चलो अब सो जाओ.’’

8 बज चुके थे. तभी अभि आ गया, ‘‘कहां हो दीदी?’’

‘‘अभी उठी नहीं. कल तबीयत कुछ ठीक नहीं थी उस की… कुछ अजीब सी बातें कर रही थी, इसलिए अभी उठाया नहीं.’’

‘‘1 बजे की फ्लाइट है जीजू, देर न हो जाए.’’

‘‘हां, मैं उठाने ही जा रहा था. मुझे रात को ही मालूम हुआ… चाय बन गई, तुम उठा दो मैं चाय डाल कर लाता हूं.’’

‘‘दीदी उठो. मैं आ भी गया. चलना नहीं क्या? देर हो जाएगी,’’ अभि ने उसे उठाया.

‘‘जितनी देर होनी थी अभि हो चुकी अब और क्या होगी?’’ कहते हुए हर्षा उठ बैठी.

‘‘क्यों नहीं आप वहां रुकीं इलाज करवाने… कोशिश तो की ही जा सकती थी… क्यों नहीं बताने दिया जीजू को?’’ छोटा भाई अभि उस के कंधे पकड़ लाचारगी से बैठ गया. आंखों में बूंदें झलकने लगीं.

‘‘वक्त बहुत कम था मेरे पास, कितना इलाज हो पाता… तुझे तो पता ही है, तेरे जीजू को तैयार भी तो करना था मेरे बिना रहने के लिए… तू शांत हो जा बस,’’ हर्षा उस के आंसू पोंछने लगी जो रुक ही नहीं रहे थे.

उल्लास के कदमों की आहट कमरे की ओर आने लगी, तो अभि ने झट अपने आंसू दोनों हाथों से पोंछ डाले और सामान्य दिखने की कोशिश करने लगा.

हर्षा जातेजाते उल्लास को ठीक से रहनेखाने की तमाम हिदायतें दिए जा रही थी. अधिक फोन मत करना… वहां सब मुझे छेड़ेंगे कि उल्लास तेरे बिना रह ही नहीं पा रहा.

अब उदास, परेशान मत हो… तुम्हीं ने तो लंबा प्रोग्राम बनाया है. दोस्त के यहां शादी में जा रही हो. खुशीखुशी जाओ, मेरी चिंता बिलकुल छोड़ दो. मैं सब मैनेज कर लूंगा… ठाट से रहूंगा, देखना.’’

एअरपोर्ट से अंदर जाने के लिए हर्षा ने उल्लास का हाथ छोड़ा तो लगा उस की सारी दुनिया ही छूट गई. उल्लास को आखिरी बार जी भर कर देख लेना चाह रही थी. बड़ी मुश्किल से अपने को संभाला और हौले से बाय कहा. मुसकरा कर हाथ हिलाया और फिर झटके से चेहरा घुमा लिया. आंखों में उमड़ते बादलों को बरसने से रोक पाना उस के लिए असंभव था.

2 दिन ही बीते थे हर्षा को गए हुए औफिस में उल्लास को पता चला उस की अगले फ्राईडे को मुंबई में मीटिंग है. वह खुशी से उछल पड़ा. उस ने 2-3 बार ट्राई किया कि हर्षा को बता दे पर फोन नहीं मिला. फिर सोचा अचानक उसे सरप्राइज देगा.

‘‘फोन ही नहीं मिल रहा हर्षा का. यहां मेरी मीटिंग है आज 3 बजे. सोच रहा हूं हर्षा को सरप्राइज दूं. उस की सहेली रुचि का जल्दी पता बता अभि.’’

अभि उसे हैरानपरेशान सा देख रहा था.

‘‘जीजू आप…’’ उस ने पैर छुए, ‘‘मैं वहीं जा रहा हूं आइए. 1 मिनट रुको. अंदर अम्मांजी से तो मिल लूं.’’

‘‘सब वहीं हैं जीजू,’’ वह धीरे से बोला.

‘‘कहां खोया है तू… लगता है तेरी भी जल्दी शादी करनी पड़ेगी,’’ उल्लास अकेले ही बोले जा रहा था.

‘‘अरे कहां ले आया तू टाटा मैमोरियल… कौन है यहां कुछ तो बोल… अभि कहीं हर्षा…’’ वह आशंका से व्याकुल हो उठा.

अभि बिना कुछ बोले उस का हाथ पकड़ सीधे हर्षा के पास ले आया, ‘‘सौरी दी… मैं आप को दिया प्रौमिस पूरा नहीं कर पाया,’’ और फिर फूटफूट कर रो पड़ा.

दिल से न चाहते हुए भी हर्षा की आंखें जैसे उल्लास का ही इंतजार कर रही थीं.

मानो कह रही हों तुम्हें देख अब तसल्ली से जा सकूंगी. उल्लास के हाथ को कस कर थामे उस की हथेलियों की पकड़ ढीली पड़ने लगी. वह बेसुध हो गई.

‘‘हर्षाहर्षा तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा. तुम ने मुझे क्यों नहीं पता लगने दिया? डाक्टर… सिस्टर…’’

‘‘आप बाहर आइए प्लीज, हिम्मत से काम लीजिए… मैं ने इन्हें 2-3 महीने पहले ही बता दिया था… बहुत लेट आए थे… कैंसर की लास्ट स्टेज थी. अब कुछ नहीं हो सकता…’’

‘‘ऐसे कैसे कह सकते हैं डाक्टर? आप लोग नहीं कर पा रहे यह बात और है… मैं अमेरिका ले जाऊंगा… फौरन डिस्चार्ज कर दीजिए. मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा हर्षा मैं अभी आया,’’ और वह बाहर भागा.

जी जान लगा कर उल्लास ने आननफानन में अमेरिका जाने की व्यवस्था कर ली. 2 दिन बाद वह हर्षा को ले कर लुफ्थांसा विमान में इसी उम्मीद की उड़ान भर रहा था.

‘‘तेरे बिन नहीं जीना मुझे हर्षा,’’ उस ने उस के कानों में धीरे से कहा और हमेशा की तरह उस के माथे पर चुंबन अंकित कर दिया, परंतु इस बार वह आंसुओं में भीगा था.

आधा चांद: क्यूं परेशान थी राधिका

इन सितारों के बीच भी क्या यह चांद खुद को अकेला महसूस करता होगा? क्या यह भी किसी से मिलने के लिए रोज आसमान में आता है? क्या ये तारे भी इस की भाषा समझते हैं? क्या इसे भी किसी की याद आती होगी? कैसे अजीब से सवाल आते रहते हैं मेरे मन में, जिन का जवाब शायद किसी के पास नहीं, या फिर ये सवाल ही फुजूल हैं. मेरी आदत है, हर रोज यों ही 10 बजे छत पर आ कर इस चांद को निहारने की. इस समय जब सब लोग परिवार के साथ टैलीविजन देखते हैं या मोबाइल में मैसेज टाइप कर रहे होते हैं, मैं यहां आ जाता हूं, इस चांद से बातें करने, क्योंकि एक यही तो है, जो मेरे इन तनहाई के दिनों में मुझे सुनता है, मेरा दर्द समझता है. जब हम प्यार में होते हैं, तो चांद में महबूब का अक्स देखते हैं और वहीं दूसरी तरफ जब दर्द में होते हैं, तो उस में हमदर्द तलाश कर लेते हैं और चांद की खूबी है कि यह सब बन जाता है.

पिछले 2 साल से मेरी रातें यहीं कटती हैं. अब तो इसे देखने की इतनी आदत हो गई है कि एक दिन यहां न आऊं तो कैसा लगेगा पता नहीं, क्योंकि आज तक कभी ऐसा हुआ नहीं. आदत कह कर मैं हंस पड़ा. कितनी अजीब है न यह आदत भी, कब और किस की लग जाए, पता नहीं. पहले राधिका की लगी, अब इस चांद की.

राधिका… आखिर आ ही गया उस का नाम मेरी जबां पर. आज तक ऐसा कोई दिन नहीं हुआ, जब मैं ने यहां आ कर उस का कोई किस्सा तुम्हें न सुनाया हो. तुम भी सोचते होंगे कि इतने दिन जिस का साथ नहीं रहा, यादें कैसे इतने दिन ठहर गईं?

राधिका और मैं पहली बार तब मिले थे, जब मैं मूवी का टिकट लेने टिकट खिड़की की लंबी लाइन में लगा था.  उस दिन कुछ ज्यादा ही भीड़ थी. मैं ने कभी नहीं सोचा था कि ऐसी किसी जगह भी कोई मिल सकता है, जो हमेशा याद रह सकता है. दरअसल, टिकट आखिरी थी और लड़केलड़कियों की अलगअलग लाइन होने के चलते हम दोनों ही खिड़की पर खड़े थे. टिकट वाला भी सोच में पड़ गया कि किसे दे…

मैं भी पीछे नहीं हटा और वह भी. टिकट वाले ने कहा कि आप दोनों तय कर लीजिए कि किसे चाहिए. वह खुद किसी झमेले में पड़ना नहीं चाहता था.

अब करें भी तो क्या. मैं उस से कुछ कहता, उस से पहले ही वह बोल पड़ी, ‘‘देखिए, यह टिकट तो मैं ही लूंगी, आप कल देख लेना.’’ ‘अजीब लड़की है,’ मैं ने सोचा. प्लीज कहने के बजाय ऐसे अकड़ कर बोल रही थी. मैं कुछ कहता, उस से पहले ही मेरे मोबाइल की घंटी बजी. मैं रिसीव करने थोड़ी दूर आया, 2 मिनट में काल कट कर के मैं वापस गया तो वह लड़की वहां नहीं थी.

मैं ने टिकट वाले की ओर सवालिया नजरों से देखा, तो वह बोला, ‘‘टिकट तो वे मैडम ले कर चली गईं.’’ मैं खिसिया कर रह गया. हद होती है… एक तो दिन मिलता है छुट्टी का और आज ही यह सब. अच्छाभला मूड ले कर आया था, लिहाजा उस दिन मैं उसी लड़की को कोसता रहा.

अगले हफ्ते समय से काफी पहले ही मैं टिकट लेने चला गया. भीड़ भी थोड़ी कम थी. इसे इत्तिफाक कहिए या कुछ और कि वह लड़की आज भी आई थी. मैं ने उसे नजरअंदाज करना ही ठीक समझा. आखिर कैसे उस दिन उस ने…

खैर, मैं ने टिकट ली और मुड़ा. वह मेरे पीछेपीछे थी. मैं उसे नजरअंदाज करने लगा. उस ने मुझे रोकते हुए कहा, ‘‘सुनिए…’’ मैं ने उस की ओर देखा, तो वह बोली, ‘‘सौरी, पिछली बार मैं ने टिकट ले ली थी.’’

मैं ने सोचा कि यह कैसे इतना बदल गई. खैर, मैं ‘इट्स ओके’ बोल कर आगे बढ़ा. वह फिर मेरे सामने आ कर ‘थैंक्स’ बोलने लगी. मैं दिखावे के लिए हलका सा मुसकरा दिया, फिर वह बोली, ‘‘क्या आप मेरी हैल्प कर सकते हैं?’’ मैं ने चौंक कर पूछा, ‘‘मैं क्या मदद कर सकता हूं?’’

वह बोली, ‘‘मेरे पास 15 रुपए कम हैं मूवी की टिकट के लिए. अगर आप अभी दे देते हैं, तो मैं वापस कर दूंगी. मूवी के बाद घर से ला कर पक्का. अभी जाऊंगी तो देर हो जाएगी.’’ मैं उस लड़की की मदद बिलकुल नहीं करना चाहता था. आखिर कैसे उस ने पिछली बार धोखे से टिकट ले ली थी, मुझे नीचा दिखा कर…

‘‘अच्छा तो इसलिए इस ने माफी मांगी होगी, तभी सोचूं कि इतना जल्दी कोई कैसे बदल सकता है,’’ मैं खुद में ही बुदबुदा रहा था कि तभी उस ने दोबारा कहा, ‘‘प्लीज…’’ मैं अपने खयाल से बाहर निकला. ऐसा कोई जरूरी नहीं था कि मैं उस की मदद करूं, पर पता नहीं क्यों, मैं खुद को रोक नहीं पाया और उसे 15 रुपए दे दिए.

वह देख कर ऐसे उछल कर ‘थैंक्स’ बोली, जैसे रोते हुए बच्चे को उस का मनपसंद खिलौना मिल गया हो. वह पहली बार तब अच्छी लगी थी मुझे. 3 घंटे की उस मूवी में मुझे उस का खयाल 30 बार आया. पता नहीं क्यों, पर मैं मिलना चाहता था उस से एक बार, देखना चाहता था उसे एक और बार. नहीं, वे 15 रुपए नहीं चाहिए थे मुझे, वह तो बस… होता है कभीकभी कि कोई एक नजर में ही बस जाता है इन नजरों में. मैं अपनी बाइक स्टार्ट कर के निकलने ही वाला था कि वह अचानक से मेरे सामने आ गई. वह बोली, ‘‘आप 5 मिनट यहीं रुकें, तो मैं घर से रुपए ला कर दे दूंगी.’’

मैं कहना चाहता था कि हां, बिलकुल रुक सकता हूं, क्योंकि 5 मिनट बाद मैं उसे फिर देख पाता, पर इसी बीच मेरे मोबाइल की रिंग बजी. कमबख्त यह हमेशा गलत समय पर ही बजता है. एक दोस्त का फोन था. कुछ जरूरी काम था. ‘अभी आता हूं’ कह कर मैं ने फोन काट किया और बाइक स्टार्ट करते हुए बोला, ‘‘नहीं, इस की कोई जरूरत नहीं है.’’ उस दिन के बाद से मैं हर संडे वहां जाता था. नहीं, मूवी देखने नहीं. मैं वहां मूवी शुरू होने तक खड़ा रहता और आतेजाते लोगों को देखता रहता. नजरें बस उसे ही तलाशती रहतीं, पर एक महीना यानी 4 रविवार हो गए थे, वह नहीं दिखी थी और इन 4 रविवार में मैं ने खुद भी कभी मूवी नहीं देखी, मन ही नहीं किया. आज 5वां रविवार था. मुझे खुद नहीं पता था कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं. कुछ सवाल ऐसे होते हैं, जिन के जवाब हमारे पास नहीं होते या होते भी हैं, तो हम उन्हें स्वीकार नहीं कर पाते.

अचानक से उसे अपने सामने दूर से आता देख मेरी आंखों में अजीब सी चमक आ गई. उस के सामने गया तो वो भी मुझे देख कर हलका सा मुसकरा दी और बोली, ‘‘आप हर रविवार आते हैं यहां?’’ मैं ने जवाब देने के बदले सवाल कर दिया, ‘‘आप पिछले महीने एक बार भी नहीं आईं… क्यों?’’ वह कुछ सैकंड तक मुझे एकटक देखती रही, जैसे पूछना चाहती हो कि क्या मैं ने उस का इंतजार किया था, पर उस ने कुछ कहा नहीं, फिर खामोशी तोड़ते हुए वह बोली, ‘‘मैं शहर से बाहर गई हुई थी, इसलिए नहीं आई.’’

उस के बाद हम दोनों ने टिकट ली और मूवी देखने लगे. उस दिन के बाद से हर रविवार मैं भी जाता और वह भी आती थी. ऐसा कुछ था नहीं कि हम ने तय किया था कि हर हफ्ते आएंगे. पर होते हैं न कुछ वादे, जो हम जानेअनजाने एकदूसरे से कर देते हैं. कभी मैं जल्दी पहुंच जाता तो कभी वह. धीरेधीरे हम एकदूसरे के बारे में जानने लगे. मैं ने बताया कि मेरा घर अहमदाबाद में है और यहां नौकरी. तो उस ने बताया कि वह यहां पास में ही रहती है और एक स्कूल में टीचर है. वह अकसर अपने परिवार के बारे में बात करती थी.

उस की बातों से मैं इतना तो जान गया था कि उसे ज्यादा लोगों से मिलनाजुलना पसंद नहीं. कभीकभी मेरा मन करता कि उस से पूछूं कि वह मेरे साथ इतना खुल कर बात कैसे कर लेती है. मैं जो बहुत बोलने वाला था, उस से मिल कर उस की बातें खामोशी से सुनना सीख गया था और वह जो कम बोलती थी, मुझ से मिल कर खुल कर बोलने लगी थी. उसे मुझ से कहना पसंद था और मुझे उसे सुनना.

ऐसे ही एक दिन मूवी के बाद हम दोनों के कदम रुक गए और हम मुड़ कर एकदूसरे को देखने लगे. मुझे ऐसा लगा जैसे वह भी वही कहना चाहती है जो मैं उस से.

अब मुझ से बरदाश्त नहीं हो रहा था. मैं कहना चाहता था उस से अपने दिल की बात. मैं बताना चाहता था उसे कि मैं यहां मूवी देखने नहीं, बल्कि तुम्हें देखने आता हूं, तुम से मिलने आता हूं. मैं बताना चाहता था कि उसे देखे बिना मेरे ये 6 दिन कैसे बीतते हैं. पता नहीं क्यों, पर जब वह सामने आती तो मैं कुछ नहीं कह पाता था, बस उसे सुनता रहता था. एक बार बातों ही बातों में उस ने बताया था कि उसे चांद देखना बहुत पसंद है, लेकिन पूरा चांद आधा नहीं. अधूरा चांद, अधूरी ख्वाहिशें बहुत तकलीफ देती हैं…

इतना कहतेकहते वह रुक गई थी. तब मैं चाह कर भी कुछ कह नहीं पाया था. उस दिन पूर्णिमा थी. तब मैं ने पहली बार चांद को इतना गौर से देखा था. तब मुझे लगा कि राधिका भी उसे ही देख रही है. अगले हफ्ते जब मैं उस से मिला, तो उस ने कहा कि चलो, कहीं पास में बैठ कर बात करते हैं. मैं उसे देखता रह गया. जैसे वह जान गई थी कि मैं मूवी देखता ही नहीं था. मैं ने हां की और थोड़ी देर बाद हम एक कैफे में थे.

वह बहुत शांत थी आज, पर उस की आंखें बहुतकुछ कह रही थीं. कभीकभी कहना नहीं सिर्फ महसूस करना जरूरी होता है. मैं महसूस कर सकता था, उस के खामोश होंठों में कैद लफ्जों को. उस दिन विदा लेते समय उस ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर मेरी हथेली पर एक कागज का छोटा सा टुकड़ा रख कर कहा कि घर जा कर देखना.

मैं कुछ कहता, उस से पहले ही वह मुड़ गई अपने घर की तरफ. मैं उसे जाते देखता रहा, तब तक जब तक कि वह मेरी नजरों से ओझल नहीं हो गई. एक नन्ही सी बूंद मेरे चेहरे पर पड़ी. मैं वर्तमान में आ गया. आसमान में बादल घिर आए थे. तब से ले कर आज तक मैं हर रविवार वहां जाता हूं. नहीं, मूवी देखने नहीं, उसे महसूस करने. वह नहीं आती अब, पर अभी भी जब मैं वहां जाता हूं तो मुझे लगता है कि जैसे वह यहींकहीं है और छिप कर मुझे देख रही है.

यह प्यार भी इनसान को क्या से क्या बना देता है, इस का अहसास मुझे उस से मिल कर हुआ. खैर, मैं जानता हूं कि वह अब कभी नहीं आएगी. नहीं, उस ने ऐसा कहा नहीं था, पर जो वह दे गई थी उस शाम वह कागज का टुकड़ा, उस से जान गया हूं. वह टुकड़ा आज भी मेरे पर्स में रखा है. कुछ लिखा नहीं है उस में, पर बस बना है आधा चांद.

एक मां ऐसी : अहराज की जिंदगी में आया तूफान

हर धर्म और हर धार्मिक किताब में मां को महान बताया गया है. मां के कदमों के नीचे जन्नत बताई जाती है और वह इतना बड़ा दिल रखती है कि अपनी औलाद के लिए बड़ी से बड़ी मुसीबत का सामना करने के लिए हमेशा तैयार रहती है.

पर हमारे समाज में कभीकभार ऐसी मां के बारे में भी सुनने को मिलता रहता है, जिस ने अपनी इच्छा के लिए अपनी ही औलाद को मार दिया या मरने के लिए छोड़ दिया. यह कहानी एक ऐसी ही मां की है, जिस ने अपनी इच्छा पूरी करने के लिए खुद अपनी सगी बेटी के साथसाथ उस के मासूम बच्चों की जिंदगी भी अंधेरे से भर दी.

अहराज की शादी साल 2010 में सना नाम की एक लड़की से बिजनौर जिले के एक गांव में हुई थी. वह मुंबई में एक अच्छा कारोबारी था. उस ने अपनी मेहनत के बल पर काफी जायदाद बना रखी थी.  वक्त बहुत खुशगवार गुजर रहा था. शादी के 10 साल में उस के 4 बच्चे हो गए थे. शादी के 6 साल बाद अहराज की सास अपनी बेटी सना के पास मुंबई आ कर रहने लगी थीं.

अहराज को इस में कोई एतराज न था. उस ने सोचा कि वह खुद तो काम में बिजी रहता है, सास अगर साथ में रहेगी तो उस के बच्चों को भी नानी का प्यार मिलता रहेगा.  कुछ साल तो अहराज की सास सही रहीं, फिर उन्होंने अपनी बेटी सना को भड़काना शुरू कर दिया.

हुआ यों था कि अहराज के ससुर का एक दिन उस के पास फोन आया और उन्होंने पूछा, ‘सना की अम्मी कब तक वहां रहेंगी? मैं भी बीमार रहने लगा हूं.

मेहरबानी कर के तुम उन्हें घर भेज दो. कई महीनों से फोन करता रहा हूं, पर उधर से कोई जवाब नहीं मिलता, इसलिए मजबूर हो कर तुम्हारे पास फोन किया.’ अहराज ने अपने ससुर को दिलासा देते हुए कहा, ‘‘मैं आज ही उन से बात करता हूं.’’ रात में घर पहुंच कर जब अहराज ने सना से इस बारे में बात की, तो उस ने कोई जवाब नहीं दिया. सुबह अहराज अपने काम पर चला गया.

जब वह दोपहर को घर आया और खाना मांगा तो उस की बीवी चुप रही और सास ने भी कोई जवाब नहीं दिया.  अहराज ने सना से बात की, तो उस ने झुंझलाते हुए कहा, ‘‘पहले अपनी प्रौपर्टी मेरे नाम करो.’’ अहराज सना के मुंह से यह सुन कर हक्काबक्का रह गया. उस ने उसे समझाने की काफी कोशिश की, पर वह नहीं मानी. अहराज ने अपनी सास को यह बात बताई तो वे सिर्फ इतना ही बोलीं, ‘‘वह ठीक कह रही है.’’ अहराज सोच में पड़ गया कि क्या किया जाए. वह परेशान रहने लगा.

उस ने सना को बहुत समझाया, ‘‘हमारे छोटेछोटे मासूम बच्चे हैं. क्यों ऐसा कर रही हो?’’ पर वह टस से मस न हुई और अपनी बात पर अड़ी रही. एक दिन मौका पा कर सना ने अहराज की तिजोरी से तकरीबन  30 लाख रुपए निकाल लिए. अब उस के अंदर का शैतान जाग चुका था.

उस पर मौडलिंग करने का भूत सवार हो  गया था. अहराज को जब इस का पता चला तो उस ने अपने पैसे के बारे में पूछा, पर सना ने कोई जवाब नहीं दिया. तकरीबन एक साल तक ऐसा ही चलता रहा. सना अपनी मनमानी करती रही. वह अपने मासूम बच्चों को छोड़ कर कईकई घंटे घर से गायब रहने लगी. जब अहराज  उस से कुछ पूछता तो वह उलटा ही जवाब देती.

अहराज ने इस बात का जिक्र  अपने साले और ससुर से किया और कहा कि सना की अम्मी को घर वापस बुला लो. उन्होंने पूरी बात सुन कर सना की अम्मी पर जोर दिया तो उन्होंने पहले तो आनाकानी की, पर जब उन के बेटे ने मुंबई आने की धमकी दी, तो उन्होंने अहराज से अपना ट्रेन का टिकट खरीदने के लिए कहा. अहराज ने अगले ही दिन उन का तत्काल में टिकट खरीदा और उन्हें बांद्रा स्टेशन छोड़ने चला गया.

जब वह वापस आया तो सना ने उस से बहुत लड़ाई की. जैसेतैसे 10 दिन गुजर गए. सना की अम्मी अपने घर नहीं पहुंचीं. सब लोग परेशान थे. सना सब से यही बोल रही थी कि अहराज ने उन्हें मार दिया है, पर अहराज बेखौफ हो कर बोला, ‘‘स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं. उन में चैक करो कि मैं उन्हें ट्रेन में बैठा कर वापस आया था या नहीं.’’ इस पर सना चुप हो गई.

अगले दिन अहराज के पास किसी लड़की का फोन आया, ‘तुम्हारी अम्मी ने रूम किराए पर लिया था. तुम्हारी बीवी भी आई थी. उस का नाम सना है. हम पक्का करना चाहते हैं कि ये तुम्हारी अम्मी ही हैं और ये देर रात तक गायब क्यों रहती हैं?’

अहराज समझ गया कि ये उस की सास हैं, जिन्हें सना ने अपनी सास बता कर रूम दिलाया होगा.  अहराज ने उस लड़की से पूछा, ‘‘मेरा फोन नंबर तुम्हें कहां से मिला?’’ वह लड़की बोली, ‘आधारकार्ड की फोटोकौपी से.’ ‘‘वह रूम कहां है और आप कहां से बोल रही हैं?’’ ‘‘मैं बांद्रा से बोल रही हूं.’’ अहराज ने यह बात सना को बता दी.

इस के बाद वह अहराज से लड़ने लगी और अपने चारों बच्चों को छोड़ कर चली गई. पहले तो अहराज ने सोचा कि सना थोड़ी देर में वापस आ जाएगी, पर उस की यह भूल थी. अगले दिन वह पुलिस स्टेशन गया और सारी बात बताई. काफी दिन के बाद पुलिस की सना से फोन पर बात हो पाई.

उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया. वह आई भी.  पुलिस ने उसे बहुत समझाया, पर वह नहीं मानी और बोली, ‘‘मैं ने अपने पति अहराज पर दहेज लेने और मारपीट करने का केस दायर कर दिया है.’’ वक्त गुजरता रहा.

इस घटना को  6 महीने हो गए. अहराज बच्चों को अपने गांव ले गया और कुछ महीने वहीं रहा. बच्चे छोटे थे और उन की पढ़ाई के साथसाथ उन का बचपन भी बिखर चुका था. इस तरह एक मां ऐसी भी निकली, जिस ने अपनी बेटी की जिंदगी तो बरबाद की ही, साथ ही उसे भी अपने जैसी गैरजिम्मेदार मां बना दिया.

उम्र बढ़ने पर मर्दों को सताती हैं ये 4 सैक्स प्रौब्लम

सैक्स लाइफ का एक खूबसूरत हिस्सा है, जो आप को दिमागी और जिस्मानी तौर पर फिट रखता है. मर्द हो या औरत सब के लिए एक उम्र में सैक्स जरूरी हो जाता है. पर ज्यादातर मर्दों में देखा गया है कि एक उम्र के बाद उन्हें कई तरह की सैक्स समस्याओं को झेलना पढ़ता है, जबकि हर मर्द चाहता है कि उस की सैक्स लाइफ रोमांस से भरी हो. वजह, हार्मोनल के हिसाब से भी सैक्स की चाह बढ़ जाती है.

 

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जैसेजैसे उम्र बढ़ती है, वैसेवैसे कई तरह की टैंशन भी मर्दों को होने लगती हैं. उन पर बढ़ती उम्र के साथसाथ कई दूसरी जिम्मेदारियां भी आ जाती हैं, जिस की वजह से उन्हें कई तरह की सैक्स समस्याएं भी होने लगती हैं.

आज हम उन्हीं सैक्स समस्याओं के बारे में आप को जानकारी देंगे, जो मर्दों को बढ़ती उम्र के साथ परेशान करती हैं.

  1. इरैक्शन, लेकिन सैक्स नहीं

जब किसी किसी मर्द की उम्र 20 साल से 45 साल तक होती, है तो वह आसानी से इरैक्शन (अंग में तनाव) के बाद सैक्स कर पाता है. लेकिन जब उम्र बढ़ती जाती है तो बहुत से मर्दों को एक ऐसी समस्या झेलनी पड़ती है, जिस में उन्हें इरैक्शन तो होता है लेकिन वे उस हालत में सही से सैक्स नहीं कर पाते हैं.

ऐसे मर्दों को सैक्स करते समय थोड़ीबहुत असुविधा झेलनी पड़ती है और ऐसे में उन्हें दर्द का भी सामना करना पड़ता है. ज्यादातर मामलों में ऐसा तब होता है जब वे ज्यादा टैंशन लेते हैं. जो मर्द डिप्रैशन में रहने लगता है, उसे भी इस तरह की समस्या का सामना करना पड़ सकता है.

अगर आप की उम्र ज्यादा है और आप को ऐसी समस्या हो रही है, तो आप कोशिश करें कि आप कुछ ऐक्सरसाइज करें. पर अगर यह समस्या ज्यादा बढ़ जाती है, तो आप किसी डाक्टर से भी सलाह ले सकते हैं.

2. जल्दी डिस्चार्ज होना

बढ़ती उम्र के साथ बहुत से मर्दों को सैक्स संबंधित ऐसी समस्या होने लगती है, जिस में वे जल्दी पस्त होने लगते हैं. जब भी कोई मर्द सैक्स करता है और वह शुरुआत के 2 से 3 मिनट के अंदर ही अगर पस्त हो जाता है.

3. बारबार सैक्स करने का मन

जब मर्दों की उम्र 50 से 60 साल की हो जाती है, तो हो सकता है कि उन्हें बारबार सैक्स करने का मन करता है. ऐसा हर किसी मर्द के साथ नहीं होता, लेकिन बहुत से लोगों के साथ ऐसा हो जाता है कि वे बढ़ती उम्र के साथ सैक्स करना ज्यादा पसंद करते हैं.

अगर आप को बारबार सैक्स करने का मन करता है तो आप अपने पार्टनर से इस बारे में बातचीत कर सकते हैं और दोनों मिल कर फैसला ले सकते हैं कि आप को दिन में कब और कितनी बार सैक्स करना है.

4. प्राइवेट पार्ट में जलन

बढ़ती उम्र के साथ मर्दों में एक समस्या यह भी हो जाती है कि जब वे सैक्स संबंध बनाते हैं तो उस के बाद उन के अंग में जलन होने लग जाती है. ऐसा हर किसी के साथ तो नहीं होता है, लेकिन बहुत से लोगों को ऐसी परेशानी का सामना करना पड़ता है. ज्यादातर मामलों में ऐसा तब होता है, जब सैक्स करते हुए लुब्रिकेशन की कमी पड़ जाती है. इस के लिए बाजार में आप को कई तरह के लुब्रिकेंट भी मिल जाएंगे.

युवाओं में बढ़ता बौडी और फिटनैस का क्रेज

आज युवाओं पर सिक्स पैक ऐब्स का जनून इस कदर छाया है कि वे अपनी बौडी को आकर्षक बनाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं. वे अपने बौडी लुक और फिटनैस को ले कर कुछ ज्यादा ही क्रेजी हो गए हैं, लेकिन वे यह नहीं समझते कि सिक्स पैक बनाना इतना आसान नहीं है. इस के लिए संतुलित डाइट के साथसाथ ट्रेनर की देखरेख में ऐक्सरसाइज करने की जरूरत भी होती है.

अगर आप फिट हैं तो हर खुशी हासिल कर सकते हैं और फिटनैस आप को मिलेगी संतुलित डाइट और नियमित व्यायाम से.

बौडी बनाने का अर्थ है मांसपेशियों को कसना, जिस से कि आप सुडौल दिखें. इस काम में खासी मशक्कत करनी पड़ती है. ऐब्स बनाने के लिए कार्बोहाइड्रेट तथा फैट की मात्रा को घटा कर प्रोटीन की मात्रा बढ़ाई जाती है, ताकि मांसपेशियां सख्त हो सकें.

चाहिए सिक्स पैक तो देना होगा समय

यदि आप चाहते हैं कि आप की बौडी सुडौल व आकर्षक बने, तो इस के लिए आप को समय निकालना होगा. ‘बौडी फिटनैस सैंटर’ के ट्रेनर पवन मान के मुताबिक, ‘‘युवाओं को सिक्स पैक बनाने से पहले इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि उन की बौडी पर फैट कितना चढ़ा है. यदि शरीर अधिक फैटी है तो पहले उसे घटाने के लिए कुछ खास तरह की ऐक्सरसाइज करनी होती है. साथ ही डाइट पर भी ध्यान देना होता है.’’

यदि आप फैटी हैं तो जिम जाने से पहले नियमित व्यायाम बहुत जरूरी है. नियमित व्यायाम में स्विमिंग, साइकिलिंग, जौगिंग आदि जरूरी हैं. इन के अलावा मौर्निंगवाक भी बहुत जरूरी है.

वैसे सिक्स पैक ऐब्स बनाने के लिए जिम ट्रेनर कई प्रकार के डाइट सप्लिमैंट्स देते हैं, जिन में सिंथैटिक पोषक तत्त्व मौजूद होते हैं. ये तत्त्व शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं. आमतौर पर लिए जाने वाले सप्लिमैंट्स में क्रिएटिन, प्रोटीन, स्टीरायड आदि हारमोन होते हैं. इस बारे में वरिष्ठ चिकित्सक डा. उमेश सरोहा कहते हैं, ‘‘ये पोषक तत्त्व शरीर को सुडौल बनाने के बजाय नुकसान ज्यादा पहुंचाते हैं. सुडौल बौडी पाने के लिए नियमित व्यायाम और संतुलित डाइट ज्यादा लाभदायक है.’’

कुछ लोग फैट कम करने के लिए अपने भोजन से फैट वाली चीजें बिलकुल हटा देते हैं, जिस से शरीर को लाभ पहुंचने के बजाय नुकसान ज्यादा पहुंचता है. फैट की अधिक कमी से शरीर के अन्य महत्त्वपूर्ण अंगों पर बुरा असर पड़ता है. इसलिए फैट की प्रचुर मात्रा शरीर के लिए बहुत जरूरी है.

फिटनैस के लिए जरूरी डाइट

– सिक्स पैक बौडी के लिए फाइबरयुक्त भोजन लेना बहुत आवश्यक है, क्योंकि इस से शरीर का विकास होता है. प्रोटीन की मात्रा बनाए रखने के लिए मौसमी फलों का सेवन बहुत लाभदायक है.

– सुबह का नाश्ता अति आवश्यक है. नाश्ता हैवी व लंच हलका लें. डिनर तो नाश्ते व लंच से भी हलका लें. इस तरह का चार्ट बना लें. यह आप की सेहत के लिए जरूरी है.

– दिन भर में कम से कम 10 गिलास पानी पीएं. पानी हमारे शरीर को स्वस्थ रखता है, क्योंकि अधिक ऐक्सरसाइज करने से शरीर में डिहाइडे्रशन की आशंका बनी रहती है, इसलिए इस से बचने के लिए व्यक्ति को अपने वजन के हिसाब से पानी पीना चाहिए.

– ढेर सारा भोजन एकसाथ न लें. हिस्सों में बांट कर दिन में कई बार भोजन करें. इस से पाचन तंत्र मजबूत बना रहता है. साथ ही ऐक्सरसाइज करने के लिए और अधिक ताकत मिलती है.

– हरी सब्जियों का सेवन ज्यादा करें. ये शरीर को ऊर्जा देने के साथसाथ आप को तरोताजा रखती हैं. प्रोटीन डाइट में अंडा, पनीर, दूध, दही, मछली आदि लें.

– अलकोहल का सेवन बिलकुल न करें. यह आप के शरीर को बेकार करता है.

– भोजन नियमित मात्रा में ही लें. संतुलित आहार शरीर को रोगमुक्त रखता है. एक सीमा में रह कर ही जिम में वर्कआउट करें. ऐसी किसी दवा का सेवन न करें, जो शरीर को नुकसान पहुंचा

कुछ समय पहले मेरे पेशाब के साथसाथ धातु गिरती थी, इस बात से मैं बहुत तनाव में हूं. सलाह दें?

सवाल-

मेरी उम्र 25 साल है. कुछ समय पहले मेरे अंग से पेशाब के साथसाथ धातु गिरती थी. इस सिलसिले में एक झोलाछाप डाक्टर ने मुझ से कहा था कि तुम गुप्त रोग से पीडि़त हो. इस से तुम्हारी शादी पर बुरा असर पड़ेगा. इस बात से मैं बहुत तनाव में हूं. सलाह दें?

जवाब-

धातु एक ऐसा लक्षण है जो आमतौर पर भारतीय उपमहाद्वीप की संस्कृतियों में पाया जाता है. इस में मरीजों को समय से पहले पस्त होना या नामर्दी की शिकायत होती है और उन्हें लगता है कि उन के पेशाब के साथ वीर्य भी निकलता है.

इस का इलाज दवाओं से किया जाता है और साथ ही, गलत धारणाओं को दूर करने में मनोवैज्ञानिक सलाह भी कारगर साबित होती है.

सती: अवनि की जिंदगी में क्या हुआ पति की मौत के बाद

अवनी ने मनीष को दवा खिलाई और बाहर आ कर ड्राइंगरूम में टीवी देखने लगी. तभी अंदर से मनीष
के चिल्लाने की आवाज आई. अवनी भगाती हुई अंदर गई तो देखा मनीष गुस्से से भरा बैठा था.

अवनी को देखते ही बोला,”तुम मेरी नर्स हो या पत्नी? 2 मिनट भी साथ नहीं बैठ सकतीं? तुम्हें नाम, पैसा, 2 बेटे, कोठी क्या कुछ नहीं दिया और मेरे बीमार पड़ते ही तुम ने नजरें फेर लीं?”

अवनी इस से पहले कुछ बोलती, उस के दोनों बेटे रचित, सार्थक और सासससुर भी आ गए थे.

रचित गुस्से में बोला,”मम्मी, शर्म आनी चाहिए आप को। एक दिन टीवी नहीं देखोगी तो कोई तूफान नहीं आ जाएगा।”

सास गुस्से में बोलीं,”पत्नी अपने पति के लिए क्या क्या नहीं करती। मेरे बेटे को कैंसर क्या हुआ अवनी कि तुम ने अपनी नजरें ही फेर लीं…”

अवनी कमरे में एक तरफ अपराधी की तरह बैठी रही, वह अपराध जो उस ने किया ही नहीं था. मनीष के सिर पर अवनी ने जैसे ही हाथ फेरा मनीष ने झटक कर हाथ हटा दिया। अवनी की आंखों मे आंसू आ गए. उसे पता था मनीष कैंसर के कारण चिड़चिड़ा हो गया है पर वह क्या करे? वह पूरी कोशिश करती है पर आखिर है तो इंसान ही. पिछले 3 सालों से मनीष के कैंसर का इलाज चल रहा था. अवनी शुरुआत में रातदिन मनीष के साथ साए की तरह बनी रहती थी. पर धीरेधीरे वह तनमन से थक गई थी.

पर परिवार के सब लोग मनीष का भार अवनी पर डाल कर निश्चिंत हो गए थे. मनीष की बीमारी मानों
अवनी के लिए एक कैदखाना हो गई थी. अवनी के उठनेबैठने, कपड़े पहनने तक पर सब की निगाहें रहती थीं. अवनी अगर थोड़ा सा तैयार हो जाती तो मनीष की नजरों में सवाल तैरने लगते थे. अवनी का बहुत मन होता मनीष को बताने का कि उसे दुख है पर वह जीना नहीं छोड़ सकती.

पिछले 3 सालों से अवनी ने घर से बाहर कदम नहीं रखा था. किसी की शादी या कोई समारोह होता तो अवनी के सासससुर दोनों बेटों के साथ चले जाते थे. अवनी को ऐसा महसूस होने लगा था कि वह मनीष
के जिंदा होते हुए भी सती हो गई है. सती तो शायद पति की चिता के साथ एक बार ही जली थी पर अवनी तो पिछले 3 सालों से तिलतिल कर जल रही थी.

कल रात बहुत देर से अवनी की आंख लगी और मनीष के चिल्लाने की आवाज से एक झटके से खुल गई.
मनीष गुस्से में बड़बड़ा रहा था,”अगर मेरे पास पैसा न होता तो तुम तो मुझे सड़क पर बैठा देतीं।”

अवनी बिना कुछ बोले चुपचाप चाय बनाने चली गई. उस को देखते ही सास बोलीं,”आज तो तुम ने हद
कर दी है, कब मनीष कुछ खाएगा और कब वह दवा लेगा? तुम्हें पता है न कीमोथेरैपी के लिए डाइट का अच्छा होना जरूरी है…”

मनीष को चाय और बादाम दे कर अवनी नहाने चली गई. जब नहा कर बाहर निकली तो देखा कमरे में से
किसी के जोरजोर से हंसने की आवाज आ रही थी. अवनी ने गीले बालों को तौलिए से लपेट रखा था।कुछ गीले बाल छितर कर इधरउधर बिखरे हुए थे और इंडिगो ब्लू रंग का सूट उस पर खूब खिल रहा था.

जैसे ही वह बाहर आई, वह युवक बोला,”अरे भाभीजी को तो देख कर लगता ही नहीं इन के 18 और 20 साल के बेटे भी होंगे।”

मनीष कड़वा सा मुंह बनाते हुए बोला,”हां कुदरत ने सारा बुढ़ापा तेरे भैया के ही नसीब में लिख दिया है,”
और फिर वह फफकफफक कर रोने लगा. अवनी अपराधी की तरह खड़ी रह गई.

अवनी सब समझती थी। कीमोथेरैपी के कारण मनीष के बाल झड़ गए थे। चेहरे पर काले धब्बे पड़ गए थे और आंखे अंदर धंस गई थीं. पर अवनी को समझ नहीं आता था कि वह कैसे मनीष का मनोबल बढ़ाए.

तभी वह युवक बोला,”अरे अवनीजी, आप ने मुझे पहचाना नहीं, मैं मनीष की बुआ का बेटा हूं और रिश्ते में
आप का देवर हूं। मेरा नाम कुणाल है।”

अवनी बोली,”अरे आप बैठो, मैं चायनाश्ते का इंतजाम करती हूं।”

अवनी ने फटाफट कुक की मदद से पनीर के परांठे, ढोकला, सूजी का हलवा और लालमिर्च की चटनी बना
ली थी. जैसे ही वह बाहर निकली तो मनीष को डाइनिंग टेबल पर बैठा देख कर खुश हो गई.

कुणाल बोला,”जल्दीजल्दी नाश्ता लगाएं, बड़ी कस कर भूख लगी है।”

आज शायद लगभग 1 साल के बाद मनीष ने डाइनिंग टेबल पर बैठ कर सब के साथ खाया होगा. कुणाल पूरे समय चुटकले सुनाता रहा और अवनी के नाश्ते की तारीफ करता रहा. न जाने क्यों अवनी को लग रहा था कि कुणाल के आने से पूरे घर में खुशियों की लहर आ गई है. नाश्ते के बाद सब लोग अपनेअपने काम में लग गए और कुणाल ड्राइंगरूम में बैठ कर टीवी पर कोई प्रोग्राम देखने लगा. अवनी भी वहीं बैठ कर सब्जी काटने लगी और सब्जी काटतेकाटते कुणाल से बोली,”और आप के घर में सब कैसे हैं?”

कुणाल हंसते हुए बोला,”मैं ही घर हूं।
और कोई नहीं है मेरे घर में। मैं अच्छा हूं तो घर भी अच्छा है।”

अवनी बोली,”आप ने अब तक शादी नहीं करी क्या?”

कुणाल बोला,”करी थी मगर सोनल शादी के 4 साल बाद मुझ से अलग हो गई थी।”

अवनी ने धीमे से कहा,”सौरी…”

कुणाल हंसते हुए बोला,”अरे इस में सौरी की क्या बात है। अगर कोई मेरी टाइप की मिलेगी तो शादी कर लूंगा।”

कुणाल बिजनैस के सिलसिले में यहां आया हुआ था. वह अगले दिन से रोज सुबह काम पर निकल जाता
और शाम को आ जाता था. उस के आते ही अवनी के चेहरे पर रौनक आ जाती थी. कुणाल अवनी से सुखदुख की बात कर लेती थी.

धीरेधीरे कुणाल और अवनी के बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी. कुणाल लगभग 2 महीने रहा और इन 2 महीनों में वह हर वीकैंड पर आउटिंग का प्लान करता था. जब पहली बार कुणाल ने मूवी का प्लान बनाया तो रचित और सार्थक का हमेशा की तरह अपने प्रोग्राम बने हुए थे.

सासससुर जब तैयार हो गए तो कुणाल बोला,”मनीष भैया और अवनी भाभी नही चलेंगे?”

अवनी की सास बोलीं,”अरे मनीष कहीं आताजाता नहीं है। वह तो तेरे कहने पर हम भी बरसों बाद मूवी
देखने जा रहे हैं।”

कुणाल ने जबरदस्ती मनीष को यह कहते हुए तैयार कर लिया कि अगर मन नहीं लगा तो वह खुद बीच में ही मनीष के साथ घर आ जाएगा.

जब इंटरवल में कुणाल और अवनी पौपकौर्न लेने गए तो कुणाल बोला,”ऐसे ही खुश रहा करो, अच्छी लगती हो। भैया बीमार हैं पर आप क्यों उन के साथ समय से पहले ही सती हो रही हो?”

कुणाल जातेजाते अवनी को हिम्मत और साहस दे गया था. अब अवनी महीने में 1 बार जरूर बाहर अपने दोस्तों से मिलने या मूवी देखने चली जाती थी. मनीष की चिड़चिड़ाहट, बच्चों की शिकायतें या
सासससुर की नसीहतों को अब अवनी अनदेखा कर देती थी. जब भी अवनी को अकेलापन लगता या हौसला टूटने लगता तो वह कुणाल से फोन पर बात कर लेती थी. मनीष के अंतिम दिनों में कुणाल भी वहीं आ गया था. कुणाल के आने से अवनी को हर तरह से सहारा मिल गया था.

जब मनीष की मृत्यु हो गई तो कुणाल ही था जो पूरे परिवार के लिए रातदिन खड़ा रहा था. वह पूरे 1 माह रुका और जाने से पहले कुणाल ने अवनी को कहा,”जब कभी भी मेरी जरूरत महसूस हो बस एक कौल कर देना…”

अब अवनी ने फिर से अपनी जिंदगी नई सिरे से शुरू करनी चाही पर उस का अपना परिवार उसे यह करने
से रोक रहा था. जब अवनी ने अपने ससुर से बिजनैस जौइन करने की बात करी तो ससुर बोले,”यह उम्र तुम्हारे बेटों की बिजनैस सीखने की है। तुम घर पर रह कर योगसाधना में अपना ध्यान लगाओ। पूजापाठ करो ताकि अगले जन्म में वैधव्य का दुख न भोगना पड़े।”

अवनी उन की अंधविश्वास भरी बातें सुन कर हैरान रह जाती। अगर वह थोड़ा ढंग से तैयार हो जाती तो सास की तीखी नजरें उसे चुभती रहती थीं. अवनी कभीकभी दुखी हो कर सोचती कि इस से अच्छा तो पहला जमाना था जब पति के साथ ही पत्नी सती हो जाती थी। कम से कम रोज तिलतिल कर मरना तो नहीं पड़ता था.

मनीष की मृत्यु को पूरे 1 साल हो गए थे. आज मनीष की बरसी थी और कुणाल भी आया हुआ था. अवनी
को देखते ही बोला,”यह तुम ने अपना क्या हाल बना लिया है? भैया की मृत्यु हुई है तुम्हारी नहीं।”

अवनी फफकफफक कर रो पड़ी और बोली,”काश, मैं ही मर जाती, कुणाल। मेरे कपड़े पहनने, हंसनेबोलने सब पर पाबंदी है। मेरे खुद के बेटे मुझे खुश देखते ही शक करने लगते हैं। मुझे बाहर काम करने की इजाजत नहीं है। घर पर कोई काम है नहीं, बच्चे बड़े हो गए हैं। बताओ मैं क्या करूं?

“इस पूजापाठ, व्रत में मेरी श्रद्धा नहीं है। मुझे एक सामान्य औरत की तरह जीने का मन है। मुझे देवी नहीं बनना है…”

कुणाल ने एकाएक कहा,”अवनी, मुझ से शादी करोगी?”

अवनी एकदम से हक्कीबक्की रह गई और बोली,”क्या कह रहे हो तुम? मेरे 2-2 जवान बेटे हैं…”

कुणाल बोला,”हां 2-2 बेटे हैं जिन्हें कभी भी तुम्हारी जरूरत नहीं थी।सोच कर बताना, अगर जवाब न भी होगा तो भी तुम्हारा दोस्त बन कर हमेशा खड़ा रहूंगा।”

कुणाल के जाने के बाद अवनी बहुत दिनों तक सोचविचार करती रही मगर उस के अंदर डर उसे भयभीत करता रहता।

कुछ दिनों बाद मनीष के परिवार में ही शादी थी. सब लोग अच्छे से तैयार हुए मगर अवनी जैसे ही तैयार हो
कर बाहर आई तो सास बोलीं,”यह नारंगी रंग की साड़ी के बजाए कोई लाइट कलर पहन लो। लोग क्या सोचेंगे कि तुम्हें जरा भी मनीष के जाने का दुख नहीं है।”

जैसे ही अवनी जाने लगी तो बड़े बेटे रचित की आवाज आई,”मम्मी, यह लिपस्टिक भी हलकी कर लीजिए।लोग आप को ऐसे देखें तो अच्छा नहीं लगता।”

अवनी अंदर जा कर फूटफूट कर रोई और जब बाहर निकली तो वह एक सफेद साड़ी में लिपटी थी।

ससुरजी गुस्से में बोले,”यह जानबूझ कर नाटक क्यों कर रही हो अवनी, ताकि सब को लगे हम एक विधवा पर जुल्म कर रहे हैं…”

आखिरकार अवनी उस शादी में गई ही नहीं मगर उस रात बहुत देर तक वह कुणाल से बात करती रही।
अगले दिन सब के सामने अवनी ने कुणाल से विवाह करने का फैसला सुना दिया। दोनों बेटे सकते में
आ गए थे.

सास रोते हुए बोलीं,”तेरा चक्कर तो कुणाल से शायद बहुत पहले से ही चल रहा था, अवनी. तभी तो तुम मेरे
बीमार बेटे की देखभाल नहीं करती थीं।”

ससुरजी बोले,”बेवकूफ औरत, यह तुम्हारे बेटों की शादी की उम्र है नाकि तुम्हारी. जरा अपनी उम्र का लिहाज तो करो. 2 साल भी तुम से मर्द के बिना नहीं रहा जा रहा है?”

सार्थक गुस्से में बोला,”अगर आप ने कुणाल से शादी करी तो आप हम से रिश्ता तोड़ लेना।”

अवनी के मातापिता भी उस के फैसले से खुश नहीं थे. अवनी की भाभी बोलीं,”दीदी, सार्थक और
रचित के बारे में तो सोचो। कुछ वर्षों बाद आप के पोतेपोती खिलाने की उम्र हो जाएगी और आप डोली में बैठने की तैयारी कर रही हो… अगर आप अकेली होतीं तो ठीक था पर आप के तो 2 जवान बेटे हैं, आप को क्यों किसी सहारे की आवश्यकता है?”

अवनी को समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे किसी को समझाए. जिंदगी का मतलब बस रोटी, कपड़ा और
मकान ही तो नहीं है. सब के विरोध के बावजूद भी अवनी और कुणाल ने कोर्ट में विवाह कर लिया था.

जब सब पुराने रिश्तों से रीति हो कर अवनी कुणाल का हाथ थाम कर उस के घर मे आई तो उस की आंखें
गीली थीं. अवनी कुणाल से बोली,”कुणाल, मुझे मेरे बेटों ने अपनी जिंदगी से बेदखल कर दिया है।”

कुणाल हंसते हुए बोला,”अवनी, देरसवेर रचित और सार्थक तुम्हारा पहलू समझ जाएंगे. सती प्रथा को समाप्त करने के लिए किसी को तो पहल करनी होती है न…”

अवनी के मन में ये पंक्तियां बारबार उमड़ रही थीं,”न बनना चाहती हूं मैं देवी और न ही बनना चाहती हूं सती, मैं हूं एक सामान्य नारी जो हर उम्र में चाहती है जीवन में भावनाओं की गति.

अकेला छोड़ दो मुझे: क्या सुरेखा को मिल पाया नीरज का प्यार

आजसुरेखा बहुत उदास थी. होती भी क्यों नहीं, जिसे इतना चाहा उसी ने धोखा दे दिया था. सुरेखा ने अपने कमरे का दरवाजा बंद किया और बिस्तर पर औंधे मुंह लेट गई. बारबार उस के कानों में नीरज की बातें गूंज रही थीं. कितनी आसानी से कह दिया था नीरज ने कि वह निहारिका से प्यार करने लगा है.

सुरेखा ने तड़प कर पूछा था, ‘‘यही बात तुम कुछ दिन पहले तक मुझ से कहा करते थे न नीरज. अब क्या हो गया? मुझ से मन भर गया?’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं सुरेखा. पसंद मुझे तुम भी हो, मगर यदि मेरे पास 2 औप्शन हों, एक निहारिका और दूसरी तुम तो जाहिर है कि मैं निहारिका को ही चुनूंगा. यह बात तुम भी समझ सकती हो. निहारिका एक अविवाहित और स्मार्ट लड़की है जबकि तुम विधवा हो. फिर मैं उसे पसंद क्यों न करूं? हकीकत को समझो प्लीज. सच स्वीकार करो सुरेखा. अगर मैं तुम्हें प्यार करता हूं तो इस का एहसान मानो,’’ नीरज ने बेशर्मी के साथ कहा.

‘‘ठीक है नीरज आज से इस एहसान को अपने पास रखना प्लीज. मेरी तरफ देखना भी मत. कोई फोन मत करना. आज से मेरा और तुम्हारा कोई नात नहीं है. गुडबाय,’’ कह कर सुरेखा चली आई.

उस के मन में तूफान उठ रहा था. अगर वह विधवा है, उस के पति निलय की आकस्मिक मौत हो गई, तो इस में उस की क्या गलती? क्या अब उसे किसी पुरुष का सच्चा प्यार हासिल नहीं हो सकता? क्या कोई उस का हमसफर नहीं बन सकता? अपनी जिंदगी में एक पुरुष की कमी वह बहुत शिद्दत से महसूस करती थी. बच्चों के भरोसे जिंदगी कैसे जी सकती है? आखिर उन की शादी होगी और वे अपनीअपनी दुनिया में व्यस्त हो जाएंगे. फिर कौन देखेगा उसे? एक टीस उस के मन को हमेशा सालती रहती थी.

निलय से सुरेखा की शादी करीब 15 साल पहले हुई थी. निलय एक प्राइवेट  कंपनी में काम करता था और सुरेखा से बहुत प्यार करता था. सुरेखा की जिंदगी बहुत खुशहाल थी. 2 प्यारेप्यारे बच्चे भी हुए. बेटा सुजय जो अब 14 साल का था और बेटी शिवानी जो 12 साल की हो गई थी. शादी के 10 साल बाद ही अचानक निलय की मौत हो गई. उस वक्त बच्चे छोटे थे.

निलय की मौत के बाद करीब एकडेढ़ साल सुरेखा को खुद को संभालने में लगे. वह ज्यादातर वक्त निलय की यादों में खोई रहती थी. बाकी समय बच्चों को संभालने में गुजर जाता. फिर धीरेधीरे बच्चे अपनी दुनिया में व्यस्त होने लगे तब उसे कसक सी महसूस होने लगी. उसे लगता जैसे उसे दोबारा शादी कर लेनी चाहिए. जिंदगी में एक पुरुष की जरूरत बहुत ज्यादा महसूस होने लगी थी.

उसी दौरान शुभंकर नाम का टीचर उस के बच्चों को पढ़ाने के लिए आने लगा. शुभंकर काफी खुशमिजाज इंसान था. जानेअनजाने सुरेखा की आंखें उस से टकराने लगीं. आंखोंआंखों में कहानी आगे बढ़ने लगी. सुरेखा शुभंकर के लिए चायनाश्ता ले कर जाती और फिर वहीं पास में बैठ कर बच्चों की पढ़ाई देखने के बहाने शुभंकर को देखती रहती. धीरेधीरे दोनों के बीच हंसीमजाक भी होने लगा. अब सुरेखा को जिंदगी में खुशियों की एक नई वजह मिल गई थी. अभीअभी सुरेखा ने सपने देखने शुरू ही किए थे कि बच्चे विलेन बन कर सामने आ गए.

‘‘मम्मा हमें शुभंकर सर से अब नहीं पढ़ना,’’ दोनों बच्चों ने एक सुर में कहा.

‘‘ऐसा क्यों?’’ सुरेखा ने चौक कर पूछा.

‘‘क्योंकि वे पढ़ाते कम और आप से बातें ज्यादा करते हैं.’’

‘‘अरे बेटा यह उन के पढ़ाने का तरीका है. तुम लोगों को काम देने के बाद मुझ से बात करते हैं न फिर इस में समस्या क्या है,’’ सुरेखा ने पूछा.

‘‘मम्मा वे टीचर हैं तो पढ़ाना ही उन का काम है, न कि गप्पें मारना और फिर हमें वहे अच्छे भी नहीं लगते.’’

‘‘पर मुझे तो अच्छे लगते हैं. अच्छा एक बात बताओ, अगर शुभंकर सर तुम्हारे पापा बन जाए तो क्या वे तुम्हें अच्छे लगने लगेंगे?’’ सुरेखा ने घुमा कर बड़ी सावधानी से अपने मन की बात कही और बच्चों का दिल टटोलना चाहा.

वे एकदम से भड़क उठे,’’ कभी नहीं मम्मी. सोचना भी मत. हमें शुभंकर सर जैसा पापा तो बिलकुल भी नहीं चाहिए. कभी नहीं.’’

‘‘पर ऐसा क्यों? क्या कमी है उन में? इतने खुशमिजाज हैं, हमेशा हंसाते रहते हैं, तुम लोगों को पढ़ा भी दिया करेंगे. पैसे भी नहीं देने पड़ेंगे,’’ सुरेखा ने समझाना चाहा.

‘‘क्या मम्मा आप हमें बच्चे समझते हो? अब हम नासमझ नहीं हैं. सब समझ में आता है मम्मा. आप हमें बहलाने की कोशिश न करो. हमें शुभंकर सर बिलकुल भी पसंद नहीं हैं. आप उन के प्यार में हो तो आप को कोई कमी नहीं लग रही. पर मुझ से पूछो, न उठनेबैठने का ढंग, न कपड़े पहनने का तरीका, अजीब से लटकेझटके से आ जाते हैं और आप को अच्छे लगते हैं. दोस्तों के बीच हमारी नाक कट जाएगी मम्मी. लोग हमारा कितना मजाक उड़ाएंगे कि टीचर ही पापा बन गया. नहीं मम्मी तुम सोचना भी मत. कभी नहीं वरना हम बात नहीं करेंगे आप से. आप को पता नहीं स्कूल में बच्चे झक्की सर कह कर उन का मजाक उड़ाते हैं,’’ सुजय ने आवेश में कहा.

बेटे की बात सुन कर सुरेखा कुछ कह न सकी. उसे सच में पता नहीं था कि उस के बच्चे इतने बड़े हो गए हैं. इस घटना के बाद उस ने शुभंकर के बारे में सोचना छोड़ दिया.

शुभंकर के अलावा सुरेखा की जिंदगी में रवीश भी आया था. रवीश निलय का कुलीग था और अकसर सुरेखा का हालचाल पूछने के बहाने मिलने चला आता था. शुरूशुरू में वह अकसर ग्रैच्युटी और पीएफ आदि के डौक्यूमैंट्स के सिलसिले में उस से मिलने आता था. धीरेधीरे रवीश सुरेखा को अच्छा लगने लगा.

रवीश भले ही शादीशुदा था, मगर कहते हैं न कि जब किसी पर दिल आ जाता है तो फिर इंसान कोई भी परवाह नहीं करता. यही हाल सुरेखा का भी था. उस का साथ पा कर सुरेखा खुद को सुरक्षित और खुश महसूस करती थी. इसलिए वह भी अब रवीश को बहानेबहाने से बुलाने लगी थी. कभी शौपिंग करने के लिए तो कभी किसी और काम के लिए वह रवीश को ही याद करती. सास भी कुछ कहती नहीं थी क्योंकि सुरेखा का दुख बहुत ज्यादा था और रवीश की संगत से यह दुख कुछ कम होने लगा था. उस वक्त बच्चे भी छोटे थे. धीरेधीरे दोनों के बीच का आकर्षण बढ़ने लगा. अब वे काम के अलावा भी सिर्फ मिलने के लिए बाहर जाने लगे. अकसर छिपछिप कर भी मिलने लगे.

एक समय ऐसा भी आया जब रवीश अपनी बीवी को तलाक दे कर सुरेखा से शादी करने को तैयार था. सुरेखा ने दबी जबान से सास को इन्फौर्म किया कि वह रवीश से शादी कर उसे अपना हमसफर बनाना चाहती है.

सास एकदम से बिगड़ गईं और बोली, ‘‘नहीं बहू उस की जाति अलग है. कहां वह बढ़ई और कहां हम राजपूत. यह बात सोचना भी मत कि कभी मैं तेरी शादी उस से करवाने की सोच सकती हूं. अपनी जाति में तुम्हें कोई अच्छा लड़का मिलता है तो भले ही सोचा जा सकता है और फिर वह विवाहित भी है. इसलिए उस की तरफ से अपने मन को बिलकुल हटा लो.’’

सुरेखा ने उस समय भी सास की बात मान कर रवीश से किनारा कर लिया था.

इस बीच सुरेखा के घर के सामने वाले फ्लैट में एक नया परिवार आया था. बूढ़े मांबाप  के अलावा घर में एक प्रौढ़ और 12 साल की एक लड़की थी. सुरेखा का समझते देर नहीं लगी कि वह प्रौढ़ अपनी बेटी और मांबाप के साथ रहने आया है. दोनों के ही मकान फर्स्ट फ्लोर पर थे. घर की सफाई आदि करते बरबस ही उस की नजरें सामने के घर की तरफ उठ जाती थीं. प्रौढ़ व्यक्ति कभी किचन में खाना बना रहा होता तो कभी फोन पर बातें करता हुआ बालकनी तक आ जाता.

एक दिन मौका मिलने पर सुरेखा ने उस से बात शुरू की. उस ने बताया कि वह विधुर है. पत्नी की एक हादसे में मौत हो गई थी. उस ने अपना नाम प्रताप चंद्र बताया. अब सुरेखा अकसर ही उस से बातें करने लगी थी. कई बार जब वह घर में कुछ नया बनाती तो प्रताप के घर दे आती. प्रताप भी कोई न कोई रैसिपी सीखने के बहाने उस के घर आने लगा. अकसर वे बालकनी में खड़े हो कर भी एकदूसरे से दुनियाजहान की बातें करते. प्रताप काफी इंटैलिजैंट था. वह पेशे से इंजीनियर था, मगर उस का सामान्य ज्ञान भी कमाल का था.

कितनी ही रोचक बातें सुना कर वह सुरेखा का मन लगाए रखता था. प्रताप की बेटी अकसर उस के घर खेलने आने लगी. दोनों परिवारों के बीच मेलजोल बढ़ा तो वे साथ में घूमने जाने लगे. प्रताप और सुरेखा भी एकदूसरे के करीब आने लगे थे.

तब एक दिन सुरेखा ने अपने मन  की बात सास को बताई, ‘‘मां कैसा हो यदि मैं प्रताप से शादी कर लूं्?’’

‘‘बेटा मैं भी यह बात काफी समय से सोच रही हूं, मगर एक ही शंका है मन में…’’

‘‘वह क्या मांजी?’’

‘‘देख बेटा शादीब्याह के मामले में कुंडलियां देखनी जरूरी होती हैं खासकर तब जबकि उस की बीवी की हादसे में मौत हुई. मैं एक बार उस की कुंडली देख कर दिल की तसल्ली करना चाहती हूं,’’ सास ने कहा.

‘‘ठीक है मांजी.’’

अगले ही दिन वह प्रताप की कुंडली ले आई. सास ने अपने पंडित को  कुंडली दिखाई और फिर रिश्ते के लिए साफ मना करती हुई बोली, ‘‘बहू, पंडितजी बता रहे थे कि प्रताप की कुंडली में बहुत गहरा दोष है. उसे पत्नी सुख नहीं लिखा है. बेटा मैं नहीं चाहती कि उस से शादी कर उस की पत्नी की ही तरह कहीं तू भी… नहींनहीं बहू फिर इन बच्चों का क्या होगा?’’

‘‘पर मां आज के समय में ये सब बातें कौन मानता है?’’

‘‘मैं मानती हूं. तू इस शादी की सोचना भी मत,’’ सास ने एक बार फिर अपना फैसला सुना दिया.

सास के दबाव डालने पर सुरेखा ने प्रताप से शादी का विचार त्याग दिया. प्रताप को सुरेखा के इस फैसले से बहुत धक्का लगा. उस ने मेलजोल काफी कम कर दिया और 2 माह के अंदर ही किसी और से शादी भी कर ली. वह चैन से अपनी जिंदगी गुजारने लगा और इधर सुरेखा एक बार फिर अकेली रह गई. इस बात को कई साल हो गए. सुरेखा के दिल में एक पुरुष के साथ की जो चाह थी वह दम तोड़ चुकी थी. रहीसही कसर आज नीरज ने पूरी कर दी थी.

नीरज उस की फ्रैंड का कजिन था. फ्रैंड ने ही उसे नीरज से मिलवाया था. नीरज की पत्नी, शादी के 5-6 महीने बाद ही किसी और के साथ भाग गई थी और वह अकेला रह गया था. उसे भी पार्टनर की तलाश थी, इसलिए सुरेखा के साथ उस की ट्यूनिंग अच्छी बैठने लगी थी. वह नीरज के साथ 1-2 बार फिल्म देखने भी जा चुकी थी. दोनों घंटों प्यार की बातें करते.

इस बार सुरेखा ने तय किया था कि वह सीधा शादी कर के घर वालों को बताएगी. पर इस की नौबत ही नहीं आ सकी. इस से पहले ही दोनों के बीच में निहारिका नाम की एक स्टाइलिश सी लड़की ने ऐंट्री मारी और नीरज को चुरा लिया.

नीरज ने साफसाफ शब्दों में कह दिया था कि वह निहारिका को चुनेगा उसे नहीं क्योंकि वह एक विधवा है जबकि निहारिका खूबसूरत अविवाहित लड़की है.

अचानक सुरेखा फूटफूट कर रोने लगी. बहुत देर तक रोती रही. उसे  महसूस हो रहा था जैसे अकेला रहना ही उस की नियति बन चुकी है. बच्चों और सास के समझानेबुझाने से वह थोड़ी शांत हुई और नौर्मल होने की कोशिश करने लगी. मगर उस के चेहरे की हंसी पूरी तरह गायब हो गई थी. एक उदासी उस के चेहरे पर हमेशा पसरी रहती. वह डिप्रैशन का शिकार हो चुकी थी. अकसर कमरा बंद कर खामोश बैठी रहती.

बच्चे मां की इस हालत के लिए खुद को जिम्मेदार मान रहे थे. सास भी यह बात समझ रही थी कि यदि समय रहते सही फैसला ले लिया होता और उसे पुनर्विवाह कर लेने दिया होता तो आज उस की यह हालत नहीं होती. मगर अब वे केवल पछता सकते थे क्योंकि सुरेखा ने अपनी हंसी और खुशियों से हमेशा के लिए दूरी बना ली थी.

एक दिन सास ने प्यार से उस का माथा सहलाते हुए कहा, ‘‘चल बहू ठीक से तैयार हो जा. तुझे किसी से मिलवाना है.’’

‘‘किस से मांजी?’’ उदास स्वर में सुरेखा ने पूछा.

‘‘मेरी सहेली का भतीजा है. उस की भी बीवी मर चुकी है. तेरी शादी की बात चलाई है उस से. बहुत अ?च्छा लड़का है.’’

‘‘केवल विधुर या अच्छा होना ही काफी नहीं मां, आप ने उस की कुंडली देखी? 36 गुण  मिला लिए और उस की जाति देखी? आप ने बच्चों से पूछा? बच्चे मना तो नहीं कर रहे और पंडितजी ने कोई दोष तो नहीं बताया? फिर यह भी तो सोचो कि लोग क्या कहेंगे? मांजी आप जानती हो न मेरी शादी से पहले सैकड़ों सवाल आगे आ जाते हैं.

‘‘उन के जवाब ढूंढ़तेढूंढ़ते मैं थक चुकी हूं. मुझे शादी नहीं करनी. सुना मांजी मुझे नहीं करनी शादी. मेरी जिंदगी में अकेला रहना लिखा है. तभी तो कितने ही पुरुष मेरी जिंदगी में आए, मगर हर बार कोई न कोई सवाल सामने आता रहा और मेरा सपना टूटता रहा, मेरी जिंदगी को सूना करता रहा. अब मुझे इस झांसे में नहीं आना. नहीं करनी मुझे शादी. बस बहुत हो गया. प्लीज अकेला छोड़ दो मुझे,’’ कहतेकहते सुरेखा फूटफूट कर रो पड़ी.

बीमार थीं क्या: नीलू क्यों हो गई डिप्रेशन की शिकार

‘‘क्याबात है मुन्नी, पीलीपीली सी क्यों लग रही हो? बीमार थीं क्या?’’ भाभी की मां ने बड़े स्नेह से सिर पर हाथ रख कर मेरा हालचाल पूछा तो मन भीग सा गया. कोई आप के स्वास्थ्य की इतनी चिंता करे तो अच्छा लगता ही है.

‘‘अपने खानेपीने का खयाल रखा करो बेटा. औरत घर की धुरी होती है. वही अगर बीमार पड़ जाए तो पूरा घर अस्तव्यस्त हो जाता है.’’

‘‘जी, आंटीजी, तबीयत थोड़ी ठीक नहीं थी. पहले वायरल हो गया था. उस के बाद खांसी ने जकड़ लिया. आप सुनाइए, कैसा चल रहा है? घर में सब ठीक हैं न?’’

उन के जाने पर मैं सोच में पड़ गई कि क्या सचमुच मेरा चेहरा पीलापीला लग रहा है? अभी तो मैं भाई की शादी के लिए सजीसंवरी हूं. भारी मेकअप करने और गहनों से लदीफंदी मैं इन्हें पीली क्यों लगी? क्या मेकअप ने भी मेरा पीला रंग नहीं छिपाया?

मुझे चिंता ने घेर लिया कि कितना तो खयाल रखती हूं मैं अपनी सेहत का. फिर भी हर साल बीमार हो जाती हूं. पिछले साल भी टाइफाइड होने पर बेहद कमजोर हो गई थी. पूरे 4 महीने लग गए थे मुझे अपनेआप और घर को संभालने में. राजीव कितनी छुट्टियां लेते. हार कर उन की मां और मेरी मां को हमारा घर संभालना पड़ा था. दोनों बारीबारी से आती थीं. तब से अपना विशेष खयाल रखती हूं, क्योंकि पहले ही मैं ससुराल और मायके वालों को परेशान कर चुकी हूं.

भाभी की मां फिर मेरे पास आ कर बोलीं, ‘‘देखो बेटा, सुबहसुबह उठ कर सैर करने जाया करो. रात को 5-6 बादाम भिगो दिया करो.

सुबह छील कर शहद और अदरक के साथ लिया करो.’’

न जाने वे क्याक्या बोलती रहीं. इस का मतलब मैं अभी तक बीमार हूं. क्या राजीव मुझ से झूठ बोलते हैं? मेरे खून की जांच तो वे कराते रहते हैं. वे तो कहते हैं कि अब मेरी तबीयत पूरी तरह ठीक है. शरीर में सारे तत्त्व पूरे हैं. फिर मैं स्वयं भी कोई कमजोरी महसूस नहीं करती. भाई की शादी की तैयारी में भी मैं ने भागभाग कर सारे काम किए हैं और अभीअभी बरात के लिए तैयार हो कर आई हूं. मुझे किसी ने बताया क्यों नहीं कि मैं इतनी बीमार लग रही हूं.

तभी कोई आ गया और भाभी की मां उन से बातें करने में व्यस्त हो गईं. मैं अनमनी सी भारी कदमों से एक बार फिर भीतर वाले कमरे में चली गई. राजीव ने क्या झूठ बोला मेरे साथ? वे तो कहते थे अब हम अपना परिवार बढ़ाने के बारे में सोच सकते हैं. उस के लिए मेरी सेहत अब पूरी तरह उपयुक्त है, तो क्या राजीव ने झूठ कहा मुझ से कि मैं स्वस्थ हूं? क्या सभी

मुझ से छिपा रहे हैं मेरी बिगड़ी हालत? भैयाभाभी भी, मां भी और विजय भैया भी?

मैं स्वयं को आईने में निहारने लगी कि बीमार तो नहीं लग रही हूं मैं.

एक ही तो बहन हूं मैं अपने भाइयों की. लाडप्यार से पली. सभी सिरआंखों पर लेते हैं मुझे. मैं बीमार हूं किसी ने बताया क्यों नहीं मुझे? क्या सभी ने एकदूसरे को यह समझा रखा है कि जो भी मुझ से मिले बस यही कहे कि मैं बहुत सुंदर लग रही हूं?

अभी बाहर कार से जब मैं निकली तब दिल्ली वाले मौसाजी मिल गए. मुझे देख कर कितने खुश हुए थे, ‘‘अरे वाह, आज तो हमारी बच्ची बहुत सुंदर लग रही है… जीती रहो.’’

अगर मैं बीमार लग रही होती तो क्या मौसाजी बताते नहीं? राजीव तो बारबार तारीफ करते ही हैं मेरी परंतु उन पर अब क्या भरोसा करूं. सवाल यह नहीं है मैं कैसी लग रही हूं, सवाल यह है कि क्या मैं अब भी बीमार ही हूं?

‘‘नीलू, जरा इधर आना तो,’’ भीतर आतेआते दूल्हा बने विजय भैया बोले, ‘‘जरा सूईधागे से सेहरा पगड़ी के साथ ही सी दो… बारबार उतर रहा है. अरे वाह, कितनी सुंदर लग रही है आज मेरी गुडि़या,’’ कुछ पलों को विजय भैया अपना सेहरा संभालना भूल से गए.

मैं शीशे के सामने चुपचाप खड़ी थी. भाई के शब्दों पर आंखें भर आईं मेरी.

‘अरे, क्या हुआ है तुझे नीलू… चुपचाप सी क्यों है?’’

भैया ने पास आ कर सिर पर हाथ रखा.

‘‘क्या मैं अभी भी बीमार लगती हूं विजय भैया?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं तो. किस ने कहा तुम बीमार हो? जब थीं तब थीं अब तो ठीक हो. क्या तुम्हें स्वयं पता नहीं चलता? भागदौड़ कर सारे काम कर रही हो… क्या बीमार महसूस करती हो?’’

मैं चुपचाप सूईधागा ला कर भैया का सेहरा पगड़ी के साथ सीने लगी. तभी वहां राजीव और विजय भैया के मित्र आ गए.

‘‘यह भाभी की मां की बुरी आदत है विजय कि जिस पर भी प्यार आ रहा है उसी की सेहत खराब करती जा रही हैं… बाहर मुझे मिलीं तो कहने लगीं मैं बहुत बीमार लग रहा हूं… रंग पीला पड़ गया है… हटो जरा सामने से मैं देखूं तो कहां से पीलानीला लग रहा हूं मैं,’’ कह विजय भैया को एक तरफ कर राजीव भी शीशे में स्वयं को गौर से देखने लगे. फिर बोले, ‘‘यार, अच्छाभला तो हूं मैं. पिछले ही महीने मैं ने अपने सारे कपड़े खुलवाए हैं. अगर कमजोर होता तो सब से पहले कपड़े ही ढीले पड़ते हैं न?’’

कुछ देर और आईने में खुद को देख कर राजीव बोले, ‘‘आज तो मैं ने भी खास मेकअप किया है भई… घर का दामाद हूं मैं… अच्छीखासी पौलिश की है चेहरे पर. फिर भी मेरा रंग पीला लग रहा है. बता न विजय क्या सचुमच मैं बीमार लग रहा हूं?’’

क्षण भर को विजय भैया ने मेरा हाथ रोक दिया. मैं भी तनिक चौंकी राजीव के शब्दों पर. हम तीनों की नजरें मिलीं और फिर मिलीजुली हंसी कमरे में गूंज गई.

‘‘लगता है तुम दोनों से ही उन्हें खास प्यार है… क्या करें वे भी. तुम उन की बेटी ननद हो… सुना होगा न तुम बीमार थीं बस उसी को लक्ष्य किया होगा… मुझे भी जब मिलती हैं यही कहती हैं क्या बात है विजय बीमार हो क्या? तबीयत तो ठीक है न बड़े कमजोर लग रहे हो.’’

हंसी में उड़ गया सारा तनाव. वास्तव में कुछ लोगों का प्यार करने का यही ढंग होता है. वे आप के दुश्मन नहीं होते. बस एक तरीका होता है प्यार जताने का जबकि आप की सेहत से भी उन का कोई लेनादेना नहीं होता. वे तो मात्र अपने स्नेह और अपनत्व का प्रदर्शन करते हैं. यह अलग बात है मुझ जैसे बीमारी से उठ कर बड़ी मेहनत कर के स्वस्थ होते इंसान पर इस का विपरीत प्रभाव पड़ता है. मैं बीमार थी अब मैं स्वस्थ होना चाहती हूं. अगर वे मुझ से यही कह देतीं कि वाह नीलू, अब तुम अच्छी लग रही हो. अब कमजोर भी नहीं लग रही तो शायद मेरा उत्साह बढ़ जाता और भाई की शादी की चहलपहल में भी मैं अवसाद से न घिरती.

प्यार इस तरह क्यों व्यक्त किया जाए कि जिस से प्यार किया जा रहा हो उस पर नकारात्मक प्रभाव पड़े और वह राजीव और मेरी तरह पागल होने लगे. आज के व्यस्त जीवन में जीवन जीवन ही कहां रह गया है. मशीन की तरह काम करते हैं हम पतिपत्नी… हंसने के लिए भी समय नहीं. खुश हैं कि नहीं यह भी पता नहीं चलता. मानों हंसना भी एक मशीनी क्रिया है. हंस दिए तो हंस दिए. न तो न सही.

आज दिल से सजधज कर भाई की बरात के लिए तैयार हुई तो उन के प्यार ने सब फीका कर दिया. प्यार प्यार कहां रहा वह तो गाली बन गया. भई, अच्छेभले इंसान से अगर इस तरह प्यार किया जाएगा तो उस पर मुझ जैसे इंसान वाला ही प्रभाव पड़ेगा न.

बरात चल पड़ी. खासी गर्मजोशी थी हम सब में. लड़की वालों के घर पहुंचे. जयमाला की रस्म होने लगी. दुलहन से मिलने लगे सब.

‘‘क्या बात है बेटा, बड़ी कमजोर लग रही हो, तबीयत ठीक नहीं थी क्या?’’ यह सुनाई दिया.

मुड़ कर देखा, भाभी की मां दुलहन से प्यार से पूछ रही थीं. राजीव और विजय मेरी तरफ देख मुसकराने लगे, मगर दुलहन के चेहरे पर वही भाव जो कुछ समय पहले मेरे और राजीव के चेहरे पर थे

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