तेजतर्रार तिजोरी : रघुवीर ने अपनी बेटी का नाम तिजोरी क्यों रखा – भाग 4

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था : तिजोरी एक तेजतर्रार और होशियार लड़की थी. वह अपने पिता के काम में हाथ बंटाती और भाई के साथ गुल्लीडंडा खेलती. गांव में बिजली महकमे का काम चल रहा था. कौंट्रैक्टर सुनील को तिजोरी भा गई और वह उस के साथ नजदीकियां बढ़ाने लगा. उस के इर्दगिर्द रहने लगा. अब पढि़ए आगे…

पानी की बोतलें ले कर तिजोरी के बारे में ही सोचते हुए जब सुनील श्रीकांत के पास पहुंचा, तब तक हाथों में डंडा लिए और गुल्ली  को रखते हुए तिजोरी भी वहां पहुंच गई. वहां एक के ऊपर एक 9 खंभों की ऊंचाई की कुल 19 लाइनें थीं.

हाथ में लिए डंडे से तिजोरी ने ऊंचाई पर रखे खंभों को गिना, फिर चौड़ाई की लाइनों को गिन कर मन ही मन 19 को 9 से गुणा कर के बता दिया… कुल खंभे 171 हैं.

सुनील ने रजिस्टर से मिलान किया. स्टौक रजिस्टर भी अब तक आए खंभों की तादाद इतनी ही दिखा रहा था.

सुनील और श्रीकांत हैरानी से एकदूसरे का मुंह ताकने लगे, तभी तिजोरी सुनील से बोली, ‘‘चल रहे हो गुल्लीडंडा खेलने?’’

अपने भरोसेमंद शादीशुदा असिस्टैंट श्रीकांत को जरूरी निर्देश दे कर सुनील तिजोरी के पीछेपीछे उस खाली खेत तक आ गया, जहां महेश बेसब्री से उस का इंतजार कर रहा था.

सुनील को देख कर महेश भी पहचान गया. महेश के पास पहुंच कर तिजोरी बोली, ‘‘तुझे अगर प्यास लगी है, तो यह ले चाबी और गोदाम का शटर खोल कर पानी पी कर आ जा, फिर हम तीनों गुल्लीडंडा खेलेंगे.’’

‘‘नहीं, मुझे अभी प्यास नहीं लगी है. चलो, खेलते हैं. मैं ने यह छोटा सा गड्ढा खोद कर अंडाकार गुच्ची बना दी है, लेकिन पहला नंबर मेरा रहेगा.’’

‘‘ठीक है, तू ही शुरू कर,’’ तिजोरी बोली. फिर उस ने गुच्ची से कोई  5 मीटर की दूरी पर खड़े हो कर सुनील को समझाया, ‘‘महेश उस गुच्ची के ऊपर गुल्ली रख कर फिर उस के नीचे डंडा फंसा कर हमारी तरफ उछालेगा.

‘‘उस की कोशिश यही रहेगी कि हम से ज्यादा से ज्यादा दूर तक गुल्ली जाए और उसे कैच कर के भी न पकड़ा जा सके. तुम एक बार ट्रायल देख लो. महेश गुल्ली उछालेगा और मैं उसे कैच करने की कोशिश करूंगी.’’

फिर तिजोरी महेश के सामने 5 मीटर की दूरी पर खड़ी हो गई. महेश ने गुच्ची के ऊपर रखी गुल्ली तिजोरी के सिर के ऊपर से उछाल कर दूर फेंकना चाही, पर कैच पकड़ने में माहिर तिजोरी ने अपनी जगह पर खड़ेखड़े अपने सिर के ऊपर से जाती हुई गुल्ली को उछल कर ऐसा कैच पकड़ा, जो उतना आसान नहीं था.

कैच पकड़ने के साथ ही तिजोरी चिल्लाई, ‘‘आउट…’’

लेकिन साइड में खड़े सुनील की नजरें तो तिजोरी के उछलने, फिर नीचे जमीन तक पहुंचने के बीच फ्रौक के घेर के हवा द्वारा ऊपर उठ जाने के चलते नीचे पहनी कच्छी की तरफ चली गई थी. साथ ही, उस के उभारों के उछाल ने भी सुनील को पागल कर दिया.

लेकिन तिजोरी इन सब बातों से अनजान सुनील से बोली, ‘‘अब खेल शुरू. इस बार मेरी जगह पर खड़े हो कर तुम्हें गुल्ली को अपने से दूर जाने से बचाना है. मैं तुम से एक मीटर पीछे खड़ी होऊंगी, ताकि तुम से गुल्ली न पकड़ी जा सके तो मैं पकड़ कर महेश को आउट कर सकूं और तुम्हारा नंबर आ जाए… ठीक?’’

सुनील अपनी सांसों और तेजी से धड़कने लग गए दिल को काबू करता हुआ सामने खड़ा हो गया. उस की नजरों से तिजोरी के हवा में उछलने वाला सीन हट नहीं पा रहा था. उस पर अजीब सी हवस सवार होने लगी थी.

तभी तिजोरी पीछे से चिल्लाई, ‘‘स्टार्ट.’’

आवाज सुनते ही महेश ने गुल्ली उछाली और चूंकि सुनील का ध्यान कहीं और था, इसलिए अपनी तरफ उछल कर आती गुल्ली से जब तक वह खुद को बचाता, गुल्ली आ कर सीधी उस की दाईं आंख पर जोर से टकराई.

सुनील उस आंख पर हाथ रखता हुआ जोर से चिल्लाया, ‘‘हाय, मेरी आंख गई,’’ कह कर वह खेत की मिट्टी में गिरने लगा, तो पीछे खड़ी तिजोरी ने उसे अपनी बांहों में संभाल लिया और उस का सिर अपनी गोद में ले कर वहीं खेत में बैठ गई.

तिजोरी ने गौर किया कि सुनील की आंख के पास से खून तेजी से बह रहा है. आसपास काम करते मजदूर भी वहां आ गए. उन में से एक मजदूर बोल पड़ा, ‘‘कहीं आंख की पुतली में तो चोट नहीं लगी है? तिजोरी बिटिया, इसे तुरंत आंखों के अस्पताल ले जाओ.’’

सुनील की आंखों से खून लगातार बह रहा था. कुछ देर चीखने के बाद सुनील एकदम सा निढ़ाल हो गया. उसे यह सुकून था कि इस समय उस का सिर तिजोरी की गोद में था और उस की एक हथेली उस के बालों को सहला रही थी.

तिजोरी ने महेश को श्रीकांत के पास यह सूचना देने के लिए भेजा और एक ट्रैक्टर चलाने वाले मजदूर को आदेश दे कर खेत में खड़े ट्रैक्टर में ट्रौली लगवा कर उस में पुआल का गद्दा बिछवा कर सुनील को ले कर अस्पताल आ गई.

यह अच्छी बात थी कि उस गांव में आंखों का अस्पताल था, जिस में एक अनुभवी डाक्टर तैनात था. तिजोरी की मां के मोतियाबिंद का आपरेशन उसी डाक्टर ने किया था.

तिजोरी ने सुनील को वहां दाखिल कराया और डाक्टर से आंख में चोट लगने की वजह बताते हुए बोली, ‘‘डाक्टर साहब, इस की आंख को कुछ हो गया, तो मैं अपनेआप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘तू चिंता न कर. मुझे चैक तो करने दे,’’ कह कर डाक्टर ने स्टै्रचर पर लेटे सुनील को अपने जांच कमरे में ले कर नर्स से दरवाजा बंद करने को कह दिया.

तिजोरी घबरा तो नहीं रही थी, पर लगातार वह अपने दिल में सुनील की आंख में गंभीर चोट न निकलने की दुआ कर रही थी. महेश के साथ श्रीकांत भी वहां पहुंच गया था.

अस्पताल के गलियारे में इधर से उधर टहलते हुए तिजोरी लगातार वहां लगी बड़े अक्षरों वाली घड़ी को देखे जा रही थी. तकरीबन 50 मिनट के बाद डाक्टर ने बाहर आ कर बताया, ‘‘बेटी, बड़ी गनीमत रही कि गुल्ली भोंहों के ऊपर लगी. थोड़ी सी भी नीचे लगी होती, तो आंख की रोशनी जा सकती थी.’’

पीछा करता डर : पीठ में छुरा भाग-4

नंदन का हाथ फिर भी आगे नहीं बढ़ा तो भानु अपना गिलास मेज पर रखते हुए बोला, ‘‘यकीन मानो, तुम्हें डिस्टर्ब करने का मेरा कोई इरादा नहीं है. ये सब तो मजाक था. फोटो डिलीट कर दूंगा. लेकिन जब तक मैं हूं, मेरे साथ इंजौय करो. मैं 2 पैग पी कर चला जाऊंगा. लेकिन ये 2 पैग मैं ने तुम दोनों के साथ पीने का वादा किया है.’’

नंदन समझ गए, भानु यूं मानने वाला नहीं है. मजबूरी थी, सो उन्होंने गिलास उठा लिया. युवती और नंदन दोनों ही आधे घंटे से भयानक तनाव में थे. उन्होंने गिलास हाथ में उठाए तो खाली होते देर न लगी. एक पैग ह्विस्की गले से नीचे उतरी, तो उन के चेहरों पर तनाव की रेखाएं कुछ कम हुईं.

उन दोनों के गिलास खाली देख भानु ने भी अपना गिलास खाली किया और तीनों के लिए एकएक पैग और बनाया. नंदन और उस युवती ने यह सोच कर दूसरे पैग भी जल्दी ही खाली कर दिए कि उन की देखादेखी वह भी जल्दी से गिलास खाली कर के चला जाएगा. लेकिन भानु ने दूसरा पैग पीने में कोई जल्दी नहीं की. वह चिकन खाते हुए आराम से सिप करता रहा.

खानेपीने के इस दौर में उन तीनों के बीच कोई बात नहीं हो रही थी. बीच में कुछ बोलता भी था, तो केवल भानु. नंदन और युवती के गिलास खाली देख भानु ने उन के गिलासों में ह्विस्की डालनी शुरू की, तो नंदन ने चौंकते हुए कहा, ‘‘ये क्या कर रहे हो भानु?’’

‘‘पैग बना रहा हूं. अपने लिए नहीं, तुम दोनों के लिए,’’ भानु मुस्कराते हुए बोला, ‘‘तुम्हें मेरा साथ देना है न…मेरे दो पैग तक. यही तो तय हुआ है.’’

नंदन भानु की चालाकी समझ गए. गलती उन की ही थी, जो उसे जल्दी भगाने के चक्कर में जल्दी से दोनों पैग चढ़ा गए. उन्होंने मन ही मन फैसला किया कि अब धीरेधीरे सिप करेेंगे. उन्होंने ही नहीं, युवती ने भी इस पर अमल किया. लेकिन भानु के बारबार अनुरोध पर जब उन दोनों ने गिलास हाथों में उठाए तो भानु ने गजब की फुर्ती से मोबाइल निकाला और वे लोग कुछ समझ पाते, इस से पहले ही दोनों का साथसाथ पीते हुए एक स्नैप ले लिया.

उस वक्त तक नंदन पर नशा हावी हो चुका था. वह गिलास मेज पर रख कर खड़े होते हुए गुस्से में बोले, ‘‘भानु, मैं मार डालूंगा तुम्हें. तुम ब्लैकमेल करना चाहते हो मुझे.’’

भानु ने भी अपना गिलास मेज पर रख दिया और मोबाइल जेब में डाल कर खड़े होते हुए शांत स्वर में बोला, ‘‘बात दोस्ती की चल रही थी और तुम दुश्मनी पर उतरने लगे. क्या इस के पहले तुम ने मेरे साथ कभी शराब नहीं पी? हर दूसरे तीसरे दिन तो… और हां, हिम्मत है, मुझे मार डालने की? जो आदमी अपनी प्रेयसी के साथ अपने शहर, अपने घर में ऐश करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता, वह किसी को क्या मारेगा.

‘‘तुम में अगर गैरत होती, तो इस खूबसूरत छलावे की जगह अपनी पत्नी और बच्चें के बीच होते. हिम्मत होती तो इसे ले कर अपने शहर से अस्सी किलोमीटर दूर यहां न आए होते. बहुत हो चुका. चुपचाप बैठो और अपना गिलास खाली करो.’’

नंदन को गुस्सा आया जरूर था, पर अपनी स्थिति का खयाल आते ही काफूर हो गया. वह हारे जुआरी की तरह बैठ गए और एक ही बार में गिलास खाली कर दिया. उन के खाली गिलास में ह्विस्की डालते हुए भानु युवती की ओर देख कर बोला, ‘‘तुम लोग मुझे बिल्कुल गलत समझ रहे हो. मैं पहले ही बता चुका हूं कि मैं तुम्हें ब्लैकमेल नहीं करूंगा, बल्कि तुम लोगों के साथ एंजौय करना चाहता हूं. वह भी सिर्फ दो पैग तक.’’

‘‘तो फिर ये फोटोबाजी की क्या जरूरत है? ’’ नंदन ने तुनक कर पूछा, तो भानु उन की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘मैं ने कह तो दिया, जाने से पहले फोटो डिलीट कर दूंगा. लेकिन बात वही है कि जिसे अपने आप पर भरोसा न हो, वह दूसरों पर क्या भरोसा करेगा.’’

भानु ने नंदन के गिलास में थोड़ा पानी डाला, थोड़ा सोड़ा. इस के बाद उस ने एक ही झटके में अपना गिलास खाली किया और एक पैग ह्विस्की डाल कर उस में भी थोड़ा सोड़ा और पानी डाल लिया. वह उस का तीसरा पैग था, जो उस ने एक ही बार में खाली कर दिया.

भानु का गिलास खाली होते ही, नंदन माथुर शांत भाव से बोले, ‘‘भानु, तुम 2 नहीं, 3 पैग ह्विस्की पी चुके हो. वादा पूरा हो चुका. अब तुम अपने कमरे में जाओ. बाकी जो बात करनी हो, सुबह कर लेना.’’

‘‘बिल्कुल ठीक कहा तुम ने दोस्त,’’ भानु ने जान बूझ कर शराबियों वाले अंदाज में कहा, ‘‘वाकई अब मुझे जाना चाहिए. नशा भी काफी हो चुका है. लेकिन एक समस्या है. बातोंबातों में मैं दो की जगह 3 पैग पी गया और 3 सैद्धांतिक रूप से ठीक नहीं होते. देखो न, हम 3 हैं, इसलिए बीचबीच में तनाव और लड़ाईझगड़े की स्थिति बन जाती है. 2 या 4 होते, तो ऐसा कतई नहीं होता. मैं नहीं चाहता कि तुम लोगों के साथ बिताया डेढ़ घंटे का समय कोई गंभीर स्थिति पैदा कर दे, इसलिए मेरा एक पैग और पीना जरूरी है.’’

भानु की इस बात के जवाब में न नंदन कुछ बोले, न युवती. भानु ने नंदन की ओर देख कर कहा, ‘‘सवा दस बजे हैं. ऐसा करो, रूम सर्विस को खाने के लिए बोल दो. साढ़े दस के बाद खाना नहीं मिलेगा. तुम लोगों के साथ 2 चपाती खा कर अपने कमरे में चला जाऊंगा.’’

भानु ने नंदन के कमरे में बैठ कर अपने दिमाग से जिस तरह जाल बुना था, उस में वह पूरी तरह फंस चुके थे. वह जानते थे कि भानु इतनी आसानी से नहीं टलेगा. अत: उन्होंने रूम सर्विस को फोन कर के खाने का आर्डर दे दिया.

पौने ग्यारह बजे जब वेटर खाना ले कर आया तो भानु, नंदन और युवती तीनों ही अपनेअपने गिलास खाली कर चुके थे. डोरबेल की आवज सुनते ही युवती अपना गिलास मेज के नीचे रख कर बेड पर जा लेटी.

नंदन और भानु के गिलास अभी भी मेज के ऊपर ही रखे थे. नंदन की जगह भानु ने ही दरवाजा खोला. वेटर ने अंदर आ कर मेज से खाली गिलास और प्लेटें हटाईं और मेज की साफसफाई कर के खाना लगा दिया.

जब वेटर अपना काम कर चुका तो भानु ने अपने कोट की अंदरवाली जेब में हाथ डाल कर 100 रुपए का नोट निकाला और वेटर को थमाते हुए बोला, ‘‘थैंक्यू फौर गुड सर्विस. खाना खा कर हम अपने कमरे में चले जाएंगे. साहब को डिस्टर्ब नहीं करना, बर्तन सुबह उठा लेना.’’

‘‘यस सर.’’ कहते हुए वेटर चला गया. वेटर के जाते ही भानु ने स्वयं उठ कर दरवाजा बंद कर दिया. दरवाजा बंद करने के बाद भानु बेड पर लेटी लड़की के पास पहुंचा और उस की बांह पकड़ कर उठाते हुए बोला,

‘‘उठो डियर जान के जंजाल. अभी एक

पैग भी पीना है और खाना भी खाना है.’’

‘‘मुझे सोने दो, नींद आ रही है.’’ युवती ने भानु का हाथ झटकते हुए कहा, तो भानु हलके से उस की बांह मरोड़ते हुए बोला, ‘‘बनो मत, मैं सब जानता हूं, तुम कितने नशे में हो. मैं ने तुम्हारे गिलास में जान बूझ कर चारचार बूंद ह्विस्की डाली थी. इतनी ह्विस्की से तुम जैसी लड़की को कभी नशा नहीं हो सकता.’’

युवती कुनमुनाते हुए उठी और मेज पर आ कर बैठ गई. नशे में धुत नंदन माथुर चुपचाप बैठे थे. भानु ने युवती के लिए बड़ा सा एक पैग बनाया और उस के हाथ में थमाते हुए बोला, ‘‘ये पियो और खाना खा कर सो जाओ. इस के बाद मैं भी अपने कमरे में चला जाऊंगा.’’

भूल किसकी: रीता की बहन ने उसके पति के साथ क्या किया?- भाग 4

प्रिंस जैसेजैसे बड़ा हो रहा था पापाजी उतने ही छोटे बनते जा रहे थे. दिनभर उस के साथ खेलना, उस के जैसे ही तुतला कर उस से बात करना. आज रीता की किट्टी पार्टी थी. प्रिंस को खाना खिला कर पापाजी के पास सुला कर वह किट्टी में जाने के लिए तैयार होने लगी. वैसे भी प्रिंस ज्यादा समय अपने दादाजी के साथ बिताता था, इसलिए उसे छोड़ कर जाने में रीता को कोई परेशानी नहीं थी.

जिस के यहां किट्टी थी उस के कुटुंब में किसी की गमी हो जाने की वजह से किट्टी कैंसिल हो गई और वह जल्दी घर लौट आई. बाहर तुषार की गाड़ी देख आश्चर्य हुआ. आज औफिस से इतनी जल्दी कैसे आना हुआ… अगले ही पल आशंकित होते हुए कि कहीं तबीयत तो खराब नहीं है, जल्दीजल्दी बैडरूम की ओर बढ़. दरवाजे पर पहुंचते ही ठिठक गई.

अंदर से रीमा की आवाजें जो आ रही थीं. रीमा को तो इस समय कालेज में होना चाहिए. यहां कैसे? कहीं पापाजी की बात सही तो नहीं है? गुस्से में जोर से दरवाजा खोला. अंदर का नजारा देखते ही उस के होश उड़ गए. तुषार तो रीता को देखते ही सकपका गया पर रीमा के चेहरे पर शर्मिंदगी का नामोनिशान नहीं था.

गुस्से से रीता का चेहरा तमतमा उठा. आंखों से अंगारे बरसने लगे. पूरी ताकत से रीमा को इसी समय कमरे से और घर से जाने को कहा. तुषार तो सिर  झुकाए खड़ा रहा पर रीमा ने कमरे से बाहर जाने से साफ इनकार कर दिया. रीता ने बहुत बुराभला कहा पर रीमा पर उस का कुछ भी असर नहीं हुआ.

हार कर रीता को ही कमरे से बाहर आना पड़ा. उस की रुलाई थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. बड़ी मुश्किल से अपनेआप को संभाला और फिर हिम्मत कर तुषार से बात करने कमरे में गई और बोली ‘‘तुषार इस घर में या तो रीमा रहेगी या मैं,’’ उसे लगा यह सुन कर तुषार रीमा को जाने के लिए कह देगा.

मगर वह बोला, ‘‘रीमा तो यहीं रहेगी, तुम्हें यदि नहीं पसंद तो तुम जा सकती हो.’’

तुषार से इस जवाब की उम्मीद तो रीता को बिलकुल नहीं थी. अब उस के पास कहने को कुछ नहीं था.

सुचित्रा और शेखर ने भी रीमा को सम झाने की बहुत कोशिश की, पर अपनी जिद पर अड़ी रीमा किसी की भी बात सुनने को तैयार नहीं थी. अभी तक जो काम चोरीछिपे होता था अब वह खुल्लमखुल्ला होने लगा. रीता को तो अपने बैडरूम से भी बेदखल होना पड़ा. जिस घर में हंसी गूंजती थी अब वीरानी सी छाई थी. आखिर कोई कब तक सहे. इन सब का असर रीता की सेहत पर भी होने लगा. सुचित्रा और शेखर ने तय किया कि रीता उन के पास आ कर रहेगी वरना वहां रह कर तो घुटती रहेगी.’’

तुषार को प्रमोशन मिली थी. आज उस ने प्रमोशन की खुशी में पार्टी रखी थी. रीता जाना ही नहीं चाहती थी, लोगों की नजरों और सवालों से बचना जो चाहती थी. पार्टी में वह रीमा को ले कर गया.

पापाजी बहुत परेशान थे. उन्हें सम झ ही नहीं आ रहा था इस मामले को कैसे सुल झाया जाए. वे किसी भी कीमत पर रीता और प्रिंस को इस घर से जाने नहीं देना चाहते थे. उन के जाने के बाद वे कैसे जीएंगे. पर रोकें भी तो कैसे? इसी उधेड़बुन में लगे थे कि अचानक उन्होंने एक ठोस निर्णय ले ही लिया.

रीता का कमरा साफ करते हुए सुचित्रा ने शेखर से कहा, ‘‘पता नहीं मु झ से रीमा की परवरिश में कहां चूक हो गई.’’

‘‘कितनी बार तुम से कहा अपनेआप को दोष मत दिया करो सुचित्रा.’’

‘‘नहीं शेखर, यदि बचपन में ही उस की जिद न मानी होती तो शायद यह दिन न देखना पड़ता. जब भी उस ने रीता की किसी चीज पर हक जमाया हम ने हमेशा यह कह कर रीता को सम झाया कि छोटी बहन है दे दो, पर इस बार उस ने जो चीज लेनी चाही है वह कैसे दी जा सकती है?

‘‘सपने में भी नहीं सोचा था. रीमा रीता का घर ही उजाड़ देगी, काश मैं ने रीमा पर नजर रखी होती, उसे इतनी छूट न दी होती. ये सब मेरी भूल की वजह से हुआ.’’

रीता बैग में कपड़े रखते हुए सोच रही थी कि उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि यह दिन भी देखना पड़ेगा. तुषार भी बदल जाएगा. काश मैं ने पापाजी की बात को सीरियसली लिया होता. उन्होंने तो मु झे बहुत बार आगाह किया पर मैं सम झ ही नहीं पाई. जो कुछ हुआ उस में मेरी ही गलती है.

पापाजी के मन में उथलपुथल मची थी. वे रीता के पास जा कर बोले, ‘‘कपड़े वापस अलमारी में रखो. तुम कहीं नहीं जाओगी.’’

‘‘पर पापाजी मैं यहां रह कर क्या करूंगी जब तुषार ही नहीं चाहता?’’

‘‘क्या मैं तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं? इस घर को घर तो तुम ने ही बनाया है. तुम चली जाओगी तो वीराना हो जाएगा. मैं कैसे जीऊंगा तुम्हारे और प्रिंस के बिना. अब तुम अपने बैडरूम में जाओ. यह घर तुम्हारा है.’’

‘‘जी पापाजी,’’ कह वह प्रिंस को ले कर सोने चली गई.

रात के 2 बज रहे थे. तुषार और रीमा अभी तक नहीं आए थे. पापाजी की आंखों की नींद उड़ गई थी. वे सोच रहे थे कि मैं तो बड़ा और अनुभवी था जब मु झे आभास हो गया था तो चुप क्यों बैठा रहा. सारी मेरी गलती है.

हरकोई इस भूल के लिए अपनेआप को दोषी ठहरा रहा था, जबकि जो दोषी था वह तो अपनेआप को दोषी मान ही नहीं रहा था. घड़ी ने 12 बजा दिए. पापाजी ने अंदर से दरवाजा लौक किया और आंखें बंद कर दीवान पर लेट गए. मन में विचारों का घुमड़ना जारी था. गेट खुलने की आवाज आते ही पापाजी ने खिड़की से देखा, तुषार गाड़ी पार्क कर रहा था. दोनों हाथों में हाथ डाले लड़खड़ाते हुए दरवाजे की ओर बढ़ रहे थे.

तुषार ने इंटर लौक खोला पर दरवाजा नहीं खुला, ‘‘यह दरवाजा क्यों नहीं खुल रहा?’’

‘‘हटो, मैं खोलती हूं.’’

पर रीमा से भी नहीं खुला.

‘‘लगता है किसी ने अंदर से बंद कर दिया है.’’

‘‘अरे, ये बैग कैसे रखे यहां?’’

‘‘रीता के होंगे. वह आज मम्मी के घर जा रही थी न.’’

तुषार ने दरवाजा कई बार खटखटाया पर कोई उत्तर न आने पर रीता को आवाज लगाई. पर तब भी कोई जवाब नहीं.

‘‘लगता है रीता गहरी नींद में है, पापाजी को आवाज लगाता हूं.’’

‘‘यह दरवाजा नहीं खुलेगा,’’ अंदर से ही पापाजी ने जवाब दिया.

‘‘देखो, दरवाजे पर ही एक तुम्हारा और एक रीमा का बैग रखा है.’’

‘‘यह घर मेरा है मु झे अंदर आने दीजिए.’’

‘‘बरखुरदार, तुम भूल रहे हो मैं ने अभी यह घर तुम्हारे नाम नहीं किया है.’’

‘‘पापाजी मैं इस समय कहां जाऊंगी?’’

‘‘यह फैसला भी तुम्हें ही करना है… इस घर में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं. जब तुम्हें पूरी तरह सम झ आ जाए कि तुम क्या कर रहे हो और कुछ ऐसा कि इस दरवाजे की एक और चाबी तुम्हें मिले, तब तक यह दरवाजा बंद सम झो.’’

दोनों का नशा काफूर हो चुका था. थोड़ी देर इंतजार किया कि शायद पापाजी दरवाजा खोल दें. मगर जब दरवाजा नहीं खुला तो गाड़ी स्टार्ट करते हुए बोला, ‘‘रीमा, चलो गाड़ी में बैठो.’’

रीमा ने कहा, ‘‘तुषार, मु झे घर पर उतार दो. तुम्हें तो रात को शायद होटल में रहना पड़ेगा,’’ रीमा को मन में खुशी भी थी कि बहन का घर तोड़ दिया पर यह डर भी था कि तुषार जैसा वेबकूफ पार्टनर कहीं हाथ से न निकल जाए.

‘‘तुषार भी शादी के दिन इतना सुंदर नहीं लगा था जितना आज लग रहा था.

कहते हैं जब व्यक्ति खुश होता है तो चेहरे पर चमक आ ही जाती है…’’

प्यार के राही : हवस भरे रिश्ते

Story in Hindi

शिकस्त-भाग 3: शाफिया-रेहान के रिश्ते में दरार क्यों आने लगी

सोहा चली गई और मुझे जैसे जलते अंगारों पर छोड़ गई. न मैं रो रही थी न बहुत गमजदा थी. बस, एक गुस्सा था, यकीन टूटने की तकलीफ थी. 2-3 दिन मैं बड़ी खामोशी व होशियारी से सारा खेल देखती रही. मुझे सोहा की बात पर यकीन आने लगा. चौथे दिन रेहान ने बताया कि वे 2 दिनों के लिए औफिस के काम से बाहर जा रहे हैं. उन के जाने के बाद आबी खामोश सी थी.

वह ज्यादातर अपने ही कमरे में बंद रही. दूसरे दिन आबी कालेज, बच्चे स्कूल चले गए. मैं ने रेहान के औफिस के सीनियर कलीग रहीम साहब को फोन किया. वे मेरे ससुर के रिश्ते के भाई थे. शादी के बाद 2-3 बार मिलने आए थे. बहुत ही नेक इंसान हैं. मैं ने कहा, ‘आप से कुछ काम है, जरा घर आ जाइए.’ एक घंटे बाद वे मेरे सामने बैठे थे.

मैं ने सारे लिहाज छोड़ कर कहा, ‘चाचा, मैं रेहान को ले कर परेशान हूं. मुझे लगता है रेहान की कहीं और इन्वौल्वमैंट है. आप साथ रहते हैं, आप को कुछ पता होगा?’ रहीम साहब कुछ देर सोचते रहे, फिर बोले, ‘बेटी, मैं खुद असमंजस में था कि तुम्हें बताऊं या नहीं. अच्छा हुआ, तुम ने ही पूछ लिया. एक बड़ी खूबसूरत, नाजुक सी लड़की रेहान से मिलने औफिस आती है.

फिर दोनों साथ चले जाते हैं. कई बार उन दोनों को रैस्टोरैंट और सिनेमाहौल में देखा है. मैं ने बहुत सोचा रेहान को टोक दूं पर अब वह मुझ से पहले जैसे संबंध नहीं रखता, इसलिए मैं खामोश रहा.’ मैं ने रहीम साहब से कहा, ‘आप मुझ से मिले हैं, यह बात रेहान को न बताना.’ वे लौट गए. अब शक यकीन में बदल गया.

रेहान के लौटने पर मैं ने उन से कुछ नहीं कहा. मैं बहुत सोचसमझ कर कोई कदम उठाना चाहती थी. एक तरफ खाई थी तो दूसरी तरफ कुआं. मैं ने अपने व्यवहार में कोई फर्क नहीं आने दिया बल्कि पहले से ज्यादा अच्छे खाने बना कर खिलाती, खूब खयाल रखती. उस दिन छुट्टी थी, सभी घर पर थे.

शाम को मैं अपनी दोस्त की शादी की एनिवर्सरी का कह कर घर से निकल गई और कह दिया खाना खा कर लेट आऊंगी. वह मुझे छुड़वा देगी. वह हमारी कालोनी में ही रहती है.

मैं कुछ देर अपनी सहेली के पास बैठ कर वापसी के लिए निकल गई. अंधेरा फैल रहा था. निकलने से पहले मैं ड्राइंगरूम व बैडरूम की खिड़कियां थोड़ी खुली छोड़ आई थी. दबेपांव मैं गार्डन में दाखिल हुई. धीमेधीमे चल कर ड्राइंगरूम की खिड़की के पास गई. दोनों बच्चे जोरशोर से गेम खेल रहे थे. बैडरूम की तरफ गई, अंदर झांका, आबी बैड से टेक लगाए बैठी थी, रेहान उस की गोद में सिर रखे लेटे थे. वह उन के बालों से खेल रही थी और मीठी आवाज में कह रही थी, ‘रेहान, अब इस तरह रहना मुश्किल है. हम कब तक छिपछिप कर मिलते रहेंगे. अब तुम्हें फाइनल डिसीजन लेना होगा.’

रेहान ने उसे दिलासा दिया, ‘मैं खुद यही सोच रहा हूं. मैं तुम से दूर नहीं रह सकता. एकएक पल भारी है. मैं जल्द ही कुछ करता हूं.’

मुझे लगा जैसे पिघला हुआ सीसा किसी ने मेरे कानों में उड़ेल दिया है. इतने सालों की मोहब्बत, खिदमत, वफादारी सब बेकार गई. मैं रेहान के 2 बच्चों की मां थी. आबी मेरी जान से प्यारी बहन थी. रिश्तों ने यह कैसा फरेब किया था? सब पर हवस ने कालिख मल दी थी. कुछ देर मैं बाहर ही टहलती रही, खुद को समझाती रही. सबकुछ खो देने का एहसास जानलेवा था.

मैं ने घंटी बजाई. रेहान ने दरवाजा खोला. मुझे देख कर हड़बड़ा गए, ‘अरे, तुम तो देर से आने वाली थीं न.’ मैं ने उन की आंखों में देखते हुए कहा, ‘सिर में तेज दर्द हो रहा था, इसलिए जल्दी आ गई.’ आबी भी परेशान हो गई. मैं ने कुछ जाहिर नहीं किया. एक कप दूध पी कर लेट गई.

दिन गुजर रहे थे. मैं ने खामोशी ओढ़ ली. फिर एक दिन रात के खाने के बाद जब सब टीवी देख रहे थे, मैं ने टीवी बंद कर दिया और रेहान से कहा, ‘रेहान, तुम ने रिश्तों को शर्मसार किया है. मैं ने कभी सोचा भी न था आप मेरी बेटी जैसी बहन के इश्क में पागल हो जाएंगे. एक पल को आप को अपने बच्चे, अपने खानदान का खयाल नहीं आया. आप को यह तो मालूम होगा कि बीवी के जिंदा रहते हुए उस की बहन से निकाह हराम है. आप आबिया से शादी कैसे कर सकते हैं?’

दोनों बदहवास से मुंह खोले मुझे देख रहे थे. उन्हें उम्मीद नहीं थी कि मैं इस तरह एकदम सीधा वार करूंगी.

‘बोलिए, आप का निकाह आबिया से कैसे जायज होगा?’

आबिया ने जवाब दिया, ‘जब रेहान आप को तलाक दे देंगे तो निकाह जायज होगा?’

मेरी मांजाई कितने आराम से मुझे मेरी बरबादी की खबर दे रही थी. मैं ने उसे कोई जवाब नहीं दिया. रेहान से मैं ने कहा, ‘आप मुझे तलाक नहीं देंगे.’ रेहान परेशान से लहजे में बोले, ‘शाफी, मैं तुम्हें तलाक नहीं देना चाहता पर तलाक के बिना शादी हो ही नहीं सकती. मैं मजबूर हूं. तलाक के बाद भी मैं तुम्हारा पूरा खयाल रखूंगा. तुम अलग ऊपर गेस्टरूम में रहना, खर्चा पूरा मिलेगा. तुम फिक्र न करो.’

मैं ने तीखे लहजे में कहा, ‘रेहान, मुझे तुम्हारी हमदर्दी की जरूरत नहीं है. तुम को तलाक देने की भी जरूरत नहीं है. मैं कोर्ट में खुला (जब औरत खुद शौहर से अलग होना चाहती है और खर्चा व मेहर मांगने का हक नहीं रहता) की अर्जी दे चुकी हूं. आप के औफिस लैटर आ चुका होगा. 2 दिनों बाद पहली पेशी है. आप को कोर्ट चलना होगा.’

आबी और रेहान के चेहरे सफेद पड़ गए. उन लोगों ने सोचा भी नहीं होगा कि मैं इतना बड़ा कदम इतनी जल्दी उठा लूंगी. मैं ने बच्चों की तरफ देखा. दोनों कुछ परेशान से थे. मैं वहां से उठ कर ऊपर आ गई. घर में सन्नाटा पसर गया.

दहशत – भाग 3 : क्या सामने आया चोरी का सच

शुंभ जब खाली बरतन उठा रहा था तो फोन की घंटी बजने पर प्रीति बैडरूम में चली गई. गौरव से पकौड़ों की तारीफ सुनने पर शुंभ ने सकुचाए स्वर में कहा, ‘‘थैंक यू सर, डरतेडरते बनाए थे बहुत दिनों के बाद, किचन का काम करने की आदत छूट गई है.’’

‘‘क्यों, मैडम खाना नहीं बनवातीं?’’

‘‘जब कभी पार्टी हो तभी. और आज तो अरसे बाद पार्टी हुई है.’’

‘‘मैडम बहुत बिजी रहने लगी हैं?’’

‘‘वे तो हमेशा से ही हैं मगर अब सब सहेलियां दोस्त शादी कर के अपनीअपनी घरगृहस्थी में मगन हो गए हैं. किसी को दूसरों के घर आनेजाने की फुरसत ही नहीं है. पहले तो बगैर पार्टी के भी बहुत आनाजाना रहता था पर अब कोई बुलाने पर भी नहीं आता,’’ शुंभ के स्वर की व्यथा गौरव को बहुत गहरी लगी, ‘‘आजकल तो काम के बाद टीवी देख कर ही समय गुजारती हैं.’’ तभी प्रीति आ गई, ‘‘माफ करिएगा, आप को इंतजार करना पड़ा. लंदन से मम्मीपापा का फोन था. सो, बीच में रखना ठीक नहीं समझा.’’

‘‘आप के मम्मीपापा लंदन में हैं?’’

‘‘जी हां, मेरी डाक्टर बहन के पास. छुटकी अकेली है, सो ज्यादातर उसी के पास रहते हैं.’’

‘‘अकेली तो आप भी हैं,’’ गौरव के मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा. ‘‘यहां और वहां के अकेलेपन में बहुत फर्क है. वैसे यहां भी अब लोग स्वयं में ही व्यस्त रहने लगे हैं. एक कप गरम चाय और चलेगी?’’

‘‘जी नहीं, अब चलूंगा. पकौड़े बहुत खा लिए हैं, सो एफ-1 में बताना भी है कि मैं आज रात को खाना नहीं खाऊंगा. डा. राघव के यहां हम कुछ दोस्त एक नौकर से खाना बनवाते हैं.’’

‘‘खाने के बहाने दोस्तों से गपशप भी हो जाती होगी.’’

‘‘जी हां, और दोस्तों को भी बुलाते रहते हैं. एक रोज आप को भी बुलाऊंगा.’’ इस से पहले कि वह खुद को रोकता, शब्द उस के मुंह से निकल चुके थे लेकिन प्रीति ने बुरा मानने के बजाय सहज भाव से कहा, ‘‘जरूर, मुझे इंतजार रहेगा उस रोज का.’’

‘‘ठीक है, मिलते हैं फिर,’’ कह कर गौरव ने विदा ली. राघव के घर जाने से पहले गौरव ने कालोनी के 2-3 चक्कर लगाए, वह कुछ सोच रहा था और उसे अपनी सोच सही लग रही थी. अगले सप्ताहांत डा. गौरव ने प्रीति को डिनर पर बुलाया. वह इस शर्त पर आना मान गई कि वह 9 बजे के बाद आएगी. गौरव ने कहा कि वे लोग भी 8 बजे के बाद ही घर पहुंचते हैं. लेकिन साढ़े 8 बजे के करीब एफ-1 में हादसा हो गया. बहुत जोर से कुछ गिरने और कांच टूटने की सी आवाज आई. ठंड के बावजूद कई लोग डिनर के बाद टहलने निकले हुए थे. एफ-1 में रहने वाला डा. राघव तभी आया था और अपनी गाड़ी लौक कर रहा था. उस के हाथ से चाबी छूटतेछूटते बची.

‘‘यह क्या हुआ, चौकीदार?’’ उस ने घबराए स्वर में पूछा.

‘‘जो भी हुआ है फर्स्ट फ्लोर पर ही हुआ है साहब, ऐसा लग रहा है जैसे मेरे सिर पर ही कुछ गिरा है,’’ चौकीदार ने सिर सहलाते हुए कहा.

‘‘तुम्हारे सिर पर तो डा. राघव का फ्लैट है,’’ किसी ने कहा, ‘‘चल कर देखिए डाक्टर साहब.’’

‘‘आप लोग भी चलिए न,’’ डा. राघव ने घबराए स्वर में कहा.

‘‘राजू तो घर में होगा साहब.’’

‘‘शायद नहीं, उसे खाना लाने बाजार जाना था,’’ राघव ने सीढि़यां चढ़ते हुए कहा. तभी न जाने कहां से गौरव आ गया, ‘‘क्या हुआ यार, सुना है प्रीति चावला वाला अदृश्य मानुष अपने घर में घुस आया है.’’

राघव ने डरतेडरते  ताला खोला, कमरे में अंधेरा था, ‘‘चौकीदार, टौर्च मिलेगी?’’ ‘‘डर मत यार, मैं अंदर जा कर लाइट जलाता हूं,’’ गौरव ने आगे बढ़ कर लाइट जलाई. उस के पीछे और सब भी कमरे में आ गए. कमरे में ज्यादा सामान नहीं था. डाइनिंगटेबल के पास रखा साइडबोर्ड जमीन पर औंधा पड़ा था और उस में रखे चीनी व कांच के समान के टुकड़े दूरदूर तक फर्श पर बिखरे हुए थे. ‘‘इतना भारी साइडबोर्ड अपने से तो गिर नहीं सकता. जरूर कोई इस से अंधेरे में टकराया है, कमरों में देखो, जरूर कोई छिपा हुआ होगा.’’

‘‘कमरे तो सब बाहर से बंद हैं मित्तल साहब, परदों के पीछे या किचन में होगा,’’ राघव ने कहा.

‘‘वह भाग चुका है राघव, बालकनी का दरवाजा खुला हुआ है. उस से कूद कर भाग गया,’’ गौरव ने कहा.

‘‘लेकिन कूदता हुआ नजर तो आता, बहुत लोग टहल रहे हैं कंपाउंड में.’’

‘‘मेन रोड पर, यहां हैज के पीछे अंधेरे में कौन आता है या इधर देखता भी है,’’ गौरव बोला.

‘‘लेकिन गौरव, सुबह मैं सब के बाद गया था. और मैं ने जाने से पहले बालकनी का दरवाजा भी बंद किया था,’’ राघव ने कहा.

‘‘मैं थोड़ी देर पहले आया था राघव, कुछ क्रिस्टल ग्लास टम्बलर ले कर. उन्हें राजू से धुलवा कर साइडबोर्ड में सजाने और राजू को बाजार भेजने के बाद मैं बालकनी में आ कर खड़ा हो गया था. फिर कपड़े बदलने जाने की जल्दी में मैं बगैर बालकनी बंद किए मेनगेट बंद कर के अपने घर जा रहा था कि आधे रास्ते में ही शोर सुन कर वापस आ गया,’’ गौरव ने कहा.

‘‘आप के पास भी यहां की चाबी है?’’ मित्तल ने पूछा.

‘‘आटोमैटिक लौक को बंद करने के लिए चाबी की जरूरत नहीं होती…’’ इस से पहले कि गौरव अपनी बात पूरी कर पाता, घबराई और उस से भी ज्यादा हड़बड़ाई सी प्रीति आ गई.

‘‘यह मैं क्या सुन रही हूं?’’

‘‘जो सुना वह देख भी लीजिए,’’ गौरव ने हंसते हुए फर्श पर बिखरे कांच की ओर इशारा किया.

‘‘ओह नो, मेरे यहां तो खैर कुछ नुकसान नहीं हुआ था लेकिन…’’

‘‘इस में से कुछ तो बहुत महंगा और बिलकुल नया सामान था जो गौरव ने आज ही खरीदा था और कुछ देर पहले शोकेस में सजाया था,’’ राघव ने प्रीति की बात काटी. ‘‘क्या बात है डा. गौरव, नई क्रौकरी की खरीदारी, बाहर से खाना मंगवाना कोई खास दावतवावत है?’’ एक प्रश्न उछला.

‘‘इन फालतू सवालों के बजाय हम मुद्दे की यानी चोरी की बात क्यों नहीं करते मित्तल साहब?’’ किसी ने तल्ख स्वर में कहा. ‘‘उस की बात क्या करेंगे?’’ गौरव ने कंधे उचकाए, ‘‘बालकनी का दरवाजा खुला छोड़ कर जाने की लापरवाही मैं मान ही रहा हूं, चौकीदार ने मेनगेट तभी बंद करवा दिया था, अब चोर कहां भाग कर गया, यह तो सोसायटी के कर्ताधर्ता ही सोचेंगे. हमें तो यह सोचना है कि रात के खाने का क्या करें, किचन में जाने का रास्ता तो कांच से अटा पड़ा है.’’ ‘‘फिक्र मत कर यार, राजू कुछ खाना बना गया है और कुछ ले कर आता ही होगा. आ कर टूटा हुआ कांच हटा देगा,’’ राघव ने कहा फिर सब की ओर देख कर बोला, ‘‘माफ करिएगा, आप को बैठने को नहीं कह सकते क्योंकि इतनी कुरसियां ही नहीं हैं.’’ ‘‘कोई बात नहीं, हम चलते हैं,’’ कह कर सब चलने लगे और उन के साथ ही प्रीति भी, गौरव उसे रोकने के बजाय उस के साथ ही चल दिया.

‘‘आप कहां चल दिए डा. गौरव, बगैर खाना खाए?’’ मित्तल ने पूछा.

‘‘घर कपड़े बदलने, मैं अस्पताल के कपड़ों में खाना नहीं खाता.’’

‘‘खाना खाने का मूड रहा है अब?’’ प्रीति ने धीरे से पूछा.

‘‘एक डाक्टर होने के नाते मूड के लिए न तो खुद खाना छोड़ता हूं और न किसी को छोड़ने देता हूं,’’ गौरव मुसकराया, ‘‘आप भी चेंज कर लीजिए, फिर वापस आते हैं एफ-1 में.’’

हवस की मारी : रेशमा और विजय की कहानी – भाग 3

‘‘मेरे पिता मेरी मां को बहुत प्यार करते थे. मां की अचानक मौत से वे इतने दुखी हुए कि उन्होंने खूब शराब पीनी शुरू कर दी. मैं बड़ी होने लगी थी, मुझ में अच्छेबुरे की समझ भी आने लगी थी.

‘‘पिता ने एक के बाद एक 4 शादियां कर डालीं. पहली 2 बीवियों को वे अपने दोस्तों को सौंपते रहे, जिस से तंग आ कर उन्होंने नदी में डूब कर जिंदगी खत्म कर ली.

‘‘तीसरी से शादी रचा कर उस के साथ भी वही बुरा काम वे करते रहे. उस ने बहुत समझाया, पर पिता नहीं माने. ‘‘एक दिन उस ने भी अपने मायके में जा कर खुदकुशी कर ली.

‘‘मेरे पिता पर उन की खुदकुशी करने का कोई असर नहीं पड़ा. पैसे के बल पर उन के खिलाफ कोई केस नहीं बन पाया.

‘‘चौथी औरत इतनी खूबसूरत थी कि अपने प्रेमभाव से मेरे पिता को वश में करते हुए उन की बुरी आदतें कई महीने तक छुड़ा दीं. तब मैं 15 साल की उम्र पार कर चुकी थी.

‘‘चौथी मां भी मुझे अपनी सगी बेटी की तरह प्यार करती थी. 3 साल तक वह मुझे पालती रही, लेकिन उसे कोई ऐसी खतरनाक बीमारी लगी कि मर गई.

‘‘मेरे जल्लाद पिता फिर से शराब पीने लगे, बाजारू औरतों को घर में बुला कर ऐयाशी करने लगे. मैं अकसर देखती, तो आंखें बंद कर लेती.

‘‘उन के दोस्त भी अकसर घर पर आ कर शराब पीते और औरतों से ऐश करते. उन की गिद्ध जैसी नजरें मुझे भी देखतीं, मानो मौका पाते ही वे मुझे भी नहीं छोड़ेंगे.

‘‘मैं उन से दूर रहती थी. उन से बचने के लिए अकसर रात को अपनी सहेलियों के यहां सो जाती थी.

‘‘एक दिन मेरे पिता नशे में चूर किसी नाचगाने वाली के यहां से लौटे थे. उन की निगाह मुझ पर पड़ी. मैं मैक्सी पहने सो रही थी. शायद मेरा कपड़ा कुछ ज्यादा ही ऊपर तक खिसक गया था.

‘‘नशे में चूर वे अपने खून की ममता भूल गए और मेरे पलंग पर आ बैठे. छेड़ते हुए मेरे जिस्म को सहलाने लगे.

‘‘मेरी नींद खुली, तो वे बोले, ‘लेटी रहो. बिलकुल अपनी मां की सूरत पाई है तुम ने, कोई फर्क नहीं. उस की याद आ गई, तो तुम्हें गौर से देखने लगा.’

‘‘उस के बाद मैं ने बहुत हाथपैर पटके, पर वे नहीं माने. उन्होंने मुझे अपनी हवस का शिकार बना डाला. मैं बहुत रोई, लेकिन उन पर कोई असर नहीं पड़ा.

‘‘उस दिन के बाद से वे अकसर मेरे साथ वही कुकर्म करते रहे. मैं उन के खिलाफ किस से क्या फरियाद करती. 2 बार खुदकुशी करने की कोशिश की, पर बचा ली गई.’’

इतना कह कर रेशमा रोने लगी. विजय चाहता था कि उस के रो लेने से उस का मन शांत हो जाएगा. सालों की आग जो दिल में छिपाए उसे तपा रही थी, आंसू बन कर निकल जाएगी.

‘‘मेरी शादी आप के यहां इसलिए खूब दहेज दे कर कर दी गई, जिस से सब का मुंह बंद रहेगा. मुझे शादी के चौथे दिन बाद उस पिता ने बुलवा लिया. उस का पाप मेरी कोख में पलने लगा था. अगर उजागर हो जाता, तो उस की बदनामी होती. मेरा पेट गिरवा दिया गया.

डेढ़ महीने बाद ठीक हुई, तो मुझ फिर यहां पटका गया, ताकि जिंदगीभर उस कलंक को छिपा कर रखूं. ‘‘मैं नहीं चाहती कि मेरे इस पाप की छाया आप जैसे अच्छे इनसान पर पड़े. आप मुझे दासी समझ कर यहां पड़ी रहने दीजिए.

‘‘अगर आप ने मुझे घर से निकाल दिया, तो मेरे पिता आप को और आप के घर वालों पर मुकदमा चला कर परेशान कर डालेंगे. आप चुपचाप दूसरी शादी कर लें, मेरे पिता आप लोगों के खिलाफ कुछ नहीं कर पाएंगे. जब मैं चुप रहूंगी, तो कोई कोर्ट मेरे पिता की आवाज नहीं सुनेगा,’’

इतना कह कर रेशमा विजय के पैरों पर गिर पड़ी. ‘‘तुम ने अपनी आपबीती बता कर अपने मन को हलका कर लिया. समझ लो कि तुम्हारे साथ अनजाने में जो हुआ, वह एक डरावना सपना था.

‘‘मैं तुम्हारे दर्द को महसूस करता हूं. उठो, रेशमा उठो, तुम ने कोई पाप नहीं किया. तुम्हारी जगह मेरे दिल में है. तुम्हारी चुनरी का दाग मिट गया. ‘‘आज से तुम्हारी जिंदगी का नया सवेरा शुरू हुआ, जो अंत तक सुखी रखेगा,’’ कहते हुए विजय ने उसे उठाया, उस की आंखें पोंछीं और सीने से लगा लिया.

रेशमा भी विजय का प्यार पा कर निहाल हो गई.

घर का न घाट का: क्या धोखेबाज निकला सुरेश -भाग 3

रात के 12 बज रहे थे. रास्ता ठीक तरह मालूम नहीं था, फिर भी वह झील की तरफ चली जा रही थी. तभी एक टैक्सी पास से निकली और आगे जा कर रुक गई. सुदेश के प्राण सूख गए. आकाश से गिरी, खजूर में अटकी. जाने अब क्या हो. कौन हो? कहीं सुरेश ही तो नहीं? सुरेश नहीं था. पर जो अजनबी था वह बहुत अपना सा लग रहा था. चेहरा दाढ़ीमूंछ में छिपा था, पर ईमानदारी, भोलापन, सच्चरित्रता आंखों से छलकी पड़ रही थी. वह सरदार सतवंत सिंह टैक्सी ड्राइवर था. सुदेश ने परदेश में पहली बार किसी सरदार को देखा था. उसे लगा जैसे वह पंजाब में कहीं अपने गांव में खड़ी है. भारतीय स्त्री को देख कर सतवंत सिंह भी चौंका. वह उसे बेहद डरी हुई दिख रही थी.

सतवंत ने अनुमान लगाया कि वह झील में डूब कर आत्महत्या करने जा रही है. उस ने अधिक पूछताछ न कर के टैक्सी का पीछे का द्वार खोल कर एक प्रकार से जबरन सुदेश को भीतर ढकेल दिया. अपने डेरे पर पहुंच कर सुदेश को सब तरह से तसल्ली दे कर उस की आपबीती सुनी. सुदेश ने जब कहना बंद किया तो सतवंत सिंह की आंखें नम हो चुकी थीं. 3 साल पहले उस की अपनी सगी बहन सुरेंद्र कौर को भी कोई डाक्टर इसी प्रकार ब्याह कर ले आया था. बहुत दिनों बाद बहन ने जैसेतैसे किसी प्रकार फोन किया थी. पर जब तक सतवंत यहां तक पहुंचने का जुगाड़ कर पाया, वह जीवन से तंग आ कर आत्महत्या कर चुकी थी. उस ने ऐसे कितने ही किस्से सुनाए कि किस प्रकार प्रवासी भारतीय छुट्टियों में देश जाने पर विवाहित होते हुए भी दूसरी शादी कर लेते हैं. कोईकोई तो मोटा दहेज भी समेट लेते हैं. उस लड़की को फिर रखैल की तरह रख लेते हैं. पतिव्रता भारतीय स्त्री पति को सबकुछ मानने वाली, रोधो कर जिंदगी से समझौता कर लेती है. जिस हाल में पति रखे, उसी में खुश रहने की कोशिश करती है. कुछ तो इतने नीच होते हैं कि अपनी पत्नी को बेच तक डालते हैं.

अकसर ऐसी शादियां चटपट हो जाती हैं. लड़के की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का स्वदेश में किसी को पता नहीं रहता. जैसा कह दिया वैसा मान लिया. लड़कियों को भी विदेश घूमने का चाव रहता है. इस से अभिभावक का बोझ सहज ही हलका हो जाता है. कन्या के साथ क्या बीत रही है, कौन देखने आता है, किस को खबर मिलती है? सतवंत ने सुदेश के आंसू पोंछे. वह सतवंत से भारत पहुंचा दिए जाने की जल्दी कर रही थी, पर सतवंत ने कहा कि अपराधी को भी तो कुछ दंड मिलना चाहिए. उस ने अपने जानपहचान के एक वकील से सलाह की. तदानुसार उस ने सुदेश के घर फोन कर शादी पर छपे निमंत्रणपत्र की तथा शादी में खिंचे सभी फोटोग्राफों की प्रतियां मंगाईं. वकील के माध्यम से ये सब चीजें सूजेन के पिता को दिखाई गईं. वह करोड़पति एकदम भड़क गया.

सुरेश से बात करने से पहले उस ने सुरेश और सुदेश के कुछ युगल चित्र सूजेन को दिखाए. शादी के फोटो सूजेन गंभीरता से देखती रही. शायद वह उसे कोई धार्मिक रीतिरिवाज समझ रही थी. वरवधू के वेश में सुरेश व सुदेश ठीक से पहचाने भी नहीं जा रहे थे. पर नैनीताल के फोटो देख कर तो सूजेन एकदम बिदक गई. कहीं झील में नाव पर, कहीं पहाड़ी की चोटी पर, कहीं जुल्फें संवारते हुए, कहीं शरारत से मुसकराते हुए, चित्रों से दिलों की धड़कनें साफ सुनाई पड़ रही थीं. इन चित्रों में सुदेश को सूजेन ने पहचान लिया. घर पहुंचते ही उस ने सुरेश की खबर ली, ‘‘तुम तो उसे नौकरानी बताते थे. क्या तुम ने उस से शादी नहीं की है? तुम ने ऐसा क्यों किया? आखिर मुझ में क्या कमी थी? क्या मैं सुंदर नहीं थी? क्या मुझे सलीका नहीं आता था? क्या मैं कम पढ़ीलिखी थी? क्या नहीं था मुझ में? तुम्हें नौकरी दिलाई. फ्लैट का मालिक बनवाया. गाड़ी दिलाई. क्या नहीं दिया? लेकिन तुम…तुम…’’ और उस ने गुस्से में गालियां बकनी आरंभ कर दीं.

सुरेश ने समझाने की बहुत कोशिश की, पर उस रात सूजेन ने शयनकक्ष के दरवाजे नहीं खोले. स्टोर में जहां सुदेश रात काटती थी, वहीं उसे भी करवटें बदलनी पड़ीं. वह बहुत परेशान था. सुदेश गायब हो चुकी थी. वह अब कहां है, उसे इस बारे में कोई पता नहीं. हवाईअड्डे पर उस ने हुलिया लिखा दिया. यह तो वह जान चुका था कि अभी वह वहीं अमेरिका में है. वैसे उस का जाना भी मुश्किल था. उस के पास किराए के पैसे कहां थे. न ही वह कुछ तौरतरीका जानती है. पर आखिर सूजेन को किस ने भड़का दिया? वह कुछ तालमेल नहीं बैठा पा रहा था. सुदेश के गायब हो जाने की उसे इतनी चिंता नहीं थी जितनी सूजेन के ऐंठ जाने की. सोने का अंडा देने वाली मुरगी यदि किनारा कर गई तो? सुदेश के बारे में उसे लगता था कि वह रेल या ट्रक से कहीं मरकट गई होगी या उस ने किसी प्रकार से आत्महत्या कर ली होगी. उसे तो सूजेन की चिंता थी. अगले दिन कंपनी के डायरैक्टर और सूजेन के पिता ने उसे अपने कक्ष में बुलाया और स्पष्टीकरण देने के लिए कहा. सुरेश के चिंतित चेहरे को देख कर कोई भी सचाई का सहज अनुमान लगा सकता था. उस ने अपनी सफाई देते हुए कहा कि इस सारे कांड के पीछे कोई ऐसा आदमी है जो डराधमका कर अपना काम निकालना चाहता है. व्यवहारकुशल डायरैक्टर ने सुरेश को एक सप्ताह का समय दिया.

सुदेश का मन अमेरिका में बिलकुल नहीं लग रहा था. पर प्रश्न यह था कि वह घर जाने का साधन कैसे जुटाए. किस के साथ जाए? सहमतेसहमते उस ने सतवंत से अपना मंतव्य प्रकट किया. सतवंत को कोई आपत्ति नहीं थी. यहां का काम तो उस का वकील संभाल लेगा. उस की कोई विशेष आवश्यकता भी नहीं थी. केवल ठीक से पलीता लगाने की बात थी. वह काम हो ही चुका था. अब तो विस्फोट की प्रतीक्षा थी. पर सवाल यह था कि वह स्वदेश लौटे तो कैसे. सतवंत भी कोई धन्ना सेठ नहीं था. 3 साल में टैक्सी चला कर यहां जो कमाया था उस से टैक्सी खरीद ली थी. फक्कड़ आदमी था, मस्त रहता था. सुदेश ने जब अपने जेवर उस के सामने रखे तो वह उस की समझदारी का कायल हो गया, बोला, ‘‘देशी, तू ने तो पढ़ेलिखों के भी कान काट दिए.’’ वह सुदेश को ‘देशी’ कह कर पुकारता था. उसी प्रकार जैसे सूजेन सुरेश को ‘रेशी’ कह कर पुकारती थी. वहां ऐसी ही प्रथा थी. अधिक लाड़ में किसी को संबोधित करना होता था तो अंतिम 2 शब्दों पर ‘ई’ की मात्रा लगा दी जाती थी. सतवंत ने भी वतन लौटने का प्रोग्राम बना लिया. न्यूयौर्क में उस के कुछ जानकार लोग थे. टैक्सी और जेवर का ठीकठाक सौदा हो गया.

बिना पूर्वसूचना के एक शाम सुदेश सतवंत के साथ सात समंदर पार कर अंबाला में अपने घर के द्वार पर खड़ी थी. घर वाले हैरान थे. उस से भी बड़ी हैरानी की बात थी सतवंत का साथ होना. सुदेश के छोटे भाईबहन खुसुरफुसुर कर रहे थे, ‘‘शादी पर तो जीजाजी की दाढ़ीमूछ नहीं थी?’’ सब से छोटी बेबी बोली, ‘‘मैं बताऊं, नकली होगी.’’ बच्चों के सो जाने के बाद सुदेश ने अपनी करुण कहानी घर वालों को सुनाई. पीठ उघाड़ कर मार के निशान दिखाए. उन्हें बताया कि घर से भागते समय उसे यह आशा नहीं थी कि अब वह कभी मातापिता से मिल भी सकेगी. सतवंत का वह लाखलाख शुक्रिया कर रही थी. वह नहीं मिलता तो पता नहीं आज वह कहां होती.

बेरुखी : पति को क्यों दिया ऐश्वर्या ने धोखा – भाग 3

अब इंसपेक्टर शर्मा को गार्ड से उस की शिनाख्त करानी थी. वह गार्ड को अपनी कार में बैठा कर उसी जगह खड़े हो गए, जहां एक दिन पहले ऐश्वर्या कार पर सवार हुई थी. थोड़ी देर में वह कार आई तो गार्ड ने सलीम की पहचान कर दी. अगले दिन इंसपेक्टर शर्मा ऐश्वर्या के फ्लैट पर पहुंचे. जब उन्होंने उस से सलीम के बारे में पूछा तो वह सकते में आ गई. उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘सलीम मेरा भाई है.’’

‘‘कहां रहता है?’’

‘‘भदोही में.’’ ऐश्वर्या ने कहा.

ऐश्वर्या इस बात की सूचना सलीम को दे सकती थी, इसलिए इंसपेक्टर शर्मा ने पहले ही अपनी एक टीम वहां भेज दी थी. वह ऐश्वर्या के घर से सीधे निकले और सलीम के घर की ओर चल पड़े. पता उन के पास था ही. भदोही पहुंच कर उस की आलीशान कोठी देख कर वह दंग रह गए. उन्होंने गार्ड से सलीम के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि वह तो औफिस में है. पता ले कर इंसपेक्टर औफिस पहुंचे तो वहां वह मिल गया. उन्होंने सीधे पूछा, ‘‘रुखसाना उर्फ ऐश्वर्या से आप का क्या संबंध है?’’

‘‘रुखसाना मेरे यहां रिसैप्शनिस्ट थी. 2 साल मेरे यहां काम करने के बाद उस ने किसी नरेश नाम के व्यक्ति से कोर्टमैरिज कर ली थी.’’

‘‘शादी के बाद वह कहां गई?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम.’’

‘‘थोड़ा कोशिश कीजिए, शायद याद आ जाए.’’

‘‘वह मेरे लिए एक कर्मचारी से ज्यादा कुछ नहीं थी, इसलिए मैं उस के बारे में पता कर के क्या करूंगा?’’ कह कर सलीम ने पल्ला झाड़ना चाहा. तभी एक कर्मचारी ने अंदर आ कर उस के सामने एक पर्ची रख दी. पर्ची पढ़ कर सलीम ने कहा, ‘‘माफ कीजिए इंसपेक्टर साहब, एक जरूरी काम आ गया है, मैं अभी आता हूं.’’

कर्मचारी से चाय लाने को कह कर सलीम बाहर आया. इंसपेक्टर ने उस कंप्यूटर की स्क्रीन अपनी ओर मोड़ ली, जो सीसीटीवी कैमरे से जुड़ा था. स्क्रीन पर ऐश्वर्या उर्फ रुखसाना का चेहरा दिख रहा था. हालांकि वह बुरके में थी, लेकिन अंदर आ कर उस ने चेहरा खोल लिया था. उसे देख कर इंसपेक्टर शर्मा हैरान रह गए. उन्हें पक्का यकीन हो गया कि नरेश की हत्या के पीछे इन्हीं दोनों का हाथ है.

ऐश्वर्या ने पूछा, ‘‘इंसपेक्टर तो नहीं आया था?’’

‘‘वह अंदर बैठा है.’’ सलीम ने कहा, ‘‘उसे यहां का पता कैसे मिला?’’

‘‘मैं ने बताया है. उस से तुम्हें अपना भाई बताया है.’’

‘‘बेवकूफ, तुम ने तो सारा खेल बिगाड़ दिया.’’ सलीम फुसफुसाते हुए चीखा.

‘‘मैं ने कैसे खेल बिगाड़ दिया?’’

‘‘तुम्हें यह कहने की क्या जरूरत थी कि मैं तुम्हारा भाई हूं.’’

‘‘और क्या कहती?’’

‘‘मैं ने उसे सचसच बता दिया है कि तुम मेरे यहां रिसैप्शनिस्ट थी.’’

‘‘अब क्या होगा?’’ ऐश्वर्या बेचैनी से बोली.

‘‘अब जो भी होगा, हम दोनों झेलेंगे. फिलहाल तुम जिस तरह आई हो, वैसे ही लौट जाओ.’’ सलीम ने कहा और औफिस में आ कर बैठ गया. उस के बैठते ही इंसपेक्टर शर्मा ने कहा, ‘‘आप रुखसाना को पहचान तो सकते हैं? इस के लिए आप को मेरे साथ वाराणसी चलना होगा.’’

‘‘मेरे पास समय नहीं है.’’

‘‘समय निकालना होगा.’’ इंसपेक्टर शर्मा ने घुड़का तो वह साथ चल पड़ा. पहले तो वह कहता रहा कि वह रुखसाना के बारे में कुछ नहीं जानता. लेकिन जब इंसपेक्टर शर्मा ने कहा कि उन के पास इस बात के सबूत हैं कि उस का रुखसाना उर्फ ऐश्वर्या से अवैध संबंध था तो वह सन्न रह गया.

थाने पहुंच कर इंसपेक्टर शर्मा ने ऐश्वर्या उर्फ रुखसाना, सलीम और गार्ड को आमनेसामने किया तो सारा रहस्य उजागर हो गया. गार्ड ने सलीम की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यही साहब अकसर ऐश्वर्या मैडम से मिलने देर शाम को आया करते थे.’’

अब सिवाय अपना अपराध स्वीकार करने के उन दोनों के पास कोई उपाय नहीं बचा था. सलीम और ऐश्वर्या फंस चुके थे. अब इंसपेक्टर शर्मा यह जानना चाहते थे कि ऐश्वर्या उर्फ रुखसाना ने सलीम के साथ मिल कर नरेश की हत्या क्यों की थी?

पूछताछ शुरू हुई तो रुखसाना ने सिसकते हुए कहा, ‘‘सलीम के यहां नौकरी करते हुए उन से मेरे नाजायज संबंध बन गए थे. मैं इन से निकाह करना चाहती थी, लेकिन इन्होंने मना कर दिया. यह मुझे बीवी नहीं, रखैल बना कर रखना चाहते थे, जो मुझे मंजूर नहीं था. इन की बेवफाई से मैं हताश हो उठी. तभी नरेश से मेरी मुलाकात हुई. फिर मैं ने उन्हें पाने में देर नहीं की.’’

‘‘आप ने नरेश को धोखा क्यों दिया, जबकि उस ने तुम्हारे लिए अपने खून के रिश्ते तक को छोड़ दिया था?’’

‘‘वह सुबह निकलते थे तो देर रात को ही घर आते थे. उन पर काम का बोझ इतना अधिक था कि आते ही खापी कर सो जाते थे. जबकि मैं चाहती थी कि वह मुझे समय दें, मुझ से बातें करें, घुमानेफिराने ले जाएं. लेकिन उन्हें अपने काम के अलावा कुछ सूझता ही नहीं था, जिस से मैं चिढ़ जाती थी.’’

‘‘वह तुम्हारी हर सुखसुविधा का खयाल रखते थे, क्या यह कम था?’’

‘‘एक औरत को सिर्फ सुखसुविधा ही नहीं चाहिए. उस की और भी ख्वाहिशें होती हैं. अगर उन के पास मेरे लिए समय नहीं था तो वह मुझ से शादी ही न करते.’’ सिसकते हुए ऐश्वर्या ने कहा.

‘‘इस का मतलब यह तो नहीं कि किसी और से संबंध बना लिया जाए.’’ इंसपेक्टर शर्मा ने कहा, ‘‘चलो संबंध बना लिया, ठीक था, लेकिन नरेश को मार क्यों दिया?’’

‘‘नरेश की बेरुखी की वजह से मैं ने सलीम से दोबारा जुड़ने का मन बनाया. इत्तफाक से उसी बीच एक मौल में मेरी मुलाकात सलीम से हो गई. यह खरीदारी करने आए थे. इन्होंने मुझ से फोन नंबर मांगा तो मैं ने दे दिया. उस के बाद बातचीत तो होने ही लगी, मिलनाजुलना भी शुरू हो गया. सलीम मेरी हर ख्वाहिश पूरी करते थे. यह अकसर देर शाम को मेरे घर आते और सुबह जल्दी चले जाते.’’

‘‘तुम्हारे पति ऐतराज नहीं करते थे?’’

‘‘मैं उन्हें रात की कौफी में ज्यादा मात्रा में नींद की गोलियां मिला कर दे देती थी, जिस से वह गहरी नींद सो जाते थे. एक रात उन की नींद खुल गई. मुझे अपने पास न पा कर जब वह उठे तो दूसरे कमरे में लाइट जलती देख कर वहां आ गए. सलीम को मेरे साथ देख कर वह कुछ पूछते, उस के पहले ही हम दोनों ने उन्हें कस कर पकड़ लिया. सलीम ने उन के हाथ पकड़ लिए तो मैं ने उन के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया. इस के बाद जमीन पर गिरा कर सलीम तब तक उन का गला दबाए रहा, जब तक उस की मौत नहीं हो गई. उस के बाद रात में लाश को ले जा कर कुएं में डाल दिया.’’

पूछताछ के बाद इंसपेक्टर शर्मा ने ऐश्वर्या उर्फ रुखसाना और सलीम को वाराणसी की अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. इन दोनों का क्या होगा, यह तो समय बताएगा, पर नरेश को तो ऐश्वर्या उर्फ रुखसाना की खूबसूरती पर मरमिटने की सजा मिल गई. आज की नई पीढ़ी सीरत पर नहीं, सूरत पर मर रही है, जिस का वह खामियाजा भी भुगत रही है.

तेजतर्रार तिजोरी : रघुवीर ने अपनी बेटी का नाम तिजोरी क्यों रखा – भाग 3

सुनील उस आंख पर हाथ रखता हुआ जोर से चिल्लाया, ‘‘हाय, मेरी आंख गई,’’ कह कर वह खेत की मिट्टी में गिरने लगा, तो पीछे खड़ी तिजोरी ने उसे अपनी बांहों में संभाल लिया और उस का सिर अपनी गोद में ले कर वहीं खेत में बैठ गई.

तिजोरी ने गौर किया कि सुनील की आंख के पास से खून तेजी से बह रहा है. आसपास काम करते मजदूर भी वहां आ गए. उन में से एक मजदूर बोल पड़ा, ‘‘कहीं आंख की पुतली में तो चोट नहीं लगी है? तिजोरी बिटिया, इसे तुरंत आंखों के अस्पताल ले जाओ.’’

सुनील की आंखों से खून लगातार बहा जा रहा था. कुछ देर चीखने के बाद सुनील एकदम सा निढाल हो गया. उसे यह सुकून था कि इस समय उस का सिर तिजोरी की गोद में था और उस की एक हथेली उस के बालों को सहला रही थी.

तिजोरी ने महेश को श्रीकांत के पास यह सूचना देने के लिए भेजा और एक ट्रैक्टर चलाने वाले मजदूर को आदेश दे कर खेत में खड़े ट्रैक्टर में ट्रौली लगवा कर उस में पुआल का गद्दा बिछवा कर सुनील को ले कर अस्पताल आ गई.

यह अच्छी बात थी कि उस गांव में आंखों का अस्पताल था, जिस में एक अनुभवी डाक्टर तैनात था. तिजोरी की मां के मोतियाबिंद का आपरेशन उसी डाक्टर ने किया था.

तिजोरी ने सुनील को वहां दाखिल कराया और डाक्टर से आंख में चोट लगने की वजह बताते हुए बोली, ‘‘डाक्टर साहब, इस की आंख को कुछ हो गया, तो मैं अपनेआप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘तू चिंता न कर, मुझे चैक तो करने दे,’’ कह कर डाक्टर ने स्टै्रचर पर लेटे सुनील को अपने जांच कमरे में ले कर नर्स से दरवाजा बंद करने को कह दिया.

तिजोरी घबरा तो नहीं रही थी, पर लगातार वह अपने दिल में सुनील की आंख में गंभीर चोट न निकलने की दुआ कर रही थी. महेश के साथ श्रीकांत भी वहां पहुंच गया था.

अस्पताल के गलियारे में इधर से उधर टहलते हुए तिजोरी लगातार वहां लगी बड़े अक्षरों वाली घड़ी को देखे जा रही थी. तकरीबन 50 मिनट के बाद डाक्टर ने बाहर आ कर बताया, ‘‘बेटी, बड़ी गनीमत रही कि गुल्ली भोंहों के ऊपर लगी. थोड़ी सी भी नीचे लगी होती, तो आंख की रोशनी जा सकती थी.’’

‘‘डाक्टर साहब, क्या मैं सुनील से मिल सकती हूं?’’

‘‘हां, ड्रैसिंग कंप्लीट कर के नर्स बाहर आ जाए तो तुम अकेली जा सकती हो. पेशेंट के पास अभी ज्यादा लोगों का होना ठीक नहीं है,’’ डाक्टर ने कहा.

नर्स के बाहर आते ही तिजोरी लपक कर अंदर पहुंची. सुनील की चोट वाली आंख की ड्रैसिंग के बाद पट्टी से ढक दिया गया था, दूसरी आंख खुली थी.

तिजोरी सुनील के पास पहुंची. उस ने अपनी दोनों हथेलियों में बहुत हौले से सुनील का चेहरा लिया और बोली, ‘‘बहुत तकलीफ हो रही है न. सारा कुसूर मेरा है. न मैं तुम्हें गुल्लीडंडा खिलाने ले जाती और न तुम्हें चोट लगती.’’

तिजोरी को उदास देख कर सुनील अपने गालों पर रखे उस के हाथ पर अपनी हथेलियां रखता हुआ बोला, ‘‘तुम्हारा कोई कुसूर नहीं है तिजोरी, मैं ही उस समय असावधान था. तुम्हारे बारे में सोचने लगा था… इतने अच्छे स्वभाव की लड़की मैं ने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखी,’’ कहतेकहते सुनील चुप हो गया.

तिजोरी समझ गई और बोली, ‘‘चुप क्यों हो गए… मन में आई हुई बात कह देनी चाहिए…’’

‘‘लेकिन, न जाने क्यों मुझे डर लग रहा है. मेरी बात सुन कर कहीं तुम नाराज न हो जाओ.’’

‘‘नहीं, मैं नाराज नहीं होती. मुझे कोई बात बुरी लगती है, तो तुरंत कह देती हूं. तुम बताओ कि क्या कहना चाह रहे हो.’’

‘‘दरअसल, मैं ही तुम को चाहने लगा हूं और चाहता हूं कि तुम से ही शादी करूं.’’

तिजोरी ने सुनील के गालों से अपने हाथ हटा लिए और उठ कर खड़े होते हुए बोली, ‘‘मुझ से शादी करने के लिए अभी तुम्हें 2 साल और इंतजार करना होगा. ठीक होने के बाद तुम्हें मेरे पिताजी से मिलना होगा.’’

इतना कह कर तिजोरी बाहर चली आई. श्रीकांत और महेश तो वहां इंतजार कर ही रहे थे, लेकिन अपने पिता को उन के पास देख कर वह चौंक पड़ी. उन के पास पहुंच कर वह सीने से लिपट पड़ी, ‘‘आप को कैसे पता चला?’’

‘‘मेरे खेतों में कोई घटना घटे, और मुझे पता न चले, ऐसा कभी हुआ है? मैं तो बस उस लड़के को देखने चला आया और अंदर भी आ रहा था, पर तुम दोनों की बातें सुन कर रुक गया. अब तू यह बता कि तू क्या चाहती है?’’

‘‘मैं ने तो उस से कह दिया है कि…’’ तिजोरी अपनी बात पूरी नहीं कर पाई थी कि रघुवीर यादव ने बात पूरी की…  ‘‘2 साल और इंतजार करना होगा.’’

अपने पिता के मुंह से अपने ही कहे शब्द सुन कर तिजोरी के चेहरे पर शर्म के भाव उमड़ आए और उस ने अपने पिता की चौड़ी छाती में अपना चेहरा छिपा लिया.

रघुवीर यादव अपनी बेटी की पीठ थपथपाने के बाद उस के बालों पर हाथ फेरने लगे. उन्होंने अपनी जेब से 10,000 रुपए निकाल कर श्रीकांत को दिए और बोले, ‘‘बेटा, यह सुनील के इलाज के लिए रख लो. कम पड़ें तो खेत में काम कर रहे किसी मजदूर से कह देना. खबर मिलते ही मैं और रुपए पहुंचा दूंगा,’’ इतना कह कर वे तिजोरी और महेश को ले कर घर की तरफ बढ़ गए.

अगले दिन तिजोरी अपने भाई महेश रोज की तरह के साथ खेत पर गई. आज उस का मन खेत पर नहीं लग रहा था. पानी पीने के लिए वह गोदाम की तरफ गई, तो उस ने किनारे जा कर बिजली महकमे के स्टोर की तरफ झांका.

तभी सामने वाली सड़क पर एक मोटरसाइकिल रुकी. उस पर बैठा लड़का सिर पर गमछा लपेटे और आंखों में चश्मा लगाए था. तिजोरी को देखते ही उस ने मोटरसाइकिल पर बैठेबैठे ही हाथ हिलाया, पर तिजोरी ने कोई जवाब नहीं दिया. वह उसे पहचानने की कोशिश करने लगी, पर दूरी होने के चलते पहचान न सकी.

तभी जब स्टोर में काम करते श्रीकांत की नजर तिजोरी पर पड़ी, तो श्रीकांत उसे वहां खड़ा देख उस के करीब चल कर जैसे ही आया, वह बाइक सवार अपनी बाइक स्टार्ट कर के चला गया.

तिजोरी के करीब आ कर श्रीकांत बोला, ‘‘हैलो तिजोरी, कैसी हो?’’

उस बाइक सवार को ले कर तिजोरी अपने दिमाग पर जोर देते हुए उसे पहचानने की कोशिश रही थी, लेकिन श्रीकांत की आवाज सुन कर वहां से ध्यान हटाती हुई बोली, ‘‘मैं ठीक हूं. यहां से खाली हो कर तुम्हारे बौस को देखने अस्पताल जाऊंगी. वैसे, कैसी तबीयत है उन की?’’

‘‘आज शाम तक उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी. डाक्टर का कहना है कि चूंकि आंख के बाहर का घाव है, इसलिए वे एक आंख पर पट्टी बांधे काम कर सकते हैं. मैं शाम को उन्हें ले कर सरकारी गैस्ट हाउस में आ जाऊंगा.’’

‘‘लेकिन, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जब वे पूरी तरह से ठीक हो जाएं, तब काम करना शुरू करें?’’

‘‘चोट गंभीर होती तो वैसे भी वे काम नहीं कर पाते, पर जब डाक्टर कह रहा है कि चिंता की कोई बात नहीं, तो दौड़भाग का काम मैं देख लूंगा और इस स्टोर को वे संभाल लेंगे. फिर हमें समय से ही काम पूरा कर के देना है, तभी अगला कौंट्रैक्ट मिलेगा.’’

‘‘ठीक है, मुझे कल भी खेत पर आना ही है. यहीं पर कल उस से मिल लूंगी. तुम्हें अगर प्यास लग रही हो, तो मैं फ्रिज से पानी की बोतलें निकाल कर देती जाऊं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘ठीक है, मैं चलती हूं. कल मिलूंगी,’’ कह कर तिजोरी उस खेत की तरफ चली गई जहां बालियों से गेहूं और भूसा अलग कर के बोरियों में भरा जा रहा था.

अगले दिन पिताजी के हिसाबकिताब का बराबर मिलान करने के चलते तिजोरी को देर होने लगी. जैसे ही हिसाब मिला, तो वह उसे फेयर कर के लिखने का काम महेश को सौंप कर अकेले ही खेत की तरफ आ गई.

चूंकि तिजोरी तेज चलती हुई आई थी और उसे प्यास भी लग रही थी, इसलिए उस ने सोचा कि पहले गोदाम में जा कर घड़े से पानी पी ले और फिर सुनील का हालचाल लेने चली जाएगी.

तिजोरी ने गोदाम के शटर के दोनों ताले खोले और अंदर घुस कर घड़े की तरफ बढ़ ही रही थी कि अचानक शटर गिरने की आवाज सुन कर वह पलटी. कल जो बाइक पर सवार लड़का था, उसे वह पहचान गई, फिर उस के बढ़ते कदमों के साथ इरादे भांपते हुए वह बोली, ‘‘ओह तो तुम शंभू हो. मुझे लग रहा है कि उस दिन मैं ने तुम्हारी नीयत को सही पहचान लिया था… लगता है, उसी दिन से तुम मेरी फिराक में हो.’’

‘‘ऐसा है तिजोरी, शंभू जिसे चाहता है, उसे अपना बना कर ही रहता है. उस दिन तो मैं तुम्हें देखते ही पागल हो गया था. आज मौका मिल ही गया. अब तुम्हारे सामने 2 ही रास्ते हैं… या तो सीधी तरह मेरी बांहों में आ जाओ, नहीं तो…’’ कह कर वे उसे पकड़ने के लिए लपका.

तिजोरी ने गोदाम के ऊपर बने रोशनदानों की ओर देखा और ऊपर मुंह कर के पूरी ताकत से चिल्लाना शुरू कर दिया, ‘‘बचाओ… बचाओ…’’

तिजोरी को चिल्लाता देख शंभू तकरीबन छलांग लगाता उस तक पहुंच गया. तिजोरी की एक बांह उस की हथेली में आई, लेकिन तिजोरी सावधान थी, इसलिए पकड़ मजबूत होने से पहले उस ने अपने को छुड़ा कर शटर की तरफ ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाते हुए दौड़ लगानी चाही, पर इस बार शंभू ने उसे तकरीबन जकड़ लिया.

तभी शटर के तेजी से उठने की आवाज आई. जैसे ही शंभू का ध्यान शटर खुलने पर एक आंख में पट्टी बांधे इनसान की तरफ गया, तिजोरी ने उस की नाक पर एक झन्नाटेदार घूंसा जड़ दिया. और जब तक शंभू संभलता, सुनील ने उसे फिर संभलने का मौका नहीं दिया. अपनी आंख की चोट की परवाह न करते हुए उस ने अपने घूंसों की जोरदार चोटों से उस का जबड़ा तोड़ डाला.

तभी हालात की गंभीरता को देखते हुए श्रीकांत के भी आ जाने से शंभू ने भाग जाना चाहा, पर शटर के बाहर खेतिहर मजदूरों की भीड़ के साथ रघुवीर यादव को खड़ा देख कर सुनील की पीठ से चिपकी तिजोरी अपने पिता की तरफ दौड़ पड़ी.

उस को सांत्वना देते हुए रघुवीर यादव बोले, ‘‘2 साल तू इंतजार करने को राजी है, तो मैं इतना तो कर ही सकता हूं कि तेरी शादी सुनील से पक्की कर दूं…’’

उन्होंने सुनील को अपने पास बुला कर उसे भी अपने सीने से लगा लिया.

खेतिहर मजदूर शंभू को पकड़ कर कहीं दूर ले जा रहे थे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें