चिड़िया चुग गईं खेत: शादीशुदा मनोज के साथ थाईलैंड में क्या हुआ था

Story in Hindi

अहंकारी : कामना की वासना का खेल

अभिजीत 2 दिनों से घर नहीं लौटा था. उस की मां सरला देवी कंपनी में पूछ आई थीं. अभिजीत 2 दिन पहले कंपनी में आया था, यह चपरासी ने सरला देवी को बताया था. अभिजीत 25 साल का अच्छी कदकाठी का नौजवान था. वह सेठ गोपालदास की कंपनी में पिछले 2 साल से बतौर क्लर्क काम कर रहा था. अभिजीत के परिवार में उस की मां सरला देवी के अलावा 2 बहनें थीं. 2 साल पहले अभिजीत के पिता की मौत हो चुकी थी. वे भी सेठ गोपालदास की कंपनी में काम करते थे. उन्हीं की जगह अभिजीत इस कंपनी में काम कर रहा था.

अभिजीत के इस तरह गायब होने से सरला देवी और उन की दोनों बेटियां परेशान थीं. सरला देवी को उम्मीद थी कि सेठ गोपालदास ने उसे कंपनी के किसी काम से बाहर भेजा होगा, पर अब उन के द्वारा इनकार किए जाने पर सरला देवी की परेशानी और बढ़ गई थी.

सरला देवी ने अभिजीत को हर जगह तलाश किया, पर वह कहीं नहीं मिला. आखिर वह गया तो कहां गया, यह बात उस की मां को बेहद परेशान करने लगी. फिर उन्होंने कंपनी के सिक्योरिटी गार्ड से बात की. पहले तो उस ने इधरउधर की बात की, फिर बता दिया कि उस दिन कंपनी की छुट्टी का समय हो गया था. उस में काम करने वाले लोग जा चुके थे.

अभिजीत अपने थोड़े बचे काम को तेजी से निबटा रहा था, ताकि समय से घर लौट सके. तभी सेठ गोपालदास की छोटी बेटी कामना कंपनी में आई. वह अभिजीत की टेबल के करीब आई और अपने हाथ टेबल पर टिका कर झुक गई.

उस समय वह जींस और शर्ट पहने हुई थी, जो उस के भरेभरे जिस्म पर यों कसी हुई थीं कि उस के बदन की ऊंचाइयां और गहराइयां साफ दिख रही थीं.

अभिजीत अपने काम में मशगूल था. कामना ने उस का ध्यान खींचने के लिए अपना पैर धीरे से पटका.

आवाज सुन कर अभिजीत ने नजरें उठा कर देखा तो बस देखता ही रह गया. कामना उस की टेबल पर हाथ टिकाए झुकी हुई थी, जिस से उस के भारी और दूधिया उभारों का ऊपरी हिस्सा शर्ट से झांक रहा था.

वह गार्ड नौजवान था, पर समझदार भी था. उस ने सरला देवी को बताया कि उसे कामना का बरताव अजीब लगा था. वह कोने में खड़ा हो कर उन की बातें सुनने लगा. दफ्तर तो पूरा खाली ही था.  उन दोनों की बातचीत इस तरह थी:

‘कहां खो गए?’ कामना धीरे से बोली थी.

‘कहीं नहीं,’ अभिजीत ने बौखला कर अपनी नजरें उस के उभारों से हटा ली थीं. उस की बौखलाहट देख कर कामना के होंठों पर एक मादक मुसकान खिल उठी थी. वह अभिजीत के सजीले रूप को देखते हुए बोली थी, ‘क्यों, आज घर जाने का इरादा नहीं है?’

‘है तो…’ अभिजीत अपनेआप को संभालते हुए बोला था, ‘थोड़ा सा काम बाकी रह गया था, सोचा, पूरा कर लूं तो चलूं.’

‘काम का क्या है, वह तो होता ही रहेगा…’ कामना बोली थी, ‘पर इनसान को कभीकभी घूमनेफिरने का समय भी निकालना चाहिए.’

‘मैं समझा नहीं.’

‘मैं समझाती हूं…’ कामना अभिजीत की आंखों में झांकते हुए बोली थी, ‘अभिजीत, तुम्हें घर लौटने की जल्दी तो नहीं है न?’

‘कोई खास जल्दी नहीं…’ अभिजीत बोला था.

‘मैं आज मूड में हूं और अगर तुम्हें एतराज न हो, तो तुम मेरे साथ पापा के कमरे में चलो.’

‘पर मैं आप का मुलाजिम हूं और आप मेरे मालिक की बेटी.’

‘मैं इन बातों को नहीं मानती…’ कामना बोली थी, ‘मैं तो बस इतना जानती हूं कि मैं इनसान हूं और तुम भी. तुम मुझे अच्छे लगते हो. अब मैं तुम्हें अच्छी लगती हूं या नहीं, तुम जानो.’

‘आप भी मुझे अच्छी लगती हैं…’ अभिजीत पलभर सोचने के बाद बोला था, ‘ठीक है.’

कामना अभिजीत को ले कर एक कमरे में पहुंचे. दफ्तर में अंधेरा था, पर दरवाजे में एक छेद भी था. गार्ड उसी से देखने लगा कि अंदर क्या हो रहा है.

उस गार्ड ने सरला देवी को बताया कि अभिजीत कामना की इस हरकत से परेशान लग रहा था.

‘अरे, तुम अभी तक खड़े ही हो?’ कामना बोली थी, ‘आराम से सोफे पर बैठो.’

अभिजीत आगे बढ़ कर कमरे में रखे गुदगुदे सोफे पर बैठ गया था. कामना आ कर उस के करीब बैठ गई थी और अभिजीत की आंखों में झांकते हुए बोली थी, ‘अभिजीत, तुम ने किसी से प्यार किया है?’

गार्ड सब सुन सकता था, क्योंकि पूरे दफ्तर में सन्नाटा था.

‘नहीं…’ अभिजीत बोला था, ‘कभी यह काम करने का मौका ही नहीं मिला.’

‘अगर मिला, तो क्या करोगे?’

अभिजीत चुप रहा था.

‘तुम ने जवाब नहीं दिया?’

‘हां, करूंगा’ वह बोला था.

‘आज मौका है और समय भी.’

‘पर लड़की?’

‘तुम्हारा मेरे बारे में क्या खयाल है?’ कहते हुए कामना ने अपनी शर्ट उतार दी. उस के ऐसा करते ही उस के उभार अभिजीत के सामने आ गए थे. उन को देखते ही अभिजीत के सब्र का बांध टूट गया था. जब कामना उस से लिपट गई, तो पलभर के लिए वह बौखलाया, फिर अपने हाथ कामना की पीठ पर कस दिए.

इस के बाद तो अभिजीत सबकुछ भूल कर कामना की खूबसूरती की गहराइयों में उतरता चला गया.

सरला देवी ने कामना के ड्राइवर से भी पूछताछ की. उसे भी बहुतकुछ मालूम था. उस ने बताया कि पिछली सीट पर अकसर कामना मनमाने ढंग से उस का इस्तेमाल करने लगी थी.

कामना का दिल जिस पर आ जाता, वह उसे अपने प्रेमजाल में फांसती, उस से अपना दिल बहलाती और जब दिल भर जाता, तो उसे अपनी जिंदगी से निकाल फेंकती.

ड्राइवर ने आगे बताया कि एक दिन उन दोनों में झगड़ा हुआ था. कामना का दिल उस से भर गया, तो वह उस से कन्नी काटने लगी. उस के इस रवैए से अभिजीत तिलमिला उठा. वह कामना से सच्चा प्यार करता था.

जब कामना को पता चला तो वह बोली थी, ‘अपनी औकात देखी है तुम ने? तुम हमारी कंपनी में एक छोटे से मुलाजिम हो. मैं ब्राह्मण और तुम यादव. दूसरी जाति की लड़की को तुम प्यार कर पा रहे हो, क्या यह कम है. शादी की तो सोचना भी नहीं.’

‘पर तुम ने इसी मुलाजिम से दिल लगाया था?’

‘दिल नहीं लगाया था, बल्कि दिल बहलाया था. अब मेरा दिल तुम से भर गया है, इसलिए हमारे रास्ते अलग हैं.’

‘नहीं…’ अभिजीत तेज आवाज में बोला था, ‘तुम मुझे यों अपनी जिंदगी से नहीं निकाल सकती.’

‘और अगर निकाला तो?’

‘मैं सारी दुनिया को तुम्हारी हकीकत बता दूंगा.’

अभिजीत की बात सुन कर कामना पलभर को हड़बड़ाई, पर अगले ही पल उस की आंखों से गुस्सा टपकने लगा. वह अभिजीत को घूरते हुए बोली, ‘तुम ऐसा कर नहीं पाओगे. मैं तुम्हें ऐसा हरगिज करने नहीं दूंगी.’

यह बात सारा दफ्तर जानता था कि एक दिन अभिजीत से सेठ गोपालदास ने कठोर आवाज में सब के सामने बोला था, ‘तुम ने हमारी बेटी को अपने प्रेमजाल में फंसाया और उस की इज्जत पर हाथ डाला. यह बात खुद कामना ने मुझे बताई है.

‘कोई मेरी बेटी के साथ ऐसी हरकत करे, मैं यह बरदाश्त नहीं कर सकता. तुझे इस की सजा मिलेगी,’ इतना कहने के बाद सेठजी ने अपने आदमियों को इशारा किया था.

सेठजी के आदमी अभिजीत को खींचते हुए दफ्तर से बाहर ले गए. इस के बाद अभिजीत को किसी ने नहीं देखा था.

अभिजीत को गायब हुए जब 10 दिन बीत गए, तो सरला देवी समझ गईं कि अभिजीत मार दिया गया है.

सरला देवी ने उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में लिखवा दी.

सरला देवी अपने बेटे को ले कर यों परेशानी के दौर से गुजर रही थीं कि उन की मुलाकात अभिजीत के एक दोस्त से हुई, जो उसी के साथ काम करता था. उस ने सरला देवी को बताया कि अभिजीत को मारने में सेठ गोपालदास का हाथ है.

सरला देवी ने अभिजीत के दोस्त को बताया कि कामना को सबक सिखाना है. कामना अपनी ऐयाशियों में डूबी हुई थी. अभिजीत की मौत से बेपरवाह कामना की नजरें एक दूसरे लड़के को ढूंढ़ रही थीं. उस ने रमेश को फांस लिया.

एक शाम जब कामना अपनी कार में लौंग ड्राइव पर निकली थी, तो रमेश उसे सरला देवी के घर ले गया.

सरला देवी को देख कर कामना की घिग्घी बंध गई. वह सबकुछ उगल गई. रमेश ने उसे एक कुरसी से बांध दिया और कई घंटों तक तड़पने के लिए छोड़ दिया. इस के बाद कामना का पूरा बयान रेकौर्ड कर लिया.

रात में जब सरला देवी ने उसे छोड़ा तो कहा, ‘‘जैसे मैं जिंदगीभर अभिजीत को याद करूंगी, वैसे ही तुम भी करना. यह टेप, यह बयान, हर बार तब काम आएंगे, जब तुम शादी करने की कोशिश करोगी.’’

कामना के पास कोई चारा नहीं बचा था. वह पैदल ही घर की ओर चल पड़ी, हारी और लुटी हुई.

मिस्टर बेचारा : क्या पूरा हो पाया चंद्रम का प्यार

दरवाजा खुला. जिस ने दरवाजा खोला, उसे देख कर चंद्रम हैरान रह गया. वह अपने आने की वजह भूल गया. वह उसे ही देखता रह गया.

वह नींद में उठ कर आई थी. आंखों में नींद की खुमारी थी. उस के ब्लाउज से उभार दिख रहे थे. साड़ी का पल्लू नीचे गिरा जा रहा था.

उस का पल्लू हाथ में था. साड़ी फिसल गई. इस से उस की नाभि दिखने लगी. उस की पतली कमर मानो रस से भरी थी.

थोड़ी देर में चंद्रम संभल गया, मगर आंखों के सामने खुली पड़ी खूबसूरती को देखे बिना कैसे छोड़ेगा? उस की उम्र 25 साल से ऊपर थी. वह कुंआरा था. उस के दिल में गुदगुदी सी पैदा हुई.

वह साड़ी का पल्लू कंधे पर डालते हुए बोली, ‘‘आइए, आप अंदर आइए.’’

इतना कह कर वह पलट कर आगे बढ़ी. पीछे से भी वह वाकई खूबसूरत थी. पीठ पूरी नंगी थी.

उस की चाल में मादकता थी, जिस ने चंद्रम को और लुभा दिया था.

उस औरत को देखने में खोया चंद्रम बहुत मुश्किल से आ कर सोफे पर बैठ गया. उस का गला सूखा जा रहा था.

उस ने बहुत कोशिश के बाद कहा, ‘‘मैडम, यह ब्रीफकेस सेठजी ने आप को देने को कहा है.’’

चंद्रम ने ब्रीफकेस आगे बढ़ाया.

‘‘आप इसे मेज पर रख दीजिए. हां, आप तेज धूप में आए हैं. थोड़ा ठंडा हो जाइएगा,’’ कहते हुए वह साथ वाले कमरे में गई और कुछ देर बाद पानी की बोतल, 2 कोल्ड ड्रिंक ले आई और चंद्रम के सामने वाले सोफे पर बैठ गई.

चंद्रम पानी की बोतल उठा कर सारा पानी गटागट पी गया.

वह औरत कोल्ड ड्रिंक की बोतल खोलने के लिए मेज के नीचे रखे ओपनर को लेने के लिए  झुकी, तो फिर उस का पल्लू गिर गया और उभार दिख गए. चंद्रम की नजर वहीं अटक गई.

उस औरत ने ओपनर से कोल्ड ड्रिंक खोलीं. उन में स्ट्रा डाल कर चंद्रम की ओर एक कोल्ड ड्रिंक बढ़ाई.

चंद्रम ने बोतल पकड़ी. उस की उंगलियां उस औरत की नाजुक उंगलियों से छू गईं. चंद्रम को जैसे करंट सा लगा.

उस औरत के जादू और मादकता ने चंद्रम को घायल कर दिया था. वह खुद को काबू में न रख सका और उस औरत यानी अपनी सेठानी से लिपट गया.

इस के बाद चंद्रम का सेठ उसे रोजाना दोपहर को अपने घर ब्रीफकेस दे कर भेजता था. चंद्रम मालकिन को ब्रीफकेस सौंपता और उस के साथ खुशीखुशी हमबिस्तरी करता. बाद में कुछ खापी कर दुकान पर लौट आता. इस तरह 4 महीने बीत गए.

एक दोपहर को चंद्रम ब्रीफकेस ले कर सेठ के घर आया और कालबेल बजाई, पर घर का दरवाजा नहीं खुला. वह घंटी बजाता रहा. 10 मिनट के बाद दरवाजा खुला.

दरवाजे पर उस की सेठानी खड़ी थी, पर एक आम घरेलू औरत जैसी. आंचल ओढ़ कर, घूंघट डाल कर.

उस ने चंद्रम को बाहर ही खड़े रखा और कहा, ‘‘चंद्रम, मु झे माफ करो. हमारे संबंध बनाने की बात सेठजी तक पहुंच गई है. वे रंगे हाथ पकड़ेंगे, तो हम दोनों की जिंदगी बरबाद हो जाएगी.

‘‘हमारी भलाई अब इसी में है कि हम चुपचाप अलग हो जाएं. आज के बाद तुम कभी इस घर में मत आना,’’ इतना कह कर सेठानी ने दरवाजा बंद कर दिया.

चंद्रम मानो किसी खाई में गिर गया. वह तो यह सपना देख रहा था कि करोड़पति सेठ की तीसरी पत्नी बांहों में होगी. बूढ़े सेठ की मौत के बाद वह इस घर का मालिक बनेगा. मगर उस का सपना ताश के पत्तों के महल की तरह तेज हवा से उड़ गया. ऊपर से यह डर सता रहा था कि कहीं सेठ उसे नौकरी से तो नहीं निकाल देगा. वह दुकान की ओर चल दिया.

सेठानी ने मन ही मन कहा, ‘चंद्रम, तुम्हें नहीं मालूम कि सेठ मुझे डांस बार से लाया था. उस ने मुझसे शादी की और इस घर की मालकिन बनाया. पर हमारे कोई औलाद नहीं थी. मैं सेठ को उपहार के तौर पर बच्चा देना चाहती थी. सेठ ने भी मेरी बात मानी. हम ने तुम्हारे साथ नाटक किया. हो सके, तो मु झे माफ कर देना.’ इस के बाद सेठानी ने एक हाथ अपने बढ़ते पेट पर फेरा. दूसरे हाथ से वह अपने आंसू पोंछ रही थी.

 

भूल किसकी: रीता की बहन ने उसके पति के साथ क्या किया?

Story in Hindi

क्या जादू कर दिया : चंपा बनी ‘चंपालाल’

चंपा अपने गांव के बसअड्डे पर बस से उतर कर गलियां पार कर के अपने घर की ओर जा रही थी. वह रोजाना सुबह कालेज जाती थी, फिर दोपहर तक वापस आ जाती थी.

चंपा इस गांव के बाशिंदे भवानीराम की बेटी थी. वे चंपा को कालेज पढ़ाना नहीं चाहते थे, मगर चंपा की इच्छा थी और उस के टीचरों के दबाव देने पर वे उसे पढ़ाने के लिए शहर भेजने को राजी हो गए.

जैसे ही चंपा का कालेज में दाखिला हुआ, उस की सहेलियों ने खुशियां मनाईं. वे सब चंपा को पढ़ाकू सम झती थीं और उसे चाहती भी खूब थीं.

जब चंपा गांव के हायर सैकेंडरी स्कूल में पढ़ती थी, तब पूरी जमात में उस का दबदबा था. अगर कोई लड़का ऊंची आवाज में बोल देता था, तब वह उसे ऐसी नसीहत देती थी कि वह चुप हो जाता था. इसी वजह से वह अपनी सहेलियों की चहेती बनी हुई थी.

गांव में भी चंपा की धाक थी. कोई भी बदमाश लड़का उस से कुछ नहीं कहता था. कहने वाले दबी जबान में कहते थे कि यह चंपा नहीं, बल्कि ‘चंपालाल’ है.

अभी चंपा गली का नुक्कड़ पार कर ही रही थी कि दिनेश, जो गांव का एक आवारा लड़का था और शहर के कालेज में पढ़ता था, न जाने कब से उस के पीछेपीछे आ रहा था.

दिनेश उस का रास्ता रोकते हुए बोला, ‘‘कहां जा रही हो चंपा?’’

‘‘अपने घर,’’ हंसते हुए चंपा बोली.

‘‘कभी हमारे घर भी चलो,’’ उस के जिस्म को घूरते हुए दिनेश बोला.

‘‘तुम्हारे घर क्यों भला?’’ चंपा ने हैरानी से पूछा.

‘‘मेरा कहना मानोगी, तो मैं तुम्हें मालामाल कर दूंगा,’’ दिनेश ने लालच देते हुए कहा.

चंपा जानती थी कि दिनेश गांव के रईस मांगीलाल का बिगड़ैल बेटा है. उसे पैसों का खूब घमंड है, इसलिए सारा दिन गांव में आवारागर्दी करता है. लड़कियों को छेड़ना उस की आदत है. उस की करतूत जगजाहिर है, मगर अपनी इज्जत के डर से कोई भी गांव का आदमी उस के मुंह नहीं लगता है.

चंपा को चुप देख कर दिनेश बोला, ‘‘क्या सोच रही हो चंपा? मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया?’’

चंपा ने देखा कि जिस मोड़ पर वे दोनों खड़े थे, उस के आसपास जितने भी मर्दऔरत अपने घरों में बैठ कर बातें कर रहे थे, उन्होंने अपने दरवाजेखिड़कियां बंद कर ली थीं. दिनेश का डर उन के भीतर बैठा हुआ था. ऐसा लग रहा था कि कर्फ्यू लगा हुआ है.

दिनेश जब भी शहर से गांव में आता था और वहां की गलियों में घूमता था, तो उस के डर से सन्नाटा छा जाता था.

आज चंपा का उस से पहली बार सामना हुआ था, इसलिए उस ने भीतर ही भीतर उस से सामना करने के लिए अपने को तैयार कर लिया था.

‘‘चंपा, तू क्या सोचने लगी?’’ उसे चुप देख कर दिनेश ने फिर कहा, ‘‘तू ने जवाब नहीं दिया?’’

‘‘मैं ने जवाब दे तो दिया, शायद तुम ने सुना नहीं. बहरे हो क्या?’’

‘‘क्या कहा, मैं बहरा हूं? शायद तू मु झे जानती नहीं है?’’

‘‘अरे, तु झे तो सारा गांव जानता है,’’ चंपा ने कहा.

‘‘तब फिर क्यों तू दादागीरी कर

रही है?’’

‘‘मैं एक लड़की हूं. मैं क्या दादागीरी करूंगी. गांव का दादा तो तू है,’’ चंपा उसी तरह से जवाब देते हुए बोली.

‘‘जैसा मैं ने सुना था, तू वैसी ही निकली. सुना है, कालेज में भी तू दादा बन कर रहती है?’’ दिनेश ने पूछा.

‘‘मैं ने पहले ही कहा, मैं क्या दादागीरी करूंगी. मगर अब लड़कियां इतनी कमजोर भी नहीं हैं कि हर कोई उन की कमजोरी का फायदा उठा सके,’’ कह कर चंपा ने अपने इरादे जाहिर कर दिए.

दिनेश कोई जवाब नहीं दे पाया. गली में पूरी तरह सन्नाटा था. मगर फिर भी लोग खिड़की खोल कर  झांकने की कोशिश कर रहे थे. उन के भीतर एक डर बैठा हुआ था कि आज चंपा दिनेश के सामने आ गई है.

दिनेश बोला, ‘‘बहुत अकड़ कर बात कर रही है. मैं तेरी यह अकड़ निकाल दूंगा. चल, मेरे साथ. बहुत जवानी का जोश है तु झ में,’’ कह कर दिनेश ने चंपा का हाथ पकड़ लिया.

चंपा गुस्से में चीखते हुए बोली, ‘‘छोड़ दे मेरा हाथ. मैं वैसी लड़की नहीं हूं, जैसा तू सम झ रहा है.’’

‘‘मैं एक बार जिस लड़की का हाथ पकड़ लेता हूं, फिर छोड़ता नहीं हूं,’’ दिनेश ने कहा.

‘‘ये फिल्मी डायलौग मत बोल. चुपचाप मेरा हाथ छोड़ दे.’’

‘‘यह तू नहीं, तेरी जवानी बोल रही है. चल मेरे साथ, जवानी का सारा जोश ठंडा कर देता हूं,’’ कह कर दिनेश उस को घसीट कर ले जाने लगा.

तब चंपा चिल्ला कर बोली, ‘‘मर्द है तो मर्द की तरह बात कर. यों कमरे में बंद कर के क्यों अपनी मर्दानगी दिखा रहा है. अगर तुझे अपनी मर्दानगी दिखानी है, तो यहीं दिखा. उतारूं कपड़े?’’ कहते हुए उस ने अपनी टीशर्ट उतार दी.

दिनेश थोड़ा ढीला पड़ गया. तब चंपा अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘‘क्या सोच रहा है, और उतारूं कपड़े? बुझा ले अपनी प्यास,’’ कहते हुए उस ने टीशर्ट घुमा कर दिनेश को दे मारी.

‘‘मगर एक बात याद रख, गांव की किसी लड़की पर बुरी नजर नहीं रखनी चाहिए. लड़की कमजोर नहीं है. छोड़

दे बुरी नजर. फिर हर औरत को कमजोर भी मत सम झ. इसलिए कहती हूं

कि पैसों का घमंड छोड़ दे. यह एक

दिन तु झे ले डूबेगा,’’ चंपा ने सम झाते हुए कहा.

सारा महल्ला देखता रह गया. लोग बाहर निकल आए. लड़की के हाथों पिटे दिनेश का मुंह छोटा हो गया.

इतना कह कर चंपा वहां से

चली गई.

दिनेश गुस्से से भरा वहीं खड़ा रह गया. आज एक लड़की से हार गया, जो उसे चुनौती दे गई. चुनौती भी ऐसी, जिसे वह पूरा नहीं कर सके. आज तक गांव वालों में से किसी की भी हिम्मत नहीं थी कि कोई उस के खिलाफ बोले, उसे चुनौती दे, मगर आज चंपा ने इस कदर उस को चुनौती दे डाली. वह उस का विरोध नहीं कर सका.

दिनेश ने जब गली की तरफ देखा, तो सभी मर्दऔरत दरवाजा खोल कर उसे हैरत भरी नजरों से देख रहे थे. वह उन से नजरें नहीं मिला सका और चुपचाप अपनी हवेली की तरफ चल दिया.

सारे गली वाले मानो एक ही सवाल अपनेआप से पूछ रहे थे कि चंपा ने दिनेश पर ऐसा क्या जादू किया, जो नीची गरदन कर के चला गया? सभी एकदूसरे से आंखों ही आंखों में इशारा कर रहे थे, मगर कुछ समझ नहीं पा रहे थे. सभी के दिमाग में एक ही बात बैठ चुकी थी कि चंपा की अब खैर नहीं. उस ने दिनेश

से पंगा ले कर अपने ऊपर मुसीबत मोल ले ली है. वह गांव का बहुत बड़ा गुंडा है. पैसों के बल पर वह कुछ भी कर सकता है.

इस घटना से गांव में दहशत फैल गई. सभी गांव वाले खामोश हो गए.

अगले दिन चंपा कालेज पहुंची, तो हीरो बन गई थी. दिनेश की हिम्मत अब टूट चुकी थी.

चंपा कालेज नहीं छोड़ना चाहती थी, इसलिए उस ने भी हालात से सम झौता कर लिया.

इस घटना के कुछ दिनों बाद दिनेश में बहुत बड़ा बदलाव दिखा. पहले वह हमेशा गुंडा बन कर रहा करता था, अपने को सब से बड़ा सम झता था.

आमतौर पर अब वह चंपा के साथ कैंटीन में चाय पीता दिखता. वह अपने दोस्तों से कहता, ‘‘यह रही टीशर्ट…

मार चंपा.’’

यह सुन कर चंपा शर्म से लाल हो जाती.

दिनेश शरीफ हो चुका था. गांव की किसी लड़की या किसी बहू को अब वह बुरी नजर से नहीं देखता था. उस पर चंपा ने उस दिन ऐसा क्या जादू कर दिया, यह आज तक राज बना हुआ था.

इश्क वाला लव : मिस रुशाली की तिरछी नजर का तीर

जब से मिस रुशाली की प्यार भरी नजर मु झ पर पड़ी थी, तब से मानो मैं तो जी उठा था. हमारे दफ्तर के सारे मर्दों में मैं ही तो सिर्फ शादीशुदा था और उस पर एक बच्चे का बाप भी. ऐसे में मिस रुशाली पर मेरा जादू चलना किसी चमत्कार से कम न था. पर अब जब यह चमत्कार हो गया था, तब ऐसे में सभी को आहें भरते देख मैं खुद पर नाज कर बैठा था.

‘‘मैं ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि उस विशाल पर मिस रुशाली फिदा होंगी. पता नहीं, उस हसीना को उस ढहते हुए बूढ़े बरगद के पेड़ में न जाने क्या नजर आया, जो उसे अपना दिल दे बैठी?’’ लंच करते वक्त रमेश आहें भरता हुआ सब से कह रहा था.

‘‘हां भाई, अब यह बेचारा दिल ही तो है. अब यह किसी गधे पर आ जाए, तो इस में उस कमसिन मासूम हसीना का क्या कुसूर?’’ राहुल के इस मजाक पर सभी खिलखिला कर हंस पड़े.

कैंटीन में घुसते वक्त जब मैं ने अपने साथियों की ये बातें सुनीं, तो मैं मन ही मन इतरा उठा और अपना लंच बौक्स उठा कर दोबारा अपनी सीट पर आ कर बैठ गया.

अपने दफ्तर के सारे आशिकों के जलते हुए दिलों से निकलती हुई आहें मेरे मन को ऐसा सुकून दे रही थीं कि मैं खुशी के चलते फिर कुछ खा न पाया.

तब मैं ने चपरासी से कौफी मंगाई और कौफी पी कर फिर से अपने काम में जुट गया. वैसे तो उस समय मैं लैपटौप पर काम कर रहा था, पर मेरा ध्यान तो मिस रुशाली के इर्दगिर्द ही घूम रहा था.

सलीके का पहनावा, तीखे नैननक्श, सुल झे हुए बाल और उस पर मदमस्त चाल. सच में मिस रुशाली एक ऐसा कंपलीट पैकेज है, जिस के लिए जितनी भी कीमत चुकाई जाए, कम है.

अब तो मिस रुशाली के सामने मुझे अपनी पत्नी प्रिया की शख्सीयत बौनी सी लगने लगी थी. वैसे, प्रिया में एक पत्नी के सारे गुण थे और मैं उसे प्यार भी करता था, पर मिस रुशाली से मिलने के बाद मुझे लगने लगा था कि कुछ तो ऐसा है मिस रुशाली में, जो प्रिया में नहीं है.

शायद, मु झे मिस रुशाली से इश्क वाला लव हुआ है, जो शायद उस लव से ज्यादा है, जो मैं अपनी पत्नी प्रिया से करता था, इसलिए तो मिस रुशाली मेरे मन में बसती जा रही थी.

इधर मेरा प्यार परवान चढ़ रहा था, तो उधर मिस रुशाली का जादू मेरे सिर चढ़ कर बोलने लगा था.

लौंग ड्राइव, पांचसितारा होटल में डिनर, महंगे उपहार पा कर मिस रुशाली मु झ पर फिदा हो गई थी. जब भी मैं उस की बड़ीबड़ी  झील सी आंखों में अपने प्रति उमड़ रहे प्यार को देखता, तब मेरा दिल जोरजोर से धड़कने लगता था.

अब तो सिर्फ इसी बात की इच्छा होती कि न जाने ऐसा वक्त कब आएगा, जब मिस रुशाली की प्यार भरी नजरें मु झ पर मेहरबान होंगी और उस प्यार भरी बारिश में मेरा मन भीग जाएगा.

बस, इसी कल्पना की चाह में मैं फिर से जी उठा था. ऐसा लगता था, मानो मैं उस मंजिल को पा गया हूं, जहां धरती और आसमान एक हो जाते हैं.

पर प्रिया मेरे अंदर आए इस बदलाव से कैसे अछूती रह पाती? अब उस की सवालिया नजरें मु झ पर उठने लगी थीं. पर मैं चुप था, क्योंकि मु झे एक सही मौके की तलाश जो थी.

रात को सोते वक्त जब कभी प्रिया मेरे नजदीक आने की कोशिश करती, तब मैं जानबू झ कर उस की अनदेखी कर देता था.

तब मैं तो मुंह फेर कर सो जाता और वह आंसू बहाती रहती. मु झे उस का रोना अखरता था, पर मैं क्या करता? मैं अपने दिल के हाथों मजबूर जो था.

बीतते समय के साथ मेरी मिस रुशाली को पाने की चाह बढ़ने लगी थी, क्योंकि मिस रुशाली की बड़ीबड़ी आंखों में मेरे प्रति प्यार का सागर तेजी से हिलोरें जो लेने लगा था.

अब मु झे लगने लगा था कि शायद सही वक्त आ गया है, जब मु झे प्रिया से तलाक ले कर मिस रुशाली को अपना बनाना होगा, तभी मेरी इस उमस भरी जिंदगी में खुशियों के फूल खिल पाएंगे.

अभी मैं सही मौके की तलाश में था कि अचानक मेरी किस्मत मु झ पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो गई. प्रिया के मामाजी के अचानक बीमार होने के चलते वह पूरे 3 दिन के लिए आगरा क्या गई, मु झे तो मानो दबा हुआ चिराग मिल गया.

‘सुनो, मैं आगरा जा रही हूं. तुम्हारा खाना कैसरोल में रखा है,’ प्रिया अपना सामान पैक करते हुए फोन पर मु झ से कह रही थी.

‘‘तुम जल्दी से निकलो. मेरे खाने

की चिंता मत करो, वरना तुम्हारी शाम वाली बस छूट जाएगी,’’ मैं खुशी के मारे हड़बड़ा रहा था.

‘हां जी, वह तो ठीक है. मैं ने श्यामा को बोल दिया है कि वह सुबहशाम आप का मनपसंद खाना बना दिया करेगी,’ प्रिया अभी भी मेरे लिए परेशान थी.

‘‘प्रिया, मैं तो चाह रहा था कि मैं दफ्तर से जल्दी निकल कर तुम्हें बसस्टैंड पर छोड़ आऊं, पर क्या करूं, इतना ज्यादा काम जो है,’’ मैं ने अपनी चालाकी दिखाते हुए कहा.

‘नहीं जी, आप अपना काम करो. मैं चली जाऊंगी,’ इतना कह कर प्रिया ने फोन रख दिया.

प्रिया का इस तरह अचानक चले जाना मु झे एक अनजानी सी खुशी दे गया. मैं बावला सा कभी सोचता कि यहां दफ्तर में ही मिस रुशाली को सबकुछ बता कर अपने घर ले जाऊं.

पर फिर बहुत सोचने के बाद मु झे यही लगा कि मैं अपने घर पहुंच कर फ्रैश होने के बाद ही मिस रुशाली से मिलने जाऊंगा.

जब वह अचानक मु झे देखेगी, तब मु झ पर चुंबनों की बरसात कर देगी और उस प्यारभरी बारिश में भीग कर हम दोनों दो जिस्म एक जान बन जाएंगे.

बस फिर क्या था. मैं तुरंत घर पहुंचा और अच्छी तरह तैयार हो कर मिस रुशाली के पास पहुंच गया.

दरवाजे की घंटी बजाने पर दरवाजा रुशाली ने नहीं, बल्कि एक मोटी सी औरत ने खोला.

‘‘मिस रुशाली…’’

‘‘वह ऊपर रहती है,’’ उस औरत ने बेरुखी से कहा.

फिर मैं ऊपर चढ़ गया. जब मैं रुशाली के कमरे में पहुंचा, तब मैं ने देखा कि वह किसी चालू फिल्मी गाने पर थिरक रही थी. कमरे में चारों तरफ कपड़े बिखरे पड़े थे और जूठे बरतन यहांवहां लुढ़के पड़े थे.

‘‘अरे तुम, अचानक…’’ मु झे अचानक सामने देख वह हड़बड़ा गई, ‘‘वह क्या है न, आज मेड नहीं आई.’’

रुशाली यहांवहां पड़ा सामान समेटने लगी. फिर उस ने सामने पड़ी कुरसी पर पड़ी धूल साफ की और मु झे बैठने का इशारा किया. फिर वह मेरे लिए पानी लेने चली गई.

रुशाली के जाने के बाद जब मैं ने कमरे में चारों तरफ नजर घुमाई, तो गर्द की जमी मोटी सी परत को पाया.

इतना गंदा कमरा देख मेरा जी मिचलाने लगा. अब धीरेधीरे मु झे अपनी प्रिया की कद्र सम झ आने लगी थी. वह तो सारा घर शीशे की तरह चमका कर रखती है, तब भी मैं उसे टोकता ही रहता हूं, पर यहां तो गंदगी का ऐसा आलम है कि पूछो मत.

‘‘कुछ खाओगे क्या?’’ पानी का गिलास देते हुए रुशाली मु झ से पूछ बैठी.

‘‘हां… भूख तो लगी है.’’

‘‘ये लो टोस्ट और चाय,’’ थोड़ी देर में रुशाली मु झे चाय की ट्रे थमाते हुए बोली.

डिनर में चाय देख कर मेरे सिर पर चढ़ा इश्क का रहासहा भूत भी उतर गया.

‘‘वह क्या  है न… मु झे तो बस यही बनाना आता है, क्योंकि सारा खाना तो मेरी आंटी ही बनाती हैं. पेईंग गैस्ट हूं मैं उन की,’’ रुशाली अपना पसीना पोंछते हुए बोली, तो मैं सम झ गया कि अब तक मैं जो कुछ भी रुशाली के लिए महसूस कर रहा था, वह सिर्फ एक छलावा था. मेरा उखड़ा मूड देख कर तुरंत रुशाली ने अपना अगला पासा फेंका.

वह तुरंत मेरे पास आई और बेशर्मी से अपना गाउन उतारने लगी.

‘‘क्या कर रही हो यह…’’ मैं गुस्से से तमतमा उठा.

‘‘अरे, शरमा क्यों रहे हो? जो करने आए थे, वह करे बिना ही वापस चले जाओगे क्या?’’ इतना कह कर वह मु झ से लिपटने लगी.

उसे इस तरह करते देख मैं हड़बड़ा गया. इस से पहले कि मैं खुद को संभाल पाता, उस ने मु झे यहांवहां चूमना शुरू कर दिया.

तभी अचानक मेरे गले में पड़ा लौकेट उस के हाथ में आ गया, जिस

में मेरी बीवी प्रिया और अंशुल का

फोटो था.

‘‘ओह, तो यह है तुम्हारी देहाती पत्नी… अरे, इसे तलाक दे दो और मेरे नाम अपना फ्लैट कर दो, फिर देखो कि मैं कैसे तुम्हें जन्नत का मजा दिलाती हूं?’’ इतना कह कर वह मु झ से लिपटने की कोशिश करने लगी.

‘‘प्यार बिना शर्त के होता है रुशाली,’’ मैं उस समय सिर्फ इतना ही कह पाया.

‘‘आजकल कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता, मिस्टर. हर चीज की कीमत होती है और हर किसी को वो कीमत चुकानी ही पड़ती है,’’ इतना कह कर रुशाली जोर से हंस पड़ी.

रुशाली के प्यार का यह घिनौना रूप देख मैं टूट सा गया और उसे धक्का दे कर बाहर आ गया.

हारी हुई नागिन की तरह रुशाली जोर से चीखते हुए बोली, ‘‘विशाल, मेरा डसा तो पानी भी नहीं मांगता, फिर तुम क्या चीज हो?’’

पर मैं तब तक अपनी कार में बैठ चुका था और मेरे इश्क वाले लव का भूत उतर चुका था.

अग्निपरीक्षा: जिंदगी के तूफान में फंसी श्रेष्ठा

जीवन प्रकृति की गोद में बसा एक खूबसूरत, मनोरम पहाड़ी रास्ता नहीं है क्या, जहां मानव सुख से अपनों के साथ प्रकृति के दिए उपहारों का आनंद उठाते हुए आगे बढ़ता रहता है.

फिर अचानक किसी घुमावदार मोड़ पर अतीत को जाती कोई संकरी पगडंडी उस की खुशियों को हरने के लिए प्रकट हो जाती है. चिंतित कर, दुविधा में डाल उस की हृदय गति बढ़ाती. उसे बीते हुए कुछ कड़वे अनुभवों को याद करने के लिए मजबूर करती.

श्रेष्ठा भी आज अचानक ऐसी ही एक पगडंडी पर आ खड़ी हुई थी, जहां कोई जबरदस्ती उसे बीते लमहों के अंधेरे में खींचने का प्रयास कर रहा था. जानबूझ कर उस के वर्तमान को उजाड़ने के उद्देश्य से.

श्रेष्ठा एक खूबसूरत नवविवाहिता, जिस ने संयम से विवाह के समय अपने अतीत के दुखदायी पन्ने स्वयं अपने हाथों से जला दिए थे. 6 माह पहले दोनों परिणय सूत्र में बंधे थे और पूरी निष्ठा से एकदूसरे को समझते हुए, एकदूसरे को सम्मान देते हुए गृहस्थी की गाड़ी उस खूबसूरत पहाड़ी रास्ते पर दौड़ा रहे थे. श्रेष्ठा पूरी ईमानदारी से अपने अतीत से बाहर निकल संयम व उस के मातापिता को अपनाने लगी थी.

जीवन की राह सुखद थी, जिस पर वे दोनों हंसतेमुसकराते आगे बढ़ रहे थे कि अचानक रविवार की एक शाम आदेश को अपनी ससुराल आया देख उस के हृदय को संदेह के बिच्छु डसने लगे.

श्रेष्ठा के बचपन के मित्र के रूप में अपना परिचय देने के कारण आदेश को घर में प्रवेश व सम्मान तुरंत ही मिल गया, सासससुर ने उसे बड़े ही आदर से बैठक में बैठाया व श्रेष्ठा को चायनाश्ता लाने को कहा.

श्रेष्ठा तुरंत रसोई की ओर चल पड़ी पर उस की आंखों में एक अजीब सा भय तैरने लगा. यों तो श्रेष्ठा और आदेश की दोस्ती काफी पुरानी थी पर अब श्रेष्ठा उस से नफरत करती थी. उस के वश में होता तो वह उसे अपनी ससुराल में प्रवेश ही न करने देती. परंतु वह अपने पति व ससुराल वालों के सामने कोई तमाशा नहीं चाहती थी, इसीलिए चुपचाप चाय बनाने भीतर चली गई. चाय बनाते हुए अतीत के स्मृति चिह्न चलचित्र की भांति मस्तिष्क में पुन: जीवित होने लगे…

वषों पुरानी जानपहचान थी उन की जो न जाने कब आदेश की ओर से एकतरफा प्रेम में बदल गई. दोनों साथ पढ़ते थे, सहपाठी की तरह बातें भी होती थीं और मजाक भी. पर समय के साथ श्रेष्ठा के लिए आदेश के मन में प्यार के अंकुर फूट पड़े, जिस की भनक उस ने श्रेष्ठा को कभी नहीं होने दी.

यों तो लड़कियों को लड़कों मित्रों के व्यवहार व भावनाओं में आए परिवर्तन का आभास तुरंत हो जाता है, परंतु श्रेष्ठा कभी आदेश के मन की थाह न पा सकी या शायद उस ने कभी कोशिश ही नहीं की, क्योंकि वह तो किसी और का ही हाथ थामने के सपने देख, उसे अपना जीवनसाथी बनाने का वचन दे चुकी थी.

हरजीत और वह 4 सालों से एकदूजे संग प्रेम की डोर से बंधे थे. दोनों एकदूसरे के प्रति पूर्णतया समर्पित थे और विवाह करने के निश्चय पर अडिग. अलगअलग धर्मों के होने के कारण उन के परिवार इस विवाह के विरुद्घ थे, पर उन्हें राजी करने के लिए दोनों के प्रयास महीनों से जारी थे. बच्चों की जिद और सुखद भविष्य के नाम पर बड़े झुकने तो लगे थे, पर मन की कड़वाहट मिटने का नाम नहीं ले रही थी.

किसी तरह दोनों घरों में उठा तूफान शांत होने ही लगा था कि कुदरत ने श्रेष्ठा के मुंह पर करारा तमाचा मार उस के सपनों को छिन्नभिन्न कर डाला.

हरजीत की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई. श्रेष्ठा के उजियारे जीवन को दुख के बादलों ने पूरी तरह ढक लिया. लगा कि श्रेष्ठा की जीवननैया भी डूब गई काल के भंवर में. सब तहसनहस हो गया था. उन के भविष्य का घर बसने से पहले ही कुदरत ने उस की नींव उखाड़ दी थी.

इस हादसे से श्रेष्ठा बूरी तरह टूट गई  पर सच कहा गया है समय से बड़ा चिकित्सक कोई नहीं. हर बीतते दिन और मातापिता के सहयोग, समझ व प्रेमपूर्ण अथक प्रयासों से श्रेष्ठा अपनी दिनचर्या में लौटने लगी.

यह कहना तो उचित न होगा कि उस के जख्म भर गए पर हां, उस ने कुदरत के इस दुखदाई निर्णय पर यह प्रश्न पूछना अवश्य छोड़ दिया था कि उस ने ऐसा अन्याय क्यों किया?

सालभर बाद श्रेष्ठा के लिए संयम का रिश्ता आया तो उस ने मातापिता की इच्छापूर्ति के लिए तथा उन्हें चिंतामुक्त करने के उद्देश्य से बिना किसी उत्साह या भाव के, विवाह के लिए हां कह दी. वैसे भी समय की धारा को रोकना जब वश में न हो तो उस के साथ बहने में ही समझदारी होती है. अत: श्रेष्ठा ने भी बहना ही उचित समझा, उस प्रवाह को रोकने और मोड़ने के प्रयास किए बिना.

विवाह को केवल 5 दिन बचे थे कि अचानक एक विचित्र स्थिति उत्पन्न हो गई. आदेश जो श्रेष्ठा के लिए कोई माने नहीं रखता था, जिस का श्रेष्ठा के लिए कोई वजूद नहीं था एक शाम घर आया और उस से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की. श्रेष्ठा व उस के पिता ने जब उसे इनकार कर स्थिति समझाने का प्रयत्न किया तो उस का हिंसक रूप देख दंग रह गए.

एकतरफा प्यार में वह सोचने समझने की शक्ति तथा आदरभाव गंवा चुका था. उस ने काफी हंगामा किया. उस की श्रेष्ठा के भावी पति व ससुराल वालों को भड़का कर उस का जीवन बरबाद करने की धमकी सुन श्रेष्ठा के पिता ने पुलिस व रिश्तेदारों की सहायता से किसी तरह मामला संभाला.

काफी देर बाद वातावरण में बढ़ी गरमी शांत हुई थी. विवाह संपन्न होने तक सब के मन में संदेह के नाग अनहोनी की आशंका में डसते रहे थे. परंतु सभी कार्य शांतिपूर्वक पूर्ण हो गए.

बैठक से तेज आवाजें आने के कारण श्रेष्ठा की अतीत यात्रा भंग हुई और वह बाहर की तरफ दौड़ी. बैठक का माहौल गरम था. सासससुर व संयम तीनों के चेहरों पर विस्मय व क्रोध साफ झलक रहा था. श्रेष्ठा चुपचाप दरवाजे पर खड़ी उन की बातें सुनने लगी.

‘‘आंटीजी, मेरा यकीन कीजिए मैं ने जो भी कहा उस में रत्तीभर भी झूठ नहीं है,’’ आदेश तेज व गंभीर आवाज में बोल रहा था. बाकी सब गुस्से से उसे सुन रहे थे.

‘‘मेरे और श्रेष्ठा के संबंध कई वर्ष पुराने हैं. एक समय था जब हम ने साथसाथ जीनेमरने के वादे किए थे. पर जैसे ही मुझे इस के गिरे चरित्र का ज्ञान हुआ मैं ने खुद को इस से दूर कर लिया.’’

आदेश बेखौफ श्रेष्ठा के चरित्र पर कीचड़ फेंक रहा था. उस के शब्द श्रेष्ठा के कानों में पिघलता शीशी उड़ेल रहे थे.

आदेश ने हरजीत के साथ रहे श्रेष्ठा के पवित्र रिश्ते को भी एक नया ही

रूप दे दिया जब उस ने उन के घर से भागने व अनैतिक संबंध रखने की झूठी बात की. साथ ही साथ अन्य पुरुषों से भी संबंध रखने का अपमानजनक लांछन लगाया. वह खुद को सच्चा साबित करने के लिए न जाने उन्हें क्याक्या बता रहा था.

आदेश एक ज्वालामुखी की भांति झूठ का लावा उगल रहा था, जो श्रेष्ठा के वर्तमान को क्षणभर में भस्म करने के लिए पर्याप्त था, क्योंकि हमारे समाज में स्त्री का चरित्र तो एक कोमल पुष्प के समान है, जिसे यदि कोई अकारण ही चाहेअनचाहे मसल दे तो उस की सुंदरता, उस की पवित्रता जीवन भर के लिए समाप्त हो जाती है. फिर कोई भी उसे मस्तक से लगा केशों में सुशोभित नहीं करता है.

श्रेष्ठा की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा. क्रोध, भय व चिंता के मिश्रित भावों में ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे हृदय की धड़कन तेज दौड़तेदौड़ते अचानक रुक जाएगी.

‘‘उफ, मैं क्या करूं?’’

उस पल श्रेष्ठा के क्रोध के भाव 7वें आसमान को कुछ यों छू रहे थे कि यदि कोई उस समय उसे तलवार ला कर दे देता तो वह अवश्य ही आदेश का सिर धड़ से अलग कर देती. परंतु उस की हत्या से अब क्या होगा? वह जिस उद्देश्य से यहां आया था वह तो शायद पूरा हो चुका था.

श्रेष्ठा के चरित्र को ले कर संदेह के बीज तो बोए जा चुके थे. अगले ही पल श्रेष्ठा को लगा कि काश, यह धरती फट जाए और वह इस में समा जाए. इतना बड़ा कलंक, अपमान वह कैसे सह पाएगी?

आदेश ने जो कुछ भी कहा वह कोरा झूठ था. पर वह यह सिद्घ कैसे करेगी? उस की और उस के मातापिता की समाज में प्रतिष्ठा का क्या होगा? संयम ने यदि उस से अग्निपरीक्षा मांगी तो?

कहीं इस पापी की बातों में आ कर उन का विश्वास डोल गया और उन्होंने उसे अपने जीवन से बाहर कर दिया तो वह किसकिस को अपनी पवित्रता की दुहाई देगी और वह भी कैसे? वैसे भी अभी शादी को समय ही कितना हुआ था.

अभी तो वह ससुराल में अपना कोई विशेष स्थान भी नहीं बना पाई थी. विश्वास की डोर इतनी मजबूत नहीं हुई थी अभी, जो इस तूफान के थपेड़े सह जाती. सफेद वस्त्र पर दाग लगाना आसान है, परंतु उस के निशान मिटाना कठिन. कोईर् स्त्री कैसे यह सिद्घ कर सकती है कि वह पवित्र है. उस के दामन में लगे दाग झूठे हैं.

जब श्रेष्ठा ने सब को अपनी ओर देखते हुए पाया तो उस की रूह कांप उठी. उसे लगा सब की क्रोधित आंखें अनेक प्रश्न पूछती हुई उसे जला रही हैं. अश्रुपूर्ण नयनों से उस ने संयम की ओर देखा. उस का चेहरा भी क्रोध से दहक रहा था. उसे आशंका हुई कि शायद आज की शाम उस की इस घर में आखिरी शाम होगी.

अब आदेश के साथ उसे भी धक्के दे घर से बाहर कर दिया जाएगा. वह चीखचीख कर कहना चाहती थी कि ये सब झूठ है. वह पवित्र है. उस के चरित्र में कोई खोट नहीं कि तभी उस के ससुरजी अपनी जगह से उठ खड़े हुए.

स्थिति अधिक गंभीर थी. सबकुछ समझ और कल्पना से परे. श्रेष्ठा घबरा गई कि अब क्या होगा? क्या आज एक बार फिर उस के सुखों का अंत हो जाएगा? परंतु उस के बाद जो हुआ वह तो वास्तव में ही कल्पना से परे था. श्रेष्ठा ने ऐसा दृश्य न कभी देखा था और न ही सुना.

श्रेष्ठा के ससुरजी गुस्से से तिलमिलाते हुए खड़े हुए और बेकाबू हो उन्होंने आदेश को कस कर गले से पकड़ लिया, बोले, ‘‘खबरदार जो तुमने मेरी बेटी के चरित्र पर लांछन लगाने की कोशिश भी की तो… तुम जैसे मानसिक रोगी से हमें अपनी बेटी का चरित्र प्रमाणपत्र नहीं चाहिए. निकल जाओ यहां से… अगर दोबारा हमारे घर या महल्ले की तरफ मुंह भी किया तो आगे की जिंदगी हवालात में काटोगे.’’

फिर संयम और ससुर ने आदेश को धक्के दे कर घर से बाहर निकाल दिया. ससुरजी ने श्रेष्ठा के सिर पर हाथ रख कहा, ‘‘घबराओ नहीं बेटी. तुम सुरक्षित हो. हमें तुम पर विश्वास है. अगर यह पागल आदमी तुम्हें मिलने या फोन कर परेशान करने की कोशिश करे तो बिना संकोच तुरंत हमें बता देना.’’

सासूमां प्यार से श्रेष्ठा को गले लगा चुप करवाने लगीं. सब गुस्से में थे पर किसी ने एक बार भी श्रेष्ठा से कोई सफाई नहीं मांगी.

घबराई और अचंभित श्रेष्ठा ने संयम की ओर देखा तो उस की आंखें जैसे कह रही थीं कि मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. मेरा विश्वास और प्रेम इतना कमजोर नहीं जो ऐसे किसी झटके से टूट जाए. तुम्हें केवल नाम के लिए ही अर्धांगिनी थोड़े माना है जिसे किसी अनजान के कहने से वनवास दे दूं.

तुम्हें कोई अग्निपरीक्षा देने की आवश्यकता नहीं. मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं और रहूंगा. औरत को अग्निपरीक्षा देने की जरूरत नहीं. यह संबंध प्यार का है, इतिहास का नहीं.

श्रेष्ठा घंटों रोती रही और आज इन आंसुओं में अतीत की बचीखुची खुरचन भी बह गई. हरजीत की मृत्यु के समय खड़े हुए प्रश्न कि यह अन्याय क्यों हुआ, का उत्तर मिल गया था उसे.

पति सदासदा के लिए अपना होता है. उस पर भरोसा करा जा सकता है. पहले क्या हुआ पति उस की चिंता नहीं करते उस का जीवन सफल हो गया था.

पुराणों के देवताओं से कहीं ज्यादा श्रेष्ठकर संयम की संगिनी बन कर सासससुर के रूप में उच्च विचारों वाले मातापिता पा कर स्त्री का सम्मान करने वाले कुल की बहू बन कर नहीं, बेटी बन कर उस रात श्रेष्ठा तन से ही नहीं मन से भी संयम की बांहों में सोई. उसे लगा कि उस की असल सुहागरात तो आज है.

पूंजी: अनसुलझे सवाल से परेशान दुलारी

इश्क और इज्जत में से अगर किसी एक को चुनना पड़े तो ज्यादातर लोग इज्जत को ही चुनेंगे. वहीं अगर यह चुनाव अपनी जान और इज्जत के बीच हो तो…? तब भी क्या इज्जत को ही चुना जाएगा? यह सवाल दुलारी को लगातार परेशान कर रहा था.

महामारी तो पिछले साल से ही कहर बरपा रही है, लेकिन तब के घोषित लौकडाउन और इस साल के अघोषित लौकडाउन में बहुत फर्क है. पिछले साल सरकार और दूसरी स्वयंसेवी संस्थाएं जरूरतमंदों की मदद के लिए खूब आगे आ रही थीं. मालिक भी अपने मुलाजिमों के काम पर न आने के बावजूद उन्हें तनख्वाह दे रहे थे. चाहे वह सामाजिक दबाव के चलते ही रहा होगा, लेकिन भूख से मरने की नौबत तो कम से कम नहीं आई थी. पर इस साल तो जान बचाना ही भारी लग रहा है.

क्या किया जाए? न अंटी में पैसा, न गांठ में धेला. रोज कमानेखाने वालों के पास जमापूंजी भी कहां होती है. सरकार जनधन जैसी योजनाओं की कामयाबी के लाख दावे करे, लेकिन जमीनी हकीकत से तो भुक्तभोगी ही वाकिफ होगा न. बैंक में खाता खोल देनेभर से रुपया जमा नहीं हो जाता.

रोज सुबह एकएक अंगुल खाली होते जा रहे आटे के कनस्तर को देखती दुलारी मन ही मन अंदाजा लगाती जा रही थी कि कितने दिन और वह अपनी जद्दोजेहद को जारी रख सकती है. जिस दिन कनस्तर का पेंदा बोल जाएगा, उस दिन उसे भी सब सोचविचार छोड़ कर वही रास्ता अपनाना पड़ेगा, जिस पर वह अभी तक विचार करने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाई है.

दुलारी के होश संभालते ही मां ने मन की जमीन पर संस्कारों के बीज डालने शुरू कर दिए थे, जो उम्र के साथसाथ अब पेड़ की माफिक अपनी पक्की जड़ें जमा चुके हैं. पेड़ों को जड़ से उखाड़ना आसान है क्या?

‘हम गरीबों के पास यही एक पूंजी है छोरी और वह है हमारी इज्जत. आंखों का पानी खत्म तो सम झ सब खत्म…’ मां के दिए ऐसे संस्कार दुलारी का पीछा ही नहीं छोड़ते. लेकिन बेचारी मां को क्या पता था कि इस तरह की कोई महामारी भी आ सकती है, जिस की आंधी में उस के लगाए संस्कारों के पेड़ सूखे पत्ते से उड़ जाएंगे.

एक तरफ सरकार कहती है कि लौकडाउन लगाना सही नहीं है, वहीं दूसरी तरफ लोगों से गुजारिश भी करती है कि घर में रहो, बाहरी लोगों से कम से कम मेलजोल रखो. यह दोहरी नीति ही तो जान पर भारी पड़ रही है.

पिछली दफा किसी तरह मरतेबचते गांव वापस गए थे, लेकिन वहां भी क्या मिला? वैसे, कुसूर गांवों का भी नहीं. वहां अगर मजदूरी होती तो लोग शहरों की तरफ भागते ही क्यों? शहर कम से कम भूखा तो नहीं सुलाता था.

जल्दी ही गांव का चश्मा दुलारी की आंखों से उतर गया था. उधर वापस जब सब सामान्य होने लगा, तो सब से पहले उसी ने अपना बोरियाबिस्तर बांधा था. कितनी मुश्किल से लोगों को भरोसा दिलाया था कि वह ठीक है. अभी कुछ घरों में नियमित काम मिला ही था कि फिर से वही डर के साए.

जब से साहब लोगों के घरों में फिर से लौकडाउन लगने की सुगबुगाहट सुनी है, तब से दुलारी का जी उठाउठा का जा रहा है. काम करते समय हाथ यहां रसोई में और कान वहां टैलीविजन की खबरों पर लगे हुए हैं.

टैलीविजन पर कैसे लोग चिल्लाचिल्ला कर बहस करते हैं. उस के लिए तो अब ये बातें बिलकुल बेमानी हैं कि इन हालात में आने के लिए कौन जिम्मेदार है. किस की कहां चूक थी या किन लापरवाहियों के चलते हालात इतने बिगड़े हैं. अब वह बड़ी सरकार तो है नहीं कि सरकार के फैसले को चुनौती दे. वह तो भेड़ है, जिसे मालिक की हांक के इशारे पर ही चलना पड़ेगा.

शाम को दुलारी घर आई तो मां की आंखों में भी खौफ दिखा. उन्हें भी शायद किसी ने टैलीविजन की खबरों के बारे में बता दिया होगा. मां ने आंखों में सवाल भर कर उस की तरफ देखा तो वह आंखें बचाती हुई रसोई की तरफ मुड़ गई.

अनजाने डर से घिरी दुलारी ने घर के सारे कोने तलाश कर लिए. बामुश्किल 500 रुपए ही निकले. इतने से क्या होगा. कितने दिन प्राणों को शरीर में रोक पाएगी. और फिर वह अकेली कहां है… उस के साथ 2 प्राणी और भी तो जुड़े हैं. एक बूढ़ी मां और दूसरा अपाहिज छोटा भाई.

रातभर दुलारी के मन में उमड़घुमड़ चलती रही, ‘काश, मेरे पास भी कुछ पूंजी होती तो आज यों परेशानी में जागरण नहीं कर रही होती.’

दुलारी ने करवट बदलते हुए ठंडी सांस भरी. तभी पूंजी के नाम से मां की बात याद आ गई, ‘गरीब के पास यही तो एक पूंजी होती है छोरी…’

अपनी पूंजी का खयाल आते ही दुलारी पसीने से भीग गई. कपूर साहब की आंखें उसे अपने शरीर से चिपकी हुई महसूस होने लगीं. उस ने अपना दुपट्टा कस कर अपने चारों तरफ लपेट लिया.

‘ऐसी ही किसी आपदाविपदा के लिए तो पूंजी बचाई जाती है. किसी के पास रुपयापैसा, किसी के पास जमीनजायदाद, तो किसी के पास गहनाअंगूठी. तेरे पास तो यही पूंजी है,’ मन में छिपे कुमन ने दुलारी को उकसाया.

दुलारी कसमसाई और अपने कुमन को पीछे धकेल दिया. उस की धकेल में शायद ज्यादा ताकत नहीं थी. कुमन बेशर्मी से दांत फाड़े फिर से उठ खड़ा हुआ.

‘अरी, इस में गलत क्या है? मुसीबत में काम न आए वह कैसी पूंजी? तेरे पास कोई दूसरा रास्ता है तो वह कर ले, लेकिन अपनी और अपने परिवार की जान बचाना तेरा फर्ज है कि नहीं? जब जान ही न बचेगी तो मान बचा कर क्या करेगी,’ कुमन ने दुलारी को हकीकत दिखाने की कोशिश की.

‘ठीक ही तो कहता है बैरी. मैं खुदकुशी कर भी लूं, लेकिन इन दोनों की हत्या का पाप कैसे अपने सिर ले सकती हूं…’ मन पर कुमन हावी होने लगा और आखिरकार उस की जीत हुई.

दुलारी ने कपूर साहब के पास अपनी पूंजी गिरवी रखने का फैसला कर लिया. मन किसी फैसले पर पहुंचा तो नींद भी आ गई.

आज सुबह वही हुआ, जिस का डर था. सालभर पहले जहां से चले थे, वापस वहीं आ गए. सरकार ने प्रदेशभर में सख्त कर्फ्यू लगाने के आदेश जारी कर दिए थे. दुलारी के आंखकान फोन पर लगे थे. अभी मेमसाहब लोग के काम पर न आने के फोन आने शुरू हो जाएंगे. वह अनमनी सी अपने दैनिक काम निबटा रही थी.

‘फोन नहीं बजा. कहीं बंद तो नहीं पड़ा…’ दुलारी ने फोन उठा कर देखा. फोन चालू था. समय देखा तो 8 बजने वाले थे. एक भीतरी खुशी हुई कि शायद अपनी पूंजी गिरवी न रखनी पड़े.

‘8 बजे वर्मा साहब के घर पहुंचना होता है…’ सोचते हुए दुलारी ने रात की रखी ठंडी रोटी चाय के साथ निगली और मास्क लगा, दुपट्टे से अपना चेहरा ढकते हुए दरवाजे की तरफ लपकी, पर दरवाजे से निकल कर मेन सड़क तक आतेआते मोबाइल की घंटी बज गई.

‘सुनो, अभी कुछ दिन तुम रहने दो. थोड़ा नौर्मल हो जाएगा, तब मैं खुद तुम्हें फोन करूंगी…’ फोन उठाने के साथ ही मिसेज वर्मा ने कहा और बिना दुलारी की नमस्ते का जवाब दिए ही खट से फोन काट दिया, मानो कोरोना का वायरस मोबाइल फोन से फैल रहा हो.

दुलारी एक फीकी सी हंसी हंस कर वापस मुड़ गई. एक बार फिर से अपनी पूंजी को गिरवी रखने की सलाह कुमन देने लगा था.

‘‘ले, अखबार पढ़ ले. लोग तो अखबार से ऐसे डर रहे हैं मानो उन के घर में साक्षात मौत आ रही हो…’’ अखबार बेचने वाला राजू अपनी साइकिल पर बिना बिके अखबारों का बंडल लटकाए भारी कदमों से धीरेधीरे पैडल मारता दुलारी के पास से निकला, तो 2-3 प्रतियां उस के हाथ में थमा गया.

कर्फ्यू में क्या खुला क्या बंद रहेगा की सूची अखबार के पहले पन्ने पर ही लिखी थी… आखिरी लाइन पर आतेआते उस की नजर ठिठक गई. लिखा था, ‘मजदूरों के पलायन को रोकने की खातिर सरकार ने निर्माण कार्य जारी रखने का फैसला किया है…’

यह पढ़ते ही दुलारी की आंखों की बु झती रोशनी फिर से टिमटिमाने लगी.

‘‘नहीं करना घरघर जा कर कपड़ेबरतन. जब तक शरीर में जान है, ईंटगारा ढो लूंगी. दोनों टाइम सब्जीदाल न सही, 3 प्राणियों को चायरोटी का टोटा तो नहीं पड़ने दूंगी,’’ खुद से कह कर दुलारी ने अखबार समेटा और काख में दबाते हुए मुसकरा दी. आज अचानक ही उसे अपने कंधे बहुत मजबूत महसूस होने लगे थे.

झगड़ा: आखिर क्यों बैठी थी उस दिन पंचायत

रात गहराने लगी थी और श्याम अभीअभी खेतों से लौटा ही था कि पंचायत के कारिंदे ने आ कर आवाज लगाई, ‘‘श्याम, अभी पंचायत बैठ रही?है. तुझे जितेंद्रजी ने बुलाया है.’’

अचानक क्या हो गया पंचायत क्यों बैठ रही है? इस बारे में कारिंदे को कुछ पता नहीं था. श्याम ने जल्दीजल्दी बैलों को चारापानी दिया, हाथमुंह धोए, बदन पर चादर लपेटी और जूतियां पहन कर चल दिया.

इस बात को 2-3 घंटे बीत गए थे. अपने पापा को बारबार याद करते हुए सुशी सो गई थी. खाट पर सुशी की बगल में बैठी भारती बेताबी से श्याम के आने का इंतजार कर रही थी.

तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया, तो भारती ने सांकल खोल दी. थके कदमों से श्याम घर में दाखिल हुआ.

भारती ने दरवाजे की सांकल चढ़ाई और एक ही सांस में श्याम से कई सवाल कर डाले, ‘‘क्या हुआ? क्यों बैठी थी पंचायत? क्यों बुलाया था तुम्हें?’’

‘‘मुझे जिस बात का डर था, वही हुआ,’’ श्याम ने खाट पर बैठते हुए कहा.

‘‘किस बात का डर…?’’ भारती ने परेशान लहजे में पूछा.

श्याम ने बुझी हुई नजरों से भारती की ओर देखा और बोला, ‘‘पेमा झगड़ा लेने आ गया है. मंगलगढ़ के खतरनाक गुंडे लाखा के गैंग के साथ वह बौर्डर पर डेरा डाले हुए है. उस ने 50,000 रुपए के झगड़े का पैगाम भेजा है.’’

‘‘लगता है, वह मुझे यहां भी चैन से नहीं रहने देगा… अगर मैं डूब मरती तो अच्छा होता,’’ बोलते हुए भारती रोंआसी हो उठी. उस ने खाट पर सोई सुशी को गले लगा लिया.

श्याम ने भारती के माथे पर हाथ रखा और कहा, ‘‘नहीं भारती, ऐसी बातें क्यों करती हो… मैं हूं न तुम्हारे साथ.’’

‘‘फिर हमारे गांव की पंचायत ने क्या फैसला किया? क्या कहा जितेंद्रजी ने?’’ भारती ने पूछा.

‘‘सच का साथ कौन देता है आजकल… हमारी पंचायत भी उन्हीं के साथ है. जितेंद्रजी कहते हैं कि पेमा का झगड़ा लेने का हक तो बनता है…

‘‘उन्होंने मुझ से कहा कि या तो तू झगड़े की रकम चुका दे या फिर भारती को पेमा को सौंप दे, लेकिन…’’ इतना कहतेकहते श्याम रुक गया.

‘‘मैं तैयार हूं श्याम… मेरी वजह से तुम क्यों मुसीबत में फंसो…’’ भारती ने कहा.‘‘नहीं भारती… तुम्हें छोड़ने की बात तो मैं सोच भी नहीं सकता… रुपयों

के लिए अपने प्यार की बलि कभी नहीं दूंगा मैं…’’‘‘तो फिर क्या करोगे? 50,000 रुपए कहां से लाओगे?’’ भारती ने पूछा.

‘‘मैं अपना खेत बेच दूंगा,’’ श्याम ने सपाट लहजे में कहा.

‘‘खेत बेच दोगे तो खाओगे क्या… खेत ही तो हमारी रोजीरोटी है… वह भी छिन गई तो फिर हम क्या करेंगे?’’ भारती ने तड़प कर कहा.

यह सुन कर श्याम मुसकराया और प्यार से भारती की आंखों में देख कर बोला, ‘‘तुम मेरे साथ हो भारती तो मैं कुछ भी कर सकता हूं. मैं मेहनतमजदूरी करूंगा, लेकिन तुम्हें भूखा नहीं मरने दूंगा… आओ खाना खाएं, मुझे जोरों की भूख लगी है.’’

भारती उठी और खाना परोसने लगी. दोनों ने मिल कर खाना खाया, फिर चुपचाप बिस्तर बिछा कर लेट गए.

दिनभर के थकेहारे श्याम को थोड़ी ही देर में नींद आ गई, लेकिन भारती को नींद नहीं आई. वह बिस्तर पर बेचैन पड़ी रही. लेटेलेटे वह खयालों में खो गई.

तकरीबन 5 साल पहले भारती इस गांव से विदा हुई थी. वह अपने मांबाप की एकलौती औलाद थी. उन्होंने उसे लाड़प्यार से पालपोस कर बड़ा किया था. उस की शादी मंगलगढ़ के पेमा के साथ धूमधाम से की गई थी.

भारती के मातापिता ने उस के लिए अच्छा घरपरिवार देखा था ताकि वह सुखी रहे. लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद ही उस की सारी खुशियां ढेर हो गई थीं, क्योंकि पेमा का चालचलन ठीक नहीं था. वह शराबी और जुआरी था. शराब और जुए को ले कर आएदिन दोनों में झगड़ा होने लगा था.

पेमा रात को दारू पी कर घर लौटता और भारती को मारतापीटता व गालियां बकता था. एक साल बाद जब सुशी पैदा हुई तो भारती ने सोचा

कि पेमा अब सुधर जाएगा. लेकिन न तो पेमा ने दारू पीना छोड़ा और न ही जुआ खेलना.

पेमा अपने पुरखों की जमीनजायदाद को दांव पर लगाने लगा. जब कभी भारती इस बात की खिलाफत करती तो वह उसे मारने दौड़ता.

इसी तरह 3 साल बीत गए. इस बीच भारती ने बहुत दुख झेले. पति के साथ कुदरत की मार ने भी उसे तोड़ दिया. इधर भारती के मांबाप गुजर गए और उधर पेमा ने उस की जिंदगी बरबाद कर दी. घर में खाने के लाले पड़ने लगे.

सुशी को बगल में दबाए भारती खेतों में मजदूरी करने लगी, लेकिन मौका पा कर वह उस की मेहनत की कमाई भी छीन ले जाता. वह आंसू बहाती रह जाती.

एक रात नशे की हालत में पेमा अपने साथ 4 आवारा गुंडों को ले कर घर आया और भारती को उन के साथ रात बिताने के लिए कहने लगा. यह सुन कर उस का पारा चढ़ गया. नफरत और गुस्से में वह फुफकार उठी और उस ने पेमा के मुंह पर थूक दिया.

पेमा गुस्से से आगबबूला हो उठा. लातें मारमार कर उस ने भारती को दरवाजे के बाहर फेंक दिया.

रोती हुई बच्ची को भारती ने कलेजे से लगाया और चल पड़ी. रात का समय था. चारों ओर अंधेरा था. न मांबाप, न कोई भाईबहन. वह जाती भी तो कहां जाती. अचानक उसे श्याम की याद आ गई.

बचपन से ही श्याम उसे चाहता था, लेकिन कभी जाहिर नहीं होने दिया था. वह बड़ी हो गई, उस की शादी हो गई, लेकिन उस ने मुंह नहीं खोला था.

श्याम का प्यार इतना सच्चा था कि वह किसी दूसरी औरत को अपने दिल में जगह नहीं दे सकता था. बरसों बाद भी जब वह बुरी हालत में सुशी को ले कर उस के दरवाजे पर पहुंची तो उस ने हंस कर उस के साथ पेमा की बेटी को भी अपना लिया था.

दूसरी तरफ पेमा ऐसा दरिंदा था, जिस ने उसे आधी रात में ही घर से बाहर निकाल दिया था. औरत को वह पैरों की जूती समझता था. आज वह उस की कीमत वसूलना चाहता है.

कितनी हैरत की बात है कि जुल्म करने वाले के साथ पूरी दुनिया है और एक मजबूर औरत को पनाह देने वाले के साथ कोई नहीं है. बीते दिनों के खयालों से भारती की आंखें भर आईं.

यादों में डूबी भारती ने करवट बदली और गहरी नींद में सोए हुए श्याम के नजदीक सरक गई. अपना सिर उस ने श्याम की बांह पर रख दिया और आंखें बंद कर सोने की कोशिश करने लगी.

दूसरे दिन सुबह होते ही फिर पंचायत बैठ गई. चौपाल पर पूरा गांव जमा हो गया. सामने ऊंचे आसन पर गांव के मुखिया जितेंद्रजी बैठे थे. उन के इर्दगिर्द दूसरे पंच भी अपना आसन जमाए बैठे थे. मुखिया के सामने श्याम सिर झुकाए खड़ा था.

पंचायत की कार्यवाही शुरू

करते हुए मुखिया जितेंद्रजी ने कहा, ‘‘बोल श्याम, अपनी सफाई में तू क्या कहना चाहता है?’’

‘‘मैं ने कोई गुनाह नहीं किया है मुखियाजी… मैं ने ठुकराई हुई एक मजबूर औरत को पनाह दी है.’’

यह सुन कर एक पंच खड़ा हुआ और चिल्ला कर बोला, ‘‘तू ने पेमा की औरत को अपने घर में रख लिया है श्याम… तुझे झगड़ा देना ही पड़ेगा.’’

‘‘हां श्याम, यह हमारा रिवाज है… हमारे समाज का नियम भी है… मैं समाज के नियमों को नहीं तोड़ सकता,’’ जितेंद्रजी की ऊंची आवाज गूंजी तो सभा में सन्नाटा छा गया.

अचानक भारती भरी चौपाल में आई और बोली, ‘‘बड़े फख्र की बात है मुखियाजी कि आप समाज का नियम नहीं तोड़ सकते, लेकिन एक सीधेसादे व सच्चे इनसान को तोड़ सकते हैं…

‘‘आप सब लोग उसी की तरफदारी कर रहे हैं जो मुझे बाजार में बेच देना चाहता है… जिस ने मुझे और अपनी मासूम बच्ची को आधी रात को घर से धक्के दे कर भगा दिया था… और वह दरिंदा आज मेरी कीमत वसूल करने आ खड़ा हुआ है.

‘‘ले लीजिए हमारा खेत… छीन लीजिए हमारा सबकुछ… भर दीजिए उस भेडि़ए की झोली…’’ इतना कहतेकहते भारती जमीन पर बेसुध हो कर लुढ़क गई.

सभा में खामोशी छा गई. सभी की नजरें झुक गईं. अचानक जितेंद्रजी अपने आसन से उठ खड़े हुए और आगे बढ़े. भारती के नजदीक आ कर वह ठहर गए. उन्होंने भारती को उठा कर अपने गले लगा लिया.

दूसरे ही पल उन की आवाज गूंज उठी, ‘‘सब लोग अपनेअपने हथियार ले कर आ जाओ. आज हमारी बेटी पर मुसीबत आई है. लाखा को खबर कर दो कि वह तैयार हो जाए… हम आ रहे हैं.’’

जितेंद्रजी का आदेश पा कर नौजवान दौड़ पड़े. देखते ही देखते चौपाल पर हथियारों से लैस सैकड़ों लोग जमा हो गए. किसी के हाथ में बंदूक थी तो किसी के हाथ में बल्लम. कुछ के हाथों में तलवारें भी थीं.

जितेंद्रजी ने बंदूक उठाई और हवा में एक फायर कर दिया. बंदूक के धमाके से आसमान गूंज उठा. दूसरे ही पल जितेंद्रजी के साथ सभी लोग लाखा के डेरे की ओर बढ़ गए.

शराब के नशे में धुत्त लाखा व उस के साथियों को जब यह खबर मिली कि दलबल के साथ जितेंद्रजी लड़ने आ रहे हैं तो सब का नशा काफूर हो गया. सैकड़ों लोगों को अपनी ओर आते देख वे कांप गए. तलवारों की चमक व गोलियों की गूंज सुन कर उन के दिल दहल उठे.

यह नजारा देख पेमा के तो होश ही उड़ गए. लाखा के एक इशारे पर उस के सभी साथियों ने अपनेअपने हथियार उठाए और भाग खड़े हुए.

टिट फौर टैट: जैसे को तैसा

साल की बैस्ट कहानी का अवार्ड लेते ही पूरा हौल तालियों से गूंज उठा था. विजयी लेखिका अरुंधती ने डायस पर आ कर धन्यवाद प्रेषित किया और अपनी कहानी के बारे में बताना शुरू किया-

“आप सब का बहुत शुक्रिया जो आप ने मेरी कहानी को वोट कर के इसे नंबर वन कहानी होने का खिताब दिलवाया. यह इस बात की तस्दीक भी करता है कि मेरी कहानी सिर्फ कहानीभर नहीं, बल्कि बहुत सी औरतों के जीवन की सचाई भी है.

“इस कहानी में एक ऐसी खूबसूरत व हसीन लड़की है जो अपने पति को एक महिला के साथ जिस्मानी संबंध बनाते देख लेती है और पति से इस बात की शिकायत करने पर उस के पति के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती, बल्कि वह और भी बेशर्म व निडर हो जाता है. और अब तो वह खुलेआम दूसरी औरत को घर में भी लाने लगता है. मेरी नायिका दूसरी भारतीय नारियों की तरह इस घटना से रोती नहीं, टूटती नहीं, बल्कि अपने पति को सबक सिखाती है. अगर उस का शादीशुदा पति किसी औरत से शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे भी पूरा हक है कि वह अपने पति से तलाक ले और अपनी शर्तों पर जीवन जिए.”

अरुंधती ने कहना जारी रखा-

“मेरी कहानी की नायिका अपने पति की बेवफाई से आहत है. प्रतिशोध लेने के लिए वह एक के बाद एक 4 युवकों से दोस्ती कर लेती है. उन में से 2 युवक शादीशुदा हैं जो अपनी विवाहित जिंदगी से परेशान हैं, जबकि 2 लड़के कुंआरे हैं. और देखिए कि मेरी नायिका पुरुषों की कामुक प्रवत्ति को पहचान कर उन सब को एकसाथ कैसे हैंडल करती है.

“‘हंसिका, मैं कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूं, तुम अभी तक पहुची क्यों नहीं?’ शेखर ने फोन पर परेशान आवाज़ में हंसिका से कहा.

“‘ओह, आई एम सो सौरी. मैं तुम्हें बता नहीं पाई, आज कंपनी के काम से औफिस में ही देर हो जाएगी मुझे.’

“‘पर मैं ने तो आज शाम का पूरा मूड बना लिया था,’ शेखर परेशान हो उठा था.

“‘कोई बात नहीं, तुम अपना मूड बनाए रखो, मैं तुम्हारी कल की शाम हसीन बना दूंगी,’ हंसिका ने फोन पर शेखर को दिलासा देते हुए कहा.

“‘किस से बात कर रही हो जानेमन,’ होटल के कमरे में घुसते हुए आर्यन ने पूछा.

“‘कोई नहीं, बस, ऐसे ही एक सहेली थी.’

“‘साफ क्यों नहीं कहती कि वह बेचारा भी मेरी तरह ही तुम्हारे हुस्न की गरमी का सताया हुआ आशिक है. न जाने तुम में कौन सी कशिश है जो हम आशिकों को तुम्हारे पास बारबार आने को मजबूर करती है.

“‘हम परवानों की बस इतनी सी इबादत है,

बस, तेरे हुस्न में झुलसने की आदत है.’

“यह कह कर आर्यन ने अपनी हंसिका को बांहों में भरा. हंसिका उस की आगोश में सिमटती चली गई. कुछ देर बाद कमरे में कामोत्तेजक सिसकारियां गूंजने लगी थीं. हंसिका और आर्यन एकदूसरे के जिस्म में समा गए थे. जब दोनों का जोश ठंडा हुआ तब हंसिका ने आर्यन के सीने पर सिर रखा और उस से पूछने लगी-

“‘तुम्हारी बीवी तो मुझ से भी खूबसूरत है. फिर भी तुम मेरे आगेपीछे क्यों डोलते रहते हो?’

“आर्यन ने अपनी बीवी का जिक्र आते ही बुरा सा मुंह बनाया और कहने लगा- ‘कहावत है कि मर्द के दिल का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है. पर, मेरे लिए मेरे दिल तक आने का रास्ता इस बैड से हो कर जाता है. मुझे सैक्स में थोड़ा पावर और हीट गेम चाहिए पर वह बैड पर किसी ज़िंदा लाश की तरह पड़ी रहती है.’

“‘तो क्या, तुम्हें बिस्तर पर एक ऐथलीट की ज़रूरत है?’ हंसिका ने उस को बीच में रोकते हुए कहा.

“‘नहीं, पर मर्द और औरत के रिश्तों के लिए एक अच्छी सैक्सलाइफ बहुत ज़रूरी होती है. यह बात तो तुम भी मानोगी न,’ यह कह कर आर्यन ने हंसिका को चूम लिया.

“वैसे, हंसिका इन मर्दों का अश्लील वीडियो बनाना नहीं भूलती थी, क्या पता किस मोड़ पर काम आ जाएं.

“हंसिका पूरी रात आर्यन के साथ गुज़ारने के बाद सुबह अपने औफिस गई और फिर पूरा दिन काम करने के बाद अपने फ्लैट पर जाने से पहले उसने ब्यूटीपार्लर जाना जरूरी समझा. उस के साथ में उस की औफिसमेट माया थी.

“‘अरे हंसिका, अभी तूने 2 दिनों पहले ही तो अपने बालों को स्ट्रेट कराया था. और आज फिर से इन्हें कर्ली क्यों करा रही है,’ माया ने पूछा.

“‘क्योंकि आज मेरी आकाश के साथ डेट है,’ मुसकराते हुए हंसिका ने कहा.

“‘आकाश के साथ? पर तेरे बौयफ्रैंड का नाम तो युवराज है.’ चौंक पड़ी थी माया.

“‘तुम नहीं समझोगी, माया. अच्छा बताओ, इंद्रधनुष में कितने रंग होते हैं?’ हंसिका ने पूछा.

“‘सात.’

“‘और एक हफ्ते में कितने दिन?’

“‘सात,’

“‘तो फिर, बौयफ्रैंड एक क्यों, सात क्यों नहीं?’ अपने होंठों पर हलकी सी मुसकराहट लाते हुए हंसिका ने कहा.

“‘अरे, तू क्या सच में सात मान बैठी. सात नहीं, बल्कि सिर्फ 4 बौयफ्रैंड हैं मेरे.’

“‘ओफ्फो, तुझे समझना बहुत मुश्किल है.’

“यह कह कर माया बाहर की ओर जाने लगी, तो हंसिका ने उसे पास बुलाया और बोली, ‘सुन तो, देख, अजीब ज़रूर लग रहा होगा पर आर्थिकरूप से स्वतंत्र रहने का यही तो मज़ा है. चाहे जैसे रहो, कोई टोकने वाला नहीं. और ज़िन्दगी में ऐश करो. पति के सहारे रहने व उस की बेवफाई सहने में भला रखा ही क्या है.’ हंसिका का दर्द छलक आया था. उस ने सिगरेट सुलगाई. माया ने सहमति में सिर हिला दिया.

“करीब 5 फुट 9 इंच की हाइट वाली हंसिका का व्यक्तित्व देखते ही बनता था. गोरा रंग, पतला चेहरा और सुतवां नाक. इस के साथ उस के बाल कमर तक लहराते हुए. अपने बौडीमास को भी बहुत अच्छी तरह से मेन्टेन किया हुआ था हंसिका ने और इस के लिए वह सप्ताह में कम से कम 3 दिन जिम जाती थी.

“हंसिका एक मौडलिंग एजेंसी में काम करती थी जो बेंगलुरु जैसे शहर में अच्छी आय का स्रोत था और इसी पैसे के चलते हंसिका मनचाहे अंदाज़ से अपना जीवन जी रही थी.

“जो दिखता है वाही बिकता है के सिद्धांत को मानने वाली हंसिका अपने यौवन का भरपूर दिखावा करना अच्छी तरह से जानती थी. अपने अलगअलग बौयफ्रैंड्स के साथ वह सैक्स करने में पीछे कभी नहीं हटती. अलगअलग दिनों में हंसिका के शारीरिक संबंध अलगअलग बौयफ्रैंड से बनते.

“हंसिका के बौयफ्रैंड यह बात अच्छी तरह जानते थे कि हंसिका के संबंध उन लोगों के अलावा और लोगों से भी हैं पर उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि हंसिका जैसी खूबसूरत लड़की पर एकाधिकार दिखा कर वे उसे खोना नहीं चाहते थे. उन के लिए तो हंसिका जैसी दिलकश हसीना के शरीर को भोग लेना ही बहुत बड़ी बात थी.

“आज हंसिका की डेट आकाश नाम के व्यक्ति के साथ थी. आकाश एक समय में हंसिका का फेसबुक फ्रैंड था. आकाश शादीशुदा था. वह अपनी पत्नी की बेवफाई से दुखी था. उस की पत्नी का स्कूल के एक टीचर के साथ अफेयर था जिस के बारे में उसे भनक लग गई थी और दुखी हो कर आत्महत्या के बारे तक में सोचने लगा था. अपनी निराशा से जुड़ी बातें आकाश ने फेसबुक मैसेंजर पर हंसिका से शेयर कीं तो हंसिका को मामले की गंभीरता के बारे में पता चला.

“उस ने अपनी बातों से टूटे हुए आकाश को दिलासा दी और उसे मिलने के लिए बुलाया. दोनों में मुलाकातें होने लगीं. वहीं से आकाश पूरी तरह से हंसिका के रूप का दीवाना हो गया. और हंसिका ने उसे भी अपनी देह का स्वाद चखाने में देर नहीं की. हंसिका अपने इन बौयफ्रैंड्स को अच्छी तरह यूज़ करना जानती थी. कब किस से कितने पैसे की डिमांड करनी है, इस का अच्छी तरह ज्ञान था उस को.

“हंसिका अनचाहे गर्भ से बचने के लिए कंडोम का प्रयोग एक अनिवार्य शर्त बना देती थी. पर इस बार पता नहीं किस से और कैसे चूक हुई कि हंसिका गर्भवती हो गई थी. अपने गर्भवती हो जाने की बात हंसिका ने किसी भी बौयफ्रैंड को नहीं बताई. दिन बीतते रहे. अपनी व्यस्त जीवनशैली के कारण जब हंसिका अपना गर्भपात कराने के लिए डाक्टर के पास पहुंची तो डाक्टर ने यह कह कर गर्भपात करने से मना कर दिया कि समय अधिक हो गया है, अब यह संभव नहीं है, इसलिए आप को बच्चे को जन्म देना ही होगा.

“हंसिका ने सब से पहले यह बात अपने एक पुराने बौयफ्रैंड आर्यन से बताई, ‘सुनो आर्यन, यार, बड़ीड़ा प्रौब्लम हो गई है.’

“‘ऐसा भी क्या हो गया मेरी जान जो तुम इतना घबरा कर बोल रही हो,’ आर्यन ने कहा.

“‘यू नो, आई एम प्रैग्नैंट,’ हंसिका ने फुसफुसा कर कहा.

“‘बधाई हो, मिठाई खिलाओ भाई,’ आर्यन ने चुटकी ली.

“‘मज़ाक मत करो, मैं बहुत परेशान हूं,’ हंसिका चिड़चिड़ा रही थी.

“‘अब तुम कोई दूध पीती बच्ची तो नहीं जो तुम्हें बताना पड़ेगा कि अगर तुम शादी से पहले प्रैग्नैंट हो गई हो तो बच्चे को अबौर्ट करवा दो.’

“‘तुम्हें क्या लगता है कि मैं डाक्टर के पास नहीं गई थी? गई थी पर डाक्टर ने गर्भपात करने से मना कर दिया. अब मुझे बच्चे को जन्म देना ही होगा.’

“ओह्ह, तो यह बात है,’ आर्यन ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा और चुप हो गया. कुछ देर बाद आर्यन ने ही कहना शुरू किया, ‘कोई बात नहीं, तुम फिक्र मत करो. अस्पताल का सारा खर्चा मैं देने के लिए तैयार हूं. पर क्या यह बच्चा वास्तव में मेरा ही है?’

“‘ये कैसी बातें कर रहे हो आर्यन, क्या मतलब है तुम्हारा?’

“‘मेरा मतलब है कि मेरे अलावा तुम्हारे पति का भी तो हो सकता है?’ आर्यन ने कहा. जबकि, उसे अच्छी तरह पता था कि हंसिका अपने पति से अलग रह रही है और उस ने पति से तलाक लेने का मुकदमा दायर कर रखा है.

“‘अगर भरोसा नहीं है तो बच्चे का डीएनए टैस्ट करवा लो.’

“डीएनए टैस्ट करवाने की बात तो आर्यन के मन में भी आई थी पर अगर डीएनए टैस्ट में बच्चा किसी और का निकलता तो बहुत मुमकिन था कि आर्यन को हंसिका से विरक्ति हो जाती और वह उसे खो देता.

“‘अरे, ऐसी कोई बात नहीं है. तुम तो ज़रा सी बात में नाराज़ हो गई. मैं तो मज़ाक कर रहा था,’ आर्यन ने बात बनाते हुए कहा.

“हंसिका के संबंध कई मर्दों से थे. सभी मर्द इस बात को अच्छी तरह से जानते भी थे. हंसिका जैसी चिड़िया किसी एक पिंजरे में बंद हो कर नहीं रह सकती पर वे सब हंसिका जैसी सैक्सी व दिलकश लड़की को छोड़ना नहीं चाहते थे. इसलिए, वे सब उस की लगभग हर बात मानते थे.

हंसिका ने इसी तरह बारीबारी अपने सभी बौयफ्रैंड्स को अपने गर्भवती होने की बात बताई. और उन सब ने कमोबेश यही कहा कि हंसिका, बच्चे को अस्पताल में जन्म दे और वे लोग उसे हर तरह का खर्चा देने के लिए तैयार हैं.

“जब अपने चारों बौयफ्रैंड्स से हंसिका ने बात कर के उन से पैसे मिलने की बात कन्फर्म कर ली, तब जा कर उस को सुकून मिला और वह अपने होने वाले बच्चे के भविष्य को ले कर आश्वस्त हो गई.

“मेरी नायिका हंसिका ने अपने औफिस से मैटरनिटी लीव ली और समय आने पर बच्चे को जन्म दिया.

“हंसिका अपने हर बौयफ्रैंड को अलगअलग यही एहसास कराती रहती कि जैसे यह बच्चा उस का ही है और उन लोगों से अलगअलग बच्चे के पालनपोषण के लिए पैसे भी लेती रही.

“कालांतर में हंसिका के अविवाहित बौयफ्रैंड्स की शादी भी हो गई और कुछ समय बाद बच्चे भी. पर उन प्रेमियों ने हंसिका व उस के बच्चे का ध्यान रखना नहीं छोड़ा.

“हंसिका के कई पुरुषों से संबंध को दुश्चरित्रता इसलिए भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि मर्दों के इस समाज में हंसिका ने ‘टिट फौर टैट’ अर्थात ‘जैसे को तैसा’ वाला आचरण दिखा कर एक नई मिसाल पेश की है. और फिर, अगर एक औरत अपने पति की किसी भी तरह की बेवफ़ाई के खिलाफ किसी भी तरह का सार्थक कदम उठाती है तो उस का स्वागत किया जाना चाहिए. और मुझे पता है कि इस समाज में हंसिका जैसी बहुत औरते हैं जो पति की बेवफाई सह रही हैं. भले ही वे सब अपने मर्द के खिलाफ कुछ न कर पा रही हों पर मेरी इस कहानी को पसंद कर उन्होंने इस साल की बैस्ट कहानी बना कर हंसिका का साथ देने की मूक स्वीकृति तो दे ही दी है.”

हौल में लगातार तालियां बजे जा रही थीं हंसिका जैसी नायिका के लिए. पर यह बात केवल अरुंधती ही जानती थी कि हंसिका की यह कहानी किसी और की नहीं, बल्कि उस की अपनी है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें