बुरके वाली : अमन की दिलकश हसीना

अपनी कंजूसी की आदत पर अब अमन को गुस्सा आने लगा था. जब कंपनी ने पहले दर्जे के टिकट का खर्चा दिया था, तो वह नाहक ही दूसरे दर्जे के डब्बे में सफर क्यों कर रहा था?

‘और पिसो मक्खीचूस…’ खुद को कोसते हुए अमन ने एक नजर पूरे डब्बे में डाली. एक से बढ़ कर एक गंवार किस्म के लोग बैठे हुए थे. न बैठने की तमीज, न खानेपीने की.

सामने बैठा धोती वाला आदमी आधे घंटे से ‘चबरचबर’ की तेज आवाज करते हुए चने खाए जा रहा था. खाए तो ठीक, लेकिन खाने का यह भी कोई ढंग हुआ?

चने खाते हुए अचानक उस आदमी को जोर से छींक आ गई. बगैर मुंह पर हाथ रखे उस ने जो छींका, तो मुंह में पिसते चनों का आधा हिस्सा सीधे अमर के झक सफेद कुरते पर आ गिरा.

गुस्सा तो ऐसा आया कि उठ कर

2-4 तमाचे लगा दे, लेकिन उस की बड़ी उम्र देख कर अमन रुक गया

और तेज आवाज में कहा, ‘‘यह क्या बदतमीजी है?’’

अमन सोच रहा था, शायद वह माफी मांगेगा, पर यह क्या? वह तो…

‘‘इस में बदतमीजी की क्या बात है? छींक आ गई, तो इस में मैं क्या कर सकता हूं? जानबूझ कर तो नहीं छींका है,’’ उस आदमी ने दलील दी.

‘‘लेकिन, छींकते वक्त मुंह पर हाथ तो रखा जा सकता है,’’ अमन तमीज सिखाने की गरज से बोला.

धोती वाला आदमी बहाना करने लगा, ‘‘आप की बात ठीक है, पर मैं हाथ रखता उस से पहले ही…’’

‘‘पहले क्या…? मेरे कुरते की तो ऐसी की तैसी हो गई न,’’ अमन बिफरते हुए बोला.

‘‘इस में गुस्सा करने की क्या जरूरत है? लाइए, मैं साफ कर दूं,’’ रूमाल से कुरता साफ करने के लिए वह अमन की तरफ झुका. उस के ऐसा करने में भी दिखावटीपन साफ झलक रहा था.

‘‘बसबस, ठीक है,’’ अमन के ऐसा कहते ही वह आदमी दोबारा अपनी सीट पर पसर गया और उसी अंदाज में चने चबाने लगा.

डब्बा दूसरे दर्जे का था. हर स्टेशन पर मुसाफिर भी दर्जे के हिसाब से ही चढ़तेउतरते. तकरीबन 2 घंटे से कोई भली सूरत नजर नहीं आई थी. कुछ नहीं तो एकाध जनाना शक्ल ही दिख जाए. बीड़ी पर बीड़ी फूंकते इन अक्खड़ मर्दों की शक्लें देखदेख कर तो अमन का मन ऐसा होने लगा, जैसे अगले स्टेशन पर उतर कर पहले दर्जे के डब्बे में चढ़ जाए. जाना भी बहुत दूर था.

गाड़ी प्रीतमपुर स्टेशन पर खड़ी थी. चाय, समोसा और ठंडा वगैरह की तेज आवाजों से किसी तरह अपना ध्यान हटाते हुए अमन नजरें उपन्यास पर गड़ाए था. अचानक इत्र की भीनी

खुशबू उस के नथुनों से टकराई. चौंकना लाजिमी था. नजरें उठा कर इधरउधर देखा, तो रेशमी बुरका पहने हुए एक औरत उस की तरफ चली आ रही थी.

वह सीधे आई और ‘धम’ से अमन के पास पड़ी खाली जगह पर बैठ गई. इत्र की खुशबू से आसपास का माहौल सराबोर हो उठा. उस ने हाथ के बैग को अपनी जांघों पर रखा और दोनों हाथों का घेरा बनाते हुए उसे पकड़ लिया.

न जाने क्यों, उस का आना अमन को अच्छा लगा. अच्छा क्यों नहीं लगता? उस बदबूदार बदसूरत लोगों के डब्बे में रेशमी कपड़े पहने, इत्र लगाए और उस पर कोई औरत, जो उस के पास बैठी हुई थी.

गाड़ी चल चुकी थी. अब अमन का मन उपन्यास पढ़ने में बिलकुल नहीं लग रहा था. लेकिन वह उसे बंद भी नहीं कर सकता था. उस के बाईं तरफ वह बुरके वाली औरत बैठी थी. दाईं ओर खिड़की थी. पढ़ना बंद करने के बाद यही चारा रहता कि खिड़की के बाहर का नजारा देखता रहे. बाईं तरफ चेहरा घुमाता तो उस बुरके वाली पर अच्छा असर नहीं पड़ता.

‘क्या पता, वह कुछ और ही सोचने लगे. चेहरे पर गिरे परदे की जाली से कहीं उस की तिरछी निगाहों ने मेरे चेहरे को उस की ओर ताकते देख लिया तो क्या सोचेगी? यही कि बदमाश है, मेरी सूरत देखने की कोशिश कर रहा है. लेकिन देखने में मैं कोई बदमाश थोड़े ही लगता हूं. बदमाश लगता तो वह मेरे पास ही क्यों बैठती? और जगहें भी तो खाली थीं…?’

पन्ने पर आंखें गड़ाए अमन यह सब सोचे जा रहा था. लेकिन इस तरह कब तक चलेगा? हिम्मत कर के उस ने उपन्यास बंद किया और उसे बैग के हवाले कर खिड़की के बाहर की तरफ देखने लगा.

बाहर देखते हुए अमन इस ताक में था कि किसी तरह एक बार उस ओर के हालात का जायजा ले ले, जहां वह औरत बैठी थी. 5 मिनट तक यों ही बाहर देखने के बाद अमन ने तेजी से अपना चेहरा बाईं तरफ घुमाया और कुछ इस तरह का स्वांग करने लगा, जैसे वह उसे नहीं, बल्कि डब्बे में बैठे दूसरे मुसाफिरों की ओर देख रहा है.

अचानक अमन की नजरें बैग थामे उस औरत की हथेलियों पर पड़ीं. पलभर को वह ठगा सा रह गया. गोरीगोरी, नरममुलायम हथेलियां व उन पर सोने की अंगूठी. कुलमिला कर नजारा देखने लायक व आंखों को अच्छा लगने वाला था. जब उस की हथेलियां यह गजब ढा रही थीं तो शक्लसूरत के लिहाज से वह… 2 मिनट तक उस की हथेलियों पर टकटकी लगाए जाने क्या सोचता रहा… उस के बाद अचानक अमन के सोचने की कड़ी तब टूटी, जब उस औरत ने अपना हाथ साथ लाए बैग में डाला.

अमन ने झटपट अपनी नजरें खिड़की की तरफ फेर लीं. उसे ऐसा लगा कि शायद उस के देखते रहने के चलते

ही उस ने हाथ बैग में डाल कर उस

का ध्यान कहीं और बंटाने की कोशिश की थी.

अमन को अपनेआप पर थोड़ा गुस्सा भी आया. क्यों वह उस की हथेलियों को एकटक निहारता रहा था?

‘सचमुच बुरा लगा होगा उसे. कहीं यह तो नहीं सोच लिया उस ने कि मेरी नजर उस के सोने की अंगूठी पर है.

‘नहींनहीं, मैं भी अजीब हूं. इतनी देर से न जाने क्या उलटासीधा सोचे जा रहा हूं? हो सकता है कि उस ने मेरी हरकतों  पर गौर ही न किया हो. लेकिन, उस के गोरे रंग और कोमल हथेलियों की याद न चाहते हुए भी बारबार दिल पर बिजली गिरा रही है,’ यह सोच कर भी अमन का मन खुश हो रहा था कि यह सुंदरी जरूर एक न एक बार परदा उठाएगी और उस का चांद सा चेहरा देखने को मिलेगा.

उस औरत के आने से पहले दूसरे दर्जे के सफर को अमन कोस रहा था. अब वही सफर उसे अपार खुशी का एहसास करा रहा था.

अमन फिर उसे देखने का मौका ढूंढ़ने लगा. अब की बार उस ने डब्बे में बैठे दूसरे मुसाफिरों की ओर नजर दौड़ाई. देखते ही वह चौंक गया. तकरीबन हर आदमी की निगाह उस बुरके वाली की तरफ थी. तिरछी निगाहों से उस की ओर देखा तो वह किताब पढ़ रही थी. यकीनन, लोगों की घूरती नजरों से बचने के लिए उस ने किताब खोली होगी.

अब आदमी तो आदमी है, दूसरों की गलतियों को ढूंढ़ने में अकसर अपनी गलतियों की ओर ध्यान नहीं देता. अमन भी तो उस बुरके वाली का चेहरा देखने की फिराक में था.

ऐसा लग रहा था कि अगले ही

पल उस के चेहरे से अमन धीरे से परदा उठा कर कहेगा, ‘वाह, क्या खूबसूरती पाई है.’

जवाब में वह सिर झुका कर शरमाते हुए कहेगी, ‘जी, तारीफ के लिए शुक्रिया.’

उसी अंदाज में अमन का सिर भी नीचे झुका तो आंखें चुंधिया गईं. क्या बेजोड़ रेशमी जूतियां पहनी थीं उस ने. चिलचिल करता बुरका, चमकती अंगूठी, कढ़ाईदार जूतियां पहने उस की मनमोहक वेशभूषा देख कर चेहरे की खूबसूरती के बारे में अमन की सोच और भी बढ़ती जा रही थी.

‘लेकिन, इस का चेहरा देखें तो कैसे? कमबख्त परदा भी तो नहीं हटाती. अच्छा है नहीं हटाती. हटा दे तो शायद कयामत आ जाए. क्या 2-4 गश खा कर गिर पड़ें.’

इधरउधर की बातें सोचने का अमन का सिलसिला टूटा तो देखा कि गाड़ी रायपुर स्टेशन पर खड़ी थी. प्यास लगने के बावजूद वह अपनी जगह से नहीं उठा. क्या पता, इधर वह उठे, उधर कोई और आ कर इस अनमोल जगह पर कब्जा कर ले जाए.

‘‘क्या आप यह पानी की बोतल भर कर ले आएंगे,’’ उस बुरके वाली ने अमन से कहा.

आवाज क्या थी, मानो शक्कर घोल रखी हो. अमन के मना करने का सवाल ही नहीं था.

‘‘अभी लाया, आप जगह का ध्यान रखिए,’’ कहते हुए अमन उठ खड़ा हुआ.

‘‘चिंता मत कीजिए, ज्यादा हुआ तो कह दूंगी कि आप मेरे साथ हैं,’’ उस ने सलीके से कहा.

‘मेरे साथ हैं’ सुन कर मन ही मन अमन इतना खुश हो गया कि होंठों पर बरबस गीत आ गया और बोतल ले कर डब्बे से नीचे उतरा.

पानी लेने जाने से ले कर आने तक उस की मीठी आवाज कानों में रस घोलती रही.

‘‘यह लीजिए,’’ भरी बोतल देते हुए अमन ने कहा.

‘‘बहुतबहुत शुक्रिया,’’ उस ने अमन की ओर देखते हुए कहा. लेकिन परदा नहीं हटाया. बड़ा गुस्सा आया. कुछ कहना है तो कम से कम परदा तो हटा देती. कौन सी नजर लग रही है?

गाड़ी चल पड़ी थी. वह औरत फिर से किताब पढ़ने में मगन हो गई. अमन उस से बात करने का जुगाड़ बैठाने की फिराक में था.

‘कैसे शुरुआत करूं? यह कहूं कि किस लेखक का उपन्यास है? नहींनहीं, कुछ इस तरह से कि आप को उपन्यास पढ़ने का शौक है?’ मेरे पूछने पर उसे अच्छा नहीं लगा तो…? या वह यही कह दे, कि ‘आप को इस से क्या? अपना काम कीजिए.’

‘लेकिन, पिछले स्टेशन पर जब पानी मंगाया था, तब तो बड़े अपनेपन से बोली थी,’ इसी उधेड़बुन में अमन उंगलियां चटकाने व बारबार दांतों से नाखून काटने लगा था.

हिम्मत कर के अमन बोलने ही वाला था कि उस की रसभरी आवाज कानों से टकराई, ‘‘आप को किताबें पढ़ने का शौक नहीं है क्या?’’

एकदम से पूछे जाने के चलते अमन  से जवाब देते नहीं बना, ‘‘हांहां, हैहै,’’ कहते हुए बैग से उस ने उपन्यास निकाल लिया.

‘‘पूरा पढ़ चुके हो, तभी अंदर रखे हुए थे?’’ कुछ सवालिया लहजे में उस ने कहा.

अमन ने कहा, ‘‘बस यों ही अच्छा नहीं था.’’

‘‘लाइए, दिखाइए तो,’’ कहते हुए उस ने बेझिझक उपन्यास अमन के हाथों से खींच लिया. इस दौरान उस की नाजुक उंगलियां अमन की हथेली से छू गईं. एक पल को शरीर में झुरझुरी दौड़ गई और पूरा बदन रोमांचित हो उठा.

पन्ने पलटते हुए बुरके वाली ने कहा, ‘‘आप को दिक्कत न हो, तो मैं यह उपन्यास पढ़ लूं.’’

अमन ने कहा, ‘‘जरूर पढि़ए. वैसे भी अभी मेरी इच्छा नहीं है,’’ लेकिन

साथ ही यह भी जोड़ दिया कि कोई खास नहीं है.

अमन नहीं चाहता था कि बातों का जो सिलसिला शुरू हुआ है, वह उसे उपन्यास पढ़ने में डूब जाने के चलते खत्म हो जाए.

‘‘लग तो दिलचस्प ही रहा है,’’ शुरुआती 2-4 लाइनें पढ़ने के बाद वह बुरके वाली औरत बोली.

दरअसल, वह था ही दिलचस्प, फिर भी अमन ने कहा, ‘‘मुझे तो खास नहीं लगा. खैर, पसंद अपनीअपनी.’’

उस के बाद जो उस औरत ने पढ़ना शुरू किया, तो बोलने का नाम ही नहीं लिया. अमन खाली बैठा खिड़की के बाहर टुकुरटुकुर ताकता रहा. बीच में एकबारगी सोचा कि खाली बैठे बोर होने से अच्छा है, उस का उपन्यास मांग ले. लेकिन यह सोच कर अमन से मांगा नहीं गया कि कहीं वह यह न समझ बैठे

कि वह उस से बात करने का बहाना ढूंढ़ रहा है.

दीमापुर स्टेशन पर गाड़ी रुकी, तो उपन्यास से नजरें हटाते हुए कुछ चौंकने की मुद्रा में उस ने कहा, ‘‘जी, कौन सा स्टेशन आ गया है.’’

‘‘दीमापुर,’’ अमन ने छोटा सा जवाब दिया.

‘‘सुना है, यहां की रसमलाई बड़ी मशहूर है,’’ कुछ जिज्ञासा के अंदाज में उस ने कहा.

‘‘क्या यह वही दीमापुर है?’’ अब चौंकने की बारी अमन की थी. दरअसल, उस के दोस्त ने इस बारे में जिक्र किया था.

अमन खड़ा हुआ, तो वह बोली, ‘‘कहां जा रहे हो?’’

अमन ने कहा, ‘‘रसमलाई लेने. दोस्त ने कहा था. उधर से निकलो तो एकाध किलो लेते आना.’’

‘‘अच्छा ऐसा करिए, किलो भर मेरी भी बंधवाते लाइए,’’ कह कर उस ने पर्स से 500 रुपए का नोट निकाला.

अमन बोला, ‘‘छुट्टे दे दीजिए, दिक्कत होगी.’’

‘‘जी, छुट्टे नहीं हैं. खैर, आप दे दीजिए. अभी किसी से नोट तुड़वा कर दे दूंगी.’’

इस बीच वह हाथों को जरा भी ऊपर ले जाती तो अमन को लगता, अब चेहरे से परदा हटा, अब हटा. लेकिन कमबख्त ने फिर भी परदा नहीं हटाया.

अमन का धीरज टूटनेटूटने को हो गया. लगा कि तेजी से परदा खींचते हुए कहे, ‘अब हटा भी लीजिए, आखिर इस चांद में क्या राज छिपा है,’ पर ये बातें सोचने तक ही रहीं, जबान से बाहर नहीं निकल सकीं.

अमन मिठाई ले कर आया, तो वह बोली, ‘‘कितने हुए?’’

अमन ने तुरंत कहा, ‘‘400 रुपए.’’

‘‘जी, छुट्टे होते ही दे दूंगी,’’ उस ने कुछ इस तरह से कहा कि अमन के मुंह से निकल गया, ‘‘कोई जल्दी नहीं.’’

प्लेटफार्म छूटते ही अचानक उस ने कहा, ‘‘आप बुरा न मानें, तो मैं आप की जगह पर आ जाऊं. सफर में खिड़की के पास न बैठूं, तो जी मिचलाने लगता है.’’

‘जी नहीं मिचलाएगा तो और क्या होगा? घंटों से चेहरे के आगे परदा जो चढ़ा रखा है,’ अमन ने गुस्से से तकरीबन बुदबुदाते हुए मन ही मन कहा. मन मार कर उसे जगह बदलनी पड़ी.

बाहर का सुंदर नजारा देखते हुए अनायास उस बुरके वाली ने टूटी सलाखों वाली खिड़की से चेहरा बाहर निकाला और तकरीबन पूरी तरह गरदन को पिछले डब्बे की दिशा में मोड़ते हुए चेहरे से परदा हटा दिया.

अमन बरसों से जैसे इसी इंतजार में बैठा था. बिजली की रफ्तार से खिड़की की ओर झपटा. चेहरा देखने के लिए झुका, लेकिन उस से पहले ही बेरहम ने परदा डालते हुए सिर डब्बे के अंदर खींच लिया.

गुस्से में आ कर अमन ने अपनी मुट्ठी हथेली पर इस तरह मारी, जैसे कोई बहुत बड़े फायदे का मौका उस के हाथ से निकल गया हो.

‘‘बड़ा खूबसूरत पेड़ था,’’ उस औरत ने कहा.

चेहरा देखने का मौका चूक जाने के चलते अमन तमतमाया हुआ था. जल्दबाजी में अमन के मुंह से निकल गया, ‘‘होगा, सारे पेड़ ऐसे ही होते हैं.’’

शायद उसे अमन के कहने का ढंग अच्छा नहीं लगा. पलट कर वह फिर खिड़की से बाहर देखने लगी. इतने में नोट गिनते सामने बैठे सज्जन पर अमन की निगाह पड़ी, तो बुरके वाली से रसमलाई के पैसे लेने का खयाल दिमाग में आ गया, ‘अरे, मैं तो भूल ही गया था. अभी मांगू लूं, 500 का नोट तुड़वाने के लिए परदा जरूर उठाएगी और मैं चेहरा देख लूंगा.’

उस का छिपा चेहरा देखने की अमन की इच्छा इतनी जोर पकड़ती जा रही थी कि अमन हर बात में यही सोचता कि कैसे उस का चेहरा सामने आ जाए.

मांग तो ले, लेकिन उसे ठीक नहीं लगेगा. सोचेगी, ‘बड़ा अजीब आदमी है, एकाध घंटे के लिए भी धीरज नहीं रख सकता है. पैसे ले कर कोई भागे थोड़े ही जा रही हूं…’

‘ठीक है, नहीं मांगता. पर फिर भूल गया और वह अपने स्टेशन पर उतर गई, तो मुफ्त में 400 रुपए की चपत लग जाएगी… ऐसे कैसे उतर जाएगी? धोखा देगी क्या?’ अमन के दिमाग में उस के चेहरे की ऐसी खूबसूरती का खयाल समा गया था कि उस को सुंदरियों की रानी से कम नहीं समझता था.

लेकिन, एक बात अमन को अब खटकने लगी. आखिर बात क्या है, जो वह अपने चेहरे से परदा नहीं हटा रही? एकाध बार परदा उठा भी ले तो कौन सी आफत आ जाएगी. कहीं यह बदसूरत तो… नहींनहीं, यह बिलकुल नहीं हो सकता. उस की गोरी, नाजुक हथेलियों व रेशमी जूतियां चढ़ाए पैरों के लुभावने खयाल ने अमन की सोचनेसमझने की ताकत ही छीन ली थी.

गाड़ी की रफ्तार धीमी होते देख बुरके वाली ने खिड़की से सिर बाहर निकाल कर देखा और फिर जल्दजल्दी अपना बैग जमाने लगी. अमन को उस का स्टेशन आने का शक हुआ.  पूछा

तो सामान समेटते हुए उस ने जवाब दिया, ‘‘सुलतानगंज आ गया है, मैं यहीं उतरूंगी.’’

‘तो क्या मैं इस का चेहरा नहीं देख पाऊंगा?’ मन में निराशा सी छा गई. ‘चीं’ की तेज आवाजों के साथ ब्रेक लगे और गाड़ी सुलतानगंज स्टेशन पर आ कर खड़ी हो गई.

‘‘आइए, मैं आप को छोड़ दूं,’’ उस के उठने से साथ ही अमन भी खड़ा हो गया. हालांकि उस के पीछे अमन का लालच था कि हो सकता है, इस बीच वह चेहरे से परदा हटा दे.

‘‘आप क्यों तकलीफ कर रहे हैं? बैठिए,’’ वह तहजीब से बोली.

‘‘नहींनहीं, इस में तकलीफ की क्या बात है,’’ कहते हुए अमन उस के पीछेपीछे चलने लगा.

अब की बार अमन ने पक्का इरादा कर लिया कि चेहरा देखने की जिस इच्छा को घंटों से सजाए था, उसे यों ही खाक नहीं होने देगा. ज्यों ही वह दरवाजे के पास आई, हिम्मत बटोर कर शायराना अंदाज में अमन ने कहा, ‘‘आप बुरा न मानें, तो आप के खूबसूरत चेहरे का दीदार कर मैं अपने को खुशकिस्मत मानूंगा.’’

एक पल के इंतजार के बाद झटके से उस ने परदा ऊपर खींच लिया. चेहरा देख कर अमन हक्काबक्का रह गया. हद से बदसूरत, दाग वाली, कंजी आंखों वाला चेहरा उस के सामने था.

अलविदा की औपचारिकता निभा कर उस ने परदा गिराया और स्टेशन के मेन गेट की ओर बढ़ गई. डब्बे के दरवाजे पर बदहवास सा खड़ा अमन उसे जाते हुए देखता रहा.

गाड़ी चलने के बाद अमन लड़खड़ाते कदमों से भीतर आया, तो कुछ याद आते ही दिल पर एक बड़ा सा झटका महसूस हुआ. उस के चांद

सरीखे खूबसूरत चेहरे के खयालों में मिठाई के 400 रुपए व अधूरे पढ़े उपन्यास के 100 रुपयों की बलि चढ़ गई थी. अमन निढाल हो कर अपनी सीट पर आ गिरा.

आखिर क्या है पेड और वेब सेक्स, जानें यहां

सोशल वेबसाइट सर्वे करने वाली एक आईटी कंपनी की हालिया रिपोर्ट चौंकाती है, जिस में पोर्न बेस्ड सर्वे के आधार पर ये आंकड़े दिए गए हैं कि देश में 22 से 34 आयुवर्ग के युवा पोर्नोग्राफी, पेड सेक्स, बैव सेक्स चैट के जरिए अपनी पौकेट ढीली कर रहे हैं. उन की कमाई का लगभग 20 से 30त्न हिस्सा पेड सेक्स के लिए जा रहा है.

माध्यम चाहे जो भी हो, सेक्स के लिए मोटी रकम अदा करनी पड़ रही है यानी सेक्स अब सस्ता व सुलभ नहीं, बल्कि महंगा और अनअफोर्डेबल है. पेड सेक्स की बढ़ती लोकप्रियता व चलन ने सेक्स को आम लोगों की पहुंच से दूर कर दिया है. अब यह पैसे वालों का शौक बन गया है. सेक्स की बढ़ती मांग और आपूर्र्ति के बीच गड़बड़ाए तालमेल ने सेक्स बाज़ार के रेट आसमान पर पहुंचा दिए हैं. इस का दूसरा बड़ा कारण है मोटी जेब वालों की सेक्स तक आसान पहुंच. जहां जैसी जरूरत हो, मोटी रकम दे कर सेक्स बाज़ार से सेक्स खरीद लिया, नो बारगेनिंग, नो पचड़ा. इस का नतीजा हाई रेट्स पेड सेक्स के रूप में सामने आया. सेक्स वर्कर्स ने भी मांग के आधार पर अपनी दरें ऊंची कर लीं.

क्या है पेड सेक्स

सेक्स के लिए जो रकम अदा की जाती है उसे पेड सेक्स कहा जाता है. इस के कई रूप हो सकते हैं. वर्चुअल सेक्स से ले कर लाइव फिजिकल सेक्स तक. औनलाइन सेक्स मसलन, पोर्न वीडियो, पोर्नोग्राफी, औनलाइन पेड फ्रैंडशिप, वीडियो सेक्स, वैब औरिएंटेड सेक्स. औफलाइन सेक्स मसलन, ब्रोथल पिकअप सेक्स, कौलगर्ल औन डिमांड आदि. सेक्स के इन तमाम माध्यमों में कहीं न कहीं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पैसे इनवैस्ट किए जाते हैं. सेक्स के तमाम माध्यमों में सीधे इनवैस्टमैंट को पेड सेक्स कहते हैं.

सेक्स की राह नहीं आसान

कुछ दशक पहले तक सेक्स तक आम लोगों की आसान पहुंच थी. छोटीमोटी रकम अदा कर के यौनसुख का आनंद उठाया जा सकता था, पर सेक्स के विभिन्न मौडल सामने आने के बाद उस की दरों में कई गुणा वृद्धि हुई है.

क्या है इन की कैटेगरी व प्रचलित दरें

– औनलाइन पेड सेक्स : प्रति मिनट डेटा चार्जेज.

– फोन फ्रैंडशिप : 2 से 3 हजार रुपए प्रतिमाह सदस्यता.

–       कौलगर्ल औन डिमांड : 2 से 10 हजार रुपए प्रति घंटा.

–       स्कौर्ट सर्विस (श्रेणी एबीसी ) शुरुआती दर.

–       ब्रोथल सेक्स : 500 से 1,500 रुपए तक नाइट/आवर.

–       हाउस सर्विस : पर शौट (हाउसवाइफ, कालेज/वर्किंग वूमन)  3 से 5 हजार रुपए पर शौट.

मार्केट में चल रही इन दरों को देख कर आसानी से यह कहा जा सकता है कि ऐक्स्ट्रा मैरिटल सेक्स की चाह रखने वालों को अब मनी कैपेबिलिटी भी ऊंची रखनी होगी. यौनतृप्ति की राह आसान नहीं है. सेक्स के बाजार ने एक बड़ा रूप ले लिया है, जहां जिस की जितनी हैसियत है उस हिसाब से यौन संतुष्टि पा सकता है. आम व सामान्य लोगों के लिए यौनलिप्सा के दरवाजे लगभग बंद होते प्रतीत हो रहे हैं.

सलमान खान को मारने वाला गैंगस्टर लोरेंस बिश्नोई की लव स्टोरी, गर्लफ्रेंड के लिए उठाई थी बंदूक

अहमदाबाद की साबरमती जेल में बंद लोरेंस बिश्नोई का खतरा इन दिनों फिर से सलमान खान पर मंडरा रहा है. हर दिन लोरेंस का कोई न कोई जाल सलमान के लिए बिछाए जा रहे है. लोरेंस सलमान खान को मारने के पीछे पड़ा हुआ है जो खुद एक बड़ा गैंगस्टर है लेकिन इस गैंगस्टर की भी लव स्टोरी है. जिसके लिए लोरेंस ने पहली बार बंदूक उठाई थी. तो क्या अपनी गर्लफ्रेंड के प्यार में लोरेंस अपराधी बना.

आपको बता दे, कि लोरेंस बिश्नोई का बहुत बड़ा नेटवर्क है. कि वे जेल से बैठकर ही सारे काम कराता है. सलमान खान का मारने की प्लानिंग भी जेल से करता है. आज लोरेंस के नेटवर्क पंजाब, हरियाणा, राजस्थान से लेकर महाराष्ट्र और यूपी तक फैल चुका है. एक बडे गैंगस्टर के रुप में इसकी भी लव स्टोरी रही है. जिसके बाद ये अपराधी बनता चला गया.

स्कूल से शुरु हुआ लोरेंस के प्यार की कहानी

लोरेंस को पहली बार प्यार तब हुआ जब वे केवल 10वी क्लास में पढ़ाई करता था. उसको पहले एक तरफा प्यार हो गया था. इसके बाद लोरेंस ने उस लड़की को अपने दिल की बात बयां की. लड़की का नाम था काजल. काजल भी धीरे धीरे लोरेंस से प्यार करने लगी. उस वक्त लोरेंस अबोहर के कोन्वेंट स्कूल में पढ़ता था. जिसके बाद दोनों ने एक साथ 12वी की पढ़ाई चंडीगढ़ के डीएवी स्कूल से की. दोनों यहां एक साथ एडमिशन लिया. कहा जाता है कि लोरेंस हमेशा अपनी वीआईपी लाइफस्टाइल के लिए चर्चित था, लिहाजा वह जल्द ही लोगों की नजरों में आ जाता था.

लोरेंस को प्यार तो होना ही था क्योंकि शुरुआत के दिनों में कहा जाता है कि लोरेंस बिश्नोई अपराधी किस्म का लड़का तो नहीं था और न ही वह किसी से कोई लड़ाई-झगड़ा करता था. उसका पिता हरियाणा पुलिस में नौकरी करते थे और उनके पास अच्छी-खासी जमीन थी, जिसकी कीमत करोड़ों में थी. ऐसे में लोरेंस बिश्नोई को पैसे-रुपये की भी कोई दिक्कत नहीं थी. वह हमेशा से रईसी की लाइफ जीता था. इसलिए मोहब्बत भी बेइंताह की.

इसके बाद लोरेंस कोलेज पहुंचा. जहां उसने राजनीति में अपना हाथ जमाने की कोशिश की. उसने स्टूडेंट ओर्गनाइजेशन औफ पंजाब यूनिवर्सिटी नाम का एक छात्र संगठन बनाया. जिसे शोर्ट में SOPU कहा जाता था. जब कोलेज में छात्र संघ चुनाव हुए, तो लोरेंस ने भी अपनी किस्मत आजमाई और छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव लड़ा, लेकिन वह चुनाव हार गया.

लेकिन इन चुनावी जंग के बीच लोरेंस की काजल भी आ गई. जब विरोधी चुनाव जीत गया तो दोनों गुटो में जमकर लड़ाई रहने लगी. जिसके बाद लोरेंस बौखला गया और रिवोल्वर खरीद ली. हार के बाद भी लोरेंस बिश्नोई कोलेज में अपना दबदबा बनाना शुरू कर दिया.

चुनाव के बाद आए दिन लोरेंस के गुट और विरोधियों के बीच झड़पें होने लगीं. 2011 में दोनों गुटों में जमकर फायरिंग भी हुई. दोनों गुटों में आपस में काफी झगड़ा शुरु हो गया. इसी दौरान विरोधी गुट ने लोरेंस की गर्लफ्रेंड काजल को भी निशाना बना लिया और कहा जाता है कि विरोधियों ने लोरेंस की गर्लफ्रेंड को आग के हवाले कर दिया था और उसकी गर्लफ्रेंड को जिंदा जला दिया था.

लेकिन इसी घटना ने लोरेंस की दुनिया पलट कर रख दी थी. लोरेंस इस घटना से इतना बड़ा झटका लगा था कि काजल की मौत के बाद लोरेंस अपराध की दुनिया में चला गया. उसने अपनी खरीदी रिवोल्‍वर से कई छात्रनेताओं की हत्‍याएं की. लोरेंस पर खालिस्‍तानी संगठन से जुड़े होने के भी आरोप लगते रहे हैं. वह आम लोगों का समर्थन जुटाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाने लगा. उस पर युवाओं को बरगलाने के भी आरोप लगते रहे हैं. तो ऐसे एक पुलिस कांस्टेबल का बेटा पहले प्यार में पड़ा, फिर बना एक बड़ा गैंगस्टर.

एक पत्रकार ने लालच में बनाए संबंध, दिया मौत का न्योता

कमलेश जैन वरिष्ठ पत्रकार थे, जो पिछले 24 सालों से इस काम में लगे थे. इसलिए पिपलिया मंडी क्षेत्र में ही नहीं, मंदसौर जिले में भी उन की अच्छी पहचान थी.

दैनिक अखबारों के पत्रकार दिन भर समाचार जुटा कर शाम को समाचार तैयार कर के अपने अखबार के लिए भेजते हैं. कमलेश और उन के सहयोगी अवतार भी जुटाए समाचारों को अंतिम रूप देने में लगे थे.

उसी समय एक मोटरसाइकिल उन के औफिस के ठीक सामने आ कर रुकी, जिस पर 2 युवक सवार थे. उन में से एक तो मोटरसाइकिल पर ही बैठा रहा, पीछे बैठा युवक उतर कर कमलेश के औफिस में घुस गया. अवतार को लगा कि किसी समाचार के सिलसिले में आया होगा, क्योंकि औफिस में अकसर लोग समाचारों के सिलसिले में आते रहते हैं. इसलिए अवतार ने उस की ओर ध्यान नहीं दिया. वह अपने काम में लगे रहे.

लेकिन जब एक के बाद एक, 2 गोलियों के चलने की आवाज कमलेश जैन के चैंबर से आई तो वह सन्न रह गए. वह कमलेश के चैंबर में पहुंचते, उस के पहले ही वह युवक तेजी से बाहर निकला और बाहर खड़ी मोटरसाइकिल पर बैठ कर अपने साथी के साथ भाग गया. इस के बाद कमलेश की हालत देख कर उन्होंने शोर मचा दिया, जिस से आसपास के लोग इकट्ठा हो गए.

किसी ने फोन कर के यह जानकारी पुलिस को दे दी तो थाना पिपलिया मंडी के टीआई अनिल सिंह तत्काल दलबल के साथ मौके पर पर पहुंच गए. सब से पहले उन्होंने कमलेश को इलाज के लिए नजदीक के अस्पताल पहुंचाया.

उन की हालत गंभीर थी, इसलिए उन्हें मंदसौर के जिला अस्पताल भेज दिया गया. लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले ही उन्होंने रास्ते में दम तोड़ दिया. उन की मौत की खबर सुन कर तमाम पत्रकार और उन के शुभचिंतक अस्पताल पहुंच गए. सभी हैरान थे कि एक पत्रकार की हत्या क्यों कर दी गई?

नेताओं और पत्रकारों ने किया प्रदर्शन कमलेश के घर वालों ने उन की हत्या के मामले में 7 लोगों कमल सिंह, जसवंत सिंह, जितेंद्र उर्फ बरी उर्फ जीतू, इंदर सिंह उर्फ बापू उर्फ विक्रम सिंह और शकील के खिलाफ नामजद रिपोर्ट लिखाई. कमलेश जैन की हत्या से कस्बे और पुलिस महकमे में हलचल मची हुई थी. अगले दिन पत्रकार कमलेश की शवयात्रा के समय जिले भर के पत्रकार, राजनीतिक दलों के नेताओं ने हत्याकांड की निंदा करते हुए हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने की मांग की.

मामला एक वरिष्ठ पत्रकार की हत्या का था. पत्रकारों, राजनीतिज्ञों के अलावा तमाम सामाजिक संगठनों का भी पुलिस पर दबाव पड़ रहा था. लिहाजा पुलिस नामजद अभियुक्तों की तलाश में जुट गई. पुलिस को अभियुक्तों के राजस्थान के एक गांव में होने की जानकारी मिली तो पुलिस की एक टीम राजथान रवाना हो गई. इस टीम ने वहां एक गांव से 5 अभियुक्तों को हिरासत में ले लिया.

हत्या से कुछ दिनों पहले इन लोगों से कमलेश का विवाद हुआ था, इसलिए पुलिस को उम्मीद थी कि इन की गिरफ्तारी से मामले का खुलासा हो जाएगा. लेकिन पुलिस पूछताछ में जब साफ हो गया कि घटना वाले दिन वे पिपलिया मंडी में नहीं थे, तो पुलिस थोड़ा निराश हुई.

पुलिस ने तरीके से नामजद लोगों के बारे में जानकारी निकलवाई, इस में साफ हो गया कि इन लोगों का कमलेश से विवाद जरूर था, लेकिन हत्या में इन का हाथ नहीं है, इसलिए पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया.

इस के बाद पुलिस ने नए सिरे से मामले की जांच शुरू की. 35 दिन बाद भी कमलेश जैन के हत्यारों का पता न लगने से लोगों में पुलिस के प्रति आक्रोश बढ़ रहा था. पत्रकार और सामाजिक संगठन विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. इस बीच मंदसौर के पुलिस अधीक्षक ओ.पी. त्रिपाठी दंगा कांड में निलंबित हो चुके थे. उसी मामले में पिपलिया मंडी के टीआई अनिल सिंह को भी पुलिस मुख्यालय भेज दिया गया था.

दरअसल, मध्य प्रदेश के किसानों ने प्याज का मूल्य बढ़ाने को ले कर पूरे सूबे में जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन किया था. मंदसौर में प्रदर्शन के समय पुलिस ने किसानों पर लाठीचार्ज कर दिया था, जिस के बाद किसान उग्र हो गए थे और वहां दंगा भड़क उठा था. इस के बाद प्रशासन को मंदसौर में कर्फ्यू तक लगाना पड़ा था. इसी मामले में एसपी ओ.पी. त्रिपाठी को निलंबित कर दिया गया था.

ओ.पी. त्रिपाठी के निलंबित होने के बाद मनोज कुमार सिंह को मंदसौर का नया एसपी बनाया गया तो कमलेश सिंघार को थाना पिपलिया मंडी का थानाप्रभारी बना दिया गया. नए एसपी ने कमलेश जैन की हत्या वाले मामले को एक चुनौती के रूप में ले कर सीएसपी राकेश शुक्ला तथा थानाप्रभारी कमलेश सिंघार के साथ मीटिंग कर कमलेश जैन के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार करने का निर्देश दिया.

तमाम जांच के बाद भी पुलिस को नहीं मिला क्लू

सीएसपी राकेश मोहन शुक्ल, टीआई कमलेश सिंघार सुलझे हुए पुलिस अधिकारी हैं, इसलिए उन्होंने जांच की शुरुआत मृतक कमलेश जैन के व्यवसाय से की. जांच में उन्हें पता चला कि लगभग 2 दशक से पत्रकारिता से जुड़े कमलेश जैन का इलाके में कई लोगों से विवाद चल रहा था. कमलेश के औफिस के पास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी गई तो पता चला कि हत्यारे कुछ ही सैकेंड में कमलेश की हत्या कर मोटरसाइकिल से खत्याखेड़ी की ओर भाग गए थे.

पहले पुलिस का ध्यान सीसीटीवी फुटेज की तरफ नहीं गया था. इस फुटेज से पता चला था कि हत्यारों की मोटरसाइकिल शाम 7 बज कर 54 मिनट और 47 सैकेंड पर कमलेश के औफिस के सामने आ कर रुकी थी. उस के बाद उन में से एक आदमी उतर कर कमलेश के औफिस में गया और कुछ ही समय में उन्हें गोलियां मार कर बाहर आया और मोटरसाइकिल पर बैठ कर चला गया. इस काम में उसे केवल 12 सैकेंड लगे थे.

इस से पुलिस को लगा कि हत्यारा काफी शातिर था. पुलिस यह भी अंदाजा लगा रही थी कि हत्यार सुपारी किलर भी हो सकते हैं. कमलेश अपराधियों के खिलाफ भी लिखते थे. कहीं उन्हें अपने किसी समाचार या लेख की वजह से तो जान से हाथ नहीं धोना पड़ा.

इस बात का पता लगाने के लिए पुलिस ने पिछले 6 महीने में कमलेश की अखबारों में छपी खबरों का अध्ययन किया. इस के अलावा कमलेश से रंजिश रखने वालों के बारे में पता किया, पर सफलता नहीं मिली.

कई महिलाओं से थे कमलेश के संबंध जब किसी भी तरह अपराधियों के बारे में कोई सुराग हाथ नहीं लगा तो टीआई कमलेश सिंघार ने अपनी टीम को कमलेश के निजी जीवन के बारे में पता करने में लगा दिया. क्योंकि कमलेश 47 साल के होने के बावजूद अविवाहित थे. पुलिस को पता चला कि जिस दिन उन की हत्या हुई थी, उस के 2 दिन बाद यानी 2 जून, 2017 को वह शहर के एक प्रतिष्ठित परिवार की विधवा बहू संध्या से शादी करने वाले थे.

पुलिस ने उन के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो पता चला कि उन के कई महिलाओं से संबंध थे. संध्या सहित करीब 10 महिलाओं से उन की देर रात तक मोबाइल पर बातें होती रहती थीं. थानाप्रभारी ने इन महिलाओं के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि जिन महिलाओं से उन की बातचीत होती थी, उन का संबंध मीडिया से बिलकुल नहीं था.

यह भी पता चला कि इन महिलाओं से कमलेश के काफी करीबी संबंध थे. जिन में से प्रीति और कमलेश के संबंधों की जानकारी आसपास के लोगों के अलावा उस के पति को भी थी. लेकिन कमलेश की पहुंच के आगे वह चुप था.

थानाप्रभारी ने कमलेश की अन्य प्रेमिकाओं से पूछताछ की तो पता चला कि कमलेश और संध्या शादी करना चाहते थे. इस बात को ले कर संध्या की ससुराल वाले खुश नहीं थे. संध्या की ससुराल वालों को यह बात प्रीति ने ही बताई थी, क्योंकि प्रीति को शक था कि कमलेश की संध्या से नजदीकी की वजह से वह उस से दूर हो रहा था.

कमलेश सिंघार ने संध्या और उस की ससुराल वालों के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की तो पता चला कि कमलेश की हत्या से पहले और बाद में संध्या के जेठ सुधीर की अपने दोस्त धीरज अग्रवाल से कई बार बात हुई थी. सुधीर के बारे में पुलिस को पहले से ही पता था कि पिपलिया मंडी के कई नामी अवैध धंधेबाजों तथा अफीम तस्करों से उस के संबंध हैं.

कमलेश सिंघार ने सुधीर जैन के बाद धीरज अग्रवाल के फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई, जिस में पता चला कि जबजब सुधीर और धीरज के बीच बात होती थी, उस के बाद धीरज अग्रवाल प्रतापगढ़, राजस्थान जेल में बंद पिपलिया मंडी के कुख्यात बदमाश आजम लाला से बात करता था.

घटना वाले दिन भी उस ने आजम लाला के नाबालिग बेटे रज्जाक से बात की थी. संदेह वाली बात यह थी कि घटना वाले दिन कमलेश की हत्या के समय रज्जाक की लोकेशन पिपलिया मंडी की थी.

आजम लाला का बेटा रज्जाक वैसे तो नाबालिग था, पर इस उम्र में ही उस के खिलाफ कई गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हो चुके थे. इस से कमलेश सिंघार को लगा कि कमलेश की हत्या के मामले में सुधीर जैन, धीरज अग्रवाल, आजम लाला और उस का बेटा एक महत्त्वपूर्ण कड़ी हो सकते हैं. लेकिन नामीगिरामी करोड़पति व्यापारी पर हाथ डालना उन के लिए आसान नहीं था.

आजम लाला के नाबालिग बेटे रज्जाक को पुलिस ने किया गिरफ्तार कमलेश सिंघार एसपी मंदसौर मनोज सिंह के निर्देश पर आजम लाला के बेटे रज्जाक को पूछताछ के लिए थाने ले आए. उस से की गई पूछताछ में सारी घटना सामने आ गई. पता चला कि कमलेश और संध्या के संबंधों से नाराज संध्या के जेठ सुधीर जैन ने अपने दोस्त धीरज अग्रवाल के माध्यम से आजम लाला और मंदसौर जेल में बंद गोपाल संन्यासी को कमलेश की हत्या की 50 लाख की सुपारी दी थी.

पूरा सच सामने आ गया तो छापा मार कर संध्या के जेठ सुधीर जैन और उस के दोस्त धीरज अग्रवाल तथा हत्या का षडयंत्र रचने वाले धर्मेंद्र मारू को गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि हत्या वाले दिन रज्जाक के साथ कमलेश की हत्या के लिए मोटरसाइकिल पर आया रज्जाक का चचेरा भाई सुलेमान लाला पुलिस को चकमा दे कर फरार हो गया.

इस के बाद हत्या में प्रयुक्त पिस्टल और मोटरसाइकिल बरामद कर ली गई. पूछताछ के बाद सभी आरोपियों को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में इश्क की नदी में तैरने वाले कमलेश जैन की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

कमलेश जैन कस्बा पिपलिया मंडी में पत्रकारिता के क्षेत्र में अच्छीखासी पकड़ रखते थे. गैरकानूनी काम करने वालों से अकसर कमलेश जैन का विवाद होता रहता था. लेकिन उन की एक कमजोरी हुस्न थी. जिस के कारण कई महिलाओं से उन के संबंध बन गए थे. कमलेश की सब से चर्चित प्रेमिका प्रीति थी. प्रीति के ऊपर वह दिल खोल कर पैसे खर्च करते थे.

प्रीति के पति को भी पता था कि उस की पत्नी के संबंध कमलेश से हैं, लेकिन कमलेश के रुतबे की वजह से वह चुप था. प्रीति भी कमलेश की दीवानी थी. वह कमलेश पर अपना अधिकार समझने लगी थी. लेकिन कुछ महीनों से संध्या प्रीति के इस अधिकार के बीच दीवार बन कर खड़ी हो गई थी.

मंदसौर निवासी संध्या की शादी पिपलिया मंडी के रईस व्यवसायी के छोटे भाई नवीन के साथ हुई थी. सुधीर जैन करीब 1 अरब की संपत्ति के मालिक थे. इन संपत्तियों में उन के 3 भाइयों का हिस्सा था. सुधीर जैन ने यह संपत्ति गोपाल संन्यासी तथा आजम लाला की मेहरबानी से बनाई थी.

चर्चा है कि सुधीर जैन और उस के भाई नवीन द्वारा इलाके की विवादित जमीन औनेपौने दामों पर खरीद कर आजम लाला, गोपाल संन्यासी जैसे बदमाशों की मदद से कब्जा कर के बाजार के दामों पर बेच कर मोटी कमाई की थी.

सुधीर के छोटे भाई नवीन की अचानक मौत हो गई तो संध्या विधवा हो गई. देखा जाए तो एक तिहाई संपत्ति संध्या की थी, लेकिन भाई की मौत के बाद सुधीर के मन में लालच आ गया था. उस ने संध्या को थोड़ीबहुत संपत्ति दे कर अलग कर दिया. काफी कहने के बाद भी जब संध्या को प्रौपर्टी से हिस्सा नहीं मिला तो वह अपने मायके में जा कर रहने लगी.

वह जानती थी कि उस के जेठ सुधीर जैन ने उस के साथ धोखा किया है. वह अपने हिस्से की जायदाद लेना चाहती थी. ससुराल में रहते हुए उस ने सुना था कि कमलेश जैन एक ईमानदार पत्रकार है और वह सच्चाई का साथ देता है, इसलिए वह अपनी संपत्ति के मामले में मदद के लिए पत्रकार कमलेश जैन के पास पहुंची.

कमलेश ने लालच में बनाए संध्या से संबंध

काफी खूबसूरत और जवान संध्या जैन कमलेश की जातिबिरादरी की भी थी. उसे पता चला कि कमलेश की अभी शादी नहीं हुई है तो उस का दिन उस पर आ गया. संध्या की खूबसूरती पर कमलेश भी मर मिटा था. कमलेश ने सोचा कि अगर संध्या से उस की शादी हो जाती है तो उस के हिस्से की करोड़ों की संपत्ति का वह मालिक बन जाएगा. इसलिए वह संध्या की मदद करने लगा.

लगातार मिलने मिलाने से संध्या और कमलेश के बीच प्रेमसंबंध बन गए. उन के संबंध इस मुकाम पर पहुंच गए कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया.

जीवन में संध्या के आने के बाद कमलेश ने पुरानी प्रेमिका प्रीति से नाता तोड़ लिया था. जबकि प्रीति कमलेश को छोड़ना नहीं चाहती थी, क्योंकि प्रीति का ज्यादातर खर्चा कमलेश ही उठाता था. यही वजह थी कि प्रीति संध्या से चिढ़ रही थी.

जब प्रीति को पता चला कि कमलेश जैन संध्या से 3 जून, 2017 को शादी करने जा रहे हैं तो प्रीति ने कमलेश और संध्या के संबंधों की शिकायत संध्या के जेठ सुधीर जैन से कर दी.

इस से प्रीति को लगा कि संध्या पर अंकुश लग जाएगा. सुधीर को जब संध्या और कमलेश के संबंधों का पता चला तो उसे बहुत गुस्सा आया. उसे लगा कि अगर संध्या ने कमलेश से शादी कर ली तो कमलेश का सहारा पा कर वह अपने हिस्से की सारी जायदाद ले कर मानेगी.

कमलेश जैन के रहते सुधीर संध्या पर दबाव नहीं बना सकता था, जिस से सुधीर जैन को करोड़ों की जायदाद हाथ से जाती दिखाई देने लगी. सुधीर की यह परेशानी उस के दोस्त धीरज अग्रवाल से छिपी नहीं थी, इसलिए उस ने उसे सलाह दी कि इस तरह चुप बैठने से काम नहीं चलेगा, हमें कोई ठोस काररवाई करनी होगी.

सुधीर जैन की तरह धीरज अग्रवाल भी गैरकानूनी तरीके से पैसा कमा रहा था. सुधीर की ही तरह उस के भी कई कुख्यात बदमाशों से संबंध थे. धीरज की बात सुधीर की समझ में आ गई. उस ने कमलेश को रास्ते से हटाने के लिए धीरज से मदद मांगी. धीरज इस के लिए तैयार हो गया.

प्रतापगढ़ जेल में बंद आजम लाला तथा मंदसौर जेल में बंद गोपाल संन्यासी से धीरज के अच्छे संबंध थे. धीरज दोनों से जेल जा कर मिला. उन्होंने कमलेश की हत्या के लिए 50 लाख रुपए मांगे. बात तय हो गई. इस के बाद सुधीर जैन से 5 लाख रुपए ले जा कर अखपेरपुर में आजम लाला के बेटे रज्जाक को दे दिए. बाकी के रुपए कमलेश की हत्या के बाद दिए जाने थे.

50 लाख की सुपारी मिलते ही बदमाश हो गए सक्रिय  5 लाख रुपए हाथ में आते ही आजम लाला ने प्यादे तलाशने शुरू कर दिए. परंतु मंदसौर जिले में अधिकांश अपराधियों पर पुलिस का शिकंजा कसा था. कई तो जेल में बंद थे तथा कई भूमिगत हो चुके थे, इसलिए आजम को शूटर मिलने में परेशानी हो रही थी. दूसरी ओर प्रीति ने सुधीर को बता दिया था कि संध्या और कमलेश 3 जून को शादी करने वाले हैं, इसलिए सुधीर हर हाल में 3 जून से पहले कमलेश की हत्या करवा देना चाहता था.

धीरज अग्रवाल ने यह बात आजम को बताई तो आजम ने कमलेश की हत्या का काम अपने नाबालिग बेटे रज्जाक को सौंप दिया. रज्जाक नाबालिग उम्र में ही अपने बाप के कदमों पर चल पड़ा था. वह तमाम आपराधिक वारदातों को अंजाम दे चुका था, इसलिए वह हिस्ट्रीशीटर बन गया था.

पिता का आदेश मिलते ही उस ने कमलेश की हत्या की साजिश रचनी शुरू कर दी. इस के लिए उस ने चौपाटी बस्ती निवासी धर्मेंद्र धारू को फरजी सिम दे कर कमलेश पर नजर रखने की जिम्मेदारी सौंप दी. धर्मेंद्र ने रज्जाक को कमलेश के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कमलेश सुबह से शाम तक समाचार के लिए इधरउधर भटकने के बाद शाम 7 बजे तक लवली चौराहे पर स्थित अपने औफिस आ जाता है.

रज्जाक ने अपने काम के लिए यही समय तय किया. कमलेश की हत्या की योजना बना कर रज्जाक अपने चचेरे भाई सुलेमान उर्फ सत्तू लाला के साथ मोटरसाइकिल से पिपलिया मंडी पहुंच गया. घटना के समय सुलेमान मोटरसाइकिल ले कर सड़क पर खड़ा था, जबकि नाबालिग रज्जाक ने कमलेश के चैंबर में जा कर उसे गोली मार दी थी. अपने काम को अंजाम दे कर वह सुलेमान के साथ वहां से भाग गया था.

इस तरह प्यार और प्रौपर्टी के चक्कर में पत्रकार कमलेश जैन मारा गया. इस ब्लाइंड मर्डर का पर्दाफाश करने वाली पुलिस टीम की एसपी मनोज सिंह ने काफी सराहना की है?

क्या बौयफ्रेंड के साथ लिवइन में रहना गलत है, मैं रहना चाहती हूं क्या ये सही है?

सवाल

मैं 22 साल की लड़की हूं. हरियाणा में रहती हूं. मेरा एक बौयफ्रेंड भी है हम दोनों एकदूसरे से बेहद प्यार करते है और अपनी लाइफ अपनी मर्जी से जीना चाहते है. हम दोनों चाहते है कि हम अब एक साथ रहे. लेकिन क्या में अपने बौयफ्रेंड के साथ लिवइन में रह सकती हूं. समाजिक तौर पर ये कोई अपराध तो नहीं है. क्या ऐसा करना ठीक है या नहीं. मैं जानना चाहती हूं?

जवाब

आप लिव इन में रहना चाहती है. इसमें कुछ गलत नहीं है ये पूरी तरह आपकी मर्जी है कि आप किस तरह से अपने पार्टनर के साथ रहना चाहती है. वैसे भी आजकल लिवइन का चलन बढ़ गया है. युवाओं में ये ज्यादा देखने को मिल रहा है कि दो कपल लिवइन में अलग रह रहे है. एक लड़की अपनी मर्जी से अपने बौयफ्रेंड के साथ लिवइन में रह सकती है. हां, लेकिन लिवइन में रहने के कई नियम है उन्हे फोलो करते हुए आपको रहना चाहिए.

लिवइन में रहने के लिए आपकी आयु 18 साल से ज्यादा होनी जरूरी है. ऐसा करना अपराध नहीं माना गया है. इसका ये मतलब है कि आप एक लड़की और लड़का बिना शादी किए एक साथ रह सकते है.

लिव इन में एक नियम यह भी बना है कि रहने वाले कपल के बीच अगर कोई बच्चा पैदा होता है, तो  वे बच्चा उसी कपल की संतान माना जाएगा.

लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को अपने पार्टनर के घर में रहने का अधिकार है.

अगर लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला के साथ घरेलू हिंसा होती है, तो उसे शादीशुदा महिलाओं की तरह ही कानूनी संरक्षण मिलेता है.

अगर लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला के साथ पार्टनर ने आपसी सहमति के बिना संबंध तोड़े, तो उसे गुजारा भत्ता मिलेता है.

तो अगर आप इन सभी नियम को फोलो करते है तो लिवइन में रह सकते है और कुछ गलत भी नहीं है.

इतने समय तक सेक्स करना चाहती हैं महिलाएं

हम सोचते थे कि महिलाएं लंबे समय तक सेक्शुअल गतिविधि चाहती हैं, पर हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि पुरुषों को लगता है कि महिलाएं लंबा सेक्स नहीं चाहतीं.

पीनिस के आकार से लेकर सेक्स के दौरान अपने प्रदर्शन तक-पुरुष होना आसान काम नहीं है. अमेरिका में टार्जन कंडोम द्वारा हाल ही में कराए गए एक सर्वे के नतीजों में सामने आया कि 41 प्रतिशत पुरुषों ने कहा कि वे चाहते हैं कि सेक्स लंबे समय तक चले, जबकि ऐसा चाहनेवाली महिलाओं की संख्या 34 फीसदी ही थी.

अक्सर महिलाएं थोड़े समय के सेक्शुअल इंटरकोर्स से ही खुश रहती हैं, वे इसे लंबा नहीं रखना चाहती हैं, जबकि अधिकतर पुरुष इस प्रक्रिया को लंबा ही रखना चाहते हैं.

म्यूजिशियन गैविन फर्नांडिस स्वीकारते हैं कि वे सेक्स के दौरान अपने प्रदर्शन को लेकर दबाव महसूस करते हैं. ‘‘हमें पता है कि महिलाओं को मल्टीपल ऑर्गैज़्म (कई बार चरम) आ सकते हैं. फिर इस तरह की मान्यताएं भी हैं कि महिलाएं ऑर्गैज़्म का झूठा दिखावा भी करती हैं. ये बातें पुरुषों की मानसिकता को प्रभावित करने के लिए काफ़ी हैं,’’

वे कहते हैं. ‘‘कई बार सेक्शुअल संबंध बनाने के बाद मैं समझ ही नहीं पाता कि मैं अपनी गर्लफ्रेंड को संतुष्ट कर भी पाया हूं या नहीं. मैं चाहता हूं कि उसे संतुष्ट करने के लिए मैं और लंबे समय तक उसका साथ दे सकूं.’’

आनंद को लंबा रखने की चाहत

गैविन जैसे कई और पुरुष हैं. वर्ष 2009 में मेन्स हेल्थ मैग्ज़ीन द्वारा कराए गए सर्वे में पाया गया कि सेक्स के दौरान पुरुष 5 से 10 मिनट तक संयम बनाए रख सकते हैं, पर 71 प्रतिशत पुरुष चाहते हैं कि काश वे इससे कहीं अधिक समय तक ऐसा कर पाते.

जरनल औफ सेक्स मेडिसिन द्वारा कराए गए एक अलग अध्ययन के मुताबिक, वह इंटरकोर्स जो 7 से 13 मिनट के भीतर समाप्त हो जाता है, बेहतरीन माना जाता है. ‘‘कई पुरुष इस बात को लेकर शर्मिंदगी महसूस करते हैं कि वे लंबे समय तक संयम नहीं बनाए रख पाते,’’ कहना है चेन्नई की काउंसलर सुजाता रामकृष्णन का. ‘‘और मैं उन पुरुषों की बात नहीं कर रही हूं, जिन्हें प्रीमैच्योर इजेकुलेशन की समस्या है. सामान्य पुरुष, जिनका सेक्शुअल जीवन अच्छा है, वे भी सेक्स की प्रक्रिया को और लंबा बनाना चाहते हैं. इसकी वजह ये है कि ये पुरुष पौर्न देखते हुए बड़े हुए हैं और सेक्स के बारे में अपनी पिछले पीढ़ी से कहीं ज्यादा बातें करते हैं. ये बातें अब मीडिया में हैं, फिलम्स में हैं, किताबों में भी हैं. आज की महिलाएं भी यह बताने में संकोच महसूस नहीं करतीं कि उन्हें सेक्स के दौरान क्या पसंद है और क्या नापसंद. इस वजह से पुरुषों पर काफी दबाव होता है.’’

फोरप्ले का समय भी तो जोड़िए!

सेक्स एक्सपर्ट डॉ महिंदर वत्स कहते हैं कि यदि कुछ बदलाव किए जाएं तो सेक्स प्रक्रिया को लंबा बनाया जा सकता है. ‘‘हालांकि यूं देखा जाए तो ये बात सिर्फ़ आपकी दिमा़गी सोच पर निर्भर करती है, लेकिन आप सेक्शुअल इंटरकोर्स को थोड़ा लंबा बना सकते हैं,’’ वे कहते हैं. ‘‘क्विकी (झटपट सेक्शुअल संबंध बनाना) अच्छे तो होते हैं, पर हमेशा नहीं. सेक्स को लंबा बनाने के लिए सही समय और अपने शरीर के संकेतों को समझना बहुत जरूरी है. यही कारण है कि फोरप्ले का महत्व उससे कहीं ज्यादा बढ़ जाता है, जितना कि हम सोचते हैं. यदि सेक्शुल प्रक्रिया को लंबा बनाना चाहते हैं तो फोरप्ले का समय भी लंबा होना चाहिए. और लंबे समय तक चलने वाले फोरप्ले से कभी किसी महिला को शिकायत नहीं होती, बल्कि वे इसका आनंद लेती हैं.’’

ऑर्गैज़्म पर ध्यान देने के बजाए सेक्स के दौरान एक-दूसरे के साथ का आनंद उठाना ज़्यादा महत्वपूर्ण है. आप अलग-अलग सेक्शुअल पोज़ीशन्स अपना सकते हैं. अंतिम, लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है कि इस दौरान पार्टनर्स एक-दूसरे से बातचीत करते रहें. तो अगली बार यदि वे कुछ ऐसा करें, जिससे आपको सुखद अनुभूति हो तो उनकी तारीफ करना बिल्कुल न भूलें.

मैं गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल कर रही हूं, क्या पति को कंडोम यूज करना चाहिए?

सवाल
मैं एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करती हूं. अभी मैं और मेरे पति परिवार नियोजन के लिए तैयार नहीं हैं. मैं यह जानना चाहती हूं कि यदि मैं गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल कर रही हूं तो क्या पति को कंडोम का भी प्रयोग करना चाहिए?

जवाब
जन्म नियंत्रक विधियां जैसेकि गर्भनिरोधक गोली आईयूएस या गर्भनिरोधक इंजैक्शन आदि अनचाहे गर्भ को रोकने में कारगर साबित होते हैं. लेकिन ये सभी यौन संक्रमण से किसी भी प्रकार की सुरक्षा प्रदान नहीं करते. जन्म नियंत्रण के तौर पर कंडोम का प्रयोग यौन रोगों से बचाता है, साथ ही अनचाहे गर्भ की भी समस्या को खत्म करता है.

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बचाव इलाज से ज्यादा अच्छा होता है, महिला गर्भनिरोधक उपायों पर यह बात बिलकुल सही बैठती है. बाजार में काफी पहले से महिला गर्भनिरोधक मौजूद हैं, लेकिन आज भी भारत में लाखों महिलाएं ऐसी हैं, जो नहीं जानतीं कि उन के लिए कौन सा गर्भनिरोधक उपाय सही है. इस वक्त तो महिलाओं के लिए अनचाहे गर्भ से बचने और बच्चों में अंतर रखने के लिए कई तरह के उपाय बाजार में मौजूद हैं. इन में ओरल पिल्स से ले कर इंप्लांट्स तक कई विकल्प हैं. लेकिन आमतौर पर इन में से सही विकल्प का चुनाव महिलाएं नहीं कर पातीं. ज्यादातर महिलाएं विज्ञापनों, सहेलियों या रिश्तेदारों के कहने पर गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल करने लगती हैं, लेकिन जानकारी की कमी और गलत विकल्प का चुनाव महिलाओं के लिए बड़ी परेशानी का कारण बन जाता है.

मूलचंद अस्पताल की सीनियर गायनाकौलोजिस्ट डा. मीता वर्मा के मुताबिक, ‘‘महिलाएं गर्भनिरोधकों के बारे में जानती हैं, लेकिन भारतीय समाज में ऐसी कई भ्रांतियां हैं, जो महिलाओं के लिए मुश्किल पैदा कर देती हैं. भारत में अभी भी बच्चों को कुदरत की देन मान कर परिवार नियोजन की सोच को ही खत्म कर दिया जाता है. कई महिलाओं में यह सोच भी विकसित हो जाती है कि गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल करने से उन की प्रजनन क्षमता और होने वाले बच्चे के विकास पर गलत प्रभाव पड़ेगा. इसी तरह के और भी न जाने कितने मिथक महिलाओं के मन में घर किए रहते हैं, लेकिन आज के समय में जरूरी है कि डाक्टर की सलाह से सही गर्भनिरोधक का इस्तेमाल किया जाए.’’

डा. मीता बताती हैं कि ज्यादातर जोड़े ऐंजौयमैंट को ज्यादा तरजीह देते हैं, जिस के चलते वे कंडोम या किसी भी तरह के दूसरे कौन्ट्रासैप्टिव का इस्तेमाल नहीं करते और जब गर्भ ठहर जाता है, तो गर्भपात कराने से भी नहीं हिचकते. लेकिन यहां वे यह भूल जाते हैं कि गर्भपात इस का हल नहीं है, क्योंकि बारबार गर्भपात से बच्चेदानी पर बुरा असर पड़ता है, जो महिलाओं के लिए बड़ी मुसीबत बन जाती है. इसलिए युवा और नवविवाहित जोड़े अगर गर्भपात को आसान रास्ता मान रहे हैं तो यह उन की भूल है.

इस वक्त महिला गर्भनिरोधक के बाजार में 2 तरह के कौन्ट्रासैप्टिव मौजूद हैं-

हारमोन बेस्ड कौन्ट्रासैप्टिव्स.

नौनहारमोनल कौन्ट्रासैप्टिव्स.

हारमोन बेस्ड कौन्ट्रासैप्टिव्स : इस तरह के कौन्ट्रासैप्टिव सब से ज्यादा चलन में हैं. ये ऐसे कौन्ट्रासैप्टिव्स हैं, जिन के इस्तेमाल से शरीर के अंदर हारमोनल बदलाव के जरिए अनचाहे गर्भ को रोका जाता है. 35 से कम उम्र की कोई भी स्वस्थ महिला जो कुछ समय तक बच्चा नहीं चाहती, डाक्टर की सलाह से इन का प्रयोग कर सकती है. लेकिन अगर कोई महिला हार्ट या लिवर की बीमारी से पीडि़त है या उसे अस्थमा और ब्लडप्रैशर की शिकायत रहती है, तो हारमोन बेस्ड कौन्ट्रासैप्टिव्स उस के लिए ठीक नहीं हैं. इस से अलग जो महिलाएं धूम्रपान या शराब का सेवन करती हैं या जिन का वजन ज्यादा है उन्हें भी इस तरह के कौन्ट्रासैप्टिव्स से बचना चाहिए.

इस वक्त बाजार में इस कैटेगरी के सब से ज्यादा कौन्ट्रासैप्टिव्स उपलब्ध हैं.

ओरल पिल्स

यह सब से ज्यादा इस्तेमाल में लाया जाने वाला उपाय है. इसे महीने में 21 दिन खाना होता है. यह इसलिए भी ज्यादा चलन मेें है, क्योंकि इस का इस्तेमाल काफी आसान है और यह उपाय सस्ता भी है. लेकिन ओरल पिल्स को बिना डाक्टर की सलाह के न लें, क्योंकि ये सभी को सूट नहीं करतीं. इन्हें सही तरह से इस्तेमाल करने पर ही ये बचाव कर सकती हैं. लेकिन ज्यादातर महिलाएं सही पिल्स का चुनाव नहीं कर पातीं, जिस का नतीजा होता है अनचाहा गर्भ. ओरल पिल्स कई महिलाओं में वजन बढ़ाने और उल्टियों की समस्या का भी कारण बनती हैं. ओरल पिल्स के अलावा बाजार में मिनी पिल्स भी उपलब्ध हैं, जो ज्यादा कारगर और सेफ हैं. मिनी पिल्स भी प्रोजैस्ट्रौन और दूसरे हारमोंस के कौंबिनेशन से बनी होती हैं, जिन्हें दूध पिलाने वाली मां भी इस्तेमाल कर सकती है.

इमरजेंसी पिल्स

इस तरह की गर्भनिरोधक गोलियां ओरल पिल्स की पूरक हैं. अगर कोई महिला ओरल पिल्स लेना भूल जाती है और असुरक्षित सैक्स संबंध बनाती है, तो अनचाहे गर्भ से बचने के लिए 72 घंटे के अंदर वह इस का इस्तेमाल कर सकती है. इसीलिए इसे मौर्निंग आफ्टर पिल भी कहा जाता है. लेकिन यह उपाय भी सुरक्षा की पूरी गारंटी नहीं देता. इसलिए इसे केवल मजबूरी में ही इस्तेमाल करें, इसे आदत न बनाएं. लगातार इस्तेमाल से यह महिलाओं के लिए मुसीबत भी बन सकती है.

हारमोन इंजैक्शन

यह एक बेहद प्रभावशाली उपाय है. जो महिलाएं रोजाना गोलियां नहीं खाना चाहतीं, वे इस का इस्तेमाल कर सकती हैं. इस में महिला को प्रोजैस्ट्रौन का इंजैक्शन दिया जाता है. यह इंजैक्शन यूटरस की दीवार पर मौजूद म्यूकस को गाढ़ा कर देता है ताकि स्पर्म अंदर न जाएं और औव्यूलेशन को रोका जा सके. इस इंजैक्शन को लेने के 24 घंटों के अंदर ही इस का असर शुरू हो जाता है. यह 10 से 13 हफ्तों तक सुरक्षा देता है, जिस के बाद फिर इंजैक्शन लेना होता है. कुछ महिलाओं का इस से वजन बढ़ सकता है और उन के पीरियड्स अनियमित भी हो सकते हैं. इस के इस्तेमाल के बाद कंसीव करने में भी कुछ महीनों का वक्त लग सकता है.

इंप्लांट

इस प्रक्रिया में एक बेहद पतली प्लास्टिक रौड हाथ के ठीक निचले हिस्से में फिट कर दी जाती है. यह रौड शरीर में प्रोजैस्ट्रौन रिलीज करती है, जिस से औव्यूलेशन नहीं हो पाता. यह यूटरस में मौजूद म्यूकस का नेचर बदल देता है, जिस से प्रैग्नैंसी को रोका जा सकता है. इसे सब से सेफ औप्शन माना जाता है. यह इंप्लांट 3 से 5 साल तक के लिए प्रैग्नैंसी से बचाव करता है. लेकिन भारत में अभी यह उपलब्ध नहीं है. 

नौनहारमोनल कौन्ट्रासैप्टिव्स: ये ऐसे कौन्ट्रासैप्टिव्स हैं जिन से किसी तरह के हारमोन शरीर के अंदर नहीं जाते. ये उन महिलाओं के लिए कारगर हैं, जिन्हें हार्ट, लिवर, अस्थमा या ब्लडप्रैशर की शिकायत रहती है. लेकिन नौनहारमोनल कौन्ट्रासैप्टिव्स के इस्तेमाल से पहले डाक्टरी सलाह बेहद जरूरी है.

फीमेल कौन्ट्रासैप्टिव्स की इस कैटेगरी में भी कई विकल्प मौजूद हैं.

फीमेल कंडोम

गर्भनिरोधकों की श्रेणी में महिलाओं के लिए कंडोम एक नई चीज है. यह कंडोम लुब्रिकेटेड पौलीथिन शीट का बना होता है. भारत में महिलाओं के लिए बने ये कंडोम हाल में ही बाजार में उतारे गए हैं. इसे भी पुरुष कंडोम की ही तरह एक ही बार इस्तेमाल में लाया जा सकता है. ये प्रैग्नैंसी रोकने में पूरी तरह से कारगर हैं, बशर्ते सैक्स के दौरान इस की पोजीशन ठीक रहे. यह प्रैग्नैंसी रोकने के अलावा एचआईवी जैसे रोगों से भी सुरक्षा देता है. लेकिन यह एक महंगा विकल्प है. महिला कंडोम की कीमत बाजार में 80 रुपए तक है, इसलिए डाक्टर पुरुष कंडोम की सलाह देते हैं, क्योंकि वह ज्यादा सस्ता विकल्प है.

इंट्रायुटेराइन कौन्ट्रासैप्टिव डिवाइस

इस डिवाइस को कौपर टी या मल्टीलोड डिवाइस के नाम से ज्यादा जाना जाता है. यह एक तरह की लचीली प्लास्टिक की डिवाइस होती है जिसे कौपर के तार के साथ यूटरस में लगा दिया जाता है. इसे डाक्टर की सहायता से फिट किया जाता है. कौपर वायर यूटरस में ऐसा असर पैदा करता है जिस से शुक्राणु और अंडाणु आपस में मिल नहीं पाते और गर्भ नहीं ठहरता. यह 98% तक सुरक्षा देता है. इसे 3 या 5 साल के लिए लगवाया जा सकता है. सरकारी हैल्थ सैंटरों में यह मुफ्त उपलब्ध है, जबकि बाजार में इस की कीमत 375 रुपए से 500 रुपए के बीच है. इस से पीरियड ज्यादा होना और पैरों में दर्द रहना आम बात है. जिन्हें कौपर से ऐलर्जी है उन के लिए इस का इस्तेमाल नुकसानदेह हो सकता है.

स्पर्मिसाइड जैली

इस तरह के कौन्ट्रासैप्टिव्स भी काफी अच्छे विकल्पों में गिने जाते हैं. अगर महिलाएं कंडोम या किसी तरह के डिवाइस को इस्तेमाल नहीं करना चाहतीं, तो इस तरह की जैली या फोम बेस्ड कौन्ट्रासैप्टिव इस्तेमाल कर सकती हैं. इसे सैक्स से ठीक पहले वजाइना में लगाना होता है. इस में मौजूद ‘नोनोक्सिनोल 9 कैमिकल’ स्पर्म को संपर्क में आते ही खत्म कर देता है. कुछ मेल कंडोम में भी स्पर्मिसाइड होते हैं. यह उपाय काफी कारगर है, लेकिन कुछ महिलाओं को इस से ऐलर्जी भी होती है, इस का ध्यान रखना जरूरी है.

उन खास पलो में ऐसे दोगुना होगा मजा

जया और रमिका लंच कर रही थीं. 8 घंटे की औफिस ड्यूटी के बीच यही समय मिलता है दोनों को अपना सुखदुख बांटने का. दोनों की हाल ही में शादी हुई है. पिछले 5 सालों से दोनों एक ही कंपनी में काम कर रही हैं.

खाना खाने के बाद वे एकदूसरे से बैडरूम की बातें करने लगीं. बातें गरमागरम थीं इसलिए वे दोनों औफिस से नजदीक ही एक पार्क में चहलकदमी करने लगीं.

जया ने बताया कि उस की सैक्स लाइफ काफी रोचक है. पतिपत्नी सैक्स में कई तरह के प्रयोग करते हैं. कभी उभार चूमना और उंगलियां फेरना एकसाथ करते हैं, तो कभी कंडोम पहनने के बाद उभार को उठा कर उसे चूमते हैं. इस मस्ती भरी छुअन के बाद वे सैक्स का मजा लेते हैं.

जया की इस बात पर रमिका मुसकराई. जया के पूछने पर रमिका ने बताया कि उस के पति उसे संतुष्ट नहीं करते. यह सुन कर जया चौंक गई.

इस पर रमिका ने कहा, ‘‘मेरा वह मतलब नहीं था. मेरे पति के लिए सैक्स का मतलब है न्यूड हो कर मेरे ऊपर आओ. शादी के 1-2 महीने बाद तक मुझे ऐसा करना बहुत अच्छा लगता था, लेकिन अब नहीं.

‘‘जया बताओ न, मैं क्या करूं? मुझे सैक्स को बोरिंग नहीं बनाना है.’’

जया ने रमिका को सैक्स बटन के बारे में बताया जिन को इस्तेमाल में ला कर आज रमिका खुश दिखती है.

क्या आप जानते हैं सैक्स बटन की एबीसी?

दरअसल, औरतों में सिर से ले कर पैर तक सारे अंग कामुक होते हैं. अगर आप जानते हैं कि उन्हें सही तरीके से कैसे छूना है तो उन के शरीर का हर अंग मजा दिला सकता है.

1. होंठ

होंठ चूमना किसी औरत के लिए एक बड़ा टर्निंग पौइंट होता है. जब रिलेशन बन रहे होते हैं तो चूमना ऐसी पहली चीज होती है जो पहले मना की जाती है, लेकिन इस में देरी न करें.

होंठ उत्तेजक नसों से लबालब भरे होते हैं. लिहाजा, इन्हें तुरंत जीभ में नहीं डुबाना चाहिए. सब से पहले औरत के निचले होंठ पर अपनी जीभ फेरें, फिर उसे अपने होंठों के बीच फंसा कर चूसें. साथ ही, उसे भी ऐसा करने दें.

जब आप उसे चूम रहे हों तो अपने हाथ उस की गरदन पर रखें या फिर उस की कमर या कूल्हों पर या फिर इस दौरान इन सभी जगहों पर हाथ फेर सकते हैं.

2. बैकबोन

इस हिस्से के बारे में बहुत से लोग अनजान हैं, लेकिन यह औरतों को सब से ज्यादा जोश में लाने वाली जगह होती है. आप उन की स्पाइन पर अपनी उंगलियों को आराम से फिराएं. इस से आप अपने पार्टनर को बहुत जल्द कामुक कर सकते हैं.

3. उंगली

जीभ के बाद उंगलियों को शरीर का सब से सैंसिटिव हिस्सा माना जाता है. आप अपने पार्टनर की उंगलियों के ऊपरी हिस्से को चूम सकते हैं या हलके से दांत भी चुभा सकते हैं. दबाने से औरतों में जोश बढ़ता है. साथ ही, जैसेजैसे जोश बढ़ता जाता है आप को उस की उंगलियों को अपने होंठों के बीच ले जाना चाहिए, फिर होंठों से सहलाते हुए धीरेधीरे चूसना चाहिए. इस से वह नशे की सी हालत में आ जाएगी.

4. गरदन

औरतों की गरदन को भी काफी सैंसिटिव माना जाता है. गरदन की स्किन काफी पतली होती है, इसलिए यहां छूने पर काफी अच्छा महसूस होता है.

अगर आप अपनी उंगलियां सही जगह रख कर कौलरबोन सहलाएं तो पार्टनर को बहुत अच्छा महसूस होगा.

5. कान

जोश में लाने वाले बौडी पार्ट्स में कान बहुत काम के होते हैं. अपने पार्टनर के कानों को अपने होंठों से छुएं, चूमें या हलका सा काट लें और फिर देखिए उन का मूड.

6. पैर

बिस्तर पर जाने से पहले आप अपने पार्टनर से पैर धोने की गुजारिश करें, क्योंकि पैर सैक्सी होते हैं और इन्हें भी प्यार की जरूरत है.

पार्टनर के तलवों को चूम कर आप उसे जोश में ला सकते हैं. शुरुआत छोटी उंगली से करें. पैरों को सहलाते हुए रगड़ना एक औरत के लिए यह जबरदस्त अनुभव होता है. इस से उस के शरीर के दूसरे अंग भी उत्तेजित होने लगते हैं. इस की वजह यह है कि पैरों को सहलाने पर दिमाग का एक बड़ा हिस्सा जोश का अनुभव करता है इसलिए सैक्स से इस काम को नजरअंदाज न करें.

7. स्तन

स्तन महिला के सैक्सुअल अंगों में खास जगह रखते हैं. पर इस के लिए सीधे छलांग न लगाएं. स्तनों को तब तक न छुएं जब तक कि आप को यह न पता चल जाए कि वह चाह रही है कि आप उस के स्तनों को छुएं.

इस के लिए शुरुआत किनारे से करें, फिर गोल घेरे में अपनी उंगलियां स्तनों के चारों ओर घुमाएं. ऐसा तब तक करें जब तक स्तनों के निप्पल के चारों ओर के गुलाबी या भूरे रंग के गोल घेरे तक न पहुंच जाएं. यहां कुछ देर तक उंगलियां फिराने के बाद निप्पल तक पहुंचना चाहिए.

अब आप निप्पल को सहलाते हुए थपथपाएं, खींचें, दबाएं, चूमें और चूसें. इस दौरान आप चाहें तो हलके से दांतों से काट सकते हैं.

जब आप का मुंह एक स्तन पर है तो इस दौरान आप का हाथ दूसरे स्तन पर होना चाहिए तभी वह सबकुछ सौंपने को तैयार होगी. इस के बाद स्तन बदल कर यही दोहराएं. फिर दोनों हाथों से स्तनों को जम कर दबाना चाहिए. साथ ही, बीच में अपने पार्टनर से पूछें कि उसे स्तनों में कौन सी छुअन मजा देती.

कभी भी पार्टनर की इच्छाओं को नजरअंदाज न करें. स्तनों के बीच का हिस्सा कई बार नजरअंदाज कर दिया जाता है, जबकि यह भी कामुक जगह  है.

8. भग

भग क्षेत्र में छलांग लगाना काफी आसान होता है लेकिन उस के पहले उस गूदेदार क्षेत्र को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए जो रोमों से घिरा होता है. इसे थपथपाना और रगड़ना पार्टनर को सिसकने पर मजबूर कर देगा.

योनि वह दूसरा क्षेत्र है जहां कई आदमी स्तनों को उत्तेजित करने के बाद सीधे पहुंच जाते हैं. जैसे ही औरतें उत्तेजित होती हैं उन का गर्भद्वार ऊपर की ओर खिसक जाता है, जिस से योनि की गहराई बढ़ जाती है और आप को गहरे तक जाने का मजा मिलता है.

इसलिए यह आप की पसंद का मामला है कि आप उसे कितना गीला कर सकते हैं. जितना समय यहां दिया जाएगा उतना ही मजा आप को प्रवेश पर मिलेगा.

विरक्ति: उस बूढ़े दंपति में कैसे संक्रमण फैला?

मैं उन से मिलने गया था. पैथोलाजी विभाग के अध्यक्ष और ब्लड बैंक के इंचार्ज डा. कांत खराब मूड में थे, विचलित और विरक्त.

‘‘सब बेमानी है, बकवास है. महज दिखावा और लफ्फाजी है,’’ माइक्रो- स्कोप में स्लाइड देखते हुए वह कहे जा रहे थे, ‘‘सोचता हूं सब छोड़छाड़ कर बच्चों के पास चला जाऊं. बहुत हो गया.’’

‘‘क्या हुआ, सर? क्या हो गया?’’ मैं ने पूछा तो कुछ क्षण चुपचाप माइक्रोस्कोप में देखते रहे, फिर बोले, ‘‘एच.आई.वी., एड्स… ऐसा शोर मचा रखा है जैसे देश में यही एक महामारी है.’’

‘‘सर, खूब फैल रही है. कहते हैं अगर रोकथाम नहीं की गई तो स्थिति भयानक हो जाएगी. महामारी…’’

मेरी बात बीच में ही काटते हुए डा. कांत तल्ख लहजे में बोले, ‘‘महामारी, रोकथाम. क्या रोकथाम कर रहे

हो. पांचसितारा होटल

में कानफ्रेंस, कंडोम वितरण. महामारी तो तुम लोगों के आडंबर और हिपोक्रेसी की है. बड़ी चिंता है लोगों की. इतनी ही चिंता है तो हिपे- टाइटिस बी. के बारे में क्यों नहीं कुछ करते. देश में महामारी हिपे टाइ-टिस बी. की है.

‘‘हजारों लोग हर साल मर रहे हैं, लाखों में संक्रमण है. यह भी तो वैसा ही रक्त प्रसारित, विषाणुजनित रोग है. इस की चिंता क्यों नहीं. असल में चिंता तो विदेशी पैसे और बिलगेट्स की है. एड्स उन की चिंता है तो हमारी चिंता भी है.’’

‘‘क्या हुआ, सर? आज तो आप बहुत नाराज हैं,’’ मैं बोला.

‘‘होना क्या है, तुम लोगों की बकवास सुनतेदेखते तंग आ गया हूं. एच.आई.वी., एड्स, दोनों का एकसाथ ऐसे प्रयोग करते हो जैसे संक्रमण न हुआ दालचावल की खिचड़ी हो गई. क्या दोनों एक ही बात हैं. क्या रोकथाम कर रहे हो? तुम्हें याद है यूनिवर्सिटी वाली उस महिला का केस?’’

‘‘कौन सी, सर? उस अविवाहित महिला का केस जिस ने रक्तदान किया था और जिस का ब्लड एच.आई.वी. पाजिटिव निकला था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, वही,’’ डा. कांत बोले.

‘‘उस को कैसे भूल सकते हैं, सर. गुस्से से आगबबूला हो रही थी. हम ने तो उसे गुडफेथ में बुला कर रिजल्ट बताया था वरना कानूनन एच.आई.वी. पोजि-टिव ब्लड को नष्ट करना भर लाजमी होता है. हमारा पेशेंट तो रक्त लेने वाला होता है, देने वाला तो स्वेच्छा से आता है. देने वाले में रोग निदान के लिए तो हम टेस्ट करते नहीं.’’

डा. कांत कुछ नहीं बोले, चुपचाप सुनते रहे.

‘‘वह महिला अविवाहित थी. उस के किसी से यौन संबंध नहीं थे. उस ने कभी रक्त नहीं लिया और न ही किसी प्रकार के इंजेक्शन आदि. इसीलिए तो हम ने उस की प्री टेस्ट काउंसिलिंग कर वेस्टर्न ब्लोट विधि से टेस्ट करवाने की सलाह दी थी. हम ने उसे बता दिया था कि जिस एलिसा विधि से हम टेस्ट करते हैं वह सेंसिटिव होती है, स्पेसिफिक नहीं. उस में फाल्स पाजिटिव होने के चांसेज होते हैं. सब तो समझा दिया था, सर. उस में हम ने क्या गलती की थी?’’

‘‘गलती की बात नहीं. इन टेस्टों के चलते उस महिला को जो मानसिक क्लेश हुआ उस के लिए कौन जिम्मेदार है?’’

‘‘सर, उस के लिए हम क्या कर सकते थे. जीव विज्ञान में कोई भी टेस्ट 100 प्रतिशत तो सही होता नहीं. हर टेस्ट की अपनी क्षमता होती है. हर टेस्ट में फाल्स पाजिटिव या फाल्स निगेटिव होने की संभावना

होती है. सेंसिटिव में फाल्स पाजिटिव और स्पेसिफिक में फाल्स निगेटिव.’’

‘‘बड़ी ज्ञान की बातें कर रहे हो,’’ डा. कांत बोले, ‘‘यह बात आम लोगों को समझाने की जिम्मेदारी किस की है? खुद को उस महिला की जगह, उस की समझ और सोच के हिसाब से रख कर देखो. उसे कितना संताप हुआ होगा. खैर, उसे छोड़ो. उस लड़के की बात करो जो अपनी लिम्फनोड की बायोप्सी ले कर आया था. उस का तो वेस्टर्न ब्लोट टेस्ट भी पाजिटिव आया था. वह तो कनफर्म्ड एच.आई.वी. पाजिटिव था. उस में क्या किया? क्या किया तुम ने रोकथाम के लिए?’’

‘‘वही जवान लड़का न सर, जिस की किसी बाहर के सर्जन ने गले की एक लिम्फनोड निकाल कर भिजवाई थी? जिस लड़के को कभीकभार बुखार, शरीर गिरागिरा रहना और वजन कम होने की शिकायत थी, पर सारे टेस्ट करवाने पर भी कोई रोग नहीं निकला था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, वही,’’ डा. कांत बोले, ‘‘याद है तुम्हें, वह बायोप्सी रक्त कैंसर की आरंभिक अवस्था न हो, इस का परीक्षण करवाने आया था. टेस्ट में रक्त कैंसर के लक्षण तो नहीं पाए गए थे, पर उस की लिम्फनोड में ऐसे माइक्रोस्कोपिक चेंजेज थे जो एच.आई.वी. पाजिटिव मामलों में देखने को मिलते हैं.’’

‘‘जी, सर याद है. उस की स्वीकृति ले कर ही हम ने उस का एच.आई.वी. टेस्ट किया था और वह पाजिटिव निकला था. उसे हम ने पाजिटिव टेस्ट के बारे में बताया था. उस की भी हम ने काउंसिलिंग की थी. किसी प्रकार के यौन संबंधों से उस ने इनकार किया था. रक्त लेने, इंजेक्शन, आपरेशन आदि किसी की भी तो हिस्ट्री नहीं थी. हम ने सब समझा कर नियमानुसार ही उसे वैस्टर्न ब्लोट टेस्ट करवाने की सलाह दी थी.’’

‘‘नियमानुसार,’’ बड़े तल्ख लहजे में डा. कांत ने दोहराया, ‘‘जब उस ने आ कर बताया था कि उस का वैस्टर्न ब्लोट टेस्ट भी पाजिटिव है तब तुम ने नियमानुसार क्या किया था? याद है उस ने आ कर माफी मांगी थी. हम से झूठ बोलने के लिए माफी. उस ने बाद में बताया था कि उस की शादी हो चुकी है, गौना होना है. मंगेतर कालिज में पढ़ रही थी. उस ने यौन संबंध न होने का झूठ भी स्वीकारा था. उस ने कहा था वह और उस के कुछ दोस्त एक लड़की के यहां जाते थे, याद है?’’

‘‘जी, सर, अच्छी तरह याद है, भले घर का सीधासादा लड़का था. उस ने सब कुछ साफसाफ बता दिया था. बड़ा घबराया हुआ था. जानना चाहता था कि उस का क्या होगा. हम ने उस की पूरी पोस्ट टेस्ट काउंसिलिंग की थी. बता दिया था उसे, कैसे सुरक्षित जीवन जीना…’’

‘‘नियमानुसार जबानी जमाखर्च हुआ और एड्स की रोकथाम

की जिम्मेदारी

पूरी हो गई,’’

डा. कांत ने बीच में बात काटी.

‘‘और क्या कर सकते थे, सर?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जिस लड़की के साथ उस का विवाह हो चुका था और गौना होना था उसे ढूंढ़ कर बताना आवश्यक नहीं था? उस के प्र्रति क्या तुम्हारा दायित्व नहीं था? तुम कौन सा वह केस बता रहे थे जिस में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया है कि अगर आप का कोई रोगी एच.आई.वी. या ऐसे ही किसी संक्रमण से ग्रसित है और वह किसी व्यक्ति को संक्रमण फैला सकता है तो ऐसे व्यक्ति को इस खतरे के बारे में न बताने पर डाक्टर को दोषी माना जाएगा. अगर उस चिह्नित रोगी व्यक्ति को संक्रमण हो जाए तो उस डाक्टर के खिलाफ फौजदारी की काररवाई भी हो सकती है.’’

‘‘जी सर, डा. एक्स बनाम अस्पताल एक्स नाम का मामला था,’’ मैं ने कहा.

‘‘हां, वही, अजीब नाम था केस का,’’ डा. कांत ने कहना जारी रखा, ‘‘लिम्फनोड वाले लड़के ने अपने दोस्तों के बारे में बताया था. क्या उन दोस्तों को पहचान कर उन का भी एच.आई.वी. टेस्ट करना आवश्यक नहीं था? क्या उस लड़की या वेश्या, जिस के यहां वे जाते थे उसे पहचानना, उस का टेस्ट करना आवश्यक नहीं था? एड्स की रोकथाम के लिए क्या उसे पेशे से हटाना जरूरी नहीं था?’’

‘‘जरूरी तो था, सर, पर नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, और न ही ऐसी कोई व्यवस्था है जिस से हम यह सब कर सकें,’’ मैं ने अपनी मजबूरी बताई.

‘‘तो फिर एड्स की रोकथाम क्या खाक करोगे. बेकार के ढकोसले क्यों करते हो? जो एच.आई.वी. पाजिटिव है उसे बताने की क्या आवश्यकता है. उसे जीने दो अपनी जिंदगी. जब एच.आई.वी. पाजिटिव व्यक्ति एड्स का रोगी हो कर आए तब जो करना हो वह करना.’’

‘‘लेकिन सर,’’ मैं ने कहना शुरू किया तो डा. कांत ने फिर बीच में ही टोक दिया.

‘‘लेकिन दुर्भाग्य तो यह है कि एच.आई.वी. संक्रमण, वेश्या के पास जाने या यौन संबंधों से ही नहीं, किसी शरीफ आदमी और महिला को चिकित्सा प्रक्रिया से भी हो सकता है,’’ वह बोले.

‘‘हां, सर, एच.आई.वी. संक्रमण होने के तुरंत बाद जिसे हम विंडो पीरियड कहते हैं, ब्लड टेस्ट पाजिटिव नहीं आता. लेकिन ऐसा व्यक्ति अगर रक्तदान करे तो उस से रक्त पाने वाले को संक्रमण हो सकता है.’’

सुन कर डा. कांत बोले, ‘‘मैं इस चिकित्सा प्रक्रिया की बात नहीं कर रहा. ऐसा न हो उस के पूरे प्रयास किए जाते हैं, जिस केस को ले कर मुझे ग्लानि विरक्ति और अपनेआप को दोषी मान कर क्षोभ हो रहा है और जिसे ले कर मैं सबकुछ छोड़ने की बात कर रहा हूं, वह कुछ और ही है.’’

मैं कुछ बोला नहीं. चुपचाप उन के बताने का इंतजार करता रहा. अवश्य ही कोई खास बात होगी जिस ने डा. कांत जैसे वरिष्ठ चिकित्सक को इतना विचलित कर दिया कि वह सबकुछ छोड़ने की सोच रहे हैं.

काफी देर चुप रहने के बाद बड़ी संजीदगी से लरजती आवाज में वह बोले, ‘‘कल देर रात घर आए थे, मियांबीवी दोनों. काफी बुजुर्ग हैं. रिटायर हुए भी 15 साल हो चुके हैं. बेटेपोतों के भरे परिवार के साथ रहते हैं.

‘‘कहने लगे, दोनों सोच रहे हैं कहीं जा कर चुपके से आत्महत्या कर लें क्योंकि एच.आई.वी पाजिटिव होना बता कर मैं ने उन्हें किसी लायक नहीं रखा है. मैं ने उन्हें किसलिए बताया कि वे एच.आई.वी. पाजिटिव हैं. उन दोनों का किसी से यौन संबंध नहीं हो सकता और न ही रक्तदान करने की उन की उम्र है. फिर उन से संक्रमण होने का किसे खतरा था जो मैं ने उन्हें एच.आई.वी. पाजिटिव होने के बारे में बताया? जब एच.आई.वी. का निदान कर कुछ किया ही नहीं जा सकता तो फिर बताया किसलिए? वे कैसे सहन करेंगे, अपने बच्चों, पोतों का बदला हुआ रुख जब उन्हें मालूम होगा. उन को संक्रमण का कोई खतरा नहीं है पर अज्ञात का भय, जब बच्चे उन के पास आने से कतराएंगे. कहने लगे, उचित यही होगा कि नींद की गोलियां खा कर जीवन समाप्त कर लें.’’

कहतेकहते डा. कांत चुप हो गए तो मैं ने कहा, ‘‘सर, मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा. एड्स संक्रमण ऐसे तो होता नहीं. जब संक्रमण हुआ है तो उसे भुगतना और फेस भी करना ही होगा.’’

जवाब में डा. कांत ने कहा, ‘‘मेरी भी समझ में नहीं आया था कि उन्हें संक्रमण हुआ कैसे. मैं उन्हें अरसे से बहुत नजदीक से जानता हूं. घनिष्ठ घरेलू संबंध हैं. बड़ा साफसुथरा जीवन रहा है उन का. किसी प्रकार के बाहरी यौन संबंधों का सवाल ही नहीं उठता और उन का विश्वास करने का भी कोई कारण नहीं.

‘‘जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं था कि जिस से चाहेअनचाहे एच.आई.वी. संक्रमण हो सकता. सब पूछा था, काफी चर्चा हुई. वे बारबार मुझ से ही पूछते थे कि फिर कैसे हो गया संक्रमण. अंत में उन्होंने मुझे बताया कि वे डायबिटीज के रोगी अवश्य हैं. उन्हें इंसुलिन या अन्य इंजेक्शन तो कभी लेने नहीं पड़े पर वे नियमित रूप से टेस्ट करवाने एक प्राइवेट लैब में जाते थे. उन्होंने बताया, उस लैब में उंगली से ब्लड एक प्लंजर से लेते थे. दूसरे रोगियों में भी वही प्लंजर काम में लिया जाता था.

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‘‘क्या उस से उन को संक्रमण हुआ है, क्योंकि इस के अलावा तो उन्होंने कभी कोई इंजेक्शन नहीं लिए. जब मैं ने बताया कि यह संभव है तो उन्होंने कहा कि इस लैब के खिलाफ काररवाई क्यों नहीं करते? लैब को ऐसा करने से रोका क्यों नहीं गया? जो उन्हें हुआ है वह दूसरे मासूम लोगों को भी हो सकता है या हुआ होगा.’’

कुछ पल शांत रह कर वह फिर बोले, ‘‘और मैं सोच रहा था कि आत्महत्या उन्हें करनी चाहिए या मुझे? क्या लाभ है ऐसे रोगों का निदान करने में जिन का इलाज नहीं कर सकते और जिन की रोकथाम हम करते नहीं. महज ऐसे रोेगियों का जीना दुश्वार करने से लाभ? क्या सोचते होंगे वे लोग जिन का निदान कर मैं ने जीना दूभर कर दिया?’’        द्य

एहसास सच्ची मोहब्बत का : विवेक का प्रोपोजल हुआ एक्सेप्ट

कल विवेक ने मुझे प्रपोज किया. मन ही मन मैं भी उसे पसंद करती थी. वह देखने में हैंडसम है, पढ़ालिखा है और एक अच्छी कंपनी में नौकरी करता है. उस के अंदर वे सारे गुण हैं, जो एक कामयाब इनसान में होने चाहिए.

तकरीबन 3 साल पहले ही मुझे यह अंदाजा हो गया था कि विवेक मुझे पसंद करता है और मुझ से बहुत प्यार करता है, लेकिन कहने से डरता है. फिर मैं भी तो यही चाहती थी कि विवेक पहले मुझ से अपने दिल की बात कहे, तब मैं कुछ कहूंगी. पर क्या पता था कि इंतजार की ये घड़ियां 3 साल लंबी हो जाएंगी और कल विवेक ने साफ लफ्जों में कह दिया, ‘अंजलि, मैं पिछले 3 साल से तुम्हें पसंद करता हूं, पर पता नहीं क्यों मैं तुम से कुछ कह नहीं पाता हूं. लेकिन अब मेरा सब्र जवाब दे गया है. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और अब बहुत जल्द तुम से शादी करना चाहता हूं.

‘मुझे यह तो मालूम है अंजलि कि तुम्हारे दिल के किसी कोने में मेरे लिए मुहब्बत है, लेकिन फिर भी मैं एक बार तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’

विवेक इतना कह कर मेरे जवाब का इंतजार करने लगा. लेकिन मुझे खामोश देख कर कहने लगा, ‘ठीक है अंजलि, मैं तुम्हें 2 दिन का वक्त देता हूं. तुम सोचसमझ कर बोलना.’

मेरा दिल सोच के गहरे समंदर में डूबने लगा. मैं जब 8 साल की थी तो मेरी मम्मी चल बसी थीं और फिर

2 साल के बाद पापा भी हमें अकेला छोड़ गए थे. मुझे से बड़े मेरे भैया थे और मुझ से छोटी एक बहन थी, जिस का नाम नेहा था.

मम्मीपापा के चले जाने के बाद हम तीनों भाईबहन की देखभाल मेरी बूआ ने की थी. वे बहुत गरीब थीं उन का भी एक बेटा और एक बेटी थीं.

नेहा मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर थी. उस के इलाज और मेरी पढ़ाई में भैया ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मेरी पढ़ाई पूरी होने के बाद भैया ने मेरे लिए रिश्ता ढूंढ़ना शुरू कर दिया था, लेकिन मैं आगे भी पढ़ना चाहती थी, इसलिए शादी से इनकार कर दिया.

भैया ने मेरी बात मान ली, क्योंकि हमारे घर में एक औरत की जरूरत थी. इसलिए भैया ने अपनी शादी रचा ली. मेरी भाभी भी मेरी बैस्ट फ्रैंड की तरह थी. फिर वह दिन भी आ गया, जब मैं बूआ बन गई. एक नन्ही सी गुडि़या भी हमारे घर आ गई. मेरे भैया मेरे किसी भी ख्वाहिश को मेरी जबान पर आते ही पूरा कर देते थे.

हमारा परिवार बहुत खुशहाल था कि एक दिन कुदरत ने हम से हमारी दुनिया ही छीन ली. भैयाभाभी और नन्ही सी गुडि़या एक कार हादसे में मारे गए. हमें अब संभालने वाला कोई नहीं था. नेहा तो कुछ सम?ा नहीं पाई, बस सबकुछ देखती रही.

भैया जब तक जिंदा थे, तब तक मैं यह भी नहीं जानती थी कि भैया की तनख्वाह कितनी है, पर उन की मौत के बाद धीरेधीरे उन के सारे जमा पैसों का पता चलता गया. उन्होंने हम दोनों बहनों के नाम पर भारी रकम जमा की थी और भाभी और अपने नाम पर जो इंश्योरैंस कराया था, वह अलग. इन पैसों के बारे में कुछ रिश्तेदारों को भनक लगी, तो कुछ लोगों ने हम दोनों बहनों की देखरेख का जिम्मा उठाना चाहा. पर मैं उन लोगों की गिद्ध जैसी नजरों को पहचान गई और इनकार कर दिया.

लेकिन विवेक ने आखिर अब इतनी जल्दबाजी क्यों की? अभी तो इस हादसे को 2 महीना ही हुआ है. क्या विवेक भी उन में से एक है? क्या उसे भी मेरे पैसों से मुहब्बत है? यही सोचसोच कर मेरा दिल एकदम से बेचैन था. मैं रातभर ठीक से सो भी नहीं पाई.

फिर 2 दिन के बाद जब विवेक ने मुझे फोन किया और मेरा जवाब जानना चाहा तो मैं ने यही कहा कि अगर मैं शादी कर लूंगी तो नेहा अकेली हो जाएगी.

‘‘पगली क्या हम नेहा को उसी घर में अकेले छोड़ देंगे? उसे भी तुम्हारे साथ अपने घर ले आएंगे.’’

इस बात से मेरा दिल और भी दहशत में डूब गया. नेहा के नाम पर भी इतना पैसा और जायदाद है, तो क्या नेहा पर विवेक की नजर है? मुझे तो हमेशा से पैसे के लालची लोगों से नफरत है. अब विवेक के चेहरे पर भी उन्हीं लोगों का चेहरा नजर आता है.

मैं रातभर इसी सोच में डूबी रही. कब आंख लगी, पता ही नहीं चला. मेरी आंख तब खुली, जब बूआ ने आ कर आवाज दी कि अंजलि उठो. विवेक आया है. मैं जल्दी से उठी और फ्रैश हो कर नीचे आ गई.

‘‘अंजलि, क्या बात है. आज 4 दिन हो गए हैं और तुम ने कोई जवाब नहीं दिया मेरी बातों का?’’

‘‘विवेक, आखिर तुम्हें जवाब की इतनी जल्दी क्या पड़ गई है, अभी तो हमारे घर में इतना बड़ा हादसा हुआ है.’’

‘‘अंजलि, यही तो वजह है कि तुम अब अकेली हो गई हो और मैं जल्द से जल्द तुम्हारा सहारा बनना चाहता हूं. मैं तुम्हें इस घर में अकेले नहीं छोड़ना चाहता हूं.’’

‘‘विवेक, मैं ने अपनी जिंदगी के लिए कुछ फैसले लिए हैं और उन के बारे में तुम्हें बताना चाहती हूं.

‘‘हां हां, जरूर बताओ,’’ विवेक ने कहा.

‘‘मैं तुम से शादी करने के लिए राजी हूं. मेरी बूआ ने हम दोनों की हमेशा देखभाल की. मम्मीपापा के जाने के बाद उन्होंने कभी भी उन की कमी महसूस नहीं होने दी.

‘‘मैं चाहती हूं कि मैं अपनी आधी जायदाद उन के नाम कर दूं, ताकि उन के बच्चों का भविष्य सुधर जाए.

‘‘विवेक, मेरा सहारा तो तुम हो, लेकिन नेहा तो मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर है और उस के इलाज में भारी रकम खर्च होती है.

‘‘मुझे अब पैसों की क्या जरूरत है. विवेक कहो, मेरा फैसला ठीक है या गलत है?’’

विवेक कुछ देर चुप था, बस अंजलि को देख रहा था.

अंजलि को लग रहा था कि उस का यह फैसला सुनने के बाद अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

‘‘अंजलि, मैं ने तुम्हें जो समझ कर प्यार किया, तुम वह नहीं हो,’’ विवेक बोला.

‘‘मैं समझ नहीं विवेक, तुम क्या समझाते हो मुझे और मैं क्या हूं?’’

‘‘मैं तो सिर्फ इतना सम?ाता था कि तुम एक खूबसूरत लड़की हो, मैं ने सिर्फ आज तक तुम्हारे चेहरे की खूबसूरती को देखा था, लेकिन आज तुम्हारे मन की खूबसूरती को देख रहा हूं.

‘‘एक लाचार बहन पर अपना सबकुछ कुरबान कर देना और एक गरीब बूआ के बच्चों के अच्छे भविष्य के बारे में सोचना…

‘‘आज पहली बार मुझे तुम से मुहब्बत करने पर गर्व हो रहा है अंजलि, जहां आज इस पापी दुनिया में लोग दूसरों का हक छीन कर खाते हैं, वहीं इसी दुनिया में तुम्हारे जैसे लोग भी मौजूद हैं, जो दूसरों के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर देते हैं.

‘‘मुझे तुम्हारा फैसला मंजूर है, बस तुम तैयार रहो. मैं जल्दी ही डोली ले कर तुम्हारे घर आ रहा हूं.’’

अंजली विवेक की बात सुन कर मुसकरा दी. उसे आज ऐसा महसूस हुआ, जैसे सालों से दिल में गड़ा हुआ कांटा निकल गया हो.

आज उसे विवेक की सच्ची मुहब्बत का एहसास हो गया था. ऐसा लग रहा था कि उसे नई जिंदगी मिल गई. मैं भी तो विवेक को नहीं जानती थी कि उस के मन में भी इतना अच्छा इनसान छिपा था और मैं भी कितनी पागल थी कि उस पर शक कर रही थी.

मैं ने खिड़की का परदा हटाया. देखा, एक नई सुबह मेरा इंतजार कर रही थी जिस में सचाई थी, मुहब्बत थी और सबकुछ था, जो मुझे जीने के लिए चाहिए था.

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