Hindi Story : तकरीबन 3 लाख की आबादी वाले उस शहर की निम्नमध्यवर्गीय परिवारों की बस्ती है यह. यहां पर अधिकतर मिल या कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों के घर हैं. पतली सी 70-80 मीटर लंबी सुरंगनुमा गली में है यह बस्ती. शहर का यह हिस्सा शहर में होने के बावजूद मुख्य शहर से बहुत दूर है. सुविधा के नाम पर किराने की 4 छोटीछोटी दुकानें हैं जो घरों से ही संचालित होती हैं और श्रमिकों की उधारी से ही चलती हैं.
बच्चों की शिक्षा के लिए एक सरकारी स्कूल है यहां. जो सुबह प्राइमरी तो दोपहर में माध्यमिक स्कूल हो जाता है. बस्ती के सभी बच्चे, चाहे वह लड़का हो या लड़की, इसी स्कूल में पढ़ते है. राजू भी इसी स्कूल की प्राथमिक शाला की 5वीं कक्षा में पढ़ता है.
राजू का घर एक कमरे और किचन वाला है. घर में मम्मी व पापा के अतिरिक्त कोई नहीं है. वह छोटा था, तभी उस के दादादादी का निधन हो गया था. हां, दूसरे शहर में नानानानी अवश्य रहते थे. उन की आर्थिक स्थिति भी जर्जर ही थी और संभवतया इसी कारण उस का मामा बचपन में ही घर छोड़ कर भाग गया था.
रोजाना की तरह उस रोज भी राजू स्कूल गया था. पिताजी किसी कारखाने में काम करते थे और आज उन का साप्ताहिक अवकाश था. राजू के स्कूल जाने के बाद उस के मम्मीपापा खरीदारी करने के लिए अपनी मोपेड पर शहर चले गए. राजू बाजार जाने के बाद अकसर कुछकुछ गैर जरूरी सामान खरीदने की जिद किया करता था, इसी कारण उस के स्कूल जाने के बाद बाजार जाने का प्रोग्राम बनाया गया. वैसे, राजू है भी शरारती लड़का. कक्षा के सभी बच्चे, खासकर लड़कियां, उस से बहुत परेशान रहते हैं. कुल मिला कर राजू की इमेज एक बिगड़े बच्चे की ही है.
कुछ ही दिनों के बाद त्योहार आने वाले थे. इसी कारण खरीदे गए सामान की अधिकता कुछ ज्यादा ही हो गई थी. सामान इतना अधिक हो गया था कि राजू के मम्मीपापा मोपेड पर ठीक से बैठ भी नहीं पा रहे थे. सामने से तेज गति से रांग साइड आती हुई कार के सामने राजू के पापा अपनी गाड़ी को नियंत्रित नहीं कर सके और कार से भिड़ गए. भयानक दुर्घटना हुई और राजू के मम्मीपापा दोनों ही
इस दुनिया को छोड़ कर चले गए. रिश्तेदारी में ऐसा कोई था नहीं जो राजू को ले जाता, उसे सहारा देता. सो, आर्थिक व शारीरिक रूप से अशक्त नानानानी ही उसे अपने साथ ले गए. चूंकि यह राजू का पैतृक घर था, इसलिए इस पर ताला डल गया.
पिछले 10 सालों में यह शहर काफी बदल चुका है. संकरी सी पतली गली में डामर की पक्की सड़क बन गई है. गली के दूसरे छोर पर पार्क बन गया है. कुछ बड़ी दुकानें भी खुल गई हैं. राजू भी अब 21 साल का हो चुका है. 4 महीने पहले उस के नानाजी का भी निधन हो गया है. नानीजी तो 5 साल पहले ही गुजर गई थीं. अपनी परिस्थितियों के कारण राजू ज्यादा पढ़ नहीं पाया था. किसी तरह 10वीं तक तो पहुंचा, मगर पास नहीं हो पाया.
नाना के मरने के बाद वह वापस अपने पैतृक शहर लौट आया. यहां की आवश्यकता और व्यवसाय की अनुकूलता को देखते हुए उस ने अपने पास जमा पैसों से घर के अहाते में ही पान की दुकान खोल ली. बढ़ी हुई दाढ़ी और बेडौल डीलडौल के कारण राजू पहली नजर में गुंडों सा प्रतीत होता था. रहीसही कसर
उस के बोलने का अक्खड़ अंदाज पूरा कर देता था. उस के कारनामे थे ही ऐसे. अपने साथ प्राइमरी कक्षा में पढ़ने वाली सभी लड़कियों के नाम उसे अभी तक याद थे. उन में से यदि कोई लड़की उसे राह में अकेली मिल जाती, तो वह हाथ जोड़ कर बीच सड़क पर खड़ा हो जाता और पूरे दांत (जिन पर पान का गहरा रंग चढ़ा होता था) दिखा कर उस को नमस्कार कहता. किसी भी लड़की के लिए यह स्थिति असहज व अप्रिय होती.
कई बार लड़कियों ने इस की शिकायत अपने घर वालों से की. लेकिन महल्ले में बैठ कर कौन झगड़ा मोल ले की नीति के कारण उस से किसी ने भी कुछ कहने की हिम्मत न दिखाई. शायद यही कारण है कि उस की हिम्मत दिनप्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है. पान की दुकान होने के कारण इसी तरह के लोगों का जमावड़ा उस की दुकान पर होने लगा.
महल्लेवालों की सहनशीलता या कायरता को देख कर राजू की हिम्मत दिनोंदिन बढ़ने लगी. अब उस ने अपनी दुकान में एक बड़ा सा म्यूजिक सिस्टम भी लगवा लिया था. म्यूजिक सिस्टम पर लड़कियों को परेशान करने वाले गाने ही बजाए जाते थे. अब पिछले शुक्रवार की ही बात लीजिए, यह शर्मा जी की लड़की, जो कभी राजू के ही साथ पढ़ती थी, लाल रंग का सलवार सूट पहने जा रही थी. तब राजू ने अपने म्यूजिक सिस्टम पर तेज आवाज में गाना लगा दिया- ‘लाल छड़ी मैदान खड़ी…’ आज के इस दौर में जबकि नएनए गाने आ रहे हैं, उस समय इस तरह के गाने बजाना तो उद्दंडता ही माना जाएगा न.
ऐसे ही जब गुप्ताजी की लड़की किसी फंक्शन में जाने के लिए चमकदमक वाली ड्रैस पहने हुई थी तो साहब उस को देख कर गाना बजा रहे थे- ‘बदन पे सितारे लपेटे हुए ओ जाने तमन्ना किधर जा रही हो…’
कोई सीधेसादे कपड़ों में लड़की आती हुई दिखाई देती तो गाना बजता- ‘धूप में निकला न करो रूप की रानी…’ या ‘दिल के टुकड़े टुकड़े कर के मुसकरा कर चल दिए…’
महल्ले की सभी लड़कियां परेशान हो चुकी थीं. कई बार वे आपस में मिल भी चुकी थीं और राजू को चप्पलोंसैंडिलों से सबक सिखाने की भी सोच चुकी थीं. लेकिन वह दिन बातों के अलावा कभी नहीं आया.
ठिठुरन भरे दिसंबर महीने का अंतिम सप्ताह था वह जब शर्माजी की लड़की दीप्ति, जोकि एमएससी कर रही थी, प्रायोगिक क्लास होने के कारण कालेज से छूटने में लेट हो गई. साधारणतया 4 बजे छूटने वाली क्लास आज 5 बजे तक खिंच गई. कालेज घर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर है और दीप्ति अपनी साइकिल से कालेज आतीजाती है.
दीप्ति अपनी एक और सहेली के साथ साइकिल से बाहर निकली ही थी कि उन दोनों को 2 मोटरबाइक पर बैठे 5 लड़कों ने घेर लिया. सभी लड़के दीप्ति और उस की सहेली पर लगातार तानाकशी करते हुए उन्हें परेशान कर रहे थे. कभी दोनों की साइकिल्स के आगे आ कर रोकने का प्रयास करते तो कभी पीछे से कैरियर पकड़ कर पीछे खींचने की कोशिश करते.
दीप्ति और उस की सहेली को इतनी ठंड में भी पसीना आ रहा था. हलका सा अंधेरा और सड़क का सूनापन लड़कों की हिम्मत बढ़ा रहा था. लगभग 2 किलोमीटर तक यह सब चलता रहा. दोनों सहेलियों के तालू जैसे सूख गए थे. चीखनेचिल्लाने की हिम्मत ही नहीं थी. कालेज में दी गई प्राथमिक सुरक्षा की
ट्रेनिंग भी न जाने कहां उड़नछू हो गई. दो किलोमीटर के बाद दोनों मुख्य शहर में प्रवेश कर गईं. अब दोनों की जान में जान आई. दीप्ति की सहेली यहीं रहती थी, सो, वह अब अलग रास्ते चली गई.
“मूर्खो, तुम्हारी ढिलाई के कारण एक लड़की हाथ से निकल गई. अब नया साल सूखासूखा मनाओगे क्या? कम से कम इस लड़की को तो अपने साथ ले चलो.” पांचों में से शायद यह लड़का सब का सरदार था जो गुस्सा होते हुए बोल रहा था.
“अरे छोड़ो बौस, हमारे पास उसे बैठाने की जगह कहां थी. बस, अब इस चिड़िया को ले जा कर फुर्र हो जाते हैं,” दूसरा बदमाश बोला.
दीप्ति को उन के इरादे अब स्पष्टतौर पर समझ में आ गए थे. उस की धड़कनें एक बार फिर तेज चलने लगीं. आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा. उस ने हिम्मत कर के अपनी साइकिल की रफ़्तार बढ़ा दी. किसी तरह दीप्ति अपनी गली के मुहाने तक पहुंच ही गई. तेजी से साइकिल चलाने के कारण वह बुरी तरह से हांफने लगी थी. अब एक पैडल मारना भी उस के लिए भारी पड़ रहा था. घबराहट के कारण उसे चक्कर आ गया और वह वहीं गिर पड़ी.
लड़के शायद इसी के इंतज़ार में थे. वे गिरी हुई दीप्ति को उठा कर अपनी बाइक से ले जाना चाहते थे. दीप्ति की हालत प्रतिकार करने जैसी बिलकुल नहीं थी.
राजू अपनी दुकान पर बैठा यह सब नज़ारा देख रहा था. वह समझ गया था कि दीप्ति मुसीबत में है तथा लड़कों के इरादे नेक नहीं हैं. बिना एक क्षण की देरी किए उस ने अपनी दुकान में से मोटा सा लठ्ठ निकाला, दौड़ कर दीप्ति के पास पहुंच गया और सरदार जैसे उस लड़के पर आक्रमण कर दिया. उस ने अपने लठ्ठ से उस लड़के के पैरों पर इतनी जोर का वार किया कि वह चीखते हुए गिर पड़ा.
इस तरह हुए अचानक आक्रमण से बाकी लड़के घबरा गए. वे कुछ समझ पाते, इस के पहले ही राजू ने उसी जगह पर पूरी ताकत से दूसरा वार कर दिया. अब वह लड़का खड़ा होने की स्थिति में नहीं था. अब राजू बाकी लड़कों को ललकारने लगा. अपने साथी की ऐसी हालत देख कर बचे हुए लड़कों ने वहां से भागने में ही अपनी खैरियत समझी. यह घटना देख कर आसपास कई लोगों की भीड़ इकठ्ठी हो गई थी.
सभी लोग लड़कों के दुस्साहस और राजू की त्वरित प्रतिक्रिया की ही बातें कर रहे थे. सभी राजू की प्रशंसा ही कर रहे थे. अब तक वहां पर दीप्ति के साथ रहने वाली पासपड़ोस की लड़कियां भी पहुंच गईं. उन सभी लड़कियों को राजू की इस तरह प्रशंसा अखर रही थी क्योंकि वे राजू की असलियत जानती थीं. उन में से एक लड़की हिम्मत दिखाती हुई बोली, “राजू खुद कौन सा दूध का धुला है. वह खुद भी आतीजाती लड़कियों को देख कर भद्दे गाने फुल वौल्यूम में लगा कर हमें शर्मसार करता रहता है. कौन जाने आज की घटना इसी गुंडे की चाल हो.”
इस लड़की की बात सुन कर भीड़ में एकदम सन्नाटा छा गया. सभी राजू की तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगे.
राजू शायद इस प्रश्न के लिए तैयार ही था. संभवतया वह अपेक्षा ही कर रहा था. वह दो कदम आगे बढ़ा और उस लड़की के सामने जा कर खड़ा हो गया. लड़की किसी आशंका की कल्पना से सिहर गई. राजू अपने परिचित अंदाज में लड़की के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और पूरी नम्रता के साथ बोला-
“मुझे यह कहने में जरा भी झिझक नहीं है कि इस महल्ले में रहने वाली हर लड़की मेरी बहन है. हां, मैं अपने म्यूजिक सिस्टम पर उस तरह के गाने जानबूझ कर ही बजाता था. कारण जानना चाहोगे आप लोग?
“मैं चाहता था मेरे महल्ले में रहने वाली मेरी हर बहन इतनी निडर बने कि वह हर अप्रिय स्थिति का सामना आसानी से कर पाए. लेकिन इस बात के लिए सब से जरूरी है अन्याय के विरुद्ध अपनेआप का आत्मविश्वासी होना.
“मैं इस तरह के गाने बजा कर और आप लोगों को सुना कर आप लोगों में आत्मविश्वास और आत्मसम्मान जगाना चाहता था. मैं चाहता था चाहे एक लड़की ही सही पर कोई तो आ कर विरोध करे, अपने आत्मसम्मान को जगाए. लेकिन दुख की बात है कोई लड़की आगे नहीं आई.
“याद रखिए, किसी भी व्यक्ति का सम्मान उस के अपने घर से ही शुरू होता है. जब आप खुद अपना सम्मान नहीं करेंगी तो बाहर वाले को क्या पड़ी है कि वह
आप का सम्मान करेगा और जब सम्मान नहीं करेगा तो इस तरह का या इस से भी बदतर अपमान सहना पड़ेगा.
“अगर आप लोगों ने मेरे कामों का विरोध पहले ही कर दिया होता तो शायद आज इस तरह की घटना न घटित होती. और एक बात, यदि आप आज ही प्रबल विरोध करोगे तो भविष्य में ‘मी टू’ कहने जैसे किसी आंदोलन की जरूरत ही न पड़ेगी.
“मुझे खुशी है, इतनी भीड़ में, एक का ही सही, आत्मविश्वास, आत्मसम्मान जागा तो. मुझे विश्वास है धीरेधीरे इस महल्ले की सभी लड़कियों में यह भावना आ जाएगी.
“आज मेरी गुंडागीरी सफल हुई.”
“वाह, राजू जैसी सोच वाले गुंडे शहर के हर गलीचौराहे पर हों तो हमारी महिलाएं, लड़कियां सुरक्षित कैसे न रहेंगी,” दीप्ति के पिता शर्माजी राजू की पीठ थपथपाते हुए कह रहे थे.