मुझे हर्ष से यह उम्मीद नहीं थी, पर उस के मुंह से सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा और मन को अजीब सी शांति मिली. मुझे लगा समीर के लिए तो मैं टेकन फौर ग्रांटेड थी. उस ने मुझे कभी मिस किया हो उस की बातों से कभी मुझे प्रतीत नहीं हुआ. खैर, 2 महीने बाद मैं ने औफिस जाना शुरू किया. मेरी सास घर में रहती थीं और डे टाइम के लिए एक आया भी थी. इसलिए मैं आदि को उन के पास छोड़ कर औफिस जाने लगी. पर हर्ष से सीधे कोई बात नहीं होती थी, बस फोन पर मैसेज आदानप्रदान हो रहे थे और एकदूसरे को देखना होता था. लंच में मैं थोड़ी देर के लिए घर आ जाती थी बेटे आदि के पास. मेरा मन हर्ष से बात करने को तैयार था पर मेरे लिए बेटे को भी देखना जरूरी था.
एक बार औफिशियल मीटिंग में हम दोनों बगल में बैठे थे. उस ने धीरे से मेरे कान में कहा, ‘‘मुझ से बात करने से कतराती हो क्या?’’
मैं ने सिर्फ न में सिर हिला दिया. फिर बोला, ‘‘कभी शाम को साथ कौफी पीते हैं.’’
‘‘बाद में बात करते हैं,’’ मैं ने कहा.
मैं उस से मिल सकती हूं, मुझे भी अच्छा लगेगा, पर वह मुझ से क्या चाहता है या मुझ में क्या ढूंढ़ रहा है मैं समझ नहीं पा रही हूं.
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एक बार कंपनी को बड़ा और्डर मिलने की खुशी में पार्टी थी, सिर्फ औफिस के लोगों के लिए. इत्तफाक से उस दिन भी मैं और हर्ष एक ही टेबल पर बैठे थे.
उस ने कहा, ‘‘शुक्र है आज तुम्हारे साथ बैठ कर बातें करने का मौका मिल गया. बहुत अच्छा लग रहा है तुम्हारा सामीप्य.’’
‘‘अच्छा तो मुझे भी लगता है तुम से मिलना, पर क्यों मैं नहीं जानती… बस इट
हैपंस सो. पर तुम्हें इस से क्या मिलता है?’’ मैं ने पूछा. ‘‘बस वही जो तुम्हें मिलता है यानी खुशी,’’ कह कर उस ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया.
उस का स्पर्श अच्छा लगा. उस दिन हम दोनों के लिए और सरप्राइज था. चिट ड्रा द्वारा मुझे हर्ष के साथ फ्लोर पर डांस करना था. हम दोनों ने कुछ देर एकसाथ डांस किया. मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गई थीं. मुझे ‘माई हार्ट इज बीटिंग…’ गाना याद आ गया.
डांस के बाद टेबल पर बैठते हुए उस ने बताया कि उस का एच 1 बी वीजा मंजूर हो गया है. मैं ने उसे हाथ मिला कर बधाई दी.
वह बोला, ‘‘मुझे इंडिया जाना होगा, पासपोर्ट पर वीजा स्टैंप के लिए, पर आजकल डर लगता है स्टैंपिंग में भी.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘पहले तो यह एक औपचारिकता थी पर आजकल नए प्रशासन में सुना है
कि कौंसुलेट इंटरव्यू होता है. ये लोग अनावश्यक पूछताछ और अमेरिका से क्लीयरैंस आदि लेने में काफी वक्त लगा देते हैं.’’
‘‘कब जा रहे हो?’’
‘‘नैक्स्ट वीक जाऊंगा. तुम्हें बहुत मिस करूंगा. क्या तुम भी मुझे मिस करोगी?’’
‘‘हां भी नहीं भी,’’ कह कर मैं टाल गई और आगे बोली, ‘‘पर क्या तुम मेरे पापा से बात कर सकते हो… मैं उन का फोन नंबर दे देती हूं.’’
‘‘अगर थोड़ा संकोच करोगी तब मैं यही समझूंगा कि तुम्हारी नजर में मैं अजनबी हूं. फोन क्या बोकारो से रांची तो बस 120 किलोमीटर है. मैं खुद भी जा सकता हूं.’’
हर्ष इंडिया चला गया. मैं हमेशा उस के खाली कैबिन की ओर बारबार देखती और उस के लौटने की प्रतीक्षा करती.
हर्ष से इंडिया में फोन पर या कभी वीडियो चैटिंग होती थी. वह परेशान था. उस के वीजा स्टैंपिंग पर कौंसुलेट काफी समय लगा रहा था. हर्ष लगभग 2 महीने बाद अमेरिका आया. तब तक मैं ने दूसरी कंपनी में जौइन कर ली थी.
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उस ने फोन पर कहा, ‘‘मुझे तुम से मिलना होगा. तुम्हारे पापा बोकारो आए थे. तुम्हारे मम्मीपापा ने तुम लोगों के लिए कुछ सामान भेजा है.’’
हम दोनों शाम को एक कौफी कैफे में मिले. वह बोला, ‘‘तुम ने जौब मुझ से पीछा छुड़ाने के लिए चेंज की है न?’’
मैं ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘तुम मेरे बारे में ऐसा सोचोगे तो मुझे दुख होगा. यह कंपनी मेरे घर के बहुत पास है. इस से मैं बेटे आदि के लिए कुछ समय दे पा रही हूं.’’
सच तो यही था कि मैं भी उसे मिस कर रही थी पर मुझे तो मां का फर्ज भी निभाना था.
एक शाम मैं हर्ष से मिली तो वह बहुत उदास था. मेरे पूछने पर नम आंखों से बोला, ‘‘मेरा औफिस में मन नहीं लग रहा है. आंखें तुम्हारे कैबिन की ओर बारबार देखती हैं. तुम
जब थीं तुम्हें देखने मात्र से एक अजीब सा सुकून मिलता था. अब मन करता है वापस इंडिया चला जाऊं.’’
‘‘ऐसी बेवकूफी मत करना. इतनी कठिनाई के बाद तो वीजा मिला है. कम से कम 6 साल तो पूरे कर लो. शायद इस बीच कंपनी तुम्हारा ग्रीन कार्ड स्पौंसर कर दे.’’
‘‘इस की उम्मीद बहुत कम है, खासकर भारतीय कंपनियां तो हमारी मजबूरी का फायदा उठाती हैं.’’
2-3 सप्ताह में 1 बार उस से समय निकाल कर मिल लेती थी. कुछ दिन बाद मेरी कंपनी में भी ओपनिंग थी. मैं ने पूछा, ‘‘तुम यहां आना चाहोगे? अगर वास्तव में रुचि हो तो बताना.
मैं रैफर कर दूंगी. तुम तो जानते हो बिना रैफर के यहां जौब नहीं मिलती और फिर रैफर करने वाले यानी मुझे भी 2-3 हजार डौलर इनाम मिल जाएगा.’’
1 महीने के नोटिस के बाद अब हर्ष मेरी कंपनी में आ गया. हमारे कैबिन आमनेसामने तो नहीं थे, फिर भी हम दोनों एकदूसरे को आसानी से देख सकते थे.
एक दिन जब शाम को दोनों मिले तो उस ने कहा, ‘‘तुम से मिल कर क्यों इतना अच्छा लगता है? मेरा बस चले तो तुम्हें देखता ही रहूं.’’
‘‘एक बात पूछूं? सचसच बताना. अब तो तुम सैटल हो. अपने लिए कोई अच्छी लड़की खोज कर शादी क्यों नहीं कर लेते हो?’’
‘‘अपनी ट्रू कौपी खोज कर लाओ. मैं शादी कर लूंगा.’’
‘‘मुझ में ऐसी क्या बात है?’’
‘‘सच बोलूं मैं ने क्या देखा है तुम में…
तो सुनो, बड़े कमल की पंखुडि़यों के नीचे कालीकाली नशीली आंखें, बारीकी से तराशी गई पतली और लंबी भौंहें, नाक में चमकती हीरे की कनी और गुलाबीरसीले होंठ और जब मुसकराती तो गोरेगोरे गालों में पड़ते डिंपल्स और…’’
‘‘बस करो. तुम जानते हो मैं एक पत्नी ही नहीं एक मां भी हूं. ज्यादा फ्लर्ट करने से भी तुम्हें कुछ मिलने से रहा.’’
‘‘मैं ने कब कहा है कि तुम पत्नी और मां नहीं हो. मैं तो बस तुम्हें देख कर अपना मन खुश कर लेता हूं.’’
उस की बातें मेरे दिल को स्पंदित कर रही थीं. मैं शरमा कर बोली, ‘‘मुझ से बेहतर यहीं सैकड़ों मिल जाएंगी.’’
‘‘मैं ने कहा न कि तुम्हारी ट्रू कौपी चाहिए. तुम से अच्छी भी नहीं चाहिए.’’
‘‘सच कहूं तो जब तक तुम शादी नहीं कर लेते मेरा मन तुम्हारे लिए भटकता रहेगा और तुम भी मृगतृष्णा में भटकते फिरोगे. मैं ऐसा नहीं चाहती.’’
‘‘ठीक है, मुझे कुछ समय दो सोचने का.’’
मैं ने सोचा हर्ष सोचे या न सोचे, मैं ने सोच लिया है. हर्ष से मिलना, बातें करना मुझे भी अच्छा लगता है पर अपनी खुशी के लिए मैं उसे अब और नहीं भटकने दूंगी.
2 सप्ताह के बाद मैं फिर हर्ष से मिली. उस का हाथ अपने हाथ में ले कर मैं ने कहा, ‘‘शादी के बारे में क्या सोचा है?’’
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‘‘मेरी शादी से तुम्हें क्या मिलेगा? मुझे तो बस तुम से मिल कर ही काफी खुशी होती है.’’
‘‘मिल कर मैं भी खुश होती हूं. तुम मेरे दिल में हमेशा रहोगे, भरोसा दिलाती हूं मेरा कहा मान लो और जल्दी शादी कर लो.’’
थोड़ी देर के लिए दोनों के बीच एक खामोशी पसर गई. वह उदास लग रहा था. उदास तो अंदर से मैं भी रहूंगी उस से दूर हो कर, पर जिस रिश्ते की कोई मंजिल न हो उसे कब तक ढोया जा सकता है.
मैं ने उसे समझाया, ‘‘यकीन करो, तुम मेरी यादों में रहोगे. मैं तुम से मिलती भी रहूंगी, पर इस तरह नहीं, अपनी बीवी के साथ मिलना. हां, पर कहीं ऐसा न होने देना कि उस समय भी तुम्हारी नजरें मुझ में कुछ ढूंढ़ने लगें. हम मिलेंगे, बातें करेंगे बस मैं इतने से ही संतुष्ट हो जाऊंगी और तुम से भी यही आशा करूंगी. हम अपने रिश्ते का गलत अर्थ निकालने का मौका किसी को नहीं देंगे.’’
‘‘एक शर्त पर? एक बार जी भर के गले मिल लूं तुम से,’’ उस ने कहा और फिर अपनी दोनों बांहें फैला दीं. मैं बिना संकोच उस की बांहों में सिमट गई.
उस ने कहा, ‘‘मैं इस पल को सदा याद रखूंगा. और अगर मैं तुम्हें अपनी गिरफ्त से आजाद न करूं तो?’’
‘‘और यदि मुझे आदि बुला रहा हो तो?’’
हर्ष ने तुरंत अपनी पकड़ ढीली कर दी. मैं उस से अलग हो गई. फिर मैं ने अपनी दोनों बांहें फैला दीं. हर्ष मेरी बांहों में था. मैं ने कहा, ‘‘मैं भी इस पल को नहीं भूल सकती.’’
मैं ने दिल से कामना की कि हर्ष की पत्नी उसे इतना प्यार दे कि उसे मेरे कैबिन की ओर देखने की जरूरत न पड़े. मैं ने भी अपने मन को समझा लिया था कि अब हर्ष को सिर्फ यादों में ही रखना है.
अचानक डोरबैल की आवाज सुन कर मैं चौंक उठी और खयालों की दुनिया से निकल कर वर्तमान में आ गई. दरवाजा खोला तो सामने नरेश खड़ा था. मैं ने उसे अंदर आने को कहा.
नरेश ने निम्मो से कहा, ‘‘जल्दी चलो, मैं वकील से टाइम ले कर आया हूं. हमारे तलाक के पेपर तैयार हैं. चल कर साइन कर दो.’’
मैं यह सुन कर अवाक रह गई. मैं ने डांटते हुए कहा, ‘‘नरेश, क्या छोटीछोटी बातों को तूल दे कर तलाक लिया जाता है?’’
‘‘तुम्हारी सहेली ने ही तलाक लेने को कहा था.’’
तभी निम्मो रोती हुई बोली, ‘‘मैं ने तो बस मजाक में कह दिया था.’’
‘‘तो मैं ने भी कहां सीरियसली कहा है… चलो घर चलते हैं,’’ नरेश बोला.
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निम्मो दौड़ कर नरेश से लिपट गई. दोनों अपने घर चले गए.
कुछ देर बाद समीर आया. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारे बेटे का ऐडमिशन तुम जिस स्कूल में चाहती थी, हो गया है.’’
मैं ने मन में सोचा कि क्या बेटा सिर्फ मेरा ही है. हमारा बेटा भी तो कह सकता था समीर. वह स्कूल इस शहर का सर्वोत्तम स्कूल था. मारे खुशी के मैं दौड़ कर समीर से जा लिपटी. पर उस की प्रतिक्रिया में वही पुरानी उदासीनता थी. मैं ने व्यर्थ ही कुछ देर तक इंतजार किया कि शायद वह भी मुझे आगोश में लेगा.
फिर मैं भी सहज हो कर धीरे से उस से अलग हुई और वापस अपनी दुनिया में आ गई कि समीर से इस से ज्यादा अपेक्षा नहीं करनी चाहिए मुझे.मन का मीत- भाग 1: कैसे हर्ष के मोहपाश मेंबंधती गई तान्या