तलाक के बाद शादी- भाग 3: देव और साधना आखिर क्यों अलग हुए

एक मवाली हंस कर बोला, ‘‘लो, हीरो भी आ गया.’’ उस ने चाकू निकाल लिया. साधना भी देव को पहचान कर उन बदमाशों से छूट कर दौड़ कर देव से लिपट गई. वह डर के मारे कांप रही थी. देव उसे तसल्ली दे रहा था, ‘‘कुछ नहीं होगा, मैं हूं न.’’

इस से पहले मवाली आगे बढ़ता, तभी पुलिस की एक जीप रुकी सायरन के साथ. पुलिस ने तीनों को घेर लिया. पुलिस अधिकारी ने पूछा, ‘‘आप लोग इतनी रात यहां कैसे?’’

‘‘जी, औफिस में लेट हो गई थी.’’

‘‘और आप?’’

‘‘मैं भी इसी औफिस में हूं. थोड़ा आगेपीछे हो गए थे.’’

साधना जिस तरह देव के साथ सिमटी थी, उसे देख कर पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘‘आप पतिपत्नी को साथसाथ चलना चाहिए.’’

तभी 3 में से 1 मवाली ने कहा, ‘‘वही तो साब, अकेली औरत, सुनसान सड़क. हम ने सोचा कि…’’

इस से पहले कि उस की बात पूरी हो पाती, थानेदार ने एक थप्पड़ जड़ते हुए कहा, ‘‘कहां लिखा है कानून में कि अकेली औरत, सुनसान सड़क और रात में नहीं घूम सकती है. और घूमती दिखाई दे तो क्या तुम्हें जोरजबरदस्ती का अधिकार मिल जाता है.’’

थानेदार ने कहा, ‘‘आप लोग जाइए. ये हवालात की हवा खाएंगे.’’‘‘तुम यहां कैसे?’’ साधना ने पूछा.

‘‘प्रमोशन पर,’’ देव ने कहा.

‘‘और परिवार,’’ साधना ने पूछा.

‘‘अकेला हूं. तुम्हारा परिवार?’’

‘‘अकेली हूं. भाईभाभी के साथ रहती हूं.’’

‘‘शादी नहीं की?’’

‘‘हुई नहीं.’’

‘‘और तुम ने?’’

‘‘ऐसा ही मेरे साथ समझ लो.’’

‘‘औफिस में तो दिखे नहीं?’’

‘‘कल से जौइन करना है.’’

ये भी पढ़ें- नींव: अंजु ने ऐसा क्या किया कि संजीव खुश हो गया?

फिर थोड़ी चुप्पी छाई रही. देव ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘खुश हो तलाक ले कर?’’ वह चुप रही और फिर उस ने पूछा, ‘‘और तुम?’’

‘‘दूर रहने पर ही अपनों की जरूरत का एहसास होता है. उन की कमी खलती है. याद आती है.’’

‘‘लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है.’’

‘‘क्यों, क्या हम दोनों में से कोई मर गया है जो देर होचुकी है?’’

साधना ने देव के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘मरें तुम्हारे दुश्मन.’’

न दोनों ने पास के एक शानदार  रैस्टोरैंट में खाना खाया. ‘‘घर चलोगी मेरे साथ? कंपनी का क्वार्टर है.’’

‘‘अब हम पतिपत्नी नहीं रहे कानून की दृष्टि में.’’

‘‘और दिल की नजर में? क्या कहता है तुम्हारा दिल.’’

‘‘शादी करोगे?’’

‘‘फिर से?’’

‘‘कानून, समाज के लिए.’’

‘‘शादी ही करनी थी तो छोड़ कर क्यों गई थी,’’ देव ने कहा.

‘‘औरत की यही कमजोरी है जहां स्नेह, प्यार मिलता है, खिंची चली जाती है. तुम्हारी बेरुखी और मां की प्रेमभरी बातों में चली गई थी.’’

‘‘कुछ मेरी भी गलती थी, मुझे तुम्हारा ध्यान रखना चाहिए था, लेकिन अब फिर कभी झगड़ा हुआ तो छोड़ कर तो नहीं चली जाओगी?’’ देव ने पूछा.

‘‘तोबातोबा, एक गलती एक बार. काफी सह लिया. बाहर वालों की सुनने से अच्छा है पतिपत्नी आपस में लड़ लें, सुन लें. एकदूसरे की.’’

अगले दिन औफिस के बाद वे दोनों एक वकील के पास बैठे थे. वकील दोस्त था देव का. वह अचरज में था,

‘‘यार, मैं ने कई शादियां करवाईं है और तलाक भी. लेकिन यह पहली शादी होगी जिस से तलाक हुआ उसी से फिर शादी. जल्दी हो तो आर्य समाज में शादी करवा देते हैं?’’

‘‘वैसे भी बहुत देर हो चुकी है, अब और देर क्या करनी. आर्य समाज से ही करवा दो.’’

‘‘कल ही करवा देता हूं,’’ वकील ने कहा.

शादी संपन्न हुई. इस बात की साधना ने अपनी मां को पहले खबर दी.

ये भी पढ़ें- झलक: मीना के नाजायज संबंधों का क्या था असली

मां ने कहा, ‘‘हम लोग ध्यान नहीं रख रहे थे क्या?’’

साधना ने कहा, ‘‘मां, लड़की प्रेमविवाह करे या परिवार की मरजी से, पति का घर ही असली घर है स्त्री के लिए.’’

देव ने अपने पिता को सूचना दी. उन्होंने कहा, ‘‘शादी दिल तय करता है अन्यथा तलाक के बाद उसी लड़की से शादी कहां हो पाती है. सदा खुश रहो.’’ और इस तरह शादी, फिर तलाक और फिर शादी.

अनकहा प्यार- भाग 2: क्या सबीना और अमित एक-दूसरे के हो पाए?

दुबई से नौकरी छोड़ कर आमिर ने अपना खुद का व्यापार शुरू कर दिया. बेटे सलीम को पढ़ाई के लिए उसे होस्टल में डाल दिया. सबीना का भी आमिर ने अच्छी तरह ध्यान रखा. उसे खूब प्रेम दिया. लेकिन जबजब आमिर सबीना से कहता कि नौकरी छोड़ दो. सबकुछ है हमारे पास. सबीना ने यह कह कर इनकार कर दिया कि कल तुम्हें कोई और भा गई. तुम ने फिर तलाक दे दिया तो मेरा क्या होगा? फिर मुझे यह नौकरी भी नहीं मिलेगी. मैं नौकरी नहीं छोड़ सकती. इस बात पर अकसर दोनों में बहस हो जाती. घर का माहौल बिगड़ जाता. मन अशांत हो जाता सबीना का.

‘तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं है?’ आमिर ने पूछा.

‘नहीं है,’ सबीना ने सपाट स्वर में जवाब दिया.

‘मैं ने तो तुम पर विश्वास किया. तुम्हें क्यों नहीं है?’

‘कौन सा विश्वास?’

‘इस बात का कि हलाला में पराए मर्द को तुम ने हाथ भी नहीं लगाया होगा.’

‘जब निकाह हुआ तो पराया कैसे रहा?’

‘मैं ने इस बात के लिए 3 लाख रुपए खर्च किए थे. ताकि जिस से हलाला के तहत निकाह हो, वह  हाथ भी न लगाए तुम्हें.’

‘भरोसा मुझ पर नहीं किया आप ने. भरोसा किया मौलवी पर. अपने रुपयों पर, या जिस से आप ने गैरमर्द से मेरा निकाह करवाया.’’

‘लेकिन भरोसा तो तुम पर भी था न.’

ये भी पढ़ें- नश्तर: पति के प्यार के लिए वो जिंदगी भर क्यों तरसी थी?

‘न करते भरोसा.’

‘कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरे 3 लाख रुपए भी गए और तुम ने रंगरेलियां भी मनाई हों.’ आमिर की इस बात पर बिफर पड़ी सबीना. बस, इसी मुद्दे को ले कर दोनों में अकसर तकरार शुरू हो जाती और सबीना पार्क में आ कर बैठ जाती.

पार्क की बैंच पर बैठे हुए उस की दृष्टि सामने बैठे हुए एक अधेड़ व्यक्ति पर पड़ी. वह थोड़ा चौंकी. उसे विश्वास नहीं हुआ इस बात पर कि सामने बैठा हुआ व्यक्ति अमित हो सकता है. अमित उस के कालेज का साथी. 45 वर्ष के आसपास की उम्र, दुबलापतला शरीर, सफेद बाल, कुछ बढ़ी हुई दाढ़ी जिस में अधिकांश बाल चांदी की तरह चमक रहे थे. यहां क्या कर रहा है अमित? इस शहर के इस पार्क में, जबकि उसे तो दिल्ली में होना चाहिए था. अमित ही है या कोई और. नहीं, अमित ही है. शायद मुझ पर नजर नहीं पड़ी उस की.

अमित और सबीना एकसाथ कालेज में पूरे 5 वर्ष तक पढ़े. एक ही डैस्क पर बैठते. एकदूसरे से पढ़ाई के संबंध में बातें करते. एकदूसरे की समस्याओं को सुलझने में मदद करते. जिस दिन वह कालेज नहीं आती, अमित उसे अपने नोट्स दे देता. जब अमित कालेज नहीं आता, तो सबीना उसे अपने नोट्स दे देती. कालेज के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में दोनों मिल कर भाग लेते और प्रथम पुरुस्कार प्राप्त करते हुए सब की वाहवाही बटोरते. जिस दिन अमित कालेज नहीं आता, सबीना को कालेज मरघट के समान लगता. यही हालत अमित की भी थी. तभी तो वह दूसरे दिन अपनत्वभरे क्रोध में डांट कर पूछता. ‘कल कालेज क्यों नहीं आईं तुम?’

सबीना समझ चुकी थी कि अमित के दिल में उस के प्रति वही भाव हैं जो उस के दिल में अमित के प्रति हैं. लेकिन दोनों ने कभी इस विषय पर बात नहीं की. सबीना घर से टिफिन ले कर आती जिस में अमित का मनपसंद भोजन होता. अमित भी सबीना के लिए कुछ न कुछ बनवा कर लाता जो सबीना को बेहद पसंद था. वे अपनेअपने सुखदुख एकदूसरे से कहते. अमित ने बताया कि उस के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. घर में बीमार बूढ़ी मां है. जवान बहन है जिस की शादी की जिम्मेदारी उस पर है. अपने बारे में क्या सोचूं? मेरी सोच तो मां के इलाज और बहन की शादी के इर्दगिर्द घूमती रहती है. बस, अच्छे परसैंट बन जाएं ताकि पीएचडी कर सकूं. फिर कोई नौकरी भी कर लूंगा.’’

ये भी पढ़ें- विराम: क्यों मोहिनी अपने पति को भूल गई?

सबीना उसे सांत्वना देते हुए कहती, ‘चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएगा.

सबीना के घर की उन दिनों आर्थिक स्थिति अच्छी थी. उस के अब्बू विधायक थे. उन के पास सत्ता भी थी और शक्ति भी. कभी कहने की हिम्मम नहीं पड़ी उस की अपने अब्बू से कि वह किसी हिंदू लड़के से प्यार करती है. कहती भी थी तो वह जानती थी कि उस का नतीजा क्या होगा? उस की पढ़ाईलिखाई तुरंत बंद कर के उस के निकाह की व्यवस्था की जाती. हो सकता है कि अमित को भी नुकसान पहुंचाया जाता. लेकिन घर वालों की बात क्या कहे वह? उस ने खुद कभी अमित से नहीं कहा कि वह उस से प्यार करती है. और न ही अमित ने उस से कहा.

अमित अपने परिवार, अपने कैरियर की बातें करता रहता और वह अमित की दोस्त बन कर उसे तसल्ली देती रहती. पैसों के अभाव में सबीना ने कई बार अमित के लाख मना करने पर उस की फीस यह कह कर भरी कि जब नौकरी लग जाए तो लौटा देना, उधार दे रही हूं.

और अमित को न चाहते हुए भी मदद लेनी पड़ती. यदि मदद नहीं लेता तो उस का कालेज कब का छूट चुका होता. कालेज की तरफ से कभी पिकनिक आदि का बाहर जाने का प्रोग्राम होता, तो अमित के न चाहते हुए भी उसे सबीना की जिद के आगे झकना पड़ता. कई बार सबीना ने सोचा कि अपने प्यार का इजहार करे लेकिन वह यह सोच कर चुप रह गई कि अमित क्या सोचेगा? कैसी बेशर्म लड़की है? अमित को पहल करनी चाहिए. अमित

कैसे पहल करता? वह तो अपनी गरीबी

से उबरने की कोशिश में लगा हुआ था. अमित सबीना को अपना सब से अच्छा दोस्त मानता था. अपना सब से बड़ा शुभचिंतक. अपने सुखदुख का साथी. लेकिन वह भी कर न सका अपने प्यार

का इजहार.

प्यार दोनों ही तरफ था. लेकिन कहने की पहल किसी ने नहीं की. कहना जरूरी भी नहीं था. प्यार है, तो है. बीए प्रथम वर्ष से एमए के अंतिम वर्ष तक, पूरे 5 वर्षों का साथ. यह साथ न छूटे, इसलिए सबीना ने भी अंगरेजी साहित्य लिया जोकि अमित ने लिया था. अमित ने पूछा भी, ‘तुम्हारी तो हिंदी साहित्य में रुचि थी?’

‘मुझे क्या पता था कि तुम अंगरेजी साहित्य चुनोगे,’ सबीना ने जवाब दिया.

‘तो क्या मेरी वजह से तुम ने,’ अमित ने पूछा.

‘नहीं, नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. सोचा कि अंगरेजी साहित्य ही ठीक रहेगा.’

‘उस के बाद क्या करोगी?’

‘तुम क्या करोगे?’

‘मैं, पीएचडी.’

‘मैं भी, सबीना बोली.’

जरूरी हैं दूरियां पास आने के लिए- भाग 3: क्यों मिशिका को भूलना चाहता था विहान

लेखिका- डा. मंजरी अमित चतुर्वेदी

‘‘जानती हो, जब हम साथ पढ़ाई करते थे तब भी मैं टौपिक समझ न आने के बहाने से देर तक बैठा रहता. तुम मुझे बारबार समझतीं. पर, मैं नादान बना बैठा रहता सिर्फ तुम्हारा साथ पाने की चाह में. जब छुट्टियों में बच्चे बाहर अलगअलग ऐक्टिविटी करते तब भी मैं तुम्हारी पसंद के हिसाब से काम करता था ताकि तुम्हारा साथ रहे.’’

‘‘विहान…’’ मिशी ने अचरज से कहा.

‘‘अभी तुम बस सुनो मुझे और मेरे दिल की आवाज को. याद है मिशी, जब हम 12वीं में थे, तुम मुझ से कहतीं, ‘क्यों विहान, गर्लफ्रैंड नहीं बनाई, मेरी तो सब सहेलियों के बौयफ्रैंड हैं?’ मैं पूछता कि तुम्हारा भी है तो तुम हंस देतीं, ‘हट पागल, मुझे तो पढ़ाई करनी है एमबीए की, फिर मस्त जौब. पर विहान,  तुम्हारी गर्लफ्रैंड होनी चाहिए’ इतना  कह कर तुम मुझे अपनी कुछ सहेलियों की खूबियां गिनवाने लगतीं. मेरा मन करता कि तुम्हें  झकझर कर कहूं कि तुम हो तो, पर नहीं कह सका.

‘‘और तुम्हें जो अपने हर बर्थडे पर  जिस सरप्राइज का सब से ज्यादा इंतजार होता, वह देने वाला मैं ही था. बचपन में जब तुम को तुम्हारी फेवरेट टौफी तुम्हारे पैंसिल बौक्स में मिली, तुम बेहद खुश हुई थीं. अगली बार भी जब मैं ने तुम को सरप्राइज किया, तब तुम ने कहा था, ‘विहान, पता नहीं कौन है, मौम, डैड, दी या मेरी कोई फ्रैंड, पर मेरी इच्छा है कि मुझे हमेशा यह सरप्राइज गिफ्ट  मिले.’ तुम ने सब के नाम लिए, पर मेरा नहीं,’’ कहतेकहते विहान की आवाज लड़खड़ा सी गई, फिर भर आए गले को साफ कर वह आगे बोला, ‘‘तब से हर बार मैं यह करता गया. पहले पैंसिल बौक्स था, फिर बैग, फिर तुम्हारा पर्स और अब कूरियर.’’

सच जान कर मिशी जैसे सुन्न हो गई. वह हर बात विहान से शेयर करती थी. पर कभी यह नहीं सोचा कि विहान भी तो वह शख्स हो सकता है. उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था.

ये भी पढ़ें- Manohar Kahaniya: वीडियो में छिपा महंत नरेंद्र गिरि की मौत का रहस्य- भाग 3

रात गहरा चुकी थी. चांद स्याह रात के माथे पर बिंदी बन कर चमक रहा था. तेज हवा और लहरों के शोर में मिशी के जोर से धड़कते दिल की आवाज भी मिल रही थी. विहान आज वर्षों से छिपे प्रेम की परतें खोल  रहा था.

वह आगे बोला, ‘‘मिशी, उस दिन तो जैसे मैं हार गया जब मैं ने तुम से कहा कि मुझे एक लड़की पसंद है. मैं ने बहुत हिम्मत कर अपने प्यार का इजहार करने के लिए यह प्लान बनाया था. मैं ने धड़कते दिल से तुम से कहा, दिखाऊं फोटो, तुम ने झट से मेरा मोबाइल छीना और जैसे ही फोटो देखा, तुम्हारा रिऐक्शन देख, मैं ठगा सा रह गया. मुझे लगा, यहां मेरा कुछ नहीं होने वाला. पगली से प्यार कर बैठा,’’ इतना कह कर उस ने मिशी से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें याद है, उस दिन तुम ने क्या किया था?’’

‘‘हां, तुम्हारे मोबाइल में मुझे अपना फोटो दिखा तो मैं ने कहा, ‘वाओ, कब लिया यह फोटो, बहुत प्यारा है, सैंड करो’ और मैं उस पिक में खो गई, सोशल मीडिया पर शेयर करने लगी. तुम्हारी गर्लफ्रैंड वाली बात तो मेरे दिमाग से गायब ही हो गई थी.’’

‘‘जी, मैडमजी, मैं तुम्हारी लाइफ में  इस हद तक जुड़ा रहा कि तुम मुझे कभी अलग से फील कर ही नहीं पाईं. ऐसा कितनी बार हुआ, पर तुम अपनेआप में थीं, अपने सपनों में, किसी और बात के लिए शायद तुम्हारे पास टाइम ही नहीं था, यहां तक कि अपने जज्बातों को समझने के लिए भी नहीं,’’ विहान कहता जा रहा था. मिशी जोर से अपनी मुट्ठियां भींचती हुई अपनी बेवकूफियों का हिसाब लगा रही थी.

इस तरह विहान न जाने कितनी छोटीबड़ी बातें बताता रहा और मिशी सिर झकाए सुनती रही. मिशी का गला रुंध गया, ‘‘विहान, इतना प्यार कोई किसी से कैसे कर सकता है. और तब तो बिलकुल नहीं जब उसे कोई समझने वाला ही न हो. कितना कुछ दबा रखा है तुम ने. मेरे साथ की छोटी से छोटी बात कितनी शिद्दत से सहेज कर रखी है तुम ने.’’

‘‘अरे, पागल रोते नहीं. और यह किस ने कहा कि तुम मुझे समझती नहीं थीं. मैं तो हमेशा तुम्हारा सब से करीबी रहा. इसलिए प्यार का एहसास कहीं गुम हो गया था. और इस हकीकत को सामने लाने के लिए मैं ने खुद को तुम से दूर करने का फैसला किया. कई बार दूरियां नजदीकियों के लिए बहुत जरूरी हो जाती हैं. मुझे लगा कि मेरा प्यार सच्चा होगा, तो तुम तक मेरी सदा जरूर पहुंचेगी. नहीं तो, मुझे आगे बढ़ना होगा तुम को छोड़ कर.’’

‘‘मैं कितनी मतलबी थी.’’

‘‘न बाबा, तुम बहुत प्यारी तब भी थीं और अब भी हो.’’

मिशी के रोते चेहरे पर हलकी सी मुसकान आ गई. वह धीरे से विहान के कंधों पर अपना सिर टिकाने को बढ़ ही रही थी कि अचानक उसे कुछ याद आया. वह एकदम उठ खड़ी हुई.

‘‘क्या हुआ, मिशी?’’

‘‘यह सब गलत है.’’

‘‘क्यों गलत है?’’

‘‘तुम और पूजा दी…’’

‘‘मैं और पूजा….’’ कह कर विहान हंस पड़ा.

‘‘तुम हंस क्यों रहे हो?’’

ये भी पढ़ें- खिलौना: क्यों रीना अपने ही घर में अनजान थी?

‘‘मिशी, मेरी प्यारी मिशी, मुझे जैसे ही पूजा और मेरी शादी की बात पता चली तो मैं पूजा से मिला और तुम्हारे बारे में बताया. सुन कर पूजा भी खुश हुई. उस का कहना था कि विहान हो या कोई और, उसे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. मांपापा जहां चाहेंगे, वह खुशीखुशी वहां शादी कर लेगी. फिर हम दोनों ने सारी बात घर पर बता दी. किसी को कोई प्रौब्लम नहीं है. अब इंतजार है तो तुम्हारे जवाब का.’’

इतना सुनते ही मिशी को तो जैसे अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ. उस के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई. अब न कोई शिकायत बची थी, न सवाल.

‘‘बोलो मिशी, मैं तुम्हारे जवाब का इंतजार कर रहा हूं,’’ विहान ने बेचैनी से कहा.

‘‘मेरे चेहरे पर बिखरी खुशी देखने के बाद भी तुम को जवाब चाहिए,’’ मिशी ने नजरें झका कर भोलेपन से कहा.

‘‘नहीं मिशी, जवाब तो मुझे उसी दिन मिल गया था जब मैं 10 महीने बाद  तुम्हारे घर आया था. पहले वाली मिशी होती तो बोलबोल कर, सवाल पूछपूछ कर, झगड़ा कर के मुझे भूखा ही भगा देती,’’ कह कर विहान जोर से हंस पड़ा.

‘‘अच्छा जी, मैं इतनी बकबक करती हूं,’’ मिशी ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘हांजी, पर न तुम झगड़ीं, न कुछ बोलीं, बस देखती रहीं मुझे. ख्वाब बुनती रहीं. उसी दिन मैं समझ गया था कि जिस मिशी को पाने के लिए मैं ने उसे खोने का गम सहा, यह वही है, मेरी मिशी, सिर्फ मेरी मिशी,’’ विहान ने मिशी का हाथ पकड़ते हुए कहा.

मिशी ने भी विहान का हाथ कस कर थाम लिया हमेशा के लिए. वे हाथों में हाथ लिए चल दिए. जिंदगी के नए सफर पर साथसाथ कभी जुदा न होने के लिए. आसमां, चांदतारे, चांदनी और लहलहाता समुद्र उन के प्रेम के साक्षी बन गए थे.

कहीं दूर से हवा में संगीत की धुन उन के प्रेम की दास्तां बयां कर रही थी,  ‘मेरे हमसफर… मेरे हमसफर… हमें साथ चलना है उम्र भर…’

ये भी पढ़ें- खूनी सुबूत- भाग 1: निर्मल ने सुमन से शादी करने के लिए क्या चाल चली?

आखिरी मुलाकात- भाग 2: क्यों सुमेधा ने समीर से शादी नहीं की?

Writer- Shivi Goswami

मैं उस का चेहरा देखे जा रहा था. वह मेरा बहुत अच्छा दोस्त बन गया था. शायद अब वह मेरे दिल की बात भी पढ़ने लगा था.

‘देखो, मैं ने जानबूझ कर हां बोला है और मैं कोई बहाना बना कर कल नहीं आऊंगा. तुम दोनों मूवी देखने अकेले जाना. इस से तुम्हें एकसाथ वक्त बिताने का मौका मिलेगा और अपने दिल की बात कहने का भी.’

‘लेकिन…’

‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं, तुम्हें अपने दिल की बात कल उस से कहनी ही होगी. वह आ कर तो यह बात बोलेगी नहीं.’

मैं ने नीलेश को गले लगा लिया,

‘धन्यवाद नीलेश…’

‘ओह रहने दे, तेरी शादी में भांगड़ा करना है बस इसलिए ऐसा कर रहा हूं,’ यह कह कर नीलेश हंसने लगा.

आज रविवार था और नीलेश का प्लान कामयाब हो चुका था. उस ने सुमेधा को फोन कर के कह दिया था कि उस की मौसी बिना बताए उस को सरप्राइज देने के लिए पूना से यहां उस से मिलने आई हैं. इसलिए वह मूवी देखने नहीं आ सकता. लेकिन हम उस की वजह से अपना प्लान और मूड खराब न करें. इस से उस को अच्छा नहीं लगेगा.

सुमेधा मान गई और न मानने का तो कोई सवाल ही नहीं था. मैं मन ही मन नीलेश के दिमाग की दाद दे रहा था.

मौल के बाहर मैं सुमेधा का इंतजार कर रहा था. सुमेधा जैसे ही औटो से उतरी मैं ने उस को देख लिया था. सफेद सूट में वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. मैं उस को बस देखे जा रहा था. उस ने मेरी तरफ आ कर मुझ से हाथ मिलाया और कहा, ‘ज्यादा इंतजार तो नहीं करना पड़ा?

ये भी पढ़ें- नश्तर: पति के प्यार के लिए वो जिंदगी भर क्यों तरसी थी?

‘नहीं, मैं बस 20 मिनट पहले आया था,’

मैं ने उस की तरफ देखते हुए कहा.

‘ओह, आई एम सौरी. ट्रैफिक बहुत है आज, रविवार है न इसलिए,’ उस ने हंसते हुए कहा.

हम दोनों ने मूवी साथ देखी. लेकिन मूवी बस वह देख रही थी. मेरा ध्यान मूवी पर कम और उस पर ज्यादा था.

मूवी के बाद हम दोनों वहीं मौल के एक रेस्तरां में बैठ गए. सुमेधा मूवी के बारे में ही बात कर रही थी.

‘मुझे तुम से कुछ कहना है सुमेधा,’ मैं ने सुमेधा की बात बीच में ही काटते हुए कहा.

‘हां, बोलो समीर…,’ सुमेधा ने कहा.

‘देखो, मैं ने सुना है कि लड़कियों का सिक्स सैंस लड़कों से कुछ ज्यादा होता है, लेकिन फिर भी मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. अगर तुम को मेरी बात पसंद न आए तो तुम मुझ से साफसाफ बोल देना. और हां, इस से हमारी दोस्ती में कोई फर्क नहीं आना चाहिए.’

‘लेकिन बात क्या है, बोलो तो पहले,’ सुमेधा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.

‘मुझे डर था कि कहीं अपने दिल की बात बोल कर मैं अपने प्यार और दोस्ती दोनों को ही न खो दूं. फिर नीलेश की बात याद आई कि कम से कम एक बार बोलना जरूरी है, जिस से सचाई का पता चल सके. मैं ने सुमेधा की तरफ देखते हुए अपनी पूरी हिम्मत जुटाते हुए कहा, ‘आई…आई लव यू सुमेधा. तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो.’

मेरी बात सुन कर सुमेधा एकदम अवाक रह गई. उस के चेहरे के भाव एकदम बदल गए.

‘सुमेधा, कुछ तो बोलो… देखो, अगर तुम्हें बुरा लगा हो तो मैं माफी चाहूंगा. जो मेरे मन में था और जो मैं तुम्हारे लिए महसूस करता हूं वह मैं ने तुम से कह दिया और यकीन मानो आज तक यह बात न तो मैं ने कभी किसी से कही है और न ही कहने का दिल किया कभी.’

सुमेधा मुझे देखे जा रही थी और मेरी घबराहट उस की नजरों को देख कर बढ़ती जा रही थी. वह धीमी आवाज में बोली, ‘मैं तुम से नाराज हूं…’

मैं उस की तरफ एकटक देखे जा रहा था.

‘मैं तुम से नाराज हूं इसलिए क्योंकि तुम ने यह बात कहने में इतना समय लगा दिया और मुझे लगता था कि मुझे ही प्रपोज करना पड़ेगा.’

उस की बात को सुन कर मुझे लगा कि कहीं मेरे कानों ने कुछ गलत तो नहीं सुन लिया था. कहीं यह सपना तो नहीं? लेकिन वह कोई सपना नहीं हकीकत थी.

मैं ने लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘तुम ने मुझे डरा दिया था सुमेधा. मुझे लगा कहीं प्यार की बात बोल कर मैं अपनी दोस्ती न खो दूं.’

‘अच्छा… और अगर न बताते तो शायद अपने प्यार को खो देते,’ सुमेधा ने कहा.

उस दिन से ज्यादा खुश शायद मैं पहले कभी नहीं हुआ था. जब एम.ए. में फर्स्ट क्लास आया था तब भी और जब नौकरी मिली थी तब भी. एक अजीब सी खुशी थी उस दिन.

सुमेधा और मैं घंटों मोबाइल पर बात किया करते थे और मौका मिलते ही एकदूसरे के साथ वक्त बिताते थे.

उस दिन के बाद एक दिन सुमेधा ने मुझे बहुत खूबसूरत सा हार दिखाते हुए बाजार में कहा, ‘देखो समीर, कितना प्यारा लग रहा है.’

ये भी पढ़ें- वसूली: आखिर निरपत के साथ क्या हुआ?

मैं ने कहा, ‘तुम से ज्यादा नहीं.’

वह बोली, ‘जनाब, यह मेरी खूबसूरती को और बढ़ा सकता है.’

उस वक्त मन तो था कि मैं उस को वह हार दिलवा कर उस की खूबसूरती में चार चांद लगा दूं, लेकिन मेरी सैलरी इतनी नहीं थी कि उस को वह हार दिलवा सकता.

सुमेधा समझ गई थी. उस ने मेरी तरफ देखते हुए कहा, ‘इतना भी खूबसूरत नहीं है कि इस हार की इतनी कीमत दी जाए. लगता है अपने शोरूम के पैसे भी जोड़ दिए हैं. चलो समीर चाय पीते हैं.’

मुझे सुमेधा की वह बात अच्छी लगी. वह खूबसूरत तो थी ही, समझदार भी थी.

वक्त बीतता गया. सुमेधा चाहती थी कि मैं शादी से पहले अपने पैरों पर अच्छे से खड़ा हो जाऊं ताकि शादी के बाद बढ़ती हुई जिम्मेदारियों से कोई परेशानी न आए. बात भी सही थी. अभी मेरी सैलरी इतनी नहीं थी कि मैं शादी जैसी महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी को निभा सकूं.

हमारे प्यार को 1 साल से ज्यादा हो गया था. वक्त कैसे बीत गया पता ही नहीं चला.

आज सुमेधा औफिस नहीं आई थी. मैं ने सुमेधा को फोन किया, लेकिन पूरी रिंग जाने के बाद भी उस ने मोबाइल नहीं उठाया.

ये भी पढ़ें- विराम: क्यों मोहिनी अपने पति को भूल गई?

हो सकता है वह व्यस्त हो किसी काम में. क्या हुआ होगा, जो सुमेधा ने मुझे नहीं बताया कि आज वह छुट्टी पर है. पूरा दिन बीत गया लेकिन सुमेधा का कोई फोन नहीं आया. मुझे बहुत अजीब लग रहा था. क्या आज वह इतनी व्यस्त है कि एक बार भी फोन या मैसेज करना जरूरी नहीं समझा?

दूसरा विवाह- भाग 1: क्या सोनाक्षी से विशाल प्यार करता था?

सोनाक्षी ‘बाय’ बोल कर औफिस जाने लगी, तभी उस की भाभी लीना ने उसे रोका और खाने का डब्बा थमा दिया, जिसे वह आज भी भूल कर जा रही थी. मगर वह कहने लगी कि रहने दो, आज वह औफिस की कैंटीन में खा लेगी.

‘‘कोई जरूरत नहीं, ले कर जाओ. रोजरोज बाहर का खाना सेहत के लिए ठीक नहीं होता,  झूठमूठ का गुस्सा दिखाती हुई लीना बोली, ‘‘मां को बताऊं क्या?’’

‘‘अच्छाअच्छा, ठीक है, लाओ, पर मां को कुछ मत बताना, वरना उन का भाषण शुरू हो जाएगा.’’ उस की बात पर लीना मुसकरा पड़ी और खाने का डब्बा उसे थमा दिया.

सोनाक्षी और लीना थीं तो ननदभाभी लेकिन दोनों सखियों जैसी थीं जिन्हें हर बात बे िझ झक बताई जा सकती है. ‘‘प्लीज भाभी, मां को मत बताना कि कभीकभार मैं कैंटीन में खा लेती हूं, वरना वह गुस्सा करेंगी,’ सोनाक्षी बोल ही रही थी कि विशाल उस के पीछे आ कर खड़ा हो गया.

लीना जानती थी वह कुछ न कुछ बोलेगी ही विशाल के बारे में और फिर दोनों के बीच बहसबाजी शुरू हो जाएगी. और वही हुआ भी. सोनाक्षी कहने लगी, ‘‘अब मैं निकलती हूं, वरना विशाल, गला फाड़ कर सोनाक्षीसोनाक्षी चिल्लाने लगेगा. अजीब इंसान है, कितनी बार कहा है नीचे से आवाज मत लगाया करो, सब सुनते हैं, पर नहीं, अक्ल से दिवालिया जो ठहरा, सम झता ही नहीं है.’’

‘‘अच्छा, तो अक्ल से दिवालिया इंसान हूं मैं, और तुम ज्ञान की पोटली,

‘‘ओहो… ओहो…’’ पीछे से विशाल की आवाज सुन सोनाक्षी ने दांतों तले अपनी जीभ दबा ली कि यह क्या बोल गई वह. अब तो यह विशाल का बच्चा छोड़ेगा नहीं उसे. ‘‘बोलो, चुप क्यों हो गईं? वैसे, मु झे लगता है दिमागी इलाज की तुम्हें जरूरत है क्योंकि आज औफिस बंद है. पता नहीं, शायद, आज ईद है?’’ बोल कर विशाल हंसा, तो लीना को भी हंसी आ गई.

दोनों को खुद पर हंसते देख सोनाक्षी को पहले तो बहुत गुस्सा आया, लेकिन फिर दांत निपोरती हुई बोली, ‘‘हां भई, पता है मु झे, वह तो मैं तुम्हारा टैस्ट ले रही थी.’’

‘‘टैस्ट… ले रही थी या अपने दिमाग का टैस्ट दे रही थी?’’ जोर का ठहाका लगाते विशाल बोला, तो लीना हंसी रोक न पाई.

‘‘वैसे, एक बात बताओ, क्या सच में तुम्हें पता नहीं था कि आज औफिस बंद है या मु झ से मिलने की बेताबी थी?’’ उस की आंखों में  झांकते हुए विशाल बोला, तो शरमा कर सोनाक्षी ने अपनी नजरें नीची कर लीं.

ये भी पढ़ें- आजादी: आखिर नीरज अपनी पत्नी को क्यों तलाक देना चाहता था?

सच बात तो यही है कि उसे सच में पता नहीं था कि आज औफिस की छुट्टी है. वह तो विशाल से मिलने को इतना आतुर रहती है कि औफिस जाने के लिए रोज वक्त से पहले ही तैयार हो कर उस की राह देखने लगती है और आज भी उस ने वही किया. जरा भी भान नहीं रहा उसे कि आज औफिस की छुट्टी है. वह तैयार हो कर विशाल की राह देखने लगी. विशाल के साथ बातें करना, उस के साथ वक्त गुजारना सोनाक्षी को बहुत अच्छा लगता है.

दरअसल, मन ही मन वह उस से प्यार करने लगी है और यह बात लीना भी जानती है कि सोनाक्षी विशाल को पसंद करती है. लेकिन घर में सब को यही लगता है कि दोनों सिर्फ अच्छे दोस्त हैं और कुछ नहीं. विशाल और सोनाक्षी एक ही औफिस में काम करते हैं और दोनों एकदूसरे को 2 सालों से जानते हैं. चूंकि दोनों एक ही औफिस में काम करते हैं इसलिए सोनाक्षी विशाल के साथ उस की ही गाड़ी में औफिस जातीआती है.

दोनों बातों में लगे थे. तब तक लीना सब के लिए चाय बना लाई. वह अपनी चाय ले कर सोफे  पर बैठ गई और उन की बातों में शामिल हो गई. लीना के हाथों की बनी चाय पी कर विशाल कहने से खुद को रोक नहीं पाया कि लीना के हाथों में तो जादू है. उस के हाथों की बनी चाय पी कर मूड फ्रैश हो जाता है.

सच में, लीना चाय बहुत अच्छी बनाती है, यह सब कहते हैं और सिर्फ चाय ही नहीं, बल्कि उस का हर काम फरफैक्ट होता है और यही बात विशाल को बहुत पसंद है. उसे गैरजिम्मेदार और कामों के प्रति लापरवाह इंसान जरा भी पसंद नहीं है. वह खुद भी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाता है. लड़का है तो क्या हुआ? अपने घर के सारे काम वह खुद करता है और यह बात लीना को बहुत अच्छी लगती है.

लीना की बढ़ाई सुन कर मुंह बनाती हुई सोनाक्षी कहने लगी कि चाय वह भी अच्छी बना लेती है. तो चुटकी लेते हुए विशाल बोला, ‘‘हां, पी है तुम्हारे हाथों की बनी चाय भी, बिलकुल गटर के पानी जैसी,’’ उस की बात पर सब हंस पड़े और सोनाक्षी मुंह बनाते हुए विशाल पर मुक्का बरसाने लगी कि वह उस का मजाक क्यों बनाता है हमेशा?

ये भी पढ़ें- पेशी: क्या थी न्यायाधीश के बदले व्यवहार की वजह?

कुछ देर और बैठ कर विशाल वहां से जाने को उठा ही था कि लीना ने उसे रोक लिया, यह बोल कर कि वह खाना खा कर ही जाए. लीना के इतने प्यार से आग्रह पर विशाल ‘न’ नहीं कह पाया. वैसे, विशाल यहां यह बताने आया था कि आज बुकफेयर का अंतिम दिन है, इसलिए वहां चलना चाहिए, लेकिन सोनाक्षी मूवी देखने के मूड में थी.

‘‘मूवी? नहींनहीं, बेकार में 3 घंटे पकने से अच्छा है बुकफेयर चलना चाहिए,’’ सोनाक्षी की बात को काटते हुए विशाल बोला. कब से विशाल बुकफेयर जाने की सोच रहा था पर औफिस के कारण जा नहीं पा रहा था. आज छुट्टी है, तो सोचा वहां चला जाए.

सोनाक्षी का तो बिलकुल वहां जाने का मन नहीं था पर लीना बुकफेयर का नाम सुन कर ही चहक उठी. उसे किताबें पढ़ना बहुत अच्छा लगता है. कोई कहे कि पूरे दिन बैठ कर किताबें पढ़ती रहो, तो उकताएगी नहीं वह, इतना उसे किताब पढ़ना अच्छा लगता है. तभी तो वह जब भी मार्केट जाती है, बुकस्टौल से अपने लिए दोचार अच्छीअच्छी किताबें खरीद लाती है.

नश्तर- भाग 2: पति के प्यार के लिए वो जिंदगी भर क्यों तरसी थी?

तब स्कूल में बराबर की अध्यापिकाओं में उन का मन रम गया था. कभी स्कूल से ही पास के बाजार में चाट खाने का कार्यक्रम बन जाता तो कभी फिल्म देखने का. उधर विजयजी ने भी चैन की सांस ली थी कि वे उन पर अपनी खीझ नहीं उतारतीं, अपनी सहेलियों में मस्त हैं.

एक दिन एक अध्यापिका के पिता की मृत्यु के कारण स्कूल 11 बजे ही बंद हो गया. सो, वे जल्दी घर आ गईं. 5 मिनट तक वे दरवाजा खटखटाती रहीं, तब कहीं आया ने खोला. वह कुछ हकलाते हुए बोली, ‘बच्चों को स्कूल छोड़ आईर् थी. स…स…साहब जल्दी घर आ गए हैं…’

‘क्यों?’

‘उन को दर्द हो रहा है?’

‘कहां?’

‘कमर में…न…नहीं सिर में…’

उस की हकलाहट पर उन्हें आश्चर्य हुआ. उन्होंने उसे घूर कर देखा था. यह देख उन्हें कुछ ज्यादा ही आश्चर्य हुआ कि यह तो बड़े सलीके से साड़ी बांधा करती है, पर इस समय वह बेतरतीब सी क्यों  नजर आ रही है? माला का पेंडेंट सदा बीच में रहता है, वह कंधे पर क्यों पड़ा हुआ है? बाल भी बेतरतीब हो रहे हैं. उन्हें कुछ अजीब सा लगा, लेकिन वे सीधे अंदर घुसती चली गईं. कमरे में देखा, पति कुरसी पर बैठे उलटा अखबार पढ़ रहे हैं. उन्हें हंसी आ गई, ‘क्या सिर में इतना दर्द हो रहा है कि उलटे अक्षर समझ में आ रहे हैं?’

‘किस के सिर में दर्द हो रहा है?’

‘आप के और किस के?’

‘मेरे तो नहीं हो रहा,’ खिसिया कर उन्होंने उलटा अखबार सीधा कर लिया.

‘कपिला तो ऐसा ही कह रही थी.’

‘पहले सिर में दर्द हो रहा था, लेकिन कपिला ने चाय बना दी. चाय के साथ दवा लेने से आराम है?’

ये भी पढ़ें- रिस्क: क्यों रवि ने मानसी को छोड़ने का रिस्क लिया ?

उन्होंने कपड़े बदलने के लिए जैसे ही सोने के कमरे में कदम रखा, बिस्तर की सिलवटें देख कर तो जैसे उन का रक्त ही जम गया. एक झटके में कपिला की बेतरतीब बंधी साड़ी, उस का हकलाना, विजयजी का उलटा अखबार पढ़ना और बिस्तर की सिलवटें जैसे उन्हें सबकुछ समझा गई थीं. वे उसी कमरे में कपड़े बदलते हुए जारजार रो उठी थीं. उन्हें अपनेआप पर ही आश्चर्य हो रहा था कि वे कपिता के बाल पकड़ कर उसे घसीट कर घर से बाहर क्यों नहीं कर देतीं या विजयजी से लड़ कर घर में हंगामा क्यों नहीं खड़ा कर देतीं? लेकिन वे खामोश ही रहीं.

बाद में उन्होंने अचानक स्कूल से कई बार आ कर देखा, लेकिन कभी कुछ सुराग हाथ नहीं लगा.

हां, जब भी पति घर में होते, उन की आंखें हमेशा जिस ढंग से कपिला का पीछा करती रहतीं, इस से उस के प्रति उन का आकर्षण छिपा न रहता. उन दिनों वे समझ गईर् थीं कि जो पुरुष अपने मन की गांठ के कारण अपनी सुसंस्कृत पत्नी को भरपूर प्यार नहीं कर पाते, वे अपने तनमन की प्यास बुझाने के लिए अकसर भटक जाते हैं.

उस दिन को याद कर के जैसे आज भी नुकीला नश्तर उन के दिल में चुभता रहता है. जब वे कभी कपिला को टोकतीं तो वह उत्तर देती, ‘जल्दी क्या है बाईजी, अभी सारा काम हो जाएगा.’

एक बार कपिला ने एक दिन की छुट्टी मांगी, लेकिन 3 दिनों बाद काम पर लौट कर आई. वे तो मौका ही ढूंढ़ रही थीं. जानबूझ कर आगबबूला हो गईं, ‘तुझे पता नहीं है, मैं बाहर काम करती हूं?’

‘मैं ने गीता मेम की बाई को बोला तो था कि मेरे पीछे आप का काम कर ले.’

‘सिर्फ एक दिन आई थी. आज तू अपना हिसाब कर और चलती बन.’

‘पहले साहब से तो पूछ कर देख लो, मुझे निकालना पसंद करेंगे कि नहीं?’ कह कर वह कुटिलता से मुसकराई.

‘साहब कौन होते हैं घर के मामले में दखल देने वाले?’ कहते हुए उन का चेहरा तमतमा गया.

‘लो बोलो, वे तो घर के मालिक हैं…किस औरत को अपने घर में रखना है और किसे नहीं, वे ही तो सोचेंगे. मैं जब आईर् थी तो कैसे उदास रहते थे. अब कैसे खुश रहते हैं. उन की खुशी के वास्ते ही अपने घर में रख लो.’

‘तू बहुत बदतमीज औरत है.’

‘देखो, गाली मत निकालना. गाली देना हम को भी आता है,’ कपिला चिल्लाई.

उन्होंने बिना बोल मेज पर रखे पर्स में से रुपए निकाल कर उस का हिसाब चुकता कर दिया. वह बकती हुई चली गई. लेकिन क्या आज भी उन के जीवन से वह जा पाई है? उन के नारीत्व की खिल्ली उड़ाती उस की कुटिल मुसकान क्या अभी भी उन का पीछा छोड़ पाई है?

अब बुढ़ापे में यह अर्चना आ मरी है. वह अकसर अपने बचपन के किस्से सुनाती है, ‘भाभी, जब हम अपनी मौसी के यहां, यानी कि भैया की चाची के यहां गरमी की छुट्टियों में जाते थे तो जानती हो, तब ये बिलकुल जोकर लगते थे. ये किताब ले कर छत पर पढ़ने चले जाते थे. मैं पीछे से इन्हें धक्का दे कर ‘हो’ कर के डरा देती थी.’

तब हमेशा चुप रहने वाले विजयजी भी चहकते, ‘और जानती हो, इस ने मुझे भी शैतान बना दिया था. एक बार यह कुरसी पर बैठी तकिए का गिलाफ काढ़ रही थी. मैं ने इस की चोटी का रिबन कुरसी से बांध दिया था. जब यह कुरसी से उठी तो धड़ाम से ऐसे गिरी…’ विजयजी ने कुरसी पर से उठ कर गिरने का ऐसा अभिनय किया कि सीधे अर्चना की गोद में जा गिरे और दोनों देर तक खिलखिलाते, हंसते रहे.

वे क्रोध से कसमसा उठीं कि 64 वर्ष की उम्र में इस बुढ़ऊ को क्या हो गया है. फसाद की जड़ यह अर्चना ही है. इस के पति अकसर दौरे पर रहते हैं. बच्चे होस्टल में रह रहे हैं, इसलिए जबतब उन के घर आ टपकती है. बड़े अधिकार से आते ही घोषणा कर देती है, ‘आज तो हम यहीं खाना खाएंगे.’

ये भी पढ़ें- आस्था के आयाम: अभय उस महिला से क्यों प्रभावित होने लगा था

विजयजी अवकाशप्राप्त हैं. इस उम्र में यदि कोई चुहल करने वाला मिल जाए तो फिर तो चांदी ही चांदी है. पत्नी से वे कभी ठीक से जुड़ नहीं पाए. अर्चना से मिल रहे इस खुलेदिल के प्यारदुलार से जैसे उन के चेहरे पर रंगत आ गई है.

वे मन ही मन कुढ़ती रहती हैं. वैसे पति ऐसा कुछ नहीं करते कि उन से लड़झगड़ सकें. दोनों के रिश्तों के ऊपर भाईबहन का बोर्ड लगा है. वे कहें भी तो क्या? वैसे उन के दिल के दौरे का कारण भी तो अर्चना ही थीं.

उस दिन दोपहर में खाना बन चुका था. खाना लगाने के लिए अर्चना की सहायता लेने वे कमरे में जा रही थीं. अचानक दरवाजे के परदे के पीछे ही वे अर्चना की आवाज सुन कर रुक गईं.

‘छोडि़ए भैया…’

‘तुम मुझे भैया क्यों कहती हो?’ विजयजी का अधीर स्वर सुनाई दिया था.

‘जब हम युवा थे तो मैं ने आप को भैया कहने से इनकार किया था. खुद आगे बढ़ कर आप का प्यार मांगा था, लेकिन तब आप ने मेरा प्यार ठुकरा दिया था.’

मन का मीत- भाग 3: कैसे हर्ष के मोहपाश में बंधती गई तान्या

मुझे हर्ष से यह उम्मीद नहीं थी, पर उस के मुंह से सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा और मन को अजीब सी शांति मिली. मुझे लगा समीर के लिए तो मैं टेकन फौर ग्रांटेड थी. उस ने मुझे कभी मिस किया हो उस की बातों से कभी मुझे प्रतीत नहीं हुआ. खैर, 2 महीने बाद मैं ने औफिस जाना शुरू किया. मेरी सास घर में रहती थीं और डे टाइम के लिए एक आया भी थी. इसलिए मैं आदि को उन के पास छोड़ कर औफिस जाने लगी. पर हर्ष से सीधे कोई बात नहीं होती थी, बस फोन पर मैसेज आदानप्रदान हो रहे थे और एकदूसरे को देखना होता था. लंच में मैं थोड़ी देर के लिए घर आ जाती थी बेटे आदि के पास. मेरा मन हर्ष से बात करने को तैयार था पर मेरे लिए बेटे को भी देखना जरूरी था.

एक बार औफिशियल मीटिंग में हम दोनों बगल में बैठे थे. उस ने धीरे से मेरे कान में कहा, ‘‘मुझ से बात करने से कतराती हो क्या?’’

मैं ने सिर्फ न में सिर हिला दिया. फिर बोला, ‘‘कभी शाम को साथ कौफी पीते हैं.’’

‘‘बाद में बात करते हैं,’’ मैं ने कहा.

मैं उस से मिल सकती हूं, मुझे भी अच्छा लगेगा, पर वह मुझ से क्या चाहता है या मुझ में क्या ढूंढ़ रहा है मैं समझ नहीं पा रही हूं.

ये भी पढ़ें- चरित्रहीन कौन: क्या उषा अपने पति को बचा पाई?

एक बार कंपनी को बड़ा और्डर मिलने की खुशी में पार्टी थी, सिर्फ औफिस के लोगों के लिए. इत्तफाक से उस दिन भी मैं और हर्ष एक ही टेबल पर बैठे थे.

उस ने कहा, ‘‘शुक्र है आज तुम्हारे साथ बैठ कर बातें करने का मौका मिल गया. बहुत अच्छा लग रहा है तुम्हारा सामीप्य.’’

‘‘अच्छा तो मुझे भी लगता है तुम से मिलना, पर क्यों मैं नहीं जानती… बस इट

हैपंस सो. पर तुम्हें इस से क्या मिलता है?’’ मैं ने पूछा. ‘‘बस वही जो तुम्हें मिलता है यानी खुशी,’’ कह कर उस ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया.

उस का स्पर्श अच्छा लगा. उस दिन हम दोनों के लिए और सरप्राइज था. चिट ड्रा द्वारा मुझे हर्ष के साथ फ्लोर पर डांस करना था. हम दोनों ने कुछ देर एकसाथ डांस किया. मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गई थीं. मुझे ‘माई हार्ट इज बीटिंग…’ गाना याद आ गया.

डांस के बाद टेबल पर बैठते हुए उस ने बताया कि उस का एच 1 बी वीजा मंजूर हो गया है. मैं ने उसे हाथ मिला कर बधाई दी.

वह बोला, ‘‘मुझे इंडिया जाना होगा, पासपोर्ट पर वीजा स्टैंप के लिए, पर आजकल डर लगता है स्टैंपिंग में भी.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘पहले तो यह एक औपचारिकता थी पर आजकल नए प्रशासन में सुना है

कि कौंसुलेट इंटरव्यू होता है. ये लोग अनावश्यक पूछताछ और अमेरिका से क्लीयरैंस आदि लेने में काफी वक्त लगा देते हैं.’’

‘‘कब जा रहे हो?’’

‘‘नैक्स्ट वीक जाऊंगा. तुम्हें बहुत मिस करूंगा. क्या तुम भी मुझे मिस करोगी?’’

‘‘हां भी नहीं भी,’’ कह कर मैं टाल गई और आगे बोली, ‘‘पर क्या तुम मेरे पापा से बात कर सकते हो… मैं उन का फोन नंबर दे देती हूं.’’

‘‘अगर थोड़ा संकोच करोगी तब मैं यही समझूंगा कि तुम्हारी नजर में मैं अजनबी हूं. फोन क्या बोकारो से रांची तो बस 120 किलोमीटर है. मैं खुद भी जा सकता हूं.’’

हर्ष इंडिया चला गया. मैं हमेशा उस के खाली कैबिन की ओर बारबार देखती और उस के लौटने की प्रतीक्षा करती.

हर्ष से इंडिया में फोन पर या कभी वीडियो चैटिंग होती थी. वह परेशान था. उस के वीजा स्टैंपिंग पर कौंसुलेट काफी समय लगा रहा था. हर्ष लगभग 2 महीने बाद अमेरिका आया. तब तक मैं ने दूसरी कंपनी में जौइन कर ली थी.

ये भी पढ़ें- सागर से मुझको मिलना नहीं है

उस ने फोन पर कहा, ‘‘मुझे तुम से मिलना होगा. तुम्हारे पापा बोकारो आए थे. तुम्हारे मम्मीपापा ने तुम लोगों के लिए कुछ सामान भेजा है.’’

हम दोनों शाम को एक कौफी कैफे में मिले. वह बोला, ‘‘तुम ने जौब मुझ से पीछा छुड़ाने के लिए चेंज की है न?’’

मैं ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘तुम मेरे बारे में ऐसा सोचोगे तो मुझे दुख होगा. यह कंपनी मेरे घर के बहुत पास है. इस से मैं बेटे आदि के लिए कुछ समय दे पा रही हूं.’’

सच तो यही था कि मैं भी उसे मिस कर रही थी पर मुझे तो मां का फर्ज भी निभाना था.

एक शाम मैं हर्ष से मिली तो वह बहुत उदास था. मेरे पूछने पर नम आंखों से बोला, ‘‘मेरा औफिस में मन नहीं लग रहा है. आंखें तुम्हारे कैबिन की ओर बारबार देखती हैं. तुम

जब थीं तुम्हें देखने मात्र से एक अजीब सा सुकून मिलता था. अब मन करता है वापस इंडिया चला जाऊं.’’

‘‘ऐसी बेवकूफी मत करना. इतनी कठिनाई के बाद तो वीजा मिला है. कम से कम 6 साल तो पूरे कर लो. शायद इस बीच कंपनी तुम्हारा ग्रीन कार्ड स्पौंसर कर दे.’’

‘‘इस की उम्मीद बहुत कम है, खासकर भारतीय कंपनियां तो हमारी मजबूरी का फायदा उठाती हैं.’’

2-3 सप्ताह में 1 बार उस से समय निकाल कर मिल लेती थी. कुछ दिन बाद मेरी कंपनी में भी ओपनिंग थी. मैं ने पूछा, ‘‘तुम यहां आना चाहोगे? अगर वास्तव में रुचि हो तो बताना.

मैं रैफर कर दूंगी. तुम तो जानते हो बिना रैफर के यहां जौब नहीं मिलती और फिर रैफर करने वाले यानी मुझे भी 2-3 हजार डौलर इनाम मिल जाएगा.’’

1 महीने के नोटिस के बाद अब हर्ष मेरी कंपनी में आ गया. हमारे कैबिन आमनेसामने तो नहीं थे, फिर भी हम दोनों एकदूसरे को आसानी से देख सकते थे.

एक दिन जब शाम को दोनों मिले तो उस ने कहा, ‘‘तुम से मिल कर क्यों इतना अच्छा लगता है? मेरा बस चले तो तुम्हें देखता ही रहूं.’’

‘‘एक बात पूछूं? सचसच बताना. अब तो तुम सैटल हो. अपने लिए कोई अच्छी लड़की खोज कर शादी क्यों नहीं कर लेते हो?’’

‘‘अपनी ट्रू कौपी खोज कर लाओ. मैं शादी कर लूंगा.’’

‘‘मुझ में ऐसी क्या बात है?’’

‘‘सच बोलूं मैं ने क्या देखा है तुम में…

तो सुनो, बड़े कमल की पंखुडि़यों के नीचे कालीकाली नशीली आंखें, बारीकी से तराशी गई पतली और लंबी भौंहें, नाक में चमकती हीरे की कनी और गुलाबीरसीले होंठ और जब मुसकराती तो गोरेगोरे गालों में पड़ते डिंपल्स और…’’

‘‘बस करो. तुम जानते हो मैं एक पत्नी ही नहीं एक मां भी हूं. ज्यादा फ्लर्ट करने से भी तुम्हें कुछ मिलने से रहा.’’

‘‘मैं ने कब कहा है कि तुम पत्नी और मां नहीं हो. मैं तो बस तुम्हें देख कर अपना मन खुश कर लेता हूं.’’

उस की बातें मेरे दिल को स्पंदित कर रही थीं. मैं शरमा कर बोली, ‘‘मुझ से बेहतर यहीं सैकड़ों मिल जाएंगी.’’

‘‘मैं ने कहा न कि तुम्हारी ट्रू कौपी चाहिए. तुम से अच्छी भी नहीं चाहिए.’’

‘‘सच कहूं तो जब तक तुम शादी नहीं कर लेते मेरा मन तुम्हारे लिए भटकता रहेगा और तुम भी मृगतृष्णा में भटकते फिरोगे. मैं ऐसा नहीं चाहती.’’

‘‘ठीक है, मुझे कुछ समय दो सोचने का.’’

मैं ने सोचा हर्ष सोचे या न सोचे, मैं ने सोच लिया है. हर्ष से मिलना, बातें करना मुझे भी अच्छा लगता है पर अपनी खुशी के लिए मैं उसे अब और नहीं भटकने दूंगी.

2 सप्ताह के बाद मैं फिर हर्ष से मिली. उस का हाथ अपने हाथ में ले कर मैं ने कहा, ‘‘शादी के बारे में क्या सोचा है?’’

ये भी पढ़ें- समाधान: क्या ममता और राजीव का तलाक हुआ?

‘‘मेरी शादी से तुम्हें क्या मिलेगा? मुझे तो बस तुम से मिल कर ही काफी खुशी होती है.’’

‘‘मिल कर मैं भी खुश होती हूं. तुम मेरे दिल में हमेशा रहोगे, भरोसा दिलाती हूं मेरा कहा मान लो और जल्दी शादी कर लो.’’

थोड़ी देर के लिए दोनों के बीच एक खामोशी पसर गई. वह उदास लग रहा था. उदास तो अंदर से मैं भी रहूंगी उस से दूर हो कर, पर जिस रिश्ते की कोई मंजिल न हो उसे कब तक ढोया जा सकता है.

मैं ने उसे समझाया, ‘‘यकीन करो, तुम मेरी यादों में रहोगे. मैं तुम से मिलती भी रहूंगी, पर इस तरह नहीं, अपनी बीवी के साथ मिलना. हां, पर कहीं ऐसा न होने देना कि उस समय भी तुम्हारी नजरें मुझ में कुछ ढूंढ़ने लगें. हम मिलेंगे, बातें करेंगे बस मैं इतने से ही संतुष्ट हो जाऊंगी और तुम से भी यही आशा करूंगी. हम अपने रिश्ते का गलत अर्थ निकालने का मौका किसी को नहीं देंगे.’’

‘‘एक शर्त पर? एक बार जी भर के गले मिल लूं तुम से,’’ उस ने कहा और फिर अपनी दोनों बांहें फैला दीं. मैं बिना संकोच उस की बांहों में सिमट गई.

उस ने कहा, ‘‘मैं इस पल को सदा याद रखूंगा. और अगर मैं तुम्हें अपनी गिरफ्त से आजाद न करूं तो?’’

‘‘और यदि मुझे आदि बुला रहा हो तो?’’

हर्ष ने तुरंत अपनी पकड़ ढीली कर दी. मैं उस से अलग हो गई. फिर मैं ने अपनी दोनों बांहें फैला दीं. हर्ष मेरी बांहों में था. मैं ने कहा, ‘‘मैं भी इस पल को नहीं भूल सकती.’’

मैं ने दिल से कामना की कि हर्ष की पत्नी उसे इतना प्यार दे कि उसे मेरे कैबिन की ओर देखने की जरूरत न पड़े. मैं ने भी अपने मन को समझा लिया था कि अब हर्ष को सिर्फ यादों में ही रखना है.

अचानक डोरबैल की आवाज सुन कर मैं चौंक उठी और खयालों की दुनिया से निकल कर वर्तमान में आ गई. दरवाजा खोला तो सामने नरेश खड़ा था. मैं ने उसे अंदर आने को कहा.

नरेश ने निम्मो से कहा, ‘‘जल्दी चलो, मैं वकील से टाइम ले कर आया हूं. हमारे तलाक के पेपर तैयार हैं. चल कर साइन कर दो.’’

मैं यह सुन कर अवाक रह गई. मैं ने डांटते हुए कहा, ‘‘नरेश, क्या छोटीछोटी बातों को तूल दे कर तलाक लिया जाता है?’’

‘‘तुम्हारी सहेली ने ही तलाक लेने को कहा था.’’

तभी निम्मो रोती हुई बोली, ‘‘मैं ने तो बस मजाक में कह दिया था.’’

‘‘तो मैं ने भी कहां सीरियसली कहा है… चलो घर चलते हैं,’’ नरेश बोला.

ये भी पढ़ें- हम तीन: आखिर क्या हुआ था उन 3 सहेलियों के साथ?

निम्मो दौड़ कर नरेश से लिपट गई. दोनों अपने घर चले गए.

कुछ देर बाद समीर आया. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारे बेटे का ऐडमिशन तुम जिस स्कूल में चाहती थी, हो गया है.’’

मैं ने मन में सोचा कि क्या बेटा सिर्फ मेरा ही है. हमारा बेटा भी तो कह सकता था समीर. वह स्कूल इस शहर का सर्वोत्तम स्कूल था. मारे खुशी के मैं दौड़ कर समीर से जा लिपटी. पर उस की प्रतिक्रिया में वही पुरानी उदासीनता थी. मैं ने व्यर्थ ही कुछ देर तक इंतजार किया कि शायद वह भी मुझे आगोश में लेगा.

फिर मैं भी सहज हो कर धीरे से उस से अलग हुई और वापस अपनी दुनिया में आ गई कि समीर से इस से ज्यादा अपेक्षा नहीं करनी चाहिए मुझे.मन का मीत- भाग 1: कैसे हर्ष के मोहपाश मेंबंधती गई तान्या

अब मैं समझ गई हूं- भाग 2: रिमू का परिवार इतना अंधविश्वासी क्यों था

जब मैं ने उन्हें अपने पड़ोसी की याद दिलाई तो वे बोलीं, ‘‘अच्छा, वह गुप्ता परिवार की बात कर रहे हो. तुम उन की बड़ी बेटी को… मैं ने देखा है क्या… उस के परिवार वाले तैयार हैं?’’

‘‘अपने परिवार वालों को रिमू स्वयं संभालेगी मां. आप तो अपनी बात कीजिए.’’

‘‘तुम्हें तो पता है कि तुम्हारे पापा और मेरे लिए केवल तुम्हारी पसंद ही माने रखती है. इस के अलावा और कुछ नहीं. हमें तुम पर पूरा भरोसा है कि तुम्हारा चयन गलत नहीं होगा?’’ मां की बातें सुन कर मैं प्यार से अभिभूत हो उन के गले लग गया था.

अगले दिन सुबहसुबह ही मेरे सपनों की रानी रिमू का फोन आ गया. उस ने जो कहा उस से मेरी खुशी दोगुनी हो गई,

‘‘अमन, मैं ने मां को अपने बारे में बताया था तो उन्होंने कुंडली मिलान की बात की है. और कहा है कि तुम अपनी जन्मपत्रिका का फोटो व्हाट्सऐप पर भेज दो. वे कल ही हमारे पंडितजी के पास जा कर मिलवा लाएंगी. बस, फिर हमारी शादी,’’ कहतेकहते रीमा फोन पर ही शरमा गई.

रिमू की बात सुन कर मैं भी कुछ आश्वस्त सा हो गया कि कुछ गुण तो मिल ही जाएंगे अर्थात अब हमारे विवाह में कोई व्यवधान नहीं था. मन ही मन मैं अपने और रिमू के सुनहरे भविष्य के सुनहरे सपने बुनने लगा.

2-3 दिन यों ही खयालों में निकल गए. एक दिन जब मैं शाम को औफिस से निकल रहा था तो रिमू का फोन आया. वह फोन पर जोरजोर से रो रही थी. मैं उस का रोना सुन कर घबरा सा गया और बोला, ‘‘क्या हुआ, कुछ बताओगी भी, क्यों इतनी जोरजोर से रो रही हो?’’

ये भी पढ़ें- वजह: प्रिया का कौन-सा राज लड़के वाले जान गए?

‘‘अमन, कल मां गई थीं हमारे पंडितजी से कुंडली मिलवाने. पर उन्होंने कहा है कि दोनों की कुंडली में लेशमात्र भी मिलान नहीं है.  इन दोनों का विवाह किसी भी हालत में संभव नहीं है और यदि किया गया तो लड़की का वैधव्य सुनिश्चित है. इसलिए मांपिताजी ने इस विवाह के लिए साफ मना कर दिया है. अब क्या होगा?’’ कह कर फिर वह जोर से रोने लगी और फोन काट दिया.

रिमू के मातापिता की ऐसी रूढि़वादी सोच ने मु?ो हैरत में डाल दिया क्योंकि स्वयं को अति आधुनिक बताने वाला परिवार इतना अंधविश्वासी और दकियानूसी हो सकता है, यह तो मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.

रिमू का भाई यूएस से एमबीए कर रहा था. पूरा परिवार प्रतिदिन अपने बेटे से स्काइप पर बातचीत करता था. घर के प्रत्येक सदस्य के पास अपना अलग लैपटौप और आधुनिक तकनीक के समस्त साधन मौजूद थे. घर की एकएक वस्तु आधुनिकता का बखान करती सी प्रतीत होती थी.

बातबात में अपनी आधुनिकता का प्रदर्शन करने वाले परिवार का इतना अंधविश्वासी होना मेरे लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं था. जन्मपत्रिका और कुंडली को इतना अधिक महत्त्व देने वाले ये तथाकथित आधुनिक परिवेश के जनमानस क्यों नहीं सम?ा पाते कि विवाह किसी कुंडलीवुंडली से नहीं, बल्कि 2 लोगों की परस्पर सम?ादारी से सफल और असफल होते हैं.

क्या जन्मकुंडली में सभी गुण मिला कर किए विवाह असफल नहीं होते, जबकि वास्तविकता तो यह है कि विवाह की सफलता और असफलता तो पतिपत्नी की परस्पर सम?ा, त्याग और समर्पण की भावना पर निर्भर करता है.

खैर, इस समय तो मु?ो अपनी इस समस्या का ही कोई उपाय तलाशना था, सो शांतमन से किसी हल पर विचार करने लगा. इस के बाद दोएक अवसरों पर मैं ने स्वयं रिमू के मातापिता को कुंडली की निरर्थकता के बारे में सम?ाने का काफी प्रयास किया परंतु उन का एक ही जवाब था.

ये भी पढ़ें- वसूली: आखिर निरपत के साथ क्या हुआ?

‘‘हम जानबू?ा कर अपनी बेटी को विधवा होते नहीं देख सकते.’’

उन से बात कर के मु?ो भी सम?ा आ गया था कि उन के मन में कुंडली के बीजों की पैठ बहुत गहरी है. सो, उन के आगे बोलना भैंस के आगे बीन बजाने जैसा है. कुछ दिनों बाद मु?ो अपने एक मित्र के विवाह में भोपाल जाना पड़ा. मित्र ने बिना किसी ताम?ाम के कोर्ट में रजिस्टर्ड मैरिज की थी, जिस में महज उस के परिवार वाले ही शामिल थे.

लड़की के मातापिता ही नदारद थे. पूछने पर पता चला कि लड़की के मातापिता किसी भी स्थिति में इस अंतर्जातीय विवाह के लिए तैयार नहीं थे, इसलिए दोनों ने बिना मातापिता के ही रजिस्टर्ड विवाह करने का फैसला लिया था.

वापस आते समय मैं भी रजिस्टर्ड विवाह के बारे में सोचने लगा कि अब शायद मेरे लिए भी यही चारा है क्योंकि आज 2 वर्ष हो गए पर रिमू के मातापिता सबकुछ सहीसलामत होते हुए भी कुंडली के साथ सम?ाता करने को तैयार नहीं थे. न जाने कैसे और क्यों उन के मस्तिष्क में इस जन्मकुंडली ने भी सर्प की भांति की कुंडली मार ली थी.

एक दिन बातों ही बातों में मैं ने फोन पर रिमू से मातापिता की अनुमति के बगैर रजिस्टर्ड विवाह करने की बात कही. इस पर रिमू बोली, ‘‘अमन, विवाह के बाद अगर कुछ ऐसावैसा हो गया तो क्योंकि पंडितजी ने कहा है…’’

‘‘कुछ नहीं होता रिमू, मैं ऐसे किसी भी अंधविश्वास में विश्वास नहीं करता. मैं ने ऐसे कितने ही जोड़े देखे हैं जो पूरी तरह कुंडली मिलने के बाद भी ताउम्र लड़ते?ागड़ते और एकदूसरे से असंतुष्ट ही रहते हैं. और मेरे ही परिचित कितने ऐसे जोड़े हैं जो अंतर्जातीय विवाह कर के भी आज खुशहाल जीवन जी रहे हैं.

‘‘हम दोनों मिल कर अपने गृहस्थ जीवन को खूबसूरत बनाएंगे. क्या तुम मांपापा को छोड़ कर मेरी खातिर आ सकती हो? कहते हैं न युवावस्था का प्यार अंधा होता है जिस में सिर्फ और सिर्फ प्यार को पाने की चाहत होती है. सो, सुनिश्चित दिन पर रीमा अपने मातापिता की अनुमति के बगैर घर से आ गई और मेरे मातापिता की मौजूदगी में मैं ने रिमू से कोर्ट मैरिज कर ली.

हमारे विवाह के बाद रिमू के मातापिता ने प्रारंभ में तो कुछ नाराजगी प्रदर्शित की परंतु बाद में धीरेधीरे सब सामान्य हो गया. विवाह के बाद रिमू को ले कर मैं अपने पोस्ंिटग स्थल रीवां आ गया था. कुछ शादी की व्यस्तता और मौसम के बदलाव ने ऐसा असर दिखाया कि आते ही मैं चिकनगुनिया नामक बीमारी से ग्रस्त हो कर एक माह तक बिस्तर पर ही रहा.

ये भी पढ़ें- विराम: क्यों मोहिनी अपने पति को भूल गई?

एक दिन रीमा मेरे पास आ कर बैठी और मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर बोली, ‘‘अमन, मु?ो लगता है हमारी बेमेल कुंडली ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब है, मैं तुम से बारबार कहता हूं इस प्रकार का कोई वहम अपने मन में मत पालो. ये सब बेकार की बातें हैं,’’ कह कर मैं ने रीमा को चुप करा दिया.

मु?ो पूरी तरह ठीक होतेहोते ही लगभग 6 माह लग गए. सबकुछ सामान्य हुए अभी कुछ ही दिन हुए थे कि एक दिन अचानक मेरे बड़े भाई को हार्टअटैक हो गया और जब तक उन्हें अस्पताल ले जाया गया, उन्होंने दम तोड़ दिया. अब तो रीमा के अंधविश्वासी मन का वहम और भी मजबूत हो गया. जब हम लोग भैया का क्रियाक्रम कर के वापस आ रहे थे तो रीमा कहने लगी.

‘‘अमन, तुम मानो या न मानो, हमारे बड़ेबुजुर्ग जन्मकुंडली मिला कर विवाह करने की बात सही ही कहते थे. देखो, हम अपने विवाह के बाद चैन से रह तक नहीं पा रहे हैं. एक के बाद एक विपत्तियां आए ही जा रही हैं. गृहस्थ जीवन को तो हम महसूस तक नहीं कर पाए.’’

‘‘तो फिर क्यों तुम चली आईं अपने मातापिता को छोड़ कर मेरे साथ. जिस से जन्मकुंडली मिलती उसी से शादी करतीं.’’

इंतजार- भाग 1: क्यों सोमा ने अकेलापन का सहारा लिया?

सुबह के 6 बजे थे. रोज की तरह सोमा की आंखें खुल गई थीं.  अपनी बगल में अस्तव्यस्त हौल में लेटे महेंद्र को देख वह शरमा उठी थी. वह उठने के लिए कसमसाई, तो महेंद्र ने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया था.

‘‘उठने भी दो, काम पर जाने में देर  हो जाएगी.’’

‘‘आज काम से छुट्टी, हम लोग आज अपना हनीमून मनाएंगे.’’

‘‘वाहवाह, क्या कहने?’’

पुरानी कड़वी बातें याद कर के वह गंभीर हो उठी, बोली, ‘‘यह बहुत अच्छा हुआ कि अपुन लोगों को शहर की इस कालोनी में मकान मिल गया है. यहां किसी को किसी की जाति से मतलब नहीं है.’’

‘‘सही कह रही हो. जाने कब समाज से ऊंचनीच का भेदभाव समाप्त होगा? लोगों को क्यों नहीं सम?ा में आता कि सभी इंसान एकसमान हैं.’’ महेंद्र बोला था.

‘‘वह सब तो ठीक है, लेकिन अब उठने भी दो.’’

‘‘आज हमारे नए जीवन का पहलापहला दिन है. यह क्षण फिर से तो लौट कर नहीं आएगा. आज मैं तुम्हारी बांहों में बांहें डाल कर मस्ती करूंगा. इस पल के लिए तुम ने मु?ो बहुत लंबा इंतजार करवाया है. आज ‘जग्गा जासूस’ पिक्चर देखेंगे. बलदेव की चाट खाएंगे. राजाराम की शिकंजी पिएंगे. तुम जहां कहोगी वहां जाऊंगा, जो कहोगी वह करूंगा. आज मैं बहुतबहुत खुश हूं.’’

‘‘ओह हो, केवल बातों से पेट नहीं भरने वाला है. पहले जाओ, दूध और डबल रोटी ले कर आओ.’’

‘‘मेरी रानी, दूध के साथसाथ, आज तो जलेबी और कचौड़ी भी ले कर आऊंगा.’’ यह कह कर वह सामान लेने चला गया.

वह उठ कर रोज की तरह ?ाड़ूबुहारू और बरतन आदि काम निबटाने लगी थी. लेकिन आज उस की आंखों के सामने बीते हुए दिन नाच उठे थे. अभी वह 25 वर्ष की होगी, परंतु अपनी इन आंखों से कितना कुछ देख लिया था.

अम्मा स्कूल में आया थीं. इसलिए उसे मन ही मन टीचर बनाने का सपना देखती रहती थीं. बाबू राजगीरी का काम करते थे. उन्हें पैसा अच्छा मिलता था. लेकिन पीने के शौक के कारण सब बरबाद कर लेते थे. वे 2 दिन काम पर जाते, तीसरे दिन घर पर छुट्टी मनाते. अपनी मित्रमंडली के साथ बैठ कर हुक्का गुड़गुड़ाते और लंबीलंबी बातें करते.

ये भी पढ़ें- तुम सावित्री हो: क्या पत्नी को धोखा देकर खुश रह पाया विकास?

अम्मा जब भी कुछ बोलती तो गालीगलौज और मारपीट की नौबत  आ जाती.

पश्चिम उत्तर प्रदेश में संभलपुर से थोड़ी दूर एक बस्ती थी जिसे आज की भाषा में चाल कह सकते हैं. लगभग

10-12 घर थे. सब की आपस में रिश्तेदारी थी. बच्चे आपस में किसी के भी घर में खापी लेते और सड़क पर खेल लेते. कोई काका था, कोई दादी तो कोई दीदी. आपस में लड़ाई भी जम कर होती, लेकिन फिर दोस्ती भी हो जाती थी.

वह छुटपन से ही स्कूल जाने से कतराती थी. वह लड़कों के संग गिल्लीडंडा और क्रिकेट खेलती. कभीकभी लंगड़ीटांग भी खेला करती थी.

अम्मा स्कूल से लौट कर आती तो सड़क पर उसे देखते ही चिल्लाती, ‘काहे लली, स्कूल जाने के समय तो तुम्हें बुखार चढ़ा था, अब सब बुखार हवा हो गया. बरतन मांजने को पड़े हैं. चल मेरे लिए चाय बना.

वह जोर से बोलती, ‘आई अम्मा.’ लेकिन अपने खेल में मगन रहती जब तक अम्मा पकड़ कर उसे घर के अंदर न ले जाती. वे उस का कान खींच कर कहतीं, ‘अरी कमबख्त, कभी तो किताब खोल लिया कर.’

अम्मा की डांट का उस पर कुछ असर न होता. इसी तरह खेलतेकूदते वह बड़ी हो रही थी. लेकिन हर साल पास होती हुई वह बीए में पहुंच गई थी. कालेज घर से दूर था, इसलिए बाबू ने उसे साइकिल दिलवा दी थी.

बचपन से ही उसे सजनेसंवरने का बहुत शौक था. अब तो वह जवान हो चुकी थी, इसलिए बनसंवर कर अपनी साइकिल पर हवा से बातें करती हुई कालेज जाती.

वहां उस की मुलाकात नरेन सिंह से हुई. वह उस की सुंदरता पर मरमिटा था. कैफेटेरिया की दोस्ती जल्द ही प्यार में बदल गई. उस की बाइक पर बैठ कर वह अपने को महारानी से कम न सम?ाती. 19-20 साल की कच्ची उम्र और इश्क का भूत. पूरे कालेज में उन के इश्क के चर्चे सब की जबान पर चढ़ गए थे. वह उस के संग कभी कंपनीबाग तो कभी मौल तो कभी कालेज के कोने में बैठ कर भविष्य के सपने बुनती.

एक दिन वे दोनों एकदूसरे को गलबहियां डाले हुए पिक्चरहौल से निकल रहे थे, तभी नरेन के चाचा बलवीर सिंह ने उन दोनों को देख लिया था. फिर तो उस दिन घर पर नरेन की शामत आ गई थी.

सोमा की जातिबिरादरी पता करते ही नरेन को उस से हमेशा के लिए दूर रहने की सख्त हिदायत मिल गई थी.

पश्चिम उत्तर प्रदेश जाटबहुल क्षेत्र है. वहां की खाप पंचायतें अपने फैसलों के लिए कुख्यात हैं. जाट लड़का किसी वाल्मीकि समाज की लड़की से प्यार की पेंग बढ़ाए, यह बात उन्हें कतई बरदाश्त नहीं थी.

वे लोग 15-20 गुडों को ले कर लाठीडंडे लहराते हुए आए. और शुरू कर दी गालीगलौज व तोड़फोड़.

वे लोग बाबू को मारने लगे, तो वह अंदर से दौड़ती हुई आई और चीखनेचिल्लाने लगी थी. एक गुंडा उस को देखते ही बोला, ऐसी खूबसूरत मेनका को देख नरेन का कौन कहे, किसी का भी मन मचल उठे.’

बाबू ने उसे धकेल कर अंदर जाने को कह दिया था. पासपड़ोस के लोगों ने किसी तरह उन लोगों को शांत करवाया, नहीं तो निश्चित ही उस दिन खूनखराबा होता.

पंचायत बैठी और फैसला दिया कि महीनेभर के अंदर सोमा की शादी कर दी जाए और 10 हजार रुपए जुर्माना.

उस का कालेज जाना बंद हो गया और आननफानन उस की शादी फजलपुर गांव के सूरज के साथ, जो कि स्कूल में मास्टर था, तय कर दी गई.

ये भी पढ़ें- रेप के बाद: अखिल ने मानसी के साथ क्या किया

उस के पास अपना पक्का मकान था. थोड़ी सी जमीन थी, जिस में सब्जी पैदा होती थी. अम्माबाबू ने खुशीखुशी यहांवहां से कर्ज ले कर उस की शादी कर दी.

बाइक, फ्रिज, टीवी, कपड़ेलत्ते, बरतनभांडे, दहेज में जाने क्याक्या दिया. आंखों में आंसू ले कर वह सूरज के साथ शादी के बंधन में बंध गई थी.

ससुराल का कच्चा खपरैल वाला घर देख उस के सपनों पर पानी फिर गया था. 10-15 दिन तक सूरज उस के इर्दगिर्द घूमता रहा था. वह दिनभर मोबाइल में वीडियो देखता रहता था. आसपास की औरतों से भौजीभौजी कह कर हंसीठिठोली करता या फिर आलसियों की तरह पड़ा सोता रहता.

रोज रात में दारू चढ़ा कर उस के पास आता. नशा करते देख उसे अपने बाबू याद आते. एक दिन उस ने उस से काम पर जाने को कहा. तो, नशे में उस के मुंह से सच फूट पड़ा. न तो वह बीए पास है और न ही सरकारी स्कूल में मास्टर है. यह सब तो शादी के लिए ?ाठ बोला गया था. वह रो पड़ी थी. फिर उस ने सूरज को सुधारने का प्रयास किया था. वह उसे सम?ाती, तो वह एक कान से सुनता, दूसरे से निकाल देता.

आलसी तो वह हद दर्जे का था. पानमसाला हर समय उस के मुंह में भरा ही रहता.

जुआ खेलना, शराब पीना उस के शौक थे. यहांवहां हाथ मार कर चोरी करता और जुआ खेलता.

उस का भाई भी रात में दारू पी कर आता और गालीगलौज करता.

कुछ पैसे अम्मा ने दिए थे. कुछ उस के अपने थे. वह अपने बक्से में रखे हुए थी. सूरज उन पैसों को चुरा कर ले गया था. एक दिन उस ने अपनी पायल उतार कर साफ करने के लिए रखी थी. वह उस को यहांवहां घंटों ढूंढ़ती रही थी. लेकिन जब पायल हो, तब तो मिले. वह तो उस के जुए की भेंट चढ़ गई थी. यहां तक कि वह उस की शादी की सलमासितारे जड़ी हुई साड़ी ले गया और जुए में हार गया.

अस्तव्यस्त बक्से की हालत देख वह साड़ी के गायब होने के बारे में जान चुकी थी. वह खूब रोई. जा कर अम्माजी से कहा, तो वे बोली थीं, ‘साड़ी ही तो ले गया, तु?ो तो नहीं ले गया. मैं उसे डांट लगाऊंगी.’

उस की शादी को अभी साल भी नहीं पूरा हुआ था, लेकिन उस ने मन ही मन सूरज को छोड़ कर जाने का निश्चय कर लिया था. वह नशे में कई बार उस की पिटाई भी कर के उस के अहं को भी चोट पहुंचा चुका था.

वह बहुत दुखी थी, साथ ही, क्रोधित भी थी. सूरज नशा कर के देररात आया. आज कुछ ज्यादा ही नशे में था. बदबू के भभके से उस का जी मिचला उठा था. फिर उस के शरीर को अपनी संपत्ति सम?ाते हुए अपने पास उसे खींचने लगा. पहले तो उस ने धीरेधीरे मना किया, पर वह जब नहीं माना, तो उस ने उसे जोर से धक्का दे दिया. वह संभल नहीं पाया और जमीन पर गिर गया. कोने में रखे संदूक का कोना उस के माथे पर चुभ गया और खून का फौआरा निकल पड़ा.

ये भी पढ़ें- मजबूरी: समीर को फर्ज निभाने का क्या परिणाम मिला?

फिर तो उस दिन आधीरात को जो हंगामा हुआ कि पौ फटते ही उसे उस के घर के लिए बस में बैठा कर भेज दिया गया.

बाबूअम्मा ने उसे देख अपना सिर पीट लिया था. अम्मा बारबार उसे ससुराल भेजने का जतन करती, लेकिन वह अपने निर्णय पर अडिग रही.

उसे अब किसी काम की तलाश थी क्योंकि अब वह अम्मा पर बो?ा बन कर घर में नहीं बैठना चाहती थी.

सब उसे सम?ाते, आदमी ने पिटाई की तो क्या हुआ? तुम ने क्यों उस पर हाथ उठाया आदि.

अम्मा ने अमिता बहनजी से उस की नौकरी के लिए कहा तो उन्होंने उसे अपने कारखाने में नौकरी पर रख लिया. अंधे को क्या चाहिए दो आंखें. वहां शर्ट सिली जाती थी. उसे बटन लगा कर तह करना होता था. इस काम में कई औरतेंआदमी लगे हुए थे.

जीने की राह- भाग 5: उदास और हताश सोनू के जीवन की कहानी

Writer- संध्या 

भैया के फोन का जिक्र सुन कर सोनू मुझ से मेरे परिवार के बारे में पूछने लगी. मैं ने बताया कि अब मांपापा तो हैं नहीं, हम 2 भाई ही हैं. बड़े भैया दिल्ली में हैं. उन का एक बेटा सुमन है. पिछले साल भाभी का देहांत हो गया है. हम दोनों भाइयों में बहुत प्रेम है. सोनू ने कहा, ‘‘बड़े भैया और भतीजा, आप के इतने दुखद समय में आप के पास क्यों नहीं आए?’’ ‘‘दोनों ही आना चाहते थे किंतु बड़े भैया बीमार चल रहे थे, सो मैं ने ही दोनों को आने से मना कर दिया था. वे लोग मुझे अपने पास बुला रहे थे किंतु मैं नहीं गया क्योंकि मुझे दुखी देख कर दोनों बहुत दुखी होते, नीता और रिया पर दोनों जान छिड़कते थे. ‘‘नीता बड़े भैया का पिता समान मान रखती थी. जो बातें भैया को नापसंद हैं वह मजाल है कि कोई कर सके, नीता सख्ती से इस बात की निगरानी रखती थी.

‘‘सुमन और रिया का आपसी प्यार देख लोग उन्हें सगे भाईबहन ही समझ बैठते थे. दोनों के मध्य ढाई साल का ही फर्क था किंतु सुमन अपनी बहन का बहुत खयाल रखता था.’’ नियत समय पर बड़े भैया एवं सुमन आ गए. नीता और रिया के जाने के बाद हमारी पहली मुलाकात थी. वे दोनों मुझ से लिपट कर रोए जा रहे थे. मेरा भी वही हाल था. हम तीनों कुछ भी बोल पाने में असमर्थ थे, आंसू थे कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. मैं ने ही पहल करते हुए कहा कि हम लोगों को स्वयं को हर हाल में संभालना होगा. हम तीनों एकदूसरे की हिम्मत बनेंगे एवं विलाप कर एकदूसरे को कमजोर नहीं बनाएंगे. दोनों ने ही सहमति जताते हुए कस कर मुझे जकड़ लिया. भैया सोनू से जल्दी ही मिलना चाहते थे, सो मैं ने सोनू को फोन कर दिया, ‘‘सोनू, शाम को मेरे घर पर चली आना, हो सके तो साड़ी पहन कर आना.’’

सोनू ने कहा, ‘‘मनजी, मैं समय पर पहुंच जाऊंगी.’’

मैं ने फोन काटने से पहले कहा, ‘‘सोनू, डिनर हम साथ ही करेंगे, मेरे घर पर.’’

उस ने कहा, ‘‘ठीक है, मनजी, पर एक शर्त है, आज आप मेरे हाथ से बने गोभी के परांठे और प्याज का रायता खाएंगे. हां, बनाने में थोड़ी मदद कर दीजिएगा. अरे हां, गोभी है न घर में?’’

‘‘हांहां, गोभी है, प्याज और दही भी है, चलो यही तय रहा,’’ मैं ने सहमति प्रकट करते हुए कहा.

सोनू शाम 7 बजे आ गई. उस ने गुलाबी रंग की साड़ी बड़े सलीके से बांधी हुई थी. मैं ने उस का परिचय बड़े भैया और सुमन से करवाया. मेरे घर पर 2 अजनबियों को देख वह थोड़ा असहज हुई, किंतु उस ने जल्दी ही स्वयं को संभाल लिया तथा बड़ी शिष्टता से दोनों से मिली. वह भी हमारे साथ ड्राइंगरूम में बैठ गई. बड़े भैया ने कहा, ‘‘सुमन बेटा, दिल्ली वाली मिठाइयां एवं नमकीन ले आओ. सोनू बेटा को भी टेस्ट करवाओ.’’ सुमन तुरंत मिठाइयां एवं नमकीन ले आया. मैं दोनों के व्यवहार से बहुत राहत महसूस कर रहा था, क्योंकि दोनों के व्यवहार से साफतौर पर  परिलक्षित था कि दोनों को ही सोनू पसंद आ रही है. इतने में ही उत्तम एवं भाभीजी भी आ पहुंचे. मैं ने ही दोनों को आने के लिए कह दिया था. सोनू को देख भाभीजी बोल पड़ीं, ‘‘साड़ी में कितनी प्यारी लग रही है, मुझे तो एकदम…’’ मेरी तरफ देख उन्होंने वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया.

ये भी पढ़ें- जीती तो मोहे पिया मिले हारी तो पिया संग

खाना भाभी एवं सोनू ने मिल कर बनाया, बेहद स्वादिष्ठ था. हमारे साथ बड़े भैया एवं सुमन ने बड़ी रुचि से खाना खाया. बड़े भैया बारबार कहते, ‘‘सही बात है, औरतों के हाथों में जादू होता है, कितने कम समय में इन दोनों ने इतना स्वादिष्ठ खाना तैयार कर दिया.’’ सुमन भी बोला, ‘‘सही बात है छोटे पापा, वहां पर वह कुक खाना बनाता है, इस स्वाद का कहां मुकाबला. बस, पेट भरना होता है, सो खा लेते हैं.’’

सुमन ने एक चम्मच रायता मुंह में डालते हुए स्वादिष्ठ रायते के लिए भाभीजी को थैंक्स कहा.

भाभीजी बोलीं, ‘‘सुमन पुत्तर, यह स्वादिष्ठ रायता सोनू ने बनाया है, उसे ही थैंक्स दें.’’

सुमन ने सोनू को थैंक्स कहा तथा उस ने भी मुसकराते हुए ‘इट्स माई प्लेजर’ कहा.

मैं ने सुबह 7 बजे के लगभग सोनू को फोन कर पूछा, ‘‘तुम फ्री हो तो मैं इसी वक्त तुम से मिलना चाहता हूं?’’

सोनू ने कहा, ‘‘आप तुरंत आ जाइए, दूसरी बातों के बीच कल तो आप से कुछ बात ही न हो सकी.’’

मैं जब पहुंचा, वह 2 प्याली चाय और स्नैक्स के साथ मेरा इंतजार कर रही थी.

मैं ने चाय पीते हुए पूछा, ‘‘सुमन और बड़े भैया तुम्हें कैसे लगे?’’

उस ने तुरंत जवाब दिया, ‘‘अच्छे हैं, दोनों ही बहुत अच्छे हैं. उन के व्यवहार में बहुत अपनापन है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘और सुमन?’’

उस ने सहजता से कहा, ‘‘बहुत अच्छा लड़का है, एकदम आप के साथ बेटे जैसा व्यवहार करता है. अच्छा स्मार्ट एवं हैंडसम है, अच्छी पढ़ाई की है उस ने और अच्छी नौकरी भी करता है, किंतु अभी तो हम अपनी बातें करें, कल रात भी हम कुछ भी बात न कर सके.’’

‘‘तुम ने ठीक कहा सोनू, मैं अभी तुम से अपने दिल की ही बात करने आया हूं,’’ मैं ने कहा.

सोनू ने अधीरता से कहा, ‘‘मनजी, कह दीजिए, दिल की बात कहने में ज्यादा वक्त नहीं लेना चाहिए.’’

सकुचाते हुए मैं ने कहा, ‘‘सही कहा तुम ने, मैं बिना वक्त बरबाद किए तुम से दिल की बात कह देता हूं. मैं तुम्हारा हाथ सुमन के लिए मांगना चाहता हूं.’’

वह आश्चर्य से व्हाट कह कर खड़ी हो गई. सोनू की भावभंगिमा देख कर एक पल मुझे खुद पर ही खीझ होने लगी कि मैं ने यह अधिकार कैसे प्राप्त कर लिया जो उस के व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप कर बैठा. शादी किस से करनी है, कब करनी है, इस संबंध में मैं क्योंकर हस्तक्षेप कर बैठा. मैं ने क्षणभर में ही स्वयं को संयत करते हुए कहा, ‘‘सोनू, बुरा मत मानो, शादी तुम्हारा व्यक्तिगत मामला है, मैं ने हस्तक्षेप किया इस के लिए मैं तुम से माफी मांगता हूं. तुम्हें यदि सुमन पसंद नहीं है या तुम किसी और को पसंद करतीहो, यह तुम्हारा निजी मामला है. तुम यदि मेरे प्रस्ताव से इनकार करोगी, मैं अन्यथा न लूंगा. वैसे एक बात कहूं, मैं ने तो तुम्हें सारेसारे दिन भी देखा है, कभी ऐसा आभास नहीं हुआ कि तुम्हारा बौयफ्रैंड वगैरह है. खैर, कोई बात नहीं, मुझे साफतौर पर बता देतीं तो ठीक रहता.’’ सोनू धीरेधीरे मेरे नजदीक आई, उस ने आहिस्ताआहिस्ता कहना शुरू किया, ‘‘मनजी, मुझे लगा आप मुझे प्यार करने लगे हैं, मैं तो आप से प्यार करने लगी हूं तथा आप को जीवनसाथी मान बैठी हूं.’’

सोनू की बातें सुन मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सा हो गया, स्वयं को संभालते हुए मैं ने कहा, ‘‘सोनू, तुम ने ठीक समझा, प्यार तो मैं बेइंतहा करता हूं, किंतु वैसा नहीं जैसा तुम ने समझा. प्यार तो एक सच्चीसाफ भावना है, उसे सही दिशा, मार्ग देना हमारा काम है. जिस तरह उफनती नदी पर बांध बना कर हम उसे सही मार्ग देते हैं वरना जो जल जीवनरक्षक होता है वही जीवन का नाश कर बैठता है.’’ मैं ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘सोनू, मैं 60 वर्ष का हो रहा हूं. तुम लगभग 22-24 की नवयुवती हो. मेरी रिया भी इसी उम्र की थी. मैं अपनी रिया के लिए मेरी उम्र का दामाद कभी भी पसंद नहीं करता फिर तुम्हारे लिए ऐसा कैसे सोच सकता हूं. ‘‘तुम्हें उस दुर्घटना में मातापिता को खो देने के बाद बहुत तनहा, उदास देखा, तुम्हारी तरह ही मेरी दशा भी थी. नीता और रिया के बिना जीवन निरर्थक मसूस होने लगा, तब मैं ने स्वयं से संकल्प लिया था कि स्वयं के जीवन को भी सार्थक बनाते हुए, उदासीन, तनहा सोनू के जीवन में फिर उल्लास, उमंग भरने का प्रयास कर, उसे सामान्य जीवन हेतु प्रोत्साहित करूंगा. तुम्हारे रूप में मुझे रिया मिल गई, मैं फिर जीवन के प्रति आशान्वित हो उठा.

ये भी पढ़ें- बलिदान: खिलजी और रावल रत्न सिंह के बीच क्यों लड़ाई हुई?

‘‘सोनू, मैं इस सोच के एकदम खिलाफ हूं कि एक कमसिन, सुंदर नवयुवती को मजबूरी की हालत में देख पुरुषवर्ग सिर्फ और सिर्फ उसे भोग्या ही समझता है. आएदिन पुरुषों द्वारा स्त्रियों पर इस तरह के दुष्कर्म पढ़नेसुनने के लिए मिल जाते हैं. मेरा दिल चिल्लाचिल्ला कर कहता है कि मजबूर लड़कियों को बेटी/बहन मान कर स्वीकार कर, मदद क्यों नहीं की जाती.

‘‘मेरा मानना है कि एक व्यक्ति अकेला नहीं होता है. उस के साथ अनेक लोगों का मानसम्मान जुड़ा होता है तथा हमें ऐसा कोई कृत्य नहीं करना चाहिए जिस से कि हम अपनों से नजरें चुराएं.

‘‘तुम्हारे मातापिता की भी तुम से बहुत सी उम्मीदें रही होंगी. वे तुम्हारे लिए जीवनसाथी कभी भी किसी भी सूरत में मुझ जैसा प्रौढ़ तो नहीं चुनते. यदि तुम चुन लेतीं, तब वे भी तुम्हें असहमति में ही समझाते. हां, इतना मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि सुमन जैसा दामाद पा कर वे स्वयं को धन्य समझते. सो, तुम्हारा यह कर्तव्य है कि तुम उन की आधीअधूरी उम्मीदों को पूर्ण करो, यह तुम्हारी उन के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी.

‘‘ऐसा ही मेरे साथ भी है. मैं अपनी बेटी रिया की उम्र की सोनू से विवाह रचा कर अपने दिल में बसी पत्नी और बेटी से नजरें कैसे मिला पाऊंगा. सोनू, वे दोनों मेरे दिल में बसी हुई हैं, जिन से मैं रोज बातें करता हूं,  हंसता हूं, रोता हूं. और अगर ऐसा कृत्य कर जाऊंगा तब तो दोनों से नजरें ही चुराता रह जाऊंगा.

‘‘सोनू, मैं तुम्हें बताना चाहूंगा कि मैं ने तुम्हें अपनी रिया ही समझा है तथा मेरी दिली ख्वाहिश है कि मैं तुम्हारा कन्यादान करूं. रिया का कन्यादान करने का सुख तो इस जन्म में नहीं मिल सका, किंतु तुम्हारा कन्यादान कर इस सुखानुभूति को पाना चाहता हूं, वैसे तुम्हें मैं बाध्य नहीं कर सकता इस हेतु.

‘‘मैं तुम्हें नीता के बारे में क्या बताऊं, अद्भुत महिला थी मेरी पत्नी नीता. उस के साथ मैं ने भरपूर आनंदमय जीवन जीया है. रूपरंग की तो धनी थी ही, साथ ही व्यवहारकुशल और गुणी भी थी. उस ने मेरे जीवन को इतना संबल दिया है कि उस के सहारे मैं जीवन जी लूंगा. ‘‘मेरा मानना है कि हम अपने, अपनों के आदर्श एवं विचारों को सदैव याद रखें. यह नहीं कि उन के जाते ही हम विपरीत कृत्य कर उन का उपहास उड़ाएं. ‘‘सोनू, एक बात बताना चाहूंगा कि तुम से मिलने के बाद ऐसा एहसास हुआ कि मुझे मेरी रिया मिल गई. मैं तुम्हें बेटा ही कह कर पुकारना चाहता था किंतु तुम ने सोनू पुकारने की इच्छा जाहिर की थी. इस के अलावा जीवन में 2-4 बार तुम्हारी उम्र की युवतियों से झिड़क भी सुन चुका था. उन लोगों का कहना था कि बेटा क्यों पुकारते हैं. हमारा नाम है, हमें हमारे नाम से पुकारिए. क्या अलगअलग उम्र के दोस्त नहीं हो सकते? कई बार इच्छा हुई तुम से कहने की, फिर सोचा सोनू भी पुकारने में बड़ा प्यारा लगता है. सो, क्या हर्ज है.

‘‘ठीक है सोनू, मैं चलता हूं, मेरी सलाह है कि शांत मन से सुमन के संबंध में विचार करो. यह सत्य है कि हम दोनों जीवनसाथी नहीं बन सकते. हां, हम दोस्त तो हैं ही और सदा बने रह सकते हैं. ‘‘सुमन के विषय में तुम्हारी सहमति हो तो तुम मुझे फोन से बता देना. अगर तुम शाम तक फोन नहीं करोगी तो मैं तुम्हारी असहमति समझ लूंगा.’’ मैं घर लौट आया था, किंतु असमंजस की स्थिति थी मेरी. इसलिए मैं बड़े भैया एवं सुमन से कुछ भी कहने में असमर्थ था. दोनों से बचने के लिए मैं ने स्वयं को अन्य कामों में व्यस्त कर लिया. मेरी गंभीर स्थिति देख दोनों यही समझ रहे थे कि मैं नीता और रिया की कमी महसूस कर रहा हूं, इसलिए दोनों मुझे बहलाने के बहाने ढूंढ़ रहे थे. साढ़े 10 बजे तक ही सोनू का फोन आ गया. मैं ने अधीरता से हैलो कहा. उस ने बहुत आत्मीयता से कहा, ‘‘मैं आप को पापा कह सकती हूं न? आप मेरा कन्यादान करेंगे न?’’

मैं ने भावविह्वल होते हुए कहा, ‘‘हां बेटा, हां, मैं ही तेरा कन्यादान करूंगा. मैं ही तो तेरा पापा हूं. मैं नहीं तो कौन करेगा यह कार्य.’’ मेरी आंखें खुशी के आंसुओं से छलक उठीं. उस ने कहा, ‘‘आप जैसे सचरित्र से मेरा संबंध बना, मैं बहुत खुश हूं. अब मैं अनाथ नहीं रही.’’ मैं ने कहा, ‘‘बेटा, तुम्हारे कारण मैं भी तो बेऔलाद न रहा. बेटा, भैया और सुमन के साथ शाम को तुम्हारे घर पहुंचता हूं, रोके की रस्म कर लेंगे.’’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें