Romantic Story: तुम्हारी रोजी – क्यों पति को छोड़कर अमेरिका लौट गई वो?

Romantic Story: उस का नाम रोजी था. लंबा शरीर, नीली आंखें और सांचे में ढला हुआ शरीर. चेहरे का रंग तो ऐसा जैसे मैदे में सिंदूर मिला दिया गया हो.

रोजी को भारत की संस्कृति से बहुत प्यार था और इसलिए उस ने अमेरिका में रहते हुए भी हिंदी भाषा की पढ़ाई की थी और हिंदी बोलना भी सीखा.

उस ने किताबों में भारत के लोगों की शौर्यगाथाएं खूब सुनी थीं और इसलिए भारत को और नजदीक से जानने के लिए वह राजस्थान के एक छोटे से गांव में घूमने आई थी.

अभी उस की यात्रा ठीक से शुरू भी नहीं हो पाई थी कि कुछ लोगों ने एक विदेशी महिला को देख कर आदतानुसार अपनी लार गिरानी शुरू कर दी और रोजी को पकड़ कर उस का बलात्कार करने की कोशिश की. पर इस से पहले कि वे अपने इस मकसद में कामयाब हो पाते, एक सजीले से युवक रूप ने रोजी को उन लड़कों से बचाया और उस के तन को ढंकने के लिए अपनी शर्ट उतार कर दे दी.

रूप की मर्दानगी और उदारता से रोजी इतना मोहित हुई कि उस ने रूप से चंद मुलाकातों के बाद ही शादी का प्रस्ताव रख दिया.

रोजी पढ़ीलिखी थी व सुंदर युवती थी. पैसेवाली भी थी इसलिए रूप को उस से शादी करने के लिए हां कहने मे कोई परेशानी नहीं हुई पर थोड़ाबहुत प्रतिरोध आया भी तो वह रूप के रिश्तेदारों की तरफ से कि एक विदेशी क्रिस्चियन लड़की से शादी कैसे होगी? न जात की न पात की और न देशकोस की…इस से कैसे निभ पाएगी?

पर रूप अपना दिल और जबान तो रोजी को दे ही चुका था इसलिए उस की ठान को काटने की हिम्मत किसी में नहीं हुई पर पीठ पीछे सब ने बातें जरूर बनाईं.

अंगरेजन बहू की पूरे गांव में चर्चा थी.

“भाई देखने में तो सुंदर है. पतली नाक और लंबा शरीर,” एक ने कहा.

“पर भाई, दोनों लोगों में संबंध भारतीय तरीके से बनते होंगे या फिर अंगरेजी तरीके से? या फिर दोनों लोग इशारोंइशारों मे ही सब काम करते होंगे,” दूसरे ने चुटकी ली.

“कुछ भी कहो, यार पर मुझे तो सारी अंगरेजन लड़कियों को देख कर तो बस एक ही फीलिंग आती है कि ये सब वैसी वाली फिल्मों की ही हीरोइनें हैं.”

इस पर सभी जोर के ठहाके लगाते हुए हंसते.

उधर औरतों की जमात में भी आजकल बातचीत का मुद्दा रोजी ही थी.

“सुना है रूप की बहू मुंह उघाड़ कर घूमती है,” पहली औरत बोली.

“न जी न कोई झूठ न बुलवाए. अभी कल ही उस से मिल कर आई हूं, बड़ी गुणवान सी लगी मुझे और कल तो उस ने घाघराचोली पहना था और अपने सिर को भी ढंकने की कोशिश कर रही थी पर अभी नईनई है न इसलिए पल्लू बारबार खिसक जा रहा था,”दूसरी औरत ने कहा.

“पर जरा यह तो बताओ कि दोनों में बातचीत किस भाषा में होती होगी ? रूप इंग्लिश सीखे या फिर अंगरेजन बहू को हिंदी सीखनी पड़ेगी,” तीसरी औरत ने कहा.

और उन की बात सच ही साबित हुई. रोजी को नया काम सीखने का इतना चाव था कि काफी हद तक घर का कामकाज भी सीखने लगी थी.

रोजी के गांव में आने से जवान तो जवान बल्कि बूढ़े भी उस की खूबसूरती के दीवाने हो गए थे और आहें भरा करते थे. कुछ युवक तो रोजी की एक झलक पाने के लिए रूप से बहाने से मिलने भी आ धमकते.

गांव के पुरुषों को लगता था कि एक विलायती बहू के लिए तो किसी से भी शारीरिक संबंध बना लेना बहुत ही सहज होता है.

रोजी के सासससुर को शुरुआत में तो अपनी विलायती बहू के साथ आंकड़ा बैठाने में समस्या हुई पर मन से न सही ऊपर मन से ही सास रोजी को मानने का नाटक करने ही लगी थीं.
दूसरों की क्या कही जाए रूप का चचेरा भाई शेरू भी अपनी रिश्ते की भाभी पर बुरी नजर लगाए हुए था.

रूप और शेरू का घर एकदूसरे से कुछ ही दूरी पर था इसलिए शेरू दिन में कई बार आता और बहाने से रोजी के आसपास मंडराता. ऐसा करने के पीछे भी उस की यही मानसिकता थी कि अंगरेजन तो कई मर्दों से संबंध  बना लेती हैं और इन के लिए
पति बदलना माने चादर बदलना होता है.

क्या पता कब दांव लग जाए और अपने पति की गैरमौजूदगी में कब रोजी का मूड बन जाए और शेरू को उस के साथ अपने जिस्म की आग निकालने का मौका मिल जाए.

पर रोजी बेचारी इन सब बातों से अनजान भारत में ही रह कर यहां के लोगों को समझ रही थी और रीतिरिवाज सीख रही थी.

इस सीखने में एक बड़ी बाधा तब आई जब रोजी को शादी के बाद माहवारीचक्र से गुजरना था. रोजी ने पढ़ रखा था कि इन दिनों में गांव में बहुत ही नियमों का पालन किया जाता है इसलिए उस ने इस बारे में अपनी सास को बता दिया.

रोजी की सास ने उसे कुछ नसीहतें दीं और यह भी बताया कि अभी वे लोग पास के गांव में एक समारोह में जा रहे हैं और चूंकि उसे अभी किचन में प्रवेश नहीं करना है इसलिए सासूमां ने उसे बाहर ही नाश्ता भी दे दिया और घर के लोग चले गए.

रोजी घर में अकेली रह गई. उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. नाश्ता शुरू करने से पहले रोजी की चाय ठंडी हो गई थी और चाय को गरम करने के लिए उसे किचन में जाना था.

‘सासूमां तो किचन में जाने को मना कर गई हैं. कोई बात नहीं बाहर से किसी बच्चे को बुला कर उसे किचन में भेज कर चाय गरम करवा लेती हूं,’ ऐसा सोच कर रोजी ने दरवाजा खोल कर बाहर की ओर झांका तो सामने ही आसपड़ोस के कुछ किशोर लड़के बैठेबैठे गाना सुन रहे थे.

“भैयाजी, जरा इधर आना तो… मेरा एक छोटा सा काम कर देना,” रोजी ने एक लड़के को उंगली से इशारा कर के बुलाया और खुद अंदर चली गई.

रोजी घर में अकेली है, यह उन बाहर बैठे हुए लड़कों को पता था हालांकि रोजी की नजर में वे लड़के अभी बच्चे ही थे पर उसे क्या पता कि ये बच्चे उस के बारे में क्या सोचे बैठे हैं…

“अबे भाई तेरी तो लौटरी लग गई. विलायती माल घर में अकेली है और तुझे इशारे से बुला रही है. जा मजे लूट.”

“हां, एक काम जरूर करना दोस्त, उस की वीडियो जरूर बना लेना,” एक ने कहा.

मन में ढेर सारी कामुक कल्पनाएं ले कर वह किशोर लड़का अंदर आया तो रोजी ने निश्छल भाव से उस से चाय गरम कर देने को कहा.

लड़का मन ही मन खुश हुआ और उस ने सोचा कि य. तो हंसीनाओं के अंदाज होते हैं. उस ने चाय गरम कर के रोजी को प्याली पकड़ाई और उस की उंगलियों को छूने का उपक्रम करते हुए उस के सीने को जोर से भींच लिया.

इस बदतमीजी से रोजी चौंक उठी और गुस्से में भर उठी. एक जोरदार तमाचा उस ने उस लड़के के गाल पर रसीद दिए. गाल सहलाता रह गया वह लड़का मगर फिर भी रोजी से जबरदस्ती करने लगा. रोजी ने उसे
धक्का दे दिया. तभी इतने में रूप खेतों पर से वापस आ गया. रोजी जा कर उस से लिपट गई और कहने लगी कि यह लड़का उसे छेड़ रहा है.

इस से पहले कि सारा माजरा रूप की समझ में आ पाता नीचे गिरा हुआ लड़का जोर से रोजी की तरफ मुंह कर के चिल्लाने लगा,”पहले तो इशारे से बुलवाती हो और जब कोई पीछे से आ जाता है तो छेड़ने का आरोप लगाती हो. अरे वाह रे त्रियाचरित्र…” वह लड़का चीखते हुए बोला.

“रूप इस का भरोसा नहीं करना. यह गंदी नीयत डाल रहा था मुझ पर. मेरा भरोसा करो.”

रोजी की बात पर रूप को पूरा भरोसा था इसलिए उस ने तुरंत ही उस लड़के के कालर पकङे और धक्का देते हुए दरवाजे तक ले आया.

तब घर के बाहर उस के पड़ोसियों की भीड़ जमा होते देख कर उस ने खुद ही मामला रफादफा कर दिया और उस लड़के को डांट कर भगा दिया.

उस दिन की घटना के बारे में भले ही लोग पीठ पीछे बातें करते रहे पर सामने कोई कुछ नहीं कह सका.

यह पहली दफा था जब रोजी को गांव में शादी कर के आना खटक रहा था. वह इस घटना से अंदर तक हिल गई थी पर जब रात को रूप ने उसे अपनी बांहों में भर लिया और जीभर कर प्यार किया तो उस के मन का भारीपन थोड़ा कम हुआ.

एक दिन की बात है. रूप किसी काम से शहर गया हुआ था तब मौका देखकर शेरू रोजी की सास के पास आया और आवाज में लाचारी भर कर बोला,”ताईजी, दरअसल बात यह है कि आप की बहू की तबीयत अचानक खराब हो गई है और मुझे शाम होने से पहले शहर
जा कर दवाई लानी है और अब आनेजाने का कोई साधन नहीं है, जो मुझे शाम से पहले शहर पहुंचा दे.”

“हां तो उस में क्या है शेरू, तू रूप की गाड़ी ले कर चला जा. खाली ही तो खड़ी है,”रोज़ी की सासूमां ने कहा.

“हां सो तो है ताईजी, पर आप तो जानती हो कि मैं गाड़ी चलाना नहीं जानता. अगर आप इजाजत दो तो मैं भाभी को अपने साथ लिए जाऊं? वे तो विदेशी हैं और गाड़ी तो चला ही लेती हैं. हम बस यों जाएंगे और बस यों आएंगे.”

शेरू की बात सुन कर रोजी की सास हिचकी, पर उस ने इतनी लाचारी से यह बात कही थी कि वे चाह कर भी मना नहीं कर पाईं.

“अरे बहू, जरा गाड़ी निकाल कर शेरू के साथ चली जा. शहर से कोई दवा लानी है इसे,” रोजी की सास ने कहा.

“जी मांजी, चली जाती हूं.”

“और सुन, जरा धीरे गाड़ी चलाना. यह गांव है हमारा, तेरा विदेश नहीं,” सासूमां ने मुस्कराते हुए कहा.

रोजी को क्या पता था कि शेरू की नीयत में ही खोट है. उस ने गाड़ी निकाली और शेरू कृतज्ञता से हाथ जोड़ कर बैठ गया. रोजी ने गाड़ी बढ़ा दी.

गांव से कुछ दूर निकल आने के बाद एक सुनसान जगह पर शेरू दांत चियारते हुए बोला,”भाभी, थोडा गाड़ी रोको… जरा पेशाब कर आएं.”

गाड़ी रुकी तो शेरू झाड़ियों के पीछे चल गया और उस के जाते ही शेरू के 3 दोस्त कहीं से आ गए और शेरू से बातचीत करने लगे और बातें करतेकरते गाड़ी मैं बैठ गए.

इससे पहले कि रोजी कुछ समझ पाती शेरू ने उस का मुंह तेजी से दबा दिया और एक दोस्त ने रोजी के हाथों को रस्सी से बांध दिया और शेरू गाड़ी के अंदर ही रोजी के कपड़े फाड़ने लगा.

रोजी अब तक उन लोगों की गंदी नीयत समझ गई थी. उस के हाथ जरूर बंधे हुए थे पर पैर अभी मुक्त थे. उस ने एक जोर की लात शेरू के मरदाना अंग पर मारी.

दर्द से बिलबिला उठा था शेरू. अपना अंग अपने हाथों से पकड़ कर वहीं जमीन पर लौटने लगा.

इस दौरान उस के एक दोस्त ने रोजी के पैरों को भी रस्सी से बांध दिया और रोजी के नाजुक अंगों से खेलने लगा.

“रुक जाओ, पहले इस विदेशी कुतिया को मैं नोचूंगा. कमीनी ने बहुत तेज मार दिया है. अब इसे मैं बताता हूं कि दर्द क्या होता है.”

एक दरिंदा की तरह वह टूट पङा रोजी पर. रिश्ते की मर्यादा को भी उस ने तारतार कर दिया था. उस के बाद उस के तीनों दोस्तों ने रोजी के साथ बलात्कार किया. चीख भी नहीं सकी थी वह.

बलात्कार करने के बाद उस के हाथपैरों को खोल दिया उन लोगों ने.
जब रोजी की चेतना लौटी तो पोरपोर दर्द कर रहा था. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? पुलिस में रिपोर्ट करे या अपना जीवन ही खत्म कर दे?

पर भला वह जीवन को क्यों खत्म करे? आखिर उस ने क्या गलत क्या किया है? बस इतना कि किसी झूठ बोल कर सहायता मांगने वाले की सहायता की है और फिर किसी के चेहरे को देख कर उस की
नीयत का अंदाजा तो नहीं लगाया जा सकता है न…

‘अगर मैं इसी तरह मर गई तो रूप क्या सोचेगा?’ परेशान रोजी ने पहले यह बात रूप को बताने के लिए सोची और उस के बाद ही कोई फैसला लेने का मन बनाया.

रोजी किसी तरह घर वापस पहुंची तो रूप वहां पहले से ही बैठा हुआ उस की राह देख रहा था. रोजी रूप से लिपट गई और रोने लगी.

“क्या हुआ रोजी? तुम्हारे बदन पर इतने निशान कैसे आए? क्या कोई दुर्घटना हुई है तुम्हारे साथ?” रूप ने रोजी के हाथों और चेहरे को देखते हुए कहा.

“हां, दुर्घटना ही तो हुई है. ऐसी दुर्घटना जिस के घाव मेरे जिस्म पर ही नहीं आत्मा पर भी पहुंचे हैं…”

“पर हुआ क्या है?” सब्र का बाँध टूट रहा था रूप का.

“शेरू ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर मेरे साथ बलात्कार किया है…” फफक पङी थी रोजी.

“क्या… उस ने तुम्हारे साथ ऐसा किया? मैं शेरू को ऐसी सजा दूंगा कि उस की पुश्तें भी कांप उठेंगी. मैं उस को जिंदा नहीं छोडूंगा.”

रूप ने रिवाल्वर पर मुट्ठी कसी, कुछ कदम तेजी से बढ़ाए और फिर अचानक रोजी की तरफ पलटा और बोला,”वैसे, एक बात मुझे समझ नहीं आती कि जब से मैं ने तुम्हें जाना है तब से तुम्हारे साथ कोई न कोई छेड़छाड़ होती ही रहती है. कहीं कोई तुम्हें देख कर घर में घुसता है और कहीं कोई तुम्हारे साथ गैंगरेप करता है. आखिर अपनी गाड़ी चला कर तुम
क्यों गई थीं शेरू को ले कर? सवाल तो तुम पर भी उठ सकते हैं न?”

शेरू के मुंह से निकले ये शब्द उसे बाणों की तरह लग रहे थे. कुछ भी न कह सकी रोजी. आंसुओं में टूट गई थी वह और अपने कमरे की तरफ भाग गई थी.

अगले दिन रोजी पूरे घर में कहीं नहीं थी. अलबत्ता, उस के बिस्तर पर एक कागज रखा जरूर मिला.

कागज में लिखा था-

मेरे रूप,

मैं जब से भारत आई, सब ने मेरी देह को ही देखा और सब ने मेरी देह को ही भोगना चाहा. कहीं किसी ने कुहनी मारी तो किसी ने पीछे से धक्का मारा. तुम्हारी आंखों में पहली बार मुझे सच्चा प्रेम दिखा तो मैं ने तुम से ब्याह रचाया पर अब मुझ पर तुम्हारा विश्वास भी डगमगा रहा है.

माना कि मैं यहां के लिए विदेशी हूं, मगर इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं सब के साथ सो सकती हूं. क्या सब लोग मुझे एक वेश्या भर समझते हैं?

मेरे जाने के बाद मुझे ढूंढ़ने की कोशिश मत करना, क्योंकि मैं अपने घर वापस जा रही हूं. मैं तो यहां की संस्कृति के बारे में जानने और समझने आई थी, पर अब मन भर गया है. अफसोस यह वह भारत नहीं जिस के बारे में मैं ने किताबों में पढ़ा था… Romantic Story

Romantic Story: एक झूठ – इकबाल से शादी करने के लिए क्या था निभा का झूठ?

Romantic Story: इकबाल जल्दीजल्दी निभा के लिए केक बना रहा था. दरअसल, आज निभा का बर्थडे था. इकबाल ने अपने औफिस से छुट्टी ले ली थी. वह निभा को सरप्राइज देना चाहता था.

उस ने निभा की पसंद का खाना बनाया था, पूरा घर सजाया था और निभा के लिए एक खूबसूरत सी ड्रैस भी खरीदी थी. आज की शाम वह निभा के लिए यादगार बना देना चाहता था.

शाम में जब निभा घर लौटी तो इकबाल ने दरवाजा खोला. निभा के अंदर कदम रखते ही इकबाल ने पंखा चला दिया और रंगबिरंगे फूल निभा के ऊपर गिरने लगे. निभा को बांहों में भर कर इकबाल ने धीरे से कहा,”जन्मदिन मुबारक हो मेरी जान.”

इकबाल का हाथ थाम कर निभा ने कहा,”सच इकबाल, तुम मेरी जिंदगी की सच्ची खुशी हो. कितना प्यार करते हो मुझे. ख्वाहिशों का आसमान छू लिया है मैं ने तुम्हारे दम पर… अब तमन्ना यही है मेरा दम निकले तुम्हारे दर पर…”

इकबाल ने उस के होंठों पर उंगली रख दी,”दम निकलने की बात दोबारा मत करना निभा. तुम ने मेरी जिंदगी हो. तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं.”

केक काट कर और गिफ्ट दे कर जब इकबाल ने अपने हाथों से तैयार किया हुआ खाना डाइनिंग टेबल फर सजाया तो निभा की आंखों में आंसू आ गए,”इतना प्यार मत करो मुझ से इकबाल. हम लिवइन में रहते हैं मगर तुम तो मुझे पत्नी से ज्यादा मान देते हो. हमारा धर्म एक नहीं पर तुम ने प्यार को ही धर्म बना दिया. मेरे त्योहार तुम मनाते हो. मेरे रिवाज तुम निभाते हो. मेरा दिल हर बार तुम चुराते हो. कब तक चलेगा ऐसा?”

“जब तक धरती पर मैं हूं और आसमान में चांद है…”

दोनों एकदूसरे की बांहों में खो गए थे. धर्म, जाति, ऊंचनीच, भाषा, संस्कृति जैसे हर बंधन से आजाद उन का प्यार पिछले 5 सालों से परवान चढ़ रहा था.

5 साल पहले एक कौमन फ्रैंड की पार्टी में दोनों मिले थे. उस वक्त दोनों ही दिल्ली में नए थे और जौब भी नईनई थी. समय के साथसाथ दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो गई. एकदूसरे के विचार और व्यवहार से प्रभावित इकबाल और निभा धीरेधीरे करीब आने लगे थे. दोनों के बीच दूरियां सिमटने लगीं और फिर दोनों अलगअलग घर छोड़ कर एक ही घर में शिफ्ट हो गए. किराया तो बचा ही जीवन को नई खुशियां भी मिलीं.

जल्दी ही दोनों ने मिल कर एक फ्लैट किस्तों पर ले लिया. दोनों मिल कर मकान की किस्त भी देते और घर के दूसरे खर्चे भी करते. दोनों के बीच प्यार गहरा होता गया. रिश्ता गहरा हुआ तो दोनों ने घर वालों को बताने की सोची.

इकबाल के घर वालों में केवल मां थीं जो बहुत सीधी थीं. वह तुरंत मान गई थीं. मगर निभा के यहां स्थिति विपरीत थी. उस के पिता इलाहाबाद के जानेमाने उद्योगपति थे. शहर में अपनी कोठी थी. 3-4 फैक्ट्रियां थीं. 100 से ज्यादा मजदूर काम करते थे. उन की शानोशौकत ही अलग थी. पैसों की कोई कमी नहीं थी पर पतिपत्नी दोनों ही अव्वल दरजे के धार्मिक और कट्टरमिजाज थे. मां अकसर ही धार्मिक कार्यक्रमों में शरीक हुआ करती थीं.

धर्म की तो बात ही अलग है. यहां तो जाति के साथसाथ गोत्र, वर्ण, कुंडली सब कुछ देखा जाता था. ऐसे में निभा को हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि वह घर वालों से कुछ कहे.

एक बार दीवाली की छुट्टियों में जब वह घर गई तो उसे शादी के लिए योग्य लड़कों की तसवीरें दिखाई गईं. निभा ने तब पिता से सवाल किया,”पापा क्या मैं अपनी पसंद के लड़के से शादी नहीं कर सकती?”

पापा ने गुस्से से उस की तरफ देखा. तब तक मां ने उन्हें चुप रहने का इशारा किया और बोलीं,” देख बेटा, तू अपनी पसंद की शादी करने को तो कर सकती है, पर इतना ध्यान रखना कि लड़का अपने धर्म, अपनी जाति और अपनी हैसियत का होना चाहिए. थोड़ा भी इधरउधर हम स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए प्यार करना भी है तो आंखें खोल कर. वरना तू तो जानती ही है गोलियां चल जाएंगी.”

“जी मां,” कह कर निभा खामोश हो गई.

उसे पता था कि इकबाल के बारे में बता कर वह खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी दे मारेगी. इसलिए उस ने रिश्ते का सच छिपाए रखना ही उचित समझा. वक्त इसी तरह बीतता रहा.

एक दिन सुबह निभा बड़ी परेशान सी बालकनी में खड़ी थी. इकबाल ने पीछे से उसे बांहों में भरते हुए पूछा,”हमारी बेगम के चेहरे पर उदासी के बादल क्यों छाए हुए हैं?”

निभा ने खुद को छुड़ाते हुए परेशान स्वर में कहा,”क्योंकि आप के शहजादे दुनिया में आने के लिए निकल चुके हैं.”

“क्या?”

“हां इकबाल. मैं मां बनने वाली हूं और यह जिम्मेदारी मैं अभी उठा नहीं सकती. एक तरफ घर वालों को कुछ पता नहीं और दूसरी तरफ मेरा कैरियर भी पीक पर है. मैं यह रिस्क अभी नहीं ले सकती.”

“तो ठीक है निभा गर्भपात करा लो. मुझे भी यही सही लग रहा है.”

“पर क्या यह इतना आसान होगा?”

“आसान तो नहीं होगा बट डोंट वरी, हम पतिपत्नी की तरह व्यवहार करेंगे और कहेंगे कि एक बच्चा पहले से है और इसलिए अभी दूसरा बच्चा इतनी जल्दी नहीं चाहते.”

“देखो क्या होता है. शाम को आ जाना मेरे औफिस में. वहीं से लैडी डाक्टर के पास चलेंगे. ”

और फिर निभा ने वह बच्चा गिरा दिया. इस के 5-6 महीने बाद एक बार फिर गर्भपात कराना पड़ा. निभा को काफी अपराधबोध हो रहा था. शरीर भी कमजोर हो गया था. पर वह करती क्या…. उसे कोई और रास्ता ही समझ नहीं आया था. पर अब इस बात को ले कर वह काफी सतर्क हो गई थी और जरूरी ऐहतियात भी लेने लगी थी.

एक दिन औफिस में ही उस के पास खबर आई कि उस के पिता का ऐक्सीडैंट हो गया है और वे काफी गंभीर अवस्था में हैं. निभा एकदम बदहवाश सी घर लौटी और जरूरी सामान बैग में डाल कर निकल पड़ी. अगली सुबह वह हौस्पिटल में थी. उस के पापा आखिरी सांसें ले रहे थे.

उसे देखते ही पापा ने कुछ बोलने की कोशिश की तो वह करीब खिसक आई और हाथ पकड़ कर कहने लगी,” बोलो पापा, आप क्या कहना चाहते हैं?”

“बेटा मैं चाहता हूं कि मेरा सारा काम तुम्हारा चचेरा भाई नहीं बल्कि तुम संभालो. वादा कर बेटा…”

निभा ने उन के हाथों पर अपना हाथ रख कर वादा किया. फिर कुछ ही देर बाद उन का देहांत हो गया. अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया कर वह 14 दिनों बाद दिल्ली लौटी. इकबाल भी औफिस से जल्दी आ गया था. निभा उस के गले लग कर बहुत रोई और फिर अपना सामान पैक करने लगी.

इकबाल चौंकता हुआ बोला,”यह क्या कर रही हो निभा?”

“मुझे हमेशा के लिए घर लौटना पड़ेगा इकबाल. पापा ने वादा लिया है मुझ से. उन का सारा कारोबार मुझे संभालना है.”

“वह तो ठीक है मगर एक बार मेरी तरफ भी तो देखो. मैं यहां अकेला तुम्हारे बिना कैसे रहूंगा? मकान की किस्तें, अकेलापन और तुम्हारे बिना जीने का दर्द कैसे उठा पाऊंगा? नहीं निभा नहीं. मैं नहीं रह पाऊंगा ऐसे…”

“रहना तो पड़ेगा ही इकबाल. अब मैं क्या करूं?”

“मत जाओ निभा. यहीं से संभालो अपना काम. कोई मैनेजर नियुक्त कर लो जो तुम्हें जरूरी जानकारी देता रहेगा.”

“इकबाल लाखोंकरोड़ों का कारोबार ऐसे नहीं संभलता. पापा अपने कारोबार के प्रति बहुत जनूनी थे. उन्होंने कोई भी काम मातहतों पर नहीं छोड़ा. हर काम में खुद आगे रहते थे. तभी आज इस मुकाम तक पहुंचे. उन्हें मेरे चचेरे भाई पर भी यकीन नहीं. मेरे भरोसे छोड़ कर गए हैं सब कुछ और मैं उन को दिया गया अंतिम वचन कभी तोड़ नहीं सकती.”

“और मुझ से किए गए प्यार के वादे? उन का क्या? उन्हें ऐसे ही तोड़ दोगी? नहीं निभा, तुम्हारे बिना मैं यहां 2 दिन भी नहीं रह सकता.”

“तो फिर चले आओ न…” आंखों में चमक लिए निभा ने कहा.

“मतलब?”

“देखो इकबाल, तुम एक बार मेरे पास इलाहाबाद आ जाओ. हमें एकदूसरे की कंपनी मिल जाएगी और फिर देखेंगे…कोई न कोई रास्ता भी निकाल ही लेंगे.”

फिर क्या था 10 दिन के अंदर ही इकबाल इलाहाबाद पहुंच गया. दोनों ने एक होटल में मुलाकात कर आगे की योजना तैयार की.

अगली सुबह इकबाल मैनेजर बन कर निभा के घर में खड़ा था. निभा ने अपनी मां से इकबाल का परिचय कराया,” मां यह बाला हैं. हमारे नए मैनेजर.”

इकबाल ने बढ़ कर मां के पैर छू लिए तो मां एकदम से अलग होती हुई बोलीं,”अरे नहीं बेटा. तुम मैनेजर हो. मेरे पैर क्यों छू रहे हो?”

“क्योंकि बड़ों के आशीर्वाद से ही सफलता के रास्ते खुलते हैं मां.”

“बेटा अब तुम ने मुझे मां कहा है तो यही आशीष देती हूं कि तुम्हारी हर इच्छा पूरी हो.”

बाला यानी इकबाल ने हाथ जोड़ कर आशीर्वाद लिया और अपने काम में लग गया. निभा ने मां को बताया, “मां, दरअसल बाला कालेज में मेरा क्लासमैट था. इस ने एमबीए की पढ़ाई की हुई है. पढ़ाई के बाद कुछ समय से दिल्ली में काम कर रहा था. यहां मुझे अकेले इतना बड़ा कारोबार संभालना था तो मेरी हैल्प के लिए आया है. वैसे इस का घर तो जमशेदपुर में है. यहां बिलकुल अकेला है यह. मां, क्या हम इसे अपने बड़े से घर में रहने के लिए एक छोटा सा कमरा दे सकते हैं?”

“क्यों नहीं बेटा? इसे गैस्टरूम में ठहरा दो. कुछ दिनों में यह खुद अपने लिए कोई घर ढूंढ़ लेगा.”

“जी मां…” कह कर निभा अपने कैबिन में चली गई. योजना का पहला चरण सफलतापूर्वक संपन्न हुआ था. इकबाल घर में आ भी गया था और मां को कोई शक भी नहीं हुआ था. मैनेजर के रूप इकबाल बाला बन कर निभा के साथ काम करने लगा.

धीरेधीरे समय बीतने लगा. इकबाल और निभा ने मिल कर कारोबार अच्छी तरह संभाल लिया था. मां भी खुश रहने लगी थीं. इकबाल समय के साथ मां के संग काफी घुलमिल गया. वह मां की हरसंभव सहायता करता. हर मुश्किल का हल निकालता. बेटे की तरह अपनी जिम्मेदारियां निभाता. यही नहीं, कई बार उस ने अपने हाथों से बना कर मां को स्वादिष्ठ खाना भी खिलाया. उस के बातव्यवहार से मां बहुत खुश रहती थीं.

इस बीच दीवाली आई तो इकबाल ने उन के साथ मिल कर त्योहार मनाया. किसी को कभी एहसास ही नहीं हुआ कि वह हिंदू नहीं है.

एक बार कारोबार के किसी काम के सिलसिले में निभा को दिल्ली जाना था. इकबाल भी साथ जा रहा था. तभी मां ने कहा कि वे भी दिल्ली घूमना चाहती हैं. बस फिर क्या था, तीनों ने काम के साथसाथ घूमने का भी कार्यक्रम बना लिया.

तीनों अपनी गाड़ी से दिल्ली के लिए निकले. लेकिन नोएडा के पास हाईवे पर अचानक निभा की गाड़ी का ऐक्सीडैंट हो गया. उस वक्त निभा गाड़ी चला रही थी और मां बगल में बैठी थीं. ऐक्सीडैंट इतना भयंकर हुआ कि गाड़ी पूरी तरह डैमेज हो गई. निभा को गहरी चोटें लगीं पर उतनी नहीं जितनी मां को लगीं. मां के सिर में कांच घुस गए थे और खून बह रहा था. वह बीचबीच में होश में आ रही थीं और फिर बेहोश हो जा रही थीं.

करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर एक बड़ा अस्पताल था. निभा ने मां को वहीं ऐडमिट करने का फैसला लिया.

रात का समय था. हाईवे का वह इलाका थोड़ा सुनसान था. हाथ देने पर भी कोई भी गाड़ी रुकने का नाम नहीं ले रही थी. कोई और उपाय न देख कर इकबाल ने मां को गोद में उठाया और तेजी से अस्पताल की तरफ भागा. पीछेपीछे निभा भी भाग रही थी.

निभा ने ऐंबुलैंस वाले को काल किया मगर ऐंबुलैंस को आने में वक्त लग रहा था. इतनी देर में इकबाल खुद ही मां को गोद में उठाए अस्पताल पहुंच गया.

मां को तुरंत आईसीयू में ऐडमिट किया गया. उन्हें खून की जरूरत थी. संयोग था कि इकबाल का ब्लड ग्रुप ओ पौजिटिव था. उस ने मां को अपना खून दे दिया. मां को बचा लिया गया था. इस दौरान इकबाल लगातार दौड़धूप करता रहा.

इस घटना ने मां के दिल में इकबाल की जगह बहुत ऊंची कर दी थी. वापस घर लौट कर एक दिन मां ने इकबाल को सामने बैठाया और प्यार से उस के बारे में सब कुछ पूछने लगीं. पास ही निभा भी बैठी हुई थी.

निभा ने मां का हाथ पकड़ कर कहा,”मां मैं आज आप से एक हकीकत बताना चाहती हूं.”

“वह क्या बेटा?”

“मां यह बाला नहीं इकबाल है. हम ने झूठ कहा था आप से.”

इतना कह कर वह खामोश हो गई और मां की तरफ देखने लगी. मां ने गौर से इकबाल की तरफ देखा और वहां से उठ कर अपने कमरे में चली गईं. दरवाजा बंद कर लिया. निभा और इकबाल का चेहरा फक्क पड़ गया. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब इस परिस्थिति से कैसे निबटें.

अगले दिन तक मां ने दरवाजा नहीं खोला तो निभा को बहुत चिंता हुई. वह दरवाजा पीटती हुई रोतीरोती बोली,”मां, माफ कर दो हमें. तुम नहीं चाहती हो तो मैं इकबाल को वापस भेज दूंगी. गलती मैं ने की है इकबाल ने नहीं. मैं ने ही उसे बाला बन कर आने को कहा था. प्लीज मां, माफ कर दो.”

मां ने दरवाजा खोल दिया और मुंह घुमा कर बोलीं,”गलती तुम्हारी नहीं. गलती बाला की भी नहीं. गलती तो मेरी है जो मैं उसे पहचान न सकी.”

निभा और इकबाल परेशान से एकदूसरे की तरफ देखने लगे. तभी पलटते हुए मां ने हंस कर कहा,”बेटा, मैं ही पहचान न सकी कि तुम दोनों के बीच कितना गहरा प्यार है. इकबाल कितना अच्छा इंसान है. धर्म या जाति से क्या होता है? यदि सोचो तो समझ आएगा. बेटा, पलभर में मेरा धर्म भी तो बदल गया न जब इकबाल ने मुझे अपना खून दिया. मेरे शरीर में उसी का खून तो बह रहा है. फिर क्या अंतर है हम में या उस में. इतने दिनों में जितना मैं ने समझा है इकबाल मुझे एक शरीफ, ईमानदार और साथ निभाने वाले लड़का लगा है. इस से बेहतर जीवनसाथी तुम्हें और कौन मिलेगा?”

“सच मां, आप मान गईं…” कह कर खुशी से निभा मां के गले लग गई. आज उसे जिंदगी की सब से बड़ी खुशी मिल गई थी. पास ही इकबाल भी मुसकराता हुआ अपने आंसू पोंछ रहा था. Romantic Story

Social Story In Hindi: धमाका – क्यों शेफाली की जिंदगी बदल गई?

Social Story In Hindi: वह है शेफाली. मात्र 24-25 वर्ष की. सुंदर, सुघड़, कुंदन सा निखरा रूप एवं रंग ऐसा जैसे चांद ने स्वयं चांदनी बिखेरी हो उस पर. कालेघुंघराले बाल मानों घटाएं गहराई हों और बरसने को तत्पर हों. किंतु उस धमाके ने उसे ऐसा बना दिया गोया एक रंगबिरंगी तितली अपनी उड़ान भरना भूल गई हो, मंडराना छोड़ दिया हो उस ने.

मुझे याद है जब हम पहली बार पैरिस में मिले थे. उस ने होटल में चैकइन किया था. छोटी सी लाल रंग की टाइट स्कर्ट, काली जैकेट और ऊंचे बूट पहने बालों को बारबार सहेज रही थी. मेरे पति भी होटल काउंटर पर जरूरी औपचारिकता पूरी कर रहे थे. हम दोनों को ही अपनेअपने कमरे के नंबर व चाबियां मिल गई थीं. दोनों के कमरे पासपास थे. दूसरे देश में 2 भारतीय. वह भी पासपास के कमरों में. दोस्ती तो होनी ही थी. मैं अपने पति व 2 बच्चों के साथ थी और वह आई थी हनीमून पर अपने पति के साथ.

मैं ने कहा, ‘‘हाय, मैं रुचि.’’ उस ने भी हाथ बढ़ाते हुए मुसकरा कर कहा, ‘‘आई एम शेफाली. आप की बेटी बहुत स्वीट है.’’ उस की मुसकराहट ऐसी थी गोया मोतियों की माला पिरोई हो 2 पंखुडि़यों के बीच. रात के खाने के समय बातचीत में मालूम हुआ कि उन्होंने भी वही टूर बुक किया था जो हम ने किया था. अगले ही दिन मैं अपने परिवार के साथ और वह अपने पति के साथ निकल पड़ी ऐफिल टावर देखने, जोकि पैरिस का मुख्य आकर्षण एवं 7 अजूबों में से एक है. वहां पहुंच वह तो बूट पहने भी खटखट करती सीढि़यां चढ़ गई, मगर मैं बस 2 फ्लोर चढ़ कर ही थक गई और फिर वहीं से लगी पैरिस के नजारे देखने और फोटो खिंचवाने. वह और ऊपर तक गई और फिर थोड़ी ही देर में अपने पति के कंधों पर अपने शरीर का बोझ डाल कर व उस की कमर पकड़े चलती हुई लौट आई. हमारे पास आ कर जब उस ने कहा कि क्या आप हमारे फोटो खींचेंगे तो मैं ने कहा हांहां क्यों नहीं?

वह अलगअलग पोज में फोटो खिंचवा रही थी और जब मन होता अपने डायमंड से सजे फोन से सैल्फी भी ले लेती. इस के बाद हम चले पैलेस औफ वर्साइल्स के लिए जोकि अब म्यूजियम में तबदील हो गया है. वहां के लिए स्पैशल ट्रेन चलती है. उस की कुरसियां मखमल के कपड़े से ढकी थीं और ट्रेन में पैलेस के चित्र बने थे. वे दोनों पासपास बैठे एकदूसरे से प्यार भरी छेड़छाड़ कर रहे थे. न चाहते हुए भी मेरा ध्यान उन पर चला ही जाता. आरामदेह और एसी वाली ट्रेन से हम पैलेस औफ वर्साइल्स पहुंचे. इतना बड़ा पैलेस और उस का बगीचा देखते ही बनता था. बगीचे में लगे फुहारे उस की शान को दोगुना कर रहे थे. उस पैलेस की मशहूर चीज है मोनालिसा की पेंटिंग जिसे देखने भीड़ उमड़ी थी. वह उस भीड़ को चीरते हुए आगे जा कर पेंटिंग के फोटो ले आई और मिहिर को इतनी खुशी से दिखा रही थी गोया उस ने कोई किला जीत लिया हो.

पैलेस में यूरोपियन सभ्यता को दर्शाते सफेद पुतले भी हैं, जिन में पुरुष व स्त्रियां वैसे ही नग्न दिखाई गई हैं जैसेकि हमारे अजंताऐलोरा की गुफाओं में. कोई भी पुरुष उन्हें देख अपना नियंत्रण खो ही देगा. वही मिहिर के साथ हुआ और उस ने शेफाली के गालों और होंठों को चूम ही लिया. वैसे भी यूरोप में सार्वजनिक जगहों पर लिप किस तो आम बात है. पति के किस करने पर शेफाली इस तरह इधरउधर देखने लगी कि उन्हें ऐसा करते किसी ने देखा तो नहीं. फिर हम साइंस म्यूजियम, गार्डन आदि सभी जगहें घूम आए. अब था वक्त शौपिंग का. मैं तो हर चीज के दाम को यूरो से रुपए में बदल कर देखती. हर चीज बहुत महंगी लग रही थी. और शेफाली, वह तो इस तरह शौपिंग कर रही थी जैसे कल तो आने वाला ही न हो. हर पल को तितली की तरह मस्त हो कर जी रही थी वह. बस एक ही दिन और बचा था उस का व हमारा वहां पर. अत: शाम को मैट्रो स्टेशन, जोकि अंडरग्राउंड होते हैं और उन में दुकानें भी होती हैं, में भी वह शौपिंग करने लगी. फिर वापसी में जैसे ही हम ट्रेन पकड़ने को दौड़े तो वह पीछे रह गई. हम सब के ट्रेन में चढ़ते ही ट्रेन के दरवाजे बंद हो गए और वह रवाना हो गई. मैं चलती ट्रेन से उसे देख रही थी. एक बार को तो लगा कि अब क्या होगा? लेकिन अगले ही स्टेशन पर हम उतरे और उस का पति उलटी दिशा में जाती ट्रेन में चढ़ कर उसे 5 ही मिनट में ले आया.

मैं ने जब उस से पूछा कि तुम्हें डर नहीं लगा तो वह कहने लगी कि बिलकुल नहीं. उसे मालूम था कि मिहिर उसे लेने जरूर आएगा. मैं सोच रही थी कि कितने कम समय में वह अपने पति को पूरी तरह पहचान गई है. होटल में रात के खाने के समय वह हमारे पास आ कर कहने लगी कि भारत जा कर न जाने हम मिलें न मिलें, इसलिए चलिए आज साथ ही खाना खाते हैं. मेरी 7 वर्षीय बेटी उस से बहुत हिलमिल गई थी. अगले दिन सुबह हम वक्त से पहले तैयार हो गए. नाश्ता कर अपने पैरिस के अंतिम दिन का लुत्फ उठाने होटल से सड़क पर आ गए. अपने टूर की बस की राह देखते हुए चहलकदमी कर ही रहे थे कि तभी एक जोर के धमाके की आवाज आई और फिर न जाने कहां से कुछ लोग आ कर धायंधायं गोलियां बरसाने लगे. जिसे जहां जगह मिली छिप गया. मेरे पति बेटी को गोद में उठा कर भाग रहे थे और मेरा बेटा मेरे साथ भाग रहा था. मैं एक कार के पीछे छिप गई थी. तभी शेफाली का भागते हुए पैर मुड़ गया. उस का पति उसे गोद में ले कर भागा, किंतु इसी बीच 1 गोली उस के पैर में व 1 पीठ में लग गई. अगले ही पल शेफाली चीखचीख कर पुकार रही थी कि मिहिर उठो, मिहिर भागो. पर शायद मिहिर इस दुनिया को अलविदा कह चुका था. बाद में मालूम हुआ वह एक आतंकी हमला था. पुलिस वहां पहुंच चुकी थी. बंदूकधारी वहां से भाग चुके थे. मैं यह सब कार के पीछे छिपी देख रही थी. पुलिस वाले मिहिर को अस्पताल ले गए, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया.

मैं शेफाली को संभालने की कोशिश कर रही थी. उस का रोरो कर बुरा हाल था. शाम को जिस विमान से हनीमून का जोड़ा लौटने वाला था उस तक सिर्फ शेफाली जीवित पहुंची और मिहिर की लाश. हम भारत अपने शहर मुंबई पहुंचे फिर अगले ही दिन दिल्ली शेफाली के घर पहुंचे. उस के घर मातम पसरा था. शेफाली तो पत्थर हो चुकी थी. न हंसती थी न बोलती थी. हां, मुझे देख कर मुझ से लिपट कर रो पड़ी. मैं उस से कह रही थी, ‘‘रो मत शेफाली. सब ठीक हो जाएगा.’’ किंतु मैं स्वयं अपनेआप को नहीं रोक पा रही थी. वह धमाका जो हम ने एकसाथ सुना था, शायद हम उसे हादसा समझ भूल जाएं, लेकिन शेफाली की तो उस ने दुनिया ही उजाड़ दी थी. तब से वह पत्थर की मूर्ति बन गई है. ऐसा लगता है जैसे एक तितली के पर कट गए हों और वह उड़ान भरना भूल गई हो. मैं अब भी सोचती रहती हूं कि काश, वह धमाका न हुआ होता. Social Story In Hindi

Hindi Romantic Story: देह से परे – मोनिका ने आरव से कैसे बदला लिया?

Hindi Romantic Story, लेखिका- निहारिका

लिफ्ट बंद है फिर भी मोनिका उत्साह से पांचवीं मंजिल तक सीढि़यां चढ़ती चली गई. वह आज ही अभी अपने निर्धारित कार्यक्रम से 1 दिन पहले न्यूयार्क से लौटी है. बहुत ज्यादा उत्साह में है, इसीलिए तो उस ने आरव को बताया भी नहीं कि वह लौट रही है. उसे चौंका देगी. वह जानती है कि आरव उसे बांहों में उठा लेगा और गोलगोल चक्कर लगाता चिल्ला उठेगा, ‘इतनी जल्दी आ गईं तुम?’ उस की नीलीभूरी आंखें मारे प्रसन्नता के चमक उठेंगी.

इन्हीं आंखों की चमक में अपनेआप को डुबो देना चाहती है मोनिका और इसीलिए उस ने आरव को बताया नहीं कि वह लौट रही है. उसे मालूम है कि आरव की नाइट शिफ्ट चल रही है, इसलिए वह अभी घर पर ही होगा और इसीलिए वह एयरपोर्ट से सीधे उस के घर ही चली आई है. डुप्लीकेट चाबी उस के पास है ही. एकदम से अंदर जा कर चौंका देगी आरव को. मोनिका के होंठों पर मुसकराहट आ गई.

वह धीरे से लौक खोल कर अंदर घुसी तो घर में सन्नाटा पसरा हुआ था. जरूर आरव सो रहा होगा. वह उस के बैडरूम की ओर बढ़ी. सचमुच ही आरव चादर ताने सो रहा था. मोनिका ने झुक कर उस का माथा चूम लिया.

‘‘ओ डियर अलीशा, आई लव यू,’’ कहते हुए आंखें बंद किए ही आरव ने उसे अपने ऊपर खींच लिया. लेकिन अलीशा सुनते ही मोनिका को जैसे बिजली का करैंट सा लगा. वह छिटक पड़ी.

‘‘मैं हूं, मोनिका,’’ कहते हुए उस ने लाइट जला दी. लेकिन लाइट जलते हो वह स्तब्ध हो गई. आरव की सचाई बेहद घृणित रूप में उस के सामने थी. जिस रूप में आरव और अलीशा वहां थे, उस से यह समझना तनिक भी मुश्किल नहीं था कि उस कमरे में क्या हो रहा था. मोनिका भौचक्की रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे अपने जीवन में ऐसा दृश्य देखना पड़ेगा. आरव को दिलोजान से चाहा है उस ने. उस के साथ जीवन बिताने और एक सुंदर प्यारी सी गृहस्थी का सपना देखा है, जहां सिर्फ और सिर्फ खुशियां ही होंगी, प्यार ही होगा. लेकिन आरव ऐसा कुछ भी कर सकता है यह तो वह सपने में भी नहीं सोच पाई थी. पर सचाई उस के सामने थी.

इस आदमी से उस ने प्यार किया. इस गंदे आदमी से. घृणा से उस की देह कंपकंपा उठी. अपने नीचे गिरे पर्स को उठा कर और आरव के फ्लैट की चाबी वहीं पटक कर वह बाहर निकल आई. खुली हवा में आ कर उसे लगा कि बहुत देर से उस की सांस रुकी हुई थी. उस का सिर घूम रहा था, उसे मितली सी आ रही थी, लेकिन उस ने अपनेआप को संभाला. लंबीलंबी सांसें लीं. तभी आरव के फ्लैट का दरवाजा खुला और आरव की धीमी सी आवाज आई, ‘‘मोनिका, प्लीज मेरी बात सुनो. आई एम सौरी यार.’’

लेकिन जब तक वह मोनिका के पास पहुंचता वह लिफ्ट में अंदर जा चुकी थी. इत्तफाक से नीचे वही टैक्सी वाला खड़ा था जिस से वह एयरपोर्ट से यहां आई थी. टैक्सी में बैठ कर उस ने संयत होते हुए अपने घर का पता बता दिया. टैक्सी ड्राइवर बातूनी टाइप का था. पूछ बैठा, ‘‘क्या हुआ मैडम, आप इतनी जल्दी वापस आ गईं? मैं तो अभी अपनी गाड़ी साफ ही कर रहा था.’’

‘‘जिस से मिलना था वह घर पर नहीं था,’’ मोनिका ने कहा, लेकिन आवाज कहीं उस के गले में ही फंसी रह गई. ड्राइवर ने रियर व्यू मिरर से उस को देखा फिर खामोश रह गया. अच्छा हुआ कि वह खामोश रह गया वरना पता नहीं मोनिका कैसे रिऐक्ट करती. उस की आंखों में आंसू थे, लेकिन दिमाग गुस्से से फटा जा रहा था. क्या करे, क्या करे वह?

आरव ने कई बार उस से कहा था कि आजकल सच्चा प्यार कहां होता है? प्यार की तो परिभाषा ही बदल चुकी है आज. सब कुछ  ‘फिजिकल’ हो चुका है. लेकिन मोनिका ने कभी स्वीकार नहीं किया इस बात को. वह कहती थी कि जो ‘फिजिकल’ होता है वह प्यार नहीं होता. कम से कम सच्चा प्यार तो नहीं ही होता. प्यार तो हर दुनियावी चीज से परे होता है. आरव उस की बातों पर ठहाका लगा कर हंस देता था और कहता था कि कम औन यार, किस जमाने की बातें कर रही हो तुम? अब शरतचंद के उपन्यास के देवदास टाइप का प्यार कहां होता है?

आरव के तर्कों को वह मजाक समझती थी, सोचती थी कि वह उसे चिढ़ा रहा है, छेड़ रहा है. लेकिन वह तो अपने दिल की बात बता रहा होता था. अपनी सोच को उस के सामने रख रहा होता था और वह समझी ही नहीं. उस की सोच, उस के सिद्धांत इस रूप में उस के सामने आएंगे इस की तो कभी कल्पना भी नहीं की थी उस ने. लेकिन वास्तविकता तो यही है कि सचाई उस के सामने थी और अब हर हाल में उसे इस सचाई का सामना करना था.

मोनिका का यों गुमसुम रहना और सारे वक्त घर में ही पड़े रहना उस के डैडी शशिकांत से छिपा तो नहीं था. आज उन्होंने ठान लिया था कि मोनिका से सचाई जान ही लेनी है कि आखिर उसे हुआ क्या है और कुछ भी कर के उसे जीवन की रफ्तार में लाना ही है.

वे, ‘‘मोनिका, माई डार्लिंग चाइल्ड,’’ आवाज देते उस के कमरे में घुसे तो हमेशा की तरह गुडमौर्निंग डैडी कहते हुए मोनिका उन के गले से नहीं झूली. सिर्फ एक बुझी सी आवाज  में बोली, ‘‘गुडमौर्निंग डैडी.’’

‘‘गुडमौर्निंग डियर, कैसा है मेरा बच्चा?’’ शशिकांत बोले.

‘‘ओ.के डैडी,’’ मोनिका ने जवाब दिया. शशिकांत और उन की दुलारी बिटिया के बीच हमेशा ऐसी ही बातें नहीं होती थीं. जोश, उत्साह से बापबेटी खूब मस्ती करते थे, लेकिन आज वैसा कुछ भी नहीं है. शशिकांत जानबूझ कर हाथ में पकड़े सिगार से लंबा कश लगाते रहे, लेकिन मोनिका की ओर से कोई रिऐक्शन नहीं आया. हमेशा की तरह ‘डैडी, नो स्मोकिंग प्लीज,’ चिल्ला कर नहीं बोली वह. शशिकांत ने खुद ही सिगार बुझा कर साइड टेबल पर रख दिया. मोनिका अब भी चुप थी.

‘‘आर यू ओ.के. बेटा?’’ शशिकांत ने फिर पूछा.

‘‘यस डैडी,’’ कहती मोनिका उन के कंधे से लग गई. मन में कुछ तय करते शशिकांत बोले, ‘‘ठीक है, फिर तुझे एक असाइनमैंट के लिए परसों टोरैंटो जाना है. तैयारी कर ले.’’

‘‘लेकिन डैडी…,’’ मोनिका हकलाई.

‘‘लेकिन वेकिन कुछ नहीं, जाना है तो जाना है. मैं यहां बिजी हूं. तू नहीं जाएगी तो कैसे चलेगा?’’ फिर दुलार से बोले, ‘‘जाएगा न मेरा बच्चा? मुझे नहीं मालूम तुझे क्या हुआ है. मैं पूछूंगा भी नहीं. जब ठीक समझना मुझे बता देना. लेकिन बेटा, वक्त से अच्छा डाक्टर कोई नहीं होता. न उस से बेहतर कोई मरहम होता है. सब ठीक हो जाएगा. बस तू हिम्मत नहीं छोड़ना. खुद से मत हारना. फिर तू दुनिया जीत लेगी. करेगी न तू ऐसा, मेरी बहादुर बेटी?’’

कुछ निश्चय सा कर मोनिका ने हां में सिर हिलाया. शशिकांत का लंबाचौड़ा रेडीमेड गारमैंट्स का बिजनैस है जो देशविदेश में फैला हुआ है. उस के लिए आएदिन ही उन्हें या मोनिका को विदेश जाना पड़ता है. मोनिका की उम्र अभी काफी कम है फिर भी अपने डैडी के काम को बखूबी संभालती है वह. इसलिए मोनिका के हां कहते ही शशिकांत निश्चिंत हो गए. वे जानते हैं कि उन की बेटी कितना भी बिखरी हो, लेकिन उस में खुद को संभालने की क्षमता है. वह खुद को और अपने डैड के बिजनैस को बखूबी संभाल लेगी.

निश्चित दिन मोनिका टोरैंटो रवाना हो गई. मन में दृढ़ निश्चय सा कर लिया उस ने कि आरव जैसे किसी के लिए भी वह अपना जीवन चौपट नहीं करेगी. अपने प्यारे डैड को निराश नहीं करेगी. सारा दिन खूब व्यस्त रही वह. आरव क्या, आरव की परछाईं भी याद नहीं आई. लेकिन शाम के गहरातेगहराते जब उस की व्यस्तता खत्म हो गई, तो आरव याद आने लगा. आदत सी पड़ी हुई है कि खाली होते ही आरव से बातें करती है वह. दिन भर का हालचाल बताना तो एक बहाना होता है. असली मकसद तो होता है आरव को अपने पास महसूस करना लेकिन आज? आज आरव की याद आते ही उस से अंतिम मुलाकात ही याद आई. थोड़ी देर बाद मोनिका जैसे अपने आपे में नहीं थी. वह कहां है, क्या कर रही है, उसे कुछ भी होश नहीं था. सिर्फ और सिर्फ आरव और अलीशा की तसवीर

उस की आंखों के सामने घूम रही थी. उसे अपनी हालत का तनिक भी भान नहीं था कि वह होटल के बार में बैठी क्या कर रही है और यह स्मार्ट सा कनाडाई लड़का उसी के बगल में बैठा उसे क्यों घूर रहा है? फिर अचानक ही उस ने मोनिका का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘मे आई हैल्प यू? ऐनी प्रौब्लम?’’

मोनिका जैसे होश में आई. अरे, उस की आंखों से तो आंसू झर रहे हैं. शायद इसीलिए उस लड़के ने मदद की पेशकश कर दी होगी. फिर उस ने अपना गिलास मोनिका की ओर बढ़ा दिया जिसे बिना कुछ सोचेसमझे मोनिका पी गई.

बदला…बदला लेना है उसे आरव से. उस ने जो किया उस से सौ गुना बेवफाई कर के दिखा देगी वह. कनाडाई लड़का एक के बाद एक भरे गिलास उस की ओर बढ़ाता रहा और वह गटागट पीती रही और फिर उसे कोई होश नहीं रहा. थोड़ी देर बाद वह संभली तो अपने रूम में लौटी. फिर दिन गुजरते गए और  मोनिका जैसे विक्षिप्त सी होती गई. अपने डैडी के काम को वह जनून की तरह करती रही. आएदिन विदेश जाना फिर लौटना. इसी भागदौड़ भरी जिंदगी में 6-7 महीने पहले यहीं इंडिया में वह अदीप से मिली और न जाने क्यों धीरेधीरे अदीप बहुत अपना सा लगने लगा.

आरव के बाद वह किसी और से नहीं जुड़ना चाहती थी, लेकिन अदीप उस के दिल से जुड़ता ही जा रहा था. किसी के साथ न जुड़ने की अपनी जिद के ही कारण वह हर बार विदेश से लौट कर सीधेसपाट शब्दों में अपनी वहां बिताई दिनचर्या के बारे में अदीप को बताती रहती थी. कभी न्यूयार्क कभी टोरैंटो, कभी पेरिस तो कभी न्यूजर्सी.

नई जगह, नया पुरुष या वही जगह लेकिन नया पुरुष. ‘मैं किसी को रिपीट नहीं करती’ कहती मोनिका किस को बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही थी, खुद को ही न? और ऐसे में अदीप के चेहरे पर आई दुख और पीड़ा की भावना को क्या सचमुच ही नहीं समझ पाती थी वह या समझना नहीं चाहती थी? लेकिन यह भी सच था कि दिन पर दिन अदीप के साथ उस का जुड़ाव बढ़ता ही जा रहा था.

उस की इस तरह की बातों पर अदीप कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करता था, लेकिन एक दिन उस ने मोनिका से पूछा, ‘‘आरव से बदला लेने की बात करतेकरते कहीं तुम खुद भी आरव तो नहीं बन गईं मोनिका?’’

‘‘नहीं…’’ कह कर, चीख उठी मोनिका, ‘‘आरव का नाम भी न लेना मेरे सामने.’’

‘‘नाम न भी लूं, लेकिन तुम खुद से पूछो क्या तुम वही नहीं बनती जा रहीं, बल्कि शायद बन चुकी हो?’’ अदीप फिर बोला.

‘‘नहीं, मैं आरव से बदला लेना चाहती हूं. उसे बताना चाहती हूं कि फिजिकल रिलेशन सिर्फ वही नहीं बना सकता मैं भी बना सकती हूं और उस से कहीं ज्यादा. मैं उसे दिखा दूंगी.’’ मुट्ठियां भींचती वह बोली. लेकिन न जाने क्यों उस की आंखें भीग गईं. अदीप की गोद में सिर रख कर वह यह कहते रो दी, ‘‘मैं सच्चा प्यार पाना चाहती थी. ऐसा प्यार जो देह से परे होता है और जिसे मन से महसूस किया जाता है. पर मुझे मिला क्या? मेरे साथ तो कुछ हुआ वह तुम काफी हद तक जानते हो. अगर ऐसा न होता तो मैं उस से कभी बेवफाई न करती.’’ मोनिका की हिचकियां बंध गई थीं. अदीप कुछ नहीं बोला सिर्फ उस के बालों में उंगलियां फिराता उसे सांत्वना देता रहा.

कुछ देर रो लेने के बाद मोनिका सामान्य हो गई. सीधी बैठ कर वह अदीप से बोली, ‘‘मुझे कल न्यूयार्क जाना है. 3 दिन वहां रुकंगी. फिर वहां से पेरिस चली जाऊंगी और 4 हफ्ते बाद लौटूंगी.’’ अदीप कुछ नहीं बोला. दोनों के बीच एक सन्नाटा सा पसरा रहा. कुछ देर बाद मोनिका उठी और बोली, ‘‘मैं चलूं.? मुझे तैयारी भी करनी है.’’

मोनिका आरव से बहुत प्यार करती थी. मगर उस ने ही उसे धोखा दिया. फिर आरव से बदला लेने के लिए मोनिका ने कौन सा रास्ता चुना…

‘‘मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ हर बार की तरह इस बार भी अदीप का छोटा सा जवाब था.

एकाएक तड़प उठी मोनिका, ‘‘क्यों मेरा इंतजार करते हो तुम अदीप? और सब कुछ जानने के बाद भी. हर बार विदेश से लौट कर मैं सब कुछ सचसच बता देती हूं. फिर भी तुम क्यों मेरा इंतजार करते हो?’’

अदीप सीधे उस की आंखों में झांकता हुआ बोला, ‘‘क्या तुम सचमुच नहीं जानतीं मोनिका कि मैं तुम्हारा इंतजार क्यों करता हूं? मेरे इस प्रेम को जब तक तुम नहीं पहचान लेतीं, जब तक स्वीकार नहीं कर लेतीं, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

मोनिका की हिचकियां सी बंध गईं. अदीप के कंधे से लगी वह सुबक रही थी और अदीप उस की पीठ थपक रहा था. देह परे, मोनिका और अदीप का निश्छल प्रेम दोनों के मन को भिगो रहा था. Hindi Romantic Story

Romantic Story In Hindi: रिस्क – क्यों रवि ने मानसी को छोड़ने का रिस्क लिया

Romantic Story In Hindi: इस नए औफिस में काम करते हुए मुझे 3 महीने ही हुए हैं और अब तक मेरे सभी सहयोगी जान चुके हैं कि मैं औफिस की ब्यूटी क्वीन मानसी को बहुत चाहता हूं. मुझे इस बात की चिंता अकसर सताती है कि जहां मैं उस से शादी करने को मरा जा रहा हूं, वहीं वह मुझे सिर्फ अच्छा दोस्त ही बनाए रखना चाहती है.

मानसी और मेरे प्रेम संबंध में और ज्यादा जटिलता पैदा करने वाली शख्सीयत का नाम है, शिखा. साथ वाले औफिस में कार्यरत शोख, चंचल स्वभाव वाली शिखा अकेले में ही नहीं बल्कि सब के सामने भी मेरे साथ फ्लर्ट करने का कोई मौका नहीं चूकती है.

‘‘दुनिया की कोई लड़की तुम्हें उतनी खुशी नहीं दे सकती, जितनी मैं दूंगी. खासकर बैडरूम में तुम्हारे हर सपने को पूरा करने की गारंटी देती हूं,’’ शादी के लिए मेरी ‘हां’ सुनने को शिखा अकेले में मुझे अकसर ऐसे प्रलोभन देती.

‘‘तुम पागल हो क्या? अरे, किसी ने कभी तुम्हारी ऐसी बातों को सुन लिया, तो लोग तुम्हें बदनाम कर देंगे,’’ उस की बिंदास बातें सुन कर मैं सचमुच हैरान हो उठता.

‘‘मुझे लोगों की कतई परवा नहीं और यह साबित करना मेरे लिए बहुत आसान है कि मैं गलत लड़की नहीं हूं.’’

‘‘तुम यह कैसे साबित कर सकती हो?’’

‘‘तुम मुझ से शादी करो और अगर सुहागरात को तुम्हें मेरे वर्जिन होने का सुबूत न मिले तो अगले दिन ही मुझ से तलाक ले लेना.’’

‘‘ओ, पागलों की लीडर, तू मेरा पीछा छोड़ और कोई नया शिकार ढूंढ़,’’ मैं ने नाटकीय अंदाज में उस के सामने हाथ जोड़े, तो हंसतेहंसते उस के पेट में दर्द हो गया.

मानसी को शिखा फूटी आंख नहीं सुहाती है. मेरी उस पागल लड़की में कोई दिलचस्पी नहीं है, बारबार ऐसा समझाने पर भी मानसी आएदिन शिखा को ले कर मुझ से झगड़ा कर ही लेती.

उस ने पिछले हफ्ते से जिद पकड़ ली थी कि मैं शिखा को जोर से डांट कर सब के बीच एक बार अपमानित करूं, जिस से कि वह मेरे साथ बातचीत करना बिलकुल बंद कर दे.

‘‘मेरी समझ से वह हलकेफुलके मनोरंजन के लिए मेरे साथ फ्लर्ट करने का नाटक करती है. उसे सब के बीच अपमानित करना गलत होगा, क्योंकि वह दिल की बुरी नहीं है, मानसी,’’ मेरे इस जवाब को सुन मानसी ने 2 दिन तक मुझ से सीधे मुंह बात नहीं की थी.

मैं ने तंग आ कर दूसरे दिन शिखा को लंच टाइम में सख्ती से समझाया, ‘‘मैं बहुत सीरियसली कह रहा हूं कि तुम मुझ से दूर रहा करो.’’

‘‘क्यों,’’ उस ने आंखें मटकाते हुए कारण जानना चाहा.

‘‘क्योंकि तुम्हारा मेरे आगेपीछे घूमना मानसी को अच्छा नहीं लगता है.’’

‘‘उसे अच्छा नहीं लगता है तो मेरी बला से.’’

‘‘बेवकूफ, मैं उस से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘मुझ से बड़े बेवकूफ, मानसी मुझ से जरा सी ज्यादा सुंदर जरूर है, पर मैं दावे से कह रही हूं कि मेरी जैसी शानदार लड़की तुम्हें पूरे संसार में नहीं मिलेगी.’’

‘‘देवी, तू मेरे ऊपर लाइन मारना छोड़ दे.’’

‘‘मैं अपने पापी दिल के हाथों मजबूर होने के कारण तुम से दूर नहीं रह सकती हूं, लव.’’

‘‘मुहावरा तो कम से कम ठीक बोल, मेरी जान की दुश्मन. पापी पेट होता है, दिल नहीं.’’

‘‘तुम्हें क्या पता कि मेरा पापी दिल सपनों में तुम्हारे साथ कैसेकैसे गुल खिलाता है,’’ इस डायलौग को बोलते हुए उस के जो सैक्सी हावभाव थे, उन्हें देख कर मैं ऐसा शरमाया कि उस से आगे कुछ कहते नहीं बना.

पिछले हफ्ते मानसी ने अब तक मुझ से शादी के लिए ‘हां’ ‘ना’ कहने के पीछे छिपे कारण बता दिए, ‘‘मेरे मम्मीपापा की आपस में कभी नहीं बनी. पापा अभी भी मम्मी पर हाथ उठा देते हैं. भाभी घर में बहुत क्लेश करती हैं. मेरी बड़ी बहन अपने 3 साल के बेटे के साथ मायके आई हुई है, क्योंकि जीजाजी किसी दूसरी के चक्कर में पड़ गए हैं, समाज में नीचा दिखाने वाले इन कारणों के चलते मुझे लगता था कि अपनी शादी हो जाने के बाद मैं अपने पति और ससुराल वालों से कभी आंखें ऊंची कर के बात नहीं कर पाऊंगी. अब अगर तुम्हें इन बातों से फर्क न पड़ता हो तो मैं तुम से शादी करने के लिए ‘हां’  कह सकती हूं.’’

‘‘मुझे इन सब बातों से बिलकुल भी फर्क नहीं पड़ता है. आई एम सो हैप्पी,’’ मानसी की ‘हां’ सुन कर मेरी खुशी का सचमुच कोई ठिकाना नहीं रहा था.

उस दिन के बाद मानसी ने बड़े हक के साथ मुझे शिखा से कोई संबंध न रखने की चेतावनी दिन में कईकई बार देनी शुरू कर दी थी. उसे किसी से भी खबर मिलती कि शिखा मुझ से कहीं बातें कर रही थी, तो वह मुझ से झगड़ा जरूर करती.

मैं ने परेशान हो कर एक दिन शिखा की सीट पर जा कर विनती की, ‘‘मानसी मुझ से शादी करने को राजी हो गई है और उसे हमारा ‘हैलोहाय’ करना तक पसंद नहीं है. तुम मुझ से दूर रहा करो, प्लीज.’’

‘‘जब तक मानसी के साथ तुम्हारी शादी के कार्ड नहीं छप जाते, मैं तो तुम से मिलती रहूंगी,’’ उस पागल लड़की ने मेरी विनती को तुरंत ठुकरा दिया था.

‘‘तुम मेरी प्रौब्लम को समझने की कोशिश करो, प्लीज.’’

‘‘और तुम मेरी प्रौब्लम को समझो. देखो, मैं तुम्हें प्यार करती हूं और इसीलिए आखिरी वक्त तक याद दिलाती रहूंगी कि मुझ से बेहतर पत्नी तुम्हें…’’ उस पर अपनी बात का कोई असर न होते देख मैं उस का डायलौग पूरा सुने बिना ही वहां से चला आया था.

किसी झंझट में न फंसने के लिए मैं ने अगले हफ्ते छोटे से बैंकटहौल में हुई अपने जन्मदिन की पार्टी में शिखा को नहीं बुलाया, पर उसे न बुलाने का मेरा फैसला उसे पार्टी से दूर रखने में सफल नहीं हुआ था. वह लाल गुलाब के फूलों का सुंदर गुलदस्ता ले कर बिना बुलाए ही पार्टी में शामिल होने आ गई थी.

‘‘रवि डियर, मुझे यहां देख कर टैंशन मत लो, मैं ने तुम्हें फूल भेंट कर दिए, शुभकामनाएं दे दीं और अब अगर तुम हुक्म दोगे, तो मैं उलटे पैर यहां से चली जाऊंगी,’’ अपनी बात कहते हुए वह बिलकुल भी टैंशन में नजर नहीं आ रही थी.

‘‘अब आ ही गई हो तो कुछ खापी कर जाओ,’’ मुझ से पार्टी में रुकने का निमंत्रण पा कर उस का चेहरा गुलाब की तरह खिल उठा था.

अचानक मानसी हौल में आई उसी दौरान शिखा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे डांस फ्लोर की तरफ ले जाने की कोशिश कर रही थी.

मुझे उस के आने का तब पता चला जब उस ने पास आ कर शिखा को मेरे पास से दूर धकेला और अपमानित करते हुए बोली, ‘‘जब तुम्हें रवि ने पार्टी में बुलाया ही नहीं था, तो क्यों आई हो?’’

‘‘मेरी मरजी, वैसे तुम होती कौन हो मुझ से यह सवाल पूछने वाली,’’ शिखा उस से दबने को बिलकुल तैयार नहीं थी.

‘‘तुझे मालूम नहीं कि हमारी शादी होने वाली है, घटिया लड़की.’’

‘‘तुम मुझ से तमीज से बात करो,’’ शिखा को भी गुस्सा आ गया, ‘‘रवि से तुम्हारी शादी होने वाली बात मैं उसी दिन मानूंगी जिस दिन शादी का कार्ड अपनी आंखों से देख लूंगी.’’

‘‘तुम्हारे जैसी जबरदस्ती गले पड़ने वाली बेशर्म लड़की मैं ने दूसरी नहीं देखी. कहीं तुम किसी वेश्या की बेटी तो नहीं हो?’’

‘‘मेरी मां के लिए अपशब्द निकालने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई,’’ वह मानसी की तरफ झपटने को तैयार हुई, तो मैं ने फौरन उस का हाथ मजबूती से पकड़ कर उसे रोका.

‘‘इसे इसी वक्त यहां से जाने को कहो, रवि,’’ मानसी ऊंची आवाज में कह कर उसे बेइज्जत कर रही थी.

‘‘तुम जरा चुप करो,’’ मैं ने मानसी को जोर से डांटा और फिर हाथ छुड़ाने को मचल रही शिखा से कहा, ‘‘तुम अपने गुस्से को काबू में करो. क्या तुम दोनों ही मेरी पार्टी का मजा खराब करना चाहती हो?’’

शिखा ने फौरन अपने गुस्से को पी कर कुछ शांत लहजे में जवाब दिया, ‘‘नहीं, और तभी मैं इस बेवकूफ को अपने साथ बदतमीजी करने के लिए माफ करती हूं.’’

मेरे द्वारा डांटे जाने से बेइज्जती महसूस कर रही मानसी ने मुझे अल्टीमेटम दे दिया, ‘‘रवि, तुम इसे अभी पार्टी से चले जाने को कहो, नहीं तो मैं इसी पल यहां से चली जाऊंगी.’’

‘‘मानसी, छोटे बच्चे की तरह जिद मत करो.’’

उस ने मुझे टोक कर अपनी धमकी दोहरा दी, ‘‘अगर तुम ने ऐसा नहीं किया, तो तुम मेरे साथ घर बसाने के सपने देखना भूल जाना.’’

‘‘तुम अपना घर बसने की फिक्र न करो, माई लव, क्योंकि मैं तुम से शादी करने को तैयार हूं,’’ शिखा ने बीच में ही यह डायलौग बोल कर बात को और बिगाड़ दिया था.

‘‘तुझ जैसी कई थालियों में मुंह मारने की शौकीन लड़की से कोई इज्जतदार युवक शादी नहीं करेगा,’’ मानसी उसे अपमानित करने वाले लहजे में बोली, ‘‘तुम जैसी आवारा लड़कियों को आदमी अपनी रखैल बनाता है, पत्नी नहीं.’’

अपने गुस्से को काबू में रखने की कोशिश करते हुए शिखा ने मुझे सलाह दी, ‘‘रवि, तुम इस कमअक्ल से तो शादी मत ही करना. इस का चेहरा जरूर खूबसूरत है, पर मन के अंदर बहुत ज्यादा जहर भरा हुआ है.’’

‘‘तुम इसे फौरन पार्टी से चले जाने को कह रहे हो या नहीं,’’ मानसी ने चिल्ला कर अपना अल्टीमेटम एक बार फिर दोहराया, तो मेरी परेशानी व उलझन बहुत ज्यादा बढ़ गई.

मेरी समस्या सुलझाने की पहल शिखा ने की.

‘‘रवि, तुम टैंशन मत लो. पार्टी में हंसीखुशी का माहौल बना रहे, इस के लिए मैं यहां से चली जाती हूं. हैप्पी बर्थडे वन्स अगेन,’’ मेरे कंधे को दोस्ताना अंदाज में दबाने के बाद वह दरवाजे की तरफ बढ़ने को तैयार हो गई थी.

‘‘मैं तुम्हें बाहर तक छोड़ने चलूंगा. जरा 2 मिनट के लिए रुक जाओ, प्लीज.’’

’’तुम इसे बिलकुल भी बाहर तक छोड़ने नहीं जाओगे,’’ मानसी के चहरे की खूबसूरती को गुस्से के हावभावों ने विकृत कर दिया था.

मैं ने गहरी सांस ली और मानसी के पास जा कर बोला, ’’मेरी जिंदगी से निकल जाने की तुम्हारी धमकी को नजरअंदाज करते हुए मैं अपने इस पल दिल में पैदा हुए ताजा भाव तुम से जरूर शेयर करूंगा. सच यही है कि आजकल मेरी जिंदगी में सारी टैंशन तुम्हारे और सारा हंसनामुसकराना शिखा के कारण हो  रहा है. तुम्हारी खूबसूरती के सम्मोहन से निकल कर अगर मैं निष्पक्ष भाव से देखूं, तो मुझे साफ महसूस होता है कि यह जिंदादिल लड़की मेरी जिंदगी की रौनक बन गई है.’’

’’गो, टू हैल,’’ मेरी बात सुन कर आगबबूला  हो उठी मानसी को जन्मदिन की बिना शुभकामनाएं दिए दरवाजे की तरफ जाता देख कर भी मैं ने उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की.

मैं शिखा का हाथ पकड़ कर मुसकराते हुए बोला, ’’ओ, पगली लड़की, मुझे साफ नजर आ रहा है कि अगर तुम मेरी जिंदगी से निकल गई, तो वह रसहीन हो जाएगी. तुम अगर मुझे आश्वासन दो कि तुम अपने जिंदादिल व्यक्तित्व को कभी नहीं मुरझाने दोगी, तो मैं तुम से एक महत्त्वपूर्ण सवाल पूछना चाहूंगा?’’

’’माई डियर रवि, मैं तुम्हारे प्यार में हमेशा ऐसी ही पागल बनी रहूंगी. प्लीज जल्दी से वह खास सवाल पूछो न,’’ वह उस छोटी बच्ची की तरह खुश नजर आ रही थी, जिसे अपना मनपसंद उपहार मिलने की आशा हो.

’’अपने बहुत से शुभचिंतकों की चेतावनी को नजरअंदाज कर मैं तुम्हारे जैसी बिंदास लड़की को अपनी जीवनसंगिनी बनाने का रिस्क लेने को तैयार हूं. क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

’’हुर्रे, मैं तुम से शादी करने को बिलकुल तैयार हूं, माई लव,’’ जीत का जोरदार नारा लगाते हुए उस ने सब के सामने मेरे होंठों पर चुंबन अंकित कर हमारे नए रिश्ते पर स्वीकृति की मुहर लगा दी थी. Romantic Story In Hindi

Family Story In Hindi: पानी पानी – आखिर समता क्यों गुमसुम रहने लगी?

Family Story In Hindi: अमित अपनी मां के साथ दिल्ली के पटेल नगर वाले मकान में था कि इतने में उस का फोन बजता है. सामने फोन पर प्राची है. अमित कुछ कह पाता, उस से पहले उस की भावभंगिमा बंद होने लगती  है. उस के हाथ कांपने लगते हैं. चेहरे का रंग पीला पड़ जाता है. वह घबरा कर अपनी मां की तरफ देख कर कहता है, ‘‘चिंकू कौन है मां? किस की बात कर रही हैं प्राची दी?’’

बेटे के चेहरे की उड़ी रंगत देख सुलक्षणा घबरा गई. बिस्तर से उठते हुए बेचैन हो कर वह बोली, ‘‘अरे, तेरा बेटा ही तो है चिंकू. और किसी चिंकू को तो मैं जानती नहीं. क्या हुआ, क्या कहा प्राची ने चिंकू के बारे में? कुछ तो बता.’’

‘‘मां, वह नहीं रहा. मेरा बच्चा चिंकू चला गया,’’ कह कर अमित बच्चों की तरह रोने लगा.

‘‘क्या हुआ उसे? ला मेरा फोन दे. शायद प्राची किसी और से बात करना चाह रही थी और तेरा नंबर मिल गया. मैं समता का नंबर लगा लेती हूं. बहू से ही पूछ लेती हूं इस फोन के बारे में. जरूर कुछ गड़बड़ हुई है. हो सकता है तुझ से सुनने में कुछ गलती हुई हो.’’ सुलक्षणा लगातार बोले जा रही थी. टेबल से अपना मोबाइल उठा कर उस ने अपनी बहू समता का नंबर मिला लिया. मोबाइल समता के जीजाजी ने उठाया. सुलक्षणा के कान जो नहीं सुनना चाह रहे थे वही सुनना पड़ा. सचमुच, अमित का 2 वर्षीय बेटा चिंकू इस दुनिया को छोड़ कर जा चुका था.

पिछले सप्ताह ही तो समता अपनी बहन प्राची के घर लखनऊ गई थी. शादी के बाद अमित की व्यस्तता के कारण वह प्राची के पास जा ही नहीं पाई थी. प्राची ही एक बार आ गई थी उस से मिलने. मातापिता तो थे नहीं, इसलिए दोनों बहनें ही एकदूसरे का सहारा थीं. कुछ दिनों पहले फोन पर प्राची ने समता से कहा था कि इस बार अपने बच्चों के स्कूल की छुट्टियों में वह कहीं नहीं जाएगी और समता को उस के पास आना ही पड़ेगा.

समता और चिंकू को लखनऊ छोड़ अमित कल ही दिल्ली वापस आया था. वह गुड़गांव में एक जरमन एमएनसी में मैनेजर के पद पर था. उसे कंपनी का मैनेजमैंट संभालना था, इसलिए वह लखनऊ रुक नहीं पाया और जल्द ही वापस दिल्ली आ गया. घर पहुंच कर उस ने जब समता को फोन किया था तो चिंकू ने समता के हाथ से मोबाइल छीन लिया था. उस की नन्हीं सी ‘एलो’ सुन कर रोमरोम खिल उठा था अमित का. प्यार से उसे ‘लव यू बेटा’ कह कर वह मुसकरा दिया था. चिंकू ने भी अपनी तोतली भाषा में ‘लब्बू पापा’ कह कर जवाब दे दिया था. आखिरी बार अमित ने तभी आवाज सुनी थी चिंकू की. और अब, वह कभी चिंकू की आवाज नहीं सुन पाएगा. कैसे हो गया यह सब.

दुख में डूबा अमित समता के पास जल्दी ही पहुंचना चाहता था. इसलिए उस ने बिना देरी किए फ्लाइट का टिकट बुक करवा लिया और लखनऊ के लिए रवाना हो गया.

अगले दिन ही वह समता को ले कर घर आ गया. उन के घर पहुंचते ही सुलक्षणा फूटफूट कर रोने लगी. अमित मां को कैसे सांत्वना देता, वह तो स्वयं ही टूट गया था. समता चुपचाप जा कर एक कोने में गुमसुम सी हो कर बैठ गई. उस की तो जैसे सोचनेसमझने की शक्ति ही चली गई थी. वह चंचल स्वभाव की थी. वह लोगों के साथ घुलनामिलना पसंद करती थी. लेकिन अब न जाने उस की दुनिया ही लुट गई हो.

धीरेधीरे पड़ोसी एकत्र होने लगे. चिंकू के इस तरह अचानक मौत के मुंह में जाने से सब बेहद दुखी थे.

‘‘कैसा लग रहा होगा समता को. खुद स्विमिंग की चैंपियन थी, अपने कालेज में… और बेटे की छोटी सी टंकी में डूब कर मौत,’’ समता की पुरानी सहेली वंदना दुखी स्वर में बोली.

‘‘बच्चे जब इकट्ठे होते हैं, मनमानी भी तो बहुत करने लगते हैं,’’ ठंडी आह भरते हुए सामने के मकान में रहने वाले मृदुल बोले.

‘‘हम लोग भी तो एकदूसरे में कभीकभी इतना खो जाते हैं कि बच्चों की सुध लेना ही भूल जाते हैं,’’ समता के पड़ोस में रहने वाली मनोविज्ञान की अध्यापिका, मृदुल को जवाब देने के अंदाज में बोल उठी.

‘‘असली बात तो यह है कि मौत के आगे आज तक किसी की नहीं चली. बाद में बस अफसोस ही तो कर सकते हैं. इस के सिवा कुछ नहीं,’’ एक बुजुर्ग महिला के कहने पर सभी कुछ देर के लिए मौन हो गए.

रिश्तेदारों को जब इस दुर्घटना के विषय में पता लगा तो वे प्राची से जानना चाह रहे थे कि आखिर यह सब हुआ कैसे? शोक में डूबी प्राची स्वयं को कुसूरवार समझ रही थी. न ही वह बच्चों को छत पर जाने देती और न ही यह दुर्घटना घटती. क्यों वह समता के साथ बातों में इतनी मशगूल हो गई कि छत पर खेल रहे बच्चों को झांक कर भी नहीं देखा. उस के बच्चे भी तो छोटे ही हैं. बेटी सौम्या 7 वर्ष की और बेटा सार्थक 5 वर्ष का. तभी तो वे समझ ही न पाए कि पानी की टंकी में गिरने के बाद चिंकू हाथपैर मार कर खेल नहीं रहा, बल्कि छटपटा रहा है. खेलखेल में ही क्या से क्या हो गया.

छत के फर्श पर रखी पानी की टंकी का ढक्कन खोल, प्राची के बच्चे उस में हाथ डाल कर मस्ती कर रहे थे. चिंकू ने भी उन की नकल करनी चाही, किंतु वह छोटा था और जब उचक कर उस ने पानी में दोनों हाथ डालने की कोशिश की तो उस का संतुलन बिगड़ गया और अपने को संभाल न पाने के कारण टंकी में ही गिर गया.

प्राची और समता के तब होश उड़ गए थे जब सौम्या ने नीचे आ कर कहा था, ‘‘चिंकू, बहुत देर से पानी में  है, आप निकालो बाहर’’, बेतहाशा दौड़ते हुए वे दोनों छत पर पहुंचीं. पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. अपनी बहन समता के दुख में दुखी प्राची के पास आंसुओं के सिवा कुछ नहीं था.

पड़ोसी और रिश्तेदारों का अमित के घर आनाजाना लगातार जारी था. सब की नम आंखें हृदय का दुख व्यक्त कर पा रही थीं. मन को हलका करने के लिए एकदूसरे से बातें भी कर रहे थे वे. किंतु समता सब से दूर बैठी थी. जब कोई पास जा कर उस से बात करना शुरू करता तो वह अपना चेहरा दूसरी ओर मोड़ लेती. न आंखों में आंसू थे और न ही चेहरे पर कोई भाव. चिंकू का नाम सुनते ही वह कानों पर हाथ रख लेती और सब की बातों को अनसुना कर देती थी.

सब की यही राय थी कि समता को रोना चाहिए, ताकि उस का मन हलका हो पाए और वह भी सब के साथ अपना दुख साझा कर पाए, पर समता तो भावहीन चेहरा लिए एकटक शून्य में ताकती रहती थी.

समता की मानसिक स्थिति को देखते हुए अमित ने मनोचिकित्सक से सलाह ली. मनोचिकित्सक ने बताया कि ऐसे समय में कई बार व्यक्ति की चेतना दुख को स्वीकार नहीं करना चाहती, किंतु अवचेतन मन जानता है कि कुछ बुरा घट चुका है. सो, व्यक्ति का मस्तिष्क कुछ भी सोचना नहीं चाहता. समता के विषय में उस ने कहा कि यदि कुछ और दिनों तक उस की यही हालत रही तो उस के दिमाग के सोचनेसमझने की शक्ति हमेशा के लिए खत्म हो सकती है. चिकित्सक ने सलाह दी कि समता को चिंकू के कपड़े दिखा कर रुलाने का प्रयास करना चाहिए.

डाक्टर की सलाह अनुसार, अमित ने समता को चिंकू के कपड़े, खिलौने और फोटो दिखाए. चिंकू के विषय में जानबूझ कर बातें भी करने लगा वह. सुलक्षणा ने भी चिंकू की शैतानियों के किस्से समता को याद दिलाए और उन शैतानियों का नतीजा ही चिंकू की मौत का कारण बना, कह कर रुलाना भी चाहा पर समता पर किसी प्रकार का असर होता दिखाई नहीं दिया.

सुलक्षणा ने अमित को सलाह दी कि सब साथ में अपने गांव चलते हैं. वहां जा कर कुछ दिन इस वातावरण से दूर होने पर समता शायद सबकुछ नए सिरे से सोचने लगे और चिंकू की अनुपस्थिति खलने लगे उसे. संभव है फिर उस के मन का गुबार आंसुओं में निकल जाए. मां की बात मान अमित समता और सुलक्षणा के साथ कुछ दिनों के लिए गांव चला गया.

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के नजदीक ही गांव में उन का बड़ा सा पुश्तैनी मकान था. पास ही आम के बगीचे भी थे. उन सब की देखभाल रणजीत किया करता था. रणजीत बचपन से ही उन के परिवार के साथ जुड़ा हुआ था. यों तो उस की उम्र 40 वर्ष के ऊपर थी, पर परिवार के नाम पर पत्नी रज्जो और 4 वर्षीय इकलौटा बेटा सूरज ही थे. सूरज को उस ने पास के स्कूल में दाखिल करवा दिया था. विवाह के लगभग 20 वर्षों बाद सूरज का जन्म हुआ था. रज्जो और रणजीत चाहते थे कि उन की आंखों का तारा सूरज खूब पढ़ेलिखे और बड़ा हो कर कोई अच्छी नौकरी करे.

अमित का परिवार गांव आ रहा है, यह सुन कर रणजीत ने उन के आने की तैयारी शुरू कर दी. घर खूब साफसुथरा कर, बाजार जा कर जरूरी सामान ले आया. चिंकू के विषय में जान कर वह भी बेहद दुखी था.

गांव पहुंच कर अमित और सुलक्षणा का मन तो कुछ हलका हुआ, पर समता की भावशून्यता वहां भी कम न हुई. अमित उसे इधरउधर ले कर जाता. सुलक्षणा भी गांव की पुरानी बातें बता कर उस का ध्यान दूसरी ओर लगाने का प्रयास करती, पर समता तो जैसे जड़ हो गई थी. न वह ठीक से खातीपीती और न ही ज्यादा कुछ बोलती थी.

उस दिन अमित सुलक्षणा के साथ घर के नजदीक बने तालाब के किनारे टहल रहा था. समता घास पर चुपचाप बैठी थी. कुछ देर बाद पास के खाली मैदान पर बच्चे आ कर क्रिकेट खेलने लगे. उन के पास जो गेंद थी, वह प्लास्टिक की थी, इसलिए अमित ने समता को वहां से हटाना आवश्यक नहीं समझा.

बच्चे गेंद पर तेजी से बल्ला मार, उसे दूर फेंकने का प्रयास कर रहे थे, ताकि गेंद दूर तक जाए और उन्हें अधिक से अधिक रन बनाने का अवसर मिले. उन बच्चों की टोली में एक छोटा सा बच्चा हर बार फुरती से जा कर गेंद ले कर आ रहा था. छोटा होने के कारण बच्चों ने उसे बैंटिंग या बौलिंग न दे कर, फेंकी हुई गेंद वापस ला कर देने का काम सौंपा हुआ था.

इस बार एक बच्चे ने कुछ ज्यादा ही तेजी से बल्ला चला दिया और गेंद तीव्र गति से लुढ़कने लगी. छोटा बच्चा भागता हुआ गेंद को पकड़ने की कोशिश करता रहा, पर गेंद तो खूब तेजी से लुढ़कते हुए तालाब में गिर कर ही रुकी. प्लास्टिक की होने के कारण वह गेंद पानी पर तैरने लगी. गेंद तालाब से निकालने के लिए उस बच्चे ने जमीन पर पड़ी पेड़ की पतली सी टहनी उठाई और गेंद को टहनी से खिसका कर करीब लाने की कोशिश करने लगा. पेड़ की डंडी गेंद तक तो पहुंच रही थी, पर इतनी बड़ी नहीं थी कि गेंद को आगे की ओर धकेल पाए. इधर बच्चा कोशिश कर रहा था, उधर साथी ‘जल्दीजल्दी’ का शोर मचाए हुए थे. गेंद को तेजी से आगे की ओर धकेलने के लिए उस पर डंडी मारते हुए अचानक ही वह बच्चा तालाब में गिर गया.

इस से पहले कि वहां खेल रहे बच्चे कुछ समझ पाते, समता तेजी से दौड़ती हुई वहां पहुंची और तालाब में कूद पड़ी. बच्चे को झटके से पकड़ कर उस ने गोदी में उठा लिया. अमित और सुलक्षणा दूर से यह दृश्य देख रहे थे. अमित भी भागता हुआ वहां पहुंच गया और तालाब के किनारे बैठ कर बच्चे को अपनी गोद में ले लिया. बच्चे को शीघ्र ही उस ने अपने घुटने पर पेट के बल लिटा दिया, ताकि थोड़ा सा पानी भी अंदर गया हो तो बाहर निकल सके. तब तक सभी बच्चे चिल्लाते हुए वहां पहुंच गए. शोर सुन कर आसपास के घरों से भी लोग वहां इकट्ठे होने लगे.

तालाब से बाहर निकलते ही समता अमित के पास आई और उस बच्चे को सकुशल देख अपने गले लगा कर फूटफूट कर रोने लगी. तभी भीड़ को चीरता हुआ रणजीत वहां पहुंच गया. अपने बेटे सूरज को मौत के मुंह से निकला हुआ देख उस की जान में जान आई. गदगद हो कर वह समता से बोला, ‘‘आज आप ने नया जीवन दिया है मेरे बच्चे को. कितने सालों बाद संतान का मुंह देखा था. अगर आज इसे कुछ हो जाता तो… आप का एहसान तो मैं इस जीवन में कभी नहीं चुका पाऊंगा.’’

भावविभोर समता बाली, ‘‘एहसान कैसा, भैया? मुझे तो लग रहा है जैसे मैं ने अपने चिंकू को बचा लिया हो.’’ और सूरज को गले लगा कर समता फिर से रोने लगी.

घर वापस आते हुए सूरज का हाथ थामे वह उस से बातें कर रही थी. समता में आए इस परिवर्तन से अमित और सुलक्षणा बेहद खुश थे. कुछ दिन गांव में गुजारने के बाद वे तीनों वापस दिल्ली लौट आए.

घर वापस आ कर समता नया जीवन जीने को तैयार थी. अनजाने में ही उसे यह एहसास हो गया था कि जिंदगी में गम और खुशी दोनों को ही गले लगाना पड़ता है.

उस के अवचेतन मन ने उसे समझा ही दिया था कि सुख और दुख के तानेबाने को गूंथ कर ही जिंदगी की बुनाई होती है. Family Story In Hindi

Family Story In Hindi: याददाश्त – भूलने की आदत से क्यों छूटकारा नहीं मिलता

Family Story In Hindi: याददाश्त इतनी कमजोर नहीं थी कि घर भूल जाऊं. पत्नीबच्चों को भूल जाऊं. जैसा कि लोग कहते थे कि यदि भूलने की आदत है तो खानापीना, सोना, घनिष्ठ संबंध क्यों नहीं भूल जाते. अब मैं क्या करूं यदि रोजमर्रा की चीजें भी दिमाग से निकल जाती थीं. तो वहीं ऐसी बहुत सारी छोटीछोटी बातें हैं जो मैं नहीं भूलता था और ऐसी भी बहुत सी चीजें, बातें थीं जो मैं भूल जाता था और बहुत कोशिश करने के बाद भी याद नहीं आती थीं और याद करने की कोशिश में दिमाग लड़खड़ा जाता.

खुद पर गुस्सा भी आता. तलाश में घर का कोनाकोना छान मारता. समय नष्ट होता. खूब हलकान, परेशान होता और जब चीज मिलती तो ऐसी जगह मिलती कि लगता, अरे, यहां रखी थी. हां, यहीं तो रखी थी. पहले भी इस जगह तलाश लिया था, तब क्यों नजर नहीं आई? उफ, यह कैसी आदत है भूलने की. इसे जल्दबाजी कहें, लापरवाही कहें या क्या कहें? अभी इतनी भी उम्र नहीं हुई थी कि याद न रहे.

कल बाजार में एक व्यक्ति मिला, जिस ने गर्मजोशी से मुझ से मुलाकात की और वह पिछली बहुत सी बातें करता रहा और मैं यही सोचता रहा कि कौन है यह? मैं उस की हां में हां मिला कर खिसकने का बहाना ढूंढ़ रहा था. मैं यह भी नहीं कह पा रहा था, उस का अपनापन देख कर कि भई माफ करना मैं ने आप को पहचाना नहीं. हालांकि, इतना मैं समझ रहा था कि इधर पांचसात सालों में मेरी इस व्यक्ति से मुलाकात नहीं हुई थी. उस के जाने के बाद मुझे अपनी याददाश्त पर बहुत गुस्सा आया. मैं सोचता रहा, दिमाग पर जोर देता रहा कि आखिर कौन था यह? लेकिन दिमाग कुछ भी नहीं पकड़ पा रहा था.

घर से जब बाहर निकलता तो कुछ न कुछ लाना भूल जाता था. यह भी समझ में आता था कि कुछ भूल रहा हूं लेकिन  क्या? यह पकड़ में नहीं आता था. अब मैं कागज पर लिख कर ले जाने लगा था कि क्याक्या खरीदना है बाजार से. इस बार मैं तैयार हो कर घर से बाहर निकला और बाहर निकलते ही ध्यान आया कि चश्मा तो पहना ही नहीं है. घर के अंदर गया तो जहां चश्मा रखता था, वहां चश्मा नहीं था. तो कहां गया चश्मा?

इस चक्कर में पूरा घर छान मारा. पत्नी को परेशान कर दिया. उसे उलाहना देते हुए कहा, ‘‘मेरी चीजें जगह पर क्यों नहीं मिलतीं? यहीं तो रखता था चश्मा. कहां गया?’’

पत्नी भी मेरे साथ चश्मा तलाश करने लगी और कहने भी लगी गुस्से में, ‘‘खुद ही कहीं रख कर भूल गए होगे. याद करो, कहां रखा था?’’

‘‘वहीं रखा था जहां रखता हूं हमेशा.’’

‘‘तो कहां गया?’’

‘‘मुझे पता होता, तो तुम से क्यों पूछता?’’

फिर हमारी गरमागरम बहस के साथ   हम दोनों ही पूरा घर छानने लगे चश्मे की तलाश में. काफी देर तलाशते रहे. लेकिन चश्मा कहीं नहीं मिल रहा था. मैं याद करने की कोशिश भी कर रहा था कि मैं ने यदि चश्मे को उस के नियत स्थान से उठाया था तो फिर कहांकहां रख सकता था? जैसे कि मैं ने चश्मा उठाया. उस के कांच साफ किए. फिर गाड़ी की चाबी उठाई. इस बीच, मैं ने आईने के सामने जा कर कंघी की. फिर पानी पिया, फिर…

तो मैं सभी संभावित स्थानों पर गया. जैसे ड्रैसिंग टेबल के पास, फ्रिज के पास वगैरह. लेकिन चश्मा नहीं मिला. मैं समझ नहीं पा रहा था कि आखिर चश्मा गया कहां? उसे जमीन खा गई या आसमान निगल गया. याद क्यों नहीं आ रहा है?

चश्मे की आदत सी पड़ गई थी. न भी पहनूं तो जेब में रख लेता था बाजार जाते समय. जैसे घड़ी का पहनना होता था. मोबाइल रखना होता था. बहुत जरूरी न होते भी जरूरी होना. न रखने पर लगता था कि जैसे कुछ जरूरी सामान छूट गया हो. खालीखाली सा लगता. आदत की बात है.

चश्मा तलाश रहा हूं. पत्नी अपने काम में लगी हुई है. उस ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि नहीं मिल रहा तो परेशान मत हो. घर में होगा, मिल जाएगा. बिना चश्मे के बाजार जा सकते हो. मुझे उस की बात ठीक लगी. लेकिन दिमाग में यही चल रहा था कि आखिर चश्मा कहां रख कर भूल गया. तभी कोचिंग से बेटा घर आया. मेरा चेहरा देख कर समझ गया. उस ने पूछा, ‘‘क्या नहीं मिल रहा, अब?’’

उस की बात पर मुझे गुस्सा आ गया. ‘अब’ लगाने का क्या मतलब हुआ? यही कि मैं हमेशा कुछ न कुछ भूल जाता हूं. अकसर तो भूल जाता हूं, लेकिन हमेशा… यह तो हद हो गई. खुद तो कोचिंग के नाम पर व्यर्थ रुपया खर्च कर रहा है. कोचिंग ही जाना था तो स्कूल की क्या जरूरत थी? फैशन सा हो गया है आजकल कोचिंग जाना. कोचिंग जा कर छात्र साबित करते हैं कि वे बहुत पढ़ाकू हैं. दिनभर स्कूल, फिर कोचिंग. मैं इसे कमजोर दिमाग मानता हूं. जैसे पहले कमजोर को ट्यूशन दी जाती थी. लेकिन अब जमाना बदल गया है. कोचिंग जाने वालों को पढ़ाकू माना जाता है. मैं ने गुस्से से बेटे की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘जा कर अपना काम करो.’’ बेटे तो फिर बेटे ही होते हैं. तुरंत मुंह घुमा कर अंदर चला गया और मैं बिना चश्मे के बाहर निकल गया.

किराना दुकानदार को सामान की लिस्ट दी. वह सामान निकालता रहा. मैं इधरउधर सड़कों पर नजर घुमाता रहा.

दुकानदार आधा सामान दुकान के बाहर रखे हुए हैं.

तंबाकू खाते हुए मुझे भी थूकने की इच्छा हुई. मैं ने काफी देर पीक को मुंह में रखा और नाली, सड़क का किनारा तलाशता रहा. अंत में मुझे भी सड़क पर ही थूकना पड़ा. दुकानदार ने बिल देते हुए कहा, ‘‘चैक कर लीजिए.’’

मैं ने कहा, ‘‘भाई, आज मैं अपना चश्मा लाना भूल गया.’’ उस ने मेरे चेहरे पर इस तरह दृष्टि डाली जैसे मैं ने शराब पी रखी हो. फिर कहा, ‘‘लगा तो है.’’ मेरा हाथ आंखों पर गया और… अरे, यह तो पहले से ही लगा हुआ था और मैं पूरे घर में तलाश रहा था. लेकिन मुझे समझ क्यों नहीं आया. शायद आदत पड़ जाने पर उस चीज का भार महसूस नहीं होता.

पत्नी तो खैर मेरे कहने पर ढूंढ़ने लगी थी. उसे विश्वास था कि नहीं मिल रहा होगा. लेकिन बेटे को तो पता होगा कि चश्मा लगाया हुआ है मैं ने. लेकिन मैं ने कहां बताया था गुस्से में कि चश्मा नहीं मिल रहा है. बताता तो शायद वह बता देता और इतनी मानसिक यंत्रणा न झेलनी पड़ती. न ही दुकानदार के सामने शर्मिंदा होना पड़ता. बच्चों से प्रेम से ही बात करनी चाहिए. वह पूछता. मैं बताता कि चश्मा नहीं मिल रहा है तो वह बता देता.

मांबाप की डांट या गुस्से में बात करने से बच्चे और चिढ़ जाते हैं. नए खून नए मस्तिष्क पर भरोसा करना सीखना चाहिए. उन के बाप ही न बने रहना चाहिए. मित्र भी बन जाना चाहिए जवान होते बच्चों के पिता को.

बेटे को पता तो चल ही गया होगा कि चश्मा तलाश रहा था मैं और अब तक उस ने अपनी मां को बता भी दिया होगा कि चश्मा पिताजी पहने हुए थे. दोनों मांबेटे हंस रहे होंगे मुझ पर. अब भविष्य में कोई चीज गुम होने पर शायद उतनी संजीदगी से तलाशने में मदद भी न करें.

मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि मुझे समझ में क्यों नहीं आया कि मैं चश्मा लगाए हुए था.

अब दिमाग इसी उधेड़बुन में लगा हुआ था कि नियत स्थान से चश्मा उठा कर मैं ने लगाया कब था? तैयार होने के बाद. गाड़ी की चाबी उठाने के बाद या पानी पीने के बाद या इस सब के पहले या उस से भी बहुत पहले. कहीं ऐसा तो नहीं कि सुबह समाचारपत्र पढ़ते समय.

यह भी संभव है कि रात में पहन कर ही सो गया था. दिमाग पर काफी जोर डालने के बाद भी पक्का नहीं कर पाया कि चश्मा लगाया कब था और मैं अभी भी उसी सोच में डूबा हुआ था. और यह सोच तब तक नहीं निकलने वाली थी जब तक कोई दूसरी चीज न मिलने पर उस की खोज में दिमाग न उलझे. Family Story In Hindi

Comedy Story: वोटर केयर सैंटर में आपका स्वागत है

Comedy Story: एक दिन मेरे मोबाइल फोन पर किसी अनजान नंबर से काल आई. जैसे ही मैं ने काल रिसीव की, दूसरी ओर से आवाज आई, ‘नमस्कार, वोटर केयर सैंटर में आप का स्वागत है.’

वह कंप्यूटराइज्ड आवाज सुन कर मेरे दिमाग के सैरेब्रल हैमिस्फीयर में दबाव बढ़ने लगा. कालर ट्यून, बैंकिंग लोन काल, क्रेडिट कार्ड देने वाले कस्टमर केयर या आधारकार्ड नंबर और ओटीपी मांगने वाले फ्राड काल के बारे में तो सुना था, पर अब यह वोटर केयर सैंटर कौन सी नई बला है.

इसी ऊहापोह में मैं फोन काटने ही वाला था कि तभी दूसरी ओर से आवाज आई, ‘चूंकि यह काल जनहित में जारी है, इसलिए पूरी जानकारी लिए बिना कृपया फोन काटने की हिमाकत न करें.’

वह चेतावनी सुन कर मैं थोड़ा हड़क गया और बगैर किसी बाधा के फोन की लाइन को जारी रखा.

‘नमस्कार, हम वोटर केयर हैल्पलाइन से बोल रहे हैं. आप के क्षेत्र में चुनाव की घोषणा हो चुकी है. क्षेत्रीय उम्मीदवार के चयन को सुविधाजनक बनाने के लिए अगर आप उन के चालचलन के बारे में जानना चाहते हैं, तो कृपया 1 दबाएं, वरना 2 दबाएं.’

मैं मन ही मन सोचने लगा, ‘यह कैसा वोटर केयर सैंटर है… पहले तो कस्टमर केयर काल में हिंदी, इंगलिश, बंगला, भोजपुरी वगैरह भाषा के चयन का औप्शन पूछा जाता था…’

तभी दूसरी ओर से आवाज आई, ‘आप भाषा चयन को ले कर कतई परेशान न हों. हमें पता है कि आप हिंदी के जानकार हैं. वैसे भी इंगलिश में आप कच्चे हैं और दूसरी क्षेत्रीय भाषा को समझना आप की औकात और ज्ञान से बाहर है. तो एकदूसरे का समय बरबाद किए बिना वोटर केयर प्रक्रिया को जारी रखते हुए अपने क्षेत्रीय उम्मीदवार का चालचलन जानने के लिए कृपया 1 दबाएं, वरना 2 दबाएं.’

वोटर केयर सैंटर वालों की बात सुन कर मैं हैरान रह गया. बहरहाल, मैं ने सवाल पर फोकस किया. चूंकि नेताओं के चालचलन के बारे में बिहार से ब्रह्मांड तक सब को पता है, इसलिए समय की बरबादी से बचने के लिए मैं ने बटन नंबर 2 दबा दिया.

‘माफ करें, यह जनहित में जारी काल है और मजबूत वोटर होने के नाते आप लोकतंत्र के निर्माता हैं, इसलिए आप को नेता चयन संबंधित प्रक्रिया हर हाल में पूरी करनी है.

‘लोकलुभावन भाषण और आश्वासन देने वालों के लिए 1 दबाएं, शिलान्यास के बाद योजना पैंडिंग रख दुर्लभ दर्शन वालों के लिए 2 दबाएं, दबंग, आपराधिक चरित्र वालों के लिए 3 दबाएं, घोटालेबाज भ्रष्ट माननीय के लिए 4 दबाएं, वादा भूलने वाले दलबदलू के लिए 5 दबाएं, सर्वसुलभ कमीशनखोर खादीमानव के लिए 6 दबाएं और सच्चे जनसेवक के लिए 7 दबाएं या दोबारा सुनने के लिए स्टार दबाएं.’

पलभर विचार कर के मैं ने 7 का बटन दबा दिया.

‘आप ने चुना है 7 यानी सच्चा जनसेवक. इस की तसदीक के लिए हैश दबाएं वरना दोबारा सुनने के लिए स्टार दबाएं.’

मैं ने हैश बटन दबा दिया.

‘माफ कीजिए, अखिल भारतीय स्तर पर इस प्रजाति का लोप हो जाने के चलते फिलहाल आप के क्षेत्र में यह सेवक उपलब्ध नहीं है. दोबारा सुनने के लिए स्टार दबाएं, मेन मैन्यू में जाने के लिए 8 दबाएं.’

मैं ने स्टार दबा कर दोबारा सुना और इस बार 6 का बटन दबाया.

‘आप ने चुना है 6 यानी सर्वसुलभ कमीशनखोर खादीमानव. तसदीक के लिए हैश दबाएं.’

मैं ने हैश दबा दिया.

‘राहत योजना में लूटखसोट की भागीदारी हेतु बाढ़, महामारी, आपदा के दौरान जनता के बीच आसानी से उपलब्ध जनसेवक के लिए 1 दबाएं, मुआवजा दे कर मीडिया में छाए रहने वालों के लिए 2 दबाएं, सिर्फ चुनाव के समय दर्शन देने वालों के लिए 3 दबाएं और ज्यादा समय उपलब्ध रहने वाले मार्गदर्शक नेता के लिए 4 दबाएं.’

मैं ने बिना समय गंवाए 4 दबा कर हैश बटन से तसदीक भी कर दी. मंदिर निर्माता, गौरक्षक, सर्वसुलभ मार्गदर्शक नेता के लिए 1 दबाएं, सर्वव्यापी हिजाब और जिहाद समर्थक के लिए 2 दबाएं, गांवगांव उपलब्ध जातपांत खेलने वालों के लिए 3 दबाएं और खालिस धर्मनिरपेक्ष नेता के लिए 4 दबाएं.’

मैं ने 4 दबाया, साथ ही हैश बटन भी दबा दिया. ‘एक बार फिर से माफ करें, मार्केट में फिलहाल यह टाइप भी मुहैया नहीं है… फिर से सुनने के लिए स्टार दबाएं, मेन मैन्यू में जाने के लिए 8 दबाएं या अपने क्षेत्र के पढ़ेलिखे, कर्मठ, लगनशील, काबिल उम्मीदवार से संबंधित सभी तरह की छोटीबड़ी जानकारी हेतु हमारे वोटर केयर ऐक्जिक्यूटिव से बात करने के लिए 9 दबाएं.’

मैं ने कंप्यूटराइज्ड आवाज से उलझने के बजाय 9 दबा कर सीधेसीधे वोटर केयर ऐक्जिक्यूटिव से बात कर क्षेत्र के काबिल उम्मीदवार के बारे में जान लेना उचित समझ .

‘आप की काल हमारे लिए खास है. जल्दी ही आप की बात हमारे वोटर केयर ऐक्जिक्यूटिव से होने वाली है, कृपया लाइन पर बने रहें,’ की आवाज के साथ शास्त्रीय संगीत की रिंगटोन पर पूरे 15 मिनट तक लटकाए रखने के बाद दूसरी ओर से आवाज आई, ‘माफ कीजिए, आप ने गलत औप्शन चुना है…’ और आखिरकार दूसरी ओर से फोन डिस्कनैक्ट कर दिया गया. Comedy Story

Hindi Story: नई शुरुआत

Hindi Story: दिशा रसोई में फटाफट काम कर रही थी. मनीष और क्रिया अपनेअपने कमरों में सो रहे थे. यहीं से उस के दिन की शुरुआत होती थी. 5 बजे उठ कर नाश्ता और दोपहर का खाना तैयार कर, मनीष और 13 वर्षीया क्रिया को जगाती थी. उन्हें जगा कर फिर अपनी सुबह की चाय के साथ 2 बिस्कुट खाती थी. उस ने घड़ी पर निगाह डाली तो 6:30 बज गए थे. वह जल्दी से जा कर क्रिया को जगाने लगी.

‘‘क्रिया उठो, 6:30 बज गए,’’ बोल कर वह वापस अपने काम में लग गई.

‘‘मम्मा, आज हम तृष्णा दीदी के मेहंदी फंक्शन में जाएंगे.’’

‘‘ओफ्फ, क्रिया, तुम्हें स्कूल के लिए तैयार होना है. देर हो गई तो स्कूल में एंट्री बंद हो जाएगी और फिर तुम्हें घर पर अकेले रहना पड़ेगा,’’ गुस्से से दिशा ने कहा, ‘‘जाओ, जल्दी से स्कूल के लिए तैयार हो जाओ, मेरा सिर न खाओ.’’ क्रिया पैर पटकती हुई बाथरूम में अपनी ड्रैस ले कर नहाने चली गई. दिशा को सब काम खत्म कर के 8 बजे तक स्कूल पहुंचना होता था, इसलिए उस का पारा रोज सुबह चढ़ा ही रहता था. 7 बज गए तो वह मनीष को जगाने गई. ‘‘कभी तो अलार्म लगा लिया करो. कितनी दिक्कत होती है मुझे, कभी इस कमरे में भागो तो कभी उस कमरे में. और एक तुम हो, जरा भी मदद नहीं करते,’’ गुस्से से भरी दिशा जल्दीजल्दी सफाई करने लगी. साथ ही बड़बड़ाती जा रही थी, ‘जिंदगी एक मशीन बन कर रह गई है. काम हैं कि खत्म ही नहीं होते और उस पर यह नौकरी. काश, मनीष अपनी जिम्मेदारी समझते तो ऐसी परेशानी न होती.’

मनीष ने क्रिया और दिशा को स्कूटर पर बैठाया और स्कूल की ओर रवाना हो गया.

दिशा की झुंझलाहट कम होने का नाम नहीं ले रही थी. जल्दीजल्दी काम निबटाते भी वह 15 मिनट देर से स्कूल पहुंची. शुक्र है प्रिंसिपल की नजर उस पर नहीं पड़ी, वरना डांट खानी पड़ती. अपनी क्लास में जा कर जैसे ही उस ने बच्चों को पढ़ाने के लिए ब्लैकबोर्ड पर तारीख डाली 04/04/16. उस का सिर घूम गया.

4 तारीख वो कैसे भूल गई, आज तो रिया का जन्मदिन है. है या था? सिर में दर्द शुरू हो गया उस के. जैसेतैसे क्लास पूरी कर वह स्टाफरूम में पहुंची. कुरसी पर बैठते ही उस का सिरदर्द तेज हो गया और वह आंखें बंद कर के कुरसी पर टेक लगा कर बैठ गई. रिया का गुस्से वाला चेहरा उस की आंखों के आगे आ गया. कितना आक्रोश था उस की आंखों में. वे आंखें आज भी दिशा को रातरात भर जगा देती हैं और एक ही सवाल करती हैं – ‘मेरा क्या कुसूर था?’ कुसूर तो किसी का भी नहीं था. पर होनी को कोई टाल नहीं सकता. कितनी मन्नतोंमुरादों से दिशा और मनीष ने रिया को पाया था. किस को पता था कि वह हमारे साथ सिर्फ 16 साल तक ही रहेगी. उस के होने के 4 साल बाद क्रिया हो गई. तब से जाने क्यों रिया के स्वभाव में बदलाव आने लगा. शायद वह दिशा के प्यार पर सिर्फ अपना अधिकार समझती थी, जो क्रिया के आने से बंट गया था.

जैसेजैसे रिया बड़ी होती रही, दिशा और मनीष से दूर होती रही. मनीष को इन सब से कुछ फर्क नहीं पड़ता था. उसे तो शराब और सिगरेट की चिंता होती थी बस, उतना भर कमा लिया. बीवीबच्चे जाएं भाड़ में. खाना बेशक न मिले पर शराब जरूर चाहिए उसे. उस के लिए वह दिशा पर हाथ उठाने से भी गुरेज नहीं करता था. अपनी बेबसी पर दिशा की आंखें भर आईं. अगर क्रिया की चिंता न होती तो कब का मनीष को तलाक दे चुकी होती. दिशा का सिर अब दर्द से फटने लगा तो वह स्कूल से छुट्टी ले कर घर आ गई. दवा खा कर वह अपने कमरे में जा कर लेट गई. आंखें बंद करते ही फिर वही रिया की गुस्से से लाल आंखें उसे घूरने लगीं. डर कर उस ने आंखें खोल लीं.

सामने दीवार पर रिया की तसवीर लगी थी जिस पर हार चढ़ा था. कितनी मासूम, कितनी भोली लग रही है. फिर कहां से उस में इतना गुस्सा भर गया था. शायद दिशा और मनीष से ही कहीं गलती हो गई. वे अपनी बड़ी होती रिया पर ध्यान नहीं दे पाए. शायद उसी दिन एक ठोस समझदारी वाला कदम उठाना चाहिए था जिस दिन पहली बार उस के स्कूल से शिकायत आई थी. तब वह छठी क्लास में थी. ‘मैम आप की बेटी रिया का ध्यान पढ़ाई में नहीं है. जाने क्या अपनेआप में बड़बड़ाती रहती है. किसी बच्चे ने अगर गलती से भी उसे छू लिया तो एकदम मारने पर उतारू हो जाती है. जितना मरजी इसे समझा लो, न कुछ समझती है और न ही होमवर्क कर के आती है. यह देखिए इस का पेपर जिस में इस को 50 में से सिर्फ 4 नंबर मिले हैं.’ रिया पर बहुत गुस्सा आया था दिशा को जब रिया की मैडम ने उसे इतना लैक्चर सुना दिया था.

‘आप इस पर ध्यान दें, हो सके तो किसी चाइल्ड काउंसलर से मिलें और कुछ समय इस के साथ बिताएं. इस के मन की बातें जानने की कोशिश करें.’

रिया की मैडम की बात सुन कर दिशा ने अपनी व्यस्त दिनचर्या पर नजर डाली. ‘कहां टाइम है मेरे पास? मरने तक की तो फुरसत नहीं है. काश, मनीष की नौकरी लग जाए या फिर वह शराब पीना छोड़ दे तो हम दोनों मिल कर बेटी पर ध्यान दे सकते हैं,’ दिशा ने सोचा लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं.

फिर तो बस आएदिन रिया की शिकायतें स्कूल से आती रहती थीं. दिशा को न फुरसत मिली उस से बात करने की, न उस की सखी बनने की. एक दिन तो हद ही हो गई जब मनीष उसे हाथ से घसीट कर घर लाया था.

‘क्या हुआ? इसे क्यों घसीट रहे हो. अब यह बड़ी हो गई है.’ दिशा ने उस का हाथ मनीष के हाथ से छुड़ाते हुए कहा.

मनीष ने दिशा को धक्का दे कर पीछे कर दिया और तड़ातड़ 3-4 चाटें रिया को लगा दिए.

दिशा एकदम सकते में आ गई. उसे समझ नहीं आया कि रिया को संभाले या मनीष को रोके.

मनीष की आंखें आग उगल रही थीं.

‘जानती हो कहां से ले कर आया हूं इसे. मुझे तो बताते हुए भी शर्म आती है.’

दिशा हैरानी से मनीष की तरफ सवालिया नजरों से देखती रही.

‘पुलिस स्टेशन से.’

‘क्या?’ दिशा का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘इंसपैक्टर प्रवीर शिंदे ने मुझे बताया कि उन्होंने इसे एक लड़के के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ा था.’ दिशा का चेहरा गुस्से से लाल हो गया और वह रिया को खा जाने वाली नजरों से देखने लगी. रिया की आंखों से अब भी अंगारे बरस रहे थे और फिर उस ने गुस्से से जोर से परदों को खींचा और अपने कमरे में चली गई. मनीष अपने कमरे में जा कर अपनी शराब की बोतल खोल कर पीने लग गया. दिशा रिया के कमरे की तरफ बढ़ी तो देखा कि दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने बहुत आवाज लगाई पर रिया ने दरवाजा नहीं खोला. एक घंटे के बाद जब मनीष पर शराब का सुरूर चढ़ा तो वह बहकते कदमों से लड़खड़ाते हुए रिया के कमरे के दरवाजे के बाहर जा कर बोला, ‘रिया, मेरे बच्चे, बाहर आ जा. मुझे माफ कर दे. आगे से तुझ पर हाथ नहीं उठाऊंगा.’ दिशा जानती थी कि यह शराब का असर है, वरना प्यार से बात करना तो दूर, वह रिया को प्यारभरी नजरों से देखता भी नहीं था.

रिया ने दरवाजा खोला और पापा के गले लग कर बोली, ‘पापा, आई एम सौरी.’

दोनों बापबेटी का ड्रामा चालू था. न वह मानने वाली थी और न मनीष. दिशा कुछ समझाना चाहती तो रिया और मनीष उसे चुप करा देते. हार कर उस ने भी कुछ कहना छोड़ दिया. इस चुप्पी का असर यह हुआ कि दिशा से उस की दूरियां बढ़ती रहीं और रिया के कदम बहकने लगे.

दिशा आज अपनेआप को कोस रही थी कि अगर मैं ने उस चुप्पी को न स्वीकारा होता तो रिया आज हमारे साथ होती. बातबात पर रिया पर हाथ उठाना तो रोज की बात हो गई थी. आज उसे महसूस हो रहा था कि जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो उन के साथ दोस्तों सा व्यवहार करना चाहिए. कुछ पल उन के साथ बिताने चाहिए, उन के पसंद का काम करना चाहिए ताकि हम उन का विश्वास जीत सकें और वे हम से अपने दिल की बात कह सकें. पर दिशा यह सब नहीं कर पाई और अपनी सुंदर बेटी को आज के ही दिन पिछले साल खो बैठी.

आज उसे 4 अप्रैल, 2015 बहुत याद आ रहा था और उस दिन की एकएक घटना चलचित्र की भांति उस की आंखों के बंद परदों से हो कर गुजरने लगी…

कितनी उत्साहित थी रिया अपने सोलहवें जन्मदिन को ले कर. जिद कर के 4 हजार रुपए की पिंक कलर की वह ‘वन पीस’ ड्रैस उस ने खरीदी थी. कितनी मुश्किल से वह ड्रैस हम उसे दिलवा पाए थे. वह तो अनशन पर बैठी थी.

स्कूल से छुट्टी कर ली थी उस ने जन्मदिन मनाने के लिए. सुबहसवेरे तैयार होने लगी. 4 घंटे लगाए उस दिन उस ने तैयार होने में. बालों की प्रैसिंग करवाई, फिर कभी ऐसे, कभी वैसे बाल बनाते हुए उस ने दोपहर कर दी. जब दिशा उस दिन स्कूल से लौटी तो एक पल निहारती रह गई रिया को.

‘हैप्पी बर्थडे, बेटा.’

दिशा ने कहा तो रिया ने जवाब दिया, ‘रहने दो मम्मी, अगर आप को मेरे जन्मदिन की खुशी होती तो आज आप स्कूल से छुट्टी ले लेतीं और मुझे कभी मना नहीं करतीं इस ड्रैस के लिए.’ दिशा का मन बुझ गया पर वह रिया का मूड नहीं खराब करना चाहती थी. दिशा यादों में डूबी थी कि तभी क्रिया की आवाज सुन कर उस की तंद्रा भंग हुई.

‘‘मम्मा, मम्मा आप अभी तक सोए पड़े हो?’’ क्रिया ने घर में घुसते ही सवाल किया. दिशा का चेहरा पूरा आंसुओं से भीग गया था. वह अनमने मन से उठी और रसोई में जा कर क्रिया के लिए खाना गरम करने लगी. क्रिया ने फिर सुबह वाला प्रश्न दोहराया, ‘‘मम्मी, क्या हम तृष्णा दीदी के मेहंदी फंक्शन में जाएंगे?’’

दिशा ने कोई जवाब नहीं दिया. क्रिया बारबार अपना प्रश्न दोहराने लगी तो उस ने गुस्से में कहा, ‘‘नहीं, हम किसी फंक्शन में नहीं जाएंगे.’’ आज रिया की बरसी थी तो ऐसे में वह कैसे किसी फंक्शन में जाने की कल्पना कर सकती थी. क्रिया को बहुत गुस्सा आया. शायद वह इस फंक्शन में जाने के लिए अपना मन बना चुकी थी. उसे ऐसे फंक्शन पर जाना अच्छा लगता था और मां का मना करना उसे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा था.

‘‘मम्मा, आप बहुत गंदे हो, आई हेट यू, मैं कभी आप से बात नहीं करूंगी.’’ गुस्से से बोलती हुई क्रिया अपने कमरे में चली गई और उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

दरवाजे की तेज आवाज से मनीष का नशा टूटा तो वह कमरे से चिल्लाया, ‘‘यह क्या हो रहा है इस घर में? कोई मुझे बताएगा?’’

दिशा बेजान सी कमरे की कुरसी पर धम्म से गिर गई. उस की नजरें कभी मनीष के कमरे के दरवाजे पर जातीं, कभी क्रिया के बंद दरवाजे पर तो कभी रिया की तसवीर पर. अचानक उसे सब घूमता हुआ नजर आया, ठीक वैसे ही जब पिछले साल 4 तारीख को फोन आया था, ‘देखिए, मैं डाक्टर दत्ता बोल रहा हूं सिटी हौस्पिटल से. आप जल्द से जल्द यहां आ जाएं. एक लड़की जख्मी हालत में यहां आई है. उस के मोबाइल से ‘होम’ वाले नंबर पर मैं ने कौल किया है. शायद, यह आप के घर की ही कोई बच्ची है.’

यह सुनते ही दिल जोरजोर से धड़कने लगा, वह रिया नहीं है. अगर वह रिया नहीं हैं तो वह कहां हैं? अचानक उसे याद आया, वह तो 6 बजे अपने दोस्तों के साथ जन्मदिन मनाने गई थी. असमंजस की स्थिति में वह और मनीष हौस्पिटल पहुंचे तो डाक्टर उन्हें इमरजैंसी वार्ड में ले गया और यह जानने के बाद कि वे उस लड़की के मातापिता हैं, बोला, ‘आई एम सौरी, इस की डैथ तो औन द स्पौट ही हो गई थी.’ अचानक से आसमान फट पड़ा था दिशा पर. वह पागलों की तरह चीखने लगी और जोरजोर से रोने लगी. ‘इस के साथ एक लड़का भी था वह दूसरे कमरे में है. आप चाहें तो उस से मिल सकते हैं.’

मनीष और दिशा भाग कर दूसरे कमरे में गए. और गुस्से से बोले, ‘बोल, क्यों मारा तू ने हमारी बेटी को, उस ने तेरा क्या बिगाड़ा था?’

16 साल का हितेश घबरा गया और रोतेरोते बोला, ‘आंटी, आंटी, मैं ने कुछ नहीं किया, वह तो मेरी बहुत अच्छी दोस्त थी.’

‘फिर ये सब कैसे हुआ? बता, नहीं तो मैं अभी पुलिस को फोन करता हूं,’ मनीष ने गुस्से में कहा. ‘अंकल, हम 4 लोग थे, रिया और हम 3 लड़के. मोटरसाइकिल पर बैठ कर हम पहले हुक्का बार गए…’

मनीष और दिशा की आंखें फटी की फटी रह गईं यह जान कर कि उन की बेटी अब हुक्का और शराब भी पीने लगी थी. फिर मैं ने रिया से कहा, ‘रिया काफी देर हो गई है. चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं. पर अंकल, वह नहीं मानी, बोली कि आज घर जाने का मन नहीं है. ‘मेरे बहुत समझाने पर बोली कि अच्छा, थोड़ी देर बाद घर छोड़ देना तब तक लौंग ड्राइव पर चलते हैं. तभी, अंकल आप का फोन आया था जब आप ने घर जल्दी आने को कहा था. पर वह तो जैसे आजाद होना चाहती थी. इसीलिए उस ने आगे बढ़ कर चलती मोटरसाइकिल से चाबी निकालने की कोशिश की और इस सब में मोटरसाइकिल का बैलेंस बिगड़ गया और वह पीछे की ओर पलट गई. वहीं, डिवाइडर पर लोहे का सरिया सीधा उस के सिर में लग गया और उस ने वहीं दम तोड़ दिया.’

दहशत में आए हितेश ने सारी कहानी रोतेरोते बयान कर दी. दिशा और मनीष सकते में आ गए और जानेअनजाने में हुई अपनी गलतियों पर पछताने लगे. काश, हम समय रहते समझ पाते तो आज रिया हमारे बीच होती. तभी अचानक दिशा वर्तमान में लौट आई और उसे क्रिया का ध्यान आया जो अब भी बंद दरवाजे के अंदर बैठी थी. दिशा ने कुछ सोचा और उठ कर क्रिया का दरवाजा खटखटाने लगी, ‘‘क्रिया बेटा, दरवाजा खोलो.’’

अंदर से कोई आवाज नहीं आई.

‘‘अच्छा बेटा, आई एम सौरी. अच्छा ऐसा करना, वह जो पिंक वाली ड्रैस है, तुम आज रात मेहंदी फंक्शन में वही पहन लेना. वह तुम पर बहुत जंचती है.’’ दिशा का इतना बोलना था कि क्रिया झट से बाहर आ कर दिशा के गले लग गई और बोली, ‘‘सच मम्मा, हम वहां बहुत मस्ती करेंगे, यह खाएंगे, वह खाएंगे. आई लव यू, मम्मा.’’ बच्चों की खुशियां भी उन की तरह मासूम होती हैं, छोटी पर अपने आप में पूर्ण. शायद यह बात मुझे बहुत पहले समझ आ गई होती तो रिया कभी हम से जुदा नहीं होती. दिशा ने सोचा, वह अपनी एक बेटी खो चुकी थी पर दूसरी अभी इतनी दूर नहीं गई थी जो उस की आवाज पर लौट न पाती. दिशा ने कस कर क्रिया को गले से लगा लिया इस निश्चय के साथ कि वह इतिहास को नहीं दोहराएगी.

अगले दिन उस ने अपने स्कूल में इस्तीफा भेज दिया इस निश्चय के साथ कि वह अब अपनी डोलती जीवननैया की पतवार बन कर मनीष और क्रिया को संभालेगी. सब से पहले वह अपनी सेहत पर ध्यान देगी और गुस्से को काबू करने के लिए एक्सरसाइज करेगी. घर बैठे ही ट्यूशन से आमदनी का जरिया चालू करेगी. काश, ऐसा ही कुछ रिया के रहते हो गया होता तो रिया आज उस के साथ होती. इस तरह अपनी गलतियों को सुधारने का निश्चय कर के दिशा अपनी जिंदगी की नई शुरुआत कर चुकी थी. Hindi Story

Hindi Story: एक नई पहल

Hindi Story, लेखक- नीलमणि शर्मा

‘‘भाभी…जल्दी आओ,प्लीज,’’ मेघा की आवाज सुन कर मैं दौड़ी चली आई.

‘‘क्या बात है, मेघा?’’ मैं ने प्रश्न- सूचक दृष्टि उस की तरफ डाली तो मेघा ने अपनी दोनों हथेलियों के बीच मेरा सिर पकड़ कर सड़क की ओर घुमा दिया, ‘‘मेरी तरफ नहीं भाभी, पार्क की तरफ देखो…वहां सामने बैंच पर लैला बैठी हैं.’’

‘‘अच्छा, तो उन आंटी का नाम लैला है…तुम जानती हो उन्हें?’’

‘‘क्या भाभी आप…’’ मेघा चिढ़ते हुए पैर पटकने लगी, ‘‘मैं नहीं जानती उन्हें, पर वह रोज यहां इसी समय इसी बैंच पर आ कर बैठती हैं और अपने मजनू का इंतजार करती हैं. भाभी, मजनूं बस, आता ही होगा…वह देखो…वह आ गया…अब देखो न इन दोनों के चेहरों की रंगत…पैर कब्र में लटके हैं और आशिकी परवान चढ़ रही है…’’

मैं ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा, ‘‘इस उम्र के लोगों का ऐसा मजाक उड़ाना अच्छी बात नहीं, मेघा.’’

‘‘भाभी, इस उम्र के लोगों को भी तो ऐसा काम नहीं करना चाहिए…पता नहीं कहां से आते हैं और यहां छिपछिप कर मिलते हैं. शर्म आनी चाहिए इन लोगों को.’’

‘‘क्यों मेघा, शर्म क्यों आनी चाहिए? क्या हमतुम दूसरों से बातें नहीं करते हैं?’’

‘‘हमारे बीच वह चक्कर थोड़े ही होता है.’’

‘‘तुम्हें क्या पता कि इन के बीच क्या चक्कर है? क्या ये पार्क में बैठ कर अश्लील हरकतें करते हैं या आपस में लड़ाईझगड़ा करते हैं, मेरे हिसाब से तो यही 2 बातें हैं कि कोई तीसरा व्यक्तिउन का मजाक बनाए. फिर जब तुम उन्हें जानती ही नहीं हो तो उन के रिश्ते को कोई नाम क्यों देती हो.’’

‘‘रिश्ते को नाम कहां दिया है भाभी, मैं ने तो उन को नाम दिया है,’’ मेघा तुनक कर बोली, ‘‘मैं ने तो आप को यहां बुला कर ही गलती कर दी,’’ यह कहते हुए मेघा वहां से चल दी.

उस के जाने के बाद भी मैं कितनी देर यों ही बालकनी में बैठी उन दोनों बुजुर्गों को देखती रही और सोचती रही कि मांबाप अब समझदार हो गए हैं. लड़केलड़की की दोस्ती पर एतराज नहीं करते. समाज भी उन की दोस्ती को खुले दिल से स्वीकार रहा है, लेकिन 2 प्रौढ़ों की दोस्ती के लिए समाज आज भी वही है…उस की सोच आज भी वही है.

पार्क में बैठे अंकलआंटी को देख कर वर्षों पुरानी एक घटना मेरे मन में फिर से ताजा हो गई.

पुरानी दिल्ली की गलियों में मेरा बचपन बीता है. उस समय लड़के शाम को आमतौर पर गुल्लीडंडा या कबड्डी खेल लिया करते थे और लड़कियां छत पर स्टापू, रस्सी कूदना या कुछ बड़ी होने पर यों ही गप्पें मार लिया करती थीं. इस के साथसाथ गली में कौन आजा रहा है, किस का किस के साथ चक्कर है, किस ने किस को कब इशारा किया आदि की भी चर्चा होती रहती थी.

मैं भी अपनी सहेलियों के साथ शाम के वक्त छत पर खड़ी हो कर यह सब करती थी. एक दिन बात करतेकरते अचानक मेरी सहेली रेणु ने कहा, ‘देखदेख, वह चल दिए आरती के दादाजी…देख कैसे चबूतरे को पकड़- पकड़ कर जा रहे हैं.’

मैं ने पूछा, ‘कहां जा रहे हैं.’

‘अरे वहीं, देख सामने गुड्डन की दादी निकल आई हैं न अपने चबूतरे पर.’

और मैं ने देखा, दोनों बैठे मजे से बातें करने लगे. रेणु ने फिर कहा, ‘शर्म नहीं आती इन बुड्ढेबुढि़या को…पता है तुझे, सुबह और शाम ये दोनों ऐसे ही एकदूसरे के पास बैठे रहते हैं.’

‘तुझे कैसे पता? सुबह तू स्कूल नहीं जाती क्या…यही देखती रहती है?’

‘अरे नहीं, मम्मी बता रही थीं, और मम्मी ही क्या सारी गली के लोगों को पता है, बस नहीं पता है तो इन के घर वालों को.’

उस के बाद मैं ने भी यह बात नोट करनी शुरू कर दी थी.

कुनकुनी ठंड आ चुकी थी. रविवार का दिन था. मैं सिर धो कर छत पर धूप में बैठी थी. आदतन मेरी नजर उसी जगह पड़ गई. आरती के दादाजी अखबार पढ़ कर शायद गुड्डन की दादी को सुना रहे थे और दादी मूंगफली छीलछील कर उन्हें पकड़ा रही थीं. यह दृश्य मुझे इतना भाया कि मैं उसे हमेशा के लिए अपनी आंखों में भर लेना चाहती थी.

मुंडेर पर झुक कर अपनी ठुड्डी को हथेली का सहारा दिए मैं कितनी ही देर उन्हें देखती रही कि अचानक आरती दौड़ती हुई आई और अपने दादाजी से जाने क्या कहा और वह एकदम वहां से उठ कर चले गए. गुड्डन की दादी की निरीह आंखें और मौन जबान से निकले प्रश्नों का उत्तर देने के लिए भी उन्होंने वक्त जाया नहीं किया. ‘पता नहीं क्या हुआ होगा,’ सोचते- सोचते मैं भी छत पर बिछी दरी पर आ कर बैठ गई.

अभी पढ़ने के लिए अपनी किताब उठाई ही होगी कि गली में से बहुत जोरजोर से चिल्लाने की आवाज आने लगी. कुछ देर अनसुना करने के बाद भी जब आवाजें आनी बंद नहीं हुईं तो मैं खड़ी हो कर गली में देखने लगी.

देखा, गली में बहुत लोग खड़े हैं. औरतें और लड़कियां अपनेअपने छज्जों पर खड़ी हैं. शोर आरती के घर से आ रहा था. उस के पिताजी अपने पिताजी को बहुत जोरजोर से डांट रहे थे…‘शर्म नहीं आती इस उमर में औरतबाजी करते हुए…तुम्हें अपनी इज्जत का तो खयाल है नहीं, कम से कम मेरा तो सोचा होता…इस से तो अच्छा था कि जब मां मर गई थीं तभी दूसरी बिठा लेते…सारी गली हम पर थूथू कर रही है…अरे, रामचंदर ने तो अपनी मां को खुला छोड़ रखा है…पर तुम में अपनी अक्ल नहीं है क्या…खबरदार, जो आज के बाद गली में पैर रखा तो…’

जितनी चीखचीख कर ये बातें कही गई थीं उन से क्या उन के घर की बेइज्जती नहीं हुई पर यह कहने वाला और समझाने वाला आरती के पिताजी को कोई नहीं था. हां, ये आवाजें जैसे सब ने सुनीं वैसे ही सामने गुड्डन की दादी और उन के बाकी घर वालों ने भी सुनी होंगी.

कुछ देर बाद भीड़ छंट चुकी थी. उस दिन के बाद फिर कभी किसी ने दादी को चबूतरे पर बैठे नहीं देखा. बात सब के लिए आईगई हो चुकी थी.

अचानक एक रात को बहुत जोर से किसी के चीखने की आवाज आई. मेरी परीक्षा नजदीक थी इस कारण मैं देर तक जाग कर पढ़ाई कर रही थी. चीख सुन कर मैं डर गई. समय देखा, रात के डेढ़ बजे थे. कुछ देर बाद किसी के रोने की आवाज आई. खिड़की खोल कर बाहर झांका कि यह आवाज किस तरफ से आई है तो देखा आरती के घर के बाहर आज फिर लोग इकट्ठा होने शुरू हो गए हैं.

मेरे पिताजी भी घर से बाहर निकल चुके थे…कुछ लोग हमारे घर के बाहर चबूतरे पर बैठे धीरेधीरे बोल रहे थे, ‘बहुत बुरा हुआ यार, महेश को समझाना पड़ेगा, मुंह अंधेरे ही अपने पिताजी की अर्थी ले चले, नहीं तो उस के पिताजी ने जो पंखे से लटक कर आत्महत्या की है, यह बात सारे महल्ले में फैल जाएगी और पुलिस केस बन जाएगा. महेश बेचारा बिन मौत मारा जाएगा.’

मैं सुन कर सन्न रह गई. दादाजी ने आत्महत्या कर ली…सब लोग उस दिन की बात भूल गए पर दादाजी नहीं भूल पाए. कैसे भूल पाते, उस दिन उन का आत्मसम्मान उन के बेटे ने मार दिया था. आज उन की आत्महत्या पर कैसे फूटफूट कर रो रहा है.

एक कर्कश सी आवाज तभी मेरे कानों में पड़ी और मेरी तंद्रा भंग हुई. मानो मैं नींद से जागी थी. किसी ने दरवाजे की घंटी बजाई थी. मैं ने कितनी बार अपने पति को कहा है कि इस बेल की आवाज मुझे बिलकुल पसंद नहीं है और जब कोई इसे देर तक बजाता है तो मन करता है बेल उखाड़ कर फेंक दूं.

गुस्से से दरवाजा खोलने गई. बेटी कोचिंग कर के वापस आई थी.

‘‘मिट्ठी, कितनी बार कहा है न कि एक बार बेल बजा कर छोड़ दिया करो. मैं बहरी नहीं हूं. एक बार में ही सुन लेती हूं.’’

‘‘ममा, मैं 10 मिनट से दरवाजे पर खड़ी हूं, पर आप ने घंटी नहीं सुनी और आप जरा अपना फोन देखिए, कितनी मिस काल मैं ने दरवाजे पर खडे़खडे़ दी हैं, आप ने फोन नहीं उठाया और अपने ही किए फोन की घंटी मैं दरवाजे के बाहर खड़ीखड़ी सुनती रही, क्या सो गई थीं आप?’’

अगले दिन बेटी के कोचिंग जाने के बाद मैं ताला लगा कर पार्क की ओर चल दी और अपने बैठने के लिए मैं ने वही बैंच चुनी जिस पर आंटी अकेली बैठी थीं. पसीना पोंछ कर मैं ने उन की ओर देखा तो वह पूछ बैठीं, ‘‘पहली बार सैर करने आई हो शायद.’’

मैं ने ‘हां’ में गर्दन हिला दी.

‘‘2-4 दिन ऐसे ही थकान लगेगी, पसीना आएगा, फिर आदत पड़ जाएगी,’’ आंटी मानो मेरी थकान भरी सांसों को थामने की कोशिश कर रही थीं.

मैं ने भी बात को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से पूछा, ‘‘आप रोज आती हैं?’’

‘‘हां बेटी,’’ उन का छोटा सा उत्तर सुन कर मैं ने कहा, ‘‘मैं तो बहुत कोशिश करती हूं पर आंटी समय नहीं मिलता. आप कैसे नियमित रूप से आ जाती हैं.’’

‘‘तुम्हें समय नहीं मिलता और मेरे पास समय की कमी नहीं,’’ कहते हुए आंटी खिलखिला पड़ीं. तब तक मैं दोबारा सैर करने के लिए तैयार हो चुकी थी. मैं जैसे ही उठी, देखा सामने से अंकल आ रहे थे. यह सोच कर मैं वहां से चल दी कि आज के लिए इतना ही काफी है.

अब मेरा यह नियम ही हो गया था. रोज की मुलाकात व बातचीत में यह पता चला कि आंटी यानी मिसेज सुमेधा कंसल सरकारी स्कूल की रिटायर्ड प्रिंसिपल हैं. बच्चे अपनीअपनी गृहस्थी में मगन हैं. एक दिन मैं ने पूछा भी था, ‘‘आंटी, जब आप प्रिंसिपल रह चुकी हैं तो आप अपने नातीपोतों को पढ़ा सकती हैं, आप के समय का सदुपयोग भी हो जाएगा.’’

एक फीकी सी हंसी के साथ आंटी बोलीं, ‘‘बेटी दूसरे शहर में रहती है. बेटे के भी एक ही बेटा है और वह देहरादून में पढ़ता है. होस्टल में रहता है. बेटा और बहू दोनों ही मुझे हर सुखसुविधा देते हैं, मानसम्मान भी रखते हैं लेकिन अपने- अपने कैरियर की ऊंचाइयां पाने में व्यस्त हैं. घर पर मैं बस, अकेली…’’

‘‘तो आंटी कोई सोशल सर्विस या अन्य कोई ऐसा काम जो आप को रुचिकर लगे, क्यों नहीं करतीं?’’

‘‘मैं जैसी सोशल सर्विस करना चाहती हूं वह बच्चों को पसंद नहीं है और ऊंची शानशौकत वाली सोशल सर्विस मैं कर नहीं सकती. हां, मुझे कविता और कहानियां लिखना रुचिकर लगता है और वह मैं लिखती हूं. लेकिन यह शाम का समय घर में अकेले नहीं बीतता…कोई तो बात करने के लिए चाहिए…नहीं तो हम बोलना ही भूल जाएंगे और हमारी भाषा समाप्त हो जाएगी. हां, अगर तुम्हारे अंकलजी होते तो…’’

‘‘अभी अंकलजी आप को लेने नहीं आएंगे क्या?’’ मैं ने अनजान बनते हुए पूछा.

‘‘नहीं बेटा, जिन्हें तुम रोज मेरे साथ बात करते देखती हो वह भी मेरी ही तरह अकेले हैं. मेरे पति तो 20 वर्ष पहले ही गुजर चुके हैं. उन के जाने के बाद भी अकेलापन था लेकिन वह वक्त तो बच्चों को पालने और नौकरी करने में जैसेतैसे बीत गया और शर्माजी, जो अभी आने ही वाले होंगे, वह भी अपनी जीवन संगिनी को 7-8 वर्ष पहले खो चुके हैं.

‘‘शर्माजी तो मुझ से ज्यादा अकेले हैं. मेरी बहू जूही मेरे बहुत करीब है, फिर फोन पर हर तीसरे दिन बेटी से भी बात हो जाती है लेकिन वह तो मर्द हैं न, बहुओं से ज्यादा घुलमिल नहीं पाते, बेटों के पास फुर्सत नहीं है. ऐसा नहीं कि बहूबेटे उन का खयाल नहीं रखते लेकिन आज सब अपने में व्यस्त हैं. नौकरीपेशा बहुएं 24 घंटे तो हाथ बांधे नहीं खड़ी रह सकतीं न और नौकरीपेशा ही क्यों, घर में रहने वाली बहुएं भी ऐसा कहां कर सकती हैं…यद्यपि इनसान ऐसा करना चाहता है लेकिन वक्त है कि वह हम सब को अपनी उंगली पर नचाता रहता है.

‘‘जैसे बच्चे, बच्चों की संगत में, जवान, जवानों के साथ, ऐसे ही हम बूढे़ बूढ़ों की संगत में खुश रहते हैं. बच्चों के साथ कभी हमें बच्चा बनना पड़ता है, अच्छा लगता है, लेकिन मन की बात तो किसी हमउम्र से ही शेयर की जा सकती है. बस, शर्माजी हैं, आते हैं…साझा दुख साझा सुख…कुछ इधर की कुछ उधर की…और फिर अगले दिन मिलने की उम्मीद में पूरे 24 घंटे बीत जाते हैं.’’

तभी सामने से शर्माजी आते दिखाई दिए. मैं उठ कर चलने लगी. आज सुमेधाजी ने मुझे रोक लिया.

‘‘इन से मिलिए. ये हैं, मिसेज मालिनी अग्रवाल, यहीं सामने के फ्लैट में रहती हैं और बेटा, ये हैं मि. शर्मा… रिटायर्ड अंडर सेके्रटरी.’’ हम दोनों में नमस्ते का आदानप्रदान हुआ और मैं वहां से चल दी. Hindi Story

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