नाइट फ्लाइट :ऋचा से बात करने में क्यों कतरा रहा था यश

मुंबई का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा. अभी शाम के 5 भी  नहीं बजे थे. यश की फ्लाइट रात के 8 बजे की थी. वह लंबी यात्रा में किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता था. सो, एयरपोर्ट जल्दी ही आ गया था. उस ने टैक्सी से अपना सामान उतार कर ट्रौली पर रखा. हवाईअड्डे पर काफी भीड़ थी. वह मन ही मन सोच रहा था, आजकल हवाई यात्रा करने वालों की कमी नहीं है. यश ने अपना पासपोर्ट और टिकट दिखा कर अंदर प्रवेश किया.

यश ने एयर इंडिया के काउंटर से चेकइन कर अपना बोर्डिंग पास लिया. उस ने अपने लिए किनारे वाली सीट पहले से बुक करा ली थी. उसे यात्रा के दौरान विंडो या बीच वाली सीट से निकल कर वौशरूम जाने में परेशानी होती है. उस के बाद वह सुरक्षा जांच के लिए गया. सुरक्षा जांच के बाद टर्मिनल 2 की ओर बढ़ा जहां से एयर इंडिया की उड़ान संख्या ए/314 से उसे हौंगकौंग जाना था. वहां पर वह एक किनारे कुरसी पर बैठ गया. अभी भी उस की फ्लाइट में डेढ घंटे बाकी थे. हौंगकौंग के लिए और भी उड़ानें थीं पर उस ने जानबूझ कर नाइट फ्लाइट ली ताकि रात जहाज में सो कर गुजर जाए और सारा दिन काम कर सके. उस की फ्लाइट हौंगकौंग के स्थानीय समय के अनुसार सुबह 6.45 बजे वहां लैंड करती.

थोड़ी देर बाद एक बुजुर्ग आ कर यश की बगल में एक सीट छोड़ कर बैठ गए. बीच की सीट पर उन्होंने अपना बैग रख दिया. देखने में वे किसान लग रहे थे. उन्होंने अपना बोर्डिंग पास यश को दिखाते हुए पंजाबी मिश्रित हिंदी में पूछा, ‘‘पुत्तर, मेरा जहाज यहीं से उड़ेगा न?’’

यश ने हां कहा और अपनी किताब पढ़ने लगा. बीचबीच में वह सामने टीवी स्क्रीन पर न्यूज देख लेता. लगभग आधे घंटे के बाद एक युवती आई. यश की बगल वाली सीट पर बुजुर्ग का बैग रखा था. लड़की ने यश से कहा, ‘‘प्लीज, आप अपना बैग हटा लेते, तो मैं यहां बैठ जाती.’’

यश ने मुसकराते हुए बुजुर्ग की ओर इशारा कर कहा, ‘‘यह बैग उन का है.’’

उस बुजुर्ग को हिंदी ठीक से नहीं आती थी. लड़की के समझाने पर उन्होंने अपना बैग नीचे रखा. तब लड़की ने यश की ओर देख कर कहा, ‘‘मैं थोड़ी देर में वौशरूम से आती हूं.’’

इस बार यश ने सिर उठा कर उसे देखा और मुसकराते हुए, ‘इट्स ओके’ कहा. फिर लड़की को जाते हुए देखा. लड़की खूबसूरत थी. उस की पतली कमर के ऊपर ब्लू स्कर्ट और स्कर्ट के बाहर झांकती पतली टांगें उसे अच्छी लगी थीं. ऊपर एक सफेद टौप था. उस ने हाईहील सैंडिल पहनी थी.

करीब 10 मिनट के बाद एक हाथ में स्नैक्स और दूसरे में कोक का कैन लिए वह लड़की आ रही थी. पहले स्नैक्स खाती, फिर कोक सिप करती. यश ने देखा कि उसे हाईहील पहन कर चलने में कुछ असुविधा हो रही थी. वह जैसे ही अपनी कुरसी पर बैठने जा रही थी कि थोड़ा लड़खड़ा पड़ी. उस ने अपने को तो संभाल लिया पर कोक का कैन हाथ से छूट कर यश की गोद में जा पड़ा. कुछ कोक छलक कर उस की जींस पर गिरी जिस से जींस कुछ गीली हो गई थी.

यश ने खड़े हो कर कैन उसे पकड़ाया. लड़की बुरी तरह शर्मिंदा थी, बोली, ‘‘आई एम ऐक्सट्रीमली सौरी.’’ और बैग में से कुछ टिश्यूपेपर निकाल कर उस की जींस पोंछने लगी.

यश को यह अच्छा नहीं लगा, वह बोला, ‘‘आप रहने दें, मैं खुद कर लेता हूं.’’ और उस के हाथ से टिश्यू ले कर खुद गीलापन कम करने की कोशिश करने लगा.

थोड़ी देर बाद बोर्डिंग की घोषणा हुई. यह भी इत्तफाक ही था कि वह लड़की और बुजुर्ग दोनों यश की बगल की सीटों पर थे. बुजुर्ग को विंडो सीट और लड़की को बीच वाली सीट मिली थी.

विमान के कैप्टन ने यात्रियों का स्वागत करते हुए कहा कि मुंबई से हौंगकौंग तक की उड़ान करीब 8 घंटे 35 मिनट की होगी. पर लगभग 2 घंटे के बाद विमान एक घंटे के लिए दिल्ली में रुकेगा. जिन यात्रियों को हौंगकौंग जाना है, कृपया अपनी सीट पर बैठे रहें. विमान परिचारिका ने सुरक्षा नियम समझाए. बुजुर्ग यात्री पहली बार हवाई जहाज से यात्रा कर रहे थे. उन्हें बैल्ट बांधने में लड़की ने मदद की. उन्होंने बताया कि वे कनाडा जा रहे हैं. वे कुछ दिन हौंगकौंग में अपनी भतीजी की शादी के सिलसिले में रुकेंगे.

फिर उन्हें हौंगकौंग से वैंकुवर जाना है. उन के बेटे ने उन का ग्रीनकार्ड स्पौंसर किया है.

निश्चित समय पर विमान ने टेकऔफ किया. बातचीत का सिलसिला यश ने शुरू किया. वह लड़की से बोला, ‘‘मैं यश मेहता, सौफ्टवेयर इंजीनियर हूं. मेरी कंपनी बैंकिंग सौफ्टवेयर बनाती है. अभी मैं एक प्रोडक्ट के सिलसिले में हौंगकौंग के बार्कले इन्वैस्टमैंट बैंक और एचएसबीसी बैंक जा रहा हूं.’’

‘‘ग्लैड टू मीट यू, मैं ऋचा शर्मा. हौंगकौंग में हमारा बिजनैस है.’’

‘‘तब तो आप अकसर वहां जाती होंगी.’’

‘‘जी नहीं, पहली बार जा रही हूं.’’

तब तक जलपान दिया गया. यश और ऋ चा ने देखा कि वे बुजुर्ग बारबार उठ कर बाथरूम जा रहे हैं जिस के चलते ऋचा को ज्यादा परेशानी हो रही थी. यश किनारे वाली सीट पर था तो वह अपने पैर बाहर की तरफ मोड़ लेता.

बुजुर्ग ने बताया कि उन्हें शुगर और किडनी दोनों बीमारियां हैं. उन की एक आदत यश और ऋ चा दोनों को बुरी लगी कि विमान परिचारिका जो भी कुछ सामान अगलबगल की सीट पर देती, वे अपने लिए भी मांग बैठते.

कुछ देर बाद विमान दिल्ली हवाई अड्डे पर उतर रहा था. करीब एक घंटे के बाद विमान ने हौंगकौंग के लिए उड़ान भरी. आधे घंटे के बाद डिनर सर्व हुआ. डिनर के बाद यश सोने की तैयारी में था. तभी ऋ चा ने अपने रिमोट से परिचारिका को बुलाने के लिए कौलबैल का बटन दबाया. थोड़ी देर में वह आई. ऋचा ने उस के कान में धीरे से कुछ कहा. परिचारिका ‘श्योर मैम, मैं देखती हूं,’ बोल कर चली गई.

कुछ ही देर बाद वह लौट कर आई. उस ने एक टिश्यू में लिपटा हुआ कुछ सामान ऋचा को दिया. बुजुर्ग ने कहा, ‘‘पुत्तर, एक मुझे भी दे दो.’’

परिचारिका बोली, ‘‘सर, यह आप के काम की चीज नहीं है.’’

‘‘तुम मुझे दो तो सही. मैं देख लूंगा, मेरे लिए है या नहीं.’’

ऋचा शरमा रही थी और अपनी हंसी भी नहीं छिपा पा रही थी. बारबार समझाने पर भी वे नहीं मान रहे थे. तब परिचारिका ने झुंझला कर कहा, ‘‘आप को भी मासिकधर्म है क्या?’’

बुजुर्ग बोले, ‘‘छि, क्या बोलती है?’’

तब जा कर उन की समझ में बात आई. यश ने कहा, ‘‘मैं देख रहा हूं आप हर चीज अपने लिए मांग रहे हैं?’’

‘‘आते समय मेरे बेटे ने समझाया था कि शर्म नहीं करना, सब चीजें जहाज में फ्री मिलती हैं.’’

यश हंस पड़ा. इसी बीच ऋचा सैनिटरी नैपकिन ले कर वौशरूम चली गई. 10 मिनट बाद वह लौट कर अपनी सीट पर आ रही थी. बगल की सीट पर बैठा यात्री सो रहा था और उस का हैडफोन नीचे गिरा था. ऋचा का पैर हैडफोन की तार में फंस गया, ऊपर से हाईहील, पैंसिल नोक वाली सैंडिल. ऋचा गिर पड़ी और उस की स्कर्ट भी कुछ इस तरह उठ गई थी कि उस का अधोवस्त्र भी झलकने लगा. वह उठने की कोशिश कर रही थी, पर दोबारा फिसल पड़ी थी. यश ने उसे सहारा दे कर अपनी सीट पर बैठाया और खुद बीच वाली सीट पर बैठ गया.

‘‘थैंक्स अ लौट,’’ ऋ चा बोली.

‘‘इट्स ओके. पर एक बात पूछूं, बुरा न मानिए.’’

ऋचा के पूछिए बोलने पर वह बोला, ‘‘आप हाईहील में सहज नहीं लगती हैं, फिर फ्लाइट में क्यों इसे पहन कर आई हैं?’’

‘‘हाईहील के बगैर मेरी हाइट 5 फुट से भी कम हो जाती है. वैसे, मैं रैगुलर इसे यूज नहीं करती.’’

थोड़ी देर बाद ऋ चा को नींद आ गई. उस ने नींद में यश के कंधे पर अपना सिर रख दिया. यश को उस का सामीप्य अच्छा लग रहा था. कंधे पर एक खुशनुमा बोझ तो था, पर उस के बदन और बालों की खुशबू यश को रोमांचित कर रही थी. वह यथावत स्थिति में बैठा रहा. उसे डर था कि कहीं हिलनेडुलने से ऋचा की नींद न टूट जाए और वह इस आनंद से वंचित रह जाए. बीच में कभी ऋचा की नींद खुलती तो वह सीधा हो कर बैठती, पर 5 मिनट के अंदर फिर यश के कंधों पर लुढ़क जाती.

इस बीच, यश ने दोनों सीटों के बीच वाले हिस्से को उठा कर खड़ा कर दिया. कभी तो ऋ चा का सिर उस के सीने पर भी आ जाता, तब उस की नींद खुलती और सौरी बोल कर सीधी हो जाती और बोलती, ‘‘मुझ से नींद बरदाश्त नहीं होती. मैं कहीं भी जाती हूं किसी तरह अपने सोनेभर की जगह बना ही लेती हूं.’’

यश ने कहा, ‘‘आप कहें तो मैं आप के लिए कुछ और जगह बना दूं. मेरे पैर पर तकिया रख कर सो लें.’’

‘‘ओह, नोनो.’’

पर 10 मिनट के अंदर उस का सिर यश के पैर पर रखे तकिए पर आ गया. यश को भी नींद आ रही थी, पर वह अपनी नींद कुरबान करने को तैयार था, बल्कि एकाध बार तो उस का दाहिना हाथ ऋ चा के बालों पर फिसलने लगता.

देखतेदेखते लैंडिंग की भी घोषणा हुई. तब यश ने धीरे से ऋचा का सिर हिला कर कहा ‘‘उठिए, बैल्ट बांधिए. हम हौंगकौंग पहुंच रहे हैं.’’

‘‘इतनी जल्दी आ गए. मुझे तो पता ही नहीं चला.’’ और फिर सीधा बैठ कर बैल्ट बांधती हुई बोली, ‘‘क्या मैं रातभर इसी तरह सोती आई? सौरी, आप को तकलीफ दी.’’

‘‘कोई बात नहीं, इट्स अ प्लेजर फौर मी. अगर सफर लंबा होता तो मुझे और खुशी होती.’’

ऋ चा मुसकरा कर रह गई. ऋ चा और यश दोनों का इमिग्रेशन और कस्टम एक ही डैस्क पर हुआ. वहीं लाइन में खड़े यश ने कहा, ‘‘आप के साथ का सफर बड़ा प्यारा रहा. क्या हम आगे भी मिल सकते हैं?’’

‘‘हां, मिलने में कोई बुराई नहीं है.’’

‘‘तो शाम को विंधम स्ट्रीट के इंडियन रैस्टोरैंट में मिलते हैं. जब हौंगकौंग आता हूं, वहां मैं अकसर डिनर करता हूं. लाजवाब स्वाद है वहां के खाने में.’’

ऋ चा हंस कर बोली, ‘‘तब तो वहां मैं जरूर मिलूंगी.’’

दोनों एयरपोर्ट से बाहर निकले. दोनों के लिए तख्तियां ले कर कार के ड्राइवर्स खड़े थे. दोनों अपनेअपने गंतव्य स्थान पर गए.

यश 2-3 घंटे होटल में आराम कर अपने काम पर चला गया. दिनभर वह शाम को ऋचा से होने वाली मुलाकात को सोच कर रोमांचित होता रहा.

यश ने शाम को उस इंडियन रैस्टोरैंट में अपने लिए टेबल बुक कर लिया था. होटल पहुंच कर वह अपने टेबल पर बैठा बारबार घड़ी देख रहा था. सोच रहा था कि ऋचा बोल कर भी क्यों नहीं आई. वह सोच ही रहा था कि तभी ऋचा एप्रन पहने सामने आ खड़ी हुई. उसे मेनू बुक देते हुए बोली, ‘‘गुड इवनिंग सर, आप खाने में क्या पसंद करेंगे?’’

यश उसे वेट्रैस की ड्रैस में देख कर घबरा गया और बोला, ‘‘तुम यहां वेट्रैस हो? यही तुम्हारा बिजनैस है?’’

‘‘रिलैक्स सर. अच्छा, आज मेरी पसंद का डिनर लें. आप को शिकायत का मौका नहीं दूंगी.’’

यश ने उस का हाथ पकड़ कर बैठाना चाहा तो वह बोली, ‘‘मैं डिनर ले कर आती हूं. दोनों साथ बैठ कर खाएंगे.’’

यश हैरानपरेशान सा बैठा था. थोड़ी देर में वह भरपूर खाना ले कर आई और एप्रन खोल कर रख दिया. दोनों खाते रहे. यश ने 2-3 बार पूछना चाहा कि क्या वह वेट्रैस है, पर हर बार वह टाल जाती.

खाना खत्म होते ही एक युवक उन के पास आया और उस ने ऋ चा से पूछा, ‘‘कुछ और चाहिए. खाना पसंद आया तुम्हारे वीआईपी गैस्ट को?’’

यश उस युवक की ओर देखने लगा. ऋ चा बोली, ‘‘मीट माई हस्बैंड, नीलेश.’’

यश भौचक्का सा कभी ऋचा, तो कभी नीलेश को देखता रहा. थोड़ी देर बाद नीलेश बोला, ‘‘हमारी शादी 2 महीने पहले इंडिया में हुई थी. इसे मायके में कुछ दिन रुकने का मन था. मैं यहां पहले चला आया. इस होटल में मेजर शेयर हमारा है. आप ने यात्रा में ऋचा की काफी सहायता की है. वह आप की बहुत तारीफ कर रही थी. दरअसल, इस टेबल की वेट्रैस आज छुट्टी पर है. ऋ चा बोली कि उस का एक खास गैस्ट आ रहा है, वह खुद मेहमाननवाजी करेगी. और आज का डिनर हमारी तरफ से कौंप्लीमैंट्री रहा.’’

यश अभी तक इस आश्चर्यजनक वाकए से उबर नहीं सका था, वह बोला, ‘‘ऋचा, आप ने पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘मैं ने कहा था कि मेरा बिजनैस है. पर जब आप ने इंडियन रैस्टोरैंट का नाम लिया तो मैं ने सोचा, क्यों न सरप्राइज दिया जाए, और आप को कुछ देर और रोमांचित होने का मौका दिया मैं ने.’’

‘‘नौट फेयर ऋचा, मुझे आप ने अपने बारे में अंधेरे में रखा.’’

ऋचा ने यश की पीठ थपथपाई और कहा, ‘‘वी विल रिमेन गुड फ्रैंड्स. इस होटल में जब भी चाहो, आ जाना. बिल नहीं भी देंगे तो भी चलेगा. पर हर बार मैं सर्व नहीं कर सकूंगी. होप यू डौंट माइंड.’’

नीलेश और ऋचा दोनों होटल के बाहर तक यश को छोड़ने आए.

यश ने टैक्सी ली और वापस अपने होटल आ गया. रिलैक्स हो कर सोफे पर बैठ गया. उसे एहसास हो रहा था कि हम बिना दूसरे के बारे में जाने न जाने क्याक्या सोच बैठते हैं. ऋचा को देख उस ने न जाने क्याक्या सोच लिया था. गलती तो उसी की थी. मन तो बावरा होता है, लेकिन अपनी सोच पर तो हमारी खुद की पकड़ होती है. यश को अपनेआप पर हंसी आ गई. फिर लंबी सांस भर कर बोला, ‘‘नौट अगेन.’’

आशा नर्सिंग होम: क्यों वह आशा से बन गई रजनी

रजनी उदास है. पति को दिल का दौरा पड़ा हुआ है. वे आशा नर्सिंग होम के औपरेशन थिएटर में है. उन्हें सुबह बेहोशी की हालत में अस्पताल लाया गया था, इलाज किया जा रहा है. औपरेशन थिएटर का दरवाजा बंद है.

अभीअभी उन्हें अंदर ले जाया गया है. बाहर रजनी, उस की बड़ी बहन अनुपमा, युवा भांजा रोहित और जीजा प्रभाकर खड़े हैं. सभी चिंतित हैं, रजनी के पतिदेव के स्वास्थ्य की कामना कर रहे हैं.

रजनी के पति रमेश की उम्र 54 वर्ष है. उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा है. मृत्यु नाम ही कितना भयानक है कि मनुष्य, जीव-जंतु हो या प्राणी… मृत्यु से दूर भागने की कोशिश में ही रहते हैं जब तक कि उन का जीवन है, जब तक कि उन की सांसें चल रही हैं.

रजनी, स्वाभाविक है कि, सब से ज्यादा चिंतित है. उस के 2 बच्चे है. 19 वर्षीय सौम्य कालेज की पढ़ाई कर रहा है और 12 वर्षीया नेहा 8वीं कक्षा में है. दोनों पढ़ाई में व्यस्त होने की वजह से घर पर वडोदरा में ही हैं. रजनी वडोदरा में रहती है. भांजे रोहित की एंगेजमैंट के उपलक्ष्य में यहां रमेश के साथ बहन के घर कानपुर आई हुई है.

अब सोफ़े पर बैठी रजनी आंखें मूंदें है. वह सोच रही है कि इस अस्पताल का नाम ‘आशा नर्सिग होम’ है और शादी से पहले उस का नाम भी आशा था. रमेश के साथ शादी होने के बाद उस का नया नाम रजनी हो गया और आज वह अपने असल नाम को याद करती हुई यहां आशा नर्सिंग होम में है. अजीब संयोग है.

अरे, मैँ तो यहां बड़ी बहन अनुपमा के घर, कानपुर आई हुई हूं. यह मेरा मायका है. मां-बाऊजी तो अब नहीं रहे. बाऊजी का घरबार, कपड़े की दुकान… सबकुछ बेच कर बड़े अमर भैया परिवार के साथ अमेरिका में रह रहे हैं. इंजीनियर अमर भैया पहले वहां नौकरी के बहाने गए और बाद में शादी भी अपने औफिस में कार्यरत अमेरिकन लड़की से कर ली. पहले मां और बाद में बाऊजी की मृत्यु हुई और अमर भैया का मानो भारत से नाता ही टूट गया. अब रह गईं हम 2 बहनें, जो सुखदुख में एक दूजी का साथ निभा रही हैं. अनुपमा दीदी के बेटे की कल शाम एंगेजमैंट है.

“हैलो,” कहते हुए रजनी ने फोन कान से सटाया. बेटे का वडोदरा से फोन था.

“कैसे हो मम्मी? पापा का फोन स्विचऔफ आ रहा है.”

“हम कहीं बाहर हैं बेटे, बाद में बात करती हूं,” कहते हुए रजनी ने फोन बंद कर दिया. वह बच्चों को कुछ बताना नहीं चाहती थी क्योंकि वे परेशान हो सकते थे. अब वह फिर से सोचने लगी…

रमेश, दूर की रिश्ते की बूआ के बेटे, को मैं ने ही पसंद किया था. तब मैँ एमए इंग्लिश की पढ़ाई कर रही थी. रमेश इंजीनियर था और बड़ा ही हैंडसम था. सरकारी नौकरी, कार, बड़ा सा मकान… सबकुछ था उस के पास. घर में भी सभी को पसंद था.

“ननकी, तेरी तबीयत ठीक तो है? चिंता न कर. सब ठीक ही होगा. आशा नर्सिग होम यहां का बहुत जानामाना अस्पताल है, ननकी. डा. भट्ट की ख्याति दूरदूर तक है. यहां से कभी कोई पेशेंट निराश नहीं लौटता, ऐसा लौकिक है. ये ले, पानी पी ले. रमेश जी जल्दी स्वस्थ हो जाएंगे. अभी खबर आ जाएगी कि खतरा टल गया है,” कहते हुए अनुपमा ने पानी का गिलास रजनी के हाथ में दिया.

रोहित वहां पड़ी हुई किसी मैगजीन के पन्ने पलट रहा था. सामने सोफ़े पर एक स्त्री गोद में आठदस महीने का बच्चा ले कर बैठी हुई थी जो सो रहा था. रजनी ने देखा कि वह बारबार पल्लू से आंखें पोंछ रही थी. उस का भी कोई अपना अस्पताल में शायद एडमिट था.

रजनी ने फिर पीछे गरदन टिकाई और आंखें मूंद लीं. ननकी नाम कितना प्यारा है. यह नाम मेरा ही है. बचपन में मां, बाबूजी, भैया… सभी तो ननकी ही बुलाते थे मुझे. आशा नाम तो स्कूल और सहेलियों के बुलाने के लिए था और आशीष, मेरा आशीष, भी तो मुझे आशा कह कर ही बुलाता था, लेकिन वह मेरा नहीं हुआ.

डाक्टर का क्या नाम बताया था दीदी ने…हां, डा. भट्ट. मेरी बचपन की सहेली विजया का किराएदार जो छत पर एक कमरा किराए पर ले कर रहता था, आशीष भट्ट नाम था उस का. वह भी मैडिकल स्टूडैंट ही तो था. तब वह एमबीबीएस के सैकंड ईयर में था. लेकिन वह तो राजकोट, गुजरात का रहने वाला था. यहां कानपुर में उस का नर्सिग होम? और इतना बड़ा विदेश से डिग्रियां ले कर आया हुआ कार्डियोलौजिस्ट?

इतने में औपरेशन थिएटर से एक नर्स बाहर आई और अनुपमा के पति से बातें करने लगी. तो रजनी ने आंखें खोलीं और उठ कर तेजी से उस के पास जा कर बोली, “सिस्टर, कैसे हैं रमेश जी? कैसी है अब उन की तबीयत?”

“सौरी बहन जी, अभी उन को होश आया नहीं है. डाक्टर साहब और हम स्टाफ कोशिश कर रहे हैं. यह इंजैक्शन उन के लिए डाक्टर साहब ने मंगवाया है,” कहती हुई नर्स वापस औपरेशन थिएटर में चली गई और फिर दरवाजा बंद हो गया. नर्स प्रभाकर जी के हाथ में एक परचा पकड़ा कर गई थी और वे तुरंत इंजैक्शन लेने वहां से बाहर की ओर चले गए.

अनुपमा अब रजनी के पास आई और उसे वापस सोफ़े पर बैठाते हुए बोली, “ननकी, हिम्मत से काम ले. डाक्टर अपनी कोशिश पूरी कर रहे हैं. देखती जा, तेरे जीजा अभी इंजैक्शन ले कर

आएंगे. मेरा मन कहता है, इंजैक्शन लग जाने के बाद रमेश जी होश में आ ही जाएंगे.”

“ऐसा ही हो दीदी,” कहते हुए रजनी ने पास बैठी अनुपमा के कंधे पर सिर रख दिया. अनुपमा का बेटा रोहित, जो वहीं पर बैठा हुआ था, के मोबाइल की रिंग बज उठी और वह ‘हैलो’ बोलता हुआ वहां से उठ कर थोड़ी दूर जा कर बात करने लगा. अब रजनी ने अनुपमा के कंधे से सिर उठाया और थोड़ी स्वस्थ हो कर पहले की तरह आंखें मूंद कर बैठी. चलचित्र की भांति उस की आंखों के सामने से एकएक दृश्य गुजर रहा था…

‘आशा, क्या तुम मुझ से आज शाम नानाराव पार्क में मिलने आ सकती हो?’ आशीष ने इतने प्यार से पूछा कि मैं मना न कर सकी और चली गई. आशीष ने अपने प्यार का इजहार किया. मैं ने शर्म से आंखें झुकाईं और अपने हाथ में पकड़े पर्स को कस कर दबाया. आशीष ने मेरे हाथ पर हाथ रखा और ‘आशु’ कहते हुए और नजदीक आया. मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. एक पुरुष का स्पर्श तनमन में एक जादुई जोश पैदा कर रहा था. उस पहले स्पर्श का अनुभव मैं इस समय भी कर रही हूं. लेकिन क्यों?’ और रजनी ने एकदम से आंखें खोलीं.

दीदी पास नहीं थी. कहां गई होगी? शायद वाशरूम गई होगी. इतने में दीदी आती दिखाई दी और दूसरी तरफ से जीजाजी भी आते दिखाई दिए. रोहित अब भी दूर खड़ा मोबाइल पर बातें कर रहा था. शायद उस की फियांसी का फोन था. जीजाजी ने औपरेशन थिएटर के बाहर खड़े अटेंडैंट को इंजैक्शन का लिफ़ाफ़ा पकड़ाया और उस ने उसे तुरंत अंदर भिजवा दिया.

जीजाजी अब रजनी के साथ बैठे हुए थे. दूसरी तरफ दीदी बैठ गई. इस समय सभी की आंखें औपरेशन थिएटर के दरवाजे पर लगी हुई थीं. लगभग 25 मिनट के बाद दरवाजा खुला और अंदर से डाक्टर भट्ट और उन के पीछे एक डाक्टर व नर्स बाहर आए.

‘ओह, यह तो मेरा वही आशीष भट्ट है,’ देख कर रजनी सन्न रह गई और अपनी जगह पर बैठी रही. लेकिन बहन अनुपमा, प्रभाकर जी और रोहित उठ कर डाक्टर की तरफ चल दिए. उसे सब सुनाई दे रहा था जो डाक्टर भट्ट कह रहे थे.

“अब रमेश जी होश में आ गए हैं और उन की तबीयत ठीक है. अब उन्हें वार्ड में शिफ्ट किया जाएगा. वहां आप उन से मिल सकते हैं. उन की हार्टबीट नौर्मल है. परीक्षण के लिए आज रात उन्हें यहीं रहना पड़ेगा. कल सुबह 10 बजे डिस्चार्ज किया जाएगा. और हां, उन की शराब और सिगरेट की आदत छुड़वा सकते हैं, तो अच्छा रहेगा. यही वजह है उन के दिल के दौरे की,” कहते हुए डा. आशीष भट्ट के चेहरे पर स्मित हास्य था.

वही मोटापा, छोटा कद, आंखों पर मोटा चश्मा… पर ये सब आशीष के व्यक्तित्व में और ज्यादा निखार भर रहा था. अच्छा हुआ कि उन की नजर आशा उर्फ रजनी की तरफ नहीं पड़ी. वह चाहती नहीं थी कि वे उसे देखें. उस ने दूसरी तरफ मुंह घुमाया. डा. भट्ट अब लिफ्ट की ओर जा रहे थे.

“ननकी, अब तो खुश हो ले बहन. तू भी कर लेती बात डाक्टर साहब से. चलो, अब सब ठीक है…” और अनुपमा आगे भी बोलती गई.

लेकिन रजनी अपने खयालों खोई वहीं बैठी रही… आशीष से उस का मिलनाजुलना बढ़ता जा रहा था. वह सोच रही थी कि परसों अपने जन्मदिन पर घर की छोटी सी पार्टी में आशीष को आमंत्रित करूं और सब से उस का परिचय कराऊं. सब को सरप्राइज दूंगी. फिर शादी की बात चलने में देर नहीं लगेगी. मेरे मन में लड्डू फूट रहे थे.

नानाराव पार्क की उसी खास बैंच पर बैठते हुए आशीष ने मिलते ही उदास स्वर में कहा, ‘आशा, मैँ आज रात की ट्रेन से राजकोट जा रहा हूं. पिताजी बीमार हैं, अस्पताल में एडमिट हैं. अभी थोड़ी देर पहले ही बूआ का फोन आया था.’

‘लेकिन आशीष, परसों मेरा बर्थडे है. उस के बाद भी तो जा सकते हो. क्या पिताजी के पास कोई और नहीं है?’ मैं ने थोड़ा जोर दे कर पूछा.

‘नहीं, वैसे मेरी माताजी, बूआ और चाचाचाची हैं, दोनों छोटे भाई भी हैं लेकिन अब मैँ कैसे रुक सकता हूं? मेरे पिताजी…’ कहते हुए आशीष का गला रुंध गया और उस ने रूमाल आंखों से लगाया.

उस के बाद हमारी कोई बातचीत नहीं हुई. घर पहुंच कर मैं ने सोचा कि आशीष को घरवालों की ज्यादा ही फिक्र है. इस के लिए मैँ कोई खास नहीं हूं. और पता नहीं, कल का भी क्या भरोसा?

आशीष ठीक 10 दिनों बाद वापस आया. बीच में एक बार उस का फोन आया लेकिन फोन पर अपने पिताजी के बारे में ही बात करता रहा. वापस आने पर उस को परीक्षा की तैयारी करनी थी. उस के पास मिलने के लिए समय नहीं था.

अब मुझे आशीष में बहुत सी कमियां नजर आने लगी थीं. उस का मोटापा, उस का छोटा कद, उस का मोटे शीशे वाला चश्मा मुझे अखर रहा था. ठीक 15 दिनों बाद वह मिला. बड़े ही प्यार से मिला. अपने ही भविष्य के बारे में ज्यादा बातें की उस ने. कार्डियोलौजी में आगे की डिग्री लेने की बात भी बताई. बीचबीच में मेरा हाथ पकड़ना, आंखों में झांकना, गाल सहलाना आदि क्रियाएं भी प्रेम से अभिभूत हो कर रहा था.

फिर जब उस ने अपनी बहन की बात की, तो मैं ने उसे रोका, कहा, ‘आशीष, अब हम यहीं रुक जाते हैं. तुम अपने घरवालों के ही बन कर रहो. उन की ही चिंता करो. तुम्हारे मन में मेरे लिए प्यार नहीं है, यह मैँ समझ गई हूं. मैँ कभी तुमारे लिए ‘खास’ थी, न बन सकूंगी.’

‘ऐसा नहीं है, आशा. मैं ने तुम से सच्चे दिल से प्यार किया है. ठंडे दिमाग से फिर से मेरे बारे में सोचो. अरे, मैं ने तो भविष्य में बनने वाले अपने नर्सिंग होम का नाम भी ‘आशा नर्सिंग होम’ रखने की सोचा है. जीवन तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं, आशा.’

लेकिन मैँ वहां रुकी नहीं. मैं ने पीछे मुड़ कर उसे देखा भी नहीं. और घर चली आई.बाद में मेरे न मिलने को शायद वह अपनी हार समझ बैठा और उस ने मुझ से किनारा कर लिया. विजया ने बताया था कि वह पुणे चला गया. फिर मेरी शादी मेरी पसंद के लंबे, गोरे और चश्मा न पहनने वाले इंजीनियर रमेश से हुई, जिस ने इतने वर्षों में अपनी ज्यादातर कमाई जुआ और शेयर मार्केट में उड़ा दी और शराबसिगरेट का तो वह शुरू से ही आदी था. यह बात मैँ उस से शादी करने से पहले जान गई थी लेकिन उस के बाह्य रंगरूप पर मैँ फिदा थी.

रमेश के लिए भी मैँ ‘खास’ कभी नहीं रही. नशे में कई बार मुझ पर उस का हाथ भी उठ जाता था और साथ में गालीगलौज की बौछार करता था. हर रोज शराब पीना ही उस के लिए दिल के दौरे का कारण बना. बाहरी रूपरंग देख कर मैं ने उसे पसंद किया, जो गलत था.

आज रमेश भी भद्दी शक्लवाला और मोटा है. मोटे शीशे का चश्मा भी पहनता है. क्या मिला मुझे? हां, अपने मातापिता और परिवारजनों की चिंता करना, उन के सुखदुख के समय उन के साथ खड़े होना, जितनी बन पड़ें उतनी उन की सहायता करना…यह गुण रमेश में भी है. आशीष को तो मैं ने इसी गुण की वजह से छोड़ दिया था. कितनी नासमझ और नादान थी मैँ, इतने अच्छे गुण को मैं ने दोष समझा.

लेकिन अब रमेश जो भी है, मेरा वर्तमान है. मैँ, कुछ भी हो, उस की शराब की आदत तो छुड़वा कर ही रहूंगी. डा. आशीष भट्ट ने भी यही कहा है. मेरे लिए आज आशीष की सलाह सिरआंखों पर है. मन ही मन अपनेआप को ये सब सूचनाएं देती हुई रजनी उठी और थोड़ी दूर खड़ी अनुपमा के पास जा कर बोली-

“दीदी, मुझे जल्दी रमेश जी के पास ले चलिए, डाक्टर साहब ने मिलने की परमिशन तो दी है न, दीदी?”

रजनी ने पास खड़ी अनुपमा का हाथ पकड़ा और दोनों बहनें अब उस वार्ड की तरफ चल दीं जहां रमेश को शिफ्ट किया गया था. रजनी अब सोच रही थी कि आशीष ने उस से दिल से प्यार किया था. तभी तो उस ने गुजरात छोड़ कर यहां कानपुर में अस्पताल खोला और नाम तो उस ने पहले ही बता दिया था- ‘आशा नर्सिग होम’.

अब आशा उर्फ रजनी को डा. आशीष भट्ट से मिलने की या उस के बारे में ज्यादा जानने की जरूरत नहीं थी. आशीष ने शादी की या नहीं, उस की पत्नी क्या करती है, उस का नाम क्या… इन सब से अब वह अलिप्त रहना चाहती थी. आशीष अब उस का बीता हुआ कल था.

दूसरी शादी: कैसे एक हुई विनोद बाबू और मंजुला की राहें

साधारण कदकाठी के विनोद बाबू पहले जैसेतैसे रहते थे, लेकिन दूसरी शादी के बाद वे सलीके से कपड़े वगैरह पहनने लगे थे. वे चेहरे की बेतरतीब बढ़ी हुई दाढ़ीमूंछ को क्लीन शेव में बदल चुके थे. उन की आंखों पर खूबसूरत फ्रेम का चश्मा भी चढ़ गया था. इतना ही नहीं, सिर के खिचड़ी बालों को भी वे समयसमय पर डाई करवाना नहीं भूलते थे.

वैसे तो विनोद बाबू की उम्र 48 के करीब पहुंच गई थी, लेकिन जब से उन की मंजुला से दूसरी शादी हुई थी, तब से वे सजसंवर कर रहने लगे थे. इस का सुखद नतीजा यह हुआ है कि वे अब 38 साल के आसपास दिखने लगे थे.

इसी साल नवरात्र के बाद अक्तूबर के दूसरे हफ्ते में विनोद बाबू मंजुला से कोर्ट मैरिज कर चुके थे. तब से उन की जिंदगी में अलग ही बदलाव दिखने लगा था. पहले वे छुट्टी के बाद भी किसी बहाने देर तक अपने स्कूल में जमे रहने की कोशिश करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं था.

अभी शाम के साढ़े 4 बज रहे थे. विनोद बाबू अपनी बाइक खड़ी कर के घर में कदम रख चुके थे. वे फ्रैश होने के बाद खुद को तरोताजा महसूस करने लगे थे. मंजुला घर की छोटीमोटी चीजों को सहेजने में लगी हुई थी. बेटाबेटी ट्यूशन पढ़ने गए हुए थे.

मंजुला को अकेली देख कर विनोद बाबू ने उन्हें पकड़ कर अपनी गोद में बैठाने की कोशिश की.

मंजुला बनावटी गुस्सा जाहिर करते हुए बोली, ‘‘मम्मीजी अपने कमरे में ही हैं. आप की आवाज सुन कर इधर आ जाएंगी.’’

‘‘मैं अपनी मां को बहुत अच्छी तरह से जानता हूं. हम दोनों के रहते वे इस कमरे में कभी नहीं आएंगी…’’ इतना कह कर वे मंजुला को अपनी बांहों में भर कर प्यार करने लगे.

तभी सासू मां ने बहू को आवाज लगाई. मंजुला खुद को छुड़ाते हुए अपनी सासू मां के कमरे की तरफ चली गई.

सासू मां ने मंजुला से कहा, ‘‘बहू, चाय बना दो.’’

मंजुला ने हां कह दी. वैसे उन्हें पता है कि सास को शाम के समय अपने पड़ोसियों के घर आनेजाने की पुरानी आदत है. जब तक वे 2-4 लोगों से जी भर कर बातें नहीं कर लेती हैं, उन का मन ही नहीं लगता है.

मंजुला नीले रंग की साड़ी में काफी खूबसूरत लग रही थी. उस ने अपने होंठों पर हलके गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगा रखी थी. लंबे और खुले बाल उस की खूबसूरती को बढ़ा रहे थे.

सासू मां के कमरे से लौटने के बाद मंजुला ने विनोद बाबू से कहा, ‘‘आप स्कूल से थक कर आए हैं. थोड़ी देर आराम कर लीजिए. मैं आप के लिए भी चाय बना कर ला रही हूं.’’

मंजुला ने कुछ दिन में ही घर की रंगत ही बदल डाली थी. विनोद बाबू की पहली बीवी रजनी कैंसर के चलते गुजर गई थीं. तकरीबन 6 महीने तक कैंसर अस्पताल में भागदौड़ कर अपनी बीवी की वे समयसमय पर कीमोथैरेपी कराते रहे थे. वे इधरउधर से पैसे जुटा कर पानी की तरह बहा चुके थे, लेकिन आखिरी बार हुई कीमोथैरेपी के बाद दस्त और उलटी इतनी ज्यादा बढ़ गई थीं कि वे इन्हें अकेला छोड़ कर चली गईं.

रजनी के मौत के बाद विनोद बाबू का घर में रहना मुश्किल हो गया था. वे बेमन से अपने घर में आ पाते थे, वह भी सिर्फ अपने 10 साल के बेटे और बूढ़ी मां के लिए. पर सब्र बुरे से बुरे वक्त का सब से बड़ा मरहम होता है. कई साल गुजर गए थे. पत्नी की मौत के बाद ऐसा लगा था कि विनोद बाबू दोबारा शादी नहीं करेंगे.

जब पूरी दुनिया के साथ अपने देश में कोरोना वायरस की शुरुआत हुई, तो वह सब के लिए आफत ले कर आई थी. विनोद बाबू को कोरोना महामारी के दौरान अपने स्कूल में बने सैंटर में काम करना पड़ा था. वे दूसरे राज्यों से आए हुए लोगों की काफी मुस्तैदी से सेवा में जुटे हुए थे, लेकिन उन्हें वहां ड्यूटी करना महंगा पड़ गया था, क्योंकि वे खुद भी कोविड 19 की चपेट में आ चुके थे.

साथी टीचरों ने एंबुलैंस बुला कर विनोद बाबू को अस्पताल में भरती करवा दिया था. वे कई दिनों से अस्पताल के वार्ड में पड़े हुए थे. घर पर बेटा अर्नव था. उन का छोटा भाई अपने बीवीबच्चों के साथ अलग रह रहा था. विनोद बाबू अपनी मां और बेटे के साथ अलग रहते थे.

विनोद बाबू से 2 दिन पहले इस वार्ड में मंजुला आई थी. सांवले रंग की मंजुला देखने में काफी दुबलीपतली लग रही थी, पर खूबसूरत बहुत थी. रहरह कर उन की नजरें मंजुला की ओर चली ही जा रही थीं.

2 दिन बाद रात में विनोद बाबू की तबीयत अचानक ज्यादा बिगड़ने लगी थी. रात की शिफ्ट में काम करने वाले डाक्टर और नर्स ऊंघ रहे थे. उन्हें भी महामारी के चलते ज्यादा काम करना पड़ रहा था. ज्यादातर मरीज सोए हुए थे.

उस रात मंजुला की तबीयत ठीक थी, लेकिन से नींद नहीं आ रही थी. विनोद बाबू की हालत बिगड़ते देख उस से रहा नहीं गया और वह उन के पास आ गईं.

विनोद बाबू का औक्सीजन लैवल कम हो रहा था. छटपटाते देख वह उन के पास आ कर बोली, ‘‘आप पेट के बल लेट कर लंबीलंबी सांस भरने और छोड़ने की कोशिश कीजिए.’’

मंजुला विनोद बाबू की पीठ सहलाने लगी थी. इस से उन्हें राहत महसूस होने लगी थी. कुछ देर में ही उन का औक्सीजन लैवल सामान्य होने लगा था. उन्होंने मंजुला का शुक्रिया अदा किया था.

एक दिन मंजुला के बगल वाले बिस्तर की अधेड़ औरत मरीज मर गई. उस का बिस्तर अब खाली हो चुका था. वार्ड में दहशत का माहौल बन चुका था, इसीलिए मंजुला को उस रात नींद नहीं आ रही थी.

मंजुला को बेचैन देख कर विनोद बाबू से रहा नहीं गया था. आखिरकार उन्होंने मंजुला से पूछा, ‘‘अगर तुम्हें कोई परेशानी हो रही है, तो मेरे पास वाले खाली बिस्तर पर आ जाओ.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है…’’ मंजुला ने यह कह तो दिया था, पर वह उस दिन काफी डर गई थी.

विनोद बाबू के बारबार कहने पर मंजुला उन के बगल वाले खाली बिस्तर पर आ गई थी.

‘‘तुम्हारे घर में कौनकौन लोग हैं?’’

‘‘मेरे घर में सास, ससुर, पति के अलावा 7 साल की एक बेटी है.’’

‘‘बेटी तो तुम्हें बहुत याद करती होगी?’’

‘‘पता नहीं याद करती होगी भी या नहीं,’’ यह कह कर मंजुला उदास हो गई थी.

‘‘परिवार वाले भी तुम्हें बहुत मिस कर रहे होंगे?’’ यह सुन कर मंजुला थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है. मैं आज तक अपनी बेटी के बाद एक बेटे को जन्म नहीं दे पाई हूं, इसलिए घर के लोग नाखुश हैं. वैसे, मेरे शरीर के अंदर कुछ ऐसी परेशानी आ गई है कि डाक्टर ने साफ कह दिया है कि अब मैं दोबारा मां नहीं बन पाऊंगी.

‘‘मेरी बेटी अपनी दादी के पास रह रही है. वे सब तो चाहते हैं कि मैं मरूं तो मेरे पति को दूसरी शादी करने का मौका मिले, ताकि उन के घर में बेटे का जन्म हो सके.’’

विनोद बाबू हैरानी से मंजुला के चेहरे की ओर देख रहे थे, इसलिए वे कुछ देर तक चुप रही, फिर बोली, ‘‘वैसे, मैं भी अब उन को शादी करने की इजाजत दे देना चाहती हूं.’’

विनोद बाबू को यह सब सुन कर झटका सा लगा था, ‘‘बेटा या बेटी पैदा करना किसी के बस में नहीं होता है. फिर भी आज भी लोग किसी औरत से कैसे उम्मीद रखने लगते हैं कि उन के मन के मुताबिक बेटा या बेटी जनमे.

‘‘21वीं सदी में भी लोगों की सोच नहीं बदल रही है, जबकि आज लड़कियां आसमान की ऊंचाइयों पर उड़ रही हैं,’’ विनोद बाबू मंजुला को समझाने की कोशिश कर रहे थे.

एकदूसरे के सुखदुख बांटते हुए अस्पताल में दिन बीत रहे थे. जब मंजुला पूरी तरह से ठीक हो गई और डाक्टर ने डिस्चार्ज करने की इजाजत दे दी, तब भी उन के घर से कोई नहीं आया था.

मंजुला के पति अस्पताल में भरती कराने के बाद यह कह कर जा चुके थे, ‘तुम मर भी जाओगी, तो मैं तुम्हें यहां देखने नहीं आऊंगा.’

पति की यही नफरत भरी बातें मंजुला को घर जाने से रोक रही थीं. वैसे, वह भी अपनी सास और पति के रोजरोज के तानों से तंग आ चुकी थी. इधर विनोद बाबू उन्हें घर तक छोड़ने के लिए तैयार थे, लेकिन मंजुला ने उन से कहा, ‘‘आप जाइए. मैं बाद में घर चली जाऊंगी.’’

विनोद बाबू समझ गए तो उन से रहा नहीं गया और बोले, ‘‘चलो, मेरे घर चलो. तुम मेरे घर में पूरी तरह से सुरक्षित रहोगी. तुम्हारी भावनाओं का पूरा खयाल रखा जाएगा.’’

मंजुला जानती थी कि विनोद बाबू के साथ वह वाकई महफूज रहेगी और फिर कुछ सोचते हुए उस ने हां कह दी.

अब मंजुला विनोद बाबू के घर में रहने लगी और इस बात का पता उस के पति और परिवार वालों को चला तो उन के तेवर और सुर बदल गए थे. उन्होंने विनोद बाबू पर मंजुला को बरगलाने का आरोप लगाया था, लेकिन मंजुला अपने फैसले पर अडिग रही थी.

विनोद बाबू के परिवार की मदद से मंजुला अपने पति से तलाक लेने के लिए कोर्ट में अर्जी दाखिल कर चुकी थी. तकरीबन ढाई साल तक केस चलता रहा. जब भी वह अदालत में जाती थी, विनोद बाबू की माताजी उन के साथ रहती थीं.

तकरीबन ढाई साल की भागदौड़ और सामाजिक हिकारत सहने के बाद मंजुला अपने पति से तलाक ले पाई थी. तलाक के अगले दिन यानी दशहरा के बाद अक्तूबर के दूसरे हफ्ते में कोर्ट में ही मंजुला विनोद बाबू की दूसरी पत्नी बनना स्वीकार कर चुकी थी.

मंजूला को कोर्ट के आदेश के मुताबिक बेटी को भी अपने पास रखने की परमिशन मिल चुकी थी, क्योंकि बेटी भी अपनी मां के साथ ही रहना चाहती थी.

मंजुला अपने सासू मां को चाय पिला चुकी थी. सासू मां चाय पीने के बाद अपनी सहेली के घर जा चुकी थीं. अब मंजुला ट्रे में 2 कप चाय ले कर अपने कमरे में हाजिर थी.

मंजुला ने जैसे ही टेबल पर चाय की ट्रे रखी, विनोद बाबू ने उस के होंठ चूम लिए. वह भी उन के गले लग गई थी. आखिर में उस ने इशारा किया, ‘‘जनाब, चाय ठंडी हो जाएगी.’’

वे दोनों बातें करते हुए चाय पीने लगे थे. मंजुला चाय खत्म कर विनोद बाबू के बगल में आ कर लेट गई थी.

‘‘तुम्हारे साथ बातें करने में ही मेरी सारी थकान मिट जाती है,’’ विनोद बाबू मनुहार करते हुए बोले थे.

मंजुला ने अपना सिर उन के सीने पर रख दिया. सालों बाद उन्हें ऐसी खुशी मिल रही थी.

धीरज कुमार      

धोखेबाज: क्या मनोज को मिल पाया सच्चा प्यार

उस समय बाजार बंद था. सड़कें सुनसान थीं. आसमान नीला था. पेड़ हरे थे. ऐसा मौसम दिल्ली जैसे मैट्रो शहर में कभी किसी ने नहीं देखा था. खैर, ऐसे समय में मनोज को मोबाइल फोन और टैलीविजन से इश्क हो गया था. फेसबुक पर समय ज्यादा ही कट रहा था. और भला कटे भी क्यों न… कमबख्त इश्क जो हो गया था.

एक इश्क लड़की से और दूसरा इश्क मोबाइल फोन से. समझ नहीं आया कि इश्क मोबाइल फोन से हुआ था या मोबाइल वाली लड़की से. हां, शुरुआत बस औपचारिक बातचीत से हुई थी. धीरेधीरे वह भी खुलने लग गई और मनोज भी. उस की प्यारभरी बातें मनोज को अपनी तरफ खींचती चली जा रही थीं.

हां, फ्रैंड रिक्वैस्ट उस ने ही मनोज को भेजी थी. मनोज ने फ्रैंड रिक्वैस्ट स्वीकार करने से पहले उस का प्रोफाइल देखा था. फोटो उस का भारतीय लड़की के जैसा था. उस के बाल और आंखें विदेशी जैसी थीं. भूरे बाल और नीली आंखें.

उस ने अपने प्रोफाइल फोटो में नीली जींस और सफेद टीशर्ट पहन रखी थी. फोटो में देख कर अंदाजा लगाया जा सकता था कि वह तकरीबन 5 फुट, 7 इंच ऊंची होगी. उम्र 30-35 साल के आसपास की होगी.

मनोज द्वारा फ्रैंड रिक्वैस्ट स्वीकार करते ही उस ने मैसेज भेजा था, ‘हैलो, गुड मौर्निंग डियर…’

‘डियर’ शब्द से संबोधित करने पर मनोज बड़ा खुश हुआ.

‘हैलो, गुड मौर्निंग…’ मनोज ने भी जवाब दिया.

फिर उस का दूसरा मैसेज आया, ‘आप कैसे हो डियर?’

‘मैं ठीक हूं. आप कैसी हैं?’

‘मैं ठीक हूं. अपने काम में बिजी हूं…’ फिर तुरंत उस ने एक लंबा खतनुमा मैसेज इंगलिश में भेज दिया, ‘मेरा नाम जेसिका छोटू दुबे है. मैं आधी भारतीय हूं  और आधी अंगरेज हूं, क्योंकि मेरी मां दिल्ली से थीं और मेरे पिता इंगलैंड से. मैं ने फेसबुक पर आप का प्रोफाइल देखा और मैं ने आप को अपना दोस्त बनाने के लिए एक मैसेज भेजने का फैसला किया, क्योंकि मैं भारत में किसी को नहीं जानती.

‘मैं अभी अगले महीने भारत की यात्रा का प्लान कर रही हूं. मैं भारत पहली बार आ रही हूं… मुझे ऐसा लगता है कि अपनी मातृभूमि में आ कर मुझे बहुत खुशी होगी…’

मनोज को इतनी इंगलिश आती थी, इसलिए उस ने जवाब दिया, ‘मैं दिल्ली में रहता हूं. दिल्ली बहुत ही खूबसूरत जगह है. यहां कई सैलानी घूमने आते हैं. मैं एक आटोमोबाइल कंपनी में मशीन औपरेटर हूं…’

‘आप मुझे अपना ह्वाट्सएप नंबर भेजें, हम ह्वाट्सएप पर और बात करते हैं…’

मनोज ने अपना ह्वाट्सएप नंबर तुरंत भेज दिया. तुरंत ही जेसिका का जवाब भी आ गया.

नंबर विदेश का ही था. अब मनोज को पूरा यकीन हो चुका था कि वह किसी विदेशी लड़की से बात कर रहा है.

फिर रात हुई और फिर सुबह. इस बीच मनोज का कई बार जेसिका से बात करने का मन हुआ, पर वह उसे औनलाइन नहीं मिली.

मगर थोड़ी देर बाद जेसिका का मैसेज मिला, ‘मैं चाहती हूं कि आप मुझे बेहतर तरीके से जानें… मैं ने शादी नहीं की… मैं लंदन में रहती हूं… मैं फिलहाल ब्रिटिश पैट्रोलियम के एक समुद्र तटीय इलाके में नर्स के रूप में काम करती हूं. मेरे कहने का मतलब है कि मैं एक नर्स हूं, लेकिन मैं 32 साल की हूं. मैं ने अपनी मां को तब खो दिया था, जब मैं 10 साल की थी.

‘मैं ने 6 महीने की छुट्टी ले ली है. मैं अगले महीने भारत की यात्रा करने की योजना बना रही हूं. यह मेरी पहली यात्रा होगी और मैं बहुत सारी मस्ती करना चाहती हूं. मैं चाहती हूं कि आप अगले मैसेज में अपने बारे में बताएं, ताकि हम एकदूसरे को बेहतर तरीके से समझ सकें…’

मनोज ने भी तुरंत मैसेज किया, ‘आप ने मुझे अपने बारे में इतना कुछ बता कर यह साबित किया है कि आप दिल की साफ और नेकदिल इनसान हैं. अमूमन लोग इतनी जल्दी इतना प्यार किसी को नहीं करते. मैं आप का इंतजार करूंगा…’

इस के बाद जेसिका का कोई मैसेज नहीं आया. लेकिन अगले दिन सुबह मनोज ने जेसिका का मैसेज देखा.

‘डियर, शायद मेरी नौकरी के चलते कोई भी मर्द हमेशा घर से दूर रहने वाली लड़की के साथ नहीं रहना चाहेगा, शायद इसलिए कि जब मैं छोटी थी, तो मर्दों के साथ मेरा अनुभव अच्छा नहीं था.

‘मैं बहुत धार्मिक नहीं हूं, क्योंकि मैं नियमित रूप से प्रार्थना में शामिल नहीं होती हूं. मैं ग्रेटर लंदन में केसिंगटन स्क्वायर में रहती हूं. आप बेझिझक

मुझ से कुछ भी पूछें और मैं आप को जवाब दूंगी..’

‘‘मैं एक कंपनी में सीएनसी औपरेटर हूं. बहुत थकाऊ और बोरिंग काम है. पूरे 8 घंटे मशीन के सामने मशीन बन कर खड़ा रहता हूं. पर मेरी मजबूरी है कि मैं यह सब करता हूं. अच्छी नौकरी की तलाश में हूं. मैं यह भी जानता हूं कि ऐसे उबाऊ काम करने वाले से कोई दोस्ती नहीं करेगा.

‘हां, फिलहाल आराम फरमा रहा हूं और लौकडाउन के खुलने का इंतजार कर रहा हूं. आप के मैसेज बहुत लेट आते हैं. मुझे आप के जवाब का बेसब्री से इंतजार रहता है,’ मनोज ने जवाब दे दिया.

‘लगता है कि आप अच्छा समय बिता रहे हैं. मैं फेसबुक पर नई हूं, लेकिन मेरी उम्मीद बहुत ज्यादा है. तुम एक अच्छे और सभ्य आदमी की तरह लग रहे हो और मैं इसे थोड़ा और आगे ले जाना पसंद करूंगी. यह भारत की मेरी पहली यात्रा है और मैं इसे ले कर बहुत उत्साहित हूं. मैं अभी तक भारत में किसी को नहीं जानती हूं…’

‘आप भारत कब आ रही हैं? अब आप से मिलने का बहुत मन कर रहा है और आप के साथ बैठ कर बहुत सारी बात करने का भी. भारत बहुत बड़ा देश है. यहां घूमने की कई जगहें हैं.

‘मुझे लगता है कि आप किसी सच्चे जीवनसाथी का इंतजार कर रही हैं. मैं दुआ करता हूं कि आप को जल्द ही सच्चा जीवनसाथी मिले…’

इस मैसेज के बाद काफी लंबे समय तक जेसिका का कोई मैसेज नहीं आया. मतलब, चौथे दिन उस ने मैसेज किया, ‘जानेमन, आज तुम कैसे हो? मैं कुछ दिनों से बहुत बिजी हो गई हूं. जैसा कि मैं ने आप से पहले कहा था कि मैं अपनी बुकिंग करने में बिजी हूं और मैं 28 अक्तूबर को उड़ान भरूंगी. मैं उस समय को ले कर बहुत खुश हूं, जो हम एकसाथ बिताने जा रहे हैं.

‘मैं आज खरीदारी के लिए भी गई थी. मैं ने आप के लिए भी बहुत सी चीजें खरीदी हैं. मैं रवाना होने से पहले आप को कुरियर से वह सब सामान भेजूंगी, इसलिए मुझे अपना पूरा नाम, मोबाइल नंबर और पता भेजें, जहां आप पैकेट रिसीव करना चाहते हैं.’

‘ओह, मैं पहले इतना खुश कभी नहीं हुआ था. न जाने क्यों मैं घबरा भी रहा हूं. ठीक वैसे ही जैसे प्यार की पहली मुलाकात में लोग घबराते, शरमाते हैं. क्य तुम भी ऐसा महसूस कर रही हो? और मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं है. बस तुम आ रही हो, इस से बड़ी खुशी की कोई बात नहीं.’

‘मना मत करो प्लीज. गिफ्ट तो तुम्हें लेना ही होगा जानेमन,’ इतना मैसेज लिख कर जेसिका ने मैसेज में एक चुम्मा भी भेज दिया.

मनोज खुश हुआ, पर साथ ही मैसेज किया, ‘मुझे बस एक बात का डर है. यहां कोरोना फैला हुआ है. इस वजह से यहां घूमनाफिरना बहुत ही मुश्किल है. विदेश से आने के बाद आप को भी

14 दिनों के लिए क्वारंटीन रहना होगा. दिल्ली में होटल मिलना भी मुश्किल होगा, लेकिन हम दोनों साथ रहने की कोशिश करेंगे. वैसे, मैं एक पता भेज रहा हूं…’ फिर मनोज ने अपना किराए के घर का पता जेसिका को भेज दिया.

‘मैं ने जो पैकेट भेजा है, उस में सफेद धारियों के बैग के अंदर 2,00,000 पाउंड, लैपटौप, सोने की कलाई घड़ी, डिजाइनर परफ्यूम, एप्पल आईफोन है. दूसरे बैग में मैं ने कुछ अपना सामान भी रख दिया है, ताकि जब मैं आऊं तो मेरा सामान कम हो.’

इतने सारे गिफ्ट और पैसे के बारे में जान कर मनोज को लग रहा था कि अब उस की गरीबी दूर हो जाएगी. हमेशा के लिए सड़ी सी नौकरी से उसे छुटकारा मिल जाएगा.

अपनी बात को पुख्ता करने के लिए मनोज ने जेसिका को लिखा, ‘लव, क्या तुम मुझे कुरियर की परची और पैकेट का फोटो भेज सकती हो, ताकि मुझे सामान लेने में आसानी रहे…’

‘आप मेरे लिए एक अद्भुत इनसान साबित हुए हैं. 2,00,000 पाउंड मेरे आने से पहले कार खरीदने और पंजीकरण करने में आप की मदद करने के लिए हैं.

‘मैं आने से पहले आप को कार के लिए कागजी कार्यवाही करने में सक्षम मानती हूं, तो मैं सफेद धारियों वाले बैग के अंदर अपने पासपोर्ट और इंटरनैशनल ड्राइविंग लाइसैंस की एक फोटोकौपी भी भेज रही हूं.

‘पैसे का कोई पता न लगा सके, इसलिए सामान के अंदर अच्छी तरह छिपा कर रखा है. मुझे इसे इस तरह से करना था, ताकि यह सुरक्षित रहे. जैसे ही आप कुरियर सेवा से पैकेट लेते हैं, कृपया मुझे बताएं. मैं अभी समुद्र तटीय इलाके में हूं.’

अगले दिन ही जेसिका ने मनोज को सामान का बैग और कुरियर परची का फोटो भेज दिया.

मनोज ने कुरियर की परची को ध्यान से पढ़ा था. उस में पूरा पता और लंदन का पता भी लिखा था. काला सा बड़ा बैग था. बैग के ऊपर भी कुरियर की परची चिपकी हुई थी.

अगले दिन फिर सुबह जेसिका का मैसेज मिला, ‘तुम्हें 3 दिन बाद ही बैग मिल जाएगा.’

सच में 3 दिन बाद ही एक फोन आया, ‘क्या आप मनोज बोल रहे हैं?’

‘‘जी, मैं मनोज बोल रहा हूं.’’

‘जी, आप का एक कुरियर लंदन से आया है. क्या यह कुरियर आप ही का है?’

‘‘जी, मेरा ही है.’’

‘क्या आप इस कुरियर को लेना चाहते हैं?’

‘‘जी हां, लेना चाहता हूं.’’

‘35,000 रुपए डिपौजिट करने पर यह कुरियर आप को पहुंचा दिया जाएगा.’

‘‘जी, वह क्यों?’’

‘सर, विदेश से आए कुरियर सरकारी टैक्स जमा करने के बाद ही मिलते हैं.’

यह सुनते ही मनोज को पसीना आना शुरू हो गया. इतनी बड़ी रकम उस के पास थी ही नहीं.

‘क्या आप अभी पैसे डिपौजिट कर रहे हैं? नहीं तो यह एक दिन बाद वापस चला जाएगा…’

‘‘मैं आप को बताता हूं,’’ इतना कह कर मनोज सोच में पड़ गया. सच कहें, तो उस के अकाउंट में 35,000 रुपए थे ही नहीं. अगर ये पैसे होते, तो शायद वह इन पैसों को अब तक दे देता. अमूमन जैसे लड़के प्यार के लिए कुछ भी कर देते हैं, मनोज ने ऐसा कुछ नहीं किया.

मनोज को पहली बार उसी शाम जेसिका का फोन आ गया. मनोज फोन उठाने के पहले सोच रहा था कि वह इंगलिश में बात करेगी. उस ने इंगलिश में कहा, ‘क्या तुम्हें गिफ्ट मिल गया है?’

मनोज उस की आवाज को पहली बार सुन रहा था. बहुत ही प्यारी, सुरीली, मीठी आवाज थी.

मनोज ने जवाब दिया, ‘‘मेरे पास 35,000 रुपए नहीं हैं.’’

‘कोई नहीं, तुम किसी से ले कर दे दो. बैग में बहुत पैसे हैं. इसे पाते ही तुम्हारी सारी तकलीफ दूर हो जाएगी.’

‘‘एक काम करो, तुम अभी मेरे अकाउंट में पैसे ट्रांसफर कर दो. मैं जा कर गिफ्ट ले लूंगा.’’

‘ओह डियर, अभी मैं समुद्र के किनारे हूं. जब मैं मैदानी इलाके में जाऊंगी, तो तुम्हें पैसे ट्रांसफर कर दूंगी. अभी तो तुम वहीं किसी से पैसे ले कर गिफ्ट ले लो. उस में बहुत सारे पैसे हैं.’

मनोज किसी भी तरह से जेसिका की बात को मान नहीं रहा था. वह हर तरह से उसे समझाने की कोशिश कर रही थी. धीरेधीरे वह गंभीर होने लगी. उस की प्यारी, मीठी, सुरीली आवाज कड़वी और भारी हो गई…

‘तुम मुझे धोखेबाज समझ रहे हो…’

‘‘नहीं… नहीं, तुम मुझे गलत समझ रही हो. मेरे मन में कोई ऐसी बात नहीं है.’’

‘तुम मुझे धोखेबाज समझ रहे हो. तुम मुझे धोखा दे रहे हो. तुम प्यार के लायक नहीं हो. मैं गिफ्ट वापस मंगा रही हूं,’ इतना कह कर जेसिका ने तुरंत फोन काट दिया.

उस दिन के बाद जेसिका का फोन कभी नहीं लगा. यहां तक कि वह फेसबुक, मैसेंजर से भी गायब हो गई थी. हां, हो सकता है कि वह नया प्यार ढूंढ़ रही हो, जिस से 35,000 रुपए मिल सकें. जो उसे धोखा न दे. अगर आप को ऐसा कोई मैसेज आए तो बताइएगा.

एस्कॉर्ट और साधु: मानस और विद्या का बिगड़ता रिश्ता

मानस डाइनिंग टेबल पर बैठा हुआ नाश्ते का इंतजार कर रहा था, पर विद्या की पूजा थी कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी. घर के मंदिर से घंटी की आवाजें लगातार मानस के कानों से टकरा रही थीं, पर इन सब से मानस को कोफ्त हो रही थी.

‘‘लगता है, आज भी औफिस की कैंटीन में ही नाश्ता करने पड़ेगा… और फिर मेरे लिए तो यह रोज का ही किस्सा है,’’ बुदबुदाते हुए उठा था मानस.

रोज बाहर नाश्ता करना मानस के रूटीन में आ गया था. इस सब की वजह उस की पत्नी विद्या ही थी. वह पूजापाठ में इतनी तल्लीन रहती कि सवेरे जल्दी उठने के बाद भी वह अपने पति को नाश्ता नहीं दे पाती थी.

विद्या का मानना था कि पूजापाठ इनसान को जीवन में जरूर करना चाहिए, क्योंकि इस से उस की अगली जिंदगी तय होती है और अगले जन्म में इनसान को पैसा, गाड़ी, मकान वगैरह का भरपूर सुख मिलता है.

ऐसा नहीं था कि विद्या कोई अनपढ़गंवार थी, बाकायदा उस ने यूनिवर्सिटी से बीए तक की पढ़ाई की थी, पर अपने घर के माहौल का उस पर ऐसा गहरा असर पड़ा था, जिस ने उसे धर्मभीरु बना दिया था.

अपने और मानस के कपड़ों के रंग के चुनाव विद्या दिन के मुताबिक करती थी, मसलन सोमवार को सफेद, मंगलवार को लाल से ले कर शनिवार को काले कपड़े पहनने तक के टाइम टेबल के मुताबिक ही चलती थी.

इतने तक तो कोई बात नहीं थी, मानस सहन कर लेता था, पर असली समस्या जब आती, जब मानस औफिस के काम से थका हुआ घर आता और रात को अपनी पत्नी से उस की देह की डिमांड कर के अपनी थकान मिटाना चाहता था, पर अकसर विद्या का कोई न कोई व्रत होता, कहीं एकादशी या कहीं किसी मन्नत पूरी करने के लिए व्रत या कहीं कोई साप्ताहिक व्रत.

अगर जानेअनजाने में मानस का हाथ भी उसे छू जाता, तो विद्या तुरंत ही जा कर गंगाजल पी लेती थी. कोई भी मर्द अपने पेट की आग को तो मार सकता है, पर अगर कई दिनों तक सैक्स का सुख नहीं मिले तो उसे अपने जिस्म की गरमी को सहन कर पाना उस के लिए नामुमकिन सा हो जाता है. ऐसा ही हाल मानस का था. विद्या के बहुत ज्यादा धार्मिक होने के चलते वह अनदेखा सा महसूस करता था.

प्यार में साथ नहीं मिलने पर कभीकभी बेचारा मानस अपने शरीर के उफान को दबा कर रह जाता और रातभर करवटें बदलता रहता. लिहाजा, अगले दिन औफिस में भी वह सुस्त रहता और कभीकभी काम लेट हो जाने के चलते उसे डांट भी पड़ जाती थी.

औफिस के बाकी साथियों का चेहरा जहां खिला हुआ रहता था, वहीं मानस का चेहरा बुझाबुझा सा रहता था.

‘‘क्या बात है मानस? आजकल तुम बुझेबुझे से रहते हो?’’ मानस के साथ काम करने वाली लिली ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं लिली… बस थोड़ी घरेलू समस्याएं हैं… इसीलिए थोड़ा परेशान रहता हूं.’’

‘‘कोई बात नहीं, धीरेधीरे सब सही हो जाएगा,’’ लिली ने कहा.

लिली का इस तरह से मानस के बारे में हालचाल पूछना, मानस को बहुत अच्छा लगा था.

अगले दिन औफिस से छुट्टी के समय मानस के मोबाइल पर लिली का फोन आया.

‘‘अरे मानस… अगर तुम मुझे लिफ्ट दे दो, तो मुझे घर जाने में आसानी रहेगी… दरअसल, मेरी स्कूटी पंक्चर हो गई है.’’

‘‘क्यों नहीं… बाहर आ जाओ… मैं तो पार्किंग स्टैंड पर ही खड़ा हूं.’’

मानस जब लिली को घर छोड़ने जा रहा था, तब लिली का साथ उसे बहुत अच्छा लग रहा था, ‘‘आओ… मानस अंदर आओ…

एकएक कप चाय हो जाए,’’ लिली ने मुसकरा कर जब चाय का औफर दिया, तो मानस उस के साथ अंदर ड्राइंगरूम में आ गया.

ड्राइंगरूम में लिली का पति पहले से बैठा हुआ था.

‘‘इन से मिलो… ये हैं मेरे पति राकेश. और राकेश, ये हैं मेरे औफिस के साथी मानस गोस्वामी,’’ लिली ने एकदूसरे का परिचय कराया.

‘‘आप लोग बैठो… मैं आप लोगों के लिए चाय बना कर लाती हूं,’’ कह कर लिली चाय बनाने चली गई और मानस और राकेश बैठ कर बातें करते रहे.

कुछ देर बाद मानस ने लिली के घर से विदा ली. वापसी में वह सोच रहा था कि लिली का पति कितना खुशकिस्मत है, जो इतनी मौडर्न और खूबसूरत बीवी मिली है और एक मैं हूं, औफिस से घर आओ तो भी मैडम पूजापाठ में या सत्संग में बिजी होती हैं, रात में भी उस के ध्यान करने का समय होता है… मेरी भी कोई जिंदगी है…’’

मानस ने औफिस में भी लोगों को अपनी पत्नी की तारीफ करते हुए सुना था कि कैसे उन की पत्नियां उन के खानेपीने का खयाल रखती हैं और खुद भी सजसंवर कर रूमानी मूड में रहती हैं.

जब मर्द को घर से प्यार नहीं मिलता, तब वह बाहर की दुनिया में प्यार तलाशता है. ऐसा ही हाल मानस का हो गया था और पिछले कुछ दिनों में लिली ने जो उस से निकटता बढ़ाई थी, उस से तो मानस को यह ही महसूस होने लगा था कि लिली उस से प्यार करती है.

‘पर भला वह क्यों मुझ से प्यार करने लगी… लिली के पास तो खुद ही एक  हैंडसम पति है,’ अपनेआप से बात करता हुआ मानस सोच रहा था.

‘तो क्या हुआ… आजकल तो नाजायज संबंध बनाना आम बात है और फिर लिली भी तो मुझ से निकटता दिखाती है. अगर मेरे हाथ उस के नाजुक अंगों से छू भी जाएं, तो भी वह बुरा नहीं मानती है… यह प्यार ही तो है… अब मैं इस वैलेंटाइन डे पर लिली से अपने प्यार का इजहार कर ही दूंगा,’ मन ही मन सोच रहा था मानस और जब वैलेंटाइन डे आया, तो एक प्यार भरा मैसेज टाइप कर के मानस ने लिली के मोबाइल पर भेज दिया और लिली के जवाब का इंतजार करने लगा.

जवाब तो नहीं आया, उलटा लिली जरूर आई और सब औफिस वालों के सामने मानस को खूब खरीखोटी सुनाई.

‘‘मैं तो आप को शरीफ आदमी समझ कर आप से बात करने लगी थी… मुझे क्या पता था कि आप किसी और ताक में हैं… आज के बाद मेरी तरफ नजर उठा कर भी मत देखिएगा, नहीं तो ठीक नहीं होगा,’’ गुस्से में लाल होती हुई लिली ने कहा.

जब मानस ने बहाना बनाया कि गलती से किसी दूसरे का मैसेज लिली पर फौरवर्ड हो गया था, तब जा कर बात शांत हुई थी.

उसी औफिस में मानस और लिली का एक कौमन दोस्त रहता था. विजय नाम का वह इनसान भी कभी लिली से प्यार किया करता था, पर लिली की शादी हो जाने के बाद से उस का लिली से अफेयर चलाने का कोई भी चांस खत्म हो गया था.

लिली को इस तरह से मानस द्वारा मैसेज किया जाना विजय को रास नहीं आया और उस ने मन ही मन मानस को सबक सिखाने की बात सोची.

औफिस के बाद विजय ने मानस का हमराज बनना चाहा कि क्यों मानस ने ऐसी हरकत की है, तो मानस गुस्से से फट गया, ‘‘अरे यार, किसी चीज की भी हद होती है…

अब भूखा आदमी अगर खाना ढूंढ़ने बाहर जाए, तो भला इस में क्या गलत है, मुझे घर में शारीरिक संतुष्टि नहीं मिलती, इसलिए मुझे लगा कि बाहर कहीं दांव आजमाना चाहिए… इसीलिए भावनाओं में बह गया मैं और उसे मैसेज कर बैठा.’’

‘‘यार, मेरी पत्नी भी कुछ इसी तरह की थी… आएदिन नखरे किया करती थी… मैं भी परेशान हुआ… फिर मैं ने इस समस्या का एक हल निकाल लिया,’’ तिरछी मुसकराहट के साथ विजय कह रहा था.

‘‘हल निकाला… क्या बीवी ही बदल दी तू ने क्या?’’ मानस ने पूछा.

‘‘बीवी नहीं बदली… पर खुद को बदल लिया…’’ विजय ने मोबाइल पर एक फोन नंबर दिखाते हुए कहा.

‘यह एक मसाज सैंटर चलाने वाले दलाल का नंबर है… जब मुझे मजा करना होता है, तब मैं इस नंबर पर फोन लगाता हूं और यह एक ऐस्कौर्ट को एक तय जगह या होटल या कभीकभी कार में ही भेज देता है…’’

‘‘ऐस्कौर्ट यानी… तू मुझे धंधे वाली के पास जाने को कह रहा है?’’

‘‘अरे नहीं… आजकल बड़े घर की लड़कियां अपने मजे और शौक के लिए ऐस्कौर्ट का काम करती हैं…’’ विजय ने अपना ज्ञान बघारा.

शाम को जब थका हुआ मानस घर आया, तो विद्या धार्मिक चैनल देख रही थी और जब मानस ने उस से चाय बना लाने के लिए कहा, तो वह बोली, ‘‘अरे, अभी थोड़ा रुक जाओ… देखते नहीं कि गुरुजी ‘समस्त कष्ट निवारण यज्ञ’ का तरीका बता रहे हैं… ऐसा करो, तुम खुद ही बना लो और एक कप मुझे भी दे देना.’’

झक मार कर मानस बैडरूम में चला गया.

रात हुई तो मानस ने बढि़या खुशबू वाला इत्र लगाया. दुकानदार ने दावा किया था कि इसे इस्तेमाल करेंगे, तो औरत आप से किसी बेल की तरह चिपकी रहेगी…

मानस ने विद्या के होंठों को चूमना चाहा, तो वह तुरंत ही पीछे हट गई और बोली, ‘‘नहीं, मुझे तंग मत करो… कल मेरा व्रत है… इसलिए यह सब आज नहीं. और सुनो… परसों मैं ने ‘समस्त कष्ट निवारण यज्ञ’ का आयोजन किया है, जिस के लिए मैं ने एक आचार्यजी से बात कर ली है. वे सुबह ही आ जाएंगे और 4-5 घंटे कार्यक्रम चलेगा… आप भी घर में ही रहना.’’

विद्या की बातें सुन कर मानस को गुस्सा आ गया, ‘‘नहीं, मैं तो घर में नहीं रुक पाऊंगा. तुम्हें जो करना है, करो. और अब जो मुझे करना है, वह मैं करूंगा,’’ और यह कह कर वह मुंह फेर कर सोने लगा.

अगली सुबह औफिस में जैसे ही विजय से मुलाकात हुई, वैसे ही मानस ने उस से कहा, ‘‘भाई मेरे शरीर में बहुत दर्द हो रहा है. लग रहा है, मुझे भी मसाज कराना पड़ेगा… जरा वह मसाज सैंटर वाला नंबर मुझे भी देना… मैं भी ऐंजौय करना चाहता हूं.’’

विजय ने शरारती ढंग से देखते हुए मानस को नंबर दिया और मानस ने उस नंबर पर बात की.

दलाल ने मानस को बताया कि कल उसे ठीक 12 बजे एक मैसेज आएगा, जिस पर पहुंचने का पता होगा और साथ ही एक अकाउंट नंबर भी लिखा होगा, जिस पर उसे एडवांस पेमेंट करनी होगी, तभी मसाज की सुविधा मिल पाएगी.

मानस ने सारी बात मान ली और अगले दिन बेसब्री से 12 बजने का इंतजार करने लगा.

उधर, विद्या ने भी ‘समस्त कष्ट निवारण यज्ञ’ रखवाया था. सुबह होते ही वह उसी की तैयारी करने में बिजी हो गई, जबकि मानस के अंदर बेचैनी बढ़ती जा रही थी.

ठीक 12 बजे मानस के मोबाइल पर एक मैसेज आया, जिस में एक एकाउंट नंबर था और एक होटल का नाम भी था, जहां पहुंचने पर उसे पहले से बुक एक कमरे में जाना था, जहां उसे मसाज की सुविधा दी जानी थी.

मानस को होटल के कमरे तक पहुंचने में कोई दिक्कत नहीं हुई और वह बेसब्री से ऐस्कौर्ट का इंतजार करने लगा.

वह समय भी आ गया, जब कमरे के अंदर एक लड़की आई. उसे देख कर मानस के पसीने छूट गए.

‘‘भला इतनी खूबसूरत लड़की भी ऐसा काम कर सकती है… पर, मुझे क्या, मैं ने भी तो पूरे 10,000 रुपए दिए हैं इस के लिए… अब तो मुझे वसूलना भर है,’’ ऐसा सोच कर मानस किसी भूखे भेडि़ए की तरह उस लड़की पर टूट पड़ा.

अभी मजा लेते हुए मानस को कुछ ही समय हुआ था कि होटल के कमरे का दरवाजा अचानक से खुल गया और 2 आदमी अंदर घुंस आए, जिन में से एक के हाथ में मोबाइल था और वे लगातार मानस और उस लड़की का वीडियो बनाने में लगा हुआ था.

मानस चौंक पड़ा था और वह लड़की अपने कपड़े पहनने लगी थी.

‘‘तुम ने ठीक पहचाना… इस मोबाइल में तुम्हारी पूरी फिल्म बन गई है… अब ये हम पर है कि इसे हम किसकिस को दिखाएं… इंटरनैट पर डालें या तुम्हारे घरपरिवार वालों को दे दें… या तुम्हारे औफिस में इसे सब के मोबाइलों पर भेज दें… फैसला तुम्हारे हाथ में है,’’ उन में से एक आदमी बोला.

अचानक से मानस का माथा ठनका, ‘‘आखिरकार ऐसा क्यों कर रहे हो तुम लोग…’’ मानस चीखा.

‘‘एक लाख रुपए के लिए… नहीं तो यह वीडियो अभी वायरल कर दिया जाएगा… पैसे दो और यह वीडियो हम तुम्हारे सामने ही डिलीट कर देंगे.’’

मानस ने देखा कि कमरे में सिर्फ वे 2 आदमी ही खड़े थे. वह लड़की वहां से जा चुकी थी. मानस को समझते देर नहीं लगी कि यह पूरा एक ही गैंग है और इन्हें बिना पैसे दिए इन से छुटकारा पाना मुमकिन नहीं होगा, इसलिए उस ने बिना देर किए पूरे 50,000 रुपए नैटबैंकिंग की मदद से उन दोनों द्वारा बताए गए अकाउंट नंबर पर ट्रांसफर कर दिए और बाकी के 50,000 रुपए का चैक काट दिया.

उन दोनों आदमियों ने भी शराफत दिखाते हुए वह वीडियो मानस के सामने ही डिलीट कर दिया.

अपना पैसा लुटा कर भारी मन से घर लौटने लगा था मानस. जब वह घर पहुंचा, तो वहां का दृश्य देख कर उस के हाथपैर फूल गए.

कमरे में चारों तरफ धुआं फैला हुआ था और विद्या एक कोने में सिर नीचे किए बैठी थी.

मानस ने विद्या से पूछा, तो पता चला कि जो साधु ‘समस्त कष्ट निवारण यज्ञ’ कराने के लिए घर में आया था, उस ने यज्ञ के बहाने घर में नशीला धुआं भर दिया, जिस से विद्या बेहोश होने लगी और तब वह साधु घर में रखी हुई कीमती चीजें, नकदी और गहने ले कर चंपत हो गया.

विद्या रो रही थी. मानस भी दुखी था और सोच रहा था कि अति हर चीज की बुरी होती है.

विद्या की पूजा की अति ने ही आज हम दोनों को इस मुकाम तक पहुंचा दिया है.

पर भला अपने लुटने की बात मानस विद्या से कैसे कहता, सो दोनों एकदूसरे के आंसू पोंछते रहे.

विद्या ने इतना जरूर कहा कि आज के बाद वह किसी साधु को घर में नहीं घुसाएगी. उस की आंखों पर तना हुआ अंधविश्वास का परदा हट रहा था.

फौजी का प्यार: क्या हो पाया सफल

हमारी यह कहानी एक फौजी के प्यार पर बुनी गई है, जिस का नाम रमन था. वह बिलासपुर गांव का रहने वाला था. उस के सपने बहुत बड़े थे. वह अपनी जिंदगी में बहुतकुछ करना चाहता था. एक दिन रमन सो रहा था. उस ने एक सपना देखा कि वह अपने देश के लिए शहीद हो गया. तभी से उस ने फौजी बनने की ठान ली. जब उस ने यह बात अपने मांबाप को बताई, तो वे चिंतित हो गए. उन्हें लगा कि अगर उन का बेटा फौजी बन कर उन से दूर चला गया, तो वे अकेले कैसे रहेंगे?लेकिन रमन का यही कहना था कि उसे अपने देश के लिए फौजी बनना ही है, क्योंकि वह अपने देश से बहुत प्यार करता है.

इस के बाद वह फौज में भरती होने के लिए कड़ी मेहनत करने लगा और एक दिन उस ने फौज में भरती होने का फार्म भी भर दिया. कुछ समय बाद रमन की फौज में भरती की लिखित परीक्षा हुई, जिस में उस ने पहला स्थान हासिल किया. परीक्षा पास करने के बाद उस ने फौज की ट्रेनिंग की. आखिरकार वह दिन आ ही गया, जिस का रमन को बेसब्री से इंतजार था और वह फौजी बन गया.इस बात से रमन के परिवार वाले ज्यादा खुश नहीं थे. पर जब उन की एक न चली, तो उन्होंने रमन की शादी करनी चाही. उन्होंने गांव की ही स्नेहा नाम की एक लड़की उस के लिए पसंद कर ली, जो रमन के बचपन की दोस्त थी.जब रमन को इस बात का पता चला, तो वह बहुत नाराज हुआ.

उस ने अपने फौजी दोस्तों को इस बारे में बताया, तो वे बोले कि अगर वह लड़की अच्छी है और तुम्हारी दोस्त भी है, तो तुम्हें उस के साथ शादी कर लेनी चाहिए.रमन को यह बात समझ में आ गई और उस ने इस रिश्ते के लिए हां कर दी.एक दिन रमन को जहां तैनात किया गया था, वहां बौर्डर पर उस ने 2 ऐसी लड़कियों को देखा, जो बकरियां चरा रही थीं. उस ने उन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और अपने क्वार्टर में चला गया, पर थोड़ी ही देर में उसे किसी के तेज बोलने की आवाज सुनाई दी.रमन अपने क्वार्टर से बाहर आया, तो देखा कि बकरी चराने वाली एक लड़की के साथ एक फौजी बदतमीजी कर रहा था, जबकि दूसरी लड़की वहां से शायद भाग गई थी.

रमन ने उस फौजी को लताड़ा और उस से भिड़ गया. इस बात से वह लड़की डर गई. रमन ने उस लड़की से पूछा, ‘‘तुम कौन हो और यहां क्या कर रही हो?’’उस लड़की ने अपनी लड़खड़ाती आवाज में बताया, ‘‘मैं तो अपनी सहेली की मदद करने के लिए यहां आई थी. उस की तबीयत ठीक नहीं थी.’’रमन ने उस लड़की को बड़े ध्यान से देखा, तो उस की मासूम आंखों में खो गया. उस के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. उसे लगा कि वह पहली ही नजर में उस लड़की से प्यार कर बैठा है.तभी उस लड़की के होंठों से धीमी आवाज में ‘शुक्रिया’ निकला और वह वहां से चली गई.

रमन उस लड़की को ले कर परेशान हो गया, जबकि उसे मालूम था कि उस के घर में उस की शादी की तैयारियां चल रही थीं. इस सब के बावजूद वह हर रोज उस लड़की का इंतजार करता था.एक दिन रमन को वही लड़की अपनी सहेली के साथ दिखाई दी. वह हिम्मत जुटा कर उस के पास चला गया और उस से पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’उस लड़की ने पलट कर सवाल किया,

‘‘आप को मेरा नाम क्यों जानना है?रमन के ज्यादा गुजारिश करने पर उस लड़की ने अपना नाम जन्नत बताया.रमन बोला, ‘‘तुम्हारा नाम तो बहुत अच्छा है. ऐसा लग रहा है, जैसे मुझे जन्नत नसीब हो गई.’’जन्नत ने रमन को टोकते हुए कहा, ‘‘आप ऐसी बात मत कीजिए. मुझे अच्छा नहीं लगता.’’रमन ने कहा, ‘‘मैं तो सिर्फ तुम्हारी और तुम्हारे नाम की तारीफ कर रहा हूं.

’’जन्नत चुप रही, तो रमन ने पूछा, ‘‘तुम कहां रहती हो?’’‘‘लाहौर में…’’ जन्नत बोली.‘‘तो यहां बौर्डर पर क्या करने आती हो?’’जन्नत ने बताया, ‘‘यहां मेरी सहेली बकरियां चराने आती है. बहुत दिनों से उस के अब्बू बीमार हैं. मैं सहेली की मदद कर रही हूं.

’’रमन जन्नत को अपने दिल की बात कहना चाहता था, पर डरता था कि कहीं इस के बाद वह यहां आना ही न बंद कर दे. लिहाजा, उस ने खुद को रोक लिया.उधर जन्नत भी रमन को मन ही मन पसंद करने लगी थी, मगर वह भी कुछ नहीं बोली और चुपचाप वहां से चली गई.एक दिन रमन ने अपना दिल मजबूत कर के जन्नत को बोल दिया,

‘‘जन्नत, जिस दिन से मैं ने तुम्हें पहली बार देखा है, तब से मैं तुम्हारा दीवाना हो गया हूं. मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूं. तुम हर समय मेरे दिलोदिमाग पर छाई रहती हो…’’यह सुन कर जन्नत बोली, ‘‘आप भी मुझे पसंद हैं. आप ने पहली मुलाकात में मुझे उस फौजी से बचाया था,

तभी से आप मुझे बहुत अच्छे लगने लगे थे.’’‘‘जन्नत, क्या तुम मुझ से प्यार करती हो?’’ रमन ने पूछा.‘‘हां,’’ जन्नत ने जवाब दिया.इस के बाद वे दोनों रोजाना मिलने लगे. रमन जानता था कि उस की शादी कहीं और पक्की हो गई है और वह जन्नत से प्यार करने लगा है, तो उस ने काफी सोचविचार कर के एक दिन जन्नत से पूछा, ‘‘क्या तुम मेरे साथ शादी करोगी?’’जन्नत ने कहा, ‘‘इस बात के लिए मेरे अब्बू कभी नहीं मानेंगे, क्योंकि तुम एक हिंदुस्तानी फौजी हो और मैं लाहौर के मेयर की बेटी.’’यह सुन कर रमन बोला, ‘‘अगर तुम्हारे अब्बू नहीं मानेंगे, तो हम यहां से दूर जा कर शादी कर लेंगे.’’जन्नत बोली, ‘‘अच्छा, मैं अपने अब्बू से एक बार बात कर के देख लेती हूं…’’ इतना कह कर वह चली गई.कुछ दिन के बाद रमन को जन्नत का लिखा एक खत मिला कि ‘मेरे अब्बू को मुझ पर शक हो गया है कि बकरी चराने के बहाने मैं किसी से मिलने जाती हूं, इसलिए आप को जो करना है जल्दी कीजिए’.खत पढ़ कर रमन परेशान हो गया. उस ने अपने एक साथी को बताया कि वह एक लड़की से प्यार करने लगा है और उसी से शादी करना चाहता है.लेकिन जब उस साथी को यह पता चला कि वह लड़की पाकिस्तानी है, तो वह दंग रह गया. उस ने रमन को यह सब भूलने के लिए कहा और इस का बुरा अंजाम भुगतने की भी बात की. पर रमन पर तो इश्क का भूत सवार था. वह कहां मानने वाला था.

उस दोस्त ने फिर समझाया, ‘‘चलो यह माना कि तुम दोनों का प्यार सच्चा है, लेकिन न तो तेरे घर वाले इस रिश्ते के लिए राजी होंगे और न ही जन्नत के घर वाले मानेंगे. दोनों देशों की सरकारें भी इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेंगी. ‘‘सब से बड़ी बात तो यह है कि तुम हिंदुस्तानी फौजी हो और वह लड़की हमारे दुश्मन देश में रहती है. तुम दोनों का कभी मेल नहीं हो सकता.’’यह सुन कर रमन कशमकश में पड़ गया. एक तरफ उस का प्यार था, तो दूसरी तरफ परिवार और देश. फिर उस ने फैसला लेते हुए अपने प्यार के बारे में परिवार को बताने की ठानी.पर जब मांबाप को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने कहा कि तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे, जिस से उन के खानदान की नाक कट जाए.

वह एक पाकिस्तानी लड़की है और इस घर में कभी बहू बन कर नहीं आएगी.इस सब के बावजूद रमन ने जन्नत का साथ चुनना पसंद किया. उधर जन्नत के अब्बू को रमन के बारे में किसी रिश्तेदार ने सबकुछ बता दिया. वे गुस्से में आगबबूला हो गए और उन्होंने जन्नत को कमरे में बंद कर दिया.जन्नत ने किसी तरह रमन के लिए एक खत लिख कर उसे अपनी सहेली से रमन तक पहुंचाने को कहा. रमन ने वह खत पढ़ा, ‘मेरे अब्बू ने किसी और के साथ मेरी शादी पक्की कर दी है. जल्द ही मेरा निकाह भी हो जाएगा…’यह पढ़ कर रमन का खून खौल गया. अब उसे न देश की परवाह रही और न ही परिवार की. वह हर नियम ताक पर रख कर चोरीछिपे पाकिस्तान चला गया. वहां वह जन्नत से मिलने में भी कामयाब रहा और उसे बौर्डर पार करा कर भारत ले आया.

उस ने सेना से इस्तीफा दे दिया.रमन अपनी जन्नत को घर ले आया, पर वहां उस का विरोध हुआ. उस के मांबाप ने जन्नत को अपनाने से साफ मना कर दिया.इस बात से गुस्साया रमन जन्नत को ले कर वहां से चला गया. उधर पाकिस्तान में जन्नत के अब्बू को रमन और जन्नत की पूरी खबर लग गई. वे अपने रुतबे का फायदा उठा कर भारत आए और रमन के घर जा कर उन दोनों की छानबीन की.रमन के मांबाप ने उन्हें बताया कि वे दोनों यहां आए जरूर थे, पर हम ने उन्हें घर से निकाल दिया.जन्नत के अब्बू गुस्से में इतना पागल हो चुके थे कि उन्होंने रमन के मांबाप का कत्ल कर दिया.

तभी उन्हें अपने किसी खुफिया एजेंट से पता चला कि वे दोनों अपने गांव से दूर किसी कौटेज में छिपे हुए हैं. जन्नत के अब्बू ने उन दोनों को ढूंढ़ लिया और एक चाल चलते हुए कहा, ‘‘मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है. मैं तुम दोनों के रिश्ते को मंजूरी देता हूं.’’यह सुन कर जन्नत बड़ी खुश हुई. उस का डर दूर हो गया और उस ने रमन को खानेपीने का सामान लाने को कहा.जैसे ही रमन खाने का सामान लाने के लिए जाने लगा कि तभी जन्नत के अब्बू ने उसे गोली मार दी.

रमन बुरी तरह से जख्मी हो गया.गोली की आवाज सुन कर जन्नत भागीभागी वहां आई. उस ने देखा कि रमन खून में लथपथ जमीन पर पड़ा हुआ है. उस की सांसें रुक चुकी थीं.रमन को मरा हुआ देख कर जन्नत बोली, ‘‘अब्बू, आप ने यह क्या कर दिया… मेरी पूरी दुनिया ही खत्म कर दी. अब मैं जी कर क्या करूंगी…’’ इतना कह कर उस ने खुद को छुरा मार लिया और रमन के पास ही बेजान हो कर गिर पड़ी.

 

बेवफा सनम: जब कुंआरी लड़की पर फिसला शादीशुदा अनिल

कई तरह के पकवान बनाने मे माहिर नीलिमा एक बहुत अच्छी डांसर भी थी. वे दोनों एकदूसरे पर जान छिड़कते थे. दोनों की शादीशुदा जिंदगी पिछले 10 साल से बेहद सुकून और प्यार से चल रही थी.इधर, अनीता ने हाल ही में एमए और कंप्यूटर कोर्स किया था. वह किसी नौकरी की तलाश में थी. वह एक मिडिल क्लास परिवार से थी. पिछले कई दिनों से वह स्कूटी चलाने की प्रैक्टिस कर रही थी.

अनिल की कंपनी 3 शिफ्ट में चलती थी और उस की ड्यूटी सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे वाली शिफ्ट में थी. सुबह घर से सवा 7 बजे निकल कर दफ्तर पहुंचना अनिल का रोज का नियम था. और अब क्योंकि यह उस की आदत में आ चुका था, इसलिए वह साधारण रफ्तार से कार चलाते हुए अपने औफिस की 10 किलोमीटर की दूरी महज 20 मिनट में नाप लेता था.हमेशा की तरह बेखयाली में कार में बजते म्यूजिक का मजा लेते हुए अनिल औफिस की तरफ जा रहा था.

अनीता अपनी स्कूटी ले कर सुबहसुबह सड़क पर थी. मालवीय नगर के पास के एक स्कूल के बाहर स्कूल बस खड़ी होने के चलते अनीता ने थोड़ी तेज रफ्तार में स्कूटी को साइड से निकालना चाहा, पर सामने दूसरी ओर से अनिल की कार आ गई और अनीता घबराहट में उस कार से भिड़ कर बीच सड़क पर औंधे मुंह जा गिरी.यह देख अनिल के होश फाख्ता हो गए. उस ने कार से उतर कर अनीता को टटोला, फिर घायल और बेहोश अनीता को किसी तरह से उठा कर अपनी कार में लिटाया और थोड़ी दूरी पर अनुराग अस्पताल में ले गया.सुबहसुबह इमर्जैंसी में अनीता को भरती किया गया.

उस के पास किसी तरह का पहचानपत्र नहीं मिलने के चलते अनिल उस के घर वालों को खबर करने में नाकाम था. अस्पताल में जानपहचान होने से उस ने अनीता को अपना निकट संबंधी बता कर भरती करा दिया.थोड़ी देर बाद जब अनीता को होश आया, तो उस ने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. पास बैठे अनिल को उस ने सवालिया निगाह से देखा.

अनिल ने उसे बताया कि कैसे वह उस की कार से टकरा कर बेहोश हो गई थी. बात करने पर पता चला कि अनीता के घर में और कोई नहीं था. उस के मांबाप और एकलौते भाई की एक हादसे में 2 साल पहले मौत हो चुकी थी.शाम तक अनीता के पास बैठा अनिल कब उस की सादगी पर मरमिटा, यह दोनों को ही नहीं पता चला. अनिल ने अपने शादीशुदा होने की बात अनीता से छिपा ली थी.

शाम को 5 बजे के आसपास नीलिमा का फोन आया, तो अनिल को होश आया कि उस का खुद का घर पर इंतजार हो रहा है. उस ने नीलिमा से झूठा बहाना बना दिया कि औफिस के किसी जरूरी काम के लिए उसे 2 दिन के लिए गुड़गांव जाना पड़ गया है और वह रास्ते में है.शाम तक अनीता को प्राइवेट रूम में शिफ्ट कर दिया गया और डाक्टर की सलाह पर और 2 दिन तक भरती रहने के लिए कहा गया.रात को अनीता के साथ प्राइवेट रूम में रुकने पर थोड़ा असहज महसूस करते हुए अनिल को अनीता ने देखा, तो वह बोली, ‘‘देखिए अनिलजी, आप ने मेरे लिए इतना किया, तो आप मेरे साथ रात को रूम में रुकने में शरमा क्यों रहे हैं, बल्कि घबराना तो मुझे चाहिए.’’अनिल ने रातभर अनीता का ध्यान रखा और अगले दिन शाम को अनीता को अस्पताल से छुट्टी मिल गई.

अस्पताल से डिस्चार्ज करा कर अनिल अनीता को उस के घर छोड़ने गया. थोड़ी देर बाद उस ने अपने घर के लिए निकालना चाहा, तो अनीता ने बेहद प्यार से उसे रोका और कहा, ‘‘मेरे लिए इतनाकुछ किया है, तो 2-4 दिन मेरे घर पर रह कर मुझे संभाल लो.’’अनिल भी अनीता के मोहपाश में बंधा जा रहा था, लेकिन उसे अपनी पत्नी का खयाल भी आ रहा था. खैर, आज की रात तो उस ने वहां रुकना मंजूर कर ही लिया. अनीता रात के खाने के बाद नहा कर गाउन पहन कर अपने बिस्तर पर लेट गई. रात के 10 बजे अनीता ने अनिल से घुटने की मालिश करने को कहा.

अनिल बाम ले कर मालिश करने लगा.अनीता ने घुटने से ऊपर भी दर्द की शिकायत की तो अनिल के हाथ उस की जांघ की मालिश भी करने लगे. अनीता के मुंह से मीठी आह निकलने लगी. उस ने बाएं कंधे पर भी मालिश करने को कहा और गाउन के ऊपर के 3 बटन खोल दिए. कंधे के साथ ही अनीता के बड़े उभारों की थोड़ी सी झलक अनिल को दिखने लगी.

अनिल के हाथ कंधे के नीचे सरकने लगे. उस ने अनीता से कहा कि अगर वह गाउन के और बटन खोल देगी तो मालिश करने में और आसानी होगी.अब तक अनीता पूरी तरह अनिल को अपना मान चुकी थी और खुद भी ऐसा ही कुछ चाह रही थी. नीचे के 2 बटन और खोलने के साथ ही उस ने अपनी फ्रंट ओपन ब्रा के हुक भी खोल दिए. अनीता के मादक शरीर की छुअन, उस का ताजा खिला हुआ मदमाता जोबन अनिल को और कुछ न सोचने के लिए काफी था.

अनिल जवानी से भरपूर अनीता के हर नाजुक अंग पर अपनी छाप छोड़ते हुए उस के गुलाबी होंठों को चूमता गया. कुछ ही समय में उन दोनों के जिस्म एक हो चुके थे. सुबह होने तक वे दोनों 4 बार सैक्स का मजा ले चुके थे. अनिल ने महसूस किया कि अनीता की जवानी नीलिमा से कई कदम आगे थी.जहां अनीता को अनिल एक जीवनसाथी और सहारे की तरह नजर आ रहा था, वहीं अनिल को ऐसा लग रहा था कि उसे देहसुख पाने का एक नया और कमसिन जरीया मिल गया है.

अनीता का देहसुख पाने की चाह में अनिल ने नीलिमा को झूठ कह दिया कि औफिस के काम के चलते उसे महीने में 15 दिन जयपुर से बाहर रहना पड़ेगा. अब अनिल का आधा समय अनीता और बाकी समय नीलिमा के साथ बीतने लगा और एकसाथ 2 जिस्मों का सुख उसे अलग ही मजा दे रहा था. अनीता की जवानी ने अभी अंगड़ाई लेनी शुरू की थी. वह अनिल के साथ सारीसारी रात सैक्स करने का मजा लेती थी. ऐसे में अनिल के पास नीलिमा के लिए ज्यादा कुछ बचता नहीं था.

नीलिमा के शिकायत करने पर अनिल बहाना बना देता कि काम ज्यादा होने के चलते थकान बहुत होने लगी है.4-5 महीने यों ही बीत गए. इधर अनीता बारबार अनिल पर शादी करने के लिए दबाव डाल रही थी. पर कभी उसे महंगे गिफ्ट दे कर, तो कभी और थोड़े दिन इंतजार का बहाना बना कर अनिल उस की जवानी का भरपूर मजा लेता रहा.पर एक ही शहर में 2 अलगअलग जगह ‘पत्नीसुख’ कितने दिन चलना था. एक दिन कुछ सामान लेने के लिए अपनी सहेली के साथ घर से निकली नीलिमा ने अनिल की कार एक घर के बाहर खड़ी देख ली. यह देख कर उस का माथा ठनक गया.

अनिल को फोन लगाया, तो उस ने कहा कि वह गुड़गांव के रास्ते में कार में ट्रैफिक में फंसा है, बाद में बात करेगा.पड़ोस में तहकीकात करने पर पता लगा कि बगल वाले घर में 4-5 महीने पहले प्रेम विवाह कर के अनीता नामक एक लड़की अपने पति के साथ रह रही है. जल्द ही ये लोग खुद के फ्लैट में शिफ्ट होने वाले हैं.यह बात अनीता ने ही फैलाई थी, ताकि अनिल उस के पास बेरोकटोक आजा सके और किसी को कोई शक न हो. यहां तक कि उस ने घर में अनिल के साथ जोड़े समेत खिंचवाई गईं बहुत सारी तसवीरें फे्रम करा कर दीवार पर टांग रखी थीं. एक गहरे सदमे के साथ नीलिमा अपने घर लौटी.

उस ने सारी रात करवटें बदलते हुए बिताई.अगले दिन नीलिमा ने अनिल के औफिस के समय के दौरान अनीता से मिलने का फैसला किया. अनीता के घर नीलिमा को आसानी से प्रवेश मिल गया, क्योंकि अनीता काफी सरल स्वभाव की थी. यह बात और थी कि वह अब अनिल के मोहपाश में पूरी तरह से बंधी हुई थी.घर की दीवारों पर अनिल और अनीता की ढेरों तसवीरें देख कर नीलिमा को चक्कर से आने लगे. जब उस ने तसवीर में उस के साथ वाले आदमी के बारे में अनीता से पूछा, तो उस ने बताया कि उन दोनों ने कुछ महीने पहले ही मंदिर में प्रेम विवाह किया है और अनिल के घर वालों की रजामंदी मिलते ही वे दोनों पूरे रीतिरिवाज के साथ शादी कर लेंगे.

नीलिमा अपने साथ अपनी शादी के बाद का फोटो अलबम वहां ले गई थी. उस ने अनीता के सामने वह फोटो अलबम रख दिया. वह अलबम खोलते ही चक्कर आने की बारी अनीता की थी. धीरेधीरे अनिल के झूठ के सारे पुलिंदे खुलते चले गए.अनीता गहरे सदमे में आ चुकी थी. उस ने अनिल के खिलाफ पुलिस में धोखाधड़ी का केस दर्ज करने की बात कही. नीलिमा को पता था कि ऐसा होने पर न केवल अनिल को जेल हो जाएगी, बल्कि उस की नौकरी भी चली जाएगी, खुद की शादीशुदा जिंदगी तो उस की बिगड़ ही चुकी थी.नीलिमा यह सब नहीं चाहती थी, पर वह अनिल को कड़ा सबक भी सिखाना चाहती थी.

अनीता ने स्वीकार किया कि अनिल ने उस के ऊपर अभी तक लाखों रुपए खर्च किए हैं और अनिल को अपने घर में बिना उस के बारे में अतापता किए  इतने दिनों से आनेजाने की छूट देने की वह खुद जिम्मेदार थी. साथ ही, खुद के पड़ोसियों को यह झूठ कह कर कि अनिल से उस की शादी हो चुकी है, गुनाह में वह बराबर की हिस्सेदार थी.अनिल को सबक कैसे सिखाया जाए, इस पर अगले दिन साथ बैठ कर विचार करने की कह कर नीलिमा घर चली गई.

अनीता के भविष्य के सपनों पर जो बिजली गिरी थी, उस का अंदाजा लगाना आसान नहीं था.थोड़ी देर बाद अनीता किसी को बिना कुछ कहे, घर पर ताला लगा कर निकल गई. शाम को अनिल को घर बंद मिला, तो उस ने अनीता को फोन किया, लेकिन वह भी स्विच औफ था.आखिरकार अनिल ने खुद के घर की ओर रुख किया. नीलिमा को अनिल की शक्ल से नफरत हो चुकी थी.

नीलिमा का बदलाबदला बरताव अनिल को समझ नहीं आ रहा था.जो नहीं होना चाहिए था, वही हुआ. अगले दिन अखबार में 25-26 साल की एक जवान लड़की की जगतपुरा रेलवे स्टेशन पर रेल से कट कर मौत होने की खबर आई. वह अनीता ही थी.अनिल और नीलिमा का रिश्ता दोबारा कभी नहीं सुधर सका. अनिल की हवस और अनीता की नासमझी ने 3 जिंदगियां हमेशाहमेशा के लिए बरबाद कर दी थीं.

प्यार का रिश्ता: कौनसा था वह अनाम रिश्ता

‘‘लक्ष्मी, एक अच्छी खबर है.’’ ‘‘क्या…?’’ लक्ष्मी ने पूछा. ‘‘मैं ने अपनी रीना का रिश्ता पक्का कर दिया है.’’ ‘‘अभी वह 14 साल की ही तो है.’’ ‘‘चुप रह. ज्यादा जबान न चलाया कर. 1-1 कर के 4-4 बेटियां पैदा कर दीं और अब मुझे कानून पढ़ा रही है. ‘‘बैजनाथ अपने भतीजे रमेश के लिए अपनी रीना का हाथ मांग रहे थे. मैं ने हां कर दी. शाम को 4-5 लोग रिश्ता पक्का करने के लिए आएंगे. रीना  को तैयार कर देना. यह पकड़ मिठाई  का डब्बा.’’ ‘‘कैसी बात कह रहे हैं रीना के बापू. कहां हमारी नाजुक सी बेटी और कहां तुम्हारी उमर का दुहाजू रमेश.’’ ‘‘बस, अब आगे जबान मत खोलना. आदमी की उम्र नहीं देखी जाती है, उस की कमाई देखी जाती है. मुंबई में तुम्हारी बेटी राज करेगी.

‘‘पूरीसब्जी बना लेना. खाना अच्छी तरह बनाना, कुछ गड़बड़ मत करना. रमेश वहां टैक्सी चलाता है. 1,000 रुपए तो रोज के आसानी से कहीं गए नहीं हैं. वह बता रहा था.’’ शाम को रमेश अपने काकाकाकी को ले कर आया. लाल चमकीली कढ़ी हुई साड़ी, पायलचूड़ी और सोने की अंगूठी पहना कर रीना की शादी पक्की कर दी. ढोलक पर गीत गाए गए, खानापीना और रात में शराब का पीनापिलाना भी हुआ. रीना के लिए शादी का मतलब केवल सजनासंवरना, बढि़या साड़ी, चूड़ी, पायल, महावर, सिंदूर, पाउडर और लिपिस्टिक था. उस की निगाहें तो उस सामान से हट कर रमेश की तरफ गई ही नहीं. अम्मां आंसुओं से रोई जा रही थीं.

बापू गाली दे कर बोल रहे थे, ‘‘असगुन मना रही है रोरो कर.’’ रीना तो अपनी शादी के बाद मुंबई जाने की खुशी में फूली नहीं समा रही थी. उस ने जल्दीजल्दी चूडि़यां पहन लीं, पाउडर और लिपिस्टिक लगा कर वह खुद को बारबार आईने में देख रही थी.  तभी रीना की सहेलियां सोनाली और गौरी आ गईं और उस की साड़ी, पायल और अंगूठी को लालची निगाहों से छूछू कर देखने लगीं. उन लोगों की निगाहों में उस के लिए जलन थी. ‘‘क्या री रीना, अब तू मुंबई में रहेगी?’’  ‘‘और नहीं तो क्या. मैं वहां फिल्म देखने जाऊंगी.’’ रीना दिनरात मुंबई नगरी के ख्वाबों में खोई रहती. कैसा होगा मुंबई शहर? वह तो कभी रेलगाड़ी में भी नहीं बैठी थी. कभी गांव से बाहर ही नहीं गई थी.

यहां तो उसे हर 2-4 दिन के बाद भूखे पेट सोना पड़ता था. बापू को मजदूरी न मिलती तो रोटी कैसे पकती या वह शराब पी कर आते तो अम्मां को मारते और गाली देते थे. रोतेरोते वह डर के मारे कोने में दुबक कर सो जाती. रीना रंगबिरंगे सपनों की दुनिया में खोई हुई थी, तभी उस के मन में खयाल यह आया कि कहीं रमेश भी नशा कर के उसे पीटेगा तो नहीं? लेकिन सुखद भविष्य के बारे में सोच कर उस का मन बोला, ‘नहींनहीं…’ एक दिन शाम को रीना अपनी सहेली गौरी के पास जा रही थी, तभी पीछे से किसी ने उसे बांहों में भर लिया. वह घबरा कर चिल्ला पड़ी, तो उस ने उस के मुंह पर अपनी हथेली रख दी. रमेश को पहचान कर रीना शरमा गई थी. गोराचिट्टा रमेश उसे अच्छा लगा था. टीशर्ट और पैंट पहना हुआ, हाथ में घड़ी बांधे हुए वह किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं लग रहा था.

8-10 दिन के अंदर ही रीना ब्याह कर के रमेश के साथ मुंबई आ गई थी. वह आंखें फाड़फाड़ कर ऊंचीऊंची इमारतों पर सजी हुई रंगबिरंगी रोशनियों को देख कर हैरानी से भर उठी थी. अपनी आंखों में सुनहरे भविष्य के अनगिनत सपने संजोए हुए रीना अपने घर पहुंची थी. वहां सासू मां ने उस का आरती कर के स्वागत किया था. ‘‘रमेश की बहू तो सुंदर है, लेकिन उम्र में अभी छोटी है,’’ किसी ने कहा. आसपास की औरतें, बच्चे रीना को झांकझांक कर देखने की कोशिश कर रहे थे. सासू मां ने उसे खाने के लिए पूरीसब्जी और खीर दी थी.

रीना को तो शादी बड़ा फायदे का सौदा समझ में आ रहा था. बढि़या खाना, बढि़या कपड़े, सजनासंवरना, उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. लेकिन रात में जब रमेश ने उस के तन को घायल किया तो उस का मन भी घायल हो  उठा था. वह तड़प कर चीख उठी थी और सासू मां के आंचल में आ कर दुबक गई थी.  अगली सुबह रीना देर तक सोती रही थी. जब उस की आंखें खुली थीं, तो दिन चढ़ आया था. सासू मां रमेश को धीरेधीरे कुछ समझा रही थीं. रमेश को देखते ही रीना डर के मारे कांप उठी थी. रात की बातों को याद कर के वह घबरा उठी थी. रमेश अपने काम पर चला गया था. सासू मां ने उस के लिए आलू का परांठा बनाया था, फिर उसे प्यार से समझाने लगीं कि शादी का मतलब ही यही होता है, इसलिए रमेश से डरो नहीं, अब वह तुम्हारा पति है.

रमेश शाम को घर लौट कर आया, तो रीना के लिए रसगुल्ले ले कर आया. उस ने आहिस्ता से रीना की हथेली को चूम लिया था. फिर उस ने उसे अपनी बांहों में भर लिया था.  धीरेधीरे रीना को रमेश अच्छा लगने लगा था. उस की प्यार भरी छेड़छाड़ से उस के मन में गुदगुदी हो उठती थी. वह रोज ही उस के लिए कुछ न कुछ खाने के लिए ले आता था. सासू मां भी काम पर चली जाती थीं. वे घर का काम करती थीं. झाड़ूबुहार, बरतन, कपड़ा, सब काम उन के लिए नया नहीं था.  एक दिन सुबह ही रमेश ने रीना को कह दिया कि शाम को तैयार रहना, आज तुझे घुमाने ले जाऊंगा. रीना सुबह से ही बहुत खुश थी. रमेश उसे अपनी आटोरिकशा में बिठा कर जुहूचौपाटी ले कर गया. वहां लोगों की भीड़ देख ऐसा लग रहा था कि जैसे मेला लगा हो. वहां रीना ‘बर्फ का गोला’ खा कर बहुत खुश हुई थी. सब तरफ लोग कुछकुछ खापी रहे थे. उस ने तो कभी नदी भी नहीं देखी थी, इतना  बड़ा समुद्र देख कर वह हैरानी से भर उठी थी.  रमेश ने उसे ठंडी बोतल पिलाई, गोलगप्पे खिलाए. वे दोनों घंटों समुद्र के किनारे बैठे रहे थे.

रमेश उस की हथेलियों को पकड़ कर बैठा हुआ मीठीमीठी बातें कर रहा था. रीना सजधज कर अपनेआप को महारानी से कम नहीं समझती थी. अब वह रमेश के लौटने का इंतजार करती, क्योंकि उस की प्यारभरी छेड़छाड़ उसे अच्छी लगती थी. यहां पर रीना के घर में गैस का चूल्हा था, टैलीविजन था और पानी ठंडा करने वाली मशीन भी थी. गांव में तो लकड़ी जला कर रोटी बनाती तो धुएं  के मारे रोतेरोते उस की आंखें लाल हो जाती थीं.

जब रीना को अपनी अम्मां की याद आती, तो रमेश अपने फोन से अपने बापू से बात करवा देता था. फिर रीना पेट से हो गई थी. सासू मां भी खुश थीं और रमेश भी बहुत खुश था. वह उस के इर्दगिर्द घूमता रहता. कभी काम पर जाता, कभी नहीं जाता. कभी उसे फिल्म दिखाने ले जाता, कभी बाजार ले जाता. वह बहुत खुश थी. सासू मां भी कोठी से उस के खाने के लिए कुछ न कुछ जरूर ले कर आतीं. रमेश की एक बात से रीना को गुस्सा आता था कि वह उसे किसी से बात करते हुए नहीं देख पाता था. वह कहीं भी किसी औरत से भी बात करे तो वह नाराज हो जाता था.

रीना ने परेशान हो कर एक दिन सासू मां से पूछा, तो उन्होंने बताया कि रमेश की पहली बीवी किसी दूसरे के चक्कर में पड़ कर उस के साथ भाग गई थी, इसीलिए वह हर समय उसे अपनी आंखों के सामने रखना चाहता था. समय आने पर रीना छोटी सी उम्र में जुड़वां बच्चों की मां बन गई. अस्पताल में आपरेशन और दवा में काफी खर्चा आया. 2 नन्हें बच्चों के दूध, दवा, डाक्टर, रोज के खर्चे बहुत बढ़ गए. वह बच्चों के साथ ज्यादा बिजी रहती. कमजोरी के चलते जल्दी थक जाती थी. अब वह रमेश की ओर ध्यान नहीं दे पाती थी. वह बातबात पर चिड़चिड़ाने लगा था.

रीना समझ गई थी कि रमेश शराब पी कर आने लगा है, क्योंकि वह उस के साथ भी जब जाता था तो कुछ चुपचाप से पी कर आता था. जब वह पूछती, तो कह देता कि यह उस की ताकत की दवा है. लेकिन रीना जानती थी कि रमेश शराब पीता है, क्योंकि नशा करने के बाद वह जानवर की तरह उस पर टूट पड़ता था और अब जबकि वह बच्चों के चलते उस के काबू में नहीं आती तो वह गालीगलौज और उस के कुछ बोलने पर पिटाई करने के लिए हाथ उठाने लगा था. रीना के सपने और खुशियां दफन होने लगी थीं. एक तरफ 2 नन्हें बच्चे तो दूसरी तरफ रमेश का रोजरोज नशा करना. वह कभी काम पर जाता, कभी नहीं जाता. पैसे की तंगी होने लगी. घर का माहौल बिगड़ने लगा. लड़ाईझगड़ा, कलह, गालीगलौज और मारपीट रोज की कहानी हो गई थी.

एक दिन रमेश नशा कर के घर आया, तो सासू मां ने उसे डांटा. उस ने बिगड़ कर खाने की थाली उठा कर फेंक दी और जब रीना रोने लगी तो उस ने उसे जोर से धक्का दे दिया था, ‘‘टेसुए बहाती है, मेरा पैसा?है, तुम कौन होती हो मुझे रोकने वाली?’’ उस दिन रीना को अपनी अम्मां की बहुत याद आई थी. वह तो कह भी नहीं सकती थी कि अम्मां के घर जाना है. वहां तो खाने का भी ठिकाना नहीं था. तकरीबन महीनाभर हो गया था, रमेश दिनभर घर पर पड़ा रहता और चार समय खाना मांगता.  ‘‘काम पर क्यों नहीं जाता है?’’ ‘‘बस… मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’ ‘‘नशा करने के समय तबीयत ठीक हो जाती है. एक पैसा दे नहीं रहे हो, चार समय रोटी खाने को चाहिए, कहां से आएगी रोटी?’’ ‘‘मेरी रोटी गिनती है,’’ फिर गाली देते हुए रमेश बोला, ‘‘तेरे चलते ही मैं बरबाद हो गया. बैंक वालों की किस्त नहीं दे पाया तो वे लोग मेरा आटोरिकशा उठा कर ले गए. तुझे खुश करने के लिए कभी सिनेमा ले जाता, तो कभी आइसक्रीम खिलाता. ‘आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया’.

बस अब तो ठनठन गोपाला.’’ रमेश गुस्से में पैर पटकता हुआ घर से चला गया था. बच्चे 4 साल के हो गए थे, उन्हें स्कूल भेजना था. रीना ने मन ही मन काम करने का निश्चय कर लिया. अब वह रमेश की एक भी न सुनेगी. अगले दिन से ही सोसाइटी में उसे 3 घरों में काम मिल गया था. एक अंकल तो बुजुर्ग थे. वे घर में बिलकुल अकेले रहते थे. उन के यहां उसे खाना, झाड़ूबरतन, कपड़ा सब करना था. उन्होंने 10,000 रुपए महीना देने को बोला, तो उस की तो बांछें खिल गई थीं. इसी तरह से 2 घरों में और उसे काम मिल गया. मुंबई के छोटेछोटे घर, साफसुथरे, उन घरों में काम करने में उसे मजा आता. अब रीना जितनी देर घर से बाहर रहती, वहां के झंझट और कलहक्लेश से दूर रहती. वहां जा कर मैडम मान्या के 2 छोटेछोटे बच्चे थे. उन को देख कर, उसे अपने फटेहाल बच्चे आंखों के सामने घूम जाते.

लेकिन रीना चुपचाप अपना काम करती थी. जैसे ही उन्हें पता लगा कि उस के 2 बच्चे हैं, वह चौंक उठी थीं, ‘‘तुम तो लड़की सी लगती हो. तुम्हारे बच्चे हैं?’’ उन्हें बड़ी हैरानी हुई थी. मैडम मान्या ने अपने कई सूट निकाल कर दे दिए थे. जब बच्चे की बात सुनी तो बच्चे के भी कपड़े दे दिए. अंकल के यहां से खाना तय था वह उस के बच्चों के काम आता. महीनेभर में ही रीना की हालत सुधर गई. अब उस ने रमेश की फिक्र करना बिलकुल बंद कर दिया. उन दोनों के बीच बस अब एक ही रिश्ता बचा था. वह नशे में उस के शरीर पर टूट पड़ता और अपनी भूख मिटा कर बेहोशी की नींद सो जाता. अब वह रमेश को एक देह ही समझती, उस के मन के कोने में उस के लिए नफरत बढ़ती जा रही थी.

रमेश का शराब का चसका इतना बढ़ गया था कि बक्से, अलमारी में उस का छिपाया हुआ पैसा, सब चुरा कर ले गया. रीना ने तकिए के अंदर अपनी सोने की अंगूठी और पायल छिपा कर सिल दी थी. वह भी नशे के लिए रमेश चुरा कर ले गया था. शराब के नशे में रमेश कभी नाली में पड़ा मिलता, तो कभी ठेके पर. जब चाल वाले रीना को खबर करते, तो वह पकड़ कर ले आती. लेकिन अब जब वह गाली देता तो वह भी चार सुनाती.

अगर मारने को वह हाथ उठाता, तो वह भी जो हाथ में आता उठा कर मार देती. जिस दिन रीना को पता लगा कि वह उस की अंगूठी, रुपए, पायल चुरा ले गया?है, उस दिन उस ने उसे चुनचुन कर गाली दी और धक्के मार कर घर से निकाल दिया था.

सरिता मैडम बैंक में काम करती थीं, उन्होंने रीना का अकाउंट बैंक में खुलवा दिया. उस की एक रैकरिंग की स्कीम भी चालू करवा दी. अब वह अपने पैरों पर खड़ी थी. इस के अलावा कपड़ेत्योहार वगैरह अलग मिल जाते थे. अब वह रमेश से नहीं डरती थी और न ही उस की परवाह करती थी. सोसाइटी में दूसरी बाइयों के साथ खूब बातें होतीं, सब की एक सी परेशानी रहती, लेकिन आपस में हंसीमजाक कर  के सब अपना दिल हलका कर लेती थीं. वहीं पर रीना की मुलाकात सुनील से हुई थी.

वह वहां पर प्लंबर था. छोटी सी आपसी मुसकान दोस्ती में बदल गई थी.  ‘‘काहे री छम्मकछल्लो, आज बड़ी सुंदर लग रही हो,’’ सुनील बोला. रीना मुसकरा कर शरमा गई. अभी वह 23-24 साल की ही तो थी. उस के मन में भी तो अरमान थे. इधर रमेश की हालत बिगड़ती चली जा रही थी. उस का लिवर खराब हो रहा था. वह उस के लिए दवा ले आती, लेकिन उस से कोई फायदा नहीं होता.

रीना और सासू मां दोनों मिल कर रमेश को ‘नशा मुक्ति सैंटर’ ले गईं. सुनील ने बताया था कि पहले वह भी शराब पीने लगा था, लेकिन वहां से इलाज करा कर ठीक हो गया. रमेश भी वहां भरती रहा. उस का नशा छूट भी गया था, लेकिन वहां से लौट कर आते ही उस ने फिर से शराब पीना शुरू कर दिया था. अब उस की हालत पहले से ज्यादा बिगड़ गई थी. रीना रमेश की हरकतों से तंग हो चुकी थी, इसलिए वह अपने काम पर खूब सजधज कर जाती.

सुनील उस के लिए चूड़ी ले आया था. वह पहन कर अपने हाथों को निहारती हुई निकल  रही थी. तभी रमेश गाली देते हुए चिल्लाया, ‘‘काम पर जाती है कि अपने यार  से मिलने जाती है. ऐसे सजधज कर निकलती है, जैसे मेला देखने जा रही हो.’’ ‘‘काहे गाली दे रहे हो. मुझे भरभर हाथ चूड़ी अच्छी लगती है तो पहनती हो. काहे को गुस्सा हो रहे हो. तुम्हारे नाम की ही तो चूड़ी पहनती हूं,’’ इतना कह कर रीना जल्दीजल्दी अपने काम पर जाते के लिए निकल पड़ी थी.

चाल में आतेजाते अखिल मिल जाता था. वह भी देवर बन कर उस से हंसीमजाक करता. पहले तो रमेश के डर से रीना बाहर निकलती ही नहीं थी. अब वह आराम से उस से भी बात करती.  ‘‘भाभीजी, बड़ी लाइट मार रही हो,’’ अखिल बोला. तारीफ भला किसे नहीं पसंद. वह भी उस के समय से ही निकलती. वह रमेश के सामने भी कई बार उस के घर चाय पीने आ जाता. ‘‘रमेश भैया, बड़े किस्मत वाले हो, जो ऐसी पत्नी मिली, घर भी संभाल रही है और बाहर भी,’’ अखिल जब यह बोलता, तब रमेश कुढ़ कर रह जाता. रीना खूब सजधज कर अपने काम पर जाया करती, जो रमेश को बहुत नागवार गुजरता, लेकिन अब वह उस की परवाह नहीं करती थी. दूसरा, वह शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो चुका था.

रमेश अपनी अम्मां से चुपचाप पैसा ले लेता और शराब पी आता. अब तो डाक्टर ने भी मना कर दिया था. रीना कभी डाक्टर के हाथ जोड़ती, तो अस्पताल भागती. उसे काम से भी छुट्टी लेनी पड़ती, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल रहा था. मैडम से रोजरोज छुट्टी मांगती तो वे चार बातें सुनातीं. इधर बच्चों की अलग स्कूल से शिकायत आई थी. रीना तो पढ़ीलिखी नहीं थी. उस ने सुनील के सामने अपनी समस्या रखी तो वह पढ़ाने को राजी हो गया. उस ने पैसे की बात पूछी, तो उस ने मना कर दिया. सुनील रोज सुबहसुबह बच्चों को पढ़ाने के लिए आने लगा. कभी वह तो कभी सासू मां सुबह उस को चायनाश्ता करवा देतीं. यह आपसी तालमेल अच्छा बन गया था.

बच्चों के इम्तिहान में नंबर अच्छे आए, तो उस का मन खुश हो गया था. रमेश की हालत बिगड़ती जा रही थी. वह समझ रही थी कि अब रमेश ज्यादा दिन नहीं रहेगा. एक दिन रीना काम पर गई हुई थी, तभी उस के फोन पर खबर आई कि तेरा रमेश हिचकी ले रहा है. वह भाग कर घर आई थी. पीछेपीछे सुनील भी आ गया था. रमेश सच में इस दुनिया से विदा हो गया था. फिर शुरू हो गया चाल की औरतों का जुड़ना, रिश्तेदारों का आना और रोनाधोना, सासू मां पछाड़ें खा रही थीं. दोनों बच्चे भी ‘पापापापा’ कह कर रो रहे थे.

सब रीना से रोने को बोल रहे थे, लेकिन उसे रोना ही नहीं आ रहा था. कोई रोने को बोल रहा, कोई चूड़ी तोड़ रहा तो कोई मांग से सिंदूर पोंछ रहा था. रीना मन ही मन सोच रही थी, ‘मैं क्यों रोऊं? चला गया तो अच्छा हुआ. मेरी जान का क्लेश चला गया. कभी चैन नहीं लेने दिया, कभी कोठी के अंकल के साथ नाम जोड़ देता तो कभी सुनील तो कभी अखिल के साथ. जिस से भी मैं दो पल बात करती, उसी के साथ रिश्ता जोड़ देता. गाली तो हर समय जबान पर रहती…’ रमेश की अर्थी उठनी थी, इसलिए पैसे की जरूरत थी. उस ने मान्या मैडम को फोन कर के बताया था कि उस का आदमी नहीं रहा है, इसलिए पैसे की जरूरत है.

सुनील जा कर पैसे ले आया था. रीना मन ही मन सोच रही थी ‘वाह रे पैसा, जब बच्चा पैदा हुआ था, तो आपरेशन, दवा के लिए पैसा चाहिए, इनसान की मौत हो गई है तो दाहसंस्कार के लिए भी पैसा.’  रमेश की अर्थी सज चुकी थी. सुनील घर के सदस्य की तरह आगे बढ़ कर सारे काम जिम्मेदारी से कर रहा था. सासू मां और चाल की औरतें चिल्लाचिल्ला कर रो रही थीं. तीसरे दिन हवन और शांतिपाठ हो कर शुद्धि हो गई थी. अगली सुबह जब वह काम पर जाने के लिए निकलने लगी, वैसे ही सासू मां उस पर चिल्ला उठी थीं ‘‘कैसी लाजशर्म छोड़ दी है. शोक तो मना नहीं रही और देखो तो काम पर जा रही है. ऐसी बेशर्मबेहया औरत तो देखी नहीं.’’ बूआ ने नहले पर दहला मारा था, ‘‘कैसी सज के जा रही है, किसी के संग नैनमटक्का करती होगी. इसी बात से रमेश दुखी हो कर शराब पीने लगा होगा.’’

रीना अब किसी की परवाह नहीं करती. वह रंगबिरंगे कपड़े पहनती, हाथों में भरभर चूडि़यां पहनती, पाउडर, लिपिस्टिक और बालों में गजरा भी लगाती. देखने वाले उसे देख कर आह भरते. ‘किस पर बिजली गिराने चल दी.’  ‘अब तो रमेश भी नहीं रहा. किस के लिए यह साजसिंगार करती हो…’ ‘‘मैं अपनी खुशी के लिए सजती हूं.’’ ‘‘रीना कुछ तो डरो. विधवा हो, विधवा की तरह रहा करो,’’ पीछे से सासू मां की आवाज थी, पर वह अनसुनी कर के चली जाती. सुनील उस के लिए चांदी की झुमकी ले आया था. वह पहनने को बेचैन थी. उस ने सासू मां से कहा, ‘‘मैडम ने दीवाली के लिए दी है.’’ हाथ में पैसा रहता, रीना तरहतरह की सजनेसंवरने की चीजें खरीदती और मैडम लोगों के कपड़े भी मिल जाते.

उसे बचपन से शोख रंग के कपड़े पसंद थे. अब वह अपने सारे शौक पूरे कर रही थी. अब उसे न तो सासू मां के निर्देशों की परवाह थी और न ही चाल वालों के तानों की. सासू मां को रमेश का जाना और रीना की मनमानी बरदाश्त नहीं हो रही थी. वे कमजोर होती जा रही थीं. एक दिन वे रात में बाथरूम के लिए उठीं तो गिर पड़ीं.

मालूम हुआ कि उन्हें लकवे का अटैक आ गया है. रात में तो किसी तरह बच्चों की मदद से उन्हें चारपाई पर लिटा लिया, लेकिन सुबह जब डाक्टर बुला कर सुनील लाया तो पता चला कि उन का आधा शरीर बेकार हो गया है.  ऐसे मुश्किल समय में सुनील रीना की मदद को आगे आया था. वह भी परेशान था, सोसाइटी की नौकरी छूट गई थी, कहीं रहने का ठिकाना भी नहीं था. उस ने उसे अपने घर में रख लिया. वह रिया और सोम को पढ़ाता. घर के लिए सागसब्जी ले आता.

सब से ज्यादा तो सासू मां के काम में सहारा करता. रीना को उस के रहने से सहूलियत हो गई थी. दोनों के बीच एक अनाम रिश्ता हो गया था. वह पढ़ालिखा था, नौकरी छूटने के चलते वह आटोरिकशा चलाने लगा था. लोग तरहतरह की बातें बनाते. रीना एक कान से सुनती दूसरे से निकाल देती. एक दिन सासू मां सोई तो सोती रह गई थीं. खबर सुनते ही लोगों की भीड़ तरहतरह की कानाफूसी कर रही थी. सासू मां के जाने का गम रीना सहन नहीं कर पा रही थी, इसलिए वह रोरो कर बेहाल थी.  सुनील ने ही आगे बढ़ कर सारा काम किया था. रिश्तेदार ‘चूंचूं’ कर  रहे थे. ‘‘यह कौन है?

दूसरी बिरादरी का है.’’ ‘‘यह रीना का नया खसम है. इसी के चक्कर में तो रमेश को नशे की लत लग गई थी और सास भी इसी गम में चली गई,’’ कहते हुए रिश्ते की एक ननद रोने का नाटक कर रही थी. रीना के लिए चुप रहना मुश्किल हो गया था, ‘‘इतने दिन से सासू मां खटिया पर सब काम कर रही थीं, तो कोई नहीं आया पूछने को कि रीना अम्मां को कैसे संभाल रही हो. सुनील ने उन की सारी गंदगी साफ की. अम्मां तो उसे आशीर्वाद देते नहीं थकती थीं.

आज सब बातें बनाने को खड़े हो गए.’’ सब तरफ सन्नाटा छा गया था. अब रीना को किसी की परवाह नहीं थी कि कौन क्या कह रहा है. कई दिनों से सुनील अनमना सा रहता. वह देख रही थी कि वह बच्चों से भी बात नहीं करता. सुबह जल्दी चला जाता और देर रात लौटता. ‘‘क्यों सुनील, कोई परेशानी है तो बताओ?’’ ‘‘नहीं, मैं अपने लिए खोली ढूंढ़  रहा था. पास में मिल नहीं रही थी, इसलिए दूर पर ही लेना पड़ा. आज एडवांस दूंगा.’’ ‘‘क्यों? यहीं रहो, मुझे सहारा है  और बच्चों के भी कितने अच्छे नंबर आ रहे हैं.’’ ‘‘लोगों की उलटीसीधी गंदी बातें सुनसुन कर मेरे कान पक गए हैं.

अब बरदाश्त नहीं होता. अब अम्मां भी नहीं रहीं. मेरा यहां क्या काम?’’ ‘‘लोगों का तो काम है कहना. आज एडवांस मत देना. शाम को बात करेंगे,’’ कह कर रीना अपने काम पर चली गई थी. सुनील अभी लौटा नहीं था. बच्चे सो गए थे. उस ने सुहागिनों की तरह अपना सोलह सिंगार किया था. वही लाल साड़ी पहन ली, जो सुनील उस के लिए लाया था. सिंगार कर के जब आईने में अपने अक्स को देखा, तो अपनी सुंदरता पर वह खुद शरमा उठी थी.  तभी आहट हुई थी और सुनील उस को देखता ही रह गया था. रीना ने कांपते हाथों से सिंदूर का डब्बा सुनील की ओर बढ़ा दिया. उस रात वह सुनील की बांहों में खो गई थी. अनाम रिश्ते को एक नाम मिल गया था ‘प्यार का रिश्ता’.

दूरियां: क्या काम्या और हिरेन के रिश्ते को समझ पाया नील

दीवाली में अभी 2 दिन थे. चारों तरफ की जगमगाहट और शोरशराबा मन को कचोट रहा था. मन कर रहा था किसी खामोश अंधेरे कोने में दुबक कर 2-3 दिन पड़ी रहूं. इसलिए मैं ने निर्णय लिया शहर से थोड़ा दूर इस 15वीं मंजिल पर स्थित फ्लैट में समय व्यतीत करने का. 2 हफ्ते पहले फ्लैट मिला था. बिलकुल खाली. बस बिजलीपानी की सुविधा थी. पेंट की गंध अभी भी थी.

मैं कुछ खानेपीने का सामान, पहनने के कपड़े, 1 दरी और चादरें लाई थी. शहर से थोड़ा दूर था. रिहायश कुछ कम थी. बिल्डर ने मकान आवंटित कर दिए थे. धीरेधीरे लोग आने लगेंगे. 5 साल पहले देखना शुरू किया था अपने मकान का सपना. दोनों परिवारों के विरोध के बावजूद नील और मैं ने विवाह किया था. अपने लिए किराए का घर ढूंढ़ते हुए बौरा गए थे. तब मन में अपने आशियाने की कामना घर कर गई. आज यह सपना कुछ हद तक पूरा हो गया है. लेकिन अब हमारी राहें जुदा हो गई हैं. यहां आने से पहले मैं वकील से मिलने गई थी. कह रहा था बस दीवाली निकल जाने दो, फिर कागज तैयार करवाता हूं.

मन अभी भी इस बात को स्वीकारने को तैयार नहीं था कि आगे की जिंदगी नील से अलग हो कर बितानी है. लेकिन ठीक है जब रिश्तों में गरमाहट ही खत्म हो गई हो तो ढोने से क्या फायदा? इतनी ऊंचाई से नीचे सब बहुत दूर और नगण्य लग रहा था. अकेलापन और अधिक महसूस हो रहा था. शाम के 5 बज रहे थे. औफिस में पार्टी थी. उस हंगामे से बचने के लिए यहां सन्नाटे की शरण में आई थी. आसमान में डूबते सूर्य की छटा निराली थी, पर सुहा नहीं रही थी. बहुत रोशनी थी अभी. एक कमरे में दरी बिछा कर एक कोने में लेट गई. न जाने कितनी देर सोती रही. कुछ खटपट की आवाज से आंखें खुल गईं.

घुप्प अंधेरा था. जब आंख लगी थी इतनी रोशनी थी कि बिजली जलाने की जरूरत नहीं महसूस हुई थी. किसी ने दरवाजा खोल कर घर में प्रवेश किया. मेरी डर के मारे जान निकल गई. केयर टेकर ने कहा था वह चाबी केवल मालिक को देता है. लगता है   झूठ बोल रहा था. चाबी किसी शराबी को न दे दी हो, सोचा होगा खाली फ्लैट में आराम से पीएं या उस की स्वयं की नीयत में खोट न आ गया हो. अकेली औरत इतनी ऊंचाई पर फ्लैट में फायदा उठाने का अच्छा मौका था. डर के मारे मेरी जान निकल रही थी. आसपास कोई डंडा भी नहीं होगा जिसे अपनी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल करूं. डंडा होगा भी तो अंधेरे में दिखेगा कैसे? सांस रोके बैठी थी. अब तो जो करेगा आगंतुक ही करेगा. हो सकता है अंधेरे में कुछ सम  झ न आए और वापस चला जाए.

तभी कमरा रोशनी से जगमगा उठा. सामने नील खड़ा था. नील को देख कर ऐसी राहत मिली कि अगलापिछला सब भूल उठी और

उस से लिपट गई. वह उतना ही हत्प्रभ था जितनी मैं सहमी हुई. कुछ पल हम ऐसे ही गले लगे खड़े रहे. फिर अपने रिश्ते की हकीकत हमें याद आ गई.

‘‘मैं? मैं तो यहां शांति से 3 दिन रहने आई हूं. तुम नहीं रह सकते यहां… तुम जाओ यहां से.’’

नील जिद्दी बच्चे की तरह अकड़ते हुए बोला, ‘‘क्यों जाऊं? मैं भी बराबर की किस्त भरता हूं इस फ्लैट की… मेरा भी हक है इस पर… मैं तो यहीं रहूंगा जब तक मेरा मन करेगा… तुम जाओ अगर तुम्हें मेरे रहने पर एतराज है तो.’’

मैं ने भी अपने दोनों हाथ कमर पर रखते हुए   झांसी की रानी वाली मुद्रा में सीना चौड़ा कर के कहा, ‘‘मैं क्यों जाऊं?’’ पर मन में सोच रही थी कि अब तो मर भी जाऊं तो भी नहीं खिसकूंगी इस जगह से.

औफिस से निकलते हुए मन में आया होगा चल कर फ्लैट में रहा

जाए और मुंह उठा कर आ गया. कैसे रहेगा, क्या खाएगा यह सोचने इस के फरिश्ते आएंगे. कहीं ऐसा तो नहीं यह केवल फ्लैट देखने आया था. मु  झे देख कर स्वयं भी यहां टिकने का मन बना लिया. इसे मु  झे चिढ़ाने में बहुत मजा आता है. नील हक से डब्बा ले कर बाहर बालकनी में जा कर दीवार का सहारा ले कर फर्श पर बैठ गया. डब्बा उस के हाथ में था, मजबूरन मु  झे उस के पास जमीन पर बैठना पड़ा.

आसमान में बिखरे अनगिनत तारे निकटता का एहसास दे रहे थे और अंधेरे में दूर तक जगमगाती रोशनी भी तारों का ही भ्रम दे रही थी. खामोशी से बैठ यह नजारा देख बड़ा सुकून मिल रहा था. लेकिन अगर अकेली होती तो इस विशालता का आनंद ले पाती. न चाहते हुए भी मुंह से निकल गया, ‘‘कैसे हो?’’

नील आसमान ताक रहा था. मेरे प्रश्न पर सिर घुमा कर मु  झे देखने लगा. एकटक कुछ पल देखने के बाद बोला, ‘‘बहुत सुंदर लग रही हो इस ड्रैस में.’’

नील ने दिलाई थी जन्मदिन पर. कुछ महीनों से पैसे जोड़ रहा था. इस बार तु  झे महंगी सी पार्टीवियर ड्रैस दिलाऊंगा… कहीं भी जाना हो बहुत साधारण कपड़े पहन कर जाना पड़ता है तु  झे.

सारा दिन बाजार घूमते रहे, लेकिन नील को कोई पसंद ही नहीं आ रही थी. फिर यह कढ़ाई वाली मैरून रंग की कुरती और सुनहरा प्लाजो देखते ही बोला था कि यह पहन कर देख रानी लगेगी. शीशे में देखने की जरूरत ही नहीं पड़ी. उस की आंखों ने बता दिया ड्रैस मु  झ पर कितनी फब रही है. कितना समय हो गया है इस बात को. मौके का इंतजार करती रही. किसी खास पार्टी में पहनूंगी… इतनी महंगी है कहीं गंदी न हो जाए. आज औफिस में फंक्शन में पहनने के लिए निकाली थी, लेकिन न जाने क्यों इतनी भीड़ में शामिल होने का मन नहीं कर रहा था. लगा सब को हंसताबोलता देख कहीं दहाड़ें मार कर रोने न लग जाऊं. कुछ सामान इकट्ठा किया और यहां आ गई, इस से पहले कि मेरा बौस हिरेन मु  झे लेने आ जाता.

नील अभी भी मु  झे देख रहा था. बोला, ‘‘इस के साथ   झुमके भी लिए थे वे नहीं पहने…’’

200 रुपए के   झुमके भी खरीदे थे, बड़े चाव से. कैसे 1-1 चीज दिला कर खुश होता था.

मैं हंस कर कहती, ‘‘ऐेसे खुश हो रहे हो जैसे स्वयं पहन कर बैठोगे.’’

वह मुसकरा कर कहता, ‘‘मैं अगर ये सब पहनता होता तो भी मु  झे इतनी खुशी नहीं मिलती जितनी तु  झे पहना देख कर मिलती है.’’

कितना प्रेम था हम दोनों के बीच, लेकिन सुरक्षित भविष्य की चाहत में ऐसे दौड़ पड़े कि वर्तमान असुरक्षित कर लिया… एकदूसरे से ही दूर हो गए.

मैं ने लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘‘हिरेन के साथ पार्टी में जाने के लिए तैयार हो रही थी, लेकिन मन नहीं कर रहा था, इसलिए उस के आने से पहले ही जल्दी से निकल गई.’’

हिरेन का नाम सुनते ही नील का चेहरा उतर गया. न जाने क्या गलतफहमी पाले बैठा है दिमाग में. रात बहुत हो गईर् थी. मैं उठ खड़ी हुई. जिस कमरे में मैं ने सामान रखा था वहां चली गई. रात के कपड़े बदल कर लेटने के लिए दरी बिछाई तो ध्यान आया नील कैसे सोएगा, बिना कुछ बिछाए. ऐसे कैसे बिना सामान के रात बिताने यहां आ गया? कितना लापरवाह हो गया है. बाहर आ कर देखा तो नील अभी भी पहले की तरह बालकनी में दीवार के सहारे बैठा आसमान को टकटकी लगाए देख रहा था. कितना कमजोर लग रहा था. पहले जरा सा भी दुबला लगता था तो आधी रोटी अधिक खिलाए बिना नहीं छोड़ती थी.

अब मु  झे क्या? क्या रिश्तों के मतलब इस तरह बदल जाते हैं? मैं ने उस की तरफ चादर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह चादर ले लो. बिछा कर लेटना. फर्श ठंडा लगेगा.’’

नील मेरी तरफ देखे बिना बोला, ‘‘नहीं रहने दो. इस की जरूरत नहीं है.’’

‘‘मेरे पास 2 हैं, ले लो.’’

नील बैठेबैठे ही एकदम से मेरी तरफ मुड़ा. उस का मुख तना हुआ था. दबे आक्रोश में बोला, ‘‘जाओ यहां से फिर बोलोगी मु  झे केवल तुम्हारी देह की पड़ी रहती है. तुम्हारे शरीर के अलावा मु  झे कुछ नजर नहीं आता.’’

जब से यह वाकेआ हुआ था हमारे बीच की दरार खाई बन गई थी. वह ताने मार कर बात करता और मैं शांति बनाए रखने के लिए खामोश रहती. अब भाड़ में जाए शांति.

‘‘तो क्या गलत बोला था, थकीहारी औफिस से 6 बजे आती और तुम बस वे सब करना चाहते थे.’’

वैसे तो मु  झे उस के छूने से, उस के करीब आने से एक नैसर्गिक प्रसन्नता और तृप्ति मिलती थी, लेकिन उन दिनों औफिस के माहौल से बहुत परेशान थी. घर आते ही मन करता था नील के कंधे पर सिर रख कर औफिस की भड़ास निकाल कर थोड़ा रोने का. लेकिन उसे आधे घंटे में ट्यूशन पढ़ाने निकलना होता था. मेरे आते ही वह मु  झे बांहों में खींच कर चूमने लगता.

उस दिन कुछ तबीयत ठीक नहीं थी और औफिस में भी कुछ अधिक ही कहासुनी हो गई. भरी बैठी थी. अत: उस के करीब आते ही सारा आक्रोश उस पर निकल गया. धक्का देते हुए बोली, ‘‘इस तन के अलावा और कुछ नहीं सू  झता क्या?’’

वह ठिठक गया. फिर एकदम पलट कर बाहर चला गया.

रात को 12 बजे तक आता था और मेरी नींद न खुले, इसलिए ड्राइंगरूम में ही सो जाता

था. उस रात भी उस ने ऐसा ही किया. सुबह जब मेरी आंख खुली वह तैयार हो कर औफिस जा रहा था. बिना कुछ खाए और बोले वह चला गया. शाम को मेरे आने से 1 घंटा पहले घर आ जाता था और मेरे आते ही हम आधा घंटा अपनी तनमन की सब बातें करते थे. इस के अलावा हमारे पास एकदूसरे के लिए समय नहीं होता था. लेकिन अब मेरे आने से पहले वह निकल जाता था. रोना तो बहुत आता था, पर मैं सही थी. उस के पास मु  झ से बात करने के लिए 2 पल भी नहीं होते थे.

वह खड़ा हो गया. मेरे कंधों को जोर से पकड़ चीखते हुए बोला, ‘‘तुम ने उस दिन मेरे प्रेम को गाली दी, जीवन में अगर अपने से अधिक किसी को प्यार किया तो वह तुम हो. अगर केवल तुम्हारे तन का भूखा होता तो कालेज में 3 साल तक बिना हाथ लगाए नहीं रहता. मन तो तब बहुत मचलता था, लेकिन वादा किया था कि तुम्हारी इज्जत से कभी खिलवाड़ नहीं करूंगा. वही तो आधा घंटा मिलता था करीब आने का. सारा दिन बीत जाता तुम्हारे बारे में सोचतेसोचते… तुम्हारे नजदीक आ कर पूर्णता का एहसास होता, स्फूर्ति आ जाती, दुनिया का सामना करने की ताकत मिल जाती. मेरे प्रेम की अभिव्यक्ति थी वह, तुम में समा कर इतने गरीब हो जाने का एहसास था कि लगता हम एक हैं.’’

उस ने मेरे कंधे छोड़ दिए, आवाज थरथरा रही थी. आंखों में दर्र्द था और वह लड़खड़ाते हुए बाथरूम में चला गया. मेरा मन भारी हो गया. उस की नजरों से कभी सोचने की कोशिश नहीं की. दोनों एकदूसरे का साथ चाहते थे, लेकिन अलगअलग तरीके से. जीवन की भागदौड़ में समय इतना कम जरूरतें इतनी अधिक सब बिखर गया. बात केवल इन गलतफहमियों के कारण बिगड़ी होती तो शायद संभल जाती, लेकिन हमारे रिश्ते में धोखा और   झूठ भी शामिल हो गए थे. कमरे में जा कर लेट गई और रोतेरोते कब सो गई पता नहीं चला.

सुबह फिर बाहर के दरवाजे के खुलने की आवाज से आंख खुली. ताला कुछ सख्त लगता है. कमरे से बाहर आई तो नील खानेपीने का सामान ले कर आया था. चेहरे पर वही उस की चिरपरिचित मुसकान. कितने भी गुस्से में हो बहुत जल्दी सामान्य हो जाता है, मैं बातों को मन में रख कर अपना भी दिमाग खराब कर लेती हूं और दूसरों से भी चिढ़ कर बात करने लगती हूं.

‘‘नीलू, आज गरमगरम कौफी पीते हैं… नीचे कुछ खानेपीने की दुकानें खुल गई हैं,’’ कह मैं जल्दी से मंजन कर आई. फिर हम कल की तरह बालकनी में फर्श पर बैठ कर नाश्ता करने लगे.

नील आसमान की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘यहां से

सुबहशाम आसमान की छटा कितनी निराली दिखती है. अद्भुत नजारा है. अगर हम साथ रहते तो कितना अच्छा लगता. रोज यहां बैठ कर बातें करते.’’

कह तो सही रहा था, लेकिन जो नहीं हो सकता मैं उस के बारे में बात नहीं करना चाहती. नाश्ते में एक पेस्ट्री भी रखी थी. हम अकसर छोटी से छोटी खुशी सैलिब्रेट करने के लिए मीठे में एक पेस्ट्री ले आते थे, दोनों आधीआधी खा लेते थे.

‘‘यह पेस्ट्री किस खुशी में?’’

‘‘याद है आज ही के दिन हमें मिले 4 महीने हुए थे और तुम ने मेरे साथ डेट पर जाना स्वीकार कर लिया था.’’

‘‘तुम भी कमाल करते हो न जाने कैसी छोटीछोटी बातें याद रख लेते हो. वह डेटवेट नहीं थी. कालेज कैंटीन में बैठ कर कौफी पी थी बस.’’

‘‘केवल तुम से संबंधित बातें ही याद रख पाता हूं. कैंटीन में उस दिन साथ बैठ कर कौफी पीना एक महत्त्वपूर्ण कदम था. जब तुम पहले दिन कालेज आई थी तो हिरेन और मेरी तुम पर एकसाथ नजर पड़ी थी. दोनों के मुंह से निकला था कि वाह, कितनी खूबसूरत लड़की है. हम दोनों के दिल पर तुम ने एकसाथ दस्तक दी थी. हम ने निश्चय किया कि हम दोनों तुम्हें लाइन मारेंगे और जिस की तरफ तुम्हारा   झुकाव होगा, दूसरा रास्ते से हट जाएगा. उस दिन कैंटीन में कौफी पीते हुए यह खामोश ऐलान था कि तुम मेरी गर्लफ्रैंड हो.’’

मु  झे ये सब नहीं पता था, हिरेन ने शुरू में मु  झे प्रभावित करने की कोशिश तो की थी. नील गुलाब देता तो वह गुलदस्ता लाता. वह पैसे वाले घर से था, इसलिए महंगे तोहफे देता था, लेकिन मु  झे नील पहली नजर में ही भा गया था. उस के हंसमुख व्यवहार और केयरिंग ऐटिट्यूड के आगे सब फीका था. धीरेधीरे हम दोनों सम  झ गए थे कि हमारा एकदूसरे के बिना गुजारा नहीं और हमारे परिवार को हमारा साथ गवारा नहीं.

नील के ब्राह्मण परिवार को मेरे खानपान से दिक्कत थी तो मेरे मातापिता को नील की आर्थिक स्थिति खल रही थी. वैसे मेरे परिवार के पास भी कुछ खास नहीं था, लेकिन पिताजी को लगता अपनी बहनों की तरह मैं भी अपनी खूबसूरती के बल पर पैसे वाले घर में स्थान बना सकती हूं.

स्नातक करते ही हम दोनों ने शादी की और जो नौकरी मिली पकड़ ली. फिर किराए का घर ढूंढ़ना शुरू किया. क्व10-12 हजार से कम का कोई अच्छा मकान नहीं मिल रहा था. बहुत धक्के खा कर 2 कमरों का प्लैट क्व7 हजार किराए पर मिला, वह भी बस कामचलाऊ था. तब हम ने निर्णय लिया आगे सोचसम  झ कर जीवन की राह पर चलेंगे. पहले कुछ पैसे जमा करेंगे. अपना स्वयं का घर नहीं बन जाता तब तक परिवार नहीं बढ़ाएंगे.

शुरू की हमारी जिंदगी बड़ी खुशहाल रही, दोनों 6 बजे तक घर आ जाते. फिर बहुत बातें करते और सपने देखते. किराया देने के बाद अधिक नहीं बचता था, लेकिन एकदूसरे के साथ मस्त थे. फिर नील को लगा कुछ और पैसे कमाने के लिए ट्यूशन पकड़ लेनी चाहिए और मु  झे लगा पदोन्नति और अच्छे वेतन के लिए एम. कौम. कर लेना चाहिए. बस हम दोनों दौड़ में शामिल हो गए, एक बेहतरीन भविष्य की कामना में. इतने थके रहने लगे कि एकदूसरे के लिए समय नहीं होता. बस   झुं  झलाहट रहने लगी.

इस बीच नील का मन सीए की पढ़ाई करने का भी करता बीचबीच में. वह बहुत होशियार है. मु  झे कई बार लगता इतनी जल्दी शादी कर के कहीं पछता तो नहीं रहा. वह आगे पढ़ कर बहुत कुछ कर सकता था.

इस बीच नील के पिताजी का देहांत हुआ तो उस के बड़े भाई ने घर बेचने का निर्णय ले लिया. घर खस्ता हालत में था, फिर भाई को पैसे चाहिए थे फ्लैट खरीदने के लिए. वह दूसरे शहर में रहता था. नील की माताजी मेरे कारण हमारे साथ नहीं रहना चाहती थीं. मकान बेच कर जो रकम मिली उस के

3 हिस्से हुए. 2 हिस्से माताजी व भाई साहब के साथ चले गए. अपने हिस्से से हम ने भी फ्लैट बुक करा दिया. हमारी मुसीबतें और बढ़ गईं. जहां रहते थे उस का किराया, फ्लैट की किश्तें, फिर जिंदा रहने के लिए रोटी और कपड़ा भी जरूरी था. अब हमारे बीच खीज भी रहने लगी. ऐसा नहीं था हम हमेशा एकदूसरे से सड़े रहते थे. जब किसी का जन्मदिन या छुट्टी होती तो प्रेम भी खूब लुटाते, लेकिन अकसर एकदूसरे से बचते या चिढ़ कर बात करते.

मजबूरन मु  झे नौकरी भी छोड़नी पड़ी. वहां का माहौल बरदाश्त के बाहर हो गया था. नील को यह बिलकुल अच्छा नहीं लगा. लेकिन मेरी परेशानी सम  झते हुए कुछ बोला नहीं. उन्हीं दिनों हिरेन से फिर मुलाकात हुई. वह सीए कर चुका था और अपने पिता की फर्म में काम करता था. परेशान देख जब उस ने कारण पूछा तो पुराने दोस्त के सामने बाढ़ के पानी की तरह सारा उदगार तीव्रता से उमड़ पड़ा. उस ने तुरंत अपनी फर्म में बहुत अच्छे वेतन के साथ नौकरी का प्रस्ताव दे दिया और मैं ने सहर्ष स्वीकार भी कर लिया. नील को यह बात भी अच्छी नहीं लगी, लेकिन इस बार वह चुप नहीं रहा.   झगड़ा किया और बहुत कुछ बोल गया.

उस समय सम  झ नहीं सकी थी नील के आक्रोश का कारण, लेकिन आज सम  झ गई. उस के स्वाभिमान को ठेस पहुंची थी. अब हमारे बीच बोलचाल खत्म हो गई थी. मैं कुछ भी बोलने से डरती कि वह बखेड़ा न खड़ा कर दे. वह सामने पड़ते ही मुंह फेर कर इधरउधर हो जाता.

हिरेन के पास दिल्ली के बाहर कई दूसरे शहरों का भी काम था. वह अकसर बाहर जाता रहता था. मु  झे नौकरी करते हुए अधिक समय नहीं हुआ था, फिर भी मेरा नाम लखनऊ जाने वाली टीम में शामिल था.

जब मैं ने नील को बताया कि मुझे 5 दिनों के लिए लखनऊ जाना है तो वह बड़बड़ाने लगा. यह मेरे लिए बड़ी परेशानी की बात हो गई थी कि पति का मिजाज देखूं या नौकरी. मेरा मन बड़ा खिन्न सा रहता. उस से बात करने का भी मन नहीं करता.

जाने से 2 दिन पहले निर्मलाजी ने बताया मुझे लखनऊ

नहीं शिमला जाना होगा. वहां जो टीम औडिट करने गई है उस के एक सदस्य की तबीयत खराब हो गई है. मु  झे क्या फर्क पड़ता था फिर कहीं भी जाना हो. नील को बताने का मन नहीं हुआ. इसलिए कि फिर दोबारा उस की बड़बड़ शुरू हो जाएगी. अच्छा हुआ नहीं बताया. मु  झे नील का वह रंग देखने को मिला जिस पर मु  झे अभी तक विश्वास नहीं हो रहा है.

‘‘मैं जब 5 दिनों के लिए बाहर गई थी 2 महीने पहले तो क्या तुम शिमला गए थे?’’

नील आश्चर्य से, ‘‘हां, लेकिन तु  झे कैसे पता?’’

‘‘मैं भी तब शिमला में थी और मैं ने तुम्हें देखा था.’’

‘‘तुम तो लखनऊ जाने वाली थी और अगर शिमला गईर् थी तो बताया क्यों नहीं? साथ में घूमते बड़ा मजा आता.’’

‘‘अच्छा और जिस के साथ घूमने का कार्यक्रम बना कर गए थे उस बेचारी को म  झधार में छोड़ देते?’’

नील असमंजस से देखते हुए बोला, ‘‘तुम क्या बोल रही हो मु  झे नहीं पता… राहुल और सौरभ बहुत दिनों से कह रहे थे कहीं घूमने चलते हैं… मैं बस टालता जा रहा था. जब तुम जा रही थी तो मैं ने उन्हें कार्यक्रम बनाने के लिए हां कह दी.’’

‘‘रहने दो… तुम   झूठ बोल रहे हो, तुम वहां काम्या के साथ रंगरलियां मनाने गए थे.’’

नील आश्चर्य से बोला, ‘‘कौन काम्या? तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, लड़ने के बहाने ढूंढ़ती हो. अलग होना चाहती हो… हिरेन का साथ चाहती हो… ठीक है, पर गलत इलजाम मत लगाओ. अब मैं   झूठ क्यों बोलूंगा जब हम अलग हो रहे हैं… वैसे भी मैं   झूठ नहीं बोलता हूं.’’

‘‘बहुत अच्छे, तुम हिरेन को ले कर मु  झ पर कोई भी इलजाम लगाओ वह ठीक है.’’

‘‘तुम हिरेन के लिए क्या महसूस करती हो मैं नहीं जानता, लेकिन हिरेन के दिल में तुम्हारे लिए क्या है मैं सम  झता हूं… मेरे लिए तुम क्या हो तुम नहीं जानती हो, तुम मेरी जिंदगी की धुरी हो, सबकुछ मेरा तुम्हारे इर्दगिर्द घूमता है.’’

उस की आंखें और भी बहुत कुछ कहना चाहती थीं, लेकिन उस की बात सुन कर मेरी आंखों में आंसू आ गए. उस की इस तरह की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर मैं मीरा की तरह उसे कृष्ण मान कर उस की दीवानी हो जाती थी.

जब मैं शिमला जाने वाले प्लेन में सवार हुई, बहुत उदास थी. पहली बार 5 दिनों के

लिए नील से अलग हो रही थी और उस ने केवल बाय कह कर मुंह फेर लिया. शुरू में हम औफिस के लिए भी जब निकलते थे तो ऐसा लगता

7-8 घंटे कैसे एकदूसरे के बिना रहेंगे, बहुत देर तक एकदूसरे के गले लगे रहते. प्लेन में मेरी बगल वाली सीट पर बैठी लड़की बहुत उत्साहित थी. कुछ न कुछ बोले जा रही थी. मु  झे उस की आवाज से बोरियत हो रही थी.   झल्ला कर मैं ने पूछा, ‘‘पहली बार प्लेन में बैठी हो या पहली बार शिमला जा रही हो?’’

वह शरमाते हुए बोली, ‘‘पहली बार अपने प्रेमी से इस तरह मिलने जा रही हूं. वह शादीशुदा है… जब तक तलाक नहीं हो जाता हमें इसी तरह छिपछिप कर मिलना पड़ेगा. तलाक मिलते ही हम शादी कर लेंगे.’’

मेरी उस की प्रेम कहानी में कोई दिलचस्पी नहीं थी. मैं आंखें बंद कर सिर टिका कर सोने की कोशिश करने करने लगी. लेकिन जब नाश्ता आया तो यह नाटक नहीं चला और वह दोबारा शुरू हो गई. उस के औफिस में ही काम करता था और उस के अनुसार दिखने में बहुत मस्त था. लेकिन बेचारा दुखी था. बीवी   झगड़ालू थी. दोनों में बिलकुल नहीं बनती थी. उस लड़की की बकबक से बचने के लिए मैं कान में इयर फोन लगा कर बैठ गई.

उतरते समय वह कुछ परेशान लगी, बोली, ‘‘मैं पहली बार इस तरह अकेली यात्रा कर रही हूं मु  झे बहुत घबराहट हो रही है. अगर वे नहीं आए तो मैं क्या करूंगी. आप मु  झे प्लीज अपना फोन नंबर और नाम बता दो. अगर जरूरत पड़ी तो मैं आप से सहायता मांग लूंगी. मेरा नाम काम्या है. मैं सुगम लिमिटेड में काम करती हूं.’’

मु  झे ऐसे लोगों से चिढ़ होती है जो बेमतलब चिपकते हैं. मैं ने उस से परिचय मांगा था… बेमतलब उतावली हो रही थी अपने बारे में बताने को. लेकिन वह उस कंपनी में काम करती है, जिस में नील भी नौकरी करता है.

हिरेन मु  झे एयरपोर्ट पर लेने आया. देख कर बड़ा खुश हुआ. अच्छे होटल में ठहरने की व्यवस्था की थी. कमरे तक पहुंचा कर हिरेन बोला, ‘‘आज रविवार है. कल से काम करेंगे. तुम अभी आराम करो. जब उठो तो कौल करना. कहीं घूमने चलेंगे.’’

‘‘बाकी सब कहां हैं?’’

‘‘वे सब चले गए… उन का काम खत्म हो गया. अब बस मेरा और तुम्हारा काम रह गया है.’’

मैं चुपचाप कमरे में अपने फोन को हाथ में पकड़ कर बैठ गई. अगर नील का फोन आया यह पूछने के लिए कि मैं ठीक से पहुंच गई कि नहीं और मैं इधरउधर हुई तो बात नहीं हो पाएगी. अत: मैं शाम तक ऐसे ही बैठी रही पर उस का फोन नहीं आया.

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. खोला तो सामने हिरेन था.

‘‘यह क्या कपड़े भी नहीं बदले… जब से ऐसे ही बैठी हो. मैं इंतजार करता रहा तुम्हारे बुलाने का. तैयार हो जाओ हम बाहर घूमने चलते हैं वहीं कुछ खा कर आ जाएंगे,’’ वह बोला.

मैं बेमन सी हो गई और फिर सिरदर्द का बहाना बना कर जल्दी वापस आ कर कमरे में सो गई.

अगले दिन जिस होटल में ठहरे थे वहीं का औडिट करना था, इसलिए सुबह से शाम तक काम करते रहे. शाम को हिरेन फिर घूमने की जिद करने लगा. अकेले रोज उस के साथ इस तरह घूमना मु  झे ठीक नहीं लग रहा था. लेकिन क्या करती.

घूमतेघूमते काम्या दिख गई. अकेली थी. फिर चिपक गई. उस दिन मु  झे उस का साथ बुरा नहीं लगा. हिरेन से उस का परिचय करा कर हम इधरउधर की बातें करने लगे. काम्या ने बताया कि उस का बौयफ्रैंड कल आने वाला था सड़क मार्ग से पर गाड़ी खराब हो गई तो बीच में कहीं रुकना पड़ा. अब रात तक आएगा. वह अकेली थी. हमारे साथ घूमने लगी, हिरेन बोर हो रहा था, लेकिन मु  झे क्या.

अगले दिन हिरेन जिद करने लगा कि कुछ खरीदारी करते हैं. मैं अधिकतर जींस पहनती हूं तो मु  झे शर्ट, टीशर्ट की दुकान पर ले गया. काम्या वहां पुरुषों के विभाग में शर्ट देखने में व्यस्त थी. उस ने हमें नहीं देखा. बड़ी अजीब फंकी सी शर्ट देख रही थी. खैर, मैं ने नील के लिए एक चैकदार शर्ट खरीदी और बाहर जाने लगी तो काम्या से टकरा गई.

काम्या ने अपनी ली हुई शर्ट दिखाते हुए पूछा, ‘‘यह कैसी शर्ट है?’’

शर्ट चटक औरेंज रंग की थी. मैं व्यक्तिगत तौर पर ऐसी शर्ट पसंद नहीं करती. लेकिन मैं ने उस से कहा अच्छी है और आगे बढ़ गई.

नील की याद इतनी सता रही थी कि बरदाश्त नहीं हो रहा था. आखिर मैं ने फोन किया, लेकिन संपर्क नहीं हो सका.

अगले दिन हमारा काम खत्म हो गया. लेकिन हिरेन ने जानबू  झ कर एक

दिन अधिक रखा था आसपास घूमने का. मु  झे जान कर बड़ी बोरियत हुई. मेरा बिलकुल मन नहीं था एक भी दिन और रुकने का.

जब घर पहुंची तो नील घर पर नहीं था, सोचा उस की शर्ट निकाल कर पहन लेती हूं. मैं ऐसा अकसर करती जब भी उस की नजदीकी का एहसास करना होता था. अलमारी खोलते ही सामने औरेंज रंग की शर्ट दिखी. हाथ में ले कर देखा तो यह वही शर्ट थी जो काम्या ने अपने बौयफ्रैंड के लिए खरीदी थी. अब कहनेसुनने को कुछ नहीं बचा था. स्थिति एकदम साफ थी. एक कागज पर संदेश लिखा:

‘‘मैं तुम्हें छोड़ कर जा रही हूं. अब हमारे रिश्ते में ऐसा कुछ नहीं बचा कि हम साथ रहें,’’ मैं किसी वकील से बात कर के आगे सहेली के घर रहने आ गई.

उस के बाद नील के बहुत फोन आए, लेकिन मैं ने फोन नहीं उठाया. जानती थी उस की आवाज सुन कर रो पड़ूंगी और कमजोर पड़ जाऊंगी. 17 महीनों से एक जिंदा लाश की तरह घूम रही हूं. हिरेन ने बहुत मदद की, दाद देनी पड़ेगी बंदा जितना मेरे साथ धैर्य से पेश आ रहा है कोई नहीं आ सकता. वकील से भी उस ने जोर दे कर समय लिया वरना मैं तो टालती जा रही थी.

नील ने जब मेरा हाथ पकड़ कर दबाया तो मैं अतीत से बाहर निकली.

‘‘ऐसा एकदम से क्या हुआ कि तुम घर छोड़ कर चली गई? कारण जानने के लिए मैं पागल हो गया था… तुम्हारे औफिस के इतने चक्कर लगाए, लेकिन किसी ने अंदर नहीं घुसने दिया. तुम कहां रहने चली गई मैं नहीं जान सका. तुम मेरा फोन नहीं उठाती थी.’’

मैं आहत स्वर में बोली, ‘‘बनो मत, तुम शिमला में काम्या के साथ थे. बस मु  झ से तलाक का इंतजार कर रहे हो उस से शादी करने के लिए.’’

‘‘मु  झे नहीं मालूम तुम किस काम्या की बात कर रही हो… मैं तो बस एक काम्या को जानता हूं जो मेरे औफिस में काम करती है और मु  झे बिलकुल पसंद नहीं है. हर समय मेरे पीछे पड़ी रहती है. मैं शिमला अपने दोस्तों निखिल और सोमेश के साथ गया था… वे बहुत समय से पीछे पड़े थे, लेकिन मैं टाल जाता था. जब तुम ने बताया तुम बाहर जा रही हो तो तुम्हारे बिना मैं भी यहां रह कर क्या करता. मेरे हां कहते ही दोनों ने शिमला का कार्यक्रम बना लिया.’’

‘‘तुम सच छिपाने की कोशिश मत करो. काम्या ने तुम्हें औरेंज रंग की शर्ट तोहफे में दी थी.’’

‘‘तुम पागल हो गई हो. मैं उस बददिमाग लड़की से तोहफा क्यों लूंगा भला? वह शर्ट मैं ने स्वयं खरीदी थी तुम्हें चिढ़ाने के लिए. मु  झे मालूम था उस का रंग और प्रिंट देख कर तुम कितना गुस्सा खाओगी.’’

मैं उठ कर अपने कमरे में चली गई. अब यहां रुकने से कोई लाभ नहीं, पुरानी यादों से बचने

आई थी, लेकिन फिर उसी भंवर में फंस गई. नील को भी यहीं आना था, उस को छोड़ कर जाने का मन नहीं कर रहा था. 2 दिन ही सही, फिर पता नहीं जिंदगी में कभी मिलें न मिलें.

तभी बाहर का दरवाजा खोलने की आवाज आई. उसे मेरी परवाह नहीं लगता है चला गया. जो थोड़ीबहुत उम्मीद थी उसे भी खत्म कर के ही दम लेगा. मैं थोड़ी देर बाद नहाने चली गई, जब बाहर आई तो नील कमरे में मेरा इंतजार कर रहा था.

‘‘तुम एकदम से नहीं दिखाई दी तो मु  झे लगा तुम गुस्सा हो कर चली गई. देखो आज छोटी दीवाली है. मैं कुछ लडि़यां, दीपक और रंगोली के रंग लाया हूं. आखिरी ही सही हम एक बार इस नए घर में पतिपत्नी का नाटक कर के दीवाली मनाते हैं.’’

फिर उस की नजर मु  झ पर ठहर गई. हाथ का सामान नीचे रखते हुए बोला, ‘‘तू सही कहती है मैं तुम्हारी देह देख कर पागल हो जाता हूं.’’

फिर वह एकदम मेरे करीब आ कर मु  झे बांहों में कस कर किस करने लगा. कायदे से मु  झे उसे धक्का दे कर अपने से अलग कर देना चाहिए था, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकी. कितनी संतुष्टि मिल रही थी उस की नजदीकी से… तन और मन कितने बेचैन थे… तृप्त हो गए.

वह हांफ रहा था, होंठों को अलग करते हुए बोला, ‘‘शादी के इतने साल बाद भी इतनी बेचैनी, कैसे रह सकेंगे एकदूसरे के बिना? यार एक अनजान लड़की ने क्या कह दिया तूने सच मान लिया. मु  झे देखा तूने उस के साथ कभी और वह शर्ट मैं ने स्वयं खरीदी थी. मैं तु  झे रसीद भी दिखा सकता हूं.’’

मैं आहिस्ता से उस से अलग होते हुए सोच रही थी कह तो यह सही रहा है. मैं ने अपना फोन खोल कर देखा हिरेन की कई कौल्स आई हुई थीं.

मेरी सहेली का संदेश था, ‘‘कहां हो यार तुम्हारा बौस पागल हो रहा है.’’

कमाल है हिरेन को क्या परेशानी है… 2 दिन की छुट्टी है. मैं कहीं भी जाऊं उसे क्या… मेरे मन में न जाने क्या आया कि मैं ने निर्मला को फोन मिलाया.

वह बेरुखी से बोली, ‘‘हैलो, बोलो क्या बात है?’’

‘‘कुछ नहीं निर्मलाजी बस दीवाली की शुभकामनाएं देने के लिए फोन मिलाया था.’’

उन की आवाज एकदम बदल गई, ‘‘ओह, अच्छाअच्छा, आप को भी बहुतबहुत शुभकामनाएं. कल पार्टी में नहीं शामिल हुई… हिरेन सर का मूड बड़ा खराब रहा.’’

सुन कर कुछ अजीब लगा. बोली, ‘‘बस तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी. इसलिए शोरशराबे से दूर अपनी मम्मी से मिलने आ गई थी. आप ने इतने कम नोटिस पर शिमला जाने का टिकट करवा दिया, आप भी कमाल हो.’’

‘‘इस में कमाल क्या, हमारी ट्रैवल एजेंट्स से सांठगांठ रहती है, 2 टिकट ही तो करवाए थे. उस में कोई दिक्कत नहीं होती, अधिक हो तो थोड़ी परेशानी हो जाती है.’’

‘‘2 टिकट? लेकिन मैं तो अकेले गईर् थी?’’

‘‘तुम्हारी बगल में काम्या बैठ कर गई थी. उस का टिकट भी मैं ने ही करवाया था हिरेन सर के कहने पर. वह सर की ममेरी बहन है… उस ने तुम्हें बताया नहीं?’’

‘‘मैं इतनी थकी हुई थी कि प्लेन में बैठते ही नींद आ गई. इस कारण हमारी खास बात नहीं हुई,’’ फिर थोड़ी देर इधरउधर की बातें

कर के मैं ने फोन काट दिया.

नील मेरे निकट आते हुए बोला, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘हिरेन और काम्या भाईबहन हैं और शिमला में ऐसे नाटक कर रहे थे मानो एकदूसरे को जानते तक नहीं हैं.’’

यह दोनों की चाल थी… शक का बीज बोया. नील तुम्हें और काम्या मु  झे पाना चाहती थी… शिमला में वह मु  झ पर नजर रख रही होगी. जैसे ही मैं ने वह शर्ट खरीदी उस ने भी वैसी एक और खरीद ली होगी. मैं अभी हिरेन के घर जा कर उस की ऐसी धुनाई करूंगा कि साला आगे से मेरी बीवी की तरफ आंख उठा कर देखने की भी हिम्मत नहीं करेगा.’’

‘‘रहने दो नील हमारे रिश्ते में दरार पड़ गई थी तभी दूसरों को सेंध लगाने का मौका मिला,’’ मैं उस के एकदम करीब जा कर बोली, ‘‘मैं आज ही हिरेन की नौकरी से इस्तीफा दे कर कहीं और काम ढूंढ़ लूंगी… अपने बीच किसी तीसरे को नहीं आने देंगे,’’ मु  झे लगा मेरे दिल का अंधेरा छंट गया है और अब हम रात को मिल कर दीए सजाएंगे असली पतिपत्नी की तरह.

उपहार: क्या मोहिनी का दिल जीत पाया सत्या

लेकिन मोहिनी थी कि उसे एक भी तोहफा न पसंद आता. आखिर में जब सत्या की मेहनत की कमाई से खरीदे छाते को भी नापसंद कर के मोहिनी ने फेंका तो…

‘‘सिर्फ एक बार, प्लीज…’’

‘‘ऊं…हूं…’’

‘‘मोहिनी, जानती हो मेरे दिल की धड़कनें क्या कहती हैं? लव…लव… लेकिन तुम, लगता है मुझे जीतेजी ही मार डालोगी. मेरे साथ समुद्र किनारे चलते हुए या फिर म्यूजियम देखते समय एकांत के किसी कोने में तुम्हारा स्पर्श करते ही तुम सिहर कर धीमे से मेरा हाथ हटा देती हो. एक बार थिएटर में…’’

‘‘सत्या प्लीज…’’

‘‘मैं ने ऐसी कौन सी अनहोनी बात कह दी. मैं तो केवल इतना चाहता हूं कि तुम एक बार, सिर्फ एक बार ‘आई लव यू’ कह दो. अच्छा यह बताओ कि तुम मुझे प्यार करती हो या नहीं?’’

‘‘नहीं जानती.’’

‘‘यह भी क्या जवाब हुआ भला? हम दोनों एक ही बिरादरी के हैं. हैसियत भी एक जैसी ही है. तुम्हारी और मेरी मां इस रिश्ते के लिए मना भी नहीं करेंगी. हां, तुम मना कर दोगी, दिल तोड़ दोगी, तो मैं…तो मर जाऊंगा, मोहिनी.’’

‘‘मुझे एक छाता चाहिए सत्या. धूप में, बारिश में, बाहर जाते समय काफी तकलीफ होती है. ला दोगे न?’’

‘‘बातों का रुख मत बदलो. छाता दिला दूं तो ‘आई लव यू’ कह दोगी न?’’

मोहिनी के जिद्दी स्वभाव के बारे में सोच कर सत्या तिलमिला उठा पर वह दिल के हाथों मजबूर था. मोहिनी के बिना वह अपनी जिंदगी सोच ही नहीं सकता था. लगा, मोहिनी न मिली तो दिल के टुकड़ेटुकड़े हो जाएंगे.

सत्या ने पहली बार जब मोहिनी को देखा तो उसे दिल में तितलियों के पंखों की फड़फड़ाहट महसूस हुई थी. उस की बड़ीबड़ी आंखें, सीधी नाक, ठुड्डी पर छोटा सा तिल, नमी लिए सुर्ख गुलाबी होंठ, लगा मोहिनी की खूबसूरती का बयान करने के लिए उस के पास शब्दों की कमी है.

मोहिनी से पहली मुलाकात सत्या की किसी इंटरव्यू देने के दौरान हुई थी. मिक्सी कंपनी में सेल्समैन व सेल्स गर्ल की आवश्यकता थी. वहां दोनों को नौकरी नहीं मिली थी.

कुछ दिनों बाद ही एक दूसरी कंपनी के साक्षात्कार के समय उस ने दोबारा मोहिनी को देखा था. गुलाबी सलवार कमीज में वह गजब की लग रही थी. कहीं यह वो तो नहीं? ओफ…वही तो है. उस के दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं.

मोहिनी ने भी उसे देखा.

‘बेस्ट आफ लक,’ सत्या ने कहा.

उस की आंखें चमक उठीं. गाल सुर्ख गुलाबी हो उठे.

‘थैंक यू,’ मोहिनी के होंठों से ये दो शब्द फूल बन कर गिरे थे.

यद्यपि वहां की नौैकरी को वह खुद न पा सका पर मोहिनी पा गई. माइक्रोओवन बेचने वाली कंपनी… प्रदर्शनी में जा कर लोगों को ओवन की खूबियों से परिचित करवा कर उन्हें ओवन खरीदने के लिए प्रेरित करने का काम था.

सत्या ने नौकरी मिलने की खुशी में मोहिनी को आइसक्रीम पार्टी दे डाली. मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता गया. छुट्टी के दिन व काम पूरा करने के बाद मोहिनी की शाम सत्या के साथ गुजरती. सत्या का हंसमुख चेहरा, मजाकिया बातें, दिल खोल कर हंसने का अंदाज मोहिनी को भा गया था. वह उस से सट कर चलती, उस की बातों में रस लेती. एक बार सिनेमाहाल में परदे पर रोमांस दृश्य देख विचलित हो कर अंधेरे में सत्या ने झट मोहिनी का चेहरा अपने हाथों में ले कर उस के होंठों पर अपने जलतेतड़पते होंठ रख दिए थे.

यह प्यार नहीं तो और क्या है? हां, यही प्यार है. सत्या के दिल ने कहा तो फिर ‘आई लव यू’ कहने में क्या हर्ज है?

पिछली बार मोहिनी के जन्म-दिन पर सत्या चाहता था कि वह अपने प्यार का इजहार करे. जन्मदिन पर मोहिनी ने उस से सूट मांगा. 500 रुपए का एक सूट उस ने दस दुकानों पर देखने के बाद पसंद किया था पर खरीदने के लिए उस के पास रुपए नहीं थे क्योंकि प्रथम श्रेणी में स्नातक होने के बाद भी वह बेरोजगार था.

घर के बड़े ट्रंक में एक पान डब्बी पड़ी थी. पिताजी की चांदी की… पुरानी…भीतर रह कर काली पड़ गई थी. मां को भनक तक लगे बिना सत्या ने चालाकी से उसे बेच दिया और मोहिनी के लिए सूट खरीदा.

आसमानी रंग के शिफान कपड़े पर कढ़ाई की गई थी. सुंदर बेलबूटे के साथ आगे की तरफ पंख फैलाया मोर. सत्या को भरोसा था कि इस उपहार को देख कर मोर की तरह मोहिनी का मन मयूर भी नाच उठेगा. उस से लिपट कर वह थैंक्यू कहेगी और ‘आई लव यू’ कह देगी. इन शब्दों को सुनने के लिए उस के कान कितने बेकरार थे पर उस के उपहार को देख कर मोहिनी के चेहरे पर कड़वाहट व झुंझलाहट के भाव उभरे थे.

‘यह क्या सत्या? इतना घटिया कपड़ा. और देखो तो…कितना पतला है, नाखून लगते ही फट जाएगा. यह देखो,’ कहते हुए उस ने अपने नाखून उस में गड़ाए और जोर दे कर खींचा तो कपड़ा फट गया. सत्या को लगा था यह कपड़ा नहीं, उस के पिताजी की पान डब्बी व मां के सेंटिमेंट दोनों तारतार हो गए हैं.

‘कितने का है?’ मोहिनी ने पूछा.

‘तुम्हें इस से क्या?’

‘रुपए कहां से मिले?’

‘बैंक से निकाले,’ सत्या ने सफाई से झूठ बोल दिया.

और इस बार छाता…उस ने मोलभाव किया. अपनेआप खुलने व बंद होने वाला छाता 2 सौ रुपए का था. दोस्तों से रुपए मिले नहीं. घर में जो कुछ ढंग की चीज नजर आई मां की आंखें बचा कर उसे बेच कर सिनेमा, ड्रामा, होटल के खर्चे में वह पहले से पैसे फूंक चुका था.

काश, एक नौकरी मिल गई होती. इस समय वह कितना खुश होता. मोहिनी के मांगने के पहले उस की आवश्यकताओं की वस्तुओं का अंबार लगा देता. चमचमाते जूते पर धूल न जमे, कपड़ों की क्रीज न बिगड़े, एक अदद सी नौकरी, बस, उसे और क्या चाहिए. पर वह तो मिल नहीं रही थी.

नौकरी तो दूर की बात, अब उस की प्रेमिका, उस की जिंदगी मोहिनी एक छाता मांग रही है. क्या करे? अचानक उसे रवींद्र का ध्यान आया जो बचपन में उस का सहपाठी था. बड़ा होने पर वह अपने पिता के साथ उन के प्रेस में काम करने लगा. बाद में पिता के सहयोग से उस ने प्रिंटिंग इंक बनाने की फैक्टरी लगा ली थी. बस, दिनरात उसी फैक्टरी में कोल्हू के बैल की तरह लगा रहता था.

एक दोस्त से पैसा मांगना सत्या को बुरा तो लग रहा था पर क्या करे दिल के हाथों मजबूर जो था.

‘‘उधार पैसे मांग रहे हो पर कैसे चुकाओगे? एक काम करो. ग्राइंडिंग मशीन के लिए आजकल मेरे पास कारीगर नहीं है. 10 दिन काम कर लो, 200 रुपए मिलेंगे. साथ ही कुछ सीख भी लोगे.’’

इंक बनाने के कारखाने में ग्राइंडिंग मशीन पर काम करने की बात सोच कर ही सत्या को घिन आने लगी थी. पर क्या करे? 200 रुपए तो चाहिए. किसी भी हाल में…और कोई चारा भी तो नहीं.

10 दिन के लिए वह जीजान से जुट गया. मशीनों की गड़गड़ाहट… पसीने से तरबतर…मैलेकुचैले कपड़े… थका देने वाली मेहनत, उस ने सबकुछ बरदाश्त किया. 10वें दिन उस ने छाता खरीदा. मोलभाव कर के उस ने 150 रुपए में ही उसे खरीद लिया. 50 रुपए बचे हैं, मोहिनी को ट्रीट भी दूंगा, उस की मनपसंद आइसक्रीम…उस ने सोचा.

तालाब के किनारे बना रेस्तरां. खुले में बैठे थे मोहिनी और सत्या. वह अपलक अपने प्यार को देख रहा था. हवा के झोंके मोहिनी की लटों को उलझा देते और वह उंगलियों से उन्हें संवार लेती. मोहिनी के चेहरे की खुशी, उस की सुंदरता का जादू, वातावरण की मादकता को बढ़ाए जा रही थी. सत्या का मन उसे भींच कर अपनी अतृप्त इच्छाओं को तृप्त कर लेने का था, किंतु बरबस उस ने अपनी कामनाओं को काबू में कर रखा था.

कटलेट…फिर मोहिनी की मनपसंद आइसक्रीम…सत्या ने बैग से छाता निकाला. वह मोहिनी की आंखों में चमक व चेहरे पर खुशी देखने के लिए लालायित था.

‘‘सत्या, यह क्या है?’’ मोहिनी ने पूछा.

‘‘तुम ने एक छाता मांगा था न…यह कंचन काया धूप में सांवली न पड़ जाए, बारिश में न भीगे, इसीलिए लाया हूं.’’ मोहिनी ने बटन दबाया. छाता खुला तो उस का चेहरा ढक गया. छाते के बारीक कपड़े से रोशनी छन कर भीतर आई.

‘‘छी…तुम्हें तो कुछ खरीदने की तमीज ही नहीं सत्या. देखो तो कितनी घटिया क्वालिटी का छाता है. इसे ले कर मैं कहीं जाऊं तो चार लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे? छाते को झल्लाहट के साथ बंद कर के पूरे वेग से उस ने तालाब की ओर उसे फेंका. छाता नाव से टकरा कर पानी में डूब गया.’’

सत्या उसे भौंचक हो कर देखता रहा. क्षण भर…वह खड़ा हुआ, कुरसी ढकेल कर दौड़ पड़ा. सीढि़यां उतर कर नाव के समीप गया. नाव को हटा कर उस ने पानी में हाथ डाल कर टटोला. छाता पूरी तरह डूब गया था. हाथपैर से टटोल कर थोड़ी देर की मशक्कत के बाद वह उसे ले आया. उस के चेहरे पर क्रोध व निराशा पसरी हुई थी.

‘‘मोहिनी, इस छाते को खरीदने के लिए 10 दिन…पूरे 10 दिन मैं ने खूनपसीना एक किया है, हाथपैर गंदे किए हैं, इंक फैक्टरी में काम सीखा है. सोच रहा था कुछ दिनों में रुपए का जुगाड़ कर के क्यों न एक छोटी सी इंक फैक्टरी मैं भी खोल लूं. कितने अरमानों से इसे खरीद कर लाया था. तुम ने मेरी मेहनत को, मेरे अरमानों को बेकार समझ कर फेंक दिया. आई एम सौरी…वेरीवेरी सौरी मोहिनी…जिसे पैसों का महत्त्व नहीं मालूम ऐसी मूर्ख लड़की को मैं ने चाहा. लानत है मुझ पर…गुड बाय…’’

‘‘एक मिनट सत्या,’’ मोहिनी ने कहा.

‘‘क्या है?’’ सत्या ने मुड़ कर पूछा तो उस की आवाज में कड़वाहट थी.

‘‘तुम ने सूट खरीद कर दिया था, उसे भी मैं ने फाड़ दिया था, तब तो तुम ने कुछ कहा नहीं. क्यों?’’

‘‘बात यह है कि…’’

‘‘…कि वह तुम्हारी मेहनत के पैसों से खरीदा हुआ नहीं था. मैं तुम्हारी मां से मिली थी. तुम मेहनत से डरते हो, यह मैं ने उन की बातों से जाना. 500 रुपए के सूट को मैं ने फाड़ा तब तो तुम ने कुछ नहीं कहा और अब इस छाते के लिए कीचड़ में भी उतर गए, जानते हो क्यों? क्योंकि यह तुम्हारी मेहनत की कमाई का है.’’

‘‘मैं इसी सत्या को देखना चाहती थी कि जो मेहनत से जी न चुराए, किसी भी काम को घटिया न समझे, मेहनत कर के कमाए और मेहनत की खाए?’’

मोहिनी उस के समीप गई. उस के हाथों से उस छाते को लिया और बोली, ‘‘सत्या, यह मेरे जीवन का एक कीमती तोहफा है. इस के सामने बाकी सब फीके हैं. अब तुम मुझ से नाराज तो नहीं हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘उस के समीप जा कर मोहिनी ने उसे गले लगाया.’’

‘‘उफ्, मेरे हाथपैर कीचड़ से सने हैं, मोहिनी.’’

‘‘कोई बात नहीं. एक चुंबन दोगे?’’

‘‘क्या?’’

‘‘आई लव यू सत्या.’’

सत्या के दिल में तितलियों के पंखों की फड़फड़ाहट का एहसास उसी तरह से हो रहा था जैसे उस ने पहली बार मोहिनी को देखने पर अपने दिल में महसूस किया था.

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