छद्म वेश : भाग 1 – कहानी मधुकर और रंजना की

लेखक – अर्विना

शाम धुंध में डूब चुकी थी. होटल की ड्यूटी खत्म कर तेजी से केमिस्ट की दुकान पर पहुंची. उसे देखते ही केमिस्ट सैनेटरी पैड को पेक करने लगा. रंजना ने उस से कहा कि इस की जगह मेंस्ट्रुअल कप दे दो. केमिस्ट ने एक पैकेट उस की तरफ बढ़ाया.

मधुकर सोच में पड़ गया कि यह युवक मेंस्ट्रुअल कप क्यों ले रहा है. ऐसा लगता तो नहीं कि शादी हो चुकी हो. शादी के बाद आदमियों की भी चालढाल बदल जाती है.

इस बात से बेखबर रंजना ने पैकेट अपने बैग में डाला और घर की तरफ कदम बढ़ा दिए. बीचबीच में रंजना अपने आजूबाजू देख लेती. सर्दियों की रात सड़क अकसर सुनसान हो जाती है. तभी रंजना को पीछे से पदचाप लगातार सुनाई दे रही थी, पर उस ने पीछे मुड़ कर देखना उचित नहीं समझा. उस ने अपनी चलने की रफ्तार बढ़ा दी. अब उस के पीछे ऐसा लग रहा था कि कई लोग चल रहे थे. दिल की धड़कन बढ़ गई थी. भय से चेहरा पीला पड़ गया था. घर का मोड़ आते ही वह मुड़ गई.

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अब रंजना को पदचाप सुनाई नहीं दे रही थी. यह सिलसिला कई दिनों से चल रहा था. यह पदचाप गली के मोड़ पर आते ही गायब हो जाती थी. घर में भी वह किसी से इस बात का जिक्र नहीं कर सकती. नौकरी का बहुत शौक था. घर की माली हालत अच्छी थी. वह तो बस शौकिया नौकरी कर रही थी. स्त्री स्वतंत्रता की पक्षधर थी, पर खुद को छद्म वेश में छुपा कर ही रखती थी. स्त्रीयोचित सजनेसंवरने की जगह वह पुरुष वेशभूषा में रहती. रात में लौटती तो होंठों पर लिपस्टिक और आईब्रो पेंसिल से रेखाएं बना लेती. अंतरंग वस्त्र टाइट कर के पहनती, ताकि स्त्रियोचित उभार दिखाई न दे. इस से रात में जब वह लौटती तो भय नहीं लगता था.

लेकिन कुछ दिनों से पीछा करती पदचापों ने उस के अंदर की स्त्री को सोचने पर मजबूर कर दिया. रंजना ने घर के गेट पर पहुंच कर अपने होंठ पर बनी नकली मूंछें टिशू पेपर से साफ कीं और नौर्मल हो कर घर में मां के साथ भोजन किया और सो गई.

होटल जाते हुए उस ने सोचा कि आज वह जरूर देखेगी कि कौन उस का पीछा करता है. रात में जब रंजना की ड्यूटी खत्म हुई तो बैग उठा कर घर की ओर चल दी. अभी वह कुछ ही दूर चली थी कि पीछे फिर से पदचाप सुनाई दी.

रंजना ने हिम्मत कर के पीछे देखा. घने कोहरे की वजह से उसे कुछ दिखाई नहीं दिया. एक धुंधला सा साया दिखाई दिया. जैसे ही वह पलटी, काले ओवर कोट में एक अनजान पुरुष उस के सामने खड़ा था.

यह देख रंजना को इतनी सर्दी में पसीना आ गया. शरीर कांपने लगा. आज लगा, स्त्री कितना भी पुरुष का छद्म वेश धारण कर ले, शारीरिक तौर पर तो वह स्त्री ही है. फिर भी रंजना ने हिम्मत बटोर कर कहा, ‘‘मेरा रास्ता छोड़ो, मुझे जाने दो.’’

‘‘मैं मधुकर. तुम्हारे होटल के करीब एक आईटी कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर हूं.’’

‘‘तुम इस होटल में काम करते हो. यह तो मैं जानता हूं.’’

‘‘तुम शादीशुदा हो क्या?’’

रंजना ने नहीं में गरदन हिलाई. वह जरूरत से ज्यादा डर गई. उस का बैग हाथ से छूट गया और सारा सामान बिखर गया.

रंजना अपना सामान जल्दीजल्दी समेटने लगी, लेकिन मधुकर के पैरों के पास पड़ा केमिस्ट के यहां से खरीदा मेंस्ट्रुअल कप उस की पोल खोल चुका था. मधुकर ने पैकेट चुपचाप उठा कर उस के हाथ में रख दिया.

‘‘तुम इस छद्म में क्यों रहती हो? मेरी इस बात का जवाब दे दो, मैं रास्ता छोड़ दूंगा.’’

‘‘रात की ड्यूटी होने की वजह से ये सब करना पड़ा. स्त्री होने के नाते हमेशा भय ही बना रहता. इस छद्म वेश में किसी का ध्यान मेरी ओर नहीं गया, लेकिन आप ने कैसे जाना?’’

‘‘रंजना, मैं ने तुम्हें केमिस्ट की दुकान पर पैकेट लेते देख लिया था.’’

‘‘ओह… तो ये बात है.’’

‘‘रंजना चलो, मैं तुम्हें गली तक छोड़ देता हूं.’’

दोनों खामोश साथसाथ चलते हुए गली तक आ गए. मधुकर एक बात का जवाब दो कि तुम ही कुछ दिनों से मेरा पीछा कर रहे हो.

रहस्यमयी लड़के का राज आज पता चल ही गया. हाहाहा… क्या बात है?

चलतेचलते बातोंबातों में मोड़ आ गया. मधुकर रंजना से विदा ले कर चला गया.

रंजना कुछ देर वहीं खड़ी रास्ते को निहारती रही. दिल की तेज होती धड़कनों ने रंजना को आज सुखद एहसास का अनुभव हुआ.

घर पहुंच कर मां को आज हुई घटना के बारे में बताया. मां कुछ चिंतित सी हो गईं.

सुबह एक नया ख्वाब ले कर रंजना की जिंदगी में आई. तैयार हो कर होटल जाते हुए रंजना बहुत खुश थी. मधुकर की याद में सारा दिन खोई  रही. मन भ्रमर की तरह उड़उड़ कर उस के पास चला जाता था.

ड्यूटी खत्म कर रंजना उठने को हुई, तभी एक कस्टमर के आ जाने से बिजी हो गई. घड़ी पर निगाह गई तो 8 बज चुके थे. रंजना बैग उठा कर निकली, तो मधुकर बाहर ही खड़ा था.

‘‘रंजना आज देर कैसे हो गई?’’

‘‘वो क्या है मधुकर, जैसे ही निकलने को हुई, तभी एक कस्टमर आ गया. फौर्मेलिटी पूरी कर के उसे रूम की चाबी सौंप कर ही निकल पाई हूं.’’

रंजना और मधुकर साथसाथ चलते हुए गली के मोड़ पर पहुंच मधुकर ने विदा ली और चला गया.

यह सिलसिला चलते हुए समय तो जैसे पंखों पर सवार हो उड़ता चला जा रहा था. दोनों को मिले कब 3 महीने बीत गए, पता ही नहीं चला. आज मधुकर ने शाम को डेट पर एक रेस्तरां में बुलाया था.

ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी रंजना खुद को पहचान नहीं पा रही थी. मां की साड़ी में लिपटी रंजना मेकअप किए किसी अप्सरा सी लग रही थी. मां ने देखा, तो कान के पीछे काला टीका लगा दिया और मुसकरा दीं.

‘‘मां, मैं अपने दोस्त मधुकर से मिलने जा रही हूं,’’ रंजना ने मां से कहा, तो मां पूछ बैठी, ‘‘क्या यह वही दोस्त है, जो हर रोज तुम्हें गली के मोड़ तक छोड़ कर जाता है?’’

‘‘हां मां ,ये वही हैं.’’

‘‘कभी उसे घर पर भी बुला लो. हम भी मिल लेंगे तुम्हारे दोस्त से.’’

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‘‘हां मां, मैं जल्दी ही मिलवाती हूं आप से,’’ कंधे पर बैग झुलाती हुई रंजना निकल पड़ी.

गली के नुक्कड पर मधुकर बाइक पर बैठा उस का इंतजार कर रहा था.

बाइक पर सवार हो रैस्टोरैंट पहुंच गए. मधुकर ने रैस्टोरैंट में टेबल पहले ही से बुक करा रखी थी.

रैस्टोरैंट में अंदर जा कर देखा तो कौर्नर टेबल पर सुंदर सा हार्ट शेप बैलून रैड रोज का गुलदस्ता मौजूद था.

‘‘मधुकर, तुम ने तो मुझे बड़ा वाला सरप्राइज दे दिया आज. मुझे तो बिलकुल भी याद नहीं था कि आज वैलेंटाइन डे है. नाइस अरैंजमैंट मधुकर…

‘‘आज की शाम तुम ने यादगार बना दी…’’

‘‘रंजना बैठो तो सही, खड़ीखड़ी मेरे बारे में कसीदे पढ़े जा रही हो, मुझे भी तो इजहारेहाल कहने दो…’’ मुसकराते हुए मधुकर ने कहा.

‘‘नोटी बौय… कहो, क्या कहना है?’’ हंसते हुए रंजना बोली.

मधुकर ने घुटनों के बल बैठ रंजना का हाथ थाम कर चूम लिया और दिल के आकार की हीरे की रिंग रंजना की उंगली में पहना दी.

‘‘अरे वाह… रिंग तो  बहुत सुंदर है,’’ अंगूठी देख रंजना ने कहा.

डिनर के बाद रंजना और मधुकर बाइक पर सवार हो घर की ओर चले जा रहे थे, सामने से एक बाइक पर 2 लड़के मुंह पर कपड़ा बांधे उन की बाइक के सामने आ गए. मधुकर को ब्रेक लगा कर अपनी बाइक रोकनी पड़ी.

लड़कों ने फब्तियां कसनी शुरू कर दीं और मोटरसाइकिल को उन की बाइक के चारों तरफ घुमाने लगे. उस समय सड़क भी सुनसान थी. वहां कोई मदद के लिए नहीं था. रंजना को अचानक अपनी लिपिस्टिक गन का खयाल आया. उस ने धीरे से बैग में हाथ डाला और गन चला दी.

गन के चलते ही नजदीक के थाने  में ब्लूटूथ के जरीए खबर मिल गई. थानेदार 5 सिपाहियों को ले कर निकल पड़े. कुछ ही देर में पुलिस के सायरन की आवाज सुनाई देने लगी.

लड़कों ने तुरतफुरत बैग छीनने की कोशिश की. मधुकर ने एक लड़के के गाल पर जोरदार चांटा जड़ दिया. इस छीनाझपटी में रंजना का हाथ छिल गया, खून रिसने लगा.

बैग कस कर पकड़े होने की वजह से बच गया.

सामने से पुलिस की गाड़ी  आती देख लड़के दूसरी दिशा में अपनी बाइक घुमा कर भाग निकलने की कोशिश करें, उस से पहले थानेदार ने उन्हें धरदबोचा और पकड़ कर गाड़ी में बैठा लिया.

थानेदार ने एक सिपाही को आदेश दिया कि इस लड़के की बाइक आप चला कर इस के घर पहुंचा दें. इस लड़के और लड़की को हम जीप से इन के घर छोड़ देते हैं.

रंजना और मधुकर जीप में सवार हो गए.

‘‘आप का क्या नाम है?’’ थानेदार ने अपना सवाल रंजना से किया.

‘‘मेरा नाम रंजना है. मैं एक होटल में रिसेप्शनिस्ट हूं. ये मेरे दोस्त मधुकर हैं. ये आईटी कंपनी में इंजीनियर के पद पर हैं.’’

‘‘रंजना, आप बहुत ही बहादुर हैं. आप ने सही समय पर अपनी लिपिस्टिक गन का इस्तेमाल किया है.’’

‘‘सर, रंजना वाकई बहुत हिम्मत वाली है.’’

थानेदार ने मधुकर से पूछा, ‘‘तुम भी अपने घर का पता बताओ.’’

‘‘सर, त्रिवेणी आवास विकास में डी 22 नंबर मकान है. उस से पहले ही मोड़ पर रंजना का घर है.’’

‘‘ओके मधुकर, वह तो पास ही में है.’’

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पुलिस की जीप रंजना के घर के सामने रुकी.

पुलिस की गाड़ी देख रंजना की मां घबरा गईं और रंजना के पापा को आवाज लगाई, ‘‘जल्दी आइए, रंजना पुलिस की गाड़ी से आई है.’’

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

छद्म वेश : कहानी मधुकर और रंजना की

वह क्यों बन गई कॉलगर्ल : उसे अपने शरीर बेचने पर कोई गिला नहीं

वह समय गुजारना मेरे लिए बङा ही अजीब और रोचक था. मैं फाइव स्टार होटल के एक कमरे में था और मेरे सामने एक बेइंतिहा खूबसूरत और आधुनिक लङकी बैठी थी. वह कौलगर्ल थी.

ब्लैक जींस और पिंक टौप में वह बेहद जंच रही थी. मैं ने उस पर एक भरपूर निगाह डाली.

उस ने अपने चेहरे से मास्क और स्टौल हटाए तो मैं उसे देखता ही रह गया. खुले बाल और हलके मेकअप में वह काफी आकर्षक लग रही थी. उस के वक्षस्थल काफी उन्नत थे और मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि वह गदराए हुस्न की मलिका थी.

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उस ने वी गले की टौप पहन रखी थी, जिस के अंदर से वक्ष मानो बाहर आने को उतावले हो रहे थे. मैं ने उसे पानी का गिलास पकङाया और चाय या कौफी की पेशकश की.

क्यों आती हैं इस धंधे में

यों मुझे पिछले कई सालों से कौलगर्ल्स के धंधे के बारे में जानने की जिज्ञासा थी. मैं अकसर यह सोचा करता था कि वे इस धंधे में आती क्यों हैं? वैसे आजकल तो कोरोना की वजह से इस धंधे में भी मंदी का दौर है मगर रसूखदारों के लिए आज भी कोरोना से ज्यादा मौजमस्ती जरूरी है और मौजमस्ती में सैक्स का मजा न हो तो सब बेकार.

खैर, मैं ने इज्जत से उस से पूछा,”क्या नाम है आप का?”

उस ने कहा,”सौम्या.”

मैं ने फिर पूछा,”यह असली नाम है?”

सौम्या ने कहा,”नहीं, पर असली नाम जान कर आप क्या करोगे? इस धंधे के कुछ उसूल होते हैं,” और वह हंस पङी.

हालांकि सौम्या से मेरी मुलाकात एक जानकार के माध्यम से हुई थी. उसी जानकार ने एक होटल में सौम्या से मेरी मुलाकात का समय तय किया था. उस ने मुझे बताया था कि सौम्या सुखीसंपन्न घर की आधुनिक युवती है और वह इंग्लिश भी बोलती है.

होटल के उस कमरे में सिर्फ मैं और वह युवती ही थे. मेरे सामने निहायत ही एक ऐसी युवती थी जिसे पाने के लिए कोई भी पुरूष एक तरह से टूट ही पङें मगर वह यह जान कर हैरान थी कि मैं उस से सिर्फ जानकारी चाहता हूं. मुझे उस के शरीर में कोई दिलचस्पी नहीं है.

जब वह राजी हो गई

थोड़ा नानुकुर के बाद वह अपने इस धंधे के बारे में बताने को राजी हो गई.

उस ने बताया,”मैं इस धंधे में पिछले 3 सालों से हूं. अब तो मुझे इस जिंदगी की आदत सी हो चली है. मेरे पास पैसा कमाने का इस से अच्छा जरीया और कोई नहीं दिखा. इस में पैसा तो है ही मौजमस्ती भी है.”

सौम्या आगे बताती है,”उस के अधिकतर ग्राहक पैसे वाले हैं, जो उस पर सैक्स के बदले खूब पैसा बरसाते हैं.”

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यह कह कर सौम्या चुप हो गई तो मैं ने फिर सवाल दाग दिए,”सौम्या, क्या तुम्हें इस में भय नहीं लगता? किसी अपरिचित के सामने जाने पर कैसा लगता है?”

पहले उसे डर लगता था

सौम्या कहती है,”इस धंधे में सतर्क हो कर काम करना पड़ता है. मगर हम नैटवर्क के जरीए काम करते हैं और हमेशा संपर्क में रहते हैं.”

सौम्या जब इस धंधे में आई थी तब उसे बहुत डर लगता था मगर अब वह एक पेशेवर की तरह हो गई थी. वह बताती है कि जब वह इस धंधे में आई थी तो सिर्फ वही नहीं, बल्कि अच्छेअच्छे घरों की लङकियांमहिलाएं भी बहुत थीं. उस ने यह भी बताया कि वह महीने में ₹80-90 हजार कमा लेती है, मगर चूंकि अभी कोरोना वायरस का डर है इसलिए आमदनी कम हो गई है.

उसे भरोसा है कि जल्दी ही सबकुछ समान्य हो जाएगा और वह पहले की तरह ही रूपए बना सकेगी.

दिल्ली में बड़ा नैटवर्क

वैसे देश में मुंबई के बाद दिल्ली ही एक ऐसी जगह है, जो कौलगर्ल के साथ रात बिताने के लिए हौटस्पौट जगह है. दिल्ली में तो यह हालत है कि यहां नौकरशाह, बिजनैसमैन, सत्ता के दलाल और फिक्सरों आदि के लिए खूबसूरत युवती के साथ रात गुजारने की आदत सी हो चुकी है.

यहां इस टाइप की कौलगर्ल्स के पास खूब पैसा है, वे फर्राटेदार इंग्लिश बोलती हैं और बहुतों ने तो अपना फ्लैट भी खरीद लिया है. वे कार भी चलाती हैं.

इन हाईफाई कौलगर्ल्स कोई पीङित और अपहरण की हुई नहीं होती हैं और न तो वे आम वेश्याओं जैसी भङकीली ड्रैस और मेकअप से पुती होती हैं. ये न तो रैडलाइट ऐरिया में रहती हैं न ही मैट्रो स्टैशनों, बिजली के खंभों के नीचे खङी हो कर ग्राहकों तलाश रही होती हैं. इन का लंबाचौङा नैटवर्क होता है, जो फाइव स्टार होटलों, फौर्महाउसों की मौजमस्ती में आसानी से घुलमिल जाती हैं.

ये सिंपल मेकअप में होती हैं, ब्रैंडेड कपङे पहनती हैं और हाथों में महंगे मोबाइल फोन रखती हैं. एकबारगी ये कुलीन घर की लगती हैं.

धंधे में खूब पैसा है

सौम्या बताती है,”इस धंधे में लङकियां जल्दी पैसा कमाने के लिए उतरती हैं. यह सही है कि कुछ 2-4 बार ऐसा करने के बाद इस धंधे से किनारा कर लेती हैं तो कुछ को इसी में मजा आता है.

“इस में पैसा भी है और मौजमस्ती भी. लगभग आएदिन कभी शिमला तो कभी मसूरी और कभी गोआ में वीकऐंड हो ही जाता है.”

वैसे इस धंधे में खतरा भी कम नहीं है. खासकर बिचौलिए या दलाल से, क्योंकि कभीकभी गलत किस्म का आदमी भी आ जाता है जिस के लिए नारी देह को भोगना होता है और वह नशे में जानवरों की तरह टूट पङता है. लेकिन अब अधिकतर लङकियां बिना दलाल के भी इस धंधे में हैं और महीने के ₹70-80 हजार कमा लेती हैं.

पुलिस का डर

कभीकभी पुलिस के छापों का खतरा रहता है मगर सौम्या ने बताया कि रसूखदारों के साथ होने से कोई खास दिक्कत नहीं होती.

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वैसे पुलिस के लिए भी देह व्यापार से जुङीं महिलाओं को पङकना और फिर उन्हें सजा दिलवाना आसान नहीं होता, क्योंकि पकङे जाने के बाद अकसर उन्हें कोर्ट से जमानत मिल जाती है और वे रिहा हो जाती हैं.

देह धंधे से जुङे अपराधियों में दिल्ली का कंवलजीत काफी कुख्यात रहा है. एक समय वह दिल्ली में इस धंधे का माफिया था. आज भी उस का नाम दिल्ली पुलिस की निगरानी सूची में है. पुलिस दबिश के बाद वह दिल्ली छोङ कर मुंबई भाग गया था.

सौम्या ने बताया कि आज वह जितना कमाती है उतना किसी कंपनी के बड़ेबङे अधिकारी भी शायद ही कमा पाते होंगे.

गलत तो है मगर…

सौम्या को पता है कि यह एक गलत धंधा है पर वह ठसके से कहती है,”यह मेरा देह है. मैं अपनी मरजी से कुछ भी कर सकती हूं. जब काफी पैसा बना लूंगी तब सोचूंगी कि आगे इसे जारी रखूं या बंद कर दूं?”

वह बताती है, “मुझे याद है जब मैं पूरी दिल्ली में नौकरी के लिए दरदर सिर फोङतीफिरती थी. एक जगह नौकरी भी की मगर 20-25 हजार की नौकरी से आजकल क्या होता है? मगर आज मेरे पास सबकुछ है…”

सही भी है, नारी देह पर अधिकार सिर्फ एक नारी को ही है. देह उस का है और वह इस देह से कमाना चाहती है, तो यह कानून भले ही इजाजत नहीं देता, समाज गलत मानता हो मगर सौम्या जैसी हजारों कौलगर्ल्स को इस से क्या लेनादेना? क्योंकि उन्हें पता है कि अच्छी नौकरी आसानी से मिल नहीं सकती और उस समाज की चिंता क्यों जो सदियों से औरतों पर जुल्म ही तो ढाए हैं फिर चाहे एक औरत को परंपरा पर दबाया जाता रहा हो या फिर धर्मकर्म के नाम पर डरा कर रखा जाता हो.

सौम्या ने अंतिम में बस इतना ही कहा,”आई होप कि मेरी इस मुलाकात को यहीं खत्म समझना. हां, सैक्स की इच्छा है तो मैं मना नहीं करूंगी.”

मैं ने जाते समय उस से हाथ मिलाया तो उस ने थैंक्स कहा और कमरे का दरवाजा खोल कर निकल गई.

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न्याय-अन्याय : निम्मी ने जब लांघी दरवाजे की दहलीज

न्याय-अन्याय : भाग 2 – निम्मी ने जब लांघी दरवाजे की दहलीज

लेखक – आरती लोहानी 

निम्मी अब बेफिक्र थी कि उसे मदद मिल जाएगी और वह धनी सेठ की रपट लिखा सकेगी.

शाम को देवेंद्र उस के पास आया, तो निम्मी ने सारी बात बताई और मदद मांगी.

‘‘तुम बिलकुल मत घबराओ. मैं तुम्हारी हर संभव मदद करूंगा,‘‘ पुलिस वाले ने कहा.

चाय पी कर जब देवेंद्र वहां से जाने लगा, तो अचानक बहुत तेज आंधी और बारिश होने लगी. आसमान से बिजली ऐसे कड़क रही थी, मानो सबकुछ खत्म कर के ही मानेगी. अब तो देवेंद्र को वहीं रुकना पड़ा.

छत पर सूख रहे कपड़े उतारने लिए निम्मी भागी, तो उस की साड़ी ही उड़ने लगी. देवेंद्र ने उस से कहा, ‘‘मैं ले आता हूं कपडे़. आप रहने दीजिए.‘‘

बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी. इधर देवेंद्र अपने पर काबू नहीं  कर पाया और जो उस की शिकायत सुनने आया था, उसी निम्मी को दबोच बैठा, जैसे शिकारी को कोई खास शिकार हाथ लगा हो.

लगभग आधे घंटे तक तेज की बारिश होती रही और पुलिस वाला एक लाचार को अपनी जिस्म की भूख मिटाने को मसलता रहा. उस के जाने के बाद निम्मी बदहवास सी इधरउधर घूम रही थी, पर घर की दीवारें भला उसे क्या सांत्वना देती.

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वह सोच रही थी कि क्या महिला का जिस्म इतना जरूरी है कि हर कोई अपना ईमान तक गिरवी रख दे. निम्मी मर जाना चाहती थी, पर जहर भी कहां से लाए इस तालाबंदी में. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था.

निम्मी ने अमर को फोन करना चाहा. जैसे ही उस ने मोबाइल हाथ में लिया, तो खुद से ही सवाल करने लगी, ‘क्या कहेगी निम्मी उस से… वह परदेश में क्या करेगा, कैसे मदद को आएगा?‘

उस के बाद निम्मी ने फोन रख दिया. उसे सहसा याद आया कि बीती सुबह एक ट्रेन यहां से गुजरी थी और उस ने सुना था कि श्रमिक ट्रेन इन दिनों चल रही है. उसे अब यही एक रास्ता दिखा. किसी तरह वह रात काट लेती है और तड़के उठ कर घर से चल देती है पास में ही पटरियों की ओर.

पौ फटने का समय था और निम्मी बदहवास सी जा रही थी. सामने से आता पुजारी उसे देख लेता है और उस का पीछा करता है.

पुजारी पीपल के पेड़ को जल दे कर आ रहा था. तभी वह देखता है कि निम्मी पटरी पर लेट गई और ट्रेन की आवाज उसे सुनाई दी.

पुजारी भाग कर उसे पटरी से खींच लेता है और समझाबुझा कर घर ले आता है.

‘‘ये क्या कर रही थीं तुम… क्या करोगी इस तरह मर कर. इतनी खूबसूरत हो तुम और मुझ जैसे यौवन के पुजारी पूरी उम्र तुम्हारी पूजा करने को तैयार हैं,‘‘ पुजारी उस से कहता है.

‘‘तो और क्या करूं इस जिस्म का… कैसे इसे संभालू,‘‘ कह कर निम्मी रोने लगती है.

‘‘जरूरत ही क्या है इसे सहेज कर रखने की… ऐसा सुंदर रूप तो आज तक नहीं देखा मैं ने,‘‘ मौका पा कर पुजारी उसे सांत्वना देने के बहाने से अपने समीप ले आता है. धीरेधीरे वह उस के नशे में डूब जाता है और उसे यह भी भान नहीं रहता कि वह उस की मदद को आया था.

इसी तरह एक पुजारी भी किसी न किसी वजह से वहां आनेजाने लगा. अब तो लगभग हर रोज कोई न कोई वहां आता ही था कि तालाबंदी खत्म होने का आदेश भी जारी हो गया.

अब अमर के आने की भी उम्मीद होने लगी. इधर निम्मी अमर की राह देख रही थी, उधर निम्मी के दीवाने दुखी हो रहे थे.

निम्मी की मजबूरी का खूब फायदा उठा चुके ये लोग अभी तृप्त नहीं हुए थे. अनूप तो सोचने लगा कि अमर घर आता ही नहीं तो अच्छा था, क्योंकि उसे निम्मी के शरीर की मादक खुशबू से अभी तक मन नहीं भरा था. उस के साथ बिताया हर पल उसे याद आ रहा था.

अनूप को निम्मी की मिन्नतें, रोना और याचना करना भी याद था. उस शाम जब निम्मी चीनी लेने घर से बाहर निकली, तो वह जबरन उस के साथ अंदर आ गया. निम्मी ने उस से घर से बाहर जाने को कहा, तो उस ने मना कर दिया.

निम्मी मदद के लिए चिल्लाने लगी, तो उस ने उस का मुंह बंद कर दरवाजे की अंदर से कुंडा लगा दी. निम्मी रोती रही, पर उस की मदद को भला कौन आता. पुलिस पर भरोसा भी कैसे करे. अनूप उसे अपनी हवस की आग में जला रहा था और वह रोए जा रही थी, तभी वहां से कश्यप मास्टर गुजर रहे थे, तो उन्होंने उस की चीख सुनी तो फौरन घर की ओर मुड़े.

‘‘क्या हुआ बेटी? क्यों चीख रही हो तुम? दरवाजा खोलो बेटी.‘‘

बेटी शब्द सुनते ही निम्मी को न जाने कैसी शक्ति आ गई और उस ने अनूप के बालों को खींच कर उस के अंग पर वार कर दिया.

अनूप दर्द से चीखने लगा और मौका पा कर निम्मी ने दरवाजा खोल दिया. सामने मास्टर कश्यप खड़े थे. उन्होंने अपना अंगोछा निम्मी को ओढ़ा दिया. इस बीच अनूप भाग गया.

‘‘रो मत बेटी,‘‘ मास्टर साहब उसे सांत्वना दे रहे थे. निम्मी रोतेरोते कब मास्टर साहब की गोद में ही सो गई. मास्टर साहब ने अपनी बेटी को बुला कर निम्मी की देखभाल करने को कहा और चले गए.

अगले दिन अमर को घर आया देख वह बहुत खुश थी. अमर ने देखा कि गेहूं गोदाम में भरे हुए हैं, तो उस ने पूछा, ‘‘निम्मी, ये गेहूं किस ने काटे?‘‘

निम्मी ने उत्तर देते हुए कहा ,‘‘पुजारी और धनी सेठ ने.‘‘

अमर समझ रहा था कि निम्मी कुछ अनमनी सी है और कुछ कहने की कोशिश कर रही है, पर कुछ कह नहीं पा रही.

कुछ ही दिन बीते थे कि अमर की तबीयत खराब हो गई. उसे लोगों की मदद से अस्पताल ले जाया गया, जहां उस के टेस्ट चल रहे थे… इधर निम्मी भी एक रोज चक्कर खा कर गिर पड़ी.

पड़ोस की मिसेस सुधा उसे अस्पताल ले गई, जहां डाक्टर ने तुरंत उसे दवा दे कर कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है… कुछ कमजोरी है… उधर, अमर के टेस्ट की रिपोर्ट आ चुकी थी. उसे डाक्टर ने एचआईवी पौजिटिव की तसदीक की, तो उस के तो जैसे पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई. उसे याद नहीं आ रहा था कि उस ने ऐसा क्या किया. उस ने कभी गलत रिश्ता तो किसी से बनाया भी न था.

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अमर सोचसोच कर परेशान था. वह जैसेतैसे घर आया, तो निम्मी की तबीयत और खराब हो रही थी. उस की शुगर भी बढ़ रही थी.

अमर ने उसे तुरंत दवा दी, तो थोड़ा आराम हुआ. इस तरह दिन बीत रहे थे. अमर निम्मी को कैसे बताए, यह सोच रहा था, उधर निम्मी परेशान थी कि अमर को कैसे बताए कि कैसे उस के जिस्म के टुकड़ेटुकड़े हुए.

अमर ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘निम्मी, तुम मुझ पर भरोसा करती हो न?‘‘

‘‘यह पूछने की जरूरत है अमर?‘‘

‘‘तो सुनो… मेरी रिपोर्ट एचआईवी पौजिटिव आई है,‘‘ अमर ने एक ही सांस में कह दिया, ‘‘पर, यकीन मानो कि मेरा किसी से कोई संबंध नहीं है. मुझे याद आ रहा है, जब पिछली बार मैं शहर काम से गया था, तो एक सैलून में मैं ने अपनी दाढ़ी बनवाई थी, क्योंकि मुझे मीटिंग को देर हो रही थी, इसलिए मैं ने ही नाई को जल्दी शेव करने को कहा… शायद, उस ने ब्लेड को बदला नहीं था.‘‘ गहरी सांस लेते हुए अमर ने कहा.

यह सुन कर निम्मी चुप थी. बस वह आंखों से आंसू बहाए जा रही थी. कुछ देर बाद सहसा उस के चेहरे पर एक जीत की जैसी मुसकान दौड़ गई.

अमर अपनी बीमारी के कारण ही अधमरा हुआ जा रहा था और निम्मी मुसकरा रही थी. वह बोली, ‘‘अभी चलो, मुझे भी यह टेस्ट कराना है.‘‘

‘‘कल तुम्हें भी बुलाया है डाक्टर ने,’’ अमर ने कहा.

पूरी रात दोनों के लिए काटनी मुश्किल हो रही थी. निम्मी ने भी अमर को सबकुछ सच बता दिया था. दोनों बस रोए जा रहे थे.

अगले दिन निम्मी का भी टेस्ट किया गया, तो वह भी एचआईवी पौजिटिव निकली. दुखी होने के बजाय निम्मी खुश थी. पर दोनों के लिए जीना आसान न था. दोनों अपनी मजबूरियों पर रो रहे थे. जैसेतैसे संभलते हुए दोनों घर आए और एकदूजे को दिलासा दे ही रहे थे कि अनूप, देवेंद्र, धनी सेठ, पुजारी सब निम्मी के घर आए और अमर की तबीयत पूछने लगे.

इन सब को निम्मी ने ही फोन कर के बुलाया था. पहले तो अमर को बहुत गुस्सा आ रहा था, पर जैसेतैसे संभल कर उस ने सब को निम्मी का साथ देने के लिए धन्यवाद दिया और निम्मी से चाय बनाने को कहा.

‘‘आप लोगों का मैं जितना भी धन्यवाद करूं कम ही होगा,‘‘ अमर ने कहा, तो धनी सेठ ने कहा, ‘‘इस में धन्यवाद कैसा अमर साहब… हम अगर एकदूसरे के काम नहीं आएंगे, तो और कौन आएगा?‘‘

‘‘जी, कह तो आप बिलकुल सही रहे हैं… पर आप तो हमारे दुखसुख के सचमुच भागीदार हैं. इतना ही नहीं, हमारी बीमारी के भी…‘‘ एक कुटिल हंसी के साथ अमर ने कहा.

‘‘हम कुछ समझे नहीं अमर… बीमारी के भागीदार कैसे?’’ सभी ने चौंकते हुए पूछा.

अमर ने रहस्य खोला, तो सब के सब सकपका कर रह गए और एकदूसरे का मुंह ताकने लगे.

पुजारी समेत वहां मौजूद सब के चेहरे पीले पड़ गए. उधर निम्मी और अमर चैन की सांस ले रहे एकदूसरे को हिम्मत दे रहे थे और कुदरत के इस अजब न्याय और अन्याय को समझने की कोशिश कर रहे थे.

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न्याय-अन्याय : भाग 1 – निम्मी ने जब लांघी दरवाजे की दहलीज

लेखक – आरती लोहानी 

दरवाजे की कुंडी खड़कने की आवाज सुन कर निम्मी ने दरवाजा खोला, ‘‘जी कहिए…‘‘ निम्मी ने बाहर खड़े 2 लड़कों को अभिवादन करते हुए कहा.

‘‘जी, हम आप के महल्ले से ही हैं… आप को राशन की जरूरत तो नहीं… यही पूछने आए हैं,‘‘ उन में से एक व्यक्ति ने निम्मी से कहा.

‘‘जी धन्यवाद, अभी घर में पर्याप्त राशन है…‘‘ निम्मी ने जवाब दिया.

‘‘ठीक है… जब भी जरूरत हो, तो इस मोबाइल नंबर पर फोन करना…‘‘ उन में से एक बड़ी मूंछों वाले लड़के ने निम्मी को एक कागज पर मोबाइल नंबर लिख कर देते हुए कहा.

लौकडाउन का तीसरा दिन था. पूरा शहर एक अंतहीन उदासी और सन्नाटे की ओर बढ़ रहा था. किसी को नहीं पता था कि कब बाजार खुलेगा, कब घर से बाहर निकल सकेंगे और कब हालात सामान्य होंगे. सब अपनेअपने घरों में कैद परिवारों के साथ समय बिता रहे थे.

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निम्मी का पति अमर किसी काम से दूसरे शहर गया हुआ था कि अचानक से ही कर्फ्यू जैसे हालात बन गए. निम्मी का विवाह हुए अभी सालभर भी नहीं हुआ था. निम्मी बहुत खूबसूरत थी और उस की सुंदरता के किस्से पूरे इलाके में हो रहे थे. कितने नौजवानों को अमर की किस्मत से रश्क था और कितने आदमी निम्मी को किसी न किसी तरह पाना चाहते थे, पर समाज का डर भी था. इस वक्त कइयों को पता था कि अमर घर पर नहीं है, इसलिए कई नएनए तरीकों से महल्ले के मर्द उस के घर के चक्कर काटने में लग गए.

उधर, अमर को इस बात का अंदाजा था कि उस की गैरमौजूदगी में निम्मी जरूर मुश्किलों से रूबरू होगी. अमर दिन में कई बार फोन करता और हालचाल पूछता था.

कहते हैं न कि जब मुश्किल घड़ी आती है तो अपने नातेरिश्तेदार मसलन दुख, चिंता, परेशानी और अवसाद आदि सब को साथ लाती है.

ये तालाबंदी भी निम्मी के जीवन में घोर अंधेरा ले कर आई थी. किसी तरह अपने रिश्तेदारों को फोन कर के वो अपना दर्द और अकेलापन दूर करने की कोशिश कर रही थी.

धीरेधीरे समय बीत रहा था और निम्मी को अमर से मिलने की उम्मीद दिखने लगी थी, तभी लौकडाउन को और आगे बढ़ा दिया गया. अब तो मुसीबत ही मुसीबत.

एक ओर राशन खत्म हो रहा था, तो वहीं दूसरी ओर अमर के खेत में गेहूं की खड़ी फसल. अब कौन फसल को काटे और कौन मंडी ले जाए.

हिमालय सरीखा सवाल निम्मी के सामने खड़ा था. वो किस से मदद मांगे, किस पर भरोसा करे और कैसे करे… क्योंकि निम्मी घर से बाहर कम निकलती थी. शादी कर के जब से वह यहां आई थी, उस ने किसी से कोई खास मेलजोल नहीं बढ़ाया था.

निम्मी सोच ही रही थी, तभी अमर का फोन का फोन आया, ‘‘निम्मी, मुझे तो अभी वहां आना संभव नहीं लगता… खेत का क्या हाल है… तुम गई हो क्या किसी रोज?‘‘ अमर ने चिंता जाहिर करते हुए पूछा.

‘‘बस एक दिन गई थी… फसल पक चुकी है, पर अमर, अब ये कटेगी कैसे… मजदूर भी नहीं मिल रहे हैं इस समय यहां,‘‘ निम्मी ने बताया. कुछ और इधर उधर की बात कर के निम्मी ने फोन रख दिया.

तभी उस के दरवाजे पर किसी ने आवाज दी, ‘‘अमर… ओ अमर, बाहर निकल.‘‘

महल्ले के धनी सेठ की आवाज सुन कर निम्मी बाहर आई.

‘‘अमर को बुलाओ तो बाहर. उस से कहो कि अगर गेहूं को जल्द ही नहीं काटा तो सारी फसल खराब हो जाएगी.‘‘

‘‘जी, वे तो शहर से बाहर गए थे किसी काम से और तालाबंदी के चलते वहीं फंस गए,‘‘ निम्मी ने बताया.

हालांकि धनी सेठ अच्छी तरह से जानता था कि अमर घर पर नहीं है, फिर भी अनजान बनने की अदाकारी बखूबी कर रहा था. बोला, ‘‘ओह, लेकिन अगर फसल नहीं कटेगी तो भारी नुकसान उठाना पड़ेगा…‘‘ धनी सेठ ने हमदर्दी जताने की कोशिश की और बातचीत जारी रखी.

‘‘ठीक है, अब मैं चलता हूं… अगर कोई जरूरत हो, तो मुझे जरूर बता देना. मैं गेहूं मंडी तक पंहुचा दूंगा.‘‘

‘‘जी जरूर… वैसे, इतनी खेती तो है नहीं कि मंडी तक पंहुचाई जाए. हमारा ही गुजर होने लायक अनाज होता है,‘‘ निम्मी ने हाथ जोड़ कर कहा.

धनी सेठ कई सवाल ले कर जा रहा था कि निम्मी मुझे बुलाएगी या नहीं, क्या कभी निम्मी के साथ गुफ्तगू संभव है. वह खुद से ही बोले जा रहा था कि सामने से आते हुए पुजारी से सामना हो गया.

‘‘प्रणाम पुजारीजी… कैसे हैं आप?‘‘ धनी सेठ पुजारी से बोला.

‘‘चिरंजीवी रहो सेठ… तरक्की तुम्हारे कदम चूमे,‘‘ दोनों हाथ से आशीष देते हुए पुजारी ने कहा.

‘‘इस दुपहरी में कहां से आ रहे हैं और कहां जा रहे हैं?‘‘ धनी सेठ ने पुजारी से पूछा.

सकपकाते हुए पुजारी ने उत्तर दिया, ‘‘बस, एक यजमान के घर से आ रहा हूं… सोचा, थोड़ा नदी किनारे टहल ही आऊं.‘‘

‘‘अच्छाजी रामराम,‘‘ कह कर धनी सेठ आगे बढ़ गया.

इधर निम्मी ने अमर को धनी सेठ के प्रस्ताव के बारे में बताया, तो अमर ने साफ इनकार करने को कहा, क्योंकि वह उसे अच्छी तरह जानता था और इस सहयोग के पीछे की मंशा पर भी उसे संदेह था.

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निम्मी ने फोन रखा ही था कि घर का दरवाजा किसी ने खटखटाया.

‘‘प्रणाम पुजारीजी,‘‘ निम्मी ने दरवाजा खोल कर सामने खड़े पुजारी का अभिवादन किया.

पुजारी ने भी धनी सेठ की तरह हमदर्दी और सहयोग का प्रस्ताव दिया. इसी तरह हेडमास्टर किशोर कश्यप ने भी सहयोग का प्रस्ताव निम्मी के सामने रखा.

निम्मी असमंजस में थी. एक ओर उस की शुगर की दवा भी खत्म हो रही थी, वहीं दूसरी ओर राशन भी खत्म होने को था.

अगले दिन मुंह पर चुन्नी लपेटे निम्मी महल्ले की दुकान तक गई. वहां से जरूरी सामान ले कर वह लौट रही थी, तभी सामने से उसी मूंछ वाले लड़के ने उसे पहचान लिया. उस का नाम अनूप शुक्ल था.

उसी ने हमदर्दी जताते हुए निम्मी से कहा, ‘‘अरे निम्मीजी, आप को किसी चीज की जरूरत थी, तो मुझ से कहतीं… आप क्यों इस धूप में बाहर निकलीं.‘‘

‘‘जी, इस में परेशानी की कोई बात नहीं… बस इस बहाने मैं टहल भी ली और सामान भी ले लिया.‘‘

इतना कह कर निम्मी तेजी से घर की ओर बढ़ गई. पर, तभी खयाल आया कि उस ने शुगर की दवा तो ली नहीं. वजह, उस की शुगर की दवा अगले दिन बिलकुल ही खत्म हो रही थी और मैडिकल स्टोर बहुत दूर था. तभी उसे अनूप के मोबाइल नंबर वाला कागज भी दिख गया, तो उस ने उसे फोन कर ही दिया.

फोन सुनते ही अनूप वहां आया. परेशानी सुन अनूप ने उसे फौरन दवा ला कर दे दी.

इसी तरह कुछ दिन बीत गए, पर गेहूं की फसल का कुछ तो करना था, वह यह सोच ही रही थी कि धनी सेठ और पुजारी कुछ मजदूरों के साथ उस के घर आ गए.

‘‘आप तो संकोच करेंगी निम्मीजी, पर हमारा भी तो कोई फर्ज बनता है कि नहीं?‘‘

‘‘मैं कुछ समझी नहीं,‘‘ निम्मी ने कहा.

‘‘इस में न समझने जैसा क्या है? बस, तुम हां कह दो, तो खेत से गेहूं ले आएं.‘‘

निम्मी कुछ समझती, इस से पहले दोनों ने मजदूरों को खेत में जाने का आदेश दे दिया. निम्मी ने औपचारिकतावश उन को चाय पीने को कह दिया. दोनों चाय पी कर चले गए.

उसी शाम धनी सेठ फिर निम्मी के घर आ धमका और बोला, ‘‘तुम ठीक तो हो न निम्मी… मेरा मतलब है कि खुश तो हो.‘‘

‘‘जी, मैं ठीक हूं,‘‘ निम्मी ने कहा. धीरेधीरे सेठ उस की ओर बढ़ने लगा… और पास आ कर बोला, ‘‘तुम इतनी खूबसूरत और कमसिन हो…‘‘ इतना कह कर उस ने निम्मी की कमर में हाथ डाल दिया.

निम्मी कुछ रोकती या कहती, सेठ ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया और उसे बेहिसाब चूमने लगा. निम्मी रोती, कभी मिन्नत करती. विरोध की हर कोशिश उस की जाया हो रही थी. धनी सेठ की मजबूत बांहों से बचना उस के लिए नामुमकिन था. हर तरह का वास्ता निम्मी दे चुकी थी, पर जिस्म के भूखे सेठ को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, सिवाय निम्मी के शरीर के और उस ने उसे हर तरीके से भोगा. लगभग घंटेभर बाद वह झूमता हुआ घर से निकला, मानो सालों की प्यास बुझ गई हो.

सेठ के जाने के बाद निम्मी जोरजोर से रो रही थी, पर उस की चीख सुनने वाला कोई न था. सहसा उसे याद आया कि उस के महल्ले का देवेंद्र सिंह पुलिस में नौकरी करता है. किसी तरह निम्मी ने उस का पता किया.

‘‘हैलो… कौन बोल रहा है?‘‘ देवेंद्र सिंह ने फोन रिसीव करते हुए पूछा.

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‘‘जी, मैं आप के ही महल्ले से बोल रही हूं… मुझे आप की मदद चाहिए,‘‘ निम्मी ने जवाब दिया.

‘‘आप को अगर कोई परेशानी है, तो आप थाने आ कर रपट लिखा सकती हैं,‘‘ देवेंद्र सिंह ने यह कह कर फोन रख दिया.

निम्मी ने फिर से फोन किया, ‘‘हैलो… प्लीज, फोन मत काटना… मैं… मैं निम्मी बोल रही हूं. आप के ही महल्ले में रहती हूं. मेरे पति अमर इस समय यहां नहीं हैं और मैं मुसीबत में हूं.’’

अमर का नाम सुनते ही वह निम्मी को पहचान गया. ‘‘अच्छाअच्छा, मैं समझ गया. आप चिंता न करें. मैं शाम को आप के पास आता हूं.”

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

Covid-19 के साइड इफेक्ट : लोगों में बढ़ी डिजिटल कामुकता

लेखक- लोकमित्र गौतम

कोविड-19 के चलते भारत ही नहीं पूरी दुनिया में अब अगर लाॅकडाउन नहीं भी लागू तो भी कामकाजी गतिविधियां लगभग ठप सी पड़ गई हैं. लोग घरों में बैठे हुए हैं. दफ्तर बंद है, फैक्टरियां बंद हैं और शायद दिमाग में भी कुछ नया सोचना बंद है. इसलिए इस गतिहीनता के दौर में लोगों में डिजिटल कामुकता बढ़ गई है.

हालांकि विशेषज्ञों ने कोविड-19 की वजह से साल 2021 में जो बेबी बूम की घोषणा की थी, उसे अब वापस ले लिया है. बावजूद इसके तमाम विशेषज्ञ इस बात पर सहमत है कि लाॅकडाउन के दौरान और उसके बाद अनलाॅक के दौरान तमाम तरह की गतिविधियों में अघोषित कटौती के कारण बड़े पैमाने में पूरी दुनियाभर के कपल्स को साथ रहने का लंबा मौका मिला है. इस वजह से इस पूरे समय में यौन गतिविधियां किसी भी सामान्य समय के मुकाबले कहीं ज्यादा रही हैं. विश्व की सबसे बड़ी कंडोम निर्माता कंपनी कोरेक्स ने अप्रैल के अंत में सार्वजनिक तौरपर स्वीकार किया था कि उसके पास कंडोम का पूरे 2020 के लिए जो स्टाक था, वो खत्म हो गया है.

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इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोरोना के चलते यौन गतिविधियों में काफी ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई है. सवाल है क्या इससे किसी तरह का नुकसान है? पहले तो लगता था कि बिल्कुल किसी तरह का नुकसान नहीं है, लेकिन लाॅकडाउन के दौरान और उसके बाद आयी तमाम रिपोर्टों से पता चला है कि इस दौरान कितने बड़े पैमाने पर पोर्न मैटर तलाशा और देखा गया है. हालांकि पिछले कुछ महीनों से पूरी दुनिया में अधिकतम लोग अपने घरों में रहे हैं और अब के पहले यह माना जाता रहा है कि घरों में परिवार के बीच पोर्न फिल्मों के देखने का चलन नहीं है, सिर्फ एकांत में ये देखी जाती हैं. लेकिन लाॅकडाउन ने इस राय को बदल दिया है.

लाॅकडाउन के दौरान न सिर्फ पोर्न फिल्में बहुत ज्यादा देखी गई हैं बल्कि बाल यौन शोषण मटेरियल (सीएसएएम-चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज मटेरियल) भी ऑनलाइन बहुत ज्यादा सर्कुलेट हुआ है. इसके कारण पिछले दिनों जब कई तरह की आपराधिक घटनाओं में कमी देखी गई, वहीं बाल यौन अपराधों में काफी इजाफा हुआ है. मध्य प्रदेश में तो एक नौ साल की बच्ची के हाथ पैर बांधकर उससे बलात्कार किया गया और फिर उसकी आंखें फोड़ दी गईं. लॉकडाउन के दौरान सीएसएएम कंटेंट का यूजर एक्सेस बढ़ा है,उसका गंभीर संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार सुरक्षा आयोग ने गूगल, ट्विटर, व्हाट्सएप्प और एप्पल इंडिया को नोटिस जारी किये हैं.

गौरतलब है कि भारत में अन्य देशों की तरह ही बाल पोर्न के निर्माण व प्रसार पर पूर्ण प्रतिबंध है. इसका व्हाट्सएप्प या अन्य सोशल मीडिया के जरिये एक-दूसरे को भेजना भी दंडनीय अपराध है. इंग्लैंड व कुछ अन्य देशों में तो बाल पोर्न को रोकने के लिए विशेष विभाग हैं,जिनका काम ऐसी साइट्स को तलाशना, बंद करना व उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही करना है. भारत में इस स्तर की चैकसी कम है, फिर भी बाल पोर्न पर काफी हद तक नियंत्रण था, लेकिन लगता है कि कोविड-19 के दौरान ठहर गये कामकाजी जीवन में खुराफाती दिमागों ने इसका चलन बढ़ा दिया है. यह समस्या इस हद तक बढ़ गई है कि कुछ दिन पहले बैडमिंटन कोचिंग का ऑनलाइन लाइव सत्र चल रहा था कि बीच में अचानक पोर्न कंटेंट प्रसारित होने लगा. ऐसा कई बार हुआ. यह कंटेंट जब पहली बार आया तो भारत के राष्ट्रीय बैडमिंटन कोच पी गोपीचंद ने कड़ी आपत्ति दर्ज करते हुए तुरंत अपने को लाइव प्रोग्राम से अलग कर लिया.

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फिलहाल की स्थिति यह है कि आयोग ने ऑनलाइन सीएसएएम की उपलब्धता पर स्वतंत्र जांच आरंभ कर दी थी और जो साक्ष्य मिले थे, उनके आधार पर आयोग ने उक्त ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स को नोटिस जारी किये थे तथा 30 अप्रैल तक जवाब मांगा था. लेकिन बाद में क्या हुआ इसकी कोई खबर नहीं आयी. आयोग इन प्लेटफॉर्म्स से जानना चाहता है कि वह अपने प्लेटफॉर्म्स पर सीएसएएम को रोकने के लिए क्या नीति अपनाये हुए हैं, उन्हें पोर्नोग्राफी व सीएसएएम से संबंधित कितनी शिकायतें मिली हैं और ऐसे मामलों से डील करने की उनकी पालिसी क्या है? आयोग के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने जिन लिंक्स,हैंडल पर इस प्रकार का आपत्तिजनक मटेरियल पाया है,उनकी रिपोर्ट व अन्य जानकारियां केन्द्रीय गृह मंत्रालय के साइबरक्राइम पोर्टल को कानूनी कार्यवाही के लिए फॉरवर्ड कर दिया है.

आयोग ने जो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स को नोटिस भेजा है उसमें इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फण्ड की ताजा रिपोर्ट का हवाला दिया है,जिसमें सावधान किया गया है कि लॉकडाउन के दौरान बाल पोर्न सर्च में जबरदस्त वृद्धि हुई है, इसलिए आयोग अब इसकी स्वतंत्र जांच कर रहा है. गूगल इंडिया को दिए गये नोटिस में कहा गया है, “जांच के दौरान यह संज्ञान में आया है कि पोर्नोग्राफिक मटेरियल को गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध एप्पस के जरिये एक्सेस किया जा सकता है. इससे बच्चे भी इस प्रकार के मटेरियल को एक्सेस करने लगे हैं. यह भी आशंका है कि इन एप्पस पर सीएसएएमभी उपलब्ध है.” जबकि एप्पल इंडिया को दिए गये नोटिस में आयोग ने कहा कि उसके एप्प स्टोर में उपलब्ध एप्पस के जरिये बहुत आसानी से सीएसएएम व पोर्नोग्राफिक मटेरियल एक्सेस किया जा सकता है जो वहां बहुतायत में मौजूद है.

जांच के दौरान यह भी पाया गया कि बहुत से एन्क्रिप्टेड व्हाट्सएप्प ग्रुप्स में सीएसएएम बहुतायत के साथ उपलब्ध है. व्हाट्सएप्प इंडिया को दिए गये नोटिस में आयोग ने कहा है, “इन ग्रुप्स के लिंक्स को ट्विटर पर विभिन्न हैंडल्स के जरिये प्रचारित किया जाता है. आयोग का यह मानना है कि ट्विटर हैंडल्स पर इन व्हाट्सएप्प ग्रुप्स के लिंक्स का प्रचारित किया जाना गंभीर मामला है.” जबकि ट्विटर इंडिया को दिए गये नोटिस में आयोग ने कहा है, “देखा गया है कि आपकी जो नियम व शर्तें हैं, उनके अनुसार 13 वर्ष व उससे अधिक का व्यक्ति ट्विटर पर अकाउंट खोलने के लिए योग्य है. अगर आप 13 वर्ष की आयु में बच्चों को अकाउंट खोलने की अनुमति दे रहे हैं तो आयोग का मानना है कि आप अन्य यूजर्स को ट्विटर पर पोर्नोग्राफिक मटेरियल, लिंक आदि को प्रकाशित, प्रचारित नहीं करने दे सकते.”

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सीएसएएम व पोर्नोग्राफिक मटेरियल गंभीर आपराधिक मामला है. इस प्रकार के मटेरियल पर रोक लगाना अति आवश्यक है और सुप्रीम कोर्ट अपने कई निर्णयों में इस बात की जरुरत पर बल दे चुका है. इस प्रकार के मटेरियल से समाज में यौन अराजकता का खतरा बना रहता है, मानव तस्करी जैसे अमानवीय अपराध भी अक्सर इसी के कारण होते हैं. किशोरों द्वारा किये गये जो यौन अपराध प्रकाश में आये हैं, उनके पीछे भी अक्सर कारण सीएसएएम ही निकला है. इसलिए इस संदर्भ में खालिस नोटिस से काम नहीं चलेगा बल्कि जिन माध्यमों से सीएसएएम व पोर्नोग्राफिक मटेरियल वितरित व प्रचारित हो रहा है उन पर कड़ी कानूनी कार्यवाही की जाये और किसी भी सूरत में उल्लंघन को बर्दाश्त न किया जाये. इंटरनेट के युग में बच्चों के भविष्य को सुरक्षित रखने का यही एकमात्र तरीका है.

बेफिक्र होकर उठाएं Masturbation का लुत्फ

के के अग्रवाल देश के जाने माने डाक्टर हैं जिन्हे अपनी काबिलियत के लिए कई दूसरे पुरुस्कारों और सम्मान के साथ  सरकार से पद्म श्री जैसा पुरुस्कार भी मिल चुका है . दिल के रोगों के माहिर ये डाक्टर साहब सेक्स से ताल्लुक रखते मसलों पर भी बेबाकी से अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं . देश के वे पहले नामी डाक्टर हैं जो मास्टरवेशन यानि हस्तमैथुन पर खुलकर बोलते लोगों की कई गलतफहमियाँ दूर करते हैं . उनकी मानें तो हस्तमैथुन कतई सेहत के लिए नुकसानदेह नहीं है बल्कि फायदेमंद है .

हस्तमैथुन को लेकर कई गलतफहमियाँ फैली हुई हैं , बेहतर तो यह कहना होगा कि जानबूझकर फैलाई जाती हैं जिससे लोग इसका लुत्फ न ले सकें .  जबकि सेक्स सुख लेने का यह इकलौता बेहतर और महफूज रास्ता है जिसमें किसी पार्टनर की मोहताजी नहीं रह जाती . मेडिकल साइंस में यह बात ज़ोर देकर कही और मानी जाती है कि एक दो या चार पाँच नहीं बल्कि 99 फीसदी लोग हस्तमैथुन करते हैं . खासतौर से कुँवारे लड़के लड़कियां तो सेक्स की अपनी इच्छा इसी से पूरी करते हैं . हालांकि दिलचस्प सच यह भी है कि कई शादीशुदा लोग भी हस्तमैथुन करते हैं क्योंकि उन्हें हमबिस्तरी से पूरा और मनमाफिक मजा नहीं मिलता.

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यह कोई बीमारी नहीं है बल्कि एक आम बात है लेकिन सच यह भी है कि सही जानकारियाँ न होने से अधिकतर लोग हस्तमैथुन को लेकर वेबजह के तनाव में रहते हैं और खुद को कमजोर और कभी कभी तो नामर्द तक समझने की गलती कर बैठते हैं . ऐसा महज इसलिए कि इनके दिमाग में यह बात ठूंस ठूंस कर भर दी गई है कि हस्तमैथुन बुरी बात है और इसके जरिये जो वीर्य बेकार निकल जाता है वह बड़ी मुश्किल से बनता है इसकी एक बूंद की कीमत ही करोड़ों रु होती है . इस बाबत वेबकूफी भरी बात यह फैला दी गई है कि एक बूंद वीर्य बनने सैकड़ों किलो अन्न लगता है जिससे खून और उस खून से एक तरह का रस और फिर उससे वीर्य बनता है .

गलतफहमी यह भी बड़े पैमाने पर पसरी है कि जो वीर्य को हस्तमैथुन के जरिये जाया कर देता है उसकी ज़िंदगी के कोई माने नहीं रह जाते उसके चेहरे पर रौनक नहीं रह जाती और उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है . धार्मिक किताबों में इस वीर्य का बखान इतने भयानक तरीके से किया गया है कि अच्छे अच्छे इसे पढ़कर दहल जाएँ लेकिन हकीकत एकदम उलट है .

जानें सच – हकीकत यह है कि वीर्य शरीर में लगातार बनते रहने बाला एक खास किस्म का केमिकल है जो बनता तभी है जब शरीर और दिमाग में सेक्स की उत्तेजना चरम पर होती है हर कोई इसे महसूसता भी है . यानि वीर्य शरीर के अंदर स्टाक में नहीं रहता है और न ही उत्तेजना होने पर इसका निकलना रोका जा सकता .  इस के निकलने से ही सेक्स सुख मिलता है फिर चाहे वह हमबिस्तरी से मिले या हस्तमैथुन से इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता . आमतौर पर मर्दों में 12 – 13 साल की उम्र में सेक्स उत्तेजना आने लगती है जिसे शांत या पूरी करने वे हस्तमैथुन करते हैं .

गड़बड़ यहीं से शुरू होती है क्योंकि जवान होते लड़के लड़कियों के दिमाग में यह बात पहले से ही भरी होती है कि हस्त मैथुन गलत है , पाप है . ये बातें वे ठीक उसी तरह सीखते हैं जैसे यह कि भगवान है और उसके पूजा पाठ से ही मनचाहे फल मिलते हैं . फर्क इतना है कि हस्तमैथुन के बारे में जानकारियाँ उन्हें इधर उधर से नीम हकीमों के इश्तिहारों और यार दोस्तों से मिलती हैं.

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जब जवान होते लड़के किसी इश्तहार में यह पढ़ते हैं कि बचपन के कुसंग की वजह से नामर्दी या  कमजोरी आ गई हो , थकान महसूस होती हो , शीघ्रपतन हो जाता हो , स्वप्न दोष हो तो घबराएँ नहीं शीघ्र हमसे मिलें और मर्दाना ताकत पाएँ तो वे घबरा उठते हैं और उन्हें यह वहम और गलतफहमी हो जाती है कि वे हस्तमैथुन करने के चलते बच्चा पैदा करना तो बाद की बात है औरत को सेक्स सुख नहीं दे पाएंगे . ऐसा इसलिए और भी होता है कि हमारे यहाँ सेक्स एज्यूकेशन यानि तालीम के कोई इंतजाम नहीं हैं . गलत जानकारियाँ कैसे ज़िंदगी दुश्वार कर देती हैं इसके बारे में भोपाल के नजदीक सीहोर के एक दुकानदार के उदाहरण से समझा जा सकता है .

40 साला इस दुकानदार के मुताबिक वह 15 साल की उम्र से ही हस्तमैथुन कर रहा था 25 का होते होते जब शादी की बात चली तो वह घबरा उठा कि कैसे बीबी को संतुष्ट करेगा इसलिए वह शादी से कतराने लगा . एक दिन उसने शहर के कोतवाली चौराहे पर एक खानदानी हकीम को तम्बू गड़ाए देखा तो अपनी परेशानी लेकर उसके पास जा पहुंचा . हकीम साहब तो बैठे ही ऐसे मुर्गों के लिए थे .  उन्होने पहले तो उसे डराया फिर 40 रु लेकर कुछ पुड़ियेँ थमा दीं कि रात को सोते वक्त दूध के साथ खाते रहना आठ दिन में ही घोड़े को भी मात कर दोगे .

सोते वक्त  दुकानदार ने हिदायत के मुताबिक दवा दूध से खा ली लेकिन आधी रात को उसके पेट में इतना भयंकर दर्द उठा कि उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती करना पड़ा . डाक्टर ने खान पान के बारे में पूछताछ की तो घबराए दुकानदार ने तुरंत सच उगल दिया . 2 दिन बाद अस्पताल से छुट्टी हुई तो अकेले में उसके चाचा ने उसे समझाया कि हस्तमैथुन से ऐसा कुछ नहीं होता जिसे सोचकर वह घबरा गया था . फिर उन्होने सेक्स से ताल्लुक रखती कई अहम बातें उसे समझाईं तो उसका डर जाता रहा . अब यह दुकानदार 2 बच्चों का बाप है और बिना किसी खानदानी हकीम की दवा खाए इस उम्र में भी पलंग तोड़ सेक्स करता है और नौजवानों को मेसेज देता है कि वे नीम हकीमी के चक्कर में वक्त और पैसा जाया न करें हस्तमैथुन से न तो कमजोरी आती और न ही ज़िंदगी बर्बाद होती .

नुकसान कुछ नहीं फायदे कई – माहिरों की मानें तो हस्तमैथुन से कोई नुकसान नहीं होता उल्टे फायदे कई होते हैं मसलन इससे मूड फ्रेश होता है और जिस्म सहित अंग की भी कसरत हो जाती है . जानकर हैरानी होना कुदरती बात है कि इससे तनाव भी दूर होता है .  कई रिचर्स में चौका देने बाली ये बातें भी उजागर हुई है कि सेक्स की इच्छा होने पर हस्तमैथुन कर लेने से लोग सेक्स रोगों के जोखिम से बचे रहते हैं और स्वप्न दोष भी नहीं होता अलावा इसके अच्छी नींद भी आती है .

डाक्टर के के अग्रवाल पूरे भरोसे से ज़ोर देकर कहते हैं कि मेडिकल साइंस हस्तमैथुन को गलत या नुकसानदेह नहीं मानती और न ही इसका शरीर की ताकत और मर्दानगी से कुछ लेना देना यह एक कुदरती बात है . इससे एनर्जी कम नहीं होती बल्कि बढ़ती है . भोपाल के नामी  मनोविज्ञानी यानि दिमागी बीमारियों के माहिर डाक्टर विनय मिश्रा तो यह तक कहते हैं कि अगर सेक्स इच्छाओं को जरूरत से ज्यादा दबाया जाये तो जरूर दिमागी बीमारियों का खतरा बनने लगता है . इसलिए जरूरत पड़ने पर हस्तमैथुन करना हर्ज की बात नहीं .

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एहतियात रखें – एक पुरानी कहावत है कि अति सर्वत्र वर्जयते यानि अति हर जगह नुकसान करती है फिर वह चाहे अच्छे खाने पीने की ही क्यों न हो . हस्तमैथुन पर भी यह बात  लागू होती है . आमतौर पर माहिर यह मानते हैं कि हफ्ते में 3-4 दिन हस्तमैथुन किया जा सकता है . इसके अलावा ये एहतियात भी बरतना चाहिए –

1 – अंग को पूरा उत्तेजित होने पर ही हस्तमैथुन करना चाहिए .

2 – कमरे या बाथरूम बगैरह जहां भी करें दरवाजा अच्छे से बंद कर लेना चाहिए .

3 – ज्यादा ज़ोर से नहीं करना चाहिए इससे अंग को नुकसान हो सकता है .

4 – वीर्य को पोंछने साफ कपड़े या टिसु पेपर का इस्तेमाल करना चाहिए .

5 – एक दिन में बार बार हस्तमैथुन नहीं करना चाहिए .

6 – अगर इसके लिए किसी सेक्स टोय का इस्तेमाल कर रहे हैं तो उसे अच्छे से साफ करना चाहिए खासतौर से उन लड़कियों को जो नकली अंग का इस्तेमाल करती हैं .

और आखिरी बात जो हमेशा जेहन में रखनी चाहिए वह यह कि हस्तमैथुन कतई नुकसानदेह नहीं है इसे आत्मनिर्भरता भी कहा और समझा जा सकता है .

कायर : भाग 1 – कैसे बन गए दोनों में संबंध

बचपन की एकएक कर उभर रही तमाम घटनाओं ने विशाल के दिलोदिमाग पर बहुत ही गहरा असर छोड़ा था. यही वजह थी कि जब कभी भी वह किसी मर्द को औरत के ऊपर हाथ उठाते हुए देखता था तो उस की रगों में बहता जवान खून खौल जाता था.

बचपन में विशाल ने अपनी मां पर होने वाले बाप के जुल्मों को देखा था और यह उसी का नतीजा था.

विशाल का बाप शराबी था. वह शाम को शराब पी कर ही घर आता था. मां घर के राशनपानी के लिए पैसे मांगती थीं तो बाप गालियां बकने लगता था, पीटने लगता था.

मां को शराबी बाप की पिटाई से बचाने की कोशिश में विशाल कई बार बाप की टांगों से लिपट जाता था. इस पर शराबी बाप उसे दोनों हाथों से उठा कर चारपाई पर पटक देता था.

विशाल को एक ऐसे माहौल में रहने को मजबूर होना पड़ रहा था जहां मर्दों द्वारा औरतों से गालीगलौज और मारपीट करना एक मामूली बात थी.

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विशाल के बाप को उस की शराब ही ले डूबी थी. मां भी बहुत ज्यादा दिन जिंदा नहीं रही थीं पर मरने से पहले उन्होंने विशाल को इतना काबिल बना दिया था कि वह दो वक्त की रोटी कमा सके.

पेट पालने के लिए विशाल को कोई ढंग का रोजगार चाहिए था. लिहाजा, गांव को छोड़ वह कामधंधे की तलाश में शहर आ गया था. गांव वाला मकान बेच कर विशाल को इतने पैसे मिल गए थे कि शहर में कामधंधे की तलाश करते हुए वह कुछ दिन अपना गुजारा कर सके.

शहर में विशाल को रहने के लिए जहां किराए की जगह मिली वह एक झुग्गी बस्ती थी. वहां लड़ाईझगड़ा होना आम बात थी. इलाके में रहने वाले ज्यादातर लोग मेहनतमजदूरी कर के पेट पालते थे. सारा दिन मजदूरी कर के पैसे कमाना और रात को शराब पी कर गालीगलौज और लड़ाईझगड़ा करना वहां के तकरीबन सभी मर्दों की आदत थी.

विशाल को रहने के लिए किराए की जो जगह मिली थी, उस का मालिक रघुनाथ नाम का शख्स था. लोग उसे रघु कह कर पुकारते थे. रघु की उम्र 45 साल थी. वह किराए का आटोरिकशा चलाता था और पक्का शराबी था.

रघु ने अपने मकान का आगे वाला हिस्सा विशाल को किराए पर दिया था. वह कमरा अकेली जान के लिए काफी था. रघु मकान के पिछले वाले हिस्से में रहता था.

मकान के अगले और पिछले वाले हिस्से के बीच में एक आंगन था. आंगन में एक तरफ गुसलखाना और शौचालय बना हुआ था. वहां से कुछ ही दूरी पर पानी का सरकारी नल लगा हुआ था. सुबहशाम उस में एक घंटे के लिए पानी आता था.

रघु की बेहद खूबसूरत और जवान बीवी थी जो उम्र में उस से आधे से भी कम की लगती थी.

रघु की बीवी ने विशाल की जिंदगी में जबरदस्त हलचल पैदा कर दी थी. रघु की जवान बीवी से विशाल का सीधा आमनासामना किराए की जगह पर आने के 2 दिन बाद उस वक्त हुआ था जब वह सुबह आंगन में लगे हुए नल में से पानी की बालटी भर रहा था. ठीक उसी समय खाली बालटी हाथ में लिए अपने कमरे से बाहर निकल रघु की बीवी भी नल की तरफ आ गई.

वह अभीअभी नींद से जगी लगती थी. उस के बेहिसाब हुस्न और जवानी की दमक किसी बिजली की तरह विशाल के दिल पर गिरी. वह कुछ पल के लिए बुत बन कर रह गया. एकदम से गोरा रंग, तीखे नाकनक्श, खूब भराभरा सा बदन विशाल की रगों में बहता लहू उबलने लगा.

किसी तरह अपनी हालत को काबू में करते हुए विशाल ने अपनी बालटी को नल के नीचे से हटा दिया ताकि वह पहले पानी भर सके.

विशाल के बालटी हटाने पर उस ने अपनी खाली बालटी नल के नीचे रख दी और उस के भरने का इंतजार करने लगी. इस बात का फायदा उठाते हुए विशाल उस के रूप और जोबन का रसपान करता रहा.

बालटी जब लबालब भर गई तो वह झुक कर उस को उठाने लगी. वह दुपट्टा नहीं लिए थी इसलिए जब वह पानी से भरी बालटी उठाने के लिए झुकी तो कसे हुए सूट में से उस के उभारों की झलक विशाल पर जैसे सैकड़ों बिजलियां गिरा गईं.

विशाल को उस के चेहरे के भावों से लगा कि बालटी को उठा कर अपने कमरे तक ले जाने में उसे काफी दिक्कत महसूस हो रही थी. उस ने कहा, ‘‘लाइए, मैं छोड़ आता हूं.’’

उस ने इनकार नहीं किया. एक नजर विशाल को देखते हुए उस ने पानी से भरी हुई बालटी विशाल के बढ़े हाथ में थमा दी.

बालटी थामते वक्त विशाल का हाथ उस के हाथ से छू गया. विशाल की रगों में एक सनसनाहट सी फैल गई.

पानी से भरी बालटी उस के कमरे तक पहुंचा कर जब विशाल वापस जाने को हुआ तो वह एकाएक बोली, ‘‘तुम ही शायद नए किराएदार हो. मैं अभी तक तुम्हारा नाम भी नहीं जानती.’’

‘‘विशाल नाम है मेरा.’’

‘‘अच्छा नाम है. शादीशुदा हो?’’

‘‘शादी तो अभी बाद की बात है, फिलहाल तो मैं नौकरी ढूंढ़ रहा हूं,’’ विशाल ने कहा.

‘‘शराब पीते हो?’’ उस ने अटपटा सा सवाल पूछा.

‘‘नहीं, मुझे शराब से नफरत है,’’ विशाल ने जवाब दिया. पहली बार की मुलाकात में ही उस के इतने सवालों से विशाल हैरान था.

‘‘अच्छी बात है. कम से कम शादी के बाद तुम्हारी बीवी को पीटना तो नहीं पड़ेगा,’’ तारा ने ठहाका मार कर हंसते हुए कहा.

विशाल से बातचीत को खत्म करने से पहले रघु की बीवी एक बहाने से उसे अपना नाम बताना नहीं भूली, ‘‘हम दोनों की उम्र में इतना फासला नहीं है कि तुम मुझे आप कह कर बुलाओ. मेरा नाम तारा है. तुम मुझ को मेरा नाम ले कर भी बुला सकते हो,’’ इतना कहने के बाद वह पानी की बालटी उठा कर कमरे के अंदर चली गई.

इस के बाद तैयार हो कर विशाल काम की तलाश में घर से निकला तो उस के खयालों में तारा छाई हुई थी. तारा एक शादीशुदा औरत थी. उस के लिए जैसी भावनाएं विशाल के मन में जन्म ले रही थीं वे एक तरह से गलत थीं. मगर अपनी इन गलत भावनाओं पर विशाल का कोई कंट्रोल नहीं था.

नौकरी तो नहीं मिली, पर बाहर ढाबे पर खाना खा कर घर आने में विशाल को देरी हो गई.

घर का दरवाजा खुला हुआ था. अंदर दाखिल होने के बाद अपने कमरे का ताला खोलने से पहले विशाल ने एक सरसरी नजर आंगन के दूसरी तरफ डाली. वहां कमरे की लाइट जल रही थी और बरतनों की हलकी खनक भी सुनाई दे रही थी.

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मकान के बाहर रघु का आटोरिकशा नहीं खड़ा था. इस का मतलब था कि वह अभी घर नहीं आया था.

विशाल में एक अजीब सी बेचैनी भर गई. उसे डर लगने लगा कि खयालों के भटकाव में उस से कहीं कुछ गलत न हो जाए. लिहाजा विशाल अपने कमरे में आया और अंदर से कुंडी लगा ली.

इस के बाद विशाल चारपाई पर लेट तो गया, मगर नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. न चाहते हुए भी उस का खयाल बारबार तारा की तरफ ही जा रहा था. नींद विशाल की आंखों से आंखमिचौली खेलती रही. उस रात वह हुआ जिस में एक बार फिर से विशाल में सालों पहले वाले हालात में ला कर खड़ा कर दिया.

उस रात रघु ज्यादा शराब पी कर घर आया था. ज्यादा कमाई होने पर शायद वह ज्यादा शराब पी लेता था.

विशाल ने आटोरिकशा के आने की आवाज सुनी. कुछ देर बाद मकान का दरवाजा भी जोरदार आवाज के साथ बंद हुआ.

विशाल को डर था कि रघु के ज्यादा पी कर आने के नतीजे में कुछ न कुछ अनहोनी होगी.

विशाल का डर गलत नहीं निकला. रात की खामोशी को चीरते हुए पहले ऊंची आवाज में रघु और तारा के बीच तीखी कहासुनी की आवाजें सुनाई दीं. इस के बाद एकाएक ही कहासुनी भारी गालीगलौज और मारपीट में बदल गई. तारा के दर्द से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं. साफ था कि रघु उसे पीट रहा था.

विशाल बेचैन हो बिस्तर से उठ बैठा. उस का खून खौल रहा था. बाजुओं की नसें फड़क रही थीं पर वह अपनी बेबसी पर छटपटाता रहा.

सवाल यह था कि वह कैसे और किस हैसियत से पतिपत्नी के मामले में दखल दे सकता था. समाज इस की इजाजत नहीं देता था.

रात के अनुभव से सुबह विशाल का मन खिन्न था. आंखें भी न सोने की वजह से भारी थीं इसलिए नौकरी की तलाश में घर से बाहर निकलने का इरादा उस ने छोड़ दिया.

रात को कसाई की तरह अपनी बीवी को पीटने वाला रघु अपने ठीक समय पर आटोरिकशा ले कर कामधंधे के लिए निकल गया.

विशाल दरवाजा खोल कर अपने कमरे से बाहर आ गया. उस की नजरें आंगन के दूसरी तरफ गईं. वहां कोई दिखाई नहीं दिया.

विशाल कुछ पल कशमकश वाली हालत में रहा और फिर उस के कदम अपनेआप आंगन के दूसरी तरफ जाने के लिए उठ गए.

विशाल को देख कर तारा चौंक गई. बीती रात हुई मारपीट के निशान उस के चेहरे पर साफ देखे जा सकते थे. उस की बाईं आंख के नीचे और ऊपरी होंठ पर सूजन नजर आ रही थी. बाकी जिस्म पर भी मारपीट के निशान जरूर रहे होंगे जो विशाल देख नहीं सकता था.

विशाल खुद को रोक नहीं सका और गुस्से का इजहार करते हुए बोला, ‘‘तुम्हारा मर्द इनसान है या जानवर. कोई अपनी औरत को इस तरह से पीटता है भला?’’

‘‘तो कैसे पीटता है?’’ तारा ने सवाल किया.

तारा के सवाल का जवाब विशाल को नहीं सूझा और वह बगलें झांकने लगा.

यह देख तारा अजीब तरीके से हंस दी और बोली, ‘‘तुम अभी इस बस्ती में नएनए आए हो इसलिए अजीब लगता होगा. मगर इस बस्ती में सभी मर्द अपनी औरतों को ऐसे ही पीटते हैं. तुम को यहां रहना है तो यह सब देखने की आदत डालनी होगी.’’

‘‘शायद तुम ने भी अपने मर्द के हाथों इस तरह से पिटने की आदत डाल ली है?’’ विशाल ने चुभती हुई आवाज में कहा.

‘‘इस के सिवा मैं कर भी क्या सकती हूं?’’

‘‘ऐसे जानवर को छोड़ क्यों नहीं देतीं?’’

‘‘छोड़ कर मैं कहां ठिकाना करूं? मांबाप ने बेचा था तो इस जानवर के पल्ले पड़ गई. अब इसे छोड़ कर क्या मैं किसी कोठे पर जा कर बैठ जाऊं?’’ तारा का लहजा बड़ा तल्ख था.

‘‘इस तरह की बातें पागलपन हैं. जिंदगी जीने के और भी रास्ते हैं,’’ विशाल ने कहा.

‘‘हमदर्दी जताते के लिए शुक्रिया. बिना किसी मर्द के समाज में एक अकेली और बेसहारा औरत की जिंदगी खुले मैदान में पड़े मांस के टुकड़े से ज्यादा नहीं होती, जिस को हर कोई नोचना चाहेगा.’’

‘‘तुम किसी दूसरे मर्द का हाथ भी तो थाम सकती हो?’’

‘‘जबरदस्ती…? जब तक कोई मेरा हाथ मांगने के लिए अपना हाथ आगे नहीं करेगा तब तक मैं उस का हाथ कैसे मांग सकती हूं? असली जिंदगी और बातों में बड़ा फर्क होता है,’’ तारा बोली.

‘‘एक बार इस नरक की जिंदगी से छुटकारा पाने का इरादा कर लोगी तो कोई न कोई हाथ थामने वाला भी मिल ही जाएगा,’’ विशाल ने कहा.

‘‘तुम थामोगे मेरा हाथ…?’’ तारा ने पूछा.

‘‘हां, मैं ऐसा कर सकता हूं,’’

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जोश में विशाल की जबान से यह बात निकल गई.

‘‘एक बार फिर सोच लो. याद रखो, औरत एक बेल की तरह है. सहारा देने वाले से एक बार लिपट जाए तो आसानी से छोड़ती नहीं,’’ तारा ने जोर दे कर कहा.

‘‘बेल लिपटने की हिम्मत तो दिखाए. सहारा भी कभी उस को छोड़ना नहीं चाहेगा,’’ तारा के गदराए जिस्म पर नजर गड़ाते हुए विशाल ने कहा.

तारा को जैसे यही बात कहने का इंतजार था. वह किसी बेल की तरह विशाल से लिपट गई. सबकुछ इतना अचानक और तेजी से हुआ कि विशाल हक्काबक्का रह गया.

शादीशुदा होने के बावजूद मर्द के मामले में तारा प्यासी लगती थी. वासना के उफनते ज्वार में जो भूमिका एक मर्द होने के नाते विशाल की बनती उस को एक तरीके से तारा निभा रही थी और उसे बेतहाशा चूम रही थी.

कुछ पलों में ही तारा ने जैसे अपने जिस्म की सारी गरमी और प्यार विशाल की रगों में उतारने की कोशिश की.

जब ज्वार उतरा तो उस की आंखों में कोई पछतावा नहीं था बल्कि उस की जगह जीने की एक नई उमंग थी, कुछ सपने थे.

विशाल के लिए तारा का जिस्म पाना एक तिलिस्म जैसा था. तारा ने उस तिलिस्म को एक झटके में ही खोल दिया था. सबकुछ इतना जल्दी हो गया था कि विशाल हैरान था.

तारा के साथ गहराते रिश्तों के बीच विशाल को बहुत सी बातें जानने को मिलीं. कुछ महल्ले के लोगों से तो कुछ तारा की जबानी.

(क्रमश:)

 क्या विशाल ने तारा का साथ जिंदगीभर निभाया? क्या तारा रघु से छुटकारा पा सकी? पढ़िए अगले अंक में…

कायर : भाग 2 – कैसे बन गए दोनों में संबंध

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था…

विशाल का बाप शराबी था. वह उस की मां को रोज पीटता था. विशाल को उस से नफरत हो गई थी. मांबाप के मरने के बाद विशाल रोजगार के लिए शहर आ गया और किराए पर रहने लगा. उस का मकान मालिक रघु अधेड़ उम्र का था, जो अपनी कमउम्र पत्नी तारा को जानवरों की तरह पीटता था. तारा की बेबसी देख कर विशाल उस का हमदर्द बन गया. धीरेधीरे तारा उस की ओर खिंचने लगी. कुछ दिनों बाद उन में संबंध बन गए.

अब पढ़िए आगे…

महल्ले के लोग रघु के बारे में अच्छी राय नहीं रखते थे. वे उसे मुंह लगाना भी पसंद नहीं करते थे. तारा को रघु ने जोरजबरदस्ती और पैसे के दम पर हासिल किया था. तारा की मानें तो रघु से पैसे ले कर उस के गरीब मांबाप ने उसे रघु के हवाले कर दिया था. शादी की रस्में तो कहने को निभाई गई थीं.

तारा के साथ जिस्मानी रिश्ता बनाने के बाद जब कोई परदा नहीं रहा तो विशाल ने उस के जिस्म पर मारपीट के निशान देखे. ‘‘यह इनसान तो मेरी उम्मीद से भी ज्यादा वहशी है. कब तक तुम यह सब सहती रहोगी?’’ विशाल ने पूछा.

‘‘जब तक मेरा नसीब चाहेगा,’’ एक ठंडी सांस भरते हुए तारा ने कहा. ‘‘नसीब को बदला भी जा सकता है,’’ विशाल बोला.

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‘‘अगर सचमुच ऐसा हो सकता है तो बिना देरी किए अभी मेरा हाथ थामो और यहां से कहीं दूर ले चलो,’’ उम्मीद भरी नजरों से विशाल को देखते हुए तारा ने कहा.

‘‘नहीं, अभी सही समय नहीं है. इस के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा… जब तक मेरा कहीं और ठिकाना नहीं बन जाता,’’ विशाल बोला. ‘‘ठीक है, मैं तब तक इंतजार करूंगी. एक बात का ध्यान रखना कि मेरी बरदाश्त की हद हो सकती है, मगर रघु के वहशीपन और जुल्म की कोई हद नहीं है,’’ तारा की बात में एक किस्म की मायूसी थी.

‘‘मैं वह हद नहीं आने दूंगा. उस से पहले ही मैं तुम को इस नरक से निकाल दूंगा,’’ विशाल ने भरोसा दिया. ‘‘उम्मीद नहीं है कि मेरे साथ धोखा नहीं होगा,’’ तारा बोली. जाल में फड़फड़ाते पक्षी के समान वह जल्दी से इस जाल को काट कर उड़ने को बेचैन थी.

इस में जरा भी शक नहीं कि एक औरत के रूप में तारा ने विशाल को जितना दिया था उस से ज्यादा कोई भी औरत किसी मर्द को नहीं दे सकती थी. लेकिन विशाल की सोच एकाएक मतलबी हो चली थी. एक आम मर्द की तरह वह भी सोचने लगा था कि तारा अब तक उस को जो दे चुकी थी स्थायी रिश्ते में उस से ज्यादा क्या दे सकती थी? इनसानी हमदर्दी वाली सोच पर वासना हावी होने लगी थी.

औरत को जिस्मानी तौर पर हासिल करने के बाद अकसर कई मर्दों को यह लगने लगता है कि औरत के पास अब उस को देने के लिए कुछ खास नहीं रहा. इसी बीच न जाने कैसे अचानक रघु को इन दोनों के संबंधों को ले कर शक होने लगा. शक्की मर्द अकसर बेहद बेरहम हो जाता है, लेकिन रघु बेरहमी के मामले में पहले ही जानवर था. उस ने तारा पर जुल्मों की हद कर दी.

मगर यह क्या… तारा की रौंगटे खड़े कर देने वाली चीखों को सुन कर विशाल की रगों में बहते खून का खौलना एकाएक बंद हो गया था. खून के ठंडेपन से विशाल खुद भी हैरान था. इस सब के पीछे कहीं न कहीं विशाल के अंदर की कायरता थी. वह सच का सामना करने से घबरा रहा था. हालात का यही तकाजा था कि वह तारा को ले कर जल्दी ही कोई फैसला करे.

एक दिन सुबहसवेरे काम पर जाने से पहले रघु ने विशाल को एक हफ्ते के अंदर जगह खाली करने का हुक्म दे दिया, ‘‘7 दिन के अंदर शराफत से जगह खाली कर देना, वरना सामान उठा कर बाहर फेंक दूंगा.’’ रघु की धमकी वाली जबान विशाल को अखरी, फिर भी कड़वा घूंट पी कर वह खामोश रहा. वैसे देखा जाए तो विशाल वहां से भागने की तैयारी कर रहा था, चुपके से चोरों की तरह.

7 दिन में जगह खाली करने वाली बात तारा को शायद मालूम नहीं थी. मगर रघु के इतना कह कर जाने के कुछ देर बाद ही तारा विशाल के कमरे में आ गई. वह बहुत ही टूटी हुई नजर आ रही थी.

‘‘अब मुझ से और बरदाश्त नहीं होता. मैं पता नहीं क्या कर बैठूंगी? देखो, जालिम ने इस बार मुझ पर कैसा सितम ढाया है,’’ यह कहने के बाद तारा ने ब्लाउज को हटा कर अपने बदन पर जलती बीड़ी से दागने के निशान विशाल को दिखाए. उन निशानों को देख एक बार तो विशाल भी कांप गया.

‘‘क्या इतना सब देखने के बाद भी तुम मुझ को अभी इंतजार करने के लिए ही कहोगे?’’ तारा ने पूछा. विशाल से जवाब देते नहीं बना. तारा ने जैसे सीधे उस की मर्दानगी पर ही सवाल उठाया था.

‘‘नहीं, अब तुम को ज्यादा इंतजार नहीं करना होगा. मैं जल्दी ही तुम को इस नरक से निकाल कर कहीं दूर ले जाऊंगा,’’ सूखे होंठों पर जबान फेरते हुए विशाल ने कहा. ‘‘आज तुम्हारे शब्दों में पहले वाली आग नहीं रही है. फिर भी मेरे पास इस के सिवा कोई चारा नहीं कि मैं तुम्हारी बात पर यकीन करूं. वैसे भी मेरी हालत बेल जैसी है. सहारा गया तो खत्म,’’ तारा ने अजीब हंसी हंसते हुए कहा.

‘‘तुम को मुझ पर बने अपने भरोसे को कायम रखना चाहिए.’’ ‘‘इसी की कोशिश कर रही हूं, मगर मेरी बरदाश्त की एक हद है और इस हद के टूटने से मैं कब क्या कर बैठूंगी, मैं खुद नहीं जानती,’’ इतना कहने के बाद तारा चली गई.

तारा के तेवर विशाल को हैरानी में डालने वाले थे. पहले कभी तारा ने ऐसे अंदाज में बात नहीं की थी. विशाल को महसूस भी हुआ कि वह कायर था, औरत पर जुल्म होता देख उस की रगों में उबलने वाला खून बासी कढ़ी में आए उबाल से ज्यादा नहीं था. हकीकत का सामना करने की उस में हिम्मत नहीं थी. तारा के प्रति हमदर्दी के पीछे कहीं वासना की वह चाशनी थी जिस का स्वाद चखने के बाद विशाल की सोच में बहुत बदलाव आ गया था.

विशाल यह बात भी नजरअंदाज नहीं कर सकता था कि तारा दुनिया की नजरों में एक शादीशुदा औरत थी. उस के साथ विशाल के संबंध दुनिया की नजरों में गलत थे. उस पर रघु भी एक खतरनाक इनसान था. उस से दुश्मनी मोल लेने की विशाल में हिम्मत नहीं थी. रघु विशाल को एक हफ्ते के अंदर कमरा खाली करने की चेतावनी दे चुका था. रघु और विशाल के बीच कोई लेनदेन नहीं रह गया था. जगह का किराया वह महीने के शुरू में ही रघु को दे चुका था.

सामान के नाम पर विशाल के पास भारीभरकम कुछ भी नहीं था. वह किसी भी समय जगह खाली करने के लिए आजाद था. रात के वक्त चुपचाप ही अपनी जगह को छोड़ने से बेहतर रास्ता विशाल को नजर नहीं आ रहा था. दिन के उजाले में तारा कभी भी उस को आसानी से जाने नहीं देती.

आखिर रघु द्वारा दी गई समय सीमा के खत्म होने से पहले ही एक रात को विशाल ने खामोशी से अपना सामान बांधा और चोरों की तरह वहां से निकल जाने का फैसला किया. पर आधी रात के समय इस से पहले कि विशाल चोरों की तरह अपना सामान उठा कर वहां से निकल पाता एकाएक तारा दरवाजे पर आ कर खड़ी हो गई.

तारा को देख विशाल सकते में आ गया. उस की चोर जैसी हालत हो गई. इस से पहले कि वह कुछ कह पाता, तारा ने एक नजर बंधे हुए सामान पर डाली और फिर उस की तरफ देखने लगी. तारा की खामोश आंखों में कई सवालों के रूप में एक आग सी धधक रही थी. उस आग ने विशाल को डरा दिया.

एकाएक तारा अजीब ढंग से हंसी और बोली, ‘‘मैं तुम्हारे भरोसे किस हद से गुजर गई और तुम एक मर्द हो कर भी इस तरह रात के अंधेरे में चोरों की तरह भाग रहे हो. मैं हैरान भी हूं और सदमे में भी हूं. आखिर मैं ने तुम्हारे जैसे कायर मर्द पर भरोसा कैसे कर लिया? ‘‘मगर, अब पछताने का कोई मतलब नहीं. मैं इतनी आगे बढ़ आई हूं कि वापसी के सभी रास्ते बंद हो चुके हैं.

‘‘तुम जैसे भी हो, मेरी किस्मत अब तुम्हारे साथ ही बंध गई है. मेरा हाथ पकड़ो और सुबह होने से पहले यहां से कहीं दूर निकल चलो. इस बात को तुम दिमाग से निकाल दो कि मैं तुम्हें अकेला यहां से जाने दूंगी.’’ तारा के लहजे में खुली धमकी थी जिस ने विशाल को चौंका दिया.

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‘‘तुम्हें गलतफहमी हो गई है. मैं इस समय कहीं नहीं जा रहा हूं, तुम को भी इस तरह इस वक्त मेरे कमरे में नहीं आना चाहिए था. रघु को इस बात का पता चल गया तो हम दोनों के लिए मुसीबत खड़ी हो जाएगी.’’ ‘‘एक औरत से प्यार भी करते हो और इस तरह डरते भी हो. तुम मुझ को एक खूबसूरत जिंदगी का सपना दिखा कर कायर हो गए और मैं तुम्हारे भरोसे क्या से क्या बन गई? झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं.

‘‘मैं जानती हूं कि तुम चुपचाप यहां से भागने की तैयारी में थे. लेकिन अब मुझे साथ लिए बगैर तुम ऐसा नहीं कर सकोगे. मैं ने तुम से पहले ही कहा था कि औरत एक बेल की तरह होती है. लिपट जाए तो आसानी से छोड़ती नहीं. ‘‘रही बात रघु की, उस से डरने वाली कोई बात नहीं. वह यहां नहीं आएगा और न ही हमें जाने से रोकेगा. मुरदे कभी जागते नहीं,’’ तारा ने ठंडी आवाज में कहा.

‘‘क्या मतलब…?’’ विशाल के शरीर को जैसे बिजली का तार छू गया. ‘‘मतलब यह कि मैं ने उस जानवर को मौत के घाट उतार दिया है. जो खुद को मेरा पति कहता था और मुझ को इस का जरा भी अफसोस नहीं,’’ तारा की आवाज पहले की तरह ही बर्फ की सिल जैसी ठंडी थी.

विशाल के सिर पर जैसे कोई बम फूटा, वह हैरान सा तारा को देख रहा था. सामने खड़ी तारा को देख कर विशाल को कायर होने का एहसास हो रहा था.

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