Satire : शादीलाल की सालियां

शादीलाल जैसा सामान धरती पर कम ही मिलता है. साढ़े 4 फुट की उस चीज का पेट आगे निकला हुआ था और गंजे सिर पर गिनने लायक बाल थे. मुझे यकीन था कि उस की शादी नामुमकिन है, पर शायद वह अपने माथे पर कुछ और ही लिखा कर लाया था.

पिछले साल ही तो शादीलाल की शादी हुई थी. कुदरत ने उस के साथ मजाक नहीं किया, क्योंकि कोई भी यह नहीं कह सकता था कि ‘राम मिलाए जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी’.

जी हां, जैसा हमारा प्यारा दोस्त शादीलाल था, ठीक वैसी ही उस की बीवी यानी मेरी भाभी आई थीं. वे भी करीब 37 साल की होंगी. शादीलाल की कदकाठी से ले कर मोटापा, लंबाई, ऊंचाई, निचाई, चौड़ाई सभी में जबरदस्त टक्कर देने वाली थीं.

मेरी भाभी का नाम पहले कुमारी सुंदरी था, पर अब श्रीमती सुंदरी देवी हो गया था.

पर भाभी का सुंदरी होना तो दूर, वे सुंदरी का ‘सु’ भी नहीं थीं, मगर ससुराल के नाम से बिदकने वाला मेरा यार गजब की तकदीर पाए हुए था. उस के 7 सगी सालियां थीं और सातों एक से बढ़ कर एक.

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मैं भी शादी में गया था. सच कहता हूं कि मेरा ईमान भूचाल में जैसे धरती डोलती है, वैसे डोल गया था. अगर मेरी नकेल पहले से न कसी होती, तो मैं शादीलाल की सालियों के साथ इश्क कर डालता.

शादी में शादीलाल की सालियों ने उस की इतनी खिंचाई की थी कि वह ससुराल का नाम लेना ही भूल गया. शादी में उस से जूतों की पूजा कराई गई. धोखे में डाल कर सुंदरी देवी के पैर छुआए गए. सुंदरी देवी के नाम से झूठी चिट्ठी भेज कर उसे जनवासे से 7 फर्लांग दूर बुलवाया गया.

खैर, होनी को कौन टाल सकता था. आज शादीलाल की शादी को एक साल हो गया. सुंदरी देवी अपने मायके में थीं. वे न जाने कितनी बार वहां हो आईं, पर मेरे यार ने कभी वहां की यात्रा का नाम नहीं लिया.

वहां से ससुर साहब की चिट्ठी आई कि आप शादी के बाद से ससुराल नहीं आए. अब सुंदरी की विदाई तभी होगी जब आप खुद आएंगे, वरना नहीं.

यह वाकिआ मुझे तब पता चला, जब औफिस की बड़े बाबू वाली कुरसी पर शादीलाल को गमगीन बैठे देखा.

‘‘मेरे यार, क्या कहीं से कोई

तार वगैरह आया है या गमी हो गई?’’ मैं ने घबरा कर पूछा.

शादीलाल ने अपना मुंह नहीं खोला. अलबत्ता, नाक पर मक्खी बैठ जाने पर भैंस जैसे सिर हिलाती है, वैसे न में सिर हिला दिया.

तब मैं ने पूछा, ‘‘क्या आप को सुंदरी देवी की तरफ से तलाक का नोटिस आया है? क्या वे बीमार हैं या सासससुर गुजर गए?’’

अब शादीलाल ने जो सिर उठाया, तो मेरा दिल बैठ गया. लाललाल आंखें आंसुओं से भरी थीं. चेहरा गधे सा मुरझाया था.

मैं ने उस के हाथ पर हाथ रखा, तो शादीलाल रो उठा और बोला, ‘‘देखो एकलौता राम, तुम मेरे खास दोस्त हो, तुम से क्या छिपाना. चिट्ठी आई है.’’

‘‘क्या कोई बुरी खबर है या कोई अनहोनी घटना घट गई?’’

‘‘नहीं, ससुरजी ने मुझे बुलाया है. इस बार वे साले के साथ सुंदरी को नहीं भेज रहे हैं. अब तो मुझे जाना ही होगा.’’

‘‘अरे, तो इस में घबराने की क्या बात है. ससुराल से बुलावा तो अच्छे लोगों को ही मिलता है. तुम तो

7 सालियों के आधे घरवाले हो, तुम जरूर जाओ.’’

‘‘नहीं यार, यही तो मुसीबत है. मैं उन सातों के मुंह में तिनके की तरह समा जाता हूं.’’

‘‘शादीलाल, तुम्हें क्या हो गया है? घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूं,’’ मैं ने उसे हौसला बंधाया.

‘‘एकलौता राम, मुझे तुम्हीं पर भरोसा है. इस संसार में मेरा साथ देने वाले यार तुम्हीं हो. क्या तुम मेरे ऊपर एक एहसान करोगे?’’

‘‘कहो यार, मैं तो यारों का एकलौता राम हूं.’’

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‘‘तुम को मेरे साथ मेरी ससुराल चलना होगा, वरना मेरी शैतान सालियां मुझे सतासता कर काढ़ा बना कर पी जाएंगी.’’

मैं ने शादीलाल को समझाना चाहा, पर वह मुझे अपनी ससुराल ले ही गया. इस तरह अब शादीलाल की ससुराल यात्रा और साथ में एकलौता राम की यादगार यात्रा शुरू हो गई.

87 किलोमीटर दूर ससुराल में पहुंचे, तो हमारी खूब खातिरदारी हुई. फिर सातों शैतान सालियों के कारनामे शुरू हो गए, जिन का हमें डर था.

थका होने की वजह से शादीलाल शाम 7 बजे से ही खर्राटे लेने में मस्त हो गया. तभी वे सातों आईं. उन्होंने मुंह पर उंगली रख चुप रहने का इशारा किया तो मैं समझ गया कि शादीलाल अब तो गया काम से.

मैं शादीलाल को जगाने के चक्कर में था कि 27 साला एक साली ने कहा, ‘‘आप खामोश रहिए, वरना आप की हजामत जीजा से भी बढ़ कर होगी.’’

मैं ने रजाई तानी और उस में झरोखा बना कर नजारा देखने लगा. शादीलाल के हाथों में एक साली ने नीली स्याही का पोता फेरा. दूसरी साली ने उस की नाक में कागज की सींक बना कर घुसा दी. नतीजतन, शादीलाल का हाथ नाक पर पहुंच गया और स्याही चेहरे पर ‘मौडर्न आर्ट’ बनाती गई.

मैं लिहाफ के अंदर हंसी नहीं रोक पा रहा था. आखिर में 6 सालियां बाहर चली गईं, केवल 7 साल की सुनीता बची, तो उस ने अपने जीजा के हाथों में उसी की हवाई चप्पलें उलटी कर के फंसी दीं और फिर उस के कानों में सींक घुमा कर भाग गई.

सींक से बेचैन हो कर शादीलाल ने अपने कानों पर हाथ मारे, तो चप्पलें गालों पर चटाक से बोलीं.

मैं ने किसी तरह झरोखा बंद किया. हंसहंस कर मेरा पेट हिल रहा था, पर कान आहट ले रहे थे.

मेरा यार उठा. चप्पलें फेंकने की आवाज आई, फिर उस ने मेरी रजाई उठा दी. मैं तब भी हंस रहा था.

शादीलाल बरस पड़ा, ‘‘एकलौता राम, तू कर गया न गद्दारी. मेरी यह हालत किस ने की?’’

मैं ने आंख मलने का नाटक किया और पूछा, ‘‘क्या बात है यार?’’

‘‘बनो मत, मेरी हालत पर तुम हंस रहे थे.’’

‘‘क्या बात करते हो यार… मैं तो सपने में हंस रहा था. अरे, तुम्हारे चेहरे पर रामलीला का मेकअप किस ने किया?’’

‘‘उठ यार, मैं यहां पलभर भी नहीं ठहर सकता. वही कमबख्त सालियां होंगी,’’ उस ने आईने में अपना चेहरा देखते हुए कहा.

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‘‘चलो ससुरजी के पास, मैं उन सब की शिकायत करता हूं,’’ मैं ने कहा.

‘‘पर यार, ससुरजी ऐसा टैक्नीकलर दामाद देखेंगे तो क्या कहेंगे? आखिर मैं क्या करूं? मैं इसीलिए यहां नहीं आता हूं. तुझे बचाव के लिए लाया था, पर तू भी बेकार रहा.’’

‘‘शादीलाल, क्या मैं रातभर जाग कर तुम्हारी खाट के चक्कर लगाऊंगा? तुम भी तो घोड़े बेच कर सो गए. वहां जग में पानी रखा है, मुंह धो डालो.’’

बेचारा शादीलाल मुंह धो कर लेट गया. मैं सोने की कोशिश में था कि तभी पायल की आवाज सुन कर चौंका.

जीरो पावर का बल्ब जल रहा था.

मैं ने देखा, वह भारीभरकम औरत शायद श्रीमती शादीलाल थीं. मैं ज्यादा रात तक जागने पर मन

ही मन झल्लाया और करवट बदल कर लेटा रहा. मुझे आवाजें सुनाई पड़ रही थीं.

‘‘अरे तुम, देखो हल्ला नहीं करना. मेरा यार एकलौता राम सोया हुआ है. तुम खुद नहीं आ सकती थीं. तुम्हारी बहनों ने मेरा मजाक बना दिया.’’

ठीक तभी बिजली जलने की आवाज सुनाई दी और सामूहिक ठहाके भी. मैं ने फौरन हड़बड़ा कर रजाई फेंकी. देखा तो दंग रह गया. शादीलाल की 6 सालियां खड़ी थीं. बेचारा शादीलाल उन्हें टुकुरटुकुर देख रहा था.

साली नंबर 5 गद्दा, तकिया व साड़ी फेंक कर फ्राक में खड़ी हो गई और बोली, ‘‘हम सातों को जीजाजी शैतान कह रहे थे.’’

‘‘अरे, मैं तो पहले ही समझ गया था. मैं तो नाटक कर रहा था,’’ शादीलाल ने झेंपते हुए साली नंबर 5 को देखा.

इस मजाक के बाद अगला मजाक सुबह ही हुआ. मैं और मेरा यार जब कमरे से बाहर आए, तो आंगन में सालियों से दुआसलाम हुई.

तभी एक साली ने कहा, ‘‘जीजाजी, क्या आप रात को बड़ी दीदी के कमरे में गए थे?’’

‘‘नहीं सालीजी, तुम्हारे होते हुए मैं वहां क्यों जाता?’’ कह कर शादीलाल ने उसे गोद में उठा लिया.

‘‘पर जीजाजी, आप बड़ी दीदी की चप्पलें पहने हैं और आप की चप्पलें तो दीदी के कमरे में पड़ी हैं.’’

शादीलाल ने घबरा कर पैरों की ओर देखा. पैरों में लेडीज चप्पलें ही थीं.

शादीलाल के हाथ से साली छूट गई, पर मैं ने उसे संभाल लिया. फिर ठहाका लगा, तो शादीलाल की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई.

सब से ज्यादा मजा उस समय आया, जब शादीलाल पेट हलका करने शौचालय में घुसा. तब मैं आंगन में खड़ाखड़ा ब्रश कर रहा था. सालियों ने जो टूथपेस्ट दिया था, उस का स्वाद कड़वा सा था और उस से बेहद झाग भी निकल रहा था.

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तभी शौचालय के अंदर के नल का कनैक्शन, जिस से पानी जाता था, एक साली ने बाहर से बंद कर दिया.

मैं ने सोचा कि शादीलाल तो गया काम से. इधर मैं थूकतेथूकते परेशान था कि शादीलाल की सास ने कहा, ‘‘बेटा, तुम कुल्ला कर लो. इन शैतानों ने टूथपेस्ट की जगह तुम्हें ‘शेविंग क्रीम’ दे दी थी.’’

मेरे तो मानो होश ही उड़ गए. जल्दीजल्दी थूक कर भागा और सालियों के जबरदस्त ठहाके सुनता रहा.

शादीलाल एक घंटे बाद जब बिना पानी के ‘शौचालय’ से बाहर आया तो छोटी साली नाक दबा कर आई और बोली, ‘‘जीजाजी, फिर से अंदर जाइए. अब नल चालू कर दिया है.’’

शादीलाल दोबारा अंदर घुसा, फिर निकल कर नहाने घुस गया. उस का लगातार मजाक बनाया जा रहा था, पर वह ऐसा चिकना घड़ा था कि उस पर कोई बात रुकती नहीं थी.

2 दिन ऐसे ही सालियों की मुहब्बत भरी छेड़खानी में गुजरे. जब जाने का नंबर आया तो मेरे सीधेसादे यार शादीलाल ने सालियों से ऐसा मजाक किया कि सातों सालियां ही शर्म से पानीपानी हो गईं.

हुआ यों कि जब हमारे जाने का समय आया और रोनेधोने के बाद तांगे में सामान रख दिया गया, तब सालियां, उन की सहेलियां और महल्ले वालों की भीड़ जमा थी.

तभी शादीलाल ने कहा, ‘‘देखो सातों सालियो, मुझे यह बताओ कि कुंआरी लड़की को क्या पसंद है?’’

सातों सालियों ने न में सिर हिलाया. सब लोगों को यह जानने की बेताबी थी कि शादीलाल अब क्या कहेंगे. तभी शादीलाल ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘अरे, तुम लोगों को नहीं पता कि कुंआरी लड़कियों को क्या पसंद है?’’

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‘नहीं,’ सातों सालियों ने एकसाथ फिर से वही जवाब दिया.

‘‘मुझे पहले ही तुम लोगों पर शक था,’’ शादीलाल ने नाटकीय लहजे में कहा.

उस समय सातों सालियों पर घड़ों पानी पड़ गया, जब उन की एक सहेली ने कहा, ‘‘तुम लोगों को जीजाजी ने बेवकूफ बना दिया. उन्हें तुम्हारे कुंआरे होने पर शक है. उन्होंने तुम सभी को शादीशुदा बना दिया है, क्योंकि तुम लोगों को कुंआरी लड़कियों की पसंद नहीं मालूम है.’’

और फिर तो सातों सालियों पर इतने जबरदस्त ठहाके लगे कि सभी दुपट्टे में मुंह छिपा कर अंदर भाग गईं.

 

Hindi Story : डिंपल और कांता की लात

Hindi Story : सुनसान लंबा डग नदी में खूब तैरने के बाद डिंपल और कांता कपडे़ पहन कर जैसे ही  शौर्टकट रास्ते से घर जाने लगीं, तो उन की नजर लोहारों के रास्ते चलते गुर, चेला और मौहता पर पड़ी. वे समझ गईं कि ये तीनों लोहारों की औरतों से आंख सेंकने के लिए ही इस रास्ते से आए थे. ‘‘कांता, ये गुर, चेला और मौहता जैसे लोग आज भी इनसान को इनसान से बांटे हुए हैं, ताकि इन का दबदबा बना रहे और इन की रोजीरोटी मुफ्त में चलती रहे. ये पाखंडी लोग औरतों को हमेशा इस्तेमाल की चीज बनाए रखना चाहते हैं.’’

‘‘सब से खास बात तो यह है कि ये लोग गरीबों और औरतों का शोषण करने के लिए देवीदेवता के गुस्से और कसमों के इतनी चालाकी से बहाने गढ़ते हैं कि लोगों में समाया देवीदेवता का डर उन के मरने तक भी कभी दूर नहीं होता,’’ डिंपल ने कहा.

‘‘हां डिंपल, तुम्हारा कहना एकदम सही है. ये राजनीति के मंजे खिलाड़ी आदमी को आदमी से बांटे ही रखना चाहते हैं. इन्होंने तो बड़ी होशियारी से रास्ते तक बांट दिए हैं, ताकि इन की चालाक सोच इन्हें मालामाल करती रहे,’’ कांता बोली. ‘‘बिलकुल सही कहा तुम ने कांता. इस पहाड़ी समाज को अंधेरे में रखने वाले इन भेडि़यों को सबक सिखाने के लिए हमें अपनी भूमिका अच्छे से निभानी होगी.

‘‘देवीदेवता के नाम पर ठगने वाले इन पाखंडियों की असलियत लोगों के सामने लाने के लिए हमें कुछ न कुछ करना ही होगा,’’ डिंपल ने गंभीर आवाज में कांता से कहा. ‘‘हां, यह बहुत जरूरी है डिंपल. मैं जीजान से तुम्हारे साथ हूं. जान दे कर भी दोस्ती निभाऊंगी,’’ कांता बोली.

इस के बाद उन दोनों ने एकदूसरे को प्यार से देखा और गले मिल गईं. ‘‘तुम मेरी सच्ची दोस्त हो कांता. देखो, आजादी के इतने साल बाद भी इस गांव के लोग अंधविश्वास में फंसे हुए हैं. इन्हें जगाने के लिए हम दोनों मिल कर काम करेंगी,’’ डिंपल ने अपनी बात रखी.

‘‘जरूर डिंपल, यही एकमात्र रास्ता है,’’ कांता ने कहा. डिंपल और कांता ने योजना बनाई और लटूरी देवता के मेले में मिलने की बात पक्की कर के तेजी से अपने घरों की ओर चल दीं.

डिंपल लोहारों की, तो कांता खशों की बेटी थी. कांता ने 23-24 साल की उम्र में ही घाटघाट का पानी पी रखा था. यह तो डिंपल की दोस्ती का असर था कि वह राह भटकने से बच गई थी. हमउम्र वे दोनों चानणा गांव की रहने वाली थीं. नैशनल हाईवे से मीलों दूर पहाड़जंगल, नदीनालों के उस पार कच्ची सड़क से पहुंचते थे. वह कच्ची सड़क लंबा डग नदी तक जाती थी. नदी तट से 2 मील ऊपर नकटे पहाड़ पर सीधी चढ़ाई के बाद चानणा गांव तक पहुंचते थे.

वहां ऊंचाई की ओर खशों और निचली ओर लोहारों की बस्ती थी. खशों को ऊंची जाति और लोहारों को निचली जाति का दर्जा मिला हुआ था. वहां चलने के लिए ऊंची और छोटी जाति के अलगअलग रास्ते थे. लोहारों को खशों के रास्ते चलने की इजाजत न थी. वे उन के घरआंगन तक को छू नहीं सकते थे, जबकि खशों को लोहारों के रास्ते चलने का पूरा हक था. वे उन के घरआंगन में बिना डरे कभी

भी आजा सकते थे. यहां तक कि उन के चूल्हों में बीड़ीसिगरेट तक भी सुलगा आते थे. पर गलती से भी कोई लोहार खशों के रास्ते या घरआंगन से छू गया, तो उस की शामत आ जाती थी. इस से गांव का देवता नाराज हो जाता था और उन्हें दंड में देवता को बकरे की बलि देनी पड़ती थी. मजाल है कि कोई इस प्रथा के खिलाफ एक शब्द भी कह सके.

लोहारों और खशों की बस्तियों के बीच तकरीबन 4-5 एकड़ का मैदान था, जहां बीच में लटूरी देवता का लकड़ी का मंदिर और गढ़ की तरह भंडारगृह था. देवता के गुर का नाम खालटू था. गुर में प्रवेश कर देवता अपनी इच्छा बताता था. लटूरी देवता गुर के जरीए ही शुभ और अशुभ, बारिश, सूखा, तूफान की बात कहता था. गांव और आसपास शादीब्याह, मेलाउत्सव, पर्वत्योहार सब देवता की इच्छा पर तय होते थे.

यहां तक कि फसल बोना, घास काटना भी देवता की इच्छा पर तय था. गुर खालटू को सभी पूजते थे. उसे खूब इज्जत मिलती थी. एक खास बात और थी कि देवता का बजंतरी दल भी था, जो देव रथ के आगेआगे चलता था. इन में ढोलनगाड़े, शहनाई तो लोहार बजाते थे, पर तुरही, करनाल वगैरह खश बजाते थे. देवता का रथ भी खश उठाते थे, लोहारों को तो छूने की इजाजत तक न थी.

लोहारों के रास्ते चलते गुर खालटू, चेला छांगू और मौहता भागू जैसे ही माधो लोहार के घर के पास पहुंचे, उस का मोटातगड़ा बकरा और जवान बेटी देख कर वे एकदम रुक गए. गुर खालटू के मुंह में आई लार को छांगू और भागू ने देख लिया था. चेला छांगू तो 3 साल से माधो की बेटी डिंपल पर नजर गड़ाए था, पर वह उस के हाथ न लगी थी.

तीनों की नजरें बारबार बकरे से फिसलती थीं और माधो की बेटी पर अटक जाती थीं. ‘‘ऐ माधो की लड़की, कहां है तेरा बापू?’’ गुर खालटू ने पूछा.

‘‘वे मेले में ढोल बजाने गए हैं,’’ तीनों को नमस्ते कर के डिंपल ने कहा. ‘‘आजकल कहां रहती हो? दिखाई नहीं देती हो?’’

डिंपल ने चेले छांगू की बात का कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि बकरे से बतियाते हुए उसे घासपत्ते खिलाती रही, जैसे उस ने कुछ सुना ही न हो.

‘‘बकरा बेचना तो होगा न माधो को?’’ ‘‘नहीं मौहताजी, छोटे से बच्चे को दूध पिलापिला कर बच्चे की तरह पालपोस कर बड़ा किया है. इसे हम नहीं बेचेंगे,’’ नजरें झुकाए डिंपल ने कहा और बकरे को पत्ते दिखाती दूसरी ओर ले गई. उस ने तीनों को बैठने तक को न बोला. तीनों बेशर्मी से दांत निकालते हुए मेले की ओर चल दिए.

माधो लोहार को सभी लोग पसंद करते थे. एक तो उस के घराट का आटा सभी को भाता था, दूसरे नगाड़ा बजाने में माहिर उस जैसा पूरे इलाके में कोई दूसरा न था. डिंपल माधो की एकलौती औलाद थी. गांव में पढ़ने के बाद वह शहर में बीएससी फाइनल के इम्तिहान दे कर आई थी. वह खेलों में भी कई मैडल जीत चुकी थी.

गुर, चेला, कारदार चानणा गांव के साथ आसपास के अनेक गांव में अपना डंका जैसेतैसे बजाए हुए थे. देवता के खासमखास कहे जाने वाले वे देव यात्रा के नाम पर शराबमांस की धामें करवाते और औरतों का रातरात भर नाच करवाते थे. गांव में खश व लोहार पूरे लकीर के फकीर थे और देवता पर उन्हें अंधश्रद्धा थी. यह श्रद्धा बढ़ाने का क्रेडिट गुर व चेला जैसे लोगों को ही जाता था. लटूरी देवता का मेला भरने लगा

था. गुर खालटू के पहुंचते ही प्रधान रातकू और गांव वालों ने उन की खूब आवभगत की. गुर ने मंदिर से लटूरी देवता की पिंडी निकाली. पिंडी को स्नान करा कर धूपदीप व चावल से पूजाअर्चना कर के भेड़ू और मुरगे की बलि दिलाई गई. फिर देवता का रथ निकाल कर पूरे मेले में घुमाया गया.

इस के बाद गुर खालटू ने लोगों को मेले में गाने का आदेश दिया. ढोलनगाड़े, शहनाईरणसींगे बजने लगे और मर्दऔरत लाइनों में गोलगोल नाचने लगे. गुर के आदेश पर प्रधान रातकू खशों द्वारा धाम भी इस मैदान पर दी जानी थी. केवल लोहारों को मैदान से हट कर निचले खेत में खिलानेपिलाने का इंतजाम था. शाम ढलने तक नाच और बाजे बंद हो गए थे. शराब का दौर शुरू हो गया था, जिस में मर्दऔरत बराबर शामिल थे. जिसे जितनी पीनी थी पीए, कोई रोक नहीं थी.

नशे में झूमते लोगों में मांसभात की धाम कोईकोई ही खा पाया था. वहां से लोग झूमतेगाते आधी रात तक अपनेअपने घर पहुंचते थे.

नाचगानों और प्रधान रातकू की धाम के साथ हलके अंधेरे में लोगों से दूर एकांत में घटी एक घटना बड़ी ही दिलचस्प थी, जिस का 3 के सिवाय चौथे को पता न चला था. हुआ यों था कि डिंपल अपनी सहेली कांता के साथ मेले में घूमने आई थी. मेले की जगड़ से कुछ दूर एक पेड़ के नीचे खड़ी हो कर वे आपस में बातें करने लगी थीं.

चेला छांगू भी कहीं से टपक कर चोरीछिपे उन की बातें सुनने लगा था. डिंपल पर उस की बुरी नजर से कांता पूरी तरह परिचित थी और वह उसे देख भी चुकी थी. उस ने चेले को बड़ी मीठी आवाज में पुकारा, ‘‘चेलाजी, चुपकेचुपके क्या सुनते हो… पास आ कर सुनो न.’’

छांगू था पूरा चिकना घड़ा. वह ‘हेंहेंहें’ करता हुआ उन के पास आ कर खड़ा हो गया. ‘‘दोनों क्या बातें कर रही हो, जरा मैं भी सुनूं?’’ उस ने कहा.

‘‘चेलाजी, हमारी बातों से आप को क्या लेनादेना. आप मेले में जाइए और मौज मनाइए,’’ डिंपल ने सपाट लहजे में कहा. उसे चेले का वहां खड़े होना अच्छा नहीं लगा था. ‘‘हाय डिंपल, तुम्हारी इसी अदा पर तो मैं मरता हूं,’’ छांगू चेले की ‘हाय’ कहने के साथ ही शराब पीए होने की गंध से एक पल के लिए तो उन दोनों के नथुने फट से गए थे, फिर भी कांता ने बड़े प्यार से कहा, ‘‘चेला भाई, आप की उम्र कितनी हो गई होगी?’’

‘‘अजी कांता रानी, अभी तो मैं 40-45 साल का ही हूं. तू अपनी सहेली डिंपल को समझा दे कि एक बार वह मुझ से दोस्ती कर ले, तो फायदे में रहेगी. देवता का चेला हूं, मालामाल कर दूंगा.’’

‘‘क्या आप की बीवी और खसम करेगी?’’ ‘‘चुप कर कांता, ये लोहारियां हम खशकैनेतों के लिए ही हैं. जब चाहे इन्हें उठा लें… पर प्यार से मान जाए तो बात कुछ और है. तू इसे समझा दे, मैं देवता का चेला हूं. पूरे तंत्रमंत्र जानता हूं.’’

डिंपल के पूरे बदन में बिजली सी रेंग गई. उस के दिल में एक बार तो आया कि अभी जूते से मार दे, पर बखेड़ा होने से वह मुफ्त में परेशानी मोल नहीं लेना चाहती थी, तो उस ने सब्र का घूंट पी लिया. ‘‘पर तुम्हारी मोटी भैंस का क्या होगा? वह और खसम करेगी या किसी लोहार के साथ भाग जाएगी,’’ कांता ने ताना कसते हुए कहा, तो छांगू चेला भड़क गया.

‘‘चुप कर कांता, लोहारों की इतनी हिम्मत कि वे हमारी औरतों को छू भी सकें. पर तू इसे मना ले. इसे देखते ही मेरा पूरा तन पिघल जाता है. इस लोहारी में बात ही कुछ और है. पर याद रख कांता, मैं देवता का चेला हूं, जरा संभल कर बात करना… हां.’’ तभी डिंपल ने उस के चेहरे पर एक जोर का तमाचा जड़ दिया. दूसरा थप्पड़ कांता ने मारा. छांगू चेले का सारा नशा हिरन हो गया. उस की सारी गरमी पल में उतर गई. हैरानपरेशान सा गाल मलते हुए वह कभी डिंपल, तो कभी कांता को देखने लगा.

‘‘खबरदार, अगर डिंपल की तरफ नजर उठाई, तो काट के रख दूंगी. लोहारों की क्या इज्जत नहीं होती? लोहारों की औरतें औरतें नहीं होतीं? देवता के नाम पर तुम्हारे तमाशों को हम अच्छी तरह जानती हैं. चुपचाप रास्ता नाप ले, नहीं तो गरदन उड़ा दूंगी,’’ कमर से दरांती निकाल कर कांता ने कहा, तो छांगू चेला थरथर कांपने लगा. वह गाल मलता हुआ दुम दबा कर खिसक लिया. डिंपल और कांता खूब हंसी थीं. फिर काफी देर तक वे गांव के रिवाजों और प्रथाओं पर चर्चा करते रहने के बाद अपनेअपने घरों को लौटी थीं.

सुबह ही एक खबर जंगल की आग की तरह पूरे चानणा गांव में फैल गई कि माधो लोहार शराब के नशे में खशों के रास्ते चल कर उसे अपवित्र कर गया. उस की बेटी डिंपल ने लटूरी देवता के मंदिर को छू कर अनर्थ कर दिया. खश तो आग उगलने लग गए. वहीं माधो से खार खाए लोहार भी बापबेटी को बुराभला कहने लगे.

गुर खालटू ने कारदारों के जरीए पूरे गांव को मंदिर के मैदान में पहुंचने का आदेश भिजवा दिया. वह खुद छांगू, भागू और 3-4 कारदारों के साथ माधो के घर जा पहुंचा. आंगन में खड़े हो कर गुर खालटू ने रोब से पुकारा, ‘‘माधो, ओ माधो… बाहर निकल.’’

माधो की डरीसहमी पत्नी ने आंगन में चटाई बिछाई, लेकिन उस पर कोई न बैठा. इतने में माधो बाहर निकल आया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया. डिंपल भी अपनी मां के पास खड़ी हो गई. उस ने किसी को भी नमस्ते नहीं किया. उसे देख कर छांगू चेले ने गरदन हिलाई कि अब देखता हूं तुझे.

‘‘माधो, तू ने रात खशों के रास्ते पर चल कर बहुत बड़ा गुनाह कर दिया है. तू जानता है कि तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था. तेरी बेटी ने भी मंदिर को छू कर अपवित्र कर दिया है. अब देवता नाराज हो उठेंगे,’’ गंभीर चेहरा किए गुर खालटू ने जहर उगला. ‘‘गुरजी, यह सब सही नहीं है. न मैं खशों के रास्ते चला हूं और न ही मेरी बेटी ने मंदिर को छुआ है.’’

‘‘हां, मैं तो मंदिर की तरफ गई भी नहीं,’’ डिंपल ने निडरता से कहा, तो गुर थोड़ा चौंका. दूसरे लोग भी हैरान हुए, क्योंकि गुर और कारदारों के सामने बिना इजाजत कोई औरत या लड़की एक शब्द भी नहीं बोल सकती थी. डिंपल देवता के नाम पर होने वाले पाखंड और कानून के खिलाफ हो रहे भेदभाव पर बहुतकुछ कहना चाहती थी, पर अपनी योजना के तहत वह चुप रही.

‘‘तू चुप कर डिंपल, मैं ने तुझे मंदिर को हाथ लगाते देखा है,’’ छांगू चेले ने जोर से कहा. ‘‘हांहां, बिना हवा के पेड़ नहीं हिलता. तुम बापबेटी ने बहुत बड़ा गुनाह किया है, अब तो पूरे गांव को तुम्हारी करनी भुगतनी पड़ेगी. बीमारी, आग, तूफान, बारिश वगैरह गांव को तबाह कर सकती है. तुम लोगों को पूरे गांव की जिम्मेदारी लेनी होगी,’’ मौहता भागू गुस्से से बोला.

‘‘तुम दोनों चुपचाप अपना गुनाह कबूल करो. हां, देवता महाराज को बलि दे कर और माफी मांग कर खुश कर लो,’’ एक मोटातगड़ा कारदार बोला. ‘‘जब हम ने गुनाह किया ही नहीं, तो बलि और माफी किस बात की?’’ डिंपल ने गुस्से में कहा, पर माधो की बोलती बंद थी.

‘‘माधो, इस से पहले कि देवता गुस्सा हो जाएं, तू अपने बकरे की बलि और धाम दे कर लटूरी देवता को खुश कर ले. इस से पूरा गांव प्रकोप से बच जाएगा. तुम्हारा परिवार भी देवता की नाराजगी से बच जाएगा. देख, तुझे देव गुर कह रहा है.’’ ‘‘हांहां, बकरे की बलि दे कर ही रास्ते और मंदिर की शुद्धि होगी. लटूरी देवता खुश हो जाएंगे और गांव पर कोई मुसीबत नहीं आएगी,’’ छांगू चेले ने आंगन में बंधे बकरे और डिंपल को देख कर मुंह में आई लार को गटकते हुए कहा. उसे डिंपल और कांता के थप्पड़ भूले नहीं थे.

‘‘हां, धाम न लेने के लिए मैं देवता को राजी कर दूंगा, पर बकरे की बलि तो तय है माधो,’’ गुर ने फिर कड़कती आवाज में कहा. डिंपल और उस की मां ने बकरा देने की बहुत मनाही की, पर गुर खालटू और देव कारकुनों के डराने पर माधो को मानना पड़ा. उस ने एक बार फिर सभी को बताया कि वह अपने रास्ते चल कर ही घर आया था और उस की बेटी ने मंदिर छुआ ही नहीं, पर उस की बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया.

मौहता भागू ने झट बकरा खोला और मंदिर की ओर ले चला. फिर सभी मंदिर की ओर शान से चल दिए. चलतेचलते गुर खालटू ने माधो को बेटी समेत लटूरी देवता के मैदान में पहुंचने का आदेश दिया. लटूरी देवता के मैदान में पूरे गांव वाले इकट्ठा हो गए. देवता के गुर खालटू ने धूपदान में रखी गूगल धूप को जला कर एक हाथ में चंबर लिए मंदिर की 3 बार बड़बड़ाते हुए परिक्रमा की. देवता की पिंडी बाहर निकाल कर पालकी में रख दी गई.

सब से पहले गुर ने पिंडी की पूजा की, फिर दूसरे खास लोगों को पूजा करने को कहा गया. चेला और मौहता व दूसरे कारदार जोरजोर से जयकारा लगाते थे. ढोलनगाड़ातुरही बजने लगे थे. गुर खालटू कनखियों से चारों ओर भी देख लेता था और गंभीर चेहरा बनाए खास दिखने की पूरी कोशिश करता था.

माधो डिंपल के साथ मंदिर से थोड़ी दूर अपराधी की तरह खड़ा था. कांता भी अपनी दादी के साथ एक पेड़ के नीचे खड़ी थी. माधो के बकरे को पिंडी के पास लाया गया था. उस की पीठ पर गुर ने पानी डाला, तो बकरे ने जोर से पीठ हिलाई. चारों ओर से लटूरी देवता की जयजयकार गूंज गई.

छांगू चेले ने सींगों से बकरे को पकड़ा था. एक मोटे गांव वाले ने दराट तेज कर पालकी के पास रखा था. उसे बकरा काटने के लिए गुर के आदेश का इंतजार था.

अचानक कांता जोरजोर से चीखने. गरदन हिलाते हुए उछलने भी लगी. उस के बाल बिखर गए. दुपट्टा गिर गया था. सभी लोग उस की ओर हैरानी से देखने लगे थे. कांता की दादी बड़े जोर से बोली, ‘‘लड़की में कोई देवी या फिर कोई देवता आ गया है. अरे, कोई पूछो तो सही कि कौन लड़की में प्रवेश कर गया है?’’

गुर, चेला और दूसरे कारदार बड़ी हैरानी और कुछ डरे से कांता की ओर देखने लग गए. गुर पूजापाठ भूल गया था. एक बूढ़े ने डरतेडरते पूछा, ‘‘आप कौन हैं जो इस लड़की में आ गए हैं? कहिए महाराज…’’

‘‘मैं काली हूं. कलकत्ते वाली. लटूरी देवता से बड़ी. सारे मेरी बात ध्यान से सुनो. आदमी के चलने से रास्ते कभी अपवित्र नहीं होते, न कोई देवता नाराज होता है. मैं काली हूं काली. आज में झूठों को दंड दूंगी. माधो और उस की बेटी पर झूठा इलजाम लगाया गया है. सुनो, लटूरी देवता कोई बलि नहीं ले सकता. अभी मेरी बहन महाकाली भी आने वाली है. आज सब के सामने सच और झूठ का फैसला होगा,’’ कांता उछलतीकूदती चीखतीचिल्लाती पिंडी के पास पहुंच गई. अचानक तभी डिंपल भी जोर से चीखने और हंसने लगी. उस के बाल खुल कर बिखर गए. अब तो गांव वाले और हैरानपरेशान हो गए. इस गांव के ही नहीं, बल्कि आसपास के बीसियों गांवों में कभी ऐसा नहीं हुआ था कि किसी औरत में देवी आई हो.

डिंपल की आवाज में फर्क आ गया था. एक बुढि़या ने डरतेडरते पूछा, ‘‘आप कौन हैं, जो इस सीधीसादी लड़की में प्रवेश कर गए हो? हे महाराज, आप देव हैं या देवी?’’

डिंपल भी चीखतीउछलती लटूरी देवता की पिंडी के पास पहुंच गई थी. वह जोर से बोली, ‘‘मैं महाकाली हूं. आज मैं पाखंडियों को सजा दूंगी. अब काली और महाकाली आ गई हैं, अब दुष्टों को दंड जरूर मिलेगा,’’ कह कर उस ने पिंडी के पास से दराट उठाया और बकरे का सींग पकड़े छांगू के हाथ पर दे मारा. छांगू चेले की उंगलियों की 2 पोरें कट कर नीचे गिर गईं. वह दर्द के मारे चिल्लाने और तड़पने लगा.

‘‘बकरे, जा अपने घर, तुझे कोई नहीं काट सकता. जा, घर जा,’’ डिंपल ने उछलतेकूदते कहा. बकरा भी माधो के घर की तरफ दौड़ गया. यह सब देख कर लोग जयकार करने लगे. अब तक तो सभी ने हाथ भी जोड़ लिए थे. बच्चे तो अपने मांओं से चिपक गए थे.

डिंपल ने दराट लहराया फिर चीखते और उछलते बोली, ‘‘बहन काली, गुर और उस के झूठे साथियों से पूछ सच क्या है, वरना इन्हें काट कर मैं इन का खून पीऊंगी.’’ ‘‘जो आज्ञा. खालटू गुर, जो पूछूंगी सच कहना. अगर झूठ कहा, तो खाल खींच लूंगी. आज सारे गांव के सामने सच बोल.’’

डिंपल ने एक जोर की लात खालटू को दे मारी. दूसरी लात कांता ने मारी, तो वह गिरतेगिरते बचा. गलत आदमी भीतर से डराडरा ही रहता है. डर के चलते ही खालटू ने सीधीसादी लड़कियों में काली और महाकाली का प्रवेश मान लिया था. छांगू की कटी उंगलियों से बहते खून ने उसे और ज्यादा डरा दिया था, जबकि वह खुद में तो झूठमूठ का देवता ला देता था. लातें खा कर मारे डर के वह उन के पैर पड़ गया और गिड़गिड़ाया ‘‘मुझे माफ कर दीजिए माता कालीमहाकाली, मुझे माफ कर दीजिए.’’

दर्द से तड़पते छांगू चेले ने अपनी उंगलियों पर रुमाल कस कर बांध लिया था. गुर को लंबा पड़ देख कर डर और दर्द के मारे वह भी रोते हुए उन के पैर पड़ गया, ‘‘मुझे भी माफी दे दो माता.’’ डिंपल ने गुर की पीठ पर कस कर लात मारी, ‘‘मैं महाकाली खप्पर वाली हूं. सच बता रे खालटू या तेरी गरदन काट कर तेरा सारा खून पी जाऊं,’’ डिंपल ने हाथ में पकड़ा दराट लहराया, तो वह डर के मारे कांप गया.

‘‘बताता हूं माता, सच बताता हूं. गांव वालो, माधो का बकरा खाने के लिए हम ने झूठमूठ की अफवाहें फैला कर माधो और डिंपल पर झूठा आरोप लगाया था. मुझ में कोई देवता नहीं आता है. मैं, चेला छांगू, मौहता भागू, कारदार सब से ठग कर माल ऐंठते थे. हम सारे दूसरों की औरतों पर बुरी नजर रखते थे. मुझे माफ कर दीजिए. आज के बाद मैं कभी बुरे काम नहीं करूंगा. मुझे माफ कर दीजिए.’’ डिंपल और कांता की 2-4 लातें और खाने से वह रो पड़ा.

अब तो कारदार भी उन दोनों के पैरों में लौटने लगे थे. ‘‘तू सच बता ओ छांगू चेले, नहीं तो तेरा सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा,’’ कांता ने जोर की ठोकर मारी तो वह नीचे गिर पड़ा, फिर उठ कर उस के पैर पकड़ लिए.

‘‘गांव के भाईबहनो, मैं तो चेला बन कर तुम सब को ठगता था. कई लड़कियों और औरतों को अंधविश्वास में डाल कर मैं ने उन से कुकर्म किया, उन से रुपएपैसे ऐंठे. मुझे माफ कर दीजिए माता महाकाली. आज के बाद मैं कभी बुरे काम नहीं करूंगा.’’ गुर, चेले, मौहता और कारदारों ने सब के सामने सच उगल दिया. डिंपल और कांता ने उछलतेचीखते उन्हें लातें मारमार कर वहां से भागने पर मजबूर कर दिया.

एक नौजवान ने पेड़ से एक टहनी तोड़ कर कारदार और मौहता भागू को पीट दिया. डिंपल और जोर से चीखी, ‘‘जाओ दुष्टो, भाग जाओ, अब कभी गांव मत आना.’’

वे सिर पर पैर रख कर भाग गए और 2 मील नीचे लंबा डग नदी के तट पर जीभ निकाले लंबे पड़ गए. उन की पूरे गांव के सामने पोल खुल गई थी. वे एकदूसरे से भी नजरें नहीं मिला पा रहे थे. कांता ने उछलतेचीखते जोर की किलकारी मारते हुए गुस्से से कहा, ‘‘गांव वालो, ध्यान से सुनो. खशलोहार के नाम पर रास्ते मत बांटो, वरना मैं अभी तुम सब को शाप दे दूंगी.’’

‘माफी काली माता, शांत हो जाइए. आप की जय हो. हम रास्ते नहीं बांटेंगे. माफीमाफी,’ सैकड़ों मर्दऔरत एक आवाज में बोल उठे. बच्चे तो पहले ही डर के मारे रोने लगे थे. काली और महाकाली के डर से अब खशखश न थे और लोहार लोहार न थे, लेकिन वे सारे गुर खालटू, चेले, मौहता व कारदारों से ठगे जाने पर दुखी थे.

‘माफी दे दो महाकाली माता. आप दोनों देवियां शांत हो जाइए. हमारे मन का मैल खत्म हो गया है. शांत हो जाइए माता,’ कई औरतें हाथ जोड़े एकसाथ बोलीं. ‘‘क्या माफ कर दें बहन काली?’’

‘‘हां बहन, इन्हें माफ कर दो. पर ये सारे भविष्य में झूठे और पाखंडी लोगों से सावधान रहें.’’ ‘हम सावधान रहेंगे.’ कई आवाजें एकसाथ गूंजी. कुछ देर उछलनीचीखने और दराट लहराने के बाद डिंपल ने कहा, ‘‘काली बहन, अब लौट चलें अपने धाम. हमारा काम खत्म.’’

‘‘हां दीदी, अब लौट चलें.’’ डिंपल और कांता कुछ देर उछलींचीखीं, फिर ‘धड़ाम’ से धरती पर गिर पड़ीं. काफी देर तक चारों ओर सन्नाटा छाया रहा. सब की जैसे बोलती बंद हो गई थी.

जब काफी देर डिंपल और कांता बिना हिलेडुले पड़ी रहीं, तो कांता की दादी ने मंदिर के पास से पानी भरा लोटा उठाया और उन के चेहरे पर पानी के छींटे मारे. वे दोनों धीरेधीरे आंखें मलती उठ बैठीं. वे हैरानी से चारों ओर देखने लगी थीं. फिर कांता ने बड़ी मासूमियत से अपनी दादी से पूछा, ‘‘दादी, मुझे क्या हुआ था?’’ ‘‘और मुझे दादी?’’ भोलेपन से डिंपल ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं. आज सच और झूठ का पता चल गया है. लूट और पाखंड का पता लग गया है. जाओ भाइयो, सब अपनेअपने घर जाओ.’’ धीरेधीरे लोग अपने घरों को लौटने लगे. दादी कांता का हाथ पकड़ कर बच्ची की तरह उसे घर ले गईं. डिंपल को उस की मां और बापू घर ले आए.

शाम गहराने लगी थी और हवा खुशबू लिए सरसर बहने लगी थी. एक बार फिर डिंपल और कांता सुनसान मंदिर के पास बैठ कर ठहाके लगने लगी थीं. ‘‘बहन महाकाली.’’

‘‘बोलो बहन काली.’’ ‘‘आज कैसा रहा सब?’’

‘‘बहुत अच्छा. बस, अब कदम रुकेंगे नहीं. पहली कामयाबी की तुम्हें बधाई हो कांता.’’ ‘‘तुम्हें भी.’’

दोनों ने ताली मारी, फिर वे अपने गांव और आसपास के इलाकों को खुशहाल बनाने के लिए योजनाएं बनाने लगीं. आकाश में चांद आज कुछ ज्यादा ही चांदनी बिखेरने लगा था.

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