Family Story : गुस्से से बिफरते हुए दारोगा ने दुष्यंत का कौलर कस कर पकड़ते हुए कहा, ‘‘मैं तेरे खिलाफ ऐसा केस बनाऊंगा कि तू इस जन्म में तो जेल से बाहर आने से रहा. तू इनसान है या हैवान... तुझे जरा भी दया नहीं आई अपनी ही बीवी को जलाते हुए... अरे, वह तेरे दुखसुख की साथी थी.’’

इस पर दुष्यंत गिड़गिड़ाता हुआ बोला, ‘‘साहब, मेरा यकीन कीजिए... मैं ने कुछ नहीं किया... उस ने खुद ही यह सब किया है.’’

लेकिन दारोगा रोज ऐसे केस देखता था. लोग कहीं 2 महीने की दुलहन, तो कहीं 4 महीने की दुलहन को दहेज के लिए जला देते थे. हर बार बच्चियों को जला हुआ देख कर उस का खून खौल जाता था. उसे बहुत दुख होता था. उस की भी 2 बेटियां थीं.

सरकारी अस्पताल के आईसीयू रूम के बाहर खड़े लोगों को लगातार अंदर से चीखने की आवाज आ रही थी, जो काफी दर्दभरी थी. कमजोर दिल के लोग सुनते तो घबरा ही जाते.

अंदर दुष्यंत की पत्नी दीपा, जो जल चुकी थी, की पट्टियां बदली जा रही थीं, जो काफी दर्दनाक काम था. अकसर पट्टी के साथ चमड़ी भी उखड़ने लगती, जिस से पीड़ा होती थी, लेकिन इंफैक्शन से बचाने के लिए पट्टी बदलना और दवा लगाना भी जरूरी था.

सभी के चेहरे दुखी और मन बेचैन थे. दारोगा बयान लेने के लिए आया था, लेकिन पीडि़ता इस हालत में नहीं थी कि अभी बयान दे सके. वह चाहता था कि जल्द से जल्द बयान ले ले, ताकि कोई उस के बयान को प्रभावित न कर सके, लेकिन दर्द और जलन से परेशान वह बयान देने की हालत में नहीं थी. आखिर कितनी देर तक दारोगा इंतजार करता, वह चला गया.

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