Hindi Crime Story : ‘‘हाय नंदू, यह तू ने क्या कर दिया?’’ हरकली रोते हुए चिल्लाई.

नंदप्रकाश, जिसे उस की मां हरकली नंदू कह कर पुकारती थी, बिलकुल हैरान खड़ा था. भौंचक्का. नासमझ सा. लाल खून से सना गंडासा अभी भी उस के हाथ में था. उस के पिता सोमप्रकाश की लाश टुकड़ेटुकड़े में उस की मां हरकली के सामने कच्चे फर्श पर पड़ी थी.

हरकली बैठेबैठे रो रही थी. उस का सुहाग उजड़ चुका था. नंदू को अपनी करतूत पर अब पछतावा हो रहा था. उस के हाथ से गंडासा छूट कर नीचे गिर गया. वह भी अपनी मां के पास बैठ गया और पछताते हुए बोला, ‘‘मां, मुझ से यह कांड हो गया. अब क्या होगा मां?’’

हरकली ने सुबकते हुए कहा, ‘‘बेटा, तू ने इतना बड़ा कांड कर दिया है, इस की सजा जेल तो है ही, मौत की सजा भी हो सकती है.’’

‘‘नहीं मां, मैं जेल नहीं जाना चाहता, मुझे पुलिस से बचा ले मां.’’

अपने पल्लू से आंसू पोंछते हुए मां हरकली ने कहा, ‘‘नंदू, तू ने अपराध ही ऐसा किया है, इस से तू कैसे बच सकता है? सुबह होते ही पुलिस आएगी और तुझे हथकड़ी पहना कर ले जाएगी. हम तो बरबाद हो गए.’’

‘‘नहीं मां, कुछ भी कर, मुझे बचा ले. पुलिस बहुत बेरहमी से मारती है. रूह कांप जाती है.’’

‘‘यह तो बेटा तुझे पहले ही सोचना चाहिए था,’’ मां ने गुस्से में कहा.

‘‘मां, बहुत बड़ी गलती हो गई. अब किसी तरह से बचा ले,’’ इतना कह कर नंदू रोता हुआ अपनी मां के पैरों में बैठ गया. नंदू के तीनों छोटेछोटे बच्चे पहले ही सो चुके थे.

नंदू की पत्नी सुरेखा घबराई हुई सी उन के पीछे आ कर खड़ी हो गई थी. यह भयानक सीन देख कर उस के भी होश उड़े हुए थे.

नंदू का पिता सोमप्रकाश भांग के नशे का आदी हो गया था. भांग के पौधे जटपुर गांव में बहुतायत में मिलते थे. गोबर के ढेर के पास वे खुद ही उग आते थे. गांव के ज्यादातर लोग इस का नशा करते थे.

सोमप्रकाश को तो इस की लत बचपन से ही पड़ गई थी. वह भांग के पौधों की फुंगियों और मुलायम पत्तों को अपने दोनों हाथों से रगड़ता और हाथों पर लगे उस के मैल को तंबाकू में मिलाता. फिर सुल्फिया में भर कर उस के सुट्टे खींचता.

वाह, क्या नशा था भांग का. आह, क्या सुरूर चढ़ता था और फिर क्या ख्वाब आते थे. भांग के नशेड़ी कहते
थे कि और तो मरने के बाद स्वर्ग देखते हैं, वे तो जिंदा ही भांग के नशे में स्वर्ग देख लेते हैं. यह नशा ऐसा था, जिस में किसी की एक पाई खर्च नहीं होती थी.

शादी के बाद जब हरकली को सोमप्रकाश के इस शौक का पता चला, तो उस ने उसे लाख समझाया, पर सोमप्रकाश के कान पर जूं तक न रेंगी. सच है, नशा करने वाला किसी की सुन ले, तो फिर वह नशा ही क्यों करे?

भांग के नशे में सोमप्रकाश अपनी अंधेरी कोठरी में पड़ा रहता. धीरेधीरे हरकली को घर, घेर और जंगल का ज्यादातर काम अपने हाथ में लेना पड़ा. वह ट्रैक्टर से किराए पर खेतों को जुतवा लेती. खुद ही भैंसाबुग्गी जोड़ कर मवेशियों के लिए चारा भी ले आती.

ऐसा नहीं था कि सोमप्रकाश कुछ करता ही नहीं था. बिना नशे के वह बहुत काम करता था. फिर तो वह खेत के किसी काम में हरकली को हाथ भी न लगाने देता. शहर के काम भी निबटा आता और हरकली को खूब प्यार भी करता. हरकली को भी अब उस से कोई शिकायत नहीं थी. गृहस्थी का पहिया सही लुढ़क रहा था.

इसी बीच हरकली 5 बच्चों की मां बन गई थी. 4 बेटियां और एक बेटा नंदप्रकाश उर्फ नंदू. नंदू अकेला लड़का था, इसलिए सब का लाड़ला बन गया. लाड़ला इतना बना कि आवारा और निकम्मा बन गया.

हरकली ने अपनी चारों बेटियों की शादी की और नंदप्रकाश भी जब 21-22 साल का हुआ, तो उस के भी फेरे फिरवा दिए. नंदप्रकाश खेतीबारी खुद संभालने लगा. हरकली को लगा कि अब वह सब जिम्मेदारियों से छुटकारा पा गई है.

नंदप्रकाश भी जल्दी ही 3 बच्चों का बाप बन गया और हरकली इन बच्चों को संभालने में लग गई. बहू सुरेखा घर का कामधाम देखती.

एक दिन नंदप्रकाश शराब पी कर देर से घर लौटा. घर में घुसते ही सोमप्रकाश ने उसे टोक दिया, ‘‘कहां से आ रहे हैं लाट साहब?’’

नंदप्रकाश का मूड उस समय ठीक नहीं था. उस को यह टोकाटोकी अच्छी न लगी. उस ने उलटा तंज कस दिया, ‘‘भंगडि़यों में से, जहां तुम ने अपनी सारी जिंदगी गुजार दी.’’

यह तंज सोमप्रकाश की सहनशक्ति से बाहर था. वह उठा और नंदप्रकाश के गाल पर झापड़ रसीद करते हुए कहा, ‘‘बड़ों से बात करने की तमीज भी भूल गया क्या?’’

नंदप्रकाश के लिए यह काफी था. नशे में तो वह पहले से ही था, अब उस के गुस्से का ज्वालामुखी फट पड़ा. इस से पहले कि हरकली और सुरेखा उस को संभालतीं या कुछ समझा पातीं, नंदप्रकाश ने वहीं पड़ा गंडासा उठाया और उस के कितने ही वार सोमप्रकाश पर कर डाले. अब उस के खुद के बाप की लाश के टुकड़े उस के सामने पड़े थे.

हरकली सोच रही थी कि उस का सुहाग तो उजड़ ही गया है, किसी तरह बेटे को बचा कर घर बचाया जाए. न जाने उस में कहां से हिम्मत आई. उस ने रोना बंद किया और नंदप्रकाश से कहा, ‘‘बेटा, अब तो जो होना था सो हो गया. अब सब से पहले लाश ठिकाने लगाने की सोच.’’

नंदप्रकाश का अब तक नशा उतर चुका था. उस ने कहा, ‘‘मां, मेरी तो मति मारी गई. मुझे तो कुछ सूझ नहीं रहा. तू ही बता कि क्या करूं?’’

‘‘देख बेटा, अभी रात का समय है. तुझे मेरे सिवा और किसी ने हत्या करते देखा नहीं,’’ मां ने दिलासा देते हुए कहा.

‘‘इस का क्या मतलब है मां?’’

‘‘मतलब बाद में समझाऊंगी, पहले लाश को ठिकाने लगाने की सोच. देर मत कर. किसी को पता चल गया, तो कहीं के नहीं रहेंगे.’’

‘‘तो क्या करूं मां?’’

‘‘जा, जल्दी से टिन की छत के नीचे से 3-4 खाद के खाली कट्टे उठा ला.’’

‘‘उन का क्या करेगी मां?’’

‘‘तू उठा कर तो ला. तुम बापबेटे को नशा करने के सिवा कुछ दुनियादारी करना आया है क्या?’’

नंदू ने वैसा ही किया, जैसा मां ने कहा. वह खाद के 3 खाली कट्टे उठा लाया.

हरकली अपने बेटे और घर को बचाने के लिए कुछ देर के लिए पिशाचनी बन गई. सही है, एक औरत अपने परिवार को बचाने के लिए कुछ भी कर सकती है. हरकली कोई जुदा न थी. आखिरकार वह भी एक औरत थी.

वह अपने सुहाग के खून टपकते लोथड़ों को खाली कट्टों में भरने लगी. हाथपैर, हड्डी समेत लोथड़े को एक कट्टे में भर दिया. दूसरे कट्टे में धड़ रख दिया. तीसरे कट्टे में सिर और बचेखुचे लोथड़े रख दिए, फिर खून से सनी मिट्टी खुरपे से खुरचखुरच कर तीनों कट्टों में डाल दी. उस के बाद कच्चे फर्श को राख से ढक दिया.

जब हरकली दोनों हाथों को भरभर कर सोमप्रकाश के शरीर के खून टपकते लोथड़ों को उठा रही थी, तो नंदू ने इस भयंकर सीन से बचने के लिए दूसरी तरफ मुंह कर लिया. सुरेखा तो उलटी करने के लिए रसोई की ओर भाग गई.

फिर हरकली ने तीनों कट्टों के मुंह सूए से सिल दिए. उन तीनों कट्टों को एक खाली पड़े धान के बोरे में भर दिया और बोरे का मुंह सन की मजबूत रस्सी से बांध दिया.

जिस गंडासे से नंदू ने अपने बाप की हत्या की थी, उस गंडासे पर सब जगह अपने खून से सने हाथ पोंछ दिए, जिस से नंदू के हाथ का कोई निशान गंडासे पर न रह जाए, फिर उस ने उस खून सने गंडासे को ऐसे ही लकडि़यों के एक ढेर में छिपा दिया. वह आगे की सोच कर चल रही थी. आधी रात को जब पूरा गांव
सोया हुआ था, तब हरकली ने नंदू से मोटरसाइकिल स्टार्ट कराई. नंदू के पीछे लाश वाले बोरे को रखा.

फिर 2 फावड़े ले कर उस के पीछे बैठ गई.

हरकली ने नंदू से कहा, ‘‘बेटा, मोटरसाइकिल को सुक्खा नदी के किनारे ले चल और कोई कितना भी रोके, मोटरसाइकिल को रोकना मत.’’

कुछ ही देर में वे मोटरसाइकिल ले कर नदी के किनारे पहुंच गए. एक महफूज जगह देख कर मांबेटे गड्ढा खोदने में जुट गए, लेकिन हरकली पहले से ही थकी हुई थी, वह फावड़ा चलाते ही हांफ गई. नंदू ने अकेले ही गड्ढा खोदा.

मिट्टी रेतीली और नमीदार थी. लिहाजा, जल्दी ही गहरा गड्ढा खुद गया. फिर दोनों ने उन बोरे को उस गड्ढे में दफन कर दिया.

गड्ढे का मुंह बंद कर उस के ऊपर नंदू ने नदी किनारे उगी एक झाड़ी उखाड़ कर रख दी, जिस से कोई आसानी से गड्ढे को पहचान न सके.

सब काम हरकली ने बड़ी सफाई से किया. घर आ कर खून से सने सभी कपडों को पैट्रोल छिड़क कर जला दिया. नहाधो कर दोनों ने साफ कपड़े पहन लिए.

सुबह के 4 बज चुके थे. हरकली काफी थकान महसूस कर रही थी. उस ने सुरेखा से चाय बनवाई.

नंदू अब भी घबरा रहा था, जबकि हरकली के लिए घर में कोई मौत जैसी चीज नहीं रह गई थी.

‘‘मां, मुझे तो अब भी डर लग रहा है,’’ नंदू बोला.

‘‘बेटा, जब मैं नहीं घबरा रही हूं, तो तू क्यों घबरा रहा है? तू तो वैसे भी मरद है. तू चिंता मत कर. जब तक तेरी मां जिंदा है, तेरा कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता.’’

कोई कितना भी शातिर क्यों न हो, कोई न कोई सुबूत तो जानेअनजाने में छोड़ ही देता है. खून की कुछ बूंदें बोरे से रास्ते में टपकती चली गई थीं.

गांव के आवारा कुत्ते उन खून की बूंदों को सूंघते हुए लाश दबे गड्ढे तक पहुंच गए. उन्होंने पंजों से गड्ढे को खोद कर बोरा बाहर खींच लिया.

अभी वे बोरे को दांतों से खींच ही रहे थे, तभी सुबह के वक्त नदी किनारे शौच के लिए आए लोगों ने कुछ शक होने पर कुत्तों को वहां से भगा दिया और मंडावली थाने को सूचना दी.

पुलिस ने आते ही अपनी कार्यवाही शुरू की. तीनों कट्टों के मुंह खोले गए. यह पक्का हो गया था कि यह इनसानी शरीर है, लेकिन किस का…? एक कट्टे से खोपड़ी निकली, तो सब हैरान रह गए. सोमप्रकाश के चेहरे को पहचानने में गांव वालों से कोई गलती नहीं हुई.

पुलिस हरकली के घर पर आ धमकी. सब को यही शक था कि नंदप्रकाश ने ही अपने बाप की हत्या की होगी.

जैसे ही पुलिस ने नंदप्रकाश को पकड़ना चाहा, हरकली दहाड़ी, ‘‘खबरदार दारोगा, जो नंदू को हाथ भी लगाया. अपने आदमी को मैं ने मारा है, मुझे पकड़ो.’’

‘‘इस का क्या सुबूत है कि तुम ने ही अपने आदमी को मारा है?’’ दारोगा ने पूछा.

तभी वह लकडि़यों के ढेर में से खून से सना गंडासा ले कर आई और बोली, ‘‘लो दारोगा, यह रहा सुबूत. अभी तो इस पर लगा खून सूखा भी नहीं है. सबकुछ ताजाताजा है. जांच करने वालों को भी आसानी होगी.’’

यह सुन कर दारोगा सत्यवीर और गांव वाले दंग रह गए. सब के मन में एक ही सवाल था कि आखिर हरकली ने अपने आदमी को क्यों मारा? वह भी इतनी बेरहमी से, गंडासे से काट कर?

दारोगा सत्यवीर ने गंडासे को सीलबंद कराया और कानूनी कार्यवाही करते हुए थाने से 2 महिला कांस्टेबल बुलवाईं. हरकली को गिरफ्तार कर थाने लाया गया.

पूछताछ के लिए पुलिस नंदप्रकाश को भी थाने ले आई. फिर हरकली को बिजनौर जिला जेल भेज दिया गया. नंदप्रकाश को फिलहाल वकील ने जमानत पर छुड़वा लिया.

अदालत में पेशी वाले दिन वकील ने नंदप्रकाश को अच्छे से समझा दिया था कि उसे क्या बोलना है. सुरेखा को तो एकएक शब्द रटा दिया गया था.

हरकली ने अदालत में बयान दिया, ‘‘जज साहब, मेरा पति सोमप्रकाश नशेड़ी था. बहू सुरेखा उसे खाना देने गई थी. उस ने बहू की इज्जत पर हाथ डालने की कोशिश की. हरकत तो उस नशेड़ी की पहले से ही ऐसी थी, लेकिन उस रात तो उस ने सारी हदें पार कर दीं और बहू की धोती खींच ली.

‘‘मैं यह सब देख रही थी. मैं भी एक औरत हूं. औरत कुछ भी बरदाश्त कर सकती है, लेकिन अपनी इज्जत पर हाथ डालना नहीं, फिर वह चाहे कोई भी हो.

‘‘इस से पहले कि बहू कुछ करती, मैं ने वहीं पड़ा गंडासा उठाया और उस कलयुगी राक्षस पर गंडासे के कई वार कर दिए. उस का वहीं काम तमाम हो गया. बहू ने तो मुझे रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन मैं तो जैसे गुस्से से पागल हो गई थी.’’

‘‘क्या नंदप्रकाश उर्फ नंदू ने कुछ नहीं किया?’’ जज ने पूछा.

‘‘जज साहब, वह तो तब कुछ करता, जब वहां होता. वह तो इस घटना के तकरीबन आधे घंटे बाद नशे में चूर हो कर घर आया था.’’

बहू सुरेखा ने भी वही दोहरा दिया, जो वकील ने उसे रटाया था. नंदप्रकाश भी वकील की ही भाषा बोला. पुलिस ने भी सुबूत के तौर पर गंडासे पर हरकली के ही हाथों के निशान की रिपोर्ट पेश कर दी.

वकील और हरकली के हिसाब से सुनवाई सही दिशा में जा रही थी. सभी सोच रहे थे कि हरकली को सजा दे दी जाएगी और बात खत्म.

जज ने अपना फैसला सुनाना शुरू किया, ‘‘गवाहों के बयानों और सुबूतों के आधार पर हरकली…’’

‘‘रुकिए जज साहब, रुकिए. यह सच नहीं है.’’

सब की निगाहें चिल्लाने वाले शख्स की तरफ गईं. यह नंदप्रकाश था.

‘‘जज साहब, मेरी मां बेकुसूर है. यह हत्या मैं ने की है.’’

‘‘लेकिन, सुबूत और गवाह तो ऐसा नहीं कहते.’’

‘‘ जज साहब, मेरी मां मुझे बचाने के लिए ऐसा कर रही है. लेकिन जज साहब, मेरा दिल गवारा नहीं कर रहा है कि मेरी जगह मेरी मां जेल जाए.’’

‘‘जज साहब, मेरे बेटे की मत सुनिए. वह जज्बातों में बह रहा है. अदालत की कार्यवाही पूरी हो चुकी है. आप अपना फैसला सुना दीजिए जज साहब,’’ हरकली ने कठघरे से कहा.

‘‘नहीं जज साहब, सारे सुबूत और गवाह झूठे हैं. मैं आप को सब से बड़ा सुबूत देता हूं.’’

सब हैरान से नंदप्रकाश की ओर देखने लगे.

‘‘जज साहब, हत्या की बात तो छोडि़ए, इस उम्र में अगर मेरी मां इस गंडासे से 4 वार ही कर दे, तो मैं जानूं.’’

गंडासा मंगवाया गया, जो काफी वजनी था. उस गंडासे को देख कर कोई भी कह सकता था कि हरकली इस गंडासे से इतने ज्यादा भयंकर वार नहीं कर सकती.

अब तो जज भी उलझन में पड़ गया. वह भी समझ रहा था कि मांबेटे एकदूसरे को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. अब मुकदमे में एक नया मोड़ आ गया था. उस ने अपना फैसला टाल दिया और पुलिस को फिर से जांच करने के आदेश दिए. तब तक के लिए हरकली को भी जमानत मिल गई.

‘‘वाह नंदप्रकाश, तुम ने तो कमाल ही कर दिया,’’ वकील ने अदालत से बाहर आ कर कहा.

‘‘बस वकील साहब, आप की ही होशियारी है. आप ने हम दोनों को फिलहाल तो बचा लिया है,’’ नंदू
ने कहा.

‘‘फिलहाल ही नहीं नंदप्रकाशजी, अब आप दोनों समझ लेना जेल जाने से बच ही गए हो. इस मामले में अब पुलिस के हाथ हत्या का कोई सुबूत लगने वाला नहीं. बस, तुम पुलिस को खुश रखना.

‘‘बाकी भारतीय कानून व्यवस्था की लचरता को मैं अच्छी तरह समझाता हूं. यह प्याज के छिलके की तरह है, तारीख पर तारीख लगती चली जाती है, जिन का कोई अंत नहीं होता. अपराधी दुनिया से चला जाता है, लेकिन तारीखें खत्म नहीं होती हैं.

‘‘जहां तक सुबूत की बात है, बिना सुबूत के तो यहां कसाब को भी फांसी नहीं लगती, जो 26/11 के हमले में मुंबई के ताज होटल से रंगे हाथ पकड़ा गया था.’’

‘‘तो अब क्या करना है?’’

‘‘नंदप्रकाशजी, आप जरा भी चिंता मत करो. तारीख पर तारीख लगवाना मेरा काम है. अभी तो मामला निचली अदालत में है. अभी तो ऊपरी अदालतें अपील के लिए बची हुई हैं. मुझे इन अदालतों पर पूरा भरोसा है, आप बेफिक्र हो कर जिएं,’’ वकील ने मुसकराते हुए कहा.

हरकली जब जमानत पर बाहर आई, तो उस ने नंदप्रकाश को खूब डांटा. तब नंदप्रकाश ने हरकली की गोद में सिर रखते हुए कहा, ‘‘मां, मेरे रहते तू जेल जाए, ऐसा नहीं हो सकता. आखिर मेरी रगों में भी तो तेरा ही खून दौड़ रहा है, इसीलिए तो मैं ने तुझे बचाने के लिए जिले का सब से बढि़या वकील किया. उस ने हम दोनों को ही बचा लिया.’’

यह सुन कर हरकली मानो निहाल हो गई थी.

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