हम खो जाएंगे : भाग 2

अपनी बातों के दरम्यान वह आमतौर पर हम का ही इस्तेमाल करती थी. अपनी उम्र से कहीं ज्यादा समझदार थी. कभी मूड में होती थी तो मजे की बातें करती थी, वरना आमतौर पर मेरे सामने आ कर बैठ जाती थी और बड़ीबड़ी आंखों से एकटक देखा करती थी. मेरे अलावा उस घर में कभीकभार एक लड़का दिखाई दिया करता था. उस का नाम नासिर था.

मुझे यह नहीं मालूम था कि उस का घर से क्या रिश्ता है मगर वह बड़ी बेतकल्लुफी से शाहीना से बात किया करता था. शाहीना ने बस सिर्फ इतना बताया था कि वो उन का रिश्तेदार है. कई बार मन होता कि उस से सवाल करूं कि रिश्ता क्या है? मगर यह सोच कर छोड़ दिया कि मुझे पेड़ गिनने से क्या मतलब?

शाहीना मुझ पर मरती थी. जेब कभी खाली नहीं रहती थी. तनख्वाह 2 सौ रुपए थी. 100 रुपए अब्बू ऐंठ लिया करते थे, 50 अम्माजी की भेंट चढ़ जाते थे. मेरे हिस्से में केवल 50 रुपए रह जाते थे. खुद सोच लें कि एक आवारागर्द लड़के को कितने दिन मजे से रख सकते थे.

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महीने के शुरू के दिनों में ही जेब खाली हो जाती थी. शाहीन को मैं ने अपनी आर्थिक स्थिति शुरू में ही बता दी थी कि मैं फोरेस्ट डिपार्टमैंट में काम करने वाले एक मामूली से नौकर की छठी औलाद हूं.

बाप अपनी 3 बहनों और 2 बेटियों की शादी करने के बाद बिलकुल कंगाल हो चुका है. इसलिए मेरी तालीम के खर्चे बड़ी मुश्किल से पूरे हो पाते हैं. अम्मी अकसर बीमार रहती हैं. उन का अच्छी तरह इलाज नहीं हो सका है. रिजल्ट के बाद प्राइवेट तौर पर इम्तिहान की तैयारी करूंगा. अच्छी नौकरी मेरी जिंदगी का मकसद है.

मौजूदा नौकरी टैंपरेरी है किसी भी समय जवाब मिल सकता है. जब तक तुम्हारे अब्बू मेहरबान हैं, हमारा गुजारा हो रहा है. जैसे ही उन्हें पता चलेगा कि उन की बेटी से इश्क फरमाने लगा हूं, वो मुझे नौकरी से निकाल बाहर करेंगे. इस से पहले कि यह स्थिति आ जाए मैं खुद यह नौकरी छोड़ना चाहता हूं.

शाहीना मेरी दर्द भरी कहानी सुन कर मेरी मोहब्बत पर और जोर से ईमान ले आई. वो चुपकेचुपके मेरी जेब में सौपचास के नोट डाल दिया करती  थी. कभी सूट का कपड़ा खरीद लाती तो कभी पतलून, टाई तोहफे में दे देती.

3 महीने बाद मेरा रिजल्ट आ गया. मैं थर्ड डिविजन में पास हो गया था. औफिस में मिठाई बांटी. वहीद साहब ने बुलवा लिया. मुबारकबाद दी. कहने लगे, ‘‘मियां, माशा अल्लाह होनहार हो. इम्तिहान में निकल गए यहां मीटिंग होने वाली है, देखते हैं तुम्हारा मुकद्दर यहां भी चमकता है या नहीं. अगर तुक्का चल गया तो तनख्वाह भी बढ़ जाएगी और नौकरी भी पक्की हो जाएगी.’’

मुझ से मीठी बातें करने के बाद उन्होंने तोते की तरह आंखें फेर लीं. हुआ यह कि उन के रिश्तेदार ने भी इंटर पास किया था. वह सिफारिश के लिए उन के पास आ गया. वहीद साहब ने चुपकेचुपके उसे अपने पास रखने का फैसला कर लिया. मुझे पता ही नहीं चलने दिया. मेरी वह रिपोर्ट जो कुछ दिनों बाद मीटिंग में पेश करनी थी, रातोंरात बदल दी.

मुझे इस काम के लिए अयोग्य और गैरजिम्मेदार करार दे कर फौरी तौर पर नौकरी से अलग करने की सिफारिश के साथ दूसरी रिपोर्ट मीटिंग में पेश कर दी. औफिस में दूसरे लोग पहले से ही मुझ से जलते थे कि हर समय साहब के घर के चक्कर काटता रहता है. औफिस का काम करता ही कहां था.

वहीद साहब ने मुझे अपना पीए बना डाला और इस का बदला भी कुछ नहीं मिला. आखिरी समय तक उन्होंने मुझे धोखे में रखा. यही कहते रहे कि फिक्र न करो मियां तुम्हारी नौकरी पक्की करवा देंगे.

मीटिंग हुई. मुझे पूरी उम्मीद थी कि नौकरी भी पक्की होगी और पैसे भी बढ़ेंगे. अपने तौर पर सारी काररवाई बड़े ही खुफिया तरीके से हो रही थी. जैसे ही मीटिंग खत्म हुई, मैं वहीद साहब से मिलने के लिए बेचैन हो गया. वो नहीं मिले, सीधे घर चले गए. मैं घर पहुंचा. पता चला कि किसी काम से बाहर गए हुए हैं.

औफिस आया तो नक्शा ही बदला हुआ था. हर जुबान पर मेरी नौकरी खत्म होने का जिक्र था. जूनियर एकाउंटेट ने बुला कर मुझे सारी सच्चाई बता दी कि वहीद साहब ने तुम्हारे साथ ज्यादती की है.

मेरे तनबदन में आग लग गई. उन्होंने ए टू जैड तक मीटिंग की सारी काररवाई सुना दी. कहने लगे, ‘वह बड़े काइयां हैं. देखना, वो तुम से मिलना भी गवारा नहीं करेंगे. उन्होंने मीटिंग के बाद उस लड़के का अपौइंटमेंट लैटर भी टाइप करवा लिया है, जिसे वह तुम्हारी जगह रखना चाहते हैं. यह लड़का नासिर उन का रिश्तेदार है.’

मेरे कानों की लौएं गरम हो गईं. नासिर को मैं ने उन के घर भी देखा था. इस का मतलब यह हुआ कि दोनों बापबेटी मुझे उल्लू बना रहे थे. वहीद साहब ने उसे नौकरी दिलवाई है. बेटी उसे बहुत लिफ्ट देती है. अब मेरी जगह नासिर वहां जाया करेगा.

अगर इस समय शाहीना इस खेल में शरीक न थी तो क्या हुआ. चंद दिनों बाद वो भी जैनब की तरह पटरी बदल कर नए रास्ते पर चल निकलेगी. लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगा. मुझे वहीद साहब को ऐसा मजा चखाना होगा कि वह भी याद रखें.

अगले दिन सूरज डूबने के वक्त वहीद साहब के घर पहुंचा, मुझे मालूम था कि इस वक्त बच्चों सहित वह सैर के लिए किसी छोटे पार्क में जाते हैं और घर पर शाहीना अकेली होती है.

मेरा पैगाम पहुंचते ही वह बेकरारी से बाहर निकल आई. कहने लगी, ‘कमाल के आदमी हैं आप, सुना है कल आए थे. बाहर से ही अब्बू को पूछा और चल दिए, हम इंतजार करते ही रह गए. हमें आप से बहुत जरूरी बात करनी थी.’

वह मुझे अंदर ले आई. घर में उस के सिवा और कोई न था. कहने लगी, ‘वो लोग अभी सैर के बाद लौट आएंगे. हम फिर शायद इतनी आजादी के साथ आप से न मिल सकें. अब्बू हमारी शादी नासिर से करना चाहते हैं. वह अब्बू का भांजा है. हमें इस रिश्ते पर कोई ऐतराज न होता अगर आप से पहले वादा न किया होता. हम वादा निभाने वालों में से हैं. बताइए, आप हम से शादी करेंगे या यों ही दिल्लगी कर रहे थे.’

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लड़की की इस साफगोई से पसीने छूट गए. मगर यह हिम्मत दिखाने का मौका था. मैं ने कहा, ‘मैं तुम्हें अपनी जिंदगी का साथी बनाना चाहता था, मगर तुम्हारे अब्बू साहब ने सब कुछ चौपट कर दिया. उन्होंने मुझे नौकरी से निकलवा दिया है और नासिर को मेरी जगह रख लिया है.’

वह बोली, ‘यह तो और भी अच्छा हुआ. अब्बू साहब हमारी यह ख्वाहिश कभी पूरी नहीं करेंगे. वह नासिर से भी कहते रहते हैं कि यह लड़की तुम्हारा सुकून बरबाद कर देगी. हम सचमुच उन का सुकून बरबाद कर के छोड़ेंगे, आप हमारे साथ चलने को तैयार हो जाइए.

‘हम दोनों यह शहर छोड़ कर मुंबई चले जाएंगे. आप वहां नौकरी तलाश कर के हमारे लिए छोटा सा घर बना दें, हम सारी उम्र आप के कदमों में बसर करेंगे. इस घर से अब हमें नफरत होने लगी है.’

ओह, तो साहबजादी मेरे साथ भागने के मंसूबे बना रही थीं. यानी कुदरत ने बदला लेने का मौका खुद ही हमारी झोली में डाल दिया था. वहीद साहब ने अपने भांजे को खुशियां देने के लिए मेरी नौकरी और अपनी बेटी के जज्बात की भेंट चढ़ाई थी. उन्हें सबक देना जरुरी हो गया था.

मैं ने फौरन शाहीना के मंसूबे पर हामी भर दी. वह कहने लगी, ‘आप खर्चे की फिक्र न करें. सारा इंतजाम हम करेंगे. आप पर आंच नहीं आने देंगे. जब तक आप की नौकरी नहीं लगेगी, घर का खर्च हम उठाएंगे.

इस हसीन पेशकश पर दिल झूम उठा. सोचा सब मुफ्त में हाथ आए तो बुरा क्या है. मेरे घर वाले खुद मेरी आवारागर्दी से तंग आए हुए हैं. उन से कह दूंगा कि मुंबई जा कर नौकरी ढूंढूंगा. अब्बू के बारे में मुझे पता था कि बहुत खुश होंगे.

वह बारबार कहते थे कि मंसूर मियां कोई दूसरी नौकरी ढूंढो. यह सौपचास वाली नौकरी दिल को कुछ जंचती नहीं. उन की यह हसरत भी पूरी हो जाएगी कि मैं दूसरे शहर जा कर भी नौकरी तलाशने की कोशिश करुंगा. अभी मैं ने उन्हें नौकरी छूटने के बारे में कुछ नहीं बताया था.

घर लौटा तो पूरी योजना मेरे दिमाग में तैयार हो चुकी थी. वहीद साहब से बदला ले कर अपने भविष्य तक के लिए ढेरों सपने देख डाले थे मैं ने. शाहीना एक अच्छी बीवी साबित हो सकती थी. इस से पहले जिन आधा दरजन लड़कियों से मेरा चक्कर चला था, जो खुद भी मेरे जैसी ही थीं. इसलिए मुझे शाहीना की मोहब्बत पर भी शक होने लगा था कि वह भी यूं ही वक्त गुजारी के तौर पर यह शगल अपनाए हुए है.

मगर जब उस ने मेरे साथ जिंदगी गुजारने का पूरा प्रोग्राम संजीदगी से सुना दिया, तब मुझे वो अच्छी लगी कि शादी कहीं न कहीं तो करनी ही होगी. यह लड़की इतनी कुरबानियां दे रही है, सारी उम्र वफादार रहेगी. वहीद साहब तिलमिला कर रह जाएंगे और उन का वो भांजा हाथ मलता रह जाएगा. उन्हें कभी दुश्मन का नाम तक मालूम हो नहीं सकेगा.

प्रोग्राम यह तय हुआ था कि वो अपनी खाला के घर जाने के बहाने घर से निकलेगी. और खुद स्टेशन पहुंच जाएगी. वहां मैं उस का इंतजार करूंगा और पहले से ही 2 टिकट खरीद लूंगा, वह ऐन वक्त पर आएगी. दोनों अलगअलग डिब्बों में सफर करेंगे.

अपनाअपना टिकट पास रखेंगे. ताकि किसी को शुबहा न हो. अगर खुदा न खास्ता पुलिस ने हम में से किसी एक को पकड़ लिया तो वह हरगिज दूसरे का नाम न लेगा और ऐसी सूरत में उस से पूरी तरह से अजनबी बन जाएगा. वैसे इस बात की संभावना बहुत कम थी, फिर भी इस तेज दिमाग की लड़की को मुझे बचाए रखने का पूरा ध्यान था.

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तय प्रोग्राम के मुताबिक मैं ने अब्बू को बता दिया कि मैं एक इंटरव्यू के लिए मुंबई जा रहा हूं. अगर नौकरी मिल गई तो अपना सामान लेने वापस आ जाऊंगा. न मिल सकी तो कुछ दिन ठहर कर एकदो जगह और कोशिश करूंगा.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

हम खो जाएंगे : भाग 1

हर औरत की तरह मेरी बीवी हूरा बेगम को भी जेवरात का बड़ा शौक है. मैं ने शादी पर जो जेवरात चढ़ाए थे, 20 साल गुजरने के बावजूद उन्हें यों सीने से लगाए रखती है जैसे बंदरिया अपने बच्चे को. मैं उस से कहता भी हूं, ‘हूरा बेगम इन्हें बेच कर नए फैशन के जेवरात खरीद लाओ. तुम्हारा दिल इन से अभी तक भरा नहीं?’

तो वो एकदम जज्बाती सी हो कर कहती है ‘मंसूर इंसान का उन चीजों से कभी दिल नहीं भरता जो उस के दिलोदिमाग में खुशगवार यादों की बस्ती आबाद कर देती हों. जब मैं आज की बोझिल जिम्मेदारियों से थक कर इन जेवरात की पिटारी खोलती हूं तो ऐसा लगता है कि मैं वही नई ब्याहता दुल्हन हूं और तुम अपने जज्बात से लरजते हाथों से मुझे ये जेवर पहना रहे हो.

तुम्हें याद है न, तुम ने चुपके से अपनी बहन सलमा से कहलवाया था कि हूरा से कह देना जब मैं आऊं तो वो फूलों का गहना पहने मिले, धातु के जेवरात उतार देना. मैं ने तुम्हारा हुक्म फौरन मान लिया था. मगर पता नहीं क्यों मुझे यह बदशगुनी सी लगी थी कि शादी की पहली रात ही दूल्हे को अपने रूप का जलवा दिखाए बगैर दुलहन जेवर उतार दे.

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मेरी आंखों में आंसू भर आए थे. तुम ने मेरे दुखी दिल को महसूस कर के पूछा था ‘हूरा क्या बात है तुम खुश नहीं लग रहीं. क्या मुझ से शादी तुम्हारी मरजी के बगैर हुई है?’ मैं ने तड़प कर तुम्हारे मुंह पर हाथ रख दिया था, याद है न. फिर तुम्हारे बहुत जोर देने पर मैं ने अपने दिल की बात बता दी थी.

तुम बहुत देर तक गुमसुम से बैठे रहे थे. फिर उठ कर मेरे पास आ गए थे और जेवरात का डिब्बा खोल कर सारे जेवर मुझे अपने हाथों से पहनाते हुए कहा था. लो बस अपना दिल मैला न करो.

आज की रात एकदूसरे के लिए हमारे दिल में मोहब्बत के सिवा और कोई जज्बा पैदा नहीं होना चाहिए. तुम्हें याद है न? और तुम ने मुंह दिखाई में मुझे यह सैट दिया था?’

मेरी बीवी यह वाकया कई बार मुझे सुना चुकी है. हर बार वह एक मजे के साथ इस वाकिए का एकएक लफ्ज सौसौ रंगों में डुबो कर सुनाती है. मगर बेवकूफ यह नहीं जानती कि यह वाकया सुनते हुए मेरा ब्लडप्रेशर हाई होने लगता है. उसे नहीं मालूम कि उस के शौहर को इन जेवरात से क्या एलर्जी होती है. उस ने शादी की पहली रात यह क्यों कहा था कि वो फूलों का गहना पहन ले. हर आदमी की जिंदगी में कुछ बातें ऐसी जरूर होती हैं जिन का राजदार वो खुद ही होता है.

सालोंसाल बल्कि सारी उम्र साथ रहने वाली बीवी भी नहीं जानती कि उस के शौहर के दिल के चंद खाने उस से छिपे हुए हैं. वह खुश कर देने वाले चंद जुमलों से अपने दिल को आबाद करती रहती है. खुद को धोखा देती रहती है कि उस की जिंदगी में दाखिल होने वाली मैं वो अकेली औरत हूं जो उस के दिलोदिमाग पर पूरी तरह कब्जा किए हुए है.

इस आत्ममुग्धता के सहारे वो खुशीखुशी अपने जिस्मोजान की कुर्बानी देती चली जाती है. अच्छा ही है कि वह इस आत्ममुग्धता में डूबी रहती है. अगर वह हर सच्चाई की तह में उतरने वाली अकल ले कर पैदा होती तो शिकारी फितरत वाला मर्द सारी उम्र शिकार से महरूम (वंचित) रह जाता.

हां, दूसरे मर्दों की तरह मैं भी शिकारी फितरत वाला मर्द था. जवानी के दौर में कई सारी लड़कियां मेरी मोहब्बत के जाल में फंस कर मुझ पर अपना तनमन और धन न्यौछावर करती रहीं. कुलसुम, जैनब, हमीदा, गुलफ्शां, साजिदा. कोई एक नाम हो तो याद भी करूं, बहुत से चेहरे तो वक्त ने धुंधला भी दिए हैं.

सिर्फ एक चेहरा ऐसा है जिसे मैं कोशिश के बावजूद अपनी नजरों से जुदा नहीं कर सका हूं. और वो है शाहीना का चेहरा. उस का बाप एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. उन दिनों मैं ने इंटर का इम्तिहान दिया था. वक्त ही वक्त था.

मेरे एक दोस्त ने मशविरा दिया कि जब तक रिजल्ट न आ जाए हम कहीं नौकरी कर लेते हैं. अगर कामयाब हो गए तो पढ़ाई जारी रखेंगे. कभी नौकरी पढ़ाई में रुकावट बनी तो उसे छोड़ देंगे. वह गुजराती लड़का था. हमेशा फायदे की बात सोचा करता था.

हम दोनों की गाढ़ी छनती थी. हम दोनों ने नौकरी की तलाश बड़ी लगन से शुरू कर दी. दोनों एक साथ कई औफिसों की धूल छानते फिरा करते थे. इस फाकामस्ती (दरिद्रता) की हालत में भी मोहब्बत का कारोबार जारी रहता था.

यहांवहां घूमतेभटकते शाहीना के अब्बा से मुलाकात हो गई. वो अकाउंटेंट थे. उन्होंने हमारी दरखास्तें बड़े गौर से पढ़ीं और दोनों को बुलवा लिया. कहने लगे हमारे यहां एक जगह खाली है. और वो भी टैंपरेरी है. संभव है कुछ महीनों बाद हम वो पद खत्म कर दें या स्थाई कर दें. यह बात अगले 3 महीने बाद मीटिंग में ही तय होगी, तुम में से एक को यह नौकरी दी जा सकती है. आपस में फैसला कर लो कि तुम दोनों में से ज्यादा जरूरत किस को है?

मेरा गुजराती दोस्त फौरन पीछे हट गया. कहने लगा, ‘जनाब मेरे इस दोस्त को रख लीजिए. मेरे अब्बा की दुकान है, मैं तो वैसे भी व्यस्त रहता हूं. यह बिलकुल बेकार फिरता रहता है. इसे बैठने का ठिकाना मिल जाएगा.’

इस तरह मुझे नौकरी मिल गई. इस पद के रहने न रहने का अधिकार वहीद साहब के हाथ में था. इसलिए मैं ज्यादातर उन्हीं के आसपास मंडराता रहता था. उन्होंने मुझे अपने निजी कामों के लिए घर भेजना शुरू कर दिया. घर में शाहीना से मुलाकात हो गई. गोरी रंगत वाली यह लड़की मेरी नजरों में आ गई.

उन दिनों मेरा चक्कर जैनब से चल रहा था, जो मेरे लगातार झूठ बोलने से तंग आ गई थी. वह चुपकेचुपके अपने रिश्ते के भाई को शीशे में उतार कर शादी की तैयारियां कर रही थी. मुझे उस की बहन ने सब कुछ बता दिया था.

इस से पहले कि वो मुझे दुत्कारती मैं खुद उसे छोड़ना चाहता था. मगर जब तक इस ध्ांधे के लिए कोई दूसरी लड़की नहीं मिलती, यह जरा मुश्किल काम लगता था. शाहीना पर नजर पड़ी तो दिल ने चुटकी ली कि लो मियां तुम्हारा बंदोबस्त हो गया. लड़की कम बोलती है, सूरतशक्ल अच्छी है. थोड़ी सी मेहनत करनी पड़ेगी. यह कौन सा मुश्किल है, ज्यादा से ज्यादा एकदो हफ्ते लगातार अदाकारी करनी पड़ेगी.

सब से पहले मैं ने उस का बैकग्राउंड मालूम किया. पता चला कि शाहीना वहीद साहब की सगी औलाद नहीं है. वह उस की मां के पहले शौहर से है. मां का तलाक हो गया था. बच्ची उसी के पास रही. उस ने वहीद साहिब से शादी कर ली. उन की बीवी एक बच्चे को जन्म दे कर मर चुकी थी. बच्चा जिंदा था.

उस की परवरिश के लिए वह दूसरी शादी के इच्छुक थे. शाहीना की उम्र उस समय ढाई साल थी. किसी दोस्त के जरिए से यह रिश्ता तय हो गया था. शादी के बाद दोनों मियांबीवी ने अपने बच्चों की हिफाजत के लिए एक फैसला किया.

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बीवी अपने फैसले पर कायम रही, उस ने वहीद साहब के बेटे को अपनी औलाद से बढ़ कर प्यार दिया. मगर वहीद साहब अपनी सौतेली बच्ची से दिमागी तौर पर समझौता न कर सके. उन्होंने कभी उसे गोद तक में नहीं लिया. उस की जरूरतों का खयाल न रखा. ऊपर से 4 बच्चे और आ गए शाहीना बिलकुल बैकग्राउंड (नेपथ्य) में चली गई.

जैसेजैसे वह बड़ी होती गई उस पर जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ता गया. मां को इतना समय नहीं मिलता था कि उस की परेशानियों को समझ सकती. वो अंदर ही अंदर अपने सारे बहनभाइयों से जलती थी, जिन्होंने मिल कर उस की मां को उस से छीन लिया था.

पढ़ाई में कमजोर थी या शायद उस ने अपना सारा दिमाग बहनभाइयों को जलाते रहने की तरकीबों पर लगा दिया था. बाप उस से नफरत करता था. हर गलती उसी के सिर पर थोप कर उस से पूछताछ करता था.

देखने में तो कम बोलने वाली और दूसरों की खिदमत करते रहने वाली लड़की नजर आती थी, मगर जैसेजैसे उस के भेद खुलते गए मुझे अंदाजा हो गया कि वह बहनभाइयों को आपस में लड़वा कर बड़ी खुश होती है.

19-20 बरस की लड़की, नन्ही बच्ची की तरह भागतीदौड़ती फिरा करती थी. कभी आंगन वाले पेड़ पर चढ़ जाती तो कभी दीवार पर जा बैठती. जुबान नहीं खोलती थी. मैं ने कुछ दिन उस की मनोस्थिति समझने में लगाए फिर बिल्ली की तरह पुचकार कर उसे अपने करीब कर लिया.

उस की गुर्राहटें आहिस्ताआहिस्ता कम होने लगीं. लहजे में नरमी आ गई. जज्बात की हल्की सी तपिश से उस के दिल की सख्त चट्टान मोम में बदल गई और इस से पहले कि जैनब मुझे अपनी शादी का कार्ड थमाती, मैं ने शाहीना से मोहब्बत का इकरार करवा लिया.

जैनब की छुट्टी कर के मैं जोरशोर से शाहीना पर मरने लगा. मुझे उस जमाने में हर लड़की फ्लर्ट लगती थी. शायद इसलिए कि मेरी पहले की सारी महबूबाओं में एक भी वफा वाली नहीं थी. वहीद साहब के हुक्म पर जब भी मैं उन के घर जाता था, मोहल्ले के किसी बच्चे के हाथ पहले ही शाहीना को इत्तला भिजवा दिया करता था.

वह किसी न किसी बहाने बैठक (उस जमाने में ड्राइंगरूम को बैठक कहते थे) में आ जाती. मुझ से मिलने के बाद उस के चेहरे पर काफी सुकून छा जाता. अकसर कहती थी मंसूर आप ने हमारे दिल में जीने की उमंग पैदा कर दी है. वरना हम सोचा करते थे किसी रोज अफीम खाकर मर जाएं. हम से यहां कोई प्यार नहीं करता. अब्बू कहते हैं कि हमारी रगों में उन का खून नहीं है, इसलिए हम बदतमीज हैं, चालाक हैं, बेहूदा हैं.

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उन्हें हमारे अंदर दुनिया भर की कमियां नजर आती हैं. अम्मी उन्हें और उन की औलाद को खुश करने के लिए हमें उन सब के सामने जलील करती रहती हैं. वो हम से इतना काम लेती हैं कि अगर हम कहीं नौकरी कर लें तो इस जगह से कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से जिंदगी गुजार सकते हैं.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

धर्म की दोधारी तलवार : भाग 3

शाहनवाज का पिता रशीद अहमद शौकत अली पार्क कर्नलगंज बजरिया में रहता था. शाहनवाज उस का सब से छोटा बेटा था. बड़ी बेटी फरजाना जाजमऊ सरैया बाजार निवासी आमिर खान को ब्याही थी. बड़ा बेटा रशीद अहमद चमड़े का व्यवसाय करता था. शाहनवाज उन के व्यवसाय में मदद करता था. शाहनवाज शादीशुदा था.

शाजिया उस की पत्नी थी, लेकिन वह फरेब कर सीता से शादी करना चाहता था. उस ने मन बना लिया था कि वह सीता उर्फ नेहा से शादी रचा कर उसे परिवार से अलग कमरा ले कर रहेगा.

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शाहनवाज निश्चित दिन तारीख व समय पर आजमगढ़ पहुंच गया और होटल गगन में ठहर गया. उस के लिए होटल का कमरा सीता ने बुक कराया था. शाहनवाज ने होटल रूम में ठहरने की जानकारी सीता को दी. कुछ देर बाद वह भी होटल रूम में पहुंच गई. रूम में दोनों का आमनासामना हुआ तो दोनों ही एकदूसरे से प्रभावित हुए. शाहनवाज जहां शरीर से हृष्टपुष्ट सजीला आकर्षक युवक था, तो सीता भी खूबसूरत व जवानी से भरपूर थी.

शाहनवाज से शादी पर अड़ी सीता

शाहनवाज से बातें करतेकरते सीता सोचने लगी कि उस ने भावी पति के रूप में जैसे सुंदर व सजीले युवक के सपने संजोए थे, शाहनवाज वैसा ही निकला. अगर शाहनवाज से उस की शादी हो जाए तो उस के जीवन में बहार आ जाएगी.

सीता अभी इसी सोच में डूबी थी कि शाहनवाज बोला, ‘‘मैं ने जितना सोचा था, तुम उस से कहीं ज्यादा हसीन हो. वैसे बुरा न मानो तो एक बात बोलूं?’’

‘‘बोलो, जो कहना चाहते हो बेहिचक कहो.’’ सीता की धड़कनें तेज हो गईं.

‘‘तुम्हें देखते ही दिल में प्यार का अहसास जाग उठा है.’’ कहते हुए शाहनवाज उस के हाथ पर हाथ रख कर बोला, ‘‘आई लव यू सीता.’’

प्रेम निवेदन सुन कर सीता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उस ने अपना दूसरा हाथ उठा कर शाहनवाज के हाथ पर रख कर कह दिया, ‘‘आई लव यू टू.’’

दोनों तरफ से प्यार का इजहार हुआ तो चंद मिनटों में दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई. कुछ देर बातचीत करने के बाद शाहनवाज वहां से चला गया. इस के बाद दोनों का प्यार दिन दूना रात चौगुना बढ़ने लगा. उन के बीच की दूरियां कम होती गईं. फिर शारीरिक संबंध भी बन गए.

शाहनवाज महीने में एकदो बार आजमगढ़ आता, होटल या लौज में ठहरता. सीता घर वालों को बिना कुछ बताए वहां आ जाती. दोनों में प्यारमोहब्बत की बातें होतीं. दोनों एकदूसरे के होने की कसमें खाते. उन के बीच शारीरिक मिलन होता फिर दोनों अपनेअपने घर लौट जाते.

शाहनवाज और सीता एकदूसरे से बेइंतहा मोहब्बत करने लगे थे. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन शादी कर पाते उस के पहले ही उन के प्यार का भांडा फूट गया. हुआ यह कि एक रात सीता शाहनवाज से बातें कर रही थी, तभी उस की मां सरोज की आंखें खुल गईं. उस ने दोनों के बीच होने वाली प्यारमोहब्बत की बातें सुन लीं.

सरोज को समझते देर न लगी कि उस की बेटी के कदम बहक गए हैं. वह रात में तो कुछ नहीं बोली लेकिन सवेरा होते ही उस ने पूछा, ‘‘सीता, तू रात में किस से बहकीबहकी बातें कर रही थी? यह शाहनवाज कौन है?’’

शाहनवाज का नाम सुन कर सीता चौंकी. उसे समझते देर नहीं लगी कि उस के प्यार का भांडा फूट चुका है. अब सच्चाई बताने में ही भलाई है. वह बोली, ‘‘मां, मैं शाहनवाज से बात कर रही थी. शाहनवाज कानपुर में रहता है और हमारी दोस्ती फेसबुक पर हुई थी. हम दोनों एकदूसरे को बेहद प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

सीता की बात सुन कर सरोज सन्न रह गई. वह उसे समझाते हुए बोली, ‘‘बेटी, हम हिंदू और वह मुसलमान. हम गैरधर्म के लड़के से तेरी शादी नहीं कर सकते, इसलिए अपने कदम वापस खींच ले, हम जल्द ही तेरा विवाह किसी हिंदू लड़के से कर देंगे.’’

‘‘मां, अब जमाना बदल गया है. अब हिंदूमुसलमान के बीच कोई मतभेद नहीं रहा है. शाहनवाज पढ़ालिखा कमाऊ लड़का है, इसलिए हम शादी उसी से करेंगे. आप लोग राजी न हुए तो मैं भाग कर शाहनवाज से शादी कर लूंगी.’’ उस ने समझाया.

सरोज ने बेटी की हरकतों की जानकारी पति को दी तो जवाहर को बहुत दुख हुआ. उस ने भी सीता को बहुत समझाया कि वह मुसलिम समाज के युवक से शादी न करे. लेकिन सीता ने मांबाप की बात नहीं मानी और अपनी जिद पर अड़ी रही. तब जवाहर ने  बड़ी बेटी सुशीला को घर बुलाया और सीता को समझाने को कहा.

लेकिन सीता ने तकवितर्क से बड़ी बहन को शादी के लिए राजी कर लिया. उस के बाद सुशीला ने अपने मांबाप को भी मना लिया. जवाहर और उस की पत्नी सरोज सीता की शादी शाहनवाज से करने को राजी तो हो गए. लेकिन इज्जत के कारण अपने घर से बेटी को विदा करने को राजी नहीं हुए. तब सुशीला ने अपनी ससुराल मसखारी से दोनों का विवाह कराने का निश्चय किया.

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बढ़ने लगी विषबेल

21 अगस्त, 2019 को सुशीला ने अपनी ससुराल मसखारी अंबेडकर नगर में मौलवी को बुला कर सीता का निकाह शाहनवाज से करा दिया. इस के बाद सीता शाहनवाज की बीवी बन कर कानपुर आ गई. शाहनवाज ने निकाह से पहले ही जाजमऊ में किराए पर कमरा ले लिया था.

इसी कमरे में वह सीता उर्फ नेहा के साथ पतिपत्नी की तरह रहने लगा. शाहनवाज की बीवी को पता ही नहीं चला कि उस के शौहर ने दूसरा निकाह कर लिया.

सीता 3 माह तक शाहनवाज के साथ खुश रही. उस के बाद दोनों में तकरार होने लगी. तकरार का पहला कारण था ससुराल वालों से मिलवाने तथा ससुराल में रहने की जिद. दरअसल, सीता चाहती थी कि वह पति के घर वालों के साथ रहे लेकिन शाहनवाज पहली पत्नी का भेद खुलने के भय से उसे घर ले जाने को मना कर देता था.

दूसरा कारण यह था कि शाहनवाज कभी दिन में तो कभी रात को और कभीकभी 2 दिन तक घर से गायब हो जाता था. सीता पूछती तो लड़ने लगता था. इस से सीता को शक होने लगा था कि वह कोई राज छिपा रहा है. राज छिपाने की जानकारी उस ने अपनी बहन सुशीला तथा मां सरोज को भी फोन के माध्यम से दे दी थी.

सीता जब ससुराल जाने की ज्यादा जिद करने लगी तो शाहनवाज को भेद खुलने का डर सताने लगा, अत: इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए शाहनवाज जाजमऊ सरैया कानपुर निवासी अपने बहनोई आमिर खान के घर गया और उस से विचारविमर्श किया.

विचारविमर्श के बाद तय हुआ कि सीता को ठिकाने लगा दिया जाए. इस के बाद सीता को ठिकाने लगाने की योजना बनी. इस योजना में शाहनवाज ने अपने बहनोई आमिर खान के अलावा दोस्त शरीफ उर्फ सोनू तथा हसीब को भी शामिल कर लिया.

27 दिसंबर, 2019 को शाहनवाज ने सीता को बताया कि आज शाम वह उसे घुमाने ले जाएगा. इस के बाद वह उसे अपने घर ले जाएगा. यह सुन कर सीता खुशी से झूम उठी. उस ने साजशृंगार किया. आभूषण पहने फिर पति के साथ जाने का इंतजार करने लगी.

शाम 5 बजे शाहनवाज कार ले कर आया. कार में उस के साथ उस का बहनोई आमिर खान भी था. शाहनवाज कार अपने दोस्त जीशान से यह कह कर लाया था कि वह 2 रोज के लिए बाहर घूमने जा रहा है. किराए के तौर पर उस ने जीशान को 10 हजार रुपए दिए थे.

जहर भरी जिंदगी का अंत

जाजमऊ के किराए वाले घर से शाहनवाज सीता उर्फ नेहा को कार में बिठा कर निकला. रामादेवी चौराहे पर उस ने दोस्त शरीफ व हसीब को भी कार में बिठा लिया. फिर सभी कंपनी बाग चौराहा पहुंचे. वहां की शराब की एक दुकान से इन लोगों ने शराब खरीदी. इस के बाद वे गंगा बैराज पहुंचे.

सभी ने चलती गाड़ी में शराब पी और सीता उर्फ नेहा को भी शराब जबरदस्ती पिलाई. कुछ देर बाद सीता जब नशे में अर्धमूर्छित हो गई, तब शाहनवाज ने कार सिंहपुर बिठूर की ओर मुड़वा दी.

इस के बाद चलती कार में ही शाहनवाज ने अपने बहनोई आमिर खान तथा दोस्त शरीफ की मदद से सीता की गला घोंट कर हत्या कर दी.

हत्या करने के बाद उन लोगों ने सीता के शरीर से गहने उतारे, उस का मोबाइल कब्जे में किया फिर कार सुनसान स्थान पर रोक कर सीता के शव को सड़क किनारे झाडि़यों में फेंक दिया.

सीता के शरीर से उतारे गए गहने तथा मोबाइल फोन को भी वहीं झाड़ी में छिपा दिया. शाहनवाज ने अपना तमंचा भी झाड़ी में छिपा दिया था. इस के बाद वे कार से अपनेअपने घर चले गए.

दूसरे दिन 12 बजे के बाद थाना नवाबगंज पुलिस को महिला का शव पड़े होने की सूचना मिली. थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद घटनास्थल पहुंचे और शव कब्जे में ले कर जांच शुरू की. जांच में हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए.

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5 जनवरी, 2020 को थाना नवाबगंज पुलिस ने अभियुक्त शाहनवाज तथा आमिर खान को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट डी.के. राय की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. अन्य 2 अभियुक्त शरीफ व हसीब फरार थे. पुलिस उन्हें पकड़ने को प्रयासरत थी.

धर्म की दोधारी तलवार : भाग 2

शाहनवाज के बयान के आधार पर अन्य आरोपियों को पकड़ने के लिए थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद ने पुलिस टीम के साथ शाहनवाज के बहनोई आमिर खान के घर में छापा मारा. पुलिस के साथ शाहनवाज को देख कर आमिर खान ने भागने का प्रयास किया लेकिन पुलिस ने उसे दबोच लिया.

इस के बाद पुलिस ने शरीफ सोनू तथा हसीब के घर छापा मारा किंतु वे दोनों फरार हो चुके थे. आमिर खान को पुलिस थाना नवाबगंज ले आई. थाने पर जब उस से सीता की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

थाना नवाबगंज पुलिस ने अब तक सीता उर्फ नेहा के मुख्य हत्यारोपियों को तो गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन अभी तक सीता का मोबाइल फोन तथा उस के आभूषण पुलिस बरामद नहीं कर पाई थी. बिंद ने मोबाइल फोन और जेवरात के बाबत पूछताछ की तो शाहनवाज और आमिर खान ने बताया कि मोबाइल फोन तथा जेवरात उन दोनों ने घटनास्थल के पास झाडि़यों में छिपा दिए थे.

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3 जनवरी, 2020 की सुबह थानाप्रभारी दोनों आरोपियों को साथ ले कर मोबाइल फोन व जेवरात बरामद करने के लिए घटनास्थल पहुंचे. आमिर खान और शाहनवाज ने सड़क किनारे की झाडि़यों में मोबाइल फोन व जेवरात खोजने लगे. जेवरात खोजते अभी 10 मिनट ही बीते थे कि शाहनवाज ने झाड़ी में पहले से छिपा कर रखा गया तमंचा निकाला और पुलिस पर फायर झोंक दिया. साथ ही भागने का प्रयास किया.

तभी थानाप्रभारी ने शाहनवाज पर गोली चला दी, जो उस के दाएं पैर में लगी वह लड़खड़ा कर गिर गया. पुलिस ने उसे दबोच लिया. इस के बाद पुलिस ने कड़ा रुख अपनाते हुए आमिर और शाहनवाज की निशानदेही पर झाड़ी में छिपा कर रखा गया सीता का मोबाइल फोन, अंगूठी, मंगलसूत्र, नोज पिन, कानों के बाले व पायल बरामद कर लीं.

पुलिस ने वह तमंचा भी बरामद कर लिया जिस से शाहनवाज ने पुलिस पर फायर किया था. बरामद सामान के साथ पुलिस दोनों को थाने ले आई.

कुछ ही देर में एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (पश्चिम) डा. अनिल कुमार तथा सीओ अजीत सिंह चौहान थाना नवाबगंज आ गए. पुलिस अधिकारियों ने हत्यारोपी शाहनवाज और आमिर खान से एक घंटे तक पूछताछ की, उस के बाद एसएसपी अनंतदेव तिवारी ने प्रैसवार्ता की और ब्लाइंड मर्डर का खुलासा किया.

जीजा-साले की जुगलबंदी का नतीजा

शाहनवाज और आमिर ने सीता उर्फ नेहा की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, साथ ही हत्या में प्रयुक्त कार तथा मृतका का मोबाइल फोन और जेवरात भी बरामद करा दिए थे. अत: थानाप्रभारी ने शाहनवाज, आमिर खान, शरीफ उर्फ सोनू तथा हसीब के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 120बी और आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस जांच में फरेबी पति की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई—

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ शहर के कोतवाली थानांतर्गत एक मोहल्ला है गडया. इसी मोहल्ले के पुराना मध्य पुल के पास जवाहर अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सरोज के अलावा 2 बेटियां सुशीला तथा सीता उर्फ नेहा थीं. जवाहर बुनाई कारखाने में काम करता था. कारखाने से उसे जो वेतन मिलता था, उसी से परिवार का भरणपोषण होता था. जवाहर बड़ी बेटी सुशीला का विवाह हो चुका था. सुशीला ससुराल में सुखमय जीवन व्यतीत कर रही थी.

सुशीला से छोटी सीता उर्फ नेहा थी. वह पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी. वह इंटरमीडिएट के बाद आगे भी पढ़ना चाहती थी, लेकिन उस के मातापिता की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिस से वह उस के आगे की पढ़ाई को मना कर रहे थे.

इस समस्या के निदान के लिए सीता ने प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका की नौकरी कर ली. स्कूल के माध्यम से उसे कुछ बच्चों के ट्यूशन भी मिल गए. इस तरह वह अपना तथा अपनी पढ़ाई का खर्चा स्वयं निकालने लगी.

एक दिन सीता उर्फ नेहा स्कूल से पढ़ा कर घर लौट रही थी, तभी एकाएक पीछे से किसी ने उस के कंधे पर हाथ रख दिया. सीता चौंक कर पलटी तो उस के मुंह से हर्षमिश्रित चीख निकल गई, ‘अरे मनीषा, तू…’

मनीषा शर्मा सीता की बचपन की सहेली थी. पहली से ले कर 8वीं कक्षा तक दोनों साथ पढ़ी थीं. उस के बाद मनीषा दूसरे मोहल्ले में जा कर रहने लगी थी. 5 साल बाद दोनों की अब मुलाकात हुई थी. बरसों बाद बिछुड़ी हुई सहेलियां मिलीं तो दोनों बातचीत के साथ पुरानी यादें ताजा करने नजदीक के रेस्तरां जा पहुंचीं.

रेस्तरां में चाय की चुस्कियों के बीच दोनों सहेलियां बचपन से ले कर स्कूल तक की अपनी पुरानी यादें ताजा करने लगीं. बातोंबातों में मनीषा ने पूछा, ‘‘अच्छा ये बता जिंदगी कैसे कट रही है. कोई दोस्त है या नहीं? शादी का इरादा है या कोई हमसफर मिल गया है?’’

सीता के चेहरे पर दर्द की परछाइयां तैरने लगीं. वह ठंडी सांस ले कर बोली, ‘‘मनीषा, तू मेरी सब से प्यारी और भरोसेमंद सहेली है, इसलिए तुझ से क्या छिपाऊं. घर की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं है. दहेज के डर से मातापिता परेशान हैं, इसलिए अभी तक मेरे लिए लड़का भी देखना शुरू नहीं किया है. रही बात दोस्त बनाने की, वह मैं ने किसी को बनाया नहीं है.’’

फेसबुक ने बनाई जोड़ी

मनीषा खिलखिला कर हंसी और फिर उस के गाल पर चुटकी काटते हुए बोली, ‘‘मातापिता के सहारे रहेगी तो तेरी शादी कभी नहीं होगी. तुझे खुद ही पहल कर दोस्त बनाना होगा और शादी की पहल करनी होगी.’’

‘‘वह कैसे?’’ सीता ने पूछा.

‘‘इंटरनेट की एक साइट है फेसबुक. उस के बारे में तू जानती है?’’

‘‘हां, जानती हूं. मैं जब 10वीं में पढ़ रही थी तब कंप्यूटर क्लास भी जौइन कर रखी थी. उसी दौरान फेसबुक, गूगल, याहू वगैरह के बारे में जाना था.’’

‘‘अच्छी बात है कि तुम फेसबुक के बारे में जानती हो वरना मुझे समझाने में दिक्कत हो जाती.’’ फिर मनीषा ने अपने पत्ते खोले, ‘‘फेसबुक पर मैं नएनए दोस्त बनाती हूं. इन से रसीली और चटपटी बातें करती हूं, जिस से मुझे पूरी संतुष्टि मिलती है. तुम्हें यह जान कर ताज्जुब होगा कि मैं उन अनजान दोस्तों से ऐसीऐसी बातें भी खुल कर कर लेती हूं, जो किसी से रूबरू करते भी शरम आए. मेरी तरह तू भी फेसबुक की मुरीद हो जा, फिर देखना तेरी हर मुराद पूरी होगी.’’

सीता मुसकराने लगी, ‘‘आइडिया तो बेहतरीन है, मैं तेरे सुझाव पर गौर करूंगी.’’

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फिर दोनों रेस्तरां से बाहर निकलीं और अपनेअपने घर चली गईं. उस रात सीता को नींद नहीं आई. वह रात भर सहेली के सुझाव पर मंथन करती रही. आखिर उसे यह सुझाव सही लगा. उस ने भी फेसबुक पर नए दोस्त बनाने का निश्चय कर लिया.

सीता को मोबाइल पर इंटरनेट चलाने का शौक था. अब वह सोशल साइट फेसबुक पर नएनए दोस्त बनाने लगी और उन से चैटिंग करने लगी. जो युवक मन को पसंद आ जाता था, उस का मोबाइल नंबर ले कर वह उसे अपना नंबर दे देती. वह मनपसंद युवक से ही बात करती थी, अन्य के फोन रिसीव नहीं करती थी.

फेसबुक पर ही सीता का परिचय शाहनवाज से हुआ. सीता ने उस की प्रोफाइल देखी तो पता चला उस की उम्र 30 वर्ष है और वह कानपुर शहर के बजरिया का रहने वाला है. शाहनवाज पढ़ालिखा था और व्यवसाय करता था. शाहनवाज हालांकि दूसरे धर्म का था, फिर भी सीता का झुकाव उस की ओर हो गया. दोनों ने अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिए, जिस से दोनों की अकसर देर रात तक बातें होने लगीं.

हालांकि सीता का दिल शाहनवाज को स्वीकार कर चुका था. लेकिन उसे इस बात की चिंता थी कि कहीं शाहनवाज शादीशुदा तो नहीं. इस चिंता से मुक्ति पाने के लिए एक दिन सीता ने बातोंबातों में पूछ लिया, ‘‘शाहनवाज, तुम शादीशुदा हो या कुंवारे? सचसच बताना, झूठ का सहारा मत लेना. क्योंकि झूठ से मुझे सख्त नफरत है.’’

‘‘झूठ बोलना मेरे स्वभाव में नहीं है, इसलिए सच यह है कि मैं कुंवारा भी हूं और शादीशुदा भी.’’ उस ने बताया.

‘‘क्या मतलब?’’ सीता चौंकी.

‘‘मतलब यह कि मेरी शादी हुई थी, लेकिन चंद दिनों बाद ही बीवी से मेरा तलाक हो गया था. अब उस से मेरा कोई संबंध नहीं है. इस तरह मैं अब कुंवारा ही हूं.’’

सीता मन ही मन खुश हुई और बोली, ‘‘शाहनवाज, मुझे जान कर खुशी हुई कि तुम ने सब सच बताया. अब मेरी चिंता दूर हो गई.’’

धीरेधीरे दोनों की दोस्ती गहरा गई. शाहनवाज को लगने लगा कि सीता उस की जिंदगी में बहार बन कर आएगी. वहीं सीता को भी आभास होने लगा था कि शाहनवाज ही उस के सपनों का राजकुमार है, इसलिए उस का मन उस से रूबरू होने को मचलने लगा.

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एक दिन सीता ने बातोंबातों में शाहनवाज को अपने शहर आजमगढ़ आने को कह दिया. दिन, तारीख, समय और होटल का नाम भी उसी दिन निश्चित हो गया. शाहनवाज तो यह चाहता ही था, सो उस ने सीता के आमंत्रण को सहर्ष स्वीकार कर लिया. इस के बाद वह आजमगढ़ जाने तथा महबूबा से रूबरू होने की तैयारी में जुट गया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

धर्म की दोधारी तलवार : भाग 1

उस दिन दिसंबर महीने की 28 तारीख थी. कड़ाके की ठंड थी. घना कोहरा भी छाया था. ठंड की वजह से लोग घरों में दुबके थे. मंद गति से बह रही बर्फीली पछुआ हवाएं ठंड का कुछ ज्यादा ही अहसास करा रही थीं. दोपहर बाद जब कोहरा छंटा और सूरज ने हलकी रोशनी बिखेरी तभी कुछ लोगों ने गंगा बैराज से सिंहपुर बिठूर जाने वाली रोड के किनारे झाडि़यों में एक जवान महिला का शव पड़ा देखा.

जैसेजैसे लोगों को यह जानकारी मिली, लोग वहां जुटने लगे. कुछ ही देर बाद वहां भीड़ बढ़ गई. इसी बीच किसी ने महिला का शव पड़ा होने की सूचना थाना नवाबगंज को दे दी.

सूचना प्राप्त होते ही नवाबगंज थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पहुंच गए. उन्होंने अज्ञात महिला का शव मिलने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी, फिर निरीक्षण में जुट गए. मृतका का रंग गोरा, शरीर स्वस्थ तथा उम्र 28 साल के आसपास थी. वह गुलाबी रंग का सलवारकुरता पहने थी. उस के हाथों पर मेहंदी रची थी और वह पैरों में बिछिया पहने थी. उस की गरदन, पीठ और सीने पर खरोंच व रगड़ के निशान थे. उस के मुंह से शराब की दुर्गंध भी आ रही थी.

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देखने से ऐसा लग रहा था जैसे मृत्यु से पहले महिला ने शराब पी थी या फिर उसे जबरन पिलाई गई थी. उस के बाद उस की हत्या कर शव सड़क किनारे झाडि़यों में फेंक दिया गया होगा. महिला के शरीर पर कोई आभूषण नहीं था, लेकिन ऐसा लग रहा था कि उस की नाक, कान, गले से आभूषण खींचे गए थे. क्योंकि नाक, कान से खून रिस रहा था. महिला की हत्या कहीं अन्यत्र की गई थी.

थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसएसपी अनंत देव तिवारी, एसपी (पश्चिम) डा. अनिल कुमार तथा सीओ अजीत सिंह चौहान भी वहां आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड को भी बुलवा लिया.

पुलिस अधिकारियों ने महिला के शव का बारीकी से निरीक्षण किया. साथ ही कुछ आवश्यक दिशानिर्देश थानाप्रभारी दिलीप कुमार को दिए. उस के बाद फोरैंसिक टीम ने भी निरीक्षण कर साक्ष्य जुटाए.

खोजी कुत्ता महिला के शव को सूंघ कर सड़क पर गया और गंगा बैराज की ओर भौंकते हुए भागा. कुछ दूर जा कर वह रुका और चक्कर काटने लगा. टीम ने वहां निरीक्षण किया तो कार के पहियों के निशान दिखे. टीम ने अनुमान लगाया कि महिला की हत्या कार में की गई होगी और बाद में शव को झाडि़यों में फेंक दिया गया होगा. शव फेंकने के बाद कार को वहीं से बैक किया गया था.

घटनास्थल पर भीड़ जुटी थी, पर कोई भी शव को नहीं पहचान पाया. अत: पुलिस अधिकारियों ने सहज ही अनुमान लगा लिया कि महिला पासपड़ोस के गांव या नवाबगंज की रहने वाली नहीं है. घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद थानाप्रभारी ने शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय कानपुर भिजवा दिया.

थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद महिला के शव की शिनाख्त के बाद ही पोस्टमार्टम कराना चाहते थे, इसलिए उन्होंने 3 दिन तक पोस्टमार्टम नहीं कराया. इस बीच उन्होंने कानपुर शहर समेत आसपास के जिलों के थानों में महिला की फोटो तसदीक के लिए भेजी. साथ ही कानपुर शहर से प्रकाशित होने वाले दैनिक अखबारों में भी महिला के हुलिया सहित फोटो छपवाई.

पिता को पता चला अखबार की खबर से

अखबारों में छपी फोटो तथा महिला का हुलिया पढ़ कर जाजमऊ (कानपुर) निवासी वी.के. सिंह का माथा ठनका. क्योंकि जिस महिला की फोटो अखबार में छपी थी, वह उन की किराएदार सीता उर्फ नेहा की थी. वह पिछले 3 महीने से अपने पति शाहनवाज के साथ उन के मकान में किराए पर रह रही थी. नेहा और शाहनवाज पिछले 3 दिन से वापस नहीं लौटे थे.

चूंकि मामला हत्या का था, अत: वी.के. सिंह तुरंत थाना नवाबगंज पहुंचे और थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद को यह जानकारी दी. इस के बाद बिंद वी.के. सिंह को अस्पताल ले गए और उन्हें महिला का शव दिखाया. वी.के. सिंह ने शव देखते ही पहचान लिया. उन्होंने बताया कि यह शव सीता उर्फ नेहा का ही है. शव की शिनाख्त हो जाने के बाद बिंद ने नेहा के शव का पोस्टमार्टम करा दिया.

पुलिस को यह तो पता चल गया था कि मृतका शाहनवाज की पत्नी थी लेकिन वह कहां की रहने वाली थी, उस की हत्या उस के पति शाहनवाज ने की थी या फिर हत्या किसी से कराई गई थी. शाहनवाज कहां का रहने वाला है, ये सब बातें पुलिस को पता लगानी थी.

थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद ने जांच आगे बढ़ाने के लिए सर्विलांस टीम का सहयोग लिया. सर्विलांस टीम ने घटनास्थल के पास वाले मोबाइल टावर का डाटा डंप कराया तो 2 ऐसे नंबर मिले, जो घटना वाली रात (27 दिसंबर, 2019) को देर रात कुछ देर तक साथ रहे थे.

बिंद ने इन संदिग्ध नंबरों के पते निकलवाए तो एक नंबर सीता के नाम का था, जिस का पता आजमगढ़ कोतवाली के गडया मोहल्ला पुराना मध्य पुल दर्ज था. जबकि दूसरा फोन नंबर शाहनवाज का था, जिस का पता शौकत अली पार्क, थाना बजरिया, कानपुर दर्ज था.

पुलिस की एक टीम सीता के संबंध में जानकारी जुटाने आजमगढ़ पहुंची और कोतवाली पुलिस के सहयोग से उस के घर गडया मोहल्ला मध्य पुल पहुंच गई. घर पर नेहा के पिता जवाहर मौजूद थे. उन से पता चला कि नेहा का ही दूसरा नाम सीता था. पुलिस ने उन्हें मृतका की फोटो दिखाई तो वह फफक पडे़, ‘‘साहब, यह फोटो मेरी बेटी सीता की है. 3 महीने पहले उस ने कानपुर के शाहनवाज से शादी की थी. हम ने उसे मना किया था कि दूसरे धर्म के लड़के से शादी मत करो लेकिन वह नहीं मानी.’’

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मां सरोज को बेटी नेहा की हत्या की जानकारी हुई तो वह दहाड़ें मार कर रोने लगी. बड़ी बेटी सुशीला ने किसी तरह मां को संभाला. उस ने पुलिस को बताया कि नेहा से कभीकभार फोन पर बात होती थी.

उसे शिकायत थी कि शाहनवाज उसे ससुराल वालों से नहीं मिलवाता. ज्यादा जोर देने पर नाराज हो जाता है, प्रताडि़त भी करता है. साहब, हम लोगों ने उसे शादी के लिए बहुत मना किया था, लेकिन उस की जिद के आगे हमें झुकना पड़ा था. उस ने कहा कि नेहा की हत्या शाहनवाज ने ही की है. उसे सजा जरूर दिलवाना.

जवाहर की बेटी सुशीला कुछ दिन पहले ही मायके आई थी. उस ने पुलिस को बताया कि उस की ससुराल अंबेडकर नगर जिले के गांव मसखारी में है. उस ने ही 21 अगस्त को सीता की शादी शाहनवाज के साथ कराई थी. शादी के बाद वह खुश थी. क्रिसमस वाले दिन सीता का फोन आया था.

तब उस ने बताया था कि उस का पति कोई राज छिपा रहा है. फिर यह भी बताया कि 27 दिसंबर को वह उसे अपने घर वालों से मिलवाने ले जाएगा. सुशीला ने बताया कि पहले कई बार शाहनवाज से बात हुई पर कभी ऐसा नहीं लगा कि वह बहन की हत्या कर देगा.

मिल गया सुराग

मातापिता और बहन से जानकारी हासिल कर पुलिस टीम कानपुर लौट आई. टीम ने सीता उर्फ नेहा के संबंध में सारी जानकारी थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद तथा पुलिस अधिकारियों को दे दी. अब तक की जांचपड़ताल से यह बात साफ हो चुकी थी कि सीता उर्फ नेहा की हत्या उस के शौहर शाहनवाज ने ही की थी. पर नईनवेली पत्नी की हत्या उस ने क्यों की, इस का राज उस की गिरफ्तारी के बाद ही खुल सकता था. अत: पुलिस ने शाहनवाज को गिरफ्तार करने के लिए जाल फैलाया.

2 जनवरी, 2020 की शाम पुलिस को सर्विलांस टीम की मदद से पता चला कि शाहनवाज कंपनी बाग चौराहे पर मौजूद है. यह पता चलते ही थानाप्रभारी पुलिस फोर्स के साथ कंपनी बाग चौराहा पहुंच गए.

पुलिस जीप रुकते ही एक युवक वहां से आर्यनगर चौराहे की ओर भागा. लेकिन पुलिस ने उसे दबोच लिया. पूछताछ में वह शाहनवाज ही था. उसे थाना नवाबगंज लाया गया.

शाहनवाज से जब उस की पत्नी सीता उर्फ नेहा की हत्या के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. उस ने कहा कि वह स्वयं पत्नी की तलाश में भटक रहा है. शाहनवाज के इस सफेद झूठ पर थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद को गुस्सा आ गया. उन्होंने शाहनवाज से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने पत्नी की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. यही नहीं, उस ने हत्या में प्रयुक्त कार भी बरामद करा दी, जो उस के दोस्त जीशान की थी.

थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद ने शाहनवाज से पत्नी की हत्या का कारण पूछा तो वह कुछ क्षण मौन रहा फिर बोला, ‘‘सर, सीता को मैं बहुत चाहता था. वह भी मुझ से बहुत प्यार करती थी लेकिन भेद खुल जाने के भय से मैं ने उसे मौत की नींद सुला दिया.’’

‘‘कौन सा भेद खुलने का डर था तुम्हें?’’ बिंद ने पूछा.

‘‘सर, शादीशुदा होने का. दरअसल, मैं ने सीता से झूठ बोल कर निकाह कर लिया था, जबकि मेरा पहले ही निकाह हो चुका था. मैं ने सीता से कहा था कि मेरा निकाह तो हुआ था लेकिन तलाक हो गया है. इसी झूठ को छिपाने के लिए मैं ने निकाह के बाद सीता को जाजमऊ स्थित किराए के मकान में रखा था. इधर कुछ दिनों से वह ससुराल वालों से मिलवाने और उन्हीं के साथ रहने की जिद करने लगी थी. अगर मैं उसे अपने घर ले जाता तो भेद खुल जाता, इसलिए मैं ने उसे मार डाला.’’ शाहनवाज ने बताया.

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‘‘हत्या की साजिश में और कौनकौन शामिल थे?’’ बिंद ने पूछा.

‘‘सर, हत्या में मेरा बहनोई आमिर खान, जो सरैया बाजार जाजमऊ में रहता है, दोस्त शरीफ उर्फ सोनू और हसीब शामिल थे. दोनों जाजमऊ में रहते हैं. हत्या में इस्तेमाल हुई कार जीशान की थी, जिसे मैं 10 हजार रुपए किराए पर लाया था.’’

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

धर्म की दोधारी तलवार

विधायक का खूनी पंजा

विधायक का खूनी पंजा : भाग 2

कल्पना बहुत खुश हुई. दूसरे दिन पिता के साथ वह स्थानीय कांग्रेस नेता व विधायक अनूप कुमार साय के आवास पर पहुंची, जहां उस के पिता ने उसे विधायक अनूप कुमार से मिलाया. एमएलए ने उस की भरपूर मदद करने का आश्वासन दिया.

कल्पना उस समय 24 साल की थी, प्रवती 4 वर्ष की बालिका थी. कल्पना को देख कर विधायक पहली ही नजर में उस का मुरीद हो गया. अब कल्पना रोजाना ही नेताजी के घर-औफिस आ जाती और उस का काम संभालती. दोनों जल्द ही एक रंग में रंग गए तो सुनील श्रीवास्तव का बसाबसाया घर टूट गया.

एमएलए से बन गए संबंध

इस की वजह यह थी कि 2006 आतेआते कल्पना अनूप कुमार साय की हमसाया बन चुकी थी. फिर एक दिन उस ने पति सुनील श्रीवास्तव से संबंध विच्छेद कर लिया. सन 2009 में अनूप कुमार तीसरी बार विधायक बना तो उस ने कल्पना के लिए 24, सुंदरपदा कालोनी, भुवनेश्वर, ओडिशा में एक आवासीय भूखंड खरीदा और वहां 2 मंजिला मकान बनवा कर दे दिया.

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मकान के ऊपर वाले भाग में कल्पना दास अपनी एकलौती बेटी के साथ ठसक से रहने लगी. विधायक ने मकान के नीचे का हिस्सा एक ठेकेदार शरद साहू को दे दिया जो मकान की देखरेख करता था.

विधायक अनूप कुमार साय ने कल्पना दास को एक तरह से दूसरी पत्नी के रूप में रखा हुआ था. उस की सारी जरूरतें वही पूरी करता था. प्रवती दास को विधायक ने अपना नाम दे कर उस का दाखिला नामीगिरामी सेंट जेवियर्स इंग्लिश स्कूल में करा दिया था.

कल्पना हंसीखुशी से रहने लगी. विधायक के रूप में अनूप कुमार साय की क्षेत्र में बड़ी प्रतिष्ठा थी. वह कांग्रेस पार्टी का एक तरह से सर्वेसर्वा था. राज्य में बीजू जनता दल की सरकार होने के बावजूद वह बारबार कांग्रेस से विधायक निर्वाचित हो रहा था और अंचल में उस का खासा रुतबा और दबदबा बढ़ता रहा.

विधायक अनूप व कल्पना प्रेम से रहते रहे. दोनों बच्ची प्रवती को साथ ले कर कभी गोवा, कभी हैदराबाद और कभी विशाखापट्टनम सहित देश भर के प्रमुख पर्यटक स्थलों पर घूमने जाते. मगर धीरेधीरे कल्पना को यह लगने लगा था कि वह दूसरी औरत है. उस की अपनी कोई हैसियत नहीं है इसलिए वह अनूप से शादी की जिद करने लगी. जिस की परिणति 6 मई, 2016 को उस की और बेटी प्रवती की हत्या के साथ पूरी हुई.

7 मई, 2016 को शाकुंभरी फैक्ट्री के निकट लोगों ने एक महिला और एक लड़की का शव देखा. यह खबर जंगल में आग की तरह फैली तो वहां लोगों का हुजूम जुट गया. किसी ने इस की सूचना चक्रधर नगर थाने में दी तो तत्कालीन टीआई अमित पाटले तुरंत घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

घटनास्थल पर वह 10 मिनट में ही पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने घटनास्थल का सूक्ष्य निरीक्षण किया. वहां पर एक महिला और एक लड़की की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं. दोनों लाशें किसी गाड़ी के टायरों से कुचली हुई दिख रही थीं. टायरों के निशान भी साफ दिख रहे थे.

मीडिया में उछला मामला

इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि किसी ने योजनाबद्ध तरीके से वारदात को अंजाम दिया है. घटना के बारे में उच्चाधिकारियों को जानकारी देने के बाद टीआई ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

मीडिया में जब यह घटना प्रमुखता से आई तो पुलिस अधिकारी भी हरकत में आ गए. अगले दिन तत्कालीन आईजी पवन देव, एसपी संजीव शुक्ला सहित कई अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने अंदेशा जताया कि ये कालगर्ल्स से जुड़ा मामला हो सकता है.

इस केस की जांच के लिए उन्होंने एक जांच टीम बनाई, जिस में टीआई अमित पाटले, राकेश मिश्रा (प्रभारी क्राइम ब्रांच) आदि को शामिल किया गया. जांच टीम ने जिले के सभी थानों को घटना की जानकारी देते हुए गुमशुदा हुए लोगों के संदर्भ में जानकारी मांगी.

जब पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला तो रायगढ़ पुलिस आईजी के निर्देश पर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पश्चिम बंगाल तक जांच के लिए पहुंच गई.

इन राज्यों के पुलिस कप्तानों के पास दोनों लाशों से संबंधित पैंफ्लेट भी छपवा कर भेज दिए ताकि दोनों लाशों की शिनाख्त हो सके.

ओडिशा के बरगढ़ थाने में कांस्टेबल के पद पर तैनात सरोज दास ने जब पैंफ्लेट पढ़ा तो वह परेशानी में पड़ गया. क्योंकि उन लाशों का हुलिया उस की बहन कल्पना दास और भांजी प्रवती दास से मिलताजुलता था. दोनों ही कुछ दिनों से लापता भी थीं.

सरोज दास ने उसी समय पैंफ्लेट में क्राइम ब्रांच प्रभारी राकेश मिश्रा के दिए गए फोन नंबर पर संपर्क किया. उस ने उन्हें बताया कि उस की बहन कल्पना दास एक वकील थी. उस का विवाह सुनील श्रीवास्तव नाम के शख्स से हुआ था. फिलहाल वह सुनील से अलग रह रही थी. उस ने उन्हें सुनील श्रीवास्तव का फोन नंबर भी दे दिया.

यह जानकारी मिलने के बाद जांच टीम को केस के खुलने के आसार नजर आने लगे. पुलिस ने सुनील श्रीवास्तव को चक्रधर थाने बुलवा लिया ताकि उस से विस्तार से बात की जा सके.

पुलिस ने सुनील को दोनों लाशों के फोटो दिखाए तो फोटो देखते ही वह फूटफूट कर रोने लगा. उस ने महिला की लाश की शिनाख्त कल्पना दास के रूप में की. लेकिन वह लड़की को नहीं पहचान सका.

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उस ने बताया कि पिछले 10 साल से वह पत्नी व बच्ची से अलग रहता है. कल्पना से उस का सन 2011 में तलाक हो चुका है, इसलिए वह उसे एक तरह से भूल चुका था. सुनील ने बताया कि कल्पना पूर्व विधायक अनूप कुमार साय के साथ रहती थी. तलाक होने से पहले वह पत्नी और बेटी से मिलने जाता था तो विधायक उसे बेटी व पत्नी से मिलने नहीं देता था.

एमएलए से की पूछताछ

पुलिस के सामने पूर्व विधायक अनूप कुमार साय का नाम आया, तो इस की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. अधिकारियों के निर्देश पर जांच टीम ने इस मामले की गहराई से जांच की. इस जांच में यह तथ्य सामने आ गया कि कल्पना और अनूप कुमार साय की 6 मई, 2016 को मोबाइल पर बातचीत हुई थी.

पुलिस ने कल्पना व प्रवती दोनों का डीएनए टेस्ट करा लिया था, अब पूर्व विधायक अनूप कुमार साय से पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए उस का बयान लेने के लिए पुलिस ने उसे नोटिस जारी किया. लेकिन व्यस्तता का बहाना बना कर वह पुलिस से बचने की कोशिश करता रहा.

एसपी के दबाव पर एक दिन वह चक्रधर नगर थाने पहुंचा तो उस ने बड़ी ही विनम्रता से घटना के बारे में अनभिज्ञता जाहिर कर दी. उस ने बयान में कहा कि वह कल्पना दास और प्रवती दास से वाकिफ तो है मगर घटना के संदर्भ में कुछ नहीं जानता.

विधायक अनूप कुमार साय के साफसाफ कन्नी काट जाने के बाद और राजनीतिक दखलंदाजी बढ़ने पर पुलिस जांच की गति धीमी पड़ने लगी. समय के साथ परिस्थितियां बदलीं. अनूप कुमार साय ने कांग्रेस पार्टी से अचानक इस्तीफा दे दिया और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के समक्ष बीजू जनता दल का दामन थाम लिया.

सत्तासीन पार्टी में होने के कारण अनूप कुमार साय राजनीतिक रूप से दबंग हो गया था. चूंकि ओडिशा राज्य में बीजू जनता दल और छत्तीसगढ़ में डा. रमन सिंह की भाजपा सरकार थी और दोनों में अच्छा समन्वय था, सो इस का असर इस दोहरे हत्याकांड की जांच पर पड़ा. फलस्वरूप जांच ठंडे बस्ते में चली गई.

अनूप कुमार साय मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का खासमखास बन चुका था. नवीन पटनायक 2014 के विधानसभा चुनाव में आस्का विधानसभा के अलावा बरगढ़ की बिजेपुर से चुनाव लड़े थे. जबकि अनूप कुमार को किसी भी विधानसभा से टिकट नहीं मिला था. तब नवीन पटनायक ने अनूप कुमार साय को चुनाव संचालक बना दिया था.

यहां से जब मुख्यमंत्री भारी मतों से चुनाव जीत गए तो उपहारस्वरूप उन्होंने अनूप कुमार साय को ओडिशा प्रदेश के वेयर हाउसिंग कारपोरेशन का चेयरमैन बना दिया. इस से अनूप का राजनीतिक रसूख और ज्यादा बढ़ गया.

इधर छत्तीसगढ़ में भाजपा 2018 के चुनावों में बुरी तरह पराजित हो गई और कांग्रेस की सरकार अस्तित्व में आ गई. मामला जब गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक पहुंचा तो उन्होंने रायगढ़ पुलिस को निष्पक्ष तरीके से केस की जांच करने के आदेश दिए. उस समय संतोष सिंह ने एसपी (रायगढ़) का पदभार संभाला था. एसपी ने अपने निर्देशन में इस दोहरे हत्याकांड की जांच करानी प्रारंभ कर दी.

दोबारा शुरू हुई जांच

चूंकि कल्पना दास और उस की बेटी प्रवती की बड़ी ही बेदर्दी से सिर कुचल कर हत्या की गई थी, इसलिए यह हत्याकांड पुलिस के लिए एक चुनौती था. पुलिस ने अनूप कुमार साय के एकएक कदम की निगरानी करनी शुरू कर दी. 6 महीने निगरानी करने के बाद पुलिस को तमाम सबूत मिल गए.

पुलिस को पता चल गया था कि अनूप कुमार साय ने कल्पना दास को एक मकान 24 सुंदरपदा कालोनी, भुवनेश्वर, ओडिशा में दे रखा था. प्रवती को वह एक महंगे और प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ा रहा था और उन्हें ले कर गोवा, हैदराबाद, विशाखापट्टनम, दिल्ली आदि जगहों घूमने के लिए गया था. पुलिस ने कई पुख्ता सबूत इकट्ठा कर लिए, जिन्हें वह झुठला नहीं सकता था.

इस के बाद 13 फरवरी, 2020 को आधी रात रायगढ़ पुलिस ने पूर्व विधायक अनूप कुमार साय के ब्रजराज नगर स्थित आवास पर दबिश दे कर उसे हिरासत में ले लिया.

अनूप कुमार साय अपने बचाव के लिए खूब राजनीतिक दांवपेंच खेलता रहा. मगर पुलिस ने उस की एक न सुनी और थाने ला कर उस से पूछताछ शुरू की तो अंतत: वह टूट गया और उस ने स्वीकार कर लिया कि 6 मई, 2016 को उस ने लिवइन रिलेशनशिप में रह रही कल्पना दास व उस की बेटी प्रवती की हत्या लोहे की रौड से की थी. इस के बाद उस के आदेश पर उस के ड्राइवर बर्मन टोप्पो ने दोनों की लाशें बोलेरो गाड़ी से कुचल दी थीं.

अनूप कुमार साय से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने ब्रजराज नगर से उस के ड्राइवर बर्मन टोप्पो को भी हिरासत में ले लिया. उस ने भी अंतत: कल्पना व प्रवती मर्डर केस में अपनी भूमिका स्वीकार कर ली. इस के बाद पुलिस ने घटना का सीन रीक्रिएट किया ताकि पता चल सके कि हत्याकांड को किस तरह अंजाम दिया गया था.

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अनूप कुमार साय के गिरफ्तार होने की खबर ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक तक पहुंची तो उन्होंने जरा भी देर किए बिना अनूप कुमार साय को वेयर हाउसिंग कारपोरेशन के चेयरमैन पद व पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से बरखास्त कर दिया.

रायगढ़ पुलिस ने हत्या के आरोपी 59 वर्षीय अनूप कुमार साय और उस के ड्राइवर बर्मन टोप्पो को भादंवि की धारा 302, 201, 120 के तहत गिरफ्तार कर रायगढ़ के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के सामने पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

विधायक का खूनी पंजा : भाग 1

पूर्व विधायक अनूप कुमार साय ओडिशा के झारसुगड़ा स्थित होटल मेघदूत में अपनी प्रेमिका कल्पना दास के साथ ठहरा था. कल्पना के साथ उस की 14 वर्षीय बेटी प्रवती दास भी थी. कल्पना और अनूप कुमार के बीच एक महत्त्वपूर्ण विषय पर चर्चा हो रही थी.

कमरे में बैठे अनूप कुमार साय ने पास बैठी कल्पना दास की ओर देखते हुए कहा, ‘‘कल्पना, हम छत्तीसगढ़ के शहर रायगढ़ चलते हैं. वहीं पर हमीरपुर में एक साईं मंदिर है. उसी मंदिर में हम शादी कर लेंगे, वहां मेरे कुछ रिश्तेदार भी हैं. कुछ दिनों वहीं रह लेंगे. यह बताओ कि अब तो तुम खुश हो न?’’

कल्पना दास ने उचटतीउचटती निगाह अनूप कुमार साय पर डाली और बोली, ‘‘देखो, अब मुझे तुम पर विश्वास नहीं है. कितने साल बीत गए, तुम तो बस हम मांबेटी का खून पीते रहे हो. पता नहीं वह दिन कब आएगा, जब मुझे शांति मिलेगी.’’

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कल्पना के रूखे स्वर से अनूप कुमार साय के तनबदन में आग लग गई. वह अपने ड्राइवर बर्मन टोप्पो की ओर देख कर बोला, ‘‘बर्मन, चलना है रायगढ़.’’

मालिक का आदेश सुन कर बर्मन टोप्पो मुस्तैद खड़ा हो गया. वह अनूप कुमार साय का सालों से ड्राइवर था. यानी एक तरह से उस का विश्वासपात्र मुलाजिम था. उस ने विनम्रता से कहा, ‘‘साहब, मैं नीचे इंतजार करता हूं.’’

इतना कह कर वह वहां से चला गया.

माहौल थोड़ा सामान्य हुआ तो अनूप साय ने बड़े प्यार से कल्पना को समझाया, ‘‘देखो कल्पना, मैं वादा करता हूं कि बस यह आखिरी मौका है. इस के बाद मैं तुम्हें कभी भी नाराज होने का मौका नहीं दूंगा.’’

अनूप साय की बात पर कल्पना शांत हो गई और बेटी के साथ जाने के लिए उस की बोलेरो में बैठ गई. झारसुगुडा से रायगढ़ लगभग 85 किलोमीटर दूर है. बोलेरो रायगढ़ की तरफ रवाना हो गई. यह 6 मई, 2016 की बात है.

3 बार विधायक रहा अनूप कुमार साय वर्तमान में ओडिशा के वेयर हाउसिंग कारपोरेशन का चेयरमैन था. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के खासमखास लोगों में से एक. मुख्यमंत्री से अनूप कुमार के नजदीकी संबंधों की ही एक नजीर यह थी कि मई 2019 के विधानसभा चुनाव में विधानसभा की टिकट नहीं मिलने के बावजूद भी उसे मुख्यमंत्री का वरदहस्त प्राप्त था. राजनीतिक रसूख के कारण ही उसे कारपोरेशन का चेयरमैन नियुक्त किया गया था.

यह कथा है पूर्व विधायक अनूप कुमार साय की जो सन 1999, 2004 एवं 2009 में ओडिशा के ब्रजराजनगर विधानसभा से विधायक चुना गया. अनूप कुमार साय ने कल्पना दास के साथ प्रेम की पींगे भरीं. फिर देखते ही देखते वह अपराध के दलदल में चला गया.

राजनीति की उजलीकाली रोशनी में कोई राजनेता जब स्वयं को स्वयंभू समझने लगता है तो उस का पतन उस का समूल अस्तित्व नष्ट कर जेल के सींखचों में पहुंचा देता है. यही सब अनूप कुमार साय के साथ भी हुआ.

6 मई, 2016 की सुबह के समय अनूप कुमार साय अपनी प्रेमिका कल्पना दास और उस की बेटी को अपनी बोलेरो कार में बिठा कर रायगढ़ की तरफ रवाना हो गया. करीब 2 घंटे बाद वह छत्तीसगढ़ की सीमा में प्रवेश कर गया. इस बीच दोनों आपस में बातें करते रहे.

बातोंबातों में एक बार फिर से उन के स्वर तल्ख होते जा रहे थे. कल्पना ने कहा, ‘‘देखो, तुम्हारे साथ मेरा जीवन तो बरबाद हो ही गया, अब मैं प्रवती की जिंदगी कतई बरबाद नहीं होने दूंगी.’’

अनूप कुमार साय का स्वर तल्खीभरा हो चला था, ‘‘अच्छा, मेरी वजह से तुम्हारा जीवन बरबाद हो गया? तुम ने कभी यह सोचा कि पहले क्या थीं, क्या बन गई हो और कहां से कहां पहुंच गई हो. अहसानफरामोशी इसी को कहते हैं. तुम अपने दिल से पूछो कि क्या नहीं किया है मैं ने तुम्हारे और प्रवती के लिए. तुम लोगों की खातिर मैं ने अपना राजनीतिक जीवन तक दांव पर लगा दिया. बदनाम हो गया, मेरी विधायकी चली गई. यहां तक कि अपनी विवाहिता पत्नी, बच्चों तक से संबंध तोड़ बैठा हूं.’’

‘‘झूठ…बिलकुल झूठ.’’ कल्पना दास का स्वर स्पष्ट रूप से कठोर था, ‘‘जब तक तुम मुझे मेरा अधिकार नहीं दोगे, मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ूंगी.’’

‘‘देखो, मैं भी तुम्हें प्यार से समझा रहा हूं कि जिद छोड़ दो, सब कुछ तो तुम्हारा ही है. सिर्फ लिख कर दे दूंगा तो क्या होगा? अरे पगली, मन जीतना सीखो. अगर मेरा मन तुम्हारे साथ है तो मैं जो भी लिखूंगा, नहीं लिखूंगा सब तुम्हारा है.’’ अनूप ने समझाया.

‘‘मुझे बातों में मत उलझाओ. 12 साल हो गए देखते हुए. मैं अब सब्र नहीं कर सकती. अब तो तुम्हें मुझ से शादी करनी ही होगी और तुम्हारी संपत्ति में भी मुझे हिस्सा चाहिए.’’ कल्पना ने स्पष्ट कह दिया.

‘‘तो यह तुम्हारा अंतिम फैसला है?’’ अनूप कुमार बिफर पड़ा.

‘‘हां, यह मेरा अंतिम फैसला है.’’ कल्पना दास के स्वर में दृढ़ता थी.

‘‘तो ठीक है, फिर…’’ कहते हुए अनूप कुमार साय ने ड्राइवर टोप्पो से गाड़ी रोकने का इशारा किया. ड्राइवर ने तुरंत गाड़ी रोक दी.

अनूप कुमार साय ने कार का दरवाजा खोला और बाहर निकलते हुए कहा, ‘‘आओ, आओ बाहर आओ.’’

उस के स्वर में बेहद रोष था.

कल्पना दास जब तक बाहर आती, अनूप कुमार साय जल्दी से गाड़ी के पीछे गया और पीछे रखी लोहे की एक मोटी रौड ले कर सामने खड़ा हो गया. कल्पना बाहर निकली तो उस ने रौड से कल्पना दास पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया. लोहे की रौड जब कल्पना के सिर पर पड़ी तो वह चीख कर वहीं गिर पड़ी.

मां के चीखने की आवाज सुनते ही बेटी प्रवती घबरा गई. मां को घायल देख घबरा कर वह बाहर आई तो अनूप कुमार ने उस के सिर पर भी उसी रौड से प्रहार कर दिया. उस का भी सिर फट गया और खून की धार फूट निकली. वह भी वहीं धराशाई हो कर गिर पड़ी.

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मांबेटी घायल पड़ी थीं. उन के सिर से खून बह रहा था. दोनों को घायलावस्था में देख अनूप कुमार उन्हें गालियां देते हुए चिल्ला रहा था, ‘‘मुझ से शादी करोगी, मेरी संपत्ति पर नजर लगा रखी है, मार डालूंगा.’’

कहते हुए उस ने रौड से उन पर कई वार किए, जिस से कुछ ही देर में उन दोनों की मौत हो गई. उन्हें मौत के घाट उतार कर उस ने लहूलुहान लोहे की रौड बोलेरो में रख ली. इस के बाद उस ने ड्राइवर बर्मन टोप्पो से कहा, ‘‘इन दोनों का हश्र ऐसा करो कि कोई पहचान भी न पाए. गाड़ी से दोनों का सिर कुचल डालो.’’

बर्मन टोप्पो ने मालिक के कहने पर बोलेरो स्टार्ट कर के कल्पना और उस की बेटी पर कई बार चढ़ाई. वह पहिया चढ़ा कर उन के चेहरे बिगाड़ने लगा ताकि कोई पहचान न पाए. अनूप ने यह वारदात छत्तीसगढ़ के जिला रायगढ़ में मां शाकुंभरी फैक्ट्री के सुनसान रास्ते पर की थी. घटनास्थल थाना चक्रधर नगर के अंतर्गत आता था.

अनूप कुमार साय अपनी बरसों से प्रेयसी रही कल्पना दास और उस की 14 वर्षीय बेटी प्रवती की नृशंस हत्या कर उसी बोलेरो में बैठ कर बृजराजनगर, ओडिशा की ओर चला गया. यह बात 6 मई, 2016 की है.

आइए जानें कि कल्पना दास कौन थी और वह पूर्व विधायक अनूप कुमार साय के चक्कर में कैसे फंसी?

कल्पना दास ब्रजराज नगर के रहने वाले रुद्राक्ष दास की बेटी थी. रुद्राक्ष दास की बेटी के अलावा 2 बेटे भी थे. उन्होंने अपने तीनों बच्चों को उच्चशिक्षा दिलवाई. पढ़ाई के दौरान ही कल्पना को कालेज में ही अपने साथ पढ़ने वाले सुनील श्रीवास्तव से प्यार हो गया था. सुनील भी ब्रजराज नगर में रहता था. उन का प्यार इस मुकाम पर पहुंच गया था कि उन्होंने शादी करने का फैसला ले लिया था.

कल्पना ने जब अपने प्यार के बारे में घर वालों को बताया तो उन्होंने उसे सुनील के साथ शादी करने की अनुमति नहीं दी. लेकिन कल्पना ने अपने घर वालों की बात नहीं मानी. लिहाजा एक दिन सुनील श्रीवास्तव और कल्पना दास ने घर वालों को बिना बताए एक मंदिर में शादी कर ली. यह सन 2000 की बात है.

सुनील से शादी करने के बाद कल्पना ने अपने पिता का घर छोड़ दिया. इस के बाद सुनील ने भी इलैक्ट्रौनिक की एक दुकान खोल ली, जिस से गुजारे लायक आमदनी होने लगी. शादी के बाद भी कल्पना ने अपनी पढ़ाई जारी रखी. इसी दौरान सन 2002 में उस ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम प्रवती रखा. इसी बीच कल्पना ने अपनी वकालत की पढ़ाई भी पूरी कर ली थी.

कल्पना सुनील के साथ खुश थी. लेकिन कुछ दिनों बाद ही जब उस के सिर से प्यार का नशा उतरा तो उसे पति में कई कमियां नजर आने लगीं. इस की सब से बड़ी वजह यह थी कि उसे खर्चे के लिए तंगी होती थी, क्योंकि सुनील की आमदनी बहुत ज्यादा नहीं थी. कम आय में कल्पना की महत्त्वाकांक्षाएं पूरी नहीं हो पाती थीं.

कल्पना जब कभी किसी पर्यटक स्थल पर घूमने को कहती तो सुनील पैसों का रोना रोने लगता था. न ही वह कल्पना को रेस्टोरेंट वगैरह में खाना खिलाने ले जाता था. एक बार कल्पना ने उस से गोवा घूमने की जिद की तो सुनील ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘अरे भई, ये सब बड़े लोगों के चोंचले हैं. हम साधारण लोग क्या गोवा घूमने जाएंगे.’’

सुनील कल्पना को समझाता मगर कल्पना की काल्पनिक उड़ान बहुत ऊंची थी. वह जीवन में उल्लास और ऐश्वर्य चाहती थी. वह सुनील के साथ घुट कर जीने से आजिज आ चुकी थी.

एक दिन कल्पना ने पति से कहा, ‘‘मैं ने वकालत की डिग्री हासिल की है. क्यों न वकालत कर के पैसे और नाम दोनों ही अर्जित करूं. इस से हमारे सपने भी पूरे होंगे और मेरा मन भी लगा रहेगा.’’

सुनील को कल्पना की यह सलाह पसंद आई. कल्पना ने बृजराज नगर में वकालत करनी शुरू कर दी. इसी दौरान कल्पना ने अपने मांबाप से बातचीत करना शुरू कर दिया था. वह मायके भी आनेजाने लगी थी. कल्पना ने वकालत जरूर शुरू कर दी थी लेकिन पेशे के पेंच समझे बिना कैसे पैसा कमाती.

फिर भी किसी तरह धीरेधीरे गाड़ी चल निकली. कल्पना के अपने मायके वालों से संबंध सामान्य हो चुके थे. पिता रुद्राक्ष दास ने भी सुनील और कल्पना को माफ कर दिया था. एक दिन कल्पना ने पिता रुद्राक्ष दास से जब अपने वकालत के पेशे में आ रही दिक्कतों के बारे में चर्चा की तो वे बोले, ‘‘वकालत का पेशा गहराई मांगता है. यह संबंधों का खेल है.’’

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‘‘क्या मतलब?’’ कल्पना ने भोलेपन से पूछा.

‘‘बेटी, जिन के संबंध जितने गहरे यानी दूर तक फैले होते हैं, वकालत में उसे ही ज्यादा काम मिलता है. मैं तुम्हें यहां के कांग्रेस पार्टी के एक बड़े नेता अनूप कुमार साय से मिला दूंगा. वह मेरे अच्छे परिचित हैं. वह तुम्हारी मदद जरूर करेंगे. रोजाना उन से सैकड़ों लोग मिलने आते हैं. देखना, उन के सहयोग से तुम्हारी वकालत को कैसे रवानगी मिलती है.’’

‘‘पापा, वह तो क्षेत्र के विधायक हैं न?’’ कल्पना ने आश्चर्य से पिता की ओर देखते हुए कहा.

‘‘हांहां, हमारे एमएलए हैं अनूप कुमार साय.’’ रुद्राक्ष दास ने बेटी की बात की पुष्टि करते हुए कहा.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

तिहाड़ में कैद सोनू पंजाबन की नई कारगुजारी : कर ली खुद ही मौत की तैयारी

बोलने में बेहद स्मार्ट, दिखने में काफी खूबसूरत और फर्राटेदार अंगरेजी बोलने वाली सोनू पंजाबन का पारिवारिक बैकग्राउंड भले ही अच्छा न रहा हो, पर उस की जिंदगी भी मुश्किलों भरी रही है. अभी वह तिहाड़ की जेल नंबर 6 में बंद है. 16 जुलाई, 2020 को दिल्ली की द्वारका कोर्ट ने एक मामले में सोनू पंजाबन के साथसाथ उस के साथी संदीप को भी दोषी ठहराया. वहीं जेल सूत्रों के मुताबिक, 18 जुलाई, 2020 को सोनू पंजाबन ने सिरदर्द की शिकायत की थी. उसे जो दवाएं दी गईं, वे उस ने एकसाथ ले कर जान देने की कोशिश की. हालांकि जेल के अडिश्नल आईजी राजकुमार ने ऐसी किसी बात से इनकार किया. उन्होंने कहा कि सोनू ने सिरदर्द की गोलियां कुछ ज्यादा खा लीं, और कोई बात नहीं है.

परंतु जरूरत से ज्यादा दवा के सेवन से सोनू पंजाबन की तबीयत बिगड़ गई. यह तो अच्छा हुआ कि आननफानन में उसे अस्पताल पहुंचा दिया गया, जहां उस की जान बच गई.

जैसे ही दिल्ली की द्वारका कोर्ट ने सोनू पंजाबन को नाबालिगों का अपहरण कर उन से वेश्यावृत्ति कराने के मामले में दोषी करार दिया, वह डिप्रैशन में आ गई और उसे सिरदर्द होने लगा. सिरदर्द की एकसाथ इकट्ठी दवा खाने के बाद उसे डीडीयू अस्पताल में भरती कराया गया, जहां डाक्टरों ने उस की जान बचा ली.

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गीता अरोड़ा उर्फ सोनू पंजाबन की कारगुजारियां फिल्म सरीखी हैं. उस ने अपनी खूबसूरती और चालाकी के दम पर देशभर में सैक्स रैकेट चलाया. इस दौरान वह कई बार जेल भी गई, लेकिन हर बार किसी तरह जमानत पर रिहा हो कर बाहर आ गई, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि वह दोषी करार दी गई. यही वजह है कि सोनू पिछली बातों व यादों को भूल नहीं पा रही और दोषी साबित होने पर तो वह बेहद तनाव में है.

अपने समय में पुलिस प्रशासन को छका देने वाली सोनू पंजाबन को कोई विष कन्या कह कर बुलाता है, तो कोई हुस्न की शहजादी. मौडर्न लाइफस्टाइल जीने वाली सोनू पंजाबन ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसे यह दिन भी देखने को मिलेगा.

वैसे भी पुलिस के साथ आंखमिचैली का खेल सोनू पंजाबन के लिए कोई नई बात नहीं है. पर अब दोषी साबित होने के बाद सोनू पंजाबन को लग रहा है कि उस का देह व्यापार का साम्राज्य खत्म हो जाएगा.

गौरतलब है कि दिल्ली की द्वारका कोर्ट में गीता अरोड़ा उर्फ सोनू पंजाबन और उस के साथी संदीप को नाबालिगों से देह धंधा कराने के आरोप में दोषी करार देने के बाद सजा का ऐलान किया जाएगा.

आरोप है कि सोनू और उस के साथी संदीप ने नाबालिगों का अपहरण किया, फिर कैद में रखा और मानव तस्करी भी कराई. नजफगढ़ के रहने वाले एक परिवार ने सोनू पंजाबन पर उन की नाबालिग बेटी का अपहरण कर उसे देह धंधे के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया था. इस के बाद जांच के दौरान दिल्ली पुलिस ने साल 2014 में सोनू पंजाबन को गिरफ्तार कर लिया था.

इस किशोरी को दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में अलगअलग जगहों पर बेचा गया था. वहां उस के साथ अलगअलग लोगों ने रेप किया. इसी दौरान पीड़िता उन के चंगुल से निकल भागी और अपने घर पहुंच गई.

इस दौरान किशोरी अवसाद में थी और आरोपितों से उसे जान का खतरा था. पुलिस ने सोनू पंजाबन को दिल्ली के उस के एक ठिकाने से धर दबोचा था. छानबीन में पता चला कि सोनू पंजाबन दिल्ली, उत्तर प्रदेश और पंजाब के कई मानव तस्करों के संपर्क में थी.

देशभर में सोनू पंजाबन ने देह व्यापार का धंधा फैलाया और इस दौरान करोड़ों की संपत्ति बनाई. दिल्ली के कई थानों के अलावा देश के कई राज्यों में सोनू पंजाबन पर सैक्स रैकेट चलाने के मामले दर्ज हैं. मकोका के तहत भी सोनू पंजाबन पर केस दर्ज किया गया था.

सोनू पंजाबन इतना बड़ा नाम हो गई थी कि उस के किरदार पर बौलीवुड में फिल्म भी बनने लगी थी. फिल्म ‘फुकरे’ में भोली पंजाबन का किरदार सोनू पंजाबन का ही असली किरदार है.

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फिलहाल तो सोनू पंजाबन की उम्मीदों पर डीडीयू अस्पताल के डाक्टरों ने पानी फेर दिया है यानी उसे बचा लिया गया है, पर देखना यह है कि अगली सुनवाई में कोर्ट सोनू पंजाबन को ले कर क्या फैसला सुनाता है. साथ ही यह सवाल भी गहराया हुआ है कि आखिर जेल में सोनू पंजाबन तक ऐसी जानलेवा दवा पहुंची कैसे? वहीं अब ठीक होने के बाद सोनू पंजाबन को एक और नई मुसीबत से जूझना होगा.

द्वारका कोर्ट अगली सुनवाई में सोनू पंजाबन को कितने साल की सजा सुनाती है, यह तो समय के गर्त में है. पर इतना तय है कि उसे सजा भुगतनी ही होगी.

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