दरवाजे के पार

दरवाजे के पार : भाग 1

उस दिन मार्च, 2020 की 17 तारीख थी. शाम के 4 बजे थे. मकान मालकिन पुष्पा किचन में चाय बनाने जा रही थी. तभी किसी ने डोरबैल बजाई. पुष्पा ने दरवाजा खोला तो दरवाजे पर 2 महिलाएं खड़ी थीं. उन में एक जवान थी, जबकि दूसरी अधेड़ उम्र की थी. पुष्पा ने अजनबी महिलाओं को देख कर परिचय पूछा तो उन्होंने कोई जवाब न दे कर पर्स से एक फोटो निकाली और पुष्पा को दिखाते हुए पूछा, ‘‘क्या यह आप के मकान में रहता है?’’

पुष्पा ने फोटो गौर से देखी फिर बोली, ‘‘हां, यह तो आशीष है. अपनी पत्नी सोना के साथ पिछले 6 महीने से हमारे मकान में रह रहा है. उस की पत्नी सोना कहीं बाहर काम करती है. इसलिए सप्ताह में 2-3 दिन ही आ पाती है. आज वह 12 बजे घर आई थी. आशीष भी घर पर था, लेकिन आधा घंटा पहले कहीं चला गया है.’’

ये भी पढ़ें- एक औरत : आतिश के परिवार का खात्मा

मकान मालकिन पुष्पा से पूछताछ करने के बाद दोनों महिलाएं वापस चली गईं. दरअसल, ये महिलाएं गीता और उन की बहू ज्योति थीं, जो सरायमीता पनकी, कानपुर की रहने वाली थीं. सोना गीता की बेटी थी और आशीष सोना का प्रेमी था.

आशीष ने कुछ देर पहले ज्योति के मोबाइल पर काल कर के जानकारी दी थी कि उस ने उस की ननद सोना को मार डाला है और उस की लाश दबौली निवासी पुष्पा के मकान में किराए वाले कमरे में पड़ी है, आ कर लाश ले जाओ. ज्योति ने यह बात अपनी सास गीता को बताई. फिर सासबहू जानकारी लेने के लिए पुष्पा के मकान पर पहुंची, लेकिन वहां हत्या जैसी कोई हलचल न होने से दोनों वापस लौट आई थीं.

चाय पीतेपीते पुष्पा के मन में आशीष को ले कर कुछ शंका हुई तो वह पहली मंजिल स्थित उस के कमरे पर पहुंची. कमरे के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद थी और अंदर से खून बह कर बाहर की ओर आ रहा था.

खून देख कर पुष्पा चीख पड़ी. मालकिन की चीख सुन कर अन्य किराएदार कमल, सुनील, टिंकू तथा शिवानंद आ गए. इस के बाद पुष्पा ने कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर झांका तो उन की आंखें फटी रह गईं.

कमरे में फर्श पर खून से लथपथ सोना की लाश पड़ी थी. लाश से खून रिस कर कमरे के बाहर तक आ गया था. सोना की लाश देख कर किराएदार भी भयभीत हो उठे. इस के बाद तो हत्या की खबर थोड़ी देर में पूरे दबौली (उत्तर) में फैल गई. लोग पुष्पा के मकान के बाहर जुटने लगे.

शाम लगभग 5 बजे पुष्पा ने थाना गोविंद नगर फोन कर के किराएदार आशीष की पत्नी सोना की हत्या की जानकारी दे दी. हत्या की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने इस घटना से अधिकारियों को अवगत कराया और पुलिस टीम के साथ दबौली (उत्तर) स्थित पुष्पा के मकान पर जा पहुंचे.

मकान के बाहर भीड़ जुटी थी. लोग तरहतरह की बातें कर रहे थे. भीड़ को पीछे हटा कर थानाप्रभारी अनुराग सिंह पुलिस टीम के साथ मकान की पहली मंजिल स्थित उस कमरे में पहुंचे जहां लाश पड़ी थी.

सोना की हत्या बड़ी निर्दयता से की गई थी. लाश के पास ही खून से सनी कैंची तथा मोबाइल पड़ा था. देखने से लग रहा था कि हत्या के पहले मृतका से जोरजबरदस्ती की गई थी. विरोध करने पर उस के पति आशीष ने कैंची से वार कर उस की हत्या कर दी थी. न केवल सोना के पेट में कैंची घोंपी गई थी, बल्कि उस के गले को भी कैंची से छेदा गया था.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि एसएसपी अनंत देव, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता और सीओ (गोविंद नगर) मनोज कुमार गुप्ता भी वहां आ गए. अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और इंसपेक्टर अनुराग सिंह से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की. फोरैंसिक टीम ने निरीक्षण कर घटनास्थल से साक्ष्य जुटाए. कैंची, दरवाजा और मेज पर रखे गिलास से फिंगरप्रिंट उठाए. जमीन पर फैले खून का नमूना भी जांच हेतु लिया गया.

निरीक्षण के दौरान सीओ मनोज कुमार गुप्ता की नजर मेज पर रखे लेडीज पर्स पर पड़ी. उन्होंने पर्स की तलाशी ली तो उस में साजशृंगार का सामान, कुछ रुपए तथा एक आधार कार्ड मिला. आधार कार्ड में युवती का नाम सोना सोनकर, पिता का नाम मुन्ना लाल सोनकर, निवासी सराय मीता, पनकी कानपुर दर्ज था. गुप्ताजी ने 2 सिपाहियों को आधार कार्ड में दर्ज पते पर सूचना देने के लिए भेज दिया.

एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने मकान मालकिन पुष्पा देवी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के पति देवकीनंदन की मृत्यु हो चुकी है. 2 बेटे हैं, अजय व राकेश, जो बाहर नौकरी करते हैं. मकान के भूतल पर वह स्वयं रहती है, जबकि पहली मंजिल पर बने कमरों को किराए पर उठा रखा है.

मकान में 4 किराएदार शिवानंद, कमल, सुनील व टिंकू पहले से रह रहे थे. 6 महीना पहले आशीष नाम का युवक एक युवती के साथ किराए पर कमरा लेने आया था.

ये भी पढ़ें- छुटभैये नेतागिरी का अंजाम

उस ने उस युवती को अपनी पत्नी बताया, साथ ही यह भी बताया कि उस की पत्नी सोना दूरदराज नौकरी करती है. वह सप्ताह में 2 या 3 दिन ही आया करेगी. मैं ने उसे रूम का किराया 1600 रुपए बताया तो वह राजी हो गया और किराएदार के रूप में रहने लगा. उस की पत्नी सोना सप्ताह में 2 या 3 दिन आती थी.

पुष्पा ने बताया कि आज 12 बजे सोना आशीष से मिलने आई थी. उस के बाद कमरे में क्या हुआ, उसे मालूम नहीं. आशीष 3 बजे चला गया था. उस के जाने के बाद 2 महिलाएं उस के बारे में पूछताछ करने आईं. लेकिन आशीष रूम में नहीं था, यह जान कर वे दोनों चली गईं. महिलाओं की बातों से मुझे कुछ शक हुआ, तो मैं आशीष के रूम पर गई. वहां कमरे के बाहर खून देख कर मैं चीखी तो बाकी किराएदार आ गए. उस के बाद मैं ने यह सूचना पुलिस को दे दी.

घटनास्थल पर अन्य किराएदार कमल, सुनील, टिंकू व शिवानंद भी मौजूद थे. सीओ मनोज कुमार गुप्ता ने उन से पूछताछ की तो उन सब ने बताया कि आशीष ने उन से सोना को अपनी पत्नी बताया था. वह हफ्ते में 2-3 बार आती थी. कमरा बंद कर दोनों खूब हंसतेबतियाते थे, कभीकभी उन दोनों में तूतूमैंमैं भी हो जाती थी.

आज सोना 12 बजे आई थी. बंद कमरे में दोनों का झगड़ा हो रहा था. तेज आवाजें आ रही थीं. लेकिन हम लोगों ने ध्यान नहीं दिया. घटना की जानकारी तब हुई, जब मकान मालकिन चीखी.

किराएदारों से पूछताछ में एक किराएदार कमल ने बताया कि आशीष ने एक बार बताया था कि वह कानपुर के गजनेर का रहने वाला है.

सीओ मनोज कुमार गुप्ता अभी किराएदारों से पूछताछ कर ही रहे थे कि मृतका सोना की मां गीता, बहन बरखा, निशू, भाभी ज्योति तथा भाई विक्की, सूरज, सनी और पीयूष आ गए. सोना का शव देख सभी दहाड़ मार कर रोने लगे. किसी तरह पुलिस अधिकारियों ने उन्हें शव से अलग किया और फिर पूछताछ की.

एसपी अपर्णा गुप्ता को मृतका की मां गीता ने बताया कि 3 साल पहले उन की बेटी सोना की आशीष से दोस्ती हो गई थी. दोनों एक ही फैक्ट्री में काम करते थे. जब उसे दोनों की दोस्ती की बात पता चली तो उस ने सोना का विवाह कर दिया. लेकिन सोना की अपने पति व ससुरालियों से नहीं पटी, वह मायके आ कर रहने लगी. अपने खर्चे के लिए उस ने गोविंद नगर स्थित एक स्कूल में नौकरी कर ली.

इस बीच आशीष ने सोना को फिर अपने प्रेम जाल में फंसा लिया और वह उसे अपने कमरे पर बुलाने लगा. कभीकभी वह घर भी आ जाता था. हम सब उसे अच्छी तरह जानते थे. पिछले कुछ दिनों से वह सोना पर शादी करने का दबाव डाल रहा था, लेकिन सोना शादी को राजी नहीं थी. आज भी आशीष ने सोना को अपने रूम में बुलाया और शादी का दबाव डाला. उस के न मानने पर आशीष ने जोरजबरदस्ती की और बेटी को मार डाला.

सोना को मौत की नींद सुलाने के बाद आशीष ने मेरी बहू ज्योति के मोबाइल पर हत्या की सूचना दी कि आ कर लाश ले जाओ. तब उस के सभी बेटे काम पर गए थे. वह बहू ज्योति को साथ ले कर दबौली आई और मकान मालकिन पुष्पा से मिली. लेकिन पुष्पा ने यह कह कर लौटा दिया कि आशीष अभी घर पर नहीं है. पुष्पा अगर हमें आशीष के कमरे तक जाने देती तो शायद उस की बेटी की जान बच जाती.

पूछताछ के बाद एसपी अपर्णा गुप्ता ने थानाप्रभारी अनुराग सिंह को आदेश दिया कि वह मृतका के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजे और रिपोर्ट दर्ज कर के कातिल आशीष को गिरफ्तार करें. उस की गिरफ्तारी के लिए उन्होंने सीओ मनोज कुमार गुप्ता के निर्देशन में एक पुलिस टीम भी गठित कर दी.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: मोहब्बत के लिए – इश्क के चक्कर में हत्या

पुलिस अधिकारियों के आदेश पर थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने घटनास्थल से बरामद खून सनी कैंची, सोना का मोबाइल फोन और पर्स आदि चीजें जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लीं. इस के बाद मृतका के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भेज दिया गया. थाने लौट कर अनुराग सिंह ने मृतका के भाई सूरज की तहरीर पर धारा 302 आईपीसी के तहत आशीष के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

दरवाजे के पार : भाग 3

गीता का पति मुन्नालाल सफाईकर्मी था और शराब पीने का आदी. स्वभाव से वह गुस्सैल था. इसलिए गीता ने सोना की असलियत उसे नहीं बताई. इस के बजाए उस ने पति पर सोना का विवाह जल्द से जल्द करने का दबाव बनाया. इसी के साथ गीता ने सोना का फैक्ट्री जाना भी बंद करा दिया और उस पर कड़ी नजर रखने लगी. उस ने अपनी बहू ज्योति तथा बेटों को भी सतर्क कर दिया था कि वह जहां भी जाए, उस के साथ कोई न कोई रहे.

मांभाइयों के कड़े प्रतिबंध के कारण सोना का आशीष से मिलन बंद हो गया. इस से सोना और आशीष परेशान हो उठे. दोनों मिलन के लिए बेचैन रहने लगे.

सोना को इस बात की भनक लग चुकी थी कि उस के घर वाले उस की शादी के लिए लड़का देख रहे हैं. जबकि सोना के सिर पर अब भी आशीष के प्यार का भूत सवार था.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: प्यार किसी का मौत किसी को

इधर मुन्नालाल की खोज भीमसागर पर समाप्त हुई. भीमसागर का पिता रामसागर दादानगर फैक्ट्री एरिया के मिश्रीलाल चौराहे के निकट रहता था. नहर की पटरी के किनारे उस का मकान था. रामसागर लकड़ी बेचने का काम करता था. उस का बेटा भीमसागर भी उस के काम में मदद करता था.

मुन्नालाल ने भीमसागर को देखा तो उसे सोना के लिए पसंद कर लिया. हालांकि सोना ने शादी से इनकार किया, लेकिन मुन्नालाल ने उस की एक नहीं सुनी. अंतत: सन 2017 के जनवरी महीने की 10 तारीख को सोना का विवाह भीमसागर के साथ कर दिया गया.

भीमसागर की दुलहन बन कर सोना ससुराल पहुंची तो सभी ने उसे हाथोंहाथ लिया. सुंदर पत्नी पा कर भीमसागर भी खुश था, वहीं उस के मातापिता भी बहू की तारीफ करते नहीं थक रहे थे. सब खुश थे, लेकिन सोना खुश नहीं नहीं थी.

सुहागरात को भी वह बेमन से पति को समर्पित हुई. भीमसागर तो तृप्त हो कर सो गया, पर सोना गीली लकड़ी की तरह सुलगती रही. न तो उस के जिस्म की प्यास बुझी थी, न रूह की.

उस रात के बाद हर रात मिलन की रस्म निभाई जाने लगी. चूंकि सोना इनकार नहीं कर सकती थी, सो अरुचि से पति की इच्छा पूरी करती रही.

घर वालों की जबरदस्ती के चलते सोना ने विवाह जरूर कर लिया था, पर वह मन से भीमसागर को पति नहीं मान सकी थी. अंतरंग क्षणों में वह केवल तन से पति के साथ होती थी, उस का प्यासा मन प्रेमी में भटक रहा होता था.

3-4 महीने तक सोना ने जैसेतैसे पति से निभाया, उस के बाद दोनों के बीच कलह होने लगी. कलह का पहला कारण सोना का एकांत में मोबाइल फोन पर बातें करना था. भीमसागर को शक हुआ कि सोना का शादी से पहले कोई यार था, जिस से वह चोरीछिपे एकांत में बातें करती है.

दूसरा कारण उस की फैशनपरस्ती तथा घर से बाहर जाना था. भीमसागर के मातापिता चाहते थे कि बहू मर्यादा में रहे और घर के बाहर कदम न रखे. लेकिन सोना को घर की चारदीवारी में रहना पसंद नहीं था. वह स्वच्छंद हो कर घूमती थी. इन्हीं 2 बातों को ले कर सोना का भीमसागर और ससुराल के लोगों से झगड़ा होने लगा. आजिज आ कर साल बीततेबीतते सोना ससुराल छोड़ कर मायके आ कर रहने लगी. गीता ने सोना को बहुत समझाया और ससुराल भेजने का प्रयास किया, लेकिन वह नहीं मानी. 6 महीने तक सोना घर में रही, उस के बाद उस ने गोविंद नगर स्थित एक स्कूल में आया की नौकरी कर ली. वह सुबह 8 बजे घर से निकलती, फिर शाम 5 बजे तक वापस आती. इस तरह वह मांबाप पर बोझ न बन कर खुद अपना भार उठाने लगी.

एक शाम सोना स्कूल से लौट रही थी कि दादानगर चौराहे पर उस की मुलाकात आशीष से हो गई. बिछड़े प्रेमी मिले तो दोनों खुश हुए. आशीष उसे नजदीक के एक रेस्तरां में ले गया, जहां दोनों ने एकदूसरे को अपनी व्यथाकथा सुनाई. बातोंबातों में आशीष उदास हो कर बोला, ‘‘अरमान मैं ने सजाए और तुम ने घर किसी और का बसा दिया.’’

सोना के मुंह से आह सी निकली, ‘‘हालात की मजबूरी इसी को कहते हैं. घर वालों ने मेरी मरजी के बिना शादी कर दी. मैं ने मन से उसे कभी पति नहीं माना. साल बीतते उस से मेरा मनमुटाव हो गया और मैं उसे छोड़ कर मायके आ गई.’’ आशीष मन ही मन खुश हुआ. फिर बोला, ‘‘क्या अब भी तुम मुझे पहले जैसा प्यार करती हो?’’

‘‘यह भी कोई पूछने की बात है. सच तो यह है कि मैं तुम्हें कभी भुला ही नहीं पाई. सुहागरात को भी तुम्हारी ही याद आती रही.’’ इस के बाद सोना और आशीष का फिर मिलन होने लगा. दोनों के बीच शारीरिक रिश्ता भी बन गया. आशीष कभीकभी सोना के घर भी जाने लगा. गीता को आशीष का घर आना अच्छा तो नहीं लगता था, पर उसे मना भी नहीं कर पाती थी. हालांकि गीता निश्चिंत थी कि सोना की शादी हो गई है. अब आशीष जूठे बरतन में मुंह नहीं मारेगा. पर यह उस की भूल थी.

सोना के कहने पर आशीष ने अगस्त, 2019 में दबौली (उत्तरी) में किराए पर एक कमरा ले लिया. कमरा पसंद करने सोना भी आशीष के साथ गई थी.

उस ने मकान मालकिन को बताया कि सोना उस की पत्नी है. मकान में अन्य किराएदार थे, उन को भी आशीष ने सोना को अपनी पत्नी बताया था.

सोना अब इस कमरे पर आशीष से मिलने आने लगी. सोना के आते ही दरवाजा बंद हो जाता और शारीरिक मिलन के बाद ही खुलता. किसी को ऐतराज इसलिए नहीं होता था, क्योंकि उन की नजर में सोना उस की पत्नी थी.

ये भी पढ़ें- तनु की त्रासदी : जिस्म की चाहत का असर

आशीष के रूम में आतेजाते सोना को एक रोज एक फोटो हाथ लग गई, जिस में वह एक युवती और एक मासूम बच्चे के साथ था. इस युवती और बच्चे के संबंध में सोना ने आशीष से पूछा तो वह बगलें झांकने लगा. अंतत: उसे बताना ही पड़ा कि वह शादीशुदा है और तसवीर में उस की पत्नी व बच्चा है.

लेकिन मनमुटाव के चलते पत्नी घाटमपुर स्थित अपने मायके में रह रही है. यह पता चलने के बाद सोना का आशीष से झगड़ा हुआ. लेकिन आशीष ने किसी तरह सोना को मना लिया.

आशीष को लगा कि सच्चाई जानने के बाद सोना कहीं उस का साथ न छोड़ दे. इसलिए वह उस पर दबाव डालने लगा कि वह अपने पति को तलाक दे कर उस से शादी कर ले. लेकिन सोना ने यह कह कर मना कर दिया कि पहले तुम अपनी पत्नी को तलाक दो. तभी मैं अपने पति से तलाक लूंगी. इस के बाद तलाक को ले कर दोनों में अकसर झगड़ा होने लगा. 17 मार्च की दोपहर 12 बजे सोना दबौली स्थित आशीष के रूम पर पहुंची. आशीष ने उसे फोन कर के बुलाया था. सोना के आते ही आशीष ने रूम बंद कर लिया फिर दोनों में बातचीत होने लगी.

बातचीत के दौरान आशीष ने सोना से कहा कि वह अपने पति से तलाक ले कर उस से शादी कर ले, पर सोना इस के लिए राजी नहीं हुई. उलटे पलटवार करते हुए वह बोली, ‘‘पहले तुम अपनी पत्नी से तलाक क्यों नहीं लेते, एक म्यान में 2 तलवारें कैसे रहेंगी?’’

तलाक को ले कर दोनों में गरमागरम बहस होने लगी. बहस के बीच आशीष ने प्रणय निवेदन किया, जिसे सोना ने ठुकरा दिया. इस पर आशीष जबरदस्ती पर उतर आया और सोना के कपड़े खींच कर उसे अर्धनग्न कर दिया. सोना भी बचाव में भिड़ गई.

तलाक लेने से इनकार करने और शारीरिक संबंध न बन पाने से आशीष का गुस्सा आसमान पर जा पहुंचा. उस ने सामने अलमारी में रखी कैंची उठाई और सोना के पेट में घोंप दी.

सोना पेट पकड़ कर फर्श पर तड़पने लगी. उसी समय आशिष ने सोना के गले को कैंची से छेद डाला. सोना पेट पकड़ कर तड़पने लगी. उसी समय उस ने सोना के गले को कैंची से छेद डाला. कुछ देर बाद सोना ने दम तोड़ दिया.

सोना की हत्या करने के बाद आशीष ने कमरे के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद की और मकान के बाहर आ गया. बाहर आ कर उस ने सोना की भाभी ज्योति को सोना की हत्या की जानकारी दी, फिर फरार हो गया.

इस घटना का भेद तब खुला, जब मकान मालकिन पुष्पा पहली मंजिल पर स्थित आशीष के कमरे पर पहुंची. पुष्पा ने इस घटना की सूचना थाना गोविंद नगर को दे दी. जांच में अवैध रिश्तों में हुई हत्या की बात सामने आई. 20 मार्च, 2020 को थाना गोविंद नगर पुलिस ने अभियुक्त आशीष सिंह को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट ए.के. सिंह की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: मोहब्बत के लिए – इश्क के चक्कर में हत्या

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दरवाजे के पार : भाग 2

मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस टीम आशीष की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गई. पुलिस टीम ने मृतका सोना का मोबाइल फोन खंगाला तो आशीष का नंबर मिल गया, जिसे सर्विलांस पर लगा दिया गया.

सर्विलांस से उस की लोकेशन गीतानगर मिली. पुलिस टीम रात 2 बजे गीतानगर पहुंची, लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही आशीष का फोन स्विच्ड औफ हो गया, जिस से उस की लोकेशन मिलनी बंद हो गई. निराश हो कर पुलिस टीम वापस लौट आई.

निरीक्षण के दौरान एक किराएदार ने सीओ मनोज कुमार गुप्ता को बताया था कि आशीष कानपुर देहात के गजनेर कस्बे का रहने वाला है. इस पर उन्होंने एक पुलिस टीम को गजनेर भेज दिया, जहां आशीष की तलाश की गई. सादे कपड़ों में गई पुलिस टीम ने दुकानदारों व अन्य लोगों को आशीष की फोटो दिखा कर पूछताछ की.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: मोहब्बत के लिए – इश्क के चक्कर में हत्या

लेकिन फोटो में आशीष चश्मा लगाए हुए था, जिस की वजह से लोग उसे पहचान नहीं पा रहे थे. पुलिस टीम पूछताछ करते हुए जब मुख्य रोड पर आई तो एक पान विक्रेता ने फोटो पहचान ली. उस ने बताया कि वह अजय ठाकुर है जो कस्बे के लाल सिंह का छोटा बेटा है.

आशीष के पहचाने जाने से पुलिस को अपनी मेहनत रंग लाती दिखी. पुलिस टीम लाल सिंह के घर पहुंची. पुलिस ने लाल सिंह को फोटो दिखाई तो वह बोला, ‘‘यह फोटो मेरे बेटे आशीष सिंह की है. घर के लोग उसे अजय ठाकुर के नाम से बुलाते हैं. आशीष कानपुर में नौकरी करता है. मेरा बड़ा बेटा मनीष सिंह भी गीतानगर, कानपुर में रहता है. पर आप लोग हैं कौन और आशीष की फोटो क्यों दिखा रहे हैं. उस ने कोई ऐसावैसा काम तो नहीं कर दिया?’’

पुलिस टीम ने अपना परिचय दे कर बता दिया कि उन का बेटा सोना नाम की एक युवती की हत्या कर के फरार हो गया है. पुलिस उसी की तलाश में आई है. अगर वह घर में छिपा हो तो उसे पुलिस के हवाले कर दो, वरना खुद भी मुसीबत में फंस जाओगे.

पुलिस की बात सुन कर लाल सिंह घबरा कर बोला, ‘‘हुजूर, आशीष घर पर नहीं आया है. न ही उस ने मुझे कोई जानकारी दी है.’’

यह सुन कर पुलिस ने लाल सिंह को हिरासत में ले लिया. चूंकि लाल सिंह का बड़ा बेटा गीतानगर में रहता था और आशीष के मोबाइल फोन की लोकेशन भी गीता नगर की ही मिली थी. पुलिस को शक हुआ कि अजय ठाकुर उर्फ आशीष सिंह अपने बड़े भाई के घर में छिपा हो सकता है.

पुलिस टीम लाल सिंह को साथ ले कर वापस कानपुर आ गई और उस के बताने पर गीता नगर स्थित बड़े बेटे मनीष के घर छापा मारा. छापा पड़ने पर घर में हड़कंप मच गया. पिता के साथ पुलिस देख कर आशीष ने भागने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया और थाना गोविंद नगर ले आई.

थाना गोविंद नगर में जब आशीष सिंह से सोना की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. आशीष ने बताया कि शादी के पहले से दोनों के बीच प्रेम संबंध थे. सोना के घर वालों को पता चला तो उन्होंने उस की शादी कर दी, लेकिन सोना की पति से पटरी नहीं बैठी.

वह ससुराल छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी. उस के बाद दोनों के बीच फिर से अवैध संबंध बन गए. सोना के कहने पर ही उस ने किराए का कमरा लिया था, जहां दोनों का शारीरिक मिलन होता था.

आशीष ने बताया कि घटना वाले दिन सोना 12 बजे आई थी. आशीष ने उस से कहा कि वह पति को तलाक दे कर उस से शादी कर ले. लेकिन वह नहीं मानी. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ. झगड़े के बीच आशीष ने यह सोच कर प्रणय निवेदन किया कि यौन प्रक्रिया में गुस्सा शांत हो जाता है, लेकिन सोना ने उसे दुत्कार दिया.

शादी की बात न मानने और प्रणय निवेदन ठुकराने की वजह से आशीष को गुस्सा आ गया और उस ने पास रखी कैंची उठा कर सोना के पेट में घोंप दी. फिर उसी कैंची से उस का गला भी छेद डाला. हत्या करने के बाद वह फरार हो गया था. चूंकि आशीष सिंह ने सोना की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था और पुलिस आला ए कत्ल भी बरामद कर चुकी थी, इसलिए थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने अजय ठाकुर उर्फ आशीष सिंह को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—

कानपुर महानगर के पनकी थाना क्षेत्र में एक मोहल्ला है सराय मीता. मुन्नालाल सोनकर अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहता था. मुन्नालाल सोनकर नगर निगम में सफाई कर्मचारी था. उसे जो वेतन मिलता था, उसी से परिवार का भरणपोषण होता था.

मुन्नालाल अपनी बड़ी बेटी बरखा की शादी कर चुका था. बरखा से छोटी सोना 18 साल की हो गई थी. वह चंचल स्वभाव की थी. पढ़ाईलिखाई में मन लगाने के बजाए वह सजनेसंवरने पर ज्यादा ध्यान देती थी. नईनई फिल्में देखना, सैरसपाटा करना और आधुनिक फैशन के कपड़े खरीदना उस का शौक था. मुन्नालाल सीधासादा आदमी था. रहनसहन भी साधारण था. वह बेटी की फैशनपरस्ती से परेशान था.

सोना अपनी मां गीता के साथ दादानगर स्थित एक लोहा फैक्ट्री में काम करती थी. वहां से उसे जो वेतन मिलता था, उसे वह अपने फैशन पर खर्च करती थी. जिद्दी स्वभाव की सोना को बाजार में जो कपड़ा या अन्य सामान पसंद आ जाता, वह उसे खरीद कर ले आती. मातापिता रोकतेटोकते तो वह टका सा जवाब दे देती, ‘‘मैं ने सामान अपने पैसे से खरीदा है. फिर ऐतराज क्यों?’’

उस के इस जवाब से सब चुप हो जाते थे. सोना की अपनी भाभी ज्योति से खूब पटरी बैठती थी.

सोना दादानगर स्थित जिस लोहा फैक्ट्री में काम करती थी, आशीष सिंह उसी में सुपरवाइजर था. वह मूलरूप से जिला कानपुर के देहात क्षेत्र के कस्बा गजनेर का रहने वाला था. उस का घरेलू नाम अजय था. लोग उसे अजय ठाकुर कहते थे. उस के पिता गांव में किसानी करते थे. सोना लोहा फैक्ट्री में पैकिंग का काम करती थी.

ये भी पढ़ें- तनु की त्रासदी : जिस्म की चाहत का असर

निरीक्षण के दौरान एक रोज आशीष सिंह की निगाह खूबसूरत सोना पर पड़ी. दोनों की नजरें मिलीं तो दोनों कुछ देर तक आकर्षण में खोए रहे. जब आकर्षण टूटा तो सोना मुसकरा दी और नजरें झुका कर पैकिंग में जुट गई. नजरें मिलने का सुखद अहसास दोनों को हुआ.

अगले दिन सोना कुछ ज्यादा ही बनसंवर कर आई. आशीष उस के पास पहुंचा और इशारे से उसे अपने औफिस के कमरे में आने को कहा. वह उस के औफिस में आई तो आशीष ने उस से कुछ कहा, जिसे सुन कर सोना सकपका गई. वह यह कह कर वहां से चली गई कि कोई देख लेगा. सोना की ओर से हरी झंडी मिली तो आशीष बहुत खुश हुआ.

आशीष सिंह पढ़ालिखा हृष्टपुष्ट युवक था. वह अच्छाखासा कमा भी रहा था. लेकिन वह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप था. उस की पत्नी से नहीं बनी तो वह घाटमपुर स्थित अपने मायके में रहने लगी थी. आशीष सिंह ने सोना से यह बात छिपा ली थी. उस ने उसे खुद को कुंवारा बताया था.

सोना सजीले युवक आशीष से मन ही मन प्यार करने लगी और मां से नजरें बचा कर आशीष से फैक्ट्री के बाहर एकांत में मिलने लगी. दोनों के बीच प्यार भरी बातें होने लगीं. धीरेधीरे आशीष सोना का दीवाना हो गया. सोना भी उसे बेपनाह मोहब्बत करने लगी.

प्यार परवान चढ़ा तो देह की प्यास जाग उठी. एक रोज आशीष सोना को अपने दादानगर वाले कमरे पर ले गया, जहां वह किराए पर रहता था. सोना जैसे ही कमरे में पहुंची, आशीष ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. आशीष के स्पर्श से सोना को बहकते देर नहीं लगी. आशीष जो कर रहा था, सोना को उस की अरसे से तमन्ना थी. इसलिए वह भी आशीष का सहयोग करने लगी.

कुछ देर बाद आशीष और सोना अलग हुए तो बहुत खुश थे. इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. जब भी मन होता, शारीरिक संबंध बना लेते. आशीष कमरे में अकेला रहता था, जिस से दोनों आसानी से मिल लेते थे. लेकिन कहते हैं कि प्यार चाहे जितना चोरीछिपे किया जाए, एक न एक दिन उस का भेद खुल ही जाता है.

एक शाम सोना और गीता एक साथ फैक्ट्री से निकली तो कुछ दूर चल कर सोना बोली, ‘‘मां, मुझे गोविंद नगर बाजार से कुछ सामान लेना है. तुम घर चलो, मैं आ जाऊंगी.’’

गीता ने कुछ नहीं कहा. लेकिन उसे सोना पर संदेह हुआ. इसलिए उस ने सोना का गुप्तरूप से पीछा किया और उसे आशीष के साथ रंगेहाथ पकड़ लिया.

गीता ने सोना को फटकारा और भलाबुरा कहा. साथ ही प्रेम से सिर पर हाथ रख कर समझाया भी, ‘‘बेटी, आशीष ठाकुर जाति का है और तुम दलित की बेटी हो. आशीष के घर वाले दलित की बेटी को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए मेरी बात मानो और आशीष का साथ छोड़ दो, इसी में हम सब की भलाई है.’’

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: प्यार किसी का मौत किसी को

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

एक औरत : भाग 3 – आतिश के परिवार का खात्मा

एक बार संबंध बन जाने के बाद यह सिलसिला सा बन गया. इस के बाद आतिश मोनिका की और ज्यादा मदद करने लगा. मोनिका का व्यवहार भी अब बदल चुका था. अब वह केसरवानी परिवार में ऐसे आत्मविश्वास के साथ काम और बातें करने लगी जैसे वह उस परिवार की ही सदस्य हो. मौका मिलने पर आतिश भी मोनिका को मौल, रेस्टोरेंट आदि जगहों पर ले जाने लगा.

अवैध संबंधों को कोई लाख छिपाने की कोशिश करे, लेकिन एक न एक दिन उन की पोल खुल ही जाती है. आतिश और मोनिका के साथ भी यही हुआ. एक दिन आतिश की बहन नीहारिका ने अपने भाई को मोनिका के साथ छेड़छाड़ करते देख लिया. हालांकि नीहारिका को मोनिका की बातों आदि से शक तो काफी दिनों से हो रहा था, लेकिन उस दिन सब कुछ अपनी आंखों से देखने के बाद उस का शक विश्वास में बदल गया.

यह बात छिपाने वाली नहीं थी. लिहाजा उस ने यह बात अपनी मां के कानों में डाल दी. मां ने आतिश को तो समझाया ही, साथ ही मोनिका को भी अपने घर के कामों से हटाने का फैसला ले लिया. लेकिन आतिश ने मोनिका का काम छुड़वाने का विरोध किया और साथ ही मां से वादा किया कि अब वह मोनिका से दूर रहेगा.

ये भी पढ़ें- तनु की त्रासदी : जिस्म की चाहत का असर

घर वालों ने भी सोचा कि शायद आतिश अब मान जाएगा, लेकिनवह नहीं माना. मौका मिलते ही वह और मोनिका अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे. उधर नीहारिका और किरण की निगाहें आतिश और मोनिका की हरकतों को समझ लेती थीं.

यह बात जब आतिश की पत्नी प्रियंका को पता चली तो उस ने घर में कोहराम मचा दिया. तब गुस्से में आतिश ने पत्नी की पिटाई कर दी. घर के सभी लोग आतिश को समझातेसमझाते थक गए, लेकिन उस के दिमाग में उन की बातें नहीं घुसी. उसे तो मोनिका के अलावा घर के सभी लोग दुश्मन लगने लगे थे.

आतिश की बहन नीहारिका को कहीं से आतिश और मोनिका की एक फोटो मिल गई, जिस में दोनों साथसाथ थे. उस ने भाई से कहा कि वह मोनिका को भूल जाए, वरना इस फोटो को सोशल मीडिया पर डाल देगी.

आतिश ने उस से कहा कि अगर वह अपने मोबाइल से फोटो डिलीट कर देगी तो वह मोनिका से नहीं मिलेगा. नीहारिका ने कहा कि वह कुछ दिनों तक देखेगी, अगर इस दौरान उस ने मोनिका से बात नहीं की तो वह फोटो डिलीट कर देगी.

आतिश 2-4 दिन तो मोनिका से नहीं मिला, लेकिन वह फिर उस से बातें करने लगा. जब नीहारिका ने देखा कि दोनों ने अपनी आदत नहीं सुधारी है तो उस ने आतिश और मोनिका की वह फोटो फेसबुक पर डाल दी. यह बात जब आतिश को पता लगी तो उस ने नीहारिका की पिटाई कर दी.

नौकरानी मोनिका से पति के संबंधों की वजह से प्रियंका मानसिक तनाव में रहने लगी, क्योंकि पति से वह कुछ कहती तो वह उस की पिटाई कर देता था.

इस बात को ले कर घर में कलह रहने लगी. मां किरण बेटी और बहू का पक्ष लेती थीं, इसलिए आतिश मां को बुराभला कहने से नहीं चूकता था.

दिनोंदिन घर के हालात सुधरने के बजाए बिगड़ते जा रहे थे. आतिश अपने मांबाप तक की पिटाई करने लगा था. शोरशराबा सुन कर पड़ोसी घर आ कर आतिश को समझाने की कोशिश करते तो वह उन्हें भी बेइज्जत कर देता. लिहाजा पड़ोसी भी परेशान हो गए.

पिता तुलसीदास केसरवानी जब ज्यादा परेशान हो गए तो उन्होंने एक दिन अपने शुभचिंतक पड़ोसी से बात की. पड़ोसी की सलाह पर तुलसीदास ने फैसला लिया कि वह धूमनगंज थाने जा कर बेटे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराएंगे.

किसी तरह आतिश को इस बात की भनक लग गई कि उस के पिता थाने में उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने जाने वाले हैं. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद उस के खिलाफ काररवाई हो सकती थी, लिहाजा उस ने अपने मातापिता के सामने हाथ जोड़ते हुए अपने किए की माफी मांगी और सुधर जाने का भरोसा दिया. मांबाप ने भी सोचा कि बेटे को अपनी गलती का अहसास हो रहा है तो उसे माफ कर देने में कोई बुराई नहीं है. लिहाजा उन्होंने उसे सुधर जाने की नसीहत देते हुए माफ कर दिया.

लेकिन माफी मांगने के पीछे आतिश के दिमाग में दूसरी ही खिचड़ी पक चुकी थी. उस ने सोच लिया था कि वह किसी तरह घर के सारे लोगों का काम तमाम कराएगा. उस के बाद पिता की सारी संपत्ति का मालिक बन जाएगा. साथ ही मोनिका के साथ रहने से उसे कोई रोकने वाला भी नहीं होगा.

आतिश की दुकान पर कई सालों से अनुज श्रीवास्तव नाम का एक युवक काम कर रहा था. वह दबंग किस्म का था. आतिश ने अपने घर वालों का कत्ल करने की बात उस से शेयर की, इस के लिए वह पैसे देने को भी तैयार था. अनुज पैसों के लालच में आ गया. 8 लाख रुपए में आतिश ने घर के 4 सदस्यों की हत्या कराने का सौदा पक्का कर दिया. इस के लिए उस ने अनुज को 75 हजार रुपए एडवांस भी दे दिए.

अनुज को लगा कि यह काम वह अकेला नहीं कर सकेगा, इसलिए उस ने कौशांबी के अजुहा गांव के अपने मामा राजकृष्ण श्रीवास्तव व एक अन्य आदमी को भी योजना में शामिल कर लिया. सभी ने तय किया कि गोली के बजाए चाकू से वारदात को अंजाम देना आसान रहेगा.

योजना को अंजाम देने के लिए 14 मई, 2020 बृहस्पतिवार का दिन तय हो गया. योजना के अनुसार आतिश दोपहर डेढ़ बजे किस्त जमा कराने के लिए बैंक चला गया, ताकि उस पर कोई शक न करे और बैंक के सीसीटीवी में भी उस की फुटेज आ जाए.

लौकडाउन की वजह से तुलसीदास की दुकान बंद थी. आतिश के घर से निकलने के बाद अनुज अपने मामा और साथी को ले कर तुलसीदास के घर पहुंच गया. चूंकि अनुज को घर के सभी लोग जानते थे, इसलिए उन्होंने सभी को घर में बुला लिया.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: प्यार किसी का मौत किसी को

अनुज ने तुलसीदास केसरवानी से साथ आए लोगों का परिचय अपने रिश्तेदारों के रूप में कराया और कहा कि लौकडाउन की वजह से इन्हें आर्थिक परेशानी है. अगर आप कुछ मदद कर दें तो इन का भला हो जाएगा.

उस समय तुलसीदास केसरवानी और उन की पत्नी किरण ही वहां मौजूद थे. बेटी नीहारिका ऊपर की मंजिल पर अपनी भाभी प्रियंका के पास थी. अनुज की बात पर तुलसीदास को दया आ गई. वह पैसे लेने के लिए अपनी दुकान की तरफ गए. क्योंकि उन की दुकान में जाने का एक दरवाजा घर के अंदर से भी था.

तुलसीदास के पीछेपीछे अनुज और उसका मामा भी गया. उन दोनों ने वहीं पर तुलसीदास केसरवानी का मुंह दबोच कर गला रेत दिया. गला कटने के बाद तुलसीदास जमीन पर गिरे तो आवाज सुन कर उन की पत्नी किरण वहां आई तो बदमाशों ने उन का भी गला रेत दिया. उसी दौरान बेटी नीहारिका भाभी के पास से नीचे आई तो उस की भी उन्होंने गला रेत कर हत्या कर दी.

इस के बाद वे ऊपर की मंजिल पर गए. वहां आतिश की पत्नी प्रियंका की भी उन्होंने हत्या कर दी. घर में 4 लोगों की हत्या करने के बाद उन्होंने बाथरूम में पहुंच कर खून से सने हाथ साफ किए. फिर दरवाजा भिड़ा कर वहां से चले गए.

सीओ बृजनारायण सिंह ने आरोपी आशीष उर्फ आतिश से पूछताछ के बाद अन्य आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए उन के घरों पर टीमें भेजीं. लेकिन अनुज श्रीवास्तव ही पुलिस के हाथ लग सका, अन्य अभियुक्त अपने घरों से फरार मिले. पूछताछ में अनुज श्रीवास्तव ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

हत्यारोपी अनुज श्रीवास्तव और आशीष उर्फ आतिश से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जिला जेल भेज दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित

एक औरत : भाग 2 – आतिश के परिवार का खात्मा

उस समय घर के सभी लोग ठीकठाक थे. जब वह पौने 4 बजे बैंक से घर लौटा तो उसे घर का दरवाजा भिड़ा हुआ मिला, घर में सभी लोगों की लहूलुहान लाशें पड़ी थीं. कहतेकहते आतिश रोने लगा.

मामला गंभीर जरूर था, लेकिन पुलिस अधिकारियों को इस बात की संभावना नजर आ रही थी कि इस केस में ऐसा कोई व्यक्ति शामिल था, जिस के इस परिवार से नजदीकी संबंध थे. प्रारंभिक पूछताछ के बाद पुलिस ने चारों शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए.

हत्या के इस मामले को सुलझाने के लिए एसएसपी सत्यार्थ पंकज ने सीओ बृजनारायण सिंह की अगुवाई में कई पुलिस टीमों को लगा दिया. सभी पुलिस टीमें अलगअलग ऐंगल से केस की तह में पहुंचने की कोशिश में जुट गई.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: मोहब्बत के लिए – इश्क के चक्कर में हत्या

एक पुलिस टीम क्षेत्र में स्थित मोबाइल फोन टावर के संपर्क में आने वाले फोन नंबरों (डंप डाटा) को खंगालने में लगी थी तो दूसरी टीम तुलसीदास केसरवानी के घर के बाहर और रास्ते में लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज देखने में लगी थी. मृतकों के घर के बाहर भी सीसीटीवी कैमरा लगा था, लेकिन जांच में पता चला कि वह कैमरा पहले से ही खराब था.

सीओ बृजनारायण सिंह अब यह पता लगाने में जुट गए कि केसरवानी परिवार के यहां किनकिन लोगों का आनाजाना था और उन के ऐसे कौनकौन नजदीकी रिश्तेदार या संबंधी हैं, जिन का उन के यहां आनाजाना था.

यह सब जानने के लिए उन्होंने आशीष उर्फ आतिश को कोतवाली बुलवाया. पुलिस की एक टीम को लोगों से बातचीत कर के जानकारी मिली थी कि शादीशुदा आतिश के एक महिला के साथ प्रेम संबंध हैं, जिस की वजह से उस के घर में अकसर झगड़ा होता था.

पुलिस के लिए यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी. पुलिस को इस बिंदु पर भी आतिश से बात करनी थी. सीओ बृजनारायण सिंह ने आतिश से सब से पहले पूछा कि उस की या उस के पिता की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी.

आतिश ने किसी से रंजिश होने की बात से इनकार कर दिया. इस के बाद उन्होंने आतिश से उन रिश्तेदारों, दोस्तों या संबंधियों के बारे में पूछा जो उस के घर आतेजाते थे. आतिश ने उन सभी के नाम लिखवा दिए.

यह जानकारी लेने के बाद सीओ साहब ने आतिश से उस महिला के बारे में पूछा, जिस के साथ उस के प्रेम संबंध थे. यह सुनते ही आतिश के चेहरे का रंग उड़ गया. वह संभलते हुए बोला, ‘‘सर, मेरी तो शादी हो चुकी थी, पत्नी प्रियंका के होते मैं यह सब कैसे कर सकता था?’’

‘‘क्या शादीशुदा पुरुषों के किसी दूसरी महिला के साथ संबंध नहीं होते?’’ सीओ साहब ने पूछा.

‘‘सर, होते होंगे, लेकिन मैं ऐसा नहीं हूं.’’ आतिश बोला.

‘‘जब ऐसी बात नहीं थी तो तुम्हारी पत्नी और मातापिता के साथ तुम्हारा किस बात को ले कर झगड़ा होता था?’’ सीओ बृजनारायण सिंह ने उस से पूछा.

‘‘सर, घरेलू बातों को ले कर कभीकभी कहासुनी हो जाती थी.’’ आतिश ने सफाई दी.

‘‘आतिश, तुम झूठ बोल रहे हो. बात घरेलू नहीं बल्कि उस औरत और तुम्हारे संबंधों की ही थी. जिस की वजह से तुम ने कई बार अपने मातापिता और पत्नी की पिटाई तक कर दी थी. तुम बात को छिपाने की कोशिश मत करो, हमें सच्चाई बता दोगे तो सही रहेगा वरना हमें दूसरा तरीका अपनाना पड़ेगा.’’ सीओ साहब ने तल्खी से कहा.

सख्ती की बात सुन कर आतिश को लगा कि अब उस का झूठ ज्यादा देर तक नहीं चलेगा. उस की आंखों में आंसू छलक आए. वह सीओ साहब के सामने हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘सर, मुझे माफ कर दो. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. मेरी मति मारी गई थी, जो अपने ही घर वालों का दुश्मन बन बैठा.’’

सीओ बृजनारायण सिंह ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘कभीकभी इंसान अपने स्वार्थ में इतना अंधा हो जाता है कि अपनों का ही अहित कर बैठता है. तुम तो पढ़ेलिखे, अच्छे बिजनैसमैन हो तो फिर यह सब कैसे हो गया?’’

‘‘सर, मातापिता, बहन और पत्नी की हत्या का जिम्मेदार मैं खुद ही हूं. मैं ने 8 लाख रुपए की सुपारी दे कर उन की हत्या कराई थी.’’ आतिश ने बताया.

आतिश से पूछताछ के बाद रिश्तों का कत्ल करने की एक ऐसी कहानी सामने आई, जो दिल को झकझोर देने वाली थी—

तुलसीदास केसरवानी अपने परिवार के साथ प्रयागराज की पौश कालोनी प्रीतम नगर में रहते थे. तुलसीदास केसरवानी मूलरूप से कौशांबी जिले के मंझनपुर के रहने वाले थे. सालों पहले वह प्रयागराज आ कर बस गए थे.

उन के परिवार में पत्नी किरण के अलावा एक बेटा आशीष उर्फ आतिश और एक बेटी नीहारिका उर्फ गुडि़या थी. तुलसीदास केसरवानी ने अपने घर में ही अपनी बेटी के नाम पर गुडि़या इलैक्ट्रिकल्स की दुकान खोल ली थी. उन की बिजली के उपकरण बेचने की काफी बड़ी दुकान थी. उन की यह दुकान कालोनी में होने के बावजूद अच्छी चलती थी. दुकान की आमदनी से न केवल उन का घर ठीक से चल रहा था, बल्कि दोनों बच्चों को भी पढ़ायालिखाया.

बेटा आतिश ग्रैजुएशन करने के बाद पिता के साथ दुकान पर बैठने लगा था. तुलसीदास धीरेधीरे दुकान की जिम्मेदारी आतिश को ही सौंपने लगे थे. उन्होंने अपनी दुकान पर काम करने के लिए अनुज नाम के एक युवक को नौकरी पर रख लिया था.

करीब 4 साल पहले आतिश ने शहर की ही प्रियंका से लवमैरिज कर ली थी. पिता तुलसीदास केसरवानी पुराने विचारों के थे. वह मन में एकलौते बेटे की शादी के सपने संजोए थे, लेकिन जब बेटे ने प्रियंका को चुन लिया तो उन्होंने उसे ही बहू स्वीकार कर लिया.

ये भी पढ़ें- तनु की त्रासदी : जिस्म की चाहत का असर

प्रियंका ने भी अपने व्यवहार से ससुराल के सभी लोगों के दिलों में जगह बना ली. नीहारिका वैसे तो प्रियंका की ननद थी लेकिन उन दोनों की आपस में फ्रैंड की तरह अच्छी पटती थी.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, लेकिन करीब 6 महीने पहले मोनिका (परिवर्तित)  नाम की एक महिला आतिश के जीवन में ऐसी आई कि केसरवानी परिवार में हलचल मच गई.

दरअसल, धूमनगंज की रहने वाली मोनिका आतिश के घर में घरेलू काम करने आती थी. उस का विकलांग पति सरकारी नौकरी करता था लेकिन एक फरजीवाड़े के आरोप में वह बरखास्त हो गया था. इस के बाद उस के घर में आर्थिक समस्या खड़ी हो गई थी.

कुछ दिनों तक तो पतिपत्नी अपनी जमापूंजी से घर का खर्च चलाते रहे. इस के बाद उन्होंने लोगों से पैसे उधार ले कर काम चलाया. चूंकि मोनिका का पति विकलांग था, इसलिए वह कोई दूसरा मेहनत का काम नहीं कर सकता था. इसलिए जब भूखों मरने की नौबत आ गई तो मोनिका ने ही काम करने के लिए घर से बाहर कदम रखे.

वह घरों में काम करने लगी. इसी दौरान तुलसीदास केसरवानी की पत्नी किरण ने दया दिखाते हुए मोनिका को अपने यहां घर के काम करने के लिए रख लिया.

मोनिका खूबसूरत होने के साथसाथ घर के काम करने में होशियार थी. इसलिए केसरवानी परिवार में मोनिका को हमदर्दी भरा प्यार मिला, इस से वह केसरवानी परिवार के सभी सदस्यों से घुलमिल गई.

मोनिका जवान व हंसमुख थी. आतिश को उस का हंसमुख होना पसंद था. मोनिका की इसी आदत ने आतिश के दिल में जगह बना ली. यानी शादीशुदा होते हुए भी उस का झुकाव मोनिका की तरफ हो गया. वह समयसमय पर उसे आर्थिक सहयोग भी देने लगा. इस का नतीजा यह हुआ कि दोनों बहुत जल्दी ही एकदूसरे के करीब आ गए. फिर एक दिन ऐसा भी आया, जब दोनों ने अपनेअपने जीवनसाथियों को धोखा दे कर हसरतें पूरी कर लीं.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

एक औरत : भाग 1 – आतिश के परिवार का खात्मा

कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को नाच नचा दिया. इस वायरस से मरने वालों की संख्या लाखों तक पहुंच गई. कोई दवा न होने से इस का एक ही इलाज था लौकडाउन. जब पूरे देश में लौकडाउन का तीसरा चरण चल रहा था, तब प्रयागराज (इलाहाबाद) के लोग भी घरों में बंद रहने को मजबूर थे.

प्रयागराज की कोतवाली धूमनगंज के क्षेत्र में एक पौश कालोनी है प्रीतम नगर. आतिश का घर इसी कालोनी में था. शहर में भले ही लौकडाउन था, लेकिन लोगों की सुविधा के लिए बैंक खुल रही थीं.

14 मई को आतिश को मकान की किस्त जमा कराने कटरा स्थित अपने बैंक जाना था. किस्त जमा कराने के लिए वह डेढ़ बजे घर से निकल गया.

किस्त जमा कर के आतिश अपराह्न पौने 4 बजे घर लौटा तो घर का मुख्य दरवाजा बंद था. उस ने दरवाजे को हलके से धक्का दिया तो वह खुल गया. घर के अंदर से किसी के बोलनेबतियाने की आवाज नहीं आ रही थी. आतिश अपनी मां को आवाज लगाते हुए मकान में दाखिल हुआ तो उस की चीख निकल गई. अंदर उस के पिता तुलसीदास केसरवानी, मां किरण और बहन नीहारिका की रक्तरंजित लाशें पड़ी थीं.

ये भी पढ़ें- छुटभैये नेतागिरी का अंजाम

घर के 3 लोगों की लाशें देख कर वह चीखचीख कर रोने लगा. उस के रोने की आवाज सुन कर आसपड़ोस के लोग भी वहां आ गए. जब उन्हें पता चला कि किसी ने आतिश के मातापिता और बहन की गला काट कर हत्या कर दी है तो वे आश्चर्यचकित रह गए. लौकडाउन के चलते इतनी बड़ी वारदात हो जाना आश्चर्य की बात थी.

आतिश का रोरो कर बुरा हाल था. वह पड़ोसियों से लिपटलिपट कर रो रहा था. लोग उसे सांत्वना दे रहे थे. मरने वाले 3 जनों के अलावा घर में आतिश की पत्नी प्रियंका भी थी, जो कहीं दिखाई नहीं दे रही थी. पड़ोसियों ने आतिश से जब प्रियंका के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि दोपहर डेढ़ बजे जब वह घर से निकला था तो प्रियंका घर में ही थी.

प्रियंका ऊपर की मंजिल पर रहती थी. पड़ोसियों ने सोचा कि प्रियंका अपने कमरे में सो तो नहीं रही, इसलिए पड़ोसी उसे देखने के लिए ऊपर की मंजिल पर गए तो बैडरूम में प्रियंका की भी लाश पड़ी थी. उसका गला रेता गया था. यह देख सभी हैरान रह गए. हत्यारे को घर में जो भी मिला, उस ने मौत के घाट उतार दिया.

इसी दौरान किसी ने फोन से इस घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. वह इलाका कोतवाली धूमनगंज के अंतर्गत आता है, इसलिए 4 लोगों की हत्या की सूचना पाते ही कोतवाल पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने इस की सूचना विभाग के उच्चाधिकारियों को भी दे दी.

प्रीतम नगर पौश कालोनी थी. लौकडाउन के चलते ऐसी जगह पर एक ही समय में एक ही परिवार के 4 लोगों की हत्या हो जाना पुलिस के लिए चिंता की बात थी. पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची तो कालोनी के तमाम लोग आतिश के घर के बाहर खड़े थे.

कुछ लोग अपने घरों की बालकनी से देख रहे थे. तरहतरह की बातें हो रही थीं. घर के मुखिया 63 वर्षीय तुलसीदास की अपने घर में ही बिजली के उपकरण बेचने की बड़ी दुकान थी. कोतवाल ने पुलिस टीम के साथ घटनास्थल का निरीक्षण किया.

मकान के एक हिस्से में दुकान थी और दूसरे हिस्से से घर के अंदर जाने का रास्ता था. इस का मतलब कातिल घर के रास्ते से ही अंदर घुसे थे. उन्होंने 63 वर्षीय केसरवानी को दुकान की तरफ ले जा कर उन की गला रेत कर हत्या की. वहीं काउंटर की तरफ उन की 60 वर्षीय पत्नी किरण की लाश पड़ी थी और बराबर में उन की 28 वर्षीय बेटी नीहारिका की लाश.

हत्यारों ने मांबेटी की हत्या गला रेत कर की थी. इस के बाद पुलिस ऊपर के कमरे में पहुंची तो वहां आतिश की 27 वर्षीय पत्नी प्रियंका की रक्तरंजित लाश पड़ी मिली. उस का भी गला रेता गया था.

घर की सारी अलमारियां और घर में रखा सारा सामान सुरक्षित था. हत्यारों ने घर के किसी भी सामान को हाथ तक नहीं लगाया था. इस का मतलब था कि हत्यारों का मकसद केवल घर वालों की हत्या करना था.

मामला गंभीर था, इसलिए सूचना पा कर एडीजी प्रेमप्रकाश, आईजी के.पी. सिंह, एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज, एसपी (सिटी) बृजेश श्रीवास्तव और सीओ  (सिविल लाइंस) बृजनारायण सिंह भी आतिश के घर पहुंच गए.

फोरैंसिक टीम और खोजी कुत्ते को भी बुला लिया गया था. घर में खून ही खून फैला हुआ था. अधिकारी भी नहीं समझ पा रहे थे कि जब हत्यारों ने घर में किसी भी सामान को छुआ तक नहीं तो 4-4 लोगों की हत्या का क्या मकसद हो सकता है. खोजी कुत्ता लाशों को सूंघ कर घर से करीब 200 मीटर दूर तक गया और वहां जा कर भटक गया.

फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद सबूत जुटाए. घर में आने का केवल मुख्य दरवाजा ही था. फोरैंसिक टीम और पुलिस अधिकारियों ने दरवाजे का सूक्ष्मता से निरीक्षण किया तो वहां ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिस से पता चलता कि हत्यारों ने घर में जबरदस्ती प्रवेश किया था. इस का मतलब हत्यारों की घर में फ्रैंडली एंट्री हुई थी.

घर में सीसीटीवी कैमरे लगे थे, लेकिन उन का डीवीआर गायब था. इस का मतलब हत्यारों ने योजनाबद्ध तरीके से वारदात को अंजाम दिया था. हत्यारे कौन थे, यह बात तो जांच के बाद ही पता चल सकती थी. लेकिन कालोनी में जिसे भी इस हत्याकांड का पता चला, वह केसरवानी के घर की ओर चल दिया. लौकडाउन के बावजूद उन के घर के बाहर लोगों का हुजूम जमा हो गया था.

भीड़ को देख कर पुलिस अधिकारियों की आशंका हुई कि भीड़ कोई बवाल खड़ा न कर दे. पुलिस अधिकारियों को आशंका यूं ही नहीं थी, इस का वाजिब कारण था.

दरअसल, करीब ढाई महीने पहले मार्च में शहर के ही सोरांव थाना क्षेत्र में एक ही परिवार में पिता, पुत्र, बहू व पोतेपोती सहित 5 लोगों की हत्या हुई थी. उन का भी गला रेता गया था. उस परिवार में केवल एक ही लड़का बचा था, जो घटना के समय सूरत (गुजरात) में था.

इस के अलावा मई के पहले सप्ताह में एक ही परिवार में पतिपत्नी व बेटी की सोते समय गला रेत कर हत्या कर दी गई थी. इन दोनों वारदातों में अभी तक किसी का भी खुलासा नहीं हुआ था. अब तीसरी वारदात केसरवानी के परिवार में हो गई थी. इसी वजह से लोगों में पुलिस के प्रति गुस्सा बढ़ रहा था.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: मोहब्बत के लिए – इश्क के चक्कर में हत्या

भीड़ के संभावित आक्रोश को भांपते हुए एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज ने जिले के अन्य थानों से भी पुलिस फोर्स मंगा ली.

जब कोतवाल शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेजने की तैयारी कर रहे थे, एसएसपी ने पड़ोसियों से पूछा कि उन्होंने किसी के चीखने की आवाज सुनी या नहीं? पड़ोसियों ने बताया कि उन्होंने कोई आवाज नहीं सुनी थी.  इस से उन्होंने अनुमान लगाया कि या तो घर के सभी लोगों को नींद की गोलियां दी गई होंगी या फिर हत्यारों की संख्या अधिक रही होगी, जिस से उन्होंने घर वालों को काबू कर के वारदात को अंजाम दिया होगा.

इस परिवार में अब केवल एक ही सदस्य यानी तुलसीदास केसरवानी का एकलौता बेटा आशीष उर्फ आतिश (32 साल) ही जीवित था. एसएसपी ने आतिश से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह करीब डेढ़ बजे किस्त जमाने करने के लिए कटरा स्थित बैंक गया था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

एक औरत : आतिश के परिवार का खात्मा

छुटभैये नेतागिरी का अंजाम

राजनीति का नशा आदमी को अर्श से फर्श  व कभी कभी फर्श से अर्श तक पहुंचा देता है. यह तो हमने अक्सर देखा है. मगर छूट भैयेपन की राजनीतिक हवस के कारण कभी-कभी इंसान की हत्या भी हो जाती है, यह भी कम ही देखा गया है.और हत्या भी ऐसी की एक नहीं 6 लोगों ने मिलकर उसे अपने रास्ते से सदा के लिए हटा दिया. क्योंकि वह एक राजनीतिक पार्टी का मोहल्ले का नेता था और अक्सर उन्हें  हलाकान परेशान किया करता था. छत्तीसगढ़ के जिला

बलौदाबाजार थाना अंतर्गत एक ऐसा ही घटनाक्रम घटित हुआ जिसमें एक युवक को मोहल्ले में आतंक और नेताजी वाला रोग भारी पड़ गया. आखिरकार 6 युवकों ने मिलकर उसे हमेशा के लिए अपने रास्ते से हटा दिया. पुलिस ने हत्याकांड का खुलासा करते हुए बताया कि  27 जून शनिवार की रात 8:30 बजे भगवती यादव अपने दोस्त के साथ अपने घर लोहिया नगर के पास मौजूद था. इसी दौरान इकबाल खान और शाहरुख खान अपने चार अन्य दोस्तों के साथ पुरानी रंजिश के चलते चाकू से वार कर भगवती यादव की हत्या कर फरार हो गया.

ये भी पढ़ें- तनु की त्रासदी : जिस्म की चाहत का असर

देखते देखते घटित घटना के बाद से शहर में लोग आक्रोशित  हो उठे. क्योंकि मामला एक राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता की नृशंस हत्या का था. शहर का माहौल सर गर्म होता  चला गया. क्योंकि लोगों को एहसास हो चला था कि कानून व्यवस्था की कमजोरी के कारण यह घटना घटी है.

अपमान का लिया-” बदला”

हमारे संवाददाता को बलौदा बाजार पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार भगवती यादव भाजपा का सक्रिय कार्यकर्ता था. और हर एक राजनीतिक गतिविधियों में शिरकत किया करता था. इसी दरमियान राजनीति का मद उस पर ऐसा चढ़ा कि वह लोगों को परेशान करने लगा. यही नहीं बीच चौराहे पर भी छोटी सी किसी बात पर बात का बतंगड़ बनाते हुए लोगों को जलील और अपमानित करता रहता. वह समझता कि वह भाजपा का नेता है उसका कोई क्या कर सकता है. यही कवच उसे और  भी बिगड़ैल बनाता चला गया. घटनाक्रम में नया मोड़ तब आया जब दो युवकों ने उसे मजा चखाने के लिए योजना बनाई और उसे अन्य चार लोगों के साथ मिलकर क्रियान्वित भी  कर दिया.

पुलिस के उच्च अधिकारियों के अनुसार जब मामला तुल पकड़ता चला गया. तब पुलिस  अलग-अलग टीम बनाकर आरोपियों की तलाश में जुट गई.पुलिस ने मामले की जांच करते हुए 7 घंटे के भीतर सभी 6 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

आरोपियों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने भगवती यादव के ऊपर चाकू से हमला किया . आरोपियों ने बताया कि भगवती यादव द्वारा  हमेशा सार्वजनिक रूप से  आरोपियों के साथ मारपीट और लड़ाई झगड़ा किया  करता  था जिससे वे बेहद अपमानित होते जाते थे. और क्षुब्ध होकर इसी का बदला लेने के लिए भगवती की हत्या कर दी.गिरफ्तार आरोपियों में सभी बलौदाबाजार निवासी इकबाल खान, शाहरुख खान, जावेद रजा, राहुल देवार, रजा और सूरज वैष्णव शामिल है.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: प्यार किसी का मौत किसी को

धर दबोचे गए सभी अपराधी

मृतक विश्व हिंदू परिषद एवं बजरंग दल का सक्रिय सदस्य था. बताया जा रहा है कि के युवाओं के एक गुट के साथ उसकी आपसी रंजिश थी जिसकी वजह से  के युवाओं द्वारा बड़ी बेरहमी के साथ घेरकर हत्या कर दी गई. शनिवार देर रात घटित  इस घटना  ने नगर के माहौल को गर्म कर दिया था. और बड़ी तनाव की स्थिति उत्पन्न  कर दी गई थी जिसे स्थानीय प्रशासन ने बड़ी होशियारी से संभाला.

कार्यकर्ता की हत्या के आरोपित शाहरुख खान पिता शेरखान (22), दुर्गा चौक, बलौदाबाजार, इकबाल खान पिता रमजान खान (22) लोहिया नगर वार्ड 17 बलौदाबाजार, राहुल भारती पिता स्व. चंद्रशेखर भारती (22) देवारपारा, भैंसापसरा रोड, बलौदाबाजार, सूरज वैष्णव पिता ओमप्रकाश वैष्णव (20) लोहिया नगर वार्ड 17 बलौदाबाजार, जावेद खान पिता स्व. आबिद अली (22) नयापारा, लोहियानगर बलौदाबाजार, रजा खान पिता रज्जााक खान (23) रिसदा रोड लोहिया नगर, बलौदाबाजार शामिल हैं.

पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ अपराध क्रमांक 402/2020 धारा 302,147,148 149 भादवि के तहत मामला दर्ज  करके उन्हें जेल भेज दिया गया है.

ये भी पढ़ें- ठगी के नए-नए तरीकों से रहें सावधान

Best of Crime Stories: प्यार किसी का मौत किसी को

7 मई, 2017 को मध्य प्रदेश के जिला झाबुआ की कोतवाली के प्रभारी आर.सी. भास्करे को हाथीपावा पहाड़ी पर चल रहे श्रमदान में जाना था. वहां एसपी महेशचंद जैन तथा जिलाधिकारी भी आ रहे थे, इसलिए वह समय से वहां पहुंच गए थे.

लेकिन आर.सी. भास्करे जैसे ही वहां पहुंचे, उन्हें किसी ने बताया कि नयागांव और डगरा फलिया के बीच सड़क पर एक लाश पड़ी है, जो नयागांव के रहने वाले तूफान थामोर की है. उस की मोटरसाइकिल भी वहीं पड़ी है. शायद रात को शराब पी कर वह मोटरसाइकिल से घर जा रहा था, तभी उस का एक्सीडेंट हो गया है.

आर.सी. भास्करे ने यह बात एसपी महेशचंद जैन को बताई तो उन्होंने दिशानिर्देश दे कर तुरंत उन्हें घटनास्थल पर पहुंचने को कहा. जब वह घटनास्थल पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि मोटरसाइकिल गिरी पड़ी है. लाश उसी मोटरसाइकिल के नीचे पड़ी थी. उन्होंने गौर से मोटरसाइकिल और लाश का निरीक्षण किया तो उन्हें यह देख कर हैरानी हुई कि न तो मोटरसाइकिल में किसी तरह की टूटफूट हुई थी और न ही मृतक को कहीं चोट लगी थी.

ये भी पढ़ें- ठगी के नए-नए तरीकों से रहें सावधान

वहां मोटरसाइकिल के घिसटने का भी कोई निशान नहीं था. जबकि अगर एक्सीडेंट हुआ होता तो मृतक को तो गंभीर चोट आई ही होती, मोटरसाइकिल भी उस के ऊपर गिरने के बजाय कहीं दूर पड़ी होती, साथ ही उस के घिसटने या गिरने के निशान भी होते.

मृतक और मोटरसाइकिल की स्थिति देख कर आर.सी. भास्करे को समझते देर नहीं लगी कि यह हत्या का मामला है. तूफान की हत्या कर के उस के ऊपर मोटरसाइकिल रख कर उसे एक्सीडेंट का रूप देने की कोशिश की गई है. आर.सी. भास्करे ने मृतक के घर सूचना भिजवा दी थी. सूचना पा कर मृतक की पत्नी रेमुबाई रोती हुई आ पहुंची. वह लाश पर सिर पटकपटक कर रो रही थी. पुलिस ने सांत्वना दे कर उसे अलग किया.

crime

आर.सी. भास्करे लाश और मोटरसाइकिल का निरीक्षण कर रहे थे कि एसपी महेशचंद्र जैन भी आ गए. उन्होंने भी लाश एवं घटनास्थल का निरीक्षण किया. आर.सी. भास्करे ने उन्हें अपने मन की बात बताई तो उन्होंने भी उन की बात का समर्थन किया. एसपी साहब थानाप्रभारी को आवश्यक निर्देश दे कर चले गए.

इस के बाद आर.सी. भास्करे के साथ आए एसआई पी.एस. डामोर, एम.एल. भाटी, एएसआई अनीता तोमर, आरक्षक रामकुमार व गणेश की मदद से घटनास्थल की काररवाई निपटाने लगे. उन्होंने सारी औपचारिकताएं पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

अब तक मृतक की पत्नी रेमुबाई काफी हद तक शांत हो गई थी. आर.सी. भास्करे ने उस से पूछताछ शुरू की तो उस ने बताया कि उस के पति की मौत एक्सीडेंट से हुई है. पुलिस ने जब उस से कहा कि तूफान की मौत एक्सीडेंट से नहीं हुई, किसी ने उस की हत्या की है तो उस ने हैरानी से कहा, ‘‘साहब, मेरे पति की कोई हत्या क्यों करेगा? उन की तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी. आप को गलतफहमी हो रही है. रात में वह रोज शराब पी कर लौटते थे. कल भी शराब पी कर आ रहे होंगे, रास्ते में दुर्घटना हो गई होगी.’’

‘‘जब तुम्हारे पति रात में घर नहीं पहुंचे तो तुम ने उन की खोजखबर नहीं ली?’’ आर.सी. भास्करे ने पूछा.

‘‘साहब, खोजखबर क्या लेती, यह कोई एक दिन की बात थोड़े ही थी. अकसर शराब पी कर वह रात को घर से गायब रहते थे. कल वह घर नहीं पहुंचे तो मैं ने यही समझा कि हमेशा की तरह आज भी कहीं रुक गए होंगे.’’ रेमुबाई ने कहा.

रेमुबाई जिस तरह आत्मविश्वास के साथ पुलिस के सवालों का जवाब दे रही थी, वह भी हैरानी की बात थी. जिस औरत का पति मर गया हो, उस का इस तरह जवाब देना पुलिस को शक में डाल रहा था. क्योंकि इस स्थिति में तो औरत को कुछ कहनेसुनने का होश ही नहीं रहता.

बहरहाल, इस पूछताछ में पता चला था कि मृतक तूफान झाबुआ के बसस्टैंड के पास स्थित नीरज राठौर के टेंटहाउस में काम करता था. उस दिन शाम को घर आने के बाद साढ़े 10 बजे के करीब थोड़ी देर में लौट आने को कह कर वह मोटरसाइकिल ले कर घर से निकला तो लौट कर नहीं आया था.

आर.सी. भास्करे ने टेंटहाउस के मालिक नीरज राठौर और उस के यहां काम करने वाले कर्मचारियों से पूछताछ की तो उन सभी ने भी यही बताया कि तूफान बहुत ही मेहनती और सीधासादा आदमी था. ऐसे आदमी की भला किसी से क्या दुश्मनी होगी, जो उस की हत्या कर दी जाए.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, तूफान की मौत मारपीट की वजह से हुई थी. अब पूरी तरह से साफ हो गया था कि यह एक्सीडेंट का मामला नहीं था. इस के बाद कोतवाली पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

आर.सी. भास्करे जल्द से जल्द इस मामले का खुलासा करना चाहते थे, लेकिन 3 दिनों की जांच में उन के हाथ कोई सुराग नहीं लगा. अंत में उन्होंने मुखबिरों की मदद ली. किसी मुखबिर से उन्हें पता चला कि तूफान की हत्या के बाद से उस की पत्नी रेमुबाई ने अपना मोबाइल फोन बंद कर लिया है.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: मिल ही गई गुनाहों की सजा

यह सुन कर आर.सी. भास्करे सोच में पड़ गए कि रेमुबाई ने आखिर अपना मोबाइल फोन क्यों बंद कर लिया है? उन्हें कुछ गड़बड़ लगा तो उन्होंने तूफान के बेटे को कोतवाली बुला कर पूछताछ की. एक सवाल के जवाब में बच्चा गड़बड़ाया तो उस का जवाब उन्होंने अपनी मां से पूछ कर बताने को कहा.

इस पर बच्चे ने कहा कि उस की मां का मोबाइल फोन बंद है, इसलिए वह उन से सवाल का जवाब नहीं पूछ सकता. थानाप्रभारी की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी कौन सी वजह है कि रेमुबाई ने अपना मोबाइल फोन बंद कर दिया है.

crime

अब उन्हें तूफान की हत्या में रेमुबाई का हाथ होने का शक हुआ. उन्होंने यह बात एसपी महेशचंद्र जैन को बताई तो उन्होंने तुरंत रेमुबाई को थाने बुला कर पूछताछ करने का आदेश दिया.

थाने बुला कर रेमुबाई से पूछताछ शुरू हुई तो वह एक ही जवाब दे रही थी कि उसे नहीं मालूम कि उस रात क्या हुआ था? उसे सिर्फ यही पता है कि वह रात को घर से निकले तो लौट कर नहीं आए. घर आते समय उन का एक्सीडेंट हो गया था.

जब आर.सी. भास्करे ने पूछा कि तूफान की मौत के बाद उस ने अपना मोबाइल फोन क्यों बंद कर लिया तो इस का जवाब देने में रेमुबाई बगलें झांकने लगी. घबराहट उस के चेहरे पर साफ नजर आने लगी.

फिर तो थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि तूफान की हत्या में किसी न किसी रूप में इस का भी हाथ है.  उन्होंने रेमुबाई को एएसआई अनीता तोमर के हवाले कर दिया. उन्होंने सख्ती से उस से पूछताछ शुरू की तो रेमुबाई ने पति की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करने में देर नहीं लगाई. इस के बाद उस ने पति की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस तरह थी—

मध्य प्रदेश के जिला झाबुआ की कोतवाली के अंतर्गत रहने वाले तूफान की पत्नी रेमुबाई के पेट में ऐसा दर्द उठा कि कई डाक्टरों के इलाज के बाद भी ठीक नहीं हुआ. तभी उस के एक परिचित ने बताया कि झाबुआ से ही जुड़े गुजरात के जिला दाहोद के थाना कतवारा के गांव खगेला का रहने वाला तांत्रिक मंथूर उस का इलाज कर सकता है.

उसे पूरा विश्वास है कि उस की झाड़फूंक से वह निश्चित रूप से ठीक हो जाएगी. यह करीब 4 साल पहले की बात है. रेमुबाई पति तूफान को ले कर तांत्रिक मंथूर के पास पहुंची. रेमुबाई पर एक गहरी नजर डाल कर तांत्रिक मंथूर ने कहा कि उसे 16 शनिवार बिना नागा लगातार आना पड़ेगा. तूफान नौकरी करता था, इसलिए वह पत्नी को हर शनिवार ले कर तांत्रिक के यहां नहीं जा सकता था. इसलिए रेमुबाई अकेली ही तांत्रिक मंथूर के यहां हर शनिवार झाड़फूंक कराने जाने लगी.

तांत्रिक मंथूर ने 4 शनिवार तक नीम की पत्तियों से उस की झाड़फूंक की. 5वें शनिवार को उस ने रेमुबाई से अपने कपड़े ढीले कर के फर्श पर लेट जाने को कहा. रेमुबाई को किसी तरह का कोई शकशुबहा तो था नहीं, इसलिए वह कपड़े ढीले कर फर्श पर लेट गई. करीब 2 घंटे तक मंथूर मंत्र पढ़ते हुए उस के शरीर पर हाथ फेरते हुए उस की बीमारी भगाता रहा.

रेमुबाई के अनुसार, मंथूर भले ही अधेड़ था, लेकिन उस के हाथों में ऐसी तपिश थी कि जब वह उस के शरीर पर हाथ फेरता था तो उसे अजीब सा सुख मिलता था.

7वें शनिवार को मंथूर ने उस से सारे कपड़े उतार कर लेटने को कहा तो रेमुबाई मना नहीं कर सकी. वह कपड़े उतार कर लेटने लगी तो तांत्रिक मंथूर ने दवा के नाम पर उसे थोड़ी शराब पीने को दी.

इस के बाद तांत्रिक ने भी शराब पी. झाड़फूंक करतेकरते मंथूर रेमुबाई के ऊपर लेट गया तो तांत्रिक प्रक्रिया समझ कर रेमुबाई ने कोई विरोध नहीं किया. इस तरह तांत्रिक मंथूर ने उस के साथ शारीरिक संबंध बना लिए.

इस के बाद रेमुबाई जब भी उस के यहां इलाज कराने जाती, मंथूर उसे शराब पिला कर उस के साथ शारीरिक संबंध बनाता. मंथूर के प्यार में तूफान से ज्यादा जोश और गरमी थी, इसलिए उसे उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने में आनंद आने लगा. दूसरी ओर मंथूर भी रेमुबाई का दीवाना हो चुका था. अब वह इलाज के बहाने उस के घर भी आने लगा था.

16 शनिवार पूरे हो गए तो तूफान ने पत्नी से कहा, ‘‘अब तो तुम्हारा इलाज पूरा हो चुका है, अब तुम तांत्रिक के यहां क्यों जाती हो?’’

तांत्रिक के प्यार में उलझी रेमुबाई ने कहा, ‘‘अभी मैं पूरी तरह स्वस्थ नहीं हुई हूं, इसलिए अभी मुझे इलाज की और जरूरत है.’’

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: जीजा साली के खेल में

आखिर कब तक रेमुबाई बहाने बना कर तांत्रिक के पास जाती रहती. मंथूर भी उस के घर लगातार आता रहा. इन्हीं बातों से तूफान को पत्नी पर शक हुआ तो वह पत्नी को मंथूर के यहां जाने से रोकने लगा. अब इलाज तो सिर्फ बहाना था, रेमुबाई तो मंथूर से मिलने जाती थी, इसलिए पति के मना करने के बावजूद वह नहीं मानी.

crime

रेमुबाई की जिद से तूफान को चिंता हुई. फिर तो दोनों में झगड़ा होने लगा. रेमुबाई को लगा कि इलाज और बीमारी के नाम पर अब यह खेल ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकता. जबकि वह मंथूर के प्यार में इस कदर कैद हो चुकी थी कि अब उस के बिना नहीं रह सकती थी, इसलिए वह उस के लिए कुछ भी कर सकती थी.

शायद यही वजह थी कि उस ने मंथूर से तूफान को रास्ते से हटाने के लिए कह दिया. मंथूर भी रेमुबाई के लिए कुछ भी करने को तैयार था. इसलिए उस के कहने पर वह भी तूफान की हत्या करने को तैयार हो गया.

योजना बना कर 6 मई, 2017 को मंथूर अपने दोस्त गोरचंद के साथ नयागांव डूंगरा के जंगल में पहुंचा और एक पेड़ की आड़ में छिप कर बैठ गया. रेमुबाई को उस ने यह बात बता दी, इसलिए जैसे ही तूफान घर आया, उस ने बहुत ज्यादा पेट में दर्द होने की बात कह कर कहा, ‘‘मंथूर किसी का इलाज करने झाबुआ आया है, मैं ने उसे फोन किया था, वह आने को तैयार है, इसलिए तुम डूंगरा जा कर उसे ले आओ.’’

तूफान बिना देर किए मोटरसाइकिल ले कर तांत्रिक मंथूर को लेने चला गया. नयागांव और डूंगरा के बीच मंथूर गोरचंद के साथ बैठा तूफान के आने का इंतजार कर रहा था.

जैसे ही तूफान उन के करीब पहुंचा, दोनों ने लाठियों से पीटपीट कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस की लाश को मोटरसाइकिल के नीचे रख दिया, ताकि देखने से लगे कि इस का एक्सीडेंट हुआ है.

लेकिन उन की यह चाल कामयाब नहीं हुई और थानाप्रभारी आर.सी. भास्करे को सच्चाई का पता चल गया.

रेमुबाई की गिरफ्तारी के बाद आर.सी. भास्करे ने तांत्रिक मंथूर और उस के साथी गोरचंद को भी गिरफ्तार कर लिया था. इस के बाद तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. जेल जाने के बाद रेमुबाई के हाथ से वह सब भी निकल गया, जो था. आखिर पति के साथ उसे ऐसी क्या तकलीफ थी, जो अधेड़ तांत्रिक के प्यार में पड़ कर अपना सब लुटा बैठी.

ये भी पढ़ें- वहशीपन: 6 साल की मासूम के साथ ज्यादती

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें