Serial Story : निर्दय दीवान सालम सिंह- भाग 3

जैसलमेर शहर से मात्र 2 कोस दूर उत्तर मे स्थित इस बुर्ज के 3 तरफ खाई थी. इस के 2 उद्देश्य थे. एक, अगर हमला हो तो अच्छे मोर्चे की तरह उस का इस्तेमाल किया जाए. क्योंकि वह मोटी दीवारों का गोल बुर्ज था, जिस में हथियार चलाने के लिए स्थान बनाए गए थे.

दूसरा उपयोग अय्याशी के लिए था. बुर्ज में घुसते ही बाईं तरफ ऊपर जाने की सीढि़यां. दाईं तरफ शौचालय. बीच में हाल. हाल के बाईं तरफ बहुत बड़ा झरोखा था, जिस पर एक साथ 10 आदमी बैठ सकते थे. वहां से दूरदूर तक फैली धरती के नजारे देखने लायक थे. दूसरी तरफ भी झरोखा था. इस तरह वह हवादार हो गया था.

इस हाल के अंदर एक निजी कक्ष था. इस का झरोखा दक्षिण की तरफ था. वह झरोखा भी काफी बड़ा था. इस पर 4-5 लोग आराम से बैठ सकते थे. यह कक्ष छोटा था, मगर इस में एक बड़ा पलंग आसानी से आ सकता था. सालम ने इसे भोग का स्थान बना लिया था. राज्य की हर सुंदर स्त्री उसे अपने लिए पैदा हुई लगती थी. गुलाबी जैसी कुछ औरतें उस की मदद करती थीं.

इस बुर्ज में कई स्त्रियों की चीखें घुटघुट कर रह गईं. अकसर यहां शाम होते ही किसी स्त्री की पालकी आती और देर रात वापस जाती. सारी जनता में भय था. लोग सालम से तो डरते ही थे, गुलाबी, खेमा जैसे लोगों से भी दूर रहने की कोशिश करते थे.

बहूबेटियों को हवेली के पास फटकने तक नहीं दिया जाता था. इस हद तक आतंक था कि अगर किसी को उस तरफ से जाना भी पड़ता तो चेहरे पर राख मल कर जाती ताकि उस का गोरा रंग और सुंदर रूप छिप जाए. फिर भी हर समय यही भय रहता कि कहीं सालम या उस के दलालों की नजर न पड़ जाए. अगर नजर में चढ़ गई तो दुर्भाग्य के पंजे से कोई नहीं बचा सकता था.

ये भी पढ़ें- Short Story- ईर्ष्या : क्या था उस लिफाफे में

अन्य जाति की स्त्रियों के साथ वह दुराचरण करता, मगर अपनी ही जाति बनिया (माहेश्वरी) स्त्रियों के साथ वह रियायत बरतता. यह रियायत स्त्रियों के लिए थी, लड़कियों के लिए नहीं. वह उन से विवाह कर लेता था.

सालम ने 6 विवाह किए थे. उस के 6 पत्नियां थीं. फिर भी वह हर रात बुर्ज पर जा कर किसी न किसी कि आबरू लूटता था. इज्जत लुटा कर स्त्रियां या लड़कियां चुप रह जातीं, मगर दीवान सालम ने आना भाटी की बहन की इज्जत लूटी तो वह गड़ीसर में जा कर डूब मरी. आना को सालम की करतूत पता चली तो उस ने तलवार से दीवान पर हमला किया.

तलवार सालम के सिर की पगड़ी से टकरा कर बाएं कंधे में जा गड़ी. अत्यधिक गुस्से के कारण वह उस पर दूसरा वार नहीं कर पाया. आना भाटी काठ हो गया था. न हिला न भागा. तभी कई लोगों ने उसे दबोच लिया. तलवार छीन ली और पीटते हुए उसे कोतवाली ले गए. वहां पर आना को मारापीटा गया और पूछा गया कि यह सब किस का षडयंत्र था. मगर आना कुछ नहीं बोला.

सालम के बेटे बिशन सिंह ने कोतवाल से कहा कि जैसे भी हो, इस से षडयंत्रकारियों के नाम उगलवाओ. षडयंत्र था ही नहीं तो आना किस के नाम बताता. आना ने दीवान पर हमला क्यों किया, गड़ीसर पर मिली बहन की लाश ने सारी कहानी खोल कर रख दी थी. आना भाटी दीवान का सुरक्षा गार्ड था. दीवान ने उसी गार्ड की बहन की इज्जत लूटी थी.

दीवान मरा नहीं था. वह घायल हो गया था. उस का वैद्य ने इलाज शुरू किया. सालम ने सातवीं शादी भी की. वह शादी तो कर लेता था लेकिन पत्नियों की शारीरिक जरूरत का खयाल नहीं रखता था. क्योंकि उसे तो किसी नई लड़की या महिला के साथ रात गुजारने की आदत बन चुकी थी. इसलिए उस की सातवीं पत्नी घाटण बहू अपनी सौतन औरतों के कहने पर हवेली में ही अपने जिस्म की आग बुझाने का कोई उपाय ढूंढने लगी.

उस की सभी सौतनों ने अपनेअपने हिसाब से टाइमपास का साधन चुन लिया था. उस की सौतन ने कहा था, ‘‘तुम्हें अपने जीने के साधन खुद तलाश करने पड़ेंगे. दीवान सा के भरोसे उम्र नहीं निकल सकती.’’

बस घाटण बहू ने यह बात गांठ बांध ली और अपने लिए साधन तलाशने लगी. ऐसे में एक रात उस की मुलाकात कस्तूरी के बेटे कोजा से हुई. उस रात गुलाबी की तबीयत खराब थी, इस कारण कोजा हवेली आया था. घाटण बहू ने दीवान सा की इस प्रतिमूर्ति को देखा तो वह उस पर मुग्ध हो गई. उस ने कोजा से कहा कि आज से तुम मेरे पास रहोगे. गुलाबी आए न आए, तुम मेरा काम करोगे. समझे. कोजा ने हां भर दी.

घाटण बहू ने कोजा को हवेली में अपने सामने वाला कमरा रहने को दे दिया. कोजा हवेली में आनेजाने लगा और घाटण बहू की हाजिरी बजाने लगा. घाटण बहू ने कोजा के साथ एक दुनिया रचाई और उस में मस्त हो गई. कोजा उस का नौकर, दोस्त, हमदर्द, प्रेमी सभी कुछ बन गया था.

उधर कोजा के रंगढंग देख कर उस की मां कस्तूरी का दिल बैठ रहा था. घाटण बहू की मेहरबानी और निकटता ने कोजा के स्वभाव को बदल डाला था. पहले नौकरी पर रखना और उस के बाद वहीं रह जाना, अच्छे संकेत नहीं थे. ऐसे में मां ने कोजा को बहुत समझाया और यहां तक कहा कि सालम तेरे पिता हैं, इस नाते घाटण बहू तेरी मां है.

ये भी पढ़ें- कल तुम बिजी आज हम बिजी

मगर कोजा ने कहा कि मैं एक रखैल की नाजायज औलाद हूं. मैं उस पापी दीवान से बदला ले रहा हूं, जिस ने मेरी मां को ब्याहता होने के बावजूद मुकलावा करने के बजाय खुद की रखैल बनाया और इज्जत से खेलता रहा. मैं उस से बदला ले रहा हूं. चाहे वह मेरी जान ही क्यों न ले ले.

एक रोज सालम के कानों में घाटण बहू और कोजा की खिलखिलाती हंसी सुनाई दी. दीवान को पता चला कि यह हंसी उस की रखैल के बेटे और उस की सातवीं पत्नी घाटण बहू की है. दीवान ने कोजा के हवेली आने पर प्रतिबंध लगा दिया. मगर घाटण बहू ने उसे हवेली में आने की स्वीकृति दे दी.

दीवान का आदेश भारी पड़ा. कोजा के विरह में घाटण बहू ने दूध में जहर मिला कर दीवान सालम सिंह को रास्ते से हटा दिया. उस के बाद वह फिर से कोजा के साथ रहने लगी.

जब दीवान के बेटे को पता चला कि उस की विधवा मां एक गोले के साथ मौजमस्ती करती है तो उस ने दोनों को तलवार से काट डाला.

Serial Story : निर्दय दीवान सालम सिंह

Serial Story : भोर की एक नई किरण – भाग 3

कुछ दिनों तक स्वाति भैया की बातों पर विचार करती रही और अपने मन को तैयार करती रही, उस युú के लिए जिस में वह खुद अर्जुन थी और भैया के वाक्य उस के लिए गीता के उपदेशों के समान थे.

2-3 दिन बाद स्वाति के मामाजी का पत्र आया. उन की लड़की की बडौ़दा में रह रहे एक इंजीनियर लड़के से रिश्ते की बात चल रही थी. उन्होंने पत्र में स्वाति और मनीष से लड़का देखने का आग्रह किया था.

सुबह का समय था. मनीष आफिस जाने के लिए तैयार हो रहे थे. तौलिए से हाथ पोंछते हुए वह रसोई घर में आए और स्वाति से बोले, फ्शाम को लड़का देखने जाना है, तैयार रहना.

स्वाति ने मुड़ कर देखा. मम्मी फ्रिज में से पानी की बोतल निकाल रही थीं. उस ने कहा, फ्मम्मी, शाम को आप को और पापा को हमारे साथ लड़का देखने जाना है.

फ्हम लोग जा कर क्या करेंगे? तुम दोनों देख आओ, मम्मी ने पानी गिलास में डालते हुए कहा.

फ्जितनी अच्छी तरह आप लड़के और उस के परिवार की जांचपरख कर लेंगी, हम दोनों नहीं कर पाएंगे.

फ्और यदि हमारी राय भिन्नभिन्न हुई तब? मम्मी ने पूछा.

फ्स्वाभाविक है, ऐसी स्थिति में आप की राय ही मानी जाएगी. मातापिता बच्चों से अधिक अनुभवी और समझदार होते हैं. उन का निर्णय गलत नहीं होता है, स्वाति ने विनम्रता से उत्तर दिया. मम्मी और मनीष कुछ आश्चर्यचकित हो कर स्वाति की ओर देखने लगे. शाम को वे चारों लड़का देखने चले गए थे.

अगले दिन रात में पायल स्वाति से कहानी सुनाने की जिद कर रही थी. स्वाति उस से बोली, फ्बच्चे अपनी दादी से कहानी सुनते हैं. मैं छोटी थी, तब मुझे भी मेरी दादी अच्छीअच्छी कहानियां सुनाती थीं.

ये भी पढ़ें- Short Story : अंतिम निर्णय

फ्मैं भी दादीमां के पास जाऊं? पायल उठ कर खडी़ हो गई.

फ्हां जाओ, स्वाति ने कहा.

पायल दादी के पास जा कर बोली, फ्दादीमां, आप मुझे कहानी सुनाओ.

दादी उस समय सोने की तैयारी कर रही थीं, अतः बेरुखी से बोलीं, फ्अपनी मम्मी से सुनो कहानी.

फ्मैं तो आप से सुनूंगी. मम्मी कहती हैं, आप को बहुत सी कहानियां आती हैं, पायल मचल कर बोली.

फ्मुझे नहीं आती कोई कहानी. जाओ जा कर अपने कमरे में सो जाओ, दादी की डांट सुन कर पायल रोते हुए कमरे में आ गई और बिना दूध पिए सो गई.

ये भी पढ़ें : बदला जारी है

अगली रात को स्वाति ने बहलाफुसला कर पायल को फिर से दादी के पास कहानी सुनने भेज दिया, कितु अंजाम फिर वही हुआ. उस दिन भी वह रोते हुए भूखी सो गई. सुबह उसे हलका सा बुखार था. मनीष आफिस जाते हुए मम्मी से बोला, फ्मम्मी, पायल को यदि आप कहानी सुना देतीं, तो कुछ बिगड़ नहीं जाता. पिछले 2 दिनों से वह बिना दूध पिए सो रही है, मेरे बच्चों से तुम्हें जरा भी लगाव नहीं है.

मनीष की बात सुन कर वह चौंक पडीं़. आज पहली बार उन्हें बेटे ने किसी बात के लिए टोका था. वह नहीं चाहती थीं, यह बात पुनः दोहराई जाए. इसलिए रात होने पर उन्होंने स्वयं पायल को बुला कर अपने पास लिटा लिया और कहानी सुनाने लगीं.

पायल की भोलीभाली बातों से धीरेधीेरे मम्मी की सोई हुई ममता जगने लगी. अब वह अकसर पायल को अपने पास सुला लेती थीं. धीरेधीरे वह उन से खूब हिलमिल गई.घ्आखिर एक दिन मम्मी ने कह ही दिया कि अब पायल बडी़ हो रही है. अब से वह उन्हीं के पास सोया करेगी.

बच्चों के करीब आने के कारण धीरेधीरे घर का माहौल बदल रहा था. मम्मी और स्वाति के बीच की दूरी कम हो रही थी. अब वह उस के साथ पहले की तरह कठोरता से पेश नहीं आती थीं. स्वाति को अब पछतावा हो रहा था कि जो प्रयास उस ने भैया के कहने पर इतने सालों बाद किया था, उसे पहले करना चाहिए था. यदि मम्मी ने उसे अपने निकट नहीं बुलाया था, तो उस ने भी कभी उन के पास जाने का प्रयत्न नहीं किया था. दोनों ही शायद अपनेअपने अहं के दायरे में कैद थे.

अकसर मनीष स्वाति के इस बदलाव पर आश्चर्य व्यक्त करता. इस पर स्वाति हंस पड़ती और मन ही मन भैया के प्रति श्रúा से भर उठती, जिन्होंने अपनी सूझबूझ से उस के बिखरते घर को बचा लिया था.

इस के बाद मम्मी का पथरी का आपरेशन हुआ. सप्ताह भर तक स्वाति अस्पताल और घर के बीच दौड़ती रही. मम्मी की सेवा में उस ने कोई कसर नहीं उठा रखी थी. एक सप्ताह बाद जब मम्मी घर वापस आईं तो अगले दिन शाम के समय मनीष के एक मित्र परिवार सहित उन्हें देखने आए. बातों के दौरान मम्मी ने बताया कि वह और मनीष के पापा अपने बडे़ बेटे केघ्पास कानपुर जाने की सोच रहे हैं. यह सुन कर स्वाति और मनीष दोनों चौंक उठे. मेहमानों के जाने के बाद स्वाति उदास स्वर में बोली, फ्ऐसा लगता है मम्मी, आप की सेवा करने में मुझ से जरूर कोई कमी रह गई, तभी तो आप यहां से जाने की सोच रही हैं.

फ्नहीं स्वाति, ऐसी बात नहीं है. जितनी सेवा तुम ने मेरी की है, मेरी बेटी होती तो शायद वह भी नहीं करती, मम्मी स्नेह भरे स्वर में बोलीं.

फ्तब फिर आप ने कैसे सोच लिया कि हम आप को जाने देंगे. सनी और पायल क्या आप के बगैर रह सकेंगे? कहते हुए स्वाति अंदर चली गई.

डैडी और मम्मी ने उसे अपने कमरे में बुलाया और कहा, फ्स्वाति, हम चाहते हैं कि यह मकान तुम्हारे नाम कर दें. साथ ही 50-50 हजार रुपए पायल और सनी के नाम जमा कर दें.

स्वाति आश्चर्यचकित हो कर बोली, फ्यह सब क्यों मम्मी, आज आप लोग मुझ से कैसी बातें कर रहे हैं.

फ्देखो बेटे, जिदगी का कोई भरोसा नहीं. हमारे बाद भी सबकुछ तुम्हीं लोगों का है, इसलिए अपने सामने थोडा़थोडा़ तीनों बेटों के नाम कर दें तो अच्छा है, डैडी बोले.

फ्नहीं डैडी, मुझे आप लोगों का मकान और पैसा नहीं चाहिए. अपना प्यार दे कर आप लोगों ने मुझे सबकुछ दे दिया है. इस के बाद और किसी दौलत की मुझे जरूरत नहीं, कहते हुए स्वाति कमरे से बाहर आ गई. बाहर आते हुए उस ने सुना, डैडी मम्मी से कह रहे थे, फ्तुम ने व्यर्थ ही कठोरता का आवरण ओढ़ कर इतनी अच्छी लड़की को स्वयं से दूर कर रखा था.

फ्इस बात का पछतावा तो मुझे भी है, यह मम्मी की आवाज थी. स्वाति की आंखों से खुशी के आंसू निकल आए और वह वहां से हट गई.

अगले सप्ताह अचानक श्रीकांत बडौ़दा आ गए. भैया को देख स्वाति अचंभित हो उठी. उसे तो पता ही नहीं चला था कि भैया को गए 6 माह व्यतीत हो चुके हैं. गृहस्थी का सुख पाने में उस ने जिस आस्था का परिचय दिया था, उस में तो वैसे भी समय का पता नहीं चलना था. कमरे में अटैची रखते हुए श्रीकांत ने हंसते हुए कहा, फ्वादे के मुताबिक ठीक 6 माह बाद तुम्हें लेने आया हूं, बताओ चलोगी?

ये भी पढ़ें- Serial Story : अजनबी मुहाफिज- भाग 2

स्वाति ने सजल आंखों से मुसकराते हुए भाई की ओर देखा ओर कहा, फ्आप की दी हुई शिक्षा की वजह से प्रबलतम अंधकार के बाद भोर की एक नई किरण मेरे आंगन में दिखाई दी है, अब इस के प्रकाश को छोड़ कर कहां जाऊं?

श्रीकांत के चेहरे पर संतोष की आभा छा गई और उन्होंने स्वाति को प्यार से गले लगा लिया.

Serial Story : भोर की एक नई किरण

Serial Story : भोर की एक नई किरण – भाग 2

मनीष की मम्मी बेटे का विवाह कहीं और करना चाहती थीं परंतु मनीष ने स्वाति को पसंद कर लिया. बेटे के हठ के आगे मां को झुकना पडा़, पर उन्होंने कभी दिल से बहू को स्वीकार नहीं किया. वह पहले दिन से ही स्वाति का विरोध करती रहीं. स्वाति जब कभी उन का कोई काम करती, वह उस में कमी अवश्य निकालतीं. स्वाति के ससुर जब भी उस का पक्ष लेते वह उन्हें भी डांट देती थीं.

विवाह के 2-3 दिन बाद उन्होंने सारे काम का दायित्व स्वाति को सौंप दिया था. धीरेधीरे स्वाति ने चुप्पी साध ली. इस बीच वह 2 बच्चों की मां बन चुकी थी फिर भी घर में उस का कोई महत्त्व नहीं था. मनीष स्वाति के साथ होते हुए अन्याय को देख कर भी अनदेखा कर देता था. मनीष की उदासीनता ने स्वाति को इस घर से चले जाने के लिए प्रेरित किया. वह सोचती, जहां रह कर उस का खुद का व्यक्तित्व कुुंठित हो रहा हो, वहां वह किस प्रकार अपने बच्चों की उचित परवरिश कर सकती है. इसलिए उस ने श्रीकांत को पत्र लिखा ताकि उस के पास रह कर वह नए सिरे से अपना जीवन शुरू करे. श्रीकांत ने स्वाति को बताया, फिलहाल, वह 7-8 दिन बडौ़दा में रुकने वाला था.

एक रात श्रीकांत और स्वाति छत पर जा कर बैठ गए थे. छत पर ठंडी हवा चल रही थी कितु स्वाति बहुत अधीर थी. अब तक श्रीकांत ने उस से चलने के बारे में कुछ नहीं कहा था. श्रीकांत के बैठते ही स्वाति ने उस का हाथ पकड़ लिया और रुंधे गले से बोली, फ्भैया, मुझे यहां से ले चलो. मैं अब और यहां नहीं रह सकती.

जब से मैं यहां आया हूं स्वाति, तुम्हारी ही स्थिति को जानने और समझने का प्रयास कर रहा हूं.

फिर तो आप ने देखा होगा भैया कि मेरा घर में कोई महत्त्व नहीं. किसी को मुझ से तनिक भी लगाव नहीं. यहां तक कि मनीष को भी नहीं. तब मैं क्यों जबरन यहां पडी़ रहूं?

प्रश्न जबरन पडे़ रहने का नहीं है, स्वाति. प्रश्न यह है, क्या यहां से चले जाने से संबंध अच्छे बन जाएंगे?

जब संबंध ही नहीं रखने, तो उन के अच्छे या बुरे होने का क्या अर्थ है?

पगली, क्या ऐसे संबंध इतनी सरलता से टूट जाते हैं, कह कर श्रीकांत कुछ क्षण बहन के चेहरे को देखते रहे फिर बोले, याद रखो, स्वाति, संबंध तोड़ना सरल है. क्षण भर में हम कोई भी संबंध बिगाड़ सकते हैं कितु असली कला है, उन्हें जीवन भर निभाना.

ये भी पढ़ें- Serial Story – मुसकान : क्या टूट गए उन दोनों के सपने

एक पल रुक कर श्रीकांत गंभीर स्वर में बोले, फ्स्वाति, तुम्हें मुझ पर पूरा विश्वास है न कि मैं जो कुछ भी करूंगा वह तुम्हारी भलाई के लिए होगा.

यह भी कोई पूछने की बात है, भैया आप से अधिक तो मुझे खुद पर भी भरोसा नहीं.

तब सुनो स्वाति, पिछले कई दिनों से मैं यहां की स्थिति को देख और समझ रहा हूं. वास्तव में तुम लोगों के संबंधों में टकराव नहीं, वरन उदासीनता है और इस के लिए मैं समझता हूं, तुम भी कम दोषी नहीं हो.

यह क्या कह रहे हैं आप, भैया ?

मैं ठीक कह रहा हूं, यदि तुम्हारी सास ने तुम्हें नहीं अपनाया तो तुम ने भी कभी उन के निकट जाने का प्रयास नहीं किया जबकि तुम्हें पता था कि यह विवाह मनीष के हठ के कारण हुआ है.

भैया, मैं आप से बहस नहीं कर रही हूं, कितु जब बहू अपने प्रियजनों को छोड़ कर अनजाने लोगों के बीच आती है, तब ससुराल वालों का फर्ज बनता है, उसे अपनाएं और भरपूर प्यार दें ताकि वह उस घर को अपना समझ कर नया जीवन प्रारंभ कर सके.

ये भी पढ़ें : चुनाव प्रचार

श्रीकांत ने सिर हिलाते हुए स्वाति की बात का समर्थन किया, फिर उसे समझाते हुए बोले, फ्जीवन में सदैव सबकुछ सरलता से प्राप्त नहीं होता है. कभीकभी उस के लिए अथक प्रयास भी करना पड़ता है. याद रखो स्वाति, किसी से कुछ पा लेना व्यक्ति की अपनी क्षमता पर निर्भर करता है.

अब इन बातों से क्या लाभ, स्वाति बोली, फ्अब तो सबकुछ समाप्त हो चुका है. इन लोगों के व्यवहार ने मेरा मन मार दिया है. अब कुछ भी करने का उत्साह शेष नहीं है.

स्वाती, जब हमें ऐसा लगे कि अंधकार अब कभी समाप्त नहीं होगा, तभी प्रकाश की किरण दिखाई देने की संभावना प्रबलतम होती है. इन टिमटिमाती हुई बत्तियों को देखो, इतना कह कर श्रीकांत ने हाथ से एक ओर इशारा किया. स्वाति ने उस ओर देखा, पूरी तरह अंधकार में किसी फैक्टरी की वह जलती हुई 3-4 बत्तियां बडी़ भली लग रही थीं.

अपनी जिदगी के अंधकार में हमें इसी तरह के बिदुओं से अपना आगे का रास्ता चुनना चाहिए, श्रीकांत ने कहा.

फ ने इतनी अच्छी बातें करनी कहां से सीखी भैया, स्वाति श्रीकांत की बातों से प्रभावित हो कर बोली.

फ्मां से, स्वाति. तुम उस समय बहुत छोटी थी. मां को मैं ने कभी भी निराश होते नहीं देखा था. कितनी भी कठिन स्थिति क्यों न हो, वह कोई न कोई आशा की किरण अवश्य खोज लेती थीं, श्रीकांत ने कुछ पल रुक कर स्वाति की ओर देखा. स्वाति सिर झुकाए कुछ सोच रही थी. श्रीकांत ने फिर कहा, फ्मैं चाहता हूं, एक बार तुम सच्चे मन से उस दूरी को समाप्त करने का प्रयत्न करो जो तुम्हारे और तुम्हारी सास के बीच हुई है. यदि तुम ने उन की ओर एक कदम भी बढा़या तो दूरी कुछ कम ही होगी, स्वाति ने सहमति में सिर हिलाया.

ये भी पढ़ें- Short Story : डर- क्या फौज से सुरेश को डर लगता

इस के पश्चात श्रीकांत स्वाति को धीरेधीरे कुछ समझाते रहे और अंत में बोले, फ्मैं आज से ठीक 6 माह बाद पुनः यहां आऊंगा. यदि स्थिति में तनिक भी सुधार नहीं हुआ तो अपने भाई पर विश्वास रखो, तुम्हें अवश्य ही यहां से ले जाऊंगा. इस के बाद वे दोनों नीचे आ गए. अगले दिन श्रीकांत बडौ़दा से अपने घर वापस लौट आए.

Serial Story : भोर की एक नई किरण – भाग 1

देहरादून एक्सप्रेस अपनी पूरी रफ्तार से भागी जा रही थी. कितु इस से भी तेज भाग रहा था, श्रीकांत का मन. भागती ट्रेन के शोर से भी अधिक स्वाति के पत्र के शब्द उन के दिमाग पर हथौडे़ बरसा रहे थे और चोट से बचने के लिए उन्होंने अपना चेहरा खिड़की से सटा लिया और प्रकृति के विस्तार में अपनी आंखें गडा़ दीं. कितु दूरदूर तक फैले हुए खेतखलिहान और भागते हुए वृक्ष भी उन के मन को न बांध सके. मन बारबार वर्तमान से अतीत की ओर भाग रहा था.

उन की बहन स्वाति ने मनोविज्ञान में एम.ए- किया था. उस का इरादा पीएच.डी- करने का था. वह शुरू से ही पढ़ने में बेहद तेज थी. मेहनत एवं लगन की उस में कमी नहीं थी. लेक्चरर बन कर अपना एक अलग स्थान बनाने के लिए वह जीजान से जुटी हुई थी. लेकिन स्वाति कहां जानती थी कि कभीकभी एक छोटा सा अनुरोध भी जीवन को नया मोड़ दे देता है.

ये भी पढ़ें – डर : क्यों मंजू के मन में नफरत जाग गई

मनीष ने उसे एक विवाह समारोह में देखा था और वहीं उसे उस ने पसंद कर लिया. उस की ओर से जब विवाह का प्रस्ताव आया तो स्वाति ने तुरंत इनकार कर दिया. विवाह के लिए वह अपने कैरियर को दांव पर नहीं लगा सकती थी. विवाह तो बाद में भी किया जा सकता था. उस के भाई श्रीकांत जो मित्र और पथप्रदर्शक भी थे, उन की भी यही इच्छा थी कि पहले कैरियर फिर विवाह.घ्भाभी सुधा ने दोनों को समझाया था कि जीवन में ऐसे मौके बारबार नहीं आते, स्वाति ऐसे मौकों की कभी अवहेलना मत करो.

स्वाति ने प्रतिरोध करते हुए कहा, ‘भाभी, तुम भलीभांति जानती हो कि मैं ने वर्षों से एक ही सपना देखा है कि मैं जीवन में कुछ बनूं और तुम लोग मेरा यह स्वप्न तोड़ देना चाहते हो.’

बहुत सोचने के बाद श्रीकांत को सुधा की बात अधिक उचित जान पडी़. उन्होंने सुझाया, ‘क्यों न ऐसा रास्ता अपनाया जाए जिस से लड़का भी हाथ से न जाए और स्वाति की इच्छा भी रह जाए. मनीष से पत्रव्यवहार कर के यह स्पष्ट कर लेते हैं कि उसे विवाह के बाद स्वाति के पीएच-डी- करने पर कोई आपत्ति तो नहीं.’

इस के बाद श्रीकांत और मनीष के बीच पत्रव्यवहार हुआ, जिस से पता चला कि मनीष को इस पर कोई आपत्ति न थी. तब खुशीखुशी स्वाति और मनीष का विवाह हो गया.घ्स्वाति को विदा करते हुए जहां श्रीकांत को उस के दूर चले जाने का गम था, वहीं यह संतोष भी था कि उन्होंने बहन के प्रति कर्तव्यों को पूरा कर के मां को दिया हुआ वचन निभाया है. इस के लिए वह सुधा के भी आभारी थे, जिस ने भाभी के रूप में स्वाति को मां जैसा स्नेह दिया था.

विवाह के बाद स्वाति जब पहली बार मनीष के साथ मायके आई तो श्रीकांत को उस की खुशी देख कर सुखद अनुभूति हुई. समय का पंछी आगे उड़ता रहा और देखतेदेखते 6 वर्ष बीत गए. इस बीच स्वाति 2 बच्चों की मां भी बन गई. शादी के बाद जब कभी श्रीकांत और सुधा ने उस से पीएच-डी- पूरी करने के विषय में पूछा तो वह हंस कर टाल गई. श्रीकांत समझते, स्वाति अपने विवाहित जीवन के सुख में इतना खो गई है कि अब वह पीएच-डी- करने की बात भूल बैठी है. उन का स्वाति के बारे में यह भ्रम न जाने कब तक बना रहता, यदि अचानक उन्हें उस का भेजा पत्र न मिलता. पत्र देखते ही वह स्वाति से मिलने केघ्लिए चल पडे़ थे.घ्अचानक टेªन का झटका लगा और श्रीकांत अतीत से वर्तमान में लौट आए.

ये भी पढ़ें – बहू : कैसे शांत हुई शाहिदा के बदन की गर्मी

उन्होंने जेब से पत्र निकाला और फिर एक बार उन की नजरें इन पंक्तियों पर अटक गईं:

फ्पिछले 6 सालों से अपने ही घर में अपने वजूद को तलाश करतेकरते थक चुकी हूं. इस से पहले कि पूरी तरह टूट कर बिखर जाऊं, मुझे यहां से ले जाओ.

पत्र पढ़ते ही श्रीकांत बेचैन हो उठे. उन का शेष सफर बहुत कठिनाई से बीता.

बडौ़दा स्टेशन पर उतरते ही उन्होंने टैक्सी पकडी़ और स्वाति के घर जा पहुंचे. बडे़ भाई को देखते ही स्वाति उन से लिपट गई और सुबकने लगी. मनीष आश्चर्यचकित हो कर बोला, फ्अरे, भैया आप आने की खबर कर देते तो मैं स्टेशन पहुंच जाता, कहते हुए उस ने श्रीकांत के पैर छुए.

फ्अचानक आफिस का कुछ विशेष काम निकल आया. इसलिए खबर देने का समय ही नहीं मिला.

फ्चलो, अच्छा हुआ. इसी बहाने आप आए तो, स्वाति के ससुर ने श्रीकांत को सोफे पर बैठाते हुए कहा.

फ्पायल कहां है? श्रीकांत ने चारों तरफ निगाहें दौडा़ते हुए पूछा.

फ्पायल स्कूल गई है, स्वाति बोली और बेटे सनी को अपने भाई की गोद में दे कर चाय का प्रबंध करने चली गई.

दोपहर में श्रीकांत जब आराम करने के लिए स्वाति के कमरे में आए तो स्नेहपूर्वक उसे पास बैठाते हुए बोले, फ्तुझे किस बात का दुख है, स्वाति?

भाई का स्नेहिल स्पर्श पाते ही स्वाति फफक पडी़, फ्मुझे यहां से ले चलो भैया वरना मैं मर जाऊंगी, और उस के बाद स्वाति ने धीरेधीरे श्रीकांत को सब बता दिया.

ये भी पढ़ें : जिस्म का स्वाद

Short Story : हथेली पर आत्मसम्मान

‘‘सो म, तुम्हारी यह मित्र इतना मीठा क्यों बोलती है?’’

श्याम के प्रश्न पर मेरे हाथ गाड़ी के स्टीयरिंग पर तनिक सख्त से हो गए. श्याम बहुत कम बात करता है लेकिन जब भी बात करता है उस का भाव और उस का अर्थ इतना गहरा होता है कि मैं नकार नहीं पाता और कभी नकारना चाहूं भी तो जानता हूं कि देरसवेर श्याम के शब्दों का गहरा अर्थ मेरी समझ में आ ही जाएगा.

‘‘जरूरत से ज्यादा मीठा बोलने वाला इनसान मुझे मीठी छुरी जैसा लगता है, जो अंदर से हमारी जड़ें काटता है और सामने चाशनी बरसाता है,’’ श्याम ने अपनी बात पूरी की.

‘‘ऐसा क्यों लगा तुम्हें? मीठा बोलना अच्छी आदत है. बचपन से हमें सिखाया जाता है सदा मीठा बोलो.’’

‘‘मीठा बोलना सिखाया जाता है न, झूठ बोलना तो नहीं सिखाया जाता. यह लड़की तो मुझे सिर से ले कर पैर तक झूठ बोलती लगी. हर भाव को प्रदर्शन करने में मनुष्य एक सीमा रेखा खींचता है. जरूरत जितनी मिठास ही मीठी लगती है. जरूरत से ज्यादा मीठा किस लिए? तुम से कोई मतलब नहीं है क्या उसे? कुछ न कुछ स्वार्थ जरूर होगा वरना आज के जमाने में कोई इतना मीठा बोलता ही नहीं. किसी के पास किसी के बारे में सोचने तक का समय नहीं और वह तुम्हें अपने घर बुला कर खाना खिलाना चाहती है. कौनकौन हैं उस के घर में?’’

‘‘उस के मांबाप हैं, 1 छोटी बहन है, बस. पिता रिटायर हो चुके हैं. पिछले साल ही कोलकाता से तबादला हुआ है. साथसाथ काम करते हैं हम. अच्छी लड़की है शोभना. मीठा बोलना उस का ऐब कैसे हो गया, श्याम?’’

श्याम ने ‘छोड़ो भी’ कुछ इस तरह कहा जिस के बाद मैं कुछ कहूं भी तो उस का कोई अर्थ ही नहीं रहा. घर पहुंच कर भी वह अनमना सा चिढ़ा सा रहा, मानो कहीं का गुस्सा कहीं निकाल रहा हो.

ये भी पढ़ें- Short Story : अंतिम निर्णय

‘‘लगता है, कहीं का गुस्सा तुम कहीं निकाल रहे हो? क्या हो गया है तुम्हें? इतनी जल्दी किसी के बारे में राय बना लेना क्या इतना जरूरी है…थोड़ा तो समय दो उसे.’’

‘‘वह क्या लगती है मेरी जो मैं उसे समय दूं और फिर मैं होता कौन हूं उस के बारे में राय बनाने वाला. अरे, भाई, कोई जो चाहे सो करे…तुम्हारी मित्र है इसलिए समझा दिया. जरा आंख और कान खोल कर रखना. कहीं बेवकूफ मत बनते रहना मेरी तरह. आजकल दोस्ती और किसी की निष्ठा को डिस्पोजेबल सामान की तरह इस्तेमाल कर के डस्टबिन में फेंक देने वालों का जमाना है.’’

‘‘सभी लोग एक जैसे नहीं होते हैं, श्याम.’’

‘‘तुम से ज्यादा तजरबा है मुझे दुनिया का. 10 साल हो गए हैं मुझे धक्के खाते हुए. तुम तो अभीअभी घर छोड़ कर आए हो न इसलिए नहीं जानते, घर की छत्रछाया सिर्फ घर %A

Serial Story : अजनबी मुहाफिज

Serial Story : अजनबी मुहाफिज – भाग 3

लेखक: शकीला एस हुसैन

स्टेशन मास्टर का शुक्रिया अदा कर के मैं बाहर आ गया. जिन दिनों की यह बात है उन दिनों स्टेशन के बाहर मुश्किल से 2-3 तांगे खड़े रहते थे. मैं एक तांगे की तरफ बढ़ा. कोचवान बूढ़ा आदमी था. मैं ने उस से कहा, ‘‘चाचा, यह फोटो देख कर बताओ. मुझे इन दोनों की तलाश है. ये दोनों औरतें 3-4 दिन पहले स्टेशन से निकल कर तांगें में बैठ कर कहीं गई थीं. क्या तुम बता सकते हो वे किस के तांगे में गई थीं?’’

चाचा ने जवाब दिया, ‘‘14 तारीख को ये दोनों औरतें गुलाम अब्बास के तांगे में बैठ कर छछेरीवाल गई थीं, क्योंकि गुलाम अब्बास का रूट स्टेशन से छछेरीवाल तक ही जाता है क्योंकि वह खुद वहीं रहता है.’’

मैं ने कहा, ‘‘चाचा, हमें छछेरीवाल ही जाना है और गुलाम अब्बास से मिलना है.’’

मैं अपने 2 सिपाहियों के साथ छछेरीवाल रवाना हो गया. वह हमें सीधे गुलाम अब्बास के घर ले गया. मैं पुलिस की वरदी में था. पहले तो वह घबरा गया. मैंने दोनों फोटो दिखा कर उन औरतों के बारे में पूछा तो वह फौरन ही बोला, ‘‘जी सरकार, इन दोनों औरतों को 14 दिसंबर की दोपहर रेलवे स्टेशन से छछेरीवाल लाया था. इस में से मोटी औरत को मैं जानता हूं. इस का नाम गुलशन है. सब इसे गुलशन आंटी कहते हैं पर वह गोरी खूबसूरत लड़की मेरे लिए नई थी.’’

ये भी पढ़ें- विदाई

उस ने हमें गुलशन के घर का पता बता दिया. हम वहां पहुंचे. घर के बाहर एक गंजा बूढ़ा आदमी फल और सब्जी का ठेला लगाए बैठा था. उस ने जल्दी से हमें सलाम किया. मैं ने उस से गुलशन आंटी के बारे में पूछा. वह बोला, ‘‘गुलशन मेरी बीवी है.’’

मैं उस के साथ घर के अंदर गया. धीरे से उस ने पूछा, ‘‘हुजूर, कुछ गलती हो गई है क्या?’’

‘‘हां, एक केस में उस से पूछताछ करनी है.’’ वह बड़बड़ाया, ‘‘वह जरूर फिर कोई कमीनी हरकत कर के आई होगी.’’

‘‘क्या तुम्हारी बीवी हमेशा कोई लफड़े करती रहती है?’’

‘‘बस सरकार, वह ऐसी ही है मेरी कहां सुनती है.’’

उसी वक्त अंदर के कमरे से एक तेज आवाज आई, ‘‘तुम्हारा दिल दुकान पर नहीं लगता. घर में क्यों चले आते हो?’’

मैं ने कहा, ‘‘इसे बाहर बुलाओ.’’

उस ने उसे आवाज दी, ‘‘गुलशन बाहर आओ. तुम से मिलने कोई आया है.’’

घर का दरवाजा एक झटके से खोल कर जो औरत बाहर आई, वह गोलमटोल, 45 साल की औरत थी. उस के चेहरे पर चालाकी और कमीनापन झलक रहा था. हमें देखते ही उस ने दरवाजा बंद करना चाहा. मैं ने पांव अड़ा दिया और तेज लहजे में कहा, ‘‘गुलशन, सीधेसीधे हमारे सवालों के जवाब दो. नहीं तो मैं हथकड़ी डाल कर ले जाऊंगा.’’

मेरी धमकी का असर हुआ. वह हमें अंदर ले गई जहां 2 पलंग बिछे थे. हम उन पर बैठ गए.

‘‘गुलशन, 24 दिसंबर को जो लड़की तुम्हारे साथ तुम्हारे घर आई थी, वह कहां है?’’

‘‘कौन सी लड़की सरकार?’’

सिपाही ने फौरन ही फोटो निकाल कर उस के सामने रख दिया.

‘‘अच्छा! आप इस की बात कर रहे हैं. यह तो फरजाना है. मेरी रिश्ते की भांजी.’’ वह मजबूत लहजे में बोली, ‘‘वे लोग लालामूसा में रहते हैं. फरजाना मुझ से मिलने आई थी. मैं उसे लेने रेलवे स्टेशन गई थी.’’

ये भी पढ़ें- कल तुम बिजी आज हम बिजी

मैं समझ गया, वह सरासर झूठ बोल रही है. मैं ने उस के आदमी से पूछा, ‘‘तुम कभी फरजाना से मिलने लालामूसा गए हो?’’

वह हड़बड़ा गया, ‘‘नहीं…हां…जी…नहीं…’’

अब मैं गुलशन की तरफ बढ़ा और डांट कर कहा, ‘‘देखो गुलशन, तुम सच बोल दो उसी में भलाई है. वरना मैं तुम से बहुत बुरी तरह पेश आऊंगा. जिस लड़की को तुम अपनी भांजी बता रही हो, उस से तुम स्टेशन पर पहली बार मिली थी. उस से तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं है. अगर होता तो तुम हरगिज उसे कादिर के हवाले नहीं करती. तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि फरीदपुर में कैसी कयामत बरपी है. तुम जिस लड़की को बहलाफुसला कर अपने साथ लाई थीं, 2 रोज बाद उसे तुम ने कादिर के हवाले कर दिया.’’

‘‘मैं किसी कादिर को नहीं जानती.’’

‘‘बकवास बंद करो. तुम बहुत ढीठ और बेशर्म औरत हो. थाने जा कर तुम्हारी जुबान खुलेगी.’’

उसे भी तांगे में बैठा कर हम थाने आ गए. मैं ने एक हवलदार को बुला कर गुलशन को उस के हवाले करते हुए कहा, ‘‘यह आंटी गुलशन हैं. इन्होंने एक लड़की चौधरी रुस्तम के डेरे पर भिजवाई थी, पर अब गूंगी हो गई हैं. तुम्हें रात भर में इसे अच्छा करना है. तुम्हारे पास जुबान खुलवाने के जितने मंत्र हैं, सब आजमा लो.’’

वह गुलशन आंटी को ले कर चला गया. उसी वक्त सादिक पहलवान मुझ से मिलने पहुंचा. ऊंचा पूरा मजबूत काठी का आदमी था. चेहरे से ही शराफत टपकती थी. मैं ने उस से काफी पूछताछ की.

सब से बड़ी बात यह थी कि वारदात के एक दिन पहले ही वह कुश्ती के मैच में शामिल होने दूसरे शहर चला गया था, जिस के कई गवाह थे. चौधरी सिकंदर के मुताबिक वह सच्चा और खरा आदमी था और फरीदपुर की शान था. वह 3 मैच जीत कर आया था. मैं ने उसे जाने दिया. शाम हो चुकी थी. मैं भी अपने क्वार्टर पर चला गया.

अगली सुबह तैयार हो कर मैं थाने पहुंचा. हवलदार ने खुशखबरी सुनाई कि आंटी गुलशन बोलने लगी है. मैं ने हवलदार से पूछा, ‘‘तुम ने मारपीट तो नहीं की न?’’

‘‘नहीं साहब, सिर्फ पेशाब लाने वाली दवा पिला दी थी और उसे बाथरूम नहीं जाने दिया. मजबूर हो कर उस ने जुबान खोल दी.’’

आंटी गुलशन ने बताया कि वह शहरशहर घूमने वाली औरत है. जब कोई मजबूर, बेबस लावारिस लड़की नजर आती, उस से हमदर्दी जता कर उसे अपने साथ छछेरीवाल ले आती. कुछ दिन खिलापिला कर उसे फरेब में रखती, फिर किसी ग्राहक को बेच देती और अपने पैसे खड़े कर लेती.

ये भी पढ़ें- Short Story : बहू बेटी

कादिर जैसे कई लोगों से उस की जानपहचान थी, जिन्हें वह लड़कियां सप्लाई करती थी. यह लड़की, जिस का नाम जबीन था, उस ने कादिर के हवाले की थी. कादिर पहले भी रुस्तम के लिए गुलशन से कई लड़कियां ले चुका था. जबीन गुलशन को गुजरांवाला रेलवे स्टेशन पर मिली थी. वह पहली नजर में ही पहचान गई कि वह उस का शिकार है.

वह उस के करीब जा कर बैठ गई. 10 मिनट में ही प्यार जता कर उस की असल कहानी मालूम कर ली. जबीन का ताल्लुक वजीराबाद से था. उस का बाप मर चुका था. उस की मां ने दूसरी शादी कर ली थी. सौतेला बाप उस पर बुरी नजर रखता था. कई बार उसे परेशान भी करता था.

Serial Story : अजनबी मुहाफिज – भाग 4

लेखक: शकीला एस हुसैन

जब उस ने मां से शिकायत की तो मां ने उलटा उसे ही मुजरिम ठहराया. तंग आ कर जबीन घर से भाग निकली. जब वह ट्रेन से इस तरफ आ रही थी तो उसे महसूस हुआ कि एक आदमी उस का पीछा कर रहा है. घबरा कर वह अंजान स्टेशन पर उतर गई. वहीं उस की मुलाकात गुलशन से हुई.

गुलशन उसे अपनी मीठी बातों के जाल में फंसा कर अपने घर ले आई. 2 दिन उस की खूब खातिर की और फिर नौकरी दिलाने के बहाने कादिर के पास बेच कर आ गई. उस मासूम को इस छलकपट की खबर ही नहीं लगी.

मैंने गुस्से से कहा, ‘‘तुम दुनिया की सब से कमीनी औरत हो. जिस इज्जत की हिफाजत के लिए जबीन ने अपना घर छोड़ा था, तुम ने झूठी मोहब्बत का फरेब दे कर उस की इज्जत को नीलाम कर दिया. मैं तुम्हें कठोर सजा दिलवाऊंगा.’’

वो मगरमच्छ के आंसू बहाने लगी, जिस का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ.

‘‘तुम ने क्या कह कर उसे कादिर के हाथ बेचा था?’’

‘‘मैं ने कहा था यह मेरा भाई है. इस के 3-4 बच्चे हैं. इसे बच्चे संभालने के लिए एक औरत चाहिए. यह कह कर मैं ने उसे कादिर के हवाले कर दिया था. वह खुशीखुशी उस के साथ चली गई थी.’’

‘‘अब तुम्हारे पास बचाव का कोई रास्ता नहीं है. मैं तुम्हें मासूम लड़कियों की जिंदगी बरबाद करने के जुर्म में लंबे अरसे के लिए अंदर कर दूंगा.’’

दूसरे दिन मैं वजीराबाद रवाना हो गया. वहां मैं ने जबीन के सौतेले बाप और मां से मुलाकात की. उन लोगों को जबीन के बारे में कुछ पता नहीं था, न ही उन्हें उस की कोई फिक्र थी. उन लोगों ने उसे ढूंढने में भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी. पूछताछ कर के मैं वापस गुजरांवाला आ गया.

यहां भी मैं ने जबीन की काफी तलाश करवाई लेकिन कुछ पता नहीं चला. बाद में किसी ने मुझे बताया कि जिस दिन गुलशन ने जबीन को कादिर के हवाले किया था, उसी दिन से छछेरीवाल से जावेद नाम का एक नौजवान गायब है. वह कबड्डी का बहुत अच्छा खिलाड़ी था.

ये भी पढ़ें- Short Story – खरीदारी : अपमान का कड़वा घूंट

यह सुन कर मेरे दिमाग में बिजली सी चमकी. मेरी आंखों के सामने कादिर की गरदन टूटी लाश घूम गई. कादिर की गरदन का मनका जिस माहिर अंदाज में तोड़ा गया था, वह किसी पहलवान या कबड्डी के अच्छे खिलाड़ी का ही काम हो सकता था.

मैं ने छछेरीवाल में जावेद के जानने वाले लोगों से मिल कर अपने आर्टिस्ट से उस का स्केच बनवाया. उस के सहारे मैं ने जावेद की तलाश शुरू कर दी. 3 महीने गुजर गए.

मामला भी ठंडा पड़ गया. एक दिन अचानक मैं जावेद को ढूंढने में कामयाब हो गया. दरअसल, जावेद और जबीन ने शादी कर ली थी. एक दूरदराज इलाके में दोनों पुरसुकून जिंदगी गुजार रहे थे. जावेद का ताल्लुक छछेरीवाल से था. वह गुलशन के धंधे से अच्छी तरह से वाकिफ था. जब उस की नजर गुलशन के साथ आई जबीन पर पड़ी तो वह दिल हार बैठा. उस ने फैसला कर लिया कि वह इस मासूम लड़की की जिंदगी जरूर बचाएगा.

वह गुलशन की निगरानी करने लगा. जब गुलशन फरीदपुर से जबीन को कादिर के पास ले कर आई, जावेद उस का पीछा कर रहा था. पीछा करतेकरते ही वह रुस्तम के अड्डे पर पहुंच गया. वहीं छिप कर वह रुस्तम वाले बैडरूम में घुस गया और सही मौके का इंतजार करने लगा. रुस्तम को वहां किसी के होने का गुमान भी नहीं था. वह नशे में धुत था.

जब वह जबीन से जबरदस्ती करने लगा तो जावेद ने उसे सोचनेसमझने का मौका दिए बिना उस के सिर के पिछले हिस्से पर वजनी रेंच पाने से करारा वार किया, जिस से उस की मौत हो गई.

यह मंजर देख कर जबीन ने दरवाजे के बाहर दौड़ लगा दी. मारे डर के उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था.

बाहर कादिर मौजूद था. उस ने भी जबीन के पीछे दौड़ लगा दी. जावेद ने भी देर नहीं की. वह उन दोनों के पीछे दौड़ा. रेंच पाना वह रुस्तम के कमरे में पलंग के नीचे फेंक आया था. वे तीनों आगेपीछे दौड़ते हुए नजर के अंदर उतर गए.

जावेद जल्दी ही कादिर तक पहुंच गया और पलक झपकते ही एक झटके से उस ने कादिर की गरदन का मनका तोड़ डाला. पहले तो जबीन यह समझी कि यह वही आदमी है जो ट्रेन में उस का पीछा कर रहा था. पर जावेद ने उसे बताया कि उस ने उसे छछेरीवाल में देखा था और उस पर आशिक हो गया था.

ये भी पढ़ें- Short Story- ईर्ष्या : क्या था उस लिफाफे में

यह सुन कर जबीन की जान में जान आई. जावेद के हाथों 2 कत्ल हो चुके थे. छछेरीवाल जाने का सवाल ही नहीं उठता था. उन दोनों ने मिल कर फैसला किया कि दोनों किसी दूरदराज इलाके में जा कर शादी कर के रहेंगे.

इन तमाम हालात में जबीन का कोई कुसूर नहीं था. वह तो खुद हालात और गमों की मारी हुई थी. गिरफ्तारी के वक्त वह उम्मीद से थी.

जावेद ने जो भी किया, जबीन की इज्जत बचाने के लिए किया था. उस ने 2 शैतानों का सफाया कर दिया था, जो इंसान के रूप में भेडि़ए थे. एक हिसाब से उन दोनों का मर जाना अच्छा था.

मेरी नजर में जावेद का कातिल होना हालात का तकाजा था. मैं ने जावेद के लिए क्या सजा चुनी, यह मैं आप को नहीं बताऊंगा. यह आप की जहानत के लिए एक चैलेंज है, खुद सोचें और फैसला करें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें