परख- भाग 3: प्यार व जनून के बीच थी मुग्धा

दोनों की धूमधाम से सगाई हुई और 2 महीने बाद ही विवाह की तिथि निश्चित कर दी गई. सारा परिवार जोश के साथ विवाह की तैयारी में जुटा था कि अचानक प्रसाद ने एकाएक प्रकट हो कर मुग्धा को बुरी तरह झकझोर दिया था. उस ने प्रसाद को पूरी तरह अनदेखा करने का निर्णय लिया पर वह जब भी औफिस से निकलती, प्रसाद उसे वहीं प्रतीक्षारत मिलता. वह प्रतिदिन आग्रह करता कि कहीं बैठ कर उस से बात करना चाहता है, पर मुग्धा कैब चली जाने का बहाना बना कर टाल देती.

पर एक दिन वह अड़ गया कि कैब का बहाना अब नहीं चलने वाला. ‘‘कहा न, मैं तुम्हें छोड़ दूंगा. फिर क्यों भाव खा रही हो. इतने लंबे अंतराल के बाद तुम्हारा प्रेमी लौटा है, मुझे तो लगा तुम फूलमालाओं से मेरा स्वागत करोगी पर तुम्हारे पास तो मेरे लिए समय ही नहीं है.’’

‘‘किस प्रेमी की बात कर रहे हो तुम? प्रेम का अर्थ भी समझते हो. मुझे कोई रुचि नहीं है तुम में. मेरी मंगनी हो चुकी है और अगले माह मेरी शादी है. मैं नहीं चाहती कि तुम्हारी परछाई भी मुझ पर पड़े.’’

‘‘समझ गया, इसीलिए तुम मुझे देख कर प्रसन्न नहीं हुईं. नई दुनिया जो बसा ली है तुम ने. तुम तो सात जन्मों तक मेरी प्रतीक्षा करने वाली थीं, पर तुम तो 7 वर्षों तक भी मेरी प्रतीक्षा नहीं कर सकीं. सुनो मुग्धा, कहीं चल कर बैठते हैं. मुझे तुम से ढेर सारी बातें करनी हैं. अपने बारे में, तुम्हारे बारे में, अपने भविष्य के बारे में.’’

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‘‘पता नहीं प्रसाद, तुम क्या कहना चाह रहे हो. मुझे नहीं याद कि मैं ने तुम्हारी प्रतीक्षा करने का आश्वासन दिया था. आज मुझे मां के साथ शौपिंग करनी है. वैसे भी मैं इतनी व्यस्त हूं कि कब दिन होता है, कब रात, पता ही नहीं चलता,’’ मुग्धा ने अपनी जान छुड़ानी चाही. जब तक प्रसाद कुछ सोच पाता, मुग्धा कैब में बैठ कर उड़नछू हो गई थी.

‘‘क्या हुआ?’’ बदहवास सी मुग्धा को कैब में प्रवेश करते देख सहयात्रियों ने प्रश्न किया.

‘‘पूछो मत किस दुविधा में फंस गई हूं मैं. मेरा पुराना मित्र प्रसाद लौट आया है. रोज यहां खड़े हो कर कहीं चल कर बैठने की जिद करता है. मैं बहुत डर गई हूं. तुम ही बताओ कोई 3 वर्षों के लिए गायब हो जाए और अचानक लौट आए तो उस पर कैसे भरोसा किया जा सकता है.’’

‘‘समझा, ये वही महाशय हैं न जिन्होंने पार्टी में सब के सामने तुम्हें थप्पड़ मारा था,’’ उस के सहकर्मी अनूप ने जानना चाहा था.

‘‘हां. और गुम होने से पहले हमारी बोलचाल तक नहीं थी. पर अब वह ऐसा व्यवहार कर रहा है मानो कुछ हुआ ही नहीं था,’’ मुग्धा की आंखें डबडबा आई थीं, गला भर्रा गया था.

‘‘तुम से वह चाहता क्या है?’’ अनूप ने फिर प्रश्न किया, कैब में बैठे सभी सहकर्मियों के कान ही कान उग गए.

‘‘पता नहीं, पर अब मुझे डर सा लगने लगा है. पता नहीं कब क्या कर बैठे. पता नहीं, ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है?’’

मुग्धा की बात सुन कर सभी सहकर्मियों में सरसरी सी फैल गई. थोड़ी देर विचारविमर्श चलता रहा.

‘‘मुग्धा तुम्हारा डर अकारण नहीं है. ऐसे पागल प्रेमियों से बच कर रहना चाहिए. पता नहीं, कब क्या कर बैठें?’’ सब ने समवेत स्वर में अपना डर प्रकट किया.

‘‘मेरे विचार से तो मुग्धा को इन महाशय से मिल लेना चाहिए,’’ अनूप जो अब तक सोचविचार की मुद्रा में बैठा था, गंभीर स्वर में बोला.

‘‘अनूप, तुम ऐसा कैसे कर सकते हो. बेचारी को शेर की मांद में जाने को बोल रहे हो,’’ मुग्धा की सहेली मीना बोली.

‘‘यह मत भूलो कि 3 वर्षों तक मुग्धा स्वेच्छा से प्रसाद से प्रेम की पींगें बढ़ाती रही है. मैं तो केवल यह कह रहा हूं विवाह से पहले ही इस पचड़े को सुलझाने के लिए प्रसाद से मिलना आवश्यक है. कब तक डर कर दूर भागती रहेगी. फिर यह पता लगाना भी तो आवश्यक है कि प्रसाद बाबू इतने वर्षों तक थे कहां. उसे साफ शब्दों में बता दो कि तुम्हारी शादी होने वाली है और वह तुम्हारे रास्ते से हट जाए.’’

‘‘मैं ने उसे पहले दिन ही बता दिया था ताकि वह यह न समझे कि मैं उस की राह में पलकें बिछाए बैठी हूं,’’ मुग्धा सिसक उठी थी.

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‘‘मैं तो कहती हूं सारी बातें परख को बता दे. जो करना है दोनों मिल कर करेंगे तो उस का असर अलग ही होगा,’’ मीना बोली तो सभी ने स्वीकृति में सिर हिला कर उस का समर्थन किया. मुग्धा को भी उस की बात जंच गई थी.

उस ने घर पहुंचते ही परख को फोन किया. ‘‘क्या बात है? आज अचानक ही हमारी याद कैसे आ गई,’’ परख हंसा.

‘‘याद तो उस की आती है जिसे कभी भुलाया हो. तुम्हारी याद तो साए की तरह सदा मेरे साथ रहती है. पर आज मैं ने बड़ी गंभीर बात बताने के लिए फोन किया है,’’ मुग्धा चिंतित स्वर में बोली.

‘‘अच्छा, तो कह डालो न. किस ने मना किया है.’’

‘‘प्रसाद लौट आया है,’’ मुग्धा ने मानो किसी बड़े रहस्य पर से परदा हटाया.

‘‘कौन प्रसाद? तुम्हारा पूर्व प्रेमी?’’

‘‘हां, वही.’’

‘‘तो क्या अपना पत्ता कट गया?’’ परख हंसा.

‘‘कैसी बातें करते हो? यह क्या गुड्डेगुडि़यों का खेल है? हमारी मंगनी हो चुकी है. वैसे भी मुझे उस में कोई रुचि नहीं है.’’

‘‘यों ही मजाक कर रहा था, आगे बोलो.’’‘‘मैं जब औफिस से निकलती हूं तो राह रोक कर खड़ा हो जाता है, कहता है कि कहीं बैठ कर बातें करते हैं. मैं कैब चली जाने की बात कह कर टालती रही हूं पर अब उस से डर सा लगने लगा है.’’

‘‘पर इस में डरने की क्या बात है? प्रसाद से मिल कर बता दो कि तुम्हारी मंगनी हो चुकी है. 2 महीने बाद विवाह होने वाला है. वह स्वयं समझ जाएगा.’’

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‘‘वही तो समस्या है. वह बातबात पर हिंसक हो उठता है. कह रहा था मुझे उस की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी. तुम 2 दिन की छुट्टी ले कर आ जाओ. हम दोनों साथ ही मिल लेंगे प्रसाद से,’’ मुग्धा ने अनुनय की.

‘‘यह कौन सी बड़ी बात है. तुम ने बुलाया, हम चले आए. मैं तुम से मिलने आ रहा हूं. मैं प्रसाद जैसे लोगों की परवा नहीं करता. पर तुम डरी हुई हो तो हम दोनों साथ में उस से मिल लेंगे और सारी स्थिति साफ कर देंगे,’’ परख अपने चिरपरिचित अंदाज में बोला.

मुग्धा परख से बात कर के आश्वस्त हो गई. वैसे भी उस ने परख को अपने बारे में सबकुछ बता दिया था जिस से विवाह के बाद उसे किसी अशोभनीय स्थिति का सामना न करना पड़े.मुग्धा और परख पहले से निश्चित समय पर रविवार को प्रसाद से मिलने पहुंचे. कौफी हाउस में दोनों पक्ष एकदूसरे के सामने बैठे दूसरे पक्ष के बोलने की प्रतीक्षा कर रहे थे.

‘‘आप मुग्धा से विचारविमर्श करना चाहते थे,’’ आखिरकार परख ने ही मौन तोड़ा.

‘‘आप को मुग्धा ने बताया ही होगा कि हम दोनों की मंगनी हो चुकी है और शीघ्र ही हम विवाह के बंधन में बंधने वाले हैं,’’ परख ने समझाया.

‘‘मंगनी होने का मतलब यह तो नहीं है कि मुग्धा आप की गुलाम हो गई और अपनी इच्छा से वह अपने पुराने मित्रों से भी नहीं मिल सकती.’’

‘‘यह निर्णय परख का नहीं, मेरा है, मैं ने ही परख से अपने साथ आने को कहा था,’’ उत्तर मुग्धा ने दिया.

‘‘समझा, अब तुम्हें मुझ से अकेले मिलने में डर लगने लगा है. मुझे तो आश्चर्य होता है कि तुम जैसी तेजतर्रार लड़की इस बुद्धू के झांसे में आ कैसे गई. सुनिए महोदय, जो भी नाम है आप का, मैं लौट आया हूं. मुग्धा को आप ने जो भी सब्जबाग दिखाए हों पर मैं उसे अच्छी तरह जानता हूं. वह तुम्हारे साथ कभी खुश नहीं रह सकती. वैसे भी अभी मंगनी ही तो हुई है. कौन सा विवाह हो गया है. भूल जाओ उसे. कभी अपनी शक्ल देखी है आईने में? चले हैं मुग्धा से विवाह करने, ’’ प्रसाद का अहंकारी स्वर देर तक हवा में तैरता रहा.

‘‘एक शब्द भी और बोला प्रसाद, तो मैं न जाने क्या कर बैठूं, तुम परख का ही नहीं, मेरा भी अपमान कर रहे हो,’’ मुग्धा भड़क पड़ी.

‘‘मेरी बात भी ध्यान से सुनिए प्रसाद बाबू, पता नहीं आप स्वयं को कामदेव का अवतार समझते हैं या कुछ और, पर भविष्य में मुग्धा की राह में रोड़े अटकाए तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. चलो मुग्धा, यह इस योग्य ही नहीं है कि इस से कोई वार्त्तालाप किया जा सके,’’ परख उठ खड़ा हुआ.

पलक झपकते ही दोनों प्रसाद की आंखों से ओझल हो गए. देर से ही सही, प्रसाद की समझ में आने लगा था कि अपना सब से बड़ा शत्रु वह स्वयं ही था.

बाहर निकलते ही मुग्धा ने परख का हाथ कस कर थाम लिया. उसे पूरा विश्वास हो गया था कि उस ने परख को परखने में कोई भूल नहीं की थी.

अटूट प्यार- भाग 2: यामिनी से क्यों दूर हो गया था रोहित

कुछ सोचते हुए मायूस शब्दों में रोहित बोला, ‘‘अभी इस दुनिया में मेरा खुद का ही कोई ठिकाना नहीं है. मैं किस मुंह से तुम्हारे पापा से तुम्हें मांग पाऊंगा. अगर उन्होंने मना कर दिया तो हमारी उम्मीद टूट जाएगी. जब तक मैं अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता, तुम्हें धीरज रखना होगा. मेरे किसी योग्य होने तक अपनी शादी को किसी बहाने टलवा लो. मैं जल्दी ही तुम्हारा हाथ मांगने आऊंगा.’’

‘‘काश, मैं ऐसा कर पाती. जीवन की अंतिम सांस तक तुम्हारा इंतजार करूं, पर न जाने क्यों मेरे मम्मीपापा को मेरी शादी की जल्दी पड़ी है? रोहित, मेरे पापा से मेरा हाथ मांग लो. मैं जिंदगी भर तुम्हारा एहसान मानूंगी.’’ यामिनी अपनी रौ में कहती चली गई, ‘‘मैं किसी और से शादी नहीं कर सकती. तुम नहीं मिले तो मैं अपनी जान दे दूंगी.’’

रोहित ने घबरा कर कहा, ‘‘ऐसा गजब नहीं करना. तुम से दूर होने की बात मैं सोच भी नहीं सकता. लेकिन फिलहाल हमें इंतजार करना ही पड़ेगा.’’

यामिनी एक उम्मीद लिए अपने घर लौट आई. रोहित से जिंदगी भर के लिए मिलने के खयाल से उस के दिल की धड़कन बढ़ जाती. उस ने सोचा, क्या हसीन समां होगा जब वह और रोहित हमेशा के लिए साथ होंगे.

लेकिन चंद दिनों बाद ही यामिनी के खयालों की हसीन दुनिया ढहती नजर आई. उन की मां ने बताया कि अगले दिन ही उसे देखने मेहमान आ रहे हैं. यामिनी को काटो तो खून नहीं. उस ने घबरा कर रोहित को फोन किया. पर यह क्या? वह काल पर काल करती गई और उधर रिंग होती रही लेकिन रोहित ने फोन रिसीव नहीं किया. आखिर रोहित को आज हो क्या गया है? फोन क्यों नहीं उठा रहा है? वह काफी परेशान हो गई.

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शायद वह किसी काम में व्यस्त होगा. इसलिए यामिनी ने थोड़ी देर ठहर कर कौल किया. लेकिन फिर भी उस ने फोन नहीं उठाया. ऐसा कभी नहीं हुआ था. वह तो तुरंत कौल रिसीव करता था या मिस्ड होने पर खुद ही कौलबैक करता था. आधी रात हो गई लेकिन यामिनी की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह रोहित को कौल करती रही. अंत में कोई जवाब दिए बिना रोहित का मोबाइल फोन स्विच औफ हो गया तो यामिनी की रुलाई फूट पड़ी.

अगले दिन सुबह पापा के ड्यूटी पर जाने के बाद यामिनी बहाना बना कर घर से निकल गई और रोहित के कमरे पर जा पहुंची, क्योंकि मेहमान शाम को आने वाले थे. पर यह क्या? वहां ताला लगा था. आसपास के लोगों से उस ने पूछा तो पता चला कि रोहित कमरा खाली कर कहीं जा चुका है. वह कहां गया है, यह कोई

नहीं बता पाया. यामिनी की आंखों में आंसू आ गए. अब वह क्या करे? कहां जाए? रोहित बिना कुछ कहे जाने कहां चला गया था. लेकिन रोहित ऐसा कर सकता है, यामिनी को यकीन नहीं हो रहा था.

शाम निकट आती जा रही थी और उस की दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी.

अगर लड़के वालों ने उसे पसंद कर लिया तो क्या होगा? वह कैसे मना कर पाएगी शादी के लिए? उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था. उस ने सोचा, यह वक्त कहीं ठहर जाए तो कितना अच्छा हो. लेकिन गुजरते वक्त पर किस का अधिकार होता है.

धीरेधीरे शाम आ ही गई. लड़के वाले कई लोगों के साथ यामिनी को देखने आ गए. यामिनी का कलेजा जैसे मुंह को आ गया. जीवन में कभी खुद को उस ने इतना लाचार नहीं महसूस किया था. मां की जिद पर उस ने मन ही मन रोते हुए अपना शृंगार किया. उसे लड़के वालों के सामने ले जाया गया.

उस का दिल रो रहा था. रोहित से वह जुदा नहीं होना चाहती थी. यह सोच कर यामिनी की पीड़ा और बढ़ जाती कि अगर सब रजामंद हो गए तो क्या होगा? इस कठिन घड़ी में रोहित उसे बिना कुछ कहे कहां गायब हो गया था. यामिनी अकेले दम पर कैसे प्यार निभा पाएगी? उस ने क्या सिर्फ मस्ती करने के लिए प्यार किया था? जब निभाने और जिम्मेदारी उठाने की बात आई तो उसे छोड़ कर चुपचाप गायब हो गया. यह कैसा प्यार था उस का?

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लेकिन यामिनी का मन रोहित के अलावा किसी और को स्वीकार करने को तैयार नहीं था. वह मन ही मन कामना कर रही थी कि लड़के वाले उसे नापसंद कर दें. लेकिन उन लोगों ने उसे पसंद कर लिया. अपने प्यार को टूटता देख यामिनी बेसब्र होती जा रही थी. इतनी कठिन घड़ी में वह अपनी भावनाओं के साथ अकेली थी. रोहित तो जाने किस दुनिया में गुम था. आखिर उस ने ऐसा क्यों किया? क्या प्यार उस के लिए मन बहलाने की चीज थी? यामिनी का विकल मन रोने को हो रहा था.

घर में खुशी का माहौल था. उस की मां सभी परिचितों एवं रिश्तेदारों को फोन पर लड़के वालों द्वारा यामिनी को पसंद किए जाने की सूचना दे रही थीं. पापा धूमधाम से शादी करने के लिए जरूरी इंतजाम के बारे में सोच रहे थे. लेकिन यामिनी मन ही मन घुट रही थी. रोहित को वह भूल नहीं पा रही थी. वह सोचती कि काश, उस की यह शादी न हो. उस के दिल में तो सिर्फ रोहित बसा था. वह कैसे किसी और के साथ न्याय कर पाएगी.

कुछ दिन बीते और इसी दौरान एक नई घटना घट गई. जिस बात को ले कर यामिनी घुली जा रही थी वह बिना कोशिश के ही हल हो गई. लड़के वाले शादी को ले कर आनाकानी करने लगे थे. जो शादी में मध्यस्थ का काम कर रहे थे उन्होंने बताया कि लड़के वालों ने ज्यादा दहेज के लालच में दूसरी जगह शादी पक्की कर ली. यह जान कर यामिनी को राहत सी महसूस हुई. कई दिनों के बाद उस की होंठों पर मुसकराहट आई.

शादी की बात टलते ही यामिनी को राहत मिली. पर अफसोस, रोहित अब भी उस के संपर्क में नहीं था. वह रोहित को याद कर हर पल बेचैन रहने लगी. बिना बताए वह कहां चला गया है? उस ने अपना मोबाइल फोन क्यों स्विच औफ कर लिया है? ज्योंज्यों दिन बीत रहे थे उस की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. कभीकभी उसे लगता कि रोहित ने उस के साथ धोखा किया है.

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यामिनी हमेशा रोहित के नंबर पर कौल करती. लेकिन मोबाइल फोन हमेशा स्विच औफ मिलता. उस ने फेसबुक पर भी कई मैसेज पोस्ट किए पर कोई जवाब नहीं मिला. एक दिन उस ने देखा कि रोहित ने उसे फेसबुक पर भी ब्लौक कर रखा था. उस की इस हरकत पर यामिनी को बहुत गुस्सा आया. जिस के लिए उस ने अपना सारा चैन खो दिया, वह उस से दूर होने की हर कोशिश कर रहा है.

गुस्से से उस के होंठ कांपने लगे. बिना बताए इस तरह की हरकत? शादी नहीं करनी थी तो पहले बता देता. चोरों की तरह बिना कुछ बताए गायब हो जाना तो उस की कायरता है.

तुमने क्यों कहा मैं सुंदर हूं: भाग 5

‘‘कुछ समय बाद मैं और तुम सेवानिवृत्त हो गए. मैं अब वकील साहिबा को देखने के लिए नियमितरूप से मानसिक अस्पताल जाने लगा और उन के साथ काफी समय गुजारने लगा. एक दिन अस्पताल की डाक्टर ने मुझ से कहा, ‘देखिए, अब वह बिलकुल स्वस्थ हो गई है. वह वकालत फिर से कर पाएगी, यह तो नहीं कहा जा सकता मगर एक औरत की सामान्य जिंदगी जी पाएगी, बशर्ते उसे एक मित्रवत व्यक्ति का सहारा मिल सके जो उसे यह यकीन दिला सके कि वह उसे तन और मन से संरक्षण दे सकता है.

‘‘पत्नी की मृत्यु के बाद मैं ने अपनी संतानों द्वारा मुझे लगभग पूरी तरह इग्नोर कर दिए जाने के चलते गहराए अकेलेपन से छुटकारा पाने के लिए उन का दिल से मित्र बनने का संकल्प लिया. इस बारे में बच्चों से बात की, तो पुत्र ने तो केवल इतना कहा, ‘आप तो हमें भारतीय सभ्यता, संस्कृति और सामाजिक नैतिकता की बातें सिखाया करते थे, अब हम क्या कहें.’ मगर बड़ी पुत्री ने कहा, ‘आया का देर से आने की सूचना देने के बावजूद आप का औफिस चले जाना और इस बीच उसी दिन मम्मी की दवाइयों का असर समय से पहले ही खत्म होने के कारण उन का बीच में जाग जाना व अपनी दवाइयां घातक होने की हद तक अपनेआप खा लेना पता नहीं कोई कोइंसीडैंट था या साजिश. ऐसी क्या मजबूरी थी कि आप पूरे दिन की नहीं, तो आधे दिन की छुट्टी नहीं ले सके उस दिन. लगता है मम्मी ने डिप्रैशन में नींद की गोलियों के साथ ब्लडप्रैशर कम करने की गोलियां इतनी ज्यादा तादाद में खुद नहीं ली थीं. किसी ने उन्हें जान कर और इस तरह दी थीं कि लगे कि ऐसा उन्होंने डिप्रैशन की हालत में खुद यह सब कर लिया.’

‘‘यह सुन कर तो मैं स्तब्ध ही रह गया. छोटी पुत्री ने, ‘अब मैं क्या कहूं, आप हर तरह आजाद हैं. खुद फैसला कर लें,’ जैसी प्रतिक्रिया दी. तो एक बार तो लगा कि पत्नी की बची पड़ी दवाइयों की गोलियां मैं भी एकसाथ निगल कर सो जाऊं, मगर यह सोच कर कि इस से किसी को क्या फर्क पड़ेगा, इरादा बदल लिया और पिछले कुछ दिनों से सब से अलग इस गैस्टहाउस में रहने लगा हूं. परिचितों को इसी उपनगर में चल रहे किसी धार्मिक आयोजन में व्यस्त होने की बात कह रखी है.’’ यह सब कह कर मेरे मित्र शायद थक कर खामोश हो गए.

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काफी देर मौन पसरा रहा हमारे बीच, फिर मित्र ने ही मौन भंग किया, और बड़े निर्बल स्वर में बोले, ‘‘मैं ने तुम्हें इसलिए बुलाया है कि तुम बताओ, मैं क्या करूं?’’

मित्र के सवाल करने पर मुझे अपना फैसला सुनाने का मौका मिल गया. सो, मैं बोला, ‘‘अभिनव तुम्हें क्या करना है, तुम दोनों अकेले हो. वकील साहिबा के अंदर की औरत को तुम ने ही जगाया था और उन के अंदर की जागी हुई औरत ने तुम्हारे हताशनिराश जीवन में नई उमंग पैदा की और तुम्हारे परिवार को तनमन से अपने प्यार व सेवा का नैतिक संबल दे कर टूटने से बचाया. ऐसे में उसे जीवन की निराशा से टूटने से उबार कर नया जीवन देने की तुम्हारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है. उस के द्वारा तुम्हारे परिवार पर किए गए एहसानों को चुकाने का समय आ गया है. तुम वकील साहिबा से रजिस्ट्रार औफिस में बाकायदा विवाह करो, जिस से वे तुम्हारी विधिसम्मत पत्नी का दर्जा पा सकें और भविष्य में कभी भी तुम्हारी संतानें उन्हें सता न सकें. तुम्हारे संतानों की अब अपनी दुनिया है, उन्हें उन की दुनिया में रहने दो.’’

मेरी बात सुन कर मित्र थोड़ी देर कुछ फैसला लेने जैसी मुद्रा में गंभीर रहे, फिर बोले, ‘‘चलो, उन के पास अस्पताल चलते हैं.’’

मित्र के साथ अस्पताल पहुंच कर डाक्टर से मिले, तो उन्होंने सलाह दी कि आप उन के साथ एक नई जिंदगी शुरू करेंगे, इसलिए उन्हें जो भी दें, वह एकदम नया दें और अपनी दिवंगत पत्नी के कपड़े या ज्वैलरी या दूसरा कोई चीज उन्हें न दें. साथ ही, कुछ दिन उस पुराने मकान से भी कहीं दूर रहें, तो ठीक होगा.

डाक्टर से सलाह कर के और उन्हें कुछ दिन अभी अस्पताल में ही रखने की अपील कर के हम घर लौटे तो पड़ोसी ने घर की चाबी दे कर बताया कि उन की छोटी बेटी सरकारी गाड़ी में थोड़ी देर पहले आई थी. आप द्वारा हमारे पास रखाई गई घर की चाबी हम से ले कर बोली कि उन्होंने मां की मृत्यु के बाद आप को अकेले नहीं रहने देने का फैसला लिया है, और काफी बड़े सरकारी क्वार्टर में वह अकेली ही रहती है, इसलिए अभी आप का कुछ जरूरी सामान ले कर जा रही है. आप ने तो कभी जिक्र किया नहीं, मगर बिटिया चलते समय बातोंबातों में इस मकान के लिए कोई ग्राहक तलाशने की अपील कर गई है.

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ताला खोल कर हम अंदर घुसे तो पाया कि प्रशासनिक अधिकारी पुत्री उन के जरूरी सामान के नाम पर सिर्फ उन की पत्नी का सामान सारे वस्त्र, आभूषण यहां तक कि उन की सारी फोटोज भी उतार कर ले गई थी. एक पत्र टेबल पर छोड़ गई थी. जिस में लिखा था, ‘हम अपनी दिवंगता मां की कोई भी चीज अपने बाप की दूसरी बीवी के हाथ से छुए जाना भी पसंद नहीं करेंगे. इसलिए सिर्फ अपनी मां के सारे सामान ले जा रही हूं. आप का कोईर् सामान रुपयापैसा मैं ने छुआ तक नहीं है. मगर आप को यह भी बताना चाहती हूं कि अब हम आप को इस घर में नहीं रहने देंगे. भले ही यह घर आप के नाम से है और बनवाया भी आप ने ही है, मगर इस में हमारी मां की यादें बसी हैं. हम यह बरदाश्त नहीं करेंगे कि हमारे बाप की दूसरी बीवी इस घर में हमारी मां का स्थान ले. आप समझ जाएं तो ठीक है. वरना जरूरत पड़ी तो हम कानून का भी सहारा लेंगे.’

पत्र पढ़ कर मित्र कुछ देर खिन्न से दिखे. तो मैं ने उन्हें थोड़ा तसल्ली देने के लिए फ्रिज से पानी की बोतल निकाल कर उन्हें थोड़ा पानी पीने को कहा तो वे बोले, ‘‘आश्चर्य है, तुम मुझे इतना कमजोर समझ रहे हो कि मैं इस को पढ़ कर परेशान हो जाऊंगा. नहीं, पहले मैं थोड़ा पसोपेश में था, मगर अब तो मैं ने फैसला कर लिया है कि मैं इस मकान को जल्दी ही बेच दूंगा. पुत्री की धमकी से डर कर नहीं, बल्कि अपने फैसले को पूरा करने के लिए. इस की बिक्री से प्राप्त रकम के 4 हिस्से कर के 3 हिस्से पुत्र और पुत्रियों को दे दूंगा, और अपने हिस्से की रकम से एक छोटा सा मकान व सामान्य जीवन के लिए सामान खरीदूंगा. उस घर से मैं उन के साथ नए जीवन की शुरुआत करूंगा. मगर तब तक तुम्हें यहीं रुकना होगा. तुम रुक सकोगे न.’’ कह कर उन्होंने मेरा साथ पाने के लिए मेरी ओर उम्मीदभरी नजर से देखा. मेरी सांकेतिक स्वीकृति पा कर वे बड़े उत्साह से, ‘‘किसी ने सही कहा है, अ फ्रैंड इन नीड इज अ फ्रैंड इनडीड,’’ कहते हुए कमरे के बाहर निकले, दरवाजे पर ताला लगा कर चाबी पड़ोसी को दी और सड़क पर आ गए. नई जिंदगी की नई राह पर चलने के उत्साह में उन के कदम बहुत तेजी से बढ़ रहे थे.

अटूट बंधन- भाग 3: प्रकाश ने कैसी लड़की का हाथ थामा

त्रिशा ने रुकरुक कर बोलना शुरू किया, ‘‘देखो, 3 वर्ष में हम एकदूसरे को पूरी तरह जानने लगे हैं. मेरा तो कोई काम तुम्हारे बगैर नहीं होता. सच तो यह है, इस शहर में आ कर मैं तो अपनी जिम्मेदारियां ही भुला बैठी हूं. मैं ने तो अभी सोचा भी नहीं कि यहां से जाने के बाद मैं कैसे मैनेज करूंगी. पर प्रकाश, आजाद को मैं ने अपने जीवनसाथी के रूप में देखा है. उन के सिवा मैं किसी और के बारे में सोच भी कैसे…’’ प्रकाश बीच में ही बोल उठा, ‘‘मैं सब जानता हूं, लेकिन जिंदगी इतनी आसान भी नहीं होती, जितना तुम लोग सोच रहे हो. मुझे तुम्हारी फिक्र सताती है. पैसे खर्च कर के ही क्या सबकुछ मिल सकता है? इन सब बातों से अलग, सच तो यह भी है कि मेरे दिल में तुम्हारे लिए चाहत कब पैदा हो गई, मुझे पता ही नहीं चला. मैं तुम्हें ऐसे अकेले नहीं छोड़ सकता. प्लीज, मेरी बात समझने की कोशिश करो, त्रिशा.’’

अगले कुछ पल रुक कर त्रिशा ने कहा, ‘‘मैं अच्छी तरह जानती हूं, तुम मेरी कितनी फिक्र करते हो लेकिन जो प्रस्ताव तुम्हारा है, उस के बारे में सोचने का मेरे लिए सवाल ही पैदा नहीं होता. मैं ने हमेशा यही चाहा था कि मैं जिस कमी के साथ जी रही हूं, जीवनसाथी भी वैसा ही चुनूंगी ताकि हम एकदूसरे की ताकत बन कर कदमकदम पर हौसलाअफजाई कर सकें और आत्मनिर्भर हो कर जी सकें. फिर, आजाद तो मेरे जीवन में एक अलग ही खुशी ले कर आए हैं. मैं यकीन के साथ कह सकती हूं, उन की खूबियां और जीवन के प्रति उन का पौजिटिव रुख ही हमारे घर को खुशियों से भर देगा. जानती हूं, जीवन के हर मोड़ पर चुनौतियां होंगी, लेकिन हम दोनों का एकदूसरे के प्रति विश्वास, सम्मान और प्यार ही हमें उन चुनौतियों से उबरने की ताकत देगा. रही बात तुम्हारी, तो मैं अपने इतने अच्छे दोस्त को कभी खोना नहीं चाहती. मेरे लिए, प्लीज, मेरे लिए मुझे मेरा सब से अच्छा दोस्त वापस दे दो. अगले महीने मेरी इंगेजमैंट है. अगर तुम इसी तरह परेशान रहोगे तो क्या मुझे तकलीफ नहीं होगी?’’ इतने दिनों का सैलाब अब प्रकाश की आंखों से बह चला.

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त्रिशा की जिद और कोशिशों के चलते प्रकाश धीरेधीरे नौर्मल होने लगा. त्रिशा की इंगेजमैंट हुई और फिर शादी के दिन भी करीब आ गए. त्रिशा ने आधी से ज्यादा शौपिंग प्रकाश और शालिनी के साथ ही कर ली थी.

एक शाम त्रिशा के पास प्रकाश के मम्मीपापा का फोन आया. लंबी बातचीत के बाद प्रकाश के पापा ने त्रिशा से कहा, ‘‘बेटा, प्रकाश को शादी के लिए तुम ही तैयार कर सकती हो. हो सके तो उसे समझाओ, इतनी देर करना भी अच्छी बात नहीं. हमारी तो बात ही टाल देता है.’’ त्रिशा हंस पड़ी, ‘‘बस, इतनी सी बात है, अंकल. आप बिलकुल चिंता मत कीजिए. मैं उसे राजी कर लूंगी.’’

यों तो त्रिशा ने पहले भी उस से शादी का जिक्र छेड़ा था, पर हर बार वह उस की बात अनसुनी कर देता था. एक दिन प्रकाश ने त्रिशा से पूछा, ‘‘अच्छा बताओ, तुम्हें शादी पर क्या गिफ्ट दूं?’’ त्रिशा का उत्तर था, ‘‘तुम मुझे जो चाहे गिफ्ट दे देना, पर तुम्हारी शादी के लिए तुम्हारी हां मेरे लिए सब से कीमती गिफ्ट होगा.’’

प्रकाश उस दिन खामोश रहा. त्रिशा की शादी की तैयारियों में प्रकाश ने खुद को इतना उलझा लिया कि उसे अपनी सुध ही नहीं रही. हफ्तेभर पहले छुट्टी ले कर प्रकाश भी त्रिशा के साथ दिल्ली चला आया. यहां आ कर शादी की लगभग सभी जिम्मेदारियां प्रकाश ने संभाल लीं. मेहंदी, हलदी, कोर्ट मैरिज और फिर ग्रैंड रिसैप्शन पार्टी. यह तय था कि शादी के बाद आजाद भी कुछ दिनों के लिए बेंगलुरु घूम आएंगे. त्रिशा की कंपनी का औफिस लखनऊ में नहीं था, इसलिए बेंगलुरु आ कर त्रिशा ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया. उस ने सोच रखा था कि लखनऊ जा कर कुछ दिन घरगृहस्थी ठीकठाक कर के थोड़ा उस शहर के बारे में समझने के बाद वहीं किसी दूसरी नौकरी की तलाश करेगी.

‘‘भई, हम जानते हैं, आप बहुत थक गए हैं, पर हमें बेंगलुरु तो आप ही घुमाएंगे,’’ आजाद ने प्रकाश से कहा तो प्रकाश बोला, ‘‘सोच लीजिए, बदले में आप को हमें लखनऊ की सैर करवानी पड़ेगी.’’ ‘‘कब आ रहे हैं आप?’’

‘‘बहुत जल्द, अपनी शादी के बाद.’’ ‘‘अच्छा, तो जनाब ने शादी का फैसला कर लिया और हमें खबर तक नहीं हुई. सुन रही हो त्रिशा.’’

त्रिशा को भी यह सुन कर तसल्ली हुई, ‘‘फैसला तो नहीं किया पर…’’ प्रकाश बोलतेबोलते रुक गया और फिर उस ने बात बदल दी. बेंगलुरु में वह हफ्ता तो जैसे चुटकियों में कट गया.

प्रकाश ने त्रिशा और आजाद को गाड़ी में बैठा कर उन का सारा सामान व्यवस्थित करवा दिया. गाड़ी यहीं से बन कर चलती थी, इसलिए लेट होने का तो सवाल ही नहीं था. जैसे ही गाड़ी प्लेटफौर्म छोड़ने लगी, सभी का मन भारी हो गया. प्रकाश शायद बिना कुछ बोले ही चला गया था. त्रिशा की आंखें भी नम हो आईं. तभी अचानक सामने बैठे पैसेंजर ने आजाद का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘आप का छोटा बैग मैं इस साइड टेबल पर रख देता हूं. मैं भी लखनऊ जा रहा हूं. आप के सामने की लोअर बर्थ मेरी ही है. कोई भी जरूरत हो तो आप लोग बेझिझक मुझे आवाज दे दीजिएगा. मेरा नाम प्रकाश है.’’ अनजाने ही त्रिशा के होंठों पर मुसकान छा गई.

अगली सुबह घर पहुंचने के कुछ ही देर बाद उन्हें एक कूरियर मिला. यह त्रिशा के नाम का कूरियर था. ‘‘हैप्पी बर्थडे त्रिशा. तुम्हारा सब से कीमती तोहफा भेज रहा हूं,’’ प्रकाश ने लिखा था. उस में त्रिशा के लिए खूबसूरत सी ब्रेल घड़ी थी और एक शादी का कार्ड. त्रिशा उछल पड़ी, ‘‘वाह, इतना बड़ा सरप्राइज. इतनी जल्दी कैसे होगा सब? महीनेभर बाद की ही तो तारीख है.’’

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शादी से 2 दिन पहले आजाद और त्रिशा भोपाल पहुंचे तो प्रकाश ने रचना से उन का परिचय करवाया. ‘‘इतने कम समय में प्रकाश को तो कुछ बताने की फुरसत ही नहीं मिली. अब तुम ही कुछ बताओ न रचना अपने बारे में?’’ त्रिशा ने उत्सुकतावश पूछा. ‘‘बस, अभी आई. पहले जरा मुंह तो मीठा कीजिए, फिर बैठ कर ढेर सारी बातें करते हैं,’’ कहते हुए रचना उठी तो दाहिनी तरफ के सोफे पर बैठे आजाद से टकरातेटकराते बची. अचानक लगने वाले धक्के से आजाद के हाथ से मोबाइल छूट कर फर्श पर गिर पड़ा.

‘‘अरे, आराम से,’’ कहते हुए प्रकाश आजाद का मोबाइल उठाने के लिए झुका. अपनी गलती पर अफसोस जताते हुए अनायास ही रचना के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘ओह, माफी चाहती हूं, डाक्टर साहब. दरअसल, मैं देख नहीं सकती.’’

ये लम्हा कहां था मेरा- भाग 1

‘‘हमारी बात मान लो न निकिता… मिल तो लो आज अभिनव से. मैनेजर है मल्टीनैशनल कंपनी में और फोटो में भी अच्छा दिख रहा है. तुम्हें पसंद आए तभी हां करना… उस के घर से फोन आया है. पापा पूछ रहे हैं क्या कहना है उन्हें?’’ मीनाक्षी अपनी बेटी से मनुहार करते हुए बोलीं.

‘‘मम्मी, शादी करने के लिए नहीं करता मेरा मन… सोचा भी नहीं जाता मुझ से शादी के बारे में… आप तो जानती हैं सब,’’ निकिता का स्वर निराशा में डूबा था.

‘‘कब तक तुम्हारी दुनिया को अंधेरे में रखेगा वह हादसा? पापा अपनेआप को कुसूरवार समझ दिनरात गमगीन रहते हैं… निकाल दो बेटा अपने दिमाग से वे सब बातें.’’

‘‘मेरी तो कुछ समझ नहीं आता कि क्या करूं मम्मी? आप जो ठीक समझें कर लें,’’ कह कर निकिता गुमसुम सी फिर लैपटौप में खो गई.

‘‘तुम कितनी समझदार हो… ठीक है बेटा, फिर बुला लेते हैं आज उन लोगों को,’’ निकिता के सिर पर प्यार से हाथ फेर मीनाक्षी उस के कमरे से निकल गईं.

अपना काम निबटा निकिता न चाहते हुए भी आज शाम पहनने के लिए कपड़ों का चुनाव करने चल दी. शादी के लिए किसी रिश्ते की बात शुरू होते ही वह अनमनी सी हो जाती थी.

मेहमानों के लिए हो रही तैयारी से घर में रौनक दिख रही थी. उसी रौनक की छाया सुदीप पर भी पड़ रही थी वरना 2 सालों से बेटी निकिता का दर्द उन्हें चैन से सोने नहीं दे रहा था.

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शाम को आ गए वे लोग. औसत कदकाठी और आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी अभिनव की सादगी मीनाक्षी और सुदीप के मन में अंदर तक उतर गई. अभिनव और निकिता के बीच औपचारिक बातचीत हुई. एक नामी पब्लिशिंग हाउस में कंटैट राइटर की पोस्ट पर कार्य कर रही निकिता का गोरा रंग और खूबसूरत नैननक्श देख अभिनव के मम्मीपापा रिश्ता जोड़ने को बेताब हो रहे थे. डिनर के बाद जाते समय दोनों के मातापिता ने जल्द ही बच्चों से पूछ कर रिश्ता पक्का करने की बात कह खुशीखुशी एकदूसरे से बिदा ली.

उन के चले जाने के बाद मीनाक्षी और सुदीप अभिनव के विषय में निकिता की राय जानने को आतुर थे. निकिता सोच कर जवाब देने की बात कह अपने कमरे में चली गई. बिस्तर पर लेटते ही नींद की जगह विचारों का कारवां उसे घेरने लगा कि क्या करूं अब मना करती हूं शादी के लिए तो मम्मीपापा की परेशानी कम न कर पाने की गुनहगार बन जाती हूं. हां भी कैसे करूं? सोच कर ही सिहर उठती हूं कि अपना तन किसी को सौंप रही हूं.

मम्मीपापा का कहना है कि अभिनव समझदार लग रहा है. मैं खुश रह सकूंगी उस के साथ. पर क्या होगा अगर हर रात मुझे उस में राजन अंकल… नहीं… दरिंदा राजन दिखाई देने लगेगा… निकिता के दिमाग को एक बार फिर झकझोर गया वह दिन…

दिल्ली के नामी कालेज से एमए करने के बाद जब निकिता की प्लेसमैंट पुणे हुई तो मम्मी उस के दूर जाने की बात से चिंतित हो उठी थीं. तब पापा ने याद दिलाया कि उन के एक कुलीग राजन, जो पिछले साल नौकरी छोड़ गए थे, वहीं रह रहे हैं तो मीनाक्षी की सांस में सांस आ गई.

पुणे में निकिता के रहने की व्यवस्था एक पीजी में करवाने के बाद सुदीप निकिता को साथ ले राजन के घर पहुंच गए. राजन का इकलौता बेटा यूके में रह रहा था. राजन की पत्नी भी उन दिनों वहीं गई हुई थी. राजन ने कहा कि निकिता इसे अपना घर समझ कभी भी यहां आ सकती है. पूरा आश्वासन भी दिया था कि उस के रहते निकिता को किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी.

निकिता और राजन की फोन पर कभीकभी बात हो जाती थी, लेकिन निकिता की व्यस्तता के कारण दोबारा मिलना नहीं हुआ था उन का. एक दिन निकिता के पास राजन का फोन आया कि पत्नी की तबीयत अचानक खराब हो जाने के कारण उसे यूके जाना पड़ रहा है, अत: जाने से पहले एक बार वह निकिता से मिलना चाहता है. निकिता शाम को राजन के घर चली गई.

राजन का व्यवहार उस दिन निकिता को बदलाबदला सा लग रहा था. उस के नमस्ते करने पर राजन ने उस के हाथों को अपने दोनों हाथों में ले कर चूम लिया. निकिता को यह बहुत अखर रहा था. कुछ देर बातचीत करने के बाद निकिता जाने लगी तो राजन ने कौफी पी कर जाने का आग्रह किया. फिर उसे कमरे में बैठने को कह कौफी बनाने चल दिया. कामवाली के बारे में निकिता के पूछने पर बोला कि वह आज जल्दी छुट्टी ले कर चली गई है.

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कुछ देर बाद कौफी ला कर टेबल पर रख राजन निकिता के सामने बैठ गया. निकिता को चुपचाप कौफी पीते देख हंसता हुआ बोला, ‘‘अरे, कुछ तो बात करो… अच्छा बताओ, मैं कैसा लगता हूं तुम्हें?’’

निकिता को कौफी का घूंट हलक से उतारना मुश्किल हो गया.

‘‘आप अच्छे लगते हैं, अंकल,’’ कह कर वह जल्दीजल्दी कौफी पीने लगी ताकि वहां से निकल पाए. मगर तभी बैठेबैठे उसे चक्कर सा आने लगा. ‘कहीं कौफी में कुछ नशीला तो नहीं?’ सोच कर आधा भरा हुआ मग टेबल पर रख वह उठने लगी तो राजन उस के पास आ कर खड़ा हो गया.

‘‘पता नहीं तुम क्यों मुझे अंकल कह कर बुला रही हो? लोग तो कहते हैं मैं अभी भी किसी बौलीवुड हीरो से कम नहीं लगता.’’

‘‘जी… अच्छा है अगर लोग ऐसा कहते हैं, आप ने फिट रखा हुआ है अपने को,’’ घबराई हुई सी निकिता खुद को सामान्य दिखाने की कोशिश कर रही थी.

‘‘तो फिर जी नहीं चाहता मेरे पास आने का?’’ कहते हुए राजन निकिता से सट कर बैठ गया.

निकिता भीतर तक कांप उठी. इस से पहले कि हिम्मत जुटा वह उठ भागती राजन उसे अपनी गिरफ्त में ले चुका था. निकिता ने खुद को छुड़ाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन कौफी में मिलाए गए नशीले पदार्थ के असर से वह लड़खड़ा रही थी.

‘‘पता है मुझे, तुम भी यही चाहती हो… पर झिझकती हो कहने में. तभी तो एक बार बुलाते ही दौड़ी चली आई मिलने.’’

‘‘नहीं अंकल…’’ चीख उठी थी निकिता.

‘‘औरत की न का मतलब हां होता है,’’ कहते हुए अपना वहशियाना रूप दिखा दिया राजन ने.

अपनी हवस मिटा कर राजन सोफे पर ही औधे मुंह गिर गया. निकिता अपने कपड़े व्यवस्थित कर गिरतीपड़ती पीजी लौटी तो कुछ सोचनेसमझने की स्थिति में नहीं थी. उस की सहेली अदीबा ने मीनाक्षी को फोन किया. अगले दिन सुदीप और मीनाक्षी वहां पहुंच गए. निकिता से सब सुन कर वे अवाक रह गए. क्रोध से तमतमाया सुदीप राजन के घर पहुंचा, पर वह तो यूके निकल चुका था. पुलिस में शिकायत करने से भी तब कोई लाभ नहीं था. निकिता को साथ ले दोनों टूटेबिखरे से वापस आ गए.

सुदीप और मीनाक्षी निकिता का सहारा बन उसे दिनरात समझाते रहते. लगभग 2 महीने बाद वह इस हादसे से कुछ दूर हुई तो नई नौकरी की तलाश में जुट गई.

अदीबा के भाई की दिल्ली में अच्छी जानपहचान थी. उस की मदद से

कई जगह उसे रिक्त पदों के विषय में जानकारी मिली. अंतत: एक पब्लिशिंग हाउस में बतौर कंटैंट राइटर चुन लिया गया. फिर वहां काम संभालते हुए वह खुद को व्यस्त रखने लगी.

कुछ माह बाद सुदीप और मीनाक्षी ने विवाह की बात छेड़ी तो निकिता ने साफ मना कर दिया. उस का व्यथित मन किसी को भी अपना मानने को तैयार नहीं था, पर मम्मीपापा चाहते थे कि वह सब भूल कर नई जिंदगी शुरू करे.

आज भी तो नहीं मिलना चाह रही थी निकिता अभिनव से, लेकिन पापा की निराशा भी नहीं देखी जाती थी उस से. अभिनव से मिल कर उसे बुरा भी नहीं लगता था, परंतु पतिपत्नी संबंध के विषय में सोचते ही लगने लगता था कि अपनी देह कहां छिपा लूं कि किसी पुरुष की नजर ही न पड़े उस पर. अतीत के काले दलदल में फंसी निकिता रातभर बिस्तर पर करवटें बदलती रही.

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सुबह औफिस जाने लगी तो मीनाक्षी उस के जवाब के इंतजार में थीं. ‘‘अभी देर हो रही है, बाद में बात करते हैं,’’ कहते हुए वह भारी मन से औफिस चली गई.

औफिस में उस के पास अलगअलग विषयों पर लिखने के लिए कई मेल आए हुए थे, लेकिन काम में मन ही नहीं लग रहा था उस का. किसी तरह मन बना कर एक टौपिक पर सोच लिखना शुरू ही किया था कि मोबाइल बज उठा.

फोन मीनाक्षी का था. उन की आवाज में मनुहार की जगह आज बेबसी झलक रही थी, ‘‘बेटा, तुम्हारे मन में क्या चल रहा है, मैं समझ सकती हूं पर ऐसे कैसे अकेली रहोगी जिंदगीभर? इसी सोच में पापा दिनरात घुलते रहते हैं… कैसे समझाऊं तुम्हें कि मेरी तबीयत भी अब…’’ और बात पूरी होने से पहले ही मीनाक्षी के सिसकने की आवाजें आने लगीं.

हक्कीबक्की सी निकिता बिना कुछ सोचे बोल उठी, ‘‘मम्मी मैं आप को अभी फोन करने ही वाली थी… मुझे अभिनव पसंद है,’’ और फिर फोन काट धम्म से कुरसी पर बैठ गई. ‘शायद मुझे यही करना चाहिए था… इस के अलावा और कोईर् ऐसा रास्ता भी तो नहीं है जो मम्मीपापा को खुशियां दे पाए.’

रुह का स्पंदन- भाग 2

दक्षा मां से बातें कर रही थी कि उसी समय वाट्सऐप पर मैसेज आने की घंटी बजी. दक्षा ने फटाफट बायोडाटा और फोटोग्राफ्स डाउनलोड किए. बायोडाटा परफेक्ट था. दक्षा की तरह सुदेश भी अपने मांबाप की एकलौती संतान था. न कोई भाई न कोई बहन. दिल्ली में उस का जमाजमाया कारोबार था. खाने और ट्रैवलिंग का शौक. वाट्सऐप पर आए फोटोग्राफ्स में एक दाढ़ी वाला फोटो था.

दक्षा को जो चाहिए था, वे सारे गुण तो सुदेश में थे. पर दक्षा खुश नहीं थी. उस के परिवार में जो घटा था, उसे ले कर वह परेशान थी. उसे अपनी मर्यादाओं का भी पता था. साथ ही स्वभाव से वह थोड़ी मूडी और जिद्दी थी. पर समय और संयोग के हिसाब से धीरगंभीर और जिम्मेदारी भी थी.

दक्षा का पालनपोषण एक सामान्य लड़की से हट कर हुआ था. ऐसा नहीं करते, वहां नहीं जाते, यह नहीं बोला जाता, तुम लड़की हो, लड़कियां रात में बाहर नहीं जातीं. जैसे शब्द उस ने नहीं सुने थे, उस के घर का वातावरण अन्य घरों से कदम अलग था. उस की देखभाल एक बेटे से ज्यादा हुई थी. घर के बिजली के बिल से ले कर बैंक से पैसा निकालने, जमा करने तक का काम वह स्वयं करती थी.

दक्षा की मां नौकरी करती थीं, इसलिए खाना बनाना और घर के अन्य काम करना वह काफी कम उम्र में ही सीख गई थी. इस के अलावा तैरना, घुड़सवारी करना, कराटे, डांस करना, सब कुछ उसे आता था. नौकरी के बजाए उसे बिजनैस में रुचि ही नहीं, बल्कि सूझबूझ भी थी. वह बाइक और कार दोनों चला लेती थी. जयपुर और नैनीताल तक वह खुद गाड़ी चला कर गई थी. यानी वह एक अच्छी ड्राइवर थी.

दक्षा को पढ़ने का भी खासा शौक था. इसी वजह से वह कविता, कहानियां, लेख आदि भी लिखती थी. एकदम स्पष्ट बात करती थी, चाहे किसी को अच्छी लगे या बुरी. किसी प्रकार का दंभ नहीं, लेकिन घरपरिवार वालों को वह अभिमानी लगती थी. जबकि उस का स्वभाव नारियल की तरह था. ऊपर से एकदम सख्त, अंदर से मीठी मलाई जैसा.

उस की मित्र मंडली में लड़कियों की अपेक्षा लड़के अधिक थे. इस की वजह यह थी कि लिपस्टिक या नेल पौलिश के बारे में बेकार की चर्चा करने के बजाय वह वहां उठनाबैठना चाहती थी, जहां चार नई बातें सुननेसमझने को मिलें. वह ऐसी ही मित्र मंडली पसंद करती थीं. उस के मित्र भी दिलवाले थे, जो बड़े भाई की तरह हमेशा उस के साथ खड़े रहते थे.

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सब से खास मित्र थी दक्षा की मम्मी, दक्षा उन से अपनी हर बात शेयर करती थी. कोई उस से प्यार का इजहार करता तो यह भी उस की मम्मी को पता होता था. मम्मी से उस की इस हद तक आत्मीयता थी. रूप भी उसे कम नहीं मिला था. न जाने कितने लड़के सालों तक उस की हां की राह देखते रहे.

पर उस ने निश्चय कर लिया था कि कुछ भी हो, वह प्रेम विवाह नहीं करेगी. इसीलिए उस की मम्मी ने बुआ के कहने पर मेट्रोमोनियल साइट पर उस की प्रोफाइल डाल दी थी. जबकि अभी वह शादी के लिए तैयार नहीं थी. उस के डर के पीछे कई कारण थे.

सुदेश और दक्षा के घर वाले चाहते थे कि पहले दोनों मिल कर एकदूसरे को देख लें. बातें कर लें और कैसे रहना है, तय कर लें. क्योंकि जीवन तो उन्हें ही साथ जीना है. उस के बाद घर वाले बैठ कर शादी तय कर लेंगे.

घर वालों की सहमति से दोनों को एकदूसरे के मोबाइल नंबर दे दिए गए. उसी बीच सुदेश को तेज बुखार आ गया, इसलिए वह घर में ही लेटा था. शाम को खाने के बाद उस ने दक्षा को मैसेज किया. फोन पर सीधे बात करने के बजाय उस ने पहले मैसेज करना उचित समझा था.

काफी देर तक राह देखने के बाद दक्षा का कोई जवाब नहीं आया. सुदेश ने दवा ले रखी थी, इसलिए उसे जब थोड़ा आराम मिला तो वह सो गया. रात करीब साढ़े 10 बजे शरीर में दर्द के कारण उस की आंखें खुलीं तो पानी पी कर उस ने मोबाइल देखा. उस में दक्षा का मैसेज आया हुआ था. मैसेज के अनुसार, उस के यहां मेहमान आए थे, जो अभीअभी गए हैं.

सुदेश ने बात आगे बढ़ाई. औपचारिक पूछताछ करतेकरते दोनों एकदूसरे के शौक पर आ गए. यह हैरानी ही थी कि दोनों के अच्छेबुरे सपने, डर, कल्पनाएं, शौक, सब कुछ काफी हद इस तरह से मेल खा रहे थे, मानो दोनों जुड़वा हों. घंटे, 2 घंटे, 3 घंटे हो गए. किसी भी लड़की से 10 मिनट से ज्यादा बात न करने वाला सुदेश दक्षा से बातें करते हुए ऐसा मग्न हो गया कि उस का ध्यान घड़ी की ओर गया ही नहीं, दूसरी ओर दक्ष ने भी कभी किसी से इतना लगाव महसूस नहीं किया था.

सुदेश और दक्षा की बातों का अंत ही नहीं हो रहा था. दोनों सुबह 7 बजे तक बातें करते रहे. दोनों ने बौलीवुड हौलीवुड फिल्मों, स्पोर्ट्स, पौलिटिकल व्यू, समाज की संरचना, स्पोर्ट्स कार और बाइक, विज्ञान और साहित्य, बच्चों के पालनपोषण, फैमिली वैल्यू सहित लगभग सभी विषयों पर बातें कर डालीं. दोनों ही काफी खुश थे कि उन के जैसा कोई तो दुनिया में है. सुबह हो गई तो दोनों ने फुरसत में बात करने को कह कर एकदूसरे से विदा ली.

Serial Story: धनिया का बदला- भाग 1

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘‘अरे, आओ रे छंगा… गले लग जाओ हमारे… आज कितने बरसों के बाद तुम से मुलाकात हो रही है… कितने दुबले हो गए हो तुम… खातेवाते नहीं हो क्या?’’ बीरू ने अपने भाई से कहा.

‘‘हां भाई बीरू… तुम तो जानते हो… इस खेतीकिसानी का काम करने के बाद कमबख्त चूल्हाचौका तो होने से रहा हम से… दिनभर की मेहनत के बाद जो भी बन पड़ता है बना लेते हैं और खा कर सो जाते हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं छंगा भैया… अब हम आ गए हैं… कामधाम में तुम्हारा हाथ बंटाएंगे और तुम्हारी भाभी तुम को खूब दूधमलाई खिलाएंगी… और ये तुम्हारी 2 भतीजियां हैं, इन के साथ खूब खुश रहोगे तुम भी और हम भी.

‘‘हम दोनों भाई मिल कर काम करेंगे, तो हमारी खेती सोना उगलेगी सोना,’’ कह कर एक बार फिर से बीरू ने छंगा को गले लगा लिया.

बीरू और छंगा दोनों जुड़वां भाई थे. उन के मांबाप की मौत पहले ही हो  चुकी थी.

बचपन से ही बीरू को शहर जाने का शौक था, इसलिए वह गांव की ही एक लड़की से शादी करने के बाद अपनी बीवी को ले कर शहर निकल गया था और खेतीबारी का काम अकेले छंगा के सिर पर आ गया था.

अभी तक छंगा ही इस पूरी खेतीबारी का मालिक था. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बीरू किसी दिन शहर को छोड़ कर गांव में भी रहने के लिए आ सकता?है, इसलिए उस ने बातोंबातों में ही बीरू से पूछा, ‘‘तो भैया… क्या शहर वाला मकान, जो किराए पर लिए थे, वह छोड़ दिए हैं आप?’’

‘‘अरे, हां रे… वह सब हम छोड़  के आए हैं… किराए का मकान, नौकरी, सबकुछ… अरे, जब गांव में ही अपनी इतनी सारी जमीन पड़ी हुई?है, तब किसी दूसरे की हांहुजूरी क्या करनी?’’ बीरू ने साफसाफ कह दिया था.

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अभी तक तो छंगा ही इस सारी खेती का मालिक बना बैठा था, पर अब अचानक से बीरू का वापस गांव में आ कर बसने की बात करना उसे बिलकुल सुहा नहीं रहा था.

बीरू की पत्नी का नाम धनिया था. सांवला रंग, तीखे नैननक्श, सांचे में ढला हुआ शरीर. उसे देखने से लगता ही नहीं था कि वह 2 बच्चों की मां है.

धनिया भी गांव में ही पलीबढ़ी थी, पर जब उसे बीरू अपने साथ ब्याह कर शहर ले गया, तो उस ने साड़ी पहनना सीख लिया था.

गांव की लड़की पर जब शहरीपन का रंग चढ़ गया, तो एक अलग किस्म की नजाकत आ गई थी धनिया में. अब जब वह साड़ी बांध कर उस पर खुली पीठ वाला तंग ब्लाउज पहन कर निकलती तो गांव के कुंआरे लड़के तो होश खो ही बैठते, बल्कि शादीशुदा और बूढ़े भी ललचाई नजरों से उसे घूरते रहते थे.

एक दिन की बात है. शाम के समय बीरू और धनिया खेत की तरफ टहलने के लिए निकले थे कि तभी किसी ने धनिया पर छींटाकशी की, ‘‘अरे, तू शहर की है गोरी या गांव की है छोरी. एक बार कलेजे से हमारे लग जा, तो मैं आज मना लूं होली…’’

‘‘तुम लोगों को शर्म नहीं आती इस तरह से एक औरत को छेड़ते हुए,’’ धनिया ने पलट कर देखा, तो 3-4 मनचलों का एक ग्रुप बैठा हुआ था.

बीरू को मामले को भांपने में देर नहीं लगी. उस की त्योरियां चढ़ गईं और मुट्ठियां भिंच गईं. वह आगे बढ़ा और उस ग्रुप में सब से आगे खड़े आदमी का कौलर पकड़ लिया और आननफानन में 1-2 घूंसे रसीद कर दिए.

इस से पहले कि लड़ाई आगे बढ़ती, वहां पर छंगा आ गया और हाथ जोड़ कर उन मनचलों के सरदार से माफी मांगने लगा.

‘‘पर छंगा, तुम इस से माफी क्यों मांग रहे हो? इस ने तो तुम्हारी भाभी को छेड़ा है…’’ बीरू बिफर रहा था.

‘‘अरे नहीं भैया, आप को कोई गलतफहमी हुई होगी… ये तो यहां के बहुत भले लोग हैं. और वैसे भी ये यहां के होने वाले मुखिया हैं. इन से कोई झगड़ा मोल नहीं लेता है,’’ अभी छंगा बीरू को समझा ही रहा था कि मनचलों का सरदार, जिस का नाम कालिया था, गरज उठा, ‘‘छंगा, यह तुम्हारा भाई नहीं होता, तो आज यह अपनी टांगों पर चल कर अपने घर नहीं जा पाता.’’

‘‘कोई बात नहीं भैया… ये अभी नएनए आए हैं… आप के बारे में पता नहीं था… आगे से ऐसा नहीं होगा,’’ छंगा ने बात को ज्यादा तूल नहीं दिया.

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अगले दिन छंगा बीरू को अपने खेत दिखाने ले गया. बीरू की खुशी का ठिकाना नहीं था, ‘‘अब तो दोनों भाई जम कर मेहनत करेंगे और इस जमीन से सोना उपजाएंगे,’’ कह कर बीरू ने खेत की मिट्टी उठा कर छंगा के माथे पर तिलक कर दिया और अपने माथे पर भी मिट्टी रगड़ ली थी.

‘‘ठीक है भैया, आप खेत में काम करो… हम जरा मुखियाजी के घर से खाद की बोरी उठा कर ले आते हैं,’’ कह कर छंगा वहां से चला गया.

बीरू तनमन से मेहनत करने में लग गया था और कोई फिल्मी गाने की धुन भी गुनगुना रहा था…

‘धांय’ की आवाज के साथ एक गोली ठीक बीरू के सीने में आ लगी थी और वह वहीं खेत में गिर गया.

गांव में लोग पीठ पीछे बहुतकुछ बातें कर रहे थे और सभी लोग मन ही मन हत्यारे को भी पहचान रहे थे, पर सामने किसी की भी कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी कि बीरू को गोली किस ने मारी है.

छंगा ने पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज कराई. पुलिस ने छानबीन भी की, पर सुबूतों की कमी में पुलिस को मायूस ही लौटना पड़ा.

इस पूरी दुनिया में अब धनिया बेसहारा हो गई थी. वह सफेद साड़ी में बिना किसी साजसिंगार के सूनीसूनी फिरती थी.

‘‘भाभी… हम से आप का यह रूप नहीं देखा जाता… हम आप को ऐसे नहीं रहने देंगे,’’ छंगा की आवाज में दर्द था.

‘‘क्या करेंगे… जब हमारी किस्मत में ही विधवा का रूप लिखा है तो… ऊपर वाले की मरजी के आगे भला किस की चली है…’’

‘‘यह किस्मतविस्मत हम नहीं जानते… पर, सोचो भाभी… अभी तुम्हारे सामने पहाड़ सी जिंदगी है… 2 छोटी बेटियां हैं… और फिर गांव के मनचलों से बचने के लिए भी तो किसी के नाम का सहारा तो चाहिए न,’’ छंगा बोले जा रहा था.

धनिया की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. उस की चुप्पी को छंगा ने हां समझा और पंचायत बुला कर धनिया  से शादी कर के उसे सहारा देने की  बात कही.

‘‘अगर इस मामले में धनिया को कोई एतराज नहीं है, तो हम पंचों को भला क्या एतराज होगा,’’ सरपंच ने कहा.

धनिया भी वहां मौजूद थी. गांव के मनचलों से बचने के लिए अगर उसे किसी के नाम का सहारा मिल रहा है, तो भला इस में बुराई ही क्या है, ऐसा सोच कर धनिया ने अपनी रजामंदी दे दी.

‘‘भाभी, तुम बच्चों को ले कर आराम से यहां सो जाओ, मैं बगल वाली कोठरी में जा कर सो जाता हूं,’’ छंगा  ने कहा.

धनिया अपनी बेटियों को सीने से लगा कर सोती और छंगा दूसरी कोठरी में सोता रहा.

दोनों की शादी को 2 महीने बीत गए थे, पर छंगा ने अपने बरताव से कोई ऐसा काम नहीं किया था, जिस से धनिया को कोई एतराज होता. बात करते समय भी धनिया के चेहरे की तरफ न देख कर बिना नजरें मिलाए ही बात करता था छंगा और जिस्मानी संबंध बनाने की बात भी उस के मन में नहीं आई थी.

छंगा धनिया की बेटियों को खूब प्यार देता था. जब भी वह शहर जाता तो उन के लिए मिठाई जरूर ले आता था और अपने पास बिठा कर बारीबारी से खिलाता था.

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छंगा का अपनी बेटियों के प्रति ऐसा प्यार देख कर धनिया के मन को भी संतोष मिलने लगा था.

कुछ दिनों के बाद अचानक ही धनिया को बुखार आ गया. बुखार बहुत तेज था. छंगा तुरंत ही धनिया को शहर के डाक्टर से दवा दिलवा कर लाया.

दवा खा कर धनिया को कुछ राहत तो मिली, पर उस का शरीर अकसर ढीला रहता और नींद उसे घेरे रहती. शायद बुखार के चलते बदन में कमजोरी आ गई होगी, ऐसा सोच कर वह निश्चिंत थी.

ये लम्हा कहां था मेरा- भाग 2

शाम को घर पहुंची तो मीनाक्षी ने बताया कि सुदीप निकिता की हां सुनने के बाद आगे की बात करने अभिनव के घर चले गए हैं. वहां अभिनव के दादाजी की तबीयत अचानक बिगड़ गई. 2-3 दिन से चल रहा बुखार इतना तेज हो गया कि वे बेहोशी की हालत में पहुंच गए. इस कारण उन्हें हौस्पिटल में भरती करना पड़ा. सुदीप भी अभिनव के पिता के साथ हौस्पिटल में ही थे.

2 दिन बाद दादाजी को हौस्पिटल से छुट्टी मिल गई. वे धीरेधीरे स्वस्थ हो रहे थे. इस बीच एक दिन अभिनव के मम्मीपापा निकिता के घर मिठाई का डब्बा ले कर आ गए. उन्होंने बताया कि दादाजी ने अभिनव का विवाह शीघ्र ही कर देने की इच्छा व्यक्त की है. मीनाक्षी और सुदीप तो स्वयं ही चाह रहे थे कि वह विवाह जल्द से जल्द हो जाए. फिर निकिता की हां कहीं न में न बदल जाए, इस का भी उन्हें भय सता रहा था.

डाक्टर से दादाजी की तबीयत के विषय में बात कर 2 महीने बाद ही विवाह

की तिथि तय कर दी गई. इस बीच एकदूसरे से खास बातचीत का अवसर नहीं मिला अभिनव व निकिता को. दोनों वीजा औफिस में मिले, किंतु वहां औपचारिकताएं पूरी करतेकरते ही समय बीत गया. अभिनव का विवाह के बाद एक  प्रोजैक्ट के सिलसिले में फ्रांस जाने का कार्यक्रम था. दोनों परिवारों के कहने पर इसे हनीमून ट्रिप का रूप दे दिया गया. निकिता भी साथ जा रही थी. उस ने भी अपनी प्रकाशन संस्था द्वारा पर्यटन पर प्रकाशित होने वाली एक पुस्तक के लिए फ्रांस पर लिखने में रूचि दिखाते हुए वह काम ले लिया. यों निकिता का मन भी नहीं था विवाह से पहले अभिनव से मिलनेजुलने का. क्या बात करती वह उस से? मातापिता की खुशियों का खयाल न होता उसे तो क्या वह शादी का फैसला लेती? शायद कभी नहीं.

समय पंख लगा कर उड़ा और निकिता व अभिनव पतिपत्नी के रिश्ते में बंध गए. बिदा हो कर निकिता ससुराल पहुंची तो रस्मोरिवाज पूरे होतेहोते रात हो गई. डिनर के बाद वह अपने कमरे में विचारमग्न बैठी थी कि अभिनव आ गया. उस ने बताया कि दादाजी को सांस लेने में कठिनाई हो रही है, इसलिए वह उन के पास ही बैठा है. निकिता को उस ने सो जाने की सलाह दे दी, क्योंकि अगले दिन उन्हें पैरिस की फ्लाइट लेनी थी.

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अभिनव के कमरे से जाते ही निकिता कपड़े बदल कर लेट गई. मातापिता की खुशियों के लिए जिंदगी से समझौता करने वाली निकिता यह नहीं जानती थी कि अभिनव भी एक मानसिक संघर्ष से जूझ रहा है. सच तो यह था कि वह भी अभी विवाह नहीं करना चाह रहा था. किसी लड़की के लिए मन में कोई भावना ही नहीं महसूस हो रही थी उसे कुछ दिनों से. अपनी पिछली नौकरी के दौरान हुआ एक अनुभव उस के मनमस्तिष्क को जकड़े बैठा था…

उस औफिस में सोनाली नाम की एक लड़की अभिनव के करीब आने की कोशिश करती रहती थी. काम में वह अच्छी नहीं थी, टीम लीडर अभिनव ही था, इसलिए उसे वश में कर प्रमोशन पाना चाहती थी. अभिनव उस की ओछी हरकतों को नापसंद करता था और उस से दूरी बनाए रखता था. इस बात से वह इतनी नाराज हुई कि एक दिन उस के कैबिन में काम की बातों पर चर्चा करते हुए अचानक ही शोर मचा दिया कि वह उस के साथ जबरदस्ती कर रहा था.

अभिनव के खिलाफ शिकायत भरा लंबाचौड़ा पत्र भी लिख कर दे दिया उस ने. उस में कहा गया कि अभिनव ने जानबूझ कर उस की रिपोर्ट खराब की है, क्योंकि वह उस से उस की मरजी के खिलाफ संबंध बनाना चाहता था. वहां के मैनेजमैंट ने अभिनव से इस विषय में सफाई मांगे बिना ही नौकरी छोड़ने का आदेश दे दिया.

उसी दिन से अभिनव कुंठित सा रहने लगा था. मातापिता द्वारा विवाह की बात शुरू होते ही वह टालमटोल करने लगता था. इस बार भी विवाह के लिए हामी उस ने अपने दादाजी की बीमारी के दबाव में आ कर भरी थी.

दादाजी के पास शादी की पहली रात अभिनव को बैठे देख उस की मम्मी ने वापस कमरे में भेज दिया. वह कमरे में पहुंचा तो निकिता गहरी नींद में थी. विचारों की कशमकश में उलझे हुए अभिनव को कब नींद आ गई, उसे पता ही नहीं लगा.

अगले दिन दोनों पैरिस रवाना हो गए. वहां लगभग 15 दिन बिताने थे उन्हें. अभिनव का काम तो केवल पैरिस तक ही सीमित था, लेकिन निकिता को फ्रांस के कुछ अन्य स्थानों पर भी जाना था.

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पैरिस पहुंच कर अभिनव जहां अपने औफिस की मीटिंग्स

और प्रोजैक्ट बनाने में लग गया, वहीं निकिता भ्रमण करते हुए नईनई जानकारी जुटाने में व्यस्त हो गई. उसे अपने प्रकाशन हाउस की फ्रांस स्थित एक सहयोगी कंपनी द्वारा महिला गाइड भी दी गई मदद के लिए.

2 दिन तक निकिता ने पैरिस में डिज्नीलैंड, नात्रे डैम, लैस इन्वैलिड्स, लुव्र म्यूजियम और ऐफिल टावर जा कर पर्याप्त जानकारी एकत्र कर ली. रात में होटल पहुंच कर जब वह डिनर कर लेती तब जा कर पहुंचता था अभिनव. औफिस में वह अगले दिन की प्रेजैंटेशन तैयार करने के बहाने देर तक रुका रहता था. उस के होटल पहुंचने पर निकिता दिनभर की थकान के कारण उनींदी सी होती थी.

उलटी गंगा- भाग 2: आखिर योगेश किस बात से डर रहा था

मैं तो कहती हूं उस की पत्नी को भी जेल में डाल देना चाहिए, जो एक गुनहगार की अगुआई कर रही है,’’ गुस्से से अपनी आंखें लाल कर नीलिका बोली.

‘‘हो सकता है अमनजी सही कह रहे हों और वह लड़की झूठ…’’

‘‘झूठ…? बीच में ही नीलिमा बोल पड़ी,’’ और वे सच बोल रहे हैं? क्यों, क्या वह लड़की पागल है जो खुद को ही बदनाम करेगी? जरूर कुछ किया ही होगा तभी तो वह बोल रही होगी… इसलिए गुनाह कर के भी मर्द बच निकलते हैं, क्योंकि उन की पत्नियां उन्हें बचाने के लिए दीवार बन कर उन के सामने खड़ी हो जाती हैं. जानती हैं कि पति गुनहगार है फिर भी… सच कहती हूं अगर उस की जगह मेरा पति होता न, तो मैं उसे नहीं छोड़ती. जेल भिजवा कर ही रहती साले को, ‘‘नीलिमा के मुंह से ऐसी बातें सुन कर योगेश के रोंगटे खड़े हो गए.’’

‘‘सोचो, खुद की भी बेटी है, अगर उस के साथ कोई ऐसा करे तो? छि:, अरे, औरत क्या कोई वस्तु है, जो जिस का जब मन चाहे इस्तेमाल कर लो, बिना उस की मरजी के?’’

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आज नीलिमा के तेवर देख योगेश की रूह कांप रही थी. बस मन ही मन यही

प्रार्थना किए जा रहा था कि वह इस सब से बचा रहे किसी तरह.

‘‘अब तुम्हें क्या हुआ?’’ योगेश के चेहरे पर हवाइयां उड़ते देख नीलिमा कहने लगी, ‘‘हां, पता है मुझे, तुम्हें भी सुन कर बुरा लग रहा होगा, है न? अरे किसी भी शरीफ इंसान को सुन कर बुरा लगेगा, मगर देखो, हम उन्हें क्या समझते थे और क्या निकले?’’ किसी का कुछ कहा नहीं जा सकता,’’ भुनभुनाते हुए नीलिमा किचन की तरफ बढ़ गई.

योगेश धम्म से वहीं सोफे पर बैठ गया. सोचने लगा कि आज जिस तरह से संस्कारी अमन अंकल की थूथू हो रही है, कल उस की बारी न हो. फिर कैसे नजरें मिलाएगा वह अपनी बेटियों से? गुमसुम सा वह आ कर कमरे में बैठ गया. नीलिमा ने पूछा, ‘‘कुछ खाओगे?’’

बच्चे और नीलिमा तो सो गए, उस की आंखें अब भी जाग रही थीं. अचानक उस के दिल में एक शूल सा उठता, फिर शांत हो जाता. कभी वह अपने सो रहे बच्चों को निहारता, तो कभी एकटक नीलिमा को देखता. आज नीलिमा उसे उस की पत्नी नहीं, बल्कि चंडिका का रूप लग रही थी, जो छूते ही भस्म कर देगी. इसलिए वह हौल में जा कर सोफे पर सोने की कोशिश करने लगा, लेकिन वहां भी उसे कहां चैन.

घर का 1-1 सामान जैसे उस के मुंह चिढ़ा रहा हो, हंस रहा हो उस पर और कह रहा हो, ‘‘देख रहे हो, कैसी उलटी गंगा बह रही है? नहीं बच पाओगे तुम भी योगेश बाबू. देरसबेर ही सही, पर कर्मों का फल तो सब को मिलता ही है. तुम्हें भी जरूर मिलेगा. उन की बातें सुन वह घबरा कर उठ बैठता और लंबीलंबी सांसें लेने लगता. डर के मारे हालत खराब हो रही थी उस की, पर बताए तो किसे और क्या? सोच कर ही कंपकंपा उठता कि अगर उस के किए गुनाह सब के सामने आ गए, तब क्या होगा? उस की तो बसीबसाई गृहस्थी ही उजड़ जाएगी.’’

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‘नहींनहीं, ऐसा कुछ नहीं होगा. क्यों मैं बेकार की बातें सोच रहा हूं? वह कभी अपना मुंह नहीं खोलेगी और अगर खोल दिया तो? तो मैं उसे झूठा साबित कर दूंगा. कह दूंगा वही मुझ पर डोरे डाल रही थी. जब दाल नहीं गली, तो मुझ पर इलजाम लगा रही है. मगर उस ने कोई सुबूत पेश कर दिया या गवाह खड़ा कर दिया तो, तो क्या होगा? कौन गवाह? किस की  इतनी हिम्मत है कि जो मेरे खिलाफ बोले,’ वह खुद से ही सवालजवाब किए जा रहा था और परेशान हुए जा रहा था. मुक्ता के साथ किए 1-1 अत्याचार आज उस की आंखों के सामने चलचित्र की तरह नाचने लगे.

बात 7-8 साल पहले की है. जिस कंपनी में योगेश बौस था. उसी कंपनी में मुक्ता भी काम करती थी, पर छोटे पद पर. चूंकि योगेश मुक्ता का बौस था, इसलिए उस की मजबूरी थी उस की हर बात को मानना. गोरा रंग, लंबे घने बाल, मोटीमोटी झील सी आंखें और उस का छरहरा बदन देख योगेश उसे देखता ही रह जाता. जिस तरह वह उसे नजरें गड़ाए देखा करता. उस से मुक्ता एकदम असहज हो जाती और अपने कपड़े ठीक करने लगती.

जानती थी वह कि उसे ले कर योगेश के विचार कुछ ठीक नहीं हैं, इसलिए वह अपना काम समय के साथ कर लिया करती ताकि योगेश को उसे कुछ कहने का मौका ही न मिले. फिर भी किसी न किसी बहाने वह उसे अपने कैबिन में बुला ही लेता और घंटों बेमतलब के कामों में उलझाए रखता. जब वह कामों में उलझी रहती, योगेश लगातार अपनी नजरें उस पर ही टिकाए रखता.

आप कितने भी अपने काम में व्यस्त क्यों न हों अगर कोई आप को एकटक निहार रहा हो, तो आप की नजरें खुदबखुद उस ओर चली जाती हैं. ऐसा अकसर होता है. जब मुक्ता की नजर योगेश पर पड़ती, तब भी ढीठ की तरह वह उसे उसी प्रकार निहारता रहता. हार कर मुक्ता ही अपनी नजरें नीची कर लेती या वहां से हट जाती.

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मुक्ता को अब योगेश के सामने जाने से भी डर लगने लगा था, क्योंकि जिस तरह से वह उस के सीने पर अपनी नजरें गड़ाए रहता, उस से वह सहम सी जाती. योगेश के डर से ही अब उस ने जींस टीशर्ट और स्लीवलैस कपड़े पहनने छोड़ दिए थे. जानबूझ कर ढीलेढाले कपड़े पहन कर औफिस जाती, ताकि योगेश उसे न देखे, पर उस की गंदी नजरें फिर भी उसे घूरती रहतीं.

कई बार तो वह जानबूझ कर उस से टकरा जाता, फिर भी मुक्ता ही सौरी बोलती. एक बार तो उस ने उस के सीने पर हाथ ही रख दिया और फिर सौरीसौरी कहने लगा, लेकिन योगेश ने ऐसा जानबूझ कर किया, यह बात मुक्ता जानती थी. ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. जब भी मौका मिलता, वह मुक्ता को यहांवहां छू देता और बेचारी कुछ न बोल कर आगे बढ़ जाती.

रोना आता उसे अपनी हालत पर. सोचती क्या लड़की होना इतना बड़ा पाप है? शुरू से ही मुक्ता पर उस की गंदी नजर थी. जानता था वह कि यह नौकरी उस के लिए कितना माने रखती है, क्योंकि उस के घर में कमाने वाला उस के सिवा और कोई नहीं था. पिता की असमय मौत ने घरपरिवार की सारी जिम्मेदारी उस के कंधों पर डाल दी थी. इसी कारण वक्तबेवक्त योगेश उस का फायदा उठाता रहता था.

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उस दिन जानबूझ कर योगेश ने मुक्ता को देर रात तक औफिस में रोक लिया और कहा कि वह उसे घर छोड़ देगा. औफिस के चपरासी को भी उस ने छुट्टी दे दी. लेकिन मुक्ता जल्दीजल्दी अपना काम निबटा कर वहां से जाने ही लगी कि पीछे से आ कर योगेश ने उसे अपनी बांहों में दबोच लिया और उसे यहांवहां छूने लगा.

‘‘सर, यह क्या कर रहे हैं आप? छोडि़ए मुझे,’’ कह कर मुक्ता ताकत लगा कर उस की पकड़ से निकली ही कि फिर से उस ने उसे दबोचना चाहा, यह बोल कर कि इसी मौके की तो उसे कब से तलाश थी. मगर ऐन वक्त पर वही चपरासी वहां पहुंच गया और मुक्ता बच गई. वरना तो आज योगेश उसे नहीं छोड़ता. शायद वह चपरासी भी योगेश के गंदे इरादे भांप गया था, इसलिए अपना खाने का डब्बा छूट जाने का बहाना कर वापस आ गया और मुक्ता बरबाद होने से बच गई.

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