Social Story: महत्वाकांक्षा – जब मीता ने आया को सौंपी बेटी की परवरिश

Social Story, लेखक- कुंवर प्रेमिल

आजमीता का औफिस में कतई मन नहीं लग रहा था. सिर भारी हो गया था, आंखें सूजी हुई थीं. रात में वह सो जो नहीं पाई थी. पति से काफी नोकझोंक हुई थी. उस की पूरी रात टैंशन में गुजरी थी.

‘‘तुम औफिस से छुट्टी क्यों नहीं ले लेतीं.’’

‘‘आप क्यों नहीं ले लेते? पिछली दफा मैं ने लंबी छुट्टी नहीं ली थी क्या?’’ पति के कहने पर मीता फट पड़ी.

‘‘उस के पहले मैं ने भी तो लंबी छुट्टी ली थी.’’

उस के बाद दोनों के बीच खूब झगड़ा हुआ और फिर दोनों बिना कुछ खाएपीए सो गए.

सुबह उठने पर दोनों के चेहरों पर कई सवालिया निशान थे. बिना एकदूसरे से बोले और कुछ खाएपीए दोनों औफिस चले गए.

‘पूरी जिम्मेदारी औरत के सिर ही क्यों थोप दी जाती है.’ रहरह कर यही सवाल उसे बुरी तरह मथे जा रहा था. हर बार औरत ही समझौता करे? पत्नी की प्रौब्लम से पति को सरोकार क्यों नहीं? क्यों पुरुष इतना खुदगरज, लालची और हठधर्मी बन जाता है?

‘‘अरे, क्या हुआ? यह मुंह क्यों लटका हुआ है?’’ मैडम सारिका ने पूछा.

‘‘क्या बताऊं मैडम, बेटी को ले कर हम दोनों में रोज झगड़ा होता है. वह बीमार है. मुझे दफ्तर की ओर से विदेश यात्रा पर जाना है. ऐसे में मैं कैसे छुट्टी ले सकती हूं. पति मेरी कोई मदद नहीं करते, उलटे गृहिणी बनने की सलाह दे कर मेरा और मूड खराब कर देते हैं.’’

‘‘बेटी को क्या हुआ है?’’

‘‘उस ने हंसनाखेलना छोड़ दिया है. हमेशा उनींदी सी रहती है. रहरह कर दांत किटकिटाती है. हर समय शून्य में निहारती रहती है.’’

‘‘किसी चाइल्ड स्पैशलिस्ट को दिखाओ,’’ मैडम सारिका घबरा कर बोलीं.

‘‘मैं छुट्टी नहीं ले सकती… मेरी टेबल पर बहुत काम पड़ा है.’’

‘‘उस की तुम टैंशन मत लो… मैं सब संभाल लूंगी… तुम बेटी को किसी अच्छे डाक्टर को दिखाओ.’’

मीता को यह जान कर अच्छा लगा कि पति ने भी अगले दिन की छुट्टी ले ली है. अगली सुबह आया की राह देखी, उस के न आने पर पड़ोसिन को घर की चाबी दे कर डाक्टर के पास रवाना हो गए.

डिस्पैंसरी में बहुत भीड़ थी. प्राइवेट डिस्पैंसरी में भी सरकारी अस्पतालों जैसी भीड़ देख कर मीता दंग रह गई. उसे अपना नंबर आना नामुमकिन सा लगने लगा, क्योंकि शनिवार होने के कारण डिस्पैंसरी 1 बजे बंद हो जानी थी.

मीता को आज पता चला कि छुट्टी की कितनी अहमियत है. सरकारी और प्राइवेट औफिसों में कितना अंतर है. प्राइवेट औफिस सैलरी तो अच्छी देते हैं पर खून चूस लेते हैं. जरा भी आजादी नहीं… कितना मन मार कर काम करना पड़ता है… इंसान मशीन बन जाता है. अपनी आजादी पर ग्रहण लग जाता है.

इस बीच पड़ोसिन का फोन आया कि आया अभी तक नहीं आई है. पता नहीं क्या हो गया था उसे जो बिना बताए छुट्टी कर गई.

बड़ी देर बाद मीता का नंबर आया. बच्ची की हालत देख कर एक बार को डाक्टर भी चौंक गया. उस ने बच्ची की बीमारी से संबंधित बहुत सारे प्रश्न पूछे, जिन के मीता आधेअधूरे उत्तर ही दे पाई. जितना आया जानती थी उतना मीता कहां जानती थी… बच्ची का खानापीना, खेलनाखिलाना सब कुछ उसी के जिम्मे जो था. वह दिन भर आया के पास ही तो रहती थी.

बच्ची का मुआयना कर डाक्टर ने कुछ सावधानियां बरतने की सलाह दी और बच्ची को ज्यादा से ज्यादा अपने पास रखने की ताकीद भी की. साथ ही यह भी कहा कि आया पर पूरी नजर रखें. यह सुन मीता घबरा गई.

अब पतिपत्नी दोनों को एहसास हो रहा था कि उन से बच्ची की उपेक्षा हुई है. उन्होंने अपनी बेटी से ज्यादा नौकरी को अहमियत दी. यह उसी का दुष्परिणाम है, जो बच्ची की हालत बद से बदतर हो गई.

‘‘सुनो जी, मैं 1 सप्ताह की छुट्टी ले लेती हूं… सैलरी कटे तो कटे… बच्ची को इस समय मेरी सख्त जरूरत है,’’ मीता कहतेकहते रो पड़ी.

‘‘मैं भी छुट्टी ले लेता हूं मीता. मेरी भी बराबर की जिम्मेदारी है… कहीं का नहीं छोड़ा इस नौकरी ने हमें, महत्त्वाकांक्षी बन कर रह गए थे हम.’’

‘‘बच्ची को कुछ हो गया तो मैं कहीं की नहीं रहूंगी. विदेश जाने की धुन ने मुझे एक तरह से अंधा बना दिया था,’’ मीता अपने पति के कंधे पर सिर रख कर रोने लगी.

बच्ची की आंखें थोड़ी खुलतीं, फिर बंद हो जातीं. वह अपनी अधखुली आंखों से शून्य में निहारती. अपनी मां को अर्धबेहोशी में देखते रहने का वह पूरा प्रयत्न करती.

‘‘बेटी आंखें खोल… अपनी ममा से बातें कर… देख तो तेरी ममा कितनी दुखी हो रही है… अब तुझे कभी आया के पास नहीं छोड़ेगी तेरी ममा… जरा तो देख..’’ कहतेकहते मीता का कंठ पूरी तरह अवरुद्ध हो गया.

रोतेबिलखते कब उस की आंख लग गई, उसे पता ही नहीं चला. दरवाजे पर आहट से वह जागी. दरवाजा खोला तो सामने पति हाथ में लिफाफा लिए खड़े थे. पति के हाथों से लगभग उसे छीन कर बच्ची की ब्लड रिपोर्ट पढ़ने लगी.

‘‘ड्रग्स,’’ उस ने प्रश्नवाचक दृष्टि से पति की ओर ताका.

‘‘हां, ड्रग्स. बच्ची को धीमा जहर दिया जा रहा था. जरूर यह आया का काम है. तभी तो वह अब नहीं आ रही है.’’

‘‘बेबी के शरीर ने फंक्शन करना बंद कर दिया है,’’ मीता को डाक्टर का यह कहना याद आ गया और वह चक्कर खा कर बिस्तर पर जा गिरी.

कुछ समय बाद अचानक डाक्टर का फोन आया. बच्ची को ले कर क्लीनिक बुलाया. डाक्टर ने पुलिस को फोन कर आया को गिरफ्तार भी करा दिया था. पुलिस आया को ले कर क्लीनिक आ गई थी. उन के वहां पहुंचने पर आया उन से मुंह छिपाने का प्रयास करने लगी. तब पुलिस ने उन के सामने ही आया से पूछताछ शुरू की.

‘‘क्या आप की आया यही है?’’

‘‘जी, यही है,’’ दोनों ने एकसाथ जवाब दिया.

‘‘बच्ची पूरा दिन आया के पास ही रहती थी क्या?’’

‘‘जी हां, हम दोनों तो अपनेअपने औफिस चले जाते थे.’’

‘‘क्या आप ने इसे नौकरी पर रखते समय पुलिस थाने में जानकारी दी थी?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘यही आप से बहुत बड़ी गलती हुई है…’’ पुलिस इंस्पैक्टर ने दो टूक शब्दों में कहा और फिर आया की ओर मुखातिब हुए, ‘‘पतिपत्नी के औफिस जाने के बाद तुम बच्ची को कहां ले जाती थी?’’

‘‘जी, कहीं नहीं, मैं पूरा समय घर पर ही रहती थी.’’

‘‘झूठ… इन को जानती हो?’’ पुलिस ने पास के पार्क के माली की ओर इशारा कर के पूछा तो आया का चेहरा उतर गया. पार्क में बीमार बच्ची के नाम पर भीख मांगती थी. बच्ची बीमार सी लगे, इसलिए उसे भूखा रखती, ऊपर से धीमे जहर ने बच्ची पर और कहर ढा दिया था. पर समय रहते डाक्टर के रिपोर्ट करने पर पुलिस ने उसे रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया था.

अब आया जेल में थी और बच्ची अस्पताल में जीवनमृत्यु के बीच झूल रही थी. वह अपने मातापिता की महत्त्वाकांक्षा की बलि जो चढ़ गई थी.

Short Story: वे 9 मिनट- आखिर दिव्या अपने पति से क्या चाहती थी?

Short Story: ‘‘निम्मो,शाम के दीए जलाने की तैयारी कर लेना. याद है न, आज 5 अप्रैल है,’’ बूआजी ने मम्मी को याद दिलाते हुए कहा.

‘‘अरे दीदी, तैयारी क्या करना. सिर्फ एक दिया ही तो जलाना है, बालकनी में. और अगर दिया न भी हो तो मोमबत्ती, मोबाइल की फ्लैश लाइट या टौर्च भी जला लेंगे.’’

‘‘अरे, तू चुप कर’’ बूआजी ने पापा को झिड़क दिया. ‘‘मोदीजी ने कोई ऐसे ही थोड़ी न कहा है दीए जलाने को. आज शाम को 5 बजे के बाद से प्रदोष काल प्रारंभ हो रहा है. ऐसे में यदि रात को खूब सारे घी के दीए जलाए जाएं तो महादेव प्रसन्न होते हैं, और फिर घी के दीपक जलाने से आसपास के सारे कीटाणु भी
मर जाते हैं. अगर मैं अपने घर में होती तो अवश्य ही 108 दीपों की माला से घर को रोशन करती और अपनी देशभक्ति दिखलाती,’’ बूआजी ने अनर्गल प्रलाप करते हुए अपना दुख बयान किया.

दिव्या ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि मम्मी ने उसे चुप रहने का इशारा किया और वह बेचारी बुआजी के सवालों का जवाब दिए बिना ही कसमसा कर रह गई. ‘‘अरे जीजी, क्या यह घर आप का नहीं? आप जितने चाहे उतने दिए जला लेना. मैं अभी सारा सामान ढूंढ कर ले आती हूं,’’ मम्मी की
इसी कमजोरी का फायदा तो वह बरसों से उठाती आई हैं.

बूआजी पापा की बड़ी बहन हैं तथा विधवा है. उन के 2 बेटे हैं जो अलगअलग शहरों में अपने गृहस्थी बसाए हुए हैं. बूआजी भी पैंडुलम की भांति बारीबारी से दोनों के घर जाती रहती हैं. मगर उन के स्वभाव को सहन कर पाना सिर्फ मम्मी के बस की बात है, इसलिए वह साल के 6 महीने यहीं पर ही रहती हैं. वैसे तो किसी को कोई विशेष परेशानी नहीं होती क्योंकि मम्मी सब संभाल लेती हैं परंतु उन की पुरातनपंथी विचारधारा के कारण मुझे बड़ी कोफ्त होती है.

इधर कुछ दिनों से तो मुझे मम्मी पर भी बेहद गुस्सा आ रहा है. अभी सिर्फ 15-20 दिन ही हुए थे हमारी शादी को, मगर बूआजी की उपस्थिति और नोएडा के इस छोटे से फ्लैट की भौगोलिक स्थिति में मैं और दिव्या जी भर के मिल भी नहीं पा रहे थे.

कोरोना वायरस के आतंक के कारण जैसेतैसे शादी संपन्न हुई. हनीमून के सारे टिकट कैंसिल करवाने पड़े, क्योंकि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विमान सेवा बंद हो चुकी थी. बूआजी को तो गाजियाबाद में ही जाना था मगर उन्होंने कोरोना माता के भय से पहले ही खुद को घर में बंद कर लिया. 22 मार्च के जनता कर्फ्यू के बाद स्थिति और भी चिंताजनक हो गई और 25 मार्च को प्रधानमंत्री द्वारा लौकडाउन का आह्वान किए जाने पर हम सब कोरोना जैसी महामारी को हराने के लिए अपनेअपने घरों में कैद हो गए और साथ ही कैद हो गई मेरी तथा दिव्या की वे सारी कोमल भावनाएं जो शादी के पहले हम दोनों ने एकदूसरे की आंखों में देखी थीं.

2 कमरों के इस छोटे से फ्लैट में एक कमरे में बूआजी और उन के अनगिनत भगवानों ने एकाधिकार कर रखा था. मम्मी को तो वे हमेशा अपने साथ ही रखती हैं, दूसरा कमरा मेरा और दिव्या का है, मगर अब पिताजी और मैं उस कमरे में सोते हैं तथा दिव्या हौल में, क्योंकि पिताजी को दमे की बीमारी है इसलिए वह अकेले नहीं सो सकते. बूआजी की उपस्थिति में मम्मी कभी भी पापा के साथ नहीं सोतीं वरना बूआजी की तीखी निगाहें उन्हें जला कर भस्म कर देंगी. शायद यही सब देख कर दिव्या भी मुझ से दूरदूर ही रहती है क्योंकि बूआजी की तीखी निगाहें हर वक्त उस को तलाशती रहती हैं.

‘‘बेटे, हो सके तो बाजार से मोमबतियां ले आना,’’ मम्मी की आवाज सुन कर मैं अपने विचारों से बाहर निकला. ‘‘क्या मम्मी, तुम भी कहां इन सब बातों में उलझ रही हो? दीए जला कर ही काम चला लो न. बारबार बाहर निकलना सही नहीं है.

अभी जनता कर्फ्यू के दिन तालीथाली बजा कर मन नहीं भरा क्या जो यह दीए और मोमबत्ती का एक नया शिगूफा छोड़ दिया,’’ मैं ने धीरे से बुदबुदाते हुए मम्मी को झिड़का, मगर इस के साथ ही बाजार जाने के लिए मास्क और ग्लब्स पहनने लगा. क्योंकि मुझे पता था कि मम्मी मानने वाली नहीं है.

किसी तरह कोरोना वारियर्स के डंडों से बचतेबचाते मोमबत्तियां तथा दीए ले आया. इन सारी चीजों को जलाने के लिए तो अभी 9 बजे रात्रि का इंतजार करना था, मगर मेरे दिमाग की बत्ती तो अभी से ही जलने लगी थी. और साथी ही इस दहकते दिल में एक सुलगता सा आईडिया भी आया था. मैं ने झट से मोबाइल निकाला और व्हाट्सऐप पर दिव्या को अपनी प्लानिंग समझाई, क्योंकि आजकल हम दोनों के बीच व्हाट्सऐप पर ही बातें होती थी.

बूआजी के सामने तो हम दोनों नजरें मिलाने की भी नहीं सोच सकते. ‘‘ऐसा कुछ नहीं होने वाला, क्योंकि बूआजी हमेशा बहू की रट लगाए रहती हैं,’’ दिव्या ने रिप्लाई किया.

‘‘मैं जैसा कहता हूं वैसा ही करना डार्लिंग, बाकी सब मैं संभाल लूंगा. हां तुम कुछ गड़बड़ मत करना. अगर तुम मेरा साथ दो तो वे 9 मिनट हम दोनों के लिए यादगार बन जाएंगे.’’

‘‘ओके… मैं देखती हूं,’’ दिव्या के इस जवाब से मेरे चेहरे पर चमक आ गई. और मैं शाम के 9 मिनट की अपनी उस प्लानिंग के बारे में सोचने लगा. रात को जैसे ही 8:45 हुआ कि मम्मी ने मुझ से कहा कि घर की सारी बत्तियां बंद कर दो और सब लोग बालकनी में चलो. तब मैं ने साफसाफ कह दिया. ‘‘मम्मी यह सब कुछ आप ही लोग कर लो. मुझे औफिस का बहुत सारा काम है, मैं नहीं आ सकता.

‘‘इन को रहने दीजिए मम्मीजी, चलिए मैं चलती हूं,’’ दिव्या हमारी पूर्व नियोजित योजना के अनुसार मम्मी का हाथ पकड़ कर कमरे से बाहर ले गई. दिव्या ने मम्मी और बूआजी के साथ मिल कर 21 दिए जलाने की तैयारी कर ली. बूआजी का ऐसा मानना था कि कि 21 दिनों के लौकडाउन के लिए 21 दीए उपयुक्त हैं.

‘‘मम्मीजी मैं ने सभी दीयों में तेल डाल दिया है. मोमबत्ती और माचिस भी यहीं रख दिया है. आप लोग जलाइए, तब तक मैं घर की सारी बत्तियां बुझा कर आती हूं.’’ दिव्या ने योजना के दूसरे चरण में प्रवेश किया.

वह सारे कमरे की बत्तियां बुझाने लगी. इसी बीच मैं ने दिव्या की कमर में हाथ डाल कर उसे कमरे के अंदर खींच लिया और दिव्या ने भी अपने बांहों की वरमाला मेरे गले में डाल दी.

‘‘अरे वाह, तुम ने तो हमारी योजना को बिलकुल कामयाब बना दिया.’’ मैं ने दिव्या के कानों में फुसफुसा कर कहा.

‘‘कैसे न करती, मैं भी तो कब से तड़प रही थी तुम्हारे प्यार और सानिध्य को’’ दिव्या की इस मादक आवाज ने मेरे दिल के तारों में झंकार पैदा कर दी.

‘‘सिर्फ 9 मिनट हैं हमारे पास…’’ दिव्या कुछ और बोलती इस से पहले मैं ने उस के होठों को अपने होंठों से बंद कर दिया. मोहब्बत की जो चिंगारी अब तक हम दोनों के दिलों में धधक रही थी.

आज उस ने अंगारों का रूप ले लिया था और फिर धौंकनी सी चलती हमारी सांसों के बीच 9 मिनट कब 15 मिनट में बदल गए पता ही नहीं चला.

जोरजोर से दरवाजा पीटने की आवाज सुन कर हम होश में आए.‘‘अरे बेटा, सो गया क्या तू? जरा बाहर तो निकल… आ कर देख दीवाली जैसा माहौल है,’’ मां की आवाज सुन कर मैं ने खुद को समेटते हुए दरवाजा खोला. तब तक दिव्या बाथरूम में
चली गई.

‘‘द… दिव्या तो यहां नहीं आई. वह तो आप के साथ ही गई थी,’’ मैं ने हकलाते हुए कहा और मां का हाथ पकड़ कर बाहर आ गया.

बाहर सचमुच दीवाली जैसा माहौल था. मानों बिन मौसम बरसात हो रही हो. तभी दिव्या भी खुद को संयत करते हुए बालकनी में आ खड़ी हुई.

‘‘तुम कहां चली गई थी दिव्या? देखो मैं और मम्मी तुम्हें कब से ढूंढ रहे हैं,’’ मैं ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा.

‘‘मैं छत पर चली गई थी. दीयों की रोशनी देखने,’’ दिव्या ने मुझे घूरते हुए कहा. और मैं ने एक शरारती मुसकान के साथ अंधेरे का फायदा उठा कर और बूआजी से नजरें बचा कर एक फ्लाइंग किस उस की तरफ उछाल दिया.

Social Story: प्यार उसका न हो सका

Social Story, लेखक- किशन लाल शर्मा

‘‘कौन है?’’ दरवाजे पर कई बार दस्तक देने के बाद अंदर से आवाज आई पर अब भी दरवाजा नहीं खिड़की खुली थी.

‘‘मैं, नेहा. दरवाजा खोल,’’ नेहा बोली, ‘‘कब से दरवाजा खटखटा रही हूं.’’

‘‘सौरी,’’ प्रिया नींद से जाग कर उबासी लेते हुए बोली, ‘‘तू और कहीं कमरा तलाश ले.’’

‘‘कमरा तलाश लूं,’’ नेहा ने हैरानी से प्रिया की ओर देखा व बोली, ‘‘कमरा तो तुझे तलाशना है?’’

‘‘अब मुझे नहीं, कमरा तुझे तलाशना है,’’ प्रिया बोली.

‘‘क्यों?’’ नेहा ने पूछा.

‘‘मैं ने और कर्ण ने शादी कर ली है.’’

‘‘क्या?’’ नेहा ने आश्चर्य से प्रिया को देखा. उस के माथे की बिंदी और मांग में भरा सिंदूर इस बात के गवाह थे.

‘‘पतिपत्नी के बीच तेरा क्या काम?’’ और इतना कहने के साथ ही प्रिया ने खिड़की बंद कर ली.

नेहा खड़ीखड़ी कभी खिड़की को तो कभी दरवाजे को ताकती रह गई. प्रिया औैर कर्ण के बारे में सोचतेसोचते उस के अतीत के पन्ने खुलने लगे.

नेहा और कर्ण कानपुर में इंजीनियरिंग कालेज में साथसाथ पढ़ते थे. अंतिम वर्ष की परीक्षाएं चल रही थीं, तभी कालेज कैंपस में प्लेसमैंट के लिए कई कंपनियां आईं. मुंबई की एक कंपनी में नेहा और कर्ण का सलैक्शन हो गया. परीक्षा समाप्त होने के बाद दोनों मुंबई चले गए.

मुंबई में नेहा और कर्ण ने मिल कर एक फ्लैट किराए पर ले लिया और दोनों लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगे. साथ रहतेरहते दोनों एकदूसरे के करीब आ गए.

एक रात जब कर्ण ने नेहा का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा तो वह चौंकते हुए बोली, ‘कर्ण, क्या कर रहे हो?’

‘प्यार… लव…’

‘नहीं,’ नेहा बोली, ‘अभी हमारी शादी नहीं हुई है.’

‘क्या प्यार करने के लिए शादी करना जरूरी है?’

‘हां, हमारे यहां शादी के बाद ही पतिपत्नी को शारीरिक संबंध बनाने की इजाजत है.’

‘कैसी दकियानूसी बातें करती हो, नेहा. जब शादी के बाद हम सैक्स कर सकते हैं तो पहले क्यों नहीं,’ कर्ण बोला, ‘अगर तुम शादी को जरूरी समझती हो तो वह भी कर लेंगे.’

नेहा शिक्षित और खुले विचारों की थी, लेकिन सैक्स के मामले में उस का मानना था कि शादी के बाद ही शारीरिक संबंध बनाने चाहिए. लेकिन कर्ण ने अपने प्यार का विश्वास दिला कर शादी से पहले ही नेहा को समर्पण के लिए मजबूर कर दिया.सैक्स का स्वाद चखने के बाद नेहा को भी उस का चसका लग गया. रोज रात को समर्पण करने से तो वह इनकार नहीं करती थी, लेकिन सावधानी जरूर बरतने लगी थी.

शुरू में तो नेहा ने कर्ण से शादी के लिए कहा, लेकिन दिन गुजरने के साथ वह भी सोचने लगी थी कि औरतआदमी दोनों अगर साथ जीवन गुजारने को तैयार हों तो जरूरी नहीं कि समाज को दिखाने के लिए शादी के बंधन में बंधें. बिना शादी के भी वे पतिपत्नी बन कर रह सकते हैं.

नेहा को कर्ण के प्यार पर पूरा विश्वास था इसीलिए उस ने शादी का जिक्र तक करना छोड़ दिया था और उसे शादी का खयाल आता भी नहीं अगर उन के बीच प्रिया न आती.

प्रिया पिछले दिनों ही उन की कंपनी में नई नई आई थी. वह दिल्ली की रहने वाली थी. मुंबई में उस का कोई परिचित नहीं था. जब तक प्रिया को कहीं कमरा नहीं मिल जाता तब तक के लिए कर्ण और नेहा ने उसे अपने साथ फ्लैट में रहने की इजाजत दे दी.

प्रिया नेहा से ज्यादा सुंदर और तेजतर्रार थी. कर्ण प्रिया की सुंदरता और उस की मनमोहक बातों से इतना प्रभावित हुआ कि वह उस में कुछ ज्यादा ही रुचि लेने लगा.

जिस कर्ण को नेहा सब से ज्यादा सुंदर नजर आती थी, वही कर्ण अब प्रिया के पीछे घर में ही नहीं औफिस में भी लट्टू था.

नेहा ने कई बार कर्र्ण को रोका, लेकिन कर्ण ने उस की बातों पर ध्यान नहीं दिया. नेहा समझ गई कि अगर जल्दी कर्ण को शादी के बंधन में नहीं बांधा गया तो वह हाथ से निकल जाएगा.

नेहा शादी के बारे में अपनी मां से बात करने एक सप्ताह की छुट्टी ले कर कानपुर चली गई. उस ने मां से कुछ नहीं छिपाया. मां ने उसे डांटते हुए कहा, ‘देर मत कर, उस से शादी कर ले.’

लेकिन नेहा आ कर कर्ण से शादी करती उस से पहले ही प्रिया ने उसे अपना बना लिया था.

कर्ण पर विश्वास कर के नेहा शादी से पहले अपना सबकुछ कर्ण को समर्पित कर चुकी थी और समर्पण कर के वह बुरी तरह ठगी जा चुकी थी. अपना सबकुछ लुटा कर भी नेहा कर्ण को अपना नहीं बना पाई.

Social Story: दीया और सुमि

Social Story: “अरे दीया, चलो मुसकरा भी दो अब. इस दुनिया की सारी समस्याएं केवल तुम्हारी तो नहीं हैं,” सुमि ने कहा तो यह लाजवाब बात सुन कर दीया हंस दी और उस ने सुमि के गाल पर एक मीठी सी चपत भी लगा दी.

“अरे सुनो, हां, तो यह चाय कह रही है कि गरमगरम सुड़क लो ठंडी हो जाऊंगी तो चाय नहीं रहूंगी,” सुमि ने कहा.

“अच्छा, मेरी मां,” कह कर दीया ने कप हाथों में थामा और होंठों तक ले आई. सुमि के हाथ की गरम चाय घूंटघूंट पी कर मन सचमुच बागबाग हो गया उस का.

“चलो, अब मैं जरा हमारे दिसु बाबा को बाहर सैर करा लाती हूं. तुम अपना मन हलका करो और यह संगीत सुनो,” कह कर सुमि ने 80 के दशक के गीत लगा दिए और बेबी को ले कर बाहर निकल गई.

दीया ने दिसु के बाहर जाने से पहले उसे खूब प्यार किया…’10 महीने का दिसु कितना प्यारा है. इस को देख कर लगता है कि यह जीवन, यह संसार कितना सुंदर है,’ दीया ने मन ही मन सोचा और खयालों में डूबती चली गई.

यादों के सागर में दीया को याद आया 2 साल पहले वाला वह समय, जब मेकअप रूम में वह सुमि से टकरा गई थी. दीया तैयार हो रही थी और सुमि क्लब के मैनेजर से बहस करतेकरते मेकअप रूम तक आ गई थी. वह मैनेजर दीया को भी कुछ डांस शो देता था, पर दीया तो उस से भयंकर नफरत करती थी. दीया का मन होता कि उस के मुंह पर थूक दे, क्योंकि उस ने दीया को नशीली चीजें पिला कर जाने कितना बरबाद कर डाला था. आज वह मैनेजर सुमि को गालियां दे रहा था.

आखिरकार सुमि को हां करनी पड़ी, “हांहां, इसी बदन दिखाती ड्रैस को पहन कर नाच लूंगी.”

यह सुन कर वह धूर्त मैनेजर संतुष्ट हो कर वहां से तुरंत चला गया और जातेजाते बोलता रहा, “जल्दी तैयार हो जाना.”

“क्या तैयार होना है, यह रूमाल ही तो लपेटना है…” कह कर जब सुमि सुबक रही थी, तब दीया ने उसे खूब दिलासा दिया और कहा, “सुनो, मैं आप का नाम तो नहीं जानती, पर यही सच है कि हम को पेट भरना है और
उस कपटी मैनैजर को पैसा कमाना है. जानती हो न इस पूरी धरती की क्या बिसात, वहां स्वर्ग में भी यह दौलत ही सब से बड़ी चीज है.”

इस तरह माहौल हलका हुआ. सुमि ने अपना नाम बताया, तब उन दोनों ने एकदूसरे के मन को पढ़ा. कुछ बातें भी हुईं और उस रात क्लब में नाचने के बाद अगले दिन सुबह 10 बजे मिलने का वादा किया.

आधी रात तक खूबसूरत जवान लड़कियों से कमर मटका कर और जाम पर जाम छलका कर उन के मालिक, मैनेजर या आयोजक सब दोपहर बाद तक बेसुध ही रहने वाले थे. वे दोनों एक पार्क में मिलीं और बैंच पर बैठ गईं. दोनों कुछ पल खामोश रहीं और सुमि ने बात शुरू की थी, फिर तो एकदूसरे के शहर, कसबे, गांव, घरपरिवार और घुटन भरी जिंदगी की कितनी बातें एक के बाद एक निकल पड़ीं और लंबी सांस ले कर सुमि बोली, “कमाल है न कि यह समय भी कैसा खेल दिखाता है. जिन को हम ने अपना समझ कर अपनी हर समस्या साझा कर ली, वे ही दोस्त से देह के धंधेबाज बन गए, वह भी हमारी देह के.”

“हां सुमि, तुम सही कह रही हो. कल रात तुम को देखा तो लगा कि हम दोनों के सीने में शायद एकजैसा दर्द है,” कहते हुए दीया ने गहरी सांस ली. आज कितने दिनों के बाद वे दोनों दिल की बात कहसुन रही थीं.

सुमि को तब दीया ने बताया कि रामपुर में उस का पंडित परिवार किस तरह बस पूजा और अनुष्ठान के भरोसे ही चल रहा था, पर सारी दुनिया को कायदा सिखा रहे उस घर में तनिक भी मर्यादा नहीं थी. उस की मां को उस के सगे चाचा की गोद में नींद आती और पिता से तीसरेचौथे दिन शराब के बगैर सांस भी न ली जाती.

“तो तुम कुछ कहती नहीं थी?” सुमि ने पूछा.

“नहीं सुमि, मैं बहुत सांवली थी और हमारे परिवार मे सांवली लड़की किसी मुसीबत से कम नहीं होती, तो मैं घर पर कम रहती थी.”

“तुम कहां रहती थी?”

“सुमि, मैं न बहुत डरपोक थी और जब भी जरा फुरसत होती तो सेवा करने चली जाती. कभी कहीं किसी के बच्चों को पढ़ा देती तो किसी के कुत्तेबिल्ली की देखभाल करती बड़ी हो गई तो किसी की रसोई तक संभाल देती पर यह बात भीतर तक चुभ जाती कि कितनी सांवली है, इस को कोई पसंद नहीं करेगा,” दीया तब लगातार बोलती रही थी.

सुमि कितने गौर से सुन रही थी. अब वह एक सहेली पा कर उन यादों के अलबम पलटने लगी.

दीया बोलने लगी, “एक लड़का मेरा दोस्त बन गया. उस ने कभी नहीं कहा कि तुम सांवली हो और जब जरूरत होती वह खास सब्जैक्ट की किताबें और नोट्स आगे रखे हुए मुझे निहारता रहता.

“इस तरह मैं स्कूल से कालेज आई तो अलगअलग तरह की नईनई बातें सीख गई. मेरे कसबे के दोस्तों ने बताया था कि अगर कोई लड़का तुम से बारबार मिलना चाहे तो यही रूप सच्चे मददगार का भी रूप है और मैं ने आसानी से इस बात पर विश्वास कर लिया था.”

एक दिन इसी तरह कोई मुश्किल सब्जैक्ट समझाते हुए उस लड़के के एकाध बाल उलझ कर माथे पर आ गए थे तो दीया का मन महक गया. उस के चेहरे पर हलकीहलकी उमंग उठी थी.

हालांकि दीया की उम्र 20 साल से ज्यादा नहीं थी, पर उस के दिल पर एक स्थायी चाहत थी, जिस का रास्ता बारबार उसी अपने और करीबी से लगने वाले मददगार लड़के के पास जाता दिखाई देता था.

दीया कालेज में पढ़ने वाले उस लड़के का कोई इतिहासभूगोल जानती नहीं थी और जानना भी नहीं चाहती थी. सच्चा प्यार तो हमेशा ईमानदार होता है, वह सोचती थी. एक दिन वह अपने घर से रकम और गहने ले कर चुपचाप
रवाना हो गई. वह बेफिक्र थी, क्योंकि पूरे रास्ते उस का फरिश्ता उस को गोदी मे संभाले उस के साथ ही तो था और बहुत करीब भी था.

दीया उस लड़के के साथ बिलकुल निश्चिंत थी, क्योंकि उस को जब भी अपने मददगार यार के चेहरे पर मुसकराहट दिखाई देती थी, वह यही मान लेती थी कि भविष्य सुरक्षित है, जीवन बिलकुल मजेदार होने वाला है. आने वाले दिन तो और भी रसीले और चमकदार होंगे.

मगर दीया कहां जानती थी कि वे कोरे सपने थे, जो टूटने वाले थे. यह चांदनी 4-5 दिन में ही ढलने लगी. एक दिन वह लड़का अचानक उठ कर कहीं चला गया. दीया ने उस का इंतजार किया, पर वह लौटा नहीं, कभी नहीं.

उस के बाद दीया की जिंदगी बदल गई. वह ऐसे लोगों के चंगुल में फंस जो उसे यहांवहां नाचने के लिए मजबूर किया गया. इतना ही नहीं उस को धमकी मिलती कि तुम्हारी फिल्म बना कर रिलीज कर देंगे, फिर किसी कुएं या पोखर मे कूद जाना.

दीया को कुछ ऐसा खिलाया या पिलाया जाता कि वह सुबह खुद को किसी के बैडरूम में पाती और छटपटा जाती. कई दिनों तक यों ही शहरशहर एक अनाचारी से दूसरे दुराचारी के पलंग मे कुटने और पिसने के बाद वह सुमि से मिल गई.

सुमि ने दीया को पानी की बोतल थमा दी और बताया, “मैं खुद भी अपने मातापिता के मतभेद के बीच यों ही पिसती रही जैसे चक्की के 2 पाटों में गेहूं पिस जाता है. मां को आराम पसंद था पिता को सैरसपाटा और लापरवाही भरा जीवन. घर पर बस नौकर रहते थे. हमारे दादा के बगीचे थे. पूरे साल रुपया ही बरसता रहता था. अमरूद, आम से ले कर अंगूर, अनार के बगीचे.”

“अच्छा तो इतने पैसे मिलते थे…” दीया ने हैरानी से कहा.

“हां दीया, और मेरी मां बस बेफिक्र हो कर अपने ही आलस में रहती थी. पिता के बाहर न जाने कितने अफेयर चल रहे थे. वे बाजारू औरतों पर दौलत लुटा रहे थे, पर मां मस्तमगन रहती. इस कमजोरी के तो नौकर भी खूब मजे लेते. वे मां को सजधज कर तैयार हो कर बाहर सैरसपाटा करने में मदद करते और घर पर पिता को महंगी शराब के पैग पर पैग बना कर देते.

“मां और पिता दोनों से नौकरों को खूब बख्शीश मिलती और उन की मौज ही मौज होती, लेकिन जब भी मातापिता एक दूसरे के सामने पड़ते तो कुछ पल बाद ही उन दोनों में भयंकर बहस शुरू हो जाती, कभी रुपएपैसे के हिसाब को ले कर तो कभी मुझे ले कर कि मैं किस की जिम्मेदारी हूं.

“मेरा अकेला उदास मन मेरे हमउम्र पडो़सी मदन पर आ गया था. वह हर रोज मेरी बातें सुनता, मुझे पिक्चर दिखा लाता और पढ़ाई में मेरी मदद करता. कालेज में तो मेरा एक ही सहारा था और वह था मदन.

“पर एक दिन वह मेरे घर आया और शाम को तैयार रहना कह कर मुझे एक पार्टी में ले गया जहां मुझे होश आया तो सुबह के 5 बज रहे थे. मेरे अगलबगल 2 लड़के थे, मगर मदन का कोई अतापता ही नहीं था.

“मैं समझ गई थी कि मेरे साथ क्या हुआ है. मैं वहां से भागना चाहती थी, पर मुझे किसी ने बाल पकड़ कर रोक दिया और कहा कि कार में बैठो. वे लोग मुझे किसी दूसरे शहर ले गए और शाम को एक महफिल में सजधज कर शामिल होने को कहा.

“वह किसी बड़े आदमी की दावत थी. मैं अपने मातापिता से बात करने को बेचैन थी, मगर मुझे वहां कोई गोली खिला दी गई और मेरा खुद पर कोई कंट्रोल न रहा. फिर मेरी हर शाम नाचने में ही गुजरने लगी.”

“ओह, सुमि,” कह कर दीया ने उस के हाथ पर हाथ रख दिया था. आज 2 अजनबी मिले, पर अनजान होते हुए भी कई बातें समान थीं. उन की सरलता का फायदा उठाया गया था.

“देखो सुमि, हमारे फैसले और प्राथमिकता कैसे भी हों, वे होते तो हमारे ही हैं फिर उन के कारण यह दिनचर्या कितनी भी हताशनिराश करने वाली हो, दुविधा कितना भी हैरान करे, हम सब के पास 1-2 रास्ते तो हर हाल ही में रहते ही हैं और चुनते समय हम उन में से भी सब से बेहतरीन ही चुनते हैं, पर जब नाकाम हो जाते है, तो खुद को भरम में रखते हुए कहते हैं कि और कोई रास्ता ही नही था. इस से नजात पाए बिना दोबारा रास्ता तलाशना बेमानी है,” कह कर दीया चुप हो गई थी.

अब सुमि कहने लगी, “हमारे साथ एक बात तो है कि हम ने भरोसा किया और धोखा खाया, पर आज इस बुरे वक्त में हम दोनों अब अकेले नहीं रहेंगे. हम एकदूसरे की मदद के लिए खड़े हैं.”

“हां, मैं तैयार हूं,” कह कर दीया ने योजना बनानी शुरू की. तय हुआ कि 2 दिन बाद अपना कुछ रुपया ले कर रेल पकड़ कर निकल जाएंगी. उस के बाद जो होगा देखा जाएगा, अभी इस नरक से तो निकल लें.

यह बहुत अच्छा विचार था. 2 दिन बाद इस पर अमल किया. सबकुछ आराम से हो गया. वे दोनों चंडीगढ़ आ गईं. वहां उन्होंने एक बच्चा गोद लिया.

दीया यही सोच रही थी कि कुछ आवाज सी हुई. सुमि और दिसु लौट आए थे.

सुमि ने दीया की गीली आंखें देखीं और बोली, “ओह दीया, यह अतीत में डूबनाउतरना क्या होता है, क्यों होता है, किसलिए होता है, मैं नहीं जानती, क्योंकि मैं गुजरे समय के तिलिस्म में कभी पड़ी ही नहीं. मैं वर्तमान में जीना पसंद करती हूं. बीते समय और भविष्य की चिंता में वे लोग डूबे रहते हैं, जिन के पास डूबने का और कोई साधन नहीं होता…”

“अच्छा, मेरी मां,” कह कर दीया ने सुमि को अपने गले लगा लिया.

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